इस संसार में कोरोना के पदार्पण करते ही मास्क, सोशल डिस्टेन्स, आइसोलेशन, क्वारन्टीन, जैसे शब्दों का भी प्रादुर्भाव हुआ. जब तक संसार में कोरोना का अस्तित्व है ये शब्द भी हमारे जीवन का हिस्सा बने रहेंगे. सोशल डिस्टेसिंग का पालन करना तो आवश्यक है परंतु उसके साथ ही कुछ बातों का ध्यान रखना भी बेहद जरूरी है ताकि हमारे किसी कार्य या व्यवहार से दूसरे को कोई चोट न पहुंचे-

1. स्वयमपर ध्यान रखें

वर्तमान में सब कुछ अनलॉक हो चुका है ऐसे में सड़क, पार्क या बाजार में बिना मास्क लगाए अथवा सोशल डिस्टेसिंग को भूलकर पास पास खड़े होकर बात करते लोंगो को देखकर कोई भी टिप्पणी करने से बचें ताकि आपकी ऊर्जा व्यर्थ न हो. बेहतर है कि आप उनसे दूरी बनाकर रखकर अपना कार्य करें.

2. विकल्प खोजें

अक्सर सुपर मार्केट में लोंगो के मास्क मुंह पर न होकर कान पर लटकते देखकर आपका असहज होना स्वाभाविक है परंतु ऐसे में आप परेशान होने की जगह इस बावत मैनेजर से बात करें या फिर स्वयम वहां से चले जाएं. यदि किसी खास की पार्टी में आपको जाना ही पड़ रहा है तो भीड़ भाड़ से दूर रहकर होस्ट से मिलें और खाना खाने का लालच किये बगैर वहां से आ जाएं ताकि आप किसी प्रकार की रिस्क से बचे रहें.

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3. विनम्र रहें

कोरोना के इस काल में लोग तमाम तरह की परेशानियां झेल रहे हैं ऐसे में आवश्यक है कि हम लोंगो के साथ अपने व्यवहार को सरल सहज रखें. अपने घरों में आने वाले कामगारों की मदद करने का प्रयास करें, उनके काम करते समय पीछे पीछे न घूमकर सोशल डिस्टेंस कायम रखें. आसपास यदि कोई कोरोना पीड़ित है तो दूर रहकर उसकी मदद करने का हरसंभव प्रयास करें. घर के बुजुर्गों का विशेष ध्यान रखते हुए उन्हें भी बाहर जाने पर सोशल डिस्टेंस कायम रखने के तरीकों से अवगत कराएं.

4. अपनी बात कहने का तरीका बदलें

अपने एकदम नजदीक खड़े व्यक्ति से गुस्से में “थोड़ा दूर खड़े होइए” के स्थान पर “मुझे लगता है कि हमें 2 फ़ीट की दूरी पर खड़े होना चाहिए’ का प्रयोग करें इससे सामने वाले को बुरा नहीं लगेगा. तुम के स्थान पर हम का प्रयोग करें. अपनी बात को सीधे कहने के स्थान पर थोड़ा सा घुमाकर इस तरह कहें कि आपकी बात किसी को बुरी न लगे. कोशिश कीजिये कि आपकी बात से किसी को चोट न पहुंचे क्योंकि इस समय सभी किसी न किसी परेशानी से ग्रस्त हैं. कुल मिलाकर हमें सोशल डिस्टेन्स तो कायम रखनी है परंतु दूसरों को सुधारने की अपेक्षा स्वयम की आदतों और स्वभाव में बदलाव करके क्योंकि हम केवल स्वयम को सुधार सकते हैं सारे जमाने को नहीं.

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