मुझे स्मोकिंग की आदत है, क्या मैं आईवीएफ की मदद से मां बन सकती हूं?

सवाल-

मेरी उम्र 30 साल है. मेरी शादी को 6 साल हो चुके हैं, लेकिन मैं कंसीव नहीं कर पारही हूं. मुझे स्मोकिंग की भी आदत है. क्या मैं आईवीएफ तकनीक  की मदद से मां बन सकती हूं?

जवाब-

आप को कंसीव करना है तो स्मोकिंग को पूरीतरह छोड़ना होगा. यदि आप के पति भी स्मोकिंग करते हैं तो उन्हें भी इस आदत को छोड़ने को कहें.आप की उम्र भी अधिक है, इसलिए जल्दी गर्भधारण करना जरूरी है. इस के लिए आप आईवीएफ की मदद ले सकती हैं. यह आप के लिए बिलकुल सुरक्षित तकनीक है.

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डौ. अर्चना धवन बजाज बांझपन उपचार और आईवीएफ के क्षेत्र में एक जाना-माना नाम हैं. चिकित्सा के क्षेत्र में एमबीबीएस, डीजीओ, डीएनबी और एमएनएएस की डिग्रियां हासिल करने के बाद उन्होंने यूके स्थित नॉटिंघम विश्वविद्यालय से मेडिकल रिप्रोडक्टिव टेक्नोलौजी में मास्टर्स डिग्री प्राप्त की है. वे हैचिंग, वीर्य भू्रण के संरक्षण, ओवरियन कौर्टिकल पैच, क्लीवेज स्टेज भ्रूण पर ब्लास्टमोर बायोप्सी और ब्लास्टक्रिस्ट की अग्रणी विशेषज्ञ हैं. दिल्ली में नर्चर आईवी क्लिनिक की निदेशक के तौर पर काम करते हुए डौ. बजाज ने स्त्रीरोग विशेषज्ञ, एक परामर्शदाता, प्रसूति विशेषज्ञ और फर्टिलिटी एंड आईवीएफ विशेषज्ञ के तौर पर विशेष ख्याति पायी है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें- पैंसठ की उम्र में भी मां बनना संभव

हैवी ज्वैलरी पहनने की शौकीन हैं Yeh Rishta Kya Kehlata Hai की ‘नायरा’, देखें Photos

सीरियल Yeh Rishta Kya Kehlata Hai की पौपुलैरिटी देश और दुनिया में है. वहीं सीरियल के किरदार नायरा और कार्तिक को घर-घर में जाना जाता है. नायरा यानी शिवांगी जोशी (Shivangi Joshi) पार्टी हो या फंक्शन हर ओकेजन पर नए-नए आउटफिट और उसके साथ हैवी ज्वैलरी पहनी नजर आती है, जो फैंस को काफी पसंद है. लेकिन क्या आपको पता है शिवांगी जोशी(Shivangi Joshi) उर्फ नायरा को हैवी ज्वैलरी पहनना बेहद पसंद है. इसीलिए वह सेट पर हो या किसी अवौर्ड शो हैवी ज्वैलरी को अपने लुक के साथ ट्राय करना नही भूलतीं. आज हम आपको नायरा के कुछ हैवी ज्वैलरी कलेक्शन दिखाएंगे, जिसे आप कभी भी अपने आउटफिट के साथ ट्राय कर सकती हैं.

ज्वैलरी से है बेहद लगाव

एक्ट्रेस शिवांगी जोशी (Shivangi Joshi) को हर किस्म के ज्वैलरी पहनना काफी पसंद है, लेकिन जब बात हैवी ज्वैलरी की आती है तो वह पार्टी और फंक्शन में हैवी ज्वैलरी ही पहनती हैं. नायरा के किरदार के लिए शिवांगी जोशी को खूब ज्वैलरी पहननी पड़ती है और इस वजह से शिवांगी शो के सेट पर अपनी ज्वैलरी के साथ फोटोज खिचवातीं रहती हैं.

 

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🌸 Earrings:- @manubhaijewels @madhubanbymanubhai 📸:- @be_naam_creations

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दीपिका पादुकोण से लोगों कर चुके हैं कम्पेयर

 

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Aaj raat #yehdiwaliapnowali At 9:30pm only on @starplus ❣️ Happy Diwali✨

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हैवी ज्वैलरी के खूबसूरत लुक की वजह से लोगों ने शिवांगी जोशी (Shivangi Joshi) की तुलना पद्मावत की दीपिका पादुकोण से भी की थी. इसी कारण उनकी पौपुलैरिटी देखने को बनती हैं. त्योहारों के सीक्वेंस की शूटिंग पर शिवांगी जोशी को हैवी ज्वैलरी पहनने को मिल जाती है, जिस कारण उनका खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं होता है.

 

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When you focus on the good, the good gets better.

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इवेंट में हिस्सा बनने से पहले खुद करती हैं ज्वैलरी का चयन

 

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#dulhanwalifeeling 🌹

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शिवांगी जोशी (Shivangi Joshi) किसी भी इवेंट में शामिल होने से पहले खुद ही अपनी ड्रेस से मैंचिग की हुई ज्वैलरी खरीदती हैं. अवॉर्ड फंक्शंस में भी शिवांगी जोशी ऐसे ही भारी भरकम ज्वैलरी पहने हुए नजर आ जाती है। इस साल स्टार परिवार अवॉर्ड्स के दौरान शिवांगी ऐसे ही ड्रेसअप हुई थी, जिसके कारण मोहसिन की नजरें उन पर ही टिकीं नजर आईं थीं.

 

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💚 #dulhanwalifeeling

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शिवांगी जोशी (Shivangi Joshi) और मोहसिन खान की औफस्क्रीन जोड़ी की बात करें तो हाल ही में खबर थी कि दोनों का ब्रेकअप हो गया है, जिसके कारण दोनों पार्टी में साथ नजर नहीं आते.

नेल आर्ट से हाथों को बनाएं और खूबसूरत

नेल पेंट्स  हमेशा से ही लड़कियों व  महिलाओं की पसंद रही हैं. कलर फुल नेल पेंट्स के जरिए वे अपने नेल्स को सुंदर व आकर्षक बनाती हैं. हालांकि कौस्मेटिक की दुनिया में भी चेंज आ जाने से अब नेल पेंट्स की भी कई वैरायटी आने लग गई हैं. शिमर, ग्लिटर बेस्ड नेल पेंट्स के साथसाथ अब इन दिनों सोक ऑफ नेल पेंट का भी इस्तेमाल किया जा रहा है. सोक औफ नेल पेंट जेल बेस्ड होती हैं , जो सिंगल कोट में ही शाइन करती है व लोंग लास्टिंग होती है. हौट पिंक, ब्राइट रेड, पॉपी ऑरेंज जैसे शेड्स हाथों की खूबसूरती में चारचांद लगाने का काम करते हैं.

इसके साथ ही इन दिनों नेल पेंस का भी खूब इस्तेमाल हो रहा है. इसकी मदद से नेल्स पर किसी भी तरह की आर्ट को आसानी से बनाना जा सकता है. नेल आर्ट करवाने से हाथ ज्यादा खूबसूरत दिखते हैं. इसमें  नेल्स के लिए ख़ास चितकारी और मीनाकारी करते हुए फूल पत्तियां , डौलफिन , तितली आदि डिजाइन बनाए जाते हैं और ऊपर से स्टड्स लगाकर इसे और भी आकर्षक बनाया जाता है. इसके अलावा आर्ट के तौर पर नेल्स पर हीरे-मोती या कुंदन जड़कर खास मीनाकारी भी की जाती है. मीनाकारी द्वारा नेल्स को आभूषणो की तरह ही सजाया जाता है. लेकिन घर में नेल आर्ट कैसे करें  ये जानते हैं गुडगांव के गेट सेट सैलून की प्रियंका बिस्ट से. जिनका कहना है कि  सौंदर्य क्षेत्र में हाथों की खूबसूरती को लेकर कई प्रयोग हुए हैं. मैनीक्योर से ऊपर उठकर अब नेल हार्ट को लेकर युवतियों व  महिलाओं में क्रेज बढ़ता जा रहा है.

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नेल आर्ट में भी सामान्य से लेकर कलाकृतियों वाली डिज़ाइन आ गई है. आप अपने नेल्स पर कई  तरह की नेल आर्ट्स कर सकती है. जैसे फ्रेंच नेल आर्ट , ये नेल आर्ट बहुत सिंपल होती है, लेकिन देखने में काफी ग्रेसफुल लगती है . यदि आप क्रिएटिव सोच रखने वाली  हैं तो अपने नाखूनों पर ग्राफ़िक प्रिंट के डिज़ाइन भी बनवा सकती हैं. कुछ डिज़ाइन जो आजकल ट्रेंड में हैं वो इस प्रकार हैं.

1 फूटी फ्रेश डिजाइन

फंकी लुक पाने के लिए आप किसी भी फ्रूट को ध्यान में रखकर कलर और डिज़ाइन  सेलेक्ट  करें. जैसे स्ट्रॉबेरी के लिए सबसे पहले रेड कलर का नेल्स पर पेंट लगाएं . फिर टिप्स पर ग्रीन कलर का डिज़ाइन बनाएं और बाकी के हिस्से पर रेड के ऊपर डॉट्स लगाएं.

 

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2. स्वीट डेजर्ट डिजाइन

स्वीट डेज़र्ट के लिए कप केक का डिज़ाइन बेस्ट है. जिसके लिए न्यूट्रल बेस कलर सेलेक्ट करें और फिर कप केक का काम करेगी टिप पर ड्रा होने वाली लाइट और डार्क शेड  की लाइन. उसके ऊपर क्रीम कलर का कप केक डिज़ाइन करके केक को डौट्स से सजाएं और ऊपर रेड कलर की चेरी ड्रा करें या चाहें ग्लिटर से डिज़ाइन को और अट्रैक्टिव बनाएं.

 

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3. पोल्का डौट्स डिजाइन

पोल्का डौट्स डिज़ाइन बहुत सिंपल है, जिसके लिए 2 कलर के बेस कलर और टिप्स बनाने के लिए 2 ही कलर के कलर सेलेक्ट करें. अब 3 नेल्स पर एक ही  बेस कलर और टिप कलर लगाएं बाकी 2 पर दूसरा कलर व बेस कलर लगाएं. अब सफेद या अपने मनपसंद कलर से पोलका डॉट्स बनाएं . वैसे आप अपनी क्रिएटिविटी के हिसाब से कोई भी कलर का इस्तेमाल कर सकती हैं.

4. एनिमल प्रिंट डिजाइन

यह बहुत ही ट्रेंडी डिज़ाइन है. आप ज़ेबरा प्रिंट नेल आर्ट में ऐसा  कर सकती हैं. यह आपको काफी कूल लुक देगा.

5. रेनबो डिजाइन

आप सात रंगों को नेल्स पर उतारकर बहुत ही अट्रैक्टिव लुक पा सकती हैं. इसके लिए बस आपको सात रंगों की मदद से नेल्स पर रेनबो ड्रा करना है  फिर देखिए आपके नेल्स कितने अट्रैक्टिव लगेंगे. आर्ट के सूखने के बाद आप चाहें तो उन्हें शाइनर से भी सील कर सकती हैं. बस ध्यान रखें कि  नेल आर्ट को पूरी तरह सूखने का मौका दें. वरना आपकी सारी मेहनत  पर पानी फिर जाएगा.

इन बातों का भी रखें खास ख्याल

1. अगर आपके नेल्स जल्दी टूटते हैं तो आप अपनी डाइट का खास ख्याल रखें. हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ व फ्रूट्स को अपनी डाइट में ज्यादा से ज्यादा शामिल करें.

2. नेल्स की चमक को बढ़ाने के लिए नींबू के छिलके को नेल्स पर  रगड़ें या फिर हलके कुनकुने पानी में नींबू  का रस मिलाकर उस पानी  में अपने हाथों को डुबोएँ. आप कुछ ही दिनों में अपने नेल्स में परिवर्तन देखने लगेंगी.

3. इस बात का खास ध्यान रखें कि नेल्स को मुँह से व ब्लेड से कभी न कांटे.  नेल कटर की मदद से ही नेल्स की ट्रिंमिंग करके उन्हें शेप दें.

4. नेल्स को सेफ रखने के लिए नेल पोलिश लगाने से पहले नेल बेस कोट लगाएं .

5. नेल पोलिश व नेल रिमूवर अच्छी क्वालिटी का ही यूज़ करें. वरना नेल्स के  पीला पड़ने का डर बना रहता है.

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गहराइयां: भाग-4

स्वीटी की बातें सुन शैली हक्कीबक्की रह गई. सोचने लगी कि उस की बहन के साथ इतना कुछ हो गया और उसे खबर तक नहीं? जो शैली अभी कुछ देर पहले तक गुमान में फूल रही थी उसी की अब हवा निकलती साफ उस के चेहरे पर दिख रही थी.

अचानक आधी रात को शैली की नींद टूट गई. बराबर में स्वीटी गहरी नींद में सो रही थी. वह भी फिर से सोने की कोशिश करने लगी पर नींद न जाने कहां रफूचक्कर हो गई थी. उठ कर उस ने एक गिलास पानी पीया और सोचा सो जाए, पर कहां… नींद तो जैसे कोसों दूर चली गई थी. आज अपनी ही कही बातें याद कर वह क्षुब्ध हो उठी. बेचैनी से कमरे के बाहर निकल आई. देखा तो दूर तक सन्नाटा पसरा था. घबरा कर फिर घर के अंदर आ गई. आज न तो उसे घर के अंदर और न घर के बाहर चैन पड़ रहा था. बारबार विवान का खयाल उस के जेहन में आ जा रहा था.

सोचने लगी जो विवान उस पर अपनी जान छिड़कता था उसी विवान को वह झिड़कती रही. और तो और अपने मायके वालों के सामने भी उस की बेइज्जती कर डाली… यह भी न सोचा कि उस के दिल पर क्या बीती होगी उस वक्त. आज वह मानसिक और शारीरिक दोनों स्तर पर खुद को अधूरा महसूस रही थी. जिस विवान के स्पर्श से उसे चिढ़ होने लगी थी आज उसी स्पर्श को पाने के लिए बेचैन हो उठी.

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‘हां मुझ से बहुत बड़ी गलती हुई और शायद उस बात के लिए विवान मुझे माफ न करे या हो सकता है घर के अंदर भी न आने दे, पर मैं तब तक अपने पति के ड्योढ़ी नहीं छोड़ूंगी जब तक वह मुझे माफ नहीं कर देता,’ मन में ही विचार कर शैली सोने की कोशिश करने लगी और फिर जाने कब आंख लग गई. सुबह सब से विदा ले कर वह अपने घर चल दी.

अपने घर पहुंचने पर शैली को कुछ भी पहले जैसा नहीं लगा. लग रहा था जैसे उस के पीछे बहुत कुछ बदल गया है. जो विवान पहले टाइम से औफिस जाता था और घर भी वक्त पर आ जाता था अब ऐसा नहीं था. पूछने पर जवाब देना भी जरूरी नहीं समझता था. लेकिन शैली को लगता अभी गुस्से में है, इसलिए ऐसे बात कर रहा. जब गुस्सा उतर जाएगा, सब ठीक हो जाएगा.

जो विवान शैली को अपनी बांहों में भर कर ही सोता था वही अब उस से दूर रहने लगा. विवान का उसे पकड़ना, उसे चूम लेना, उसे गोद में उठा कर प्यार करने लगना, उसे याद आने लगा. उसे लगता जैसे घर का एकएक कोना उस का मुंह चिढ़ा कह रहा हो कि ठीक किया विवान ने तेरे साथ, बहुत घमंड था तुम्हें अपने रूप पर… तो ले अब तेरे उसी रूप को विवान देखना भी पसंद नहीं करता.

एक रोज यह कह कर विवान जल्दी घर से निकल गया कि आज उस की जरूरी मीटिंग है. वह उस का इंतजार न करे. लेकिन संयोग ही कहिए कि उसी रोज शैली भी अपनी एक सहेली के साथ उसी कौफी हाउस पहुंच गई जहां विवान आयुषी की आंखों में आंखें डाले उसे प्यार से निहार रहा था. दोनों को उस अवस्था में देख विस्मय से उस की पुतलियां चौड़ी हो गईं. दिल धड़क उठा और आंखें डबडबा गईं. छलकते नयनों का उलाहना विवान से भी छिपा न रह पाया, पर उस ने उसे देख कर भी अनदेखा कर दिया. यह बात भी शैली के दिल को तीर की तरह चुभी.

आखिर क्यों विवान ने फिर से उसे काम पर रख लिया और क्या दोनों… कई सवाल पूछने थे उसे विवान से पर पूछती किस मुंह से? क्या वह यह नहीं कहेगा कि उस ने ही तो कहा था कि हर इंसान को अपने जीवन में थोड़ी स्पेस चाहिए होती है… करवटें बदलते उस ने पूरी रात निकाल दी. सुबह भी फिर वही सबकुछ. कुछ समझ में नहीं आ रहा था उसे कि करे तो क्या करे… अगर अपनी मां को अपना दर्द बताती तो वे उसे भी वही सलाह देतीं जो स्वीटी को दी और भाभियों से तो कुछ बोलना ही बेकार था.

शैली को बिना बताए ही विवान घर से निकल जाता और जब मन होता आता. उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था कि उस के ऐसे आचरण से शैली के दिल पर क्या बीतती होगी, बल्कि उसे तो ऐसा सब कर के मजा आ रहा था जैसे… भले ही विवान उस से बात न करता, पर उस का फोन उठा लेता यही उस के लिए काफी था. लेकिन विवान की बेवफाई और अवहेलना अब शैली के दिलोदिमाग पर असर करने लगी. ठीक से न खानेपीने के कारण दिनप्रतिदिन उस का स्वास्थ्य गिरता जा रहा था और अब तो वह ज्यादा किसी से बात भी नहीं करती थी. कई दिनों से विवान को भी फोन करना छोड़ दिया था.

इधर कई दिनों से शैली का फोन न आया देख विवान को थोड़ी फिक्र तो होने लगी पर सोचता जाने दो. लेकिन जब एक दिन शैली की मां का फोन आया और उस ने पूछा कि शैली कहां है और वह अपना फोन क्यों नहीं उठा रही है तो विवान को सच में फिक्र होने लगी. फिर उस ने भी फोन लगाया, पर हर बार फोन बंद पा कर विवान बहुत घबरा गया.

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‘‘अरे, कहां जा रहे हो?’’ विवान को अपने कपड़े समेटते देख हैरानी से आयुषी बोली.

‘‘घर.’’

‘‘पर विवान, हम तो यहां मीटिंग अटैंड करने आए हैं न और भी इंपौर्टैंट काम है…?’’

जल्दीजल्दी अपना जरूरी सामान बैग में रखते हुए विवान बोला, ‘‘तुम अटैंड कर लेना और मीटिंग से भी ज्यादा इंपौर्टैंट है वह मेरे लिए.’’

समझ गई आयुषी कि वह किस की बात कर रहा है. तैश में आते हुए बोली, ‘‘तुम ऐसा कैसे कर सकते हो विवान? क्या भूल गए कि मैं और तुम…’’

विवान ने आयुषी को घूर कर देखा और फिर कड़कती आवाज में बोला, ‘‘पहले तो तुम तमीज से बात करो. मैं तुम्हारा बौस हूं और रही बात हमारे संबंध की तो क्या मुझे नहीं पता कि उस रोज कौफी में तुम ने क्या मिलाया था और तुम्हारा इरादा क्या था?’’

सुन कर आयुषी की जबान उस के हलक में ही अटक गई.

‘‘तुम्हारी भलाई इसी में है कि चुप रहो,’’ अपने होंठों पर अपनी उंगली रख विवान बोला और फिर वहां से चलता बना.

घर आ कर जब उस ने देखा तो शैली अचेत पड़ी थी. जल्दी से डाक्टर को बुलाया. डाक्टर ने जांच कर बताया, ‘‘कोई ऐसी बात है जो उसे अंदर ही अंदर खाए जा रही है और अगर यही हाल रहा तो उसे अस्पताल में भरती कराना पड़ जाएगा. ध्यान रखिए इन का और हो सके तो कहीं बाहर ले जाएं,’’ दवा के साथ यह हिदायत दे कर डाक्टर चले गए. विवान खुद को कोसते हुए कहने लगा, ‘‘ये सब मेरी वजह से हुआ है. शैली सही कहा था तुम ने कि मैं प्यार का दिखावा करता हूं. हां, शैली तुम सही कहती थी मैं अच्छा इंसान नहीं हूं,’’ बोल वह रो पड़ा और फिर शैली को सीने से लगा कर चूमने लगा.

जिस शैली ने पलभर के लिए भी किसी के सामने आंसू न बहाए थे, आज विवान को अपने इतने पास देख कर उसी शैली की बड़ीबड़ी आंखों से आंसुओं की झड़ी लग गई. रोतेरोते ऐसी हिचकी बंधी कि बोल नहीं पा रही थी. लेकिन दोनों अपने किए पर पश्चात्ताप कर रहे थे और मन ही मन एकदूसरे से माफी भी मांग रहे थे. दोनों को देख कर लग रहा था कि भले ही कितने उतारचढ़ाव आए इन के जीवन में पर एकदूसरे को दिल की गहराइयों से प्यार करते हैं.

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गहराइयां: भाग-3

अपनी आदतानुसार औफिस पहुंच जैसे ही विवान शैली को फोन मिलाने लगा कि फिर उस की कही बातें उस के कानों में गूंजने लगी कि अरे, तुम में तो स्वाभिमान नाम की कोई चीज ही नहीं है वरना यों यहां न चले आते… जानते हो मैं यहां क्यों आई ताकि कुछ दिनों के लिए तुम से छुटकारा मिले. हथेलियों से अपने दोनों कान दबा कर विवान ने अपनी आंखें मूंद लीं और मन ही मन जैसे कोई निश्चय कर बैठा.

एक रोज, ‘‘सर, आ… आप और यहां?’’ विवान को मार्केट में देख कर आयुषी, जो कभी उस की पीए हुआ करती थी और अपनी पत्नी के कहने पर ही उस ने उसे काम से निकाला था. ‘‘सौरी सर, पर आप को इतने साल बाद देखा तो रहा नहीं गया और आवाज दे दी.’’

‘‘नो… नो… इट्स ओके. और बताओ?’’ विवान ने आयुषी को ताड़ते हुए पूछा.

‘‘बस सर सब ठीक ही है. आप सुनाएं?’’

‘‘सब ठीक ही है, बोल कर विवान

मुसकरा दिया.’’

आयुषी बोली, ‘‘मेरा घर यहीं पास में ही है. प्लीज, आप घर चलें.’’

‘‘फिर कभी,’’ कह विवान जाने को हुआ.

‘‘तभी आयुषी बोली, सर प्लीज, सिर्फ 5 मिनट के लिए चलिए.’’

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आयुषी इतना आग्रह करने लगी कि विवान न नहीं कर पाया.

चाय पीतेपीते ही विवान ने उस के पूरे घर का मुआयना किया. बुरा लग रहा था उसे देख कर कि आयुषी इतने छोटे से घर में और अभावों में जी रही है.

‘‘अरे, सर आप ने तो कुछ लिया ही नहीं… यह टेस्ट कीजिए न,’’ आयुषी की आवाज से विवान चौंका, ‘‘बसबस बहुत हो गया… सच में चाय बहुत अच्छी बनी थी. वैसे अभी तुम कर क्या रही हो, मेरा मतलब कहां जौब कर रही हो?’’

‘‘कहीं नहीं सर… घर में ही बैठी हूं… अच्छा ये सब छोडि़ए, बताइए और क्या खाएंगे आप?’’

‘‘नहींनहीं कुछ नहीं, अब घर जाऊंगा,’’ विवान बोला और फिर घर चल दिया. रास्तेभर वह यही सोचता रहा कि आखिर क्या गलती थी आयुषी की? बस यही न कि वह मुझ से खुल कर हंसबोल लेती थी और काम के ही सिलसिले में कभी मुझे फोन कर लेती थी. हां, याद है मुझे उस रोज भी एक जरूरी फाइल पर आयुषी मेरे साइन लेने मेरे घर आ गई थी और उसी बात को ले कर शैली ने कितना हंगामा मचा दिया था. यह कह कर कि वह मुझ पर डोरे डाल रही है… जानबूझ कर मेरे करीब आने की कोशिश करती है. उस वक्त मैं उस के प्यार में पागल था, इसलिए सहीगलत का अनुमान नहीं लगा पाया और उस के जोर डालने पर आयुषी को नौकरी से निकाल दिया. क्यों कर उस वक्त मैं ने शैली की बात मानी थी? क्या मैं कोई दूध पीता बच्चा था? खैर, गलती तो सुधारी भी जा सकती है न और फिर उसी वक्त विवान ने आयुषी को फोन लगा कर कल सुबह 10 बजे अपने औफिस बुला लिया.

अपने हाथ में नियुक्ति पत्र देख आयुषी की आंखें छलक आईं. आभार प्रकट

करते हुए कहने लगी, ‘‘अब मैं पहले से भी ज्यादा सक्रिय हो कर काम करूंगी और कभी किसी शिकायत का मौका नहीं दूंगी.’’

‘‘न पहले मुझे तुम से कोई शिकायत थी और न अब है… बस समझ लो एक गलतफहमी के कारण… खैर अब छोड़ो वे सब पुरानी बातें… जाओ अपना काम करो. और हां, मुझे तुम्हारे हाथ के वे मूली के परांठे खाने हैं… क्या मिलेंगे?’’ विवान ने हंसते हुए कहा.

सुन कर आयुषी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. यह जान कर कि शैली अभी यहां नहीं है तो रोज वह कोई न कोई व्यंजन बना कर विवान के लिए ले आती और खूब आग्रहपर्वूक उसे खिलाती… अब तो यह रोज का सिलसिला बन गया था.

एक रोज यह बोल कर आयुषी ने विवान को अपने घर खाने पर आमंत्रित किया कि आज उस का जन्मदिन है.

‘‘तो फिर पार्टी मेरी तरफ से,’’ विवान बोला.

आयुषी मना नहीं कर पाई.

तोहफे के तौर पर जब विवान ने आयुषी को स्मार्टफोन और एक सुंदर ड्रैस गिफ्ट की तो वह उस का आभार प्रकट किए बिना नहीं रह पाई.

‘‘इस में आभार कैसा? अरे, यह तो तुम्हारा हक है,’’ वह हमेशा की तरह उस रोज भी विवान उसे उस के घर तक छोड़ने गया और फिर आयुषी के आग्रह करने पर कौफी पीने बैठ गया. लेकिन उस रोज कौफी पीते ही उसे खुमारी सी आने लगी और वह वहीं सो गया. सुबह जब उस की आंखें खुलीं और अपनी बगल में आयुषी को देखा तो वह हैरान रह गया, ‘‘तुम यहां और मैं यहां कैसे?’’ अचकचाया सा विवान कहने लगा.

अपने कपड़े ठीक करते हुए रोनी सी सूरत बना कर आयुषी कहने लगी कि रात में उस ने उसे शैली समझ कर उस के साथ…

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‘‘उफ, यह मुझ से क्या हो गया?’’ उस के मुंह से निकला. मगर फिर सोचने लगा कि गलत क्या किया मैं ने? कहा था उस ने कि मुझ में स्वाभिमान नाम की कोई चीज नहीं है और वह मेरे प्यार से उकता गई है… तो अब मैं बताऊंगा उसे. तरसेगी मेरे प्यार के लिए देखना… फिर उस ने आयुषी को अपने सीने से लगा लिया. कहा कि जो हुआ अच्छा हुआ. उस के बाद तो जैसे यह सिलसिला सा बन गया और इस बात का विवान को कोई मलाल भी नहीं था.

अब शैली अपने घर आने की सोचने लगी पर हैरानी उसे इस बात की हो रही थी कि उसे यहां आए महीना हो चला पर विवान ने न तो उसे एक बार भी फोन किया और न ही फिर पलट कर आया… लेकिन जाएगा कहां? क्या मेरे बिना रह पाएगा? अपने गुमान में फूलती शैली ने अपनेआप से कहा. लेकिन उसे यह नहीं पता कि उस का विवान अब पहले वाला विवान नहीं रहा… जो उस के आगेपीछे एक पागल प्रेमी की तरह मंडराता फिरता था.

इन्हीं खयालों में खोई शैली को भान नहीं रहा कि उस ने चूल्हे पर दूध चढ़ाया है. लेकिन चौंकी तो तब जब उस की बहन स्वीटी ने तेज स्वर में कहा, ‘‘अरे ध्यान कहां है तुम्हारा? देख तो दूध उफन रहा है,’’ कह कर उस ने झट से आंच बंद कर दी.

‘‘उफ, आप ने बचा लिया दीदी वरना आज तो सारा दूध बरबाद हो जाता,’’ स्वीटी का एहसान मानते हुए शैली बोली.

‘‘सही कहा तुम ने पर दूध तो दोबारा आ सकता है, लेकिन अगर जिंदगी बरबाद हो जाए तो? तो क्या उसे दोबारा संवारा जा सकता है?’’

स्वीटी की बात पर शैली ने उसे अचकचा कर देखा.

‘‘शायद इस बात का तुम्हें अंदाजा भी नहीं है कि तुम ने विवान को कितनी चोट पहुंचाई है… ऐसा क्या कर दिया उस ने जो तुम ने उस के साथ इतना खराब व्यवहार किया? यह भी नहीं सोचा कि घर में इतने सारे मेहमान हैं तो वे क्या सोचेंगे विवान के बारे में? अरे, इतना स्नेह करने वाला पति मुश्किल से ही मिलता है शैली… एक मेरा पति है जिसे दुनिया की हर औरत अच्छी लगती है सिवा मेरे और एक तेरा पति है जो तेरे सिवा किसी को नजर उठा कर भी नहीं देखता. जानती है शैली, अब मुझे पता चला कि मेरे पति का अपने ही औफिस की एक लड़की के साथ प्रेम संबंध चल रहा है तो मेरे पैरों तले की जमीन खिसक गई. सिसकते हुए जब मैं ने यह बात अपनी सास को बताई यह सोच कर कि एक औरत का दर्द एक औरत ही समझ सकती है तो पता है उन्होंने क्या कहा? कहने लगीं कि वह मर्द है जो चाहे कर सकता है और यह भी कहा कि अगर यह बात बाहर गई तो लोग मुझ पर ही ऊंगली उठाएंगे. कहेंगे कि मुझ में ही कोई कमी रही होगी, इसलिए मेरा पति किसी दूसरी औरत के पास चला गया. तो जैसे चल रहा है चलने दे.

‘‘जब मां को अपना दुखड़ा सुनाने गई तो वे कहने लगीं कि एक औरत का अकेले इस दुनिया में कोई वजूद नही होता. हर मर्द ऐसी औरत को लोलुपता भरी नजरों से देखता है. वह उसे पा लेने वाली वस्तु के रूप में देखने लगता है. क्या मैं चाहती हूं कि मेरी भी वही स्थिति हो? यह भी कहा मां ने कि मायके वाले कब तक मुझे अपने पास रख पाएंगे… अगर मैं वहां न भी जाऊं न, तो मेरे पित को कोई फर्क नहीं पड़ेगा. लेकिन मेरे और मेरे बच्चे के लिए उस घर के सिवा क्या और कोई ठौरठिकाना है?

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‘‘बस मौका मिलना चाहिए मर्दों को, उन्हें फिसलते जरा भी देर नहीं लगती शैली. इसलिए छोड़ यह जिद और जा अपने घर. नहीं तो कहीं ऐसा न हो कि तू भी मेरी तरह…’’

आगे पढ़ें- स्वीटी की बातें सुन शैली हक्कीबक्की रह गई….

गहराइयां: भाग-2

एकदूसरे की बांहों में शादी का 1 साल कब बीत गया उन्हें पता ही नहीं चला.

लोगों का कहना है कि जैसेजैसे शादी पुरानी होती जाती है, पतिपत्नी के प्यार में भी गिरावट आने लगती है. मतलब उन के बीच पहले जैसा प्यार नहीं रह जाता. मगर विवान और शैली की शादी जैसेजैसे पुरानी होती जा रही थी उन का प्यार और भी गहराता जा रहा था. लेकिन जिस विवान का प्यार शैली को हरी दूब का कोमल स्पर्श सा प्रतीत होता था, अब वही प्यार उसे कांटों की चुभन जैसा लगने लगा था. उस का दीवानापन अब उसे पागलपन लगने लगा था. उसे लगता या तो कुछकुछ दिनों के अंतराल पर विवान औफिस के काम से कहीं बाहर चला जाया करे या फिर उसे अकेले मायके जाने दिया करे ताकि खुल कर अपने मनमुताबिक जी सके.

आखिर कुछ दिनों के लिए उसे विवान से अलग रहने का मौका मिल ही

गया. ऐसे जाना कोई जरूरी नहीं था, पर वह जाएगी ही, ऐसा उस ने अपने मन में निश्चय कर लिया.

‘‘शादी में… पर जानू,’’ विवान अपनी पत्नी को प्यार से कभीकभी जानू भी बुलाता था, ‘‘वे तो तुम्हारे दूर के रिश्तेदार हैं न और तुम ने ही तो कहा था कि तुम्हारा जाना कोई जरूरी नहीं?’

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‘‘हांहां कहा था मैं ने, पर है तो वह मेरी बहन ही न और सोचो तो जरा कि अगर मैं नहीं आऊंगी तो चाचाजी को कितना बुरा लगेगा, क्योंकि कितनी बार फोन कर के वे मुझे आने

के लिए बोल चुके हैं… प्लीज विवान, जाने

दो न… वैसे भी यह मेरे परिवार की अंतिम

शादी है और मैं वादा करती हूं शादी खत्म होते

ही आ जाऊंगी.’’

अब शैली कुछ बोले और उस का विवान उसे न कह दे, यह हो ही नहीं सकता था. अत: बोला, ‘‘ठीक है तो फिर मैं कल ही छुट्टी

की अर्जी…’’

अचकचा कर शैली बोली, ‘‘अर्जी… प… पर क्यों? मेरा मतलब है तुम्हें वैसे भी छुट्टी की प्रौब्लम है और कहा न मैं ने मैं जल्दी आ जाऊंगी.’’

न चाहते हुए भी विवान ने शैली को जाने की अनुमति दे तो दी, पर सोचने लगा कि अब उस के इतने दिन शैली के बिना कैसे बीतेंगे? जाते वक्त बाय कते हुए शैली ने ऐसा दुखी सा मुंह बनाया जैसे उसे भी विवान से अलग होने का दुख हो रहा है पर जैसे ही ट्रेन सरकी वह खुशी से झूम उठी. लगा उसे कि जैसे वह आसमान में उड़ रही हो. उस के अकेले मायके पहुंचने पर नातेरिश्तेदार सब ने पूछा कि विवान क्यों नहीं आया? तो कहने लगी कि विवान को छुट्टी नहीं मिली. इसलिए अकेले ही आना पड़ा.

वैसे उस की भाभियां सब समझ रही थीं. चुटकी लेते हुए कहने लगीं, ‘‘ऐसे कैसे दामादजी ने आप को अकेले छोड़ दिया ननद रानी, क्योंकि वे तो आप के बिना रह ही नहीं सकते,’’ कह कर दोनों ठहाका लगा कर हंस पड़ी.

उधर शैली के बिना न तो विवान का घर में मन लग रहा था और न ही औफिस में. हर वक्त बस उसी के खयालों में खोया रहता. उसे लगता या तो किसी तरह शैली उस के पास आ जाए या फिर वह खुद ही उस के पास चला जाए.

उस के मन की बात उस के दोस्त अमन से छिपी न रह पाई. पूछा, ‘‘क्या बात है, बड़े देवदास बने बैठे हो? लगता है भाभी के बिना मन नहीं लग रहा है? अरे, तो चले जाओ न वहीं.’’

अमन की बातें सुन वह अपनेआप को वहां जाने से रोक न पाया.

‘‘उफ, आ गए मजनू… क्यों रहा नहीं गया अपनी लैला के बिना?’’ विवान को आए देख शैली की छोटी भाभी ने चुटकी लेते हुए कहा.

अचानक विवान को अपने सामने देख पहले तो शैली का दिल धक्क रह गया, ऊपर से उस की भाभी का यह कहना उस के तनबदन को आग लगा गया.

उस ने विवान को घूर कर देखा. गुस्से से उस की आंखें धधक रही थीं. यह भी न सोचा कि मेहमानों का घर है तो कोई सुन लेगा. कर्कशा आवाज में कहने लगी, ‘‘जब मैं ने तुम से बोल दिया था कि आ जाऊंगी जल्दी, तो क्या जरूरत थी यहां आने की? क्या कुछ दिन चैन से अकेले जीने नहीं दे सकते?’’

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विवान झेंपते हुए कहने लगा, ‘‘न…नहीं शैली ऐसी बात नहीं है. वह क्या है कि छुट्टी मिल गई तो सोचा… और वैसे भी तुम्हारे बिना घर में मन ही नहीं लग रहा था तो आ गया.’’

‘‘मन नहीं लगा रहा था… तो क्या मैं तुम्हारे मन लगाने का साधन हूं? अरे, कैसे इंसान हो तुम जो अपना कामकाज छोड़ कर मेरे पीछे पड़े रहते हो? मैं पूछती हूं तुम में स्वाभिमान नाम की कोई चीज है कि नहीं? जताते हो कि तुम मुझ से बहुत प्यार करते हो? अरे, नहीं चाहिए मुझे तुम्हारा प्यार. सच में, उकता गई हूं मैं तुम से और तुम्हारे प्यार से… जानते हो मैं यहां क्यों आई… ताकि कुछ दिनों के लिए तुम से छुटकारा मिले, पर नहीं… तुम्हारे इस छिछले व्यवहार के कारण मेरी सारी सहेलियां और भाभियां मुझ पर हंसती हैं… अब जाओ यहां से… मुझे जब आना होगा खुद आ जाऊंगी समझे?’’ अपने दोनों हाथ जोड़ कर शैली चीखते हुए बोली.

शैली का ऐसा रूप देख विवान हैरान रह गया. उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि उस की शैली उस के बारे में ऐसा सोचती है. जिस शैली को वह अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करता है और जिस की खातिर वह भागता हुआ यहां तक आ गया, वह इतने लोगों के सामने उस की बेइज्जती कर देगी, उस ने सपने में भी नहीं सोचा था.

फिर बोला, ‘‘ठीक है तो फिर अब मैं यहां कभी नहीं आऊंगा… बुलाओगी तो भी नहीं,’’ अचानक विवान का कोमल स्वर कठोर हो गया और फिर वह एक पल भी वहां न ठहरा. शैली की कड़वी बातों ने आज उस के दिल के टुकड़ेटुकड़े कर डाले थे.

इधर शैली की मांबहन, भाई सब ने उसे इस बात के लिए बहुत दुत्कारा पर उसे अपनी कही बातों का जरा भी पछतावा नहीं हुआ, बल्कि दिल को ठंडक पहुंची थी अपने मन की भड़ास निकाल कर. घमंड में चूर शैली को यह भी समझ नहीं आ रहा था कि उस ने एक ऐसे इंसान का दिल तोड़ा जो उस का पति है और उसे बेइंतहा प्यार करता है.

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घर पहुंचने के बाद रात्रि के 2 पहर बीत जाने के बाद भी विवान के आंखों में नींद नहीं थी. अब भी शैली की कही बातें उस के कानों में गूंज रही थीं.

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गहराइयां: भाग-1

विवान की बांहों से छूट कर शैली अभी किचन में घुसी ही थी कि हमेशा की तरह फिर से आ कर उस ने उसे पीछे से पकड़ लिया और फिर उस के गालों को चूम लिया. शैली ने खुद को विवान की बांहों से छुड़ाने की भरसक कोशिश की, लेकिन जब उस ने उसे और जोर से अपनी बांहों में भर लिया तो मन ही मन चिढ़ उठी. बोली, ‘‘छोड़ो न विवान… वैसे भी आज उठने में काफी देर हो गई और ऊपर से तुम हो कि… क्या आज औफिस नहीं जाना है?’’

‘‘हूं, जाना तो है पर रहने दो… मैं दोपहर में आ जाऊंगा खाना खाने और इसी बहाने…’’ बात अधूरी छोड़ एक और किस शैली के गाल पर जड़ दिया. किसी तरह खुद को विवान से छुड़ाते हुए बोली, ‘‘कोई जरूरत नहीं है घर आने की. मैं नाश्ता बना रही हूं. खा कर जाना और लंच भी ले जाना.’’

‘‘तो फिर ठीक है लाओ मैं सब्जी काट देता हूं. तब तक तुम चाय बनाओ,’’ कह कर विवान सब्जी काटने लगा. वह सोचता ऐसा क्या करे, जिस से उस की शैली हमेशा हंसतीखिलखिलाती रहे. वह अपनी शैली को दुनिया की हर खुशी देना चाहता, पर वह थी कि बातबात पर अपने पति को झिड़कते रहती. हर बात में उस की बुराई निकालना जैसे उस की आदत सी बन गई थी. उसे लगता सब के पतियों की तरह उस का पति क्यों नहीं है? क्यों हमेशा रोमांटिक बना फिरता है? अरे, जिंदगी क्या सिर्फ प्यार से चलती है? और भी तो कई जिम्मेदारियां हैं घरगृहस्थी की, पर यह सावन के अंधे को कौन समझाए.’’

मगर विवान कहता, ‘‘जिंदगी तो जिंदादिली का नाम है जानी, मुरदे क्या खाक जीया करते हैं और वैसे भी जिंदगी 4 दिनों की होती है तो फिर क्यों न जीएं मौज से?’’

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उस की इसी बात पर शैली भड़क उठती, ‘‘मौज का मतलब यह नहीं होता कि हर वक्त पतिपत्नी चोंच से चोंच सटाए रखें और रोमांटिक गाने गुनगुनाते रहें… और भी बहुत सी जिम्मेदारियां होती हैं जीवन में समझे?’’

शैली की बात पर विवान हंस कर उसे चूम लेता और कहता, ‘‘तुम्हें जो सोचना है सोचो पर मैं तो ऐसा ही रहूंगा.’’

विवान बहुत ही रंगीन मिजाज का इंसान था. वह पत्नी को दिल की गहराइयों से प्यार करता था. लेकिन शैली को उस के प्यार की जरा भी कद्र नहीं थी. उसे लगता प्यार के नाम पर वह सिर्फ बकवास और दिखावा करता रहता है. उस की सारी सहेलियां इस बात को ले कर खूब चुटकी लेतीं. कहतीं, ‘‘अरे भई, हम भी तो शादीशुदा हैं. इस का यह मतलब थोड़े ही न है कि हर वक्त बस पति की बांहों में समाए रहो.’’

उन की बातें सुन कर वह खीसें निपोर लेती… मन ही मन यह सोच कर कुढ़ जाती कि अब ऐसा ही पति मिला है तो क्या करे?

गुस्से से हांफती और जबान से जहर उगलती शैली ने विवान के हाथ से चाकू छीन लिया और सारा गुस्सा सब्जी पर उतारने लगी. मन तो किया उस का कि सारी सब्जी उठा कर कचरे के डब्बे में फेंक दे और कहे कि कोई जरूरत नहीं बारबार घर आ कर मुझे परेशान करने की. उस का तो मन करता कि कैसे जल्दी विवान औफिस चला जाए और उस की जान छूटे.

विवान को औफिस भेजने के बाद घर के बाकी काम निबटा कर अभी शैली बैठी ही थी कि उस का फोन घनघना उठा. विवान का फोन था और यह सिलसिला भी सालों से चलता आ रहा था. मतलब, औफिस पहुंचते ही सब से पहले वह शैली को फोन लगा कर जब तक उस से बात न कर लेता उसे चैन नहीं पड़ता था और इस बात पर भी शैली को काफी चिढ़ होती थी. कभीकभी तो उस का मन करता कि फोन को बंद कर के रख दे ताकि विवान उसे फोन ही न कर पाए, पर यह सोच कर वह ऐसा नहीं करती कि पिछली बार की तरह फिर वह दौड़ताभागता घर पहुंच जाएगा और बेवजह महल्ले में उस का तमाशा बन जाएगा.

एक बार ऐसा ही हुआ था. किसी कारणवश गलती से शैली का फोन बंद हो गया

और उसे इस बात का पता नहीं चला. लेकिन विवान के कई फोन लगाने पर भी जब उस का फोन बंद ही आया तो उसे लगा कि शैली को कुछ हो गया है. दौड़ताहांफता घर पहुंच गया और जोरजोर से दरवाजा पीटने लगा. आवाज सुन कर आसपड़ोस के लोग इकट्ठे हो गए. बाहर लोगों का शोर सुन जब शैली की आंख खुली और उस ने दरवाजा खोला तो विवान उसे पकड़ कर कहने लगा, ‘‘शुक्र है शैली तुम ठीक हो… तुम्हारा फोन नहीं लग रहा था, इसलिए मैं घबरा गया था,’’ कह कर वह सब के सामने शैली को गले से लगा कर चूमने लगा था. देखा तो सच में फोन बंद था. बैटरी खत्म हो गई थी. शैली शर्मिंदा हो उठी कि उस के कारण… पर फिर यह सोच कर मन ही मन फूले नहीं समाई कि उस का पति उसे कितना प्यार करता है. दौड़ताभागता घर पहुंच गया.

मगर अब उसी विवान का प्यार उसे बंधन सा प्रतीत होने लगा था. उसे लगता जैसे वह एक सोने के पिंजरे में कैद है. जिस विवान के प्यार पर कभी वह इतराती थी अब उसी प्यार से वह ऊबने लगी थी. दम घुटने सा लगा था उस का. विवान का उसे हर पल निहारते रहना, जब मन आए उसे अपनी गोद में उठा कर चूमने लगना, उस की हर छोटीछोटी चीजों का भी खयाल रखना, कभी अपनेआप से दूर न होने देना अब उसे गले का फंदा लगने लगा था. प्यार वह भी करती थी अपने पति से पर एक हद में. उस का सोचना था कि पतिपत्नी हैं तो क्या हुआ, आखिर उन्हें भी तो अपने जीवन में थोड़ी स्पेस चाहिए, जो उसे मिल नहीं रही थी. मगर उस की सोच से अनजान विवान बस हर पल उसी के खयालों में खोया रहता था.

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इसी बात को ले कर शैली की दोनों भाभियां उस का मजाक बनातीं. कहतीं कि उस का पति तो उस के बिना एक पल भी नहीं रह पाता. एक बच्चे की तरह उस के पीछेपीछे घूमता रहता है. उन की कही बातें शैली को अंदर तक भेद जातीं. उसे लगता उस की भाभियां उस पर तंज कस रही हैं, उस का मजाक उड़ा रही हैं. लेकिन उसे यह नहीं पता था कि वे उस से जलती हैं. उन्हें बरदाश्त नहीं होता कि शैली का पति उस पर अपनी जान छिड़के.

विवान को कोई लड़की पसंद न आने की वजह से उस के मातापिता काफी परेशान रहने लगे थे. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आखिर विवान को कैसी लड़की चाहिए? आखिर एक दिन उसे अपनी पसंद की लड़की मिल ही गई. दरअसल, विवान अपने एक दोस्त की शादी में गया था वहीं उस ने शैली को देखा तो देखता ही रह गया. उस की खूबसूरती पर वह ऐसे मरमिटा जैसे चांद को देख कर चकोर. कब नेत्रों के रास्ते शैली उस के मन में समा गई उसे पता ही नहीं चला. उस से अपनी शादी के बारे में सोच कर ही उस का मनमयूर नाच उठा. जब उस के मातापिता को यह बात मालूम पड़ी तो उन्होंने जरा भी देर न कर अपने बेटे की शादी शैली के साथ तय कर दी.

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चलो एक बार फिर से: भाग-2

इसी प्रकार मीनल भी आहद की किचन में जरूरी सामान भरवा देती, कभी उस के लिए मेड खोज कर उसे काम समझा देती, तो कभी उस की अलमारी ही संवार देती.

अनिका और विराट इस तालमेल से बेहद प्रसन्न थे. उन की याद में उन्होंने अपने पापा नहीं देखे थे. पापा का सुख, एक पुरुष की गृहस्थी में उपस्थिति उन्हें बहुत भा रही थी. एक रात सोने से पहले थोड़ी गपशप लगाते हुए विराट बोला पड़ा, ‘‘कितना अच्छा होता न अगर आहाद अंकल ही हमारे पापा होते. वैसे उन की फैमिली तो है नहीं.’’

‘‘क्या तू भी वही सोचता है जो मैं?’’ उस की बात सुन अनिका बोली और फिर दोनों ने गुपचुप योजना बनानी शुरू कर दी. जब भी घर में कुछ अच्छा पकता तो अनिका जिद करती कि वे उस डिश को आहाद तक पहुंचा कर आएं.

‘‘कम औन मम्मा, आहाद अंकल आपके फ्रैंड हैं और आप उन के लिए इतना भी नहीं कर सकतीं?’’

एक दिन खेलते समय विराट के पैर की हड्डी टूट गई. मीनल उस दिन अपने

स्कूल में थी, किंतु उसे फोन पर बताने के बजाय विराट ने झट आहाद को फोन मिला दिया. ‘‘अंकल, मेरे पैर में काफी चोट लग गई है, आप प्लीज आ जाओ न… मम्मी भी नहीं हैं घर पर.’’

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आहाद फौरन उन के घर पहुंचा और अस्पताल ले जा कर विराट को पलस्तर चढ़वाया. जब बाद में मीनल को सारा प्रकरण पता चला तो विराट और अनिका दोनों ही आहाद अंकल के गुणगान करते नहीं थके, ‘‘देखा मम्मा, कितने ज्यादा अच्छे हैं आहाद अंकल.’’

‘‘हांहां, मुझे पता है कि तुम दोनों आजकल आहाद अंकल के फैन बने हुए हो,’’ हंसते हुए मीनल बोली.

‘‘काश, आहाद अंकल ही हमारे पापा होते,’’ विराट के मुंह से निकल गया. लेकिन मीनल ने ऐसे बरताव किया जैसे उस ने यह बात सुनी नहीं. विराट भी फौरन चुप हो गया.

मीनल समझने लगी थी कि बच्चों के मन में क्या चल रहा है, परंतु अपने मन में ऐसी किसी भावना को वह हवा नहीं देना चाहती थी. ऐसा नहीं है कि वह आहाद को पसंद नहीं करती थी. आहाद पहले से ही एक सुलझे हुए शांत व्यक्तित्व का स्वामी था. इतने वर्षोंपरांत पुन: मिलने पर मीनल ने पाया कि समय के अनुभवों ने उस के स्वभाव को और भी चमका दिया है.

आहाद भी मीनल के जीवट व्यक्तित्व, सकारात्मक स्वभाव व बौद्धिक क्षमता से प्रभावित था. कह सकते हैं कि पारस्परिक प्रशंसा दोनों में आकर्षण को जन्म देने लगी थी, किंतु यह बात अभी यहीं पर विराम थी. यह एक बेहद जटिल विषय था. न जाने कितने समय बाद मीनल की जिंदगी में एक मित्र का आगमन हुआ था. ऐसी किसी भी एकतरफा भावना से वह इस दोस्ती को खोना नहीं चाहती थी और फिर पुनर्विवाह, वह भी बच्चों के बाद… हमारे संस्कार ऐसी बात सोचते समय ही मनमस्तिष्क की लगाम कसने लगते हैं.

औरतों को शुरू से ही संस्कार के नाम पर कमजोर करने वाले विचार सौंपे जाते हैं जो उन की शक्ति कम और बेडि़यां अधिक बनते हैं. आत्मनिर्भर सोच रखने वाली लड़की भी कठोर कदम उठाने से पहले परिवार तथा समाज की प्रतिक्रिया सोचने पर विवश हो उठती है. एक ओर जहां पुरुष पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनी राय देता है, पूरी बेबाकी से आगे कदम बढ़ाने की हिम्मत रखता है, वहीं दूसरी ओर एक स्त्री छोटे से छोटे कार्य से पहले भी अपने परिवार की मंजूरी चाहती है.

उस शाम आहाद मीनल के घर आया हुआ था, ‘‘इस फ्राइडे ईवनिंग को

मूवी का प्रोग्राम बनाएं तो कैसा रहे? बच्चों को पसंद आएगी ‘एमआईबी’ वह भी ‘थ्री डी’ में.’’ आहाद के पूछने पर दोनों बच्चे तालियां बजा कर अपना उल्लास दर्शाने लगे तो मीनल और सुनयना देवी भी हंस पड़ीं.

आहाद ने सभी के लिए टिकट बुक करवा दिए. तय हुआ कि आहाद और मीनल अपनेअपने कार्यस्थल से और बच्चे और उन की दादी घर से सीधा मूवीहौल पहुंचेंगे.

मगर हुआ कुछ और ही. जब मीनल और आहाद मूवीहौल के बाहर बच्चों की प्रतीक्षा करते हुए थक गए तब उन्होंने सुनयना देवी को फोन कर के पूछा कि आने में और कितनी देर लगेगी?

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‘‘बच्चे कह रहे हैं कि तुम दोनों अंदर चल कर बैठो, कहीं पिक्चर न निकल जाए. हमारे पास अपने टिकट हैं, हम आ कर तुम्हें जौइन कर लेंगे,’’ सुनयना देवी के कहने पर मीनल और आहाद मूवीहौल के अंदर चले गए.

पिक्चर शुरू हो गई पर बच्चों का कोई अतापता न था. कुछ देर में दोबारा फोन करने पर पता चला कि अनिका का पेट खराब हो गया है, इसलिए थोड़ी देरी से आ पाएंगे.

‘‘न… न… तुम्हें वापस आने की कोई जरूरत नहीं है. तुम अपनी पिक्चर क्यों खराब करते हो, यहां मैं संभाल रही हूं,’’ दादी ने आश्वासन दिया.

इधर घर में अनिका को ले कर सुनयना देवी काफी परेशान हो रही थीं, ‘‘क्या डाक्टर के पास ले चलूं?’’

उन के प्रश्न पर अनिका और विराट का एकदूसरे की ओर देख कर आंखोंआंखों में की गई इशारेबाजी सुनयना देवी ने देख ली. बोली, ‘‘अब तुम दोनों यह बेकार की उलझन खत्म करो और असली मुद्दे पर आओ. आखिर मैं ने अपने बाल धूप में सफेद नहीं किए. क्या खिचड़ी पका रहे हो तुम दोनों.’’

दादी के वर्षों के अनुभव तथा पारखी नजर पर दोनों बच्चे हैरान रह गए. फिर खिसियानी हंसी के साथ उन्होंने बात आगे बढ़ाई, ‘‘दादी, हम जानबूझ कर आज मूवी देखने नहीं गए. हम चाहते थे कि मम्मी और आहाद अंकल को अकेले पिक्चर देखने भेजें,’’ फिर कुछ रुक कर बच्चे आगे कहने लगे, ‘‘दादी, हमें आहाद अंकल बहुत अच्छे लगते हैं. और हम सोच रहे हैं कि कितना अच्छा हो अगर अंकल हमारे पापा बन जाएं.’’

बच्चों का हर्षोल्लास देख दादी ने उन्हें टोका नहीं. नन्हें बच्चों के अबोध मन में अपने पिता के रिक्त स्थान में आहाद की छवि दिखने लगी थी.

‘‘बोलो न दादी, हम सही सोच रहे हैं न? ऐसा हो सकता है क्या?’’ अनिका पूछने लगी.

विराट भी उत्साहित था. बोला, ‘‘कितना मजा आएगा न. मम्मा की शादी… हमारे फ्रैंड्स की तरह हमारे भी पापा होंगे. व्हाट अ थ्रिल,’’ बच्चे अपनी मासूमियत में अपने मन की बात कहे जा रहे थे. न कोई झिझक, न कोई संकोच.

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चलो एक बार फिर से: भाग-3

मूवी खत्म होने पर मीनल और आहाद घर की ओर निकलने को थे कि आहाद ने कौफी पीने की गुजारिश की, ‘‘मैं समझता हूं मीनल कि तुम्हें अनिका के पास जाने की जल्दी हो रही होगी पर आज हम दोनों अकेले हैं तो… दरअसल, कई दिनों से तुम से कुछ कहना चाह रहा हूं पर हिम्मत साथ नहीं दे रही…’’

‘‘ऐसी क्या बता है, आहाद? चलो, पास के कैफे में कुछ देर बैठ लेते हैं,’’ कहते हुए मीनल ने अपने घर फोन कर निश्चित कर लिया कि अनिका की तबीयत अब ठीक है.

कैफे में आमनेसामने बैठ कर कुछ न बोल कर आहाद बस चुपचाप मीनल को देखता रहा. आज उस की नजरों में एक अजीब सा आकर्षण था, एक खिंचाव था जिस ने मीनल को अपनी नजरें झुकाने पर विवश कर दिया.

बात को सहज बनाने हेतु वह बोल पड़ी, ‘‘आहाद, परीजाद को गए इतना वक्त गुजर गया… इतने सालों में तुम ने पुनर्विवाह के बारे में क्यों नहीं सोचा?’’

‘‘तुम से मुलाकात जो नहीं हुई थी.’’

आहाद के कहते ही मीनल अचकचा कर खड़ी हो गई. ऐसा नहीं था कि उसे आहाद के प्रति कोई आकर्षण नहीं था. संभवत: उस का मन यही बात आहाद से सुनना चाहता था. वह तो यह भी जानती थी कि उस के बच्चे भी ऐसा ही चाहते हैं. पर आज यों अचानक आहाद के मुंह से ऐसी बात सुनने की अपेक्षा नहीं थी. खैर, मन की बात कब तक छिप सकती है. भला. आहाद की बात सुन कर मीनल के नयनों में लज्जा और अधरों पर मुसकराहट खेल गई. दोनों की नजरों ने एकदूसरे को न्योता दे दिया.

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मीनल की हंसी के कारण आहाद की हिम्मत थोड़ी और बढ़ी, ‘‘मैं तुम्हें पसंद करने लगा हूं और लगता है कि अनिका और विराट भी मुझे स्वीकार लेंगे. वे मुझ से अच्छी तरह हिलमिल गए हैं. बस एक बात की टैंशन है कि हमारे धर्म अलग हैं. यह बात मेरे लिए महत्त्वपूर्ण नहीं है… लेकिन हो सकता है कि तुम्हारे लिए हो. मेरे लिए धर्म बाद में आता है और कर्म पहले… हम इस जीवन में क्या करते हैं, किसे अपनाते हैं, किस से सीखते हैं, इन सभी बातों में धर्म का कोई स्थान नहीं है. हमारे गुरु, हमारे मित्र, हमारे अनुभव, हमारे सहकर्मी, जब सभी अलगअलग धर्म का पालन करने वाले हो सकते हैं तो हमारा जीवनसाथी क्यों नहीं… मैं तुम्हारे व्यक्तित्व के कारण आकर्षित हुआ हूं और धर्म के कारण मैं एक अच्छी संगिनी को खोना नहीं चाहता. आगे तुम्हारी इच्छा.’’

हालांकि मीनल भी आहाद के व्यक्तित्व और आचारविचार से बहुत प्रभावित थी, किंतु धर्म एक बड़ा प्रश्न था. जीवन के इस पड़ाव पर आ कर मिली इस खुशी को वह खोना नहीं चाहती थी. खासकर यो जानने के बाद कि आहाद भी उसे पसंद करता है. मगर इतना बड़ा निर्णय वह अकेली नहीं ले सकती थी. सुनयना देवी से पूछने की बात कह मीनल घर लौट आई.

अगले दिन मीनल ने स्कूल से छुट्टी ले ली. जब बच्चे स्कूल चले

गए तब नाश्ते की टेबल पर मीनल ने सुनयना देवी से बात की. इतने सालों में इन दोनों का रिश्ता सासबहू से बढ़ कर हो गया था. मीनल ने जिस सरलता से आहाद के मन की बात बताई उसी रौ में अपने दिल क बात भी साझा की. आहाद द्वारा कही अंतरधर्म की शंका भी बांटी, ‘‘आप क्या सोचतीं इस विषय में मां?’’

कुछ क्षण दोनों के दरमियान चुप्पी छाई रही. मुद्दा वाकई गंभीर था. दूसरे प्रांत या दूसरी जाति नहीं वरन दूसरे धर्म का प्रश्न था. कुछ सोच कर मां ने प्रतिउत्तर में प्रश्न किया, ‘‘क्या तुम आहाद से प्यार करती हो?’’

मनील की चुप्पी में मां को उत्तर दे दिया. बोली, ‘‘देखो मीनल,समर्थ के जाने के बाद तुम ने किन परिस्थितियों का सामना किया यह मुझे भी पता है और तुम्हें भी. अब तक तुम अकेली ही जूझती आई. मैं चाहती हूं कि तुम्हारा घर बसे, तुम्हारा जीवन भी प्रेम से सराबोर हो, तुम एक बार फिर से गृहस्थी का सुख भोगो. तुम जो भी निर्णय लोगी, मैं तुम्हारे साथ हूं.’’

सुनयनादेवी के लिए मीनल के प्रति उन का प्यार हर मुद्दे से ऊपर आता था, ‘‘चलो, कल तुम्हारे मातापिता से मिल कर आगे की बात तय कर लेते हैं.’’

अगले दिन आहाद ने बच्चों को मूवी और मौल घुमाने का कार्यक्रम बनाया और मीनल व सुनयना देवी चल दीं उस के मायके.

‘‘भाईसाहब और बहनजी, हमारी मीनल के जीवन में एक बार फिर से बहार दस्तक दे रही है. इसी के कालेज में पढ़ा एक लड़का इस से शादी करना चाहता है. हम इस विषय में आप की राय चाहते हैं. मोहम्मद आहाद नाम है उस का. मुझे और बच्चों को भी वह लड़का बहुत पसंद आया. सब से अच्छी बात यह है कि धर्म की दीवार इन दोनों के प्यार के आढ़े नहीं आई. दोनों को अपने संस्कारों, अपनी संस्कृतियों पर गर्व है. कितना सुदृढ़ होगा वह परिवार जिस में 2-2 धर्मों, भिन्न संस्कृतियों का मेल होगा.’’

सुनयना देवी के कहते ही मीनल के मायके वालों ने हंगामा खड़ा कर डाला.

‘‘शर्म नहीं आई अपनी ही दूसरी शादी की बात करते और वह भी एक अधर्मी से.’’ बस इतना ही प्यार था समर्थ जीजाजी से? अरे, डायन भी 7 घर छोड़ देती है पर तुम ने ही घर वालों को नहीं बख्शा, मीनल का भाई गरजने लगा.

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भाभी भी कहां पीछे रहने वाली थीं, ‘‘मैं क्या मुंह दिखाऊंगी अपने समाज में? मेरे मायके में मेरी छोटी बहन कुंआरी है अभी. उस की शादी कैसी होगी यह बात खुलने पर.’’

धम्म से जमीन पर गिरते हुए मां अपने पल्लू से अपने आंसू पोंछने में व्यस्त हो गई. तभी मीनल की बड़ी विवाहित बहन पास के अपने घर से आ पहुंची. उसे भाई ने फोन कर बुलवाया था. बहन ने आ कर मां के आंसू पोंछने शुरू कर दिए,‘‘अरे, ऐसी कुलच्छनी के लिए क्यों रोती हो, मां? एक को खा कर इस का पेट नहीं भरा शायद… इस उम्र में ऐसी जवानी फूट रही है कि जो सामने आया उसी से शादी करने को मचलने लगी? यह भी नहीं सोचा कि एक मुसलमान लड़का है वह. ऐसे लोग ही लव जिहाद को हवा देते हैं’’, कहते हुए बहन ने घूणास्पद दृष्टि मीनल पर डाली.

उस का मन हुआ कि वह इसी क्षण यहां से कहीं लुप्त हो जाए.

‘‘सौ बात की एक बात मीनल कि यह शादी होगी तो मेरी लाख के ऊपर से होगी. अब तेरी इच्छा है. अपनी डोली चाहती है या अपनी मां की मांग का सिंदूर’’, पिता की दोटूक बात पर मां का रुदन और बढ़ गया.

मीनल बेचारी सिर झुकाए चुपचाप रोती रही.

इतने कुहराम और कुठाराघात की मारी मीनल धम से सोफे पर गिर पड़ी. ठंड में भी उस के माथे से पसीना टपकने लगा. उस के पैर कंपकंपाने लगे, गला सूख गया, आंखें छलछला गईं. ऐसा लग रहा था कि उस के मन की कमजोरी उस के तन पर भी उतर आई है, ‘‘पापा, प्लीज अब रहने दीजिए’’, पता नहीं मीनल की आवाज में कंपन मौसम के कारण था या मनोस्थिति के कारण. इस बेवजह के तिरस्कार से वह थक गई. ‘‘गलती हो गई जो मैं ने ऐसा सोचा. मुझे कोई शादीवादी नहीं करनी है.’’

अपेक्षा विपरीत मीनल के पुनर्विवाह न करने का निर्णय उस के मायके वालों को स्वीकार्य था, लेकिन दूसरे धर्म के नेक, प्यार करने वाले लड़के से शादी नहीं.

अचानक सुनयना देवी खड़ी हो गईं, ‘‘मीनल एक शिक्षित, सुसंस्कारी, समझदार स्त्री है. जब से इस की शादी समर्थ से हुई, तब से यह मेरे परिवार का हिस्सा है. यह मेरी जिम्मेदारी है… हम कब तक अपनी मार्यादाओं के संकुचित दायरों में रह कर अपने ही बच्चों की खुशियों का गला घोंटते रहेंगे? जब हम अपने बच्चों को अच्छी शिक्षादीक्षा प्रदान करते हैं तो उन के निर्णयों को मान क्यों नहीं दे सकते?’’ फिर मीनल की ओर रुख करते हुए कहने लगीं, ‘‘मीनल, तुम मन में कोई चिंता मत रखो. तुम आज तक बहुत अच्छी बहूबेटी बन कर रहीं. अब हमारी बारी है. आज यदि तुम्हें कोई ऐसा मिला है जिस से तुम्हारा मन मिला है तो हम तुम्हारी खुशी में रोड़े नहीं अटकाएंगे. मैं तुम्हारे हर निर्णय में तुम्हारे साथ हूं.’’

फिर कुछ देर रुक कर मीनल का हाथ पकड़ कर उसे उठाते हुए सुनयना देवी बोली, ‘‘मीनल, याद है वह कविता जिसे समर्थ अकसर सुनाया करता था-’’

‘‘कुछ मुखड़ों की नाराजी से दर्पण नहीं मरा करता है,

कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है.’’

मां के अडिग, अटल समर्थन ने सब को चुप करवा दिया.

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#WhyWeLoveTheVenue: हुंडई वेन्यू का इंजन कैसे है खास

हुंडई वेन्यू चार तरह के इंजन और ट्रांसमिशन कॉम्बो के साथ आता है, जो BS6-मानकों पर खड़े उतरते हैं. इसका 1.2 लीटर का बेस पेट्रोल इंजन 81BHP के साथ 11.6 केजीएम का अधिकतम टॉर्क निकालता है और 5-स्पीड मैनुअल ट्रांसमिशन के साथ आता है.

यह चलाने में मज़ेदार होने के साथ अच्छा माइलेज निकालने वाला इंजन भी है. इंजन के मामले में वेन्यू के साथ आने वाला एक और बेहतर विकल्प भी दिया गया है इसका 1.5 लीटर का डीजल इंजन, जो 98 BHP के साथ 24.5 केजीएम का अधिकतम टॉर्क निकालता है और 6-स्पीड मैनुअल ट्रांसमिशन के साथ आता है.

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वेन्यू गिनती के उन चुनिंदा कॉम्पैक्ट एसयूवी में से है जो BS6-मानकों के समय में भी डीजल इंजन का विकल्प देता है. अब बात करते हैं1 लीटर का टर्बो-पेट्रोल इंजनकी, जो सब के पसंदीदा इंजन में से एक है. यह117 BHP के साथ 17.5 केजीएम का अधिकतम टॉर्क निकालता है और 6-स्पीड मैनुअल ट्रांसमिशन के अलावा 7-स्पीड ड्यूल क्लच ट्रांसमिशन के साथ भी आता है.

यह टर्बो इंजन बहुत तेज़ी से घूमता है, जिससे आपको लो-एंड टॉर्क मिलता है. इसकी मदद से आप शुरुआत में ही तेज़ी से रफ़्तार बढ़ा सकते हैं. यह इंजन आपको मीटर के रेड लाइन तक पहुंचने पर भी टॉर्क देता रहता है.

इस इंजन को चलाते समय आपको ऐसा महसूस होगा जैसे आपके थ्रॉटल और पहियों के बीच कोई जादू है. इस इंजन की सबसे अच्छी बात है इसकी शानदार आवाज़, जो आपका दिल जीत लेगी. यह इंजन वेन्यू के शानदार लुक को पूरा करता है.

जब ऐसे पावरट्रेन ऑप्शन हों, तब यह समझना बहुत आसान है कि क्यों हम वेन्यू से प्यार करते हैं.

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