झूठ और भ्रम फैलाते छोटे शहरों के अखबार और न्यूज़ चैनल

पिछले एक दशक में झूठी खबरों को सिलसिला लगातार बढ़ता ही जा रहा है. इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं. जैसे लोकल अखबार और लोकल न्यूज़ चैनल वालों के निजी लाभ के अलावा इसमें सोशल मीडिया का लगातार विस्तार . समस्या यह है कि लोग ज्यादा सोशल मीडिया पर एक्टिव होते जा रहे हैं. जिस कारण  इन झूठी खबरों को फैलने में मदद मिलती है.असल में लोकल अखबारों की ऐसी खबरें फैलाने में उनकी भी अहम भूमिका रहती हैं. लोग बिना कुछ सोचे समझे किसी भी झूठी खबर या झूठे विडियोज पर यकीन कर लेते हैं और उन्हें अपने दोस्तों व परिवार वालों के पास फॉरवार्ड कर देते हैं.

उदाहरण 1-

अभी कुछ माह पहले की एक खबर जिसने सब को भ्रम में रखा, कुछ इस तरह थी -” लखनऊ ब्रेकिंग न्यूज. योगी आदित्यनाथ जी का बड़ा फैसला आज रात को 11.40 pm कोई भी  व्यक्ति घर के दरवाजे ना खोले और खिड़की को भी बंद कर के रखे. हर राज्य मे 5 हेलिकॉप्टर की मदद से  स्प्रे डाला जायेगा! इस महामारी कोरोना  को खत्म करने के लिए” !  न ऐसा कुछ हुआ और न ही होना था. यह खबर बिल्कुल झूठी थी. इसका समर्थन किसी भी प्रादेशिक बड़े अखबार ने नहीं किया.

उदाहरण 2-

इस खबर ने सबको बहुत परेशान और हैरान किया, जो कि इस प्रकार थी ,” सत्तर वर्ष से चली आ रही बुद्ध बाजार, मुरादाबाद में स्थित मिठाई की दुकान, के सभी मालिक व कर्मचारी सहित 12 लोग कोरोनावायरस पॉजिटिव पाए गये हैं. कृपया अपने परिवार व अपना ख्याल रखते हुए मिठाई आदि खाने से बचें” .

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यह खबर आग के जैसे सब जगह फैलने लगी. यहां तक कि व्हाट्सएप ग्रुप्स में भी दिखाई देने लगी. जब मैंने इसे पढ़ा तो मुझे इसलिए दुख हुआ क्योंकि यह प्रतिष्ठित लोग मेरे पड़ोसी हैं. हर दिन इनसे बात हो रही थी. किसी ने लोगों को डराने के लिए झूठी खबर बनाकर अखबार में छाप दीं और अखबार से वह सब सोशल मीडिया पर पहुंच गई. ऐसे ही ना जाने कितनी खबरें इस कोरोना काल में सबसे अधिक फैंलीं.

झूठी खबरों का सिलसिला दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है. यह सिर्फ एक कोरोना काल का समय ही नहीं, हर रोज किसी न किसी लोकल अखबार या चैनल पर ऐसी भ्रम फैलाने वाली खबरें अक्सर मिल जाती हैं. सच्चाई की तह में जाने के बाद सिर धुन लेने के अलावा और कोई चारा नहीं लगता.

लालच के कारण

जैसे जैसे भ्रष्टाचार ज्यादा फैल रहा है वैसे वैसे ही झूठी खबरों का सिलसिला भी बढ़ता ही जा रहा है. चाहे आप लोकल अख़बार में पढ़ें या लोकल चैनल पर देखें , आप को सच्ची खबर जानने के लिए बहुत जांच पड़ताल व रिसर्च करनी पड़ेगी. ये लोग पूर्ण रूप से सच्ची ख़बरें नहीं छापते हैं. इसमें उनका लालच शामिल होता है. परंतु यह कितना शर्मनाक है कि कुछ लोग चंद पैसों के लिए अपने ईमान को बेच, लोगों को अपनी झूठी खबरों के माध्यम से भ्रमित करते हैं.

बदल गया तरीका

प्रदेश में पिछले दिनों एक के बाद एक कई ऐसी घटनाएं हुई हैं जिन्होने  लोगों को झकझोर दिया . पिछले साल भी कुछ पत्रकारों को गेंगस्टर एक्ट के तहत गिरफ्तार किया गया था और  उन पर आरोप था कि वे सभी अपने पेपर और न्यूज चैनल के जरिए पुलिस प्रशासन व अधिकारियों के खिलाफ गलत और दुष्प्रचार करने वाली खबरें फैलाया करते थे.

स्थानीय समाचारों को अक्सर राष्ट्रीय समाचारों की तुलना में अधिक विश्वसनीय माना जाता था. लेकिन जबसे ये लोकल अखबार ऑनलाइन की गिरफ्त में आयें हैं, इन पर विश्वास करना अत्यधिक असुरक्षित है.

इसके पीछे एक पूरा तंत्र होता है. और उन की सोची समझी चाल भी. कुछ अखबार किसी एक राजनैतिक पार्टी के पास बिक जाते हैं. उनका मुख्य काम उस पार्टी को लोगों कि नजरों में अच्छा दिखाना व दूसरी पार्टियों को लोगो की नजरो से गिराना होता है.

अन्य देश भी अछूते नहीं

यह बात केवल भारत की ही नहीं है बल्कि अन्य देशों में भी ऐसा होता है.  लोगो को एक दूसरे से लड़वाया और  भ्रमित किया जाता है. जनता से जुड़े मुद्दों पर निष्पक्ष, सच उजागर करना और ईमानदार नज़रिए से कवरेज  लगातार कम होते जाना, अब लोकल समाचार पत्रों की परिपाटी सा बन गया है.

आजकल लोगों को भ्रमित करने के लिए ये लोग स्वयं से कहानियां बनाते हैं और सोशल मीडिया से भी इसमें पूरा योगदान मिलता है. सोशल मीडिया झूठी कहानियों को कुछ इस प्रकार दर्शाता है कि दोनों में ( सच्ची व झूठी ) अंतर करना मुश्किल हो जाता है. इंटरनेट की मेहरबानी से ये झूठी खबरें सच सामने आने तक एक शहर से दूसरे शहर पहुंच चुकी होतीं हैं.

सांठ गांठ का खेल

दरअसल सच्चाई यह है कि इन लोकल अखबारों के पीछे भी किसी पार्टी या मीडिया का हाथ होता है. जो जितना बिकेगा, उन्हें उतने ही ज्यादा इनाम व तोहफे मिलेंगे. परंतु शर्त यह होती है कि उस खबर को इस तरीके से शेयर किया जाए कि पढ़ने वाला उसे सच मान कर विश्वास कर ले.

दिमाग में कई बार एक प्रश्न आता कि जब अधिकतर लोगो को पता होता है कि यह खबरें झूठी है और इस खबर का कोई सार्थक मतलब नहीं निकलता तो फिर भी वे उस खबर को शेयर ही क्यों करते हैं कि छोटी खबर सच्ची लगने लग जाए और छोटे अखबारों को आर्थिक रूप से भी फायदा पहुंचे.

मुनाफे का खेल

यदि किसी झूठी खबर ने लोकल चैनल या न्यूजपेपर को अच्छी TRP दे दी तो दूसरे लोकल अख़बार वाले भी उस खबर को यह सोच कर प्रकाशित कर देते हैं कि यदि हम इसे अपना विषय बनाएंगे तो इससे बहुत अच्छा मुनाफा मिल सकता है. वे भी उस खबर की अच्छे से जांच पड़ताल नहीं करते हैं कि खबर सच्ची है या झूठी. बल्कि उल्टा उसमे कुछ एक्स्ट्रा रोचक बातें जोड़ देते हैं. ताकि वह खबर ज्यादा से ज्यादा फैले और लोगों की रुचि बढ़े.

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इस तरह  यहां से झूठी खबरों की एक चेन बननी शुरू हो जाती है. इन अखबारों से जुड़े लोगों पर अधिक से अधिक मसालेदार कहानियां व ख़बरें लिखने पर जोर दिया जाता है ताकि उन्हें ज्यादा से ज्यादा ट्रैफिक या रीडर्स मिलें और वे काफी लाभ कमा सकें. उन्हें यह मतलब नहीं होता है कि खबर कितनी सच्ची है और कितनी झूठी उन्हें बस अपने निजी स्वार्थ से मतलब होता है. इसलिए वह ज्यादा यह चैक नहीं करते की खबर झूठी है या सच्ची.

नज़रिए और नीयत गिरावट

नज़रिए और नीयत की ये गिरावट कोई नई बात भी नहीं है. कुछ प्रदेशों में ये लोकल समाचार पत्र और चैनल नियमित रूप से ऐसी सामग्रियों का प्रसारण कर रहे हैं, जो भड़काऊ होती हैं, पक्षपातपूर्ण होती हैं और जिनमें लोगों का पक्ष तो ग़ायब ही होता है. क्या इन सबके लिए कोई  तय मानक का पालन करना आवश्यक नहीं है ?

बैठने का तरीका दे सकता है घुटने का दर्द

डॉक्टर अतुल मिश्रा, फोर्टिस अस्पताल, नोएडा

कोविड-19 के कारण लगे लॉकडाउन के दौरान गठिया के मरीजों की संख्या में वृद्धि हुई है. सामान्य दिनों की तुलना में लॉकडाउन के दौरान महिलाओं को घुटने के दर्द से अधिक समस्या हुई है.

घुटनों और जोड़ों के दर्द के कारण उन्हें चलनेफिरने और खासतौर पर सीढ़ियां चढ़ने में दिक्कत होती है. घुटनों में दर्द का मुख्य कारण गठिया है और इसके लिए उठनेबैठने का तौर तरीका भी काफी हद तक जिम्मेदार है. नियमित जीवन में छोटीछोटी चीजें घुटने का दर्द दे सकती हैं.

भारत के लोगों में घुटने मोड़ कर और पालथी मार कर बैठने की अक्सर आदत होती है. सामूहिक भोजन करना हो, घर के कामकाज करने हो या आपस में बातें करनी हों-इन सभी कामों में महिलाएं घुटने मोड़ कर ही बैठती है. यहां तक कि भारतीय शैली के शौचालय में भी घुटने के बल बैठना पड़ता है. बैठने की यह शैली हमारी आदतों में शुमार हो गई है और इस आदत के कारण यहां लोग कुर्सी, सोफे या पलंग पर भी घुटने मोड़ कर बैठना पसंद करते हैं. बैठने के इस तरीके में घुटने पर दबाव पड़ता है जिससे कम उम्र में ही घुटने खराब होने की आशंका बढ़ती है. हालांकि इस के असर तुरंत नहीं दिखते लेकिन उम्र बढ़ जाने पर घुटने की समस्या हो जाती है.”

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ज्यादातर बैठ कर काम करने, कम चलनेफिरने, मोटापा, धूप के संपर्क में कम रहने, जंक फूड के सेवन और विटामिन डी की कमी से भी गठिया होती है. शुरू में मरीज के घुटे में दर्द होता है और चलनेफिरने में तकलीफ होती है लेकिन जब दिक्कत बढ़ती है तो मरीज का चलनाफिरना दूभर हो जाता है.

देश में अक्सर 40 साल से ही महिलाओं में घुटने की समस्या शुरू हो जाती है जबकि पुरुषों में यह समस्या अधिक उम्र में शुरू होती है. करीब 90 प्रतिशत भारतीय महिलाओं में विटामिन डी की कमी है जो बोन मेटाबोलिज्म को नियंत्रित करने के लिए महत्वपूर्ण है.

कैसे पाएं निजात

अगर घुटने में दर्द और जकड़न हो और चलने-फिरने पर घुटनों में आवाज़ आए तो समझ जाइये कि गठिया की शुरुआत हो चुकी है. अगर दिक्कत शुरू हो जाए तो बैठने का तरीका बदलना चाहिए. इस के बढ़ने पर घुटनों को मोड़ने में कठिनाई होती है. घुटने में विकृतियां भी हो सकती हैं.

इस समस्या से बचने का सब से अच्छा तरीका व्यायाम है. बीमारी के प्रारंभिक चरण के रोगियों के लिए स्टेटिक क्वाड्रिसप्स व्यायाम, साइकिल चलाना और तैराकी तीन सर्वोत्तम अभ्यास हैं. व्यायाम से जोड़ों की मांसपेशियां मजबूत रहती हैं, उन का लचीलापन बना रहता है और जोड़ों को उन से सपोर्ट भी मिलता है.

मोटापे को रोकने के लिए संयमित खानपान और शारीरिक सक्रियता पर ध्यान देना चाहिए. वजन कम होने से जोड़ों पर दबाव भी कम पड़ता है.

इसके अलावा विटामिन डी पर्याप्त मात्रा में शरीर को मिलना चाहिए.

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खीरा है स्किन के लिए हीरा

गर्मियों में हमारे फ्रिज में शरीर को ठंडक देने वाले फ्रूट्स जैसे तरबूज, ख़रबूज़े , लीची की भरमार होती है. और अगर फ्रूट्स में बात करें खीरे की तो इससे ज्यादा ठंडा और बेस्ट कुछ नहीं. क्योंकि ये न सिर्फ हमारी हैल्थ के लिए बल्कि हमारी स्किन के लिए भी काफी फायदेमंद होता है. क्योंकि ये विटामिन्स, मिनरल्स और ढेरों न्यूट्रिएंट्स से जो भरपूर होता है. और इस बात को बहुत कम लोग जानते हैं कि खीरे में फाइबर होने के साथ साथ 96 पर्सेंट वाटर होता है, जो वजन को कम करने में काफी मददगार होता है. इसमें मौजूद सिलिकोन तत्व स्किन की खूबसूरती को बढ़ाने का काम करता है. इसके रोजाना सेवन व स्किन पर इस्तेमाल करने से स्किन अंदर व बाहर से चमक उठती है . तो जानते हैं कैसे करें स्किन केयर में खीरे का इस्तेमाल, जो आपको रखे हर तरह की स्किन प्रोब्लम्स से दूर .

1. सनटेन का नेचुरल ट्रीटमेंट

सनटेन सिर्फ गर्मियों में ही नहीं बल्कि ये समस्या हर मौसम में होती है. जिसे बहुत कम लोग जानते हैं. ऐसे में चाहे कितनी भी स्किन की क्यों न केयर कर ली जाए फिर भी सनटेन की समस्या हो ही जाती है. और अगर एक बार चेहरे पर सनटेन हो गया फिर तो जानकारी के अभाव में न जाने हम कितने पैसे इस समस्या को ठीक करने के लिए ब्यूटी प्रोडक्ट्स पर लगा देते हैं. जबकि इसका ट्रीटमेंट आपकी किचन में उपलब्ध है. जिसे आप रोजाना अपने सनटेन वाले एरिया पर लगाकर कुछ ही दिनों में अपनी पहले जैसी स्किन पा सकेंगी.

कैसे करें अप्लाई – इसके लिए आप एक बाउल में खीरे को कस कर उसका जूस निकाल लें. फिर इसे अपने पूरे चेहरे पर अप्लाई करके 15 मिनट के लिए छोड़ दें. और फेस को धो लें. ऐसा आप 1 महीने तक रोजाना करें. इससे आपको सनटेन की समस्या से पूरी तरह से निजात मिलेगा. क्योंकि खीरे में कूलिंग इफेक्ट होता है , जो स्किन को ठंडक पहुंचाने का काम करता है. वहीं इसमें विटामिन सी की मौजूदगी स्किन को मोइस्चर प्रदान करने का काम करती है.

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2. खोई रंगत को लौटाए

धूलमिट्टी व प्रदूषण के कारण स्किन का नेचुरल ग्लो खत्म होने लगता है. स्किन डल सी दिखने लगती है. ब्यूटी प्रोडक्ट्स भी स्किन के नेचुरल ग्लो को वापिस नहीं ला पाते हैं. ऐसे में जब भी हमारी नजर हमारे चेहरे पर पड़ती है तो हम मन ही मन बस यही सोचते हैं कि हमारे चेहरे को क्या से क्या हो गया. कैसे हमारी स्किन पर पहले जैसा ग्लो आ पाएगा. तो आपको बात दें कि आपके चेहरे की खोई हुई रंगत को वापिस लौटाने में खीरा कमाल का रोल निभाएगा. क्योंकि इसमें एंटी इंफेल्मैटरी और हाईड्रेटेड प्रोपर्टीज जो होती हैं. जो स्किन के नेचुरल ग्लो को वापिस लाने का काम करती है.

कैसे करें अप्लाई- आप खीरे का जूस निकाल कर उसे एक स्प्रे बोतल में स्टोर करके रख लें. फिर उसे स्किन पर स्प्रे करके कॉटन बोल्स की मदद से स्किन को क्लीन करें. इससे जितनी भी धूलमिट्टी चेहरे पर जमा होगी सब रिमूव हो जाएगी और धीरे धीरे स्किन की रंगत वापिस लौटने लगेगी.

3. आंखों के नीचे की सूजन को गायब करे

बहुत से लोगों को यह समस्या होती है कि उनकी आंखों के नीचे सूजन आ जाती है जिसे ऑय पफ ीनेस भी कहते हैं. जो उनके पूरे लुक को बिगाड़ने का काम करता है. ये समस्या अकसर तब होती है जब या तो हमारी नींद पूरी नहीं होती, या फिर स्ट्रेस, अल्कोहल के ज्यादा सेवन के कारण ये प्रोब्लम होती है. ऐसे में आप खीरे के इस्तेमाल से आंखों के नीचे की सूजन को काफी हद तक कम कर सकते हैं. क्योंकि खीरे का कूलिंग इफ़ेक्ट सूजन को कम करने में सक्षम जो होता है.

कैसे करें अप्लाई- आप खीरे को काटकर उसकी दो मोटी मोटी स्लाइस करके उसे आंखों पर इस तरह से लगाएं कि आंखों के नीचे की सूजन वाला हिस्सा भी अच्छे से कवर हो जाए. इसे आपको 20 मिनट तक अप्लाई करना होगा. इससे न सिर्फ आपकी आंखों को ठंडक मिलेगी बल्कि आपको इस प्रोब्लम से कुछ ही दिनों में छुटकारा मिल जाएगा.

4. उम्र का न पड़े असर

कौन चाहता है बूढ़ा होना और कई बार तो समय से पहले ही चेहरे से बुढ़ापा झलकने लगता है. जो आपके कोन्फिडेन्स के साथ साथ आपकी पर्सनालिटी को भी डल करने का काम करता है. लेकिन खीरा स्किन को टाइट कर झुर्रियों व डार्क सर्कल्स को दूर करने का काम करता है. खीरे में मोझूद पोटैशियम और मैग्नीशियम स्किन पर उम्र बढ़ने के संकेतों को पैदा होने से रोकने का काम करते हैं. तो अगर आप खुद को हर उम्र में यंग दिखाना चाहते हैं तो चेहरे पर इस तरह करें खीरे का इस्तेमाल कि एजिंग की समस्या के साथ साथ आपकी स्किन खिल उठे.

कैसे करें अप्लाई- अंडे के सफेद वाले भाग जिसमें प्रोटीन होता है में 2 बड़े चम्मच खीरे का रस मिलाकर उसमें नींबू की कुछ बूंदे मिलाएं. फिर इस पेस्ट को अच्छे से मिलाकर 20 मिनट के लिए चेहरे पर लगा छोड़ दें. और फिर धो लें. तुरंत ही आप अपने चेहरे पर बदलाव देखने लगेंगे. ऐसा आपको हफ्ते में 2 बार करना होगा.

5. एक्ने की समस्या से छुटकारा दिलवाए

चेहरे पर एक भी पिम्पल आ जाए तो मन बेचैन हो जाता है. बस हरदम यही लगता है कि किसी तरह से ये पिंपल गायब हो जाएं लेकिन बिना कुछ करे पिंपल गायब नहीं हो सकते. इसके लिए आपको घर पर ही थोड़ी मेहनत करनी होगी, जिससे आपको इससे हमेशा के लिए छुटकारा मिल सके. बता दें कि खीरे में एन्टिओक्सीडैंट्स होने के साथ साथ ये स्किन की जलन को कम करने का काम करता है. साथ ही स्किन टोन को इम्प्रूव करके स्किन पोर्स से अत्यधिक आयल को निकाल कर एक्ने की समस्या से छुटकारा दिलवाता है.

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कैसे अप्लाई करें – खीरे के पल्प में पिंच हलदी और नींबू के रस की कुछ बूंदे मिलाकर उसे फेस पर 15 मिनट के लिए लगा छोड़ दें. इससे आप पिंपल फ्री स्किन पा सकते हैं. क्योंकि हलदी में एक्सफोलिएटिंग एजेंट होने के कारण ये स्किन की जलन व पिंपल्स के धब्बों को हटाने का काम करता है. वहीं नींबू में विटामिन सी की मझुङ्गी स्किन को ग्लोइंग बनाने के साथ साथ दाग धब्बों को हटाने में सक्षम है. तो हुआ न खीरा फायदेमंद.

बारिश के मौसम में बनाएं मूंग दाल की टिक्की

बारिश के मौसम में किसे चटपटी चीजें खानी पसंद नहीं होती. बारिश में हम अकसर पकौड़े और टिक्की खाना पसंद करते हैं. तो इस बारिश आप बनाएं मूंग दाल की टिक्की.

सामग्री

1 कप भीगी मूंग दाल

1-2 हरीमिर्चें कटी

1 प्याज कटा

1 बड़ी कली लहसुन कटा

1/2 शिमलामिर्च कटी

1 टमाटर कटा

1/2 कप लौकी कसी हुई

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4 बड़े चम्मच तेल

नमक स्वादानुसार

विधि

दाल को पीस लें. हरी मिर्चें व लहसुन पीस लें. कड़ाही में तेल गरम कर बारीक काट कर प्याज व शिमलामिर्च भूनें.

अब इस में टमाटर, हरीमिर्च व लहसुन का पेस्ट व नमक मिलाएं. फिर दाल का पेस्ट मिलाएं व भूनें. 2-3 मिनट तक पका कर आंच से उतार लें.

इस की छोटी छोटी टिकियां बनाएं और गरम तवे पर दोनों तरफ से तेल लगा कर सेंक लें. चटनी के साथ सर्व करें.

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व्यंजन सहयोग : अनुपमा गुप्ता

कोरोना काल में जब आने वाले हों मेहमान

कोरोना के कारण मार्च में जब लॉक डाउन घोषित हुआ तो जनसामान्य की समस्त गतिविधियों पर ब्रेक लग गया और लोग अपने अपने घरों में कैद हो गए परन्तु अब 5 माह बाद कोरोना हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा बन गया है जिसके साथ ही हमें जीना सीखना होगा. यूँ भी जीवन चलने का नाम है अतः इंसानी गतिविधियों को रोका नहीं जा सकता. घर में अब तक कैद रहे लोग घूमने जाने का भी प्लान करने लगे हैं. कोरोना से पहले जहां लोग अतिथि के आने पर खुश होते थे वहीं अब मेहमान के आने की सूचना प्राप्त करते ही कोरोना का भूत हावी हो जाता है. आजकल ऐसा ही कुछ हाल है मेरी पड़ोसन जूही का. परसों जैसे ही उसके एक पारिवारिक मित्र ने अपने आने की सूचना दी तो जूही को समझ ही नहीं आ रहा था कि वह हंसे या रोये. अब बरसों पुराने घनिष्ट संबंधों को कोरोना के नाम पर खराब भी तो नहीं किया जा सकता. यही सब बातें जब उसने अपनी सास को बतायीं तो वे बोलीं, “कोरोना तो अब हमारे साथ ही रहने वाला है बेटा, बेहतर है कि तुम आने वाले का जोश से स्वागत करो पर हां सावधानियों का दामन लेशमात्र भी न छोड़ना.”

निस्संदेह सास से बात करके उसे बहुत अच्छा लगा और वह जोश के साथ मेहमानों के स्वागत की तैयारी में लग गयी.

रक्षाबन्धन के त्यौहार पर रश्मि की ननद अपने परिवार सहित पुणे से मुम्बई आ धमकी. आने की सूचना भी रश्मि को मात्र 3 घंटे पहले दी. अब कैसे क्या करे इस कोरोना के टाइम में, कमरों के छोटे से फ्लैट में कैसे मैनेज होगा सोचकर ही उसका सिर चकरा गया. वह अभी प्लानिंग में ही लगी थी कि ननद ने ही पुनः फोन करके कहा,”भाभी चिंता मत करियेगा हम लोग कोरोना टेस्ट करवा कर ही आ रहे हैं.मैं आकर सब मैनेज कर लूंगी. तब जाकर कहीं रश्मि को चैन आया.

इसी प्रकार कई बार हमें न चाहते हुए भी कुछ जगहों पर जाना पड़ता है. देविका की ननद के बेटे की शादी थी और देविका किसी भी कीमत पर स्वयम को इंदौर से भोपाल जाने को राजी नहीं कर पा रही थी परंतु उसके पति ने समझाया,”इकलौती बहन है मेरी हमारे न जाने से जिंदगी भर के लिए सम्बन्ध खराब हो जाएंगे. सभी लोग तो आ रहे हैं , कोरोना के कारण नाते रिश्तेदारियां तो खत्म नहीं कर सकते न. हम वहां भी पूरी सावधानियां रखेंगे.”

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वास्तव में ये समय बहुत ही कठिन समय है परंतु सत्य यह भी है कि एक महामारी के कारण ज़िंदगी की किसी भी गतिविधि पर ब्रेक नहीं लगाया जा सकता क्योंकि जिंदगी चलने का नाम है. कटु सत्य है कि इस काल में भी न चाहते हुए भी आप कभी मेजबान बनेंगे तो कभी मेहमान इसलिए कुछ बातों का ध्यान रखकर इस दौर को भी आनन्ददायक बनाना बेहतर है-

जब आप हों मेजबान

-जब भी कोई अतिथि आपके घर आये तो पैनिक होने के स्थान पर इसे बड़े ही सरल और सहज ढंग से लें इससे आप सामनेवाले का अच्छे से स्वागत सत्कार कर पाएंगी.

-यदि आपके पास पर्याप्त जगह है तो मेहमान के परिवार को अलग कमरा दें इससे आपकी और उनकी दोनों की ही प्राइवेसी बनी रहेगी और कुछ हद तक कोरोना से सुरक्षा भी.

-यदि जगह का अभाव है तो घर के हॉल में निर्धारित दूरी पर जमीन पर सोने की व्यवस्था करें साथ ही सभी के ओढ़ने बिछाने की अलग चादर रखें.

-घर के मुख्य द्वार पर हैंड सेनेटाइजर रखें और यदि हो सके तो बाहर ही हाथ पैर धोने के लिए पानी और साबुन की व्यवस्था करें ताकि किसी भी प्रकार के कीटाणु और वायरस का घर मे प्रवेश अवरुद्ध किया जा सके.

-भोजन करते समय कम से कम बातचीत करें और एक दूसरे का जूठा खाने से बचें.

-घूमने जाने से पहले घर पर हैवी नाश्ता करें और भोजन की पर्याप्त व्यवस्था करके ही जाएं ताकि बाहर के खाद्य पदार्थ खाने से आप बचे रहें क्योकि इस समय बाहर का भोजन खाने से बचना ही श्रेयस्कर है.

-भीड़भाड़ वाली जगहों पर जाने से बचें, घूमने के लिए सुबह का समय चुनें, सेनेटाइजर साथ में रखें और पर्याप्त सोशल डिस्टेंस मेंटेन रखें.

जब आप हों मेहमान

-यदि सम्भव हो तो किसी के भी घर जाने से पूर्व आप अपना कोरोना टेस्ट करवाकर ही जाएं ताकि मेजबान कोरोना की ओर से आश्वस्त होकर आपका स्वागत सत्कार कर सके.

-आप जिसके घर जा रहे हैं उनके नियम कायदों का भली भांति पालन करें ताकि आप उनके लिए सिरदर्दी या मुसीबत न बनें.

-वर्तमान काल में बस, ट्रेन और एयर से यात्रा करना लेशमात्र भी सुरक्षित नहीं है बेहतर है कि आप जाने के लिए टैक्सी अथवा अपने वाहन का प्रयोग करें इससे आप तो सुरक्षित रहेंगे ही मेजबान भी आपकी ओर से आश्वस्त रहेगा.

-यदि सम्भव हो तो परिवार के सदस्यों के अनुसार ओढ़ने बिछाने की चादर आप अपने साथ ही लेकर जाएं.

-अपने मैकअप और नहाने कपड़े धोने के साबुन साथ ही लेकर जाएं ताकि मेजबान की कम से कम वस्तुओं का आपको प्रयोग करना पड़े.

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-इस समय अधिकांश घरों में महिलाएं हाथ से समस्त कार्य कर रहीं है, ऐसे में हर समय बैठे ही न रहकर उनकी मदद करवाने का प्रयास करें ताकि उन्हें आप भारस्वरूप न प्रतीत हों.

-यथासम्भव मास्क और सेनेटाइजर का प्रयोग करें. कम से कम 4से 5 मास्क प्रत्येक सदस्य के लिए रखें क्योकि बारिश में अक्सर सूखने में समय लगता है.

-यदि मेजबान कोरोना को लेकर अतिरिक्त सावधानी बरत रहा है तो उनकी इस आदत की हंसी या खिल्ली उड़ाने के स्थान पर उन्हें सहयोग करें क्योकि ध्यान रखिए सावधानी में ही सुरक्षा है, सावधानी हटी दुर्घटना घटी.

नेहा कक्कड़ के सौंग Diamond Da Challa के सूट हैं फैस्टिव स्पैशल, आप भी कर सकती हैं ट्राय

बौलीवुड सिंगर नेहा कक्कड़ के गाने हर किसी को पसंद आते हैं. हाल ही में नेहा का पंजाबी सिंगर और एक्टर परमीश वर्मा के साथ गाना ‘डायमंड दा छल्ला’ रिलीज हुआ है, जो नंबर 1 पर ट्रेंड कर रहा है. लेकिन आज हम नेहा कक्कड़ के गानों या पर्सनल लाइफ की नहीं बल्कि उनके ‘डायमंड दा छल्ला’ सौंग में पहने गए आउटफिट के बारे में बात करेंगे. नेहा ने अपने इस सौंग में नए-नए सूट पहनें हैं, जिसे फेस्टिव सीजन में आराम से कैरी कर सकते हैं. आइए आपको दिखाते हैं नेहा कक्कड़ के फेस्टिव लुक…

प्लेन सूट के साथ लहरिया दुपट्टा है परफेक्ट

नेहा ने अपने गाने में लाइट ऑलिव ग्रीन कलर के सूट और मैचिंग प्लेन सलवार के साथ बॉर्डर पर गोल्डन फ्रिंजेज़ वाला लुक तैयार किया था, जिसके साथ खास पिंक लहरिया दुपट्टा नेहा के लुक को कम्पलीट कर रहा था. नेहा कक्कड़ के इस सूट लुक को फेस्टिव सीजन में आसानी से कैरी किया जा सकता है.

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ब्लैक कुर्ता और पटियाला सलवार है फेस्टिव परफेक्ट

 

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गाने में नेहा पंजाबी लुक कैरी करते हुए ब्लैक कुर्ते और पटियाला सलवार में भी नजर आईं. कुर्ते पर ओवरऑल गोल्डन प्रिंट किया गया था, जो माइक्रो साइज का था. वहीं फुल स्लीव्स पर इसी कलर का बड़ा प्रिंट स्टाइलिश लग रहा है. कुर्ते के साथ गोल्डन पटियाला सलवार को मैच किया गया था, जिसे  सिंपल रखा गया था.

ब्राइट कलर है स्टाइलिश

आपको अगर ब्राइट कलर्स के शौकीन हैं, तो नेहा का ये लुक आपके लिए परफेक्ट है. Diamond Da Challa  गाने के एक सीन में नेहा ब्राइट येलो कलर का सूट पहने नजर आईं थीं, जिसमें स्पैगटी स्लीव्स वाले  एंकल लेंथ कुर्ते के साथ उन्होंने मैचिंग सलवार पहनी थी और इस पर उन्होंने कलरफुल टाई एंड डाई दुपट्टा लिया था, जो बेहद स्टाइलिश लग रहा था. वहीं ज्वैलरी की बात करें तो नेहा के सिल्वर ईयररिंग्स उनके इस ब्राइट कलर लुक को कम्पलीट कर रहा है.

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वेडिंग सीजन के लिए परफेक्ट है रानी कलर सूट

neha

रानी कलर का सूट पहने नेहा का लुक शादी के लिए परफेक्ट औप्शन है. गोल्डन प्रिंट से माइक्रो साइज की बूटियां और अन्य डिजाइन से बने नेहा के सूट के डिजाइन को शिफॉन के दुपट्टे पर भी रिपीट किया गया था. इस आउटफिट पर गोटा-पट्टी वर्क भी किया गया था, जो उसकी खूबसूरती पर चार चांद लगा रहा था. ज्वैलरी की बात करें तो नेहा सिल्वर झुमकों और नोज रिंग के साथ मैच करती नजर आ रही हैं, जिसे वैडिंग सीजन में कैरी कर सकते हैं.

आत्मनिर्णय

मैं सोचती रह गई कि आज की नई पीढ़ी क्या हम बड़ों से ज्यादा समझदार हो गई है? आन्या ने जो फैसला लिया, शायद ठीक ही था, जबकि परिपक्व होते हुए भी आत्मनिर्णय लेने में मैं ने कितनी देर लगा दी थी.

मैं ने आन्या के पापा को उस के पैदा होने के महीनेभर बाद ही खो दिया था. हरीश हमारे पड़ोसी थे. वे विधुर थे और हम एकदूसरे के दुखसुख में बहुत काम आते थे. हरीश से मेरा मन काफी मिलता था. एक बार हरीश ने लिवइन रिलेशनशिप का प्रस्ताव मेरे सामने रखा तो मैं ने कहा, ‘यह मुमकिन नहीं है. आप के और मेरे दोनों के बच्चों पर बुरा असर पड़ेगा. पति को तो खो ही चुकी हूं, अब किसी भी कीमत पर आन्या को नहीं खोना चाहती. हम दोनों एकदूसरे के दोस्त हैं, यह काफी है.’ उस के बाद फिर कभी उन्होंने यह बात नहीं उठाई.

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धीरेधीरे समय का पहिया घूमता रहा और आन्या अपनी पढ़ाई पूरी कर के नौकरी करने लगी. उसे बस से औफिस पहुंचने में करीब सवा घंटा लगता था. एक दिन अचानक आन्या ने आ कर मुझ से कहा, ‘‘मम्मी, बहुत दूर है. मैं बहुत थक जाती हूं. रास्ते में समय भी काफी निकल जाता है. मैं औफिस के पास ही पीजी में रहना चाहती हूं.’’

एक बार तो उस का प्रस्ताव सुन कर मैं सकते में आ गई, फिर मैं ने सोचा कि एक न एक दिन तो वह मुझ से दूर जाएगी ही. अकेले रह कर उस के अंदर आत्मविश्वास पैदा होगा और वह आत्मनिर्भर रह कर जीना सीखेगी, जोकि आज के जमाने में बहुत जरूरी है. मैं ने उस से कहा, ‘‘ठीक है बेटा, जैसे तुम्हें समझ में आए, करो.’’

3-4 महीने बाद उस ने मुझे फोन कर के अपने पास आने के लिए कहा तो मैं मान गई, और जब उस के दिए ऐड्रैस पर पहुंच कर दरवाजे की घंटी बजाई तो दरवाजे पर एक सुदर्शन युवक को देख कर भौचक रह गई. इस से पहले मैं कुछ बोलूं, उस ने कहा, ‘‘आइए आंटी, आन्या यहीं रहती है.’’

यह सुन कर मैं थोड़ी सामान्य हो कर अंदर गई. आन्या सोफे पर बैठ कर लैपटौप पर कुछ लिख रही थी. मुझे देखते ही वह मुझ से लिपट गई और मुसकराते हुए बोली, ‘‘मम्मी, यह तनय है, मैं इस से प्यार करती हूं. इसी से मुझे शादी करनी है. पर अभी ससुराल, बच्चे, रीतिरिवाज किसी जिम्मेदारी के लिए हम मानसिक, शारीरिक और आर्थिक रूप से परिपक्व नहीं हैं. अलग रह कर रोजरोज मिलने पर समय और पैसे की बरबादी होती है. इसलिए हम ने साथ रह कर समय का इंतजार करना बेहतर समझा है. मैं जानती हूं अचानक यह देख कर आप को बहुत बुरा लग रहा है, लेकिन आप मुझ पर विश्वास रखिए, आप को मेरे निर्णय से कभी शिकायत का मौका नहीं मिलेगा.

‘‘और मैं यह भी जानती हूं, आप पापा के जाने के बाद बहुत अकेला महसूस कर रही हैं. आप हरीश अंकल से बहुत प्यार करती हैं. आप भी उन के साथ लिवइन में रह कर अपने अकेलेपन को दूर करें. फिर मुझे भी आप की ज्यादा चिंता नहीं रहेगी.’’

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यह सब सुनते ही एक बार तो मुझे बहुत झटका लगा, फिर मैं ने सोचा कि आज के बच्चे कितने मजबूत हैं. मैं तो कभी आत्मनिर्णय नहीं ले पाई, लेकिन जीवन का इतना बड़ा निर्णय लेने में उस को क्यों रोकूं. तनय बातों से अच्छे संस्कारी परिवार का लगा. अब समय के साथ युवा बदल रहे हैं, तो हमें भी उन की नई सोच के अनुसार उन की जीवनशैली का स्वागत करना चाहिए. उन पर हमारा निर्णय थोपने का कोई अर्थ नहीं है. और यह मेरी परवरिश का ही परिणाम है कि वह मुझ से दूसरे बच्चों की तरह छिपा कर कुछ नहीं करती. मैं ने तनय को अपने गले से लगाया कि उस ने आन्या के भविष्य की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले कर मुझे मुक्त कर दिया है. मैं संतुष्ट मन से घर लौट आई और आते ही मैं ने हरीश के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी.

बेड़ी नहीं विवाह: शादी के बाद क्यों कठपुतली बन जाती है लड़की

महिलाओं को विवाह के बाद अपने व्यक्तित्व को, स्वभाव को बहुत बदलना पड़ता है. समाज सोचता है कि नारी की स्वयं की पहचान कुछ नहीं है. विवाह के बाद बड़े प्यारदुलार से उस की सामाजिक, मानसिक स्वतंत्रता उस से छीनी जाती है. छीनने वाला और कोई नहीं स्वयं उस के मातापिता, सासससुर और पति नामक प्राणी होता है. विदाई के समय मांबाप बेटी को रोतेरोते समझाते हैं कि बेटी यह तुम्हारा दूसरा जन्म है. सासससुर और पति की आज्ञा का पालन करना तुम्हारा परम कर्त्तव्य है.

ससुराल में साससुसर और पति कुछ स्पष्ट और कुछ संकेतों द्वारा ससुराल के अनुसार चलने की हिदायत देते हैं. मध्यवर्गीय व उच्च मध्यवर्गीय समाज की यह खास समस्या है. पत्नी विदूषी है, किसी कला में पारंगत है, तो उस में ससुराल वाले और संकुचित मानसिकता वाला पति उस की प्रतिभा का गला घोटने में देर नहीं करता. नृत्यकला या गायन क्षेत्र हो तो उसे साफतौर पर बता दिया जाता है कि ये सब यहां नहीं चलेगा. इज्जतदार खानदान के मानसम्मान की दुहाई दी जाती.

यहां तक कि कुछ घरों में बहुओं को नौकरी करने से भी मना कर दिया जाता है. भले घर में कितनी ही आर्थिक तंगी क्यों न हो. किसीकिसी घर में जहां आर्थिक तंगी, बदहाली चरम सीमा पर पहुंची होती है वे नौकरी की आज्ञा तो दे देते हैं, पर औफिस में किसी पुरुष से बात नहीं करनी और पूरा वेतन पति या सास को देने की शर्त रख दी जाती है. कठपुतली वाली जिंदगी

सुनंदा जिला स्तर की टैनिस खिलाड़ी थी. घर भर की लाडली थी. जीवन कैसे हंसखेल कर बिताया जाता है यह उस से सीखा जा सकता था पर अपनी जीवन प्रतियोगिता में वह पिछड़ गई. देखसुन कर एक सभ्रांत घर में रिश्ता तय किया गया. पति व ससुर दोनों उच्चपदाधिकारी थे. पगफेरे के लगभग 1 महीने बाद कठपुतली की तरह व्यवहार करने को मजबूर हो गई, जिस की डोर सिर्फ ससुराल वालों के हाथ में थी. क्या पहनेगी, कहां जाएगी, कितनी बात करनी है सब पति और ससुराल वाले तय करते थे. उस की भाभी ने अपना मोबाइल उसे छिपा कर दे दिया. अवसर पाते ही सुनंदा ने मायके से फोन पर अपनी व्यथाकथा कही तो भाभी हैरान रह गईं. ऊंची दुकान फीके पकवान वाली कहावत चरितार्थ हो रही थी. अगर वह कुछ कहती तो ससुराल वाले उस के भाई व पिता को नुकसान पहुंचाने की धमकी देते. बेचारी डर के मारे चुप रह जाती.

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अवसर पाते ही पिता व भाई सुनंदा को ससुराल से वापस ले आए. 1 साल तक वह उन के साथ रही. जिला क्लब में टेबल टैनिस की कोच बन गई. साल भर तो ससुराल वालों की नाराजगी के कारण कोई खोजखबर नहीं ली पर बाद में एक दिन पति ही सिर झुकाए गिड़गिड़ाता हुआ आ पहुंचा और सुनंदा को ले जाने का आग्रह करने लगा. घरवालों ने लिखित रूप से उस से वे सब बातें लिखवाई जिन से पति और उस का पिता सुनंदा को धमकाता था. आइंदा सुनंदा के साथ कुछ गलत न करने का वादा रिकौर्ड करवा कर सुनंदा को उस के साथ भेज दिया.

सताने के नए पैंतरे एक और घटना में एक युवती का विवाह एक ऐसे घराने में हो गया. जो अव्वल दर्जे के धोखेबाज थे. उन्होंने अमीर और सभ्य बनने का नाटक किया था. वास्तव में वे लोग सिर से पैरों तक कर्ज में डृबे थे. शादी में उन्हें अच्छाखासा कैश मिलने की उम्मीद थी, जो पूरी नहीं हुईं. इस का आक्रोश निकाला गया.

युवती की सारी बुनियादी आवश्यकताओं पर रोक लग गई. पति और ससुर के खाने के बाद जो बचता वही वह खाती. फोन करने, बाहर जाने पर पाबंदी थी. मायका दूसरे शहर में था. ससुराल वाले जानपहचान वालों से भी नहीं मिलवाते. अगर कोई मिलने की इच्छा जाहिर करता तो वे कहते कि वह सोई हुई है या तबीयत खराब है. बड़ी कोशिशों के बाद परिवार को उसे वहां से निकालने का मौका मिला. जहां तक सैक्स की बात हो पति अपनी इच्छाओं को सर्वोपरि रखता है. पत्नी थकी हो या बीमार अथवा उस की इच्छा न हो, परंतु स्त्री को पति की जरूरत के आगे घुटने टेकने ही पड़ते हैं. यदि यह प्रस्ताव पत्नी की ओर से हो तो उसे पहले दर्जे की बेहया मान कर अपमानित किया जाता है यानी कदमकदम पर उस की स्वतंत्रता को रौंदा जाता है.

कुछ पुरुष तो अपनी पत्नी को अपनी जायदाद या संपत्ति समझते हैं. पिछले दिनों यह खबर सुर्खियों में थी कि एक सैनिक अपनी पत्नी को अपने सैनिक मित्रों, सहयोगियों के साथ यौन संबंध बनाने को बाध्य करता था. मना करने पर चाकू से उस के कपड़े काट देता था. सच में स्त्री के साथ ऐसा व्यवहार, ऐसी दरिदंगी बेहद खौफनाक है. एक औरत विवाह के बाद अगर इस तरह के पुरुषरूपी भेडि़यों के हाथ पड़ जाती है, तो उस की हर प्रकार की स्वतंत्रता समाप्त हो जाती है. ज्यादातर पत्नियों को स्त्री समस्या के बारे में, रेप की बढ़ती घटनाओं पर, किसी सभा में बोलने या लिखने पर भी पाबंदी लगा दी जाती है. पति शराबी है, मारपीट करता है, नपुंसक है तो भी पत्नी को उसी पति के लिए सती होना पड़ता. यानी रहने को मजबूर होना पड़ता है.

क्या करें महिलाएं विवाह के बाद महिला की स्वतंत्रता समाप्त न हो, इस के लिए स्त्रियों को स्वयं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना चाहिए. कुछ दिन पहले का मामला है, विवाह के समय दूल्हा नशे में धुत्त होशहवास खो कर डांस कर रहा था. यह देख कर दुलहन ने उस से शादी करने से इनकार करते हुए मंडप छोड़ दिया. जहांतहां दहेज लोभियों को सबक सिखाने के लिए लड़की द्वारा बरात लौटा देने के समाचार आते रहते हैं, जो अच्छा संकेत हैं.

आज की युवा पीढ़ी को चाहिए कि अपने होने वाले पति या होने वाली पत्नी के साथ मिलबैठ कर अपनी आंकाक्षाओं, विचारधाराओं से भली प्रकार एकदूसरे को अवगत करा दें. शराबी, बेरोजगार, तथा दहेज के लोभी पुरुषों का बहिष्कार कर देना चाहिए. मातापिता भी अपनी बेटियों को बेवजह घुटने टेकने के लिए मजबूर न करें.

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जिस प्रकार हम एक पौधे को जड़ से निकाल कर दूसरी जगह रोपते हैं, तो देखते हैं कि मिट्टी, पानी, हवा सब उस पौधे के लिए अनुकूल हैं अथवा नहीं. अगर मिट्टी ठीक नहीं है, पानी ज्यादा या कम दे दिया, हवा पर्याप्त न मिली तो पौधा सूख जाता है. इसी प्रकार स्त्री भी विवाह के बाद अपनी जड़ें मायके से निकाल कर ससुरालरूपी बगीचे में रोपती है. उसे स्वतंत्रता, प्यारदुलार रूपी हवा, मिट्टी मिलनी चाहिए नहीं तो उस का व्यक्तित्व मुरझा जाएगा. विवाह नारी स्वंतत्रता का अंत नहीं. प्रत्येक स्त्री को अपनी प्रतिभा, आकांक्षाओं और सपनों को संजो कर रखने का पूरा हक है. ये उस के जीवन की अमूल्य धरोहर हैं, जिन्हें नष्ट होने से रोकना है. उन का व्यक्तित्व और अस्तित्व एक ऐसा भवन है, जिसे खंडित करने का हक किसी को नहीं है.

यदि स्त्री किसी कारणवश ऐसे नर्क से गुजर रही है, तो उसे किसी की सहायता लेनी चाहिए. अपनी निजी स्वतंत्रता का हनन होने से रोकना चाहिए. नारी एक जननी है. उस का अपमान करना, उस पर अत्याचार करना या उस की मानसिक, शारीरिक, स्वतंत्रता पर पाबंदी लगाना, जघन्य अपराध ही नहीं पूरे परिवार के विकास में भी बाधा है.

नश्तर: पति के प्यार के लिए वे जिंदगीभर क्यों तरसी थी?

लेखक- नीलम कुलश्रेष्ठ

पैरों की एडि़यां तड़कने लगी हैं, चेहरे की झुर्रियां भी जबतब कसमसाने लगी हैं. कितनी भी कोल्ड क्रीम घिसें, थोड़ी देर में ही जैसे त्वचा तड़कने लगती है. बूढ़े लोगों को देखना और बात है, लेकिन बुढ़ापे को अपने शरीर में महसूस करना और बात. सारी इंद्रियों की शक्ति धीरेधीरे जाने कहां लुप्त होने लगती है. बस, एक ही चीज खत्म नहीं होती, और वह है अंदर की चेतना.

कभीकभी उन्हें झुंझलाहट भी होती है कि सारी शक्ति की तरह यह चेतना भी क्षीण क्यों नहीं हो जाती. यदि ऐसा हो जाए तो कितना अच्छा हो. सुबह उठ कर खाओपीओ, हलकेफुलके काम करो और सो जाओ, अवकाशप्राप्त जिंदगी में और है ही क्या, लेकिन ऐसा होता कहां है.

उन की चेतना के आंचल में ढेरों नश्तर घुसे हुए हैं. वे चाहती हैं कि उन्हें नोच कर बाहर फेंक दें. वे तो जमीन में उगे कैक्टस की मानिंद हैं, ऊपर से कितना भी काटो, फिर उग आएंगे. एक नश्तर तो उन की चेतना में पिरोए दिल की झिल्ली में जैसे बारबार दंश मारता रहता है.

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अर्चना दीदी उन से 5 वर्ष छोटी हैं. वे गौरवर्णा, चिकनी त्वचा वाली गोलमटोल महिला हैं. अकसर ऐसी स्त्रियों के गाल उन्नत होते हैं और आंखें छोटीछोटी व कटीली. वे इन का इस्तेमाल करना भी खूब जानती हैं. कहने को तो वे विजयजी की दूर के रिश्ते की बहन हैं, लेकिन जब भी घर में कदम रखेंगी, आंखें नचा कर, तरहतरह के मुंह बना कर इस तरह बात करेंगी कि विजयजी हंसतेहंसते लोटपोट हो जाते हैं.

अपनी ही बात पर मोहित हो वे विजयजी के गले में बांहें डाल देंगी, ‘क्यों भैया, मैं ने ठीक कहा न?’

‘तुम गलत ही कब कहती हो,’ विजयजी उन की ब्लाउज व साड़ी के बीच की खुली कमर को अपनी बांहों में घेर कर उन्हें अपने पास खींच लेंगे.

वे यह नाटक कुछ महीनों से देखती चली आ रही हैं. कुछ बोलने की हिम्मत नहीं होती. घर के किसी कोने में आंसू बहाती रहती हैं या कुढ़ती रहती हैं. इस गले लगाने या लिपटने से आगे भी उन दोनों के बीच कुछ और है, वे टोह नहीं ले पाई हैं. वैसे भी वे हर समय पति के पीछे थोड़े ही लगी रहती हैं.

कभीकभी उन्हें अपनेआप पर बेहद खीझ होती है कि क्यों उन्होंने खुद को दब्बू बना रखा है? शादी से पहले जब वे सोफे पर कूद कर ‘धम’ से बैठती तो मां बड़बड़ाया करती थीं, ‘क्या लड़कों जैसी उछलतीकूदती रहती है, जरा लड़कियों जैसी नजाकत से रहा कर.’

तीज से एक दिन पहले मां एक कटोरी में मेहंदी घोल कर बैठ जातीं. तब वे बहाना बनातीं, ‘मां, कल विज्ञान का टैस्ट है.’

‘तू हर साल बहाना करती है. लड़कियों को पता नहीं क्याक्या शौक होते हैं. नेलपौलिश लगाएंगी, लिपस्टिक लगाएंगी, चूडि़यां पहनेंगी. लेकिन एक तू…नंगे डंडे जैसे हाथ लिए घूमती रहती है. चल, आज तो मेहंदी का शगुन कर ले.’

बेहद खीझते हुए वे मां के सामने बैठ जातीं. मां मेहंदी में नीबू, चीनी, चाय का पानी और न जाने क्याक्या मिला कर उसे तैयार करतीं, पर मेहंदी लगवाते हुए वे शोर मचातीं, ‘मां, जल्दी करो, दुखता है.’

मां तो जैसे तीजत्योहारों पर तानाशाह बन जाती थीं, ‘चुपचाप बैठी रह. कल नहाने से पहले तुझे हरे रंग की चूडि़यां पहननी हैं.’

‘ठीक है, पहन लूंगी, लेकिन यह किस ने कानून बनाया है कि मेहंदी लगा कर उसे धो डालो. मुझे तो मेहंदी का हरा रंग ही लुभावना लगता है.’

‘तू बड़बड़ मत कर, मेहंदी बिगड़ जाएगी.’

मां के तानाशाही लाड़दुलार में जैसे उन का मन भीगभीग जाता था. वे हथियार डाल देती थीं. दूसरे दिन मेहंदी लगे हाथों में हरे रंग की चूडि़यों के साथ हरे रंग की साड़ी जैसेतैसे पिन लगा कर पहन लेतीं, मां निहाल हो उठतीं, ‘कैसी राजकुमारी सी लग रही है, जिस के घर जाएगी, वह धन्य हो जाएगा.’

अपनी शादी की दूसरी रात वे ऐसे ही तो नख से शिख तक तैयार हुई थीं. ननद व जेठानी उन्हें सजा कर स्वयं ठगी सी रह गई थीं.

लेकिन जिन के लिए सज कर वे बैठी थीं, उन्होंने बिना उन का चेहरा देखे रुखाई से कहा था, ‘जा कर कपड़े बदल लीजिए, भारी साड़ी में गरमी लग रही होगी.’

वे अपमान का घूंट पी दूसरे कमरे में जा कर सूती जरी की किनारी वाली साड़ी पहन कर आ गई थीं. उस निर्मोही ने फिर भी उन की तरफ नहीं देखा था. बत्ती बंद करते हुए कहा था, ‘शादी की भागदौड़ में आप भी थक गई होंगी, मैं भी थक गया हूं. मुझे जोरों की नींद आ रही है,’ 2 मिनट में ही करवट बदल कर गहरी नींद में सो गए थे.

विजयजी के साथ उन की शादी के शुरुआती 8 दिन ऐसे ही बीते थे. वे अनब्याही दुलहन की तरह मायके लौट आई थीं. घर में जरा भी एकांत मिलता तो अपनेआप झरझर आंसू बहने लगते. वे नहीं चाह रही थीं कि कोई उन के आंसू देखे, लेकिन मां की छठी इंद्रिय ने बेटी के मन की थाह को सूंघ ही लिया. एक दिन उन्होंने पूछ ही लिया था, ‘तू अकेले में क्यों रोती है?’

पहले तो वे सकुचाईं कि किस तरह कहें कि उन की देह को पति ने स्पर्श तक नहीं किया. फिर संकोच छोड़ कर सारी बात उन्हें बता दी.

‘यदि ऐसा था तो शर्म को त्याग कर उन से इस का कारण पूछना था.’

‘मैं ऐसी बात कैसे पूछ सकती थी?’

‘पतिपत्नी के संबंधों में संकोच कैसा? वैसे हम लोगों ने पैसा तो भरपूर दिया था, लेकिन हो सकता है कि कुछ लेनदेन के बारे में उन की नाराजगी हो?’

‘यदि वे ऐसे लालची हैं तो मैं वहां नहीं रहूंगी.’

‘बेटी, पहले तू पूछ कर तो देख.’

मां के प्रोत्साहन के कारण दूसरी बार ससुराल आ कर वे खुद को आश्वस्त महसूस कर रही थीं. जैसे ही विजयजी ने रात को बत्ती बुझानी चाही, उन्होंने उन का हाथ पकड़ लिया, ‘जरा, आज हम लोग बातचीत कर लें.’

विजयजी ने झुंझला कर हाथ छुड़ाया, ‘क्या बात करनी है? शादी हो गई, तुम इस घर की मालकिन बन गईं और क्या चाहिए?’

‘यदि मैं आप का मन नहीं जीत पाई तो मेरा इस घर में आना बेकार है.’

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‘तुम औरतों को चाहिए क्या, कपड़ा और खाना. इन चीजों की तुम्हें जिंदगीभर कमी नहीं होगी,’ फिर उन्होंने स्विच की तरफ हाथ बढ़ाना चाहा. पर उन्होंने उन का हाथ दृढ़ता से पकड़ लिया, ‘नहीं, आज मुझे इतना अधिकार दीजिए कि मैं आप से चंद बातें कर सकूं.’

वे बेमन पलंग पर तकिए के सहारे टिक कर बैठ गए, ‘अब कहो? मैं कहां नाराज हूं,’ वह उन्हें आग्नेय नेत्रों से देख कर बोले.

‘आप की आंखें तो कुछ और ही कह रही हैं,’ वे जैसे हर प्रहार के लिए कलेजा कड़ा कर के बैठी थीं.

‘मेरे चाचा से पूछो कि मेरी नाराजगी का कारण क्या है?’

‘मैं ने सुना तो था कि आप के पिताजी सीधेसादे हैं, शादी की हर बात तय करने के लिए आप के चाचा को आगे कर देते हैं.’

‘हां, उन्हीं चाचा ने रुपयों के लालच में मुझे तुम्हारे पिता के हाथों बेच दिया.’

उन का चेहरा भी तमतमा आया था, ‘मेरे पिता दूल्हा खरीदने नहीं निकले थे. उन्होंने तो अपनी जाति की प्रथा के हिसाब से रुपया दिया था. फिर मेरे पिता व्यापार करते हैं, उन के लिए 2 लाख रुपए अपनी मरजी से देना बड़ी बात नहीं थी.’

‘2 लाख? लेकिन चाचा ने तो हमें डेढ़ लाख रुपए ही दिए थे.’

‘नहीं, सच में मेरे पिता ने 2 लाख रुपए दिए थे.’

‘तो क्या मेरे चाचा झूठ बोलेंगे?’

‘इस बात का फैसला तो बाद में होगा. अब समसया यह है तो हम लोगों को सहज जीवन व्यतीत करना चाहिए.’

‘मैं तुम्हारे लिए बिका हूं, यह बात मुझे सहज नहीं होने दे रही.’

‘मैं आप को सहज कर दूंगी,’ कह कर उन्होंने स्वयं बिजली के बटन पर हाथ रख दिया. ऐसे में उन के कंगन बज उठे थे.

उन दिनों वे मन ही मन कितनी आहत होती थीं. पति तो नवविवाहिता पत्नी का दीवाना हो जाता है, लेकिन उन के हाथ में कुछ उलटा ही रचा था, जैसे कि उन्हें मेहंदी का भी उलटा रंग ही पसंद आता था. वे जबरदस्ती उन्हें अपने आकर्षण में बांध रही थीं. बस, ऐसे ही एक बेटे व बेटी की मां बन गई थीं.

कभी उन्होंने सुना था कि यदि दूल्हे व दुलहन के मन में ब्याह के मंडप के नीचे कोई गांठ हो तो वह जिंदगीभर नहीं खुलती. क्या यह बात सच है? उसी मंडप में चाचाजी ने 50 हजार रुपए अपनी जेब में खिसका लिए थे. यह बात पंडित की बहुत खुशामद करने के बाद पता लगी थी.

उन्होंने लाख कोशिश कर के देख ली थी, पर पति के दिल को वे पूरी तरह जीत नहीं पाई थीं. इसीलिए पास के स्कूल में उन्होंने नौकरी कर ली थी. बच्चों के लिए एक आया रख ली थी. दोपहर के खाने के लिए विजयजी घर पर आते थे, आया उन्हें खाना खिला देती व घर की देखभाल भी कर लेती थी.

तब स्कूल में बराबर की अध्यापिकाओं में उन का मन रम गया था. कभी स्कूल से ही पास के बाजार में चाट खाने का कार्यक्रम बन जाता तो कभी फिल्म देखने का. उधर विजयजी ने भी चैन की सांस ली थी कि वे उन पर अपनी खीझ नहीं उतारतीं, अपनी सहेलियों में मस्त हैं.

एक दिन एक अध्यापिका के पिता की मृत्यु के कारण स्कूल 11 बजे ही बंद हो गया. सो, वे जल्दी घर आ गईं. 5 मिनट तक वे दरवाजा खटखटाती रहीं, तब कहीं आया ने खोला. वह कुछ हकलाते हुए बोली, ‘बच्चों को स्कूल छोड़ आईर् थी. स…स…साहब जल्दी घर आ गए हैं…’

‘क्यों?’

‘उन को दर्द हो रहा है?’

‘कहां?’

‘कमर में…न…नहीं सिर में…’

उस की हकलाहट पर उन्हें आश्चर्य हुआ. उन्होंने उसे घूर कर देखा था. यह देख उन्हें कुछ ज्यादा ही आश्चर्य हुआ कि यह तो बड़े सलीके से साड़ी बांधा करती है, पर इस समय वह बेतरतीब सी क्यों  नजर आ रही है? माला का पेंडेंट सदा बीच में रहता है, वह कंधे पर क्यों पड़ा हुआ है? बाल भी बेतरतीब हो रहे हैं. उन्हें कुछ अजीब सा लगा, लेकिन वे सीधे अंदर घुसती चली गईं. कमरे में देखा, पति कुरसी पर बैठे उलटा अखबार पढ़ रहे हैं. उन्हें हंसी आ गई, ‘क्या सिर में इतना दर्द हो रहा है कि उलटे अक्षर समझ में आ रहे हैं?’

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‘किस के सिर में दर्द हो रहा है?’

‘आप के और किस के?’

‘मेरे तो नहीं हो रहा,’ खिसिया कर उन्होंने उलटा अखबार सीधा कर लिया.

‘कपिला तो ऐसा ही कह रही थी.’

‘पहले सिर में दर्द हो रहा था, लेकिन कपिला ने चाय बना दी. चाय के साथ दवा लेने से आराम है?’

उन्होंने कपड़े बदलने के लिए जैसे ही सोने के कमरे में कदम रखा, बिस्तर की सिलवटें देख कर तो जैसे उन का रक्त ही जम गया. एक झटके में कपिला की बेतरतीब बंधी साड़ी, उस का हकलाना, विजयजी का उलटा अखबार पढ़ना और बिस्तर की सिलवटें जैसे उन्हें सबकुछ समझा गई थीं. वे उसी कमरे में कपड़े बदलते हुए जारजार रो उठी थीं. उन्हें अपनेआप पर ही आश्चर्य हो रहा था कि वे कपिता के बाल पकड़ कर उसे घसीट कर घर से बाहर क्यों नहीं कर देतीं या विजयजी से लड़ कर घर में हंगामा क्यों नहीं खड़ा कर देतीं? लेकिन वे खामोश ही रहीं.

बाद में उन्होंने अचानक स्कूल से कई बार आ कर देखा, लेकिन कभी कुछ सुराग हाथ नहीं लगा.

हां, जब भी पति घर में होते, उन की आंखें हमेशा जिस ढंग से कपिला का पीछा करती रहतीं, इस से उस के प्रति उन का आकर्षण छिपा न रहता. उन दिनों वे समझ गईर् थीं कि जो पुरुष अपने मन की गांठ के कारण अपनी सुसंस्कृत पत्नी को भरपूर प्यार नहीं कर पाते, वे अपने तनमन की प्यास बुझाने के लिए अकसर भटक जाते हैं.

उस दिन को याद कर के जैसे आज भी नुकीला नश्तर उन के दिल में चुभता रहता है. जब वे कभी कपिला को टोकतीं तो वह उत्तर देती, ‘जल्दी क्या है बाईजी, अभी सारा काम हो जाएगा.’

एक बार कपिला ने एक दिन की छुट्टी मांगी, लेकिन 3 दिनों बाद काम पर लौट कर आई. वे तो मौका ही ढूंढ़ रही थीं. जानबूझ कर आगबबूला हो गईं, ‘तुझे पता नहीं है, मैं बाहर काम करती हूं?’

‘मैं ने गीता मेम की बाई को बोला तो था कि मेरे पीछे आप का काम कर ले.’

‘सिर्फ एक दिन आई थी. आज तू अपना हिसाब कर और चलती बन.’

‘पहले साहब से तो पूछ कर देख लो, मुझे निकालना पसंद करेंगे कि नहीं?’ कह कर वह कुटिलता से मुसकराई.

‘साहब कौन होते हैं घर के मामले में दखल देने वाले?’ कहते हुए उन का चेहरा तमतमा गया.

‘लो बोलो, वे तो घर के मालिक हैं…किस औरत को अपने घर में रखना है और किसे नहीं, वे ही तो सोचेंगे. मैं जब आईर् थी तो कैसे उदास रहते थे. अब कैसे खुश रहते हैं. उन की खुशी के वास्ते ही अपने घर में रख लो.’

‘तू बहुत बदतमीज औरत है.’

‘देखो, गाली मत निकालना. गाली देना हम को भी आता है,’ कपिला चिल्लाई.

उन्होंने बिना बोल मेज पर रखे पर्स में से रुपए निकाल कर उस का हिसाब चुकता कर दिया. वह बकती हुई चली गई. लेकिन क्या आज भी उन के जीवन से वह जा पाई है? उन के नारीत्व की खिल्ली उड़ाती उस की कुटिल मुसकान क्या अभी भी उन का पीछा छोड़ पाई है?

अब बुढ़ापे में यह अर्चना आ मरी है. वह अकसर अपने बचपन के किस्से सुनाती है, ‘भाभी, जब हम अपनी मौसी के यहां, यानी कि भैया की चाची के यहां गरमी की छुट्टियों में जाते थे तो जानती हो, तब ये बिलकुल जोकर लगते थे. ये किताब ले कर छत पर पढ़ने चले जाते थे. मैं पीछे से इन्हें धक्का दे कर ‘हो’ कर के डरा देती थी.’

तब हमेशा चुप रहने वाले विजयजी भी चहकते, ‘और जानती हो, इस ने मुझे भी शैतान बना दिया था. एक बार यह कुरसी पर बैठी तकिए का गिलाफ काढ़ रही थी. मैं ने इस की चोटी का रिबन कुरसी से बांध दिया था. जब यह कुरसी से उठी तो धड़ाम से ऐसे गिरी…’ विजयजी ने कुरसी पर से उठ कर गिरने का ऐसा अभिनय किया कि सीधे अर्चना की गोद में जा गिरे और दोनों देर तक खिलखिलाते, हंसते रहे.

वे क्रोध से कसमसा उठीं कि 64 वर्ष की उम्र में इस बुढ़ऊ को क्या हो गया है. फसाद की जड़ यह अर्चना ही है. इस के पति अकसर दौरे पर रहते हैं. बच्चे होस्टल में रह रहे हैं, इसलिए जबतब उन के घर आ टपकती है. बड़े अधिकार से आते ही घोषणा कर देती है, ‘आज तो हम यहीं खाना खाएंगे.’

विजयजी अवकाशप्राप्त हैं. इस उम्र में यदि कोई चुहल करने वाला मिल जाए तो फिर तो चांदी ही चांदी है. पत्नी से वे कभी ठीक से जुड़ नहीं पाए. अर्चना से मिल रहे इस खुलेदिल के प्यारदुलार से जैसे उन के चेहरे पर रंगत आ गई है.

वे मन ही मन कुढ़ती रहती हैं. वैसे पति ऐसा कुछ नहीं करते कि उन से लड़झगड़ सकें. दोनों के रिश्तों के ऊपर भाईबहन का बोर्ड लगा है. वे कहें भी तो क्या? वैसे उन के दिल के दौरे का कारण भी तो अर्चना ही थीं.

उस दिन दोपहर में खाना बन चुका था. खाना लगाने के लिए अर्चना की सहायता लेने वे कमरे में जा रही थीं. अचानक दरवाजे के परदे के पीछे ही वे अर्चना की आवाज सुन कर रुक गईं.

‘छोडि़ए भैया…’

‘तुम मुझे भैया क्यों कहती हो?’ विजयजी का अधीर स्वर सुनाई दिया था.

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‘जब हम युवा थे तो मैं ने आप को भैया कहने से इनकार किया था. खुद आगे बढ़ कर आप का प्यार मांगा था, लेकिन तब आप ने मेरा प्यार ठुकरा दिया था.’

‘हां, वह मेरी कायरता थी. तुम मुझ से उम्र में भी कितनी छोटी थीं. फिर मैं अपने रिश्तों के कारण डर गया था कि घर वाले क्या समझेंगे. बस, उन्हीं कारणों से तुम्हारी मां के सामने शादी का प्रस्ताव नहीं रख सका.’

‘तो अब मेरे पास क्यों आना चाह रहे हैं?’

‘इसलिए कि चाचाजी द्वारा रुपए के लालच में जबरदस्ती मेरे सिर मढ़ दी गई पत्नी के लिए मेरे दिल में कोई रुचि नहीं है.’

यह सुनते ही उन का सिर घूम गया. अपनी उम्र, अपना पूरा जीवन इस घर को दे दिया, फिर भी उम्र के इस मुकाम पर अब यह कह रहे हैं? उन्हें लगा था कि उन की छाती के बाईं ओर एक बवंडर उठ रहा है. फिर उन्हें कुछ याद न रहा कि वे कितनी देर बेहोश रही थीं.

दिल के पहले दौरे से उबरने में उन्हें महीनों लग गए थे. बेटी व बेटे के परिवार उन की देखरेख के लिए आ गए थे. उस समय पति उन के पलंग के आसपास ही रहते थे. उन्हें आश्चर्य होता कि कैसा होता है पतिपत्नी का रिश्ता. आपस में प्यार हो या न हो, एकदूसरे के साथ की आदत तो हो ही जाती है. एक की तकलीफ दूसरे की तकलीफ बन जाती है.

बेटे ने तो बहुत जिद की कि वे दोनों उस के साथ ही चलें, किंतु वे अड़ी रहीं. ‘बेटे, जब हाथपैर थकने लगेंगे, तब तो तुम्हारे पास ही आना है. अभी तुम आजादी से रहो.’

बच्चों के परिवारों के जाते ही फिर अर्चना दीदी का आना आरंभ हो गया था.

कुछ महीनों बाद उन्होंने अपने स्वास्थ्य पर काफी हद तक काबू पा लिया था. उन के मन में क्रोध उभरता रहता था कि उन की अब कितनी जिंदगी बची है, 4-5 या हद से हद 10-12 साल. फिर क्यों वे पति के संबंधों को ले कर कुढ़ती रहें? उन की बरदाश्त करने की सीमा चुक गई थी. वे समझ ही नहीं पा रही थीं कि अर्चना की बच्ची से कैसे पीछा छुड़ाएं. उन की उम्र भी ऐसी थी कि  यदि इस बारे में किसी से शिकायत करें तो वह उन की झुर्रियों को देख कर हंस देगा. उन्हें लगता है, अब अपनेआप ही कोई रास्ता खोजना होगा.

एक दिन उन्हें पता लगा कि अर्चना के पति दिवाकर दौरे से लौट आए हैं. उन्होंने अर्चना को फोन किया, ‘आज हम लोग शाम को खाने पर आप के यहां आ रहे हैं.’

उन्होंने अर्चना के घर पहुंच कर अपना लाया स्टील का डब्बा खोला और उस में से एक गुलाबजामुन निकाल कर दिवाकर के सामने खड़ी हो गईं, ‘मुंह खोलिए, मैं ने ये गुलाबजामुन खासतौर से आप के लिए बनाए हैं.’

दिवाकर ने उन के इस अचानक उमड़ रहे दुलार से हैरान हो कर मुंह खोल दिया. तब उन्होंने उन के मुंह में अपने हाथ से गुलाबजामुन डाल दिया, ‘बताइए कैसा लगा?’

‘बहुत ही स्वादिष्ठ.’

जब तक अर्चना रसोई में खाना बनाती रही, वे अपने से छोटे दिवाकर को बातों में उलझाए रहीं. पूर्व मुलाकातों में वे समझ गई थीं कि लंबी यात्राओं ने दिवाकर में किताबें पढ़ने का शौक पैदा कर दिया है…वे खानेपीने के भी बहुत शौकीन हैं.

जब भी दिवाकर शहर में होते, वे पति के संग वहीं चल देतीं. विजयजी अकसर उन के घर चलने से आनाकानी करते, क्योंकि वे अर्चना से खुल कर बातें न कर पाते थे. तब वे उन से कहतीं, ‘देखते नहीं हो, दिवाकर नहीं होते तो अर्चना किस तरह साधिकार हमारे घर आ जाती है. मेरा कितना समय उस की खातिरदारी में निकलता है. क्यों न हम लोग भी उस के घर जाया करें.’

अब मन ही मन कुढ़ने की अर्चना की बारी थी. वह भाभी को दिवाकर से देशविदेश की चर्चा करते देखती, किताबों का आदानप्रदान करते देखती तो हतप्रभ रह जाती. वह इतनी प्रतिभाशाली नहीं थी कि इतनी ऊंचीऊंची बातें कर सके.

दिवाकर तो उन से मिल कर निहाल हो उठते थे, ‘भाभीजी, आप से बातचीत कर के मुझे पहली बार पता लगा है कि महिलाओं का भी मानसिक स्तर ऊंचा हो सकता है,’

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जब भी वे शहर में होते तो अर्चना पर जोर डालते कि चलो, आज भाभीजी के यहां चलते हैं.

उन के घर के अंदर आते ही वे घोषणा कर देते, ‘भाभीजी, आज तो हम आप के हाथ का बना खाना खाएंगे. बहुत दिनों से लजीज खाना नहीं खाया है.’

तब अर्चना बुरा मान जाती, ‘तो क्या मैं बुरा खाना बनाती हूं?’

‘खाना तो तुम भी अच्छा बनाती हो, किंतु भाभीजी के हाथ के खाने की बात ही कुछ और है.’

जब वे दोनों किसी बहस में मशगूल होते तो उन की आंखों से छिपा न रहता कि  विजयजी व अर्चना के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही हैं. उन्हें पति का चेहरा देख कर मन ही मन हंसी आती.

धीरेधीरे अर्चना उन के घर आना कम करती जा रही थी. यदि आती भी तो विजयजी से कुछ दूरी बनाए रखती. उस ने मन ही मन समझ लिया था कि उस के पति भाभीजी से बेहद प्रभावित हैं. वे उम्र में बड़ी हैं तो क्या हुआ, उन का बौद्धिक आकर्षण तो उन्हें बांधे ही रखता है.

एक दिन दिवाकर उन के यहां आ कर खूब हंसे, ‘भाभाजी, जानती हैं, आप की ननद उम्र से पहले ही सठिया गई है. मैं आप से अधिक बातचीत करता हूं तो इन्हें लगता है कि हमारे बीच रोमांस चल रहा है. हो…हो…हो…भाभीजी, मैं तो यहां आना चाहता हूं, लेकिन यह ही मुझे रोकती रहती है.’

‘अर्चना दीदी, आप ने ऐसा सोच भी कैसे लिया, मेरी उम्र भी तो देखी होती. कहीं ऐसा तो नहीं है कि सावन के अंधे को हमेशा हरा ही हरा दिखाई देता है?’

भोले दिवाकर कुछ समझ न पाए, लेकिन विजयजी व अर्चना पर मानो घड़ों पानी पड़ गया.

विजयजी भी उन्हें एक साधारण गृहिणी समझते थे. अब वे भी उन के बौद्धिक ज्ञान से चमत्कृत हैं. उन्होंने एक दिन पूछा, ‘तुम में इतना ज्ञान कहां से आया?’

‘आप ने तो सारा जीवन अपनी नौकरी व अपने में ही गुमसुम रह कर निकाल दिया. पर मैं बच्चों के बड़े

होने पर कैसे जीवन काटती? इन्हीं किताबों की बातों में रुचि ले कर जीवन काटा है.’

‘मैं तुम्हारे साथ रह कर भी तुम्हें समझ नहीं पाया.’

‘तो अब समझ लीजिए,’ इतना कह कर उन्होंने पति के कंधे पर सिर टिका दिया, ‘अभी देर कहां हुई है?’

जब पति ने हंस कर उन के कंधे पर हाथ रख दिया तो उन्हें ऐसा महसूस हुआ, जैसे उन्होंने तमाम नश्तरों को थाम लिया है.

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मुझे किस तरह का डै्सिंग स्टाइल अपनाना चाहिए ताकि मैं स्लिम दिखूं?

सवाल-

मैं 5 फुट 3 इंच लंबी हूं और वजन 85 किलोग्राम है. मु झे किस तरह का डै्सिंग स्टाइल अपनाना चाहिए ताकि मैं स्लिम दिखूं?

जवाब

आप डार्क कलर के कपड़े पहनें. अगर आप को ब्लैक कलर पसंद है तो इस कलर की ड्रैस अपने वार्डरोब में जरूर रखें. पार्टी में जाना है और आप स्लिम दिखना चाहती हैं तो एक बार स्ट्राइप्स ड्रैस जरूर ट्राई करें. यह हमेशा फैशन में रहती है और पतला दिखाती है. आप हाई वेस्ट जींस, पैंट, स्कर्ट कुछ भी ट्राई कर सकती हैं.

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टीवी की लाफ्टर क्वीन भारती सिंह इन दिनों कपिल शर्मा के शो से लोगों को एंटरटेन कर रही हैं. वहीं पर्सनल लाइफ की बात करें तो भारती शादी के बाद से हमेशा प्रेग्नेंसी को लेकर सुर्खियों में रहती हैं. हाल ही में अपनी प्रेग्नेंसी के बारे में बताते हुए भारती ने कहा है कि वह और उनके पति हर्ष अगले साल तक बेबी की प्लानिंग कर लेंगे. पर आज हम भारती की प्रेग्नेंसी की नही फैशन की बात करेंगे. मोटी होने के बावजूद भारती नए-नए फैशन को ट्राय करने से नही हिचकिचाती. साथ ही हर नए आउटफिट में वे बेहद खूबसूरत नजर आती हैं. आइए आपको बताते हैं भारती सिंह के कुछ आउटफिट, जिसे आप पार्टी या फेस्टिवल में आसानी से कैरी कर सकती हैं.

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