Dowry Deaths: कैसे रोका जा सकता है दहेज के लिए होने वाली घटनाओं को

Dowry Deaths: हमारे देश में दहेज़ प्रथा बहुत पहले से चली आ रही है. इसे रोकने के लिए बहुत सारे प्रयास किये गएँ, सख्त कानून बनायें गए. लेकिन अभी हाल ही में ग्रेटर नोएडा में दहेज के लिए एक महिला को जिंदा जला देने की घटना ये बताती है कि ये दहेज़ नाम का दानव अपनी जड़े काफी गहरे तक जमा चुकी हैं. आरोप है कि निक्की नाम की महिला को उसके पति विपिन और ससुराल वालों ने 35 लाख रुपये की दहेज मांग पूरी न होने जिंदा जला दिया.

ये अपने आप में कोई पहला मामला नहीं है. तमिलनाडु के तिरुपुर में जुलाई 2025 में 23 साल की रिधान्या दो महीने पहले एक दुल्हन बनी थी, लेकिन वह ससुराल में प्रताड़ित हो रही थी और यह बात कोई नहीं समझ रहा था. उसने अपने आखिरी व्हाट्सअप मैसेज में लिखा भी था कि –

“पापा, ये शादी एक साजिश थी. कोई मेरी बात नहीं सुनता. हर दिन मुझे मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है. अब और नहीं सहा जाता.”“हर कोई कहता है कि समझौता कर लो. लेकिन कितनी बार करूं समझौता? जब हर दिन आत्मा मर रही हो, तो जीना क्यों?”“पापा, मैं आपको बोझ नहीं बनना चाहती. मुझे माफ कर देना. अब सब खत्म हो गया है.”

उसकी आवाज में कंपकंपी है, दर्द है, और सबसे बड़ा सच — सिस्टम से हार मान चुकी एक बेटी की चुप्पी.

इससे पहले उत्तर प्रदेश के ही अलीगढ़ में भी दहेज़ के लिए गर्म (आयरन) सटाने के कारण महिला की मोत हो गई थी. इसके बाद उत्तर प्रदेश के ही पीलीभीत में दहेज़ के लिए एक महिला को जला दिया था. इसी तरह चंडीगढ़ में एक नए शादी वाली लड़की ने दहेज उत्पीड़न से तंग आकर अपनी जान दे दी थी. इसके अलावा दो घटनाएं तमिलनाडु से सामने आईं. पहली घटना में पोन्नेरी के पास एक महिला ने शादी के महज चार दिनों के भीतर ही कथित उत्पीड़न के कारण आत्महत्या कर ली. दूसरी घटना में भी इसी वजह से एक युवती ने शादी के दो महीने के भीतर ही अपनी जान दे दी.

क्या कहते हैं आंकड़े

NCRB (नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो) के अनुसार, 2022 में दहेज हत्या के कुल 6450 मामले दर्ज हुए थे. इस आंकड़े के अनुसार बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, ओडिशा, राजस्थान और हरियाणा ने अकेले 80% मामलों में योगदान दिया.

इस डेटा के अनुसार, हर तीन दिन में लगभग 54 महिलाएं दहेज प्रताड़ना और हत्या का शिकार होती रही हैं. यह सिर्फ संख्या या आंकड़े नहीं है, ये एक दर्दनाक सच्चाई है.

एक सच यह भी है ऐसे सारे मामले सामने नहीं आते. कई बार परिवार दबा देता है, कई बार समाज इस पर पर्दा दाल देता है, कभी बेटी की इज़्ज़त का हवाला दिया जाता है, तो कभी जाती की प्रतिष्ठा का सवाल बन जाता है.

दहेज़ हत्या में लड़की के माँ बाप भी हैं जिम्मेवार

अगर बात करें अभी हाल ही में हुए ग्रेटर निक्की वाले केस की, तो यह पहला मामला नहीं था जब निक्की को प्रताड़ित किया जा रहा था. 2016 से ही उस पर अत्याचार किया जा रहा था. भरी भरकम दहेज़ दिया गया, स्कॉर्पियो गाड़ी दी गयी. उसके बाद डिमांड कभी भी ख़तम नहीं हुए. परिवार के लोग कहते गुजर बिरादरी में तो ये सब तुम्हें सहना पड़ेगा? तुम्हें अपने घर को बचाना पड़ेगा?

जहाँ तक निक्की के पति और ससुरालवालों की बात है वो तो जिम्मेवार है ही, वो गुनहगार हैं. लेकिन जिम्मेवार निक्की के माता पिता भी हैं. उसका परिवार भी है जो सब कुछ जानते हुए और देखते हुए भी सह रहा था और बेटी को सहने को परिवार को बनाये रखने को मजबूर कर रहा था.

तमिलनाडु के तिरुपुर में भी यहाँ हुआ कहती रही मेरे साथ गलत हो रहा है लेकिन माता पिता ने नहीं सुनी और बेटी ने अपनी जान दे कर उन्हें समझाया की मैं किस हद तक परेशां थी.

शादी नहीं चल रही, तो वापस लाएं बेटी

अगर लगता है बेटी की शादी में दिक्कत है और वो नहीं चल पा रही तो बेटी को वापस लाएं. उसके साथ कुछ गलत होने का इंतज़ार करना अपने आप में बेवकूफी है. शादी की है बेटी को छोड़ तो नहीं दिया. अगर वह परेशां है तो उसके साथ खड़े हो.

पहले पैरों पर खड़ा करें फिर शादी करें

ग्रेटर नॉएडा में निक्की के केस में भी 17 साल की उम्र में ही लड़की की शादी कर दी. उसकी पढाई भी पूरी नहीं हुए होगी. ऐसा बहुत से मामले में होता है जो अपने आप में गलत है. शादी की इतनी जल्दी आखिर है क्यूँ ? क्यूँ नहीं पहले बेटी की पढाई पूरी करवाते? उसे नौकरी कर अपने पैरो पर खड़ा तो होने दें तभी शादी लेकिन ऐसा नहीं होता और इसके लिए भी माँ बाप ही जिम्मेवार हैं?

दहेज़ दिया जाता है, तभी तो और दहेज़ की मांग की जाती है

मृतक निक्की की बहन कंचन ने कहा, ”हमारे पिता ने दहेज़ में एक टॉप मॉडल स्कॉर्पियो, एक रॉयल एनफील्ड बाइक, नकद, सोना, सब कुछ उपहार में दिया था. इसके अलावा, करवा चौथ पर हमारे घर से उपहार भेजे जाते थे. हमारे माता-पिता ने वह सब कुछ किया जो वे कर सकते थे, लेकिन ससुराल वाले खुश नहीं थे. इस बयान से ये साफ़ जाहिर होता है कि निक्की के मायके वालों ने अपनी मर्जी से दहेज़ दिया. लड़के वालों के मुँह खोले और फिर जब मांग उनकी तरफ से की गए तो वे बिदक गए.

अगर यह बात सही है तो जितने दोषी निक्की के ससुराल वाले दहेज मांगने के लिए हैं. उससे ज्यादा दोषी निक्की के मां-बाप और परिवार हैं. उन्होंने दहेज देकर शादी की ही क्यों?”इसके लिए तो सीधे तौर पर आज के मौजूदा समाज, निक्की का परिवार भी जिम्मेदार है.

अगर शादी के समय ही कह दिया जाएँ कि हमने अपनी बेटी को पढ़ा लिखा कर काबिल बनाया है हम दहेज़ नहीं देंगे, तो फिर शदी करना या न करने का फैसला लड़के वालों का होता है. बाद में कोई तमाशा हो इससे अच्छा है पहले ही मन कर दें लेकिन अगर आपने एक बार दहेज़ दे दिया तो आपकी गलती है. फिर तो बार बार मांग किये जाने के पुरे चांस हैं.

दहेज़ की जगह बेटी को प्रॉपर्टी में हिस्सा दें [विवाह कानून 1956 और 2005 ]

विवाह कानून 1956 और 2005

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 में और 2005 में हुए संशोधन के बाद एक बेटी चाहे वह शादीशुदा हो या न हो, अपने पिता की संपत्ति को पाने का बराबरी का हक रखती है. अपने पिता और उस की पुश्तैनी संपत्ति में भी लड़कियों को अपने भाइयों और मां जितना हक मिलता है. अगर पिता ने कोई वसीयत नहीं की है तब भी उन्हें भाइयों के बराबर ही हक मिलेगा. यहां तक की अपनी शादी हो जाने के बाद भी यह अधिकार उन्हें मिलेगा.

जहां पहले ये कहा जाता था कि महिलाओं का कोई घर नहीं है. अगर पतिपत्नी में झगड़ा हुआ, वो मायके आ नहीं सकती थी अब उस को कानून ने अधिकार दे दिया है.
अब उसे पता है कि अगर उस की शादी के कोई दिक्कत है तो उस का अपना घर है जहां वह लौट कर जा सकती है क्योंकि पिता के घर पर उस का भी कानूनन अधिकार है.पहले लड़कियों को कहा जाता था कि तुम अपनी जबान बंद रखों जो हो गया उसे भूल जाओं. ये मारपीट तो होती रहती है कौन सा पति नहीं मारता. समझा दिया जाता था लड़कियों को. लड़की पूरी जिंदगी ऐसे ही बिता देती थी क्योंकि उसे पता था कि हमारी शादी के बाद हमारे पेरेंट्स के पास हमारे लिए कुछ है नहीं. आज इस उत्तराधिकार कानून की वजह से अधिकार मिल गया कि अगर शादी के बाद मेरे साथ कुछ गलत होता है तो मैं अपने पिता के घर पर भी अधिकार के साथ रह सकती हूं.

इसलिए यह जरुरी है कि लड़कियों को अपने इस अधिकार के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए ताकि वह अपनी ज़िंदगी का फैसला खुद अपनी मर्जी से ले सकें. अगर शादी में कुछ गलत हो रहा है तो उसे सहने के बजाये छोड़ने की हिम्मत रखें.

बेटी की ज़िंदगी से बड़ा है सामाजिक दबाव

अगर बेटी की शादी में कोई दिक्कत है कोई शिकायत हो, तो बेटी को वापस ले आएं. .शादी में मतभेद होते रहते है कोई बड़ी बात नहीं है. अगर लड़का लड़की में नहीं बन रही हैं तो अपने अपने रास्ते जाओ. मरने मारने की क्या जरुरत है. निक्की के केस में भी पहले जल्दी शादी की, पैसा जितना देना था नहीं दिया, वादा किया होगा हम दे देंगे. 6 साल झगड़े करवाए, डिवोर्स की अर्जी तक नहीं लगाई. मनमुटाव के बावजूद निक्‍की के घरवाले उसे बार-बार ससुराल भेजते ही क्‍यों थे? निक्की के पिता ने कहा भी है कि अगर उन्होंने पंचायत का फैसला न माना होता, बेटियों को ससुराल न भेजा होता, तो आज उनकी बेटी जिंदा होती. यहाँ सवाल ये भी है कि पंचायत में मामला लेकर जाने के बजाए अगर पुलिस में गए होते तो कोई नतीजा भी निकलता.

पंचायत ने भी घर बचाने पर जोर दिया? ये सब कुछ क्यूँ हुआ? जहाँ तक निक्की के पति और ससुरालवालों की बात है वो तो जिम्मेवार है ही, वो गुन्हेगार हैं. लेकिन जिम्मेवार निक्की के माता पिता भी हैं. उसका परिवार भी है जो सबब कुछ जानते हुए और देखते हुए भी सह रहा था और बेटी को सहने को, परिवार को बनाये रखने को मजबूर कर रहा था. समाज के दबाव में आकर मायके वाले बेटी की जिंदगी को दांव पर लगाने को मजबूर हो जाते हैं. उन्हें अपनी बेटी की जान से ज्यादा अपनी खोखली इज़्ज़त जो प्यारी होती है.

वाकई इस तरह की घटनाये हमें सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर क्यों हम आज भी दहेज जैसी कुरीति के शिकंजे से बाहर नहीं आ पाए? कानून सख्त है, जागरूकता अभियान भी चलते हैं, लेकिन असलियत यह है कि अब भी समाज का एक बड़ा हिस्सा बेटियों और बहुओं को बोझ समझता है और शादी को सौदे की तरह देखता है.
जब तक हम सब दहेज को ‘ना’ नहीं कहेंगे तब तक ऐसी घटनाएं रुकने का नाम नहीं लेंगी. निक्की की मौत केवल एक महिला की मौत नहीं है, बल्कि यह चेतावनी है उन सभी परिवारों के लिए जो आज भी दहेज को रिश्तों से बड़ा मानते हैं. अब वक्त है कि शादी को सौदा नहीं, बल्कि बराबरी और सम्मान का बंधन माना जाए. तभी इंसानियत और भरोसा रिश्तों में वापस लौट सकेगा.

Dowry Deaths

Drama Story: जीने दो और जियो- क्यों खुश नहीं थी अर्चना

Drama Story: प्यार पर किस का बस चला है, जो अपने कैरियर के प्रति संप्रित अर्चना का चलता. न चाहते हुए भी नितिन से प्यार हो ही गया और इतना ज्यादा कि नितिन के नौकरी बदलने के बाद उस के लिए भी उस औफिस में काम करना असहनीय हो गया. एक दोपहर उस ने नितिन को फोन किया कि क्या वह लंबा लंचब्रेक ले कर उस से मिल सकता है. अर्चना ने इतनी आजिजी से पूछा था कि नितिन मना नहीं कर सका, उस के आते ही अर्चना ने पूछा, ‘‘तुम्हारे नए औफिस में मु झे कोई जगह मिल सकती है, नितिन?’’

‘‘औफिस में तो नहीं, मेरी जिंदगी और दिल में सारी जगह सिर्फ तुम्हारे लिए है. सो, आ जाओ वहां यानी शादी कर लो मु झ से.’’

‘‘और फिर घरगृहस्थी के चक्कर में फंस कर नौकरी को अलविदा कह दो. बहुत बड़ी कीमत मांग रहे हो प्यार की?’’

‘‘मु झ से शादी कर के तुम घरगृहस्थी के चक्कर में कभी नहीं फंसोगी क्योंकि मेरी मम्मी भी अपनी गृहस्थी वैसे ही खुशीखुशी संभाल रही हैं जैसे तुम्हारी मम्मी, अभी जैसे अपने घर से औफिस आती हो, शादी के बाद मेरे घर से आ जाया करना.’’

‘‘ऐसा अभी सोच रहे हो, लेकिन शादी के बाद तुम भी वैसा ही सोचने लगोगे जैसा तुम्हारी मम्मी सोचेगी कि बहू का काम घर संभालना है, औफिस नहीं.’’

‘‘मेरी मां की नसीहत है कि अगर जिंदगी में तरक्की करनी है तो शादी कामकाजी लड़की से ही करना. ‘मैं अकेले बोर हो रही हूं,’ कह कर तुम्हें, काम अधूरा छोड़ कर, जल्दी घर आने को मजबूर न करें.’’

‘‘तुम्हारी मम्मी भी कुछ काम करती हैं?’’

‘‘कुछ नहीं, बहुत काम करती हैं अपने घर के अलावा पासपड़ोस के भी. जैसे किसी के लिए स्वेटर बुनना, किसी के लिए अचार डालना वगैरहवगैरह यानी, मम्मी हम बापबेटे के इंतजार में बैठ कर बोर नहीं होतीं, व्यस्त रखती हैं स्वयं को. क्यों न कुछ फैसला करने से पहले तुम मम्मी से मिल लो, अभी चलें?’’ नितिन के आग्रह को अर्चना टाल न सकी.

नितिन के घर के दरवाजे पर ताला था. ‘‘पापा औफिस में होंगे और मम्मी कहीं पड़ोस में,’’ कह कर नितिन ने मोबाइल पर नंबर मिलाया.

‘‘मम्मी पड़ोस में अय्यर आंटी को गाजर का हलवा बनाना सिखा रही हैं,’’ नितिन ने ताला खोलते हुए कहा, ‘‘जब तक मम्मी आती हैं तब तक तुम्हें अपना घर दिखाता हूं.’’ छत पर सूखते कपड़ों में जींस, टौप, लैगिंग, कुरतियां और पटियाला सलवार वगैरह देख कर अर्चना पूछे बगैर न रह सकी, ‘‘तुम्हारी कितनी बहनें हैं?’’

‘‘एक भी नहीं. ओह, सम झा, ये कपड़े देख कर पूछ रही हो. ये सब मम्मी के हैं. उधर देखो, मम्मी आ रही हैं.’’

फर्श को छूती अनारकली डै्रस आंखों पर महंगा धूप का चश्मा और स्लिंग बैग से मैच करते सैंडिल पहने एक स्थूल महिला चली आ रही थी. परस्पर परिचय के बाद नितिन ने कहा. ‘‘आप ने कहा था न कि अगर कोई लड़की पसंद हो तो बता. सो, मैं अर्चना को आप से मिलवाने लाया हूं.’’

‘‘मैं ने कहा था, बता, ताकि मैं उस के घर प्रस्ताव भिजवा सकूं, यह नहीं  कि उसे ही यहां ले आ डिसप्ले आइटम की तरह,’’ मम्मी ने स्नेह से अर्चना के सिर पर हाथ फेरा, ‘‘सौरी बेटा, नितिन ने मु झे गलत सम झा.’’

‘‘मैं ने कुछ गलत नहीं सम झा, मम्मी. प्रस्ताव तो तब भिजवाओगी न, जब यह शादी करने को तैयार होगी,’’ नितिन बोला. ‘‘यह हार्डकोर कैरियर वुमन है. मु झ से प्यार तो करती है पर शादी से डरती है कि कहीं घरगृहस्थी के चक्कर में इसे नौकरी न छोड़नी पड़े.’’

‘‘मु झे नितिन के लिए उस की पसंद की जीवनसंगिनी चाहिए घर चलाने को अपने लिए सहायिका नहीं. मु झे यह घरसंसार चलाते हुए अढ़ाई दशकों से अधिक हो गए हैं अगले 2 दशक तक तो बगैर तुम्हारी मदद लिए या नौकरी छुड़वाए आसानी से यह गृहस्थी और नितिन के बालबच्चे संभाल सकती हूं. अगर मेरी बात पर भरोसा है तो किसी ऐसे का नाम बता दो जिसे तुम्हारे घर…’’

‘‘उस की फ्रिक मत करो, मम्मा. पापा के दोस्त अशोक अंकल अर्चना के मामा हैं,’’ नितिन ने बात काटी.

‘‘तुम्हें अगर मैं पसंद हूं तो हम आज ही अशोकजी से…’’ कि उन का मोबाइल बजने लगा, ‘‘हां रत्नावल्ली, बस, अभी आ रही हूं.’’ वे नितिन से बोलीं, ‘‘भई, इस से पहले कि ‘अईअईयो’ करती रत्नावल्ली अपने हलवे की कड़ाही उठाए यहां आ जाए, मैं उस का हलवा भुनवा कर आती हूं. तुम लोग बैठो.’’

‘‘हम भी चलेंगे, मम्मी. औफिस में छुट्टी नहीं है,’’ नितिन उठ खड़ा हुआ. ‘‘अय्यर आंटी के चक्कर में मम्मी ने तुम्हारा जवाब नहीं सुना. खैर, मु झे बता दो कि मम्मी कैसी लगीं?’’

‘‘अच्छी लगीं,’’ और बहुत मुश्किल से खुद को यह कहने से रोका कि ‘‘कुछ अटपटी या अजीब भी.’’

रात को सब लोग टीवी देख रहे थे कि पापा का मोबाइल बजा.  झुं झलाते हुए पापा ड्राइंगरूम से उठ कर चले गए. फिर कुछ देर के बाद मुसकराते हुए वापस आए, ‘‘तुम अशोक के दोस्त योगेश और उन की बीवी आशा से तो मिली हो न, रचना?’’

‘‘हां, बहुत अच्छी तरह जानती हूं चुलबुली, जिंदादिल आशा को. क्या हुआ उन्हें?’’

‘‘उन्होंने अपने बेटे नितिन के लिए अर्चना का हाथ मांगा है.’’

‘‘अरे नहीं, यह कैसे हो गया,’’ रचना चिल्लाई, ‘‘आशा से यह सुन कर कि चाहे वह कितनी भी मोटी और बेडौल हो जाए, जींस पहनना कभी नहीं छोड़ेगी, मैं ने सोचा था कि तब तो इस की बहू बड़ी सुखी रहेगी कि उस के जींस पहनने पर सास रोक नहीं लगाएगी. मु झे क्या पता था कि मेरी बेटी को ही यह सुख मिल सकता है.’’

‘‘मिल सकता नहीं, मिल गया है. अर्चना और नितिन एकदूसरे को पसंद करते हैं और अर्चना की सहमति के बाद ही उन लोगों ने प्रस्ताव भिजवाया है.’’

‘‘अरे वाह अर्ची, छिपी रुस्तम निकली तू तो. कब से चल रहा था वह सब?’’

‘‘मु झे खुद नहीं पता, मम्मी,’’ अर्चना ने रुंधे स्वर में कहा, ‘‘मैं ने तो नितिन से अपने औफिस में काम दिलवाने को कहा था. उस ने शादी का प्रस्ताव रख दिया और बोला कि मना करने से पहले मेरी मां से मिल लो और मु झे अपने घर ले गया.’’

घर पर क्या हुआ बताने के बाद अर्चना ने कहा कि उसे आशा का व्यवहार आपत्तिजनक तो नहीं, अटपटा जरूर लगा.

‘‘अटपटा क्यों लगा?’’

‘‘उन के कपड़े पहनने और बातचीत का तरीका बड़ा बिंदास सा है, उन की आयु के अनुरूप नहीं.’’

‘‘वह तो है, अपनी उम्र के अनुरूप व्यवहार नहीं करती आशा. मगर तेरे लिए तो यह अच्छा ही है. इतने सहज स्वभाव की सास मुश्किल से मिलती है,’’ रचना ने बात काटी और पति की ओर मुड़ी, ‘‘आप ने क्या कहा अशोकजी से?’’

‘‘कहना क्या था, योगेश का नंबर ले लिया है. चाय या खाने पर आने को कब कहूं, यह तुम बताओ.’’

रचना ने अर्चना की ओर देखा, ‘‘कल ही बुला लें?’’

‘‘इतनी जल्दी नहीं मां, मु झे थोड़ा सोचने का समय दीजिए.’’

‘‘उस का तो अब सवाल ही पैदा नहीं होता, अर्ची. तू शादी इसीलिए नहीं करना चाहती न, कि इस से तेरे कैरियर पर असर पड़ेगा और उस का समाधान तेरी सास ने कर दिया है. अरे तू चाहे तो आशा तु झे स्टांपपेपर पर लिख कर दे देगी कि शादी के बाद तु झे घरगृहस्थी की चक्की में नहीं पिसना पड़ेगा. अपनी पसंद का वर, हर तरह से उपयुक्त संपन्न घर और आशा जैसी खुशमिजाज सास के मिलने पर सोचने के लिए रह क्या गया है?’’ रचना ने कहा.

‘‘बिलकुल ठीक कह रही हो, रचना. मैं योगेशजी को फोन कर के कहता हूं कि जब भी सुविधा हो, आ जाएं,’’ और पापा मोबाइल पर नंबर मिलाने लगे.

अर्चना अपने कमरे में आ गई. कुछ देर के बाद नितिन का फोन आया, ‘‘बधाई हो अर्चना, पापा ने अभी बताया कि फोन पर तो हमारी शादी पक्की हो गई है. मिलनेमिलाने की औपचारिकता इस सप्ताहांत यानी 2 रोज बाद हो जाएगी. अब तो खुश हो न?’’

Drama Story

Aneet Padda: ‘सैयारा’ की सफलता के बाद इस ब्रैंड का चेहरा बनी अनीत

Aneet Padda: बौलीवुड की सब से ताजा चेहरा लैक्मे के उस विजन को दर्शाती है, जो नई पीढ़ी के लिए सहज और अभिव्यक्तिपूर्ण सौंदर्य की पहचान है.

भारत के पहले और सब से बड़े मेकअप ब्रैंड द हाउस औफ लैक्मे ने अनीत पड्डा को अपने नए चेहरे के रूप में स्वागत किया. इस सहयोग के साथ लैक्मे अपना अगला अध्याय शुरू कर रहा है, जो सीधे जैनरेशन Z से संवाद करता है- एक ऐसी पीढ़ी जो प्राकृतिक आभा, स्किनिफाइड फौर्मूला और परफैक्शन से ज्यादा आत्म अभिव्यक्ति के जरीए ब्यूटी को फिर से परिभाषित कर रही है.

दशकों से सक्रिय

दशकों से लैक्मे भारतीय सौंदर्य संस्कृति को आकार देने में सब से आगे रहा है. यह सिर्फ आइकन को सैलिब्रेट नहीं करता बल्कि उन्हें बनाता भी है.

अनीत के साथ यह ब्रैंड अपनी इस विरासत को आगे बढ़ा रहा है, एक नई आवाज को सामने ला कर जो युवा पीढ़ी के नए ब्यूटी कोड्स को दर्शाती है.

अनीत का फलसफा संतुलन पर आधारित है

मिनिमल का मतलब नो मेकअप नहीं है, बल्कि राइट मेकअप है. वह उस बदलाव का प्रतिनिधित्व करती है जहां जैनरेशन Z अब ब्यूटी को नकाब नहीं बल्कि अभिव्यक्ति का साधन मानती है. उन की शैली प्राकृतिक आभा, हलके सुधार और रचनात्मक प्रयोगों का उत्सव है, जो प्रामाणिक, पहनने योग्य और हमेशा थोड़ा सा ऐक्सपेरिमैंट लगता है.

हाई कवरेज परफैक्शन

सुनंदा खैतान, वाइस प्रेसिडेंट, लैक्मे के अनुसार,”लैक्मे हमेशा से टेलैंट पहचानने और ब्यूटी कनवर्सेशंस को आकार देने में आगे रहा है. अनीत के साथ हम ब्यूटी के उस बदलते रूप को गले लगा रहे हैं जो हाई कवरेज परफैक्शन से सहज, अभिव्यक्ति पूर्ण और आधुनिक मेकअप की ओर बढ़ रहा है, जैसा जैनरेशन Z ब्यूटी को अनुभव करना चाहती है.

अनीत पड्डा ने खुशी जताते हुए कहा, “मेरे लिए मेकअप कभी छिपाने के बारे में नहीं रहा, यह हमेशा आप के असली रूप को दिखाने के बारे में है. मुझे वह मेकअप पसंद है जो सहज हो लेकिन फिर भी एक स्टेटमैंट दे. लैक्मे का दर्शन इसी संतुलन को दर्शाता है. मैं इस ब्रैंड के साथ साझेदारी कर बेहद उत्साहित हूं, जो क्रिएटिविटी को प्रेरित करता है और औरतों को आत्मविश्वास से प्रयोग और अभिव्यक्ति करने के लिए प्रोत्साहित करता है.”

इस साझेदारी के साथ लैक्मे भारतीय सौंदर्य का भविष्य गढ़ने वाले ब्रैंड के रूप में अपनी स्थिति और मजबूत करता है. व्यक्तित्व, रचनात्मकता और उन नई आवाजों को आगे ला कर जो नई पीढ़ी के साथ गहराई से जुड़ती हैं.

Aneet Padda

Avanti Patel: तवायफों के गानें आज की जैनरेशन तक पहुंचाना मेरा मकसद

Avanti Patel: बचपन से ही संगीत में रुचि रखने वाली खूबसूरत और हंसमुख अवंति पटेल शास्त्रीय और प्ले बैक सिंगर हैं. रियलिटी शो के सीजन 10 में आने के बाद वे पौपुलर हुईं.

मुंबई से संगीत में स्नातकोत्तर की डिगरी पूरी करने वाली अवंति के पिता पंकज पटेल गुजरात के एक वैस्कुलर सर्जन हैं, जबकि मां महाराष्ट्र की एक यूरोलौजिस्ट हैं. डाक्टर परिवार में पलीबड़ी हुईं अवंति को हमेशा हर काम की आजादी रही है. उन्होंने केवल 5 वर्ष की उम्र से शास्त्रीय संगीत सीखना शुरू कर दिया था. पहले उन्होंने गुरु वर्षा भावे से शास्त्रीय गायन में औपचारिक शिक्षा प्राप्त की और संगीत विशारद पूरा किया और हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायन में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की. वे वर्तमान में विदुषी अश्विनी भिड़े देशपांडे की शिष्या हैं, जो जयपुर अतरौली घराने से हैं.

13 साल की उम्र में अवंति ने फैसला लिया कि उन्हें संगीत के क्षेत्र में ही जाना है और उसी दिशा में प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया. उन की अलबम मोगरा मिस्क काफी चर्चित रही, जिस में उन्होंने ‘दमादम मस्त कलंदर…’, ‘तेरे बिन रसिया…’, ‘केसरिया बालम…’ आदि कई गाने गाए हैं. इस के अलावा वे कई गुजराती और मराठी फिल्मों की प्लेबैक सिंगर रही हैं.

तवायफों के गानों में छिपी होती है संघर्ष की कहानी 

इन दिनों अवंति शास्त्रीय संगीत को यूथ में फैलाने और उस के महत्त्व को समझाने के लिए कई शो ‘ओ गानेवाली’ हर बड़े शहरों में कर रही हैं, जिस में वे ठुमरी, दादरा जैसे गानों को एक मनोरंजक तरीके से परफौर्म करती है.

वे कहती हैं कि मैं ने रिसर्च किया, तो पता चला कि इन संगीत के बारे में आज के यूथ को बहुत कम जानकारी है. खासकर दादरा और ठुमरी गानों को तो वे जानते ही नहीं हैं, जिस में तवायफों के खुद के संघर्ष के साथसाथ सामाजिक और पोलिटिकल संघर्ष क्या थे, उन्हें वे जानते नहीं हैं. मीडिया से ले कर फिल्मों में जिस तरह से तवायफों के संगीत के बारे में कहा और दिखाया जाता है, वह उन सभी के जीवन से काफी अलग है.

“उस जमाने की सिद्देश्वरी बाई से ले कर रसुलन बाई सभी ने साड़ी पहन कर दादरा, ठुमरी जैसे गाने गाए हैं और उन के गाने का मकसद क्या था इन सभी बातों को गाने और कहानियों के माध्यम से बताने की कोशिश कर रही हूं. मैं उस जमाने की तवायफों के लिए एक ट्रिब्यूट है, जिसे मैं मुंबई, दिल्ली, बैंगलुरु, कोलकाता आदि कई शहरों में प्रस्तुत करती जा रही हूं,” अवंति ने बताया.

दादरा और ठुमरी है क्या

अवंति आगे कहती हैं कि दादरा और ठुमरी गाने वाली स्त्रियां बहुत कम उम्र से संगीत की तालीम ले रखी होती थीं, जिस में वे अपने मन के भाव को सब के सामने बिना झिझक रखती थीं. ठुमरी और दादरा दोनों हलके भारतीय शास्त्रीय गायन रूप हैं, जिन में ठुमरी की गति धीमी और विस्तृत होती है, जबकि दादरा तेज और अधिक चंचल होता है. दोनों में श्रृंगार रस, प्रेम या विरह के विषय होते हैं, लेकिन दादरा को अकसर इस्टर्न स्टाइल की ठुमरी का हलका संस्करण माना जाता है और इस में अधिक स्वतंत्रता व उन्मुक्तता होती है.

किए शोध

अवंति कहती हैं कि इन गानों को मंच पर लाने के लिए मैं ने कई किताबें और पेपर्स पढ़ी हैं, जिन में सबा दीवान की किताब ‘तवायफनामा’, यतींद्र मिश्र की ‘अख्तरी : बेगम अख्तर का जीवन और संगीत’ आदि हैं, जिस में तवायफों के जीवन की चुनौतियां और संघर्ष की कहानी विस्तार से लिखी गई है, ताकि लोग उन की भावनाओं को अच्छी तरह से महसूस कर सकें. हालांकि यह शो पिछले कई सालों से चला आ रहा है और यंग जैनरेशन इसे पसंद भी कर रही है. इस में मेरे साथ सिंगर ऋतुजा लाड गाते हैं. इस के अलावा इन सब गानों की एक अलबम भी बनाती हूं, जो औनलाइन कई जगहों पर फ्री में सुनने को मिलते हैं.

रास्ता था कठिन

आज की जैनरेशन को ऐसे गाने पसंद नहीं आते, ऐसे में इन्हें रुचिकर बनाना आसान नहीं था. वे कहती हैं कि पहले मेरे शो पर कम दर्शक आते थे, लेकिन जब कुछ युवाओं ने मेरी प्रस्तुति को देखा, तो उन्हें अच्छा लगा और माउथ टू माउथ इस की जानकारी एकदूसरे को मिली और वे अब पसंद करने लगे हैं. इस में मेरी कोशिश यह रहती है कि उन्हें मेरी बातें समझ में आएं, इसलिए मैं हिंदी के अलावा इंग्लिश में भी कहानियों को कहती हूं, जिस से उन्हें समझने में आसानी होती है और वे बारबार सुनने चले आते हैं.

मिली प्रेरणा

संगीत के क्षेत्र में आने की प्रेरणा के बारे में अवंति कहती हैं कि मेरे पेरैंट्स डाक्टर हैं, संगीत से उन का कोई संबंध नहीं है, लेकिन उन्हें कला और साहित्य पसंद हैं. मैं ने 5 साल की उम्र से संगीत की तालिम लेनी शुरू कर दी है. इसी वजह से मुझे संगीत से लगाव हुआ. थोड़ी बड़ी होने पर मुझे बेगम अख्तर और शोभा गुर्टू के गाने सुनना अच्छा लगता था. इस के बाद अश्विनी भिड़े देशपांडे से संगीत की तालिम लेनी शुरू की.

परिवार का सहयोग

अवंति का कहना है कि मेरी मां के परिवार में डाक्टर होने के बावजूद सभी संगीत सीखे हुए हैं. वे सब गाते हैं, लेकिन प्रोफैशनल सिंगर नहीं हैं. मैं जब छोटी थी, तभी मां को पता चल गया था कि मेरे अंदर संगीत की प्रतिभा है, इसलिए उन्होंने इस की तालिम छोटी उम्र से दिलाना शुरू कर दिया था. इस के बाद 13 साल की उम्र में रियलिटी शोज में भाग लिया और तभी से संगीत की दिशा में मेरा कैरियर शुरू हुआ, क्योंकि रियलिटी शो की वजह से लोग मुझे जानने लगे थे. वहां मैं ने परफौर्मेंस करना सीखा. मैं ने स्कूल में पढ़ाई करते हुए ही मंच पर प्रस्तुति देना शुरू कर दिया था. मैं ने मराठी और गुजराती के लिए प्लेबैक सिंगिंग भी किया है.

अच्छे लिरिक्स लिखने वालों की है कमी

गानों में अच्छे लिरिक्स का अभाव के बारे में पूछने पर अवंति कहती हैं कि आज के गीतकार कुछ नया नहीं लिखना चाहते. वैस्टर्न सोसाइटी को फौलो कर गाने लिखते जाते हैं. अगर नई जैनरेशन को अच्छे बोल, मेलोडियस गाने सुनने को मिलें, तो वे उन्हें जरूर पसंद करेंगे. यूथ की गलती नहीं है, उन्हें तो अच्छे लिरिक्स ही सुनने को नहीं मिलते. अगर कोई लिखेगा नहीं, तो उन्हें उस का स्वाद कैसे मिल सकेगा?

एक यंग आर्टिस्ट होने के नाते यह मेरी जिम्मेदारी है कि मैं यूथ को बढ़िया संगीत से परिचय करवाऊं. इस के लिए मैं केवल लाइव शो ही नहीं, रिकौर्डिड गाने भी उन तक पहुंचाने की कोशिश कर रही हूं.

आगे की योजना

अवंति इस शो को विदेशों में भी परफौर्म करने की इच्छा रखती हैं. इस के लिए वे वहां की भाषा में स्क्रिप्ट को ट्रांसलेट करने की कोशिश कर रही हैं, ताकि उन्हें समझ में आए. यह उन के लिए चुनौती है, लेकिन मुश्किल नहीं.

Love Story: आई लव यू- क्या अनाया अपने प्यार को पा सकी

Love Story: केवल खुद के विचारों और नियमकायदे से घर चलाने की आदत ने सुशील को सब से अलगथलग कर दिया था. उन के घर में सबकुछ था मगर था नहीं तो एकदूसरे के लिए प्यार. फिर एक फरवरीका महीना था. यह समय प्यार करने वाले प्रेमियों के लिए बड़ा ही खास होता है. पूरा वर्ष सभी वैलेंटाइन डे का इंतजार करते हैं ताकि अपने प्यार का इजहार कर सकें. अतुल और अनाया के लिए भी यह दिन बहुत खास था. 4 माह पहले ही उन की शादी हुई थी. दोनों बहुत ही उत्साहित थे. आखिर उन का इंतजार पूरा हुआ और वह दिन आ ही गया.

अनाया को उपहार की आस थी. अतुल ने उस की यह आस पूरी करने के लिए एक बड़ी सी पार्टी रखी थी. अपने पड़ोस में रह रहे चिराग और स्वाति को भी उस ने अपनी पार्टी में आमंत्रित किया था.

चिराग के पिता सुशील को जब यह बात मालूम पड़ी तो वे अपने गुस्से पर नियंत्रण न कर पाए. वे अतुल के घर चले आए. अतुल के घर पर 80 वर्ष की उम्र पार कर चुके उस के दादाजी अजय और दादी के अलावा लगभग 50 वर्ष की आयु के अतुल के पापा विवेक और मम्मी संध्या, इतने लोगों का भरा पूरा संयुक्त परिवार था. 3 पीढि़यां साथ रहती थीं. सब के अलगअलग विचार, अलगअलग व्यवहार, फिर भी आपस में कोई खटपट नहीं.

परिवार में प्यार और सम?ादारी थी. सभी एकदूसरे की भावनाओं की कद्र करते और एकदूसरे का खयाल रखते थे. कोई किसी की आजादी को बाधित नहीं करता. इसीलिए परिवार में सुखशांति का माहौल हमेशा बना रहता था. पासपड़ोस के लोगों के लिए उन का परिवार एक उदाहरण था. गुस्से से बेकाबू हो रहे सुशील ने डोर बेल बजाई.

दादाजी ने दरवाजा खोला, जोकि इतनी उम्र होने के बावजूद काफी चुस्त और तंदुरुस्त थे.

‘‘अरे आओआओ सुशील,’’ अजय ने आदर के साथ उन्हें बैठने के लिए कहा.

अजय को देख कर सुशील का गुस्सा थोड़ा ठंडा पड़ गया फिर भी बैठने से इनकार करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘नहींनहीं अंकल मैं कुछ बात करने आया था.’’

‘‘बोलो न सुशील क्या बात है? आराम से बैठ कर बात करते हैं, आओ बैठो.’’

सुशील ने खड़ेखड़े ही कहा, ‘‘अंकल आप का पोता अतुल और बहू अनाया भले ही विदेशी संस्कृति में रम कर वैलेंटाइन डे मना रहे हों, मु?ो कोई फर्क नहीं पड़ता. किंतु उन्होंने मेरे चिराग और बहू को अपनी उस पार्टी में क्यों बुलाया? अंकल मेरे घर में भारतीय संस्कृति और भारतीय त्योहार माने और मनाए जाते हैं.’’

अजय ने प्यार से उन का हाथ पकड़ कर उन्हें बैठाते हुए कहा, ‘‘सुशील तुम नाराज मत हो.’’

‘‘अंकल मैं आप का पड़ोसी हूं, जानता हूं आप के घर में कभी खटपट, लड़ाई?ागड़ा नहीं होता क्योंकि आप लोगों में शायद जरूरत से कुछ ज्यादा ही सहनशक्ति है. आप सबकुछ देख कर भी अंधे व सुन कर भी बहरे हो जाते हैं. यह कहां तक सही है अंकल?’’

‘‘सुशील तुम बिलकुल गलत सम?ा रहे हो. क्या हुआ जो बच्चे अपने जीवन के कुछ पल आनंदमय बनाना चाहते हैं. एक अच्छे त्योहार को जिस में केवल प्यार ही प्यार है, उसे वे अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाना चाहते हैं.

सुशील सिर्फ अतुल और अनाया ने ही नहीं, हमारे तो पूरे घर ने वैलेंटाइन डे मनाया है. सब ने अपनेअपने तरीके से उस में खुशियां ढूंढ़ी हैं. सुशील वक्त के साथ बदलाव लाना बहुत जरूरी है.

‘‘अच्छी बातों, अच्छी चीजों को अपना कर हम अपनी संस्कृति को तिरस्कृत नहीं कर रहे. अपनी संस्कृति तो दुनिया की सब से श्रेष्ठ संस्कृति है, किंतु यदि बाहर की किसी अच्छी परंपरा को भी हम अपनाएं तो इस में बुराई क्या है? मेरी अनाया आज यदि जींसटौप पहन कर वैलेंटाइन डे की पार्टी मनाने गई है, हो सकता है अंगरेजी गानों पर डांस भी कर रही हो, लेकिन जब हमारी दीपावली आएगी तब वह भारतीय संस्कृति से हमारे संस्कारों से पूरी की पूरी तनमन से सजीधजी नजर आएगी. साड़ीब्लाउज, सिंदूर, मंगलसूत्र पहनी अनाया कभी अपने संस्कार नहीं भूलेगी. वह अपने बड़ों के पैर छू कर आशीर्वाद भी लेगी.’’

अजय के मुंह से निकली ये बातें सुशील के दकियानूसी विचारों को मानो एक ही पल में धराशायी कर गईं.

वे सोच रहे थे कि अंकल की बातों में कितनी सम?ादारी है. उन्हें लगने लगा कि उन्हें इस तरह यहां ?ागड़ा करने नहीं आना चाहिए था. जल्दबाजी में लिया फैसला अकसर गलत ही होता है. काश, उन के मन में भी अजय अंकल जैसी ही भावनाएं पहले से ही होतीं.

सुशील ने जिज्ञासावश पूछा, ‘‘अंकल, आप के बेटे विवेक और बहू संध्या ने किस तरह से वैलेंटाइन डे मनाया? क्या वे भी किसी ऐसी ही पार्टी में गए हैं?’’

‘‘नहीं बेटा, संध्या और विवेक ने अपनी तरह से वैलेंटाइन डे मनाया. वे दोनों फिल्म

देखने गए. खाना भी बाहर ही खा कर आएंगे. यदि हमारा तरीका सही है सुशील तो फिर इस

में बुराई ही क्या है? यह कोई बुरी बात तो है नहीं. हमें मर्यादा में रह कर इस त्योहार को

अवश्य मनाना चाहिए. माना यह हमारे देश की संस्कृति, हमारे त्योहारों का हिस्सा नहीं है लेकिन हम लोग तो खुशियां मनाने का एक भी मौका

नहीं जाने देते. यही तो है जिंदगी… अपने हिस्से की जितनी खुशियां उठा सकते हो जरूर उठा लो, जी लो.’’

सुशील एकटक अजय की तरफ देख रहे थे, उन की बातें ध्यान से सुन रहे थे. उन की बातों में उन्हें विरोध करने जैसा कुछ भी नहीं लगा. ऐसा लग रहा था मानो सुशील उन की हर बात को अपने अंदर ग्रहण कर रहे हैं.

तभी सुशील ने पूछा, ‘‘अंकल, क्या आप

ने भी…’’

‘‘हां सुशील क्यों नहीं? भला हम पीछे

क्यों रहते?

हम ने भी अपनी खुशियां बटोरीं.’’

‘‘कैसे मनाया आप ने अंकल?’’

‘‘मेरी पत्नी ज्यादा चल नहीं सकती, इसलिए उस का हाथ पकड़ कर धीरेधीरे उसे मंदिर तक ले गया. एकदूसरे के अच्छे स्वास्थ्य के लिए कुदरत से आशीर्वाद मांगा, फिर उसे एक गुलाब का फूल दिया.

‘‘इतने में उसे जैसे जीवन

की असीम खुशियां मिल गईं. मानो वह फिर से जवान हो उठी हो. सुशील मैं शुरू से एक ऐसा परिवार चाहता था, जहां साथ रहते हुए भी सब अपनी जिंदगी अपने मनमुताबिक जीएं.

‘‘आपस में प्यार और सम?ादारी हो. शुरू में लगता था ये सब सोचने तक ठीक है, लेकिन हकीकत में अमल में लाना मुश्किल है. सुशील मैं ने जो अनुभव किया वह यह है कि यदि कोई किसी के जीवन में दखलंदाजी न करे तो यह उतना मुश्किल भी नहीं.

‘‘बस इसी सिद्धांत ने मेरे संयुक्त परिवार को प्यार का

घर बना दिया. सच कहूं तो मंदिर बना दिया.’’

अजय के मुंह से निकला 1-1 शब्द आज

सुशील को एकदम सही लग रहा था. आज उन्हें यह बात सम?ा आ रही थी कि 3 पीढि़यां एकसाथ इतने प्यार से कैसे रहती हैं. कैसे जीवन को सुख और शांति से जीती हैं. आज अजय के शब्दों की गहराई को अपने अंदर समेटे हुए सुशील ने अजय के पैर छू कर उन्हें हैप्पी वैलेंटाइन डे कहा. अजय ने उन्हें गले से लगा लिया. फिर सुशील उन से विदा ले कर चले गए.

सुशील की पत्नी काफी आधुनिक विचारों की थीं, लेकिन अपने पति के डर से हमेशा अपनी इच्छाओं को अपने मन में ही दबा लेती थीं. उन की भी इच्छा होती थी कि उन का पति उन्हें न सही कम से कम बेटेबहू को तो उन की इच्छाओं के मुताबिक जीवन जीने दें. वे चाहती थीं कि कभी तो सुशील

उन्हें भी गुलाब का फूल ला कर प्यार सहित दें, किंतु ये सब उन के लिए केवल एक सपना मात्र था. इस तरह की ख्वाहिशों को अब तक तो वे अपने जीवन से रुखसत कर चुकी थीं.

सुशील की पत्नी अनामिका इस वक्त काफी तनाव में थीं. उन्होंने सुशील को अजय अंकल के घर जाते समय कहा था, ‘‘प्लीज, सुशील मत जाओ, अतुल ने हमारे बच्चों को पार्टी में बुलाया तो क्या हुआ. यदि हमें पसंद नहीं था तो न जाते. इस बात के लिए उन के घर जा कर नाराजगी दिखाने की क्या जरूरत है?’’

‘‘तुम शांत रहो, पहली बार में ही बात खत्म करने दो वरना यह पार्टी तो चलती ही रहेगी,’’ कह कर वे गुस्से में घर से निकल गए थे. अनामिका को यह डर भी सता रहा था कि रात को बेटेबहू के आने के बाद बहुत हंगामा होने वाला है. अनामिका मन ही मन विनती कर रही थी कि इन के क्रोध पर काबू रखना प्रभु. पड़ोसी हैं संबंध बिगड़ने नहीं चाहिए. आखिर जीवनभर का साथ है.

तभी दरवाजे पर डोर बेल बजी. अनामिका तुरंत डरते हुए दरवाजा खोलने पहुंचीं. सामने सुशील के हाथों में आज एक गुलाब नहीं लाल गुलाब के फूलों का पूरा गुच्छा था. अनामिका सुशील का यह रूप देख कर अवाक थीं. वे केवल दंग हो कर सुशील की तरफ देखे ही जा रही थीं. तभी दरवाजे के अंदर आ कर सुशील ने फूलों का गुच्छा और साथ में फिल्म के 2 टिकट अनामिका को देते हुए आज पहली बार कहा, ‘‘अनामिका हैप्पी वैलेंटाइन डे, आई लव यू.’’

अनामिका की आंखों से खुशी के मोती ?ार?ार गिर रहे थे और कान जैसे बारबार वही शब्द सुनना चाह रहे थे.

तभी सुशील ने कहा, ‘‘अनामिका, तुम नहीं कहोगी?’’

‘‘क्या कहूं?’’

‘‘वही जो मैं ने अभीअभी कहा था.’’

अनामिका ने शरमाते हुए आई लव यू कहा और फिर दोनों ने एकदूसरे को अपनी बांहों में भर लिया.

रात को वे जब फिल्म देख कर

वापस आए तभी उन के बच्चे भी पार्टी से वापस आए. सुशील ने बड़े ही प्यार से पूछा, ‘‘बच्चो कैसी रही पार्टी?’’

अपने पापा को इतना खुश देख कर अदिति और चिराग के मन का सारा डर रफूचक्कर हो गया.

सुशील रात को अपने बिस्तर पर लेटेलेटे सोच रहे थे कितने गलत थे वे जो उन्होंने अपने घर को केवल खुद के विचारों के बंधन में बांध रखा था जैसे वे उस स्कूल के प्रिंसिपल हों,

जहां केवल उन के बनाए कायदेकानून ही चलेंगे. अच्छा ही हुआ अजय अंकल ने उन की

आंखें खोल दीं और बगावत होने से पहले ही वे संभल गए वरना एक न एक दिन बगावत होनी तो पक्का ही थी. इस के बाद से उन के परिवार से भी खटपट की आवाजें आनी बंद हो गईं.

Love Story

Emotional Story: अमेरिकन बेटा- डेविड ने कैसे दिखाया अपना प्यार

Emotional Story: रीता एक दिन अपनी अमेरिकन मित्र ईवा से मिलने उस के घर गई थी, रीता भारतीय मूल की अमेरिकन नागरिक थी. वह अमेरिका के टैक्सास राज्य के ह्यूस्टन शहर में रहती थी. रीता का जन्म अमेरिका में ही हुआ था. जब वह कालेज में थी, उस की मां का देहांत हो गया था. उस के पिता कुछ दिनों के लिए भारत आए थे, उसी बीच हार्ट अटैक से उन की मौत हो गई थी. रीता और ईवा दोनों बचपन की सहेलियां थीं. दोनों की स्कूल और कालेज की पढ़ाई साथ हुई थी. रीता की शादी अभी तक नहीं हुई थी जबकि ईवा शादीशुदा थी. उस का 3 साल का एक बेटा था डेविड. ईवा का पति रिचर्ड अमेरिकन आर्मी में था और उस समय अफगानिस्तान युद्ध में गया था.

शाम का समय था. ईवा ने ही फोन कर रीता को बुलाया था. शनिवार छुट्टी का दिन था. रीता भी अकेले बोर ही हो रही थी. दोनों सखियां गप मार रही थीं. तभी दरवाजे पर बूटों की आवाज हुई और कौलबैल बजी. अमेरिकन आर्मी के 2 औफिसर्स उस के घर आए थे. ईवा उन को देखते ही भयभीत हो गई थी, क्योंकि घर पर फुल यूनिफौर्म में आर्मी वालों का आना अकसर वीरगति प्राप्त सैनिकों की सूचना ही लाता है. वे डेविड की मृत्यु का संदेश ले कर आए थे और यह भी कि शहीद डेविड का शव कल दोपहर तक ईवा के घर पहुंच जाएगा. ईवा को काटो तो खून नहीं. उस का रोतेरोते बुरा हाल था. अचानक ऐसी घटना की कल्पना उस ने नहीं की थी. रीता ने ईवा को काफी देर तक गले से लगाए रखा. उसे ढांढ़स बंधाया, उस के आंसू पोंछे. इस बीच ईवा का बेटा डेविड, जो कुछ देर पहले कार्टून देख रहा था, भी पास आ गया. रीता ने उसे भी अपनी गोद में ले लिया. ईवा और रिचर्ड दोनों के मातापिता नहीं थे. उन के भाईबहन थे. समाचार सुन कर वे भी आए थे, पर अंतिम क्रिया निबटा कर चले गए. उन्होंने जाते समय ईवा से कहा कि किसी तरह की मदद की जरूरत हो तो बताओ, पर उस ने फिलहाल मना कर दिया था.

ईवा जौब में थी. वह औफिस जाते समय बेटे को डेकेयर में छोड़ जाती और दोपहर बाद उसे वापस लौटते वक्त पिक कर लेती थी. इधर, रीता ईवा के यहां अब ज्यादा समय बिताती थी, अकसर रात में उसी के यहां रुक जाती. डेविड को वह बहुत प्यार करती थी, वह भी ईवा से काफी घुलमिल गया था. इस तरह 2 साल बीत गए. इस बीच रीता की जिंदगी में प्रदीप आया, दोनों ने कुछ महीने डेटिंग पर बिताए, फिर शादी का फैसला किया. प्रदीप भी भारतीय मूल का अमेरिकन था और एक आईटी कंपनी में काम करता था. रीता और प्रदीप दोनों ही ईवा के घर अकसर जाते थे.

कुछ महीनों बाद ईवा बीमार रहने लगी थी. उसे अकसर सिर में जोर का दर्द, चक्कर, कमजोरी और उलटी होती थी. डाक्टर्स को ब्रेन ट्यूमर का शक था. कुछ टैस्ट किए गए. टैस्ट रिपोर्ट्स लेने के लिए ईवा के साथ रीता और प्रदीप दोनों गए थे. डाक्टर ने बताया कि ईवा का ब्रेन ट्यूमर लास्ट स्टेज पर है और वह अब चंद महीनों की मेहमान है. यह सुन कर ईवा टूट चुकी थी, उस ने रीता से कहा, ‘‘मेरी मृत्यु के बाद मेरा बेटा डेविड अनाथ हो जाएगा. मुझे अपने किसी रिश्तेदार पर भरोसा नहीं है. क्या तुम डेविड के बड़ा होने तक उस की जिम्मेदारी ले सकती हो?’’ रीता और प्रदीप दोनों एकदूसरे का मुंह देखने लगे. उन्होंने ऐसी परिस्थिति की कल्पना भी नहीं की थी. तभी ईवा बोली, ‘‘देखो रीता, वैसे कोई हक तो नहीं है तुम पर कि डेविड की देखभाल की जिम्मेदारी तुम्हें दूं पर 25 वर्षों से

हम एकदूसरे को भलीभांति जानते हैं. एकदूसरे के सुखदुख में साथ रहे हैं, इसीलिए तुम से रिक्वैस्ट की.’’ दरअसल, रीता प्रदीप से डेटिंग के बाद प्रैग्नैंट हो गई थी और दोनों जल्दी ही शादी करने जा रहे थे. इसलिए इस जिम्मेदारी को लेने में वे थोड़ा झिझक रहे थे. तभी प्रदीप बोला, ‘‘ईवा, डोंट वरी. हम लोग मैनेज कर लेंगे.’’

ईवा ने आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘थैंक्स डियर. रीता क्या तुम एक प्रौमिस करोगी?’’ रीता ने स्वीकृति में सिर हिलाया और ईवा से गले लगते हुए कहा, ‘‘तुम अब डेविड की चिंता छोड़ दो. अब वह मेरी और प्रदीप की जिम्मेदारी है.’’

ईवा बोली, ‘‘थैंक्स, बोथ औफ यू. मैं अपनी प्रौपर्टी और बैंक डिपौजिट्स की पावर औफ अटौर्नी तुम दोनों के नाम कर दूंगी. डेविड के एडल्ट होने तक इस की देखभाल तुम लोग करोगे. तुम्हें डेविड के लिए पैसों की चिंता नहीं करनी होगी, प्रौमिस.’’ रीता और प्रदीप ने प्रौमिस किया. और फिर रीता ने अपनी प्रैग्नैंसी की बात बताते हुए कहा, ‘‘हम लोग इसीलिए थोड़ा चिंतित थे. शादी, प्रैग्नैंसी और डेविड सब एकसाथ.’’

ईवा बोली, ‘‘मुबारक हो तुम दोनों को. यह अच्छा ही है डेविड को एक भाई या बहन मिल जाएगी.’’ 2 सप्ताह बाद रीता और प्रदीप ने शादी कर ली. डेविड तो पहले से ही रीता से काफी घुलमिल चुका था. अब प्रदीप भी उसे काफी प्यार करने लगा था. ईवा ने छोटे से डेविड को समझाना शुरू कर दिया था कि वह अगर बहुत दूर चली जाए, जहां से वह लौट कर न आ सके, तो रीता और प्रदीप के साथ रहना और उन्हें परेशान मत करना. पता नहीं डेविड ईवा की बातों को कितना समझ रहा था, पर अपना सिर बारबार हिला कर हां करता और मां के सीने से चिपक जाता था.

3 महीने के अंदर ही ईवा का निधन हो गया. रीता ने ईवा के घर को रैंट पर दे कर डेविड को अपने घर में शिफ्ट करा लिया. शुरू के कुछ दिनों तक तो डेविड उदास रहता था, पर रीता और प्रदीप दोनों का प्यार पा कर धीरेधीरे नौर्मल हो गया.

रीता ने एक बच्चे को जन्म दिया. उस का नाम अनुज रखा गया. अनुज के जन्म के कुछ दिनों बाद तक ईवा उसी के साथ व्यस्त रही थी. डेविड कुछ अकेला और उदास दिखता था. रीता ने उसे अपने पास बुला कर प्यार किया और कहा, ‘‘तुम्हारे लिए छोटा भाई लाई हूं. कुछ ही महीनों में तुम इस के साथ बात कर सकोगे और फिर बाद में इस के साथ खेल भी सकते हो.’’ रीता और प्रदीप ने डेविड की देखभाल में कोई कमी नहीं की थी. अनुज भी अब चलने लगा था. घर में वह डेविड के पीछेपीछे लगा रहता था. डेविड के खानपान व रहनसहन पर भारतीय संस्कृति की स्पष्ट छाप थी. शुरू में तो वह रीता को रीता आंटी कहता था, पर बाद में अनुज को मम्मी कहते देख वह भी मम्मी ही कहने लगा था. शुरू के कुछ महीनों तक डेविड की मामी और चाचा उस से मिलने आते थे, पर बाद में उन्होंने आना बंद कर दिया था.

डेविड अब बड़ा हो गया था और कालेज में पढ़ रहा था. रीता ने उस से कहा कि वह अपना बैंक अकाउंट खुद औपरेट किया करे, लेकिन डेविड ने मना कर दिया और कहा कि आप की बहू आने तक आप को ही सबकुछ देखना होगा. रीता भी डेविड के जवाब से खुश हुई थी. अनुज कालेज के फाइनल ईयर में था. 3 वर्षों बाद डेविड को वेस्टकोस्ट, कैलिफोर्निया में नौकरी मिली. वह रीता से बोला, ‘‘मम्मी, कैलिफोर्निया तो दूसरे छोर पर है. 5 घंटे तो प्लेन से जाने में लग जाते हैं. आप से बहुत दूर चला जाऊंगा. आप कहें तो यह नौकरी जौइन ही न करूं. इधर टैक्सास में ही ट्राई करता हूं.’’

रीता ने कहा, ‘‘बेटे, अगर यह नौकरी तुम्हें पसंद है तो जरूर जाओ.’’ प्रदीप ने भी उसे यही सलाह दी. डेविड के जाते समय रीता बोली, ‘‘तुम अब अपना बैंक अकाउंट संभालो.’’

डेविड बोला ‘‘क्या मम्मी, कुछ दिन और तुम्हीं देखो यह सब. कम से कम मेरी शादी तक. वैसे भी आप का दिया क्रैडिट कार्ड तो है ही मेरे पास. मैं जानता हूं मुझे पैसों की कमी नहीं होगी.’’ रीता ने पूछा कि शादी कब करोगे तो वह बोला, ‘‘मेरी गर्लफ्रैंड भी कैलिफोर्निया की ही है. यहां ह्यूस्टन में राइस यूनिवर्सिटी में पढ़ने आई थी. वह भी अब कैलिफोर्निया जा रही है.’’

रीता बोली, ‘‘अच्छा बच्चू, तो यह राज है तेरे कैलिफोर्निया जाने का?’’ डेविड बोला, ‘‘नो मम्मी, नौट ऐट औल. तुम ऐसा बोलोगी तो मैं नहीं जाऊंगा. वैसे, मैं तुम्हें सरप्राइज देने वाला था.’’

‘‘नहीं, तुम कैलिफोर्निया जाओ, मैं ने यों ही कहा था. वैसे, तुम क्या सरप्राइज देने वाले हो.’’ ‘‘मेरी गर्लफ्रैंड भी इंडियन अमेरिकन है. मगर तुम उसे पसंद करोगी, तभी शादी की बात होगी.’’

रीता बोली, ‘‘तुम ने नापतोल कर ही पसंद किया होगा, मुझे पूरा भरोसा है.’’ इसी बीच अनुज भी वहां आया. वह बोला, ‘‘मैं ने देखा है भैया की गर्लफ्रैंड को. उस का नाम प्रिया है. डेविड और प्रिया दोनों को लाइब्रेरी में अनेक बार देर तक साथ देखा है. देखनेसुनने में बहुत अच्छी लगती है.’’

डेविड कैलिफोर्निया चला गया. उस के जाने के कुछ महीनों बाद ही प्रदीप का सीरियस रोड ऐक्सिडैंट हो गया था. उस की लोअर बौडी को लकवा मार गया था. वह अब बिस्तर पर ही था. डेविड खबर मिलते ही तुरंत आया. एक सप्ताह रुक कर प्रदीप के लिए घर पर ही नर्स रख दी. नर्स दिनभर घर पर देखभाल करती थी और शाम के बाद रीता देखती थीं.

रीता को पहले से ही ब्लडप्रैशर की शिकायत थी. प्रदीप के अपंग होने के कारण वह अंदर ही अंदर बहुत दुखी और चिंतित रहती थी. उसे एक माइल्ड अटैक भी पड़ गया, तब डेविड और प्रिया दोनों मिलने आए थे. रीता और प्रदीप दोनों ने उन्हें जल्द ही शादी करने की सलाह दी. वे दोनों तो इस के लिए तैयार हो कर ही आए थे.

शादी के बाद रीता ने डेविड को उस की प्रौपर्टी और बैंक डिपौजिट्स के पेपर सौंप दिए. डेविड और प्रिया कुछ दिनों बाद लौट गए थे. इधर अनुज भी कालेज के फाइनल ईयर में था. पर रीता और प्रदीप दोनों ने महसूस किया कि डेविड उतनी दूर रह कर भी उन का हमेशा खयाल रखता है, जबकि उन का अपना बेटा, बस, औपचारिकताभर निभाता है. इसी बीच, रीता को दूसरा हार्ट अटैक पड़ा, डेविड इस बार अकेले मिलने आया था. प्रिया प्रैग्नैंसी के कारण नहीं आ सकी थी. रीता को 2 स्टेंट हार्ट के आर्टरी में लगाने पड़े थे, पर डाक्टर ने बताया था कि उस के हार्ट की मसल्स बहुत कमजोर हो गई हैं. सावधानी बरतनी होगी. किसी प्रकार की चिंता जानलेवा हो सकती है. रीता ने डेविड से कहा, ‘‘मुझे तो प्रदीप की चिंता हो रही है. रातरात भर नींद नहीं आती है. मेरे बाद इन का क्या होगा? अनुज तो उतना ध्यान नहीं देता हमारी ओर.’’

डेविड बोला, ‘‘मम्मी, अनुज की तुम बिलकुल चिंता न करो. तुम को भी कुछ नहीं होगा, बस, चिंता छोड़ दो. चिंता करना तुम्हारे लिए खतरनाक है. आप, आराम करो.’’ कुछ महीने बाद थैंक्सगिविंग की छुट्टियों में डेविड और प्रिया रीता के पास आए. साथ में उन का 4 महीने का बेटा भी आया. रीता और प्रदीप दोनों ही बहुत खुश थे. इसी बीच रीता को मैसिव हार्ट अटैक हुआ. आईसीयू में भरती थी. डेविड, प्रिया और अनुज तीनों उस के पास थे. डाक्टर बोल गया कि रीता की हालत नाजुक है. डाक्टर ने मरीज से बातचीत न करने को भी कहा.

रीता ने डाक्टर से कहा, ‘‘अब अंतिम समय में तो अपने बच्चों से थोड़ी देर बात करने दो डाक्टर, प्लीज.’’ फिर रीता किसी तरह डेविड से बोल पाई, ‘‘मुझे अपनी चिंता नहीं है. पर प्रदीप का क्या होगा?’’ डेविड बोला, ‘‘मम्मी, तुम चुप रहो. परेशान मत हो.’’ वहीं अनुज बोला, ‘‘मम्मा, यहां अच्छे ओल्डएज होम्स हैं. हम पापा को वहां शिफ्ट कर देंगे. हम लोग पापा से बीचबीच में मिलते रहेंगे.’’

ओल्डएज होम्स का नाम सुनते ही रीता की आंखों से आंसू गिरने लगे. उसे अपने बेटे से बाप के लिए ऐसी सोच की कतई उम्मीद नहीं थी. उस की सांसें और धड़कन काफी तेज हो गईं. डेविड अनुज को डांट रहा था, प्रिया ने कहा, ‘‘मम्मी, जब से आप की तबीयत बिगड़ी है, हम लोग भी पापा को ले कर चिंतित हैं. हम लोगों ने आप को और पापा को कैलिफोर्निया में अपने साथ रखने का फैसला किया है. वहां आप लोगों की जरूरतों के लिए खास इंतजाम कर रखा है. बस, आप यहां से ठीक हो कर निकलें, बाकी आगे सब डेविड और मैं संभाल लेंगे.’’

रीता ने डेविड और प्रिया दोनों को अपने पास बुलाया, उन के हाथ पकड़ कर कुछ कहने की कोशिश कर रही थी, उस की सांसें बहुत तेज हो गईं. अनुज दौड़ कर डाक्टर को बुलाने गया. इस बीच रीता किसी तरह टूटतीफूटती बोली में बोली, ‘‘अब मुझे कोई चिंता नहीं है. चैन से मर सकूंगी. मेरा प्यारा अमेरिकन बेटा.’’ इस के आगे वह कुछ नहीं बोल सकी. जब तक अनुज डाक्टर के साथ आया, रीता की सांसें रुक चुकी थीं. डाक्टर ने चैक कर रहा, ‘‘शी इज नो मोर.’’

Emotional Story

Social Story: गुरु दक्षिणा- राधा से क्या दक्षिणा चाहता था स्वामी

Social Story: आश्रम का यह सब से बड़ा कार्यक्रम होता था. जब तक बड़े बाबा थे तब तक ज्यादा भीड़ नहीं होती थी. उन्हें यह तामझाम करना नहीं आता था. छोटेमोटे चढ़ावे और एक प्रौढ़ सी नौकरानी से उन की जिंदगी कट गई थी. पर उन के बाद आश्रम से जो लोग जुड़े थे, उन का स्वार्थ भी इस से जुड़ना शुरू हो गया था. ‘‘गुरु पूर्णिमा का पर्व तो मनाना ही चाहिए,’’ रामगोविंद ने सलाह दी, ‘‘दशपुर के आश्रम में अयोध्या के एक युवा संत आए हैं, उन से निवेदन किया जाए तो अच्छा रहेगा.’’

रामगोविंद की सलाह पर आश्रम वाले प्रज्ञानंद को बुला लाए थे. आश्रम के भक्तजनों का निमंत्रण वे अस्वीकार नहीं कर पा रहे थे. यही तय हुआ कि माह में कुछ दिन के लिए प्रज्ञानंद इधर आते रहेंगे. इस बार विशेष तैयारियां होनी शुरू हो गई थीं. गांव के प्रधान ने पंचायत समिति के प्रधान को जा कर समझाया था कि यह चुनाव का वर्ष है, अभी से सक्रिय होना होगा. कार्ड आदि सामान 15 दिन पहले पहुंचाना है. इस से भीड़ बढ़ जाएगी.

‘‘भंडारे का खर्चा?’’ पंचायत समिति के प्रधान ने पूछा तो गांव के प्रधान ने कहा था, ‘‘देखो, इस प्रकार के कार्यक्रम में जो भी आता है वह अपनी श्रद्धा से खर्च करता है. भंडारे में सेब, पूरी, सब्जी, बस ज्यादा खर्चा नहीं होगा. हिसाब बाद में होता रहेगा.’’ ‘‘स्वामीजी का खर्चा?’’

‘‘वे तो हम को ही देंगे. चढ़ावे में जो भी आएगा उस का आधा उन का होगा आधा हमारा,’’ गांव के प्रधान ने कहा, ‘‘पिछली बार हम ने 60 प्रतिशत लिया था, जो भेंट होगी, बड़े महाराजजी की तसवीर की होगी, लोग उन्हें भेंट चढ़ाएंगे, वह थाली में रखी रहेगी. वहीं रामगोविंद रहेंगे, वे सारा हिसाब रख लेंगे, बाद में हम बैठ कर जोड़ लगा लेंगे. आप तो बस, मंत्रीजी को आने को कहें.’’ 2 दिन पहले से आश्रम में अखंड रामायण का पाठ शुरू हो चुका था. दूरदूर से भक्त आने लगे थे. इस बार स्वामी प्रज्ञानंद ने बड़े चित्र, जिस में शिव शंकर और स्वामी शंकराचार्य के साथ उन की भी तसवीर थी, गांवगांव बंटवा दिए थे. बहुत बड़ा सा एक पोस्टर आश्रम के दरवाजे पर भी लगा हुआ था.

मास्टर रामचंद्र ने पोस्टर देख कर चौंकते हुए कहा, ‘‘यह क्या, शिव और आदि शंकराचार्य के साथ स्वामी प्रज्ञानंद, क्या यह शिव का पोता है?’’

‘‘चुप करो,’’ उन की पत्नी ने टोकते हुए कहा, ‘‘तुम हर जगह कुतर्क ले आते हो. यह भी नहीं देखते कि ये लोग कितना काम कर रहे हैं, इन्होंने तो कोई चेला, शिष्य नहीं बनाया, ये तो समिति के लोग हैं जो स्वामीजी को ले आते हैं और उत्सव हो जाता है.’’ तब तक नील कोठी से आने वाली बस आ गई थी. औरतें अपनेअपने थैले, अटैचियां ले कर उतरीं. उतरते ही भजन शुरू हो गया. तेज स्वर के साथ सुरबेसुर सभी एकसाथ थे.

‘‘देखदेख, ये बाबा से कहने गए हैं कि हम आ गए हैं,’’ जानकी बहन ने कहा. ‘‘नहींनहीं, ये तो रसोई में बताने गए हैं कि गरम चाय बना दो, हम आ गए हैं,’’ नंदा ने धीरे से कहा.

‘‘चुप कर, लोग सुनेंगे तो क्या कहेंगे,’’ नंदा की मां ने बेटी को टोका. शहर के जानेमाने सेठ भी 2-3 बार वहां आ चुके थे. हर बार की तरह इस बार भी भंडारे की सामग्री उन की दुकान से ही आ रही थी. वे भी जानते थे कि न तो यहां सामान तुलता है न कहीं कोई क्वालिटी देखी जाती है. दानेदार चीनी के भाव में यहां सल्फर की बोरियां आराम से खप जाती हैं. वनस्पति घी की भी 50 किस्में हैं, नुकसान का अंदेशा दूरदूर तक नहीं था.

तभी जीप आ कर रुकी. उस में से स्वामीजी का शिष्य भास्कर नीचे उतरा. उस ने अपनी जेब से एक परचा निकाल कर पंचायत समिति के मानमलजी को पकड़ाते हुए कहा, ‘‘स्वामीजी ने दिया है. कृपया पढ़ लें.’’ मानमलजी ने परचा पढ़ा और बोले, ‘‘यार, तुम्हीं ले आते, रुपए हम दे देते. महाराज ने फलों के साथ बिसलरी का पानी भी लिखा है, जो यहां मिलता नहीं. खैर, यहां से गाड़ी जाएगी, जो भी होगा, देखेंगे.’’

भास्कर ने फिर गंभीर मुद्रा में कहा, ‘‘महाराज के साथ मथुरा के ठाकुरजी भी आ रहे हैं. महाराज चाहते हैं, यहां कभी रासलीला भी हो, भागवत का पाठ भी, ये उन्हीं के लिए है.’’ ‘‘हां, वे भंडारे का प्रसाद भी तो खाते होंगे,’’ बूढ़े मास्टर रामचंद्रजी चीखे.

‘‘चुप करो,’’ मानमलजी को गुस्सा आ गया था, ‘‘बूढ़ों के साथ यही दिक्कत है.’’ बात आईगई हो गई. सामने सड़क पर दूसरी बस, जो मालता से आई थी, आ कर रुकी. तभी 4-5 कारें, दशपुर से भी आ गईं.

‘‘मैं चलता हूं,’’ मानमलजी बोले, ‘‘महाराज तो कल 11 बजे आएंगे… सुबह हमारे यहां भी कार्यक्रम है.’’ सुबह से ही अतिथियों का आना शुरू हो गया था. लगभग 7 से 10 हजार स्त्रीपुरुष जमा होंगे, इस बार तो गांवगांव जीप घुमाई गई थी. सत्संग और फिर भंडारा, भंडारे के नाम पर भीड़ अच्छी- खासी आ जाती है. संयोजकजी मोबाइल से बारबार स्वामीजी से संपर्क साध रहे थे और माइक पर कहते जा रहे थे, ‘‘थोड़ी देर में स्वामीजी हमारे बीच में होंगे, तब तक हम कार्यक्रम प्रारंभ करते हैं.’’

संयोजकजी ने माइक से घोषणा की कि बड़े बाबा के जमाने से रामचंद्रजी इस आश्रम से जुड़े हैं. वे संक्षेप में अपनी बात कहें, क्योंकि थोड़ी ही देर में स्वामी प्रज्ञानंदजी हमारे बीच में होंगे…अभी और भी श्रोताओं को बोलना है. अचानक दौड़ती कारें आश्रम के प्रांगण में आ कर रुकीं तो आयोजक लोग हाथ में मालाएं ले कर तेजी से उस ओर दौड़े.

‘‘विलंब के लिए क्षमा चाहता हूं,’’ स्वामीजी ने अपने दंड के साथ कार से नीचे उतरते हुए कहा. उन के साथ आए लोग भी उन के पीछेपीछे चल दिए.

‘‘आइए, ठाकुरजी, यह भी अब अपना ही आश्रम है,’’ स्वामी प्रज्ञानंद बोले, ‘‘आप की भागवत की यहां बहुत चर्चा है. आप समय निकालें तो यहां भी भागवत कथा हो जाए.’’

आयोजक समिति के सदस्य स्वामीजी का संकेत पा चुके थे और उद्घोषक ने माइक पर भागवत कथा का महत्त्वपूर्ण समाचार दे दिया. जनजन तक पहुंचाने के लिए आह्वान भी कर दिया. श्रोताओं ने तालियों की गड़गड़ाहट से इस का स्वागत किया. कहा जाता है कि कलियुग में भागवत कथा के श्रवण मात्र से सारे पाप धुल जाते हैं. स्वामीजी कह रहे थे, ‘‘आज गुरु- पूर्णिमा है. गुरु साक्षात शिव के अवतार होते हैं. गुरु का पूरा शरीर ब्रह्म का शरीर है.’’

भाषण के बाद भीड़ खड़ी हो गई. उद्घोषक गुरुपूजा के लिए पंक्ति बना कर आने को कह रहा था. स्वामीजी ने परात में अपने पांव रखे तो बिसलरी के जल को लोटों में लिया गया, क्योंकि कुएं के पानी से स्वामीजी के पांव में इन्फैक्शन होने का डर जो था. पांव धोए गए, चरणामृत अलग से जमा किया गया…फिर उस में पांव के जल को मिला दिया गया. अब चरणामृत को कार्यकर्ता चम्मच से सभी के दाएं हाथ में दे रहे थे और उस के लिए भी धक्का- मुक्की शुरू हो चुकी थी.

फिर स्वामीजी के पैर के नाखून पर रोली लगा कर पूजा करते हुए दक्षिणा देने का कार्यक्रम शुरू हुआ. उद्घोषक कह रहा था, ‘‘स्वामीजी दक्षिणा नहीं लेते, पर सपने में गुरु महाराज ने कहा है कि दक्षिणा जो दी जाती है, उस का दसगुना भक्तों को वापस हो जाता है, यह परंपरा है. आप स्वेच्छा से जो भी देना चाहें, दें, गुरुकृपा से आप को इस का कई गुना मिलता रहेगा, गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु… गुरु साक्षात परब्रह्म…’’ माइक पर मंत्रों का पाठ भी हो रहा था. बड़ी मुश्किल से कामता प्रसाद को स्वामीजी से मिलने का मौका मिला.

‘‘अरे, आप भी यहां आए हैं?’’ स्वामीजी बोले, ‘‘हां, राधाजी तो दिखी थीं, वे तो पूजा के लिए आ गई थीं पर आप कहां रह गए?’’ ‘‘जी, मैं भी यहीं था.’’

‘‘अच्छाअच्छा, ध्यान नहीं गया. रात को आप लोग कमरे में आ जाना, वहां रामगोविंद हैं, वे सब व्यवस्था कर देंगे.’’ संध्या को ही दोनों तैयार हो गए थे. निर्देशानुसार राधा ने गुलाबी रंग की सिल्क की साड़ी और हरे रंग की चूडि़यां पहन रखी थीं. राधा की शादी हुए 7 साल हो गए थे, पर पुत्र सुख नहीं मिला था. पड़ोसिन नंदा ने कहा था कि पूजा होती है, करवा ले. सुना है प्रज्ञानंद से पूजा करवाने पर बहुतों को पुत्र लाभ मिला है. कोई बाधा हो तो हट जाती है. तभी कामता प्रसाद ने स्वामीजी से संपर्क किया था और उन्होंने आज का दिन बताया था.

कामता प्रसाद जब वहां पहुंचे तो उन्हें कमरे के भीतर ले जाया गया. रामगोविंद ने सारी पूजा की सामग्री रख दी. सामने तसवीर के पास एक कद्दू रखा था. सामने की चौकी पर हलदी, रोली, चावल की अनेक आकृतियां बनी हुई थीं. ‘‘आप पहले आएंगे, पूजा होगी, ध्यान होगा, फिर भाभीजी आएंगी, बाद में उन की अलग से भी पूजा होगी,’’ रामगोविंद ने बताया.

कामता प्रसाद तो अपनी पूजा कर के बाहर के कमरे में आ गए. तब भीतर से आवाज आई और राधा को बुलाया गया. राधा भीतर गई. उस ने स्वामी प्रज्ञानंद को प्रणाम किया. कमरे में बाबा ही अकेले थे, वे आंखें बंद किए संस्कृत में श्लोक पढ़ते जा रहे थे, राधा सामने बैठी थी. अचानक प्रज्ञानंद की आंखें खुलीं, दृष्टि सीधी राधा के वक्षस्थल से होती हुई उस की पूरी देह पर फैल गई. राधा सिहर उठी. उसे लगा, कहीं कुछ गलत तो नहीं हो रहा है. स्वामीजी ने फिर आंखें बंद कर लीं, फिर पंचपात्र में से छोटी तांबे की चम्मच से जल निकाल कर स्वामीजी ने राधा की दाईं हथेली पर रखा और बोले, ‘‘आचमन कर लो.’’

‘नहीं, नहीं, राधा, नहीं,’ जैसे उस के भीतर से कोई बोला हो. राधा ने उंगलियों को थोड़ा सा खोल दिया और जल बह गया. उस ने आचमन के लिए अंजलि को होंठों से लगाया फिर हाथ नीचे रख लिया.

‘‘एक बार और,’’ मंत्र पढ़ते हुए स्वामीजी ने जल उस की हथेली पर रखा. इस बार आंखें उस के शरीर पर एक्सरे की किरण की तरह बढ़ रही थीं. उस ने पहले की तरह वहीं जल गिराया और उठना चाहा.

‘‘आप कहां चलीं. पूजा को बीच में छोड़ते नहीं,’’ स्वामी प्रज्ञानंद ने उठ कर उसे पकड़ना चाहा. उन का हाथ राधा की कमर से होते हुए उस की छातियों पर आ चुका था. ‘‘हट, पापी,’’ कहते हुए राधा का हाथ तेजी से प्रज्ञानंद के गाल पर पड़ा और वह चीखी.

‘‘क्या हुआ, क्या हुआ,’’ बोलता रामगोविंद भीतर की ओर दौड़ा. वह किवाड़ बंद करना चाह रहा था लेकिन तब तक राधा किवाड़ को धक्का देती हुई पास के कमरे में पहुंच गई थी. उस की साड़ी खुल गई थी. उस ने उसे तेजी से ठीक किया और बाहर की ओर दौड़ पड़ी. ‘‘कहां हैं ये, कहां हैं ये…’’ राधा चीख रही थी.

‘‘साहब तो अपने कमरे की तरफ गए हैं,’’ किसी ने बताया. राधा तेजी से कामता के कमरे की तरफ दौड़ी. उस के पीछे और भी लोग जो आश्रम में थे, आ गए थे.

कमरे में कामता प्रसाद गहरी नींद में सो रहे थे. अचेत थे. ‘‘रात को जागरण हुआ था, दिनभर कार्यक्रम में थे, थक गए हैं, ऐसी गहरी नींद तो भाग्यवानों को ही आती है,’’ पीछे से आवाज आई.

‘‘जब जग जाएं तब पूजा कर आना, आश्रम का दरवाजा तो हमेशा खुला रहता है,’’ एक सलाह आई.

राधा ने जलती आंखों से उसे देखा और बोली, ‘‘अपनी सलाह अपने पास रख, यह स्वर्ग तुझे ही मुबारक हो,’’ फिर उस ने सामने पानी से भरी बालटी उठाई और कामता के माथे पर उड़ेल दी. पानी की तेज धार से कामता की नींद खुल गई. ‘‘क्या हुआ?’’ वह बोला.

‘‘कुछ नहीं, तुम इतनी गहरी नींद में सो कैसे गए?’’ राधा बोली. ‘‘स्वामीजी ने जो जल दिया था उस का आचमन करते ही मुझे झपकी आनी शुरू हो गई थी, मुझ से वहां बैठा ही नहीं गया, इसलिए उठ कर चला आया. तुम पूजा कर आईं?’’ कामता ने पूछा.

‘‘हां, अच्छी तरह पूजा हो गई है, तुम इस नरक से जल्दी बाहर चलो.’’ कामता प्रसाद कुछ समझ नहीं पा रहे थे. राधा ने तेजी से अपनी अटैची उठाई और गीले कपड़ों में ही पति का हाथ पकड़े आश्रम के अहाते से बाहर निकल गई.

उधर स्वामी प्रज्ञानंद अब बाहर तख्त पर आ कर बैठ गए थे. महिलाएं उन के पांव दबाने के लिए प्रतीक्षारत थीं. ‘‘गुरुपूजा पर गुरु का पाद सेवन का पुण्य वर्षों की साधना से मिलता है,’’ रामगोविंद सब को समझा रहा था.

बाबा की निगाहें अपनी गाड़ी की ओर बढ़ती राधा पर टंगी हुई थीं. उन का दायां हाथ बारबार अपने गाल पर चला जाता जहां अब हलकी सूजन आ गई थी.

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Hindi Drama Story: असली चेहरा

Hindi Drama Story: नई कालोनी में आए मुझे काफी दिन हो गए थे. किंतु समयाभाव के कारण किसी से मिलनाजुलना नहीं हो पाता था. इसी वजह से किसी से मेरी कोई खास जानपहचान नहीं हो पाई थी. स्कूल में टीचर होने के कारण मुझे घर से सुबह 8 बजे निकलना पड़ता और 3 बजे वापस आने के बाद घर के काम निबटातेनिबटाते शाम हो जाती थी. किसी से मिलनेजुलने की सोचने तक की फुरसत नहीं मिल पाती थी.

मेरे घर से थोड़ी दूर पर ही अवंतिका का घर था. उस की बेटी योगिता मेरे ही स्कूल में और मेरी ही कक्षा की विद्यार्थी थी. वह योगिता को छोड़ने बसस्टौप पर आती थी. उस से मेरी बातचीत होने लगी. फिर धीरेधीरे हम दोनों के बीच एक अच्छा रिश्ता कायम हो गया. फिर शाम को अवंतिका मेरे घर भी आने लगी. देर तक इधरउधर की बातें करती रहती.

अवंतिका से मिल कर मुझे अच्छा लगता था. उस की बातचीत का ढंग बहुत प्रभावशाली था. उस के पहनावे और साजशृंगार से उस के काफी संपन्न होने का भी एहसास होता था. मैं खुश थी कि एक नई जगह अवंतिका के रूप में मुझे एक अच्छी सहेली मिल गई है.

योगिता वैसे तो पढ़ाई में ठीक थी पर अकसर होमवर्क कर के नहीं लाती थी. जब पहले दिन मैं ने उसे डांटते हुए होमवर्क न करने का कारण पूछा, तो उस ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया, ‘‘पापा ने मम्मा को डांटा था, इसलिए मम्मा रो रही थीं और मेरा होमवर्क नहीं करा पाईं.’’

योगिता आगे भी अकसर होमवर्क कर के नहीं लाती थी और पूछने पर कारण हमेशा मम्मापापा का झगड़ा ही बताती थी. वैसे तो मात्र एक शिक्षिका की हैसियत से घर पर मैं अवंतिका से इस बारे में बात नहीं करती पर वह चूंकि मेरी सहेली बन चुकी थी और फिर प्रश्न योगिता की पढ़ाई से भी संबंधित था, इसलिए एक दिन अवंतिका जब मेरे घर आई तो मैं ने उसे योगिता के बारबार होमवर्क न करने और उस के पीछे बताने वाले कारण का उस से उल्लेख किया. मेरी बात सुन उस की आंखों में आंसू आ गए और फिर बोली, ‘‘मैं नहीं चाहती थी कि आप के सामने अपने घर की कमियां उजागर करूं, पर जब योगिता से आप को पता चल ही गया है हमारे झगड़े के बारे में तो आज मैं भी अपने दिल की बात कह कर अपना मन हलका करना चाहूंगी… दरअसल, मेरे पति का स्वभाव बहुत खराब है. उन की बातबात पर मुझ में कमियां ढूंढ़ने और मुझ पर चीखनेचिल्लाने की आदत है. लाख कोशिश कर लूं पर मैं उन्हें खुश नहीं रख पाती. मैं उन्हें हर तरह से बेसलीकेदार लगती हूं. आप ही बताएं आप को मैं बेसलीकेदार लगती हूं? क्या मुझे ढंग से पहननाओढ़ना नहीं आता या मेरे बातचीत का तरीका अशिष्ट है? मैं तो तंग आ गई हूं रोजरोज के झगड़े से… पर क्या करूं बरदाश्त करने के अलावा कोई रास्ता भी तो नहीं है मेरे पास.’’

‘‘मैं तुम्हारे पति से 2-4 बार बसस्टौप पर मिली हूं. उन से मिल कर तो नहीं लगता कि वे इतने बुरे मिजाज के होंगे,’’ मैं ने कहा.

‘‘किसी के चेहरे से थोड़े ही उस की हकीकत का पता चल सकता है… हकीकत क्या है, यह तो उस के साथ रह कर ही पता चलता है,’’ अवंतिका बोली.

मैं ने उस की लड़ाईझगड़े वाली बात को ज्यादा महत्त्व न देते हुए कहा, ‘‘तुम ने बताया था कि तुम्हारे पति अकसर काम के सिलसिले में बाहर जाते रहते हैं… वे बाहर रहते हैं तब तो तुम्हारे पास घर के काम और योगिता की पढ़ाई दोनों के लिए काफी समय होता होगा? तुम्हें योगिता की पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए.’’

‘‘किसी एक के खयाल रखने से क्या होगा? उस के पापा को तो किसी बात की परवाह ही नहीं होती. बेटी सिर्फ मेरी ही तो नहीं है? उन की भी तो है. उन्हें भी तो अपनी जिम्मेदारी का एहसास होना चाहिए. समय नहीं है तो न पढ़ाएं पर जब घर में हैं तब बातबात पर टोकाटाकी कर मेरा दिमाग तो न खराब करें… मैं तो चाहती हूं कि ज्यादा से ज्यादा दिन वे टूअर पर ही रहें…कम से कम घर में शांति तो रहती है.’’

अवंतिका की बातें सुन कर मेरा मन खराब हो गया. देखने में तो उस के पति सौम्य, सुशिक्षित लगते हैं, पर अंदर से कोई कैसा होगा, यह चेहरे से कहां पता चल सकता है? एक पढ़ालिखा उच्चपदासीन पुरुष भी अपने घर में कितना दुर्व्यवहार करता है, यह सोचसोच कर अवंतिका के पति से मुझे नफरत होने लगी.

अब अकसर अवंतिका अपने घर की बातें बेहिचक मुझे बताने लगी. उस की बातें सुन कर मुझे उस से सहानुभूति होने लगी कि इतनी अच्छी औरत की जिंदगी एक बदमिजाज पुरुष की वजह से कितनी दुखद हो गई… पहले जब कभी योगिता को बसस्टौप पर छोड़ने अवंतिका की जगह योगिता के पापा आते थे, तो मैं उन से हर विषय पर बात करती थी, किंतु उन की सचाई से अवगत होने के बाद मैं कोशिश करती कि उन से मेरा सामना ही न हो और जब कभी सामना हो ही जाता तो मैं उन्हें अनदेखा करने की कोशिश करती. मेरी धारणा थी कि जो इनसान अपनी पत्नी को सम्मान नहीं दे सकता उस की नजरों में दूसरी औरतों की भला क्या अहमियत होगी.

एक दिन अवंतिका काफी उखड़े मूड में मेरे पास आई और रोते हुए मुझ से कहा कि मैं 2 हजार योगिता के स्कूल टूअर के लिए अपने पास से जमा कर दूं. पति के वापस आने के बाद वापस दे देगी. चूंकि मैं योगिता की कक्षाध्यापिका थी, इसलिए मुझे पता था कि स्कूल टूअर के लिए बच्चों को 2 हजार देने हैं. अत: मैं ने अवंतिका से पैसे देने का वादा कर लिया. पर उस का रोना देख कर मैं पूछे बगैर न रह सकी कि उसे पैसे मुझ से लेने की जरूरत क्यों पड़ गई?

मेरे पूछते ही जैसे अवंतिका के सब्र का बांध टूट पड़ा. बोली, ‘‘आप को क्या बताऊं मैं अपने घर की कहानी… कैसे जिंदगी गुजार रही हूं मैं अपने पति के साथ… बिलकुल भिखारी बना कर रखा है मुझे. कितनी बार कहा अपने पति से कि मेरा एटीएम बनवा दो ताकि जब कभी तुम बाहर रहो तो मैं अपनी जरूरत पर पैसे निकाल सकूं. पर जनाब को लगता है कि मेरा एटीएम कार्ड बन गया तो मैं गुलछर्रे उड़ाने लगूंगी, फुजूलखर्च करने लगूंगी. एटीएम बनवा कर देना तो दूर हाथ में इतने पैसे भी नहीं देते हैं कि मैं अपने मन से कोई काम कर सकूं. जाते समय 5 हजार पकड़ा गए. कल 3 हजार का एक सूट पसंद आ गया तो ले लिया. 1 हजार ब्यूटीपार्लर में खत्म हो गए. रात में 5 सौ का पिज्जा मंगा लिया. अब केवल 5 सौ बचे हैं. अब देख लीजिए स्कूल से अचानक 3 हजार मांग लिए गए टूअर के लिए तो मुझे आप से मांगने आना पड़ गया… क्या करूं 2 ही रास्ते बचे थे मेरे पास या तो बेटी की ख्वाहिश का गला घोट कर उसे टूअर पर न भेजूं या फिर किसी के सामने हाथ फैलाऊं. क्या करती बेटी को रोता नहीं देख सकती, तो आप के ही पास आ गई.’’

अवंतिका की बात सुन कर मैं सोच में पड़ गई. अगर 2 दिन के लिए पति 5 हजार दे कर जाता है, तो वे कोई कम तो नहीं हैं पर उन्हीं 2 दिनों में पति के घर पर न होते हुए उन पैसों को आकस्मिक खर्च के लिए संभाल कर रखने के बजाय साजशृंगार पर खर्च कर देना तो किसी समझदार पत्नी के गुण नहीं हैं? शायद उस की इसी आदत की वजह से ही उस के पति एटीएम या ज्यादा पैसे एकसाथ उस के हाथ में नहीं देते होंगे, क्योंकि उन्हें पता होगा कि पैसे हाथ में रहने पर अवंतिका इन्हीं चीजों पर खर्च करती रहेगी. पर फिर भी मैं ने यह कहते हुए उसे पैसे दे दिए कि मैं कोई गैर थोड़े ही हूं, जब कभी पैसों की ऐसी कोई आवश्यकता पड़े तो कहने में संकोच न करना.

कुछ ही दिनों बाद विद्यालय में 3 दिनों की छुट्टी एकसाथ पड़ने पर मेरे पास कुछ खाली समय था, तो मैं ने सोचा कि मैं अवंतिका की इस शिकायत को दूर कर दूं कि मैं एक बार भी उस के घर नहीं आई. मैं ने उसे फोन कर के शाम को अपने आने की सूचना दे दी और निश्चित समय पर उस के घर पहुंच गई.

पर डोरबैल बजाने से पहले ही मेरे कदम ठिठक गए. अंदर से अवंतिका और उस के पति के झगड़े की आवाजें आ रही थीं. उस के पति काफी गुस्से में थे, ‘‘कितनी बार समझाया है तुम्हें कि मेरा सूटकेस ध्यान से पैक किया करो, पर तुम्हारा ध्यान पता नहीं कहां रहता है. हर बार कोई न कोई सामान छोड़ ही देती हो तुम… इस बार बनियान और शेविंग क्रीम दोनों ही नहीं रखे थे तुम ने. तुम्हें पता है कि गैस्टहाउस शहर से कितनी दूर है? दूरदूर तक दुकानों का नामोनिशान तक नहीं है. तुम अंदाजा भी नहीं लगा सकती हो कि मुझे कितनी परेशानी और शर्म का सामना करना पड़ा वहां पर… इस बार तो मेरे सहयोगी ने हंसीहंसी में कह भी दिया कि भाभीजी का ध्यान कहां रहता है सामान पैक करते समय?’’

‘‘देखो, तुम 4 दिन बाद घर आए हो… आते ही चीखचिल्ला कर दिमाग न खराब करो. तुम्हें लगता है कि मैं लापरवाह और बेसलीकेदार हूं तो तुम खुद क्यों नहीं पैक कर लेते हो अपना सूटकेस या फिर अपने उस सहयोगी से ही कह दिया करो आ कर पैक कर जाया करे? मुझे क्यों आदेश देते हो?’’ यह अवंतिका की आवाज थी.

‘‘जब मुझे पहले से पता होता है कि मुझे जाना है तो मैं खुद ही तो पैक करता हूं अपना सूटकेस, पर जब औफिस में जाने के बाद पता चलता है कि मुझे जाना है तो मेरी मजबूरी हो जाती है कि मैं तुम से कहूं कि मेरा सूटकेस पैक कर के रखना. मैं तुम्हें कार्यक्रम तय होते ही सूचित कर देता हूं ताकि तुम्हें हड़बड़ी में सामान न डालना पड़े. इस बार भी मैं ने 3 घंटे पहले फोन कर दिया था तुम्हें.’’

‘‘जब तुम्हारा फोन आया था उसी समय मैं ने चेहरे पर फेस पैक लगाया था. उसे सूखने में तो समय लगता है न? जब तक वह सूखा तब तक तुम्हारा औफिस बौय आ गया सूटकेस लेने, बस जल्दी में चीजें छूट गईं. इस में मेरी इतनी गलती नहीं है जितना तुम चिल्ला रहे हो.’’

‘‘गलती छोटी है या बड़ी यह तो नतीजे पर निर्भर करता है. 3 दिन मैं ने बिना बनियान के शर्ट पहनी और अपने सहयोगी से क्रीम मांग कर शेविंग की. इस में तुम्हें न शर्म का एहसास है और न अफसोस का.’’

‘‘तुम्हें तो बस बात को तूल देने की आदत पड़ गई है. कोई दूसरा पति होता तो बीवीबच्चों से मिलने की खुशी में इन बातों का जिक्र ही नहीं करता… और तुम हो कि उसी बात को तूल दिए जा रहे हो.’’

‘‘बात एक बार की होती तो मैं भी न तूल देता, पर यह गलती तो तुम हर बार करती हो… कितनी बार चुप रहूं?’’

‘‘नहीं चुप रह सकते हो तो ले आओ कोई दूसरी जो ठीक से तुम्हारा खयाल रख सके. मुझ में तो तुम्हें बस कमियां ही कमियां नजर आती हैं.’’

टूअर पर गए पति के पास पहनने को बनियान नहीं थी, दाढ़ी करने के लिए क्रीम नहीं थी अवंतिका की गलती की वजह से. फिर भी वह शर्मिंदा होने के बजाय उलटा बहस कर रही है. कैसी पत्नी है यह? अवंतिका का असली रूप उजागर हो रहा था मेरे सामने. अंदर के माहौल को सोच कर मैं ने उलटे पांव लौट जाने में ही भलाई समझी. पर ज्यों ही मैं ने लौटने के लिए कदम बढ़ाया. अंदर से गुस्से में बड़बड़ाते उस के पति दरवाजा खोल कर बाहर निकल आए.

दरवाजे पर मुझे खड़ा देख उन के कदम ठिठक गए. बोले, ‘‘अरे, मैम आप? आप बाहर क्यों खड़ी हैं? अंदर आइए न,’’ कह कर दरवाजे के एक किनारे खड़े हो कर उन्होंने मुझे अंदर आने का इशारा किया साथ ही अवंतिका को आवाज दी, ‘‘अवंतिका देखो नेहा मैम आई हैं.’’

मुझे देखते ही अवंतिका खुश हो गई. उस के चेहरे पर कहीं भी शर्मिंदगी का एहसास न था कि कहीं मैं ने उन की बहस सुन तो नहीं ली है. किंतु उस के पति के चेहरे पर शर्मिंदगी का भाव साफ नजर आ रहा था.

अवंतिका के घर के अंदर पहुंचने से पहले ही पतिपत्नी के झगड़े को सुन खिन्न हो चुका मेरा मन अंदर पहुंच कर अवंतिका के बेतरतीब और गंदे घर को देख कर और खिन्न हो गया. अवंतिका के हर पल सजेसंवरे व्यक्तित्व के ठीक विपरीत उस का घर अकल्पनीय रूप से अस्तव्यस्त था. कीमती सोफे पर गंदे कपड़े और डाइनिंगटेबल पर जूठे बरतनों के साथसाथ कंघी और तेल जैसी वस्तुएं भी पड़ी हुई थीं. योगिता का स्कूल बैग और जूते ड्राइंगरूम में ही इधरउधर पड़े थे. आज तो स्कूल बंद था. इस का मतलब यह सारा सामान कल से ही इसी तरह पड़ा है. बैडरूम का परदा खिसका पड़ा था. अत: न चाहते हुए वहां भी नजर चली ही गई. बिस्तर पर भी कपड़ों का अंबार साफ नजर आ रहा था. ऐसा लग रहा था कि धुले कपड़ों को कई दिनों से तह कर के नहीं रखा गया. उस के घर की हालत पर अचंभित मैं सोफे पर कपड़े सरका कर खुद ही जगह बना कर बैठ गई.

‘‘आप आज हमारे घर आएंगी यह सुन कर योगिता बहुत खुश थी. बेसब्री से आप का इंतजार कर रही थी पर अभीअभी सहेलियों के साथ खेलने निकल गई है,’’ कहते हुए अवंतिका मेरे लिए पानी लेने किचन में गई तो पीछेपीछे उस के पति भी चले गए.

मुझे साफ सुनाई दिया वे कह रहे थे, ‘‘जब तुम्हें पता था कि मैम आने वाली हैं तब तो घर को थोड़ा साफ कर लिया होता…क्या सोच रही होंगी वे घर की हालत देख कर?’’

‘‘मैम कोई मेहमान थोड़े ही हैं… कुछ भी नहीं सोचेंगी… तुम उन की चिंता न

करो और जरा जल्दी से चायपत्ती और कुछ खाने को लाओ,’’ कह उस ने पति को दुकान पर भेज दिया.

उस के घर पहुंच कर मुझे झटके पर झटका लगता जा रहा था. मैं अवंतिका की गृहस्थी चलाने का ढंग देख कर हैरान हो रही थी. 2 दिन पहले ही अवंतिका मेरे घर से चायपत्ती यह कह कर लाई थी कि खत्म हो गई है और तब से आज तक खरीद कर नहीं लाई? बारबार कहने और बुलाने के बाद आज पूर्व सूचना दे कर मैं आई हूं फिर भी घर में चाय के साथ देने के लिए बिस्कुट तक नहीं?

उस के पति के जाने के बाद मैं ने सोचा कि अकेले बैठने से अच्छा है अवंतिका के साथ किचन में ही खड़ी हो जाऊं. पर किचन में पहुंचते ही वहां जूठे बरतनों का अंबार देख और अजीब सी दुर्गंध से घबरा कर वापस ड्राइंगरूम में आ कर बैठने में ही भलाई समझी.

मेरा मन बुरी तरह उचट चुका था. मैं समझ गई थी कि अवंतिका उन औरतों में से है, जिन के लिए बस अपना साजशृंगार ही महत्त्वपूर्ण होता है. घर के काम और व्यवस्था से उन्हें कुछ लेनादेना नहीं होता और उन पर कोई उंगली न उठा पाए, इस के लिए वे सब के सामने अपने को बेबस और लाचार सिद्ध करती रहती हैं और सारा दोष अपने पति के मत्थे मढ़ देती हैं. उस के घर आने के अपने निर्णय पर मुझे अफसोस होने लगा था. हर समय सजीसंवरी दिखने वाली अवंतिका के घर की गंदगी में घुटन होने लगी थी. चाय के कप पर जमी गंदगी को अनदेखा कर जल्दीजल्दी चाय का घूंट भर कर मैं वहां से निकल ली.

वहां से वापस आ कर मेरी सोच पलट गई. उस के घर की तसवीर मेरे सामने स्पष्ट हो गई थी. अवंतिका उन औरतों में से थी, जो अपनी कमियों को छिपाने के लिए अपने पति को दूसरों के सामने बदनाम करती हैं. अवंतिका के पति एक सौम्य, सुशिक्षित और सलीकेदार व्यक्ति थे. निश्चित ही वे घर को सुव्यवस्थित और आकर्षक ढंग से सजाने के शौकीन होंगे तभी तो अपनी मेहनत की कमाई का एक बड़ा हिस्सा उन्होंने घर में कीमती फर्नीचर, परदों और शो पीस पर खर्च किया था. पर उन के रखरखाव और देखभाल की जिम्मेदारी तो अवंतिका की ही होगी. पर अवंतिका के स्वभाव में घर की सफाई और सुव्यवस्था शामिल नहीं थी. इसी वजह से उस के पति नाखुश और असंतुष्ट हो कर उस पर अपनी खीज उतारते होंगे.

सुबहसवेरे घर छोड़ कर काम पर गए पतियों के लिए घर एक आरामगाह होता है. वहां के लिए शाम को औफिस से छूटते ही पति ठीक उसी तरह भागते हैं जैसे स्कूल से छूटते ही छोटे बच्चे भागते हैं. बाहर की आपाधापी, भागदौड़ से थका पति घर पहुंच कर अगर साफसुथरा घर और शांत माहौल पाता है, तो उस की सारी थकान और तनाव खत्म हो जाता है. पर अवंतिका के अस्तव्यस्त घर में पहुंच कर तो किसी को भी सुकून का एहसास नहीं हो सकता है. जिस घर के कोनेकोने में नकारात्मकता विद्यमान हो वहां रहने वालों को सुकून और शांति कैसे मिल सकती है?

सुबह से शाम तक औफिस में खटता पति अपनी पत्नी के ही हाथों दूसरों के बीच बदनाम होता रहता है. अवंतिका के घर से निकलते वक्त मेरी धारणा पलट चुकी थी. अब मेरे अंदर उस के पति के लिए सम्मान और सहानुभूति थी और अवंतिका के लिए नफरत.

Hindi Drama Story

Short Story in Hindi: बरसात की रात- चमेली के साथ उस रात क्या हुआ

लेखक- सुजय कुमार

Short Story in Hindi: चमेली उन से बच कर भाग रही थी. गीली मिट्टी होने की वजह से पीछा करने वालों के पैरों की आहट आ रही थी. कीचड़ के छींटों से उस की साड़ी सन गई थी. उस ने अपने कंधे पर बच्चे को लाद रखा था. तभी बूंदाबांदी शुरू हो गई.

चमेली ने पल्लू से बच्चे के मुंह को ढक दिया. पगडंडी खत्म हुई. वह कुछ देर के लिए रुकी. चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा था. अंधेरे में कहीं भी कोई नजर नहीं आ रहा था. बहुत दूरी पर स्ट्रीट लाइट टिमटिमा रही थी.

चमेली ने मुड़ कर देखा. अंधेरे में उसे कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था. कोई आहट न थी. उस की जान में जान आई. वे लोग उस का पीछा नहीं कर सके थे.

बारिश कुछ तेज हुई. उसे रुकने का कोई ठिकाना नहीं दिखाई दिया. बहुत दूर कुछ दुकानें थीं, पर उस के पैर जवाब दे चुके थे. बच्चा भीगने के चलते रोने लगा था. उस ने थपकियां दे कर उसे चुप कराने की कोशिश की, मगर वह चुप नहीं हुआ.

अचानक हुई तेज बारिश की वजह से भागना मुश्किल था. थोड़ा दूरी पर एक मकान दिखाई दिया, तो चमेली ने उस का दरवाजा खटखटा दिया.

‘‘कौन है?’’ अंदर से आवाज आई.

चमेली ने देखा, उस आवाज में सख्ती थी, तो कलेजा मुंह को आ गया. वह मंगू दादा का घर था, जिस से सभी डरते थे. वह आसमान से गिरी और खजूर पर अटक गई थी. घबराहट के मारे उस की आवाज नहीं निकली.

‘‘कौन है?’’ मंगू दादा दहाड़ा.

‘‘म… म… मैं हूं,’’ बच्चे को कस कर पकड़ते हुए चमेली ने कहा.

‘‘अरे तू? इस समय यहां? क्या बात है?’’ मंगू ने पूछा.

‘‘नहींनहीं… कुछ नहीं.’’

‘‘घर से लड़ कर आई हो?’’

‘‘हां… मर्द दारू पी कर दंगा कर रहा था,’’ चमेली रोते हुए बोली.

‘‘कहां जा रही हो?’’

‘‘रामनगर… मां के पास. सुबह मैं पहली बस से चली जाऊंगी,’’ चमेली धीमी आवाज में बोली.

‘‘रामनगर? इतनी दूर तुम बच्चे के साथ कैसे जाओगी?’’

‘‘जाना ही पड़ेगा… चली जाऊंगी,’’ आवाज सुन कर बच्चा रोने लगा. जवाब का इंतजार किए बिना वह जाने लगी.

‘‘क्या बेवकूफी करती हो? दिमाग खराब है क्या? फूल सा बच्चा लिए बरसात में भीगती हुई जाओगी. वह भी इतनी रात में. चुपचाप अंदर चलो.

‘‘रात भर ठहर जाओ. सुबह चली जाना…’’ वह बोला, ‘‘मुझ पर भरोसा है तो अंदर आओ, नहीं तो इस बारिश में डूब मरो.’’

वह अनमनी सी वहीं खड़ी रही, तो मंगू ने उस के हाथों से बच्चा छीन लिया और अपने कंधे से लगा कर सहलाने लगा.

‘‘तुम्हें शौक है तो मरो, पर इस बच्चे को यहीं छोड़ जाओ. सुबह ले जाना,’’ मंगू उसे लताड़ते हुए बोला.

अब क्या चारा था? जाल में फंसी मछली की तरह वह तड़प उठी. मजबूर हो कर मंगू के घर में घुस गई.

मंगू के पास से गुजरते समय सस्ती शराब की गंध से उस के नथुने भर गए. घर के अंदर भी वही सड़ांध… वही बदबू छाई थी.

‘‘यह लो, बच्चे के कपड़े बदल दो और खुद भी कपड़े पहन लो,’’ मंगू उसे तौलिया देते हुए बोला.

‘‘घर में लड़ाई क्यों हुई?’’ मंगू ने सख्ती से पूछा.

‘‘दारू पीना तो उस की रोज की आदत है. आज वह नशे में धुत्त हो कर 2 आदमियों को भी साथ लाया था. वे दोनों मुझे दबोचने के लिए आगे बढ़े, तो मैं बच्चे को ले कर पिछवाड़े से भाग निकली…’’ चमेली सिसकते हुए बोली.

‘‘दोनों ने मेरा पीछा भी किया, पर मैं किसी तरह से बच गई.’’

मंगू कुछ देर तक वहीं खड़ा रहा, फिर कोने में रखे बक्से के पास गया. ढक्कन खोलते ही शराब की बदबू चारों ओर फैल गई.

‘‘शराब…’’ आगे के शब्द चमेली के गले में ही अटक गए.

‘‘इस के बिना मैं नहीं रह सकता,’’ कहते हुए मंगू ने बोतल मुंह से लगाई और गटागट पी गया.

‘‘अकेले डर तो नहीं लगेगा न?’’

‘‘और… आप?’’ उस ने हिचकते हुए पूछा.

‘‘मेरे कई ठिकाने हैं, कहीं भी चला जाऊंगा. दरवाजा ठीक से बंद कर लो,’’ मंगू ने कहा.

मंगू दरवाजा धकेल कर मूसलाधार बारिश में चल पड़ा. उस अंधेरे में चमेली न जाने क्या देखती रही.

Short Story in Hindi

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