19 दिन 19 टिप्स: 10 टिप्स से घर पर पाएं क्रैक फ्री हील्स

जब भी पैरों की एड़ियां फटती हैं तो उसे देख कर चिंता होने लगती है कि अब इस समस्‍या से कैसे छुटकारा मिलेगा. फिर इस समस्या से निजात पाने के लिये महिलाएं न जाने कौन कौन सी क्रीम और लोशन लगाना शुरु कर देती हैं, मगर इनसे रत्‍ती भर भी फर्क नहीं पड़ता. अगर आपको भी अपनी फटी एड़ियों का डर सता रहा है तो आजमाइये हमारे बताए गए नुस्‍खें.

1. एड़ियों की सफाई करें

नहाते समय अपनी एड़ियों को स्‍क्रब से साफ करें, जिससे डेड स्‍किन और गंदगी निकल जाए. जब भी बाहर से घर को आएं तब अपने पैरों को गरम पानी में डाल कर साफ करें.

2. एड़ियों को नमी प्रदान करें

पैरों में तेल ग्रंथी नहीं होती इसलिये वे हमेशा रूखे बने रहते हैं. इसके लिये आपको रात में सोने से पहले उसकी तेल या क्रीम से मसाज करनी चाहिये.

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3. केले का गूदा

फटी एड़ियों पर केले का गूदा लगाइये. 10 मिनट तक छोड़ने के बाद ठंडे पानी से धो लीजिये. जब तक पैर सही न हो जाएं तब तक इसे दिन में एक बार जरुर करें.

4. नींबू

पैरों को नींबू और गरम पानी के घोल में 15 मिनट के लिये डुबोएं. पैरों को स्‍क्रब करें, धोएं और फिर मौइस्‍चराइजर लगा कर मोजे पहन लें.

5. ग्‍लीसरीन का घोल

आधी बाल्‍टी पानी में ग्‍लीसरीन डालें और 10 मिनट के लिये उसमें पैर डाल कर बैठें. उसके बाद ठंडे पानी से पैर धो लें और अपने आप सूखने दे. फिर लोशन लगा कर पैरों को नमी दें.

6. पपीते का गूदा

रूखे पैरों को पके हुए पपीते के गूदे से मसाज करें. इससे पैर और अधिक नहीं फटेंगे तथा स्‍किन मुलायम हो जाएगी.

7. दूध और शहद

दूध को शहद के साथ मिलाइये और अपने पैरों को उसमें 15-20 मिनट के लिये डाल दीजिये. फिर थोड़ा सा स्‍क्रब कीजिये और बाद में गरम पानी से धो लीजिये.

8. नमक

आधी बाल्‍टी में पानी डाल कर उसमें 1 चम्‍मच नमक डालें और मिक्‍स करें. नमक से आपके पैरों से डेड स्‍किन निकल जाएगी और पैर कोमल बन जाएंगे.

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9. तेल मसाज

20 मिनट के लये तेल मसाज कीजिये और 1 घंटे के लिये पैरों को ऐसे ही छोड़ दीजिये. ऐसा ही हफ्ते में तीन बार रात में सोने से पहले करें.

10. चप्‍पल की बजाए बंद जूते पहनें

अगर आप चप्‍पल की जगह पर बंद जूते पहनेंगी तो आपकी ऐड़ियां धूल मिट्टी और गंदगी बची रहेंगी. बंद जूते पहनने से पैर रूखे नहीं होते और हमेशा साफ बने रहते हैं.

रोते-रोते गुमनाम होती ‘रुदाली’

अमित बैजनाथ गर्ग, वरिष्ठ पत्रकार

राजस्थान के जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर और सीमावर्ती क्षेत्रों में राजे-रजवाड़ों और उनके बाद राजपूत जमींदारों के घरों में पुरुष सदस्य की मौत पर रोने का काम करने वाली रुदालियों की जब भी बात आती है, तो लेखिका महाश्वेता देवी के कथानक पर साल 1993 में कल्पना लाजमी निर्देशित फिल्म ‘रुदाली’ का चित्र अनायास सभी की आंखों के आगे ठहर जाता होगा!

उसकी पात्र शनिचरी के जरिए महाश्वेता देवी ने अपनी किताब में रुदालियों का जो वर्णन किया है, उसके अनुसार रुदाली काले कपड़ों में औरतों के बीच बैठकर जोर-जोर से छाती पीटकर मातम मनाती हैं. यह मातम मौत के 12 दिन बाद तक चलता है. कहते हैं कि इसमें जितनी ज्यादा नाटकीयता होती है, उतनी ही इसकी चर्चा होती है.  अब साक्षरता बढ़ रही है और तेजी से पलायन भी हो रहा है. लोग अब शांतिपूर्वक तरीके से अंतिम प्रक्रिया  को प्राथमिकता दे रहे हैं. इससे रुदालियों की अहमियत कम हो रही है. कुछ लोगों का कहना है कि रुदालियां अब नहीं रहीं. फिल्म में रुदालियों की चर्चा कल्पनात्मक ज्यादा है, असलियत कम.

1. …पर आज भी हैं रुदालियां

रुदालियों की कहानी का  मौजूदा पहलू यह है कि जोधपुर के शेरगढ़ व पाटोदी, बाड़मेर के छीतर का पार, कोटड़ा, चुली व फतेहगढ़ और जैसलमेर के रामदेवरा व पोकरण जैसे गांवों में आज भी रुदालियां हैं. हालांकि रुदालियों का दायरा अब काफी हद तक सिमट रहा है. अब राजपूत जमींदारों का वह प्रभाव ही नहीं रहा, जो पहले हुआ करता था. ये रुदालियां न केवल गंजू और दुसाद जातियों से हैं, बल्कि उनसे भी ज्यादा भील और निम्न जातियों से आती हैं.  सभी रुदालियां विधवा होती हैं. इन्हें  अशुभ ही माना जाता है. समाज इनके साथ वैसे ही पेश आया है, जैसे पति के मर जाने के बाद महिला पर नजर गड़ाकर बैठे लोग पेश आते हैं.

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2. कुछ नाता गईं, कुछ उलझी रहीं

इन विधवा रुदालियों में से अधिकतर ने समाज-पंचों के फैसले के आगे अपना सिर झुकाते हुए नाता प्रथा (परिवार में ही देवर-जेठ से ब्याह कर लेना) को अपना लिया. कुछ जिंदगी के भंवर में उलझी रहीं और विधवा होने का दंश हमेशा उनके साथ चलता रहा. इन्होंने रुदाली का पेशा अपना लिया, लेकिन रोने के काम से पेट नहीं भरता. कोई रोज-रोज मरता नहीं, तो रोज-रोज रोने का स्वांग किसके लिए करें! काम नहीं तो पैसे नहीं! इसके लिए ये रुदालियां आज मजदूरी, खेती-बाड़ी और पशुपालन का काम भी कर रही हैं. रुदालियों को प्रतिबंधित खेजड़ी और रोहिड़ा के पेड़ों को काटने के लिए भी बुलाया जाता है. पैसे लेकर रुदाली इन पेड़ों को काटती भी हैं. कुछ गांवों में तो रुदाली बनने वाली इन विधवाओं को सख्त हिदायत है कि सुबह-सुबह घर से बाहर ना निकलें. इन्हें आज भी अशुभ और मनहूस ही माना जाता है.

3. उम्र तय करती है पहनावा

रुदालियों का पहनावा इनकी उम्र तय करती है. मसलन, कम उम्र की विधवा है तो हलके हरे रंग के कपड़े. वहीं अगर उम्रदराज विधवा है, तो गाढ़े लाल रंग की चुनर. उस पर उकेरे हुए काले मोर पंख. गहरे लाल रंग की कुर्ती-कांचली और उसी रंग की छोटी मगजी (लहंगे के नीचे दूसरे कपड़े से मढ़ा हुआ कपड़ा) वाला धाबला (बिना कली का लहंगा). अक्सर कहा जाता है कि रुदालियों को गांव के बाहर ही रहना पड़ता है, लेकिन यह पूरा सच नहीं है. असल में पहले राजे-रजवाड़ों के पास बहुत जमीनें हुआ करती थीं, सो वे रुदालियों को अशुभ मानकर गांव के बाहर आसरा दे देते थे. अब रुदालियां गांव के बाहर भी रहती हैं और गांव के भीतर भी. इसमें इनकी सक्षमता और अक्षमता का बहुत बड़ा योगदान है. मसलन, जो रुदालियां खेती-बाड़ी, पशुपालन और मजदूरी का काम ढंग से कर लेती हैं, उनकी आय रोने के काम पर आश्रित रुदालियों से कहीं बेहतर है. खास बात यह भी है कि रुदालियों के ये काम भी उच्च जातियों के लोगों के द्वारा ही दिए गए हैं.

4. समूह गीतों में जीवन का दर्द

जहां तक गांव से बाहर रहने की बात है तो जोधपुर, बाड़मेर और जैसलमेर के कुछ गांवों में गांव की ओरण में उन्हें बसेरा दे दिया जाता है. मसलन, जहां गांव का आखिरी घर आ जाए, वहीं से रुदालियों का पहला घर शुरू हो जाता है. इनके घर छप्पर और कच्ची मिट्टी के बने होते हैं. इन घरों की बेरंगत आने वाले को इनके जीवन के सच को आसानी से महसूस करा देती है. एक सच यह भी है कि समाज के ठेकेदारों की गंदी निगाहों से रुदालियां भी अछूती नहीं रही हैं. रोने को रिवाज में तब्दील करने वाली इन रुदालियों को भी जबर्दस्ती का सामना करना पड़ा है.  इन गांवों में आज भी रुदालियों को अपने समूहों में गीत गाते हुए देखा जा सकता है. इन गीतों में वे अपने दु:ख को भली-भांति बयां कर देती हैं.

5. मरने पर कोर्ई नहीं रोता…

आज रुदालियों के पास जब मातम का काम नहीं होता है, तो वे मजूदरी व खेती-बाड़ी का काम करती हैं. नाममात्र की मजदूरी के अलावा कुछ लोग इन्हें बचा हुआ खाना और पहनने को कपड़े दे देते हैं. हालांकि अब रुदालियों के जीवन में कुछ जगह बदलाव है, तो कुछ जगहों पर धर्म के ठेकेदारों ने परिस्थितियां बदल दी हैं. कुछ रुदालियों की रो-रोकर छातियां सूख गई हैं, अब वे रोने के काम में पहले जैसी हुनरमंद नहीं रहीं. रोने का भी रिवाज भी अब घरों की बंद ड्योढ़ी में सिमटता जा रहा है. वृद्ध हो गई रुदाली के मर जाने पर तो रोने वाला भी कोई नहीं होता. नई रुदालियां कम होने से यह पेशा सिमट रहा है.

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6. सम्मान चाहती है तिरस्कृत रुदाली

समाज में अच्छी छवि नहीं होने के कारण इनकी पीढिय़ों की लड़कियों की शादी में कठिनाइयां आ रही हैं. रुदालियों में शिक्षा का अभाव है, जिससे बदलाव आना आसान नहीं है. तिरस्कृत रहीं रुदालियां सम्मान चाहती हैं. उन्हें समाज की नजरों में खुद के लिए दया नहीं, बल्कि हक चाहिए. कुछ कर गुजरने का, आजादी से काम करने का, पढ़ने-लिखने का, अपने लिए जीवन साथी चुनने का.

हां, विधवा होने पर जीवन को खुद के हिसाब से जीने का. ना कि समाज के थोपे हुए तरीके से मर-मर के जीने का.

Maang Tikka की फैन हैं Asim Riaz की गर्लफ्रेंड Himanshi Khurana, आप भी कर सकती हैं ट्राय

बिग बॉस 13 में अपने रिलेशनशिप के चलते एक्ट्रेस हिमांशी खुराना (Himanshi Khurana) अक्सर सुर्खियों में रहती हैं. असीम रियाज (Asim Riaz) के साथ हिमांशी खुराना (Himanshi Khurana)  के रिलेशनशिप को लेकर अक्सर अफवाहें भी फैलती रहती हैं. हाल ही में ब्रेकअप की अफवाहों को लेकर सुर्खियों में रहने हिमांशी खुराना (Himanshi Khurana) को ज्वैलरी का बेहद शौक है. वह अक्सर हैवी ज्वैलरी पहने नजर आती है, जिनमें मांग टीका उनकी सबसे पसंदीदा ज्वैलरी है.

हाल ही में हिमांशी (Himanshi Khurana) ने अपने फैंस के लिए मांग टीके के साथ कुछ फोटोज शेयर की हैं, जिसे आप भी किसी भी पार्टी या शादी में अपने लुक को खूबसूरत बनाने के लिए ट्राय कर सकती हैं.

1. मांग टीका पहनकर किया फैंस को दी बधाई

 

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हिमांशी खुराना (Himanshi Khurana) ने रमजान के मौके पर अपने फैंस को मुबारकबाद देते हुए कुछ फोटोज शेयर की हैं, जिनमें वह मांग टीका पहनकर रमजान मुबारक कहती नजर आईं.

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2. हर मौके पर पहन सकती हैं मांग टीका

 

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कुछ ही दिनों पहले भी एक्ट्रेस और सिंगर हिमांशी ने अपनी फोटो सोशल मीडिया पर शेयर की थी. इस फोटो में भी वो पिंक सूट के साथ पिंक कलर के मांग टीके में बेहद खूबसूरत लग रही थीं. वहीं उनके इस लुक से आप के लिए टिप है कि आप किसी भी इंडियन आउटफिट के साथ मांग टीका ट्राय कर सकती हैं.

3. ब्राइडल लुक को कंप्लीट करता है मांग टीका

 

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❤️❤️

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हाल ही हिमांशी खुराना ने ब्राइडल फोटोशूट करवाए थे, जिनमें उनके लुक की लाइमलाइट मांग टीका रहा था. अगर आप भी जल्द दुल्हन बनने वाली हैं तो हिमांशी की तरह अपने मांग टीके को अपने लुक में खास जगह दें, ताकि आपके लुक पर चार चांद लग जाए.

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4. सिंपल मांग टीका भी परफेक्ट

 

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हैवी ही नहीं एक्ट्रेस के पास सिंपल मांग टीके भी हैं जो वो अपनी अलग-अलग ड्रेसेस के साथ पहनना पसंद करती है. वहीं इससे आप ये भी देख सकते हैं कि जरूरी नही आपका मांग टीका हैवी ही हो, सिंपल मांग टीका भी आपके लुक पर चार चांद लगा देगा.

Dr Ak Jain: अंडकोष के दर्द को न करें अनदेखा

मैडिकल साइंस की एक पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, पिछले कुछ सालों से पुरुषों में अंडकोष के कैंसर की समस्या तेजी से बढ़ रही है. अंडकोष में कैंसर 6 माह के अंदर खतरनाक हालत में पहुंच जाता है. इस का फैलाव पेड़ से दिमाग तक हो सकता है.

 पुरुष अंडकोष के दर्द को सामान्य रूप में लेते हैं जिस की वजह से वे डाक्टर के पास देर से जाते हैं. कुछ डाक्टर के पास जाते भी हैं तो डाक्टर पहचानने में गलती कर जाते हैं. साधारण बीमारी समझ कर उस का इलाज कर देते हैं. अधिकतर भारतीय पुरुष  अंडकोष के कैंसर से अनजान हैं जिस की वजह से वे अपने अंडकोष में आए परिवर्तन की ओर ध्यान नहीं देते हैं. जब समस्या बढ़ जाती है तब डाक्टर के पास पहुंचते हैं.

अगर आप भी ऐसी ही किसी समस्या से जूझ रहे हैं तो संपर्क करिए लखनऊ के डॉक्टर ए. के. जैन से जो पिछले 40 सालों से इन समस्याओं का इलाज कर रहे हैं.

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हर पुरुष को चाहिए कि वह अपने अंडकोष  में आए परिवर्तन पर ध्यान रखे. अंडकोश में दर्द, सूजन, आसपास भारीपन, अजीब सा महसूस होना, लगातार हलका दर्द बना रहना, अचानक अंडकोष के साइज में काफी अंतर महसूस करना, अंडकोष पर गांठ, अंडकोश का धंसना आदि लक्षण दिखाई देने पर तुरंत डाक्टर से मिलना चाहिए. पुरुषों में यह समस्या किसी भी उम्र में हो सकती है.

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अंडकोष  कैंसर के कारण

किसी भी व्यक्ति के अंडकोष में कैंसर उत्पन्न हो सकता है. इस के होने की कुछ वजहें ये हैं :

क्रिस्टोरचाइडिज्म :

यदि किसी युवक के बचपन से ही अंडकोश शरीर के अंदर धंसे रहें तो उसे अंडकोष कैंसर की समस्या हो सकती है. क्रिप्टोरचाइडिज्म का इलाज बचपन में ही करवा लेना चाहिए ताकि बड़े होने पर उसे खतरनाक समस्या से न जूझना पड़े. सर्जन छोटा सा औपरेशन कर के अंडकोष को बाहर कर देते हैं.

आनुवंशिकता :

यदि पिता, चाचा, नाना, भाई आदि किसी को अंडकोष के कैंसर की समस्या हुई हो तो सावधान हो जाना चाहिए. टीएसई यानी टैस्टीक्युलर सैल्फ एक्जामिनेशन द्वारा अंडकोष की जांच करते रहना चाहिए.

बचपन की चोट :

बचपन में खेलते वक्त कभी किसी बच्चे को यदि अंडकोष में चोट लगी है तो बड़े होने पर उसे अंडकोष के कैंसर की समस्या उत्पन्न हो सकती है. बचपन में चोट लगने वाले पुरुषों के अंडकोष में किसी तरह का दर्द, सूजन आदि महसूस होने पर तुरंत डाक्टर को दिखाना चाहिए.

हर्निया :

हर्निया की समस्या की वजह से भी किसीकिसी के अंडकोश में दर्द व सूजन उत्पन्न हो जाती है. ऐसे में डाक्टर से शीघ्र मिलना चाहिए.

हाइड्रोसील :

हाइड्रोसील की समस्या होने पर अंडकोष की थैली में पानी जैसा द्रव्य जमा हो जाता है. इस में अंडकोष में दर्द भले ही न हो लेकिन थैली के भारीपन से अंडकोश प्रभावित हो जाते हैं जिस की वजह से अंडकोष का कैंसर हो सकता है.

इंपोटैंसी :

नई खोज के अनुसार, इंपोटैंसी की वजह से भी अंडकोष के कैंसर की समस्या उत्पन्न हो सकती है. डा. जूड मोले बताते हैं कि जिन लोगों को अंडकोष कैंसर की समस्या पाई गई है उन में से अधिकतर पुरुष इंपोटैंसी यानी नपुंसकता के शिकार थे.

अंडकोष का इलाज :

अंडकोष में असामान्यता दिखाई देने पर तुरंत डाक्टर से मिलना चाहिए. डा. राना का कहना है कि ब्लड, यूरिन टैस्ट व अल्ट्रासाउंड द्वारा बीमारी का पता लगा लिया जाता है. बीमारी की स्थिति के मद्देनजर मरीज को दवा, कीमोथेरैपी या सर्जरी की सलाह दी जाती है. जिस तरह से महिला अपने स्तन का सैल्फ टैस्ट करती है उसी प्रकार पुरुष अपने अंडकोश का सैल्फ टैस्ट कर के जोखिम से बच सकते हैं.

सावधानी

  1. विपरीत पोजिशन में संबंध बनाते वक्त ध्यान रखें कि अंडकोष में चोट न लगे.
  2. तेज गति से हस्तमैथुन न करें, इस से अंडकोष को चोट लग सकती है.
  3. किसी भी हालत में शुक्राणुओं को न रोकें. उन्हें बाहर निकल जाने दें नहीं तो यह शुक्रवाहिनियों में मर कर गांठ बना देते हैं. आगे चल कर कैंसर जैसी समस्या उत्पन्न हो सकती है.
  4. क्रिकेट, हौकी, फुटबाल, कुश्ती आदि खेल खेलते समय अपने अंडकोश का ध्यान रखें. उस में चोट न लग जाए. चोट लगने पर तुरंत डाक्टर को दिखाएं.
  5. टाइट अंडरवियर न पहनें, लंगोट बहुत अधिक कस कर न बांधें. इस से अंडकोष पर अधिक दबाव पड़ता है.
  6. सूती और हलके रंग के अंडरवियर पहनें. नायलोन के अंडरवियर पहनने से अंडकोष को हवा नहीं मिल पाती है. गहरे रंग का अंडरवियर अंडकोष को गरमी पहुंचाता है.
  7. हमेशा अंडरवियर पहन कर न रहें. रात के वक्त उसे उतार दें जिस से अंडकोष को हवा लग सके.
  8. अधिक गरम जगह जैसे भट्ठी, कोयला इंजन के ड्राइवर, लंबी दूरी के ट्रक ड्राइवर आदि अपने अंडकोष को तेज गरमी से बचाएं.
  9. अंडकोष पर किसी प्रकार के तेल की तेजी से मालिश न करें. यह नुकसान पहुंचा सकता है.

बहरहाल, अंडकोष में किसी भी प्रकार की तकलीफ या फर्क महसूस करने पर खामोश न रहें. डाक्टर से सलाह लें. अंडकोष की हर तकलीफ कैंसर नहीं होती लेकिन आगे चल कर वह कैंसर को जन्म दे सकती है इसलिए इस से पहले कि कोई तकलीफ गंभीर रूप ले, उस का निदान कर लें.

लखनऊ के डॉक्टर ए. के. जैन, पिछले 40 सालों से इन सभी समस्याओं का इलाज कर रहे हैं. तो आप भी पाइए अपनी सभी  सेक्स समस्या का बेहतर इलाज अंतर्राष्ट्रीय ख्याति एवं मान्यता प्राप्त डॉ. जैन द्वारा. 

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#lockdown: कोरोनावायरस महामारी का दूसरा चक्र जल्द

वर्ल्ड हेल्थ और्गेनाइजेशन की यह बात कि, नोवल कोरोना वायरस से लड़ाई लंबी चलेगी, सही प्रतीत होती है क्योंकि अब भारतीय वैज्ञानिकों ने कह दिया है कि जुलाई के अंत या अगस्त में भारत में कोरोना वायरस का दूसरा दौर सामने आ सकता है. वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि मौनसून के दौरान संक्रमण के मामलों की संख्या बढ़ सकती है.

इसी बीच, अमेरिकी वैज्ञानिकों का कहना है कि वायरस पर सूर्य की सीधी किरणों का शक्तिशाली प्रभाव पड़ता है, जिससे उम्मीद है कि दुनियाभर में क़हर बरपा करने वाली कोविड-19 महामारी का प्रसार तेज गरमी में कम हो जाएगा.

भारत के शिव नादर विश्वविद्यालय के गणित विभाग के सह प्राध्यापक समित भट्टाचार्य कहते हैं कि कोरोना वायरस से उभरी महामारी का दूसरा दौर जुलाई अंत या अगस्त में मौनसून के दौरान देखने को मिल सकता है. हालांकि, उनका यह भी कहना है कि शीर्ष पर पहुंचने का समय इस बात पर निर्भर करेगा कि हम उस समय सामाजिक दूरी को किस तरह नियंत्रित करते हैं. बेंगलुरु के भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के प्राध्यापक राजेश सुंदरेसन भी समित भट्टाचार्य की बात से सहमत हैं.

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वैज्ञानिक राजेश सुंदरेसन कहते हैं कि जब हम सामान्य गतिविधि के दौर में लौटेंगे, उस वक्त ऐसी आंशका रहेगी कि संक्रमण के मामले एक बार फिर बढ़ने लगें. भट्टाचार्य कहते हैं कि जब तक बाजार में कोरोना की वैक्सीन आती है उस समय तक हमें चौकस रहना होगा. वे कहते हैं कि ध्यान रखिए कि मानसून के महीने हमारे देश में अधिकतर स्थानों पर फ्लू के मौसम के महीने भी होते हैं, इसलिए हमें फ्लू के शुरुआती लक्षणों को बिलकुल भी अनदेखा नहीं करना है.

बेंगलुरु और मुंबई को प्रतिरूप मानकर किए गए एक अध्ययन के मुताबिक, कोरोना संक्रमण का दूसरा दौर भारत में देखने को मिलेगा और जन स्वास्थ्य का खतरा इसी प्रकार उस समय तक बना रहेगा जब तक कि मामलों का आक्रामक तरीके से पता लगाने, स्थानीय स्तर पर उन्हें रोकने और पृथक करने के लिए कदम न उठाए जाएं और साथ ही, नए संक्रमण को आने से रोका न जाए.

उधर, अमेरिकी वैज्ञानिकों का कहना है कि सूधे सूरज की धूप पड़ने से कोरोना वायरस बहुत तेज़ी से मर जाता है. हालांकि, अभी तक इस अध्ययन को सार्वजनिक नहीं किया गया है, इसलिए कि अभी इसके और अधिक नतीजों के मूल्यांकन का इंतज़ार है.

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अमेरिकी होमलैंड सिक्योरिटी विभाग के विज्ञान और प्रौद्योगिकी सलाहकार विलियम ब्रायन का कहना है कि अमरीकी वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया है कि वायरस पर सूर्य की सीधी किरणों का शक्तिशाली प्रभाव पड़ता है, जिससे उम्मीद है कि दुनियाभर में क़हर बरपा करने वाली इस महामारी का प्रसार गरमी में कम हो जाएगा.

वे कहते हैं कि अब तक का हमारा सबसे महत्वपूर्ण अध्ययन यह है कि सूरज की किरणें कोविड-19 को मार देती हैं, वायरस सतह पर हो या हवा में. हमने तापमान और आर्द्रता दोनों के साथ समान प्रभाव देखा है. तापमान और आर्द्रता दोनों आमतौर पर वायरस के लिए घातक हैं.

 

#lockdown: कोरोना के खौफ के बीच जब अमिताभ बच्चन के घर में घुसा चमगादड़

पूरा विश्व कोरोना के कहर से जूझ रहा है. शुरू से ही यह खबर आ रही थी कि यह वायरस चमगादड़ से फैला है. ऐसे में अब अगर किसी के घर चमगादड़ आ जाए और भगाए न भागे तो समझिए डर के मारे कितना बुरा हाल होगा.

सदी के महानायक अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) ने दुनियाभर में फैले कोरोना वायरस के खौफ के बीच एक ‘ब्रेकिंग न्यूज’ ट्विटर पर शेयर की. उन्होंने सोशल मीडिया अकाउंट के जरीए बताया कि एक चमगादड़ उन के घर में घुस गया.

सोशल मीडिया पर दी जानकारी

अमिताभ बच्चन ने ट्वीट किया,”ब्रेकिंग न्यूज… इस घंटे की खबर, एक बैट, हां एक चमगादड़ अभी मेरे कमरे जोकि जलसा के तीसरे फ्लोर पर है, आ गया. इस जगह हम सभी बैठते हैं.” बिग बी ने आगे लिखा कि उसे पहले कभी नहीं देखा गया. हमारा ही घर मिला उसे. कोरोना तो पीछा छोड़ ही नहीं रहा. उड़उड़ के आ रहा है, कमबख्त… बौलीवुड स्टार के इस पोस्ट को शेयर करने के बाद उन के फैंस ने कमैंट्स करने शुरू कर दिए. फैंस ने उन्हें सुरक्षित रहने के लिए कहा.

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बिग बी ने अभी हाल ही में कोरोना वायरस की जागरूकता फैलाने के लिए एक शौर्ट फिल्म में भी काम किया है. फिल्म में उन के साथ प्रियंका चोपड़ा, रणबीर कपूर, रजनीकांत, आलिया भट्ट जैसे सुपरस्टार्स भी थे. यह शौर्ट फिल्म एक घर में फिल्माई गई थी. वैसे बिग बी, विशेषज्ञों ने कहा है कि चमगादड़ एक आम प्राणी की तरह ही हैं और इन से डरने की जरूरत नहीं है. कोरोना वायरस इंसानों से इंसान में फैलने वाला वायरस है. बाकी तो आप खुद ही समझदार हैं.

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ऐसा लगा है कि मुझे थोडा ग्लैमर अडॉप्ट करना चाहिए– पायल घोष

बीबीसी टेलीफिल्म शार्प्स पेरिल से अभिनय क्षेत्र में उतरने वाली अभिनेत्री पायल घोष (Payal Ghosh) ने 17 साल की उम्र में अपने माता-पिता को बताये बिना कोलकाता से मुंबई आ गयी और अपने रिश्तेदार के यहाँ रहने लगी. प्रदीप घोष और अजंता घोष के घर में जन्मी पायल को बचपन से ही अलग-अलग तरह के एक्टिंग आईने के सामने खड़ी होकर करना पसंद था, इसमें साथ दिया उसके दोस्तों और कजिन्स ने, जिन्होंने हमेशा उसे अभिनय के क्षेत्र में कोशिश करने की सलाह दी. मुंबई आने के बाद पायल ने एक्टिंग का कोर्स किया और वही से काम मिलने लगा. फिल्म पटेल की पंजाबी शादी पायल घोष (Payal Ghosh) की हिंदी फिल्म है, जिसमें उसके काम की काफी सराहना मिली. हिंदी के अलावा पायल ने तमिल, तेलगू और कन्नड़ फिल्मों में भी काम किया है. हंसमुख और शांत स्वभाव की पायल लॉक डाउन में कई फिल्मों को देखना और वेब सीरीज के स्क्रिप्ट पढ़ रही है, उनसे बात करना रोचक था, पेश है अंश.

सवाल-फिल्मों में आने की प्रेरणा कहाँ से मिली?

एक्टिंग का ख्याल मुझे कभी आया नहीं था, क्योंकि मेरा परिवार बहुत कंजरवेटिव है. हिंदी फिल्में देखना बहुत पसंद था. मैं माधुरी दीक्षित की फिल्में देखना पसंद करती थी. उनकी हर बात मुझे अच्छी लगती है. 17 साल की होने पर कुछ अलग करने की इच्छा हुई, क्योंकि हमारे परिवार में लड़कियां थोड़ी बड़ी हो जाने पर शादी कर दी जाती है. मैं ऐसा नहीं करना चाहती थी और 12 वीं कक्षा की परीक्षा देने के बाद मैं मुंबई अपनी कजिन के पास आ गयी. मैंने किसी को बताये बिना ही मुंबई आ गयी थी, क्योंकि मैं दिखने में सुंदर थी और मेरी शादी हो जाएगी, ऐसा सोचकर मैंने कोलकाता से भागने का प्लान कजिन के साथ मिलकर किया. मैं दिखने में अच्छी हूं, इसका पता मुझे स्कूल के दिनों से ही लग गया था. मुझे स्कूल में 700 से 800 कार्ड्स वेलेंटाइन डे पर मिलते थे. कजिन्स पैसे लेकर मैंने फ्लाइट की टिकट ली और रात को जब सब सो रहे थे मैं दबे पाँव घर से निकल गयी और मुंबई अपने रिश्तेदार के पास आ गयी. किसी को भी पता नहीं चला था. सब मुझे कोलकाता में ढूंढ रहे थे, मुंबई पहुंचकर मैंने घरवालों को बताया. सभी के लिए ये न्यूज़ शाकिंग थी. पिता ने 6 महीने तक मुझसे बात भी नहीं की थी. असल में मेरी माँ बचपन में गुजर चुकी है, पिता ने ही हम दो बहनों को बड़ा किया है. वे कोलकाता कंस्ट्रक्शन से जुड़े हुए है.

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इसके बाद मैंने किशोर नमित की एक्टिंग क्लासेज ज्वाइन किया और उसके तुरंत बाद मुझे बीबीसी की टेलीफीचर फिल्म मिल गयी थी. छोटी भूमिका थी, पर सबने पसंद किया. इसके बाद मुझे तेलगू फिल्म मिली, इस तरह से मेरा कैरियर शुरू हो गया.

सवाल-आपका संघर्ष कितना रहा?

मुझे अधिक संघर्ष नहीं करना पड़ा, क्योंकि आते ही मैंने एक्टिंग क्लास ज्वाइन कर लिया था, इससे मुझे 8 दिनों के अंदर पहला प्रोजेक्ट मिल गया था, इसके बाद साउथ की फिल्म ‘प्रायानम’ मिली. मैं इस विषय पर अपने आप को लकी मानती हूं. मैं अपने दोस्त के साथ ऑडिशन देखने गयी थी और निर्देशक को मैं पसंद आ गयी और मुझे काम मिल गया. उसके बाद काम मिलता गया. अभी पिता भी मेरे काम से बहुत खुश है.

सवाल-ग्लैमर इंडस्ट्री के बारें में आपकी सोच पहले से कितनी बदली है?

पहले मैंने सुना था कि इंडस्ट्री में लोग अच्छे नहीं होते, लकिन जब मैंने साउथ में काम करना शुरू किया मुझे किसी भी प्रकार की समस्या नहीं आई. पहली फिल्म हिट होने के बाद काम मिलना शुरू हो गया. साउथ में एक्टर्स को बहुत अधिक मान दिया जाता है. मैंने काम के साथ-साथ अपनी पढाई भी पूरी की है. पढाई पूरी करने के बाद मैं मुंबई पूरी तरह से शिफ्ट हो गयी हूं.

सवाल-फिल्मों में इंटिमेट सीन्स करने में आप कितनी सहज है?

मेरा परिवार अभी भी मुझे शोर्ट ड्रेस में देखना पसंद नहीं करता. छोटे हो या बड़े सभी सदस्यों को ऐतराज होता है, पर मैं सबकुछ पहनती हूं. मैंने अभी तक कोई ग्लैमर एक्टिंग नहीं की है. अभी मैंने कुछ बोल्ड शूट एक मैगज़ीन के कवर के लिए किया है और ये मेरा पहला असाइनमेंट है. मैंने पहले ऐसी किसी भी फिल्म में ऐसे रिविलिंग शूट नहीं किया, इसके बाद से मुझे ऐसा लगा है कि थोडा ग्लैमर मुझे अडॉप्ट करना है. हमेशा घरेलू अभिनय करना ठीक नहीं, थोडा बोल्ड होना पड़ेगा, क्योंकि इससे अलग-अलग भूमिका करने का मौका मिलेगा. वेब सीरीज मैंने अभी तक नहीं किये है, क्योंकि पहले वेब सीरीज में इंटिमेट सीन्स और स्किन शो अधिक था, लेकिन अब उसमें भी काफी परिवर्तन आया है. आजकल कांसेप्ट पर अधिक जोर दिया जा रहा है. सब लोग इसे देख सकते है. आगे कई वेब सीरीज करने वाली हूं.

सवाल-कोई प्रोजेक्ट मिलने पर उसकी तैयारी कैसे करती है?

मैं सबसे पहले स्क्रिप्ट अच्छी तरह से पढती हूं. उर्दू के मेरे गुरु है, जो मुझे एक्सेंट सिखाते है. मेरे संवाद की प्रैक्टिस करती हूं. मैं मैथड एक्टर नहीं हूं, इसलिए मुझे अधिक प्रैक्टिस करनी पड़ती है. बंगाली होने की वजह से मुझमें बंगाली एक्सेंट है, इसलिए उसे अच्छी तरह से हटाती हूं, ताकि संवाद ओरिजिनल लगे. एक्टिंग मैं अधिक प्रैक्टिस नहीं करती.

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सवाल-बांग्ला फिल्म नहीं किया, इसकी वजह क्या रही?

मैंने बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री से काम नहीं किया है, इसलिए वहां के लोगों को जानती नहीं  और किसी ने आजतक कोई ऑफर भी नहीं दिया अगर मौका मिला तो अवश्य बांग्ला फिल्म करुँगी. मेरे पिता भी चाहते है कि मैं बंगाल के लिए कोई फिल्म करूँ.

सवाल-बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री की रौनक कम हो गयी है, अभी वहां पर स्टार फैक्टर भी नहीं है, इसकी वजह क्या मानती है?

बचपन में मैंने सुचित्रा सेन और उत्तमकुमार की फिल्में देखी है. पहले बांग्ला फिल्म बनती थी और लोग उसकी कॉपी हिंदी में करते थे. अब वे हिंदी कि कॉपी करने लगे है. असल में बांग्लादेश के मार्केट को पकड़ने के लिए वे अपनी सोच में फर्क करने लगे है, इससे ओरिजिनल कहानियां अब नहीं रही और इसे इंडस्ट्री भुगत रही है. सत्यजीत रे की फिल्म आज भी मैं देख सकती हूं.

सवाल-इस समय क्या-क्या कर रही है?

मैं फिल्में देखती हूं, जो मुझे बहुत पसंद है. कुछ नयी कांसेप्ट देखना पसंद करती हूं. खाना बनाना पड़ता है. यही सब चल रहा है.

सवाल-क्या कोई ड्रीम प्रोजेक्ट है?

रविन्द्रनाथ टैगोर की कहानी ‘चारुलता’ जिसे सत्यजीत रे ने बांग्ला में बनायीं थी. उसे कोई हिंदी में बनाये और मैं उसमें अभिनय करने की इच्छा रखती हूं.

सवाल-आपके सपनो का राजकुमार कैसा हो?

मुझे समझने वाले, अच्छी बातचीत करने वाले, सम्मान देने वाले, शिक्षित, प्रेजेंटेबल आदि होने चाहिए.

सवाल-लॉक डाउन में मेसेज क्या देना चाहती है?

मैं सभी नागरिकों से कहना चाहती हूं कि सभी लोग जो हमारी हिफाजत के लिए बाहर इस समय काम कर रहे है, जिसमें हेल्थ वर्कर्स, पुलिस और सफाई कर्मी सभी शामिल है. उनकी मेहनत को समझे और घर पर रहकर उनकी समस्या को न बढायें. उनको मारे पीटे नहीं, उनका सम्मान करें.

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#coronavirus: क्या होगा जब उठेगा लॉकडाउन का पर्दा ?

परेशानियां अब धुंधली हो गयी हैं और दिल की धड़कनें तेज.जी,हां लॉकडाउन के खत्म होने का इंतजार हर गुजरते दिन के साथ बढ़ते हुए रोमांच का पर्याय बन गया है.करोड़ों भारतीयों के दिलो-दिमाग में 4 मई 2020 एक नई मंजिल, एक नई उपलब्धि,एक नई सुबह बनकर आने जा रही है.क्योंकि कम से कम अभी तक तो बहुत से लोगों के दिल में यही विश्वास है कि 4 मई या उसके बाद का हिंदुस्तान वैसा नहीं होगा,जैसा 24 मार्च 2020 के पहले था.लेकिन ये बदलाव कैसे अपनी शक्ल इख्तियार करेगा,रोजमर्रा की जिंदगी में यह कैसे व्योहारिकता का  जामा पहनेगा.इस सबको लेकर लोगों के मन में सैकड़ों सवाल हैं.अनगिनत हां और न हैं , मसलन-

-क्या मई और जून की आग बरसाती गर्मी के दिनों में भी स्कूल कॉलेज खुलेंगे ?

– क्या 4 मई के बाद मास्क व सोशल डिस्टेंसिंग हमारी जिंदगी का परमानेंट हिस्सा हो जायेंगी ?

-क्या वर्चुअल क्लासरूम का प्रयोग सिर्फ लॉकडाउन के दिनों भर के लिए था या अब पढ़ाई का नियमित हिस्सा बन जाएगा ?

-वर्क फ्रॉम होम का क्या होगा ?

-क्या लॉकडाउन के बाद फिर से लोग पहले की तरह दफ्तर जा सकेंगे ?

-क्या मुंबई लोकल की ठसाठस भीड़ वाले दिन फिर से लौटेंगे या अब यह इतिहास बन  जायेगी ?

-मेट्रोज की नाईट लाइफ का क्या होगा, क्या लॉकडाउन के बाद ये फिर से पहले की तरह हो पायेगी ?

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न जाने ऐसे कितने सवाल हैं जो करीब सवा महीने की तालाबंदी के खुलने से आ जुड़े हैं.ऐसा नहीं है कि ये सवाल महज हिंदुस्तानियों की कल्पना का हिस्सा हैं. दुनिया के कई देशों में लॉकडाउन खुल गया है और वहां लॉकडाउन के बाद की जिंदगी में जो तमाम अप्रत्याशित बदलाव् हुए हैं ,उनकी बिना पर भी ये तमाम अटकलबाजियां हो रही हैं. लॉकडाउन को लेकर हिंदुस्तानियों की इस ऊहापोह में इनका भी बहुत योगदान है.मसलन डेनमार्क में अप्रैल के दूसरे पखवाड़े में खुल चुके लॉकडाउन के बाद स्कूलों में बच्चों को क्लासरूम में एक दूसरे से कम से कम छह फुट की दूरी पर अलग अलग डेस्क में बिठाया जा रहा है.भारतीय माँ-बाप को यह देखकर चिंता हो रही है कि क्या भारत में भी यह व्यवस्था लागू होगी,जहां आम स्कूलों के एक क्लास रूम में औसतन 50-60 बच्चे बैठते हैं ?

पब्लिक स्कूलों में पढने वाले बच्चों के मां-बाप यह देख और पढ़कर सोचते हैं कि अगर उनके बच्चों के स्कूलों में भी यही सब लागू होता है तो कहीं उनसे इसकी कीमत तो नहीं वसूली जायेगी ?  क्योंकि भारत के अधिकांश पब्लिक स्कूलों में भी बुनियादी किस्म के ही क्लासरूम होते हैं.यहां भी कुछ ख़ास स्कूलों को छोड़कर बस काम चलाऊ बैठने की ही व्यवस्था होती है.विदेशों में जहां लॉक डाउन खुला है,वहां पब्लिक ट्रांसपोर्ट में काफी हद तक सोशल डिस्टेंसिंग बनाकर सवारियों को बैठाया जा रहा है .लेकिन हिन्दुस्तान में सार्वजनिक वाहनों में तो हर सवारी के लिए सीट तक उपलब्ध नहीं होती.बसें हों या ट्रेन हिन्दुस्तान में आम चीजें हमेशा भीड़ का शिकार रहती हैं.

ऐसे में आम भारतीयों की यह स्वाभाविक चिंता है कि सार्वजनिक वाहनों में सोशल डिस्टेंसिंग कैसे पूरी होगी. हालांकि भारत सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि अगर किसी फैक्ट्री में किसी को कोरोना संक्रमण होता है तो इसके लिए फैक्ट्री मालिक के विरुद्ध एफआईआर नहीं दर्ज की जायेगी. मगर स्कूलों के संबंध में अभी तक कुछ स्पष्ट नहीं कहा गया है.ऐसे में यह डर और आशंका स्वाभाविक है कि अगर कोई बच्चा किसी स्कूल में संक्रमित हो जाता है तो इसके लिए कौन जिम्मेदार होगा? साथ ही क्या किसी बच्चे के संक्रमित होने के बाद भी स्कूल खुला रह पायेगा? या इस तरह की घटना के बाद एक बार फिर से स्थाई रूप से बंद हो जाएगा ? ये तमाम ऐसे सवाल हैं जो बच्चों के मां-बाप को जितना परेशान कर रहे हैं,उससे कहीं ज्यादा स्कूल प्रबंधकों को परेशान किये हैं .

जहाँ तक भारत के कारपोरेट सेक्टर की बात है तो वह भी इस लॉकडाउन  के खुलने के सवाल से कई तरह की उलझन से घिरा है.भारत में आमतौर कारपोरेट सेक्टर जब कर्मचारियों के बारे में सोचता है तो उसके जेहन में वेतन, प्रमोशन कार्यस्थल पर विवाद और यौन उत्पीड़न संबंधी गाइडलाइन जैसी बातें ही आती रही हैं.लॉकडाउन जैसी समस्याओं से निपटने का भारतीय कार्पोरेट सेक्टर का अभी तक कोई अनुभव नहीं रहा.लेकिन 4 मई के बाद उसके सामने सोचने के लिए कई सवाल और उनके जवाब ढूँढने की गंभीर जिम्मेदारी होगी.मसलन अब हिंदुस्तान का कार्पोरेट सेक्टर अपने कर्मचारियों को परिवहन सुविधा उपलब्ध कराये जाने के सवाल से बचा नहीं सकता न ही इसे वैकल्पिक मानकर चल सकता है.

क्योंकि कोरोना को लेकर जिस तरह के हालात फिलहाल पूरी दुनिया में हैं,उससे एक बात तो तय है कि यह इतनी जल्दी नहीं जाने वाला.वैसे भी दुनिअभर के विशेषज्ञ कह रहे हैं कि अगर अगले कुछ महीनों में वैक्सीन बन जाती है उस स्थिति में भी कम से कम से दुनिया को इससे छुटकारा पाने में 2 साल लगेंगे. ऐसे में कम्पनियों को अपने कर्मचारियों के लिए सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन करने के लिए वाहन उपलब्ध कराना ही पड़ेगा.इससे कंपनियों की जहां लागत बढ़ेगी वहीँ एक अतिरिक्त जिम्मेदारी भी बढ़ेगी.हालांकि इसका एक फायदा भी होगा,वह यह कि कर्मचारियों की उपस्थिति ज्यादा और समय पर हो जायेगी.लेकिन बड़ी बात यह है कि देश के कार्पोरेट सेक्टर के लिए और वहां काम करने वाले कर्मचारियों के लिए यह एक अनिवार्य रूपसे से हासिल किया जाने वाला नया अनुभव होगा इसलिए कुछ दिन दोनों को असहज करेगा.

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एक और समस्या जो आगामी 4 मई के बाद आने वाली है,वह है हमारे कार्यस्थलों की बनावट.अभी तक फंडा यह होता रहा है कि कम से कम जगह को ज्यादा से ज्यादा उपयोग के लायक बनाया जाय.पुरानी दिल्ली के कई इलाकों में तो चमत्कारिक तरीके से 10×10 फिट के ऑफिस में भी 10 लोगों के बैठने के लिए लोग चमत्कारिक आर्किटेक्ट का सहारा लेते रहे हैं.मुंबई में तो खोली में सोने के लिए तक इस तरह के ज्यामितीय कौशल का सहारा लिया जाता रहा है.लेकिन कोरोना संकट या कोरोना अनुभव के बाद सोशल डिस्टेंसिंग इतना वजनदार शब्द बन गया है कि इस तरह के तमाम कौशल अब अपराध की श्रेणी में गिने जायेंगे. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि 4 मई के बाद हमारे कार्यस्थलों की रूपरेखा किस करवट बैठेगी,यह बात भी मायने रखेगी.इन तमाम मसलों में सबसे ज्यादा कम्पनियों के उन एचआर विभागों को दो चार होना पड़ेगा जिनका अब तक कौशल कर्मचारियों को हर तरह की सुविधाओं से वंचित करना रहा है.लेकिन भविष्य में यानी 4 मई के बाद उनका यह कौशल संस्थान के लिए बहुत बड़ी समस्या बन सकता है.

4 मई के बाद सिर्फ सेवा पाने और देने के मामले में ही जबर्दस्त बदलाव की अपेक्षा नहीं है बल्कि हमारे स्वैच्छिक क्रिया-कलापों,आस्थाओं और विश्वासों पर भी गजब का बदलाव देखा जाना संभव होगा.मसलन समाजशास्त्रियों से लेकर मनोविदों तक का यह अनुमान है कि आने वाले दिनों में धार्मिकस्थलों में लोगों की मौजूदगी घट जायेगी.धर्म का बड़े पैमाने पर वर्चुअलाइजेशन होगा.लोग घरों से ही बड़े बड़े मशहूर मंदिरों की सैर करना चाहेंगे.आस्था का यह एक नया रूप और विश्वास की यह एक बिलकुल नई जमीन होगी.इसलिए भविष्य के धार्मिक साहित्य में कई चमत्कार वर्चुअल घटनाओं के खाते में जायेंगे.कुल मिलाकर 4 मई को लॉकडाउन खुलने के बाद हमारी दुनिया हमें ठीक वैसी ही नहीं मिलेगी, जैसी कि हमने 24 मार्च 2020 को छोड़ी थी.

#lockdown: चटनी के साथ सर्व करें मूंग दाल परांठा

अगर आप भी पराठों की शौकीन हैं और अपने घर पर अलग-अलग पराठों की रेसिपी ट्राई करती हैं तो ये रेसिपी आपके बहुत काम की है. मूंग दाल परांठे का नाम तो आपने सुना होगा और क्या पता खाया भी होगा, लेकिन क्या आपने कभी इसकी रेसिपी घर पर ट्राय की है. अगर नहीं तो आप ये रेसिपी के जरिए आसानी से मूंग दाल परांठा बना पाएंगी.

हमें चाहिए

गेंहू का आटा- 2 कप

मूंग दाल- ½ कप

नमक- ½ टी स्पून

तेल- 4 टेबल स्पून

हरा धनिया- 3 टेबल स्पून

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अदरक- ½ इंच

हरी मिर्च- 2 बारीक कटी हुई

हींग- ½ चुटकी

जीरा- ¼ टी स्पून

लाल मिर्च पाउडर- ¼ टी स्पून

हल्दी पाउडर- ¼ टी स्पून

धनिया पाउडर- ¾ टी स्पूप

गरम मसाला- ¼ टी स्पून

बनाने का तरीका

– मूंग दाल स्टफ्ड परांठा बनाने के लिए सबसे पहले आटा तैयार कर लीजिए. आटा तैयार करने के लिए एक प्याले में 2 कप गेहूं का आटा, ½ छोटी चम्मच नमक,1 छोटी चम्मच तेल डाल कर सभी चीजो को मिला कर थोड़े-थोड़े पानी से आटा गूंथ लीजिए. इतने आटे को गूंथने के लिए हमने एक कप पानी लिया था जिसमें से 1 बड़ी चम्मच पानी बच गया. आटा गूंथ जाने के बाद आटे को 20 मिनट के लिए सेट करने रख दीजिए.

मूंग दाल स्टफिंग के लिए

– स्टफिंग बनाने के लिए ½ कप मूंग दाल को 2 घन्टे पानी में भिगो कर रख दीजिए. 2 घन्टें बाद दाल को मिक्सर में पीस लीजिए(दाल को पीसते समय उसमें पानी बिल्कुल नही डालना है और दाल को दरदरा पीसना है).

– दाल के पिस जाने के बाद एक पैन ले लीजिए और उसे 2 बड़े चम्मच तेल डाल कर तेज आंच पर गर्म कर लीजिए. तेल गर्म हो जाने के बाद इसमें ¼ छोटी चम्मच जीरा, ½ चुटकी हींग, 2 हरी मिर्च, ½ इंच अदरक, ¼ हल्दी पाउडर, ¾ छोटी चम्मच धनिया पाउडर डाल कर मिडियम आंच पर भून लीजिए.

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– मसाले के भुन जाने के बाद इसमें पीसी हुई दाल, ½ नमक, ¼ लाल मिर्च पाउडर,¼ छोटी चम्मच गरम मसाला डाल  कर मसाले को तब तक भून लीजिए जब तक उसमें से अच्छी महक ना आने लगे. दाल के भुन जाने के बाद उसमें 3 बड़े चम्मच हरा धनिया डाल कर चलाते हुए थोड़ी देर भून लीजिए. दाल के भुन जाने के बाद उसे एक प्लेट में निकाल लीजिए.

– 20 मिनट बाद आटे को थोड़ा-सा तेल ले कर हाथों से मसल-मसल कर सोफ़्ट कर लीजिए. अब आटे में से थोड़ा सा डो ले कर उसे गोल कर के चपटा कर लीजिए और उसे सूखे आटे में लपेट के उगंलियों की मदद से कटोरी की तरह गहराई बनाएगें और उसमें 2-3 चम्मच स्टफिंग भर कर बन्द कर देगें.

– अब इसे उगलियों से दबा कर सूखे आटे में लपेट लीजिए फिर हल्के हाथ से 6-7 इंच की ब्यास से बेल लीजिए. अब तवे पर थोड़ा सा तेल डाल कर चारो ओर फैला दीजिए अब तवे पर परांठा डाल दीजिए. पराठे को धीमी आंच पर सिकने दीजिए.जब तक से परांठा सिक रहा है तब तक दूसरा परांठा तैयार कर लीजिए.

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– पराठे के एक साइड हल्की पकने के बाद उसे दूसरी साइड भी इसी तरह सेक लीजिए. अब परांठे के एक साइड पर हल्का सा तेल लगा दीजिए और उसे पलट कर दूसरी साइड भी तेल लगा दीजिए अब आंच को तेज कर के पराठे को दबाते हुए सेक लीजिए और फिर अब इसे अपनी फैमिली और फ्रेंडस को हरे धनिये या टमाटर की चटनी के साथ गरमागरम सर्व करें.

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