Fake Profile : शादी डौट कौम से हो जाएं सावधान, फर्जी प्रोफाइल से खा सकते हैं धोखा

Fake Profile : शादी डौट कौम पर फर्जी प्रोफाइल बना देशभर में ठगी की अनेक घटनाएं घटित हो रही हैं जिस से आज बचने की आवश्यकता है. आज वह समय है कि अगर हम आंख बंद कर विश्वास करेंगे तो धोखा खा सकते हैं.

छत्तीसगढ़ के डोंगरगांव क्षेत्र की एक युवती से ₹15 लाख 72 हजार की औनलाइन ठगी के मामले में दिल्ली से एक टूरिस्ट बन कर आए नाइजीरियाई युवक को पुलिस ने गिरफ्तार किया है. इस ने फर्जी नाम से प्रोफाइल बनाया फिर शादी का झांसा दे कर युवती को कई बार ठगा.

पुलिस ने जौनसन सैमुअल नामक उक्त नाइजीरियाई नागरिक को 12 दिसंबर को दिल्ली में पकड़ा फिर तीस हजारी कोर्ट में पेश कर अब उसे ट्रांजिट रिमांड पर छत्तीसगढ़ लाया गया है.

दरअसल, जुलाई में दर्ज शिकायत के बाद पुलिस लगातार आरोपी की तलाश में जुटी हुई थी. देश की राजधानी दाबी में अवैध तरीके से निवासरत आरोपी के पास से पुलिस ने एक लैपटौप 4 ऐंड्रौयड मोबाइल एवं पासपोर्ट जप्त किया है.

ठगी का पूरा मामला छत्तीसगढ़ के डोंगरगांव थाना क्षेत्र का है. 29 जुलाई को पीड़िता ने रिपोर्ट दर्ज कराई कि अज्ञात आरोपी द्वारा शादी डौट कौम के फर्जी प्रोफाइल द्वारा धोखाधड़ी की गई है. आरोपी ने खुद को आलोक दशपांडे बताते हुए विवाह के संबंध में बातचीत की.

उस ने यह भी बताया कि वह यूनाइटेड किंगडम में कार्यरत है. उस ने जल्द ही भारत लौटकर पीड़िता से शादी करने की बात कही. इसी बीच 11 जुलाई को एक अन्य कौल के द्वारा किसी महिला ने बताया कि आलोक देशपांडे दिल्ली एअरपोर्ट में है. उस के पास विदेशी मुद्रा है, जिसे भारतीय मुद्रा में बदलना है. इस हेतु प्रक्रिया में लगने वाला शुल्क जमा करना होगा. इस के बाद लगातार फोन कर अलगअलग खातों में उस से कुल ₹15 लाख 72 हजार जमा करा लिए. इस के बाद आरोपी ने अपने मोबाइल को बंद कर दिया.

पुलिस ने धारा 318 (4) बीएनएस के तहत मामला दर्ज कर विवेचना में लिया. पुलिस अधिकारियों के दिशानिर्देश पर पुलिस ने पूरे मामले का खुलासा करते हुए बताया कि आरोपी जौनसन विभिन्न भारतीय नामों से फेक प्रोफाइल बना कर अन्य महिलाओं को ठगने के प्रयास में था. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर और लोगों को ठगी का शिकार होने से बचा लिया।

औनलाइन ठगी के बड़े मामले में पुलिस की सतर्कता एवं आरोपी के पकड़े जाने से जागरूकता का प्रचार हुआ है. साइबर सेल राजनांदगांव की सहायता से शादी डौट कौम प्रोफाइल की पतासाजी की गई. मोबाइलधारक का लोकेशन दिल्ली, तिलक नगर प्राप्त हुआ. थाना प्रभारी डोंगरगांव निरीक्षक उपेंद्र शाह एवं साइबर सेल प्रभारी निरीक्षक विनय पम्मार के नेतृत्व में टीम दिल्ली पहुंची.

पुलिस ने दिल्ली के तिलक नगर थाना क्षेत्र के अंतर्गत चौखंडी संत नगर ऐक्सटेंशन में छापेमारी की. आरोपी किराए के मकान में रह रहा था. पुलिस ने आरोपों जौनसन सैमुअल पिता सैमुअल (40) वर्तमान निवासी डब्ल्यू जैड सी 81 संत नगर ऐक्सटेंशन, शाहपुरा थाना तिलक नगर नई दिवी, स्थाई पता एन- 18 ऐजिगबी स्टेट लागोस कंट्री, नाइजीरिया को हिरासत में ले कर पूछताछ शुरू की. साथ ही एक नग लैपटौप, 4 मोबाइल गवाहों के समक्ष जप्त किया.

आरोपी जौनसन सैमुअल के संबंध में पुलिस ने बताया कि वह साल 2018 के सितंबर माह में टूरिस्ट वीजा पर भारत आया था. उस की वीजा की अवधि 2022 में समाप्त हो गई थी. इस के बावजूद वह दिल्ली में अवैध रूप से निवासरत था. पुलिस ने बताया कि आरोपी को इस गतिविधि की सूचनापत्र के माध्यम से नाइजीरिया गणराज्य के दूतावास को दी गई.

आरोपी ने दिल्ली में रहते हुए भारतीय महिला सहयोगी के साथ मिल कर ठगी करना स्वीकार किया है. उक्त महिला द्वारा ही फर्जी बैंक खाता तथा सिम उपलब्ध कराया जाता था इसके बदले में 50% कमीशन लिया करती थी. पुलिस ने धोखाधड़ी के सुबूत पाए जाने पर धारा 3 (5) भारतीय न्याय संहिता एवं 66 डी आई टी एक्ट और जोड़ी.

साइबर सेल तथा डोंगरगांव पुलिस उस महिला की तलाश कर रही है, जो आरोपी जौनसन को बैंक खाते तथा सिम उपलब्ध कराया करती थी. उस के द्वारा एटीएम के माध्यम से अपने कमीशन की राशि निकाली जाती थी. पुलिस का मानना है कि जल्द ही उस की महिला सहयोगी भी पकड़ी जाएगी.

लालच से बचना और समझदारी

आजकल, औनलाइन ठगी एक बड़ा खतरा बन गया है. लोग अपने पैसे और व्यक्तिगत जानकारी को औनलाइन साझा करते हैं, जिस से ठगों के लिए आसान हो जाता है कि वे लोगों को ठग सकें. औनलाइन ठगी के मामले बढ़ रहे हैं और यह एक बड़ा चिंता का विषय बन गया है.

औनलाइन ठगी के कारण

औनलाइन ठगी के कई कारण हो सकते हैं। कुछ मुख्य कारण हैं :

लोगों की अज्ञानता : कई लोग औनलाइन सुरक्षा के बारे में जानकारी नहीं रखते हैं, जिस से वे औनलाइन ठगी के शिकार हो जाते हैं.

ठगों की चतुराई : ठग बहुत चतुर होते हैं और वे लोगों को ठगने के लिए नएनए तरीके ढूंढ़ते हैं.

औनलाइन सुरक्षा की कमी : कई वैबसाइट्स और ऐप्स में सुरक्षा की कमी होती है, जिस से ठगों के लिए आसान हो जाता है कि वे लोगों को ठग सकें.

औनलाइन ठगी से बचने के लिए कुछ तरीके हैं :

सुरक्षित वैबसाइट्स का उपयोग करें : केवल सुरक्षित वेबसाइट्स का उपयोग करें जो https प्रोटोकौल का उपयोग करती हैं.

मजबूत पासवर्ड का उपयोग करें : मजबूत पासवर्ड का उपयोग करें जो कम से कम 8 अक्षरों का हो और इस में अक्षर, संख्याएं और विशेष प्रतीक शामिल हों.

अपने पैसे और व्यक्तिगत जानकारी को साझा न करें : अपने पैसे और व्यक्तिगत जानकारी को किसी भी अनजान व्यक्ति के साथ साझा न करें.

संदिग्ध ईमेल और मैसेज का जवाब न दें : संदिग्ध ईमेल और मैसेज का जवाब न दें जो आप को अज्ञात लिंक पर क्लिक करने या अपने पैसे और व्यक्तिगत जानकारी को साझा करने के लिए कहते हैं.

औनलाइन ठगी के मामलों में पुलिस और अन्य अधिकारियों की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण और चुनौतीभरी है.

औनलाइन ठगी के मामलों में पुलिस और अन्य अधिकारियों की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण है. पुलिस और अन्य अधिकारी औनलाइन ठगी के मामलों की जांच करते हैं और ठगों को पकड़ने के लिए काम करते हैं.
औनलाइन ठगी के मामलों में सजा और दंड के प्रावधान भी बहुत महत्त्वपूर्ण हैं. औनलाइन ठगी के मामलों में ठगों को सजा और दंड दिया जाता है जो उन के अपराध के अनुसार होता है.

औनलाइन ठगी एक बड़ा खतरा बन गया है. लोगों को औनलाइन सुरक्षा के बारे में जानकारी रखनी चाहिए और औनलाइन ठगी से बचने के लिए सावधानियां बरतनी चाहिए. पुलिस और अन्य अधिकारी औनलाइन ठगी के मामलों की जांच करते हैं और ठगों को पकड़ते हैं.

Social Satire In Hindi : एक दिन का सुलतान

Social Satire In Hindi  : मुझे उन्होंने राष्ट्रपति पुरस्कार दे दिया. उन की मरजी, वे जानें कि क्यों दिया? कैसे दिया? मैं तो नहीं कहता कि मैं कोई बहुत बढि़या अध्यापक हूं. हां, यह तो कह सकता हूं कि मुझे पढ़ने और पढ़ाने का शौक है और बच्चे मुझे अच्छे लगते हैं. यदि पुरस्कार देने का यही आधार है, तो कुछ अनुचित नहीं किया उन्होंने, यह भी कह सकता हूं.

जिस दिन मुझे पुरस्कार के बाबत सूचना मिली तरहतरह के मुखौटे सामने आए. कुछ को असली खुशी हुई, कुछ को हुई ही नहीं और कुछ को जलन भी हुई. अब यह तो दुनिया है. सब रंग हैं यहां, हम किसे दोष दें? क्या हक है हम को किसी को दोष देने का? मनुष्य अपना दृष्टिकोण बनाने को स्वतंत्र है. जरमन दार्शनिक शापनहोवर ने भी तो यही कहा था, ‘‘गौड भाग्य विधाता नहीं है, वह तो मनुष्य को अपनी स्वतंत्र बुद्धि का प्रयोग करने की पूरी छूट देता है. उसे जंचे सेब खाए तो खाए, न खाए तो न खाए. अब बहकावट में आदमी ने यदि सेब खा लिया और मुसीबत सारी मानव जाति के लिए पैदा कर दी तो इस में ऊपर वाले का क्या दोष.’’

हां, तो पुरस्कार के दोचार दिन बाद ही मुझे गौर से देखने के बाद एक सज्जन बोले, ‘‘हम ने तो आप की चालढाल में कोई परिवर्तन ही नहीं पाया. आप के बोलनेचालने से, आप के हावभाव से ऐसा लगता ही नहीं कि आप को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है.’’

मैं सुन कर चुप रह गया. क्या कहता? खुशी तो मुझे हुई थी लेकिन मेरी चालढाल में परिवर्तन नहीं आया तो इस का मैं क्या करूं? जबरदस्ती नाटक करना मुझे आता नहीं. मेरी पत्नी को तो यही शिकायत रहती है कि यदि आप पहले जैसा प्यार नहीं कर सकते तो प्यार का नाटक ही कर दिया करो, हमारा गुजारा तो उस से ही हो जाएगा. हम हंस कर कह दिया करते हैं कि पुणे के फिल्म इंस्टिट्यूट जाएंगे ट्रेनिंग लेने और वह खीझ कर रह जाती है.

पुरस्कार मिलने के बारे में कई शंकाएंआशंकाएं व प्रतिक्रियाएं सामने आईं. उन्हीं दिनों मैं स्टेशन पर टिकट लेने लंबी लाइन में खड़ा था. मेरा एक छात्र, जो था तो 21वीं सदी का पर श्रद्धा रखता?था महाभारतकाल के शिष्य जैसी, पूछ बैठा :

‘‘सर, आप तो राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक हैं. क्या आप को भी इस प्रकार लाइन में खड़ा होना पड़ता है? आप को तो फ्री पास मिलना चाहिए था, संसद के सदस्यों की तरह.’’

उसे क्या पता, कहां हम और कहां संसद सदस्य. वे हम को तो खुश करने की खातिर राष्ट्रनिर्माता कहते?हैं पर वे तो भाग्यविधाता हैं. उन का हमारा क्या मुकाबला. छात्र गहरी श्रद्धा रखता?था सो उसे यह बात समझ में नहीं आई. उस ने तुरंत ही दूसरा सवाल कर डाला.

‘‘सर, आप को पुरस्कार में कितने हजार रुपए मिले? नौकरी में क्या तरक्की मिली? कितने स्कूटर, कितनी बीघा जमीन वगैरह?’’

यह सब सुन कर मैं चौंक गया और पूछा, ‘‘बेटे, यह तुम ने कैसे सोच लिया कि मास्टरजी को यह सब मिलना चाहिए?’’

उस ने कहा, ‘‘सर, क्रिकेट खिलाडि़यों को तो कितना पैसा, कितनी कारें, मानसम्मान, सबकुछ मिलता है, आप को क्यों नहीं? आप तो राष्ट्रनिर्माता हैं.’’

मुझे उस के इस प्रश्न का जवाब समझ में नहीं आया तो प्लेटफार्म पर आ रही गाड़ी की तरफ मैं लपका.

उन्हीं दिनों एक शादी में मेरा जाना हुआ. वहां मेरे एक कद्रदान रिश्तेदार ने समीप बैठे कुछ लोगों से कहा, ‘‘इन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार मिला है. तपाक से एक सज्जन बोले, ‘‘मान गए उस्ताद आप को, बड़ी पहुंच है आप की, खूब तिकड़म लगाई. कुछ खर्चावर्चा भी हुआ?’’

मैं उन की बातें सुन कर सकते में आ गया. उन्होंने मेरी उपलब्धि अथवा अन्य कार्यों के संबंध में न पूछ कर सीधे ही टिप्पणी दे डाली. पुरस्कार के पीछे उन की इस अवधारणा ने मुझे झकझोर दिया. और पुरस्कार के प्रति एक वितृष्णा सी हो उठी. क्यों लोगों में इस के प्रति आस्था नहीं है? कई प्रश्न मेरे सामने एकएक कर आते गए जिन का उत्तर मैं खोजता आ रहा हूं.

एक दिन अचानक एक अध्यापक बंधु मिले. उन की ग्रेडफिक्सेशन आदि की कुछ समस्या थी. वे मुझ से बोले, ‘‘भाई साहब, आप तो राष्ट्रीय पुरस्कारप्राप्त शिक्षक हैं. आप की बात का तो वजन विभाग में होगा ही, कुछ मेरी भी सहायता कीजिए.’’

मैं ने उन को बताया कि मेरे खुद के मामले ही अनिर्णीत पड़े हैं, कौन जानता है मुझे विभाग में. कौन सुनता है मेरी. मैं ने उन्हें यह भी बताया कि एक बार जिला शिक्षा अधिकारी से मिलने गया था. मैं ने अपनी परची में अपने नाम के आगे ‘राष्ट्रीय पुरस्कारप्राप्त’ भी लिख दिया था. मुझे पदवी लिखने का शौक नहीं है पर किसी ने सुझा दिया था. मैं ने भी सोचा कि देखें कितना प्रभाव है इस लेबल का. सो, आधा घंटे तक तो बुलाया ही नहीं. बाद में डेढ़ बजे बाहर निकलते हुए मेरे पूछने पर कहा, ‘‘आप साढ़े 3 बजे मिलिएगा.’’ और फिर उस दिन वे लंच के बाद आए ही नहीं और हम अपने पुरस्कार को याद करते हुए लौट आए.

मुझे अफसोस है कि मुझे पुरस्कार तो दिया गया पर पूछा क्यों नहीं जाता है, पहचाना क्यों नहीं जाता है, सुना क्यों नहीं जाता है? क्यों यह मात्र एक औपचारिकता ही है कि 5 सितंबर को एक जलसे में कुछ कर दिया जाता है और बस कहानी खत्म.

एक बार मैं ऐसे ही पुरस्कार समारोह के अवसर पर बैठा था. मेरी बगल में बैठे शिक्षक मित्र ने पूछा, ‘‘आप तो पुरस्कृत शिक्षक हैं, आप को तो आगे बैठना चाहिए. आप का तो विशेष स्थान सुरक्षित होगा?  आप को तो हर वर्ष बुलाते होंगे?’’

मैं ने कहा, ‘‘भाई मेरे, मुझे ही शौक है लोगों से मिलने का सो चला आता हूं. निमंत्रण तो इन 10 वर्षों में केवल 2 बार ही पहुंच पाया है और वह भी इसलिए कि निमंत्रणपत्र भेजने वाले मेरे परिचित एवं मित्र थे.

समारोह में कुछ व्यवस्थापक सदस्य आए और कुछ लोगों को परचियां दे गए, और कहा, ‘‘आप लोग समारोह के बाद पुरस्कृत शिक्षकों के साथ अल्पाहार लेंगे.’’ मेरे पड़ोसी ने फिर पूछा, ‘‘आप तो पुरस्कृत शिक्षक?हैं, आप को क्यों नहीं दे रहे हैं यह परची?’’ मैं ने एक लंबी सांस ली और कहा, ‘‘अरे, भाई साहब, यह पुरस्कार तो एक औपचारिकता है, पहचान थोड़े ही है. एक महान पुरुष ने चालू कर दिया सो चालू हो गया. अब चलता रहेगा जब तक कोई दूसरा महापुरुष बंद नहीं कर देगा.’’

बगल वाले सज्जन ने पूछा, ‘‘तो क्या ऐसे महापुरुष भी हैं जो बंद कर देंगे.’’

‘‘अरे, साहब, क्या कमी है इस वीरभूमि में ऐसे बहादुरों की. देखिए न, पुरस्कार प्राप्त शिक्षकों को 3 वर्षों की सेवावृद्धि स्वीकृत थी पर बंद कर दी न किसी महापुरुष ने.’’

‘‘अच्छा, यह तो बताइए कि लोग क्या देते हैं आप को? क्या केवल 1 से 5 हजार रुपए ही?’’

‘‘जी हां, यह क्या कम है? सच पूछो तो वे क्या देते हैं हम को, देते तो हम हैं उन्हें.’’

‘‘ वह क्या?’’

‘‘अजी, हम धन्यवाद देते हैं कि वे भले ही एक दिन ही सही, हमारा अभिनंदन तो करते हैं और हम भिश्ती को एक दिन का सुलतान बनाए जाने की बात याद कर लेते हैं.’’

‘‘लेकिन उस को तो फुल पावर मिली थी और उस ने चला दिया था चमड़े का सिक्का.’’

‘‘इतनी पावर तो हमें मिलने का प्रश्न ही नहीं. पर हां, उस दिन तो डायरेक्टर, कमिश्नर, मिनिस्टर सभी हाथ मिलाते हैं हम से, हमारे साथ चाय पी लेते हैं, हम से बात कर लेते हैं, यह क्या कम है?’’ इसी बीच राज्यपाल महोदय आ गए और सब खड़े हो गए. बाद में सब बैठे भी, लेकिन कम्बख्त सवाल हैं कि तब से खड़े ही हैं.

New Year Special : ‘पुष्पा 2’ फेम आंचल मुंजाल कैसे करने वाली हैं न्यू ईयर सेलिब्रेशन, पढ़ें खास इंटरव्यू

New Year Special : हरियाणा के हिसार में जन्मीं खूबसूरत और विनम्र अभिनेत्री आंचल को बचपन से ही अभिनय की इच्छा थी. उन्होंने टीवी के अलावा हिंदी और तमिल फिल्मों में काम किया है. उन की इस जर्नी में उन की मां अनु नारंग ने हमेशा साथ दिया है. आंचल ने अपनी कैरियर की शुरुआत महज 12 वर्ष की उम्र में टैलीविजन शो ‘घोस्ट बना दोस्त’ से किया था. इस शो में आंचल ने मुनिया की भूमिका अदा की थी, जिसे दर्शकों द्वारा काफी पसंद भी किया.

इस के बाद वे धारावाहिक ‘परवरिश’ में रावी की भूमिका में नजर आईं. एकता कपूर की शो ‘बड़े अच्छे लगते हैं’ भी एक पौपुलर शो रही, जिस में उन्होंने पीहू कपूर की भूमिका निभाई थी.

फिल्मी कैरियर

आंचल मुंजाल ने फिल्मी कैरियर की शुरुआत करीना कपूर और अर्जुन रामपाल स्टारर फिल्म वी आर फैमिली से किया था, जो हौलीवुड फिल्म की रीमेक थी. इस फिल्म में आंचल ने काजोल की सब से बड़ी बेटी आलिया का किरदार निभाया था. इस के बाद वे अमिताभ बच्चन स्टारर फिल्म ‘आरक्षण’ में नजर आईं.

इन दिनों आंचल ने ‘पुष्पा’ 2 में एक छोटी सी भूमिका निभाई है, लेकिन उस का असर दर्शकों पर पड़ा है और वे इस बात से बहुत खुश हैं कि  उन्हे कौंप्लीमेंट्स मिल रहे हैं. वे कहती हैं कि इतनी बड़ी फ्रैंचाइजी के साथ जुड़ना, अभिनेता अल्लु अर्जुन के साथ काम करना और फिल्म का सफल होना मेरे लिए बड़ी बात है. हालांकि मैं ने 3 दृश्य की शूटिंग की थी, लेकिन 2 सींस कट होने के बाद भी जो दृश्य हैं वे काफी इंप्रेसिव और हीरो की लाइफ का टर्निंग पौइंट है. 2 दृश्य के कट होने पर पहले तो मुझे थोड़ा दुख हुआ था, लेकिन फिल्म की रिलीज के बाद अच्छा लगा, क्योंकि लोग मेरे एक दृश्य की तारीफ कर रहे हैं. अगली बार इस फिल्म में मुझे बड़ी भूमिका मिलने की उम्मीद है. इस 4 मिनट के सीन के लिए 8 दिन रामोजी फिल्म सिटी में कड़कती धूप में मुझे शूटिंग करना पड़ा. नीचे रेत और ऊपर सूरज था, ऐसे में इतनी गरमी में बारबार छाता भी नहीं मिलता था. शूट खत्म होने के बाद मेरे दोनों हाथों में सनबर्न हो गए थे और यह बड़ी मेहनत रही.

मिली प्रेरणा

ऐक्टिंग में आने की प्रेरणा के बारे में आंचल कहती हैं कि मेरे परिवार में कोई भी फिल्म इंडस्ट्री से नहीं है, जब मैं 3 साल की थी और मेरे कमरे में अभिनेत्री सुस्मिता सेन की एक फोटो थी, उसे देखती थी और लगता था कि वह पोस्टर मुझ से बातें कर रही है. एक दिन मैं ने मां से पूछ लिया था कि यह कौन हैं? मां ने बताया कि यह मिस यूनिवर्स और अभिनेत्री हैं। मैं ने तुरंत मां को कहा कि मुझे यही बनना है. मां ने कुछ रिऐक्ट नहीं किया, क्योंकि उन्हें मेरी बातें बकवास लगी थीं, लेकिन उस दिन से मुझे ऐक्ट्रैस बनने की इच्छा जगी और 9 साल की उम्र में मेरी मां मुझे ले कर मुंबई आई और उन्होंने मेरा पोर्टफोलियो बनवाया. सारे
प्रोडक्शन हाउस में डिस्ट्रिब्यूट किया और करीब 1 महीने बाद एक दिन मुझे ‘शन्नो की शादी’ शो की केमियो रोल के लिए कौल आया और मैं ने उस में काम किया और उस अभिनय के बाद काम मिलता गया.

रहा संघर्ष

संघर्ष के बारें में आंचल कहती हैं कि काम मिलने की चुनौतियों को मैं संघर्ष नहीं मानती. मुझे मरते दम तक केवल ऐक्टिंग ही करनी है और इस के लिए मैं मेहनत करती हूं। मुझे जो भी काम चाहे छोटा हो या बड़ा मिला, मैं करती गई। इस से मेरी पहचान इंडस्ट्री और दर्शकों के बीच में बनती गई.

पेरैंट्स के रिएक्शन के बारे में आंचल का कहना है कि किन्हीं कारणों से मेरी मां का तलाक हो चुका है। मैं अपनी मां के साथ रहती हूं. ऐसे में मेरे ऐक्टिंग की इच्छा जाहिर करने पर मां ने कभी मना नहीं किया, क्योंकि मैं जब हिसार में थी, तो आसपास के सभी की हूबहू नकल करती थी. कई बार मैं सब के सामने तुलसी वीरानी बन कर ऐक्टिंग किया करती थी. यह सब देखते हुए मेरी मां को समझ में आया कि मुझे मुंबई ले जाना जरूरी है, नहीं तो मेरे अभिनय की स्किल खराब होगी और वे मुंबई ले कर आईं. उस दौरान मेरी पढ़ाई भी अभिनय के साथसाथ चलती रही। मैं ने स्कूल की पढ़ाई पूरी की है. मेरी मां ने हर परिस्थिति में मेरा साथ दिया है। यही वजह है कि मैं यहां तक पहुंच पाई.

हुए कई रिजैक्शन

वे आगे कहती हैं कि रिजैक्शन बहुत हुए हैं, क्योंकि अधिकतर लोग मेरे लुक को छोटा कहते थे, जबकि मुझे फिल्मों में बड़ा दिखना था, जो मेरे लुक में नहीं था. इस से बहुत औडिशन देने पड़े. मुझे याद है कि एक बार जब मैं फिल्म ‘फुकरे’ की औडिशन के लिए गई थी, लोगों ने कहा कि मैं उस दृश्य के लिए बहुत छोटी लग रही हूं, बच्ची दिख रही हूं. बड़ा होना और बड़ा दिखने में काफी संघर्ष मेरे साथ रहा, लेकिन मेरे चेहरे पर एक मासूमियत है, जो मेरे चेहरे को सब से अलग रखती है.

वे कहती हैं कि यह सही है कि एक नामी स्टार न होने पर अच्छा काम मिलने में मुश्किलें आती हैं, क्योंकि सारे प्रोड्यूसर बड़े स्टार्स के साथ फिल्में बनाना चाहते हैं, लेकिन अगर मैं लगी रहूं, तो लोग नोटिस करते हैं और काम मिलता है. धारावाहिक ‘परवरिश’ से मैं घरघर पहचानी गई.

सहज नहीं इंटीमेट सीन्स

इंटीमेट सीन्स में सहजता के बारे में पूछने पर आंचल कहती है कि अभी तक मैं ने बहुत अधिक वैब सीरीज नहीं किए हैं, क्योंकि उन में बहुत अधिक बोल्ड सीन्स आने लगे है, इस से मेरे अंदर थोड़ा डर पैदा हो गया है, क्योंकि ऐसे दृश्य करने में मैं सहज नहीं हूं. इसलिए मुझे कई सारे वैब शोज छोड़ने भी पड़े, लेकिन प्यारा सा लव सीन किसी कहानी में अगर हो, किसी प्रकार की अश्लीलता उन में नहीं हो, तो मैं उसे करना चाहूंगी.

नहीं किए सासबहू सिरियल्स

टीवी से फिल्मों में आना आंचल के लिए मुश्किल नहीं था, क्योंकि उन्होंने कभी सासबहू वाले धारावाहिक नहीं किए हैं और यह उन का दृढ़ निश्चय था. वे कहती हैं कि जब मुझे सासबहू धारावाहिक के औफर आने लगे, तो मैं ने मना कर दिया. शो ‘बड़े अच्छे लगते हैं’ के बाद मैं ने टीवी से ब्रेक ले कर फिल्मों में काम करने का मन बनाया. पहले तमिल फिल्म की, फिर ‘घायल’ फिल्म मिली। इस तरह मेरी फिल्म की जर्नी शुरू हो गई.

वे कहती हैं कि यह सही है कि फिल्म और टीवी की ऐक्टिंग में काफी अंतर होता है। टीवी में एक चरित्र को सालों तक करना पड़ता है, जबकि फिल्म में 2 महीने ही एक चरित्र को जीना पड़ता है, लेकिन फिल्म की चरित्र को तैयार करने में मुझे बहुत मजा आता है, क्योंकि फिल्म में चरित्र की तैयारी बारीकी से करनी पड़ती है. यही वजह है कि वी आर फैमिली की आलिया की भूमिका मेरे दिल के करीब है, क्योंकि टीनएजर की इस भूमिका के कई लेयर्स थे, जिस में रोनाधोना, गुस्सा दिखाना आदि कई भाव थे, जिसे करने में मजा आया. मेरा सपना है कि मैं ‘पुष्पा’ जैसी फिल्म में मुख्य भूमिका निभाऊं, इस के लिए मेहनत जारी है और दर्शकों को सरप्राइज देने वाली हूं.

ऐक्टिंग से अधिक जरूरी फील करना

नए जैनरेशन से आंचल कहती हैं कि आप एक अच्छे कलाकार तभी बन सकते हैं, जब आप ने उस दृश्य को अंदर से फील किया हो. नहीं तो अभिनय बनावटी लगता है. अगर गुस्से की ऐक्टिंग करनी है, तो अंदर से गुस्सा आना जरूरी होता है, क्योंकि आज के कैमरे बहुत स्मार्ट होते हैं, वे ओरिजनल न होने पर
पकड़ लेते हैं. शो ‘परवरिश’ में जब एक सीन में रूपाली गांगुली मुझे डांट रही होती है, तो मैं फील करती थी कि वह मुझे रियल में डांट रही है और मुझे रोना आता था.

कठिन सीन को करना मुश्किल

फिल्म ‘घायल’ के शूट के दौरान मेरे पूरे पैरों में बैंडिज लगाया गया था और मुझे गुंडों से जान बचा कर भागना था उस दिन पीरियड्स का पहला दिन था. पूरे दिन मुझे भागते रहने का दृश्य ही करना था। इस से मुझे बहुत मुश्किल हो रही थी। कई रिटेक भी दिए.

नए साल में दिया मैसेज

आंचल कहती हैं कि मेरा यह साल बहुत अच्छा गुजरा है। आगे भी अच्छी फिल्में करूंगी और मैं दर्शकों का मनोरंजन करना चाहती हूं. मैं नए साल को एक नए प्रोजैक्ट के साथ सैलिब्रेट करना चाहती हूं. युवाओं से मेरा अनुरोध है कि नए साल को आप सभी अच्छी व नई ऊर्जा के साथ शुरू करें.

Fashion Tips : यूनिक स्टाइल के लिए ट्राई करें पर्ल, छा जाएं किसी भी पार्टी में…

Fashion Tips : फैशन समय के साथ बदलता रहता है.हर व्यक्ति यही चाहता है कि वह फैशन के साथ तालमैल बैठा कर चले. एक पैटर्न की ड्रैसेज पहन कर हम उबने लगते हैं.आर्गेनाजा व सिक्वैंस तो लंबे समय से ट्रैंड में हैं ही लेकिन कुछ समय से पर्ल आउटफिट भी काफी ट्रैंड में है.

पर्ल ज्वैलरी जहां हमें पारंपरिक लुक देती है, वहीं पर्ल आउटफिट भीड़ में भी विशेष बनाता है.पर्ल आउटफिट आप की सिंपल ड्रैस को बहुत ही खूबसूरत व स्टाइलिश बना देते हैं.

तो क्यों न आप इस बार पर्ल ज्वैलरी ही नहीं, बल्कि पर्ल आउटफिट का चयन करें और छा जाएं इस सीजन की हर पार्टी में.

किस तरह का आउटफिट करें चयन

अपनी किसी भी साड़ी को गौर्जियस लुक देना चाहती हैं तो एक पर्ल ब्लाउज अपने कलैक्शन में जरूर रखें.यह आप की प्लेन साड़ी को भी शानदार बना सकती है और यही पर्ल ब्लाउज आप लहंगा या वैस्टर्न ड्रैस के साथ भी पहन सकती हैं.इन्हें आप सिंपल, स्ट्रेप, पर्ल हैंगिंग ब्लाउज, टर्टल नैक, मोती वर्क स्लीव्स, हैवी हाल्टर, स्ट्रैप्लैस ब्लाउज में बनवा सकती हैं.

आप शिफौन, जौर्जेट, फ्रिल साड़ियों के साथ कौंट्रेस्ट कर पहन सकती हैं. सूट में भी पर्ल डिजाइन बहुत अच्छा लगता है.सूट में बौर्डर या दुपट्टा मोती वर्क आजकल खूब चलन में है.

हैवी लुक के लिए

लहंगे मे हैवी लुक के लिए आप मोती वर्क का चयन कर सकती हैं.आजकल मोतियों से बना दुपट्टा भी फैशन में है. वैस्टर्न ड्रैस को और भी कूल बनाने के लिए वन पीस या शौर्ट्स पर भी मोती वर्क का चलन है. आप यह वर्क अपनी प्लेन ड्रैस पर भी आसानी से करा सकती हैं.

टिप्स

हैवी पर्ल आउटफिट के लिए स्टेटमैंट नैकलेस और पर्ल झुमके कैरी करें और यदि लाइट पर्ल वर्क है तो आप हैवी पर्ल नैकपीस व वेस्ट बेल्ट का भी प्रयोग कर सकती हैं.ये आप को हैवी लुक देंगे.

पर्ल ड्रैस के साथ नैचुरल मेकअप करें.पिंक, कोरल या न्यूड टच लिपस्टिक शेड आप के पर्ल लुक को और भी निखारता है.अगर आप की हैवी बौडी है तो आप लाइट मोती वर्क ट्राइ करें क्योंकि हैवी वर्क आप को और भी हैवी दिखाएगा.

Comedy Story In Hindi : कहो, कैसी रही चाची

Comedy Story In Hindi : लड़की लंबी हो, मिल्की ह्वाइट रंग हो, गृहकार्य में निपुण हो… ऐसी बातें तो घरों में तब खूब सुनी थीं जब बहू की तलाश शुरू होती थी. जाने कितने फोटो मंगाए जाते, देखे जाते थे.

फिर लड़की को देखने का सिलसिला शुरू होता था. लड़की में मांग के अनुसार थोड़ी भी कमी पाई जाती तो उसे छांट दिया जाता. यों, अब सुनने में ये सब पुरानी बातें हो गई हैं पर थोड़े हेरफेर के साथ घरघर की आज भी यही समस्या है.

अब तो लड़कियों में एक गुण की और डिमांड होने लगी है. मांग है कि कानवेंट की पढ़ी लड़की चाहिए. यह ऐसी डिमांड थी कि कई गुणसंपन्न लड़कियां धड़ामधड़ाम गिर गईं.

अच्छेअच्छे वरों की कतार से वे एकदम से बाहर कर दी गईं. उन में कुंभी भी थी जो मेरे पड़ोस की भूली चाची की बेटी थी.

‘‘कानवेंट एजुकेटेड का मतलब?’’ पड़ोस में नईनई आईं भूली चाची ने पूछा, जो दरभंगा के किसी गांव की थीं.

‘‘अंगरेजी जानने वाली,’’ मैं ने बताया.

‘‘भला, अंगरेजी में ऐसी क्या बात है भई, जो हमारी हिंदी में नहीं…’’ चाची ने आंख मटकाईं.

‘‘अंगरेजी स्कूलों में पढ़ने वाली लड़कियां तेजतर्रार होती हैं. हर जगह आगे, हर काम में आगे,’’ मैं ने उन्हें समझाया, ‘‘फटाफट अंगरेजी बोलते देख सब हकबका जाते हैं. अच्छेअच्छों की बोलती बंद हो जाती है.’’

‘‘अच्छा,’’ चाची मेरी बात मानने को तैयार नहीं थीं, इसलिए बोलीं, ‘‘यह तो मैं अब सुन रही हूं. हमारे जमाने की कई औरतें आज की लड़कियों को पछाड़ दें. मेरी कुंभी तो अंगरेजी स्कूल में नहीं पढ़ी पर आज जो तमाम लड़कियां इंगलिश मीडियम स्कूलों में पढ़ रही हैं, कुछ को छोड़ बाकी तो आवारागर्दी करती हैं.’’

‘‘छी…छी, ऐसी बात नहीं है, चाची.’’

‘‘कहो तो मैं दिखा दूं,’’ चाची बोलीं, ‘‘घर से ट्यूशन के नाम पर निकलती हैं और कौफी शौप में बौयफे्रंड के साथ चली जाती हैं, वहां से पार्क या सिनेमा हाल में… मैं ने तो खुद अपनी आंखों से देखा है.’’

‘‘हां, इसी से तो अब अदालत भी कहने लगी है कि वयस्क होने की उम्र 16 कर दी जाए,’’ मैं ने कुछ शरमा कर कहा.

‘‘यानी बात तो घूमफिर कर वही हुई. ‘बालविवाह की वापसी,’’’ चाची बोलीं, ‘‘अच्छा छोड़ो, तुम्हारी बेटी तो अंगरेजी स्कूल में पढ़ रही है, उसे सीना आता है?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘खाना पकाना?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘चलो, गायनवादन तो आता ही होगा,’’ चाची जोर दे कर बोलीं.

‘‘नहीं, उसे बस अंगरेजी बोलना आता है,’’ यह बताते समय मैं पसीनेपसीने हो गई.

चाची पुराने जमाने की थीं पर पूरी तेजतर्रार. अंगरेजी न बोलें पर जरूरत के समय बड़ेबड़ों की हिम्मत पस्त कर दें.

उस दिन चाची के घर जाना हुआ. बाहर बरामदे में बैठी चाची साड़ी में कढ़ाई कर रही थीं. खूब बारीक, महीन. जैसे हाथ नहीं मकड़ी का मुंह हो.

‘‘हाय, चाची, ये आप कर रही हैं? दिखाई दे रहा है इतना बारीक काम…’’

‘‘तुम से ज्यादा दिखाई देता है,’’ चाची हंस कर बोलीं, ‘‘यह तो आज दूसरी साड़ी पर काम कर रही हूं. पर बिटिया, मुझे अंगरेजी नहीं आती, बस.’’

मैं मुसकरा दी. फिर एक दिन देखा, पूरे 8 कंबल अरगनी पर पसरे हैं और 9वां कंबल चाची धो रही हैं.

‘‘चाची, इस उम्र में इतने भारीभारी कंबल हाथ से धो रही हैं. वाशिंगमशीन क्यों नहीं लेतीं?’’

‘‘वाशिंगमशीन तो बहू ने ले रखी है पर मुझे नहीं सुहाती. एक तो मशीन से मनचाही धुलाई नहीं हो पाती, कपड़े भी जल्दी पतले हो जाते हैं, कालर की गंदगी पूरी हटती नहीं जबकि खुद धुलाई करने पर देह की कसरत हो जाती है. एक पंथ दो काज, क्यों.’’

चाची का बस मैं मुंह देखती रही थी. लग रहा था जैसे कह रही हों, ‘हां, मुझे बस अंगरेजी नहीं आती.’

उस दिन बाजार में चाची से भेंट हो गई. तनु और मैं केले ले रही थीं. केले छांटती हुई चाची भी आ खड़ी हुईं. मैं ने 6 केलों के पैसे दिए और आगे बढ़ने लगी.

चाची, जो बड़ी देर से हमें खरीदारी करते देख रही थीं, झट से मेरा हाथ पकड़ कर बोलीं, ‘‘रुक, जरा बता तो, केले कितने में लिए?’’

‘‘30 रुपए दर्जन,’’ मैं ने सहज बता दिया.

‘‘ऐसे केले 30 रुपए में. क्या देख कर लिए. तू तो इंगलिश मीडियम वाली है न, फिर भी लड़ न सकी.’’

‘‘मेरे कहने पर दिए ही नहीं. अब छोड़ो भी चाची, दोचार रुपए के लिए क्या बहस करनी,’’ मैं ने उन्हें समझाया.

‘‘यही तो डर है. डर ही तो है, जिस ने समाज को गुंडों के हवाले कर दिया है,’’ इतना कह कर चाची ने तनु के हाथ से केले छीन लिए और लपक कर वे केले वाले के पास पहुंचीं और केले पटक कर बोलीं, ‘‘ऐसे केले कहां से ले कर आता है…’’

‘‘खगडि़या से,’’ केले वाले ने सहजता से कहा.

‘‘इन की रंगत देख रहा है. टी.बी. के मरीज से खरीदे होंगे 5 रुपए दर्जन, बेच रहा है 30 रुपए. चल, निकाल 10 रुपए.’’

‘‘अब आप भी मेरी कमाई मारती हो चाची,’’ केले वाला घिघिया कर बोला, ‘‘आप को 10 रुपए दर्जन के भाव से ही दिए थे न.’’

‘‘तो इसे ठगा क्यों? चल, निकाल बाकी पैसे वरना कल से यहां केले नहीं बेच पाएगा. सारा कुछ उठा कर फेंक दूंगी…’’

और चाची ने 10 रुपए ला कर मेरे हाथ में रख दिए. मैं तो हक्कीबक्की रह गई. पतली छड़ी सी चाची में इतनी हिम्मत.

एक दिन फिर चाची से सड़क पर भेंट हो गई.

सड़क पर जाम लगा था. सारी सवारियां आपस में गड्डमड्ड हो गई थीं. समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे रास्ता निकलेगा. ट्रैफिक पुलिस वाला भी नदारद था. लोग बिना सोचेसमझे अपनेअपने वाहन घुसाए जा रहे थे. मैं एक ओर नाक पर अपना रुमाल लगाए खड़ी हो कर भीड़ छंटने की प्रतीक्षा कर रही थी.

तभी चाची दिखीं.

‘‘अरे, क्या हुआ? इतनी तेज धूप में खड़ी हो कर क्या सोच रही है?’’

‘‘सोच रही हूं, जाम खुले तो सड़क के दूसरी ओर जाऊं.’’

‘‘जाम लगा नहीं है, जाम कर दिया गया है. यहां सारे के सारे अंगरेजी पढ़ने वाले जो हैं. देखो, किसी में हिम्मत नहीं कि जो गलत गाडि़यां घुसा रहे हैं उन्हें रोक सके. सभ्य कहलाने के लिए नाक पर रुमाल लगाए खड़े हैं या फिर कोने में बकरियों की तरह मिमिया रहे हैं.’’

‘‘तो आप ही कुछ करें न, चाची,’’ उन की हिम्मत पर मुझे भरोसा हो चला था.

चाची हंस दीं, ‘‘मैं कोई कंकरीट की बनी दीवार नहीं हूं और न ही सूमो पहलवान. हां, कुछ हिम्मती जरूर हूं. बचपन से ही सीखा है कि हिम्मत से बड़ा कोई हथियार नहीं,’’ फिर हंस कर बोलीं, ‘‘बस, अंगरेजी नहीं पढ़ी है.’’

चाची बड़े इत्मीनान से भीड़ का मुआयना करने लगीं. एकाएक उन्हें ठेले पर लदे बांस के लट्ठे दिखे. चाची ने उसे रोक कर एक लट्ठा खींच लिया और आंचल को कमर पर कसा और लट्ठे को एकदम झंडे की तरह उठा लिया. फिर चिल्ला कर बोलीं, ‘‘तुम गाड़ी वालों की यह कोई बात है कि जिधर जगह देखी, गाड़ी घुसा दी और सारी सड़क जाम कर दी है. हटो…हटो…हटो…पुलिस नहीं है तो सब शेर हो गए हो. क्या किसी को किसी की परवा नहीं?’’

पहले तो लोग अवाक् चाची को इस अंदाज से देखने लगे कि यह कौन सी बला आ गई. फिर कुछ चाची के पीछे हो लिए.

‘‘हां, चाची, वाह चाची, तू ही कुछ कर सकती है…’’ और थोड़ी ही देर में चाची के पीछे कितनों का काफिला खड़ा हो गया. मैं अवाक् रह गई.

गलतसलत गाडि़यां घुसाने वाले सहम कर पीछे हट गए. चाची ने मेरा हाथ पकड़ा और बोलीं, ‘‘चल, धूप में जल कर कोयला हो जाएगी,’’ और बांस को झंडे की तरह लहराती, भीड़ को छांटती पूरे किलोमीटर का रास्ता नापती चाची निकल गईं. जाम तितरबितर हो चला था. कुछ मनचले चिल्ला रहे थे :

‘‘चाची जिंदाबाद…चाची जिंदाबाद.’’

चाची किसी नेता से कम न लग रही थीं. बस, अंगरेजी न जानती थीं. भीड़ से निकल कर मेरा हाथ छोड़ कर कहा, ‘‘यहां से चली जाएगी या घर पहुंचा दूं?’’

‘‘नहींनहीं,’’ मैं ने खिलखिला कर कहा, ‘‘मैं चली जाऊंगी पर एक बात कहूं.’’

‘‘क्या? यही न कहेगी तू कि कानवेंट की है, मुझे अंगरेजी नहीं आती?’’

‘‘अरे, नहीं चाची, पूरा दुलार टपका कर मैं ने कहा, ‘‘मैं जब बहू खोजूंगी तब लड़की का पैमाना सिर्फ अंगरेजी से नहीं नापूंगी.’’

चाची खिलखिला दीं, शायद कहना चाह रही थीं, ‘‘कहो, कैसी रही चाची?’’

Family Drama : क्या शादीशुदा लड़कियों को पढ़ने का हक नहीं है?

लेखक- प्रबोधकुमार गोविल

Family Drama : जब से वे सपना की शादी कर के मुक्त हुईं तब से हर समय प्रसन्नचित्त दिखाई देती थीं. उन के चेहरे से हमेशा उल्लास टपकता रहता था. महरी से कोई गलती हो जाए, दूध वाला दूध में पानी अधिक मिला कर लाए अथवा झाड़ू  पोंछे वाली देर से आए, सब माफ था. अब वे पहले की तरह उन पर बरसती नहीं थीं. जो भी घर में आता, उत्साह से उसे सुनाने बैठ जातीं कि उन्होंने कैसे सपना की शादी की, कितने अच्छे लोग मिल गए, लड़का बड़ा अफसर है, देखने में राजकुमार जैसा. फिर भी एक पैसा दहेज का नहीं लिया. ससुर तो कहते थे कि आप की बेटी ही लक्ष्मी है और क्या चाहिए हमें. आप की दया से घर में सब कुछ तो है, किसी बात की कमी नहीं. बस, सुंदर, सुसंस्कृत व सुशील बहू मिल गई, हमारे सारे अरमान पूरे हो गए.

शादी के बाद पहली बार जब बेटी ससुराल से आई तो कैसे हवा में उड़ी जा रही थी. वहां के सब हालचाल अपने घर वालों को सुनाती, कैसे उस की सास ने इतने दिनों पलंग से नीचे पांव ही नहीं धरने दिया. वह तो रानियों सी रही वहां. घर के कामों में हाथ लगाना तो दूर, वहां तो कभी मेहमान अधिक आ जाते तो सास दुलार से उसे भीतर भेजती हुई कहती, ‘‘बेचारी सुबह से पांव लगतेलगते थक गई, नातेरिश्तेदार क्या भागे जा रहे हैं कहीं. जा, बैठ कर आराम कर ले थोड़ी देर.’’

और उस की ननद अपनी भाभी को सहारा दे कर पलंग पर बैठा आती.

यह सब जब उन्होंने सुना तो फूली नहीं समाईं. कलेजा गज भर का हो गया. दिन भर चाव से रस लेले कर वे बेटी की ससुराल की बातें पड़ोसिनों को सुनाने से भी नहीं चूकतीं. उन की बातें सुन कर पड़ोसिन को ईर्ष्या होती. वे सपना की ससुराल वालों को लक्ष्य कर कहतीं, ‘‘कैसे लोग फंस गए इन के चक्कर में. एक पैसा भी दहेज नहीं देना पड़ा बेटी के विवाह में और ऐसा शानदार रोबीला वर मिल गया. ऊपर से ससुराल में इतना लाड़प्यार.’’

उस दिन अरुणा मिलने आईं तो वे उसी उत्साह से सब सुना रही थीं, ‘‘लो, जी, सपना को तो एम.ए. बीच में छोड़ने तक का अफसोस नहीं रहा. बहुत पढ़ालिखा खानदान है. कहते हैं, एम.ए. क्या, बाद में यहीं की यूनिवर्सिटी में पीएच.डी. भी करवा देंगे. पढ़नेलिखने में तो सपना हमेशा ही आगे रही है. अब ससुराल भी कद्र करने वाला मिल गया.’’

‘‘फिर क्या, सपना नौकरी करेगी, जो इतना पढ़ा रहे हैं?’’ अरुणा ने उन के उत्साह को थोड़ा कसने की कोशिश की.

‘‘नहीं जी, भला उन्हें क्या कमी है जो नौकरी करवाएंगे. घर की कोठी है.  हजारों रुपए कमाते हैं हमारे दामादजी,’’ उन्होंने सफाई दी.

‘‘तो सपना इतना पढ़लिख कर क्या करेगी?’’

‘‘बस, शौक. वे लोग आधुनिक विचारों के हैं न, इसलिए पता है आप को, सपना बताती है कि सासससुर और बहू एक टेबल पर बैठ कर खाना खाते हैं. रसोई में खटने के लिए तो नौकरचाकर हैं. और खानेपहनाने के ऐसे शौकीन हैं कि परदा तो दूर की बात है, मेरी सपना तो सिर भी नहीं ढकती ससुराल में.’’

‘‘अच्छा,’’ अरुणा ने आश्चर्य से कहा.

मगर शादी के महीने भर बाद लड़की ससुराल में सिर तक न ढके, यह बात उन के गले नहीं उतरी.

‘‘शादी के समय सपना तो कहती थी कि मेरे पास इतने ढेर सारे कपड़े हैं, तरहतरह के सलवार सूट, मैक्सी और गाउन, सब धरे रह जाएंगे. शादी के बाद तो साड़ी में गठरी बन कर रहना होगा. पर संयोग से ऐसे घर में गई है कि शादी से पहले बने सारे कपड़े काम में आ रहे हैं. उस के सासससुर को तो यह भी एतराज नहीं कि बाहर घूमने जाते समय भी चाहे…’’

‘‘लेकिन बहनजी, ये बातें क्या सासससुर कहेंगे. यह तो पढ़ीलिखी लड़की खुद सोचे कि आखिर कुंआरी और विवाहिता में कुछ तो फर्क है ही,’’ श्रीमती अरुणा से नहीं रहा गया.

उन्होंने सोचा कि शायद श्रीमती अरुणा को उन की पुत्री के सुख से जलन हो रही है, इसीलिए उन्होंने और रस ले कर कहना शुरू किया, ‘‘मैं तो डरती थी. मेरी सपना को शुरू से ही सुबह देर से उठने की आदत है, पराए घर में कैसे निभेगी. पर वहां तो वह सुबह बिस्तर पर ही चाय ले कर आराम से उठती है. फिर उठे भी किस लिए. स्वयं को कुछ काम तो करना नहीं पड़ता.’’

‘‘अब चलूंगी, बहनजी,’’ श्रीमती अरुणा उठतेउठते बोलीं, ‘‘अब तो आप अनुराग की भी शादी कर डालिए. डाक्टर हो ही गया है. फिर आप ने बेटी विदा कर दी. अब आप की सेवाटहल के लिए बहू आनी चाहिए. इस घर में भी तो कुछ रौनक होनी ही चाहिए,’’ कहतेकहते श्रीमती अरुणा के होंठों की मुसकान कुछ ज्यादा ही तीखी हो गई.

कुछ दिनों बाद सपना के पिता ने अपनी पत्नी को एक फोटो दिखाते हुए कहा, ‘‘देखोजी, कैसी है यह लड़की अपने अनुराग के लिए? एम.ए. पास है, रंग भी साफ है.’’

‘‘घरबार कैसा है?’’ उन्होंने लपक कर फोटो हाथ में लेते हुए पूछा.

‘‘घरबार से क्या करना है? खानदानी लोग हैं. और दहेज वगैरा हमें एक पैसे का नहीं चाहिए, यह मैं ने लिख दिया है उन्हें.’’

‘‘यह क्या बात हुई जी. आप ने अपनी तरफ से क्यों लिख दिया? हम ने क्या उसे डाक्टर बनाने में कुछ खर्च नहीं किया? और फिर वे जो देंगे, उन्हीं की बेटी की गृहस्थी के काम आएगा.’’

अनुराग भी आ कर बैठ गया था और अपने विवाह की बातों को मजे ले कर सुन रहा था. बोला, ‘‘मां, मुझे तो लड़की ऐसी चाहिए जो सोसाइटी में मेरे साथ इधरउधर जा सके. ससुराल की दौलत का क्या करना है?’’

‘‘बेशर्म, मांबाप के सामने ऐसी बातें करते तुझे शर्म नहीं आती. तुझे अपनी ही पड़ी है, हमारा क्या कुछ रिश्ता नहीं होगा उस से? हमें भी तो बहू चाहिए.’’

‘‘ठीक है, तो मैं लिख दूं उन्हें कि सगाई के लिए कोई दिन तय कर लें. लड़की दिल्ली में भैयाभाभी ने देख ही ली है और सब को बहुत पसंद आई है. फिर शक्लसूरत से ज्यादा तो पढ़ाई- लिखाई माने रखती है. वह अर्थशास्त्र में एम.ए. है.’’

उधर लड़की वालों को स्वीकृति भेजी गई. इधर वे शादी की तैयारी में जुट गईं. सामान की लिस्टें बनने लगीं.

अनुराग जो सपना के ससुराल की तारीफ के पुल बांधती अपनी मां की बातों से खीज जाता था, आज उन्हें सुनाने के लिए कहता, ‘‘देखो, मां, बेकार में इतनी सारी साडि़यां लाने की कोई जरूरत नहीं है, आखिर लड़की के पास शादी के पहले के कपड़े होंगे ही, वे बेकार में पड़े बक्सों में सड़ते रहें तो इस से क्या फायदा.’’

‘‘तो तू क्या अपनी बहू को कुंआरी छोकरियों के से कपड़े यहां पहनाएगा?’’ वह चिल्ला सी पड़ीं.

‘‘क्यों, जब जीजाजी सपना को पहना सकते हैं तो मैं नहीं पहना सकता?’’

वे मन मसोस कर रह गईं. इतने चाव से साडि़यां खरीद कर लाई थीं. सोचा था, सगाई पर ही लड़की वालों पर अच्छा प्रभाव पड़ गया तो वे बाद में अपनेआप थोड़ा ध्यान रखेंगे और हमारी हैसियत व मानसम्मान ऊंचा समझ कर ही सबकुछ करेंगे. मगर यहां तो बेटे ने सारी उम्मीदों पर ही पानी फेर दिया.

रात को सोने के लिए बिस्तर पर लेटीं तो कुछ उदास थीं. उन्हें करवटें बदलते देख कर पति बोले, ‘‘सुनोजी, अब घर के काम के लिए एक नौकर रख लो.’’

‘‘क्यों?’’ वह एकाएक चौंकीं.

‘‘हां, क्या पता, तुम्हारी बहू को भी सुबह 8 बजे बिस्तर पर चाय पी कर उठने की आदत हो तो घर का काम कौन करेगा?’’

वे सकपका गईं.

सुबह उठीं तो बेहद शांत और संतुष्ट थीं. पति से बोलीं, ‘‘तुम ने अच्छी तरह लिख दिया है न, जी, जैसी उन की बेटी वैसी ही हमारी. दानदहेज में एक पैसा भी देने की जरूरत नहीं है, यहां किस बात की कमी है, मैं तो आते ही घर की चाबियां उसे सौंप कर अब आराम करूंगी.’’

‘‘पर मां, जरा यह तो सोचो, वह अच्छी श्रेणी में एम.ए. पास है, क्या पता आगे शोधकार्य आदि करना चाहे. फिर ऐसे में तुम घर की जिम्मेदारी उस पर छोड़ दोगी तो वह आगे पढ़ कैसे सकेगी?’’ यह अनुराग का स्वर था.

उन की समझ में नहीं आया कि एकाएक क्या जवाब दें.

कुछ दिन बाद जब सपना ससुराल से आई तो वे उसे बातबात पर टोक देतीं, ‘‘क्यों री, तू ससुराल में भी ऐसे ही सिर उघाड़े डोलती रहती है क्या? वहां तो ठीक से रहा कर बहुओं की तरह और अपने पुराने कपड़ों का बक्सा यहीं छोड़ कर जाना. शादीशुदा लड़कियों को ऐसे ढंग नहीं सुहाते.’’

सपना ने जब बताया कि वह यूनिवर्सिटी में दाखिला ले रही है तो वे बरस ही पड़ीं, ‘‘अब क्या उम्र भर पढ़ती ही रहेगी? थोड़े दिन सासससुर की सेवा कर. कौन बेचारे सारी उम्र बैठे रहेंगे तेरे पास.’’

आश्चर्यचकित सपना देख रही थी कि मां को हो क्या गया है?

Hindi Story : पत्नी का कर्जदार

Hindi Story : अचानक दिल्ली में जब उस हवाई दुर्घटना के बारे में सुना तो एकाएक विश्वास ही नहीं हुआ. मैं तो बड़ी बेसब्री से कमला की प्रतीक्षा कर रही थी कि अचानक यह हादसा हो गया. कमला शादी के बाद पहली बार दिल्ली अपने मातापिता के पास आ रही थी. 5 साल पहले उस की शादी हुई थी और शादी के कुछ महीने बाद ही वह अपने पति के पास मांट्रियल चली गई थी. इसी बीच उस की गोद में एक बेटी भी आ गई थी. दिल्ली में उस का मायका हमारे घर से थोड़ी ही दूरी पर था.

मैं पिछले 8 महीने से अपने पति और बच्चों के साथ दिल्ली में ही थी. मेरे पति भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली में अतिथि प्राध्यापक के रूप में काम कर रहे थे. कमला से मिले काफी दिन हो गए थे. मैं मांट्रियल की सब खोजखबर कमला से जानने के लिए उस की बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रही थी.

कमला के पिता के घर हम अफसोस जाहिर करने गए. उस के मातापिता और परिवार के अन्य सदस्यों का बुरा हाल था. वे तो उसे पति के घर जाने के बाद एक बार देख भी नहीं पाए थे और अब क्या से क्या हो गया था.

कमला के पति राकेश को एअर लाइंस ने दुर्घटना स्थल तक जाने की सब सुविधाएं प्रदान की थीं. वह चाहता तो उस कंपनी के खर्चे पर भारत आ कर पत्नी और बेटी का दाहसंस्कार कर सकता था पर वह नहीं आया.

राकेश ने जब कमला के पिता को फोन किया, तब हम उन के घर पर ही थे. बेचारे राकेश से आग्रह कर के हार गए, पर वह दिल्ली आने को राजी नहीं हुआ. खैर, वह करते भी क्या. जमाई पर किस का हक होता है और अब तो उन की बेटी भी इस दुनिया में नहीं रही थी तो फिर वह उस को किस अधिकार से दिल्ली आने के लिए बाध्य करते.

एअर लाइंस के अधिकारी दुर्घटना में मरे यात्रियों के निकट संबंधियों से मुआवजे के बारे में बातचीत कर रहे थे. यह विषय कितना दुखद हो सकता है, इस का अनुमान तो वही लगा सकते हैं जो कभी ऐसी परिस्थिति से गुजरे हों. कैसे किसी विधवा स्त्री को समझाया जाए कि उस के पति की मृत्यु का मुआवजा चंद हजार डालर ही है. कैसे किसी पति को सांत्वना दें कि उस की पत्नी का मुआवजा इसलिए कम होगा, क्योंकि वह अपने पति पर निर्भर थी. जो इनसान हमें प्राणों से भी प्यारे लगते हैं, उन के जीवन का मूल्य एअरलाइंस कुछ हजार डालर ही लगाती है.

राकेश से जब एअरलाइंस के अधिकारियों ने उस की पत्नी और बच्ची की मृत्यु पर मुआवजे की बातचीत की तो वह क्रोध और दुख से कांप उठा. उस ने साफसाफ कह दिया कि इस दुर्घटना के लिए हवाई जहाज का पायलट जिम्मेदार था. वह अपनी बच्ची और पत्नी की मृत्यु के लिए मुआवजे की एक कौड़ी भी नहीं चाहता परंतु वह एअरलाइंस पर मुकदमा चलाएगा, चाहे उसे इस के लिए भीख ही क्यों न मांगनी पड़े. वह कचहरी में कंपनी को हवाई दुर्घटना के लिए जिम्मेदार ठहरा कर ही रहेगा.

एअरलाइंस के अधिकारी राकेश को धीरज बंधाने की कोशिश कर रहे थे. अगर वास्तव में राकेश कानून का सहारा लेगा तो मुकदमा जीत जाने पर कंपनी की कहीं अधिक हानि हो सकती थी. कंपनी के अधिकारी उस के इर्दगिर्द घूमते रहे, पर उस ने मुआवजे के फार्म पर हस्ताक्षर नहीं किए. शेष जितने भी यात्रियों की मृत्यु हुई थी, लगभग हर किसी के परिवार के सदस्यों ने मुआवजे के फार्म भर दिए थे. शायद राकेश ही ऐसा था जो बिना फार्म भरे मांट्रियल वापस आ गया था. एअरलाइंस के मांट्रियल कार्यालय के अधिकारियों को राकेश को राजी करने का काम सौंप दिया गया था.

राकेश और कमला से हमारी मुलाकात कुछ वर्ष पहले हुई थी. कमला तो काफी खुशमिजाज थी, पर राकेश हमें अधिक मिलनसार नहीं लगा. वैसे तो उसे कनाडा में रहते हुए कई साल हो गए थे और मांट्रियल में भी वह पिछले 7 सालों से था, पर उस की यहां पर इक्कादुक्का लोगों से ही मित्रता थी.

एक बार बाजार में कमला मिल गई. मैं ने जब उस से कहा कि मेरे घर चलो तो वह आनाकानी करने लगी. खैर, मैं आग्रह कर के उसे अपने घर ले आई. बातों ही बातों में पता चला कि बचपन में हम दोनों एक ही स्कूल में पढ़ती थीं. वह मुझ से मिल कर बहुत खुश हुई.

यह सुन कर मुझे बहुत अजीब लगा जब कमला ने बताया कि वह जब से भारत से आई है, किसी भी भारतीय के घर नहीं गई है और न ही उस ने कभी किसी को अपने घर बुलाया है. मैं ने जब उन को अपने घर खाने का निमंत्रण दिया तो वह आनाकानी करने लगी. कहने लगी, ‘‘पता नहीं, राकेशजी शाम को खाली भी होंगे या नहीं.’’

मैं ने जिद की तो वह मान गई परंतु यह कह कर कि अगर नहीं आ सके तो हम बुरा नहीं मानें. उस की बातों से लगा कि जैसे बेचारी पति की आदतों से परेशान है. पति अगर मिलनसार न हो तो पत्नी तो बेचारी बस जीवनभर घुटघुट कर ही मर जाए.

शाम को पतिपत्नी हमारे घर खाने पर आए. कमला तो बहुत खुश थी. मेरे साथ रसोई में हाथ बंटा रही थी, परंतु राकेश कुछ खिंचाखिंचा सा था. हमें ऐसा लगा कि वह कनाडा में अपनेआप को किसी विदेशी सा ही समझता है.

कमला और राकेश के यहां हमारा कभीकभार आनाजाना होने लगा. हम तो उन दोनों को पार्टियों में ही बुलाते थे, पर वे हमें बस अकेले ही सपरिवार आमंत्रित करते थे. हमारे घर की पार्टियों में उन की मुलाकात हमारे बहुत से मित्रों से होती थी. उन में से कुछ ने तो कमला और राकेश को खाने पर भी बुलाया था, पर वे नहीं गए. कोई बहाना बना कर टाल गए थे. जब उन की बच्ची पैदा हुई तो उस के लिए हमारे अलावा शायद ही किसी और ने उपहार दिया हो. हम भी बस एक ही बार जा पाए थे.

दिल्ली से जब हम मांट्रियल वापस आ रहे थे, सारे रास्ते मन उखड़ाउखड़ा सा था. इतने महीने दिल्ली में बिताने के बाद घर वालों से बिछुड़ने का दुख भी था. दिल के एक कोने में अपने घर जल्दी पहुंचने की इच्छा भी थी. कमला और उस की बच्ची रीता का खयाल भी रहरह कर दिल में उठ रहा था. बेचारा राकेश किस तरह कमला और रीता के बिना जीवन बिता रहा होगा. हमारे बच्चे तो रीता से कितना हिलमिल गए थे. उन को तो वह गुडि़या सी लगती थी.

मांट्रियल पहुंचने के अगले दिन हम दोनों राकेश से मिलने गए. मैं ने कमला के पिता का दिया हुआ पत्र राकेश को दे दिया. राकेश काफी उदास दिखाई दे रहा था. वह बेचारा बहुत कम लोगों को जानता था. थोड़े से लोग ही उस के घर पर अफसोस करने आए थे.

वह गंभीर स्वर में बोला, ‘‘हर समय कमला और रीता की याद सताती रहती है. कुछ दिल बहलेगा, इसलिए 1-2 दिन में वापस काम पर जाने की सोच रहा हूं.’’

राकेश के पास हम कुछ देर बैठ कर लौट आए.

दोचार दिन में हमारे सब मित्रों को मालूम हो गया कि हम वापस आ गए हैं. फिर क्या था, फोन पर फोन आने लगे. मेरी लगभग सभी सहेलियां मुझ से मिलने आईं. वे सब इस बात से परेशान थीं कि कनाडा के डाक कर्मचारियों की हड़ताल के कारण पत्र आदि आने भी बंद हो गए हैं.

एक शाम दीपक हमारे घर आए. उन्हें अकेले देख कर मैं ने शिकायत के लहजे में कहा, ‘‘क्यों भाई साहब, अकेले ही आ गए. भाभीजी को भी साथ ले आते.’’

‘‘मैं तो राकेश के घर जा रहा था. सोचा, आप लोगों से मिलता जाऊं और दिल्ली की मिठाई भी खाता जाऊं. तुम्हारी भाभी तो मुझे मिठाई को हाथ भी नहीं लगाने देंगी.’’

‘‘मैं भी बस आप को थोड़ी सी मिठाई चखाऊंगी. मुझे भाभीजी से डांट नहीं खानी है.’’

मैं रसोई में चाय बनाने चली गई.

दीपक मेरे पति से बोले, ‘‘साहब, डाक कर्मचारियों की हड़ताल ने परेशान कर रखा है. देखिए, यह चेक देने मुझे राकेश के पास खुद ही जाना पड़ रहा है.’’

‘‘किस तरह का चेक है, भाई साहब,’’ मैं रसोई में चाय और कुछ मिठाई ट्रे में रख कर ले आई और चाय परोसने लगी.

‘‘राकेश ने कमला के भारत जाते समय उस का हवाई अड्डे पर 2 लाख डालर का बीमा करा लिया था. यह चेक उसी बीमे का भुगतान है. कभी हाथ पर रखा है 2 लाख डालर का चेक,’’ दीपक ने मुसकराते हुए कोट की जेब से एक लिफाफा निकाला.

लगभग आधा घंटा बैठ कर दीपक राकेश को चेक देने चले गए. उस शाम हम दोनों पतिपत्नी यही सोचते रहे कि राकेश 2 लाख डालर का क्या करेगा. हमारे जानपहचान वालों में शायद ही कोई ऐसा हो जो पत्नी का हवाई यात्रा करते समय बीमा कराता हो. पुरुष तो फिर भी करा लेते हैं, पर पत्नी के लिए तो कोई भी नहीं सोचता. खैर, यह तो राकेश और कमला की अपनी इच्छा रही होगी. यह भी तो हो सकता है कि मजाक के लिए ही उन दोनों ने ऐसा किया हो, पर राकेश हंसीमजाक के लिए तो कुछ भी नहीं करता.

हम मांट्रियल में अपने जीवन में व्यस्त हो गए थे. सोमवार से शुक्रवार तक काम और बच्चों का स्कूल. शनिवार को खरीदारी और पार्टियां तथा रविवार को बस आराम या कभीकभी किसी परिचित के घर चले जाते.

राकेश से कभीकभी फोन पर मेरे पति बात कर लेते थे. हालांकि उस की चर्चा पार्टियों में कभीकभी ही होती थी. हमारे मित्र हम से ही उस के बारे में पूछते थे. लगता था, जैसे वह बाकी सब लोगों के लिए एक अजनबी सा ही हो.

एक बार दीपक बातों ही बातों में कह गए थे, ‘‘राकेश अपनी बीवी और बच्ची के लिए एअरलाइंस से मुआवजे के रूप में बहुत बड़ी रकम की मांग कर रहा है और जिद पर अड़ा है. अब तो उस के पास 2 लाख डालर की नकद रकम भी है. एअरलाइंस के खिलाफ मुकदमा न कर दे. वैसे कंपनी इस मामले को कचहरी तक पहुंचने नहीं देना चाहती और समझौता करने की कोशिश कर रही है. राकेश शायद हवाई दुर्घटना से पीडि़त अन्य लोगों की तुलना में कई गुना मुआवजा हवाई कंपनी से हासिल करने में सफल हो जाएगा.’’

जैसा कि होता है, हम भी कमला और रीता को भूल सा गए थे. राकेश तो कभी हम लोगों के करीब आ ही नहीं पाया था. हम ने एकदो बार उसे अपने घर बुलाया भी, परंतु वह नहीं आया, हम उस से मिलने उस के घर भी गए, पर अधिक बातें न हो सकीं.

डाक विभाग के कर्मचारियों की हड़ताल काफी दिन चली. जब हड़ताल समाप्त हुई तो हमें बहुत खुशी हुई. हड़ताल खत्म होते ही डाकघरों में पड़े पुराने पत्र, टेलीफोन और बिजली आदि के बिल आने चालू हो गए.

एक दिन दिल्ली से हमारे मांट्रियल पहुंचने के पश्चात पहला पत्र आया. लिफाफा भारी लग रहा था. उस में अम्मां का काफी लंबा पत्र था. एक और लिफाफा भी था, जिसे कनाडा से ही मेरे नाम भेजा गया था. हमारे दिल्ली से चले आने के बाद वहां पहुंचा होगा, इसलिए अम्मां ने हमें भेज दिया.

मैं ने जब लिफाफा खोला तो आश्चर्यचकित रह गई. पत्र कमला का था. मेरा मन उदास हो गया क्योंकि कमला अब इस दुनिया में नहीं थी. मैं पत्र पढ़ने लगी :

प्रिय रत्ना दीदी,

आप का पत्र मिला. मेरा कुछ ऐसा कार्यक्रम बन गया है कि जब आप मांट्रियल वापस आएंगी, तब मैं दिल्ली से कानपुर पहुंच चुकी होऊंगी. मेरी माताजी से आप को मेरे दिल्ली पहुंचने की तारीख का पता चल ही गया होगा. शायद आप को यह नहीं पता कि मैं जिद कर के दिल्ली पहुंचने के एक दिन बाद ही कानपुर अपनी बड़ी बहन के पास चली जाऊंगी. इस का कारण यह है कि आप मुझ से मिलने अवश्य मेरी माताजी के घर आएंगी, पर मैं आप से मिलने का साहस नहीं जुटा पा रही हूं. अब हम शायद कभी नहीं मिल पाएंगी क्योंकि मैं अब मांट्रियल कभी नहीं लौटूंगी.

मेरे इस निर्णय का राकेश को भी पता नहीं है. हां, इस का सौ प्रतिशत उत्तरदायी वही है. हमारी शादी हुए 5 साल से ऊपर हो गए हैं, पर उस ने शायद ही कभी पति का प्यार मुझे दिया हो. राकेश ने मुझे घर की नौकरानी से अधिक कभी कुछ नहीं समझा. शादी के इतने वर्ष बीत जाने पर भी उस ने कभी मेरे लिए कोई साड़ी, गहना या छोटा सा उपहार भी नहीं खरीदा. मेरी बात को छोडि़ए रीता को भी उस ने कभी प्यार से चूमा तक नहीं, गोद में खिलाना तो दूर की बात है.

आप ने देखा ही होगा कि राकेश कितना नीरस व्यक्ति है. परंतु वास्तव में वह बहुत खुशमिजाज है, और उस की यह खुशी बस अपनी महिला मित्रों तक ही सीमित है. उस ने अपने जीवन के इस रूप से मुझे हमेशा अनजान ही रखा. खुद ऐश करने के लिए उस के पास पैसे हैं, परंतु अपनी बेटी के लिए ढंग का फ्राक खरीदने के लिए पैसे की कमी है. वह हमेशा मुझे इतने कम पैसे देता है कि घर का खर्च भी मुश्किल से चलता है.

मैं कभी राकेश को पकड़ तो नहीं पाई परंतु जानती हूं कि कई लड़कियों के साथ उस का संपर्क है. मुझे प्रमाण तो नहीं मिल पाया, पर एक पत्नी को ऐसी बातें तो मालूम हो ही जाती हैं. मैं ने कई बार उसे समझाने की कोशिश की, पर हर बार उस से मार ही खाई. मेरे भारत जाने के लिए हवाई जहाज के टिकट के पैसे खर्च करने के लिए कभी वह राजी नहीं हुआ. इस बार जब पिताजी ने टिकट भेज दिया तो मैं दिल्ली आ पा रही हूं.

प्रत्येक लड़की के मातापिता अपनी बेटी के लिए अच्छे से अच्छा वर खोजने की कोशिश करते हैं. मेरे मातापिता ने भी इतना दहेज दिया था कि राकेश के घर वाले खुशी से फूले नहीं समा रहे थे. मेरे दहेज की सारी चीजों और नकद रुपयों से उन्होंने थोड़े दिनों बाद ही राकेश की छोटी बहन की शादी कर दी थी.

राकेश ने अपने घर वालों के दबाव में आ कर मुझ से शादी की थी. उसे मैं कभी भी अपने लायक नहीं लगी, क्योंकि मैं एक सीधीसादी आकर्षण- रहित महिला हूं. मुझे कहीं अपने साथ ले जाने में भी उसे आपत्ति होती थी. बेचारी रीता भी रंगरूप में मुझ पर गई है. इसी कारण उसे कभी राकेश से पिता का प्यार नहीं मिला.

मैं तो शायद किसी भी साधारण व्यक्ति को पति के रूप में पा कर प्रसन्न रहती. कम से कम मेरे जीवन में हीन- भावना तो न घर कर पाती. राकेश मेरे लिए उपयुक्त वर भी न था. उस ने मुझ से शादी खूब सारा दहेज पाने के लिए की थी. वह उसे मिल गया. उस के बाद उस के जीवन में मेरा कोई महत्त्व न था. शारीरिक आवश्यकताएं तो वह घर के बाहर पूरी कर ही लेता था. मैं तो बस रीता के लिए ही उस के साथ विवाहित जीवन की परिधि में असहाय की तरह जीवन बिताने का प्रयास कर रही थी.

अब मैं ने निश्चय कर लिया है कि जब विवाहित हो कर भी अविवाहिता का ही जीवन बिताना है तो क्यों न अपने मातापिता के पास ही रहूं. कम से कम उन का प्यार और सहयोग तो मुझे मिलेगा ही. मुझे मालूम है, मेरे मातापिता मुझे समझाने की कोशिश करेंगे, पर जब मैं उन्हें अपनी पीठ पर उभरे राकेश की मार के काले निशान दिखाऊंगी तो वे शायद कुछ न कहेंगे. मेरे जीवन के पिछले 5 साल कैसे बीते हैं, यह मेरा दिल ही जानता है. पर उन दिनों आप ने जो मुझे प्यार और स्नेह दिया, उस ने मुझे मानसिक संतुलन खो देने से बचा लिया. मैं जीवन भर आप की आभारी रहूंगी.

आप की कमला.

कमला का पत्र पढ़ कर मेरी आंखों में आंसू उमड़ आए. राकेश का जो रूप कमला के पत्र से प्रकट हुआ, उस की तो मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी. मांट्रियल आने के बाद राकेश से हम 2-3 बार मिले थे.

हमेशा ऐसा ही लगा, जैसे उस के ऊपर दुख का पहाड़ टूट पड़ा है. यह सब क्या उस का दिखावा था, ताकि वह एअरलाइंस से अधिक मुआवजा वसूल कर सके. 2 लाख डालर तो उस की

जेब में आ ही चुके थे. अभी पता नहीं उसे मुआवजे के रूप में और कितने मिलेंगे?

कितना दुखभरा जीवन था कमला और उस की बच्ची का. जब तक जीवित रहीं छोटीछोटी चीजों के लिए तरसती रहीं क्योंकि राकेश आमदनी का अधिक भाग अपनी ऐयाशी पर खर्च कर देता था. मृत्यु के बाद भी दोनों राकेश के लिए आशातीत मुआवजे की रकम का प्रबंध कर गईं.

कह नहीं सकती कि राकेश एकांत के क्षणों में कमला और रीता की मृत्यु पर दुखी होता है अथवा प्रसन्न. उस का निजी जीवन पहले की तरह चल रहा है या कमला के रास्ते से हमेशा के लिए हट जाने के कारण वह और भी अधिक ऐशोआराम में डूब गया है.

वैसे राकेश जैसे व्यक्ति के बारे में मैं सोचना नहीं चाहती. कमला और उस की बेटी तो शायद राकेश का अतीत बन गई होंगी, पर उन दोनों की स्मृति मेरे मन से कभी नहीं जाएगी.

राकेश को तो मुआवजा मिल ही जाएगा, पर वह जीवन भर कमला का कर्जदार रहेगा. उसे कमला  के जीवन के दुख भरे वर्षों का मुआवजा कभी न कभी किसी न किसी रूप में तो चुकाना ही पड़ेगा.

Satire : अब पछताए क्या होत

Satire : उस दिन कई दिनों बाद थोड़ी गुनगुनी धूप निकली हुई थी. सर्दी के मौसम में गुनगुनी धूप और वह भी शनिवार को जब आस्ट्रेलिया में सभी व्यापारिक संस्थान बंद होते हैं, सोने पर सुहागा वाली बात थी. मैं अवकाश का आनंद लेने किलडा बीच पर चला आया था. काफी देर तक वहां प्राकृतिक दृश्यों का लुत्फ लेता रहा. कुछ ऐसे नजारे भी देखे जो विदेशों में ही देखे जा सकते थे. उस के बाद मैं लूणा पार्क चला आया था. दोपहर के बाद फलिंडर स्ट्रीट स्टेशन के निकट भारतीय रैस्टोरैंट फलोरा में खाना खाने के पश्चात सराइन आप रिमैंबरेंस चला गया और वहां काफी देर बैठा रहा.

जब घर लौटा तो आंसरिंग मशीन और मेरे मोबाइल पर भी एक मित्र के कई संदेश आए हुए थे. मैं ने तुरंत उस का नंबर डायल किया. उस ने फोन उठाते ही गुस्से से कहा, ‘‘कहां गायब हो गया था सुबह से? मैं तो फोन करकर के थक गया. तुम तो मोबाइल भी नहीं उठा रहे थे.’’

‘‘सौरी यार,’’ मैं ने कहा, ‘‘मैं मोबाइल घर पर ही भूल गया था.’’ उस से मैं ने कह तो दिया लेकिन वास्तव में मैं स्वयं ही जानबूझ कर मोबाइल घर छोड़ गया था. वास्तव में मैं शांति से दिन गुजारना चाहता था. मेरे यह पूछने पर कि कैसे याद किया, उस ने अत्यंत प्रसन्नता से बताया, ‘‘ओह यार, आजकल इंडिया से अपने गुरु महाराज आस्ट्रेलिया आए हुए हैं. कल वे हमारे घर पर प्रवचन करेंगे. तुम अवश्य आना.’’

‘‘यार, मुझ से कहां आया जाएगा?’’ ‘‘क्यों, तुम्हारे क्या पैर भारी हैं?’’

‘‘तुम जानते तो हो, मेरी धार्मिक कार्यों में…’’ ‘‘दिलचस्पी नहीं,’’ उस ने मेरी बात काटते हुए कहा, ‘‘वाइन की तो पूरी बोतल डकार जाता है मगर धार्मिक कार्यों के नाम पर तुम्हारे पेट में मरोड़ उठने लगती है.’’ उस ने अपनत्व की भावना से आगे कहा, ‘‘ज्यादा इधरउधर की मत हांक… और हां, आते हुए बेबी तथा उस के बच्चों को भी साथ ले आना. जीजाजी तो सिडनी गए हुए हैं.’’

लो, एक और मुसीबत गले पड़ गई. मेरे घर से मैलटन, जहां उस की बहन बेबी रहती है, कम से कम 45 किलोमीटर दूर होगा. पहले तो शायद न जाता, मगर अब तो उस की बहन और बच्चों को भी साथ ले कर जाना पड़ेगा. फोन पर मेरी ओर से कोई जवाब न मिलने पर वह बोला, ‘‘क्या हुआ, मेरी आवाज सुनाई नहीं दे रही है?’’ ‘‘अरे, सुन रहा हूं भई, निश्चिंत रह, मैं बेबी तथा बच्चों को साथ ले आऊंगा.’’

‘‘यार, तुम से एक और रिक्वैस्ट है,’’ उस की आवाज अत्यंत हलीमीभरी थी, ‘‘गुरु महाराज को 100 डौलर से कम दक्षिणा मत देना.’’ ‘‘अरे, यह भी कोई कहने वाली बात है,’’ मैं ने तुरंत कह तो दिया, लेकिन मन ही मन यह अवश्य सोचा था कि यहां डौलर छापने की मशीन तो नहीं लगी हुई है. इसे क्या मालूम कि ट्रेन के किराए के 5-6 डौलर बचाने के लिए मैं 5 किलोमीटर की दूरी पर अपने इंस्टिट्यूट तक प्रतिदिन पैदल आताजाता हूं. खैर, मैं उस के घर चला गया, वहां उस के कई रिश्तेदार तथा परिचित आए हुए थे.

मैं ने धीरे से 50 डौलर महाराज के सिंहासन के सामने पड़ी थाली में डाल कर माथा टेक दिया, लेकिन अगले ही पल हिसाब भी लगा लिया कि भारतीय करैंसी में कितने रुपए बन गए तथा मन ही मन अपनेआप को कोसते हुए तथा मित्र को भी एक भद्दी सी गाली निकालते हुए कहा, ‘ससुरे ने अढ़ाईतीन हजार रुपए का नुकसान करवा दिया.’ गुरु महाराज प्रवचन देने लगे. उन का एकएक बोल मनमंदिर के किवाड़ खोल रहा था. चांदी जैसे उज्ज्वल वस्त्रों से सुशोभित वे किसी देवर्षि की तरह लग रहे थे. सचमुच ही ऊपर वाले ने इन महापुरुषों को कोई विशेष गुण दिया होता है. मगर गुरु महाराज की ओर देखते हुए यों प्रतीत हो रहा था मानो वे मेरे परिचित हों, लेकिन यह मेरे मन का वहम हो सकता था, क्योंकि मैं तो इंडिया में रहते हुए भी कभी किसी धार्मिक सम्मेलन में नहीं गया था.

महाराज को चढ़ावा भी काफी चढ़ गया था. घर वालों ने भी सोने की मोटी चेन, हाथ का कड़ा तथा डौलरों से भरा लिफाफा उन के चरणों में रख दिया था. तदोपरांत लंगर छक कर संगत चली गई थी.

महाराजजी से परिचय करवाने के लिए मेरा मित्र मुझे उन के निकट ले गया. मगर उस की बात पूरी होने से पहले ही महाराज बोल पड़े थे, ‘‘मैं जानता हूं इन्हें, डा. शुक्ला हैं. समाचारपत्रों में अकसर मैं इन के बारे में पढ़ता रहता हूं.’’ और उन्होंने मुझ से पूछा, ‘‘तू ने पहचाना नहीं मुझे? मैं रमेश हूं, मेछी?’’ और उन्होंने मुसकराते हुए मेरे मित्र से परदाफाश कर दिया, ‘‘यह तो मेरे साथ ही गांव के स्कूल में पढ़ा करता था.’’ पलभर में ही चलचित्र की रील की तरह सबकुछ मेरी आंखों के सामने घूमने लगा था. तभी तो महाराज का चेहरा मुझे इतना जानापहचाना लग रहा था. हम दोनों गांव के राजकीय स्कूल में एकसाथ पढ़ते थे. वह पढ़ाई में नालायक विद्यार्थियों जैसा था, लेकिन बातचीत में इस कदर शातिर था कि आसमान को भी पैबंद लगा देता था. वह इस प्रकार की दलीलें देता कि झूठ भी सच साबित हो जाता था. हमारे अध्यापक अकसर उस से कहा करते थे कि तू इतना चालाक है कि बड़ा हो कर लीडर बनेगा. स्कूल में पढ़ते समय ही वह देसी शराब और सिगरेट भी पीता था.

मुझे अभी तक याद है कि कैसे उस ने एक बार मुझे पीटा था और मुख्य अध्यापक से भी मेरी पिटाई करवाई थी. स्कूल के निकट ही साइकिल पर तिनके वाली कुल्फी बेचने वाला आया करता था. एक टके (2 पैसे) की एक कुल्फी. मेछी (रमेश) ने मुझ से कुल्फी ले कर देने को कहा था. मैं ने मना कर दिया तो उस ने मुझे 3-4 थप्पड़ रसीद कर दिए. मैं ने उसी समय मुख्य अध्यापक से उस की शिकायत कर दी. उन्होंने झटपट उसे बुला लिया. लेकिन मेछी ने सरासर झूठ बोलते हुए पासा ही पलट दिया, ‘सर, यह बिना किसी बात के मुझे गालियां दे रहा था. मुझे क्रोध आ गया और तब मैं ने इस के 2-4 चांटे लगा दिए.’’ मुख्य अध्यापक ने उस की बात पर विश्वास करते हुए 2-3 थप्पड़ मारते हुए मुझे डांटा, ‘‘एक तो गालियां बकता है और फिर शिकायत भी करता है.’’

और तभी उन्होंने झट से मेछी को आदेश दे डाला, ‘‘लगा इस के दोचार थप्पड़ और.’’ मेछी ने फिर मेरे चांटे मार दिए. मैं स्तब्ध सा मुख्य अध्यापक के कार्यालय से जब बाहर आया तो मेछी ने पहले से भी ज्यादा अकड़ कर कहा, ‘‘अब कुल्फी ले कर देगा या तेरी और करवाऊं पिटाई.’’ ….और आज वही मेछी मेरे सम्मुख सिंहासन पर विराजमान है.

गुरु महाराज से बहुत सारी बातें हुईं. उन के अमेरिका, कनाडा, इंगलैंड, आस्ट्रेलिया जैसे देशों में आश्रम भी थे और उपासक भी. मेरे आकलन के अनुसार, उन के पास करोड़ों की संपत्ति तो अवश्य होगी. घरपरिवार के बारे में पूछने पर उन्होंने मुसकराते हुए कहा था, ‘साधुसंतों का परिवार तो उन के शिष्य होते हैं. यही लोग हमारा परिवार हैं तथा समाज भी.’

गुरु महाराज तो शाम की फ्लाइट से अपने भक्तों से मिलने के लिए ब्रिसबेन चले गए थे मगर मेरे मन की यादों की पिटारी खोल गए थे. मैं बचपन से ही संगीतप्रेमी था और नाटकों में अभिनय भी किया करता था. गाना गाने के लिए स्कूल की ओर से हमेशा मुझे ही भेजा जाता था. और मैं हर बार कोई न कोई पुरस्कार प्राप्त करता था.

कहीं भी ढोल बजने लगता तो स्वयं ही मेरे पैर थिरकने लग जाते. हमारे गांव से 4-5 किलोमीटर की दूरी पर एक गांव में मजार है. कुछ लोग अपने कष्ट दूर करने के बहाने वहां जाते थे. जिन लोगों में पीर की ‘हवा’ आती थी, वे वहां ‘खेलने’ (झूमने) लगते थे. वहां यह मान्यता भी थी कि लगातार 5 बार वहां जाने से मनोकामना पूरी हो जाती है.

मैं भी प्रत्येक वीरवार ऊबड़खाबड़ और कंकड़ोंभरे रास्ते पैदल चल कर वहां जाता था. मगर शायद मेरी भावना में स्वार्थीपन अधिक तथा श्रद्धा कम थी. लेकिन लगातार 5 बार जाने के बावजूद मेरी मनोकामना पूरी नहीं हुई थी. आप यह भी जानना चाहोगे कि मैं वहां क्या मांगता था. वास्तव में मैं वहां जा कर हर बार यही प्रार्थना किया करता था कि पीर मुझे भी ‘खेलने’ में लगा दे. लेकिन मेरी ख्वाहिश मन में ही रह गई थी.

गांव में एक कुम्हारों यानी मुसलमानों का घर था. अब तो पूरी तरह याद नहीं कि वे लोग कुम्हार थे या मुसलमान. वर्षों पुरानी बात है. उन के परिवार के सदस्यों में पीर की ‘हवा’ आती थी. वे लोग वीरवार वाले दिन शाम को ढोल बजाने लगते तथा कुछ समय बाद उन के परिवार का कोई सदस्य ‘खेलने’ लग जाता और अपने शरीर पर ‘छेंटे’ मारने लगता.

मैं कभीकभी उन के घर चला जाता था. वे लोग खुले आंगन में ढोल बजा कर ‘खेलते’ थे. लेकिन एक बार न जाने क्या हुआ. कुछ पता ही न चल पाया कि कब ढोल की थाप मुझ पर हावी हो गई थी और मैं भी ढोल की थाप के साथसाथ झूमने लगा था. उन्होंने मुझे ‘छेंटा’ पकड़ा दिया और मैं ‘छेंटे’ से अपने शरीर पर वार करने लगा था तथा जैसे वे बोलते गए वैसे ही हक, हक… कहता रहा. मगर शीघ्र ही यह खबर मेरे घर खबर पहुंच गई थी. मेरे घर वाले कुम्हारों को भलाबुरा कहते हुए मुझे घसीटते हुए ले गए थे. घर वालों ने मेरी धुनाई भी कर डाली थी और स्वयं भी बहुत परेशान हुए थे.

जंगल की आग की तरह यह खबर पूरे गांव में फैल गई थी कि मुझे भी असर हो गया है और मुझ में भी हवा आने लगी है. एक दिन शाम को मैं बंजर जमीन की ओर जा रहा था. गांव की एक महिला ने मुझे रोक कर मेरे पांव छुए और गोद में उठाए हुए बालक की ओर इशारा करते हुए कहने लगी, ‘जी, कहते हैं इस पर किसी प्रेत का साया है. दिनभर रोता रहता है. आप कोई उपाय बताइएगा.’

और मैं ने भी झट से यों कह दिया जैसे मैं तंत्रविद्या में निपुण था. ‘इस के सिर के ऊपर से कलौंजी घुमा कर पक्षियों को डाल देना, शीघ्र ही ठीक हो जाएगा.’ वास्तव में उस महिला के पूछने पर तुरंत ही मुझे कुछ याद आ गया था. एक बार मेरी माताजी ने किसी साधु से मेरे बारे में पूछा था तो उस ने यह उपचार बताया था.

मुझ में हवा आने की खबर हमारे गांव से शीघ्र ही निकटवर्ती गांवों में जंगल की आग की तरह फैल चुकी थी. उस महिला की तरह और भी कई लोग अपने दुखों के समाधान के लिए मेरे पास आने लगे थे. दिमाग तो मेरा पहले से ही तेज था. मैं घरपरिवार में सुने टोटके और साथ ही अंधविश्वास से जुड़े ढंग भी बता देता था. एक बार मैं कुबैहड़ी गांव जा रहा था. एक महिला अपने पोते को मेरे पास ला कर बोली, ‘महाराज, यह कुछ भी खातापीता नहीं है. दूध तो बिलकुल भी नहीं पीता. पहले तो पूरी बोतल पी जाता था. मुझे शक है कि मेरी बड़ी बहू ने इस के लिए टोना कर दिया है.’

मैं ने मस्तिष्क पर बल डाला तो मुझे शीघ्र ही याद आ गया कि जब मेरे छोटे भाई को भूख नहीं लगती थी तो एक हकीम ने बताया था कि लोहे के चाकू को गरम कर के दूध में डुबो कर उस दूध को पिलाना चाहिए. मैं ने भी वही नुस्खा उसे बता दिया. और साथ में यह भी बोल दिया कि इस के गले में सुराख वाला तांबे का सिक्का काले धागे में डाल कर बांध देना. संभवतया मेरी ख्याति और फैल जाती, अगर भेद न खुलता. दरअसल, उस औरत के बच्चे को भूख लगने लगी थी और वह खुश हो कर दूध की गड़वी तथा गुड़ का बड़ा सा ढेला मेरे घर दे गई थी, क्योंकि मेरे बतलाए उपाय से उस का पोता ठीक हो गया था.

एक वैज्ञानिक होने के नाते अब मैं स्पष्टीकरण दे सकता हूं कि लोहे के चाकू को गरम कर के दूध में डालने से उस दूध में खनिज पदार्थ लोहे की मात्रा बढ़ गई होगी और बच्चे की रक्ताल्पता (अनीमिया) में सुधार आ गया होगा. बाकी सब तो अंधविश्वास की बातें थीं जिन के बिना लोगों की संतुष्टि नहीं होती.

घरपरिवार में पता चलते ही मेरी खूब पिटाई हुई थी. पिताजी चीखचीख कर पूछ रहे थे, ‘तू कब से सयाना बन कर लोगों को उपाय बताने लगा है.’ उन्होंने मुझे गांव से निकाल दिया और लुधियाना पढ़ने भेज दिया. मैं बस डिगरियां ही प्राप्त करता रहा और एक वैज्ञानिक बन गया. अब तो सेवानिवृत्त भी हो चुका हूं. ….और आज गुरु महाराज से मिल कर सबकुछ याद आने लगा था, लेकिन मेरे मन में यह विचार भी बारबार कौंधता रहा कि इतनी उपाधियां प्राप्त कर के और अंतराष्ट्रीय स्तर का वैज्ञानिक बन कर मुझे क्या मिला. 34-35 वर्ष की नौकरी के उपरांत सेवानिवृत्त होने पर जितनी राशि मुझे मिली थी उतनी तो गुरु महाराज ने आस्ट्रेलिया के एक फेरे में ही बना ली होगी. फिर उन की और भी कई प्रकार की सेवाएं होती होंगी.

मुझे पछतावा होने लगा था. इस से तो अच्छा होता गांव में ही रहता. मेरी तो उन दिनों भी काफी ख्याति हो गई थी. अब तक मेरे भी कई बंगले व आश्रम बन जाते तथा करोड़ों में बैंक बैलेंस होता. मगर अब तो बहुत देर हो चुकी है. अब तो मेरा मन भी बारबार यही कह रहा है, अब पछताए क्या होत.

‘जवान’ फेम एटली के काले रंग का मजाक उड़ाने पर Kapil Sharma हुए ट्रोल

Kapil Sharma : ऐसे किसी को भी उसके रंगभेद या शेप पर काला मोटा टकला भेंगा बोलना बोलचाल की भाषा में आम बात है . लेकिन अगर किसी सेलिब्रिटी को या प्रसिद्ध फिल्मों द्वारा हजार करोड़ का बिजनेस करने वाले निर्माता निर्देशक को अगर भरी सभा में डायरेक्टली इनडायरेक्टली काला बोल दिया जाए तो यह बड़ी बात हो जाती है.

ऐसे में भले ही वह डायरेक्टर या प्रोड्यूसर बुरा ना भी माने लेकिन उसके प्रशंसक और सोशल मीडिया पर बैठे ट्रोलर्स को जरूर बुरा लग जाता है और फिर इसे मुद्दा बनते समय नहीं लगता. ऐसा ही कुछ नेटफ्लिक्स पर प्रसारित कपिल शर्मा शो में जब निर्माता एटली और वरुण धवन समेत पूरी टीम पर पहुंची थी. तो कपिल शर्मा ने मजाक में एटली के काले रंग का मजाक उड़ा दिया.

जिसका जवाब एटली ने बहुत ही शालीनता से दिया. लेकिन कपिल शर्मा का यह मजाक एटली के फैंस को पसंद नहीं आया. इसके बाद कपिल शर्मा को लेकर सोशल मीडिया में बवाल मच गया और बहुत से लोगों ने कपिल शर्मा की क्लास लगा दी. जिसके बाद कपिल शर्मा को एहसास हुआ कि मजाक में एटली के लिए वह गलत बात कह गए. लिहाजा कपिल शर्मा ने बाकायदा सोशल मीडिया पर आकर वीडियो बनाकर एटली से माफी मांगी. ये कह कर कि उनका मजाक उड़ाने का कोई इरादा नहीं था. लेकिन अगर एटली को उनकी बात का बुरा लगा है तो वह तहेदिल से एटली से माफी चाहते हैं.

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