कोरोना वायरस आउटब्रेक के बीच मां बनीं कुसुम फेम एक्ट्रेस रुचा गुजराती

कोरोनावायरस के बढ़ते मामलों के बीच जहां स्टार्स शादी के बंधन में बंध रहे हैं तो वहीं कुछ स्टार्स के घर नन्हा मेहमानआने की खुशी दिख रही है. हाल ही में लौकडाउन  के बीच कुछ टीवी स्टार्स पेरेंट्स बन हैं. वहीं अब इस लिस्ट में सीरियल कुसुम में नजर आ चुकीं एक्ट्रेस रुचा गुजराती का नाम भी शामिल हो गया है, जिसका खुलासा उनके पति विशाल जयसवाल ने किया है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

बेटी को दिया जन्म

रुचा गुजराती ने कुछ समय पहले ही एक बेटी को जन्म दिया है. वहीं रुचा गुजराती और अपनी बेटी के बारे में बात करते हुए विशाल जयसवाल ने बताया कि, मां और बच्ची दोनों पूरी तरह से स्वस्थ हैं. साथ ही बेटी के घर पर दस्तक देने के बाद विशाल ने सोशल मीडिया पर अपनी खुशी का भी इजहार किया, जिससके बाद फैंस और दोस्त लगातार रुचा गुजराती और विशाल जयसवाल को शुभकामनाएं दे रहे हैं.


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प्रैग्नेंसी का किया था ऐलान

रुचा गुजराती ने साल 2016 में विशाल जयसवाल से शादी की थी, जिसके बाद कुछ समय पहले ही रुचा गुजराती ने इस बात का ऐलान किया था कि वह मां बनने वाली हैं.

प्रैग्नेंसी फोटोशूट से सुर्खियों में छाई थीं रुचा

रुचा गुजराती का प्रेग्नेंसी के दौरान शानदार फोटोशूट ने सोशल मीडिया पर जमकर तहलका मचाया था.वहीं इन फोटोज में रुचा गुजराती अपने पति विशाल जयसवाल के साथ रोमांटिक पोज देती नजर आई थीं. साथ ही रुचा गुजराती के बेबी बंप की फोटोज ने फैंस के बीच काफी सुर्खियां बटोरी थीं.

 

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बता दें,कुसुम भाभी और गंगा जैसे टीवी शोज में काम कर चुकी रुचा गुजराती शादी के बाद से ही टीवी इंडस्ट्री से दूरी बनाए हुए हैं. वहीं रुचा गुजराती से पहले स्मृति खन्ना, शिखा सिंह एकता कौल और डिंपी गांगुली जैसी एक्ट्रेसेस भी कोरोनावायरस के बीच मां बन चुकी हैं.

कोरोना के बीच साउथ स्टार नितिन ने की धूमधाम से शादी, Photos Viral

बीते दिनों कई साउथ इंडियन एक्टर्स की शादी की खबरों ने फैंस को खुश कर दिया था, जिनमें बाहुबली फेम राणा दुग्गुबत्ती भी शामिल हैं. इसी बीच साउथ के सुपरस्टार और एक्टर नितिन ने अपनी गर्लफ्रेंड शालिनी कंदुकूरी से शादी कर ली है, जिसकी फोटोज सोशलमीडिय पर वायरल हो रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं साउथ के सुपरस्टार नितिन और शालिनी कंदुकूरी की शादी की वायरल फोटोज…

कोरोनावायरस के बीच की शादी

बढ़ते कोरोना वायरस मामलों में भी नितिन और शालिनी कंदुकूरी ने अपनी शादी को नहीं टाला. और बीती रात दोनों ने छोटे से फंक्शन के बीच सात जन्मों के  बंधन में बंध गए, जिसकी फोटोज ने सोशलमीडिया पर तहलका मचा दिया है.

 

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CELEBRITY WEDDING -HAPPY BEGININGS 💖💖💖-Intimate wedding Congratulations to life partners now @actor_nithiin and @shalinikandukuri wishing you both a great married life and be the coolest as u are n spread the joy of love .Thanks for making us a part of your journey 💖💖💖💖💖💖 Pics courtesy @badalrajacompany #decorgram #wedtease #weddinginspo #wedzo #functionmania #shadiwaliinspirations #bandbaajaa #shaadisaga #indianwedding #theweddingwire #wedwise #weddingzin #theweddingbrigade #brideessentials #sabyasachiofficial #weddingdesign #indianstreetfashion #weddingplz #weddingsutra #weddingsaga #weddingdesigner #eventplanner #luxurywedding #luxuryweddingdecor #thebridalaffair #wedmegood #indianweddingbuzz #eventdesign #weddingdecor #southindianweddings

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फैंस ने दी बधाइयां

वायरल फोटोज मं एक्टर नितिन, शालिनी कंदुकूरी को मंगलसूत्र पहनाते नजर आ रहे हैं, जिसे देखने के बाद बाद से ही फैंस लगातार साउथ सुपरस्टार को शादी की बधाईयां दे रहे हैं.

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नितिन और शालिनी कंदुकूरी ने साथ खाई कसम

नितिन और शालिनी कंदुकूरी ने शादी के दौरान साथ जीने मरने की कसमें खाईं. तस्वीर में नितिन और शालिनी कंदुकूरी दोनों की जोड़ी कमाल लग रही है. वहीं नितिन और शालिनी कंदुकूरी ने शादी के लिए हैदराबाद के ताज फलकनुमा पैलेस को चुना था. इस शानदार पैलेस में नितिन और शालिनी कंदुकूरी शादी की रसमें निभाते नजर आए.

 

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शादी के जोड़े में अप्सरा लग रही हैं शालिनी कंदुकूरी

शालिनी कंदुकूरी शादी के मंडप में गोल्डन रेड कलर की साड़ी पहने नजर आईं. जिसके साथ शालिनी कंदुकूरी ने काफी हैवी ज्वैलरी कैरी की है. तस्वीरों में शालिनी कंदुकूरी किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही हैं. वहीं नितिन भी किसी रियासत के राजकुमार से कम नहीं लग रहे थे. शादी के लिए नितिन ने रेड गोल्डन कलर की शेरवानी कैरी की थी. जिस के साथ नितिन ने शानदार नेकपीस भी पहना था.

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बता दें, इसस पहले भी कई साउथ सुपरस्टार ने कोरोनावायरस के प्रकोप के बीच शादी और सगाई की थी,  जिसकी फोटोज सोशलमीडिय पर वायरल हुई थी.

 बेटियों को बेटों की तरह करें परवरिश – शारुल चन्ना

 शारुल चन्ना (स्टैंड अप कॉमेडियन )

बचपन से कुछ अलग करने की इच्छा रखने वाली स्टैंड अप कॉमेडियन शारुल चन्ना इंडियन बोर्न है और अभी सिंगापुर में रहती हैं. शारुल को हमेशा कुछ गलत बातें जो समाज में होती रहती है उन्हें ह्यूमर में कहना पसंद है और इसे वह अपनी इस क्रिएटिव तरीके से सबके सामने रखती हैं. अभी उन्होंने ऍम आई ओल्ड एक कोमेडिक मोनोलोग, जिसे उन्होंने लिखा और परफॉर्म भी किया है, जिसे लोगों की काफी प्रसंशा मिल रही है. कॉमेडी शारुल चन्ना के जीवन का सबसे बेहतरीन अंग है, जिसे उनके पति भी तराशने में सहयोग देते है, क्योंकि वे भी इसी क्षेत्र से जुड़े है. उन्हें जब भी मौका मिलता है. इंडिया आकर स्टैंड अप कॉमेडी करती है. उनकी जर्नी के बारें में बात हुई, पेश है कुछ अंश.

सवाल-ऍम आई ओल्डकोमेडिक मोनोलोग को करने की वजह क्या रही?

असल में भारत में व्यस्क लोगों की संख्या बहुत बढ़ चुकी है और उन्हें सम्हालना मुश्किल हो रहा है, जिन बच्चों ने शादियाँ नहीं की है, वे ही अपने माता-पिता का ध्यान रखते है, ऐसा करते-करते  उनके माता-पिता के गुजर जाने के बाद बच्चे भी व्यस्क हो जाते है. इस मोनोलोग में यह कहने की कोशिश की गयी है कि उम्र होने पर भी आप कैसे अपने आपको सम्हाल सकते है. कैसे परिवार के बारें में सोच सकते है आदि. असल में बच्चों पर माता-पिता बहुत प्रेशर डालते है कि वे उनकी देखभाल करें और उस बच्चे पर वित्तीय भार भी अधिक बढ़ जाता है. इसे ही कॉमेडी में दिखाया गया है.

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सवाल-कॉमेडी में आने की प्रेरणा कहाँ से मिली?

हमारे समाज में लड़कियों को हमेशा उठने बैठने के लिए नसीहत दी जाती है, जबकि लड़कों को नहीं. उन्हें किसी के साथ मजाक करने की आज़ादी नहीं होती है, जो मुझे पसंद नहीं थी. मेरे पिता पहले भारत में थे, जॉब मिलने से सिंगापुर आ गए फिर हम सब आ गये थे. मेरे पिता शेफ है,इसलिए वह घर में खाना बनाते थे और मेरी माँ बाहर पढ़ाने जाती थी. हम तीनों बेटियों को खुद काम कर सेटल होने को कहा गया था, ऐसे में मुझे काम करना पड़ा. मैंने कई जगहों पर थिएटर में काम किया, और सबने मेरे काम की तारीफ की, जिससे मुझे इस फील्ड में काम करने में मजा आने लगा.

सवाल- क्या किसी कॉमेडियन को फोलो किया ?

मैं पाकिस्तानी कलाकार उमर शरीफ से काफी प्रभावित थी, उनकी राइटिंग मुझे बहुत प्रभावित करती थी. इसके अलावा राजू श्रीवास्तव की कॉमेडी भी मुझे बहुत पसंद है.

सवाल- कॉमेडी में सही टाइमिंग को कैसे बनाये रखती है?

कॉमेडी में टाइमिंग और पंच लाइन सबसे अधिक सही होने की जरुरत होती है. कॉमेडी ट्रेजीडी से आती है. कॉमेडी में हर चीजों को अपने स्तर पर एडजस्ट करने की जरुरत पड़ती है, मसलन भारत में माहौल अलग होता है, जबकि सिंगापुर का माहौल अलग होता है. इसके लिए मुझे बहुत मेहनत करनी पड़ती है. ट्रेजीडी को कॉमेडी में बदलना भी माहौल के हिसाब से आ जाता है. पिछले 9 साल से मैं कॉमेडी के क्षेत्र में हूँ जबकि थिएटर मैं 15 साल से कर रही हूँ. ये कॉलेज से पहले से ही रहा है.

सवाल- किसी को हसाना कितना मुश्किल है?

भारत में महिला कॉमेडियन के लिए किसी को हँसाना बहुत आधिक मुश्किल है, क्योंकि वहां के लोग महिलाओं को सम्मान कम देती है. समाज में अभी भी बहुत कम सम्मान है, इसलिए जब वे महिलाओं को स्टेज पर देखते है तो बौखला जाते है. अजीब बातें सुननी पड़ती है, लेकिन अगर आपने मेहनत कर कॉमेडी को आगे लायी है, तो लोग भूल जायेंगे कि महिला कॉमेडियन सबको हंसा रही है.

सवाल-कॉमेडी में द्विअर्थी शब्दों का प्रयोग न हो इसका ख्याल कितना रख पाती है?

मेरे हिसाब से गलियां देना या किसी को भला-बुरा कहना एक साधारण सा एक्सप्रेशन है. जोक अगर आपने ठीक से नहीं लिखा है, तो वह वल्गर लगेगा. कई कॉमेडियन इसके लिए अभद्र शब्दों का व्यवहार कर लोगों को हंसाने की कोशिश करते है, जो कभी सुनने में अच्छा नहीं लगता. अच्छी लिखावट इसमें बहुत जरुरी है. मैं खुलकर बात करती हूँ और अच्छी जोक्स लिखती हूँ. इससे कोई गलत शब्द नहीं निकलता.

सवाल-आपकी खास शो जिसके लिए आप भारत में जानी जाती है?

वैसे तो मेरा परफोर्मेंस का तरीका बाक़ी कॉमेडियन से अलग होता है,जिसे कई लोगों को समस्या होती है. मेरा अधिकतर कॉमेडी समाज में महिलाओं की दशा को लेकर होती है. Potty Mouth by Shrul Channa (बड़बोली शारुल चन्ना) मेरा सबसे प्रसिद्ध शो रहा जिसे मैंने मुम्बई, चेन्नई, दिल्ली आदि शहरों में परफॉर्म किया था.

सवाल-कॉमेडी करते वक्त कोई आहत न हो, इसका ख्याल कितना रख पाती है?

मैं किसी ख़ास व्यक्ति के उपर कॉमेडी नहीं करती. राजनीति पर भी हाथ नहीं लगाती, क्योंकि अगर आप राजनीति से जुड़े कुछ कॉमेडी करते है तो उसे अच्छी तरह समझने की जरुरत होती है. जिस बात को आप समझते नहीं ऐसी किसी भी विषय को मैं नहीं छूती.

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सवाल- जीवन में हँसना कितना जरुरी है?

जीवन में हँसना बहुत जरुरी है, अभी जिस हालात से हम सभी गुजर रहे है, ऐसे में सबको खुश रहने और हंसने की आवश्यकता है, इससे तनाव कम होगा. किसी ख़राब परिस्थिति को भी हल्के तरीके से देखने की जरुरत है. तभी आप खुश रह सकते है.

सवाल-परिवार का सहयोग कितना रहता है?

मेरे माता-पिता मेरे काम से बहुत गर्व महसूस करते है. वे यहाँ सिंगापुर में रहते है. मिडिल क्लास वैल्यू के तहत हम सब काम कर रहे है. इससे वे बहुत खुश है. मेरे पति भी स्टैंडअप कॉमेडियन है और मेरे काम को समझते है और सहयोग देते है. मुश्किल हम दोनों में ये है कि हम कभी सीरियस बात कर ही नहीं सकते. दोनों के बीच में हंसी मजाक चलता है. बच्चे नहीं है, क्योंकि उनपर बहुत खर्चा होता है और शोर मचाते है, इसलिए मेरे पास एक पप्पी है, जिसका नाम बबल है.

सवाल-गृहशोभा के ज़रिये क्या मेसेज देना चाहती है?

अपनी बेटियों को बेटो की तरह परवरिश करें. आप कितनी भी उम्र की हो अपनी हॉबी को करें. आत्मनिर्भर बनने की कोशिश करें. पति चाहे कितना भी अच्छा हो उस पर डिपेंड न हो. खुश रहने की कोशिश करें.

क्या मुझे हर दिन होममेड मास्क को धोने के साथ ही सेनिटाइज भी करना होगा?

सवाल-

मैं घर पर कपड़े से तैयार किए गए मास्क का उपयोग कर रही हूं. क्या मुझे हर दिन उस मास्क को धोने के साथ ही सेनिटाइज भी करना होगा?

जवाब

जी हां पसीना, डस्ट और औयल स्किन को नुकसान पहुंचा सकते हैं, इसलिए आप को मास्क को धोने के साथ ही सैनिटाइज भी करना होगा. आप घर में बना मास्क यूज कर रही हैं तो उसे बनाने के साथ यह सुनिश्चित करें कि मास्क बनाने से पहले कपड़े को कम से कम 5 मिनट तक खौलते पानी में उबाला जाए और फिर अच्छी तरह सुखाया जाए. आप का मास्क चेहरे पर पूरी तरह फिट हो और इस में साइड से कोई खुली जगह न हो. आप अपना मास्क किसी से भी साझा न करें. परिवार में हर सदस्य के पास अपना मास्क होना चाहिए.

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वायरसों से बेसिक बचाव के लिए मास्क पहना यानी नाक-मुंह ढका जाता है. मौजूदा घातक नोवल कोरोना वायरस के बहुत तेजी से फैलाव को देखते हुए विश्व संस्था डब्लूएचओ ने इस के इस्तेमाल पर काफी अधिक जोर दिया है. कुछ देशों ने तो इस के इस्तेमाल को अनिवार्य कर दिया है. हमारे देश के स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी मास्क पहनना लाजिमी करार दिया है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने पहले से ही इसे जरूरी घोषित कर रखा है.

दरअसल, कोरोना से बचाव सिर्फ आज या कल ही नहीं, बल्कि आने वाले लंबे समय तक करना होगा, क्योंकि इस की दवा फ़िलहाल उपलब्ध नहीं है. इस वायरस के नाक या मुंह के रास्ते शरीर के अंदर जाने से रोकने के लिए मास्क का इस्तेमाल किया जाता है.

1. संक्रमित होने से बचाता है मास्क :

कनाडा में मैकमास्टर विश्वविद्यालय ने अपने शोध कहा है कि आम कपड़े से बने मास्क नोवल कोरोना वायरस के संक्रमण की रोकथाम के लिए प्रभावी हैं. विशेषरूप से ऐसे मास्क जो सूती कपड़े के बने हों.

तेजी से फैलने वाले इस वायरस दे उभरी कोविड-19 की बीमारी, जिसे वैश्विक महामारी घोषित किया जा चुका है, के दौरान लोगों द्वारा पहने जा रहे मास्क को ले कर किए गए शोध में यह बात सामने आई है कि कपड़े के मास्क इस वायरस के प्रसार को रोकने में प्रभावी हो सकते हैं. सूती कपड़ों का मास्क 99 फीसदी वायरल कणों रोकता है. इसी तरह स्वास्थ्य संबंधित प्रसिद्ध पत्रिका द लैंसेट ने 16 देशों की 172 शोध रिपोर्टों का विश्लेषण किया है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- मास्क के इस्तेमाल में जरा सी गलती से हो सकते हैं वायरस के शिकार

काढ़े का अधिक सेवन भी है नुकसानदायक, अगर दिखे ये लक्षण तो बंद कर दे काढ़ा पीना

कोरोना वायरस महामारी का कहर पूरी दुनिया में बढ़ता ही जा रहा है.इस महामारी के कारन अब तक लाखों लोगों की जाने जा चुकी है.अब तक इस महामारी की वैक्सीन नहीं आई है. इसलिए इस बीमारी के संक्रमण से बचे रहने और इसकी चपेट में आने के बाद जल्द से जल्द ठीक होने के लिए जरूरी है कि आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता यानी आपकी immunity काफी मजबूत हो. आयुष मंत्रालय और भारत सरकार के द्वारा भी लोगों को रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए काढ़ा पीने की सलाह दी गई है. यहाँ तक की आयुष मंत्रालय ने काढ़ा बनाने की विधि भी बताई . प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने अधिकतर भाषणों में काढ़ा के सेवन पर जोर दिया .

ऐसे में देश में इन दिनों इम्यूनिटी बूस्टर काढ़े खूब चर्चा में हैं. लोग कोरोना से बचने के लिए काढ़े को दवा के तौर पर इस्तेमाल कर रहे है.अब इंटरनेट पर भी खाने पीने की recipe से ज्यादा ‘काढ़ा कैसे बनाया जाये’ ये सर्च किया जा रहा है.

बेशक काढ़ा पीना काफी फायदेमंद और असरदार होता है और ये हमे सिर्फ सर्दी, जुकाम और खांसी से ही नहीं बचाता बल्कि हमारी immunity को भी बढाता है. यह पाचन ठीक करने के साथ-साथ शरीर से गंदगी भी निकालता है. काली मिर्च कफ निकालने का काम करती है. वहीं, तुलसी-अदरक और इलाइची पाउडर में एंटी-इंफ्लेमेटरी प्रॉपर्टीज होती हैं. तुलसी में एंटी-माइक्रोबल प्रॉपर्टीज होती हैं जो सांस से जुड़े इन्फेक्शन्स को मारने का काम करती है.

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आयुष मंत्रालय ने भी लोगों को दिन में दो बार काढ़ा पीने की सलाह दी है, लेकिन कुछ लोगों में कोरोना का डर इस कदर सवार हो गया है की उन्हें काढ़ा पीने की सनक सी हो गयी है. उन्हें जब भी मौका मिलता है वे काढ़ा पीने के लिए तैयार रहते है.पर ये तो हम सभी जानते है की किसी भी चीज़ की अति अच्छी नहीं होती.

कोई भी चीज हद से ज्यादा इस्तेमाल की जाए तो वो शरीर को फायदे की जगह नुकसान देने लगती है.
क्या आप जानते हैं कि इम्यूनिटी बढ़ाने वाले इस काढ़े के अधिक सेवन से आपकी सेहत को कुछ नुकसान भी हो सकते हैं . इसका कारन यह है की कोई भी आयुर्वेदिक औषधि हमेशा मौसम, प्रकृति, उम्र और स्थिति देखकर दी जाती है. अगर इन चीजों का ध्यान नहीं रखा जाएगा, तो फायदे की जगह नुकसान ही होगा.

तो चलिए जानते है ऐसे कुछ लक्षण जो अगर आपके शरीर में दिखाई दे रहे हो तो आप तुरंत काढ़े का सेवन बंद कर दे.

1-सर घूमना
2. आंखों के आगे अंधेरा होना
3. नाक से खून आना
4. पेट में जलन होना
5. मुंह में छाले हो जाना
6. पेशाब में जलन
7. कब्ज या दस्त जैसी समस्या
8. त्वचा पर छोटे-छोटे दाने उभर आना
9. गैस या अपच की शिकायत होना
10.अचानक से वजन कम होना

काढ़ा बनाते समय इन बातों का रखें ध्यान-

काढ़ा बनाते समय जड़ी बूटियों और उसमे प्रयोग किये जाने वाले मासालों की मात्रा पर विशेष ध्यान देना चाहिए.अगर आपको लगता है की जो काढ़ा आप पी रहे हो वो आपको सूट नहीं कर रहा है तो आप इसमें दालचीनी,कालीमिर्च,अश्वगंधा और सोंठ की मात्रा कम कर सकते हैं.

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वात और पित्तदोष वाले लोगों को इन बातों का रखना चाहिए ध्यान-

काढ़ा के सेवन से कफ को खत्म करने में काफी मदद मिलती है ,इसलिए यह कफदोष से पीड़ित लोगों के लिए फायदेमंद है.लेकिन पित्तदोष से पीड़ित लोगों को अपने काढ़े में काली मिर्च,दालचीनी और सोंठ जैसी चीजों डालते समय थोड़ी सावधानी बरतनी चाहिए.इन चीज़ों को अधिक मात्रा में नहीं डालना चाहिए.

ध्यान रहे- उपवास के दौरान काढ़ा पीने के लिए मना किया जाता है, क्योंकि इससे पेट में जलन की शिकायत हो सकती है. काढ़ा बनाते समय इसमे शहद का प्रयोग भी कम करना चाहिए, क्योकि शहद की तासीर गर्म होती है और इससे बेचैनी पैदा हो सकती है. डायबिटीज के मरीजों को चीनी का इस्तेमाल सोच-समझकर करना चाहिए.

Raksha Bandhan 2020: फैमिली को परोसें टेस्टी बादाम फिरनी

खीर और मीठी डिश खाने में बहुत टेस्टी लगती है, लेकिन क्या आपने अपने घर पर चावल की खीर के अलावा कुछ नया बनाने की कोशिश की है. अगर आप भी त्योहारों में मीठा बनाने का सोच रही हैं तो बादाम फिरनी एक अच्छा औप्शन है. बादाम फिरनी बनाना आसान है. आज हम आपको बदाम फिरनी की आसान रेसिपी के बारे में बताएंगे, जिसे आप अपनी फैमिली और फ्रेंड्स को रक्षाबंधन पर खिला सकते हैं.

हमें चाहिए

चावल का आटा – 01 कप (थोड़ा मोटा पिसा हुआ),

दूध – 04 कप,

पानी – 02 कप,

शक्कर – 03 बड़े चम्मच,

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घी – 01 बड़ा चम्मच,

बादाम – 02 छोटे चम्मच (कटे हुए),

काजू – 02 छोटे चम्मच,

पिस्ता – 01 छोटा चम्मच,

इलायची– 04 नग.

बनाने का तरीका

सबसे पहले पैन में घी गर्म करें. घी गरम होने पर उसमें पिसे हुए चावल डालें और चलाते हुए 7-8 मिनट तक भून लें.

आटा भुन जाने पर उसमें इचायची के दाने निकाल कर डालें और चलाएं. आटा इसके बाद उसमें पानी और दूध मिलाएं और इस तरीके से चलाएं जिससे आटा पूरी तरीके से घुल जाए.

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अब पैन में शक्कर और बादाम मिला दें और मीडियम आंच पर चलाते हुए पकाएं.

आटे का घोल जब गाढ़ा हो जाए और तली में बैठने लगे, तो आंच बंद कर दें और कटे हुए काजू और पिश्ता से गार्निश करके आपनी फैमिली और फ्रेंड्स को ठंडा करके परोसें.

Raksha Bandhan 2020: फेस्टिव सीजन के लिए परफेक्ट है ‘खतरों के खिलाड़ी 10’ विनर के ये लुक

कोरोनावायरस के बढ़ते मामलों के बीच कलर्स टीवी के शो खतरों के खिलाड़ी के नए एपिसोड्स का प्रसारण शुरू हो चुका है, जिसमें फिनाले का एपिसोड दिखाया दिया है. लेकिन उससे पहले ही सोशलमीडिया पर विनर की घोषणा देखने को मिली थी. दरअसल, हाल ही में करिश्मा तन्ना ने अपनी इंस्टा स्टोरी पर वीडियो शेयर किए थे, जिनमें सेलेब्स उन्हें बधाई देते नजर आ रहे थे. वहीं अब शो के टेलिकास्ट होने के बाद बधाई को खतरों के खिलाड़ी 10 जीतने को  लेकर फैंस उन्हें बधाई देने में लग गए हैं. पर आज हम करिश्मा के किसी कौंट्रवर्सी या शो के बारे में नहीं बल्कि उनके फैशन के बारे में बात करेंगे. करिश्मा तन्ना इंडियन लुक में अक्सर नजर आती हैं. इसीलिए आज हम करिश्मा तन्ना के फेस्टिवल कलेक्शन में से कुछ लुक आपको दिखाएंगे, जिसे आप इस साल ट्राय कर सकती हैं.

1. सिंपल लुक है परफेक्ट

आजकल लोग फेस्टिवल्स में हैवी कपड़ों की बजाय लाइट फैशन ट्राय करना पसंद करते हैं, जो स्टाइलिश के साथ-साथ कंफरटेबल भी होते हैं. इसी तरह करिश्मा तन्ना का ये पर्पल चिकन कुर्ते के साथ वाइट कलर का प्लाजो परफेक्ट फेस्टिव लुक है, जिसके साथ हैवी इयरिंग्स आपके लुक को चार चांद लगा देगा.

 

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Bliss 🌼 Outfit by @Insha creationsnx Earings by @sachdeva.ritika

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2. साड़ी है परफेक्ट औप्शन

अगर आप साड़ी की शौकीन हैं और आप शादीशुदा हैं तो करिश्मा तन्ना का ये साड़ी कलेक्शन आपके लिए परफेक्ट है. सिंपल प्लेन साड़ी के साथ सिंपल प्लेन ट्रैंडी ब्लाउज आपके लुक के लिए परफेक्ट औप्शन है. इस लुक के साथ आप हैवी इयरिंग्स ट्राय कर सकती हैं.

3. रफ्फल सूट करें ट्राय

इन दिनों सूट हो या साड़ी, हर लुक में रफ्फल का कौम्बिनेशन सेलेब्स के बीच काफी पौपुलर है और अगर आप भी इस लुक को ट्राय करना चाहती हैं तो करिश्मा तन्ना का ये लुक ट्राय करना ना भूलें.

4. प्रिंटेड कुर्ता और डैनिम

 

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Ab kya kahe ???? . Kurti by @gopivaiddesigns

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आजकल लड़कियां सूट को डैनिम के साथ कौम्बिनेशन करती हैं. वहीं फेस्टिवल में भी अगर आप डैनिम लुक के साथ कुर्ता ट्राय करना चाहती हैं तो करिश्मा तन्ना का ये लुक ट्राय करें.

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5. अनारकली सूट करें ट्राय

अनारकली सूट लड़कियों का हर समय में पसंद आने वाला लुक है और अगर ये लाल और पीले का कौम्बिनेशन हो तो फिर क्या कहने. करिश्मा तन्ना का ये लुक भी आपके लुक के लिए परफेक्ट औप्शन है.

जिम्मेदारी तुम्हारी शौक हमारे

अतुल एक निजी हौस्पिटल में डाक्टर था. महानगर के रहनसहन के तौरतरीके इतने महंगे थे कि चाह कर भी वह कुछ बचत नहीं कर पाता था. जब परिवार ने विवाह के लिए जोर देना शुरू किया तो उस की बस एक ही इच्छा थी कि उस की पत्नी भी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो ताकि आगे का जीवन सुचारु रूप से चल सके. जल्द ही तलाश खत्म हुई और प्रीति उस की प्रीत की डोरी में बंध गई.

प्रीति आई तो गृहस्थी के खर्चे भी बढ़ गए, मगर प्रीति ने घरखर्च या किसी भी और तरह के खर्र्च को बांटने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. नतीजा यह हुआ कि बढ़े हुए कई खर्चे अतुल के सिर पर आ गए.

जब अतुल ने प्रीति को गृहस्थी में योगदान करने के लिए कहा तो वह फूट पड़ी. बोली, ‘‘कैसे मर्द हो जो बीवी की कमाई पर गृहस्थी की गाड़ी खींचोगे?’’

प्रीति के इस रवैए से अतुल हैरान हो उठा.

ऐसा ही हाल पल्लवी और सौरभ के घर का था. लोन की किस्त, बच्चों की पढ़ाई और घरखर्च सब सौरभ की जिम्मेदारी थी, यहां तक कि कभीकभी अगर कोई खर्च और आ जाता था तो सौरभ को दोस्तों से उधार मांगना पड़ता था पर पल्लवी के कान पर जूं नहीं रेंगती थी.

ऐसा नहीं है कि हर पत्नी का रवैया ऐसा ही हो. नितिन और ऋचा के केस में बात कुछ और ही है. ऋचा की नौकरी के बल पर नितिन ने पैसे उलटेसीधे व्यापार में लगा दिए और फिर ठनठन गोपाल. कई बार ऐसा हुआ. तब ऋचा को लगने लगा कि विवाह के बाद पति को बल देने के लिए नौकरी करना उस की सब से बड़ी भूल थी.

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दोनों की कमाई से चलेगी गाड़ी

अब जमाना बदल गया है और बदल गया है जिंदगी जीने का अंदाज भी. वह पहले जमाने की बात थी जब पति नौकरी करता था और पत्नी घर और बच्चे संभालती थी. अब महानगरों में महंगाई के दानव ने इतना विकराल रूप धारण कर रखा है कि 2 जनों की कमाई के बिना गृहस्थी की गाड़ी खींचना असंभव है.

फिर भी गौर करने योग्य बात यह है कि आज भी अधिकांश घरों में जहां पति की कमाई घर की सारी जिम्मेदारियां पूरी करने में निकल जाती है वहीं पत्नी की आधी सैलरी अपने शौक पूरे करने में चली जाती है और बारबार पति को सामने या इशारों में यह भी सुनाया जाता है कि अगर वह नौकरी न करे तो उसे अपनी सारी इच्छाओं को मारना पड़ेगा.

यों बाटें जिम्मेदारी

अगर आप और आप के पति दोनों ही नौकरी करते हैं तो इन बातों का ध्यान अवश्य रखें:

घर आप दोनों का है अत: जिम्मेदारी में बराबर की भागेदारी करें. पूरे महीने का बजट बना लें और बराबर का योगदान करें. आप की कमाई पर आप का ही हक है पर पति को बारबार अपने वेतन की धौंस दे कर हीन महसूस न कराएं. जितनी उन की घर के प्रति जिम्मेदारी है उतनी ही आप की भी है.

जैसे आप अपने शौक पूरे करती हैं वैसे ही आप के जीवनसाथी के भी शौक हैं. आवश्यकता है कि आप दोनों आपसी सहमति से यह तय करें कि वेतन का कितना भाग शौक पूरे करने में और कितना भाग दूसरे महत्त्वपूर्ण कार्यों पर खर्च करेंगे.

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आज के समय की मांग है कि पतिपत्नी के बीच में आर्थिक पारदर्शिता भी होनी चाहिए. बहुत बार ऐसा भी देखने को मिलता है कि पत्नी पति को अपने वेतन की गलत जानकारी देती है. इस के पीछे मुख्य कारण यह होता है कि अगर पत्नी अपने वेतन से घर चलाएगी तो पति सारी की सारी कमाई दोस्तों या अपने घर वालों पर उड़ा देगा, जो हर बार सही भी नहीं होता है.

बहुत बार यह भी देखने में आता है कि पत्नी अपनी सहेलियों की देखादेखी अपने वेतन को ले कर असुरक्षित रहती है. उसे लगता है कि उसे अपना वेतन भविष्य के लिए बचा कर रखना चाहिए, क्योंकि पति का कोई भरोसा नहीं होता है.मगर यदि पति भी ऐसा ही सोचने लगे तो आप क्या करेंगी? अगर रिश्ते में विश्वास ही नहीं है तो ऐसी शादी का कोई फायदा नहीं है.

आप आज की नारी हैं जो किसी भी चुनौती का सामना कर सकती हैं. फिर जिम्मेदारियों का डट कर सामना करें. सुनीसुनाई बातों पर यकीन कर के पहले से ही अपने जीवनसाथी के प्रति कोई धारणा न बनाएं. हर इंसान दूसरे इंसान से अलग होता है.

आप के पति चाहे कंजूस हों चाहे शाहखर्च पर आप विवाह के पहले माह ही यह तय कर लें कि दोनों वेतन का कितना प्रतिशत बचत करेंगे.

अगर आप लोगों ने घर और कार पर लोन ले रखा है तो एक लोन का भार खुद पर लें. यह आप के पति को राहत तो देगा ही, साथ ही वे आप को मन से धन्यवाद भी करेंगे.

Serial Story: अपनी मंजिल (भाग-3)

पूर्व कथा

बदहवास अमिता ट्रेन की जनरल बोगी में चढ़ कर घबरा जाती है. शरीफ टिकट चैकर उसे फर्स्ट क्लास में जगह दिलवा देता है. वहां वह पुरानी बातें याद करती है.

उस के मातापिता का तलाक हो चुका होता है. उस की मां ने दूसरी शादी कर के अलग घर बसा लिया था और वह पिता की कस्टडी में रह कर होस्टल में पलीबढ़ी. एक दिन पापा को सरप्राइज देने वह घर पहुंची तो यह देख कर हैरान रह गई कि उन्होंने भी दूसरी शादी कर ली है. वहां से वह अपनी मां के घर कानपुर चली आती है.

मां का पति सतीश बेहद बदतमीज और गैरसलीकेदार आदमी था. उन के 2 बेटे भी थे जो बिलकुल सतीश पर ही गए थे. मां के घर में अमिता ने देखा कि वह अपने पति का रोब और धौंस चुपचाप सहती है. एक रात गलती से अमिता के कमरे का दरवाजा खुला रह गया तो सतीश उस के कमरे में घुस आया लेकिन ब्लैक बेल्ट अमिता ने उसे धूल चटा दी. मां भी बेबस खड़ी देखती रहीं. उसे मां से भी घृणा हो गई. उन से सारे रिश्ते तोड़ वह बदहवास स्टेशन की ओर भाग ली.

अब आगे…

बुजुर्ग दंपती दोनों से ध्यान हटा तो अमिता के मन में अपनी चिंता ने घर कर लिया. ‘टाटानगर’, हां यहीं तक का टिकट है. उसे वहीं तक जाना पड़ेगा. पर रेलगाड़ी के डब्बे से स्टेशन पर लिखा नाम ही उस ने देखा है बाकी शहर से वह एकदम अनजान है. असल में इधर के जंगलों में 2 बार कैंप लगा था इसलिए वह स्टेशन का नाम जानती है. वहां के स्टेशन पर उतर कर वह कहां जाएगी, क्या करेगी, कुछ पता नहीं. अकेली लड़की हो कर होटल में रहे यह उचित नहीं और इतने पैसे भी नहीं कि महीना भर होटल में रह सके.

पापा से कहेगी तो वे तुरंत पैसे भेज देंगे और एक बार भी नहीं पूछेंगे कि इतने पैसों का क्या करेगी? इतना विश्वास तो पापा के ऊपर अब भी है. पर यह उस का भविष्य नहीं है और न ही समस्या का समाधान. उसे अपने बारे में कुछ तो ठोस सोचना ही पड़ेगा. जब तक पापा के विवाह की बात पता नहीं थी तब तक बात और थी. निसंकोच पैसे मांगती पर अब उन की असलियत को जान लेने के बाद वह भला किस मुंह से पैसे मांगे.

वहां टिस्को और टेल्को में लोग लिए जा रहे हैं पर क्या नौकरी है, कैसी नौकरी है? कुछ भी तो उसे पता नहीं फिर कितने दिन पहले आवेदन लिया गया है, यह भी तो वह नहीं जानती.

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इस शहर का नाम जमशेदपुर है. इस इलाके की धरती के नीचे खनिजों का अपार भंडार है. दूरदर्शी जमशेदजी टाटा ने यह देख कर ही यहां अपना प्लांट लगाया था. बस, इतनी ही जानकारी उसे इस जगह के बारे में है और कुछ नहीं. अब एक ही रास्ता हो सकता है कि उलटे पैर वह दिल्ली लौट जाए. वहां दिल्ली में जानपहचान के कई मित्र हैं, कोई कुछ तो जुगाड़ कर ही देगा. ज्यादा न हो सका तो एक छत और भरपेट खाने का हिसाब बन ही जाएगा. थोड़ा समय लगे तो कोई बात नहीं है. वहां पापा हैं, वे भी कुछ उपाय करेंगे ही. बेटी को सड़क पर तो नहीं छोड़ेंगे. उस ने मन बना लिया कि वह उलटे पैर दिल्ली लौट जाएगी.

दिल्ली लौट जाने का फैसला कर लिया तो उसे कुछ चैन पड़ा. मन भी शांत हो गया. चैन से फैल कर वह बैठ गई.

‘‘बेटी, कहां जाओगी?’’

वह चौंकी, मानो चेतना लौटी, ‘‘जी, टाटानगर.’’

उस के शांत, सौम्य उत्तर से वे दोनों बुजुर्ग पतिपत्नी बहुत प्रभावित हुए. अमिता को ऐसा ही लगा. उन्होंने बात आगे बढ़ानी चाही.

‘‘टाटानगर में कहां रहती हो?’’

अब अमिता को थोड़ा सतर्क हो कर बोलना पड़ा, ‘‘जी, पहले कभी नहीं आई. एक इंटरव्यू है कल.’’

इस बार सज्जन बोले, ‘‘हांहां, टाटा कंपनी में काफी लोग लिए जा रहे हैं. तुम नई हो, कहां रुकोगी?’’

‘‘यहां किसी अच्छे होटल या गैस्ट हाउस का पता है आप के पास?’’

बुजुर्ग सज्जन ने थोड़ा सोचा, फिर बोले, ‘‘बेटी, होटल तो इस शहर में बहुत हैं. अच्छे भी हैं पर तुम अकेली लड़की, सुंदर हो, कम उम्र है. तुम्हारा होटल में रहना ठीक होगा क्या? समय अच्छा नहीं है.’’

वृद्ध महिला ने समर्थन किया, ‘‘नहीं बेटे, एकदम अकेले होटल में रात बिताना…ठीक नहीं होगा.’’

‘‘पर मांजी, मेरी तो यहां कोई जानपहचान भी नहीं है, क्या करूं?’’

‘‘एक काम करो, तुम हमारे घर चलो.’’

‘‘आप के घर?’’

‘‘संकोच की कोई बात नहीं. घर में बस हम 2 बुजुर्ग ही रहते हैं और काम करने वाले. तुम को कोई परेशानी नहीं होगी. कल तुम को इंटरव्यू के लिए हमारा ड्राइवर ले जाएगा.’’

अमिता असमंजस में पड़ गई. देखने में तो पतिपत्नी दोनों ही बहुत सज्जन और अच्छे घर के लगते हैं. परिपक्व आयु के भी हैं. मुख पर निरीह सरलता भी है पर जो झटका खा कर यहां तक वह पहुंची है उस के बाद एकदम किसी पर भरोसा करना मूर्खता के अलावा और कुछ नहीं. आजकल लड़कियों को फंसा कर बेचने का रैकेट भी सक्रिय है. ऐसे में…? पर उस का सिर तो पहले ही ओखली में फंस चुका है, मूसल की मार पड़े तो पड़ने दो.

अमिता ने निर्णय लिया कि वह इन के घर ही जाएगी. नौकरी तो करनी ही है. ये लोग हावभाव से यहां के खानदानी रईस लगते हैं. अगर इन लोगों का संपर्क प्रभावशाली लोगों से हुआ तो ये कह कर उस की नौकरी भी लगवा सकते हैं. टाटा कंपनी में नौकरी मिल गई तो चांदी ही चांदी. सुना है टाटा की नौकरी शाही नौकरी है.

‘‘आप…लोगों…को…कष्ट…’’

बुजुर्ग महिला हंसी और बोली, ‘‘बेटी, पहले घर तो चलो फिर हमारे कष्ट के लिए सोचना. हां, तुम को संकोच न हो इसलिए बता दूं कि हमारे 3 बेटाबेटी हैं. तीनों का विवाह हो गया है. तीनों के बच्चे स्कूलकालेजों में पढ़ रहे हैं और तीनों पूरी तरह अमेरिका और आस्ट्रेलिया में स्थायी रूप से बसे हैं. यहां हम दोनों और पुराने नौकरचाकर ही हैं.’’

अमिता का मन यह सुन कर भर आया. अपनों ने भटकने के लिए आधी रात रास्ते पर छोड़ दिया. एक बार उस की सुरक्षा की बात तक नहीं सोची और ये? जीवन में पहली बार देखा, कोई रिश्ता नहीं फिर भी वे उस की सुरक्षा के लिए कितने चिंतित हैं.

‘‘ठीक है अम्मा, आप के साथ ही चलती हूं,’’ अम्मा शब्द का संबोधन सुन वे बुजुर्ग महिला गद्गद हो उठीं.

‘‘जीती रहो बेटी, मेरी बड़ी पोती तुम्हारे बराबर ही होगी. तुम मुझे अम्मा ही कहा करो. मातापिता ने बड़े अच्छे संस्कार दिए हैं.’’

इस बार वास्तव में अमिता को हंसी आ गई. मातापिता, उन का अपना-अपना परिवार, उन के संस्कार लेने योग्य हैं या नहीं, वह नहीं जानती. कम से कम अमिता ने तो उन से कुछ नहीं लिया. यह जो अच्छाई है उस के अंदर, चाहे उसे संस्कार ही समझें, यह सबकुछ उस ने पाया है एक अच्छे परिवेश में, अच्छी संस्था की शिक्षा और अनुशासन से, और इस के लिए वह मन ही मन पिता के प्रति कृतज्ञ है.

उन्होंने दोबारा अपना घर बसा लिया है पर उस के प्रति उन का जो दायित्व और कर्तव्य है, उस से एक कदम भी पीछे नहीं हटे जबकि उस की सगी मां कूड़े की तरह उस को फेंक गईं. उस के बाद एक बार भी पलट कर नहीं देखा कि वह मर गई या जीवित है.

उस का ध्यान भंग हुआ. वे महिला कह रही थीं, ‘‘आजकल देख रही हूं कि बच्चे कितने उद्दंड हैं. छोटेबड़े का लिहाज नहीं करते. शर्म नाम की कोई चीज उन में नहीं है पर करें क्या? झेलना पड़ता है. तुम तो बेटी बहुत ही सभ्य और शालीन हो.’’

‘‘मैं होस्टल में ही बड़ी हुई हूं. वहां बहुत ही अनुशासन था.’’

‘‘तभी, अच्छी शिक्षा पाई है, बेटी.’’

अमिता ने सोचा नहीं था कि इन बुजुर्ग दंपती का घर इतना बड़ा होगा. वह उन का भव्य मकान देख कर चकित रह गई. यह तो एकदम महल जैसा है. कई बीघों में फैला बागबगीचा, लौन और फौआरा, छोटा सा ताल और उस में घूमते बड़ेबड़े सफेद बतखों के जोड़े.

अम्मा हंसी और बोलीं, ‘‘3 साल पहले छोटा बेटा अमेरिका से आया था. 6 साल का पोता गांव का घर देखने गया था, वहां से बतखों का जोड़ा लाया था. देखो न बेटी, 3 साल में उन का परिवार कितना बड़ा हो गया है. सोच रही हूं कि 2 जोड़ों को रख कर बाकी गांव भेज दूंगी. वहां हमारी बहुत बड़ी झील है. उस में मछली पालन भी होता है.’’

‘‘यहां से आप का गांव कितनी दूर है?’’

‘‘बहुत दूर नहीं, यही कोई 40 किलोमीटर होगा. अब तो सड़क अच्छी बन गई है तो वहां जाने में समय कम लगता है.’’

‘‘आप लोग वहां नहीं जाते हैं?’’ अमिता ने पूछा.

‘‘जाना तो पड़ता ही है जब फसल बिकती है, बागों का व झील का ठेका उठता है. 2-4 दिन रह कर हम फिर चले आते हैं. वहां तो इस से बड़ा दोमंजिला घर है,’’ गहरी सांस ली उन्होंने, ‘‘सब वक्त का खेल है. सोचा था कि बच्चे यहां शहर में रहेंगे और हम दोनों गांव में. बच्चे गांव आएंगे, हम भी यहां आतेजाते रहेंगे पर सोचा कहां पूरा होता है.’’

अमिता समझ गई कि अनजाने में उस ने अम्मा की दुखती रग पर हाथ रख दिया है. जल्दी से उस ने बात पलटी, ‘‘आते तो हैं सब आप के पास?’’

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‘‘हां, आते हैं, साथ ले जाने की जिद भी करते हैं पर हम ने साफ कह दिया है, हम अपनी माटी को छोड़ कर कहीं नहीं जाएंगे. तुम्हारी इच्छा हो तो तुम आओ. वे आते हैं पर उन के पास समय बहुत कम है.’’

इस बुजुर्ग दंपती के घर नौकर- नौकरानियों की फौज है और सभी इन दोनों की सेवाटहल अपने सगों जैसा करते हैं. इतने लोगों की जरूरत है ही नहीं पर अम्मा ने ही कहा, ‘‘कहां जाएंगे ये बेचारे. यहां दो समय का खाना तो मिल जाता है. हमारा भी समय इन के साथ कट जाता है. बच्चे कभीकभार आते हैं तो ये उन को हाथोंहाथ रखते हैं. मुझे देखना भी नहीं पड़ता.’’

फिर कुछ सोच कर अम्मा बोलीं, ‘‘बेटी, अभी तक तुम ने अपना नाम नहीं बताया.’’

‘‘जी, मेरा नाम अमिता है.’’

‘‘सुंदर नाम है. पर घर का और कोई छोटा नाम?’’

अमिता के आंसू आ गए. आज तक इतने अपनेपन से किसी ने उस से बात नहीं की. असल में इंसान को किसी भी चीज का मूल्य तब पता चलता है जब वह उस से खो जाती है.

‘‘जी है… बिट्टू.’’

‘‘यही अच्छा है. मैं तुम्हें बिट्टू ही कहूंगी.’’

अमिता मन ही मन हंस पड़ी. ऐसा लग रहा है जैसे इन्होंने समझा है कि वह जीवन भर के लिए उन के पास रहने आई है. वह उठ कर कमरे में आ गई. उस का कमरा, बाथरूम और बरामदा इतना बड़ा है कि दिल्ली में एक कमरे का फ्लैट बन जाएगा.

अमिता को अब समय मिला कि वह अपने लिए कुछ सोचे पर कोई दिशा उस को नहीं मिल रही. उलझन में रहते हुए भी एक निर्णय तो उस ने लिया कि इन लोगों को वह अपनी पूरी सचाई बता देगी और पापा को फोन कर के अपने बारे में खबर देगी. कुछ भी हो उन का सहयोग नहीं होता तो अब तक उस का अस्तित्व ही मिट जाता, मां तो उसे कूड़े की तरह फेंक अपने सुख को खोजने चली गई थीं.

खाने की विशाल मेज पर बस 3 जने बैठ घर की बनी कचौरियों के साथसाथ चाय पी रहे थे. बाबूजी ने कहा, ‘‘मेरे पिता थोड़े एकांतप्रिय थे. हमारा खेत, शहर से कटा हुआ था तो उन्होंने यहां अपनी हवेली बनवा ली पर अब तो शहर फैलतेफैलते यहां तक चला आया है.’’

इसी तरह की छिटपुट बातों के बीच चाय समाप्त हुई.

दोपहर में खाना खाने के बाद अमिता अपने बिस्तर पर लेट कर सोचने लगी कि यहां इस सज्जन दंपती के संरक्षण में वह पूरी तरह सुरक्षित है. जीवन में इतनी स्नेहममता भी उस को कभी नहीं मिली पर यह ठौरठिकाना भी कितने दिन का, यह पता नहीं. अब तक तो उस ने होस्टल का जीवन काटा है. सामान्य जीवन में अभीअभी पैर रख जिन परिस्थितियों का सामना उसे करना पड़ा वह बहुत ही भयानक है.

एक घर में प्रवेश ही नहीं मिला. दूसरे घर में प्रवेश का इतना बड़ा मूल्य मांगा गया कि उस की आत्मा ही कांप उठी. मां संसार में सब से ज्यादा अपनी और अच्छी साथी होती है. यहां तो मां ने ही उसे ठोकरें खाने को मजबूर कर दिया. पापा फिर भी उस के लिए सोचते हैं पर विवश हैं कुछ कर नहीं पाते. फिर भी पूरी आर्थिक सहायता उन्होंने ही दी है. उन से संबंध न तो तोड़ सकती है और न ही तोड़ेगी.

अमिता सोना चाहती थी पर नींद नहीं आई. एक तो दोपहर में उसे सोने की आदत नहीं थी दूसरी बात कि मन विक्षिप्त है, कुछ समझ नहीं पा रही थी कि अगला कदम कहां रखेगी. यह घर, ये लोग बहुत अच्छे लग रहे हैं, इंसानियत से जो विश्वास उठ गया था इन को देख वह विश्वास फिर से लौट रहा है पर यहां भी वह कब तक टिकेगी. उस की पूरी कहानी सुनने के बाद ये उस को आश्रय देंगे या नहीं यह नहीं समझ पा रही. वैसे तो इन के घर कई आश्रित हैं पर उन में और अमिता में जमीनआसमान का अंतर है.

फै्रश हो कर कमरे से बाहर आते ही देखा कि बरामदे में दोनों पतिपत्नी बैठे हैं. उसे देख हंस दीं अम्मा, ‘‘आओ बेटी, चाय आ रही है. मैं संतो को तुम्हारे पास भेज ही रही थी. बैठो.’’

बेंत की कुरसियां वहां पड़ी थीं. अमिता भी एक कुरसी खींच कर बैठ गई. चाय आ गई. इस बार भी अमिता ने चाय बना कर उन को दी. बाबूजी ने प्याला उठाया और बोले, ‘‘कल तुम्हारा इंटरव्यू है. कितने बजे है?’’

यह सुनते ही अमिता का प्याला छलक गया.

‘‘असल में टेल्को का दफ्तर यहां से दूर है. थोड़ा जल्दी निकलना. मैं ड्राइवर को बोल दूंगा, कल जल्दी आ कर गाड़ी तैयार रखे.’’

अब और नहीं, इन को सचाई बतानी ही पड़ेगी. इतनी चालाकी उस के अंदर नहीं है कि इतनी बड़ी बात छिपा ले. मन और मस्तिष्क पर अपराधबोध का दबाव बढ़ता जा रहा था.

‘‘बाबूजी,’’ अमिता बोली, ‘‘मुझे आप दोनों से कुछ कहना है.’’

‘‘हां…हां. कहो.’’

‘‘अम्मा, मैं ने आप से झूठ बोला है. मेरा यहां कोई इंटरव्यू नहीं है.’’

बुजुर्ग पतिपत्नी चौंके.

‘‘तो…फिर…? इतनी जल्दी क्या थी गाड़ी पकड़ने की.’’

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‘‘मैं उस जीवन से भाग रही थी जहां मेरे सम्मान को भी दांव पर लगा दिया गया था.’’

‘‘किस ने लगाया?’’

‘‘मेरी सगी मां ने.’’

‘‘बेटी, हम कुछ समझ नहीं पा रहे हैं.’’

बचपन से ले कर आज तक की पूरी कहानी अमिता ने उन्हें सुनाई. वे दोनों स्तब्ध हो उस की आपबीती सुन रहे थे. अम्मा के आंसू बह रहे थे. उन्होंने उठ कर उसे अपनी गोद में खींचा.

‘‘इतनी सी उम्र में बेटी तू ने कितना सहा है. पर तू चिंता मत कर. शायद हमारा साथ तुम को मिलना था इसलिए नियति ने हमें उस गाड़ी और उसी डब्बे में भेज दिया. कितनी पढ़ी हो?’’

‘‘बीए फाइनल की परीक्षा दी है. अभी परीक्षाफल नहीं आया है. पास होने के बाद जहां भी नौकरी मिलेगी मैं चली जाऊंगी.’’

बाबूजी ने कहा, ‘‘तुम कहीं नहीं जाओगी. काम की कमी नहीं है यहां. मैं ही तुम्हारी नौकरी का प्रबंध कर दूंगा. हर लड़की को स्वावलंबी बनना चाहिए. पर तुम रहोगी हमारे ही साथ. देखो बेटी, तुम्हारी उम्र बहुत कम है. ऐसे में बड़ों का संरक्षण बहुत जरूरी है. दूसरी बात, हम दोनों भी बहुत अकेले हैं. अपने बच्चे तो बहुत दूर चले गए हैं. मातापिता की खोजखबर भी नहीं लेते. ऐसे में जवान बच्चे का संरक्षण हम को भी चाहिए. यहां इतने काम करने वाले तो हैं पर अपना कोई रहे तो हम को बहुत बल मिलेगा. आराम से रहो तुम.’’

‘‘आप की आज्ञा सिरआंखों पर.’’

‘‘इतना कुछ है,’’ आंसू पोंछ कर अम्मा ने कहा, ‘‘मुझे नएनए व्यंजन बनाने का शौक है, पर खाएगा कौन? तुम रहोगी तो मेरा भी मन लगा रहेगा. चलो, 2-4 दिन में तुम को अपने गांव घुमा कर लाती हूं.’’

बाबूजी हंसे फिर बोले, ‘‘बेटी, तुम को जो भी चाहिए वह बेहिचक हो कर बता देना.’’

अमिता को संकोच तो हुआ फिर भी वह बोली, ‘‘सोच रही थी एक मोबाइल खरीद लूं क्योंकि मेरा जो मोबाइल था वह कानपुर में ही छूट गया.’’

‘‘अरे, आज ही मंगवा कर देती हूं,’’ अम्मा बोलीं, ‘‘कोई जरूरी फोन करना हो तो घर के फोन से कर लो.’’

दूसरे दिन नाश्ते के बाद खुले मन से अमिता अम्मा के साथ बात कर रही थी. बाबूजी के पास व्यापार के सिलसिले में कुछ लोग आए थे.

अम्मा ने कहा, ‘‘आज का समाज इतना स्वार्थी, विकृत, आधुनिक, उद्दंड और असहिष्णु हो गया है कि अपने सारे कर्तव्य, उचितअनुचित और कोमल भावनाओं तक को नजरअंदाज कर बैठा है. तभी तो देखो न, 3 बच्चों के मातापिता हम कितने अकेले पड़े हुए हैं.’’

अमिता ने अम्मा के मन की पीड़ा को समझा. वह अपनी पीढ़ी को बचाने के लिए बोली, ‘‘क्या करें अम्मा, इस देश में काम की कितनी कमी है.’’

‘‘क्यों नहीं कमी होगी. तुम्हीं बताओ, यहां किसी को अपने आनेजाने की रोकटोक, कोई सख्ती कुछ नहीं. पड़ोसी देश इस धरती के सब से बड़े अभिशाप बने हुए हैं. जैसे ही वहां थोड़ी असुविधा हुई सीधे यहां चले आते हैं. फिर भी जिन की रोजीरोटी का प्रश्न है वे देश छोड़ कर चले जाएं तो देश का उपकार हो. कुछ परिवार संपन्नता का मुंह भी देखें पर जिन की यहां जरूरत है वे जब देश छोड़, गांव छोड़, असहाय मातापिता को छोड़ चले जाते हैं तो हमारे लिए दुख की बात तो है ही, देश के लिए भी हानिकारक है. सामर्थ्य रहते भी उन के वृद्ध मातापिता इतने दुखी और हतोत्साहित हो जाते हैं कि उन में कुछ अच्छा, कुछ कल्याणकारी करने की इच्छा ही खत्म हो जाती है.’’

अम्मा का हर शब्द अमिता के मन की गहराई में उतर रहा था. अम्मा की सोच कितनी उन्नत है, उन्होंने गांव का जीवन, गरीबी, लोगों का दुखदर्द अपनी आंखों से देखा, मन से अनुभव किया है, पर चाहते हुए भी अपना हाथ नहीं बढ़ा पातीं. साहस भी नहीं कर पा रहीं क्योंकि उन को भी मजबूत हाथों के सहारे की जरूरत है और पीछे से साधने वाला कोई नहीं. जब तक 2 मजबूत, जवान हाथों का सहारा न हो वे कैसे किसी कल्याणकारी योजना में अपना हाथ डालें. फिर समय ऐसा है कि सचाई भी चिराग ले कर खोजे नहीं मिलती है. अमिता सोचने लगी.

मोबाइल मिलने के बाद अमिता ने शिल्पा, जो उस की घनिष्ठ सहेली थी, को सारी बातें बता कर अनुरोध किया कि रिजल्ट आते ही वह तुरंत सूचना दे. शिल्पा उस के लिए चिंतित हो गई.

‘‘वह तो तू न भी कहती तब भी मैं खबर देती. पर यह बता, अब तू क्या करेगी? नौकरी तो करेगी ही, उस के लिए बेहतर होगा दिल्ली आ जा.’’

‘‘मन इतना विक्षिप्त है कि अभी उधर लौटने की इच्छा नहीं है. रिजल्ट आ जाए तब भविष्य के लिए कुछ सोचूंगी.’’

‘‘ठीक है पर अपने पापा से तू एक बार बात तो कर ले.’’

‘‘पापा से बात की थी. उन्होंने कहा कि मेरी जैसी इच्छा है मैं वही कर सकती हूं. 10 हजार रुपए भी भेज दिए हैं. मुझे उन से कोई शिकायत नहीं है.’’

‘‘चल, तू अच्छे लोगों के साथ सुरक्षित रह रही है, यह मेरे लिए बहुत बड़ी राहत की बात है. फोन करती रहना. मैं भी करूंगी.’’

एक दिन अम्मा, बाबूजी को गांव जाना पड़ा. ‘‘झील में पली मछलियों का ठेका उठने वाला है,’’ अम्मा ने बताया, ‘‘साथ में अगली बार जो मछली का बीज पड़ेगा उस की भी व्यवस्था अभी से करनी होगी.’’

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40 किलोमीटर का रास्ता वे देखते ही देखते डेढ़ घंटे में पार कर आए. परिसर में आ कर गाड़ी रुकते ही अमिता की आंखें फटी की फटी रह गईं. इस में तो जमशेदपुर की 2 हवेली बन जाएंगी. अमिता ने मन ही मन सोचा.

कुछ घंटों में उस की समझ में आ गया कि ये लोग कितने संपन्न हैं. दुख हुआ इन के बच्चों की सोच पर कि वे यहां इतना कुछ छोड़ गए हैं और पराए देश में जा कर चाकरी बजा रहे हैं. अपनी शक्ति और बुद्धि दोनों को विदेशों में जा कर कौडि़यों के मोल बेच रहे हैं.

यहां अपने बुजुर्ग मातापिता के साथ रह कर देश की समृद्धि में हाथ बंटा सकते थे. कितने असहायों को जीने के रास्ते पर ला सकते थे, कितनों को गरीबी रेखा से खींच कर ऊपर उठा सकते थे. पर…

अचानक अमिता के मन में आया कि बाबूजी और अम्मा अभी शरीर से स्वस्थ हैं. बस, थोड़े अकेलापन और डिप्रैशन की लपेट में आ रहे हैं. उन का जीवन भी तो एक तरह से निरर्थक सा हो गया है. उसे जनकल्याण में समर्पित कर के सार्थक बनाया जा सकता है. अरे, नौकरी ही क्यों? करने के लिए कितना कुछ पड़ा है. उस ने फैसला कर लिया कि इन लोगों से बात करेगी.

अमिता का प्रस्ताव सुन दोनों बुजुर्ग सोचने लगे. अम्मा ने कहा, ‘‘बेटी, तुम्हारी योजना बहुत सुंदर है. देश व समाज का उपकार भी होगा पर बेटी हम डरते हैं. तुम्हारी उम्र अभी कम है. आज न सही पर कल तुम शादी कर के अपने घर चली जाओगी, तब हम दोनों बुजुर्ग लोग क्या करेंगे? कैसे संभालेंगे इतना कुछ.’’

बाबूजी ने कहा, ‘‘हम एक काम करते हैं. तुम्हारी योजना में थोड़ा काटछांट करते हैं. यहां अनाथ और वृद्धों की सेवा हो. उस के साथ तुम ने यह जो महिला कल्याण और लघुउद्योग निशुल्क शिक्षा केंद्र की योजना बनाई है, उसे अभी रहने दो.’’

‘‘नहीं बाबूजी,’’ अमिता बोली, ‘‘हमारा असली काम तो यही है. कहीं मार खाती तो कहीं विदेशों में बिकती असहाय लड़कियों को बचा कर उन को स्वावलंबी बना कर उन्हें उन के पैरों पर खड़ा करना जिस से घर या बाहर कोई आंख उठा कर उन्हें देख न सके और गरीबी से जूझ कर कोई दम न तोड़ दे. अनाथ और वृद्धों की सेवा सहारा तो हो ही जाएगी.’’

अम्मा हंसी और बोलीं, ‘‘उस दिन ट्रेन में तुझे डरीसहमी एक लड़की के रूप में देखा था, आज तुझ में इतनी शक्ति कहां से आ गई?’’

बाबूजी ने मेरा सिर हिलाया और बोले, ‘‘उस दिन अग्नि परीक्षा में तप कर ही तो यह शुद्ध सोना बनी है. इस की सोच बदली, मनोबल बढ़ा और बुद्धि ने जीवन का नया दरवाजा खोला.’’

 

अमिता भी अब इन लोगों से सहज हो गई थी. पुरानी पीढ़ी से नई पीढ़ी के मतभेद, सोच में अंतर के झगड़े तो मिटने वाले नहीं हैं. वे चलते रहेंगे. उस से किसी पीढ़ी के जीवन में कोई अंतर नहीं आना चाहिए. नया खून अपने को नहीं बदलेगा, पुराना खून बेवजह मानसिक, शारीरिक कष्ट सहतेसहते उन लोगों का रास्ता देखते हुए फोन का इंतजार न करते हुए उन के कुशल समाचार लेने की प्रतीक्षा न कर के अपने जीवन को अपने ढंग से जीए. सामर्थ्य के अनुसार उन लोगों की दुख- परेशानी को कम करे. देश समाज का भला हो और अपना मन भी खुशी, उत्साह में भराभरा रहे. एकएक पैसा जोड़ कर उन लोगों के लिए जमा करने की मानसिकता समाप्त हो, वह भी उन के लिए जिन्हें उन की, उन के प्यार व ममता की  और न ही उन के जमा किए पैसों की जरूरत है.

दोनों ही अमिता की बातों से मोहित हो गए.

‘‘तुम्हारी सोच कितनी अच्छी है, बेटी.’’

‘‘समय, हालात, मार बहुत कुछ सिखा देता है बाबूजी. अभी कुछ दिन पहले तक मैं कुछ सोचती ही नहीं थी. मैं आप लोगों से मिली, जानपहचान के बाद जा कर सोच ने जन्म लिया. अम्मा, आप डरो नहीं, मैं आप लोगों को छोड़ कर कहीं नहीं जा रही.’’

‘‘तेरी शादी तो मैं जरूर करूंगी.’’

‘‘करिए पर शर्त यही रहेगी कि मैं यहां से कहीं नहीं जाऊंगी.’’

‘‘ठीक है, उसे ही हम यहां रख लेंगे.’’

इस के साथ ही वातावरण में खुशी की लहर दौड़ गई.

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Serial Story: अपनी मंजिल (भाग-2)

पूर्व कथा

बदहवास सी अमिता ट्रेन की जनरल बोगी में चढ़ कर घबरा जाती है. तभी टिकट चैकर आता है तो वह उस से झूठ बोलती है कि वह इंटरव्यू देने टाटानगर जा रही है. वह उसे फर्स्ट क्लास में जगह दिला देता है. अमिता रात को पुरानी बातें याद करने लगती है.

होस्टल में पलीबढ़ी अमिता के मम्मीपापा का तलाक हो चुका था. हर साल छुट्टियों में वह घर न जा कर कहीं न कहीं कैंप में चली जाती और पापा भी उसे भेजने को राजी हो जाते. हालांकि पापा उसे बहुत प्यार करते थे, पर मां की कमी उसे महसूस होती. इस बार छुट्टियों में आतंकवादी गतिविधियों के कारण उन का कैंप रद्द हो गया तो वह पापा को सरप्राइज देने के लिए अकेली ही दिल्ली चली गई. पापा उसे देख कर पसोपेश में पड़ गए. तभी एक युवती से उस का सामना हुआ. तब उसे पता चला कि उन्होंने तो शादी कर के दुनिया ही बसाई हुई है. वह उलटे पांव वहां से लौट गई. अमिता फिर अपनी मां के पास कानपुर चली गई.

अब आगे…

अमिता के सामने एक पल में सारा संसार सुनहरा हो गया. मां कभी बच्चे से दूर नहीं जा सकती. पापा ने बहुत कुछ किया पर मां संसार में सर्वश्रेष्ठ आश्रय है.

‘इतने दिनों के बाद मेरी याद आई तुझे?’ उन्होंने फिर चूमा उसे.

‘चल…अंदर चल.’

‘बैठ, मैं चाय बनाती हूं.’

बैग को कंधे से उतार कर नीचे रखा और सोफे पर बैठी. घर में पता नहीं कौनकौन हैं? वे लोग उस का आना पता नहीं किसकिस रूप में लेंगे. मम्मी अपनी हैं पर बाकी से तो कोई रिश्ता नहीं, तभी अमिता चौंकी. अंदर कर्कश आवाज में कोई गरजा.

‘8 बज गए, चाय बनी कि नहीं.’

‘बनाती हूं, बिट्टू आई है न इसलिए देर हो गई.’

‘कौन है यह बिट्टू? सुबह किसी के घर आने का यह समय है क्या?’

‘धीरे बोलो, वह सुन लेगी. मेरी बेटी है अमिता,’ मां के स्वर में लाचारी और घबराहट थी.

‘तुम्हारी बेटी, वह होस्टल वाली न. मेरे घर में यह सब नहीं चलेगा. जाने के लिए कह दो.’

‘अरे, मुझ से मिलने आई होगी. 2-4 दिन रहेगी फिर चली जाएगी पर तुम पहले से हल्ला मत करो.’

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मां के शब्दों में अजीब सी याचना और विनती थी. आंखों के सामने उजली सुबह स्याह हो गई. ये उस को नहीं रखेंगे तो अब क्या करेगी? पापा होटल में रख रहे थे वह फिर भी अच्छा था. किसी की दया का पात्र तो नहीं बनती.

परीक्षाफल आने में अभी पूरा एक महीना पड़ा है. उस के बाद ही तो वह कहीं नौकरी तलाश कर सकती है पर तब तक का समय? होस्टल खुला होता तो लौट जाती. वहीं कोई छोटामोटा काम देख लेती पर कानपुर तो नई और अनजान जगह है. कौन नौकरी देगा?

तभी सुनीता ट्रे में रख कर चाय ले आईं. पीछेपीछे एक गैंडे जैसा आदमी चाय पीता हुआ लुंगी और बनियान में आ गया. लाललाल आंखें, मोटे लटके होंठ, डीलडौल मजदूरों जैसा, भद्दा हावभाव. उस की आंखों के सामने सौम्य, भद्र व्यक्तित्व वाले उस के पापा आ गए. मम्मी की रुचि इतनी विकृत हो गई है. छि:.

‘चाय ले, ये सतीशजी हैं मेरे पति.’

मन ही मन अमिता ने सोचा यह आदमी तो पापा के चपरासी के समान भी नहीं है. उस ने बिना कुछ बोले चाय ले ली. गैंडे जैसे व्यक्ति ने स्वर को कोमल करते हुए कहा, ‘अरे, तुम मेरी बेटी जैसी हो. हमारे पास ही रहोगी.’

सुनीता का चेहरा खुशी से खिल उठा.

‘यही तो मैं कह रही थी. तेरे 2 छोटे भाई भी हैं. अच्छा लगेगा तुझे यहां.’

अमिता उस व्यक्ति की आंखों में लालच और भूख देख सिहर उठी. बिना सोचेसमझे वह कहां आ गई. मम्मी खुशी से फूली नहीं समा रहीं.

‘चाय समाप्त कर, चल तेरा कमरा दिखा दूं. साथ में ही बाथरूम है. नहाधो कर फ्रैश हो ले. मैं नाश्ता बनाती हूं. भूख लगी होगी.’

सुनीता बेटी को उस के कमरे में छोड़ आईं. मां के बाहर जाते ही उस ने अंदर से कुंडी लगा ली. उस की छठी इंद्री उसे सावधान कर रही थी कि वह यहां पर सुरक्षित नहीं है. उस का मन पापा का संरक्षण पाने के लिए रो उठा.

नहाधो कर अमिता बाहर आई तो 2 कालेकलूटे, मोटे से लड़के डाइनिंग टेबल पर स्कूल ड्रैस में बैठे थे. अमिता को दोनों एकदम जंगली लगे. सतीश नाश्ता कर रहा था. उसे फिर ललचाई नजरों से देख कर बेटों से बोला, ‘बच्चो, यह तुम्हारी दीदी है. अब हमारे साथ ही रहेगी और तुम लोग इस से पढ़ोगे,’ फिर पत्नी से बोला, ‘सुनो सुनीता, आज से ही टीचर की छुट्टी कर देना.’

‘टीचर की छुट्टी क्यों?’

‘अब इन बच्चों को यह पढ़ाएगी. 500 रुपए महीने के बचेंगे तो इस का कुछ तो खर्चा निकलेगा.’

अमिता ने सिर झुका लिया. सुनीता लज्जित हो गईं.

अमिता ने इस से पहले इतने भद्दे ढंग से बात करते किसी को नहीं देखा था और मम्मी यह सब झेल रही हैं. जबकि यही मम्मी पापा का जरा सा गरम मिजाज नहीं झेल सकीं और इस मूर्ख के आगे नाच रही हैं. उन की जरा सी जिद पर चिढ़ जाती थीं और अब इन दोनों जंगली बच्चों को झेल रही हैं और चेहरे पर शिकन तक नहीं है. यही मम्मी हैं कि आज सतीश को खुश करने में कैसे जीजान से लगी हैं जबकि पापा की नाक में दम कर रखा था.

एक खटारा सी मारुति में दोनों बेटों को ले कर सतीश चला गया. बच्चों को स्कूल छोड़ खुद काम पर चला जाएगा. लंच में आते समय ले आएगा. सुनीता ने फिर 2 कप चाय का पानी चढ़ा दिया.

अमिता को अब मां से बात करना भी अच्छा नहीं लग रहा था. इस समय वह अपने भविष्य को ले कर चिंतित थी.

‘तू तो लंबी छुट्टी में कैंप में जाती थी… इस बार क्या हुआ?’

‘कैंप रद्द हो गया. जहां जाना था वहां माओवादी उपद्रव मचा रहे हैं.’

‘पापा के पास नहीं गई थी?’

अमिता को लगा कि हर समय सही बात कहना भी मूर्खता है. इसलिए वह बोली, ‘नहीं, अभी नहीं गई.’

‘तू ने कब से अपने पापा को नहीं देखा?’

‘क्या मतलब, हर दूसरेतीसरे महीने हम मिलते हैं.’

यह सब जान कर सुनीता बुझ सी गईं.

‘अच्छा, मैं सोच रही थी कि बहुत दिनों से…’

‘होस्टल का खर्चा भी कम नहीं. पापा ने कभी हाथ नहीं खींचा,’ बेटी को अपलक देखती हुई सुनीता कुछ पल को रुक कर बोलीं, ‘अब तो तू अपने पापा के साथ रह सकती है?’

अमिता ने सीधे मां की आंखों में देखा और पूछ बैठी, ‘क्यों?’

सुनीता की नजरें झुक गईं. उन्होंने मुंह नीचा कर मेज से धूल हटाते हुए कहा, ‘मेरा मतलब…अब पढ़ाई तो पूरी हो गई, तुम्हारे लिए रिश्ता देखना चाहिए.’

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अमिता के मन में कई बातें कहने की इच्छा हुई कि तुम तो बच्ची को एक झटके में छोड़ कर चली आई थीं. 12 साल में पलट कर भी नहीं देखा. अब बेटी के रिश्ते की चिंता होने लगी? पर अपने को संभाला. इस समय उस के पैरों के नीचे जमीन नहीं है. आगे के लिए बैठ कर सोचने के लिए एक आश्रय तो चाहिए. अत: वह चुप ही रही. इस के बाद सुनीता ने बातचीत चालू रखने का प्रयास तो किया पर सफल नहीं हो पाईं. बेटी उठ कर अपने कमरे में चली गई.

ठीक 2 बजे सतीश अपनी खटारा गाड़ी में दोनों बच्चों को ले कर वापस आया. अमिता को फिर अपने पापा की याद आई. वह सारा दोष पापा को नहीं देती है. ढलती उम्र में स्त्री अकेली रह लेती है पर आदमी के लिए रहना कठिन है. वह कुछ सीमा तक असहाय हो जाता है. पापा का दोष इतना भर है कि अपनी पत्नी से बेटी की बात छिपाई और बेटी से अपने विवाह की वरना पापा ने पैसों से कभी हाथ नहीं खींचा.

मैं ने 100 रुपए मांगे तो पापा ने 500 दिए. साल में कई बार मिलते रहे. मेरी पढ़ाई की व्यवस्था में कोई कमी नहीं होने दी. उन का व्यवहार अति शालीन है. उन के उठने, बैठने, बोलने में शिक्षा और कुलीनता साफ झलकती है. इस उम्र में भी वे अति सुदर्शन हैं. एक अच्छे परिवार की उन में छाप है और यह भौंडा सा व्यक्ति..छि:…छि:. मां की रुचि के प्रति अमिता को फिर से घृणा होने लगी.

उसे पूरा विश्वास है कि यह व्यक्ति व्यसनी, व्यभिचारी और असभ्य है. किसी अच्छे परिवार का भी नहीं है. उस व्यक्ति का सभ्यता, शालीनता से परिचय ही नहीं है. पहले मजदूर होगा, अब सुपरवाइजर बन गया है. इस आदमी के हावभाव देख कर तो यही लगता है कि यह आदमी मां की पिटाई भी करता होगा जबकि पापा ने कभी मां पर हाथ नहीं उठाया बल्कि मम्मी ही गुस्से में घर में तोड़फोड़ करती थीं. अब इस के सामने सहमीसिमटी रहती हैं. अब इस समय अमिता को मां की हालत पर रत्तीभर भी तरस नहीं आया. जो जैसा करेगा उस को वैसा झेलना पड़ेगा.

रात को सोने से पहले अमिता ने कमरे का दरवाजा अच्छी तरह चैक कर लिया. उसे मां के घर में बहुत ही असुरक्षा का एहसास हो रहा था. मां का व्यवहार भी अजीब सा लग रहा था.

उस ने रात खाने से पहले टैलीविजन खोलना चाहा तो मां ने सिहर कर उस का हाथ पकड़ा और बोलीं, ‘सतीशजी को टैलीविजन का शोर एकदम पसंद नहीं. इसलिए जब तक वे घर में रहते हैं हम टैलीविजन नहीं चलाते. असल में फैक्टरी के शोर में दिनभर काम करतेकरते वे थक जाते हैं.’

अमिता तुरंत समझ गई कि टैलीविजन चलाने के लिए इस घर में सतीश की आज्ञा चाहिए. मन में विराग का सैलाब उमड़ रहा था. यहां आना उस के जीवन की सब से बड़ी भूल है. अब सहीसलामत यहां से निकल सके तो अपने जीवन को धन्य समझेगी, पर वह जाएगी कहां? उसे याद आया कि इसी मां के धारावाहिकों के चक्कर में पापा का मैच छूट जाता था पर मम्मी टैलीविजन के सामने जमी रहती थीं.

इंसान हालात को देख कर अपने को बदलता है, पर इतना? यह समझौता है या पिटाई का आतंक? पूरे दिन मां यही समझाने का प्रयास करती रहीं कि सतीश बहुत अच्छे इंसान हैं. ऊपर से जरा कड़क तो हैं पर अंदर से एकदम मक्खन हैं. उस को चाहिए कि उन से जरा खुल कर मिलेजुले तभी संपर्क बनेगा.

 

अमिता के मन में आया कि कहे मुझे न तो यहां रहना है और न ही अपने को इस परिवार से जोड़ना है. तो फिर क्यों इस के लिए खुशामद करूं.

रात को पता नहीं कैसे चूक हो गई कि खाना खा कर अपने कमरे में आ कर अमिता को कुंडी लगाने का ध्यान नहीं रहा. बाथरूम से निकल कर बिस्तर पर बैठ क्रीम का डब्बा अभी खोला भी नहीं था कि सतीश दरवाजा धकेल कर कमरे में आ गया. अमिता को अपनी गलती पर भारी पछतावा हुआ. इतनी बड़ी भूल कैसे हो गई पर अब तो भूल हो ही गई थी. उस ने सख्ती से पूछा, ‘कुछ चाहिए था क्या?’

गंदे ढंग से वह हंसा और बोला, ‘बहुत कुछ,’ इतना कह कर वह सीधे बिस्तर पर आ कर बैठ गया, ‘अरे, भई, जब से तुम आई हो हमारा ठीक से परिचय ही नहीं हो पाया. अब समय मिला है तो सोचा जरा बातचीत ही कर लें.’

अमिता को खतरे की घंटी सुनाई दी. दोनों बेटे सोने गए हैं. मम्मी रसोई समेट रही हैं सो उन के इधर आने की संभावना नहीं है. उस के पैरों तले धरती हिल रही है. वह अमिता के नजदीक खिसक आया और उस के हाथ उसे दबोचने को उठे. अमिता की बुद्धि ने उस का साथ नहीं छोड़ा. उस ने यह जान लिया था कि इस घर में चीखना बेकार है. मम्मी दौड़ तो आएंगी पर साथ सतीश का ही देंगी. अमिता को जरा भी आश्चर्य नहीं होगा अगर मम्मी उस के सामने यह समझाने का प्रयास करेंगी कि यह तो प्यार है, उसे बुरा नहीं मानना चाहिए.

सतीश की बांहों का कसाव बढ़ रहा था. वैसे भी उस में मजदूर लोगों जैसी शक्ति है. पर शायद सतीश को यह पता नहीं था कि जिसे मुरगी समझ कर वह दबोचने की कोशिश में है, वह लड़की अभीअभी ब्लैकबैल्ट ले कर आई है. हर दिन कैंप से पहले 10 दिन की ट्रेनिंग खुद के बचाव के लिए होती थी.

अमिता का हाथ उठा और सतीश पल में दीवार से जा टकराया. अमिता उठी, सतीश के उठने से पहले ही उस के पैर  पूरे ताकत से सतीश के शरीर पर बरसने लगे. वह निशब्द थी पर सतीश जान बचाने को चीखने लगा. सुनीता दौड़ कर आईं. वह किसी प्रकार लड़खड़ाता खड़ा ही हुआ था कि अमिता के हाथ के एक भरपूर वार से वह फिर लुढ़क गया.

‘थैंक्यू पापा,’ अमिता के मुंह से अनायास निकला. पैसे की परवा न कर के आप ने मुझे एक अच्छे कालेज में शिक्षा दिलवाई नहीं तो मैं आज अपने को नहीं बचा पाती.’

सुनीता रोतेरोते हाथ जोड़ने लगीं, ‘बस कर बिट्टू. माफ कर दे. इन के मुंह से खून आ रहा है.’

‘मम्मी, ऐसे कुत्तों को जीना ही नहीं चाहिए,’ दांत पीस कर उस ने कहा.

‘बेटी, मेरे 2 छोटेछोटे बच्चे हैं. माफ कर दे.’

मौका देख सतीश कमरे से भाग गया. सुनीता ने अमिता का हाथ पकड़ कर उसे समझाने का प्रयास किया तो अमिता गरजी, ‘रुको, मुझे छूने की कोशिश मत करना. मेरे पापा का जीना तुम ने मुश्किल कर दिया था. अच्छा हुआ तलाक हो गया क्योंकि तुम उस सुख भरी जगह में रहने के लायक ही नहीं थीं. नाली का कीड़ा नाली में ही रहना चाहता है. आज से मैं तुम्हारे साथ अपने जन्म का रिश्ता तोड़ती हूं.’

‘बिट्टू… मेरी बात तो सुन.’

‘मुझे अब आप की कोई बात नहीं सुननी. मुझे तो अपने शरीर से घिन आ रही है कि तुम्हारे शरीर से मेरा जन्म हुआ है. तुम वास्तव में एक गिरी औरत हो और तुम्हारी जगह यही है.’

दिमाग में ज्वालामुखी फट रहा था. उस ने जल्दीजल्दी सामान समेट बैग में डाला. जो छूट गया वह छूट गया. घर से निकल पड़ी और टैक्सी पकड़ कर सीधे स्टेशन पहुंची. वह इतनी जल्दी और हड़बड़ी में थी कि उस ने यह भी नहीं देखा कि कौन सी गाड़ी है. कहां जा रही है. वह तो भला हो कोच कंडक्टर का जो इस कोच में उसे जगह दे दी.

रात भर अमिता बड़ी चैन की नींद सोई. जब आंख खुली तब धूप निकल आई थी. ब्रश, तौलिया ले वह टायलेट गई. फ्रेश हो कर लौटी. बाल भी संवार लिए थे. ऊपर की दोनों सीट खाली थीं. सामने एक वयोवृद्ध जोड़ा बैठा था. पति समाचारपत्र पढ़ रहे हैं और पत्नी कोई धार्मिक पुस्तक.

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अमिता ने बिस्तर समेट कर ऊपर डाल दिया फिर सीट उठा कर आराम से बैठी. खिड़की का परदा हटा कर बाहर देखा तो खेतखलिहान, बागबगीचे यहां तक कि मिट्टी का रंग तक बदला हुआ था. यह अमिता के लिए नई बात नहीं क्योंकि हर साल वह दूरदूर कैंप में जाती थी, आसाम से जैसलमेर तक और कश्मीर से कन्याकुमारी तक का बदलता रंगढंग उस ने देखा है. राजस्थान  की मिट्टी से मेघालय की तुलना नहीं तो ‘गोआ’ से ‘चंडीगढ़’ की तुलना नहीं.

चाय वाले को बुला कर अमिता ने चाय ली और धीरेधीरे पीने लगी. आराम- दायक बिस्तर और ठंडक से अच्छी नींद आई थी तो शरीर की थकान काफी कम हो गई थी. सामने बैठे वृद्ध दंपती के संपूर्ण व्यक्तित्व से संपन्नता और आभिजात्यपन झलक रहा था. देखने से ही पता चला रहा था कि वे खानदानी अमीर परिवार से हैं. महिला 60 के आसपास होंगी तो पति 65 को छूते.

– क्रमश:

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