Best Hindi Story: ये भोलीभाली लड़कियां- क्या हर लड़का होता है जालसाज

Best Hindi Story: सचमुच लड़कियां बड़ी भोली होती हैं. हाय, इतनी भोलीभाली लड़कियां हमारे जमाने में नहीं होती थीं. होतीं तो क्या हम प्यार का इजहार करने से चूकते. तब लड़कियां घरों से बाहर भी बहुत कम निकलती थीं. इक्कादुक्का जो घरों से निकलती थीं, वे बस 8वीं तक पढ़ने के लिए. मैं गांवदेहात की बात कर रहा हूं. शहर की बात तो कुछ और रही होगी.

हाईस्कूल और इंटरमीडिएट में मेरे साथ एक भी लड़की नहीं पढ़ती थी. निगाहों के सामने जो भी जवान लड़की आती थी, वह या तो अपने गांव की कोई बहन होती थी या फिर कोई रिश्तेदार जिस से नजर मिलाते हुए भी शर्म आती थी. इस का मतलब यह नहीं कि गांव में प्रेमाचार नहीं होता था. कुछ हिम्मती लड़केलड़कियां हमारे जमाने में भी होते थे जो चोरीछिपे ऐसा काम करते थे और उन के चर्चे भी गांव वालों की जबान पर चढ़े रहते थे.

लेकिन तब की लड़कियां इतनी भोली नहीं होती थीं, क्योंकि उन को बहलानेफुसलाने और भगा कर ले जाने के किस्से न तो आम थे, न ही खास. अब जब मैं बुढ़ापे के पायदान पर खड़ा हूं तो आएदिन न केवल अखबारों में पढ़ता हूं, टीवी पर देखता हूं, बल्कि लोगों के मुख से भी सुनता हूं कि हरदिन बहुत सारी लड़कियां बलात्कार का शिकार होती हैं. लड़कियां बयान देती हैं कि फलां व्यक्ति या लड़के ने बहलाफुसला कर उस के साथ बलात्कार किया और अब शादी करने से इनकार कर रहा है. यहां वास्तविक घटनाओं को अपवाद समझिए.

तभी तो कहता हूं कि आजकल की पढ़ीलिखी, ट्रेन, बस और हवाई जहाज में अकेले सफर करने वाली, अपने मांबाप को छोड़ कर पराए शहरों में अकेली रह कर पढ़ने वाली लड़कियां बहुत भोली हैं.

बताइए, अगर वे भोली और नादान न होतीं तो क्या कोई लड़का उन को मीठीमीठी बातें कर के बहलाफुसला कर अपने प्रेमजाल में फंसा सकता है और अकेले में ले जा कर उन के साथ बलात्कार कर सकता है.

पुलिस में लिखाई गई रिपोर्ट और लड़कियों के  बयानों के आधार पर यह तथ्य सामने आता है कि आजकल की लड़कियां इतनी भोलीभाली हैं कि वे किसी भी जानपहचान और कई बार तो किसी अनजान व्यक्ति की बातों तक में आ जातीं और उस के साथ कार में बैठ कर कहीं भी चली जाती हैं.

वह व्यक्ति उन को बड़ी आसानी से होटल के कमरे या किसी सुनसान फ्लैट में ले जाता है और वहां उस के साथ बलात्कार करता है. बलात्कार के बाद लड़कियां वहां से बड़ी आसानी से निकल भी आती हैं. 3-4 दिनों तक  उन्हें अपने साथ हुए बलात्कार से पीड़ा या मानसिक अवसाद नहीं होता, लेकिन फिर जैसे अचानक ही वे किसी सपने से जागती हैं और बिलबिलाती हुई बलात्कार का केस दर्ज करवाने पुलिस थाने पहुंच जाती हैं.

लड़कियां केवल इस हद तक ही भोली नहीं होती हैं. वे किसी भी अनजान लड़के की बातों पर विश्वास कर लेती हैं और उस के साथ अकेले जीवन गुजारने के लिए तैयार हो जाती हैं. लड़कों की मीठीमीठी बातों में आ कर वे अपने शरीर को भी उन्हें समर्पित कर देती हैं. दोचार साल लड़के के साथ रहने पर उन्हें अचानक लगता है कि लड़का अब उन से शादी करने वाला नहीं है, तो वे पुलिस थाने पहुंच कर उस लड़के के खिलाफ बलात्कार का मुकदमा दर्ज करवा देती हैं.

सच, आज लड़कियां क्या इतनी भोली हैं कि उन्हें यह तक समझ नहीं आता कि जिस लड़के को बिना शादी के ही मालपुआ खाने को मिल रहा हो और जिस मालपुए को जूठा कर के वह फेंक चुका है, वह उस जमीन पर गिरे मैले मालपुए को दोबारा उठा कर क्यों खाएगा.

मैं तो ऐसी लड़कियों का बहुत कायल हूं, मैं उन की बुद्धिमता की दाद देता हूं जो मांबाप की बातों को तो नहीं मानतीं, लेकिन किसी अनजान लड़के की बातों में बड़ी आसानी से आ जाती हैं. हाय रे, आज की लड़कियों का भोलापन.

लड़कियां इतनी भोली होती हैं कि वे अनजान या अपने साथ पढ़ने वाले लड़कों की बातों में तो आ जाती हैं, लेकिन अपने मांबाप की बातों में कभी नहीं आतीं. जवान होने पर वे उन का कहना नहीं मानतीं, उन की सभी नसीहतें उन के कानों में जूं की तरह रेंग जाती हैं और वे अपनी चाल चलती रहती हैं. वे अपने लिए कोई भी टुटपुंजिया, झोंपड़पट्टी में रहने वाला टेढ़ामेढ़ा, बेरोजगार लड़का पसंद कर लेती हैं, लेकिन मांबाप द्वारा चुना गया अच्छा, पढ़ालिखा, नौकरीशुदा, संभ्रांत घरपरिवार का लड़का उन्हें पसंद नहीं आता. इस में उन का भोलापन ही झलकता है, वरना मांबाप द्वारा पसंद किए गए लड़के के साथ शादी कर के हंसीखुशी जीवन न गुजारतीं. फिर उन को किसी लड़के के साथ कुछ सालों तक बिना शादी के रहने के बाद बलात्कार का मुकदमा दर्ज कराने की नौबत नहीं आती.

आजकल की लड़कियों को तब तक अक्ल नहीं आती, जब तक कोई लड़का उन के शरीर को पके आम की तरह पूरी तरह चूस कर उस से रस नहीं निचोड़ लेता. जब लड़का उस को छोड़ कर किसी दूसरी लड़की को अपने प्रेमजाल में फंसाने के लिए आतुर दिखता है, तब वे इतने भोलेपन से भोलीभाली बन कर जवाब देती हैं कि आश्चर्य होता है कि इतनी पढ़ीलिखी और नौकरीशुदा लड़की इतनी भोली भी हो सकती है कि कोई भी लड़का उसे बहलाफुसला कर, शादी का झांका दे कर उस के साथ 4 साल तक लगातार बलात्कार करता रहता है.

हाय रे, मासूम लड़कियो, इतने सालों तक कोई लड़का तुम्हारे शरीर से खेल रहा था, लेकिन तुम्हें पता नहीं चल पाया कि वह तुम्हारे साथ बलात्कार कर रहा है.

अगर शादी करने के लिए ही लड़की उस लड़के के साथ रहने को राजी हुई थी तो पहले शादी क्यों नहीं कर ली थी. बिना शादी के वह लड़के के साथ रहने के लिए क्यों राजी हो गई थी.

एक बार शादी कर लेती, तब वह उस के साथ रहने और अपने शरीर को सौंपने के लिए राजी होती. लेकिन क्या किया जाए, लड़कियां होती ही इतनी भोली हैं कि उन्हें जवानी में अच्छाबुरा कुछ नहीं सूझता और वे हर काम करने को तैयार हो जाती हैं जिसे करने के लिए उन्हें मना किया जाता है.

वे खुलेआम चिडि़यों को दाना चुगाती रहती हैं और जब चिडि़यां उड़ जाती हैं तब उन के दाना चुगने की शिकायत करती हैं. ऐसे भोलेपन का कौन नहीं लाभ उठाना चाहेगा. यह तो मानना पड़ेगा कि लड़कियों के मुकाबले लड़के ज्यादा होशियार होते हैं, तभी तो वे लड़कियों के भोलेपन का फायदा उठाते हैं. लड़कियां भोली न होतीं तो क्या अपने घर से अपनी मां के जेवर और बाप की पूरी कमाई ले कर लड़के के साथ रफूचक्कर हो जातीं.

लड़के तो कभी अपने घर से कोई मालमत्ता ले कर उड़नछू नहीं होते. वे लड़की के साथसाथ उस के पैसे से भी मौज उड़ाते हैं और जब मालमत्ता खत्म हो जाता है तो लड़की उन के लिए बासी फूल की तरह हो जाती है और तब लड़के की आंखें उस से फिर जाती हैं. उस की आंखों में कोई और मालदार लड़की आ कर बस जाती है. तब लूटी गई लड़की की अक्ल पर पड़ा पत्थर अचानक ही हट जाता है. तब भारतीय दंड संहिता की सारी धाराएं उसे याद आती हैं और वह लड़के के खिलाफ सारे हथियार उठा कर खड़ी हो जाती है. वह लड़का जो उसे दुनिया का सब से प्यारा इंसान लगता था, अचानक अब उसे वह बद से बदतर लगने लगता है.

लड़कियां अगर जीवनभर भोली बनी रहीं तो पुलिस का काम आसान हो जाए. उन के क्षेत्र में होने वाली बलात्कार की घटनाएं समाप्त हो जाएंगी, क्योंकि तब कोई लड़की बलात्कार का मुकदमा दर्ज करवाने के लिए थाने नहीं जाएगी. कई साल तक लड़के के साथ बिना शादी के रहने पर भी उसे शादी का खयाल तक नहीं आएगा. जब लड़की शादी ही नहीं करना चाहेगी तो फिर उस के साथ बलात्कार होने का सवाल ही पैदा नहीं होता.

रही बात दूसरी लड़कियों की जो बिना कुछ सोचेविचारे लड़कों के साथ, रात हो या दिन, कहीं भी चल देती हैं, पढ़लिख कर भी उन की बुद्धि पर पत्थर पड़े रहते हैं तो उन का भला कोई नहीं कर सकता.

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Family Drama Story: सास की अलग घर से चले मिसाइल

Family Drama Story: यह मीटिंग सोसायटी के क्लब हाउस में हो रही थी. मीटिंग सिर्फ बहुओं की थी. अब आप कहेंगे कि इस में नया क्या है? सासबहू में तो सदियों से छत्तीस का आंकड़ा रहा है. पीडि़त बहुएं तो घरघर मिल जाएंगी. हां, यह भी ठीक है. मगर ये बहुएं थोड़ा हट कर हैं. पढ़ीलिखी, अपडेट और सास से दूर पति संग अलग आशियाने में आजाद रहने वाली यानी इन की सासें परदेश में बसती हैं या यह भी कह सकते हैं कि ये सासूबाड़ी छोड़ कर परदेश में बसी हुई हैं. फिर दुख काहे का? सास साथ नहीं रहतीं तो फिर कैसी टैंशन? यही तो बात है. ‘सासूमां साथ नहीं तो टैंशन नहीं’ लोग यही समझते हैं. घूमोफिरो मौज करो, जैसी मरजी वैसा जीने का नियम बनाओ. लेकिन जरा रूबी, सोनी, दीपा, स्वीटी, पल्लवी, सोनम, अर्चना, कनक… लंबी लिस्ट है.

इन की दुखती रग पर हाथ रखो तो पता चलेगा कि सासें दूर रह कर भी कैसे इन पर हुक्म चलाती हैं और तब इन के दिल पर क्या बीतती है सहज अंदाजा लगा सकती हैं… त्राहित्राहि करती हैं ये बेचारियां. किस से करें फरियाद और कौन सुनेगा इन की फरियाद.

ये होपलैस बहुएं दूसरे शहरों में रहने वाली अपनी सासों से परेशान हो कर आज मीटिंग कर रही हैं. इस मीटिंग का धांसू आइडिया मिसेज अग्रवाल का है. वे यूएसए में रहती हैं. 2 साल बाद त्योहार पर भारत आईं है. होली मिलन समारोह में हंसीठट्ठे के बीच उन्होंने कुबूल किया, ‘‘यहीं से बैठेबैठे मेरी सास अपना शासन चलाती हैं. उफ, मैं तंग आ जाती हूं… कई बार लगता है सात समंदर पार रहने का कोई फायदा नहीं.

बिंदी भले ही नहीं लगाती हूं, पर सास का हुक्म सिरमाथे पर लगा कर रहना पड़ता है.’’ हंसीमजाक में जो बात निकली तो दूर तक गई. मैडम सोनम ने ताड़ लिया कि मामला गड़बड़ है. अत: वे मिसेज अग्रवाल के पीछे पड़ गईं. उन्होंने उन से सास के कुछ राज भी उगलवा लिए. वे खुद भी दूसरे शहर में रहने वाली अपनी सासूमां से त्रस्त थीं. आरती अग्रवाल ने प्रस्ताव रखा, ‘‘कल हम लोग क्लब हाउस में मिलें और वहां अपनीअपनी बात रखें. हम सब मिल कर इस समस्या का समाधान खोजने की कोशिश करें कि कैसे सासू मां की दखलंदाजी नहींनहीं तीरंदाजी से छुटकारा पाया जाए.’’

सोसायटी की लगभग सारी बहुएं मीटिंग में आ गई थीं. मिसेज अग्रवाल ने मोरचा संभाला, ‘‘अपनीअपनी सासूमां से त्रस्त फ्रैंड्स, आप सब को पता है कि हम यहां क्यों इकट्ठा हुए हैं? हमारे पास ज्यादा समय नहीं है, इसलिए सब बिना किसी लागलपेट के अपनीअपनी परेशानी यहां रखें और फिर मिलजुल कर समाधान ढूंढ़ने का प्रयास करें. आप लोग जानती ही हैं कि मैं सात समंदर पार रहती हूं. पता है सासूमां की जिद की वजह से मुझे इस होली पर यहां आना पड़ा. वैसे यहां आ कर घरपरिवार के लोगों से मिलनाजुलना मुझे भी अच्छा लगता है लेकिन फ्रैंड्स इस बार मैं यहां इसलिए नहीं आना चाहती थी. क्योंकि मेरी तबीयत ठीक नहीं चल रही थी. डाक्टर ने 2-3 महीनों तक लंबी यात्रा करने से मना किया था.

सासूमां ने अपने बेटे को औफिस में बारबार फोन कर परेशान कर दिया कि देखो तनु सिर्फ बहाने बना रही है और कुछ नहीं. वह यहां आना ही नहीं चाहती. एक बार नहीं आएगी तो फिर हर बार नए बहाने बनाएगी. बेटे को जाने क्या पाठ पढ़ाया कि उन्होंने टिकट ले कर सीधे मुझे फरमान सुना दिया कि तुम्हें होली मां के साथ ही मनानी है.

इतना ही नहीं, सासूमां रोज वीडियो कौल कर के कोई न कोई हिदायत देती रहती हैं… कभी सुबहसुबह कहती हैं कि आज वृहस्पतिवार है. याद दिला रही हूं… तुम्हें तो कुछ याद रहता नहीं रहता … आज कपड़े मत धोना. और हां, सत्तू के पराठे मत बना लेना. तुम दोनों को बहुत पसंद हैं… जबतब बना लेती हो. वीडियो चैट में वे लंच बौक्स तक देखती हैं कि उस में सत्तू के परांठे तो नहीं हैं. मैं कितनी परेशान हूं बता नहीं सकती… ऐसीऐसी ऊलजलूल बातें करती हैं कि झेलना मुश्किल हो जाता है.

‘‘बेड़ा गर्क हो नैटवर्क कंपनियों का, जिन्होंने हमारी सासों के हाथों में फ्री नैटवर्करूपी मजबूत मिसाइल थमा दी है… क्या बताऊं यहां आने के 2 दिन पहले की बात है. हम लोग डिनर कर रहे थे. बड़े प्यार से इन्होंने खीरा, टमाटर और गाजर का सलाद काटा था. हम लोगों को यह सलाद बहुत पसंद है. सासूमां की नजर उस प्लेट पर पड़ गई. फिर क्या था उन्होंने उसी समय उसे वहां से यह कह कर हटवा दिया कि रात में ये ठंडी चीजें क्यों खा रहे हो तुम लोग? याद नहीं सोमू को पिछले साल डाक्टर ने रात में सलाद खाने से मना किया था… फिर से सर्दीवर्दी हो गई तो… और तब तक वीडियो चैट करती रहीं जब तक कि हमारा डिनर खत्म नहीं हो गया.’’ ‘‘उफ,’’ सब के मुंह से एकसाथ निकला. यह सब की आह थी.

मिसेज अग्रवाल ने सब की दुखती रग पर हाथ रख दिया था. जब सब की सांस में सांस आई तो अंकिता ने अपनी बात रखी, ‘‘मेरी सासूमां गांव में रहती हैं, जो अब आधाअधूरा शहर हो गया है. उन का फरमान है कि हर पर्वत्योहार वहीं आ कर उन के साथ मनाएं. शादी के 12 साल बीत गए हैं. यह सिलसिला जारी है. वहां जा कर त्योहार क्या मनाना, सारा दिन किचन में ही बीत जाता है.

‘‘अब बेटियां भी बड़ी हो रही हैं. वे वहां नहीं जाना चाहतीं. वहां हम लोग न तो अपनी पसंद का खा सकते हैं, न ही पहन सकते हैं और न ही मौजमस्ती कर सकते हैं. मैं किसी फैस्टिवल पर अपने हिसाब से घर सजाने के लिए तरस गई हूं. पति से कुछ कहती हूं तो कहते कि निभाना तो पड़ेगा ही. अब जब त्योहार आने वाला होता है, तो मन बुझ जाता है.

औफिस में ज्यादा काम होने की वजह से इस बार होली में इन्हें सिर्फ 2 दिन की छुट्टी मिलने वाली थी. मैं और मेरी बेटियां खुश थीं कि इस बार हम अपने मनमुताबिक होली मनाएंगे. लेकिन आप लोगों ने देखा है न कि सासूमां होली से सप्ताहभर पहले खुद आ गईं और मोरचा संभाल लिया.’’ एक बार फिर सब की आह फिजां में फैल गई.

अब रागिनी ने बड़े दुखी स्वर में राग छेड़ा, ‘‘2-3 महीने पहले की बात है. मेरी ससुराल में दूर के रिश्ते की चाची का निधन हो गया. हमारी शादी को 14 साल हो गए हैं. मैं ने 1 बार भी उन्हें नहीं देखा. यहां तक कि वे किसी शादीब्याह में भी नहीं आती थीं. उन के परलोक गमन के बाद सासूमां का संदेशा आया कि हमारे यहां का रिवाज है कि किसी की मौत के बाद 10वीं तक घर में रोटी नहीं बनती. दालसब्जी में छौंक नहीं लगता. हलदीहींग भी नहीं डालते यानी उबला खाना खाते हैं. मैं ने पति से कहा कि हम ये सारी रस्में कैसे निभा पाएंगे? फिर बच्चों को स्कूल के लिए लंच ले जाना होता है. वे क्या ले जाएंगे, क्या खाएंगे? लेकिन न सास मानीं, न पति. मैं ने जिद ठानी तो पति ने ऐलान किया कि ठीक है, तुम खाना मत बनाओ. मैं खुद बनाऊंगा. अब बताइए मैं क्या करती? यही नहीं हमारी ससुराल में 10वीं के दिन सिर मुड़ाने का रिवाज है. इन्होंने खुद का तो सिर मुड़वाया ही, 7 साल के बेटे का भी मुंडन करवा दिया. वह रोता रहा कि मुझे अपने बाल नहीं कटवाने… मुझे स्कूल में नाटक में भाग लेना है. उन्होंने उस की एक नहीं सुनी…’’

‘‘हाय रे बेचारा बच्चा,’’ सब के मुंह से निकला. कुछ पलों के लिए वातावरण में सन्नाटा छा गया. फिर स्वीटी की स्वरलहरी हवा में तैरने लगी, ‘‘मेरी सास छोटे शहर में रहती हैं. शादी को 2 साल ही हुए हैं और मैं उन की हिदायतों से परेशान हो गई हूं. आप लोग जानती ही हैं कि मैं प्रैगनैंट हूं. वे वहीं से फोन कर कहती हैं कि शाम के समय बाहर न निकलूं. शाम में बुरा साया गर्भस्त शिशु को नुकसान पहुंचा सकता है. मैं शाम को सैर करने के लिए तरस गई हूं.

‘‘न मैं किसी पार्टी में जा पाती हूं और न थिएटर या मौल में. पति शाम में आते हैं. वे बाहर ले जाना चाहते हैं, लेकिन इसी सोसायटी में रिश्ते की एक ननद रहती हैं. वे सासूमां को सारी इन्फौर्मेशन पहुंचा देती हैं और फिर सासूमां फोन पर मुझे डांटती हैं. पति की भी क्लास लगती है. इसलिए अब पति भी शाम के बाद कहीं नहीं ले जाते. अब तो किसी जरूरी चैकअप के लिए भी शाम में निकलने पर कांप जाती हूं कि न जाने सासूमां का कब कौन सा कहर टूट पड़े.’’

‘‘उफ,’’ एक तो प्रैगनैंट, उस पर सारा दिन घर में अकेली और शाम को दूर बैठी सास मिसाइल दागना शुरू कर देती हैं. लेकिन चारा क्या है.

1-1 कर सभी बहुएं अपनीअपनी मिसाइल रूपी सास का गुणगान करती गईं और साथ ही आह, ओह, हाय, उफ के साथ संवेदनशील खुसुरफुसुर भी करती रहीं. मीटिंग थी कि खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी और न ही कोई हल निकल पा रहा था. अनीता भाभी बड़ी देर से सिर पर हाथ रख कर कुछ सोच रही थीं. तीर मारने वाले अंदाज में उठीं और बड़े जोश में हवा में हाथ लहरा कर बोलीं, ‘‘लेकिन हमारे पति तो अपनी मां को समझा सकते हैं न… अगर वे लोग उन्हें समझाएं तभी कुछ बात बने… चुगली करने वाले रिश्तेदारों को भी पाठ पढ़ाना पड़ेगा…’’

अभी वो कुछ और कहना चाहती थीं कि अचानक लेकिन कहतेकहते रुक गईं और मुख्य दरवाजे की ओर इशारा करने लगीं. सब ने देखा सलोनी मिश्रा की सास अचानक प्रकट हो गई थीं. भारीभरकम डीलडौल, भराभरा गोलमटोल चेहरा, मोटीमोटी काली आंखें… हरदम अपने साथ छाता रखतीं, हर मौसम में. उस छाते को उन्होंने मिसेज अग्रवाल की ओर ऐसे ताना जैसे मिसाल छोड़ रही हों, ‘‘अरे ओ मैडम, सलोनी कहां है, बताएंगी? इतनी भीड़ में कहां खोजूं उसे… हम इतनी दूर से आए हैं और वह हम से आंखमिचौली खेल रही है… और तुम लोग यहां एकसाथ क्यों जमा हुई हैं. कोई साजिश रच रही हैं क्या? चलोचलो… कोई कामधाम है या नहीं?’’

सलोनी को ढूंढ़ती उन की आंखें ऐसे बाहर निकली जा रही थीं जैसे सब को खा जाएंगी. सलोनी ने तेजी से उठ कर सासूमां के पैर छुए और उन के साथ ही निकल गई. मीटिंग में जैसे भूचाल आ गया हो. अब गु्रप में बंट कर बहुएं खुसुरफुसुर करने लगी थीं… मिसेज अग्रवाल कब कहां गायब हो गई किसी को पता ही नहीं चला. एक मिसाइल ही सब पर भारी पड़ गया.

Family Drama Story

Thriller Story: वसूली- क्या हुआ था रधिया के साथ

Manoj Kumar Jha

Thriller Story: रधिया का पति बिकाऊ एक बड़े शहर में दिहाड़ी मजदूर था. रधिया पहले गांव में ही रहती थी, पर कुछ महीने पहले बिकाऊ उसे शहर में ले आया था. वे दोनों एक झुग्गी बस्ती में किराए की कोठरी ले कर रहते थे.

रधिया को खाना बनाने से ले कर हर काम उसी कोठरी में ही करना पड़ता था. सुबहशाम निबटने के लिए उसे बोतल ले कर सड़क के किनारे जाना पड़ता था. उसे शुरू में खुले में नहाने में बड़ी शर्म आती थी. पता नहीं कौन देख ले, पर धीरेधीरे वह इस की आदी हो गई.

बिकाऊ 2 रोटी खा कर और 4-6 टिफिन में ले कर सुबह 7 बजे निकलता, तो फिर रात के 9 बजे से पहले नहीं आता था. उस की 12 घंटे की ड्यूटी थी.

जब बिकाऊ को महीने की तनख्वाह मिलती, तो रधिया बिना बताए ही समझ जाती थी, क्योंकि उस दिन वह दारू पी कर आता था. रधिया के लिए वह दोने में जलेबी लाता और रात को उस का कचूमर निकाल देता.

बिकाऊ रधिया से बहुत प्यार करता था, पर उस की तनख्वाह ही इतनी कम थी कि वह रधिया के लिए कभी साड़ी या कोई दूसरी चीज नहीं ला पाता था.

एक दिन दोपहर में रधिया अपनी कोठरी में लेटी थी कि दरवाजे पर कुछ आहट हुई. वह बाहर निकली, तो सामने एक जवान औरत को देखा.

उस औरत ने मुसकरा कर कहा, ‘‘मेरा नाम मालती है. मैं बगल की झुग्गी में ही रहती हूं. तुम जब से आई हो, कभी तुम्हें बाहर निकलते नहीं देखा. मर्द तो काम पर चले जाते हैं. बाहर निकलोगी, तभी तो जानपहचान बढ़ेगी. अकेले पड़ेपड़े तो तुम परेशान हो जाओगी. चलो, मेरे कमरे पर, वहां चल कर बातें करते हैं.’’

रधिया ने कहा, ‘‘मैं यहां नई आई हूं. किसी को जानती तक नहीं.’’

‘‘अरे, कोठरी से निकलोगी, तब तो किसी को जानोगी.’’

रधिया ने अपनी कोठरी में ताला लगाया और मालती के साथ चल पड़ी.

जब वह मालती की झुग्गी में घुसी, तो दंग रह गई. उस की झुग्गी में

2 कोठरी थी. रंगीन टैलीविजन, फ्रिज, जिस में से पानी निकाल कर उस ने रधिया को पिलाया.

रधिया ने कभी फ्रिज नहीं देखा था, न ही उस के बारे में सुना था.

रधिया ने पूछा, ‘‘बहन, यह कैसी अलमारी है?’’

इस पर मालती मन ही मन मुसकरा दी. उस ने कहा, ‘‘यह अलमारी नहीं, फ्रिज है. इस में रखने पर खानेपीने की कोई चीज हफ्तों तक खराब नहीं होती. पानी ठंडा रहता है. बर्फ जमा सकते हैं. पिछले महीने ही तो पूरे 10 हजार रुपए में लिया है.’’

रधिया ने हैरानी से पूछा, ‘‘बहन, तुम्हारे आदमी क्या काम करते हैं?’’

मालती ने कहा, ‘‘वही जो तुम्हारे आदमी करते हैं. बगल वाली कैमिकल फैक्टरी में मजदूर हैं. पर उन की कमाई से यह सब नहीं है. मैं भी तो काम करती हूं. यहां रहने वाली ज्यादातर औरतें काम करती हैं, नहीं तो घर नहीं चले.

‘‘बहन, मैं तो कहती हूं कि तुम भी कहीं काम पकड़ लो. काम करोगी, तो मन भी बहला रहेगा और हाथ में दो पैसे भी आएंगे.’’

‘‘पर मुझे क्या काम मिलेगा? मैं तो अनपढ़ हूं.’’

‘‘तो मैं कौन सी पढ़ीलिखी हूं. किसी तरह दस्तखत कर लेती हूं. यहां अनपढ़ों के लिए भी काम की कमी नहीं है. तुम चौकाबरतन तो कर सकती हो? कपड़े तो साफ कर सकती हो? चायनाश्ता तो बना सकती हो? ऐसे काम कोठियों में खूब मिलते हैं और पैसे भी अच्छे मिलते हैं. नाश्ताचाय तो हर रोज मिलता ही है, त्योहारों पर नए कपड़े और दीवाली पर गिफ्ट.’’

‘‘आज मैं अपनी कमाई में से ही 2 बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ा रही हूं. इन की कमाई तो झुग्गी के किराए, राशन और दारू में ही खर्च हो जाती है.’’

‘‘क्या मुझे काम मिलेगा?’’ रधिया ने जल्दी से पूछा.

‘‘करना चाहोगी, तो कल से ही काम मिलेगा. जहां मैं काम करती हूं, उस के बगल में रहने वाली कोठी की मालकिन कामवाली के बारे में पूछ रही थीं. वे एक बड़े स्कूल में पढ़ाती हैं. उन के मर्द वकील हैं. 2 बच्चे हैं, जो मां के साथ ही स्कूल जाते हैं.

‘‘मैं आज शाम को ही पूछ लूंगी और पैसे की बात भी कर लूंगी. मालिकमालकिन अगर तुम्हारे काम से खुश हुए, तो तनख्वाह के अलावा ऊपरी कमाई भी हो जाती है.’’

इस बीच मालती ने प्लेट में बिसकुट और नमकीन सजा कर उस के सामने रख दिए. गैस पर चाय चढ़ा रखी थी.

चाय पीने के बाद मालती ने रधिया से कहा कि वह चाहे, तो अभी उस के साथ चली चले. मैडम 2 बजे घर आ जाती हैं. आज ही बात पक्की कर ले और कल से काम पर लग जा.

मालती ने यह भी बताया कि हर काम के अलग से पैसे मिलते हैं. अगर सफाई करानी हो, तो उस के 3 सौ रुपए. कपड़े भी धुलवाने हों, तो उस के अलग से 3 सौ रुपए. अगर सारे काम कराने हों, तो कम से कम 2 हजार रुपए.

मालती कपड़े बदलने लगी. उस ने रधिया से कहा, ‘‘चल, तू भी कपड़े बदल ले. पैसे की बात मैं करूंगी. चायनाश्ता तो बनाना जानती होगी?’’

‘‘हां दीदी, मैं सब जानती हूं. मीटमछली भी बना लेती हूं,’’ रधिया ने कहा. उस का दिल बल्लियों उछल रहा था. अगर वह महीने में 2 हजार रुपए कमाएगी, तो उस की सारी परेशानी दूर हो जाएंगी.

रधिया तेजी से अपनी झुग्गी में आई. नई साड़ी पहनी और नया ब्लाउज भी. पैरों में वही प्लास्टिक की लाल चप्पल थी. उस ने आंखों में काजल लगाया और मालती के साथ चल पड़ी.

रधिया थी तो सांवली, पर जोबन उस का गदराया हुआ था और नैननक्श बड़े तीखे थे. गांव में न जाने कितने मर्द उस पर मरते थे, पर उस ने किसी को हाथ नहीं लगाने दिया. इस मामले में वह बड़ी पक्की थी.

रास्ते में मालती ने कहा, ‘‘बहन, अगर तुम्हारा काम बन गया, तो मैं महीने की पहली पगार का आधा हिस्सा लूंगी. यहां यही रिवाज है.’’

मालती एक कोठी के आगे रुकी. उस ने घंटी बजाई, तो मालकिन ने दरवाजा खोला.

मालती ने उन्हें नमस्ते किया. रधिया ने भी हाथ जोड़ कर नमस्ते किया. मालती 2 साल पहले उन के घर भी काम कर चुकी थी.

गेट खोल कर अंदर जाते ही मालती ने कहा, ‘‘मैडमजी, मैं आप के लिए बाई ले कर आई हूं.’’

‘‘अच्छा, बाई तो बड़ी खूबसूरत है. पहले कहीं काम किया है?’’ मैडम ने रधिया से पूछा.

मालती ने जवाब दिया, ‘‘अभी गांव से आई है, पर हर काम जानती है. मीटमछली तो ऐसी बनाती है कि खाओ तो उंगलियां चाटती रह जाओ. मेरे इलाके की ही है, इसीलिए मैं आप के पास ले कर आई हूं. अब आप बताओ कि कितने काम कराने हैं?’’

मैडम ने कहा, ‘‘देख मालती, काम तो सारे ही कराने हैं. सुबह का नाश्ता और दिन में लंच तैयार करना होगा. रात का डिनर मैं खुद तैयार कर लूंगी. कपड़े धोने ही पड़ेंगे, साफसफाई, बरतनपोंछा… यही सारे काम हैं. सुबह जल्दी आना होगा. मैं साढ़े 7 बजे तक घर से निकल जाती हूं.’’

इस के बाद मैडम ने मोलभाव किया और पूछा, ‘‘कल से काम करोगी?’’

‘‘मैं कल से ही आ जाऊंगी. जब काम करना ही है, तो कल क्या और परसों क्या?’’ रधिया ने कहा.

रात में जब बिकाऊ घर लौटा, तो रधिया ने उसे सारी रामकहानी सुनाई.

बिकाऊ ने कहा, ‘‘यह तो ठीक है कि तू काम पर जाएगी, पर कोठियों में रहने वाले लोग बड़े घटिया होते हैं. कामवालियों पर बुरी नजर रखते हैं. यह मालती बड़ी खेलीखाई औरत है. जिन कोठियों में काम करती है, वहां मर्दों को फांस कर वह खूब पैसे ऐंठती है. ऐसे ही नहीं, इस के पास फ्रिज और महंगीमहंगी चीजें हैं.’’

इस पर रधिया ने कहा, ‘‘मुझ पर कोई हाथ ऐसे ही नहीं लगा सकता. गांव में भी मेरे पीछे कुछ छिछोरे लगे थे, पर मैं ने किसी को घास नहीं डाली.

‘‘एक दिन दोपहर में मैं कुएं से पानी भरने गई थी. जेठ की दोपहरी, रास्ता एकदम सुनसान था. तभी न जाने कहां से बाबू साहब का बड़ा लड़का आ टपका और अचानक उस ने मेरा हाथ पकड़ लिया. मैं ने उसे ऐसा धक्का दिया कि कुएं में गिरतेगिरते बचा और फिर भाग ही खड़ा हुआ.

‘‘मैं दबने वाली नहीं हूं. पर मैं ने बात कर ली है. दुनिया में बुरेभले हर तरह के लोग हैं.’’

बिकाऊ ने कहा, ‘‘तू जैसा ठीक समझ. मुझे तुझ पर पूरा भरोसा है.’’

दूसरे दिन रधिया सुबह जल्दी उठी और मालती को साथ ले कर 6 बजे तक कोठी पर पहुंच गई. मालकिन ने उसे सारा काम समझाया.

रधिया ने जल्दी से पोंछा लगा दिया, गैस जला कर चाय भी बना दी.

‘‘तू भी समय से नाश्ता कर लेना. चाहो तो बाथरूम में नहा भी सकती हो. साहब निकल जाएं, तो कुछ कपड़े हैं, उन्हें धो लेना.’’

थोड़ी देर में रधिया साहब के लिए चाय बनाने चली गई. ‘ठक’ की आवाज कर वह कमरे में आ गई और बैड के पास रखी छोटी मेज पर टे्र को रख दिया.

साहब ने रधिया को गौर से देखा और कहा, ‘‘देखना, बाहर अखबार डाल गया होगा. जरा लेती आना.’’

रधिया बाहर से अखबार ले कर आ गई और साहब की तरफ बढ़ा दिया. इसी बीच साहब ने 5 सौ का एक नोट उस की तरफ बढ़ाया.

रधिया ने कहा, ‘‘यह क्या?’’

‘‘यह रख ले. मालती ने तुझ से 5 सौ रुपए ले लिए होंगे. पहले वह यहां काम कर चुकी है.

‘‘तुम ये 5 सौ रुपए ले लो, पर मैडम से मत कहना. तनख्वाह मिलने पर मैं अलग से 5 सौ तुझे फिर दे दूंगा. यह मुआवजा समझना.’’

लेकिन रधिया ने अपना हाथ नहीं बढ़ाया. इस पर साहब ने उसे 5 सौ के

2 नोट लेने को कहा.

रधिया ने साहब के बारबार कहने पर पैसे ले लिए और कपड़े धोने में लग गई. कपड़े धो कर जब तक उन्हें छत पर सुखाने डाला, तब तक साहब नहाधो कर तैयार थे. उस ने उन के नाश्ते के लिए आमलेट और ब्रैड तैयार किया, फिर चाय बनाई.

नाश्ता करने के बाद साहब बोले, ‘‘तू ने तो अच्छा नाश्ता तैयार किया. पर नाश्ते से ज्यादा तू अच्छी लगी.’’

चाय देते समय उस ने जानबूझ कर ब्लाउज का बटन ढीला कर दिया और ओढ़नी किनारे रख दी.

‘‘अब मैं चलता हूं. किसी चीज की जरूरत हो, तो मुझ से कहना. संकोच करने की जरूरत नहीं है.’’

साहब ने उसे टैलीविजन खोलना और बंद कर के दिखाया और अपना बैग रधिया को पकड़ा दिया.

बैग ले कर रधिया उन के पीछेपीछे कार तक गई. साहब ने उस के हाथों से बैग लिया. न जाने कैसे साहब की उंगलियां उस के हाथों से छू गईं.

रधिया भी 2 सैकंड के लिए रोमांचित हो उठी.

साहब के जाने के बाद रधिया ने गेट बंद किया. फिर वह कोठी के अंदर आई और दरवाजा बंद कर लिया.

वह नहाने के लिए बाथरूम में गई. ऐसा बाथरूम उस ने अपनी जिंदगी में पहली बार देखा था. तरहतरह के साबुन, तेल की शीशियां और शैंपू की शीशी, आदमकद आईना.

रधिया को लगा कि वह किसी दूसरी दुनिया में आ गई है. कपड़े उतार कर पहली बार जब से वह गांव से आई थी, उस ने जम कर साबुन लगा कर नहाया और फिर बाथरूम में टंगे तौलिए से देह पोंछ कर मैडम का दिया पुराना सूट पहन कर अपनेआप को आदमकद आईने में निहारा. उसे लगा कि वह रधिया नहीं, कोई और ही औरत है.

अपने कपड़े धो कर रधिया उन्हें भी छत पर डाल आई. फिर बचे हुए परांठे खा लिए. थोड़ी चाय बच गई थी. उसे गरम कर पी लिया, नहीं तो बरबाद ही होती.

धीरेधीरे रधिया ने उस घर के सारे तौरतरीके सीख लिए. वह सारा काम जल्दीजल्दी निबटा देती और किसी को शिकायत का मौका नहीं देती. मैडम उस के काम से काफी खुश थीं. एक महीना कब बीत गया, उसे पता ही नहीं चला. महीना पूरा होते ही मैडम ने उसे बकाया पगार दे दी.

उस दिन वह काफी खुश थी. शाम तक जब वह अपनी झुग्गी में लौटी, तो उस ने सब से पहले एक हजार रुपए जा कर मालती को दे दिए.

मालती ने उसे चाय पिलाई और हालचाल पूछा. उस ने इशारों में ही पूछा कि साहब से कोई दिक्कत तो नहीं.

रधिया ने कहा, ‘‘ऐसा नहीं है.’’

मालती ने कहा, ‘‘अगर तू चाहे, तो शाम को किसी और घर में लग जा. और कुछ नहीं, तो हजार रुपए वहां से भी मिल जाएंगे.’’

इस पर रधिया ने कहा, ‘‘सोचूंगी… अपने घर का भी तो काम है.’’

साहब तो अपनी चाय उसी से लेते. जब मैडम आसपास न हों, तो उसे ही देखते रहते और रधिया मजे लेती रहती.

रधिया समझ गई थी कि मालिक की निगाह उस की जवानी पर है. वे उसे पैसे देते, तो वह पहले लेने से मना करती, पर वे जबरन उसे दे ही डालते और कहते, ‘‘देख रधिया, अपने पास पैसों की कमी नहीं है. फिर हजार रुपए की आज कीमत ही क्या है? तेरे काम ने मेरा दिल जीत लिया है. कई औरतों ने इस घर में काम किया, पर तेरी सुघड़ता उन में नहीं थी.’’

रधिया चुप रह जाती. साहब कुछ हाथ मारना चाहते थे, पर समझ ही नहीं आता था.

एक दिन मैडम ने उस से कहा, ‘‘रधिया, हमारे स्कूल से टूर जा रहा है. मैं भी जा रही हूं और बच्चे भी, घर में सिर्फ साहब रहेंगे. हमें टूर से लौटने में 10 दिन लगेंगे.

‘‘आनेजाने के टाइम का तुम समझ लेना. साहब को कोई दिक्कत न हो.

‘‘पहले आमलेट बना दे… और तू ऐसा करना, लंच के साथ डिनर भी तैयार कर फ्रिज में रख देना. साहब रात में गरम कर के खा लेंगे.’’

‘‘ठीक है,’’ रधिया ने कहा और अपने काम में लग गई.

मैडम की गए 10वां दिन था. रधिया जब ठीक समय पर चाय और पानी का गिलास ले कर साहब के कमरे में पहुंची, तो उन्होंने कहा, ‘‘आज कोर्ट नहीं जाना है. वकीलों ने हड़ताल कर दी है. फ्रिज में एक बोतल पड़ी होगी, वह ले आ. मैं थोड़ी ब्रांडी लूंगा, मुझे ठंड लग गई है.’’

रधिया रसोई में आमलेट बनाने चली गई. आमलेट बना कर उसे प्लेट में रख कर वह साहब के कमरे में गई, तो वे वहां नहीं थे. उस ने सोचा कि शायद बाथरूम गए होंगे. साहब तब तक वहां आ गए थे.

‘‘वाह रधिया, वाह, तू ने तो फटाफट काम कर दिया. तू बड़ी अच्छी है. आ चाय पी.

‘‘ये ले हजार रुपए. मनपसंद साड़ी खरीद लेना.’’

‘‘किस बात के पैसे साहब? पगार तो मैं लेती ही हूं,’’ रधिया ने कहा.

‘‘अरे, लेले. पैसे बड़े काम आते हैं. मना मत कर,’’ कहतेकहते साहब ने उस का हाथ पकड़ लिया और पैसे उस के ब्लाउज में डाल दिए.

रधिया पीछे हटी. तब तक साहब ने उस के ब्लाउज में हाथ डाल दिया था और उस के ब्लाउज के बटन टूट गए थे.

रधिया ने एक जोर का धक्का दिया. साहब बिस्तर पर गिर पड़े. इस बीच रधिया भी उन पर गिर गई.

रधिया ने एक जोरदार चुम्मा गाल पर लगाया और बोली, ‘‘साहब, 5 हजार और दो. देखो, मैडम बच्चों के साथ चली आ रही हैं.’’

साहब ने कहा, ‘‘रधिया, तू जल्दी यहां से निकल,’’ और अपना पूरा पर्स उसे पकड़ा दिया.

Thriller Story

Happy Ending Story: सैरोगेट मदर- क्या था आबिदा का फैसला

Happy Ending Story: आबिदा अपनी गरीबी से काफी परेशान थी. सिर्फ उस के पति जैनुल की कमाई से घर चलता था. जैनुल कपड़े सिलता था. एक तो बड़ी मुश्किल से घर चलता था, दूसरे कुछ दिनों से उस की आंखों की रोशनी बहुत ज्यादा कमजोर हो गई थी. उस की आंखें बहुत साल से खराब चल रही थीं.

आबिदा जैनुल की आंखों की कम होती रोशनी और घटती ताकत से बहुत परेशान थी.

आबिदा के 2 बच्चे थे. दोनों स्कूल में पढ़ रहे थे. आबिदा घर की तंगहाली के चलते दोनों बच्चों को ठीक से पढ़ालिखा भी नहीं पा रही थी.

आबिदा सोच रही थी कि अगर जैनुल की आंखों का आपरेशन हो जाए तो आंख की रोशनी भी ठीक हो जाएगी और वह काम भी ज्यादा करने लगेगा, मगर इस के लिए पैसे नहीं थे. आंख का आपरेशन कराने में कम से 50,000 रुपए लगेंगे.

आबिदा अपनी पड़ोसन जैनब से किसी काम के बारे में पूछताछ करती रहती थी, मगर कोई ढंग का काम नहीं मिल रहा था.

एक दिन पड़ोसन जैनब ने आबिदा को सैरोगेट मदर के बारे में बताया. दरअसल, जैनब की एक सहेली ने सैरोगेट मदर बन कर 2 लाख रुपए कमाए थे. इस में अपनी कोख किराए पर देनी होती है. अपनी कोख में किसी पराए मर्द के बच्चे को पालना पड़ता है.

पड़ोसन जैनब की इस बात का असर आबिदा पर हुआ था. उस ने भी सैरोगेट मदर बनने की ठान ली थी.

इधर जैनुल की तबीयत और खराब रहने लगी थी. आबिदा को भी पड़ोसन जैनब ने सैरोगेट मदर बनने के लिए और ज्यादा उकसाया.

आबिदा ने कहा, ‘‘इस के लिए मुझे इजाजत नहीं मिल पाएगी.’’

जैनब ने पति से पूछने को कहा.

आबिदा ने सैरोगेट मदर बनने की बात अपने पति को बताई. यह सुनते ही वह भड़क गया, ‘‘कोई जरूरत नहीं है यह सब करने की. जैसे भी होगा, मैं घर चला लूंगा.’’

‘‘लेकिन इस में बुराई भी क्या है? जैनब की एक सहेली भी सैरोगेट मदर बन कर खुशहाल है. इस पैसे से तुम्हारी आंखों का आपरेशन भी हो जाएगा और बच्चों की पढ़ाईलिखाई भी ठीक से होने लगेगी. अब सैरोगेट मदर बनने में किसी के साथ सोना नहीं होता है. यह सब डाक्टर करते हैं,’’ आबिदा ने पति जैनुल को मनाते हुए कहा.

‘‘रिश्तेदार, पासपड़ोस के लोग क्या कहेंगे? सब तु झ पर हंसेंगे, मु झ पर थूकेंगे,’’ जैनुल बोला.

‘‘नहीं, कहीं कुछ गलत नहीं है. यह बुरा भी नहीं है. कितनी औरतें आज सैरोगेट मदर बन कर अपना काम बना रही हैं.’’

‘‘यह काम होता ही गुपचुप है. किसी को क्या पता चलेगा. इस में डाक्टरों को लाखों रुपए मिलते हैं. दलाल भी हजारों रुपए लेते हैं.

‘‘सब से बड़ी बात यह कि कोई जोड़ा औलाद की खुशी पाएगा, मेरी वजह से.’’

आबिदा के बहुत सम झाने और घरेलू हालात देख कर जैनुल ने आखिरकार इजाजत दे दी.

एक साल में आबिदा ने एक बच्चे को जन्म दिया, जिसे अस्पताल में मरा हुआ कह दिया गया. वह मन में खुशी दबाए लौट आई. उसे नहीं पता चला कि बच्चा किस का था और अब कहां है.

आबिदा ने सैरोगेट मदर बन कर अपने पति की आंखें ठीक कराईं, बच्चों को अच्छे स्कूल में दाखिल कराया. उन का घरखर्च भी आराम से चलने लगा था.

कुछ दिन बाद लड्डू खिलाते हुए आबिदा ने जैनुल से कहा, ‘‘लो, मुंह मीठा करो.’’

‘‘किसलिए?’’ जैनुल ने पूछा.

‘‘मैं आप के बच्चे की मां बनने जा रही हूं, किसी दूसरे के बच्चे की नहीं.’’

जैनुल की खुशी इस बार दोगुनी हो गई.

Happy Ending Story

Hindi Love Story: लव गेम- कैसे शीना ने जीता पति का दिल

Hindi Love Story: जिंदगी मौसम की तरह होती है. कभी गरमी की तरह गरम तो कभी सर्दी की तरह सर्द तो कभी बारिश के मौसम की तरह रिमझिमरिमझिम बरसती बूंदों सी सुहानी. जैसे मौसम रंग बदलता है, वैसे ही जिंदगी भी वक्तबेवक्त रंग बदलती रहती है. लेकिन जिंदगी में कभीकभी कुछ सवालों का जवाब देना बड़ा मुश्किल हो जाता है.

यह कहानी भी कुछ ऐसी ही है. बदलते मौसम की तरह रंग बदलती हुई भी और उन रंगों में से चटख रंगों को चुराती हुई भी. आइए देखें, इस कहानी के पलपल बदलते रंगों को, जो खुदबखुद फीके पड़ कर गायब होते जाते हैं.

कंट्री क्लब में एक पार्टी का आयोजन किया गया था, जिस में आयोजकों ने अपने मैंबर्स में से कुछ ऐसे यंग कपल्स के लिए पार्टी रखी थी, जिन की शादी को अभी ज्यादा से ज्यादा 5 साल हुए थे.

इस पार्टी में करीब 50 यंग कपल्स शामिल हुए. सभी बहुत खूबसूरत थे, जो सजधज कर पार्टी में आए थे. उन सभी के छोटेछोटे बच्चे भी थे. लेकिन आर्गनाइजर्स ने बच्चों को पार्टी में लाने की परमिशन नहीं दी थी, इसलिए सब लोग अपने बच्चे घर पर ही छोड़ कर आए थे.

कई यंग कपल्स ऐसे भी थे, जो एकदूसरे को अच्छी तरह जानतेपहचानते थे, इसलिए पार्टी में आते ही वे बड़ी गर्मजोशी के साथ मिले और एकदूसरे से घुलमिल गए. पार्टी के शुरुआती दौर में स्टार्टर, कौकटेल, मौकटेल, वाइन और सौफ्ट ड्रिंक वगैरह का जम कर दौर चला. इस के बाद सब ने खाना खाया. खाना बहुत लजीज था.

खाने के बाद पार्टी में कपल्स के साथ कई तरह के गेम खेले गए. हर गेम के अपने नियम थे. बहुत ही सख्त. गेम का संचालन एक एंकर कर रहा था. जिस हौल में पार्टी चल रही थी, वहीं एक फुट ऊंचा बड़ा सा पोडियम बना था. उसी पोडियम पर गेम खेले जा रहे थे. आखिर में एक गेम और खेला गया.

एंकर ने एक यंग ब्यूटीफुल लेडी को पोडियम पर इनवाइट किया, जिस की शादी को अभी सिर्फ 4 साल हुए थे और उस का 2 साल का एक बेटा भी था. उस लेडी का नाम शीना था.शीना पोडियम पर जा कर वहां रखी एक चेयर पर बैठ गई. पोडियम पर वाइट कलर का बड़ा सा एक बोर्ड लगा था. एंकर ने शीना से कहा, ‘‘आप बोर्ड पर ऐसे 40 नाम लिखिए, जिन से आप सब से ज्यादा प्यार करती हैं.’’

हौल में जितने भी कपल्स थे, वे सभी पोडियम के आसपास एकत्र हो गए और बड़ी बेचैनी से यह सोच कर एंकर तथा उस महिला की तरफ देखने लगे कि आखिर अब कौन सा गेम होने वाला है. गेम के बारे में किसी को कुछ नहीं मालूम था.

यहां तक कि वह महिला भी नहीं जानती थी कि वह किस तरह के गेम का हिस्सा बनने जा रही है. वह तो मस्तीमस्ती में पोडियम पर आ कर बैठ गई थी.

लेकिन एंकर की बात सुनते ही वह अनईजी हो गई.

‘‘च…चालीस ऐसे लोगों के नाम…’’ शीना कंफ्यूज्ड हो कर बोली, ‘‘जिन से मैं सब से ज्यादा प्यार करती हूं?’’

‘‘यस.’’ एंकर के होठों पर उस समय एक शरारती मुसकराहट खिल रही थी, ‘‘क्या आप की जिंदगी में 40 ऐसे इंसान नहीं हैं, जिन से आप बेहद प्यार करती हों?’’

‘‘नहीं…नहीं.’’ शीना जल्दी से हड़बड़ा कर बोली, ‘‘म…मेरे कहने का मतलब यह नहीं है. 40 क्या, मेरी लाइफ में तो ऐसे बहुत से लोग हैं, जिन से मैं बेहद प्यार करती हूं और वे सब भी मुझ से बहुत प्यार करते हैं.’’

‘‘गुड.’’ एंकर उत्साहित हो कर बोला, ‘‘आप को सब के नाम नहीं लिखने हैं, जो आप की लिस्ट में सब से ऊपर हों, सिर्फ वही नाम लिखिए. इस गेम का नाम लव गेम है.’’

‘‘लव गेम.’’ पोडियम के चारों तरफ एकत्र लोगों के चेहरे पर मुसकराहट दौड़ी, ‘‘इंटरेस्टिंग.’’

शीना भी अब चेयर छोड़ कर खड़ी हो गई थी. उस ने बड़े उत्साह से मार्कर पैन उठा लिया और वाइट बोर्ड के पास जा कर उस पर जल्दीजल्दी नाम लिखने लगी. शीना ने सच कहा था. उस की जिंदगी में वाकई ऐसे काफी लोग थे, जिन से वह बहुत प्यार करती थी. यह बात उस के नाम लिखने की स्पीड से पता चल रही थी. उसे इस बारे में ज्यादा सोचना नहीं पड़ा.

कुछ ही मिनट में उस ने 40 नाम लिख दिए. उस लिस्ट में उस के रिलेटिव, फ्रैंड्स, ब्रदर, सिस्टर, मदर, फादर, हसबैंड और उस का 2 साल का बेटा भी था. नाम लिख कर वह विक्ट्री स्माइल बिखेरती हुई एंकर की तरफ मुड़ी.

‘‘क्यों, लिख दिए न मैं ने 40 नाम.’’ वह इस अंदाज में बोली, जैसे उस ने गेम जीत लिया हो.

‘‘यस.’’ एंकर मुसकराया, ‘‘लेकिन गेम अभी खत्म नहीं हुआ मैम. गेम तो अभी शुरू हुआ है.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब अभी आप को इन में से 20 ऐसे नाम कट करने हैं, जिन से आप कम प्यार करती हैं. मान लीजिए, आप इन 40 लोगों के साथ बीच समुद्र में किसी ऐसी बोट में सवार हों, जो डूबने वाली हो. अगर 40 में से 20 लोगों को बीच समुद्र में फेंक दिया जाए तो बोट बच सकती है. ऐसी हालत में वह 20 लोग कौन होंगे, जिन्हें आप बीच समुद्र में फेंक कर बाकी के 20 लोगों की जान बचाएंगी?’’

शीना अब कंफ्यूज्ड नजर आने लगी.

फिर भी वह दोबारा वाइट बोर्ड के पास पहुंची और उस ने ऐसे 20 लोगों के नाम काट दिए, जिन्हें बीच समुद्र में फेंक कर वह बाकी के अपने 20 लोगों की जान बचा सकती थी. अब वाइट बोर्ड पर जो नाम बचे, उन में उस के बहुत करीबी, रिलेटिव, ब्रदर, सिस्टर, मदर, फादर, हसबैंड और उस का 2 साल का बेटा था.

‘गुड.’’ एंकर मुसकराया, ‘‘अब इन में से 10 नाम और काट दीजिए.’’

‘‘म…मतलब?’’ हक्कीबक्की शीना ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘सिंपल है,’’ एंकर बोला, ‘‘अब सिर्फ 10 ऐसे नाम चुनें, जिन्हें आप सब से ज्यादा प्यार करती हों और उन 10 लोगों को बचाने के लिए आप बाकी के 10 को बीच समुद्र में फेंक सकती हैं. याद रहे, आप सब बोट पर सवार हैं और वहां जिंदगी और मौत की फाइट चल रही है.’’

शीना वापस वाइट बोर्ड के पास पहुंची और उस ने 10 और नाम काट दिए. लेकिन वे 10 नाम काटना उस के लिए पहले जितना आसान नहीं था. उस ने बहुत सोचसमझ कर 10 नाम काट दिए. पोडियम के आसपास एकत्र लोग भी अब बड़ी बेचैनी से शीना की तरफ देखने लगे. सब जानना चाहते थे कि शीना अब किस के नाम काटेगी.

वाइट बोर्ड पर जो बाकी 10 नाम बचे थे, उन में उस के कुछ खास रिलेटिव, ब्रदर, सिस्टर, मदर, फादर, हसबैंड और बेटा था.

‘‘हूं.’’ एंकर ने गहरी सांस ली.

शीना 10 नाम काट कर के अभी टर्न भी नहीं हुई थी कि उस से पहले ही एंकर बोल पड़ा, ‘‘अब इन में से 6 नाम और काट दो. सिर्फ 4 रहने दो. बोट इतने लोगों का वजन भी नहीं संभाल पा रही है. अभी तुरंत 6 लोगों को और समुद्र में फेंकना पड़ेगा, वरना बोट डूब जाएगी.’’

शीना ने वाइट बोर्ड पर लिखे नाम देखे. वह अब इमोशनल होने लगी. बहरहाल उस ने 6 नाम और काट दिए. बोर्ड पर अब सिर्फ शीना के मदर, फादर, हसबैंड और उस के 2 साल के बेटे का नाम बचा था. दूसरी ओर उसे अपने ब्रदर, सिस्टर के नाम भी काटने पड़े. पूरे हौल में सन्नाटा पसर गया था. सभी लोग इमोशनल हो गए.

‘‘अब अगर इन में से भी 2 नाम और काटने पड़ें…’’ एंकर बहुत धीमी आवाज में बोला, ‘‘तो वे कौन से नाम होंगे, जो आप काटेंगी. किन 2 लोगों को बचाएंगी आप?’’

अब वाकई शीना की हालत बहुत बुरी हो गई. मस्तीमस्ती में शुरू हुआ गेम अचानक बहुत इमोशनल हो गया था. शीना किसी गहरी सोच में डूब गई.

पोडियम के चारों तरफ जमे कपल्स भी यह जानने के लिए बेचैन हो उठे कि आखिर अब शीना कौन से 2 नाम काटेगी? मदर फादर का या फिर हसबैंड और बेटे का?

हौल में सन्नाटा और गहरा गया. शीना की आंखों में भी आंसू आ गए. पोडियम के नीचे खड़ा शीना का हसबैंड उसी तरफ देख रहा था. उसे खुद भी मालूम नहीं था कि शीना अब कौन से 2 नाम काटने वाली है.

शीना ने कांपते हाथों से अपने मातापिता का नाम बोर्ड से मिटा दिया. देख कर सब सन्न रह गए. किसी को उम्मीद नहीं थी कि शीना अपने मातापिता का नाम बोर्ड से मिटा देगी. मातापिता तो जीवन देने वाले होते हैं, वह उन का नाम कैसे काट सकती थी? अब वाइट बोर्ड पर सिर्फ 2 नाम चमक रहे थे, हसबैंड और उस के बेटे का नाम.

‘‘प्लीज…’’ शीना रो पड़ी, ‘‘अब मुझ से कोई और नाम काटने के लिए मत कहना.’’

‘‘बस अब यह गेम खत्म होने वाला है.’’ एंकर बोला, ‘‘बिलकुल लास्ट है. अगर आप से कहा जाए कि इन दोनों में से भी आप किस से ज्यादा प्यार करती हैं तो आप किसे चुनेंगी? वह एक कौन होगा, जिसे बचाने के लिए आप दूसरे को बीच समुद्र में फेंक देंगी, हसबैंड या बेटा?’’

‘‘मैं खुद समुद्र में कूदना पसंद करूंगी.’’ शीना भावविह्वल हो कर बोली, ‘‘लेकिन इन दोनों में से किसी को भी अपने से अलग नहीं करूंगी.’’

‘‘नहीं…आप नहीं,’’ एंकर बोला, ‘‘आप को इन दोनों में से कोई एक नाम काटना है.’’

अब शीना की हालत बहुत बुरी हो गई थी. हौल में मौजूद हर आंख शीना पर ही टिकी थी. हर कोई यह जानना चाहता था कि अब वह किस का नाम काटेगी? हसबैंड या बेटे में से वह किसे चुनेगी?

शीना ने कांपते हाथों से वाइट बोर्ड पर लिखा अपने बेटे का नाम मिटा दिया. सब सन्न रह गए. हर कोई सोच रहा था कि वह अपने हसबैंड का नाम मिटाएगी, क्योंकि हम दुनिया में सब से ज्यादा अपने बच्चों से ही प्यार करते हैं.

‘‘क्यों?’’ एंकर ने बेचैनी के साथ पूछ ही लिया, ‘‘आप ने अपने हसबैंड को ही क्यों चुना?’’

‘‘जानते हो…’’ शीना पोडियम पर खड़ीखड़ी बहुत इमोशनल हो कर बोली, ‘‘जिस दिन मेरी शादी हुई, उस दिन मम्मीपापा ने मेरे हसबैंड के हाथ में मेरा हाथ देते हुए कहा था, ‘आज से यही आदमी जिंदगी के आखिरी सांस तक तुम्हारा साथ देगा. तुम कभी इस का साथ न छोड़ना. जिस तरह सुखदुख में वह तुम्हारा साथ दे, उसी तरह तुम भी हर सुखदुख में उस का साथ देना.’ मैं ने अपने मम्मीपापा की बात मानी.

‘‘अपने हसबैंड के लिए मैं ने अपने उन्हीं मम्मीपापा तक को त्याग दिया. यहां तक कि जब अपने बेटे और हसबैंड में से भी किसी एक को चुनने का समय आया तो मैं ने अपने हसबैंड को ही चुना. मैं अपने बेटे से बहुत प्यार करती हूं. लेकिन हसबैंड के रहते मुझे बेटा तो दूसरा मिल सकता है, पर हसबैंड दूसरा नहीं मिल सकता. पतिपत्नी का यह रिश्ता अनमोल है, अटूट है. हमें हमेशा इस रिश्ते का सम्मान करना चाहिए.’’

शीना की बातें सुन कर पूरा हौल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. सभी की आंखों में आंसू थे. शीना का हसबैंड भी बेहद इमोशनल हो गया था. एकाएक वह शाम बेहद खास हो गई. लव गेम ने सभी हसबैंड वाइफ के रिलेशन को और मजबूत कर दिया था.

Hindi Love Story

Romantic Story: गलतफहमी- रीमा को बाहर भेजने से डरती थी मिसेज चंद्रा

Romantic Story: मैं एक मल्टीनैशनल कंपनी में सीनियर एक्जीक्यूटिव हूं. कंपनी द्वारा दिए 2-3 बैडरूम के फ्लैट में अपने परिवार के साथ रहता हूं. परिवार में मेरी पत्नी व एक 10 वर्ष का बेटा है जो कौन्वैंट स्कूल में छठी क्लास में पढ़ रहा है. मेरी पत्नी खूबसूरत, पढ़ीलिखी है. मैं इस फ्लैट में पिछले

2 साल से रह रहा हूं. चूंकि हम लोगों को कंपनी मोटी तनख्वाह देती है तो उसी हिसाब से काम भी करना पड़ता है. मैं रोज 9 बजे अपनी गाड़ी से औफिस जाता व शाम को 6-7 बजे लौटता. कभीकभी तो इस से भी ज्यादा देर हो जाती थी. इसलिए कालोनी या बिल्ंिडग में क्या हो रहा है, यहां कौन लोग रहते हैं और क्या करते हैं, इस की मुझे बहुत कम जानकारी है. थोड़ाबहुत जो मेरी पत्नी मुझे खाना खाते वक्त या किसी अन्य बातचीत में बता देती थी उतना ही मैं जान पाता था.

एक दिन छुट्टी के दिन मैं अपनी बालकनी में बैठा सुबहसुबह पेपर पढ़ते हुए चाय पी रहा था कि मेरी नजर मेरे सामने की बिल्ंिडग में रहने वाली लड़की पर पड़ी, जो यही कोई 17-18 वर्ष की रही होगी. वह मेरी तरफ देखे जा रही थी. पहले तो मैं ने उसे यों ही अपना भ्रम समझा कि हो सकता है उसे कुछ कौतूहल हो, इस कारण वह मेरे फ्लैट की तरफ देख रही हो.

वैसे सुबहशाम टहलने का मेरा एक रूटीन था. सुबह उठ कर आधापौना घंटा कालोनी की सड़कों पर टहलता था व रात को खाना खा कर हम तीनों, मैं, मेरी पत्नी व मेरा बेटा कालोनी में टहलते अवश्य थे. अगर मेरे बेटे को रात को आइसक्रीम खाने की तलब लग जाती थी तो उसे आइसक्रीम भी खिलाने जाना पड़ता था.

मैं ने कई बार इस बात पर ध्यान दिया कि वह लड़की मेरे ऊपर व मेरी गतिविधियों पर नजर रखती है. मैं बालकनी में बैठा पेपर पढ़ रहा होता तो वह बालकनी की तरफ देखती और मुझ पर नजर रखती थी. जब हम रात को टहल रहे होते तो वह भी अपने कुत्ते के साथ टहलने निकल आती थी. कभीकभी उस का छोटा भाई भी उस के साथ आ जाता था, जोकि सिर्फ 5-6 साल का था, मगर दोनों भाईबहनों में बहुत फर्क था. वह बहुत खूबसूरत थी पर उस का छोटा भाई देखने में बहुत साधारण था.

एक दिन रात को मैं ने उस के पूरे परिवार को देखा. उस लड़की को छोड़ कर बाकी सभी देखने में बहुत साधारण थे. मुझे ताज्जुब भी हुआ मगर चूंकि आज के जमाने में कुछ भी हो सकता है इसलिए मैं ने इस बारे में ज्यादा नहीं सोचा किंतु जब उस लड़की की मेरे में दिलचस्पी बढ़ती जा रही थी तो मुझे थोड़ी परेशानी होने लगी कि मेरी बीवी देखेगी तो क्या कहेगी, मेरे बच्चे पर इस का क्या असर पड़ेगा.

कुछकुछ अच्छा भी लग रहा था. इस उम्र में कोई नौजवान लड़की अगर आप को प्यार करने लगे, चाहने लगे तो बड़ा अच्छा लगता है. अपने पुरुषार्थ पर विश्वास और बढ़ जाता है. इसलिए मैं भी कभीकभी पेपर पढ़ते समय उस की तरफ देख लेता था. हालांकि मेरी बालकनी और उस की बालकनी में करीब 50 फुट का फासला था, फिर भी हम एकदूसरे पर नजर रख सकते थे.

कुछ दिनों बाद उस ने भी सुबहसुबह टहलना शुरू कर दिया. कभी मेरे आगे, कभी मेरे पीछे. मैं यह सोच कर थोड़ा रोमांचित हुआ कि वह अब मेरी निकटता चाहने लगी है. शायद उसे मुझ से वास्तव में प्यार हो गया है. मैं भी उस के मोह में गिरफ्तार हो चुका था. अब मैं खाली समय में उस के बारे में सोचता रहता था. 40 से ऊपर की उम्र में जब पतिपत्नी  के संबंधों में एक ठहराव सा, एक स्थायित्च, एक बासीपन सा आ जाता है उस दौर में इस प्रकार के संबंध नई ऊर्जा प्रदान करते हैं.

लगभग हर व्यक्ति एक नवयौवना के प्यार की कामना करता है. कुछ पा लेते हैं, कुछ सिर्फ खयालों में ही अपनी इच्छा की पूर्ति करते हैं. कुछ लोग कहानियां, सस्ते उपन्यासों द्वारा अपनी इस चाहत को पूरा करते हैं, क्योंकि इस दौर में व्यक्ति इतना बड़ा भी नहीं होता कि वह हर लड़की को बेटी समान माने, बेटी का दरजा दे. वह अपने को जवान ही समझता है व जवानी की ही कामना करता है. मैं भी इस दौर से गुजर रहा था.

मगर एक दिन गड़बड़ हो गई. उसे कहीं जाना था जो शायद मेरे औफिस जाने के रास्ते में ही पड़ता था. मैं औफिस जाने के लिए तैयार हो कर निकला. अपनी गाड़ी मैं ने बाहर निकाली तो देखा वह मेरी तरफ ही चली आ रही है. उस ने मुझे इशारे  से रुकने को कहा और नजदीक आ  कर बोली, ‘‘अंकल, क्या आप मुझे कालीदास मार्ग पर छोड़ देंगे? मुझे देर हो गई है और मुझे वहां 10 बजे तक पहुंचना बहुत जरूरी है.’’

कार से कालीदास मार्ग पहुंचने में लगभग 45 मिनट लगते हैं. हालांकि अपने लिए अंकल संबोधन सुन कर मुझे कुछ झटका सा लगा था मगर शराफत के नाते मैं ने कहा, ‘‘बैठो, छोड़ दूंगा.’’

वह चुपचाप कार में बैठ गई.‘‘वहां के स्कूल में आज आईआईटी प्रवेश की परीक्षा है,’’ उस ने संक्षिप्त जवाब दिया.रास्तेभर हम खामोश रहे. वह अपने नोट्स पढ़ती रही. मैं ने उसे उस के स्कूल छोड़ दिया.

हालांकि मेरा मन बड़ा अनमना सा हो गया था अपने लिए अंकल संबोधन सुन कर. मैं तो क्याक्या खयाली पुलाव पका रहा था और वह मेरे बारे में क्या सोचती थी? मगर उस के बाद भी उस की गतिविधियों में कोई बदलाव नहीं आया. उसी प्रकार सुबहशाम टहलना, बालकनी में खड़े हो कर मुझे देखना. चूंकि दूरी काफी थी इसलिए मैं यह नहीं समझ पा रहा था कि उस के देखने में अनुराग है, आसक्ति है या कुछ  और है.

मैं ने सोचा, हो सकता है उसे मुझ से बात शुरू करने के लिए कोई और शब्द न मिला हो इसलिए उस ने मुझे ‘अंकल’ कहा हो. चूंकि मुझ को उस में रुचि थी अत: मैं ने उस के और उस के घरपरिवार के बारे में लोगों से पूछा, पता लगाया, पत्नी के द्वारा थोड़ीबहुत जानकारी ली. मुझे पता लगा उस के पिताजी भी एक दूसरी फर्म में इंजीनियर हैं मगर उन की यह

दूसरी पत्नी हैं. पहली पत्नी की मौत हो चुकी है.एक दिन छुट्टी के दिन वह सुबहसुबह मेरे फ्लैट में आई. मैं पेपर पढ़ रहा था. पत्नी ने दरवाजा खोल कर मुझे बुलाया, ‘‘आप से मिलने कोई रीमा आई है.’’

‘‘कौन रीमा?’’‘‘वही जो सामने रहती है.’‘‘ओह, मगर उसे मुझ से क्या काम?’’‘‘आप खुद ही उस से मिल कर पूछ लो.’’

मैं बालकनी से उठ कर ड्राइंगरूम में आया. उस ने मुझे नमस्ते की.मैं ने सिर हिला कर उस की नमस्ते का जवाब दिया.‘‘बोलो?’’ मैं ने पूछा.‘‘अंकल, मैं आप की थोड़ी मदद चाहती हूं.’’‘‘किस प्रकार की मदद?’’

वह थोड़ी देर खामोश रही, फिर बोली, ‘‘मेरा सलैक्शन आईआईटी में हो गया है मगर मेरे मम्मीपापा मुझे जाने नहीं देना चाहते. मैं चाहती हूं कि आप उन्हें समझाएं.’’

‘‘मगर मैं उन्हें कैसे समझाऊं, मेरा उन से कोई परिचय नहीं. कोई बातचीत नहीं. मेरी बात क्यों मानेंगे?’ ‘‘अंकल, प्लीज, मेरी खातिर, मेरी मम्मी की खातिर आप उन्हें समझाइए.’‘‘न ही मैं तुम्हें अच्छी तरह जानता हूं और न ही तुम्हारी मम्मी को, फिर मैं तुम्हारी खातिर कैसे तुम्हारे पापा से बात करूं?’’

‘‘मैं प्रभा की बेटी हूं.’’‘‘कौन प्रभा?’’ ‘‘वही जो आप की दूर के एक रिश्तेदार की बेटी थीं.’’मैं चौंका, ‘‘क्या तुम्हारी मम्मी बाबू जगदंबा प्रसाद की बेटी थीं?’’‘‘जी.’’ ‘‘ओह, तो यह बात है, तो क्या तुम मुझे जानती हो?’’

‘‘जी, मम्मी ने आप के बारे में बताया था. नाना के पास आप की फोटो थी. मम्मी ने बताया था कि आप चाहते थे कि आप की शादी उन से हो जाए मगर नाना नहीं माने. क्योंकि तब आप की पढ़ाई पूरी नहीं हो पाई थी और आप लोग उम्र में भी लगभग बराबर के थे.’’

प्रभा बहुत खूबसूरत और मेरे एक दूर के रिश्तेदार की बेटी थी. वे लोग पैसे वाले थे. उस के पिताजी पीडब्ल्यूडी में इंजीनियर थे जबकि मेरे पिताजी बैंक में अफसर. तब पैसे के मामले में एक बैंक अफसर से पीडब्ल्यूडी के एक इंजीनियर से क्या मुकाबला?

मैं अभी पढ़ रहा था, तभी सुना कि प्रभा की शादी की बात चल रही है. मैं ने अपनी मां से कहलवाया मगर उन लोगों ने मना कर दिया, क्योंकि मैं अभी एमकौम कर रहा था और उन को प्रभा के लिए इंजीनियर लड़का मिल रहा था. फिर प्रभा की शादी हो गई. मैं ने एमकौम, फिर सीए किया तब नौकरी मिली. इसीलिए मेरी शादी भी काफी देर से हुई.

तो रीमा उसी प्रभा की बेटी है. मुझे प्रभा से शादी न हो पाने का मलाल अवश्य था मगर मुझे उस के मरने की खबर नहीं थी. असल में हमारा उन के यहां आनाजाना बहुत कम था. कभीकभार किसी समारोह में या शादीविवाह में मुलाकात हो जाती थी. मगर इधर 8-10 साल से मेरी उस के परिवार के किसी व्यक्ति से मुलाकात नहीं हुई थी. इसीलिए मुझे उस की मौत की खबर नहीं थी.

‘‘तुम्हारी मम्मी कब और कैसे गुजरीं?’’ मैं ने पूछा. ‘‘दूसरी डिलीवरी के समय 7 साल पहले मेरी मम्मी की मृत्यु हो गई.’’‘‘और आजकल जो हैं वह?’’‘‘एक साल बाद पापा ने दूसरी शादी कर ली. राहुल उन से पैदा हुआ है.’’

अब मुझे दोनों भाईबहनों की असमानता का रहस्य समझ में आया कि क्यों रीमा इतनी खूबसूरत थी और उस का भाई इतना साधारण. और क्यों दोनों में उम्र का भी काफी अंतर था.

‘‘तो तुम मुझ से क्या चाहती हो?’‘‘अंकल, मैं आप को पिता के समान मानती हूं. जब आप शाम को बच्चे के साथ बाहर घूमने निकलते हैं तो मुझे बड़ा अच्छा लगता है. मैं भी चाहती हूं कि मेरे पापा भी ऐसा करें मगर उन के पास तो मेरे लिए फुरसत ही नहीं है. मम्मी लगता है मुझ से जलती हैं कि मैं इतनी खूबसूरत क्यों हूं. अब इस में हमारा क्या दोष? इसीलिए वह मेरी हर बात में कमी निकालती हैं, हर बात का विरोध करती हैं. वह नहीं चाहतीं कि मैं ज्यादा पढ़लिख कर आगे बढ़ूं.’’

अब मुझे उस की नजरों का अर्थ समझ में आने लगा था. वह मुझ में उस आदर्श पिता की तलाश कर रही थी जो उस के आदर्शों के अनुरूप हो. जो उस के पापा की कमियों को, उस की इच्छाओं को पूरा कर सके. मुझे अपनी सोच पर आत्मग्लानि भी हुई कि मैं उस के बारे में कितना गलत सोच रहा था. लगता था वह घर से झगड़ा कर के आई थी.

‘‘तुम ने नाश्ता किया है कि नहीं?’’ मैं ने पूछा तो वह खामोश रही.मैं समझ गया. झगड़े के कारण उस ने नाश्ता भी नहीं किया होगा.‘‘ठीक है, तुम पहले नाश्ता करो. शांत हो जाओ. फिर मैं चलता हूं तुम्हारे घर.’’

मैं ने उसे आश्वस्त किया. फिर हम सब ने बैठ कर नाश्ता किया. मैं ने अपनी पत्नी को बताया कि मैं रीमा के मम्मीपापा से मिलने जा रहा हूं.

‘‘मैं भी साथ चलूंगी,’’ मेरी पत्नी ने कहा.‘‘तुम क्या करोगी वहां जा कर?’’

‘‘आप नहीं जानते, यह लड़की का मामला है. अगर उन्होंने आप पर कोई उलटासीधा इलजाम लगाया या आप से पूछा कि आप को उन की बेटी में इतनी रुचि क्यों है तो आप क्या जवाब देंगे? और अगर उन्होंने कहा कि आप को उस से इतना ही लगाव है तो उसे अपने पास ही रख लीजिए. तो क्या आप इतना बड़ा फैसला अकेले कर सकेंगे?’’

मैं ने इस पहलू पर गौर ही नहीं किया था. मेरी पत्नी का कहना सही था.हम सब एकसाथ रीमा के घर गए.

मैं ने उन के घर पहुंच कर घंटी बजाई. उस की मम्मी ने दरवाजा खोला तो हम लोगों को देख कर वह नाराजगी से अंदर चली गईं फिर उस के पापा दरवाजे पर आए.

वहां का माहौल काफी तनावपूर्ण थारीमा के पिता नरेशचंद्र और मां माया रीमा से बहुत नाराज थे कि वह घर का झगड़ा बाहर क्यों ले गई, वह मेरे पास क्यों आई?

‘‘कहिए, क्या बात है?’’ वह बोले.हम दोनों ने उन को नमस्कार किया. मैं ने कहा, ‘‘क्या अंदर आने को नहीं कहेंगे?’’ उन्होंने बड़े अनमने मन से कहा, ‘‘आइए.’’

हम सब उन के ‘ड्राइंग कम डाइनिंग रूम’ में बैठ गए. थोड़ी देर खामोशी छाई रही, फिर मैं ने ही बात शुरू की.‘‘आप शायद मुझे नहीं जानते.’’‘‘जी, बिलकुल नहीं,’’ उन्होंने रूखे स्वर में कहा.

‘‘आप की पहली पत्नी मेरी बहुत दूर की रिश्तेदार थीं.’’‘‘तो?’’

‘‘इसीलिए रीमा बेटी से हम लोगों को थोड़ा लगाव सा है,’’ मैं कह तो गया मगर बाद में मुझे स्वयं अपने ऊपर ताज्जुब हुआ कि मैं इतनी बड़ी बात कैसे कह गया.

‘‘तो?’’ उन्होंने उसी बेरुखी से पूछा.मैं ने बड़ी मुश्किल से अपना धैर्य बनाए रखा. मुझे उन के इस व्यवहार से बड़ी खीज सी हो रही थी. कुछ देर खामोश रह कर मैं फिर बोला, ‘‘वह आईआईटी से पढ़ाई करना चाहती है…’’

‘‘मगर हम लोग उस को नहीं भेजना चाहते,’’ मिस्टर चंद्रा ने कहा.‘‘कोई खास बात…?’’‘‘यों ही.’’

‘‘यों ही तो नहीं हो सकता, जरूर कोई खास बात होगी. जब आप की बेटी पढ़ने में तेज है और फिर उस ने परीक्षा में सफलता प्राप्त कर ली है तो फिर आप को एतराज किस बात का है?’’

अब मिसेज चंद्रा भी बाहर आ कर अपने पति के पास बैठ गईं.‘‘देखिए भाई साहब, रीमा हमारी बेटी है. उस का भलाबुरा सोचना हमारा काम है, किसी बाहरी व्यक्ति या दूर के रिश्तेदार का नहीं,’’ मिसेज चंद्रा बोलीं.

मैं ने खामोशी से उन की बात सुनी. उन की बातों से मुझे इस बात का एहसास हो गया कि मिसेज चंद्र्रा का ही घर में काफी दबदबा है और नरेश चंद्रा उन के ही दबाव में हैं शायद इसीलिए रीमा को आगे पढ़ने नहीं देना चाहते.

मैं ने अपना धैर्य बनाए हुए संयत स्वर में कहा, ‘‘आप की बात बिलकुल सही है मगर क्या आप नहीं चाहतीं कि आप की बेटी उच्च शिक्षा प्राप्त करे, इंजीनियर बने. लोग आप का उदाहरण दें कि वह देखो वह मिसेज चंद्रा की बेटी है जो इंजीनियर बन गई है,’’ मैं ने थोड़ा मनोवैज्ञानिक दबाव बनाया.

मेरी बातों से वे थोड़ा शांत हुईं.  उन का अब तक का अंदाज बड़ा आक्रामक था.‘‘मगर हम चाहते हैं कि उस की जल्दी से शादी कर दें. वह अपने पति के घर जाए फिर उस का पति जैसा चाहे, करे.’’

‘‘मतलब आप शीघ्र ही अपनी जिम्मेदारियों से छुटकारा पाना चाहती हैं.’’‘‘जी हां,’’ मिसेज चंद्रा बोलीं.

‘‘मगर क्या रीमा एक बोझ है? मेरे विचार से तो वह बोझ नहीं है, और आजकल तो लड़के वाले भी चाहते हैं कि लड़की ज्यादा से ज्यादा पढ़ी हो. और जब वह इंजीनियर बन जाएगी, खुद अच्छा कमाएगी तो आप को भी इतनी परेशानी नहीं होगी उस की शादी में,’’ मैं ने अपनी बात कही.

‘‘आप की बात तो सही है, मगर…’’ मिसेज चंद्रा सोचते हुए बोलीं.

मैं उन के इस मगर का अर्थ समझ रहा था किंतु मैं रीमा के सामने नहीं कह सकता था. वह हम लोगों के साथ ही बैठी थी. मैं ने उसे अपने बेटे व उस के भाई के साथ मेरे घर जाने को कहा. वह थोड़ा झिझकी. मैं ने उसे इशारों से आश्वस्त किया तो वह चली गई.

‘‘देखिए, जहां तक मैं समझता हूं आप का और रीमा का सहज संबंध नहीं है. आप लोगों के बीच कुछ तनाव है.’’

मिसेज चंद्रा का चेहरा गुस्से से तमतमा गया.

‘‘देखिए, मेरी बात को आप अन्यथा न लीजिए. यह बहुत सहज बात है. असल में आप दोनों के बीच किसी ने सहज संबंध बनाने का प्रयास ही नहीं किया. आप को उस की खूबसूरती के कारण हमेशा हीनता महसूस होती है. इसीलिए आप उसे हमेशा नीचा दिखाना चाहती हैं, उस की उन्नति नहीं चाहती हैं, मगर क्या यह अच्छा नहीं होता कि आप बजाय उस से जलने के गर्व महसूस करतीं कि आप की एक बहुत ही सुंदर बेटी भी है. उसे एक खूबसूरत तोहफा मानतीं नरेश की पहली पत्नी का. उसे इतना प्यार देतीं, उस की हर बात का खयाल रखतीं कि वह आप को अपनी सगी मां से ज्यादा प्यार, सम्मान देती. अगर आप को कोई परेशानी न हो तो मैं उस की जिम्मेदारी उठाने को तैयार हूं,’’ मैं ने अपनी पत्नी की तरफ देखा तो उस ने भी आंखों ही आंखों में अपनी रजामंदी दे दी.

मेरी बात का उन पर लगता है सही असर हुआ था क्योंकि जो बात मैं ने कही थी कभीकभी इन बातों का कुछ लोग उलटा अर्थ लगा लड़ने लग जाते हैं. मगर गनीमत कि उन्होंने मेरी बातों का बुरा नहीं माना.

‘‘ठीक है, जैसी आप की मरजी. आप उस से कह दीजिए कि हम लोग उसे इंजीनियरिंग पढ़ने भेज देंगे,’’ मिसेज चंद्रा ने बड़े ही शांत स्वर में कहा.

‘‘मैं नहीं, यह बात उस से आप ही कहेंगी और आप खुद देखेंगी कि इस बात का कैसा असर होगा.’’

थोड़ी देर में वह चाय और नाश्ता लाईं जिस के लिए अभी तक उन्होंने हम लोगों से पूछा नहीं था.

फिर मैं ने अपने घर टैलीफोन कर रीमा को बुलवाया. रीमा आई तो मिसेज चंद्रा ने उसे अपने पास बिठाया. उस का हाथ अपने हाथों में ले कर थोड़ी देर तक उसे देखती रहीं, फिर उन्होंने उस का माथा चूम लिया, ‘‘तुम जो कहोगी मैं वही करूंगी,’’ उन्होंने रुंधे गले से कहा तो रीमा उन से गले लग कर रोने लगी. मिस्टर चंद्रा की आंखों में भी आंसू आ गए थे. आंसू तो हमारी भी आंखों में थे मगर वह खुशी के आंसू थे.

Romantic Story

Fictional Story: डबल क्रौस

Fictional Story: रोज की तरह सिटी पार्क में मौर्निंग वाक करते हुए इंद्र ने सोमेन को देखा तो उन्हें आवाज दी. इंद्र की आवाज सुन कर वह रुक गए. सोमेन कोलकाता के ही रहने वाले थे, जबकि इंद्र बिहार के. केंद्र सरकार की नौकरी होने की वजह से वह प्रमोशन और ट्रांसफर ले कर करीब 20 साल पहले कोलकाता आ गए थे और वहीं सैटल हो गए थे.

इंद्र और सोमेन एक ही औफिस में काम करते थे. सोमेन से इंद्र की जानपहचान हुई तो दोनों का एकदूसरे के घर आनाजाना शुरू हो गया. फिर तो दोनों परिवारों में काफी घनिष्ठता हो गई थी. दोनों इसी साल रिटायर हुए थे. सोमेन की एक ही बेटी थी, जो शादी के बाद पति के साथ अमेरिका चली गई थी.

इंद्र का भी एक ही बेटा था, जो आस्ट्रेलिया में नौकरी कर रहा था. बच्चों के बाहर होने की वजह से दोनों अपनीअपनी पत्नी के साथ रह रहे थे. इंद्र की आवाज सुन कर सोमेन रुके तो नजदीक पहुंच कर उन्होंने पूछा, ‘‘तुम तो 2 सप्ताह के लिए मसूरी गए थे. अभी तो 4-5 दिन हुए हैं. वहां मन नहीं लगा क्या, जो लौट आए?’’

‘‘नहीं, यह बात नहीं है. हम लोग वहां पहुंचे ही थे कि अमेरिका से बेटी का फोन आ गया. तुम्हें तो पता ही है कि वह मां बनने वाली है. उस की डिलिवरी में कौंप्लीकेशंस हैं, इसलिए उस ने मां को फौरन बुला लिया.’’ सोमेन ने कहा.

‘‘लेकिन तुम तो कह रहे थे कि अभी डिलीवरी में 3 महीने बाकी हैं. भाभीजी के लिए 2 महीने बाद की टिकट भी बुक करा रखी थी?’’

‘‘हां, लेकिन बेटी के बुलाने पर एजेंट से उस की तारीख चेंज करा कर कल रात को ही उन्हें कोलकाता एयरपोर्ट से भेज दिया. अब तो 6 महीने से पहले आने वाली नहीं है. जरूरत पड़ी तो और भी रुक सकती हैं. ग्रीन कार्ड है न, वीजा का भी कोई चक्कर नहीं था.’’

‘‘तुम क्यों नहीं गए?’’ इंद्र ने पूछा.

‘‘मैं कुछ दिनों पहले ही तो लौटा हूं. अब डिलिवरी के समय जाऊंगा. फिर घर में थोड़ा काम भी लगवा रखा है. एक 2 रूम का सेट बनवा रहा हूं. कुछ किराया आ जाएगा. देखो न, आजकल कितनी महंगाई है.’’

‘‘चलो ठीक है, हम दोनों ही हैं. एकदूसरे से मिल कर मन लगा रहेगा.’’ इंद्र ने कहा.

‘‘भाई, जरा कामवाली विमला को बता देना कि मैं आ गया हूं, इसलिए मेरे यहां भी काम करने आ जाएगी. उसे तो यही पता है कि मैं 2 हफ्ते बाद आऊंगा. और बताओ, भाभीजी कैसी हैं?’’ सोमेन ने पूछा.

‘‘मेरी पत्नी को भी अचानक मायके जाना पड़ा. उस की मां को लकवा मार गया है. वह बिस्तर पर पड़ी हैं. अब तुम्हारी भाभी भी 4-5 महीने से पहले आने वाली नहीं है. चलो, चाय मेरे यहां से पी कर जाना.’’ इंद्र ने कहा.

‘‘चाय तुम बनाओगे?’’ सोमेन ने पूछा.

‘‘तुम्हें चाय पीने से मतलब. कौन बनाएगा, इस की चिंता क्यों कर रहे हो?’’

वैसे भी मौर्निंग वाक के बाद दोनों दोस्त किसी एक के घर ही चाय पीते थे. सोमेन इंद्र के साथ उस के घर पहुंचा. इंद्र ने ताला खोल कर सोमेन को ड्राइंगरूम में बैठाया. सोमेन को किचन में बरतनों के खटरपटर की आवाज सुनाई दी तो पूछा, ‘‘इंद्र, देखो किचन में बिल्ली है क्या?’’

किचन से विमला की आवाज आई, ‘‘हां, मैं ही बिल्ली हूं.’’

इतना कह कर उस ने 2 कप चाय ला कर मेज पर रख दिया. इंद्र ने उस की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘तुम्हारी भाभी मेरे खानेपीने, कपड़े धोने आदि का काम इसे सौंप गई हैं. मैं ने इसे पीछे के दरवाजे की चाबी दे रखी है. मेरे न रहने पर यह पीछे से आ कर अपना काम करने लगती है. इसीलिए तो हमारे आते ही चाय मिल गई.’’ इस के बाद उन्होंने विमला से कहा, ‘‘तुम ने अपनी चाय हमें दे दी, अपने लिए दूसरी बना लेना.’’

‘‘कोई बात नहीं, मैं अपने लिए चाय बना लूंगी.’’ कह कर विमला जाने लगी तो सोमेन ने कहा, ‘‘विमला, मैं तुम्हें संदेश भिजवाने वाला था कि मेरे यहां भी आ जाना. बरतन, झाड़ू और पोंछा के अलावा मेरा भी खाना बना देना.’’

‘‘यहां के लिए तो मेमसाहब कह कर गई हैं कि साहब के सारे काम कर देना. आप की मेमसाहब के कहे बगैर मैं किचन का काम नहीं कर सकती.’’ विमला ने कहा.

‘‘ठीक है, अभी तो वह रास्ते में होंगी, कल आओगी तो मैं उन से तुम्हारी बात करा दूंगा.’’ सोमेन ने कहा.

इंद्र ने सोमेन को बताया कि उन की पत्नी के कहने पर ही विमला घर के सारे काम करने को तैयार हुई थी. पीछे वाले दरवाजे की चाबी देने का सुझाव भी उन्हीं का था, ताकि मैं घर में न भी रहूं तो यह आ कर काम कर दे. पहले तो इस ने बहुत नखरे दिखाए, पर जब उन्होंने कहा कि इसी के भरोसे साहब को छोड़ कर जा रही हूं, तब जा कर यह तैयार हुई.

अगले दिन सोमेन ने फोन पर वीडियो कालिंग कर के पत्नी की विमला से बात करा दी. सोमेन की पत्नी को भी उस की खुशामद करनी पड़ी. उन्होंने कहा कि साहब को बाहर का खाना बिलकुल सूट नहीं करता, इसलिए अपना घर समझ कर वह साहब का खयाल रखे.

इस पर विमला ने नखरे दिखाते हुए कहा था, ‘‘ठीक है, आप इतना कह रही हैं तो मैं आप के घर को अपने जैसा ही समझूंगी. आप इत्मीनान रखें, साहब को भूखा नहीं रहने दूंगी. पर इंदरजी के यहां भी सारा काम करना पड़ता है, इसलिए थोड़ी देरसबेर हो सकती है. फिर भी मैं सारे काम कर दूंगी.’’

विमला को दोनों घरों के बैक डोर की चाबी मिल गई. वह अंदर ही अंदर बहुत खुश थी, क्योंकि दोनों घरों में जम कर खानेपीने को मिल रहा था. अब वह थोड़ा बनठन कर साफसुथरे कपड़े पहन कर बालों में खुशबूदार तेल डाल कर आने लगी थी. वह हमेशा खुश दिखती थी और इंद्र तथा सोमेन से खूब हंसहंस कर बातें करती थी.

विमला देखने में साधारण थी. उस की उम्र 35 साल के करीब थी. उस का पति शंकर भी दोनों घरों में माली का काम करता था. वह काफी दुबलापतला मरियल सा था. अगर 3-4 लोग एक साथ जोर से फूंक दें तो वह उड़ सकता था. स्वभाव से वह भोलाभाला और एकदम सीधासादा था.

विमला दोनों दोस्तों से खूब चिकनीचुपड़ी बातें करती हुई अपनी अदाओं से उन्हें लुभाती रहती. कभी चायपानी देते वक्त जानबूझ कर पल्लू गिरा कर अपने वक्षस्थल दिखाने की कोशिश करती तो कभी किचन में बौलीवुड के भड़काऊ गीत ‘बीड़ी जलइले जिगर से…जिगर मा बड़ी आग है’ गुनगुनाने लगती. इसी तरह महीना बीत गया.

एक दिन विमला सुबह इंदर के यहां थोड़ा देर से आई. इंद्र ने वजह पूछी तो उस ने कहा, ‘‘कल रात आप के दोस्त के यहां देर हो गई. वह बहुत देर तक बातें करते रहे. कह रहे थे कि एक भूख तो मिट जाती है, लेकिन दूसरी का क्या करूं? यह दूसरी भूख क्या होती है साहब?’’

‘‘बस, यही समझ लो कि शंकर तुम से पेट और देह दोनों की भूख मिटा लेता है. वैसे दूसरी भूख तो सभी को लगती है, मुझे भी लगती है. पर मुझ बूढ़े को कौन पूछता है? क्या सचमुच हम इतने बूढ़े हो गए हैं?’’ इंद्र ने विमला को चाहत भरी नजरों से ताकते हुए कहा.

‘‘नहीं साहब, आप को देख कर तो कोई नहीं कह सकता कि आप रिटायर्ड हैं. रही बात मेरे मर्द की तो उस के शरीर में कहां दम है. फिर रात में पी कर आता है और लुढ़क जाता है. 5 साल हो गए, एक औलाद तक नहीं दे पाया. मैं अपना मर्द और एक बेटा छोड़ कर इस के साथ शहर आई थी कि यह मुझे उस से ज्यादा खुश रखेगा, लेकिन यह उस से भी बेकार निकला.’’

‘‘सचमुच.’’ इंद्र ने विमला को बांहों में भर कर कहा, ‘‘सोमेन से कुछ मत बताना. चलो, कमरे में चलते हैं.’’

इस के बाद जो नहीं होना चाहिए था, वह हो गया. इस के 2 दिनों बाद विमला सोमेन के यहां दिन में न जा कर रात में गई. सोमेन के पूछने पर उस ने कहा, ‘‘आप के दोस्त के यहां आज बहुत काम था, इसलिए देर होने पर वहीं से अपने घर चली गई थी. मर्द भी तो भूखा बैठा था.’’

‘‘अच्छा चलो, बुड्ढे को दिन भर उपवास करा दिया, जल्दी खाना बना कर पेट की भूख मिटाओ.’’

‘‘बूढ़े हों आप के दुश्मन, आप का तो क्या गठीला बदन है. आप को सिर्फ पेट की ही भूख मिटानी है?’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब क्या, आप ने ही तो कहा था कि एक और भूख होती है. फिर मेमसाहब ने भी अपने जैसा खयाल रखने को कहा था.’’

‘‘अरे भई, तू तो बड़ी समझदार हो गई है.’’ कह कर सोमेन ने विमला को बांहों में भर कर चूम लिया. उस ने भी कोई ऐतराज नहीं किया तो उन्होंने कहा, ‘‘चलो बैड पर, पेट की भूख की बाद में सोचेंगे.’’

उस दिन विमला सोमेन के साथ भी हमबिस्तर हो गई. रात को जाते समय सोमेन ने कहा, ‘‘देखो, इस बात की चर्चा इंद्र से भूल कर भी मत करना.’’

‘‘बिलकुल नहीं करूंगी, मैं इतनी बेवकूफ नहीं हूं कि इस तरह की बात किसी से कह दूं.’’ कह कर विमला चली गई.

एक दिन विमला ने अपने पति शंकर से कहा, ‘‘हमारे दोनों साहब आजकल कुछ ज्यादा ही रंगीनमिजाज हो रहे हैं. अगर तुम मेरा साथ दो तो मैं इन दोनों का ठीक से इलाज कर दूं.’’

इस के बाद उस ने शंकर से अपनी योजना बता दी. उस ने हामी भरते हुए कहा, ‘‘ऐसा हुआ तो अपने दिन सुधर जाएंगे.’’

इस तरह विमला 2 महीने के अंदर ही दोनों दोस्तों की घरवाली बन गई. उधर दोनों की पत्नियां विमला को फोन कर के समझाती रहती थीं कि साहब को किसी तरह की तकलीफ न होने पाए. विमला भी उन्हें निश्चिंत रहने को कहती थी. तीसरा महीना होतेहोते उस ने एक दिन सोमेन से कहा, ‘‘मैं ने सावधानी बरतने को कहा था, पर आप माने नहीं. मुझे गर्भ ठहर गया है.’’

‘‘इस में चिंता की क्या बात है, तुम शादीशुदा हो, यह बच्चा शंकर का होगा.’’

‘‘उस का कहां से होगा, उस नामर्द को तो 5 साल से झेल रही हूं. असली मर्द तो आप मिले हैं. इस में कोई शक नहीं कि मेरे पेट में आप का ही अंश है.’’

‘‘अच्छा चुप रह. यह जिस का भी हो, कहलाएगा तो शंकर का ही. अगर तुम चाहो तो मैं डाक्टर से कह कर इसे गिरवा दूं.’’

‘‘ना बाबा, बड़ी मुश्किल से तो यह दिन देखने को मिला है. आप चिंता न करें, आप का नाम नहीं लूंगी.’’

कुछ दिनों बाद विमला ने अपने गर्भवती होने की बात इंद्र से भी कह दी. उस ने भी कहा, ‘‘घबराती क्यों है, इस का शंकर ही बाप कहलाएगा.’’

विमला ने दोनों दोस्तों को अपने गर्भवती होने की बात बता कर ठगना शुरू कर दिया. अपना फूला हुआ पेट दिखा कर कभी डाक्टर से इलाज और दवादारू के पैसे लेती तो कभी छुट्टी ले कर बैठ जाती. धीरेधीरे उस के पेट का फूलना बढ़ता गया. एक दिन सोमेन ने कहा, ‘‘जरा पूजाघर की सफाई अच्छे से कर दे.’’

विमला ने कहा, ‘‘आज बहुत काम है, बाद में कर दूंगी.’’

एक महीने बाद फिर सोमेन ने पूजाघर साफ करने को कहा तो फिर वही जवाब मिला. सोमेन बेटी की डिलिवरी के समय एक महीने के लिए अमेरिका चला गया. डिलिवरी के बाद डाक्टर ने सलाह दी कि बेबी कमजोर है, इसलिए एक साल तक डे केयर में न दे कर उस की परवरिश घर में ही की जाए.

सोमेन ने इंडिया लौट कर इंद्र को बताया कि पत्नी के लौटने में अभी देर है. उधर इंद्र की पत्नी ने कहा था कि मां के पास किसी न किसी का रहना जरूरी है. उस के भाई का लड़का 12वीं कक्षा में है. बोर्ड की परीक्षा के बाद ही उन की भाभी आ कर संभालेंगी. इंद्र भी कुछ दिनों के लिए अपनी सास से मिलने चला गया था.

दोनों दोस्तों की पत्नियां बारबार फोन कर के विमला को दोनों का खयाल रखने के लिए कहती रहती थीं. विमला को और क्या चाहिए था. उस की तो पांचों अंगुलियां घी में थीं. विमला ने दोनों की पत्नियों से कहा था, ‘‘आप को पता होना चाहिए कि मैं उम्मीद से हूं. डिलिवरी के समय कुछ दिनों तक मैं काम पर नहीं आ सकूंगी. तब कोशिश करूंगी कि कोई कामवाली आ कर काम कर जाए.’’

विमला इंद्र और सोमेन से कहती थी कि डाक्टर ने फल और टौनिक लेने के लिए कहा है, क्योंकि बच्चा काफी कमजोर है. आखिर यह उन का ही तो खून है. भले ही शंकर का कहलाए, लेकिन इसे बढि़या खानापीना मिलते रहना चाहिए. डाक्टर कहते हैं कि पेट चीर कर डिलिवरी होगी. काफी पैसा लगेगा उस में.

इंद्र और सोमेन यही समझ रहे थे कि विमला के पेट में उन्हीं का अंश पल रहा है, इसलिए चुपचाप विमला को बरदाश्त कर रहे थे. हमेशा ही मन में डर बना रहता था कि अगर विमला का मुंह खुल गया तो वे किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे. उन्हें यह भी विश्वास था कि विमला को ज्यादा पैसों का लालच नहीं है, वरना वह चाहती तो और भी हथकंडे अपना कर ब्लैकमेल कर सकती थी.

एक दिन सोमेन ने कहा, ‘‘विमला, तेरे मर्द को भी तो बच्चे की चिंता होनी चाहिए न?’’

‘‘वह नशेड़ी कुछ नहीं करेगा. यह बच्चा आप ही का है, आप चाहें तो चल कर टेस्ट करा लें.’’

‘‘नहीं, टेस्ट की कोई जरूरत नहीं है.’’

विमला की डिलिवरी का समय नजदीक आ गया. उस ने इंद्र से कहा, ‘‘डाक्टर ने कहा है कि औपरेशन से बच्चा होगा. काफी खर्च आएगा साहब. हम कहां से इतना पैसा लाएंगे?’’

इसी बहाने विमला ने इंद्र और सोमेन से मोटी रकम वसूली. दोनों से 3 सप्ताह की छुट्टी मांगते हुए उस ने कहा कि वे कहें तो वह एक टेंपरेरी कामवाली का इंतजाम कर दे. रिश्ते में उस की चचिया सास लगती है, पर जरा बूढ़ी है. वह सफाई से भी नहीं रहती, लेकिन उन का काम चल जाएगा.

दोनों ने मना कर दिया कि किसी तरह वे काम चला लेंगे.

दोनों दोस्त अकसर देर तक साथ बैठ कर बातें करते और टोस्ट, खिचड़ी, पोहा आदि खा कर काम चलाते. कभीकभी होटल जा कर खा आते. इसी तरह 3 सप्ताह बीत गए. एक दिन विमला सोमेन के यहां आई. इंद्र भी वहीं बैठा था. उन्होंने कहा, ‘‘चलो भई, आज से अब विमला घर संभालेगी. हम लोग इतने दिनों में बिलकुल थक गए. अरे तेरा बच्चा कैसा है, बेटा हुआ या बेटी?’’

‘‘9 महीने पेट में पाला, मुआ बड़ा बेदर्द निकला. मरा हुआ पैदा हुआ. इतना बड़ा चीरा भी लगा पेट में.’’ विमला रोने का नाटक करते हुए साड़ी में हाथ लगा कर बोली, ‘‘दिखाऊं आप लोगों को?’’

Fictional Story

Hindi Social Story: पट्टेदार ननुआ- पटवारी ने कैसे बदल दी ननुआ और रनिया की जिंदगी

लेखक- डा. प्रमोद कुमार अग्रवाल

Hindi Social Story: ननुआ और रनिया रामपुरा गांव में भीख मांग कर जिंदगी गुजारते थे. उन की दो वक्त की रोटी का बंदोबस्त भी नहीं हो पाता था. ननुआ के पास हरिजन बस्ती में एक मड़ैया थी. मड़ैया एक कमरे की थी. उस में ही खाना पकाना और उस में ही सोना.

मड़ैया से लगे बरामदे में पत्तों और टहनियों का एक छप्पर था, जिस में वे उठनाबैठना करते थे. तरक्की ने ननुआ की मड़ैया तक पैर नहीं पसारे थे, पर पास में सरकारी नल से रनिया को पानी भरने की सहूलियत हो गई थी. गांव के कुएं, बावली या तो सूख चुके थे या उन में कूड़ाकचरा जमा हो गया था.

एक समय ननुआ के पिता के पास 2 बीघे का खेत हुआ करता था, पर उस के पिता ने उसे बेच कर ननुआ की जान बचाई थी. तब ननुआ को एक अजीबोगरीब बीमारी ने ऐसा जकड़ा था कि जिला, शहर में निजी अस्पतालों व डाक्टरों ने मिल कर उस के पिता को दिवालिया कर दिया था, पर मरते समय ननुआ के पिता खुश थे कि वे इस दुनिया में अपने वंश का नाम रखने के लिए ननुआ को छोड़ रहे थे, चाहे उसे भिखारी ही बना कर.

ननुआ की पत्नी रनिया उस पर लट्टू रहती थी. वह कहती थी कि ननुआ ने उसे क्याकुछ नहीं दिया? जवानी का मजा, औलाद का सुख और हर समय साथ रहना. जैसेतैसे कलुआ तो पल ही रहा है.

गांव में भीख मांगने का पेशा पूरी तरह भिखारी जैसा नहीं होता है, क्योंकि न तो गांव में अनेक भीख मांगने वाले होते हैं और न ही बहुत लोग भीख देने वाले. गांव में भीख में जो मिलता है, उस से पेटपूजा हो जाती है, यानी  गेहूं, चावल, आटा और खेत से ताजी सब्जियां. कभीकभी बासी खाना भी मिल जाता है.

त्योहारों पर तो मांगने वालों की चांदी हो जाती है, क्योंकि दान देने वाले उन्हें खुद ढूंढ़ने जाते हैं. गांव का भिखारी महीने में कम से कम 10 से 12 दिन तक दूसरों के खेतखलिहानों में काम करता है. गांव के जमींदार की बेगारी भी. कुछ भी नहीं मिला, तो वह पशुओं को चराने के लिए ले जाता है, जबकि उस की बीवी बड़े लोगों के घरों में चौकाबरतन, पशुघर की सफाई या अन्न भंडार की साफसफाई का काम करती है. आजकल घरों के सामने बहती नालियों की सफाई का काम भी कभीकभी मिल जाता है. ननुआ व रनिया का शरीर सुडौल था. उन्हें काम से फुरसत कहां? दिनभर या तो भीख मांगना या काम की तलाश में निकल जाना.

गांव में सभी लोग उन दोनों के साथ अच्छे बरताव के चलते उन से हमदर्दी रखते थे. सब कहते, ‘काश, ननुआ को अपना बेचा हुआ 2 बीघे का खेत वापस मिल जाए, तो उसे भीख मांगने का घटिया काम न करना पड़े.’

गांव में एक चतुर सेठ था, जो गांव वालों को उचित सलाह दे कर उन की समस्या का समाधान करता था. वह गांव वालों के बारबार कहने पर ननुआ की समस्या का समाधान करने की उधेड़बुन में लग गया.

इस बीच रामपुरा आते समय पटवारी मोटरसाइकिल समेत गड्ढे में गिर गया. उसे गंभीर हालत में जिला अस्पताल ले जाया गया. वहां से उसे तुरंत प्रदेश की राजधानी के सब से बड़े सरकारी अस्पताल में भरती कराया गया. पटवारी की रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट आई थी और डाक्टरों ने उसे 6 महीने तक बिस्तर पर आराम करने की सलाह दी थी. पटवारी की पत्नी मास्टरनी थी और घर में और कोई नहीं था.

पटवारी की पत्नी के पास घर के काम निबटाने का समय नहीं था और न ही उसे घर के काम में दिलचस्पी थी. फिर क्या था. सेठ को हल मिल गया. उस की सलाह पर गांव की ओर से रनिया को पटवारी के यहां बेगारी के लिए भेज दिया गया. वह चोरीछिपे ननुआ को भी पटवारी के घर से बचाखुचा खाना देती रही. अब तो दोनों के मजे हो रहे थे.

पटवारी रनिया की सेवा से बहुत खुश हुआ. उस ने एक दिन ननुआ को बुला कर पूछा, ‘‘मैं तुम्हारी औरत की सेवा से खुश हूं. मैं नहीं जानता था कि घर का काम इतनी अच्छी तरह से हो सकता है. मैं तुम्हारे लिए कुछ करना चाहता हूं. कहो, मैं तुम्हारे लिए क्या करूं?’’

सेठ के सिखाए ननुआ ने जवाब दिया, ‘‘साहब, हम तो भटकभटक कर अपना पेट पालते हैं. आप के यहां आने पर रनिया कम से कम छत के नीचे तो काम कर रही है, वरना हम तो आसमान तले रहते हैं. हम इसी बात से खुश हैं कि आप के यहां रनिया को काम करने का मौका मिला.’’

‘‘फिर भी तुम कुछ तो मांगो?’’

‘‘साहब, आप तो जानते ही हैं कि गांव के लोगों को अपनी जमीन सब से ज्यादा प्यारी होती है. पहले मेरे पिता के पास 2 बीघा जमीन थी, जो मेरी बीमारी में चली गई. अगर मुझे 2 बीघा जमीन मिल जाए, तो मैं आप का जिंदगीभर एहसान नहीं भूलूंगा.’’

‘‘तुम्हें तुम्हारी जमीन जरूर मिलेगी. तुम केवल मेरे ठीक होने का इंतजार करो,’’ पटवारी ने ननुआ को भरोसा दिलाया.

पटवारी ने बिस्तर पर पड़ेपड़े गांव की खतौनी को ध्यान से देखा, तो उस ने पाया कि ननुआ के पिता के नाम पर अभी भी वही 2 बीघा जमीन चढ़ी हुई है, क्योंकि खरीदार ने उसे अभी तक अपने नाम पर नहीं चढ़वाया था. पहले यह जमीन उस खरीदार के नाम पर चढ़ेगी, तभी सरकारी दस्तावेज में ननुआ सरकारी जमीन पाने के काबिल होगा. फिर सरकारी जमीन ननुआ के लिए ठीक करनी पड़ेगी. उस के बाद सरपंच से लिखवाना होगा. फिर ननुआ को नियमानुसार जमीन देनी होगी, जो एक लंबा रास्ता है.

पटवारी जल्दी ठीक हो गया. अपने इलाज में उस ने पानी की तरह पैसा बहाया. वह रनिया की सेवा व मेहनत को न भूल सका.

पूरी तरह ठीक होने के बाद पटवारी ने दफ्तर जाना शुरू किया व ननुआ को जमीन देने की प्रक्रिया शुरू की. बाधा देने वाले बाबुओं, पंच व अफसरों को पटवारी ने चेतावनी दी, ‘‘आप ने अगर यह निजी काम रोका, तो मैं आप के सभी कामों को रोक दूंगा. इन्हीं लोगों ने मेरी जान बचाई है.’’

पटवारी की इस धमकी से सभी चौंक गए. किसी ने भी पटवारी के काम में विरोध नहीं किया. नतीजतन, पटवारी ने ननुआ के लिए जमीन का पट्टा ठीक किया. आखिर में बड़े साहब के दस्तखत के बाद ही राज्यपाल द्वारा ननुआ को 2 बीघा जमीन का पट्टा दे दिया गया. नए सरकारी हुक्म के मुताबिक पट्टे में रनिया का नाम भी लिख दिया गया.

गांव वाले ननुआ को ले कर सेठ के पास गए. ननुआ ने उन के पैर छुए. सेठ ने कहा, ‘‘बेटा, अभी तो तुम्हारा सिर्फ आधा काम हुआ है. ऐसे तो गांव में कई लोगों के पास परती जमीनों के पट्टे हैं, पर उन के पास उन जमीनों के कब्जे नहीं हैं. बिना कब्जे की जमीन वैसी ही है, जैसे बिना गौने की बहू.

‘‘पटवारी सरकार का ऐसा आखिरी पुरजा है, जो सरकारी जमीनों का कब्जा दिला सकता है. वह जमींदारों की जमीनें सरकार में जाने के बाद भी इन सरकारी जमीनों को उन से ही जुतवा कर पैदावार में हर साल अंश लेता है.

‘‘पटवारी के पास सभी जमीन मालिकों व जमींदारों की काली करतूतों का पूरा लेखाजोखा रहता है. ऊपर के अफसर या तो दूसरे सरकारी कामों में लगे रहते हैं या पटवारी सुविधा शुल्क भेज कर उन्हें अपने पक्ष में रखता है.

‘‘पटवारी ही आज गांव का जमींदार है. और वह तुम्हारी मुट्ठी में है. समस्या हो, तो रनिया के साथ उस के पैर पड़ने चले  जाओ.’’ ननुआ को गांव वालों के सामने जमीन का कब्जा मिल गया. गांव में खुशी की लहर दौड़ गई.

पटवारी ने घोषणा की, ‘‘इस जमीन को और नहीं बेचा जा सकता है.’’ अब ननुआ के लिए पटवारी ही सबकुछ था. उस का 2 बीघा जमीन पाने का सपना पूरा हो चुका था.

ननुआ व रनिया ने मिल कर उस बंजर जमीन को अपने खूनपसीने से सींच कर उपजाऊ बना लिया, फिर पटवारी की मदद से उसे उस ऊबड़खाबड़ जमीन को बराबर करने के लिए सरकारी मदद मिल गई.

पटवारी ने स्थानीय पंचायत से मिल कर ननुआ के लिए इंदिरा आवास योजना के तहत घर बनाने के लिए सरकारी मदद भी मुहैया करा दी.

ननुआ व रनिया अपने 2 बीघा खेत में गेहूं, बाजरा, मक्का के साथसाथ दालें, तिलहन और सब्जियां भी उगाने लगे. किनारेकिनारे कुछ फलों के पेड़ भी लगा लिए. मेंड़ पर 10-12 सागौन के पेड़ लगा दिए. उन का बेटा कलुआ भी पढ़लिख गया. उन्होंने अपने घर में पटवारी की तसवीर लगाई और सोचा कि कलुआ भी पढ़लिख कर पटवारी बने.

Hindi Social Story

Hindi Fictional Story: भाभी- क्यों बरसों से अपना दर्द छिपाए बैठी थी वह

Hindi Fictional Story: अपनी सहेली के बेटे के विवाह में शामिल हो कर पटना से पुणे लौट रही थी कि रास्ते में बनारस में रहने वाली भाभी, चाची की बहू से मिलने का लोभ संवरण नहीं कर पाई. बचपन की कुछ यादों से वे इतनी जुड़ी थीं जो कि भुलाए नहीं भूल सकती. सो, बिना किसी पूर्वयोजना के, पूर्वसूचना के रास्ते में ही उतर गई. पटना में ट्रेन में बैठने के बाद ही भाभी से मिलने का मन बनाया था. घर का पता तो मुझे मालूम ही था, आखिर जन्म के बाद 19 साल मैं ने वहीं गुजारे थे. हमारा संयुक्त परिवार था. पिताजी की नौकरी के कारण बाद में हम दिल्ली आ गए थे. उस के बाद, इधरउधर से उन के बारे में सूचना मिलती रही, लेकिन मेरा कभी उन से मिलना नहीं हुआ था. आज 25 साल बाद उसी घर में जाते हुए अजीब सा लग रहा था, इतने सालों में भाभी में बहुत परिवर्तन आ गया होगा, पता नहीं हम एकदूसरे को पहचानेंगे भी या नहीं, यही सोच कर उन से मिलने की उत्सुकता बढ़ती जा  रही थी. अचानक पहुंच कर मैं उन को हैरान कर देना चाह रही थी.

स्टेशन से जब आटो ले कर घर की ओर चली तो बनारस का पूरा नक्शा ही बदला हुआ था. जो सड़कें उस जमाने में सूनी रहती थीं, उन में पैदल चलना तो संभव ही नहीं दिख रहा था. बड़ीबड़ी अट्टालिकाओं से शहर पटा पड़ा था. पहले जहां कारों की संख्या सीमित दिखाई पड़ती थी, अब उन की संख्या अनगिनत हो गई थी. घर को पहचानने में भी दिक्कत हुई. आसपास की खाली जमीन पर अस्पताल और मौल ने कब्जा कर रखा था. आखिर घूमतेघुमाते घर पहुंच ही गई.

घर के बाहर के नक्शे में कोई परिवर्तन नहीं था, इसलिए तुरंत पहचान गई. आगे क्या होगा, उस की अनुभूति से ही धड़कनें तेज होने लगीं. डोरबैल बजाई. दरवाजा खुला, सामने भाभी खड़ी थीं. बालों में बहुत सफेदी आ गई थी. लेकिन मुझे पहचानने में दिक्कत नहीं हुई. उन को देख कर मेरे चेहरे पर मुसकान तैर गई. लेकिन उन की प्रतिक्रिया से लग रहा था कि वे मुझे पहचानने की असफल कोशिश कर रही थीं. उन्हें अधिक समय दुविधा की स्थिति में न रख कर मैं ने कहा, ‘‘भाभी, मैं गीता.’’ थोड़ी देर वे सोच में पड़ गईं, फिर खुशी से बोलीं, ‘‘अरे, दीदी आप, अचानक कैसे? खबर क्यों नहीं की, मैं स्टेशन लेने आ जाती. कितने सालों बाद मिले हैं.’’

उन्होंने मुझे गले से लगा लिया और हाथ पकड़ कर घर के अंदर ले गईं. अंदर का नक्शा पूरी तरह से बदला हुआ था. चाचाचाची तो कब के कालकवलित हो गए थे. 2 ननदें थीं, उन का विवाह हो चुका था. भाभी की बेटी की भी शादी हो गई थी. एक बेटा था, जो औफिस गया हुआ था. मेरे बैठते ही वे चाय बना कर ले आईं. चाय पीतेपीते मैं ने उन को भरपूर नजरों से देखा, मक्खन की तरह गोरा चेहरा अपनी चिकनाई खो कर पाषाण जैसा कठोर और भावहीन हो गया था. पथराई हुई आंखें, जैसे उन की चमक को ग्रहण लगे वर्षों बीत चुके हों. सलवटें पड़ी हुई सूती सफेद साड़ी, जैसे कभी उस ने कलफ के दर्शन ही न किए हों. कुल मिला कर उन की स्थिति उस समय से बिलकुल विपरीत थी जब वे ब्याह कर इस घर में आई थीं.

मैं उन्हें देखने में इतनी खो गई थी कि उन की क्या प्रतिक्रिया होगी, इस का ध्यान ही नहीं रहा. उन की आवाज से चौंकी, ‘‘दीदी, किस सोच में पड़ गई हैं, पहले मुझे देखा नहीं है क्या? नहा कर थोड़ा आराम कर लीजिए, ताकि रास्ते की थकान उतर जाए. फिर जी भर के बातें करेंगे.’’ चाय खत्म हो गई थी, मैं झेंप कर उठी और कपड़े निकाल कर बाथरूम में घुस गई.

शादी और सफर की थकान से सच में बदन बिलकुल निढाल हो रहा था. लेट तो गई लेकिन आंखों में नींद के स्थान पर 25 साल पुराने अतीत के पन्ने एकएक कर के आंखों के सामने तैरने लगे…

मेरे चचेरे भाई का विवाह इन्हीं भाभी से हुआ था. चाचा की पहली पत्नी से मेरा इकलौता भाई हुआ था. वह अन्य दोनों सौतेली बहनों से भिन्न था. देखने और स्वभाव दोनों में उस का अपनी बहनों से अधिक मुझ से स्नेह था क्योंकि उस की सौतेली बहनें उस से सौतेला व्यवहार करती थीं. उस की मां के गुण उन में कूटकूट कर भरे थे. मेरी मां की भी उस की सगी मां से बहुत आत्मीयता थी, इसलिए वे उस को अपने बड़े बेटे का दरजा देती थीं. उस जमाने में अधिकतर जैसे ही लड़का व्यवसाय में लगा कि उस के विवाह के लिए रिश्ते आने लगते थे. भाई एक तो बहुत मनमोहक व्यक्तित्व का मालिक था, दूसरा उस ने चाचा के व्यवसाय को भी संभाल लिया था. इसलिए जब भाभी के परिवार की ओर से विवाह का प्रस्ताव आया तो चाचा मना नहीं कर पाए. उन दिनों घर के पुरुष ही लड़की देखने जाते थे, इसलिए भाई के साथ चाचा और मेरे पापा लड़की देखने गए. उन को सब ठीक लगा और भाई ने भी अपने चेहरे के हावभाव से हां की मुहर लगा दी तो वे नेग कर के, शगुन के फल, मिठाई और उपहारों से लदे घर लौटे तो हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहा. भाई जब हम से मिलने आया तो बहुत शरमा रहा था. हमारे पूछने पर कि कैसी हैं भाभी, तो उस के मुंह से निकल गया, ‘बहुत सुंदर है.’ उस के चेहरे की लजीली खुशी देखते ही बन रही थी.

देखते ही देखते विवाह का दिन भी आ गया. उन दिनों औरतें बरात में नहीं जाया करती थीं. हम बेसब्री से भाभी के आने की प्रतीक्षा करने लगे. आखिर इंतजार की घडि़यां समाप्त हुईं और लंबा घूंघट काढ़े भाभी भाई के पीछेपीछे आ गईं. चाची ने  उन्हें औरतों के झुंड के बीचोंबीच बैठा दिया.

मुंहदिखाई की रस्मअदायगी शुरू हो गई. पहली बार ही जब उन का घूंघट उठाया गया तो मैं उन का चेहरा देखने का मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहती थी और जब मैं ने उन्हें देखा तो मैं देखती ही रह गई उस अद्भुत सौंदर्य की स्वामिनी को. मक्खन सा झक सफेद रंग, बेदाग और लावण्यपूर्ण चेहरा, आंखों में हजार सपने लिए सपनीली आंखें, चौड़ा माथा, कालेघने बालों का बड़ा सा जूड़ा तथा खुशी से उन का चेहरा और भी दपदपा रहा था.

वे कुल मिला कर किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थीं. सभी औरतें आपस में उन की सुंदरता की चर्चा करने लगीं. भाई विजयी मुसकान के साथ इधरउधर घूम रहा था. इस से पहले उसे कभी इतना खुश नहीं देखा था. उस को देख कर हम ने सोचा, मां तो जन्म देते ही दुनिया से विदा हो गई थीं, चलो कम से कम अपनी पत्नी का तो वह सुख देखेगा.

विवाह के समय भाभी मात्र 16 साल की थीं. मेरी हमउम्र. चाची को उन का रूप फूटी आंखों नहीं सुहाया क्योंकि अपनी बदसूरती को ले कर वे हमेशा कुंठित रहती थीं. अपना आक्रोश जबतब भाभी के क्रियाकलापों में मीनमेख निकाल कर शांत करती थीं. कभी कोई उन के रूप की प्रशंसा करता तो छूटते ही बोले बिना नहीं रहती थीं, ‘रूप के साथ थोड़े गुण भी तो होने चाहिए थे, किसी काम के योग्य नहीं है.’

दोनों ननदें भी कटाक्ष करने में नहीं चूकती थीं. बेचारी चुपचाप सब सुन लेती थीं. लेकिन उस की भरपाई भाई से हो जाती थी. हम भी मूकदर्शक बने सब देखते रहते थे.

कभीकभी भाभी मेरे व मां के पास आ कर अपना मन हलका कर लेती थीं. लेकिन मां भी असहाय थीं क्योंकि चाची के सामने बोलने की किसी की हिम्मत नहीं थी.

मैं मन ही मन सोचती, मेरी हमउम्र भाभी और मेरे जीवन में कितना अंतर है. शादी के बाद ऐसा जीवन जीने से तो कुंआरा रहना ही अच्छा है. मेरे पिता पढ़ेलिखे होने के कारण आधुनिक विचारधारा के थे. इतनी कम उम्र में मैं अपने विवाह की कल्पना नहीं कर सकती थी. भाभी के पिता के लिए लगता है, उन के रूप की सुरक्षा करना कठिन हो गया था, जो बेटी का विवाह कर के अपने कर्तव्यों से उन्होंने छुटकारा पा लिया. भाभी ने 8वीं की परीक्षा दी ही थी अभी. उन की सपनीली आंखों में आंसू भरे रहते थे अब, चेहरे की चमक भी फीकी पड़ गई थी.

विवाह को अभी 3 महीने भी नहीं बीते होंगे कि भाभी गर्भवती हो गईं. मेरी भोली भाभी, जो स्वयं एक बच्ची थीं, अचानक अपने मां बनने की खबर सुन कर हक्कीबक्की रह गईं और आंखों में आंसू उमड़ आए. अभी तो वे विवाह का अर्थ भी अच्छी तरह समझ नहीं पाई थीं. वे रिश्तों को ही पहचानने में लगी हुई थीं, मातृत्व का बोझ कैसे वहन करेंगी. लेकिन परिस्थितियां सबकुछ सिखा देती हैं. उन्होंने भी स्थिति से समझौता कर लिया. भाई पितृत्व के लिए मानसिक रूप से तैयार तो हो गया, लेकिन उस के चेहरे पर अपराधभावना साफ झलकती थी कि जागरूकता की कमी होने के कारण भाभी को इस स्थिति में लाने का दोषी वही है. मेरी मां कभीकभी भाभी से पूछ कर कि उन्हें क्या पसंद है, बना कर चुपचाप उन के कमरे में पहुंचा देती थीं. बाकी किसी को तो उन से कोई हमदर्दी न थी.

प्रसव का समय आ पहुंचा. भाभी ने चांद सी बेटी को जन्म दिया. नन्हीं परी को देख कर, वे अपना सारा दुखदर्द भूल गईं और मैं तो खुशी से नाचने लगी. लेकिन यह क्या, बाकी लोगों के चेहरों पर लड़की पैदा होने की खबर सुन कर मातम छा गया था. भाभी की ननदें और चाची सभी तो स्त्री हैं और उन की अपनी भी तो 2 बेटियां ही हैं, फिर ऐसा क्यों? मेरी समझ से परे की बात थी. लेकिन एक बात तो तय थी कि औरत ही औरत की दुश्मन होती है. मेरे जन्म पर तो मेरे पिताजी ने शहरभर में लड्डू बांटे थे. कितना अंतर था मेरे चाचा और पिताजी में. वे केवल एक साल ही तो छोटे थे उन से. एक ही मां से पैदा हुए दोनों. लेकिन पढ़ेलिखे होने के कारण दोनों की सोच में जमीनआसमान का अंतर था.

मातृत्व से गौरवान्वित हो कर भाभी और भी सुडौल व सुंदर दिखने लगी थीं. बेटी तो जैसे उन को मन बहलाने का खिलौना मिल गई थी. कई बार तो वे उसे खिलातेखिलाते गुनगुनाने लगती थीं. अब उन के ऊपर किसी के तानों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता था. मां बनते ही औरत कितनी आत्मविश्वास और आत्मसम्मान से पूर्ण हो जाती है, उस का उदाहरण भाभी के रूप में मेरे सामने था. अब वे अपने प्रति गलत व्यवहार की प्रतिक्रियास्वरूप प्रतिरोध भी करने लगी थीं. इस में मेरे भाई का भी सहयोग था, जिस से हमें बहुत सुखद अनुभूति होती थी.

इसी तरह समय बीतने लगा और भाभी की बेटी 3 साल की हो गई तो फिर से उन के गर्भवती होने का पता चला और इस बार भाभी की प्रतिक्रिया पिछली बार से एकदम विपरीत थी. परिस्थितियों ने और समय ने उन को काफी परिपक्व बना दिया था.

गर्भ को 7 महीने बीत गए और अचानक हृदयविदारक सूचना मिली कि भाई की घर लौटते हुए सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई है. यह अनहोनी सुन कर सभी लोग स्तंभित रह गए. कोई भाभी को मनहूस बता रहा था तो कोई अजन्मे बच्चे को कोस रहा था कि पैदा होने से पहले ही बाप को खा गया. यह किसी ने नहीं सोचा कि पतिविहीन भाभी और बाप के बिना बच्चे की जिंदगी में कितना अंधेरा हो गया है. उन से किसी को सहानुभूति नहीं थी.

समाज का यह रूप देख कर मैं कांप उठी और सोच में पड़ गई कि यदि भाई कमउम्र लिखवा कर लाए हैं या किसी की गलती से दुर्घटना में वे मारे गए हैं तो इस में भाभी का क्या दोष? इस दोष से पुरुष जाति क्यों वंचित रहती है?

एकएक कर के उन के सारे सुहाग चिह्न धोपोंछ दिए गए. उन के सुंदर कोमल हाथ, जो हर समय मीनाकारी वाली चूडि़यों से सजे रहते थे, वे खाली कर दिए गए. उन्हें सफेद साड़ी पहनने को दी गई. भाभी के विवाह की कुछ साडि़यों की तो अभी तह भी नहीं खुल पाई थी. वे तो जैसे पत्थर सी बेजान हो गई थीं. और जड़वत सभी क्रियाकलापों को निशब्द देखती रहीं. वे स्वीकार ही नहीं कर पा रही थीं कि उन की दुनिया उजड़ चुकी थी.

एक भाई ही तो थे जिन के कारण वे सबकुछ सह कर भी खुश रहती थीं. उन के बिना वे कैसे जीवित रहेंगी? मेरा हृदय तो चीत्कार करने लगा कि भाभी की ऐसी दशा क्यों की जा रही थी. उन का कुसूर क्या था? पत्नी की मृत्यु के बाद पुरुष पर न तो लांछन लगाए जाते हैं, न ही उन के स्वरूप में कोई बदलाव आता है. भाभी के मायके वाले भाई की तेरहवीं पर आए और उन्हें साथ ले गए कि वे यहां के वातावरण में भाई को याद कर के तनाव में और दुखी रहेंगी, जिस से आने वाले बच्चे और भाभी के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ेगा. सब ने सहर्ष उन को भेज दिया यह सोच कर कि जिम्मेदारी से मुक्ति मिली. कुछ दिनों बाद उन के पिताजी का पत्र आया कि वे भाभी का प्रसव वहीं करवाना चाहते हैं. किसी ने कोई एतराज नहीं किया. और फिर यह खबर आई कि भाभी के बेटा हुआ है.

हमारे यहां से उन को बुलाने का कोई संकेत दिखाई नहीं पड़ रहा था. लेकिन उन्होंने बुलावे का इंतजार नहीं किया और बेटे के 2 महीने का होते ही अपने भाई के साथ वापस आ गईं. कितना बदल गई थीं भाभी, सफेद साड़ी में लिपटी हुई, सूना माथा, हाथ में सोने की एकएक चूड़ी, बस. उन्होंने हमें बताया कि उन के मातापिता उन को आने नहीं दे रहे थे कि जब उस का पति ही नहीं रहा तो वहां जा कर क्या करेगी लेकिन वे नहीं मानीं. उन्होंने सोचा कि वे अपने मांबाप पर बोझ नहीं बनेंगी और जिस घर में ब्याह कर गई हैं, वहीं से उन की अर्थी उठेगी.

मैं ने मन में सोचा, जाने किस मिट्टी की बनी हैं वे. परिस्थितियों ने उन्हें कितना दृढ़निश्चयी और सहनशील बना दिया है. समय बीतते हुए मैं ने पाया कि उन का पहले वाला आत्मसम्मान समाप्त हो चुका है. अंदर से जैसे वे टूट गई थीं. जिस डाली का सहारा था, जब वह ही नहीं रही तो वे किस के सहारे हिम्मत रखतीं. उन को परिस्थितियों से समझौता करने के अतिरिक्त कोई चारा दिखाई नहीं पड़ रहा था. फूल खिलने से पहले ही मुरझा गया था. सारा दिन सब की सेवा में लगी रहती थीं.

उन की ननद का विवाह तय हो गया और तारीख भी निश्चित हो गई थी. लेकिन किसी भी शुभकार्य के संपन्न होते समय वे कमरे में बंद हो जाती थीं. लोगों का कहना था कि वे विधवा हैं, इसलिए उन की परछाईं भी नहीं पड़नी चाहिए. यह औरतों के लिए विडंबना ही तो है कि बिना कुसूर के हमारा समाज विधवा के प्रति ऐसा दृष्टिकोण रखता है. उन के दूसरे विवाह के बारे में सोचना तो बहुत दूर की बात थी. उन की हर गतिविधि पर तीखी आलोचना होती थी. जबकि चाचा का दूसरा विवाह, चाची के जाने के बाद एक साल के अंदर ही कर दिया गया. लड़का, लड़की दोनों मां के कोख से पैदा होते हैं, फिर समाज की यह दोहरी मानसिकता देख कर मेरा मन आक्रोश से भर जाता था, लेकिन कुछ कर नहीं सकती थी.

मेरे पिताजी पुश्तैनी व्यवसाय छोड़ कर दिल्ली में नौकरी करने का मन बना रहे थे. भाभी को जब पता चला तो वे फूटफूट कर रोईं. मेरा तो बिलकुल मन नहीं था उन से इतनी दूर जाने का, लेकिन मेरे न चाहने से क्या होना था और हम दिल्ली चले गए. वहां मैं ने 2 साल में एमए पास किया और मेरा विवाह हो गया. उस के बाद भाभी से कभी संपर्क ही नहीं हुआ. ससुराल वालों का कहना था कि विवाह के बाद जब तक मायके के रिश्तेदारों का निमंत्रण नहीं आता तब तक वे नहीं जातीं. मेरा अपनी चाची  से ऐसी उम्मीद करना बेमानी था. ये सब सोचतेसोचते कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला.

‘‘उठो दीदी, सांझ पड़े नहीं सोते. चाय तैयार है,’’ भाभी की आवाज से मेरी नींद खुली और मैं उठ कर बैठ गई. पुरानी बातें याद करतेकरते सोने के बाद सिर भारी हो रहा था, चाय पीने से थोड़ा आराम मिला. भाभी का बेटा, प्रतीक भी औफिस से आ गया था. मेरी दृष्टि उस पर टिक गई, बिलकुल भाई पर गया था. उसी की तरह मनमोहक व्यक्तित्व का स्वामी, उसी तरह बोलती आंखें और गोरा रंग.

इतने वर्षों बाद मिली थी भाभी से, समझ ही नहीं आ रहा था कि बात कहां से शुरू करूं. समय कितना बीत गया था, उन का बेटा सालभर का भी नहीं था जब हम बिछुड़े थे. आज इतना बड़ा हो गया है. पूछना चाह रही थी उन से कि इतने अंतराल तक उन का वक्त कैसे बीता, बहुतकुछ तो उन के बाहरी आवरण ने बता दिया था कि वे उसी में जी रही हैं, जिस में मैं उन को छोड़ कर गई थी. इस से पहले कि मैं बातों का सिलसिला शुरू करूं, भाभी का स्वर सुनाई दिया, ‘‘दामादजी क्यों नहीं आए? क्या नाम है बेटी का? क्या कर रही है आजकल? उसे क्यों नहीं लाईं?’’ इतने सारे प्रश्न उन्होंने एकसाथ पूछ डाले.

मैं ने सिलसिलेवार उत्तर दिया, ‘‘इन को तो अपने काम से फुरसत नहीं है. मीनू के इम्तिहान चल रहे थे, इसलिए भी इन का आना नहीं हुआ. वैसे भी, मेरी सहेली के बेटे की शादी थी, इन का आना जरूरी भी नहीं था. और भाभी, आप कैसी हो? इतने साल मिले नहीं, लेकिन आप की याद बराबर आती रही. आप की बेटी के विवाह में भी चाची ने नहीं बुलाया. मेरा बहुत मन था आने का, कैसी है वह?’’ मैं ने सोचने में और समय बरबाद न करते हुए पूछा.

‘‘क्या करती मैं, अपनी बेटी की शादी में भी औरों पर आश्रित थी. मैं चाहती तो बहुत थी…’’ कह कर वे शून्य में खो गईं.’’

‘‘चलो, अब चाचाचाची तो रहे नहीं, प्रतीक के विवाह में आप नहीं बुलाएंगी तो भी आऊंगी. अब तो विवाह के लायक वह भी हो गया है.’’

‘‘मैं भी अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाह रही हूं,’’ उन्होंने संक्षिप्त उत्तर देते हुए लंबी सांस ली.

‘‘एक बात पूछूं, भाभी, आप को भाई की याद तो बहुत आती होगी?’’ मैं ने सकुचाते हुए उन्हें टटोला.

‘‘हां दीदी, लेकिन यादों के सहारे कब तक जी सकते हैं. जीवन की कड़वी सचाइयां यादों के सहारे तो नहीं झेली जातीं. अकेली औरत का जीवन कितना दूभर होता है. बिना किसी के सहारे के जीना भी तो बहुत कठिन है. वे तो चले गए लेकिन मुझे तो सारी जिम्मेदारी अकेले संभालनी पड़ी. अंदर से रोती थी और बच्चों के सामने हंसती थी कि उन का मन दुखी न हो. वे अपने को अनाथ न समझें,’’ एक सांस में वे बोलीं, जैसे उन्हें कोई अपना मिला, दिल हलका करने के लिए.

‘‘हां भाभी, आप सही हैं, जब भी ये औफिस टूर पर चले जाते हैं तब अपने को असहाय महसूस करती हूं मैं भी. एक बात पूछूं, बुरा तो नहीं मानेंगी? कभी आप को किसी पुरुषसाथी की आवश्यकता नहीं पड़ी?’’ मेरी हिम्मत उन की बातों से बढ़ गई थी.

‘‘क्या बताऊं दीदी, जब मन बहुत उदास होता था तो लगता था किसी के कंधे पर सिर रख कर खूब रोऊं और वह कंधा पुरुष का हो तभी हम सुरक्षित महसूस कर सकते हैं. उस के बिना औरत बहुत अकेली है,’’ उन्होंने बिना संकोच के कहा.

‘‘आप ने कभी दूसरे विवाह के बारे में नहीं सोचा?’’ मेरी हिम्मत बढ़ती जा रही थी.

‘‘कुछ सोचते हुए वे बोलीं,  ‘‘क्यों नहीं दीदी, पुरुषों की तरह औरतों की भी तो तन की भूख होती है बल्कि उन को तो मानसिक, आर्थिक सहारे के साथसाथ सामाजिक सुरक्षा की भी बहुत जरूरत होती है. मेरी उम्र ही क्या थी उस समय. लेकिन जब मैं पढ़ीलिखी न होने के कारण आर्थिक रूप से दूसरों पर आश्रित थी तो कर भी क्या सकती थी. इसीलिए मैं ने सब के विरुद्ध हो कर, अपने गहने बेच कर आस्था को पढ़ाया, जिस से वह आत्मनिर्भर हो कर अपने निर्णय स्वयं ले सके. समय का कुछ भी भरोसा नहीं, कब करवट बदले.’’

उन का बेबाक उत्तर सुन कर मैं अचंभित रह गई और मेरा मन करुणा से भर आया, सच में जिस उम्र में वे विधवा हुई थीं उस उम्र में तो आजकल कोई विवाह के बारे में सोचता भी नहीं है. उन्होंने इतना समय अपनी इच्छाओं का दमन कर के कैसे काटा होगा, सोच कर ही मैं सिहर उठी थी.

‘‘हां भाभी, आजकल तो पति की मृत्यु के बाद भी उन के बाहरी आवरण में और क्रियाकलापों में विशेष परिवर्तन नहीं आता और पुनर्विवाह में भी कोई अड़चन नहीं डालता, पढ़ीलिखी होने के कारण आत्मविश्वास और आत्मसम्मान के साथ जीती हैं, होना भी यही चाहिए, आखिर उन को किस गलती की सजा दी जाए.’’

‘‘बस, अब तो मैं थक गई हूं. मुझे अकेली देख कर लोग वासनाभरी नजरों से देखते हैं. कुछ अपने खास रिश्तेदारों के भी मैं ने असली चेहरे देख लिए तुम्हारे भाई के जाने के बाद. अब तो प्रतीक के विवाह के बाद मैं संसार से मुक्ति पाना चाहती हूं,’’ कहतेकहते भाभी की आंखों से आंसू बहने लगे. समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा न करने के लिए कह कर उन का दुख बढ़ाऊंगी या सांत्वना दूंगी, मैं शब्दहीन उन से लिपट गई और वे अपना दुख आंसुओं के सहारे हलका करती रहीं. ऐसा लग रहा था कि बरसों से रुके हुए आंसू मेरे कंधे का सहारा पा कर निर्बाध गति से बह रहे थे और मैं ने भी उन के आंसू बहने दिए.

अगले दिन ही मुझे लौटना था, भाभी से जल्दी ही मिलने का तथा अधिक दिन उन के साथ रहने का वादा कर के मैं भारी मन से ट्रेन में बैठ गई. वे प्रतीक के साथ मुझे छोड़ने के लिए स्टेशन आई थीं. ट्रेन के दरवाजे पर खड़े हो कर हाथ हिलाते हुए, उन के चेहरे की चमक देख कर मुझे सुकून मिला कि चलो, मैं ने उन से मिल कर उन के मन का बोझ तो हलका किया.

Hindi Fictional Story

Saas Bahu Story: दो पहलू- सास से क्यों चिढ़ती थी नीरा

Saas Bahu Story: सास की कर्कश आवाज कानों में पड़ी तो नीरा ने कसमसा कर अंगड़ाई ली. अधखुली आंखों से देखा, आसमान पर अभी लाली छाई हुई है. सूरज अभी निकला नहीं है, पर मांजी का सूरज अभी से सिर पर चढ़ आया है. न उन्हें खुद नींद आती है और न  किसी और को सोने देती हैं. एक गहरी खीज सी उभर आई उस के चेहरे पर.

परसों उस की नींद जल्दी टूट गई थी. लेटेलेटे कमर दर्द कर रही थी. वह उठ गई और अपने लिए चाय बनाने लगी. खटरपटर सुन कर मांजी की नींद टूट गई. बोल पड़ीं, ‘‘इतनी जल्दी क्यों उठ गई, बहू. कौन सा लंबाचौड़ा परिवार है जिस के लिए तुम्हें खटना पड़ेगा.’’

गुस्से से नीरा का तनबदन सुलग उठा था. आखिर यह चाहती क्या हैं? जल्दी उठो तो मुश्किल, देर से उठो तो मुश्किल. बोलने का बहाना भर चाहिए इन्हें.

अभी तो उसे यहां आए मुश्किल से 2 माह हुए  हैं, पर लगता है कि मानो दो युग ही गुजर गए हैं. अभी दीपक को वापस आने में पूरे 4 माह और हैं. कैसे कटेगा इतना लंबा समय? शुरू से ही संयुक्त परिवार के प्रति एक खास तरह की अरुचि सी थी उस के अंदर.

मातापिता ने भी उस के लिए वर देखते समय इस बात का खास खयाल रखा था कि लड़का चाहे उन्नीस हो, पर वह मांबाप से दूर नौकरी करता हो. उसे सास, ननदों के संग न रहना पड़े. आखिर काफी खोजबीन के बाद उन्हें इच्छानुसार दीपक का घर मिल गया था.

दीपक का परिवार भी छोटा सा था. मां, बाप और छोटी बहन. वह घर से अलग, दूसरे शहर में एक कालिज में अध्यापक था. सौम्य और सुदर्शन व्यक्तित्व वाले दीपक को सब ने पहली नजर में ही पसंद कर लिया था. शादी के बाद नीरा 8-10 दिन ससुराल रही थी.

इन चंद दिनों में ही सब का थोड़ाबहुत  स्वभाव उस के आगे उजागर हो गया था. बाबूजी गंभीर स्वभाव के अंतर्मुखी व्यक्ति थे. ज्यादा बोलते या बतियाते नहीं थे, पर उन की कसर मांजी पूरी कर देती थीं. मांजी जरा तेजतर्रार थीं. सारा दिन बकझक करना उन की आदत थी. ननद सिम्मी एक प्यारी सी हंसमुख लड़की थी. उस की हमउम्र थी.

मांजी हर बात में नुक्ताचीनी कर के बोलने का कोई न कोई बहाना ढूंढ़ लेती थीं. पर उन की इस आदत पर न कोई ध्यान देता था और न उन की बातों को गंभीरता से लेता था. बाबूजी निरपेक्ष से बस हां, हूं करते रहते थे. 10 दिन बाद ही दीपक नौकरी पर वापस गया, तो वह भी साथ चली गई थी.

दीपक को कालिज के पास ही मकान मिला हुआ था. नीरा ने सुघड़ हाथों से जल्दी ही अपनी गृहस्थी जमा ली. दीपक भी अपने पिता की ही तरह धीर, गंभीर था. नीरा कई बार सोचती कि एक ही परिवार में कैसा विरोधाभास है? कोई इतना बोलने वाला है और कोई इस कदर अंतर्मुखी. अभी उस की शादी को 3 माह ही हुए थे कि दीपक को विश्वविद्यालय की ओर से 6 माह के प्रशिक्षण के लिए जरमनी भेजने का प्रस्ताव हुआ. नीरा भी बहुत खुश थी.

दीपक उसे बांहों में समेट कर बोला था, ‘‘नीरू, तुम्हारे कदम बड़े अच्छे पड़े. बड़े दिनों का अटका काम हो गया. 6 माह तुम मां और बाबूजी के पास रह लेना. उन का भी बहू का चाव पूरा हो जाएगा.’’

नीरा जैसे आसमान से गिरी. इस ओर तो उस ने ध्यान ही नहीं दिया था. अचानक उस की आंखें भर आईं और वह बोली, ‘‘नहीं, मैं तुम्हारे बिना वहां अकेली नहीं रह सकती. मुझे भी अपने साथ ले चलो.’’

‘‘नहीं, नहीं, नीरू, यह संभव नहीं है. मैं फैलोशिप पर जा रहा हूं. वहां होस्टल में रह कर कुछ शोधकार्य करना है. तुम वहां कहां रहोगी? 6 माह का समय होता ही कितना है? पलक झपकते समय निकल जाएगा.’’

फिर तो सब कुछ आननफानन में हो गया. एक माह के अंदर ही दीपक जरमनी चला गया. उसे मांजी और बाबूजी के पास छोड़ते समय वह बोला था, ‘‘नीरू, मां की जरा ज्यादा बोलने की आदत है. वैसे दिल की वह साफ हैं. उन की बातों को दिल पर न लाना. तुम्हें पता तो है कि वह सारा दिन बोलती रहती हैं. तुम बस हां, हूं ही करती रहना.’’

दीपक की बात उस ने गांठ बांध ली थी. मांजी कुछ भी कहतीं, वह अपना मुंह बंद ही रखती. मांजी की बातों को कड़वे घूंट की तरह गटक जाती. पर उन का छोटीछोटी बातों पर हिदायतें देना और टोकना उसे सख्त नागवार गुजरता. सिम्मी न होती तो उस का समय बीतना और मुश्किल हो जाता. वही तो थी जिस के साथ हंस कर वह बोलबतिया लेती थी. वही उसे खींच कर कभी फिल्म दिखाने ले जाती तो कभी खरीदारी के लिए.

दीवार घड़ी ने टनटन कर के 6 बजाए तो वह चौंक पड़ी. अभी मांजी को बोलने का एक और विषय मिल जाएगा. वह न जाने किन सोचों में डूब गई. जल्दी से उठी और दैनिक कृत्यों से निवृत्त हो कर रसोई में जा कर आटा गूंधने लगी. बाबूजी और सिम्मी, दोनों 8 बजे घर से निकल जाते थे.

तभी सिम्मी आ कर जल्दी मचाने लगी, ‘‘भाभी, जल्दी नाश्ता दो, आज मेरा पहला घंटा है.’’

नीरा के कुछ बोलने से पहले ही मांजी बोल पड़ीं, ‘‘जरा जल्दी उठ जाया करो, बहू, मैं तो गठिया के मारे उठ नहीं पाती हूं. अब सब को देर हो जाएगी. हम तो सास के उठने से पहले ही मुंहअंधेरे सारा काम कर लेते थे. क्या मजाल जो सास को किसी बात पर बोलने का मौका मिले.’’

‘‘हो गया तुम्हारा भाषण शुरू?’’ बाबूजी गुस्से से बोले, ‘‘अभी सिर्फ 7 बजे हैं और सिम्मी को जाने में पूरा एक घंटा बाकी है.’’

‘‘तुम चुप रहो जी,’’ मांजी बोलीं, ‘‘पहले बेटी को सिर चढ़ाया, अब बहू को माथे पर बिठा लो.’’

नीरा चुपचाप परांठे सेकती रही. सिम्मी बोली, ‘‘कभी मां मौनव्रत रखें तो मजा ही आ जाए.’’

नीरा के होंठों पर मुसकान आ गई. सिम्मी पर भी मांजी सारा दिन बरसती ही रहती थीं. कालिज से आने में जरा देर हो जाए तो मांजी आसमान सिर पर उठा लेती थीं. प्रश्नों की बौछार सी कर देतीं, ‘‘देर क्यों हुई? घर पर पहले बताया क्यों नहीं था?’’ आदि.

सिम्मी झल्ला कर कहती, ‘‘बस भी करो मां, जरा सी देर क्या हो गई, तूफान मचा दिया. मैं कोई बच्ची नहीं हूं जो खो जाऊंगी. आजकल अतिरिक्त कक्षाएं लग रही हैं, इस से  देर हो जाती है. तुम्हें तो बोलने का बहाना भर चाहिए.’’

बेटी के बरसने पर मांजी थोड़ी नरम पड़ जातीं, फिर धीमे स्वर में बड़बड़ाने लगतीं. सिम्मी तो बेटी है. मांजी से तुर्कीबतुर्की सवालजवाब कर लेती है पर वह तो बहू है. उसे अपने होंठ सी कर रखने पड़ते हैं. बिना बोले यह हाल है. जो कहीं वह भी सिम्मी की तरह मुंहतोड़ जवाब देने लगे तो शायद मांजी कयामत ही बरपा कर दें. मांजी और बाबूजी का दिल रखने के लिए ही तो वह यहां रह रही है. वरना क्या इतने दिन वह अपने मायके में नहीं रह सकती थी?

बाबूजी और सिम्मी चले गए. वह भी रसोई का काम निबटा कर नहाधो कर आराम कर रही थी. पड़ोस से कुंती की मां आई हुई थीं. वह चाय बनाने लगी. बाहर महरी ने टोकरे में बरतन धो कर रखे थे. कांच का गिलास निकालने लगी तो जाने कैसे गिलास हाथ से छूट कर टूट गया.

मांजी बोल पड़ीं, ‘‘बहू, ध्यान से बरतन उठाया करो. महंगाई का जमाना है. इतने पैसे नहीं हैं जो रोजरोज गिलास खरीद सकें. जब अपनी गृहस्थी जमाओगी तब पता चलेगा.’’

बाहर वालों के सामने भी मांजी चुप नहीं रह सकतीं. नीरा की आंखों में क्रोध और क्षोभ के आंसू आ गए. चाय दे कर वह अपने कमरे में आ कर लेट गई. उस ने कभी अपने मांबाप की नहीं सुनी और यहां दिनरात मांजी की उलटीसीधी बातें सुननी पड़ती हैं.

रात खाने के समय नीरा ने देखा कि दही अभी ठीक से जमा नहीं है. मांजी का बोलना फिर शुरू हो गया, ‘‘तुम ने बहुत ठंडे या बहुत गरम दूध में खट्टा डाल दिया होगा, तभी तो नहीं जमा दही. अगर ध्यान से जमातीं तो क्या अब तक दही जम न जाता? दीपक को तो दही बहुत पसंद है. पता नहीं तुम वहां भी दही ठीक से जमा पाती होगी या नहीं.’’

बाबूजी बोल पड़े, ‘‘ओह हो, अब चुप भी रहोगी या बोलती ही जाओगी? तरी वाली सब्जी है. दही बिना कौन सा पहाड़ टूट रहा है? तुम्हें खाना हो तो हलवाई से ले आता हूं. बहू पर बेकार में क्यों नाराज हो रही हो?’’

मांजी खिसिया कर बोलीं, ‘‘लो और सुनो. बाप और बेटी पहले ही एक ओर थे. अब बहू को और शामिल कर लो गुट में.’’

नीरा शर्म से गड़ी जा रही थी. मांजी के तो मुंह में जो आया बोलने लगती हैं. किसी का लिहाज नहीं.

खाना खा कर वह कमरे में आई तो उस के मन में क्रोध भरा था. अब वह यहां हरगिज नहीं रह सकती. 2 माह जैसेतैसे काट लिए हैं पर अब और नहीं रहा जाता. उस की सहनशक्ति अब खत्म हो गई है. हर बात में टोकाटाकी, भाषणबाजी. आखिर कहां तक सुन सकती है वह? कभी कपड़ों में नील कम है तो कभी बैगन ठीक से नहीं भुने हैं, कभी चाय में पत्ती ज्यादा है तो कभी सब्जी में नमक कम. बिना वजह छोटीछोटी बातों में लंबाचौड़ा भाषण झाड़ देती हैं. बरदाश्त की भी हद होती है. अब वह यहां और नहीं रहेगी. वह उठ कर भैया को खत लिखने लगी. मायके में जा कर दीपक को भी पत्र डाल देगी कि भैया लेने आ गए थे, सो उन के साथ जाना पड़ा उसे.

सुबह मांजी की आवाज कानों में पड़ी, ‘‘उठो बहू, सुबह हो गई है.’’ वह उठने लगी तो उसे अचानक चक्कर सा आ गया. उस ने उठने की कोशिश की तो कमजोरी के कारण उठा न गया. हलकी झुरझुरी सी चढ़ रही थी. सारा बदन टूट रहा था.

वह फिर लेट गई और बोली, ‘‘मांजी, मेरी तबीयत ठीक नहीं है.’’

‘‘क्या हुआ तबीयत को?’’ यह कहती मांजी उस के कमरे में आ गईं. माथे पर हाथ रखा तो वह चौंक गईं. उन के मुंह से हलकी सी चीख निकल गई.

‘‘अरे, तुम्हारा माथा तो भट्ठी सा तप रहा है, बहू,’’ फिर वहीं से वह चिल्लाईं, ‘‘सुनो जी, जरा जल्दी इधर आओ.’’

‘‘अब क्या आफत है?’’ बाबूजी भुनभुनाते हुए कमरे में आ गए.

‘‘बहू को तेज बुखार है. जल्दी से जरा डाक्टर को बुला लाओ.’’

बाबूजी तुरंत कपड़े पहन कर डाक्टर को लेने चले गए.

मांजी नीरा के सिरहाने बैठ कर उस का माथा दबाने लगीं. ठंडेठंडे हाथों का हलकाहलका दबाव, नीरा को बड़ा भला लग रहा था. कुछ ही देर में बाबूजी डाक्टर को ले कर आ गए.

डाक्टर नीरा की अच्छी तरह जांच कर के बोले, ‘‘दवाएं मैं ने लिख दी हैं. इस हालत में अधिक तेज कैप्सूल तो दिए नहीं जा सकते.’’

‘‘किस हालत में?’’ मांजी पूछ बैठीं.

‘‘यह गर्भवती हैं,’’ डाक्टर बोला, ‘‘बुखार ठंड से चढ़ा है. तुलसीअदरक की चाय भी पिलाती रहें. 2-1 दिन में बुखार उतर जाएगा.’’

मांजी के आगे एक नया रहस्य खुला. नीरा ने तो इस बारे में उन्हें बताया ही नहीं था. वह बड़बड़ाने लगीं, ‘‘अजीब लड़की है, यह. अरे, मैं सास सही, पर सास भी मां होती है. मैं तो इस से सारा काम कराती रही और इस ने कभी बताया तक नहीं कि कुछ खास खाने का मन कर रहा है. ये आजकल की बहुएं भी बस घुन्नी होती हैं. एक हमारा जमाना था. हमें बाद में पता चलता था और सास को पहले से ही खबर हो जाती थी. अब बताओ, मैं ने तो कभी इस से यह भी नहीं पूछा कि क्या खाने की इच्छा है?’’

‘‘तो अब पूछ लेना. काफी वक्त पड़ा है. इस समय बहू को सोने दो,’’ बाबूजी बोले और कमरे से बाहर चले गए.

रात मांजी अपनी खाट नीरा के कमरे में ही ले आईं. रसोई का काम सिम्मी को सौंप दिया था इसलिए अब मांजी का आक्रोश  उस पर बरसता.

‘‘इतनी बड़ी हो गई है, पर खाना बनाने की अक्ल नहीं आई, गोभी में पानी तैर रहा है. और दाल इतनी गाढ़ी है कि गुठलियां बन गई हैं. दस बार कहा है कि जरा अपनी भाभी के साथ हाथ बंटाया करो. कुछ सीख जाओगी. पर…’’

‘‘ओहो मां, शुरू हो गईं तुम? एक तो खाना बनाओ, ऊपर से तुम्हारा भाषण सुनो. मुझ से खाना बनवाना है तो चुपचाप खा लिया करो, वरना खुद करो.’’

मांजी बड़बड़ाने लगीं, ‘‘इन बच्चों को तो समझाना भी मुश्किल है.’’

मांजी 2-2 घंटे बाद अदरकसौंफ वाला दूध ले कर नीरा के पास आ जातीं. खुद अपने हाथों से उसे दवा देतीं. रात भर माथा छूछू कर उस का बुखार देखतीं.

अपने प्रति मांजी को इतना चिंतित देख नीरा हैरान थी. बड़बोली मांजी के अंदर उस की इतनी फिक्र है और उस के प्रति इतना प्रेम है, आज तक कहां समझ पाई थी वह? वह तो मांजी के बोलने और टोकने पर ही सदा खीजती  रही.

नीरा 4-5 दिन बुखार की चपेट में रही. मांजी बराबर उस के सिरहाने बनी रहीं. उसे दवा, दूध, चाय, खिचड़ी आदि सब अपने हाथ से देती थीं. कई बार नीरा को लगता जैसे उस की मां ही सिरहाने बैठी हैं. उस का बुखार उतर गया था, पर मांजी उसे अभी जमीन पर पांव नहीं रखने देती थीं कि कहीं कमजोरी से दोबारा बुखार न चढ़ जाए.

दोपहर पड़ोस से रम्मो चाची उस का हाल पूछने आई थीं. उस के माथे पर हाथ रख कर बोलीं, ‘‘माथा तो ठंडा पड़ा है, बुखार तो नहीं है.’’

नीरा ने जवाब दिया, ‘‘हां, अब कल से बुखार नहीं है.’’

बाद में मांजी और रम्मो चाची बाहर आंगन में बैठ कर बातें करने लगीं.

रम्मो चाची बोलीं, ‘‘आजकल की बहुएं भी फूल सी नाजुक होती हैं.  हम भी तो इस भरी सर्दी में काम करते हैं, पर हमें तो कभी ताप नहीं चढ़ता. ये तो बस छुईमुई सी है,’’ फिर फुसफुसा कर बोलीं, ‘‘अरे, बहू को बुखार भी है या यों ही बहाना किए पड़ी है. आजकल की बहुएं तो तुम जानो, ऐसी ही होती हैं.’’

तभी मांजी का तीव्र स्वर सुनाई दिया, ‘‘बस, बस, रम्मो. तुम्हारा दिमाग भी कभी सीधी राह पर नहीं चला. तुम ने कभी अपनी बहुओं के दुखदर्द को समझा नहीं. तुम्हें तो सब कुछ बहाना लगता है. यह मत भूलो कि बहुएं भी हाड़मांस की बनी हैं. मैं ने तो नीरा और सिम्मी में कभी फर्क नहीं माना है. तुम भी अगर यह बात समझ लो तो तुम्हारे घर की रोज की चखचख खत्म हो जाए.’’

रम्मो चाची खिसियानी सी हो गईं, ‘‘मैं ने जरा सा क्या बोला, तुम ने तो पूरी रामायण बांच दी. यों ही बात से बात निकली थी तो मैं बोल पड़ी थी.’’

‘‘आज तो बोल दिया, आगे से मेरी बहू के बारे में यों न बोलना,’’ मांजी के अंदर अब भी आक्रोश था.

नीरा लेटीलेटी हैरानी से मांजी की बातें सुन रही थी. सचमुच वह मांजी को जान ही कहां पाई? दीपक ठीक ही कहते थे, ‘मुंह से मांजी चाहे बकझक कर लें पर मन तो उन का साफ पानी सा निर्मल है.’ इस बीमारी में उन्होंने उस का जितना खयाल रखा, उस की अपनी मां भी शायद इस तरह न रख पातीं.

और फिर मांजी सिर्फ उसी को तो नहीं बोलतीं. सिम्मी और बाबूजी भी मांजी की टोकाटाकी से कहां बच पाते हैं? यह तो मांजी का स्वभाव ही है. वैसे इस उम्र में आ कर औरतें अकसर इस स्वभाव की हो ही जाती हैं. उस की मां भी तो कितना बोलती हैं.

पर फर्क सिर्फ यह है कि वह मां हैं और यह सास हैं. उन का कहा वह इस कान से सुन कर उस कान से निकाल देती थी और सासू मां का कहा गांठ बांध कर रख लेती है. अभी तक उस ने सिक्के के एक ही पहलू को देखा था, दूसरा पहलू तो अब देखने को मिला जिस में ममता और प्रेम भरा है.

नीरा उठी. मेज पर रखे भैया को लिखे खत को उठाया और उस के टुकड़ेटुकड़े कर दिए. मायके जाने का विचार उस ने छोड़ दिया. दीपक के आने तक वह मांजी के साथ ही रहेगी. मांजी का दूसरा ममतापूर्ण और करुणामय रूप देख कर अब इस घर से जाने की इच्छा ही नहीं उसे.

लेखक- कमला चमोला

Saas Bahu Story

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