Rashmika Mandanna ने अपने बौयफ्रैंड को लेकर तोड़ी चुप्पी, बैस्ट पार्टनर की बताईं ये क्वालिटी

Rashmika Mandanna : ऐक्ट्रैस रश्मिका मंदाना (Rashmika Mandanna) की फिल्म ‘पुष्पा 2’ (Pushpa 2) से काफी फेमस हुईं. यह फिल्म बौक्स औफिस पर लगातार हिट हुईं. इस मूवी ने वर्ल्डवाइड स्तर पर 1500 करोड़ रुपये का आंकड़ा पार कर लिया है.

रश्मिका ने प्यार को लेकर कहीं ये बात

इस फिल्म की सफलता के बीच ऐक्ट्रैस ने एक इंटरव्यू के दौरान अपने प्यार को लेकर बात की. रश्मिका ने इस बातचीत के दौरान बताया कि प्यार में होना उनके लिए कैसा है? एक इंटरव्यू के अनुसार, जब रश्मिका मंदाना से पूछा गया कि आपको मुश्किल वक्त में सबसे ज्यादा कंफर्ट कौन देता है? तो इस पर रश्मिका ने जवाब दिया कि ‘मेरा पार्टनर. मुझे अपनी जिंदगी के हर फेस में अपने पार्टनर की जरूरत है. मुझे उस कंफर्ट, सिक्योरिटी और प्यार की जरूरत होती है.’

रिलेशनशिप के लिए दिया ये टिप्स

रश्मिका के इस बयान से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन्होंने विजय देवरकोंडा संग रिश्ते को औफिशियली कर दिया है. ऐक्ट्रैस ने आगे रिलेशनशिप को लेकर बात की. ऐक्ट्रैस ने कहा कि एक रिश्ते में मेरी सबसे जरूरी चीज निश्चित रूप से दयालुता है लेकिन इसके साथ सम्मान भी. जब आप एकदूसरे की इज्जत करते हैं, केयर करते हैं और एकदूसरे के प्रति जम्मेदार होते हैं, तो ये सारी चीजें उसमें जुड़ जाती हैं. रश्मिका ने ये भी कहा कि किसी से प्यार करना, देखभाल करना, अच्छा दिल रखना और वास्तव में सच्चा होना भी एक रिलेशनशिप के गुण हैं.

रश्मिका को चाहिए ऐसा पार्टनर

रश्मिका ने ये भी कहा कि वह उस व्यक्ति के साथ रहना चाहती हैं, जिसमें ये सभी गुण हों. अगर उनके पार्टनर में ये गुण नहीं होगा तो मुझे नहीं लगता कि हम साथ रह पाएंगे. रश्मिका मंदाना ने आगे कहा, ‘प्यार में होने का मतलब मेरे लिए पार्टनरशिप और साझेदारी है.’ रिपोर्ट के अनुसार, रश्मिका ने ये भी कहा कि अगर आपको अपने जीवन में एक साथी की जरूरत होती है, लेकिन अगर वो आपके पास नहीं है तो इसका कोई मतलब है.

शौपिंग प्लाजा

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मेरी बीवी का कोई प्रेमी है, क्या मुझे अपना रिश्ता खत्म कर देना चाहिए?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 28 साल का हूं. मेरी शादी को 14 महीने हो चुके हैं. मुझे शक है कि मेरी बीवी का कोई प्रेमी है. बीवी कहती है कि वह उसे छोड़ चुकी है. मैं उस से बहुत प्यार करता हूं. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब
शादी का रिश्ता प्यार व यकीन पर ही चल पाता है. जब बीवी कह रही है कि वह प्रेमी का साथ छोड़ चुकी है, तो आप को यकीन करना चाहिए. आप उसे प्यार करते ही हैं, तो अपने प्यार को इतना ज्यादा कर दें कि उस में दूसरे की गुंजाइश न रहे.

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यार के लिए पत्नी का वार

कृष्णा आगरा के थाना सदर के अंतर्गत आने वाले मधुनगर इलाके में अपने मांबाप और भाई अवनीत के साथ रहता था. इटौरा में उस की स्टील रेलिंग की दुकान थी जो काफी अच्छी चल रही थी. कृष्णा की अभी शादी नहीं हुई थी. उस की शादी के लिए जिला मैनपुरी के कस्बा बेवर की युवती प्रतिभा से बात चल रही थी. कृष्णा ने अपने परिवार के साथ जा कर लड़की देखी तो सब को लड़की पसंद आ गई. देखभाल के बाद शादी की तारीख भी नियत कर दी गई. फिर हंसीखुशी से शादी हो गई.

नई दुलहन को सब ने हाथोंहाथ लिया, लेकिन कृष्णा की मां ने महसूस किया कि दुलहन के चेहरे पर जो खुशी होनी चाहिए थी, वह नहीं है. जबकि कृष्णा बहुत खुश था. मां ने सोचा कि प्रतिभा जब घर में सब से घुलमिल जाएगी तो ठीक हो जाएगी.

हफ्ते भर बाद जब सारे रिश्तेदार अपनेअपने घर चले गए तो प्रतिभा का भाई उसे लेने के लिए आ गया. किसी ने भी इस बात पर ज्यादा गौर नहीं किया कि प्रतिभा आम लड़कियों की तरह खुश क्यों नहीं है.

वह भाई के साथ पगफेरे के लिए चली गई और 4-6 दिन बाद कृष्णा उसे फिर ले आया. इस के बाद कृष्णा की पुरानी दिनचर्या शुरू हो गई. इसी बीच आगरा की आवासविकास कालोनी का रहने वाला ऋषि कठेरिया उस की दुकान पर आनेजाने लगा. ऋषि ठेके पर मकान बना कर देता था.

धीरेधीरे कृष्णा का ऋषि के साथ व्यापारिक संबंध जुड़ने लगा. ऋषि कृष्णा को स्टील रेलिंग के ठेके दिलवाने लगा.

दूसरी ओर प्रतिभा का व्यवहार परिवार वालों की समझ में नहीं आ रहा था. वह जबतब मायके जाने की जिद करने लगती तो सास उसे समझाती कि शादी के बाद बारबार मायके जाना ठीक नहीं है, ससुराल की जिम्मेदारियां भी संभालनी होती हैं.

एक दिन प्रतिभा ने कृष्णा से कहा कि उसे अपने मांबाप की याद आ रही है, वह अपने मायके जाना चाहती है. इस पर कृष्णा ने कहा कि जब उसे फुरसत मिलेगी, वह उसे छोड़ आएगा.

ठीक उसी समय प्रतिभा के मोबाइल पर किसी का फोन आया तो प्रतिभा ने फोन यह कह कर काट दिया कि वह फिर बात करेगी. लेकिन मायके जाने की बात पर वह अड़ी रही. आखिर कृष्णा ने कहा, ‘‘ठीक है, तुम तैयारी कर लो, मैं तुम्हें कल तुम्हारे मायके छोड़ आऊंगा.’’

अगले दिन घर वालों की इच्छा के खिलाफ कृष्णा उसे ससुराल ले गया. बस में बैठते ही प्रतिभा का मूड एकदम बदल गया. अब वह काफी खुश थी. शादी के 4 महीने बाद भी कृष्णा अपनी पत्नी के मूड को समझ नहीं पाया था. पर कृष्णा की मां की समझ में यह बात अच्छी तरह आ गई थी कि बहू कुछ तो उन से छिपा रही है.

प्रतिभा ने मायके जाने से पहले फोन द्वारा किसी को खबर तक नहीं दी थी. अत: जब वह मायके पहुंची तो उसे देख कर उस की मां हैरान हो कर बोली, ‘‘अरे दामादजी, आप अचानक ही… फोन कर के खबर तो कर दी होती.’’

इस से पहले कि कृष्णा कुछ कहता प्रतिभा बोली, ‘‘मम्मी, हमारा फोन खराब था, इसलिए खबर नहीं कर पाई.’’

कृष्णा पत्नी की इस बात पर हैरान था कि प्रतिभा मां से झूठ क्यों बोली. उस ने महसूस किया कि उस की सास लक्ष्मी के माथे पर बल पड़े हुए थे.

पत्नी को मायके छोड़ने के बाद कृष्णा जैसे ही आगरा वापस जाने के लिए घर से निकला तो उसे ऋषि दिख गया. उस ने पूछा, ‘‘अरे ऋषि, तुम यहां कैसे?’’

‘‘मैं गुप्ताजी से मिलने आया हूं.’’ उस ने एक घर की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘वह रहा गुप्ताजी का घर.’’

‘‘अरे वो तो प्रतिभा के चाचा का घर है.’’ कृष्णा बोला.

‘‘हां, वही गुप्ताजी. मेरे पुराने जानकार हैं.’’ ऋषि ने कहा.

कृष्णा हैरान था. तभी उस ने पूछा, ‘‘तब तो तुम यह भी जानते होगे कि गुप्ताजी के बड़े भाई मेरे ससुर हैं?’’

‘‘हांहां जानता हूं, प्रतिभा उन की ही तो बेटी है.’’ ऋषि ने लापरवाही से कहा.

‘‘लेकिन तुम ने यह बात मुझे पहले कभी नहीं बताई.’’ ऋषि ने पूछा.

‘‘कभी जरूरत ही नहीं पड़ी.’’ ऋषि ने  कहा तो कृष्णा ने मुड़ कर प्रतिभा को देखा. शक का एक कीड़ा उस के दिमाग में घुस चुका था.

उस ने सामने से जाते हुए ईरिक्शा को रोका और बसअड्डे पहुंच गया. रास्ते भर वह यही सोचता रहा कि यदि ऋषि का प्रतिभा के चाचा के घर आनाजाना था तो यह बात उस ने या प्रतिभा ने उसे क्यों नहीं बताई.

उस के जेहन में यह बात भी खटकने लगी कि मां ने उसे एकदो बार बताया था कि ऋषि उस की गैरमौजूदगी में भी कई बार उस के घर आया था. यह बातें सोच कर वह काफी तनाव में आ गया.

अभी तक तो वह यह समझ रहा था कि नईनई शादी होने की वजह से प्रतिभा को मायके वालों की याद आती होगी, इसलिए उस का मन नहीं लग रहा होगा, लेकिन अब उसे लगने लगा कि उस का जल्दीजल्दी मायके आने का कोई और ही मकसद है.

इसी तनाव में वह घर पहुंचा तो मां ने छूटते ही कहा, ‘‘बेटा, तेरी बीवी के रंगढंग हमें समझ नहीं आ रहे. उस का रोजरोज मायके जाना ठीक नहीं है.’’

उस समय कृष्णा ने कुछ नहीं कहा, क्योंकि अभी उसे केवल शक ही था, जब तक वह मामले की तह तक नहीं पहुंचता तब तक घर में बता कर बेकार का फसाद फैलाना ठीक नहीं था.

हफ्ते भर बाद वह पत्नी को मायके से लिवा लाया. कुछ दिन बाद पता चला कि प्रतिभा गर्भवती है. पिता बनने की चाह में कृष्णा के मन की कड़वाहट पिघलने लगी. लेकिन उस ने अब ऋषि से घुलमिल कर बातें करनी बंद कर दीं. इधर ऋषि भी समझ गया था कि कृष्णा के तेवर कुछ बदले हुए से हैं, इसलिए वह भी सतर्क हो गया.

शक का कीड़ा जो कृष्णा के दिमाग में रेंग रहा था, वह उसे चैन से नहीं रहने दे रहा था. वह अपनी परेशानी किसी को बता भी नहीं सकता था.

एक दिन कृष्णा के बहनबहनोई घर आए तो बहनोई ने बातों ही बातों में कृष्णा से पूछा, ‘‘आजकल लगता है दुकान पर तुम्हारा मन नहीं लगता. क्या कोई परेशानी है?’’

‘‘नहीं जीजाजी, ऐसी कोई बात नहीं है. दरअसल तबीयत कुछ ठीक नहीं है.’’ कृष्णा ने जवाब दिया.

‘‘लगता है, प्रतिभा तुम्हारा ठीक से खयाल नहीं रखती.’’ बहनोई ने पूछा तो कृष्णा की मां ने कह दिया, ‘‘अरे दामादजी, खयाल तो वो तब रखे जब उसे मायके आनेजाने से फुरसत मिले.’’

सास की बात प्रतिभा को अच्छी नहीं लगी. उस ने छूटते ही कहा, ‘‘इस घर में किसी को मेरी खुशी भी नहीं सुहाती.’’ कह कर वह दनदनाती हुई अपने कमरे में चली गई. इस से कृष्णा के बहनबइनोई समझ गए कि पतिपत्नी के संबंध सामान्य नहीं हैं.

कृष्णा को पत्नी का यह व्यवहार बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा. बहनबहनोई तो चले गए, लेकिन कमरे में आने के बाद उस ने प्रतिभा को दो  तमाचे जड़ते हुए कहा, ‘‘अपना व्यवहार सुधारो वरना अच्छा नहीं होगा.’’

‘‘अब इस से ज्यादा बुरा क्या होगा कि तुम्हारे जैसे आदमी के साथ मेरी शादी हो गई.’’ कह कर प्रतिभा बैड पर जा कर बैठ गई. उस दिन के बाद उन दोनों के बीच दूरियां बढ़ने लगीं.

दूसरी ओर प्रतिभा रात में देरदेर तक ऋषि के साथ मोबाइल पर बातें करती. एक दिन कृष्णा की नींद खुल गई तो उस ने देखा कि प्रतिभा किसी से बातें कर रही थी. वह समझ गया कि ऋषि से ही बातें कर रही होगी. कृष्णा समझ गया कि प्रतिभा अब आपे से बाहर होती जा रही है. पर करे तो क्या करे, यह उस की समझ में नहीं आ रहा था.

इसी बीच प्रतिभा ने एक बेटी को जन्म दिया. पूरे घर में जैसे खुशी छा गई. बच्ची का नाम राधिका रखा गया. कृष्णा को उम्मीद थी कि मां बन जाने के बाद शायद प्रतिभा के व्यवहार में कोई फर्क आ जाए, पर ऐसा हुआ नहीं. कृष्णा को इस बात की पुष्टि हो गई थी कि ऋषि के साथ प्रतिभा के नाजायज संबंध शादी से पहले से थे. चूंकि ऋषि शादीशुदा था, इसलिए उस के साथ शादी करना प्रतिभा की मजबूरी थी.

प्रतिभा के मांबाप को सब कुछ मालूम था, इसीलिए उन्होंने बेटी को कृष्णा के गले बांध दिया और सोचा कि शादी के बाद सब कुछ ठीक हो जाएगा. लेकिन प्रतिभा का रवैया नहीं बदला.

कृष्णा अपनी बेटी को बहुत प्यार करता था. वह प्रतिभा को भी खुश रखने का भरसक प्रयास करता था लेकिन अपनी परेशानी घर में किसी को बता नहीं पा रहा था. जबकि प्रतिभा के व्यवहार से कोई भी खुश नहीं था.

धीरेधीरे समय गुजर रहा था. मौका मिलते ही प्रतिभा चोरीछिपे ऋषि से यहांवहां मिल लेती पर वह जानती थी कि कृष्णा जैसे व्यक्ति के साथ वह पूरा जीवन नहीं गुजार सकती. दूसरी ओर ऋषि भी शादीशुदा था, उसे लगता था कि उस का जीवन कटी पतंग की तरह है. प्रेमी ने कभी उसे इस बात के लिए आश्वस्त नहीं किया कि वह उसे अपने साथ रख सकता है.

संभवत: इसी कशमकश में प्रतिभा भी समझ नहीं पा रही थी कि वह करे तो क्या करे. कृष्णा से छुटकारा पाने के बारे में वह सोचने लगी पर वह जानती थी कि मायके वाले भी ऋषि के कारण उस के खिलाफ थे.

इसी बीच कृष्णा ने 25 लाख रुपए में अपनी एक जमीन बेच दी. वह रकम उस ने घर में ही रख दी थी. यह बात प्रतिभा को पता चल गई थी और अचानक उसे लगा कि पति के इस पैसे से वह प्रेमी को बाध्य कर देगी कि वह उस के साथ अपनी दुनिया बसा ले.

प्रेमी को पाने की धुन में वह गुनहगार बनने को भी तैयार हो गई. एक दिन उस ने ऋषि को फोन कर के कहा कि वह उसे बड़ा फायदा करा सकती है.

ऋषि हंसने लगा, ‘‘अरे तुम तो हमेशा ही मुझे खुशियां देती हो.’’

‘‘लेकिन तुम तो मुझे केवल सपने ही दिखाते हो जो आंखें खुलते ही टूट जाते हैं.’’ प्रतिभा ने तल्ख स्वर में कहा.

‘‘प्रतिभा, यह बात तुम अच्छी तरह जानती हो कि मेरी मजबूरियां क्या हैं. मेरी पत्नी है, बच्चे हैं. मैं उन्हें किस के सहारे छोड़ सकता हूं.’’ ऋषि ने कहा.

प्रतिभा गुस्से में भर उठी, ‘‘तो मुझ से प्यार क्यों किया? क्यों मुझे झूठे सपने दिखाए? तुम ने तो सिर्फ अपना मतलब पूरा किया है. तुम्हें तो कभी मुझ से प्यार था ही नहीं.’’

प्रतिभा ने उस दिन ऋषि को साफसाफ कह दिया, ‘‘या तो तुम मुझे अपने साथ रखो अन्यथा मैं तुम्हारी जिंदगी से दूर चली जाऊंगी. समझ लो मैं आत्महत्या भी कर सकती हूं, जिस का दोष तुम्हारे ऊपर आएगा.’’

ऋषि ऐसे किसी पचड़े में नहीं पड़ना चाहता था. अत: उस ने उस दिन प्रतिभा को किसी तरह समझाबुझा दिया कि वह कुछ सोचेगा. तभी प्रतिभा ने धीरे से कहा, ‘‘कृष्णा ने अपनी जमीन बेची है. 25 लाख की बिकी है.’’

ऋषि के कान खड़े हो गए. प्रतिभा ने आगे कहा, ‘‘इन 25 लाख के सहारे हम कहीं दूर जा कर अपनी दुनिया बसा सकते हैं.’’

‘‘तुम पागल हो गई हो क्या, चोरी के इलजाम में जेल भिजवाओगी हमें.’’ ऋषि ने कहा. लेकिन वह जानता था कि प्रतिभा उस के प्यार में अंधी है और थोड़ाबहुत लाभ उसे हो सकता है. ऋषि ने उसे 2 दिन बाद किसी होटल में मिलने को कहा.

इस के बाद ऋषि को भी लालच आ गया. उस ने प्रतिभा से फोन पर बात की. प्रतिभा ने उस से साफ कह दिया, ‘‘मैं तो सिर्फ तुम्हारे साथ रहना चाहती हूं. लेकिन कृष्णा हमारी खुशियों की राह में रोड़ा बना हुआ है.’’

फिर एक दिन बेटी को डाक्टर को दिखाने का बहाना कर प्रतिभा घर से निकली और एक कौफीहाउस में ऋषि से मिली. दोनों ने मिल कर एक षडयंत्र रचा, जिस में कृष्णा को रास्ते से हटाने की बात तय कर ली गई.

नादान प्रतिभा प्रेमी की आशिकी में अंधी हो चुकी थी. उसे भलाबुरा नहीं सूझ रहा था. उस ने यह भी नहीं सोचा कि उस की 9 माह की बेटी का क्या होगा. इधर प्रतिभा के बदले हुए तेवर देख कर एक दिन सास ने कहा, ‘‘बहू, क्या बात है आजकल तू हर वक्त घर से निकलने के बहाने ढूंढती रहती है?’’

‘‘नहीं तो मम्मी, ऐसी कोई बात नहीं है. राधिका की तबीयत ठीक नहीं रहती, इसलिए परेशान रहती हूं.’’ प्रतिभा ने बहाना बनाया.

‘‘देख बहू, हमारे परिवार का समाज में सम्मान है. हमारे परिवार में बहुएं सिर्फ घर के बच्चों और पति के लिए ही जीतीमरती हैं.’’ कह कर सास अपने कमरे में चली गई.

कृष्णा को रास्ते से हटाने की योजना बन चुकी थी और 25 लाख रुपए में से 5 लाख रुपए देने का वादा कर ऋषि ने इस साजिश में अपने दोस्त पवन निवासी रायमा, जिला मथुरा को भी शामिल कर लिया था.

13 फरवरी, 2018 को कृष्णा के पास ऋषि का फोन आया. उस ने बताया कि उसे एक बहुत बड़ा ठेका मिला है. उस बिल्डिंग में स्टील ग्रिल भी लगनी है. अगर तुम यह काम करना चाहते हो तो बात करने के लिए रायमा आ जाओ. कृष्णा ने पहले तो सोचा कि वह उस से कोई संबंध नहीं रखना चाहता, क्योंकि वह विश्वास के काबिल नहीं है. पर फिर उसे लगा कि पारिवारिक बातों को व्यापार से अलग ही रखना चाहिए. अत: उस ने कह दिया कि वह शाम तक रायमा पहुंच जाएगा.

कृष्णा ने घर से निकलते वक्त अपनी मां को बता दिया कि एक सौदा करने के लिए वह रायमा जा रहा है. पति के घर से निकलने के बाद प्रतिभा ने अपने प्रेमी ऋषि को फोन कर के बता दिया कि कृष्णा घर से चल दिया है.

घर में किसी को भी नहीं मालूम था कि कौन सा कहर टूटने वाला था. कृष्णा रायमा पहुंचा तो वहां ऋषि, पवन और रायमा निवासी टिल्लू बातों में उलझा कर कृष्णा को खेतों की ओर ले गए. लेकिन तभी वहां कुछ लोग आ गए और वे अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सके. जब रात में कृष्णा घर पहुंचा तो उसे देख कर प्रतिभा हैरान रह गई. देर रात को प्रतिभा ने ऋषि को फोन किया तो उस ने प्रेमिका को सारी बात बता दी.

अगले दिन ऋषि ने कृष्णा के फोन पर बता दिया कि उस की पवन से बात हो गई है. वह अब अपने घर में रेलिंग लगाने का ठेका देने को तैयार हो गया है, तुम आ जाओ.

सीधासादा कृष्णा बिना कुछ सोचेसमझे 14 फरवरी, 2018 को अपनी मां से रायमा जाने की बात कह कर घर से निकल गया, जहां स्टेशन पर ही उसे ऋषि मिल गया. ऋषि उसे बातों में लगा कर इधरउधर घुमाता रहा. तब तक शाम हो गई. तभी पवन का फोन आ गया. उस के कहे मुताबिक, ऋषि कृष्णा को खेतों की तरफ ले गया. तब तक अंधेरा होने लगा था.

तभी वहां उसे पवन दिखाई दिया, जिस ने इशारा कर के उन्हें सड़क पार कर खेत में आने को कहा. कृष्णा को जब तक कुछ समझ में आता तब तक काफी देर हो चुकी थी. वहीं टिल्लू भी आ गया तो कृष्णा ने कहा, ‘‘अगर तुम्हें सौदा मंजूर है तो अब जल्दी से कुछ एडवांस दे दो. रात भी हो रही है, मुझे घर पहुंचना है. प्रतिभा इंतजार कर रही होगी.’’

यह सुनते ही पवन हंसने लगा, ‘‘ओह क्या सचमुच तेरी बीवी तेरा इंतजार करती है. हमें तो यह पता है कि वह ऋषि का इंतजार करती है.’’

कृष्णा की समझ में अब कुछकुछ आने लगा था. उस ने कहा, ‘‘यह क्या बदतमीजी है, जल्दी करो मुझे जाना है.’’ यह कहते हुए वह अपनी बाइक की तरफ बढ़ा लेकिन तीनों झपट कर उसे खेत के अंदर ले गए और डंडों से उस की पिटाई शुरू कर दी. डंडों से पीटपीट कर उन्होंने उस की हत्या कर लाश वहीं छोड़ दी और चले गए.

इधर कृष्णा घर नहीं पहुंचा था. घर से जाने के बाद उस ने कोई फोन भी नहीं किया था. उस का फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा था. सभी रिश्तेदारों को फोन कर पूछ लिया गया, पर वह कहीं नहीं था. अंतत: आगरा के थाना सदर में उस की गुमशुदगी लिखवा दी गई.

प्रतिभा के मायके वालों को फोन किया गया तो प्रतिभा के भाई ने कहा कि ऋषि से पूछताछ करें. थानाप्रभारी नरेंद्र सिंह ने सभी थानों को वायरलैस द्वारा कृष्णा की गुमशुदगी की सूचना दे दी.

16 फरवरी को पुलिस को रायमा के खेत में एक लाश मिलने की सूचना मिली, जिसे कृष्णा के भाई अवनीश ने पहचान कर शिनाख्त कर दी.

घर वालों से पूछताछ की गई तो कृष्णा की मां ने कहा कि कृष्णा ने उसे बताया था कि रेलिंग का ठेका लेने के लिए वह रायमा जा रहा है. पर वह कहां जा रहा था, उसे पता नहीं था. 13 और 14 फरवरी को भी वह रायमा गया था. 13 को वह देर रात घर लौटा था. वह नहीं बता पाई कि कृष्णा रायमा में किस के पास गया था.

पुलिस टीम हत्यारे की खोजबीन में लग गई. पुलिस की एक टीम बेवर भेजी गई तो प्रतिभा के भाई ने कहा कि उन्हें इस बारे में कुछ भी नहीं पता, लेकिन यदि कृष्णा के दोस्त ऋषि से पूछताछ की जाए तो कुछ पता चल सकता है. जांच अधिकारी ने महसूस किया कि प्रतिभा के मायके वाले कुछ छिपा रहे हैं.

इस के बाद थानाप्रभारी ने कृष्णा के घर जा कर प्रतिभा से पूछताछ की तो महसूस किया कि उसे पति की मौत का जैसे कोई दुख नहीं था. इसी बीच पुलिस को एक मुखबिर ने बताया कि ऋषि की दोस्ती रायमा निवासी पवन के साथ है. अगर उसे हिरासत में लिया जाए तो केस खुल सकता है.

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पुलिस ने रायमा में पवन को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. उस से पूछताछ की गई तो पता चला कि मृतक की पत्नी प्रतिभा के साथ ऋषि के नाजायज संबंध थे. मृतक की पत्नी प्रतिभा ने ऋषि को बता दिया था कि कृष्णा ने जो 25 लाख रुपए की जमीन बेची है, उन पैसों से वे एक अच्छी जिंदगी की बुनियाद रख सकते हैं. इस के बाद पवन ने कृष्णा की हत्या की सारी कहानी बता दी.

पुलिस ने 18 फरवरी को प्रतिभा को हिरासत में ले लिया. थाने ला कर जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस बीच पुलिस को यह जानकारी भी मिली कि ऋषि ने बाह थाने में अपने अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कराई थी, जिस में उस ने बताया था कि वह किसी तरह अपहर्त्ताओं के चंगुल से छूट कर भागा है. मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने ऋषि और टिल्लू को भी गिरफ्तार कर लिया.

प्रतिभा ने योजना बना कर अपने हाथों अपना सुहाग तो उजाड़ दिया, लेकिन उसे इस बात की जानकारी नहीं थी कि जिन 25 लाख रुपयों के लालच में उस ने यह सब किया, वह रकम कृष्णा ने अपने कमरे में न रख कर अपनी मां के पास रख दी थी.

पुलिस ने ऋषि, प्रतिभा, पवन और टिल्लू से पूछताछ के बाद उन्हें न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया. 9 माह की राधिका अनाथ हो चुकी है. मां जेल में है और पिता की हत्या कर दी गई है. बूढ़ी दादी अब कैसे उसे पाल पाएगी, यह बड़ा सवाल है.

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Work Life Balance : जरूरत से ज्यादा कर रही हैं काम, तो ऐसे सेट करें अपनी लिमिट

 Work Life Balance: अगर आप घर से काम कर रही हैं तो क्या आप जानती हैं आपका वर्क लोड औफलाइन काम करने के मुकाबले लगभग 2.5 घंटे बढ़ जाता है. यह आपको ज्यादा नहीं लगता होगा और शुरू में नौर्मल भी लगता होगा लेकिन इसके आपकी सेहत पर अधिक प्रभाव पड़ते हैं. अधिक काम करने से आप अपनी सेहत के साथ खिलवाड़ कर रही हैं. घर से काम करने के दौरान आपका काम का प्रेशर ही नहीं बल्कि कुछ न कुछ घर के कामों का भी प्रेशर बढ़ जाता है. स्टडीज के मुताबिक अगर आप 55 घंटे से अधिक एक हफ्ते में काम करती हैं तो यह आपकी समय से पहले मृत्यु का एक कारण बन सकता है. लेकिन आपको चिंता करने की जरूरत नही है क्योंकि हम आपके लिए लाए हैं कुछ ऐसी टिप्स जिनके द्वारा आप अपने काम को करने के साथ साथ अपनी सेहत का भी ख्याल रख पाएंगी और ओवर वर्क की एक बाउंड्री सेट कर पाएंगी जिससे वह आपके स्वास्थ्य को प्रभावित नहीं कर सकेगा.

1. अपना एक रूटीन बना लें :

अगर आपको घर से काम करते हुए एक साल से ऊपर हो गया है तो आपका दिन का ज्यादातर समय लैपटॉप के आगे ही जाता होगा. आप अब अपने काम की चिंता पहले से भी अधिक करती होंगी. लेकिन ऐसा न करें. अगर आप जॉब पर भी जाती हैं तो आपको एक निश्चित समय दिया जाता है जिसमें आपको काम करना होता है. ऐसे ही घर पर भी करें. अपने काम करने का एक समय बना लें और केवल उसी समय काम करें. इसके बाद या इसके पहले अपनी पर्सनल जिंदगी को समय दें और लैपटॉप को रख दें.

2. अपने लिए भी समय निकालें :

हमारी घर पर काम करने के दौरान एक बहुत बड़ी गलत फहमी बन गई है कि हमारे पास अधिक समय है लेकिन हमारे पास खुद के लिए थोड़ा सा भी समय नहीं मिल पा रहा है. घर के कामों से और ऑफिस के काम से जब तक आपको राहत मिलती है तब तक आपका सारा दिन बीत चुका होता है. क्या आप अपने शरीर के लिए या माइंड के लिए एक्सरसाइज आदि करने का समय निकाल पाती हैं? अगर इसका जवाब न है तो आपको इस बारे में सोचना चाहिए.

3. अपने बौस को बताएं अपने काम करने का समय :

अगर आप घर से काम कर रही हैं तो आपको अपने सीनियर या बौस को अपने काम करने का समय बता देना चाहिए और यह क्लीयर करना चाहिए कि आप किस समय औनलाइन रहते हैं और किस समय नहीं. अगर आप ऐसा नही करेंगी तो वह आपको हर समय औनलाइन रहने की सोच कर आपके वर्क लोड को बढ़ा सकते हैं.

4. अपनी एनर्जी लेवल पर भी ध्यान दें :

आपको हमेशा अपनी एनर्जी लेवल के बारे में ध्यान देना चाहिए. आप किस समय तक पूरी एनर्जी के साथ काम कर पाते हैं, इस समय को नोट करें. अगर आप उससे अधिक काम कर रहे हैं तो आपका न मन लगेगा और काम करने में आपको फ्रस्ट्रेशन भी बहुत होगी. इसलिए अपनी एनर्जी के हिसाब से ही काम करें और ओवर वर्क न करें.

5. क्या क्या करना है इन कामों की लिस्ट बना लें :

अगर आपको काम के बीच बीच में अन्य या घर के काम भी करने होते हैं तो अपने टाइम को अच्छे से मैनेज करें और कब आपको क्या काम करना है इसकी एक छोटी से लिस्ट बनाती रहें और जब वह काम हो जाए तो उन पर टिक लगाती रहिए ताकि आपको एक संतुष्टि मिल सके.

6. आप कब अपना समय बर्बाद कर रहे हैं :

हम सारा दिन काम नहीं करती हैं बल्कि बीच बीच में अपना समय बर्बाद भी कर देती हैं. आपको यह पता लगाना चाहिए की आप किस समय आपके समय को बर्बाद कर रही हैं और उस समय को नोट कर लें और जो काम आपको बाद में करने हैं वह पहले खत्म कर दें ताकि आपको बाद में अधिक प्रेशर न महसूस करना पड़े.

आपके शरीर को पता होता है कि आप कब ज्यादा काम कर रही हैं इसलिए उसकी सुनें और खुद को थोड़ा रेस्ट दे.

Comedy Story In Hindi : पुलिस वाले दुलहनिया

 Comedy Story In Hindi : ‘‘मनोज, यहां तुम अपने हस्ताक्षर करो और यहां अपनी बूआ के दस्तखत करवा दो,’’ फूफाजी ने फोल्ड किया एक स्टांप पेपर मेरे सामने मेज पर रख दिया.

कागज पर केवल हस्ताक्षर करने का स्थान ही दिख रहा था. बाकी का तह किया कागज फूफाजी ने अपने हाथ में दबा रखा था.

‘‘पहले जरा सांस तो लेने दीजिए,’’ मैं ने कहा फिर पास वाले सोफे पर माथे पर बल डाले बैठी बूआजी पर एक नजर डाली.

बूआजी ने मुझे देखते ही मुंह फेर लिया.

‘‘कागजी काररवाई के बाद जितनी सांसें लेनी हों ले लेना,’’ फूफाजी बोले, ‘‘शाबाश, करो दस्तखत.’’

‘‘फूफाजी इसे पढ़ने तो दीजिए, क्योंकि बुजुर्गों ने कहा है कि बिना पढ़े कहीं भी हस्ताक्षर न करो,’’ मैं ने कागज खोल कर पढ़ना चाहा.

‘‘मैं ने जो पढ़ लिया है. मैं क्या तुम्हारा बुजुर्ग नहीं हूं?’’ फूफाजी ने गंभीर स्वर में कहा.

‘‘वह तो ठीक है मगर इस में लिखा क्या है?’’

‘‘यह तलाक के कागज हैं,’’ फूफाजी ने बताया.

‘‘मगर किस के तलाक के हैं?’’

‘‘यह मेरे और तुम्हारी बूआजी के आपसी सहमति से तलाक लेने के कागज हैं.’’

‘‘क्या?’’ मैं ने फूफाजी की ओर अब की बार इस तरह देखा जैसे उन के सिर पर सींग निकल आए हों, ‘‘मुझे लगता है आज आप ने सुबह ही बोतल से मुंह लगा लिया है.’’

‘‘अरे, नहीं बेटे, मैं पूरी तरह से होश में हूं. चाहो तो मुंह सूंघ लो,’’ फूफाजी ने मुंह फाड़ा.

‘‘फिर यह तलाक की बात क्यों? क्या बूआजी से फिर कोई झगड़ा हुआ?’’

‘‘न कोई झगड़ा न बखेड़ा… यह तलाक तो मैं अपने वंश के लिए ले रहा हूं.’’

‘‘आप साफसाफ क्यों नहीं बताते कि बात क्या है?’’ मैं ने बेचैनी से पूछा.

‘‘मनोज बेटे, मैं तुम्हारी बूआजी को तलाक दे कर एक विदेशी स्त्री से शादी कर रहा हूं,’’ फूफाजी ने गरदन मटकाई.

‘‘मैं भी अपने को धन्य समझूंगी कि तुम जैसे जाहिल कामचोर से पीछा छूटा,’’ बूआजी भड़क उठीं, ‘‘लाओ, कहां दस्तखत करने हैं.’’

बूआ ने अदालत के पेपर लेने को हाथ बढ़ाया.

‘‘ठहरिए, बूआजी. पहले पता तो चले कि माजरा क्या है.’’

‘‘मनोज बेटे, विदेश में जा कर जितना धन 5 सालों में बनाया जा सकता है उतना अपने देश में 5 जन्मों में भी नहीं कमाया जा सकता. इसलिए मैं ने विदेशी लड़की से ब्याह रचा कर वहां बसने की ठानी है,’’ फूफाजी ने ‘राज’ खोला.

‘‘मुझे टै्रवल एजेंट ने समझाया है कि बिना कोई जोखिम उठाए विदेश जाने का यही एक आसान तरीका है कि किसी विदेशी लड़की से शादी कर लो तो वह अपने दूल्हे को अपने साथ विदेश ले जाएगी…’’ फूफाजी सांस लेने को रुके.

‘‘और यह सारा इंतजाम उस भलेमानस ट्रैवल एजेंट ने कर दिया है. बस, कुछ लाख रुपए उसे देने पड़े जिस में से कुछ हिस्सा उस विदेशी महिला को शादी करने की फीस के तौर पर एजेंट उसे देगा,’’ फूफाजी ने लंबी सांस छोड़ी.

‘‘मगर आप के पास लाखों रुपए आए कहां से?’’ बूआजी ने फूफाजी से पूछा, ‘‘क्या किसी बैंक में डाका डाला है?’’

‘‘बैंक में डाका नहीं डाला है बल्कि अपने घर को बैंक के पास गिरवी रख कर कर्जा लिया है.’’

‘‘बुढ़ऊ,  तुम्हारा सत्यानाश हो,’’ बूआजी भड़कीं.

‘‘सत्तानाश हो या अट्ठानाश, अब तो मैं ने जो करना था कर दिया. मगर तुम घबराओ नहीं, विदेश से कर्जे की किस्तें भेजता रहूंगा ताकि तुम यहां मजे से रहो,’’ फूफाजी ने तसल्ली दी, ‘‘विदेश से कुछ सालों में करोड़ों रुपए कमा कर वापस आऊंगा, तब तक वह मेरी फौरन वाइफ मुझे धत्ता बता चुकी होगी और मैं तुम से दोबारा ठाट से विवाह कर लूंगा.’’

‘‘मैं तो एक बार ही तुम से शादी कर के पछता रही हूं.’’

‘‘पछताना बाद में, पहले तुम बूआ- भतीजा झट से तलाक के इन कागजों पर दस्तखत करो. मेरा वकील दोस्त और वे लोग आते ही होंगे,’’ फूफाजी ने मेज पर रखे कागजों पर पेन बजाया.

बूआजी का चेहरा गुस्से से तमतमा उठा. उन्होंने हस्ताक्षर कर के कागज और कलम मेरी ओर बढ़ा दिए.

‘‘मनोज, तुम भी इस पर दस्तखत कर दो ताकि इन का यह कर्ज भी खत्म हो, यह झंझट ही समाप्त हो जाए,’’ बूआजी ने मुझ से कहा.

‘‘यह आप क्या कह रही हैं, बूआ. कल को भाभी के मायके वाले और दीदी के ससुराल वाले आप के तलाक के बारे में पूछेंगे तो हम क्या बतलाएंगे?’’

‘‘किसी से कुछ कहने की जरूरत नहीं. जब मैं किसी घपले में अंदर हो जाता हूं तो तुम लोग होंठ सीए रहते हो न. बस, कुछ सालों तक चुप्पी साधे रहना,’’ फूफाजी ने समझाया, ‘‘मैं वहां से आया और सारा मामला सुलझाया.’’

‘‘मनोज बेटा, दस्तखत करो और हम यहां से चलते हैं,’’ बूआजी सोफे पर से उठ खड़ी हुईं.

‘‘अरे भई, बैठोबैठो, उन लोगों में कोई मेरी ओर से भी तो होना चाहिए,’’ फूफाजी ने बूआजी से आग्रह किया, ‘‘फिर इस बेचारे ने मेरीतुम्हारी शादी तो नहीं देखी लेकिन अब इसे मेरी यह शादी तो देख लेने दो,’’ फूफाजी के चेहरे पर खुशी और शर्म के मिलेजुले भाव झलक उठे.

बाहर किसी गाड़ी के रुकने की घरघराहट हुई.

‘‘लो, वे लोग पहुंच गए,’’ यह कहते हुए फूफाजी दरवाजे की ओर लपके.

अब बाहर जाने के लिए रास्ता नहीं था सो बूआजी फिर से सोफे पर बैठ गईं.

फूफाजी के साथ 3 स्थानीय लोग, एक 65 साल का विदेशी पुरुष तथा उस के पीछे 35 साल की एक विदेशी महिला थी…जिस ने खूब मेकअप कर रखा था और बड़ेबड़े फूलों वाली फ्राक और स्कर्ट पहनी हुई थी. स्थानीय पुरुषों में एक तो फोटोग्राफर था और एक पंडितजी थे. उन के साथ जो तीसरा आदमी था उस ने पैंटशर्ट पहन रखी थी.

‘‘मनोज बेटा, इन से मिलो,’’ फूफाजी ने साथ के सोफे पर बैठे, चेहरे पर चौड़ी मुसकान वाले आदमी की ओर इशारा किया, ‘‘आप हैं, जेल ट्रैवल एजेंसी के मालिक भावलंकरजी.’’

‘‘और यह मेरा सहायक, गोविंदा,’’ टै्रवल एजेंट के मालिक ने कैमरे वाले की ओर उंगली उठाई, ‘‘और आप पंडित धूर्तराजजी, जिन के शुभ आशीर्वाद से ब्याह का कार्यक्रम संपन्न होगा.’’

‘‘अब आगे आप इन को मिलवाएं,’’ टे्रवल एजेंट ने फूफाजी से कहा.

‘‘बेटे मनोज,’’ फूफाजी ने खंखार कर गला साफ किया, ‘‘यह हैं तुम्हारी नई बूआजी…मेरा मतलब…मेरी…यानी तुम समझ ही गए होगे. और यह मेरे नए ससुरजी…यानी ‘फादर इन ला.’ ’’

फूफाजी ने उन विदेशियों की भेंट मुझ से करवाई और चोर नजरों से बूआजी की ओर देखा.

बूआजी ने माथे पर बल डाल कर मुंह फेर लिया.

‘‘बेटे, अब जल्दी से मेहमानों के लिए ठंडा, नमकीन और मिठाई आदि लाओ,’’ फूफाजी ने कहा.

‘‘यजमान, जलपान फेरों के साथसाथ चलता रहेगा. अब वरकन्या को बुलाएं,’’ पंडितजी ने लंबी तान लगाई.

‘‘पंडितजी, वर तो मैं ही हूं और मेरी कन्या…उफ तौबा…’’ फूफाजी ने गाल पीटे, ‘‘यानी मेरी होने वाली दुलहन यह सामने सोफे पर बैठी हैं.’’

‘‘ठीक है वरजी, आप यह ‘रेडीमेड’ सेहरा पहन लीजिए,’’ पंडितजी ने अपने झोले में से एक सुनहरी पगड़ी निकाली जिस के साथ सेहरा लटका हुआ था.

‘‘सेहरा पहनूं?’’

‘‘हां, इस सेहरे के साथ वरवधू के फोटो उतारे जाएंगे ताकि ब्याह का प्रमाण हो. उस के बाद ही मैं आप को ब्याह का प्रमाणपत्र दे सकूंगा,’’ पंडितजी ने समझाया.

‘‘कागजी काररवाई के लिए यह बहुत जरूरी है,’’ टै्रवल एजेंट ने पंडितजी की बात का समर्थन किया और अपने सहायक को इशारा किया.

सहायक ने अपना कैमरा एडजस्ट किया.

फूफाजी ने सिर पर सेहरे वाली पगड़ी रख ली.

‘‘देखो, कैसा दिखता हूं?’’ फूफाजी ने बूआजी से पूछा, ‘‘सच बताना, ऐसा रूप तो तुम्हारे साथ शादी के मौके पर भी मुझ पर न चढ़ा होगा.’’

‘‘ठीक कहा. उस से सौगुना फटकार आप के चेहरे पर आज बरस रही है,’’ बूआजी बड़बड़ाईं.

‘‘छाती पर सांप लोट रहे होंगे, तभी तो ऐसा जहर उगल रही हो,’’ फूफाजी ने जहर का घूंट पीते हुए कहा.

‘‘दूल्हादुलहन इधर आ कर बैठें,’’ पंडितजी ने लंबी तान लगाई.

पंडितजी ने फूफाजी और उस विदेशी महिला को साथसाथ सोफे पर बैठाया और झोले में से फूलपत्तियां निकाल कर फूफाजी और उस विदेशी महिला पर मंत्रोच्चारण करते हुए बरसाईं.

टै्रवल एजेंट के सहायक ने कैमरे से 3-4 फोटो लिए.

‘‘अब फेरों का कार्यक्रम समाप्त हुआ. आज से आप दोनों पतिपत्नी हुए,’’ पंडितजी ने फूफाजी से कहा, ‘‘यजमान, अब आप सेहरे का किराया और मेरी दानदक्षिणा और विवाह के प्रमाणपत्र के 1,500 रुपए दे दीजिए.’’

पंडितजी ने अपने झोले से छपा हुआ एक फार्म निकाला.

‘‘आप 1,500 की बजाय 2 हजार ले लो पंडितजी,’’ फूफाजी ने ब्रीफकेस से नएनए नोट निकाले और पंडितजी की ओर बढ़ा दिए.

पंडितजी ने पहले तो नोट कमीज के अंदर बनी हुई जेब में डाले, फिर फार्म भर कर अपने हस्ताक्षर किए और फूफाजी को शादी का प्रमाणपत्र थमा दिया.

‘‘पंडितजी, यह पगड़ीसेहरा दूल्हे के सिर पर ही लगा रहने दें क्योंकि हमें इस नए जोड़े के साथ, ऐसे ही कोर्ट में जाना है,’’ टै्रवल एजेंट ने कहा.

‘‘ठीक है, मैं आप के दफ्तर से सेहरा ले लूंगा या आप अपने सहायक के हाथ भिजवा देना,’’ पंडितजी गुनगुनाए.

‘‘वह आप का वकील दोस्त अभी तक नहीं पहुंचा,’’ एजेंट ने फूफाजी से कहा, ‘‘मेरा दूसरा सहायक उन को लाने के लिए काफी देर से टैक्सी पर गया है.’’

तभी बाहर किसी गाड़ी के रुकने की आवाज आई.

‘‘लो, वे लोग भी आ पहुंचे,’’ टै्रवल एजेंट ने गरदन घुमा कर देखा.

दरवाजे में से फूफाजी के वकील दोस्त और टै्रवल एजेंट का सहायक अंदर आ गए. उन के पीछेपीछे एक पुलिस इंस्पेक्टर, 2 लेडी कांस्टेबल तथा 2 पुरुष कांस्टेबल और एक सहायक इंस्पेक्टर ड्राइंगरूम में आ गए.

इंस्पेक्टर ने विदेशी आदमी और टै्रवल एजेंट की ओर उंगली घुमाई. महिला पुलिसकर्मियों ने उस विदेशी महिला के हाथ थाम लिए और सहायक इंस्पेक्टर के साथ दोनों पुलिस वाले उस अधेड़ विदेशी पुरुष व टै्रवल एजेंट के पास खड़े हो गए.

‘‘तुम सब को गिरफ्तार किया जाता है.’’

‘‘मगर क्यों?’’

‘‘देखिए, इंस्पेक्टर, आप मेरे मेहमानों से…नहीं बल्कि सगे संबंधियों से ऐसा बरताब नहीं कर सकते,’’ फूफाजी ने सेहरा संभालते हुए इंस्पेक्टर से कहा, ‘‘आप नहीं जानते, मेरी कहांकहां तक पहुंच है?’’

‘‘शायद आप इन के नए शिकार हैं,’’ इंस्पेक्टर ने फूफाजी की ओर देखा.

‘‘शिकार, कैसा शिकार?’’ मैं ने पूछा.

‘‘यह लोग भोलेभाले लोगों को विदेश ले जाने का झांसा देते हैं. यह मैडम उन लोगों से लाखों रुपए बटोर कर शादी रचाने का ढोंग करती है और फुर्र हो जाती है. यह ऐसे टै्रवल एजेंटों की मिलीभगत से होता है,’’ इंस्पेक्टर बोलता गया, ‘‘अब तक इन लोगों के खिलाफ कई शिकायतें दर्ज हो चुकी हैं मगर यह लोग पकड़ में नहीं आते थे. आखिर आज शिकंजे में आ ही गए.’’

इंस्पेक्टर ने अपने सहायक की ओर देखा.

‘‘ले चलो इन को,’’ इंस्पेक्टर ने होलस्टर से रिवाल्वर निकाल लिया.

पुलिस के घेरे में विदेशी पुरुष व महिला और टै्रवल एजेंट मरीमरी चाल से दरवाजे की ओर बढ़े.

‘‘पंडितजी, आप भी चलिए. आप भी तो इन के ‘फ्राड’ में भागीदार हैं,’’ सबइंस्पेक्टर ने पंडितजी को टोक दिया.

‘‘मगर इंस्पेक्टर, मेरे विदेश जाने के सपने का क्या होगा?’’ फूफाजी ने बुझे स्वर में इंस्पेक्टर से पूछा.

‘‘आप पुलिस स्टेशन चल कर इन के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाएं,’’ कहते हुए पुलिस इंस्पेक्टर दरवाजे की ओर मुड़ा.

‘‘मनोज बेटे, अब तुम तलाक के यह कागज मेरी ओर से कोर्ट में दाखिल करो. अब मैं इन से तलाक लूंगी,’’ बूआजी ने कोर्ट के कागज संभालते हुए कहा.

‘‘अरे, नहीं, ऐसा गजब न करना,’’ फूफाजी ने घबरा कर कहा.

‘‘अब तो यह गजब होगा ही,’’ बूआजी का स्वर कठोर हो गया, ‘‘मेरा फैसला अटल है.’’

‘‘मनोज बेटे, तुम ही इन को समझाओ. मैं तो पूरी तरह लुट गया. बरबाद हो गया. मेरे लाखों रुपए डूब गए. नई नवेली विदेशी दुलहन भी गई और अब तुम्हारी बूआजी भी नाता तोड़ रही हैं,’’ फूफाजी ने कहा…

Hindi Story : जिंदगी के मीठे खट्टे पलों का दस्तावेज

Hindi Story : मेरी रफ कौपी मेरे हाथ में है, सोच रही हूं कि क्या लिखूं? काफीकुछ उलटापुलटा लिख कर काट चुकी हूं. रफ कौपी का यही हश्र होता है. कहीं भी कुछ भी लिख लो, कितनी ही काटापीटी मचा लो, मुखपृष्ठ से ले कर आखिरी पन्ने तक, कितने ही कार्टून बना लो, कितनी ही बदसूरत कर लो, खूबसूरत तो यह है ही नहीं और खूबसूरत इसे रहने दिया भी नहीं जाता. इस पर कभी कवर चढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ती. इस कौपी का यह हाल क्यों कर रखा है, कोई यह पूछने की जुर्रत नहीं करता. अरे, रफ कौपी है, रफ. इस से बेहतर इस का और क्या हाल हो सकता है.

यह बदसूरत इसलिए कि कई बार पुरानी आधीभरी कौपियों के पीछे के खाली पृष्ठ काट कर स्टैप्लर से पिन लगा कर एक नई कौपी बना ली जाती है. रफ कौपी में खाली पृष्ठों का उपयोग हो जाता है. इसे कोई सौंदर्य प्रतियोगिता में रखना नहीं होता है. रफ है, रफ ही रहेगी.

इस में खिंची आड़ीतिरछी रेखाएं, ऊलजलूल बातें, तुकबंदियां, चुटकुले, मुहावरे, डाक्टर के नुसखे, कहानीकिस्से, मोबाइल नंबर, कोई खास बात, टाइम टेबल, किसी का जन्मदिन, मरणदिन, धोबी का हिसाब, किराने का सामान, कहीं जानेमिलने की तारीख, किसी का उधार लेनादेना, ये सारी बातें इसे बदसूरत बनाती हैं.

दरअसल, इन बातों के लिखने का कोई सिलसिला नहीं होता है. जब जहां चाहा, जो चाहा, टीप दिया. कुछ समझ में नहीं आया तो काट दिया या पेज ही फाड़ कर फेंक दिया. पेज न फाड़ा जाए, ऐसी कोई रोकटोक नहीं है.

भर जाने पर फिर से एक नई या जुगाड़ कर बनाई गई रफ कौपी हाथ में ले ली जाती है. भर जाने पर टेबल से हटा कर रद्दी के हवाले या फिर इस के पृष्ठ, रूमाल न मिलने पर, छोटे बच्चों की नाक व हाथ पोंछने के काम भी आते हैं. हां, कभीकभी किसी आवश्यक बात के लिए रद्दी में से टटोल कर निकाली भी जाती है रफ कौपी. ऐसा किसी गंभीर अवस्था में होता है. वरना रफ कौपी में याद रखने लायक कुछ खास नहीं होता.

आदत तो यहां तक खराब है कि जो भी कागज खाली मिला उसी पर कुछ न कुछ टीप दिया. इसे हम डायरी की श्रेणी में नहीं रख सकते, क्योंकि डायरी गोपनीय होती है और उसे छिपा कर रखा जाता है. उस का काम भी गोपनीय होता है. इसी से बहुत बार व्यक्ति के मरने के बाद डायरी ही उस व्यक्ति के गोपनीय रहस्य उजागर करती है.

रफ कौपी में यह बात नहीं है. एकदम सड़कछाप की तरह टेबल पर पड़ी रहती है, जिस का जब मन चाहे उस पर लिख कर चला जाता है. सच बात बता दूं, यह रफ कौपी मेरे लिए बड़ी सहायक रही है. मैं ने अपने हस्ताक्षर इसी पर काटापीटी कर बनाने का अभ्यास किया. बहुत सी कविताएं इसी पर लिखीं, तुकबंदी भी की. विशेषपत्रों की ड्राफ्ंिटग भी इसी पर की. विशेष सूचनाएं व पते भी इसी पर लिखे. पत्रपत्रिकाओं के पते व ईमेल आज भी यहांवहां लिखे मिल सकते हैं.

यह तो मेरी अब की रफ कौपी है. पहली रफ कौपी सही तरीके से हाईस्कूल में हाथ में आई. तब टीचर कक्षा का प्रतिदिन का होमवर्क रफ कौपी में ही नोट कराती थीं. पहले छात्रों के पास डायरी नहीं होती थी, वे रफ कौपी में नोट्स बनवातीं. ब्लैकबोर्ड पर जो लिखतीं उसे रफ कौपी में उतारने का आदेश देतीं. उस समय रफ कौपी क्या हाथ लगी, कमाल ही हो गया. पीछे की पंक्ति में बैठी छात्राएं टीचर का कार्टून बनातीं. कौपी एक टेबल से दूसरी टेबल पर गुजरती पूरी कक्षा में घूम आती और छात्राएं मुंह पर दुपट्टा रख कर मुसकरातीं.

टीचर की शान में जुगलबंदी भी हो जाती. आपस में कमैंट्स भी पास हो जाते. कहीं जाने या क्लास बंक करने का कार्यक्रम भी इसी पर बनता. कई बार कागज फाड़ कर तितली या हवाई जहाज बना कर हम सब खूब उड़ाते. कभी टीचर की पकड़ में आ जाते, कभी नहीं.

थोड़ा और आगे बढ़े तो रफ कौपी रोमियो बन गई. मन की प्यारभरी भाषा को इसी ने सहारा दिया. शेरोशायरी इसी पर दर्ज होती, कभी स्वयं ईजाद करते, तो कभी कहीं से उतारते. प्रथम प्रेमपत्र की भाषा को इसी ने सजाना सिखाया. इसी का प्रथम पृष्ठ प्रेमपत्र बना जब कुछ लाइनें लिख कर कागज का छोटा सा पुर्जा किताब में रख कर खिसका दिया गया.

इशारोंइशारों में बातें करना इसी ने समझाया. ऐसेऐसे कोडवर्ड इस में लिखे गए जिन का संदर्भ बाद में स्वयं ही भूल गए. लिखनाकाटना 2 काम थे. उस की भाषा वही समझ सकता था जिस की कौपी होती थी. सहेलियों के प्रेमप्रसंग, कटाक्ष और जाने क्याक्या होता. फिल्मी गानों की पंक्तियां भी यहीं दर्ज होतीं.

जीवन आगे खिसकता रहा. रफ कौपी भी समयानुसार करवट लेती रही, लेकिन उस का कलेवर नहीं बदला. पति के देर से घर लौटने तथा उन की नाइंसाफी की साक्षी भी यही कौपी बनी.

रफ कौपी आज भी टेबल पर पड़ी है और यह लेख भी मैं उसी की नजर कर उसी पर लिख रही हूं. आप को भी कुछ लिखना है, लिख सकते हैं. रफ कौपी रफ है न, इसीलिए रफ बातें लिख रही हूं. शायद आप रफ या बकवास समझ कर इसे पढ़ें ही न. क्या फर्क पड़ता है. रफ कौपी के कुछ और पृष्ठ बेकार हो गए. रफ कौपी रक्तजीव की तरह मरमर कर जिंदा होती रहती है. फिर भी एक बात तो है कि भले ही किताबों पर धूल की परत जम जाए पर रफ कौपी सदा सदाबहार रहती है.

हां, उस दिन जरूर धक्का लगा था जब पड़ोसिन कह गई थी कि वह रफ कौपी का इस्तेमाल कभी नहीं करती क्योंकि उसे हमेशा लगता कि वह खुद रफ कौपी है. उस के मातापिता बचपन में मर गए थे और मामामामी ने उसे पाला था. पढ़ायालिखाया जरूर था पर उस का इस्तेमाल घर में मामामामी, ममेरे भाईबहन रफ कौपी की तरह करते – ‘चिन्नी, पानी ला दे,’ ‘चिन्नी, मेरा होमवर्क कर दे,’ ‘चिन्नी, मेरी फ्रौक पहन जा,’ ‘चिन्नी, मेरे बौयफ्रैंड कल आए तो मां से कह देना कि तेरा क्लासफैलो है क्योंकि तू तो बीएड कालेज में है, मैं रैजीडेंशल स्कूल में.’ उस ने बताया कि वह सिर्फ रफ कौपी रही जब तक नौकरी नहीं लगी और उस ने प्रेमविवाह नहीं किया.

Winter Face Pack : पाना चाहती हैं ग्लोइंग स्किन, तो फेस पैक लगाते समय ध्यान रखें ये बातें

Winter Face Pack : आप माने चाहे नहीं, लेकिन 3 में से 5 लोग बिना अपनी स्‍किन को जाने समझे किसी भी तरह का फेस पैक चेहरे पर लगा लेते हैं. जिससे बाद में उनके चेहरे का ग्‍लो चला जाता है और वह अपनी गलती पर पछताते हैं.

बहुतों को नहीं पता कि फेस पैक कौन सा लगाएं या फिर उसे चेहरे पर कितनी देर के लिये रखना है या पैक का सिंगल कोट लगाएं या डबल आदि. आज हम आपकी इसी उलझन को दूर करने के लिये जानकारी लाए हैं, हमें आशा है कि आप इसका फायदा जरुर उठाएंगी.

करें अपनी स्‍किन की पहचान

बादाम का तेल अच्‍छा होता है मगर या यह आपकी स्‍किन के लिये अच्‍छा है? अगर आपकी स्‍किन औयली है तो यह नहीं अच्‍छा है पर अगर आपकी स्‍किन हमेशा रूखी रहती है तो यह काफी अच्‍छा तेल माना जाता है. बादाम का तेल नमी पैदा करता है इसलिये यह चेहरे को नम बनाता है. इसलिये अपनी स्‍किन टाइप को जानना बड़ा ही जरुरी है जिससे आप यूं ही ऐसी वैसी चीज ना लगा लें.

फेस पैक कितनी बार लगाना चाहिये?

चेहरे पर फेस पैक हफ्ते में केवल दो दिन ही लगाना चाहिये. इसमें प्रयोग की जाने वाली सामग्रियां स्‍किन के लिये बिल्‍कुल भी कठोर ना हों. फेस पैक का खास मकसद होना चाहिये पोर्स को खोलना और गंदगी को साफ करना ना कि चेहरे का प्राकृतिक तेल सोख लेना.

चेहरे पर कितने देर के लिये फेस पैक लगाएं रखें?

अगर आपकी स्‍किन संवेदनशील है तो मास्‍क को 10 से 15 मिनट तक रखें. अगर आपकी स्‍किन नॉर्मल है तो 20 से 30 मिनट तक मास्‍क को रखा जा सकता है.

क्‍या फेस मास्‍क के पहले स्‍टीमिंग करना जरुरी है या नहीं?

अगर आपकी स्‍किन औयली है तो फेस को स्‍टीम दें. अगर आपकी स्‍किन अत्‍यधिक रूखी रहती है तो स्‍टीम ना लें. स्‍टीम देने से चेहरे के पोर्स खुल जाते हैं और गंदगी बाहर निकल जाती है, जिससे बाद में फेस पैक लगाने से चेहरे पर ग्‍लो आता है.

फेस पैक का कितना कोट लगाएं

फेस पैक का एक ही कोट काफी रहता है. इस पर बार बार कोट लगाने से कोई फायदा नहीं करता. अगर आपका पैक काफी गीला है और चेहरे पर लगाने से बह रहा है तो, उसमें थोड़ा सा बेसन या चंदन पाउडर मिक्‍स कर लें.

फेस पैक को धोने के लिये गरम पानी प्रयोग करें या ठंडा

गरम पानी आपके चेहरे को ड्राई कर देता है और वहीं ठंडा पानी चेहरे के पोर्स को बंद करेगा. आप ठंडे या सादे पानी का प्रयोग चेहरे को धोने के लिये कर सकती हैं.

फेस मास्‍क साफ करने की विधि

मास्‍क को कभी भी पूरा सूखने ना दें. इसे तब ही साफ कर ले जब यह सेमी ड्राई हो. सूखा हुआ मास्‍क काफी कठोर हो जाता है जिसे चेहरे से निकालना काफी मुश्‍किल होता है. यह आपके चेहरे को नुकसान भी पहुंचा सकता है. अगर आपका मास्‍क गलती से काफी सूख गया है तो उसे चेहरे से हटाने के लिये सबसे पहले उस पर पानी की छींटे मारें और फिर उसे छुड़ाएं. मास्‍क को साफ करने के बाद चेहरे को तौलिये से आराम से पोंछे और मौइस्‍चराइजर लगाएं.

Chilli Potato Recipe : घर पर रेस्टोरेंट की तरह बनाएं चिली पोटैटो

Chilli Potato Recipe : चाइनीज डिश हर किसी को पसंद होती है. अकसर लोग इस डिश को बाहर खाना पसंद करते हैं. लेकिन क्या आपने कभी घर पर चिली पोटैटो की रेसिपी ट्राई किया है? जी हां आप इसे घर पर भी आसानी से बना सकते हैं. आइए जानते हैं चिली पोटेटो की रेसिपी…

सामग्री:

– आलू(4 मीडियम साइज के)

– कार्न फ्लोर (4 बड़े चम्मच)

– हरी मिर्च (2 बारीक कटी हुई)

– हरा प्याज (2 बड़े चम्मच बारीक कटा हुआ)

– अदरक पेस्ट (01 छोटा चम्मच)

– टोमैटो सौस (02 बड़े चम्मच)

– सोया सास (01 बड़ा चम्मच)

– चिली सौस (1/2 छोटा चम्मच)

– सिरका (1 छोटा चम्मच)

– चिली फ्लैंक्स (1/2 छोटा चम्मच)

– शक्कर (01 छोटा चम्मच)

– तेल (तलने के लिए)

– नमक (स्वादानुसार)

चिल्ली पोटैटो बनाने की विधि :

– सबसे पहले आलू को अच्छी तरह से धोकर छील लें और उनके लम्बे पतले टुकड़े काट लें.

– इसके बाद उन्हें कौर्न फ्लोर में डाल कर अच्छे से मिला लें.

– जिससे उनके ऊपर कार्न फ्लोर की एक परत चढ़ जाए.

– अब कढ़ाई में तेल डालकर गरम करें.

– तेल गरम होने पर उसमें आलू डालें और गोल्डेन ब्राउन होने तक तल लें.

– अब एक पैन लेकर उसे गैस पर गरम करें.

– उसमें दो बड़े चम्मच तेल डालें.

– जब तेल गर्म हो जाए, गैस धीमी कर दें.

– उसमें अदरक और हरी मिर्च डाल कर थोड़ा सा भूनें.

– अब 1/4 कप पानी में एक छोटा चम्मच कार्न फ्लोर अच्छी तरह से घोल लें.

– और उसे भी पैन में डाल कर मिक्स करें.

– इसके बाद पैन में शक्कर और नमक डालें और 2 मिनट तक पका लें.

– अब पैन में तले हुये आलू, चिली फ्लेक्स, सिरका और हरा प्याज डालें.

– और इसे चलाते हुए 2 मिनट तक पकायें फिर गैस बंद कर दें.

– अब आपका चिल्ली पोटेटो तैयार है.

इसे प्लेट में निकालें और गर्मा-गरम सर्व करें.

Comedy : फुलटाइम हाउसवाइफ

Comedy : चाहो तो आप मुझे ओल्ड फैशंड कह लो. चाहे इसे मेरा लैक औफ कान्फिडेंस मान लो पर मैं हमेशा हिंदी में ही बात करना पसंद करती हूं. इंगलिश मीडियम स्कूलों में पढ़े होने के बावजूद, ऐक्चुअली हमारे बचपन में घर का एनवायरमैंट ही बहुत पैट्रिऔटिक था. हार्ड वर्क, औनेस्टी आदि पर बहुत स्टै्रस दिया जाता था. इंडिया को नईनई फ्रीडम मिली थी. तब पैट्रिऔटिज्म तो जैसे हमारे ब्लड में ही घुला हुआ था. हाई मौरेल वैल्यूज के साथ ही हमारे पेरैंट्स इस बात के लिए भी बहुत पर्टिकुलर थे कि घर में अपनी नैशनल लैंग्वेज में ही बात की जाए, एंड यू नो, उस वक्त के पेरैंट्स कितने स्ट्रिक्ट हुआ करते थे.

मेरे ग्रैंडफादर फेमस फ्रीडमफाइटर थे और फादर आर्मी आफिसर. हमारी फैमिली में पैट्रिऔटिज्म का एक लंबा टै्रडिशन है, जो हमारे गे्रट ग्रैंडफादर तक जाता है. इस के साथ ही हमारी फैमिली बहुत आर्थोडौक्स थी. घर में सर्वेंट्स और मेड होने के बावजूद हम बच्चों की अपब्रिंगिंग हमारी मदर ने स्वयं ही की. हालांकि वे हाइली ऐजुकेटेड लेडी थीं बट उन्होंने हाउसवाइफ बन कर रहना ही प्रिफर किया. यह उन का पर्सनल डिसीजन था, फादर अथवा ग्रैंडपेरैंट्स का दबाव नहीं. कुछ भी कहो, कामकाजी महिला घरपरिवार को उतना समय नहीं दे सकती जितना कि फुलटाइम हाउसवाइफ.

हांहां, मालूम है अब उन्हें ‘होममेकर’ कहा जाता है. बात तो एक ही है. हमारी मदर ने अपनी पूरी लाइफ घर, बच्चों को ही डिवोट कर दी. वे हमसब की हैल्थ का भी भरपूर खयाल रखती थीं. घर में जंकफूड बिलकुल एलाउड नहीं था सिर्फ और सिर्फ हैल्दी फूड ही खाया जाता था. बे्रकफास्ट में हम डेली एग, मिल्क और पोरिज में से ही कुछ खाते. लंच में ट्वाइस ए वीक तो हम नौनवेज खाते थे यानी मीट, चिकन, फिश कुछ भी. हां, डिनर हम लाइट ही करते. स्नैक्स में भी फ्राइड की जगह हम फ्रैश फू्रट ही लेते.

आर्मी आफिसर की वाइफ होने से मदर एक आर्डिनरी वाइफ से ज्यादा स्मार्ट तो थीं ही, सुंदर भी बहुत थीं. अपनी गे्रसफुल फिगर, विट और इंटैलिजैंस के कारण अपने फ्रैंड्स में बहुत पापुलर थीं वे. और हम दोनों बहनों की तो आइडियल वे थीं ही.

खैर, मैं ने भी अपने बच्चों को हाई मौरेल वैल्यूज तो दी ही हैं उन्हें अपनी मदरटंग की रिस्पैक्ट करना भी सिखाया है. अलगअलग फील्ड में प्रोफैशनली क्वालीफाइड होने पर भी वे अपने घर में मदरटंग में ही बातें करते हैं. वरना आजकल तो अंगरेजी में बात करना स्टेटस सिंबल ही बन गया है. अगर आप हिंदी स्पीकिंग कैटेगरी को बिलौंग करते हैं तो आप हाई सोसाइटी में खुद को अनफिट पाते हैं. आप न तो अच्छी नौकरी ही पा सकते हैं न ही अपने फ्रैंड्स सर्कल अथवा पार्टी आदि में बोलने का आत्मविश्वास ही.

पिछले साल मैं अपनी बेटी का ऐडमिशन कराने विश्वविद्यालय गई, वहां का एनवायरमैंट देख कर तो भौचक ही रह गई. सब लड़कियों ने जीन्स और टौप ही पहन रखे थे. हेयर सब के शौर्ट, लड़की और लड़कों में भेद करना हमारे लिए डिफिकल्ट हो गया. वहां सब यों फर्राटेदार इंगलिश बोल रहे थे कि एक बार तो मुझे लगा मैं यूरोप के किसी देश में पहुंच गई हूं, टाइम कितना चेंज हो गया है न. जब हम छोटे थे तो सलवारसूट के ऊपर दुपट्टा ओढ़ा जाता था. वह भी प्रौपरली, न कि एक शोल्डर पर रखा हुआ. आजकल तो ऐसी लड़कियों पर टौंट करते हुए उन्हें ‘बहनजी’ टाइप कहा जाता है.

जिस तरह इंगलिश स्पीकिंग कोर्स चलते हैं, इंगलिश स्पीकिंग जैसी पुस्तकें धड़ाधड़ बिकती हैं, वक्त आ गया है कि उसी लाइन पर हमें हिंदी स्पीकिंग कोर्स भी स्टार्ट करने चाहिए. देखा जाए तो हिंदी सीखना उतना मुश्किल है भी नहीं. अंगरेजी के मुकाबले में तो बहुत इजी है. ग्रामर के फिक्स्ड नियम हैं. कोई भी साइलैंट लैटर नहीं, उच्चारण एकदम सहज. स्पीकिंग एंड राइटिंग एकदम सेम. जैसा बोलते हो ज्यों का त्यों लिख डालो. शौर्ट में यह कि अगर आप करैक्टवे में बोलते हैं तो करैक्ट ही सीखोगे भी. सो सिंपल. हमें चाहिए कि हम हिंदी को ज्यादा से ज्यादा प्रौपोगेट करें. अगर हम हिंदी में बोलेंगे तो सामने वाला हिंदी में जवाब देने को ओबलाइज्ड भी रहेगा, और इस से हमारी हिंदी की लोकप्रियता बढ़ेगी.

मैं ने देशविदेश में बहुत टै्रवल किया है. दुनिया भर में लोगों को अपनी राष्ट्रभाषा में ही बोलते पाया है. चाहे वह जरमनी, जापान हो या फ्रांस, रशिया या ईरान. वहां के प्रोफैशनल कालेजों में भी अपनी भाषा में पढ़ाई कराई जाती है. बीजिंग ओलिंपिक का तो उद्घाटन समारोह ही चीनी भाषा में कंडक्ट किया गया था. हमारा देश होता तो हिंदी का एक वर्ड भी सुनने को नहीं मिलता आप को. अगर वे लोग अपनी लैंग्वेज बोलने में इतना गर्व फील कर सकते हैं तो हम क्यों हिंदी को पीछे पुश करते जा रहे हैं? किसी से कम है क्या हमारी लैंग्वेज? कितना धनी है हमारा लिटरेचर. ढेर सारे क्षेत्रीय भाषाओं के अनुवाद मिला कर तो हिंदी और भी रिच हो जाती है. हमें तो प्राउड फील करना चाहिए अपने रिच हैरिटेज पर. अपनी प्राचीन सिविलाइजेशन और कल्चर पर.

जी हां, बहुत प्रेम है मुझे अपनी राष्ट्रभाषा से. तभी तो मैं हमेशा हिंदी में ही बोलतीलिखती हूं. आप को कुछ शक है मेरी हिंदी पर. पर आजकल तो हिंदी ऐसे ही बोली जाती है न. यकीन नहीं हो रहा तो अपने कान खुले रख कर कहीं भी बैठ जाओ, जो लोग अंगरेजी बोल रहे हैं तो वे तो अंगरेजी ही बोल रहे हैं पर जो लोग तथाकथित हिंदी में बातचीत कर रहे हैं उन्हें सुनो, व्याकरण हिंदी की, वाक्य संरचना हिंदी की पर मुख्य शब्द अंगरेजी के होंगे. मसलन, लास्ट वीक हम अपने कजिन की मैरिज अटेंड करने जयपुर गए थे. मित्रमंडली में, ब्याहशादी में, पार्टी में यही भाषा चलती है. जो व्यक्ति जितना पढ़ालिखा होगा उस की बोलचाल की भाषा में अंगरेजी के शब्दों का योगदान भी उतना अधिक होगा. निपट गंवार ही होगा जो शुद्ध हिंदी में बात करेगा. ‘टाइम क्या है?’ की जगह पूछेगा ‘समय क्या हुआ है?’

मेरे विचार से यह भाषा का निरादर है. क्या वे यह कहना चाहते हैं कि इन शब्दों का हिंदी रूपांतर है ही नहीं? अथवा वह कर्ण मधुर नहीं? शायद उन्हें लगता है कि अंगरेजी शब्दों का प्रयोग नहीं करेंगे तो लोग हमें अनपढ़ समझेंगे? तकनीकी अथवा प्रौद्योगिक शब्दों के लिए कभी अंगरेजी शब्दों का सहारा लेना भी पड़ सकता है. दरअसल, हर जीवंत भाषा अपने में दूसरी भाषाओं के शब्द समेटती चलती है पर हिंदी में उपलब्ध शब्दों के बदले अंगरेजी शब्दों का प्रयोग हास्यास्पद ही लगता है.

आप किसी के घर भोजन पर आमंत्रित हैं और गृहिणी आप से मनुहार कर रही है, ‘राइस तो आप ने लिए नहीं, कर्ड भी लीजिए न.’ भई, पुलाव और दही कहने में क्यों शर्म आती है, पर नहीं साहब, आप को पता कैसे चलेगा कि उन्हें अंगरेजी भाषा का भी ज्ञान है. आधुनिकता के नाम पर अंगरेजी शब्दों का प्रयोग पढ़ालिखा होने का प्रमाणपत्र ही बन गया है. आजकल यदि हम कभी हिंदी में स्वयं को व्यक्त नहीं कर पाते तो दोष भाषा का नहीं हमारे सीमित ज्ञान का है.

हमारी एक परिचिता हिंदी की अध्यापिका हैं. उच्च कक्षाओं में हिंदी पढ़ाती हैं पर आप की हर बात का उत्तर वे अंगरेजी में ही देने का प्रयत्न करेंगी चाहे टांगटूटी अंगरेजी बोलें क्योंकि कहीं आप यह न समझ लें कि वे अंगरेजी बोलना नहीं जानतीं.

किसी कवि की उक्ति याद आ रही है :

‘कितने शहरी हो गए लोगों के जज्बात

हिंदी भी करने लगी अंगरेजी में बात.’

हम क्यों हिंदी बोलने में हीनता का अनुभव करते हैं? यह खिचड़ी भाषा भी तो यही हीनता ही दर्शाती है? इतना व्यापक हो चुका है इस खिचड़ी भाषा का प्रभाव कि यदि मैं अपनी अंगूठाछाप काम वाली बाई से कहूं कि ‘प्याला मेज पर रख दो’ तो वह असमंजस में खड़ी मेरा मुंह ताकती है और समझाने पर हैरान हो कहती है, ‘कप टेबल पर रखने को बोलो न?’ वह लाइट को ‘लेट’ और चांस को ‘चानस’ भले ही कहे पर अंगरेजी शब्द उस की अनपढ़ बुद्धि में भी घुसपैठ कर चुके हैं अच्छी तरह से.

कहां पहुंचा दिया है हम ने हिंदी को? ध्यान रहे, अंगरेजी शब्द को नागरी में लिख देने मात्र से ही वे हिंदी के शब्द नहीं बन जाते. केवल अंगरेजी ही क्यों, आप जितनी भाषाएं सीख सकते हैं सीखिए, पर अपनी भाषा में अंगरेजी भाषा के शब्द घुसेड़ने का हक आप को कतई नहीं है.

My Body My Right : इस सिद्धांत को क्यों कुचला जाता है

My Body My Right : भगवा सरकार अब उसी तरह ओटीटी प्लेटफौर्म पर दिखाई जाने वाली फिल्मों को सैंसर करने पर लग गई है जैसे वह वर्षों से सैंसर बोर्ड के मार्फत सिनेमा हाल में दिखाई जाने वाली फिल्मों के पीछे पड़ी थी. ‘इन्फौर्मेशन ऐंड ब्रौड कास्टिंग मिनिस्ट्री’ ने शायद ठेका ले लिया है कि वह ठीनकली नैतिकता की ठेकेदार बनी रहेंगी और लोगों का चरित्र ठीक कर के रहेंगी.

इस देश में जहां हर रोज बीसियों रेप के मामले दर्ज होते हैं और सैकड़ों बिना पुलिस में जाए दब जाते हैं, जहां लोग बातबात में मांबहन की गालियां देते हैं, जहां देवीदेवताओं के अश्लील प्रसंग बड़े चाव से सुने जाते हैं, जहां नैतिकता और धार्मिकता फैलाने के दिखाऊ जागरणों और कांवड़ यात्राओं में पेशेवर नाचने वालियों को बुलाया जाता है जो कामुकता की हद खुले बाजार में करती हैं, वहां सरकार जनता को मोरैलिटी का पाठ पढ़ाने पर तुली है.

चूंकि अब फैसले अफसर और पूजापाठी लेते हैं और दोनों बहुत दोगले, ऊपर से कुछ अंदर से कुछ होते हैं, जो अपनी बात छिप कर लागू करते हैं, जिन के अपने चेहरे दिखते नहीं हैं और जिन का अपना जीवन सामने नहीं आता, किसी से बहस नहीं की जा सकती.

सरकार के कौरीडोरों में बंद दरवाजों और आश्रमों के तहखानों में क्या कुछ नहीं होता? जो छिटपुट मामले सामने आ जाते हैं, उन से साफ है कि मोरैलिटी के भी ठेकेदार खुद रंगे हाथों वाले हैं.

ओटीटी पर चाहे जम कर सैक्स, शराब, ड्रग्स को ग्लैमराइज किया जा रहा है पर साथ ही समाज की पोल भी खोली जा सकती है. मेन लाइन सिनेमा जो सैंसर बोर्ड से निकल कर आता है, सरकारी नौकरियों से आता है और उस में भूतप्रेत दिखा सकते हैं, उस में देवीदेवताओं के चमत्कार दिखा सकते हैं, उस में श्रापों और वरदानों का बखान हो सकता है पर लड़की को अपनी पूंजी दिखाने की सख्त मनाही है.

‘माई बौडी माई राहट’ वाले सिद्धांत को बुरी तरह कुचला जाता है. जिन सैक्सी सीनों पर इन भगवा ठेकेदारों को आपत्ति है वे जबरन नहीं फिल्माए जाते. उन में कला भी है और नेचर की सब से बड़ी जरूरत, रिप्रोडक्शन, का भी लैसन है. नेचर ने इस रिप्रोडक्टिव प्रोसस को बेहद उबाऊ बनाया था, कलाकारों ने सदियों से उसे आनंददायक बनाया है. इस को सैंसर बोर्ड ने तो किल किया था, अब तो खुली हवा ओटीटी पर मिल रही थी वह बंद हो जाएगी.

चिंता न करें समाज में, गलियों में, आश्रमों में, मंदिरों में, डांडिया और जागरण के बाद यह पहले की तरह चालू रहेगा. औरकेस्ट्रा गर्ल्स भी चलेंगी और स्टेज के पीछे या बेसमैंट में सब चलेगा.

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