Dowry Deaths: हमारे देश में दहेज़ प्रथा बहुत पहले से चली आ रही है. इसे रोकने के लिए बहुत सारे प्रयास किये गएँ, सख्त कानून बनायें गए. लेकिन अभी हाल ही में ग्रेटर नोएडा में दहेज के लिए एक महिला को जिंदा जला देने की घटना ये बताती है कि ये दहेज़ नाम का दानव अपनी जड़े काफी गहरे तक जमा चुकी हैं. आरोप है कि निक्की नाम की महिला को उसके पति विपिन और ससुराल वालों ने 35 लाख रुपये की दहेज मांग पूरी न होने जिंदा जला दिया.
ये अपने आप में कोई पहला मामला नहीं है. तमिलनाडु के तिरुपुर में जुलाई 2025 में 23 साल की रिधान्या दो महीने पहले एक दुल्हन बनी थी, लेकिन वह ससुराल में प्रताड़ित हो रही थी और यह बात कोई नहीं समझ रहा था. उसने अपने आखिरी व्हाट्सअप मैसेज में लिखा भी था कि –
“पापा, ये शादी एक साजिश थी. कोई मेरी बात नहीं सुनता. हर दिन मुझे मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है. अब और नहीं सहा जाता.”“हर कोई कहता है कि समझौता कर लो. लेकिन कितनी बार करूं समझौता? जब हर दिन आत्मा मर रही हो, तो जीना क्यों?”“पापा, मैं आपको बोझ नहीं बनना चाहती. मुझे माफ कर देना. अब सब खत्म हो गया है.”
उसकी आवाज में कंपकंपी है, दर्द है, और सबसे बड़ा सच — सिस्टम से हार मान चुकी एक बेटी की चुप्पी.
इससे पहले उत्तर प्रदेश के ही अलीगढ़ में भी दहेज़ के लिए गर्म (आयरन) सटाने के कारण महिला की मोत हो गई थी. इसके बाद उत्तर प्रदेश के ही पीलीभीत में दहेज़ के लिए एक महिला को जला दिया था. इसी तरह चंडीगढ़ में एक नए शादी वाली लड़की ने दहेज उत्पीड़न से तंग आकर अपनी जान दे दी थी. इसके अलावा दो घटनाएं तमिलनाडु से सामने आईं. पहली घटना में पोन्नेरी के पास एक महिला ने शादी के महज चार दिनों के भीतर ही कथित उत्पीड़न के कारण आत्महत्या कर ली. दूसरी घटना में भी इसी वजह से एक युवती ने शादी के दो महीने के भीतर ही अपनी जान दे दी.
क्या कहते हैं आंकड़े
NCRB (नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो) के अनुसार, 2022 में दहेज हत्या के कुल 6450 मामले दर्ज हुए थे. इस आंकड़े के अनुसार बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, ओडिशा, राजस्थान और हरियाणा ने अकेले 80% मामलों में योगदान दिया.
इस डेटा के अनुसार, हर तीन दिन में लगभग 54 महिलाएं दहेज प्रताड़ना और हत्या का शिकार होती रही हैं. यह सिर्फ संख्या या आंकड़े नहीं है, ये एक दर्दनाक सच्चाई है.
एक सच यह भी है ऐसे सारे मामले सामने नहीं आते. कई बार परिवार दबा देता है, कई बार समाज इस पर पर्दा दाल देता है, कभी बेटी की इज़्ज़त का हवाला दिया जाता है, तो कभी जाती की प्रतिष्ठा का सवाल बन जाता है.
दहेज़ हत्या में लड़की के माँ बाप भी हैं जिम्मेवार
अगर बात करें अभी हाल ही में हुए ग्रेटर निक्की वाले केस की, तो यह पहला मामला नहीं था जब निक्की को प्रताड़ित किया जा रहा था. 2016 से ही उस पर अत्याचार किया जा रहा था. भरी भरकम दहेज़ दिया गया, स्कॉर्पियो गाड़ी दी गयी. उसके बाद डिमांड कभी भी ख़तम नहीं हुए. परिवार के लोग कहते गुजर बिरादरी में तो ये सब तुम्हें सहना पड़ेगा? तुम्हें अपने घर को बचाना पड़ेगा?
जहाँ तक निक्की के पति और ससुरालवालों की बात है वो तो जिम्मेवार है ही, वो गुनहगार हैं. लेकिन जिम्मेवार निक्की के माता पिता भी हैं. उसका परिवार भी है जो सब कुछ जानते हुए और देखते हुए भी सह रहा था और बेटी को सहने को परिवार को बनाये रखने को मजबूर कर रहा था.
तमिलनाडु के तिरुपुर में भी यहाँ हुआ कहती रही मेरे साथ गलत हो रहा है लेकिन माता पिता ने नहीं सुनी और बेटी ने अपनी जान दे कर उन्हें समझाया की मैं किस हद तक परेशां थी.
शादी नहीं चल रही, तो वापस लाएं बेटी
अगर लगता है बेटी की शादी में दिक्कत है और वो नहीं चल पा रही तो बेटी को वापस लाएं. उसके साथ कुछ गलत होने का इंतज़ार करना अपने आप में बेवकूफी है. शादी की है बेटी को छोड़ तो नहीं दिया. अगर वह परेशां है तो उसके साथ खड़े हो.
पहले पैरों पर खड़ा करें फिर शादी करें
ग्रेटर नॉएडा में निक्की के केस में भी 17 साल की उम्र में ही लड़की की शादी कर दी. उसकी पढाई भी पूरी नहीं हुए होगी. ऐसा बहुत से मामले में होता है जो अपने आप में गलत है. शादी की इतनी जल्दी आखिर है क्यूँ ? क्यूँ नहीं पहले बेटी की पढाई पूरी करवाते? उसे नौकरी कर अपने पैरो पर खड़ा तो होने दें तभी शादी लेकिन ऐसा नहीं होता और इसके लिए भी माँ बाप ही जिम्मेवार हैं?
दहेज़ दिया जाता है, तभी तो और दहेज़ की मांग की जाती है
मृतक निक्की की बहन कंचन ने कहा, ”हमारे पिता ने दहेज़ में एक टॉप मॉडल स्कॉर्पियो, एक रॉयल एनफील्ड बाइक, नकद, सोना, सब कुछ उपहार में दिया था. इसके अलावा, करवा चौथ पर हमारे घर से उपहार भेजे जाते थे. हमारे माता-पिता ने वह सब कुछ किया जो वे कर सकते थे, लेकिन ससुराल वाले खुश नहीं थे. इस बयान से ये साफ़ जाहिर होता है कि निक्की के मायके वालों ने अपनी मर्जी से दहेज़ दिया. लड़के वालों के मुँह खोले और फिर जब मांग उनकी तरफ से की गए तो वे बिदक गए.
अगर यह बात सही है तो जितने दोषी निक्की के ससुराल वाले दहेज मांगने के लिए हैं. उससे ज्यादा दोषी निक्की के मां-बाप और परिवार हैं. उन्होंने दहेज देकर शादी की ही क्यों?”इसके लिए तो सीधे तौर पर आज के मौजूदा समाज, निक्की का परिवार भी जिम्मेदार है.
अगर शादी के समय ही कह दिया जाएँ कि हमने अपनी बेटी को पढ़ा लिखा कर काबिल बनाया है हम दहेज़ नहीं देंगे, तो फिर शदी करना या न करने का फैसला लड़के वालों का होता है. बाद में कोई तमाशा हो इससे अच्छा है पहले ही मन कर दें लेकिन अगर आपने एक बार दहेज़ दे दिया तो आपकी गलती है. फिर तो बार बार मांग किये जाने के पुरे चांस हैं.
दहेज़ की जगह बेटी को प्रॉपर्टी में हिस्सा दें [विवाह कानून 1956 और 2005 ]
विवाह कानून 1956 और 2005
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 में और 2005 में हुए संशोधन के बाद एक बेटी चाहे वह शादीशुदा हो या न हो, अपने पिता की संपत्ति को पाने का बराबरी का हक रखती है. अपने पिता और उस की पुश्तैनी संपत्ति में भी लड़कियों को अपने भाइयों और मां जितना हक मिलता है. अगर पिता ने कोई वसीयत नहीं की है तब भी उन्हें भाइयों के बराबर ही हक मिलेगा. यहां तक की अपनी शादी हो जाने के बाद भी यह अधिकार उन्हें मिलेगा.
जहां पहले ये कहा जाता था कि महिलाओं का कोई घर नहीं है. अगर पतिपत्नी में झगड़ा हुआ, वो मायके आ नहीं सकती थी अब उस को कानून ने अधिकार दे दिया है.
अब उसे पता है कि अगर उस की शादी के कोई दिक्कत है तो उस का अपना घर है जहां वह लौट कर जा सकती है क्योंकि पिता के घर पर उस का भी कानूनन अधिकार है.पहले लड़कियों को कहा जाता था कि तुम अपनी जबान बंद रखों जो हो गया उसे भूल जाओं. ये मारपीट तो होती रहती है कौन सा पति नहीं मारता. समझा दिया जाता था लड़कियों को. लड़की पूरी जिंदगी ऐसे ही बिता देती थी क्योंकि उसे पता था कि हमारी शादी के बाद हमारे पेरेंट्स के पास हमारे लिए कुछ है नहीं. आज इस उत्तराधिकार कानून की वजह से अधिकार मिल गया कि अगर शादी के बाद मेरे साथ कुछ गलत होता है तो मैं अपने पिता के घर पर भी अधिकार के साथ रह सकती हूं.
इसलिए यह जरुरी है कि लड़कियों को अपने इस अधिकार के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए ताकि वह अपनी ज़िंदगी का फैसला खुद अपनी मर्जी से ले सकें. अगर शादी में कुछ गलत हो रहा है तो उसे सहने के बजाये छोड़ने की हिम्मत रखें.
बेटी की ज़िंदगी से बड़ा है सामाजिक दबाव
अगर बेटी की शादी में कोई दिक्कत है कोई शिकायत हो, तो बेटी को वापस ले आएं. .शादी में मतभेद होते रहते है कोई बड़ी बात नहीं है. अगर लड़का लड़की में नहीं बन रही हैं तो अपने अपने रास्ते जाओ. मरने मारने की क्या जरुरत है. निक्की के केस में भी पहले जल्दी शादी की, पैसा जितना देना था नहीं दिया, वादा किया होगा हम दे देंगे. 6 साल झगड़े करवाए, डिवोर्स की अर्जी तक नहीं लगाई. मनमुटाव के बावजूद निक्की के घरवाले उसे बार-बार ससुराल भेजते ही क्यों थे? निक्की के पिता ने कहा भी है कि अगर उन्होंने पंचायत का फैसला न माना होता, बेटियों को ससुराल न भेजा होता, तो आज उनकी बेटी जिंदा होती. यहाँ सवाल ये भी है कि पंचायत में मामला लेकर जाने के बजाए अगर पुलिस में गए होते तो कोई नतीजा भी निकलता.
पंचायत ने भी घर बचाने पर जोर दिया? ये सब कुछ क्यूँ हुआ? जहाँ तक निक्की के पति और ससुरालवालों की बात है वो तो जिम्मेवार है ही, वो गुन्हेगार हैं. लेकिन जिम्मेवार निक्की के माता पिता भी हैं. उसका परिवार भी है जो सबब कुछ जानते हुए और देखते हुए भी सह रहा था और बेटी को सहने को, परिवार को बनाये रखने को मजबूर कर रहा था. समाज के दबाव में आकर मायके वाले बेटी की जिंदगी को दांव पर लगाने को मजबूर हो जाते हैं. उन्हें अपनी बेटी की जान से ज्यादा अपनी खोखली इज़्ज़त जो प्यारी होती है.
वाकई इस तरह की घटनाये हमें सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर क्यों हम आज भी दहेज जैसी कुरीति के शिकंजे से बाहर नहीं आ पाए? कानून सख्त है, जागरूकता अभियान भी चलते हैं, लेकिन असलियत यह है कि अब भी समाज का एक बड़ा हिस्सा बेटियों और बहुओं को बोझ समझता है और शादी को सौदे की तरह देखता है.
जब तक हम सब दहेज को ‘ना’ नहीं कहेंगे तब तक ऐसी घटनाएं रुकने का नाम नहीं लेंगी. निक्की की मौत केवल एक महिला की मौत नहीं है, बल्कि यह चेतावनी है उन सभी परिवारों के लिए जो आज भी दहेज को रिश्तों से बड़ा मानते हैं. अब वक्त है कि शादी को सौदा नहीं, बल्कि बराबरी और सम्मान का बंधन माना जाए. तभी इंसानियत और भरोसा रिश्तों में वापस लौट सकेगा.
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