Fictional Story: मेहनत रंग लाई- क्या शर्मिंदगी को गर्व में बदल पाया दिवाकर

Fictional Story: ठाणे के विधायक दिवाकर की कार में ड्राइवर के अलावा पिछली सीट पर दिवाकर उन की पत्नी मालिनी थीं. पीछे वाली कार में उन के दोनों युवा बच्चे पर्व और सुरभि और दिवाकर का सहायक विकास थे. आज दिवाकर को एक स्कूल का उद्घाटन करने जाना था.

दिवाकर का अपने क्षेत्र में बड़ा नाम था. पर्व और सुरभि अकसर उन के साथ ऐसे उद्घाटनों में जा कर बोर होते थे, इसलिए बहुत कम ही जाते थे. पर कारमेल स्कूल की काफी चर्चा हो रही थी, काफी बड़ा स्कूल बना था, सो आज फिर दोनों बच्चे आ ही गए. वैसे, उद्घाटन तो किसी न किसी जगह का दिवाकर करते ही रहते थे. पर स्कूल का उद्घाटन पहली बार करने गए थे.

विकास ने भाषण तैयार कर लिया था. मीडिया थी ही वहां. मालिनी भी उन के साथ कम ही आती थी, पर आज बच्चे उसे भी जबरदस्ती ले आए थे. वैसे भी स्कूल की प्रबंध कमेटी ने दिवाकर को सपरिवार आने के लिए बारबार आग्रह किया था. विकास का भी यही कहना था ‘सर, ऐसे संपर्क बढ़ेंगे तो पार्टी के लिए ठीक रहेगा. टीचर्स होंगे, अभिभावक होंगे, आप का सपरिवार जाना काफी प्रभाव डालेगा.’

कार से उतरते ही दिवाकर और बाकी सब का स्वागत जोरशोर से हुआ. स्कूल की पिं्रसिपल विभा पारिख, मैनेजर सुदीप राठी और प्रबंधन समिति के अन्य सदस्य सब का स्वागत करते हुए उन्हें गेट पर लगे लाल रिबन तक ले गए. दिवाकर ने उसे काटा तो तालियों की आवाज से एक उत्साहपूर्ण माहौल बन गया. दिवाकर स्टेज पर चले गए. दर्शकों की पंक्ति में सब से आगे रखे गए सोफे पर मालिनी विकास और बच्चों के साथ बैठ गई.

विभा पारिख ने दिवाकर को सपरिवार आने के लिए धन्यवाद देते हुए एक बुके दे कर उन का अभिनंदन किया. फिर उन्होंने अपने स्कूल के बारे में काफीकुछ बताया. अभिभावकगण बड़ी संख्या में थे. स्कूल की बिल्ंिडग वाकई बहुत शानदार थी. कैमरों की लाइट चमकती रही. दिवाकर से भी दो शब्द बोलने का आग्रह किया गया.

दिवाकर माइक पर खड़े हुए. शिक्षा के महत्त्व शिक्षा के विकास, नए बने स्कूल की तारीफ कर के भाषण खत्म कर ही रहे थे कि एक मीडियाकर्मी ने पूछ लिया, ‘‘सर, आप ने शिक्षा के संदर्भ में बहुत अच्छी बातें कहीं, आप प्लीज अपनी शिक्षा के बारे में भी आज बताना पसंद करेंगे?’’

शर्मिंदगी का एक साया दिवाकर के चेहरे पर आ कर लहराया. उन की नजरें मालिनी और अपने बच्चों से मिलीं तो उन की आंखों में भी अपने लिए शर्मिंदगी सी दिखी. नपेतुले, सपाट शब्दों में उन्होंने कहा, ‘‘अपने बारे में फिर कभी बात करूंगा, आज इस नए स्कूल के लिए, इस के सुनहरे भविष्य के लिए मैं शुभकामनाएं देता हूं. बच्चे यहां ज्ञान अर्जित करें, सफलता पाएं.’’

तालियों की गड़गड़ाहट से सभा समाप्त हुई पर शर्मिंदगी का जो एक कांटा आज दिवाकर के गले में अटका था, लौटते समय कुछ बोल ही नहीं पाए, चुप ही रहे. मालिनी को घर छोड़ा और विकास के साथ अपने औफिस निकल गए. विकास दिवाकर के साथ सालों से काम कर रहा था. दोनों के बीच आत्मीय संबंध थे. दिवाकर के तनाव का पूरा अंदाजा विकास को था. वह सम झ रहा था कि अपनी शिक्षा पर उसे सवाल दिवाकर को शर्मिंदा कर गए हैं. पूरे रास्ते दिवाकर गंभीर विचारों में डूबे रहे, विकास भी चुप ही रहा.

औफिस पहुंचते ही विकास ने उन के लिए जब कौफी मंगवाई इतनी देर में वे पहली बार हलके से मुसकराए. कहा, ‘‘तुम्हें सब पता है, मु झे कब क्या चाहिए,’’ विकास भी हंस दिया, ‘‘चलो सर, आप ने कम से कम कुछ बोला तो. आप इतने परेशान न हों. खोदखोद कर सवाल पूछना मीडिया का काम ही है. और यह पहली बार तो हुआ नहीं है. पर आज आप इतने सीरियस क्यों हो गए? एक ठंडी सांस ली दिवाकर ने. ‘‘बहुत कुछ सोच रहा था, विकास मु झे तुम्हारी हैल्प चाहिए.’’

‘‘हुक्म दीजिए सर.’’‘‘तुम तो जानते हो, बहुत गरीबी में पलाबढ़ा हूं. गांव से काम की तलाश में यहां आया था और अपने ही प्रदेश के यहां के विधायक के लिए काम करता था. उन की मृत्यु के बाद बड़ी मेहनत से यहां पहुंचा हूं. आज लोगों की नजरों में अपने लिए उस समय एक उपहास सा देखा तो बड़ा दुख हुआ. अपने परिवार की नजरों में भी अपने लिए एक शर्मिंदगी सी देखी, तो मन बड़ा आहत हुआ. सच तो यही है कि इतने बड़े स्कूल के उद्घाटन में जा कर स्वयं कम शिक्षित रह कर शिक्षा के महत्त्व और विकास पर बड़ीबड़ी बातें करना खुद को ही एक खोखलेपन से भरता चला जाता है. आज मैं ने सोच लिया है कि मैं किसी दूसरे राज्य से पत्राचार के जरिए आगे पढ़ाई करूंगा. यहां किसी को बताऊंगा ही नहीं, मालिनी और बच्चों तक को नहीं.’’

विकास को जैसे एक करंट लगा, ‘‘सर, यह क्या कह रहे हैं? यह तो बहुत ज्यादा मुश्किल है, असंभव सा है.’’‘‘कुछ भी असंभव नहीं है. मैं आगे पढ़ूंगा, तुम इस में मेरी मदद करोगे और किसी को भी इस बात की खबर नहीं होनी चाहिए.’’

‘‘सर, कैसे होगा? पढ़ाई कहां होगी? बुक्स, कालेज?’’‘‘आज तुम यही सब पता करो. मु झे अगर अपने क्षेत्र में सिर उठा कर लोगों से शिक्षा के महत्त्व पर बात करनी है तो उस से पहले मु झे स्वयं को सुशिक्षित करना होगा. जाओ फौरन काम शुरू कर दो.’’

विकास ‘हां’ में सिर हिलाता हुआ उन के रूम से निकल गया, दिवाकर से मिलने कुछ और लोग आए हुए थे. वे उन के साथ व्यस्त हो गए. वे सब चले गए तो दिवाकर कुछ पेपर्स देख रहे थे. विकास उत्साहपूर्वक अंदर आया. उसे देखते ही बोले, ‘‘क्या पता किया? बैठो.’’

‘‘सर सब हो जाएगा, आप सिक्किम मणिपाल यूनिवर्सिटी से अपना फौर्म भर दें. इस की परीक्षाओं के कई सैंटर हैं. आप भोपाल चुन लें. वहां औनलाइन परीक्षाएं होती हैं. वहां आप को कोई पहचानेगा भी नहीं. आप अपना कोर्स, अपने विषय बता दें. मैं और भी डिटेल्स देख लूंगा.’’

‘‘वाह, शाबाश, कहते हुए दिवाकर अपनी चेयर से उठे और विकास का कंधा थपथपाते हुए उसे गले लगा लिया, ‘‘आओ, अभी फाइनल कर लेते हैं. ध्यान रखना, तुम्हारे अलावा यह सब किसी को पता नहीं चलना चाहिए.’’

‘‘निश्चित रहिए, सर.’’

विकास को दिवाकर ने हमेशा अपना छोटा भाई ही सम झा था. उस की पत्नी और एक बच्चा ठाणे में ही रहते थे. दिवाकर विकास का हर तरह से खयाल रखते थे तो विकास भी दिवाकर का बहुत निष्ठावान सहायक था. एक विधायक और एक सहायक के साथसाथ दोनों दोस्त, भाई जैसा व्यवहार भी रखते थे. दोनों ने बैठ कर औनलाइन बहुतकुछ देखा, विषय चुने और सिक्किम मणिपाल यूनिवर्सिटी में पत्राचार से ग्रेजुएशन करने के लिए फौर्म भर दिया गया. सब ठीक रहा, औफिस में ही बुक्स भी आ गईं.

दिवाकर ने नई बुक्स को हाथ में ले कर बच्चे की तरह सहलाया, आंखें भीग गईं, उन्हें कभी पढ़ने का शौक था पर साधन नहीं थे. फिर कुछ नया करने की चाह उन्हें मुंबई ले आई थी. अब उन के सामने एक नई राह थी, शिक्षा की राह, जिस पर उन्होंने अपने कदम उत्साहपूर्वक बढ़ा दिए थे. व्यस्त वे पहले भी रहते थे. सो, मालिनी और बच्चों को उन्हें व्यस्त देखने की आदत थी ही. अब वे औफिस में बैठ कर पढ़ने भी लगे थे. कभी पढ़ते कभी नोट्स बनाते. उन्हें अपने जीवन में आए इस मोड़ पर बड़ा आनंद आ रहा था. जीवन एक नई उमंग, उत्साह से भर उठा था. विकास उन के इस मिशन में हर पल उन के साथ था. उन की सेहत का, उन के खानेपीने का पूरा खयाल रखता था.

परीक्षाओं का समय आया तो वह दिवाकर के साथ भोपाल भी गया. परीक्षाकाल में दोनों होटल में ही रहे. अब परीक्षाफल के इंतजार में दिवाकर बेचैन होते तो विकास हंस पड़ता. अपने क्षेत्र की समस्याओं के साथ जब दिवाकर अपनी पढ़ाई भी विकास के साथ डिस्कस करने लगे, तो विकास मुसकराता हुआ उन का उत्साह देखता रहता. दिवाकर का जब रिजल्ट आया तो वे उस समय घर में ही थे. विकास रिजल्ट देखने के बाद उन के घर पहुंच गया. मिठाई का डब्बा मालिनी को देते हुए बोला, ‘‘मैडम, मुंह मीठा कीजिए.’’

दिवाकर भी वहीं बैठे थे, बोले, ‘‘क्या हुआ भई?’’

‘‘एक दोस्त का रिजल्ट निकला है सर, वह पास हो गया,’’ कहतेकहते विकास ने उन की तरफ जिस तरह से देखा, दिवाकर उत्साहपूर्वक खड़े हो गए. विकास को  झटके से गले लगा लिया. मालिनी हैरान हुई, ‘‘अरे, विकास, यह कौन सा दोस्त है तुम्हारा?’’

‘‘है एक पढ़ रहा है आजकल मैडम, बहुत मेहनती है.’’

‘‘बढि़या, इस उम्र में? क्या पढ़ रहा है?’’

‘‘ग्रेजुएशन किया है, और शिक्षा प्राप्त करने की तो कोई उम्र नहीं होती है न.’’

‘‘हां, यह भी ठीक है.’’

दिवाकर ने कहा, ‘‘तुम रुको, मैं तैयार होता हूं मु झे भी जाना है कुछ जरूरी काम है. घर से निकलते ही दिवाकर ने कहा, ‘‘थैक्यू विकास.’’

‘‘आप को बधाई हो सर, आप की मेहनत, लगन रंग लाई है.’’

‘‘चलो, अब, एमए भी करूंगा.’’

‘‘क्या?’’ विकास चौंका.

‘‘हां, चलो, औफिस, पौलिटिकल साइंस में अब एमए करूंगा. देखो, क्या, कैसे करना है सब.’’

विकास उन का मुंह देखता रह गया. फिर एमए का फौर्म भी भर दिया गया और फिर अपनी बाकी व्यस्तताओं के साथसाथ रातदिन से अपनी पढ़ाई का थोड़ाथोड़ा समय निकाल कर एमए की परीक्षाएं भी दे दीं. इस बार पढ़ाई ज्यादा की गई थी क्योंकि दिवाकर को और पढ़ना था, शिक्षा प्राप्त करने का नशा गहराता जो जा रहा था. आगे एमफिल करने के लिए एमए में 55 प्रतिशत अंक प्राप्त करने जरूरी थे. कहीं समय की कमी से पढ़ाई प्रभावित न हो, इस के लिए दिवाकर ने अपने आराम, नींद के घंटे कम कर दिए थे. पार्टी के कामों के बाद बेकार की गप्पों, निरर्थक बातों में बीतने वाला समय वहां से जल्दी उठ कर औफिस में बैठ कर खुद को किताबों में डुबो कर बिताया था. खूब नोट्स बना बना कर पढ़ाई की गई थी.

एमए में 60 प्रतिशत अंक पा कर दिवाकर की खुशी का ठिकाना न रहा. विकास को ले कर ‘कोर्टयार्ड’ गए. एक कोने में चल रहे गजलों के लाइव प्रोग्राम का आनंद लेते हुए विकास को शानदार दावत दी. उन के चेहरे की खुशी देखने लायक थी. विकास ने कहा, ‘‘सर, अब बस न? और तो नहीं पढ़ना है न?’’

दिवाकर हंस पड़े कहा, ‘‘एमफिल.’’

विकास कुछ न बोला, सिर्फ मुसकरा दिया. थोड़ी देर बाद कहा, ‘‘लगता है आप सुरभि और पर्व से भी ज्यादा शिक्षा हासिल कर लेंगे.’’

‘‘उन्हें तो मु झे बहुत पढ़ाना है ताकि उन्हें किसी भी उम्र में जा कर कम पढ़ने का अफसोस कभी न हो. अब तुम एमफिल के डिटेल्स देख लो.’’

‘‘ठीक है, सर.’’

दिवाकर के जीवन का एक सार्थक उद्देश्य था अब, मन ही मन उस पल का शुक्रिया अदा करते जब कारमेल के उद्घाटन के लिए गए थे और अपनी कम शिक्षा पर शर्मिंदगी हुई थी. अब किताबों के साहित्य में जीवन जैसे एक नई दिशा की तरफ बढ़ता जा रहा था. दिवाकर की छवि एक मेहनती और सहृदय नेता की थी. अब जब वे सुशिक्षित होते जा रहे थे कई बातें और स्पष्ट होती जा रही थीं. अपना समय शिक्षा के प्रचारप्रसार में लगाने लगे थे.

विकास ने आ कर उन्हें आगे की जानकारी देते हुए कहा, ‘‘सर, आप इग्नू से एमफिल के लिए फौर्म भर दें. पर इस में ऐडमिशन के लिए लिखित परीक्षा होगी. फिर इंटरव्यू होगा. तब एडमिशन होगा. काफी तैयारी करनी पड़ेगी. सर, पत्राचार से 18 महीने का कोर्स है.’’

पलभर सोचते रहे दिवाकर, फिर बोले, ‘‘हां, काफी समय निकालना पड़ेगा, लिखित परीक्षा, इंटरव्यू. हां, ठीक है. भर दो मेरा फौर्म.’’

विकास उन्हें गर्वभरी नजरों से देखता रहा. फिर दोनों अपनेअपने काम में व्यस्त हो गए. दिवाकर देर रात तक औफिस में बैठ कर पढ़ते. बहुत व्यस्त पहले भी रहते थे. अब बहुत रात होने लगी तो मालिनी ने टोका भी, ‘‘आजकल कुछ ज्यादा ही देर से आ रहे हो? पहले तो इतनी रात कभी नहीं हुई,’’ बच्चों ने भी संडे को कहा, ‘‘पापा पहले तो संडे को आराम करते थे, अब संडे को भी औफिस?’’

सब को देख कर मुसकराते हुए दिवाकर ने जवाब दिया, ‘‘एक प्रोजैक्ट पर काम कर रहा हूं.’’

‘‘कितना टाइम लगेगा?’’

‘‘लगभग 2 साल, शायद बीचबीच में दिल्ली भी जाना पड़े.’’

सब ने पार्टी का काम सम झ कर ही संतोष कर लिया. दिवाकर को कोई बुरी आदत तो थी नहीं, हमेशा घरगृहस्थी के प्रति भी जिम्मेदार रहे थे. सब ने इसे राजनीतिक व्यस्तता सम झ कर यह विषय यहीं रोक दिया.

दिवाकर ने लिखित परीक्षा भी पास कर ली, दिल्ली जा कर इंटरव्यू भी दे आए. विकास हर कदम पर उन के साथ था. उन का चयन हो गया. दिवाकर एमफिल की पढ़ाई में जुट गए. जहां कभी कुछ अटकते, विकास गूगल पर खोजबीन कर उन की मदद करता. इग्नू में कुछ संपर्क निकाल कर विकास कुछ प्रोफैसर्स के फोन नंबर भी ले आया था. उन्होंने यथासंभव दिवाकर की मदद करने का आश्वासन भी दिया था और वे मदद कर भी रहे थे. और एमफिल भी हो गया. अपनी डिग्री हाथ में लेने पर दिवाकर की आंखों से आंसू बह निकले. विकास की आंखें भी भीग गईं. गर्व हुआ इतने मेहनती नेता का सहयोगी है वह. ठाणे लौटते हुए घर जाने से पहले उन्होंने सब के लिए उपहार लिए. एक बड़ी धनराशि लिफाफे में रख कर विकास को देते हुए कहा, ‘‘जो तुम ने मेरे लिए किया, उस का मूल्य हो ही नहीं सकता. वह अनमोल है. यह सिर्फ तुम्हारे और तुम्हारे परिवार के लिए मेरा खुशी का उपहार है.’’

विकास हंसता हुआ बोला, ‘‘सर, आप ने कई सालों से किसी स्कूल का उद्घाटन नहीं किया, मना कर दिया. 2 दिनों बाद ही एक नए स्कूल के उद्घाटन के लिए बारबार आग्रह किया जा रहा है, चलें? मजा आएगा इस बार.’’

‘‘देखते हैं.’’

‘‘सौरी सर, मैं ने आप की तरफ से हां कर दी है, आप की सफलता के लिए मैं सुनिश्चित था. अब की बार मीडिया को जो पूछना हो, पूछ ले, मजा आएगा.’’

खुल कर हंस पड़े दिवाकर, ‘‘अच्छा ठीक है.’’

घर आ कर सब को उपहार दिए, उन्हें बातबात पर मुसकराता, हंसता, चहकता देख मालिनी और बच्चे हैरान थे. दिवाकर ने कहा, ‘‘प्रोजैक्ट पूरा हो गया.’’

‘‘अब तो बता दो, कौन सा प्रोजैक्ट?’’

‘नीलकंठ हाइट्स’ में बने अपने बंगले के गार्डन में बने  झूले पर बैठते हुए दिवाकर बोले, ‘‘2 दिनों बाद एक स्कूल का उद्घाटन करूंगा, वहीं बताऊंगा. तीनों साथ चलना,’’ मालिनी और बच्चों ने एकदूसरे पर नजर डाली, जाने की बात पर संकोच हुआ, मालिनी ने कह ही दिया, ‘‘तुम ही चले जाना हम क्या करेंगे.’’

‘‘हां, पापा, हमें भी अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘इस बार अच्छा लगेगा, इस की गारंटी देता हूं,’’ तय समय पर सब नए स्कूल की बिल्ंिडग की तरफ चल दिए. वही तरीके, वही स्वागत, वही मीडिया, जब उन्हें 2 शब्द कहने के लिए मंच पर बुलाया गया, इस बार कदमों का आत्मविश्वास देखते ही बनता था. पूरे व्यक्तित्व में कुछ खास नजर आ रहा था. स्कूल, शिक्षा का महत्त्व बता कर बात खत्म की.

आज फिर उन की शिक्षा के बारे में भी पूछ लिया गया तो जवाब देने से पहले वे मुसकराए. विकास से नजरें मिलीं तो वह हंस दिया. फिर उन्होंने मालिनी और बच्चों पर नजर डालते हुए कहा, ‘‘मैं ने एमफिल किया है,’’ मालिनी और बच्चों के चेहरे का रंग उड़ गया, स्टेज पर खड़े हो कर दिवाकर इतना बड़ा  झूठ बोल रहे हैं. यह मीडिया उन की क्या गत बनाएगा, कितना अपमान होगा.

दिवाकर कह रहे थे, ‘‘कुछ साल पहले मु झे शिक्षा का महत्त्व सम झ आया. मैं ने पढ़ना शुरू किया तो पढ़ता चला गया. शिक्षा प्राप्त करने में जो आनंद मिला, वह सब सुखों से बढ़ कर लगने लगा. पहले बीए, फिर राजनीति विज्ञान में एमए और 2 दिन पहले ही दिल्ली के इग्नू से एमफिल की डिग्री ले कर लौटा हूं. पढ़ाई हो गई. अब अपने क्षेत्र, देश के विकास, कल्याण पर ध्यान देना है. बच्चे को समुचित शिक्षा मिले, इस पर काम करना है.’’

तालियों की गड़गड़ाहट से स्कूल का प्रांगण गूंज उठा था. उन की नजरें मालिनी और बच्चों की नजरों से मिलीं, तीनों के आंसू बहे चले जा रहे थे. गर्वमिश्रित खुशी के आंसू. विकास तो तालियां बजाते हुए खड़ा ही हो गया था. कई लोग वाहवाह कर उठे थे. समाज को आज ऐसे ही मेहनती नेता की तो तलाश थी. दिवाकर के दिल को मालिनी, बच्चों और वहां उपस्थित लोगों के दिलों में अपने लिए जो भाव दिखे, उन्हें महसूस कर असीम शांति मिली थी. सालों की मेहनत रंग लाई थी. आज किसी की नजरों में अपने लिए अपमान, शर्मिंदगी का नामोनिशान नहीं था. अब वे शिक्षा, किताबों और ज्ञान की दुनिया की सैर से जो लौटे थे, तनमन पुलकित हो उठा था.

Fictional Story

Best Hindi Story: मुखौटा:- कमला देवी से मिलना जरूरी क्यों था

Best Hindi Story: सुबह के सारे काम प्रियदर्शिनी बड़ी फुरती से निबटाती जा रही थी. उस दिन उसे नगर की प्रतिष्ठित महिला एवं बहुचर्चित समाजसेविका कमला देवी से मिलने के लिए समय दिया गया था. काम के दौरान वह बराबर समय का हिसाब लगा रही थी. मन ही मन कमला देवी से होने वाली संभावित चर्चा की रूपरेखा तैयार कर रही थी.

आज तक उस का समाज के ऐसे उच्चवर्ग के लोगों से वास्ता नहीं पड़ा था लेकिन काम ही ऐसा था कि कमला देवी से मिलना जरूरी हो गया था. वह समाज कल्याण समिति की सदस्य थीं और एक प्रसिद्ध उद्योग समूह की मालकिन. उन के पास, अपार वैभव था.

कितनी ही संस्थाओं के लिए वह काम करती थीं. किसी संस्था की अध्यक्ष थीं तो किसी की सचिव. समाजसेवी संस्थाओं के आयोजनों में उन की तसवीरें अकसर अखबारों में छपा करती थीं. उन की भारी- भरकम आवाज के बिना महिला संस्थाओं की बैठकें सूनीसूनी सी लगती थीं.

ये सारी सुनीसुनाई बातें प्रियदर्शिनी को याद आ रही थीं. लगभग 3 साल पहले उस ने अपने घर पर ही बच्चों के लिए एक स्कूल और झूलाघर की शुरुआत की थी. उस का घर शहर के एक छोर पर था और आगे झोंपड़पट्टी.

उस बस्ती के अधिकांश स्त्रीपुरुष सुबह होते ही कामधंधे के सिलसिले में बाहर निकल जाते थे. हर झोंपड़ी में 4-5 बच्चे होते ही थे. घर का जिम्मा सब से बडे़ बच्चे पर सौंप कर मांबाप निकल जाते थे. 8-9 बरस का बच्चा सीधे होटल में कपप्लेट धोने या गन्ने की चरखी में गिलास भरने के काम में लग जाता था.

जीवन चक्र की इस रफ्तार में शिक्षा के लिए कोई स्थान नहीं था, न समय ही था. दो जून की रोटी का जुगाड़ जहां दिन भर की हाड़तोड़ मेहनत के बाद कई बार संभव नहीं हो पाता था वहां इस तरह के अनुत्पादक श्रम के लिए सोचा भी नहीं जा सकता था. 10 साल पढ़ाई के लिए बरबाद करने के बाद शायद कोई नौकरी मिल भी जाए लेकिन जब कल की चिंता सिर पर हो तो 10 साल बाद की कौन सोचे?

फिर भी प्रियदर्शिनी की यह निश्चित धारणा थी कि ये बच्चे बुद्धिमान हैं, उन में काम करने की शक्ति है, कुछ नया सीखने की उमंग भी है. इन्हें अगर अच्छा वातावरण और सुविधाएं मिल जाएं तो उन के जीवन का ढर्रा बदल सकता है. अभाव और उपेक्षा के वातावरण में पलतेबढ़ते ये बच्चे गुनहगार बन जाते हैं. चोरी करने, जेब कतरने जैसी बातें सीख जाते हैं. मेहनतमजदूरी करतेकरते गलत सोहबत में पड़ कर उन्हें जुआ, शराब आदि की लत पड़ जाती है और अगर बच्चे बहुत छोटे हों तो कुपोषण का शिकार हो कर उन की अकाल मृत्यु हो जाती है.

उस का खयाल था कि थोड़ी देखभाल करने से उन में काफी परिवर्तन आ सकता है. इसी उद्देश्य से उस ने अपनी एक सहेली के सहयोग से छोटे बच्चों के खेलने के लिए झूलाघर और कुछ बडे़ बच्चों के लिए दूसरी कक्षा तक की पढ़ाई के लिए बालबाड़ी की स्थापना की थी.

रात के समय वह झोंपडि़यों में जा कर उन में रहने वाली महिलाओं को परिवार नियोजन और परिवार कल्याण की बातें समझाती, घरेलू दवाइयों की जानकारी देती, साफसुथरा रहने की सीख देती.

पूरी बस्ती उस का सम्मान करती थी. अधिकाधिक संख्या में बच्चे झूलाघर और बालबाड़ी में आने लगे थे. इसी सिलसिले में वह कमला देवी से मिलना चाहती थी. अपना काम सौ फीसदी हो जाएगा ऐसा उसे विश्वास था.

किसी राजप्रासाद की याद दिलाने वाले उस विशाल बंगले के फाटक में प्रवेश करते ही दरबान सामने आया और बोला, ‘‘किस से मिलना है?’’

‘‘बाई साहब हैं? उन्होंने मुझे 11 बजे का समय दिया था.’’

‘‘अंदर बैठिए.’’

हाल में एक विशाल अल्सेशियन कुत्ता बैठा था. दरबान उसे बाहर ले गया. इतने में सफेद ऊन के गोले जैसा झबरीला छोटा सा पिल्ला हाथों में लिए कमला देवी हाल में प्रविष्ट हुईं.

भारीभरकम काया, प्रयत्नपूर्वक प्रसाधन कर के अपने को कम उम्र दिखाने की ललक, कीमती साड़ी, चमचमाते स्वर्ण आभूषण, रंगी हुई बालों की कटी कृत्रिम लटें, नाक की लौंग में कौंधता हीरा, चेहरे पर किसी हद तक लापरवाही और गर्व का मिलाजुला मिश्रण.

पल भर के निरीक्षण में ही प्रियदर्शिनी को लगा कि इस रंगेसजे चेहरे पर अहंकार के साथसाथ मूर्खता का भाव भी है जो किसी भी जानेमाने व्यक्ति के चेहरे पर आमतौर पर पाया जाता है.

उठ कर नमस्ते करते हुए उस ने सहजता से मुसकराते हुए अपना परिचय  दिया, ‘‘मेरा नाम प्रियदर्शिनी है. आप ने आज मुझे मिलने का समय दिया था.’’

‘‘अच्छा अच्छा…तो आप हैं प्रियदर्शिनी. वाह भई, जैसा नाम वैसा ही रंगरूप पाया है आप ने.’’

अपनी प्रशंसा से प्रियदर्शिनी सकुचा गई. उस ने कुछ संकोच से पूछा, ‘‘मेरे आने से आप के काम में कोई हर्ज तो नहीं हुआ?’’

‘‘अजी, छोडि़ए, कामकाज का क्या? घर के और बाहर के भी सारे काम अपने को ही करने होते हैं. और बाहर का काम? मेरा मतलब है समाजसेवा करने का मतलब घर की जिम्मेदारियों से मुकरना तो नहीं होता? गरीबों की सेवा को मैं सर्वप्रथम मानती हूं, प्रियदर्शिनीजी.’’

कमला देवी की इस सादगी और सेवाभावना से प्रियदर्शिनी अभिभूत हो उठी.

‘‘प्रियदर्शिनी, आप बालबाड़ी चलाती हैं?’’

‘‘जी.’’

‘‘कितने बच्चे हैं बालबाड़ी में?’’

‘‘जी, 25.’’

‘‘और झूलाघर में?’’

‘‘झूलाघर में 10 बच्चे हैं.’’

‘‘फीस कितनी लेती हैं?’’

‘‘जी, फीस तो नाममात्र की लेती हूं.’’

‘‘फीस तो लेनी ही चाहिए. मांबाप जितनी फीस दे सकें उतनी तो लेनी ही चाहिए. इतनी मेहनत करते हैं हम फिर पैसा तो हमें मिलना ही चाहिए.’’

‘‘जी, पैसे की बात सोच कर मैं ने यह काम शुरू नहीं किया.’’

‘‘तो फिर क्या समय नहीं कटता था, इसलिए?’’

‘‘जी, नहीं. यह कारण भी नहीं है.’’

कंधे उचका कर आंखों को मटका कर हंस दी कमला देवी, ‘‘तो फिर लगता है आप को बच्चों से बड़ा लगाव है.’’

‘‘जी, वह तो है ही लेकिन सच बात तो यह है कि उस इलाके में ऐसे काम की बहुत जरूरत है.’’

‘‘कहां रहती हैं आप?’’

‘‘सिंधी बस्ती से अगली बस्ती में.’’

‘‘वहां तो आगे सारी झोंपड़पट्टी ही है न?’’

‘‘जी. होता यह है कि झोंपड़पट्टी वाले सुबह से ही काम पर निकल जाते हैं. घर संभालने का सारा जिम्मा स्वभावत: बड़े बच्चे पर आ जाता है. मांबाप की अज्ञानता और मजबूरी का असर इन बच्चों के भविष्य पर पड़ता है. इसी विचार से मैं बच्चों की प्रारंभिक पढ़ाई के लिए बालबाड़ी और छोटे बच्चों की देखभाल के लिए झूलाघर चला रही हूं.’’

‘‘तो इन छोटे बच्चों की सफाई, उन के कपडे़ बदलने और उन्हें दूध, पानी आदि देने के लिए आया भी रखी होगी?’’

‘‘जी नहीं. ये सब काम मैं स्वयं ही करती हूं.’’

‘‘आप,’’ कमला देवी के मुख से एकाएक आश्चर्यमिश्रित चीख निकल गई.

‘‘जी, हां.’’

‘‘सच कहती हैं आप? घिन नहीं आती आप को?’’

‘‘जी, बिलकुल नहीं. क्या अपने बच्चों की टट्टीपेशाब साफ नहीं करते हम?’’

‘‘नहीं, यह बात नहीं है. लेकिन अपने बच्चे तो अपने ही होते हैं और दूसरों के दूसरे ही.’’

‘‘मेरे विचार में तो आज के बच्चे कल हमारे देश के नागरिक बनेंगे. अगर हम उन्हें जिम्मेदार नागरिक के रूप में देखना चाहें, उन से कुछ अपेक्षाएं रखें तो आज उन की जिम्मेदारी किसी को तो उठानी ही पड़ेगी न?’’

शांत और संयत स्वर में बोलतेबोलते प्रियदर्शिनी रुक गई. उस ने महसूस किया, कमला देवी का चेहरा कुछ स्याह पड़ गया है. उन्होंने पूछा, ‘‘लेकिन इन सब झंझटों से आप को लाभ क्या मिलता है?’’

‘‘लाभ?’’ प्रियदर्शिनी की उज्ज्वल हंसी से कमला देवी और भी बुझ सी गईं, ‘‘मेरा लाभ क्या होगा, कितना होगा, होगा भी या हानि ही होगी, आज मैं इस विषय में कुछ नहीं कह सकती लेकिन एक बात निश्चित है. मेरे इन प्रयत्नों से समाज के ये उपेक्षित बच्चे जरूर लाभान्वित होंगे. मेरे लिए इतना ही पर्याप्त है.’’

‘‘अद्भुत, बहुत बढि़या. आप के विचार बहुत ऊंचे हैं. आप का आचरण भी वैसा ही है. बड़ी खुशी की बात है. वाह भई वाह, अच्छा तो प्रियदर्शिनीजी, अब आप यह बताइए, आप मुझ से क्या चाहती हैं?’’

‘‘जी, बच्चों के बैठने के लिए दरियां स्लेटें, पुस्तकें और खिलौने. मदद के लिए मैं एक और महिला रखना चाहती हूं. उसे पगार देनी पड़ेगी. वर्षा और धूप से बचाव के लिए शेड बनवाना होगा. इस के साथ ही डाक्टरी सहायता और बच्चों के लिए नाश्ता.’’

‘‘तो आप अपनी बालबाड़ी को आधुनिक किंडर गार्टन स्कूल में बदल देना चाहती हैं?’’

‘‘बिलकुल आधुनिक नहीं बल्कि जरूरतों एवं सुविधाओं से परिपूर्ण स्कूल में.’’

‘‘तो साल भर के लिए आप को 10 हजार रुपए दिलवा दें?’’

‘‘जी.’’

‘‘मेरे ताऊजी मंत्रालय में हैं. आप 8 दिन के बाद आइए. तब तक आप का काम करवा दूंगी.’’

‘‘सच,’’ खुशी से खिल उठी प्रियदर्शिनी, ‘‘आप का किन शब्दों में धन्यवाद दूं? आप सचमुच महान हैं.’’

कमला देवी केवल मुसकरा भर दीं.

‘‘अच्छा, अब मैं चलती हूं. आप की बहुत आभारी हूं.’’

‘‘चाय, शरबत कुछ तो पीती जाइए.’’

‘‘जी नहीं, इन औपचारिकताओं की कतई जरूरत नहीं है. आप के आश्वासन ने मुझे इतनी तसल्ली दी है…’’

‘‘अच्छा, प्रियदर्शिनीजी, आप का घर और हमारा समाज कल्याण कार्यालय शहर की एकदम विपरीत दिशाओं में है. आप ऐसा कीजिए, अपनी गाड़ी से यहां आ जाइए.’’

‘‘जी, मेरे पास गाड़ी नहीं है.’’

‘‘तो क्या हुआ, स्कूटर तो होगा?’’

‘‘जी नहीं, स्कूटर भी नहीं है.’’

‘‘मेरे पास फोन भी नहीं है.’’

‘‘प्रियदर्शिनीजी, आप के पास गाड़ी नहीं, फोन नहीं, फिर आप समाजसेवा कैसे करेंगी?’’

उपहासमिश्रित उस हंसी से प्रियदर्शिनी कुछ  हद तक परेशान सी हो उठी. फिर भी वह अपने सहज भाव से बोली, ‘‘मेरा मन पक्का है. हर कठिनाई को सहने के लिए तत्पर हूं. तन और मन के संयुक्त प्रयास के बाद कुछ भी असंभव नहीं होता.’’

अब तो खुलेआम छद्मभाव छलक आया कमला देवी के मेकअप से सजेसंवरे चेहरे पर.

‘‘मैं तो आप को समझदार मान रही थी, प्रियदर्शिनीजी. मैं ने आप से कहीं अधिक दुनिया देखी है. आप मेरी बात मानिए, अपनी इस प्रियदर्शिनी छवि को दुनिया की रेलमपेल में मत सुलझाइए. खैर, आप का काम 8 दिन में हो जाएगा. अच्छा.’’ दोनों हाथ जोड़ कर नमस्ते कहते हुए प्रियदर्शिनी ने विदा ली.

‘‘दीदी, हमारे लिए नाश्ता आएगा?’’

‘‘दीदी, स्कूल के सब बच्चों के लिए एक से कपडे़ आएंगे?’’

‘‘दीदी, सफेद कमीज और लाल रंग की निकर ही चाहिए.’’

‘‘नए बस्ते भी मिलेंगे?’’

‘‘और नई स्लेट भी?’’

‘‘मैं तो नाचने वाला बंदर ले कर खेलूंगा.’’

‘‘दीदी, नाश्ते में केला और दूध भी मिलेगा?’’

‘‘अरे हट. दीदी, नाश्ते में मीठीमीठी जलेबियां आएंगी न?’’

बच्चों की जिज्ञासा और खुशी ने उसे और भी उत्साहित कर दिया.

8वें दिन कमला देवी की कार उसे लेने आई तो उस के मन में उन के लिए कृतज्ञता के भाव उमड़ आए. जो हो, जैसी भी हो, उन्होंने आखिर प्रियदर्शिनी का काम तो करवा दिया न.

उस की साड़ी देख कर कमला देवी ने मुंह बिचकाया और जोरजोर से हंस कर बोलीं, ‘‘अरे, प्रियदर्शिनीजी, कम से कम आज तो आप कोई सुंदर सी साड़ी पहन कर आतीं. फोटो में अच्छी लगनी चाहिए न. फोटोग्राफर का इंतजाम मैं ने करवा दिया है. कल के अखबारों में समाचार समेत फोटो आ जाएगी. अच्छा, चलिए, फोटो में आप थोड़ा मेरे पीछे हो जाइए तो फिर साड़ी की कोई समस्या नहीं रहेगी.’’

कार अपने गंतव्य की ओर बढ़ने लगी तो धीमी आवाज में कमला देवी ने कहा, ‘‘देखिए, प्रियदर्शिनीजी, आप के नाम पर 5 हजार का चेक मिलेगा. वह आप मुझे दे देना. मैं आप को ढाई हजार रुपए उसी समय दे दूंगी.’’

प्रियदर्शिनी ने कुछ असमंजस में पड़ कर पूछा, ‘‘तो बाकी ढाई हजार आप कब तक देंगी?’’

‘‘कब का क्या मतलब? प्रिय- दर्शिनीजी, हमें समाजसेवा के लिए कितना कुछ खर्च करना पड़ता है. ऊपर से ले कर नीचे तक कितनों की इच्छाएं पूरी करनी पड़ती हैं और फिर हमें अपने शौक और जेबखर्च के लिए भी तो पैसा चाहिए.’’

प्रियदर्शिनी को लगा उस की संवेदनाएं पथरा रही हैं.

कमला देवी अभी तक बोले जा रही थीं, ‘‘प्रियदर्शिनीजी, आप बुरा मत मानिए. लेकिन यह ढाई हजार रुपए क्या आप पूरा का पूरा स्कूल के लिए खर्च करेंगी? भई, एकआध हजार तो अपने लिए भी रखेंगी या नहीं, खुद के लिए?’’

समाज कल्याण कार्यालय के दरवाजे तक पहुंच चुकी थीं दोनों. तेजी के साथ प्रियदर्शिनी पलट गई. तेज चाल से चल कर वह सड़क पर आ गई. सामने खडे़ रिकशे वाले को घर का पता बता कर वह निढाल हो कर उस में बैठ गई. उस की आंखों के सामने बारबार कमला देवी का मेकअप उतर जाने के बाद दिखने वाला विद्रूप चेहरा उभर कर आने लगा. उन की छद्म हंसी सिर में हथौड़े मारती रही. उन का प्रश्न रहरह कर कानों में गूंजने लगा, ‘फिर आप समाजसेवा कैसे करेंगी?’

जाहिर था प्रियदर्शिनी के पास तथाकथित समाजसेवियों वाला कोई मुखौटा तो था ही नहीं.

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Romantic Story: स्नेह मृदुल- एक दूसरे से कैसे प्यार करने लगी स्नेहलता और मृदुला

Romantic Story: जेठ की कड़ी दोपहर में यदि बादल छा जाएं और मूसलाधार बारिश होने लगे तो मौसम के साथसाथ मन भी थिरक उठता है. मौसम का मिजाज भी स्नेहा की तात्कालिक स्थिति से मेल खा रहा था. जब से मृदुल का फोन आया था उस का मनमयूर नाच उठा था. उन दोनों के प्रेम को स्नेहा के परिवार की सहमति तो पहले ही मिल गई थी. इंतजार था तो बस मृदुल के परिवार की सहमति का. इसीलिए स्नेहा ने ही मृदुल को एक आखिरी प्रयास के लिए आगरा भेजा था. उस के मानने की उम्मीद तो काफी कम थी, परंतु स्नेहा मन में किसी तरह का मैल ले कर नवजीवन में कदम नहीं रखना चाहती थी. बस थोड़ी देर पहले ही मृदुल ने अपने घरवालों की रजामंदी की खुशखबरी उसे दी थी. कल सुबह ही मृदुल और उस के मातापिता आने वाले थे.

स्नेहा जब मृदुल से पहली बार मिली थी, तो उस के आत्मविश्वास से भरे निर्भीक व्यक्तित्व ने ही उसे सब से ज्यादा प्रभावित किया था. स्नेहा कालेज के तीसरे वर्ष में थी. अपनी खूबसूरती तथा दमदार व्यक्तित्व की वजह से वह कालेज में काफी लोकप्रिय थी. हालांकि पढ़ाई में वह ज्यादा होशियार नहीं थी, परंतु वादविवाद तथा अन्य रचनात्मक कार्यों में उस का कोई सानी नहीं था. अपनी क्लास से निकल कर स्नेहा कैंटीन की तरफ जा ही रही थी कि एक तरफ से आ रहे शोर को सुन कर रुक गई.

इंजीनियरिंग कालेज के नए सत्र के पहले दिन कालेज में काफी भीड़ थी. मनाही के बावजूद पुराने विद्यार्थी नए आए विद्यार्थियों की रैगिंग ले रहे थे. काफी तेज आवाज सुन कर स्नेहा उस तरफ मुड़ गई. ‘‘जूनियर हो कर इतनी हिम्मत कि हमें जवाब देती है. इसी वक्त मोगली डांस कर के दिखा वरना हम मोगली की ड्रैस में भी डांस करवा सकते हैं.’’

‘‘हा… हा… हंसी के सम्मिलित स्वर.’’ ‘‘शायद आप को पता नहीं कि दासप्रथा अब खत्म हो गई है. करवा सकने वाले आप हैं कौन? फिर भी अगर आप लोगों ने जबरदस्ती की तो इसी वक्त प्रिंसिपल के पास जा कर आप की शिकायत करूंगी… रैगिंग बंद है शायद इस की भी जानकारी आप को नहीं है.’’

‘‘बिच… लड़कों की तरह कपड़े पहन कर उन की तरह बाल कटवा कर भूल गई है कि तू एक लड़की है और यह भी कि हम तेरे साथ क्याक्या कर सकते हैं.’’ ‘‘जी नहीं, मैं बिलकुल नहीं भूली कि मैं एक लड़की हूं… और आप को भी यह नहीं भूलना चाहिए कि ताकत दोनों टांगों के बीच क्या है. इस पर निर्भर नहीं करती. चाहिए तो आजमा कर देख लीजिए.’’

देखती रह गई थी स्नेहा. उस निर्भीक तथा रंगरूप में साधारण होते हुए भी असाधारण लड़की को.

इस से पहले कि वे लड़के उसे कुछ कहते, स्नेहा उन के बीच आ गई और उन लड़कों को आगे कुछ भी कहने अथवा करने से रोक दिया. लड़के द्वितीय वर्ष के थे. स्नेहा के जूनियर, इसलिए उस के मना करने पर वहां से चले गए. ‘‘क्या नाम है तुम्हारा?’’

‘‘मृदुला सिंह पर आप मुझे मृदुल कहें तो सही रहेगा. अब पापा ने बिना पूछे यह नाम रख दिया, तो मैं ने अपनी पसंद से उसे छोटा कर लिया.’’ ‘‘अच्छा…फर्स्ट ईयर.’’

‘‘जी, तभी तो ये लोग मेरी ऐसी की तैसी करने की कोशिश कर रहे थे.’’ पता नहीं क्यों स्नेहा स्वयं को उस के आगे असहज महसूस करने लगी. फिर थोड़ा सा मुसकराई और पलट कर वहां से चली ही थी कि पीछे से आवाज आई, ‘‘आप ने तो अपना नाम बताया ही नहीं…’’

‘‘मैं?’’ ‘‘जी आप… अब इस खूबसूरत चेहरे का कोई तो नाम होगा.’’

‘‘हा… हा…’’ ‘‘मेरा नाम स्नेहलता है… मैं ने अपना नाम स्वयं छोटा नहीं किया… मेरे दोस्त मुझे स्नेहा बुलाते हैं.’’

‘‘मैं आप को क्या बुलाऊं… स्नेह… मैं आप को…’’ ‘‘1 मिनट… मैं तुम्हारी सीनियर हूं… तो तुम मुझे मैम बुलाओगी.’’

‘‘जी, मैडम.’’ ‘‘हा… हा…’’ दोनों एकसाथ हंस पड़ीं.

उम्र तथा क्लास दोनों में भिन्नता होने के बावजूद दोनों करीब आते चले गए. एक अजनबी डोर उन्हें एकदूसरे से बांध रही थीं. मृदुल आगरा के एक रूढि़वादी परिवार से थी. उस के घर में उस के इस तरह के पहनावे को ले कर उसे कई बातें भी सुननी पड़ती थीं. उस के घर वाले तो उस के इतनी दूर आ कर पढ़ाई करने के भी पक्ष में नहीं थे, परंतु इन सभी स्थितियों को उस ने थोड़े प्यार तथा थोड़ी जिद से अपने पक्ष में कर लिया था. हालांकि इस के लिए उसे एक बहुत लंबी लड़ाई भी लड़नी पड़ी थी, परंतु हारना तो उस ने सीखा ही नहीं था.

उस के पिता का डेरी का बिजनैस था. बड़े भाई तथा बहन की शादी हो चुकी थी. उस से छोटी उस की एक बहन थी. मृदुल बचपन से एक मेधावी छात्रा रही थी. छोटी क्लास से ही उसे छात्रवृत्ति मिलने लगी थी. इसलिए पिता को सहमत करने में उसे अपने टीचर्स का साथ भी मिला था. इस के इतर स्नेहा मणिपुर के एक उच्च मध्यवर्गीय परिवार की एकलौती संतान थी. मातापिता की लाडली. उस के पिता इंफाल के मशहूर आभूषण विक्रेता थे. उस के परिवार वाले तथा स्वयं वह भी काफी आधुनिक विचारों वाली थी.

आर्थिक, सामाजिक तथा पारिवारिक भिन्नता भी दोनों को बांट न सकी. दोनों की दोस्ती और गहरी होती चली गई. इतनी सारी भिन्नताओं के बावजूद दोनों में एक बहुत बड़ी समानता थी. पुरुषों की तरफ किसी भी तरह का आकर्षण न होने की. वैसे तो दोनों के कई पुरुष मित्र थे. परंतु सिर्फ मित्र. 1-2 बार स्नेहा ने कुछ मित्रों के करीब जाने की कोशिश भी की थी, परंतु अपनेआप को निर्लिप्त पाया था उस ने. जो आकर्षण एक पुरुष के लिए स्नेहा चाहती थी, वही आकर्षण मृदुल के लिए महसूस करने लगी थी. वह जान गई थी कि वह बाकी लड़कियों जैसी नहीं है. स्नेहा यह भी जान गई थी कि उसे मृदुल से प्रेम हो गया है, परंतु दिल की बात होंठों तक लाने में झिझक रही थी.

नदी की धारा के विपरीत बहने के लिए जिस साहस की आवश्यकता थी, स्नेहा वह बटोर नहीं पा रही. क्या होगा यदि मृदुल ने उसे गलत समझ लिया? वह उस की दोस्ती खोना नहीं चाहती थी. मगर एक दिल मृदुल ने ही उस की सारी समस्या का समाधान कर दिया. क्लास के बाद अकसर दोनों पास के पार्क में चली जाती थीं. उस दिन अचानक ही मृदुल ने उस की तरफ देख कर पूछा, ‘‘तुम मुझ से कुछ कहना चाहती हो स्नेह?’’

‘‘मैं… नहीं… नहीं तो?’’ ‘‘कह दो स्नेह…’’

‘‘मृदुल वह… वह… मुझे लगता है कि मैं…’’ साहस बटोर कर इतना ही कह पाई स्नेहा. ‘‘मैं नहीं स्नेह… हम दोनों एकदूसरे से प्रेम करते हैं.’’

जिस बात को आधुनिक स्नेहा कहने में झिझक रही थी उसी बात को रूढि़वादी सोच में पलीबढ़ी मृदुला ने सहज ही कह दिया. अचंभित रह गई थी स्नेहा.

‘‘मृदुल परंतु… कहीं यह असामान्य तो…’’ ‘‘प्रेम असामान्य अथवा सामान्य नहीं होता. प्रेम तो प्रेम होता है. परंतु क्योंकि हम दोनों ही स्त्री हैं, तो हमारे बीच का प्रेम अनैतिक, अप्राकृतिक तथा असामान्य है. पता है स्नेह प्रकृति कभी भेदभाव नहीं करती. परंतु समाज सदा से करता आया है.

यह समाज इतनी छोटी सी बात क्यों नहीं समझ पाता कि हम भी उन की तरह हंसतेबोलते है, उन की तरह हमारा भी दिल धड़कता है तथा उन की तरह की स्वतंत्र हैं. हां, एक भिन्नता है… उन के मानदंड के हिसाब से हम खरे नहीं उतरते. हमारा हृदय एक पुरुष की जगह स्त्री के लिए धड़कता है.’’ ‘‘वे यह समझ नहीं पाते हैं कि प्रकृति ने ही हमें ऐसा बनाया है.’’

‘‘तुम ने संगम का नाम तो सुना होगा स्नेह?’’ ‘‘हांहां मृदुल… प्रयाग में न?’’

हां, वहां 2 नदियों का मिलन होता है. गंगा तथा यमुना दोनों को ही हमारे देश में स्त्री मानते हैं. उन के साथ एक और नदी सरस्वती भी होती है, जो उन के अभूतपूर्व मिलन की साक्षी होती है. ‘‘आओ अब इसे एक अलग रूप में देखते हैं… 2 नदियां अथवा 2 स्त्रियां… दोनों का संगम… दोनों का एकिकार होना… जब ये पूजनीय हैं, तो 2 स्त्रियों का प्रेम गलत कैसे? कितना विरोधाभाष है’’

‘‘हां मृदुल वह तो है ही. मातापिता के विरोध के बावजूद विवाह करने वाले शिवपार्वती की तो लोग पूजा करते हैं. पर जब स्वयं की बेटी अथवा बेटा अपनी मरजी से विवाह करना चाहे तो उन की हत्या… परिवार की इज्जत के नाम पर.’’ ‘‘हां स्नेह… इस समाज में बलात्कार करने वाले, दंगा करने वाले, खून करने वाले सब सामान्य हैं. इन में से कई तो नेता बन बैठ जाते है, परंतु हम जैसे प्रेम करने वाले अपराधी तथा अमान्य हैं.’’

प्रेम के पथ पर वे आगे बढ़े जरूर परंतु अपने कैरियर पर ध्यान देना कम नहीं किया. वे दोनों ही काफी व्यावहारिक थीं. वे जानती थीं कि किसी भी तरह का निर्णय लेने से पहले उन का आर्थिक रूप से सुदृढ़ होना आवश्यक था. इसलिए दोनों ने एक पल के लिए भी अपना ध्यान अपनी पढ़ाई से हटने नहीं दिया.

कुछ ही सालों में स्नेहा तथा मृदुल दोनों को ही काफी अच्छी नौकरी मिल गई. मृदुल तो अपना लेखन कार्य भी करने लगी थी. कई पत्रपत्रिकाओं में उस की कहानियां, लेख तथा कविताएं छपती थीं. आजकल वह एक उपन्यास पर काम कर रही थी. 9 खूबसूरत साल बीत गए थे. उन दोनों ने अपना एक फ्लैट भी ले लिया था. मुंबई की जिस कालोनी में वे रहती थीं. वहां के ज्यादातर लोगों को उन के बारे में पता था. मुंबई शहर की यही खूबसूरती है, वह सब को बिना भेदभाव के अपना लेता है. कई लोगों द्वारा उन्हें डिनर पर आमंत्रित भी किया गया था.

स्नेहा और मृदुल के सारे दोस्त उन की प्रेम की मिसाल देते थे. परंतु घरवालों की तरफ से अब शादी के लिए दबाव बढ़ने लगा था. इसलिए उन्होंने अपने रिश्ते को एक नाम देने की सोची. हालांकि मृदुल को यह आवश्यक नहीं लगता था, परंतु स्नेहा विवाह करना चाहती थी. इस के बाद दोनों ने अपने परिवार को वस्तुस्थिति से अवगत कराने की सोची. जैसा कि उम्मीद थी, दोनों परिवारों के लिए यह खबर किसी विस्फोट से कम नहीं थी. दोनों परिवार वाले उन की दोस्ती से अवगत थे, परंतु यह सत्य उन्हें नामंजूर था.

स्नेहा के मातापिता को मनाने के लिए वे दोनों साथ गई थीं. कुछ ही दिनों में उन का प्यार स्नेहा के मातापिता को उन के करीब ले आया. उन्होंने उन के रिश्ते को बड़े प्यार से अपना लिया. चलते समय जब मृदुल ने स्नेहा की मां को बड़े प्यार से मणिपुरी में कहा कि नंग की राशि यमलेरे (आप का चेहरा बहुत सुंदर है) तो वे खिलखिला उठी थीं. मृदुल ने स्नेहा के प्यार में टूटीफूटी मणिपुरी भी सीख ली थी. परंतु मृदुल के परिवार वाले काफी नाराज हो गए थे. उन्होंने मृदुल से सारे रिश्ते तोड़ लिए थे. डेढ़ साल की जद्दोजहद के बाद कुछ महीनों में मृदुल का परिवार उन के रिश्ते को ले कर थोड़ा सकारात्मक लग रहा था. इसलिए एक आखिरी कोशिश करने मृदुल वहां गई थी. अगले हफ्ते वे दोनों शादी करने की सोच रही थीं.

मृदुल के मातापिता ने तो स्नेहा को भी आमंत्रित किया था. स्नेहा जाना भी चाहती थी, परंतु जाने क्या सोच कर मृदुल ने मना कर दिया. फिर मृदुल के समझाने पर स्नेहा मान गई थी. अभी थोड़ी देर पहले मृदुल का फोन आया था और उस ने यह खुशखबरी दी थी. रात बिताना स्नेहा के लिए बहुत कठिन हो रहा था. उसे लग रहा था. जैसे घड़ी जान कर बहुत धीरे चल रही है. अपने स्वर्णिम भविष्य का सपना देखते हुए स्नेहा सो गई.

अगले दिन रविवार था. देर तक सोने वाली स्नेहा सुबह जल्दी उठ गई थी. पूरे घर की सफाई में लगी थी. उस घर की 1-1 चीज स्नेहा और मृदुल की पे्रमस्मृति थी. सुबह से दोपहर हो गई और फिर रात. न तो मृदुल स्वयं आई न ही उस का कोई फोन आया. स्नेहा के बारबार फोन करने पर भी जब मृदुल का फोन नहीं लगा तब स्नेहा ने मृदुल के पापा को फोन किया. उन का फोन भी बंद था.

स्नेहा का दिल किसी अनजानी आशंका से घबराने लगा था. उस के सारे दोस्त आ गए थे. पूरी रात आंखों में निकाल दी थी उन सभी ने. अगले दिन सुबह ही आगरा पुलिस थाने से फोन आया, ‘‘आप की सहेली मृदुला सिंह की मृत्यु छत से गिरने की वजह से हो गई. उन का पूरा परिवार शोककुल है, इसलिए आप को फोन नहीं कर पाए. उन का अंतिम संस्कार आज है. आप आना चाहें तो आ सकती हैं.’’

दर्द से टूट गई स्नेहा. मृत्यु…, मृत्यु…, उस के मृदुल की… नहीं… यह सच नहीं हो सकता ऐसा कैसे हो सकता है… उस ने ही जिद कर के मृदुल को भेजा था. वह तो जाना भी नहीं चाहती थी. स्नेहा को लग रहा था कि सारी गलती उस की है. उस के मम्मीपापा भी इंफाल से आ गए थे. इस दुख की घड़ी में वे अपनी लाडली को कैसे अकेला छोड़ सकते.

2 महीनों तक स्नेहा ने अपनेआप को उस घर में कैद कर लिया था. फिर दोस्तों तथा मम्मीपापा के समझाने पर वह इंफाल जाने को तैयार हो गई. मोबाइल औन कर के अपने औफिस फोन करने की सोच रही थी. उस ने फोन औन किया ही था कि उस की स्क्रीन पर एक वौइस मैसेज आया. स्नेहा यह देख कर चौंक गई, क्योंकि मैसेज मृदुल का था. यह मैसेज उसी दिन का था जिस दिन मृदुल की मृत्यु हुई थी. कांपते हुए हाथों से उस ने मैसेज पर क्लिक किया और मृदुल की आवाज… दर्द में डूबी हुई आवाज…

‘‘स्ने… स्नेह… श… ये… लोग… मुझे मारे देंगे… मैं कोशिश कर रही हूं तुम तक पहुंचने की… पर अगर मैं नहीं आ पाई तो… आगे बढ़ जाना स्नेह… इ ना ननगबु यमना नुंग्सी (मैं तुम से बहुत प्यार करती हूं).’’ स्नेहा के मातापिता तथा उस के दोस्तों के लिए उसे चुप कराना मुश्किल हो गया था. सब ने सोचा उसे इस माहौल से निकालना जरूरी था. मृदुल के परिवार वाले काफी खतरनाक लोग लग रहे थे. परंतु सब के लाख समझाने पर जब स्नेहा नहीं मानी तो उस की मां वहीं उस के पास रुक गईं. स्नेहा ने मृदुल के हत्यारों को सजा दिलाने की ठान ही थी.

अगले 6 महीने स्नेहा केस के लिए दौड़भाग करती रही. इस लड़ाई में उस के मातापिता तथा दोस्तों का भी सहयोग मिल रहा था. परंतु लड़ाई बहुत कठिन तथा लंबी थी. उस रात स्नेहा को नींद नहीं आ रही थी. कौफी बना कर मृदुल के लिखने वाली टेबल पर बैठ गई. जब भी उसे मृदुल की बहुत याद आती वह वहां बैठ जाती थी. अचानक उस का हाथ मेज की दराज पर चला गया. दराज खुलते ही मृदुल का अधूरा उपन्यास उस के सामने था, जिसे वह बिलकुल भूल गई थी. उफ मृदुल ने तो एक दूसरा काम भी उस के लिए छोड़ा है. यह उपन्यास उसे ही तो पूरा करना होगा.

बड़े प्रेम से स्नेहा ने उपन्यास के शीर्षक को चूमा… स्नेह मृदुल शीर्षक के नीचे कुछ पंक्तियां लिखी थीं: ‘‘स्नेह की डोर में बंधे… स्नेह मृदुल,

मृदुल, कोमल, कंचन है प्रेम जिन का वह स्नेह मृदुल, संगम जिन का मिल पाना भी है कठिन, वह स्नेह मृदुल, जिन का प्रेम है परिमल वह स्नेह मृदुल…, स्नेह मृदुल… स्नेह मृदुल.’’

Romantic Story

Car Purchase & Sale: इन बातों का ध्यान रखें, वरना पड़ जाएंगे मुश्किल में

Car Purchase & Sale: अभी हाल ही में लाल किला के पास जिस कार में आतंकी धमाका हुआ, वह कार कई बार खरीदी और बेची गई थी. दिल्‍ली ब्‍लास्‍ट के मामले में अब इस कार के पहले मालिक से ले कर जिनजिन लोगों के पास यह कार रही, सभी जांच के घेरे में हैं.

इस के आलावा भी कार व बाइक के चोरी के बहुत मामले सामने आते रहते हैं और दूसरी बात ट्रैफिक नियमों के मुताबिक भी आप के पास वाहन के डौक्यूमेंट्स होने चाहिए ताकि आप या हम में से कोई ऐसी किसी परेशानी में न पड़ जाएं. इसलिए जरूरी है कि कार या कोई अन्य वाहन बेचते या खरीदते समय सतर्क रहें और सावधानी बरतें.

कार बेचने से पहले क्या करना जरूरी है

बेचने वाले को वाहन का मूल आरसी (RC) देना चाहिए. बेचने और खरीदने वाले दोनों पक्षों द्वारा परिवहन सेवा पोर्टल पर औनलाइन या संबंधित आरटीओ के फौर्म 29 एवं फौर्म 30 भरना चाहिए. मोटर व्हीकल ऐक्ट 1988 की धारा 50 के तहत यह जरूरी है.

विक्रेता अपने पास बिक्री का प्रमाण (सेल एग्रीमेंट) रखें. आरसी में मालिक का नाम ट्रांसफर कराना जरूरी है. अगर यह ट्रांसफर नहीं हुआ तो वाहन का दुरुपयोग या दुर्घटना होती है या वाहन का चालान, ऋण आदि बनता है, तो विक्रेता रिकौर्ड में मालिक होने से उत्तरदायी माना जाएगा.

डौक्यूमेंट्स ट्रांसफर जरूरी

कार बेचने से पहले आप को कार के सभी जरूरी दस्तावेज जैसे आरसी और इंश्योरेंस पौलिसी नए ओनर को ट्रांसफर जरूर करनी चाहिए. यदि आप इन दस्तावेजों को ट्रांसफर नहीं करेंगे तो आप को भविष्य में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है.

ऐसा भी हो सकता है कि आप को आकर्षक कीमत पर चोरी किया हुआ हुआ वाहन बेचा जा रहा हो. इन मामलों से बचने के लिए आप को फाइनल डील से पहले कार का पेपरवर्क कराना चाहिए.

इसलिए यदि आप कार बेचने की तैयारी कर रहे हैं तो इस से जुड़े कागज जैसे इंश्योरैंस, रजिस्ट्रेशन बुक, टैक्सेसन बुक, इनवौयस प्रदूषण सर्टिफिकेट (PUC), आरसी आदि अपडेट करवा लें. अगर कार लोन पर थी तो आरसी से एचपी भी हटवा लें.

इस के लिए ईंधन प्रकार (Fuel type) जांचें कि आरसी में पैट्रोल, डीजल, सीएनजी या इलैक्ट्रिक में से क्या लिखा है. यह भविष्य के नियमों और प्रदूषण मानकों के लिए महत्त्वपूर्ण है. हाइपोथिकेशन यदि आरसी में हाइपोथिकेटेड लिखा है, तो इस का मतलब है कि कार पर लोन चल रहा है. सुनिश्चित करें कि विक्रेता लोन चुका दे और आप को बैंक से एनओसी (NOC – नो ओब्जैक्शन सर्टिफिकेट) प्राप्त हो जाए.

कार बेचने से पहले पेपर वर्क पूरा करें

कार बेचने से पहले आप को कार के नए ओनर को सभी बकाया भुगतान की जानकारी देनी चाहिए. इस के लिए आप को अपने जिले के आरटीओ औफिस से एनओसी लेनी होगी, जिस में साफ किया गया होता कि कार मालिक पर कोई टैक्स या फाइन बकाया नहीं है. वहीं आप को पौल्यूशन सर्टिफिकेट और कार की सर्विस हिस्ट्री नए मालिक के साथ शेयर करनी चाहिए.

कार की वैल्यू चेक करें

यदि आप डीलर के पास या शोरूम नहीं जाना चाहते हैं तो इस के लिए आप इंटरनैट का सहारा ले सकते हैं. कई वैबसाइट और मोबाइल एप हैं जहां कारें खरीदी और बेची जाती हैं. यहां से भी आप अपने कार की वैल्यू चैक कर सकते हैं. आप 3-4 डीलरों से बात करें.

कार हो साफसुथरी

आप की कार जितनी साफसुथरी होगी और अच्छी कंडीशन में होगी, आप को उस की वैल्यू उतनी ही अच्छी मिलेगी. इसलिए कार को किसी को दिखाने से पहले उस की अच्छी तरह वाशिंग और सफाई कर लें. बेहतर होगा यदि आप कार की वाशिंग किसी सर्विस सैंटर से करा लें.

कार का डेटा पूरी तरह साफ करें

कार देने से पहले इनफोटेनमैंट सिस्टम से अपना गूगल या ऐपल अकाउंट लौगआउट करें. सेव्ड कौंटैक्ट्स, कौल हिस्ट्री, नैविगेशन एड्रेस आदि डिलीट कर दें.

फास्ट टैग (FasTag) हटाएं और अगर कोई जीपीएस (GPS) ट्रैकर या कनेक्टेड ऐप जैसे ब्लू लिंक (BlueLink) या आई-कनैक्ट (i-Connect) है, तो उसे भी डिसेबल करें. इस से आप की पर्सनल जानकारी सुरक्षित रहती है.

चालान और लोन क्लियर करें

गाड़ी बेचने से पहले सभी चालान, रोड टैक्स और फाइन चुका दें. अगर कार पर बैंक लोन है, तो बैंक से एनओसी ले कर हाइपोथिकेशन हटवाएं. ऐसा न करने पर आरसी ट्रांसफर रुक सकता है और खरीदार को परेशानी हो सकती है.

इंश्यारैंस करवाना भी जरूरी है

पुरानी कार खरीदने के बाद इंश्योरैंस पौलिसी नए मालिक के नाम पर ट्रांसफर कराना अनिवार्य है. इस से दुर्घटना या चोरी की स्थिति में सुरक्षा बनी रहती है. बिना ट्रांसफर के इंश्योरैंस कंपनी दावा स्वीकार नहीं करती है. इसलिए यह जरूरी है कि रजिस्ट्रेशन ट्रांसफर होने के बाद आप के नाम पर ही वैलिड इंश्योरैंस होना चाहिए. ऐसा इसलिए अगर आरसी (RC) आप के नाम पर रजिस्टर्ड है और इंश्योरैंस अभी भी पुराने मालिक के नाम पर है तो आप की इंश्योरैंस पौलिसी निरस्त हो जाएगी.

सेल्फ अटेस्टेड पैनकार्ड

कार ट्रांसफर की प्रक्रिया के दौरान आरटीओ इंस्पेक्शन के लिए आप के पास सेल्फ अटेस्टेड पैनकार्ड की कापी होना आवश्यक है. यदि आप के पास पैनकार्ड नहीं है तो आप के पास फौर्म 60 होना आवश्यक है, जो आप आरटीओ से ही प्राप्त कर सकते हैं या फिर उस की वैबसाइट से डाउनलोड कर सकते हैं.

सेल्फ अटेस्टेड एड्रेस प्रूफ

भारत के कई राज्यों में कार बेचते समय एड्रेस प्रूफ पेश करना काफी आवश्यक होता है. आरटीओ में ओरिजनल एड्रेस प्रूफ इंसपैक्शन के दौरान दिखाना जरूरी होता है, वहीं इस की सेल्फ अटेस्टेड कापी पेपरवर्क के दौरान काम आती है.

एड्रेस प्रूफ के लिए आप चाहें तो निम्न डौक्यूमेंट्स पेश कर सकते हैं :

-आधार कार्ड

-पासपोर्ट

-राशन कार्ड

-वोटर आईडी कार्ड

लिखित कौन्ट्रैक्ट बनवाएं

जब लोग नई कार खरीदने जाते हैं तब वे सभी दस्तावेजों आदि का खयाल रखते हैं. इस बात का ध्यान उन्हें अपनी पुरानी कार बेचते समय भी रखनी चाहिए. पुरानी कार को बेचते समय कार की स्थिति, बिक्री मूल्य और ट्रांसफर आदि के लिए लिखित कौन्ट्रैक्ट बनवाएं ताकि भविष्य में अगर कोई उस कार का गलत उपयोग करे तो आप के पास सुबूत के तौर पर दस्तावेज हों.

जानपहचान में ही बेचें कार

अगर हो सके तो किसी भी व्यक्ति को अपनी कार बेचने से पहले उस के बैकग्राउंड के बारे में पता कर लें. यह जानने की कोशिश करें कि वह गलत लोगों या गलत कामों में जुड़ा तो नहीं है. ऐसा हो तो उसे कार न बेचें. कोशिश करें कि अपने किसी जानपहचान वाले व्यक्ति को ही कार बेचें.

कार खरीदते समय आरसी में क्या जांचें

मालिक का नाम (Owner’s Name) : यह सुनिश्चित करें कि आरसी (RC) पर लिखा नाम, बेचने वाले व्यक्ति का पहचान प्रमाण (ID Proof) से पूरी तरह मेल खाता हो. अगर नाम अलग है, तो मालिक का कानूनी रूप से सही अधिकार (Legal Authority) जांचें.

चेसिस और इंजन नंबर (Chassis & Engine Number) : यह नंबर कार के वास्तविक चेसिस और इंजन पर लिखे नंबर से बिलकुल मेल खाना चाहिए. यह सब से जरूरी जांच है जो धोखाधड़ी (Fraud) को रोकती है.

पंजीकरण संख्या (Registration Number) : आरसी (RC) पर लिखा नंबर, कार की नंबर प्लेट पर लिखे नंबर से मिलना चाहिए.

ओनर सीरियल नंबर (Owner Serial No) : यह जांचें कि आप पहले (1st), दूसरे (2nd) या तीसरे (3rd) मालिक हैं. यह संख्या कार के पुनर्विक्रय मूल्य (Resale Value) को प्रभावित करती है.

पंजीकरण की तिथि (Date of Registration) : इस से पता चलता है कि कार कितनी पुरानी है. यह कार के मौडल वर्ष से मेल खाना चाहिए.

पुरानी कार खरीदते समय चैक करें मैंटनेंस रिकौर्ड

पुरानी कार खरीदते समय उस की मैंटनेंस हिस्ट्री को देखना बेहद जरूरी है. इस से पता चलता है कि उस कार की सर्विसिंग सही समय पर चल रही थी या नहीं. अगर कार विक्रेता सर्विसिंग का रिसीप्ट या रिकौर्ड रखता है तो आप आसानी से जान सकते हैं कि कार की मैंटनेंस कैसी है. इसलिए कार बेचने वाले से मैंटनेंस रिकौर्ड की मांग करें.

नो क्लेम बोनस की करें जांच

यह कार बीमा से संबंधित है. नो क्लेम बोनस इंश्योरैस प्रीमियम को हलका बना देता है. यह पौलिसी अवधि के दौरान दावा दायर नहीं करने का इनाम है. इसलिए, इसे नो क्लेम बोनस (NCB) के रूप में जाना जाता है. कार की कंप्रिहेंसिव बीमा पौलिसी लेते समय यह बोनस आप को प्रीमियम में छूट प्रदान कर सकता है.

पुलिस वैरीफिकेशन कराएं

अगर आप यह सोच रहे हैं कि पुरानी कार खरीदने के लिए पुलिस वैरीफिकेशन की क्या जरूरत है, तो आप को बता दें कि कई लोग अपनी कार को इसलिए बेच देते हैं क्योंकि वह किसी अपराध जैसे हिट ऐंड रन केस और ड्रग्स ट्रांसपोर्टेशन आदि में शामिल होती है.

इस कारण हमेशा पुरानी कार लेने से पहले उस का पुलिस वैरीफिकेशन जरूर करा लें.

Car Purchase & Sale

Birthday Gift for Wife: पत्नी को बर्थडे गिफ्ट, प्यार जताने के बैस्ट आइडियाज

Birthday Gift for Wife: जन्मदिन हर महिला के लिए खास होता है. यह वह दिन है जब वह चाहती है कि उस की पसंद, उस की इच्छाएं और उस की भावनाएं बिना कहे समझ ली जाएं.

लेकिन दिलचस्प बात यह है कि कई पति इस खास दिन पर एक स्मार्टनैस दिखाते हैं- पति इस दिन घर का कोई सामान खरीद कर पत्नी को गिफ्ट कर देते हैं और पूरी शिद्दत से मानते हैं कि यह सब से बेहतरीन और उपयोगी उपहार है.

मिक्सर, प्रेशर कुकर, एअरफ्रायर, डिनरसेट, वैक्यूम क्लीनर वगैरह पतियों की नजरों में दिल से दिए हुए यानि प्रैक्टिकल गिफ्ट होते हैं.

लेकिन सवाल यह है कि क्या घर का सामान वास्तव में पत्नी का गिफ्ट होता है या पूरे घर का?

महिला मुसकरा कर गिफ्ट स्वीकार जरूर कर लेती है, लेकिन दिल में एक छोटा-सा सवाल जरूर उभरता है,“यह मेरा जन्मदिन है या घर की सालाना खरीदारी का दिन?”

पतियों की सोच : प्रैक्टिकली ही प्यार

कई पति मानते हैं कि उपयोगी चीजें देना ही समझदारी है. उन के हिसाब से :

इमोशनल गिफ्ट = पैसे की बरबादी

किचन गैजेट्स = बुद्धिमानी

होम अप्लाएंसेज = आधुनिकता

प्रैक्टिकल गिफ्ट = उन की स्मार्टनैस का प्रमाण

उन की इस सोच के पीछे यह भावना होती है कि अगर पत्नी घर संभालती है, तो घर का सामान ही उस के लिए सब से बड़ा उपहार है और पति इस बात पर गर्व भी महसूस करते हैं.

स्त्रियां क्या चाहती हैं

महिलाएं घर चलाती हैं, सब का ध्यान रखती हैं, लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि उन के सपने भी घर के समान ही हों.

महिलाएं चाहती हैं :

-अपनी पसंद की चीजें.

-अपनी व्यक्तिगत खुशी, नकि घर की आवश्यकता.

-महसूस करना कि वह केवल गृहिणी नहीं, एक इंसान भी है.

-एक ऐसा उपहार, जिस में उस का व्यक्तित्व झलके.

यों हो सकता है कि छोटे से फूलों का गुलदस्ता, किताबें, एक ड्रैस, ज्वैलरी पीस, बैग वगैरह उन से कहीं ज्यादा उन के दिल को छू जाएं.

समझदारी की नई परिभाषा

स्मार्ट पति है वह जो समझता है कि :

-गिफ्ट घर के लिए नहीं, पत्नी के लिए होना चाहिए.

-महिलाओं की पसंद और जरूरतें किचन से आगे भी हैं.

-भावनाएं प्रैक्टिकल से ज्यादा माने रखती हैं.

कभीकभी केवल ‘तुम मेरे लिए बहुत खास हो…’ इतना कहना भी किसी महंगे गिफ्ट से ज्यादा खूबसूरत लग सकता है.

गिफ्ट भले छोटा हो, सोच बड़ी होनी चाहिए

महिलाओं का जन्मदिन सिर्फ एक तारीख नहीं, यह उन के अस्तित्व का उत्सव है.

इसलिए उपहार ऐसा हो जो उन के चेहरे पर मुसकान लाए, नकि ऐसा जो उन्हें अगले दिन सब्जी काटते समय याद आए. घर का सामान घर के लिए होता है और गिफ्ट दिल को खुश करने के लिए.

सही चुनें, सोचसमझ कर दें, क्योंकि असली स्मार्टनैस वही है, जो अपनी पत्नी की खुशी समझता है नकि सिर्फ घर की.

Birthday Gift for Wife

Wedding Season : अनारकली सिल्क जैकेट से दें खुद को स्टाइलिश लुक

Wedding Season: आजकल शादियों का सीजन चल रहा है और इस मौके पर हम सभी बहुत फैशनेबल और स्टाइलिश दिखना चाहते हैं. अनारकली जैकेट एक लंबा फ्लेयर्ड और कोट स्टाइल जैकेट होता है, जिसे सूट, ब्लाउज, पेंट या फिर टीशर्ट व पेंट पर बहुत आराम से पहना जा सकता है. यह आप की साधारण सी ड्रैस को फैशनेबल बना देता है.

रेशमी और सिल्क जैसे हैवी फैब्रिक से बना यह जैकेट आगे से खुला और काफी घेरदार होता है. कई बार इस पर स्टोन और जरी से कढ़ाई भी की जाती है. इस की लंबाई घुटनों से नीचे तक होती है जिस से यह आप की ड्रैस को अट्रैक्टिव बना देता है.

सामान्यतौर पर जैकेट सीधी होती है पर अनारकली जैकेट में फैब्रिक से कलियों में काट कर व अस्तर लगा कर अनारकली स्टाइल में सिलाई की जाती है. स्टाइलिश बनाने के लिए केवल ऊपरी हिस्से में चैन लगाई जाती है. नीचे के भाग को खुला रखा जाता है जिस से अनारकली का लुक बरकरार रहता है.

इसे कैरी करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद आवश्यक होता है :

-अनारकली जैकेट को बनाने के लिए कढ़ाईदार, सीक्वैंस या टैक्सचर्ड फैब्रिक चुनें. इस से फाल अच्छा आता है और जैकेट का डिजाइन निखर कर आता है.

-क्लासिक लुक के लिए हैवी अनारकली जैकेट के साथ कंट्रास या मैचिंग रंग के सिल्क या कढ़ाई के ब्लाउज के साथ एक सादा फिटेड चूड़ीदार सूट/ या लेगी पेंट पहनें.

-बेस यानी जैकट के अंदर पहनने के लिए हमेशा कंट्रास या मैचिंग कलर को चुनें, जिस से बेस और जैकेट दोनों का लुक निखर सके. पेस्टल शेड अनारकली के साथ डार्क जैकेट या डार्क बेस के साथ हलके रंग का जैकेट कैरी कर सकते हैं.

-अनारकाली जैकेट के साथ हलकीफुलकी ज्वैलरी कैरी करें, ताकि जैकेट का लुक बना रहे. भारीभरकम हार पहनने की जगह केवल सिंगल लेयर की चैन चुनें.

-कानों में आप हैवी झुमके पहन सकतीं हैं. इस से आप की अनारकली जैकेट का ग्रेस बना रहेगा.

-अनारकली के साथ हलकाफुलका मेकअप रखें. बालों को खुला छोड़ें या फिर सौफ्ट सा बन बनाएं ताकि आप की अनरकली हाइलाइट हो सके.

-फुटवेयर में आप पारंपरिक जूती या हील के सैंडल्स कैरी कर सकती हैं.

-जैकेट की फिटिंग पर विशेष ध्यान दें. जैकेट कंधे, बाजुओं और कमर पर एकदम फिट रहे और कमर के नीचे अच्छाखासा घेर रहे.

-यदि जैकेट का फैब्रिक बहुत अधिक डिटेल्ड है तो अंदर के ब्लाउज और पेंट का फैब्रिक एकदम सादा ही रखें.

–इसे पहनने के बाद आप अपनेआप में आत्मविश्वास बनायें रखें. सीधे खड़े हों और सीना तान कर चलें, जिस से आप की अनारकली जैकेट की लेयर्स खुल कर अपना जादू बिखेर सकें.

Wedding Season

Shraddha Das: लोग तभी करीब आते हैं जब लङकी सुंदर और ग्लैमरस हो

Shraddha Das: खूबसूरत, शांत और हंसमुख अभिनेत्री श्रद्धा दास हिंदी के अलावा तेलुगु, मलयालम, कन्नड़ और बांग्ला फिल्मों में अपने काम के लिए जानी जाती हैं.

बंगाली परिवार में जन्मीं श्रद्धा के पिता एक व्यवसायी हैं, जो पुरुलिया से हैं. उन की मां गृहिणी हैं.

मुंबई में पलीबड़ी हुईं श्रद्धा मास मीडिया में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अभिनय की ओर मुड़ीं, क्योंकि उन्हें हमेशा से अभिनय की इच्छा रही है. तेलुगु और बांग्ला फिल्मों के अलावा श्रद्धा ने कई हिंदी फिल्में भी की हैं, जिन में ‘लहौर’, ‘लकी कबूतर’, ‘जिद’, ‘सनम तेरी कसम’, ‘ग्रेट ग्रैंड मस्ती’, ‘बाबुमोशाय’, ‘बंदूकबाज’ आदि हैं.

उन की सीरीज ‘सर्च द नैना मर्डर केस’ उन की सफल टीवी सीरीज है, जिस में उन के काम को दर्शकों ने काफी सराहा है.

उन्होंने खास गृहशोभा से बात की. पेश हैं, उन की कहानी उन की जबानी :

इंडस्ट्री में अंतर

श्रद्धा की टीवी सीरीज ‘सर्च द नैना मर्डर केस’ काफी हिट हुई है, जिस से श्रद्धा को कई काम मिलने लगे हैं. वे कहती हैं कि इस सीरीज के हिट होने के बाद मैं एक फिल्म मनोज बाजपेयी के साथ शूट कर चुकी हूं. मैं ने साउथ की फिल्मों से ले कर हिंदी फिल्मों में काम किया है. दोनों के काम में कोई अंतर नहीं होता, अंतर सिर्फ दर्शकों का होता है. हर चरित्र में इमोशनल, बौडी लैंग्वेज एकजैसा ही होता है. भाषा का अंतर होता है, जिसे मैं पहले सीखती हूं, क्योंकि उसे सैट पर बोलना पड़ता है.

वे कहती हैं कि साउथ के दर्शक अपने कलाकारों को ले कर काफी लौयल होते हैं. उन के काम को वे काफी महत्त्व देते हैं. इस के अलावा साउथ में अधिक उम्र के ऐक्टर को वे कास्ट कर लेते हैं, लेकिन ऐक्ट्रैस की उम्र का एक सीमित दायरा होता है, जिस में अधिकतर कैरेक्टर आर्टिस्ट की प्रधानता होती है, जबकि हिंदी सिनेमा में हीरोइन औरिऐंटेड फिल्में अधिक होती हैं.

मिली प्रेरणा

अभिनय के क्षेत्र में आने की प्रेरणा के बारे में श्रद्धा कहती हैं कि मुझे सुस्मिता सेन के साथ काम करना बहुत पसंद है. उन से मुझे बहुत प्रेरणा मिली है. जब मैं छोटी थी तो मैं ने उन्हें मिस यूनिवर्स बनते हुए देखा था. मुझे उन का व्यक्तित्व बहुत पसंद आया था.

वे कहती हैं कि मेरे पेरैंट्स चाहते थे कि मैं पढ़ाई पूरी करूं, इसलिए मैं पढ़ाई के साथसाथ मंच पर गाने भी गाया करती थी. जब मैं गाने की एक अलबम बनाने गई थी, तो मैं ने फोटोशूट किया, जिसे फिल्ममेकर देवानंद ने देखा और एक फिल्म का औफर मिला, हालांकि वह फिल्म तो नहीं बनी, लेकिन मुझे ऐक्टिंग का शौक हुआ. फिर मैं ने ऐक्टिंग की ट्रैनिंग ली और औडिशन देने लगी. इस से मुझे साउथ और हिंदी सिनेमा दोनों में काम करने का मौका मिलता गया.

श्रद्धा कहती हैं कि उसी दौरान मैं ने साउथ में अभिनेता अल्लु अर्जुन के साथ ज्यों ही ‘आर्या 2’ में अभिनय किया, इस के बाद से साउथ में मेरा कैरियर शुरू हो गया. इस के साथसाथ हिंदी में भी थोड़े काम करने मैं ने शुरू कर दिए थे.

परिवार का सहयोग

श्रद्धा कहती हैं कि मेरे परिवार में कोई भी फिल्म इंडस्ट्री से नहीं है. मेरे पिता जब वैस्ट बंगाल में पुरुलिया के एक गांव में थे, तो काफी दूर जा कर वे फिल्में देखते थे. मेरी मां भी गाना गाती हैं. मेरा परिवार कलाप्रेमी है. इसलिए मैं ने जब अभिनय की बात उन से कही, तो वे बहुत खुश हुए, लेकिन शर्त यह थी कि मैं अपनी पढ़ाई पूरी करूं. इस के बाद मुझे कुछ भी करने की आजादी हमेशा मिली.

वे कहती हैं कि मैं ने मास मीडिया में पढ़ाई की है, क्योंकि मुझे न्यूज ऐंकरिंग का बहुत शौक रहा है. मैं ने ब्रौडकास्ट में भी ट्रैनिंग ली है. आगे मुझे मौका मिले तो इस क्षेत्र में अवश्य काम करना चाहती हूं. मैं किसी न किसी दिन एक शो को होस्ट करने की इच्छा रखती हूं.

रहा संघर्ष

इंडस्ट्री में कोई गौडफादर न रहने पर काम मिलना मुश्किल होता है और ऐसा श्रद्धा के साथ हुआ भी है. वे कहती हैं कि मैं ने बहुत सारे औडिशन दिए, कई फिल्मों में पहले चुनी गई, लेकिन बाद में उन्होंने मना कर दिया. हजार बार रिजैक्ट कर दी गई. ऐसे में मैं ने सेकंड लीड, छोटीछोटी भूमिका जो भी मिला करती गई. मैं हर भाषा में काम करती रही, क्योंकि लगातार काम करते रहना इंडस्ट्री में बहुत जरूरी होता है, ताकि आप सब की नजरों में रह सकें. अंत में आ कर मैं अपनी मनमपसंद भूमिका कर पा रही हूं.

वे कहती हैं कि मेरे हिसाब से हर व्यक्ति की जर्नी अलगअलग होती है, किसी को पहले दिन ही अच्छा ब्रेक मिल जाता है, किसी को समय लगता है. इस में ऐक्टिंग कोर्स का फायदा कुछ हद तक हुआ, क्योंकि मैं ने अधिकतर अभिनय सैट पर जा कर और खुद की लाइफ ऐक्सपीरियंस से सीखा है. आज अगर मुझे रोने की सीन करनी है, तो मुझे ग्लिसरीन की जरूरत कभी नहीं पड़ी. मैं 20 बार भी रो सकती हूं, उतनी मैमोरी बैंक खुद के अंदर बनानी पड़ती है. इस के अलावा मैं ने वर्ल्ड सिनेमा काफी देखी है. इस से मुझे काम करना आसान हुआ है.

मिला ब्रेक

काफी सालों बाद श्रद्धा को बड़ा ब्रेक टीवी सीरीज ‘सर्च द नैना मर्डर केस’ में मिला, जिस उन्हें अपने मनपसंद कलाकार कोंकना सेन के साथ काम करने का मौका मिला. इस सीरीज में उन के काम को दर्शकों ने काफी सराहना की है. वे फिलहाल कई फिल्में और सीरीज में काम कर रही हैं.

मिली मायूसी

श्रद्धा कहती हैं कि किसी अच्छे औडिशन के बाद अचानक रिजैक्शन का सामना करने पर 1-2 दिनों तक मायूसी रहती है. मगर फिर भूल कर आगे बढ़ जाती हूं

श्रद्धा कहती हैं कि मुझे याद है जब मैं ने एक तेलुगु फिल्म के लिए 5 लुक टेस्ट दिए थे. उन्होंने मुझे साइनिंग अमाउंट भी दिए थे और मैं उस समय अपने पिता को मुंबई से ले कर गई थी. उन्होंने मुहूर्त किया. मैं और मेरे पिता दोनों सुबहसुबह तैयार हो कर गए. मुहूर्त होने के बाद उन्होंने मुझे फिल्म से निकाल दिया, क्योंकि मैं साड़ी में भी बहुत ग्लैमरस दिखती हूं. मैं बहुत हर्ट हुई थी, क्योंकि वह मेरा डैब्यू काम था.

श्रद्धा आगे कहती हैं कि मुझे यह समझ में नहीं आता है कि मुझे लोग ग्लैमरस क्यों कहते हैं. मेरी ऐक्टिंग पर विश्वास क्यों नहीं करते, क्योंकि एक कलाकार एक भिखारी से ले कर कुछ भी बन सकता है और यह सारी चीजें मेकअप से किए जा सकते हैं.

सीमारेखा जरूरी

फिल्म इंडस्ट्री में कास्टिंग काउच को ले कर श्रद्धा का कहना है कि अगर आप सुंदर और ग्लैमरस हैं, तो किसी भी क्षेत्र में लोग आप के करीब आना चाहेंगे, लेकिन इस में तय यह करना पड़ता है कि आप उन्हें कितना हद तक पास आने की परमिशन देते हैं. मीटू के बाद हर कौन्ट्रैक्ट में एक क्लौज सैक्सुअल मिसकंडक्ट का होता है, जिसे साइन करना पड़ता है. मुझे ऐसा अभी तक फेस नहीं करना पड़ा है.

कहानी में ओरिजनैलिटी का होना जरूरी

श्रद्धा के अनुसार, पहले से कहानी और दर्शकों की सोच में बदलाव काफी है, लेकिन एक तरह की कहानी के हिट होने पर सभी वैसी ही फिल्में बनाते हैं, जिसे दर्शक नकार देते हैं. ओरिजिनल कहानी वाली हर तरह की जोनर वाली फिल्में हमेशा ही हिट होती हैं, फिर चाहे वह ओटीटी हो या थिएटर हौल. जैनरेशन की इस में कोई गलती नहीं. 5 मिनट से अधिक अगर कोई फिल्म दर्शकों को बांधे रख सकती है, फिर चाहे वह हौरर, रोमांटिक या थ्रिलर हो, तो वह फिल्म सफल होती है. इसे फिल्ममेकर को फिल्म को बनाने से पहले उस की गहराई को समझने की जरूरत है.

समय मिलने पर

श्रद्धा अभिनय के अलावा गाने भी गाती हैं. उन्होंने कई फिल्मों में गाने भी गाए हैं. आगे वे खुद का म्यूजिक अलबम इंटरनैशनल तरीके से निकालना चाहती हैं, क्योंकि उन्होंने कैरियर की शुरुआत सिंगिंग से की है.

फैशन और फूड

श्रद्धा को साधारण व आरामदायक कपड़े पहनना पसंद है, क्योंकि बाकी समय फैशन डिजाइनरों द्वारा दिए गए कपड़े पहनती हैं. इस के अलावा अलगअलग डिशेज ट्राई करना उन्हें पसंद है.

श्रद्धा सोशल मीडिया फौलो नहीं करतीं, क्योंकि उन्हें रील्स देखना पसंद नहीं और खुद को किसी के साथ तुलना करना भी उन्हें अच्छा नहीं लगता. उन्हें अगर सुपर पावर मिले, तो मुंबई जैसे शहर में सब के लिए सस्ता घर दिलवाने की कोशिश जरूर करेंगी.

Shraddha Das

फिल्म ‘सैयारा’ से ले कर ‘बर्फी’ तक, जागरूक करतीं बीमारियों से जुङी ये फिल्में

chronic illnesses: लंबे समय से बौलीवुड फिल्मों की कहानियों में बीमारियों का इस्तेमाल भावुक मोड़ देने के लिए होता रहा है, जैसे कैंसर, टीबी, हैजा जैसी जानलेवा बीमारियों का इस्तेमाल कहानी में भावुक मोड़ देने के लिए और कहानी को पेचीदा बनाने के लिए किया जाता रहा है, क्योंकि उस दौरान कैंसर और टीबी जैसी बीमारियों का कोई इलाज नहीं था. इसलिए फिल्म में भावुक मोड़ पैदा करने के लिए फिल्म के मुख्य पात्र को ऐसे ही खतरनाक बीमारियों से ग्रस्त साबित किया जाता था.

आनंद

राजेश खन्ना अभिनीत ‘आनंद’ फिल्म में फिल्म के हीरो राजेश खन्ना को कैंसर होता है और डाक्टर के अनुसार उन्हें 6 महीने का मेहमान बताया जताता है.

राजेश खन्ना का डायलौग फिल्म के आखिर सीन में, ‘बाबूमोशाय, जिंदगी और मौत ऊपर वाले के हाथ में है…’ एक ऐसा इमोशनल सीन था, जिस में राजेश खन्ना को मरते हुए दिखाया गया है.

अगर वास्तविक जिंदगी की बात करें तो राजेश खन्ना की मौत कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से ही हुई थी. उन दिनों की बौलीवुड की सब से खूबसूरत हीरोइन कहलाने वाली मधुबाला की मौत टीबी जैसी जानलेवा बीमारी से हुई थी,

क्योंकि तब कैंसर और टीवी का कोई इलाज नहीं था. इसलिए पुरानी फिल्मों में भी ऐसी ही बीमारियों का जिक्र होता था.

दुश्मन

साल 1939 में केएल साहगल की फिल्म ‘दुश्मन’ में पहली बार टीबी की बीमारी को संवेदनशील तरीके से दर्शाया गया था. इस फिल्म को देखने मुंबई के गवर्नर पहुंचे थे. इस के बाद ‘देवदास’, ‘बंदिनी’ और ‘लुटेरा’ जैसी फिल्मों में टीबी के बीमारी का जिक्र किया गया.

लेकिन जैसेजैसे समय बदला लोग अपने स्वास्थ्य की तरफ जागरूक हुए. उस के बाद अन्य कई बीमारियों का पता चला जिस का नाम तक लेना मुश्किल होता है, जैसे पार्किसन, अल्जाइमर, सोरायसिस, आदि.

आज के समय में लोग अपने स्वास्थ्य को ले कर इतने ज्यादा जागरूक हैं कि शरीर में कोई भी बदलाव या तकलीफ होने पर न सिर्फ डाक्टर के पास जाते हैं, बल्कि टेस्ट वगैरह करा के बीमारी का पता लगा कर उस का इलाज भी करवा लेते हैं.

आज मैडिकल साइंस ने इतनी तरक्की कर ली है कि तकरीबन हर बीमारी का इलाज है, भले ही खतरनाक बीमारियां पूरी तरह से खत्म न हो पाएं लेकिन उन को बेहतर इलाज के साथ रोका जरूर जा सकता है.

बदलते समय के साथ फिल्मों की कहानियों में भी बीमारी दर्शाने को ले कर बड़ा बदलाव आया और कई फिल्मों में कहानियों के जरीए कई सारी अतरंग बीमारियों का पता चला.

सैयारा

हाल ही में रिलीज और सुपरहिट हुई फिल्म ‘सैयारा’ में हीरोइन को अल्जाइमर बीमारी से ग्रस्त बताया गया, जिस में वह एक समय में अपनी सारी बातें भूल जाती है. वर्तमान की बातों के अलावा पुरानी कोई बात उसे याद नहीं रहती.

सितारे जमीं पर

इसी तरह आमिर खान की फिल्म ‘सितारे जमीं पर’ की कहानी डाउन सिंड्रोम बीमारी पर आधारित है, जो मानसिकतौर पर विकलांग बच्चों की कहानी है.

तनवी द ग्रेट

हाल ही में रिलीज ‘तनवी द ग्रेट’ की कहानी औटिज्म बीमारी से ग्रस्त है.

तारे जमीं पर

इसी तरह आमिर खान की एक और फिल्म ‘तारे जमीं पर’ ऐसे बच्चों की कहानी थी जो डिस्लेक्सिया से पीड़ित होते हैं. ऐसे बच्चों को पढ़ाई करने में तकलीफ होती है, क्योंकि उन्हें पढ़ाई के दौरान अक्षर ठीक से समझ में नहीं आते.

पा

अमिताभ बच्चन अभिनित फिल्म ‘पा’ की कहानी एक ऐसे बच्चे की कहानी है जो प्रोजेरिया नाम की बीमारी से पीड़ित है. ऐसी बीमारी से पीड़ित बच्चा अपनी उम्र से 5 गुना ज्यादा नजर आता है और उस के सिर और कान जरूरत से ज्यादा बड़े होते हैं.

बर्फी

रणबीर कपूर और प्रियंका चोपड़ा अभिनीत फिल्म ‘बर्फी’ जो औस्कर के लिए भी भेजी गई थी, में प्रियंका चोपड़ा औटिज्म बीमारी से पीड़ित थी.

हिचकी

रानी मुखर्जी अभिनीत फिल्म ‘हिचकी’ में रानी मुखर्जी को टूरेट सिंड्रोम थी. इस बीमारी में ज्यादा हिचकियां आती हैं. यह एक न्यूरोलौजिकल कंडीशन होती है, जिस में बहुत ज्यादा पलकें झपकती हैं और लगातार हिचकियां आती हैं.

भूलभुलैया

अक्षय कुमार व विद्या बालन अभिनीत ‘भूलभुलैया’ जो एक हौरर कौमेडी फिल्म थी. इस फिल्म में विद्या बालन के किरदार को डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसऔर्डर की मानसिक बीमारी से ग्रस्त बताया गया. विद्या बालन के किरदार को मल्टीपल्स पर्सनैलिटी डिसऔर्डर होता है, जो एक मानसिक बीमारी है.

मार्गेरीटा विद अस्ट्रा

इसी तरह फिल्म ‘मार्गेरीटा विद अस्ट्रा’ में कल्कि कोचलीन को  सेरेब्रल पाल्सी बीमारी होती है, जि में सामान्य गतिविधियों के साथ भी संघर्ष करना पड़ता है.

गुजारिश

रितिक रोशन और ऐश्वर्या राय बच्चन अभिनीत फिल्म ‘गुजारिश’ में रितिक रोशन चतुरंगघाती बीमारी से पीड़ित बताया है, जिस का शरीर बेजान होता है और वह दूसरों पर निर्भर रहता है.

माई नेम इस खान

शाहरुख खान अभिनीत ‘माई नेम इस खान में’ शाहरुख खान को एस्परगर सिंड्रोम का मरीज बताया गया है.

फिर मिलेंगे

सलमान खान और शिल्पा शेट्टी अभिनीत फिल्म ‘फिर मिलेंगे’ में शिल्पा शेट्टी को एड्स का मरीज बताया गया है.

गजनी

आमिर खान की फिल्म ‘गजनी’ जिस में आमिर को भूलने की बीमारी होती है, उन को एनट्रोग्रेड एमनेसिया से ग्रस्त बताया गया है.

गौरतलब है कि वास्तविक जिंदगी में और फिल्मों में कई सारी नई बीमारियों का इजाफा हुआ है. लेकिन खास बात यह है कि ज्यादातर बीमारियों का मैडिकल साइंस में इलाज है, जिस के चलते जहां पहले लोग कैंसर, टीबी जैसी बीमारियों में मर जाते थे, वैसा आज नहीं है. आज बड़ी से बड़ी बीमारी का इलाज है. फिल्मों में दिखाई गई बीमारियां दर्शकों को जागरूक करने के लिए अहम भूमिका भी निभाती हैं.

chronic illnesses

Seasonal Depression: दबे पांव देता है दस्तक

Seasonal Depression: यह  एक तरह का डिप्रैशन है, जो मौसमी बदलाव से शुरू होता है और आमतौर पर ठंड के मौसम में होता है. इस दौरान व्यक्ति के अंदर कई प्रकार के शारीरिक और मानसिक लक्षण नजर आते हैं. इस मौसम में धूप कम होती है. धूप की कमी से दिमाग में ‘सेरोटोनिन’ नामक न्यूरोट्रांसमीटर घट जाता है.

दरअसल, सिरेटोनिन एक न्यूरोट्रांसमीटर है. शरीर में इस का स्तर कम होने का असर व्यक्ति के मूड पर पड़ता है. साथ ही विटामिन डी शरीर में सिरेटोनिन के उत्पादन में मुख्य भूमिका निभाता है.

विटामिन डी की कमी से शरीर में सिरेटोनिन का स्तर गिरता है. इस से व्यक्ति दिन में कम एनर्जी और सुस्ती महसूस करता है. यह वह सुपर हार्मोन है जो मूड को कंट्रोल करता है. अंधेरा और ठंड बढ़ने पर शरीर ज्यादा मेलाटोनिन बनाता है, जिस से नींद ज्यादा आती है और एनर्जी घट जाती है. सर्केडियन रिदम बिगड़ जाता है. यह अचानक बदलते मौसम से प्रभावित होता है, तो नींद और जागने का पैटर्न बिगड़ जाता है.

कैसे पहचानें सीजनल डिप्रैशन

-किसी भी चीज में मन नहीं लगना.

-खुद को उदास और डिप्रैस महसूस करना.

-खाना खा लेने पर भी भूख लगना.

-वजन का बढ़ना.

-देर तक सोते रहना और उठने का मन न करना.

-दिनभर कुछ न करने की इच्छा होना और बिस्तर पर पड़े रहना.

-सामान्य रोजमर्रा की गतिविधियों में रुचि न लेना और खुशी न महसूस करना.

-किसी काम को करते समय फोकस न कर पाना.

-लोगों के साथ मिलने का मन न करना.

-चिड़चिड़ापन बने रहना वगैरह.

निदान

खुद को अकेले कमरे में बंद करने के बजाय वह सब करें जो आप को पसंद है. जिन से बात कर के या फिर जिन के साथ टाइम स्पैंड कर के आप बेहतर महसूस करते हैं उन लोगों से मिलें.

इस मौसम में अगर आप को बारबार भूख लगती है और कुछ खाने का मन करता है तो ओवर इटिंग न करें. बल्कि कुछ हैल्दी औप्शन ट्राई करें. एक ही बार में ज्यादा खाने के बजाय थोड़ीथोड़ी देर में कुछ खाते रहें.

सुबह या शाम वाक करने जरूर जाएं. इस से मूड फ्रैश होगा और आलस्य में भी कमी आएगी.

बुक रीडिंग की आदत डालें. इस से आप सारा डिप्रैशन भूल जाएंगे. जब आप किताब पढ़ने में लग जाएंगे तो उस में आप को इतना मजा आने लगेगा कि समय मिलते ही आप को सोने से ज्यादा किताब पढ़ने का चसका लग जाएगा.

जिम जौइन करें या फिर अपनी पसंद का कोई काम जैसे सिलाई, कढ़ाई, बुनाई करें, आचार डालें, पैंटिंग करें. जो भी काम आप को पसंद हो वह करेंगे तो उस में इतना बिजी हो जाएंगे कि अपनी बीमारी को भूल जाएंगे.

अपना एक शैड्यूल बनाएं, जैसे समय पर सोना और जागना. इस से आप को वर्क प्रेशर भी फील नहीं होगा और साथ ही मानसिक स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा.

विटामिन डी की कमी डिप्रैशन के लक्षणों को ज्यादा बढ़ा देती है. इसलिए रोजाना 10-15 मिनट सुबह की कुनकुनी धूप में बैठें और विटामिन डी युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करें.

किसी विषय को ले कर आप को बारबार चिंता सता रही है तो ऐसे में आप उस विषय पर अपने करीबियों और घर के लोगोंं के साथ बात कर सकते हैं. लोगों के साथ बात शेयर करने से आप का डिप्रैशन कम होगा और आप को आराम मिलेगा.

डाक्टर से कब मिलें

-अगर लगातार कईकई दिनों तक आप का मूड लो है.

-खानापीना बिलकुल बंद हो गया है.

-वजन कम होने लगे.

-अगर किसी काम में मन न लगे.

-कईकई रातों तक नींद न आए.

कई लोगों के लिए सीजनल इफैक्ट‍िव डिसऔर्डर, यह टर्म नया होगा, लेकिन ऐसा होता है. बदलते मौसम का असर सिर्फ बाहर के माहौल पर नहीं, बल्कि हमारे दिमाग और भावनाओं पर भी पड़ता है. इसलिए अगर आप या आप के आसपास कोई इन लक्षणों से गुजर रहा हो तो इसे हलके में न लें. समय रहते कदम उठाना ही इस समस्या से बचाव का सब से आसान तरीका है.

Seasonal Depression

Aishwarya Rai की धर्म को ले कर मीठे बोल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हो गए ट्रोल

Aishwarya Rai: हाल ही में ऐश्वर्या राय बच्चन एक धार्मिक प्रोग्राम में पहुंचीं, जहां नरेंद्र मोदी भी मौजूद थे. प्रधानमंत्री और ऐश्वर्या राय के अलावा कई और दिग्गज हस्तियां और क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर भी वहां मौजूद थे. ऐश्वर्या राय को भी आमंत्रित किया गया था.

आध्यात्मिक समारोह

19 नवंबर, 2025 को आंध्र प्रदेश में हुए इस आध्यात्मिक समारोह में ऐश्वर्या राय ने कुछ ऐसा कह दिया, जिसे सुन कर दर्शकों का दिल जहां बागबाग हो गया, वहीं ऐश्वर्या राय की इस स्पीच के बाद ऐश्वर्या और नरेंद्र मोदी सोशल मीडिया पर ट्रोल हो गए.

अपनी इस स्पीच में ऐश्वर्या राय ने धर्म, जाति और प्यार को ले कर कुछ ऐसा कहा जिसे सुनने के बाद वहां मौजूद लोगों ने तालियां बजाना शुरू कर दिया.

हो गए ट्रोल

ऐश्वर्या ने कहा,”सिर्फ एक ही जाति है, मानवता की जाति है. केवल एक ही धर्म है, प्यार का धर्म. केवल एक ही भाषा है, हृदय की भाषा और केवल एक ही ईश्वर है, जो हर जगह मौजूद है…”

ऐश्वर्या ने मानवता और प्रेम के महत्त्व पर बात की और सभी को भेदभाव से ऊपर उठने के लिए प्रोत्साहित किया. ऐश्वर्या राय के लिए स्पीच का मतलब और सार मानवता और इंसानियत का पाठ पढ़ाना था.

सीधेसादे ढंग से कही गई ऐश्वर्या राय की स्पीच सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गई, क्योंकि मौजूदा सरकार धर्म, जाति के मतभेद के मुद्दे पर ही आगे बढ़ रही है और हिंदू-मुसलमान को ले कर कई सारे मतभेद देश के खास मुद्दे हैं.

छुए पैर

उस मंच पर ऐश्वर्या राय को सम्मान देते हुए शब्द बोलने के लिए कहा गया, जिसे शुरू करने से पहले संस्कारी महिला की तरह ऐश्वर्या राय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पैर छुए  और उस के बाद वहां मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए अपनी मधुर आवाज में कहना शुरू किया.

ऐश्वर्या राय का यह वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है और विपक्ष प्रधानमंत्री मोदी को कटाक्ष करने से पीछे नहीं हट रहे.

Aishwarya Rai

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