नए ट्रैक के साथ शुरू होगी ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ की शूटिंग, प्रोड्यूसर राजन शाही ने किए कई खुलासे

कोरोनावायरस के बढ़ते मामलों के बीच महाराष्ट्र सरकार ने टीवी और फिल्म शूटिंग करने की इजाजत दे दी है. वहीं फैंस भी फेवरेट सीरियल्स की शूटिंग शुरू होने का इंतजार कर रहे हैं. स्टार प्लस के पौपुलर सीरियल  ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rista Kya Kehlata Hai) और ‘ये रिश्ते हैं प्यार के’ के प्रोड्यूसर राजन शाही (Rajan Shahi) ने भी सीरियल को लेकर फैंस के लिए नई जानकारी दी है. आइए आपको बताते हैं क्या कहते हैं राजन शाही….

शूटिंग शुरू करने के लिए फैसले का है इंतजार

एक इंटरव्यू के दौरान राजन शाही ने कहा है कि, ‘मैंने शूटिंग शुरु करने के लिए कोई तारीख जारी नहीं किया है. मैं अभी बाकी लोगों के फैसलों का इंतजार कर रहा हूं. एक इंडिविजुअल प्रोड्यूसर के तौर पर मैं इस बारे में कमेंट नहीं कर पाऊंगा.’

गाइडलाइन्स के चलते बदलाव आएंगे नजर

राजन शाही ने आगे बताया है कि, ‘सरकार द्वारा बताई गई सारी गाइडलाइन्स को हम आने वाले दिनों में फॉलो करने वाले हैं. सेट पर 10 साल से छोटे बच्चे और 65 साल से ज्यादा बड़े लोग नहीं आएंगे. तो हां, हम जब कभी भी शूटिंग शुरु करेंगे, इन बातों को ध्यान में रखेंगे. ब्रेक के बाद हम एक अच्छी स्टोरीलाइन के साथ कमबैक करने वाले हैं.’

शो के ट्रैक में होंगे कई बदलाव

लॉकडाउन शुरू होने से के पहले जहां शिवांगी जोशी (Shivangi Joshi) और मोहसिन खान (Mohsin Khan) के शो ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में कार्तिक-नायरा की बेटी की कहानी शुरु होने वाली थी. लेकिन अब कोरोनावायरस के बढ़ते कहर के बीच कायरा के ट्रैक को पूरी तरह बदल जाएगा.

 

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बता दें, शो में 10 साल तक की उम्र के बच्चों के शूटिंग ना करने की सलाह दी गई है, जिसके बाद शो में अब कायरव भी नजर नही आएंगे. वहीं हो सकता है कि कार्तिक की दादी भी इस शो में न नजर आएं.

क्या आपने 9 करोड़ की चाय पी है? जानिए दुनिया की कुछ महंगी चाय के बारे में

वैसे तो चाय के दिवाने कुछ कम नहीं हैं दुनिया में.लोगों को शराब की तरह ही चाय की भी लत होती है. सबसे ज्यादा तो भारत में लोगों को चाय की लत है लोग बहुत शौकीन हैं चाय के. कुछ लोगों को सुबह-शाम चाय चाहिए तो कुछ लोगों को ऐसी लत है कि दिन भर में जितनी बार चाय मिलेगी उतनी बार पिएंगे.

चाय एक ऐसी चीज है कि जब मेहमान घर आते हैं तो मेहमान नवाजी के लिए भी उन्हें सबसे पहले चाय पूछी जाती है. दोस्तों से मिलते गए किसी कैंटिन में या रेस्टोरेंट में तो भी लोग अक्सर चाय पीना ही पसंद करते हैं. शाम को कोई स्नैक्स हो तो उसके साथ भी लोगों को चाय ही भाती है. लेकिन अब आपको ये जानकर हैरानी होगी कि वैसे तो नार्मल चाय अगर किसी ने पी होगी तो ज्यादा से ज्यादा 100 रुपये तक या रेस्टोरेंट में चले गए तो ज्यादा से ज्यादा से 500 तक की पी होगी या चलो मान लो 1000 भी लेकिन ये जानकर आपके होश जरूर उड़ेंगे कि भाई 9 करोड़ की भी चाय होती है.

1. डा हॉन्ग पाओ टी

चीन के एक शहर फूजियान के वूईसन एरिया में पाई जाने वाली एक चाय सेहत के लिए बहुत ही अच्छी मानी जाती है.वहां के लोगों का यही कहना है कि इसी पीने से सारी बीमारियां भी चली जाती हैं.इस चाय का नाम है डा-होंग पाओ टी,इसकी कीमत है 9 करोड़ रुपये और 9 करोड़ में मात्र एक किलो ही मिलता है.डा हॉन्ग पाओ टी ये तो नाम भी ऐसा है कि लोगों को जल्दी नाम भी ना याद हो.

2. विंटेज नार्किसस

ऐसी ही एक चाय है विंटेज नार्किसस जिसकी कीमत 5 लाख रुपये है और ये भी मात्र एक किलो ही मिलती है 5 लाख में.जानकारी के मुताबिक अब इस चाय के बागान नहीं हैं दुनिया में वो हमेशा के लिए खत्म हो चुके हैं.लेकिन जुड़ी बहुत सी ऐसी जानकारीयां जो आपको अचंभित कर देंगी.

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3. पांडा डंग टी

अब ऐसी ही एक औऱ चाय के बारे में जानते हैं वो है पांडा डंग टी, जी हां ये चाय भी सबसे महंगी चाय में शुमार है.इसकी कीमत 14 हजार रुपये है.अब इसके बारे में एक खास बात ये है कि इसे चाय की खेती में जिस खाद का इस्तेमाल करते हैं उसमें पांडा का मल होता है.है न चौंकाने वाली बात.

4. पीजी टिप्स डायमंड टी

पीजी टिप्स डायमंड टी को भी ब्रिटिश टी कंपनी पीजी टिप्स के संस्थापक के ने अपने 75वें जन्मदिन के मौके पर कुछ खास करने के लिए तैयार किया गया था. टी-बैग में 280 हीरे जुड़े होते हैं जिसे बनाने में 3 महीने का समय लगता है. इस चाय की कीमत 9 लाख रुपये है.यानी की 9 लाख में एक किलो.

5. पू पू पु-एर चाय

पू पू पु-एर चाय के बारे में भी जानिए ताईवान के किसान इसे बनाने के लिए कीड़ो के मल का इस्तेमाल करते हैं और इसकी कीमत है 70 हजार रुपये.

6. तैगुआनइन टी

तैगुआनइन टी की भी कुछ खास बात है इस चाय का स्वाद एकदम अलग है इसे ब्लैक और ग्रीन टी से मिलाकर बनाया जाता है.आज ये दुनिया की सबसे कीमती चाय में शामिल है. इस चाय की जो पत्तीयां होती हैं उनको आप कई बार भी चाय बनाने में इस्तेमाल करें तो भी उसका स्वाद जस का तस होता है. इस चाय की कीमत करीब 21 लाख रुपये है.

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7. यलो गोल्ड बड्स चाय

सुनहरे रंग की यलो गोल्ड बड्स चाय की कीमत 2 लाख रुपये है और इसकी खेती के बाद एस साल में सिर्फ एक बार ही तोड़ा जा सकता है.अब ये तो हैरानी वाली बात ही है कि इसे सिर्फ आप एक बार ही तोड़ सकते हैं.

Summer Tips: सनस्क्रीन लगाना क्यों है जरूरी

सनसक्रीन एक ऐसा स्किन केयर प्रौडक्ट है जिस का रोजाना इस्तेमाल करना हमारी स्किन के लिए बहुत जरूरी है. अधिकतर महिलाओं को लगता है सनस्क्रीन को सिर्फ गर्मियों में लगाया जाता है, लेकिन सनस्क्रीन को हर मौसम में इस्तेमाल करना चाहिए. सनस्क्रीन आप की स्किन को डैमेज होने से बचाता है.

गर्मियों में क्यों जरूरी है सनसक्रीन

गर्मियों में तेज धूप और सूरज की हानिकारक किरणों की वजह से स्किन पर टैनिंग, फ्रेक्ल्स, सनबर्न जैसी समस्या हो सकती है, जिस से आप की स्किन की खूबसूरती ढल सकती है. क्लीनिक डर्माटेक के डर्मेटोलौजिस्ट डाक्टर इंदु का कहना है, “यदि किसी को फ्रेक्ल्स, सनबर्न जैसी समस्या हो जाती है तो उसे सनस्क्रीन दिन में 3 बार जरूर लगाना चाहिए. फ्रेकलस बहुत आम समस्या है. चेहरे पर जब ब्राउन स्पौट हो जाते है, उन्हें फ्रेक्ल्स कहते हैं.

फ्रेक्ल्स को रोकने के लिए सनस्क्रीन लगाना बहुत जरूरी है. हालांकि इस का co2 लेज़र ट्रीटमेंट भी है. कई लोग घर में रहते हैं तो अपनी स्किन की देखभाल करने में आलस दिखाते हैं. अगर आप घर में किचन में ज्यादा समय बिताती हैं तो भी सनस्क्रीन का इस्तेमाल जरूर करें. सनस्क्रीन खरीदते समय एसपीएफ पर जरूर ध्यान दें.

सनसक्रीन और एसपीएफ

बढ़ती उम्र के साथ स्किन पर पडऩे वाली झुर्रियां, फाइन लाइंस, स्किन का फटना, रंगत पर प्रभाव, झांइयां इन सब का सब से बड़ा कारण अल्ट्रावायलेट किरणें हैं. जब हम ज्यादा समय धूप में बिताते हैं, तो स्किन की रंगत काली होने लगती है और स्किन से जुड़ी कुछ गंभीर समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं. इसलिए सनस्क्रीन का इस्तेमाल जरूरी है.

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सनस्क्रीन खरीदते समय उस में मौजूद सन प्रोटेक्शन फैक्टर यानी एसपीएफ की मात्रा की सही जानकारी होना बहुत जरूरी है. वैसे तो एसपीएफ 15 की मात्रा वाली सनस्क्रीन लगाना बेहतर रहता है. लेकिन बढ़ती गर्मी और प्रदूषण के दौरान एसपीएफ 15 से ले कर एसपीएफ 30 वाले सनस्क्रीन लोशन ज्यादा प्रभावी माने जाते हैं. अगर आप बिना सनस्क्रीन के घर से बाहर निकलती हैं तो आप की स्किन धूप में झुलस सकती है.

सनसक्रीन में एसपीएफ बहुत अहम है. एसपीएफ की मात्रा जितनी ज्यादा होती है हमारी स्किन को प्रोटेक्शन भी उतना ज्यादा मिलता है. अगर आप की सनस्क्रीन में 30 एसपीएफ है तो आप की स्किन पर प्रोटेक्शन 30 गुना ज्यादा बढ़ जाता है.

स्किन के अनुसार चुनें सनसक्रीन

  • अधिकतर महिलाओं की शिकायत होती है कि सनस्क्रीन लगाने के बाद स्किन चिपचिपी और काली दिखने लगती है. अगर आप की स्किन ज्यादा चिपचिपी दिख रही है, तो आपने गलत सनस्क्रीन को चुना है. सनस्क्रीन हमेशा अपनी स्किन के अनुसार चुनें.
  • अगर आप की स्किन नौर्मल है तो क्रीम बेस्ड सनस्क्रीन का इस्तेमाल करें.
  • अगर आप की स्किन पर पिंपल्स, मुहांसे की समस्या ज्यादा है तो आप औयल फ्री सनस्क्रीन लगाएं और आप की स्किन औयली है तो जैल बेस्ड सनस्क्रीन का चुनाव करें.
  • ड्राई स्किन वालों को मौइश्चराइजर बेस्ड सनस्क्रीन का इस्तेमाल करना चाहिए.

कब कितना एसपीएफ है जरूरी

स्किन को डैमेज होने से बचाने के लिए 30 एसपीएफ काफी होता है. लेकिन आप बहुत देर तक बाहर हैं, धूप में ज्यादा समय बिता रही हैं और बारबार सनस्क्रीन नहीं लगा सकतीं तो आप एसपीएफ 50 वाले सनस्क्रीन का इस्तेमाल करें.

रोजाना दिनों के लिए आप एसपीएफ 30 का इस्तेमाल कर सकती हैं. घर में भी सनस्क्रीन लगाना बहुत जरूरी है. दरअसल, घर में मौजूद आर्टिफिशियल लाइट भी स्किन पर असर डालती है. इसलिए घर में आप एसपीएफ 15 वाली सनस्क्रीन का इस्तेमाल करें.

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समर में कियारा आडवानी के ये लुक करें ट्राय

बौलीवुड सेलेब्स जितना अपनी फिल्मों में एक्टिंग के लिए जाने जाते हैं, उतना ही वह अपने फैशन लुक के लिए भी जाने जाते हैं. आजकल बौलीवुड सेलेब्स ही एक-दूसरे के फैशन को कौपी करने से हिचकिचाते नही हैं. चाहे वह फैन्स के बीच ट्रोलिंग का शिकार भी क्यों न हो जाएं. जब सेलेब्स एक-दूसरे के लुक को कौपी कर सकते हैं तो आप बौलीवुज सेलेब्स के लुक को कौपी क्यों नहीं कर सकते हैं. आज हम आपको बौलीवुड एक्ट्रेस के कुछ आउटफिट के बारे में बताएंगे, जिन्हें वह शाहिद कपूर के साथ अपनी अपकमिंग मूवी को प्रमोट करती हुई नजर आ रहीं हैं. इन ड्रैसेस को आप चाहे तो किसी पार्टी या सिंपल वेकेशन में भी ट्राय कर सकती हैं.

1. कियारा की ये फ्लावर प्रिंट ड्रेस करें ट्राई

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आजकल फ्लावर प्रिंट का कौम्बिनेशन मार्केट में पौपुलर हैं. आप चाहे तो कियारा कि ड्रैस की तरह हील्स के साथ सिंपल लुक ट्राई कर सकती हैं. ये आपके लुक को सिंपल और ट्रेंडी बनाएगा.

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2. कियारा आडवानी का इंडियन लुक करें ट्राई

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अगर आप किसी पार्टी या शादी में सिंपल लेकिन ट्रैंडी लुक ट्राई करना चाहते हैं तो कियारा का ये लुक परफेक्ट रहेगा. कायरा का ब्लैक और पिंक इंडियन कौम्नेशन लहंगा आपके लुक को फंक्शन में कम्पलीट कर देगा.

3. कौलेज के लिए ट्राई करें कियारा का पिंक एंड वाइट कौम्बिनेशन

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समर में अगर आप नेट का टौप आर शौर्टस ट्राई करना चाहती हैं तो कियारा आडवानी का ये ड्रेस आपके लिए परफेक्ट रहेगा. ये सिंपल के साथ-साथ समर लुक के लिए परफेक्ट ड्रेस रहेगी.

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4. कियारा की हौट एंड सेक्सी लुक भी करें ट्राई

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अगर आप भी समर पार्टी या किसी वेकेशन पर जा रही हैं तो कियारा की ये औफ शोल्डर येलो ड्रेस आपके लिए परफेक्ट रहेगी. ये आपके लुक को हौट एंड सेक्सी बनाएगा.

5. पैंट के साथ ये लुक करें ट्राई

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कियारा का औफ शोल्डर बो टौप और उसके साथ डार्क पैंट का काम्बिनेशन आपके लुक को एकदम परफेक्ट बना सकता है. आफ इसे चाहे तो किसी कैजुअल पार्टी में भी ट्राई कर सकती हैं.

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न होने दें कैल्शियम की कमी

एक अध्ययन के अनुसार 14 से 17 साल के आयुवर्ग की लगभग 20% लड़कियों में कैल्शियम की कमी पाई गई है, जबकि पहले इतनी ज्यादा मात्रा में कैल्सियम की कमी केवल प्रैगनैंट और उम्रदराज महिलाओं में ही पाई जाती थी.
इस की वजह आज की बिगड़ती जीवनशैली है. आजकल लोग तेजी से पैकेट फूड पर निर्भर होते जा रहे हैं जिस के कारण उन के शरीर को संतुलित भोजन नहीं मिल पा रहा. महिलाएं अपने पति और बच्चों की सेहत का तो भरपूर खयाल रखती हैं, मगर अकसर अपनी फिटनैस के प्रति लापरवाह हो जाती हैं. अच्छे स्वास्थ्य और मजबूत शरीर के लिए कैल्शियम बेहद जरूरी है. इस से हड्डियों और दांतों को मजबूती मिलती है.

हमारी हड्डियों का 70% हिस्सा कैल्शियम फास्फेट से बना होता है. यही कारण है कि कैल्शियम हड्डियों और दांतों की अच्छी सेहत के लिए सब से जरूरी होता है.

पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को कैल्शियम की अधिक जरूरत होती है. उन के शरीर में 1000 से 1200 एमएल कैल्शियम होना चाहिए वरना इस की कमी से कई तरह की शारीरिक परेशानियां होने लगती हैं.
कैल्शियम तंदुरुस्त दिल, मसल्स की फिटनैस, दांतों, नाखूनों और हड्डियों की मजबूती के लिए जिम्मेदार होता है. इस की कमी से बारबार फ्रैक्चर होना औस्टियोपोरोसिस का खतरा, संवेदनशून्यता, पूरे बदन में दर्द, मांसपेशियों में मरोड़ होना, थकावट, दिल की धड़कन बढ़ना, मासिकधर्म में अधिक दर्द होना, बालों का झड़ना जैसी समस्याएं पैदा हो जाती हैं.

ऐसे में यह जरूरी है कि कैल्शियम की पूर्ति अपनी डाइट से करें न कि सप्लिमैंट्स के जरीए.

महिलाओं में कैल्शियम की कमी के कारण

मेनोपौज की उम्र यानी 45 से 50 वर्ष की महिलाओं में अकसर यह कैल्सियम की कमी सब से अधिक होती है क्योंकि इस उम्र में फीमेल हारमोन ऐस्ट्रोजन का स्तर गिरने लगता है, जबकि यह कैल्शियम , मैटाबोलिज्म में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

हारमोनल परिवर्तन: कैल्शियम रिच डाइट की कमी खासकर डेयरी प्रोडक्ट्स जैसे दूध, दही आदि न खाना.

हारमोन डिसऔर्डर हाइपोथायरायडिज्म: इस स्थिति में शरीर में पर्याप्त मात्रा थायराइड का उत्पादन नहीं होता जो ब्लड में कैल्शियम लैवल कंट्रोल करता है.

महिलाओं का ज्यादातर समय किचन में बीतता है, मगर वे यह नहीं जानतीं कि किचन में ही ऐसी बहुत सी सामग्री उपलब्ध हैं जो उन के शरीर में कैल्शियम की कमी दूर कर सकती है. इस के सेवन से उन्हें ऊपर से कैल्शियम सप्लिमैंट्स लेने की जरूरत नहीं पड़ती.

रागी: रागी में काफी मात्रा में कैल्सियम होता है. 100 ग्राम रागी में करीब 370 मिलीग्राम कैल्शियम पाया जाता है.

सोयाबीन: सोयाबीन में भी पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम मौजूद होता है. 100 ग्राम सोयाबीन में करीब
175 मिलीग्राम कैल्सियम होता है.

पालक: पालक देख कर नाकमुंह सिकोड़ने वाली महिलाओं के लिए यह जानना जरूरी है कि 100 ग्राम पालक में 90 मिलीग्राम कैल्शियम पाया जाता है. इसके प्रयोग से पहले इसे कम से कम 1 मिनट जरूर उबालें ताकि इस में मौजूद औक्सैलिक ऐसिड कौंसंट्रेशन घट जाता है, जो कैल्सियम औबजर्वेशन के लिए जरूरी होता है.
हाल ही में किए गए अध्ययन के अनुसार कोकोनट औयल का प्रयोग कर बोन डैंसिटी के लौस को रोक सकते हैं, साथ ही यह शरीर में कैल्शियम के अवशोषण में भी मदद करता है.

धूप सेंकना: भोजन ही नहीं बल्कि सुबह की धूप सेंकना जरूरी है, क्योंकि इस में मौजूद विटामिन डी कैल्शियम अवशोषण के लिए जरूरी होता है. विटामिन डी खून में कैल्शियम के स्तर को नियंत्रण करने के लिए जिम्मेदार होता है. इस का सेवन शरीर में कैल्शियम अवशोषित करने की क्षमता को बढ़ाता है और हड्डी टूटने का खतरा कम होता है.

मेरे कानों पर बाल है, इससे कैसे छुटकारा मिल सकता है?

सवाल-

कानों पर बाल होने के कारण मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस होती है. कृपया कोई उपचार बताएं जिस से मैं इन से मुक्ति पा सकूं ?

जवाब-

कानों के बालों से मुक्ति पाने के लिए उन की सावधानीपूर्वक कटिंग करें. बालों से हमेशा के लिए छुटकारा पाने हेतु लेजर हेयर रिमूवल औप्शन अच्छा रहेगा. लेजर लाइट की बीम बालों की जड़ों को हमेशा के लिए नष्ट कर देती है, जिस से बाल दोबारा नहीं उगते. यह उपचार करवाने के लिए किसी अच्छे सैलून में ही जाएं.

आजकल बाजार में कई तरह के इलैक्ट्रिक रेजर उपलब्ध हैं. इस रेजर से कानों के बाल हटा सकती हैं. हां, रेजर चलाने से पहले इस बात का ध्यान रखें कि वह स्किन के न ज्यादा पास हो और न ही ज्यादा दूर. लोशन या क्रीम का प्रयोग बहुत ही आसान होता है. इन में ऐसे रसायन होते हैं जो बालों को गला जड़ से निकाल देते हैं. लोशन या क्रीम लगाने से पहले अपनी स्किन पर टैस्ट जरूर कर लें. अगर कहीं कटा या जला हो तो क्रीम को उस जगह न लगाएं. क्रीम को कानों के बालों पर कुछ देर लगाए रखने के बाद गरम तौलिए से पोंछ लें.

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Hyundai #AllRoundAura: हर तरह से शानदार है Interior

हुंडई Aura एक शानदार, हाई डेफिनेशन 25 सेमी इंफोटेनमेंट स्क्रीन के साथ आती है जो आपके सभी जरूरी मनोरंजन का ध्यान रखती है. सिर्फ इतना ही नहीं, यह स्क्रीन ड्राईवर के लिए गाड़ी से जुड़ी सारी जरूरी जानकारी भी उसकी आंखों के सामने रख देती है. इस के गेज क्लस्टर में एक एनालॉग टैकोमीटर के साथ 13.46 सेमी का मल्टी इन्फर्मेशन डिस्प्ले भी है, यह आपको वह सभी जानकारी देता है जो आप जानना चाहते हैं.

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यह डिस्प्ले आपको बाहर के टेम्परेचर से लेकर गाड़ी का तेल खत्म होने में बची दूरी तक, सब कुछ बताता है. लेकिन सब से जरूरी बात यह है कि यह आपकी स्पीड को दिखाता है, वो भी एक आसानी से पढ़े जाने वाले फॉन्ट में. इसका इन्फोर्मेटिव गेज क्लस्टर ड्राइविंग को एक सुखद अनुभव बनाता है. #AllRoundAura.

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कोरोनावायरस के चलते संकट में घिरा ‘वर्क-वाइफ, वर्क-हसबैंड’ का कामकाजी समाजशास्त्र

क्या कोविड-19 के विश्वव्यापी संक्रमण ने कार्यस्थलों के समाजशास्त्र को उलट पलट दिया है? किसी हद तक इस सवाल का जवाब है, हां, ऐसा ही है.  तमाम मीडिया रिपोर्टें इस बात की तस्दीक कर रही हैं कि कोरोना संक्रमण के बाद से पूरी दुनिया के कार्यस्थलों का समाजशास्त्र तनाव में है. इसकी वजह है इनकी पारंपरिक व्यवस्था का उलट पलट हो जाना. जिन देशों में लाॅकडाउन नहीं भी लगा या लाॅकडाउन लगने के बाद अब यह पूरी तरह से उठ चुका है, वहां भी दफ्तरों की दुनिया कोरोना संक्रमण के पहले जैसी थी, वैसी अब नहीं रही. न्यूयार्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना के बाद से पूरी दुनिया में 25 से 40 फीसदी तक कर्मचारियों को या तो वर्क फ्राॅम होम दे दिया गया है या फिर बड़ी संख्या में उनकी छंटनी कर दी गई है. कुल मिलाकर इतने या इससे ज्यादा कर्मचारी अब नियमित रूप से दफ्तरों में नहीं आते.

हालांकि आधुनिक तकनीक के चलते घर से काम करने में कोई बड़ी दिक्कत नहीं है. जूम और इसके जैसे तमाम दूसरे ऐसे साॅफ्टवेयर आ गये हंै, जिनके चलते आप कहीं से भी दफ्तर के लोगों के साथ मीटिंग कर सकते हैं.  इस मीटिंग में भी आमने सामने जैसे बैठे होने की फीलिंग होगी. आप इन तकनीकी उपकरणों के चलते कामकाज संबंधी सारी बातचीत कर सकते हैं, काम और जिम्मेदारियों का आदान प्रदान कर सकते हैं. सवाल है फिर भी तमाम कर्मचारी एक दूसरे से इस तरह दूर दूर हो जाने या दफ्तर में रहते हुए बरती जाने वाली सोशल डिस्टेंसिंग से परेशान क्यों हैं?

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जी, हां! कोरोना के कारण तमाम सहकर्मी जो एक दूसरे से दूर हो गये हैं, वे एक दूसरे को छू नहीं सकते. अगर अब भी वे दफ्तर में साथ-साथ हैं तो भी सोशल डिस्टेंसिंग के कारण वे एक दूसरे को महसूस नहीं सकते. कहने और सुनने में यह बात भले थोड़ी अटपटी लग रही हो, लेकिन इसकी वजह यह है कि दफ्तरों में बड़े पैमाने पर ऐसे स्त्री पुरुष हैं जो एक दूसरे के साथ ‘वर्क वाइफ, वर्क हसबैंड’ जैसे रिश्तों में जाने अंजाने बंधे हुए हैं. यह किसी एक देश या एक शहर की बात नहीं है. पूरी दुनिया में जहां भी पुरुष और औरत साथ-साथ काम करते हैं, वहां प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से इस तरह के रिश्तों की मौजूदगी है. चाहे भले कई बार लोग इन रिश्तों को स्वीकार तक न करते हों.

दशकों पहले अमरीका की दफ्तरी कार्यसंस्कृति में एक मुहावरे का जन्म हुआ था, ‘वर्क-स्पाउस’. वही मुहावरा हाल के दशकों में विस्तारित होकर ‘वर्क-वाइफ, वर्क-हसबैंड’ में तब्दील हो चुका है. यह कोई चकित कर देने वाली बात भी नहीं है. सालों से दुनिया में इन संबंधों की मौजूदगी है और यह बिल्कुल स्वभाविक है. कहा जाता है कि घर में अगर पालतू कुत्ता होता है, तो उससे भी उतना ही लगाव हो जाता है जितना कि किसी इंसान से. तब फिर भला दो साथ रहने वाले इंसान, वह भी विपरीत सेक्स के, आखिरकार एक दूसरे के लगाव में क्यों नहीं महसूस करेंगे? यही कारण है कि हाल के दशकों में न सिर्फ ‘वर्क-वाइफ, वर्क-हसबैंड’ कल्चर बढ़ी है बल्कि इसे साफगोई से स्वीकार किया जाने लगा है.

आज के दौर में स्त्री और पुरुष दोनो ही घर से बाहर निकलकर साथ-साथ काम कर रहे हैं. दोनो का ही आज घर में रहने की तुलना में दफ्तर में ज्यादा वक्त गुजर रहा है. काम की संस्कृति भी कुछ ऐसी विकसित हुई है कि तमाम काम साथ-साथ मिलकर करने पड़ रहे हैं. लिहाजा एक ही दफ्तर में काम करते हुए दो विपरीत लिंगों के बीच प्रोफेशनल के साथ-साथ भावनात्मक नजदीकियां बढ़नी बहुत स्वभाविक है. एक और भी बात है एक जमाना था, जब दफ्तर का मतलब होता था, सिर्फ आठ घंटे. लेकिन आज दफ्तरों का मिजाज आठ घंटे वाला नहीं रह गया है. आज की तारीख में व्हाइट काॅलर जाॅब वाले प्रोफेशनलों के लिए दफ्तर का मतलब है, एक तयशुदा टारगेट पूरा करना, जिसमें हर दिन के 12 घंटे भी लग सकते हैं और कभी-कभी लगातार 24-36 घंटों तक भी साथ रहते हुए काम करना पड़ सकता है.

ऐसा इसलिए है क्योंकि अर्थव्यवस्था बदल गई है, दुनिया सिमट गई है और वास्तविकता से ज्यादा चीजें आभासी हो गई हैं. जाहिर है लंबे समय तक दफ्तर में साथ-साथ रहने वाले दो लोग अपने सुख दुख भी साझा करेंगे. क्योंकि जब दो लोग साथ-साथ रहते हुए काम करते हैं, तो वे आपस में हंसते भी हैं, साथ खाना भी खाते हैं, एक दूसरे के घर परिवार के बारे में भी सुनते व जानते हैं, बाॅस की बुराई भी मिलकर करते हैं और एक दूसरे को तरोताजा रखने के लिए एक दूसरे को चुटकले भी सुनाते हैं. यह सब कुछ एक छोटे से केविन में सम्पन्न होता है, जहां दो सहकर्मी बिल्कुल पास-पास होते हैं. ऐसी स्थिति में वह एक दूसरे की चाहे अनचाहे हर चीज साझा करते हैं. सहकर्मी को कैसा म्युजिक पसंद है यह आपको भी पता होता है और उसे भी. उसे चाॅकलेट पसंद है या आइस्क्रीम यह बात दोनो सहकर्मी भलीभांति जानते हैं. जाहिर है लगाव की डोर इन सब धागों से ही बनती है.

जब साथ काम करते-करते काफी वक्त गुजर जाता है तो हम एक दूसरे के सिर्फ काम की क्षमताएं ही नहीं, उनकी मानसिक बुनावटों और भावनात्मक झुकावों को भी अच्छी तरह जानने लगते हैं. जाहिर है ऐसे में दो विपरीत सेक्स के सहकर्मी एक दूसरे के लिए अपने आपको कुछ इस तरह समायोजित करते हैं कि वे एक दूसरे के पूरक बन जाते हैं. उनमें आपस में झगड़ा नहीं होता, वे दोनो मिलकर काम करते हैं तो काम भी ज्यादा होता है और थकान भी नहीं होती. दोनो साथ रहते हुए खुश भी रहते हैं. कुल जमा बात कहने की यह है कि ऐसे सहकर्मी मियां-बीवी की तरह काम करने लगते हैं. इसलिए ऐसे लोगों को समाजशास्त्र में परिभाषित करने के लिए वर्क-हसबैंड और वर्क-वाइफ की कैटेगिरी में रखा जाता है.

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पहले इसे सैद्धांतिक तौरपर ही माना और समझा जाता था. लेकिन पूरी दुनिया में मशहूर कॅरिअर वेबसाइट वाल्ट डाटकाम ने एक सर्वे किया है और पाया है कि साल 2010 में ऐसे वर्क-हसबैंड और वर्क-वाइफ तकरीबन 30 फीसदी थे, जो कि साल 2014 में बढ़कर 44 फीसदी हो गये थे. हालांकि इस संबंध में कोरोना के पहले कोई ताजा सर्वे तो नहीं आया था कि आज की तारीख में दफ्तरों में ‘वर्क-वाइफ, वर्क-हसबैंड’ कितने हैं लेकिन कोरोना संक्रमण के बाद दफ्तरों के पारंपरिक ढाचे में जो बदलाव हुआ है और उसके बाद कर्मचारियों में तनाव देखा गया है, उससे यह साफ है कि लोग बहुत जल्द ही इस कल्चर को छोड़ने वाले नहीं है और जबरदस्ती छुड़वाये जाने की स्थितियों के कारण तनावग्रस्त हैं.

…तो पूरी तरह बरबाद हो जाएगा यह देश

देश की मौत !  कारण बनेगा वायरस. नोवल कोरोना का कहर. कोविड-19 महामारी का महानाश. सत्यानाश-दर-सत्यानाश. दुनिया की मानवता कहां चली गई? वैश्विक संस्थाएं क्या अपना दायित्व नहीं निभा रहीं? इंसानियत के लिए काम कर रहे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को क्या सभी देशों से सहयोग नहीं मिल पा रहा? ये सवाल हर इंसान के जेहन में उठने स्वाभाविक हैं.

एक देश के सभी देशवासी तकरीबन मरने की कगार पर हैं, यानी देश मृतप्राय है, वह भी अंतिम तौर पर क्रूर कोरोना के चलते. उस देश का नाम किसी और ने नहीं, बल्कि यूनाइटेड नेशंस और्गेनाइजेशन (यूएनओ) यानी संयुक्त राष्ट्र संघ ने बताया है जो हो सकता है कोरोना की वजह से बच पाने में सफल न हो पाए. और, वह देश है यमन.

यूएनओ का कहना है कि जिस तरह की समस्याएं यमन में हैं और जिस तरह से वह आर्थिक, स्वास्थ्य व सामाजिक क्षेत्रों में जूझ रहा है उस से इस बात की आशंका है कि कोरोना के सामने वह पूरी तरह से टूट जाए. किसी भी स्तर पर वह वायरस से लड़ने की स्थिति में नहीं है. शेष विश्व मदद नहीं करेगा, तो वह ख़त्म सा हो जाएगा.

जान लें कि यमन मध्यपूर्व एशिया का एक स्वतंत्र देश है, जो अरब प्रायद्वीप के दक्षिणपश्चिम में स्थित है. 2 करोड़ आबादी वाले यमन की सीमा उत्तर में सऊदी अरब, पश्चिम में लाल सागर, दक्षिण में अरब सागर और अदन की खाड़ी और पूर्व में ओमान से मिलती है. यमन की भौगोलिक सीमा में लगभग 200 से ज्यादा द्वीप भी शामिल हैं, जिन में सोकोत्रा द्वीप सब से बड़ा है. यमन की कैपिटल सिटी यानी राजधानी साना है.

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यमनवालों की इम्यूनिटी बेहद कमजोर :

यमन में सऊदी अरब द्वारा छेड़े गए युद्ध और सऊदी घेराबंदी की वजह से हालात इतने खराब हैं कि जिस की कल्पना करना भी मुश्किल है. बेपनाह गरीबी और भुखमरी हर तरफ फैली है. इस देश की स्वास्थ्य सेवाएं मृतप्राय हैं. और इस देश की सरकार के पास भी कोरोना से मुकाबले के लिए आवश्यक साधन खरीदने की शक्ति नहीं है, जो इस संकट को और अधिक जटिल बना रही है. 5 वर्षों से युद्ध झेल रहा यमन बुरी तरह टूट चुका है.

कोरोना से पहले यमन के निवासी डेंगू, मलेरिया और कालरा में ग्रस्त हो चुके हैं, जिस की वजह से उन में रोगों से लड़ने की क्षमता यानी इम्यूनिटी बेहद कमज़ोर हो चुकी है. इस देश के 80 फीसदी से अधिक लोगों को विदेशों से मानवताप्रेमी मदद की ज़रुरत है. यही नहीं, इस देश के ज़्यादातर अस्पताल बंद पड़े हैं या फिर सऊदी हमले में तबाह हो गए हैं. यमन के एकचौथाई क्षेत्रों में किसी भी प्रकार की मैडिकल सेवा मुहैया नहीं है और कई वर्षों से इस देश के बच्चों को टीके भी नहीं लगाए जा सके हैं.

सभी देशवासी वायरस की चपेट में :

संयुक्त राष्ट्र संघ के विकास कार्यक्रम यानी यूएनडीपी का कहना है कि 80 से 90 फीसदी यमनी नागरिक भुखमरी और सूखे यानी ड्रौट का सामना कर रहे हैं. उन्हें पीने का साफ़ पानी भी नहीं मिल पा रहा है. यूएनओ की एक रिपोर्ट के अनुसार, सूखेपन के चलते यमन दुनिया की एक बड़ी मानवीय त्रासदी में बदल गया है. यूएनडीपी की यमन के बारे में ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, यमन में तकरीबन 2 करोड़ नागरिकों को कोरोना वायरस होने का ख़तरा है. बता दें कि यमन की कुल आबादी 2 करोड़ ही है. ऐसे में तो पूरा देश ही कोरोना की चपेट में है.

संयुक्त राष्ट्र संघ के शरणार्थी कार्यालय के वरिष्ठ अधिकारी जौन निकोल का कहना है कि यमन में कोरोना के फैलाव का बेहद भयानक परिणाम निकल सकता है. वहां टैस्ट सुविधा न होने की वजह से कोरोना से प्रभावित लोगों की सही संख्या का पता भी नहीं चल पा रहा.

संयुक्त राष्ट्र की ह्यूमैनिटेरियन कोऔर्डिनेटर लिज़ा ग्रैंडे ने कहा है कि अगर यमन में वायरस ने पैर पसारे तो वहां ‘भारी तबाही’ होगी, क्योंकि वहां के लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता न्यूनतम स्तर पर आ चुकी है.

डब्लूएचओ का ध्यान

इस बीच, डब्लूएचओ यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि वह यमन में चिकित्सा आपूर्ति सेवाएं मुहैया करा रहा है. संगठन का कहना है कि वहां टैस्ट किट, वैंटिलेटर दिए जा रहे हैं और साथ में स्वास्थ्यकर्मियों को ट्रेनिंग भी दी जा रही है.

यमन में ‘सेव द चिल्ड्रेन’ के निदेशक ज़ेवियर जूबर्ट का कहना है कि कोरोना महामारी यमन की पहले से ही चरमराई स्वास्थ्य सुविधा पर और दबाव डाल रहा है और इस का नागरिकों पर विनाशकारी असर होगा. अगर हम इस के लिए आज काम नहीं करेंगे तो आने वाले समय में जो हमारे सामने होगा, उसे बयां नहीं किया जा सकेगा.

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साफ़ है कि गरीबी, भुखमरी और मृतप्राय मैडिकल फैसिलिटी की मार झेल रहे देश यमन की स्थति वैंटिलेटर पर होने जैसी है. विश्व समुदाय ने दिल से मदद का हाथ नहीं बढ़ाया तो यह देश पूरी तबाह व बरबाद हो जाएगा. और तब, दुनिया के नक़शे से यमन, शायद, मिट जाए.

अमेरिका में बुलिंग का शिकार हो चुके हैं 3 Idiots में लोगों को हंसाने वाले ये एक्टर, पढें खबर

‘जहाँपनाह तुसी ग्रेट हो… टोफू कबूल करो’,  ‘थ्री इडियट्स’ फिल्म के इस मजेदार संवाद से चर्चित होने वाले अभिनेता ओमी वैद्य भारतीय अमेरिकन एक्टर है. अमेरिका के कैलिफोर्निया में जन्में ओमी को हमेशा अलग और चुनौतीपूर्ण कहानियां प्रेरित करती है. उन्होंने हिंदी और अंग्रेजी फिल्मों में काम किया है. वे एक फिल्ममेकर भी है. बचपन से कुछ अलग करने की इच्छा रखने वाले ओमी का साथ दिया उनके परिवार वालों ने, जिसके परिणाम स्वरुप वे यहाँ तक पहुंचे. हंसमुख स्वभाव के ओमी ने अधिकतर कॉमेडी फिल्में की और कामयाब रहे. लॉक डाउन में इन दिनों वे अमेरिका में अपने परिवार के साथ है और क्वारेंटाइन स्पेशल वेब मिनी सीरीज मेट्रो पार्क में काम किया है. जिसे लेकर बहुत खुश है. वाशिंगटन डीसी से उन्होंने अपनी जर्नी के बारें में बात की, पेश है कुछ खास अंश. 

सवाल-इस वेब सीरीज को करने की ख़ास वजह क्या है?

इसका चरित्र मुझसे बहुत मेल खाता हुआ है. मैंने भी पटेल से शादी की है, मेरे दो बच्चे है और मैं भी अमेरिका में रहता हूं. ये कांसेप्ट मुझे अच्छा लगा, जो मेरे लाइफ से प्रेरित था. पहले की सभी भूमिकाओं से ये अलग है साथ ही मैंने इसके निर्देशक के साथ पहले भी काम किया है. मुझे पता था कि ये कहानी बहुत ही इमानदारी से कही जाएगी. इसलिए हाँ कर दी.

सवाल- इसमें आपकी भूमिका क्या है?

इसमें मेरी भूमिका कन्नन पटेल की है, जो मेट्रो में रहता है और बहुत ही सोफिस्टेकेटेड इंसान है और अमेरिकन बनना चाहता है और वह अपने ब्रदर इन लॉ और उसके परिवार को समझाता है कि वह ऐसा क्यों करना चाहता है. यूथ इससे काफी रिलेट कर पाएंगे. 

सवाल-इस चरित्र से आप अपने आपको कितना जोड़ पाते है?

रियल लाइफ में मैं इस भूमिका से अपने आपको काफी जोड़ पाता हूं. मुझे याद आता है जब मेरी पत्नी की डिलीवरी होने वाली थी. मैं उस समय वहां था मेरी पत्नी दर्द से परेशान थी और मुझे भला-बुरा कह रही थी. ये सारी बातें मेरे साथ घट चुकी है, जिसमें पति अपनी पत्नी की दुःख को कम करने की कोशिश करता है, पर हो नहीं पाता. बहुत सारे कॉमेडी इस दौरान बनते रहते है. जब आपको पहला बच्चा मिलता है, तो ख़ुशी के साथ-साथ बहुत सारी एंजायटी भी होती है. 

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सवाल-थ्री इडियट्स का ‘चतुर रामालिंगम’ चरित्र इतना पोपुलर होगा, क्या आपने कभी सोचा था?

मैंने कभी नहीं सोचा था, मुझे तो एक हिंदी फिल्म में काम करने का मौका मिल रहा था, जो मेरी दिली इच्छा थी, जिसके निर्देशक राजू हिरानी और कलाकार आमिर खान और करीना कपूर है, ऐसे में मेरी उम्मीद अपनी छाप छोड़ने की कम थी. इसके अलावा दर्शकों को मेरा काम पसंद आयें और मुझे एक और मौका आगे फिल्मों में काम करने को मिले बस इसी इच्छा से मैंने उस चरित्र को किया था. इसके लिए बहुत मेहनत की. चरित्र में अपने आपको ढाल लिया, क्योंकि मैं भले एक ही फिल्म बॉलीवुड में करूँ, पर इमानदारी से करूँ, इसी सोच के साथ मैंने अपना वजन घटाया, बढाया, बाल मुड़वा लिए, विग पहना आदि सबकुछ किया, क्योंकि मुझे उस निर्देशक पर विश्वास था. इस वेब सीरीज को भी मैंने उसी लगन और मेहनत से किया है इसमें अगर सफलता मिले तो अच्छा है और न मिले तो भी मैं अधिक सोचता नहीं आगे निकल जाता हूं. 

सवाल-आपने अधिकतर कॉमेडी फिल्में की है, इसकी वजह क्या है? क्या आप ऐसी फिल्में अधिक पसंद करते है?

मैं अमेरिका में पला बड़ा हुआ. यहाँ मैं माइनोरिटी में आता हूं. जहाँ मैं पैदा हुआ वहां सारे श्वेत लोग कम इनकम ग्रुप और कम पढ़े-लिखे लोग रहते है. वहां मेरा बहुत बुलिंग हुआ करता था, रेसिज्म था. उस समय या तो आप डर जाओं या फिर स्ट्रोंग बन जाओं. मैं स्ट्रोंग बना और इन लोगों को कॉमेडी कर हंसाकर अपना दोस्त बनाता रहा. इसके अलावा अभी हिंदी फिल्म में कॉमेडियन को अच्छी भूमिका मिलती है, पर आज से 15 साल पहले कॉमेडियन को साइड रोल मिलता था. इसलिए आपको मजेदार और कुछ अलग करने की जरुरत होती थी. मैंने स्कूल में पढ़ते हुए अभिनय किया साइड रोल मिले पर अवार्ड भी मिला, क्योंकि मैंने सबसे अलग काम किया, जबकि मेरी स्किन कलर, हाइट सब अलग था. एक कलाकार कैसा भी दिखता हो, पर उसका अभिनय अच्छा होना चाहिए . मैंने बहुत सारे कॉमेडी की भूमिका निभाई और अब इसमें पारंगत हो गया हूं. मैंने ड्रामा भी की है. मैंने हमेशा किसी भी चरित्र की गहराई में जाना पसंद किया है. कॉमेडी के लिए सही राइटिंग और टाइमिंग का होना आवश्यक है, इससे कॉमेडी अपने आप बन जाती है. कुछ लोग जरुरत से अधिक एक्टिंग कर हंसाने की कोशिश करते है, पर वह काम नहीं करता. चतुर रामालिंगम की भूमिका भी एक सहज भूमिका थी. 

सवाल-आपको अभिनय की प्रेरणा कहां से मिली?

एक कलाकार घंटो इंतजार के बाद जब 5 मिनट का शूट करता है तो उससे जो ख़ुशी उसे मिलती है. उसे बयान करना संभव नहीं. कई सारे कलाकार सालों मेहनत करते रहते है, जबकि वे कुछ और कर एक सुकून की जिंदगी बिता सकते है, पर वे करते नहीं. अभिनय एक नशा है, जिसके लिए किसी प्रेरणा की जरुरत नहीं खुद की ख़ुशी होती है. 

सवाल-आपने हिंदी और अंग्रेजी दोनों फिल्में की है, किसमें अधिक संतुष्टि मिलती है?

मेरे लिए माध्यम कोई बड़ी चीज नहीं होती. कंटेंट और करैक्टर मेरे लिए खास होता है, जिसमें दर्शक मुझे देखना चाहे. इससे अगर उन्हें कोई मेसेज मिले या फिर उन्हें भाग दौड़ की जिंदगी से थोड़ी राहत मिले वही मेरे लिए बहुत बड़ी बात होती है. आज डॉक्टर्स सभी की लाइफ बचा रहे है, मेरा अस्तित्व इस हिसाब से कुछ भी नहीं, लेकिन आज के परिवेश में थोड़ी ख़ुशी सबको देने की कोशिश कर रहा हूं. 

सवाल-लॉक डाउन के बाद हॉलीवुड और बॉलीवुड में किस तरह का बदलाव होगा? आपकी सोच क्या  है?

काम के तरीकों में बदलाव होगा. अब बड़े निर्माताओं और छोटे निर्माताओं के बीच के पॉवर बराबर हो जायेंगे. इससे नयी कहानियां और नए कलाकारों का परिचय होगा. साथ ही जिनका कलाकारों का सम्बन्ध बॉलीवुड परिवार से नहीं है, उन्हें भी काम मिलेगा. खान कलाकारों का बर्चस्व कम हो जायेगा. ये प्राकृतिक उठा पटक है, जिसे देखने के लिए मैं उत्साहित हूं. फिल्में सफ़र करेंगी, क्योंकि अभी बड़ी फिल्मों के लिए ही लोग थिएटर जायेंगे. 

अमेरिका में कई क्वारेंटिन शोज बन चुके है, जिसे लोग पसंद कर रहे है. भारत में भी इसकी मांग आगे बढ़ेगी. 

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सवाल-आपके सफलता में परिवार का सहयोग कितना रहा?

परिवार ने बहुत सहयोग दिया है. मेरी माँ मुंबई में एक्टिंग करना चाहती थी, पर उनके पिता ने उन्हें करने नहीं दिया, क्योंकि इंडस्ट्री महिलाओं के लिए अच्छी नहीं है. उसने अपनी ड्रीम छोड़कर अमेरिका आ गयी. यहाँ आने के बाद उन्होंने मुझे नाटकों में काम करने, डांस करने आदि के लिए प्रेरित किया और मैं यहाँ तक पहुंचा. मेरी पत्नी डॉ. मिनल पटेल का भी बहुत सहयोग रहा. जब मैं महीनों शूटिंग पर जाता हूं, तब उसने मेरे दोनों बच्चों कैडन और कियारा को अकेले खुद के कैरियर के साथ सम्हालती रही. इस वजह से मैंने अपने आपको उस रूप में ढाल पाया, जैसा मैं बनना चाहता था. इसके अलावा जब काम नहीं मिलता उस समय मानसिक स्थिरता को बनाये रखने के लिए परिवार ही आपके साथ होता है. 

सवाल-कोरोना काल में क्या मेसेज देना चाहते है?

दुनिया अनलॉक होगी. लोगों के हाथ में धन फिर से आयेंगे, लेकिन अभी आपको सावधान और धैर्य रखने की जरुरत है. अभी जीवन में कैरियर, लक्ज़री आईटम, पैसा जरुरी नहीं. अभी आप खुद, आपके आसपास के लोग, परिवार जीवित रहे और स्वस्थ रहे. यही सबकी सोच होनी चाहिए. 

 

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