Funny Story : बरात के चस्के

Funny Story : चाहे रात भर खाना न मिले लेकिन बरात का अपना एक अलग मजा है. ऐसा मजा जो न सेब में है न सेब के जूस में. बरात के आनंद को महसूस किया जाता है. उस का सहीसही वर्णन किया जाना उतना ही मुश्किल है जितना गधे को स्वीमिंग पूल में नहलाना.

घर में शादी का कार्ड देख कर मन राष्ट्रीय चैनल से एम टीवी में अपनेआप बदल गया. कार्ड सुंदर था. हिंदुस्तान में वरवधू चाहे खूबसूरत, सुघड़ हों न हों, लेकिन उन की शादी के कार्ड जरूर ही सुंदर होते हैं. लड़की के हाथों की मेहंदी का डिजाइन भले ही टेढ़ामेढ़ा, आड़ातिरछा क्यों न हो लेकिन कार्ड की छपाई बहुत ही आकर्षक होती है.

शादी का कार्ड फ्रिज के ऊपर रखा था. आमतौर पर मध्यवर्गीय घरों में शादी के कार्ड, राशनकार्ड, बिजली का बिना जमा किया बिल, बच्चों के रिजल्टकार्ड…सब के सब फ्रिज के ऊपर ही रखे जाते हैं. फ्रिज, अंदर का सामान तो ठंडा रखता ही है, ऊपर रखे टैंशन वाले कागजात भी ठंडा कर देता है. ठंडे बस्ते में डालना कहावत पुरानी हो गई है, नए जमाने की कहावत ‘फ्रिज के ऊपर रखना’ हो सकती है.

हमें मालूम था कि पड़ोसी शर्माजी के छोटे साहबजादे लल्लू की शादी है. बड़े वाले कल्लू की शादी तो हम 3 साल पहले ही निबटा चुके थे. कल्लू की शादी की यादें मन में जीवंत हो उठीं. खासतौर पर पनीर और छोले के स्वाद जीभ पर ताजा हो गए. मन में स्वाद ध्यान आते ही लगभग 10 प्रतिशत स्वाद तो मिल ही गया.

हम ने जानबूझ कर श्रीमतीजी से पूछा, ‘‘यह किस की शादी का कार्ड आया है?’’

पत्नीश्री झल्ला गईं, बोलीं, ‘‘यह कार्ड कोई तमिल या मलयालम भाषा में तो छपा नहीं है. न ही फारसी या अरबी भाषा में प्रिंट हुआ है, जो तुम्हारे पढ़ने में नहीं आ रहा है.’’

हम ने भी मोर्चा नहीं छोड़ा. कहा, ‘‘कार्ड है तो शादी ही होगी. शादी होगी तो उस में दूल्हे का होना भी निहायत जरूरी है. हमें तो खाली इतना बता दो कि दूल्हा कौन बन रहा है?’’

पत्नीश्री का मूड कुछ नौरमल हुआ तो हमारे चेहरे पर भी मुसकान तैर गई. जैसे बढ़ते शेयर सूचकांक को देख कर दलालों के चेहरों पर चमक आ जाती है. कुछ मजाक का पुट ले कर बोलीं, ‘‘कम से कम तुम तो नहीं बन रहे हो.’’

हम ने कहा, ‘‘हम तो एक बार ही वर बने थे. उस के बाद तो कुंवर, सुवर जानवर, दुष्टवर और न जाने कौनकौन से वर बन गए. हम तो शादी के समय जिस घोड़ी पर बैठे थे वह घोड़ी भी बरात के बाद जमीन पर धूल में खूब लोटी थी. शायद हमारे बैठने से उस की पीठ अपवित्र हो गई हो. जब घोड़ी तक हमारी बेइज्जती कर चुकी है तो फिर तुम्हारी बात का बुरा क्यों मानें? फिर शादी के बाद तो हमारी इज्जत धोने का लाइसेंस तुम्हें मिल ही चुका है.’’

इस पर पत्नीश्री ‘हीही’ कर के हंसती रहीं. मूड ठीक होने पर बताया कि लल्लू की 13 को शादी है. हम ने कहा कि हमारी शादी भी 13 को हुई थी, तभी से हमारी जिंदगी तीनतेरह हो गई है. कम से कम लल्लू को तो रोका जाना चाहिए. रोक नहीं सकते तो कम से कम शादी 12 या 14 तारीख को कर ले.

हमारी न चलनी थी और न चली. 13 तारीख को हम पत्नी और बच्चों के साथ रिकशे पर बैठ कर सीधे लल्लू के घर पहुंच गए. वहां पहुंच कर हमें पता चला कि शादी का कार्यक्रम घर पर नहीं है बल्कि शहर से दूर बने एक फार्महाउस में है. अब रिकशा वालों से फिर तूतू, मैंमैं. कोई जाने को तैयार नहीं तो कोई पैसे इतने मांग रहा था कि हमें लग रहा था कि हम अपने छोटे शहर में नहीं, बल्कि लोखंडवाला में खड़े हैं.

जैसेतैसे हम परिवार समेत फार्महाउस पहुंचे. वहां रिकशे से उतरते ही हम ने रोब झाड़ा, ‘‘क्या करें, गाड़ी निकाली थी लेकिन आगे का एक पहिया पंक्चर निकला. सोचा, स्टैपनी बदल लें लेकिन तब ध्यान आया कि परसों ही तो स्टैपनी मिस्त्री के यहां डाली थी. मजबूरी में रिकशा पकड़ कर आना पड़ा.’’

पत्नीश्री दो कदम आगे बढ़ गईं, बोलीं, ‘‘मैं ने तो इन से कई बार कहा है कि एक नई गाड़ी ले लो. मेरी मान कर एक नई गाड़ी ले ली होती तो कम से कम आज रिकशे पर तो न बैठना पड़ता. मैं तो आज पहली बार रिकशे पर बैठी हूं,’’ हालांकि सुनने वाले मुंह दबा कर हंसने लगे.

थोड़ी देर में बरात चलने का माहौल बनने लगा. बरात रवाना होने से पहले माहौल बनाया जाता है. सब से पहले तो मामा या मौसा रूठ जाते हैं कि उन्हें स्टेशन पर लेने के लिए किसी को भेजा क्यों नहीं? उन की बेइज्जती करनी थी तो बुलाया ही क्यों? फिर बाकी रिश्तेदार मिल कर उन्हें मनाते हैं.

बरात के चलने से थोड़ा पहले अफरातफरी का माहौल बन जाता है. दूल्हे के चाचा ने जो नई शर्ट सिलवाई थी वह अब मिल ही नहीं रही है.

महिलाएं एक कमरा अलग से घेर लेती हैं जिस में वे तैयार होती हैं. उस कमरे में छोटीछोटी लड़कियां सब से ज्यादा चिल्लपों करती हैं. उस में कंघा ढूंढ़े नहीं मिलता है. क्रीम पर छीनाझपटी होती है. तेल की शीशी फर्श पर फैल जाती है. मैचिंग दुपट्टा खोजने पर मिलता ही नहीं है. बाद में याद आता है कि उसे तो अटैची में रखा ही नहीं था. वह तो घर पर ही रह गया.

जैसेतैसे बरात चलना शुरू करती है. जैसे ही बरात निकली, लड़कियां फैशन परेड का आयोजन करती चलती हैं. कुछ तो ऐसे चलती हैं जैसे वे रैंप पर कैटवाक कर रही हों. जिन्हें अगर सरोज खान या फरहा खान देख लें तो वे भी भौचक रह जाएं कि ऐसे डांस के स्टैप के आइडिया आखिर उन के दिमाग में क्यों नहीं आए?

अब जिन्हें डांस नहीं आता है उन्हें सिर्फ एक काम आता है कि वे बैंड वाले के पास जा कर रौब झाड़ते हैं कि गाना बदलो. क्या बकवास गाने लगा रखे हैं. कुछ शकीला, टकीला बजाओ और खुद ताली बजाने लगते हैं. जब कुछ समझ में नहीं आता है तो जेब से 10 का नोट निकाल कर थोड़ी देर हवा में लहराते हैं. जब वे मुतमईन हो जाते हैं कि सभी ने उन के हाथ में 10 का नोट देख लिया है तो फिर वे उस नोट को अपने मुंह में दबा लेते हैं. जब बैंड वाला उस नोट को झपटने की कोशिश करता है तो वे हरगिज उस नोट को नहीं देते हैं. फिर वे बैंड वाले को इशारा कर देते हैं कि डांस करते हुए आओ, तो ही नोट मिलेगा.

बैंड वाले भी कम उस्ताद नहीं होते हैं. उन की नजर लोगों के हाथों पर होती है कि किस की उंगली में नोट फंसा है. फिर वे क्लीरिनेट से तूतू तूतू की धुन निकालते हुए, थोड़ी सी कमर मटका कर अपनी 2 उंगलियां बगले की चोंच की तरह बना कर नोट झपट ले जाते हैं.

बरात में सब से पीछे बुजुर्ग चलते हैं और वे भी चलते हैं जो अपने को शरीफ समझते हैं. बीच में नर्तक दल पूरे जोश में होता है. जहां भी बैंड वाले रुके, नर्तक सड़क घेर कर उस पर कब्जा कर लेते हैं, मानो नगर निगम से उन्होंने सड़क के इस टुकड़े का बैनामा करा लिया हो. सड़क पर जूते इतने घिसते हैं कि जूता सुधारने वाले खुश हो जाते हैं कि कम से कम दोचार जोड़ी तो मरम्मत के लिए जरूर आएंगे.

जहां पर नृत्य का अखिल भारतीय कार्यक्रम चल रहा होता है वहां किनारे पर जीजाजी सूटबूट में सजे खड़े हो जाते हैं. वे सोचते हैं कि सालों और उन के दोस्तों की नजर पड़ जाए तो उन्हें भी डांस के लिए खींचा जाए. उन्हें डांस करने के लिए मनाया जाए. ध्यान खींचने को वे डांस को सपोर्ट करते हुए ताली बजाने लगते हैं. तभी साले उन के पास डांस करते हुए आते हैं और डांस के डब्ल्यू.डब्ल्यू.एफ. फ्लोर पर खींचने लगते हैं. अब एक बार में मान जाएं तो काहे के जीजाजी. पहले तो वे नानुकर करते हैं फिर एकदम हरकत में आते हुए डांस जैसी हरकत करने लगते हैं.

उन के डांस पर ससुरालीजन नोटिस लेते हुए तारीफें करते हैं, सालियां मुंह बना कर हंसती हैं. हालांकि वे मन ही मन कहती हैं कि डांस करते हुए कैसे बंदर लग रहे हैं और उछल तो भालू की तरह रहे हैं लेकिन कुछ स्टैप चिंपैंजी से भी मेल खा रहे हैं…

बरात सफर तय करती हुई फार्म हाउस के गेट पर पहुंच जाती है. बस, यही वह स्थान है जहां पर पूरी ताकत दिखाई जानी है. सभी हथियार चलाए जाने हैं. लास्ट में ब्लास्ट भी करना है ताकि पता चल सके कि हमारे पास परमाणु बम भी है. यहां पर तो जवान, नौजवान, बूढ़े, महिला, बच्चे…सभी को डांस करना जरूरी है. मान्यता है कि लड़की वाले के गेट पर डांस करने से कुंभ नहाने का पुण्य मिलता है. यहां पर भीड़भाड़ कुंभ के समान ही होती है, जिस में छोटे बच्चे बिछड़ जाते हैं जो बाद में चाउमिन के स्टाल पर मिलते हैं.

जम कर नृत्य प्रतियोगिता के बाद अब अंदर घुसते ही बरातियों की नजर भोजन वाले पंडाल को ढूंढ़ती है. एक तरफ कुछ डोंगे मेजों पर सजे दिखाई देते हैं. मगर यह क्या? डोंगे अभी ढके हुए हैं. उन के आसपास वरदीधारी वेटर टहलटहल कर पहरा दे रहे हैं जिस से कि कोई डोंगा खोल कर शुरू न हो जाए. डोंगा खुलते ही संग्राम शुरू. ‘हम लाए हैं तूफान से पूड़ी निकाल के – मेरे देश के बच्चो इसे खाना संभाल के’ की तर्ज पर एक बार में ही फाइबर की प्लेट में इतना कुछ भर लाए कि कौन जाने दोबारा भरने का मौका भीड़ में मिले या न मिले.

बरात का आनंद उठा कर हम घर लौटे तो देखा कि साहबजादे ने एक पौलिथीन खोल कर मेज पर रख दी जिस में बरात का खाना था. हम ने पूछा तो बोले, ‘‘हम से वहां खाया नहीं गया तो हम चुपचाप परोसा ले आए.’’ ऊपर से हम गुस्सा हुए लेकिन मन ही मन अच्छा लगा. बरात का खाना घर ला कर गरम कर के खाओ तो स्वाद ऐसे बढ़ जाता है जैसे शरबती चावल, बासमती चावल के रूप में बदल गया हो.

बरात में चाहे जितनी फजीहत हो लेकिन हर बार मन नहीं मानता है. हम हर बार कहते हैं कि अब बरात में नहीं जाएंगे लेकिन ये बात नई बरात के निमंत्रण से पहले तक ही याद रह पाती है. हम ने श्रीमतीजी को आवाज लगाई, ‘‘देखना, अब किस की शादी पड़ रही है?’’

श्रीमतीजी गुस्से से बोलीं, ‘‘अब तो हमारी शादी है.’’ मैं ने पूछा, ‘‘आखिर किस से?’’

हमारी पत्नी हंस कर बोलीं, ‘‘तुम से और किस से.’’

Satire : डोरे डालने के लिए उम्र का बंधन नहीं होता

Satire : डोरे डालने का सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम अपने देश में अनादिकाल से चला आ रहा है. स्त्री और पुरुष तो परस्पर एकदूसरे पर डोरे डालते ही हैं, जानवरों में भी नर व  मादा एकदूसरे पर डोरे डालते हैं. जीवित प्राणियों की बात तो छोडि़ए आदमी ने बेजान चीजों के मामले में भी डोरे डालना सीख लिया है. अब देखिए कि इनसान ने सिलाई मशीन तक को नहीं छोड़ा, सुई को भी नहीं छोड़ा. वहां भी अनेक प्रकार के डोरे डाले जाते हैं.

सतयुग में एकदूसरे पर डोरे डाले जाते थे. विश्वामित्र पर मेनका ने डोरे डाले तो दुष्यंत ने शकुंतला पर. त्रेता में राम और उन के भाई लक्ष्मण पर रावण की बहन सूर्पणखा ने डोरे डाले. द्वापर में कृष्ण और राधा के परस्पर डोरे डालने की दास्तां तो अनेक कवियों ने बखानी है. कलियुग में तो डोरे डालने का अभियान विधिवत और योजना बना कर अबाध गति से चल रहा है. पूरे महल्ले से ले कर विदेशों तक डोरे डालने के कार्यक्रम चलते आए हैं.

एक राजनेता विदेशी महारानी पर डोरे डालने में सफल हो गए थे. दूसरे राजनेता तो विदेशी मैडम पर डोरे डाल कर उसे डोली में बिठा कर बाकायदा स्वदेश ही ले आए. प्रेम के डोरों से ही तो प्रेम की रस्सी बनती है. कोई छिप कर डोरे डालता है तो कोई खुलेआम डोरे डाल कर प्रेम की डोर तगड़ी करता रहता है.

डोरे डालने के लिए उम्र का बंधन नहीं होता है. किशोरों से ले कर बुजुर्गों तक और किशोरियों से ले कर बुजुर्ग बालाओं तक परस्पर डोरे डालने का कार्यक्रम चलता रहता है. फलां लड़का फलां लड़की को या फलां आदमी फलां स्त्री को भगा ले गया या वह उस के साथ भाग गई, ये सभी डोरे डालने के नतीजे हुआ करते हैं. डोरे डालतेडालते ही घर बसते हैं, तो कहीं घर उजड़ते हैं, कई जेल की हवा खाते हैं.

डोरे डालने के वाबस्ता कइयों के मंत्री पद छिन गए, कइयों के मुख्यमंत्री पद छिने. प्राचीनकाल में तो कइयों के राज्य छिन गए और राजगद्दियां छिन गईं. पड़ोसी अपनी पड़ोसिन पर और पड़ोसिन अपने पड़ोसी पर डोरे डालते देखे जा सकते हैं. बहरहाल अंजाम कुछ भी हो, डोरे डालने का व्यक्तिगत और सामाजिक कार्य कभी रुकता नहीं है.

यों तो डोरे डालने का कार्यक्रम सदाबहार रहता है और यह कार्यक्रम बारहों महीने चलता है, लेकिन कुछ समय या ऋतु विशेष इस के लिए विशेष मुफीद होती है. शीत ऋतु सब से अच्छी होती है जब डोरे डालने का कार्य सर्वत्र चलता है. शीतकाल में जिधर देखिए उधर, जब देखिए तब डोरे डलते दिखाई देते हैं. महिलाएं अपनी नाजुक कलाइयों की उंगलियों से स्वैटर बुनने की सलाइयों पर फंदे तो रजाइयों में डोरे डालती देखी जा सकती हैं. उधर लड़कीलड़का, पुरुष व महिलाएं धूप सेंकने के बहाने छत पर या एक छत से दूसरी छत पर डोरे डालते मिल जाएंगे. अपनी छत पर एक खड़ा है तो सामने या बगल की छत पर दूसरा खड़ा है और बस हो जाती है डोरे डालने की प्रक्रिया प्रारंभ.

डोरे डालतेडालते प्रेम की डोर बन जाती है जो 2 प्राणियों को बांधने में समर्थ होती है. ऐसी स्थिति को कवि देखता है तो कह बैठता है, ‘‘पहले मन लेते बांध प्यार की डोरी से पीछे चुंबन पर कैद लगाया करते हैं.’’ पाबंदी तो जालिम जमाना लगाता है, जो प्रेमीप्रेमिकाओं को जीने नहीं देता. डोरे डालतेडालते यह स्थिति हो जाती है कि ‘मरने न दे मुहब्बत, जीने न दे जमाना.’ आजकल टेलीविजन पर चैनल वाले भी तरहतरह के सीरियल दिखा कर डोरे डालने का अच्छा प्रशिक्षण दे रहे हैं.

पहले जमाने में महल्ले में ही डोरे डालने की डबिंग और कार्यक्रम होता था. मकान की छतों, छज्जों, बालकनियों, खिड़कियों, पिछले दरवाजों और एकांत गलियों का उपयोग इस कार्य के लिए होता था. अब महल्ले की सीमा लांघ कर बागबगीचे, पार्क, दफ्तर, मैट्रो स्टेशन की सीढि़यां, तालाब और नदी के किनारे, एकांत सड़कें या पहाडि़यां परस्पर डोरे डालने के मुफीद स्थान हैं.

अपने देश और विदेशों में प्रेम करने का यही मूलभूत अंतर है. विदेशों में तो परस्पर मिलनेजुलने के लिए समय की कमी है, इसलिए तड़ाकफड़ाक प्रेम किया और काम पर चल दिए. अपने यहां प्यार भी विधिवत तरीके से होता है. डोरे डालतेडालते प्रेम की डोर में लिपटते हैं, और डोर जब तक सड़ नहीं जाती तब तक उस में बंधे रहते हैं. कोई ऐरागैरा सत्यानाशी व्यक्ति प्रेम की डोर को बीच से काट देता है, तो फिर स्थिति अलग होती है.

जब से राजनीतिक दलों की हिम्मत टूटी है और अकेले सरकार बनाने की कूवत नहीं रही, तब से राजनीति में भी डोरे डालने का कार्यक्रम शुरू हुआ है. घटक दलों पर परस्पर डोरे डाले जा रहे हैं. कभी अम्मा किसी दल के दादा पर डोरे डालती हैं तो कभी किसी दल का सदस्य किसी दल की बहनजी या मैडम पर डोरे डालता है. यह राजनीति ही है, जहां सभी मर्यादाओं और पिछली परंपराओं को दरकिनार करते हुए कुरसी हेतु अम्मा और बहनजी पर भी डोरे डाल कर गठबंधन की गांठ मजबूत की जाती है. तभी सरकार चलती है और कुरसी कुछ समय के लिए स्थिर होती है.

ये डोरे बड़े महीन होते हैं लेकिन इस में एक से एक तीसमारखां बांधे जा सकते हैं. राजनीति में भी यों तो परस्पर डोरे डालने का समय 5 साल तक रहता है लेकिन चुनावों के समय डोरे डालने की गतिविधियां काफी तेज हो जाती हैं. इस समय अगर किसी पर डोरे डाल कर पटा लिया जाए तो चुनाव की वैतरणी पार होने में काफी मदद मिलती है.

डोरे डालते समय डोरा टूटता भी है, कभी व्यवधान भी आता है. घबराइए नहीं और आप भी समय और अनुकूल मौका पा कर डोरे डालिए. डोरे डालने के लिए उम्र, समय, ऋतु तथा स्थान का तो बंधन होता नहीं है, यह सदाबहार प्रक्रिया है. यह जरूर ध्यान रहे कि डोरे डालने में सावधानी रहे, आप भी न फंसें और डोरे भी न फंसें. फंसने पर दोनों के टूटने का डर है, तभी तो कहा है कि ‘रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय…’ और हां, कैंची ले कर घूमने वालों से सावधान.

Comedy : टैक्स की कमाई से कौन खा रहा है मलाई

Comedy : जल्द ही सरकार कचरे पर भी कर लगाने जा रही है. तय है कि यह समाचार पढ़ कर कई लोग चौंके होंगे. वजह, कर चोरी की लत विशेषज्ञता नहीं, बल्कि कर का गिरता स्तर है. सरकार देती एक हाथ से है पर लेती हजार हाथों से है. कर लेते ये हजारों हाथ अर्थव्यवस्था की हड्डियां हैं जिन की मजबूती पैसे रूपी कैल्शियम से होती है.

मैं भी सैकड़ों तरह के कर देता हूं. आमदनी हो न हो, कर देना जरूरी है. यह गुजाराभत्ता कानून से मेल खाता है कि पति कमाए न कमाए, पत्नी को जिंदा रखने के लिए पैसा देना होगा.

प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष और मिश्रित के अलावा जाने कितने तरह के टैक्स दे कर मैं तकरीबन कंगाल हो चला हूं मगर शरीर चलाए रखने के लिए आयकर, विक्रयकर, सेवाकर, आबकारीकर, वाणिज्यकर, मनोरंजनकर, संपत्तिकर, शिक्षा कर जैसे दर्जनों कर जानेअनजाने बिना नागा देता रहता हूं, जिस से सरकार चलती रहे, देश चलता रहे.

अपने मरियल से शरीर को चलाने के लिए दो वक्त की रोटी काफी होती है मगर मेरे शरीर का हर हिस्सा करदाता है. तेल खरीदता हूं तो सर के बाल कर देते हैं, शेविंग क्रीम लूं तो चेहरा करदाता हो जाता है. कहने की जरूरत नहीं कि आंख, कान, नाक, हाथ, पैर, पीठ, पेट सब टैक्सपेयी हैं. मैं तो सोते वक्त भी टैक्स देता सोऊंगा. यह बात फ्यूचर परफेक्ट कंटीन्यूस टेंस की न हो कर जीतीजागती हकीकत है. सुबह उठते ही मैं टैक्स देना शुरू कर देता हूं तो यह सिलसिला देर रात तक चलता है.

पैट्रोल, मोबाइल, पैन, कागज और पानी समेत मैं टैक्सी पर भी टैक्स देता हूं. हिसाबकिताब कभीकभी लगाता हूं तो चकरा जाता हूं कि मैं टैक्स पर भी टैक्स देता हूं और आमदनी से ज्यादा देता हूं. बापदादों की छोड़ी जमीनजायदाद इस तरह सरकार के खाते में टुकडे़टुकड़े हो कर समा रही है. इनसाफ चाहिए तो टैक्स, इलाज करवाना हो तो टैक्स भरो, श्मशान तक में टैक्स का मीटर घूमता रहता है. आदमी का घूमना बंद हो जाता है पर टैक्स का पहिया चलता रहता है. अपने देश में फख्र की बात है कि भ्रूण भी कर देता है और आत्मा भी करदाता होती है.

संसद और विधानसभाएं कम पड़ रही थीं इसलिए सरकार ने नगर निगम पालिकाएं और पंचायतें खड़ी कर दीं. मधुमक्खी के टूटे छत्ते से जितनी मधुमक्खियां नहीं निकलतीं उस से ज्यादा टैक्स इंस्पेक्टर पैदा हो रहे हैं. इन के पालनपोषण के लिए भी टैक्स देना पड़ता है.

टैक्स को अब मैं देहाती भाषा की तर्ज पर ‘देह धरे का दंड’ यानी शरीर धारण करने की सजा कहने लगा हूं. भारत कृषि नहीं कर प्रधान देश है जिस की खूबी यह है कि जो भी उत्पाद मैं खरीदता हूं उस का कर पहले से ही सरकार वसूल कर चुकी होती है. इसलिए हर एक पैकिंग पर चाहे वह दूध का पैकेट हो, क्रीम हो या दवा का रैपर, छोटेछोटे अक्षरों में लिखा रहता है एम.आर.पी. (इतनी) इनक्लूसिव औल टैक्सेस.

भगवान की तरह सरकार भी हर जगह टैक्स वसूलने के लिए खड़ी मिलती है. उस की महिमा वाकई अपरंपार है. वह बंदरगाह पर भी है, हवाई अड्डे पर भी है और रेलवे स्टेशन पर भी है. वह घर में है तो बाहर भी है. निगाह की हद तक सरकार ने जाल बिछा रखा है जिस में कोई सवा अरब लोग फड़फड़ा रहे हैं. ये आम नागरिक नहीं करदाता हैं जो कर्ज में डूबे हैं.

यह सोचना बेमानी है कि अमीर लोग ही टैक्स देते हैं. अपने देश में भिखारी को भी टैक्स देना पड़ता है. यह दीगर बात है कि खुद के करदाता होने का उसे पता नहीं रहता. इस के बावजूद सरकार घाटे में चलती है. छोड़ती इतना भर है कि आदमी जिंदा रहे, चलताफिरता रहे जिस से टैक्स वसूलने में सहूलियत हो.

सरकार किसी की आमदनी नहीं बढ़ा सकती मगर टैक्स जरूर बढ़ाती है. अपने मुलाजिमों की पगार भी वह बढ़ाती रहती है जिस से वे टैक्स के दायरे में रहें. हम सरकार चुनने को बाध्य हैं. वोट देते हैं ताकि कोई तो हो जो हमारी आमदनी में से टैक्स रूपी दक्षिणा मांगे.

कई समझदार लोगों ने टैक्स से बचने की बेवकूफी की है, मगर वे पकड़े गए हैं. कुछ ने घूस देने की कोशिश की मगर गच्चा खा गए. घूस और टैक्स में कोई खास फर्क नहीं रह गया है. घूस ऐच्छिक है टैक्स अनिवार्य है. जिन्होंने ऐच्छिक चुन कर अनिवार्य से बचने की कोशिश की उन के यहां छापे पड़ गए. करोड़ोंअरबों के घोटाले महज टैक्स न देने और घूस देने की वजह से उजागर हुए. जो लाखों की घूस दे सकता है, सरकार सूंघ लेती है कि वह करोड़ों का टैक्स बचा रहा है.

शुरूशुरू में सरकार ढील देती है. व्यापारी, आई.ए.एस. अफसर और मझोले किस्म के नेता, जो हकीकत में कारोबारी होते हैं, सभी खुशी से अपनी पीठ थपथपाते हैं कि बच गए मगर इन लोगों को यह ज्ञान नहीं रहता कि सरकार के कमरे में सी.सी. टी.वी. लगा है. जब घूस का दृश्य खत्म हो जाता है तो सरकार छापामारी का सीन शुरू कर देती है. कर चोर पकड़े जाते हैं. उन की जायदाद जब्त कर ली जाती है. इन नामी इज्जतदार रईसों को तुरंत जेल नहीं होती. उन्हें मुकदमा लड़ने का मौका दिया जाता है जिस से बची और छिपाई रकम भी बाहर आ जाए. अदालत में क्या होता है, यह कोई नहीं देखता. ऐसे छापों में 2 तरह के संदेश जाते हैं. पहला कि टैक्स चोरी की जा रही है. दूसरा कि टैक्स चोरी पकड़ी भी जाती है, जिसे जो पसंद हो अपना ले.

बहरहाल, इतने सारे और तरहतरह के टैक्स देने के बाद भी मैं हताश नहीं हूं. सरकार चलाने के लिए मैं कचरा कर भी दूंगा. नींद पर टैक्स लगाया जाएगा, स्लीपिंग टैक्स भी दूंगा, सोने के घंटे कम कर दूंगा मगर सरकार चलाने में अपना योगदान देता रहूंगा.

मेरे टैक्स के पैसे से सियासी पार्क बनें या नेताओं के पिता, परपिताओं के नाम पर कल्याणकारी योजनाएं बनें, जो मूलत: कइयों की रोजीरोटी हैं, इन के खिलाफ सोचने की बेवकूफी मैं नहीं करता. मेरा काम है टैक्स देना. मेरे पिताजी टैक्स देतेदेते बोल गए. मैं तो कराह ही रहा हूं. अब सारी उम्मीदें बेटे पर टिकी हैं कि वह भी बदस्तूर टैक्स परंपरा को निभाएगा. कमाएगा खुद के लिए नहीं सरकार के लिए, इसलिए मैं ने टैक्स पुराण उसे अभी से रटवाना शुरू कर दिया है.

कोई माने या न माने पर मैं मानता हूं कि तरक्की हो रही है, कारखाने और भारीभरकम उद्योग बढ़ रहे हैं. यह टैक्स के दम पर नहीं, टैक्स चोरी, घूसखोरी और भ्रष्टाचार से बच गए पैसों के दम पर हो रहा है, जो कुल टैक्स का केवल 10 फीसदी है. सोचने में हर्ज नहीं कि बचा 90 फीसदी भी देश की तरक्की में लग जाता तो वाकई हम दुनिया के सिरमौर होते.

मुझे खुशी होती है कि मेरे जैसे लोगों द्वारा दी गई टैक्सों की कुल जमा रकम से अफसरों, मंत्रियों, मुलाजिमों को पगार मिलती है. वे काम करने के लिए हवाई जहाज में उड़ते हैं. उन के कुत्ते तक हड्डी मेरे पास से खाते हैं. उन के माली, ड्राइवर और रसोइए मेरे टैक्स के मोहताज हैं. इस बाबत मुझे कोई भी पदक भी नहीं चाहिए. वजह, मैं कर दाता हूं.

‘मम्माज बौय से कभी शादी न करो’, सास नीतू कपूर ने Alia Bhatt को जरा भी नहीं दिया भाव

Alia Bhatt : बौलीवुड ऐक्ट्रैस आलिया भट्ट (Alia Bhatt) आज किसी पहचान की मोहताज नहीं है. वह अपनी ऐक्टिंग के बदौलत लोगों के दिल पर राज करती हैं. वह अपनी मैरिड लाइफ को लेकर भी सुर्खियों में छाई रहती है. अकसर उन्हें सास नीतू कपूर (Neetu Kapoor) के साथ देखा जाता है. कपूर खानदान की बहू होने के नाते आलिया परिवार से जुड़ा किसी भी चीज को मिस नहीं करती.

साड़ी में आलिया भट्ट ने बिखेरा खूबसूरती का जलवा

बीते हफ्ते राज कपूर (Raj Kapoor) की 100वीं बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर इंडस्ट्री में फिल्म फेस्टिवल का ओयजन किया गया. जिसमें अलिया भट्ट साड़ी खूबसूरती का जलवा बिखेर रही थी. रणबीर कपूर और आलिया की जोड़ी कमाल की लग रही थी. हर कोई कपल की तारीफ कर रहा था. इस कार्यक्रम में बौलीवुड के तमाम सितारे पहुंचे थे.

नीतू कपूर को यूजर्स ने किया ट्रोल

इस इवेंट से जुड़ा एक वीडिया सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है. इस वीडियो में सास नीतू कपूर बहू आलिया भट्ट को बुरी तरह से इग्नोर कर रही हैं. दरअसल, आलिया भट्ट और नीतू कपूर के इस वीडियो को एक फैन पेज ने अपने इंस्टाग्राम हैंडल पर शेयर किया है. इस वीडियो में आलिया भट्ट व्हाइट कलर की साड़ी में दिख रही हैं तो वहीं नीतू कपूर ग्रे कलर के सूट में नजर आ रही हैं. इस वीडियो को देखने के बाद आलिया के फैंस नीतू कपूर को काफी ट्रोल कर रहे हैं.

सास सास होती है अपनी हो या फिर सेलेब्रिटीज की

दरअसल, इस वीडियो में रणबीर कपूर मां को लेने के लिए पत्नी आलिया भट्ट को भेजते हैं, जिसके बाद आलिया नीतू कपूर के पास जाती हैं और मां-मां कहने लगती हैं, लेकिन वीडियो में साफसाफ देखा जा सकता है कि नीतू कपूर आलिया को बुरी तरह से इग्नोर कर देती हैं. यूजर्स इस वीडियो पर खूब कमेंट्स कर रहे हैं.

एक यूजर ने इस वीडियो पर कमेंट करते हुए लिखा, ‘सास सास होती है अपनी हो या फिर सेलेब्रिटीज की.’ तो वहीं एक दूसरे यूजर ने लिखा, ‘फैमिली फंक्शन में सास का बहू पर तेवर दिखाना परमानेंट है.’ एक और यूजर ने लिखा, मम्माज बौय कितना भी हैंडसम हो, उससे शादी न करो… एक अन्य यूजर ने लिखा, ‘इतिहास गवाह है एक औरत को सबसे ज्यादा दुःख औरत ही देती है, कभी सुना है ससुर दामाद को दुःख देता है.’

Salman Khan के साथ की गई बातों को गुप्त रखना चाहती है रश्मिका, ‘सिकंदर’ में दोनों साथ आएंगे नजर

Salman Khan : फिल्म पुष्पा से हाल ही में रिलीज हुई पुष्पा 2 (Pushpa 2)  के साथ छोटे से सफर में साउथ फिल्मों से बौलीवुड इंडस्ट्री में अपनी अलग और जबरदस्त पहचान बनाने वाली रश्मिका मंदना (Rashmika Mandana) ने फिल्म एनिमल में रणबीर कपूर के साथ काम करने के बाद हाल ही में रिलीज पुष्पा 2 अपने शक्त अभिनय से धमाल मचा दिया. साउथ की इस एक्ट्रेस के पास बहुत कम समय में टौप के हीरोज के साथ बिग बजट फिल्में है .

गौरतलब है पुष्पा 2 के बाद रश्मिका विक्की कौशल के साथ फिल्म छावा में नजर आने वाली है तो सलमान खान के साथ 2025 में आने वाली सलमान (Salman Khan) की खास अभिनीत फिल्म सिकंदर में मुख्य भूमिका में नजर आएंगी. इन दोनों ही फिल्मों के हीरो के बारे में बात करते हुए रश्मिका ने जहां विक्की कौशल को सरल स्वभाव और दयालु बताया वहीं सलमान खान को लेकर रश्मिका ने कुछ खास बातें बताई.

रश्मिका के अनुसार जब उनको सलमान खान के साथ फिल्म औफर हुई तो वह इस फिल्म में सलमान खान के साथ काम करने को लेकर थोड़ा नर्वस थी. लेकिन जब वह सलमान से शूटिंग के दौरान मिली तो रश्मिका को सलमान बहुत ही डाउन टू अर्थ एक्टर लगे. रश्मिका ने सलमान के साथ हुई बातचीत को महत्वपूर्ण बताते हुए कहां की सलमान के साथ उनकी जो भी बातें हुई हैं वह हमेशा उन दोनों के बीच ही रहेंगी. क्योंकि सलमान के साथ की गई बातें उनके लिए बहुत कीमती है.

रश्मिका के अनुसार सलमान के साथ काम करने का उनका अनुभव बहुत अच्छा रहा. सलमान के बारे में जितनी भी तारीफ उन्होंने सुनी थी, सलमान उससे कहीं अच्छे हैं. रश्मिका और सलमान की फिल्म सिकंदर 2025 में ईद पर रिलीज हो रही है जिसका सभी को इंतजार है.

Breakup Story : धोखेबाज गर्लफ्रैंड

Breakup Story: ड्राइंगरूममें सोफे पर बैठ पत्रिका पढ़ रही स्मिता का ध्यान डोरबैल बजने से टूटा. दरवाजा खोलने पर स्मिता को बेटे यश का उड़ा चेहरा देख धक्का लगा. घबराई सी स्मिता बेटे से पूछ बैठी, ‘‘क्या हुआ यश? सब ठीक तो है?’’

बिना कुछ कहे यश सीधे अपने बैडरूम में चला गया. स्मिता तेज कदमों से पीछेपीछे भागी सी गई. पूछा, ‘‘क्या हुआ यश?’’

यश सिर पकड़े बैड पर बैठा सिसकने लगा. जैसे ही स्मिता ने उस के पास बैठ कर उस के सिर पर हाथ रखा वह मां की गोद में ढह सा गया और फिर फूटफूट कर रो पड़ा.

स्मिता ने बेहद परेशान होते हुए पूछा, ‘‘बताओ तो यश क्या हुआ?’’

यश रोए जा रहा था. स्मिता को कुछ समझ नहीं आ रहा था. उस का 25 साल का बेटा आज तक ऐसे नहीं रोया था. उस का सिर सहलाती वह चुप हो गई थी. समझ गई थी कि थोड़ा संभलने पर ही बता पाएगा. यश की सिसकियां रुकने का नाम ही नहीं ले रही थीं. कुछ देर बाद फिर स्मिता ने पूछा, ‘‘बताओ बेटा क्या हुआ?’’

‘‘मां, नविका से ब्रेकअप हो गया.’’

‘‘क्या? यह कैसे हो सकता है? नविका को यह क्या हुआ? बेटा यह तो नामुमकिन है.’’

यश ने रोते हुए कहा, ‘‘नविका ने अभी फोन पर कहा कि अब हम साथ नहीं हैं. वह यह रिश्ता खत्म करना चाहती है.’’

स्मिता को गहरा धक्का लगा. यह कैसे हो सकता है. 4 साल से वह, यश के पापा विपुल, यश की छोटी बहन समृद्धि नविका को इस घर की बहू के रूप में ही देख रहे हैं. इतने समय से स्मिता यही सोच कर चिंतामुक्त रही कि जैसी केयर नविका यश की करती है, वैसी वह मां हो कर भी नहीं कर पाती. इस लड़की को यह क्या हुआ? स्मिता के कानों में नविका का मधुर स्वर मां…मां… कहना गूंज उठा. बीते साल आंखों के आगे घूम गए. बेटे को कैसे चुप करवाए वह तो खुद ही रोने लगी. वह तो खुद ही इस लड़की से गहराई से जुड़ चुकी है.

अचानक यश उठ कर बैठ गया. मां की आंखों में आंसू देखे, तो उन्हें पोंछते हुए फिर से रोने लगा, ‘‘मां, यह नविका ने क्या किया?’’

‘‘उस ने ऐसे क्यों किया, यश? कल रात तो वह यहां हमारे साथ डिनर कर के गई. फिर रातोंरात ऐसी कौन सी बात हो गई?’’

‘‘पता नहीं, मां. उस ने कहा कि अब वह इस रिश्ते को और आगे नहीं ले जा पाएगी. उसे महसूस हो रहा है कि वह इस रिश्ते में जीवनभर के लिए नहीं बंध सकती. वह भी हम सब को बहुत मिस करेगी, उस के लिए भी मुश्किल होगा पर वह अपनेआप को संभाल लेगी और कहा कि मैं भी खुद को संभाल लूं और आप सब को उस की तरफ से सौरी कह दूं.’’

स्मिता हैरान व ठगी से बैठी रह गई थी. यह क्या हो रहा है? लड़कों की

बेवफाई, दगाबाजी तो सुनी थी पर यह लड़की क्या खेल खेल गई मेरे बेटे के साथ… हम सब की भावनाओं के साथ. दोनों मांबेटे ठगे से बैठे थे. स्मिता ने बहुत कहा पर यश ने कुछ नहीं खाया. चुपचाप बैड पर आंसू बहाते हुए लेटा रहा. स्मिता बेचैन सी पूरे घर में इधर से उधर चक्कर लगाती रही.

शाम को विपुल और समृद्धि भी आ गए. आते ही दोनों ने घर में पसरी उदासी महसूस कर ली थी. सब बात जानने के बाद वे दोनों भी सिर पकड़ कर बैठ गए. यह कोई आम सी लड़की और एक आम से लड़के के ब्रेकअप की खबर थोड़े ही थी. इतने लंबे समय में नविका सब के दिलों में बस सी गई थी.

इस घर से दूर नविका तो खुद ही नहीं रह सकती थी. घर में हर किसी को खुश करती थकती नहीं थी. विपुल के बहुत जोर देने पर यश ने सब के साथ बैठ कर मुश्किल से खाना खाया, डाइनिंगटेबल पर अजीब सा सन्नाटा था. समृद्धि को भी नविका के साथ बिताया एकएक पल याद आ रहा था. नविका से कितनी छोटी है वह पर कैसी दोस्त बन गई थी. कुछ भी दिक्कत हो नविका झट से दूर कर देती थी.

विपुल को भी उस का पापा कह कर बात करना याद आ रहा था. सब सोच में डूबे हुए थे कि यह हुआ क्या? कल ही तो यहां साथ में बैठ कर डिनर कर रही थी. आज ब्रेकअप हो गया. यह एक लड़के से ब्रेकअप नहीं था. नविका के साथ पूरा परिवार जुड़ चुका था. सब ने बहुत बेचैनी भरी उदासी से खाना खत्म किया. कोई कुछ नहीं बोल रहा था.

स्मिता से बेटे की आंसू भरी आंखें देखी नहीं जा रही थीं. उस के लिए बेटे को इस हाल

में देखना मुश्किल हो रहा था. रात को सोने

से पहले स्मिता ने पूछा, ‘‘यश, मैं नविका से

बात करूं?’’

‘‘नहीं मां, रहने दो. अब वह बात ही नहीं करना चाहती. फोन ही नहीं उठा रही है.’’

स्मिता हैरान. दुखी मन से बैड पर लेट तो गई पर उस की आंखों से नींद कोसों दूर विपुल के सोने के बाद बालकनी में रखी कुरसी पर आ कर बैठ गई. पिछले 4 सालों की एकएक बात आंखों के सामने आती चली गई…

यश और नविका मुंबई में ही एक दोस्त की पार्टी में मिले थे. दोनों की दोस्ती हो गई थी. नविका यश से 3 साल बड़ी थी, यह जान कर भी यश को कोई फर्क नहीं पड़ा था. वह नविका से बहुत प्रभावित हुआ था. नविका सुंदर, आत्मनिर्भर, आधुनिक, होशियार थी. अपनी उम्र से बहुत कम ही दिखती थी. स्मिता के परिवार को भी उस से मिल कर अच्छा लगा था.

चुटकियों में यश और समृद्धि के किसी भी प्रोजैक्ट में हैल्प करती. बेटे से बड़ी लड़की को भी उस की खूबियों के कारण स्मिता ने सहर्ष स्वीकार कर लिया था. स्मिता और विपुल खुले विचारों के थे. नविका के परिवार में उस के मम्मीपापा और एक भाई था. एक दिन नविका ने स्मिता से कहा कि मां आप मुझे कितना प्यार करती हैं और मेरी मम्मी तो बस मेरे भाई के ही चारों तरफ घूमती रहती हैं. मैं कहां जा रही हूं, क्या कर रही हूं, मम्मीपापा को इस से कुछ लेनादेना नहीं होता. भाई ही उन दोनों की दुनिया है. इसलिए मैं जल्दी आत्मनिर्भर बनना चाहती हूं.

सुन कर स्मिता ने नविका पर अपने स्नेह की बरसात कर दी थी.

उस दिन से तो जैसे स्मिता ने मान लिया कि उस के 2 नहीं 3 बच्चे हैं. कुछ भी होता

नविका जरूर होती. कहीं जाना हो नविका साथ होती. यह तय सा ही हो गया था कि यश के सैटल हो जाने के बाद दोनों का विवाह कर दिया जाएगा.

एक दिन स्मिता ने कहा, ‘‘नविका, मैं सोच रही हूं कि तुम्हारे पेरैंट्स से मिल लूं.’’

इस पर नविका बोली, ‘‘रहने दो मां. अभी नहीं. मेरे परिवार वाले बहुत रूढि़वादी हैं. जल्दी नहीं मानेंगे. मुझे लगता कि अभी रुकना चाहिए.’’

यश तो आंखें बंद कर नविका की हर बात में हां में हां ऐसे मिलाता था कि कई बार स्मिता हंस कर कह उठती थी, ‘‘विपुल, यह तो पक्का जोरू का गुलाम निकलेगा.’’

विपुल भी हंस कर कहते थे, ‘‘परंपरा निभाएगा. बाप की तरह बेटा भी जोरू का

गुलाम बनेगा.’’

कई बार स्मिता तो यह सोच कर सचमुच मन ही मन गंभीर हो उठती थी कि यश सचमुच नविका के खिलाफ एक शब्द नहीं सुन सकता. अपनी हर चीज के लिए उस पर निर्भर रहता है. कोई फौर्म हो, कहीं आवेदन करना हो, उस के सब काम नविका ही करती और नविका यश को खुश रखने का हर जतन करती. उसे मुंबई में ही अच्छी जौब मिल गई थी.

जौब के साथसाथ वह घर के हर सदस्य की हर चीज में हमेशा हैल्प करती. स्मिता मन ही मन हैरान होती कि यह लड़की क्या है… इतना कौन करता है? किसी को कोई भी जरूरत हो, नविका हाजिर और उस का खुशमिजाज स्वभाव भी लाजवाब था जिस के कारण स्मिता का उस से रोज मिलने पर भी मन नहीं भरता था. जितनी देर घर में रहती हंसती ही रहती. स्मिता नविका को याद कर रो पड़ी. रात के 2 बजे बालकनी में बैठ कर वह नविका को याद कर रो रही थी.

स्मिता का बारबार नविका को फोन कर पूछने का मन हो रहा था कि यह क्या किया तुम ने? यश के मना करने के बावजूद स्मिता यह ठान चुकी थी कि वह यह जरूर पूछेगी नविका से कि उस ने यह इमोशनल चीटिंग क्यों की? क्या इतने दिनों से वह टाइमपास कर रही थी? अचानक बिना कारण बताए कोई लड़की ब्रेकअप की घोषणा कर देती है, वह भी यश जैसे नर्म दिल स्वभाव वाले लड़के के साथ जो नविका को खुश देख कर ही खुश रहता था.

इतने में ही अपने कंधे पर हाथ  का स्पर्श महसूस हुआ तो स्मिता चौंकी. यश था, उस की गोद में सिर रख कर जमीन पर ही बैठ गया. दोनों चुप रहे. दोनों की आंखों से आंसू बहते रहे.

फिर विपुल भी उठ कर आ गए. दोनों को प्यार से उठाते हुए गंभीर स्वर में कहा, ‘‘जो हो गया, सो हो गया, अब यही सोच कर तुम लोग परेशान मत हो. आराम करो, कल बात करेंगे.’’

अगले दिन भी घर में सन्नाटा पसरा रहा. यश चुपचाप सुबह कालेज चला गया. स्मिता ने उस से दिन में 2-3 बार बात की. पूछा, ‘‘नविका से बात हुई?’’

‘‘नहीं, मम्मी वह फोन नहीं उठा रही है.’’

उदासीभरी हैरानी में स्मिता ने भी दिन बिताया. वह बारबार

अपना फोन चैक कर रही थी. इतने सालों में आज पहली बार न नविका का कोई मैसेज था न ही मिस्ड कौल. स्मिता को तो स्वयं ही नविका के टच में रहने की इतनी आदत थी फिर यश को कैसा लगा रहा होगा. यह सोच कर ही उस का मन उदास हो जाता था.

3 दिन बीत गए, नविका ने किसी से संपर्क नहीं किया. घर में चारों उदास थे, जैसे घर का कोई महत्त्वपूर्ण सदस्य एकदम से साथ छोड़ गया हो. सब चुप थे. अब नविका का कोई नाम ही नहीं ले रहा था ताकि कोई दुखी न हो. मगर बिना कारण जाने स्मिता को चैन नहीं आ रहा था. वह बिना किसी को बताए बांद्रा कुर्ला कौंप्लैक्स पहुंच गई. नविका का औफिस उसे पता था.

अत: उस के औफिस चल दी. औफिस के बाहर पहुंच सोचा एक बार फोन करती. अगर उठा लिया तो ठीक वरना औफिस में चली जाएगी.

अत: नविका के औफिस की बिल्डिंग के बाहर खड़ी हो कर स्मिता ने फोन किया. हैरान हुई जब नविका ने उस का फोन उठा लिया, ‘‘नविका, मैं तुम्हारे औफिस के बाहर खड़ी हूं, मिलना है तुम से.’’

‘‘अरे, मां, आप यहां? मैं अभी

आती हूं.’’

नविका दूर से भागी सी आती दिखी तो स्मिता की आंखें उसे इतने दिनों बाद देख भीग सी गईं. वह सचमुच नविका को प्यार करने लगी थी. उसे बहू के रूप में स्वीकार कर चुकी थी. उस पर अथाह स्नेह लुटाया था. फिर यह लड़की अचानक गैर क्यों

हो गई?

नविका आते ही उस के गले लग गई. दोनों रोड पर यों ही बिना कुछ कहे कुछ पल खड़ी रहीं. फिर नविका ने कहा, ‘‘आइए, मां, कौफी हाउस चलते हैं.’’

नविका स्मिता का हाथ पकड़े चल रही थी. स्मिता का दिल भर आया. यह हाथ, साथ, छूट गया है. दोनों जब एक कौर्नर की टेबल पर बैठ गईं तो नविका ने गंभीर स्वर में पूछा, ‘‘मां, आप कैसी हैं?’’

स्मिता ने बिना किसी भूमिका के कहा, ‘‘तुम ने ऐसा क्यों किया, मैं जानने आई हूं?’’

नविका ने गहरी सांस लेते हुए कहा, ‘‘मां, मैं थकने लगी थी.’’

‘‘क्यों? किस बात से? हम लोगों के प्यार में कहां कमी देखी तुम ने? इतने साल हम से जुड़ी रही और अचानक बिना कारण बताए यह सब किया जाता है? यह पूरे परिवार के साथ इमोशनल चीटिंग नहीं है?’’ स्मिता के स्वर में नाराजगी घुल आई.

‘‘नहीं मां, आप लोगों के प्यार में तो कोई कमी नहीं थी, पर मैं अपने ही झूठ से थकने लगी थी. मैं ने आप लोगों से झूठ बोला था. मैं यश से 3 नहीं, 7 साल बड़ी हूं.’’

स्मिता बुरी तरह चौंकी, ‘‘क्या?’’

‘‘हां, मैं तलाकशुदा भी हूं. इसलिए मैं ने आप को कभी अपनी फैमिली से मिलने नहीं दिया. मैं जानती थी आप लोग यह सुन कर मुझ से दूर हो जाएंगे. मैं इतनी लविंग फैमिली खोना नहीं चाहती थी. इसलिए झूठ बोलती थी.’’

‘‘शादी कहां हुई थी? तलाक क्यों हुआ था?’’

‘‘यहीं मुंबई में ही. मैं ने घर से भाग कर शादी की थी. मेरे पेरैंट्स आज तक मुझ से नाराज हैं और फिर मेरी उस से नहीं बनी तो तलाक हो गया. मैं मम्मीपापा के पास वापस आ गई. उन्होंने मुझे कभी माफ नहीं किया. मैं ने आगे पढ़ाई

की. आज मैं अच्छी जौब पर हूं. फिर यश मिल गया तो अच्छा लगा. मैं ने अपना सब सच छिपा लिया. यश अच्छा लड़का है. मुझ से काफी छोटा है, पर उस के साथ रहने पर उस की उम्र के हिसाब से मुझे कई दिक्कतें होती हैं. उस की उम्र से मैच करने में अपनेआप पर काफी मेहनत करनी पड़ती है. आजकल मानसिक रूप से थकने लगी हूं.

‘‘यश कभी अपनी दूसरी दोस्तों के साथ बात भी करता है तो मैं असुरक्षित

महसूस करती हूं. मैं ने बहुत सोचा मां. उम्र के अंतर के कारण मैं शायद यह असुरक्षा हमेशा महसूस करूंगी. मैं ने भी दुनिया देखी है मां. बहुत सोचने के बाद मुझे यही लगा कि अब मुझे आप लोगों की जिंदगी से दूर हो जाना चाहिए. मैं वैसे भी अपनी शर्तों पर, अपने हिसाब से जीना चाहती हूं. आत्मनिर्भर हूं, आप लोगों से जुड़ कर समाज का कोई ताना, व्यंग्य भविष्य में मैं सुनना पसंद नहीं करूंगी.

‘‘मैं ने बहुत मेहनत की है. अभी और ऊंचाइयों पर जाऊंगी, आप लोग हमेशा याद आएंगे. लाइफ ऐसी ही है, चलती रहती है. आप ठीक समझें तो घर में सब को बता देना, सब आप के ऊपर है और हम कोई सैलिब्रिटी तो हैं नहीं, जिन्हें इस तरह का कदम उठाने पर समाज का कोई डर नहीं होता. हम तो आम लोग हैं. मुझे या आप लोगों को रोजरोज के तानेउलाहने पसंद नहीं आएंगे. यश में अभी बहुत बचपना है. यह भी हो सकता है कि समाज से पहले वही खुद बातबात में मेरा मजाक उड़ाने लगे. मुझे बहुत सारी बातें सोच कर आप सब से दूर होना ही सही लग रहा है.’’

कौफी ठंडी हो चुकी थी. नविका पेमैंट कर उठ खड़ी हुई. कैब आ गई तो स्मिता के गले लगते हुए बोली, ‘‘आई विल मिस यू, मां,’’ और फिर चल दी.

स्मिता अजीब सी मनोदशा में कैब में बैठ गई. दिल चाह रहा था, दूर जाती हुई नविका को आवाज दे कर बुला ले और कस कर गले से लगा ले, पर वह  जा चुकी थी, हमेशा के लिए. उसे कह भी नहीं पाई थी कि उसे भी उस की बहुत याद आएगी. 4 सालों से अपने सारे सच छिपा कर सब के दिलों में जगह बना चुकी थी वह. सच ही कह रही थी वह कि सच छिपातेछिपाते थक सी गई होगी. अगर वह अपने भविष्य को ले कर पौजिटिव है, आगे बढ़ना चाहती है, स्मिता को भले ही अपने परिवार के साथ यह इमोशनल चीटिंग लग रही हो, पर नविका को पूरा हक है अपनी सोच, अपने मन से जीने का.

अगर वह अभी से इस रिश्ते में मानसिक रूप से थक रही है, अभी से यश और अपनी उम्र के अंतर के बोझ से थक रही है तो उसे पूरा हक है इस रिश्ते से आजाद होने का. मगर यह सच है कि स्मिता को उस की याद बहुत आएगी. मन ही मन नविका को भविष्य के लिए शुभकामनाएं दे कर स्मिता ने गहरी सांस लेते हुए कार की सीट पर बैठ कर आंखें मूंद लीं.

Diljit Dosanjh को चेतावनी, गंदे अश्लील गाने नहीं चलेंगे…

Diljit Dosanjh : हमारे देश की यह बहुत बड़ी विडंबना है कि यहां पर लोग गंभीर मुद्दों पर ना तो कोई ध्यान देते हैं और ना ही कोई धर्मगुरु या धर्म के ठेकेदार किसी आम इंसान पर हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज उठाते नजर आते हैं. अगर कोई सेलिब्रिटी अपना काम कर रहा है, दर्शकों के बीच अपना परफौर्मेंस दे रहा है तो मौके पर चौका मारते हुए उनको धमकाते जरूर नजर आते हैं.

फिर चाहे वह किसी भी दल के क्यों ना हो लेकिन पब्लिसिटी के लिए सेलिब्रिटीज को चेतावनी देते या धमकाते नजर आते हैं. जैसे पंजाबी सिंगर और ऐक्टर दिलजीत दोसांझ के शो पर निहंगों की टेढ़ी नजर पड़ गई है. जिसके चलते निहंग बाबा धर्म सिंह अकाली ने पंजाबी गायकों को जिन में दिलजीत दोसांझ भी शामिल है, चेतावनी दी है कि वह स्टेज पर ढंग से परफौर्म करते नजर आए.

स्टेज पर अश्लील, शराब और शबाब वाले गाने ना गाएं और ना ही ऐसे कार्यक्रमों में शराब का सेवन करें और ना ही शराब परोस है. इतना ही नहीं चंडीगढ़ के सेक्टर 34 प्रदर्शनी ग्राउंड में मशहूर सिंगर ऐक्टर दिलजीत दोसांझ का शो होने वाला है उसे लेकर भी अकाली दल वालों ने ना सिर्फ चेतावनी दी है बल्कि शो को लेकर आपत्ति भी जताई है.

मोहाली में चल रहे मोर्चे में निहंगों ने चेतावनी दी है कि पंजाब में शहीदी सप्ताह शुरू होने जा रहा है, इस दौरान अगर कोई पंजाबी सिंगर शराब या दूसरे कौम के विरोधी गाने गाएगा तो उसे कड़ा सबक सिखाया जाएगा. निहंग बाबा के अनुसार ऐसे सिख गायको को शर्म करनी चाहिए जो शराब पीकर गाना गाते हैं और अपनी पगड़ी का भी मान नहीं रखते.

अब दिलजीत दोसांझ धर्म सिंह अकाली की बातों को कितना ध्यान में रखते हैं और पंजाब में होने वाले शो में कितना अपने गाए गानों में शराफत लेकर आते हैं यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा. पंजाबी होने के नाते अपने धर्म को फौलो करते हैं या प्रोफेशनल होने के नाते सिर्फ और सिर्फ अपने गानों पर ध्यान देते हुए दर्शकों के मनोरंजन का ध्यान रखते हैं.

Kamala Harris के साथ हारी हैं महिलाएं भी, ‘गर्भपात से बैन हटाने के लिए चल रहा संघर्ष’

हाल ही में अमेरिका के सब से अधिक उम्र (78 साल) के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने महिला अधिकारों की वकालत करने वाली अपनी प्रतिद्वंद्वी कमला हैरिस (Kamala Harris) को हरा दिया. यह हार क्या सिर्फ हैरिस की है या फिर इस के पीछे पूरी महिला जाति की हार छिपी हुई है? दुनिया के सब से शक्तिशाली देश की महिलाएं अपनी पसंद के प्रतिनिधि को राष्ट्रपति बनाने में नाकाम रहीं और अब आने वाले 4 साल डरडर कर जीने को विवश रहेंगी.

उन में इतनी कूबत नहीं थी कि वे एक लंपट, महिला अधिकारों को नजरअंदाज करने वाले, रंगभेदनस्लभेद का हिमायती, सनकी और विलासी वृद्ध व्यक्ति को इस गद्दी पर काबिज होने से रोक पातीं और महिलाओं के लिए काम करने वाली महिला प्रतिनिधि को अपना राष्ट्रपति चुन पातीं.

सुप्रीम कोर्ट के रो बनाम वेड फैसले और गर्भपात को ले कर संवैधानिक अधिकार के निर्णय को पलटने के बाद अमेरिका के पहले राष्ट्रपति चुनाव में जीत मिली कट्टरपंथी और औरतों को एक वस्तु सम?ाने वाले ट्रंप को. गर्भपात के मुद्दे को ले कर महिलाएं बड़ी संख्या में हैरिस का समर्थन करती दिखी थीं. मगर हैरिस के पहली महिला राष्ट्रपति बनने की संभावना को ?ाटका लग गया.

जीत के लिए उम्मीदवार को 270 इलैक्टोरल वोटों की जरूरत थी और ट्रंप को 312 इलैक्टोरल वोट मिले. डैमोक्रेट हैरिस को सिर्फ 226 वोट ही मिले. रिपब्लिकन ने सीनेट और प्रतिनिधि सभा दोनों में जीत हासिल की.

गर्भपात से बैन हटाने के लिए चल रहा संघर्ष

अमेरिकी चुनाव अभियान के दौरान अबौर्शन यानी गर्भपात एक बड़ा मुद्दा था. अमेरिका में कई लोग अबौर्शन की मांग कर रहे हैं. कई लोग गर्भपात को महिला अधिकार से जोड़ कर देख रहे हैं. कमला हैरिस ने दावा किया था कि उन की सरकार आएगी तो गर्भपात को कानूनी तौर पर देशभर में मंजूरी दी जाएगी लेकिन ट्रंप के आने से गर्भपात की मांग करने वालों की चिंता अब बढ़ गई है.

दरअसल, 2022 के जून महीने में सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात को मंजूरी देने वाले लगभग 5 दशक पुराने फैसले को पलट दिया था. गर्भपात को नैतिक और धार्मिक रूप से कोर्ट ने गलत करार दिया था. कोर्ट ने ऐंटीअबौर्शन ला को अपने अनुसार और कड़ा करने की बात भी कही थी. इसके बाद कई राज्यों में अबौर्शन क्लीनिकों पर ताला लगा दिया गया. क्लीनिक बंद होने की वजह से कई महिलाएं  मजबूरन घर पर असुरक्षित तरीके से अबौर्शन कराने को मजबूर हैं.

अबौर्शन के अधिकार का विरोध

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की पहली बहस में डोनाल्ड ट्रंप ने अबौर्शन पर स्पष्ट रुख अपनाने से इनकार किया था और इसे राज्यों पर छोड़ने की बात कही थी. ट्रंप का प्रशासन अमेरिका के अबौर्शन विरोधी आंदोलन के समर्थन में स्पष्ट रूप से खड़ा रहा. राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने एक ‘प्रोलाइफ’ राष्ट्रपति होने का दावा किया और अबौर्शन के खिलाफ कई प्रतिबंधों का समर्थन किया. ट्रंप ने 3 सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीशों को नियुक्त कर के अबौर्शन विरोधी आंदोलन को बल दिया जिस ने अबौर्शन के अधिकार को समाप्त कर दिया.

ट्रंप ने फेडरल जजों की नियुक्ति करते समय ऐसे उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी जो अबौर्शन के खिलाफ थे जिस के कारण महिला अधिकार संगठनों और अबौर्शन समर्थक कार्यकर्ताओं ने इस पर आपत्ति भी जताई थी. अबौर्शन का अधिकार महिलाओं के लिए एक व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मानवाधिकार का विषय होने के बावजूद ट्रंप की नीतियों के कारण इन्हें कानूनी और सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा.

अबौर्शन पर ट्रंप का सब से विवादास्पद कदम ‘मैक्सिको सिटी पौलिसी’ को रीवाइव करना था जिस में उन अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को आर्थिक सहायता नहीं दी जाती जो अबौर्शन सेवाएं प्रदान करते हैं या इस के पक्ष में हैं. यह नीति उन महिलाओं के लिए भी हानिकारक रही जिन्हें स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच के लिए अंतर्राष्ट्रीय संगठनों पर निर्भर रहना पड़ता था.

ट्रंप का महिलाओं के प्रति नीचा नजरिया

ज्यादातर लोगों का मानना है कि ट्रंप एक रक्षक नहीं बल्कि एक भक्षक हैं. अमेरिकी इतिहास में यह एक अजीब मोड़ लगता है कि 2 राष्ट्रपति चुनावों में 2 महिला उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव लड़ने वाला एकमात्र व्यक्ति वह है जिस का महिलाओं को नीचा दिखाने का एक लंबा और स्पष्ट रिकौर्ड है. डोनाल्ड जे. ट्रंप ने बारबार अपने रास्ते में खड़ी महिलाओं पर हमला करने, उन्हें शर्मिंदा करने और धमकाने की कोशिश की है.

ट्रंप ने महिलाओं को डराने के लिए अपनी शारीरिक उपस्थिति और शारीरिक भाषा का इस्तेमाल किया है, परोक्ष रूप से धमकियां दी हैं और उन की योग्यताओं को इस तरह से कमतर आंका है जिसे कई महिलाएं खुले तौर पर लैंगिक भेदभाव मानती हैं.

ट्रंप के ट्विटर अकाउंट पर महिलाओं के लुक्स के बारे में कई अपमानजनक टिप्पणियाँ हैं. ट्रंप ने एक बार ‘सैलिब्रिटी अप्रैंटिस’ में एक प्रतिभागी से कहा था, ‘उसे घुटनों के बल देखना एक सुंदर तसवीर होगी.’ क्या आपको ऐसा लगता है कि यह उस व्यक्ति का स्वभाव है जिसे एक राष्ट्रपति के रूप में चुना जाना चाहिए था?

हिलेरी क्लिंटन ने एक किताब में लिखा, ‘‘उन्हें महिलाओं को अपमानित करना पसंद है, हम कितने घृणित हैं इस बारे में बात करना पसंद है. वे मु?ो डराने की कोशिश कर रहे थे.’’

सार्वजनिक और निजी जीवन में उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि महिलाएं उन के लिए इंसान के रूप में नहीं बल्कि सैक्स औब्जैक्ट के रूप में माने रखती हैं. यहां तक कि जिन महिलाओं को वे पसंद करते हैं और जिन की प्रशंसा करते हैं उन के साथ भी उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि वे उन की खूबसूरती को सब से ज्यादा महत्त्व देते हैं.

उन्होंने अपने व्यवहार को अपने दफ्तरों, अपने रिसौर्ट्स और अपने टीवी शो में भेदभावपूर्ण नीतियों में बदल दिया. जो महिलाएं उन्हें आकर्षक लगीं उन्हें परेशान किया और अपने कर्मचारियों से उन महिलाओं को नौकरी से निकालने का आग्रह किया जिन्हें वे आकर्षक नहीं मानते थे.

ट्रंप का कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ भेदभाव करने का भी लंबा रिकौर्ड है. जब ट्रंप किसी महिला को नापसंद करते हैं तो उन की प्रवृत्ति उस के शारीरिक रूप का अपमान करने की होती है. जब वे किसी महिला को पसंद करते हैं तो वे इस के विपरीत करते हैं और तुरंत उस की सुंदरता की प्रशंसा करते हैं. अगर ट्रंप महिलाओं का सम्मान करते तो उन्हें इस बात की परवाह होती कि वे क्या सोचती हैं.

इवाना ट्रंप (ट्रंप की पहली पत्नी) ने तलाक के बयान में कहा था कि ट्रंप ने उन के साथ बलात्कार किया.

एक बार उन्होंने अपनी बेटी इवांका के क्बारे में कहा था, ‘‘मेरी बेटी इवांका 6 फुट लंबी है, उस की बौडी अच्छी है और उस ने मौडल के रूप में बहुत पैसा कमाया है. अगर इवांका मेरी बेटी नहीं होती तो शायद मैं उस से डेटिंग कर रहा होता.’’

विरोध में शुरू किया 4बी मूवमैंट

डोनाल्ड ट्रंप के हाल ही में पुन: निर्वाचित होने से महिला अधिकारों और लैंगिक समानता पर बहस फिर से शुरू हो गई है जिस से पूरे अमेरिका में ‘4बी मूवमैंट’ की नई लहर पैदा हो गई है. मूल रूप से दक्षिण कोरिया से उभरने वाला 4बी मूवमैंट महिलाओं को पुरुषों के साथ डेटिंग, विवाह, यौन संबंध और बच्चे पैदा करने से दूर रहने के लिए प्रोत्साहित करता है. इसे अमेरिका में विवादास्पद चुनाव के बाद अपनाया जा रहा है जहां गर्भपात के अधिकार जैसे मुद्दों ने केंद्रीय भूमिका निभाई. आंदोलन के अधिवक्ताओं का तर्क है कि विभिन्न सामाजिक नीतियों पर ट्रंप के रुख, विशेष रूप से अबौर्शन अधिकारों के प्रति उन के दृष्टिकोण ने महिलाओं को अपने निजी जीवन में अधिक कठोर रुख अपनाने के लिए प्रेरित किया है.

ट्रंप के फिर से चुने जाने के बाद से एक्स जैसे सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर ‘4बी’ बैनर के तहत पोस्ट में उछाल देखा गया है जिस में कई महिलाएं विरोध के रूप में पुरुषों के साथ संबंधों से बचने के लिए रैली कर रही हैं. इस मूवमैंट का सार है कि अगर वे हमारे शरीर पर कब्जा करना चाहते हैं तो हम उन्हें ऐसा नहीं करने देंगे.

Motivational Story : कैसी जिंदगी

Motivational Story : मीता अपने  घर से निकली. पूरे रास्ते वह बेचैन  ही रही. दरअसल, वह अपने बचपन की सखी तनु से हमेशा की तरह मिलने व उस का हालचाल पूछने जा रही थी.  हालांकि, मीता बखूबी जानती थी कि वह तनु से मिलने जा तो रही है पर बातें तो  वही होनी हैं जो पिछले हफ्ते हुई थीं  और उस से पहले भी हुई थीं. मीता का  चेहरा देखते ही तनु एक सैकंड भी बरबाद नहीं करेगी और पूरे समय, बस,  इसी बात का ही रोना रोती रहेगी कि, ‘हाय रे, यह कैसी जिंदगी? आग लगे इस जिंदगी को, मैं ने सब के लिए यह किया वह किया, मैं ने इस को आगे बढ़ने की  सीढ़ी दी, पर  आज कोई मदद करने वाला नहीं. गिनती रहेगी कि यह नहीं वह नहीं…’

मीता जानती थी कि जबरदस्ती की पीड़ा तनु ने पालपोस कर  अमरबेल जैसी बना ली है. काश, तनु अपनी आशा व उमंग को खादपानी देती, तो आज जीवन का  हर कष्ट, बस, कोई हलकी समस्या ही  रह जाता और एक प्रयोग की  तरह तनु उस के दर्द से भी  पार हो जाती. मगर, तनु ने तो अपनी सोच को इतना सडा़ दिया था कि  समय, शरीर और ताकत सब मंद पड़ रहे थे.

सहेली थी, इसलिए मीता की  मजबूरी हो जाती कि उस की इन बेसिरपैर की  बातों को चुपचाप सुनती रहे. आज भी वही सब दुखदर्द, उफ…

मीता ने यह सब सोच कर ठंडी आह भरी और उस को तुरंत  2 दशक पहले वाली तनु याद आ गई. तब तनु 30 बरस की  थी.  कैसा संयोग था कि तनु का  हर काम आसानी से हो जाता था. अगर  उस को लाख रुपए की  जरूरत भी होती तो परिचित व दोस्त तुरंत मदद कर देते थे. मीता को याद था कि कैसे तनु रोब से कहती फिरती कि, ‘मीता, सुन,  मैं समय की बलवान हूं, कुछ तो है मेरे व्यक्तित्व में कि हर काम बन जाता है और जिंदगी टनाटन  चल रही है.’ मगर  मीता सब जानती थी कि यह पूरा सच नहीं था.

असलियत यह थी कि तनु आला दर्जे की  चंट  और धूर्त हो गई थी. उस ने 5 सालों में ऐसे अमीर, बिगडै़ल व इकलौते वारिस संतानों को खूब दोस्त बना कर ऐसा लपेटा था कि वे लोग तनु के  घर को खुशी और सुकून का  अड्डा मान कर चलने लगे. मीता सब जानती थी कि  कैसे प्रपंच कर के  तनु ने लगभग ऐसे ही धनकुबेर दसबारह दोस्तों से बहुत रुपए उधार ले लिए थे और वह सीना ठोक कर कहती थी कि जिन से पैसा उधार लिया है वे सब अब देखना, कैसे जीवनभर मेरे इर्दगिर्द चक्कर काटते रहेंगे. मीता जब आश्चर्य  करती तो वह कहती कि मीता, तुम तो नादान हो, देखती नहीं कि यह सब किस तरह अकेलेपन के मारे हैं बेचारे. लेदे कर इन को मेरे ही घर पर आराम मिलता है.

मगर मीता तनु की ये सब दलीलें सुन कर बहुत टोकती  भी थी कि, बस, घूमनेफिरने और महंगे शौक पूरे करने का  दिखावा बंद करो, तनु. आखिर दोस्त भी कब तक मदद करते रहेंगे?

पर तनु जोरजोर से हंस देती थी और कंधे झटक  कर कहती कि मीता, मेरी दोस्ती तो ये लोग तोड़ ही नहीं सकते. देखो, मैं कौन हूं, मैं यहां नगरनिगम की  कर्मचारी हूं. मेयर तक पहुंच है मेरी. मैं सब के बहुत  काम की  हूं वगैरहवगैरह. यह सुन कर मीता खामोश हो जाती थी. पर वह कहावत है न कि, परिवर्तन समय का  एक नियम है. इसलिए  समय ने रंग दिखा ही दिया. तनु का अपने  पति  से अलगाव हो गया और उस की  इकलौती बेटी गहरे  अवसाद में आ कर बहुत बीमार रही. कहांकहां नहीं गई तनु, किसकिस अस्पताल के  चक्कर नहीं लगाए. पर कोई लाभ नहीं हुआ. एक दिन बेटी कोमा मे चली गई. मगर अभी और परीक्षा बाकी थी. एक दिन  तनु का  नगर निगम में ऐसा विवाद व कानूनी लफड़ा हुआ कि वह विवाद महीनों तक लंबा खिंच गया. और  उस महज पचास की  उम्र में नौकरी से त्यागपत्र देना पड़ा. यही उपाय था, वरना,  उस को सब के सामने धक्के मार मार कर कार्यस्थल से  निकाला जाता. आज वह बीमार बेटी को संभाल रही थी. पर कोई पुराना मित्र या परिचित ऐसा नहीं था जो, उस से मिलना तो बहुत दूर की  बात, उस को मोबाइल पर संदेश तक भी गलती से नहीं भेजता था.

यह सब सोचतीसोचती  मीता अब तनु के घर पर पहुंच चुकी थी और वह बाहर गमलों को पानी देती हुई मिल गई.  मीता के  मुंह से निकल पड़ा, “आहा,  खूबसूरत फूलों की  संगत में वाहवाह.”

यह सुना  तो तनु फट कर  बोल पड़ी, “हां, जानपहचान वालों ने तो  मुझ को, बस,  कैक्टस और कांटे ही दिए. फिर भी कुछ फूल कहीं मिल ही गए.”  और फिर  पाइप से बहते पानी से अधिक आंसू उस की आंख से बहने लगे  और वह  बेचारी व कमजोर इंसान बन कर  हर परिचित को धाराप्रवाह बुराभला कहने लगी.

तब मीता ने कोई पल गंवाए बगैर कहा, “तनु, सुनो, यह जो दुख है न, हमारी उस याददाश्त की देन है जो खराब बातें ही याद दिलाती है. तुम को यह वर्तमान नहीं, बल्कि अतीत है जो रुला कर समय से पहले इतना जर्जर किए दे रहा है. बारबार लोगों को याद कर के लानतें  मत दो.  अच्छे लोगों  की कीमत तब तक कोई नहीं जानता, जब तक वे हमारे व्यवहार से आहत हो कर दूर  जाने न लगें. हमारे जीवन में  कुछ सुकून की जो सांस चल रही होती  है, वह इन सदगुणी लोगों के  कारण ही होती है. तनु, गौर से सुनो और   तुम एक बार याद तो  करो कि तुम को कितने सहयोगी दोस्त एक के  बाद एक मिलते रहे.”

तनु कुछ बोली नहीं. बस, चुपचाप सुनती रही. मीता बोलती गई, “तनु, कई लोग तो दशकों बिता देते हैं और संयोग से मिल रहे हितैषियों से भरपूर लाभ भी लेते रहते हैं पर वे लोग लापरवाह हो जाते हैं.   वे अपनी उस ख़ुशी या उन मित्रों की  अहमियत पर कभी ध्यान नहीं देते हैं जिन की वजह से उन की खुशी और आनंद आज  अस्तित्व में हैं. और सच कहा जाए तो वह ही  उन का सबकुछ है. कैसी विडंबना है कि आदमी इतना संकीर्ण हो जाता है कि  वह सब से पहले उसी अनमोल खजाने को बिसरा देता है.”

“मैं ने सब के लिए कितना किया,” तनु गुस्से व नाराजगी से बोली, “रमा को हर हफ्ते मेयर की  पार्टी में ले जाती थी. सुधा को तो सरकारी ठेके दिलवाए.  उस उमा को तो नगर निगम  के विज्ञापन दिला कर उस की वह हलकीफुलकी पत्रिका निकलवा  दी. सब का काम किया था मैं ने. पर आज कोई यहां झांकता तक नहीं.”

“नहीं तनु, यह निहायत ही  एकतरफा सोच है तुम्हारी. यह संकुचित सोच भी किसी अपराध से कम नहीं है क्योंकि ऐसे नकारात्मक सोचने वाला अपने दिमाग को सचाई से बिलकुल अलग कर लेता है.”

तनु यह सुन कर तमतमाता हुआ चेहरा कर के मुंह बनाने  लगी पर मीता निडर हो कर आगे बोली, “तुम पूरी बात याद करो, तुम कह रही हो कि  रमा को तुम दावतों  में ले जाती थीं. पर उस के एवज में रमा की  एक कार हमेशा तुम्हारे पास ही रही. और तुम ने रमा की  नर्सरी से लाखों के  कीमती पौधे मुफ्त में लिए, याद करो.”

तनु को वह सब याद आ गया और वह अपने होंठ काटती हुई कुछकुछ विनम्र हो गई. अब मीता ने कहा, “सुधा को तुम ने जुगाड़ कर के ठेका दिलवाया. हां बिलकुल,  पर तुम्हारे घर पर कोई भी आयोजन होता था तो सुधा की  तरफ से मुफ्त कैटरिंग  होती थी. बोलो, सच है या नहीं?” “ओह, हां, हां,” कह कर तनु चुप हो गई.

मगर अब  मीता बिलकुल चुप नहीं रही, बोली, “उमा  की  पत्रिका में तुम्हारी बेटी की  कविता छपना  जरूरी था. इतना ही नहीं, तुम ने उमा की  पत्रिका को  अपने ही  एक प्रिय पार्षद का  प्रचार साधन भी बनाया. याद आया कि नहीं, जरा ठीक से  याद करो.”

“हां,”  कह कर तनु कुछ उदास हो गई थी.  मीता को लगा कि उसे कहीं पार्क या किसी खुली जगह में चलने को कहना चाहिए.

आखिर मीता भी इंसान थी और तनु को उदास देख कर उस का मन भी खुश नहीं रह सकता था. मीता ने उस के जीवन का  हर रंग देख लिया था. तनु और  उस ने कितना समय साथ गुजारा था. मीता ने उस से कहा कि तनु, सुनो, अभी तो सहायिका  काम कर रही हैं, वे बिटिया को भी देखती रहेंगी. चलो, हम पास वाले पार्क तक चहलकदमी  कर आते हैं. तनु के लिए मीता सबकुछ थी- बहन, दोस्त, हितैषी सबकुछ. वह चट मान गई और उस के साथ चल दी.

घर की  चारदीवारी से पार होते ही तनु को कुछ अच्छा सा लग रहा था. वह आसपास की  चीजों को गौर से देखती जा रही थी. पार्क पहुंच कर दोनों आराम से एक बैंच  पर बैठ गईं.

तनु वहां पर उड़ रही तितली को यहांवहां देखने लगी. मीता को अब लगा कि आज तनु को सब याद दिलाना ही चाहिए, ताकि यह अपनी सोच को सही व  संतुलित कर के सकारात्मक ढंग से विचार कर सके और खुद भी  किसी पागलपन जैसी बीमारी का  शिकार न हो जाए. तनु को उम्र के  इस मोड़ पर मानसिकरूप से सेहतमंद  होना बहुत अनिवार्य था. मीता यह सोच ही रही थी कि तनु  अचानक अपने पति पुष्प  का जिक्र करते हए पुष्प  को बुराभला कहने लगी. उन की पुरानी गलतियां बता कर शिकायतें करने लगी.

पर मीता ने उस को बीच में ही फिर टोक दिया और जरा जोर दे कर कहा, “तनु, अगर तुम्हारे पति प्राइवेट स्कूल में शिक्षक न हो कर कोई बढ़िया नौकरी कर रहे होते तो तुम इतना रोब दिखातीं उन को, जरा ईमानदारी से याद करो,  तनु. सुनो तनु, तुम उन की सारी तनख्वाह को जब्त कर लेती थीं और अपने ढंग से कहीं प्लौट खरीद लेतीं और लोन की  किस्तें पुष्पजी के वेतन से चुकाई  जातीं. वे कुछ कहते, तो तुम अपना रोबदाब दिखाने लगती थीं. तुम ने एक सरल व सच्चे इंसान को हौलेहौले मंदबुद्धि बना दिया, तनु. वे तुम्हारे चलते यह शहर ही छोड़ कर चले गए. पर आज वे आनंद से हैं, अकेले हैं, पर समाज की  सेवा में बहुत खुश हैं.”

तनु यह सब चुपचाप सुनती रही. उस से कोई जवाब देते ही नहीं बन रहा था. मीता आगे बोली, “तनु, याद है एक बार तुम उन को अपने मेयर साहब से  सिफारिश कर के नगर निगम का कोई सम्मान दिलवा लाई थीं, जबकि पुष्पजी तो चाहते ही नहीं थे कि उन को कोई मानपत्र दिया जाए. पर तुम ने कितना भौंडा प्रदर्शन किया. मुझे तो पुष्पजी का  चेहरा याद आता है कि वे तुम्हारे इस दिखावे के  शोरशराबे और आत्मप्रदर्शन से कितने आहत हो गए थे.

“वे यही सोचते कि एक सरल जीवन जिया जा सकता है. पर तुम तो न जाने किस लत में पड़ गई थीं कि यहां की  गोटी वहां फिट कर दो, इस को आगे करो, उस को पीछे करो, इस से इतना रुपया ऐंठ लो और भी न जाने क्या सनक थी तुम को.  तुम ऐसा क्यों करती थीं. तनु, कितनी ही बार पुष्पजी कोशिश करतेकरते हार गए  कि तुम्हारा यह दंभ और अहंकार  और झूठे पाखंड किसी तरह कम हो जाएं, पर एक बूंद के  बरसने  से ज्वालामुखी कहां शांत होता है.

“तुम तो पूरी महफिल में सरेआम  न जाने क्या से क्या बोल जातीं. तुम हमेशा पुष्पजी के  ड्रैसिंग सैंस का  मजाक उड़ाया करतीं और उन के पहने हुए लिबास को बदलवा  कर दोबारा तैयार होने को कहतीं थीं. वे कितना दुखी हो जाते पर तुम को तो, बस, दिखावा ही चाहिए था. तुम उन के अच्छे कपड़ों पर कैसे टिप्पणी कर देती थीं कि यह देखो, मैं खरीद कर लाई हूं, यह मेरी पसंद की  जींस है. इस पर वे बेचारे कितना झेंप जाते थे. पर तुम को कुछ समझ नहीं आता था.

“पुष्पजी तुम्हारे साथ बहुत असहज होने लगे थे. वे कई बार ऐसे लगते जैसे किसी कैदखाने में  घुट रहे हैं. बस, एक दिन उन्होंने फैसला कर लिया होगा कि चाहे किसी जंगल में खुशीखुशी  रह लेंगे, पर तुम्हारी इस झूठ से भरी हुई  नौटंकीशाला  में कतई नहीं.

“और तनु, तुम्हारी आंखों में तो कितने परदे पड़े थे. सावन के  अंधे को सब हरा ही हरा दिखता है. तुम को अपनी जोड़जुगाड़ वाली कूटनीति के  चश्मे से यही दिखता था कि पुष्पजी से ले कर सब परिचित, बस, इक तुम्हारी ही छत्रछाया में सुकून से हैं.”

तनु यह सब ऐसे सुन रही थी मानो उस के खिलाफ कोई झूठा मुकदमा चलाया जा रहा हो.

मीता धाराप्रवाह बोलती गई, “तनु,  पता है, तुम जब तक उन के सामने नहीं होती थीं वे जिंदगी का  आनंद लेते पर तुम दफ्तर से आतीं तो वे सकपका से जाते. तुम जैसे कोई तबाही बन गई थीं उन के लिए. हम लोग कितना संकेत करते, पर तुम इतनी जोरदार व भारी आवाज में हमारी हर बात काट दिया करती थीं.”

यह सब कहतेकहते जब मीता जरा देर के लिए चुप हो गई तो तनु बोल पड़ी, “हुंह,  मीता, तुम तो आज मुझे दोस्त लग ही नहीं रही हो. हद करती हो तुम, पुष्प के  परिवार को गोवा तक घुमाने ले गई वह भी सरकारी खर्च पर. ऐसा शाहीभ्रमण उन के वश की  बात ही नहीं है, मीता.”

“नहीं तनु, तुम फिर एकतरफा सोच रही हो. वह परिवार बहुत सादगीपसंद है. तुम्हारी चालें, तुम्हारे दांवपेंच  वे नहीं जान सका कभी. तुम अपनी ननद और ननदोई को जिद कर के उन की मरजी के  विरूद्ध गोवा ले गईं और उस से पहले ही तुम ने इस बात का  हर जगह भोंपू बजा कर इतना प्रचार कर दिया था कि सुनसुन कर  पुष्पजी शर्मिंदा हो जाते थे मानो वे कोई नितांत फकीर हैं और तुम ने उन को व उन के गरीब परिवार को शाहीजीवन उपहार में दिया है. पर तुम को यह सब कभी समझ नहीं आया.

“तुम को याद भी नहीं. पर तुम्हारे ननद और ननदोई गोवा जा कर बहुत परेशान हो गए थे. तुम से कहना चाहते थे पर तुम तो अपने प्रभाव व अपने रोब के खोल में बंद रहती थीं. तुम ने एक बार पलभर को भी उन दोनों का  मन नहीं जाना. पर यह बात तुम्हारी ननद ने अपने भाई यानी पुष्पजी से कही कि वहां इतने ओछे और छिछोरे लोगों के  साथ तुम ने उन को पलपल कितना विचलित किया. वे दूसरे दिन लौट जाना चाहते थे पर तुम ने उन को दबाव में ले कर पूरा सप्ताह जैसे उन का मानसिक शोषण किया था.

“तनु, वे बहुत ही सरल लोग हैं. इतना छलकपट, इतना दिखावा उन के वश की  बात नहीं है. पर तुम तो गोवा से लौट कर भी अपनी उदारता का  बखान करती रहीं कि ननदननदोई को घुमा लाईं वगैरहवगैरह.”

“पर आज देखो, तुम्हारे ननद और ननदोई सिर्फ अपने खूनपसीने की  मेहनत के  बल पर  कितने सफल उद्योग चला रहे हैं. कितनों  को रोटी दे रहे हैं. और तुम उन पर ऐसे अपना सिक्का जमाने की  कोशिश करती थीं. तनु, पुष्पजी हों या उन के बहनबहनोई, वे सब मुझ से बहुत प्रेम रखते हैं. मगर मैं आज भी, बस, तुम से ही लगाव रखती हूं, बस, तुम से स्नेह रखती हूं. क्योंकि, एक जमाने में तुम्हारे पापा ने मेरी एक साल की  स्कूल फीस जमा कराई थी. तनु, मेरे पास सब की खबर है, पर मेरा मन हमेशा तुम से ही जुडा रहेगा. मैं सदैव तुम्हारी ही भलाई चाहती हूं.” यह सब कह कर मीता चुप हो गई.

तनु यह सुन कर एकदम खामोश हो गई. थोड़ी देर बाद बोली, “मीता, एकएक बात  सच कह रही हो. मैं जल्दी मालदार बनना चाहती थी और अमीरों की  कमजोरी भांप कर उन का काम करवा कर रुपया मांग लेती थी. पर आज यह लगता है कि शायद मेरी यह फितरत सब भांप गए और मुझ से दूर होने लगे. सच मीता, अगर मैं यह प्रपंच वगैरह न करती तो कम पैसा होता पर कितनी खुशी होती और कितने अपने मेरे साथ होते. आज, बस, तुम ही हो जो मेरा साथ निभा रही हो. अब तुम देखना, मैं संकल्प करती हूं कि  अपनी सोच बदल दूंगी. मैं, बस, प्रकृति की  सेवा करूंगी और बेटी जल्द सही हो, इस की कोशिश. कोई मदद मांगने आए, तो गुप्तदान करूंगी,” कहते हुए तनु का  गला भर आया और वह किसी तरह अपने आंसू रोकने लगी.

“हां तनु, यह ही सही मार्ग है. आखिर तनु,  ऐसी समुचित मानसिक स्थिति होगी तो फिर किसी भी हाल  में तुम्हारा  बुरा  कैसे संभव है? अब तुम इसी पल से अपने को बदल कर रख दो. वह मन सुधार लो जो  अपना काम निकालने को परिचय की  जोड़तोड़ करता रहे. बोलो  तनु, कुदरत  का भी अपना एक अटल कानून है. वह अच्छे लोगों से मिलवाती  रहती है. मगर जब हम उन सहयोगी जनों को बारबार नजरअंदाज करते हैं तो  वे अंतिमरूप से चले जाते हैं और उस के बाद  तो फिर संसार की कोई भी ताकत उन को वापस नहीं बुला सकती है. इस के साथ ही किसी की भी सिफारिश काम नहीं आती है. इस में किसी भी रिश्वत का आदानप्रदान नहीं होता है. इस अच्छे संबंध को तो  आप बाजार से नहीं खरीद सकते हैं. और चाहकर भी इसे आप किसी को नहीं दे सकते हैं और किसी से छीनझपट कर भी  ले नहीं सकते हैं.

“अब  यह पूरी तरह से  हम सब के  ऊपर ही तो  निर्भर करता है कि हम जैसा चाहें, इस अच्छी संगति  को अंत दे सकते हैं.” “हां मीता, सच कहा, इस जीवन को खुशियों से  संपन्न करने के लिए मुझ को ही  यह जिदंगी सफल करनी पड़ेगी. इस जीवन के अंदर समझदारी की स्थापना करनी पड़ेगी.”

“हांहां तनु, हां,”  कहते हुए मीता की  आंखों में तनु की आंखों से टकराती  इंद्रधनुषी आभा प्रतिबिंबित होने लगी.

Winter Special Momos Recipe : घर पर बनाएं हेल्दी और टेस्टी वेज मोमोज

Winter Special Momos Recipe : मोमोज का नाम सुनते ही मुंह में पानी न आए ऐसा हो ही नहीं सकता और अगर ठंड के मौसम में गर्मागर्म मोमोज खाने को मिल जाएं तो कहने ही क्या.  लेकिन क्या उसमें इस्तेमाल होने वाला मैदा याद आते ही आप हाथ पीछे कर लेते हैं. अगर ऐसा है, तो आज हम आपको बता रहे हैं आटा वेज मोमोज की रेसिपी जो आपकी क्रेविंग को पूरा करेगी और सेहत के लिए भी खराब नहीं होगी… ये मोमोज खाने में जितने स्वादिष्ट हैं उतने ही सेहत के लिए भी अच्छे. इन मोमोज़ को बच्चे और बड़े बहुत ही मन से खायेंगे और ये स्ट्रीट फ़ूड की तुलना में स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी नहीं है.

मोमोज़ की सबसे बड़ी खासियत ये है की इसको बनाने में तेल का उपयोग बहुत ही कम होता है और यह आसानी से भाप में पक भी जाते है.और आप चाहे तो आप मोमोज़ में मनचाही सब्जियां भी डाल सकते है.
तो देर किस बात की आइए जान लेते हैं आखिर कैसे बनाएं जाते हैं आटे के वेज मोमोज-

कितने मोमोज़ बनेंग-25 से 30
कितना समय -20 से 25 मिनट

हमें चाहिए-

• 250 gm आटा
• 1 चम्मच नमक
• 1 चम्मच तेल
• जरूरत के अनुसार पानी

स्टफिंग के लिए-

• ¼ कप बारीक़ कटी हुई प्याज
• 1 मध्यम साइज़ घिसी हुई बन्दगोभी
• 1/4 कप बारीक कटी शिमला मिर्च
• 1/4 कप घिसी हुई गाजर
• 1 टेबलस्पून लहसुन का पेस्ट
• 1 चुटकी अजीनोमोटो(ऑप्शनल)
• ½ टेबलस्पून तेल

बनाने का तरीका-

1- एक कटोरी में गेहूं का आटा लें और उसमें नमक और तेल डालें. इसमें पानी डालकर गूंधे .आटा ज्यादा कड़ा न गूंधे .आटे को एक कटोरे के साथ कवर करें और 1 घंटे के लिए अलग रखें.

2- अब घिसी हुई बंदगोभी और गाजर को हाथ से दबा -दबा कर उसका पानी निचोड़ ले.

3- अब एक कढ़ाई में 1 छोटा चम्मच तेल गर्म करें. लहसुन का पेस्ट डालें और तब तक फ्राई करें जब तक कि यह रंग में हल्का सुनहरा न हो जाए. अब कटे हुए प्याज डालें .प्याज़ को हल्का लाल होने तक भूने. अब इसमे बंदगोभी ,गाजर और शिमला मिर्च डालकर तेज़ आंच में भून लें.
(Note :आप चाहे तो आप फ्रेंच बीन्स ,स्वीट कॉर्न या और भी कोई मनचाही सब्जी मोमोज में डाल सकते है)

4- अब ऊपर से नमक, अजीनोमोटो डालकर अच्छी तरह मिला लें. अब गैस का स्विच ऑफ करें और इस मिश्रण को अलग रखें. स्टफिंग तैयार है.

(ध्यान रहे : आप चाहे तो अजीनोमोटों का प्रयोग नहीं भी कर सकते है )

5- अब आटे की छोटी-छोटी गोलियां बनाये और उनको पतला पतला बेल ले .अब स्टफिंग को बीच में रखें और आटे का बाहरी हिस्सा उठाएं. रोल में भराव बंद करने के लिए बाहरी भाग को आपस में चिपका दें .

(note:आप चाहे तो आप एक बड़े आकार की लोई काट कर उसे थोड़ा बड़ा और पतला बेल लें और फिर एक छोटे ग्लास की सहायता से उसे काट लें , इससे आपको बार -बार लोई बेलनी भी नहीं पड़ेगी और आपका समय भी बचेगा)
6- बाकी आटे के लिए प्रक्रिया दोहराएं.

7- प्रेशर कुकर का इस्तेमाल भाप लेने के लिए करें. प्रेशर कुकर में एक 2 कप पानी डालें और उस कुकर पर दूध वाली छलनी रखें. अब छलनी के ऊपर मोमोज़ रख दे और ऊपर से छलनी की शेप की प्लेट से ढक दे .8 से 10 मिनट तक पकाएं.

8- स्वादिष्ट आटा वेज मोमोज़ तैयार हैं. इसको लहसुन और लाल मिर्च की चटनी के साथ खाए.

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