Story In Hindi : नींद- मनोज का रति से क्या था रिश्ता

Story In Hindi : उस ने दो, तीन बार पुकारा रमा… रमा, पर कोई जवाब नहीं.

‘‘हुंह… अब यह भी कोई समय है सोने का,‘‘ वह मन ही मन बड़बड़ाया और किचन की तरफ चल दिया. वहां देखा कि रमा ने गरमागरम नाश्ता तैयार कर रखा था. सांभर और इडली बन कर तैयार थीं.

‘‘कमाल है, कब बनाया नाश्ता?‘‘ वह सोचने लगा. तभी उसे याद आया कि रति का फोन आया था और वह बात करताकरता छत पर चला गया था. उस ने फोन उठा कर काल टाइम चैक किया. एक घंटा दस मिनट. उस ने हंस कर गरदन हिलाई और मुसकराते हुए अपना नाश्ता ले कर टेबल पर आ गया.

रमा ने लस्सी बना कर रखी थी. उस ने बस एक घूंट पिया ही था कि भीतर से रमा की आवाज आई, ‘‘मनोज, मेरे फिर से तीखा पीठदर्द शुरू हो गया है. मैं दवा ले कर सो रही हूं. फ्रिज से नीबू की चटनी जरूर ले लो.‘‘

‘‘हां… हां, बिलकुल खा रहा हूं,‘‘ कह कर मनोज ने उस को आश्वस्त किया और चटखारे लेले कर इडलीसांभर खाता रहा. वह मन ही मन बुदबुदाया, ‘‘चलो कोई बात नहीं. अगर सो भी रही है तो क्या हुआ, कम से कम सुबहरात थाली तो लगी मिल ही रही है. बाकी अपनी असली जिंदगी में रति जिंदाबाद.‘‘ अपनेआप से यह कह कर मनोज नीबू की चटनी का मजा लेने लगा.

समय देखा, दोपहर के पौने 12 बज रहे थे. अब उसे तुरंत फैक्टरी के लिए निकलना था. उस ने जैसे ही कार की चाबी उठाई, उस आवाज से चौकन्नी हो कर रमा ने कहा, ‘‘बाय मनोज हैव ए गुड डे.‘‘

‘‘बाय रमा, टेक केयर,‘‘ चलताचलता वह बोलता गया और सोचता भी रहा कि कमाल की नींद है इस की. मनोज कभी अपनी आंखें फैला कर तो कभी होंठ सिकोड़ कर सोचता रहा. पर, इस समय न वह भीतर जाना चाहता था और न ही उस की कमर में हाथ फिरा कर कोई दर्द निवारक मलहम लगाना चाहता था. उस ने खुद को निरपराध साबित करने के लिए अपने सिर को झटका दिया और सोचा कि अब यह सब ठेका उस ने ही तो नहीं ले रखा है, बाहर के काम भी करो, रोजीरोटी के लिए बदन तोड़ो और घर आ कर रमा के दुखते बदन में मलहम भी लगाओ. यह सब एक अकेला कब तक करे.

मनोज खुद अपना वकील और जज भी दोनों ही बन रहा था, पर सच बात तो यह थी कि वह यह सब नहीं करना चाहता था और जल्दी से जल्दी रति का चेहरा देखना चाहता था.

गाड़ी निकाल कर मनोज फैक्टरी के रास्ते पर था. मोबाइल पर नजर डाली तो उस में रति का संदेश आ रहा था.

वह हंसने लगा. कम से कम यह रति तो है उस की जिंदगी में. चलो रमा अब 50 की उम्र में बीमार है. अवसाद में है. जैसी भी है, पर निभ ही जाती है. जीवन चल ही रहा है.

यों भी पूरे दिन में मनोज का रमा से पाला ही कितना पड़ता है. पूरे दिन तो रति साथ रहती है. जब वह नहीं रहती, तब उस के लगातार आने वाले संदेश रहते हैं. रति है तो ऐसा लगता है जीवन में आज भी ताजगी ही ताजगी है, बहार ही बहार है. एक लौटरी जैसी रति उस को कितनी अजीज थी. पिछले 3 महीने से रति उस के साथ थी.

रति अचानक ही उस के सामने आ गई थी. वह अपनी फैक्टरी के अहाते में पौधे लगवा रहा था, तभी वह गेट खोल कर आ गई. वह रति को देख कर ठिठक गया था. ऐसे तीखे नैननक्श, इतनी चुस्त पोशाक और हंसतामुसकराता चेहरा. वह आई और आते ही पौधारोपण की फोटो खींचने लगी, तो मनोज को लगा कि शायद प्रैस से आई है. और यों भी पूरी दोपहर उस की खिलौना फैक्टरी में लोगों का तांता लगा रहता था, कभी शिशु विकास संस्थान, तो कभी बाल कल्याण विभाग. कभी ये गैरसरकारी संगठन, तो कभी वो समूह, यह सब लगा रहता था.

मनोज ने रति को भी सहज ही लिया. पौधारोपण पूरा होतेहोते शहर के लगभग 10 अखबारों से रिपोर्टिंग करने वाले प्रतिनिधि आ गए थे. मनोज ने देखा कि रति कोई सवाल नहीं पूछ रही थी. वह बस यहांवहां इधरउधर घूम रही थी, बल्कि रति ने चाय, कौफी, नाश्ता कुछ भी नहीं लिया था.

मनोज को कुछ उत्सुकता सी होने लगी कि आखिर यह कौन है और उस से चाहती क्या है?

कुछ देर बाद चाय, नाश्ता हो गया. फोटो, खबर और सूचना ले कर एकएक कर के सभी प्रैस रिपोर्टर विदा ले कर चले भी गए. पर रति तो अब भी वहीं पर थी. अब मनोज को अकेला पा कर वह उस के पास आई और बेबाक हो कर बोली, ‘‘आप से बस 2 मिनट बात करनी है.”

‘‘हां… हां, जरूर कहिए,‘‘ कह कर मनोज ने पूरी सहमति दी.

‘‘जी, मेरा नाम रति है और मुझे आप की फैक्टरी में काम चाहिए.‘‘

‘‘काम चाहिए, पर अभी तो यहां स्टाफ एकदम पूरा है,‘‘ मनोज ने जवाब दिया.

‘‘जी, किसी तरह 4-5 घंटे का काम दे दीजिए. आप अगर चाहें तो मैं एक आइडिया दूं.‘‘

‘‘हां… हां, जरूर,‘‘ मनोज ने उत्सुकता से कहा, तो वह झट से बोली थी, ‘‘आप अपनी फैक्टरी और इस गोदाम की छत पर सब्जियांफूल उगाने का काम दे दीजिए.‘‘

‘‘अरे… अरे, ओह्ह,‘‘ कह कर मनोज हंसने लगा. वह रति की देह को बड़े ही गौर से देख कर यह प्रतिक्रिया दे बैठा, क्योंकि उस का मन यह मानने को तैयार नहीं था कि रति यह सब कर सकती है.

‘‘हां… हां, क्यों नहीं,” मनोज ने कहा.

“आप इतने मनमोहक पौधों का पौधारोपण करा रहे हो. प्रकृति से तो आप को खूब प्यार होगा. मेरा मन तो यही कहता है,‘‘ ऐसा बोलते समय रति ने भांप लिया था कि मनोज खुश हो गया है.

अब उस के इसी खुश मूड को ताड़ कर वह बोली, ‘‘जी, आप मेरा भरोसा कीजिए. मैं बाजार में बिकवा कर इन की लागत भी दिलवा सकती हूं. और तो और यह तो पक्का है कि आप को मुनाफा ही होगा.‘‘

रति ने कुछ ऐसी कशिश के साथ यह बात कही कि मनोज मान गया.

मनोज को इतना भी पैसे का लालच नहीं था, पर रति का आत्मविश्वास और उस की मनमोहक अदा ने मनोज को उसी समय उस का मुरीद बना दिया था.

उस ने अगले दिन रति को फिर बुलाया और कुछ नियमशर्तों के साथ काम दे दिया. 3 सहायक उस के साथ लगा दिए गए.

बस वह दिन और आज का दिन, रति कभी बैगन, कभी लाल टमाटर, हरी मिर्च, पालक, धनिया वगैरह ला कर दिखाती रहती.

मनोज भी खुश था कि जरा सी लागत में खूब अच्छी सब्जी और फूल खिल रहे थे.

पिछले दिनों रति के इसी कारनामे के कारण मनोज को पर्यावरण मित्र पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका था. पूरे शहर में आज बस उस की ही फैक्टरी थी, जो हरियाली से लबालब थी. आएदिन कोई न कोई फोटोग्राफी की वर्कशौप भी वहीं छत पर होने लगी थी.

रति तो उस के लिए बहुत काम की साबित हो रही थी. यही बात उस ने रति की पीठ पर इत्र की बोतल उडे़लते हुए एक दिन उस से कह दी थी. उस पल अपने अनावृत बदन को उस के सीने में छिपाते हुए रति ने आंखें बंद कर के कहा था, ‘‘बस ये मान लो मनोज कि जिंदगी को जुआ समझ कर खेल रही हूं.

‘‘यह जो मन है ना मनोज, इस के सपने खंडित होना नहीं चाहते. खंडित सपने की नींव पर नया सपना अंकुरित हो जाता है. मैं करूं भी तो क्या. तुम हो तो तुम्हारे दामन में निश्चिंत हूं, आने वाले पल में कब क्या होगा, मैं खुद भी नहीं जानती.’’

उस दिन रति ने उस के सामने अपनी देह के साथ जीवन के भी राज खोल दिए थे. सूखे कुएं की मुंडेर पर अपने मटके लिए वो 7 साल से किसी अभिशाप को ढो रही थी.

पहलेपहले तो पति बाहर कहीं भी जाते थे, तो रति को ताला लगा कर बंद कर के जाते थे. फिर उस ने उन को उन के तरीके से जीतना शुरू किया. वह उन के इस दो कौड़ी के दर्शन को बारबार सराहने लगी. उन को उकसाने लगी कि आप को सारी दुनिया में अपनी बातें फैलानी चाहिए.

दार्शनिक और सनकी पति को सुधारने में समय तो जरूर लगा, पर रति का काम बन गया. इसलिए अब वही हो रहा है जो रति चाहती है. पति बाहर ही रहते हैं और रति को आजादी वापस मिल गई है. कितनी प्यारी है ये आजादी. जितनी सांसें हैं अपने तरीके से जीने की आजादी.

रति को एक हमदर्द चाहिए था. एक अपना जो रोते समय उस की गरदन को कंधा दे सके.

दिन बीतते रहे. हौलेहौले वह जान गया था कि रति को नौकरी नहीं बस मनोज चाहिए था. एक पागल और जिद्दी पति और उस के चिंतन से आजिज आ चुकी रति ने एक बार एक चैनल के साक्षात्कार में मनोज को देखा तो बस उस को हासिल करने की ठान ही ली थी.

पति के दर्शन और ज्ञानभरी बातों से वह दिनभर ऊब जाती थी. नौकरी तो बहाना था. उस को अब इस जीवन में कुछ घंटे हर दिन मनोज का साथ चाहिए था.

मनोज को वह दिन रहरह याद आ रहा था, जब पहली बार रति उस को अपने घर ले गई थी. उस दिन रति के पति नहीं थे, पर वहां नौकरचाकर थे. सबकुछ था. कितनी सुखसुविधाओं से लवरेज था उस का आलीशान बंगला. मगर, उस के घर पर अजीब सी खामोशी थी. पर, मनोज को इस से कुछ खास फर्क नहीं पड़ता था. रति उसे बिंदास अपने घर पर भी उतना ही हक दे रही थी, जितना वह मनोज को अपनी नशीली, मादक देह पर कुछ दिन पहले दे चुकी थी.

उस दिन जब वह रति से उस के घर पर मिल कर लौट रहा था, तब यही सोच रहा था कि उस की भी तो कोई चाहत है, कोई रंग उस को भी तो चाहिए ही. अब वह और रमा हमउम्र हैं, ठीक है. रमा को जीवन में आराम चाहिए, करे. पूरी तरह आराम कर. पर उस को तो रंगीन और जवान जिंदगी चाहिए. इधर रति खुद एक लता सी किसी शाख का सहारा चाहती थी ना. बस हो गया. एक तरह से वह रति पर अहसान कर रहा था और उस का काम भी चल रहा था.

यही सोचतसोचता वह घर पहुंच गया था. वह जैसे ही भीतर आया, किसी पेनकिलर मलहम की तेज महक उस की नाक में घुसी और उस के कदम की आहट सुन कर रमा की आवाज आई, ‘‘मनोज आ गए तुम. खाना रखा है. प्लीज, खा लो. मैं तो बस जरा लेटी हूं. अब इस दर्द में बिलकुल उठा नहीं जा रहा.‘‘

‘‘हां… हां रमा, ठीक है. तुम आराम करो, सो जाओ,‘‘ कह कर वह बाथरूम में घुस गया.

मनोज बखूबी जानता है कि रमा की नींद रूई से भी हलकी है. कभी लगता है कि उस की नींद में भाप भरी होती है. रमा कभी बेसुध नहीं रहती, कभी चैन की नींद नहीं सोती. ज्यों ही खटका होता है, उस के होने के पहले ही जाग उठती है.
रमा भी अजीब है. इस की यह चेतना सदैव चौकन्नी रहती है. उस को याद है, जब बेटा स्कूल में पढ़ रहा था. परीक्षा के लिए रमा ही उस के साथ रातबिरात जागती थी. तब भी वह बेखबर सोया रहता. पर, रमा उस की एक आहट से जाग जाती और उस को चायकौफी बना कर दे देती थी. तब भी वो कमसिन रमा को झट से जागते, काम करते केवल चुपके से देखता था, दूर से उस को एकटक निहारता था. पर बिस्तर से जाग कर खुद काम नहीं करता था. कभी नहीं.

अब बेटा विदेश में पढ़ रहा है, नौकरी कर के वहीं बस जाएगा, ऐसा उस का फैसला है.

रमा और मनोज दोनों ही अपने बेटे का यह संकल्प जानते हैं. यही सोचता हुआ मनोज बाथरूम से तरोताजा हो कर बाहर आया, तो उस ने परदे की आड़ से कमरे में झांका, रमा सो गई थी.
मनोज ने देखा कि नींद में उस की यह सुंदरता कितनी रहस्यमयी है. उस की नींद और सपनों के कितने कथानक होंगे, क्या वह भी शामिल होगा उन में, शायद नहीं. कहीं ऐसा तो नहीं कि कोई भय हो, जो कहीं से इस के मन में भरा हो? इसीलिए जब भी मनोज आता है, रमा सोई मिलती है.

वह चुपचाप सांस रोक कर और बारबार परदे के उस तरफ मुंह तिरछा कर के सांस ले कर उस की नींद का अवलोकन करता रहा.
कुछ पल बाद मनोज ने खाना लगाया और मोबाइल पर रति से चैट करते हुए खाना खाने लगा.

“मनोज डार्लिंग 10 लाख रुपए चाहिए.” अचानक ही रति का संदेश आया. मनोज के लिए यह रकम बड़ी तो थी, पर बहुत मुश्किल भी नहीं थी. मगर वह सकपका गया. वह रति से इतना आसक्त हो गया था कि सवाल तक नहीं कर पा रहा था कि क्यों चाहिए, किसलिए… वो कुछ मिनट खामोश ही रहा. दोबारा संदेश आया. अब न जाने क्या हुआ कि मनोज ने रति का नंबर ब्लौक कर दिया. आज वह बौखला रहा था.
हद है, वह समझ गया कि आखिर कौन सा खेल खेला जा रहा था उस के साथ. अब उस ने तुरंत अपने एक सोशल मीडिया विशेषज्ञ मित्र को रति की तसवीर भेज कर कुछ सवाल पूछे. प्रमाण सहित उत्तर भी आ गए. वह अपनी नादानी पर शर्म से पानीपानी हो रहा था. एक बाजारू महिला के झांसे में.

उफ, उस ने अपना सिर पीट लिया यानी वो उस दिन जिस घर पर ले गई थी, वह न रति का था, न उस के पति का. सच तो यह है कि इस का कोई पति है ही नहीं. यही उस ने आननफानन में खाना खत्म किया और फोन एक तरफ रख कर रमा के पास आ कर लेट गया. अब वह रति से कोई संबंध नहीं रखना चाहता था.

‘‘मनोज खाना खा लिया,‘‘ रमा हौले से फुसफुसा कर पूछ रही थी.

‘‘हां,‘‘ कह कर मनोज अभीअभी लेटा ही था. अचानक करवट ले कर वह बिस्तर पर बैठ गया. अब उस ने आसपास हाथ फिराया, तो मलहम मिल गई. मलहम ले कर वह रमा की पीठ पर मलने लगा और बहुत देर तक मलता रहा. रमा को मीठी नींद आ रही थी. वह हिम्मत नहीं कर पा रहा था कि उस के कानों तक अपना अधर पहुंचा सकता तो दिलासा देता कि तुम निश्चिंत हो, सोती रहो, मैं कोई हानि नहीं पहुंचाऊंगा. मैं कैसे तुम्हारे भरोसे के योग्य बनूं कि तुम अपनी नींद मुझे सौंप दो? मुझे इतना हक कैसे मिले?

मैं कैसे तुम्हारे बसाए घर पर ऐसे चलूं कि कोई दाग ना लगे, तुम को मेरी सांसों के कोलाहल से कोई संशय न हो. तुम निडर हो कर जीती रहो- जैसे सब जीते हैं. इस विश्वास के साथ रहो कि यह घर संपूर्ण रूप से तुम्हारा है. तुम यहां सुरक्षित हो. वह आज यह सोच रहा था कि एक रमा है जो उस से कुछ नहीं मांगती. बस, बिना शर्त प्यार करती है. अगर वह उस का विश्वास जीतने में भी जो विफल रहा, उस ने फिर दुनिया भी जीत ली तो क्या जीता. यह सोचतासोचता वह भी गहरी नींद में सो गया.

अगले दिन रति फैक्टरी नहीं आई. वह उस के बाद फिर कभी नहीं आई.

Aloo Cutlet Recipe : बच्चों को खिलाएं टेस्टी आलू के कटलेट

Aloo Cutlet Recipe : अक्सर बच्चों को स्नैक्स में कुछ टेस्टी खाने का मन करता है, लेकिन हम रोजाना उन्हें मार्केट से खरीदा हुआ सामान नही खिला सकते. आज हम आपको आलू के कटलेट की सिंपल और टेस्टी रेसिपी के बारे में बताएंगे, जिसे आप अपनी फैमिली और बच्चों को खिला सकते हैं. आप चाहें तो आलू कटलेट को किसी होम पार्टी या बच्चों के बर्थडे में भी सर्व कर सकते हैं.

हमें चाहिए

उबले आलू 6-7 मध्यम

ब्रेड/ डबलरोटी 2-3 स्लाइस

हरी मिर्च 2

पिसी लाल मिर्च ½ छोटा चम्मच

चाट मसाला ½ छोटा चम्मच

गरम मसाला ½ छोटा चम्मच

नमक 1 छोटा चम्मच/ स्वादानुसार

कटा हरा धनिया 2 बड़ा चम्मच

तेल तलने के लिए

सामग्री परोसने के लिए

इमली की चटनी

पुदीने की चटनी

बनाने का तरीका

आलू को छीलकर घिस/ मसल लें. हरी मिर्च का डंठल काटकर उसे धो लें और फिर बारीक काट लें. मसले हुए आलू में. नमक, लाल मिर्च पाउडर, गरम मसाला, चाट मसाला, कटी हरी मिर्च और कटा हरा धनिया डालें और सभी सामग्री को अच्छे से मिलाएँ.

ब्रेड के ऊपर थोड़ा पानी छिड़कें. अच्छे से दबा कर अतिरिक्त पानी को निकाल दें. अब ब्रेड को अच्छे से मसल कर आलू के पेस्ट में मिलाएं. फिर अच्छे से मिलाएं ताकि आलू में बाकी मसाला मिल जाए.

अब इस आलू के पेस्ट से अपनी पसंद के साइज के कटलेट बनाएं. मध्यम से तेज आंच पर एक कड़ाई में तेल गरम करें. जब तेल तेज गरम हो जाए तो इसमें 5-6 कटलेट डालें और सुनहरा होने तक इन्हे तलें. तले हुए कटलेट को किचन पेपर पर निकालें और सेजवान सौस या हरी चटनी के साथ अपने बच्चों को गरमागरम आलू कटलेट खिलाएं.

फिल्ममेकर, डाइरैक्टर व अभिनेता Rakesh Roshan के जीवन के उतारचढ़ाव और सफलता का राज क्या है

Rakesh Roshan : हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में 5 दशक से अधिक समय बिता चुके निर्माता, निर्देशक, लेखक, अभिनेता राकेश रोशन की शख्सियत अनूठी है. शांत, हंसमुख, धैर्यवान, हैंडसम राकेश रोशन का पूरा नाम राकेश रोशन नागरथ है, लेकिन पिता की मौत के बाद उन के परिवार वालों ने अपने नाम के पीछे ‘नागरथ’ सरनेम लगाना छोड़ दिया. उन्होंने अपने पिता को याद रखने के लिए उन के ही नाम को अपना सरनेम बना लिया.

राकेश रोशन ने एक अभिनेता के रूप में कैरियर की शुरुआत साल 1970 में फिल्म ‘घरघर की कहानी’ से की थी. अभिनेता के रूप में उन्होंने बहुत कम फिल्मों में काम किया है. जब उन का कैरियर बतौर अभिनेता कुछ खास नहीं रहा, तो साल 1980 में उन्होंने खुद की प्रोडक्शन कंपनी का निर्माण किया. उन्होंने अपने प्रोडक्शन बैनर के तहत फिल्म ‘आप के दीवाने’ बनाई. हालांकि यह फिल्म बौक्स औफिस पर बुरी फ्लौप साबित हुई. इस के बाद उन्होंने फिल्म ‘कामचोर’ बनाई, जो एक सफल फिल्म साबित हुई.

निर्देशक के रूप में उन्होंने कैरियर की शुरुआत वर्ष 1987 में फिल्म ‘खुदगर्ज’ से की. इस के बाद उन्होंने ‘खून भरी मांग’,’कामचोर,’ ‘खेलखेल में’,’खट्टामीठा,’ ‘करन अर्जुन’,’कोयला’ जैसी उन की हिट फिल्मों की लंबी सूची है.

राकेश के पिता रोशन की दोस्ती मशहूर फिल्ममेकर जे.ओमप्रकाश से थी. दोनों के पारिवारिक संबंध थे. उस दौरान जे. ओमप्रकाश अपनी इकलौती बेटी पिंकी के लिए रिश्ता ढूंढ़ रहे थे, तो उन्हें राकेश से बेहतर कोई लड़का नहीं लगा. उन्होंने रोशन से राकेश की शादी की बात कही और रिश्ता जुड़ गया. बाद में
दोनों सुनैना और ऋतिक के पेरैंट्स बने.

नहीं हारा मुसीबतों से

राकेश रोशन के जीवन में कठिन दौर कई बार आए, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी. साल 2000 में उन्हें 2 गोलियां लगी थीं, उस अवस्था में उन्होंने खुद गाड़ी चलाई और अस्पताल पहुंचे। अस्पताल में इलाज चला और वे ठीक हो गए. वर्ष 2018 में फिल्म ‘कृष 4’ की शूटिंग के दौरान उन के जीभ के कैंसर का डिटेक्ट हुआ। उन का 12 किलोग्राम वजन घट गया था, लेकिन कुछ समय बाद उन्होंने
कैंसर से भी जंग जीत ली और आगे बढ़ गए.

फिल्म मेकर और डाइरैक्टर के रूप में सफल होने के बाद राकेश रोशन ने अपने बेटे ऋतिक के साथ ‘कहो ना प्यार है,’ ‘कोई मिल गया’ ,’कृष’ जैसी सुपरहिट फिल्में भी दिए. इन दिनों नेटफलिक्स पर रोशन्स परिवार को ले कर बनाई डौक्यूमेंट्री सिरीज ‘द रोशंस’ काफी लोकप्रिय हुआ है और उन्हें काफी मात्रा में अच्छी कौंप्लीमेंट्स मिल रहे हैं. यह सीरीज भी उन्होंने अपने पिता की याद में बनाई है, जिन की वजह से उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में एक लंबा सफर तय किया है.

उन्होंने गृहशोभा से अपनी जर्नी और उस से जुड़े चुनौतियों के बारे में बात की. आइए जानते हैं, उन की कहानी उन की जबानी :

पिता को दिया ट्रिब्यूट

इस सीरीज को बनाने की खास वजह के बारे में राकेश रोशन कहते हैं कि आज से तकरीबन 10 साल पहले एक म्यूजिक डिवाइस आई थी, जिसे किसी कंपनी ने निकाला था, जिस में करीब 10 हजार गाने थे। सारे म्यूजिक डाइरैक्टर के नाम उस वक्त से ले कर आजतक के थे. उस में गीतकार के साथ सारे ऐक्टर के नाम थे। मैं ने 25 से 30 डिवाइस खरीद कर दोस्तों को बांटा भी था. एक दिन मैं सुकून से अपने पिता के गाने सुनना चाहा, तो मैं ने देखा कि मेरे पिता के एक भी गाने उस में नहीं थे, फिर मैं ने उस कंपनी को फोन कर कहा कि आप से कोई भूल हो गई है, आप चेक करें और देखें कि इस में मेरे पिता का नाम भी नहीं है और न ही कोई गाना है.

उन्होंने इस बात को अधिक महत्त्व नहीं दिया. उस दिन मुझे बहुत ठेस लगा कि मेरे पिता ने इतने अच्छे
कंपोजिशन दिए हैं और उन का नाम नहीं है. वे इस दुनिया में नहीं हैं, यह
सोच कर मुझे बहुत मायूसी हुई.

एक दिन मैं ने निर्देशक शशि रंजन से इस बारे में बात की, जो मेरे एक अच्छे दोस्त हैं. मैं ने उन्हें सारी बातें बताई और पूछा कि इस दिशा में हम क्या कर सकते हैं. उन्होंने आइडिया दिया कि रोशन पर एक डौक्यूमेंटरी बनाई जा सकती है। 2-3 दिन बाद मैं ने फिर शशि से कहा कि शायद आज की जैनरेशन 50 साल पुरानी गानों को सुनना भी न चाहे, तो क्यों न हम ऐसी डौक्यूमेंट्री बनाएं, जिस में राजेश रोशन, मैं और ऋतिक रोशन सभी हों, ताकि हमारे जरीए नई जैनरेशन मेरे पिता के गाने सुन सकें. यह कौंसेप्ट शशि को बहुत पसंद आया और मैं ने घर पर आ कर राजेश और ऋतिक से बात की. उन्हें भी यह कौंसेप्ट अच्छा लगा और मैं ने इसे बनाना शुरू किया.

काम आई मेहनत

इसे बनाने में ढाई साल लगे. 1 साल शूटिंग और डेढ़ साल एडिटिंग में लगे. एडिटर गीता सिंह ने बहुत अच्छा काम किया, शशि रंजन ने भी इसे मेरे हिसाब से बड़े पैमाने पर बनाया है। अच्छे लोग, अच्छी लोकैशन पर इस की शूटिंग हुई और मुझे बहुत ही अच्छा लगा कि हम सब की मेहनत आज सभी को पसंद आ रही है.

संगीत डीएनए में

अच्छे संगीत की परंपरा रोशंस परिवार में हमेशा से रहा है, आज की फिल्मों में राकेश रोशन हमेशा अच्छे संगीत डालना पसंद करते हैं, जिसे राजेश रोशन दिया करते हैं. संगीत से उन के लगाव के बारे में पूछने पर वे कहते हैं कि संगीत तो हम सभी के रगरग में बसा हुआ है. मैं संगीत बना नहीं पाता, लेकिन मुझे सुनना बहुत अच्छा लगता है, मैं गा नहीं पाता हूं, लेकिन गाने की कोशिश अवश्य करता हूं, राजेश रोशन में वह गुण है, ऋतिक भी अच्छा गाता है. मेरे दोनों ग्रैंड चिल्ड्रन रेहान और रिदान बहुत अच्छा गाते हैं. पियानों और गिटार बजाते हैं. फिल्मों में भी जब हम गाना डालते हैं, तो स्क्रीन प्ले बनाते समय देखते हैं कि गाना फिल्म की रुकावट न बनें, बल्कि फिल्म का एक हिस्सा हो, कहानी को आगे बढ़ाएं, ऐसे में बोल भी वैसी ही लिखी जाती है, ताकि कहानी में उस का समावेश अच्छी तरह से हो और कहानी से अलग न लगे.

संघर्ष

राकेश रोशन के जीवन में बहुत उतारचढ़ाव आए हैं, उन्होंने बहुत कम उम्र में परिवार की जिम्मेदारी संभाली और आगे बढ़े. पहले डाइरैक्टर बन फिल्में कीं, नहीं चली, तो बाद में ऐक्टर बने. उस में भी खास कामयाबी नहीं मिली, लेकिन जब उन्होंने फिल्मों का निर्माण के साथ निर्देशन शुरू किया, तो उन की
गाड़ी चल पड़ी। एक के बाद एक सफल फिल्में दीं और आज ऋतिक के साथ भी उन्होंने सफल फिल्मी दौर को बनाए रखा है। उन की जिंदगी के कठिन पलों में हार न मानने की वजह के बारे में उन का कहना है कि मैं ने जीवन में कभी हार नहीं मानी। आज मैं 75 साल का हो चुका हूं, लेकिन मुझ में जो हिम्मत है, वह 20 साल वाली ही है. मैं अभी भी फिल्में बनाता हूं और हटके फिल्में बनाने की कोशिश करता हूं, जो दर्शकों को पसंद आए, जिसे भारत में लोगों ने न देखा हो। यही वजह है कि मैं ने ‘कृष’ की कई सीरीज बनाई है, जिसे दर्शकों ने पसंद किया है. अभी हम सभी ‘कृष 4’ पर काम कर रहे हैं. यह भी एक नई तरीके की कहानी होगी और इस का प्रेजैंटेशन भी बाकी से अलग होगा.

मंजिल तक पहुंचना था कठिन

राकेश रोशन को कामयाबी मिली, लेकिन उन के आशानुरूप नहीं मिली, यही वजह है कि वे लगातार उस मंजिल तक पहुंचने की कोशिश करते रहे. वे कहते हैं कि कामयाबी मुझे कुछ हद तक मिली है, लेकिन मैं जिस तरह की सफलता चाहता था, वह नहीं मिली, इसलिए मैं कोशिश करता रहा. अभिनेता से प्रोड्यूसर फिर डाइरैक्टर बना. डाइरैक्टर बनने के बाद मुझे थोड़ी कामयाबी मिली है.

नहीं करता जल्दबाजी

बेटा और अभिनेता ऋतिक रोशन को ले कर राकेश रोशन ने कई सुपरहिट फिल्में बनाई हैं, जिसे दर्शकों ने पसंद किया. इस बारे में उन का कहना है कि मैं कहानी खुद लिखता हूं, जो कहानी मुझे प्रेरित करे, उसे ही फिल्म में डालता हूं. मैं जल्दी में नहीं होता, जब लगे की कहानी नई किस्म की है और इसे बनाना सही होगा साथ ही मैं कहानी को कमर्शियली सजा सकता हूं, ताकि सभी देखना पसंद करें. मैं चाहता हूं कि मेरी फिल्म को झुमरी तलैया से ले कर आस्ट्रेलिया और लास एंजिल्स तक सभी देखें, जिस में गाने अच्छे हों, रोमांस हो, लोकैशंस अच्छी हो। इसी सोच को ले कर मैं आगे बढ़ता हूं.

लीगेसी बनाए रखना मुश्किल

तीन जैनरेशन की लीगेसी को आगे बढ़ाने के बारे में राकेश रोशन का कहना है कि इसे मैं आगे नहीं ले जा रहा, यह खुद ब खुद हो गया है. इसे आगे बढ़ाने में राजेश रोशन ने भी उतनी ही मेहनत की है, जितना मैं कर रहा हूं, उतना ही ऋतिक भी कर रहा है, कोई भी आसानी से यहां तक पहुंचा नहीं है. 4-4 साल ऐसिस्टैंट रह कर सीख कर हम सभी आए हैं. यह 3 जैनरेशन ऐसी है, जिन्होंने किसी काम को आसानी से नहीं लिया, बल्कि सभी ने बहुत मेहनत कर इसे आगे लाने की कोशिश की है, तभी ये लीगेसी बनी.

फिटनैस मंत्र

राकेश रोशन की फिटनैस मंत्र के बारे में पूछने पर हंसते हुए कहते हैं कि इस के लिए कुछ नहीं करना पड़ता, सिर्फ अच्छी सोच रखनी पड़ती है और मैं अपना काम खुद करना पसंद करता हूं.

इस प्रकार प्रोड्यूसर, डाइरैक्टर, ऐक्टर राकेश रोशन ने अपनी मेहनत, लगन और धीरज से इंडस्ट्री में अपनी एक छाप छोड़ी है, जो आज की जैनरेशन के लिए एक इंसपिरेशन है, जिसे वे लगातार बनाए रखने की कोशिश अपने 75 साल की उम्र में भी करते जा रहे हैं.

Personal Hygiene For Kids : बच्चों में ऐसे डालें हैंडवौश की आदत

Personal Hygiene For Kids : बच्चों के नन्हें-नन्हें हाथ जहां प्यारे-प्यारे से लगते हैं, वहीं वे जर्म से भी भरे होते हैं, क्योंकि वे अकसर मिट्टी में खेलते हैं. उन का दिमाग हर समय शरारतों में लगा रहता है. ऐसे में उन्हें मस्ती की इस उम्र में शरारतें करने से तो नहीं रोक सकते लेकिन उन्हें हैंडवौश का महत्त्व जरूर बता सकते हैं. अकसर संक्रामक रोग का कारण गंदगी व हाथ नहीं धोना ही होता है और इस कारण कई बच्चे बीमार व मृत्यु के शिकार हो जाते हैं. ऐसे में हैंडवौश की हैबिट इस अनुपात को आधा करने में सहायक हो सकती है.

हाथों में सब से ज्यादा जर्म

हाथों में 2 तरह के रोगाणु होते हैं, जिन्हें सूक्ष्मजीव भी कहा जाता है. एक रैजिडैंट और दूसरे ट्रैजेंट सूक्ष्मजीव. जो रैजिडैंट सूक्ष्मजीव होते है, वे स्वस्थ लोगों में बीमारियों का कारण नहीं बनते हैं, क्योंकि वे हमेशा हाथों में रहते हैं और हैंडवौश से भी नहीं हटते, जबकि ट्रैजेंट सूक्ष्मजीव आतेजाते रहते हैं. ये खांसने, छींकने, दूषित भोजन को छूने से हाथों पर स्थानांतरित हो जाते हैं. फिर जब एक बार कीटाणु हाथों को दूषित कर देते हैं तो संक्रमण का कारण बनते हैं. इसलिए हाथों को साबुन से धोना बहुत जरूरी है.

न्यूजीलैंड में हुई एक रिसर्च के अनुसार, टौयलेट के बाद 92% महिलाएं व 81% पुरुष ही साबुन का इस्तेमाल करते हैं, जबकि यूएस की रिसर्च के अनुसार सिर्फ 63% लोग ही टौयलेट के बाद हाथ धोते हैं. उन में भी सिर्फ 2% ही साबुन का इस्तेमाल करते हैं. ऐसे में जरूरी है कि आप पानी व साबुन से हैंडवौश की आदत डालें ताकि आप के बच्चे भी आप को देख कर यह सीखें. क्या हैं ट्रिक्स, जो बच्चों में हैंडवौश की आदत डालेंगे:

फन विद लर्न

आप अपने बच्चों को सिखाएं कि जब भी बाहर से आएं, टौयलेट यूज करें. जब भी किसी ऐनिमल को टच करें, छींकें, खांसें तब हैंडवौश जरूर करें वरना कीटाणु बीमार कर देंगे. आप भी उन के इस रूटीन में भागीदार बनें. उन से कहें कि जो जल्दी हैंडवौश करेगा वही विनर बनेगा. अब देखते हैं तुम या मैं, यह फन विद लर्न गेम उन में हैंडवौश की हैबिट को डैवलप करने का काम करेगा.

स्मार्ट स्टूल्स

कई घरों में हैंडवौश करने की जगह बहुत ऊंची होती है, जिस कारण बच्चे बारबार उस जगह जाना पसंद नहीं करते. ऐसे में आप उन के लिए स्मार्ट सा स्टूल रखें, जिस पर चढ़ना उन्हें अच्छा लगे और वे उस पर चढ़ कर हैंडवौश करें. साथ ही टैप्स में स्मार्ट किड्स फौसिट ऐक्सटैंड, जो बर्ड्स की शेप के आते हैं लगाएं. ये सब चीजें बच्चों को अट्रैक्ट करने के साथसाथ उन में हैंडवौश की आदत डालने का काम करती हैं.

जर्म फ्री हैंड्स

‘जर्म मेक मी सिक’ क्या तुम चाहते हो कि तुम्हें जर्म बीमार कर दें और तुम उस कारण न तो स्कूल जा पाओ और न ही दोस्तों के साथ खेल पाओ? नहीं न, तो फिर जब भी हैंडवौश करो तो सिर्फ पानी से ही नहीं, बल्कि साबुन से रगड़रगड़ कर अपनी उंगलियों, हथेलियों व अंगूठों को अच्छी तरह साफ करो. इस से तुम्हें जर्म फ्री हैंड्स मिलेंगे.

टीच बाई ग्लिटर मैथड

अगर आप के बच्चे अच्छी तरह हैंडवौश नहीं करते हैं तो आप उन्हें ग्लिटर के माध्यम से जर्म के बारे में समझाएं. इस के लिए आप उन के हाथों पर ग्लिटर डालें, फिर थोड़े से पानी से हैंडवौश कर के टौवेल से पोंछने को कहें. इस के बाद भी उन के हाथों में ग्लिटर रह जाएगा, तब आप उन्हें समझाएं कि अगर आप अच्छी तरह हैंडवौश नहीं करेंगे तो जर्म आप के हाथों में रह कर के आप को बीमार कर देंगे.

फन सौंग्स से डालें आदत

अपने बच्चों में फन सौंग्स गा कर हैंडवौश की हैबिट डालें. जैसे जब भी वे खाना खाने बैठें या फिर टौयलेट से आएं तो उन्हें हैंडवौश कराते हुए कहें,

वौश योर हैंड्स, वौश योर हैंड्स

बिफोर यू ईट, बिफोर यू ईट,

वौश विद सोप ऐंड वाटर, वौश विद सोप ऐंड वाटर,

योर हैंड्स आर क्लीन, यू आर रैडी टू ईट,

वौश योर हैंड्स, वौश योर हैंड्स,

आफ्टर टौयलेट यूज, वौश योर हैंड्स विद सोप ऐंड वाटर,

टू कीप डिजीज अवे.

यकीन मानिए ये ट्रिक आप के बहुत

काम आएंगे.

अट्रैक्टिव सोप डिस्पैंसर

बच्चे अट्रैक्टिव चीजें देख कर खुश होते हैं. ऐसे में आप उन के लिए अट्रैक्टिव हैंडवौश डिस्पैंसर लाएं, जिसे देख कर उन का बार-बार हैंडवौश करने को मन करेगा.

Private Part Problems : प्राइवेट पार्ट की प्रौब्लम के कारण मैं तनाव में हूं…

Private Part Problems : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 24 साल की युवती हूं. 3-4 महीने बाद मेरी शादी होने वाली है. मैं ने अभी तक किसी के साथ सैक्स संबंध नहीं बनाए पर नियमित मास्टरबेशन करती हूं. मुझे लगता है कि इस से प्राइवेट पार्ट की स्किन ढीली हो गई है. इस वजह से बहुत तनाव में रह रही हूं. मैं क्या करूं?

जवाब-

जिस तरह सैक्स करने से प्राइवेट पार्ट की स्किन लूज नहीं होती, उसी तरह मास्टरबेशन से भी स्किन पर कोई फर्क नहीं पड़ता और वह ढीली भी नहीं होती है. यह आप का एक भ्रम है.

हकीकत तो यह है कि किसी अंग के कम उपयोग से ही उस में शिथिलता आती है न कि नियमित उपयोग से. आप अपनी शादी की तैयारियां जोरशोर से करें और मन में व्याप्त भय को पूरी तरह निकाल दें. आप की वैवाहिक जिंदगी पर इस का कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ेगा.

हाल ही में दूसरे देशों में नैशनल और्गेज्म डे मनाया गया और वहां इस से जुड़ी बातें लोग खुले तौर पर करते भी रहते हैं. वहीं भारत में सैक्स और और्गेज्म पर बात करने से लोग मुंह छिपाने लगते हैं. यहां तक कि ज्यादातर लोग अपने ही साथी या पार्टनर से भी इस पर बात नहीं कर पाते. एक बेहद दिलचस्प बात यह भी है कि हिंदी में और्गेज्म का मतलब तृप्ति है जो इस शब्द का सही अर्थ नहीं है.

महिला और पुरुष दोनों एकदूसरे से शारीरिक तौर पर बेहद अलग हैं और दोनों पर धर्म से नियंत्रित समाज का नजरिया और भी अलग है. जहां पुरुषों को सभी प्रकार की छूट बचपन से ही भेंट में मिल जाती है, वहीं महिलाओं को बचपन से ही अलग तरीकों से पाला जाता है. उन के लिए तमाम तरह के नियमबंधन बनाए जाते हैं. उन के बचपन से वयस्क होने की दहलीज तक आते आते उन्हें इस तरह की शिक्षा दी जाती है कि वे अपने शरीर से जुड़ी बातें चाह कर भी नहीं कर पाती हैं.

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Girls Driving : लड़कियों के लिए ड्राइविंग सीखना है बेहद जरूरी, 18 की उम्र से ही सीखें ये स्किल

Girls Driving : नम्रता एक छोटे से शहर में अपने परिवार के साथ रहती थी.उसका परिवार बहुत परंपरागत था, और जहां घर की जिम्मेदारियां निभाना ही एक लड़की का मुख्य काम माना जाता था. कभी भी उसे बाहर जाने के लिए गाड़ी चलाने की अनुमति नहीं मिलती थी. लेकिन 18 की उम्र में उसे महसूस हुआ कि वह अब खुद की ज़िंदगी पर नियंत्रण पाना चाहती है.उसे यह समझ में आने लगा कि अगर उसे भविष्य में स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बनना है, तो ड्राइविंग तो उसे सीखनी ही होगी हालांकि जब नम्रता ने अपने मातापिता से ड्राइविंग सी खने की बात की, तो उनके मन में कई सवाल थे. “तुम एक लड़की हो, गाड़ी क्यों चलानी चाहिए?” “क्या तुम रास्ते में सुरक्षित रह पाओगी?” “यह लड़कों का काम है, तुम घर पर ही ठीक रहोगी.” इन सवालों का सामना करते हुए, नम्रता ने पूरी तरह से सोच लिया था कि उसे यह काम करना है.उसने अपने मातापिता को यह समझाया कि ड्राइविंग सीखने से वह स्वतंत्र ही नहीं बल्कि सुरक्षित भी रहेगी.और यह सच भी है जब आपको गाड़ी चलानी आती होगी तो आप कभी भी कहीं भी जा सकती हैं हम तो कहते हैं हर लड़की को अठारह साल की उम्र में कार चलानी सीखनी चाहिए.

ड्राइविंग स्कूल में किया गया तीन हजार का यह इन्वेस्टमेंट आपको सारी जिंदगी सुकून देगा. आपके घर में गाड़ी हो या ना हो फिर भी आपको ड्राइविंग आनी चाहिए क्योंकि कई बार बाहर घूमने जाने पर ड्राइवर के साथ ली गई गाड़ी का किराया दुगना होता है लेकिन अगर आपने ड्राइविंग सीखी होगी तो आपको फायदा होगा और इस तरह ज़्यादा से ज़्यादा गाड़ी जब आपको चलाने के लिए मिलेगी तो आपका हाथ भी साफ होगा.

वैसे तो लड़कियां अब हर क्षेत्र में अपना योगदान दे रही हैं और स्वतंत्र जीवन भी जी रही हैं लेकिन जब लड़कियां 18 साल की होती हैं, तो उनमें उमंग होती है कुछ कर गुज़रने की कुछ नया सीखने कि तो ड्राइविंग स्किल को अपनी लिस्ट में सबसे ऊपर रखें.

1. फ्रीडम का अनुभव

ड्राइविंग सीखने से लड़कियों को अपने जीवन में एक नई स्वतंत्रता मिलती है.अगर किसी लड़की को अपना काम या स्कूल/कौलेज जाना हो, तो ड्राइविंग उसकी राह आसान बनाने में मददगार साबित होती है.यह उन्हें अपने समय को बेहतर तरीके से मैनेज करने में मदद करती है.

2. सेफ्टी ही सेफ्टी

एक लड़की के लिए अपनी सुरक्षा के लिए ड्राइविंग सीखना काफी महत्वपूर्ण है.कभीकभी यह भी ज़रूरी होता है कि अगर किसी ऐसी स्थिति का सामना हो, जहां दूसरे लोग मदद न कर पाएं, तो अपने आप को सुरक्षित रखने के लिए ड्राइविंग एक काफी जरूरी स्किल हो सकती है.

3. करियर के अवसर

अगर लड़की किसी ऐसे करियर में है जिसमें यात्रा या फील्डवर्क की ज़रूरत हो, तो ड्राइविंग एक ज़रूरी स्किल बन जाती है.यह उन्हें अपने करियर को आगे बढ़ाने में मदद करता है, जैसे कि सेल्स, मार्केटिंग, इवेंट मैनेजमेंट, और बहुत सारे फील्ड जौब्स में.

4. अगर परिवार का सपोर्ट हो

कई बार लड़कियों को अपने घरवालों से भी ड्राइविंग सीखने का सपोर्ट नहीं मिलता, लेकिन अगर उन्हें अपने परिवार से इसमें पूरा सपोर्ट मिले, तो उनका जीवन और भी आसान हो सकता है.घर के काम से लेकर, इमरजेंसी तक, उन्हें हर जगह अपनी ही गाड़ी का इस्तेमाल करने का मौका मिलता है.

5. आत्मविश्वास

जब लड़की ड्राइविंग करते हुए खुद को देखती है, तो उसका अपने ऊपर का आत्मविश्वास काफी बढ़ता है.यह उसे अपने जीवन में नए चैलेंजेस का सामना करने के लिए तैयार करता है.अपनी ड्राइविंग स्किल्स पर विश्वास उसे अपने लिए और भी गोल्स सेट करने में मदद करता है.

6. इमरजेंसी सिचुएशन

कभीकभी ऐसे समय आ जाते हैं जब किसी को तुरंत कहीं जाना पड़ता है या कोई इमरजेंसी हो, और किसी दूसरे पर निर्भर रहना पड़ता है.अगर लड़की को ड्राइविंग आती है, तो वह खुद अपनी मदद कर सकती है और कभी भी इमरजेंसी सिचुएशन को हैंडल कर सकती है.

7. सोशल परसेप्शन में बदलाव

जब लड़कियांं अपनी गाड़ी चलाती हैं, तो उनके बारे में लोगों का नज़रिया भी बदलता है.यह उन्हें ज़्यादा जिम्मेदार और काबिल दिखाता है, जो उन्हें अपने आप को और बेहतर दिखाने का मौका देता है.समाज में बदलाव का एक हिस्सा यह भी है कि लड़कियां हर शहर और शहर के बीच अपने दोस्तों के साथ सफर कर सकती हैं बिना किसी हिचकिचाहट के.

8. व्यक्तिगत विकास

ड्राइविंग एक ऐसा कौशल है जो लड़कियों को जिंदगी में आत्मनिर्भर बनाता है.इससे उन्हें अपने निर्णय लेने और समस्या-समाधान की क्षमताओं को विकसित करने में मदद मिलती है.हर बार जब वह ड्राइविंग करती हैं, वह अपनी मानसिक तीव्रता और निर्णय लेने की क्षमता को सुधारती हैं.

लड़कियां गाड़ी चलाते समय क्या सावधानियां बरते

ड्राइविंग करना एक बड़ी जिम्मेदारी है, और इस जिम्मेदारी को सही तरीके से निभाने के लिए सावधानी बरतना बेहद ज़रूरी है. लड़कियों को ड्राइविंग करते समय अपनी सुरक्षा का ध्यान रखना चाहिए और ट्रैफिक नियमों का पालन करना चाहिए. गाड़ी चलाते वक्त हमेशा सीट बेल्ट लगानी चाहिए. कभी भी फोन का इस्तेमाल न करें या महिलाओं की आदत होती है अपने आप को बारबार आइने में निहारने की या ड्राइविंग करते वक्त लिपस्टिक लगाने या काजल लगाने की तो ऐसा बिल्कुल भी न करें. ताकि आप सेफ और कौन्फ़िडेंस ड्राइविंग कर सकें.

Best Short Story : अनमोल मंत्र

Best Short Story :  दिल्ली एअरपोर्ट पर सुधाको देखते ही नीला जोर से चिल्लाई, ‘‘अरे सुधा तू, कहां जा रही है?’’

‘‘अहमदाबाद और तू?’’

‘‘तेरे पड़ोस में, वडोदरा. भूल गई मेरी शादी ही वहीं हुई थी. तू कब से है अहमदाबाद में?’’

‘‘पिछले महीने ही इन की बदली वहां हुई है. मैं तो पहली बार जा रही हूं. कितना अच्छा होता अगर वडोदरा के बजाय तू भी अहमदाबाद में होती.’’

‘‘मैं न सही शिखा तो वहीं है. अकसर याद करती है तुझे, बहुत खुश होगी तुझ से मिल कर. वैसे मेरा चक्कर भी अकसर लग ही जाता है अहमदाबाद का, क्योंकि ऋषभ तो अपने काम के सिलसिले में वहां जाते ही रहते हैं.’’

‘‘सच, तब तो बहुत मजा आएगा. शिखा कब आई अमेरिका से?’’

‘‘कई साल हो गए. लड़कियों के किशोरावस्था में पहुंचते ही उन लोगों ने वापस आना बेहतर समझा था. शादी कर दी है दोनों बेटियों की और संयोग से अहमदाबाद में रहने वाले लड़के ही मिल गए. तू बता तेरे बालबच्चे कहां हैं?’’

‘‘मेरी तो एक ही बेटी है. वह डाक्टर है दिल्ली में. और तेरा परिवार कितना बड़ा है?’’

‘‘बस हम 2 हमारे 2. अब उन 2 का परिवार बढ़ रहा है. बेटी नोएडा में ब्याही है, लड़का हुआ है कुछ सप्ताह पहले. उसी सिलसिले में उस के पास आई थी. बेटा और बहू वडोदरा में ऋषभ के साथ बिजनैस संभालते हैं और मैं उन की बेटी.’’

‘‘तेरा समय तो मजे से कट जाता होगा?’’

‘‘हां, वैसे भी कई साल हो गए यहां रहते इसलिए काफी जानपहचान है. शिखा के वहां रहने से तेरा भी दिल लगा रहेगा वरना नई जगह में मुश्किल होती है.’’

‘‘वह तो है. मेरी एक रिश्ते की भाभी भी हैं अहमदाबाद में. तू भी आती रहेगी तो अच्छा लगेगा.’’

प्लेन में भी दोनों साथ ही बैठीं और नीला ने उसे शिखा का फोन नंबर दे कर कहा कि तू उसे जाते ही फोन कर ले. वह बहुत खुश होगी. पिछले महीने ही शादी की है छोटी बेटी की तो फुरसत में है.

 

लेकिन इतने दिन बाद पति से मिलने और नया बंगला देखने के उल्लास में सुधा शिखा को फोन नहीं कर सकी. अगले रोज भी सुबह का समय बंद सामान खोलने और बाजार से सामान लाने में निकल गया और दोपहर आराम करने में. शाम को उस ने शिखा को फोन करने की सोची फिर यह सोच कर कि वह अपनी बेटियों की शादी के बाद अकेलेपन का रोना रो कर उस का अच्छाखासा मूड खराब कर देगी, उस ने पहले शीला भाभी को फोन करना बेहतर समझा. शीला उस के चचेरे भाई मनोहर की पत्नी थीं. 2 छोटेछोटे बच्चों और एक नई लगाई फैक्टरी की जिम्मेदारी शीला पर डाल कर मनोहर एक सड़क हादसे में चल बसा था. शीला भाभी ने बड़ी हिम्मत से फैक्टरी चलाई थी और बच्चों को पढ़ायालिखाया था. उन्होंने कभी अकेलेपन या उदासी का रोना नहीं रोया. समयाभाव के कारण वे दिल्ली अधिक नहीं आ पाती थीं लेकिन संपर्क सभी से रखती थीं. कुछ रोज पहले ही उन्होंने अपने छोटे बेटे की शादी की थी. तब सुधा को भी निमंत्रण भेजा था.

सुधा ने शीला भाभी का नंबर मिलाया. फोन नौकरानी ने उठाया, ‘‘मांजी तो अभी व्यस्त हैं. आप अपना नंबर दे दीजिए.’’

‘‘मैं खुद ही दोबारा फोन कर लूंगी.’’

‘‘मगर 7 बजे के बाद करिएगा.’’

अभी 6 ही बजे थे. रवि के आने में भी देरी थी, इसलिए उस ने शिखा का नंबर मिलाया. शिखा उस की आवाज सुनते ही चहकी, ‘‘मैं अभी तुझ से मिलने आ जाती लेकिन क्या करूं मेरी छोटी बेटी और दामाद अपने कुछ दोस्तों के साथ मेरे हाथ का बना खाना खिलाने ला रहे हैं…’’

‘‘अरे वाह, तू इतना बढि़या खाना बनाने लगी है?’’ सुधा ने कहा.

‘‘यह तो तू खाने के बाद ही बताना. असल में बच्चों ने यह पार्टी मेरा दिल बहलाने के लिए रखी है. वरुण आजकल बाहर गए हुए हैं, मुझे अकेलापन न लगे, इसलिए मुझे इस तामझाम में उलझा रहे हैं.’’

‘‘यह तो बहुत अच्छा है. मैं तो सोच रही थी कि बेटियों की शादी के बाद तू एकदम अकेली हो गई होगी.’’

‘‘अरे नहीं. पहले 2 बेटियां थीं अब 2 बेटे भी मिल गए. एक बात बताऊं सुधा, पहले जब वरुण बाहर जाते थे तो लड़कियों के साथ अकेले बहुत डर लगा करता था. रात को ठीक से सो भी नहीं पाती थी. पर पिछली बार जब वरुण गए तो मेरी बड़ी बेटी और दामाद मेरे पास थे. मैं इतनी गहरी नींद में सोई कि मेरी बेटी को सुबह नाक पर हाथ रख कर देखना पड़ा कि मेरी सांस चल रही है या नहीं.’’

‘‘एक दामाद को घरजंवाई क्यों बना लेतीं?’’

‘‘न बाबा न, सब अपनेअपने घर सुखी रहें. फुरसत मिलने पर मुझ से मिल लें, मैं इसी में खुश हूं. यह बता कल क्या कर रही है?’’

‘‘कुछ बंद सामान खोलूंगी.’’

‘‘वह परसों खोल लेना. कल मेरे पास आ जा.’’

‘‘अच्छा, रवि से पूछूंगी कि कब गाड़ी भेजवाएंगे.’’

‘‘गाड़ी तो मैं भेज दूंगी.’’

‘‘उस गाड़ी में बैठ कर तू ही क्यों नहीं आ जाती?’’

‘‘चल यही सही, तो फिर मिलते हैं कल,’’ कह कर शिखा ने फोन रख दिया.

कुछ देर बाद सुधा ने शीला भाभी को फोन  किया. कुशलक्षेम के बाद सुधा ने कहा, ‘‘कमाल है भाभी, पहले आप के पास वक्त नहीं होता था…’’

अब अनीष व मनीष सब संभाल लिया है. मैं तो बस आधे दिन के लिए फैक्टरी जाती हूं, उस के बाद घर आ कर अनीष के बेटे से खेलती हूं. शाम को वह अपने मम्मीपापा के पास खेलता है.’’

‘‘उस के बाद?’’

‘‘टीवी देखती हूं फिर खाना खा कर सो जाती हूं.’’

‘‘बहूबच्चों के साथ नहीं खातीं?’’

‘‘अगर वे लोग घर में हों तब तो सब साथ ही खाते हैं वरना मैं अपने वक्त पर खा लेती हूं, और सुना दिल्ली में कैसे हैं सब?’’

‘‘वह सब मिलने पर बताऊंगी भाभी. कब मिल रही हो?’’

‘‘जब तुम कहो. कल आ जाऊं?’’

‘‘कल तो मुझे कुछ काम है भाभी.’’

‘‘कोई बात नहीं. इतमीनान से काम निबटा लो फिर मुझे फोन कर देना, मैं आ जाऊंगी.’’

‘‘ठीक है भाभी, वैसे आना तो मुझे चाहिए आप के पास.’’

‘‘मैं इस ‘चाहिए’ के चोंचले में विश्वास नहीं करती सुधा. तुम अभीअभी इस शहर में आई हो, व्यवस्थित होने में व्यस्त होगी. मेरे पास तो फुरसत भी है और गाड़ी भी, इसलिए जब तुम कहोगी आ जाऊंगी.’’

अगले रोज शिखा अपनी नवविवाहित बिटिया के साथ आई.

‘‘यह मेरी छोटी बेटी नन्ही है. तेरे बारे में सुनते ही कहने लगी कि मैं भी मौसी से मिलने चलूंगी…’’

‘‘मम्मी और नीला आंटी जब भी मिलती हैं न आप को बहुत याद करती हैं. जैसे, सुधा होती तो मजा आ जाता या सुधा होती तो यह कहती. और कल तो मम्मी की खुशी संभाले नहीं संभल रही थी. तो आप ही बताइए, ऐसी मौसी से मिले बगैर मैं कैसे रह सकती थी?’’ सुधा को भी चुलबुली नटखट नन्ही बहुत प्यारी लगी.

‘ससुराल में भी तू ऐसी ही शैतानी करती है?’’ सुधा ने पूछा.

‘‘इस से भी ज्यादा,’’ जवाब शिखा ने दिया, ‘‘वहां इस का साथ देने को हमउम्र जेठानी जो है. जब ये दोनों साथ होती हैं तो खूब ठहाके लगाती हैं.’’

‘‘मैं चलती हूं मौसी,’’ कह कर नन्ही चली गई.

‘‘बड़ी प्यारी बच्ची है…’’

‘‘चुन्नी को देखेगी तो वह इस से भी ज्यादा प्यारी लगेगी तुझे,’’ शिखा ने बात काटी, ‘‘आजकल दोनों मियांबीवी सिंगापुर गए हुए हैं. अगले हफ्ते आ जाएंगे.’’

‘‘तो फिर हम भी अगले हफ्ते ही आएंगे तेरे घर.’’

दोनों सहेलियों को गप्पें मारने में समय का पता ही नहीं चला. नन्ही घूमफिर कर मां को लेने आ गई. शिखा के जाने के बाद उस ने शीला भाभी को फोन किया. वह अगले रोज शाम को आना मान गईं.

शीला भाभी से वह कई साल के बाद  मिल रही थी. उन के चेहरे की झुर्रियां थोड़ी बढ़ गई थीं, लेकिन अब चेहरे पर थकान और फिक्र की जगह स्फूर्ति और आत्मतुष्टि की गरिमा थी.

‘‘इस से पहले कि तुम मुझ से कुछ पूछो, मुझे दिल्ली के समाचार दो, अरसा हो गया सब से मिले हुए इसलिए सब के बारे में जानने की बेचैनी हो रही है,’’ शीला भाभी सब के बारे में पूछती रहीं.

‘‘अब जब फैक्टरी बच्चों ने संभाल ली है और घर की देखभाल के लिए बहुएं आ गई हैं तो आप दिल्ली हो आओ न भाभी. छोटे चाचाजी ने कहा भी था आप से कहने के लिए,’’ सब बताने के बाद सुधा ने कहा.

शीला भाभी हंसने लगीं, ‘‘फुरसत तो जरूर हो गई है लेकिन अब बच्चों को खास कर पोते को छोड़ कर जाने को दिल नहीं करता. खैर, अंशु स्कूल जाने लगे और नई बहू दिव्या को भी कुछ दिन तक मौजमस्ती करवा दूं फिर जाऊंगी. अभी तो उस पर औफिस के काम का ज्यादा भार नहीं डाला मैं ने.’’

‘‘और बड़ी बहू?’’

‘‘रजनी इंजीनियर है. पहले तो सारा दिन फैक्टरी में ही रहती थी लेकिन बच्चा होने के बाद अब दोपहर को जाती है. जितने अच्छे अनीषमनीष हैं उतनी अच्छी ही दोनों की बीवियां भी हैं. बहुत स्नेह है सब का आपस में और मुझ पर तो सब जान छिड़कते हैं. मेरा घर अब बच्चों के ठहाकों से गूंजता रहता है.’’

‘‘यह तो बड़ी खुशी की बात है भाभी. एक रोज आऊंगी आप के घर.’’

‘‘तुम्हारा घर है जब चाहो आ जाओ लेकिन घर पर कौनकौन मिलेगा इस की गारंटी मैं नहीं लूंगी. बच्चों से पूछ कर बुलाऊंगी तुम्हें और रवि जी को. अनीष और रजनी तो ज्यादातर घर पर ही रहते हैं, लेकिन मनीष और दिव्या की नईनई शादी हुई है तो वे कहीं न कहीं निकल जाते हैं. फिर ससुराल भी शहर में ही है, इसलिए वहां भी जाना पड़ता है. इसीलिए मैं यह हुक्मनामा जारी नहीं करना चाहती कि फलां दिन मैं दावत कर रही हूं घर पर रहना. वैसे मैं ने तुम्हारे बारे में बताया तो मनीष बहुत खुश हुआ कि चलो शहर में हमारा कोई अपना भी आ गया. ऐसा है सुधा कि अगर बच्चों से प्यार पाना है तो अपनी मरजी उन पर मत थोपो.’’

‘‘आप बिलकुल ठीक कह रही हैं भाभी,’’ सुधा बोली, ‘‘मेरी एक सहेली है शिखा. उस की 2 बेटियां हैं. दोनों की शादी हो गई है. वह खूब इतराती है अपने दामादों पर.’’

‘‘शिखा की बात कर रही हो न?’’ शीला भाभी हंसी, ‘‘जिस किट्टी पार्टी की मैं मेंबर हूं उसी की वह भी है, इसलिए हर महीने उस का इतराना देखने को मिल जाता है. असल में शिखा ने दामाद बड़ी होशियारी से चुने हैं. बड़े वाले की नौकरी यहां है लेकिन परिवार चंडीगढ़ में, इसलिए बीवी के परिवार को अपना मानेगा ही. छोटे वाला बिखरे घर से है यानी मांबाप का अलगाव हो चुका है. मां डाक्टर है, पैसे की तो कोई कमी नहीं है, लेकिन व्यस्त एकल मां के बच्चे को शिखा के घर का उष्मा भरा घरेलू वातावरण तो अच्छा लगेगा ही. तुम ने यह भी सुना होगा कि विवाह के बाद बेटा तो पराया हो जाता है, लेकिन बेटी अपने साथ एक बेटा भी ले आती है. ऐसा क्यों होता है?’’

‘‘आप ही बताओ.’’

‘‘क्योंकि ससुराल में दामाद को बहुत मानसम्मान और लाड़प्यार मिलता है. उसे आप कह कर बुलाया जाता है. इतनी इज्जत की चाह किसे नहीं होगी?’’ शीला भाभी हंसीं, ‘‘किसी सासससुर को कभी बहू को ‘आप’ कहते सुना सुना है तुम ने? कोई भूलाभटका अगर कभी बहू को आप कह देता है तो कोई न कोई उसे जरूर टोक देता है कि क्या गैरों की तरह आप कह रहे हो. यह तुम्हारी बेटी जैसी है. जैसे बेटे को तुम या तू कहते हो इसे भी कहो. दामाद अगर आप की बेटी के आगेपीछे घूमता है तो आप उस पर वारिवारि जाती हैं और ऐसा ही जब आप का बेटा बहू के साथ करता है तो आप जलभुन जाती हैं. उस पर व्यंग्य कसती हैं. जाहिर है, बेटा पहले तो आप से खिंचाखिंचा रहेगा और धीरेधीरे दूर होता जाएगा. इसलिए बेहतर है कि याद रखिए आप का बेटा भी आप के दामाद की तरह ही जवान है. उस की भी उमंगें हैं, अरमान हैं. उसे भी अपना जीवन अपनी सहचरी के साथ बांटने दीजिए उस के निजी जीवन में हस्तक्षेप कदापि मत करिए. मेरा तो प्यार व सम्मान से जीने का यही मंत्र है.’’

‘‘मेरा तो बेटा नहीं है शीला भाभी, लेकिन जिन के हैं उन्हें आप का यह अनमोल मंत्र अवश्य बताऊंगी,’’ सुधा ने सराहना के स्वर में कहा.

Kahaniyan : इशी- आर्यन ने कौन सी गलती कर दी थी

Kahaniyan : ‘‘आर्यन, मैं पढ़तेपढ़ते बोर हो गई हूं, चलो न थोड़ी देर के लिए बाहर घूम कर आते हैं.’’ ‘‘नो डियर, कल मेरा एग्जाम है, इसलिए पढ़ाई करनी जरूरी है. परेशान तो मैं भी बहुत हूं, गरमी के कारण पसीने से भीगा हुआ हूं लेकिन कल के टैस्ट में पूरे नंबर लाने हैं. इसलिए ऐक्सक्यूज मी यार. कल टैस्ट हो जाने दे. अब मैं मोबाइल औफ कर रहा हूं.’’

‘‘प्लीज औनलाइन रहो. थोड़ी देर चैटिंग कर के मूड फ्रैश हो जाएगा,’’ इशिता का प्यारा सा चेहरा उस की आंखों के सामने तैर गया था.

‘‘इशी, डिस्टर्ब मत करो. कल शाम को टैस्ट के बाद मिलते हैं?’’

‘‘कहां?’’ इशिता बोली.

‘‘वहीं, सैंटर के गेट पर,’’ आर्यन ने कहा. लिखने के बाद उस ने फोन बंद किया और पढ़ाई में मशगूल हो गया.

आर्यन और इशिता दोनों कोचिंग कर रहे थे. आर्यन आईआईटी में ऐडमिशन ले कर इंजीनियर बनना चाहता था, तो इशिता पीएमटी की तैयारी कर रही थी. उसे डाक्टर बनना था. उस के मम्मीपापा दोनों डाक्टर थे और शहर में उन का अपना नर्सिंगहोम भी था. वे अपनी बेटी को डाक्टर बना कर नर्सिंगहोम उस के हवाले कर देना चाहते थे.

आर्यन साधारण परिवार से था, उस के पिता बैंक में क्लर्क थे तो मां प्राइवेट ट्यूशन पढ़ा कर घरखर्च चला रही थीं? दोनों ने बेटे को इंजीनियर बनाने का सपना देखा था, उस के लिए दोनों रातदिन मेहनत करते थे.

आर्यन समझदार लड़का था. वह ईमानदारी से पढ़ाई कर रहा था. उस की एक छोटी बहन भी थी, जिसे वह बहुत प्यार करता था. उस ने भी पिछले वर्ष एंट्रैंस पास कर लिया था, लेकिन प्राइवेट कालेज की महंगी फीस देना उस के मांबाप के लिए संभव नहीं है. इसलिए इस वर्ष उसे हर हाल में आईआईटी में ऐडमिशन के लिए जेईई का टैस्ट पास करना था.

उस को इस बात का अच्छी तरह एहसास था कि उस के मातापिता कितनी परेशानियों में उस की कोचिंग का खर्च वहन कर पा रहे हैं. कोचिंग वाले इस डर से कि बच्चे बीच में ही न छोड़ जाएं, सालभर की फीस जो लाखों में होती है, जमा करवा कर निश्चिंत हो जाते हैं. और तो और पीजी वाली आंटीजी भी कंसेशन का लालच दे कर पूरे साल के लिए बच्चों को अपने पिंजरे में कैद कर अत्याचार करने का लाइसैंस ले लेती हैं.

अगली शाम आर्यन टैस्ट अच्छा होने से रिलैक्स हो कर अपने दोस्तों के साथ पेपर डिस्कस कर रहा था कि उसे इशिता आती दिखी. उस का दूध सा गोरा रंग, गोल चेहरे पर खुशी से चमकती बड़ीबड़ी कजरारी आंखें, काले घुंघराले बाल उस की पेशानी को चूम रहे थे. जींस और टौप उस की खूबसूरती में चारचांद लगा रहे थे.

उस के ब्रैंडेड कपड़े और खूबसूरत चेहरे की रौनक देख आर्यन भी खुश हुआ था, लेकिन अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में सोच कर वह तुरंत ही मायूस भी हो गया.

वह स्कूटी से उतर कर बोली, ‘‘आओ, तुम पीछे बैठोगे?’’

‘‘नहीं इशी, स्कूटी मैं ड्राइव करूंगा, तुम पीछे बैठोगी. पीछे बैठ कर मुझे अच्छा नहीं लगता,’’ आर्यन ने कहा.

‘‘इस में अच्छा न लगने की भला क्या बात है?’’ इशी बोली.

‘‘तुम मेरी फीलिंग को नहीं समझ सकती इशी. खैर छोड़ो, चलो, कहां चलना है?’’

‘‘मेरा मन तो कैफे डे में कोल्ड कौफी पीने का था,’’ इशी बोली.

‘‘मेरे पास बिल देने के लिए पैसे नहीं हैं.’’

‘‘मैं दूंगी बिल न, यार तू क्यों परेशान हो रहा है.’’

‘‘तुम्हीं तो हमेशा बिल देती हो और यही मुझे अच्छा नहीं लगता,’’ आर्यन ने कहा.

‘‘इस से क्या फर्क पड़ता है, बिल मैं दूं या तुम दो?’’

‘‘तुम मेरे मन की बात को नहीं समझ सकती इशी. मौल ही चलो, अपनी उसी फेवरेट जगह सन्नाटे में बैठेंगे, जहां से हम लोग सब को देखेंगे लेकिन लोग हमें नहीं देख पाएंगे,’’ आर्यन बोला.

दोनों उस जगह पहुंच कर खाली बैंच पर बैठ गए. आर्यन स्वीटकौर्न का एक कप ले कर आया और दोनों खाने लगे.

‘‘क्या आर्यन, क्या चल रहा है तुम्हारे और आन्या के बीच में? मैं ने कई बार देखा है आजकल उस से काफी देर तक बातें करते रहते हो. अगर वह तुम्हें अच्छी लगती है, तो उस के पास जाओ और उस से आई लव यू कह दो.’’

‘‘ओफ इशी, वह तो एक प्रश्न मुझ से पूछ रही थी. लेकिन मुझे उस की स्माइल बहुत अच्छी लगती है.’’

आर्यन का यह जवाब सुन कर इशिता नाराज हो गई उस की आंखें डबडबा उठीं.

‘‘अरे, मैं तो तुम्हें चिढ़ाने के लिए ऐसा कह रहा था, बस, इसी पर रो पड़ीं. चलो, व्हाट्सऐप वाली बड़ी सी स्माइली दो.’’

‘‘आर्यन, मैं तुम्हें न किसी दिन बहुत पीटूंगी,’’ उस की पीठ पर एक हलकी सी धौल जमाती हुई इशिता बोली. आर्यन गंभीर सा चेहरा बना कर एकदम से चुप हो गया था.

‘‘एकदम चुप हो और चेहरा भी उदास है, क्या हुआ? मेरी बात का बुरा मान गए क्या, मेरी तरफ से बड़ी वाली सौरी,’’ इशिता मजाकिया अंदाज में बोली.

‘‘इशी,? मैं तुम्हारी बात पर नाराज नहीं हूं. मुझे जेईई का टैस्ट क्लीयर करने का टैंशन है. यदि मेरी अच्छी रैंक नहीं आई तो क्या होगा? पापा ने तो मेरी कोचिंग के लिए अपने प्रौविडैंट फंड का पैसा भी खर्च कर दिया है. पीजी और कोचिंग की फीस वे कैसे देते हैं, यह तो मैं ही समझता हूं.

‘‘पापा जबतब मुझ से मिलने आ जाते हैं और मेरी मुट्ठी में रुपए रखते हुए आशाभरी निगाहों से मेरी ओर देखते हैं. मैं उन का सामना करने से घबराता हूं. मुझे लगता है कि कहीं मैं उन के सपने पर पानी तो नहीं फेर दूंगा. टीचर हर समय कहते हैं, थोड़ी मेहनत और करो.’’

‘‘तुम्हीं बताओ इशी, सुबह सूरज निकलने से पहले ही घर से कोचिंग के लिए निकल जाता हूं. कोई लाइफ है मेरी, मशीन बन कर रह गई है जिंदगी. सुबह से रात तक बस कोचिंग, नोट्स, रिवीजन, पेपर सौल्व करना, टैस्ट देना. लाइफ एकदम बोर हो चुकी है.

‘‘मां के दुलारभरे स्पर्श की मुझे इतनी याद आती है कि लगता है कि सबकुछ छोड़छाड़ कर घर मां के पास चला जाऊं, लेकिन फिर पापा की उम्मीदभरी आंखें मेरे सामने घूमने लगती हैं. अपना छोटा शहर, वहां की मस्ती, अपने दोस्त सब बहुत याद आते हैं.

‘‘इशी, मैं यहां बिलकुल अकेला हूं, यदि मुझे तुम जैसी दोस्त यहां न मिलती तो मेरा न जाने क्या होता?’’

‘‘आर्यन, इतने सैंटिमैंटल मत हो यार, इस साल तुम जेईई का ऐंट्रैंस जरूर क्लीयर कर लोगे. इतनी मेहनत कर रहे हो, भला क्यों नहीं क्लीयर होगा.

‘‘मुझे देखो, मम्मीपापा शहर के जानेमाने डाक्टर हैं. यदि मैं ऐंट्रैंस पास कर नहीं कर पाई तो उन के लिए कितनी शर्म की बात होगी. कैमेस्ट्री है कि मेरे सिर के ऊपर से निकल जाती है. यदि तुम मेरी मदद न करते तो शायद मेरा फेल होना निश्चित था. तुम्हारे कारण ही कैमेस्ट्री अब मेरा फेवरेट सब्जैक्ट बन गया है और साथ ही तुम्हारी दोस्ती की वजह से मुझे अब दुनिया बहुत प्यारी लगने लगी है. मुझे तो इन मोटीमोटी किताबों के बीच बारबार तुम्हारा मुसकराता चेहरा नजर आता है.’’

‘‘इशी, पिछले साल मनचाहा कालेज और स्ट्रीम न मिलने का कारण मेरा मैथ का पेपर था. मैं ने पापा से कौपी रीचैक करवाने को कहा था, लेकिन उन्होंने कहा कि इस से कोई फायदा नहीं है. इस साल फिर से तैयारी कर लो.

‘‘मुझे खुद काफी कोफ्त होती है कि लाखों की फीस और पीजी का खर्च, यदि पास हो गया होता तो आईआईटी के फर्स्ट ईयर में होता.’’

‘‘आर्यन, इतना परेशान मत हो डियर, तुम्हें इस साल जरूर सरकारी कालेज और मनचाही स्ट्रीम मिल जाएगी. मुझे देखो, पढ़ाई करती हूं, मेहनत कर रही हूं और ये तो सभी जानते हैं कि मेहनत का फल मीठा होता है.’’

‘‘देखो इशी, तुम्हारी बात अलग है. यदि तुम्हें अच्छी रैंक न भी मिली तो तुम्हारे पापा डोनेशन दे कर किसी भी अच्छे कालेज में तुम्हारा ऐडमिशन करवा देंगे, फिर तुम बन जाओगी डा. इशिता, और तुम्हारे नर्सिंगहोम में एक नेमप्लेट बढ़ जाएगी.’’

‘‘नहीं आर्यन, मुझे गरीबी के कारण बच्चों को मरते देख बड़ा दुख होता है. मैं उन के मुफ्त इलाज के लिए अपना जीवन समर्पित करना चाहती हूं.

‘‘आर्यन, तुम तो आईआईटी से इंजीनियरिंग पूरी करते ही विदेश चले जाओगे. पूरी दुनिया की सैर करोगे, फिर भला मुझे तुम क्या पहचानोगे कि कोई इशिता नाम की लड़की थी.’’

आर्यन ने उस के मुंह पर अपना हाथ रख दिया था, ‘‘इशी, तुम गलत सोच रही हो और मुझे बड़ेबड़े सपने दिखा रही हो. मैं भले ही सारी दुनिया घूम लूं, लेकिन रहूंगा अपने प्यारे देश भारत में ही, जहां मेरे मांपापा और गुडि़या जैसी प्यारी सी बहन है.’’

इशी बोल पड़ी, ‘‘और मैं कहीं नहीं हूं, तुम्हारे जीवन में?’’

‘‘इशी, मेरा तुम्हारा भला क्या मेल. तुम्हारे पापा को तो अपनी लाडली बेटी के लिए डाक्टर दामाद चाहिए.’’ आर्यन उदास स्वर में सिहर कर बोला, ‘‘यदि मैं जेईई नहीं क्लीयर कर पाया तो तुम मुझे भूल जाओगी.’’

‘‘आर्यन, मैं मम्मीपापा का आदर अवश्य करती हूं, लेकिन अपनी जिंदगी का फैसला तो मैं स्वयं करूंगी.’’

स्वीटकौर्न का कप खाली हो चुका था. इशिता उसे डस्टबिन में डालने गई और थोड़ी देर में एक आइसक्रीम ले कर आ गई. फिर दोनों बारीबारी से उसे खाने लगे.

‘‘इशी, मुझे देर हो गई है, जल्दी चलो, नहीं तो आंटी गेट बंद कर देंगी. फिर शुरू हो जाएगी उन की लंबी पूछताछ, जिस से मैं बचना चाहता हूं.’’

‘‘हां आर्यन, तुम्हारी आंटी तो पूरी विलेन लगती हैं, उस दिन हमें देर हो गई थी न, स्कूटी से तुम्हें उतार कर बाय कर रही थी, और उन्होंने देख लिया बस, शुरू हो गईं, ‘तुम लोग रोज मिलते हो, कहां मिलते हो, कब से एकदूसरे को जानते हो?

‘‘मैं तो किसी तरह वहां से जान बचा कर भागी थी. हां, परेशान तो करती हैं, लेकिन अच्छी भी हैं. उन्हें भी तो बच्चों के पेरैंट्स को जवाब देना पड़ता है. कोई लफड़ा होता है तो सब से पहले उन्हीं को दोष दिया जाता है.’’

‘‘परेशानी तो मुझे भी होती है, वे प्रैस नहीं करने देतीं, इमर्शन रौड नहीं लगाने देती हैं, जिस दिन जरा देर से आंख खुलती है, उस दिन ठंडे पानी से नहाना पड़ता है. दूध में पानी मिला देती हैं. सुबह नाश्ता देर से बनाती हैं, इसलिए अकसर घर से खाली पेट निकलना पड़ता है. कभी खाना इतना स्पाइसी बनाती हैं कि आंखनाक से पानी टपकने लगता है.’’

‘‘फिर क्या ऐसे ही भूखे रह कर दिन बिताते हो?’’

‘‘नहीं यार, कभी आलू के परांठे, कभी सैंडविच तो कभी समोसे से काम चला लेता हूं.

‘‘आंटी, एकसाथ पूरे साल का पैसा जमा करवा लेती हैं, ताकि बीच में कोई छोड़ न सके.’’

‘‘तुम से कितनी बार तो कहती हूं कि मैं तुम्हारे लिए टिफिन ले आया करूंगी, लेकिन तुम तो राजी ही नहीं होते.’’

‘‘हां डियर, मुझे इंजीनियर बन जाने दो और तुम डाक्टर बन जाओ, फिर हम दोनों रोज साथ खाना खाया करेंगे.’’ उस ने अपनी हथेलियों से उस के होंठों को छू कर चूम लिया था.

‘‘मेरी इशी, तुम बहुत प्यारी, भावुक और समझदार हो. मैं खुद को धनी समझता हूं. जो मुझे तुम जैसी फ्रैंड मिली है.’’

मौल की भीड़ छंट चुकी थी. रात्रि की नीरवता एवं रंगबिरंगी रोशनी की मादकता के कारण आर्यन भावनाओं में बहक कर भूल गया कि इशी और वह केवल अच्छे दोस्त हैं.

उस ने जवानी के आवेश में इशी को अपनी बांहों में जकड़ लिया था. अपने अंगारे जैसे होंठों को इशी के होंठों से लगा कर इशी को अपनी बांहों में जकड़ लिया था. इशी इस का विरोध करती रही पर आर्यन की पकड़ मजबूत हो चुकी थी. थोड़ी देर के लिए इशी भी बहक चुकी थी पर समय रहते वह संभल गई.

आर्यन को अपनी गलती का एहसास होते ही वह सहम उठा था.

‘‘इशी, मुझे माफ कर दो, मैं अपना होश खो बैठा था.’’

‘‘आर्यन, आज तुम ने मेरे विश्वास को धोखा दिया है,’’ इशी ने संभलते हुए गुस्से में कहा.

‘‘इशी, आई एम सौरी. फ्यूचर में अब ऐसी गलती नहीं करूंगा. पता नहीं यह सब कैसे हो गया. हम दोनों को अपने पेरैंट्स के सपने को साकार करना है,’’ आर्यन विनती करते हुए बोला.

इशी आर्यन की बातों को अनसुना कर स्कूटी स्टार्ट कर चुकी थी. मन में कुछ सोचती हुई वह धीरेधीरे आगे बढ़ती जा रही थी. आर्यन उस को जाते हुए देख रहा था. उस के चेहरे से ऐसा लग रहा था कि मानो उस की दुनिया ही उजड़ गई हो.

‘‘इशी, इतनी बड़ी सजा मुझे मत दो,’’ वह रो पड़ा था.

लेकिन यह क्या?

इशी लौट कर आ गई थी. वह स्कूटी से उतर कर उस के सामने खड़ी हो गई थी.

‘‘आर्यन, तुम्हें आगे बैठ कर ड्राइव करना पसंद हैं न… ‘‘ मैं पीछे बैठूंगी.’’

सबकुछ भूल कर आर्यन खुश हो कर सपने बुनने में लग गया था. जब वह अपनी गाड़ी में अपनी इशी को बैठा कर लौंग ड्राइव पर जाया करेगा.

Short Story : चलो खुसरो अपने घर

Short Story : सिद्धार्थ और प्रीति में आज फिर तूतू मैंमैं हो गई थी. ये इस घर की दरोदीवार के लिए कोई नई बात नहीं थी. दूसरे कमरे में सिद्धार्थ के मम्मीपापा और बड़ी बहन प्रगति चुपचाप बैठे हुए, ना चाहते हुए भी इस तमाशे का हिस्सा बने हुए थे.

सिद्धार्थ की मम्मी वीनू बोलीं, ‘‘ना जाने किस घड़ी में इस महारानी से शादी हुई थी. एक दिन भी मेरा बेटा सुकून की सांस नहीं ले सकता है.‘‘

बहन प्रगति बोली, ‘‘मम्मी तब तो सिद्धार्थ की आंखों में प्रीति की खूबसूरती और प्यार की पट्टी बंधी हुई थी. सच बात तो यह है, जो लड़की अपने मम्मीपापा की ना हुई, वह क्या किसी की होगी?‘‘

तभी भड़ाक से दरवाजा खुला और प्रीति मुंह फुलाए घर से बाहर निकल गई. क्याक्या सपने संजो कर उस ने शादी की थी, पर विवाह के पहले ही साल में रोमांस उन की शादी से काफूर हो गया था, जब प्रीति की बड़ी ननद प्रगति अपने पति का घर छोड़ कर आ गई थी.

प्रीति और सिद्धार्थ की हंसीठिठोली, छेड़छाड़ ना तो प्रगति को और ना ही वीनू को भाती थी. प्रीति क्या करे, उस के तो रिश्ते की अभी शुरुआत ही थी. पर प्रगति की खराब शादी, उन के प्रेमविवाह पर भारी पड़ती जा रही थी.
देखते ही देखते सारे प्यार के वादे शिकायतों में बदल गए थे. रहीसही कसर सिद्धार्थ की नौकरी जाने के बाद हो गई थी. सिद्धार्थ तो नौकरी जाने के कारण वैसे ही हताश हो गया था. साथ ही, घर पर बैठेबैठे वह रातदिन नकारात्मक विचारों से घिरा रहता था.

प्रीति अपने दफ्तर चली जाती थी, तो प्रगति ना जाने क्याक्या जहर सिद्धार्थ के जेहन में भरती रहती थी.
सिद्धार्थ को भी ये ही लगने लगा था कि प्रीति को लगता है कि वह उस के टुकड़े पर पल रहा है. अब वह भी प्रीति को कहता, ‘‘घर के काम को तो तुम हाथ भी नहीं लगाती हो? मेरी मम्मी और बहन तुम्हारी नौकरानी नही हैं.‘‘

अब प्रीति ने बस ये किया कि अपना खाना खुद बनाना शुरू कर दिया था. रातदिन की किचकिच से प्रीति तंग आ गई थी. उसे समझ आ गया था कि उस से एक गलत फैसला हो गया है. पर वह आज की व्यावहारिक लड़की थी, रोने के बजाय उस ने ऐसे रिश्ते से अलग होने का निर्णय ले लिया था. इसलिए प्रीति ने अपने दफ्तर के पास ही एक छोटा सा फ्लैट किराए पर ले लिया था.

जैसे ही प्रीति ने अलग घर में शिफ्ट होने की बात की, तो सिद्धार्थ के चेहरे पर आए राहत के भाव उस से छिपे ना रह सके. प्रीति थोड़ी सी आहत हो गई थी. उधर सिद्धार्थ की मम्मी को भी इस बार अपनी पसंद की लड़की लाने का मौका मिल गया था.

प्रीति के घर छोड़ने के एक हफ्ते बाद ही सिद्धार्थ की नौकरी लग गई थी. सिद्धार्थ की मम्मी ने खुश होते हुए कहा, ‘‘बेटा देखा तुम दोनों एकदूसरे के लिए बने ही नहीं थे. उस के जिंदगी से निकलते ही तुम्हारी नौकरी भी लग गई है.‘‘

प्रीति के घर छोड़ने के बाद सिद्धार्थ की जिंदगी सूनी, मगर शांत हो गई थी. उधर प्रीति की जिंदगी मे मयंक एक ठंडी हवा के झोंके की तरह ना जाने कहां से आ गया था. दोनों की मुलाकात एक कौमन फ्रैंड के यहां हुई थी. मयंक की शादी तो नहीं हुई थी, पर उस का दिल बहुत बुरी तरह टूटा हुआ था.

दोनों को धीरेधीरे एकदूजे का साथ भाने लगा था.
मयंक और प्रीति को साथ घूमतेफिरते देख कर, प्रीति की भाभी ने ही पहल की और प्रीति से कहा, ‘‘प्रीति, जब तुम्हें सिद्धार्थ के पास वापस नहीं जाना है तो उस रिश्ते को खत्म कर के ही आने वाली जिंदगी का स्वागत करो.‘‘

प्रीति सवालिया नजरों से भाभी से बोली, ‘‘भाभी, अगर इस बार भी मेरा चुनाव गलत निकला तो…?‘‘

भाभी बोली, ‘‘प्रीति, अगर तुम्हें सिद्धार्थ के पास वापस नहीं जाना है, तो क्यों ना उस रिश्ते से नजात पा लो.‘‘

प्रीति को भी भाभी की बात सही लगी. सिद्धार्थ के पास एक प्रेमी के रूप में दम तो था, पर पति के रूप में उस के पास रीढ़ की हड्डी नहीं थी. चाहे वह अकेली रहे, पर उस के पास वापस नहीं जाएगी.

मयंक प्रीति के फैसले को सुन कर खुश हो गया और बोला, ‘‘सोच तो मैं भी रहा था, पर फिर लगा कि हो सकता है, तुम उस रिश्ते को फिर से चांस देना चाहती हो, इसलिए चुप लगा गया.‘‘

सिद्धार्थ का परिवार भी लगातार उस पर तलाक लेने के लिए दबाव बना रहा था, पर सिद्धार्थ को समझ नहीं आ रहा था कि बात को मुद्दा बना कर प्रीति से डाइवोर्स ले.

उधर, सिद्धार्थ के परिवार ने पूरे जोरशोर से उस की दूसरी शादी की तैयारी शुरू कर दी थी. उन के अनुसार प्रीति अब उस की जिंदगी का बंद अध्याय है. सिद्धार्थ भी जिंदगी की नई शुरुआत करना चाहता था, इसलिए अपने दोस्त की सलाह पर वकील से मशवरा करने पहुंच गया था.

वकील कमलकांत 50 साल के अनुभवी वकील थे. सिद्धार्थ की बात सुन कर वे हंसते हुए बोले, ‘‘मसला भी क्या है… मसला तो कुछ खास नहीं है बरखुरदार. वैसे भी बिना किसी ठोस वजह के हमारे देश में तलाक नहीं होते हैं.‘‘

सिद्धार्थ बोला, ‘‘वकील साहब, कोई तो हल होगा.‘‘

वकील साहब बोले, ‘‘आपसी सहमति से तलाक हो सकता है या फिर कोई ऐसे सुबूत जुटाने पड़ेंगे, जो तुम्हारी पत्नी के खिलाफ इस्तेमाल कर सके.‘‘

सिद्धार्थ ये सब सोच ही रहा था कि प्रीति के वकील का तलाक का नोटिस आ गया. सिद्धार्थ ने चैन की सांस ली.

भले ही प्रीति उस की जिंदगी का हिस्सा नहीं थी, पर फिर भी वह कोई ऐसी बात नहीं करना चाहता था, जिस से प्रीति के आत्मसम्मान को ठेस लगे.

सिद्धार्थ के परिवार ने लड़की देखनी भी शुरू कर दी थी. उधर प्रीति ने भी नए घर के सपने सजाने शुरू कर दिए थे. दोनों ही पक्ष के वकीलों ने पूरी तसल्ली दी थी कि पहली ही तारीख में मामला हल हो जाएगा.

सिद्धार्थ ने अपने वकील को इस बात के लिए अच्छीखासी रकम दी थी. उधर प्रीति के वकील ने भी अपनी जेब गरम कर रखी थी.

पहली तारीख आई, परंतु जज नहीं बैठा और वह तारीख ऐसे ही चली गई. अब दूसरी तारीख पूरे 2 माह बाद की पड़ी थी. प्रीति को लगा था कि पहली तारीख पर जब कुछ हुआ ही नहीं, तो वकील को दोबारा फीस नहीं देनी पड़ेगी, परंतु वकील ने खींसे निपोरते हुए कहा, ‘‘मैडम, अपना बड़ा केस छोड़ कर, आप की समस्या को देखते हुए आप को डेट दिया हूं.‘‘

प्रीति ने फिर से 10,000 रुपए दिए. हालांकि उसे इस बार पैसा देना बहुत खल रहा था.

प्रीति और सिद्धार्थ पिछले 4 घंटे से प्रतीक्षा कर रहे थे. 4 घंटे बाद उन का नंबर आया, मगर जज ने फैसला नहीं सुनाया और आगे की तारीख दे दी थी.

जज ने अब 4 महीने बाद की नई तारीख दे दी थी. आज प्रीति और सिद्धार्थ दोनों ही बहुत हताश हो गए थे.

जब सिद्धार्थ घर पहुंचा, तो उस की मम्मी बोलीं, ‘‘अरे, कुछ लेदे कर एक महीने बाद की तारीख ले लो… आज ही तो तुम्हारी शादी की तारीख निकलवा कर आई हूं पंडितजी से.‘‘

उधर मयंक आतुर हो कर बोला, ‘‘प्रीति, घर वाले रातदिन शादी के लिए दबाव बना रहे हैं. अब कब तक बहाने बनाता रहूं?‘‘

उधर सिद्धार्थ ने इधरउधर से जज से जानपहचान निकलवानी शुरू कर दी थी. इस चक्कर में दलालों की जेब भी गरम करनी पड़ रही थी.

उधर मयंक और प्रीति भी दौड़धूप कर रहे थे. दोनों ही पक्ष जल्द से जल्द इस रिश्ते से छुटकारा चाहते थे, पर कानून के मसले भी अजीब थे.

4 माह में चक्कर काटकाट कर प्रीति और सिद्धार्थ दोनों के होश फाख्ता हो गए थे.

प्रीति तो एक दिन बोल भी उठी, ‘‘अगर मुझे पता होता कि आपसी सहमति से तलाक लेने में भी इतने झंझट हैं, तो मैं कभी ऐसा कदम नहीं उठाती.‘‘

मयंक प्रीति की बात सुन कर गुस्से में बोला, ‘‘मतलब, मैं ही बेवकूफ हूं.‘‘

सिद्धार्थ की मम्मी ने किसी तरह से शादी की तारीख आगे बढ़वा दी थी और उधर मयंक ने भी अपने परिवार से बस 4 महीने का समय मांगा था.

आज दोनों ही पक्ष को अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी थी. दोनों वकील की जिरह सुनने के पश्चात जज महोदय बोले, ‘‘अगर ऐसी छोटीछोटी बातों पर विवाह टूटने लगे, तो वैवाहिक संस्था से लोगों का विश्वास ही उठ जाएगा.‘‘

फैसला आ गया था. दोनों को एकसाथ 6 माह तक एकसाथ रहने की सलाह दी गई थी. अगर 6 माह बाद भी विचार नहीं मिलते, तो फिर इस पर विचार किया जाएगा.

जज महोदय बोले, ‘‘अब आप लोग अपने घर जा कर दोबारा से नई शुरुआत करें.‘‘

प्रीति और सिद्धार्थ दोनों ही सोच रहे थे कि वो जिंदगी में इतना आगे बढ़ चुके हैं कि अब कौन से घर जाएं?
वह घर, जो कानून की बैसाखियों के सहारे लड़खड़ा रहा है या वह घर, जो अब इस फैसले के पश्चात बसने से पहले ही उजड़ गया था.

दूर कहीं से आवाज आ रही थी, ‘‘चलो खुसरो घर अपने.‘‘

दोनों ही जन उस दोराहे पर खड़े थे, जहां से उन्हें आगे जाने की राह ही नहीं सूझ रही थी.

Stories : नई चादर – कोयले को जब मिला कंचन

Stories : शरबती जब करमू के साथ ब्याह कर आई तो देखने वालों के मुंह से निकल पड़ा था, ‘अरे, यह तो कोयले को कंचन मिल गया.’

वैसे, शरबती कोई ज्यादा खूबसूरत नहीं थी, थोड़ी ठीकठाक सी कदकाठी और खिलता सा रंग. बस, इतनी सी थी उस की खूबसूरती की जमापूंजी, मगर करमू जैसे मरियल से अधेड़ के सामने तो वह सचमुच अप्सरा ही दिखती थी.

आगे चल कर सब ने शरबती की सीरत भी देखी और उस की सीरत सूरत से भी चार कदम आगे निकली. अपनी मेहनतमजदूरी से उस ने गृहस्थी ऐसी चमकाई कि इलाके के लोग अपनीअपनी बीवियों के सामने उस की मिसाल पेश करने लगे.

करमू की बिरादरी के कई नौजवान इस कोशिश में थे कि करमू जैसे लंगूर के पहलू से निकल कर शरबती उन के पहलू में आ जाए. दूसरी बिरादरियों में भी ऐसे दीवानों की कमी न थी. वे शरबती से शादी तो नहीं कर सकते थे, अलबत्ता उसे रखैल बनाने के लिए हजारों रुपए लुटाने को तैयार थे.

धीरेधीरे समय गुजरता रहा और शरबती एक बच्चे की मां बन गई. लेकिन उस की देह की बनावट और कसावट पर बच्चा जनने का रत्तीभर भी फर्क नहीं दिखा. गांव के मनचलों में अभी भी उसे हासिल करने की पहले जैसे ही चाहत थी.

तभी जैसे बिल्ली के भाग्य से छींका टूट पड़ा. करमू एक दिन काम की तलाश में शहर गया और सड़क पार करते हुए एक बस की चपेट में आ गया. बस के भारीभरकम पहियों ने उस की कमजोर काया को चपाती की तरह बेल कर रख दिया था.

करमू के क्रियाकर्म के दौरान गांव के सारे मनचलों में शरबती की हमदर्दी हासिल करने की होड़ लगी रही. वह चाहती तो पति की तेरहवीं को यादगार बना सकती थी. गांव के सभी साहूकारों ने शरबती की जवानी की जमानत पर थैलियों के मुंह खोल रखे थे, मगर उस ने वफादारी कायम रखना ही पति के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि समझते हुए सबकुछ बहुत किफायत से निबटा दिया.

शरबती की पहाड़ सी विधवा जिंदगी को देखते हुए गांव के बुजुर्गों ने किसी का हाथ थाम लेने की सलाह दी, मगर उस ने किसी की भी बात पर कान न देते हुए कहा, ‘‘मेरा मर्द चला गया तो क्या, वह बेटे का सहारा तो दे ही गया है. बेटे को पालनेपोसने के बहाने ही जिंदगी कट जाएगी.’’

वक्त का परिंदा फिर अपनी रफ्तार से उड़ चला. शरबती का बेटा गबरू अब गांव के प्राइमरी स्कूल में पढ़ने जाने लगा था और शरबती मनचलों से खुद को बचाते हुए उस के बेहतर भविष्य के लिए मेहनतमजदूरी करने में जुटी थी.

उन्हीं दिनों उस इलाके में परिवार नियोजन के लिए नसबंदी कैंप लगा. टारगेट पूरा न हो सकने के चलते जिला प्रशासन ने आपरेशन कराने वाले को एक एकड़ खेतीबारी लायक जमीन देने की पेशकश की.

एक एकड़ जमीन मिलने की बात शरबती के कानों में भी पड़ी. उसे गबरू का भविष्य संवारने का यह अच्छा मौका दिखा. ज्यादा पूछताछ करती तो किस से करती. जिस से भी जरा सा बोल देती वही गले पड़ने लगता. जो बोलते देखता वह बदनाम करने की धमकी देता, इसलिए निश्चित दिन वह कैंप में ही जा पहुंची.

शरबती का भोलापन देख कर कैंप के अफसर हंसे. कैंप इंचार्ज ने कहा, ‘‘एक विधवा से देश की आबादी बढ़ने का खतरा कैसे हो सकता है…’’

कैंप इंचार्ज का टका सा जवाब सुन कर गबरू के भविष्य को ले कर देखे गए शरबती के सारे सपने बिखर गए. बाहर जाने के लिए उस के पैर नहीं उठे तो वह सिर पकड़ कर वहीं बैठ गई.

तभी एक अधेड़ कैंप इंचार्ज के पास आ कर बोला, ‘‘सर, आप के लोग मेरा आपरेशन नहीं कर रहे हैं.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘कहते हैं कि मैं अपात्र हूं.’’

‘‘क्या नाम है तुम्हारा? किस गांव में रहते हो?’’

‘‘सर, मेरा नाम केदार है. मैं टमका खेड़ा गांव में रहता हूं.’’

‘‘कैंप इंचार्ज ने टैलीफोन पर एक नंबर मिलाया और उस अधेड़ के बारे में पूछताछ करने लगा, फिर उस ने केदार से पूछा, ‘‘क्या यह सच है कि तुम्हारी बीवी पिछले महीने मर चुकी है?’’

‘‘हां, सर.’’

‘‘फिर तुम्हें आपरेशन की क्या जरूरत है. बेवकूफ समझते हो हम को. चलो भागो.’’

केदार सिर झुका कर वहां से चल पड़ा. शरबती भी उस के पीछेपीछे बाहर निकल आई.

उस के करीब जा कर शरबती ने धीरे से पूछा, ‘‘कितने बच्चे हैं तुम्हारे?’’

‘‘एक लड़का है. सोचा था, एक एकड़ खेत मिल गया तो उस की जिंदगी ठीकठाक गुजर जाएगी.’’

‘‘मेरा भी एक लड़का है. मुझे भी मना कर दिया गया… ऐसा करो, तुम एक नई चादर ले आओ.’’

केदार ने एक नजर उसे देखा, फिर वहीं ठहरने को कह कर वह कसबे के बाजार चला गया और वहां से एक नई चादर, थोड़ा सा सिंदूर, हरी चूडि़यां व बिछिया वगैरह ले आया.

थोड़ी देर बाद वे दोनों कैंप इंचार्ज के पास खड़े थे. केदार ने कहा, ‘‘हम लोग भी आपरेशन कराना चाहते हैं साहब.’’

अफसर ने दोनों पर एक गहरी नजर डालते हुए कहा, ‘‘मेरा खयाल है कि अभी कुछ घंटे पहले मैं ने तुम्हें कुछ समझाया था.’’

‘‘साहब, अब केदार ने मुझ पर नई चादर डाल दी है,’’ शरबती ने शरमाते हुए कहा.

‘‘नई चादर…?’’ कैंप इंचार्ज ने न समझने वाले अंदाज में पास में ही बैठी एक जनप्रतिनिधि दीपा की ओर देखा.

‘‘इस इलाके में किसी विधवा या छोड़ी गई औरत के साथ शादी करने

के लिए उस पर नई चादर डाली जाती है. कहींकहीं इसे धरौना करना या घर बिठाना भी कहा जाता है,’’ उस जनप्रतिनिधि दीपा ने बताया.

‘‘ओह…’’ कैंप इंचार्ज ने घंटी बजा कर चपरासी को बुलाया और कहा, ‘‘इस आदमी को ले जाओ. अब यह अपात्र नहीं है. इस की नसबंदी करवा दें… हां, तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘शरबती.’’

‘‘तुम कल फिर यहां आना. कल दूरबीन विधि से तुम्हारा आपरेशन हो जाएगा.

‘‘लेकिन साहब, मुझे भी एक एकड़ जमीन मिलेगी न?’’

‘‘हां… हां, जरूर मिलेगी. हम तुम्हारे लिए तीसरी चादर ओढ़ने की गुंजाइश कतई नहीं छोड़ेंगे.’’

शरबती नमस्ते कह कर खुश होते हुए कैंप से बाहर निकल गई तो उस जनप्रतिनिधि ने कहा, ‘‘साहब, आप ने एक मामूली औरत के लिए कायदा ही बदल दिया.’’

‘‘दीपाजी, यह सवाल तो कायदेकानून का नहीं, आबादी रोकने का है. ऐसी औरतें नई चादरें ओढ़ओढ़ कर हमारी सारी मेहनत पर पानी फेर देंगी. मैं आज ही ऐसी औरतों को तलाशने का काम शुरू कराता हूं,’’ उन्होंने फौरन मातहतों को फोन पर निर्देश देने शुरू कर दिए.

दूसरे दिन शरबती कैंप में पहुंची तो वहां मौजूद कई दूसरी औरतों के साथ उस का भी दूरबीन विधि से नसबंदी आपरेशन हो गया. कैंप की एंबुलैंस पर सवार होते समय उसे केदार मिला और बोला, ‘‘शरबती, मेरे घर चलो. तुम्हें कुछ दिन देखभाल की जरूरत होगी.’’

‘‘मेरी देखभाल के लिए गबरू है न.’’

‘‘मेरा भी तो फर्ज बनता है. अब तो हम लिखित में मियांबीवी हैं.’’

‘‘लिखी हुई बातें तो दफ्तरों में पड़ी रहती हैं.’’

‘‘तुम्हारा अगर यही रवैया रहा तो तुम एक बीघा जमीन भी नहीं पाओगी.’’

‘‘नुकसान तुम्हारा भी बराबर होगा.’’

‘‘मैं तुम्हें ऐसे ही छोड़ने वाला नहीं.’’

‘‘छोड़ने की बात तो पकड़ लेने के बाद की जाती है.’’

शरबती का जवाब सुन कर केदार दांत पीस कर रह गया.

कुछ साल बाद गबरू प्राइमरी जमात पास कर के कसबे में पढ़ने जाने लगा. एक दिन उस के साथ उस का सहपाठी परमू उस के घर आया.

परमू के मैलेकुचैले कपड़े और उलझे रूखे बाल देख कर शरबती ने पूछा, ‘‘तुम्हारी मां क्या करती रहती

है परमू?’’

‘‘मेरी मां नहीं है,’’ परमू ने मायूसी से बताया.

‘‘तभी तो मैं कहूं… खैर, अब तो तुम खुद बड़े हो चुके हो… नहाना, कपड़े धोना कर सकते हो.’’

परमू टुकुरटुकुर शरबती की ओर देखता रहा. जवाब गबरू ने दिया, ‘‘मां, घर का सारा काम परमू को ही करना होता है. इस के बापू शराब भी पीते हैं.’’

‘‘अच्छा शराब भी पीते हैं. क्या नाम है तुम्हारे बापू का?’’

‘‘केदार.’’

‘‘कहां रहते हो तुम?’’

‘‘टमका खेड़ा.’’

शरबती के कलेजे पर घूंसा सा लगा. उस ने गबरू के साथ परमू को भी नहलाया, कपड़े धोए, प्यार से खाना खिलाया और घर जाते समय 2 लोगों का खाना बांधते हुए कहा, ‘‘परमू बेटा, आतेजाते रहा करो गबरू के साथ.’’

‘‘हां मां, मैं भी यही कहता हूं. मेरे पास बापू नहीं हैं, तो मैं जाता हूं कि नहीं इस के घर.’’

‘‘अच्छा, इस के बापू तुम्हें अच्छे लगते हैं?’’

‘‘जब शराब नहीं पीते तब… मुझे प्यार भी खूब करते हैं.’’

‘‘अगली बार उन से मेरा नाम ले कर शराब छोड़ने को कहना.’’

इसी के साथ ही परमू और गबरू के हाथों दोनों घरों के बीच पुल तैयार होने लगा. पहले खानेपीने की चीजें आईंगईं, फिर कपड़े और रोजमर्रा की दूसरी चीजें भी आनेजाने लगीं.

फिर एक दिन केदार खुद शरबती के घर जा पहुंचा.

‘‘तुम… तुम यहां कैसे?’’ शरबती उसे अपने घर आया देख हक्कीबक्की रह गई.

‘‘मैं तुम्हें यह बताने आया हूं कि मैं ने तुम्हारा संदेश मिलने से अब तक शराब छुई भी नहीं है.’’

‘‘तो इस से तो परमू का भविष्य संवरेगा.’’

‘‘मैं अपना भविष्य संवारने आया हूं… मैं ने तुम्हें भुलाने के लिए ही शराब पीनी शुरू की थी. तुम्हें पाने के लिए ही शराब छोड़ी है शरबती,’’ कह कर केदार ने उस का हाथ पकड़ लिया.

‘‘अरे… अरे, क्या करते हो. बेटा गबरू आ जाएगा.’’

‘‘वह शाम से पहले नहीं आएगा. आज मैं तुम्हारा जवाब ले कर ही जाऊंगा शरबती.’’

‘‘बच्चे बड़े हो चुके हैं… समझाना मुश्किल हो जाएगा उन्हें.’’

‘‘बच्चे समझदार भी हैं. मैं उन्हें पूरी बात बता चुका हूं.’’

‘‘तुम बहुत चालाक हो. कमजोर रग पकड़ते हो.’’

‘‘मैं ने पहले ही कह दिया था कि मैं तुम्हें छोड़ूंगा नहीं,’’ केदार ने उस की आंखों में झांकते हुए कहा. शरबती की आंखें खुद ब खुद बंद हो गईं.

उस दिन के बाद केदार अकसर परमू को लेने के बहाने शरबती के घर आ जाता. गबरू की जिद पर वह परमू के घर भी आनेजाने लगी. जब दोनों रात में भी एकदूसरे के घर में रुकने लगे तो दोनों गांवों के लोग जान गए कि केदार ने शरबती पर नई चादर डाल दी है.

परमू, गबरू और केदार बहुत खुश थे. खुश तो शरबती भी कम नहीं थी, मगर उसे कभीकभी बहुत अचंभा होता था कि वह अपने पहले पति को भूल कर केदार की पकड़ में आ कैसे गई?

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