Hindi Kahani : अब क्या करूं मैं

Hindi Kahani : ‘‘भाभी, शीशे पर क्या गुस्सा निकाल रही हो, जो हो रहा है उसे होने दो. मैं तो कई साल पहले से ही जानती थी. आज का यह दिन तुम्हें न देखना पड़े इसीलिए तो सदा टोकती रही हूं कि अपना व्यवहार इतना भी हलका न बनाओ…’’

‘‘मेरा व्यवहार हलका है?’’ सदा की तरह भाभी ने आंखें तरेरीं, ‘‘तू होगी हलकी…तेरा सारा खानदान होगा हलका…’’

भैया और भतीजा पास ही खड़े थे. मेरी आंखें उन से मिलीं. शरम आ रही थी उन्हें अपनी पत्नी और मां के व्यवहार पर. आज बरसों बाद मैं मायके आई हूं. नाराज थी भाभीभाई से, ऐसा कहना उचित नहीं होगा, मैं तो बस, भाभी के व्यवहार से तंग आ कर मायके को त्याग चुकी थी.

भाभी का ओछा व्यवहार और ऊपर से भैया का चुपचाप सब सुनते रहना जब तक सहा गया सहती रही और जब लगा अब नहीं सह सकती, पीठ दिखा दी. उम्र के इस पड़ाव पर, जब मैं भी सास बन चुकी हूं और भाभी भी दादीनानी, बच्चों की तरह उन का लड़ पड़ना अभी गया नहीं है. आज भी उन में परिपक्वता नहीं आई.

‘‘मेरे खानदान को छोड़ो भाभी, तुम्हारामेरा खानदान अलगअलग कहां है, जो खानदान पर उतर आई हो. आधी उम्र मैं इस खानदान की बेटी रही हूं, मेरा खानदान तो यह भी है, जो आज तुम्हारा है. हमारी उम्र इस तरह लड़ने की नहीं रही जो हम ऊलजलूल बकते रहें. आज सवाल हमारे बच्चों का है कि हमारे व्यवहार से उन का अनिष्ट हो, ऐसा नहीं होना चाहिए.’’

‘‘अरे, मेरी बेटी का सर्वनाश तो तेरे कारण हो रहा है चंदा, तेरी ही ससुराल के हैं न उस के ससुराल वाले…तू ही उस का पैर वहां लगने नहीं देती.’’

‘‘मेरी ससुराल में जब बेटी का रिश्ता किया था तब क्या मुझ से पूछा था तुम ने, भाभी? भैया, आप ने भी जरूरी नहीं समझा मुझे बताना कि लड़का कितना पढ़ालिखा है, कोई बुरी आदत तो  नहीं. भला मुझ से बेहतर कौन बताता आप को जिस के सामने वह पलाबढ़ा है… तब तो मैं आप को दुश्मन नजर आती थी कि कहीं रिश्ता ही न तुड़वा दूं.

‘‘मुझे तो पता ही तब चला था जब मेरी चचिया सास ने शादी का कार्ड हाथ में थमा दिया था. क्या कहती मैं तब अपनी ससुराल में कि आने वाली मेरी सगी भतीजी है, जिस की मां और बाप ने मुझे एक बार पूछा तक नहीं.’’

गला भर आया मेरा, ‘‘जानती हो भाभी, मेरी चचिया सास ने भी इसी अनबन का फायदा उठाया और अपना खोटा सिक्का चला लिया. अब जो हो रहा है उस में मेरा दोष क्यों निकाल रही हो. तुम्हारी बच्ची वहां सुखी नहीं है तो उस में मैं क्या करूं? न मैं कल किसी गिनती में थी न ही मैं आज किसी गिनती में हूं.’’

‘‘उसी का बदला ले रही है न चंदा, तू चाहती है कि मेरी बेटी तेरी जूती के नीचे रहे…’’

‘‘मेरा घर तो उस के घर से 50 किलोमीटर दूर है भाभी. भला मेरी जूती के नीचे वह कैसे रह सकती है? सच तो यह है कि जो कलह तुम सदा यहां डालती रही हो उसी को अपनी बच्ची के संस्कारों में गूंथ कर तुम ने साथ बांध दिया है. एक तो सोना उस पर सुहागा. पति अच्छा होता तो पत्नी की आदतों पर परदा डालता रहता…जिस तरह भैया डालते रहे हैं लेकिन वहां वह भी तो सहारा नहीं है… शराबी, चरित्रहीन पति, पत्नी को नंगा करने में लगा रहता है और पत्नी, पति के परदे तारतार करने से नहीं चूकती. उस पर आग में घी का काम तुम करती हो.

‘‘बेटी का घर बसाना चाहती हो तो कम से कम अब तो जागो और बेटी को समझाओ कि समझदारी से काम ले. घर में रुपएपैसे की कमी नहीं है. लड़का अच्छा नहीं, लेकिन सासससुर तो लड़की को सिरआंखों पर रखते हैं. पति को समझाए, उसे सुधारने का प्रयास करे.’’

‘‘कैसे समझाए उसे मेरी बेटी? उस के तो 10-10 हजार चक्कर हैं. कईकई दिन वह घर ही नहीं आता. ऊपर से तू भी उसी को दोष देती है.’’

‘‘तो क्या करूं मैं? कोई बीच का रास्ता निकालना होगा न हमें. कम से कम घर तो संभाल ले तुम्हारी बेटी…सासससुर इज्जतमान देते हैं तो उन्हीं का मान रख कर घर में सुखशांति बनाने की कोशिश करे. मेरे दोष देने या न देने का कोई अर्थ नहीं है भैया, मैं कब उस के घर जाती हूं. तुम ने इतना प्यार ही कहां छोड़ा है कि वह बूआ के घर आना चाहे या मैं ही उसे अपने घर बुलाऊं…तुम्हारे परिवार से दूर ही रहने में मैं अपना भला समझती हूं.’’

मन भर आया मेरा और मैं अतीत में विचरण करने लगी. यही वह घरआंगन है जहां मैं और भैया दिनभर धमाचौकड़ी मचाते थे. अच्छा संस्कारी परिवार था हमारा मगर भाभी के आते ही सब बिखर गया. छोटे दिलोदिमाग की भाभी की जबान गज भर लंबी थी. कुदरत ने शायद लंबी जबान दे कर ही बुद्धि और विवेक की भरपाई करने का प्रयास कर दिया था, जिस का भाभी जम कर इस्तेमाल करती थीं. अवाक् रह जाते थे हम सब. बच्चों की तरह लड़ पड़ती थीं मुझ से. समझ में नहीं आता था कि भाभी का दिमाग इस दिशा में जाता है तो जाता कैसे है.

एक पढ़ालिखा सभ्य इनसान किसी दूसरे पर सीधासीधा आरोप लगाने से पहले हजार बार सोचता है कि बरसों का रिश्ता कहीं टूट ही न जाए, लेकिन भाभी तो अपनी जरा सी चीज आगेपीछे होने पर भी झट से मुझ पर आरोप लगा देती थीं कि मैं ने अपनी आंखों से देखा है.

स्तब्ध रह जाती थी मैं. कैसी बातें करती हैं भाभी. पहलेपहल तो सब मुझे शक से देखते रहे थे फिर धीरेधीरे समझ गए कि यह सब भाभी के ही दिमाग की उपज है.

भैया से 4-5 साल छोटी हूं मैं और मांबाप की लाड़ली, समझदार बेटी जो भाभी के आते ही चोर, चुगलखोर और पता नहीं क्याक्या बन गई थी.

‘यह क्या हो गया है तुम्हें चंदा, तुम भाभी से झगड़ा क्यों करती हो? उस का सामान भी उठा ले जाती हो और पैसे भी निकाल लेती हो. तुम तो ऐसी नहीं थीं. क्या भाभी से तालमेल बिठाना नहीं चाहती हो? तुम्हें भी तो एक दिन ससुराल जाना है और अगर तुम्हारी ननद भी ऐसा ही करे तुम्हारे साथ तो कैसा लगेगा तुम्हें?’ भैया ने अकेले में ले जा कर एक दिन पूछा था.

मेरे तो पैरों के नीचे से जमीन ही निकल गई थी. यह क्या कह रहे हैं भैया. तब समझ में आया भैया के खिंचे- खिंचे रहने का कारण.

‘मैं ने भाभी के पैसे निकाल लिए? नहीं तो भैया, जरूरत होगी तो आप से या पिताजी से मांग लूंगी. भाभी के पैसे चुराऊंगी क्यों मैं?’

‘तुम ने अपनी भाभी के 300 रुपए नहीं निकाल लिए? और वह शिकायत कर रही है कि उस का भारी दुपट्टा और सुनहरी वाली सैंडल भी…’

‘भैया, भारी दुपट्टा मेरे किस काम का और भाभी के पैर का नाप मेरे पैर में कहां आता है? कैसी बेसिरपैर की बातें करते हो तुम, जरा सोचो, दुलहन का सामान मेरे किस काम का?’

‘वह कहती है कि तुम उस का सामान चुरा कर अपने लिए संभाल रही हो.’

असमंजस में पड़ गई थी मैं. क्या हमारे इतने बुरे दिन आ गए हैं कि मैं अपनी भाभी का सामान चुरा कर अपना दहेज सहेजूंगी.

पता नहीं कैसे मां ने भी हमारी बातें सुन लीं और हक्कीबक्की सी भीतर चली आईं.

‘क्या यह सच है, चंदा? तू ने अपनी भाभी का सामान चुराया है?’

काटो तो खून नहीं रहा था मुझ में. क्या मां की भी मति मारी गई है? उस पर भाभी का यह भी कहना कि मैं ने अपनी आंखों से देखा है.

ऐसी खाई खोद दी थी भाभी ने घर के सदस्यों के बीच जिसे पाटना सब के बस से बाहर था.

हर पल वह किसी न किसी पर कोई न कोई लांछन लगाती रहतीं जिस पर हमारा परिवार हर पल अपनी ईमानदारी ही प्रमाणित करने में लगा रहता था. लगता, हम सब चोर हैं जो बस, भाभी के ही सामान पर नजर गड़ाए रहते हैं.

‘कहीं की रानीमहारानी है क्या यह लड़की?’ गुस्से में बोल पड़े थे पिताजी, ‘जब देखो, किसी न किसी को चोर बना देती है. हम भूखेनंगे हैं क्या जो इसी के सामान पर हमारी नजरें रहें. बेटा, इस ने हमारा जीना हराम कर दिया है. क्या करें हम, कहां जाएं, हमारा तो बुढ़ापा ही खराब हो गया है इस के आने से.’

2-3 साल बीततेबीतते मेरी शादी हो गई थी और मांपिताजी ताऊजी के पास रहने चले गए थे. उन्होंने अपने  प्राण भी वहीं छोड़े थे और मेरा मायका भी इसी दुख में छूट गया था.

भाई का घर बसा रहे इस प्रयास में सारे बंधन तोड़ दिए थे मैं ने. भाभी के बच्चे बहुत छोटे थे तब, जब मैं ने आखिरी बार मायका देखा था. भैया कभी शहर से बाहर जाते तो मुझ से मिलते जाते जिस से थोड़ीबहुत खबर मिलती रहती थी वरना मैं ने तो मायके की ओर से कभी के हाथ झाड़ लिए थे.

बेटे की शादी पर भी मैं यह सोच कर नहीं आई कि क्या पता भाभी इस बार कौन सी चोरी का इल्जाम लगा दें. मैं ने अपनी बेटी की शादी में सिर्फ भैया को बुलाया था जिस पर भाभी ने यह आरोप लगाया था कि भैया ने भाभी का सोने का हार ही मुझे दे दिया है.

एक दिन मैं ने भैया से फोन पर पूछा था कि भाभी का कौन सा हार उन्होंने मुझे दिया है तो रो पड़े थे वह, ‘जीवन नर्क हो गया है मेरा चंदा, मैं क्या करूं ऐसी औरत का…न जीती है न जीने देती है…जी चाहता है इसे मार दूं और खुद फांसी पर लटक जाऊं.’

भाई की हालत पर तरस आ रहा था मुझे. रिश्तों के बिना इनसान का कोई अस्तित्व नहीं और जब यही रिश्ते गले की फांस बनने लगें तो कोई कैसे इन रिश्तों का निर्वाह करे. प्रकृति कैसेकैसे जीवों का निर्माण कर देती है जो सदा दूसरों को पीड़ा दे कर ही खुश होते हैं. जब तक 2 घरों में आग न लगा लें उन्हें चैन ही नहीं आता.

‘‘चंदा, तू कभी मेरा भला नहीं होने देगी. अगर मुझे पता होता तो मैं कभी तेरी ससुराल में लड़की न देती.’’

भाभी के ये शब्द कानों में पड़े तो  मेरी तंद्रा टूटी.

भैया और भतीजा मेरे समीप चले आए थे. क्या उत्तर था मेरे पास भाभी के आरोपों का.

‘‘बूआ, आइए, आपऊपर चलिए, सफर की थकावट होगी. हाथमुंह धो कर कुछ खा लीजिए,’’ भतीजे ने मेरी बांह पकड़ी और भैया ने भी इशारे से साथ जाने को कहा. भाभी का विलाप वैसा ही चलता रहा.

अनमनी सी मैं ऊपर चली आई और पीछेपीछे भाभी का रुदन कानों में पड़ता रहा. तभी सिर पर पल्लू लिए सामने चली आई एक प्यारी सी बच्ची.

‘‘यह आप की बहू है, बूआ,’’ भतीजे ने कहा, ‘‘पूजा, बूआ को प्रणाम करो.’’

‘‘जीती रहो,’’ आशीर्वाद दे कर मन भर आया मेरा. रक्त में लहर सी दौड़ने लगी. मेरे भाई का बच्चा है न यह, इस की शादी में आती तो क्या बहू के लिए कोई गहना न लाती.

गले की माला उतार बहू के गले में पहनाने लगी तो भतीजे ने मेरा हाथ रोक दिया, ‘‘बूआ, आप इस घर की बेटी हैं, आप को हम ने दिया ही क्या है जो आप से ले लें.’’

‘‘बेटा, अधिकार तो दे सकते हो न, जिस का हनन बरसों पहले भाभी ने सब को अपमानित कर के किया था. टूटे रिश्तों को तुम जोड़ पाओ तो मैं समझूंगी आज भी कोई घर ऐसा है जिसे मैं अपना मायका कह सकती हूं.’’

यह कह कर मैं रो पड़ी थी तो भतीजे ने अपना हाथ पीछे कर लिया था. माला बहू के गले में पहना कर मैं ने उस का माथा चूम लिया. बड़ी प्यारी लगी मुझे पूजा. झट से मेरे लिए नाश्ता परोस लाई. उसी पल मुझे समझ में आ गया कि भैयाभाभी नीचे अलग रहते हैं और बहूबेटा ऊपर अलग हैं.

‘‘बूआ, पूजा का भी मां ने वही हाल किया था जो आप का हुआ. जो भी मां से छू भर जाता है उसी पर मां कोई न कोई आरोप लगा देती हैं. किसी दूसरे के मानसम्मान की मां को कोई चिंता नहीं. हैरान हूं मैं कि कोई इतना सब कैसे और क्यों करता है. आज कोई भी मां के पास जाना नहीं चाहता है. अपनी ईमानदारी पूजा भी कब तक प्रमाणित करती. इस की मां ने ही इसे 50 तोला सोना दिया है और मां ने इस पर भी अपनी अंगूठी उठा लेने का आरोप लगा दिया…और सब से बड़ी बात जिन चीजों के खो जाने के आरोप मां लगाती हैं वह चीजें वास्तव में होती ही नहीं हैं. मां एक काल्पनिक चीज गढ़ लेती हैं जो न कभी मां के पास मिलती है न ही उस के पास मिलती है जिस पर मां आरोप लगाती हैं.’’

याद आया मुझे, जब पहली बार भाभी ने मुझ पर आरोप लगाया था. भारी दुपट्टा और सुनहरी सैंडल का, ये दोनों चीजें कभी मिली ही नहीं थीं.

‘‘मां का ध्येय मात्र दूसरे को अपमानित करना होता है इसलिए वह अपनी कोई भी चीज खो जाने का बहाना करती रहती हैं… मैं क्या करूं बूआ, वह समझती ही नहीं.

‘‘और यही सब मां ने निशा को भी सिखा दिया है. मैं मानता हूं कि उस का पति पहले थोड़ा बिगड़ा हुआ था, अब शादी के बाद काफी संभल गया है, लेकिन निशा बातबेबात हर पल मां जैसा व्यवहार ससुराल में करती रहती है, जिस पर उस का पति तिलमिलाता रहता है. उस पर, उस की मां पर अपना कोई न कोई सामान चुरा लेने का आरोप निशा लगाती रहती है. अब आप ही बताओ, घर में शांति कैसे रहेगी…अपनी इज्जत तो सब को प्यारी है न बूआ.’’

‘‘अपनी मां को किसी डाक्टर को दिखाओ. कहीं कोई मनोवैज्ञानिक कारण ही न हो.’’

‘‘हर बेटी अपनी मां के चरित्र का आईना होती है. जो मां ने नानी से सीखा वही निशा में रोपा. बीमार होते हैं ऐसे लोग, जो जहां जाते हैं असंतोष और आक्रोश फैलाते हैं. आप ने हमें छोड़ दिया, दादादादी ने भी ताऊजी के पास ही रहना ठीक समझा. धीरेधीरे सब दूर हो गए. पूजा भी साथ नहीं रहना चाहती. निशा का पति भी अब उसे साथ नहीं रखना चाहता.

‘‘बूआ, मैं ने इसीलिए आप को बुलाया था कि इस टूटी डोर का एक सिरा पकड़ कर अपनी मां के किए का कुछ प्रायश्चित्त कर सकूं.’’

मेरी गोद में सिर छिपा कर रोने लगा मेरा भतीजा.

‘‘हर बेटी यही चाहती है कि उस का मायका रसताबसता रहे, फलताफूलता रहे क्योंकि मायका उसे बड़ा प्यारा होता है. वहां से मिले शगुन के 5 रुपए भी बेटी को लाखों के बराबर लगते हैं. चाहे बेटी अपने घर करोड़पति ही क्यों न हो… तुम सब को मेरी उम्र भी लग जाए… मेरे मुंह से हर समय यही निकलता है.’’

उस मर्म को मैं सहज ही महसूस कर सकती हूं जो आज भैया का है, उन के बेटे का है. क्या करते भैया भी. जिस का हाथ पकड़ा था उस का परदा तो रखना ही था. यह अलग बात है कि उसी ने पूरे घर, हर रिश्ते को नंगा कर दिया. हर रिश्ता दोनों तरफ से निभाना पड़ता है. अकेला इनसान कब तक अपने हिस्से का दायित्व निभाता रहेगा. एक रिश्ते का पूर्ण रूप तभी सामने आता है जब दोनों तरफ से निभाया जाए. अकेले की तूती ज्यादा देर तक नहीं बज सकती.

रो रहा था मेरा भतीजा. उस का मन तो हलका हो गया होगा लेकिन मेरे मन का बोझ यह सोच कर बढ़ने लगा था कि कैसे मैं अपनी चचिया सास के घर जा कर भतीजी की वकालत कर पाऊंगी. कैसे उसे समझा पाऊंगी कि वह अपनी बहू को माफ कर दें. सत्य तो यही है न कि आज तक मैं खुद भी अपनी भाभी को क्षमा नहीं कर पाई हूं.

‘‘बूआ, आप सिर्फ एक बार कोशिश कर के देखिए. मैं नहीं चाहता कि निशा का घर उजड़ जाए. मैं हाथ जोड़ता हूं आप के सामने, आप एक बार निशा के पति को समझाइए और मैं भी निशा को समझाऊंगा.’’

‘‘मैं जाऊंगी, बेटा, निशा मेरी भी तो बच्ची है. मैं कोशिश करूंगी पर तुम हाथ मत जोड़ो.’’

घर का माहौल बोझिल था फिर भी भैया ने मुझे नेग दे कर विदा किया.

भाभी सदा की तरह आज भी बाहर नहीं आईं. कुछ लोग अपने कर्मों की जिम्मेदारी कभी लेना ही नहीं चाहते. वापस लौट आई मैं. मेरा परिवार मुझे वापस पा कर बहुत खुश था.

Best Story : टूटते जुड़ते सपनों का दर्द

Best Story : कालेज की लंबी गोष्ठी ने प्रिंसिपल गौरा को बेहद थका डाला था. मौसम भी थोड़ा गरम हो चला था, इसलिए शाम के समय भी हवा में तरावट का अभाव था. उन्होंने जल्दीजल्दी जरूरी फाइलों पर हस्ताक्षर किए और हिंदी की प्रोफेसर के साथ बाहर आईं. अनुराधा की गाड़ी नहीं आई थी, सो उन्हें भी अपनी गाड़ी में साथ ले लिया. घर आने पर अनुराधा ने बहुत आग्रह किया कि चाय पी कर ही वे जाएं, लेकिन एक तो गोष्ठी की गंभीर चर्चाओं पर बहस की थकान, दूसरे मन की खिन्नता ने वह आमंत्रण स्वीकार नहीं किया. वे एकदम अपने कमरे में जाना चाह रही थीं.

सुबह से ही मन खिन्न हो उठा था. अगर यह अति आवश्यक गोष्ठी नहीं होती तो वे कालेज जाती भी नहीं. आज की सुबह आंखों में तैर उठी. कितनी खुश थीं सुबह उठ कर. सिरहाने की लंबी खिड़की खोलते ही सिंदूरी रंग का गोला दूर उठता हुआ रोज नजर आता. आज भी वे उस रंग के नाजुक गाढ़ेपन को देख कर मुग्ध हो उठी थीं. तभी पड़ोस में रहने वाली अनुराधा के नौकर ने बंद लिफाफा ला कर दिया, जो कल शाम की डाक से आया था और भूल से उन के यहां डाकिया दे गया था.

उसी मुदित भाव से लिफाफा खोला. छोटी बहन पूर्वा का पत्र था उस में. गोल तकिए पर सिर टेक कर आराम से पढ़ने लगीं, लेकिन पढ़तेपढ़ते उन का मन पत्ते सा कांपने लगा और चेहरे से जैसे किसी ने बूंदबूंद खुशी निचोड़ ली थी. ऐसा लगा कि वे ऊंची चट्टान से लुढ़क कर खाई में गिर कर लहूलुहान हो गई हैं. जैसे कोई दर्द का नुकीला पंजा है जो धीरेधीरे उन की ओर खौफनाक तरीके से बढ़ता आ रहा है. उन की आंखों से मन का दर्द पानी बन कर बह निकला.

दरवाजे की घंटी बजी. दुर्गा आ गई थी काम करने. गौरा ने पलकों में दर्द समेट लिया और कालेज जाने की तैयारी में लग गईं. मन उजाड़ रास्तों पर दौड़ रहा था, पागल सा. आंखें खुली थीं, पर दृष्टि के सामने काली परछाइयां झूल रही थीं. कितनी कठिनाई से पूरा दिन गुजारा था उन्होंने. हंसीं भी, बोलीं भी, कई मुखौटे उतारतीचढ़ाती भी रहीं, परंतु भीतर का कोलाहल बराबर उन्हें बेरहमी से गरम रेत पर पछाड़ता रहा. क्या पूर्वा का जीवन संवारने की चेष्टा व्यर्थ गई? क्या उन के हाथों कोई अपराध हुआ है, जिस की सजा पूरी जिंदगी पूर्वा को झेलनी होगी?

अपने कमरे में आ कर वे बिस्तर पर निढाल हो कर पड़ गईं. मैले कपड़ों की खुली बिखरी गठरी की तरह जाने कितने दृश्य आंखों में तैरने लगे. विचारों का काफिला धूल भरे रास्तों में भटकने लगा.

3 भाइयों के बाद उन का जन्म हुआ था. सभी बड़े खुश हुए थे. कस्तूरी काकी और सोना बूआ बताती रहती थीं कि 7 दिन तक गीत गाए गए थे और छोटेबड़े सभी में लड्डू बांटे गए थे. बाबा ने नाम दिया, गौरा. सोचा होगा कि बेटी के बाद और लड़के होंगे. इसी पुत्र लालसा के चक्कर में 2 बहनें और हो गईं. तब न गीत गाए गए और न लड्डू ही बांटे गए.

कहते हैं न कि जब लोग अपनी स्वार्थ लिप्सा की पूर्ति मनचाहे ढंग से प्राप्त नहीं कर पाते हैं तब घर के द्वारदेहरी भी रुष्ट हो जाते हैं. वहां यदि अपनी संतान में बेटाबेटी का भेद कर के निराशा, कुंठा, निरादर और घृणा को बो दिया जाए तो घर एक सन्नाटा भरा खंडहर मात्र रह जाता है.

उस भरेपूरे घर में धीरेधीरे कष्टों के दायरे बढ़ने प्रारंभ होने लगे. बड़े भाई छुट्टी के दिन अपने साथियों के साथ नदी स्नान के लिए गए थे. तैरने की शर्त लगी. उन्हें नदी की तेज लहरें अपने चक्रवात में घेर कर ले डूबीं. लौट कर आई थी उन की फूली हुई लाश. घर भर में कुहराम मच गया था. मां और बाबूजी पागल हो उठे. बाबा की आंखें सूखे कुएं की तरह अंधेरों से अट गईं.

धीमेधीमे शब्दों में कहा जाने लगा कि तीनों लड़कियां भाई की मौत का कारण बनी हैं. न तीनों नागिनें पैदा होतीं और न हट्टाकट्टा भाई मौत का ग्रास बनता. समय ने सभी के घावों को पूरना शुरू ही किया था कि बीच वाले भाई हीरा के मोतीझरा निकला. वह ऐसा बिगड़ा कि दवाओं और डाक्टरों की सारी मेहनत पर पानी फेरता रहा.

मौत फिर दबेपांव आई और चुपचाप अपना काम कर गई. इस बार के हाहाकार ने आकाश तक हिला दिया. पिता एकदम टूट गए. 20 वर्ष आगे का बुढ़ापा एक रात में ही उन पर छा गया था. बाबा खाट से चिपक गए थे. मां चीखचीख कर अधमरी हो उठीं और बिना किसी लाजहिचक के जोरजोर से घोषणा करने लगीं कि मेरी तो लड़कियां ही साक्षात मौत बन कर पूरा कुनबा खत्म करने आई हैं. इन का तो मुंह देखना भी पाप है.

महल्ला, पड़ोस, रिश्तेदार सभी परिवार के सदस्यों के साथ तीनों बहनों को भरपूर कोसने लगे. अपने ही घर में तीनों किसी एकांत कोने में पड़ी रहतीं, अपमानित और दुत्कारी हुईं. न कोई प्यार से बोलता, न कोई आंसू पोंछता. तीनों की इच्छाएं मर कर काठ हो गईं. लाख सोचने पर भी वे यह समझ नहीं पाईं कि भाइयों की मृत्यु से उन का क्या संबंध है, वे मनहूस क्यों हैं.

तीसरा भाई बचपन से जिद्दी व दंगली किस्म का था. अब अकेला होने पर वह और बेलगाम हो गया था. सभी उसी को दुलारते रहते. उस की हर जिद पूरी होती और सभी गलतियां माफ कर दी जातीं. नतीजा यह हुआ कि वह स्कूल में नियमित नहीं गया. उलटेसीधे दोस्त बन गए. घर से बाहर सुबह से शाम तक व्यर्थ में घूमता, भटकता रहता. ऐसे ही गलत भटकाव में वह नशे का भयंकर आदी हो गया. न ढंग से खाता, न नींद भर सो पाता था. मातापिता से खूब जेबखर्च मिलता. कोई सख्ती से रोकनेटोकने वाला नहीं था. एक दिन कमरे में जो सोया तो सुबह उठा ही नहीं. उस के चारों ओर नशीली गोलियों और नशीले पाउडरों की रंग- बिरंगी शीशियां फैली पड़ी थीं और वह मुंह से निकले नीले झाग के साथ मौत की गोद में सो रहा था.

उस की ऐसी घिनौनी मौत को देख कर तो जैसे सभी गूंगेबहरे से हो उठे थे. पूरे पड़ोस में उस घर की बरबादी पर हाहाकार मच गया था. कहां तक चीखतेरोते? आंसुओं का समंदर भीतर के पहाड़ जैसे दुख ने सोख लिया था. घर भर में फैले सन्नाटे के बीच वे तीनों बहनें अपराधियों की तरह खुद को सब की नजरों से छिपाए रहती थीं. उचित देखभाल और स्नेह के अभाव में तीनों ही हर क्षण भयभीत रहतीं. अब तो उन्हें अपनी छाया से भी भय लगने लगा था. दिन भर उन्हें गालियां दे कर कोसा जाता और बातबात पर पिटाई की जाती.

जानवर की तरह उन्हें घर के कामों में जुटा दिया गया था. वे उस घर की बेटियां नहीं, जैसे खरीदी हुई गुलाम थीं, जिन्हें आधा पेट भोजन, मोटाझोटा कपड़ा और अपशब्द इनाम में मिलते थे. पढ़ाई छूट गई थी. गौरा तो किसी तरह 10वीं पास कर चुकी थी लेकिन छोटी चित्रा और पूर्वा अधिक नहीं पढ़ पाईं. जब भी सगी मां द्वारा वे दोनों जानवरों की तरह पीटी जातीं, तब भयभीत सी कांपती हुई दोनों बड़ी बहन के गले लग कर घंटों घुटीघुटी आवाज में रोती रहती थीं.

कुछ भीतरी दुख से, कुछ रातदिन रोने से पिता की आंखें कतई बैठ गई थीं. वे पूरी तरह से अंधे हो गए थे. मां को तो पहले ही रतौंधी थी. शाम हुई नहीं कि सुबह होने तक उन्हें कुछ दिखाई नहीं देता था. बाबा का स्नेह उन बहनों को चोरीचोरी मिल जाया करता था लेकिन शीघ्र ही उन की भी मृत्यु हो गई थी.

पिता की नौकरी गई तो घर खर्च का प्रश्न आया. तब बड़ी होने के नाते गौरा अपना सारा भय और अपनी सारी हिचक,  लज्जा भुला कर ट्यूशन करने लगी थी. साथ ही प्राइवेट पढ़ना शुरू कर दिया. बहनों को फिर से स्कूल में दाखिला दिलाया. तीनों बहनों में हिम्मत आई, आत्मसम्मान जागा.

तीनों मांबाबूजी की मन लगा कर सेवा करतीं और घरबाहर के काम के साथसाथ पढ़ाई चलती रही. वे ही मनहूस बेटियां अब मां और बाबूजी की आंखों की ज्योति बन उठी थीं, सभी की प्रशंसा की पात्र. महल्ले और रिश्तेदारी में उन के उदाहरण दिए जाने लगे. घर में हंसीखुशी की ताजगी लौट आई. इस ताजगी को पैदा करने में और बहनों को ऊंची शिक्षा दिलाने में वे कब अपने तनमन की ताजगी खो बैठीं, यह कहां जान सकी थीं? विवाह की उम्र बहुत पीछे छूट गई थी. छोटेबड़े स्कूलों का सफर करतेकरते इस कालेज की प्रिंसिपल बन गईं. घर में गौरा दीदी और कालेज में प्रिंसिपल डा. गौरा हो गई थीं. छोटी दोनों बहनों की शादियां उन्होंने बड़े मन से कीं. बेटियों की तरह विदा किया.

चित्रा के जब लगातार 5 लड़कियां हुईं, तब उस को ससुराल वालों से इतने ताने मिले, ऐसीऐसी यातनाएं मिलीं कि एक बार फिर उस का मन आहत हो उठा. बहुत समझाया उन लोगों को. दामाद, जो अच्छाखासा पढ़ालिखा, समझदार और अच्छी नौकरी वाला था, उसे भी भलेबुरे का ज्ञान कराया, परंतु सब व्यर्थ रहा.

चित्रा की ससुराल के पड़ोस में ही सुखराम पटवारी की लड़की सत्या की शादी हुई थी. उस ने आ कर बताया था, ‘बेकार इन पत्थरों के ढोकों से सिर फोड़ती हो, दीदी. उन पर क्या असर होने वाला है? हां, जब भी तुम्हारे खत जाते हैं या उन्हें समाज, संसार की बातें समझाती हो, तब और भी जलीकटी सुनाती हैं चित्रा की सास और जेठानी. जिस दामाद को भोलाभाला समझती हो, वह पढ़ालिखा पशु है. मारपीट करता है. हर समय विधवा ननद तानों से चित्रा को छलनी करती रहती है. चित्रा तो सूख कर हड्डियों का ढांचा भर रह गई है. बुखार, खांसी हमेशा बनी रहती है. ऊपर से धोबिया लदान, छकड़ा भर काम.’’

वे कांप उठी थीं सत्या से सारी बातें सुन कर. उस के लिए उन का मन भीगभीग उठा था. बचपन में मां से दुत्कारी जाने पर वे उसे गोदी में छिपा लेती थीं. उन की विवशता भीतर ही भीतर हाहाकार मचाए रहती थी.

एक दिन बुरी खबर आ ही गई कि क्षयरोग के कारण चित्रा चल बसी है. शुरू से ही अपमान से धुनी देह को क्षय के कीटाणु चाट गए अथवा ससुराल के लोग उस की असामयिक मौत के जिम्मेदार रहे? प्रश्नों से घिर उठीं वे हमेशा की तरह.

और इधर आज महीनों बाद मिला यह पूर्वा का पत्र. क्या बदल पाईं वे बहनों का जीवन? सोचा था कि जो कुछ उन्हें नहीं मिला वह सबकुछ बहनों के आंचल में बांध कर उन के सुखीसंपन्न जीवन को देखेगी. कितनी प्रसन्न होगी जीवन की इस उतरती धूप की गहरी छांव में. अपनी सारी महत्त्वाकांक्षाएं और मेहनत से कमाई पाईपाई उन पर न्योछावर कर दी थी. हृदय की ममता से उन्हें सराबोर कर के अपने कर्तव्यों का एकएक चरण पूरा किया परंतु…

पंखे की हवा से जैसे पूर्वा के पत्र का एकएक अक्षर उन के सामने गरम रेत के बगलों की तरह उड़ रहा था या कि जैसे पूर्वा ही सामने बैठ कर हमेशा की तरह आंसुओं में डूबी भाषा बोल रही थी. किसे सुनाएं वे मन की व्यथा? पत्र का एक- एक शब्द जैसे लावा बन कर भीतर तक झुलसाए जा रहा था :

‘दीदी, मैं रह गई थी बंजर धरती सी सूनीसपाट. कितने वर्ष काटे मैं ने ‘बंजर’ शब्द का अपमान सहते हुए और आप भी क्या कम चिंतित और बेचैन रही थीं मेरी मानसिकता देखसुन कर? फिर भी मैं अपनेआप को तब सराहने लगी थी जब आप के बारबार समझाने पर मेरे पति और ससुराल के सदस्य किसी बच्चे को गोद लेने के लिए इस शर्त पर तैयार हो गए थे कि एकदम खोजबीन कर के तुरंत जन्मा बच्चा ही लिया जाएगा और आप ने वह दुरूह कार्य भी संपन्न कराया था.

‘‘फूल सा कोमल सुंदर बच्चा पा कर सभी निहाल हो उठे थे. सास ने नाम दिया, नवजीत. ससुर प्यार से उसे पुकारते, निर्मल. बच्चे की कच्ची दूधिया निश्छल हंसी में हम सभी निहाल हो उठे. आप भी कितनी निश्ंिचत और संतुष्ट हो उठीं, लेकिन दीदी, पूत के पांव पालने में दिखने शुरू हो गए थे. मैं ने आप को कभी कुछ नहीं बताया था. सदैव उस की प्रशंसा ही लिखतीसुनाती रही. आज स्वयं को रोक नहीं पा रही हूं, सुनिए, यह शुरू से ही बेहद हठी और जिद्दी रहा. कहना न मानना, झूठ बोलना और बड़ों के साथ अशिष्ट व्यवहार करना आदि. स्कूल में मंदबुद्धि बालक माना गया.

‘क्या आप समझती हैं कि हमसब चुप रहे? नहीं दीदी, लाड़प्यार से, डराधमका कर, अच्छीअच्छी कहानियां सुना कर और पूरी जिम्मेदारी से उस पर नजर रख कर भी उस के स्वभाव को रत्ती भर नहीं बदल सके. आगे चल कर तो कपटछल से बातें करना, झूठ बोलना, धोखा देना और चोरी करना उस की पहचान हो गई. पेशेवर चोरों की तरह वह शातिर हो गया. स्कूल से भागना, सड़क पर कंचे खेलना, उधार ले कर चीजें खाना, मारनापीटना, अभद्र भाषा बोलना आदि उस की आदत हो गई. सभी परेशान हो गए. शक्लसूरत से कैसा मनोहारी, लेकिन व्यवहार में एकदम राक्षसी प्रवृत्ति वाला.

‘उम्र बढ़ने के साथसाथ उस की आवारागर्दी और उच्छृंखलता भी बढ़ने लगी. दीदी, अब वह घर से जेवर, रुपया और अपने पिता की सोने की चेन वाली घड़ी ले कर भाग गया है. 2 दिन हो चुके हैं. गलत दोस्तों के बीच क्या नहीं सीखा उस ने? जुए से ले कर नशापानी तक. सब बहुत दुखी हैं. कैसे करते पुलिस में खबर? अपनी ही बदनामी है. स्कूल से भी उस का नाम काट दिया गया था. हम क्या रपट लिखाएंगे, किसी स्कूटर की चोरी में उस की पहले से ही तलाश हो रही है.

‘दीदी, यह कैसा पुत्र लिया हम ने? इस से अच्छा तो बांझपन का दुख ही था. यों सांससांस में शर्मनाक टीसें तो नहीं उठतीं. संतानहीन रह कर इस दोहरेतिहरे बोझ तले तो न पिसती हम लोगों की जिंदगी. पढ़ेलिखे, सुरुचिपूर्ण, सुसंस्कृत परिवार के वातावरण में उस बालक के भीतर बहता लहू क्यों स्वच्छ, सुसंस्कृत नहीं हुआ, दीदी? हमारी महकती बगिया में कहां से यह धतूरे का पौधा पनप उठा? लज्जा और अपमान से सभी का सुखचैन समाप्त हो गया है. गौरा दीदी, आप के द्वारा रोपा गया सुनहरा स्वप्न इतना विषकंटक कैसे हो उठा कि जीवन पूर्णरूप से अपाहिज हो उठा है. परंतु इस में आप का भी क्या दोष?’

पत्र का अक्षरअक्षर हथौड़ा बन कर सुबह से उन पर चोट कर रहा था. टूटबिखर तो जाने कब की वे चुकी थीं, परंतु पूर्वा के खत ने तो जैसे उन के समूचे अस्तित्व को क्षतविक्षत कर डाला था. वे सोचने लगीं कि कहां कसर रह गई भला? इन बहनों को सुख देने की चाह में उन्होंने खुद को झोंक दिया. अपने लिए कभी क्षण भर को भी नहीं सोचा.

क्या लिख दें पूर्वा को कि सभी की झोली में खुशियों के फूल नहीं झरा करते पगली. ठीक है कि इस बालक को तुम्हारी सूनी, बंजर कोख की खुशी मान कर लिया था, एक तरह से उधार लिया सुख. एक बार जी तो धड़का था कि न जाने यह कैसी धरती का अंकुर होगा? जाने क्या इतिहास होगा इस का? लेकिन तसल्ली भरे विश्वास ने इन शंकालु प्रश्नों को एकदम हवा दे दी थी कि तुम्हारे यहां का सुरुचिपूर्ण, सौंदर्यबोध और सभ्यशिष्ट वातावरण इस के भीतर नए संस्कार भरने में सहायक होगा. पर हुआ क्या?

लेकिन पूर्वा, इस तरह हताश होने से काम नहीं चलेगा. इस तरह से तो वह और भी बागी, अपराधी बनेगा. अभी तो कच्ची कलम है. धीरज से खाद, पानी दे कर और बारबार कटनीछंटनी कर के क्या माली उसी कमजोर पौधे को जमीन बदलबदल कर अपने परीक्षण में सफल नहीं हो जाता? रख कर तो देखो धैर्य. बुराई काट कर ही उस में नया आदमी पैदा करना है तुम्हें. टूटे को जोड़ना ही पड़ता है. यही सार्थक भी है.

यह सोचते ही उन में एक नई शक्ति सी आ गई और वे पूर्वा को पत्र लिखने बैठ गईं.

Short Story : एक दामाद और…

Short Story : नरेश को दहेज में घरगृहस्थी के आवश्यक सामान के अतिरिक्त 4 सालियां भी मिली थीं. ससुर के पास न केवल जायदाद थी बल्कि एक सफल व्यवसाय भी था. इस कारण जब एक के बाद एक 5 पुत्रियों ने जन्म लिया तो उन के माथे पर एक भी शिकन न पड़ी. उन्होंने आरंभ से ही हर पुत्री के नाम काफी रुपया जमा कर दिया था जो प्रतिवर्ष ब्याज कमा कर पुत्रियों की आयु के साथसाथ बढ़ता जाता था.

नरेश एक सरकारी संस्थान में सहायक निदेशक था. समय के साथ तरक्की कर के उस का उपनिदेशक और फिर निदेशक होना निश्चित था. हो सकता है कि वह बीच में ही नौकरी छोड़ कर कोई दूसरी नौकरी पकड़ ले. इस तरह वह और जल्दी तरक्की पा लेगा. युवा, कुशल व होनहार तो वह था ही. इन्हीं सब बातों को देखते हुए उसे बड़ी पुत्री उर्मिला के लिए पसंद किया गया था.

उर्मिला को अपने पति पर गर्व था. वह एक बार उस के दफ्तर गई थी और बड़ी प्रभावित हुई थी. अलग सुसज्जित कमरा था. शानदार मेजकुरसी थी. मेज पर फाइलों का ढेर लगा था. पास ही टेलीफोन था, जो घड़ीघड़ी बज उठता था. घंटी बजाने से चपरासी उपस्थित हुआ और केवल नरेश के सिर हिलाने से ही तुरंत जा कर एक ट्रे में 2 प्याले कौफी और बिस्कुट ले आया था. यह बात अलग थी कि वह जो वेतन कटकटा कर घर लाता था उस से बड़ी कठिनाई से पूरा महीना खिंच पाता था. शादी से पहले तो उसे यह चिंता लगी रहती थी कि रुपया कैसे खर्च करे, परंतु शादी के बाद मामला उलटा हो गया. अब हर घड़ी वह यही सोचता रहता था कि अतिरिक्त रुपया कहां से लाए.

उर्मिला का हाथ खुला था, जवानी का जोश था और नईनई शादी का नशा था. अकसर नरेश को हाथ रोकता देख कर बिना सोचेसमझे झिड़क देती थी. खर्चा करने की जो आदत पिता के यहां थी, वही अब भी बदस्तूर कायम थी.

महीने का आरंभ था. घर का खानेपीने का सामान आ चुका था और मन में एक हलकापन था. शाम को फिल्म देखने का कार्यक्रम बना लिया था. फिल्म का नाम ही इतना मजेदार था कि सोचसोच कर गुदगुदी सी होने लगती थी. फिल्म थी ‘दिल धड़के, शोला भड़के.’

दिन के 11 बजे थे. नरेश अपने दफ्तर के कार्य में व्यस्त थे. निदेशक बाहर दौरे पर जाने वाले थे. उन के लिए आवश्यक मसौदे व कागजों की फाइल तैयार कर के 4 बजे तक उन के सुपुर्द करनी थी. इसी समय टेलीफोन बज उठा. निदेशक का निजी सचिव सुबह से 4 बार फोन कर चुका था. फिर उसी का होगा. होंठ चबाते हुए उस ने फोन उठाया.

‘‘नरेश.’’

फोन पर उर्मिला के खिलखिलाने की आवाज सुनाई दी.

‘‘बोलो, मैं कौन हूं?’’

‘‘तुम्हारा भूत लगता है. सुनो, अभी मैं बहुत व्यस्त हूं. तुम 1 बजे के बाद फोन करना.’’

‘‘सुनो, सिनेमा के टिकट खरीद लिए?’’

‘‘नहीं, अभी समय नहीं मिला. चपरासी बिना बोले बैंक चला गया है. आने पर भेजूंगा.’’

‘‘इसीलिए फोन किया था. 4 टिकट और ले लेना.’’

‘‘क्यों?’’ नरेश ने चौंक कर कहा.

दूसरी तरफ से कई लोगों के खिल- खिलाने की आवाजें आईं, ‘‘जीजाजी… जीजाजी.’’

नरेश ने माथा पीट लिया. उर्मिला फोन करने पास की एक दुकान पर जाती थी. वह प्रति फोन 1 रुपया लेता था. सड़क पर आवाजें काफी आती थीं, इसलिए जोरजोर से बोलना पड़ता था. नरेश ने कह रखा था कि जब तक एकदम आवश्यक न हो यहां से फोन न करे. सब लोग दूरदूर तक सुनते हैं और मुसकराते हैं. उसे यह बिलकुल अच्छा नहीं लगता था और उस समय तो वहां पूरी बरात ही खड़ी थी. वह सोचने लगा, दुनिया भर को मालूम हो जाएगा कि वह पलटन के साथ फिल्म देखने जा रहा है. और तो और, ये सालियां क्या हैं एक से एक बढ़ कर पटाखा हैं, इन्हें फुलझडि़यां कहना तो इन का अपमान होगा.

‘‘ठीक है,’’ कह कर उस ने फोन पटक दिया. आगे बात करने का अवसर ही नहीं दिया. रूमाल निकाल कर माथे का पसीना पोंछने लगा. उसे याद था कि कैसे बड़ी कठिनाई से उस ने उर्मिला को टरकाया था, जब वह सब सालियों समेत दफ्तर आने की धमकी दे रही थी.

2 जने जाते तो 14 रुपए के टिकट आते. अब पूरे 42 रुपए के टिकट आएंगे. सालियां आइसक्रीम और पापकार्न खाए बिना नहीं मानेंगी. वैसे तो वह स्कूटर पर ही जाता, पर अब पूरी टैक्सी करनी पड़ेगी. उस का भी ड्योढ़ा किराया लगेगा. उस ने मन ही मन ससुर को गाली दी. घर में अच्छीखासी मोटर है. यह नहीं कि अपनी रेजगारी को आ कर ले जाएं. उसे स्वयं ही टैक्सी कर के घर छोड़ने भी जाना होगा. अभी तो महीना खत्म होने में पूरे 3 सप्ताह बाकी थे.

सालियां तो सालियां ठहरीं, पूरी फिल्म में एकदूसरी को कुहनी मारते हुए खिलखिला कर हंसती रहीं. आसपास वालों ने कई बार टोका. नरेश शर्म के मारे और कभी क्रोध से मुंह सी कर बैठा रहा. उस का एक क्षण भी जी न लगा. जैसेतैसे फिल्म समाप्त हुई तो वह बाहर आ कर टैक्सी ढूंढ़ने लगा.

‘‘सुनो,’’ उर्मिला ने कहा.

‘‘अब क्या हुआ?’’

‘‘देर हो गई है. इन्हें खाना खिला कर भेजूंगी. घर में तो 2 ही जनों का खाना है. होटल से कुछ खरीद कर घर ले चलें.’’

बड़ी साली ने इठला कर कहा, ‘‘जीजाजी, आप ने कभी होटल में खाना नहीं खिलाया. आज तो हम लोग होटल में ही खाएंगे. दीदी घर में कहां खाना बनाती फिरेंगी?’’

बाकी की सालियों ने राग पकड़ लिया, ‘‘होटल में खाएंगे. जीजाजी, आज होटल में खाना खिलाएंगे.’’

नरेश सुन्न सा खड़ा रहा.

उर्मिला ने मुसकरा कर कहा, ‘‘हांहां, क्यों नहीं, शोर क्यों मचाती हो?’’ और फिर नरेश की ओर मुंह कर के बोली, ‘‘सुनो, आज इन का मन रख लो.’’

नरेश ने जेब की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘रुपए हैं पास में? मेरे पास तो कुछ नहीं है.’’

उर्मिला ने पर्स थपथपाते हुए कहा, ‘‘काम चल जाएगा. यहीं ‘चाचे दा होटल’ में चले चलेंगे.’’

जब तक खाना खाते रहे पूरी फिल्म के संवाद दोहरादोहरा कर सब हंसी के मारे लोटपोट होते रहे. और जो लोग वहां खाना खा रहे थे वे खाना छोड़ कर इन्हें ही विचित्र नजरों से देख रहे थे. नरेश अंदर ही अंदर झुंझला रहा था.

टैक्सी में बिठा कर जब वह उन्हें घर छोड़ कर वापस आया तो उस ने उर्मिला से पूरा युद्ध करने की ठान ली थी. परंतु उस के खिलखिलाते संतुष्ट चेहरे को देख कर उस ने फिलहाल युद्ध को स्थगित रखने का ही निश्चय किया.

अगले सप्ताह रूमा की वर्षगांठ थी. जाहिर था उस के लिए अच्छा सा तोहफा खरीदना होगा. सस्ते तोहफे से काम नहीं चलेगा. उस का अपमान हो जाएगा. बहन के आगे उस का सिर झुक जाए, यह वह कभी सहन नहीं करेगी.

‘‘मैं सोच रही थी कि उसे सलवार- कुरते का सूट खरीद दूं. उस दिन देखा था न काशीनाथ के यहां,’’ उर्मिला बोली.

‘‘क्या?’’ नरेश ने चौंक कर कहा, ‘‘मैं ने तो सोचा था कि तुम अपने लिए देख रही थीं. वह तो 150 रुपए का था.’’

‘‘तो क्या हुआ?’’ उर्मिला ने नरेश के गले में हाथ डालते हुए कहा, ‘‘मेरा पति कोई छोटामोटा आदमी थोड़े ही है. अरे, सहायक निदेशक है. पूरे दफ्तर में रोब मारता है.’’

‘‘छोड़ो भी. जरा खर्चा तो देखो. सब काम अपनी हैसियत के अनुसार करना चाहिए.’’

‘‘तो क्या मेरे मियां की इतनी भी हैसियत नहीं है?’’ उर्मिला ने रूठ कर कहा, ‘‘मैं पिताजी से उधार ले लूंगी.’’

नरेश को यह बात अच्छी नहीं लगती. पहले भी इस बात पर लड़ाई हो चुकी थी.

‘‘उधार लेने से तो यह फर्नीचर बेचना ठीक होगा,’’ उस ने गुस्से में आ कर कहा.

‘‘हां, क्यों नहीं,’’ उर्मिला ने नाराज हो कर कहा, ‘‘मेरे पिता का दिया फर्नीचर फालतू है न.’’

‘‘तो मैं ही फालतू हूं. मुझे बेच दो.’’

‘‘जाओ, मैं नहीं बोलती. बहन को एक अच्छी सी भेंट भी नहीं दे सकती.’’

‘‘भेंट देने को कौन मना करता है, पर इतनी महंगी देने की क्या आवश्यकता है? वर्षगांठ तो हर साल ही आएगी. और फिर एक थोड़े ही है, 4-4 हैं. अभी तो औरों की वर्षगांठ भी आने वाली होगी,’’ नरेश ने कहा.

‘‘क्यों, 5वीं को भूल गए?’’ उर्मिला ने व्यंग्य कसा. तभी नरेश को याद आया, 25 तारीख को तो उर्मिला की भी वर्षगांठ है.

‘‘जब मेरी वर्षगांठ मनाओगे तो मेरे लिए भी तो भेंट आएगी. पिताजी बंगलौर गए थे. जरूर मेरे लिए बढि़या साड़ी लाए होंगे. और सुनो,’’ उर्मिला ने आंख नचाते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी वर्षगांठ पर मैं सूट का कपड़ा दिलवा दूंगी.’’

‘‘मुझे नहीं चाहिए सूटवूट. तुम अपने तक ही रखो,’’ नरेश ने झुंझला कर कहा, ‘‘एक तुम ही इतनी भारी भेंट पड़ रही हो.’’

‘‘ऐसी बात कह कर मेरा दिल मत दुखाओ,’’ उर्मिला ने नरेश का हाथ अपने दिल पर रखते हुए कहा, ‘‘देखो, कितना छोटा सा है और कैसा धड़क रहा है.’’

और नरेश फिर भूल गया.

दूसरे दिन जब उर्मिला सलवारकुरते का सूट ले आई तो नरेश ने आह भर कर कहा, ‘‘तुम्हारे पिताजी भी बड़े योजना- बद्ध हैं.’’

‘‘कैसे?’’ उर्मिला ने शंका से पूछा. उसे लगा कि नरेश कुछ कड़वी बात कहने जा रहा है.

‘‘तुम सारी बहनों की वर्षगांठें एकएक दोदो सप्ताह के अंतर पर हैं. उन्होंने जरा सा यह भी नहीं सोचा कि दामाद को कुछ तो सांस लेने का अवसर दें.’’

‘‘चलो हटो, ऐसा कहते शर्म नहीं आती?’’

‘‘नहीं. बिलकुल नहीं आती.’’

अब आ गई 25 तारीख, उर्मिला की वर्षगांठ. कई दिनों से तैयारी चल रही थी. शादी के बाद पहली वर्षगांठ थी. माता- पिता ने कहा था कि उन के यहां मनाना. परंतु उर्मिला ने न माना. उसे सब को अपने यहां बुलाने का बड़ा चाव था. अपना ऐश्वर्य व ठाटबाट जो दिखाना था. नरेश 400-500 के खर्च के नीचे आ गया. साड़ी मिलेगी उर्मिला को. हो सकता है बहनें भी कुछ थोड़ाबहुत भेंट के नाम पर दे दें. परंतु उस का खर्चा कैसे पूरा होगा? बैंक में रुपया शून्य तक पहुंच रहा था. वह बारबार उर्मिला को समझा रहा था. परंतु उसे वर्षगांठ मनाने का इतना शौक न था जितना दिखावा करने का. उत्साह न दिखाना नरेश के लिए शायद एक भद्दी बात होती. काफी नाजुक मामला था. नरेश ने सोचा कि पहला साल है. इस बार तो किसी तरह संभालना होगा, बाद में देखा जाएगा.

दावत तो रात की थी, पर बहनें सुबह से ही आ धमकीं. दीदी का हाथ जो बंटाना था. अकेली क्याक्या करेगी? दिन भर होहल्ला मचाती रहीं. फ्रिज में रखा सारा सामान चाट गईं. एक की जगह 2 केक बनाने पड़े. दिन में खाने के लिए गोश्त और मंगाना पड़ा. मिठाई भी और आई. एक दावत की जगह 2 दावतें हो गईं.

संध्या होते ही मातापिता भी आ गए. ‘मुबारक हो, मुबारक हो’ के नारे लग गए. सब के मुंह ऐसे खिले हुए थे जैसे आतशी अनार. उधर नरेश सोच रहा था कि वह अपने घर में है या ससुराल में. काश, यह जश्न एक निजी जश्न होता, केवल वह और उर्मिला ही उस में भाग लेते. अंतरंग क्षणों में यह दिन बीतता और शायद सदा के लिए एक सुखद यादगार होता. तब अगर 1,000 रुपए भी खर्च हो जाते तो वह परवा न करता. सब लोग उसे भूल कर एकदूसरे में इतने मगन थे कि किसी ने यह भी न सोचा कि वहां दामाद भी है या नहीं.

रात के 12 बजतेबजते न जाने कब यह तय हो गया कि 30 तारीख शनिवार को, जिस दिन नरेश की छुट्टी रहती है, सब लोग बहुत दूर एक लंबी पिकनिक पर चलेंगे और इतवार को ही लौटेंगे. रहने और खाने का प्रबंध ससुर की ओर से रहेगा. तब ही यह रहस्य भी खुला कि उर्मिला को 2 महीने का गर्भ है.

‘मुबारक हो, मुबारक हो,’ का शोर गूंज उठा.

‘‘दावत लिए बिना नहीं छोड़ेंगे, जीजाजी,’’ एक साली ने कहा और फिर तो बाकी सालियां भी चिपट गईं.

नरेश का तो भुरता ही बन गया. एकएक साली को चींटियों की तरह झाड़ रहा था और फिर से वे चिपट जाती थीं. उर्मिला मुसकरा रही थी और मां व्यर्थ ही उसे बताने का प्रयत्न कर रही थीं कि उसे क्याक्या सावधानी बरतनी चाहिए.

‘‘मां, मैं कल आ कर समझ लूंगी. अभी तो कुछ पल्ले नहीं पड़ रहा है,’’ उर्मिला ने शरमा कर कहा.

‘‘बेटी, कोई लापरवाही नहीं होनी चाहिए. मेरे विचार में तो तुझे अब हमारे पास ही आ कर रहना चाहिए. वहां तेरी देखभाल अच्छी तरह हो जाएगी.’’

‘‘अरे मां, अभी तो बहुत जल्दी है, मैं आ गई तो फिर इन के खाने का क्या होगा?’’

‘‘ओ हो, कितनी पगली है. अरे नरेश भी आ कर हमारे साथ रहेगा.’’

सालियों ने ताली बजा कर इस सुझाव का स्वागत किया, ‘‘जीजाजी हमारे साथ रहेंगे तो कितना मजा आएगा. जीजाजी, सच, अभी चलिए. हम सब सामान बांध देते हैं. बताइए, क्या ले चलना है?’’

नरेश ने दृढ़ता से कहा, ‘‘यह तो संभव नहीं है. अभी बहुत समय है. वैसे देखभाल तो मां को ही करनी है. बीचबीच में आ कर देखती रहेंगी.’’

‘‘जीजाजी, आप बहुत खराब हैं. पर दावत से नहीं बच सकते. क्यों दीदी?’’

‘‘हांहां,’’ उर्मिला ने कहा, ‘‘यह भी कोई बात हुई? क्या खाओगी, बोलो?’’

न सिर्फ फरमाइशों का ढेर लग गया बल्कि यह भी निर्णय ले लिया गया कि सारी सालियां शुक्रवार को ही आ जाएंगी. दिन में घर रहेंगी. दोनों समय का पौष्टिक भोजन करेंगी. रात में रहेंगी और फिर यहीं से शनिवार को पिकनिक के लिए प्रस्थान करेंगी. पिताजी कार ले कर आ जाएंगे.

नरेश की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. उस के पास तो एक फूटी कौड़ी भी नहीं बची थी. सारे दिन इन छोकरियों के नखरे कौन उठाएगा?

सब लोग इतना पीछे पड़े कि नरेश को शुक्रवार की छुट्टी लेने के लिए राजी होना पड़ा. फिर एक बार हर्षध्वनि के साथ तालियां बज उठीं. उस ध्वनि में नरेश को ऐसा लगा कि वह एक ऐसा गुब्बारा है जिस में किसी ने सूई चुभो दी है और हवा धीरेधीरे निकल रही है.

रात में भिगोए हुए काले चनों का जब सुबह नरेश नाश्ता कर रहा था तो उर्मिला ने याद दिलाया कि आज शुक्रवार है और छोकरियां आती ही होंगी. अंडे, आइसक्रीम, मुर्गा, बेकन, केक, काजू की बर्फी इत्यादि का प्रबंध करना होगा, तो नरेश ने अपनी पासबुक खोल कर उर्मिला के आगे कर दी.

‘‘क्या मेरी नाक कटवाओगे?’’

‘‘तो फिर पहले सोचना था न?’’

‘‘क्या हम इतने गएगुजरे हो गए कि उन्हें खाना भी नहीं खिला सकते?’’

‘‘खाना खिलाने को कौन मना करता है. पर जश्न मनाने के लिए पास में पैसा भी तो होना चाहिए.’’

‘‘अब इस बार तो कुछ करना ही होगा.’’

‘‘तुम ही बताओ, क्या करूं? उधार लेने की मेरी आदत नहीं. ऐसे कब तक जिंदगी चलेगी?’’

‘‘देखो, कल पिकनिक पर जाना है. कुछ न कुछ तो खर्च होगा ही. अब ऐसे झाड़ कर खड़े हो गए तो मेरी तो बड़ी बदनामी होगी,’’ उर्मिला ने नरेश को अपनी बांहों में लेते हुए कहा, ‘‘मेरी खातिर. सच तुम कितने अच्छे हो.’’

‘‘सुनो, अपना हार दे दो. बेच कर कुछ रुपए लाता हूं.’’

‘‘क्या कह रहे हो? क्या मैं अपना हार बेच दूं?’’

‘‘तो फिर रुपए कहां से लाऊं?’’

‘‘क्या अपने दोस्तों से उधार नहीं ले सकते?’’

‘‘वे सब तो मेरे ऊपर हंसते हैं. और वैसे वे लोग तो दफ्तर में होंगे. मैं कहां जाता फिरूंगा?’’

तभी घंटी बज उठी. दरवाजा खुलने में देर हुई इसलिए बजती रही, बजती रही. सालियां जो ठहरीं.

‘‘लो, आ गईं.’’

फिर वही खिलखिलाहट.

‘‘जीजाजी, आज तो फिल्म देखने चलेंगे. ऐसे नहीं मानेंगे.’’

‘‘क्यों नहीं, फिल्म जरूर देखेंगे.’’

‘‘ठीक है, तो आप फिल्म का टिकट ले कर आइए और हम लोग दीदी को ले कर बाजार जा रहे हैं.’’

चायपानी के बाद जब नरेश जाने लगा तो अकेले में उर्मिला ने कहा, ‘‘सुनो, रुपए जरूर ले आना. मेरे पास मुश्किल से 40 रुपए होंगे, और वे भी मां के दिए हुए. वापस जल्दी आ जाना.’’

‘‘हां, जल्दी आऊंगा,’’ नरेश ने कहा, ‘‘मेरे पास रुपए कहां हैं? टिकट के पैसे भी तो जेब में नहीं हैं, और फिर पिकनिक का खर्चा अलग.’’

‘‘कहा न, इतने बड़े अफसर होते हुए भी ऐसी बात करते हो,’’ उर्मिला ने कहा.

‘‘ठीक है, जाता हूं, पर संन्यास ले कर लौटूंगा.’’

नरेश चला तो गया, पर सोचने लगा कि इस ‘चंद्रकांता संतति’ पर कहीं न कहीं पूर्णविराम लगाना ही होगा.

कुछ देर भटक कर वह वापस आ गया. देखा तो चौकड़ी पहले से ही घर में बैठी हुई थी और सब का मुंह लटका हुआ था. उन को देखते ही नरेश ने भी अपना मुंह और लटका लिया.

‘‘क्या हुआ, जीजाजी? आप को क्या हुआ?’’

‘‘बहुत बुरा हुआ. कुछ कहने योग्य बात नहीं है. पर तुम लोगों का मुंह क्यों लटका हुआ है? तुम लोग तो खानेपीने का सामान लेने गई थीं न?’’

‘‘हां, गए तो थे, पर दीदी के पर्स में रुपए ही नहीं थे. सारा सामान खरीदा हुआ दुकान पर ही छोड़ कर आना पड़ा. आप कैसे हैं, जीजाजी? पत्नी को घरखर्च का रुपया भी नहीं देते?’’

‘‘लो, यह तो ‘उलटा चोर कोतवाल को डांटे’ वाली बात हो गई. अरे, मैं तो सारा वेतन तुम्हारी दीदी के हाथ में रख देता हूं. मेरे पास तो सिनेमा के टिकट खरीदने के भी पैसे नहीं थे. जल्दीजल्दी में मांगना भूल गया था, सो रास्ते से ही लौट आया.’’

‘‘तो क्या आप टिकट नहीं लाए?’’

‘‘क्या करूं, उधार टिकट मांगने की हिम्मत नहीं हुई, पर मैं ने तसल्ली के लिए एक काम किया है.’’

‘‘हाय जीजाजी, हम आप से नहीं बोलते.’’

उर्मिला ने कहा, ‘‘पर पूछो तो सही क्या लाए हैं?’’

औपचारिकता के लिए छोटी ने पूछा, ‘‘आप क्या लाए हैं, जीजाजी?’’

जेब में से 4 पुस्तिकाएं निकालते हुए नरेश ने कहा, ‘‘सिनेमा के बाहर 50 पैसे में फिल्म के गानों की यह किताब बिक रही थी. मैं ने सोचा कि फिल्म न सही, उस की किताब ही सही. लो, आपस में एकएक बांट लो.’’

जब किसी ने भी किताब न ली तो नरेश आराम से सोफे पर पैर फैला कर बैठ गया और हंसहंस कर किताब जोरजोर से पढ़ कर सुनाने लगा और जहां गाने आए वहां अपनी खरखरी आवाज में गा कर पढ़ने लगा. एक समय आया जब सालियों से भी हंसे बिना नहीं रहा गया.

उर्मिला ने किताब हाथ से छीनते हुए कहा, ‘‘अब बंद भी करो यह गर्दभ राग. कुछ खाने का ही बंदोबस्त करो.’’

‘‘बोलो, हुक्म करो. बंदा हाजिर है. बिरयानी, चिकनपुलाव, कोरमा, पनीर, कोफ्ते, शामी कबाब, सींक कबाब, मुगलई परांठे, मखनी तंदूरी मुर्गा?’’

‘‘बस भी करो, जीजाजी, पता लग गया कि आप वही हैं कि थोथा चना बाजे घना. मैं तो 2 दिन से उपवास किए बैठी थी. लगता है सूखा चना भी नहीं मिलेगा.’’

‘‘भई, सूखा चना तो जरूर मिलेगा.  क्यों, उर्मिला? बस, तो फिर आज चना पार्टी ही हो जाए. जरा टटोलो बटुआ अपना, कहीं उस के लिए भी चंदा इकट्ठा न करना पड़ जाए.’’

बड़ी साली ने कहा, ‘‘अच्छा, दीदी, हम चलते हैं. कल ही आएंगे. तैयार रहना.’’

‘‘नहींनहीं, ऐसे कैसे जाओगी. कुछ तो खा के जाओ. जरा बैठो, कुछ न कुछ तो खाना बन ही जाएगा. बात यह है कि सारी गलती मेरी है. वेतन तो तुम्हारे जीजाजी सब मेरे हाथ में देते हैं, पर मैं झूठी शान में सारा एक ही सप्ताह में खर्च कर देती हूं. अब कब तक तुम से छिपाऊंगी.’’

‘‘नहीं, दीदी, थोड़ी गलती तो हमारी भी है. हमें भी तुम्हारे साथ मिलबैठ कर आनंद लेना चाहिए. तुम्हारे ऊपर बोझ नहीं बनना चाहिए,’’ बड़ी ने कहा.

छोटी ने शैतानी से कहा, ‘‘देखा, दीदी, नंबर 2 कितनी चालाक हैं. अपना रास्ता पहले ही साफ कर लिया कि कोई हम में से जा कर उस के ऊपर बोझ न बने.’’

नरेश ने हंसते हुए कहा, ‘‘तो फिर अब जब पोल खुल गई है तो सिनेमा देखने के लिए तैयार हो जाओ.’’

और फिर जो चीखपुकार मची तो लगा सारा महल्ला सिर पर उठा लिया है. टिकट बालकनी के नहीं, पहले दरजे के थे, जिस पर किसी को आपत्ति नहीं हुई. फिल्म देखने के बाद नरेश उन्हें ढाबे में तंदूरी रोटी और दाल खिलाने ले गया. वह भी सब ने बहुत मजे से पेट भर कर खाया.

इस तरह एक दामाद और बच गया.

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Winter Care : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सर्दियों में मेरी एडि़यां बहुत ही फटने लग जाती हैं. इतनी कि उन में से खून आने लगता है. बताएं मैं क्या करूं?

ठंड में बिना सही जूतों के पैर ठंडे हो सकते हैं. ऐसे जूते पहनें जो आप के पैरों को गरम और सुरक्षित रखें. पैरों की त्वचा को भी नमी देने के लिए मौइस्चराइजर का उपयोग करें खासकर एडि़यों पर वैसलीन या अधिक क्रीम जोकि स्पैशली पैरों के लिए बनी हो इस्तेमाल करें ताकि एडि़यों की त्वचा हमेशा सौफ्ट बनी रहे और फटे नहीं. पैरों की त्वचा की सफाई भी महत्त्वपूर्ण है. ठंड में बारिश के बाद या पैरों को गीला होने पर उन्हें अच्छे से सुखाना जरूरी होता है. यदि आप के पैरों की समस्या गंभीर है और खून आ जाए तो उन्हें साफ करें. फिर रात को थोड़ा नारियल या सरसों का तेल कटोरी में डाल कर हलकी आंच पर गरम करें. फिर उस में मोमबत्ती के टुकड़े डालें और अच्छे से मिला लें. हलका ठंडा करने के बाद उसे फटी एडि़यों में भर लें. इस के बाद सौक्स पहनें और सो जाएं. इस से आप की फटी एडि़यां जल्द ही ठीक हो जाएंगी.

मेरी उम्र 44 साल है. मैं गरम पानी से भी बाल नहीं धोती हूं. इस के बावजूद मेरे सिर में हमेशा डैंड्रफ रहता है. मैं क्या करूं?

दरअसल, डैंड्रफ बालों की नहीं बल्कि त्वचा की समस्या है. स्कैल्प की स्किन ड्राई होने या त्वचा रोग होने पर ऊपरी परत पर पपड़ी बनना शुरू हो जाती है. यही पपड़ी बालों के बीच दिखाई देती है. इसलिए सब से पहले

आप 1-1 चम्मच सेब व अदरक का रस और 1 चम्मच विनेगर मिला कर बालों में लगाएं और थोड़ी देर के लिए छोड़ दें. उस के बाद बालों को धो लें. कुछ देर बाद के इस्तेमाल से ही रूसी की समस्या दूर हो जाएगी.

जब भी बालों को धोएं उसी के साथ अपने तकिए का कवर, कंघी और तौलिए को भी किसी ऐंटीसैप्टिक से धो लें. धूप में सुखा कर उस का इस्तेमाल करें. यदि समस्या फिर भी दूर न हो तो किसी ब्यूटी क्लीनिक में जा कर ओजोन की कुछ सीटिंग्स ले लें या लेजर की सिटिंग्स ले लें तो इस समस्या से छुटकारा मिल जाएगा.

मेरी उम्र 25 साल है. मौसम में बदलाव की वजह से मेरे होंठ सूज जाते हैं और बहुत फटते हैं. कई बार ब्लड भी आ जाता है. इन के बचाव के लिए कोई उपाय बताएं?

बदलते मौसम में लगातार सनलाइट के कौंटैक्ट में रहने से, मौसम में नमी की कमी और होंठों पर लगातार जीभ फेरते रहने से उन की नमी कम हो जाती है और वे फटने लगते हैं. होंठों की बेहतर सेहत के लिए विटामिंस और मिनरल्स से भरपूर डाइट लेनी चाहिए जिस में बी कौंप्लैक्स विटामिन, बी 2, 3 और 6 तथा विटामिन ए शामिल हो.

होंठों के लिए आवश्यक मिनरल में जिंक अहम होता है. शहद में प्राकृतिक रूप से ऐंटीबैक्टीरियल तत्त्व होते हैं जो होंठों की सूजन को कम करते हैं. यह आप के होंठों को मौइस्चराइज करने के साथसाथ इन्फैक्शन से भी बचाता है और सूजन को भी कम करता है. 1 चम्मच शहद में कौटन को डुबोएं और सूजन वाली जगह पर लगाएं. अब इसे 20 मिनट तक ऐसे ही रहने दें फिर ठंडे पानी से धो लें. इसे दिन में 2 या 3 बार करें. आप को फटे होंठों की समस्या से मुक्ति मिलेगी.

मैं ने अपनी अपर आर्म पर एक टैटू बनवाया था. अब मैं उस से बोर हो चुकी हूं. मु?ो टैटू रिमूवल के लिए वे टिप्स दें जिन के ऊपर मुझे जरूर ध्यान देना चाहिए?

टैटू रिमूवल करवाने के लिए आप को इस बात का ध्यान रखना होगा कि आप इसे रिमूव करवाने के लिए किसी भी अच्छे डर्मैटोलौजिस्ट के पास जाएं क्योंकि सभी टैटू को रिमूव करना आसान नहीं होता. काले रंग के टैटू को रिमूव करना चटकदार रंगों की तुलना में आसान होता है.

ग्रीन और ब्लू रंग के टैटू को रिमूव करना चुनौतीपूर्ण होता है. हालांकि लेजर रिमूवल एक अच्छा विकल्प है, जिस करने में कई सैशन लगते हैं जो महीनों से ले कर साल तक भी होते हैं. इसलिए आप अधिक से अधिक यह कोशिश करें कि उसे कवर कर के नया रूप दिया जा सकता है ताकि आप को बाद में किसी समस्या का सामना न करना पड़े.

सर्दियों में मेरी स्किन काफी ड्राई हो रही है. क्या शहद मुझे फायदा पहुंचा सकता है?

शहद एक बेहतरीन नैचुरल मौइस्चराइजर है. इस में विटामिन बी 1, बी 2, बी 5, बी 6, बी 3 और सी होते हैं जो हर तरह की ऐलर्जी से बचाते हैं. शहद हर प्रकार की स्किन व बालों के लिए बेहतरीन होता है. शहद के जरीए अपनी स्किन को फायदा पहुंचाने के लिए आप कुनकुने पानी में अपनी उंगलियों को डुबोएं और फिर उन में शहद ले कर पूरे फेस पर लगाएं.

लगभग 5 से 10 मिनट बाद अपने फेस को कुनकुने पानी से धो लें. शहद एक नैचुरल मौइस्चराइजर है. इसे लगाने से स्किन सौफ्ट व चमकदार हो जाती है.

नैचुरल मौइस्चराइजर के तौर पर आप गुलाबजल, शहद, ग्लिसरीन और नीबू के रस को मिला कर एक शीशी में रख लें और रात को सोते समय फेस, हाथों व पांवों पर लगाएं. शहद व ग्लिसरीन से स्किन सौफ्ट होगी और गुलाबजल से फेस व बौडी पर गुलाबी निखार आएगा.

-समस्याओं के समाधान

ऐल्प्स ब्यूटी क्लीनिक की फाउंडर, डाइरैक्टर डा. भारती तनेजा द्वारा

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Janhvi Kapoor और खुशी कपूर अपनी मां श्रीदेवी की फिल्मों को चोरी छुपे बंद कमरे में देखती थी….

Janhvi Kapoor : श्रीदेवी की दोनों बेटियां जहान्वी कपूर और खुशी कपूर फिल्मों में पदार्पण कर चुकी हैं. लेकिन उनकी मां श्रीदेवी आज अगर जिंदा होती तो शायद ऐसा नहीं होता. क्योंकि श्रीदेवी नहीं चाहती थी कि उनकी दोनों बेटियां फिल्मों में काम करें. 4 साल की उम्र से ऐक्टिंग करने वाली श्रीदेवी अच्छी तरह जानती थी फिल्मों में सक्सेस पाने के लिए क्या कुछ झेलना पड़ता है. लेकिन इसके विपरीत दोनों बेटियों को बचपन से ही एक्टिंग का शौक था.

यही वजह है कि जहान्वी कपूर किसी तरह जिद करके फिल्मों में श्रीदेवी के रहते ही आ गई थी. क्योंकि जब श्रीदेवी की मौत हुई तो जहान्वी कपूर धड़क फिल्म की शूटिंग कर रही थी. लेकिन खुशी कपूर ने फिल्मों में आने में थोड़ा वक्त ले लिया. हाल ही में खुशी कपूर की फिल्म लवयापा रिलीज हुई जिसमें खुशी कपूर की परफौर्मेंस की सभी ने तारीफ की. इसी फिल्म के इंटरव्यू के दौरान खुशी कपूर ने बताया कि वह अपनी मम्मी की फिल्मों की फैन थी. सिर्फ खुशी खुद ही नहीं बल्कि उनकी बहन जहान्वी कपूर भी श्रीदेवी की फिल्मों से प्रभावित थी.

खुशी के अनुसार अपनी मम्मी श्रीदेवी की फिल्मों में फिल्म सदमा उनकी सबसे फेवरेट फिल्म है. लेकिन साथ ही खुशी और जहान्वी को उनकी मोम की हर फिल्म देखना पसंद था. लेकिन क्योंकि श्रीदेवी ने अपने बच्चों को फिल्म इंडस्ट्री और फिल्मों से दूर रखा था, इसलिए वह दोनों बेटियों को अपनी कोई फिल्में देखने भी नहीं देती थी, खुशी के अनुसार मम्मी को हम दोनों को फिल्म दिखाने में शर्म और झिझक महसूस होती थी. इसीलिए वह अपनी कोई भी फिल्म हमें देखने नहीं देती थी. लेकिन हम भी मम्मी की तरह ही जिद्दी थे . जब मम्मी घर में नहीं होती थी या दूसरे कमरों में होती थी, तब हम दोनों बहने चुपचाप एक कमरे में बंद होकर मम्मी की फिल्में देखा करते थे.

उनका काम बहुत ही अच्छा लगता था. हम बारबार उनकी फिल्में देखते थे. इस बात की उनको बिल्कुल भी खबर नहीं थी. कि हम उनकी फिल्में चोरी छुपे देखते हैं. खुशी कपूर ने साथ ही यह भी कहा कि मैं मम्मी की कोई भी फिल्म की रीमेक में काम नहीं कर सकती क्योंकि मैं उतनी अच्छी ऐक्ट्रेस हूं ही नहीं कि अपनी मम्मी की फिल्म के साथ न्याय कर सकूं. बस मुझे तो उन्हें फिल्मों में देखना ही अच्छा लगता है.

Valentine’s Day Special : सोनी सब के कलाकारों ने प्यार के असली मतलब पर अपने विचार किए शेयर

Valentine’s Day Special : वैलेंटाइन डे आने में अब कुछ ही दिन बचे हैं. ऐसे में प्यार के इस खास दिन की धूम हर तरफ देखने को मिल रही हैं लेकिन प्यार के मायने हर किसी के लिए अलगअलग हैं.आइए जानते हैं सोनी टीवी के कुछ टैलेंटेड कलाकारों के बारे में जिन्होंने अपनेअपने तरीके से प्यार के बारे में अपने विचार शेयर किए.

अपनों के साथ बिना शर्त के बंधन की सराहना 

टीवी के इन कलाकारों के लिए प्यार सिर्फ रोमांटिक रिश्तों तक सीमित नहीं है. इसमें वे गहरे संबंध भी शामिल हैं. जो वे अपने परिवार, दोस्तों और यहां तक कि पालतू जानवरों के साथ शेयर करते हैं. ये कलाकार प्यार के बारे में अपने विचार शेयर कर रहे हैं, चाहे वह किसी के साथ कठिन समय में खड़ा होना हो या अपनों के साथ बिना शर्त के बंधन की सराहना करना हो. वे इस अवसर के लिए अपने खास प्लान बता रहे हैं, जो वे प्यार का जश्न अपने अनूठे तरीकों से बनाते हैं.

असली प्यार कठिन समय में परखें

पुष्पा इम्पॉसिबल में अश्विन पटेल का किरदार निभाने वाले नवीन पंडिता कहते हैं, “मेरे लिए प्यार यह है कि आप किसी के लिए प्रयास करें, साथ रहें और जब समय कठिन हो, तो पीछे मजबूती से खड़ा रहें. सच्चा प्यार सिर्फ अच्छे समय का नहीं होता—यह चुनौतियों, संघर्षों और अनिश्चितताओं के बीच होने का नाम है. जब सब कुछ सही होता है तो प्यार करना आसान होता है, लेकिन असली प्यार कठिन समय में परखा जाता है. जब चीजें कठिन हो जाती हैं तो आप किसी व्यक्ति, पालतू, साथी या दोस्त से दूर नहीं होते. प्यार मेरे लिए यह है कि आप बने रहें, चाहे जो भी हो. यही इसे वास्तव में अर्थपूर्ण बनाता है.”

प्रियजनों के साथ वेलेंटाइन डे मनाएं

पुष्पा इम्पॉसिबल में चिराग का किरदार निभाने वाले दर्शन गुर्जर ने कहा, “साल 2025 मेरे लिए बहुत सारी
सकारात्मकता, प्यार और व्यक्तिगत विकास के साथ शुरू हुआ है. इस वेलेंटाइन वीक में मैं एक ऐसे दोस्त के साथ समय बिता रहा हूं जो मेरे सबसे कठिन समय में मेरे साथ खड़ा रहा है, जब से मैं जूनियर कॉलेज में था. उसकी सराहना के तौर पर, मैं उसे कुछ खास देने का प्लान कर रहा हूं क्योंकि वह एक वंडरफुल और थॉटफुल फ्रेंड है और हमेशा मेरे साथ खड़ा रहा है. मेरे पेरेंट्स को इस दिन के बारे में खास जानकारी नहीं है, तो इस बार मैंने उनके लिए कुछ खास योजना बनाई है, एक डिनर रिजर्वेशन बुक करके, ताकि उनके लिए यह दिन यादगार बन सके. आखिरकार, यह प्यार मनाने का दिन है, तो सभी को अपने प्रियजनों के साथ इस वेलेंटाइन डे को बिताना चाहिए.”

खुद से प्यार बहुत जरूरी

वागले की दुनिया में वंदना का किरदार निभाने वाली परिवा प्रणति का कहना हैं, “मेरे लिए प्यार यह है कि आप दया, समझ और विचारशीलता दिखाएं. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मैं सच में मानती हूं कि खुद से प्यार बहुत जरूरी है जो हम अपने बारे में महसूस करते हैं, वह हमारे दूसरों के साथ संबंधों में दिखता है. जब हम अपनी भावनाओं को अपनाते और सम्मानित करते हैं, तभी हम दुनिया के सामने प्यार को उसकी शुद्धतम रूप (purest form) में व्यक्त कर सकते हैं, जिसमें हमारे जीवन का वह खास व्यक्ति भी शामिल है. यह सब हमारे साथ कैसे व्यवहार किया जाता है, इस पर निर्भर करता है, और यही हमारे रिश्तों को आकार देता है.”

सभी रूपों में प्यार का जश्न मनाएं

वागले की दुनिया में सखी का किरदार निभाने वाली चिन्मयी सालवी ने कहा, “प्यार सिर्फ एक भावना नहीं है; यह एक यात्रा है, जो दया, क्षमा और निःस्वार्थता से भरी होती है. यह उपस्थित होने, वहां होने और उन पलों के बारे में है जो वास्तव में महत्वपूर्ण होते हैं. यह एक ऐसी जगह बनाने के बारे में है जहां दिल सुरक्षित, मूल्यवान और प्रिय महसूस करते हैं. इस वेलेंटाइन डे पर, हम सभी रूपों में प्यार का जश्न मनाएं वह प्यार जो हम देते हैं, वह प्यार जो हम प्राप्त करते हैं और वह प्यार जो हम अपने भीतर पोषित करते हैं.”

प्यार सिर्फ भावना नहीं एक एनर्जी है

तेनाली रामा में कृष्णदेव राय का किरदार निभाने वाले आदित्य रेडिज ने कहा, “मेरे लिए प्यार सिर्फ एक भावना नहीं है—यह एक ऊर्जा है जो हमें जोड़ती है, मजबूत करती है और हमें जैसा हैं वैसा स्वीकार करती है. यह कई रूपों में मौजूद है, पेरेंट्स की देखभाल, दोस्ती की ईमानदारी, साथी का समर्थन, और एक बच्चे की मुस्कान की मासूमियत. शुद्ध प्यार बिना शर्त होता है, जैसे वह प्यार जो मैं अपने पेरेंट्स और बेटे के साथ शेयर करता हूं. पहली बार उसे पकड़े हुए प्यार ने मेरे लिए एक नया अर्थ लिया. दोस्ती भी एक बहुमूल्य बंधन है, जो विश्वास और वफादारी पर आधारित है, और मैं उन दोस्तों का आभारी हूं जो मेरे साथ खड़े रहे हैं. और फिर मेरी पत्नी है, मेरी साथी, मेरी मार्गदर्शिका, जिसका प्यार मेरी ताकत है. प्यार मेरे लिए यह है कि आप जुड़ें, समझें और उन लोगों के साथ खड़े रहें जो महत्वपूर्ण हैं. इस वेलेंटाइन डे पर, मैं उस सभी प्यार का जश्न मनाता हूं जो जीवन को अर्थपूर्ण बनाता है.”

Valentine’s Day : न उम्र की सीमा हो, न जन्म का हो बंधन

Valentine’s Day : फरवरी का महीना प्यार का महीना कहलाता है. जैसे ही वैलेंटाइन डे का दिन 14 फरवरी आने वाला होता है, हर किसी के मन में प्रेम की भावना का संचार होना शुरू हो जाता है. शादीशुदा हो या कुंआरा, बूढ़ा हो या जवान, हर किसी के मन में कहीं न कहीं यह मुबारक दिन मनाने की इच्छा होती है.

विदेशियों ने भले हम से सबकुछ छीन लिया हो, लेकिन इस प्यार के दिन को मनाने की परंपरा उन्होंने ही सिखाई है. अंगरेज देश छोड़ कर चले गए लेकिन आज भी हम उन की परंपराओं को फौलो कर रहे हैं लिहाजा वैलेंटाइन डे हो, रोज डे हो, हग डे हो फरवरी महीने की शुरुआत से ही ये सारे प्यार के दिन की शुरुआत हो जाती है. ऐसे में जिन के पास प्रेमीप्रेमिका या लाइफ पार्टनर है उन में से कुछ लोग तो इस दिन को ले कर बावले हो जाते हैं कि अपने पार्टनर को खुश करने के लिए इस दिन क्या करें और क्या न करें और जिस के पास कोई लवर नहीं होता तो उस दिन वह अपनेआप को सब से बड़ा लूजर, निठल्ला और बदसूरत समझने लगते हैं। ऐसे लोग अपनी खुन्नस अर्थात गुस्सा निकालने के लिए वैलेंटाइन डे के दिन विरोधी बजरंग दल वालों के साथ मिल कर उन सारे प्रेमियों को दौड़ादौड़ा कर मारते हैं जो अपना वैलेंटाइन डे झाड़ियों के पीछे या पेड़ों के नीचे मजे से मना रहे होते हैं.

सच बात तो यह है कि वैलेंटाइन डे के दिन उन सभी को टेंशन रहता है जो अपने प्रेमी के साथ वैलेंटाइन डे मनाना चाहते हैं और उन को भी टेंशन और दुख होता है, जिन के पास वैलेंटाइन डे मनाने के लिए प्रेमी ही नहीं होता.

एक सच यह भी है कि उन्हीं प्रेमी या प्रेमिका का वैलेंटाइन डे जो सब से अच्छा बनता है जिन के पास अपने प्रेमी को खुश करने की ताकत होती है, जिन के पास अपने पार्टनर को खुश करने के लिए पैसे होते हैं. उन सभी का वैलेंटाइन डे अच्छा और यादगार बन जाता है.

जैसाकि कहते हैं, जितना गुड़ उतना मीठा, वैसे ही आज के जमाने में जिस के पास जितने ज्यादा पैसे होते हैं वही प्यार का हर दिन ऐंजौय कर पाता है क्योंकि वैलेंटाइन डे ही एक ऐसा दिन होता है जिस में हर प्रेमी को अपना प्यार दिखाने का पूरा मौका मिलता है.

बहुत सालों पहले एक गाना आया था,’यार दिलदार तुझे कैसा चाहिए प्यार चाहिए कि पैसा चाहिए…’ आज के समय में जबकि सबकुछ पैसों पर निर्भर है यह गाना पूरी तरह फिट बैठता है। आज के समय में ज्यादातर लड़कियां यही सोचती हैं कि यार दिलदार तेरे जैसा चाहिए मगर प्यार के लिए भी पैसा चाहिए.

बहुत ही कम लोग हैं जो प्यार के सहारे अपने प्रेमी के साथ बिना किसी शर्त और कम पैसों के साथ जिंदगी गुजारने को तैयार हैं क्योंकि अगर पैसा नहीं है तो प्यार में दम भी नहीं है.

अगर प्रैक्टिकली देखा जाए तो हर कोई अपने स्टेटस के हिसाब से प्यार, मोहब्बत और शादी करता है. कोई अमीर लड़की किसी औटो रिकशा वाले या मोची, डिलीवरी बौय से शादी नहीं करेगी. या कोई अमीर लड़का सेट पर टचअप करने वाली मेकअप आर्टिस्ट या झोपड़पट्टी में रहने वाली किसी गरीब लड़की से शादी नहीं करेगा क्योंकि आज लोगों का मानना है कि सिर्फ प्यार से काम नहीं चलता अच्छी जिंदगी जीने के लिए पैसा भी चाहिए.

वैसे, ऐसा नहीं है कि आज प्यार पूरी तरह खत्म हो गया है और हरकोई सिर्फ पैसों के पीछे भाग रहा है बल्कि आज के समय में प्यार भले ही कम पैसे वाले लड़के या लड़की से कर ले, लेकिन शादी तभी करते हैं जब सामने वाला उन के स्टेटस का या थोड़ा कम ही सही उन के टक्कर का बन जाता है.

आज के समय में कोई भी प्यार के नाम पर जिंदगीभर गरीबी में नहीं जीना चाहता. लिहाजा, वह ऐसे ही इंसान से प्यार या शादी करता है जो भले ही दूसरी जाति धर्म का हो, भले ही उम्र में लंबा फासला हो, लेकिन पैसे से कम नहीं होना चाहिए.

अगर बौलीवुड की बात करें, तो यहां पर कई लोगों ने अपने से बड़ी उम्र के लड़के और लड़कियों से शादी की है. अलग धर्म में भी सब के खिलाफ जा कर शादी की है. लेकिन इन में से किसी ने भी पैसे से कमजोर इंसान से शादी नहीं की है। आज लोग यही सोचते हैं कि या तो वह सेम स्टेटस का हो या बहुत अमीर हो.

बौलीवुड के वे सितारे जिन्होंने उम्र में लंबा फर्क और अलग धर्म की जाति में प्रेम विवाह रचाया.कहते हैं, प्यार जब होता है तो आगे पीछे कुछ नहीं दिखाई देता, न जाति न धर्म और न ही बड़ी उम्र. इसीलिए कहा जाता है कि प्यार अंधा होता है. बौलीवुड में कई ऐसे जोड़े हैं जिन्होंने उम्र का लंबा फासला और धर्मजाति को ताक में रख कर प्रेमविवाह किया जिन में कुछ का लंबे समय तक प्यार और रिश्ता टिका रहा है या कुछ जोड़े कुछ सालों में ही अलग भी हो गए.

दिलीप कुमार और सायरा बानो में 22 साल का फर्क था. धर्मेंद्र और हेमा मालिनी में 13 साल का फर्क है. संजय दत्त और मान्यता में 19 साल का फर्क है.  करीना कपूर और सैफ अली   9 साल का फर्क है.

करीना कपूर तो बचपन में ही अपने पति सैफ अली खान की पहली शादी में भी गई थी, जो अमृता सिंह के साथ हुई थी. किरण राव और आमिर ने में 9 साल का फर्क रहा।

फराह खान और शिरीष कुंदर में 8 साल का फर्क है. कौमेडियन भारती सिंह और उन के पति हर्ष में 10 साल का फर्क है. ऐश्वर्या राय अभिषेक बच्चन से 3 साल बड़ी हैं, राजेश खन्ना डिंपल कपाड़िया से 17 साल बड़े थे. मौडल मिलिंद सोमन ने अपने से 25 साल छोटी लड़की अंकित कुंवर से, प्रियंका चोपड़ा निक जोनस से 10 साल बड़ी हैं.

उर्मिला मातोंडकर अपने पति मोहसिन अख्तर से 10 साल छोटी हैं जबकि रणबीर कपूर आलिया भट्ट में 12 साल का गैप है.

बौलीवुड के वे सितारे जिन्होंने दूसरे धर्म में शादी की

रितेश देशमुख ने क्रिश्चियन जाति की जेनेलिया डीसूजा से शादी की. उर्मिला मातोंडकर ने भी मुसलिम से शादी की, सोनाक्षी सिन्हा ने जहीर खान से शादी जो कि मुसलिम है, करीना कपूर ने सैफ अली खान से शादी की, प्रीति जिंटा ने पति जीन गुडयंक जो प्रीति जिंटा से 10 साल छोटे हैं, क्रिश्चियन जाति के हैं, आदित्य पंचोली ने अपने से 5 साल बड़ी और मुसलिम जाति की अभिनेत्री जरीना बहाव से शादी की.

कैटरीना कैफ ने विकी कौशल से शादी की जो न सिर्फ अलग धर्म की है, बल्कि विक्की से 5 साल बड़ी भी हैं. मनोज बाजपेयी ने मुसलिम धर्म की नेहा से शादी की। सुनील दत्त ने नरगिस से शादी की, तो दीया मिर्जा ने वैभव रेखी से शादी की जो हिंदू हैं.

इन सब बातों से यही निष्कर्ष निकलता है कि प्यार और शादी में अलग धर्म और बड़ी उम्र का होने से कोई फर्क नहीं पड़ता बस स्टेटस और जेब में भरपूर पैसा होना चाहिए। उस के बाद शादी भी टिकेगी और वैलेंटाइन डे भी हर साल अच्छा मनेगा.

Shefali Shah से लेकर माधुरी दीक्षित तक सभी को पसंद है सूटेड बूटेड लुक

Shefali Shah : बौलीवुड ऐक्ट्रैस हमेशा से फैशन के क्षेत्र में ट्रेंड सेंटर रही है, जिस में आजकल वे अधिकतर स्टाइल को फौलो करने लगी हैं, जो उन के कौन्फिडेंट, अथौरिटी और ग्लैमर को दिखाती हैं. आज सभी ऐक्ट्रैसेज ने बाकी ड्रैसेज के अलावा ट्रेंड में पोपुलर ब्लैजर्स को अपने वार्डरोब में शामिल किया है, जो उन के वर्सटाइल और स्टाइलिश लुक को उजागर करती हैं.

उन्होंने यह भी सिद्ध कर दिया है कि फौर्मल ब्लैजर्स के ईजी कट्स और खूबसूरती केवल कारपोरेट सैक्टर्स के लिए नहीं होती, बल्कि ऐलीगैंस का एक अल्टिमेट स्टेटमैंट होता है, जो उन्हे ऐंपावर भी करती है.

शेफाली शाह की रैड हौट ब्लैजर लुक

अभिनेत्री शेफाली शाह की रैड हौट ब्लैजर लुक सब की नजर में तब आई, जब वे दिल्ली ‘क्राइम सीजन 3’ की एक इवेंट पर गई हुई थीं. उन का ये स्टनिंग लुक, कौन्फिडेंट और ऐलीगेंस को दिखा रही थी, जिसे उन्होंने डायमंड स्टडेड रिंग और इयररिंग्स के साथ कंप्लीट किया हुआ था. साथ में स्लीक ब्लैक हील्स उन के स्ट्रैंथ, ग्लैमर और बोसी लुक की प्रतीक थी.

माधुरी दीक्षित की ऐफर्टलैस ऐलिगेंस डार्क ब्लू ब्लैजर लुक

माधुरी दीक्षित स्टाइल में कभी भी समझौता नहीं करतीं, फिर चाहे वह इंडियन हो या वैस्टर्न वियर उन की हर आउटफिट उन के ग्रैस और कौन्फिडैंस को बताती है.

माधुरी दीक्षित ने एक इंटरव्यू में कहा है कि फिटनैस को लाइफस्टाइल बना लेना चाहिए और किसी भी नई ऐक्सपेरिमैंट को फैशन में करने से मना नहीं करना चाहिए.

उन का डार्क ब्लू ब्लैजर लुक उन की चार्म को बढ़ाती है, जिस में उन के लूज पैंट्स के साथ ब्लैजर, कौन्टेंपरी लुक को बल देती है. उन का फैशन के साथ खुद के स्टाइल की बैलेंस अद्भुत होती है.

विद्या बालन का ब्लैजर लुक

वैसे तो अभिनेत्री विद्या बालन का साड़ी लुक इंडस्ट्री में काफी पौपुलर है, लेकिन इन दिनों उन्होंने भी ब्लैजर लुक को कई बार अपनाया है. उन का पहनावा चाहे वैस्टर्न हो या इंडियन, हमेशा ऐफर्टलैस और ग्रैसफुल होता है.

पिछले दिनों एक इवेंट में वे ब्लैक ऐंड व्हाइट चैक वाले ब्लैजर के साथ एक स्लीक इनरवियर में दिखीं. उन की ऐक्सेसरीज में गोल्डन हूप इयररिंग्स थे, जो उन की इस लुक को ग्लैमरस बना रही थी.

शिल्पा शेट्टी का ग्रे ब्लैजर लुक

फिटनैस आइकन दीवा अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी की बात करें तो वे फैशन के मामले में सब को चकित करती हैं. उन का चिक ग्रे ब्लैजर उन की खूबसूरती और स्मार्टनैस में चार चांद लगाती हैं.

ब्लैजर की लूज सलीव्स और हाई कौलर, उन की बोल्ड लुक सोफिस्टिकैटेड टच और हूप इयररिंग्स उन के स्टाइल स्टेटमैंट को बताती है. शिल्पा शेट्टी ने फैशन पर कहा है कि वे जो भी पहनना पसंद करती हैं, उस में वे स्टाइलिश लुक को देखती हैं. फिर चाहे वह पश्चिमी परिधान हो या पारंपरिक, उन्हे नई ड्रैसेज आकर्षित करती हैं.

काजोल का बोसी लैडी ब्लैजर लुक

बौलीवुड की काजोल का बोसी ब्लैजर लुक हमेशा से ही सब को इंप्रैस करता आया है, क्योंकि उन का फैशन सेंस सब के मन को भाता है. बौलीवुड की वे एकमात्र ऐसी ऐक्ट्रैस हैं, जिन्होंने कभी भी किसी ऐक्सपेरिमैंट से खुद को अलग नहीं किया. उन की लैटस्ट शार्प ब्लैजर लुक सब से अलग है.

काजोल का स्लीक ब्लैक ब्लैजर लुक उन्हें बोसी लेडी होने की ऐनर्जी देती है. इस लुक में उन्होंने
चिक ब्लैक बैग और कोबरा प्रिंट हील्स को शामिल किया है, जिस से उन का लुक और भी अधिक बोल्ड और ब्यूटीफुल हो गया है.

इस प्रकार फैशन कैसा भी हो, उसे कैरी करने आना चाहिए, ताकि पोशाक व्यक्ति पर जंचे। इस के लिए फिजिकल फिटनैस, स्मार्टनैस और चेहरे की ऐक्सप्रेशन का सही होना, जिस में स्माइल बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं.

Family First : मां को छोड़ कर अलग रहना क्या उचित होगा?

Family First :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 34 वर्षीय युवक हूं. मेरी विधवा मां ने काफी कष्ट सह कर मेरी और मेरी बहन की परवरिश की. बहन की शादी के बाद मैं ने शादी की. मेरे विवाह को 8 वर्ष हो चुके हैं और 2 बच्चे भी हैं. मेरी समस्या यह है कि मेरी मां और पत्नी में हर समय खटपट रहती है. दोनों को समझातेसमझाते मैं आजिज आ चुका हूं. मेरी मां हमारे लिए जितनी ममतामयी रही हैं बहू को ले कर उतनी ही खड़ूस हैं. उन की पढ़ाईलिखाई (उच्च शिक्षिता हैं) और बड़प्पन कहीं नहीं दिखता. दूसरी ओर पत्नी भी कमतर नहीं है. आजकल मां रातदिन एक ही रट लगाए है कि मैं उसे ले कर अलग हो जाऊं. मैं कोई निर्णय नहीं कर पा रहा. मां पूरी तरह से स्वस्थ और सक्षम हैं. अपनी देखभाल स्वयं कर सकती हैं पर फिर भी मां को छोड़ कर अलग रहना क्या उचित होगा? लोग क्या कहेंगे? बताएं, क्या करूं?

जवाब-

सासबहू के रिश्ते में मधुरता प्राय: कम ही देखने को मिलती है. इसलिए आप के घर में यदि आप की मां और पत्नी के बीच 36 का आंकड़ा है, तो कोई अनहोनी बात नहीं है. आप के भरसक प्रयास के बावजूद यदि दोनों में तालमेल नहीं बैठ रहा तो रोजरोज की कलह से नजात पाने के लिए आप मां से अलग हो जाएं. अपने लिए घर थोड़े फासले पर ले लें. दूर रहने पर अमूमन रिश्तों में मिठास लौट आती है. दूर रह कर भी आप बीचबीच में आ कर और दिन में 1-2 बार फोन कर के उन का हालचाल पूछ सकते हैं. जहां तक लोगों की बात है तो लोग तभी तक बोलते हैं जब तक हम उन की परवाह करते हैं. अत: उन की बातों पर कान न दें.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर 8588843415 पर  भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Halwa Recipe : नाश्ते में बनाए ब्रेड का हलवा, ये रही रेसिपी

Halwa Recipe : आज आपको ब्रेड का हलवा बनाने की बेहद आसान रेसिपी बताते है जो खाने में बहुत टेस्टी है. आपको जब भी झटपट नाश्ता बनाना हो, तो आप ब्रेड का हलवा बना सकती हैं. तो फिर देर किस बात की, आइए रेसिपी बताते है.

 सामग्री :

– घी ( 02 बड़े चम्मच)

– किशमिश ( 15-20)

– काजू (10-12 बारीक कतरे हुए)

– बादाम (07-08 बारीक कतरे हुए)

— ब्रेड ( 08 पीस)

– दूध (400 मिलीलीटर)

– शक्कर ( 200 ग्राम)

ब्रेड का हलवा बनाने की रेसिपी:

– सबसे पहले एक बरतन में दूध गर्म करें.

– जब तक दूध गर्म हो रहा है, ब्रेड के छोटे-छोटे टुकड़े कर लें.

– इसी के साथ काजू के भी छोटे-छोटे टुकड़े कर लें.

– जब दूध हल्का गर्म हो जाए, गैस की आंच एकदम धीमी कर दें, जिससे दूध गर्म होता रहे.

– अब एक नौन स्टिक कड़ाही में घी गर्म करें. जब घी गर्म हो जाए, तो उसमें ब्रेड के टुकड़े डाल दें और   चलाते हुए भूनें.

– जब ब्रेड के टुकड़े हलके भूरे और खस्ता हो जाएं, उसमें किशमिश और काजू के टुकड़े डाल दें.

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