5 साल छोटा एक लड़का मुझसे शादी करने को तैयार है, लेकिन समाज में बदनामी तो नहीं होगी ?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 38 साल की कामकाजी अविवाहिता हूं. घर की परिस्थिति कुछ ऐसी थी कि शादी नहीं कर पाई. इस का कुसूरवार भी मैं खुद को मानती हूं. मातापिता जब तक थे तब तक सहारा था अब भाईभाभी अपनीअपनी जिंदगी में व्यस्त रहते हैं तो कई बार अकेलापन महसूस होता है. क्या शादी से मेरा अकेलापन दूर हो सकता है और मुझे जिंदगी जीने का मकसद मिल सकता है? मुझ से 5 साल छोटा एक लड़का शादी करने को तैयार है पर सोचती हूं कि न जाने परिवार और समाज क्या सोचेगा? बताएं क्या करूं?

जवाब-

पलपल बदलती दुनिया में कई बार अकेलापन महसूस होता है. आप के साथ इस की वजहें भी हैं. मातापिता के गुजर जाने के बाद जाहिर है आप अपना दुखदर्द शायद ही किसी के साथ बांट पा रही होंगी. कई ऐसी बातें होती हैं, जिन्हें आप किसी से भी फिर चाहे वे दोस्त हों या रिश्तेदार खुल कर नहीं कह सकतीं. यों तो अकेलापन दूर करने के कई साधन हैं पर चूंकि आप विवाह करने को उत्सुक हैं तो समाज व रिश्तेदारों की परवाह किए बगैर शादी कर सकती हैं. आप से 5 साल छोटा लड़का आप से विवाह करने को इच्छुक है तो बिना वक्त गंवाए शादी के लिए हामी भर दें. इस से न सिर्फ आप का अकेलापन दूर हो जाएगा, आप को जीने का मकसद भी मिल जाएगा. लड़का इतना भी छोटा नहीं है कि आप की जोड़ी बेमेल लगे. समाज में ऐसे कई उदाहरण हैं, जो उम्र में काफी अंतर होने के बावजूद अच्छा व खुशहाल शादीशुदा जीवन बिता रहे हैं. यदि बाद में कोई दिक्कत होगी तो देखा जाएगा. यह जोखिम वह लड़का ले रहा है, आप नहीं.

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रात 10 बजे माया के घर के आगे एक बड़ी सी कार आ कर रुकी. स्लीवलेस टॉप और जींस पहने माया अपने फ्लैट की सीढ़ियों से दनदनाती हुई नीचे उतर रही थी कि सामने रूना आंटी टकरा गई. रूना आंटी उस की मां की पक्की सहेली है. अपनी जिम्मेदारी समझते हुए उन्होंने माया को टोका,” बेटा इतनी रात गए कहां जा रही हो? जरा सोचो तो लोग क्या कहेंगे.”

माया ने हंसते हुए आंटी का कंधा थपथपाया और बोली,” आंटी मैं ऑफिस जा रही हूं अपने सपनों को पूरा करने, जर्नलिस्ट का दायित्व निभाने. मुझे इस बात से कभी कोई सरोकार नहीं रहा कि लोग क्या कहेंगे. मेरी अपनी जिंदगी है. मेरी अपनी प्राथमिकताएं हैं. मेरे जीने का अपना तरीका है. इस में लोगों का क्या लेनादेना ? मैं क्या कभी लोगों से पूछती हूँ कि वे कब क्या कर रहे हैं?”

रूना आंटी को माया से ऐसे जवाब की उम्मीद नहीं थी. वे चुपचाप खड़ी रह गई और माया जिंदगी को एक नया मकसद देने की ललक के साथ आगे बढ़ गई.

32  साल की माया दिल्ली में अकेली रहती है. रात में भी अक्सर काम के सिलसिले में उसे बाहर निकलना पड़ता है. रूना आंटी हाल ही में उस की सोसाइटी में शिफ्ट हुई है.

अक्सर बड़ेबुजुर्ग माया जैसी लड़कियों को तरहतरह की हिदायतें देते दिख जाते हैं. मसलन;

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New Year Party look : नए साल की पार्टी में दिखना है स्टाइलिश, तो फौलो करें ये टिप्स

New Year Party look : नए साल की पार्टी में फैशन को लेकर आपके पास ढेर सारे विकल्प होते हैं. चाहे आप ग्लैमरस, कैज़ुअल या फौर्मल लुक चुनें, सबसे जरूरी बात यह है कि आप जो भी पहनें, उसमें खुद को कंफर्टेबल और आत्मविश्वास महसूस करें. नए साल की पार्टी के लिए फैशन टिप्स आपको खास और स्टाइलिश दिखने में मदद कर सकते हैं. यहां कुछ फैशन टिप्स दिए गए हैं जो आपकी पार्टी के लुक को शानदार बना सकते हैं:

1. ड्रेस कोड का फोलो करें

सबसे पहले, पार्टी के लिए ड्रेस कोड (अगर कोई हो) का ध्यान रखें. अगर पार्टी के लिए कोई थीम या ड्रेस कोड है जैसे “ग्लिटरी”, “ब्लैक एंड व्हाइट” या “कैज़ुअल”, तो उसी अनुसार अपनी ड्रेस चुनें.

2. क्लासिक ब्लैक ड्रेस (Little Black Dress)

“लिटिल ब्लैक ड्रेस” हर न्यू ईयर पार्टी के लिए एक बेहतरीन और क्लासिक विकल्प है. यह स्टाइलिश और एलीगेंट होती है, और आप इसे अच्छे एक्सेसरीज और हील्स के साथ पहन सकती हैं.

3. ग्लिटर और शिमर

नए साल की पार्टी में थोड़ी चमकदमक जरुरी है! शिमर, ग्लिटर या सीक्विन ड्रेस या टौप पहनकर आप पार्टी में सभी की नजरें आकर्षित कर सकती हैं. सिल्वर, गोल्ड या मैटलिक रंगों में चमकदार कपड़े पहनें.

4. फ्लोरल या स्टाइलिश कौकटेल ड्रेस

अगर आप कुछ अलग और स्टाइलिश चाहती हैं तो फ्लोरल या कौकटेल ड्रेस पर विचार कर सकती हैं. यह पार्टी में थोड़ा ग्लैम और जादू जोड़ता है. इसे एक अच्छा बेल्ट और स्टाइलिश फुटवियर के साथ पेयर करें.

5. मोनोक्रोमेटिक लुक

यदि आप एक सरल और चिक लुक चाहती हैं तो मोनोक्रोमेटिक आउटफिट चुनें. एक ही रंग में पूरी ड्रेस (जैसे काले या सफेद रंग में) पहनकर आप बहुत ही स्टाइलिश लग सकती हैं. इसे कंफर्टेबल और फैशनेबल लुक के लिए स्नीकर्स या हील्स के साथ पेयर करें.

6. लाउंज पार्टी लुक (Casual yet Trendy)

यदि पार्टी के लिए कैज़ुअल लुक है तो आप स्मार्ट जींस, टौप और एक स्टाइलिश जैकेट पहन सकती हैं. इसके साथ स्लिंग बैग और डेजी शूज या स्नीकर्स पहनकर आरामदायक और स्टाइलिश दोनों दिख सकती हैं.

7. विंटर पार्टी के लिए आउटरवियर

यदि आप सर्दी में पार्टी कर रही हैं तो विंटर फैशन भी जरूरी है. एक ट्रेंडी कोट या फौक्स फर्स जैकेट आपकी ड्रेस को और आकर्षक बना सकती है. इसे हौट स्टाइलिश बूट्स के साथ पेयर करें.

8. स्मोकिंग हौट लुक के लिए पैंटसूट

यदि आप कुछ अलग और फौर्मल चाहती हैं, तो पैंटसूट का चयन करें. यह एक स्मार्ट, स्टाइलिश और पावरफुल लुक देगा. इसके साथ हाई हील्स और मेटलिक क्लच बैग पेयर करें.

9. फ्लर्टी और फेमिनिन टौप्स

पार्टी के लिए आप एक फेमिनिन टौप पहन सकती हैं, जो या तो औफशोल्डर हो, या फ्लोई हो. इसे एक अच्छे फिटेड जींस के साथ पहनें, ताकि आपका लुक आकर्षक और स्टाइलिश दिखे.

10. एक्सेसरीजज चुनें सही

पार्टी में चमकने के लिए अच्छी एक्सेसरीज की जरूरत होती है. स्टेटमेंट नेकलेस, चंकी इयररिंग्स, क्रिस्टल एंकल स्ट्रैप्स, और क्लच बैग्स को ध्यान से चुनें. ये आपके लुक को और भी बेहतरीन बना सकते हैं.

11. परफेक्ट हेयरस्टाइल और मेकअप

हेयरस्टाइल और मेकअप भी आपके लुक का अहम हिस्सा होते हैं. न्यू ईयर पार्टी के लिए आप ग्लैम और फ्लोरल लुक के लिए वाल्यूमाइज्ड हेयर या सौफ्ट कर्ल्स रख सकती हैं. मेकअप में ग्लिटर आईशैडो, बोल्ड लिप्स और हाइलाइटर का इस्तेमाल करें.

12. कंफर्टेबल फुटवियर

पार्टी में लंबे समय तक डांस करने के लिए कंफर्टेबल फुटवियर चुनें. आपको स्टाइलिश दिखने के साथ आराम भी चाहिए. आप हील्स, स्टेटमेंट स्नीकर्स, या फ्लैट्स भी पहन सकती हैं.

Funny Hindi Stories : अपनी थाली देखना भूल गए जनाब

Funny Hindi Stories : यह अलग ही तरह का शख्स था. पता नहीं कहां कौन सी साधारण बात इसे खास लगने लगे, किस बात से मोहित हो जाए, कुछ कह नहीं सकते थे. जिन बातों से एक आम आदमी को ऊब होती थी, इस आदमी को उस में मजा आता था. एक अजीब सा आनंद आता था उसे. इस की अभिरुचि बिलकुल अलग ही तरह की थी. वैसे यह मेरा दोस्त है, फिर भी मैं कई बार सोचने को मजबूर हो जाता हूं कि आखिर यह आदमी किस मिट्टी का बना है. मिट्टी सी चीज में अकसर यह सोना देखता है और अकसर सोने पर इस की नजर ही नहीं जाती.

मैं इस के साथ मुंबई घूमने गया था. हम टैक्सी में दक्षिण मुंबई के इलाके में घूम रहे थे. हमारी टैक्सी बारबार सड़क पर लगे जाम के कारण रुक रही थी. जब टैक्सी ऐसे ही एक बार रुकी तो इस का ध्यान सड़क के किनारे बनी एक 25 मंजिली बिल्ंिडग की 15वीं मंजिल पर चला गया, जहां एक कमरा खुला दिख रहा था. मानसून का समय था. आसमान में बादल छाए थे. कमरे की लाइट जल रही थी, पंखा घूमता दिख रहा था. वह बोल उठा, ‘यार, इस को कहते हैं ऐश. देखो, अपन यहां ट्रैफिक में फंसे हैं और वो महाशय आराम फरमा रहे हैं, वह भी पंखे की हवा में.’

मैं ने सोचा इस में क्या ऐश की बात है? मैं ने कहा, ‘यार, वह आदमी जो उस कमरे में दिख रहा है, वह क्या कुछ काम नहीं करता होगा? आज कोई कारण होगा कि घर पर है.’

अब वह बोला, ‘यार, अपन यहां ट्रैफिक में फंसे हैं और वह ऐश कर रहा है. यह तो एक बिल्डिंग के एक माले के एक फ्लैट की बात है, यहां तो हर फ्लैट में लोग मजे कर रहे हैं.’

मैं ने झल्ला कर कहा, ‘हां, हर फ्लैट नहीं, हर फ्लैट के हर कमरे में कहो और अपन यहां ट्रैफिक में फंसे हुए हैं.’

यह तो एक घटना मुंबई की रही. एक दिन शाम को घूमते हुए शहर के रेलवे स्टेशन पर मिल गया. मैं शाने भोपाल ट्रेन से दिल्ली जा रहा था. यह तफरीह करने आया था. चूंकि ट्रेन के लिए समय था, सो हम एक बैंच पर बैठ गए. स्टेशन पर आजा रही ट्रेनों को यह टकटकी लगा कर देखता. बोगी में बैठे लोगों को देखता. यदि किसी एसी बोेगी में कोई यात्री दिख जाता आपस में बतियाते या खाना खाते, लेटे पत्रिका पढ़ते तो यह कहता, ‘यार, देखो इन के क्या ऐश हैं. मस्त एसी में यात्रा कर रहे हैं, खापी रहे हैं, गपशप कर रहे हैं और अपन यहां कुरसी पर बैठे हैं?’

मैं ने कहा, ‘यार, इस में क्या खास बात हो गई? अपन लोग भी जाते हैं तो इसी तरह मौज करते हैं यदि तुम्हारे पैमाने से बात तोली जाए.’ मैं ने आगे कहा, ‘वैसे मैं तो रेलयात्रा को एक बोरिंग चीज मानता हूं.’ अब मेरा मित्र बोल पड़ा, ‘अरे यार, तुम नहीं समझोगे क्या आनंद है यात्रा का. मस्ती में पड़े रहो, सोते ही रहो और यदि घर से परांठेसब्जी लाए हो तो उस का भी मजा अलग ही है. काश, अपन भी ऐसे ही इस समय ट्रेन की ऐसी ही किसी बोगी में बैठे होते तो मजा आ जाता.’

मैं ने कहा, ‘तो चल मेरे साथ? असल जिंदगी जीना, मैं तो खैर बोर होऊंगा तो होते रहूंगा.’ लेकिन इस बात पर यह मौन हो गया.

इसे कौन से साधारण दृश्य अपील कर जाएं, कहना मुश्किल था. एक बार मैं और यह कार से शहर से 80 किलोमीटर दूर स्थित एक प्रसिद्ध पिकनिक स्पौट को जा रहे थे. एक जगह ट्रैफिक कुछ धीमा हो गया था. इस की नजर सड़क के किनारे खड़े ट्रकों व उस के साइड में बैठे ड्राइवरक्लीनरों पर चली गई.

वे अपनी गाडिं़यां खड़ी कर खाना पका रहे थे. ईंटों के बने अस्थायी चूल्हे पर खाना पक रहा था. एक व्यक्ति रोटियां सेंक रहा था, एक सब्जी बना रहा था. बाकी बैठे गपशप कर रहे थे. बस, इतना दृश्य इस के लिए असली जिंदगी वाला इस का जुमला फेंकने और उसे लंबा सेंकने के लिए काफी था.

यह बोल उठा, ‘देखो यार, जिंदगी इस को कहते हैं मस्त, कहीं भी रुक गए, पकायाखाया, फिर सो गए और जब नींद खुली तो फिर चल दिए और अपन, बस चले जा रहे हैं. अभी किसी होटल में ऊटपटांग खाएंगे. ये अपने हाथ का ही बना खाते हैं, इस में  किसी मिलावट व अशुद्धता की गुंजाइश ही नहीं है. ऐसी गरम रोटियां होटल में कहीं मिलती हैं क्या?

मैं ने चिढ़ कर कहा, ‘ऐसा करते हैं अगली बार तुम भी रसोई का सामान ले कर चलना. अपन भी ऐसे ही सड़क के किनारे रुक कर असली जिंदगी का मजा लेंगे. और तुरंत ही मजा लेना है तो चल आगे, किसी शहरकसबे के बाजार से अपना तवा, बेलन और किराने का जरूरी सामान खरीद लेते हैं, इस पर वह मौन हो गया.

मैं एक बार इस के साथ हवाईजहाज से बेंगलुरु से देहरादून गया. फ्लाइट के 2 स्टौप बीच में थे. एयर होस्टैस और दूसरे हौस्पिटैलिटी स्टाफ के काम को यह देखतासुनता रहा. बाद में बोला, ‘यार, असली मजे तो इन्हीं के हैं? 2 घंटे में इधर, तो 2 घंटे में उधर. सुबह उठ कर ड्यूटी पर आए तो दिल्ली में थे, नाश्ता किया था मुंबई में. लंच लिया बेंगलुरु में और डिनर लेने फिर दिल्ली आ गए. करना क्या है, बस, मुसकराहटों को फेंकते चलना है. एक बार हर उड़ान में सैफ्टी निर्देशों का प्रदर्शन करना है, बस, फिर जा कर बैठ जाना है. प्लेन के लैंड करते समय फिर आ जाना है और यात्रियों के जाते समय बायबाय, बायबाय करना है. इसे कहते हैं जिंदगी.’

मैं ने कहा, ‘यार, तुझे हर दूसरे आदमी की जिंदगी अच्छी लगती है, अपनी नहीं.’ मैं ने आगे कहा कि इन की जिंदगी में रिस्क कितना है? अपन तो कभीकभी प्लेन में बैठते हैं तो हर बार सब से पहला खयाल सहीसलामती से गंतव्य पहुंच जाने का ही आता है. अब इस बात पर यह बंदा मौन हो गया, कुछ नहीं बोला. बस, इतना ही दोहरा दिया कि असली ऐश तो ये करते हैं.

एक और दिन की बात है. यह अपने खेल अनुभव के बारे में बता कर

दूसरों की जिंदगी में फिर से तमगे पर तमगे लगा रहा था. वनडे क्रिकेट मैच देख आया था नागपुर में, बोला, ‘यार, जिंदगी हो तो खिलाड़ी जैसी. कोई काम नहीं, बस, खेलो, खेलो और जम कर शोहरत व दौलत दोनों हाथों से बटोर लो. जनता भी क्या पगलाती है खिलाडि़यों को देख कर, इतनी भीड़, इतनी भीड़, कि बस, मत पूछो.’

मैं ने कहा, ‘बस कर यार, अभी पिछले सप्ताह प्रसिद्ध गायक सोनू निगम का कार्यक्रम हुआ था, उस में भी तेरा यह कहना था कि अरे बाप रे, क्या भीड़ है. लोग पागलों की तरह दाद दे रहे हैं, झूम रहे हैं. जिंदगी तो ऐसे कलाकारों की होती है’ मैं ने आगे कहा, ‘इस स्तर पर वे क्या ऐसे ही पहुंच गए हैं. न जाने कितने पापड़ बेले हैं, कितना संघर्ष किया है. असली कलाकार तो मैं तुझे मानता हूं जो असली जिंदगी को कहांकहां से निकाल ढूंढ़ता है.’

वह बोला, ‘यार, यह सब ठीक है. पापड़आपड़ तो सब बेलते हैं, लेकिन समय भी कुछ होता है. ये समय के धनी लोग हैं और अपन समय के कंगाल? घिसट कर जी रहे हैं.’ मैं ने कहा, ‘मैं तो तुम्हारी असली जिंदगी जीने की अगली उपमा किस के बारे में होगी, उस का इंतजार कर रहा हूं. तुम्हारा यह चेन स्मोकर की तरह का नशा हो गया है कि हर दूसरे दिन किसी दूसरे की जिंदगी में तुम्हें नूर दिखता है और अपनी जिंदगी कू्रर.’

वह कुछ नहीं बोला. अब उस के मौन हो जाने की बारी थी. उस का मौन देख कर मैं ने भी अब मौन रहना उचित समझा, वरना मैं ने कुछ कहा तो पता नहीं यह फिर किस से तुलना कर के अपने को और मुझे भी नीचा फील करवा दे.

मेरे इस दोस्त का नाम तकी रजा है. महीनेभर बाद पिछले शनिवार को मैं इस से मिलने घर गया था. मैं आजकल इस के ‘असली जिंदगी इन की है’ जुमले से थोड़ा डरने लगा हूं. मुझे लग रहा था कि कहीं यह मेरे पहुंचते ही ‘असली जिंदगी तो इन की है’ कह कर स्वागत न कर दे. मैं इस के घर का गेट खोल कर अंदर दाखिल हुआ. यह लौन में ही बैठा हुआ था.

मेरी ओर इस की नजर गई. लेकिन तकी, जो ऊपर को टकटकी लगाए कुछ देख रहा था, ने तुरंत नजर ऊपर कर ली. मैं उस के सामने पड़ी कुरसी पर जा कर बैठ गया. उस के घुटनों को छू कर मैं ने कहा कि क्या बात है, सब ठीक तो है? वह मेरे यह बोलते ही बोला, ‘क्या ठीक है यार, ऊपर देख? कैसे एक तोता मस्त अमरूद का स्वाद ले रहा है?’

मैं ने ऊपर की तरफ देखा, वाकई एक सुरमी हरे रंग का लेकिन लाल रंग की चोंच, जोकि तोते की होती ही है, वाला तोता अमरूद कुतरकुतर कर खा रहा था और बारीकबारीक अमरूद के कुछ टुकड़े नीचे गिर रहे थे. थोड़ी देर बाद वह फुर्र से टांयटांय करते उड़ गया. फिर एक दूसरा तोता आ गया. उस के पीछे 2-3 तोते और आ गए. वे सब एकएक अमरूद पर बैठ गए.

एक अमरूद पर तो 2 तोते भी बैठ कर उसे 2 छोरों से कुतरने लगे. कौमी एकता का दृश्य था. तकी बोला, ‘यार, असली जिंदगी तो इन की है. जमीन पर आने की जरूरत ही नहीं, हवा में रहते ही नाश्ता, खाना, टौयलेट सब कर लिया.’ और हमारे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा कि तकी ने जैसे ही यह बोला कि एक तोता, जो उस के सिर के ठीक ऊपर वाली डाल पर था, ने अपना वेस्ट मैटेरियल सीधे तकी के सिर पर ही गिरा दिया.

‘यह भी कोई तरीका है,’ कह कर तकी अंदर की ओर भागा. जब वह वापस आया तो मैं ने कहा, ‘हां यार, वाकई असली जिंदगी ये ही जी रहे हैं.’ तकी ने मुझे खा जाने वाली नजरों से देखा.

मैं ने इस के ‘असली जिंदगी ये जी रहे हैं’ वाले आगामी बेभाव पड़ने वाले डायलौग से बचने के लिए बात को आम भारतीय की तरह महंगाई को कोसने के शाश्वत विषय की ओर मोड़ दिया.

तकी बोला, ‘हां यार, यह महंगाई तो जान ले रही है.’ लेकिन थोड़ी ही देर में असली जिंदगी तो ये जी रहे हैं’ का साजोसामान ले जाती कुछ बैलगाडि़यां सामने से निकल रही थीं. ये गड़रियालुहार थे जोकि खानाबदोश जिंदगी जीते हैं. बैलगाडि़यों पर पलंग, बच्चे और सब सामान लदा दिख रहा था. अब तकी टकटकी लगा कर इन्हें ही देख रहा था. उस की आंखों ने बहुतकुछ देख लिया जो कि उसे बाद में शब्दों में प्रकट कर मेरी ओर शूट करना था. अंतिम बैलगाड़ी जब तक 25 मीटर के लगभग दूर नहीं पहुंच गई, यह उसे टकटकी लगा कर देखता ही रहा. अब वह बोला, ‘यार, जिंदगी तो इन की है?’

मैं ने कहा, ‘खानाबदोश जिंदगी भी कोई जिंदगी है?’

वह बोला, ‘यार, तुम नहीं समझोगे, इसी में जिंदगी का मजा है. एक जगह से दूसरी जगह को ये लोग हमेशा घूमते रहते हैं. कहीं भी रुक लिए और कहीं भी बनाखा लिया, और कहीं भी रात गुजार ली. भविष्य की कोई चिंता नहीं, मस्तमौला, घुमक्कड़ जिंदगी, सब को कहां मिलती है.’

मैं ने सोचा कि इस को भी यह अच्छा कह रहा है. अब तो यहां से रवानगी डालना ही ठीक होगा, वरना ‘असली जिंदगी तो इन की है’ का कोई न कोई नया संस्करण कहीं न कहीं से इस के लिए प्रकट हो जाएगा, जिसे वह मेरे पर शूट करेगा जो कि मुझे आजकल हकीकत की गोली से भी तेज लगने लगा है.

Family Stories in Hindi : जौइंट लिविंग

Family Stories in Hindi : नूपुर बालकनी में बैठी डूबते सूरज को देख रही थी. उस के घुंघराले बाल हवा में फरफर उड़ रहे थे. उसे लग रहा था कि उस का जीवन शून्य में डूबता जा रहा है. इस सूरज की ही तरह. तभी पीछे से आरना और ओजसी आ कर खड़ी हो गई थीं. नूपुर के बालों को पोनीटेल में बांधते हुए बड़ी बेटी आरना बोली, ‘‘क्या सोच रही हो मम्मी?’’

नूपुर डूबती आवाज में बोली, ‘‘तुम्हारे पापा ने डाइवोर्स देने के लिए मना कर दिया है.’’

छोटी बेटी ओजसी मुंह फुलाते हुए बोली, ‘‘वह क्यों भला?’’

नूपुर पनीली आंखों से बोली, ‘‘बेटा, तुम्हारे पापा के हिसाब से मैं तुम लोगों की ठीक से देखभाल नहीं कर पाऊंगी.’’

आरना गुस्से में बोली, ‘‘हां वे तो हमारी बहुत अच्छे से देखभाल करते हैं न. आज तक उन्हें यह भी नहीं पता कि हम किस क्लास में पढ़ते हैं. मम्मी, नाना, नानी ने क्या देख कर आप की शादी उन के साथ कर दी थी.’’

नूपुर बिना कोई जवाब दिए रसोई की तरफ चल दी.

ओजसी, आरना से बोली, ‘‘दीदी, क्या अब मम्मी और सक्षम अंकल की शादी नहीं होगी?’’

आरना बोली, ‘‘अरे मम्मी और सक्षम अंकल की शादी हो या न हो पर हम उन के साथ ही रहेंगे.’’

तभी गाड़ी की आवाज आई. सक्षम हमेशा की तरह सीटी बजाते हुए घर में घुसा.

आरना और ओजसी को उदास बैठा देख कर बोला, ‘‘आज मेरी तोता, मैना की जोड़ी शांत कैसे बैठी है?’’

आरना बोली, ‘‘अंकल, पापा ने मम्मी को डाइवोर्स देने से मना कर दिया है.’’

सक्षम के चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच गईं पर उन्हें ?ाटकते हुए बोला, ‘‘तो क्या हुआ बेटा, हम लोग फिर भी साथ ही रहेंगे. तुम दोनों अपनी पढ़ाई पर ध्यान लगाओ.’’

नूपुर ने सक्षम को कौफी दी और फिर बोली, ‘‘कब तक इंतजार करते रहोगे? सक्षम मेरे और बच्चों के लिए क्यों अपनी जिंदगी के अनमोल पल बरबाद कर रहे हो?’’

सक्षम बोला, ‘‘और अगर मैं कहूं तुम्हारे और बच्चों के साथ ही मु?ो ये अनमोल पल मुहैया होते हैं तो?’’

आरना और ओजसी भी वहीं आ कर बैठ गईं.

सक्षम फिर सब को बाहर डिनर पर ले गया. जब वापस आए तो सब के चेहरे पर मुसकान थिरक रही थी. अगले दिन रविवार है यह बात उन की खुशी को दोगुना कर रहा था.

आरना अचानक बोली, ‘‘अंकल, आप और मम्मी अगर एकसाथ जा कर नाना, नानी और दादादादी से बात करो तो वे लोग शायद पापा को समझ सकें.’’

नूपुर बोली, ‘‘अरे आरना पागल हैं क्या?’’

‘‘लोग क्या कहेंगे?’’

आरना गुस्से में बोली, ‘‘लोग कुछ नहीं कहेंगे मम्मी, आप को बस अपने परिवार से डर लगता है.’’

सक्षम बोला, ‘‘अरे आरना गुस्सा मत

करो बेटा.’’

‘‘नूपुर और मैं उस युग में जन्मे और बड़े हुए हैं जहां पर अपनी खुशी से ज्यादा मम्मीपापा की खुशी का ध्यान रखते हैं.’’

‘‘पर नूपुर तुम्हें क्या लगता है, मैं तुम्हारी सुनने वाला हूं. आज रात जी भर कर बातें करेंगे और इस समस्या का हल निकालने की कोशिश करेंगे.’’

नूपुर भी अंदर से यही चाहती थी. जिंदगी का बो?ा अकेले ढोतेढोते वह थक गई थी. पर

40 वर्ष में आज तक क्या उस ने अपनी मम्मी के खिलाफ जा कर कुछ किया था जो आज कर पाती.

आरना और ओजसी कपड़े बदलने चली गईं सक्षम चुपके से रसोई में आया और नूपुर को बांहों में भरते हुए बोला, ‘‘चोरीचोरी, चुपकेचुपके जो मजा है वह शादी के बाद बीवी के साथ कहां है? अच्छा है तुम्हारा पति तुम्हें तलाक नहीं दे रहा है, हम दोनों सदा प्रेमी ही रहेंगे.’’

नूपुर चिढ़ते हुए बोली, ‘‘हां, हर मर्द जिम्मेदारी से बचना ही चाहता है.’’

‘‘फ्री सैक्स, कंपेनियनशिप, फन ऐंड जीरो रिस्पौंसिबिलिटी ये सब तुम्हें जब इस रिश्ते से मिल ही रहा है तो क्यों शादी के लिए उत्सुक होंगे?’’

सक्षम नूपुर की बात से आहत हो उठा और नूपुर को अपने बंधन से आजाद करते हुए बोला, ‘‘कभी आज तक तुम्हारी मरजी के बिना कुछ किया है जो अब करूंगा?’’

उस के बाद सक्षम बाहर कमरे में जा कर बैठ गया. देर रात तक बातें होती रहीं. अपनी दोनों बेटियों को खुश देख कर नूपुर को लगता था कि सक्षम का साथ उसे खुशी और सुरक्षा दोनों देता जो उस का अपना पति प्रतीक कभी नहीं दे पाया.

नूपुर बस 22 वर्ष की थी जब उस का विवाह प्रतीक से हुआ था. नूपुर के लिए उस उम्र में विवाह का मतलब था कपड़े, मेकअप, गहने और डिनर. विवाह के बाद उसे ये सब भरपूर मिला. 1 वर्ष के भीतर ही आरना और उस के

2 वर्ष बाद ओजसी हो गई थी. 25 वर्ष में जब नूपुर के साथ की लड़कियों की शादी भी नहीं हुई थी या वे लोग रोमांस में व्यस्त थीं, नूपुर 2 बच्चों की मां बन गई थी. कम उम्र और अधिक जिम्मेदारी के कारण नूपुर पूरी तरह से अपनी बच्चियों में डूब गई थी. उसे होश तब आया जब उस के घर पर लेनदारों की भीड़ लग गई. प्रतीक की आमदनी अट्ठन्नी थी परंतु शौक राजा के थे. नूपुर ने भी जल्द ही घर पर ट्यूशन आरंभ कर दी और जैसे ही छोटी ओजसी ने स्कूल में कदम रखा, उस ने भी एक स्कूल में नौकरी करनी शुरू कर दी. नूपुर की नौकरी के बाद प्रतीक और अधिक गैरजिम्मेदार हो गया.

भावनात्मक, आर्थिक और शारीरक रूप से नूपुर शून्य हो गई थी. माह के अंत तक नूपुर का बैंक अकाउंट खाली हो जाता था. मगर घर की छत बनी रहे और बेटियों पर पिता का साया, यह सोच कर नूपुर सम?ाता करती चली गई. मगर हद तो तब हो गई जब नूपुर के मेहनत के पैसों पर सक्षम रंगरलियां मनाने लगा. जब नूपुर ने यह बात अपनी सब से खास सहेली जयति को बताई तो उस ने नूपुर को आढ़े हाथों लिया, ‘‘कैसी औरत हो यार तुम, जिस ने अपने जिंदगी का कंट्रोल पति को दे रखा है.’’

नूपुर सकपकाते हुए बोली, ‘‘तो क्या करूं, कैसे बच्चों को ले कर अकेली रहूं?’’

जयति बोली, ‘‘हमारे  फ्लैट में एक बैडरूम खाली है, तुम और आरना, ओजसी आराम से रह लोगी.’’

नूपुर को जयति पर विश्वास था और उसे पता था कि वह उस का अहित कभी नहीं चाहेगी. इसलिए उसी शनिवार को नूपुर ने अपना और दोनों बेटियों का सामान पैक कर के जब प्रतीक को अवगत कराया तो वह लापरवाही से बोला, ‘‘यह तुम्हारी उस आजाद खयाल सहेली जयति की संगत का नतीजा है. खुद तो अपना घर बसा नहीं और दूसरों का भी तोड़ने पर आमादा है. खैर, अगर तुम्हें लगता है कि मैं एक लापरवाह पिता और पति हूं तो शौक से जा सकती हो.’’

नूपुर को महसूस हुआ जैसे प्रतीक ने राहत की सांस ली हो.

नूपुर आरना और ओजसी को ले कर तो आ गई पर शुरुआत में नूपुर का उस फ्लैट में बिलकुल मन नहीं लगा. वहां पर चारों बैडरूम में अलगअलग लोग रहते थे.एक बैडरूम में जयति, दूसरे में उर्वशी, एक में नूपुर और एक में सक्षम रहता था.

नूपुर जयति से बोली, ‘‘जयति यह अरेंजमैंट कुछ अजीब है.’’

जयति बोली, ‘‘यार तुम्हें 10 हजार ही तो देने पड़ रहे हैं और यह जगह कितनी अच्छी है.’’

‘‘सक्षम और उर्वशी बहुत समझदार और सुलझे हुए लोग हैं, तुम्हें कोई दिक्कत नहीं आएगी.’’

जयति नूपुर की बहुत अच्छी दोस्त थी परंतु उस की शामें अकसर अपने बौयफ्रैंड के साथ व्यस्त रहती थीं. उर्वशी सुबह निकल कर रात में ही आती थी. ऐसे में धीरेधीरे सक्षम नूपुर, आरना और ओजसी की जिंदगी का हिस्सा बन गया.

सक्षम 42 वर्ष का था. पहली पत्नी के साथ उस का अनुभव बेहद खराब था, इसलिए तलाक के 10 वर्ष बाद भी उस ने विवाह नहीं किया था. उसे बच्चे बेहद प्रिय थे. आरना और ओजसी में वह अपने उन अजन्मे बच्चों की छवि देखता था जो उस की बीवी ने अपनी जिद के कारण कोख में ही मार दिए थे.

सक्षम अंकल आरना और ओजसी के लिए हमेशा उन की जिद पूरा करने के लिए तत्पर रहते थे. नूपुर भी धीरेधीरे न चाहते हुए भी सक्षम की तरफ खिंचती गई. जो काम प्रतीक को उन के लिए करने होते थे उन्हें सक्षम कर देता था.

नूपुर और सक्षम के रिश्ते में एकदूसरे के लिए इतना सम्मान था कि चाह कर भी कोई उंगली नहीं उठा सकता था.

एक रात को अचानक नूपुर ने सक्षम को भरी हुई आवाज में बताया कि प्रतीक ने उसके अकाउंट से सारे पैसे निकाल लिए हैं और उस के पास बच्चों की फीस के लिए भी पैसे नहीं बचे हैं. सक्षम ने उस रात तो नूपुर के अकाउंट में पैसे डाल दिए परंतु अगले दिन उस ने नूपुर को आड़े हाथों ले लिया, ‘‘पति से अलग रहने से नहीं परंतु जिंदगी की डोर अपनी हाथों में लेने पर तुम इंडिपैंडैंट कहलाओगी.’’

सक्षम के साहस देने पर ही नूपुर ने अपना सैलरी अकाउंट अलग खाते में खोल दिया. जिंदगी में थोड़ी असुविधा थी पर सुकून था.

अब सक्षम अकसर शाम को नूपुर और बच्चों के साथ समय बिताने आने लगा था. आरना, ओजसी, नूपुर और सक्षम के वे पल बेहद खूबसूरत होते थे. अपने और नूपुर के निजी पलों में भी सक्षम हमेशा ध्यान रखता था कि उस की किसी भी प्रकार की बात से दोनों बेटियां आहत न हों.

नूपुर के परिवार और ससुराल वालों को नूपुर के अलग रहने का फैसला सम?ा नहीं आ रहा था और वह भी ऐसे अजनबियों के साथ. मगर नूपुर को अब इस जौइंट लिविंग में मजा आने लगा था. जहां पर सक्षम का प्यार, जयति का बिंदासपन और उर्वशी का अपनापन था. माह में एक बार सारे सदस्य मिल कर डिनर बनाते थे और अपनी जिंदगी के खट्टेमीठे तजरबे साझ करते थे.

मगर नूपुर की मम्मी हर रोज नूपुर को फोन कर के आगाह करती कि उस ने जल्दबाजी में गलत फैसला ले लिया है. बच्चों को मां और पिता दोनों की जरूरत होती है.

वहीं नूपुर की सास के शब्दों में नूपुर ने खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है. पति का घर पर होना ही काफी है. देरसवेर प्रतीक को अपनी जिम्मेदारियों का एहसास अवश्य हो जाता.

फिर एक दिन जब रविवार को नूपुर की मां आईं तो सक्षम को नूपुर के साथ हंसतेबोलते हुए देख कर उन का माथा ठनक गया और जयति के खुलेपन को देख कर उन का खून खौल उठा. वहीं उर्वशी उन्हें बेहद चालाक लगी.

नूपुर को समझते हुए मम्मी बोली, ‘‘बेटा, तुम्हें क्या लगता है तुम्हारा इस तरह से रहना क्या ठीक है?’’

‘‘तुम्हें अपनी बेटियों की कुछ फिक्र है या नहीं,’’ नूपुर ने अपनी मां के सामने जीवन में पहली बार जबान खोली, ‘‘मम्मी, मुझे यहां अपने घर से ज्यादा अपनापन लगता है.’’

अगले हफ्ते नूपुर का पूरा परिवार वहां आया था. नूपुर को सब ऊंचनीच समझ रहे थे. नूपुर जैसे ही टूट कर अपने परिवार के सामने ?ाकने वाली थी, छोटी बेटी ओजसी आगे बढ़ कर बोली, ‘‘नानी, मामा यहां पर सब लोग हमारे अपने हैं और सक्षम अंकल तो हमारे लिए वह करते हैं जो आज तक पापा ने नहीं किया.’’

नूपुर के भाई और मां के अनुसार जब उन का ही सिक्का खोटा है तो प्रतीक को क्या कह सकते हैं और किस मुंह से.

उधर जब सक्षम नाम की सुगबुगाहट प्रतीक के कानों में पड़ी तो उस का पुरुषत्व ललकार उठा. जब प्यार और भावनाओं से नूपुर को अपने काबू में नहीं कर सका तो प्रतीक ने निश्चय कर लिया कि वह अपनी बेटियों को अपने साथ ले कर जाएगा. नूपुर ने प्रतीक से साफ कह दिया था कि वह उस के साथ नहीं रह सकती है. वह बिना किसी शर्त के उसे डिवोर्स देना चाहती है. मगर प्रतीक का पतिमान इतना आहत हो गया कि उस ने डिवोर्स देने के लिए मना कर दिया था.

इसी बीच उर्वशी का ट्रांसफर नागपुर हो गया था. जयति भी अपनी पसंद के बंधन में बंध गई थी और पास ही में दूसरे फ्लैट में शिफ्ट हो गई थी. नूपुर को घरपरिवार ने बदचलन औरत करार दिया था. समाज के अनुसार नूपुर अपनी बेटियों को गलत रास्ते पर धकेल रही है.

आज ऐसी ही एक शाम थी जब नूपुर कोर्ट के कागज मिलने पर उदास बैठी थी. उन कागजों में प्रतीक के वकील ने नूपुर के चरित्र की धज्जियां उड़ा रखी थीं. साथ ही साथ यह धमकी भी थी कि वह अपने चालचलन के कारण बेटियों और उन के भविष्य के लिए खतरा है.

नूपुर की जिंदगी एक ऐसे घुमावदार मोड़ पर खड़ी हो गई थी, वहां से आगे उसे किस रास्ते पर चलना है उसे खुद नहीं मालूम था. क्या उन का अब इस तरह से सक्षम के साथ एक फ्लैट में रहना ठीक रहेगा? जबकि अब जयति और उर्वशी नहीं है. बहुत सोचविचार कर नूपुर ने दबी जबान में सक्षम से कहा, ‘‘मैं घर वापस लौटना चाहती हूं. तुम जिंदगी में कोई और साथी तलाश लो. मेरा अपना परिवार, प्रतीक का परिवार और प्रतीक भी कभी भी यह होने नहीं देंगे और बिना शादी के अकेले मेरे और तुम्हारा साथ रहने को क्या कहते हैं यह हम भलीभांति जानते हैं. फिर बात केवल मेरी नहीं मेरी बेटियों की भी है. मेरा फैसला उन के भविष्य को अंधकार के गर्त में डाल सकता है.’’

सक्षम उदास हंसी से बोला, ‘‘तुम और वे लोग ही मेरा परिवार हो. हां, परिवार के कानून की मुहर अब भी प्रतीक के पास ही है. पर मैं तुम्हारे आरना और ओजसी के साथ हमेशा खड़ा रहूंगा. अगर नया साथी ढूंढ़ना होता तो मैं बहुत पहले तुम्हारी जिंदगी से चला गया होता.’’

नूपुर ने वापस आ कर अपने निर्णय से आरना और ओजसी को अवगत कराया. दोनों बेटियों को पास बैठा कर नूपुर बोली, ‘‘बेटी, तुम्हारी मां एक कमजोर औरत है. अपनी खुशी को मैं ने कभी प्राथमिकता नहीं दी थी और इस का नतीजा यह निकला कि मैं अंदर ही अंदर खोखली हो गई हूं. तुम अपने हिसाब से और अपनी खुशी के लिए जिंदगी जीना. आप की खुशी आप को अंदर से हिम्मत प्रदान करती है.’’

आरना बोली, ‘‘यह हमारा घर है जहां पर हम सब साथ रहेंगे.’’

नूपुर बोली, ‘‘मगर पहले जयति और उर्वशी भी थे, अब हम ऐसे रहेंगे तो लोग क्या कहेंगे?’’

ओजसी बोली, ‘‘उफ मम्मी, अपनी खुशी का कभी तो सोच लिया करो.’’

तभी बगल के कमरे से सक्षम बाहर आया और बोला, ‘‘यह हमारा घर है. देरसवेर हमारे रिश्ते पर समाज और कानून की मुहर भी लग जाएगी.’’

नूपुर हकलाते हुए बोली, ‘‘यह क्या कह रहे हो सक्षम, हम बिना शादी के कैसे साथ रह सकते हैं?’’

आरना बोली, ‘‘मम्मी, क्या जौइंट फैमिली में सब लोग साथ नहीं रहते हैं?’’

‘‘और आप ही तो कहती थीं कि दूर के रिश्तेदार भी जौइंट फैमिली में आराम से खप जाते हैं. यह भी तो हमारी जौइंट लिविंग है. इस फ्लैट का किराया आधाआधा बांट लेंगे.’’

बीच मे ही सक्षम बोल उठा, ‘‘सुख दोगुना कर लेंगे और दुख आधा कर लेंगे.’’

नूपुर तब भी डरते हुए बोली, ‘‘मगर लोग क्या सोचेंगे?’’

आरना दृढ़ता से बोली, ‘‘मम्मी, लोग कुछ भी सोचे मगर यह तो हमें पता है न कि समान विचारधारा के वयस्क लोग अपनी खुशी के लिए एकसाथ रह सकते है. इस के लिए हमें किसी की इजाजत की जरूरत नहीं है. यह हमारा लिव इन नहीं बल्कि जौइंट लिविंग है.

New Year Special Story : कितने दूर कितने पास

New Year Special Story : सरकारी सेवा से मुक्त होने में बस, 2 महीने और थे. भविष्य की चिंता अभी से खाए जा रही थी. कैसे गुजारा होगा थोड़ी सी पेंशन में. सेवा से तो मुक्त हो गए परंतु कोई संसार से तो मुक्त नहीं हो गए. बुढ़ापा आ गया था. कोई न कोई बीमारी तो लगी ही रहती है. कहीं चारपाई पकड़नी पड़ गई तो क्या होगा, यह सोच कर ही दिल कांप उठता था. यही कामना थी कि जब संसार से उठें तो चलतेफिरते ही जाएं, खटिया रगड़ते हुए नहीं. सब ने समझाया और हम ने भी अपने अनुभव से समझ लिया था कि पैसा पास हो तो सब से प्रेमभाव और सुखद संबंध बने रहते हैं. इस भावना ने हमें इतना जकड़ लिया था कि पैसा बचाने की खातिर हम ने अपने ऊपर काफी कंजूसी करनी शुरू कर दी. पैसे का सुख चाहे न भोग सकें परंतु मरते दम तक एक मोटी थैली हाथ में अवश्य होनी चाहिए. बेटी का विवाह हो चुका था. वह पति और बच्चों के साथ सुखी जीवन व्यतीत कर रही थी. जैसेजैसे समय निकलता गया हमारा लगाव कुछ कम होता चला गया था. हमारे रिश्तों में मोह तो था परंतु आकर्षण में कमी आ गई थी. कारण यह था कि न अब हम उन्हें अधिक बुला सकते थे और न उन की आशा के अनुसार उन पर खर्च कर सकते थे. पुत्र ने अवसर पाते ही दिल्ली में अपना मकान बना लिया था. इस मकान पर मैं ने भी काफी खर्च किया था.

आशा थी कि अवकाश प्राप्त करने के बाद इसी मकान में आ कर पतिपत्नी रहेंगे. कम से कम रहने की जगह तो हम ने सुरक्षित कर ली थी. एक दिन पत्नी के सीने में दर्द उठा. घर में जितनी दवाइयां थीं सब का इस्तेमाल कर लिया परंतु कुछ आराम न हुआ. सस्ते डाक्टरों से भी इलाज कराया और फिर बाद में पड़ोसियों की सलाह मान कर 1 रुपए की 3 पुडि़या देने वाले होमियोपैथी के डाक्टर की दवा भी ले आए. दर्द में कितनी कमी आई यह कहना तो बड़ा कठिन था परंतु पत्नी की बेचैनी बढ़ गई. एक ही बात कहती थी, ‘‘बेटी को बुला लो. देखने को बड़ा जी चाह रहा है. कुछ दिन रहेगी तो खानेपीने का सहारा भी हो जाएगा. बहू तो नौकरी करती है, वैसे भी न आ पाएगी.’’ ‘‘प्यारी बेटी,’’ मैं ने पत्र लिखा, ‘‘तुम्हारी मां की तबीयत बड़ी खराब चल रही है. चिंता की कोई बात नहीं. पर वह तुम्हें व बच्चों को देखना चाह रही है. हो सके तो तुम सब एक बार आ जाओ. कुछ देखभाल भी हो जाएगी. वैसे अब 2 महीने बाद तो यह घर छोड़ कर दिल्ली जाना ही है. अच्छा है कि तुम अंतिम बार इस घर में आ कर हम लोगों से मिल लो. यह वही घर है जहां तुम ने जन्म लिया, बड़ी हुईं और बाजेगाजे के साथ विदा हुईं…’’ पत्र कुछ अधिक ही भावुक हो गया था.

मेरी ऐसी कोई इच्छा नहीं थी, पर कलम ही तो है. जब चलने लगती है तो रुकती नहीं. इस पत्र का कुछ ऐसा असर हुआ कि बेटी अपने दोनों बच्चों के साथ अगले सप्ताह ही आ गई. दामाद ने 10 दिन बाद आने के लिए कहा था. न जाने क्यों मांबेटी दोनों एकदूसरे के गले मिल कर खूब रोईं. भला रोने की बात क्या थी? यह तो खुशी का अवसर था. मैं अपने नातियों से गपें लगाने लगा. रचना ने कहा, ‘‘बोलो, मां, तुम्हारे लिए क्या बनाऊं? तुम कितनी दुबली हो गई हो,’’ फिर मुझे संबोधित कर बोली, ‘‘पिताजी, बकरे के दोचार पाए रोज ले आया कीजिए. यखनी बना दिया करूंगी. बच्चों को भी बहुत पसंद है. रोज सूप पीते हैं. आप को भी पीना चाहिए,’’ फिर मेरी छाती को देखते हुए बोली, ‘‘क्या हो गया है पिताजी आप को? सारी हड्डियां दिखाई दे रही हैं. ठहरिए, मैं आप को खिलापिला कर खूब मोटा कर के जाऊंगी. और हां, आधा किलो कलेजी- गुर्दा भी ले आइएगा. बच्चे बहुत शौक से खाते हैं.’’ मैं मुसकराने का प्रयत्न कर रहा था, ‘‘कुछ भी तो नहीं हुआ. अरे, इनसान क्या कभी बुड्ढा नहीं होता? कब तक मोटा- ताजा सांड बना रहूंगा? तू तो अपनी मां की चिंता कर.’’ ‘‘मां को तो देख लूंगी, पर आप भी खाने के कम चोर नहीं हैं. आप को क्या चिंता है? लो, मैं तो भूल ही गई. आप तो रोज इस समय एक कप कौफी पीते हैं. बैठिए, मैं अभी कौफी बना कर लाती हूं. बच्चो, तुम भी कौफी पियोगे न?’’ मैं एक असफल विरोध करता रह गया. रचना कहां सुनने वाली थी. दरअसल, मैं ने कौफी पीना अरसे से बंद कर दिया था. यह घर के खर्चे कम करने का एक प्रयास था. कौफी, चीनी और दूध, सब की एकसाथ बचत. पत्नी को पान खाने का शौक था. अब वह बंद कर के 10 पैसे की खैनी की पुडि़या मंगा लेती थी, जो 4 दिन चलती थी. हमें तो आखिर भविष्य को देखना था न.

‘‘अरे, कौफी कहां है, मां?’’ रचना ने आवाज लगा कर पूछा, ‘‘यहां तो दूध भी दिखाई नहीं दे रहा है? लो, फ्रिज भी बंद पड़ा है. क्या खराब हो गया?’’ मां ने दबे स्वर में कहा, ‘‘अब फ्रिज का क्या काम है? कुछ रखने को तो है नहीं. बेकार में बिजली का खर्चा.’’ ‘‘पिताजी, ऐसे नहीं चलेगा,’’ रचना ने झुंझला कर कहा, ‘‘यह कोई रहने का तरीका है? क्या इसीलिए आप ने जिंदगी भर कमाया है? अरे ठाट से रहिए. मैं भी तो सिर उठा कर कह सकूं कि मेरे पिताजी कितनी शान से रहते हैं. ए बिट्टू, जा, नीचे वाली दुकान से दौड़ कर कौफी तो ले आ. हां, पास ही जो मिट्ठन हलवाई की दुकान है, उस से 1 किलो दूध भी ले आना. नानाजी का नाम ले देना, समझा? भाग जल्दी से, मैं पानी रख रही हूं.’’ किट्टू बोला, ‘‘मां, मैं भी जाऊं. फाइव स्टार चाकलेट खानी है.’’ ‘‘जा, तू भी जा, शांति तो हो घर में,’’ रचना ने हंस कर कहा, ‘‘चाकलेट खाने की तो ऐसी आदत पड़ गई है कि बस, पूछो मत. इन की तो नौकरी भी ऐसी है कि मुफ्त देने वालों की कमी नहीं है.’’ मैं मन ही मन गणित बिठा रहा था. 5 रुपए की चाकलेट, 6 रुपए का दूध, 15 रुपए की कौफी, 16 रुपए की आधा किलो कलेजी, ढाई रुपए के 2 पाए…’’ कौफी पी ही रहा था कि रचना का क्रुद्ध स्वर कानों में पड़ा, ‘‘मां, तुम ने घर को क्या कबाड़ बना रखा है. न दालें हैं न सब्जी है, न मसाले हैं. आप लोग खाते क्या हैं? बीमार नहीं होंगे तो क्या होंगे? छि:, मैं भाभी को लिख दूंगी. आप की खूब शिकायत करूंगी. दिल्ली में अगर आप को इस हालत में देखा तो समझ लेना कि भाभी से तो लड़ाई करूंगी ही, आप से भी कभी मिलने नहीं आऊंगी.’

रचना जल्दी से सामान की सूची बनाने लगी. मेरी पत्नी का खाना बनाने को मन नहीं करता था. उसे अपनी बीमारी की चिंता अधिक सताती थी. पासपड़ोस की औरतें भी उलटीसीधी सीख दे जाया करती थीं. मैं ने भी समझौता कर लिया था. जो एक समय बन जाता था वही दोनों समय खा लेते थे. आखिर इनसान जिंदा रहने के लिए ही तो खाता है. अब इस उम्र में चटोरापन किस काम का. यह बात अलग थी कि हमारा खर्च आधा रह गया था. बैंक में पैसे भी बढ़ रहे थे और सूद भी. पत्नी ने धीरे से कहा, ‘‘यह तो पराया समझ कर घर लुटा रही है. सामान तुम ही लाना और मुझे यखनीवखनी कुछ नहीं चाहिए. कलेजी भी कम लाना. अगर बच्चों को खिलाना है तो सीधी तरह से कह देती. लगता है मुझे ही रसोई में लगना पड़ेगा. हमें आगे का देखना है कि अभी का?’’ फिर सिर पर हाथ रखते हुए बोली, ‘‘अभी तो दामाद को भी आना है. उन्हें तो सारा दिन खानेपीने के सिवा कुछ सूझता ही नहीं.’’ ‘‘तुम ने ही तो कहा था बुलाने को.’’ ‘‘कहा था तो क्या तुम मना नहीं कर सकते थे. ऐसा तो कभी नहीं हुआ कि जो मैं ने कहा वह पत्थर की लकीर हो गई,’’ पत्नी ने उलाहना दिया. ‘‘अब तो भुगतना ही पड़ेगा. अब देर हो गई. कल सुबह बैंक से पैसे निकालने जाना पड़ेगा,’’ मैं ने दुखी हो कर कहा. इतने में रचना आ गई, ‘‘मां, देसी घी कहां है? दाल किस में छौंकूंगी? रोटी पर क्या लगेगा?’’ मां ने ठंडे दिल से कहा, ‘‘डाक्टर ने देसी घी खाने को मना किया है न. चरबी वाली चीजें बंद हैं. तेरे लिए आधा किलो मंगवा दूंगी.’’ मैं ने खोखली हंसी से कहा, ‘‘कोलेस्टेराल बढ़ जाता है न, और रक्तचाप भी.’’ ‘‘भाड़ में गए ऐसे डाक्टर. हड्डी- पसली निकल रही है, सूख कर कांटा हो रहे हैं और कोलेस्टेराल की बात कर रहे हैं. आप अभी 5 किलोग्राम वाले डब्बे का आर्डर कर आइए. मेरे सामने आ जाना चाहिए,’’ रचना ने धमकी दी. मेरे और पत्नी के दिमाग में एक ही बात घूम रही थी, ‘कितना खर्च हो जाएगा इन के रहते. सेवा से अवकाश लेने वाला हूं. कम खर्च में काम चलाना होगा. बेटे के ऊपर भी तो बोझ बन कर नहीं रहना है.’ सुबह ही सुबह रचना दूध वाले से झगड़ा कर रही थी, ‘‘क्यों, पहलवान, मैं क्या चली गई, तुम ने तो दूध देना ही बंद कर दिया.’’ ‘‘बिटिया, हम क्यों दूध बंद करेंगे? मांजी ने ही कहा कि बस, आधा किलो दे जाया करो. चाय के लिए बहुत है. क्या इसी घर में हम ने 4-4 किलो दूध नहीं दिया है?’’ ‘‘देखो, जब तक मैं हूं, 3 किलो दूध रोज चाहिए. बच्चे दोनों समय दूध लेते हैं. जब मैं चली जाऊं तो 2 किलो देना, मां मना करें या पिताजी.

यह मेरा हुक्म है, समझे?’’ ‘‘समझा, बिटिया, हम भी तो कहें, क्यों मांजी और बाबूजी कमजोर हो रहे हैं. यही तो खानेपीने की उम्र है. अभी दूध नहीं पिएंगे तो कब पिएंगे?’’ 18 रुपए का दूध रोज. मैं मन ही मन सोच रहा था कि पत्नी इशारे से दूध वाले को कुछ कहने का असफल प्रयत्न कर रही थी. ‘‘अंडे भी नहीं हैं. न मक्खन न डबल रोटी,’’ रचना चिल्ला रही थी, ‘‘आप लोग बीमार नहीं पड़ेंगे तो क्या होगा. बिट्टू, जा दौड़ कर नीचे से एक दर्जन अंडे ले आ और 500 ग्राम वाली मक्खन की टिकिया, नानाजी का नाम ले देना.’’ ‘‘मां, मैं भी जाऊं,’’ किट्टू बोला, ‘‘टाफी लाऊंगा. तुम्हारे लिए भी ले आऊं न?’’ ‘‘जा बाबा, जा, सिर मत खा,’’ रचना ने हंसते हुए कहा. हाथ दबा कर खर्च करने के चक्कर में बहुत मना करने पर भी पत्नी ने रसोई का काम संभाल लिया. जब दामाद आए तब तो किसी को फुरसत ही कहां. रोज बाजार कुछ न कुछ खरीदने जाना और नहीं तो यों ही घूमने के लिए. रिश्तेदार भी कई थे. कोई मिलने आया तो किसी के यहां मिलने गए. परिणाम यह हुआ कि पत्नी के लिए रसोई लक्ष्मण रेखा बन गई. दामाद की सारी फरमाइशें रचना मां को पहुंचा देती थी, ‘‘सास के हाथ के कबाब तो बस, लाजवाब होते हैं. उफ, पिछली दफा जो कीमापनीर खाया था, आज तक याद है. मुर्गमुसल्लम तो जो मां के हाथ का खाया था अशोक होटल में भी क्या बनेगा.’’ जब तक रचना पति और बच्चों के साथ वापस गई, मेरी पत्नी के सीने का दर्द वापस आ गया था, लेकिन दर्द के बारे में सोचने की फुरसत कहां थी. घर छोड़ कर दिल्ली जाने में 1 महीना रह गया था. कुछ सामान बेचा तो कुछ सहेजा. एक दिन 20-25 बक्सों का कारवां ले कर जब दिल्ली पहुंचे तो चमचमाते मुंह से पुत्र ने स्वागत किया और बहू ने सिर पर औपचारिक रूप से साड़ी का पल्ला खींचते हुए सादर पैर छू कर हमारा आशीर्वाद प्राप्त किया. पोता दादी से चिपक गया तो नन्ही पोती मेरी गोदी में चढ़ गई. सुबह जल्दी उठने की आदत थी. पुत्र का स्वर कानों में पड़ा, ‘‘सुनो, दूध 1 किलो ज्यादा लेना. मां और पिताजी सुबह नाश्ते में दूध लेते हैं.’’ बहू ने उत्तर दिया, ‘‘दूध का बिल बढ़ जाएगा. इतने पैसे कहां से आएंगे? और फिर अकेला दूध थोड़े ही है. अंडे भी आएंगे. मक्खन भी ज्यादा लगेगा…’’ पुत्र ने झुंझला कर कहा, ‘‘ओहो, वह हिसाबकिताब बाद में करना. मांबाप हमारे पास रहने आए हैं. उन्हें ठीक तरह से रखना हमारा कर्तव्य है.’’ ‘‘तो मैं कोई रोक रही हूं? यही तो कह रही हूं कि खर्च बढ़ेगा तो कुछ पैसों का बंदोबस्त भी करना पड़ेगा. बंधीबंधाई तनख्वाह के अलावा है क्या?’’ ‘‘देखो, समय से सब बंदोबस्त हो जाएगा. अभी तो तुम रोज दूध और अंडों का नाश्ता बना देना.’’ ‘‘ठीक है, बच्चों का दूध आधा कर दूंगी. एक समय ही पी लेंगे. अंडे रोज न बना कर 2-3 दिन में एक बार बना दूंगी.’’

‘‘अब जो ठीक समझो, करो,’’ बेटे ने कहा, ‘‘सेना के एक कप्तान से मैं ने दोस्ती की है. एक दिन बुला कर उसे दावत देनी है.’’ ‘‘वह किस खुशी में?’’ ‘‘अरे, जानती तो हो, आर्मी कैंटीन में सामान सस्ता मिलता है, एक दिन दावत देंगे तो साल भर सामान लाते रहेंगे.’’ ‘‘ठीक तो है, रंजना के यहां तो ढेर लगा है. जब पूछो, कहां से लिया है तो बस, इतरा कर कहती है कि मेजर साहब ने दिलवा दिया है.’’ जब नाश्ता करने बैठे तो मैं ने कहा, ‘‘अरे, यह दूध मेरे लिए क्यों रख दिया. अब कोई हमारी उम्र दूध पीने की है. लो, बेटा, तुम पी लो,’’ मैं ने अपना आधा प्याला पोते के आधे प्याले में डाल दिया. पत्नी ने कहा, ‘‘यह अंडा तो मुझे अब हजम नहीं होता. बहू, इन बच्चों को ही दे दिया करो. बाबा, डबल रोटी में इतना मक्खन लगा दिया…मैं तो बस, नाम मात्र का लेती हूं.’’ बहू ने कहा, ‘‘मांजी, ऐसे कैसे होगा? बच्चे तो रोज ही खाते हैं. आप जब तक हमारे पास हैं अच्छी तरह खाइए. लीजिए, आप ने भी दूध छोड़ दिया.’’ ‘‘मेरी सोना को दे दो. बच्चों को तो खूब दूध पीना चाहिए.’’ ‘‘हां, बेटा, मैं तो भूल ही गया था. तुम्हारी मां के सीने में दर्द रहता है. काफी दवा की पर जाता ही नहीं. अच्छा होता किसी डाक्टर को दिखा देते. है कोई अच्छा डाक्टर तुम्हारी जानपहचान का?’’ बेटे ने सोच कर उत्तर दिया, ‘‘मेरी जानपहचान का तो कोई है नहीं पर दफ्तर में पता करूंगा. हो सकता है एक्सरे कराना पड़े.’’ बहू ने तुरंत कहा, ‘‘अरे, कहां डाक्टर के चक्कर में पड़ोगे, यहां कोने में सड़क के उस पार घोड़े की नाल बनाने वाला एक लोहार है. बड़ी तारीफ है उस की. उस के पास एक खास दवा है. बड़े से बड़े दर्द ठीक कर दिए हैं उस ने. अरे, तुम्हें तो मालूम है, वही, जिस ने चमनलाल का बरसों पुराना दर्द ठीक किया था.’’

‘‘हां,’’ बेटे ने याद करते हुए कहा, ‘‘ठीक तो है. वह पैसे भी नहीं लेता. बस, कबूतरों को दाना खिलाने का शौक है. सो वही कहता है कि पैसों की जगह आप आधा किलो दाना डाल दो, वही काफी है.’’ मैं ने गहरी सांस ली. पत्नी साड़ी के कोने से मेज पर पड़ा डबल रोटी का टुकड़ा साफ कर रही थी. मेरी मुट्ठी भिंच गईं. मुझे लगा मेरी मुट्ठी में इस समय अनगिनत रुपए हैं. सोचने की बात सिर्फ यह थी कि इन्हें आज खत्म करूं या कल, परसों या कभी नहीं. बेटा दफ्तर जा रहा था. ‘‘सुनो,’’ उस ने बहू से कहा, ‘‘जरा कुछ रुपए दे दो. लौटते हुए गोश्त लेता आऊंगा, और रबड़ी भी. पिताजी को बहुत पसंद है न.’’ बहू ने झिड़क कर कहा, ‘‘अरे, पिताजी कोई भागे जा रहे हैं जो आज ही रबड़ी लानी है? रहा गोश्त, सो पाव आध पाव से तो काम चलेगा नहीं. कम से कम 1 किलो लाना पड़ेगा. मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं. अब खाना ही है तो अगले महीने खाना.’’ ‘‘ठीक है,’’ कह कर बेटा चला गया. मुझे एक बार फिर लगा कि मेरी मुट्ठी में बहुत से पैसे हैं. मैं ने मुट्ठी कस रखी है. प्रतीक्षा है सिर्फ इस बात की कि कब अपनी मुट्ठी ढीली करूं. पत्नी ने कराहा. शायद सीने में फिर दर्द उठा था.

New Year 2025 : ऐक्ट्रैस Kritika Kamra ने नए साल पर दिया ये मैसेज, पढ़ें खास इंटरव्यू

सुंदर, विनम्र और हंसमुख अभिनेत्री कृतिका कामरा ने अभिनय के क्षेत्र में एक लंबी पारी तय किया है, इस दौरान उन्होंने कई उतारचढ़ाव का सामना  किया और मंजिल तक पहुंची है. उन्होंने टीवी से कैरियर की शुरुआत की है, लेकिन फिल्मों और वेब सीरीज में भी काफी अच्छा काम कर रही है. उनके हिसाब से जीवन एक चुनौती है, इसे हमेशा स्वीकार करना पड़ता है, तभी आगे बढ़ा जा सकता है. साल 2024 उनके लिए काफी अच्छा रहा, इसे वह एंजौय करने वाली है. अभिनेत्री कृतिका कामरा के पास इसे सेलिब्रैट करने की कई वजह है, उनकी वेब सीरीज ग्यारह ग्यारह को सभी ने बहुत पसंद किया है और कई वेब सीरीज साल 2025 की शुरूआत में रिलीज के लिए तैयार है. उन्होंने खास गृहशोभा से बात की, आइए जानते है, उनकी जर्नी उनकी जुबानी.

रिस्क लेना जरूरी

ये साल काफी उतारचढ़ाव के बीच गुजरा है, लेकिन मेरी वेब सीरीज ग्यारह ग्यारह काफी सफल रही, इसे सबसे अधिक देखा जाने वाला शो बना, क्योंकि ऐसा शो पहले बना नहीं था, मैंने पुलिस वाली का रोल पहले कभी किया नहीं था, ऐसे में मुझे डर था कि किसी नई भूमिका में दर्शक मुझे पसंद करेंगे या नहीं, क्योंकि जब किसी एक भूमिका में दर्शक किसी आर्टिस्ट को बारबार देखते है, तो नई भूमिका को स्वीकार करने में उन्हे समय लगता है. मुझे भी डर लगा था कि ये शो सबको पसंद आएगी या नहीं, लेकिन शो बनने के बाद सबको पसंद आई है. दर्शकों ने मेरे बारें में अच्छीअच्छी कमेंट्स लिखे है. मैंने इससे सीखा है कि लाइफ में रिस्क और एक्सपेरिमेंट करते रहना चाहिए. इससे बहुत कुछ सीखने को मिलता है. इस तरह से बीता साल अच्छा रहा है, लेकिन कुछ चीजों में वक्त भी लगा. मसलन मैं दो शो में एक साथ अभिनय कर रही थी, एक में काफी वक्त लगा. इस तरह से ये साल थोड़ा स्लो भी रहा है, लेकिन साल 2025 धमाकेदार शुरुआत होने वाली है, जिसे लेकर मैं बहुत खुश हूं.

नया साल नई सीरीज

कृतिका आगे कहती हैं कि आने वाली वेब सीरीज फौर योर आइस ओन्ली इसकी शूटिंग खत्म हो चुकी है, मटका किंग में अभिनेता विजय वर्मा के साथ अभिनय कर रही हूं, उसकी शूटिंग चल रही है, जो जनवरी में खत्म होगी. इन दोनों शो में मैंने अलगअलग भूमिका निभाई है, मैं बहुत ऐक्साइटेड हूं. मैं एक नई भूमिका से दर्शकों को चकित करने वाली हूं. शो मटका किंग 70 की दशक में शुरू होने वाली बेटिंग को लेकर कहानी है, जहां एक उद्यमी कपास व्यापारी है, जो सम्मान चाहता है. एक बेटिंग का खेल शुरू होता है, जिसे ‘मटका’ कहा जाता है. उसका यह खेल शहर में तूफान मचा देता है. इसमें मैं मुख्य भूमिका में हूं. दूसरी वेब सीरीज स्पाइ थ्रिलर ड्रामा है, वह भी 70 के दशक की कहानी है, इसमें स्पाइ, एक मिशन को पूरा करने के लिए क्याक्या करते है उसे दिखाया गया है.

खुश हूं जर्नी से

अब तक की जर्नी से कृतिका संतुष्ट नहीं, लेकिन खुश जरूर है, क्योंकि उन्होंने टीवी, फिल्म और वेब सीरीज सभी में काम किया है, वह कहती है कि मैं अगर अपने लिए खुद की स्टैन्डर्ड हाई न रखूं, तो कैसे चलेगा. मुझे खुशी इस बात से है कि मैंने सभी प्लेटफौर्म पर काम किया है, फिर चाहे टीवी, फिल्म हो या ओटीटी, मेरे लिए खुश होना जरूरी है, मैंने काफी अलगअलग तरीके का अभिनय किया है, मजा ओटीटी पर अधिक आ रहा है , क्योंकि जिस तरह की लाइकिंग, चुनौती और काम का स्टैन्डर्ड इंटरनेशनल लेवल का ओटीटी पर है, वह पहले नहीं मिला. इन सभी शो को दिखाने वाले इंटरनेशनल कम्पनियां है, इनका फॉर्मेट भी काफी मौडर्न होता है, क्योंकि 250 देशों में करोड़ों दर्शक देखते है, वह बड़ी बात होती है. इसके अलावा ओटीटी पर सबसे बढ़िया फ़ीमेल चरित्र देखने को मिलता है. पिछले कुछ सालों में ऐसे कई महिला प्रधान शो आई है, जिसे दर्शकों ने पसंद किया है और हीरोइनें काफी सफल रही है.

आज की कहानी है रिलेटेबले

कहानियों में आए परिवर्तन के बारें में कृतिका कहती हैं कि पिछले कुछ सालों में कहानियां रीयलिस्टिक हो गई है. मैंने जब से अभिनय को सीरीयसली लिया है, तब से देखा है कि फिल्मों की कहानियों में मनोरंजन जरूरी है, लेकिन मुझे मजा तब अधिक आता है, जब कोई कहानी का विषय सोचने पर मजबूर करें. वैसा काम अब शुरू हुआ हैं, यहां कहानियों के जरिए कुछ बात कहा जा रहा है. आज के दर्शक भी जागरूक हो चुके है, क्योंकि सबके पास एक फोन है, जिससे वे कभी भी अपनी मनपसंद चीजें देख सकते है  और उन्हे एक स्मार्ट चीज देखने की मांग होती है, पुरानी चीज को एक नए पैकेज बना कर परोसने से वह नहीं चलती.

दर्शक भी जिम्मेदार

एक जैसी कहानियों का ओटीटी पर दिखाए जाने को लेकर कृतिका कहती हैं कि मैं जब टीवी पर काम कर रही थी, तो सिर्फ सासबहू वाली या सुपर नैचुरल ड्रामा जैसे नागिन, सांप, बिच्छू, भूत, मक्खी आदि शो चल रही थी, इसमें कोई गलत बात नहीं है, क्योंकि जब एक चीज चल जाती है, तो सभी उसी को फौलो करने लगते है, भेड़ चाल शुरू हो जाती है, वैसा ही फिल्मों के साथ होने लगता है, इस साल सारे एक्शन फिल्में आई. ओटीटी पर क्राइम ड्रामा अधिक आई. असल में सबको प्रौफिट बनाना है, क्योंकि ये आर्ट के अलावा एक बिजनेस इंडस्ट्री भी है, जो चलेगी वही बनेगी. इसलिए इसकी जिम्मेदारी दर्शकों पर भी आती है, वे हर नई कहानी को चांस दे. दर्शकों ने मुंज्या, मडगांव, लापता लेडीस आदि जैसी फिल्मों को भी चांस दिया है, सिर्फ बड़ी फिल्में जैसे जवान, पठान, सिंघम जैसी फिल्मों को ही चांस न दे, सभी को स्वीकारें. तभी इन फिल्मों को भी प्लेटफौर्म मिलेगा.

काम्पिटिशन अधिक

साउथ फिल्म इंडस्ट्री का बौलीवुड पर हावी होने को लेकर कृतिका कहती हैं कि मुझे इस बात से कोई फर्क महसूस नहीं होता, क्योंकि देखा जाय तो ये इंडियन सिनेमा इंडस्ट्री है, जहां पहले टीवी और फिल्म की तुलना होती थी, जिसका असर नहीं पड़ा, लेकिन आज साउथ की फिल्में मैनस्ट्रीम होकर पैसे कमाने लगी है, अब सबका ध्यान जा रहा है, जबकि पहले भी साउथ में फिल्में बनती थी, सब पसंद करते थे. अब सबका ध्यान उधर जा रहा है, क्योंकि अब फिल्में डब होकर सभी जगह पर रिलीज हो रही है, इससे कौमपीटीशन बढ़ा है. मुझे कोई नॉर्थ साउथ डिवाइड समझ नहीं आता, जहां काम अच्छा हो, उसे तालियाँ और पैसे सब मिलने चाहिए. मुझे पर्सनली मलयालम फिल्में बहुत पसंद है. अगर एक जैसे लोग ही रूल करें, तो नया कभी होगा नहीं.

आपको बताते चलें कि धारावाहिक ‘कितनी मोहब्बत है’ से चर्चित होने वाली अभिनेत्री कृतिका कामरा टीवी इंडस्ट्री का एक जाना माना नाम है. टीवी शो के अलावा उसने कई फिक्शन धारावाहिक और रियलिटी शोज भी किये है. बचपन से ही डांस और संगीत की शौक रखने वाली कृतिका को यहाँ तक पहुँचने में उनके पेरेंट्स ने साथ दिया. ऐक्टिंग के अलावा कृतिका चंदेरी साड़ी की एक ब्रांड सिनेबार को भी चलाती है, क्योंकि उनका होमटाउन चंदेरी शहर के पास में है. वह इसे पूरे देश में इसे और इसकी कारीगरी को फैलाना चाहती है. नए साल के लिए उनका सबसे मेसेज है कि नए साल को पूरे जोश के साथ शुरू करें, जिसमें काइन्ड्नेस, प्यार और सकारात्मकता शामिल हो.

RJ Simran Singh : इंस्टाग्राम इंफ्लुन्सर सिमरन सिंह के सुसाइड की खबर से फैंस में शोक की लहर

RJ Simran Singh : साल 2024 खत्म होने की कगार पर है. साल के लास्ट वीक में जहां लोग मस्ती और एंजौय के मूड में सेलिब्रेशन की तैयारियों में बिजी है. वहीं ये साल जातेजाते कुछ ऐसे हादसे दे जाता है. जिसे सुन कर मन दुखी हो जाता है.

हाल ही में रेडियो जौकी और इंस्टाग्राम इन्फ्लुएंसर सिमरन सिंह का अपने ही घर में पंखे के फंदे पर बौडी लटकी हुई मिली. पुलिस के अनुसार उन्होंने सुसाइड किया है. पुलिस ने पोस्टमार्टम के बाद शव परिजनों को सौंप दिया है.

फ्रेंड ने दी सूचना

जम्मू के नानक नगर की रहने वाली 26 वर्षीय आरजे सिमरन का गुरुग्राम के सेक्टर 47 की कोठी नंबर 58 में रेंट के फ्लैट में पंखे से लटकता शव पाया गया. सिमरन दो साल से गुरुग्राम में अपने कुछ फ्रेंड्स के साथ रह रही थी. बुधवार रात वह अपने कमरे में मृत पाई गईं. एक पुलिस औफिसर ने बताया कि उन्हें बुधवार रात लगभग साढ़े नौ बजे आरजे सिमरन सिंह के एक दोस्त से इंफौर्मेशन मिली, जो उसी घर में रहता था. हालांकि मौके से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला है.

आखिरी इंस्टाग्राम पोस्ट

सोशल मीडिया पर काफी फेमस सिमरन सिंह के इंस्टाग्राम पर करीब 6.82 लाख फौलोअर्स हैं. पुलिस जांच में पता चला है कि सिमरन ने 13 दिसंबर को इंस्टाग्राम पर लास्ट एक रील पोस्ट की थी. सुसाइड से 13 दिन पहले की लास्ट पोस्ट में उन्होंने समुद्र किनारे पर डांस करते हुए वीडियो डाला था. इसमें लिखा था- ‘अंतहीन खिलखिलाहट और अपने गाउन के साथ समुद्र तट पर बस एक लड़की.’ सिमरन अपने फैंस के साथ ऐसे फनी रील्स साझा करती थीं, जो उनके फैंस को खुश कर देती थी.

असामयिक मृत्यु पर दुख

रेडियो जौकी सिमरन की अचानक मृत्यु पर उनके फैंस को बहुत दुख पहुंचा है. सभी ने सोशल मीडिया पर दुख जाहिर किया है फैंस के अलावा जम्मूकश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने दुख जाहिर किया है.
एक बयान में उन्होंने, उनकी फैमिली और फैंस के प्रति हार्दिक संवेदना व्यक्त की. जम्मू-कश्मीर नेशनल कौन्फ्रेंस के एक संयुक्त बयान में कहा गया कि सिमरन की आवाज और आकर्षण जम्मू-कश्मीर की भावना से मेल खाता था. हमारे क्षेत्र के सांस्कृतिक ताने-बाने में उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा. सोशल मीडिया पर लोग उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं. पुलिस ने सिमरन के शव को उनकी फैमिली को सौंप दिया है. पुलिस इस मामले की गहराई से जांच कर रही है.

जम्मू की धड़कन

सिमरन के फैंस उन्हें “जम्मू की धड़कन” कहकर बुलाते थे. सिमरन सिंह एक फेमस रेडियो स्टेशन में RJ थीं, लेकिन बाद में उन्होंने वहां से अपनी जौब छोड़ कर फ्रीलांसिंग शुरू कर दी थीं. सिमरन का एक यूट्यूब चैनल भी है. जिसके काफी फौलोअर्स है. वे अक्सर अपनी फोटोज और वीडियोज इंस्टाग्राम पर शेयर करती रहती थीं. जिसे उनके फैंस काफी पसंद करते थे .

सुसाइड की वजह

रिपोर्ट के अनुसार सिमरन ने खुद को अंदर बंद कर लिया है और दरवाजा नहीं खोल रही है. जब पुलिस की एक टीम मौके पर पहुंची और किसी तरह उसके कमरे का दरवाजा खोला तो सामने सिमरन का शव फंदे से लटका हुआ था. पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर मोर्चरी भेज दिया. उनकी फैमिली को सूचित किया गया. परिजनों का कहना था कि पिछले कुछ समय से वह किसी बात को लेकर परेशान थी.

नई लाइफस्टाइल का नए साल में करें स्वागत, लें ऐक्सपर्ट की सलाह

नए साल की खुशियां हर किसी के लिए उमंग भरा होता है, ऐसे में इसकी सेलिब्रेशन भी अलगअलग तरीके से किया जाता है. मुंबई और आसपास के सभी क्षेत्रों में इन दिनों पार्टीज और आउट्डोर का दौर चल रहा है, जिसमें यूथ की भागीदारी सबसे अधिक है. नया साल 2025, नयी आशा, उमंग, नए आरंभ के साथ शुरू होने वाला है. इसमें युवाओं की जिंदगी के कई लक्ष्य होते हैं, जिसमें वे खुद को फिट रखने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं.

नयी डेडलाइन्स, नए काम और नई लाइफस्टाइल में नए बदलाव तय करने का यही सबसे सही अवसर उनके लिए होता है, ऐसे में कुछ तनाव भी उनकी जिंदगी में आ जाते हैं, मसलन पढ़ाई, जौब का प्रेशर, प्रोमोशन की चिंता, समाज की उम्मीदें आदि. नए साल को नई मानसिकता और नई स्टाइल के साथ मनाने की सलाह नवीं मुंबई की कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हौस्पिटल के कंसल्टेंट, साइकियाट्री, डा पार्थ नागदा ने दिया है. उनका कहना है कि कुछ आसान और प्रैक्टिकल सुझाव के साथ नए साल के उमंग को पूरे साल बनाये रखा जा सकता है, जो इस प्रकार है.

मानसिक स्वास्थ्य को दें प्राथमिकता

मानसिक स्वास्थ्य ही आपकी पूरी खुशहाली की आधारशिला है. युवाओं को याद रखना चाहिए कि किसी भी समस्या से परेशान होने पर अपने कजिन्स, भरोसेमंद दोस्त, परिवार के सदस्य या मनोचिकित्सक से बात करने से कभी न हिचकिचाए. हर शाम को अपने जीवन की 3 ऐसी चीजें नोट करें, जिनके लिए आप आभारी हैं. मानसिक स्वास्थ्य की गाइडेंस के लिए हेडस्पेस, कैलम, ब्लैक लोटस जैसे ऐप का इस्तेमाल किया जा सकता है.

रीयलिस्टिक लक्ष्य करें तय

नए साल के संकल्प पूरे न हो पाने का सबसे आम कारण यह है कि लक्ष्य बहुत ज़्यादा महत्वाकांक्षी या अस्पष्ट होते हैं, जो फ्रैंड्स या पीयर प्रेशर की वजह से लिए जाते हैं. परफैक्शन का लक्ष्य न रखें, सरल, पूरा करने जैसा लक्ष्य तय करें, जो स्पेसिफिक हो, मसलन मैं फिट या स्वस्थ रहना चाहता हूं के बजाय, एक स्पेसिफिक लक्ष्य, जो सरल तरीके से होगा, मैं सप्ताह में 3 बार हर दिन 20 मिनट वर्कआउट करूंगा, हर महीने यह अवधि बढ़ाऊंगा जैसे संकल्प को शामिल करें. आपके लक्ष्यों का फ्रेमवर्क विशिष्ट, पूरा करने योग्य, प्रासंगिक और समयबद्ध होना चाहिए, ताकि तनाव कम हो. खुद को प्रेरित के करने के लिए अपनी छोटी-छोटी जीत का जश्न अवश्य मनाए. जैसे-जैसे आप साल भर आगे बढ़ेंगे, लक्ष्यों का पुनर्मूल्यांकन करते रहें और उससे खुद को एडजस्ट करते रहे.

अपनाएं शारीरिक गतिविधियां  

शारीरिक व्यायाम तनाव को कम करने और मूड को बेहतर बनाने के लिए सबसे अधिक उपयुक्त होता है. जैसे चलना, दौड़ना, जौगिंग, पावर योगा, डांस क्लास जैसे आसान प्रोसेस, एंडोर्फिन यानि शरीर द्वारा स्रावित रसायन, जो आपको अच्छा महसूस कराते हैं और शारीरिक स्वास्थ्य में भी सुधार करते हैं. इसके लिए कोई ऐसी गतिविधि खोजें, जो आपको पसंद हो और वीकेंड पर घर के बाहर निकल कर, खुले में गतिविधियों का आनंद लें. इन्स्पायर्ड रहने के लिए किसी स्थानीय फिटनेस क्लब, खेल टीम या क्लासेस में शामिल होना जरूरी होता है. पढ़ाई या काम में छोटेछोटे ब्रेक लें और आसान स्ट्रेचिंग करें या तेज चलें.

रिश्तों की मजबूती पर दें ध्यान

तनाव कम करने में रिश्ते मज़बूत और सहायक होते हैं, जो तनाव कम करने के साथसाथ खुशी को आसानी से बढ़ाते है. यही वजह है कि एक एमएनसी में काम करने वाली सुमन हमेशा किसी समस्या का समाधान अपने भाई से लेती है. इसके अलावा खुद को सकारात्मक लोगों के साथ हमेशा रखने की कोशिश करें, इससे आपको भावनात्मक समर्थन और प्रोत्साहन अधिक मिल सकता है. दोस्तों और परिवार के साथ मिलते-जुलते रहें, अगर परिवार दूर है, तो कम से कम वर्चुअली जरूर मिलें, उनकी बातों को अहमियत दें, ओवर कमिटमेंट से बचने के लिए ना कहना भी सीखें.

स्क्रीन टाइम को करें सीमित

सोशल मीडिया पर रहना, बहुत अधिक समय तक स्क्रीन टाइम से आपकी  जिंदगी बोरिंग हो जाती है, खासकर क्यूरेटेड सोशल मीडिया पोस्ट्स के साथ खुद की तुलना आपके आत्मसम्मान को कम कर सकता है. इतना ही नहीं अधिक स्क्रीन टाइम अन्य गतिविधियों के लिए भी समय को कम कर देता है. इसलिए सोशल मीडिया चेक करने के लिए विशिष्ट समय तय करें और सोने से 1 घंटे पहले फोन को दूर रखें. स्क्रीन टाइम के बजाय ड्राइंग, पेंटिंग, किताबें, मैगजीन पढ़ना, संगीत आदि जैसी गतिविधियों को अपने जीवन में शामिल करें.

अपनाएं खाने की स्वस्थ आदतें

मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में भोजन से प्राप्त पोषण बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, अनाज, फल और सब्जियों से भरपूर संतुलित आहार लें.  2 से 3 दिनों की मील की प्लानिंग पहले से ही करके रखें, ताकि अंतिम समय पर भागादौड़ी से बचा जा सकें. खाने में अच्छी सामग्री का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, इसे सुनिश्चित करने के लिए घर पर ही खाना पकाएं. बहुत अधिक कैफीन और शक्कर मिलाए गए स्नैक्स आपकी एनर्जी को कम करते हैं, इनसे बचें. मंचिंग के लिए स्नैकिंग के स्वस्थ विकल्प को ही चुने.

अपने शौक और जुनून को पीछे न छोड़ें

अपने आपको उन गतिविधियों में व्यस्त रखें, जो आपको पसंद हैं, इससे जिंदगी के उद्देश्य और खुशी दोनों महसूस हो सकती है. पेंटिंग, ड्राइंग, डांसिंग, स्केचिंग, साइकिल चलाना, खाना बनाना, बेकिंग, बागवानी, नई भाषा सीखना, संगीत वाद्ययंत्र सीखना आदि से खुशी और संतुष्टि सब मिल सकती है और तनाव भी कम होता है. अपनी हौबीज के लिए सप्ताह में कम से कम 1 घंटा अवश्य निकालें. आजकल औनलाइन भी कई सुविधाएं हैं, जिसमें क्लब या औनलाइन कम्युनिटी में शामिल होकर आप एक ही रुचि वाले, अलगअलग बैकग्राउंड के कई लोगों से जुड़ सकते हैं. खुद की पसंद जानने के लिए विभिन्न प्रकार के शौक के साथ एक्सपेरिमेंट करते रहे.

इस प्रकार डौक्टर आगे कहते हैं कि छोटे और लगातार प्रयास से मिली उपलब्धि, लंबे समय तक चलने वाले परिणाम दे सकते हैं, शौर्टकट जीवन में कुछ भी नहीं होता. विचारों में हमेशा सकारात्मक सोच रखें और आने वाले साल को स्वस्थ लाइफस्टाइल के साथ सेलिब्रेट करें.

नरेंद्र मोदी और प्रियंका चोपड़ा से भी ज्यादा फौलोअर्स हैं ऐक्ट्रैस Shraddha Kapoor के…

Shraddha Kapoor : आजकल स्टार की शोहरत को उसके सोशल मीडिया फौलोअर्स के आधार पर आंका जाता है. जिसके जितने ज्यादा फौलोअर्स हैं वह पूरी दुनिया में उतना ही ज्यादा प्रसिद्ध माना जाता है. सोशल मीडिया पर इंस्टाग्राम इस मामले में सबसे आगे है क्योंकि इंस्टाग्राम पर जितने ज्यादा फौलोअर्स होते हैं सेलिब्रिटी के, वह उतना ही ज्यादा प्रसिद्ध माना जाता है.

दुनिया में कई ऐसे सितारे हैं जिनके करोड़ों में फैंस हैं. लेकिन भारत में खास तौर पर पांच ऐसे सेलिब्रिटी हैं जिन्हें पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा फौलो किया जाता है. इसमें पहला नाम आता है क्रिकेटर विराट कोहली का जिनके 270 मिलियन फौलोअर्स पूरी दुनिया में है. विराट कोहली जो सिर्फ क्रिकेट में ही प्रसिद्ध नहीं है बल्कि वह सोशल मीडिया विज्ञापन और टीवी शोज में भी छाए रहते हैं. दूसरे नंबर पर आती है अभिनेत्री श्रद्धा कपूर जिनके 94.3 मिलियन फौलोअर्स पूरी दुनिया में है.

श्रद्धा कपूर उन हीरोइनों में से है जिन्होंने किसी ग्रुप का हिस्सा बनने के बजाय अपने अकेले दम पर फिल्मों में पहचान बनाई है. तीसरे नंबर पर नाम आता है प्रियंका चोपड़ा का जिनके 92.6 मिलियन फौलोअर्स है. प्रियंका चोपड़ा बतौर एक्ट्रेस और गायिका देश और विदेश में प्रसिद्ध है. चौथा नाम आता है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जिनके पूरी दुनिया में 92.1 फौलोअर्स है. पांचवा नाम आता है आलिया भट्ट का जिन्होंने छोटी उम्र में बड़ा नाम कमा लिया है और उनके पूरी दुनिया में 86 मिलीयन फौलोअर्स हैं.

इन आंकड़ो के हिसाब से श्रद्धा कपूर और विराट कोहली ने नाम और शोहरत के नाम पर बाजी मार ली है. जब कि श्रद्धा कपूर बहुत ज्यादा फिल्में नहीं करती लेकिन बावजूद इसके वह पूरी दुनिया में ज्यादा फौलोअर्स के कारण फेमस हैं.

Love Marriage : मैं लव मैरिज के लिए घरवालों को कैसे मनाऊं?

सवाल

Love Marriage : मैं एक लड़की से प्यार करता हूं. लड़की भी मुझे दिलोजान से चाहती है. वह हर रोज देर रात को मुझे फोन कर कहती है कि वह सिर्फ मुझ से ही शादी करेगी. उधर मेरे घर वालों को ऐतराज है कि लड़की की दादी की जाति और हमारी जाति एक है. फिर भी कहते हैं कि यदि लड़की वाले हमें फोन कर के बुलाएंगे तो हम उन के घर लड़की देखने जा सकते हैं. मुझे स्टेटस, घरबार से कुछ लेनादेना नहीं है. मैं तो बस उसे अपनी जीवनसंगिनी बनाना चाहता हूं.

जवाब
लड़की की दादी की जाति के लिए आप के घर वालों का ऐतराज बेमानी और दकियानूसी है. पर क्या आप उस का घरबार देख चुके हैं? यदि आप को सब अच्छा लगता है तो आप अपने घर वालों को अपना दृढ़ निश्चय बता दें कि आप उस लड़की से प्यार करते हैं और उसी से शादी करेंगे. इसलिए वे जब लड़की देखने जाएं तो अपने मानदंडों को दरकिनार कर जाएं.

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सच्चा प्यार

‘‘उर्मी,अब बताओ मैं लड़के वालों को क्या जवाब दूं? लड़के के पिताजी 3 बार फोन कर चुके हैं. उन्हें तुम पसंद आ गई हो… लड़का मनोहर भी तुम से शादी करने के लिए तैयार है… वे हमारे लायक हैं. दहेज में भी कुछ नहीं मांग रहे हैं. अब हम सब तुम्हारी हां सुनने के लिए बेचैनी से इंतजार कर रहे हैं. तुम्हारी क्या राय है?’’ मां ने चाय का प्याला मेरे पास रखते हुए पूछा.

मैं बिना कुछ बोले चाय पीने लगी. मां मेरे जवाब के इंतजार में मेरी ओर देखती रहीं. सच कहूं तो मैं ने इस बारे में अब तक कुछ सोचा ही नहीं था. अगर आप सोच रहे हैं कि मैं कोई 21-22 साल की युवती हूं तो आप गलतफहमी में हैं. मेरी उम्र अब 33 साल है और जो मुझ से ब्याह करना चाहते हैं उन की 40 साल है. अगर आप मन ही मन सोच रहे हैं कि यह शादी करने की उम्र थोड़ी है तो आप से मैं कोई शिकायत नहीं करूंगी, क्योंकि मेरे मन में भी यह सवाल उठ चुका है और इस का जवाब मुझे भी अब तक नहीं मिला. इसलिए मैं चुपचाप चाय पी रही हूं.

सभी को अपनीअपनी जिंदगी से कुछ उम्मीदें जरूर होती हैं, इस बात को कोई नकार नहीं सकता. हर चीज को पाने के लिए सही वक्त तो होता ही है. जैसे पढ़ाई के लिए सही समय होता है उसी तरह शादी करने के लिए भी सही समय होता है. मेरे खयाल से लड़कियों को 20 और 25 साल की उम्र के बीच शादी कर लेनी चाहिए. तभी तो वे अपनी शादीशुदा जिंदगी का पूरा आनंद उठा सकेंगी. प्यारमुहब्बत आदि जज्बातों के लिए यही सही उम्र है. इस उम्र में दिमाग कम और दिल ज्यादा काम करता है और फिर प्यार को अनुभव करने के लिए दिमाग से ज्यादा दिल की ही जरूरत होती है. लेकिन मेरी जिंदगी की परिस्थितियां कुछ ऐसी थीं कि मेरे जीवन में 20 से 25 साल की उम्र संघर्षों से भरी थी. हम खानदानी रईस नहीं थे. शुक्र है कि मैं अपने मातापिता की इकलौती संतान थी. यदि एक से अधिक बच्चे होते तो हमारी जिंदगी और मुश्किल में पड़ जाती. मेरे पापा एक कंपनी में काम करते थे और मां स्कूल अध्यापिका थीं. दोनों की आमदनी को मिला कर हमारे परिवार का गुजारा चल रहा था.

एक विषय में मेरे मातापिता दोनों ही बड़े निश्चिंत थे कि मेरी पढ़ाई को किसी भी हाल में रोकना नहीं. मैं भी बड़ी लगन से पढ़ती रही. लेकिन हमारी और कुदरत की सोच का एक होना अनिवार्य नहीं है न? इसीलिए मेरी जिंदगी में भी एक ऐसी घटना घटी, जिस से जिंदगी से मेरा पूरा विश्वास ही उठ गया.

एक दिन दफ्तर में दोपहर के समय मेरे पिताजी अचानक अपनी छाती पकड़े नीचे गिर गए. साथ काम करने वालों ने उन्हें अस्पताल में भरती करा कर मेरी मां के स्कूल फोन कर दिया. मेरे पिताजी को दिल का दौरा पड़ा था. मेरे पिताजी किसी भी बुरी आदत के शिकार नहीं थे, फिर भी उन्हें 40 वर्ष की उम्र में यह दिल की बीमारी कैसी लगी, यह मैं नहीं समझ पाई. 3 दिन आईसीयू में रह कर मेरे पिताजी ने अपनी आंखें खोलीं और फिर मेरी मां और मुझे देख कर उन की आंखों में आंसू आ गए. मेरा हाथ पकड़ कर उन्होंने बहुत ही धीमी आवाज में कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो बेटी… मैं अपना फर्ज पूरा किए बिना जा रहा हूं… मगर तुम अपनी पढ़ाई को किसी भी कीमत पर बीच में न छोड़ना… वही कठिन समय में तुम्हारे काम आएगी,’’ वे ही मेरे पिताजी के अंतिम शब्द थे.

पिताजी की मौत के बाद मैं और मेरी मां दोनों बिलकुल अकेली पड़ गईं. मेरी मां इकलौती बेटी थीं. उन के मातापिता भी इस दुनिया से चल बसे थे. मेरे पापा के एक भाई थे, मगर वे भी बहुत ही साधारण जीवन बिता रहे थे. उन की 2 बेटियां थीं. वे भी हमारी कुछ मदद नहीं कर सके. अन्य रिश्तेदार भी एक लड़की की शादी का बोझ उठाने के लिए तैयार नहीं थे. मैं उन्हें दोषी नहीं ठहराना चाहती, क्योंकि एक कुंआरी लड़की की जिम्मेदारी लेना आज कोई आसान काम नहीं है. मेरी मां ने अपनी कम तनख्वाह से मुझे अंगरेजी साहित्य में एम.ए. तक पढ़ाया. मैं ने एम.ए. अव्वल दर्जे में पास किया और उस के बाद अमेरिका में स्कौलरशिप के साथ पीएच.डी. की. उसी दौरान मेरी पहचान शेखर से हुई. अमेरिका में भारतवासियों की एक पार्टी में पहली बार मेरी सहेली ने मुझे शेखर से मिलवाया. पहली मुलाकात में ही शेखर ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया. वह बहुत ही सरलता से मुझ से बात करने लगा. जैसे मुझे बहुत दिनों से जानता हो. पूरी पार्टी में उस ने मेरा साथ दिया.

मुझे शेखर के बोलने का अंदाज बहुत पसंद आया. वह लड़कियों से बातें करने में माहिर था और कई लड़कियां इसी कारण उस पर फिदा हो गई थीं, क्योंकि जब वह मुझ से बातें कर रहा था, तो उस 2 घंटे के समय में कई लड़कियां खुद आ कर उस से बात कर गई थीं. सभी उसे डार्लिंग, स्वीट हार्ट आदि पुकार कर उस के गाल पर चुंबन कर गईं. इस से मुझे मालूम हुआ कि वह लड़कियों के बीच बहुत मशहूर है. वह काफी सुंदर था… लंबाचौड़ा और गोरे रंग का… उस की आंखों में शरारत और होंठों में हसीन मुसकराहट थी. हमारे ही विश्वविद्यालय से एमबीए कर रहा था. उस के पिताजी भारत में दिल्ली शहर के बड़े व्यवसायी थे. शेखर एमबीए करने के बाद अपने पिताजी के कार्यालय में उच्च पद पर बैठने वाला था. ये सब उसी ने मुझे बताया था.

मैं विश्वविद्यालय के होस्टल में रहती थी और वह किराए पर फ्लैट ले कर रहता था. उसी से मुझे मालूम हुआ कि उस के पिता कितने बड़े आदमी हैं. हमारे एकदूसरे से विदा लेते समय शेखर ने मेरा सैल नंबर मांग लिया. सच कहूं तो उस पार्टी से वापस आने के बाद मैं शेखर को भूल गई थी. मेरे खयाल से वह बड़े रईस पिता की औलाद है और वह मुझ जैसी साधारण परिवार की लड़की से दोस्ती नहीं करेगा. उस शुक्रवार शाम 6 बजे मेरे सैल फोन की घंटी बजी.

‘‘हैलो,’’ मैं ने कहा.

‘‘हाय,’’ दूसरी तरफ से एक पुरुष की आवाज सुनाई दी.

मैं ने तुरंत उस आवाज को पहचान लिया. हां वह और कोई नहीं शेखर ही था.

‘‘कैसी हैं आप? उम्मीद है आप मुझे याद करती हैं?’’

मैं ने हंसते हुए कहा, ‘‘कोई आप को भूल सकता है क्या? बताइए, क्या हालचाल हैं? कैसे याद किया मुझे आप ने अपनी इतनी सारी गर्लफ्रैंड्स में?’’

‘‘आप के ऊपर एक इलजाम है और उस के लिए जो सजा मैं दूंगा वह आप को माननी पड़ेगी. मंजूर है?’’ उस की आवाज में शरारत उमड़ रही थी.

‘‘इलजाम? मैं ने ऐसी क्या गलती की जो सजा के लायक है… आप ही बताइए,’’ मैं भी हंस कर बोली.

शेखर ने कहा, ‘‘पिछले 1 हफ्ते से न मैं ठीक से खा पाया हूं और न ही सो पाया… मेरी आंखों के सामने सिर्फ आप का ही चेहरा दिखाई देता है… मेरी इस बेकरारी का कारण आप हैं, इसलिए आप को दोषी ठहरा कर आप को सजा सुना रहा हूं… सुनेंगी आप?’’

‘‘हां, बोलिए क्या सजा है मेरी?’’

‘‘आप को इस शनिवार मेरे फ्लैट पर मेरा मेहमान बन कर आना होगा और पूरा दिन मेरे साथ बिताना होगा… मंजूर है आप को?’’

‘‘जी, मंजूर है,’’ कह मैं भी खूब हंसी.

उस शनिवार मुझे अपने फ्लैट में ले जाने के लिए खुद शेखर आया. मेरी खूब खातिरदारी की. एक लड़की को अति महत्त्वपूर्ण महसूस कैसे करवाना है यह बात हर मर्द को शेखर से सीखनी चाहिए. शाम को जब वह मुझे होस्टल छोड़ने आया तब हम दोनों को एहसास हुआ कि हम एकदूसरे को सदियों से जानते… यही शेखर की खूबी थी. उस के बाद अगले 6 महीने हर शनिवार मैं उस के फ्लैट पर जाती और फिर रविवार को ही लौटती. हम दोनों एकदूसरे के बहुत करीब हो गए थे. मगर मैं एक विषय में बहुत ही स्पष्ट थी. मुझे मालूम था कि हम दोनों भारत से हैं. इस के अलावा हमारे बीच कुछ भी मिलताजुलता नहीं. हमारी बिरादरी अलग थी. हमारी आर्थिक स्थिति भी बिलकुल भिन्न थी, जो बड़ी दीवार बन कर हम दोनों के बीच खड़ी रहती थी.

शुरू से ही जब मैं ने इस रिश्ते में अपनेआप को जोड़ा उसी वक्त से मेरे मन में कोई उम्मीद नहीं थी. मुझे मालूम था कि इस रिश्ते का कोई भविष्य नहीं है. मगर जो समय मैं ने शेखर के साथ व्यतीत किया वह मेरे लिए अनमोल था और मैं उसे खोना नहीं चाहती थी. इसलिए मुझे हैरानी नहीं हुई जब शेखर ने बड़ी ही सरलता से मुझे अपनी शादी का निमंत्रण दिया, क्योंकि उस रिश्ते से मुझे यही उम्मीद थी. अगले हफ्ते ही वह भारत चला गया और उस के बाद हम कभी नहीं मिले. कभीकभी उस की याद मुझे आती थी, मगर मैं उस के बारे में सोच कर परेशान नहीं होती थी. मेरे लिए शेखर एक खत्म हुए किस्से के अलावा कुछ नहीं था.

शेखर के चले जाने के बाद मैं 1 साल के लिए अमेरिका में ही रही. इस दौरान मेरी मां भी अपनी अध्यापिका के पद से सेवानिवृत्त हो चुकी थीं. उन्हें अमेरिका आना पसंद नहीं था, क्योंकि वहां का सर्दी का मौसम उन के लिए अच्छा नहीं था. इसलिए मैं अपनी पीएच.डी. खत्म कर के भारत लौट आई. अमेरिका में जो पैसे मैं ने जमा किए और मेरी मां के पीएफ से मिले उन से मुंबई में 2 बैडरूम वाला फ्लैट खरीद लिया. बाद में मुझे क्व30 हजार मासिक वेतन पर एक कालेज में लैक्चरर की नौकरी मिल गई. मेरे मुंबई लौटने के बाद मेरी मां मेरी शादी करवाना चाहती थीं. उन्हें डर था कि अगर उन्हें कुछ हो जाए तो मैं इस दुनिया में अकेली हो जाऊंगी. मगर शादी इतनी आसान नहीं थी. शादी के बाजार में हर दूल्हे के लिए एक तय रेट होता था. हमारे पास मेरी तनख्वाह के अलावा कुछ भी नहीं था. ऊपर से मेरी मां का बोझ उठाने के लिए लड़के वाले तैयार नहीं थे.

जब मैं अमेरिका से मुंबई आई थी तब मेरी उम्र 25 साल थी. शादी के लिए सही उम्र थी. मैं भी एक सुंदर सा राजकुमार जो मेरा हाथ थामेगा उसी के सपने देखती रही. सपने को हकीकत में बदलना संभव नहीं हुआ. दिन हफ्तों में और हफ्ते महीनों में और महीने सालों में बदलते हुए 3 साल निकल गए. मेरी जिंदगी में दोबारा एक आदमी का प्रवेश हुआ. उस का नाम ललित था. वह भी अंगरेजी का लैक्चरर था. मगर उस ने पीएचडी नहीं की थी. सिर्फ एमफिल किया था. पहली मुलाकात में ही मुझे मालूम हो गया कि वह भी मेरी तरह मध्यवर्गीय परिवार का है और उस की एक मां और बहन है. उस ने कहा कि उस के पिता कई साल पहले इस दुनिया से जा चुके हैं और मां और बहन दोनों की जिम्मेदारी उसी पर है.

पहले कुछ महीने हमारे बीच दोस्ती थी. हमारे कालेज के पास एक अच्छा कैफे था. हम दोनों रोज वहां कौफी पीने जाते. इसी दौरान एक दिन उस ने मुझे अपने घर बुलाया. वह एक छोटे से फ्लैट में रहता था. उस की मां ने मेरी खूब खातिरदारी की और उस की बहन जो कालेज में पढ़ती थी वह भी मेरे से बड़ी इज्जत से पेश आई. इसी दौरान एक दिन ललित ने मुझ से कहा, ‘‘उर्मी, क्या आप मेरे साथ कौफी पीने के लिए आएंगी?’’उस का इस तरह पूछना मुझे थोड़ा अजीब सा लगा, मगर फिर मैं ने हंस कर पूछा, ‘‘कोई खास बात है जो मुझे कौफी पीने को बुला रहे हो?’’

उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘हां, बस ऐसा ही समझ लीजिए.’’

शाम कालेज खत्म होने के बाद हम दोनों कौफी शौप में गए और एक कोने में जा कर बैठ गए. मैं ने उस के चेहरे को देख कर कहा, ‘‘हां, बोलो ललित क्या बात करनी है मुझ से?’’ ललित ने बिना किसी हिचकिचाहट के कहा, ‘‘उर्मी, मैं बातों को घुमाना नहीं चाहता हूं. मैं तुम से प्यार करता हूं. अगर तुम्हें भी मंजूर है, तो मैं तुम से शादी करना चाहता हूं.’’ यह सुन कर मुझे सच में झटका लगा. मुझे जरा सा भी अंदाजा नहीं था कि ललित इस तरह मुझ से पूछेगा.

मैं ने ललित के बारे में बहुत सोचा. मुझे तब तक मालूम हो चुका कि मेरे पास जो पैसे हैं वे मेरी शादी के लिए बहुत कम हैं और फिर मेरी मां को भी अपनाने वाला दूल्हा मिलना लगभग नामुमकिन ही था. इस बारे में मेरे दिल ने नहीं दिमाग ने निर्णय लिया और मैं ने ललित को अपनी मंजूरी दे दी. उस के बाद हर हफ्ते हम रविवार को हमारे घर के सामने वाले पार्क में मिलते. इसी बीच यकायक ललित 3 दिन की छुट्टी पर चला गया. ललित चौथे दिन कालेज आया. उस का चेहरा उतरा हुआ था. शाम को हम दोनों पार्क में जा कर बैठ गए. मुझे मालूम था कि ललित मुझ से कुछ कहना चाह रहा, मगर कह नहीं पा रहा.  फिर उस ने मेरा हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो उर्मी… मैं ने खुद ही तुम से प्यार का इजहार किया था और अब मैं ही इस रिश्ते से पीछे हट रहा हूं. तुम्हें मालूम है कि मेरी एक बहन है. वह किसी लड़के से प्यार करती है और उस लड़के की एक बिन ब्याही बहन है. उन लोगों ने साफ कह दिया कि अगर मैं उन की लड़की से शादी करूं तो ही वे मेरी बहन को अपनाएंगे. मेरे पास अब कोई रास्ता नहीं रहा.’’

मैं 1 मिनट के लिए चुप रही. फिर कहा, ‘‘फैसला ले ही लिया तो अब किस बात का डर… शादी मुबारक हो ललित,’’ और फिर घर चली आई. 1 महीने में ललित और उस की बहन की शादी धूमधाम से हो गई. अब ललित कालेज की नौकरी छोड़ कर अपनी ससुराल की कंपनी में काम करने लगा. अब मनोहर से मेरी शादी हुए 1 महीना हो गया है. मेरी ससुराल वालों ने मेरे पति को मेरे साथ मेरे फ्लैट में रहने की इजाजत दे दी ताकि मेरी मां को भी हमारा सहारा मिल सके. इस नई जिंदगी से मुझे कोई शिकायत नहीं. मेरे पति एक अच्छे इनसान हैं. मुझे किसी भी बात को ले कर परेशान नहीं करते हैं. मेरी बहुत इज्जत करते हैं. औरतों को पूरा सम्मान देते हैं. उन का यह स्वभाव मुझे बहुत अच्छा लगा. ‘‘उर्मी जल्दी से तैयार हो जाओ. हमारी शादी के बाद तुम पहली बार मेरे दफ्तर की पार्टी में चल रही हो. आज की पार्टी खास है, क्योंकि हमारे मालिक के बेटे दिल्ली से मुंबई आ रहे हैं. तुम उन से भी मिलोगी.’’

जब हम पार्टी में पहुंचे तो कई लोग आ चुके थे. मेरे पति ने मुझे सब से मिलवाया. इतने में किसी ने कहा चेयरमैन साहब आ गए. उन्हें देख कर एक क्षण के लिए मेरी सांस रुक गई. चेयरमैन कोई और नहीं शेखर ही था. तभी सभी को नमस्कार कहते हुए शेखर मुझे देख कर 1 मिनट के लिए चौंक गया.

मेरे पति ने उस से कहा, ‘‘मेरी बीवी है सर.’’

शेखर ने हंसते हुए कहा, ‘‘मुबारक हो… शादी कब हुई?’’ मेरे पति उस के सवालों के जवाब देते रहे और फिर वह चला गया. कुछ देर बाद शेखर के पी.ए. ने आ कर कहा, ‘‘मैडम, चेयरमैन साहब आप को बुला रहे हैं अकेले.’’ मैं ने चुपके से अपने पति के चेहरे को देखा. पति ने भी सिर हिला कर मुझे जाने का इशारा किया. शेखर एक बड़ी मेज के सामने बैठा था. मैं उस के सामने जा कर खड़ी हो गई.

शेखर ने मुझे देख कर कहा, ‘‘आओ उर्मी, प्लीज बैठो.’’

मैं उस के सामने बैठ गई. शेखर ने कहा, ‘‘मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं. मैं सीधे मुद्दे पर आ जाऊंगा… मैं हमारी पुरानी दोस्ती को फिर से शुरू करना चाहता हूं बिलकुल पहले जैसे. मैं तुम्हारे पति का दिल्ली में तबादला कर दूंगा. अगर तुम चाहती हो तो तुम्हें दिल्ली के किसी कालेज में लैक्चरर की नौकरी दिला दूंगा.’’ वह ऐसे बोलता रहा जैसे मैं ने उस की बात मान ली. मगर मैं उस वक्त कुछ नहीं कह सकी. चुपचाप लौट कर पति के सामने आ कर बैठ गई. कुछ भी नहीं बोली. टैक्सी से लौटते समय भी कुछ नहीं पूछा उन्होंने. घर लौटने के बाद मेरे पति ने मुझ से कुछ भी नहीं पूछा. मगर मैं ने उन से सारी बातें कहने का फैसला कर लिया. पति ने मेरी सारी बातें चुपचाप सुनीं. मैं ने उन से कुछ नहीं छिपाया.

मेरी आंखों से आंसू आने लगे. मेरे पति ने मेरा हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘उर्मी, तुम ने कुछ गलत नहीं किया. हम सब के अतीत में कुछ न कुछ हुआ होगा. अतीत के पन्नों को दोबारा खोल कर देखना बेकार की बात है. कभीकभी न चाहते हुए भी हमारा अतीत हमारे सामने खड़ा हो जाता है, तो हमें उसे महत्त्व नहीं देना चाहिए. हमेशा आगे की सोच रखनी चाहिए. शेखर की बातों को छोड़ो. उस का रुपया बोल रहा है… हम कभी उस का मुकाबला नहीं कर सकते… मैं कल ही अपना इस्तीफा दे दूंगा. दूसरी नौकरी ढूंढ़ लूंगा. तुम चिंता करना छोड़ो और सो जाओ. हर कदम मैं तुम्हारे साथ हूं,’’ और फिर मुझे बांहों में भर लिया. उन की बांहों में मुझे फील हुआ कि मैं महफूज हूं. इस के अलावा और क्या चाहिए एक पत्नी को?

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