#lockdown: कोरोनावायरस ले डूबा है बौलीवुड का बिजनेस, भविष्य और स्टाइल

कोरोना वायरस का संक्रमण एक ऐसी त्रासदी है, जैसी आक्रामक त्रासदी दुनिया ने पिछले पांच सौ सालों में पहले कभी नहीं देखी. ऐसा नहीं है कि कोरोना वायरस के संक्रमण के पहले दुनिया में महामारियां नहीं आयीं, लेकिन अब के पहले दुनिया में जितनी भी महामारियां आयी हैं, उनका कुछ निश्चित क्षेत्रों में ही असर हुआ है. मसलन ज्यादातर महामारियां बड़े पैमाने पर आम लोगों की जानभर लेती रहती हैं. लेकिन कोरोना महामारी ऐसी है जो न सिर्फ बड़े पैमाने पर लोगों को मार रही है बल्कि अब तक के तमाज जीवन जीने के ढंग पर सवालिया निशान लगा रही है और हमारी तमाम उपलब्धियों को अर्थहीन कर रही है या फिर उन्हें पूरी तरह से बदलने के लिए इशारा कर रही है. कहने का मतलब यह कि जब कोरोना महामारी दुनिया से जायेगी, तब तक दुनिया पूरी तरह से बदल चुकी होगी और फिर लौटकर वैसी नहीं होगी, जैसी कोरोना संक्रमण के पहले थी.

इन पंक्तियों के लिखे जाने तक कोरोना के संक्रमण से पूरी दुनिया में 1 लाख 5 हजार लोगों की मौत हो चुकी थी साथ ही करीब 16 लाख 50 हजार लोग पीड़ित थे, जिसका मतलब है कि अगर आज की तारीख में भी यह त्रासदी कहीं ठहर जाये तो भी इसके जाने के बाद इससे मरने वालों की गिनती 2 लाख के ऊपर पहुंचेगी. बहरहाल जहां तक महामारियों में लोगों के मरने की संख्या का सवाल है तो निश्चित रूप से पहले इससे भी कहीं ज्यादा लोग मरते रहे हैं, लेकिन जहां तक विभिन्न क्षेत्रों में इसके भयानक असर का सवाल है तो अब के पहले किसी भी महामारी का ऐसा असर किसी क्षेत्र में नहीं हुआ, जैसा असर फिलहाल कोरोना का दिख रहा है.

 

View this post on Instagram

 

#aliabhatt #staysafe #stayhome #viralbhayani @viralbhayani

A post shared by Viral Bhayani (@viralbhayani) on

ये भी पढ़ें- दोबारा मां बनी Bigg boss fame राहुल महाजन की ex वाइफ Dimpy गांगुली, इस वजह से हुआ था तलाक

बाॅलीवुड के फिल्मोद्योग को ही लें, अब के पहले की तमाम त्रासदियों ने कभी बाॅलीवुड को इस कदर नहीं झकझोरा जैसा कोरोना ने झकझोर दिया है. कोरोना के कहर ने बाॅलीवुड को पांच तरीके से झकझोरा है. सबसे पहले तो इसने उन बहुप्रतीक्षित फिल्मों का दिल तोड़ा है, जिन्होंने साल 2020 की पहली तिमाही में कमायी का इतिहास रचने का मंसूबा बना रखा था. जनवरी 2020 से मार्च 2020 के दूसरे सप्ताह तक जो बहुप्रतीक्षित फिल्में रिलीज हुई, उनमें एक बागी-3 को छोड़ दें, जिसने 109 करोड़ रुपये का बिजनेस किया तो तमाम दूसरी फिल्मों को अपनी लागत निकालना भी संभव नहीं हुआ. ‘लव आजकल’ जैसी फिल्म जिसके बारे में कहा जा रहा था कि 500 करोड़ रुपये का बिजनेस करेगी, वह 50 करोड़ रुपये का भी नहीं कर पायी. इरफान खान की बीमारी से लौटने के बाद उनके प्रशंसकों द्वारा बेसब्री से इंतजार की जा रही फिल्म ‘अंग्रेजी मीडियम’ भी अपनी लागत नहीं निकाल पायी, जबकि इसे भी 200 करोड़ रुपये तक बिजनेस करने वाली फिल्म माना जा रहा था.

एक आयुष्मान खुराना की ‘शुभमंगल ज्यादा सावधान’ ही ऐसी फिल्म रही जिसने इस तिमाही में अपनी 40 करोड़ रुपये की लागत के मुकाबले 62 करोड़ रुपये का बिजनेस करके 22 करोड़ रुपये का लाभ कमाया वरना कामयाब जैसी फिल्म तो तमाम प्रचार, प्रसार के बावजूद 2 करोड़ रुपये का बिजनेस भी बहुत मुश्किल से कर पायी, जबकि इस फिल्म को मीडिया में 5 में से 4.5 स्टार की रेटिंग मिली हुई थी. फिल्म में संजय मिश्रा, दीपक डोबरियाल तथा ईशा तलवार जैसे चेहरे थे, जिसका मतलब था कि फिल्म भरपूर मनोरंजन करने वाली होगी. ‘थप्पड़’ के आने के पहले भी उसकी खूब हवा बांधी गई थी, लेकिन फिल्म 30 करोड़ रुपये का बिजनेस भी नहीं कर पायी जबकि माना जा रहा है इसे बनाने में 75 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं.

 

View this post on Instagram

 

Cutie #taimuralikhan with dad #SaifAliKhan ❤❤❤❤😜 #happyeaster

A post shared by Viral Bhayani (@viralbhayani) on

लेकिन यह कोई अकेला क्षेत्र नहीं है जिसे कोरोना संकट ने बहुत ज्यादा प्रभावित किया है. कोरोना के कहर के चलते न सिर्फ फिल्मों की बड़े पैमाने पर शूटिंग कैंसिल हुई बल्कि हर साल गर्मियों में होने वाले फिल्म सितारों के विदेशी टूर भी करीब करीब सब कैंसिल हो गये हैं. हर साल गर्मियों में बाॅलीवुड के चर्चित सितारे यूरोप और अमरीका के टूर पर जाते हैं. जहां वे खुद तो करोड़ों रुपये कमाते ही हैं, उनके बदौलत इंडस्ट्री के सैकड़ों लोगों को अच्छाखासा रोजगार मिलता है और कमायी होती है. एक अनुमान के मुताबिक हर साल बाॅलीवुड के सितारे गर्मियों के इस विदेशी टूर से 300 से 400 करोड़ रुपये की कमायी करते है, जो इस साल घटकर शून्य हो गई है. कमायी तो हुई ही नहीं साथ ही जो इन टूर के चलते बड़ी संख्या में लोगों को हिंदुस्तान की लू के थपेड़ों से राहत मिल जाती थी, वह भी इस साल नहीं होने वाला. क्योंकि इन पंक्तियों के लिखे जाने तक एक भी टूर शिड्यूल नहीं था और न ही इसकी कोई उम्मीद है.

 

View this post on Instagram

 

Here’s another fun banter of Karan Johar with his kids. #lockdownwiththejohars

A post shared by Viral Bhayani (@viralbhayani) on

ये भी पढ़ें- Bollywood Singers की हालत पर Neha Kakkar ने खोली जुबान, कही ये बात

कोरोना वायरस का एक और बड़ा असर तमाम आने वाली फिल्मों की रिलीज पर पड़ा है. जो फिल्में आमतौर पर फरवरी के अंत या मार्च के दूसरे तीसरे सप्ताह में रिलीज होनी थी, उन सबकी रिलीज डेट अनिश्चितकाल के लिए बढ़ गई है. ‘लालसिंह चड्ढा’, ‘बह्मास्त्र’, ‘1983’, ‘जर्सी’, ‘राधे’ और ‘तख्त’ जैसी फिल्में कब रिलीज होंगी, फिलहाल इसका ठोस अनुमान किसी के पास नहीं है और जब रिलीज भी होगी तो क्या दर्शक उन्हें देखने आयेंगे, यह भी तय नहीं है. हां, इस त्रासदी ने फिल्मी सितारों को एक मायने में राहत दी है कि उनकी छोटी से छोटी गतिविधियों पर बाज की तरह आंख रखने वाले पपराजियों का इन दिनों कहीं दूर दूर तक अता पता नहीं चलता यानी ऐसे स्वतंत्र फोटोग्राफर जो हमेशा फिल्मी सितारों की एक्सक्लूसिव तस्वीरेें उतारने के फेर में सितारों के आगे पीछे मंडराया करते थे, अब वे पता नहीं कहां छिप गये हैं. कुल मिलाकर देखा जाए तो बाॅलीवुड की कोरोना संक्रमण ने कमर तोड़ दी है. अव्वल तो बहुत मुश्किल है कि अगले कुछ सालों तक फिल्म इंडस्ट्री फिर से पुराने ढर्रे पर लौट पाये, लेकिन जब लौटेगी तो भी वह पुरानी जैसी तो कतई नहीं होगी. कोरोना ने एक ऐसे उद्योग का समूचा रूप रंग बदलने के संकेत दे दिये हैं, जिस उद्योग पर कभी किसी का बस नहीं चलता था.

#lockdown: …ताकि वर्क फ्रौम होम मजबूरी नहीं, बने आपकी मजबूती

जीवन जीने के तौर तरीकों में क्रांतियां कई तरीकों से होती हैं. कभी देखादेखी, कभी सुनियोजित अनुकरण से और कभी परिस्थितियों के कारण. 1987-88 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने देश में कंप्यूटर को कामकाज का हिस्सा बनाने के लिए बहुत लड़ाई लड़ी थी. ट्रेड यूनियनों से लेकर आम कामगारों द्वारा उन्हें और उनकी सरकार को उन दिनों दफ्तरों में कंप्यूटर की घुसपैठ कराने वाले खलनायक के रूप में चिन्हित किया जाता था. लेकिन 20 साल बाद प्रधानमंत्री राजीव गांधी की उस कंप्यूटर क्रांति ने देश की अर्थव्यवस्था का नक्शा बदल दिया. भारतीय युवाओं की यह कंप्यूटरी क्षमता ही थी, जिसके कारण 21वीं सदी में भारत दुनिया की मानव संसाधन सम्पदा का हब बनकर उभरा. आज हर साल देश में 73 अरब डालर से भी ज्यादा जो विदेशी मुद्रा भारतीय कामगारों द्वारा लायी जा रही है, उसमें सबसे बड़ा योगदान कंप्यूटर में पारंगत भारतीयों का ही है.

करीब 30 साल बाद आज फिर भारत एक नयी तरह की कामकाजी क्रांति की दहलीज पर खड़ा है. कामकाज की यह नयी शैली है, ‘वर्क फ्राम होम’. भले अचानक बड़े पैमाने पर देश में इसका आगमन कोरोना त्रासदी के चलते हुआ हो, लेकिन अगर यह कोरोना संकट न भी आया होता तो भी अगले कुछ सालों में इसे अपनी जगह बनानी ही थी. यह अलग बात है कि तब यह धीरे-धीरे अपनी जगह बनाता, लेकिन आज एक झटके में हिंदुस्तान के करीब 10 से 12 करोड़ विभिन्न क्षेत्रों के कामगार इस समय वर्क फ्राम होम कर रहे हैं. इनमें चाहे वे बड़े प्रोफेशनल, सीईओ हों या फिर साधारण क्लर्क या सामान्य डाटा विजुलाइजर. कोरोना वायरस के विश्वव्यापी संक्रमण ने अचानक जिस शब्द को सबसे ज्यादा लोकप्रिय बनाया है, वह यही शब्द है- वर्क फ्राम होम. भले अभी ज्यादातर भारतीय इसके आदी न हुए हो, लेकिन एक साधारण अनुमान है कि हर दिन करीब 2000 करोड़ रुपये का काम इन दिनों घर में बैठे लोगों द्वारा किया जा रहा है. लेकिन यह वास्तव में ई-कामर्स की बहुत बड़ी दुनिया एक बहुत मामूली सा हिस्सा है.

ये  भी पढ़ें- 10 टिप्स: ऐसे सजाएं अपना Bedroom

आज हर साल दुनिया में 4.88 ट्रिलियन डालर का कारोबार ई-कामर्स के जरिये होता है. एक ट्रिलियन 1 लाख करोड़ का होता है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि दुनिया की अर्थव्यवस्था में ई-कामर्स की कितनी बड़ी भूमिका है. ई-कामर्स के लिए बड़े बड़े गगनचुंबी दफ्तरों की जरूरत नहीं पड़ती, इसे आप दुनिया के किसी कोने में बैठे हुए, चाहे तो वह आपका घर हो, चाहे समुद्र का किनारा, चाहे पार्क या हरे भरे खेतों के बीच मेड़. आप ई-कामर्स कहीं से भी कर सकते हैं. दूसरे शब्दों में ई-कामर्स में वर्क फ्राम होम की सबसे सहज स्थितियां पैदा की हैं. जहां तक भारत में सालाना ई-कामर्स के टर्नआउट की बात है तो साल 2015 में वह 24 बिलियन डालर था, जो अब करीब 54 बिलियन डालर के आसपास है.

कहने का मतलब यह कि दुनिया का बड़े पैमाने पर कारोबार ई-कामर्स में बदल गया है, इस स्थिति में वर्क फ्राम होम एक अनिवार्य कामकाजी शैली के रूप में उभरी है. भले इसने हमारे यहां अभी एक त्रासदी के चलते जगह बनायी हो, लेकिन अगर दुनिया में कोरोना जैसी त्रासदी न आती और भारत उससे इस तरह प्रभावित न होता तो भी कुछ सालों में यही स्थिति होनी थी. कहने का मतलब यह कि भले वर्क फ्राम होम इन दिनों कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते भारतीय कामकाजी जीवन का अभिन्न हिस्सा बना हो, लेकिन अब यह लौटकर वापस नहीं जाने वाला. हां, जब कोरोना का संकट पूरी तरह से खत्म होगा तो एक बार इसके मौजूदा दायरे में तात्कालिक रूप से तो थोड़ी कमी आयेगी, लेकिन जल्द ही यह कमी दुगने वेग से अपना आकार बढ़ा लेगी. वर्क फ्राम होम किसी भी वजह से हमारी कामकाजी जिंदगी का हिस्सा बना हो, लेकिन अब यह स्थायी हिस्सा बन चुका है.

चूंकि फिलहाल एक त्रासदी के चलते वर्क फ्राम होम हम सब भारतीयों की जिंदगी का हिस्सा बन गया है, लेकिन जैसे ही यह त्रासदी कम होगी, तो आज के तौरतरीकों वाला वर्क फ्राम होम नहीं रहेगा बल्कि जल्द ही वह अपने बेहतर नतीजे और परफोर्मेंस की तरफ बढ़ेगा. क्योंकि कोरोना त्रासदी के बाद लोग मजबूरी में वर्क फ्राम होम नहीं करेंगे बल्कि अपने कामकाजी क्षमताओं को मजबूती देने के लिए लोग वर्क फ्राम होम का चुनाव करेंगे. यकीन मानिये कोरोना संकट खत्म होने के बाद भी वर्क फ्राम होम की कल्चर नहीं जाने वाली. अब यह हिंदुस्तान में एक स्थायी वर्किंग कल्चर के रूप में रहने वाली है. सवाल है आने वाले दिनों में जब वर्क फ्राम होम की यह संस्कृति स्थायी कामकाजी संस्कृति बनने जा रही है तो क्यों न हम इस संकट के समय जबकि वर्क फ्राम होम हमारी मजबूरी है, इसे इस तरह से जाने और सीखें कि भविष्य में वर्क फ्राम होम हमारी मजबूरी नहीं मजबूती बन जाए.

वैसे तो जब तक हमारे यहां वर्क फ्राम होम की सुविधा नहीं थी, तब तक यह सुविधा बहुत रोमांचक लगती थी. हम सब जो इसकी जटिलता से परिचित नहीं थे, यही लगता था कि अगर हमें रोज रोज दफ्तर जाने की बाध्यता न हो तो हमारे पास न सिर्फ अपने काम के लिए समय ज्यादा होगा बल्कि कई और औपचारिकताओं से मुक्त होने के चलते हमारे पास कहीं ज्यादा क्वालिटी परफोर्मेंस का अवसर होगा. लेकिन अब चूंकि बड़े पैमाने पर अचानक वर्क फ्राम होम की सुविधा हमें मिल गई है तो हम यह महसूस करने लगे है कि अब तक हम वर्क फ्राम होम की जिन बातों को लेकर खुश होते थे, वे उतनी ही खुशदायक बातें नहीं हैं.

बहरहाल कहने का मतलब यह है कि घर से कामकाज करने का मतलब यह कतई नहीं है कि आप पर परफोर्मेंस का कोई तनाव व दबाव नहीं होगा और न यह कि आप किसी भी तरह से काम कर सकते हैं (मसलन वर्क फ्राम होम का कई लोग मतलब यह निकालते हैं कि चाहे तो हम कच्छा बनियान में और अपने बेडरूम में लेटे हुए काम कर सकते हैं, जो कि सही नहीं है). इस सबके बावजूद अगर हम कुछ सजगताओं को बरतें तो वर्क फ्राम होम सचमुच हमारे लिए आनंदायक भी हो सकता है, ज्यादा संतुष्टदायक भी हो सकता है और सामान्य परर्फोर्मेंस से ज्यादा हम परफोर्मेंस भी दे सकते हैं. बशर्ते इसके लिए हम

कुछ ये तरीके अपनाएं-

– हम नियमित और अनुशासित ढंग से अपने कामकाज की वैसे ही शुरुआत करें जैसे पारंपरिक दफ्तर में करते हैं.

– इसके लिए हमें सामान्य रूप से दफ्तर जाने के अनुसार ही सुबह जल्दी उठना चाहिए, उसी तरह तैयार होना चाहिए जिस तरह हम दफ्तर के लिए तैयार होते हैं और हमने घर में जिस जगह अपने काम के लिए टेबल चेयर लगायी है, वहां उसी तरीके से बैठकर काम करना चाहिए.

– वर्क फ्राम होम का मतलब यह नहीं है कि सुबह देर तक सोएं फिर घंटों तक चाय पीते हुए अखबार पढ़ें और बाद में देर हो जाने के नाम पर बिना नहाये धोये, बिना नियमित दफ्तरी कपड़े पहने, अपने कुर्सी में आ धंसे और काम शुरु कर दें.

– न सिर्फ हमें अपनी नियमित दिनचर्या की शुरुआत दफ्तर में करने वाले काम की तरह से करनी चाहिए बल्कि हमें दफ्तर की ही तरह हर दिन एक तय जगह में जो कि साफ सुथरी हो, भरपूर प्रकाश वहां आता हो और शोर शराबा या दूसरों द्वारा डिस्टर्ब न किया जा सकता हो. ऐसी जगह से काम करना चाहिए.

– हमें हर दिन सुबह अपने आपको बास की तरह टारगेट देना चाहिए और कर्मचारी की तरह उस टारगेट को पूरा करने के लिए जी जान लगा देना चाहिए.

ये भी पढ़ें- ड्रैसिंग टेबल को ऐसे करें Organize

– हर दिन उतनी ही देर तक काम करना चाहिए,जितनी देर तक दफ्तर में काम करते हैं, न उससे बहुत कम और न उससे बहुत ज्यादा.

– इसके साथ ही अगर हम अपने वर्क फ्राम होम के परफोर्मेंस को बढ़ाना चाहते हैं तो हमें उन तमाम जरूरी उपकरणों की भी व्यवस्था करनी चाहिए, जिन्हें वर्क फ्राम होम का इंफ्रास्ट्रक्चर कहते हैं. मसलन तेज रफ्तार वाईफाई, उच्च क्षमता का वेब कैम, हाटस्पोट, एक्सर्टनल की-बोर्ड, सेंसर वाला माउस तथा हैड फोन ताकि हम अपने लैपटाप या डेस्कटाप में बिना बाधित हुए काम कर सकें.

अगर इन तमाम जरूरतों को हम पूरा करते हैं तो कोई शक नहीं है कि हम वर्क फ्राम होम में दफ्तर जाने से ज्यादा और क्वालिटी का काम कर पाएंगे.

#lockdown: बच्चों के लिए बनाएं टेस्टी Choco Cubes

अगर आप अपनी फैमिली के लिए चौकलेट की कुछ रेसिपी ट्राय करने की सोच रही हैं तो आज हम आपको चौकलेट की कुछ रेसिपी बताएंगे…

हमें चाहिए

1 कप डार्क चाकलेट

1 कप मिल्क चाकलेट

ये भी पढ़ें- #lockdown: ऐसे बनाएं बढ़िया Ice cream

घर में उपलब्ध बिस्किट संतरा, काजू, अखरोट, बादाम और चेरी

8-10 टूथपिक.

विधि-डार्क चाकलेट और लाइट चाकलेट को माइक्रोबेव में 1-1 मिनट पर चलाते हुए पिघलाकर अच्छी तरह चलाएं. अब फ्रिज में बर्फ जमाने वाली ट्रे में एक चम्मच से पिघली चाकलेट डालें. उपर से टूटे बिस्किट, संतरे के टुकड़े और मेवा में से जो भी आपके पास उपलब्ध हैं उन्हें डालकर साइड में टूथपिक लगाकर फ्रिज में आधा घंटे के लिए सेट होने रख दें. आधे घंटे बाद निकालकर सर्व करें.

नोट-यदि आपके पास माइक्रोबेव नहीं है तो एक कड़ाही में पानी गर्म करें, बीच में एक प्लेट या स्टैण्ड रखें. अब एक कटोरे में दोनों चाकलेट डालकर इस स्टैण्ड पर रखें लगातार चलाते हुए पूरी तरह एकसार होने तक चलाएं.

ये भी पढ़ें- #lockdown: दाल बाटी के साथ सर्व करें टेस्टी आलू का चोखा

इंटरसिटी एक्सप्रैस: भाग-3

आज घर में बड़ी रौनक थी. प्रेम की प्यारी बिटिया अनुभा का ब्याह जो था. पूरा घर दुलहन की तरह सजा था. प्रेम ने भव्य पंडाल लगवाया था. शहर से ही शहनाई वालों और कैटरिंग वालों की व्यवस्था की थी. बरात शाम को शहर से आने वाली थी. बरात के रास्ते पर भव्य स्वागत द्वार लगाए गए थे. फूलों की महक ने पूरे महल्ले को महका दिया था. सुबह से ही मंगल ध्वनि माहौल को सुमधुर बना रही थी. प्रेम सारी तैयारियों से संतुष्ट था. हफ्ते भर से शादी की भागदौड़ में लगा हुआ था, इसलिए थकान के मारे उस का शरीर टूट रहा था. थोड़ा दम लेने के लिए वह पंडाल के एक कोने में पड़ी कुरसी पर पसर गया, तो एक फ्लैशबैक फिर उस की आंखों के सामने घूम गया. मधु के साथ इंटरसिटी ऐक्सप्रैस में आना. फिर मधु का दूर जाना और फिर मिलना. अनुभा का बचपन, उस की किलकारियां. अनुभा की शादी होने का वक्त आया तो बिटिया की विदाई के बारे में सोचसोच कर प्रेम की रुलाई थामे न थमती थी. प्रेम ने अपना चेहरा हाथों से ढक लिया. तभी उस के कानों ने कुछ सुना. कोई किसी को बता रहा था कि अनुभा का असली पिता प्रेम न हो कर दीपक है. प्रेम तो अनुभा का सौतेला पिता है. प्रेम ने बाएं मुड़ कर देखा, तो मधु का पहला पति दीपक सजेधजे कपड़ों में लोगों से बात कर रहा था. इसे यहां किस ने बुलाया? सोचते हुए प्रेम क्रोध के कारण कांपने लगा. तभी उस ने देखा कि दीपक मधु के पास चला गया. प्रेम ने मधु के चेहरे को गौर से देखा. उसे लगा कि आज मधु के चेहरे पर अपने तलाकशुदा पति दीपक के लिए पहले जैसी घृणा नहीं थी. क्या मधु ने ही आज दीपक को यहां बुलाया है? यह सोचते हुए प्रेम का दिल बैठ गया. दीपक के साथ खड़ा आदमी शायद सभी मेहमानों को यही बता रहा होगा कि अनुभा का असली पिता दीपक है.

ये भी पढ़ें- #lockdown: माय डैडी बेस्ट कुक

प्रेम पंडाल की ओट में बैठा दुनिया का सब से गरीब आदमी हो गया. सौतेला शब्द उसे कांटों की तरह चुभ रहा था. पहली बार उसे जीवन का यथार्थ अनुभव हुआ. सही तो है, है तो वह सौतेला पिता ही… उस की आंखों में व्यथा की पीड़ा उभर आई. उस ने पंडाल के उस कोने से देखा कि शादी की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं. सब लोग अपने में व्यस्त हैं और अब किसी को भी उस की जरूरत नहीं है. प्रेम आहिस्ता से उठा और भारी कदमों से बाहर की ओर चल दिया. कई लोगों ने उसे टोका परंतु प्रेम जैसे अपनी ही दुनिया में था. ‘कन्या के पिता को बुलाइए,’ शादी करा रहे पंडित ने कहा तो दीपक दांत निकाले आगे की ओर आ गया. अनुभा ने घूंघट की ओट से दीपक को देखा तो वह चौंक उठी. ‘‘हरगिज नहीं,’’ अनुभा गरजी, ‘‘तुम मेरे पिता नहीं हो.’’ दीपक बेशर्मी से हंसते हुए बोला, ‘‘बिटिया, मां ने बताया नहीं कि मैं ही तुम्हारा…’’ दीपक का वाक्य समाप्त होने से पहले ही अनुभा अपनी जगह पर खड़ी हो गई. ‘‘बब्बा,’’ उस ने जोर से आवाज लगाई पर कोई उत्तर न पा कर विवाह स्थल से आगे निकल आई. मधु और अन्य लोगों ने अनुभा को रोका और प्रेम की खोजखबर ली जाने लगी. एक दरबान ने बताया कि उस ने प्रेम को पंडाल से बाहर जाते हुए देखा है. मधु और अनुभा एकदूसरे को देखने लगे. मन के तारों ने एकदूसरे की व्यथा को ताड़ने में देरी नहीं की. दीपक ने कुछ कहने की कोशिश की पर अनुभा और फिर मधु ने दीपक को विवाह स्थल से बाहर जाने का आदेश दिया. दीपक ने देखा कि कुछ लोग आस्तीन चढ़ाए उस के पीछे खड़े हो गए हैं, तो उस ने रुखसत होने में ही खैरियत समझी.

अनुभा ने अपना सुर्ख लहंगा संभाला और पंडाल के बाहर दौड़ चली. मधु भी अनुभा के पीछेपीछे ‘अनुभा…अनुभा’ आवाज लगाते हुए दौड़ पड़ी. फिर तो जैसे पूरा कुनबा ही दौड़ चला. दलहन के शृंगार में सजी अनुभा तेजी से रास्ते पर दौड़ रही थी. उस के पीछे मधु और बाकी मेहमान, नौकरचाकर सब दौड़ रहे थे. अनुभा बस दौड़ी चली जा रही थी. उसे पता था कि उस के बब्बा कहां होंगे. बब्बा, उस के प्यारे बब्बा, केवल उस के बब्बा. स्टेशन करीब आया तो उस ने देखा कि प्लेटफौमर्न नंबर 1 पर इंटरसिटी ऐक्सप्रैस आने को थी. डिस्प्ले बोर्ड ने डब्बों की पोजिशन दिखाना शुरू कर दिया था और यात्रियों की भीड़ ट्रेन की प्रतीक्षा कर रही थी. इसी प्लेटफौर्म के एक कोने में एक बूढ़ा आदमी अपने घुटनों में सिर छिपाए बैठा था. अचानक उसे लगा कि उसे कोई पुकार रहा है. भला कौन है उस का जो उसे पुकारेगा? सोच कर उस ने धीरेधीरे अपना सिर ऊपर उठाया तो देखा कि सामने अनुभा व मधु थीं. बूढ़े व्यक्ति ने सपना समझ कर अपनी आंखें बंद कर लीं.

भागती हुई अनुभा बब्बा के पैरों में गिर पड़ी, ‘‘बब्बा, कहां चले गए थे मुझे अकेला छोड़ कर…?’’ अनुभा रोते हुए बोली, ‘‘आप ही मेरे पिता हैं, चाहे कोई कुछ भी कहे.’’ प्रेम अपनेआप को समेटते हुए थरथराती आवाज में बोला, ‘‘बिट्टो, मैं तेरा पिता नहीं हूं.’’ अनुभा, प्रेम के चेहरे को अपने हाथों में लेते हुए बोली, ‘‘बब्बा, मन का नाता एक दिन में नहीं मिटता. और फिर आप का और मेरा तो जन्मों का नाता है.’’ प्रेम और कुछ कहने को हुए, लेकिन अनुभा ने प्रेम के होंठों पर हाथ रख दिया. मधु भी हांफते हुए कह उठी, ‘‘भला कोई ऐसे जाता है. बेटी की शादी को बीच में छोड़ कर… आप के सिवा हमारा और है कौन इस दुनिया में?’’ प्रेम ने मधु की ओर देखा, जो उस के आंसुओं ने प्रेम के सारे शिकवों को बहा दिया. मधु के पीछेपीछे आए सारे लोग थोड़ी दूर रह कर यह नजारा देख रहे थे. तभी इंटरसिटी ऐक्सप्रैस का इंजन बिलकुल अनुभा और प्रेम के पास आ कर रुका. दुलहन के रूप में अनुभा को देख कर ट्रेन के ड्राइवर ने नीचे उतर कर अनुभा के सिर पर अपना हाथ रख दिया और बोला, ‘‘कितनी बड़ी हो गई बिटिया, अभी कल की ही बात है जब बब्बा की गोद में बैठी हम सब को टाटा किया करती थी.’’ ड्राइवर की बातों ने सब की आंखों को और भी नम कर दिया. इंजन ने हौर्न दिया तो ड्राइवर पुन: इंजन पर चढ़ गया. इंटरसिटी ऐक्सप्रैस फिर कुछ जिंदगियों में हलचल मचा कर चल दी थी. ट्रेन के अंदर से यात्री और प्लेटफौर्म पर अनुभा, मधु और प्रेम हाथ हिला रहे थे. माहौल फिर खुशगवार हो रहा था.

ये भी पढ़ें- फिर से नहीं

सावधान! किराना स्टोर बन सकते हैं कोरोना कहर के सारथी

जिस समय मैं ये पंक्तियां लिख रही हूं हिंदुस्तान में लाॅकडाउन का 19वां दिन चल रहा है. लेकिन यह तालाबंदी अकेले हिंदुस्तान में नहीं है, करीब-करीब आधी से ज्यादा दुनिया इन दिनों तालाबंदी का शिकार है. इसके पीछे एक ही मकसद है कि किसी तरीके से कोरोना के कहर का दुष्चक्र टूट जाए. कोरोना की एक बार श्रृंखला टूटे तो फिर से सामान्य जिंदगी लौटे. यूं तो तालाबंदी एक अच्छा जरिया है, सोशल डिस्टेंसिंग का. लेकिन कहीं पर अज्ञानता के चलते और कहीं पर मजबूरी के चलते तालाबंदी वैसी नहीं हो पा रही, जैसी होनी चाहिए या जिस तरह की तालाबंदी से हम कोरोना के कहर को धूमिल करने की उम्मीद कर सकते हैं.

दरअसल तालाबंदी को कमजोर करने में सिर्फ हमारे योजनाबद्ध षड़यंत्र ही नहीं शामिल, हमारी नासमझ और जीवन जीने के बेफिक्र तरीके भी इसमें मददगार हैं. मसलन हिंदुस्तान में मुहल्लों के किराना स्टोरों को लें. हम आम हिंदुस्तानियों के खरीद फरोख्त का जो अब तक का स्वभाव रहा है, वह न सिर्फ बहुत बेफिक्र बल्कि अनुशासनहीन भी रहा है. चूंकि इन दिनों अधिकांश हिंदुस्तानी लाॅकडाउन और कफर््यू के चलते घरों के अंदर हैं. लोग बस जरूरी चीजों की खरीदारी के लिए ही बाहर निकलते हैं, इन्हीं जरूरी चीजों में राशन, दवाईयां, दूध और सब्जियां शामिल हैं. दुनिया के दूसरे देशों में तो ये सब चीजें भी ग्राहकों के दरवाजे तक पहुंचायी जा रही हैं. लेकिन हिंदुस्तान में अभी भी जहां कर्फ्यू नहीं लगा, सिर्फ लाॅकडाउन है वहां ये तमाम चीजें लोगों को खुद दुकानों से लेने जाना पड़ रहा है.

ये भी पढ़ें- #coronavirus: Lockdown के दौरान महिला सुरक्षा

यही वो गतिविधियां हैं जहां तालाबंदी और कर्फ्यू भी बेअसर हो सकता है. क्योंकि हम आम हिंदुस्तानी सोशल डिस्टेंसिंग को ईमानदारी से पालन नहीं करते. दरअसल हमारे पास इस तरह की आदत का पहले से कोई ठोस इतिहास नहीं है. हिंदुस्तान में करीब 1 करोड़ 2 लाख छोटे मोटे रोजमर्रा की जरूरी चीजें बेचने वाले स्टोर हैं, जिन्हें हम किराना स्टोर या जनरल स्टोर के नाम से जानते हैं. इनकी परिभाषा ये है कि इनमें आमतौर पर खाने पीने और रोजमर्रा के घरेलू इस्तेमाल की चीजें मिलती हैं. आमतौर पर 100 में करीब 97 फीसदी इनके मालिक और यहां काम करने वाले कर्मचारी एक ही होते हैं यानी ये सब एक ही घर के लोग होते हैं. कुछ छोटे किराना स्टोर में एक से दो और थोड़े से बड़े स्टोर में दो से ज्यादा कर्मचारी होते हैं. इन मुहल्लों में मौजूद किराना स्टोर्स का न सिर्फ ग्राहकों के साथ डील करने का तरीका, घरेलू और परिचितों जैसा होता है बल्कि ग्राहकों के साथ सामान देने और पैसे देने में भी ये जरा सी औपचारिकता का बर्ताव नहीं करते.

यह स्थिति भले बाकी समय के लिए भारतीय समाज के गहरे अपनत्व और अनौपचारिकता का बयान करे, लेकिन फिलहाल तो इस तरह का व्यवहार भारत में कोरोना संक्रमण के खतरनाक हो जाने का सबब बन सकता है. इसके कई ठोस कारण हैं. दरअसल हमारे मुहल्ले के किराना स्टोरों में तमाम चेतावनी के बावजूद भी सामान देने वाले और सामान लेने वाले के बीच चार पांच फिट का फासला नहीं रहता, जैसा फासला रखने की इन दिनों हर संभव तरीके से हिदायत दी जाती है. चूंकि अब यह स्पष्ट हो चुका है कि संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से 10 मिनट के दौरान ही कई सौ लोग इस वायरस से पीड़ित हो सकते हैं यानी उन तक वायरस का संक्रमण हो सकता है. इसलिए हिंदुस्तान में हर मुहल्ले में मौजूद इन किराना स्टोरों के कामकाज के तौर तरीके पर न सिर्फ सख्ती से सोशल डिस्टेंसिंग के फार्मूले को अपनाये जाने की जरूरत है बल्कि किराना स्टोर के लोगों और ग्राहकों के बीच के व्यवहार को भी बदले जाने की जरूरत है.
जैसा कि हम पहले ही कह चुके हैं कि भारत में किराना स्टोरों का बहुत सघन जाल है. लगभग हिदुस्तान की 99.99 फीसदी आबादी इन किराना स्टोरों की जद में आती है. हर आम भारतीय सामान्य दिनों में औसतन एक महीने में 10 बार किसी किराना स्टोर जाता है. यहां तक कि जो लोग तमाम सामान महीनेभर का इकट्ठा लेते हैं, वो भी किसी न किसी काम के चलते कई बार किराना स्टोर जाते रहते हैं. इन दिनों चूंकि बार बार आशंका पैदा हो रही है कि पता नहीं कितने दिनों तक तालाबंदी की आंख मिचैली जारी रहेगी, इसलिए लोग डरकर जल्दी जल्दी किराना स्टोर पहुंच रहे हैं. यूं तो किराना स्टोर में ग्राहकों के साथ कैसे डील किया जाये, सरकारों की तरफ से इसकी कई एडवाइजरी जारी हुई हैं. लेकिन रातोंरात लोगों की जीवनशैली और उनके व्यवहार के तरीकों में बदलाव नहीं होता. यही वजह है कि तमाम चेतावनियों के बावजूद लोग किराना स्टोरों में जरूरी सोशल डिस्टेंस नहीं बना पा रहे.

आमतौर पर किराना स्टोरों में उसका मालिक ही सौदा देता है और वही कैशियर की भूमिका भी अदा करता है. बिल अदा करने की प्रक्रिया में ग्राहक और किराना स्टोर के मालिक के बीच फासला बहुत कम रह जाता है. चूंकि ऐसा व्यक्ति हर किसी के दिये गये रुपयों को हाथ से गिनकर सुनिश्चित करता है कि वो सही हैं या नहीं. इस क्रम में वह न सिर्फ रुपयों को उलट पलटकर हाथ लगाता है बल्कि अपने ग्राहक के भी हाथों के साथ उसका जाने अंजाने स्पर्श हो ही जाता है. ऐसे में अगर कोई भी ग्राहक जिसे कोरोना का संक्रमण हो और खुद उसे भी पता न हो जिसके नतीजे के रूप में यह किराना स्टोर के मालिक को लग जाये तो फिर वह अकेले ही दर्जनों क्या सैकड़ों लोगाों को संक्रमित कर सकता है. इसलिए न सिर्फ किराना स्टोर में सख्ती से सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया जाना चाहिए बल्कि इन दिनों गांव में लगने वाले सप्ताहिक बाजारों में भी बहुत सावधानी बरती जानी चाहिए.

ये भी पढ़ें- #lockdown: कोरोना ने बढ़ाया डिस्टेंस एजुकेशन का महत्व

शहरों में चूंकि पुलिस लगातार गश्त लगा रही है, इसलिए शहर मे ंलोग पुलिस के डर से फिर भी थोड़ा बहुत सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन भी करते हैं, गांव में यह बिल्कुल नहीं हो पा रही. ऐसी कई रिपोर्टें पिछले दिनों अलग अलग इलाकों से मीडिया की सुर्खियां बनी हैं. बहरहाल किराना स्टोर भारत में कोराना फैलाने के सबसे बड़े केंद्र बनकर न उभरें इसलिए किराना स्टोर वालों को यह करना चाहिए कि वे अपने स्टोर के बाहर एक घड़ा, बाल्टी या लेटर बाॅक्स रखें और लोगों से कहें कि वे अपनी जरूरत के सामान की लिस्ट बनाकर और उसमें अपना फोन नंबर लिखकर डाल दें और अपने घर जाएं. जैसे ही किसी का सौदा निकालकर इकट्ठा किया जायेगा तो उन्हें फोन किया जायेगा कि वे अपनी चीजें आकर ले जाएं. इससे ग्राहकों को दुकान के बाहर खड़े रहने या भीड़ लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. साथ ही साथ जब किसी को फोन करके कहा जायेगा कि वो अपना सौदा ले जाएं तो उन्हें उसी समय यह भी बता दिया जायेगा कि इतने का बिल है तो सौदा लेने वाला व्यक्ति बिल के पूरे पैसे बनाकर लायेगा और चेंज का भी चक्कर नहीं रहेगा. लेकिन अगर चेंज पैसे नहीं होंगे तो भी ग्राहक से कहा जाना चाहिए कि वो कितने का नोट लेकर आयेगा, उसी के हिसाब से पहले से ही पैसे की व्यवस्था करके रखंे. कहने का मतलब इतना है कि जो किराना स्टोरा कोरोना संक्रमण फैलने के सबसे नजदीकी स्रोत हो सकते हैं, उनसे सजग होकर ही बचना होगा.

इंटरसिटी एक्सप्रैस

प्रयास: भाग-2

उन्होंने मुझे अपनी बांहों में भरते हुए कहा, ‘‘हमारे लिए यह सब से बड़ी खुशी की बात है, श्रेया. इस बात पर तो मिठाई होनी चाहिए भई,’’ और फिर मेरा माथा चूम लिया. उस रात काफी वक्त के बाद अपने रिश्ते की गरमाहट मुझे महसूस हुई. उस रात पार्थ कुछ अलग थे, रोजाना की तरह रूखे नहीं थे.

मुझे तो लगा था कि पार्थ यह खबर सुन कर खुश नहीं होंगे. हर दूसरे दिन वे पैसे की तंगी का रोना रोते थे, जबकि हम दोनों की जरूरत से ज्यादा पैसा ही घर में आ रहा था. उन की इस परेशानी का कारण मुझे समझ नहीं आता था. उस पर घर में नए सदस्य के आने की बात मुझे उन्हें और अधिक परेशान करने वाली लगी. लेकिन पार्थ की प्रतिक्रिया से मैं खुश थी, बहुत खुश.

ऐसा लगता था कि पार्थ बदल गए हैं. रोज मेरे लिए नएनए उपहार लाते. चैकअप के लिए डाक्टर के पास ले जाते, मेरे खानेपीने का वे खुद खयाल रखते. औफिस के लिए लेट हो जाना भी उन्हें नहीं अखरता. मुझे नाश्ता करा कर दवा दे कर ही औफिस निकलते थे. अकसर मेरी और अपनी मां से मेरी सेहत को ले कर सलाह लेते.

मेरे लिए यह सब नया था, सुखद भी. पार्थ ऐसे भी हो सकते हैं, मैं ने कभी सोचा नहीं था. उन का उत्साह देख कर मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता.

‘‘मुझे तुम्हारी तरह एक प्यारी सी लड़की चाहिए,’’ एक रात पार्थ ने मेरे बालों में उंगलियां घुमाते हुए कहा.

‘‘लेकिन मुझे तो लड़का चाहिए ताकि ससुराल में पति का रोब न झेलना पड़े,’’ मैं ने उन्हें छेड़ते हुए कहा.

ये भी पढ़ें- उजली परछाइयां: अतीत के साए में क्या अंबर-धरा एक हो पाए?

‘‘अच्छा… और अगर वह घरजमाई बन बैठा तो?’’ पार्थ के इतना कहते ही हम दोनों खिलखिला कर हंस पड़े.

‘‘मजाक तक ठीक है पार्थ, लेकिन मांजी तो बेटा ही चाहेंगी न?’’ मैं ने थोड़ी गंभीरता से पूछा.

‘‘तुम मां की चिंता न करो. उन्होंने ही तो मुझ से कहा है कि उन्हें पोती ही चाहिए.’’

दरअसल, मांजी अपने स्वामी के आदेशों का पालन कर रही थीं. स्वामी का कहना था कि लड़की होने से पार्थ को तरक्की मिलेगी. इस स्वामी के पास 1-2 बार मांजी मुझे भी ले कर गई थीं. मुझे तो वह हर बाबा की तरह ढोंगी ही लगा. उस का ध्यान भगवान में कम, अपनी शिष्याओं में ज्यादा लगा रहता था. वहां का माहौल भी मुझे कुछ अजीब लगा. लेकिन मांजी की आस्था को देखते हुए मैं ने कुछ नहीं कहा.

घर के हर छोटेबड़े काम से पहले स्वामी से पूछना इस घर की रीत थी. अब जब स्वामी ने कह दिया कि घर में बेटी ही आनी चाहिए, मांबेटा दोनों दोहराते रहते. मांजी मेरी डिलिवरी के 3 महीने पहले ही आ गई थीं. उन्हें ज्यादा तकलीफ न हो, इसलिए मैं कुछ दिनों के लिए मायके जाने की सोच रही थी पर पार्थ ने मना कर दिया.

‘‘तुम्हारे बिना मैं कैसे रहूंगा श्रेया?’’ उन्होंने कहा.

अब मुझे मांबेटे के व्यवहार पर कुछ शक सा होने लगा. मेरा यह शक कुछ ही दिन बाद सही भी साबित हुआ.

‘‘ये सितारे किसलिए पार्थ?’’ पूरा 1 घंटा मुझे इंतजार कराने के बाद यह सरप्राइज दिया था पार्थ ने.

‘‘श्रुति के लिए और किस के लिए जान,’’ श्रुति नाम पसंद किया था पार्थ ने हमारी होने वाली बेटी के लिए.

‘‘और श्रुति की जगह प्रयास हुआ तो?’’ मैं ने फिर चुटकी लेते हुए कहा.

‘‘हो ही नहीं सकता. स्वामी ने कहा है तो बेटी ही होगी,’’ मैं ने उन की बात सुन कर अविश्वास से सिर हिलाया, ‘‘और हां स्वामी से याद आया कि कल हम सब को उस के आश्रम जाना है. उस ने तुम्हें अपना आशीर्वाद देने बुलाया है,’’ उन्होंने कहा.

मैं चुपचाप लेट गई. मेरे लिए इस हालत में सफर करना बहुत मुश्किल था. स्वामी का आश्रम घर से 50 किलोमीटर दूर था और इतनी देर तक कार में बैठे रहना मेरे बस का नहीं था. पार्थ और उन की मां से बहस करना बेकार था. मेरी कोई भी दलील उन के आगे नहीं चलने वाली थी.

अगले दिन सुबह 9 बजे हम आश्रम पहुंच गए. ऐसा लग रहा था जैसे किसी जश्न की तैयारी थी.

‘‘स्वामी ने आज हमारे लिए खास पूजा की तैयारी की है,’’ मांजी ने बताया.

कुछ ही देर में हवनपूजा शुरू हो गई. इतनी तड़कभड़क मुझे नौटंकी लग रही थी. पता नहीं पार्थ से कितने पैसे ठगे होंगे इस ढोंगी ने. पार्थ तो समझदार हैं न. लेकिन नहीं, जो मां ने कह दिया वह काम आंखें मूंद कर करते जाना है.

पूजा खत्म होने के बाद स्वामी ने सभी को चरणामृत और प्रसाद दिया. उस के बाद उस के प्रवचन शुरू हो गए. उन बोझिल प्रवचनों से मुझे नींद आने लगी.

मैं पार्थ को जब यह बताने लगी तो मांजी बीच में ही बोल पड़ीं, ‘‘नींद आ रही है तो यहीं आराम कर लो न, बहुत शांति है यहां.’’

‘‘नहीं मांजी, मैं घर जा कर आराम कर लूंगी,’’ मैं ने संकोच से कहा.

‘‘अरे, ऐसे वक्त में सेहत के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहिए. मैं अभी स्वामी से कह कर इंतजाम करवाती हूं.’’

5 मिनट में ही स्वामी की 2 शिष्याएं मुझे विश्रामकक्ष की ओर ले चलीं. कमरे में बिलकुल अंधेरा था. बिस्तर पर लेटते ही कब नींद आ गई पता ही नहीं चला. जब नींद खुली तो सिर भारी लग रहा था. कमरे में मेरे अलावा और कोई नहीं था. मैं ने हलके से आवाज दे कर पार्थ को बुलाया. शायद वे कमरे के बाहर ही खड़े थे, आवाज सुनते ही आ गए.

अभी हम आश्रम से कुछ ही मीटर की दूरी पर आए थे कि मेरे पेट में जोर का दर्द उठा. मुझे बेचैनी हो रही थी. पार्थ के चेहरे पर जहां परेशानी थी, वहीं मांजी मुझे धैर्य बंधाने की कोशिश कर रही थीं. मुझे खुद से ज्यादा अपने बच्चे की चिंता हो रही थी.

कब अस्पताल पहुंचे, उस के बाद क्या हुआ, मुझे कुछ याद नहीं. जब होश आया तो खुद को अस्पताल के बिस्तर पर पाया.

ये  भी पढ़ें- 19 दिन 19 कहानियां: जोरू का गुलाम-मायके पहुंची ऋचा के साथ क्या हुआ?

शाम को मांजी मुझ से मिलने आईं. लेकिन मेरी नजरें पार्थ को ढूंढ़ रही थीं.

‘‘वह किसी काम में फंस गया है. कल सुबह आएगा तुम से मिलने,’’ मांजी ने झिझकते हुए कहा.

आगे पढ़ें- अब तक मैं यह तो जान ही चुकी थी कि मैं अपना…

5 टिप्स: एक्सपर्ट से जानें कैसे पाएं नैक रिंकल्स से राहत

रिंकल्स उम्र बढ़ने का एक स्वाभाविक हिस्सा है और यह स्किन के ऐसे हिस्सों पर सबसे प्रमुख है, जो सूरज के संपर्क में है, जैसे कि चेहरा, गर्दन, हाथ और फोरआर्म्स. स्मोकिंग या लंबे समय तक यूवी रेज़ के संपर्क में आने जैसे कई और कारक उन्हें बदतर बना सकते हैं.  ऐसे में नैक की रिंकल्स  बढ़ने के कारण क्या है और इसको कम करने के आसान  उपाय  क्या हैं इस बारे में बता रहें है डर्मेटोलॉजिस्ट और एस्थेटिक फिजिशियन डॉक्टर अजय राणा”.

1. उम्र बढ़ने पर रिंकल्स के चांसेस ज्यादा

नैक यानी गर्दन की स्किन पतली होती है और हमेशा यूवी रेज़ के संपर्क में होती  है. जिसके कारण, यह बॉडी के अन्य हिस्सों की तुलना में जल्द ही उम्र बढ़ने के संकेत दिखाता है. डर्मिस, गर्दन के हिस्से की लेयर जिसमें कोलेजन होती है, वह बहुत ज्यादा पतली होती है, जिससे बॉडी के अन्य हिस्सों की तुलना में उम्र बढ़ने पर रिंकल्स होने के चांसेस बहुत ज्यादा होते है. कई टेक्नोलॉजी हैं जो अब इन गर्दन के रिंकल्स से छुटकारा पाने के लिए उपयोग की जाती हैं. गर्दन की स्किन को कम, कम झुर्रियों वाली, और पतली दिखने में मदद करने के लिए फ्रेडेटेड सीओ 2 लेज़र खूबसूरती से काम करते हैं.

ये भी पढ़ें- #lockdown: घर पर इन 4 Steps से करें हेयर स्पा, पाएं स्मूथ एण्ड शाइनी बाल

2. नेचुरल आयल का उत्पादन कम

रिंकल्स हमारे स्किन पर पतली रेखाएँ होती हैं और स्किन के किसी भी हिस्से में बन जाती हैं. कुछ रिंकल्स इतने हार्ड हो जाते हैं और विशेष रूप से आंखों, मुंह और गर्दन के आसपास सबसे ज्यादा नज़र आते हैं. जैसे-जैसे हमारी स्किन पुरानी होती जाती है, यह स्वाभाविक रूप से कम इलास्टिक और अधिक नाजुक हो जाती है. इसके कारण स्किन में नेचुरल आयल का उत्पादन कम होने से स्किन ड्राई हो जाती है और अधिक रिंकल्स दिखने लगती है.

3. यूवी रेंज

यूवी रेज़ नेचुरल उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को गति देता है, यह स्किन के शुरुआती रिंकल्स की सबसे बड़ी वजह है. यूवी रेज़ के लगातार संपर्क से कोलेजन और इलास्टिन फाइबर जैसे स्किन के कनेक्टिव टिश्यू जो स्किन की गहरी लेयर में होते हैं, वह टूट जाते हैं, उम्र के साथ स्किन कमजोर हो जाती है और गर्दन की स्किन पतली और ढीली हो जाती है, और रिंकल्स जमा हो जाती हैं.

4. जेनेटिक प्रॉब्लम

बॉडी की नेचुरल उम्र बढ़ना और जेनेटिक प्रोब्लम सबसे मुख्य कारण है, जो गर्दन में रिंकल्स की उपस्थिति को तेज करते हैं. गर्दन की स्किन में पतलेपन होते हैं जो सूरज के अन्य एफ्फेक्ट्स और एनवायर्नमेंटल कारणों के प्रति अधिक सेंसिटिव होते हैं जो स्किन को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं.

5. बुरी आदतों का प्रतिकूल प्रभाव

कई बुरी आदतें हमारी स्किन पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती हैं. स्मोकिंग स्किन की उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को तेज करता है जो नेचुरल उम्र बढ़ने की प्रक्रिया से पहले रिंकल्स को बढ़ाता है और मौजूदा रिंकल्स को गहरा करता है. यह स्किन को डीहाइड्रेट करता है और जो स्किन सेल्स बॉडी को हेल्दी रखते है, उस सामान्य सेल फार्मेशन को धीमा करता है. ये आदतें स्किन की न्यूट्रिएंट्स और ऑक्सीजन की सप्लाई को रोकता हैं, जिसके लिए इसे ब्लड व सल्स की जरुरत होती है और यह ऑक्सीजन सप्लाई को नैरो कर देती है. स्मोकिंग स्किन में विटामिन ए की सप्लाई को रोकता है, जो स्किन की पुरानी स्किन सेल्स को बहा देने और नए सेल्स पैदा करने से रोकता है. दोनों आदतें स्किन की फ्लेक्सीबिलटी और कोलेजन के पैदा होने को नुकसान पहुंचाती हैं, जो पतली और रिंकल्स वाली स्किन के निर्माण में मदद करती हैं, खासकर नैक के हिस्सों में.

ये भी पढ़ें- #lockdown: Work From Home में कुछ इस तरह से रखें खूबसूरती बरकार

6. नैक रिंकल्स से छुटकारा पाने के लिए कुछ आसान से टिप्स:

अपने चेहरे को साफ करते समय, गर्दन की भी सफाई करें. यह गर्दन की गंदगी, विषाक्त पदार्थों को हटाने में मदद करता है.

  • साबुन का उपयोग करने से बचें, क्योंकि यह त्वचा के पीएच संतुलन को बदल सकता है. साबुन की बजाय एक सौम्य, क्रीमी क्लीन्ज़र का उपयोग करें.
  • नैक को सूरज की हानिकारक किरणों से बचाएं और सनस्क्रीन को गर्दन तक लगाएं.
  • सप्ताह में एक बार अपनी गर्दन को एक्सफोलिएट करने पर काम करें. यह डेड स्किन सेल्स को हटाता है और स्किन को फ्रेश रखता है.
  • स्किन को हमेशा हाइड्रेट रखें ताकि रिंकल्स कम दिखाई दें, और यह क्रीज को बनने से रोकने में भी मदद करता है.
  • नैक रिंकल्स को कम करने के लिए बोटुलिनम टोक्सिन इंजेक्शंस और एस्थेटिक सर्जेरी का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.
  • विटामिन सी के साथ रेटिनॉल-आधारित गर्दन क्रीम और सीरम का उपयोग करें. यह एंटीऑक्सिडेंट के रूप में कार्य करते हैं और कोलेजन कारक को बढ़ाते हुए यूवी रेज़ से होने वाले प्रभाव से बचाते हैं.

डोनेशन की राशि का सही उपयोग होना जरुरी – बानी दास

कोविड 19 की वजह से लॉकडाउन का सिलसिला लगातार बढ़ता जा रहा है, पर इसे लागू करने के बाद दूर दराज से आने वाले मरीज और उनके परिजनों को काफी समस्या आ रही है. भारत में लगातार कोरोना के मरीज लगातार बढ़ रहे है और उनके इलाज के लिए सरकार काम कर रही है, लेकिन कोरोना वायरस से पीड़ित रोगी को छोड़कर बाकी लोग जो कैंसर या अन्य बीमारी से पीड़ित है, जिनके परिजन अस्पतालों में या तो इलाज करवा रहे है या फिर इलाज के बाद उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया है, पर लॉकडाउन होने की वजह से वे घर नहीं जा पाए है. ये साधारण लोग अस्पताल के बाहर सोने, नहाने, बिना पानी और भोजन के रहने के लिए विवश है, ऐसे ही परिजनों की सेवा में लगी एनजीओ क्रांति की को फाउंडर बानी दास बताती है कि क्रांति पिछले 10 सालों से सेक्स वर्कर की लड़कियों को शिक्षा देने और उन्हें सहयोग देने की दिशा में काम कर रही है. लॉक डाउन होने से उनके पास सारी लड़कियां जो अलग-अलग राज्यों में पढाई कर रही थी, सभी मुंबई संस्था में आ गयी. अख़बारों और न्यूज़ में लगातार कोविड 19 के समाचार आ रहे रहे थे, ऐसे में मुझे मुंबई की वर्ली स्थित टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल की याद आई, क्योंकि पिछले साल मेरी एक रिश्तेदार को लेकर टाटा हॉस्पिटल इलाज़ करवाने गयी थी, वहां साधारण परिवार के लोग अपने मरीज के साथ दूसरे शहर या राज्य से आते है और हॉस्पिटल के बाहर खाना खाते है और छोटे कमरे में रहते है, लेकिन लॉक डाउन के चलते ये सुविधाएं बंद है. जवान और कम उम्र की महिलाएं और लड़कियां अस्पताल के बाहर कोरिडोर पर रातें गुजार रही है. जो लोग अस्पताल के अंदर एडमिट है उनके लिए सब व्यवस्था है, लेकिन जो परिजन उनके साथ आये है, उनके लिए कोई व्यवस्था प्रसाशन या किसी संस्था के द्वारा नहीं किया गया है. केवल एक बार कुछ समय के लिए उन्हें मरीज के साथ मिलने दिया जाता है. मैंने एक दिन केवल 3 लड़कों ने थोडा खाना देते हुए देखा बाद में मैंने किसी को नहीं देखा.

ये भी पढ़ें- प्रैग्नेंसी के बाद नौकरी पर तलवार

बानी आगे कहती है कि असल में टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल जहां पूरे देश से हजारों की संख्या में मरीज कैंसर का इलाज करवाने आते है और 70 प्रतिशत मरीज़ ठीक होकर फोलोअप के लिए आते रहते है, ऐसे में ऐसी लॉक डाउन से उनके परिवार जन को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. उनके लिए प्रसाशन की तरफ से कोई सुविधा नहीं है. मैं जब वहाँ उनका हालचाल देखने गयी तो पता चला कि लोगों को कुछ दिनों से भरपेट खाना और पानी नहीं मिला है. उनके पास पैसे है ,पर दुकाने बंद है. नहाने और टॉयलेट के लिए उन्हें रोज 20 रुपये देने पड़ते है, जिसमें उन्हें साबुन भी नहीं मिलता और दुकाने भी खुली नहीं है कि वे उसे खरीद सकें. हाईजिन के नाम पर कुछ भी नहीं है. ये सारे लोग दूसरे शहरों के है, इसलिए उन्हें कुछ अधिक पता भी नहीं है. अस्पताल परिसर भी उनको अंदर जाने नहीं देती. ट्रेन नहीं है कि वे अपने घर जा सकें,ऐसे में मैंने उन्हें भोजन देने का निश्चय किया. भोजन लेकर जब मैं वहां गयी तो वहां दो महिला ने खाना लेने से मना किया और पानी की मांग की, क्योंकि वहां एक पेट्रोल पम्प में दिन में एक बार पानी दिया जाता है. अगर किसी कारणवश वे पानी नहीं भर पाती है, तो उन्हें पानी के बिना ही रहना पड़ता है. तीन चार परिवार पटना और तीन चार परिवार कोलकाता के है, कुछ लोग ठीक तो हुए पर उनके मुंह में छाले है, इसलिए वे कुछ तेल मसालेदार खाना नहीं खा पा रहे थे. मैने उनके लिए दूध की व्यवस्था की, जो बहुत मुश्किल था, क्योंकि वह एरिया हॉट स्पॉट होने की वजह से लॉकडाउन का बहुत सख्ती से पालन हो रहा है. ये सभी लोग ट्रेन बंद होने की वजह से मुंबई में फंसे है और यहाँ से निकलने की कोशिश कर रहे है. खाना वितरित करने के लिए मैंने पुलिस की परमिशन लिया, जो बहुत मुश्किल और लंबा प्रोसेस है, जिसे मैंने एक जानकार पुलिस की सहायता से किया और उनतक खाना पहुंचा पायी. करीब 200 खाने का डिब्बा बनाती हूँ, जिसमें कोशिश करती हूँ कि खाना अच्छा और पौष्टिक हो, ताकि उनके सेहत सही रहे. खाने के अलावा मैंने साबुन, सर्फ, शैम्पू, सेनिटरी पैड भी मैंने उनके लिए बांटे है, क्योंकि वाकहं कई महिलाएं भी है. मैं पिछले कई दिनों से ये काम कर रही हूँ पर वित्तीय कमी की वजह से कितना कर पाउंगी पता नहीं.

वित्तीय सहायता के बारें में पूछे जाने पर बानी कहती है कि मेरी संस्था में करीब 15 लड़कियां है. संस्था के डोनर भी अभी मुश्किल में है और वे भी पैसा देने से कतरा रहे है. मेरे यहाँ रहने वाली सभी लड़कियों के खाने पीने की व्यवस्था मुझे करनी पड़ रही है. डोनर के पैसे का सही इस्तेमाल हो इसके लिए मैंने ऑनलाइन योगा और वर्कआउट की क्लासेज भी क्रांतिकारी लड़कियों के द्वारा शुरू किया है. कुछ लोग ऐसे भी है जो इस अवस्था का फायदा उठा रहे है, फेक आई डी बनाकर पैसे इकट्ठा किये और थोड़े सामान जरुरत मंदों को देकर पूरा पैसा हथिया लिये, जो गलत है. क्रांति कभी भी सरकार के डोनेशन नहीं लेती.

ये भी पढ़ें- #coronavirus: क्या 15 अप्रैल से खुलेगा Lockdown?

बानी का आगे कहना है कि मुंबई की पीला हाउस, कमाठीपुरा, आदि स्थानों पर जहाँ सेक्स वर्कर करीब 5 हज़ार की संख्या में रहते है. हर दिन की कमाई पर उनका दिन गुजरता है. उनकी दशा भी सोचनीय हो चुकी है. मेरे यहां रहने वाली लड़कियों की अधिकतर माएं वहां रहती है और बदतर जिंदगी जी रही है. इन जगहों पर एक साथ बहुत सारी महिलाएं रहती है, ऐसे में अगर किसी को भी करोना पॉजिटिव निकला तो दृश्य बहुत भयंकर होगा. ऐसी महिलाओं के पास खाने पीने के सामान की बहुत किल्लत है, क्योंकि दुकाने बंद है. उन्हें थोड़ी-थोड़ी खिचड़ी सुबह शाम मिलती है, उन्ही में वे गुजारा कर रही है. मैंने उन्हें कुछ राशन के सामान दिए है पर वह बहुत कम है.

बानी सबसे यही कहना चाहती है कि ऐसे सभी नागरिकों के लिए जो भी जितना कर सकें, अच्छा होगा,क्योंकि लोग मुश्किल में है, कही काम नहीं है और इतने बड़े देश में सबको सम्हालना और दो वक़्त का खाना देना आज मुश्किल हो चुका है. क्रांति की वेबसाइट के जरिये मैं डोनेशन जुटाने की कोशिश कर रही हूँ , ताकि खाना बांटने का मेरा काम न रुके.

इंटरसिटी एक्सप्रैस: भाग-2

प्रेम जीजान लगा कर खेत में काम करने लगा. फिर खेत सोना क्यों न उगलता. अब मां कहतीं, ‘‘प्रेम, ब्याह कर ले,’’ तो वह कहता, ‘‘मां, अब मुझे बस तुम्हारी सेवा करनी है.’’ मां अपने लाल को गले लगा लेतीं. अपनी बहू की आस को यह सोच कर दबा देतीं कि कम से कम श्रवण कुमार जैसा बेटा तो साथ है. मांबेटा अपनी दुनिया में बहुत खुश थे.

कभीकभी किसी शाम को इंटरसिटी ऐक्सप्रैस की आवाज प्रेम को अंदर तक हिला जाती. वह अपना सिर पकड़ कर बैठ जाता. पुराने जख्म हरे हो जाते. मां सब समझती थीं, इसलिए वे बेटे को दुलारतीं, उसे अपने बचपन के किस्से सुनातीं, तो वह संभल जाता. एक दिन महल्ले में शोर सुन कर लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई. प्रेम भी शोर सुन कर वहां पहुंचा तो अवाक रह गया. मधु के चाचा और चाची ने मधु का सामान घर के बाहर फेंक दिया था. मधु को देख कर तो वह अवाक रह गया. समय की गर्द ने जैसे उस की आभा ही छीन ली थी. वह अपनी उम्र से काफी बड़ी लग रही थी. उस की चाची जोरजोर से कह रही थीं, ‘‘कुलच्छिनी को पति ने छोड़ दिया तो आ गई हमारी छाती पर मूंग दलने. हम से नहीं होगा कि हम मुफ्त की रोटी तोड़ने वाले को अपने घर में रखें.’’ चाचाचाची ने घर का दरवाजा बंद कर लिया. घर के आसपास लगी भीड़ धीरेधीरे छंट गई. घर के बाहर केवल मधु और मधु का हाथ पकड़े नन्ही बिटिया ही रह गई. प्रेम ने महल्ले वालों से सुना था कि मधु के पति ने मधु को तलाक दे दिया है. एकदो बार मां ने भी प्रेम से इस बारे में बात की थी. परंतु आज की घटना बहुत अप्रत्याशित थी. मधु सालों बाद उसे इस हाल में दिखाई देगी, उस ने यह सपने में भी नहीं सोचा था. प्रेम दूर खड़ा मांबेटी को रोता हुआ देखता रहा. उन का रोना उस के दिल को छू रहा था, लेकिन वह पता नहीं कैसे अपने को रोके हुआ था. फिर अचानक वह आगे बढ़ा और लपक कर मधु की बिटिया को गोद में उठा लिया. रोरो कर जारजार हुई मधु ने चौंक कर नजरें उठाईं तो प्रेम को देख कर उस की आंखें और भी नम हो गईं. प्रेम मधु की बिटिया को ले कर तेज चाल से अपने घर की ओर चल दिया. अपनी बिटिया का रोना सुन कर मधु भी प्रेम के पीछेपीछे भाग चली, बिलकुल वैसे ही जैसे बछड़े के पीछे गाय भागती है.

ये भी पढ़ें- #lockdown: माय डैडी बेस्ट कुक

प्रेम ने धड़ाक से घर का दरवाजा खोला. गेहूं बीनती प्रेम की मां उस की गोद में एक बच्ची को देख कर चौंक गईं. ‘‘किस की बिटिया है, प्रेम?’’ उन्होंने प्रेम से पूछा, तभी पीछेपीछे आई मधु दरवाजे पर आ कर रुक गई. अवाक खड़ी मां कभी मधु, कभी प्रेम तो कभी प्रेम की गोद में झूलती बच्ची को देखती रहीं. फिर उन्होंने मधु का हाथ पकड़ा और उस के सिर पर हाथ फेर कर कहा, ‘‘मधु, अब यह ही तेरा घर है, अब तुझे ही संभालना है हम सब को.’’ मां की इस बात पर मधु के गालों पर अश्रुधारा बहती गई, तो मां ने मधु और मधु की बिटिया दोनों को गले लगा लिया. मां ने अगले दिन ही एक वकील को घर बुलाया और 2 दिनों के भीतर ही मधु और प्रेम का विवाह करवा दिया. पासपड़ोस के लोगों ने लाख नाकमुंह सिकोड़े, लेकिन मां ने ऐसी किसी बात पर ध्यान नहीं दिया. मधु की बिटिया अनुभा अब घर की बिटिया हो गई.

समय गुजरता गया. मां नहीं रहीं. अनुभा और प्रेम का नाता पितापुत्री से बढ़ कर एक सखा और सखी का हो गया. शुरू में मधु को अनुभा की चिंता रहती थी क्योंकि बहुत कुछ सुन रखा था उस ने सौतेले पिताओं की करतूतों के बारे में. लेकिन प्रेम ने मधु की सारी शंकाओं को दूर कर दिया था. प्रेम, अनुभा को अपने कंधे पर बैठा स्कूल ले जाता और रोज शाम को रेलवे स्टेशन पर इंटरसिटी ऐक्सप्रैस दिखाने ले जाता. प्रेम के कंधे पर बैठी नन्ही अनुभा खुशी में चिल्ला कर हाथ हिलाती, प्रत्युत्तर में इंटरसिटी का ड्राइवर अपना हाथ हिलाता. अनुभा और प्रेम को देख कर कौन कह सकता था कि दोनों में खून का रिश्ता नहीं है. अगर अनुभा बीमार पड़ती तो रातरात भर जाग कर प्रेम उस की तीमारदारी करता. प्रेम को तकलीफ होती तो अनुभा बीमार पड़ जाती. मधु का पूर्व पति दीपक एकदो बार मधु के घर आया पर मधु की फटकार ने उस के रास्ते घर के लिए बंद कर दिए. दीपक का आना प्रेम की घबराहट बढ़ा देता है, यह बात मधु खूब जानती थी. ऐसा ही मधु ने अपने चाचाचाची के लिए भी किया. दरअसल, वह अपने हर अतीत को पूरी तरह भुलाना चाहती थी.

प्रेम की मां की इच्छा थी कि अनुभा डाक्टर बने और अनुभा ने अपनी दादी से किया गया यह वादा भी खूब निभाया. अनुभा कब कसबे के स्कूल से शहर के मैडिकल कालेज में डाक्टरी पढ़ने लगी, पता ही नहीं चला. आज अनुभा के कालेज में दीक्षांत समारोह था. मुख्य अतिथि से अपनी बिटिया को डिग्री लेते देख प्रेम और मधु गर्व से दोहरे हो गए. समारोह के बाद अनुभा ने एक सुधीर नाम के लड़के और उस के मातापिता से दोनों को मिलवाया. सुधीर, अनुभा के साथ ही डाक्टरी पढ़ रहा था. प्रेम और मधु एकदूसरे का मुंह ताकने लगे. सुधीर के पिता दोनों की असमंजस को समझ गए. वे प्रेम का हाथ थाम कर बोले, ‘‘अरे भई, संबंध बनाने हैं आप लोगों से.’’ सुधीर के मातापिता ने उन दोनों को अगली सुबह नाश्ते पर आमंत्रित किया, तो उन दोनों के पास इनकार करने की कोई वजह ही नहीं थी. अगला दिन एक नई परिभाषा ही ले कर आया. सुधीर के मातापिता ने अनुभा को बहू बनाने की इच्छा व्यक्त कर दी. इतना अच्छा लड़का, वह भी इकलौता, उस पर इतना अच्छा परिवार, न की गुंजाइश ही कहां थी प्रेम और मधु के लिए? सुधीर के मातापिता ने जिद कर के प्रेम, मधु और अनुभा को अपने घर के गैस्ट हाउस में ही रोक लिया. फिर पूरे 2 दिन तक दोनों परिवार सैरसपाटे और पिकनिक में व्यस्त रहे. दोनों परिवार इतना घुलमिल गए, जैसे बहुत पुरानी जानपहचान हो.

आगे पढ़ें- प्रेम की प्यारी बिटिया अनुभा का ब्याह जो था. पूरा घर…

ये भी पढ़ें- मर्यादा

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें