Serial Story: महकी रात की रानी (भाग-2)

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‘‘अरे, किस खयाल में खो गई? मैं परेशान नहीं करना चाहता था तुम्हें… चलो किसी और टौपिक पर बात करते हैं बाहर चल कर,’’ कह कर सुजीत कुरसी से उठ गया और अमोली का हाथ पकड़ कर उसे भी उठा दिया. दोनों मुसकराते हुए रैस्टोरैंट से बाहर निकल आए.

उस रात अमोली को बहुत देर तक नींद नहीं आई. सोचती रही कि सुजीत सच ही तो कह रहा है, उसे भी तो कोई स्वप्निल स्पर्श गुदगुदाता रहा है, एक पिपासा दिनरात महसूस करती है वह. सुजीत के दिल पर क्या बीतती होगी? वह तो विवाहित है. अपनी पत्नी का साथ देते हुए भी एक अकेलापन… सचमुच रातें तो उस की छटपटाहट का पर्याय ही बन गई होंगी. उफ, कैसी विषम परिस्थिति है.

सुजीत और अमोली एकदूसरे के साथ अब और भी खुलने लगे थे. अमोली को सुजीत की आंखों में एक चाहत सी दिखाई देने लगी थी. पहले वह कौफी पीने के बाद अमोली को अपनी कार से मैट्रो स्टेशन तक ही छोड़ता था, पर अब अकसर घर तक छोड़ देने का हठ ले कर बैठ जाता. अमोली के बैठते ही वह कार में रोमांटिक गाने लगा कर मतवाला सा हो कर ड्राइविंग करने लगता. अमोली उसे देख मुसकराती रहती. घर आ कर उस की सुनहरी कल्पनाओं में अब सुजीत चला आता था.

उस दिन लंच में अमोली के पास सुजीत आया तो उस का चेहरा गुमसुम सा था. अमोली ने उसे अपने साथ खाना खाने को कहा तो बोला, ‘‘मन नहीं कर रहा आज कुछ खानेपीने को… पता है, एक वीक बिताना पड़ेगा तुम्हारे बिना मु झे… मुंबई में ट्रेनिंग के लिए जाना है परसों. घर पर तो अभी साली साहिबा की मेहरबानी से सब ठीक चल रहा है… लेकिन पता नहीं कैसे रह पाऊंगा बिना तुम्हारे?’’

‘‘इतना निर्भर हो जाओगे मु झ पर तो कैसे चलेगा? अच्छा है न, इस बहाने थोड़ा मु झ से दूर होना सीख जाओगे,’’ अमोली मेज पर सिर टिका कर

स्नेह से सुजीत की ओर देखते हुए बोली.

अमोली की हथेली अपनी दोनों हथेलियों के बीच छिपाते हुए वह बोला, ‘‘यों छिपी हो तुम मेरे मन में… दूरी नहीं, मैं तो बस अब सिर्फ करीबी के सपने देखता हूं… यह हाथ मेरा सहारा है और यह चेहरा… ये होंठ मेरा सपना.’’

सुजीत के प्रेम में भीगे शब्दों ने अमोली का मन भिगो दिया.

शाम को कौफी पीते हुए भी सुजीत 1 सप्ताह अमोली से दूर रहने पर उदास था. मैट्रो स्टेशन पर अमोली को छोड़ते हुए तो जैसे उस का कलेजा ही छलनी हुआ जा रहा था.

सुजीत के जाने के बाद अमोली भी उदास हो गई. सुजीत, अमोली और यह नया रिश्ता… पूरा सप्ताह अमोली की सोच बस इसी के इर्दगिर्द घूमती रही.

जब 1 सप्ताह बीत गया और सुजीत नहीं लौटा तो अमोली चिंतित हो गई. उस ने कई बार कौल किया, पर फोन नौट रिचेबल था. एक बार मिला भी तो ‘हैलो’ के बाद सुजीत की आवाज ही नहीं आई.

‘क्यों न एक बार सुजीत के घर चली जाऊं? उस की पत्नी से पता लग जाएगी वजह… और वहां सुजीत न सही उस की वह खुशबू तो रचीबसी होगी जो रोज मु झे अपने मोहमाश में जकड़े रहती है,’ सोचते हुए अमोली ने कंप्यूटर खोल सुजीत के घर का पता नोट कर लिया.

अगले दिन रविवार था. अमोली ने बुके खरीदा और कैब बुक कर सुजीत के घर पहुंच गई.

घर ढूंढ़ने में उसे कोई विशेष परेशानी नहीं हुई. बस मन में एक  िझ झक अवश्य थी कि सुजीत की पत्नी और साली को वह अपना परिचय कैसे देगी.

डोरबैल बजाते ही दरवाजा खुला तो उस के आश्चर्य का ठिकाना न रहा. कालेज में उस की सहेली रही नमिता सामने खड़ी थी. ‘तो नमिता की बहन है सुजीत की पत्नी वाह,’ सोचते हुए अमोली की सारी  िझ झक दूर हो गई. अमोली को देख कर नमिता का मुंह भी प्रसन्नता से खुला का खुला रह गया.

‘‘अरे, मु झे क्या पता था कि सुजीत तेरे जीजू हैं. उन के साथ ही काम करती हूं मैं. उसी औफिस की लाइब्रेरी में लाइब्रेरियन हूं,’’ सोफे पर बैठते हुए अमोली बोली.

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‘‘हा… हा… हा… अच्छा उन से काम है तु झे. पर जीजू नहीं यार, सुजीत मेरे मियांजी हैं… मुंबई में हैं वे इन दिनों… कल आ रहे हैं वापस. पर तूने जीजू कैसे बना दिया उन्हें मेरा?’’

‘‘वह क्या है न… बात यह है कि तू तो लगती ही नहीं शादीशुदा…’’ शब्द अमोली के गले में अटके जा रहे थे.

‘‘थैंक्स डियर,’’ नमिता खिल उठी.

‘‘इन शौर्ट्स में देख कर कौन कहेगा कि तू एक नन्हेमुन्ने की मौम है,’’ अमोली संभलते हुए बोली.

‘‘अच्छा तो सुजीत ने तु झे मिंटू के बारे में भी बता दिया… बड़ा नौटी होता जा रहा है मिंटू… सुजीत के पीछे से अकेले उसे संभालना बहुत मुश्किल हो रहा है… अभी तो सो रहा है.’’

कुछ देर बातें करने के बाद, ‘‘मैं चाय बना कर लाती हूं. आज मेड छुट्टी पर है,’’ कह कर नमिता किचन में चली गई.

अमोली का दिमाग जैसे कुछ भी सोचने की स्थिति में नहीं था.

‘नमिता… सुजीत की पत्नी… बिलकुल दुरुस्त है यह तो वह बीमारी… क्यों किया सुजीत ने ऐसा?’ वह अपने को लुटा सा महसूस कर रही थी.

नमिता से मिल कर अमोली को पुराना समय याद आ रहा था. कालेज में साथ पढ़ने वाली नमिता उस की पक्की सहेली तो नहीं थी, पर दोनों में मित्रता अवश्य थी.

‘‘क्या सोच रही है? चल आ चाय पीते हुए फिर एक बार कालेज वाली सहेलियां बन जाती हैं,’’ नमिता की खनकती आवाज सुन अमोली को ध्यान आया कि वह नमिता के ड्राइंगरूम में बैठी है.

‘‘सुजीतजी पिछले काफी समय से छुट्टी पर थे न?’’ अमोली ने अपने को संयत कर पूछा.

‘‘हां… औफिस में तो मेरी बीमारी के नाम से ली थी छुट्टियां, पर तु झ से क्या छिपाना. दरअसल, एक नई जौब औफर हुई थी उन्हें. कुछ दिन काम कर के देखना चाह रहे थे. पसंद नहीं आया वहां का माहौल, इसलिए दोबारा पुरानी जगह चले गए.’’

‘अच्छा हुआ न वरना हम कैसे मिलते,’’ अपने मुंह पर नकली मुसकान चिपकाते हुए अमोली बोली.

चाय पीते हुए नमिता से कुछ देर तक बातें करने के बाद अमोली वापस चली

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आई. उस का बेचैन मन उसे कुछ भी सोचने नहीं दे रहा था. सुजीत ने उस से इतना बड़ा छल किया है, इस बात पर उसे अब भी विश्वास नहीं हो रहा था.

अगले दिन सुजीत वापस आ गया. अपने आने का समाचार उस ने अमोली को व्हाट्सऐप पर दिया, किंतु अमोली ने कोई जवाब नहीं दिया.

आगे पढ़ें- सुजीत की बात सुन अमोली चुपचाप बैठी रही, पर…

Serial Story: महकी रात की रानी (भाग-1)

उसेलाइब्रेरी में आते देख अमोली ने सोचा कि औफिस में किसी नए औफिसर ने जौइन किया है. आसमानी शर्ट के साथ गहरे नीले रंग की टाई लगाए गौरवर्णीय वह युवक अमोली को बहुत आकर्षक लगा. लाइब्रेरी में घुसते ही वह पत्रिकाओं के रैक के पास पहुंचा और एक पत्रिका निकाल उलटपुलट कर देखने लगा. कुछ देर बाद वह पुस्तकों की ओर बढ़ गया. अमोली अपनी सीट पर बैठी कंप्यूटर में नई पुस्तकों की ऐंट्री कर रही थी. कुछ देर बाद उस युवक ने ग्राफिक डिजाइनिंग पर एक पुस्तक ला कर अमोली के सामने मेज पर रख दी.

‘‘मिल ही गई… इस बुक को मेरे नाम पर इशू कर दीजिए,’’ कहते हुए वह अमोली के सामने वाली कुरसी पर बैठ गया.

‘‘बुक इशू करवाने के लिए आप की डिटेल ऐंटर करनी पड़ेगी… अपना नाम, डिपार्टमैंट, पता वगैरह बताएं प्लीज,’’ अमोली उस की ओर देखते हुए बोली.

‘‘इस की जरूरत नहीं, औलरैडी ऐंटर्ड है सबकुछ… पिछले कई दिनों से छुट्टी पर था… वाइफ काफी बीमार हैं… मैं सुजीत कुमार… आप शायद इस औफिस में नई हैं… आप से पहले तो एक उम्रदराज मैडम बैठती थीं यहां पर…’’

अमोली ने सुजीत का नाम सर्च किया. एक व्यक्ति ही था औफिस में इस नाम का. फोटो भी था वहां. अमोली ने बुक इशू कर दी.

कुछ देर मुसकरा कर अमोली को देखने के बाद बोला, ‘‘अच्छा लगा आप से मिल कर… मिलते रहेंगे और फिर तेजी से बाहर निकल गया.’’

डिजाइनिंग की एक मल्टीनैशनल फर्म में वहां काम करने वाले लोगों के लिए बनी हुई थी वह लाइब्रेरी. अमोली वहां 2 माह पहले ही आई थी. सारा दिन काम में व्यस्त रहने के कारण उस की किसी से मित्रता नहीं हो पाई थी. बुक इशू करते समय या कोई जानकारी देते हुए जब कुछ देर के लिए किसी से उस की बातचीत हो जाती तब उसे बहुत अच्छा लगता था.

सुजीत अकसर वहां आने लगा था. छुट्टियों से लौटने पर उसे नया काम दे दिया गया था जो फोटोशौप से संबंधित था. इस विषय में उसे अधिक जानकारी नहीं थी. अत: वह इंटरनैट और पुस्तकों की मदद ले रहा था. इसी सिलसिले में प्राय: लाइब्रेरी जाना हो जाता था. वहां जा कर वह कुछ देर अमोली के पास जरूर बैठता था.

बातोंबातों में अमोली को पता लगा कि सुजीत की पत्नी को एक ऐसी बीमारी है जिस में शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता शरीर की कार्यप्रणालियों पर ही आक्रमण करना शुरू कर देती है. इस बीमारी के कारण उस का अब चलनाफिरना भी कम हो गया था और वह अपना अधिकतर समय बिस्तर पर ही बिताती थी. सुजीत पिछले 3 महीनों से पत्नी के उपचार के लिए अवकाश पर था. उन का 8 महीने का 1 बेटा भी है, जिस की देखभाल के लिए इन दिनों सुजीत की साली आई हुई थी.

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सुजीत से बातें करते हुए अमोली को बहुत संतोष मिलता था. एक तो सुजीत जैसे व्यक्ति का साथ, उस पर हालात से परेशान इंसान के मन को कुछ देर तक अपनी बातों से सुकून पहुंचाना. अमोली सुजीत के साथ समय बिताते हुए सुखद एहसास से भर जाती थी. धीरेधीरे वे एकदूसरे के अच्छे मित्र बनते गए और शाम अकसर साथ कौफी पीते हुए किसी कैफे में बिताने लगे.

सुजीत के साथ कुछ समय बिताने और उस का दर्द सा झा करने के बाद अमोली शाम को घर पहुंच कर कुछ देर आराम करती और फिर काम में मां की मदद करती. थोड़ी देर बाद ही पिता दफ्तर से लौट आते और चाय पीतेपीते ही अपना लैपटौप खोल कर बैठ जाते. काफी समय से वे अमोली के लिए एक वर की तलाश कर रहे थे. अमोली को जब वे अपनी पसंद के किसी लड़के का प्रोफाइल दिखाते तो अनजाने में वह उस की तुलना सुजीत से कर बैठती.

अगले दिन जब सुजीत के साथ इस विषय में

वह चर्चा करती तो सुजीत प्रत्येक

लड़के में कोई न कोई कमी निकाल देता. अमोली मन ही मन सबकुछ सम झ रही थी. उस से दूर हो कर सुजीत एक अच्छी दोस्त को खोना नहीं चाहता था.

सुजीत अमोली के साथ अब मन की बातें सा झा करने लगा था. एक दिन पत्नी की बीमारी की चर्चा करते हुए वह बोला, ‘‘पता है अमोली, कहने को तो यह बीमारी उसे कुछ महीनों से अपने लपेटे में लिए है, पर मैं एक पत्नी का सुख विवाह के बाद कुछ दिनों तक ही भोग पाया था. शादी के बाद जल्द ही प्रैगनैंट हो गई थी वह. प्रैगनैंसी में उस ने कई तरह के कौंप्लिकेशंस का सामना किया, फिर बच्चे की देखभाल में दोनों की रतजगाई… और अब यह असाध्य रोग. कभीकभी लगता है टूट जाऊंगा मैं.’’

अमोली सुन कर बेबस हो जाती थी. वह जानती थी कि सुजीत सचमुच समय से लड़ रहा है. ‘‘तुम्हें अपने लाइफपार्टनर में कौन सी खूबियां चाहिए?’’ एक दिन रैस्टोरैंट में बैठे हुए सुजीत अमोली से पूछ बैठा.

‘‘हैंडसम हो या न हो, पर केयरिंग हो. बुरे वक्त में मेरा साथ दे, वैसे ही जैसे आप दे रहे हैं,’’ अमोली मुसकरा दी.

‘‘मैं हैंडसम नहीं हूं क्या?’’ बच्चों की तरह मासूम सा मुंह बना कर सुजीत बोला.

‘‘अरे नहीं बाबा… आप अपनी मैडम का कितना खयाल रखते हो, इसलिए कहा मैं ने ऐसा… वैसे देखने में तो जनाब हीरो लगते हैं किसी फिल्म के,’’ कहते हुए अमोली ने सुजीत का गाल पकड़ कर खींच लिया.

अमोली का हाथ अपने गाल से हटाते हुए सुजीत गंभीर हो कर बोला, ‘‘प्लीज अमोली, ऐसा न करो… अपने से दूर रखो मु झे, नहीं तो मैं भूल जाऊंगा कि हम सिर्फ दोस्त हैं.’’

‘‘भूल जाओगे? तो क्या सम झोगे मु झे?’’

अमोली उस का आशय नहीं सम झ पाई थी.

‘‘कैसे सम झाऊं तुम्हें? यह तो सम झती हो न कि फिजिकल नीड नाम की भी कोई चीज होती है. मैं भी तो एक इंसान हूं न. भीतर से एक मीठी सी  झन झनाहट महसूस होने लगी थी तुम्हारे टच से… सच बताओ अमोली, तुम्हें भी तो किसी की कमी इस उम्र में खलने लगी होगी… अकेले में किसी का साथ पाना चाहती हो न तुम भी?’’ सुजीत ठंडी आह भरते हुए बोला.

अमोली बहुत देर तक सिर  झुकाए बैठी रही.

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Serial Story: महकी रात की रानी (भाग-3)

पिछला भाग पढ़ने के लिए- महकी रात की रानी भाग: 2

लंच के समय अमोली का मन कुछ खाने को नहीं कर रहा था. वह चुपचाप अपनी सीट पर बैठी थी कि सुजीत फू्रटचाट ले कर आ गया. अमोली की टेबल पर चाट की प्लेट रख वह सामने वाली कुरसी पर बैठ गया. बोला, ‘‘मु झे पता था तुम भूखी बैठी होंगी… पहले यह चाट खाओ और फिर डांट लगाना जी भर के.’’

सुजीत की बात सुन अमोली चुपचाप बैठी रही, पर मन ही मन गुस्से से उबल रही थी. ‘‘जानता हूं, बहुत नाराज हो मु झ से… सोच रही होंगी किस धोखेबाज से पाला पड़ गया. पर मेरे  झूठ बोलने की वजह नहीं जानना चाहोगी?’’

‘‘जो भी वजह हो आप ने अच्छा नहीं किया,’’ अमोली के अंदर दबा क्रोध बाहर आ गया.

‘‘मेरा कुसूर है, मानता हूं पर क्या करता मैं? मन से कभी दूर नहीं होता… तुम्हारा यलो कलर की साड़ी में दपदप करता रूप… यही कलर था न तुम्हारी साड़ी का उस फोटो में जो मैट्रीमोनियल साइट पर डाला हुआ था 2 साल पहले… उस पिक को देख कर दीवाना हो गया था मैं… कहा था मैं ने पेरैंट्स से कि पहली बार कोई लड़की पसंद आ रही है मु झे… इसी से बात आगे बढ़ाओ, मगर अपने मम्मीपापा की इकलौती बेटी नमिता का पैसा उन की आंखों को चकाचौंध किए था… बांध दिया उसे मेरे गले… फिर अचानक जब औफिस में तुम्हें देखा तो बस देखता ही रह गया… फोटो से कहीं ज्यादा सुंदर नजर आ रही थीं तुम… नहीं रोक सका खुद को… अब माफ करो या सजा दो, सब मंजूर है.’’

‘‘पर सच भी तो बोल सकते थे न तुम?’’ सुजीत के इस बार सही बात बता देने पर अमोली कुछ शांत हो गई थी. उसे याद था कि शादी.कौम पर 2 साल पहले सचमुच पीले रंग की साड़ी में तसवीर डाली थी उस की.

‘‘अगर मैं सच बोलता तो क्या इतनी क्लोज हो पातीं तुम मु झ से? तुम्हारे प्यार को बस महसूस करना चाहता था मैं. मु झे पता है कि एक दिन पराई हो जाओगी… जीवनभर के लिए बांध कर तो नहीं रख सकता हूं तुम्हें, पर सोचा कि जितना भी साथ तुम्हारा पा लूं उतना अच्छा… बीलीव मी… आई एम नौट लाइंग दिस टाइम.’’

सब सुन कर अमोली कुछ देर खामोश बैठी रही. फिर कुछ सोचती हुई बोली, ‘‘सौरी, मु झे नहीं पता था कि आप मु झे पहले से ही पसंद करते हैं, माफ कर दोगे न?

‘‘थैंक यू अमोली, पर यह सवाल तो मु झे पूछना चाहिए था… चलो अंत भला तो सब भला… अब शाम को मिलते हैं कौफी शौप में… थैंक्स अगेन,’’ और मुसकरा कर लाइब्रेरी से बाहर चला गया सुजीत.

शाम को दोनों जा कर कौफी टेबल पर बैठे तो अमोली ने बात शुरू करते हुए पूछा, ‘‘और क्या बताया नमिता ने आप को मेरे बारे में?’’

‘‘बस पुराने दिनों को याद कर रही थी… कैसा कोइन्सिडैंस है न कि तुम उस की सहेली निकलीं. कह रही थी कि तुम्हें अपने घर देखते ही वह तो खुशी से पगला सी गई थी,’’ सुजीत हंसते हुए बोला.

‘‘झूठ, सफेद  झूठ बोल रही है नमिता…’’ ‘‘अरे, क्या तुम उस के साथ नहीं पढ़ती थीं?’’ आश्चर्यचकित हो सुजीत पूछ बैठा.

‘‘यह बात नहीं है. मेरा मतलब नमिता के खुश होने से था. उस का तो मूड औफ हो गया था मु झे देख कर… पता है क्यों? मेरे पहुंचते ही अक्षय को वापस जो जाना पड़ा था.’’

‘‘किस को, कहां से जाना पड़ा था वापस?’’ माथे पर त्योरियां चढ़ाता हुआ सुजीत बोला.

‘‘अरे, कालेज में था न हमारा क्लासमेट अक्षय, नमिता का पक्का दोस्त… तुम्हारे घर आया था उस दिन… मु झ से बस हैलो कर के वापस चला गया.’’

‘‘लेकिन किसी अक्षय की बात कभी नमिता ने मु झ से नहीं की… मु झे तो आज पता लगा है.’’

‘‘पर नमिता तो उस दिन मु झ से कह रही थी कि वे दोनों अकसर मिलते रहते हैं… दोनों को साउथ इंडियन खाने का शौक है, इसलिए जिस जगह जा कर वे कालेज टाइम में खाया करते थे वहीं अकसर अब भी जाते रहते हैं…इधर कुछ दिनों से बेटे के कारण नमिता नहीं जा पा रही तो वह ही आ जाता है मिलने…दोस्ती निभाना खूब जानता है अक्षय.’’

‘‘पर नमिता न जाने क्यों छिपाती रही ये सब मु झ से… आज ये सब बातें सुन कर मेरा जी तो चाह रहा है कि अभी नमिता को फोन कर कह दूं कि जाओ उसी अक्षय के पास… क्यों रह रही हो मेरे साथ,’’ सुजीत अन्यमनस्क सा दिख रहा था.

‘‘छोड़ो न गुस्सा… लो आ गई कौफी,’’ कौफी का कप सुजीत की ओर खिसकाते हुए अमोली ने कहा.

‘‘मु झे हैरानी हो रही है कि नमिता ने मु झ से कभी अक्षय का जिक्र नहीं किया… कहती रहती है हमेशा कि बहुत प्यार करती है मु झे… पर देखो उस का यह प्यार… धोखेबाज… जरूर दाल में काला है,’’ कौफी का घूंट भरते हुए सुजीत का चेहरा उस हारे हुए खिलाड़ी सा दिख रहा था, जो खीजने से ज्यादा कुछ नहीं कर पाता.

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‘‘प्यार का मतलब यह तो नहीं कि नमिता की कोई पर्सनल लाइफ नहीं है… क्या हुआ अगर आप को नहीं बताया? होगी कोई वजह.’’

‘‘पर हसबैंडवाइफ में इतनी अंडरस्टैंडिंग तो होनी चाहिए कि सब बातें आपस में शेयर करें. तुम नहीं सम झोगी, अभी शादी नहीं हुई न तुम्हारी.’’

‘‘हां, नहीं हुई शादी. पर आप की इस बात से सहमत हूं कि पतिपत्नी में आपसी सम झ का होना बहुत जरूरी है. आप तो अक्षय के बारे में सुनते ही बेचैन हो गए और सोचो अगर मैं उस दिन नमिता को आप के और अपने रिश्ते के बारे में बता देती तो क्या होता? वह भी ऐसे ही निराश होती न?’’

सुजीत चुपचाप अमोली को सुन रहा था.

‘‘देखिए, पत्नी या पति के अपनेअपने अलग दोस्त हो सकते हैं, फिर दोस्त चाहे महिला हो या पुरुष, इस में कुछ गलत नहीं है. पर आप अगर नमिता को बिना बताए मु झ से दोस्ती रख सकते हैं तो नमिता किसी अक्षय से क्यों नहीं? आप मु झे पहले से पसंद करते थे और मेरा साथ चाहते थे तो नमिता को भी यह अधिकार होना चाहिए कि ऐसे किसी पसंद करने वाले से अपना संबंध न तोड़े और आप को इस की जानकारी भी न दे. क्या कुछ गलत कहा मैं ने?’’

‘‘पर नमिता से शादी मेरी मरजी के खिलाफ हुई थी.’’

‘‘तो इस में उस का क्या दोष? फिर यह भी तो हो सकता है कि वह भी किसी और से करना चाह रही हो शादी, पर उस के मम्मीपापा को आप पसंद थे.’’

कुछ देर तक सोचने के बाद सुजीत बोला, ‘‘शायद तुम ठीक कह रही हो… ये

बातें तो कभी मेरे दिमाग में आई ही नहीं.’’

अमोली खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘मेरा मजाक उड़ा रही हो,’’ सुजीत के चेहरे पर बेचारगी झलक रही थी.

‘‘नहीं बाबा, खुद पर हंस रही हूं… पता है, अक्षय नामक किरदार मैं ने आज ही गढ़ा है. ऐसा कोई व्यक्ति नमिता की जिंदगी में नहीं है और कभी था भी नहीं. मेरा मकसद आप को इस रिश्ते की अहमियत तक लाना था जिसे आप भूल चुके थे.’’

‘‘तुम खूबसूरत ही नहीं गजब की सम झ भी रखती हो,’’ सुजीत अमोली को देख मुसकरा दिया.

‘‘नहीं, मैं एक औरत होने के नाते औरत के मन को सम झती हूं बस. मु झ से भी जिंदगी में कोई भूल हो सकती है… मेरे दोस्त बने रहना और ऐसे वक्त पर सही राह दिखाना मु झे,’’ अमोली भी मुसकरा दी.

कौफी पी कर दोनों बाहर आए तो हमेशा की तरह सुजीत ने अमोली को मैट्रो स्टेशन तक छोड़ने के लिए अपनी कार में बैठा लिया. रास्ते में एक जगह कार रोक कर कुछ लाने बाहर चला गया. जब लौटा तो साथ में लाए पैकेट को डैशबोर्ड पर रख दिया. अखबार के कागज में डोरी में बंधे पैकेट से  झांकते सफेद फूलों को देख अमोली सम झ गई कि सुजीत सड़क के किनारे बैठी गजरेवाली से रात की रानी के फूलों का गजरा खरीद लाया है. वह जानती थी कि नमिता को बालों में गजरा लगाना बहुत पसंद है. फूलों की सुगंध कार में फैल गई.

‘अब इन रात की रानी के फूलों की तरह सुजीत और नमिता का जीवन भी प्रेम की महक से सराबोर होने वाला है,’ सोच कर अमोली मन ही मन मुसकरा उठी.

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महकी रात की रानी: अमोली को कौन सा राज पता चल गया?

हुंडई वरना के साथ जा सकते हैं टेंशन फ्री लॉन्ग ड्राइव पर

हुंडई की नई वरना की खास क्वालिटी से आपको लॉन्ग ड्राइव के दौरान किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं आएगी. हुंडई वरना के साथ आप किसी तरह के धूल, मिट्टी वाले सड़क पर आसानी से यात्रा कर सकते हैं. यह आपके कार को प्रोटेक्ट रखेगी. दरअसल, नई हुंडई वरना कार में मौजूद सस्पेंशन सोक अप बंप इसे हर तरह से बचाता है. हुंडई वरना अपनी कार की स्पीड को सड़क के अनुसार खुद कंट्रोल करके रखती है. इससे आपको यात्रा में कोई दिक्कत नहीं आएगी. इसलिए हुंडई वरना #BetterThanTheBest है.

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Review: जानें कैसी है कुशाल टंडन की वेब सीरिज ‘बेबाकी’

रेटिंग: डेढ़ स्टार

निर्माताः शोभा कपूर और एकता कपूर
निर्देषकः मुजामिल देसाई
कलाकारः कुशल टंडन,  शिवज्योति राजपूत, करण जोतवानी, प्रतीक सहजपाल,  ईशान धवन.
अवधिः तीन घंटे,  20 से 32 मिनट के आठ एपीसोड
ओटीटी प्लेटफार्मः‘‘आल्ट बालाजी’’ और ‘‘जी 5’’


प्यार, नफरत, पजेसिब नेस, सामने वाले को झुकाने के प्रयास पर कई फिल्में व सीरियल आदि बन चुके हैं. अब ऐसे ही घिसे पिटे विषय व कहानी पर निर्माता शोभा कपूर और एकता कपूर तथा निर्देशक मुजामिल देसाई  वेब सीरीज ‘‘बेबाकी’’ लेकर आए हैं. इसके पहले सीजन के आठ एपीसोड तीस अगस्त 2020 से ओटीटी प्लेटफार्म ‘‘ऑल्ट बालाजी’’ और ‘‘जी 5’’पर देखे जा सकते हैं. पर यह वेबसीरी अठारह वर्ष से बड़ी उम्र के लोेगों के लिए है.

कहानीः

यह कहानी है षिमला में ‘‘युनाइटेड इंडिया’’नामक अखबार चलाने वाले दो दोस्तों आदिल अब्दुल्ला(समीर मल्होत्रा ) और फरहाद की. जो चालिस साल पुराने दोस्त हैं और पिछले 25 वर्ष से संगठित होकर व्यापार कर रहे हैं. दोेनो परिवार एक साथ एक ही महल में रहते हैं. इनके बच्चे भी आपस में सिर्फ दोस्त नहीं है, बल्कि इनके बीच सगे भाई जैसा रिश्ता हैं. मगर फरहाद की पत्नी राशिदा(कृतिका देसाई ) को यह दोस्ती अच्छी नहीं लगती. वह बंटवारा चाहती है, उन्हे लगता है कि उनके बच्चों को आदिल के बच्चे बिगाड़ रहे हैं. आदिल अब्दुल्ला की दो पत्नियां हैं.
तो वहीं यह कहानी है आदिल अब्दुल्ला के बड़े बेटे सूफियाना अब्दुल्ला(कुशल टंडन) और एक काॅलेज के प्रोफेसर इंद्रप्रीत सहानी की चार बेटियों में से बड़ी बेटी कायनात सहानी(शिवज्योति राजपूत) की प्रेम कहानी की, जो कि ठंडी हवा का झोका नहीं, बल्कि तूफान है. सूफियाना अब अपने पिता व चाचा के ‘यूनाइटेड इंडिया’ का डिजिटल एडीशन लांच करने की तैयारी कर रहा है. पर बचपन की एक घटना से वह अब तक उबर नहीं पाया है. वह डिजिटल लांच के लिए मंत्री शेखावत के ‘गे’ होने की खबर पर काम कर सारे सबूत जटा रहा है, जिसमें फरहाद का बेटा हामिद भी उसकी मदद कर रहा है. कुछ सबूत जुटाने के बाद सूफियाना अपना मोबाइल फोन कायनात सहानी के पास भूल जाता है. इस तरह अब सबूत कायनात सहानी के पास पहुंच जाते हैं, जो कि प्रतिस्पर्धी अखबार ‘‘ताजा खबर’’की रिपोर्टर है.

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उधर अहमद जानकारी इकट्ठा कर सूफियाना के मोबाइल पर भेजता है,  जो कि कायनात को ही मिलती है. रात्रि के शराब का नशा उतरने के बाद सूफियाना अपने मोबाइल फोन की तलाश शुरू करता है. तभी उसे पता चलता है कि उसने मंत्री शेखावत को उजागर करने की जिस स्टोरी पर काम किया था, वह तो अब ‘ताजा खबर’ पर आने वाली है. तब सूफियाना ‘ताजा खबर’को ही खरीदकर उसे ‘यूनाइटेड इंडिया’का हिस्सा बना लेता है. इससे कायनात नाराज होती है. बाद में सूफियाना भी उसे नौकरी से निकाल देता है. तब कायनात ट्वीटर पर सूफियाना के खिलाफ मुहीम चला देती है. अब सूफियाना जिद पकड़कर कायनात की हर राह को कुचलने पर आमादा हो जाता है. कायनात को कहीं नौकरी नहीं मिलती. पर कायनात के इस जिद्दीपना पर सूफियाना को प्यार हो जाता है. अब वह उसे पाना चाहते हैं, मगर बिना किसी तरह का समझौता किए, बल्कि कायनात से माफी मंगवाकर. उधर कायनात भी झुकने को तैयार नही है. वह तो सूफियाना का ‘युनाईटेड इंडिया’से जुड़ने का आफर भी ठुकरा देती है.

कहानी आगे बढ़ती है. राहिल (प्रतीक सेहजपाल) व हामिद प्रोफेसर सहानी से परीक्षा के प्रश्नपत्र हासिल करने की जुगट में है. उधर सूफियान,  कायनात को अपनी कार में बैठने पर मजबूर करता है और फिर उसे उसके कुत्ते के साथ रात के अंधेरे में दूर निर्जन सड़क पर छोड़ देता है. राहिल व हामिद के चार दोस्त उस सड़क से गुजरते हुए कायनात से छेड़छाड़ करते हैं, तभी अफ्रीका से लौट रहा फरहाद का बेटा इम्तियाज (करण जोतवानी) पहुंचता है. कायनात की बातो को सच मानकर वह चारों को जेल भिजवाने के बाद कायनात को लेकर अपने घर पहुंचता है, जहां मुशायरे का आयोजन किया गया है. रास्ते में इम्तियाज उसे ‘युनाइटेड इंडिया’में चीफ रिपोर्टर की नौकरी देने का वादा भी कर देता है.

कायनात को ‘युनाइटेड इंडिया’ में नौकरी मिल जाती है. अब सूफियाना और कायनात के बीच‘हेट एंड लव’का रिश्ता है, जबकि इम्तियाज, कायनात के करीब रहने का प्रयास करता है. अगले दिन इम्तियाज के आगमन पर आयोजित पार्टी में कायनात की कड़वीं बातें सुनने के बाद सूफियान, हामिद को डांटता है. इससे राहिल व हामिद नाराज होकर अब कायनात और उसके पिता प्रोफेसर इंद्रप्रीत सहानी को अपमानित करने के प्रयास में लग जाते हैं. राहिल व हामिद की एक गलती के चलते फरहाद की पत्नी को एक मौका मिल जाता है कि अब बंटवारा हो जाए, सब कुछ तय हो जाता है, मगर दोस्ती इतनी आसानी से टूट सकती है क्या?

लेखन व निर्देशनः

घिसी पिटी, कमजोर व ‘चल मेरे भाई’ सहित कई फिल्मों मंे दोहराई जा चुकी नफरत व प्यार की इस कहानी में कुछ भी नयापन नही है. यह वेब सीरीज पूर्णरूपेण ‘‘एकता कपूर मार्का’’टीवी सीरियल से इतर नही है. इसमें भीं ग्लैमर का तड़के साथ महंगे कास्ट्यूम व ज्वेलरी की भरमार है. अन्यथा इसमें अविश्वसनीय व अतार्किक दृष्यांे की भरमार है. वेब सीरीज की शुरूआत ही मूर्खतापूर्ण दृश्य के साथ होती है. सूफियान का मोबाइल फोन गायब है, पर वह इसे खोजने की कोई जरुरत महसूस नही करता. सूफियान के मोबाइल पर हामिद द्वारा भेजे जाने वाले सारे संदेश और मोबाइल में मौजूद सबूत कायनात आराम से देख लेती है. क्या ऐसा संभव है?आम इंसान भी अपना मोबाइल लॉक रखता है, यहां तो दोनो किरदार पत्रकार हैं, पर इन्हें मोबाइल के गुम होने की कोई फिक्र नहीं. एकता कपूर ने अपने सीरियलों की तरह किरदारों की भरमार कर दी है और कई किरदारों के साथ न्याय नही हुआ है, आगे दूसरे सीजन में क्या होगा, पता नहीं?
इस वेब सीरीज को खूबसूरत लोकेशन की खातिर जरुर देख जा सकता है, पर यह खूबसूरत लोकेशन बड़े परदे पर ज्यादा सुंदर व आकर्षक लगेंगे. दूसरी अच्छाई यह है कि इसमें दोस्ती को लेकर बहुत ही सकारात्मक बात की गयी है.
उद्भव ओझा का संगीत अच्छा है.

अभिनयः

सूफियान के किरदार में कुशल टंडन तमाम दृश्यों में एक रोबोट के अलावा कुछ नजर नही आते. पर कुछ दृश्यों में उन्होने अपनी आंखों के माध्यम से काफी कुछ कहने का प्रयास किया है. कायनात के किरदार में शिवज्योति राजपूत ने ठीक ठाक अभिनय किया है. इम्तियाज के किरदार में करण जोतवानी अवष्य ध्यान आकर्षित करते हैं. सुचित्रा पिल्लैय व कृतिका देसाई की प्रतिभा को जाया किया गया है.

Fat to Fit हुई ‘बिग बॉस 13’ फेम Shehnaaz Gill, फैंस ने कर रहे हैं ये कमेंट

‘बिग बॉस 13 (Bigg Boss 13)’ में फैंस के बीच मस्ती से फेमस हो चुकीं  ‘पंजाब की कैटरीना कैफ’ यानी एक्ट्रेस शहनाज गिल की क्यूटनेस फैंस के दिल में बसती हैं. लेकिन अब वह बौलीवुड में एंट्री पाने के लिए अपने क्यूटनेस को हौटनेस में बदलने की तैयारी कर रही हैं. दरअसल, हाल ही में शहनाज ने अपने लुक की कुछ फोटोज शेयर की हैं, जिसे देखकर फैंस चौंक गए हैं. आइए आपको दिखाते हैं क्या है शहनाज की फोटोज  में खास…

वजन कम कर रही हैं शहनाज

अपनी क्यूटनेस के लिए मशहूर अभिनेत्री शहनाज गिल (Shehnaaz Gill) को बॉलीवुड में रोल पाने के लिए काफी वजन कम करना पड़ा है. शहनाज ने सोशल मीडिया पर कुछ फोटोज शेयर की हैं जिनमें वह काफी स्लिम नजर आ रह हैं.

 

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Gud nini 🥰❤️

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आलोचनाएं सहती थीं शहनाज

कुछ समय पहले तक शहनाज गिल अपने ज्यादा वजन को लेकर लोगों की आलोचनाएं सहती थीं. लेकिन पुरानी फोटोज में भी शहनाज की क्यूटनेस और खूबसूरती की तारीफ होती थी. पर अब अपने नए पोस्ट में, शहनाज़ पूरी तरह से अलग नजर आ रही हैं.

फैंस ने कही ये बात

 

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Nature is always giving ✨rain is so beautiful #mumbairains ☔️☔️

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सोशलमीडिया पर फोटोज शेयर करने के बाद कुछ लोगों ने उनके नए रूप की तारीफ की है, लेकिन कई ऐसे भी थे जिन्होंने उसे डाइटिंग बंद करने के लिए कहा. क्योंकि नई फोटोज में शहनाज की कॉलर-बोन और फेस कट साफ नजर आ रहा है, जिसके चलते एक यूजर ने लिखा, “कितना स्लिम होगी बेबी…’

 

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Presenting the official music video of The Puppet on my YouTube channel. Sung, produced by my dear friend @kaur_mannz Link in my bio.

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आपको बता दें कि हाल ही में सिद्धार्थ शुक्ला के साथ अपनी लाइव चैट में, शहनाज़ ने खुलासा किया था कि वह बॉलीवुड में अच्छे प्रोजेक्ट पाने के लिए डाइटिंग कर रही हैं. वहीं सिद्धार्थ शुक्ला भी इन दिनों साथ निभाना साथिया के दूसरे सीजन में नजर आने के लिए फैंस के बीच सुर्खियों में हैं.

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‘साथ निभाना साथिया 2’ का प्रोमो रिलीज, रसोड़े में दिखी ‘गोपी बहू’ देवोलीना

बीते दिनों सोशलमीडिया पर सीरियल साथ निभाना साथिया की एक वीडियो काफी वायरल हुई थी, जिसमें राशि, गोपी और कोकिला बेन के डायलौग पर रैप किया गया था. इस पर लोगों के कई रिएक्शन देखने को मिले थे. वहीं अब सीरियल के दूसरे सीजन की तैयारियां भी शुरू हो गई हैं, जिसके प्रोमों में देवोलिना नजर आ रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं क्या है प्रोमों में खास…

दोबारा गोपी बहू बनेंगी देवोलिना

टीवी के पौपुलर शो साथ निभाना साथिया को बहुत पसंद किया गया था, जिसके बाद अब शो के मेकर्स ने दूसरे सीजन की खबर देते हुए प्रोमो रिलीज कर दिया है. वहीं इस प्रोमो में यह बात कंफर्म हो गई है कि गोपी बहू के रोल में देवोलीना भट्टाचार्जी नजर आएंगी, जिसे लेकर फैंस काफी एक्साइटेड हैं. इसी के साथ प्रोमो को देवोलीना ने अपने इंस्टाग्राम पर शेयर किया है. उन्होंने कैप्शन में लिखा, ‘भारी डिमांड पर हम वापस आ गए हैं.’ इस वीडियो जमकर लाइक और शेयर किया जा रहा है. फैन्स कमेंट करके पूछ रहे हैं कि रसोड़े में कौन था?

 

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We are back by popular demand 🌸 . . #SaathNibhanaSaathiya2 #WhoisGehna #devoleena #gopibahu @starplus @rstfofficial

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प्रोमो में दिखी गोपी बहू

 

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🥰🌸

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प्रोमो वीडियो में देवोलीना पिंक कलर की साड़ी पहने हुए हाथ में पूजा की थाली लिए नजर आ रही हैं. वीडियो में वह कहती हैं, ”शायद रसोड़े में गहना ने कुकर गैस पर चढ़ा दिया होगा. ये गहना भी न ऐसी-ऐसी चीजें करती है कि कभी तो मुझे एकदम सरप्राइज कर देती है और कभी-कभी एकदम शॉक्ड. आप सब यही सोच रहे हैं न कि गहना कौन हैं. तो पता चल जाएगा.” अब देखना है कि शो में गहना कौन है और उनका कैसा रोल होगा.

सिद्धार्थ शुक्ला आ सकते हैं नजर

 

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@realsidharthshukla 😘❤ #SidNaaz #SidharthShukla #ShehnaazGill #bb13

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खबरों की मानें तो कहा जा रहा है कि ‘साथ निभाना साथिया 2 में सिद्धार्थ शुक्ला लीड रोल के लिए पहली पसंद हैं. टीवी शो के मेकर्स इस वक्त उनसे बातचीत कर रहे हैं. हालांकि अभी ये बातचीत काफी शुरुआती स्तर पर है. लेकिन अगर बात बन जाती है तो फैंस जरुर खुशी से झूमने लगेंगे.’

बता दें, साथ निभाना साथियां के पहले सीजन ने काफी सुर्खियां बटोंरीं थीं, जिसके चलते गोपी बहू यानी देवोलीना घर-घर में फेमस हो गई थीं.

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घर पर बनाएं 5 असरदार पील औफ फेस मास्क

घर पर बनाया गया पील औफ फेस मास्‍क का न तो खराब होने का डर रहता है और न ही उस पर ज्‍यादा पैसे खर्च करने का झंझट. यह प्राकृतिक तरह से बनाया जाता है जिसमें ताजे फल और फूलों के रस का प्रयोग किया जाता है. साथ ही यह हल्‍का, सौम्‍य और प्रभावी होता है जो त्‍वचा को पोषण देता है. चलिए जानते हैं कि हम घर पर पील औफ फेस मास्‍क किस तरह से बना सकते हैं.

घरेलू पील औफ फेस मास्‍क

1. स्ट्रिस पील औफ मास्क: इसको बनाना बहुत ही आसान है. नींबू या संतरे के छिलके को धूप में सूखा कर पाउडर बना कर रख लें. जब मास्‍क लगाना हो तब पाउडर में जिलैटिन मिला कर लगा लें. आप चाहें तो इसमें शहद भी मिला सकती हैं जो एक एंटी एजिंग का काम करेगा.

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2. स्‍ट्रौबेरी वीट फ्लोर मास्‍क: ड्राई स्‍किन के लिए स्ट्रौबेरी का यह मास्‍क बहुत ही अच्‍छा रहेगा. ताजी स्‍ट्रौबेरी, गेहूं का आटा, बादाम तेल ओर दूध मिला कर पेस्‍ट तैयार करें. इसको चेहरे पर लगाएं और जब सूख जाए तब पील कर के निकाल लें.

3. लेमन एंड एग पील औफ: इसको बनाने के लिए अंडे के पीले भाग को नींबू के रस में मिला कर पेस्‍ट तैयार करें. इसको लगाने से त्‍वचा से ब्‍लैकहेड्स की समस्‍या भी दूर हो जाती है.

4. क्‍ले मास्‍क: इसको बनाने के लिए आपको एलोवेरा, गुलाब जल और मुल्‍तानी मिट्टी का प्रयोग करना पड़ेगा. इसका प्रयोग करने से चेहरे से डेड स्‍किन, सीबम और धूल मिट्टी साफ हो जाती है. और चेहरे पर पिंपल होने की कम संभावना हो जाती है.

5. एंटी एजिंग पील औफ: ओटमील और गेहूं के चोकर को मिला कर एक प्राकृतिक फेस मास्‍क बनाया जा सकता है. इसमें अगर आप टमाटर, क्रीम और चीनी मिला देगें तो आपकी त्‍वचा जंवा दिखने के साथ उसको पोषण भी मिलेगा.

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मृगतृष्णा

गली में पहरा देते चौकीदार के डंडे की खटखट और सन्नाटे को चीरती हुई राघव के खर्राटों की आवाज के बीच कब रात का तीसरा प्रहर भी सरक गया, पता ही न चला. पलपल उधेड़बुन में डूबा दिमाग और आने वाले कल होने वाली संभावनाओं से आशंकित मन पर काबू रखना मेरे लिए संभव नहीं हो पा रहा था. मैं लाख कोशिश करती, फिर भी 2 दिनों पहले वाला प्रसंग आंखों के सामने उभर ही आता था. उन तल्ख तेजाबी बहसों और तर्ककुतर्क के पैने, कंटीले झाड़ की चुभन से खुद को मुक्त करने का प्रयास करती तो एक ही प्रश्न मेरे सामने अपना विकराल रूप धारण कर के खड़ा हो जाता, ‘क्या खूनी रिश्तों के तारतार होने का सिलसिला उम्र के किसी भी पड़ाव पर शुरू हो सकता है?’

कभी न बोलने वाली वसुधा भाभी, तभी तो गेहुंएं सांप की तरह फुंफकारती हुई बोली थीं, ‘सुमि, अब और बरदाश्त नहीं कर सकती. इस बार आई हो तो मां, बाऊजी को समझा कर जाओ. उन्हें रहना है तो ठीक से रहें, वरना कोई और ठिकाना ढूंढ़ लें.’

‘कोई और ठिकाना? बाऊजी के पास तो न प्लौट है न ही कोई फ्लैट. बैंक में भी मुट्ठीभर रकम होगी. बस, इतनी जिस से 1-2 महीने पैंशन न मिलने पर भी गुजरबसर हो सके. कहां जाएंगे बेचारे?’ भाभी के शब्द सुन कर कुछ क्षणों के लिए जैसे रक्तप्रवाह थम सा गया था. जिस बहू का आंचल कितनी ही व्यस्तताओं के बावजूद कभी सिर से सरका न हो, जिस ने ससुर से तो क्या, घर के किसी भी सदस्य से खुल कर बात न की हो, वह यों अचानक अपनी ननद से मुंहजोरी करने का दुसाहस भी कर सकती है?

मैं पलट कर भाभी के प्रश्न का मुंहतोड़ जवाब देने ही वाली थी कि मां ने बीचबचाव सा किया था, ‘बहू, ठीक ढंग से तुम्हारा क्या मतलब है?’

‘मकान का पिछला हिस्सा खाली कर के इन्हें हमारे साथ रहना होगा,’ भाभी ने अपना फैसला सुनाया.

‘उस हिस्से का क्या करोगे?’ अपनी ऊंची आवाज से मैं ने भाभी के स्वर को दबाने की पुरजोर कोशिश की तो जोरजोर से चप्पल फटकारते हुए वे कमरे से बाहर चली गईं.

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मैं ने एक नजर विवेक भैया पर डाली कि शायद पत्नी की ऐसी हरकत उन्हें शर्मनाक लगी हो. पर वह मेरा कोरा भ्रम था. भैया की आवाज तो भाभी से भी बुलंद थी, ‘किराए पर देंगे और क्या करेंगे? इस मकान को बनवाने के लिए बैंक से इतना कर्जा लिया है, उसे भी तो उतारना है. कोई पुरखों की जमीनजायदाद तो है नहीं.’

‘किराए पर ही देना है तो हम से किराया ले लो. मैं अपना चौका ऊपर ही समेट लूंगी,’ अपने घुटनों को सहलाती हुई मां, बेटे के मोह में इस कदर फंसी हुई थीं कि  इस बात की तह तक पहुंच ही नहीं पा रही थीं कि उन्हें घर से बेघर करने में भाभी को भैया का पूरा साथ मिला हुआ है. पथराए से बाऊजी चुपचाप पलंग के एक कोने पर बैठे बेमकसद एक ही तरफ देख रहे थे.

‘कुल मिला कर 2 हजार रुपए तो पैंशन के मिलते हैं. उतना तो आप का निजी खर्चा है. मकान के उस हिस्से से तो 3 हजार रुपए की उगाही होगी,’ भैया ने भाभी की आवाज में आवाज मिलाई तो बाऊजी अपने बेटे का चेहरा देखते रह गए थे. उन का पूरा शरीर कांप रहा था.

‘जब पूत ही कपूत बन जाए तो उस पराए घर की बेटी को क्या कहा जा सकता है?’ फुसफुसाती हुई मां की आवाज भीग गई. वे रोतरोते भी बाऊजी से उलझ पड़ीं, ‘इसलिए तो तुम से कहती थी, चार पैसे बुढ़ापे के लिए संभाल कर रखो. पर तुम ने कब सुनी मेरी? अब देख लिया, अपनी औलाद भी किस तरह मुंह फेरती है.’

मैं मां की बात और नहीं सुन पाई थी. पूरा माहौल तनावभरा हो गया था. अगले दिन चुपचाप अपने घर लौट आई थी. अब वहां कहनेसुनने के लिए बचा ही क्या था. अब तो सारे रिश्ते ही झूठे लग रहे थे.

शाम को मैं चौके में चाय बनाने के लिए घुस गई थी. मन, मस्तिष्क जैसे बस में ही नहीं थे. काफी समय बीत जाने के बाद भी जब चाय नहीं बन पाई तो राघव खुद ही चौके में आ गए थे, एक प्याली मुझे दे कर दूसरी प्याली हाथ में ले कर अम्मा के पास जा कर अखबार खोल कर बैठ गए. सुबह के कुछ घंटे अम्मा के साथ बिताना उन की आदत में है. इसीलिए तो मैं ने उन्हें श्रवण कुमार का नाम दिया था.

चौके से बाहर निकल कर मैं कुछ काम निबटाने के लिए यहांवहां घूम रही थी. पर मन तनाव की गिरफ्त में था. भाभी के बरताव का डंक मेरे मन में बुरी तरह चुभा हुआ था. भाभी तो पराए घर की है, पर भैया को क्या हुआ? वे तो सब की इज्जत करते थे, फिर यह बदलाव क्यों आया? न जाने कब आंखों के आगे अंधेरा छा गया और मैं गश खा कर गिर पड़ी. आंख खुली तो अम्मा मेरी पेशानी सहला रही थीं. बदहवास से राघव मेरी आंखों पर पानी के छींटे डाल रहे थे.

‘क्या बात है सुमि, कुछ परेशान दिख रही हो?’ इन्होंने पूछा.

‘नहीं, कुछ भी तो नहीं,’ चालाकी से मैं ने अपना दुख छिपाने की नाकाम सी कोशिश की. पर पूरे शरीर का तो खून ही जैसे किसी ने निचोड़ लिया था.

राघव आश्वस्त नहीं हुए थे, ‘देखो सुमि, सुख बांटने से बढ़ता है, दुख बांटने से कम होता है. हम तुम्हारे अपने ही तो हैं…कुछ कहती क्यों नहीं?’

मैं सोचने लगी कि राघव जैसे लोग कितने सुखी रहते हैं. बिना किसी गिलेशिवे के जिंदगी में आए उतारचढ़ावों को स्वीकार करते चले जाते हैं. लेकिन हमारे जैसे लोग हर रिश्ते को कसौटी पर ही परखते रह जाते हैं. जिंदगी में जो पाया है, उस से संतुष्ट नहीं होते. कुछ और पाने की लालसा में जो कुछ पाया है, उसे भी खो देते हैं.

अपराधबोध मन पर हावी हो उठा था. राघव के कसे हुए तेवरों में दोस्ती की परछाईं थी. फिर भी विश्वास करने को जी नहीं चाह रहा था.

अपने अभिभावकों के पक्षधर बने रहने वाले राघव को भला मेरे मायके वालों से क्यों सहानुभूति होने लगी. आज भी यदि अम्मा और मुझे एक ही तुला पर रख कर तोला जाए तो शायद राघव की नजरों में अम्मा का ही पलड़ा भारी होगा.

एक नजर अम्मा को देखा था. कहते हैं, औरत ही औरत की पीड़ा को समझ सकती है. पर उन आंखों में भी जो भाव थे, उन्हें अपनेपन की संज्ञा देना गलत था.

मौकेबेमौके अम्मा कितनी बार तो सुना चुकी थीं, ‘अपने मायके का दुख डंक की तरह चुभता है.’

‘जाके पैर न फटी बिवाई, वह क्या जाने पीर पराई’ की दुहाई समयसमय पर देने वाली अम्मा इस समय मेरे मर्म पर निशाना लगाने से नहीं चूकेंगी, इतना तो इस घर में इतने बरसों से रहतेरहते जान ही गईर् थी. शादी के बाद हर 2 दिनों में मेरे मायके में संदेश भिजवाने वाली अम्मा की नजरें मेरे ही मां, बाऊजी में खोट निकालेंगी.

प्याज के छिलकों की तरह अतीत के दृश्य परतदरपरत मेरी आंखों के सामने खुलते चले गए थे. जब भी अम्मा, पिताजी इकट्ठे बैठते, अम्मा आंखें नम कर लेतीं, ‘संस्कार बड़ों से मिलते हैं. मैं तो पहले ही कहती थी, किसी अच्छे परिवार से नाता जोड़ो. मेरा राघव एकलौता बेटा है, उस की तो गृहस्थी ही नहीं बसी.’

‘ऐसी बात नहीं है,’ पिताजी भीगे स्वर में कहते, ‘बहू के मायके वाले तो बहुत अच्छे हैं. रमेश चंद्र प्रोफैसर थे. शीला बहन तो परायों को भी अपना बनाने वालों में हैं. भाई कितना मिलनसार है…और भाभी अमीर खानदान की एकलौती वारिस है, पर घमंड तो छू तक नहीं गया. हां, बहू का स्वभाव विचित्र है. संवेदनशीलता, भावुकता नाम को भी नहीं. मैं तो हीरा समझ कर लाया था. अब यह कांच का टुकड़ा निकली तो जख्म तो बरदाश्त करने ही पड़ेंगे.’

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पिताजी मेरे मायके का जुगराफिया खींचतेखींचते जब मुझे कोसते तो अम्मा के जख्मों की कुरेदन और बढ़ जाती. वे मेरे मातापिता को बुलवा भेजतीं. शिकायतों की फेहरिस्त काफी लंबी होती थी. जैसे, मुझे बड़ों का सम्मान करना नहीं आता, पति को कुछ समझती नहीं, कोई काम करीने से कर नहीं सकती, ‘बेहद नकचढ़ी है आप की बेटी,’ कहतेकहते अम्मा बहस का सारांश पेश करतीं. मां सजायाफ्ता मुजरिम की तरह गरदन लटका कर मेरा एकएक गुनाह कुबूल करती जातीं. बाऊजी कभी उन के आरोपों का खंडन करना चाहते भी, तो मां आंख के इशारे से रोक देतीं. समधियाने में तर्कवितर्क करना उन्हें जरा नहीं भाता था. फिर राघव तो उन के दामाद थे. उन्हें कुछ बुरा न लगे, इसलिए वे चुप ही रहना पसंद करती थीं. बेचारी मां को देख कर ससुराल के लोगों पर गुस्सा आता और मां पर दया. निम्नमध्यवर्गीय परिवार में 2 बच्चों की मां से अधिक निरीह जीव शायद और कोई नहीं होता.

इधर मेरे मातापिता के घर से बाहर निकलते ही माहौल बिलकुल बदल जाता. अम्मा, पिताजी किसी न किसी बहाने से घर के बाहर निकल जाते थे, ताकि हम दोनों पतिपत्नी आपस में बातचीत कर के ‘इस मसले’ को हल कर सकें. पर मुझे तो उस समय राघव की शक्ल से भी चिढ़ हो जाती थी. उन्हीं के सामने मेरे मातापिता की बेइज्जती होती रहती, पर वे मेरे पक्ष में एक भी शब्द कहने के बजाय उपदेश ही देते रहते.

अम्मा घर लौट कर बड़े प्यार से एक थाली में छप्पनभोग परोस कर मुझे समझातीं, ‘बहू, कमरे में जा, राघव अकेला बैठा है, खुद भी खा, उसे भी खिला.’

‘मेमने की खाल में भेडि़या,’ मैं मन ही मन बुदबुदाती. इसी को तो तिरिया चरित्तर कहते हैं. मन में दबा गुस्सा मुंह पर आ ही जाता था और मैं चिढ़ कर जवाब देती थी, ‘कोई नन्हे बालक हैं, जो मुंह में निवाला दूंगी? अपने लाड़ले की खुद ही देखभाल कीजिए.’

कमरे में जाने के बजाय मैं घर से निकल पड़ती और सामने वाले पार्क में जा कर बैठ जाती. कालोनी के लोग अकसर पार्क में चलहकदमी करते रहते थे. मेरी पनीली आंखें और उतरा हुआ चेहरा देख कर आसपास खड़े लोगों में जिज्ञासा पैदा हो जाती थी. वे तरहतरह की अटकलें लगाते. कोई कुछ कहता, कोई कुछ पूछता.

मैं घर में घटने वाले छोटे से छोटे प्रसंग का बढ़चढ़ कर बयान करती. ससुराल पक्ष के हर सदस्य को खूब बदनाम करती. घर लौटने का मन न करता था. ऐसा लगता, सभी मेरे दुश्मन हैं. यहां तक कि मां, बाऊजी भी दुश्मन लगते थे. इन लोगों को कुछ कहने के बजाय वे यों मुंह लटका कर चले जाते हैं जैसे बेटी दे कर कोई बहुत बड़ा गुनाह किया हो.

2-4 दिन शांति से बीतते और फिर वही किस्सा शुरू हो जाता. गलती राघव की थी, उस के अभिभावकों की थी या मेरी, नहीं जानती, पर पेशी के लिए मेरे मांबाऊजी को ही आना पड़ता था. कुछ ही समय में मां तंग आ गई थीं. तब विवेक भैया ही आ कर मुझे ले जाते थे.

मायके में भी मेरे लिए उपदेशों की कमी नहीं थी, ‘राघव एकलौता बेटा है, सर्वगुण संपन्न. न देवर न कोई ननद, जमीनजायदाद का एकलौता वारिस है. तू थोड़ा झुक कर चले तो घर खुशियों से भर जाए.’

‘मां, अगर तुम चाहती हो कि बेजबान गाय की तरह खूंटे से बंधी जुगाली करती रहूं तो तुम गलत समझती हो.’

यहांवहां डोलती भाभी, मेरे मुख से निकले हर शब्द को चुपचाप सुन रही होगी, इस ओर कभी ध्यान ही नहीं गया, क्योंकि उन के हावभाव देख कर जरा भी एहसास नहीं होता था कि मेरे शब्दों ने उन पर कोई प्रभाव भी छोड़ा होगा. मां अकेले में मुझे समझातीं, ‘पगली, समझौता करना औरत की जरूरत है. अपनी भाभी को देख, लाखों का दहेज लाई है. हम ने तो तुझे 4 चूडि़यों और लाल जोड़े में ही विदा कर दिया था.’

तब मैं दांत पीस कर रह जाती, ‘कैसी मां है, बेटी के प्रति जरा भी सहानुभूति नहीं.’

मां जातीं तो बाऊजी मेरे पास आ कर बैठ जाते. मेरे सिर पर हाथ रख कर कहते, ‘चिंता मत कर सुमि, मैं जब तक जिंदा हूं, तेरा कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता. न जाने कैसे लोगों से पाला पड़ा है. लोग बहू को बेटी की तरह रखते हैं, और ये लोग…’

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बाऊजी के शब्दों से ऐसा लगता था जैसे डूबते को एक सहारा मिला हो. ‘कोई तो है, जो मेरा अपना है,’ सोचते हुए मैं समर्पित भाव से चौके में जा कर बाऊजी की पसंद के पकवान बना कर उन्हें आग्रहपूर्वक खिलाती. राघव की कमाई से जोड़ी हुई रकम से मैं भाभी के साथ बाजार जा कर उन के लिए कोई अच्छा सा उपहार ले आती थी. बाऊजी तब मुझे खूब दुलारते, ‘कितना अंतर है बेटी और बेटे में? सुमि मुझे कितना मान देती है.’

अप्रत्यक्ष रूप से दिया गया वह उपालंभ भैयाभाभी हम सब से नजरें चुराते हुए यों झेलते थे, जैसे उन्होंने कोई कठोर अपराध किया हो. मुझे लगता, मां भी बाऊजी की तरह ही क्यों नहीं सोचतीं? वे तो मेरी जननी हैं, उन्हें तो बेटी के प्रति और भी संवेदनशील होना चाहिए था.

अपरिपक्वता की दहलीज पर कुलांचें भरता मन सोच ही नहीं पाया कि मां की भी तब अपनी मजबूरी रही होगी. महंगाई के जमाने में पति की सीमित आमदनी में से 2 बच्चों की परवरिश करना कोई हंसीखेल तो था नहीं. घर के खर्चों में से इतना बचता ही कहां था, जो अपनी बीए पास बेटी के लिए दहेज की रकम जुटा पातीं. एकएक पैसा सोचसमझ कर खर्च करने वाली मां कभीकभी एक रूमाल और चप्पल लेने के लिए भी तरसा देती थीं.

फैशनेबल पोशाकों में लिपटी हुई अपनी सहपाठिनों को देख कर मेरा मन तड़पता तो जरूर था, पर कर कुछ भी नहीं पाता था. अभावों के शिलाखंड तले दबाकुचला बचपन धीरेधीरे सरकता चला गया और मुझे यौवन की सौगात थमा गया. बचपन में मिले अभावों ने मेरे मन में कुंठा की जगह ऊंची इच्छाओं को जन्म देना शुरू कर दिया था.

मैं बेहद महत्त्वाकांक्षी हो उठी थी. कल्पनाओं के संसार में मैं ने रेशमी परिधानों से सजेसंवरे ऐसे धनवान पति की छवि को संजोया था, जिस के पास देशीविदेशी डिगरियों के अंबार हों, नौकरों की फौज हो, आलीशान बंगला हो, गाडि़यां हों. सास के रूप में ऐसी चुस्तदुरुस्त महिला की कल्पना की थी जो क्लबों में जाती हो, किटी पार्टियों में रुचि लेती हो. सिगार के कश लेते हुए ससुर पार्टियों में ही बिजी रहते हों.

कुल मिला कर मैं ने बेहद संभ्रांत ससुराल की कल्पना की थी. कहते हैं, जीवन में जब कुछ भी नहीं  मिलता, तो बहुत कुछ पाने की लालसा मन में इतनी तेज हो उठती है कि इंसान अपनी औकात, अपनी सीमाओं तक को भूल जाता है. तभी तो साधारण से व्यक्तित्व वाले बीए पास राघव, जिन के पास ओहदे के नाम पर लोअर डिवीजन क्लर्क के लेबल के अलावा कुछ भी न था, मुझे जरा भी आकर्षित नहीं कर पाए थे. उस पर उन का एकलौता होना मुझे इस बात के लिए हमेशा आशंकित करता रहा था कि हो न हो, इन लोगों की उम्मीदें मुझ से बहुत अधिक होंगी.

मेरे विरोध के बावजूद मां, बाऊजी ने इस रिश्ते के लिए हामी भर दी और मैं राघव की दुलहन बन कर इस घर में आ गई. यों कमी इस घर में भी कोई न थी. शिक्षित परिवार न सही, जमीनजायदाद सबकुछ था, यहां तक कि मुंहदिखाई की रस्म पर पिताजी ने गाड़ी की चाबी मुझे दे दी थी. पर मेरा मन परेशान था. हीरे, चांदी की चकाचौंध और सोने, नगीने की खनक तो राघव के पिता की दी हुई है, उस का अपना क्या है? वेतन भी इतना कि ऐशोआराम के साधन तो दूर की बात, मेरे लिए अपनी जरूरतें पूरी करना भी मुश्किल था.

मैं हर समय चिढ़तीकुढ़ती रहती. सासससुर को बेइज्जत करना और पति की अनदेखी करना मेरी दिनचर्या में शामिल हो गया था. शुरू में तो राघव कुछ नहीं कहते थे, पर जब पानी सिर से ऊपर चढ़ने लगा तो फट पड़े थे, ‘तुम कोई महारानी हो, जो हमेशा लेटी रहो और मां सेवा करती रहें?’

‘क्या मतलब?’ मैं तन गई थी.

‘मतलब यह कि घर की बहू हो, घर के कामकाज में मां की मदद करो.’

‘क्यों, क्या मेरे आने से पहले तुम्हारी मां काम नहीं करती थीं?’ मैं ने ‘महाभारत’ शुरू होने की पूर्वसूचना सी दी थी.

‘तब और अब में फर्क है. जब कोई सामने होता है तो उम्मीद होती ही है.’

‘मेरी मां तो मेरी भाभी से जरा भी उम्मीद नहीं करतीं. तुम्हारे घर के रिवाज इतने विचित्र क्यों हैं?’

‘तुम्हारी भाभी नौकरी करती है, आर्थिक रूप से तुम्हारे परिवार की सहायता करती है,’ राघव ने गुस्से से मेरी ओर देखा तो मैं समझ गई कि काम तो मुझे करना ही पड़ेगा, पर इतनी जल्दी मैं झुकने को तैयार न थी. खामोश नदी में पत्थर फेंकना मुझे भी आता था. मैं मुस्तैदी से काम में जुट गई. सास चाय बनातीं, मैं चीनी उड़ेल देती. पिताजी या राघव मीनमेख निकालते तो मैं अम्मा का नाम लगा देती.

एक दिन मैं ने सब्जी को इतने छोटेछोटे टुकड़ों में काट दिया कि अम्मा परेशान हो उठीं. फिर तो आरोपप्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हो गया. मैं ने हर आरोप का मुंहतोड़ जवाब दिया. घात लगा कर हर समय आक्रमण की तैयारी में मैं लगी रहती. क्या मजाल जो कोई थोड़ी सी भी चूंचपड़ कर ले.

राघव को बुरा तो लगता था, पर मेरे अशिष्ट स्वभाव को देख कर चुप हो जाते थे. जल्द ही सास समझ गईं कि एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं. सासससुर दोनों ने खुद को एक कमरे में समेट लिया. घर में अब मेरा एकछत्र राज था. अपनी मरजी से पकाती, घूमतीफिरती. घर में खूब मित्रमंडली जमती थी. कुल मिला कर आनंद ही आनंद था.

अपने रणक्षेत्र में विजयपताका फहरा कर मैं ने भाभी को फोन किया. मजे लेले कर खूब किस्से सुनाए. भाभी तब तो चुपचाप सुनती रही थीं, पर जब मैं मां के पास गई तो उन्होंने जरूर कुरेदा था, ‘क्या बात है सुमि, बहुत खुश दिखाई दे रही हो?’

‘भाभी, घर का हर आदमी अब मेरे इशारों पर नाचता है. क्या मजाल जो कोई उफ भी कर जाए.’

‘घर का खर्चा भी तुम्हारे ही हाथ में होगा?’ उन की जिज्ञासा और बढ़ गईर् थी.

‘ससुरजी पूरी पैंशन मेरे हाथ पर रख देते हैं. तुम तो जानती ही हो, राघव की तनख्वाह तो इतनी कम है कि राशन का खर्चा भी नहीं निकल सकता.’

अपनी पूरी तनख्वाह मां की हथेली पर रखने वाली भाभी के मन में ईर्ष्या के बीज अंकुरित हो चुके हैं, मैं तब भला कहां जान पाईर् थी.

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‘भाभी, बस एक ही बात खटकती है,’ मैं ने मुंह लटका लिया.

‘वह क्या?’

‘राघव की मुंहबोली बहन जबतब आ टपकती है.’

‘अपने सगेसंबंधी भी कभी बुरे लगते हैं, उन से तो घर भराभरा लगता है,’ अपने सुखी संसार पर कलह के बादलों का पूर्वानुमान होते देख मां ने जैसे मुझे आगाह किया था, पर सीख तो उसी को दी जाती है जो सीखना चाहे. मैं तो सिखाना चाहती थी.

‘घर तो भरा रहता है, पर आवभगत भी तो करनी पड़ती है. खर्चा होता है सो अलग.’

मां जैसे सकते में आ गई थीं. हर सगेसंबंधी का आदरसत्कार करने वाली मां को बेटी के कथन में पराएपन की बू आ रही थी. अपना मत व्यक्त कर के मैं तो लौट आई थी.

मेरे विवाह को 3 वर्ष हो गए थे. घर में नया मेहमान आने वाला था. सभी खुश थे. अम्मा (राघव की मां) मेरी खूब देखभाल करती थीं. जीजान से वे नन्हे शिशु के आगमन की तैयारियों में जुटी हुई थीं. किस समय किस चीज की जरूरत होगी, इसी उधेड़बुन में उन का पूरा समय निकल जाता था.

‘कहीं ऐसा न हो, मेरे करीब आ कर वे मेरे साम्राज्य में हस्तक्षेप करना शुरू कर दें,’ आशंका के बादल मेरे मन के इर्दगिर्द मंडराने लगे थे. एक दिन मैं ने उन्हें साफ शब्दों में कह दिया, ‘अम्मा, आप ज्यादा परेशान न हों, प्रसव मैं अपनी मां के घर पर करूंगी.’

‘पहली जचगी, वह भी मायके में?’ वे चौंकी थीं.

‘जी हां, क्योंकि आप से ज्यादा मुझे अपनी मां पर भरोसा है,’ बहुत दिनों बाद मैं ने खाली प्याले में तूफान उठाया था. सहसा सामने खड़े राघव का पौरुष जाग गया था. उन्होंने खींच कर एक तमाचा मेरे गाल पर जड़ दिया था, ‘इस घर में तुम ने नागफनी रोपी है. पूरे घर को नरक बना कर रख दिया. अब तो इस घर की दीवारें भी काटने को दौड़ती हैं.’

‘मेरा अपमान करने की तुम्हारी जुर्रत कैसे हुई. अब मैं एक पल भी यहां नहीं रुकूंगी.’

मैं ने बैग में कपड़े ठूंसे और मां के पास चली आई. वैसे भी 8वां महीना चल रहा था, आना तो था ही. मुझे किसी ने रोका नहीं था और अगर कोई रोकता भी तो मैं रुकने वाली नहीं थी.

मां के ड्राइंगरूम में काफी हलचल थी. भाभी के मातापिता बेटी की ‘गोद भराई’ की रस्म पर रंगीन टीवी और फ्रिज लाए थे. छोटेछोटे कई उपहारों से कमरा भरा हुआ था. घर के सभी सदस्य समधियों की सेवा में बिछे हुए थे.

मां ने उड़ती सी नजर मुझ पर डाली थी. उन की अनुभवी आंखों को यह समझते जरा भी देर न लगी कि मेरे घर में जरूर कुछ न कुछ घटना घटी है. पर पाहुनों के सामने पूछतीं कैसे? अपने साथ मेरी ससुराल भी तो बदनाम होती, जो उन की जैसी समझदार महिला को कतई मंजूर न था.

मेहमान चले गए तो मां व बाऊजी मेरे पास आ कर बैठ गए. भैया के कमरे से छन कर आ रही रोशनी से साफ था कि वे लोग अभी तक सोए नहीं है. मां धीरेधीरे मुझे कुरेदती रहीं और मैं सब कुछ उगलती चली गई, ‘मां, तुम नहीं जानती, वे कैसेकैसे संबोधन मुझे देते हैं…उन्होंने मुझे ‘नागफनी’ कहा है,’ मैं रोंआसी हो उठी थी.

‘ठीक ही तो कहा है, गलत क्या, कहा है?’ भैया की गुस्से से भरी आवाज थी. आपे से बाहर हो कर न जाने कब से वे दरवाजे पर खड़े हुए मेरी और मां की बातें सुन रहे थे. मां कभी मेरा मुंह देखतीं कभी भैया का.

‘सुमि, आखिर भावनाओं का भी कुछ मोल होता है. राघव एकलौते हैं… न जाने कैसीकैसी उम्मीदें रखते हैं लोग अपने बेटे और बहू से, पर तू तो कहीं भी खरी नहीं उतरी. तुझे तो खामोश नदी में पत्थर फेंकना ही आता है.’

मां भैया को चुप करवाना चाहती थीं, पर उन का गुस्सा सारी सीमाएं पार कर चुका था, ‘इस लड़की को सबकुछ तो मिला…पैसा, प्यार, मान, इज्जत…इसी में सबकुछ पचाने की सामर्थ्य नहीं है. जब सबकुछ मिल जाए तो उस की अवमानना, उस के तिरस्कार में ही सुख मिलता है,’ कहते हुए भैया उठे और कमरे से बाहर निकल गए.

उस के बाद भैयाभाभी की बातचीत काफी देर तक चलती रही. इधर मां मुझे पूरी रात समझाती रहीं कि मैं अपना फैसला बदल लूं. एक तो खर्च का अतिरिक्त भार वहन करने की क्षमता उन में नहीं थी. जो कुछ करना था, भैयाभाभी को ही करना था. दूसरे, बढ़े हुए काम का बोझ उठाने की हिम्मत भी उन के कमजोर शरीर में नहीं थीं. भैयाभाभी के बदले हुए तेवरों में उन्हें आने वाले तूफान की संभावना साफ दिखाई दे रही थी.

पर मैं टस से मस न हुई. राघव की मां से कुछ भी अपने लिए करवाने का मतलब था अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मारना. दूसरे ही दिन राघव के पिता का फोन आया था, ‘बच्चे हैं…नोकझोंक तो आपस में चलती ही रहती है. बहू से कहिए, सामान बांध ले और घर लौट आए.’

पर मैं तो विष की बेल बनी हुई थी. न जाना था, न ही गई. पूरा दिन आराम करती, न हिलती, न डुलती. मां की भी उम्र हो चली थी, कितना कर पातीं? भाभी पूरा दिन दफ्तर में काम करतीं और लौट कर मां का हाथ बंटातीं. मैं भाभी को सुना कर मां का पक्ष लेती, ‘मां बेचारी कितना काम करती हैं. एक मेरी सास हैं, राजरानी की तरह पलंग पर बैठी रहती है.’

मां से सहानुभूति जताते हुए मेरी आंखों से आंसुओं की अविरल धारा फूट पड़ती थी. मां मुझे दुलारती रहतीं, पर इस बीच भाभी मैदान छोड़ कर चली जाती थीं. काफी दिनों तक उन का मूड उखड़ा रहता था.

नन्हें अभिनव के आगमन पर सभी मौजूद थे. उसे देखते ही राघव की मां निहाल हो उठी थीं, ‘हूबहू राघव की तसवीर है. वैसे ही नाकनक्श, उतना ही उन्नत मस्तक, वही गेहुंआं रंग.’

‘सूरत चाहे राघव से मिले, पर सीरत मुझ से ही मिलनी चाहिए,’ मैं ने बेवकूफीभरा उत्तर दिया और अपने गंदे तरीके पर राघव की नाराजगी की प्रतीक्षा करने लगी. पर उन्होंने कुछ नहीं कहा था.

पोते को दुलारने के लिए बढ़े अम्मा के हाथ खुदबखुद पीछे हट गए थे. मैं मन ही मन विजयपताका लहरा कर मुसकरा रही थी. 2 महीने तक मां और भाभी मेरी सेवा करती रहीं. राघव की मां खूब सारे मेवे, पंजीरी और फल भिजवाती रही थीं, पर मैं किसी भी चीज को हाथ न लगाती थी.

एक दिन मां के हाथ की बनी हुई खीर खा रही थी कि भाभी ने करारी चोट की. ‘दीदी, तुम्हारी सास ने इतने प्रेम से कलेवा भेजा है, उस का भी तो भोग लगाओ.’

‘अपनी समझ अपने ही पास रखो तो बेहतर होगा. मेरे घर के मामलों में ज्यादा हस्तक्षेप न करो.’

‘तुम्हारा घर…’ मुंह बिचकाते हुए भाभी कमरा छोड़ कर चली गईं तो मैं कट कर रह गई. आखिरकार मैं अपशब्दों पर उतर आईर् थी.

उन्हीं दिनों भैयाभाभी ने दफ्तर से कर्जा ले कर मेरी ही ससुराल के पास मकान खरीद लिया था. 4 कमरों के इस मकान में आने से पहले ही मां ने यह फैसला ले लिया था कि मां और बाऊजी, पिछवाड़े के हिस्से में रहेंगे. यह मशवरा उन्हें मैं ने ही दिया था और भैया मान भी गए थे.

नए मकान में आने की तैयारी जोरशोर से चल रही थी. उठापटक और परेशानी से बचने के लिए मैं ससुराल लौट आई थी.

घर लौटी तो खुशी के बादल छा गए थे. सास ने भावावेश में आ कर अभिनव को गोद में ले लिया और लगीं उस का मुंह चूमने.

‘नन्हा, फूल सा बालक, कहीं कोई संक्रमण हो गया तो?’ मैं ने उसे अपनी गोद में समेट लिया और साथ ही सुना भी दिया, ‘बच्चे की देखभाल मैं खुद करूंगी. आप सब को चिंता करने की जरूरत नहीं है.’

पिताजी अब कुछ भी नहीं कहते थे, जैसे समझ गए थे कि बहू के सामने कुछ भी कहना पत्थर पर सिर पटकने जैसा ही है. पासपड़ोस के लोग अम्माजी से सवाल करते कि बहू मायके से क्या लाई है तो मैं बढ़चढ़ कर मायके की समृद्धि और दरियादली का गुणगान करती. भाभी के मायके से आई हुई चूडि़यां मां ने मुझे उपहारस्वरूप दी थीं. बाकी सब के लिए उपहार मैं राघव की कमाई से बचाई हुई रकम से ही ले आई थी. सास की एक सहेली ने उलटपलट कर चूडि़यां देखीं, फिर प्रतिक्रिया दी, ‘मोटे कंगन होते तो ठीक रहता, मजबूती भी बनी रहती.’

मैं उस दिन खूब रोई थी, ‘आप लोग दहेज के लालची हैं. कोई और बहू होती तो थाने की राह दिखा देती.’

उस दिन के बाद से मैं ने उन लोगों को अभिनव को छूने न दिया. कोई परेशानी होती तो रिकशा करती और मां के पास पहुंच जाती. मायका तो अब कुछ ही गज के फासले पर था.

राघव के पिता का स्वास्थ्य अब गिरने लगा था. घर का वातारण देख कर वे अंदर ही अंदर घुलने लगे थे. डाक्टर ने दिल का रोग बताया था. जिस वृक्ष की जड़ें खोखली हो गई हों वह कब तक अंधड़ों का मुकाबला कर सकता है? और एक रात ससुरजी सोए तो उठे ही नहीं. पूरे घर का वातावरण ही बदल गया. शोक में डूबी अम्मा का रहासहा दर्प भी जाता रहा. साम्राज्य तो उन का पहले ही छिन गया था.

राघव ने मुझे विश्वास में ले कर सलाह दी ‘अम्मा बहुत अकेलापन महसूस करती हैं, कुछ देर अभिनव को उन के पास छोड़ दिया करो.’

दुख का माहौल था. तब कुछ भी कहना ठीक न जान पड़ा था, पर मैं ने मन ही मन एक फैसला ले लिया था, ‘अभिनव को अम्मा से दूर ही रखूंगी.’

 

मायके के पड़ोस वाले स्कूल में अभिनव का दाखिला करवा दिया. स्कूल बंद होने के बाद बाऊजी अभिनव को अपने घर ले जाते थे. मां उसे नहलाधुला कर होमवर्क करवातीं और सुला देतीं. शाम को मैं जा कर उसे ले आती थी. एक तो सैर हो जाती थी, दूसरे, इसी बहाने से मैं मां से भी मिल लेती थी. बाऊजी की देखरेख में अभिनव तो कक्षा में प्रथम आने लगा था, पर मां इस अतिरिक्त कार्यभार से टूट सी गई थीं. एकाध बार दबे शब्दों में उन्होंने कहा भी था, ‘शतांक को भी देखना पड़ता है. बहू तो नौकरी करती है.’

पर मैं अभिनव को अपने घर के वातावरण से दूर ही रखना चाहती थी.

धीरेधीरे भाभी ने उलाहने देने शुरू कर दिए थे, ‘पहले बेटी घर पर अधिकार जमाए रखती थी, अब नाती भी आ जाता है. मेरा शतांक बीमार हो या स्वस्थ रहे, पढ़े न पढ़े, इन्हें तो कोई फर्क ही नहीं पड़ता है. एक को सिर पर चढ़ाया हुआ है, दूसरा जैसे पैरों की धूल है.’

भाभी ने साफ तौर पर अभिनव की तुलना शतांक से कर के जैसे सब का अपमान करने की हिम्मत जुटा ली थी. अपने सामने अपने ही मातापिता की झुकी हुई गरदन देखने की पीड़ा कितनी असहनीय होती है, उस दिन मैं ने पहली बार जाना था.

फिर भी हिम्मत जुटा कर कहा था मैं ने, ‘घर तो मेरे बाऊजी और मां का है. हम तो आएंगे ही.’

‘भूल कर रही हो, यह घर मेरे और तुम्हारे भैया के अथक परिश्रम से बना है. तुम्हारे सासससुर की तरह किसी ने हमें उपहार में नहीं दिया. यह अलग बात है कि तुम्हारी तरह नातेरिश्तेदारों से संबंध तोड़ कर नहीं बैठे हैं. यही गनीमत समझो.’

वसुधा भाभी के शब्दों ने बारूद के ढेर में चिनगारी लगाने का काम किया था. उस दिन के बाद से स्थिति बिगड़ती चली गई. कभी मांबाऊजी का अपमान होता, कभी मेरा और कभी अभिनव का. ऐसे माहौल में मांबाऊजी पिछवाड़े का हिस्सा छोड़ कर भैयाभाभी के साथ समायोजन कैसे स्थापित कर सकते थे? अपने पास इतने साधन नहीं थे कि अलग से गृहस्थी बसा सकें. कहां जाएंगे मांबाऊजी, यही प्रश्न मन को बारबार कटोचता है.

आत्मविवेचन करती हूं तो मां की मौन आंखों के बोलते प्रश्नों का जवाब ढूंढ़ नहीं पाती. कभी लगता है, शायद मैं ही दोषी हूं, अपनी ससुराल और पति से दूर भाग कर मायके में सुख ढूंढ़ने की कोशिश करती रही. पर सुख पाना तो दूर, मां व बाऊजी को ही दरदर भटकने को मजबूर कर दिया.

‘कितनी सुखी हैं राघव की मां? संस्कारी बेटा है, सिर पर छत है और पिताजी की छोड़ी हुई संपदा, जिसे जब तक जीएंगी, भोगेंगी. सिर्फ मेरी ही स्थिति परकटे पक्षी सी हो गई है, जिस में उड़ने की तमन्ना तो है, पर पंख ही नहीं हैं. कहां ढूंढ़ूं इन पंखों को? मायके की देहरी पर या ससुराल के आंगन में?’ यही सोचतेसोचते आंखें एक बार फिर नम हो आई हैं.

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