कल सुबह उसे उदयपुर के लिए निकलना है. वह असमंजस में थी कि कदम का सामना कैसे करेगी. अनमनी सी दीप्ति अपना सामान जमा रही थी कि तभी मनीष की मां की आवाज सुन कर बाहर आई,
“अरे दीप्ति बेटा, कैसी है तू? कब आई? तेरी मां ने तो तुझे बता ही दिया होगा कि मनीष ने क्या कांड किया है,” मनीष की मम्मी ने अपना दुखड़ा रोया. दीप्ति क्या कहती, फीकी सी हंसी हंस दी.
“मनीष की पत्नी लाख भली होगी लेकिन अपने संस्कारों का क्या करूं? चाहे यह छुआछूत आज के जमाने में न होता होगा लेकिन संस्कारों के बीज तो सदियों पुराने हैं न… कैसे एकदम से उखाड़ कर फेंक दूं? जब भी मेरे सामने आती है, आशीर्वाद देने का मन होते हुए भी मैं उसे आशीर्वाद नहीं दे पाती. तू ही बता, मैं क्या करूं?” अपनी सफाई देतेदेते अचानक मनीष की मम्मी ने दीप्ति से प्रश्न किया. वह अचकचा गई. एकाएक कोई जवाब नहीं सूझा तो काम का बहाना कर के वहां से खिसक ली.
मन ही मन एक फैसला ले कर वह उदयपुर आ गई. कदम को देखा तो लगा मानों 3 दिन में ही मुरझा गया है. लग रहा था कि उस की गैरमौजूदगी में उस ने शेव तक नहीं बनाई होगी. दीप्ति को देखते ही कदम उस की तरफ लपका, “यों अचानक बिना बताए क्यों चली गई थी? कोई परेशानी थी तो हम मिलबैठ कर सुलझा सकते थे न…” कदम ने बेचैन होते हुए कहा.
“कुछ परेशानियां अकेले ही भुगतनी होती हैं,” दीप्ति ने सहजता से मुसकराते हुए कहा.
“तो क्या फैसला है तुम्हारा?” कदम अधीर हो रहा था.
“न चाहते हुए भी कुछ फैसले हमें अपने विरुद्ध लेने पड़ते हैं क्योंकि हम पर केवल हमारा ही अधिकार तो नहीं होता न?” दीप्ति ने कहा. कदम कुछ समझा नहीं. वह मुंह खोले उस की बात पूरी होने की प्रतीक्षा कर रहा था.
“यदि हम एकदूसरे को चुनते हैं तो अपनेअपने परिवार और समाज में एकदूसरे को इज्जत दिलवाना हमारी अपनी निजी जिम्मेदारी हो जाती है. और मुझे लगता है कि मैं तुम्हारे लिए यह नहीं कर पाऊंगी. यदि मैं तुम्हें अपने परिवार में तुम्हारा सही स्थान नहीं दिला पाती तो मुझे कोई अधिकार नहीं है कि हर सामाजिक कार्यक्रम में तुम्हें नीचा देखने की स्थिति में लाऊं. मैं तुम्हारी बहुत इज्जत करती हूं और समाज में उसे बरकरार रखना चाहती हूं. फिर चाहे मुझे न चाहते हुए भी समाज के बकवास नियम मानने ही क्यों न पड़ें,” दीप्ति ने आंखों की नमी छिपाते हुए कहा.
“मैं जानता हूं कि एक पल में कुछ भी नहीं बदलेगा. न लोग और न ही उन की मान्यताएं… लेकिन आज यदि हमने एकदूसरे के हाथ नहीं थामे तो फिर वक्त हमें दूसरा मौका नहीं देगा और उस मलाल के सामने जिंदगी का हर हासिल कम रह जाएगा,” कदम लगभग गिड़गिड़ा ही उठा.
आंखें तो दीप्ति की भी भर आई थीं लेकिन वह सिर झुकाए चुपचाप खड़ी रही. कदम उस की मन की स्थिति भलीभांति समझ रहा था लेकिन मजबूर था. उस ने दीप्ति के कंधे थपथपाए और उस के निर्णय का सम्मान करता हुआ अपने केबिन में चला गया. उस ने तय कर लिया था कि वह इंतजार करेगा. मगर किस का? दीप्ति के मन को बदलने का या समाज की धारणा को बदलने का? जो भी हो… दोनों में ही वक्त लगने वाला था.
कदम ने हालांकि अपना मन बहुत कड़ा कर लिया था लेकिन मन अपने बस में रहता कहां है? रातभर दीप्ति और उस का निर्णय ही उस के दिमाग में हलचल मचाए हुए था. ऐसा ही कुछ हाल दीप्ति का भी था. उस के सामने भी रहरह कर कदम का निराशहताश चेहरा घूम रहा था. अपने घर पर उस ने जो फैसला किया था वह कदम की बेगुनाह मोहब्बत के सामने कमजोर पड़ता नजर आ रहा था. लेकिन दीप्ति इतनी जल्दी कमजोर नहीं पड़ना चाहती थी. आखिरकार उस ने अपने मन को कठोर कर लिया.
दूसरे दिन दीप्ति औफिस नहीं गई. उस ने कदम को व्हाट्सऐप पर मैसेज भेजा,”मिलना है तुम से. घर आ जाओ,” कदम ने मैसेज को देखा लेकिन कोई जवाब नहीं दिया.
दीप्ति ने आधा घंटा बाद फिर से मेसैज भेजा,”मैं इंतजार कर रही हूं.” कदम ने पढ़ा. और कोई दिन होता तो वह सिर के बल दौड़ा चला जाता लेकिन वह परिस्थितियों को भी समझ रहा था और दीप्ति की मनःस्थितियों को भी. वह दीप्ति की दुविधाएं बढ़ाना नहीं चाहता था लेकिन पांव उस के रोके नहीं रुके और अगले 15 मिनट में वह दीप्ति के फ्लैट की घंटी बजा रहा था. इन 15 मिनट में वह सोच चुका था कि उसे दीप्ति को सांत्वना कैसे देनी है. कैसे उस के टूटे दिल को ढांढस बंधाना है.
घंटी बजने से पहले ही दीप्ति ने दरवाजा खोल दिया मानों खिड़की में बैठी उसी की राह देख रही थी. कदम ने देखा आज दीप्ति ने वही मोरपंखी रंग की साड़ी पहनी थी जो उस ने उसे पिछली दीवाली पर उपहार में दी थी.
कानों में मैचिंग लटकन और हाथों में चूड़ियां भी उसी की लाई हुई ही पहनी थी. हलका मेकअप कर के दीप्ति बहुत खूबसूरत लग रही थी. कदम तड़प कर रह गया.
‘सदमे के कारण बेचारी के दिमाग का संतुलन बिगड़ गया शायद,’ सोचते हुए कदम उस की तरफ बढ़ा लेकिन यह क्या? दीप्ति तो खिलखिलाती हुई उस से लिपट गई. कदम सकपका गया.
“हम शादी करेंगे. क्या तुम तैयार हो? यदि तुम्हारे घर वाले भी राजी न हों तब भी?” दीप्ति ने उस के सीने से सिर हटा कर अपनी आंखें उस के चेहरे पर गड़ा दीं.
“लेकिन कल तक तो माहौल कुछ और ही था. आज अचानक?” कदम ने पूछा. उसे अब भी दीप्ति के प्रस्ताव पर यकीन नहीं हो रहा था.
“बहुत सोचा मैं ने. और मंथन का नतीजा यह निकला,” दीप्ति ने कहा.
“क्या?” कदम ने पूछा.
“मांपापा सारी उम्र तो साथ नहीं रहेंगे न? आखिर तो जीवनसाथी ही काम आता है. यदि वही अपनी पसंद का न हो तो जिंदगी नरक नहीं बन जाएगी? देरसवेर घर वाले भी राजी हो ही जाएंगे. वैसे भी क्या तुम्हारे प्यार की लाश पर मैं अपना आशियाना बना पाऊंगी? और फिर तुम से शादी कर के मैं अपनी भावी संतानों को एक बेहतरीन भविष्य भी तो दे पाऊंगी… उन्हें भी तो आरक्षित श्रेणी के पिता की संतान होने के नाते आरक्षण मिलेगा,” अंतिम बात कहतेकहते दीप्ति के होंठों पर मुसकान थिरक उठी. कदम भी मुसकरा दिया.
“ओहो, तो यह बात है. जो अभी दुनिया में आया भी नहीं उस के भविष्य की चिंता की जा रही है और जो सामने खड़ा है उस के वर्तमान का क्या?” कदम ने शरारत से कहा.
“उस के लिए यह,” कहते हुए दीप्ति ने अपने होंठों से कदम का मुंह बंद कर दिया. पानी मिले या न मिले लेकिन दो दिल मिल चुके थे.
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