Funny Hindi Story : ले वोटर हलवा खा

Funny Hindi Story : वे रामलीला मैदान के बाहर बड़े से कड़ाहे में कुछ बना रहे थे. उन के आसपास उन की मंडली के फटे, कसे और अधकसे ढोलनगाड़े तल्लीनता से बजा रहे थे. जो बहुमत में हों वे सबकुछ तल्लीनता से ही करते हैं. करना भी चाहिए. कल को सरकार हो या न हो.

सच कहूं तो जब से हाशिए पर गया हूं हलवा खाना तो दूर, हलवे का गीत सुनने तक को कान तरस गए हैं. समझते देर न लगी कि जनाब का हलवा पक रहा है. जनता तक पहुंचे या न पहुंचे, इस से उन्हें क्या सरोकार.

हलवा गातेपकाते उन के बीच जश्न का माहौल था. कोई गैस की आंच कम तेज कर रहा था तो कोई हलवे में डालने को लाए मेवों से एकदूसरे से मुंह छिपा कर अपनीअपनी जेबें भर रहा था.

सरकारी फंड से बन रहे हलवे की बू आते ही मुंह में कुछ पानी भर आया तो वे चिल्लाए, ‘‘रुक…’’

उन के चिल्लाने पर मैं रुका नहीं, ठिठक गया. उन्हें खुशी हुई कि चलो, उन के हलवे की बू से कोई तो रुका.

‘‘क्या है सर?’’ हलवा उन का था, सो अनजान सा बनते हुए पूछा.

‘‘देखो डियर, हम क्या बना रहे हैं?’’ वे मुझे गरदन से पकड़ कर कड़ाहे के पास ले गए. मैं डरा भी कि कहीं कड़ाहे में ही डाल दिया तो? जनता का राज है भाई साहब, ऐसे में जनता के साथ कुछ भी हो सकता है.

‘‘वाह सर, कमाल. यह क्या बन रहा है? वाह, इस से तो स्वर्ग वाली छप्पन भोगों सी खुशबू आ रही है,’’ मैं ने नाक बंद कर सूंघते हुए कहा तो वे आहआह की जगह वाहवाह कर उठे.

‘‘सरकारी हलवा बन रहा है,’’ कहते हुए हलवा चीफ गदगद थे.

‘‘किस के लिए?’’

‘‘जनता के लिए यार. अपना तो सब काम जनता के लिए है प्यारे. तन से ले कर मन तक सब. हम तो बस जनता की खाल उतारने के लिए ही यहां आए हैं.’’

‘‘जनता की खाल उतारने?’’

‘‘नहीं यार, जबान फिसल गई.’’

‘‘इसे हलवा कहते हैं क्या सर?’’ हलवा ऐसा होता है क्या सर? हलवा किस खुशी में? आप ने कोई और जनता गतिरोधी काम कर दिया है क्या?’’ मैं ने हलवे में सड़ी सूजी देख कर पूछा. पानी में मुसकराते कीड़े तैर रहे थे. सरकारी थे या अर्धसरकारी, यह तो उन को ही पता होगा.

‘‘नहीं यार, मजाक मत कर. हमें पता है कि तुम सरकार के साथ जब देखो मजाक ही करते रहते हो.’’

‘‘तो यह हलवा किस खुशी में? प्रभुभोगी साधुओं को पैंशनभोगी करने की खुशी में या…’’

‘‘अरे, हम ने साधुसज्जनों को पैंशन की घोषणा क्या कर दी कि… बेचारों को पैंशन मिलेगी तो जोगी का जोगपना कम से कम चैन से तो कटेगा. वे अपने को मोक्ष पर, समाज कल्याण पर और ज्यादा फोकस कर पाएंगे?’’

‘‘मतलब है कि आप उन को भी आरामभोगी बना कर ही दम लोगे? देखो बंधु, तुम सब पर राजनीति करो, पर साधुसंतों पर तो राजनीति मत ही करो.’’

‘‘अच्छा चल, इस बारे में बाद में टैलीविजन पर डिबेट करेंगे कभी. अभी तो हलवा खा और बकबका मत,’’ कहते हुए वे कड़ाहे से जलताजलता हलवा मेरे हाथ पर धरने को हुए, तो मैं ने कहा, ‘‘यह क्या कर रहे हैं सर? मेरा हाथ जल जाएगा तो…?’’

‘‘जल जाए. हम तो तुम जैसों का मुंह भी जलाना चाहते हैं, ताकि… बहुत सच कहते फिरते हो न तुम. अबे ला बे गरमागरम हलवा, जनाब के मुंह में डाल देते हैं और तब तक अपना मुंह बंद रखिएगा प्लीज, जब तक हलवा बंट नहीं जाता.’’

Hindi Story 2025 : नेताजी की नौकरी

Hindi Story 2025 : शोभा को आखिरकार ठौर मिल गई. आज उसे शहर के नेताजी के कार्यालय में एक छोटी सी नौकरी मिल गई, वह बहुत खुश थी.

सहेली रश्मि के प्रति वह हृदय से कृतज्ञ थी, मित्रता अगर निभाई तो रश्मि ने. अन्यथा आज के जमाने में कौन किसके साथ आता है. सबके अपने-अपने स्वार्थ. अभी 17 वे वर्ष में ही शोभा ने कदम रखा है, मगर मानो दुनिया देख ली है . पग पग पर आंखों से खा जाने वाले लोग, अपने ही अपनों का खून पीने वाले लोग. ओह… यह दुनिया कितनी सुंदर और कितनी बर्बर है. यह सोचते शोभा की आंखें फटी की फटी रह जाती हैं.

पिता की अचानक मृत्यु के बाद घर परिवार का सारा बोझ उसके नाजुक कंधों पर आ गया था. मां और दो छोटे भाई की देखरेख, पालन पोषण उसी का जिम्मा हो गया था. जिसे उसने सहज ही स्वीकार कर लिया . अभी उसकी पढ़ाई अधूरी थी, बारहवीं कक्षा की परीक्षा दी है. आज के जमाने में 12वीं की शिक्षा का क्या महत्व है, उसे कौन देगा सरकारी नौकरी ? वह एक कपड़े वाले सेठ के यहां एक दिन पहुंची और नौकरी की गुजारिश की. श्रीराम क्लास सेंटर शहर की पुरानी कपड़ों की दुकान है.उसके पिता अक्सर यही से कपड़े क्रय किया करते थे.

शोभा को यही दुकान और उसका मालिक सबसे पहले नौकरी के लिए याद आया. एक दिन अचानक वह दुकान पर पहुंची. शोभा को स्मरण है,जब वह पिता के साथ इस दुकान पर खरीददारी के लिए आती, तो सेठ जी कैसे आत्मीयता से बातचीत करते थे. मानो हम उसके परिवार के सदस्य हैं चाय, पानी, नाश्ता सब कुछ सेठ जी मंगा लेते थे.

ना ना… करने के बाद भी वह आत्मीयता से, उसके पिता के सामने यह सब प्रस्तुत करते. और हो हो कर हंसते हुए कहते-” रामनाथ जी ! जीवन में प्रेम ही तो सब कुछ है. आप हमारी दुकान पर आए हो, अहो भाग्य हमारा. क्या आपकी हम इतनी सेवा भी नहीं कर सकते फिर बिटिया रानी भी साथ आई है भूख लगी होगी बच्ची है…”

शोभा सब कुछ स्मरण करती हुई बड़े विश्वास के साथ श्री राम क्लॉथ पहुंची. सेठ जी से मिली और याद दिलाया कि वह अपने पिता के साथ अक्सर कपड़े लेने आया करती थी. सेठ जी बड़े खुश हुए,मगर जैसे ही शोभा ने नौकरी की बात कही उनका रंग ही बदल गया. चाय पानी तो क्या शोभा को बैठने के लिए भी नहीं कहा . वह हैरान परेशान घर लौट आई उस दिन मानो जीवन की सच्चाई से शोभा का पहला सामना हुआ था. इसके बाद एक-एक करके वह सभी परिचितों के पास नौकरी मांगने गई, मगर कोई उसे आठ सौ कोई हजार रुपए की नौकरी ऑफर करता. वह उसे सहज भाव से इंकार कर देती. आज की इस महंगाई में भला हजार रुपए मे क्या होगा ? उसका छोटा सा परिवार आठ सौ, हजार रुपये की नौकरी में नहीं चल सकता यह वह जानती थी.

ऐसे में रश्मि ने उसे नेताजी के दाएं हाथ सुरेंद्र भैया से मिलवाया .नेताजी का बड़ा नाम और काम था. शहर में नेताजी की तूती बोलती थी. करोड़ों के ठेके चलते थे और आगामी समय में आप विधायक बनने का ख्वाब देख रहे थे. रश्मि ने मानो उस पर बड़ा उपकार किया उसे सीधे छ: हजार रूपय की नौकरी नेता जी के यहां मिल गई . वह बहुत बहुत खुश थी . उसके मन में नेताजी के प्रति श्रद्धा उमड़ पड़ी. चाहे जैसे भी हो, ठेके ले, भ्रष्टाचार करें मगर उसके जैसे कितने गरीबों का भला भी तो अप्रत्यक्ष कर ही रहे हैं . ईश्वर नेताजी का भला करें. उसने खुशी-खुशी मां को बताया और दूसरे दिन सज संवर कर दफ्तर पहुंच गई . दिनभर आराम से एयर कंडीशन रूम में बैठी रही कुर्सियां साफ की कुछ फाइलें इधर उधर पलटी और लोगों के आने-जाने को रजिस्टर में नोट करती रही . शाम के छ: बजने पर उसने सुरेंद्र भैया की और देखा और कहा, -“मैं अब चलती हूँ .”

सुरेंद्र नेताजी के दाएं हाथ के रूप में जाने जाते हैं. वह मुस्कुरा कर बोला – “शोभा ! कैसा है काम….! कोई दिक्कत परेशानी हो तो बताओ….नहीं तो इससे भी आराम तलब काम भी है हमारे पास !”

शोभा सुरेंद्र की आंखों का भाव पढ़ नहीं पाई उसने सहजता से कहा- “भैया ! मैं यही ठीक हूं ।”

-” देखो ! भैया नहीं, सर कहां करो ।”सुरेंद्र बोला और उसके इकदम पास पहुंच गया. शोभा घबराई. मगर दरवाजा बंद हो चुका था सुरेंद्र ने कहा- “देखो ! तुम्हें छ: हजार की नौकरी दी है यह तुम्हें नहीं तुम्हारी सूरत को देख कर दी है ,यह दस हजार हो जाएगी. मैं जो कहूं वह तुम्हें मंजूर करना पड़ेगा.”

शोभा घबरा गई, मगर उसने दुनिया देखी थी.उसकी निगाहें नीचे हो गई.वह अब दुनिया के सामने हाथ पसारे नौकरी की भीख मांगने को तैयार नहीं थी. उस दिन से शोभा नेताजी के ऑफिस की शोभा बन गई. आने वाले अति वरिष्ठजन के आगे बिछ जाना उसकी नियती बन गई.जिसे उसने खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया.

ऐक्ट्रैस Khushi Mukherjee परिवार के साथ सेलिब्रेट करना चाहती हैं न्यू ईयर

Khushi Mukherjee : खुशी मुखर्जी एक खूबसूरत और स्पष्टभाषी अभिनेत्री हैं, उन्होंने टेलीविजन, फिल्म और वेब सीरीज में काम किया है. वह एमटीवी के मशहूर शोज स्प्लिट्सविला सीजन 10, टीवी सीरीज, लव स्कूल और बालवीर रिटर्न के लिए जानी जाती हैं. उन्होंने तमिल और तेलुगु फिल्मों में भी काम किया हैं. इसके अलावा खुशी ने कई ऐडल्ट हिन्दी वेब सीरीज गांडु, नुरी, स्ट्रैन्जर, जंगल में दंगल आदि में काम किया है. खुशी पेट लवर है और कई डौग्स रखे हैंं. खुद को फिट रखने के लिए नियमित वर्कआउट करती हैं. समय मिलने पर वह स्केचिंग और पेंटिंग भी करती हैं.

मुंबई की बंगाली परिवार में जन्मी खुशी ने अपनी शिक्षा मुंबई से पूरी की है. ग्रेजुएशन पूरा होने के बाद उन्होंने मौडलिंग की और रुख किया. मौडलिंग के जरिये उन्हें तमिल फिल्म अंजलतुरई में काम करने का मौका मिला. जिसके बाद ख़ुशी मुखर्जी ने दो तेलुगु फिल्म हार्टअटैक और डोंगाप्रेमा में काम किया. वह एक भरतनाट्यम, कथक डान्सर के अलावा बैली डान्सर भी है.

साल 2024 खुशी के लिए अधिक महत्वपूर्ण नहीं था, लेकिन 2025 बहुत ही उम्मीदों भरा है, जिसमें उन्होंने एक फिल्म और एक आइटम नंबर साइन किया है. उन्होंने खास गृहशोभा से बात की, पेश है कुछ खास अंश.

अभिनय में आने की प्रेरणा के बारें में पूछने पर उनका कहना है कि केवल 3 साल की उम्र से मुझे समझ में आ गया था कि मुझे एक्ट्रेस बनना है, लेकिन मेरे पिता चाहते नहीं थे, लेकिन मां ने साथ दिया और इस फील्ड में मैं आ गई.

रहा संघर्ष  

खुशी कहती हैं कि शुरुआती संघर्ष काफी रहे, जिसमें मैंने अपना पोर्टफोलियों बनाकर हर प्रोडक्शन हाउस में छोड़ा. पहले मुझे मौडलिंग के औफर आने लगे, थे, बाद में एम टीवी स्प्लिट्सविला सीजन 10 में मौका मिला, जिससे मुझे सभी जानने लगे और मुझे काम मिलने लगा. मेरा कोई गौड फादर नहीं है, जो मुझे गाइड करें, मेरे लिए कहानियां लिखवाएं, इसलिए आगे बढ़ने में चुनौतियां बहुत रही है, कई गलत निर्णय भी ले लिए थे, जिसमें गलत निर्माता, निर्देशक को चुनना रहा है, लेकिन मैं खुश हूं कि आज मुझे टीवी, वेब सीरीज के बाद फिल्म में भी काम करने का मौका मिल रहा है.

कंट्रोवर्सी नहीं पसंद

खुशी को कई बार कंट्रोवर्सी का सामना करना पड़ा है, इसकी वजह के बारें में वह बताती है कि मुझे कंट्रोवर्सी पसंद नहीं, लेकिन हो जाती है. मैं इसे हमेशा अवाइड करने की कोशिश करती हूं.

खुद से करें जज

कास्टिंग काउच की शिकार होने को लेकर प्रश्न पूछने पर खुशी कहती हैं कि महिलाओं के साथ एक्स्प्लौइटैशन हर फील्ड में होता है, लेकिन इससे बचना भी महिलाएं जानती हैं, मसलन अगर कोई रात में कुछ डिस्कस करने के लिए बुलाएं, तो वहां न जाना, अंजान कौल को समझ कर अटेन्ड करना, किसी पर अधिक विश्वास ना करना आदि होता है. इसके अलावा कौन सही है और कौन गलत इसे भी पहचानना बहुत मुश्किल होता है. मेरे साथ भी कई बार ऐसा हुआ कि निर्माता, निर्देशक ने फिल्म बना लिए, लेकिन रिलीज नहीं हुई, पैसे नहीं मिले. धीरेधीरे मुझे ये सब समझ में आया है.

बोल्ड सीन्स करना नहीं आसान     

किसी भी विधा से निकलकर दूसरी विधा में जाना खुशी के लिए बहुत मुश्किल रहा, क्योंकि हर बार उन्हे प्रूव करना पड़ता है कि वह एक अच्छी आर्टिस्ट है और किसी भी किरदार को कर सकती है. उन्हेंटाइपकास्ट होना पसंद नहीं. इसलिए वह हमेशा अलगअलग भूमिका निभाना पसंद करती है. वह कहती है कि पहले टीवी फिर फिल्म और अब वेब सीरीज में बोल्ड सीन्स और अब आइटम सौन्ग सबकुछ करने में मुझे कोई समस्या नहीं. बोल्ड सीन्स करना आसान नहीं होता, जैसा दर्शक समझते है. कोरियोग्राफी होती है, जिसमें हर किरदार को उनकी जगह बताई जाती है. कई बार ऐसे दृश्य करते हुए असहजता भी होती है, लेकिन फिर खुद को सम्हालना पड़ता है. एक बार एक एक बोल्ड सीन को करते हुए हीरों कुछ अधिक इंटीमेसी करने लगा, जिससे मैं बहुत असहज हुई, क्योंकि हीरो नया था और उसे ऐसे दृश्य करने का अनुभव नहीं था, डायरेक्टर ने देखा और फिर उसे समझाया गया, फिर बाद में शूट किया गया.

एक जैसे आइटम डांस  

खुशी कहती है कि आइटम सौन्ग आजकल हर बड़ी हिरोइन करती है, क्योंकि वे डांस अच्छा जानती है, ऐसे में आइटम सॉन्ग से उनकी पॉपुलरिटी बढ़ाती है. ये सही है कि डांस मुव्स में वैरायटी की कमी है, लेकिन डांस स्टेप वही चलता है, जिसे दर्शक पसंद करते है. कुछ नया करने से सभी घबराते है. ये सही है कि पहले की फिल्मों में हेलेन और मुमताज के डांस स्टेप काफी वैराइटी लिए होते थे, वह उस दौर की पसंद को ध्यान में रखकर ही किया जाता रहा है. मुझे आइटम सौन्ग करने की इच्छा बहुत पहले से है, क्योंकि मैं एक डान्सर हूं और डांस के मुव्स को अच्छी तरह से समझ सकती हूं अब मुझे इसका मौका मिला है.

खुशी आने वाले साल को अपने परिवार के साथ मनाना चाहती है और अपने पेट्स को भी घूमाने ले जाने वाली है. नए साल की मेसेज देते हुए कहती है कि आने वाले साल को मेहनत और लगन के साथ काम करते हुए बिताएं और तनाव को जीवन में जगह न दें, जो मिला उसमें खुशियां ढूंढ़े, तभी जिंदगी बेहतर बन सकती है.

स्किन टोन के हिसाब से खरीदें Nail Polish, बढ़ जाएगी हाथों की रौनक

Nail Polish : आपकी फ्रेंड ने बहुत गहरे रंग की नेल पोलिश लगाई , जिसे देखकर आप उसके हाथों की दीवानी बन गई. और बिना कुछ सोचें आपने भी उसे खरीदने का मन बना लिए. लेकिन जब आपने उसे पने नाखूनों पर टाई किया तो आपको न कोई तारीफ मिली और न ही आपके हाथों की रौनक बढ़ी , जिसे देखकर आप निराश हो गई. लेकिन क्या आपने सोचा  है कि आपके साथ ऐसा क्यों हुआ? इसका कारण है कि जिस तरह स्किन टोन व स्किन टाइप को ध्यान में रखकर क्रीम्स का चयन किया जाता है, ठीक उसी तरह नेल पौलिश का भी. ताकि वो आपके हाथों को भद्दा नहीं बल्कि उसकी रौनक को बढ़ाने का काम करें. तो चलो जानते हैं कि किस स्किन टोन पर कैसी नेल पौलिश अच्छी लगेगी.

स्किन टोन को ध्यान में रखें 

– अगर आपकी स्किन वाइट है और आप बहुत अधिक ग़हरे शेड्स लगाना चाहती हैं तो आपके हाथों पर डार्क ब्लू, रेड, मजेंटा , ऑरेंज, रूबी शेड्स काफी ज्यादा फबेंगे. क्योंकि ये आपके हाथों को और ब्राइट बनाने का काम करते हैं. आप ट्रांसपेरेंट शेड्स को  टाई न करें, क्योंकि ये आपकी स्किन में मिल जाने के कारण आपके हाथों को डल दिखाने का ही काम करेंगे.

-अगर आपका स्किन टोन डस्की यानि सांवली स्किन है तो आप ज्यादातर नेल पैंट्स टाई कर सकते हैं. क्योंकि डस्की ब्यूटी का कोई मुकाबला जो नहीं है, उन पर ज्यादातर चीजें फबती हैं.  इन पर ब्राइट और वाइब्रेंट कलर्स जैसे पिंक, येलो, ऑरेंज के साथसाथ मैटेलिक कलर्स जैसे गोल्ड और सिल्वर कलर भी काफी अच्छे लगते हैं. क्योंकि ये स्किन टोन को और उभारने का काम जो करते हैं.

– आपका स्किन टोन अगर डार्क है और आप यह सोच रही हैं कि मेरे नेल्स पर तो कोई भी नेल पौलिश सूट नहीं करेगी तो आपकी ये सोच बिलकुल गलत है. क्योंकि अगर आप डीप रेड, पिंक और नियोन  कलर्स अपने नेल्स पर लगाती हैं तो ये कलर्स अच्छे से ब्लेंड होकर आपकी स्किन को वाइब्रेंट लुक देने का काम करते हैं.

अलग अलग प्रकार की नेल पौलिश   

अभी हमने बात करी थी स्किन टोन के हिसाब से नेल पौलिश खरीदने की, लेकिन आपको बता दें कि नेल पौलिश भी कई तरह की होती हैं. जैसे मैट, शीर फिनिश, ग्लोसी, क्रीमी, ग्लिटरी, मेटालिक, टेक्सचरड फिनिश, जो हर स्किन टोन पर सूट करती है. इसे आप अपनी पसंद के हिसाब से चूज़ करके अपने हाथों की खूबसूरती को बड़ा सकती हैं. वैसे आजकल जैल और लौंग लास्टिंग ग्लोसी फिनिश वाली नेल पौलिश काफी डिमांड में हैं.

कैसे लगाएं नेल पौलिश 

भले ही आपने अपनी स्किन टोन के हिसाब से नेल पौलिश का चयन किया हो , लेकिन अगर उसे सही तरीके से नहीं लगाया तो आपकी सारी मेहनत पर पानी फिर सकता है. इसलिए जब भी नेल पौलिश लगाएं तो सबसे पहले नेल्स को अच्छे से फाइल कर लें, ताकि नेल पौलिश उभर कर आ सके. साथ ही आप हमेशा ड्राई नेल्स पर ही नेल पौलिश अप्लाई करें , क्योंकि इससे उसके हटने का डर नहीं रहता है. नाखूनो पर हमेशा नेल पोलिश की फिनिशिंग नजर आए , इसके लिए आप पहले सिंगल कोट लगाएं, फिर उसके सूखने के बाद ही दूसरा कोट अप्लाई करें. आप चाहें तो क्यूटिकल आयल का इस्तेमाल नेल पेंट अप्लाई करने के बाद जरूर करें, क्योंकि इससे नेल्स हाइड्रेट रहते हैं. समय समय पर मेनीक्योर करवाती रहें , क्योंकि इससे नेल्स क्लीन रहेंगे, जो न सिर्फ दिखने में अच्छे लगेंगे बल्कि नेल्स को मजबूत बनाने के साथसाथ उनकी ग्रोथ में भी मददगार साबित होंगे.

खरीदें हमेशा ब्रैंडेड नेल पौलिश 

जितना जरूरी होता है स्किन टोन के हिसाब से नेल पौलिश को खरीदना, उतना ही जरूरी होता है ब्रैंडेड नेल पौलिश को खरीदना. क्योंकि लोकल नेल पौलिश भले ही आपको सस्ते दामों और डिफरेंट कलर्स में मिल जाए , लेकिन वो नेल्स को कमजोर बनाने के साथसाथ उनके मोइस्चर को चुरा लेती है. साथ ही बहुत ज्यादा केमिकल्स  वाली नेल पौलिश इस्तेमाल करने  से नेल्स पर पीलापन आने लगता है. इसलिए जब भी खरीदें हमेशा ब्रैंडेड नेल पौलिश ही खरीदें.

सोशल मीडिया इफ्लुएंसर Manisha Rani को मिला टीवी सीरियल में लीड रोल…

Manisha Rani : सोशल मीडिया इफ्लुएंसर के तौर पर अपना करियर शुरू करने वाली ऐक्ट्रेस मनीषा रानी ने बिग बौस ओटीटी 2 में अपने मस्त मौला अंदाज के साथ न सिर्फ दर्शकों का दिल जीत लिया बल्कि टीवी इंडस्ट्री में अपनी एक अलग पहचान भी बना ली. बिग बौस ओटीटी 2 में काफी समय तक टिकने वाली और अपने बिहारी अंदाज में बात करने वाली ग्लैमरस और चुलबुली प्रतियोगी मनीषा रानी ने छलांग लगा दी है.

मनीषा रानी जल्द ही टीवी शो हाले दिल में मुख्य भूमिका निभाती नजर आएंगी, अपने रोल के बारे में बताते हुए मनीषा रानी का कहना है कि इस सीरियल में उनका वही रोल है जो वह असल जीवन में है. शो काफी मजेदार है जिसकी कहानी आम लड़कियों की जिंदगी से मिलती जुलती है. गौरतलब है अपने खास डांस अंदाज के चलते मनीषा रानी झलक दिखला जा की विजेता भी रह चुकी हैं.

अपने इस लीड रोल वाले सीरियल के बाद मनीषा रानी न सिर्फ खुश है बल्कि आगे के लिए और ज्यादा प्रोत्साहित हो गई हैं. उनके अनुसार मैं आज जनता की वजह से ही यहां तक पहुंची हूं और मेरी इच्छा है कि जितना प्यार मुझे जनता ने दिया है उतना ही और अच्छा काम में अपने प्रशंसकों के लिए अच्छा काम करूं. मेरे पास और भी कई अच्छे प्रोजेक्ट आ रहे हैं जिसकी खबर और खुशखबरी में आप लोगों को देती रहूंगी.

रणबीर कपूर के साथ Sonakshi Sinha कभी नहीं करेंगी फिल्म !

Sonakshi Sinha  : बौलीवुड में कई ऐसी हीरोइन हैं, जो खास तौर पर कुछ हिट हीरोज के साथ काम करना नहीं चाहती. जिसमें से एक नाम आता है बिपाशा बसु का जिन्होंने इमरान हाशमी को छोटे कद वाला कहकर इमरान हाशमी के साथ फिल्म करने से इनकार कर दिया था. लेकिन बाद में अपनी गलती मानते हुए बिपाशा बसु ने इमरान हाशमी के साथ फिल्म राज 3 में काम किया.

बिपाशा की तरह प्रसिद्ध हीरोइन सोनाक्षी सिन्हा जो अपने अच्छे स्वभाव के लिए पहचानी जाती हैं उन्होंने हाल ही में एक इंटरव्यू में रणबीर कपूर के साथ कोई भी फिल्म ना करने की बात की. सोनाक्षी सिन्हा के अनुसार सोनाक्षी के करियर के शुरुआत में उनको रणबीर कपूर के साथ एक फिल्म औफर हुई थी जिसमें रणबीर कपूर ने सोनाक्षी के साथ काम करने से इनकार कर दिया था. इसकी वजह थी सोनाक्षी का उम्र में बड़ा दिखना.

उस दौरान रणबीर कपूर ने निर्माता से सोनाक्षी को फिल्म से हटाने की मांग की. लेकिन निर्माता ने शत्रुघ्न सिन्हा के डर से रणबीर कपूर को फिल्म से हटा दिया. यही वजह है कि करियर की शुरुआत में इस कड़वे अनुभव के चलते सोनाक्षी ने रणबीर कपूर के साथ कभी भी काम न करने की कसम खाई है.

Special Stories in Hindi : नए साल पर पढ़ें गृहशोभा की 5 स्पेशल कहानियां

Special Stories in Hindi : इन कहानियों में प्यार और रिश्तों से जुड़ी कई दिलचस्प कहानियां हैं जो आपके दिल को छू लेगी और जिससे आपको प्यार का नया मतलब जानने को मिलेगा. इन Stories से आप कई अहम बाते भी जान सकते हैं कि प्यार की जिंदगी में क्या अहमियत है और क्या कभी किसी को मिल सकता है सच्चा प्यार. तो अगर आपको भी है संजीदा कहानियां पढ़ने का शौक तो यहां पढ़िए गृहशोभा की Special Stories in Hindi.

1. हमसफर भी तुम ही हो- पति को कोरोना होने के बाद क्या हुआ संस्कृति के साथ

kahani

 

अविनाश सुबह समय पर उठा नहीं तो संस्कृति को चिंता हुई. उस ने अविनाश को उठाते हुए उस के माथे पर हाथ रखा. माथा तप रहा था. संस्कृति घबरा उठी. अविनाश को तेज बुखार था. 2 दिन से वह खांस भी रहा था.

संस्कृति ने कल इसी वजह से उसे औफिस जाने से मना कर दिया था. मगर आज तेज बुखार भी था. उस ने जल्दी से अविनाश को दवा खिला कर माथे पर ठंडे पानी की पट्टी रखी.

संस्कृति और अविनाश की शादी को अभी ज्यादा वक्त नहीं गुजरा था. 2 साल ही हुए थे. पिछले साल तक सासससुर साथ में रहते थे. मगर कोरोना में संस्कृति की जेठानी की मौत हो गई तो सासससुर बड़े बेटे के पास रहने चले गए. उस के बाद करोना का प्रकोप बढ़ता ही गया.

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2. उम्र के इस मोड़ पर: राहुल के मोहपाश में बंधी सुषमा के साथ क्या हुआ

आज रविवार है. पूरा दिन बारिश होती रही है. अभी थोड़ी देर पहले ही बरसना बंद हुआ था. लेकिन तेज हवा की सरसराहट अब भी सुनाई पड़ रही थी. गीली सड़क पर लाइट फीकीफीकी सी लग रही थी. सुषमा बंद खिड़की के सामने खोईखोई खड़ी थी और शीशे से बाहर देखते हुए राहुल के बारे में सोच रही थी, पता नहीं वह इस मौसम में कहां है. बड़ा खामोश, बड़ा दिलकश माहौल था. एक ताजगी थी मौसम में, लेकिन मौसम की सारी सुंदरता, आसपास की सारी रंगीनियां दिल के मौसम से बंधी होती हैं और उस समय सुषमा के दिल का मौसम ठीक नहीं था.

विशाल टीवी पर कभी गाने सुन रहा था, तो कभी न्यूज. वह आराम के मूड में था. छुट्टी थी, निश्चिंत था. उस ने आवाज दी, ‘‘सुषमा, क्या सोच रही हो खड़ेखड़े?’’

‘‘कुछ नहीं, ऐसे ही बाहर देख रही हूं, अच्छा लग रहा है.’’

‘‘यश और समृद्धि कब तक आएंगे?’’

‘‘बस, आने ही वाले हैं. मैं उन के लिए कुछ बना लेती हूं,’’ कह कर सुषमा किचन में चली गई.

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3. अकेले हम अकेले तुम- मां की सीख ने कैसे संवारी तान्या की जिंदगी

kahani

कलशाम औफिस से आ कर हर्ष ने सूचना दी कि उस का ट्रांसफर दिल्ली से चंडीगढ़ कर दिया गया है. यह खबर सुनने के बाद से तान्या के आंसू रोके नहीं रुक रहे हैं. उस ने रोरो कर अपना हाल बुरा कर लिया है.

‘‘हर्ष मैं अकेले कैसे सबकुछ मैनेज कर पाऊंगी यहां… क्षितिज और सौम्या भी इतने बड़े नहीं हैं कि मेरी मदद कर पाएं… अब घर, बाहर, बच्चों की पढ़ाई सबकुछ अकेले मैं कैसे कर पाऊंगी, यही सोचसोच कर मेरा दिल बैठा जा रहा है,’’ तान्या बोली.

तान्या के मुंह से ऐसी बातें सुन कर हर्ष का मन और परेशान होने लगा. फिर बोला, ‘‘देखो तान्या हिम्मत तो तुम्हें करनी ही पड़ेगी. क्या करूं जब कंपनी भेज रही है तो जाना तो पड़ेगा ही… प्राइवेट नौकरी है. ज्यादा नानुकुर की तो नोटिस भी थमा सकती है हाथ में और फिर भेज रही है तो सैलरी भी तो बढ़ा रही है… आखिर हमारा भी तो फायदा हो रहा है जाने में. सैलरी बढ़ जाएगी तो घर का लोन चुकाने में थोड़ी आसानी हो जाएगी.’’

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4. प्यार : संजय को क्यों हो गया था कस्तूरी से प्यार

‘‘अरे संजय… चल यार, आज मजा करेंगे,’’ बार से बाहर निकलते समय उमेश संजय से बोला. दिनेश भी उन के साथ था.

संजय ने कहा, ‘‘मैं ने पहले ही बहुत ज्यादा शराब पी ली है और अब मैं इस हालत में नहीं हूं कि कहीं जा सकूं.’’

उमेश और दिनेश ने संजय की बात नहीं सुनी और उसे पकड़ कर जबरदस्ती कार में बिठाया और एक होटल में जा पहुंचे.

वहां पहुंच कर उमेश और दिनेश ने एक कमरा ले लिया. उन दोनों ने पहले ही फोन पर इंतजाम कर लिया था, तो होटल का एक मुलाजिम उन के कमरे में एक लड़की को लाया.

उमेश ने उस मुलाजिम को पैसे दिए. वह लड़की को वहीं छोड़ कर चला गया.

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5. जरूरत है एक कोपभवन की

आजकल के इंजीनियर और ठेकेदार यह बात अपने दिमाग से बिलकुल ही बिसरा बैठे हैं कि घर में एक कोपभवन का होना कितना जरूरी है. इसीलिए तो आजकल मकान के नक्शों में बैठक, भोजन करने का कमरा, सोने का कमरा, रसोईघर, सोने के कमरे से लगा गुसलखाना, सभी कुछ रहता है, अगर नहीं रहता है तो बस, कोपभवन.

सोचने की बात है कि राजा दशरथ के राज्य में वास्तुकला ने कितनी उन्नति की थी कि हर महल में कोप के लिए अलग से एक भवन सुरक्षित रहता था. शायद इसीलिए वह काल इतिहास में ‘रामराज्य’ कहलाया, क्योंकि उस काल में महिलाएं बजाय राजनीति के अखाड़े में कूदने के अपना सारा गुबार कोपभवनों में जा कर निकाल लेती थीं और इसीलिए समाज में इतनी शांति और अमनचैन छाया रहता था.

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New Year 2025 : नया सवेरा

New Year 2025 : सावन का महीना, स्कूल-कालेज के बच्चे सुबह 8.30 बजे सड़क के किनारे चले जा रहे थे, इतने में घनघोर घटाओं के साथ जोर से पानी बरसने लगा और सभी लड़के, लड़कियाँ पेड़ के नीचे, दुकानों के शेड के नीचे खड़े हो गये थे. उन्हें सबसे ज्यादा डर किताब, कापी भीगने का था. उन्हीं बच्चों में एक लड़की जिसका नाम व्याख्या था और वह कक्षा-6 में पढ़ती थी, वह एक मोटे आम के तने से सटकर खड़ी थी. पेड़ का तना थोड़ा झुका हुआ था जिससे वह पानी से बच भी रही थी. लगभग दस मिनट बाद पानी बन्द हो गया और धूप भी निकल आई.

एक लड़का जिसका नाम आलोक था, वह भी कक्षा-6 में ही व्याख्या के साथ पढ़ता था. वहाँ पर कोई कन्या पाठशाला न होने के कारण लड़के और लड़कियाँ उसी सर्वोदय काॅलेज में पढ़ते थे. आलोक बहुत गोरा व सुगठित शरीर का था लेकिन व्याख्या बहुत सांवली थी, व्याख्या संगीत विषय लेकर पढ़ रही थी, उसकी आवाज में एक जादू था, जो उसकी एक पहचान बन गयी थी. काॅलेज के कार्यक्रमों में वह अपने मधुर स्वर के कारण सभी की प्रिय थी. इसी तरह समय धीरे-धीरे आगे बढ़ता गया और व्याख्या ने संगीत में कक्षा-10 तक काफी ख्याति प्राप्त कर ली थी.

आलोक उसी की कक्षा में था और वह व्याख्या को देखता रहता था. कभी भी कोई भी दिक्कत, परेशानी किसी भी प्रकार की होती थी, तो आलोक उसे हल कर देता था. दोपहर इन्टरवल में लड़कियों की महफिल अलग रहती और लड़कों की मंडली अलग रहती थी. लेकिन आलोक की नजर व्याख्या पर ही होती थी.

हाईस्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर व्याख्या कक्षा-11 में पहुंच गयी थी और आलोक भी कक्षा-10 उत्तीर्ण कर कक्षा-11 में पहुंच गया था. शाम 3 बजे से 4 बजे तक संगीत की क्लास चलती थी तथा सभी बच्चों में सबसे होशियार और मेहनती व्याख्या ही मानी जाती थी. कक्षा ग्यारह के बाद यानि कि छः वर्ष में व्याख्या ने संगीत प्रभाकर की डिग्री हासिल कर ली थी, जिससे शहर और अन्य शहरों में स्टेज कार्यक्रम के लिए आमंत्रित की जाने लगी. माँ वीणादायिनी ने व्याख्या को बहुत उम्दा स्वर प्रदान किये थे, जिसके कारण गायन में व्याख्या का नाम प्रथम पंक्ति में लिया जाना लगा. व्याख्या को कई सम्मानों से सम्मानित किया जाने लगा. अब तो जहाँ कहीं भी संगीत-सम्मेलन होता, सबसे पहले व्याख्या आहूत की जाती. यदि शहर में कार्यक्रम होता तो आलोक वहाँ व्याख्या को सुनने पहुँच जाता और व्याख्या कार्यक्रम देते समय एक नजर आलोक को जरूर देख लेती थी मगर उसका अधिक सांवलापन उसके जेहन को हमेशा झझकोरता रहता था.

धीरे-धीरे समय बीतता गया और व्याख्या ने संगीत की प्रवीण परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली, लेकिन इतना होने पर भी वह हर समय यही सोचती रहती थी कि मेरे माता-पिता इतने सुन्दर है फिर मैं काली कैसे पैदा हो गयी. उसका रूप-रंग ना जाने किस पर चला गया.

आज व्याख्या संगीत के चरम पर विराजमान थी. शास्त्रीय संगीत की दुनिया में लगातार सीढ़ियाँ चढ़ती चली जा रही थी और संगीत की दुनिया में राष्ट्रीय स्तर की एक जानी-मानी गायिका कहलाने लगी थी. उसे आज भी याद है कि…..

घर के बाहर खूबसूरत लाॅन में बैठी धीरे-धीरे ना जाने क्या सोचते-सोचते वह चाय का प्याला हाथ में लिए अपनी आरामवाली कुर्सी पर बैठी थी. ‘‘मेम साहब, आपका पत्र आया है ? ‘अरे आप ने तो चाय पी नहीं, अब तो यह बहुत ठंडी हो गयी होगी, लाइये दूसरी बना लाऊँ. ‘‘ बिना उत्तर की प्रतीक्षा करे हरि काका ने मेरे हाथ से प्याला लिया और पत्र मेज पर रखकर चले गये. मैंने देखा आलोक का पत्र था. ‘‘व्याख्या, तुम्हारे जाने के बाद मैं बहुत अकेला हो गया हूँ बहुत लड़ चुका हूँ मैं अपने अहं से. अब थक गया हूँ, हार चुका हूँ…….. मुझे नहीं मालूम कि मैं किसके लिए जी रहा हूँ,? मैं नहीं जानता कि मैं इस योग्य हूँ या नहीं, पर तुम्हारे वापस आने की उम्मीद ही मेरे जीवन का मकसद रह गया है, बस उसी क्षण का इन्तजार है, ना जाने क्यों…………….? आओगी न,…………..

पत्र पढ़ने के बाद व्याख्या की भाव शून्य आंखों में एक भाव लहरा कर रह गया. पत्र तहा कर उसने लिफाफे में रख दिया, उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि आलोक जैसा जिद्दी, अभिमानी और कठोर दिल इंसान भी इस तरह की बातें कर सकता है. जरूर कोई मतलब होगा, मेज पर पड़ी किताब के पन्ने हवा के झोंके के कारण फड़फड़ाते हुये एक तरफ होने लगे. जिंदगी के पंद्रह वर्ष पीछे लौटना व्याख्या के लिए मुश्किल नहीं था क्योंकि उसके आज पर पन्द्रह वर्षों के यादों का अतीत कहीं न कहीं हावी हो जाता है.

सोचते-सोचते वह आज भी नहीं समझ पाई कि माँ-पापा तो खूबसूरत थे, पर उसकी शक्ल न जाने किस पर चली गयी, पर माँ उसे हमेशा हिम्मत बंधाती थी कि ‘‘कोई बात नहीं बेटी, ईश्वर ने तुझे रंग नहीं दिया तो क्या हुआ, तू अपने नाम को इतना विकसित कर ले कि सब तेरी व्याख्या करते ना थके.’’ बस व्याख्या ने सचमुच अपने नाम को एक पहचान देनी प्रारम्भ कर दी. उसने हुनर का कोई भी क्षेत्र नहीं छोड़ा, साथ ही ईश्वर की दी गयी वो नियामत जिसे व्याख्या ने पायी थी., ‘सुरीली आवाज’ जिसके कारण वह संगीत की दुनिया में लगातार सीढ़िया चढ़ती गयी और शास्त्रीय संगीत की दुनिया में राष्ट्रीय स्तर की एक जानी मानी गायिका कहलाने लगी.

उसे आज भी याद है कि अहमदाबाद का वो खचाखच भरा सभागार और सामने बैठे जादू संगीतज्ञ पं0 राम शरन पाठक जी. सितार पर उंगलिया थिरकते ही, सधी हुई आवाज का जादू लगातार डेढ़ घंटे तक दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर गया. दर्शकों की तालियाँ और पं0 जी के वो वचन कि ‘‘बेटी तुम बहुत दूर तक जाओगी. शायद आज उनकी वो बात सच हो गयी लेकिन उन दर्शकों में एक हस्ती, जो नामी-गिरामी लोगों में जानी जाती थी, देवाशीस जी, उनका खत एक दिन पिता के नाम पहुँचा कि ‘‘हमें अपने बेटे के लिए आपकी सुपुत्री चाहिए जो साक्षात सरस्वती का ही रूप है. ‘‘एक अंधा क्या मांगे दो आंखे. मेरे पिताजी ने बगैर कुछ सोचे समझे हाँ कर दी. शादी के समय मंडप पर बैठे उन्हें देखा था, एक संुदर राजकुमार की तरह लग रहे थे. सभी परिवार के लोग मुझे मेरी किस्मत पर बधाई दे रहे थे. पर खुदा को कुछ और मंजूर था. आलोक जिन्हें मैं बिल्कुल पसन्द नहीं थी. शादी के बाद क्या, उसी दिन ही अपने पिताजी से लड़ना कि ‘‘कहाँ फसा दिया’’ इस बदसूरत लड़की के साथ. आलोक घर पर नहीं रूके और पूरे आग बबूला होकर घर छोड़कर चले गये. मेरे सास-ससुर ने सचमुच दिलासा दी. सुबह उठकर नहा धोकर बहू के सारे कर्तव्य निभाते हुये मैं भगवान भजन भी गाती रही. सास ससुर तो अपनी बहू की कोयल सी आवाज पर मंत्र मुग्ध थे, पर मैं कहीं न कहीं अपनी किस्मत को रो रही थी. आलोक पन्द्रह-बीस दिन में कभी-कभार आते थे, लेकिन मेरी तरफ रूख भी नहीं करते थे, बस अपनी जरूरत की चीजें लेकर तुरन्त निकल जाते थे, अब तो यह नियम सा बन गया था. मैं भी अपनी किस्मत को ही निर्णय मान लिया लेकिन कहीं न कही आलोक का इंतजार भी था.

एक दिन मुझे चुपचाप बैठे देख ससुर जी ने कहा-कि ‘‘मैं तो एक बढ़िया सी खुशखबरी लाया हूँ, वो यह कि एक संगीत आयोजन में विशेष  प्रस्तुति के लिए तुम्हारे नाम का आमंत्रण आया है, ‘‘पर बाबूजी मुझे तो दो साल हो गये हैं स्टेज शो किये हुए. अब डर लगता है, पता नहीं क्यों ? में आत्मविश्वास खो सा गया है. नहीं-नहीं मैं नहीं गा पाऊँगी‘‘व्याख्या ने कहा. तुम गा सकती हो, मेरी बेटी जरूर गायेगी और जायेगी, पिता जी ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा. ‘‘बाबूजी के विश्वास से ही मैंने अपना रियाज शुरू कर दिया. बाबूजी घंटो मेरे साथ रियाज में मेरा साथ देते. वो दिन आ गया. खचाखच भरा वही सभागार, अचानक उसे याद आया कि उसी मंच से तो उसके जीवन में अंधेरा आया लेकिन आज इसी मंच से तो उसके जीवन का नया सवेरा होने वाला है. कार्यक्रम के बाद दर्शकों की बेजोड़ तालियों ने एक बार फिर मुझे वो आत्मविश्वास भर दिया जो सालों पहले कहीं खो गया था.

दूसरे दिन मैं अपनी तस्वीर अखबार में देख रहीं थी कि बाबूजी अचानक घबराते हुए आये और कहने लगे बेटी ‘‘जल्दी तैयार हो जाओ, आलोक का एक्सीडंेट हो गया.’’ व्याख्या के चेहरे पर कोई शिकन न उभरी लेकिन अचानक हाथ सर की मांग में भरे सिंदूर पर गया कि यह तो आलोक के नाम का है.

मैं बाबूजी के साथ गाड़ी में बैठ गयी. अस्पताल में शरीर पर कई जगह पर गहरी चोटों को लिए आलोक बुरी हाल में डाक्टरों की निगरानी में था. पुलिस ने मुझसे आकर पूछा कि-‘‘आप जानती हैं, इसके साथ कार में कौन था ?‘‘मैं समझ नहीं पाई कि किसकी बात हो रही है, फिर थोड़ी देर में पता चला कि आलोक के गाड़ी में जो मैडम थी, उनको नहीं बचाया जा सका. पूरे एक हफ्ते बाद जब आलोक को होश आया तो आंखें खुलते ही उसने पूछा-‘‘मेघा कहाँ है’’? डाॅक्टर साहब, वह ठीक तो है न ? वह मेरी पत्नी है.‘‘ पुलिस की पूछ-ताछ से पता चला कि उन दोनों का एक पाँच महीने का बेटा भी है जो अभी नानी के यहां है ? व्याख्या के सब्र का बांध टूट गया और उसमें इससे ज्यादा कुछ सुनने की शक्ति न बची. 6-7 महीने का कम्पलीट बेड रेस्ट बताया था डाॅक्टर ने. आलोक घर आ चुका था. व्याख्या आलोक का पूरा ध्यान रखती, खाने-पीने का, दवाई का. पूरी दिनचर्या के हर काम वह एक पत्नी की अहमियत से नहीं, इंसानियत के रिश्ते से कर रही थी. चेहरे पर पूरा इत्मीनान, कोमल आवाज, सेवा-श्रद्धा, धैर्य, शालीनता ना जाने और कितने ही गुणों से परिपूर्ण व्याख्या का वह रूप देखकर खुद अपने व्यवहार के प्रति मन आलोक का मन आत्मग्लानि से भर जाता. इतना होने पर भी वही भावशून्य व्यवहार.

कितनी बार मन करा कि वो मेरे पास बैठे और मैं उससे बाते करूँ, लेकिन वह सिर्फ काम से काम रखती, सेवा करती और मेरे पास बोलने की हिम्मत न होने के कारण शब्द मुंह में रह जाते. व्याख्या अपने कार्यक्रम के लिए बाबूजी के साथ भोपाल गयी थी. आलोक ने सोचा लौटने पर अपने दिल की बात जरूर व्याख्या से कह देगा और मांफी मांग लेगा. भोपाल से लौटने पर बाबूजी ने खबर दी कि-‘‘मेरी बहू का दो साल तक विदेशों में कार्यक्रम का प्रस्ताव मिला है, अब मेरी बहू विदेशों में भी अपने स्वर से सबको आनन्दित करेगी. ‘‘एक दिन जब व्याख्या सुबह नहाकर निकली तो आलोक ने कहा-‘‘ मैं अपनी सारी गलतियों को स्वीकारता हूँ. मैं गुनहगार हूँ तुम्हारा………………….मुझे माफ कर दो………..’’ कितना आसान होता है न मांफी मांगना. पर सब कुछ इससे नहीं लौट सकता ना, जो मैंने खोया है, जितनी पीड़ा मैने महसूस की है, जितने आंसू मैनें बहाए हैं, जितने कटाक्ष मैनें झेले हैं. क्या सच है उसकी बिसात और फिर आलोक जो आपने किया यदि मैं करती तो क्या मुझे स्वीकारते ? नहीं, कभी नहीं बल्कि मुझे बदचलन होने का तमगा और तलाक का तोहफा मिलता. व्याख्या ने बिना कुछ कहे मन में सोचा. व्याख्या के कुछ न कहने पर उस समय तो आलोक को मानो काठ मार गया. वो अपनी जिंदगी की असलियत पर  पड़ा परदा हटते देख रहा था कि वह कैसा था…‘‘इतने दिनों तक मैनें आपकी सेवा की, आपका एहसान उतारने के लिए. मैं वास्तव में एहसान मंद हूँ. आपने जितना अपमानित किया उतना ही अधिक अपने लक्ष्य के प्रति मेरा निश्चय दृढ हुआ है.‘‘ अचानक व्याख्या की आवाज से आलोक अपनी सोच से बाहर आया. व्याख्या एक आर्कषक अनुबंध के अंतर्गत विदेश यात्रा पर निकल गयी और अब जब कभी वह लौटती तो, प्रायोजकों के द्वारा भेंट किये गये किराये के बंगले पर ठहरती, लेकिन कभी-कभार बाबूजी से मिलने जरूर आती. एक-एक दिन करके महीने और अब तो कई साल गुजर गये, सभी अपने आप में मस्त हैं. संगीत के अलावा कुछ नहीं सूझता व्याख्या को. अब तो वही उसके लिए प्यार, वही जीवनसाथी. कार्यक्रमों की धूम, प्रशंसकों की भीड़ पूरे दिन व्यस्त रहती, मगर फिर एक रिक्तता थी, जीवन में. रह रहकर आलोक का ख्याल आता, दुर्घटना के पहले और बाद में आलोक के साथ बिताए एक-एक पल उसकी स्मृति में उमड़ने-घूमड़ने लगे. लेकिन आज आलोक की यह छोटी सी चिट्ठी. पर इतने छोटे से कागज पर, कम मगर कितने स्पष्ट शब्दों में बरसों की पीड़ा को सहजता से उकेर कर रख दिया है उसने, आखिर कब तक अकेली रहेगी वह? सब कुछ है उसके पास, मगर वह तो नहीं है जिसकी ज़रूरत सबसे ज्यादा है. व्याख्या सोच में पड़ गयी. बाबूजी भी बीमार चल रहे हैं, मिलने जाना होगा.

अगले ही दिन व्याख्या ससुराल पहुँची, चेहरे पर टांको के निशानों के साथ आलोक बहुत दुबला प्रतीत हो रहा था. बाबूजी को देखने के पश्चात जैसे ही व्याख्या दरवाजे के बाहर निकली, आलोक ने उसका हाथ थाम लिया. बरसों पहले कहा गया वाक्य फिर से लड़खड़ाती जुबान से निकल पड़ा-‘‘व्याख्या, क्या हम नई जिंदगी की शुरूआत नहीं कर सकते? ‘‘क्या तुम मुझे माफ नहीं कर सकती? व्याख्या की निगाहें आलोक के चेहरे पर टिक गयी. घबरा कर आलोक व्याख्या का हाथ छोड़ने ही वाला था कि व्याख्या मुस्करा उठी. मजबूती से आलोक ने उसके दोनों हाथ पकड़ लिए ‘‘अब मैं तुम्हें जाने नहीं दूंगा. ‘‘व्याख्या शरमा कर आलोक के सीने से लग गयी. आज उसके दीप्तिमान तेजोमय मुखमंडल पर जो मुस्कान आई उसे लगा वास्तव में आज ही उसकी संगीत का रियाज पूरा हुआ और आत्म संगीत की वर्षा हुई है. क्योंकि कल उसके जीवन का नया सवेरा जो आने वाला था.

लेखिका- डाॅ0 अनीता सहगल ‘वसुन्धरा’

Happy New Year 2025 : चलो एक बार फिर से

Happy New Year 2025 : समर्थको कविताओं का बहुत शौक था. कविताएं पढ़ता, कुछ लिखता, लेकिन एक कविता उसे खास पसंद थी. वह अकसर गोपालदास ‘नीरज’ की कविता मीनल को सुनाया करता-

‘‘छिपछिप अश्रु बहाने वालो, मोती व्यर्थ बहाने वालो,

कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है,

कुछ दीपों के बुझ जाने से आंगन नहीं मरा करता है…’’

उस के चले जाने के बाद मीनल ने इसी कविता को अपने जीवन का मंत्र बना लिया.

माना कि समर्थ उसे बीच जीवन की मझदार में अकेला छोड़ गया, ऊपर से उस की बुजुर्ग मां और 2 नन्हें बच्चों की जिम्मेदारी भी आन पड़ी. मगर कौन खुशी से इस दुनिया को अलविदा कहना चाहता है?

समर्थ भी नहीं चाहता था. जो हुआ उस पर किसी का जोर न था. समर्थ की मजबूरी थी. बिगड़ते स्वास्थ्य के आगे हार मानना और मीनल की मजबूरी थी अपनी एक मजबूरी छवि कायम रखना. यदि वह भी बिखर जाती तो इस अधूरी छूटी गृहस्थी को कौन पार लगाता? तब बच्चे केवल 8 व 10 साल के थे. कर्मठता और दृढ़निश्चय से लबरेज मीनल ने उम्मीद का दामन कभी नहीं छोड़ा. बीए, बीएड, एनटीटी तो वह शादी से पहले ही कर चुकी थी. पहले नर्सरी टीचर, फिर सैंकडरी और फिर धीरेधीरे अपने अथक परिश्रम के बल पर वह आज वाइस प्रिंसिपल बन चुकी थी.

नौकरी करते हुए उस ने एमएड की शिक्षा उत्तीर्ण की. अध्यापन के अलावा प्रशासनिक कार्यभार संभालने के अवसर मिलने से उस की तरक्की का मार्ग प्रशस्त होता गया. कार्यकारी जीवन में परिश्रम करने से वह कभी पीछे नहीं हटी. उस की सास सुनयना देवी ने घर व बच्चों की जिम्मेदारी बखूबी निभाई. बच्चों के प्रति उसे कभी कोई चिंता नहीं करनी पड़ी. सासबहू की ऐसी जोड़ी कम ही देखने को मिलती है.

अब बच्चे किशोरावस्था में आ चुके थे. बेटी अनिका 16 और बेटा विराट

14 साल हो चुका था. दादी को भी काफी जिम्मेदारियों से मुक्ति मिल चुकी थी. दोनों बच्चे अपने कार्य स्वयं ही संभाल लिया करते. कर्मठ और जीवट मां व दादी की जोड़ी ने बच्चों में भी उच्चाकांक्षा और आगे बढ़ने की प्रेरणा का संचार किया था. अपने परिवार में एकता और सहयोग देखने के कारण अनिका और विराट में भी संवेदना व प्रेमपूर्ण भावों की कमी न थी. वे मां और दादी दोनों का भरपूर खयाल रखना चाहते थे. दोनों ने जीवन में जिन कठिनाइयों का सामना किया था, उन से वे परिचित थे और यही चाहते थे कि बड़े हो कर उन्हें सुख प्रदान कर सकें. सकारात्मक वातावरण में पलने का प्रभाव पूर्णरूप से उन के व्यक्तित्व में झलकने लगा था.

‘‘मम्मा, कल हमारे स्कूल से जो ऐजुकेशनल ऐक्सकर्शन में जा रहे हैं, उन्हें पिकअप करने पेरैंट्स को म्यूजियम पहुंचना होगा. आप याद से आ आना,’’ रात को याद दिला कर सोए थे अनिका और विराट.

अगले जब मीनल म्यूजियम के गेट पर प्रतीक्षारत थी, तो उसे आभास हुआ

जैसे कोई उस का नाम पुकार रहा हो. संशय में उस ने मुड़ कर देखा. एक बलिष्ठ पुरुष माथे पर कुछ बल लिए खड़ा उसी को ताक रहा था, ‘‘मीनल?’’

‘‘जी? पर आप?’’ मीनल के प्रश्न पर वह कुछ सकुचा गया.

‘‘पहचाना नहीं… मैं आहाद. हम दोनों एक ही क्लास में थे कालेज में.’’

‘‘ओह एय, आहाद, औफ कौर्स… अरे वाह, इतने सालों बाद… कैसे हो? यहां कैसे?’’ पुराने मित्र के यों अचानक मिल जाने से मीनल पुलकित हो उठी.

‘‘मेरी भतीजी यहां ऐजुकेशनल ऐक्सकर्शन के लिए आई है. उसी को लेने आया हूं. और तुम? कैसी हो? कहां हो आजकल?’’

आहाद के पूछने पर मीनल ने उसे अपनी स्थिति बताई और अपने घर आमंत्रित किया, ‘‘इसी वीकैंड आना होगा. कोई बहाना नहीं चलेगा. और परीजाद कैसी है? तुम दोनों ने तो शादी कर ली थी न…उसे जरूर ले कर आना…’’

वह आगे कहती तभी अनिका और विराट आ गए. उधर आहद की भतीजी भी आ गई, जो अनिका की क्लास में पढ़ती थी. बच्चों को यह जान कर बहुत खुशी हुई कि उन के बड़ी भी क्लासमेट थे. संडे की दुपहर को मिलना तय हो गया.

संडे की सुबह से ही मीनल काफी उल्लसित लग रही थी. खुशी से लंच की तैयारी की.

‘‘आज न जाने कितने समय बाद अपने किसी मित्र से मिलूंगी, मां,’’ सुनयना देवी द्वारा बहू को खुशदेख इस का कारण पूछने पर मीनल ने बताया.

अपनी बहू को खुश देख भी खुश थीं. तय समय पर आहाद पहुंच गया, हाथों में एक गुलदस्ता लिए. बच्चों के लिए चौकलेट और कुकीज भी लाया था.

‘‘अरे, लंच पर मैं ने बुलाया है और तुम इतना सामान ले आए… इस सब की क्या जरूरत थी?’’ उस के हाथ में उपहारों के पैकेट देख मीनल ने टोका, ‘‘और अकेले क्यों आए…परीजाद कहां रह गई?’’

‘‘अंदर तो आने दो, सब बताता हूं,’’ आहाद ने सुनयना देवी का अभिवादन किया और फिर लिविंगरूम में विराजमान हो गया. पानी पीने के बाद उस ने बताया कि परीजाद का उन की शादी के केवल 2 साल बाद एक कार ऐक्सीडैंट में देहांत हो गया. यह कहते हुए आहाद की नजरें शून्य में अटक कर रह गईं.

बिना किसी की ओर देखे, भावशून्य ढंग से कही इस बात ने कमरे में शोक बिखेर दिया. आहाद के चेहरे से साफ झलक रहा था कि वह इतने सालों बाद भी परीजाद की यादों से बाहर नहीं आ सका है. कमरे में उपस्थित सभी चुप हो गए.

सुनयना देवी ने चुप्पी तोड़ी, ‘‘मीनल, चाय नहीं पिलाएगी अपने मेहमान को?’’

मीनल चायनाश्ता ले कर आई तब तक आहाद बच्चों से उन की क्लास, उन की रुचियां आदि पूछने लगा. माहौल थोड़ा लाइट हो चुका था. कैसी अजीब बात है, मीनल सोचने लगी, जीवनसाथी से कितनी उम्मीदों से जुड़ते हैं, किंतु जीवनसफर में वह भी कितनी जल्दी अकेली रह गई और उस का दोस्त भी. अकेलापन भी एक प्रकार का सहचर बन सकता है, यह बात इन दोनों से बेहतर कौन जान सकता था. इसी साझे तार ने मीनल और आहाद को पुन: जोड़ दिया. अनिका और विराट भी आहाद अंकल को बहुत पसंद करने लगे.

मीनल के घर में कोई पुरुष नहीं था और आहाद के घर में कोई स्त्री. गृहस्थी के ऐसे कार्य जो मर्दऔरत के हिस्सों में बंटे रहते हैं, अब ये एकदूसरे के लिए सहर्ष करने लगे. आहाद, मीनल की कई क्षेत्रों में सहायता करने लगा. मसलन, बिजलीपानी गैस जैसी छोटीछोटी मरम्मतें, कोई खास वस्तु किसी खास बाजार से खरीद लाना, मां के लिए किसी खास दवा का इंतजाम करना आदि.

इसी प्रकार मीनल भी आहद की किचन में जरूरी सामान भरवा देती, कभी उस के लिए मेड खोज कर उसे काम समझा देती, तो कभी उस की अलमारी ही संवार देती.

अनिका और विराट इस तालमेल से बेहद प्रसन्न थे. उन की याद में उन्होंने अपने पापा नहीं देखे थे. पापा का सुख, एक पुरुष की गृहस्थी में उपस्थिति उन्हें बहुत भा रही थी. एक रात सोने से पहले थोड़ी गपशप लगाते हुए विराट बोला पड़ा, ‘‘कितना अच्छा होता न अगर आहाद अंकल ही हमारे पापा होते. वैसे उन की फैमिली तो है नहीं.’’

‘‘क्या तू भी वही सोचता है जो मैं?’’ उस की बात सुन अनिका बोली और फिर दोनों ने गुपचुप योजना बनानी शुरू कर दी. जब भी घर में कुछ अच्छा पकता तो अनिका जिद करती कि वे उस डिश को आहाद तक पहुंचा कर आएं.

‘‘कम औन मम्मा, आहाद अंकल आपके फ्रैंड हैं और आप उन के लिए इतना भी नहीं कर सकतीं?’’

एक दिन खेलते समय विराट के पैर की हड्डी टूट गई. मीनल उस दिन अपने

स्कूल में थी, किंतु उसे फोन पर बताने के बजाय विराट ने झट आहाद को फोन मिला दिया. ‘‘अंकल, मेरे पैर में काफी चोट लग गई है, आप प्लीज आ जाओ न… मम्मी भी नहीं हैं घर पर.’’

आहाद फौरन उन के घर पहुंचा और अस्पताल ले जा कर विराट को पलस्तर चढ़वाया. जब बाद में मीनल को सारा प्रकरण पता चला तो विराट और अनिका दोनों ही आहाद अंकल के गुणगान करते नहीं थके, ‘‘देखा मम्मा, कितने ज्यादा अच्छे हैं आहाद अंकल.’’

‘‘हांहां, मुझे पता है कि तुम दोनों आजकल आहाद अंकल के फैन बने हुए हो,’’ हंसते हुए मीनल बोली.

‘‘काश, आहाद अंकल ही हमारे पापा होते,’’ विराट के मुंह से निकल गया. लेकिन मीनल ने ऐसे बरताव किया जैसे उस ने यह बात सुनी नहीं. विराट भी फौरन चुप हो गया.

मीनल समझने लगी थी कि बच्चों के मन में क्या चल रहा है, परंतु अपने मन में ऐसी किसी भावना को वह हवा नहीं देना चाहती थी. ऐसा नहीं है कि वह आहाद को पसंद नहीं करती थी. आहाद पहले से ही एक सुलझे हुए शांत व्यक्तित्व का स्वामी था. इतने वर्षोंपरांत पुन: मिलने पर मीनल ने पाया कि समय के अनुभवों ने उस के स्वभाव को और भी चमका दिया है.

आहाद भी मीनल के जीवट व्यक्तित्व, सकारात्मक स्वभाव व बौद्धिक क्षमता से प्रभावित था. कह सकते हैं कि पारस्परिक प्रशंसा दोनों में आकर्षण को जन्म देने लगी थी, किंतु यह बात अभी यहीं पर विराम थी. यह एक बेहद जटिल विषय था. न जाने कितने समय बाद मीनल की जिंदगी में एक मित्र का आगमन हुआ था. ऐसी किसी भी एकतरफा भावना से वह इस दोस्ती को खोना नहीं चाहती थी और फिर पुनर्विवाह, वह भी बच्चों के बाद… हमारे संस्कार ऐसी बात सोचते समय ही मनमस्तिष्क की लगाम कसने लगते हैं.

औरतों को शुरू से ही संस्कार के नाम पर कमजोर करने वाले विचार सौंपे जाते हैं जो उन की शक्ति कम और बेडि़यां अधिक बनते हैं. आत्मनिर्भर सोच रखने वाली लड़की भी कठोर कदम उठाने से पहले परिवार तथा समाज की प्रतिक्रिया सोचने पर विवश हो उठती है. एक ओर जहां पुरुष पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनी राय देता है, पूरी बेबाकी से आगे कदम बढ़ाने की हिम्मत रखता है, वहीं दूसरी ओर एक स्त्री छोटे से छोटे कार्य से पहले भी अपने परिवार की मंजूरी चाहती है.

उस शाम आहाद मीनल के घर आया हुआ था, ‘‘इस फ्राइडे ईवनिंग को

मूवी का प्रोग्राम बनाएं तो कैसा रहे? बच्चों को पसंद आएगी ‘एमआईबी’ वह भी ‘थ्री डी’ में.’’ आहाद के पूछने पर दोनों बच्चे तालियां बजा कर अपना उल्लास दर्शाने लगे तो मीनल और सुनयना देवी भी हंस पड़ीं.

आहाद ने सभी के लिए टिकट बुक करवा दिए. तय हुआ कि आहाद और मीनल अपनेअपने कार्यस्थल से और बच्चे और उन की दादी घर से सीधा मूवीहौल पहुंचेंगे.

मगर हुआ कुछ और ही. जब मीनल और आहाद मूवीहौल के बाहर बच्चों की प्रतीक्षा करते हुए थक गए तब उन्होंने सुनयना देवी को फोन कर के पूछा कि आने में और कितनी देर लगेगी?

‘‘बच्चे कह रहे हैं कि तुम दोनों अंदर चल कर बैठो, कहीं पिक्चर न निकल जाए. हमारे पास अपने टिकट हैं, हम आ कर तुम्हें जौइन कर लेंगे,’’ सुनयना देवी के कहने पर मीनल और आहाद मूवीहौल के अंदर चले गए.

पिक्चर शुरू हो गई पर बच्चों का कोई अतापता न था. कुछ देर में दोबारा फोन करने पर पता चला कि अनिका का पेट खराब हो गया है, इसलिए थोड़ी देरी से आ पाएंगे.

‘‘न… न… तुम्हें वापस आने की कोई जरूरत नहीं है. तुम अपनी पिक्चर क्यों खराब करते हो, यहां मैं संभाल रही हूं,’’ दादी ने आश्वासन दिया.

इधर घर में अनिका को ले कर सुनयना देवी काफी परेशान हो रही थीं, ‘‘क्या डाक्टर के पास ले चलूं?’’

उन के प्रश्न पर अनिका और विराट का एकदूसरे की ओर देख कर आंखोंआंखों में की गई इशारेबाजी सुनयना देवी ने देख ली. बोली, ‘‘अब तुम दोनों यह बेकार की उलझन खत्म करो और असली मुद्दे पर आओ. आखिर मैं ने अपने बाल धूप में सफेद नहीं किए. क्या खिचड़ी पका रहे हो तुम दोनों.’’

दादी के वर्षों के अनुभव तथा पारखी नजर पर दोनों बच्चे हैरान रह गए. फिर खिसियानी हंसी के साथ उन्होंने बात आगे बढ़ाई, ‘‘दादी, हम जानबूझ कर आज मूवी देखने नहीं गए. हम चाहते थे कि मम्मी और आहाद अंकल को अकेले पिक्चर देखने भेजें,’’ फिर कुछ रुक कर बच्चे आगे कहने लगे, ‘‘दादी, हमें आहाद अंकल बहुत अच्छे लगते हैं. और हम सोच रहे हैं कि कितना अच्छा हो अगर अंकल हमारे पापा बन जाएं.’’

बच्चों का हर्षोल्लास देख दादी ने उन्हें टोका नहीं. नन्हें बच्चों के अबोध मन में अपने पिता के रिक्त स्थान में आहाद की छवि दिखने लगी थी.

‘‘बोलो न दादी, हम सही सोच रहे हैं न? ऐसा हो सकता है क्या?’’ अनिका पूछने लगी.

विराट भी उत्साहित था. बोला, ‘‘कितना मजा आएगा न. मम्मा की शादी… हमारे फ्रैंड्स की तरह हमारे भी पापा होंगे. व्हाट अ थ्रिल,’’ बच्चे अपनी मासूमियत में अपने मन की बात कहे जा रहे थे. न कोई झिझक, न कोई संकोच.

मूवी खत्म होने पर मीनल और आहाद घर की ओर निकलने को थे कि आहाद ने कौफी पीने की गुजारिश की, ‘‘मैं समझता हूं मीनल कि तुम्हें अनिका के पास जाने की जल्दी हो रही होगी पर आज हम दोनों अकेले हैं तो… दरअसल, कई दिनों से तुम से कुछ कहना चाह रहा हूं पर हिम्मत साथ नहीं दे रही…’’

‘‘ऐसी क्या बता है, आहाद? चलो, पास के कैफे में कुछ देर बैठ लेते हैं,’’ कहते हुए मीनल ने अपने घर फोन कर निश्चित कर लिया कि अनिका की तबीयत अब ठीक है.

कैफे में आमनेसामने बैठ कर कुछ न बोल कर आहाद बस चुपचाप मीनल को देखता रहा. आज उस की नजरों में एक अजीब सा आकर्षण था, एक खिंचाव था जिस ने मीनल को अपनी नजरें झुकाने पर विवश कर दिया.

बात को सहज बनाने हेतु वह बोल पड़ी, ‘‘आहाद, परीजाद को गए इतना वक्त गुजर गया… इतने सालों में तुम ने पुनर्विवाह के बारे में क्यों नहीं सोचा?’’

‘‘तुम से मुलाकात जो नहीं हुई थी.’’

आहाद के कहते ही मीनल अचकचा कर खड़ी हो गई. ऐसा नहीं था कि उसे आहाद के प्रति कोई आकर्षण नहीं था. संभवत: उस का मन यही बात आहाद से सुनना चाहता था. वह तो यह भी जानती थी कि उस के बच्चे भी ऐसा ही चाहते हैं. पर आज यों अचानक आहाद के मुंह से ऐसी बात सुनने की अपेक्षा नहीं थी. खैर, मन की बात कब तक छिप सकती है. भला. आहाद की बात सुन कर मीनल के नयनों में लज्जा और अधरों पर मुसकराहट खेल गई. दोनों की नजरों ने एकदूसरे को न्योता दे दिया.

मीनल की हंसी के कारण आहाद की हिम्मत थोड़ी और बढ़ी, ‘‘मैं तुम्हें पसंद करने लगा हूं और लगता है कि अनिका और विराट भी मुझे स्वीकार लेंगे. वे मुझ से अच्छी तरह हिलमिल गए हैं. बस एक बात की टैंशन है कि हमारे धर्म अलग हैं. यह बात मेरे लिए महत्त्वपूर्ण नहीं है… लेकिन हो सकता है कि तुम्हारे लिए हो. मेरे लिए धर्म बाद में आता है और कर्म पहले… हम इस जीवन में क्या करते हैं, किसे अपनाते हैं, किस से सीखते हैं, इन सभी बातों में धर्म का कोई स्थान नहीं है. हमारे गुरु, हमारे मित्र, हमारे अनुभव, हमारे सहकर्मी, जब सभी अलगअलग धर्म का पालन करने वाले हो सकते हैं तो हमारा जीवनसाथी क्यों नहीं… मैं तुम्हारे व्यक्तित्व के कारण आकर्षित हुआ हूं और धर्म के कारण मैं एक अच्छी संगिनी को खोना नहीं चाहता. आगे तुम्हारी इच्छा.’’

हालांकि मीनल भी आहाद के व्यक्तित्व और आचारविचार से बहुत प्रभावित थी, किंतु धर्म एक बड़ा प्रश्न था. जीवन के इस पड़ाव पर आ कर मिली इस खुशी को वह खोना नहीं चाहती थी. खासकर यो जानने के बाद कि आहाद भी उसे पसंद करता है. मगर इतना बड़ा निर्णय वह अकेली नहीं ले सकती थी. सुनयना देवी से पूछने की बात कह मीनल घर लौट आई.

अगले दिन मीनल ने स्कूल से छुट्टी ले ली. जब बच्चे स्कूल चले

गए तब नाश्ते की टेबल पर मीनल ने सुनयना देवी से बात की. इतने सालों में इन दोनों का रिश्ता सासबहू से बढ़ कर हो गया था. मीनल ने जिस सरलता से आहाद के मन की बात बताई उसी रौ में अपने दिल क बात भी साझा की. आहाद द्वारा कही अंतरधर्म की शंका भी बांटी, ‘‘आप क्या सोचतीं इस विषय में मां?’’

कुछ क्षण दोनों के दरमियान चुप्पी छाई रही. मुद्दा वाकई गंभीर था. दूसरे प्रांत या दूसरी जाति नहीं वरन दूसरे धर्म का प्रश्न था. कुछ सोच कर मां ने प्रतिउत्तर में प्रश्न किया, ‘‘क्या तुम आहाद से प्यार करती हो?’’

मनील की चुप्पी में मां को उत्तर दे दिया. बोली, ‘‘देखो मीनल,समर्थ के जाने के बाद तुम ने किन परिस्थितियों का सामना किया यह मुझे भी पता है और तुम्हें भी. अब तक तुम अकेली ही जूझती आई. मैं चाहती हूं कि तुम्हारा घर बसे, तुम्हारा जीवन भी प्रेम से सराबोर हो, तुम एक बार फिर से गृहस्थी का सुख भोगो. तुम जो भी निर्णय लोगी, मैं तुम्हारे साथ हूं.’’

सुनयनादेवी के लिए मीनल के प्रति उन का प्यार हर मुद्दे से ऊपर आता था, ‘‘चलो, कल तुम्हारे मातापिता से मिल कर आगे की बात तय कर लेते हैं.’’

अगले दिन आहाद ने बच्चों को मूवी और मौल घुमाने का कार्यक्रम बनाया और मीनल व सुनयना देवी चल दीं उस के मायके.

‘‘भाईसाहब और बहनजी, हमारी मीनल के जीवन में एक बार फिर से बहार दस्तक दे रही है. इसी के कालेज में पढ़ा एक लड़का इस से शादी करना चाहता है. हम इस विषय में आप की राय चाहते हैं. मोहम्मद आहाद नाम है उस का. मुझे और बच्चों को भी वह लड़का बहुत पसंद आया. सब से अच्छी बात यह है कि धर्म की दीवार इन दोनों के प्यार के आढ़े नहीं आई. दोनों को अपने संस्कारों, अपनी संस्कृतियों पर गर्व है. कितना सुदृढ़ होगा वह परिवार जिस में 2-2 धर्मों, भिन्न संस्कृतियों का मेल होगा.’’

सुनयना देवी के कहते ही मीनल के मायके वालों ने हंगामा खड़ा कर डाला.

‘‘शर्म नहीं आई अपनी ही दूसरी शादी की बात करते और वह भी एक अधर्मी से.’’ बस इतना ही प्यार था समर्थ जीजाजी से? अरे, डायन भी 7 घर छोड़ देती है पर तुम ने ही घर वालों को नहीं बख्शा, मीनल का भाई गरजने लगा.

भाभी भी कहां पीछे रहने वाली थीं, ‘‘मैं क्या मुंह दिखाऊंगी अपने समाज में? मेरे मायके में मेरी छोटी बहन कुंआरी है अभी. उस की शादी कैसी होगी यह बात खुलने पर.’’

धम्म से जमीन पर गिरते हुए मां अपने पल्लू से अपने आंसू पोंछने में व्यस्त हो गई. तभी मीनल की बड़ी विवाहित बहन पास के अपने घर से आ पहुंची. उसे भाई ने फोन कर बुलवाया था. बहन ने आ कर मां के आंसू पोंछने शुरू कर दिए,‘‘अरे, ऐसी कुलच्छनी के लिए क्यों रोती हो, मां? एक को खा कर इस का पेट नहीं भरा शायद… इस उम्र में ऐसी जवानी फूट रही है कि जो सामने आया उसी से शादी करने को मचलने लगी? यह भी नहीं सोचा कि एक मुसलमान लड़का है वह. ऐसे लोग ही लव जिहाद को हवा देते हैं’’, कहते हुए बहन ने घूणास्पद दृष्टि मीनल पर डाली.

उस का मन हुआ कि वह इसी क्षण यहां से कहीं लुप्त हो जाए.

‘‘सौ बात की एक बात मीनल कि यह शादी होगी तो मेरी लाख के ऊपर से होगी. अब तेरी इच्छा है. अपनी डोली चाहती है या अपनी मां की मांग का सिंदूर’’, पिता की दोटूक बात पर मां का रुदन और बढ़ गया.

मीनल बेचारी सिर झुकाए चुपचाप रोती रही.

इतने कुहराम और कुठाराघात की मारी मीनल धम से सोफे पर गिर पड़ी. ठंड में भी उस के माथे से पसीना टपकने लगा. उस के पैर कंपकंपाने लगे, गला सूख गया, आंखें छलछला गईं. ऐसा लग रहा था कि उस के मन की कमजोरी उस के तन पर भी उतर आई है, ‘‘पापा, प्लीज अब रहने दीजिए’’, पता नहीं मीनल की आवाज में कंपन मौसम के कारण था या मनोस्थिति के कारण. इस बेवजह के तिरस्कार से वह थक गई. ‘‘गलती हो गई जो मैं ने ऐसा सोचा. मुझे कोई शादीवादी नहीं करनी है.’’

अपेक्षा विपरीत मीनल के पुनर्विवाह न करने का निर्णय उस के मायके वालों को स्वीकार्य था, लेकिन दूसरे धर्म के नेक, प्यार करने वाले लड़के से शादी नहीं.

अचानक सुनयना देवी खड़ी हो गईं, ‘‘मीनल एक शिक्षित, सुसंस्कारी, समझदार स्त्री है. जब से इस की शादी समर्थ से हुई, तब से यह मेरे परिवार का हिस्सा है. यह मेरी जिम्मेदारी है… हम कब तक अपनी मार्यादाओं के संकुचित दायरों में रह कर अपने ही बच्चों की खुशियों का गला घोंटते रहेंगे? जब हम अपने बच्चों को अच्छी शिक्षादीक्षा प्रदान करते हैं तो उन के निर्णयों को मान क्यों नहीं दे सकते?’’ फिर मीनल की ओर रुख करते हुए कहने लगीं, ‘‘मीनल, तुम मन में कोई चिंता मत रखो. तुम आज तक बहुत अच्छी बहूबेटी बन कर रहीं. अब हमारी बारी है. आज यदि तुम्हें कोई ऐसा मिला है जिस से तुम्हारा मन मिला है तो हम तुम्हारी खुशी में रोड़े नहीं अटकाएंगे. मैं तुम्हारे हर निर्णय में तुम्हारे साथ हूं.’’

फिर कुछ देर रुक कर मीनल का हाथ पकड़ कर उसे उठाते हुए सुनयना देवी बोली, ‘‘मीनल, याद है वह कविता जिसे समर्थ अकसर सुनाया करता था-’’

‘‘कुछ मुखड़ों की नाराजी से दर्पण नहीं मरा करता है,

कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है.’’

मां के अडिग, अटल समर्थन ने सब को चुप करवा दिया.

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