Hindi Short Story: एक दिन का बौयफ्रैंड

Hindi Short Story: ‘‘क्या तुम मेरे एक दिन के बौयफ्रैंड बनोगे?’’ उस लड़की के कहे ये शब्द मेरे कानों में गूंज रहे थे. मैं हक्काबक्का सा उस की तरफ देखने लगा. काली, लंबी जुल्फों और मुसकराते चेहरे के बीच चमकती उस की 2 आंखें मेरे दिल को धड़का गईं. एक अजनबी लड़की के मुंह से इस तरह का प्रस्ताव सुन कर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि मुझ पर क्या बीत रही होगी.

मैं अच्छे घर का होनहार लड़का हूं. प्यार और शादी को ले कर मेरे विचार बिलकुल स्पष्ट हैं. बहुत पहले एक बार प्यार में पड़ा था पर हमारी लव स्टोरी अधिक दिनों तक नहीं चल सकी. लड़की बेवफा निकली. वह न सिर्फ मुझे, बल्कि दुनिया छोड़ कर गई और मैं अकेला रह गया.

लाख चाह कर भी मैं उसे भुला नहीं सका. सोच लिया था कि अब अरेंज्ड मैरिज करूंगा. घर वाले जिसे पसंद करेंगे, उसे ही अपना जीवनसाथी मान लूंगा.

अगले महीने मेरी सगाई है. लड़की को मैं ने देखा नहीं है पर घर वालों को वह बहुत पसंद आई है. फिलहाल मैं अपने मामा के घर छुट्टियां बिताने आया हूं. मेरे घर पहुंचते ही सगाई की तैयारियां शुरू हो जाएंगी.

‘‘बोलो न, क्या तुम मेरे साथ..,’’ उस ने फिर अपना सवाल दोहराया.

‘‘मैं तो आप को जानता भी नहीं, फिर कैसे…’’ में उलझन में था.

‘‘जानते नहीं तभी तो एक दिन के लिए बना रही हूं, हमेशा के लिए नहीं,’’ लड़की ने अपनी बड़ीबड़ी आंखों को नचाया. ‘‘दरअसल,

2-4 महीनों में मेरी शादी हो जाएगी. मेरे घर

वाले बहुत रूढि़वादी हैं. बौयफ्रैंड तो दूर कभी मुझे किसी लड़के से दोस्ती भी नहीं करने दी. मैं ने अपनी जिंदगी से समझौता कर लिया है. घर

वाले मेरे लिए जिसे ढूंढ़ेंगे उस से आंखें बंद कर शादी कर लूंगी. मगर मेरी सहेलियां कहती हैं कि शादी का मजा तो लव मैरिज में है, किसी को बौयफ्रैंड बना कर जिंदगी ऐंजौय करने में है. मेरी सभी सहेलियों के बौयफ्रैंड हैं. केवल मेरा ही कोई नहीं है.

‘‘यह भी सच है कि मैं बहुत संवेदनशील लड़की हूं. किसी से प्यार करूंगी तो बहुत गहराई से करूंगी. इसी वजह से इन मामलों में फंसने से डर लगता है. मैं जानती हूं कि मैं तुम्हें आजकल की लड़कियों जैसी बिलकुल नहीं लग रही होऊंगी. बट बिलीव मी, ऐसी ही हूं मैं. फिलहाल मुझे यह महसूस करना है कि बौयफ्रैंड के होने से जिंदगी कैसा रुख बदलती है, कैसा लगता है सब कुछ, बस यही देखना है मुझे. क्या तुम इस में मेरी मदद नहीं कर सकते?’’

‘‘ओके, पर कहीं मेरे मन में तुम्हारे लिए फीलिंग्स आ गईं तो?’’

‘‘तो क्या है, वन नाइट स्टैंड की तरह हमें एक दिन के इस अफेयर को भूल जाना है. यह सोच कर ही मेरे साथ आना. बस एक दिन खूब मस्ती करेंगे, घूमेंगेफिरेंगे. बोलो क्या कहते हो? वैसे भी मैं तुम से 5 साल बड़ी हूं. मैं ने तुम्हारे ड्राइविंग लाइसैंस में तुम्हारी उम्र देख ली है. यह लो. रास्ते में तुम से गिर गया था. यही लौटाने आई थी. तुम्हें देखा तो लगा कि तुम एक शरीफ लड़के हो. मेरा गलत फायदा नहीं उठाओगे, इसीलिए यह प्रस्ताव रखा है.’’

मैं मुसकराया. एक अजीब सा उत्साह था मेरे मन में. चेहरे पर मुसकराहट की रेखा गहरी होती गई. मैं इनकार नहीं कर सका. तुरंत हामी भरता हुआ बोला, ‘‘ठीक है, परसों सुबह 8 बजे इसी जगह आ जाना. उस दिन मैं पूरी तरह तुम्हारा बौयफ्रैंड हूं.’’

‘‘ओके थैंक्यू,’’ कह कर मुसकराती हुई वह चली गई.

घर आ कर भी मैं सारा समय उस के बारे में सोचता रहा.

2 दिन बाद तय समय पर उसी जगह पहुंचा तो देखा वह बेसब्री से मेरा इंतजार कर रही थी.

‘‘हाय डियर,’’ कहते हुए वह करीब आ गई.

‘‘हाय,’’ मैं थोड़ा सकुचाया.

मगर उस लड़की ने झट से मेरा हाथ थाम लिया और बोली, ‘‘चलो, अब से तुम मेरे बौयफ्रैंड हुए. कोई हिचकिचाहट नहीं, खुल कर मिलो यार.’’

मैं ने खुद को समझाया, बस एक दिन. फिर कहां मैं, कहां यह. फिर हम 2 अजनबियों ने हमसफर बन कर उस एक दिन के खूबसूरत सफर की शुरुआत की. प्रिया नाम था उस का. मैं गाड़ी ड्राइव कर रहा था और वह मेरी बगल में बैठी थी. उस की जुल्फें हौलेहौले उस के कंधों पर लहरा रही थीं. भीनीभीनी सी उस की खुशबू मुझे आगोश में लेने लगी थी. एक अजीब सा एहसास था, जो मेरे जिस्म को महका रहा था. मैं एक गीत गुनगुनाने लगा. वह एकटक मुझे निहारती हुई बोली, ‘‘तुम तो बहुत अच्छा गाते हो.’’

‘‘हां थोड़ाबहुत गा लेता हूं… जब दिल को कोई अच्छा लगता है तो गीत खुद ब खुद होंठों पर आ जाता है.’’

मैं ने डायलौग मारा तो वह खिलखिला कर हंस पड़ी. दूधिया चांदनी सी छिटक कर उस की हंसी मेरी सांसों को छूने लगी. यह क्या हो रहा है मुझे. मैं मन ही मन सोचने लगा.

तभी उस ने मेरे कंधे पर अपना सिर रख दिया, ‘‘माई प्रिंस चार्मिंग, हम जा कहां रहे हैं?’’

‘‘जहां तुम कहो. वैसे मैं यहां की सब से रोमांटिक जगह जानता हूं, शायद तुम भी जाना चाहोगी,’’ मेरी आवाज में भी शोखी उतर आई थी.

‘‘श्योर, जहां तुम चाहो ले चलो. मैं ने तुम पर शतप्रतिशत विश्वास किया है.’’

‘‘पर इतने विश्वास की वजह?’’

‘‘किसीकिसी की आंखों में लिखा होता है कि वह शतप्रतिशत विश्वास के योग्य है. तभी तो पूरी दुनिया में एक तुम्हें ही चुना मैं ने अपना बौयफ्रैंड बनाने को.’’

‘‘देखो तुम मुझ से इमोशनली जुड़ने की कोशिश मत करो. बाद में दर्द होगा.’’

‘‘किसे? तुम्हें या मुझे?’’

‘‘शायद दोनों को.’’

‘‘नहीं, मैं प्रैक्टिकल हूं. मैं बस 1 दिन के लिए ही तुम से जुड़ रही हूं, क्योंकि मैं जानती हूं हमारे रिश्ते को सिर्फ इतने समय की ही मंजूरी मिली है.’’

‘‘हां, वह तो है. मैं अपने घर वालों के खिलाफ नहीं जा सकता.’’

‘‘अरे यार, खिलाफ जाने को किस ने कहा? मैं तो खुद पापा के वचन में बंधी हूं. उन के दोस्त के बेटे से शादी करने वाली हूं. 6-7 महीनों में वह इंडिया आ जाएगा और फिर चट मंगनी पट विवाह. हो सकता है मैं हमेशा के लिए पैरिस चली जाऊं,’’ उस ने सहजता से कहा.

‘‘तो क्या तुम भी ‘कुछकुछ होता है’ मूवी की सिमरन की तरह किसी अजनबी से शादी करने वाली हो, जिसे तुम ने कभी देखा भी नहीं है?’’ कहते हुए मैं ने उस की आंखों में झांका. वह हंसती हुई बोली, ‘‘हां, ऐसा ही कुछ है. पर चिंता न करो. मैं तुम्हें शाहरुख यानी राज की तरह अपनी जिंदगी में नहीं आने दूंगी. शादी तो मैं उसी से करूंगी जिस से पापा चाहते हैं.’’

‘‘तो फिर यह सब क्यों? मेरे इमोशंस के साथ क्यों खेल रही हो?’’

‘‘अरे यार, मैं कहां खेल रही हूं? फर्स्ट मीटिंग में ही मैं ने साफ कह दिया था कि हम केवल 1 दिन के रिश्ते में हैं.’’

‘‘हां वह तो है. ओके बाबा, आई ऐम सौरी. चलो आ गई हमारी मंजिल.’’

‘‘वैरी नाइस. बहुत सुंदर व्यू है,’’ कहते हुए उस के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई.

थोड़ा घूमने के बाद वह मेरे पास आती हुई बोली, ‘‘लो अब मुझे अपनी बांहों में भरो जैसे फिल्मों में करते हैं.’’

वह मेरे और करीब आ गई. उस की जुल्फें मेरे कंधों पर लहराने लगीं. लग रहा था जैसे मेरी पुरानी गर्लफ्रैंड बिंदु ही मेरे पास खड़ी है. अजीब सा आकर्षण महसूस होने लगा. मैं अलग हो गया, ‘‘नहीं, यह नहीं होगा मुझ से. किसी गैर लड़की को मैं करीब क्यों आने दूं?’’

‘‘क्यों, तुम्हें डर लग रहा है कि मैं यह वीडियो बना कर वायरल न कर दूं?’’ वह शरारत से खिलखिलाई. मैं ने मुंह बनाया, ‘‘बना लो. मुझे क्या करना है? वैसे भी मैं लड़का हूं. मेरी इज्जत थोड़े ही जा रही है.’’

‘‘वही तो मैं तुम्हें समझा रही हूं. तुम्हें क्या फर्क पड़ता है, तुम तो लड़के हो,’’ वह फिर से मुसकराई, ‘‘वैसे तुम आजकल के लड़कों जैसे बिलकुल नहीं.’’

‘‘आजकल के लड़कों से क्या मतलब है? सब एकजैसे नहीं होते.’’

‘‘वही तो बात है. इसीलिए तो तुम्हें चुना है मैं ने, क्योंकि मुझे पता था तुम मेरा गलत फायदा नहीं उठाओगे वरना किसी और लड़के को ऐसा मौका मिलता तो उसे लगता जैसे लौटरी लग गई हो.’’

‘‘तुम मेरे बारे में इतनी श्योर कैसे हो कि वाकई मैं शरीफ ही हूं? तुम कैसे जानती हो कि मैं कैसा हूं और कैसा नहीं हूं?’’

‘‘तुम्हारी आंखों ने सब बता दिया मेरी जान, शराफत आंखों पर लिखी होती है. तुम नहीं जानते?’’

इस लड़की की बातें पलपल मेरे दिल को धड़काने लगी थीं. बहुत अलग सी थी वह. काफी देर तक हम इधरउधर घूमते रहे. बातें करते रहे.

एक बार फिर वह मेरे करीब आती हुई बोली, ‘‘अपनी गर्लफ्रैंड को हग भी नहीं करोगे?’’ वह मेरे सीने से लग गई. लगा जैसे वह पल वहीं ठहर गया हो. कुछ देर तक हम ऐसे ही खड़े रहे. मेरी बढ़ी हुई धड़कनें शायद वह भी महसूस कर रही थी. मैं ने भी उसे आगोश में ले लिया. उस पल को ऐसा लगा जैसे आकाश और धरती एकदूसरे से मिल गए हों. कुछ पल बाद उस ने खुद को अलग किया और दूर जा कर खड़ी हो गई.

‘‘बस, कुछ और हुआ तो हमारे कदम बहक जाएंगे. चलो वापस चलते हैं,’’ वह बोली. मैं अपनेआप को संभालता हुआ बिना कुछ कहे उस के पीछेपीछे चलने लगा. मेरी सांसें रुक रही थीं. गला सूख रहा था. गाड़ी में बैठ कर मैं ने पानी की पूरी बोतल खाली कर दी.

सहसा वह हंस पड़ी, ‘‘जनाब, ऐसा लग रहा था जैसे शराब की बोतल एक बार में ही हलक के नीचे उतार रहे हो.’’

उस के बोलने का अंदाज कुछ ऐसा था कि मुझे हंसी आ गई. ‘‘सच, बहुत अच्छी हो तुम. मुझे डर है कहीं तुम से प्यार न हो जाए,’’ मैं ने कहा.

‘‘छोड़ो भी यार. मैं बड़ी हूं तुम से, इस तरह की बातें सोचना भी मत.’’

‘‘मगर मैं क्या करूं? मेरा दिल कुछ और कह रहा है और दिमाग कुछ और.’’

‘‘चलता है. तुम बस आज की सोचो और यह बताओ कि हम लंच कहां करने वाले हैं?’’

‘‘एक बेहतरीन जगह है मेरे दिमाग में. बिंदु के साथ आया था एक बार. चलो वहीं चलते हैं,’’ मैं ने वृंदावन रैस्टोरैंट की तरफ गाड़ी मोड़ते हुए कहा, ‘‘घर के खाने जैसा बढि़या स्वाद होता है यहां के खाने का और अरेंजमैंट देखो तो लगेगा ही नहीं कि रैस्टोरैंट आए हैं. गार्डन में बेंत की टेबलकुरसियां रखी हुई हैं.’’

रैस्टोरैंट पहुंच कर उत्साहित होती हुई प्रिया बोली, ‘‘सच कह रहे थे तुम. वाकई लग रहा है जैसे पार्क में बैठ कर खाना खाने वाले हैं हम… हर तरफ ग्रीनरी. सो नाइस. सजावटी पौधों के बीच बेंत की बनी डिजाइनर टेबलकुरसियों पर स्वादिष्ठ खाना, मन को बहुत सुकून देता होगा.

है न?’’

मैं खामोशी से उस का चेहरा निहारता रहा. लंच के बाद हम 2-1 जगह और गए. जी भर कर मस्ती की. अब तक हम दोनों एकदूसरे से खुल गए थे. बातें करने में भी मजा आ रहा था. दोनों ने ही एकदूसरे की कंपनी बहुत ऐंजौय की थी, एकदूसरे की पसंदनापसंद, घरपरिवार, स्कूलकालेज की कितनी ही बातें हुईं.

थोड़ीबहुत प्यार भरी बातें भी हुईं. धीरेधीरे शाम हो गई और उस के जाने का समय आ गया. मुझे लगा जैसे मेरी रूह मुझ से जुदा हो रही है, हमेशा के लिए.

‘‘कैसे रह पाऊंगा मैं तुम से मिले बिना? नहीं प्रिया, तुम्हें अपना नंबर देना होगा मुझे,’’ मैं ने व्यथित स्वर में कहा.

‘‘आर यू सीरियस?’’

‘‘यस आई ऐम सीरियस,’’ मैं ने उस का हाथ पकड़ लिया, ‘‘मुझे नहीं लगता कि अब मैं तुम्हें भूल सकूंगा. नो प्रिया, आई थिंक आई लाइक यू वैरी मच.’’

‘‘वह डील न भूलो मयंक,’’ प्रिया ने याद दिलाया.

‘‘मगर दोस्त बन कर तो रह सकते हैं न?’’

‘‘नो, मैं कमजोर पड़ गई तो? यह रिस्क मैं नहीं उठा सकती.’’

‘‘तो ठीक है. आई विल मैरी यू,’’ मैं ने जल्दी से कहा. उस से जुदा होने के खयाल से ही मेरी आंखें भर आई थीं. एक दिन में ही जाने कैसा बंधन जोड़ लिया था उस ने कि दिल कर रहा था हमेशा के लिए वह मेरी जिंदगी में आ जाए.

वह मुझ से दूर जाती हुई बोली, ‘‘गुडबाय मयंक, मैं शादी वहीं करूंगी जहां पापा चाहते हैं. तुम्हारा कोई चांस नहीं. भूल जाना मुझे.’’ वह चली गई और मैं पत्थर की मूर्त बना उसे जाते देखता रहा. दिल भर आया था मेरा. ड्राइविंग सीट पर अकेला बैठा अचानक फफकफफक कर रो पड़ा. लगा जैसे एक बार फिर से बिंदु मुझे अकेला छोड़ कर चली गई है. जाना ही था तो फिर जरूरत क्या थी मेरी जिंदगी में आने की. किसी तरह खुद को संभालता हुआ घर लौटा. दिन का चैन, रात की नींद सब लुट चुकी थी. जाने कहां से आई थी वह और कहां चली गई थी? पर एक दिन में मेरी दुनिया पूरी तरह बदल गई थी. देवदास बन गया था मैं. इधर घर वाले मेरी सगाई की तैयारियों में लगे थे. वे मुझे उस लड़की से मिलवाने ले जाना चाहते थे, जिसे उन्होंने पसंद किया था. पर मैं ने साफ इनकार कर दिया.

‘‘मैं शादी नहीं करूंगा,’’ मेरा इतना कहना था कि घर में कुहराम मच गया.

‘‘क्यों, कोई और पसंद आ गई?’’ मां ने अलग ले जा कर पूछा.

‘‘हां.’’ मैं ने सीधा जवाब दिया.

‘‘तो ठीक है, उसी से बात करते हैं. पता और फोन नंबर दो.’’

‘‘मेरे पास कुछ नहीं है.’’

‘‘कुछ नहीं, यह कैसा प्यार है?’’ मां ने कहा.

‘‘क्या पता मां, वह क्या चाहती थी? अपना दीवाना बना लिया और अपना कोई अतापता भी नहीं दिया.’’

फिर मैं ने उन्हें सारी कहानी सुनाई तो वे खामोश रह गईं. 6 माह बीत गए. आखिर घर वालों की जिद के आगे मुझे झुकना पड़ा. लड़की वाले हमारे घर आए. मुझे जबरन लड़की के पास भेजा गया. उस कमरे में कोई और नहीं था. लड़की दूसरी तरफ चेहरा किए बैठी थी. मैं बहुत अजीब महसूस कर रहा था.

लड़की की तरफ देखे बगैर मैं ने कहना शुरू किया, ‘‘मैं आप को किसी भ्रम में नहीं रखना चाहता. दरअसल मैं किसी और से प्यार करने लगा हूं और अब उस के अलावा किसी से शादी का खयाल भी मुझे रास नहीं आ रहा. आई एम सौरी. आप इस रिश्ते के लिए न कह दीजिए.’’

‘‘सच में न कह दूं?’’ लड़की के स्वर मेरे कानों से टकराए तो मैं हैरान रह गया. यह तो प्रिया के स्वर थे. मैं ने लड़की की तरफ देखा तो दिल खुशी से झूम उठा. यह वाकई प्रिया ही थी.

‘‘तुम?’’

‘‘हां मैं, कोई शक?’’ वह मुसकराई.

‘‘पर वह सब क्या था प्रिया?’’

‘‘दरअसल, मैं अरेंज्ड नहीं, लव मैरिज करना चाहती थी. अत: पहले तुम से प्यार का इजहार कराया, फिर इस शादी के लिए रजामंदी दी. बताओ कैसा लगा मेरा सरप्राइज.’’

‘‘बहुत खूबसूरत,’’ मैं ने पल भर भी देर नहीं की कहने में और फिर उसे बांहों में भर लिया.

Hindi Short Story

Family Story: तोसे लागी लगन- क्या हो रहा था ससुराल में निहारिका के साथ

Family Story: मनोविज्ञान की छात्रा निहारिका सांवलीसलोनी सूरत की नवयुवती थी. तरूण से विवाह करना उस की अपनी मरजी थी, जिस में उस के मातापिता की रजामंदी भी थी. तरूण हैदराबाद का रहने वाला था और निहारिका लखनऊ की. दोनों दिल के रिश्ते में कब बंधे यह तो वे ही जानें.

सात फेरों के बंधन में बंध कर दोनों एअरपोर्ट पहुंचे. हवाईजहाज ने जब उड़ान भरी तो निहारिका ने आंखे बंद कर लीं और कस कर तरूण को थाम लिया। स्थिति सामान्य हुई तो लज्जावश नजरें झुक गईं पर तरुण की मंद मुसकराहट ने रिश्ते में मिठास घोल दी थी.

“हम पग फेरे के लिए इसी हवाई जहाज से वापस आएंगे,” निहारिका ने आत्मियता से कहा.

“नहीं, अब आप कहीं नहीं जाएंगी, हमेशाहमेशा मेरे पास रहेंगी,” तरूण ने निहारिका के कंधे पर सिर रखते हुए कहा.

सैकड़ों की भीड़ में नवविवाहिता जोड़ा एकदूसरे की आंखों में खोने लगा था.

तरूण की मां ने पड़ोसियों की मदद से रस्मों को निभाते हुए निहारिका का गृहप्रवेश करवाया. घर में बस 3 ही
सदस्य थे. शुरू के 2-4 दिन वह अपने कमरे में ही रहती थी फिर धीरेधीरे उस ने पूरा घर देखा। पूरा घर पुरानी कीमती चीजों से भरा पङा था। एक कोने में कोई पुरानी मूर्ति रखी हुई थी. निहारिका ने उसे हाथ में उठाया ही था कि पीछे से आवाज आई,”क्या देख रही हो, चुरा मत लेना।”

आवाज में कड़वाहट घुली हुई थी. निहारिका ने पीछे मुड़ कर देखा, तरूण की मां खड़ी थीं.

“नहीं मम्मीजी, बस यों ही देख रही थी,” निहारिका ने सहम कर जबाव दिया.

ससुराल में पहली बार इस तरह का व्यवहार… उस का मन भारी हो गया. मां की याद आने लगी. रात को बातों ही बातों में तरूण के सामने दिन वाले घटना का जिक्र हो आया.

“हां वे थोड़ी कड़क मिजाज हैं… पर प्लीज, तुम उन की किसी बात को दिल पर मत लेना। वे दिल की बेहद अच्छी हैं,” तरुण अपनी तरफ से निहारिका को बहलाने लगा.

एक दिन दोपहर को जब निहारिका लेटी हुई कोई पत्रिका पढ़ रही थी तभी तरूण की मां मनोहरा देवी उस के कमरे में आईं. उन्हें देख वह उठ कर बैठ गई। उस के बाद सासबहु में इधरउधर की बातें हुईं, बातों ही बातों में निहारिका के गहनों का जिक्र हो आया तो निहारिका खुशी से उन्हें गहने दिखाने लगीं. बातों का सिलसिला चलता रहा। करीब आधे
घंटे बाद जब निहारिका गहनों को डब्बे में डालने लगीं तो सोने के कंगन गायब थे. वह परेशान हो कर उसे ढूंढ़ने लगी.

आश्चर्य भी हो रहा था उसे। सासुमां से कुछ पूछे इतनी हिम्मत कहां थी उस में. रात को तरूण से बताया तो उस ने भी ज्यादा तवज्जो नहीं दी.

“तुम औरतें केवल पहनना जानती हो, यहीं कहीं रख कर भूल गईं होगी। मिल जाएंगे। अभी सो जाओ,” दिनभर का थका हुआ तरूण करवट बदल कर सो गया.

‘नईनवेली दुलहन का ज्यादा बोलना भी ठीक नहीं,’ यह सोच कर निहारिका चुपचाप रह गई.

लेकिन वह मनोविज्ञान की छात्रा थी। अनकहे भावों को पढ़ना जानती थी, पर कहे किस से? तरूण के बारे में सोचते ही कंगन बेकार लगने लगे. लेकिन अगले ही दिन घर में सोने की एक और मूर्ति दिखाई दिए.

“मम्मीजी, बहुत सुंदर है यह मूर्ति। कहां से खरीद कर लाईं आप?” निहारिका ने तारीफ करते हुए पूछा.

“कहीं से भी, तुम से मतलब…” मनोहरा देवी ने तुनक कर जवाब दिया.

निहारिका स्तब्ध रह गई.

15 दिन के अंदरअंदर उस के नाक की नथ कहीं गुम हो गई थी. पानी सिर के ऊपर जा रहा था. तरूण कुछ सुनने को तैयार न था। स्थिति दिनबदिन बिगड़ती जा रही थी.

एक दिन दोपहर के भोजन के बाद सभी अपनेअपने कमरे में आराम करने गए। उस वक्त मनोहरा देवी पूरे गहने पहन कर स्वयं को आईने में निहार रही थीं। तरहतरह के भावभंगिमा कर रही थीं. संयोगवश उसी वक्त निहारिका किसी काम से उन के पास आना चाहती थी. अपने कमरे से निकली ही थी कि खिड़की से ही उसे वह मंजर दिख गया.

उस वक्त उन के शरीर पर वे गहने भी थे जो उस के डब्बे से गायब हुए थे. शक को यकीन में बदलते देख निहारिका सिहर उठी। उस ने चुपके से 1-2 तसवीरें ले लीं।

रात को डिनर खत्म करने के बाद…

“तरूण, मुझे कुछ गहने चाहिए थे…” निहारिका अभी वाक्य पूरा भी नहीं कर पाई थी कि तरूण बोला,”मेरी खूबसूरत बीबी को गहनों की क्या जरूरत है? सच कह रहा हूं नीरू, तुम बहुत बहुत खूबसूरत हो।”

पर तरुण की बातें अभी उसे बेमानी लग रही थीं क्योंकि वह जहां पहुंचना चाहती वह रास्ता ही तरुण ने बंद कर
दिया था. हार कर निहारिका ने वे फोटोज दिखाए जिसे देखते ही तरुण उछल पड़ा। उस की आंखें आश्चर्य से फैल गईं।

“मम्मी के पास इतने गहने हैं, मुझे तो पता ही नहीं था,” तरूण ने आश्चर्य से फैली आंखों को सिकोड़ते हुए कहा.

“नहीं यह अच्छी बात नहीं है। तरूण, तुम ने शायद देखा नहीं। इन में वे गहने भी हैं जो मेरे डब्बे से गायब हुए थे,” निहारिका ने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा.

मामला संजीदा था लेकिन उसे दबाना और भी मुश्किल स्थिति को जन्म दे
सकता था.

“मां के गहने यानी तुम्हारे गहने…” तरूण को शर्मिंदगी महसूस हो रही थी तो उस ने बात को टालते हुए कहा.

“तरूण, तुम क्यों समझना नहीं चाहते या फिर…” निहारिका उस के चेहरे पर आ रहे भाव को पढ़ने की कोशिश करने लगी, क्योंकि जो बात सामने आ रही थी वह अजीब सी थी.

“या फिर क्या…” तरूण ने तैश से कहा.

“यही कि तुम जानबूझ कर कुछ छिपाना चाहते हो,” निहारिका ने गंभीर आवाज में कहा.

“मैं क्या छिपा रहा हूं?”

निहारिका चुप रही।

“बोलो नीरू, मैं क्या छिपा रहा हूं?”

“यही कि मम्मी जी क्लाप्टोमैनिया की शिकार हैं…”

“क्या… यह क्या होता है?” तरुण ने कभी नहीं सुना था यह नाम.

“यह एक तरह की बीमारी है। इस बीमारी में व्यक्ति चीजें चुराता है और भूल जाता है,” निहारिका एक ही सांस में सारी बातें कह गई.

“देखो नीरू, मैं मानता हूं मेरी मां बीमार हैं पर चोरी… तरूण बौखला गया.

“वे चोर नहीं हैं। प्लीज मुझे गलत मत समझो,” निहारिका ने अपनी सफाई दी.

“तुम्हें पग फेरे के लिए घर जाना था न, बताओ कब जाना है?” तरूण बहस को और बढ़ाना नहीं चाहता था.

निहारिका स्तब्ध रह गई.

दोनों ने करवट फेर ली लेकिन नींद किसी के आंखों में न थी. तरूण ने वापस जाने के लिए कह दिया था। सपनों में जो ‘होम स्वीट होम’ का सपना था वह टूट कर चकनाचूर हो गया था.

निहारिका ने हार नहीं मानी। उस ने अपने प्रोफैसर साहब से बात की,”सर, मुझे आप की मदद चाहिए,” निहारिका का दृढ़ स्वर बता रहा था कि वह अपने काम के प्रति कितनी संकल्पित है.

“अवश्य मिलेगी, काम तो बताओ,” प्रोफेसर की आश्वस्त करने वाली आवाज ने निहारिका को निस्संकोच हो अपनी बात रखने का हौसला दिया। इस से पहले वह अपराधबोध से दबी जा रही थी.

“सर, मेरी सासूमां यहांवहां से चुरा कर वस्तुएं ले आती हैं और पूछे जाने पर इनकार कर देती हैं,” निहारिका के आंसुओं ने अनकही बात भी कह दी थी.

“घबराओ मत, धीरज से काम लो निहारिका। सब ठीक हो जाएगा। कभीकभी जीवन का एकाकीपन इस की वजह बन जाती है। आगे तुम खुद समझदार हो,” प्रोफैसर साहब ने रिश्ते की नाजुकता को समझते हुए कहा.

“क्लाप्टोमैनिया लाइलाज बीमारी नहीं, अपनापन और लगाव से इसे दूर किया जा सकता है,” प्रोफैसर साहब के आखिरी वाक्य ने निहारिका के मनोबल को बढ़ा दिया था. वह उन के द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करने लगी। इलाज का पहला कदम था गाढ़ी दोस्ती…

“मम्मीजी, आज से मैं आप के कमरे में आप के साथ रहूंगी, आप के बेटे से मेरी लड़ाई हो गई है,” निहारिका ने अपना तकिया मनोहरा देवी के बिस्तर पर रखते हुए कहा.

“रहने दो, बीच रात में उठ कर न चली गई तो कहना,” मनोहरा देवी ने अपना अनुभव बांटते हुए कहा.

“कुछ भी हो जाए नहीं जाउंगी,” निहारिका ने आत्मविश्वास से कहा.

रात में उन दोनों ने एकदूसरे के पसंद की फिल्में देखीं। धीरेधीरे दोनों एकदूसरे के करीब आने लगीं. मनोहरा देवी जब भी बाहर जाने के लिए तैयार होतीं तो निहारिका साथ चलने के लिए तैयार हो जाती या उन्हें अकेले जाने से रोक लेती। कभी मानमुनहार से तो कभी जिद्द से.

ऐसा नहीं था कि तरूण कुछ भी जानता नहीं था, कितनी बार उसे भी शर्मिंदगी उठानी पड़ी थी पर मां तो आखिर मां है न… सबकुछ सह जाता था. मां को समझाने की कोशिश भी की पर बिजनैस की व्यस्तता की वजह से ध्यान बंट गया था। निहारिका की कोशिश रंग ला रही थी, यह बात उस से छिपी नहीं थी. अपनी नादानी पर शर्मिंदा भी था। अपने बीच
के मनमुटाव को कम करने के लिए निहारिका के पसंद की चौकलैट फ्लैवर वाली आइस्क्रीम लाया था जिसे अपने हाथों से खिला कर कान पकड़ कर माफी मांगी थी। उठकबैठक भी करने को तैयार था पर नीरू ने गले लगा कर रोक दिया
था.

“नीरू, तुम ने जिस तरह से मम्मी को संभाला है न उस के लिए तहेदिल से शुक्रगुजार हूं, तरूण ने नम आंखों से कहा.

“अभी नहीं, अभी हमें उन सभी चीजों की लिस्ट बनानी होगी जो मम्मीजी कहीं और से ले आई हैं, उन्हें लौटाना भी होगा,” निहारिका ने इलाज का दूसरा कदम उठाया.

“लौटाना क्यों है नीरू, इस से तो बात…” तरूण ने अपने घर की इज्जत की परवाह करते हुए कहा.

“लोगों को समझने दो। क्लापटोमेनिया एक बीमारी है, समाज को उन्हें उसी रूप में स्वीकारने दो, वे भी समाज का
हिस्सा हैं, कमरे में बंद रखना उपाय नहीं है,” निहारिका की 1-1 बात उस के आत्मविश्वास का परिचय दे रही
थी. निहारिका के रूप का दीवाना तो वह पहले से ही था पर आज अपनी मां के प्रति फिक्रमंद देख मन ही मन अपनी पसंद पर गर्व करने लगा था.
रातरात भर जाग कर दोनों ने उन सभी सामानों का लिस्ट बनाई जो घर के नहीं थे, सब को गिफ्ट की तरह रैपिंग किया। अंदर एक परची पर ‘सौरी’ लिख कर वस्तुओं को लोगों के घर तक पहुंचाया. पतिपत्नी दोनों ने
मिल कर मुश्किल काम को आसान कर लिया था. धीरेधीरे स्थिति सामान्य होने लगी थी.

मंगलवार की सुबह मम्मीजी को बाजार जाना था।

“मम्मी, तुम जल्दी से तैयार हो जाओ जाते वक्त छोड़ दूंगा,” तरूण ने नास्ता करते हुए कहा,

“नहींनहीं तुम जाओ, मैं नीरू के साथ चली जाउंगी।”

निहारिका ने तरुण की ओर देख कर अपनी पीठ अपने हाथों से थपथपाई।प्रतिउत्तर में तरूण ने हाथ जोड़ने का अभिनय किया. निहारिका मुसकरा दी।

तभी निहारिका की मम्मी का फोन आया,”बेटाजी, नीरू को मायके आए हुए बहुत दिन हो गए, पग फेरे के लिए भी नहीं आए आप दोनों, हो सके तो इस इस दशहरे में कुछ दिनों के लिए उसे छोड़ जाते,” निहारिका की मां अपनी बात एक ही सांस में कह गई थीं.

“माफी चाहूंगा मम्मीजी, लेकिन मेरी मम्मी अब नीरू के बगैर एक पल भी नहीं रहना चाहतीं, ऐसे में मैं उसे वहां
छोड़ना नहीं चाहता…” तरूण ने गर्व से कहा.

“कोई बात नहीं बेटाजी, बेटी अपने घर में खुश रहे, राज करे इस से ज्यादा और क्या चाहिए,” मां ने रुंधे गले से कहा और फोन रख दिया. तरूण के स्वर ने उसे उस घर में मुख्य भूमिका में ला दिया था. निहारिका का होम स्वीट होम का सपना साकार हो रहा था.

Family Story

Hindi Drama Story: खलनायिका

Hindi Drama Story: कंगना ने जो अपने कानों से सुना उस का उस पर विश्वास करने का मन नहीं कर रहा था. क्या ये उस के अपने बच्चे हैं, उस की अपनी बेटियां हैं जो उसे खलनायिका मानती हैं? क्या वह वास्तव में खलनायिका है?

जब कंगना के पति आदेश बिजनैस में डूब रहे थे तब कंगना ने ही दौड़भाग कर के आदेश के बिजनैस को संभाला था. हां यह सही है इस के लिए कंगना को सक्षम की थोड़ीबहुत जी हुजूरी करनी पड़ी थी. मगर क्या करती वह, अपने परिवार को हारते हुए नहीं देख सकती थी. कंगना को अपनी बेटियों को भी वही जिंदगी नहीं देनी थी जिसे कंगना खुद अब तक जीती हुई आई है.

एक ही तो जिंदगी है. कंगना उसे खुल कर जीना चाहती थी और अगर उस के लिए थोड़ाबहुत एडजस्टमैंट करना पड़े तो कंगना को इस में कोई गुरेज नहीं था.

कंगना एक निम्नवर्ग के पंजाबी परिवार से आती थी. पिता की छोटीमोटी नौकरी थी जिस से बड़ी मुश्किल से गुजर होती थी. उन दिनों कंप्यूटर का नयानया आगाज हुआ था. कंगना ने भी एक डिप्लोमा कोर्स कर लिया था. जल्द ही एक स्थानीय कंपनी में कंगना की नौकरी लग गई थी. नौकरी के 1 हफ्ते के भीतर ही कंगना को एक बात सम झ आ गई कि थोड़ीबहुत अदाओं और कुछ हंसीमजाक कर के दफ्तर में आराम से काम किया जा सकता है.

खूबसूरती की थोड़ी सी जमापूंजी से ही कंगना ने अपनी अदाओं के

जरीए एक महल खड़ा कर लिया था.

जल्द ही कंगना दफ्तर की धड़कन बन गई थी.हर वर्ग और उम्र का पुरुष कंगना का साथ पाने को लालायित रहता था. यह 90 के दशक के शुरुआती सालों की बात है. उन दिनों डेटिंग कल्चर का रिवाज नहीं था मगर चोरीछिपे कंगना ने इस मौके का भरपूर फायदा उठाया. जल्द ही कंगना पूरे महल्ले में चर्चा का विषय बन गई थी. हर बार की मुलाकात के बाद कंगना के पास एक न एक उपहार अवश्य रहता था. एक क्लर्क की बेटी के नित नए ठाट को देख कर लोग हैरान थे. 1 साल के भीतर ही घर की आर्थिक स्थिति सुधरने लगी तो कंगना के मातापिता ने सबकुछ जान कर भी अपनी आंखें बंद कर ली थीं. कंगना दफ्तर के साथसाथ आसपास भी चालू, आइटम के नाम से जानी जाती थी.

मगर कंगना कितनी चालू है यह आज तक भी एक रहस्य था. यही कारण था कि हर पुरुष कंगना के करीब जाने को लालायित रहता था. कंगना एक स्मार्ट लड़की थी. उसे पता था कि कैसे अपने चारों तरफ एक रहस्य बनाए रखने से ही पुरुष खिंचे रहते हैं. वह हर किसी के साथ हो कर भी किसी के साथ नहीं थी.

कंगना ने यह फैसला बहुत पहले ही ले लिया था कि जो पुरुष उस के साथ 7 फेरे लेगा वह उसी को अपने करीब आने देगी.

जल्द ही कंगना का सपना सच हुआ और उस के लिए आदेश का रिश्ता आया. आदेश

की मेन मार्केट में कपड़े की दुकान थी. अकसर वह कंगना को देखता था और सबकुछ जानते हुए भी उस का दिल कंगना पर आ गया था. कंगना से 2 मुलाकात के बाद ही आदेश जान गया कि कंगना ऐसी लड़की नहीं है जैसा लोग उस के बारे में सोचते हैं. कंगना ने आदेश में अपने लिए भावी पति देखा था इसलिए वह उस के सामने एक अलग ही रूप में आई थी. आदेश का परिवार हालांकि कंगना के परिवार और आचारव्यवहार से खुश नहीं था मगर आदेश की जिद के आगे  झुक गए थे.

कंगना के परिवार ने एक छोटी सी शादी करी थी मगर आदेश के परिवार ने एक भव्य रिसेप्शन दिया था. कंगना बेहद खुश थी. उसे भव्यता और आलीशान जिंदगी जीने की चाह थी और आदेश से विवाह के बाद उसे लगा कि उसे मंजिल मिल गई है. 4 साल के भीतर 2 बेटियों का जन्म हो गया. कंगना को इन 4 सालों में यह सम झ आ गया था कि आदेश वैसा नहीं है जैसा हमसफर वह चाहती थी. आदेश के अंदर अपने व्यापार को आगे बढ़ाने का कोई जज्बा नहीं. जिस तेजी के साथ औनलाइन मार्केट अपनी उड़ान भर रही थी, उतनी ही तेजी के साथ आदेश का कपड़ों का व्यापार नीचे गिर रहा था.

कंगना 2 बेटियों की मां बनने के बाद यह सम झ गई थी कि परी कथा अब समाप्त हो गई है. अगर उसे अपनी बेटियों का भविष्य सुरक्षित रखना है तो उसे ही कुछ करना पड़ेगा. जब तक सासससुर जीवित थे, कंगना को व्यापार में दखल देने की इजाजत नहीं थी.

उन की मृत्यु के पश्चात कंगना अधिक  आजाद और आदेश अधिक आलसी हो गया था. पूरी दुकान नौकरों के सिपुर्द कर वह देर तक सोता रहता था. इस कारण नफा बस नाम मात्र का हो रहा था. कंगना भी अब आदेश के साथ दुकान जाने लगी थी.जल्द ही कंगना को सम झ आ गया कि आज की पीढ़ी को यह कपड़ों की पुरानी दुकान लुभा नहीं पाएगी. इस के लिए दुकान का रैनोवेशन के साथसाथ मार्केटिंग भी जरूरी है. औनलाइन ब्रैंड के साथ रिश्ते बना कर ही अब आगे बढ़ा जा सकता है.

जब कंगना ने यह बात आदेश को बताई तो उस ने चिढ़ते हुए कहा, ‘‘मैं ये सब नहीं कर सकता हूं. 2 रोटियां तो मिल रही हैं न फिर क्या समस्या है?’’

कंगना गुस्से में बोली, ‘‘तुम्हारे इस ढीले रवैए से ये 2 रोटियां भी खत्म हो जाएंगी.’’

कंगना ने फिर कमर कस ली और मार्केट में उतर गई, सब से पहले उस ने ऐक्सपोर्ट हाउस में जौब आरंभ करी. कड़ी मेहनत, अपनी अदाओं और खूबसूरती के बल से वह सीढि़यां चढ़ने लगी. उसे पता था कि बिना सीमा लांघे कैसे ऐक्सपोर्ट हाउस के लिए और्डर ले सकते हैं.

इस सफर के दौरान कंगना जरूर अपने घर से दूर हो गई थी. दोनों बेटियों और आदेश ने एक टापू बना लिया था जिस पर कंगना नहीं पहुंच पा रही थी. कंपनी में जब कंगना की अच्छी साख बन गई तो उस ने 50 लाख का कर्ज लिया और अपनी दुकान का रैनोवेशन शुरू कर दिया.

4 साल तक कंगना ने दिनरात एक कर दिया. आदेश ने न कंगना का साथ दिया और न ही उसे कभी रोका.

कंगना उस बैंकर के साथ घूम रही है, कंगना उस कंपनी के मालिक के

साथ घूम रही है, ऐसी उड़तीउड़ती खबरें आदेश के कानों में भी पहुंच रही थीं. मगर उसे पता था कि अब कंगना को रोकना नामुमकिन है.

घर पर फिर से लक्ष्मी बरसने लगी तो कंगना ने दोनों बेटियों को इंटरनैशनल स्कूल में डाल दिया. यामिनी और उर्वी दोनों ही अपनी मम्मी की तरह खूबसूरत थीं और अच्छे स्कूल में पढ़ने के कारण दोनों बहुत स्मार्ट भी थीं. दोनों बेटियों की जरूरतें भी बढ़ने लगी और आदेश ने अब तक बिलकुल बैक सीट ले ली थी.

कंगना के ऊपर दौलत और पावर का ऐसा नशा चढ़ा कि ईजी मनी के लिए कंगना ने अपनी कंपनी में ही धांधली शुरू कर दी. कंपनी के डाइरैक्टर के साथ भी कंगना ने बहुत अच्छे रिश्ते बना रखे थे. इसलिए उन्हें कंगना पर विश्वास था. कंगना का बिजनैस तरक्की कर रहा था. अपनी कंपनी के क्लाइंट्स को कंगना ने चालाकी से अपनी तरफ कर लिया था.

आदेश ने दौलत की चमकदमक के कारण आंखें मूंद ली थीं. उसे पता था कि कंगना हेराफेरी कर रही है मगर वह चुप लगा गया था.

मगर घर पर बाप और बेटी मिल कर

कंगना की बखिया उधेड़ते रहते थे कि कैसे

पैसों और पावर के नशे में कंगना ने उन्हें छोड़ा हुआ है. कंगना का परिवार भी पैसा है और रिश्ते भी पैसा है.

मगर जब आप जीवन में ऊपर जाते हो तो नीचे भी आना पड़ता हैं. कंगना के डाइरैक्टर को सब पता चल गया था और कंगना को तभी फायर कर दिया गया.

एकदम से 4 लाख की नौकरी हाथ से निकल गई थी और मार्केट में साख अलग से खराब हो गई थी.

कंगना ने बड़ी मेहनत से जो और्डर अपने बिजनैस को दिलाए थे वे भी इस न्यूज के बाद चले गए.

ऐसी ही एक शाम को जब कंगना घर में घुसी तो अपने बच्चों के मुंह से अपने

लिए खलनायिका शब्द उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उस के कान में पिघलता शीशा डाल दिया.

कंगना फिर भी दिल पर पत्थर रख कर बेटियों के पास गई और बोली, ‘‘आज खाने में क्या बनेगा?’’

उर्वी हंसते हुए बोली, ‘‘मम्मी क्या आप बनाएगी?’’

यामिनी ने व्यंग्य कसा, ‘‘आज सूरज किस दिशा से निकला है? आप खाना बनाएंगी?’’

कंगना ने कुछ नहीं कहा, मगर वह अंधेरे कमरे में बैठ कर शून्य में निहारती रही.

क्या वह वास्तव में खलनायिका है? क्या सपने देखना और उन्हें पूरा करना गुनाह है? क्या ये सपने बस उस के लिए थे?

अब कंगना के घर के आगे रोज देनदार

की लाइन लगने लगी. पति और बेटियां जो उस के पैसों पर पल रहे थे उन्होंने पल्ला  झाड़ लिया था. उन के अनुसार कंगना ही इन सब चीजों के लिए जिम्मेदार है. वह तो कम मे भी काम चला लेते. 1 हफ्ते तक कंगना घर में नजरबंद रही. किसी ने उस से खाना, पानी कुछ नहीं पूछा. कंगना इस बीच पुरानी बातों पर मंथन करती रही और आखिर में उस ने सोचसम झ कर एक फैसला लिया.

रविवार की सुबह कंगना ने अपना सामान पैक किया और दोनों बेटियों और पति को बुला कर कहा, ‘‘इस घर को छोड़ कर जा रही हूं. तुम लोगों को जो भी परेशानी हुई, उस के लिए सौरी. मु झे हैदराबाद में नौकरी मिल गई हैं, आगे की जिंदगी वहीं काट लूंगी. आगे तुम लोगों की जिम्मेदारी तुम्हारे पापा उठा लेंगे. हर मूवी के आखिर में खलनायक, किरदारों की जिंदगी से चले जाते हैं, वैसे ही यह खलनायिका भी आज तुम्हारे जीवन के रंगमंच से हमेश के लिए जा रही है.

दोनों बेटियां और पति कंगना को जाते देख कर हतप्रभ थे मगर उन्होंने कहा कुछ नहीं.

आदेश को विश्वास था कि कुछ दिनों

बाद लौट कर आ ही जाएगी. समाज में रहने

के लिए पति के नाम का होना आवश्यक है. देखता हूं कैसे नए शहर में अकेले अपनी जड़ें जमाती है?’’

जब कंगना ने हैदराबाद की जमीन पर कदम रखा तो एक बात गांठ बांध ली थी कि

वह अब बस अपने लिए ही जीएगी. 3 महीने के भीतर ही अपने अनुभव, बुद्धि और स्मार्टनैस से कंगना ने कंपनी में अपनी साख बना ली. कंपनी के डाइरैक्टर अमन उस से बेहद प्रभावित थे. वे विधुर थे और एक जीवनसाथी की तलाश में थे. उन्होंने कंगना के सामने शादी का प्रस्ताव रखा मगर उस ने इनकार कर दिया.

कंगना बोली, ‘‘हम अच्छे दोस्त बन कर रह सकते हैं मगर मैं शादी में विश्वास नहीं करती हूं. एक बार शादी कर के और मां बन कर देख लिया हैं और एक ही नतीजा निकला कि हर रिश्ते के मूल में स्वार्थ ही छिपा हैं. अगर आप चाहें तो हम बिना किसी स्वार्थ और उम्मीद के एकसाथ जिंदगी गुजार सकते हैं.’’

कंगना की साफगोई अमन को बेहद पसंद आई. दोनों बिना किसी रिश्ते और उम्मीद के एकसाथ रहने लगे.

कंगना शुरू से ही मेहनती और इंटैलिजैंट थी और इस बार उसे अमन जैसे जौहरी का साथ मिला जो खुद भी अपने काम में नंबर वन हैं.

2 साल में ही उन का बिजनैस टौप पर था. उन की पर्ल इंडस्ट्री न केवल हैदराबाद में वरन पूरे देश में अलग पहचान बन गई.

कंगना और अमन दोनों ने ही नहीं सोचा था कि जीवन संध्या में इस तरह से कामयाबी उन के कदमों तले होगी.

कंगना को भारत सरकार की तरफ से ‘बिजनैस वूमन औफ द ईयर’ पुरस्कार मिल रहा था. उसे अब जिंदगी से कोई शिकायत नहीं थी. देर से ही सही उसे अपने हिस्से की खुशी मिल गई थी.

कंगना और अमन दोनों ही नियत समय पर दिल्ली पहुंच गए थे. कंगना ने पूरे 5 सालों के

बाद उस जमीन पर कदम रखा था जो कभी उस

का घर हुआ करती थी. जहां पर उस ने अपनी आधी से अधिक जिंदगी बिताई थी. इसलिए रहरह कर पुरानी यादों में गिरफ्त हो कर कंगना उदास हो रही थी.

अवार्ड वाली शाम कंगना बेहद नर्वस थी मगर अमन कंगना की हौसलाअफजाई कर रहे थे. अवार्ड लेने के बाद जब कंगना अमन के साथ बाहर निकली तो बाहर आदेश, यामिनी और उर्वी खड़े थे.

दोनों बेटियां भाग कर कंगना के गले लग गईं. आदेश भी एक हारे हुए जुआरी की तरह आंखें नीचे किए हुए खड़ा था.

आदेश हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘जिस दिन से तुम घर से गई हो कुदरत ने भी मुंह मोड़ लिया.’’

बेटियों के आंसुओं से कंगना के अंदर कुछ भी नहीं पिघला. आदेश और दोनों बेटियां बारबार कंगना से घर चलने का इसरार कर रहे थे.

मगर जब कंगना ने इनकार कर दिया तो यामिनी गुस्से मे चिल्लाते हुए बोली, ‘‘आप को इस उम्र में भी अपनी पड़ी है.’’

‘‘आप के ऐसे चाल चलन के कारण कोई भी लड़का हम से शादी नहीं करना चाहता हैं. आप हमारी जिंदगी की खलनायिका हैं, मांएं तो बच्चों के लिए क्या कुछ नहीं करती हैं.’’

आदेश गिड़गिड़ाते हुए बोला, ‘‘मेरे पास बेटियों की शादी के लिए एक

आना भी नहीं है.’’

कंगना ने सधे हुए शब्दों में कहा, ‘‘बेटियों को मैं ने अपने बूते से भी बाहर जा कर पढ़ालिखा दिया है. ऐसी शादी का क्या फायदा जो दहेज

की बैसाखियों पर टिकी हो? रही तुम्हारी बात, हम दोनों के बीच रिश्ता बहुत पहले ही खत्म हो चुका था,’’ उसे सम झ आ गया था कि आदेश और बेटियों को उस की नहीं, उस के पैसों की जरूरत है.

कंगना अब एक मजबूत चट्टान बन चुकी थी जो स्वार्थ के धागों से बंधे रिश्तों से आजाद हो कर जीना चाहती थी.

हवाईजहाज की उड़ान के साथ कंगना के जेहन में ये पंक्तियां चल रही थीं:

‘‘जिंदगी को जीया था मैं ने रिश्तों के नाम पर, खलनायिका नाम पड़ गया है, जब से पहुंची हूं अपने साथ, एक मुकाम पर.’’

Hindi Drama Story

Love Story: प्रेम का तीसरा ऐंगल

Love Story: बेबाकी से कहूंगी नवल भैया मुझे अच्छे लगते हैं. भैया सभी कहते हैं उन्हें, इसलिए मुझे भी कभीकभी कहना पड़ जाता है. वैसे वे यहां किसी के भैया नहीं लगते.

नवल और उन के पिताजी का सोनेचांदी और हीरों का बहुत बड़ा शोरूम है यहां रायपुर शहर में.

मुझ सहित गोल्ड विभाग में 10 कर्मचारी हैं, चांदी का ऊपरी मंजिल पर और हीरों का व्यापार तीसरी मंजिल पर है. हरेक मंजिल में 10-10 कर्मचारी हैं. नवल और उन के पिताजी नीचे यानी सोना विभाग में गल्ले पर रहते हैं लेकिन नवल ऊपरनीचे आतेजाते रहते हैं.

हमारे मैनेजर हैं शशांक भैया जो शायद नवल भैया के कोई दूर के रिश्तेदार हैं, बाकी और भी 2 मैनेजर हैं अलगअलग विभाग में. इन के अलावा गार्ड आदि अलग से हैं ही.

2 साल पहले नवल की जब 28 साल की उम्र में शादी हुई तब मेरी उम्र 20 की थी और मु झे यहां नौकरी जौइन किए बस 6 महीने ही हुए थे. सभी कर्मचारी नवल की शादी में गए थे. मैं भी गई थी जितना संभव हुआ सजीधजी. एकमात्र लहंगा जो मेरे पास था उसे पहन. तब नवल को देख कर मैं दिल हार गई थी.

पहले भी देखा करती थी, अच्छे तो लगते ही थे लेकिन शादी के वक्त उन की स्मार्टनैस और बौडी पर नजर गई तो मैं मन ही मन चारों खाने चित हो गई.

नवल की बीवी पाकिस्तान के सिंध प्रांत से थी. गोरी तो खूब थी लेकिन 6 फुट के नवल के साथ खड़ी 5 फुट की उन की बीवी दिव्या काफी ठिगनी लग रही थी. मन ही मन पता नहीं क्यों मैं ने अपना भी आकलन कर लिया.

5 फुट 7 इंच की हाइट मेरी, गोरा रंग, सुंदर और हीरे कट के चेहरे पर खूबसूरत आंखें और तीखी नाक. बस कमी थी तो अच्छे कपड़ों और पैसे की.

नवल भी बड़े अच्छे दिखते थे. रंग तो उन का सामान्य से साफ था लेकिन उन की घनी सी दाढ़ीमूंछ और सिर पर घने बाल उन्हें परफैक्ट मैन लुक देते थे.

शौप में काम करते हुए मेरे अब 2 साल होने को थे. नवल की हम कर्मचारियों से बातें न के बराबर ही थीं, शशांक सर ही हमें सब काम बताते, ऐसे भी हम लड़कियों का काम ग्राहकों को सामान दिखाना था. मैं काम के बीच में कभीकभी नवल को सिर उठा कर देख लेती.

क्या ही करूं. उन्हें भुला दूं तो मेरी जिंदगी का यह नि र्झर तो सूख जाए. बाकी रखा ही क्या था मेरी जिंदगी में… मारपीट और गालियां. सौतेली मां और स्वार्थी उपद्रवी बाप के साए में पले हम 3 भाईबहन बड़ी मुश्किल से बड़े हुए थे. दरअसल, बड़े हुए ही थे यह सोचसोच कर कि कब हम बड़े होंगे, कब हमें इन लोगों से मुक्ति मिलेगी.

रायपुर के पास भाटापारा में हमारा घर था. ट्रेन से एक घंटे की दूरी थी. रायपुर से भाटापारा रोजाना लगभग 40 लोकल ट्रेनें चलती हैं. किसी तरह 12वीं कर के मैं सालभर से नौकरी की तलाश में थी. 2 सौतेले भाईबहन थे, जो हम से हमेशा ही जलेभुने रहते, इसलिए उन से हमारा कोई संबंध नहीं था. हमारी अपनी मां तो हमारे बचपन में ही गुजर चुकी थीं. मेरे 2 सगे बड़े भाई थे जो 2 साल पहले ही मुंबई भाग गए थे और अब वे वहीं सोने की दुकान पर नौकरी करते थे.

उन्होंने ही मु झे यह नौकरी बताई थी और तब से मैं घर से रायपुर की इस शौप तक ट्रेन से आनाजाना करती थी. घर पहुंचने तक मु झे रात के 10 बज जाते और घर में आधी तनख्वाह दे देने के बावजूद मु झे गंदी गालियां खूब सुननी पड़तीं. मैं इस मुसीबतभरी जिंदगी से तंग आ चुकी थी और आजादी से रहना चाहती थी.

मैं ने नवल की दुकान के आसपास ही पीजी देखना शुरू किया लेकिन आड़े आ रही थी मेरी कम पगार. 10 हजार की तनख्वाह में मैं 4-5 हजार भी दे देती हूं तो मेरा नुकसान ही दिखता था. मैं ने कुछ सोच कर अपनी परेशानी शशांक सर से कही. उन से कहा कि अगर नवल सर की पहचान से पीजी मिल जाए और पैसे कुछ कम हो सकें तो उन की बड़ी कृपा होगी. शशांक सर भले व्यक्ति थे, उन्होंने मेरी बात नवल तक पहुंचा दी.

अगले दिन जब सब चले गए और 2-3 स्टाफ ही दुकान बंद करने के लिए रह गए तो एक किनारे नवल सर ने एक कुरसी में बैठेबैठे शशांक सर को मु झे बुलाने को कहा.

मैं नवल के सामने खड़ी थी, और वे मु झे गौर से देख रहे थे. मैं ने उन का अभिवादन किया तो उन्होंने नर्मी से मुसकरा कर मेरा अभिवादन स्वीकार किया. मेरा सारा शरीर थरथर कांप गया.

जिसे सालभर से अकेली रात को पलकों में बैठा कर नींद के आगोश में जाया करती, जिन्हें सोच कर जिंदगी की मुश्किलों को भुलाया करती आज उन के सामने उन से बातें करने को खड़ी थी.

बहुत जल्दी नवल ने मेरी समस्या हल कर दी. उन के एक दोस्त का पीजी चलता

था. उन्होंने वहां एक बैड और 2 वक्त के खाने का इंतजाम कर दिया. मेरे लिए और महीने के 4 हजार भी वे शौप से देने को तैयार थे. मैं तो पिघल सी गई, बंदा सिर्फ सूरत का ही नहीं, सीरत का भी हीरा है.

नवल ने कहा, ‘‘स्टेशन जाना है न? चलो मैं छोड़ देता हूं तुम्हें स्टेशन, फिर घर चला जाऊंगा.’’

अकसर नवल के पिताजी शाम 7 बजे तक ड्राइवर के साथ अपनी कार में घर चले जाते थे. हम सब कर्मचारी करीब शाम के 8 बजे के बाद धीरेधीरे निकलते थे, नवल, मैनेजर और 2 कर्मचारी रात 9 बजे दुकान बंद करते थे.

नवल खुद ही अपनी कार ड्राइव कर घर जाते. आज मैं उन की बगल वाली सीट पर बैठी थी. आज मेरे लिए सबकुछ खास था और मैं मन ही मन बस काश, काश. कहती अपनी कल्पनाओं में रंग भरे जा रही थी. जानती थी, मेरे मन की बातें कोरी ही रह जाएंगी और नवल मु झे स्टेशन छोड़ निकल जाएंगे.

अचानक नवल ने कहा, ‘‘इतनी खूबसूरत लड़की और इतनी तकलीफें वह भी मेरे रहते.’’

‘‘सर,’’ मैं अचंभित सी बोल पड़ी.

‘‘क्या सर? कुछ और बोलो?’’

‘‘जी, क्या बोलूं?’’

क्यों मैं तुम्हारी जगह होता तो कहता, ‘‘फिर आप ही तकलीफ दूर कर दें.’’

‘‘सर,’’ मैं बेहद शरमा गई थी.

उन्होंने बेतकल्लुफी से कहा, ‘‘इतना सरसर करोगी तो मैं सिर पकड़ लूंगा. दुकान में ठीक है बाहर नवल कहोगी.’’

‘‘सर आप की पत्नी?’’

‘‘बस. हो गया न? सही जा रही हो. अटक गई न और लड़कियों की तरह. ज्यादातर वह मायके में ही रहती है यानी सिंध चली जाती है या फिर दिल्ली, जयपुर नागपुर, अपने रिश्तेदारों के घर. मां मेरी कब की गुजर गई हैं. पापा भी शौप में ही रहते हैं. कामवालियों के भरोसे घर रहता है. उस की जिम्मेदारी में कोई दिलचस्पी भी नहीं रही कभी. हमारी अरेंज्ड मैरिज है. जब तक पास रहेगी नहीं, प्यार भी कहां से पैदा होगा. देखो अब स्टेशन पहुंचने वाले हैं लेकिन मैं कुछ कहना चाहता था तुम से.’’

‘‘कहिए.’’

‘‘क्यों न आज हम लोग खूब गप्पें करें, तुम कुछ मेरी सुनो, मैं कुछ तुम्हारी सुनूं. क्या कहती हो? एक छोटी सी पार्टी भी हो जाए तुम्हारे पीजी मिलने की खुशी में. ठीक है?’’

‘‘पर चलें कहां? आज तो आखिरी ट्रेन से पहुंचूंगी तो गालियों से मेरी आरती हो जाएगी.‘‘

‘‘भई जब मैं हूं तो तुम्हें क्या फिक्र. आज के बाद तुम्हे अपने घर में रहने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी. मु झ पर छोड़ो और जोर से सांस लो. तुम आंखें बंद कर के बैठो, देखो हम अभी पहुंचते हैं वहां जहां हमारी आज की रात बेहद खूबसूरत बन जाएगी.’’

कुछ देर बाद हम एक आलीशान होटल के बड़े शानदार कमरे में थे. इतनी सुविधा

तो मैं ने कभी देखी ही नहीं थी. इतना लाजवाब खाना मैं ने कभी नहीं चखा था. विभोर सी मैं धीरेधीरे नवल की रंगीनी में उतरती चली गई.

भोर 5 बजे मेरी नींद खुली तो अपने मोहे गए बदन के अनावृत रूप पर मैं वारीवारी जा रही थी. यह ख्वाबों की दुनिया थी और मैं जाग कर अपने ख्वाबों को जी रही थी.

इस दौर के बाद अब जबकि नवल मु झ से लिपटा सोया था, मु झ में इतनी हिम्मत आ गई थी कि मैं उस से खुद ही रोमानी हो सकूं.

‘‘नवल कहीं आप मु झे छोड़ तो न दोगे? देखो, आप की बीवी आप से प्यार करती तो क्या वह आप को इतना अकेला छोड़ती?’’

मेरे होंठों को चूमते हुए नवल ने कहा, ‘‘अरे पगली तुम घबराओ मत. अगर मैं तुम्हें इतने करीब से नहीं देखता तो जान ही नहीं पाता कि एक लड़की इतनी भी सुंदर हो सकती है. मैं दिव्या को छोड़ दूंगा, तुम्हें नहीं.’’

तय यह हुआ कि हम यहां से निकलें तो नवल शौप जाए और मैं घर अपना सामान बांधने.

मु झे लौट कर फिर इसी होटल आना था. नवल 4 दिन के लिए सभी को मुंबई जाने की कह कर मेरे साथ चुपचाप इसी होटल में रुक गया. उस ने यहीं से मेरे पीजी में रहना कैंसिल कर दिया था क्योंकि वह मु झे फ्लैट में रखना चाहता था, जहां वह आजादी से मेरे साथ रातें गुजार सके.

क्या दिन, क्या रात हम एकदूसरे में खोते चले गए बेसुध से. इसी बीच नवल ने मेरे रहने के लिए एक 8 हजार किराए वाला एक कमरे का फ्लैट ले लिया, जहां वह बीच बीच में आ कर मेरे साथ रह सके.

एक दिन मेरे फ्लैट में वह मेरे लिए 4 बढि़या सी ड्रैसेज और सोने की अंगूठी ले कर

आया. इतना कुछ देख मैं सुखद आश्चर्य में थी.

नवल ने कहा, ‘‘रूप की रानी रूहानी के लिए मेरी ओर से छोटी सी भेंट. अब तक तुम्हें कुछ दिया नहीं मैं ने.’’

मैं ने कहा, ‘‘क्यों 8 हजार किराए वाला फ्लैट तो दिलवा दिया न.’’

‘‘अरे वह तो ठीक है, हमारे मिलने के लिए कोई सुरक्षित जगह भी चाहिए थी.’’

मैं सम झ गई थी कभीकभी गरीब के पास रूप की दौलत हो तो वह बाकी खुशियां भी अपनी ओर खींच लेता है.

शौप में हम दोनों पहले की तरह ही रहते. शशांक को हमारे बारे में कुछकुछ पता था लेकिन वह मौन ही रहेगा, इस बारे में हम निश्चिंत थे. मगर कभीकभी ऐसा लगता कि कुछ लड़कियां मु झे भांपने की कोशिश करती हैं.

मैं छुट्टी के बाद पहले शौप से निकल कर स्टेशन के लिए औटो पकड़ती थी. अब जहां फ्लैट है, वहां के लिए औटो लेती. हो सकता है छुट्टी के वक्त जब सारे लोग दुकान से बाहर निकल कर अपनेअपने घर की ओर रवाना होते हैं, तब किसी ने मु झे औटो वाले से बात करते सुना हो.

फिर भी मैं उन लोगों के मन को पढ़ने की कोशिश भी नहीं करती. मैं अपनी जिंदगी में आए बदलाव को ले कर नई उमंग से भरी थी. हां, कुछ चिंताओं से भी.

नवल की पत्नी का इधरउधर घूमना तो अब भी जारी था लेकिन नवल अब रात को मेरे पास रुकता नहीं था. चोरीछिपे 9 बजे आ कर रात 11 बजे निकल जाता.

नवल उस रात आया तो मु झ से लिपट गया. फिर कुछ शांत हुआ तो लेट कर छत को देखते हुए बोला, ‘‘एक दिक्कत जो आने वाली थी आ गई है.’’

मैं ने थोड़ा अशांत हो कर पूछा, ‘‘दिव्या?’’

‘‘हां, उसे मु झ पर शक हो गया है. 10 दिन में दिल्ली जाने वाली थी. अब उस फ्लाइट को कैंसिल कर दिया है. कहीं नहीं जाएगी. शादी के बाद कुछ दिन तक वह या तो मायके या फिर रिश्तेदारों के घर भागती रही, अब जब मैं ने अपनी राह ढूंढ़ ली है वह मेरी पहरेदारी में बैठेगी. घर की जिम्मेदारी नहीं उठाएगी. तब उसे घर में सारा दिन अच्छा नहीं लगता था लेकिन अब शक हुआ तो होश आ गया.’’

मैं अब नवल से पूरी तरह खुल गई थी. मैं उस से कस कर लिपट गई. मायूस हो कर कहा, ‘‘नवल, अब मैं तुम्हें नहीं छोड़ सकती. वह तुम से प्यार नहीं करती. वह सिर्फ अपना हक पाने के लिए तुम्हें अपने कब्जे में रखना चाहती है. वह तुम्हें नहीं, अपनी शादीशुदा जिंदगी से प्यार करती है… नवल कुछ तो कहो.’’

‘‘रूही, तुम सही कहती हो. मैं उसे तलाक के लिए राजी करूंगा.’’

इस के बाद से हम ने सोचना शुरू किया कि कैसे दिव्या को तलाक के लिए राजी किया जाए.

नवल से मु झे पता चला कि वह दिव्या के खाने या फिर चाय में ऐसी एक दवा मिला रहा था जो उस में थोड़ी नींद को बढ़ा दे, वह नवल को ले कर ज्यादा सोचविचार कर के अपने रिश्तेदारों को नवल के बारे में खबर न दे सके. यह इंतजाम उस ने अपनी एक बहुत पुरानी खाना बनाने वाली बाई के साथ मिल कर किया था. उसे सोने की चूडि़यां गिफ्ट में दीं और उस की पगार भी बढ़ा दी.

इस से हुआ यह कि दिव्या 9 बजे तक सो जाती और नवल के घर आने का उसे पता

नहीं चलता. लेकिन बात इतनी आसान भी नहीं थी. दिव्या के घर वाले जब उसे 10 बजे फोन करते वह हमेशा सोई मिलती. बात चर्चा में आ गई और उस के घर वाले उसे देखने आ गए. इस तरह तहकीकात करते देख कामवाली ने हाथ खींच लिए और नवल को साफ मना कर दिया कि चाहे वह सोने की चूडि़यां वापस ले ले लेकिन वह नहीं दे सकेगी दिव्या को दवाई.

नवल ने उस की मजबूरी पर इस बात को यहीं खत्म कर दिया.

हम ने तय किया कि नवल दिव्या को सीधे तलाक के लिए राजी कर ले. अगर तलाक होने की शुरुआत हो जाए तो धीरेधीरे हम शादी के लिए भी तैयार हो सकें.

नवल ने उस से इस बारे में कुछ इस तरह बातें कीं और मु झे इस बातचीत की औडियो रिकौर्डिंग सुनाई.

कुछ ऐसी थी उन की बातें…

नवल ने कहा, ‘‘दिव्या तुम महीने के ज्यादा दिन अपने रिश्तेदारों के घर घूमती रहती हो तो शादी क्यों की?’’

‘‘अरे घर में कोई होता नहीं, मैं अकेली कितना रहूं. फिर मेरी चाची, मामी, दीदी के घर अकसर कथा और गुरुजी के अनुष्ठान होते रहते हैं, सारी औरतें प्रवचन सुनने को जमा होती है तो मैं क्यों पीछे रहूं?’’

‘‘सुनो दिव्या, तुम्हें अगर गुरु और उन के प्रवचनों में ही ज्यादा रुचि है तो मु झे छोड़ दो. तलाक ले लो, फिर जहां जाना हो जाओ.’’

‘‘अच्छा. मु झे सब मालूम चल रहा है कि कहीं तुम्हारे गुलछर्रे उड़ रहे हैं, इसलिए मु झे भगाया जा रहा है. रुको अपने घर वालों को बुलवाती हूं.’’

‘‘मै नहीं रहूंगा तुम्हारे साथ, तलाक लोगी कि नहीं?’’ नवल ने चिढ़ कर कहा.

‘‘अब कहीं नहीं जाऊंगी, बस नहीं दूंगी तलाक. बदनामी होगी मेरी.’’

इस बातचीत को सुन कर मैं काफी निराश हो गई. उधर शायद दिव्या ने अपने घर वालों को कुछ बताया था, उस के घर वालों ने नवल से मिल कर दोनों के बीच सम झौते की भी कोशिश की.

ऐसी स्थितियां बन गई थीं कि नवल और मेरे एक होने की कोई सूरत नहीं थी, हम दबाव में इसलिए भी थे कि अगर हमारे बारे में जरा भी खबर बाहर आई तो दिव्या हमारे रिश्ते पर और पहरेदारी बैठाएगी और मैं हो जाऊंगी बाहर.

रात जब नवल और मैं एकदूसरे के करीब आए तो नवल ने मेरे कानों में कुछ कहा

और मैं ने डरतेसहमते इस में हामी भरी.

नवल ने अब ऐसा कुछ करने की ठानी थी कि लाठी भी न टूटे और सांप भी मर जाए.

नवल ने अब मेरे पास आना बंद कर दिया था. हमारे अफेयर के बारे में लोगों को शक हो, यह हम बिलकुल नहीं चाहते थे. इस से मु झे नौकरी से निकाल देने का दबाव भी नवल पर बन सकता था, मेरी रोजी छिन जाए इस वक्त हम यह भी नहीं चाहते थे. दूसरे फ्लैट का किराया नवल और उस के पापा के बिजनैस अकाउंट से आता था, उस पर भी तहकीकात हो जाए तो भी मुश्किल थी.

नवल तो सोशल मीडिया के पब्लिक प्लेटफौर्म में भी मेरे साथ नहीं जुड़ा था ताकि हमारा रिश्ता बिलकुल छिपा रहे.

नवल अब ज्यादा से ज्यादा वक्त दिव्या के साथ बिताने के लिए उस के साथ शौपिंग आदि कर रहा था. उसे दुकान पर गहने दिखाने लाया था और उसे कुछ गहने दिलाए थे. नवल ने मु झे शौप पर आने को मना किया था इस दिन और मैं उस के पहले दिन से ही तबीयत खराब का बहाना बना कर घर पर रुक गई थी. दरअसल, नवल नहीं चाहता था कि दिव्या मु झे देख कर कुछ भांपने की कोशिश करे. सभी लोगों ने देखा नवल अपनी बीवी को कितना मानसम्मान दे कर उसे प्यार से गहने दिला रहा है.

दिव्या को अब नवल में पूरा विश्वास हो आया था. उस का शक निकल गया था. सामान्य स्त्रियां अपने प्यार को परखने के लिए उपहार को माध्यम बना लेती हैं. पुरुषों के लिए स्त्रियों को उपहार देना सिर्फ प्रेम की ही अभिव्यक्ति नहीं होती, कई बार अपने स्वार्थपूर्ति का भी माध्यम हो सकता है.

खैर, नवल ने दिव्या से कहा, ‘‘जानू, तुम्हें शौपिंग पसंद आई न? हम ने 4 दिन साथ में बढि़या समय बिताया. बताओ, क्या ही अच्छा होता कि हम कहीं रोमानी स्पौट में घूमने चले जाते. है न?’’

दिव्या को खुश कर देने वाली बात थी. उस ने खुशी से अपना सामान बांधा और वे घूमने निकल गए.

मैं अब सामान्य तौर पर काम पर आ रही थी और कुछ भी न जानने का बहाना बना रही थी.

यद्यपि एक प्यार करने वाली लड़की को अपने प्रेमी का किसी और स्त्री के साथ रातदिन घूमनाफिरना कितना बुरा लग सकता है, यह ऐसा नहीं था कि मैं महसूस न कर सकती थी. लेकिन दिल को तसल्ली थी कि भले ही वह किसी और के साथ वक्त बिता रहा है लेकिन वह सब मेरे लिए कर रहा है.

नवल बता कर गया था कि वे छत्तीसगढ़ के सारे वाटर रोल घूमेंगे और उस के बाद की सारी घटनाएं मु झे नवल के वापस आने के बाद पता चलीं क्योंकि हम ने तय किया था कि हम फोन पर बातचीत नहीं करेंगे. हम नहीं चाहते थे कि किसी भी घटना को प्रेम का तीसरा ऐंगल मिले. प्रेम का पहला ऐंगल है मिलन, दूसरा ऐंगल है विच्छेद और प्रेम का तीसरा ऐंगल है वह, जो हम नहीं चाहते.

दिव्या और नवल एक हैप्पी कपल की तरह घूमफिर रहे थे. वे चित्रकोट वाटरफाल भी गए, नवल ने फाल का अच्छी तरह मुआयना किया और उसे यही फाल दूसरे सभी फाल से अधिक भयानक लगा. इस के किनारों से उफनती जलधारा गहरी नदी में लगातार हाई करंट के साथ गिरती और नदी तेज गति से बहती जा रही थी.

इस के किनारे काफी फिसलन भरे थे और लोगों के चलने का समतल जगह से ही अचानक घने गहरे प्रपात की शुरुआत होती थी. एक जरा सी चूक जिंदगी खत्म कर सकती थी.

नवल यहां से बहुत जल्द ही दिव्या को वापस ले आया. दिव्या ने कई बार थोड़ी देर यहां और रुकने की जिद की ताकि वह अच्छी तरह जगह को देख सके लेकिन नवल ने उस की नहीं सुनी.

ये सारे वाटर फाल ऐसी जगह थे जो शाम 5 बजे के बाद सुनसान हो जाती. गहरे जंगल से भरे होने के कारण दुकानदार भी अपनी दुकानें बंद कर के घर चले जाते.

चित्रकोट में फाल के साथ लगा बड़ा शिव मंदिर भी था, लेकिन यह भी शाम का अंधियारा गहराते खाली हो जाता.बारिश का मौसम अभी भी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ था, इसलिए रात की गहनता को उफनती जलधारा और भी ज्यादा डरावनी बनाती थी.

आज थोड़ी देर इधरउधर घूम कर नवल दिव्या के साथ दोपहर से पहले ही होटल आ गया और दिव्या को पता था कि वे लोग दूसरे दिन रायपुर चले आएंगे.

शाम 3 बजे से दिव्या ने नवल को उठाना शुरू किया ताकि वे चित्रकोट फाल को अच्छी तरह घूम कर देख सकें और वहां से कुछ लोकल चीजें खरीद सकें क्योंकि नवल ने पिछले दिन इस जगह को उसे अच्छी तरह घूम कर देखने नहीं दिया था.

नवल ने आलसआलस में शाम के 6 बजा दिए और फिर किसी तरह दिव्या को तैयार होने को कहा. निकलते वक्त दिव्या ने नवल को टोका कि नवल ने घिसे हुए जूते क्यों पहने. नवल ने उसे चुप होने का इशारा किया. दोनों जब तैयार हो कर निकले तो शाम के 7 बज चुके थे और दिव्या होटल से निकलते वक्त देर करने के लिए नवल को चार बातें सुना रही थी, जिन्हें होटल के रिसैप्शन वालों ने भी सुना और नवल ने यह गौर किया.

इन के होटल से वह फाल करीब 2 किलोमीटर की दूरी पर होगा. नवल ने पैदल ही वहां तक जाने की बात ठान ली.

जब वे वहां पहुंचे तो एकमात्र छोटी सी बाती मंदिर में जल रही थी, बाकी घना अंधेरा था.

कोई वहां नहीं, कोई कैमरा नहीं ही. सुनसान जनहीन इलाके में बस जल प्रपात की रौद्र गरजन.

नवल भी कांप गया, लेकिन मन को सख्त किया. अभी नहीं तो कभी नही. फिर उस के जीवन का नया सुख, नई मस्ती खत्म हो जाएगी. फिर इसी बोरिंग, स्वार्थी, सामान्य शक्ल वाली अनगढ़ बदन की दिव्या के साथ ताउम्र.

नवल ने खुद के दिमाग पर एक बार भरोसा किया और दिव्या का हाथ पकड़ा, थोड़ाथोड़ा करते फोटो खींचने और यादें संजोने के बहाने उसे मंदिर के पीछे सुनसान अंधेरे प्रपात के किनारे ले जा कर नीचे गहरी नदी में जोर का धक्का दे दिया.

पीछे मुड़ कर देखा भी नहीं और दिव्या की चीखों को पीछे छोड़ वह दनदनाता अंधेरे में गुम हो गया.

रिसैप्शन वालों ने उसे अकेले लौटते देख पूछा, ‘‘मैडम कहां?’’

‘‘अरे घूमने के नाम पर पागलपन चढ़ा है उसे. कल रायपुर वापसी है. कहा, आज रैस्ट करते हैं, नहीं सुना. अब बाहर जा कर भी कहीं लंबी दूरी तक घूमने की जिद कर रही थी. मैं गुस्सा कर के आ गया. उसे बोला वापस चलो तो उस ने कहा, ‘‘तुम जाओ. मैं आ जाऊंगी.’’

वे लोग कपल की मीठीमीठी नोक झोंक की बात पर मुसकरा पड़े. अपने होटल के कमरे में आ कर उस ने शराब पी. बोतल को वहीं किनारे छोड़ वह सो गया.

सुबह उठा और खुद को कुछ अस्तव्यस्त दिखाता हुआ वह नीचे रिसैप्शन में गया.

रिसैप्शन वालों की ड्यूटी बदल गई थी. रात वाले लोग ड्यूटी खत्म कर जा चुके थे. फिर भी उन्होंने नवल की पत्नी के रात वापस न आने की बात सुन पुलिस को सूचना दी.

पुलिस आई और नवल ने बयान दर्ज कराया.

‘‘मै अपनी पत्नी दिव्या के साथ हफ्तेभर से घूम ही रहा था. उसे सारे स्पौट दिखा चुका था और कल दोपहर से आराम करना चाह रहा था क्योंकि आज हमें वापस रायपुर जाना था. लेकिन मेरी पत्नी बारबार घूमने जाने की जिद कर रही थी, किसी तरह मन मसोस कर मैं उठा और सोचा थोड़ी दूर उस के साथ पैदल चलते हुए नजारा देखेंगे, फिर होटल वापस आएंगे. लेकिन मेरी पत्नी लगातार मु झ से  झगड़ती जा रही थी. आप शाम के रिसैप्शन वालों से पूछना. वह अभी 2 दिन यहां और रुक कर घूमना चाहती थी, जबकि मेरी दुकान और बिजनैस से मै इतनी लंबी छुट्टी ले चुका था कि शौप से मु झे लगातार फोन आ रहे थे. तो शाम को कुछ देर चलते हुए जब उस के  झगड़े नहीं रुके तो मैं  झल्ला कर होटल की तरफ मुड़ गया और उस से भी वापस चलने को कहा. उस ने मु झ से गुस्से में कहा कि तुम जाओ, मैं खुद भी आ सकती हूं. मैं गुस्से में लौट आया और आते ही खुद के गुस्से को शांत करने के लिए शराब पी ली. लेट गया और सोचा थोड़ी देर में वह भी आ ही जाएगी.

सोचा था, आधे घंटे तक नहीं आई तो फोन लगा लूंगा, लेकिन इतना थका था कि

कब नींद लग गई पता ही नहीं चला. अभी सुबह उसे कहीं नहीं पाया तो… कब तक मिल जाएगी सर. मु झे अब रायपुर भी जाना है. मेरे पिताजी बेचारे बड़े दिनों से अकेले हैं, दुकान का सारा काम मैं कर्मचारियों को दे आया हूं.’’

पुलिस ने नवल का अच्छी तरह मुआयना किया और कहा, ‘‘कल आप जिन जूतों को पहनकर दिव्या के साथ शाम को निकले थे उन्हें निकालिए, हमें देखने हैं.’’

‘‘जी सर अभी लाया.’’

नवल ने उन हवाई चप्पलों को रात को बहुत अच्छी तरह साफ कर लिया था और उन का नीचे का हिस्सा पूरी तरह ऐसे भी घिसा हुआ था.

पुलिस ने चप्पलें देख कर एकदूसरे से कहा, ‘‘इन्हें देख कर कुछ पता नहीं चल सकता.’’

नवल से कहा, ‘‘आप पुलिस स्टेशन चल कर हमारे अधिकारी के पास मिसिंग रिपोर्ट दर्ज कराएं. हम उन्हें ढूंढ़ेंगे.’’

नवल ने रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद अधिकारी से रायपुर जाने की इजाजत मांगी और अपना सारा पता, फोन नंबर उन्हें नोट कराया. नवल के कहीं राज्य से बाहर जाने की जरूरत पर पुलिस से अनुमति लेने की बात पर हस्ताक्षर कराए गए.

नवल रायपुर वापस आ गया था. जहां कैमरा नहीं था वहां जा कर नवल ने मु झे बता दिया कि काम हो गया है. तय हुआ अब आपस में तब तक हम कोई संबंध नहीं रखेंगे जब तक केस न बंद हो जाए. सोशल मीडिया और फोन में वे पहले भी नहीं जुड़े थे क्योंकि नवल संभल कर चलना चाहता था.

1 हफ्ते बाद खबर आई कि लाश मिली है लेकिन अभी तक कोई फोन नहीं मिला है.

यहां अब तक हम मन ही मन खुशी का अनुभव कर रहे थे कि आखिर दिव्या का बो झ हमारे सिर से उतर गया है, लेकिन लाश मिलते ही जैसे यह लाश हमारे सीने पर चढ़ बैठी.

नवल फ्लैट के किराए का कैश फ्लैट में ही मु झे देने आया. यहां कैमरे नहीं थे, देखसम झ कर ही उस ने फ्लैट लिया था. शहर से थोड़ा बाहर था यह इलाका. हम बहुत दिनों बाद मिले. नवल तो मु झे देखते ही फिर वही सब कुछ पुरानी आदतों में डूब गया लेकिन मैं थोड़ी शांत पड़ गई थी. वह जैसेजैसे अपनी सारी घटनाएं बता रहा था, मेरी रूह कांप रही थी.

दिव्या को रात के अंधेरे में गहरी नदी में गिराने की बात होटल आ कर शराब

पी कर सो जाना, सुबह पुलिस को आसानी से सारी  झूठी बातें बताना, यह इस नवल ने किया.

मु झे अचानक उबकाई आने लगी. यह कितना निर्दयी इंसान है. यह तो खूनी है. मैं एक खूनी के साथ लिपटी पड़ी हूं. मु झे उस वक्त अपनेआप पर घृणा हो आई लेकिन मैं नवल से थोड़ा डरी भी थी इसलिए उसका हर कहा मानती रही.

नवल के चले जाने पर न जाने क्यों आज गहरी सांस ली मैं ने. मैं तो अब भी उस के आकर्षण में बंधी थी. अब भी उसे चाहती थी. अपनी शादी की जल्दीबाजी भी मु झे थी लेकिन हम दोनों के बीच प्रेम का यह तीसरा ऐंगल जो आ खड़ा हुआ था, वह मु झे बेचैन किए था.

बेचैनी नवल को भी कम नहीं थी. लाश मिल जाने के बाद तहकीकात शुरू हो गई थी. उस पर तो चौतरफा मार थी. कानूनी शिकंजा कसता जा रहा था. उस के रिश्तेदारों से भी परख शुरू हो गई थी. उधर दिव्या के मायके वालों ने भी उसे घेर कर हाय तोबा मचा रखी थी.

जितनी नवल की चिड़चिड़ाहट बढ़ती, मेरा डर भी बढ़ता. मैं बहुत अनिश्चित स्थिति में  झूलने लगी थी कि अगर उसे सजा हुई तो मेरा क्या होगा? कहां रहूंगी? कहां जाऊंगी? बहुतेरे सवाल मु झे परेशान किए जा रहे थे.

लाश इतनी ज्यादा गल चुकी थी कि पोस्टमार्टम में पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो पाया  कि धक्का देने के कारण ही वह नदी में गिरी होगी. जैसा नवल ने कहा था वैसा ही मान लेना पड़ा कि वह जिद की वजह से घूमते हुए अकेले प्रपात के मुहाने तक जा कर अंधेरे में गिर गई होगी.

दिव्या के रिश्तेदारों से पुलिस ने पता भी किया कि वह घूमते रहने की शौकीन थी, घर में बंद रहना पसंद नहीं था. घूमने से पहले नवल द्वारा दिव्या को कराई गई शौपिंग आदि भी पूछताछ में सामने आई और यह भी नवल को लाभ दे गई. यह तो मैं ही जान रही थी कि नवल ने किस तरह सोचसम झ कर हर कदम उठाया.

कुछ वास्तविक स्थितियां, कुछ मनोविज्ञान आदि का सहारा लेकर और निष्कर्ष में नवल के विरुद्ध पर्याप्त सुराग न मिलने का लाभ ले कर नवल केस से बरी हो गया.

भले ही नवल कानून की ओर से छूट गया था लेकिन केस पूरी तरह बंद नहीं किया गया था क्योंकि दिव्या के मायके वालों ने अर्जी लगाई थी कि अगर कभी कोई सुराग मिल जाता है और नवल दोषी दिखता है तो उसे कानून के दायरे में लिया जाए.

छूट जाने के बावजूद नवल में एक डर बैठा था और इस वजह वह बहुत ज्यादा गुस्से वाला होता जा रहा था. अब जीवन कुछ सामान्य हो गया था लेकिन वह अकेले में अब मु झ से मिलता नहीं था.

एक दिन नवल के पिताजी ने मु झे दुकान में ही पास बुला कर कहा, ‘‘बेटी, आज शाम मेरे साथ मेरे घर चलना, पूजा है.’’

शाम को मैं उन की ही गाड़ी में उन के घर आई. घर में पूजा का माहौल तो नहीं था

लेकिन कुछ लोग जरूर थे. नवल भी पता नहीं कब शौप से आ चुका था.

आगंतुकों से मेरा परिचय कराया गया. वे 4 लोग नवल की बूआ फूफा और 2 चाचा थे. सब मु झे घेर के बैठ गए तो मेरा दिल धक धक कर गया. पता नहीं इन का क्या मकसद है, अब कहीं खुद के घर के बेटे को बचाने के लिए मु झ पर कोई दबाव…

तभी नवल के पिताजी ने कहा, ‘‘बेटी, दिव्या के साथ क्या हुआ है यह तो हम भी नहीं जानते लेकिन नवल अभी बहुत डिप्रैशन में है, हम सब ने बहुत सोचा और नवल से इस बारे में पूछा कि अगर उस की शादी कर दी जाए तो शायद उस का मन कुछ ठीक हो जाए. केस को धीमा पड़े ऐसे भी साल भर से ऊपर हो चुका है.

‘‘नवल कह रहा है कि तुम उसे अच्छी लगती हो, शादी करेगा तो तुम से कर सकता है.’’

मैं तो इसी दिन का इंतजार कर रही थी और वैसे भी उस के सिवा मेरा और था ही कौन. मैं तो अपनेआप को उसे ही सौंप चुकी थी.

ये लोग काफी धनी थे, कानूनी महल में इन की जानपहचान भी थी और साइकोलौजिस्ट से भी. उन्होंने नवल के डिप्रैशन का परचा तैयार कराया और कानूनी महकमे में  पुरानी जानपहचान का सहारा ले कर मैडिकल ग्राउंड के बूते हमारी शादी कर दी गई.

शादी उन के समाज के हिसाब से 7-8 लोगों के बीच ही निबटा दी गई. मैं ने अपनी नौकरी छोड़ दी, फ्लैट छोड़ा, सामान लिया और आ गई सीधे दिव्या के कमरे में.

महीना 2 महीने नवल मु झ में डूबा रहा. मगर 2-3 महीने में जैसे थोड़ाथोड़ा कर के रंग उतरने लगा. मैं तो प्यार में रंगी आई थी, इसलिए जल्द ही फर्क महसूस करने लगी. शादी हो तो गई थी, लेकिन दिव्या के रिश्तेदारों की हम पर बुरी नजर थी. वे कई बार नवल को दिव्या के लिए फोन कर देते, बातों में उल झाते, सवाल करते और नवल  झल्लाता. हम दिव्या को जितना भुलाना चाहते, कोई न कोई कुरेद देता. मैं अकेली जब कमरे में उस बिस्तर पर सोई रहती जो कभी दिव्या का था, मेरा दिल भारी हो जाता. सोचती, नवल इस तरह उस का खात्मा न कर के किसी तरह उस से कानूनी लड़ाई ही लड़ लेता. हमेशा डर के साए में जीना बेहद मुश्किल हो गया था हमारे लिए.

किसी भी नोटिस या दुकान के किसी कागज को देख कर भी नवल घबरा जाता और शांत होने पर मु झ पर ही गुस्सा निकालता.

आजकल उस में प्यार खत्म हो कर बस देह पर नजरें टिक गई थीं. उस के इस प्रेमहीन शरीर की भूख को देख कर मु झे दिव्या की अंधेरी रात की चीखें याद आतीं. नवल का शातिराना अंदाज का खयाल आता, इस की  झूठी बातें याद आतीं और नवल के प्रति मेरी अनुभूतियां सूख कर रेगिस्तान हो जाती.

इधर अब नवल के कुछ नए दोस्त बन गए. दुकान बंद कर वह उन के साथ ताश

और शराब में रात बिताता.

मैं दिनभर की चिंतित रात को जल्दी सो जाना चाहती, लेकिन रात के 12, 1 बजे तक नवल के लिए बैठेबैठे मैं इस जिंदगी से बेहद उकता जाती.

नवल को बाहर दोस्तों के साथ ज्यादा रात तक वक्त बिताने को मना किया तो वह मु झ पर बरस पड़ा. ‘‘क्यों मैं कोल्हू का बैल हूं तुम्हारे लिए मैं कहां फंस गया था मैं, कुछ सम झती हो? थोड़ा दोस्तों के साथ वक्त भी नहीं बिता सकता बस तुम्हारे चरणों की धूल फांकता रहूं… इतना तनाव है मु झे लेकिन तुम्हें उस से क्या स्वार्थी औरत.’’

वाकई मैं किस स्थिति से गुजर रही थी बस मैं ही जानती थी. मेरी हालत भी शायद अब दिव्या जैसी ही हो रही थी. घर की सजावट और देखरेख करती, कई तरह के पकवान बनाती, लेकिन इन सब के बावजूद मन बड़ा खाली होता जा रहा था. भविष्य एक अनदेखे आतंक की तरह मु झे डराता. इस बीच कहीं बच्चे आ गए तो उन का क्या होगा पता नहीं.

इधर नवल के ऊपर से अब भी कानूनी पेंच का शिंकजा पूरी तरह छूटा नहीं था, उधर मेरा भी मन यहां बसा नहीं था, तिस पर कहीं नवल की जबरदस्ती से बच्चे आ गए तो कैसे संभालूंगी?

फिर वही देर रात नवल आया. जैसेतैसे कुछ खाया और लगा मु झे कुचलने. मैं भी बस एक ही दिनचर्या से उकता गई थी. न कोई बात, न प्रेम की वह गुनगुनाहट. बस अपना स्वार्थ पूरा किया और सो गया, फिर वही मरी हुई सुबह, वही मु झ पर बातबात पर गुस्सा निकालना, अपनी इस जिंदगी के लिए मु झे दोष देना.

मैं अब उस से छिटक कर दूर हो जाती और पीछे मुड़ कर सो जाती. तीसरी रात भी जब नवल मेरे नजदीक आया तो मैं उठ कर अपने बैडरूम से लगी बालकनी में आ गई.

इस बार वह चुपचाप सो नहीं गया बल्कि  झटके से मेरे पास उठ आया और मेरे सिर पर जोर से एक तमाचा जड़ दिया.

‘‘पता नहीं कैसे इस औरत के चक्कर में पड़ कर मैं ने क्या कर डाला और आज किस मुसीबत में फंसा हूं, डर डर कर जीते हुए थक गया हूं मैं. ऊपर से इस के नखरे, लगता है गला घोट दूं इस का.’’

नवल तो आ कर सो गया, मैं वही बालकनी में नीचे रातभर बैठी रह गई.

सुबह जैसेतैसे मैं ने काम निबटाया. हम दोनों ही एकदूसरे से दूरी बना कर चल रहे थे. नवल के दुकान पर निकल जाने के बाद मैं ने अपने मेरे बारे में सोचना शुरू किया.

अब तक नवल के आकर्षण में इस कदर उल झी थी कि जिंदगी की बाकी सचाई

मु झे दिखती ही नहीं थी लेकिन अब इश्क की ऊपरी रंगीन परत निकल गई थी. अंदर का भयावह सच मु झे दिखने लगा था. यह जब एक बार इतना बड़ा खतरनाक खेल कर सकता है, तो दूसरी बार भी क्यों नहीं.

मैं ने देख लिया था, एक बार इस के अंदर स्त्री के लिए नफरत या नापसंदगी पैदा हो जाए तो यह जल्द ही उस से छुटकारा पाना चाहता है और इस के लिए कुछ भी कर सकता है. पता नहीं यह बात मेरे मन के डर की ही अभिव्यक्ति हो, लेकिन अभी जो मु झे लग रहा है उस में कुछ तो सचाई है ही.

मैं नवल से भागना चाहती थी क्योंकि अब उस के प्रति मेरे अंदर का प्रेम डर में बदल रहा था. ऐसे भी किसी के प्रति आकर्षण उस के शरीर से भले ही शुरू हो लेकिन विवाह में प्रेम अपने पार्टनर के प्रति सच्चे सम्मान से ही उपजता है और गहरा होता है.

रोजमर्रा की छोटीछोटी प्रेम की बातें, आपस का खयाल उन के रिश्ते को मजबूत करती हैं पर उस दृष्टि से नवल बिलकुल शून्य साबित हो रहा था. दूसरे, उस का कलंक उस की जमीनी हकीकत बन मु झे उस के साथ के अगले सालों का ब्योरा भी दे रहा था.

खुद को धोखा देना वाकई दर्दनाक है, मैं खुद को और धोखे में नहीं रख सकती थी. अत: मैं ने खुद को बचाने का निर्णय लिया.

मैं ने फोन में ही सर्च कर लिया और कहीं बहुत दूर निकल जाने की ठानी. सच, मैं डरडर कर जीने से तंग आ चुकी थी.

सौतेली मां और उपद्रवी बाप के साए में बिना गलती के डरती रही, नौकरी न छूट जाए, उस के लिए भी डरती रही, प्रेम न छूट जाए, तब भी डरती रही, फिर से बेघर न हो जाऊं, वही डर और अब रोज अपने मन को तोड़ते रहने का डर, जिंदगी खो जाने का डर. बहुत हुआ, मैं अपनी जिंदगी को अब शुरू से अपने मनमुताबिक जीना चाहती थी, हम लड़कियां शायद जिंदगी में दूसरों को पाने के संघर्ष में खुद को ही खो देती हैं. अब इस सच को मैं अपनी जिंदगी में बदलना चाहती थी. मैं ने अपना बैग पैक किया. जरूरी सामान लिया ताकि व्यवस्था मिलने तक काम चल जाए. औनलाइन ही सबबुक किया और जहां रहना था वहां भी सारी पेमैंट कर दी.

यहां के बैंक में जो भी मेरा जमा था उस के लिए मैं ने अपना पता बदलने का ईमेल कर दिया.

रात को नवल की उस प्रेमहीन वासना को आखिरी सलामी दी.

मैं सम झ रही थी वह मेरे लिए ही इस कलंक का भागी बना था लेकिन वह ऐसा न करके भी

कुछ और रास्ता चुन सकता था. एक निर्दोष स्त्री का जो निर्मम तरीके से कत्ल कर सकता है, उस से दया और प्रेम की उम्मीद करना मूर्खता होगी और अगर वासना ही उस के लिए प्रेम हो, शरीर ही उस की एकमात्र कामना हो, एक स्त्री का उस के जीवन में कोई दूसरा औचित्य ही न हो, फिर ऐसे धोखे में रहना अपने साथ बड़ा अन्याय है. एक लाइन लिखा, मैं ने उस के तकिए के पास रख दी. लिखा, ‘‘मु झे ढूंढ़ना मत, मु झे ढूंढ़ने का मतलब होगा अपने पुराने काले सच को ढूंढ़ना.’’

मैं जानती थी, नवल बड़ी मुश्किल से कानूनी शिंकंजे से बचा था और हमेशा उस के दिल में डर बना ही रहेगा, इसलिए निश्चित ही वह मेरा इशारा सम झ कर मु झे भुला ही देगा.

घर में ससुरजी 8 बजे सुबह और नवल 9 से पहले नहीं उठते.

सुबह 4 बजे मैं अपने सामान के साथ निकल गई. चौक पर आ कर मु झे ऊंघता हुआ एक औटो वाला मिल गया जो सवारी के ही इंतजार में था. बस स्टैंड गई और सुकून के साथ बस की खिड़की वाली सीट पर बैठ गई.

2 दिन का सफर तय कर के मैं उत्तरकाशी के एक गांव पहुंच गई. पहाड़ के ऊपर यह गांव प्रकृति का अनुपम उपहार था. इस की सौंदर्य छटा से मेरी सारी क्लांति दूर हो गई. पहाड़ी  झरनों के रास्ते होते हुए मैं जिस आश्रम में पहुंची थी, वह एक सेवाश्रम था.

यहां लोग अपनी मरजी से आ कर रह सकते थे. बस उन्हें आश्रम के काम में हाथ बंटाना होता था. कुछ लोग यहां घूमने भी आते थे. उन्हें अच्छा आरामदायक कमरा मुहैया कराया जाता था और वे इस के लिए निर्धारित रकम देते थे.

जो मेरी तरह हमेशा के लिए रहने आते थे. उन्हें एक छोटी रजिस्ट्रेशन फीस जमा करनी होती थी. इस के बाद वह स्त्री या पुरुष अपनी पसंद के मुताबिक यहां काम चुन लेता था.

मुझे भी एक छोटा सा शांत सुंदर कमरा दिया गया था, जिस में एक और मेरी जैसी

स्त्री भी रहती थी, हंसमुख और शालीन.

इस सेवाश्रम का मुख्य काम था आसपास के गांववासियों की शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के साधनों का ध्यान रखना, आपदाकालीन स्थितियों में उन का सहारा बनना. इन के बड़ेबड़े खेत थे, पशुपालन, दूध के लिए गाए और भैंसें पालन. शिक्षा भी कई तरह की थी, किताबों वाली पाठ के अलावा, गांव के बच्चों और महिलाओं को विभिन्न हस्तशिल्प सिखाया जाता. शहरों और पर्यटकों तक उन के उत्पाद पहुंच सके यह भी व्यवस्था की जाती और रोजगार के उपाय बताए जाने के लिए हर महीने गांव में जनसभा भी की जाती.

कुल मिला कर मैं अपने सारे आश्रम के साथियों के साथ खुशी से रम गई थी. मैं ने खेती में और खाना बनाने में हाथ बंटाना शुरू किया और महिलाओं के साथ हस्तशिल्प भी सीखने लगी.

अब कभी यह तो जानने की कोशिश नहीं करूंगी कि नवल कैसा है या कैसा रहेगा लेकिन मैं सम झती हूं कि प्रेम के नाम पर दूसरों का जीवन बरबाद करने की हमें भी कुछ सजा मिलनी ही चाहिए, अच्छा ही हुआ मु झे अपने प्रेम का तीसरा ऐंगल कुछ इस प्रकार मिला. शायद लोगों के काम आ कर अपनी रूह के बो झ को यह रूहानी अब कुछ कम कर सके.

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Sad Story in Hindi: ‘‘किस  से चैटिंग कर रही हो, नीरू?’’ पवन ने चाय की चुसकी लेते हुए पूछा.

‘‘प्रतीक से, मेरे औफिस के कलीग हैं,’’ मोबाइल पर तेजी से टाइप करते हुए नीरू ने कहा.

‘‘थोड़ी देर के लिए चैटिंग नहीं रोक सकती क्या? हम साथ में चाय पीने आए हैं,’’ पवन की आवाज में खीज  झलक रही थी.

‘‘वह मेरे कंप्यूटर में सेव प्रेजैंटेशंस का ऐक्सैस मांग रहा है. एकाएक जरूरत पड़ गई है उसे. मैं बस उसे फोल्डर का नाम और पाथ सम झा रही थी,’’ नीरू ने शांत स्वर में कहा.

नीरू ने चाय खत्म की और धीरे से कुरसी से उठ खड़ी हुई. पवन भी साथ उठा और दोनों साथ में रैस्टोरैंट से बाहर निकले.

‘‘ठीक है, फिर मिलते हैं,’’ पवन ने कहा.

‘‘बाय,’’ नीरू ने हाथ हिला कर जवाब दिया और दोनों अपनीअपनी राह चल दिए.

मगर नीरू के मन में हलचल थी. जब से उस ने नई नौकरी शुरू की थी पवन का बरताव बदल गया था. वह हर समय सवाल करता. किस से बात करती हो, किस के साथ काम करती हो? अपने हिसाब से वह नीरू का खयाल रख रहा था. पर खयाल के नाम पर पवन का रवैया धीरेधीरे संशय और संदेह में बदलता जा रहा था.

अब अगले महीने औफिस का औफसाइट ट्रिप होना था. पवन से इस बारे में बताया तो उस ने उसे साफ मना कर दिया, ‘‘मत जाओ, बहुत गंदा माहौल होता है वहां,’’ उस ने कहा.

नीरू ने सम झाया कि यह ट्रिप अनिवार्य है पर पवन ने उलटा सु झाव दे दिया, ‘‘नौकरी ही छोड़ दो फिर. इस  झमेले से बच जाओगी.’’

जब नीरू ने व्यावहारिकता की बात सम झाई, तो उसने धमकी दी, ‘‘अगर तुम गई तो हमारा रिश्ता खत्म सम झो.’’

नीरू एक दोराहे पर खड़ी थी. एक तरफ उस का कैरियर, दूसरी तरफ पवन का अहंकारी प्यार. प्यार से ज्यादा एकाधिकार. क्या यह वही पवन था जिस से उस ने भविष्य की उम्मीदें बांधी थीं या फिर अब वह एक ऐसा इंसान के रूप में परिवर्तित हो गया था जो प्यार की आड़ में नियंत्रण चाहता था, अभी उन की सगाई भी नहीं हुई है और अभी से यह बरताव. यदि शादी हो गई तो फिर यह व्यक्ति क्या करेगा.

‘एक स्वस्थ रिश्ते में भरोसा और सम्मान जरूरी होता है,’ उस ने सोचा, ‘अगर वह मु झे मेरी मरजी से जीने नहीं दे सकता तो क्या वह सच में मेरा साथी बनाने के योग्य है.’

अगले दिन औफिस में नीरू व्यस्त थी कि पवन का फोन आया.

‘‘हैलो पवन,’’ नीरू ने हलके स्वर में कहा.

‘‘क्या कर रही हो जानू?’’ पवन ने छेड़ते हुए पूछा.

‘‘सेल्स प्रेजैंटेशन की तैयारी कर रही हूं,’’ नीरू ने कहा.

‘‘किस से मीटिंग है?’’

पवन की आवाज में फिर वही जिज्ञासा थी.

‘‘पवन, अगर कुछ जरूरी हो तो बोलो, मैं बहुत बिजी हूं,’’ नीरू ने थकानभरे स्वर में कहा.

‘‘कैसी लड़की हो तुम? कोई और लड़की होती तो खुश होती कि उस का बौयफ्रैंड उस की फिक्र करता है. व्यस्त होने के बाद भी मौका निकाल कर फोन करता है,’’ पवन ने उलाहना दिया.

अब पानी सिर के ऊपर से निकल रहा था. पवन के इस व्यवहार से नीरू तंग आ

गई थी.

‘‘पवन, मैं सबकुछ अभी नहीं सम झा सकती,  मिल कर सम झाऊंगी. मेरा तुम से मिलना जरूरी है. प्लीज, एक टाइम तय करो, फिर बात करते हैं,’’ कह कर उस ने काल काट दी.

पवन नाराज हो गया. उस ने कई दिन तक नीरू से संपर्क नहीं किया. रविवार भी गुजर गया और दोनों ने एकदूसरे को कोई संदेश नहीं भेजा, जबकि प्राय: रविवार को दोनों जरूर मिलते थे.

सोमवार शाम 5 बजे पवन ने आखिर काल की, ‘‘तुम्हें मु झ से मिलना था, फिर काल क्यों नहीं की?’’ उस ने नाराजगीभरे स्वर में पूछा.

‘‘मैं ने कहा था कि तुम काल करना, मैं सम झी तुम व्यस्त हो. काल कर के तुम्हें तंग नहीं करना चाहती थी,’’ नीरू ने संयम से जवाब दिया.

‘‘6 बजे बीकानेर वाला में मिलो. बात करनी है,’’ पवन ने कहा. उस की आवाज में अधिकार और धमकी का मिश्रण था.

‘‘मेरी 5 बजे मीटिंग है, मैं थोड़ी लेट हो सकती हूं,’’ नीरू ने कहा.

‘‘ऐसे समय में कौन मीटिंग रखता है यार? खैर, मैं इंतजार करूंगा, लेकिन ज्यादा देर मत करना,’’ पवन ने  झल्ला कर कहा.

नीरू को उस की बात अच्छी नहीं लगी, फिर भी उस ने जवाब दिया, ‘‘मैं पूरी कोशिश करूंगी समय पर पहुंचने की. बाय.’’

पवन इतना नाराज था कि उस ने बाय का जवाब भी नहीं दिया.

नीरू 6:30 पर पहुंची. पवन पहले से वहां था. चेहरे पर नाराजगी थी. नीरू को देख कर उस ने जरा भी प्रसन्नता व्यक्त नहीं की. नीरू की हैलो का भी जवाब नहीं दिया. सीधे उलाहना देने लगा, ‘‘मैं 6 बजे से इंतजार कर रहा हूं. तुम ने अपने बौस से नहीं कहा कि जल्दी निकलना है?’’ पवन भड़क कर बोला.

‘‘मैं ने पहले ही बताया था कि देर हो सकती है,’’ नीरू ने शांत स्वर में कहा.

‘‘मु झे इंतजार करा सकती हो लेकिन औफिस से जल्दी नहीं आ सकती?’’ पवन अभी भी गुस्से में था.

उस ने टेबल की ओर इशारा किया, ‘‘तुम्हारे लिए कौफी ली थी. अब ठंडी हो गई है.’’

नीरू ने एक सिप लिया. सचमुच कौफी ठंडी थी. फिर भी उस ने कौफी शिप करनी

जारी रखी.

‘‘तो औफसाइट का क्या किया?’’ पवन

ने पूछा.

‘‘जाना जरूरी है, जोनल हैड आ रहे हैं,’’ नीरू ने स्पष्टता से कहा.

‘‘मु झे ये सब औफसाइट बिलकुल पसंद नहीं. वहां लोग बेहूदा हरकतें करते हैं,’’ पवन बोला.

‘‘हरकोई ऐसा नहीं होता. तुम्हारा नजरिया बहुत एकतरफा है,’’ नीरू ने दृढ़ता से कहा.

‘‘तुम टीचर क्यों नहीं बन जातीं? सुबह

9 से शाम 5 की नौकरी ठीक रहेगी,’’ पवन ने प्रस्ताव रखा.

‘‘वह मेरी पसंद की जौब नहीं है,’’ नीरू ने साफ कहा.

‘‘मैं ने पहले ही कहा है अगर तुम औफसाइट गई तो हमारा रिश्ता खत्म,’’ पवन ने धमकी दी.

नीरू ने गहरी सांस ली और उस की आंखों में देखा. फिर बोली, ‘‘पवन, तुम्हारी ये

हदें पार करती हुई जिद अब असहनीय हो चुकी है. प्यार में विश्वास चाहिए न कि शक और नियंत्रण. जब से मैं ने नई नौकरी शुरू की है तुम्हारा बरताव बदल गया है और अब यह रिश्ता मु झे बो झ लगने लगा है. मेरा फैसला है हमें अलग हो जाना चाहिए. यही कहने के लिए मैं ने तुम्हें बुलाया था.’’

पवन की आंखों में गुस्सा भर आया. उस ने वेटर को बुलाया, बिल चुकाया और बिना पीछे देखे चला गया.

नीरू ने उस के जाते हुए कदमों को देखा. दिल भारी था लेकिन दिमाग शांत.

‘अलविदा, पवन,’ उस ने मन ही मन कहा और बाहर निकल गई. अपने आत्मसम्मान की ओर एक नए रास्ते पर.

नीरू अपने काम में व्यस्त हो गई. ऐसा नहीं था कि वह पवन को मिस नहीं करती थी. जरूर करती थी पर उसे विश्वास हो गया था कि पवन उस के लिए उपयुक्त नहीं है. वह आज नौकरी छोड़ने की बात कर रहा है कल कुछ और सनक भरा आदेश सुना सकता है. पर निश्चित रूप से हर आने वाले दिन पवन की कमी का खलना कम होता जा रहा था और इस में साथ मिल रहा था विनीत का. विनीत ने उस के औफिस जौइन करने के 3 दिनों के बाद ही जौइन किया था. बहुत ही गंभीरतापूर्वक काम करता था. पर मजाकिया भी उतना ही था. किसी बात पर ऐसा पंच मारता था कि लोग हंसने के लिए मजबूर हो जाते थे. उस के इस व्यवहार के कारण बौस भी बहुत खुश रहता था.

एक दिन विनीत छुट्टी पर था. उस दिन छोटी सी मीटिंग राखी थी बौस ने. मीटिंग संपन्न हुई तो बौस ने कहा, ‘‘कुछ कमी महसूस हो रही है आज की मीटिंग में?’’

लोग आश्चर्य से बौस को देखने लगे. किसी ने कुछ कहा नहीं.

बौस ने आगे कहा, ‘‘आज विनीत का न होना मु झे खल रहा है. बीचबीच में उस का वन लाइनर वातावरण को खुशगवार बना देता है.’’

‘‘हां बौस यह बात तो है,’’ कई लोगों ने बौस के हां में हां मिलाई और नीरू तो कहतेकहते रुक गई कि बौस आप ने मेरे मुंह की बात छीन ली.

एक दिन फोन पर किसी क्लाइंट से बात हो रही थी नीरू की. क्लाइंट थोड़ा  झक्की

सा था. फोन रखने के बाद नीरू ने कहा, ‘‘यह आदमी मु झे पागल बना देगा?’’

‘‘बना देगा मतलब?’’ विनीत की

प्रतिक्रिया थी.

उपस्थित सभी लोग हंस पड़े तो नीरू  झेंप गई. बनावटी गुस्से से बोली, ‘‘मतलब मैं पागल हूं ही?’’

‘‘नहीं, मतलब कि तुम किसी भी क्लाइंट को हैंडल कर सकती हो बिना पागल हुए,’’ विनीत ने पैचअप किया.

इस के बाद अकेले में मिलने पर नीरू ने  झूठी नाराजगी जताई विनीत से उस की प्रतिक्रिया पर.

विनीत एकदम से घबरा गया. बोला, ‘‘नीरू, मेरी आदत है मजाक करने की.  झोंक में बोल दिया. दिल मैं ऐसी कोई बात नहीं.’’

‘‘हूं. बौस भी तुम्हारी इस आदत को मिस कर रहे थे जिस दिन तुम छुट्टी पर थे,’’ नीरू ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘सिर्फ बौस और कोई नहीं?’’ विनीत ने पूछा.

‘‘एक लड़की भी मिस कर रही थी जिसे तुम ने पागल करार दिया है सब के सामने,’’

नीरू बोली. बोलते हुए उस के गाल पर लाली सी उभर आई.

और यहीं से शुरू हो गया एक नया रास्ता जिस पर नीरू की प्यार की गाड़ी चल पड़ी.

लगभग 1 माह बीत गया. एक दिन पवन नीरू के औफिस में एकाएक आ गया. नीरू विनीत के साथ बैठी किसी प्रोजैक्ट पर चर्चा कर रही थी. पवन को देख कर चौंक गई. उसे उस का आना अच्छा तो नहीं लगा पर उसे बैठने के लिए कहा, ‘‘आओ बैठो.’’

नीरू ने विनीत से उस का परिचय कराया यह कह कर कि उस का कलीग है. विनीत को उस ने बताया कि उस का फ्रैंड है. पवन बैठ गया. नीरू ने उस के लिए चाय का और्डर कर दिया.

पवन थोड़ी देर बाद बोला, ‘‘नीरू, तुम से कुछ बातें करनी थी.’’

‘‘अभी तो एक प्रोजैक्ट डिसकस कर रही हूं. बाद में नहीं मिल सकते?’’ नीरू ने कहा.

‘‘प्रोजैक्ट मैं देख लूंगा, तुम चाहो तो कैंटीन में जा सकती हो. अभी वहां कोई होगा भी नहीं,’’ विनीत ने कहा.

‘‘बौस से मेरी शिकायत तो नहीं करोगे कि मैं बीच में ही तुम्हें अकेला छोड़ कर चली गई थी?’’ नीरू ने हंसते हुए कहा.

‘‘सिर्फ शिकायत ही नहीं करूंगा. सीसीटीवी देखने के लिए भी कहूंगा,’’ विनीत ने ऊपर कैमरे की ओर इशारा कर के कहा.

‘‘फिर तो मैं जरूर जाऊंगी,’’ नीरू ने कहा और पवन से कहा, ‘‘चलो, चाय वहीं पी लेंगे.’’

दोनों वहां से उठ कर कैंटीन में आ बैठे.

‘‘बोलो, क्या बात करनी है?’’ नीरू ने पूछा.

‘‘सब से पहले मैं अपने व्यवहार के लिए माफी मांगता हूं. क्या हम पहले की तरह दोस्त नहीं रह सकते?’’ पवन ने कहा.

इस बीच चाय आ गई. दोनों चाय शिप करने लगे.

‘‘रह सकते हैं पर सिर्फ दोस्त. इस से

ज्यादा कुछ नहीं. तुम्हारा व्यवहार बहुत पजैसिव है. मु झे सूट नहीं करेगा. तुम भी परेशान रहोगे,’’ नीरू बोली.

‘‘अगर मैं अपना व्यवहार बदल लूं तो?’’ पवन ने पूछा.

‘‘सोच लो. मैं शिक्षित, आत्मनिर्भर लड़की हूं. अपने तरीके से काम करती हूं. मु झे औफसाइट जाना पड़ता है, किसी कलीग के साथ क्लाइंट के पास भी जाना होता है, किसी दूसरे शहर में जाने की आवश्यकता भी पड़ेगी. तुम्हारे अंदर जो पुरुष अहम है वह इसे स्वीकार नहीं कर सकेगा और मेरा आत्मसम्मान तुम्हारे असीमित अधिकार को स्वीकार नहीं करेगा,’’ नीरू ने कहा.

‘‘कोशिश करने में क्या हरज है?’’ पवन

ने कहा.

‘‘फिर ठीक है. मैं फिर से तुम्हारी वही पुरानी वाली दोस्त जो इस कंपनी में जौइन करने के पहले थी,’’ नीरू ने हाथ मिलाते हुए कहा.

पवन ने मुसकरा कर हाथ मिलाया. चाय खत्म कर पवन बाहर चला गया और

नीरू फिर से विनीत के पास चली गई.

विनीत ने गंभीर स्वर में कहा, ‘‘बौस का फोन आया था. वे बहुत नाराज हैं. औफिस के समय तुम अपने दोस्तों से गप्पबाजी करती हो.’’

नीरू घबराई, ‘‘सचमुच?’’

जवाब में विनीत हंस पड़ा. बोला, ‘‘मु झे मौका ही नहीं मिला बौस से तुम्हारी शिकायत करने का. तुम तो इतनी जल्दी आ गई कि मैं

सोच भी नहीं सका कि क्या शिकायत करनी है. बाय द वे, प्रोजैक्ट तैयार है. कुछ चेंज चाहती हो तो देख लो.’’

नीरू ने देखा विनीत ने 15 मिनट के अंदर काफी कुछ सुधार दिया था.

समय बीतता गया. पवन और नीरू मिलते जरूर थे पर अब रिश्तों में दरार आ

चुकी थी. मिलने का कोई उत्साह नहीं दिखता

था और मिलने पर लगता था जैसे समय काटना मुश्किल हो रहा हो. दूसरी ओर विनीत से

नीरू की नजदीकी बढ़ती जा रही थीं. इतनी

कि औफिस के बाद भी दोनों में चैटिंग होती

रहती थी.

एक दिन नीरू और पवन कहीं बैठे हुए थे. इस बीच नीरू और विनीत का चैटिंग शुरू हो गया. नीरू पवन की उपस्थिति से लापरवाह हो कर विनीत के साथ चैटिंग करने लगी. उस के चेहरे पर कभी मुसकान तैर जाती तो कभी वह हंस पड़ती.

‘‘किस से चैटिंग कर रही हो?’’ पवन ने पूछा.

‘‘विनीत से, औफिस का कलीग है. उस दिन तुम आए थे तो उसी ने तो हमें कैंटीन में जा कर बात करने की सलाह दी थी,’’ नीरू ने कहा. पवन थोड़ी देर चुप बैठा रहा. नीरू चैटिंग में व्यस्त थी.

‘‘तुम्हारा कहना ठीक था नीरू?’’ पवन ने उदास हो कर कहा.

नीरू ने चौंक कर पवन को देखा.

‘‘मैं चाह कर भी इस तरह का व्यवहार सहन नहीं कर सकता. हम साथ बैठे हैं और तुम किसी और के साथ चैटिंग में व्यस्त हो. तुम एक शिक्षित, आत्मनिर्भर लड़की हो. अपने तरीके से काम करती हो. तुम्हें औफसाइट जाना पड़ता है, किसी कलीग के साथ क्लाइंट के पास भी जाना होता है, किसी दूसरे शहर में जाने की आवश्यकता भी पड़ेगी. मेरे अंदर जो पुरुष अहम है वह इसे स्वीकार नहीं कर सकेगा. आज से हमारे रास्ते अलग, हमेशा के लिए,’’ बोल कर पवन उठा और बिना पीछे मुड़े चला गया.

नीरू वहीं बैठी चैटिंग करती रही. जब चैटिंग समाप्त हुई तो वह उठी और अपने घर की ओर चल पड़ी. मन ही मन बोली कि सौरी पवन, हम साथसाथ नहीं चल सकते थे. हम दोनों को नया रास्ता तलाश करना होगा. मुझे तो नया रास्ता मिल भी गया है.

Sad Story in Hindi

Suspense Story in Hindi: रहस्यमयी पुरुष

लेखक- रेनू सैनी

Suspense Story in Hindi: ‘‘यह जो लीगल डिपार्टमैंट में नया मैनेजर आया है बहुत ही सिंपल और स्वीट है. किसी से ज्यादा मतलब नहीं रखता.’’

‘‘तुम्हें सिंपल और स्वीट लगता होगा. मु झे तो अजीब सा लगता है. कान देखे हैं उस के, खरगोश की तरह हैं बड़ेबड़े. एकदम नजरें  झुका कर चलता है, चाहे किसी से टक्कर ही क्यों न हो जाएप्त एकदम नशे में धुत लगता है,’’ टीना अरुणा की बात पर बोली.

ऐक्चुअली वह मेरी ब्रांच का मैनेजर है तो मु झे ज्यादा अच्छी तरह पता है. तुम्हारा उस से अब तक सामना नहीं हुआ न, इसलिए ऐसा बोल रही हो. जब जान जाओगी तो तुम भी उस की फैन बन जाओगी.’’

‘‘नो, नेवर मैं और उस नशेड़ी की फैन,’’ टीना हंसते हुए बोली.

टीना बहुत ही मुखर, आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी थी. 33 की आयु हो गई थी लेकिन उसे अभी तक अपने अनुरूप कोई वर ही नहीं मिला था. टीना का कहना था कि उसे विवाह के लिए एक ऐसा पुरुष चाहिए जो उसे सम झे, उस के विचारों का सम्मान करे, अपनी सारी बातें मेरे साथ शेयर करे. वह पढ़ालिखा होना चाहिए और हां उसे सिगरेट, शराब आदि की लत बिलकुल नहीं होनी चाहिए.

यह सुन कर अरुणा कहती, ‘‘ऐसे तो उम्र निकल जाएगी. कहीं न कहीं तो सम झौता करना ही होगा. शादियां हमेशा सम झौते से ही चला करती हैं बल्कि मैं तो यह कहूंगी कि शादी कुछ और नहीं केवल जिम्मेदारी और सम झौते का ही दूसरा नाम है. अब मु झे ही देखो न मेरा पति बहुत स्मोक करता है. जरा सा कुछ बोल दूं तो खाने को दौड़ता है. मैं उस के साथ बच्चों के कारण केवल सम झौता ही तो कर रही हूं. बच्चों से ले कर घर की पूरी जिम्मेदारी सिर्फ मेरी है. उसे सिर्फ अपनी आरामतलबी से मतलब है. जानता है कि सब वक्त पर मिल ही जाएगा.’’

‘‘यार, तुम्हारी बातें सुन कर सम झ नहीं आता कि क्या पुरुष ऐसे ही होते हैं गैरजिम्मेदार. अगर ऐसा ही है तो फिल्मों एवं साहित्य में जो दोनों की कंपैटीबिलिटी पर बातें होती हैं, वह सब क्या है?

‘‘वह सब सिर्फ  फिल्मों एवं साहित्य में देखने को मिलता है. लोग कहते हैं कि स्त्री को सम झना मुश्किल होता है लेकिन अपनी जिंदगी के 50 वसंत देखने के बाद मु झे लगता है कि पुरुष को सम झना बड़ा मुश्किल है. वह बहुत ही रहस्यवादी होता है. साहित्य में रहस्यवाद के साथ एक लैसन पुरुष रहस्यवाद का भी जुड़ जाना चाहिए,’’ और फिर अरुणा एवं टीना दोनों ही जोरजोर से हंसने लगीं. दोनों की दोस्ती बहुत गहरी थी. अरुणा मनोविज्ञान की छात्रा रह चुकी थी, इसलिए अकसर टीना को ऐसी बातें बताती रहती थी. अरुणा लीगल डिपार्टमैंट देखती थी.

एक दिन काम करते हुए ज्यादा टाइम हो गया. उस दिन अरुणा छुट्टी पर थी. काम ज्यादा था. टीना ने जल्दी से अपना पर्स उठाया और औफिस से बाहर निकल गई. बाहर आ कर देखा तो पाया कि बारिश हो रही है. बंद औफिस में और काम के चलते उसे जरा भी अनुमान नहीं था कि बारिश इतनी तेज हो रही होगी. मैट्रो स्टेशन दूर था. तेज बारिश के कारण यातायात के वाहनों की आवाजाही भी कम थी.

अचानक एक गाड़ी उस के पास आ कर रुकी. गाड़ी में माया बैठी हुई थीं. वे कंपनी के लीगल मामलों को देखने के लिए आती थीं. टीना को बहुत अच्छी तरह जानती थीं. माया को देख कर टीना चहक कर बोली, ‘‘हैलो मैम. कैसे हैं आप?’’

‘‘अच्छी हूं. पहले गाड़ी के अंदर आ जाओ. तुम्हें तुम्हारे घर के आसपास छोड़ दूंगी. रात भी हो रही है और तेज बारिश भी.’’

कुछ दूर चलते ही माया की गाड़ी खराब हो गई. तभी अचानक एक गाड़ी पास से गुजरी. कुछ दूर जा कर वह रुक गई. देखा तो गाड़ी में लीगल डिपार्टमैंट के मैनेजर राजन बैठे हुए थे. उन्हें देख कर माया बोली, ‘‘सर, प्लीज आप टीना को मैट्रो या आसपास छोड़ दीजिए. मेरी गाड़ी खराब हो गई है, मैं कुछ करती हूं.’’

राजन बोले, ‘‘मैं तुम्हें भी छोड़ देता हूं. गाड़ी यहीं आसपास पार्क कर देते हैं.’’

लेकिन माया ने मना कर दिया. टीना जल्दी से राजन की गाड़ी में बैठ

गई. पता नहीं क्यों उसे राजन सचमुच अजीब सा लगता था. उस ने सीट बैल्ट लगाई और आगे की ओर देखने लगी. कुछ देर की चुप्पी के बाद टीना ने ही खामोशी तोड़ी और बोली, ‘‘सर, आप को प्रौब्लम हो गई होगी न?’’

‘‘कैसी प्रौब्लम?’’ राजन ने उस की आंखों में देखते हुए कहा.

‘‘मतलब, आप ने ऐसे मु झे लिफ्ट दी… आप का समय खराब हुआ. मेरा तो बिलकुल मन नहीं था आप के साथ बैठने का. लेकिन क्या करूं? माया मैम ने आप पर बहुत दबाव डाला कि आप मु झे आसपास छोड़ दें. यह बारिश भी तो रुक ही नहीं रही. पता नहीं आज क्या हो गया है मौसम को.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है. वैसे आप ने मु झे अभी तक यह नहीं बताया कि आप को छोड़ना कहां है?’’

यह सुनते ही टीना अपने बड़बोलेपन पर शर्मिंदा होते हुए बोली, ‘‘मु झे आप आसपास किसी भी मैट्रो स्टेशन पर उतार दीजिए.’’

‘‘किसी भी मैट्रो स्टेशन पर मतलब? अरे कौन सी लाइन पर उतारना है? राजीव चौक

ठीक रहेगा?’’

‘‘जी… जी बिलकुल आप वहीं उतार दीजिए.’’

राजीव चौक उतरने पर टीना ने राजन को थैंक्यू कहा और मैट्रो की ओर चल पड़ी.

अगले दिन टीना ने अरुणा को बताया कि कल पहली बार वह राजन के साथ लिफ्ट ले कर आई. 1 सप्ताह बाद ही कंपनी में नए सीईओ आ गए. सीईओ आनंद. आनंद ने अपने जूनियर अंनत कुमार से सभी ब्रांचों के काम की जांच करने के लिए कहा. यह भी कहा कि जांच रिपोर्ट 1 सप्ताह के अंदर उन्हें सौंप दी जाए. अनंत कुमार बेहद आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी थे लेकिन बहुत ही खड़ूस थे. सभी ब्रांचों के सीनियर अपनीअपनी ब्रांच के कार्य की रिपोर्ट ले कर अनंत कुमार का इंतजार कर रहे थे.

अरुणा, टीना, राजन, अशोक कुमार, माया, अंगद और रोहित हाल में बैठे थे. जब काफी देर तक अनंत नहीं आए तो अशोक कुमार ने मौन को भंग करते हुए कहा, ‘‘यार बहुत देर हो गई. ये हम से बड़े सीनियर हमारे समय की कीमत ही नहीं सम झते. इन के कहे अनुसार बैठो और खड़े रहो. अच्छी गुलामी है.’’

‘‘बिलकुल सही कहा. यार, यह अनंत कुमार जितना खड़ूस है, उस से ज्यादा तो यह नया सरदार सीईओ आनंद है. घंटों खड़ा रखेगा, बैठने को भी नहीं बोलता. खड़ेखड़े पैर जम जाते हैं पर बंदा नहीं पिघलता,’’ रोहित बोला.

राजन ने कहा, ‘‘अरे पिघलने की बात तो छोड़ो सब से बड़ी बात तो यह है कि इन के सामने सिर  झुका कर हर बात माननी पड़ती है. अभी परसों की बात है. हम सभी सीनियर को उन्होंने ग्रुप मीटिंग के लिए अपने कमरे में बुला लिया. चपरासी वहां पर ब्रैडपकौड़े और गरमगरम चाय रख गया. बरसात के मौसम में ब्रैडपकौड़े और चाय देख कर मेरा मन किया कि तुरंत  झपट पड़ूं.

तभी मेरी नजर आनंद पर पड़ी जो आंखें बंद कर कुछ बुदबुदा रहे थे. अब मैं भी यहां

नया हूं. मु झे लगा ऐसा कुछ रिवाज होता होगा. मैं ने भी अपनी आंखें बंद कर लीं. कुछ देर बाद उन्होंने भी अपनी आंखें खोलीं और मैं ने भी. उन्होंने ब्रैडपकौड़े का आधा पीस उठा कर उसे एक कोने में रख दिया, मैं ने भी ऐसा ही किया. फिर उन्होंने उस ब्रैडपकौड़े को देख कर हाथ जोड़े, मैं ने भी ऐसा ही किया. मैं सम झ नहीं पा रहा था कि वे ब्रैडपकौड़े की पूजा कर रहे थे या किसी ईश्वर की.’’

इस पर अशोक कुमार बोले और तब उन्होंने तुम्हें गुस्से से कहा, ‘‘क्या तुम भी उसी गुरु को मानते हो, जिसे मैं?’’

इस पर मैं ने बोला तो वे गुस्से से आंखें दिखा कर बोले, ‘‘फिर खाते क्यों नहीं? यह क्या नाटक कर रहे हो? सच मु झे तो सम झ ही नहीं आया कि मैं क्या करूं’’?

‘‘सर, आप को मालूम नहीं कि उस समय हम ने कितनी मुश्किल से अपनी हंसी रोकी हुई थी,’’ रोहित बोला.

इस प्रसंग को सुन कर सभी जोरजोर से खिलखिला कर हंस पड़े. राजन के द्वारा इस प्रसंग को सुनने के बाद टीना हैरानी से कुछ देर तक

उसे देखती रही. वह तो उसे भी एकदम खड़ूस मानती थी.

अब कई बार टीना राजन को गुड मौर्निंग कर दिया करती थी. कभीकभी छोटीमोटी बात भी हो जाती थी. एक दिन किसी केस के सिलसिले में दोनों को साथ जाना पड़ा. उस दिन दोनों ने लंच भी एक रैस्टोरैंट में किया. उस दौरान दोनों को ही एकदूसरे के बारे में बहुत कुछ पता चला.

‘‘आप की फैमिली में कौनकौन हैं?’’

‘‘मैं, मेरी पत्नी और 1 बेटी.’’

‘‘मु झे देख कर तो आप को आइडिया लग ही गया होगा कि अभी तक अनमैरिड हूं.’’

2-3 बार कार्यवश मिलने के दौरान ही राजन और टीना एकदूसरे से बहुत खुल गए थे. दोनों की उम्र में बहुत अंतर था. लेकिन फिर भी दोस्ती ऐसी बनती जा रही थी जैसी शायद ही किसी की होती हो. पहले टीना अरुणा को राजन से हुई सारी बातें बता दिया करती थी लेकिन अब वह अरुणा को सब नहीं बताती थी. धीरेधीरे टीना और राजन अपने जीवन की सारी बातें एकदूसरे से करने लगे थे.यह भी कहा जा सकता है कि भावनात्मक रूप से दोनों एकदूसरे की आदत बन गए थे. टीना राजन के सीनियर होने पर भी उसे राजू कह कर बुलाती थी.

राजन एक बेहद ईमानदार अधिकारी था. वह स्पष्टवादी था. अपनी पत्नी व बेटी की बातें भी टीना को बताता था. उस ने इस बात को भी स्वीकार किया था कि ईमानदार अधिकारी होने के कारण उस की पत्नी से कई बार अनबन भी हो जाती है. पत्नी सीमा उसे इस बात का भी दिनरात ताना देती है कि 50 साल की आयु तक उस ने अभी तक मकान भी नहीं बनाया.

एक दिन आनंद ने पूरे औफिस के लिए राजकचौड़ी का और्डर दिया. सभी ने बेहद स्वाद ले कर राजकचौड़ी का आनंद उठाया. अचानक टीना राजन के कमरे में गई तो देखा कि राजकचौड़ी बिलकुल पैक पड़ी हुई थी.

‘‘क्या हुआ सर आप ने राजकचौड़ी क्यो नहीं खाई?’’ टीना ने पूछा.

‘‘अरे खाता तो तब जब मु झे पता चले कि इसे कैसे मिक्स करूं? इस के साथ दही, चटनी पता नहीं क्याक्या अंटशंट है.’’

‘‘आप ने आज तक राजकचौड़ी नहीं खाई?’’ टीना अपनी बड़ीबड़ी आंखें करते हुए बोली.

‘‘हां तो नहीं खाई. अब खाने की इतनी चीजें हैं. क्या तुम ने कभी सांप का अचार खाया है? नहीं न. पर मैं तुम्हारी तरह आंखें बड़ी कर के नहीं बोल रहा कि अरे टीना तुम ने कभी सांप नहीं खाया.’’

इस पर टीना जोरजोर से हंस पड़ी. फिर उस ने आनंद को बताया कि राजकचौड़ी कैसे खाई जाती है? इस तरह टीना राजन को बहुत सी बातें बताती थी. राजन उस की बातें मानता भी था.कई बार वह सोचता भी था कि आखिर उस से इतनी कम उम्र की लड़की इतनी सम झदार कैसे है?

एक दिन टीना औफिस में काम कर रही थी. अचानक राजन का मोबाइल बजा. उस दिन राजन छुट्टी पर था. जैसे ही उस ने फोन उठाया वैसे ही उसे रोने की आवाज सुनाई दी. टीना भौचक्की सी फोन पर बोली, ‘‘हैलो राजू… क्या हुआ? आर यू ओके? बताओ क्या हुआ?’’

टीना के बहुत बार पूछने पर राजन बोला, ‘‘आज मेरे पिताजी की पुण्यतिथि है. मैं उन से बहुत अटैच था. सारे भाईबहनों में मैं ही उन का प्यारा था. आज उन को गए 5 साल हो गए हैं. आज भी मैं उन्हें बहुत मिस करता हूं. टीना मु झे अपने फादर की बहुत कमी खलती है.’’

टीना ने राजन को सम झाया कि जीवन और मृत्यु तो कुदरत के हाथ में है. हम सभी उस के निर्णय के सामने लाचार हो जाते हैं.मैं हूं न. चिंता मत करो. सब ठीक होगा. इस के बाद से तो राजन टीना के साथ बेहद जुड़ाव महसूस करने लगा था.

अंतर्मुखी राजन टीना के साथ बेहद बर्हिमुखी था. एक दिन उस ने इस बात को भी स्वीकार कर लिया कि पहले दिन ही उस की नजर टीना पर पड़ गई थी. वह उस की मासूमियत देख कर उसे देखता रह गया था. यह सुन कर टीना का हैरानी से मुंह खुला का खुला रह गया. वह बोली, ‘‘अच्छा मु झे लगता था कि तुम अपनी नजरें ऐसे नीची कर लेते हो जैसे कभी किसी महिला की शक्ल ही न देखी हो.’’

इस पर राजन ने कहा, ‘‘पुरुष अकसर ऐसे ही होते हैं.वे अंदर से कुछ और होते हैं और बाहर से कुछ ओर.’’

‘‘और तुम कैसे हो?’’ टीना ने पूछा.

राजन तपाक से बोला, ‘‘तुम मु झे पुरुष मानती कहां हो? तुम तो मु झे थर्ड पार्टी कहती हो.’’

‘‘हां वह तो तुम हो. तुम लल्लू तो हो यार यह तो मानना पड़ेगा. वह तो मेरे जैसी स्मार्ट लड़की ने तुम्हें थोड़ाबहुत ठीक कर दिया है. सच कहूं यार मैं ने भी आज से पहले किसी पुरुष को इतना जोरजोर से रोते नहीं देखा जैसे तुम रोते हो. अब तो मेरे सामने तुम बहुत बार रो चुके हो.’’

‘‘हां तो क्या पुरुष इंसान नहीं होते क्या? हद है यार. भई बाकी का मु झे पता नहीं लेकिन मैं तो बहुत इमोशनल हूं.’’

एक दिन टीना बोली, ‘‘सुनो यार, जब हम इतने अच्छे दोस्त हैं तो फिर तुम मु झे सीमा से भी मिलवा दो न. मु झे नहीं लगता कि उसे हमारी दोस्ती पर कोई एतराज होगा.’’

यह सुनते ही राजन बोला, ‘‘नहींनहीं तुम्हें मालूम नहीं टीना. औरतें बहुत शक्की होती हैं, फिर तुम जैसी खूबसूरत लड़की को देख कर तो उसे पक्का संदेह हो जाएगा कि चक्कर कुछ और है.’’

‘‘अरे ऐसा नहीं होगा. फिर यह कैसे संभव है? खुद ही बताओ मेरी और तुम्हारी उम्र में इतना अंतर है. दूसरा मैं तुम्हें कभी इस नजर से नहीं देखती.’’

राजन बोला, ‘‘कभी बाद में देखेंगे. अभी तो नहीं.’’

‘‘टीना तुम शादी क्यों नहीं कर लेती? जिंदगी में सभी को एकदूसरे का सहारा चाहिए होता है. एक दिन राजन बोला.

‘‘राजू, यार मैं किस से शादी करूं तुम ही बताओ? ऐरेगैरे लड़के मु झे पसंद नहीं. फिर मैं विवाह के बाद कई लोगों के इतने सारे लड़ाई झगड़े और अलगाव देख चुकी हूं कि मेरा इस बंधन में बंधने को मन ही नहीं करता. वैसे भी यह कहां लिखा है कि सहारा केवल पति दे सकता है दोस्त नहीं.’’

यह सुन राजन हंसते हुए बोला, ‘‘हां बात भी सही है. यार तुम ऐसे लौजिक निकालती है कि दूसरे को जवाब ही नहीं सू झता.’’

टीना और राजन एकदूसरे से फिल्म से ले कर सैक्स तक पर घंटों बिना रुके बातें कर सकते थे. दोनों की ट्यूनिंग मिल गई थी. दोनों ने अपने बहुत सारे सीक्रेट्स भी एकदूसरे को बताए थे. दोनों अकसर पुरानी फिल्मों और गानों पर चर्चा करते थे. ऐसा कुछ नहीं था जो दोनों को एकदूसरे के बारे में पता न हो. दोनों एकदूसरे का साथ भी देते थे. दोनों में अधिकारी एवं जूनियर जैसी कोई बात नहीं थी. औफिस में भी उन दोनों की दोस्ती को ले कर खुसरफुसर होती थी लेकिन दोनों ही इस पर ध्यान नहीं देते थे.

टीना अकसर जिक्र होने पर कहती भी थी कि लोगों की गंदी सोच का हम कुछ नहीं कर सकते. यह कहां लिखा है कि एक मर्द और औरत अच्छे दोस्त नहीं हो सकते? हम ही उन्हें सिर्फ एक रिश्ते में देखना चाहते हैं. दूसरा कोई रिश्ता समाज को मर्द और औरत का पसंद ही नहीं आता. इस के लिए समाज को अपनी मानसिकता बदलने की जरूरत है मु झे नहीं.

एक दिन राजन ने टीना को सीमा से भी मिलवा दिया. सीमा बड़े ही सहज तरीके से मिली. टीना को सीमा बहुत ही सुल झी हुई महिला लगी.

राजन ने कहा, ‘‘टीना सीमा तुम्हारी बहुत तारीफ कर रही थी. तुम्हारी खूबसूरती और साथ ही तुम्हारे मिलनसार स्वभाव की भी.’’

टीना बोली, ‘‘मु झे भी सीमा का स्वभाव बहुत पसंद आया.’’

4 साल बाद राजन की वहां से ट्रांसफर हो गई. राजन और टीना दोनों को ही एकदूसरे से बिछुड़ने का बहुत दुख था. राजन मुंबई जा रहा था. राजन के मुंबई जाने के कुछ दिनों तक टीना को अजीब सा लगा. लेकिन फोन पर उन की रोज बातें होती थी.

दोनों फोन पर बातें कर के अकसर कई लोगों का मजाक भी उड़ाया करते थे. दोनों ही इस बात को मानते थे कि दुनिया में किसी की भी दोस्ती ऐसी नहीं होगी जैसी उन दोनों की है. बिलकुल अलग, अद्भुत. राजन अकसर उसे पुरुषों की सोच से भी अवगत कराता रहता था.

टीना बोलती, ‘‘यार, तुम खुद पुरुष होकर मेरे से पुरुषों की बुराई कैसे कर लेते हो?’’

इस पर राजन कहता, ‘‘इसलिए ताकि तुम यह सम झ जाओ कि पुरुष और उन की नीयत कैसी होती है? जिंदगी में कभी भी किसी पुरुष के  झांसे में मत आना.ये बहुत अवसरवादी होते हैं. इन बातों से अवगत करा कर मैं तुम्हें मजबूत बनाना चाहता हूं ताकि तुम भविष्य में किसी पुरुष की मीठी बातों में न आओ. तुम ने मु झे कभी मीठी बात करते देखा है? हम आपस में लड़ते झगड़ते भी हैं लेकिन फिर एक हो जाते हैं क्योंकि दिल से एकदूसरे की इज्जत करते हैं.’’

टीना को इस बात में सचाई नजर आती थी.

राजन अकसर फोन पर टीना से मजाक में कहता, ‘‘यह तो पक्का है कि मैं तुम से पहले मरूंगा. लेकिन मैं चाहता हूं कि तुम मेरे अंतिम संस्कार में जरूर शामिल होओ. तुम मेरे दिल के बहुत करीब हो, शायद मेरी पत्नी सीमा से भी ज्यादा. मु झे पता है यह गलत है. लेकिन यही सच है. तुम से मैं भावनात्मक रूप से बहुत गहराई तक जुड़ गया हूं,’’ यह कह कर राजन रोने लगा.

टीना ने उसे चुप कराया और कहा, ‘‘मैं जानती हूं कि हम दोनों एकदूसरे से बहुत अटैच हैं पर यह बताओ कि तुम्हारे मरने की खबर मु झ तक पहुंचेगी कैसे? तुम बताने आ जाना. मैं तुरंत चली आऊंगी.’’

यह सुन कर राजन रोतेरोते हंसने लगा.

अचानक कुछ दिनों से राजन फोन नहीं उठा रहा था. टीना की सम झ में नहीं आ रहा था कि वह किस से पूछे? कहां जाए? उस के पास सीमा का नम्बर भी नहीं था. आखिर एक दिन उस ने संदेश बौक्स में लिखा, ‘‘कहां हो.’’ पर कई दिन बीत जाने पर भी कोई जवाब नहीं आया. कहीं राजन ने अपना फोन बदल तो नहीं लिया. यह सोच कर टीना ने भी अब उस नंबर पर फोन करना बंद कर दिया. उसे सम झ ही नहीं आ रहा था कि वह राजन जो छोटी से छोटी बात उसे बताए बिना नहीं रहता था, अचानक कहां चला गया? कहां गुम हो गया?

किस रहस्य की परत में खो गया?

एक दिन रात के समय टीना टीवी देख रही थी. अचानक उस के मोबाइल पर एक अनजान नंबर से फोन आया. टीना ने जैसे ही फोन उठाया तो आवाज आई, ‘‘तुम टीना हो?’’

‘‘जी,’’ टीना बोली.

तुरंत दूसर ओर से आवाज आई, ‘‘मैं सीमा बोल रही हूं. राजन इज नो मोर.’’

यह सुनते ही टीना के हाथ से मोबाइल गिरतेगिरते बचा. फिर बोली, ‘‘मैम… यह कब हुआ? कैसे हुआ?’’

सीमा रोते हुए बोली, ‘‘उन के शरीर के सारे अंगों ने धीरेधीरे काम करना बंद कर दिया था. वे बहुत ड्रिंक करते थे. तुम्हारा अकसर घर में जिक्र करते थे. बातबात में तुम्हारी तारीफ. मु झे चिढ़ होने लगी थी. अपने से इतनी छोटी उम्र की लड़की के साथ वे ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर कर रहे थे.’’

यह सुन कर टीना को बहुत धक्का पहुंचा. वह खुद को संभालते हुए बोली, ‘‘मैम, प्लीज आप ऐसा क्यों कह रही हैं? हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं था. वे तो बहुत अच्छे इंसान थे. मैं ने आज तक उन के जैसा ईमानदार पुरुष इस दुनिया में नहीं देखा.’’

सीमा फोन पर रोंआसी आवाज में हंसते हुए बोली, ‘‘पुरुष ईमानदार? अगर वे

इतने ही ईमानदार होते तो अपने जवान दिव्यांग बेटे का कुछ तो खयाल करते. वे तो हमेशा तुम्हारे पक्ष को संबल बनाने में लगे रहे. हमेशा हम से ज्यादा उन्हें तुम्हारी चिंता रहती थी कि टीना अकेले सब कैसे संभालेगी? उन का दिव्यांग बेटा अकेले सब कैसे संभालेगा, यह उन्हें चिंता कभी नहीं हुई.’’

इस पर टीना के मुंह से निकल गया, ‘‘उन्होंने तो कहा था कि उन की केवल 1 बेटी है. बेटे के बारे में उन्होंने कभी नहीं बताया.’’

सीमा बोली, ‘‘कैसे बताते? उन्हें दिव्यांग बेटे से मिलाते हुए शर्म जो आती थी. अरे अब बेटा दिव्यांग है इस में मेरा या उस का या फिर किसी का क्या दोष?’’

‘‘घर में कोई दिन ऐसा नहीं था जिस दिन हमारी लड़ाई न होती हो. आज मैं तनाव में तुम्हें फोन कर रही हूं. मन तो कर रहा है कि तुम से मिल कर 2-4  झापड़ मारूं. आखिर तुम ने उन पर ऐसा क्या जादू कर दिया था जो सिर्फ वे तुम्हारी ही बातें करते थे. घरपरिवार की उन्हें कोई चिंता ही न थी. जवान बेटी के सामने बाप ऐसी हरकतें करेगा तो बेटी को कैसा महसूस होगा.’’

टीना जड़वत हो कर यह सब सुन रही थी कि तभी उसे फोन पर दूसरी महिला का

स्वर सुनाई दिया. वह बोली, ‘‘मैं उन की बेटी हूं. मु झे बड़ी शर्म आती है कि तुम ने एक औरत हो कर दूसरी औरत का घर खराब कर दिया. वे तुम्हारे साथ इतने मित्रवत कैसे हो सकते हैं? हमें आज तक यह सम झ नहीं आता,’’ कह कर उस ने फोन पटक दिया.

फोन कटने के बाद टीना बहुत देर तक शून्यचित्त सी खड़ी रही. उसे सम झ ही नहीं आ रहा था कि ये सब क्या था? क्या वाकई राजन ईमानदार पुरुष थे या फिर यहां अरुणा की रहस्यवाद पुरुष वाली बात सार्थक हो गई थी.जो भी हो लेकिन यह तो स्पष्ट था कि इस प्रकरण पर से परदा सिर्फ राजन उठा सकता था. अफसोस कि राजन अब जिंदा नहीं था.

Suspense Story in Hindi

Silk Mark: उपभोक्ताओं के अधिकारों का रक्षक और शुद्ध रेशम की पहचान

Silk Mark: भारत की पहचान उसकी समृद्ध परंपराओं और अद्वितीय वस्त्र संस्कृति में छिपी है. इन्हीं में से एक है रेशम, जिसे सदियों से “वस्त्रों की रानी” कहा जाता है. लेकिन बाज़ार में असली और नकली रेशम की पहचान करना आम उपभोक्ता के लिए आसान नहीं. ऐसे में भारतीय रेशम मार्क संगठन (Silk Mark Organisation of India) उपभोक्ताओं के अधिकारों की सुरक्षा का सशक्त प्रहरी बनकर उभरा है.

उपभोक्ताओं के लिए भरोसे की मुहर

सिल्क मार्क, भारत सरकार के केंद्रीय रेशम बोर्ड (Central Silk Board) की पहल है, जो यह सुनिश्चित करता है कि उपभोक्ताओं को 100% शुद्ध रेशम से बना उत्पाद ही मिले. हर असली रेशमी परिधान या साड़ी पर लगा सिल्क मार्क लेबल उपभोक्ता के लिए विश्वास का प्रतीक है – यह बताता है कि उत्पाद पूरी तरह असली रेशम से बना है. अब से जब भी आप शुद्ध रेशम खरीदें, सिल्क मार्क अधिकृत दुकानों में हे जाएं और सिल्क मार्क लेबल देखकर ही सिल्क खरीदें.

इस लेबल की मदद से उपभोक्ता न केवल ठगी से बचता है, बल्कि असली भारतीय बुनकरों और रेशम उत्पादकों को भी समर्थन देता है.

सिल्क मार्क एक्सपो: शुद्धता और शिल्प की संगमस्थली

हर वर्ष देश के विभिन्न हिस्सों में आयोजित होने वाले सिल्क मार्क एक्सपो उपभोक्ताओं को सीधे बुनकरों और असली रेशम निर्माताओं से जोड़ते हैं. इन प्रदर्शनियों में न केवल बनारसी, कांजीवरम, पैठनी, पोचमपल्ली इत्यादि मशहूर साड़ियों की झलक मिलती है, बल्कि भारत के छोटे-छोटे रेशम क्लस्टर्स की अनूठी कलाओं से भी परिचय होता है.

सिल्क मार्क एक्सपो का उद्देश्य है उपभोक्ताओं को शुद्ध रेशम की पहचान के बारे में शिक्षित करना, असली उत्पादकों को प्रत्यक्ष मंच देना, रेशम के पारंपरिक शिल्प को आधुनिक बाजारों से जोड़ना और उपभोक्ता अधिकारों की सच्ची रक्षा.

भारतीय रेशम मार्क संगठन केवल लेबल जारी करने तक सीमित नहीं. यह संस्थान देशभर में प्रशिक्षण, परीक्षण प्रयोगशालाएँ और जागरूकता अभियान चलाता है ताकि उपभोक्ता को हर स्तर पर जानकारी और सुरक्षा मिले.

यदि किसी उपभोक्ता को संदेह है कि खरीदा गया रेशमी उत्पाद असली नहीं है, तो वे इसे सिल्क मार्क की प्रयोगशालाओं में जांच के लिए भेज सकते हैं – यह सुविधा एक न्यूनतम शुल्क पे आम लोगों के लिए भी उपलब्ध है.

असली रेशम का असली सम्मान

भारत की बुनाई परंपरा को जीवित रखने और उपभोक्ताओं को शुद्धता का भरोसा दिलाने का जो कार्य सिल्क मार्क कर रहा है, वह वास्तव में एक सामाजिक आंदोलन बन चुका है. हर बार जब हम सिल्क मार्क लेबल देखते हैं, तो यह न केवल शुद्ध रेशम की गारंटी देता है, बल्कि हजारों बुनकर परिवारों की मेहनत और सम्मान को भी पहचान दिलाता है.

Silk Mark: पुराने रेशमी परिधानों का नया अवतार: अपसाइक्लिंग से बन रही है नई फैशन पहचान

Upcycling: फैशन की दुनिया में हर दिन कुछ नया होता है — पर आज जो ट्रेंड सबसे खूबसूरत और सार्थक बन रहा है, वह है अपसाइक्लिंग (Upcycling) यानी पुराने कपड़ों को नया जीवन देना. खासकर जब बात शुद्ध रेशम की हो, तो यह ट्रेंड न केवल पर्यावरण के लिए अच्छा है, बल्कि भावनाओं से भी जुड़ा है. अब कई महिलाएँ अपनी माँ या दादी की पुरानी रेशमी साड़ियों को लहंगे, कुर्तियों, ड्रेसेज़ या यहां तक कि होम फर्निशिंग आइटम्स में बदल रही हैं – और यह बदलाव सुंदर भी है और टिकाऊ भी. इससे न केवल पुराणी साड़ी का नए रूप में इस्तेमाल हो रहा है बल्कि देश की परंपरा का भी एक सुन्दर नया स्वरुप दिख रहा है.  साथ ही सिल्क मार्क लेबल युक्त शुद्ध रेशम के पीछे अनगिनत किसानों, बुनकरों और विक्रेताओं के आजीविका को भी सुनिश्चित किया जा रहा है.

पुरानी साड़ियों की नई कहानी

रेशम की साड़ियों की खासियत यह है कि वे सालों तक अपनी चमक और बनावट बनाए रखती हैं. ऐसी साड़ियाँ जिनका भावनात्मक या पारिवारिक मूल्य होता है, उन्हें फेंकना मुश्किल होता है. अब डिज़ाइनर और युवा महिलाएँ मिलकर इन साड़ियों को नए डिज़ाइन वाले परिधानों में बदल रही हैं — कभी वे अनोखे लहंगे, कभी फ्लोई मैक्सी ड्रेसेज़, और कभी कुर्तियाँ बनकर सामने आती हैं.

कई डिज़ाइन कॉलेजों में भी यह ट्रेंड एक नया विषय बन चुका है — “सस्टेनेबल फैशन” के अंतर्गत रेशम के पुनः उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है.

पर्यावरण के लिए भी फैशनेबल कदम

अपसाइक्लिंग न केवल भावनात्मक और सौंदर्य दृष्टि से लाभकारी है, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण में भी अहम भूमिका निभाता है. रेशम जैसे प्राकृतिक फाइबर को पुनः उपयोग में लाना टेक्सटाइल वेस्ट को कम करता है और सस्टेनेबल फैशन मूवमेंट को मजबूती देता है.

इस ट्रेंड को अपनाने वाली महिलाएँ कहती हैं — “यह सिर्फ कपड़ों का पुनः निर्माण नहीं, बल्कि यादों को फिर से पहनने जैसा अनुभव है.”

डिज़ाइनर्स की रचनात्मक सोच

कई भारतीय डिज़ाइनर अब “Heritage Revival Collections” बना रहे हैं — जिनमें पुरानी रेशमी साड़ियों से बने मॉडर्न आउटफिट शामिल होते हैं. वे पारंपरिक कारीगरी को आधुनिक सिल्हूट्स से जोड़ते हैं, ताकि नई पीढ़ी भारतीय रेशम की शान को अपने स्टाइल में ढाल सके.

इन डिज़ाइनों में पुराने ज़री बॉर्डर को योक, स्लीव्स या दुपट्टे में इस्तेमाल किया जाता है, और बचा हुआ कपड़ा कुशन कवर, टेबल रनर, या वाल हैंगिंग में परिवर्तित कर दिया जाता है.

घर की शोभा बढ़ाने वाला रेशम

सिर्फ पहनावे तक सीमित नहीं, यह ट्रेंड घर की सजावट में भी रंग भर रहा है. पुराने रेशमी कपड़ों से बने कर्टेन, कुशन, टेबल रनर और लैंप शेड्स घर को एक शाही और पारंपरिक लुक देते हैं. यह “कला और संस्कृति” का सुंदर संगम बन जाता है.

रेशम का नया रूप, नई पहचान

पुराना रेशम जब नए रूप में सामने आता है, तो वह न केवल एक ट्रेंड होता है, बल्कि एक कहानी भी कहता है — उस परिधान की, उस बुनकर की, और उस महिला की जिसने उसे संजोकर रखा.

इसलिए अगली बार जब आप अपनी अलमारी में रखी पुरानी रेशमी साड़ी देखें, तो सोचिए — यह सिर्फ कपड़ा नहीं, एक नई फैशन प्रेरणा है!

Upcycling

कैंसर के दौरान स्त्रियों के इमोशनल हैल्थ को संभालना है जरूरी

Rozlyn Khan: ‘धमा चौकड़ी’, ‘सविता भाभी’, ‘जी लेने दो एक पल और’, ‘क्राइम अलर्ट’ जैसे शो से पहचान बनाने वाली ऐक्ट्रैस रोजलिन खान का स्टेज 4 ब्रैस्ट कैंसर से जंग का सफर आसान नहीं था. रोजलिन ने इसे वक्त और दर्द के खिलाफ लड़ी गई एक तूफानी जंग बताया.

 

उन्होंने बताया कि उन का इलाज बेहद इंटेंस था. नीओ एडजुवेंट कीमोथेरैपी के बाद मौडिफाइड रैडिकल मास्टेक्टौमी (एमआरएम) और लैटिसिमस डौर्सी फ्लैप (एलडी फ्लैप) रीकंस्ट्रक्शन सर्जरी हुई. उस के बाद रैडिएशन थेरैपी दी गई. उन्होंने कुल 19 राउंड कीमोथेरैपी झेली, जिस में उन का शरीर थक कर चूर हो गया. लेकिन इस के बाद एक दुर्लभ और दर्दनाक स्थिति विकसित हो गई थी-कीमो इंड्यूस्ड ग्लैंजमैन थ्रोंबेस्थीनिया (टाइप 2), एक ब्लीडिंग डिसऔर्डर, जिस से कीमो रोकनी पड़ी.

इस झटके के बावजूद रोजलिन का हौसला नहीं टूटा और आज वह इन सभी से उबर चुकी हैं और नौर्मल जिंदगी जी रही हैं. इन सभी से गुजरने में उन्हें परिवार और दोस्तों का सहयोग मिला, जिस से वे अंदर से स्ट्रौंग हो पाईं और इस स्थिति को झेल पाईं.

यह सही है कि कैंसर का इलाज किसी भी व्यक्ति के जीवन को अचानक बदल देता है, लेकिन स्त्रियों के लिए यह बदलाव और भी गहरा होता है. वे अकसर एकसाथ कई भूमिकाएं मसलन केयर गिवर, पेशेवर, साथी और मां की होती है.  ऐसे में रोजमर्रा की जिंदगी से अस्पताल के चक्कर, चिकित्सकीय निर्णय और शारीरिक बदलावों की ओर बढ़ना बेहद चुनौतीपूर्ण होता है.

इस बारे में बैंगलुरु के फोर्टिस अस्पताल की क्लिनिकल साइकोलौजिस्ट दिव्या रेड्डी कहती हैं कि कैंसर की चिकित्सा मुख्य रूप से शारीरिक बीमारी पर केंद्रित होता है, लेकिन कैंसर उपचार के दौरान और उस के बाद मानसिक व भावनात्मक स्वास्थ्य भी उतना ही महत्त्वपूर्ण होता है, क्योंकि जब एक महिला भावनात्मक रूप से खुद को स्ट्रौंग महसूस करती है, तो वह इलाज का सामना अधिक मजबूती और आशा के साथ कर पाती है.

कैंसर थेरैपी का इमोशनल इफैक्ट

कैंसर का इलाज शारीरिक रूप से कठिन होता है, लेकिन यह मानसिक रूप से भी गहरी छाप छोड़ता है. महिलाएं अकसर डर, चिंता, उदासी और कभीकभी अकेलेपन जैसी भावनाओं का अनुभव करती हैं.

शारीरिक रूप में हुए बदलाव जैसे बालों का झड़ना या सर्जरी के निशान आदि उन के आत्मविश्वास और पहचान की भावना को प्रभावित करते हैं.

अपराधबोध से ग्रस्त

कैंसर के बाद अधिकतर महिलाएं अपराधबोध महसूस करती हैं कि वे अब परिवार का पहले जैसा ध्यान नहीं रख पा रही हैं. ये सभी भावनाएं बिलकुल स्वाभाविक हैं. इन का होना कमजोरी नहीं, बल्कि एक सामान्य मानवीय प्रतिक्रिया है. इन भावनाओं को जल्दी पहचानना और उन के बारे में बात करना लंबे समय तक मानसिक तनाव से बचा सकता है और स्वास्थ्य की जल्दी रिकवरी में मदद करता है, जैसा अभिनेत्री रोजलिन खान के साथ हुआ.

काउंसलिंग की भूमिका

इस समय काउंसलिंग एक अहम भूमिका निभाती है. ऐक्सपर्ट काउंसलिंग में महिलाओं को अपनी भावनाएं खुल कर व्यक्त करने, स्थिति को स्वीकारने और स्वस्थ मुकाबला करने के तरीके सीखने में मदद करता है, जो इस अवस्था में बहुत जरूरी होता है. माइंड फुलनैस, गाइडेड ब्रीदिंग, रिलैक्सेशन थेरैपी और कौग्निटिव बिहेवियरल थेरैपी (सीबीटी) जैसी तकनीकें मन को शांत करने और चिंता को कम करने में सहायक होती हैं.

काउंसलिंग महिलाओं को शारीरिक बदलावों को स्वीकारते हुए आत्मसम्मान फिर से प्राप्त करने और दृढ़ता विकसित करने की दिशा में प्रेरित करती है.

परिवार और दोस्तों की भूमिका अहम

इस समय परिवार का सहयोग बहुत जरूरी होता है. अपनापन भरे शब्द, धैर्यपूर्वक सुनना और रोजमर्रा के कामों में मदद करना भावनात्मक बोझ को हलका कर सकता है. सपोर्ट ग्रुप्स, जहां स्त्रियां एकदूसरे के साथ अपने अनुभव साझा कर सकती हैं उन्हें प्रेरणा, आश्वासन और अपनापन का एहसास दिलाती हैं. यहां यह समझना जरूरी होता है कि आप अकेली नहीं हैं और यही सोच आत्मबल को मजबूत करता है.

स्वयं की देखभाल है जरूरी

काउंसलर आगे कहती हैं कि कैंसर उपचार के दौरान सैल्फ केयर कोई विलासिता नहीं, बल्कि आवश्यकता है. कुछ सुझाव निम्न हैं :

-हलकी सैर, ऐक्सरसाइज, किताबें पढ़ना, संगीत सुनना या दोस्तों के साथ समय बिताना मन को हलका कर सकता है.

-अपने विचारों को लिखना या किसी रचनात्मक कार्य में मन लगाना तनाव कम करने के अच्छे तरीके हैं.

-संतुलित आहार, पर्याप्त पानी और नींद का ध्यान रखना मानसिक स्थिरता के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण है.

-यदि किसी महिला को लंबे समय तक उदासी, चिड़चिड़ापन, नींद न आना या निराशा महसूस हो रही हो, तो उसे बिना झिझक पेशेवर मदद लेने की जरूरत होती है. जल्दी मनोवैज्ञानिक सहायता लेना मानसिक स्वास्थ्य सुधार का पहला कदम होता है.

-सब से जरूरी बात है कि किसी से मदद मांगने में संकोच न करें. यह कोई कमजोरी नहीं, बल्कि ताकत की निशानी है.

-कैंसर एक चिकित्सीय यात्रा है और भावनात्मक उपचार इस यात्रा का अहम हिस्सा है.

इस प्रकार उचित देखभाल, सहानुभूति और सही मार्गदर्शन के साथ स्त्रियां इस कठिन दौर से साहस, आशा और आत्मविश्वास के साथ गुजर सकती हैं और एक खुशहाल जिंदगी जी सकती हैं.

Rozlyn Khan

Gaurav Khanna 9 साल से पिता बनने को बेकरार, पत्नी आकांक्षा को एतराज

Gaurav Khanna: टीवी ऐक्टर गौरव खन्ना जोकि पिछले 20 सालों से टीवी पर अपनी बेहतरीन परफौर्मेंस से धूम मचा रहे हैं और चर्चित सीरियल ‘अनुपमा’, ‘कुमकुम,’ ‘एक प्यारा सा बंधन’, ‘सीआईडी’, ‘भाभी’, ‘यह प्यार न होगा कम’, ‘जीवनसाथी’ आदि कई हिट सीरियल की वजह से टीवी के सुपरस्टार कहलाते हैं.

कानपुर के रहने वाले गौरव फिलहाल कलर्स टीवी शो ‘बिग बॉस 19’ में बतौर प्रतियोगी धमाल मचा रहे हैं. उन की प्रोफैशनल लाइफ जहां कामयाबी से भरी हुई है, वहीं पर्सनल लाइफ में वे इतने खुश नहीं हैं, जिस की वजह है अपनी बीवी आकांक्षा से बेहद प्यार और उस प्यार के चलते बीवी की हर शर्त को मानने वाले गौरव खन्ना पिता बनने के सुख से वंचित हैं.

पिता बनने की ख्वाहिश

गौरव खन्ना की शादी को 9 साल हो चुके हैं और अब वे चाहते हैं कि वह एक खूबसूरत बच्चे के पिता बनें गौरव ने अपनी इस इच्छा को ‘बिग बॉस 19’ के घर आईं एक ज्योतिष मेहमान के सामने भी जाहिर किया, जिस का उन को पौजिटिव रिप्लाई भी मिला.

लेकिन उस के तुरंत बाद ही फैमिली राउंड में घर आईं उन की खूबसूरत पत्नी आकांक्षा, जोकि एक ऐक्ट्रैस व मौडल भी हैं, ज्योतिष की कही उस बात को पूरी तरह से झुठला दिया और अपने पति से नाराजगी भी जताई. उन्हें यह सब एक अंधविश्वास ही लगा.

सहमति जरूरी या अंधविश्वास

पत्नी आकांक्षा की नाराजगी को शांत करने के उद्देश्य से गौरव खन्ना ने कहा,”मुझे पता है कि तुम्हारा जवाब न ही होगा, इसलिए मैं ने ऐसे ही पूछ लिया, क्योंकि मुझे बच्चे पसंद हैं.”

गौरव खन्ना की इस ख्वाहिश को पूरी तरह नकारते हुए आकांक्षा ने सिर्फ गौरव के सामने, बल्कि घर वालों के सामने साफसाफ कह दिया कि बच्चा पैदा करना हलवा बनाने जितना आसान नहीं है. मुझे नहीं लगता है कि आज या कभी आगे भी मैं बच्चा पैदा करूंगी या उस बच्चे की जिम्मेदारी उठाऊंगी, क्योंकि मैं महत्त्वाकांक्षी हूं और मुझे अपना कैरियर देखना है.

सवाल यह भी है

ऐसे में सवाल यह उठता है कि जिन लड़कियों को सिर्फ कैरियर बनाना होता है या अपना फिगर खराब नहीं करना होता तो उन को शादी के झमेले में पड़ने की जरूरत ही क्यों है, क्योंकि ऐसी लड़कियां प्यार करने वाले पति के लिए गले की वह हड्डी बन जाती हैं जिसे उगल भी नहीं सकते और निगल भी नहीं सकते.

अपनी पत्नी को प्यार करने वाले गौरव खन्ना फिलहाल इस पोजीशन में ही हैं. टीवी के तो वे सुपरस्टार हैं लेकिन बच्चे का प्यार पाने के लिए एक दुखी इंसान. मगर यह भी सच है कि सफल वैवाहिक जीवन के लिए उन्हें अपनी बीवी पर ही भरोसा करना होगा, नकि ज्योतिष.

Gaurav Khanna

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