Romantic Hindi Stories : तिकोनी डायरी

नागेश की डायरी

Romantic Hindi Stories : कई दिनों से मैं बहुत बेचैन हूं. जीवन के इस भाटे में मुझे प्रेम का ज्वार चढ़ रहा है. बूढ़े पेड़ में प्रेम रूपी नई कोंपलें आ रही हैं. मैं अपने मन को समझाने का भरपूर प्रयत्न करता हूं पर समझा नहीं पाता. घर में पत्नी, पुत्र और एक पुत्री है. बहू और पोती का भरापूरा परिवार है, पर मेरा मन इन सब से दूर कहीं और भटकने लगा है.

शहर मेरे लिए नया नहीं है. पर नियुक्ति पर पहली बार आया हूं. परिवार पीछे पटना में छूट गया है. यहां पर अकेला हूं और ट्रांजिट हौस्टल में रहता हूं. दिन में कई बार परिवार वालों से फोन पर बात होती है. शाम को कई मित्र आ जाते हैं. पीनापिलाना चलता है. दुखी होने का कोई कारण नहीं है मेरे पास, पर इस मन का मैं क्या करूं, जो वेगपूर्ण वायु की भांति भागभाग कर उस के पास चला जाता है.

वह अभीअभी मेरे कार्यालय में आई है. स्टेनो है. मेरा उस से कोई सीधा नाता नहीं है. हालांकि मैं कार्यालय प्रमुख हूं. मेरे ही हाथों उस का नियुक्तिपत्र जारी हुआ है…केवल 3 मास के लिए. स्थायी नियुक्तियों पर रोक लगी होने के कारण 3-3 महीने के लिए क्लर्कों और स्टेनो की भर्तियां कर के आफिस का काम चलाना पड़ता है. कोई अधिक सक्षम हो तो 3 महीने का विस्तार दिया जा सकता है.

उस लड़की को देखते ही मेरे शरीर में सनसनी दौड़ जाती है. खून में उबाल आने लगता है. बुझता हुआ दीया तेजी से जलने लगता है. ऐसी लड़कियां लाखों में न सही, हजारों में एक पैदा होती हैं. उस के किसी एक अंग की प्रशंसा करना दूसरे की तौहीन करना होगा.

पहली नजर में वह मेरे दिल में प्रवेश कर गई थी. मेरे पास अपना स्टाफ था, जिस में मेरी पी.ए. तथा व्यक्तिगत कार्यों के लिए अर्दली था. कार्यालय के हर काम के लिए अलगअलग कर्मचारी थे. मजबूरन मुझे उस लड़की को अनुराग के साथ काम करने की आज्ञा देनी पड़ी.

मुझे जलन होती है. कार्यालय प्रमुख होने के नाते उस लड़की पर मेरा अधिकार होना चाहिए था, पर वह मेरे मातहत अधिकारी के साथ काम रही थी. मुझ से यह सहन नहीं होता था. मैं जबतब अनुराग के कमरे में चला जाता था. मेरे बगल में ही उस का कमरा था. उन दोनों को आमनेसामने बैठा देखता हूं तो सीने पर सांप लोट जाता है. मन करता है, अनुराग के कमरे में आग लगा दूं और लड़की को उठा कर अपने कमरे में ले जाऊं.

अनुराग उस लड़की को चाहे डिक्टेशन दे रहा हो या कोई अन्य काम समझा रहा हो, मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता. तब थोड़ी देर बैठ कर मैं अपने को तसल्ली देता हूं. फिर उठतेउठते कहता हूं, ‘‘नीहारिका, जरा कमरे में आओ. थोड़ा काम है.’’

मैं जानता हूं, मेरे पास कोई आवश्यक कार्य नहीं. अगर है भी तो मेरी पी.ए. खाली बैठी है. उस से काम करवा सकता हूं. पर नीहारिका को अपने पास बुलाने का एक ही तरीका था कि मैं झूठमूठ उस से व्यर्थ की टाइपिंग का काम करवाऊं. मैं कोई पुरानी फाइल निकाल कर उसे देता कि उस का मैटर टाइप करे. वह कंप्यूटर में टाइप करती रहती और मैं उसे देखता रहता. इसी बहाने बातचीत का मौका मिल जाता.

नीहारिका के घरपरिवार के बारे में जानकारी ले कर अपने अधिकारों का बड़प्पन दिखा कर उसे प्रभावित करने लगा. लड़की हंसमुख ही नहीं, वाचाल भी थी. वह जल्द ही मेरे प्रभाव में आ गई. मैं ने दोस्ती का प्रस्ताव रखा, उस ने झट से मान लिया. मेरा मनमयूर नाच उठा. मुझ से हाथ मिलाया तो शरीर झनझना कर रह गया. कहां 20 साल की उफनती जवानी, कहां 57 साल का बूढ़ा पेड़, जिस की शाखाओं पर अब पक्षी भी बैठने से कतराने लगे थे.

नीहारिका से मैं कितना भी झूठझूठ काम करवाऊं पर उसे अनुराग के पास भी जाना पड़ता था. मुझे डर है कि लड़की कमसिन है, जीवन के रास्तों का उसे कुछ ज्ञान नहीं है. कहीं अनुराग के चक्कर में न आ जाए. वह एक कवि और लेखक है. मृदुल स्वभाव का है. उस की वाणी में ओज है. वह खुद न चाहे तब भी लड़की उस के सौम्य व्यक्तित्व से प्रभावित हो सकती थी.

क्या मैं उन दोनों को अलग कर सकता हूं?

अनुराग की डायरी

नीहारिका ने मेरी रातों की नींद और दिन का चैन छीन लिया है. वह इतनी हसीन है कि बड़े से बड़ा कवि उस की सुंदरता की व्याख्या नहीं कर सकता है. गोरा आकर्षक रंग, सुंदर नाक और उस पर चमकती हुई सोने की नथ, कानों में गोलगोल छल्ले, रस भरे होंठ, दहकते हुए गाल, पतलीलंबी गर्दन और पतला-छरहरा शरीर, कमर का कहीं पता नहीं, सुडौल नितंब और मटकते हुए कूल्हे, पुष्ट जांघों से ले कर उस के सुडौल पैरों, सिर से ले कर कमर और कूल्हों तक कहीं भी कोई कमी नजर नहीं आती थी.

वह मेरी स्टेनो है और हम कितनी सारी बातें करते हैं? कितनी जल्दी खुल गई है वह मेरे साथ…व्यक्तिगत और अंतरंग बातें तक कर लेती है. बड़े चाव से मेरी बातें सुनती है. खुद भी बहुत बातें करती है. उसे अच्छा लगता है, जब मैं ध्यान से उस की बातें सुनता हूं और उन पर अपनी टिप्पणी देता हूं. जब उस की बातें खत्म हो जाती हैं तो वह खोदखोद कर मेरे बारे में पूछने लगती है.

बहुत जल्दी मुझे पता लग गया कि वह मन से कवयित्री है. पता चला, उस ने स्कूलकालेज की पत्रिकाओं के लिए कविताएं लिखी थीं. मैं ने उस से दिखाने के लिए कहा. पुराने कागजों में लिखी हुई कुछ कविताएं उस ने दिखाईं. कविताएं अच्छी थीं. उन में भाव थे, परंतु छंद कमजोर थे. मैं ने उन में आवश्यक सुधार किए और उसे प्रोत्साहित कर के एक प्रतिष्ठित पत्रिका में प्रकाशनार्थ भेज दिया. कविता छप गई तो वह हृदय से मेरा आभार मानने लगी. उस का झुकाव मेरी तरफ हो गया.

शीघ्र ही मैं ने मन की बात उस पर जाहिर कर दी. वस्तुत: इस की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि बातोंबातों में ही हम दोनों ने अपनी भावनाएं एकदूसरे पर प्रकट कर दी थीं. उस ने मेरे प्यार को स्वीकार कर के मुझे धन्य कर दिया.

काम से समय मिलता तो हम व्यक्तिगत बातों में मशगूल हो जाते परंतु हमारी खुशियां शायद हमारे ही बौस को नागवार गुजर रही थीं. दिन में कम से कम 5-6 बार मेरे कमरे में आ जाते, ‘‘क्या हो रहा है?’’ और बिना वजह बैठे रहते, ‘‘अनुराग, चाय पिलाओ,’’ चाय आने और पीने में 2-3 मिनट तो लगते नहीं. इस के अलावा वह नीहारिका से साधिकार कहते, ‘‘मेरे कमरे से सिगरेट और माचिस ले आओ.’’

मेरा मन घृणा और वितृष्णा से भर जाता, परंतु कुछ कह नहीं सकता था. वे मेरे बौस थे. नीहारिका भी अस्थायी नौकरी पर थी. मन मार कर सिगरेट और माचिस ले आती. वह मन में कैसा महसूस करती थी, मुझे नहीं मालूम क्योंकि जब भी वह सिगरेट ले कर आती, हंसती रहती थी, जैसे इस काम में उसे मजा आ रहा हो.

एक छोटी उम्र की लड़की से ऐसा काम करवाना मेरी नजरों में न केवल अनुचित था, बल्कि निकृष्ट और घृणित कार्य था. उन का अर्दली पास ही गैलरी में बैठा रहता है. यह काम उस से भी करवा सकते थे पर वे नीहारिका पर अपना अधिकार जताना चाहते थे. उसे बताना चाहते थे कि उस की नौकरी उन के ही हाथ में है.

सिगरेट का बदबूदार धुआं घंटों मेरे कमरे में फैला रहता और वह परवेज मुशर्रफ की तरह बूट पटकते हुए नीहारिका को आदेश देते मेरे कमरे से निकल जाते कि तुम मेरे कमरे में आओ.

मैं मन मार कर रह जाता हूं. गुस्से को चाय की आखिरी घूंट के साथ पी कर थूक देता हूं. कुछ परिस्थितियां ऐसी होती हैं, जिन पर मनुष्य का वश नहीं रहता. लेकिन मैं कभीकभी महसूस करता हूं कि नीहारिका को नागेश के आधिकारिक बरताव पर कोई खेद या गुस्सा नहीं आता था.

नीहारिका कभी भी इस बात की शिकायत नहीं करती थी कि उन की ज्यादतियों की वजह से वह परेशान या क्षुब्ध थी. वह सदैव प्रसन्नचित्त रहती थी. कभीकभी बस नागेश के सिगरेट पीने पर विरोध प्रकट करती थी. उस ने बताया था कि उस के कहने पर ही नागेश ने तब अपने कमरे में सिगरेट पीनी बंद कर दी, जब वह उन के कमरे में काम कर रही होती थी.

मुझे अच्छा नहीं लगता है कि घड़ीघड़ी भर बाद नागेश मेरे कमरे में आएं और बारबार बुला कर नीहारिका को ले जाएं. इस से मेरे काम में कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता था पर मैं चाहता था कि नीहारिका जब तक आफिस में रहे मेरी नजरों के सामने रहे.

नीहारिका की डायरी

मैं अजीब कशमकश में हूं…कई दिनों से मैं दुविधा के बीच हिचकोले खा रही हूं. समझ में नहीं आता…मैं क्या करूं? कौन सा रास्ता अपनाऊं? मैं 2 पुरुषों के प्यार के बीच फंस गई हूं. इस में कहीं न कहीं गलती मेरी है. मैं बहुत जल्दी पुरुषों के साथ घुलमिल जाती हूं. अपनी अंतरंग बातों और भावनाओं का आदानप्रदान कर लेती हूं. उसी का परिणाम मुझे भुगतना पड़ रहा है. हर चलताफिरता व्यक्ति मेरे पीछे पड़ जाता है. वह समझता है कि मैं एक ऐसी चिडि़या हूं जो आसानी से उन के प्रेमजाल में फंस जाऊंगी.

इस दफ्तर में आए हुए मुझे 1 महीना ही हुआ और 2 व्यक्ति मेरे प्रेम में गिरफ्तार हो चुके हैं. एक अपने शासकीय अधिकार से मुझे प्रभावित करने में लगा है. वह हर मुमकिन कोशिश करता है कि मैं उस के प्रभुत्व में आ जाऊं. दूसरा सौम्य और शिष्ट है. वह गुणी और विद्वान है. कवि और लेखक है. उस की बातों में विलक्षणता और विद्वत्ता का समावेश होता है. वह मुझे प्रभावित करने के लिए ऐसी बातें नहीं करता है.

पहला जहां अपने कर्मों का गुणगान करता रहता है. बड़ीबड़ी बातें करता है और यह जताने का प्रयत्न करता है कि वह बहुत बड़ा अधिकारी है. उस के अंतर्गत काम करने वालों का भविष्य उस के हाथ में है. वह जिसे चाहे बना सकता है और जिसे चाहे पल में बिगाड़ दे. अपने अधिकारों से वह सम्मान पाने की लालसा करता है. वहीं दूसरी ओर अनुराग अपने व्यक्तित्व से मुझे प्रभावित कर चुका है.

नागेश से मुझे भय लगता है, अत: उस की किसी बात का मैं विरोध नहीं कर पाती. मुझे पता है कि मेरी किसी बात से अगर वह नाखुश हुआ तो मुझे नौकरी से निकालने में उसे एक पल न लगेगा. ऐसा उस ने संकेत भी दिया है. वह गंदे चुटकुले सुनाता और खुद ही उन पर जोरजोर से हंसता है. अपने भूतकाल की सत्यअसत्य कहानियां ऐसे सुनाता है जैसे उस ने अपने जीवन में बहुत महान कार्य किए हैं और उस के कार्यों में अच्छे संदेश निहित हैं.

मेरे मन में उस के प्रति कोई लगाव या चाहत नहीं है. वह स्वयं मेरे पीछे पागल है. मेरे मन में उस के प्रति कोई कोमल भाव नहीं है. वह कहीं से मुझे अपना नहीं लगता. मेरी हंसी और खुलेपन से उसे गलतफहमी हो गई है. तभी तो एक दिन बोला, ‘‘तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. शायद मैं तुम्हें चाहने लगा हूं. क्या तुम मुझ से दोस्ती करोगी?’’

मेरे घर की आर्थिक दशा अच्छी नहीं है. घर में 3 बहनों में मैं सब से बड़ी हूं. घर के पास ही गली में पिताजी की किराने की दुकान है. बहुत ज्यादा कमाई नहीं होती है. बी.ए. करने के बाद इस दफ्तर में पहली अस्थायी नौकरी लगी है. अस्थायी ही सही, परंतु आर्थिक दृष्टि से मेरे परिवार को कुछ संबल मिल रहा है. अभी तो पहली तनख्वाह भी नहीं मिली थी. ऐसे में काम छोड़ना मुझे गवारा नहीं था.

मन को कड़ा कर के सोचा कि नागेश कोई जबरदस्ती तो कर नहीं सकता. मैं उस से बच कर रहूंगी. ऊपरी तौर पर दोस्ती स्वीकार कर लूंगी, तो कुछ बुरा नहीं है. अत: मैं ने हां कह दिया. उस ने तुरंत मेरा दायां हाथ लपक लिया और दोस्ती के नाम पर सहलाने लगा. उस ने जब जोर से मेरी हथेली दबाई तो मैं ने उफ कर के खींच लिया. वह हा…हा…कर के हंस पड़ा, जैसे पौराणिक कथाओं का कोई दैत्य हंस रहा हो.

‘‘बहुत कोमल हाथ है,’’ वह मस्त होता हुआ बोला तो मैं सिहर कर रह गई.

दूसरी तरफ अनुराग है…शांत और शिष्ट. हम साथ काम करते हैं परंतु आज तक उस ने कभी मेरा हाथ तक छूने की कोशिश नहीं की. वह केवल प्यारीप्यारी बातें करता है. दिल ही दिल में मैं उसे प्यार करने लगी हूं. कुछ ऐसे ही भाव उस के भी मन में है. हम दोनों ने अभी तक इन्हें शब्दों का रूप नहीं दिया है. उस की आवश्यकता भी नहीं है. जब दो दिल खामोशी से एकदूसरे के मन की बात कह देते हैं तो मुंह खोलने की क्या जरूरत.

हमारे प्यार के बीच में नागेश रूपी महिषासुर न जाने कहां से आ गया. मुझे उसे झेलना ही है, जब तक इस दफ्तर में नौकरी करनी है. उस की हर ज्यादती मैं अनुराग से बता भी नहीं सकती. उस के दिल को चोट पहुंचेगी.

नागेश के कमरे से वापस आने पर मैं हमेशा अनुराग के सामने हंसती- मुसकराती रहती थी, जिस से उस को कोई शक न हो. यह तो मेरा दिल ही जानता था कि नागेश कितनी गंदीगंदी बातें मुझ से करता था.

अनुराग मुझ से पूछता भी था कि नागेश क्या बातें करता है? क्या काम करवाता है? परंतु मैं उसे इधरउधर की बातें बता कर संतुष्ट कर देती. वह फिर ज्यादा नहीं पूछता. मुझे लगता, अनुराग मेरी बातों से संतुष्ट तो नहीं है, पर वह किसी बात को तूल देने का आदी भी नहीं था.

अब धीरेधीरे मैं समझने लगी हूं कि 2 पुरुषों को संभाल पाना किसी नारी के लिए संभव नहीं है.

नागेश को मेरी भावनाओं या भलाई से कुछ लेनादेना नहीं. वह केवल अपना स्वार्थ देखता है. अपनी मानसिक संतुष्टि के लिए मुझे अपने सामने बिठा कर रखता है. मुझे उस की नीयत पर शक है. हठात एक दिन बोला, ‘‘मेरे घर चलोगी? पास में ही है. बहुत अच्छा सजा रखा है. कोई औरत भी इतना अच्छा घर नहीं सजा सकती. तुम देखोगी तो दंग रह जाओगी.’’ मैं वाकई दंग रह गई. उस का मुंह ताकती रही…क्या कह रहा है? उस की आंखों में वासना के लाल डोरे तैर रहे थे. मैं अंदर तक कांप गई. उस की बात का जवाब नहीं दिया.

‘‘बोलो, चलोगी न? मैं अकेला रहता हूं. कोई डरने वाली बात नहीं है,’’ वह अधिकारपूर्ण बोला.

मैं ने टालने के लिए कह दिया, ‘‘सर, कभी मौका आया तो चलूंगी.’’

वह एक मूर्ख दैत्य की तरह हंस पड़ा.

आफिस प्रमुख नागेश अपने आफिस के एक अधिकारी अनुराग के लिए स्टेनो नीहारिका की अस्थायी नियुक्ति कर देते हैं. नागेश को स्थायी पी.ए. मिली हुई है. ये तीनों अपनीअपनी पर्सनल डायरी मेनटेन करते हैं. 57 साल के नागेश अपनी डायरी में 20 साल की नीहारिका की खूबसूरती के बारे में बयान करते हैं और अपनी सीट से उठउठ कर अपने कनिष्ठ अफसर अनुराग के कमरे में जाते हैं. कुछ देर बैठ कर नीहारिका को अपने कमरे में आने का निर्देश दे कर चले जाते हैं. वे आगे लिखते हैं कि एक दिन उन्होंने दोस्ती का प्रस्ताव रखा तो नीहारिका ने झट से मान लिया. वहीं नागेश को यह डर भी था कि नीहारिका कहीं अनुराग से प्रभावित न हो जाए.

उधर, अनुराग की डायरी बताती है कि नीहारिका ने उस की रात की नींद और दिन का चैन छीन लिया है. एक दिन बातोंबातों में हम दोनों ने अपनी भावनाएं प्रकट कर दी थीं. उस ने मेरे आग्रह को स्वीकार कर के मुझे धन्य कर दिया.

उधर, अपनी डायरी में नीहारिका लिखती है कि मैं अजीब कशमकश में हूं. मैं 2 पुरुषों के प्यार के बीच फंस गई हूं. एक अपने शासकीय अधिकार से प्रभावित करने में लगा है तो दूसरा अपने व्यक्तित्व से मुझे प्रभावित कर चुका है. नागेश से मुझे डर लगता है. अत: उस की किसी भी बात का मैं विरोध नहीं कर पाती. मेरी हंसी और खुलेपन से उसे गलतफहमी हो गई है. एक दिन वह बोला, ‘तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. मैं तुम्हें चाहने लगा हूं. क्या तुम मुझ से दोस्ती करोगी?’ मेरे घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है. अस्थायी नौकरी ही सही, घर की कुछ तो मदद हो जाएगी. ये सोच कर मैं ने ‘हां’ कर दी. दूसरी तरफ अनुराग है…शांत और शिष्ट. वह केवल प्यारीप्यारी बातें करता है. दिल ही दिल में मैं उस से प्यार करने लगी हूं. कुछ ऐसे ही भाव उस के मन में भी हैं. हम दोनों ने इन्हें अभी शब्दों का रूप नहीं दिया है. आफिस में नागेश के निर्देश पर उस के कमरे में जाती फिर वहां से ड्यूटी रूम में आने पर मैं हमेशा अनुराग के सामने हंसतीमुसकराती रहती थी ताकि उसे किसी तरह की तकलीफ न पहुंचे.अब आगे…

नागेश की डायरी

2 महीने बीत चुके हैं. बात आगे बढ़ती नहीं दिखाई पड़ रही है. मैं अच्छी तरह जानता हूं. नीहारिका के प्रति मेरे मन में कोई प्यार नहीं. ढलती उम्र में प्यार की चोंचलेबाजी नहीं की जा सकती है. मैं नीहारिका को प्रेमपत्र नहीं लिख सकता, उस की गली के चक्कर नहीं लगा सकता, हाथ में हाथ डाल कर बागों में टहलना अब मेरे लिए संभव नहीं है. मैं केवल नीहारिका के सुंदर शरीर के प्रति आसक्त हूं. फिर उसे प्राप्त करने का क्या तरीका अपनाया जाए?

कितनी बार उस से कहा कि मेरे घर चले, पर वह हंस कर टाल देती है. क्या उसे मेरे कुटिल मनोभावों का पता चल चुका है. जवान लड़की, पुरुष की आंखों की भाषा समझ सकती है. फिर क्यों वह तिलतिल कर, जला कर मार रही है मुझे…परवाने जल जाते हैं, शमा को पता भी नहीं चलता.

नीहारिका के साथ ऐसी बात नहीं है. वह अच्छी तरह जानती है कि मैं उसे दिलोजान से चाहने लगा हूं और उस का सान्निध्य चाहता हूं. वह भी तो यही चाहती है, वरना मेरी दोस्ती क्यों कबूल करती. मेरी किसी बात का बुरा नहीं मानती है. मैं कितनी खुली बातें करता हूं, वह हंसती रहती है. क्या यह संकेत नहीं करता कि उस का दिल भी मुझ पर आ गया है?

मुझे लगता है कि अनुराग भी नीहारिका पर आसक्त हो चुका है. वह युवा है और अविवाहित भी. नीहारिका मेरी तुलना में उस को ज्यादा पसंद करेगी. उस के साथ ही रहती है. नीहारिका को हासिल करने के लिए मुझे शीघ्र ही कोई कदम उठाना पड़ेगा. कार्यालय में उस के साथ कुछ करना संभव नहीं है. बवाल मच सकता है. एक बार वह मेरे घर चलने के लिए राजी हो जाए, तो फिर कुछ किया जा सकता है. वह मेरे हाथों से बच नहीं सकती.

नीहारिका के हावभाव से तो नहीं लगता कि वह अनुराग को चाहती है. कई बार उस से कह चुका हूं कि प्यार में लड़के ही नहीं लड़कियां भी बरबाद हो जाती हैं. अपनी प्रतियोगी परीक्षाओं की तरफ ध्यान दे, ताकि स्थायी नौकरी लग सके. पर मेरे बरगलाने से क्या वह मान जाएगी? जवान लड़की क्या किसी बूढ़े व्यक्ति के चक्कर में अपना जीवन और भविष्य बरबाद करेगी? क्या वह नहीं समझती कि मैं उसे चक्कर में लेने का प्रयत्न कर रहा हूं? मेरी बातों से वह कैसे इस तरह प्रभावित हो सकती है कि किसी जवान लड़के का चक्कर छोड़ दे? वह अनुराग के साथ काम करती है, क्या उस से प्रभावित नहीं हो सकती? हां…अवश्य.

अनुराग के रहते मेरा काम बनने वाला नहीं है. मुझे नीहारिका को उस से अलग करना होगा. दोनों साथसाथ रहेंगे तो आपस में लगाव बढ़ेगा. उन्हें कोई ऐसा मौका नहीं देना कि मैं अपना ही मौका चूक जाऊं. मैं उसे एक पत्नी की तरह अपनाना चाहता हूं पर यह कैसे संभव हो सकता है? वह किसी और पुरुष के सान्निध्य में न आए तब…हां, उसे अनुराग से दूर करना ही होगा. मैं उसे किसी और के साथ लगा देता हूं. किस के साथ…इस बारे में ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है. हरीश के साथ अनिल काम कर रहा है. उसे हटा कर मैं अनुराग के साथ लगा देता हूं और नीहारिका को हरीश के साथ…अनुराग की तुलना में वह उम्रदराज है. भोंडे दांतों वाला है. आंखों पर मोटा चश्मा लगाता है. बात करता है तो टेढ़ेमेढ़े दांत बाहर निकल आते हैं. मुंह से झाग के छींटे फेंकता रहता है. देख कर उबकाई आती है. नीहारिका उस से अंतरंग नहीं हो सकती.

यह आदेश निकालने के बाद मुझे लगा कि मैं ने नीहारिका को प्राप्त कर लिया है. इस परिवर्तन से कार्यालय में क्या प्रतिक्रिया हुई, मुझे पता नहीं चला. न अनुराग ने मुझ से कुछ कहा न नीहारिका ने कोई शिकायत की. मैं मन ही मन खुश होता रहा.

नीहारिका को मैं पहले की तरह काम के लिए अपने कमरे में बुलाता रहा. वह आती और हंसतीमुसकराती काम करती. मैं अपनी कुरसी छोड़ उस के पीछे खड़ा हो जाता. उस का मुंह कंप्यूटर की तरफ होता. मैं डिक्टेशन देने के बहाने उस की कुरसी की पीठ से सट कर खड़ा हो जाता. फिर अनजान बनता हुआ थोड़ा झुक कर भी उस के कंधे पर, कभी पीठ पर हाथ रख देता.

नीहारिका न तो मेरी तरफ देखती, न कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करती. मेरा हौसला बढ़ता जाता और मैं उस की पीठ सहलाने लगता. तब वह उठ कर खड़ी हो जाती. कहती, ‘‘मैं 2 मिनट में आती हूं.’’ और वह चली जाती. फिर उस दिन उसे नहीं बुलाता. पता नहीं, उस के मन में क्या हो? यह जानने के लिए मैं थोड़ी देर में हरीश के कमरे में जाता तो वहां नीहारिका को प्रफुल्लित देखता. मतलब उस ने मेरी हरकतों का बुरा नहीं माना. मैं आगे बढ़ सकता हूं.

मैं दूसरे दिन का इंतजार करता. दूसरा दिन, फिर तीसरा दिन…दिन पर दिन बीतते जा रहे थे, पर बात शारीरिक स्पर्श से आगे नहीं बढ़ पा रही थी. नीहारिका पत्थर की तरह बन गई थी. मेरी हरकतों पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करती. मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी. शरीर में उफान सा आता, पर उसे ज्वार का रूप देना मेरे हाथ में नहीं था.

नीहारिका मेरा साथ नहीं दे रही थी. जब मैं उस के साथ कोई हरकत करता, वह बाहर चली जाती, दोबारा बुलाने पर भी जल्दी मेरे कमरे में नहीं आती थी. मुझे अर्दली को 2-3 बार भेजना पड़ता. तब कहीं आती और तबीयत ठीक न होने का बहाना बनाती. पर मैं प्रेमरोग से पीडि़त उस की बात की तरफ ध्यान न देता. उस की भावनाओं से मुझे कोई लेनादेना नहीं था.

पर एक दिन बम सा फट गया. मैं ने उस के साथ हरकत की और वह हो गया, जिस की मैं ने कभी उम्मीद नहीं की थी. मैं उस घटना के बारे में यहां नहीं लिख सकता. मैं इतना चकित और हैरान हूं कि ऐसा कैसे हो गया? क्या नीहारिका जैसी कमजोर लड़की मेरे साथ ऐसा कर सकती है?

अब नारी जाति से मेरा विश्वास उठ गया है. ऊपर से वह कुछ और दिखती है, मन में उस के कुछ और होता है. आसानी से उस के मन को पढ़ पाना या समझ पाना संभव नहीं है. मैं उस की हंसी और प्रेमिल व्यवहार से सम्मोहित हो गया था. समझ बैठा था कि वह मुझे प्रेम करने लगी है. परंतु नहीं…खूबसूरत पंछी सूने वीरान पेड़ पर कभी नहीं बैठता. नीहारिका के बारे में मैं ने बहुत गलत सोचा था. कभी नीहारिका से आप की मुलाकात होगी तो वह अवश्य इस बात का जिक्र करेगी.

मेरा प्रेम का ज्वर जिस तीव्रता से उठा था उसी तीव्रता के साथ झाग की तरह बैठ गया. नीहारिका मेरे सामने से चली गई. मैं उसे चाह कर भी नहीं रोक सकता था. रोकता भी तो वह नहीं रुकती. मेरे अंदर का सांप मर गया.

नागेश की ज्यादतियां बढ़ती जा रही हैं. नीहारिका को अब वह ज्यादा समय अपने कमरे में ही बिठा कर रखता है. काम क्या करवाता होगा, गप्पें ही मारता होगा. नीहारिका से पूछता हूं तो उस के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बताती है. मैं मन मसोस कर रह जाता हूं. नागेश क्या मेरे और नीहारिका के बीच दूरियां बनाने का प्रयत्न कर रहा है? लेकिन वह इस में सफल नहीं होगा. नीहारिका और मेरे बीच अब कोई दूरी नहीं रह गई है. उस ने मेरे शादी के प्रस्ताव को मान लिया है. मैं जल्द ही उस के मांबाप से मिलने वाला हूं.

नीहारिका मेरी मनोदशा समझती है. इसीलिए वह नागेश के बारे में भूल कर भी बात नहीं करती है. मैं खोदखोद कर पूछता हूं…तब भी नहीं बताती. मैं खीझ कर कहता हूं, ‘‘वह हरामी कोई ज्यादती तो नहीं करता तुम्हारे साथ?’’

वह हंस कर कहती, ‘‘तुम को मेरे ऊपर विश्वास है न. तो फिर निश्ंिचत रहो. अगर ऐसी कोई स्थिति आई तो मैं स्वयं उस से निबट लूंगी. तुम चिंता न करो.’’

‘‘क्यों न करूं? तुम एक नाजुक लड़की हो और वह विषधर काला नाग. कमीना आदमी है. पता नहीं, कब कैसी हरकत कर बैठे तुम्हारे साथ? उस के साथ कमरे में अकेली जो रहती हो.’’

नीहारिका के चेहरे पर वैसी ही मोहक मुसकान है. आंखों में चंचलता और शैतानी नाच रही है. निचले होंठ का दायां कोना दांतों से दबा कर कहती है, ‘‘वैसी हरकत तो तुम भी कर सकते हो मेरे साथ. तुम्हारे साथ भी एकांत कमरे में रहती हूं.’’ उस ने जैसे मुझे निमंत्रण दिया कि मैं चाहूं तो उस के साथ वैसी हरकत कर सकता हूं. वह बुरा नहीं मानेगी. हम दोनों इंडिया गेट पर भीड़भाड़ से दूर एकांत में टहल रहे थे. अंधेरा घिरने लगा था. मैं ने इधरउधर देखा. कहीं कोई साया नहीं, आहट नहीं. मैं ने नीहारिका को अपनी बांहों में समेट लिया. वह फूल की तरह मेरे सीने में सिमट गई. नागेश रूपी सांप हमारे बीच से गायब हो चुका था.

नीहारिका ने जिस भाव से अपने को मेरी बांहों में सौंपा था, मुझे उस के प्रति कोई अविश्वास न रहा. मैं नागेश की तरफ से भी आश्वस्त हो गया कि नीहारिका उस की किसी भी बेजा हरकत से निबट लेगी. दोनों को ले कर मेरी चिंता निरर्थक है.

इधर लगता है, नागेश को नीहारिका के साथ मेरे प्यार को ले कर शक हो गया है. तभी तो उस ने आदेश पारित किया है कि अब वह हरीश के साथ काम करेगी. मुझे इस से कोई अंतर नहीं पड़ने वाला. नीहारिका मेरे इतने करीब आ चुकी है कि उसे मुझ से जुदा करना नागेश के बूते की बात नहीं है. मुझे इंतजार उस दिन का है जब नीहारिका ब्याह कर मेरे घर आएगी.

नीहारिका की डायरी

बहुत कुछ बरदाश्त के बाहर होता जा रहा है. नागेश ने मुझे अपनी संपत्ति समझ लिया है. इसी तरह की बातें भी करता है और व्यवहार भी.

पता नहीं…शायद नागेश को शक हो गया है कि अनुराग और मेरे बीच अंतरंगता बढ़ती जा रही है. शायद शक न भी हो, पर उसे डर लगता है कि मैं या अनुराग एकदूसरे के ऊपर आसक्त हो जाएंगे. इसी डर की वजह से उस ने मुझे हरीश के साथ लगा दिया है.

मुझे इस से कोई अंतर नहीं पड़ता. दिन में न सही, शाम को हम दोनों मिलते हैं. अनुराग और मेरे दिलों के बीच क ी दूरी समाप्त हो चुकी है. बस, शादी के बंधन में बंधना है. इस में थोड़ी सी रुकावट है. मेरी पक्की नौकरी नहीं है. उम्र भी अभी कम है. मैं ने अनुराग से कह दिया है. कम से कम 1 साल उसे इंतजार करना पड़ेगा. वह तैयार है. तब तक कोई नौकरी मिल ही जाएगी. तब हम दोनों शादी के बंधन में बंध जाएंगे.

अब नागेश खुले सांड की तरह खूंखार होता जा रहा है. जब से हरीश के साथ लगाया है, एक पल के लिए पीछा नहीं छोड़ता या तो अपने कमरे में बुला लेता है या खुद हरीश के कमरे में आ कर बैठ जाता है और अनर्गल बातें करता है. उस के चक्कर में न तो हरीश कोई काम कर पाता है न वह मुझ से कोई काम करवा पाता है.

नागेश की वजह से पूरे दफ्तर में मैं बदनाम होती जा रही हूं. सब मुझे एसी वाली लड़की कहने लगे हैं. नागेश के कमरे में एसी जो लगा है. लोग जब मुझे एसी वाली लड़की कहते हैं मैं हंस कर टाल जाती हूं. किसी बात का प्रतिरोध करने का मतलब उस को बढ़ावा देना है, कहने वालों की सोच बेलगाम हो जाती और फिर मेरे और नागेश के बारे में तरहतरह की बातें फैलतीं, चर्चाएं होतीं. इस में मेरी ही बदनामी होती. नागेश का क्या जाता? उस से कोई कुछ भी न कहता. मैं अस्थायी थी. लोग सोचते, मैं नागेश को फंसा कर अपनी नौकरी की जुगाड़ में लगी हूं. सचाई किसी को पता नहीं है.

नागेश का मुंह तो चलता ही रहता है, अब उस के हाथ भी चलने लगे हैं. वह मेरे पीछे आ कर खड़ा हो जाता है और कंप्यूटर पर काम करवाने के बहाने कभी सर, कभी कंधे और कभी पीठ पर हाथ रख देता है. मुझे उस का हाथ मरे हुए सांप जैसा लगता है. कभीकभी मरा हुआ सांप जिंदा हो जाता है. उस का हाथ अधमरे सांप की तरह मेरी पीठ पर रेंगने लगता है. वह मेरी पीठ सहलाता है. मुझे गुदगुदी का एहसास होता है, परंतु उस में लिजलिजापन होता है.

मन में एक घृणा उपजती है, कोई प्यार नहीं. नागेश के प्रति मैं एक आक्रोश से भर जाती हूं, परंतु इसे बाहर नहीं निकाल सकती. मैं बरदाश्त करने की कोशिश करती हूं. देखना चाहती हूं कि वह किस हद तक जा सकता है. मेरी तय हुई हद के बाहर जाते ही वह परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहे…मैं ने मन ही मन तय कर लिया था. जैसे ही उस ने हद पार की, मेरा रौद्र रूप प्रकट हो जाएगा. अभी तक उस ने मेरी हंसी और प्यारी मुसकराहट देखी है. बूढ़े को पता नहीं है कि लड़कियां आत्मरक्षा और सम्मान के लिए चंडी बन सकती हैं.

जब वह मेरी पीठ सहलाता है मैं बहाना बना कर बाहर निकल जाती हूं. कोशिश करती हूं कि जल्दी उस के कमरे में न जाना पड़े. पर वह शैतान की औलाद…कहां मानने वाला है. बारबार बुलाता रहता है. मैं देर करती हूं तो वह खुद उठ कर हरीश के कमरे में आ जाता है…न खुद चैन से बैठता है न मुझे बैठने देता है.

उस दिन हद हो गई. उस ने सारी सीमाएं तोड़ दीं. उस का बायां हाथ अधमरे सांप की तरह मेरी पीठ पर रेंग रहा था. मैं मन ही मन सुलग रही थी. अचानक उस का हाथ आगे बढ़ा और मेरी बांह के नीचे से होता हुआ कुछ ढूंढ़ने का प्रयास करने लगा. मैं समझ गई, वह क्या चाहता था? मैं थोड़ा सिमट गई परंतु उस ने घात लगा कर मेरे बाएं वक्ष को अपनी हथेली में समेट लिया. उसी तरह जैसे चालाक सांप बेखबर मेढक को अपने मुंह में दबोच लेता है.

यह मेरी तय की हुई हद से बाहर की बात थी. मैं अपना होश खो चुकी थी. अचानक खड़ी हो गई. उस का हाथ छिटक गया. पर मेरा दायां हाथ उठ चुका था. बिजली की तरह उस के बाएं गाल पर चिपक गया, मैं ने जो नहीं सोचा था वह हो गया. जोर से तड़ाक की आवाज आई और वह दाईं तरफ बूढे़ बैल की तरह लड़खड़ा कर रह गया.

मैं ने उस के मुंह पर थूक दिया और किटकिटा कर कहा, ‘‘मैं ने दोस्ती की थी…शादी नहीं.’’ और तमतमाती हुई बाहर निकल गई.

फिर मैं वहां नहीं रुकी. नागेश के कमरे से बाहर आते ही मैं बिलकुल सामान्य हो गई. अनुराग को चुपके से बुलाया और कार्यालय के बाहर चली गई. बाहर आ कर मैं ने अनुराग को सबकुछ बता दिया. वह हैरानी से मेरा मुंह ताकने लगा, जैसे उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि मैं ऐसा भी कर सकती हूं. वह मुझे बच्ची समझता था…20 वर्ष की अबोध बच्ची. परंतु मैं अबोध नहीं थी.

अनुराग ने चुपचाप मुझे एक बच्ची की तरह सीने से लगा लिया, जैसे उसे डर था कि कहीं खो न जाऊं. परंतु मैं खोने वाली नहीं थी क्योंकि मैं इस बेरहम और स्वार्थी दुनिया के बीच अकेली  नहीं थी, अनुराग के प्यार का संबल जो मुझे थामे हुए था.

Hindi Stories Online : यक्ष प्रश्न

Hindi Stories Online : अनुभा ने अस्पताल की पार्किंग में बमुश्किल गाड़ी पार्क की. ‘उफ, इतनी सारी गाडि़यां… न सड़क में जगह, न पार्किंग स्पेस में. गाड़ी रखना भी एक मुसीबत हो गई है. कहीं भी जगह नहीं है. अब तो लोग फुटपाथों पर भी गाडि़यां पार्क करने लगे हैं. सरकारी परिसर हो या निजी आवासीय क्षेत्र, हर जगह एकजैसा हाल. इस के बावजूद लोग गाडि़यां खरीदना बंद नहीं कर रहे हैं,’ यही सब सोचती वह अस्पताल की सीढि़यां चढ़ रही थी.

दूसरी मंजिल पर सेमीप्राइवेट वार्ड में अनुभा की सहेली कम सहकर्मी भरती थी. उसे किडनी में पथरी थी. उसी के औपरेशन के लिए भरती थी. कल उस का औपरेशन हुआ था. अनुभा आज उसे देखने जा रही थी.

सहेली से मिलने और उस का हालचाल पूछने के बाद जब अनुभा उस के बिस्तर पर बैठी तो उस ने कमरे में इधरउधर निगाह डाली. सेमीप्राइवेट वार्ड होने के कारण उस में 2 मरीज थे. दूसरी मरीज भी महिला ही थी. उस ने गौर से दूसरी मरीज को देखा, तो उसे वह कुछ जानीपहचानी लगी. उस ने दिमाग पर जोर दे कर सोचा. वह मरीज भी उसे गौर से देख रही थी. उस की बुझी आंखों में एक चमक सी आ गई जैसे कई बरसों बाद वह अपने किसी आत्मीय को देख रही हो.

दोनों की आंखें एकदूसरे के मनोभावों को पढ़ रही थीं और फिर जैसे अचानक  एकसाथ दोनों के मन से दुविधा और संकोच की बेडि़यां टूट गई हों अनुभा चौंकती सी उस की तरफ लपकी, ‘‘निमी…’’

मरीज के सूखे होंठों पर फीकी सी मुसकराहट फैल गई, ‘‘तुम ने मुझे पहचान लिया?’’

निम्मी के स्वर से ऐसा लग रहा था जैसे इस दुनिया में उस का कोई जानपहचान वाला नहीं है. अनुभा अचानक आसमान से आ टपकी थी, वरना वह इस संसार में असहाय और अनाथ जीवन व्यतीत कर रही थी.

‘‘निमी, तुम यहां और इस हालत में?’’ अनुभा ने उस के हाथों को पकड़ कर कहा.

निमी का नाम निमीषा था, परंतु उस के दोस्त और सहेलियां उसे निमी कह कर बुलाते थे.

अनुभा एक पल को चुप रही, फिर बोली,  ‘‘तुम्हें क्या हुआ है? मैं ने तो कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन तुम्हें इस हालत में देखूंगी. तुम्हारी सुंदर काया को क्या हुआ… चेहरे की कांति कहां चली गई?  ऐसा कैसे हुआ?’’

निमी ने पलंग से उठ कर बैठने का प्रयास किया, परंतु उस की सांस फूलने लगी. अनुभा ने उसे सहारा दिया. पलंग को पीछे से उठा दिया, जिस से निमी अधलेटी सी हो गई.

‘‘तुम ने इतने सारे सवाल कर दिए… समझ में नहीं आता कैसे इन के जवाब दूं. एक दिन में सबकुछ बयां नहीं किया जा सकता… मैं ज्यादा नहीं बोल सकती… हांफ जाती हूं… फेफड़े कमजोर हैं न. ’’

‘‘तुम्हें हुआ क्या है?’’ अनुभा ने पूछा.

‘‘एक रोग हो तो बताऊं… अब तुम मिली हो, तो धीरेधीरे सब जान जाओगी. क्या तुम्हारे पास इतना समय है कि रोज आ कर मेरी बातें सुन सको.’’

‘‘हां, मैं रोज आऊंगी और सुनूंगी,’’ अनुभा को निमी की हालत देख कर तरस नहीं, रोना आ रहा था जैसे वह उस की जान हो, जो उसे छोड़ कर जा रही थी. उस ने कस कर निमी का हाथ पकड़ लिया.

निमी के बदन में एक सुरसुरी सी दौड़ गई. उस के अंदर एक सुखद एहसास ने अंगड़ाई ली. वह तो जीने की आस ही छोड़ चुकी थी, परंतु अनुभा को देख कर उसे लगा कि उसे देखनेसमझने वाला कोई है अभी इस दुनिया में. फिर कोई जब चाहने वाला पास हो, तो जीने की लालसा स्वत: बढ़ जाती है.

‘‘तुम्हारे साथ कोई नहीं है?’’ अनुभा ने आंखें झपकाते हुए पूछा, ‘‘कोई देखभाल करने वाला… तुम्हारे घर का कोई?’’

निमी ने एक ठंडी सांस लेते हुए कहा,  ‘‘नहीं, कोई नहीं.’’

‘‘क्यों, घर में कोई नहीं है क्या?’’

‘‘जो मेरे अपने थे उन्हें मैं ने बहुत पहले छोड़ दिया था और जीवन के पथ पर चलते हुए जिन्हें मैं ने अपना बनाया वे बीच रास्ते छोड़ कर चलते बने. अब मैं नितांत अकेली हूं. कोई नहीं है मेरा अपना. आज वर्षों बाद तुम मिली हो, तो ऐसा लग रहा है जैसे मेरा पुराना जीवन फिर से लौट आया हो. मेरे जीवन में भी खुशी के 2 फूल खिल गए हैं, जिन की सुगंध से मैं महक रही हूं. काश, यह सपना न हो… तुम दोबारा आओगी न?’’

‘‘हांहां, निमी, मैं आऊंगी. तुम से मिलने ही नहीं, तुम्हारी देखभाल करने के लिए भी… तुम्हारा अस्पताल का खर्चा कौन उठा रहा है?’’

निमी ने फिर एक गहरी सांस ली, ‘‘है एक चाहने वाला, परंतु उस ने मेरी बीमारियों के कारण मुझ से इतनी दूरी बना ली है कि वह मुझे देखने भी नहीं आता. कभीकभी उस का नौकर आ जाता है और अस्पताल का पिछला बिल भर कर कुछ ऐडवांस दे जाता है ताकि मेरा इलाज चलता रहे. बस मेरे प्यार के बदले में इतनी मेहरबानी वह कर रहा है.’’

उस दिन अनुभा निमी के पास बहुत देर नहीं रुक पाई, क्योंकि वह औफिस से आई थी. शाम को आने का वादा कर के वह औफिस आ गई, परंतु वहां भी उस का मन नहीं लगा. निमी की दुर्दशा देख कर उसे अफसोस के साथसाथ दुख भी हो रहा था. उसे कालेज के दिन याद आने लगे जब वे दोनों साथसाथ पढ़ती थीं…

निमीषा और अनुभा दोनों ही शिक्षित परिवारों से थीं. अनुभा के पिता आईएएस अफसर थे, तो निमी के पिता वरिष्ठ आर्मी औफिसर. दोनों एक ही क्लास में थीं, दोस्त थीं, परंतु दोनों के विचारों में जमीनआसमान का अंतर था. अनुभा पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों व मान्यताओं को मानने वाली लड़की थी, तो निमी को स्थापित मूल्य तोड़ने में मजा आता था. परंपराओं का पालन करना उसे नहीं भाता था. नैतिकता उस के सामने पानी भरती थी, तो मूल्य धूल चाटते नजर आते थे. संभवतया सैनिक जीवन की अति स्वछंदता और खुलेपन के माहौल में जीने के कारण उस के स्वभाव में ऐसा परिवर्तन आया हो.

निमीषा बहुत बड़ी अफसर बनना चाहती थी, परंतु अनुभा को पता नहीं था

कि वह क्या बन गई? हां, वह शादी भी नहीं करना चाहती थी. उस का मानना था शादी का बंधन स्त्री के लिए एक लिखित आजीवन कारावास का अनुबंध होता है. तब युवाओं के बीच लिव इन रिलेशनशिप का चलन बढ़ने लगा था. निमी ऐसे संबंधों की हिमायती थी. कालेज के दौरान ही उस ने लड़कों के साथ शारीरिक संबंध बना लिए थे.

इस का पता चलने पर अनुभा ने उसे समझाया था, ‘‘ये सब ठीक नहीं है. दोस्ती तक तो ठीक है, परंतु शारीरिक संबंध बनाना और वह भी शादी के पहले व कई लड़कों के साथ को मैं उचित नहीं समझती.’’

निमी ने उस का उपहास उड़ाते हुए कहा,  ‘‘अनुभा, तुम कौन से युग में जी रही हो? यह मौडर्न जमाना है, स्वछंद जीवन जीने का. यहां व्यक्तिगत पसंद से रिश्ते बनतेबिगड़ते हैं, मांबाप की पसंद से नहीं. इट्स माई लाइफ… मैं जैसे चाहूंगी जीऊंगी.’’

अनुभा के पास तर्क थे, परंतु निमी के ऊपर उन का कोई असर न होता. कालेज के बाद दोनों सहेलियां अलग हो गईं. अनुभा के पिता केंद्र सरकार की प्रतिनियुक्ति से वापस लखनऊ चले गए. अनुभा ने वहां से सिविल सर्विसेज की तैयारी की और यूपीएससी की गु्रप बी सेवा में चुन ली गई. कई साल लखनऊ, इलाहाबाद और बनारस में पोस्टिंग के बाद अब उस का दिल्ली आना हुआ था. इस बीच उस की शादी भी हो गई. पति केंद्र सरकार में ग्रुप ए अफसर थे. दोनों ही दिल्ली में तैनात थे. उस की 10 वर्ष की 1 बेटी थी.

अनुभा को निमी के जीवन के पिछले 15 वर्षों के बारे में कुछ पता नहीं था. उसे उत्सुकता थी, जल्दी से जल्दी उस के बारे में जानने की. आखिर उस के साथ ऐसा क्या हुआ था कि उस ने अपने शरीर का सत्यानाश कर लिया… तमाम रोगों ने उस के शरीर को जकड़ लिया. वह शाम होने का इंतजार कर रही थी. प्रतीक्षा में समय भी लंबा लगने लगता है. वह बारबार घड़ी देखती, परंतु घड़ी की सूइयां जैसे आगे बढ़ ही नहीं रही थीं.

किसी तरह शाम के 5 बजे. अभी भी 1 घंटा बाकी था, परंतु वह अपने सीनियर को अस्पताल जाने की बात कह कर बाहर निकल आई. गाड़ी में बैठने से पहले उस ने अपने पति को फोन कर के बता दिया कि वह अस्पताल जा रही है. घर देर से लौटेगी.

अनुभा को देखते ही निमी के चेहरे पर खुशी फैल गई जैसे उस के अंदर असीम ऊर्जा और शक्ति का संचार होने लगा हो.

अनुभा उस के लिए फल लाई थी. उन्हें सिरहाने के पास रखी मेज पर रख कर वह निमी के पलंग पर बैठ गई. फिर उस का हाथ पकड़ कर पूछा, ‘‘अब कैसा महसूस हो रहा है?’’

निमी के होंठों पर खुशी की मुसकान थी, तो आंखों में एक आत्मीय चमक… चेहरा थोड़ा सा खिल गया था. बोली, ‘‘लगता है अब मैं बच जाऊंगी.’’

रात में अनुभा ने अपने पति हिमांशु को निमी के बारे में सबकुछ बता दिया. सुन कर उन्हें भी दुख हुआ. अगले दिन सुबह औफिस जाते हुए वे दोनों ही निमी से मिलने गए. हिमांशु ने डाक्टर से मिल कर निमी की बीमारियों की जानकारी ली. डाक्टर ने जो कुछ बताया, वह बहुत दर्दनाक था. निमी के फेफड़े ही नहीं, लिवर और किडनियां भी खराब थीं. वह शराब और सिगरेट के अति सेवन से हुआ था. अनुभा को पता नहीं था कि वह इन सब का सेवन करती थी. हिमांशु ने जब उसे बताया, तो वह हैरान रह गई. पता नहीं किस दुष्चक्र में फंस गई थी वह?

खैर, हिमांशु और अनुभा ने यह किया कि रात में निमी के पास अपनी नौकरानी को देखभाल के लिए रख दिया. हिमांशु नियमित रूप से उस के इलाज की जानकारी लेते. उन के कारण ही अब डाक्टर विशेषरूप से निमी का ध्यान रखने लगे थे. वह बेहतर से बेहतर इलाज उसे मुहैया करा रहे थे.

इस सब का परिणाम यह हुआ कि निमी 1 महीने के अंदर ही इतनी ठीक हो गई कि अपने घर जा सकती थी. हालांकि दवा नियमित लेनी थी.

जिस दिन उसे अस्पताल से डिस्चार्ज होना था वह कुछ उदास थी. उस का सौंदर्य पूर्णरूप से तो नहीं, परंतु इतना अवश्य लौट आया था कि वह बीमार नहीं लगती थी.

अनुभा ने पूछा, ‘‘तुम खुश नहीं लग रही हो… क्या बात है? तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि ठीक हो कर घर जा रही हो?’’

निमी ने खाली आंखों से अनुभा को देखा और फिर फीकी आवाज में कहा, ‘‘कौन सा घर? मेरा कोई घर नहीं है.’’

‘‘अपने दोस्त के यहां, जो तुम्हारा इलाज करवा रहा था…’’

एक फीकी उदास हंसी निमी के होंठों पर तैर गई, ‘‘जो व्यक्ति मुझ से मिलने अस्पताल में कभी नहीं आया, जिसे पता है कि मेरे शरीर के महत्त्वपूर्ण अंग बेकार हो चुके हैं. वह मुझे अपने घर रखेगा?’’

‘‘फिर वह तुम्हारा इलाज क्यों करवा रहा था?’’

‘‘बस एक यही एहसान उस ने मेरे ऊपर किया है. मेरे प्यार का कुछ कर्ज उसे अदा करना ही था. वह बहुत पैसे वाला है, परंतु एक बीमार औरत को घर में रखने का फैसला उस के पास नहीं है. उसे रोज अनगिनत सुंदर और कुंआरी लड़कियां मिल सकती हैं, तो वह मेरी परवाह क्यों करेगा. वैसे मैं स्वयं उस के पास नहीं जाना चाहती हूं. मैं किसी भी मर्द के पास नहीं जाना चाहती. मर्दों ने ही मुझे प्यार की इंद्रधनुषी दुनिया में भरमा कर मेरी यह दुर्गति की है… मैं किसी महिला आश्रम में जाना चाहूंगी,’’ उस के स्वर में आत्मविश्वास सा आ गया था.

अनुभा सोच में पड़ गई. उस ने हिमांशु से सलाह ली. फिर निमी से बोली, ‘‘तुम कहीं और नहीं जाओगी, मेरे घर चलोगी.’’

‘‘तुम्हारे घर?’’ निमी का मुंह खुला का खुला रह गया.

‘‘हां, और अब इस के बाद कोई सवाल नहीं, चलो.’’

अनुभा और हिमांशु को मोतीबाग में टाइप-5 का फ्लैट मिला था. उस में पर्याप्त कमरे थे. 1 कमरा उन्होंने निमी को दे दिया. निमी अनुभा और हिमांशु की दरियादिली, प्रेम और स्नेह से अभिभूत थी. उस के पास धन्यवाद करने के लिए शब्द नहीं थे.

निमी के पिता आर्मी औफिसर थे. मां भी उच्च शिक्षित थीं. आर्मी में रहने के कारण उन्हें तमाम सुविधाएं प्राप्त थीं. पिता रोज क्लब जाते थे और शराब पी कर लौटते थे. मां भी कभीकभार क्लब जातीं और शराब का सेवन करतीं. उन के घर में शराब की बोतलें रखी ही रहतीं. कभीकभार घर में भी महफिल जम जाती. निमी के पिता के यारदोस्त अपनी बीवियों के साथ आते या कोई रिश्तेदार आ जाता, तो महफिल कुछ ज्यादा ही रंगीन हो जाती.

निमी बचपन से ही ये सब देखती आ रही थी. उस के कच्चे मन में वैसी ही संस्कृति और संस्कार घर कर गए. उसे यही वास्तविक जीवन लगता. 15 साल की उम्र तक पहुंचतेपहुंचते उस ने शराब का स्वाद चोरीछिपे चख लिया था और सिगरेट के सूट्टे भी लगा लिए थे.

ग्रैजुएशन करने के बाद निमी ने मम्मीपापा से कहा, ‘‘मैं यूपीएसी का ऐग्जाम देना चाहती हूं.’’

‘‘तो तैयारी करो.’’

‘‘कोचिंग करनी पड़ेगी. अच्छे कोचिंग इंस्टिट्यूट डीयू के आसपास मुखर्जी नगर में हैं.’’

‘‘क्या दिक्कत है? जौइन कर लो.’’

‘‘परंतु इतनी दूर आनेजाने में बहुत समय बरबाद हो जाएगा. मैं चाहती हूं कि यहीं आसपास बतौर पीजी रह लूं और सीरियसली कंपीटिशन की तैयारी करूं… तभी कुछ हो पाएगा,’’ निमी ने कहा.

मम्मीपापा ने एकदूसरे की आंखों में एक पल के लिए देखा, फिर पापा ने उत्साह से कहा,  ‘‘ओके माई गर्ल. डू व्हाटएवर यू वांट.’’

‘‘किंतु यह अकेले कैसे रहेगी?’’ मम्मी ने शंका व्यक्त की.

‘‘क्या दकियानूसी बातें कर रही हो. शी इज ए बोल्ड गर्ल. आजकल लड़कियां विदेश जा रही हैं पढ़ने के लिए. यह तो दिल्ली शहर में ही रहेगी. जब मरजी हो जा कर मिल आया करना. यह भी आतीजाती रहेगी.’’

‘‘यस मौम,’’ निमी ने दुलार से कहा. जब बापबेटी राजी हों, तो मां की कहां चलती है. उसे परमीशन मिल गई. उस ने 1 साल का कन्सौलिडेटेड कोर्स जौइन कर लिया और मुखर्जी नगर में ही रहने लगी.

जैसाकि निमी का स्वभाव था, वह जल्दी लड़कों में लोकप्रिय हो गई. कोचिंग में पढ़ने वाले कई लड़के उस के दोस्त बन गए. सभी धनाढ्य घरों के थे. उन के पास अनापशनाप पैसे आते थे. आएदिन पार्टियां होतीं. निमी उन पार्टियों की शान समझी जाती थी.

लड़के उस के सामीप्य के लिए एड़ीचोटी का जोर लगा देते. दिन, महीनों में नहीं बदले, उस के पहले ही निमी कई लड़कों के गले का हार बन गई. उस के बदन के फूल लड़कों के बिस्तर पर महकने लगे.

बहुत जल्दी उस के मम्मीपापा को उस की हरकतों के बारे में पता चल गया. मम्मी ने समझाया, ‘‘बेटा, यह क्या है? इस तरह का जीवन तुम्हें कहां ले जा कर छोड़ेगा, कुछ सोचा है? हम ने तुम्हें कुछ ज्यादा ही छूट दे दी थी. इतनी छूट तो विदेशों में भी मांबाप अपने बच्चों को नहीं देते. चलो, अब तुम पीजी में नहीं रहोगी… जो कुछ करना है हमारी निगाहों के सामने घर पर रह कर करोगी.’’

‘‘मम्मी, मेरी कोचिंग तो पूरी हो जाने दो,’’  निमी ने प्रतिरोध किया.

‘‘जो तुम्हारे आचरण हैं, उन से क्या तुम्हें लगता है कि तुम कोचिंग की पढ़ाई कर पाओगी… कोचिंग पूरी भी कर ली, तो कंपीटिशन की तैयारी कर पाओगी? पढ़ाई करने के लिए किताबें ले कर बैठना पड़ता है, लड़कों के हाथ में हाथ डाल कर पढ़ाई नहीं होती,’’ मां ने कड़ाई से कहा.

‘‘मम्मी, प्लीज. आप पापा को एक बार समझाओ न,’’ निमी ने फिर प्रतिरोध किया.

‘‘नहीं, निमी. तुम्हारे पापा बहुत दुखी और आहत हैं. मैं उन से कुछ नहीं कह सकती. तुम अपने मन की करोगी, तो हम तुम्हें रुपयापैसा देना बंद कर देंगे. फिर तुम्हें जो अच्छा लगे करना.’’

निमी अपने घर आ तो गई, परंतु अंदर से बहुत अशांत थी. घर पर ढेर सारे प्रतिबंध थे. अब हर क्षण मां की उस पर नजर रहती.

शराब, सिगरेट और लड़कों से वह भले ही दूर हो गई थी, परंतु मोबाइल फोन के माध्यम से उस के दोस्तों से उस का संपर्क बना हुआ था.

जब फोन करना संभव न होता, फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सऐप के माध्यम से संपर्क हो जाता. लड़के इतनी आसानी से सुंदर मछली को फिसल कर पानी में जाने देना नहीं चाहते.

लड़कों ने उसे तरहतरह से समझाया. वे सभी उस का खर्चा उठाने के लिए तैयार थे. रहनेखाने से ले कर कपड़ेलत्ते और शौक तक… सब कुछ… बस वह वापस आ जाए. प्रलोभन इतने सुंदर थे कि वह लोभ संवरण न कर सकी. मांबाप के प्यार, संरक्षण और सलाहों के बंधन टूटने लगे.

निमी ने बुद्धि के सारे द्वार बंद कर दिए. विवेक को तिलांजलि दे दी और एक दिन घर से कुछ रुपएपैसे और कपड़े ले कर फरार हो गई. दोस्तों ने उस के खाने व रहने के लिए एक फ्लैट का इंतजाम कर रखा था. काफी दिनों तक वह बाहरी दुनिया से दूर अपने घर में बंद रही.

पता नहीं उस के मांबाप ने उसे ढूंढ़ने का प्रयत्न किया था या नहीं. उस ने अपना फोन नंबर ही नहीं, फोन सैट भी बदल लिया था. मांबाप अगर पुलिस में रिपोर्ट लिखाते तो उस का पता चलना मुश्किल नहीं था. उस के पुराने फोन की काल डिटेल्स से उस के दोस्तों और फिर उस तक पुलिस पहुंच सकती थी, परंतु संभवतया उस के मांबाप ने पुलिस में उस के गुम होने की रिपोर्ट नहीं लिखाई थी.

निमी का जीवन एक दायरे में बंध कर रह गया था. खानापीना और ऐयाशी, जब तक वह नशे में रहती, उसे कुछ महसूस न होता, परंतु जबजब एकांत के साए घेरते उस के दिमाग में तमाम तरह के विचार उमड़ते, मांबाप की याद आती.

न तो समय एकजैसा रहता है, न कोई वस्तु अक्षुण्ण रहती है. निमी ने धीरेधीरे महसूस किया, उस के जो मित्र पहले रोज उस के पास आते थे, अब हफ्ते में 2-3 बार ही आते थे. पूछने पर बताते व्यस्तता बढ़ रही है. दूसरे काम आ गए हैं. मगर सत्य तो यह था उन के जीवन में एकरसता आ गई थी. अनापशनाप पैसा खर्च हो रहा था. मांबाप सवाल उठाने लगे थे. निमी की तरह बेवकूफ तो थे नहीं, उन्हें अपना कैरियर बनाना था. कुछ की कोचिंग समाप्त हो गई, तो वे अपने घर चल गए. जो दिल्ली के थे, वे कभीकभार आते थे, परंतु अब उन के लिए भी निमी का खर्चा उठाना भारी पड़ने लगा था.

निमी वरुण को अपना सर्वश्रेष्ठ हितैषी समझती थी. एक दिन उसी से पूछा, ‘‘वरुण, एक बात बताओ, मैं ने तुम लोगों की दोस्ती के लिए अपना घरपरिवार और मांबाप छोड़ दिए, अब तुम लोग मुझे 1-1 कर छोड़ कर जाने लगे हो. मैं तो कहीं की न रही… मेरा क्या होगा?’’

वरुण कुछ पल सोचता रहा, फिर बोला, ‘‘निमी, मेरी बात तुम्हें कड़वी लगेगी, परंतु सचाई यही है कि तुम ने हमारी दोस्ती नहीं अपने स्वार्थ और सुख के लिए घर छोड़ा था. यहां कोई किसी के लिए कुछ नहीं करता, सब अपने लिए करते हैं. अपनी स्वार्थ सिद्धि के बाद सब अलग हो जाते हैं, जैसा अब तुम्हारे साथ हो रहा है.

यह कड़वी सचाई तुम्हें बहुत पहले समझ जानी चाहिए थी. हम सभी अभी बेरोजगार हैं, मांबाप के ऊपर निर्भर हैं, कैरियर बनाना है. ऐसे में रातदिन हम  भोगविलास में लिप्त रहेंगे, तो हमारा भविष्य चौपट हो जाएगा.’’

अपनी स्थिति पर उसे रोना आ रहा था, परंतु वह रो नहीं सकती थी. आगे आने वाले दिनों के बारे में सोच कर उस का मन बैठा जा रहा था. वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे?

‘‘मैं क्या करूं, वरुण?’’ वह लगभग रोंआसी हो गई थी, ‘‘नासमझी में मैं ने क्या कर डाला?’’

‘‘बहुत सारी लड़कियां जवानी में ऐसा कर गुजरती हैं और बाद में पछताती हैं.’’

‘‘तुम ने भी मुझे कभी नहीं समझाया, मैं तो तुम्हें सब से अच्छा दोस्त समझती थी.’’

वरुण हंसा, ‘‘कैसी बेवकूफी वाली बातें कर रही हो. तुम कभी एक लड़के के प्रति वफादार नहीं रही. तुम्हारी नशे की आदत और तुम्हारी सैक्स की भूख ने तुम्हारी अक्ल पर परदा डाल दिया था. तुम एक ही समय में कई लड़कों के साथ प्रेमव्यवहार करोगी, तो कौन तुम्हारे साथ निष्ठा से प्रेमसंबंध निभाएगा… सभी लड़के तुम्हारे तन के भूखे थे और तुम उन्हें बहुत आसान शिकार नजर आई. बिना किसी प्रतिरोध के तुम किसी के भी साथ सोने के लिए तैयार हो जाती थी. ऐसे में तुम किसी एक लड़के से सच्चे और अटूट प्रेम की कामना कैसे कर सकती हो?’’

वरुण की बातों में कड़वी सचाई थी. निमी ने कहा, ‘‘मैं ने जोश में आ कर अपना सब कुछ गवां दिया. दोस्त भी 1-1 कर चले गए. तुम तो मेरा साथ दे सकते हो.’’

वरुण ने हैरान भरी निगाहों से उसे देखा, ‘‘तुम्हारा साथ कैसे दे सकता हूं? मैं तो स्वयं तुम से दूर जाने वाला था. 1 साल मेरा बरबाद हो गया. इस बार प्री ऐग्जाम भी क्वालिफाई नहीं कर पाया. तुम्हारे चक्कर में पढ़ाईलिखाई हो ही नहीं पाई. घर में मम्मीपापा सभी नाराज हैं. ऐयाशी और मौजमस्ती छोड़ कर मैं ईमानदारी से तैयारी करना चाहता हूं. मैं तुम से कोई वास्ता नहीं रखना चाहता. वरना मेरा जीवन चौपट हो जाएगा.’’

निमी ने उस के दोनों हाथों को पकड़ कर अपने सीने पर रख लिया, ‘‘वरुण, मैं जानती हूं मैं ने गलती की है. मछली की तरह एक से दूसरे हाथ में फिसलती रही, परंतु सच मानो मैं ने तुम्हें सच्चे मन से प्यार किया है. जब कभी मन में अवसाद के बादल उमड़े मैं ने केवल तुम्हें याद किया. मुझे इस तरह छोड़ कर न जाओ.’’

‘‘निमी, तुम समझने का प्रयास करो, मैं ने अगर तुम्हारा साथ नहीं छोड़ा, तो मेरा भविष्य मेरे रास्ते से गायब हो जाएगा. मुझे कुछ बन जाने दो.’’

‘‘मैं तुम से प्यार की भीख नहीं मांगती. प्यार और सैक्स को पूरी तरह से भोग लिया है मैं ने परंतु पेट की भूख के आगे मनुष्य सदा लाचार रहता है. मेरे पास जीविका का कोई साधन नहीं है. जहां इतना सब कुछ किया, मेरे प्यार के बदले इतना सा उपकार और कर दो. रहने के लिए 1 कमरा और पेट की रोटी के लिए दो पैसे का इंतजाम कर दो. मैं वेश्यावृत्ति नहीं अपनाना चाहती,’’ निमी की आवाज दुनियाभर की बेचारगी और दीनता से भर गयी थी.

वरुण अपने दोस्तों की तरह कठोर नहीं था. उस के अंदर सहज मानवीय भाव थे. वह काफी संवेदनशील था और निमी के प्रति दयाभाव भी रखता था, परंतु उस के लिए वह अपना भविष्य दांव पर नहीं लगा सकता था. अत. कुछ सोच कर बोला, ‘‘तुम प्राइवेट नौकरी कर सकती हो?’’

‘‘हां, मेरे पास और चारा भी क्या है?’’

‘‘तो फिर ठीक है, तुम इसी फ्लैट में रहो. इस का किराया मैं दे दिया करूंगा. मैं अपने पिता से बात कर के तुम्हें किसी कंपनी में काम दिलवा दूंगा, जिस से तुम्हारा गुजारा चल सके.’’

‘‘मैं तुम्हारा एहसान कभी नहीं भूलूंगी.’’

वरुण ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘या तुम अपने घर चली जाओ.’’

निमी ने आश्चर्य से उसे देखा. फिर बोली, ‘‘कौन सा मुंह ले कर जाऊं उन के पास? क्या बताऊंगी उन्हें कि मैं ने इतने दिन क्या किया है? नहीं वरुण, मैं उन के पास जा कर उन्हें और परेशान नहीं करना चाहती.’’

वरुण के पिता सरकारी विभाग में अच्छे पद थे. उस ने पिता से कह कर निमी को एक प्राइवेट कंपनी में लगवा दिया. 20 हजार महीने पर. निमी का जो लाइफस्टाइल था, उस के हिसाब से उस की यह सैलरी ऊंट के मुंह में जीरे के बराबर थी, परंतु मुसीबत की घड़ी में मनुष्य को तिनके का सहारा भी बहुत होता है.

निमी ने उन्मुक्त यौन संबंधों से तो छुटकारा पा लिया, परंतु वह शराब और सिगरेट से छुटकारा नहीं पा सकी. एकांत उसे परेशान करता, पुरानी यादें उसे कचोटतीं, मांबाप की याद आती, तो वह पीने बैठ जाती.

वरुण जब भी उस से मिलने आता, वह उस की बांहों में गिर कर रोने लगती. वह समझाता, ‘‘मत पीया करो इतना, बीमार हो जाओगी.’’

‘‘वरुण, एकाकी जीवन मुझे बहुत डराता है,’’ वह उस से चिपक जाती.

‘‘मातापिता के पास वापस चली जाओ. वे तुम्हें माफ कर देंगे,’’

वह कई बार निमी से यह बात कह चुका था, पर हर बार निमी का यही जवाब होता, ‘‘कौन सा मुंह ले कर जाऊं उन के पास? वे मुझे क्या बनाना चाहते थे और मैं क्या बन बैठी… माफ तो कर देंगे, परंतु समाज को क्या जवाब देंगे.’’

‘‘वही, जो अभी दे रहे होंगे.’’

‘‘अभी वे मुझे मरा समझ कर माफ कर देंगे, परंतु उन के पास रह कर मैं उन्हें बहुत दुख दूंगी.’’

‘‘एक बार जा कर तो देखो.’’

‘‘नहीं वरुण, तुम मेरे मांबाप को नहीं जानते. वे मुझे माफ नहीं करेंगे. अगर उन्हें माफ करना होता, तो अब तक मुझे ढूंढ़ लिया होता. यह बहुत मुश्किल नहीं था. उन्होंने पुलिस में रिपोर्ट भी नहीं की होगी,’’ वरुण के समझाने का उस पर कोई प्रभाव न पड़ता.

यथास्थिति बनी रही. बस वरुण सिविल सर्विसेज की तैयारी में निरंतर जुटा रहा. इस का परिणाम यह रहा कि वह यूपीएससी परीक्षा पास कर गया.

जब वरुण ट्रेनिंग के लिए जाने लगा तो निमी ने कहा, ‘‘अब तुम पूरी तरह से मुझ से दूर चले जाओगे.’’

‘‘वह तो जाना ही था,’’ वरुण ने उसे समझाते हुए कहा.

निमी के मन में बहुत कुछ टूट गया. वह जानती थी, वरुण उस का नहीं हो सकता है,

फिर भी उस के दिल में कसक सी उठी. वह खोईखोई आंखों से वरुण को देख रही थी. वरुण ने उस के सिर को सहलाते हुए कहा, ‘‘देखो, निमी, मेरा कहना मानो, अब भटकने से कोई फायदा नहीं. तुम ने अपने जीवन को जितना गिराना था, गिरा लिया. अब सावधानी से उठने की कोशिश करो. तुम्हारी तनख्वाह बढ़ गई है. कुछ बचा कर पैसे जोड़ लो और किसी लड़के से शादी कर के घर बसा लो. मेरी तरफ से जो हो सकेगा मैं मदद करूंगा.’’

निमी ने जवाब नहीं दिया. अगले कुछ दिनों में वरुण मसूरी चला गया. निमी पूरी तरह टूट गई. उस ने अपनी सोच पर ताले लगा लिए. जैसे वह सुधरना ही नहीं चाहती थी.

1 साल की ट्रेनिंग के दौरान वरुण उस से मिलने केवल एक बार आया और रातभर उस के साथ रुका. तब भी उस ने निमी को घर बसाने की सलाह दी. परंतु वह चुप ही रही.

कई साल बीत गए. वरुण की पोस्टिंग हो गई थी. वह एक जिले का कलैक्टर बन गया था. उसे छुट्टी नहीं मिलती थी या दिल्ली आ कर भी वह उस से मिलना नहीं चाहता था, परंतु हर माह वह एक अच्छी राशि निमी के खाते में जमा करा देता था.

निमी ने तय कर लिया था कि वह शादी नहीं करेगी. वरुण उस का नहीं है, फिर भी उस का इंतजार करती थी. इंतजार जितना लंबा हो रहा था, उस के शराब पीने की मात्रा भी उतनी ही बढ़ती जा रही थी. फिर पता चला कि वरुण की शादी किसी चीफ सैक्रेटरी की आईएएस बेटी से हो गई है. निमी के अंदर जो थोड़ी सी आस बची थी, वह पूर्णरूप से टूट गई. उस की शराब की मात्रा इतनी ज्यादा हो गई कि अब वह दफ्तर भी नहीं जा पाती थी.

वरुण से उस का कोई सीधा संपर्क नहीं था. कभीकभी वरुण के पिता का नौकर उस के हालचाल पूछ जाता था. वही वरुण के बारे में बताता था और उस के बारे में वही वरुण को खबर करता होगा.

अत्यधिक शराब के सेवन से उस की तबीयत खराब रहने लगी. वरुण के पिता का नौकर लगभग रोज उस के पास आने लगा था. एक दिन उसी के सामने निमी को खून की उलटी हुई. उसे आननफानन में अस्पताल में भरती करवाया गया.

मैडिकल रिपोर्ट से यह साबित हो गया था कि अत्यधिक शराब के सेवन से उस के सारे अंदरूनी अंग खराब हो गए हैं. वरुण ने अपने नौकर के माध्यम से उसे सेमी प्राइवेट वार्ड में भरती करवा दिया था. इलाज का सारा खर्च वह भेज रहा था, परंतु कभी मिलने नहीं आया.

उस के इलाज में कोई कमी नहीं थी, परंतु उस का दुख उसे खाए जा रहा था जैसे वह किसी बीमारी से नहीं, अपने दुख से ही मरेगी, परंतु इसी बीच संयोग से अस्पताल में अनुभा प्रकट हुई और उस के जीवन में अभूतपूर्व परिवर्तन आ गया. अब वह ठीक हो कर घर आ गई थी. घर तो आ गई थी, परंतु किस के  घर? उस का अपना घर, संसार कहां था?

यक्ष प्रश्न अभी भी उस के सामने खड़ा था. अब आगे क्या? 35 वर्ष की अवस्था में अब वह कोई युवती नहीं थी. बीमारी ने उस की सुंदरता को काफी हद तक क्षीण कर दिया था. नौकरी हाथ से जा चुकी थी, वरुण से भी व्यक्तिगत संपर्क टूट चुका था.

हिमांशु केंद्र सरकार में उच्च अधिकारी थे. उन्होंने अपने प्रयासों से निमी को एक संस्था से जोड़ दिया. यह संस्था अनाथ बच्चों की देखभाल और उन्हें शिक्षा प्रदान करती थी. कुछ दिन तक निमी अनुभा के घर पर रही. फिर उस की संस्था ने उसे एक घर लीज पर दिलवा दिया. साफसफाई के बाद जिस दिन निमी ने अपने घर में प्रवेश किया, तब अनुभा और उस के पति के कुछ दोस्त मौजूद थे. छोटी सी पार्टी रखी गई थी.

शाम को पार्टी के बाद जब अनुभा निमी को छोड़ कर जाने लगी, तो निमी ने कहा, ‘‘मैं फिर अकेली हो जाऊंगी.’’

‘‘नहीं, तुम अकेली नहीं हो. हम सब तुम्हारे साथ हैं. पहले जो लोग तुम से जुड़े थे, वे स्वार्थवश जुड़े थे. इसीलिए तुम पतन की राह पर चल पड़ी थी. अब तुम्हारे सामने एक लक्ष्य है, बच्चों का भविष्य सुधारने का. इस लक्ष्य को ध्यान में रखोगी और अपनी पिछली जिंदगी के बारे में विचार करोगी, तो तुम एकाकी जीवन जीते हुए भी कभी गलत रास्ते पर नहीं चलोगी.’’

निमी ने शरमा कर सिर झुका लिया. अनुभा ने उस का चेहरा ऊपर उठाया. उस की आंखों में आंसू थे. कई वर्षों बाद उस की आंखों में खुशी के आंसू आए थे.

Winter Health Tips : सर्दियों में रखें दिल का खास ख्याल

Winter Health Tips : सर्दी के मौसम में तापमान गिरते रहने से रक्त का गाढ़ापन बढ़ने लगता है और रक्त प्रवाह कम होने लगता है, जिस से दिल का दौरा पड़ने और कोरोनरी आर्टरी संबंधी बीमारियों के मामले भी बढ़ने लगते हैं. दिल का दौरा पड़ने के कारणों की जानकारी न होना और सर्दी के मौसम में सावधानियों की अनदेखी इन बीमारियों की बड़ी वजहें हैं.

कार्डियोवैस्क्यूलर रोगों से पीडि़त व्यक्तियों को सर्दी के मौसम में विशेष सावधानियां बरतनी चाहिए ताकि उन का दिल सुरक्षित रह सके.

नियमित जांच जरूरी

सर्दियों में लोगों को दिल का दौरा पड़ने का खतरा ज्यादा रहता है. बाईं धमनी से निकलने वाली रक्तधमनियां गिरते तापमान के साथ सिकुड़ने लगती हैं. परिणामस्वरूप दिल को रक्त प्रवाहित करने के लिए अधिक प्रयास करना पड़ता है. इस से दिल पर अधिक दबाव पड़ने लगता है और यही दिल का दौरा पड़ने का कारण बनता है. ऐसी स्थिति में उन लोगों के लिए खतरा और बढ़ जाता है, जिन्हें अपने दिल की स्थिति के बारे में पहले से जानकारी नहीं होती है.

कार्डियोवैस्क्यूलर के खतरे के बारे में जानकारी रखने के लिए नियमित जांच कराते रहना बहुत जरूरी है.

बढ़ जाता है खतरा

मौसम बदलने के साथ ही कोलैस्ट्रौल लैवल में भी व्यापक उतारचढ़ाव होता है, जिस कारण उच्च कोलैस्ट्रौल की स्थिति में पहुंच चुके व्यक्तियों को सर्दी के महीनों में कार्डियोवैस्क्यूलर रोग का खतरा बढ़ सकता है. उन के लिए कोलैस्ट्रौल लैवल नियंत्रित रखना बेहद जरूरी है.

इस दौरान ज्यादा मेहनत वाला काम करने से बचें. लगातार काम करने के दौरान बीचबीच में आराम करते रहें ताकि दिल पर ज्यादा दबाव न पड़े. यही नहीं व्यायाम के तौरतरीकों में भी बदलाव लाते रहें.

ज्यादा ठंडे दिनों में सुबह की सैर करने से बचें. सामान्य खुराक से ज्यादा खाने से भी परहेज करें. लेकिन ध्यान रहे कि एक बार में ही ज्यादा मात्रा में भोजन कर लेने से भी दिल पर अतिरिक्त बोझ पड़ सकता है. अत: ऐसा न करें, बल्कि थोड़ेथोड़े अंतराल पर थोड़ाथोड़ा खाते रहें.

सर्दी के मौसम में कभी यह सोच कर शराब का सेवन न करें कि इस से शरीर में गरमी बनी रहेगी, बल्कि यह उलटा नुकसान करती है. शराब से शरीर में गरमी बनी रहेगी, यह सोचना गलतफहमी है.

– डा. वनिता अरोड़ा
मैक्स हौस्पिटल

Anurag Basu का संघर्षों से भरा है सफर, ऐसे हुई कैरियर की शुरुआत

Anurag Basu : शांत, धैर्यवान और हंसमुख अनुराग बसु ने फिल्म इंडस्ट्री में एक लंबा सफर तय किया है. इसमें उन्होंने एक स्टोरीटेलर के रूप में क्रीएटिवटी, अडैप्टबिलटी और अथक परिश्रम से अपने आर्टिस्टिक हुनर को सबके सामने लाने की कोशिश की है. अनुराग एक अच्छे फ़िल्म, टीवी विज्ञापन, निर्माता, निर्देशक, अभिनेता और पटकथा लेखक के रूप में जाने जाते हैं उन्होंने कई बड़ी फिल्में और वेब सीरीज बनाई है.

अनुराग बसु का जन्म झारखंड के भिलाई क्षेत्र में एक आर्टिस्टिक बंगाली परिवार में हुआ है, जहां उनकी मां दीपशखा बसु और पिता सुब्रतो बसु दोनों ही उच्च श्रेणी के थिएटर आर्टिस्ट रहे, जिसका प्रभाव अनुराग के जीवन पर पड़ा. अनुराग ने अपनी शुरुआती पढ़ाई भिलाई से पूरी की. उसके बाद उन्होंने अपनी स्नातक की पढ़ाई जबलपुर इंजीनियरिंग कौलेज से पूरा किया है. काम के दौरान उन्होंने तानी बसु से शादी किया और दो बेटियों के पिता बने.

कैरियर की शुरुआत

अनुराग का कैरियर टीवी धारावाहिकों से शुरू हुआ, जिसमें उन्होंने तारा, कोशिश.. एक आशा जैसी पौपुलर शोज बनाए. इसके बाद उन्होंने सांस भी कभी बहू थी, कहानी घरघर की, कसौटी जिंदगी की आदि कई धारावाहिकों के पायलट शो बनाए. इसके बाद उन्होंने खुद की कम्पनी शुरू की और कई धारावाहिकों का निर्माण किया, जिसमें मीत, मंजिले अपनी अपनी, एम आई आई टी, थ्रिलर एट 10, रवीन्द्रनाथ टैगोर की कहानियां आदि कई थे. टीवी की जर्नी को वे चुनौतीपूर्ण और रिवार्डिंग मानते है. उनका कहना है कि टीवी में काम करना एक बवंडर में काम करने जैसा होता है, जिसमें लिमिटेड टाइम में हाई क्वालिटी कंटैन्ट का प्रेशर बना रहता है, इससे मुझे किसी भी बदलते परिस्थिति में मुझे कुछ अच्छा सोचने की सीख मिली. साथ ही दर्शकों की पसंद को जानने का मौका भी शो के जरिए मिलता रहा. टीवी में काम करना सभी कलाकारों के लिए भी बहुत जरूरी होता है, क्योंकि इससे कलाकार दर्शकों की पर्सनल लेवल से जुड़ जाता है और कलाकार के रोजरोज की कोशिश उन्हें एक अच्छा कलाकार बनाती है.

टीवी से फिल्मों का सफर

अनुराग ने टीवी धारावाहिकों के हजारों एपिसोड शूट करने के साथसाथ खुद को एक फिल्म मेकर के रूप में स्थापित किया है, जिसके लिए उन्हें काफी मेहनत करनी पड़ी, क्योंकि उनकी पहचान टीवी पर हो चुकी थी, लेकिन उनकी इच्छा थी कि वे एक बड़ी फिल्म का निर्देशन करें, ऐसे में छोटे पर्दे से बड़े पर्दे पर शिफ्ट करना उनके लिए एक बड़ा कदम था, जिसे उन्होंने सोच समझकर लिया, क्योंकि वे चाहते थे कि अब उन कहनियों को कही जाए, जिसे लोगों ने सालों से नहीं देखा है और ये कहनियां हमारे आसपास घट रही है, जिसमें जुनून, ईर्ष्या और व्यभिचार जैसे विषयों को लेना आवश्यक है. इसी श्रृंखला में उन्होंने मर्डर और बर्फ़ी जैसी फिल्में बनाकर एक चर्चित निर्देशक बने. उनका मानना है कि एक निर्देशक हर फिल्म से कुछ न कुछ सीखता है और मैंने भी सीखा है.

20 सालों का साथ

अनुराग बासु की कोर टीम पिछले 20 वर्षों से साथ काम कर रही है, प्रोडक्शन डिजाइन से लेकर सिनेमेटोग्राफर सभी आजतक साथ है. वे कहते है कि मेरी पहली फिल्म मेरे सारे ग्रुप की पहली फिल्म थी, सभी ने साथ मिलकर उस फिल्म को बनाई थी और आज भी साथ फिल्म्स बनाते हैं. उन्होंने फिल्म मेकिंग को खुद की उपलब्धि नहीं, बल्कि टीम की मेहनत को माना है, एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा है कि मैँ किसी स्क्रिप्ट को लिखने के बाद उसे शूट करते वक्त आर्टिस्ट को पूरी आजादी देता हूं ताकि वे उसे अपने तरीके से दृश्य को अच्छा बनाए, इसलिए कई बार स्क्रिप्ट मेरे पास होती है, लेकिन शूटिंग के दृश्य बदल जाते है और रिजल्ट अच्छा निकल कर आता है.

बसु ने हर तरह की कहानियों को कहने की कोशिश की है, जिसमें संगीत, रोमांस, थ्रिल आदि के सहारे उन्होंने दर्शकों को हमेशा कुछ नया दिया है. वे कहते है कि एक फिल्म मेकर होने के नाते मैं हमेशा पूरे विश्व से प्रभावित रहता हूं और किसी भी जोनर की संस्कृति और वहां के अनुभव को फिल्म की कहानी के जरिए लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करता रहता हूं. फिल्म जग्गा जासूस अधिक नहीं चली, लेकिन उसमें मैंने नए स्टाइल और एनिमेशन का प्रयोग किया है, क्योंकि आर्ट एक ईवोल्यूशन है, इसमें मैं नए प्रयोग करता रहता हूं, ताकि दर्शकों को कुछ नया देखने को मिले.

रहा संघर्ष  

अनुराग के टीवी से फिल्मों के कैरियर की शुरुआत आसान नहीं था, उन्हें बहुत संघर्ष करने पड़े, क्योंकि उन्हे प्रूव करना पड़ा कि वह एक अच्छे फिल्म मेकर है, लेकिन इसके लिए किसी बड़े फिल्म मेकर के अंदर उन्हें काम करने की जरूरत थी, जिसका मौका उन्हे भट्ट कैम्प से मिला. हालांकि उनके कैरियर की शुरुआत वर्ष 2003 में तुषार कपूर और ईशा देओल स्टारर फिल्म कुछ तो है से हुआ और इस फिल्म का निर्माण एकता कपूर ने किया गया था, लेकिन यह फिल्म बौक्सऔफिस पर कुछ खास कमाल नहीं दिखा सकी. इसके बाद बासु ने महेश भट्ट के साथ मिलकर फिल्म साया का निर्देशन किया. इस फिल्म में जॉन अब्राहम और तारा शर्मा मुख्य भूमिका में नजर आये थे, लेकिन पहली फिल्म की तरह उनकी यह फिल्म भी दर्शकों को कुछ खास पसंद नहीं आई. अनुराग कहते है कि मुझे ये प्रूव करना मुश्किल हो रहा था कि मैं एक अच्छा फिल्म मेकर हूं, लेकिन एक दिन मुकेश भट्ट ने मुझे बुलाया और 7 लाख का ऑफर निर्देशन के लिए दिया, लेकिन तुरंत उन्होंने इसे दो फिल्मों की फीस बता दी, मैँ राजी हो गया, क्योंकि कोई काम मिल नहीं रहा था और तब फिल्म मर्डर बनी. ढाई करोड़ की फिल्म ने 80 करोड़ की कमाई की और मेरा निर्देशन सफल रहा. यह मेरी पहली हिट फिल्म साबित हुई.

फिल्म हिट तो डायरेक्टर हिट   

इसके बाद अनुराग ने फिल्म गैंगस्टर और लाइफ इन ए मेट्रो जैसी फ़िल्में निर्देशित की, जिसे दर्शकों ने कुछ पसंद किया, लेकिन तभी उनके मस्तिष्क में बर्फी फिल्म की कहानी आई और बसु ने इसे रणबीर कपूर, प्रियंका चोपड़ा और इलियाना डीक्रूज के साथ बनाई, जो उनके कैरियर की सबसे बड़ी हिट फिल्म फिल्म साबित हुई, क्योंकि इस फिल्म में दार्जिलिंग के एक गूंगे और बहरे व्यक्ति मर्फी “बर्फी” जौनसन के जीवन और उसके दो महिलाओं श्रुति और झिलमिल के साथ सम्बन्धों को दर्शाती है, यह फिल्म दर्शकों और आलोचकों द्वारा हर जगह सराही गयी. इस फिल्म को कई पुरस्कार भी मिले.

अनुराग बसु को हुआ था ब्लड कैंसर

अनुराग बसु को वर्ष 2004 में प्रोमाइलोसाइटिक ल्यूकेमिया नामक ब्लड कैंसर था. इस बीमारी में बोन मैरो में सफ़ेद रक्त कोशिकाओं का उत्पादन बढ़ जाता है. अनुराग बसु कीमोथेरेपी और लगातार इलाज के बाद इस बीमारी से उबर चुके है. अब वे खुद की नियमित देखभाल से ठीक है. उस घटना के बारें में उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा है कि उन्हें इस बीमारी का पता तब चला, जब उनके मुंह में बड़ेबड़े छाले निकलने लगे थे.

वह डौक्टर के पास तो गए, लेकिन वहां उनको कुछ मेडिकल टेस्ट के लिए एडमिट होने के लिए कहा गया था. अनुराग बिना टेस्ट कराए सेट पर वापस आ गए, लेकिन स्थिति ठीक न होने की वजह से उनको अस्पताल में भर्ती किया गया. इधर उनकी पत्नी दूसरी बार गर्भवती थी और डौक्टर ने उन्हे कहा कि उनके पास जीने के लिए केवल 2 सप्ताह है. अनुराग घबराये नहीं और उस परिस्थिति से निकलने की कोशिश में लगे रहे.

उनके इलाज के दौरान, टीवी और फ़िल्म इंडस्ट्री के कई लोगों ने रक्तदान किया था. उन्होंने कीमोथेरेपी के दौरान मास्क पहनकर फ़िल्म ‘गैंगस्टर’ की शूटिंग की थी. उन्हें परिवार, दोस्तों, और चाहने वालों का पूरा समर्थन मिला, जिससे वे इस बीमारी से उबर पाए. वे आगे कहते है कि कैंसर से लड़ाई के बाद मेरा जीवन के प्रति नजरिया ही बदल गया है.

रियलिटी शोज में जज अब और नहीं

अनुराग हंसते हुए कहते हैं कि एक घटना ने मुझे रियलिटी शोज में काम करने से रोक दिया है. मैंने कई डांस शोज जज किये है, एक दिन एक माल में मैं बच्चों सहित एक परिवार से मिला, बच्चों ने मेरे साथ पहले तो सेल्फी ली, लेकिन तभी उन बच्चों की मां ने मुझसे पूछा कि आपका डांस क्लास कहा है? उस दिन से मैंने सोच लिया है कि मैं अब डांस रियलिटी शोज की जजिंग नहीं करूंगा.

इंडियन फिल्म्स है ग्लोबल फिल्म

अनुराग मानते हैं कि इंडियन फिल्म्स ग्लोबल औडियंस को ध्यान में रख कर बनाई जाती है, लेकिन आज किसी को अधिक सफलता नहीं मिल रही है. आशा है, जिस तरह चिकन टिक्का का टेस्ट विदेशों में लोगों ने डेवलप कर लिया है, वैसे ही हमारी फिल्मों को भी वे पसंद करने लगेंगे. देखा जाय तो कोरीयन फिल्म इंडस्ट्री हमारे से काफी बाद में शुरू हुई है, लेकिन उनकी फिल्में और वेब सीरीज को पूरे विश्व में लोग पसंद कर रहे है. वे अधिक फिल्म्स बनाते भी नहीं अच्छा कमाते है, जबकि बॉलीवुड काफी फिल्में बनाकर भी उतना कमा नहीं पा रही है.

इस प्रकार अनुराग बसु की जर्नी डेली सोप ओपेरा से शुरू होकर सिनेमा और वेब सीरीज तक पहुंच चुकी है, जिसमें उनकी ग्रोथ, एडेप्टेशन, आर्टिस्टिक और  समर्पण पूरी तरह से झलकता है. उन्होंने अलगअलग कहानी के जरिए दर्शकों का मनोरंजन किया है और आगे भी कुछ नई कहानियों से दर्शकों का मनोरंजन करवाना चाहते है. वे कहते हैं कि मास्टरी एक जर्नी है, डेस्टिनेशन नहीं और आज भी मुझे एक नई कहानी कहने की उत्सुकता है.

Hair Care Tips : कहीं बालों के टूटने की वजह आपकी कंघी तो नहीं ?

Hair Care Tips : अकसर कई महिलाओं की शिकायत होती हैं कि उनके बाल बहुत टूटते हैं और सिर में डैन्ड्रफ सालोंसाल खत्म ही नहीं होता जिस कारण बालो की जड़ कमजोर हो जाती हैं और बाल झड़ने लगते हैं. कभी कभी तो पुरषों की भी यही शिकायत रहती है तो इस समस्या के कई ऐसे कारण हैं जिनको जानना बहुत जरूरी है.

गंदी कंघी का इस्तेमाल

कई बार हम कंघी करते समय यह ध्यान नहीं देते और गंदी कंघी से ही बालों को सवारने लगते हैं जिस कारण धूल,बाल, तेल, डैंड्रफ और स्टाइलिंग प्रोडक्ट्स के अवशेष कंघी में जमा हो जाते हैं. जिससे डैंड्रफ, बैक्टीरिया और फंगल इंफेक्शन का कारण बन हो सकता है. गंदगी व कंघी में फसे पुराने बाल बालों के रोमछिद्र को ब्लौक कर देते हैं जिससे बाल झड़ने लगते हैं.

कैसे करें सफाई

हफ्ते में एक बार अपनी कंघी को ग्रम पानी में शैम्पू व पुराने टूथब्रश की मदद से साफ करें.
स्टाइलिंग और डेली ब्रशिंग के लिए हमेशा अलगअलग कंघी का इस्तेमाल करें.

डैंड्रफ के अन्य कारण

तेज गर्म पानी का प्रयोग

सर्दियों में गर्म पानी में नहाने के कारण हमारे शरीर और सिर की नमी कम होने लगती है जिस कारण त्वचा रूखी व बेजान होने के साथ साथ हमें डैंड्रफ जैसी समस्या होने लगती है.सर्दियों में ऊनी कैप व स्कार्फ पहनना भी इसका एक कारण है.

विटामिन बी कौम्प्लेक्स की कमी

शरीर में विटामिन बी2, विटामिन बी3, विटामिन बी९6, विटामिन बी9 या फ़ॉलिक एसिड की कमी होने से डैंड्रफ होने की समस्या हो जाता है

थायराइड की समस्या

थायराइड की समस्या होने पर सिर की त्वचा रूखी हो जाती है, जिससे रूसी जल्दी हो सकती है.
रोज रोज शैंपू बदलने और कैमिकल युक्त शैंपू प्रयोग करने से सिर की त्वचा पर असर पड़ता है जिससे रूसी हो जाती है. सिर में हमेशा तेल लगा कर रखना भी इसका एक कारण हैं.

Hindi Love Stories : बेपनाह मुहब्बत

Hindi Love Stories : बात उन दिनों की है जब मैं प्रोमोशन और ट्रांसफर पर पंजाब के नंगल शहर से चंडीगढ़ पहुंचा था. कंपनी ने मेरे लिए सैक्टर 8 में एक अच्छे मकान की व्यवस्था कर दी थी. मकान में कारपेट ग्रास का लौन था, खूबसूरत फूलों की क्यारियां थीं. नए मकान में पहुंचने पर सामने की कोठी से लगभग 30 वर्ष की महिला किरण मुझ से मिलने आई, ‘‘मुझे जब से पता चला था कि इस मकान में आप रहने आ रहे हैं तो आप से मिलने की बहुत उत्सुकता थी. आप का इस शहर में स्वागत है. मैं सामने वाली कोठी में अपने पति और 1 छोटी बच्ची राखी के साथ रहती हूं.’’ मैं खुश था कि कोई साथ तो मिला. मेरी पत्नी वीना गर्भवती होने के कारण अपने मायके नंगल में ही रुक गई थी.

मैं ने किरण को बताया, ‘‘मेरी पत्नी अभी नंगल में ही है. डिलिवरी के बाद चंडीगढ़ ले आऊंगा.’’ किरण थर्मस में चाय ले कर आई थी. चाय को 2 कपों में डालते हुए बोली, ‘‘आशा है आप को चाय पसंद आएगी. मैं चाय अच्छी बना लेती हूं. मेरे पति उमेश को मेरे हाथों की बनी चाय बहुत अच्छी लगती है,’’ यह कहते हुए वह जिस सोफे पर मैं बैठा था उसी पर मेरे पास बैठ गई, ‘‘कांतजी, मैं ने आप का नाम बाहर लगी नेमप्लेट पर पढ़ लिया है. बहुत सुंदर नाम है आप का. मैं औपचारिकता में बिलकुल यकीन नहीं रखती हूं, इसीलिए बिना किसी हिचकिचाहट के आप के साथ बैठ गई हूं. इस से अपनेपन का एहसास होता है. हम साथसाथ चाय पीते हैं और एकदूसरे के साथ जानपहचान बनाते हैं.’’

‘‘थैंक्यू. मुझे भी आप का इस बेबाक तरीके से आना अच्छा लगा. वीना भी आप से मिल कर बहुत खुश होगी,’’ मैं ने किरण की ओर निहारते हुए कहा. किरण जाने से पहले मुझे अपने घर आने का निमंत्रण दे गई, ‘‘कल रविवार है. उमेश घर पर ही होंगे. कल लंच हमारे साथ ही करिएगा.’’ मैं ने हामी भर दी. मुझे अपनी पत्नी की गैरमौजूदगी खल रही थी. इसलिए किरण के परिवार से मेलजोल ने सोने में सुहागा का काम किया. किरण भी मेरी मौजूदगी में बेहद खुश रहती थी.  दूसरे दिन लंच पर मेरा उमेश से परिचय हुआ. सीधे, सरल और मिलनसार स्वभाव के उमेश शीघ्र ही मेरे घनिष्ठ मित्र बन गए. उन के घर मैं उन की गैरमौजूदगी में भी आताजाता रहता. उन्हें इस बात पर कोई एतराज नहीं था. उन्हें मालूम था किरण ऐसी है ही. किरण अपने चंचल स्वभाव से किसी को भी खासकर अपने हमउम्र पुरुषों को आकर्षित कर लेती थी. सजनेसंवरने में वह काफी समय बिताती थी और परपुरुषों के मुंह से अपनी तारीफ सुन कर उसे बहुत अच्छा लगता था. इस विषय में उमेश रूखे थे. तभी तो किरण के इतना सजनेसंवरने के बावजूद कभी उन के मुंह से उस के लिए तारीफ के शब्द नहीं निकल पाते थे. किरण को यह बहुत खलता था.

मैं ने किरण की इस कमजोरी का पूरा फायदा उठाया. जब भी वह शृंगार कर मेरे सामने आती मेरे मुंह से यह वाक्य अनायास ही फूट पड़ता, ‘‘बहुत सुंदर लग रही हो.’’

खुश हो कर वह थैंक्यू कहती, ‘‘बस, कांतजी ऐसे ही तारीफ करते रहना.’’ जब भी वह मेरे घर आती नई साड़ी में सजीसंवरी होती. उस के पास हर रंग की साडि़यां थीं. हर बार वह अच्छा पोज देती और मैं मुसकराते हुए मोबाइल में उस के विलक्षण रूप को कैद कर लेता. उस ने मुझ से वादा लिया था कि जब कई सारे फोटो शूट हो जाएं तो मैं उन सब की 1-1 कौपी उसे भेंट कर दूं. मैं ने मुसकरा कर हामी भर दी थी.

एक दिन किरण ने मांग की, ‘‘कांतजी, अपनी पत्नी वीना का फोटो दिखाएंगे?’’

मैं ने अपने मोबाइल पर वीना का फोटो दिखाया तो बोली, ‘‘हां, सुंदर है,’’ फिर कुछ क्षण रुक कर बोली, ‘‘लेकिन मुझ से थोड़ी कम.’’ मैं ने यह मानते हुए कहा, ‘‘हां, वह सीधी और सरल है. शृंगार तो बहुत कम करती है,’’ मैं ने नोट किया कि इस बात पर वह बहुत खुश हुई. मेरी कोठी में रामलाल नामक नौकर काम करता था. अकसर किरण दिन के समय मेरे घर आ कर रामलाल से सफाई का काम करवा देती थी. दिन का खाना मैं औफिस में ही खाता था. रामलाल द्वारा रात का खाना तैयार होने के बावजूद कई बार किरण अपने घर से खाना भिजवा देती थी. किरण ने अपने बेटी राखी के लिए आया रखी थी. मैं जब भी शाम के समय उस के घर फोन कर के जाता था वह आया को बाजार कुछ खरीदने के लिए भेज चुकी होती थी. उस का कहना था हम दोनों की प्राइवेसी बनी रहे तो अच्छा होगा. वैसे भी उमेश का मार्केट में कपड़ों का शोरूम था. वे सवेरे 9 बजे जा कर रात 8 बजे के बाद ही लौटते थे. मेरा किरण से मिलनाजुलना और काफी समय साथ बिताना आसान होता चला गया. जब भी मैं उस के घर पहुंचता वह मुख्यद्वार पर इंतजार करती मिलती. मेरे पहुंचते ही कभी वह मुझे ‘हग’ कर के प्यार करती तो कभी मैं उसे प्यार करने की पहल करता. संबंध प्रगाढ़ होने के बावजूद हम दोनों ने ही कभी मर्यादा के बाहर जा कर दैहिक संबंध बनाने की चेष्टा नहीं की. इस बात को शायद किरण ने भी भविष्य की संभावनाओं के लिए स्थगित कर रखा था. मेरी ओर से इस बात की उत्सुकता अवश्य थी, क्योंकि वीना की डिलिवरी में अभी समय बाकी था. पति द्वारा नजरअंदाज होने के कारण किरण मुझ से मित्रता बढ़ाने में जोरशोर से लगी थी. जब भी उसे कोई बहाना मेरे घर आने का मिलता था तो उसे कतई छोड़ती नहीं थी. वैसे भी मेरी सेवा के द्वारा मुझे लुभाने का प्रयत्न उस की ओर से जारी था.

मुझे अपनी कंपनी के कार की सुविधा प्राप्त थी. किरण के पति उमेश के पास बाइक थी. एक बार जब कार इस्तेमाल करने के लिए किरण ने अनुरोध किया तो मैं ने उसे साफ शब्दों में समझाया, ‘‘देखो मेरी अच्छी किरण मेरी बात को अन्यथा मत लेना. मैं अपनी औफिस की कार तुम्हें अकेले कहीं जाने के लिए नहीं दे पाऊंगा. हां, कभी जरूरी हुआ तो मैं तुम्हें कार में अपने साथ ले जाऊंगा.’’ वह शीघ्र ही मेरी बात समझ गई थी. दोबारा कभी उस ने कार के लिए अनुरोध नहीं किया. एक दिन शाम के समय जब मैं औफिस से लौटा तो मैं ने देखा ड्राइंगरूम में सैंट्रल टेबल  पर एक गुलदस्ता रखा था.

रामलाल से पूछने पर उस ने बताया कि किरण मेम साहब रख गई हैं. कह रही थीं साहब को अच्छा लगेगा. उन्हें बता देना कि मैं आई थी. मैं ने मोबाइल पर किरण को धन्यवाद कहा तो वह बोली, ‘‘कांतजी, जिस दिन आप गुलदस्ता उस टेबल पर रखा देखो समझ लेना मेरी तरफ से संकेत है कि उमेशजी को घर लौटने में देर लगेगी. आप बेफिक्र मेरे पास आ सकते हो.’’ थोड़ी देर में ही मैं किरण के पास पहुंच गया. हलके आसमानी रंग की साड़ी में वह बहुत सुंदर लग रही थी. खुली बांहों में भर कर स्वागत करते हुए मेरा हाथ पकड़ कर ड्राइंगरूम में सोफे तक ले गई, ‘‘कांत, मैं तुम्हें बता नहीं सकती कि जब से तुम से मित्रता हुई है मेरी खुशी कितनी बढ़ गई है.’’

‘‘तुम बहुत ब्यूटीफुल लग रही हो. लगता है आज तुम ने मेकअप में बहुत समय लगाया है. अगर मेकअप न भी करो तो भी तुम सुंदर लगती हो.’’

‘‘तारीफ करने की कला तो कोई तुम से सीखे. तुम तारीफ करते हुए बहुत अच्छे लगते हो. बैठो जब तक मैं चाय बना कर लाती हूं तुम टीवी पर कोई मनपसंद चैनल लगा लो,’’ कहते हुए उस ने रिमोट मुझे पकड़ा दिया. थोड़ी देर में वह ट्रे में 2 कप चाय और प्लेट में बिसकुट ले आई. फिर मेरे पास बैठ गई, ‘‘कांतजी, अब मैं आप को बता रही हूं कि उमेशजी दुकान के लिए माल लेने दिल्ली गए हैं. कल लौटेंगे. हमारे पास मौजमस्ती के लिए पर्याप्त समय है. जी भर कर मेरे पास रहिए और जो मन में इच्छा हो उसे पूरी कर लीजिए. मैं पूरा सहयोग दूंगी. मैं सच्चे दिल से आप से प्यार करती हूं’’

‘‘मैं आज सीरियस मूड में हूं और तुम्हें कुछ समझाना चाहता हूं. मैं शादीशुदा हूं. वीना मुझे बहुत प्यार करती है. और मैं नहीं चाहूंगा कि उमेश की गैरमौजूदगी का मैं फायदा उठाऊं. वे मेरे अच्छे दोस्त हैं. यह तो तुम्हारे प्यार का रिस्पौंस था जो मैं मित्रता की हद से बाहर तुम्हें कभीकभी ‘हग’ कर लेता था या तुम्हें ‘हग’  करने देता था. मेरी तुम्हें सलाह है, अब हमें खुद पर नियंत्रण लगा लेना चाहिए…’’

इस से पहले कि मैं अपनी बात पूरी कर पाती उलटे उस ने ही मुझे समझाना शुरू कर दिया, ‘‘कांतजी, बी प्रैक्टिकल. मैं आप और आप की पत्नी के बीच में आए बगैर भी तो प्यार कर सकती हूं. यदि हमारा संबंध गुप्त रहे तो हरज क्या है?’’ कहने को वह यह सब कह तो गई, फिर कुछ सोच कर मुसकराते हुए बोली, ‘‘आप मुझ से उम्र में काफी बड़े हो. मुझे अभी तक इस तरह समझाने वाला कोई नहीं मिला है. आप से मित्रता और प्यार मेरी जरूरत है. पत्नी का फर्ज मैं उमेशजी के साथ पूरी ईमानदारी से निभा रही हूं और निभाती रहूंगी, लेकिन उन से प्यार कभी नहीं हो पाया है. वे सीधेसरल अवश्य हैं, लेकिन प्यार करने के लिए न तो उन के पास समय है और न ही उन की सोच में प्यार का कोई महत्त्व है. सुखसुविधाओं के अलावा एक स्त्री को शारीरिक सुख की भी चाह होती है,’’ कहती हुई वह भावुक हो गई. आंखों से अविरल अश्रुधारा बह निकली.

मैं ने उसे गले लगा कर पीठ थपथपाते हुए आश्वासन दिया, ‘‘मेरी मित्रता और प्यार जितना संभव होगा बना रहेगा.’’ वीना की डिलिवरी के समय मैं 1 सप्ताह की छुट्टी ले कर उस के मायके पहुंच गया. उस ने एक प्यारी सी गुडि़या को जन्म दिया. चंडीगढ़ लौट कर पुन: मैं अपने कामकाज में व्यस्त हो गया. किरण और मेरा एकदूसरे के घर आनाजाना पहले जैसा ही था. लगभग डेढ़ माह बाद वीना को उस का भाई चंडीगढ़ मेरे पास छोड़ गया. अभी वीना को देखभाल की जरूरत थी. किरण दिन के समय वीना के पास आ जाती थी और हर काम में उस की मदद करती थी. वीना को भी किरण बहुत अच्छी लगी, तो दोनों जल्दी ही पक्की सहेलियां बन गईं. किरण ने उसे बताया कि उस की शादी 20 की होतेहोते ही हो गई थी. पुरुषों के साथ संबंध में उसे कोई अनुभव नहीं था. उस ने वीना से मेरे बारे में बेबाक तरीके से कहा, ‘‘मुझे कांतजी बहुत अच्छे लगते हैं. कुदरत ने तुम्हारी जोड़ी बहुत अच्छी बनाई है. तुम सुंदर और सरल हो. वे भी प्यार पाने और देने के लिए जल्द ही लोगों की ओर आकर्षित हो जाते हैं…एक बात बताऊं वीना भाभी…कांत का दिल बहुत सहानुभूति और दूसरों की कद्र करने वाला है.’’

वीना ने संक्षेप में बस इतना ही कहा, ‘‘मेरे कर्म अच्छे थे जो वे मुझे मेरे जीवनसाथी के रूप में मिले.’’ वीना के साथ परिचय होने के बाद हम दोनों मित्र परिवारों में मिठाई और उपहारों के आदानप्रदान का सिलसिला शुरू हो चुका था. बर्थडे और शादी की सालगिरह हम दोनों परिवार एकसाथ एक उत्सव की भांति मनाते थे. कभी किरण हमारे घर आ कर किचन में वीना की खाना बनाने में सहायता करती तो कभी घर के सामान की झाड़पोंछ में उस की मदद करती. वह चाहती थी घर के कामकाज का बोझ वीना पर न पड़े. डिलिवरी के बाद धीरेधीरे वीना का स्वास्थ्य बेहतर होता जा रहा था. इस विषय में वह किरण की तारीफ उमेश के सामने करने से नहीं चूकती थी. एक दिन उमेश बोले, ‘‘किरण है ही ऐसी. सब की मदद करने में उसे बहुत खुशी मिलती है. हमेशा मुसकरा कर मदद करने का एहसान भी नहीं जताती है.’’ पहली बार उमेश के मुंह से अपनी तारीफ सुन कर किरण की खुशी का ठिकाना न रहा. उस ने मुझ से कहा, ‘‘आज पहली बार उमेशजी ने मेरी तारीफ में कुछ शब्द कहे हैं, तो पार्टी तो बनती ही है. आज शाम की चाय हम लोग मेरे घर पर पीएंगे,’’ मैं मान गया.

एक दिन शाम के समय जब मैं औफिस से घर लौटा तो देखा ड्राइंगरूम में टेबल पर गुलदस्ता रखा था. वीना ने बताया, ‘‘किरण यह गुलदस्ता लाई थी. कह रही थी उस का मन मेरे साथ चाय पीने का था. अभी 1 घंटा पहले ही अपने घर गई है.’’ मैं किरण की सांकेतिक भाषा समझ गया. किरण मुझ से अपने घर में मिलना चाहती है. वीना के साथ चाय पीने के बाद मैं ने वीना से कहा, ‘‘मैं औफिस के काम से 1 घंटे के लिए बाहर जा रहा हूं. 7 बजे तक आऊंगा.’’  मैं किरण के घर पहुंचा तो देखा वह मुख्यद्वार पर मेरा इंतजार कर रही थी. बड़ी बेसब्री के साथ मुझे बांहों में भर कर मेरा स्वागत किया.

फिर मुसकराते हुए शरारती लहजे में बोली, ‘‘कांतजी, मैं ने आज बहुत दिनों बाद तुम्हें घर बुला ही लिया. उमेश किसी काम से शहर से बाहर गए हुए हैं. हमें एकांत में बिताने के लिए पर्याप्त समय मिला है. बैठो मैं कुछ बना कर लाती हूं फिर ढेर सारी बातें करेंगे, प्यार भी…’’ मैं गुमसुम बैठा था. मन में विचार था कहीं वीना के प्रति नाइंसाफी तो नहीं है, जो चोरीछिपे मैं किरण से मिलने आया हूं. फिर सोचा जब मैं कुछ गलत नहीं कर रहा हूं तो पछतावा कैसा? बेशक हम दोनों एकांत में हैं, लेकिन आज हम रोमांस का कोई कृत्य नहीं करेंगे. मैं इन खयालों में खोया था कि पता ही नहीं चला कि कब वह मेरा हाथ पकड़ कर अपने बैडरूम में ले गई. बैड पर मुझे बैठाते हुए बडे़ प्यार भरे शब्दों में बोली, ‘‘आज तुम्हें मेरे साथ सोने में कोई एतराज नहीं होना चाहिए.’’ मैं किंकर्तव्यविमूढ़ बिस्तर पर लेटा शून्य में देख रहा था. तभी किरण के मोबाइल पर फोन आया. उस ने अपने होंठों पर उंगली रख कर मुझे चुप रहने का इशारा किया, ‘‘वीना भाभी का फोन है.’’

‘‘किरण, कांत किसी काम से बाहर गए हैं. मैं उन की गैरमौजूदगी में बोर हो रही थी, इसलिए तुम से बात करने का मन किया,’’ वीना ने कहा.

जवाब में किरण बोली, ‘‘उमेशजी बाहर गए हुए हैं. मैं बस रात का खाना बनाने में व्यस्त थी.’’

‘‘ऐसा करो रात का खाना हमारे यहां ही खा लेना. कांत भी 8 बजे तक लौट आएंगे. थोड़ी गपशप भी हो जाएगी.’’

किरण खुश थी कि थोड़ा और वक्त कांत के साथ बिताने को मिल जाएगा. अत: उस ने हामी भर दी. किरण और मेरे नजरिए में आधारभूत फर्क यह था कि उसे प्यार के साथ दैहिक आनंद की तलाश थी जबकि मैं मन के मिलन का सुख चाहता था. वीना के साथ वैवाहिक सुख अपनी चरम सीमा तक मुझे उपलब्ध हो चुका था. वीना की बेपनाह मुहब्बत के चलते मेरे मन में यह विचार प्रबल हो रहा था कि मुझे किरण के दिल को कोई चोट नहीं पहुंचानी है. थोड़ा प्यार उसे भी दे दूं और वीना के प्रति ईमानदारी भी रहूं. इस में वीना का भी हित है, क्योंकि किरण वीना को बहुत चाहती. मेरे प्यार द्वारा किरण जितनी खुश होगी उतना ही वीना और किरण का संबंध गहरा होगा. अपने इस विचार पर क्षण भर को मुझे हंसी भी आई. एक दिन औफिस से घर आ कर मैं ने अनायास वीना को अपने बाहुपाश में ले कर चूम लिया. वीना के लिए यह अप्रत्याशित था. बोली, ‘‘क्या बात है, आज बहुत प्यार आ रहा है?’’

‘‘तुम ने फोन पर बताया था आज किरण तुम्हारे साथ काफी समय बिता कर शाम को गई है. तुम बहुत खुश दिखाई दे रही हो… मेरी पसंद की साड़ी पहन रखी है. मेकअप भी अच्छा किया है. तुम्हें इतना सुंदर देख कर मुझे बहुत अच्छा लग रहा है. ऐसे ही हर शाम को सजीसंवरी और प्रसन्न मूड में मिला करो,’’ मैं ने अपने बाहुपाश से उसे मुक्त करते हुए कहा. वीना भी बहुत खुश दिखाई दे रही थी. बोली, ‘‘इतनी तैयारी इसलिए की है कि आज हमारी शादी की सालगिरह है. शायद तुम भूल गए हो. मार्केट जा कर हम दोनों एकदूसरे के लिए गिफ्ट खरीदेंगे. वहीं चायकौफी भी पी लेंगे.’’

‘‘नहीं, मैं भूला नहीं था. मैं ने भी सोच रखा था कि कुछ ऐसा ही करेंगे. मार्केट जा कर कुछ सामान सैलिब्रेट करने के लिए ले आएंगे. किरण को फोन कर लो. अगर वह भी साथ चलना चाहे तो उसे भी साथ ले लेते हैं,’’ मैं ने कहा तो वीना ने तुरंत किरण को फोन कर दिया. तीनों ने रात का भोजन साथ बाहर कर के सालगिरह सैलिब्रेट की. अगले रविवार वीना ने डिनर पर उमेश और किरण को आमंत्रित करते हुए उमेशजी से फोन पर कहा, ‘‘उमेशजी, शादी की सालगिरह वाले दिन हम लोगों ने आप को बहुत मिस किया. वह कमी पूरी करने के लिए आज रात आप किरण के साथ हमारे घर डिनर के लिए आएंगे. हां, कोई गिफ्ट लाने की जरूरत नहीं है. किरण गिफ्ट दे चुकी है.’’ शाम को उमेशजी और किरण जल्दी ही मेरे घर पहुंच गए. पहले की तरह किरण मजैंटा साड़ी में पूरे मेकअप के साथ प्रसन्न मुद्रा में थी. वीना के सामने मैं ने उस की तारीफ करना उचित नहीं समझा. फिर भी किरण ने पूछ ही लिया, ‘‘मैं कैसी लग रही हूं इस साड़ी में?’’ मन नहीं था फिर भी दबे स्वर में मैं ने कहा, ‘‘अच्छी लग रही हो.’’

मेरे कुतूहल की सीमा नहीं थी जब दफ्तर से आने पर मैं ने वीना को एक सुंदर साड़ी में पूरे शृंगार के साथ देखा. इस विषय में मैं ने फिलहाल चुप रहना ही बेहतर समझा. उमेश और किरण के घर पहुंचने पर वीना ने कहा, ‘‘उमेशजी, आज का विशेष शृंगार मैं ने आप के लिए किया है, आशा है आप को मैं सुंदर लग रही हूं. बताइए न… मैं चाहती हूं दो शब्द आप मेरी तारीफ में कहें.’’ उमेशजी को यह सब अजीब लग रहा था. मगर वीना के अनुरोध को अनसुना करना भी ठीक न था. अत: बोले, ‘‘भाभी आप बिना मेकअप किए भी और मेकअप किए भी बहुत सुंदर लगती हैं.’’

‘‘बस यही तारीफ आप किरण की भी करने की आदत डाल लीजिए,’’ कह कर उस ने उमेश का हाथ पकड़ लिया और किचन की तरफ ले जाते हुए कहा, ‘‘देवरजी, मैं ने आप के लिए खीर बनाई है. आइए, उस का स्वाद चखाती हूं.’’ किरण और मैं मौन और आश्चर्यचकित हो यह देखते रहे. जब दोनों किचन से वापस आए तो सब ने एकसाथ खाना खाया. चलते समय वीना ने उमेश से बहुत आदर के साथ कहा, ‘‘उमेशजी, स्त्री प्यार की भूखी होती है. उसे प्यार की अभिव्यक्ति होने पर बहुत सुख मिलता है. व्यापार की समृद्धि अपनी जगह और पत्नीपरिवार का सुख अपनी जगह. मेरा कहना मानो आज से किरण की तारीफ करने की आदत डाल लो. आखिर कब तक कांतजी किरण की तारीफ करते रहेंगे. यह काम तो अब आप को ही करना होगा.’’

Husband Wife Comedy : गंदी…गंदी…गंदी बात

Husband Wife Comedy : लंच के बाद बालकनी में आरामकुरसी पर पसरे हम कुनकुनी धूप सेंक रहे थे. तभी श्रीमतीजी चांदी की ट्रे में स्पैशल ड्राईफू्रट्स ले आईं. पिछले साल मेरे औसत दर्जे के अपार्टमैंट के ठीक सामने ‘द मेवा शौप’ खुली थी. मैं ने आज तक उस एअरकंडीशंड मेवा शौप में प्रवेश करने का साहस नहीं किया है. वैसे कैश से महंगे मेवे की खरीदारी संभव नहीं है और कार्ड से खरीदारी की आदत से अब तक हम दूर ही रहे हैं. रात्रि वेला में ‘द मेवा शौप’ का ग्लो साइन बोर्ड मुझे चिढ़ाता रहा है. चमचमाती ट्रे में करीने से सजे काजू, किशमिश, पिस्ता, बादाम, चिलगोजे, छुहारे देख कर हम ने अपनी आंखें मूंद लीं.

‘‘दिल्ली में बटलू की रिंग सेरेमनी थी… शादी का निमंत्रण कार्ड आया है,’’ श्रीमतीजी ने हमें वस्तुस्थिति से अवगत कराया.

बटलू मेरे साले साहब के शहजादे थे. मुझे हलकीफुलकी जानकारी थी. विदेश में बिजनैस मैनेजमैंट की पढ़ाई की थी. भारतीय मूल की विदेशी कन्या से शादी करने जा रहे थे. श्रीमतीजी भारीभरकम, बेहद महंगा, डब्बानुमा निमंत्रण कार्ड ले कर आई थीं. मैरिज दिल्ली में होनी थी. श्रीमतीजी ने कार्ड के पन्नों को परत दर परत पलट कर दिखाया. शादी की अलगअलग रस्मों के लिए दिल्ली के कई पांचसितारा होटलों की बुकिंग थी. डब्बानुमा निमंत्रण कार्ड में पर्याप्त मात्रा में मेवा भरा गया था. महंगी विदेशी टौफियां भी थीं. श्रीमतीजी ने लैपटौप पर मुझे रिंग सेरेमनी के फोटो दिखाए. वे फेसबुक में पोस्ट किए गए थे. अपने रिटायरमैंट पीरियड में हम ने मासिक व्यय में कई कटौतियां की हैं ताकि इस उम्र की हैल्थ समस्याओं से निबटने के लिए पर्याप्त सेविंग कर सकें. काजू, किशमिश, पिस्ता, चिलगोजे सहित और अन्य कई लग्जरी से हम दूर ही रहे हैं.

काजू, किशमिश, पिस्ता, चिलगोजे चबाते हुए रिंग सेरेमनी में शहजादे ने ब्राइड को किस किया था. उस फोटो को देख कर हम श्रीमतीजी से छेड़खानी के मूड में आ गए.

‘गंदी बात… गंदी… गंदी… गंदी बात…’’ श्रीमतीजी ने फिल्मी अंदाज में मुसकराते हुए हमें टोका.

‘किस’ में क्या गंदी बात है… हम ने ‘किस’ को पूरी लाइफ मिस किया है…’’ हम ने श्रीमतीजी से शिकायती लहजे में कहा.

‘‘मुंह में बैक्टीरिया भरा होता है… किसिंग पार्टनर्स में लगभग 10 मिलियन से 1 बिलियन बैक्टीरिया का ऐक्सचेंज होता है… मोनोन्यूक्लियोसिस किसिंग रोग और हर्पीज वायरस का संचार होता है…’’ श्रीमतीजी ने माइक्रोबायोलौजी की पढ़ाई की थी… किसिंग के बिलकुल खिलाफ थीं. ‘‘किसिंग में 34 फेशियल मसल्स गतिशील होते हैं… अच्छा वर्कआउट है… चेहरे पर झुर्रियां नहीं पड़तीं… कई फैक्ट्स किसिंग की फेवर में हैं. यह गंदी बात नहीं है. कामसूत्र में 30 प्रकार के किस का वर्णन है. रोमांटिक फ्रैंच किस में 5 कैलोरीज तक बर्न होती हैं. होंठ बेहद सैंसिटिव होते हैं. ऐक्स्ट्रा सैलिवा दांतों की सड़न रोकता है…’’ हम ने श्रीमतीजी को किसिंग फैक्ट्स बताने की कोशिश की.

‘‘गंदी बात… गंदी… गंदी… गंदी बात,’’ श्रीमतीजी ने किसिंग के पौजिटिव फेक्ट्स को कंसीडर ही नहीं किया.

लाइफ में 2 वीक का समय सिर्फ किसिंग के नाम है… विदेशी बालाएं मैरिज से पहले 80 से भी अधिक बौयफ्रैंड्स को ‘किस’ कर चुकी होती हैं,’’ हम ने कई और किसिंग फैक्ट्स गिनाए.

‘‘गंदी बात… गंदी…गंदी…गंदी बात…’’ श्रीमतीजी ने कानों में उंगलियां डाल लीं.

श्रीमतीजी बैडरूम में बिस्तर पर महंगी नई साडि़यां फैला कर उन में मैचिंग फौल लगाने में व्यस्त थीं.

‘‘जोरदार तैयारी चल रही है… पांचसितारा होटलों की पार्टी है… भई शहजादे की मैरिज है,’’ हम ने मुसकरा कर श्रीमतीजी की ओर देखा. वे शहजादे संबोधन से थोड़ी बिदक गई थीं.

‘‘हम दोनों के एअर टिकट आए हैं,’’ श्रीमतीजी ने जानकारी दी. साथ ही जरूरी तैयारी की हिदायत भी मिली. हमारी गैरमौजूदगी में साले साहब अपनी मैडम के साथ सस्नेह निमंत्रण देने आए थे. हम पैंशनर की सालाना मीटिंग में गए थे. मोबाइल भूल आए थे. अत: फोन पर बात भी नहीं हो पाई.

‘‘साले साहब काफी इज्जत दे रहे हैं. लगता है हमें भी सूट पहनना पड़ेगा. अटपटा तो लगेगा, पर क्या करें शहजादे की मैरिज है,’’ वैसे सेवानिवृत्ति के बाद से हम ने कुरतापाजामा यानी परंपरागत पत्रकार वाली ड्रैस को अपना लिया था.

‘‘बटलू बुलाने से क्या परहेज है… हमारी मैरिज के बाद पैदा हुआ है. शहजादे का संबोधन बिलकुल नहीं सुहाता. आप बड़ेबुजुर्ग हैं,’’ श्रीमतीजी हम पर बरस पड़ीं.

श्रीमतीजी की नाराजगी बिलकुल जायज थी. हमारा संबोधन बिलकुल गलत था. इस संबोधन में हमारी मध्यवर्गीय मैंटेलिटी, हमारी अपनी सीमा छिपी थी. साले साहब की संपन्नता के प्रति शायद ईर्ष्या की भावना भी थी. शायद शानशौकत के प्रदर्शन के प्रति आक्रोश भी था. ‘‘शहजादे का संबोधन छोड़ दूंगा, लेकिन हमारी एक शर्त है. पौजिटिव फैक्ट्स को कंसीडर करते हुए ‘किस’ से बैन हटाना होगा. बैक्टीरिया के ऐक्सचेंज का खतरा उठाना होगा,’’ हम ने श्रीमतजी से सौरी कहा और फिर उन से मिन्नत की.

‘‘गंदी बात… गंदी…गंदी…गंदी बात,’’ श्रीमतीजी ने पहले के मुकाबले धीमी आवाज में कहा और फिर हामी भर दी.

Teen Age Problem : मेरे मम्मीपापा हर वक्त मुझ पर शक करते हैं… इस स्थिति में मुझे क्या करना चाहिए?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

Teen Age Problem : मैं 18 वर्षीय कालेज में पढ़ने वाली छात्रा हूं. मेरी समस्या यह है कि मेरे मम्मी पापा हर वक्त मुझ पर शक करते हैं. हर समय मुझ पर निगरानी रखते हैं कि मैं फोन पर किस से बात कर रही हूं. बात बात में जानने की कोशिश करती हैं कि कालेज में मैं किन दोस्तों के साथ रहती हूं. मेरे कितने दोस्त लड़के हैं और वे कौन हैं? मुझे उन का यह व्यवहार परेशान करता है. मैं क्या करूं कि वे मुझ पर शक न करें?

जवाब

देखिए, एक माता पिता होने के नाते आप के बारे में जानना आप के माता पिता का हक व जिम्मेदारी भी है. आप अपनी समस्या के समाधान के लिए उन से अपनी हर बात शेयर करें, अपने दोस्तों को उन से मिलवाएं, उन से कुछ भी छिपाएं नहीं. जब ऐसा होगा तो वे आप पर विश्वास करने लगेंगे और बात बात पर आप पर निगरानी नहीं रखेंगे. दरअसल वे आप की परवाह करते हैं इसलिए आप पर निगरानी रखते हैं.

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फोन पर ‘हैलो’ सुनते ही अंजलि ने अपने पति राजेश की आवाज पहचान ली.

राजेश ने अपनी बेटी शिखा का हालचाल जानने के बाद तनाव भरे स्वर में पूछा, ‘‘तुम यहां कब लौट रही हो?’’

‘‘मेरा जवाब आप को मालूम है,’’ अंजलि की आवाज में दुख, शिकायत और गुस्से के मिलेजुले भाव उभरे.

‘‘तुम अपनी मूर्खता छोड़ दो.’’

‘‘आप ही मेरी भावनाओं को समझ कर सही कदम क्यों नहीं उठा लेते हो?’’

‘‘तुम्हारे दिमाग में घुसे बेबुनियाद शक का इलाज कर ने को मैं गलत कदम नहीं उठाऊंगा…अपने बिजनेस को चौपट नहीं करूंगा, अंजलि.’’

‘‘मेरा शक बेबुनियाद नहीं है. मैं जो कहती हूं, उसे सारी दुनिया सच मानती है.’’

‘‘तो तुम नहीं लौट रही हो?’’ राजेश चिढ़ कर बोला.

‘‘नहीं, जब तक…’’

‘‘तब मेरी चेतावनी भी ध्यान से सुनो, अंजलि,’’ उसे बीच में टोकते हुए राजेश की आवाज में धमकी के भाव उभरे, ‘‘मैं ज्यादा देर तक तुम्हारा इंतजार नहीं करूंगा. अगर तुम फौरन नहीं लौटीं तो…तो मैं कोर्ट में तलाक के लिए अर्जी दे दूंगा. आखिर, इनसान की सहने की भी एक सीमा…’’

अंजलि ने फोन रख कर संबंधविच्छेद कर दिया. राजेश ने पहली बार तलाक लेने की धमकी दी थी. उस की आंखों में अपनी बेबसी को महसूस करते हुए आंसू आ गए. वह चाहती भी तो आगे राजेश से वार्तालाप न कर पाती क्योंकि उस के रुंधे गले से आवाज नहीं निकलती.

शिखा अपनी एक सहेली के घर गई हुई थी. अंजलि के मातापिता अपने कमरे में आराम कर रहे थे. अपनी चिंता, दुख और शिकायत भरी नाराजगी से प्रभावित हो कर वह बिना किसी रुकावट के कुछ देर खूब रोई.

Funny Hindi Stories : फेसबुक खंडे ट्विटर द्वीपे

Funny Hindi Stories : दिनरात मेरे जैसे जिस भी लिच्चड़ को जहां भी देखो, जब भी देखो, कोई सपने से लड़ रहा है तो कोई अपने से लड़ रहा है. कोई धर्म से लड़ रहा है तो कोई सत्कर्म से लड़ रहा है. कोई प्रेम के चलते खाप से लड़ रहा है तो कोईकोई जेबखर्च के लिए बाप से लड़ रहा है. फौजी बौर्डर पर लड़ रहा है तो मौजी संसद में लड़ रहा है. कोई ईमानदारी से लड़ रहा है तो कोई अपनी लाचारी से लड़ रहा है. कोई बीमारी से लड़ रहा है तो कोई अपनी ही खुमारी से लड़ रहा है. आप जैसा हाथ में फटा नोट लिए महंगाई से लड़ रहा है तो मोटा आदमी अपनी बीजी फसल की कटाई से लड़ रहा है. कुंआरा पराई लुगाई से लड़ रहा है तो शादीशुदा उस की वफाई से लड़ रहा है. मतलब हरेक अपने को लड़ कर व्यस्त रखे हुए है. जिस की बाजुओं में दम है वह बाजुओं से लड़ रहा है. जिस की बाजुओं में दम नहीं वह नकली बट्टेतराजुओं से लड़ रहा है.

लड़ना हर जीव का मिशन है. लड़ना हर जीव का विजन है. मेरे जैसे जीव की क्लास का वश चले तो वह मरने के बाद भी लड़ता रहे. मित्रो, हर दौर में कुछ करना हमारा धर्म रहा हो या न रहा हो, पर लड़ना हम मनुष्यों का धर्म जरूर रहा है. लड़ना हमारा कर्म रहा है. लड़ना हमारे जीवन का मर्म रहा है. लड़ना हमारे जीवन के लक्ष्य का चरम रहा है. लड़ना सब से बड़ा सत्कर्म रहा है. हम लड़तेलड़ते पैदा होते हैं और लड़तेलड़ते मर जाते हैं.

मेरे बाप के दौर की अपनी लड़ाई थी. निहायत शरीफ किस्म की. पर गया अब वह जमाना जब बंदा रोटी से लड़ता था. गया अब वह जमाना जब बंदा लंगोटी से लड़ता था. गया अब वह जमाना जब बंदा धोती से लड़ता था. गया अब वह जमाना जब बंदा खेत से लड़ता था. गया अब वह जमाना जब बंदा पेट से लड़ता था. कुल मिला कर हम सभी अपनेअपने समय में अपनेअपने साहसदुसाहस के हिसाब से लड़ते रहे हैं. हमारे हाल देख कर उम्मीद की जानी चाहिए कि आगे भी हमजैसे कारणअकारण दिलोजान से लड़ते रहेंगे.

अब उन्हें ही देखिए, वे बूढ़े हो गए. पर उन का लड़ना नहीं गया. मुंह में एक असली दांत तक नहीं, पर दूसरे के जिस्म में दांतों का गड़ना नहीं गया. हम महल्ले में पानी की बाल्टी के लिए लड़े तो वे कुरसी के लिए संसद में, जिस में जितनी ताकत उस ने उतनी बड़ी कुरसी एकदूसरे पर दे मारी. जिस के बाजुओं में कम ताकत, उस ने फाइल ही उन के मुंह पर दे मारी. कुरसी लड़ाई में टूट गई बेचारी, पर उन्होंने लड़ने की हिम्मत न हारी. बंधुओ, हम सांस लिए बिना रह सकते हैं, पर लड़े बिना नहीं रह सकते. अगर हम एक मिनट को लड़ना बंद कर दें तो दूसरे ही पल हमारा दम घुट जाए. हमारा जिंदा रहने के लिए लड़ना बहुत जरूरी है. तभी तो हर आदमी अपनी हिम्मत के हिसाब से लड़ रहा है.

पर अब समय तेजी से बदल रहा है, भाईसाहब. सो, लड़ने के तरीके भी बदल रहे हैं. कुछ ज्ञानजीवी कहते हैं कि हम महामानव होने के युग में प्रवेश कर गए हैं. हम सभ्य हैं, ऐडवांस हैं, साहब. सो, अब हम लड़ते नहीं, भिड़ते हैं. लड़ने के परंपरागत तरीके, माफ कीजिएगा, अब तथाकथित सभ्यों ने छोड़ दिए हैं. आप आज भी जो परंपरागत ढंग से लड़ रहे हो तो अपने को पिछड़ा मान लीजिए, प्लीज. मन को लड़ते हुए भी शांति मिलेगी. इस से पहले कि कोई आप को आप के मुंह पर ही पिछड़ा, गंवार, जाहिल और जो भी मन में आए बक कर मदमाता चला जाए, आप अपने लड़ने के तौरतरीके को जरा मौडर्न बना लें. खुद जाहिल ही रहें तो कोई बात नहीं. आज की तारीख में बंदा इंसानियत से कम, लड़नेभिड़ने के तरीकों से अधिक जानापहचाना जाता है.

आज के तथाकथित सभ्य अपने हाथपांव की उंगलियों के नाखून हाथपांव की उंगलियों में दिखाते नहीं, उन्हें दिमाग में सजाते हैं. आज के स्वयंभू सभ्य बड़ी सफाई से लड़ते हैं, बड़ी गहराई से लड़ते हैं, बड़ी चतुराई से लड़ते हैं. किसी को दिखता नहीं. पर मत पूछो वे लड़तेलड़ते कैसेकैसे आपस में भिड़ते हैं. अपनों की रहनुमाई में अपनों से ही मौका हाथ लगते ही पूरी ईमानदारी से सारे रिश्तेनाते भुला मन की गहराइयों से भिड़ते हैं. पर आमनेसामने हो कर नहीं, छिप कर. छिप कर लड़ना संभ्रांतों की प्रिय कला हो गई है. कमबख्त तकनीक ने कुछ और सिखाया हो या न हो, पर छिपछिप कर एकदूसरे से लड़ना कम, भिड़ना बड़े सलीके से जरूर सिखाया है.

आज के लड़ने में सिद्धहस्त, धुरंधर लड़ाके फेसबुक पर लड़ते हैं, बच्चों की तरह ट्विटर पर भिड़ते हैं. फेसबुक के घोड़े, ट्विटर के रथ पर चढ़ कर एकदूसरे पर अचूक वार करते हैं. पर जब एकदूसरे के आमनेसामने होते हैं तो ऐसे गले मिलते हैं कि न ही पूछो तो भला. वे लड़ने के लिए बाजुओं, टांगों का नहीं, तकनीक का दुरुपयोग करते हैं. इधर से वे ट्विटर पर शब्दभेदी बाण चलाते हैं तो उधर से वे ट्विटर के माध्यम से ही उन के बाण को धूल चटाते हैं. इधर से वह शब्द उन के मुंह पर मारता है तो उधर से वह चार शब्दों का तमाचा ट्विटर पर रसीद कर देता है. तमाचा पढ़ने वाला तिलमिला उठता है तो तमाचा लिखने वाला खिलखिला उठता है. आज के लड़ाके ट्विटर पर एकदूसरे से भिड़े होते हैं, हालांकि ऐसे तो मेरे गांव के मेले में आपस में झोटे भी नहीं भिड़ते थे.

देखते ही देखते ट्विटर पर, फेसबुक पर बेमसला तीसरा विश्वयुद्ध शुरू हो जाता है. एक अपने को जीत का श्रेय ले अपने को ट्विटर का सब से बड़ा नायक बता खुद ही अपनी पीठ थपथपाता है तो दूसरा उस को कायर बता कर अपने दिमाग को खुद ही बहलाताफुसलाता है. इसलिए ज्ञान के युग में शान से जीना है तो हे दोस्त, तू भी लड़नेभिड़ने के नए तरीके अपना मौडर्न हो जा. अपनों से फेसबुक, ट्विटर पर लड़तेभिड़ते परमपद पा. चल उठ, देश के लिए नहीं, फेसबुक, ट्विटर के लिए शहीद हो जा. आने वाली पीढि़यां तेरे गुणगान गाएंगी. तुझ में अपने समय का अवतार पाएंगी.

Christmas 2024 : बच्चों के लिए बनाएं बिना बेक किये ये इंस्टेंट केक

Writer- Pratibha Agnihotri

Christmas 2024 : दिसम्बर में क्रिसमस और सेंटा की बहार फिजां में घुलने लगती है और उसके साथ ही बड़े बच्चों सभी को केक का ख्याल आने लगता है परन्तु कई बार समयाभाव के कारण अथवा बेकिंग का अनुभव न होने के कारण केक बनाना मुश्किल सा हो जाता है इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए आज हम आपको ऐसे केक बनाना बता रहे हैं जिन्हें आप बिना बेक किये घर में ही बड़ी आसानी से बना सकतीं है तो आइए देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाया जाता है-

-इंस्टेंट बिस्किट केक
-कितने लोगों के लिए 6
-बनने में लगने वाला समय 30 मिनट
-मील टाइप वेज
-सामग्री
-ब्रिटेनिया बिस्किट 20
-कॉर्नफ्लोर 1 टीस्पून
-चॉकलेटी सॉस 2 टेबलस्पून
-दूध 1/2 कप
-कोको पाउडर 1 टीस्पून चॉकलेटी सॉस और चोको चिप्स 1 टेबलस्पून

विधि

दूध में कॉर्नफ्लोर चॉकलेटी सॉस और कोको पाउडर को अच्छी तरह मिक्स कर लें. अब प्रत्येक बिस्किट को दूध में डुबोकर एक के ऊपर एक रखतीं जाएं. बचे दूध को भी बिस्किट के ऊपर ही फैला दें. 20 मिनट के लाइट फ्रिज में सेट होने रखें फिर एक तेज धारवाले चाकू से ऊपर से नीचे की तरफ काटते हुए लंबे स्लाइसेज में काटकर सर्विंग डिश में रखें ऊपर से चॉकलेटी सॉस और चिप्स डालकर सर्व करें.

-गाजर डोरा केक
-किसी गाजर 1/4 कप
-बटर 2 टेबलस्पून
-कन्डेन्स्ड मिल्क 4 टेबलस्पून
-पिसी शकर 1 टेबलस्पून
-मैदा 1 कप
-वनीला एसेंस 1/4 टीस्पून
-दूध 3/4 कप
–सामग्री (फिलिंग के लिये)
-किसी गाजर 1 कप
-बटर 1 टीस्पून
-पिसी शकर 1 टेबलस्पून
-बारीक कटी मेवा 1 टेबलस्पून

विधि

-गाजर, बटर, कन्डेन्स्ड मिल्क, मैदा, शकर को एक साथ मिलाएं अब इसमें दूध को धीरे धीरे मिलाएं. जब मिश्रण एकसार हो जाये तो वनीला एसेंस मिलाएं. एक नॉनस्टिक पैन पर चिकनाई लगाएं और तैयार मिश्रण में से 1 बड़ा चम्मच मिश्रण लेकर फैलाएं, ढककर धीमी आंच पर 2-3 मिनट तक पकाकर पलट कर दूसरी तरफ से भी पकाएं. इसी प्रकार सारे केक तैयार कर लें.

-फिलिंग तैयार करने के लिए एक पैन में बटर डालकर गाजर को नरम होने तक पकाकर शकर मिलाएं और पानी सूखने तक पकाकर गैस बंद कर दें और मेवा मिला दें.
एक केक के बीच में 1 टेबलस्पून फिलिंग फैलाएं और दूसरे केक से कवर करके सारे केक तैयार कर लें. बीच से काटकर बच्चों को खाने को दें.

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