Serial Story: अपनी मंजिल (भाग-1)

अमिता दौड़ती सी जब प्लेटफार्म पर पहुंची तो गाड़ी चलने को तैयार थी. बिना कुछ सोचे जो डब्बा सामने आया उसी में वह घुस गई. अमिता को अभी तक रेल यात्रा करने का कोई अनुभव नहीं था. डब्बे के अंदर की दुर्गंध से उसे मतली आ गई. भीड़ को देखते ही उस के होश उड़ गए.

‘‘आप को कहां जाना है?’’ एक काले कोट वाले व्यक्ति ने उस से पूछा.

चौंक उठी अमिता. काले कोट वाला व्यक्ति रेलवे का टीटीई था जो अमिता को घबराया देख कर उतरतेउतरते रुक गया था. अब वह बुरी तरह घबरा गई. रात का समय और उसे पता नहीं जाएगी कहां? उसे तो यह तक नहीं पता था कि यह गाड़ी जा कहां रही है? वह स्तब्ध सी खड़ी रही. उसे डर लगा कि बिना टिकट के अपराध में यह उसे पुलिस के हाथों न सौंप दे.

‘‘बेटी, यह जनरल बोगी है. इस में तुम क्यों चढ़ गईं?’’ टीटीई ने सहानुभूति से कहा.

‘‘समय नहीं था अंकल, जाना जरूरी था तो मैं बिना सोचेसमझे ही…यह डब्बा सामने था सो चढ़ गई.’’

‘‘समझा, इंटरव्यू देने के लिए जा रही हो?’’

‘‘इंटरव्यू?’’ अमिता को लगा कि यह शब्द इस समय उस के लिए डूबते को तिनके का सहारा के समान है.

‘‘अंकल, जाना जरूरी था, गाड़ी न छूट जाए इसलिए…’’

‘‘गाड़ी छूटने में अभी 10 मिनट का समय है.’’

टीटीई के साथ नीचे उतर कर अमिता ने पहले जोरजोर से सांस ली.

‘‘रिजर्वेशन है?’’

‘रिजर्वेशन?’ मन ही मन अमिता घबराई. यह कैसे कराया जाता है, उसे यही नहीं मालूम तो क्या बताए. पहले कभी रेल का सफर किया ही नहीं. छुट्टी होते ही पापा गाड़ी ले कर आते और दिल्ली ले आते. छुट्टी के बाद अपनी गाड़ी से पापा उसे फिर देहरादून होस्टल पहुंचा आते. जब मम्मी थीं तब वह उन के साथ मसूरी भी जाती तो अपनी ही कार से और पापा 2-4 दिन में घूमघाम कर दिल्ली लौट जाते. मम्मी के बाद पापा अकेले ही कार से उसे लेने आते और छुट्टियां खत्म होने के बाद फिर छोड़ आते. रेल के चक्कर में कभी पड़ी ही नहीं.

12 साल हो गए, मम्मी का आना बंद हो गया, क्योंकि मम्मीपापा दोनों तलाक ले कर अलग हो गए हैं. कोर्ट ने आर्थिक सामर्थ्य का ध्यान रखते हुए उस की कस्टडी पापा को सौंप दी. वैसे मां ने भी उस को साथ रखने का कोई आग्रह नहीं किया. मां के भेजे ग्रीटिंग कार्ड्स व पत्रों से ही उसे पता चला कि उन्होंने शादी कर ली है और अब कानपुर में हैं.

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आज 12 साल से उस का जीवन एकदम होस्टल का है क्योंकि गरमी की लंबी छुट्टियों में स्कूल की ओर से कैंप की व्यवस्था की जाती है. वह वहीं चली जाती. उसे अच्छा भी लगता क्योंकि दोस्तों के साथ अमिता खूब मौजमस्ती करती. पापा तो 1-2 महीने में आ कर उस से मिल जाते पर मम्मी नहीं. मां के अलग होने के बाद घर का आकर्षण भी नहीं रहा तो कोई समस्या भी नहीं हुई. पर इस बार कुछ अलग सा हो गया.

‘‘क्या हुआ मैडम, रिजर्वेशन नहीं है क्या?’’ यह सुनते ही अमिता अपने खयालों से जागी.

‘‘जी, अंकल इतनी जल्दी थी कि…’’

‘‘क्या कोई इंटरव्यू है?’’

‘‘जी…जी अंकल.’’

‘‘मेरा भतीजा भी गया है,’’ वह टिकट चैकर बोला, ‘‘टाटा कंपनी में उसे इंटरव्यू देना है पर वह तो सुबह की गाड़ी से निकल गया था. तुम को भी उसी से जाना चाहिए था. नई जगह थोड़ा समय मिले तो अच्छा है, पर यह भी ठीक है. इंटरव्यू तो परसों है. जनरल बोगी में तुम नहीं जा पाओगी. सेकंड एसी में 2-3 बर्थ खाली हैं. चलो, वहां तुम को बर्थ दे देता हूं.’’

साफसुथरे ठंडे और भीड़रहित डब्बे में आ कर अमिता ने चैन की सांस ली. नीचे की एक बर्थ दिखा कर टिकट चैकर ने कहा, ‘‘यह 23 नंबर की बर्थ तुम्हारी है. मैं इस का टिकट बना रहा हूं.’’

पैसे ले कर उस ने टिकट बना दिया. 4 बर्थों के कूपे में अपनी बर्थ पर वह फैल कर बैठ गई. तब अमिता के मन को भारी सुकून मिला था.

 

अपनी बर्थ पर कंबल, चादर, तौलिया, तकिया रखा देख उस ने बिस्तर ठीक किया. भूख लगी तो कूपे के दरवाजे पर खड़ी हो कर वैंडर का इंतजार करने लगी. तभी हाथ में बालटी लिए एक वैंडर उधर से निकला तो उस ने एक पानी की बोतल और एक कोल्डडिं्रक खरीदी और बर्थ पर बैठ कर पीने लगी. वैंडर ने ही उसे बताया था कि यह ट्रेन टाटा नगर जा रही है.

आरामदेह बर्थ मिल गई तो अमिता सोचने लगी कि कौन कहता है संसार में निस्वार्थ सेवा, परोपकार, दया, सहानुभूति समाप्त हो गई है? भले ही कम हो गई हो पर इन अच्छी भावनाओं ने अभी दम नहीं तोड़ा है और इसलिए आज भी प्रकृति हरीभरी है, सुंदर है और मनुष्यों पर स्नेह बरसाती है. यदि सभी स्वार्थी, चालाक और गंदे सोच के लोग होते तो धरती पर यह खूबसूरत संसार समाप्त हो जाता.

अमिता कोल्डडिं्रक पी कर लेट गई और चादर ओढ़ कर आंखें बंद कर लीं. इस एक सप्ताह में उस के साथ जो घटित हुआ उस पर विचार करने लगी.

इस बार भी कैंप की पूरी व्यवस्था रांची के जंगलों में थी. कुछ समय ‘हुंडरू’ जलप्रपात के पास और शेष समय ‘सारांडा’ में रहना था. स्कूल की छुट्टियां होने से पहले ही पैसे जमा हो गए थे. उस ने भी अपना बैग लगा लिया था. गरमी की छुट्टियों का मजा लेने को कई छात्र तैयार थे कि अचानक कार्यक्रम निरस्त कर दिया गया, क्योंकि वहां माओवादियों का उपद्रव शुरू हो गया था और वे तमाम टे्रनों को अपना निशाना बना रहे थे. ऐसे में किसी भी पर्यटन पार्टी को सरकार ने जंगल में जाने की इजाजत नहीं दी. अब वह क्या करती. होस्टल बंद हो चुका था और ज्यादातर छात्र अपनेअपने घर जा चुके थे. जो छात्र कैंप में नहीं थे, वे तो पहले ही अपनेअपने घरों को जा चुके थे और अब कैंप वाले भी जा रहे थे.

अमिता ने सोचा दिल्ली पास में ही तो है. देहरादून से हर वक्त बस, टैक्सियां दिल्ली के लिए मिल जाती हैं. इसलिए वह अपनेआप घर जा कर पापा को सरप्राइज देगी. पापा भी यह देख कर खुश होंगे कि बेटी बड़ी व समझदार हो गई है. अब अकेले भी आजा सकती है और फिर पापा भी तो अकेले हैं. इस बार जा कर उन की खूब सेवा करेगी, अच्छीअच्छी चीजें बना कर खिलाएगी. उन को ले कर घूमने जाएगी. उन के लिए अपनी पसंद के अच्छेअच्छे कपड़े सिलवाएगी.

संयोग से सहारनपुर आ कर उस की बस खराब हो गई और ठीक होने में 2 घंटे लग गए. अमिता घर पहुंची तो रात के साढ़े 9 बजे थे. उस ने घंटी बजाई और पुलकित मन से सोच रही थी कि पापा उसे देख कर खुशी में उछल पड़ेंगे. परीक्षा का नतीजा आने में अभी 1 महीना पड़ा है. तब तक मस्ती ही मस्ती.

दरवाजा पापा ने ही खोला. उस ने सोचा था कि पापा उसे देखते ही खुश हो जाएंगे लेकिन उन्हें सहमा हुआ देख कर वह चिंतित हो गई.

‘तू…? तेरा कैंप?’ भौचक पापा ने पूछा.

बैग फेंक कर वह अपने पापा से लिपट गई. पर पापा की प्रतिक्रिया से उसे झटका लगा. चेहरा सफेद पड़ गया था.

‘तू इस तरह अचानक क्यों चली आई?’

अमिता को लगा मानो उस के पापा अंदर ही अंदर उस के आने से कांप रहे हों. उस ने चौंक कर अपना मुंह उठाया और पापा को देखा तो वे उसे कहीं से भी बीमार नहीं लगे. सिल्क के गाउन में वे जंच रहे थे, चेहरे पर स्वस्थ होने की आभा के साथ किसी बात की उलझन थी. अमिता ने बाहर से ही ड्राइंगरूम में नजर दौड़ाई तो वह सजाधजा था. तो क्या उस के घर आने से पापा नाराज हो गए? पर क्यों? वे तो उसे बहुत प्यार करते हैं.

‘पापा, होस्टल बंद हो गया. सारी लड़कियां अपनेअपने घरों को चली गईं. मैं अकेली वहां कैसे रहती? मैस भी बंद था. खाती क्या?’

‘वह तुम्हारा कैंप? पैसे तो जमा कर आया था.’

‘इस बार कैंप रद्द हो गया. जहां जाना था वहां माओवादी उपद्रव मचा रहे हैं.’

‘शिल्पा के घर जा सकती थी. कई बार पहले भी गई हो.’

शिल्पा उस की क्लासमेट के साथ ही रूममेट भी है और गढ़वाल के एक जमींदार की बेटी है.

‘पापा, उस के चले जाने के बाद कैंप रद्द हुआ.’

उस के पापा ने अभी तक उसे अंदर आने को नहीं कहा था. बैग ले कर वह दरवाजे के बाहर ही खड़ी थी. वह खुद ही बैग घसीट कर अंदर चली आई. उसे आज पापा का व्यवहार बड़ा रहस्यमय लग रहा था.

‘बेटी, यहां आने से पहले मुझ से एक बार पूछ तो लेती.’

अमिता ने आश्चर्य के साथ पापा को देखा. क्या बात है? खुश होने की जगह पापा नाराज लग रहे हैं.

‘जब मुझे अपने ही घर आना था तो फोन कर के आप को क्या बताती? आप की बात मैं समझ नहीं पा रही. पापा, क्या मेरे आने से आप खुश नहीं हैं?’

पापा असहाय से बोल उठे, ‘ना…ना… खुश हूं…मैं अगर बाहर होता तो…? इसलिए फोन की बात कही थी.’

पापा दरवाजा बंद कर के अंदर आए. अमिता उन के गले से लग कर बोली, ‘पापा, अब मैं रोज अपने हाथों से खाना बना कर आप को खिलाऊंगी.’

‘क्यों जी, खाना खाने क्यों नहीं आ रहे? बंटी सो जाएगा,’ यह कहते हुए एक युवती परदा हटा कर अंदर पैर रखते ही चौंक कर खड़ी हो गई. लगभग 35 साल की सुंदर महिला, साजशृंगार से और भी सुंदर लग रही थी. भड़कीली मैक्सी पहने थी. पापा जल्दी से हट कर अलग खड़े हो गए.

‘दिव्या, यह…यह मेरी बेटी अमिता है.’

‘बेटी? और इतनी बड़ी? पर तुम ने तो कभी अपनी इस बेटी के बारे में मुझे नहीं बताया.’

पापा हकलाते हुए बोले, ‘बताता…पर मुझे मौका नहीं मिला. यह होस्टल में रहती है. इस साल बीए की परीक्षा दी है.’

‘तो क्या अब इसे अपने साथ रहने को बुला लिया?’

उस महिला के शब्दों से घृणा टपक रही थी. अमिता ने अपने पैरों के नीचे से धरती हिलती हुई अनुभव की.

‘नहीं…नहीं. यह यहां कैसे रहेगी?’

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पापा के चेहरे पर भय, घबराहट देख अमिता को उन पर दया आई. अब तक वह अपने पापा को बहुत बहादुर पुरुष समझा करती थी. पर दिव्या नाम की इस औरत के सामने पापा को मिमियाते देख अमिता को अंदर से भारी कष्ट हो रहा था. उस ने अपना बैग उठाया और दिव्या की तरफ बढ़ कर बोली, ‘सुनिए, मैं इन की बेटी अमिता हूं. पापा ने मुझे साथ रहने के लिए नहीं बुलाया. छुट्टियां थीं तो मैं ही उन को बिना बताए चली आई. असल में मुझे पता नहीं था कि यहां आप मेरी मां के रूप में आ चुकी हैं. आप परेशान न हों, मैं अभी चली जाती हूं.’

पापा छटपटा उठे. मुझे ले कर उन के मन की पीड़ा चेहरे पर झलक आई. बोले, ‘इतनी रात में तू कहां जाएगी. चल, मैं किसी होटल में तुझे छोड़ कर आता हूं.’

‘पापा, आप जा कर खाना खाइए. मैं जाती हूं. गुडनाइट.’

गेट से बाहर निकलते ही खाली आटो मिल गया, जिसे पकड़ कर वह बस अड्डे आ गई जहां से उस ने कानपुर जाने की बस पकड़ ली.

कानपुर तक का टिकट बनवा कर कोच की आरामदायक बर्थ पर बैठी तो अमिता को सोचने का समय मिला कि आगे उसे करना क्या है? उचित क्या है?

अमिता को आज वह दिन याद आ रहा है जब उस ने पापा का हाथ पकड़ कर देहरादून के बोर्डिंग स्कूल में कदम रखा था. फिर पापा जब होस्टल में उसे छोड़ लौटने लगे तो वह कितना रोई थी. उन के हर उठते कदम के साथ उसे आशा होती कि वह दौड़ कर लौट आएंगे और उसे गोद में उठा कर अपने साथ वापस ले जाएंगे. मम्मी भी आएंगी और उसे अपने सीने से लगा लेंगी. पर उन दोनों में से कोई नहीं आया और बढ़ते समय के साथ 6 साल की वह बालिका अब 20 साल की नवयौवना बन गई. मम्मी नहीं आईं पर अब वही उन के पास जा रही है. पता नहीं वहां उस के लिए कैसे हालात प्रतीक्षा कर रहे हैं.

मां साल में 2 बार कार्ड भेजती थीं. इसलिए अमिता को उन का पता पूरी तरह याद था. घर खोजने में उसे कठिनाई नहीं हुई. आटो वाले ने आवासविकास कालोनी के ठीक 52 नंबर घर के सामने ले जा कर आटो रोका. मां का एमआईजी घर ठीकठाक है. सामने छोटा सा लौन भी है. दरवाजे पर चमेली की बेल और पतली सी क्यारी में मौसमी फूल. गेट खोल अंदर पैर रखते ही अमिता के मन में पहला सवाल आया कि क्या मम्मी उसे पहचान पाएंगी? 6 साल की बेटी की कहीं कोई भी झलक क्या इस 20 वर्ष की युवती के शरीर में बची है. पापा तो 1-2 महीनों में मिल भी आते थे. उसे धीरेधीरे बढ़ते भी देखा है पर मम्मी ने तो इन 12 सालों में उसे देखा ही नहीं. अब उस की समझ में बात आई कि अपनी बेटी से मिलने के लिए पापा को औफिस के काम का बहाना क्यों बनाना पड़ता था.

 

उस दिन पापा का हाथ पकड़े एक नन्ही बच्ची फ्राक में सुबक रही थी और आज जींसटौप में वही बच्ची जवान हो कर खड़ी है. मां पहचानेंगी कैसे? वह गेट से बरामदे की सीढि़यों तक आई तभी दरवाजे का परदा हटा कर एक महिला बाहर आई. 12 वर्ष हो गए फिर भी अमिता को पहचानने में देर न लगी. अनजाने में ही उस के मुंह से निकल पड़ा, ‘‘म…मम्मी…’’

मां, संसार का सब से निकटतम रिश्ता जिस के शरीर को निचोड़ कर ही उस का यह शरीर बना है.

उस का मन कर रहा था कि मां से लिपट जाए. सुनीता नहीं पहचान पाईं. सहम कर खड़ी हो गई.

‘‘आप?’’

आंसू रोक अमिता रुंधे गले से बोली, ‘‘मम्मा, मैं…मैं…बिट्टू हूं.’’

अपने सामने अपनी प्रतिमूर्ति को देख कर सुनीता सिहर उठीं. फिर दोनों बांहों में भर कर उसे चूमा, ‘‘बिट्टू…मेरी बच्ची… मेरी गुडि़या…मेरी अमिता.’’

– क्रमश:

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‘मेरे डैड की दुल्हन’ में हुई इस एक्टर की एंट्री, पढ़ें खबर

मुंबई में कोरोना वायरस के बढ़ते कहर के बीच कई सीरियल्स की शूटिंग शुरू हो गई है, जिसके बाद सीरियल्स की कहानी को नया मोड़ देने के लिए नए कलाकारों की एंट्री देखने को मिल रही है. हाल ही में सोनी टीवी पर आने वाले श्वेता तिवारी और वरुण बडोला स्टारर शो ‘मेरे डैड की दुल्हन’ की भी शूटिंग शुरू हो चुकी है, जिसमें लौकडाउन के बाद कहानी को नया रंग और ट्विस्ट देने के लिए नए एक्टर की एंट्री होने वाली हैं. आइए आपको बताते हैं कौन है वो शख्स जो लाएगा ‘मेरे डैड की दुल्हन’ सीरियल में एक नया मोड़…

शालीन मल्होत्रा की हुई एंट्री

दरअसल, लौकडाउन के बाद ‘मेरे डैड की दुल्हन’ (Mere Dad Ki Dulhan) की नई कहानी में शालीन मल्होत्रा अहम रोम में नजर आ रहे हैं. शालीन, ऋषि बनकर अंजलि तिवारी के अपोजिट नजर आएंगे, जोकि इस सीरियल में वरुण बडोला की बेटी का किरदार अदा करती हैं.

अकेले माता-पिता के लिए हमसफर ढूंढते बच्चे

 

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सोनी टीवी के सीरियल ‘मेरे डैड की दुल्हन’ (Mere Dad Ki Dulhan) की कहानी एक बेटी अंजलि तिवारी की है, जो अपने सिंगल पिता के लिए एक जीवन साथी ढूंढ रही है और चाहती हैं कि वो फिर से शादी करें. ताकि उसके पिता अपनी जिंदगी की एक नए सिरे से शुरुआत करें.

बात दें, ‘मेरे डैड की दुल्हन’ में वरुण बडोला एक सिंगल पेरेंट के रूप में नजर आ रहे हैं, जो अपनी बेटी की देखभाल करते हुए बेहद खुश हैं. सीरियल में श्वेता तिवारी भी हैं जो वरुण बडोला के ऑपोज़िट नजर आ रही हैं.

एक्स बॉयफ्रेंड मोहसिन खान संग शिवांगी जोशी ने शेयर की फोटो तो फैंस ने दिया ये रिएक्शन, पढ़ें खबर

सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ के नए एपिसोड इन दिनों फैंस को हैरान कर रहे हैं. जहां कार्तिक और नायरा का रोमांस फैंस को एंटरटेन कर रहा है तो वहीं शो में नए-नए ड्रामा देखने को मिल रहा हैं. लेकिन शो के लीड एक्टर्स मोहसिन खान (Mohsin Khan) और शिवांगी जोशी (Shivangi Joshi) की एक फोटो फैंस के बीच सुर्खियों का कारण बन गई है. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला…

ब्रेकअप की खबरों के बाद शेयर की फोटो

शिवांगी जोशी (Shivangi Joshi) ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ के सेट पर खींची गई एक फोटो को शेयर किया है, जिसमें शिवांगी जोशी संग उनके एक्स बॉयफ्रेंड मोहसिन खान भी नजर आ रहे हैं. खास बात यह है कि इस फोटो को खुद मोहसिन खान ने ही क्लिक किया है. हालांकि रिलेशनशिप की खबरों को लेकर शिवांगी जोशी के जन्मदिन पर ही मोहसिन खान ने इस ओर इशारा दे दिया था कि अब दोनों के बीच पहले जैसा कुछ भी नहीं है. वहीं इस फोटो के साथ मोहसिन खान और शिवांगी जोशी विक्टरी का साइन दिखाते हुए इस फोटो पर मोहसिन ने लिखा कि’शिवांगी जोशी हैप्पी फ्रेंडशिप वीक…और ये रिश्ता क्या कहलाता है की टीम और शानदार रिस्पॉन्स देने के लिए फैंस को दिल से शुक्रिया.’.

 

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लिंकअप की खबर पर कही थी ये बात

 

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दो साल पहले मोहसिन खान ने शिवांगी जोशी और अपने रिश्ते पर खुद ही मुहर लगाई थी. मोहसिन खान ने कहा था कि, ‘शिवांगी की मासूमियत ने मेरा दिल जीत लिया था. हम एक-दूसरे को जान रहे हैं. हमारे बीच अच्छी दोस्ती और अच्छी जर्नी रही है जोकि अब प्यार में बदल गई है.’ वहीं अब इस फोटो के शेयर होने के बाद फैंस दोबारा इस कपल को साथ देखने की दुआ कर रहे हैं.

नायरा-कार्तिक ने जीता फैंस का दिल

 

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‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में शिवांगी जोशी और मोहसिन खान की दमदार केमेस्ट्री ने फैंस का दिल इस कदर जीत लिया है कि सोशलमीडिया पर आए दिन दोनों के रोमांटिक फोटोज वायरल होती रहती हैं. वहीं भारत ही नही दूसरे देशों में भी दोनों की जोड़ी फैंस को बहद पसंद आती हैं. शिवांगी जोशी और मोहसिन खान टीवी के पौपुलर एक्टर्स में से एक हैं.

बता दें, शो की बात करें तो इन दिनों नायरा और कार्तिक अपने ही रचे ड्रामे में फंसते जा रहे हैं. वहीं अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि कार्तिक को गिरफ्तार करने पुलिस गोयनका हाउस पहुंचेगी.

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कंगना का नया खुलासा- अंकिता ने कहा था सुशांत को बॉलीवुड में बहुत बेइज्जती सहनी पड़ी

सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput) के निधन को 1 महीने से ज्यादा का समय हो गया है, लेकिन अभी तक यह नहीं पता चल पाया है कि उन्होंने आत्महत्या क्यों की. हालांकि सुशांत की मौत के बाद कंगना रनौत ने बॉलीवुड इंडस्ट्री के कुछ लोगों पर निशाना साधा है. अब कंगना ने हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान बताया कि सुशांत के निधन के बाद उन्होंने एक्टर की एक्स गर्लफ्रेंड अंकिता लोखंडे से इस मामले पर बात की थी और उन्होंने कुछ बड़ी बातें बताईं.

कंगना ने इंटरव्यू में बात करते हुए कहा, ‘मैंने अपनी दोस्त और को-स्टार अंकिता लोखंडे को सुशांत के निधन के बाद कॉल किया ताकि मैं इस मैटर को अच्छे से समझ सकूं. अंकिता ने मुझे बताया कि कम समय में इतनी पॉप्यूलैरिटी मिलने के बाद भी सुशांत जमीन से जुड़ा इंसान था. हालांकि वह इस मामले में बहुत सेंसिटिव था कि लोग उसे कैसा समझते हैं’.

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कंगना ने बताया, ‘अंकिता ने मुझे यह भी बताया कि जब वह नया था तब वह ट्विटर पर फैन्स से लड़ता था कि तुमने ऐसा क्यों कहा मेरे बारे में, तुम जैसा मेरे बारे में कह रहे हो, मैं वैसा नहीं हूं. तब अंकिता उसे समझाती थी कि ऐसा तो होगा ही. सभी की अपनी राय होती है, लेकिन तुम्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए. सुशांत को इससे काफी फर्क पड़ता था कि लोग उसके बारे में क्या सोच रहे हैं’.

कंगना ने आगे कहा, ‘अंकिता ने मुझे यह भी बताया कि सुशांत को सिर्फ अपने काम से मतलब था. वह किसी के बारे में कोई गॉसिप नहीं करता था. लेकिन वह चाहता था कि बॉलीवुड में उसे एक्सेप्ट किया जाए. अंकिता ने कहा कि कंगना, सुशांत बिल्कुल आपके जैसा था. वह भी किसी के बारे में गॉसिप नहीं करता था और अपने काम पर फोकस करता था. उसके अंदर वो स्मॉल टाउन वाली पर्सनैलिटी थी. बस उसके अंदर एक आदत थी तो आपसे अलग थी और वो ये कि वह चाहता था कि सब उसे एक्सेप्ट करे’.

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Film Review : दिल को छू लेगी सुशांत सिंह राजपूत की आखिरी फिल्म, हर सीन में हैं इमोशन

रेटिंग – 3 स्टार

निर्माता – फॉक्स स्टार स्टूडियो

निर्देशक – मुकेश छाबड़ा

कलाकार – स्वर्गीय सुशांत सिंह राजपूत, संजना सांघी, साहिल वैद्द्य.

ओटीटी प्लेटफॉर्म हॉटस्टार डिजनी

अवधि – एक घंटा 41 मिनट

हॉलीवुड फिल्म “द फास्ट इन अवर स्टास” की हिंदी रीमेक फिल्म “दिल बेचारा” दो कैंसर मरीजों की खूबसूरत प्रेम कहानी है. जिसमें जीवन और मृत्यु को लेकर भावुक और दार्शनिक बातें भी हैं. फिल्म में खूबसूरत संवाद है -“जीना और मरना तो हम डिसाइड नहीं करते लेकिन कैसे जीना है यह हम डिसाइड कर सकते हैं.”

कहानी

फिल्म की शुरुआत में एक बहुत पुरानी लघुकथा है -एक था राजा, एक थी रानी ,दोनों मर गए, खत्म हो गयी कहानी. यह कहानी है किज्जी (संजना सांघी) और इमैन्युअल राजकुमार ज्यूनियर उर्फ मैनी (सुशांत सिंह राजपूत) की. अफ्रीका के जांबिया में जन्मी किजजी( संजना सांघी )अब अपने माता पिता के साथ जमशेदपुर में रहती है. वह थायराइड कैंसर की मरीज है .हमेशा ऑक्सीजन के सिलिंडर के साथ ही रहती है . जबकि मैनी हड्डी कैंसर का मरीज है.

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मगर मस्त मौला है.यह एक ही कॉलेज में पढ़ते हैं. जहां मैनी का खास दोस्त जे.पी (साहिल वैद्य) है, जिसे आंखों का कैंसर है. किज्जी को संगीतकार गायक अभिमन्यु वीर ( सैफ अली ) की तलाश है, जिन्होंने एक गाना अधूरा छोड़ दिया था. इन सभी का इलाज डॉक्टर झा ( पुनीत टंडन) कर रहे हैं .मैनी बीमारी के बावजूद भरपूर जिंदगी जीने में यकीन करता है. किज्जी और मैनी की नजदीकियां बढ़ती है .किज्जी अपनी मां और मैनी के साथ अभिमन्यु वीर से मिलने पेरिस जाती है. जहां अभिमन्यु कहता है कि जिंदगी ही अधूरी है ,इसलिए उनका गीत अधूरा है.पेरिस से लौटते ही मैनी की तबीयत बिगड़ती है और फिर उसकी मौत हो जाती है.

लेखन व निर्देशन:

फिल्म” दिल बेचारा” महज एक फिल्म नहीं है ,बल्कि एक भावुक यात्रा हैं. फिल्म देखते हुए हम सुशांत सिंह राजपूत तक पहुंचना भी चाहते हैं, जो कि संभव नहीं. पर अब सुशांत अमर है. पर फिल्म की पटकथा और निर्देशन काफी कमजोर है. यदि पटकथा लेखन पर थोड़ी सी मेहनत की गयी होती और निर्देशक मुकेश छाबड़ा ने ध्यान दिया होता तो यह एक क्लासिक फिल्म होती.फिल्म में एक दो दृश्य व संवाद ऐसे हैं , जिनकी वजह से यह साफ सुथरी फिल्म नहीं रही, जबकि इन दृश्यों के ना होने से कहानी पर असर नहीं पड़ना था.मगर निर्देशक के रूप में मुकेश छाबड़ा बुरी तरह से मात खा गए हैं. फिर भी यह फिल्म देखना एक भावना पूर्ण यात्रा है. इतना ही नहीं फिल्म में जिंदगी को लेकर एक अच्छा संदेश है .

लेकिन दिल बेचारा में मृत्यु की छाया घनी है. एक छोटे से दृश्य में सैफ अली का संवाद है, ‘जब कोई मर जाता है तो उसके साथ जीने की उम्मीद भी मर जाती है पर हमें मौत नहीं आती. खुद को मारना इलीगल है इसलिए जीना पड़ता है.’ इंसानी जीवन को लेकर बहुत कुछ कह जाता है.

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अभिनय

सुशांत सिंह राजपूत ने काफी संजीदा व उत्कृष्ट अभिनय किया है. संजना सांघी की यह पहली फिल्म है ,मगर उनकी परफॉर्मेंस भी अच्छी है .स्वस्तिका मुखर्जी और सास्वत चटर्जी ने अच्छा काम किया है .छोटी सी भूमिका में सैफ अली खान अपनी छाप छोड़ जाते हैं.

सुशांत सिंह राजपूत के प्रशंसकों को यह फिल्म जरूर देखनी चाहिए..

मास्क लगाने से चेहरे पर मुंहासे, दाने और स्किन की परेशानी बढ़ रही है?

सवाल-

मैं कोरोना वायरस से बचाव के लिए चेहरे पर मास्क लगाती हूं. मास्क लगा कर कोरोना से तो हिफाजत हो गई, लेकिन इस की वजह से चेहरे पर मुंहासे, दाने और स्किन की परेशानी बढ़ रही है. मैं अपनी फेस स्किन कैसे सेफ रख सकती हूं?

जवाब-

घंटों मास्क लगा कर काम करने से जहां स्किन में नमी, पसीना और गंदगी जमी रह जाती है, वहीं अगर आप बिना धोया हुआ मास्क यूज करती हैं तो इस वजह से फेस पर लाल रंग के निशान, पिंपल्स, स्वैलिंग, ऐक्ने जैसी दिक्कतें होने लगती हैं. इन सब परेशानियों से बचने के लिए दिनभर मास्क का इस्तेमाल करने के बाद मास्क को धो कर फिर यूज करें. मास्क धोने से उस में जमा पसीना धुल जाएगा.

फेस को नमी, पसीने से बचाने के लिए मास्क पहनने से पहले क्रीम की जगह आप ऐंटीइनफ्लैमेटरी मौइस्चराइजर लगाएं ताकि आप के फेस पर औयल और पसीना कम आए. अगर तेज धूप से बचने के लिए सनस्क्रीन लगा रही हैं तो वाटर बेस्ड सनस्क्रीन लगाएं, ताकि आप का पसीना और औयल कंट्रोल हो सके. मास्क उतारने के बाद सब से पहले फेस वाश करें.

अगर मास्क पहनने से आप के फेस पर मुंहासे हो गए हैं तो मास्क को उतारने के बाद फेस पैक लगाएं. इस के लिए 1 चम्मच मुलतानी मिट्टी, 1 चम्मच चंदन पाउडर, 1 चम्मच चंदन पाउडर और 1 चम्मच टमाटर का गूदे में 2 बूंद नीबू की डाल कर फेस पैक बन कर इसे चेहरे पर लगा कर छोड़ दें. सूखने पर पानी के साथ हलके हाथों से चेहरा वाश करें. इस पैक को लगाने से मुंहासों से छुटकारा मिलेगा.

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बेदाग़ चेहरा कौन नहीं चाहता .चाहे पुरुष हो या महिला कोई भी ये नहीं चाहता की उसके चेहरे पर दाग -धब्बो के निशान हो.चेहरे पर दाग धब्बे होना बहुत ही गंभीर समस्या है .दरअसल लोग हमे हमारे चेहरे से जानते हैं.और अगर हमारे चेहरे पर दाग धब्बों के निशान होंगे तो कही न कही हमारा सेल्फ कॉन्फिडेंस कम हो जायेगा.

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किचन को साफ रखने के लिए बड़े काम के हैं ये 5 नियम

अपने किचन को साफ रखने के लिए कुछ नियम हैं जिनका आपको रोजाना पालन करना चाहिए. खाना बनाने के बाद किचन को साफ करना बेहद जरूरी है. छीलन और गंदगी को हटाना व फालतू चीजों को हटाना आवश्यक है, इससे पहले कि ये आपकी समस्या को बढ़ाएं.

दूसरी तरफ, किचन की स्‍लैब, गैस स्टोव, माइक्रोवेव और अन्य चीजें जो आप रोजाना काम में लेते हैं इन्हें हटाना भी आवश्यक है. तो किस बात का इंतज़ार है, आइये देखते हैं किचन को पूरी तरह साफ करने के कुछ अच्छे तरीके और कुछ महत्वपूर्ण चीजें जो आपको 24 घंटे साफ रखनी चाहिए

1. किचन की स्‍लैब साफ कर

जब आप खाना बना लें तो अपनी किचन की पट्टी को साफ कर दें. इसके लिए आपको एक मुलायम कपड़ा और नींबू के रस जैसे घरेलू डेटर्जेंट की आवश्यकता होती है जिससे कि पट्टी की दुर्गंध चली जाये और दाग हट जाएं.

2. गैस स्टोव को साफ करना

गैस स्टोव को भी रोजाना साफ करना जरूरी है. यदि खाना पकाते समय गैस पर कुछ गिर जाये तो इसे तुरंत साफ कर दें. इससे आपके गैस पर खाने की बदबू नहीं रहेगी.

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3. माइक्रोवेव को साफ करना

इस्तेमाल करते ही माइक्रोवेव को साफ करना भी आवश्यक है. इससे माइक्रोवेव में खाने की सुगंध नहीं होगी और तेल के निशान भी हट जाएंगे. माइक्रोवेव को साफ करने के लिए एक मुलायम कपड़े में बेकिंग सोडा और नमक लें.

4. सिंक को साफ करना

सिंक में डिश साफ करने के बाद सिंक में थोड़ा सेंधा नमक दाल दें. नमक पर काला सिरका भी बुरकं दें और एक ब्रश से आराम से सिंक की सफाई करें. सिरके से आटे की गंध चली जाएगी और नमक से दाग हट जाएंगे.

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5. बर्तन साफ करना

सिंक में पूरी रात बर्तन न रहने दें, इससे आपकी डिशें खराब होती हैं. काम में लेते ही उन्हें धो लें.

Raksha Bandhan 2020: फेस्टिव सीजन में बनाएं बंगाली मिठाई चमचम

चमचम एक पारंपरिक बंगाली मिठाई है. यह छेना से बनती जरूर है, पर इसका स्वाद छेना से अलग होता है. यह बच्चों को भी बेहद पसंद आती है और बड़ों को भी. तो आइए जानते हैं चमचम बनाने की रेसिपी.

सामग्री

दूध – 01 लीटर,

नींबू का रस – 02 बड़े चम्मच

शक्कर – 450 ग्राम

अरारोट – 01 बड़ा चम्मच

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भरावन के लिये

मावा (खोया) – 70 ग्राम

शक्कर पाउडर – 03 बड़े चम्मच

इलाइची – 04 (छील कर पिसी हुई)

पिस्ता – 08 (बारीक कतरे हुए)

केवड़ा एसेन्स – 05 बूंद

पीला रंग – कुछ बूंदें

विधि

चमचम मिठाई बनाने के लिये सबसे पहले किसी बर्तन में दूध को उबाल लें. उबलने के बाद दूध को पांच मिनट के लिए ठंडा होने दें. अब नींबू का रस लेकर उसमें रस के बराबर ही पानी मिला लें और उसे दूध में डालें और चम्मच से चलाएं.

नींबू का रस डालते ही दूध फटना शुरू हो जाता है. जैसे ही वह पूरी तरह से फट जाए, नींबू का रस डालना बंद कर दें. अब एक पतला मलमल का कपड़ा लें और उसे छन्नी के ऊपर रख कर उसमें से दूध को छान लें. छने हुए छेना में ठंडा पानी ऊपर से डाल कर उसे छान लें. उसके बाद कपड़े को चारों ओर से पकड़ कर उसे दबाएं, जिससे छेना का सारा पानी निचुड़ जाए.

अब छेना को एक बर्तन में निकाल लें और उसे मसल-मसल कर चिकना कर लें. उसके बाद उसमें आरारोट डालें और अच्छी तरह से मैश कर लें. उसके बाद उसमें पीला कलर डाल कर उसे अच्छी तरह से मिला लें. अगर आप मिठाई को कलरफुल बनाना चाहती हैं, तो थोड़ा सा खाने वाला रंग भी मिला लें.

अब चमचम के लिए शक्कर का शीरा बना लें. उसके लिए शक्कर और पानी (शक्कर की नाप का दो गुना) लेकर उसे कूकर में गर्म करें. जब तक पानी उबल रहा है, छेना को आठ बराबर भागों में बांट लें. एक भाग को हाथ में लेकर उसे दबा-दबा कर लड्डू की तरह बाइन्ड कर लें.

जब छेना अच्छी तरह से बाइन्ड हो जाए, तो उसे चमचम के आकार में ढ़ाल लें और प्लेट में रख दें. इसी तरह चारों पीस तैयार कर लें. अब तक कूकर में उबाल आ गया होगा और शक्कर घुल गयी होगी.

अब चमचम के सभी पीस शक्कर के पानी में डाल दें. उसके बाद कूकर का ढक्कन बंद कर दें. जैसे ही कूकर में सीटी आने वाली हो, गैस को एकदम धीमा कर दें और सात-आठ मिनट तक पकने दें. आठ मिनट के बाद गैस को बंद कर दें और कूकर को नल के नीचे रख कर ऊपर से पानी गिराएं, जिससे कूकर जल्दी से ठंडा हो जाए. कूकर ठंडा होने पर उसमें से चमचम को चाशनी सहित निकाल लें और तीन-चार घंटे तक रख रहने दें.

अब चमचम की भरावन तैयार करनी है. इसके लिए मावा (खोया) को पहले अच्छी तरह से भून लें. उसके बाद उसे ठंडा करके अच्छी तरह से मैश कर लें. फिर उसमें चीनी पाउडर और इलायची पाउडर डालें और उन्हें अच्छी तरह से मिला लें.

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अब एक चमचम का पीस उठाएं. उसे हाथ में लेकर उसकी मोटाई वाले हिस्से के बीचोबीच में चाकू की सहायता से चीरा लगाएं. ध्यान रहे चीरा लगाते समय चमचम के दोनों भाग अलग नहीं होने चाहिए. उसके बाद चमचम के दोनों सिरों को हल्का सा फैलाएं और चम्मच की सहायता से उसमें उपयुक्त भरावन भर दें. साथ ही पिस्ता के पांच-छ: पीस भी उसमें डाल दें.

इसके बाद चमचम के दोनों हिस्सों को हल्का सा दबा कर बराबर कर दें और उसे प्लेट में रख दें. इसी तरह से सारे चमचम भर लें और फिर उन्हें ठंडा होने के लिए फ्रिज में एक घंटे के लिए रख दें.

एक घंटे बाद चमचम को फ्रिज से निकाल लें. आपकी बंगाली मिठाई चमचम पूरी तरह से तैयार हैं. इन्हें प्लेट में निकालें और आनंद लें.

आंखों से नहीं फैलता कोरोना – डॉ. हिमांशु मेहता

डॉ. हिमांशु मेहता

(नेत्र रोग विशेषज्ञ और सर्जन )

कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए वैज्ञानिक नित्य नए रिसर्च के द्वारा इस बीमारी की जानकारी देते जा रहे है, पर अभी तक न तो इस दिशा में कोई ठोस जानकारी मिली है और न ही कोई इलाज. सबकी नजर वैक्सीन पर टिकी हुई है, ताकि जन मानस को इस जानलेवा बीमारी से बचाया जा सके,ऐसे में विकल्प सिर्फ मास्क पहनना, सेनीटाईजर का प्रयोग करना, साबुन से हाथ धोना और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना ही है. कोरोना के लक्षण में लगातार परिवर्तन विश्व स्तर पर देखे जा रहे है. भारत में भी इस पर वैज्ञानिकों की अलग-अलग मत सामने आ रहे है. कोरोना आंखों के द्वारा कितना फ़ैल सकती है, इस बारें में विजन ऑय सेंटर के नेत्र रोग,सर्जन विशेषज्ञ डॉ. हिमांशु मेहता कहते है कि आंखों में कॉनजन्क्तिवाईटिस या सब कॉनजंकटाइवल हेमरेज कभी-कभी कोरोना वायरस का पहला लक्षण हो सकता है. इन दिनों अधिकतर मरीजों को फ़ोन पर ही दवाइयां दी जा रही है, उन्हे बुलाया नहीं जाता, क्योंकि वे स्टाफ और दूसरे मरीजो को संक्रमित कर सकते है. लॉक डाउन से पहले कॉनजन्क्तिवाईटिस के रोगी आते थे, लेकिन तब किसी को कोरोना के बारें में पता नही था. जब ये बीमारी फैली तब जाकर रिसर्चर्स ने पाया कि ये दोनों बीमारी कोरोना संक्रमण के प्राम्भिक लक्षण हो सकते है. साधारणत: आंख आ जाना और इसमें काफी अंतर है. बारिश के मौसम में काफी लोगों को वायरल इन्फेक्शन होता है. सालों साल ये होता आ रहा है. पहले एडिनो वायरस था, अब कोरोना वायरस है.

इसके आगे डॉ, हिमांशु कहते है कि कोरोना की जांच तभी करवानी चाहिए जब आखों के इन लक्षणों के साथ-साथ कोरोना के बाकी लक्षण भी दिखने लगे. मसलम तेज बुखार आना, सांसों लेने में तकलीफ, ओक्सिजन का स्तर कम हो जाना आदि है. आंख आने से ही हर किसी को कोरोना संक्रमण हो ये जरुरी नहीं. इसके अलावा कोरोना से ठीक होने के बाद भी किसी प्रकार की आंखों को लेकर समस्या अभी तक कोई सामने नहीं आया है. ये सही है कि कोरोना संक्रमण एक वायरस है, इससे ठीक होने के बाद व्यक्ति के शरीर में कमजोरी आती है, लेकिन इससे शरीर के किसी ऑर्गन को कितनी क्षति हुई है, उसकी जानकारी होने में अभी और 6 महीने और लगेंगे, क्योंकि अभी सरवाईवल प्रमुख है. अगर किसी व्यक्ति को कोरोना के साथ मधुमेह की बीमारी भी है और उसे कंट्रोल करने के लिए स्टेरॉयड दी जाती है तो उसका असर आखों पर अवश्य पड़ेगा. ऐसे ठीक हुए व्यक्ति को रूटीन में चेकअप करवाने की बाद में जरुरत है, क्योंकि कोरोना संक्रमण के बाद हर एक ऑर्गन में इसका प्रभाव हो सकता है.

डॉ. हिमांशु का कोरोना संक्रमण से बचाव के सुझाव निम्न है,

  • कोरोना वायरस नाक या मुंह से शरीर में प्रवेश करती है. चमड़ी, बालों या पैर से नहीं जा सकता. ये रेस्पिरेटरी वायरस है.
  • ये केवल नाक या मुंह से ही जाता है. जब कोरोना संक्रमित व्यक्ति अधिक जोर से खांसता है, तो वह पास खड़े व्यक्ति को आसानी से संक्रमित कर देता है. इसलिए हाथों को धोते रहना, कभी किसी से मिलना है तो 6 फीट की दूरी बनाये रखना और मास्क एन 95 जैसा सही मास्क पहनना बहुत जरुरी है.
  • अगर दो लोग सही मास्क पहने है और सामने खड़े भी है, तो इन्फेक्शन के चांसेस 9 पर्सेंट नहीं है. सही तरह से मास्क पहनना इस समय बहुत जरुरी है, जिसमें नाक और मुंह अच्छी तरह से ढके रहने की जरुरत है.
  • मैंने कई बार देखा है कि लोग मास्क के आगे या उपर नीचे हाथ लगाते रहते है, जो नहीं होनी चाहिए. सबसे तकलीफ की बात है कि लोगों को मास्क पहनने में मुश्किल होने की वजह से वे निकाल कर या ऊपर नीचे खिसकाकर बात करते है, जो ठीक नहीं.
  • मास्क से अपने हाथों को दूर रखिये. इसकी आदत बनाइये, क्योंकि वैक्सीन के बाद भी कोरोना को जाने में समय लगेगा. डरना नहीं है. अगले 2 से 3 साल तक ये रहेगा और जिंदगी भी इसके साथ ही चलानी पड़ेगी. थोड़ी दूरी सबको बनाये रखनी है.
  • एयरकंडिशनर रूम में साथ में बैठकर काम न करें. एसी चालू करने पर खिडकियों को खुला छोड़े, ताकि क्रॉस वेंटिलेशन हो. बाहर से खाना लाने या समान लाने से कोरोना नहीं होगा उसका डर निकाले. लिफ्ट में अगर दो लोग पहले से हो, तो उसमें जाने से बचें.
  • कॉमन सेन्स अगर आप प्रयोग नहीं करेंगे तो कोरोना पर लगाम लगाना मुश्किल है. सारे शहर को बंद न कर अपने घर के दरवाजे को बंद करें और सही मास्क पहनकर बाहर निकलें. मास्क पहनने के बाद उसे साबुन से धो लें या फेंक दें. अगर कोई वाल्ब वाला मास्क पहनता है तो वह अधिक सुरक्षित है, क्योंकि वह वन वे है, उसमें कोरोना के जर्म्स नहीं जा सकता.
  • न्यूज़ पेपर, मैगज़ीन या कार्डबोर्ड पर कोरोना संक्रमण होने के विचार को मन से निकाल दीजिये.

डॉ, आगे कहते है कि अभी कोविड 19 की कोई दवा नहीं है और वायरस में एंटीबायोटिक काम नहीं करता. एंटीवायरल की दवा एच वन, एन वन की जो दवा बनी थी, उसे ही प्रयोग किया जा रहा है. वैक्सीन कारगर होगा, पर एहतियात बरतने की तब भी जरुरत होगी, क्योंकि हर घर तक वैक्सीन पहुँचने भी सालों लगेंगे. कोरोना आंखों से या आंसू से जाता नहीं है, ये मिथ है. अगर किसी को है तो वह दिखाई देगा. आंख के अंदर से ये किसी के शरीर में नहीं जा सकता. बंद जगहों से सबको आज डरने की आवश्यकता है. गाड़ी को खुद चलायें. व्हाट्स एप देखना सबको बंद करना चाहिए. मैं जब भी मरीज देखता हूं तो पूरी सावधानी रखता हूं. ये एयरबोर्न है, इसलिए अधिक सावधानी रखने की जरुरत पड़ती है.

corona

 

 तोड़नी होगी अंधविश्वास की बेड़ियां

भारत समेत पूरी दुनिया के लिए 2020 बेहद डरावने वर्ष के रूप में गुजर रहा है. अर्थव्यवस्थाएं चरमराई हुई हैं. कोरोना कहर के बीच मौत के आंकड़े बढ़ते जा रहे हैं और इस के साथ ही अपनों के लिए लोगों की चिंता भी बढ़ रही है. कोरोना महामारी संकट ने समाज में विज्ञान और शोध की महत्ता साबित की है. विज्ञान हमें

इस महामारी से निकलने का ऐग्जिट प्लान बताएगा जब दुनिया में कोरोना वायरस की वैक्सीन विकसित कर ली जाएगी. मगर तब तक वैज्ञानिक और शोधकर्ता यह पता लगाने में जुटे हुए हैं कि वायरस कहां से आया, कैसे फैला और किस तरह का इलाज इस पर असरदार साबित हो सकता है.

जब भी दुनिया में इस तरह के खतरे आते हैं भले ही वह महामारी हो, भूकंप हो, पर्यावरणीय संकट हो या कुछ और इंसान को विज्ञान का आसरा होता है. दुनिया विज्ञान की राह जाती है पर ज्यादातर भारतीय ऐसे संकट के समय में भी अंधविश्वास की राह पकड़ते हैं. धार्मिक रीतिरिवाजों, अनुष्ठानों और व्रतउपवासों के जरीए संकट दूर करने के उपाय ढूंढ़ते हैं.

वर्ल्ड इकोनौमिक फोरम ने 2008 में यंग साइंटिस्ट्स कम्युनिटी की शुरुआत की थी. अब 2020 में दुनिया के 14 देशों के कुल 25 यंग वैज्ञानिकों के चेहरे सामने आए हैं, जो अनुसंधान और खोजों के जरीए विश्व परिदृश्य बदलने का काम करेंगे. आप को यह जान कर आश्चर्य होगा कि इन 25 युवा वैज्ञानिकों में 14 महिलाएं हैं यानी दुनिया में महिलाएं तेजी से विज्ञान और अनुसंधान के क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं, मगर भारतीय महिलाएं इस में काफी पीछे हैं.

अंधविश्वास और भारतीय महिलाएं

बात करें भारतीय महिलाओं की तो यह जगजाहिर है कि भारतीय महिलाओं को हमेशा से धर्म, पाखंड और अंधविश्वास की बेडि़यों में बांध कर रखा गया है. उन के बढ़ते कदमों पर हमेशा ही धर्म की पाबंदियां रही हैं. क्रिमिनल साइकोलौजिस्ट और सोशल वर्कर अनुजा कपूर कहती हैं कि जरा सोचिए इन पाबंदियों की वजह से क्या महिलाओं ने खुद का अस्तित्व नहीं खोया है? खुद को रेप, किडनैपिंग या मर्डर का विक्टिम नहीं बनाया है? शारीरिक, मानसिक और आर्थिक नुकसान नहीं उठाया है? अंधविश्वास की वजह से ही राम रहीम, चिन्मयानंद और आसाराम जैसे लोग आगे आए, जिन्होंने महिलाओं की अंधविश्वास की प्रवृत्ति का फायदा उठा कर अपना बैंक बैलेंस बढ़ाया और उन की जिंदगी के साथ खेला.

अधिकतर भारतीय महिलाएं ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं होतीं इसलिए उन का दिमाग ज्यादा खुला हुआ नहीं है. यदि महिला पढ़ीलिखी है तो भी वह जिस समाज में रह रही है वहां उसे अपने दिमाग और ज्ञान का पूरा उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जाती. घर में सासससुर हैं, अड़ोसीपड़ोसी भी हैं. सब उस से अंधविश्वास मानने की बातें करेंगे. उस के पास न तो इतना वक्त होता है और न ही धैर्य कि सब से लड़े और अपनी बात रखे. नतीजा उसे सब की बात माननी पड़ती है.

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वैसे भी महिलाएं जल्दी  झांसे में आ जाती हैं और इस की वजह उन का इमोशनल होना है. उन्हें बेवकूफ बनाना आसान होता है. भले ही वे पढ़ीलिखी हों तो भी पाखंडबाजी में जल्दी आ जाती हैं. आप जरा देखिए मार्केट्स महिलाओं के कपड़ों और गहनों से सजे मिलेंगीं पर पुरुषों का सामान काफी कम बिकता है. महिलाएं मोस्ट कंपल्सिव बायर्स हैं. इस की वजह है उन के अंदर बड़ी मात्रा में ऐक्सैप्टैंस की चाह का होना. कहीं न कहीं गहने, जेवर जैसी चीजें खरीद कर और मेकअप करवा कर वे अच्छा दिखना चाहती हैं. उन्हें लगता है कि इस तरह उन्हें ऐक्सैप्टैंस मिलेगा. वे यह भूल जाती हैं कि यह ऐक्सैप्टैंस भावना अंदर से आती है कपड़े, पढ़ाई या फैशन से नहीं. इसी तरह कस्टम और रिचुअल्स निभा कर भी वे समाज में अपनी ऐक्सैप्टैंस बढ़ाना चाहती हैं. मगर इस का नतीजा बहुत बुरा निकलता है.

भय पैदा करता है अंधविश्वास

हमें सम झना होगा कि जिंदगी को बेहतर ढंग से कैसे जीया जाए. अंधविश्वास और उस से उपजे भय से आजादी कैसे पाई जाए. अंधविश्वास ने हमारे समाज में रीतिरिवाजों के तौर पर अपनी जड़ें गहरी जमा रखी हैं. स्त्री बीमार है, उस के शरीर में जान नहीं है, फिर भी उसे भूखा रहना है. उपवास करना पड़ता है. करवाचौथ एक ऐसा रिवाज है जिस के मुताबिक महिला अपने मुंह में दिनभर अन्न का एक दाना नहीं डाल सकती. इस रिवाज के पीछे छिपे अंधविश्वास ने लोगों के मन में यह भय भर रखा है कि यदि स्त्री ने उपवास तोड़ा तो उस का सुहाग उजड़ जाएगा. अंधविश्वास का यह भय अकसर औरतों की जिंदगी पर भारी पड़ता है. ऐसे में जरूरी है कि हम किसी भी रिवाज को दिमाग से सम झें.  अपनी पढ़ाईलिखाई से प्राप्त किए ज्ञान का भी मनन करें. तभी दिमाग खुलेगा और हमें इस भय से मुक्ति मिलेगी.

इसी तरह किसी भी समस्या का प्रैक्टिकल सौल्यूशन खोजा जाए. परिवार की खुशी के लिए कुछ कल्चर कस्टम निभाएं. मगर इन से जुड़े भय को मन में बैठने मत दीजिए. खुद पर विश्वास पैदा करने के लिए प्रयास करें. नए रास्ते तलाशें. ऐसी कोई समस्या नहीं जिस का समाधान उपलब्ध न हो. दिल के  झांसे में न आएं. दिल हमें अंधविश्वास मानने को प्रेरित करता है, जबकि दिमाग सही रास्ता दिखाता है, खोज करने और रास्ता ढूंढ़ने का मार्ग बताता है. दिमाग ही दिल को हरा सकता है. जो सही लगें समाज की उन्हीं बातों को मानें.

उदाहरण के लिए कोविड-19 को ही लें. जरूरी है कि इस समय सकारात्मक सोच रखी जाए. एहतियात बरती जाए. मगर इस के पीछे पागल न हो जाएं. विल पावर से रिकवरी आसान हो जाती है. खुद पर विश्वास होना चाहिए अंधविश्वास नहीं.

भेड़चाल है अंधविश्वास

हम डैमोक्रेटिक समाज में रहते हैं और हर किसी को अपने मन की बात बोलने का हक है. लोग अपने इस हक का फायदा उठाते हैं और बोलते हैं. मगर यह नहीं सोचते कि यह बात रिसर्च बेस्ड है भी या नहीं. हम अपनी बात स्टीरियोटाइप कर देते हैं. यह कहना भूल जाते हैं कि यह साइंटिफिक बात नहीं वरन हमारी सोच या दूसरे लोगों से सुनीसुनाई बात है. हम चाहते हैं कि लोग हमें सुनें और ज्ञानी सम झें. यही हाल हमारे समाज और राजनीति का भी है. आज आधे से ज्यादा वैसे लोग देश चला रहे हैं, जो पढ़ेलिखे नहीं हैं.

वैसे सोचने वाली बात यह भी है कि आखिर पढ़ाई हमें कितना सम झदार बना पाती है. हम पढ़ कर ज्ञान ले तो लेते हैं पर तब तक उस की कोई अहमियत नहीं जब तक हम उसे सही अर्थों में ग्रहण न कर लें, उसे दिल से स्वीकार न कर लें.

रिस्क नहीं उठाना चाहते

लोग रिस्क उठाने से डरते हैं. वे खतरा मोल लेने से डरते हैं. जाहिर है कि जहां आशंका है वहां अंधविश्वास होता है. पढ़ेलिखे होने पर भी अंधविश्वासी हो सकते हैं, क्योंकि आप ऐसे समाज में रहते हैं जहां लोग अंधविश्वासी हैं. वे आप को भी अंधविश्वासी बनाने के प्रयास में रहते हैं. आप बीमार हैं, बच्चा नहीं हो रहा है या पति के साथ  झगड़ा चल रहा है तो लोगों की सलाहें मिलनी शुरू हो जाती हैं, ‘उस बाबा के पास जाओ और  झाड़फूंक करवाओ,’ ‘सोलह सोमवार का व्रत करो,’ ‘मंदिर में ₹51 हजार का चढ़ावा चढ़ाओ, अनुष्ठान करवाओ’ आदि. लोगों के पास हजारों कहानियां होती हैं सुनाने के लिए कि कहां और कैसे समस्या का समाधान हुआ या कृपा बरसी.

ऐसे में जरूरी है कि हम यह सम झें कि शिक्षित हों तो अपने लिए हों केवल बिजनैस चलाने या पैसे कमाने के लिए नहीं. शिक्षा का असर हमारी सोच और व्यवहार में भी दिखे. अंधविश्वासी होना आप के व्यक्तित्व या परिवार को नुकसान पहुंचा रहा है तो यह गलत है. अपने ज्ञान का उपयोग करें. आंखें बंद कर पाखंडबाजी और  झाड़फूंक पर विश्वास करना निंदनीय है. अंधविश्वासी व्यक्ति वास्तव में पैरानौइड पर्सनैलिटी हो जाता है जो सिर्फ एक ही चीज पर विश्वास करने लगता है. अत: ऐसा बनने से बचें.

बाबाओं के पाखंडों की असलियत पहचानें. लोगों से बातें करें, नई खोज करें और अपनी समस्या से बचने का उपाय निकालें. हमारे पास कोविड जैसी समस्याओं से निबटने के बहुत से रास्ते हैं. आज भारत में भी कुछ महिलाएं हैं जो इस दिशा में हमारा मार्गदर्शन कर रही हैं.

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भारत की ये 5 महिलाएं (डाक्टर, आईएएस, वैज्ञानिक) जो कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई का नेतृत्व कर रही हैं और सप्ताह के सातों दिन चौबीसों घंटे काम कर रही हैं ताकि इस लड़ाई में जीत सकें-

प्रीति सुदान

आंध्र प्रदेश कैडर के 1983 बैच की आईएएस अधिकारी सुदान को आमतौर पर देर रात को अपने कार्यालय से बाहर निकलते देखा जाता है. वे स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की सचिव हैं जो बीमारी के प्रसार को रोकने के लिए सरकार की नीतियों को लागू करने के लिए सभी विभागों के साथ समन्वय करने का काम कर रही हैं. वे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ तैयारियों की नियमित समीक्षा में भी शामिल हैं.

डा. निवेदिता गुप्ता

इंडियन काउंसिल औफ मैडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. निवेदिता गुप्ता देश के लिए उपचार और परीक्षण प्रोटोकौल तैयार करने में व्यस्त हैं.

रेणु स्वरूप

स्वरूप पिछले 30 वर्षों से विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के जैव प्रौद्योगिकी (डीबीटी) में काम कर रही हैं. अप्रैल, 2018 तक उन को वैज्ञानिक ‘एच’ का पद मिला हुआ था जो एक कुशल वैज्ञानिक होने की पहचान है. उस के बाद उन्हें सैके्रटरी के रूप में नियुक्त किया गया था. रेणु अब कोरोना वायरस वैक्सीन विकसित करने के शोध में शामिल हैं.

प्रिया अब्राहम

प्रिया अब्राहम अभी नैशनल इंस्टिट्यूट औफ वायरोलौजी (एनआईवी) पुणे का नेतृत्व कर रही हैं, जोकि आईसीएमआर से संबद्ध है. एनआईवी शुरुआत में कोविड-19 के लिए देश का एकमात्र परीक्षण केंद्र था.

बीला राजेश

तमिलनाडु के स्वास्थ्य सचिव के रूप में राजेश अपने राज्य में चुनौती से निबटने में सब से आगे रहीं. उन्होंने हाल ही में पोस्ट किया था कि वायरस किसी को भी प्रभावित कर सकता है. एकदूसरे के प्रति संवेदनशील रहें और कोविड-19 के खिलाफ एक समन्वित लड़ाई छेड़ें. वैसे तमिलनाडु सरकार ने हाल ही में डा. बीला राजेश को राज्य के स्वास्थ्य सचिव के पद से हटा कर वाणिज्य कर और पंजीकरण विभाग का सचिव बनाया है.

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