Love Story: बेबाकी से कहूंगी नवल भैया मुझे अच्छे लगते हैं. भैया सभी कहते हैं उन्हें, इसलिए मुझे भी कभीकभी कहना पड़ जाता है. वैसे वे यहां किसी के भैया नहीं लगते.
नवल और उन के पिताजी का सोनेचांदी और हीरों का बहुत बड़ा शोरूम है यहां रायपुर शहर में.
मुझ सहित गोल्ड विभाग में 10 कर्मचारी हैं, चांदी का ऊपरी मंजिल पर और हीरों का व्यापार तीसरी मंजिल पर है. हरेक मंजिल में 10-10 कर्मचारी हैं. नवल और उन के पिताजी नीचे यानी सोना विभाग में गल्ले पर रहते हैं लेकिन नवल ऊपरनीचे आतेजाते रहते हैं.
हमारे मैनेजर हैं शशांक भैया जो शायद नवल भैया के कोई दूर के रिश्तेदार हैं, बाकी और भी 2 मैनेजर हैं अलगअलग विभाग में. इन के अलावा गार्ड आदि अलग से हैं ही.
2 साल पहले नवल की जब 28 साल की उम्र में शादी हुई तब मेरी उम्र 20 की थी और मु झे यहां नौकरी जौइन किए बस 6 महीने ही हुए थे. सभी कर्मचारी नवल की शादी में गए थे. मैं भी गई थी जितना संभव हुआ सजीधजी. एकमात्र लहंगा जो मेरे पास था उसे पहन. तब नवल को देख कर मैं दिल हार गई थी.
पहले भी देखा करती थी, अच्छे तो लगते ही थे लेकिन शादी के वक्त उन की स्मार्टनैस और बौडी पर नजर गई तो मैं मन ही मन चारों खाने चित हो गई.
नवल की बीवी पाकिस्तान के सिंध प्रांत से थी. गोरी तो खूब थी लेकिन 6 फुट के नवल के साथ खड़ी 5 फुट की उन की बीवी दिव्या काफी ठिगनी लग रही थी. मन ही मन पता नहीं क्यों मैं ने अपना भी आकलन कर लिया.
5 फुट 7 इंच की हाइट मेरी, गोरा रंग, सुंदर और हीरे कट के चेहरे पर खूबसूरत आंखें और तीखी नाक. बस कमी थी तो अच्छे कपड़ों और पैसे की.
नवल भी बड़े अच्छे दिखते थे. रंग तो उन का सामान्य से साफ था लेकिन उन की घनी सी दाढ़ीमूंछ और सिर पर घने बाल उन्हें परफैक्ट मैन लुक देते थे.
शौप में काम करते हुए मेरे अब 2 साल होने को थे. नवल की हम कर्मचारियों से बातें न के बराबर ही थीं, शशांक सर ही हमें सब काम बताते, ऐसे भी हम लड़कियों का काम ग्राहकों को सामान दिखाना था. मैं काम के बीच में कभीकभी नवल को सिर उठा कर देख लेती.
क्या ही करूं. उन्हें भुला दूं तो मेरी जिंदगी का यह नि र्झर तो सूख जाए. बाकी रखा ही क्या था मेरी जिंदगी में… मारपीट और गालियां. सौतेली मां और स्वार्थी उपद्रवी बाप के साए में पले हम 3 भाईबहन बड़ी मुश्किल से बड़े हुए थे. दरअसल, बड़े हुए ही थे यह सोचसोच कर कि कब हम बड़े होंगे, कब हमें इन लोगों से मुक्ति मिलेगी.
रायपुर के पास भाटापारा में हमारा घर था. ट्रेन से एक घंटे की दूरी थी. रायपुर से भाटापारा रोजाना लगभग 40 लोकल ट्रेनें चलती हैं. किसी तरह 12वीं कर के मैं सालभर से नौकरी की तलाश में थी. 2 सौतेले भाईबहन थे, जो हम से हमेशा ही जलेभुने रहते, इसलिए उन से हमारा कोई संबंध नहीं था. हमारी अपनी मां तो हमारे बचपन में ही गुजर चुकी थीं. मेरे 2 सगे बड़े भाई थे जो 2 साल पहले ही मुंबई भाग गए थे और अब वे वहीं सोने की दुकान पर नौकरी करते थे.
उन्होंने ही मु झे यह नौकरी बताई थी और तब से मैं घर से रायपुर की इस शौप तक ट्रेन से आनाजाना करती थी. घर पहुंचने तक मु झे रात के 10 बज जाते और घर में आधी तनख्वाह दे देने के बावजूद मु झे गंदी गालियां खूब सुननी पड़तीं. मैं इस मुसीबतभरी जिंदगी से तंग आ चुकी थी और आजादी से रहना चाहती थी.
मैं ने नवल की दुकान के आसपास ही पीजी देखना शुरू किया लेकिन आड़े आ रही थी मेरी कम पगार. 10 हजार की तनख्वाह में मैं 4-5 हजार भी दे देती हूं तो मेरा नुकसान ही दिखता था. मैं ने कुछ सोच कर अपनी परेशानी शशांक सर से कही. उन से कहा कि अगर नवल सर की पहचान से पीजी मिल जाए और पैसे कुछ कम हो सकें तो उन की बड़ी कृपा होगी. शशांक सर भले व्यक्ति थे, उन्होंने मेरी बात नवल तक पहुंचा दी.
अगले दिन जब सब चले गए और 2-3 स्टाफ ही दुकान बंद करने के लिए रह गए तो एक किनारे नवल सर ने एक कुरसी में बैठेबैठे शशांक सर को मु झे बुलाने को कहा.
मैं नवल के सामने खड़ी थी, और वे मु झे गौर से देख रहे थे. मैं ने उन का अभिवादन किया तो उन्होंने नर्मी से मुसकरा कर मेरा अभिवादन स्वीकार किया. मेरा सारा शरीर थरथर कांप गया.
जिसे सालभर से अकेली रात को पलकों में बैठा कर नींद के आगोश में जाया करती, जिन्हें सोच कर जिंदगी की मुश्किलों को भुलाया करती आज उन के सामने उन से बातें करने को खड़ी थी.
बहुत जल्दी नवल ने मेरी समस्या हल कर दी. उन के एक दोस्त का पीजी चलता
था. उन्होंने वहां एक बैड और 2 वक्त के खाने का इंतजाम कर दिया. मेरे लिए और महीने के 4 हजार भी वे शौप से देने को तैयार थे. मैं तो पिघल सी गई, बंदा सिर्फ सूरत का ही नहीं, सीरत का भी हीरा है.
नवल ने कहा, ‘‘स्टेशन जाना है न? चलो मैं छोड़ देता हूं तुम्हें स्टेशन, फिर घर चला जाऊंगा.’’
अकसर नवल के पिताजी शाम 7 बजे तक ड्राइवर के साथ अपनी कार में घर चले जाते थे. हम सब कर्मचारी करीब शाम के 8 बजे के बाद धीरेधीरे निकलते थे, नवल, मैनेजर और 2 कर्मचारी रात 9 बजे दुकान बंद करते थे.
नवल खुद ही अपनी कार ड्राइव कर घर जाते. आज मैं उन की बगल वाली सीट पर बैठी थी. आज मेरे लिए सबकुछ खास था और मैं मन ही मन बस काश, काश. कहती अपनी कल्पनाओं में रंग भरे जा रही थी. जानती थी, मेरे मन की बातें कोरी ही रह जाएंगी और नवल मु झे स्टेशन छोड़ निकल जाएंगे.
अचानक नवल ने कहा, ‘‘इतनी खूबसूरत लड़की और इतनी तकलीफें वह भी मेरे रहते.’’
‘‘सर,’’ मैं अचंभित सी बोल पड़ी.
‘‘क्या सर? कुछ और बोलो?’’
‘‘जी, क्या बोलूं?’’
क्यों मैं तुम्हारी जगह होता तो कहता, ‘‘फिर आप ही तकलीफ दूर कर दें.’’
‘‘सर,’’ मैं बेहद शरमा गई थी.
उन्होंने बेतकल्लुफी से कहा, ‘‘इतना सरसर करोगी तो मैं सिर पकड़ लूंगा. दुकान में ठीक है बाहर नवल कहोगी.’’
‘‘सर आप की पत्नी?’’
‘‘बस. हो गया न? सही जा रही हो. अटक गई न और लड़कियों की तरह. ज्यादातर वह मायके में ही रहती है यानी सिंध चली जाती है या फिर दिल्ली, जयपुर नागपुर, अपने रिश्तेदारों के घर. मां मेरी कब की गुजर गई हैं. पापा भी शौप में ही रहते हैं. कामवालियों के भरोसे घर रहता है. उस की जिम्मेदारी में कोई दिलचस्पी भी नहीं रही कभी. हमारी अरेंज्ड मैरिज है. जब तक पास रहेगी नहीं, प्यार भी कहां से पैदा होगा. देखो अब स्टेशन पहुंचने वाले हैं लेकिन मैं कुछ कहना चाहता था तुम से.’’
‘‘कहिए.’’
‘‘क्यों न आज हम लोग खूब गप्पें करें, तुम कुछ मेरी सुनो, मैं कुछ तुम्हारी सुनूं. क्या कहती हो? एक छोटी सी पार्टी भी हो जाए तुम्हारे पीजी मिलने की खुशी में. ठीक है?’’
‘‘पर चलें कहां? आज तो आखिरी ट्रेन से पहुंचूंगी तो गालियों से मेरी आरती हो जाएगी.‘‘
‘‘भई जब मैं हूं तो तुम्हें क्या फिक्र. आज के बाद तुम्हे अपने घर में रहने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी. मु झ पर छोड़ो और जोर से सांस लो. तुम आंखें बंद कर के बैठो, देखो हम अभी पहुंचते हैं वहां जहां हमारी आज की रात बेहद खूबसूरत बन जाएगी.’’
कुछ देर बाद हम एक आलीशान होटल के बड़े शानदार कमरे में थे. इतनी सुविधा
तो मैं ने कभी देखी ही नहीं थी. इतना लाजवाब खाना मैं ने कभी नहीं चखा था. विभोर सी मैं धीरेधीरे नवल की रंगीनी में उतरती चली गई.
भोर 5 बजे मेरी नींद खुली तो अपने मोहे गए बदन के अनावृत रूप पर मैं वारीवारी जा रही थी. यह ख्वाबों की दुनिया थी और मैं जाग कर अपने ख्वाबों को जी रही थी.
इस दौर के बाद अब जबकि नवल मु झ से लिपटा सोया था, मु झ में इतनी हिम्मत आ गई थी कि मैं उस से खुद ही रोमानी हो सकूं.
‘‘नवल कहीं आप मु झे छोड़ तो न दोगे? देखो, आप की बीवी आप से प्यार करती तो क्या वह आप को इतना अकेला छोड़ती?’’
मेरे होंठों को चूमते हुए नवल ने कहा, ‘‘अरे पगली तुम घबराओ मत. अगर मैं तुम्हें इतने करीब से नहीं देखता तो जान ही नहीं पाता कि एक लड़की इतनी भी सुंदर हो सकती है. मैं दिव्या को छोड़ दूंगा, तुम्हें नहीं.’’
तय यह हुआ कि हम यहां से निकलें तो नवल शौप जाए और मैं घर अपना सामान बांधने.
मु झे लौट कर फिर इसी होटल आना था. नवल 4 दिन के लिए सभी को मुंबई जाने की कह कर मेरे साथ चुपचाप इसी होटल में रुक गया. उस ने यहीं से मेरे पीजी में रहना कैंसिल कर दिया था क्योंकि वह मु झे फ्लैट में रखना चाहता था, जहां वह आजादी से मेरे साथ रातें गुजार सके.
क्या दिन, क्या रात हम एकदूसरे में खोते चले गए बेसुध से. इसी बीच नवल ने मेरे रहने के लिए एक 8 हजार किराए वाला एक कमरे का फ्लैट ले लिया, जहां वह बीच बीच में आ कर मेरे साथ रह सके.
एक दिन मेरे फ्लैट में वह मेरे लिए 4 बढि़या सी ड्रैसेज और सोने की अंगूठी ले कर
आया. इतना कुछ देख मैं सुखद आश्चर्य में थी.
नवल ने कहा, ‘‘रूप की रानी रूहानी के लिए मेरी ओर से छोटी सी भेंट. अब तक तुम्हें कुछ दिया नहीं मैं ने.’’
मैं ने कहा, ‘‘क्यों 8 हजार किराए वाला फ्लैट तो दिलवा दिया न.’’
‘‘अरे वह तो ठीक है, हमारे मिलने के लिए कोई सुरक्षित जगह भी चाहिए थी.’’
मैं सम झ गई थी कभीकभी गरीब के पास रूप की दौलत हो तो वह बाकी खुशियां भी अपनी ओर खींच लेता है.
शौप में हम दोनों पहले की तरह ही रहते. शशांक को हमारे बारे में कुछकुछ पता था लेकिन वह मौन ही रहेगा, इस बारे में हम निश्चिंत थे. मगर कभीकभी ऐसा लगता कि कुछ लड़कियां मु झे भांपने की कोशिश करती हैं.
मैं छुट्टी के बाद पहले शौप से निकल कर स्टेशन के लिए औटो पकड़ती थी. अब जहां फ्लैट है, वहां के लिए औटो लेती. हो सकता है छुट्टी के वक्त जब सारे लोग दुकान से बाहर निकल कर अपनेअपने घर की ओर रवाना होते हैं, तब किसी ने मु झे औटो वाले से बात करते सुना हो.
फिर भी मैं उन लोगों के मन को पढ़ने की कोशिश भी नहीं करती. मैं अपनी जिंदगी में आए बदलाव को ले कर नई उमंग से भरी थी. हां, कुछ चिंताओं से भी.
नवल की पत्नी का इधरउधर घूमना तो अब भी जारी था लेकिन नवल अब रात को मेरे पास रुकता नहीं था. चोरीछिपे 9 बजे आ कर रात 11 बजे निकल जाता.
नवल उस रात आया तो मु झ से लिपट गया. फिर कुछ शांत हुआ तो लेट कर छत को देखते हुए बोला, ‘‘एक दिक्कत जो आने वाली थी आ गई है.’’
मैं ने थोड़ा अशांत हो कर पूछा, ‘‘दिव्या?’’
‘‘हां, उसे मु झ पर शक हो गया है. 10 दिन में दिल्ली जाने वाली थी. अब उस फ्लाइट को कैंसिल कर दिया है. कहीं नहीं जाएगी. शादी के बाद कुछ दिन तक वह या तो मायके या फिर रिश्तेदारों के घर भागती रही, अब जब मैं ने अपनी राह ढूंढ़ ली है वह मेरी पहरेदारी में बैठेगी. घर की जिम्मेदारी नहीं उठाएगी. तब उसे घर में सारा दिन अच्छा नहीं लगता था लेकिन अब शक हुआ तो होश आ गया.’’
मैं अब नवल से पूरी तरह खुल गई थी. मैं उस से कस कर लिपट गई. मायूस हो कर कहा, ‘‘नवल, अब मैं तुम्हें नहीं छोड़ सकती. वह तुम से प्यार नहीं करती. वह सिर्फ अपना हक पाने के लिए तुम्हें अपने कब्जे में रखना चाहती है. वह तुम्हें नहीं, अपनी शादीशुदा जिंदगी से प्यार करती है… नवल कुछ तो कहो.’’
‘‘रूही, तुम सही कहती हो. मैं उसे तलाक के लिए राजी करूंगा.’’
इस के बाद से हम ने सोचना शुरू किया कि कैसे दिव्या को तलाक के लिए राजी किया जाए.
नवल से मु झे पता चला कि वह दिव्या के खाने या फिर चाय में ऐसी एक दवा मिला रहा था जो उस में थोड़ी नींद को बढ़ा दे, वह नवल को ले कर ज्यादा सोचविचार कर के अपने रिश्तेदारों को नवल के बारे में खबर न दे सके. यह इंतजाम उस ने अपनी एक बहुत पुरानी खाना बनाने वाली बाई के साथ मिल कर किया था. उसे सोने की चूडि़यां गिफ्ट में दीं और उस की पगार भी बढ़ा दी.
इस से हुआ यह कि दिव्या 9 बजे तक सो जाती और नवल के घर आने का उसे पता
नहीं चलता. लेकिन बात इतनी आसान भी नहीं थी. दिव्या के घर वाले जब उसे 10 बजे फोन करते वह हमेशा सोई मिलती. बात चर्चा में आ गई और उस के घर वाले उसे देखने आ गए. इस तरह तहकीकात करते देख कामवाली ने हाथ खींच लिए और नवल को साफ मना कर दिया कि चाहे वह सोने की चूडि़यां वापस ले ले लेकिन वह नहीं दे सकेगी दिव्या को दवाई.
नवल ने उस की मजबूरी पर इस बात को यहीं खत्म कर दिया.
हम ने तय किया कि नवल दिव्या को सीधे तलाक के लिए राजी कर ले. अगर तलाक होने की शुरुआत हो जाए तो धीरेधीरे हम शादी के लिए भी तैयार हो सकें.
नवल ने उस से इस बारे में कुछ इस तरह बातें कीं और मु झे इस बातचीत की औडियो रिकौर्डिंग सुनाई.
कुछ ऐसी थी उन की बातें…
नवल ने कहा, ‘‘दिव्या तुम महीने के ज्यादा दिन अपने रिश्तेदारों के घर घूमती रहती हो तो शादी क्यों की?’’
‘‘अरे घर में कोई होता नहीं, मैं अकेली कितना रहूं. फिर मेरी चाची, मामी, दीदी के घर अकसर कथा और गुरुजी के अनुष्ठान होते रहते हैं, सारी औरतें प्रवचन सुनने को जमा होती है तो मैं क्यों पीछे रहूं?’’
‘‘सुनो दिव्या, तुम्हें अगर गुरु और उन के प्रवचनों में ही ज्यादा रुचि है तो मु झे छोड़ दो. तलाक ले लो, फिर जहां जाना हो जाओ.’’
‘‘अच्छा. मु झे सब मालूम चल रहा है कि कहीं तुम्हारे गुलछर्रे उड़ रहे हैं, इसलिए मु झे भगाया जा रहा है. रुको अपने घर वालों को बुलवाती हूं.’’
‘‘मै नहीं रहूंगा तुम्हारे साथ, तलाक लोगी कि नहीं?’’ नवल ने चिढ़ कर कहा.
‘‘अब कहीं नहीं जाऊंगी, बस नहीं दूंगी तलाक. बदनामी होगी मेरी.’’
इस बातचीत को सुन कर मैं काफी निराश हो गई. उधर शायद दिव्या ने अपने घर वालों को कुछ बताया था, उस के घर वालों ने नवल से मिल कर दोनों के बीच सम झौते की भी कोशिश की.
ऐसी स्थितियां बन गई थीं कि नवल और मेरे एक होने की कोई सूरत नहीं थी, हम दबाव में इसलिए भी थे कि अगर हमारे बारे में जरा भी खबर बाहर आई तो दिव्या हमारे रिश्ते पर और पहरेदारी बैठाएगी और मैं हो जाऊंगी बाहर.
रात जब नवल और मैं एकदूसरे के करीब आए तो नवल ने मेरे कानों में कुछ कहा
और मैं ने डरतेसहमते इस में हामी भरी.
नवल ने अब ऐसा कुछ करने की ठानी थी कि लाठी भी न टूटे और सांप भी मर जाए.
नवल ने अब मेरे पास आना बंद कर दिया था. हमारे अफेयर के बारे में लोगों को शक हो, यह हम बिलकुल नहीं चाहते थे. इस से मु झे नौकरी से निकाल देने का दबाव भी नवल पर बन सकता था, मेरी रोजी छिन जाए इस वक्त हम यह भी नहीं चाहते थे. दूसरे फ्लैट का किराया नवल और उस के पापा के बिजनैस अकाउंट से आता था, उस पर भी तहकीकात हो जाए तो भी मुश्किल थी.
नवल तो सोशल मीडिया के पब्लिक प्लेटफौर्म में भी मेरे साथ नहीं जुड़ा था ताकि हमारा रिश्ता बिलकुल छिपा रहे.
नवल अब ज्यादा से ज्यादा वक्त दिव्या के साथ बिताने के लिए उस के साथ शौपिंग आदि कर रहा था. उसे दुकान पर गहने दिखाने लाया था और उसे कुछ गहने दिलाए थे. नवल ने मु झे शौप पर आने को मना किया था इस दिन और मैं उस के पहले दिन से ही तबीयत खराब का बहाना बना कर घर पर रुक गई थी. दरअसल, नवल नहीं चाहता था कि दिव्या मु झे देख कर कुछ भांपने की कोशिश करे. सभी लोगों ने देखा नवल अपनी बीवी को कितना मानसम्मान दे कर उसे प्यार से गहने दिला रहा है.
दिव्या को अब नवल में पूरा विश्वास हो आया था. उस का शक निकल गया था. सामान्य स्त्रियां अपने प्यार को परखने के लिए उपहार को माध्यम बना लेती हैं. पुरुषों के लिए स्त्रियों को उपहार देना सिर्फ प्रेम की ही अभिव्यक्ति नहीं होती, कई बार अपने स्वार्थपूर्ति का भी माध्यम हो सकता है.
खैर, नवल ने दिव्या से कहा, ‘‘जानू, तुम्हें शौपिंग पसंद आई न? हम ने 4 दिन साथ में बढि़या समय बिताया. बताओ, क्या ही अच्छा होता कि हम कहीं रोमानी स्पौट में घूमने चले जाते. है न?’’
दिव्या को खुश कर देने वाली बात थी. उस ने खुशी से अपना सामान बांधा और वे घूमने निकल गए.
मैं अब सामान्य तौर पर काम पर आ रही थी और कुछ भी न जानने का बहाना बना रही थी.
यद्यपि एक प्यार करने वाली लड़की को अपने प्रेमी का किसी और स्त्री के साथ रातदिन घूमनाफिरना कितना बुरा लग सकता है, यह ऐसा नहीं था कि मैं महसूस न कर सकती थी. लेकिन दिल को तसल्ली थी कि भले ही वह किसी और के साथ वक्त बिता रहा है लेकिन वह सब मेरे लिए कर रहा है.
नवल बता कर गया था कि वे छत्तीसगढ़ के सारे वाटर रोल घूमेंगे और उस के बाद की सारी घटनाएं मु झे नवल के वापस आने के बाद पता चलीं क्योंकि हम ने तय किया था कि हम फोन पर बातचीत नहीं करेंगे. हम नहीं चाहते थे कि किसी भी घटना को प्रेम का तीसरा ऐंगल मिले. प्रेम का पहला ऐंगल है मिलन, दूसरा ऐंगल है विच्छेद और प्रेम का तीसरा ऐंगल है वह, जो हम नहीं चाहते.
दिव्या और नवल एक हैप्पी कपल की तरह घूमफिर रहे थे. वे चित्रकोट वाटरफाल भी गए, नवल ने फाल का अच्छी तरह मुआयना किया और उसे यही फाल दूसरे सभी फाल से अधिक भयानक लगा. इस के किनारों से उफनती जलधारा गहरी नदी में लगातार हाई करंट के साथ गिरती और नदी तेज गति से बहती जा रही थी.
इस के किनारे काफी फिसलन भरे थे और लोगों के चलने का समतल जगह से ही अचानक घने गहरे प्रपात की शुरुआत होती थी. एक जरा सी चूक जिंदगी खत्म कर सकती थी.
नवल यहां से बहुत जल्द ही दिव्या को वापस ले आया. दिव्या ने कई बार थोड़ी देर यहां और रुकने की जिद की ताकि वह अच्छी तरह जगह को देख सके लेकिन नवल ने उस की नहीं सुनी.
ये सारे वाटर फाल ऐसी जगह थे जो शाम 5 बजे के बाद सुनसान हो जाती. गहरे जंगल से भरे होने के कारण दुकानदार भी अपनी दुकानें बंद कर के घर चले जाते.
चित्रकोट में फाल के साथ लगा बड़ा शिव मंदिर भी था, लेकिन यह भी शाम का अंधियारा गहराते खाली हो जाता.बारिश का मौसम अभी भी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ था, इसलिए रात की गहनता को उफनती जलधारा और भी ज्यादा डरावनी बनाती थी.
आज थोड़ी देर इधरउधर घूम कर नवल दिव्या के साथ दोपहर से पहले ही होटल आ गया और दिव्या को पता था कि वे लोग दूसरे दिन रायपुर चले आएंगे.
शाम 3 बजे से दिव्या ने नवल को उठाना शुरू किया ताकि वे चित्रकोट फाल को अच्छी तरह घूम कर देख सकें और वहां से कुछ लोकल चीजें खरीद सकें क्योंकि नवल ने पिछले दिन इस जगह को उसे अच्छी तरह घूम कर देखने नहीं दिया था.
नवल ने आलसआलस में शाम के 6 बजा दिए और फिर किसी तरह दिव्या को तैयार होने को कहा. निकलते वक्त दिव्या ने नवल को टोका कि नवल ने घिसे हुए जूते क्यों पहने. नवल ने उसे चुप होने का इशारा किया. दोनों जब तैयार हो कर निकले तो शाम के 7 बज चुके थे और दिव्या होटल से निकलते वक्त देर करने के लिए नवल को चार बातें सुना रही थी, जिन्हें होटल के रिसैप्शन वालों ने भी सुना और नवल ने यह गौर किया.
इन के होटल से वह फाल करीब 2 किलोमीटर की दूरी पर होगा. नवल ने पैदल ही वहां तक जाने की बात ठान ली.
जब वे वहां पहुंचे तो एकमात्र छोटी सी बाती मंदिर में जल रही थी, बाकी घना अंधेरा था.
कोई वहां नहीं, कोई कैमरा नहीं ही. सुनसान जनहीन इलाके में बस जल प्रपात की रौद्र गरजन.
नवल भी कांप गया, लेकिन मन को सख्त किया. अभी नहीं तो कभी नही. फिर उस के जीवन का नया सुख, नई मस्ती खत्म हो जाएगी. फिर इसी बोरिंग, स्वार्थी, सामान्य शक्ल वाली अनगढ़ बदन की दिव्या के साथ ताउम्र.
नवल ने खुद के दिमाग पर एक बार भरोसा किया और दिव्या का हाथ पकड़ा, थोड़ाथोड़ा करते फोटो खींचने और यादें संजोने के बहाने उसे मंदिर के पीछे सुनसान अंधेरे प्रपात के किनारे ले जा कर नीचे गहरी नदी में जोर का धक्का दे दिया.
पीछे मुड़ कर देखा भी नहीं और दिव्या की चीखों को पीछे छोड़ वह दनदनाता अंधेरे में गुम हो गया.
रिसैप्शन वालों ने उसे अकेले लौटते देख पूछा, ‘‘मैडम कहां?’’
‘‘अरे घूमने के नाम पर पागलपन चढ़ा है उसे. कल रायपुर वापसी है. कहा, आज रैस्ट करते हैं, नहीं सुना. अब बाहर जा कर भी कहीं लंबी दूरी तक घूमने की जिद कर रही थी. मैं गुस्सा कर के आ गया. उसे बोला वापस चलो तो उस ने कहा, ‘‘तुम जाओ. मैं आ जाऊंगी.’’
वे लोग कपल की मीठीमीठी नोक झोंक की बात पर मुसकरा पड़े. अपने होटल के कमरे में आ कर उस ने शराब पी. बोतल को वहीं किनारे छोड़ वह सो गया.
सुबह उठा और खुद को कुछ अस्तव्यस्त दिखाता हुआ वह नीचे रिसैप्शन में गया.
रिसैप्शन वालों की ड्यूटी बदल गई थी. रात वाले लोग ड्यूटी खत्म कर जा चुके थे. फिर भी उन्होंने नवल की पत्नी के रात वापस न आने की बात सुन पुलिस को सूचना दी.
पुलिस आई और नवल ने बयान दर्ज कराया.
‘‘मै अपनी पत्नी दिव्या के साथ हफ्तेभर से घूम ही रहा था. उसे सारे स्पौट दिखा चुका था और कल दोपहर से आराम करना चाह रहा था क्योंकि आज हमें वापस रायपुर जाना था. लेकिन मेरी पत्नी बारबार घूमने जाने की जिद कर रही थी, किसी तरह मन मसोस कर मैं उठा और सोचा थोड़ी दूर उस के साथ पैदल चलते हुए नजारा देखेंगे, फिर होटल वापस आएंगे. लेकिन मेरी पत्नी लगातार मु झ से झगड़ती जा रही थी. आप शाम के रिसैप्शन वालों से पूछना. वह अभी 2 दिन यहां और रुक कर घूमना चाहती थी, जबकि मेरी दुकान और बिजनैस से मै इतनी लंबी छुट्टी ले चुका था कि शौप से मु झे लगातार फोन आ रहे थे. तो शाम को कुछ देर चलते हुए जब उस के झगड़े नहीं रुके तो मैं झल्ला कर होटल की तरफ मुड़ गया और उस से भी वापस चलने को कहा. उस ने मु झ से गुस्से में कहा कि तुम जाओ, मैं खुद भी आ सकती हूं. मैं गुस्से में लौट आया और आते ही खुद के गुस्से को शांत करने के लिए शराब पी ली. लेट गया और सोचा थोड़ी देर में वह भी आ ही जाएगी.
सोचा था, आधे घंटे तक नहीं आई तो फोन लगा लूंगा, लेकिन इतना थका था कि
कब नींद लग गई पता ही नहीं चला. अभी सुबह उसे कहीं नहीं पाया तो… कब तक मिल जाएगी सर. मु झे अब रायपुर भी जाना है. मेरे पिताजी बेचारे बड़े दिनों से अकेले हैं, दुकान का सारा काम मैं कर्मचारियों को दे आया हूं.’’
पुलिस ने नवल का अच्छी तरह मुआयना किया और कहा, ‘‘कल आप जिन जूतों को पहनकर दिव्या के साथ शाम को निकले थे उन्हें निकालिए, हमें देखने हैं.’’
‘‘जी सर अभी लाया.’’
नवल ने उन हवाई चप्पलों को रात को बहुत अच्छी तरह साफ कर लिया था और उन का नीचे का हिस्सा पूरी तरह ऐसे भी घिसा हुआ था.
पुलिस ने चप्पलें देख कर एकदूसरे से कहा, ‘‘इन्हें देख कर कुछ पता नहीं चल सकता.’’
नवल से कहा, ‘‘आप पुलिस स्टेशन चल कर हमारे अधिकारी के पास मिसिंग रिपोर्ट दर्ज कराएं. हम उन्हें ढूंढ़ेंगे.’’
नवल ने रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद अधिकारी से रायपुर जाने की इजाजत मांगी और अपना सारा पता, फोन नंबर उन्हें नोट कराया. नवल के कहीं राज्य से बाहर जाने की जरूरत पर पुलिस से अनुमति लेने की बात पर हस्ताक्षर कराए गए.
नवल रायपुर वापस आ गया था. जहां कैमरा नहीं था वहां जा कर नवल ने मु झे बता दिया कि काम हो गया है. तय हुआ अब आपस में तब तक हम कोई संबंध नहीं रखेंगे जब तक केस न बंद हो जाए. सोशल मीडिया और फोन में वे पहले भी नहीं जुड़े थे क्योंकि नवल संभल कर चलना चाहता था.
1 हफ्ते बाद खबर आई कि लाश मिली है लेकिन अभी तक कोई फोन नहीं मिला है.
यहां अब तक हम मन ही मन खुशी का अनुभव कर रहे थे कि आखिर दिव्या का बो झ हमारे सिर से उतर गया है, लेकिन लाश मिलते ही जैसे यह लाश हमारे सीने पर चढ़ बैठी.
नवल फ्लैट के किराए का कैश फ्लैट में ही मु झे देने आया. यहां कैमरे नहीं थे, देखसम झ कर ही उस ने फ्लैट लिया था. शहर से थोड़ा बाहर था यह इलाका. हम बहुत दिनों बाद मिले. नवल तो मु झे देखते ही फिर वही सब कुछ पुरानी आदतों में डूब गया लेकिन मैं थोड़ी शांत पड़ गई थी. वह जैसेजैसे अपनी सारी घटनाएं बता रहा था, मेरी रूह कांप रही थी.
दिव्या को रात के अंधेरे में गहरी नदी में गिराने की बात होटल आ कर शराब
पी कर सो जाना, सुबह पुलिस को आसानी से सारी झूठी बातें बताना, यह इस नवल ने किया.
मु झे अचानक उबकाई आने लगी. यह कितना निर्दयी इंसान है. यह तो खूनी है. मैं एक खूनी के साथ लिपटी पड़ी हूं. मु झे उस वक्त अपनेआप पर घृणा हो आई लेकिन मैं नवल से थोड़ा डरी भी थी इसलिए उसका हर कहा मानती रही.
नवल के चले जाने पर न जाने क्यों आज गहरी सांस ली मैं ने. मैं तो अब भी उस के आकर्षण में बंधी थी. अब भी उसे चाहती थी. अपनी शादी की जल्दीबाजी भी मु झे थी लेकिन हम दोनों के बीच प्रेम का यह तीसरा ऐंगल जो आ खड़ा हुआ था, वह मु झे बेचैन किए था.
बेचैनी नवल को भी कम नहीं थी. लाश मिल जाने के बाद तहकीकात शुरू हो गई थी. उस पर तो चौतरफा मार थी. कानूनी शिकंजा कसता जा रहा था. उस के रिश्तेदारों से भी परख शुरू हो गई थी. उधर दिव्या के मायके वालों ने भी उसे घेर कर हाय तोबा मचा रखी थी.
जितनी नवल की चिड़चिड़ाहट बढ़ती, मेरा डर भी बढ़ता. मैं बहुत अनिश्चित स्थिति में झूलने लगी थी कि अगर उसे सजा हुई तो मेरा क्या होगा? कहां रहूंगी? कहां जाऊंगी? बहुतेरे सवाल मु झे परेशान किए जा रहे थे.
लाश इतनी ज्यादा गल चुकी थी कि पोस्टमार्टम में पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो पाया कि धक्का देने के कारण ही वह नदी में गिरी होगी. जैसा नवल ने कहा था वैसा ही मान लेना पड़ा कि वह जिद की वजह से घूमते हुए अकेले प्रपात के मुहाने तक जा कर अंधेरे में गिर गई होगी.
दिव्या के रिश्तेदारों से पुलिस ने पता भी किया कि वह घूमते रहने की शौकीन थी, घर में बंद रहना पसंद नहीं था. घूमने से पहले नवल द्वारा दिव्या को कराई गई शौपिंग आदि भी पूछताछ में सामने आई और यह भी नवल को लाभ दे गई. यह तो मैं ही जान रही थी कि नवल ने किस तरह सोचसम झ कर हर कदम उठाया.
कुछ वास्तविक स्थितियां, कुछ मनोविज्ञान आदि का सहारा लेकर और निष्कर्ष में नवल के विरुद्ध पर्याप्त सुराग न मिलने का लाभ ले कर नवल केस से बरी हो गया.
भले ही नवल कानून की ओर से छूट गया था लेकिन केस पूरी तरह बंद नहीं किया गया था क्योंकि दिव्या के मायके वालों ने अर्जी लगाई थी कि अगर कभी कोई सुराग मिल जाता है और नवल दोषी दिखता है तो उसे कानून के दायरे में लिया जाए.
छूट जाने के बावजूद नवल में एक डर बैठा था और इस वजह वह बहुत ज्यादा गुस्से वाला होता जा रहा था. अब जीवन कुछ सामान्य हो गया था लेकिन वह अकेले में अब मु झ से मिलता नहीं था.
एक दिन नवल के पिताजी ने मु झे दुकान में ही पास बुला कर कहा, ‘‘बेटी, आज शाम मेरे साथ मेरे घर चलना, पूजा है.’’
शाम को मैं उन की ही गाड़ी में उन के घर आई. घर में पूजा का माहौल तो नहीं था
लेकिन कुछ लोग जरूर थे. नवल भी पता नहीं कब शौप से आ चुका था.
आगंतुकों से मेरा परिचय कराया गया. वे 4 लोग नवल की बूआ फूफा और 2 चाचा थे. सब मु झे घेर के बैठ गए तो मेरा दिल धक धक कर गया. पता नहीं इन का क्या मकसद है, अब कहीं खुद के घर के बेटे को बचाने के लिए मु झ पर कोई दबाव…
तभी नवल के पिताजी ने कहा, ‘‘बेटी, दिव्या के साथ क्या हुआ है यह तो हम भी नहीं जानते लेकिन नवल अभी बहुत डिप्रैशन में है, हम सब ने बहुत सोचा और नवल से इस बारे में पूछा कि अगर उस की शादी कर दी जाए तो शायद उस का मन कुछ ठीक हो जाए. केस को धीमा पड़े ऐसे भी साल भर से ऊपर हो चुका है.
‘‘नवल कह रहा है कि तुम उसे अच्छी लगती हो, शादी करेगा तो तुम से कर सकता है.’’
मैं तो इसी दिन का इंतजार कर रही थी और वैसे भी उस के सिवा मेरा और था ही कौन. मैं तो अपनेआप को उसे ही सौंप चुकी थी.
ये लोग काफी धनी थे, कानूनी महल में इन की जानपहचान भी थी और साइकोलौजिस्ट से भी. उन्होंने नवल के डिप्रैशन का परचा तैयार कराया और कानूनी महकमे में पुरानी जानपहचान का सहारा ले कर मैडिकल ग्राउंड के बूते हमारी शादी कर दी गई.
शादी उन के समाज के हिसाब से 7-8 लोगों के बीच ही निबटा दी गई. मैं ने अपनी नौकरी छोड़ दी, फ्लैट छोड़ा, सामान लिया और आ गई सीधे दिव्या के कमरे में.
महीना 2 महीने नवल मु झ में डूबा रहा. मगर 2-3 महीने में जैसे थोड़ाथोड़ा कर के रंग उतरने लगा. मैं तो प्यार में रंगी आई थी, इसलिए जल्द ही फर्क महसूस करने लगी. शादी हो तो गई थी, लेकिन दिव्या के रिश्तेदारों की हम पर बुरी नजर थी. वे कई बार नवल को दिव्या के लिए फोन कर देते, बातों में उल झाते, सवाल करते और नवल झल्लाता. हम दिव्या को जितना भुलाना चाहते, कोई न कोई कुरेद देता. मैं अकेली जब कमरे में उस बिस्तर पर सोई रहती जो कभी दिव्या का था, मेरा दिल भारी हो जाता. सोचती, नवल इस तरह उस का खात्मा न कर के किसी तरह उस से कानूनी लड़ाई ही लड़ लेता. हमेशा डर के साए में जीना बेहद मुश्किल हो गया था हमारे लिए.
किसी भी नोटिस या दुकान के किसी कागज को देख कर भी नवल घबरा जाता और शांत होने पर मु झ पर ही गुस्सा निकालता.
आजकल उस में प्यार खत्म हो कर बस देह पर नजरें टिक गई थीं. उस के इस प्रेमहीन शरीर की भूख को देख कर मु झे दिव्या की अंधेरी रात की चीखें याद आतीं. नवल का शातिराना अंदाज का खयाल आता, इस की झूठी बातें याद आतीं और नवल के प्रति मेरी अनुभूतियां सूख कर रेगिस्तान हो जाती.
इधर अब नवल के कुछ नए दोस्त बन गए. दुकान बंद कर वह उन के साथ ताश
और शराब में रात बिताता.
मैं दिनभर की चिंतित रात को जल्दी सो जाना चाहती, लेकिन रात के 12, 1 बजे तक नवल के लिए बैठेबैठे मैं इस जिंदगी से बेहद उकता जाती.
नवल को बाहर दोस्तों के साथ ज्यादा रात तक वक्त बिताने को मना किया तो वह मु झ पर बरस पड़ा. ‘‘क्यों मैं कोल्हू का बैल हूं तुम्हारे लिए मैं कहां फंस गया था मैं, कुछ सम झती हो? थोड़ा दोस्तों के साथ वक्त भी नहीं बिता सकता बस तुम्हारे चरणों की धूल फांकता रहूं… इतना तनाव है मु झे लेकिन तुम्हें उस से क्या स्वार्थी औरत.’’
वाकई मैं किस स्थिति से गुजर रही थी बस मैं ही जानती थी. मेरी हालत भी शायद अब दिव्या जैसी ही हो रही थी. घर की सजावट और देखरेख करती, कई तरह के पकवान बनाती, लेकिन इन सब के बावजूद मन बड़ा खाली होता जा रहा था. भविष्य एक अनदेखे आतंक की तरह मु झे डराता. इस बीच कहीं बच्चे आ गए तो उन का क्या होगा पता नहीं.
इधर नवल के ऊपर से अब भी कानूनी पेंच का शिंकजा पूरी तरह छूटा नहीं था, उधर मेरा भी मन यहां बसा नहीं था, तिस पर कहीं नवल की जबरदस्ती से बच्चे आ गए तो कैसे संभालूंगी?
फिर वही देर रात नवल आया. जैसेतैसे कुछ खाया और लगा मु झे कुचलने. मैं भी बस एक ही दिनचर्या से उकता गई थी. न कोई बात, न प्रेम की वह गुनगुनाहट. बस अपना स्वार्थ पूरा किया और सो गया, फिर वही मरी हुई सुबह, वही मु झ पर बातबात पर गुस्सा निकालना, अपनी इस जिंदगी के लिए मु झे दोष देना.
मैं अब उस से छिटक कर दूर हो जाती और पीछे मुड़ कर सो जाती. तीसरी रात भी जब नवल मेरे नजदीक आया तो मैं उठ कर अपने बैडरूम से लगी बालकनी में आ गई.
इस बार वह चुपचाप सो नहीं गया बल्कि झटके से मेरे पास उठ आया और मेरे सिर पर जोर से एक तमाचा जड़ दिया.
‘‘पता नहीं कैसे इस औरत के चक्कर में पड़ कर मैं ने क्या कर डाला और आज किस मुसीबत में फंसा हूं, डर डर कर जीते हुए थक गया हूं मैं. ऊपर से इस के नखरे, लगता है गला घोट दूं इस का.’’
नवल तो आ कर सो गया, मैं वही बालकनी में नीचे रातभर बैठी रह गई.
सुबह जैसेतैसे मैं ने काम निबटाया. हम दोनों ही एकदूसरे से दूरी बना कर चल रहे थे. नवल के दुकान पर निकल जाने के बाद मैं ने अपने मेरे बारे में सोचना शुरू किया.
अब तक नवल के आकर्षण में इस कदर उल झी थी कि जिंदगी की बाकी सचाई
मु झे दिखती ही नहीं थी लेकिन अब इश्क की ऊपरी रंगीन परत निकल गई थी. अंदर का भयावह सच मु झे दिखने लगा था. यह जब एक बार इतना बड़ा खतरनाक खेल कर सकता है, तो दूसरी बार भी क्यों नहीं.
मैं ने देख लिया था, एक बार इस के अंदर स्त्री के लिए नफरत या नापसंदगी पैदा हो जाए तो यह जल्द ही उस से छुटकारा पाना चाहता है और इस के लिए कुछ भी कर सकता है. पता नहीं यह बात मेरे मन के डर की ही अभिव्यक्ति हो, लेकिन अभी जो मु झे लग रहा है उस में कुछ तो सचाई है ही.
मैं नवल से भागना चाहती थी क्योंकि अब उस के प्रति मेरे अंदर का प्रेम डर में बदल रहा था. ऐसे भी किसी के प्रति आकर्षण उस के शरीर से भले ही शुरू हो लेकिन विवाह में प्रेम अपने पार्टनर के प्रति सच्चे सम्मान से ही उपजता है और गहरा होता है.
रोजमर्रा की छोटीछोटी प्रेम की बातें, आपस का खयाल उन के रिश्ते को मजबूत करती हैं पर उस दृष्टि से नवल बिलकुल शून्य साबित हो रहा था. दूसरे, उस का कलंक उस की जमीनी हकीकत बन मु झे उस के साथ के अगले सालों का ब्योरा भी दे रहा था.
खुद को धोखा देना वाकई दर्दनाक है, मैं खुद को और धोखे में नहीं रख सकती थी. अत: मैं ने खुद को बचाने का निर्णय लिया.
मैं ने फोन में ही सर्च कर लिया और कहीं बहुत दूर निकल जाने की ठानी. सच, मैं डरडर कर जीने से तंग आ चुकी थी.
सौतेली मां और उपद्रवी बाप के साए में बिना गलती के डरती रही, नौकरी न छूट जाए, उस के लिए भी डरती रही, प्रेम न छूट जाए, तब भी डरती रही, फिर से बेघर न हो जाऊं, वही डर और अब रोज अपने मन को तोड़ते रहने का डर, जिंदगी खो जाने का डर. बहुत हुआ, मैं अपनी जिंदगी को अब शुरू से अपने मनमुताबिक जीना चाहती थी, हम लड़कियां शायद जिंदगी में दूसरों को पाने के संघर्ष में खुद को ही खो देती हैं. अब इस सच को मैं अपनी जिंदगी में बदलना चाहती थी. मैं ने अपना बैग पैक किया. जरूरी सामान लिया ताकि व्यवस्था मिलने तक काम चल जाए. औनलाइन ही सबबुक किया और जहां रहना था वहां भी सारी पेमैंट कर दी.
यहां के बैंक में जो भी मेरा जमा था उस के लिए मैं ने अपना पता बदलने का ईमेल कर दिया.
रात को नवल की उस प्रेमहीन वासना को आखिरी सलामी दी.
मैं सम झ रही थी वह मेरे लिए ही इस कलंक का भागी बना था लेकिन वह ऐसा न करके भी
कुछ और रास्ता चुन सकता था. एक निर्दोष स्त्री का जो निर्मम तरीके से कत्ल कर सकता है, उस से दया और प्रेम की उम्मीद करना मूर्खता होगी और अगर वासना ही उस के लिए प्रेम हो, शरीर ही उस की एकमात्र कामना हो, एक स्त्री का उस के जीवन में कोई दूसरा औचित्य ही न हो, फिर ऐसे धोखे में रहना अपने साथ बड़ा अन्याय है. एक लाइन लिखा, मैं ने उस के तकिए के पास रख दी. लिखा, ‘‘मु झे ढूंढ़ना मत, मु झे ढूंढ़ने का मतलब होगा अपने पुराने काले सच को ढूंढ़ना.’’
मैं जानती थी, नवल बड़ी मुश्किल से कानूनी शिंकंजे से बचा था और हमेशा उस के दिल में डर बना ही रहेगा, इसलिए निश्चित ही वह मेरा इशारा सम झ कर मु झे भुला ही देगा.
घर में ससुरजी 8 बजे सुबह और नवल 9 से पहले नहीं उठते.
सुबह 4 बजे मैं अपने सामान के साथ निकल गई. चौक पर आ कर मु झे ऊंघता हुआ एक औटो वाला मिल गया जो सवारी के ही इंतजार में था. बस स्टैंड गई और सुकून के साथ बस की खिड़की वाली सीट पर बैठ गई.
2 दिन का सफर तय कर के मैं उत्तरकाशी के एक गांव पहुंच गई. पहाड़ के ऊपर यह गांव प्रकृति का अनुपम उपहार था. इस की सौंदर्य छटा से मेरी सारी क्लांति दूर हो गई. पहाड़ी झरनों के रास्ते होते हुए मैं जिस आश्रम में पहुंची थी, वह एक सेवाश्रम था.
यहां लोग अपनी मरजी से आ कर रह सकते थे. बस उन्हें आश्रम के काम में हाथ बंटाना होता था. कुछ लोग यहां घूमने भी आते थे. उन्हें अच्छा आरामदायक कमरा मुहैया कराया जाता था और वे इस के लिए निर्धारित रकम देते थे.
जो मेरी तरह हमेशा के लिए रहने आते थे. उन्हें एक छोटी रजिस्ट्रेशन फीस जमा करनी होती थी. इस के बाद वह स्त्री या पुरुष अपनी पसंद के मुताबिक यहां काम चुन लेता था.
मुझे भी एक छोटा सा शांत सुंदर कमरा दिया गया था, जिस में एक और मेरी जैसी
स्त्री भी रहती थी, हंसमुख और शालीन.
इस सेवाश्रम का मुख्य काम था आसपास के गांववासियों की शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के साधनों का ध्यान रखना, आपदाकालीन स्थितियों में उन का सहारा बनना. इन के बड़ेबड़े खेत थे, पशुपालन, दूध के लिए गाए और भैंसें पालन. शिक्षा भी कई तरह की थी, किताबों वाली पाठ के अलावा, गांव के बच्चों और महिलाओं को विभिन्न हस्तशिल्प सिखाया जाता. शहरों और पर्यटकों तक उन के उत्पाद पहुंच सके यह भी व्यवस्था की जाती और रोजगार के उपाय बताए जाने के लिए हर महीने गांव में जनसभा भी की जाती.
कुल मिला कर मैं अपने सारे आश्रम के साथियों के साथ खुशी से रम गई थी. मैं ने खेती में और खाना बनाने में हाथ बंटाना शुरू किया और महिलाओं के साथ हस्तशिल्प भी सीखने लगी.
अब कभी यह तो जानने की कोशिश नहीं करूंगी कि नवल कैसा है या कैसा रहेगा लेकिन मैं सम झती हूं कि प्रेम के नाम पर दूसरों का जीवन बरबाद करने की हमें भी कुछ सजा मिलनी ही चाहिए, अच्छा ही हुआ मु झे अपने प्रेम का तीसरा ऐंगल कुछ इस प्रकार मिला. शायद लोगों के काम आ कर अपनी रूह के बो झ को यह रूहानी अब कुछ कम कर सके.
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