Drama Story: काले केशों की मार- क्यों 60 साल की होने को बेताब थी प्रेमा

Drama Story: जवान होते लड़केलड़कियों को जैसे 16वें साल का इंतजार होता है वैसे ही प्रेमा को अपने 60वें साल का इंतजार था. 16वें साल के सपने अगर रंगीन होते हैं तो प्रेमा के भी 60 साल के सपने कुछ कम रोमांचक नहीं थे. उसे इस दिन का बड़ी बेसब्री से इंतजार था जब वह 60 साल की हो जाएगी. इंतजार का हर एक दिन उस पर भारी पड़ रहा था. और इतने अधिक महत्त्वपूर्ण दिन का इंतजार क्यों न हो, 60वां साल होते ही उसे एक महत्त्वपूर्ण उपाधि जो मिलने वाली थी. वह उपाधि भी कोई ऐसीवैसी नहीं थी. वह उपाधि तो उसे भारत सरकार देने वाली थी. सुंदरसलोना 60वां साल होते ही उसे ‘वरिष्ठ नागरिक’ होने की उपाधि मिलनी थी. तब वह बड़ी शान से रेलवे वालों को बोल सकती थी कि वह तो ‘सीनियर सिटीजन’ है और उसे रेलवे टिकट पर 30 प्रतिशत की कटौती मिलनी ही चाहिए.

प्रेमा की तकदीर कुछ अधिक ही जोर मार रही थी. इधर वह 60 की हुई और उधर रेलमंत्री ने ऐलान कर दिया कि रेल में सफर करने वाली ‘वरिष्ठ महिलाओं’ को टिकट पर 50 प्रतिशत कटौती मिलेगी. अखबार में यह समाचार पढ़ते ही उस का दिल तो बल्लियों उछलने लगा था. प्रेमा ने तुरंत इस का फायदा उठाने की योजना बना डाली. अब उसे कहीं न कहीं घूमने तो जाना ही था. उस की तकदीर कुछ अधिक ही साथ देने लगी थी क्योंकि तभी उसे एक विवाह का निमंत्रणपत्र मिल गया. उस के भतीजे की शादी बेंगलुरु में होने वाली थी. शादी मेें 15 दिन बाकी थे यानी तैयारी के लिए भी अधिक समय मिल गया था. सब से पहले तो उस का बेंगलुरु जाने का टिकट आया. आज तक उस ने कभी खुश हो कर अपनी जन्मतिथि किसी को भी नहीं बताई थी पर आज उस ने बड़े गर्व से अपनी जन्मतिथि रेलवे फार्म में भरी थी ताकि उसे ‘वरिष्ठ नागरिक’ होने की कटौती मिल सके.

1 हजार रुपए के टिकट के लिए उसे केवल 500 रुपए ही देने पड़े थे. उसे इतनी बचत से बहुत खुशी भी हुई और अपने 60वें वर्ष पर गर्व भी हुआ. प्रेमा ने शादी में जाने की तैयारी शुरू कर दी थी. 500 रुपए के टिकट में जो बचत हुई थी, उसे वह अपने ऊपर खर्च करना चाहती थी. उसे लगा कि शादी में सब से अच्छा उसे ही दिखना चाहिए. अपनी बहनों और भाभियों में उसे ही सब से अच्छा लगना चाहिए.

प्रेमा सीधी ब्यूटीपार्लर पहुंची. अपने अधपके बालों को काला करवाया, गोल्ड फेशियल करवाया ताकि उम्र छिप जाए. 60वें वर्ष की गहरी लकीरों को छिपाना चाहा. पार्लर से बाहर निकलते समय उस ने खुद को आईने में निहारा और हलके से मुसकरा दी.

प्रेमा को लगा अब वह 10 साल तो जरूर ही पीछे चली गई है. 2 घंटे कुरसी पर बैठने के बाद जब घुटने की हड्डियों ने चटखने की सरगम बजाई तो उसे याद हो आया कि वह तो अब वरिष्ठ नागरिक है और अपनी स्थिति पर उसे खुद ही गर्वभरी हंसी आ गई. निश्चित तिथि पर प्रेमा ने बेंगलुरु की यात्रा के लिए प्रस्थान किया. याद से अपना पैनकार्ड पर्स में रखा. वही तो उस के 60वें साल का एकमात्र सुबूत था. अपनी सुरक्षित सीट पर बैठ कर उस ने सहयात्रियों पर नजर दौड़ाई. उस के साथ के सभी यात्री उसे वरिष्ठ नागरिक ही लगे. उस ने सोचा रेलवे की 30 प्रतिशत की छूट का फायदा उठाने ही सब निकल पड़े हैं. एक दादीमां के साथ उन की 2-3 साल की पोती भी थी. रात में जब सोने की तैयारी हुई तो उसे नीचे वाली सीट ही मिली थी. और इधर, दादीमां अपनी पोती के साथ नीचे वाली सीट ही चाहती थीं. दादी मां बोलीं, ‘‘बहनजी, आप तो जवान हैं, आप ऊपर वाली सीट ले लो. मुझ से तो चढ़ा नहीं जाएगा.’’

दादीमां के मुंह से अपनी जवानी की बात सुन कर तो प्रेमा एक बार के लिए भूल गई कि वह भी तो वरिष्ठ नागरिक है. तभी उसे खयाल आया कि यह तो ब्यूटीपार्लर का ही कमाल था कि वह जवान नजर आ रही थी. उस ने गर्व से अपने काले बालों पर हाथ फेरा और किसी तरह बीच वाली सीट पर चढ़ गई. सुबह होते ही टिकटचेकर ने आ कर सब को जगा दिया था. इतमीनान से बैठ कर वह एकएक यात्री का टिकट चैक करने लगा. प्रेमा का टिकट देख कर उस ने एक बार घूर कर उसे देखा और बोला, ‘‘बहनजी, आप अपना सर्टिफिकेट दिखाएं. मुझे तो शक हो रहा है कि आप ने धोखे से आधा टिकट लिया है.’’

सब के सामने धोखे की बात सुन कर प्रेमा के तनबदन में आग लग गई. उस ने तमक कर अपना पर्स खोला और अपना पैनकार्ड सामने कर दिया. कुछ लज्जित हुआ टिकटचेकर बोला, ‘‘माताजी, बाल काले करवा कर गाड़ी में चढ़ोगे तो हमें धोखा तो होगा ही. अब आप इन माताजी की तरफ देखो, सारे बाल सफेद हैं इसलिए उन से तो मैं ने प्रमाण नहीं मांगा.’’ दूसरे यात्री टिकटचेकर की बात सुन कर हंस पड़े थे और प्रेमा खिसिया कर रह गई थी.

कहते हैं कि छोटे बच्चों को भी धोखा देना मुश्किल होता है. कुछ बातों का ज्ञान उन्हें जन्मजात होता है. इस का प्रमाण भी आज प्रेमा को मिल गया था. दादी की पोती जब सो कर उठी तो उस ने प्रेमा को दादी कह कर ही बुलाया. उस ने कहा भी, मैं तो तुम्हारी आंटी हूं, मुझे आंटी कह कर बुलाओ. पर नहीं, बच्ची उसे दादी ही बुलाती रही. उस ने तो उस के काले बालों की भी लाज नहीं रखी, उस का 60वां साल उसे नए अनुभव करवाने के लिए ही आया था. बेंगलुरु स्टेशन पर पहुंच कर प्रेमा ने देखा कि उसे लेने स्टेशन पर कोई नहीं पहुंचा था. कुछ देर इंतजार करने के बाद वह अपनी अटैची घसीटती हुई चल दी. एक टिकटकलेक्टर ने उसे रोका और टिकट मांगा. उस ने टिकट दिखाया तो उस ने भी उसे घूरा और कहा, ‘‘आप एक तरफ आ जाइए और अपना बर्थ सर्टिफिकेट दिखाइए.’’

प्रेमा ने झट से अपने पर्स में से पैन- कार्ड निकालना चाहा पर उसे कार्ड कहीं भी दिखाई नहीं दिया. उस ने पूरे पर्स को तलाश मारा पर पैनकार्ड नहीं मिला. अब तो उस के होश उड़ गए. अब करे तो क्या करे? कैसे इस टिकटकलेक्टर को यकीन दिलाए कि वह पूरे 60 वर्ष की है. उस की घबराहट को देख कर टिकटकलेक्टर जरा अकड़ गया और बोला, ‘‘ऐसा धोखा करने से पहले उस की सजा के बारे में भी सोचना था. अब आप जानती ही होंगी कि आप को हजार रुपए जुर्माना भी हो सकता है और 15 दिन की जेल भी.’’ सुन कर प्रेमा के हाथपांव फूल गए. उस ने रोती हुई आवाज में कहा, ‘‘मैं सच में कह रही हूं कि मैं 60 साल की हूं.’’

‘‘पर मैं यकीन नहीं कर सकता. आप का तो एक भी बाल सफेद नहीं है.’’ ‘‘वह तोे मैं ने काले रंगवाए हैं.’’

‘‘मैं कोई बहानेबाजी सुनने वाला नहीं हूं. या तो आप पैनकार्ड दिखलाइए या जुर्माना भरने को तैयार हो जाइए.’’ प्रेमा ने आसपास झांका. पर उस की मदद करने वाला कोई नहीं था. वह बोली, ‘‘आप यकीन मानिए, मैं 60 साल 20 दिन की हूं.’’

‘‘आप चाहे 60 साल एक दिन की हों मुझे एतराज नहीं है. पर आप सबूत दीजिए.’’ पास की एक बैंच पर बैठ कर उस ने अपने दिमाग पर पूरा जोर दिया. सुबह तो उस ने पैनकार्ड डब्बे में टी.टी.ई. को दिखाया था, इस वक्त न जाने कहां गायब हो गया. अब उस ने पर्स में जितनी रकम थी, गिननी शुरू की. पूरे 1200 रुपए थे. टी.टी.ई. ने उसे 1 हजार रुपए जुर्माना भरने की बात कही थी. टी.टी.ई. भी उसे गिद्ध नजरों से देख रहा था. अब उस ने गिड़गिड़ाती हुई आवाज में कहा, ‘‘मेरी तो किस्मत ही खराब है इसलिए मेरा पैनकार्ड गुम हो गया है. ट्रेन में मैं ने टिकटचेकर को दिखाया था.’’

‘‘आप कुछ भी कह लीजिए पर मुझे तो लग रहा है कि आप झूठ बोल रही हैं.’’ ‘‘आप जुर्माना ले लीजिए पर मुझे झूठी तो मत कहिए. मेरा इतना अपमान तो मत कीजिए.’’

टी.टी.ई. ने बड़ी शान से 1 हजार रुपए जुर्माने की रसीद काटी और उसे पकड़ा दी. प्रेमा ने रसीद ली और बैंच पर बैठ गई. मन ही मन अपने काले बालों को कोसा जिन्होंने काली नागिन बन कर उसे ही डसा था. एक तो हजार रुपए गए और दूसरे झूठी का लेबल भी लग गया. फिर उस ने रेलमंत्री को कोसा जिस ने वरिष्ठ नागरिकों के लिए ऐसी स्कीम निकाली. न वह स्कीम होती न उस ने 50 प्रतिशत छूट पर टिकट खरीदा होता.

सब को कोसने के बाद प्रेमा ने एक बार फिर से अपना पर्स टटोला. अब की बार उस ने पूरे पर्स को उलट दिया. सारा सामान बाहर निकाल दिया. तब उस की नजर पर्स के उधड़े हुए हिस्से पर पड़ी, जहां से उस का पैनकार्ड झांक रहा था. उस ने जल्दी से उसे बाहर खींचा और उधर को दौड़ी जिधर टिकटकलेक्टर गायब हुआ था. उस ने बहुत तलाशा पर वह जालिम चेहरा उसे नजर नहीं आया.

अब अपने को कोसते हुए प्रेमा स्टेशन से बाहर निकली. घर पहुंच कर उस ने सारी कहानी कह सुनाई. अब उसे खुद पर ही हंसी आ रही थी. उस ने तो बाल रंगे थे कि वह जवान नजर आए और जब वह जवान नजर आई तो उस ने सब को कहा कि वह 60 साल की बूढ़ी है. दोनों स्थितियों का लाभ वह एकसाथ नहीं उठा सकती थी या तो 50 प्रतिशत की कटौती ले ले या घने काले बालों वाली तरुणी बन जाए. या तो एक वृद्धा का सम्मान ले ले या फिर बच्चों से दादी के बदले आंटी कहलवा ले.

खुद ही सोचनेविचारने के बाद नतीजा निकाला कि उम्र के साथ चलने में ही भलाई है, दौड़ आगे की ओर ही लगानी चाहिए पीछे की ओर नहीं. क्योंकि आप स्वयं को कभी भी धोखा नहीं दे सकते तो फिर दूसरों को ही धोखा देने की कोशिश क्यों की जाए?

Drama Story

Hindi Social Story: जैसे को तैसा

Hindi Social Story: शाम दफ्तर से छूट कर समीर संध्या के साथ रेस्तरां में चाय पी रहा था. तभी उस का मोबाइल बजा. उस ने मुंह बिगाड़ कर फोन उठाया, ‘‘बोल क्या है? अभी दफ्तर में हूं. काम है. 1 घंटा और लगेगा,’’ उस ने अनमने भाव से बीवी जलपा को उत्तर दिया.

‘‘कौन पत्नी?’’ संध्या ने हंस कर पूछा.

‘‘ये आजकल की बीवियां होती ही ऐसी हैं. जरा सी देर क्या हुई फोन करने लगती हैं. तुम अच्छी हो जो शादी नहीं हुई वरना तुम्हारा

पति तुम्हें भी देरी होने पर फोन कर के डिस्टर्ब करता रहता.’’

‘‘हरगिज नहीं,’’ संध्या ने तपाक से उत्तर दिया, ‘‘मर्द ऐसे शक्की नहीं होते जितनी औरतें होती हैं.’’

‘‘बिलकुल सही कहा तुम ने,’’ समीर ने सहमति जताई, ‘‘जलपा को देखो न. जरा सी देर क्या होती है, फोन करने लगती है और घर पहुंचने पर दफ्तर में क्याक्या किया, किस के साथ घूमे, क्या बात हुई वगैरहवगैरह सवालों की बौछार कर देती है.’’

‘‘क्या आप ने उसे मेरे बारे में बताया है?’’ संध्या ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘तुम्हें क्या लगता है?’’ समीर ने हंस कर उलटा पूछा, ‘‘तुम्हारा जिक्र कर के उस के शक्कीपन को मुझे और बिलकुल नहीं बढ़ाना है.’’

‘‘आप मर्द हैं न इसलिए,’’ संध्या ने कुछ नाराजगी जताई, ‘‘सभी मर्द ऐसे ही होते हैं. खुद बीवी से छिपा कर अकेलेअकेले कुंआरी लड़कियों से मौजमस्ती करते हैं और बीवी अगर पूछताछ करे तो उसे शक्की कहते हैं.’’

‘‘तुम जलपा का पक्ष ले रही हो,’’ समीर हंस पड़ा, ‘‘लड़की जो ठहरी,’’ फिर उस ने पूछा, ‘‘तो क्या तुम्हें हमारी दोस्ती पसंद नहीं?’’

‘‘मैं तुम्हारी दोस्त जरूर हूं पर प्रेमिका नहीं,’’ संध्या ने भी व्यंग्य किया और फिर दोनों बेतहाशा हंस पड़े.

इसी दौरान समीर का फोन फिर से बजा. बोला, ‘‘अरे, पहुंचता हूं. बोला न. क्यों दिमाग खा रही हैं,’’ उस ने चिढ़ कर बोला.

कुछ देर वह संध्या के चेहरे की ओर देखता  या सोचता रहा कि संध्या उस के साथ रहे संबंधों को स्वीकृत कर रही थी या उन पर ऐतराज जता रही थी. खैर, अब तक तो उस के व्यवहार में सहमति ही दिखाई पड़ रही थी. कुछ भी हो, उसे संध्या के साथ घूमना अच्छा लगता था और संध्या भी उस के खुश और मजाकिए स्वभाव के कारण उस की ओर आकृष्ट हो चली थी.

घर पहुंचने पर समीर ने देखा दरवाजे पर ताला था. उस ने स्वयं के पास रखी चाबी से ताला खोला और बैठक में लगे सोफे पर लेट कर जलपा का इंतजार करने लगे. जब 1 घंटा बिताने पर भी जलपा नहीं आई तो उस ने फोन लगाया, ‘‘अरे कहां हो? मैं तो कब से घर पहुंच गया हूं. तुम कहां हो?’’ फिर कुछ देर जलपा की बातें सुन कर उस ने फोन रख दिया.

फिर जब जलपा लौटी तो उस ने गुस्से में पूछा, ‘‘कहां घूमने निकल जाया करती हो? वैसे थोड़ी देर होने पर मुझे फोन करती रहती हो.’’

‘‘सब्जी मंडी गई थी. आलू खत्म हो गए थे,’’ जलपा ने सफाई दी.

फिर न जाने क्यों जलपा को खुश करने के लिए समीर बोला, ‘‘आजकल ज्यादा ही बनठन कर बाजार जा रही हो. माजरा क्या है?’’

‘‘कहां बनठन कर जाती हूं,’’ जलपा ने मुंह बिगाड़ कर कहा, ‘‘हम औरतों का क्या. हम थोड़े ही तुम मर्दों की तरह शादी के बाद भी अफेयर करने लगते हैं.’’

‘‘तो तुम्हें लगता है मेरा अफेयर चल रहा है,’’ समीर के चेहरे पर गुस्सा उतर आया, ‘‘इसी कारण बारबार फोन करती रहती हो. हर पल यह जानने की कोशिश करती रहती हो कि मैं कहां हूं, किस के साथ हूं.’’

जलपा ने घूर कर उस की तरफ देखा, ‘‘बीवी हूं तुम्हारी. इतना तो हक बनाता ही है मेरा. आजकल की औरतें बड़ी चालाक होती हैं. दफ्तर में काम कम करती हैं, शादीशुदा मर्दों को फंसाने की तरकीब करती रहती हैं. फिर मर्दों के साथ अफेयर करना तो आजकल की कामकाजी औरतों के लिए एक फैशन बन गया है और तुम तो हो ही इश्कमिजाज.’’

समीर झोंप सा गया. लगा जलपा ने मानो उसे रंगे हाथ पकड़ लिया हो. क्या सचमुच उसे मेरे और संध्या के अफेयर के बारे में पता है या वह यों ही हवा में तीर फेंक रही है. वह सोचने लगा. क्या उसे सतर्क रहना चाहिए. न जाने क्यों उस दिन के बाद समीर संध्या के साथ घूमते हुए कुछकुछ डर सा महसूस करने लगा. पहले तो वह संध्या के साथ घूमते हुए  बेझिझक उस का हाथ थाम लेता था और बातोंबातों में मौका देखते ही उसे चूम भी लेता था. दोनों दफ्तर में भी समीर के अलग चैंबर में काम के बहाने घंटों अकेले बैठे रहते. दफ्तर के अन्य कर्मचारी भी उन के संबंधों के बारे में सबकुछ जानते थे मगर उन्हें इस की बिलकुल परवाह नहीं थी. संध्या भी समीर का साथ पा कर खुश थी. उस ने भी समीर के बरताव में हो रहे बदलाव को भांप लिया था.

‘‘लगता है तुम्हें पत्नी ने तुम्हें धमकी दे डाली है,’’ वह हंस कर बोली.

‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं है,’’ समीर ने अपना बचाव किया, मगर यह अनुमान लगाना बड़ा मुश्किल हो रहा है कि उसे अपने संबंधों के बारे में पता चल गया है या नहीं,’’ समीर के चहेरे पर परेशानी उभर आई.

‘‘अगर उसे अपने संबंधों के बारे में पता चल गया तो?’’ संध्या ने पूछ लिया.

समीर कुछ देर गहरी सोच में पड़ गया. फिर बोला, ‘‘तब देखा जाएगा. आखिर वह मेरी बीवी है. क्या कर लेगी. तलाक थोड़े ही दे देगी,’’ समीर के चंहरे पर चालाकी से भरी कृत्रिम हंसी आ गई जिसे देख संध्या गंभीर हो गई.

उस रोज समीर को आश्चर्य हुआ जब जलपा का फोन नहीं आया. दफ्तर से छूटने के बाद संध्या के साथ बाजार में घूमते हुए उसे काफी देर हो चुकी थी. उस ने फोन लगाया, ‘‘क्या कर रही हो? फोन नहीं किया? मैं तो इंतजार कर रहा था,’’ उस ने मजाक किया.

फिर कुछ देर जलपा का प्रत्युत्तर सुन कर वह बोला, ‘‘कोई बात नहीं. मुझे देरी होगी. खाने के लिए मेरा इंतजार मत करना. करीब 10 बजे आऊंगा,’’ कह कर फिर एक झटके से फोन काट कर उस ने संध्या का हाथ थाम लिया और खुशी से बोला, ‘‘चलो आज आराम से घूमते हैं. अच्छे रेस्तरां में खाना खाते हैं. मल्टीप्लैक्स में पिक्चर देखेंगे और आराम से रात 12 बजे तक घूमेंगे.’’

दोनों ने फिर शहर के महंगे होटल ग्रांड भगवती में खाना खाया. पास में ही मौल था जहां वे शौपिंग के लिए चले गए. दोनों ने एकदूसरे की पसंद के कपड़े खरीदे. फिर मौल में ही एक रेस्तरां मे आइसक्रीम खाने लगे.

आइसक्रीम खातेखाते ही समीर का ध्यान अचानक मौल के पहली मंजिल पर गया जहां लोगों की भीड़ के बीच जलपा दिखाई दी. वह किसी मर्द के हाथों में हाथ डाले हुए घूम रही थी. उस को झटका सा लगा. आइसक्रीम का निवाला वह मुंह में डाल न सका.

‘‘संध्या, यह मैं क्या देख रहा हूं,’’ वह हक्काबक्का सा बोल पड़ा, ‘‘जलपा किसी

गैरमर्द के साथ यहां घूम रही है. वहां देख,’’ उस ने इशारा किया और संध्या ने पहले मंजिल पर निगाह डाली.

‘‘देख वह ज्वैलरी के शौप के सामने ब्लू सलवार पर सफेद दुपट्टा डाले हुए उस मर्द के साथ खड़ी है. मुझे यकीन नहीं हो रहा. वह यहां कैसे. फोन पर तो बोला था मैं घर पर ही हूं,’’ समीर बुरी तरह चौंक उठा. उस ने शीघ्र ही अपनी जेब से मोबाइल निकाला और दूर उस पर अपनी निगाह जमाते हुए फोन लगाया.

जलपा ने अपनेआप को साथ रहे मर्द की बांहों से छुड़ाते हुए अपने पर्स में से फोन निकाला और बात करती हुए नजर आई.

समीर ने पूछा, ‘‘कहां हो?’’

जलपा ने बोला, ‘‘मैं घर पर ही हूं’’

‘‘मुझे आने में देर होगी. तू ने खाना खा लिया,’’ समीर ने पूछा.

जलपा ने झठ बोलना जारी रखा. समीर को आघात लगा. उस के पेरों तले से जमीन खिसकने लगी. उस ने फोन रखते हुए चिंतित हो कर मन ही मन सोचा. यह कैसे हो सकता है. जलपा किसी गैरमर्द के साथ इतनी रात को बेखटके घूम रही है. क्या उस का किसी मर्द के साथ अफेयर चल रहा है और इस की उसे भनक तक नहीं पड़ी. वह भी कितनी चालाक है. छिपछिप कर अपने यार से मिल रही होगी और इस का उसे पता तक नहीं. फिर वह तो बारबार फोन कर के अपने पति को वह कहां है, किस के साथ है और घर आने में कितना वक्त लगेगा, क्यों देरी हो रही है ऐसे सवाल पूछ कर परेशान कर देती थी. उस की ऐसी हरकत से ही वह तंग आ चुका था और उसे शक्की दिमाग की समझने लगा था. कहीं ऐसा तो नहीं कि वह उसे बारबार फोन कर के यह जानने की कोशिश करती रहती कि मैं कब घर लौट रहा हूं और तभी वह अपने यार से मिलने का वक्त निकाल लेती होगी. उसे याद आया एक रात वह घर पहुंचा तब वह घर पर नहीं थी और करीब आधे घंटे बाद लौटी थी. पूछने पर बताया था कि पड़ोस में ही दीपा के वहां बैठी थी. तब उसे शक जरूर हुआ था मगर उस ने ध्यान नहीं दिया था. उस का बारबार फोन करना क्या एक चाल थी. यह जानने के लिए वह कब घर लौट रहा है ताकि वह उस की गैरमैजदगी में अपने यार से मिल कर वापस आ जाए.

समीर का पूरा तन अब सिहर उठा. आंखों में गुस्सा उतर आया. इतना बड़ा झठ. इतनी गहरी चाल. सीधीसादी लग रही जलपा इतनी बदमाश. बेशरम. ऐसी घिनौनी हरकत करने की इतनी हिम्मत. एक पल तो उस के जी में आया उसी वक्त उठ कर जाए और जलपा को रंगे हाथ उस के यार के साथ रंगरलियां करते हुए पकड़ कर उस के मुंह पर एक तमाचा जड़ दे. मगर वह गुस्सा पी गया. क्या करता. वह स्वयं अपनी गर्लफ्रैंड संध्या के साथ घूम रहा था.

संध्या ने देखा अब समीर का मूड बिगड़ चुका था. अपनी बीवी को गैरमर्द के साथ घूमते देख कर वह बुरी तरह भीतर से आगबबूला हो चुका था. समीर के गुस्से को ठंडा करना जरूरी था. अत: वह हंस कर व्यंग्यात्मक स्वर में बोली, ‘‘छोड़ो भी यार. उसे भी अपने प्रेमी के साथ घूमने दो. आखिर बीवी है तुम्हारी. कहते हैं पतिपत्नी साथ में रहते हैं तो एकदूसरे की आदतें अवश्य ग्रहण कर लेते हैं. आप इश्कियामिजाज के हैं तो स्वाभाविक है जलपा भी वही होगी.’’

यह सुनते ही समीर ने हलके से संध्या के गाल पर चपत मारते हुए चिढ़ कर कहा, ‘‘मेरे जले पर नमक छिड़क रही हो.’’

‘‘नमक नहीं छिड़क रही हूं. तुम्हें सचाई का आईना बता रही हूं,’’ संध्या ने उस की आंखों में आंखें डाल कर डांटते हुए कहा, ‘‘जैसे आप वैसी आप की जलपा. दोनों रोमांटिक. अब गुस्सा थूक कर चुपचाप उस के अफेयर को स्वीकृत कर लो. कहते हैं आदर्श पतिपत्नी एकदूसरे की बुराइयों को छिपाते हैं, उन का डंका नहीं बजाते.’’ न जाने क्यों संध्या की बात सुन कर समीर को भी हंसी आ गई. उस का गुस्सा गायब हो गया. संध्या ने ठीक ही तो कहा. जलपा भी बिलकुल वैसी ही थी जैसा वह. फिर झगड़ा कैसा.

सास बहू और टोटके सास के साथ आप के रिश्तों में सुधार आप के अच्छे व्यवहार से होगा. मगर पंडेपुजारियों और धर्म के तथाकथित पुजारियों ने यहां भी अंधविश्वास फैलाने की कोशिश में बहुत सारे तरीके बताते रहते हैं. जरा इन टोटकों पर गौर करें??:

यदि बहू रोज सुबह सूर्य भगवान को गुड़ मिला हुआ जल चढ़ाएं तो उन की सास उन से खुश रहेगी.

सास से अपने संबंध अच्छे करने के लिए मंगलवार को सूजी का हलवा बना कर उसे मंदिर के बाहर बैठे गरीबों में बांटें. अगर दोनों में लड़ाइयां ज्यादा हो रही हैं तो दोनों गले में चांदी की चेन पहनें.

वास्तु शास्त्र के नियम अनुसार दक्षिणपश्चिम कोण में सास को सोना चाहिए, उस के बाद बड़ी बहू को पश्चिम दिशा में और उस से छोटी बहु को पूर्व दिशा में शयन करना चाहिए. इस से घर की स्त्रियों में प्रेम बना रहेगा. सासससुर का कमरा सदैव दक्षिणपश्चिम दिशा में ही होना चाहिए और बेटेबहू का कमरा पश्चिमी या दक्षिण दिशा में. अगर बेटेबहू का रूम दक्षिणपश्चिम में होता है, तो उन का सासससुर से झगड़ा बना ही रहेगा, घर में आए दिन क्लेश रहेगा. परिवार पर अपना नियंत्रण रखने के लिए इस दिशा में घर के बड़ों को ही रहना चाहिए..

यदि सास और बहु में पटती नहीं है तो बहू सास को 12 लाल और 12 हरी कांच की चूडि़यां प्रसन्न मन से भेंट करें. इस उपाय से सास का मन बदल जाएगा और सास अपनी बहू की सहेली बन जाएगी.

अगर बहू को सास की तरफ से समस्या है तो बहू सास से मधुर संबंध बनाने के लिए एक भोजपत्र पर लाल चंदन की स्याही से सास का नाम लिख कर उसे शहद में डूबो कर उसे रविवार को छोड़ कर किसी भी दिन सूर्यास्त से पहले पीपल के पेड़ के नीचे गाड़ दें और पीपल देवता से अपनी सास से संबंध अच्छे हो जाने के लिए प्रार्थना करें.

इस परिस्थिति से बचने के लिए बृहस्पतिवार के दिन भोजपत्र पर गायत्री मंत्र चंदन से लिखें और उस के 2 ताबीज बना कर पीले कपड़े में एक अपनी माता के और एक पत्नी के दांईं कलाई पर बांध दें.

रोज एक तांबे के लोटे में जल भरें और पहले अपनी माता के हाथ से और बाद में पत्नी के हाथ से उसे स्पर्श करा कर तुलसी के पौधे में डाल दें. यह क्रिया रविवार के दिन नहीं करें.

रोज 1 रोटी में गुड़ और चने डाल कर शाम को अपनी माता व पत्नी से स्पर्श करा कर शाम को गाय को खिला दें.

रोज 2 तुलसी के पत्ते पानी से धो कर पूजा में रखें और 21 बार गायत्री मंत्र पढ़ कर एक पत्ता माता को व एक पत्नी को खिला दिया करें. रविवार को छोड़ कर.

अब बताइए क्या इस तरह के फुजूल के उपायों से सासबहू का रिश्ता सुधर सकता है? सामाजिक रिश्तों में ऐसे धर्म और टोटके का मकसद केवल धर्मभीरु और अंधविश्वासी लोगों से बहाने रुपए लूटना होता है. कभी दानधर्म के नाम पर और कभी दक्षिणा के नाम पर. कुछ लोग इतने नासमझ होते हैं कि घर की शांति की सही वजह समझने के बजाए इस के लिए अपनी जेबें ढीली करते रहते हैं.

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Hair Brush Care: हेयर ब्रश के प्रकार और उन की केयर ऐसे करें

Hair Brush Care: हेयर ब्रश का इस्तेमाल हम रोज कई बार करते हैं. यह केवल आप के ड्रेसिंग टेबल के लिए ही नहीं होता, बल्कि यह आप के साथ पर्स में हर जगह ट्रेवल कर रहा है. इसे गाड़ी से उतरते समय आप को हर बार यूज करना होता है. रेस्टोरैंट में जाने पर भी आप उसे यूज करते हैं. यह पब्लिक आइटम भी है इसलिए इसे साफ रखना और भी जरूरी है.

लेकिन सच यह है कि हमारे हेयर ब्रश को तेल, डैड स्किन, फंगस, औयल, सीरम, लिवइन कंडीशनर, बैक्टीरिया, रूसी और बहुत कुछ झेलना पड़ता है. इस के बावजूद बहुत कम लोग अपने हेयर ब्रश को नियमित रूप से साफ करते हैं. जबकि ज्यादातर लोग न तो उसे साफ करते हैं और न ही इस का तरीका जानते हैं.

जब आप अपने ब्रश को नहीं धोते हैं, तो यह स्कैल्प माइक्रोबायोम में असंतुलन पैदा कर सकता है जिस से स्कैल्प में डैंड्रफ और स्कैल्प संक्रमण हो सकता है. इस से बाल झड़ने लगते हैं. इसलिए हेयर ब्रश को साफ रखना बहुत जरूरी है.

आइए, जानें अपने हेयर ब्रश को कैसे साफ रखें और किस तरह के खरीदें :

कितने तरह के हेयर ब्रश कई तरह के होते हैं. छोटे, बड़े और गोल. बडे़ ब्रश में ब्रसल्स होते हैं, जो 2 प्रकार के होते हैं- कांटों वाला और गोल ब्रसल्स वाला. जिन के बाल घने होते हैं उन के लिए कांटों वाला ब्रश उपयोगी होता है. जिन के बाल पतले होते हैं, उन्हें गोल ब्रसल्स वाले हेयर ब्रश सूट करते हैं. दोनों ही हेयर ब्रश को वौल्यूम दिखाने के लिए प्रयोग किया जाता है.

कुछ कंपनी जो महंगे हेयर ब्रश बनाते हैं-

मेसन पियर्सन (Mason Pearson) : यह एक मशहूर ब्रिटिश कंपनी है जो अपने प्रीमियम हेयर ब्रश के लिए जानी जाती है. कंपनी ने 1885 में ‘न्यूमैटिक’ रबर कुशन हेयरब्रश का पेटेंट कराया, जो आज भी अपने डिजाइन में बदलाव के साथ कंपनी का मेन प्रोडक्ट है.

यह कंपनी खासकर बोर ब्रिसल्स (boar bristles) वाले ब्रश बनाती है. इसे हाथ से लकड़ी से बनाया जाता है और इस में एक खास कुशन होता है, जो ब्रशिंग को आरामदायक बनाता है. साथ ही यह ब्रश बालों के प्राकृतिक तेलों को समान रूप से फैलाने में मदद करते हैं, जिस से बाल स्वस्थ और चमकदार बनते हैं. ये ब्रश ₹10,000 से शुरू हो कर ₹50,000 तक की कीमत में आते हैं.

केंट ब्रशेस (Kent Brushes) : केंट ब्रशेस एक ब्रिटिश कंपनी है जिसे महारानी एलिजाबेथ द्वितीय द्वारा ब्रिटिश राजघराने से ‘रौयल वारंट’ प्राप्त है, जिस का मतलब है कि ये शाही परिवार को ब्रश की सप्लाई करते हैं.

यह ब्रश ब्रश हाथ से बनाए जाते हैं और इन में हैंड क्वालिटी वाले नैचुरल बोअर ब्रिसल्स (boar bristles) का यूज होता है. ये ब्रिसल्स बालों के नैचुरल तेलों को जड़ों से ले कर सिरों तक समान रूप से फैलाते हैं, जिस से बाल स्वस्थ और चमकदार बनते हैं. ब्रश के हैंडल टिकाऊ लकड़ियों से बने होते हैं. ये ब्रश ₹1,500 से शुरू हो कर ₹20,000 तक के आते हैं.

हाथ से बनाए गए कस्टम ब्रश : अगर आप भी सोचते हैं कि काश ऐसा होता कि मैं अपनी पसंद के हिसाब से हेयर ब्रश बनवा सकती तो उस पर मैं अपना नाम खुदवाती और उस की लंबाई और मोटाई भी अपने  हिसाब से करवाती, तो इस में सोचने की क्या बात है. कस्टम ब्रश ऐसे ही लोगों के लिए बनाए जाते हैं. यह

उन लोगों के लिए खास होते हैं जो अपने बालों की देखभाल में क्वालिटी और स्पेशियलिटी चाहते हैं. ये ब्रश आम हेयर ब्रश से बहुत अलग होते हैं क्योंकि इन्हें किसी खास व्यक्ति की जरूरतों और पसंद के हिसाब से बनाया जाता है. ये ब्रश नैचुरल चीजों जैसे लकड़ी और जानवरों के बाल से बनाए जा सकते हैं या सिंथेटिक विकल्पों का उपयोग कर के भी बनाए जा सकते हैं. इन ब्रश में आप अपनी जरूरत के अनुसार खास तरह के ब्रिसल, हैंडल और डिजाइन चुन सकते हैं.

आम तौर पर एक साधारण हाथ से बने ब्रश की कीमत ₹15,000 से शुरू हो सकती है, जबकि बहुत ही लग्जरी और खास और्डर पर बने इन ब्रश की कीमत ₹1 लाख से भी ज्यादा हो सकती है.

फिलिप्स केराशाइन टाइटेनियम वाइड प्लेट स्ट्रेटनर (PHILIPS Kerashine Titanium Wide Plate Straightener) : इसे ग्राहक अमेजन से ₹2,795 में खरीद सकते हैं. ये स्ट्रेटनर सिल्क प्रोटेक्ट टेक्नोलौजी के साथ आते हैं, जो डैमेज कम करने के लिए टैंपरेचर को औप्टिमाइज करती है.

फिलिप्स हेयर स्ट्रेटनर ब्रश (PHILIPS Hair Straightener Brush) : फिलिप्स हेयर स्ट्रेटनर इस लिस्ट का सब से बैस्ट सेलिंग प्रोडक्ट है, जो महिलाओं की पहली पसंद है. इस की मदद से आप केवल 5 मिनट में नैचुरल तरीके से घुंघराले बालों को स्ट्रेट कर सकते हैं. ट्रिपल ब्रिसल डिजाइन, थर्मोप्रोटेक्ट टेक्नोलौजी के साथ आप के बालों के टाइप के अनुरूप इस ब्रश में 2 टेंपरेचर सेटिंग दी गई है.

हाई क्वालिटी वाली यह फिलिप्स हेयर स्ट्रेटनर ब्रश बढ़िया कीमत पर मिल रही है. केराटिन युक्त सिरेमिक ब्रिसल्स बालों को डैमेज होने से बचाती है. बालों पर अधिक गरमी से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए सिल्क प्रोकेयर का यूज किया गया है. इस ब्रश की कीमत लगभग ₹ 2,849 है.

हैवेल्स केराटिन इनफ्यूज्ड हेयर स्ट्रेटनर ब्रश (Havells Keratin Infused Hair Straightener Brush) : रेक्टैंगुलर शेप में आने वाला यह हेयर स्ट्रेटनर ब्रश पर्पल कलर में आता है जो काफी अच्छा लुक देने में भी मदद करता है. हैवेल्स का यह कौंब हेयर स्ट्रेटनर सभी प्रकार के बालों के लिए एक बढ़िया विकल्प साबित हो सकते हैं. इस की खासियत है कि इस में एलईडी डिस्प्ले मौजूद है जिस की मदद से आप तापमान को अपनी सुविधा के अनुसार सेट कर सकते हैं और देख भी सकते हैं. और तो और इस में मौजूद केराटिनयुक्त पदार्थ आप के बालों को नमी प्रदान करता है, जिस से बाल स्वस्थ और चमकदार बन सकते हैं. अतिरिक्त सुरक्षा के लिए औटोशट औफ सुविधा के साथ ऐडवांस्ड पीटीसी हीटिंग तत्त्व भी दिया गया है. इस की कीमत ₹900 के लगभग है.

वेगा लाइटस्टाइल एल 1 स्ट्रेटनर ब्रश फोर वूमन (VEGA Litestyle L1 Hair Straightener Brush For Women) : वेगा की यह केराटिन और और्गन औयलयुक्त सिरेमिक कोटेड प्लेट्स के साथ हेयर ब्रश स्ट्रेटनर है, जो मिनटों में बालों को कर्लफ्री करता है. यह फ्लैट हेयर स्ट्रेटनर गरम होने में केवल 30 सेकंड लेता है और आप के बालों के टाइप के आधार पर सेटिंग चुनने के लिए इसमें 5 अलगअलग हीट सेटिंग्स दी हुई हैं. इस का स्मार्ट मेमोरी फंक्शन आप के लास्ट उपयोग किए गए तापमान को याद रखता है. यह लगभग ₹2,849 कीमत में उपलब्ध है.

अगारो हेयर स्ट्रेटनिंग ब्रश (AGARO Hair Straightening Brush) : 5 हीट सेटिंग के साथ आने वाला यह हेयर स्ट्रेटनर कंघी के डिजाइन में आता है जिस को आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है. काले रंग में आने वाला यह हेयर स्ट्रेटनर सभी प्रकार के बालों के लिए बढ़िया विकल्प साबित हो सकता है. यह मात्र 409 ग्राम का होता है जिस से इसे आसानी से आप अपने हैंडबैग में डाल कर कहीं भी ले कर जा सकती हैं. यह बिजली की सहायता से चलता है और आयनिक तकनीक के साथ आता है जो घुंघराले बालों को सीधा करने में मदद करता है और साथ ही औटोशट औफ के चलते काम होते ही खुद ही बंद हो जाता है. यह 2 इन 1 हेयर ब्रश बालों को सीधा करने के साथसाथ बालों में कंघी करने के लिए भी बढ़िया विकल्प बन सकता है, जिस से सैलून जैसे बेहतरीन परिणाम मिल सकता है. इस की कीमत ₹3,000 के लगभग है.

कब बदलना चाहिए अपना हेयर ब्रश

कई बार हम अपने हेयर ब्रश के साथ इतने कंफर्टेबल हो जाते हैं कि उस के ब्रिसल्स टूटने लगते हैं, तब भी हम वही ब्रश यूज करते रहते हैं और उसे चेंज करने का सोचते भी नहीं हैं. लेकिन ऐसा करने पर हमारे बाल टूटे हुए ब्रिसल्स में उलझ कर कमजोर होने लगते हैं. इसलिए ऐसा न करें बल्कि उसे बदल दें.

हेयर ब्रश पर कोई ऐक्सपायरी डेट नहीं लिखी होती है, लेकिन बालों की सलामती के लिए यह बेहतर है कि आप साल में 2 बार अपना हेयर ब्रश बदल लें.

हार्ड प्लास्टिक वाले हेयर ब्रश को बदल लें. इस से बालों की जड़ें कमजोर भी होती हैं और साथ ही साथ इस से हेयर डैमेज भी होता है.

कई बार हमारा हेयर ब्रश पर्स में पड़ा रहता है और वहां से उस पर लिपस्टिक और खानेपीने की बाकि गंदगी अंदर तक चली जाती है जो साफ भी नहीं होती. इस के आलावा अगर वह वैसे ही बहुत गंदा हो गया है तो वह बालों में इन्फैक्शन कर सकता है, इसलिए इसे बदल दें.

हेयर ब्रश को साफ करने का तरीका

सब से पहले अपने हेयर ब्रश में फंसे हुए बालों के गुच्छे निकालें और इस के लिए आप किसी पतली चिमटी आदि का यूज भी कर सकते हैं. इस तरह सारे बाल हेयर ब्रश में से निकाल लें.

सप्ताह में कम से कम 1 बार अपने हेयर ब्रश को गरम पानी और साबुन से धोएं. यह गंदगी और बैक्टीरिया को हटाने में मदद करेगा. अगर ब्रश बहुत गंदा हो गया है, तो एक छोटा सा डिटर्जेंट लगा कर ब्रश को साफ करें.

इस के आलावा ब्रश को डीप क्लीनिंग करने के लिए एक कटोरे में गुनगुना पानी लें, उस में बेकिंग सोडा और 1 बङा चम्मच शैंपू मिलाएं. इस में कंघी और ब्रश को 10-15 मिनट के लिए छोड़ दें, फिर पुराने टूथब्रश से इसे साफ कर लें.

अगर ब्रश ब्रैंडेड है तो उस पर लिखे निर्देशों के अनुसार ही इसे साफ करें या करवाएं.

Hair Brush Care

Floral Trend: इस फेस्टिव सीजन हिट है फ्लोरल फैशन, दिवाओं से लें इंस्पो

Floral Trend: त्योहारों में फैशन आम है, इसलिए डिजाइनर्स भी नएनए डिजाइन्स से लोगों को हर साल परिचय करवाती हैं, इन दिनों बाजार से लेकर औनलाइन हर जगह फैशन की भरमार होती है. ये फैशन या डिजाइन्स हमारे बौलीवुड की दिवाओं से शुरू होकर आम जनजीवन में फैलती है और सभी उसे खरीदना भी पसंद करते हैं.

इस बार फ्लोरल फैशन ने फैशन जगत में एक शानदार वापसी की है, और बौलीवुड की हमारी चहेती अभिनेत्रियां इस ट्रेंड को नए अंदाज में पेश कर सब को मनमोहित किया है. नाजुक बोटैनिकल प्रिंट्स से ले कर बोल्ड और रंगबिरंगे फ्लोरल डिजाइनों तक इन प्रमुख अभिनेत्रियों ने साबित कर दिया है कि फ्लोरल आउटफिट्स सिर्फ बसंत ऋतु का एक जरूरी हिस्सा नहीं हैं. ये साल भर चलने वाला फैशन स्टेटमेंट हैं.

ये लुक्स उन्हें एलिगेंस और बेमिसाल आकर्षण का प्रतीक बनाती हैं, फिर चाहे वो काम्प्लेक्स फ्लोरल कढ़ाई वाला पारंपरिक भारतीय पहनावा हो या वेस्टर्न सिल्हट्स पर गार्डनइंस्पायर्ड प्रिंट्स, हमेशा पहना जा सकता है.

जार्जिया एंड्रियानी – गुलाबी फूलों में शाही रोमांस

इटली की ग्लैमरस, सेक्सी जार्जिया एंड्रियानी एक अभिनेत्री, मौडल और डांसर हैं, उन्होंने कैरोलीन कामाक्षी, वेलकम टू बजरंगपुर और मार्टिन जैसे प्रोजेक्ट्स में काम किया है. वह अरबाज खान को डेट करने के कारण भी चर्चा में थीं. जार्जिया एंड्रियानी अपने क्रीम और गोल्डन फ्लोरल पोशाक में परी जैसी लग रही हैं, जो पारंपरिक गरिमा और आधुनिक ग्लैमर का परफेक्ट मेल है.

उनके आउटफिट में सुनहरे धागों से पत्तियों की कढ़ाई वाला ब्लाउज और नाजुक गुलाबी फूलों व बोटैनिकल प्रिंट से सजी लहराती हुई क्रीम रंग की स्कर्ट शामिल है. बारीक कढ़ाई और हल्के रंगों का तालमेल एक बेहद रोमांटिक और ख्वाब का लुक देता है, जो किसी त्यौहार या एलीगेंट ईवनिंग पार्टी के लिए एकदम उपयुक्त है.

खुले लहराते बाल और न्यूनतम गहनों ने इस पोशाक की फ्लोरल खूबसूरती को पूरी तरह उभरने दिया है, जिससे यह साबित होता है कि कभीकभी सबसे ग्लैमरस पोशाक का लुक पहनने वाले की अंदाज पर निर्भर होता है.

जान्हवी कपूर – वाइब्रेंट गार्डन पार्टी वाइब्स

चुलबुली और खूबसूरत जान्हवी कपूर हमेशा हर पोशाक में खूबसूरत लगती है. उन्होंने रंगबिरंगे फ्लोरल मिडी ड्रेस को पहनना पसंद कर रही हैं. पिंक रिबन डिटेलिंग वाला सिंगलस्ट्रैप कोर्सेट स्टाइल टौप एक फ्लोई स्कर्ट में बदलता है, जिस पर औरेंज, पिंक, येलो और टील रंगों के वाटर कलर स्टाइल फूलों का प्रिंट है. उन्होंने इस लुक को व्हाइट पंप्स और बीच वेव हेयरस्टाइल के साथ स्टाइल किया है, जो समर वेकेशन के लिए परफेक्ट, फ्रेश और सजीला लुक देता है.

फ्लेयर वाला सिल्हूट उनके फिगर को फ्लैटर करता है, और बोल्ड फ्लोरल प्रिंट एक युवा, चंचल ऊर्जा भरता है, जो दिन के समय की इवेंट्स या कैज़ुअल गेदरिंग्स के लिए शानदार है.

कियारा आडवाणी – गुलाबों में क्लासिक एलिगेंस

एम.एस. धोनी: द अनटोल्ड स्टोरी, कबीर सिंह और शेरशाह जैसी फिल्मों से सफलता पा चुकी विनम्र और शांत कियारा आडवाणी की सफेद मैक्सी ड्रेस टाइमलेस रोमांस का प्रतीक हैं, जिस पर असली गुलाबों जैसे रेड फ्लोरल प्रिंट हैं. स्वीटहार्ट नेकलाइन और लेस डिटेलिंग से सजी बाडिस लुक में एक विंटेज फेमिनिन टच जोड़ती है, जबकि फ्री फ्लोइंग सिल्हूट उन्हें परी जैसा एलिगेंट रूप देती है. उन्होंने इसे ट्रेडिशनल चोकर नेकलेस और दो गोल्डन चंकी ब्रेसलेट्स के साथ स्टाइल किया है, जो एक इंडोवेस्टर्न फ्यूजन लुक देता है और रंग में एक एलिगेंसी को जोड़ता है. ड्रेस पर बिखरे हुए गुलाबों के प्रिंट फैब्रिक में मूवमेंट और दृश्य आकर्षण पैदा करता है, जिससे यह पोशाक उन खास मौकों के लिए एकदम सही है जहां आधुनिक ट्विस्ट के साथ क्लासिक एलिगेंस की चाहत होती है.

जैकलीन फर्नांडीज – डार्क फ्लोरल में बोहेमियन ग्लैमर

हंसमुख और खूबसूरत श्रीलंका की अभिनेत्री और मौडल जैकलीन फर्नांडीज ने ‘अलादीन’ से बॉलीवुड में शुरुआत की और ‘किक’ और ‘जुड़वा 2’ जैसी फिल्मों से उन्हें काफी लोकप्रियता मिली. फिल्मों में काम करने के अलावा उन्होंने डांस रियलिटी शो में जज के रूप में काम किया है. उन्होंने ब्लैक फ्लोरल आउटफिट में स्टाइल और ड्रामा का बेहतरीन मेल पेश किया है.

क्रॉप टॉप और फ्लोइंग लहंगे वाले इस लुक में लाल, सफेद और पीले फूलों के प्रिंट हैं, जो गहरे काले रंग की एक ऐसा कंट्रास्ट बनाते हैं जो मॉडर्न और ट्रेडिशनल दोनों है. जिस तरह से उन्होंने दुपट्टे को खूबसूरती से पकड़ा है और फ्लोरल प्रिंट्स उनके चारों ओर बिखरे हुए हैं, वह एक मूवमेंट और ड्रामैटिक अंदाज का एहसास देता है. उनके स्टेटमेंट ज्वेलरी का चुनाव और बोल्ड कलर कॉम्बिनेशन यह साबित करता है कि फ्लोरल प्रिंट्स हमेशा सॉफ्ट और नाज़ुक ही नहीं होते – ये खूबसूरती के साथसाथ एक अलग लुक भी देती है.

सोनम बाजवा – नाजुक फूलों में पेस्टल परफेक्शन

पंजाबी फिल्म बेस्ट औफ लक से अभिनय की शुरुआत करने वाली पंजाबी बाला सोनम बाजवा ने निक्का जैलदार और पंजाब 1984 जैसी फिल्मों से प्रसिद्धि पाई. अभिनेत्री के अलावा वह एक स्टाइल आइकन भी मानी जाती है.

सोनम बाजवा अपने पेस्टल पिंक फ्लोरल सूट में बेहद खूबसूरत लग रही हैं, जो सादगी और आधुनिक आकर्षण का आदर्श मेल है. उनके फ्री फ्लोइंग कुर्ते पर नीले और गुलाबी फूलों का हल्का प्रिंट है, जिसे आस्तीन और हेमलाइन पर टैसल्स और लेस वर्क के बारीक डिटेल्स और भी खास बनाते हैं.

मैचिंग फ्लोरल दुपट्टा और न्यूनतम गहनों के साथ यह लुक एक संतुलित और क्लासिक एस्थेटिक पेश करता है, जो डे टाइम इवेंट्स और कैज़ुअल मौकों के लिए परफेक्ट है. हल्के रंग और नाज़ुक प्रिंट इस लुक में एक रोमांटिक और मॉडर्न फील जोड़ते हैं. इससे ये साबित होता है कि फूलों का फैशन हमेशा चलने वाला, बेहद स्टाइलिश फैशन है.

इस प्रकार ये सारे फ्लोरल ट्रेंड वाले लुक्स आने वाले त्योहारों के मौसम में पौपुलर रहेंगे, क्योंकि फ्लोरल फैशन हर मौसम और अवसर पर सबको आकर्षित करते हैं, इसे पहनने वाला किसी भी रंग, रूप और उम्र में खूबसूरत और फ्रेश लगता है, जो आपके आत्मविश्वास और स्टाइल को साथ व्यक्त करने के अवसर प्रदान करता है.

Floral Trend

Sad Story: बेटियां- क्या नवजात शिशु को बचा पाए डाक्टर कुमार

Sad Story: ‘‘ओफ्फो, आज तो हद हो गई…चाय तक पीने का समय नहीं मिला,’’ यह कहतेकहते डाक्टर कुमार ने अपने चेहरे से मास्क और गले से स्टेथोस्कोप उतार कर मेज पर रख दिया.

सुबह से लगी मरीजों की भीड़ को खत्म कर वह बहुत थक गए थे. कुरसी पर बैठेबैठे ही अपनी आंखें मूंद कर वह थकान मिटाने की कोशिश करने लगे.

अभी कुछ मिनट ही बीते होंगे कि टेलीफोन की घंटी बज उठी. घंटी की आवाज सुन कर डाक्टर कुमार को लगा यह फोन उन्हें अधिक देर तक आराम करने नहीं देगा.

‘‘नंदू, देखो तो जरा, किस का फोन है?’’

वार्डब्वाय नंदू ने जा कर फोन सुना और फौरन वापस आ कर बोला, ‘‘सर, आप के लिए लेबर रूम से काल है.’’

आराम का खयाल छोड़ कर डाक्टर कुमार कुरसी से उठे और फोन पर बात करने लगे.

‘‘आक्सीजन लगाओ… मैं अभी पहुंचता हूं्…’’ और इसी के साथ फोन रखते हुए कुमार लंबेलंबे कदम भरते लेबर रूम की तरफ  चल पड़े.

लेबर रूम पहुंच कर डाक्टर कुमार ने देखा कि नवजात शिशु की हालत बेहद नाजुक है. उस ने नर्स से पूछा कि बच्चे को मां का दूध दिया गया था या नहीं.

‘‘सर,’’ नर्स ने बताया, ‘‘इस के मांबाप तो इसे इसी हालत में छोड़ कर चले गए हैं.’’

‘‘व्हाट’’ आश्चर्य से डाक्टर कुमार के मुंह से निकला, ‘‘एक नवजात बच्चे को छोड़ कर वह कैसे चले गए?’’

‘‘लड़की है न सर, पता चला है कि उन्हें लड़का ही चाहिए था.’’

‘‘अपने ही बच्चे के साथ यह कैसी घृणा,’’ कुमार ने समझ लिया कि गुस्सा करने और डांटडपट का अब कोई फायदा नहीं, इसलिए वह बच्ची की जान बचाने की कोशिश में जुट गए.

कृत्रिम श्वांस पर छोड़ कर और कुछ इंजेक्शन दे कर डाक्टर कुमार ने नर्स को कुछ जरूरी हिदायतें दीं और अपने कमरे में वापस लौट आए.

डाक्टर को देखते ही नंदू ने एक मरीज का कार्ड उन के हाथ में थमाया और बोला, ‘‘एक एक्सीडेंट का केस है सर.’’

डाक्टर कुमार ने देखा कि बूढ़ी औरत को काफी चोट आई थी. उन की जांच करने के बाद डाक्टर कुमार ने नर्स को मरहमपट्टी करने को कहा तथा कुछ दवाइयां लिख दीं.

होश आने पर वृद्ध महिला ने बताया कि कोई कार वाला उन्हें टक्कर मार गया था.

‘‘माताजी, आप के घर वाले?’’ डाक्टर कुमार ने पूछा.

‘‘सिर्फ एक बेटी है डाक्टर साहब, वही लाई है यहां तक मुझे,’’ बुढि़या ने बताया.

डाक्टर कुमार ने देखा कि एक दुबलीपतली, शर्मीली सी लड़की है, मगर उस की आंखों से गजब का आत्म- विश्वास झलक रहा है. उस ने बूढ़ी औरत के सिर पर हाथ फेरते हुए तसल्ली दी और कहा, ‘‘मां, फिक्र मत करो…मैं हूं न…और अब तो आप ठीक हैं.’’

वृद्ध महिला ने कुछ हिम्मत जुटा कर कहा, ‘‘श्वेता, मुझे जरा बिठा दो, उलटी सी आ रही है.’’

इस से डाक्टर कुमार को पता चला कि उस दुबलीपतली लड़की का नाम श्वेता है. उन्होंने श्वेता के साथ मिल कर उस की मां को बिठाया. अभी वह पूरी तरह बैठ भी नहीं पाई थी कि एक जोर की उबकाई के साथ उन्होंने उलटी कर दी और श्वेता की गुलाबी पोशाक उस से सन गई.

मां शर्मसार सी होती हुई बोलीं, ‘‘माफ करना बेटी…मैं ने तो तुम्हें भी….’’

उन की बात बीच में काटती हुई श्वेता बोली, ‘‘यह तो मेरा सौभाग्य है मां कि आप की सेवा का मुझे मौका मिल रहा है.’’

श्वेता के कहे शब्द डाक्टर कुमार को सोच के किसी गहरे समुद्र में डुबोए चले जा रहे थे.

‘‘डाक्टर साहब, कोई गहरी चोट तो नहीं है न,’’ श्वेता ने रूमाल से अपने कपड़े साफ करते हुए पूछा.

‘‘वैसे तो कोई सीरियस बात नहीं है फिर भी इन्हें 5-6 दिन देखरेख के लिए अस्पताल में रखना पड़ेगा. खून काफी बह गया है. खर्चा तकरीबन….’’

‘‘डाक्टर साहब, आप उस की चिंता न करें…’’ श्वेता ने उन की बात बीच में काटी.

‘‘कहां से करेंगी आप इंतजाम?’’ दिलचस्प अंदाज में डाक्टर ने पूछा.

‘‘नौकरी करती हूं…कुछ जमा कर रखा है, कुछ जुटा लूंगी. आखिर, मेरे सिवा मां का इस दुनिया में है ही कौन?’’ यह सुन कर डाक्टर कुमार निश्ंिचत हो गए. श्वेता की मां को वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया.

इधर डाक्टर ने लेबररूम में फोन किया तो पता चला कि नवजात बच्ची की हालत में कोई सुधार नहीं है. वह फिर बेचैन से हो उठे. वह इस सच को भी जानते थे कि बनावटी फीड में वह कमाल कहां जो मां के दूध में होता है.

डाक्टर कुमार दोपहर को खाने के लिए आए तो अपने दोनों मरीजों के बारे में ही सोचते रहे. बेचैनी में वह अपनी थकान भी भूल गए थे.

शाम को डाक्टर कुमार वार्ड का राउंड लेने पहुंचे तो देखा कि श्वेता अपनी मां को व्हील चेयर में बिठा कर सैर करा रही थी.

‘‘दोपहर को समय पर खाना खाया था मांजी ने?’’ डाक्टर कुमार ने श्वेता से मां के बारे में पूछा.

‘‘यस सर, जी भर कर खाया था. महीना दो महीना मां को यहां रहना पड़ जाए तो खूब मोटी हो कर जाएंगी,’’ श्वेता पहली बार कुछ खुल कर बोली. डाक्टर कुमार भी आज दिन में पहली बार हंसे थे.

वार्ड का राउंड ले कर डाक्टर कुमार अपने कमरे में आ गए. नंदू गायब था. डाक्टर कुमार का अंदाजा सही निकला. नंदू फोन सुन रहा था.

‘‘जल्दी आइए सर,’’ सुन कर डाक्टर ने झट से जा कर रिसीवर पकड़ा, तो लेबर रूम से नर्स की आवाज को वह साफ पहचान गए.

‘‘ओ… नो’’, धप्प से फोन रख दिया डाक्टर कुमार ने.

नवजात बच्ची बच न पाई थी. डाक्टर कुमार को लगा कि यदि उस बच्ची के मांबाप मिल जाते तो वह उन्हें घसीटता हुआ श्वेता के पास ले जाता और ‘बेटी’ की परिभाषा समझाता. वह छटपटा से उठे. कमरे में आए तो बैठा न गया. खिड़की से परदा उठा कर वह बाहर देखने लगे.

सहसा डाक्टर कुमार ने देखा कि लेबर रूम से 2 वार्डब्वाय उस बच्ची को कपड़े में लपेट कर बाहर ले जा रहे थे… मूर्ति बने कुमार उस करुणामय दृश्य को देखते रह गए. यों तो कितने ही मरीजों को उन्होंने अपनी आंखों के सामने दुनिया छोड़ते हुए देखा था लेकिन आज उस बच्ची को यों जाता देख उन की आंखों से पीड़ा और बेबसी के आंसू छलक आए.

डाक्टर कुमार को लग रहा था कि जैसे किसी मासूम और बेकुसूर श्वेता को गला घोंट कर मार डाला गया हो.

Sad Story

Family Story in Hindi: रीते हाथ- क्या था उमा का सपना

Family Story in Hindi: अपनी बातों का सिलसिला खत्म कर उमा घर से निकली तो मैं दरवाजा बंद कर अंदर आ गई. आंखों में अतीत और वर्तमान दोनों आकार लेने लगे. मैं सोफे पर चुपचाप बैठ कर अपने ही खयालों में खोई अपनी सहेली के रीते हाथों के बारे में सोचती रही.

क्यों उमा से मेरी दोस्ती मां को बिलकुल पसंद नहीं थी. सुंदर, स्मार्ट, हर काम में आगे, उमा मुझे बहुत अच्छी लगती थी. वह मुझ से एक क्लास आगे थी और रास्ता एक होने के कारण हम अकसर साथ स्कूल आतेजाते थे. तब मैं भरसक इस कोशिश में रहती कि मां को हमारे मिलने का पता न चले, पर मां को सब पता चल ही जाता था.

उमा स्कूल से कालिज पहुंची तो दूसरे ही साल मेरा भी दाखिला उसी कालिज में हो गया. कालिज के उमड़ते सैलाब में तो उमा ही मेरा एकमात्र सहारा थी. यहां उस का प्रभाव स्कूल से भी ज्यादा था. कालिज का कोई भी कार्यक्रम उस के बगैर अधूरा लगता था. नाटक हिंदी का हो या अंगरेजी का उमा का नाम तो होता ही, अभिनय भी वह गजब का कर लेती थी.

लड़कों की एक  लंबी फेहरिस्त थी, जो उमाके दीवाने थे. वह भी तो कैसे बेझिझक उन सब से बात कर लेती थी. बात भी करती और पीठ पीछे उन का मजाक भी उड़ाती. कालिज से लौटते समय एक बार उमा ने मुझे बताया था कि अभी तो ये ग्रेजुएशन ही कर रहे हैं और इन को कुछ बनने में, कमाने में सालों लगेंगे. मैं तो किसी ऐसे युवक से विवाह करूंगी जिस की अच्छी आमदनी हो ताकि मैं आराम से रह सकूं.

इसलिए मैं किसी के प्यार के चक्कर में नहीं पड़ती. मैं उस की दूरदर्शी बातें सुन कर आश्चर्यचकित रह गई. मुझ में झिझक थी. मैं अपनी किताबी दुनिया से बाहर कुछ नहीं जानती थी और उमा ठीक मेरे विपरीत थी. क्या यही कारण था, जो मुझे उस के व्यक्तित्व की ओर आकर्षित करता था? मन में छिपी एक कसक थी कि काश, मैं भी उस की जैसी बन पाती लेकिन मां क्यों…?

संयोग देखो कि उस की आकांक्षाओं पर जो युवक खरा उतरा वह मेरा ही मुंहबोला भाई विकास था. विकास से हमारा पारिवारिक रिश्ता इतना भर था कि उस के और मेरे पिता कभी साथसाथ पढ़ते थे पर इतने भर से ही विकास ने कभी हम बहनों को भाई की कमी महसूस नहीं होने दी.

अपने घर की एक पार्टी में मैं ने विकास का परिचय उमा से कराया था और यह परिचय दोस्ती का रूप धर धीरेधीरे प्रगाढ़ होता चला गया था. मगर उस के पिता का मापतौल अलग था, उमा की आकांक्षाओं पर विकास भले ही खरा उतरा था. उमा की मां किसी राजघराने से संबंधित थीं और इस बात का गरूर उमा की मां से अधिक उस के पिता को था.

एक साधारण परिवार में वह अपनी बेटी ब्याह दें, यह नामुमकिन था. इसलिए उन्होंने एक खानदानी रईस परिवार में उमा का रिश्ता कर दिया. ऐसी बिंदास लड़की पर भी मांबाप का जोर चलता है, सोच कर मुझे आश्चर्य हुआ पर यही सच था.

उमा के विवाह के 2 महीने बाद ही मेरा भी विवाह हो गया. पहली बार मायके आने पर पता चला कि उमा भी मायके आई हुई है, हमेशा के लिए. ‘लड़का नपुंसक है,’ यही बात उमा ने सब से कही थी. यह सच था अथवा उस ने अपने डिक्टेटर पिता को उन्हीं की शैली में जवाब दिया था, वही जाने.

बहरहाल, पिता अपना दांव लगा कर हार चुके थे. इस बार मां ने दबाव डाला. उमा एक बार फिर दुलहन बनी और इस बार दूल्हा विकास था. प्यार की आखिरकार जीत हुई थी. एक असंभव सी लगने वाली बात संभव हो गई. हम सभी खुश थे. विकास की खुशी हम सब की खुशी थी. बस, मां ही केवल औपचारिकता निभाती थीं उमा से.

साल दर साल बीत रहे थे. अब शादीब्याह जैसे पारिवारिक मिलन के अवसरों पर उमा से मुलाकात हो ही जाती. एकदूसरे की हमराज तो हम पहले से ही थीं, अब और भी करीब हो गई थीं. एक बात सोचती हूं कि मनचाहा पा कर भी व्यक्ति संतुष्ट क्यों नहीं हो पाता? और ऊंचे उड़ने की अंधी चाह औंधेमुंह पटक भी तो सकती है. उमा यही बात समझ नहीं पा रही थी. उसे अपनी महत्त्वा- कांक्षाओं के आगे सब बौने लगने लगे थे.

विकास से उस की शिकायतों की फेहरिस्त हर मुलाकात में पहले से लंबी हो रही थी, वह महत्त्वाकांक्षी नहीं, पार्टियों, क्लबों का शौकीन नहीं, उसे अंगरेजी फिल्में पसंद नहीं, वह उमा के लिए महंगेमहंगे उपहार नहीं लाता…और भी न जाने क्याक्या? मैं भी अब पहले जैसी नादान नहीं रही थी. दुनियादारी सीख चुकी थी और मुझ में इतना आत्मविश्वास आ चुका था कि उमा को अच्छेबुरे की, गलतसही की पहचान करा सकूं.

‘देख उमा, मैं जानती हूं कि विकास बहुत महत्त्वाकांक्षी नहीं है पर तुम तो आराम से रहती हो न, और सब से बड़ी बात, वह तुम्हें कितना प्यार करता है. इस से बड़ा सौभाग्य क्या और कुछ हो सकता है? बताओ, कितनों को मनपसंद साथी मिलता है. फिर भी तुम्हें शिकायतें हैं, जबकि ज्यादातर औरतें एक अजनबी व्यक्ति के साथ तमाम उम्र गुजार देती हैं, बिना गिलेशिकवों के.’

‘मैं यह नहीं कहती कि पुरुष की सब बदसलूकियां चुपचाप सह लो, उस के सब जुल्म बरदाश्त कर लो पर जीवन में समझौते तो सभी को करने पड़ते हैं. यदि औरत घरपरिवार में तो पुरुष भी घर से बाहर दफ्तर में, काम में समझौते करता ही है.

‘मुझे ही देखो. मेरे पति अपने पैसे को दांत से पकड़ कर रखते हैं. अब इस बात पर रोऊं या इस बात पर तसल्ली कर लूं कि फुजूलखर्ची की आदत नहीं है तो दुखतकलीफ में किसी के आगे हाथ तो नहीं फैलाने पड़ेंगे. दूसरे, कंजूस व्यक्ति में बुरी आदत जैसे सिगरेटशराब की लत पड़ने का भय नहीं रहता. अब यह तो जिस नजर से देखो नजारा वैसा ही दिखाई देगा.’

‘समझौता करना, कमियों को नजरअंदाज कर देना, यह सब तुम जैसे कमजोर लोगों का दर्शन है सुधा, सो तुम्हीं करो. यह समझौते मेरे बस के नहीं. मुझे जो एक जीवन मिला है मैं उसे भरपूर जीना चाहती हूं. शादी का मतलब यह तो नहीं कि मैं ने जीवन भर की गुलामी का बांड ही भर दिया है. ठीक है, गलती हो गई मेरे चयन में तो उसे सुधारा भी तो जा सकता है. मैं तुम्हारी तरह परंपरावादी नहीं हो सकती, होना भी नहीं चाहती और विकास को तो मैं सबक सिखा कर रहूंगी. इसी के लिए तो मैं पहले पति को छोड़ आई थी.’

विकास को सबक सिखाने का उमा ने नायाब तरीका भी ढूंढ़ निकाला. उस के काम पर जाते ही वह अपने पुरुष मित्रों से मिलने चल पड़ती. उस का व्यक्तित्व एक मैगनेट की तरह तो था ही जिस के आकर्षण में पुरुष स्वयं ख्ंिचे चले आते थे. क्या अविवाहित और क्या विवाहित, दोनों ही.

उमा अब विकास के स्वाभिमान को, उस के पौरुष को खुलेआम चुनौती दे रही थी. उसे लगता था कि इस से अच्छा तो तलाक ही हो जाता. कम से कम वह चैन से तो जी पाएगा.

उमा की यह इच्छा भी पूरी हो गई. उस का विकास से भी तलाक हो गया और वह अपनी 5 वर्षीय बेटी को भी छोड़ने को तैयार हो गई, क्योंकि इस बीच उस ने नवीन पाठक को पूरी तरह अपने मोहजाल में फंसा कर विवाह का वादा ले लिया था.

मैं उस के नए पति से कभी मिली नहीं थी और न ही मिलने की कोई उत्सुकता थी. बस, इतना जानती थी कि वह किसी उच्च पद पर है और प्राय: ही विदेश जाता रहता है.

कुछ दिन के बाद उमा दूसरे शहर चली गई तो हम सब ने राहत की सांस ली. बस, विकास को देख कर मन दुखी होता था. इस रिश्ते का टूटना विकास के लिए महज एक कागजी काररवाई न थी. उस में अस्वीकृति का बड़ा एहसास जुड़ा था और उस जैसे संवेदनशील व्यक्ति के लिए यह गहरा धक्का था. वैरागी सा हो गया था वह. कम ही किसी से मिलता और काम के बाद का सारा समय वह अपनी बेटी के संग ही बिताता.

लंबे अंतराल के बाद एक बार फिर उमा अचानक मिल गई. इस बीच हम भी अनेक शहर घूम दिल्ली आ कर बस गए थे. हुआ यों कि एक शादी के रिसेप्शन में शामिल होने हम जिस होटल में गए थे, होटल की लौबी में अचानक ही उमा मुझे दिख गई. उस ने भी मुझे देख लिया और फौरन हम एकदूसरे की तरफ लपके.

उमा अब 50 को छू रही थी किंतु उस के साथ जो पुरुष था वह उस से काफी बड़ा लग रहा था. उस समय तो अधिक बातचीत नहीं हो पाई पर उसे देख कर सब पुरानी यादें उमड़ पड़ी थीं. मैं ने फौरन उसे अगले ही दिन घर आने और पूरा दिन संग बिताने के लिए आमंत्रित कर लिया. आश्चर्य, अब भी उस के प्रति मेरा अनुराग बना हुआ था.

उमा समय पर पहुंची. मैं ने खाना तो तैयार कर ही रखा था, काफी भी बना कर थर्मस भर दिया था ताकि इत्मीनान से बैठ कर हम बातचीत कर सकें.

मेरे पहले प्रश्न का उत्तर ही मुझे झटका दे गया, महज बात शुरू करने के लिए मैं ने पूछा, ‘‘तुम्हारे पाठक साहब कैसे मिजाज के हैं? मैं ने कल पहली बार उन्हें देखा.’’

उमा के चेहरे पर एक बुझी हुई और उदास सी मुसकान दिखाई दी और पल भर में वह गायब भी हो गई, कुछ पल खामोश रही वह, पर मेरी उत्सुक निगाहों को देख टुकड़ोंटुकड़ों में बोली, ‘‘वह पाठक नहीं था. हम दोनों अब एकसाथ रहते हैं. दरअसल, पाठक सही आदमी नहीं था. बहुत ऐयाश किस्म का आदमी था वह. तुम सोच नहीं सकतीं कि मैं किस तनाव से गुजरी हूं. जी चाहता है जान दे दूं. एंटी डिपे्रशन की दवाई तो लेती ही हूं.’’

विकास के साथ किए गए उस के पुराने व्यवहार को भूल कर मैं ने उस का हाथ अपने हाथ में ले कर सांत्वना देने का प्रयत्न किया.

‘‘कई औरतों के साथ पाठक के संबंध थे और विवाह के एक साल बाद से ही वह खुलेआम अपने दफ्तर की एक महिला के संग घूमने लगा था. जब जी चाहता वह घर आता, जब चाहता रात भी उसी के संग बिता देता. अपनी ऐसी तौहीन, मेरे बरदाश्त के बाहर थी.’’

‘हमारे किए का फल कई बार कितना स्पष्ट होता है’ कहना चाह कर भी मैं कह नहीं पाई. मुझे उस से हमदर्दी हो रही थी. एक औरत होने के नाते या पुरानी दोस्ती के नाते? जो भी मान लो.

‘‘फिर अब कहां रहती हो?’’ मैं ने पूछा.

‘‘एक फ्लैट पाठक ने विवाह के समय ही मेरे नाम कर दिया था. मैं उसी में रहती हूं. बाकी मैं रीयल एस्टेट का अपना व्यवसाय करती हूं ताकि उस से और किसी सहायता की जरूरत न पड़े.’’

बच्चों की बात हुई तो मैं ने उसे बताया कि मेरे दोनों बच्चे ठीक से सैटल हो चुके हैं. बेटे ने अहमदाबाद से एम.बी.ए. किया है और बेटी ने बंगलौर से. बेटी का तो विवाह भी हो चुका है और अब बेटे के विवाह की सोच रहे हैं.

जानती तो मैं भी थी उस की बिटिया के बारे में पर वह कितना जानती है पता नहीं. यही सोच कर मैं कुछ नहीं बोली. उस ने स्वयं ही बेजान सी आवाज में कहा, ‘‘सुना है, अलग अपनी किसी सहेली के साथ रहती है. कईकई दिनों घर नहीं जाती. मुझ से तो ठीक से बात करने को भी तैयार नहीं. फोन करूं तो एकदो बात का अधूरा सा जवाब दे कर फोन रख देती है,’’ यह कहतेकहते वह रोंआसी हो गई. मैं उस की ओर देखती रही, लेकिन ढूंढ़ नहीं पाई जीवन से भरपूर, अपनी ही शर्तों पर जीने वाली उमा को.

‘‘सिर पर छत तो है पर सोच सकती हो, उस घर में अकेले रहना कितना भयावना हो जाता है? लगता है दीवारें एकसाथ गिर कर मुझे दबोच डालने का मनसूबा बनाती रहती हैं. शाम होते ही घर से निकल पड़ती हूं. कहीं भी, किसी के भी साथ… मैं तुम्हें पुरातनपंथी कहती थी, मजाक उड़ाती थी तुम्हारा. पर तुम ही अधिक समझदार निकलीं, जो अपना घर बनाए रखा, बच्चों को सुरक्षात्मक माहौल दिया. बच्चे तुम्हारे भी तुम से दूर हैं, फिर भी वह तुम्हारे अपने हैं. पूर्णता का एहसास है तुम्हें, कैसा भी हो तुम्हारा पति तुम्हारे साथ है, उस का सुरक्षात्मक कवच है तुम्हारे चारों ओर. जानती हो, मुझे कैसीकैसी बातें सुननी पड़ती हैं. मेरी ही बूआ का दामाद एक दिन मुझ से बोला, कोई बात नहीं यदि पाठक चला गया तो हम तो हैं न.

‘‘उस की बात से अधिक उस के कहने का ढंग, चेहरे का भाव मुझे आज भी परेशान करता है पर चुप हूं. मुंह खोलूंगी तो बूआ और उन की बेटी दोनों को दुख पहुंचेगा. और फिर अपने ही किए की तो सजा पा रही हूं…’’

उमा को अपनी गलतियों का एहसास होने लगा था. ठोकरें खा कर दूसरों के दुखदर्द का खयाल आने लगा था पर अब बहुत देर हो चुकी थी. मैं उस की सहायता तो क्या करती, सांत्वना के शब्द भी नहीं सोच पा रही थी. वही फिर बोली, ‘‘सुधा, घर तो खाली है ही मेरा मन भी एकदम खाली है. लगता है घनी अंधेरी रात है और मैं वीरान सड़क पर अकेली खड़ी हूं… रीते हाथ.

Family Story in Hindi

Suspense Story: पिपासा- कैसे हुई थी कमल की मौत

Suspense Story: सुबह के तकरीबन 9 बजे होंगे. भैंसों को चारासानी, पानी कर के दूध दुह कर ग्राहकों को बांट कर मदन खाट पर जा कर लेट गया था. पल दो पल में ही धूप उस के बदन पर लिपट कर अंगअंग सहला कर गरमाहट बढ़ाने लगी. मदन को गुदगुदी सी होने लगी थी. वह जैसे अपनी दोनों बांहों में धूप को समेट कर हौले से मुसकरा उठा.

तीस साल का मदन इतना भी रूखा या पत्थरदिल नहीं था, मगर अभी तक किसी को अपने दिल की बात कह कर अपना बना ही नहीं सका था.

मदन का पूरा बदन धूप की शरारतों से इठला ही रहा था, तभी अचानक किसी ने बाहर खटखट की आवाज की. आवाज सुन कर मदन चौंक गया.

‘अब कौन आया होगा?’ यह सवाल खुद से करता हुआ वह झट से करवट बदल कर पलटा और खाट पर से उठ कर जमीन खड़ा हुआ. जल्दी से वह बाहर गया, तो देखते ही पहचान गया.

“अरे, चमेली तुम…?”

“हां, मैं चमेली,” कह कर उस युवती ने अपने पास खड़े 4-5 बरस के बालक की कलाई को झिंझोड़ कर कहा.

चमेली मदन की दूर की रिश्तेदार थी. उस का विवाह जिला गाजियाबाद में हुआ था. और इस समय कुछ तो ऐसा हुआ था कि सारी दुनिया छोड़ कर वह बस मदन के दरवाजे पर खड़ी थी.

मदन ने उसे भीतर बुला लिया. कुछ ही देर बाद मदन को बाहर कुछ आवाजें सुनाई देने लगी थीं. लोगों में खुसुरफुसुर होने लगी थी. पर, मदन अपनी मेहनत पर जीने वाला स्वाभिमानी युवक किसी बात से नहीं डरता था और न ही किसी की परवाह करता था.

चमेली ने भीतर आ कर मदन की तरफ याचनाभरी निगाह से देखा. इस से पहले मदन कुछ कहता, वह झुक कर उस के पैरों से लिपट गई.

चमेली के इस तरह लिपटते देख मदन को अभीअभी सेंकी हुई धूप की गरमाहट दोबारा महसूस होने लगी और वह रोमांचित सा हो रहा था, पर उधर इस सब से बेखबर चमेली उस से सुबकसुबक कर बोली, “मेरा पति हर बात पर शक करता था. मैं वहां से भाग आई. अब मैं वापस लौट कर नहीं जाना चाहती. आप मुझे अपनी शरण में ले लो, तो बची उम्र भी जैसेतैसे काट लूंगी.”

मदन उस के लगातार स्पर्श से यों भी मदहोश सा हुआ जा रहा था. वह अपनेआप को सहज करने की कोशिश करने लगा और उस ने बालक को प्यार से पुचकार कर कहा, “आओ ना… मेरे पास आओ.”

मदन के शब्दों ने उस बालक पर जादू सा काम किया. वह बालक शायद जन्मों से इस मनुहार की ही तो कामना कर रहा था, प्यार का संकेत मिला और वह मदन की छाती से लिपट गया. मदन ने आंखें बंद कर लीं. उस को एक पल के लिए ऐसा लगा, जैसे चमेली ने आ कर उसे जकड़ लिया हो.

कुछ पल के लिए वहां खामोशी सी छाई रही. पैरों पर चमेली और गोदी में मासूम बालक था. मदन इस आनंद को छक कर भोग रहा था.

अचानक चमेली ने उठ कर कहा,”कहीं आप को कोई दिक्कत तो नहीं.”

“अरे, नहीं. तुम आराम से यहां रहो,” मदन ने अपनी आवाज में प्यार छलकाते हुए कहा, तो चमेली के बदन में जैसे बिजली सी दौड़ गई. वह रास्ते की थकान भूल कर कच्चे मकान को देखती रही और इधरउधर जा कर उस ने रसोई खोज ली.

मदन ने कहा, “तुम थकी हुई हो. मैं कुछ चायदूध गरम करता हूं.”

चमेली मदन की ओर देख कर जोर से बोली, “बस, अब मैं सब कर लूंगी.”

मदन यह सुन कर निश्चिंत हो गया और वह बालक के साथ खेलने लगा.

चमेली जरा सी देर में चाय, दूध सब तैयार कर लाई. चमेली और मदन चाय की चुसकियां लेने लगे. बालक दूध का गिलास गटागट पी गया और शरीर में ताकत आते ही यहांवहां दौड़ने लगा.

मदन का सूना घर किलकारी से गूंज उठा, जैसे कोई उत्सव हो.

मदन के इस कच्चे मकान में रसोई और गोदाम के अलावा 3 कमरे और भी थे. एक कमरा चमेली ने ले लिया. इस दौरान 2-4 दिन गांव के लोगों ने किसी न किसी बहाने मदन के आंगन की ताकझांक भी कर ली. पर आखिरकार सब लोग समझ गए कि चमेली मदन की शरणागत है, और मदन को इस मामले में किसी की राय, सलाहमशवरा आदि कतई नहीं चाहिए.

चमेली को आए 7-8 दिन हो गए थे. वह अपने कच्चे मकान के उसी कमरे मे रहता, जहां चमेली रहती.

मदन चमेली के साथ जन्नत सा सुख पा रहा था, और वह कमरा मदन को किसी परीलोक से कम न लगता था. अब चमेली ने इतना प्यार लुटा दिया, तो मदन भी पीछे नहीं रहा. शहर से बादाम, काजू, अखरोट, कपड़ेलत्ते, मखमली बिस्तर और कई खिलौने ला कर उस ने चमेली के बालक को निहाल कर दिया था.

मदन ने उस बालक का नाम रखा था कमल. चमेली को कमल नाम इतना भाया कि वह अपने इस बालक का असली नाम बिलकुल ही भूल गई.

लगभग एक महीना हो गया था और अब हालात इतने हसीन थे कि चमेली सुबहशाम कुछ नहीं सोचती थी, जब भी तड़प कर मदन पुकार लगाता, चमेली उस के लिए गलीचा बनने में पलभर की देरी नहीं करती थी. चमेली ने तो उस का पुनर्जागरण कर दिया था. चमेली उस की मांग पर उफ न करती, तो मदन ने भी उसे सिरआंखों पर बिठाया.

इन दिनों मदन को यह पूरी दुनिया जैसे फूलों का बाग लगती थी. चमेली दो समय भोजन पकाती और बाकी का वक्त मदन उस को एक तिनका तक न तोड़ने देता था. भैसों का गोबर उठाने, वहां साफसफाई करने और रसोई के सब छोटेबड़े बरतन वह खुद खुशीखुशी मांजता था.

चमेली ने भी गांव में सहेलियां बना ली थीं. जब मदन गांव से बाहर होता तो चमेली का जी उचटने लगता और कभी कमल को ले कर तो कभी उस को सुला कर वह यहांवहां, इधरउधर आनेजाने लगी.

एक दिन मदन ने कमल को गांव की पाठशाला में दाखिला दिला दिया, वहीं सुबह दूध और दोपहर को बढ़िया खाना मिलता था. चमेली अब और खूबसूरत हो गई थी.

3 महीने गुजर गए. एक दिन मदन को सदमा लगा, जैसे वह आसमान से गिरा. हुआ यों कि चमेली रातोंरात गायब हो गई. खूब पता लगाया तो खबर मिली कि वह बगल गांव के एक छोरे के संग मुंबई भाग गई. दोनों अपनी मरजी से गए थे और चमेली मदन के घर से एक रुपया तक न ले गई, बस उस के दो समय के कपड़े वहां नहीं थे. घर पर सब सामान सहीसलामत पा कर मदन ने चैन की सांस ली, मगर अब वह और कमल अकेले रह गए.

चमली उसे धोखा दे गई, इसीलिए शोक करना मूर्खता ही होती. पर, जीवट वाले मदन ने हार नहीं मानी और उस ने कमल को ही अपना जीवन मान लिया.

मदन उसे खुद स्कूल छोड़ने और लाने जाता, बाकी समय उस की भैंसें तो थीं ही, जो उस को बिजी रखती थीं.

हौलेहौले मदन और बालक कमल एकदूजे की छवि बनते गए. बालक कमल दस वर्ष का हुआ, तो उस को नईनई बातें पता लगीं. वह पढ़ने में अच्छा था और मेवे, फलफूल खा कर मजबूत शरीर का धावक भी था.

एक दिन कमल मदन से सैनिक स्कूल में पढ़ने की जिद करने लगा. मदन ने उस की पूरी बात सुनी. मदन को कोई दिक्कत नहीं थी. यह तो गर्व की बात थी. मदन ने खुशीखुशी दौड़भाग कर सैनिक स्कूल का प्रवेशफार्म भर दिया. परीक्षा में कमल का चयन हो गया. मदन उस को छात्रावास छोड़ कर वापस लौटा और 1-2 दिन बेचैन रह कर फिर से खुद को यहांवहां उलझा कर भैसों के काम में मन लगाने लगा.

कमल और चमेली दोनों ही बारीबारी से मदन के सपनों में आते थे. वैसे, कमल की तो नियम से चिट्ठी और फोन भी आते थे. 2 महीने तक तो लंबे अवकाश में कमल उस के पास आ कर रहा.

कमल मदन को सैनिक स्कूल के कितने किस्से सुनाता रहता था. मदन को लगता कि चलो, जीवन सफल हो गया.

समय पंख लगा कर उड़ता रहा. कमल जब 14 वर्ष का हुआ, तो उसे वहां पर मेधावी छात्र की छात्रवृत्ति मिलने लगी. अब वह पढ़नेलिखने के लिए मदन पर कतई निर्भर नहीं था.

मदन इस साल इंतजार करता रहा, पर न तो कमल खुद ही आया और न ही उस का फोन आया. अब तो उस के चिट्ठीफोन आने सब बंद हो गए थे. मदन को अब कुछ अवसाद सा रहने लगा.

पर, वह चमेली के धोखे को
याद कर के कमल का यह व्यवहार झेल गया. अब उस को काम करने में आलस आने लगा था, खासतौर पर भोजन पकाने में, इसलिए कुछ सोच कर उस ने घरेलू काम में मदद के लिए एक कामवाली रख ली. वह मदन से कुछ अधिक उम्र की थी, और खाना बनाना, कपड़े धोना वगैरह सब काम करने लगी.

एक दिन खाट पर लेटा मदन सोच रहा था कि आज कमल होता तो 20 बरस का होता. और चमेली… चमेली कहां होगी, यही सोचते हुए वह अचानक खाट से उठ बैठा, तो सामने कामवाली को खड़ा पाया.

वह कामवाली एक गिलास चाय बना कर ले आई थी. मदन की आंख से आंसू बह रहे थे. उस ने नजदीक जा कर वह आंसू अपने आंचल से पोंछ दिए और मदन अचानक ही एकदम भावुक सा हो उठा. उस ने संकेत से कुछ याचना की, फिर दोनों गले लग कर काफी देर तक यों ही बैठे रहे.

मदन बहुत ही कोमल दिल वाला और बड़ा ही भावुक है, यह बात इन 3 महीनों में वह अनुभवी स्त्री भांप गई थी.

अब कुछ सिलसिला यों बनने लगा कि वह कामवाली चमेली के उस कमरे में ले जा कर मदन को कभीकभी सहला दिया करती, तो कभी प्यार से पुचकार देती और कभीकभी मदन के आग्रह पर सारा काम यों ही रहने देती. बस मदन को छाती से चिपटा कर उस का दुखदर्द पी जाती थी. उस दिन भोजन मदन पकाता और एक ही थाली में दोनों थोड़ाथोड़ा खा लेते, पर पूरे तृप्त हो जाते थे.

इसी तरह एक साल और गुजर गया. मदन अब फिर से आनंद में रहने लगा था. गाव वालों की खुसुरफुसुर और ताकझांक चल रही थी. पर, इस से वह न तो कभी घबराया था और न ही आगे डरने वाला था. उस की कामवाली तो अपने खूनपसीने की रोटी खा रही थी. वह किसी अफवाह पर कान तक न देती थी. हर समय मौज में रहती और मदन की मौज में तिल भर कमी न आने देती थी.

एक दिन सुबहसवेरे वह मदन को सहला कर चाय उबाल रही थी कि एक आहट हुई. मदन उठ कर बाहर गया, तो 2 लोग बाहर खड़े थे, एक कमल और गोदी में तकरीबन 2 साल का प्यारा सा बालक.

मदन ने मन ही मन सोचा कि वाह बेटा, नौकरीब्याह सब कर लिया और खबर तक नहीं दी. पर, वह सिर झटक कर अपने विचार बदलने लगा. उस का दयावान मन जाग गया.

मदन को कमल से नाराजगी तो थी, पर नफरत नहीं थी. वह बहुत ही प्यार से उसे भीतर लाया. कमल ने सब रामकहानी सुना दी. वह अफसर हो गया था, पर पत्नी बेवफा निकली. वह किसी रसोइए के साथ भाग गई थी. अब यह नन्हा बालक किस के भरोसे रहेगा, कह कर कमल सुबक उठा.

कुछ देर बाद कमल के हाथों में चाय का गिलास आ गया था और बालक को एक सुंदर पर अधेड़ महिला गोदी में खिला रही थी.

मदन से सौ झूठीसच्ची बातें कर के कमल उसी दिन वापस लौट गया. मदन का जीवन एक बार फिर रौनक से भर उठा था. कितने बरस बीतते गए और बूढ़ा मदन उस बालक को बचपन से किशोरावस्था में जाता देख रहा था. यह बालक तो कमल से कई गुना मेधावी था, पर वह गांव की मिट्टी से बहुत लगाव रखता था. गांव छोड़ना ही नहीं चाहता था. लगभग छप्पन बरस की बूढ़ी हो चली कामवाली अम्मां अब मदन के पास स्थायी रूप से रहने लगी थी.

अब मदन और वो उस बालक का जीवन आधार थे. उन का गांव तो अब बहुत बेहतरीन हो गया था. बहुत सारी सुविधाएं यहां पर थीं. एक दिन मदन अपनी कामवाली के साथ किसी सामाजिक समारोह में गया तो वहां एक फौजी मिला. बातों से बातें निकलीं तो खुलासा हुआ कि वह कमल को जानता था. उस ने कमल की हर काली करतूत बताई और खुलासा किया कि कमल न जाने कितनी औरतें बदल चुका है. वह अफसरों की कमजोर नस का फायदा उठाता है और खुद भी गुलछर्रे उड़ाता है. वह अनैतिक हो चुका है. इतना बुद्धिमान है, पर बहुत ही गलत रास्ते पर है.

मदन चुपचाप सुनता रहा. उस को सुकून मिला कि अच्छा हुआ, जो कमल का बेटा यहां पर नहीं है. सुनता तो कितना परेशान होता.

मदन को इस बात का अंदेशा था क्योंकि कमल ने कभी एक नया पैसा इस बालक के लिए नहीं भेजा, कभी एक फोन तक नहीं किया था.

मदन ने उस फौजी युवक को अपना फोन नंबर दिया और उस का नंबर भी ले लिया.

कुछ सप्ताह और बीत गए. एक दिन सुबहसुबह ही मदन के पास फोन आया कि कमल की किसी रहस्यमयी और अज्ञात बीमारी से अचानक मौत हो गई है.

मदन ने संदेश सुन कर फोन काट दिया. उस ने उस रोज अपना सारा काम उसी तरह से किया जैसे वह पहले किया करता था. बालक भी पाठशाला से लौट कर खापी कर खेलने चला गया. उस दिन मदन की शाम एक सामान्य शाम की तरह गुजरी. मदन ने एक पल को भी कमल का शोक नहीं मनाया. अब कमल और चमेली उस के लिए अजनबी थे.

Suspense Story

Suspense Story: विदेशी बहू- क्या तुषार की मां ने किया स्कारलेट को स्वीकार

Suspense Story: तुषार उन दिनों कोलकाता के मैरीन इंजीनियरिंग कालेज के फाइनल ईयर में था. अंतिम वर्ष में जहाज पर प्रैक्टिकल ट्रेनिंग अनिवार्य होती है. उस की ट्रेनिंग एक औयल टैंकर पर थी. यह जहाज हजारों टन तेल ले कर देश की समुद्री सीमा के अंदर ही एक पोर्ट से दूसरे पोर्ट पर जाता है. जहाज पर यह उस का पहला सफर था. तुषार काफी खुश था. वह सपने देख रहा था कि कुछ ही महीनों में उस की पढ़ाई पूरी होने के बाद विदेश जाने वाले जहाज पर वह समुद्र पार जाएगा.

खैर, उस की पढ़ाई और ट्रेनिंग सब पूरी हो गई थी और उसे मैरीन इंजीनियरिंग की डिगरी भी मिल गई थी. तुषार के पिता की मौत हो चुकी थी. उस की मां उस के बड़े भाई कमल के साथ रहती थीं. कमल तुषार से 5 साल बड़ा था. यों तो उस के पिता ने इतनी संपत्ति छोड़ रखी थी कि मां आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर थीं, फिर भी बुढ़ापे में कुछ गिरते स्वास्थ्य और बेटे से भावनात्मक लगाव के कारण वे कमल के साथ रहती थीं, पर बहू का स्वभाव अच्छा नहीं था. रोजाना सास को खरीखोटी सुनाती रहती थी. तुषार मां से कहता, ‘मैं ऐसी लड़की से शादी करूंगा जो आप को अपनी मां का दर्जा दे.’

एक शिपिंग कंपनी में तुषार को नौकरी मिल गई. शुरू में फिफ्थ इंजीनियर की पोस्ट पर जौइन करना होता है, जो जहाज का सब से जूनियर इंजीनियर होता है. उस की पोस्ंिटग एक नए जहाज पर हुई. वह जहाज जापान से बन कर आया था. जहाज को कोलकाता से कंपनी के हैडक्वार्टर मुंबई ले जाना था. हैडऔफिस ने इस जहाज को मुंबईआस्ट्रेलिया जलमार्ग पर चलाने का फैसला किया था. तुषार की मनोकामना पूरी होने जा रही थी.

आस्ट्रेलिया का सफर, वह भी नए जहाज पर. मेंटिनैंस के लिए ज्यादा माथापच्ची नहीं करनी थी. खैर, उस का जहाज कोलकाता से मुंबई के लिए रवाना हुआ. यह सफर भी किसी विदेश यात्रा से कम नहीं था, पूरे 5 दिन लग गए. भारत के तीनों सागर बंगाल की खाड़ी, हिंद महासागर और अरब सागर पार करते हुए वह मुंबई पहुंचा. भारतीय जलमार्ग पर इन 5 दिनों के सफर में ही उसे अनुभव हुआ कि समुद्री यात्रा कितनी कठिन होती है. जहाज के समुद्री लहरों पर उछलते रहने से कारण उसे अकसर उलटी होती थी.

मुंबई के कार्गो ले कर जहाज कोलंबो पहुंचा. यह तुषार का पहला विदेशी पड़ाव था. कोलंबो से मसाले, चाय आदि ले कर जहाज को सीधे सिडनी जाना था. जब जहाज समुद्र में चल रहा होता, उसे 4-4 घंटे की 2 शिफ्टें रोज करनी होतीं. जब जहाज पोर्ट या लंगर में होता तब 12 घंटे की शिफ्ट होती थी. उस ने अपने सीनियर्स से बात कर सिडनी पोर्ट पर 12 घंटे की डे शिफ्ट सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक की ड्यूटी रखवा ली थी ताकि वह सिडनी की नाइटलाइफ ऐंजौय कर सके.

इस के बारे में उस ने अपने दोस्तों से जानकारी ले रखी थी. खैर, लहरों पर उछलतेकूदते उस का जहाज सिडनी 12वें दिन पहुंचा. पर पोर्ट पर बर्थ खाली नहीं होने से जहाज को पोर्ट से कुछ दूरी पर लंगर डालना पड़ा. रात का समय था. तुषार डेक पर खड़ा हो कर नजारा देख रहा था. दूर से ही उसे सिडनी शहर की बहुमंजिली इमारतें दिख रही थीं. एक ओर विश्वप्रसिद्ध औपेरा हाउस था तो दूसरी तरफ मशहूर सिडनी हार्बर ब्रिज. उस का मन मचल रहा था कि कब लंगर उठे और जहाज को बर्थ मिले. दूसरे दिन दोपहर तक जहाज को पोर्ट पर एंटर करने की अनुमति मिल गई.

जहाज हार्बर ब्रिज के नीचे से गुजर रहा था और तुषार डेक पर खड़ा हो कर इस दृश्य को देख कर रोमांचित हो रहा था. कुछ ही देर बाद जहाज पोर्ट पर था. इस जहाज को सिडनी में एक सप्ताह रुकना था. अब उसे इंतजार था शाम का. जहाज पर डिनर शाम 6 बजे से मिलने लगता है. तुषार ने जल्दी से डिनर लिया और एक अन्य जहाजी के साथ शहर घूमने निकल पड़ा. एक क्लब में गया. दोनों ने बियर ली. 2 लड़कियां बगल की टेबल पर बैठी बातचीत कर रही थीं. तुषार का वह साथी पहले भी कई बार आस्ट्रेलिया आ चुका था, सो, उसे यहां का आइडिया था. उस ने लड़कियों को ड्रिंक औफर कर अपनी टेबल पर बुलाया.

फिर तो लड़कियों ने जम कर बियर पी. काफी देर तक वे डांस करते रहे. बीचबीच में कुछ देर के लिए टेबल पर आते. कुछ देर बैठ कर बातें करते. और बियर पी लेते. फिर डांसफ्लोर पर लड़की की कमर में बांहें डाल कर थिरकते. तुषार को बहुत मजा आ रहा था. यह उस का पहला मौका था गोरी बाला के साथ डांस करने का. रात 11 बजे वह अपने दोस्त के साथ वापस जहाज पर आ गया.

तुषार ने सिडनी की किंग क्रौस रोड की नाइटलाइफ के बारे में काफी सुन रखा था. दूसरे दिन उस ने किंग क्रौस जाने का फैसला किया, उस के सहकर्मी ने बताया कि वहां जा कर स्ट्रिप टीज का मजा लेना. किंग क्रौस पर नाइट शो क्लब काफी हैं. उस से कहा गया कि उस रोड पर पिंक पैंथर नामक क्लब में अच्छा शो होता है.अगले दिन रात को टैक्सी पकड़ ठीक 8 बजे वह पिंक पैंथर जा पहुंचा. वहां 10 डौलर का टिकट लिया और अंदर डांसिंग रैंप के नजदीक वाली कुरसी पर जा बैठा.

यहां वह एक बार के टिकट में ही 2-2 घंटे के स्ट्रिप टीज शोज रातभर देख सकता था. इन 2 घंटों में 12 सुंदरियां एकएक कर आ कर अपने कपड़े उतारतीं और कम से कम वस्त्रों में या कभी बिलकुल नग्न हो कर गाने पर ‘पोल डांस’ भी दिखाती थीं. शो के बीच में बार टैंडर लड़कियां आ कर सिगरेट, बियर आदि बेचतीं. वे गले में पट्टे के सहारे एक टे्र में बियर, सिगरेट आदि बेचतीं. एक ने तुषार से पूछा, ‘‘कुछ चाहिए?’’ तो वह बोला, ‘‘एक स्वान लैगर बियर कैन प्लीज.’’ वह बोली, ‘‘आप को 5 मिनट बाद ला कर देती हूं. अभी मेरी ट्रे में नहीं है.’’ इतना बोल कर वह चली गई पर तुषार उसे देखे जा रहा था.

वह लगभग 18 साल की सुंदरी थी. 5 मिनट बाद उस ने बियर ला कर तुषार को दी और पूछा, ‘‘और कुछ?’’ तुषार बोला, ‘‘और कुछ नहीं, बट…’’ ‘‘बट मतलब?’’ ‘‘तुम इस शो के बाद मेरे साथ कुछ समय बिता सकती हो?’’ धीरे से मुसकरा कर वह बोली, ‘‘आप जो समझ रहे हैं, मैं वह लड़की नहीं हूं. हां, आप को उस टाइप की लड़की चाहिए तो यहां और भी हैं. क्या मैं उन में से एक को बोल दूं?’’ ‘‘अरे नहीं, मैं भी वैसा नहीं जो तुम समझ बैठी. बस, 2-3 घंटे टाइमपास, साथ बैठ कर बातें, डिनर और बियर, इस से ज्यादा कुछ नहीं.’’ ‘‘श्योर?’’ लड़की ने पूछा. तुषार बोला, ‘‘हंड्रैड परसैंट श्योर. तो कल संडे है, शाम को मिलो.’’ ‘‘नहीं, छुट्टी के दिन यहां अच्छी कमाई हो जाती है.

50 डौलर से अधिक टिप्स में मिल जाते हैं. मैं भी बस पार्टटाइम 4 घंटे के लिए आती हूं.’’ तुषार ने कहा, ‘‘ओके, मंडे शाम को. डार्लिंग हार्बर के निकट तुंबलोंग पार्क में मिलो. मैं सिर्फ 5 दिन और यहां हूं. कल शाम भी यहां मिलूंगा, तुम अपना नाम तो बताओ.’’ ‘‘मैं, स्कारलेट,’’ लड़की बोली. ‘‘और मैं तुषार.’’ संडे शाम को तुषार फिर पिंक पैंथर में था. इस बार जान कर वह पीछे की सीट पर बैठा ताकि स्कारलेट से आराम से कुछ बातें कर सके. शो चल रहा था, स्कारलेट आ कर बोली, ‘‘आप का स्वान लैगर बियर?’’ तुषार ने बियर की पेमैंट और टिप दी और कहा, ‘‘दो मिनट मेरे पास रुको न.’’ ‘‘आज काफी भीड़ है. कुछ कमा लेने दो. कल शाम 6 बजे तो मिल ही रहे हैं. 4-5 घंटे आराम से बातें करेंगे दोनों.’’

उस दिन तुषार बस 2 घंटे का एक शो देख कर जहाज पर लौट आया. अगले दिन सोमवार शाम को ठीक 6 बजे तुषार और स्कारलेट पार्क में मिले. तुषार ने पूछा, ‘‘वेल स्कारलेट, तुम पिंक पैंथर जैसी जगह में क्यों काम करती हो?’’ ‘‘मैं अनाथ हूं. मेरे मातापिता दोनों की एक दुर्घटना में मौत हो गई थी. कुछ साल मैं अंकल के साथ रही. उन्हीं के यहां रह कर स्कूलिंग कर रही थी. उन का व्यवहार ठीक नहीं था, तो पिछले साल मैं अलग एक गर्ल्स होस्टल में शिफ्ट हो गई. एक और लड़की के साथ रूम शेयर करती हूं. पिंक पैंथर जैसी जगह पर काम करने के लिए कोई डिगरी या अनुभव नहीं चाहिए.

बस, अपनी इच्छाशक्ति मजबूत होनी चाहिए. पार्टटाइम काम करती हूं. स्कूल का फाइनल ईयर है और अब तुम बताओ अपने बारे में.’’ इतना कुछ वह एकसाथ बोल गई. तुषार ने अपना परिचय देते हुए अपने परिवार के बारे में संक्षेप में बताया. फिर उस ने पूछा, ‘‘पिंक पैंथर्स से तुम्हारा खर्च निकल आता है?’’ ‘‘नहीं. कुछ पैसे पिताजी भी छोड़ गए थे. हालांकि उसी की बदौलत पिछले साल तक मेरा काम चला है. कुछ अंकल ने हड़प लिए. वैसे पिंक पैंथर के अलावा सुबह 2 घंटे एक घर में मेड का भी काम करती हूं. दोनों मिला कर काम चल जाता है.’’ तुषार और स्कारलेट दोनों कुछ देर बातें करते रहे. फिर एक इंडियन रैस्टोरैंट में दोनों ने डिनर किया. स्कारलेट ने पहली बार इंडियन खाना खाया था.

उसे यह बहुत अच्छा लगा. तुषार ने पूछा, ‘‘ड्रिंक करती हो?’’ वह बोली, ‘‘सिर्फ बियर. और कुछ नहीं.’’ ‘‘अच्छा संयोग है. मैं भी सिर्फ बियर ही लेता हूं.’’ रैस्टोरैंट से निकल कर उस ने 2 बियर कैन लिए. एक स्कारलेट को दे दिया. दोनों ने अपनीअपनी बियर पी. तब तक रात के 10 बज चुके थे. तुषार ने टैक्सी बुलाईर् और कहा, ‘‘मैं तुम्हें होस्टल छोड़ते हुए जहाज पर चला जाऊंगा.’’ रास्ते में उस ने स्कारलेट से कल का प्रोग्राम पूछा तो वह बोली, ‘‘तुम ने औपेरा हाउस देखा है?’’ ‘‘हां, बाहर से देखा है. वैसे मुझे थिएटर में रुचि नहीं है.’’ ‘‘तो फिर कल तुम्हें हार्बर आईलैंड घुमा लाती हूं.’’ ‘‘मेरी डे शिफ्ट है. अपने मित्र से म्यूचुअल चेंज करने की कोशिश करता हूं. अगर चेंज हो गया तो तुम्हें फोन करूंगा.’’

स्कारलेट को होस्टल छोड़ कर वह पोर्ट चला आया. फिर अपने दोस्त से शिफ्ट म्यूचुअल चेंज कर फटाफट स्कारलेट को खबर दे दी. उस ने तुषार को सर्कुलर के फेरी स्टेशन के टिकट काउंटर पर सुबह 9 बजे मिलने बुलाया. अगले दिन दोनों फेरी पकड़ कर सागर के बीच में आईलैंड गए. वहां शहर की भीड़भाड़ से दूर आईलैंड पर तुषार को काफी अच्छा लगा. वहां से सिडनी शहर, हार्बर ब्रिज, औपेरा हाउस सब दिख रहे थे. दिनभर सैरसपाटे, गपशप करते 4 बजे तक वे वापस आ गए. फेरी स्टेशन पर कौफी सिप करते हुए तुषार बोला, ‘‘मेरा शिप परसों इंडिया के लिए रवाना हो जाएगा.’’ वह बोली, ‘‘ओह, रियली. अभी तो हम ठीक से मिले भी नहीं और इतनी जल्दी जुदाई. विल मिस यू स्वीट गाई.’’ ‘‘आई टू विल मिस यू. खैर, कल कहां मिलोगी?’’ स्कारलेट बोली, ‘‘वहीं पिंक पैंथर में.’’ ‘‘मुझे रोजरोज वहां अच्छा नहीं लगता है. तुम उस नौकरी को छोड़ नहीं सकतीं? मुझे अच्छा नहीं लगता है.’’ ‘‘कोशिश करूंगी, पर तुम्हें क्यों बुरा लगता है. मैं न तो तुम्हारी गर्लफ्रैंड हूं और न ही वाइफ.’’

तुषार बोला, ‘‘पर क्या पता, आगे बन जाओ.’’ ‘‘यू नौटी बौय,’’ कह कर स्कारलेट उस से लिपट गई. दूसरे दिन दोनों थोड़ी देर के लिए उसी क्लब के बाहर मिले. तुषार अंदर नहीं जाना चाहता था. तुषार ने बताया कि कल सुबह 10 बजे उस का शिप भारत रवाना हो रहा है. अगले दिन वह सुबह 9 बजे शिप पर मिलने आई. थोड़ी देर दोनों साथ रहे. तुषार ने अपने पैंट्री से कुछ इंडियन स्नैक्स, बियर कैन्स और चौकलेट्स पहले से मंगवा कर पैक करा रखे थे. उन्हें स्कारलेट को दिया. दोनों ने फोन और ईमेल से कौंटैक्ट में रहने की बात की. स्कारलेट बोली, ‘‘फिर कब मिलोगे?’’ तुषार बोला, ‘‘कुछ कह नहीं सकता. पर अगर इसी शिप पर रहा तो 3-4 महीने बाद फिर आना हो सकता है.’’

इस बार तुषार ने स्कारलेट को गले से लगा लिया. उस ने आंसूभरी आंखों से तुषार को विदा किया. जहाज सिडनी हार्बर छोड़ चुका था. तुषार वापसी में कुछ और देशों के बंदरगाह होते हुए मुंबई पहुंचा. वहां उसे बताया गया कि 3 महीने बाद फिर उसे सिडनी जाना होगा. वह खुश हुआ यह सोच कर कि फिर स्कारलेट से मिल सकेगा. तुषार ने एक हफ्ते की छुट्टी ली. मां से मिलने कोलकाता गया. उस ने अपनी भाभी को स्कारलेट के बारे में बताया और उस की काफी तारीफ की, पर उन्हें उस की नौकरी की बात नहीं बताई. भाभी ने व्यंग्य करते हुए सास से कहा, ‘‘देवरजी, विदेशी बहू ला रहे हैं आप के लिए.’’ मां बोलीं, ‘‘तुषार जिस में खुश, मैं उसी में खुश.’’ तुषार के भैया कमल भी वहीं थे.

वे भी मां की बात से सहमत थे. पर तुषार बोला, ‘‘अभी तक ऐसा कुछ भी नहीं है. बस, 4-5 दिनों की मुलाकात थी.’’ 3 महीने बाद तुषार का शिप फिर सिडनी पोर्ट पहुंचा. उस ने स्कारलेट को सूचित कर दिया था. उस ने फोन पर पूछा, ‘‘कहां मिलोगी, वहीं पिंक पैंथर में?’’ वह बोली, ‘‘नहीं, एक महीने पहले मैं ने वह नौकरी छोड़ दी है. अब एक ट्रैवल एजेंट के यहां रिसैप्शनिस्ट हूं और उसी होस्टल में रहती हूं पर अब सिंगल रूम में रहती हूं.’’ ‘‘ठीक है, शाम को मिलते हैं.’’ इस बार भी करीब एक हफ्ते तक उसे सिडनी रुकना था. दोनों रोज शाम को 3-4 घंटे साथ बिताते. कभी स्कारलेट ही उस से मिलने शिप पर आ जाती. अब दोनों पहले से ज्यादा करीब आ चुके थे. लगभग डेढ़ साल तक तुषार इसी तरह हर 3-4 महीने बाद स्कारलेट से मिलता. दोनों में अब प्यार हो गया था.

इस बात को दोनों ने स्वीकार भी किया. एक बार जब तुषार स्कारलेट को होस्टल ड्रौप कर पोर्ट लौट रहा था, उस की टैक्सी का ऐक्सिडैंट हो गया. तुषार के दाएं पैर में काफी चोट आई थी. इस के अलावा और भी चोटें आई थीं. पुलिस ने उसे अस्पताल में भरती कर शिप के कैप्टन और भारतीय कौंसुलेट को सूचित कर दिया था. तुषार ने स्कारलेट को भी खबर करवाई. स्कारलेट तुरंत अस्पताल पहुंच गई. तुषार के शिप से भी एक अफसर आया था. उस के दाएं पैर में मल्टीपल फ्रैक्चर थे. डाक्टर ने बताया कि उस के ठीक होने में लगभग 3 महीने लग सकते हैं.

उस के बाद भी जहाज के इंजनरूम में शायद काम करना उस के लिए सुरक्षित न हो. शिपिंग कंपनी ने तुषार के घर वालों को भी खबर भेज दी. उस की मां बहुत घबराई थी. उस ने बेटे से फोन पर बात की. शिप के अफसर ने उन्हें बताया कि चिंता की बात नहीं. कंपनी उन के बेटे का पूरा इलाज करा रही है. डाक्टर ने बताया कि कम से कम प्लास्टर कटने तक तुषार को अस्पताल में ही रहना पड़ेगा. स्कारलेट अब रोज शाम को तुषार से मिलने आती. विजिटिंग औवर्स तक उस के पास बैठी रहती. वीकैंड में वह 2 बार मिलने आती. अकसर इंडियन रैस्टोरैंट से कुछ देशी खाना भी उस के लिए लाती. अब उन का प्रेम और गहरा हो गया था. बीचबीच में स्कारलेट अपने फोन से ही तुषार की मां उस की बात करा देती.

3 हफ्ते बाद तुषार का प्लास्टर कटा. एक्सरे के बाद डाक्टर ने बताया कि अभी उस की हड्डी ठीक से नहीं जुड़ी है. दोबारा 3 हफ्ते के लिए प्लास्टर बांधना होगा. इसी बीच तुषार की मां ने बताया कि अब वे ओल्डएज होम में रह रही हैं. बहू की रोजरोज खिचखिच से तंग आ कर बेटे ने मां को वहां शिफ्ट कर दिया था. यह जान कर स्कारलेट को भी दुख हुआ. उस ने तो सुन रखा था कि इंडिया में रिश्तों की काफी अहमियत है. तुषार का प्लास्टर कटा. डाक्टर ने कहा कि अब वह घर जा सकता है. पर अगले एक महीने तक थेरैपी लेनी होगी और सावधानी से छड़ी के सहारे चलना होगा.

तुषार ने मां को स्कारलेट के बारे में बताया कि 2 महीने से वही उस की देखभाल कर रही थी. मां ने स्कारलेट को शुभकामनाएं दीं और पूछा कि क्या वह तुषार की जीवनसंगिनी बनेगी. इस पर स्कारलेट ने मां से कहा, ‘‘मुझे तो कभी परिवार के साथ रहने का अवसर ही नहीं मिला है. अगर आप और तुषार चाहें तो मैं आप की छोटी बहू बन कर गर्व महसूस करूंगी.’’ तुषार ने स्कारलेट को गले लगा कर उस के गाल को प्यार से चूम लिया.

इधर शिपिंग कंपनी ने तुषार की पोस्ंिटग कोलकाता के ही एक कारखाने में कर दी. वहां उसे जहाज के कलपुरजों की मेंटिनैंस का काम देखना होगा और मैरीन छात्रों की ट्रेनिंग भी देखनी होगी. तुषार और शिपिंग कंपनी ने मिल कर कौंसुलेट से स्कारलेट के वीसा का प्रबंध किया. दोनों कोलकाता आए. कंपनी ने तुषार के लिए एक फ्लैट का इंतजाम कर दिया था. सब से पहले तुषार और स्कारलेट दोनों ओल्डएज होम जा कर मां को घर ले आए. बंगाली विधि से दोनों की शादी हुई. तुषार की मां अपनी विदेशी बहू से संतुष्ट है.

Suspense Story

Family Kahani: जाना पहचाना- क्या था प्रतिभा के सासससुर का अतीत ?

Family Kahani: ‘उन की निगाहों में जाने कितने ही रंग समाए हैं….
पर हर रंग में मुझे अपना ही अक्स नजर आता है….’
अमर ने एकटक प्रतिभा को देखते हुए कहा तो वह हंस पड़ी.

“चलो आज तुम्हें अपने पैरंट्स से मिलवा दूं.” अमर ने प्रतिभा का हाथ थाम कर फिर से कहा. प्रतिभा खुशी से चीख पड़ी,
” सच”
उस के चेहरे पर शर्म की लाली बिखर गई.

माहौल में और भी रंग भरते हुए अमर ने कहा, “सोचता हूं लगे हाथ उन से हमारी शादी का दिन भी तय करवा लूं.”

प्रतिभा ने हौले से पलकें उठाते हुए कहा,” सीधे शब्दों में कहो न कि तुम मुझे प्रपोज कर रहे हो. इतने निराले अंदाज में तो कभी किसी ने प्रपोज नहीं किया होगा.”

प्रतिभा की बात सुन कर अमर हंस पड़ा फिर गंभीर होता हुआ बोला,” सच प्रतिभा बहुत प्यार करने लगा हूं तुम्हें और तुम से जुदा हो कर जीने की बात सोच भी नहीं सकता. इसलिए चाहता हूं जल्द से जल्द हमारे रिश्ते को घर वालों की भी स्वीकृति मिल जाए. ”

“जरूर मिल जाएगी स्वीकृति. तुम बताओ कब चलना है?”

“कल कैसा रहेगा? एक्चुअली कल सटरडे है. सुबह निकलेंगे तो शाम से पहले ही लखनऊ पहुंच जाएंगे. फिर संडे वापस दिल्ली.”

“वेरी गुड. मैं इंडियन ड्रैस पहन कर चलूंगी ताकि तुम्हारे पेरेंट्स को एक नजर में पसंद आ जाऊं. ” कह कर उस ने अपना सिर अमर के कंधों पर टिका दिया.

अमर और प्रतिभा एक ही ऑफिस में पिछले 4 सालों से साथ काम करते आ रहे हैं. प्रतिभा पटना की है और दिल्ली में पढ़ाई के साथ पार्टटाइम जॉब करती है. इधर अमर भी लखनऊ से अपने सपनों को पूरा करने दिल्ली आया हुआ है. दोनों इतने दिनों से साथ हैं. एकदूसरे को पसंद भी करते हैं. पर आज पहली दफा अमर ने साफ तौर पर प्रतिभा से दिल की बात कही थी. दोनों के दिल सुनहरे सपनों की दुनिया में खो गए थे.

अगले दिन सुबहसुबह ट्रेन थी. प्रतिभा ने एक सुंदर हल्के नीले रंग का फ्रॉकसूट पहना. उस पर गुलाबी रंग का काम किया हुआ दुपट्टा लिया. माथे पर नीले रंग की बिंदी लगाई. होठों पर हल्का गुलाबी लिपस्टिक लगा कर बालों को खुले छोड़ दिए. हाई हील्स पहन कर जब वह अमर के सामने आई तो वह आहें भरता हुआ बोला,” आज तो महताब जमीन पर उतर आया है…..  साथसाथ चलेगी रोशनी सारी रात …. ”

“मिस्टर शायर, आप कहें तो हम प्रस्थान करें?” मुसकुरा कर प्रतिभा ने कहा और दोनों एकदूसरे का हाथ पकड़े आगे बढ़ गए.

पूरे रास्ते दोनों भावी जीवन के सपने देखते रहे. घर पहुंच कर अमर ने बेल बजाई तो प्रतिभा का दिल धड़क उठा. वह पहली बार अपनी भावी सासससुर से मिलने वाली थी. दरवाजा अमर की मां ने खोला. पीछे से उस के पिता भी आ गए. प्रतिभा ने जल्दी से दुपट्टा सिर पर रख कर सासससुर के पैर छूए और आशीर्वाद लिया. सास ने उसे गले से लगा लिया और प्यार से अंदर ले आई.

इधर प्रतिभा इस बात को ले कर चकित थी कि पहली बार मिलने के बावजूद उसे अमर के मातापिता का चेहरा जाना पहचाना सा लग रहा था. वह असमंजस की स्थिति में थी. थोड़ी देर की बातचीत के बाद आखिरकार उस ने अपने मन की बात बोल ही दी.

इस पर अमर के पिता एकदम हड़बड़ा से गए. मगर जल्द ही संभलते हुए बोले,” देखा होगा बेटी तुम ने कहीं आतेजाते.”

फिर बात बदलते हुए पूछने लगे,” तुम पटना में कहां रहती हो?”

जी कंकरबाग में. ”

जवाब दे कर प्रतिभा ने फिर सवाल किया,” पर अंकल आप दोनों तो लखनऊ में रहते हो और मैं दिल्ली में. आप कभी अमर से मिलने दिल्ली आए भी नहीं हो. फिर मैं ने आप दोनों को कहां देखा होगा?”

अमर की मां ने बात बात संभालने की कोशिश की और बोली,” बेटी एक जैसे चेहरे वाले भी बहुत से लोग होते हैं. वह सब छोड़ और यह बता कि तुझे पसंद क्या है वही बना देती हूं.”

प्रतिभा तुरंत उठ गई और बोली,” अरे आंटी आप बैठो मैं बनाती हूं न.”

इस के बाद प्रतिभा ने कोई सवाल नहीं किया. खातेपीते और बातें करते कब रात हो गई पता ही नहीं चला. सास ने प्रतिभा को अपने कमरे में सोने के लिए बुला लिया. प्रतिभा ने टेबल पर रखी तस्वीरें देखते हुए पूछा,” आंटी जी अपनी पुरानी तस्वीरें दिखाइए न और आप दोनों की शादी की तस्वीर भी.”

“अरे बेटी अब पुरानी तस्वीरें कौन निकाले. अंदर कहीं संदूक में पड़ी होगी और वैसे भी हम ने कोर्ट मैरिज की थी.”

“कोर्ट मैरिज, क्या बात है आंटी. उस जमाने में आप ने कोर्ट मैरिज कर ली.”

“अब चल सो जा प्रतिभा. पुरानी बातें याद करने से क्या फायदा?” कह कर सास करवट बदल कर सो गई. इधर प्रतिभा सोच में डूबी रही.

अगले दिन दोनों दिल्ली के लिए वापस रवाना हो गए. प्रतिभा के मन में अभी भी कुछ उलझनें थी मगर अमर बहुत खुश था. प्रतिभा को ले कर उस के मांबाप का रिस्पांस पॉजिटिव जो था. प्रतिभा ने अपने मन की बात अमर को नहीं बताई. वह उस की खुशी में कोई बाधा पहुंचाना जो नहीं चाहती थी.

दिल्ली पहुंच कर प्रतिभा ने नेट पर खोजखबर निकालने की कोशिश की. मगर कुछ पता नहीं चला. फिर उस ने अमर के मांबाप के साथ अपनी फोटो अपने पैरेंट्स को शेयर की और लिखा,” यह फोटो मेरे सब से अच्छे दोस्त के मम्मीपापा की है. उन से पहली बार मिलने के बावजूद उन का चेहरा जानापहचाना सा लगा. क्या आप इन्हें पहचानते हैं?

प्रतिभा के पिता ने जवाब दिया,”चेहरे पहचाने से लगते हैं पर याद नहीं आता कि कौन है.”

जवाब पढ़ कर प्रतिभा चुप रह गई. धीरेधीरे यह बात उस के दिलोदिमाग से उतरती गई.

कुछ दिन बाद गर्मी की छुट्टियों में प्रतिभा ने अपने घर पटना जाने की तैयारियां शुरू कर दी. पटना जाने को ले कर वह उत्साहित थी मगर अमर से बिछड़ने के अहसास से मन भारी भी हो रहा था. किसी तरह अमर से विदा ले कर वह ट्रेन में बैठ गई. सारे रास्ते वह अमर और अपने रिश्ते को ले कर सोचती रही. अब वह अमर के बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकती थी. पिछले कुछ दिनों में अमर उस के दिल के बहुत करीब आ गया था.

पटना जंक्शन पर उतरते ही उस का दिमाग दिल्ली के गलियारों को भूल कर पटना की सड़कों पर आ टिका. अपने घर के आगे रुकते ही पुराना समय आंखों के आगे नाचने लगा जब स्कूल में पढ़ने वाली प्रतिभा अपने घरआंगन को गुलजार रखती थी. वह मम्मीपापा की इकलौती लाडली बिटिया जो थी. दरवाजा खोलते ही मां ने उसे गले से लगा लिया.

अपने कमरे का दरवाजा खोलते ही पुरानी यादों के साये फिर से उस के मन को छूने लगे.  बैग एक कोने में पटक कर वह बिस्तर पर लुढ़क गई. 2 दिन प्रतिभा ने जम कर आराम किया और मम्मीपापा को अपनी नई जिंदगी से जुड़े किस्से सुनाए. तीसरे दिन वह थोड़ी एक्टिव हुई और घर की सफाई करने लगी. सफाई के दौरान उसे जाले लगी एक पुरानी तस्वीर दिखी. तस्वीर करीब 30 -35 साल पहले की थी जब उस के मम्मीपापा कॉलेज में थे. जाले पोंछ कर प्रतिभा ध्यान से तस्वीर देखने लगी कि अचानक उसे तस्वीर में अमर के पिता दिखाई दिए हालांकि वे काफी बदले हुए नजर आ रहे थे मगर वह उन का चेहरा एक नजर में ही पहचान गई थी.

बगल में ही उसे अमर की मां भी दिख गई. प्रतिभा को अब सारी बात समझ आने लगी थी कि क्यों उसे उन दोनों के चेहरे जानेपहचाने लग रहे थे. बचपन में उस ने कई बार वह फोटो बहुत ध्यान से देखी थी. पर उसे अब तक यह समझ नहीं आया था कि उस के मम्मीपापा ने अमर के पैरंट्स की फोटो पहचानी क्यों नहीं जबकि वे कॉलेज में साथ थे.

काफी देर तक प्रतिभा यही सब सोचती रही. तभी उसे सरला काकी का ख्याल आया. उस के परिवार के साथ उन का रिश्ता बहुत पुराना था. प्रतिभा ने अपने साथ वह तस्वीर भी ले ली. सरला आंटी का बेटा सुजय उस का बचपन का साथी था.

सरला काकी ने उसे देखते ही गले से लगा लिया. कुछ देर बैठने के बाद प्रतिभा ने वह तस्वीर निकाली और काकी को दिखाई. काकी तुरंत तस्वीर पहचान गई. तब प्रतिभा ने अमर के पैरंट्स की तस्वीर दिखाई जिस में वह भी थी. इस तस्वीर को देख कर काकी चौंकी और फिर बोलीं,” अरे तुम मुकुंद और सुधा से कब मिली? वे दोनों कैसे हैं बेटा?”

“आप जानती हैं इन्हें?”

“हां मेरी बच्ची. वे तस्वीर दिखा अपने पापा वाली. उस में भी तो वे दोनों खड़े हैं न.”

“पर मम्मीपापा ने तो इन्हें पहचाना नहीं.”

प्रतिभा की बात सुन कर काकी थोड़ी गंभीर हो गई फिर बोली,” कैसे पहचानेंगे? उस का घर जो जलाया था तेरे पापा ने.”

“घर जलाया था पर क्यों काकी?”

“क्योंकि उस वक्त तेरे पापा की बुद्धि मारी गई थी. सरपंच के इशारों पर चलते थे. सरपंच ने आदेश दिया था कि उन की बिरादरी का लड़का एक दलित लड़की से शादी नहीं कर सकता. सुधा दलित थी न. सरपंच ने लठैतों को भेजा उन का घर जलाने को. बस तेरे पापा भी निकल लिए साथ. यह भी नहीं सोचा कि अपने दोस्त का घर जलाने जा रहे हैैं. उस की आंख तो तब खुली जब उन का पुश्तैनी घर पूरी तरह जलाने के बाद सरपंच के लड़कों ने मुकुंद के बूढ़ेमां बाप को भी मार डाला. छोटी बहन को घर में जिंदा जला दिया. यह सब देख कर तेरे बाप की रूह कांप उठी और उस ने उसी दिन से सरपंच का साथ पूरी तरह छोड़ दिया. इधर मुकुंद और सुधा किसी तरह अपनी जान बचा कर कहीं भाग गए. वे कहां गए, उन के साथ क्या हुआ यह कोई नहीं जानता.”

प्रतिभा चुपचाप काकी से यह बीती कहानी सुनती रही. उस की आंखों के आगे अब सब कुछ स्पष्ट हो चुका था.

“क्या आप मुझे उन का जला हुआ घर दिखा सकती हो?”

“बेटा उन का पुश्तैनी घर तो सालों पहले खंडहर में तब्दील हो चुका है और आज तक खंडहर ही है. कोई नहीं जाता उधर. तू कहती है तो मैं सुजय को भेजती हूं तेरे साथ.”

प्रतिभा सुजय के साथ उस खंडहरनुमा घर को देखने पहुंची. टूटीजली इमारतें, खाली पड़े आधेअधूरे कमरे, दरकी हुई दीवारें, दम घोंटता वीरानापन, सब चीखचीख कर उस स्याह काली रात का दर्द बयां करते दिखे. प्रतिभा ने मोबाइल से तसवीरें खींचीं. एकएक जगह जा कर उस दर्द को महसूस किया. फिर अपने घर लौट आई.

दिल्ली आ कर वह अमर के पिता से मिली और भरी आंखों से उन्हें धन्यवाद कहा तो उन्होंने चौंकते हुए प्रतिभा की ओर देखा.

प्रतिभा ने कहा,” अंकल मैं पटना के कंकड़बाग में उसी मोहल्ले में रहती हूं जहां कभी आप दोनों भी…… इतनी मुसीबतें आने के बाद भी आप ने आंटी का साथ नहीं छोड़ा. अपने प्यार को निभाया. इतनी हिम्मत दिखाई. यू आर ग्रेट अंकल …. ”

उस की बातें सुन कर अमर के पिता की आँखें भर आई. वे समझ गए थे कि जो राज उन्होंने बेटे से भी छुपाया वह सब बहू जान चुकी है. अमर के पिता ने प्रतिभा के सर पर आशीर्वाद का हाथ रखा और फिर हौले से मुस्कुरा दिए.

प्रतिभा ने फैसला कर लिया था कि अब वह जल्द ही अमर से शादी कर लेगी मगर अपने पिता को इस शादी में नहीं बुलाएंगी. अमर से भी सच्चाई छिपा कर रखेगी. इस बीच मम्मी ने फोन पर बताया कि अगले सप्ताह पापा का कैटरैक्ट का ऑपरेशन होने वाला है.

यह सुन कर उस ने अमर से बात की और उसे कोर्ट मैरिज के लिए तैयार कर लिया. कुछ खास लोगों की उपस्थिति में कोर्ट मैरिज कर के आर्य समाजी तरीके से शादी करना तय हुआ. प्रतिभा ने जानबूझ कर शादी की तारीख 15 दिन बाद की रखवाई जब उस के पापा का ऑपरेशन हो चुका हो और उस की शादी में केवल उस की मम्मी ही आ सकें.

शादी वाले दिन प्रतिभा की मम्मी ने अमर की मम्मी को देखा तो खुद को रोक नहीं सकी और सुधा कह कर एकदम से उन के गले लग गई. 30 साल पुरानी सहेलियां जो मिली थी. अमर के पिता भी प्रतिभा की मम्मी को देख कर चकित थे. तीनों भीगी पलकों से पुराने दिन याद करने लगे.

नियत समय पर शादी भी हो गई. सारा कार्यक्रम अच्छी तरह निबट गया.

प्रतिभा की मम्मी अब घर लौटने वाली थी. ट्रेन में बैठने से पहले उन्होंने प्रतिभा को गले लगाया और रोती हुई बोली,” बेटा मैं समझ गई हूँ कि तूने ऐसा इंतजाम क्यों किया ताकि केवल मुझे ही शादी में बुलाना पड़े. देख बेटा तेरे पापा के हाथों तेरे सासससुर के साथ गलत हुआ था मैं यह मानती हूं. मगर उसी दिन से तेरे पापा बिल्कुल बदल भी गए और उन्हें अपने किए पर बहुत पछतावा भी है. मुझ से शादी होने के बाद उन्हें प्यार की गहराई का एहसास भी हो चुका है. जानती है मैं जब आ रही थी तो तेरे पापा ने क्या कहा था?”

“क्या कहा था मम्मी ?”

“उन्होंने कहा, ‘मुझे लग रहा है मेरी बच्ची मेरा पाप धोने वाली है. वह उसी दलित लड़की के बेटे से शादी करने वाली है जिन के परिवार को मेरी आंखों के आगे मार दिया गया और मैं ने कोई विरोध भी नहीं किया. मैं सालों से यह दर्द और पछतावा दिल में लिए जी रहा था. मेरी बच्ची उन से रिश्ता जोड़ कर मेरी जिंदगी का दर्द थोड़ा कम कर देगी.”

“सच मम्मी, पापा सब कुछ समझ गए?” प्रतिभा की आंखें भर आईं.

“हां बेटा और वे तुझ से बात कर के आशीर्वाद देने की हिम्मत ही नहीं जुटा पा रहे थे. उन्हें लगता है कि तू उन्हें माफ नहीं कर पाएगी.”

“ऐसा नहीं है मम्मी. पापा को कहना हम जिंदगी की नई शुरुआत करेंगे.” कह कर उस ने मम्मी को गले से लगा लिया.

उस की आंखों में खुशी के आंसू थे.

Family Kahani

Hindi Drama Story: असली नकली- अलका ने अपना कौन सा रंग दिखाया ?

Hindi Drama Story: दिनेश जब थकामांदा औफिस से घर पहुंचा तो घर में बिलकुल अंधेरा था. उस ने दरवाजे पर दस्तक दी. नौकर ने आ कर दरवाजा खोला. दिनेश ने पूछा, ‘‘मैडम बाहर गई हैं क्या?’’ ‘‘नहीं, अंदर हैं.’’

सोने के कमरे में प्रवेश करते ही उस ने बिजली का स्विच दबा कर जला दिया. पूरे कमरे में रोशनी फैल गई. दिनेश ने देखा, अलका बिस्तर पर औंधी लेटी हुई है. टाई की गांठ को ढीला करते हुए वह बोला, ‘‘अरे, पूरे घर में अंधेरा कर के किस का मातम मना रही हो?’’ अलका कुछ न बोली.

‘‘सोई हुई हो क्या?’’ दिनेश ने पास जा कर पुकारा. फिर भी कोई उत्तर न पा कर उस ने अलका के माथे पर हलके से हाथ रखा. ‘‘अलका.’’

‘‘मत छुओ मुझे, आप प्यार का ढोंग करते हैं, आप को मुझ से जरा भी प्यार नहीं.’’

‘‘ओह,’’ दिनेश मुसकराया, ‘‘अरे, यह बात है. मैं ने तो सोचा कि…’’ ‘‘कि अलका मर गई. अगर ऐसा होता तो आप के लिए अच्छा होता,’’ अलका रो रही थी.

‘‘अरे, तुम तो रो रही हो. मैं पूछता हूं तुम्हें यह प्रमाणपत्र किस ने दे दिया कि मैं तुम्हें प्यार नहीं करता?’’ अलका तेवर चढ़ा कर बोली, ‘‘प्रमाणपत्र की क्या आवश्यकता है? मैं इतनी नासमझ तो नहीं. मुझे सब पता है.’’

‘‘ओहो, आज अचानक तुम्हें क्या हो गया है जो इस तरह बरस पड़ीं?’’ अलका आंसू पोंछती हुई बोली, ‘‘आज मैं लेडीज क्लब गई थी, तो…’’ अलका फिर रोने लगी.

दिनेश ने पूछा, ‘‘तो?’’ ‘‘क्लब में सब महिलाएं बता रही थीं कि उन के पति को उन से कितना प्रेम है और मैं…’’ अलका फिर सिसकने लगी थी.

दिनेश बड़ा परेशान था. आखिर लेडीज क्लब के साथ पति के प्यार का क्या संबंध है? दिनेश को कुछ समझ नहीं आ रहा था. अलका रोतेरोते बोली, ‘‘शकुंतला बता रही थी कि उस के पति को उस से इतना प्रेम है कि वह हर महीने कुछ न कुछ उपहार ला कर जरूर देता है. पिछले महीने उस को सोने का एक सैट उपहार में मिला और कल एक बहुत महंगी कांजीवरम की साड़ी मिली है. सरला बता रही थी कि उसे उस के पति ने जड़ाऊ सैट दिया और एक दूसरे सैट के लिए और्डर दिया है. उमा बता रही थी कि उसे हीरे का…’’

‘‘अरे बस भी करो, मुझे जरा सांस तो लेने दो.’’ ‘‘हां, हां, ये सब बातें आप को क्यों भाएंगी? आप को क्या मालूम मैं अपने दिल पर पत्थर रखे कैसे मुंह छिपाए बैठी थी. मुझे तो आप ने कभी कुछ नहीं दिया,’’ अलका जोरजोर से रोने लगी.

‘‘अरे अलका, तुम तो सचमुच बच्चों जैसी बातें करती हो. भला प्यार की नापतौल सोने और हीरे से की जाती है? प्यार तो दिल में होता है, पगली.’’

अलका झुंझला कर बोली, ‘‘उमा का पति आप से कितना जूनियर है, सरला का आदमी भी तो आप से जूनियर है. जब आप के जूनियर अफसर अपनी पत्नियों को हीरेजवाहरात का सैट दे सकते हैं, तो आप क्यों नहीं दे सकते? इस का मतलब तो यही है कि आप को मुझ से जरा भी…’’ अलका फिर से आंसू बहाने लगी. ‘‘अलका, मैं जानता हूं ये लोग अपनी पत्नियों को कैसे भेंट देते हैं, मगर मैं उस रास्ते पर नहीं जाना चाहता. अलका, तुम यह सोचो, हमें जो तनख्वाह मिलती है, उस में से घर का किराया दे कर, नौकरचाकर रख कर, अच्छी तरह खापी कर इस महंगाई के दिनों में कितने रुपए बचते हैं? जो थोड़ाबहुत बचता है, उस से हर महीने महंगीमहंगी चीजें खरीद कर लाना असंभव है,’’ दिनेश समझाने की कोशिश कर रहा था.

‘‘मुझे किसी भी तरह वह हीरे का सैट चाहिए,’’ अलका चिल्लाती हुई बोली. ‘‘असंभव,’’ दिनेश रुकरुक कर बोला, ‘‘मैं सचाई के रास्ते पर चलता हूं. मुझे गलत रास्ते पसंद नहीं. रिश्वत लेना मैं गलत समझता हूं. अगर वे गलत तरीके से रुपए कमाते हैं, तो कमाने दो. मगर मैं अपने रास्ते से नहीं हटूंगा. तुम यह अच्छी तरह समझ लो.’’ दिनेश उत्तेजना से हांफ रहा था.

‘‘यही आप का अंतिम निर्णय है?’’ अलका गरजती हुई बोली. ‘‘हां.’’

‘‘तो आप भी जान लीजिए, मुझे जब तक जड़ाऊ सैट नहीं मिलेगा, मैं पानी भी नहीं पिऊंगी.’’ ‘‘अरे भई, यह क्या बचपना है. सुनो तो…’’

मगर कौन सुनने वाला था. अलका पैर पटकती हुई दूसरे कमरे में चली गई और उस ने दरवाजा बंद कर लिया. उस रात न तो अलका ने और न दिनेश ही ने खाना खाया. दिनेश बहुत परेशान था. वह सोच रहा था, ‘जो जिद अलका कर रही है, उसे निभाना उस के लिए असंभव है. तो क्या करे वह? वह अलका की जिद से भलीभांति परिचित था. तो क्या सचमुच अलका भूखहड़ताल कर के अपनी जान दे देगी?’ सोचतेसोचते न जाने कब उस की आंख लग गई. सुबह वह अलका से बोला, ‘‘अलका, हमारी शादी की वर्षगांठ

15 दिनों बाद है न?’’ अलका ने झट मुंह फेर लिया.

‘‘ओह, तुम बोलोगी भी नहीं. अरे, मैं मान गया तुम्हारी शर्त. 15 दिनों बाद देखना मैं तुम्हें क्या उपहार देता हूं,’’ दिनेश खुश नजर आ रहा था. ‘‘क्या?’’ अलका ने अस्फुट स्वर में पूछा.

‘‘मैं तुम्हें एक शानदार सैट उपहार में दूंगा,’’ दिनेश बोला. ‘‘सच?’’

‘‘हां सच,’’ दिनेश बोला, ‘‘और सुनो, हमारी शादी की सालगिरह पर जिनजिन को बुलाना है, उन की एक लिस्ट बना लो.’’ ‘‘ओह, आप कितने अच्छे हैं,’’ खुशी से अलका की आंखें चमक उठीं.

आखिर शादी की सालगिरह का दिन आ गया. अलका उस दिन खूब सजधज कर तैयार हुई. वह मन ही मन बोली, ‘अब मैं सब को दिखा दूंगी, मेरा पति मुझे कितना प्यार करता है. सरला, उमा हर कोई मन ही मन जलेंगी.’

एकएक कर के मेहमानों से घर भरने लगा. चारों ओर से बधाइयां आ रही थीं. अलका ‘बहुतबहुत शुक्रिया’ कह कर सब का स्वागत कर रही थी. उधर, दिनेश भी मेहमानों की खातिरदारी में जुटा हुआ था. अचानक दिनेश ने अलका को बुलाया, ‘‘अरे, सुनो, तुम्हारा इन से परिचय करा दूं,’’ और एक बड़ी उम्र के व्यक्ति की ओर इशारा कर के बोला, ‘‘ये हैं मिस्टर हंसराज. मेरे बौस.’’ ‘‘नमस्ते,’’ अलका ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘नमस्ते,’’ मिस्टर हंसराज बोले, ‘‘अरे, मिसेज दिनेश, आप ने तो इतनी भारी पार्टी दे डाली. बहुत अच्छा बंदोबस्त किया है आप ने.’’ ‘‘जी,’’ अलका कुछ शरमाती हुई बोली.

मिस्टर हंसराज खाना खा रहे थे और खातेखाते अलका से गपशप कर रहे थे. ‘‘सच, दिनेश इतना होनहार और ईमानदार है कि बस पूछिए मत. उस ने तो हमारी कंपनी की आय चौगुनी कर दी. पिछले 20 वर्षों के रिकौर्ड में शायद इतना नफा कभी नहीं हुआ. मेरा बस चले तो ईमानदारी के लिए दिनेश को पद्मश्री का खिताब दिलवा दूं.’’ कह कर मिस्टर हंसराज हंसने लगे. ‘‘’अलका, वह सदा इसी तरह ईमानदारी से काम करता रहा तो मैं बताए देता हूं एक दिन वह…’

वे बात को पूरी न कर पाए. अलका के गले में कुछ अटक गया था. वह खांस रही थी. खांसतेखांसते उस का चेहरा बिलकुल लाल हो गया था. तभी दिनेश भी वहां पहुंच गया और अलका की पीठ को जोरजोर से मलने लगा. अलका ने एक लंबी सांस ली और पूरा गिलास पानी पी गई. गले में अटका भोजन का टुकड़ा नीचे उतर गया था. आंख और मुंह को पोंछती हुई वह फिर खाने का कांटा और छूरी इस प्रकार चलाने लगी जैसे किसी के दिल की चीड़फाड़ कर रही हो. मिस्टर हंसराज तो पहले ही अपनी बातूनी आदत के लिए विख्यात थे. वे कब चुप रहने वाले थे. वे बहुतकुछ बोलते जा रहे थे, मगर अलका के दिमाग में कुछ भी नहीं घुस रहा था. वे कह रहे थे, ‘‘बात यह है कि दिनेश के प्रति मेरी एक दुर्बलता है…आज अगर मेरा इकलौता पुत्र राजीव जिंदा रहता तो ठीक इसी उम्र का होता. खैर, अरे देखिए, हम भी खाते ही रह गए. सब ने तो खा भी लिया. अगर और ज्यादा देर इधर बैठे रहे तो लोग सोचेंगे, पार्टी का सारा खाना बूढ़ा खा गया.’’ और वे ठहाका मार कर हंसने लगे.

मगर अलका को न जाने क्या होता जा रहा था. उस का दम घुटने लगा. अलका, जो कुछ देर पहले खुशी से फूली नहीं समा रही थी, अब बिलकुल उदास लग रही थी.

सब मेहमानों को विदा कर के रात को जब अलका अपने कमरे में आई तो देखा दिनेश सामने खड़ा मुसकरा रहा है. हंसते हुए उस ने पूछा, ‘‘कहो, कैसी रही? मैं ने कहा था न बहुत शानदार पार्टी दूंगा. अब बोलो, तुम्हारे दिल में अब तो कोई शक नहीं कि…अरे, अलका, तुम रो क्यों रही हो? तुम्हें क्या हुआ? कुछ बोलो तो.’’ अलका दोनों हाथों से अपने गले को पकड़े थी, जैसे उस का दम घुट रहा हो. दिनेश ने प्यार से कहा, ‘‘अलका, क्या तुम्हें…’’ अलका से अब खड़ा नहीं हुआ जा रहा था. वह दिनेश से लिपट कर फूटफूट कर रोने लगी. और बोली, ‘‘मुझे यह हार काट रहा है. मेरा दम घुट रहा है. मेरी खुशी के लिए तुम ने घूस ली. तुम्हारे बौस को तुम पर कितना विश्वास है, उन की कितनी उच्च धारणाएं हैं तुम्हारे लिए, पर जब उन्हें मालूम होगा कि तुम बेईमान हो, घूसखोर हो तो…’’ अलका का रोना रुक नहीं रहा था.

‘‘मैं ने ही तुम्हें घूस लेने के लिए विवश किया, मैं ने ही तुम्हें गलत रास्ते की ओर पैर बढ़ाने को मजबूर किया. मैं ने बहुत बड़ा गलत काम किया है.’’ ‘‘मगर यह बात अब तुम्हारे दिमाग में किस तरह आई?’’

‘‘जब तुम्हारे बौस यह कह रहे थे कि तुम कितने ईमानदार हो तो मेरे दिल में एक तीर सा चुभ रहा था.’’ ‘‘मगर अलका, तुम्हें किस ने कहा है कि मैं ने यह पार्टी घूस के पैसों से दी?’’

‘‘वाह, आप ही ने तो कहा था कि जो तनख्वाह आप को मिलती है उस में इतनी खरीदारी नहीं कर सकते. उमा बता रही थी कि उस ने भी बिलकुल ऐसा ही सैट 2 लाख रुपए में लिया था और ऊपर से इतनी शानदार पार्टी. यह सब घूस के पैसे के बिना असंभव है. मुझे ये गहने काटे जा रहे हैं. मुझे नहीं चाहिए, नहीं चाहिए…’’

दिनेश अलका की बात सुन कर ठहाका मार कर हंसने लगा, ‘‘पागल, मैं यों दूसरी औरतों की बातों में नहीं आने वाला. अपनी आंखों से आंसू पोंछ डालो.’’

‘‘क्या?’’ अलका आश्चर्य से दिनेश का मुंह देखने लगी. ‘‘अरे, इस जड़ाऊ सैट का दाम केवल 3 हजार रुपए है.’’

‘‘क्या?’’ अलका ने अविश्वास से दिनेश की ओर देखा. ‘‘हां, यह कोई असली थोड़े ही है, यह तो नकली है. मैं ने सोचा, साल में 2 या 3 बार पहनने के लिए ये नकली गहने ही ठीक हैं. क्या फायदा सोने के उन जेवरों का जो चोरों के भय से बैंक के लौकर में पड़े रहते हैं.’’ ‘‘सच, मगर पार्टी में तो बहुत पैसे निकल गए, उस का पैसा कहां से मिला.’’

दिनेश झट से बोला, ‘‘तुम्हारी सोने की करधनी गिरवी रख कर.’’

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