तलाक के बाद आमिर के भांजे Imran Khan इस ऐक्ट्रैस के साथ हैं लिव इन में

आमिर खान (Aamir Khan) के भांजे इमरान खान (Imran Khan) जिन्होंने बतौर बाल कलाकार कयामत से कयामत तक और जो जीता वह सिकंदर में अभिनय करने के बाद 2008 में बतौर हीरो जाने तू या जाने ना से अपने अभिनय करियर की शुरुआत की थी. इस फिल्म में उन्हें सफलता भी मिली. लेकिन उसके बाद रिलीज सभी फिल्में खास नहीं चली. जैसे कि मेरे ब्रदर की दुल्हन, दिल्ली बैली, एक मैं और एक तू आदि.

प्रोफेशनल लाइफ में असफलता पाते हुए निराश इमरान खान पर्सनल लाइफ में भी दुखी थे क्योंकि उनका अपनी पहली पत्नी अवंतिका से तलाक हो गया था. फिलहाल इमरान ऐक्ट्रैस लेखा वाशिंगटन के साथ लिव इन रिलेशनशिप में है. दोनों एक दूसरे को काफी समय से जानते हैं और लेखा का इमरान के घर भी आना जाना है. इमरान ओर लेखा काफी समय से एक साथ है.

इमरान की एक बेटी भी है जिसकी देखभाल पत्नी अवंतिका और इमरान एक साथ मिलकर कर रहे हैं. परंतु लेखा के साथ इमरान पूरी समझदारी के साथ रिश्ता निभा रहे हैं. क्योंकि दूध का जला छास भी फूंक फूंक कर पीता है. इसलिए इमरान भी शादी को लेकर थोड़ा वक्त ले रहे हैं. ताकि दूसरी बार कोई प्रौब्लम ना हो. अगर वर्क फ्रंट की बात करें तो इमरान खान जान फिल्म में काम कर रहे हैं जिसकी शूटिंग जारी है.

झुकेगा नहीं साला..डायलौग फेम मूवी Pushpa 2 की डबिंग के समय श्रेयस तलपड़े ने रखा मुंह में तंबाकू

अल्लू अर्जुन (Allu Arjun) अभिनीत पुष्पा और पुष्पा 2 (Pushpa 2) को पूरे हिंदुस्तान में अपार लोकप्रियता मिली इस फिल्म में बोला गया प्रसिद्ध डायलौग पुष्पा झुकेगा नहीं साला इतना ज्यादा लोकप्रिय हुआ की पुष्पा वन से पुष्पा 2 आने तक भी यह डायलौग दर्शकों के दिमाग से नहीं गया. लेकिन जैसा कि कहते हैं साज की धुन सबने सुनी पर साज पे क्या गुजरी यह किसी ने न जाना..

ऐसा ही कुछ बौलीवुड एक्टर श्रेयस तलपड़े के बारे में कह सकते हैं क्योंकि झुकेगा नहीं साला बोलने वाले साउथ एक्टर अल्लू अर्जुन की आवाज की हिंदी में डबिंग बौलीवुड एक्टर श्रेयस तलपड़े ने की है. क्योंकि डबिंग आर्टिस्ट को ज्यादा प्राथमिकता नहीं दी जाती इसलिए यह डायलौग तो बहुत हिट हुआ लेकिन इस डायलौग को बोलने वाले के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं. श्रेयस तलपडे जो की जाने माने बौलीवुड एक्टर है और साथ ही बेहतरीन डबिंग आर्टिस्ट भी है. लिहाजा पुष्पा और पुष्पा 2 के अल्लू अर्जुन द्वारा बोले गए सारे डायलौग हिंदी भाषा में श्रेयस तलपड़े ने डब किए हैं. इन सारे डायलौग में अर्जुन आलू द्वारा बोला गया खास डायलौग पुष्पा पुष्पा राज झुकेगा नहीं साला.. काफी प्रसिद्ध हुआ है. बहुत कम लोग जानते होंगे की अल्लू अर्जुन के डायलौग बोलने के लिए श्रेयस तलपड़े ने अपने दांत के नीचे और होठों के बीच तंबाकू भर के यह सारे डायलौग बोले हैं, क्योंकि पूरी फ़िल्म में अल्लू अर्जुन भी मुंह में तंबाकू भरे हुए नजर आए हैं और उसी अंदाज में वह डायलौग बोलते भी नजर आए हैं. अल्लू अर्जुन की आवाज को कौपी करने के लिए श्रेयस तलपड़े ने 2 घंटे में 14 सेशन अटेंड किए ताकि अल्लू की आवाज में फिट बैठ सके.

इसके अलावा अल्लू अर्जुन के किरदार को ध्यान में रखते हुए और उनके बोलने के अंदाज को सही तरीके से पेश करने के लिए एक्टर और डबिंग आर्टिस्ट श्रेयस तलपड़े ने मुंह में तंबाकू रख के सारे डायलौग बोले हैं. लेकिन दुख की बात यह है कि फिल्म प्रमोशन के दौरान खुद अल्लू अर्जुन ने पुष्पा 2 की सारी टीम को धन्यवाद कहा लेकिन उनकी आवाज देने वाले वाले श्रेयस तलपड़े को अल्लू अर्जुन सहित किसी ने भी धन्यवाद नहीं कहा.. जिसके वह हकदार है. जबकि हिंदी वर्जन की पुष्पा 2 ने 1 दिन में 72 करोड़ का बिजनेस किया है . श्रेयास तलपड़े बतौर एक्टर अक्षय कुमार के साथ हाउसफुल 5 में नजर आएंगे, कंगना रनौत की फिल्म इमरजेंसी में  खास किरदार में नजर आएंगे.

Short Story In Hindi : सब दिन रहत न एक समान

Short Story In Hindi  : बात कोरोना के आने के एक साल पहले की है. हम अपने एटीएम कार्ड का पिन सेट करने के लिए भटक रहे थे. बैंकों में दौड़दौड़ कर, सरकारी बैंक के नखरे उठाउठा कर थक गए थे. डिजिटल इंडिया कहने और व्यावहारिक रूप से होने में जरा फर्क होता है. दिन को समय मिल नहीं पाता था, सो रात को हम 2 सहेलियां और हमारे 2 पुरुष सहयोगी एटीएम में पहुंचे.

उस समय रात के करीब 8 बजे होंगे. पर एटीएम का सिक्योरिटी गार्ड अपनी कुरसी पर लुढ़का हुआ खर्राटे मार रहा था.

मेरी सहेली और एक पुरुष सहयोगी बाहर खड़े थे, जबकि मैं और दूसरा पुरुष सहयोगी एटीएम के भीतर आ गए थे.

यह कोरोना काल तो नहीं, परंतु पराली काल जरूर था और दिल्ली में पराली के कहर से तो हर कोई वाकिफ है. सो, वायु में घुले पौल्यूशन के कहर और पराली के जहर से बचने के लिए हम ने अपनी नाक पर स्कार्फ बांधा हुआ था. डब्ल्यू के फैशनेबल स्कार्फ को सिर्फ नाक पर बांधना उस के ब्रांड और खूबसूरती का अपमान करना है. सो, मैं ने अपने स्कार्फ को हिजाब स्टाइल में सिर पर भी बांध रखा था, जिस से केवल मेरा फोरहेड और आंखें ही हिजाब की जद से बाहर थे, जहरीली हवा और जहरीली नजर से बचाव के लिए प्रदूषण पीड़ित शहरों में स्कार्फ का यह स्टाइल काफी पोपुलर है.

खैर, चूंकि हम औफिस से ही इस तरफ आ गए थे, सो मेरे सहयोगी के हाथ में एक बैग था, जिसे उन्होंने साइड में रखा और इसी के साथ सिक्योरिटी गार्ड की नींद खुल गई. आंखें खुलते ही उस की नजर हम पर पड़ी. डर, संशय और विस्मय के मिलेजुले भावों के साथ वह कुरसी से कूद कर खड़ा हो गया. तनिक कांपती हुई आवाज में यत्नपूर्वक गरजते हुए वह हम से स्कार्फ हटाने के लिए कहने लगा. मुंह और नाक से स्कार्फ हटाने पर भी उस की तसल्ली नहीं हुई और इतनी मेहनत से नेट पर से सीख कर बांधा हुआ हिजाब मुझे उस डरपोक सिक्योरिटी गार्ड की वजह से हटाना पड़ा.

खैर, जिस काम के लिए एटीएम गए थे, वह काम नहीं हुआ और अगले दिन फिर हमें सरकारी बैंक जाना पड़ा. सुबह के सवा दस बज रहे थे और धूप ऐसी चिलचिला रही थी मानो समूचे ओजोन परत को खुरच कर सारी दुनिया की बिजली आसमान पर टांग दी गई हो. मौसम का तकाजा था, सो सनग्लास जरूरी था.

हां, रात वाले हादसे की वजह से स्कार्फ को मैं ने पहले ही पर्स में मोड़ कर रख दिया था. पर उस से क्या, सरकारी जगहों पर पब्लिक को परेशान करने वाले फालतू के चोंचले न हों, तो उस के सरकारी होने पर शक होने लगता है. वही हुआ भी, ज्यों ही हम गेट पर पहुंचे, सिक्योरिटी गार्ड ने घड़ी दिखा कर कहा कि आधे घंटे बाद बैंक खुलेगा. हमें उस चिलचिलाती धूप में खड़ा कर के वह गार्ड पूरी तन्मयता के साथ चेयर से सोफे और सोफे से चेयर पर तशरीफ रखता रहा. ठीक 11 बजे ग्रिल सरका कर आंखों में सरकारी काम को पूरी मुस्तैदी से अंजाम देने के लिए खुद को ही शाबाशी देने का भाव लिए अहसान करने वाली आवाज में उस ने हमें भीतर आने को कहा. अभी हम ने पांव बढ़ाए भी नहीं थे कि उस ने सनग्लास उतार कर आंखें देखने की इच्छा जाहिर कर दी. क्योंकि ऐसे में हम कुछ और नहीं कर सकते. सो, हम ने वह भी किया. अब वह कुछ और फरमाता, उस के पहले ही हम जल्दी से भीतर की तरफ हो लिए और कई घंटों तक इस टेबल से उस टेबल, उस टेबल से इस टेबल, को होते रहे और सरकारी व्यवस्था के अत्याचार पर मन ही मन रोते रहे.

इस दौड़भाग का अंत फिर वही हुआ, जो हम सब के साथ होता है कि निरंकुश नौकरशाही भ्रष्टाचरण में आम पब्लिक केवल रोता है. पब्लिक को जितनी ज्यादा परेशानी हो, सरकारी मुलाजिम उतनी गहरी नींद सोता है. सच तो यह है कि जब तक चार दिन न दौड़ो, यहां कोई काम नहीं होता है.

और अब जरा एक नज़र कोरोना काल पर – हमें पैसे निकालने उसी एटीएम में जाना पड़ा, जहां सिक्योरिटी गार्ड ने स्कार्फ उतरवाया था. हम ने स्कार्फ, मास्क, ग्लव्स सबकुछ डाला हुआ था थैले में, सैनिटाइजर भी था, सारे सीन वही थे, पर सिक्योरिटी गार्ड न डरा, न घबड़ाया, अपनी कुरसी पर पड़ेपड़े सोता रहा. अपनी ड्यूटी के महत्त्व पर मूल्यहीनता के खर्राटे बोता रहा. हम ने बिना किसी रोकटोक के अपना काम किया और मन ही मन सोचा कि कोरोना ने चाहे जितनी तकलीफ दी हो, पर कई लोगों को निडर जरूर बना दिया. कितने आम को खास, कितने खास को आम बना दिया… कहीं पर जीवन मुश्किल तो कहीं पर आसान बना दिया.

Hindi Story : पन्नूराम का पश्चात्ताप

सांप के आकार वाली पहाड़ी सड़क ढलान में घूमतेघूमते रूपीन और सुपीन नदियों के संगम पर बने पुल को पार करते हुए एक मोड़ पर पहुंचती है. वहां सदानंद की चाय की दुकान है, जहां आतेजाते पथिक बैठ कर चाय पीते हुए दो पल का विश्राम ले लेते हैं. दुकान पर आने वाले ग्राहकों के लिए पन्नूराम दिनभर बैंच पर बैठा रहता. उस के बाएं हाथ की कलाई से हथेली और पांचों उंगलियां गायब थीं.

चाय पीते राहगीर पन्नूराम से उस के बाएं हाथ के बारे में पूछते तो वह अपने पर घटी दुर्घटना की आपबीती सुनाता.

दोनों नदियों के संगम से निकला हुआ सोता चट्टानों के बीच तंग हो कर नीचे की तरफ बहता है. उसी के बाएं किनारे पर खड़े सेमल के पेड़ की ओर इशारा करते हुए पन्नूराम बोलता :

‘‘उस सेमल के नीचे बैठ कर मैं कंटिया से दिनभर मछली पकड़ता था. तरहतरह की मछलियां, महाशीर, टैंगन, शोल, काली ट्राउट आदि सोते के पानी की विपरीत दिशा में आती थीं. दिनभर कंटिया में मछलियों का चारा लगा कर बैठा रहता और मछलियों का अच्छाखासा शिकार कर लेता था. परिवार वाले बहुत प्रसन्न थे. रूपीन व सुपीन नदियों की मछलियों का स्वाद ही कुछ अलग था.’’

एक हाथ से पकड़ी चाय की प्याली से घूंट भरते हुए पन्नूराम अपनी कहानी जारी रखता :

‘‘तब गांव में आबादी काफी कम थी. आहिस्ताआहिस्ता सभी को रूपीन व सुपीन नदियों की मछलियों के अनोखे स्वाद के बारे में पता लग चुका था. चूंकि वर्षाकाल आते ही मछलियों के पेट अंडे से भर जाते थे और वर्षा ऋतु की समाप्ति तक मछलियां पानी के अंदर उगे घास, पत्ते व पत्थरों के बीच अंडे देती थीं, इसलिए उन दिनों गांव के लोग मछलियों के वंश की रक्षा के लिए उन्हें खाना बंद रखते थे. मैं भी मछली का शिकार बंद कर देता था.’’

गले की खराश को बाहर थूकते हुए पन्नूराम अपनी कहानी जारी रखता…

‘‘5 साल पहले मल्ला गांव के ऊपरी ढलान पर, जहां रूपीन नदी का स्रोत ढलान से बहते हुए झरने के रूप में गिरता है, वहां पनबिजली संयंत्र लगाने के लिए सरकारी योजना बनी. पहाडि़यों के ऊपर कृत्रिम जलाशय बनाने के लिए चीड़ के जंगल की कटाई शुरू हो गई तो इलाके में लकड़ी के ठेकेदार, लकडि़यों की ढुलाई के लिए ट्रक चालकों और लकड़ी काटने व चीरने में लगे मजदूरों की चहलपहल बढ़ती गई. बाहरी लोगों को भी स्थानीय लोगों से रूपीन व सुपीन नदियों की मछलियों के अनोखे स्वाद के बारे में जानकारी मिली.

‘‘अब आएदिन पकड़ी हुई मछलियों का सौदा करने के लिए लोग मेरे पास आने लगे. अपनी जरूरत से अधिक पकड़ी हुई मछलियों को मैं ने बेचना शुरू कर दिया. कुछ पैसे मिले तो घर की आमदनी बढ़ने लगी. इस तरह हर रोज मछलियों की मांग बढ़ती गई. कंटिया से पकड़ी मछलियों से मांग पूरी नहीं हो पाती थी. अच्छीखासी कमाई होने की संभावना को देखते हुए मैं अधिक मछली पकड़ने के उपाय की तलाश में था.’’

इसी बीच रामानंद ने कहानी सुनने वाले ग्राहकों के आदेश पर उन्हें और पन्नूराम को गरम चाय की एकएक प्याली और थमाई. गरम चाय की चुस्की लगाते हुए पन्नूराम ने अपनी कहानी जारी रखी…

‘‘एक दिन लकड़ी के ट्रकों में आतेजाते एक ठेकेदार ने कंटिया के बजाय जाल का इस्तेमाल करने की सलाह दी. यही नहीं उस ठेकेदार ने मछली पकड़ने का जाल भी शहर से ला दिया. जाल देते समय उस की शर्त यह थी कि मैं रोजाना उस को मुफ्त की मछली खिलाता रहूं.

‘‘जहां पर चट्टानों के बीच संकरा रास्ता था वहां मैं ने संगम से निकले सोते में खूंटों के सहारे जाल को इस प्रकार से डाला जिस से पानी से कूदती हुई मछलियां जाल में फंस जाएं. यह तरीका अपनाने के बाद पहले से दोगुनी मछलियां पकड़ में आने लगीं. परिवार की कमाई भी बढ़ गई.’’

चाय के प्याले से अंतिम घूंट लेते हुए पन्नूराम ने फिर से कहना शुरू किया :

‘‘जाल से मछली पकड़ना आसान हो गया. परिवार का कोई भी सदस्य बीचबीच में जा कर फंसी हुई मछलियों को पकड़ लाता. रोजगार बढ़ाने की इच्छा से पहाडि़यों के ऊपर डायनामाइट से पत्थरों को तोड़ कर मैं रूपीन नदी में कृत्रिम जलाशय बनाने के काम में लग गया. धीरेधीरे विद्युत परियोजना के कार्यों के लिए मल्लागांव में लोगों की भीड़ जमा होती गई और इसी के साथ रूपीन व सुपीन की स्वादिष्ठ मछलियों की मांग बढ़ती गई. मछलियों की मांग इतनी बढ़ी कि उसे जाल से पूरा करना संभव नहीं था.

‘‘मैं और अधिक मछली पकड़ने के तरीके की तलाश में था. इसी बीच जल विद्युत परियोजना के लिए बड़ेबड़े ट्रकों और संयंत्रों के आवागमन, पहाड़ी सड़क की चौड़ाई बढ़ाने और डामरीकरण में लगे पूरब से आए मजदूरों में से रामदीन के साथ मेरी दोस्ती हो गई. बातोंबातों में एक दिन मैं ने रामदीन को अपनी समस्या बताई. सब सुन कर वह बोला, ‘यार, यह तो काफी आसान कार्य है. जाल से नहीं… डायनामाइट से मछली मारो. देखना, मछली का शिकार कई गुना अधिक हो जाएगा.’

‘‘रामदीन की बात सुनते ही मेरे पूरे शरीर में सिहरन सी होने लगी. मैं डायनामाइट से पत्थर तोड़ने के काम में लगा ही था. अत: एकआध डायनामाइट चुरा कर मछली मारना मुझे खासा आसान लगा था. फिर एक दिन शाम को काम से छुट्टी के बाद मैं रामदीन के साथ चुराए हुए डायनामाइट को ले कर मछली के शिकार के लिए चल पड़ा.

‘‘एक समतल जगह पर चट्टानों के बीच नदी का पानी फैल कर तालाब सा बन गया था. वहां किनारे पर खड़े हम मछलियों के झुंड की प्रतीक्षा कर रहे थे. तालाब का पानी इतना स्वच्छ था कि तलहटी तक सबकुछ साफ दिखाई दे रहा था. जैसे ही मछलियों का एक झुंड बहते पानी से स्रोत के विपरीत दिशा में तैरता हुआ दिखाई दिया रामदीन ने डायनामाइट में लगी हुई सुतली में आग लगाई और झुंड के नजदीक आने का इंतजार करने लगा. मुझे तो डर लग रहा था कि डायनामाइट कहीं हाथ में ही न फट जाए लेकिन रामदीन ने ठीक समय पर जलते हुए डायनामाइट को पानी में फेंका और देखते ही देखते एक विकट सी आवाज के साथ ऊपर की ओर पानी को उछालते हुए डायनामाइट फटा.

‘‘धमाका इतना तेज था कि चट्टानों के पत्थरों के बीच से कंपन का अनुभव होने लगा. तालाब में छोटी, बड़ी और मझोली सभी तरह की मछलियां, यहां तक कि पानी की तलहटी में रहने वाले केकड़े, घोंघा आदि भी पानी की सतह पर तड़पते नजर आने लगे. तालाब में तड़पती मछलियों का ढेर देख कर मैं खुशी से भर उठा. रामदीन की सहायता से तड़पती हुई मछलियों को पकड़ लिया. उस दिन मछलियों से आमदनी पहले की अपेक्षा दस गुना अधिक हो गई.’’

एक लंबी सांस लेने के बाद पन्नूराम ने कहना शुरू किया :

‘‘रामदीन भी अच्छा मछुआरा था. उस को मछलियों की काफी जानकारी थी. मछली मारने के लिए नईनई जगह की तलाश करना तथा मछलियों के आवागमन के प्रति नजर रखने का काम रामदीन ही करता था. मैं डायनामाइट ले कर रामदीन के इशारे का इंतजार करता था और इशारा मिलते ही सुलगते हुए डायनामाइट को ऐसा फेंकता कि पानी की सतह स्पर्श करते ही फट जाए. बहुत खतरनाक कार्य था, लेकिन अधिक पैसा कमाने के इरादे से खतरे को नजरअंदाज कर दिया.

‘‘उन दिनों जब मछलियां गर्भधारण से ले कर प्रजनन का कार्य करती हैं, उन का शिकार बंद नहीं किया. इस से मछलियों के छोटेछोटे बच्चे समाप्त होते गए. एक बार काफी बड़ी महाशीर मछली डायनामाइट से घायल हो कर पकड़ी गई. मैं ने जब उसे उठाया तो उस का पेट अंडों से भरा था. मुझे लगा कि मछली मुझे बताने की कोशिश कर रही थी, ‘मेरे साथसाथ हजारों बच्चों का भी तुम लोग विनाश कर रहे हो. हम तो उजड़ ही जाएंगे, तुम्हारा भविष्य भी खतरे में है.’ तब मैं मन ही मन सोच रहा था कि महाशीर के स्वादिष्ठ अंडों से भी अच्छीखासी कमाई हो जाएगी.’’

दुकान पर बैठे ग्राहकों की ओर तिरछी नजरों से देखते हुए पन्नूराम ने महसूस किया कि वे मछलियों के कत्लेआम से कातर हो रहे थे. अपने द्वारा मछलियों पर किए गए अत्याचार को सही साबित करते हुए पन्नूराम कहता, ‘‘क्या करें, हमें भी तो पेट पालना था. गांव में रोजीरोजगार का दूसरा कोई भी जरिया नहीं था जिस से हम मछलियों के ऊपर रहम करते हुए जीविका का कोई और साधन अपना लें. मछली मारने से हुई मेरी आर्थिक तरक्की को देख कर अन्य गांव वालों ने भी डायनामाइट के जरिए मछली मारना शुरू कर दिया. देखते ही देखते रूपीन व सुपीन नदियां रणक्षेत्र बन गईं. मछलियां कम होती गईं. अंत में तो ऐसा हुआ कि स्रोतों में कीड़े तक नहीं दिखाई देते थे. मछली से आमदनी कम होती गई तो मैं चिंतित हो उठा. अब घर चलाने का जरिया क्या होगा? मछलियों के झुंड ढूंढ़ने के लिए नदी के किनारेकिनारे मुझे मीलों तक जाना पड़ता था. कमाई कम होते ही रामदीन अपने गांव वापस चला गया.

‘‘सावन के महीने में एक दिन बारिश की धारा अनवरत बह रही थी. दिनभर की खोज के बाद शाम के समय काफी दूर से मछलियों का एक झुंड आता दिखाई दिया. अपनी उत्तेजना को वश में रखने के लिए मैं दाएं हाथ में जलती बीड़ी से कश मारते हुए बाएं हाथ में सुलगता डायनामाइट पकड़े मौके का इंतजार करता रहा. महीनों बाद पानी के स्रोत में तैरती मछलियों का झुंड देख कर मैं इतना खुश हुआ था कि मानो खुली आंख से कोई सपना देख रहा हूं. हिसाब लगा रहा था कि इतने बड़े झुंड से कितनी कमाई होगी. परिवार की आवश्यकताएं तो पूरी हो जाएंगी साथ ही कुछ पैसा भविष्य के लिए भी बच जाएगा. थोड़ी देर में जब देखा तो मछली का झुंड आ चुका है. मैं ने त्वरित गति से अपनी कार्यवाही की… लेकिन डायनामाइट का धमाका नहीं निकला. परेशान हो कर अपनी बंद आंखें खोल कर जब देखा तब तक डायनामाइट मेरे बाएं हाथ को धम से उड़ा कर ले जा चुका था. सपने में लीन मैं अपने दाहिने हाथ की सुलगती हुई बीड़ी को फेंक कर समझ रहा था कि मैं ने डायनामाइट फेंक दिया.’’

अपनी पूरी कहानी सुनाने के बाद स्वाभाविक होने पर पन्नूराम दोहराता, ‘‘मछलियों की आंसू भरी कातर आखें मुझे सताती रहती हैं. मैं अपने सीने में एक असहनीय पीड़ा अनुभव करते हुए आज भी मूर्छित हो जाता हूं. अपराधबोध से अपनी आत्मा की मुक्ति के लिए रोजाना मैं सहृदय पथिक को आपबीती कहानी सुना कर पश्चात्ताप करता रहता हूं…कम से कम सुनने वाला पथिक ऐसे कुकृत्य से बचा रहे.’’

सदानंद को पन्नूराम की कहानी में कोई दिलचस्पी नहीं थी. उस के फायदे की बात यह थी कि सुनने वाले राहगीर कहानी सुनतेसुनते एक के बजाय कई प्याली चाय पी जाया करते थे…पन्नूराम की कहानी से सदानंद की आमदनी में बढ़ोतरी होती रही और…सदानंद ने पन्नूराम की दिनभर की चाय मुफ्त कर दी.

Kadhi Recipe : दोपहर के खाने में चावल के साथ परोसें टेस्टी कढ़ी

Kadhi  Recipe : आपने कई बार होटलों और ढाबों पर कढ़ी खाई होंगी, लेकिन क्या आपने घर पर कढ़ी बनाई है. आज हम आपको टेस्टी और हेल्दी कढ़ी के बारे में बताएंगे. जिसे आप अपनी फैमिली और फ्रैन्ज को वीकेंड या कभी भी खिला सकती हैं. आइए जानते हैं कढ़ी बनाने की आसान रेसिपी…

हमें चाहिए…

200 ग्राम( 1.5 कप) बेसन –

400 ग्राम (2 कप) खट्टा दही

1 टेबल स्पून तेल

1-2 पिन्च हींग

आधा छोटी चम्मच जीरा

आधा छोटी चम्मच मैथी के दाने

आधा छोटी चम्मच हल्दी पाउडर

एक चौथाई छोटी चम्मच लाल मिर्च पाउडर

स्वादानुसार नमक

2 या 3  बारीक कटी हुई हरी मिर्च

एक टेबल स्पून बारीक कटा हुआ हरा धनिया

पकोड़ियां तलने के लिये तेल

बनाने का तरीका

पकौड़ियों बनाने के लिए

-कढा़ई में तेल डाल कर गरम कीजिये. तेल गरम हो जाय तो बेसन के एक भाग की पकौड़ियाँ बनाइये( पकौड़ियाँ बनाने के लिये चमचे की सहायता से थोड़ा थोड़ा बेसन का घोल लेकर गरम तेल में डालिये, एक बार में 5 -6  या जितनी पकोड़ियां आसानी से तेल में आ सकें डाल दीजिये, गोल गोल पकौडि़याँ कलछी की सहायता से पलट कर, ब्राउन होने तक तलें और प्लेट में निकाल लीजिये).

कढ़ी बनाने के लिए

-दही को मथकर एक बर्तन में निकालिये, बचे हुये बेसन को फैंटे हुये दही में मिलाकर,इसमें लगभग 1.2 लीटर पानी मिला दीजिये.

-कढ़ाई में 1 टेबल स्पून तेल छोड़ कर, सारा तेल निकाल दीजिये, तेल को गरम कीजिये, गरम तेल में हींग, मैंथी और जीरा डाल दीजिये, जीरा ब्राउन हो जाने पर, हल्दी पाउडर, लाल मिर्च पाउडर और हरी मिर्च डाल दीजिये, मसालें में दही बेसन का घोल डाल कर, घोल को चमचे से तबतक चलाते रहें, जब तक घोल गाड़ा न हो जाय और घोल में उबाल न आ जाये.

-घोल में उबाल आने के बाद, पकौड़ियाँ डाल दीजिये और चमचे से चलाते जायं, कढ़ी में फिर से उबाल आने पर, उसमें नमक डाल कर मिला दीजिये, चमचे से कढ़ी को लगातार चलाना बन्द कर दीजिये.

-कढ़ी को 12-15 मिनिट तक धीमी आग पर पकने दीजिये, लेकिन 2-3 मिनट बाद चलाते अवश्य रहिये. आप देखेंगे कि कढ़ी के ऊपर किनारों की ओर बेसन की मलाई आ रही है.  पकोड़े की कढ़ी बन चुकी है. चावल या रोटी के साथ गरमागरम परोसें.

देश की आम औरतों को बहका कर लूटने की स्कीम है Gold Loan

Gold Loan : सोने के बढ़ते दामों के साथ गोल्ड लोन लेने वालों की कतारें बढ़ रही हैं और महाजनों के अलावा बैंक और फाइनैंस कंपनियों के बाहर कम ब्याज पर गोल्ड लोन वालों की गिनती देश के बुरे समय की घंटी बजा रही है. गोल्ड लोन में लोग अपना सोना, जेवर दे कर जो पैसा ले रहे हैं, वह फालतू के खर्चों, घर चलाने, शादी, तीर्थयात्राओं, रीतिरिवाजों में ज्यादा लग रहा है, बिजनैस या फैक्टरी लगाने में कम लग रहा है.

सदियों से कर्ज को सोने के बदले जमानत रख कर लिया जा रहा है. 1960 के दशक में बनी ‘मदर इंडिया’ फिल्म में सोने के कंगन साहूकार के पास रखे गए थे जिन्हें वापस लेने के लिए औरत (नरगिस) का बेटा (सुनील दत्त) डाकू बन जाता है और गांव के लिए साहूकार की बेटी को भी उठा लेने की कोशिश करता है.

नरगिस उस समय सुनील दत्त को गोली मार देती है और उसे मदर इंडिया कहा गया क्योंकि यह गोल्ड लोन की महत्ता को सामाजिक मजबूती देती थी. ‘मदर इंडिया’ फिल्म में कोई सामाजिक सुधार नरगिस नहीं करती, वह परंपराओं को स्थापित करती है और इसीलिए इस का गुणगान आज भी किया जाता है.

गोल्ड लोन देने वाले बैंक और फाइनैंस कंपनियां फिल्म के महाजनों से कोई कम नहीं हैं. कहने को तो वे कम ब्याज पर सोने को रख कर कर्ज देती हैं पर असल में वे इस इंतजार में रहती हैं कि  कब कर्जदार कोई किस्त चुकाने से चूके और उन्हें दोगुना ब्याज मिलना शुरू हो जाए.

चूंकि इस कर्ज को देने में कोई ज्यादा कागजी काम नहीं होता, यह तुरंत मिल जाता और एक सीमा तक तो इनकम टैक्स की भी टांग बीच में नहीं अड़ती. कुछ घंटे में लोन का पैसा अकाउंट में आ जाता है और फिर उसे बरबाद करने की तरकीबें सोची जाती हैं.

सोना कभी भी कोई जना अपने खेत या अपने छोटे कारखाने में नहीं बनाता. यह तो खानों से बहुत मुश्किल से निकाला जाता है. सदियों से बहुत कीमती मैटल रहा है. इस का लगाव सिर्फ इसलिए नहीं कि यह चमकता है, लगाव इसलिए भी है कि यह पहनने वाली की हैसीयत बताता है. यह सुरक्षा की गारंटी है क्योंकि गलता नहीं, फटता नहीं, जंग नहीं खाता. इसे दबा कर छिपाया जा सकता है और इसीलिए सोने के भंडारों को ढूंढ़ने वाले कम नहीं हैं जिन में से कुछ को बाबा लोग बेवकूफ बनाते हैं.

देश में अगर गोल्ड लोन बढ़ रहा है तो मतलब है कि औरतें अपने जेवर उतार कर दे रही हैं. जिस की चर्चा पिछले चुनावों में जम कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी.

इस गोल्ड लोन का आंकड़ा अबइन में वह मंगलसूत्र भी होता है  1 लाख 30 हजार करोड़ से ज्यादा हो गया है जिस का मतलब है कि लोग अपना घर खर्च नहीं चला पा रहे.

जीएसटी और इनकम टैक्स के मार्फत सरकार बहुत पैसा जमा कर रही है जिस की वजह से हर चीज महंगी हो रही है और सिवा देश से बाहर मजदूरी करने के कुछ भी नया कमाई का साधन नहीं निकल रहा.

हां, जो ज्यादा पढ़ेलिखे हैं, सरकारी नौकरी में हैं, पहले के पैसे वाले हैं, सरकारी टैंडर लेते हैं, बड़ी कंपनियों में काम कर पा रहे हैं, टैक्नोलौजी में माहिर हैं, उन की मौज है पर यह मौज आप औसत पढ़ेलिखे, मजदूर, किसान, छोटे दुकानदार को लूटने से हो रही है.

गोल्ड लोन इस की भी निशानी है. पहले औरतें सिर्फ बेहद ज्यादा जरूरत पर अपने जेवर महाजन के पास रखती थीं, अब मौजमस्ती के लिए भी कर्ज लिया जा रहा है.

गोल्ड लोन स्कीम असल में देश की आम औरतों को बहका कर लूटने की स्कीम है और इस में फंसने वालों की गिनती बढ़ रही है तो इसलिए कि मांबाप और दादाओं का बचाया गोल्ड अब बैंकों के हवाले हो रहा है. यह देश पर धब्बा है, कोई गुणगान करने वाली बात नहीं है.

Online Hindi Story- रैड लाइट: क्या बिगड़े बेटे को सुधार पाई मां

Online Hindi Story : शाम की क्लासेज और शाम भी जाड़े की. बर्फ नहीं पड़ रही थी वरना और मुसीबत होती. अमेरिका के विस्कौन्सिन एवेन्यू और ट्वैंटी फोर्थ स्ट्रीट का चौराहा पार करते ही दिल में धुकधुकी इतनी तेज हो जाती है कि ड्राइविंग पर ध्यान बनाए रखना दूभर हो जाता है. ट्वैंटी फोर्थ स्ट्रीट का इलाका रैड लाइट एरिया कहलाया जाने लगा है. रैड लाइट एरिया का खौफ सुमि के मन में बालपन से ही बैठा हुआ है. सुमि के पापा के दूर के कुछ रिश्तेदार पुरानी दिल्ली में दशकों पुराने जमेजमाए कारोबार के चलते वहीं हवेलियों में रहते रहे हैं. मां बताती थीं कि वहां के बड़े चावड़ी बाजार के पास एक इलाका वेश्याओं और गुंडों की वजह से बदनाम ‘रैड लाइट’ एरिया हुआ करता था जिस के आसपास महल्लों में पलक झपकते लड़कियां गायब किए जाने की वारदातें सुनने में आया करती थीं. इस कारण वहां रहने वाले परिवारों की औरतें अपने घरों से बहुत कम निकलती थीं. मजबूरी में जब भी उन्हें बड़े चावड़ी बाजार के पास से गुजरना पड़ता तो उस ओर देखे बिना झट कन्नी काट कर बच्चों, विशेषकर बच्चियों को अपनी लंबी चादर के भीतर दबोचे ऐसे लंबे डग भरतीं मानो कोई चोरउचक्का पीछे पड़ा हो.

अमेरिका के शहर मिडवैस्टर के बीचोंबीच डाउनटाउन इलाके में देश की प्रख्यात और महंगी यूनिवर्सिटी में जर्नलिज्म के तेज रफ्तार रिफ्रैशर इवनिंग कोर्स के लिए फुल स्कौलरशिप का मौका विरलों को मिलता है. सुमि इसे हर हाल में पूरा करने को कटिबद्ध है. रैग्युलर कोर्स की गुंजाइश  नहीं, दिन की नौकरी छोड़े तो गुजारा कैसे हो?

जितनी प्रख्यात यूनिवर्सिटी है डाउनटाउन का यह इलाका उतना ही बदनाम होता जा रहा है. वहां की समृद्ध फार्मर्स (किसान) पीढ़ी वृद्ध हो चुकी है और उन की संतानों को सीधा उत्तराधिकार प्राप्त नहीं. प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण उन के वृहद् फार्म्स खरीद कर डैवलपर्स वहां आलीशान घर, मौल और आधुनिक सुविधाओं से लैस उपनगर बनाते जा रहे हैं. नतीजतन, शहरी आबादी वहीं उमड़ी जा रही है. बीच शहर में बंद दुकानें, खाली घर ड्रग डीलर्स और बदनाम पेशों के अड्डे हो गए हैं जिस के चलते महंगी यूनिवर्सिटी में प्रवेशातुर रईस परिवारों की संतानों की सुरक्षा बड़ी चुनौती बन गई है. 5 मील के घेरे के भीतर रहने वाले सभी छात्रों के लिए सुबह 7 बजे से रात के 12 बजे तक निशुल्क वैन सर्विस है. इस के अलावा, यूनिवर्सिटी ने पूरे इलाके के पुनरुद्धार का बीड़ा उठाया है और इस के पुनर्वास के लिए नियत फैडरल सरकार भी भरपूर सहयोग कर रही है. जरूरतमंदों के लिए उदार छात्रवृत्तियां, डैंटिस्ट्री और नर्सिंग डिपार्टमैंट्स की ओर से फ्री क्लीनिक्स, लौ डिमार्टमैंट की ओर से मुफ्त कानूनी सलाह के सैशंस की सुविधाएं उपलब्ध हैं.

कोर्स के एक असाइनमैंट के लिए अन्य सहपाठियों ने सामयिक घटनाओं को चुना जिन के लिए तथ्य रेडियो, टीवी और पत्रपत्रिकाओं से जुटाना सहज होता है. भारत की प्रमुख पत्रिकाओं, पत्रों में प्रकाशित सुमि का शौकिया लेखन मुख्यतया मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण भोगा हुआ यथार्थ ही रहा था. ऐसी 2 प्रविष्टियों और प्रमाणित पूर्व प्रकाशनों के बल पर ही इस तेज रफ्तार कोर्स में उसे प्रवेश मिला जिस के पूर्ण होने पर स्थानीय अखबार के फीचर सैक्शन में उस की सह संपादक की नियुक्ति की संभावना बन सकती थी.

ट्वैंटी फोर्थ स्ट्रीट के खस्ताहाल इलाके पर सुमि के ह्यूमन इंटै्रस्ट स्टोरी के चयन पर प्रोफैसर को आश्चर्य था पर मौन अनुमोदन दे दिया शायद इसलिए कि यह यूनिवर्सिटी की वर्तमान नीति के अनुरूप हो. बहरहाल, इलाके के गली, महल्ले छानने और इंटरव्यूज कर के तथ्य बटोरने के लिए वहां वीकेंड पर दिन का समय ही सुरक्षित होगा. यह उन्होंने पहले ही बता दिया. सिटी गजट अखबार की पुरानी प्रतियों में डाउनटाउन के इतिहास में ऐतिहासिक घरों, इमारतों का प्रचुर विवरण है. हैरत की बात यह कि ऐसे कुछ घर ठीक ट्वैंटी फोर्थ स्ट्रीट पर हैं. हिस्टौरिकल सोसाइटी से संपर्क कर के सुमि ने गृहस्वामियों के नामपते लिए और फोन कर के इंटरव्यू का समय तय किया. नियत समयानुसार मिस्टर गौर्डन रैल्फ के पते पर ठिठक कर अपनी लिस्ट फिर पढ़नी पढ़ती है. गलीचे से लौन के आगे संतरी सरीखे खड़े ऊंचे दरख्तों और तराशी हुई झाडि़यों से घिरे छोटे मगर शानदार मैन्शन का इस इलाके में क्या काम? ईंटपत्थर के मकान पुराने स्थापत्य शिल्प के नामलेवा भर रह गए हैं. रैल्फ मैन्शन का एकएक पत्थर जैसे समय के बहाव को रोके अविचल खड़ा. सामने की दीवार पर खूबसूरत स्टैंड ग्लास की बड़ी गोल खिड़की जैसे उन्नत भाल पर टीका हो. हस्तनिर्मित ऐसी नायाब कृतियां तो यूरोप के पुरातन गिरजाघरों में ही मिलें.

पूर्वनियत इंटरव्यू की औपचारिकता परे रख गृहस्वामी गौर्डन चाव से सुमि को घर दिखाते हैं, अपने बारे में बताते हैं. पत्नी का देहांत हो चुका है, बेटेबेटियां सुदूर प्रांतों और देशों में हैं. दशकों पूर्व जरमनी से अमेरिका आए उद्यमियों को लेक मिशिगन के तट पर बसा शहर बियर उद्योग की स्थापना के लिए सर्वथा उपयुक्त लगा था. बे्रवरीज लगाई गईं, रिहाइश के लिए घर बनाए गए. शहरी इलाकों में भी तब सड़कें कच्ची हुआ करती थीं जिन पर घोड़े और बग्घियां चलती थीं. गैराज के बजाय घरों के आगे घोड़े या छोटीबड़ी बग्घी के लिए शेड होते थे.

जरमन बियर और इंजीनियरिंग का दुनिया में आज भी मुकाबला नहीं. उन  के घरों की पुख्ता नींवें बहुत गहरी हैं और सारी प्लंबिंग तांबे की. समयोपरांत ब्रेवरीज के रईस मालिक लेकड्राइव का रुख करते गए और बीच शहर में उन के घर ब्रेवरीज के इंजीनियर और ब्रियूमास्टर्ज खरीदते गए. मिशिगन लेक को छूती एकड़ों जमीन पर आज भी खड़े कुछ आलीशान मैन्शंज और उन के अपने गैस्टहाउस, केयरटेकर्ज कौटेजेज, ग्रीनहाउस, अस्तबल, बग्घीखाने उस युग के प्रतीक हैं. आज के युग में ऐसी इमारतों का रखरखाव लगभग असंभव है. जिन मैन्शंज के मालिक या वारिस नहीं रहे और जो नींवों में लेक का पानी रिसने से खंडहर हो चले, उन्हें डैवलपर्ज ने ढहा कर आधुनिक बंगले, बहुमंजिले मकान जिन्हें यहां कौन्डोज कहा जाता, बना डाले. गौर्डन के परनाना ब्रियूमास्टर थे और शहर के भीतर पुराने घर का विस्तार कर के उसे छोटे मैन्शन का रूप दिया था. उन्नत भाल पर टीके सी खूबसूरत खिड़की का अलग ही एक किस्सा सुनाते हैं.

गौर्डन के नाना इकलौती संतान थे और मैन्शन के उत्तराधिकारी. मैन्शन का विस्तार किया लेकिन उन के पुत्र यानी गौर्डन के मामा ने पादरी बनने का निर्णय ले लिया. मैन्शन पुत्री को मिला और उन के बाद नाती गौर्डन को. ईंटपत्थर की दोहरी दीवारों के बीच एअर स्पेस, लकड़ी के फर्श, मजबूत लकड़ी के डबल फ्रेम वाली खिड़कियां, दरवाजे और हर कमरे में फायर प्लेस व रेडिएटर हीटर्ज भीषण जाड़े में भी घर को आरामदेह रखते हैं. खुले, हवादार घर में एअरकंडीशनिंग की जरूरत भी नहीं पड़ती लेकिन बैठक की एक दीवार गरमी में बेहद गरम हो जाती थी. अधिक आराम के लिए गौर्डन ने एअरकंडीशनर भी लगाए. दीवार फिर भी गरम रहती. एअरकंडीशनर को कई बार जांचने पर भी कारण समझ नहीं आया तो प्लास्टर तोड़ा गया. नीचे दीवार में जड़ी मिली स्टैंडग्लास ही हस्तनिर्मित नायाब गोल खिड़की जिस से तेज धूप अंदर आती रही थी इसीलिए वहां पर प्लास्टर मढ़ दिया गया होगा. गौर्डन ने शीशे की वह खूबसूरत खिड़की निकाल कर घर में ऊपर के बैडरूम को जाती सीढि़यों में लैंडिंग की उस दीवार में फिर जड़वा दी जिस तरफ धूप का रुख नहीं रहता.

वही खिड़की खूबसूरती और ऐंटीक वैल्यू की वजह से उन के घर की पहचान बन गई. रैल्फ मैन्शन यदि लेक के निकट और इलाके में होता तो हैरिटेज होम्ज में शुमार किया जाता जिन की सालाना नुमाइश यानी परैड औफ होम्ज की महंगी टिकटें समाज कल्याण के कई कार्यों के लिए हजारों डौलर जुटाती हैं. अपनी स्टोरी में लगाने के लिए सुमि रैल्फ मैन्शन और खिड़की की फोटो लेती है. खूबसूरती से तराशी झाडि़यों से घिरे लौन में टहलते हुए गौर्डन अगलबगल के  घरों की खस्ता हालत के बारे में पूछने पर बताते हैं कि उन के वृद्ध मालिक या तो नर्सिंग होम में हैं या कब्रगाह में. जो वारिस नौकरियों के सिलसिले में अन्य शहरों में हैं वे घरों को किराए पर चढ़ा गए. मैन्यूफैक्चरिंग का सारा काम चीन क्या गया कि डाउनटाउन का खुशहाल इलाका अब खस्ताहाल है. बढ़ती गुंडागर्दी के कारण किराएदार घर छोड़ कर जाने लगे हैं. खाली घर खुराफात के अड्डे बन रहे हैं. कितने घर तो सरकार ने तालाबंद करवा दिए हैं. नोट्स लेने के साथसाथ सुमि उन की भी फोटोज लेती चलती है.

तालाबंद घरों को फिर आबाद करने की एक स्कीम के तहत मेहनतकश लोग केवल एक डौलर में ऐसे घर खरीद सकते हैं, बशर्ते कि वे उन की मरम्मत कर के कम से कम 5 वर्ष तक अमनचैनपूर्वक उन में खुद रहने और नियम से प्रौपर्टी टैक्स भरने का कौंट्रैक्ट साइन करें. उद्यमी और साहसी नए प्रवासियों के लिए सुनहरा अवसर. ऐसे आबाद घरों से कानून और व्यवस्था में बेहतरी की भी उम्मीद है. संभ्रांत इलाकों में तो घरों को झाडि़यों वगैरा से घेरना लगभग अशिष्टता समझा जाता है लेकिन गौर्डन मजबूर हैं. नशाखोरों की टोलियां ऊंची आवाज में शोरशराबे के साथ किसी के भी घर के आगे हुल्लड़ मचाती मंडराती हैं. पुलिस बुलाओ, उन्हें भगाओ लेकिन अगली रात फिर वही तमाशा. झाडि़यों की सीमा खुराफातियों को कुछ हद तक थोड़ी दूर रखती है. गौर्डन अपने मैन्शन के आगे झाडि़यों की कतार का रोज सुबहसवेरे मुआयना करते हैं. चरसियों, नशाखोरों की रातभर की कारस्तानियों की निशानियां सिरिंजेज, सुइयां, कंडोम बीनते हैं वरना पड़ोस के छोटे बच्चे उन से डाक्टरडाक्टर खेलते हैं. कंडोम को नन्हे गुब्बारे समझ कर फुलाते हैं, उन में पानी भरभर कर एकदूसरे पर फेंकते हैं.

जर्जर हालत में कुछ घरों में सिंगल मदर्स अलगअलग बौयफ्रैंड्स से अपने बच्चों के साथ रह रही हैं. यह वह तबका है जो सरकार को दुधारी गाय मान कर उसे दुहे जाता है. ब्याह, शादी कर के तो आम गृहस्थी की तरह मेहनतमशक्कत से रोटी कमानी पड़ेगी. कोई बौयफ्रैंड अपनी संतान की परवरिश के लिए नियमित राशि दे तो भला, वरना अविवाहित मातापिता संतान को सरकार से मिलने वाले फूड स्टैंप्स और अन्य सहायता के सहारे पालते हैं. ऐसी मानसिकता वालों के कारण इलाके की छवि धूमिल होती है. गौर्डन अपनी दृष्टि घुमा कर सड़कपार कुछ दूरी पर उन घरों की ओर इशारा करते हैं जिन का हाल ही में पुनरुद्धार हुआ लगता है. एक घर के दोमंजिले पोर्च में स्विंगसोफे  या आरामकुरसी पर बैठी कुछ युवतियां मैगजीन पढ़ने या बातचीत करने में तल्लीन दिखती हैं. घर के मालिक अधेड़ आयु के निसंतान दंपती हैं, टायरोल और ऐग्नेस कार्सन. सोशल डैवलपमैंट कमीशन उन के घर की ऊपर मंजिल को किराए पर ले कर जरूरतमंदों के अस्थायी आवास के रूप में इस्तेमाल करता है. फिलहाल वहां रह रही युवतियां यूनिवर्सिटी के सर्टिफाइड नर्सिंग असिस्टैंट कोर्स की स्कौलरशिप स्टूडैंट्स हैं जो पार्टटाइम काम भी करती हैं, जिस की वजह से उन्हें वक्तबेवक्त जानाआना पड़ता है. यूनिवर्सिटी जानेआने के लिए वैन सर्विस है और काम के लिए वे बस से जातीआती हैं.

सुमि कुछ कहती नहीं, लेकिन उस ने अलग से यह भी सुना है कि उस इलाके में गाडि़यां दिन में कई चक्कर मारती हैं. उन में ‘जौन्ज’ यानी ग्राहक होते होंगे. इसी कारण इस इलाके के रैड लाइट एरिया होने की अफवाह धुएं से चिंगारी बनने लगी है. गौर्डन सुमि को महल्ले के दौरे पर ले चलते हैं. 100 गज ही आते हैं कि बस से उतर कर एक अधेड़ महिला थैलों से लदीफंदी सामने से आती दिखती है. गौर्डन आगे बढ़ कर कुछ थैले पकड़ लेते हैं और उन्हें उन के दरवाजे तक छोड़ आते हैं. बारबार थैंक्स कहतीकहती जब वे अंदर चली जाती हैं तब नीची आवाज में सुमि को उन के बारे में गौर्डन बताते हैं कि हो न हो, खून बेच कर आई हैं तभी खरीदारी के थैले अकेले पकड़े थीं. सरकारी फूड स्टैंप्स से ग्रोसरी खरीदने या फूड बैंक से मुफ्त सामान लाने के लिए वे बच्चों को साथ ले जाती हैं. ड्रग ऐडिक्ट बेटी डीटौक्स सैंटर में है. बेटी का बौयफ्रैंड फरार है. उस से और पिछले एकदो बौयफ्रैंड्स से बेटी के 5 बच्चे हैं जिन्हें ये पाल रही हैं. सब को नियम से स्कूल की बस पर चढ़ा कर आती हैं, तीसरे पहर बस स्टौप से लिवा कर लाती हैं और घर में अनुशासित रखती हैं ताकि अच्छी अभिभावक होने का सुबूत दे सकें और बच्चों को अलगअलग फौस्टर होम्ज में न भेजा जाए. इन का पति नशेबाज था, सो उस से तलाक लिया और घरों, दफ्तरों की सफाई के सहारे गुजारा किया. टूटीफूटी हालत में छोटा घर एक डौलर में मिल गया जिसे हैबिटैट वालों ने रहने लायक बना दिया.

बेटी इकलौती संतान है और उसी के बच्चों की वजह से इन्हें कई जगह काम छोड़ना पड़ा. सब से बड़ी नातिन 12 साल की हो जाए तब उस की निगरानी में उस के भाईबहन को कुछ समय के लिए छोड़ कर सफाई वगैरह का ज्यादा काम पकड़ लेंगी. फिलहाल तो स्टेट इमदाद पर गुजारा कर रही हैं लेकिन मजबूरीवश. वे जानती हैं कि इस तरह से पलने वाले बच्चे जीवनभर हीनभावना से ग्रस्त रहते हैं. जैसे और जितना बन पड़े बिन ब्याही मां के नाजायज बच्चों का भविष्य गर्त में जाने से बचाए रखना चाहती हैं गौर्डन और सुमि टहलतेटहलते आगे निकल आते हैं, तो एक पुराना दोमंजिला मकान दिखता है जिस का हाल ही में पुनरुद्धार हुआ लगता है. पोर्च में खड़ी एक अफ्रीकन अमेरिकी वृद्धा मुसकरा कर हाथ हिलाती हैं.

‘‘हाय,’’ गौर्डन गर्मजोशी से अभिवादन का उत्तर देतेदेते उन की तरफ बढ़ते हैं, ‘‘मीट माय न्यू फैं्रड,’’ कहते हुए सुमि का परिचय मिल्ड्रेड से करवाते हैं, ‘‘शी इज डूइंग अ स्टोरी औन अवर नेबरहुड.’’

मिल्ड्रेड की निगाहें अनायास उन घरों की तरफ जाती हैं जिन के कारण महल्ले की छवि धूमिल है, ‘ओहओह’ कहते ही तुरंत संभल जाती हैं.

‘‘कम इन, कम इन,’’ कहते हुए मिल्ड्रेड गौर्डन और सुमि के स्वागत में अपने पोर्च से नीचे उतर आती हैं. उन के साथ भीतर जाते हुए सुमि देखती है कि पोर्च में एक बैंच पर सामान से भरे कागज के खाकी थैले सजे हैं और उन के आगे गत्ते के टुकड़े पर लिखा है, ‘‘हैल्प योरसैल्फ ऐंड ऐंजौय.’’

‘‘आह, सो यू फाउंड गुड डील्ज ऐट द फार्मर्स मार्केट.’’

सुमि की ओर मुड़ कर गौर्डन समझाते हैं कि घर के पीछे अपने छोटे से किचन गार्डन में सागसब्जी उगाना और फार्मर्स मार्केट जा कर खेत से आई ताजी सागसब्जी, फल खरीदना मिल्ड्रेड की हौबी है. खुद तो पकातीखाती हैं ही, बुजुर्ग पड़ोसियों को भी भिजवाने के अलावा कागज के खाकी थैलों में डाल कर पोर्च में रख देती हैं ताकि कोई भी जरूरतमंद ले जाए.मिल्ड्रेड हारपोल रिटायर्ड नर्स हैं. इराक के साथ औपरेशन डेजर्ट स्टौर्म में पति की शहादत के बाद 7 बेटों और 2 बेटियों के पालनपोषण की

जिम्मेदारी अकेले नर्सिंग के सहारे संभालना कठिन था. पति की मृत्यु के बाद मिली राशि और मामूली पैंशन में  भी गुजारा न होता, सो सिलाई, बुनाई, कपड़ों पर इस्तरी और छोटीमोटी कैंटरिंग का काम भी ढूंढ़ा. ड्राईक्लीनिंग की दुकान खोली.

राशनपानी, सागसब्जी की भरसक उम्दा खरीदारी के हुनर के साथ मिल्डे्रड ने गृहस्थी सुचारु रूप से चलाई. बड़ बच्चों ने पढ़ाई के साथसाथ बिजनैस संभालने में हाथ बंटाना सिखाया. 50 साल से महल्ले के बच्चों की क्रौसिंग गार्ड हैं. सुबहशाम स्कूल बसस्टौप तक जिन बच्चों को सावधानी से सड़क पार करवा पहुंचाने/लाने जाती हैं उन में से एक भी कम होता है तो उस की कुशलक्षेम पूछने उस के घर पहुंच जाती हैं. यदि बच्चे की गैरहाजिरी का कारण अभिभावक का देर रात तक नशे में धुत रहने के बाद सुबह समय से न उठ पाना या ऐसी ही कोई गफलत होती है तो अभिभावक की भी अच्छी खबर लेती हैं. आज 7 बेटों में से एक आर्मी के ट्रांसपोर्ट डिवीजन का हैड इंजीनियर है, एक फिजिकल मैडिसन का डाक्टर. शेष 5 में कोई डैंटिस्ट है, कोई कंप्यूटर स्पैशलिस्ट, कोई म्यूजिक सिम्फनी का डायरैक्टर और कोई फुटबौल टीम का हैड कोच. सब से छोटे अविवाहित बेटे ने इंजीनियरिंग में मास्टर्स करने के बाद किसी नामी मैन्युफैक्चरिंग कंपनी में नौकरी के बजाय हाईस्कूल में फिजिक्स और मैथ्स पढ़ाना और स्पोर्ट्स कोचिंग करना पसंद किया है. मिल्ड्रेड की बहुएं भी प्रोफैशनल्स हैं. 2 सीनियर नर्सेज हैं, एक पब्लिक स्कूल सिस्टम में सीनियर पिं्रसिपल, एक म्यूजियम में सीनियर क्यूरेटर, एक स्पोर्ट्स मैडिसिन में थैरेपिस्ट व पति के साथ हैल्थ फिटनैस क्लीनिक की मालिक है और एक पुलिस औफिसर है.

मिल्ड्रेड की आयु के 75 वर्ष पूरे होने पर उन की प्लैटिनम ऐनिवर्सरी के सम्मानस्वरूप सब बेटों ने मिल कर उन के पुराने जर्जर घर का पुनरुद्धार किया. बड़ी बेटी वीरता पदक प्राप्त आर्मी मेजर की विधवा है और आर्मी हौस्पिटल में औपरेशन रूम नर्स. उसे इंटीरियर डैकोरेशन का शौक है और उस ने घरों की रंगाईपुताई का प्रोफैशनल कोर्स भी कर रखा है. अपने युवा बेटेबेटी सहित वह मां के घर की ऊपरी मंजिल में बाकायदा किराया दे कर रहती है. कौन्सर्ट पियानिस्ट सब से छोटी, अविवाहित बेटी और सब से छोटा बेटा भी मां के साथ रहते हैं. बड़ी और छोटी, दोनों बेटियों, छोटे बेटे और नातीनातिन ने दोमंजिले पूरे घर के रखरखाव की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली है. बड़ी बेटी ने बहुत शौक से घर के अंदरबाहर की पूरी पेंटिंग खुद की. छोटे बेटे और नाती ने छत की खपरैलें बदलीं. गरमी में घर के आगेपीछे लौन की घास काटना, पतझड़ में आसपास से उड़ कर जमा पत्तों के ढेर उठाना और जाड़ों में बर्फ साफ करना, ये सब वे लोग ही करते हैं. बेटियों, बहुओं की लाख कोशिशों के बावजूद घर की रोजमर्रा सफाई और थोड़ीबहुत बागबानी मिल्डे्रड स्वयं करती हैं.

जो बेटे अपनेअपने बीवीबच्चों सहित अलग रहते हैं वे भी रविवार को मिल्डे्रड के घर पर इकट्ठे हो कर एकसाथ घूमने जाते हैं जिस के बाद पूरा परिवार साथ बैठ कर लंच करता है. सारी खरीदफ रोख्त खुद ही कर के पूरा खाना मिल्ड्रेड अकेले बनाती हैं और खाने की मेज भी बिलकुल फौर्मल तरीके से सुबहसुबह सजा कर तैयार करती हैं. सालों के अपने नियम में सिर्फ इतनी ढील देने लगी हैं कि बेटियां, बहुएं खाने के बाद मेज और खाना समेटें और कौफी सर्व करें.फार्मर्स मार्केट से ताजे फल, सब्जी खरीदते समय मिल्ड्रेड बखूबी याद रखती हैं कि परिवार में किस को क्या पसंद है. कभी कच्ची, कभी पका कर पहुंचा भी आती हैं. उन की पैनी निगाहें भांप लेती हैं कि अत्यधिक व्यस्तता के  कारण किस के यहां धुला ई के कपड़ों का ढेर हो गया है, किस का फ्रिज साफ कर के चीजें ला कर स्टौक करना है. लाख मना करने पर भी नखशिख से सब दुरुस्त कर के ही लौटती हैं.

‘‘हैल्प योरसैल्फ ऐंड ऐंजौय’’ लिखे गत्ते के टुकड़े के पीछे खड़ी मिल्ड्रेड पर कैमरा क्लिक कर के सुमि उन से विदा लेती है.

लगभग 2 सप्ताह बाद मुलाकात में गौर्डन सुमि को अपने महल्ले में उसी उत्साह से फिर घुमाते हैं जितने चाव से पहली भेंट में अपना रैल्फ मैन्शन दिखाया था. अपनी रनिंग कमैंट्री के साथ टहलते हुए वे इस बार उसे इलाके के उस हिस्से में ले जाते हैं जहां अधिकांश घर तालाबंद हैं और एकाध में मरम्मत चल रही है. मिल्ड्रेड के घर जैसे तो नहीं लेकिन रहने काबिल बनाए गए एकमंजिले घर के दरवाजे पर गौर्डन दस्तक देते हैं. गौरवर्ण एक वृद्धा द्वार खोलती हैं और गौर्डन को देख कर खिल उठती हैं.

‘‘मीट कौंस्टेंस स्टेहमायेर,’’ गौर्डन सुमि से कहते हैं और गृहस्वामिनी से मिलवाते हैं. वृद्धा बड़े प्रेम से स्वागत करती हैं.

कौंस्टेंस को सुमि के प्रोजैक्ट के बारे में समझा कर गौर्डन पूछते हैं, ‘‘हाउ इज माय पिं्रसैस?’’ वृद्धा घर के पीछे लौन में पेड़ पर बंधे हैमौक की तरफ इशारा करती हैं, ‘‘लौस्ट इन हर म्यूजिक, ऐज औलवेज बट शी विल बी डिलाइटेड टू सी यू, औल्सो ऐज औल्वेज.’’ हैमौक के निकट खड़ी उसे हलकेहलके झोटे देती एक युवती का चेहरा सुमि को जानापहचाना सा लगता है.

‘‘आय विल लीव यू लेडीज टु टौक व्हाइल आई जौइन माय यंग फ्रैंड,’’ कहते हुए गौर्डन पीछे की तरफ बढ़ जाते हैं. कौंस्टेंस तलाकशुदा हैं, वयस्क पुत्रों और पुत्री की मां. ‘पिं्रसैस’ कौंस्टेंस की 25 वर्षीया बेटी है, गे्रटा, जो मानसिक तौर पर बाधित है. पति रिचर्ड स्टेहमायेर एक औल अमेरिकन ट्रक कंपनी के सीनियर ड्राइवर हैं जिस कारण उन्हें दूरदराज शहरोें तक जाना पड़ता था. कौंस्टेंस एक छोटे बिजनैस के लिए अकाउंटिंग करती थीं. हर महीने 2-2, 3-3 हफ्तों की पति की लंबी गैरहाजिरियों की वजह से घर का सारा दायित्व भी उन्हें अकेले ही संभालना पड़ता था. पिता का अंकुश न होने के कारण बेटे उद्दंड हो गए थे.

दोनों के जन्म के वर्षों बाद शरीर से स्वस्थ और बेहद खूबसूरत बेटी के आगमन की खुशी पर तुषारापात हुआ जब डाक्टरों ने बताया कि वह आजन्म मंदबुद्धि ही रहेगी. सब से बड़ा सदमा तो तब लगा जब रिचर्ड ने साफ इल्जाम लगाया कि मंदबुद्धि बच्ची उन की संतान हो ही नहीं सकती बल्कि उन की लंबी गैरहाजिरी में किसी के साथ कौंस्टेंस के अफेयर का नतीजा है. उन्हें तलाक चाहिए. उस समय डीएनए जैसे प्रमाण की जानकारी नहीं थी. बेटों को सदमे से बचाने के लिए कौंस्टेंस ने तलाक की कार्यवाही को लंबा नहीं खींचा. मामूली से सैटलमैंट में उन्हें घर तो मिला लेकिन बाधित बच्ची की चौबीसों घंटे देखभाल के लिए कौंस्टेंस को नौकरी छोड़नी पड़ी. खर्चे की किल्लत की वजह से आखिरकार घर भी बेचना पड़ा और फूड स्टैंप्स पर गुजर की नौबत आ गई. वैलफेयर हाउसिंग कौंप्लैक्स के तंग अपार्टमैंट में शरण लेनी पड़ी. वैलफेयर हाउसिंग यानी सबस्टैंडर्ड लिविंग कंडीशंस. दीवारों से पपड़ी बन उतरता पेंट, नलों से लीक होता पानी, आए दिन चोक होती नालियां. बदबूदार गलियारों में चूहे, काक्रोच, गालीगलौज वाला पड़ोस. गंदी गुडि़या सी ग्रेटा बावली घूमती, दीवारों से उतरती पपडि़यां चाटती और जहांतहां गंदगी करती. दलदल में फंसी कौंस्टेंस डिप्रैशन में डूबती गई थीं और खैरात पर पलने वालों की मानसिकता उन पर हावी होती गई. बिना मेहनत सरकार से जो भी खींच सको, भला. डिप्रैशन के लिए गोलियां लेतेलेते नौबत नशे तक आ गई थी.

हाउसिंग कौंप्लैक्स में मुद्दा उठा कि मकानमालिक सरकार से बस पैसे ऐंठते हैं और अपार्टमैंट्स के रखरखाव पर धेला नहीं खर्च करते. एक शातिर वकील ने मुद्दे को तूल दिया कि अपार्टमैंट्स की दीवारों पर मकानमालिक सस्ता पेंट करवाता है जिस में सीसा मिला होता है. घटिया पेंट बहुत जल्दी पपडि़यां बन कर उतरता है जिसे गे्रटा जैसे छोटे बच्चे अकसर मुंह में रख लेते हैं और बहुतों को मिरगी के दौरे पड़ने लगे हैं. ऐसे दौरे गे्रटा को भी पड़ने लगे तो कौंस्टेंस के दिमाग में खयाल कौंधा. वे शिकायती दल की प्रतिनिधि बन गईं और वकील की मदद से मकानमालिक व पेंट कंपनी, दोनों पर सामूहिक मुकदमा ठोंक दिया. अखबारों ने मामले को खूब उछाला. नतीजतन दावेदारों को भारी मुआवजा मिला जिस का लगभग आधा भाग वकील की जेब में गया. इलाके में सक्रिय राजनीतिक दल और सोशल डैवलपमैंट कमीशन ने हस्तक्षेप कर के सब दावेदारों को मकानमालिक के बेहतर हाउसिंग कौंप्लैक्स में अपार्टमैंट्स दिलवाए. पेंट कंपनी से भी भारी हर्जाना वसूल कर गे्रटा जैसे बाधित बच्चों के ताउम्र इलाज के लिए एक ट्रस्ट बनाया गया.

मां की अत्यधिक व्यस्तता और तंगदस्ती की वजह से बेटे बिलकुल बेकाबू हो गए. वयस्क होते ही बड़ा बेटा अलग रहने लगा. कद्दावर शरीर के बल पर उसे एक नाइट क्लब में बाउंसर यानी दंगाफसाद करने वालों से निबटने की नौकरी मिल गई. कुछ समय बाद वह कैलिफोर्निया चला गया जहां वह फिल्मों में स्टंटमैन है. अपनी डांसर बीवी के साथ एक  छोटीमोटी टेलैंट एजेंसी चला रहा है जो फिल्म और टीवी की दुनिया में मौका पाने को आतुर भीड़ के लिए छोटेमोटे रोल जुटाती है. छोटे बेटे ने जैसेतैसे हाईस्कूल पास किया और कम्युनिटी कालेज से अकाउंटिंग और कंप्यूटर कोर्सेज पूरे कर के एक कार डीलर के यहां अकाउंटैंट बन गया. काम में होशियार था. अच्छा वेतन और बोनस कमाने लगा तो मां और बहन को छोड़ कर वह भी अलग हो लिया. जो भी कमाता वह गर्लफ्रैंड्स, कैसीनो और पब में उड़ा देता. खर्चीली आदतें बढ़ती गईं तो कर्ज लेने लगा और आखिरकार गबन करते पकड़ा गया.

कौंस्टेंस को जबरदस्त झटका लगा. रिचर्ड को खबर की. वे मिलने तो आए लेकिन जमानत से हाथ खींच लिया. बड़े बेटे से मदद मांगी तो उस ने मां को खरीखरी सुनाईं कि यदि खैरात के बजाय ईमानदारी व इज्जत से बेटे पाले होते तो ऐसी नौबत ही क्यों

बेटों के दिए सदमे से उबरने का अप्रत्याशित अवसर भी प्रकृति ने दिया. बड़े बेटेबहू के यहां लंबे इंतजार के बाद संतान हुई जिस के बारे में उन्हें बहुत समय बाद पता लगा. वह भी तब जब बरसों बाद रिचर्ड को अचानक अपने सामने पाया. उन से जाना के दोनों का पहला पौत्र मंदबुद्धि जन्मा है. कौंस्टेंस पर लगाए लांछन के लिए शर्मिंदा रिचर्ड स्वयं को क्षमा नहीं कर पा रहे थे. बडे़ बेटे ने भी कहलवाया कि मां को घोर विपत्ति से अकेले जूझने को छोड़ देने के लिए वह उन्हें अपना मुंह दिखाने के काबिल नहीं है. बापबेटे ने मिल कर प्रायश्चित करने की याचना की और गौर्डन के महल्ले में एक तालाबंद घर कौंस्टेंस को खरीदवा कर उस का पुनरुद्धार कर डाला जिस में वे रहती हैं. संबंधों के बीच बरसों पुरानी गहरी दरार पटनी मुश्किल है लेकिन रिचर्ड अब लगभग हर महीने मिलने आते हैं. बड़े बेटे ने भी पत्नी और बच्चे के साथ आने की इच्छा प्रकट की है. पिता और दोनों भाई ग्रेटा के हितचिंतक बने रहें, कौंस्टेंस इस से ज्यादा कुछ नहीं चाहतीं. गुजारे लायक कमा लेती हैं. बढ़ती आयु के कारण गे्रटा की पूरी देखभाल अकेले करने में कठिनाई होने लगी तो उसे स्पैशल नीड्ज वालों के होम में डाल दिया जिस का खर्च ट्रस्ट उठाता है. बेटी की मैडिकल और रिक्रिएशनल जरूरतों के प्रति अब बेफिक्री है लेकिन वीकेंड पर उसे घर ले आती हैं और पड़ोस में रहने वाली सर्टिफाइड नर्सिंग असिस्टैंट कोर्स की स्टूडैंट्स में से किसी न किसी को मदद के लिए बुला लेती हैं. सुमि सोचती है कि तभी गे्रटा को झोटे देती युवती का चेहरा जानापहचाना लगा.

छोटे बेटे ने भी जिंदगी से सबक सीखा. जेलयाफ्ताओं को मिलने वाली शैक्षणिक सुविधा का लाभ उठा कर उस ने कंप्यूटर सौफ्टवेयर डैवलपमैंट में मास्टर्स कर लिया. अच्छे आचरण के लिएउस की सजा की मियाद घटा दी गई है और जल्दी ही रिहाई के बाद उसे वहीं जेल में एजुकेटर की नौकरी भी मिल जाएगी. भाई और पिता की तरह वह भी अपने व्यवहार के लिए शर्मिंदा है. पिछली विजिट में वे उसे अपने साथ आ कर रहने के लिए लगभग राजी कर आई हैं. सुमि सर्टिफाइड नर्सिंग असिस्टैंट कोर्स की स्टूडैंट्स से भेंट करने के बारे में गौर्डन से मशविरा करती है तो वे उसे कौंस्टेंस की मदद लेने की सलाह देते हैं. एक फोटो लेने और इंटरव्यू के लिए सुमि कौंस्टेंस से पूछती है तो वे चौंक कर पीछे लौन पर नजर डालती हैं, ‘‘अनेदर टाइम,’’ कह कर टाल देती हैं. असमंजस से भरी सुमि उन से विदा ले कर गौर्डन के साथ बाहर आ जाती है.

असाइनमैंट सबमिट करने की डैडलाइन से पहले सुमि गौर्डन को फोन करती है कि स्टोरी लगभग पूरी है, सिर्फ सर्टिफाइड नर्सिंग असिस्टैंट कोर्स की स्टूडैंट्स से इंटरव्यू और एकाध फोटो लेना बाकी है. वे कौंस्टेंस से मशविरा कर के वापस फोन करने का आश्वासन देते हैं. 2 दिन बाद वे सुमि को रैल्फ मैन्शन बुलाते हैं.वहां पहुंचने पर कौंस्टेंस भी मिलती हैं. गंभीर मुद्रा में वे सुमि से वचन लेती हैं कि जो कुछ भी उसे बताया जाएगा उसे वह अपने तक सीमित रखेगी, असाइनमैंट सबमिट करने से पहले उन्हें दिखाएगी और ऐसा भी हो सकता है कि वे स्टोरी के किसी अंश को सैंसर करना चाहें.

कौंस्टेंस बहुत मुलायम स्वर में कहना शुरू करती हैं कि मामला एक पुराने संभ्रांत महल्ले का है जो समय की मार से बुरी तरह घायल हुआ. उस के अच्छे समय की स्मृतियां संजोए गौर्डन, टायरोल और ऐग्नेस, मिल्ड्रेड और कौंस्टेंस जैसे कुछ लोग इलाके को रैड लाइट एरिया के नाम से बदनाम किए जाने से तिलमिलाए हुए हैं. इसीलिए समाज उद्धार पर कटिबद्ध सोशल डैवलपमैंट कमीशन से जुड़े हैं. सुमि की स्टोरी उन के प्रयास को बल देगी, इस आस्थावश सब ने उसे पूर्ण सहयोग दिया. अपने जीवन के अंतरंग पक्ष उस के साथ साझा किए. टायरोल और ऐग्नेस सर्टिफाइड नर्सिंग असिस्टैंट कोर्स की स्टूडैंट्स के महज मकानमालिक ही नहीं, सोशल डैवलपमैंट कमीशन द्वारा नियुक्त उन के अभिभावक भी हैं. वे युवतियां वयस्क हैं लेकिन उन के अतीत को एक रहस्य ही रहना होगा. वे बस बहुत कच्ची आयु से ही घोर प्रताड़ना और त्रासदी के भंवर में घिर कर आत्महत्या के कगार तक पहुंच गई थीं.

अवैध तरीकों से देश में लाई गई उन जैसी लड़कियां वेश्यावृत्ति करवाने वाले गिरोहों के चंगुल में फंसी गर्त में गिरती जाती हैं. कई मार दी जाती हैं या नशाखोरी अथवा एड्स की शिकार हो कर दर्दनाक मौत का शिकार बनती हैं. अलगअलग शहरों में पुलिस के छापों में पकड़ी गई ऐसी युवतियों को इमिग्रेशन वालों की सहायता से तत्काल नया रूपरंग, नई पहचान दे कर दूर भेज दिया जाता है और समाजसेवी संस्थाएं उन का पुनर्वास करती हैं.कौंस्टेंस के यहां पीछे बगीचे में गे्रटा को झूला झुलाती जो युवती सुमि को पहचानी सी लगी, वह प्योनी है. गौर्डन के साथ महल्ले में घूमते हुए सुमि ने दोमंजिले पोर्च में बैठी, बतियाती युवतियों के बीच उसे देखा होगा.

सर्टिफाइड नर्सिंग असिस्टैंट कोर्स पूरा होते ही इन युवतियों को फिर रीलोकेट कर दिया जाएगा ताकि उन के पिछले पदचिह्न मिटते रहें जब तक पिछला कोई भी सुराग बाकी न बचे. कार्सन दंपती का घर उन का स्थायी पुनर्वास नहीं, बल्कि एक कड़ी मात्र है. कुछ अन्यत्र कहीं नर्सिंग कालेज में डिगरी कोर्स पूरा करेंगी और आर्मी में जाएंगी. कुछ की अलगअलग शहरों में वृद्धों के नर्सिंग होम्स में नौकरी लगभग पक्की है. अन्य को शहरशहर घूमतेघूमते कोई ठिकाना मिल ही जाएगा जिस में वे बेखौफ रह सकेंगी. जिस घर में 10 युवतियां रहती हों उस का असामाजिक तत्त्वों की नजरों से बचना मुश्किल होता है. टायरोल और ऐग्नेस के घर के चक्कर लगाने वाली बिना पहचान की गाडि़यां पुलिस के विशेष सुरक्षा दस्ते की हैं. सुमि की स्टोरी को डिस्टिंक्शन ग्रेड मिलता है. स्टोरी में सुमि ने यूनिवर्सिटी और सोशल डैवलपमैंट कमीशन के साझे इनीशिएटिव का संक्षिप्त वर्णन ही दिया जिस के तहत जरूरतमंद वर्ग छात्रवृत्तियों और रिहाइश जैसी अन्य सुविधाओं का लाभ उठा कर अपना भविष्य संवार रहा है. निष्ठावान निवासियों द्वारा इलाके की धूमिल छवि को सुधारने के लिए किए गए अथक प्रयासों के सजीव चित्रण के लिए जर्नलिज्म डिपार्टमैंट का अखबार उसे मुख्य फीचर बनाता है. शहर के प्रमुख दैनिक में उस का प्रचुर विवरण छपता है.

सुमि अखबार की कई प्रतियां गौर्डन, कौंस्टेंस, मिल्डे्रड और टायरोल के यहां पोस्ट कर देती है. यूनिवर्सिटी और सोशल डैवलपमैंट कमीशन की ओर से जर्नलिज्म डिपार्टमैंट का अखबार शहर के मुख्य दैनिक के साथ मुफ्त वितरित किया जाता है. ग्रैजुएशन डे पर सुमि को बधाई देने वालों में गौर्डन, कौंस्टेंस, मिल्ड्रेड, टायरोल और ऐग्नेस के साथ प्योनी और उस की साथिनें भी आती हैं. सब के साथ फोटो सुमि को बैस्ट अवार्ड लगता है. स्थानीय अखबार में सह संपादक सुमि अब डाउनटाउन के चप्पेचप्पे से वाकिफ हो चुकी है. विस्कौन्सिन एवेन्यू और ट्वैंटी फ ोर्थ स्ट्रीट का चौराहा पार करते हुए सुमि पुराने भय को याद कर के हंसे बिना नहीं रह पाती. उस इलाके में प्रौपर्टी डैवलपमैंट जोर पकड़ने लगा है और जमीन के भाव बढ़ रहे हैं

आती? सजायाफ्ता बेटे से मिलने जेल गई तो उस ने मुंह फेर लिया और कड़वे शब्दों में आइंदा मिलने आने के लिए मना कर दिया. मां ने बेटे से मिलने जाना नहीं छोड़ा. भले ही वह बात न करता था लेकिन दूर बैठ उसे जीभर देख कर वे लौट आती थीं.अपने ही खून से ऐसे घोर अपमान से कौंस्टेंस हिल गईं. उन्होंने अपनी शेष जिंदगी का रुख मोड़ने का निश्चय किया और विपन्न स्थिति में अपने जैसे हताश लोगों की मानसिकता बदलने के इरादे से सोशल डैवलपमैंट कमीशन के प्रयासों से जुड़ने की ठान  ली. आर्थिक सहायता के दावेदारों को सही और वाजिब अर्जियां दाखिल करने में मदद करने लगीं. अब अपने हाउसिंग कौंप्लैक्स की मुखिया हैं और इलाके में सक्रिय राजनीतिक दल की कार्यकर्त्ता.

जीजाजी की हरकतों के कारण मैं परेशान हूं, समझ नहीं आ रहा क्या करूं ?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मेरे जीजाजी बहुत आशिकमिजाज हैं. पिछले दिनों वे हमारे घर आए हुए थे, तो बारबार बातचीत में मुझे टच करने की कोशिश करते रहे. एक दिन मैं स्कर्टकोटी में बैठी थी कि मेरे पास बैठ गए और बातोंबातों में हंसते हुए मेरी जांघ पर हाथ फेरने लगे, उस समय दीदी भी बाहर गई हुई थीं. मुझे यह अच्छा नहीं लगा. मैं क्या करूं?

जवाब

आप पहले तो दीदी के घर ज्यादा जाना छोड़ें. वजह पूछने पर पेरैंट्स को यह बात बता दें. जब आप वहां जाना छोड़ देंगी तो जीजाजी से भी दूरी बनेगी. इसी तरह जब वे आप के घर आएं तो उन से दूरी बना कर रहें. पेरैंट्स के साथ बैठ कर उन से बात करें, अकेले में न मिलें. कौन्फिडैंस में ले कर दीदी को भी यह बात बताएं ताकि वे भी उन पर नजर रख सकें व आप के बचाव में साथ दें. जीजाजी से अपना व्यवहार भी रिजर्व रखें.

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रिश्तों की आड़ में सेक्स का खेल

हमारे समाज में ऐसी औरतें या लड़कियां कम नहीं हैं, जो अपने किसी न किसी हथकंडे से मर्दों को पा कर ही रहती हैं. ऐसी औरतें सोचती हैं कि अगर वे किसी को अपना जिस्म सौंप कर उन्हें मजे दे देंगी, तो इस से उन का बिगड़ेगा भी क्या? 24 साला सुचित्रा अंगरेजी में एमए और फिर बीऐड करने के बाद भी सरकारी टीचर नहीं बन पाई, तो उस ने तमाम प्राइवेट स्कूलों में टीचर की नौकरी के लिए आवेदन देना शुरू कर दिया. सुचित्रा पिछड़ी जाति की थी, इसलिए उसे बहुत सी जगह रखा ही नहीं गया. जब उसे अपने शहर के स्कूलों में नौकरी नहीं मिल पाई, तो उस ने गांवों के निजी स्कूलों में आवेदन भेजना शुरू कर दिया था. वहां ऊंची जाति की औरतें नौकरी के लिए नहीं जाती थीं.

जब अपने शहर से डेढ़ सौ किलामीटर दूर एक कसबेनुमा गांव के निजी स्कूल में नौकरी मिली, तो सुचित्रा ने उसे स्वीकर कर लिया था. स्कूल के मैनेजर ने सुचित्रा के रहने का इंतजाम अपने गांव के सेना एक रिटायर्ड अफसर लाखन सिंह के मकान में कर दिया था. 50 साला मकान मालिक लाखन सिंह अपने मकान में अकेले ही रहते थे. उन का बेटा अपने परिवार के साथ किसी बड़े शहर में रहता था. लाखन सिंह ने अपने मकान के चौक में पानी के लिए बोरिंग लगा रखा था. जब वे नहाते थे, तब उन के गठीले बदन को देख कर सुचित्रा का दिल उन्हें पाने को मचल उठता था. एक रात जब लाखन सिंह शौच के लिए जाने लगे, तो उन्होंने बैड पर सोती हुई सुचित्रा को झीने कपड़ों में देखा. उन का दिल उसे पाने के लिए मचलने लगा. 10 साल पहले उन की बीवी की मौत हो चुकी थी. उस के बाद उन्होंने किसी औरत से जिस्मानी संबंध नहीं बनाए थे. उस समय सुचित्रा भी जागी हुई थी, पर वे सोती समझ बैड के पास खड़े हो कर उस के शरीर को गौर से देखने लगे.

अचानक सुचित्रा ने उन की ओर मुसकराते हुए एक मादक अंगड़ाई ली और अपने बैड पर बिठा लिया. सुचित्रा उन से बोली, ‘‘आप भी प्यासे हैं और मैं भी प्यासी हूं, इसलिए अब हम दोनों अपनीअपनी प्यास बुझा लेते हैं. कोई हम पर शक भी नहीं कर सकता है.’’ यह कहते हुए जब सुचित्रा ने उन्हें अपने ऊपर गिराया, तो वे भी उस समय अपना आपा खो बैठे. वे उस पर बुरी तरह झपट पड़े. प्यार का खेल खेलने के बाद जब वे दोनों एकदूसरे से अलग हुए, तो सुचित्रा उन से बोली, ‘‘अच्छी सेहत के लिए सैक्स करना जरूरी होता है, क्योंकि इस से हमारे शरीर की जकड़ी हुई नसें खुल जाती हैं. आप में तो इतनी ताकत है कि मुझे वाकई मजा आ गया.’’

कुछ दिनों के बाद सुचित्रा की एक 22 साला सहेली प्रमिला उस के पास रहने आई. उसे पता चल गया कि उस की सहेली सुचित्रा और अंकल के बीच क्या संबंध हैं. वह भी उन से मजे लेने के लिए मचल उठी और दूसरे दिन खुद ही उन के पास चली गई. प्रमिला के मादक अंगों को देख कर वे हैरान रह गए थे. उस के बाद वे दोनों सहेलियां उन से खूब मजे लेने लगी थीं. लाखन सिंह ने एक जिगरी दोस्त अमर सिंह को भी अपने पास बुला लिया और उसे भी मजे दिलवाना शुरू कर दिया था.

मजे लेने के बाद वे दोनों ही उन्हें खूब पैसे देने लगे थे. एक बार जब सुचित्रा के मांबाप उस से मिलने गांव आए, तब वे यह जान कर खुश हुए थे कि लाखन सिंह ने उन की बेटी को अपनी धर्म बेटी बना लिया है. लेकिन उन्हें इस बात की भनक तक नहीं थी कि इस रिश्ते की आड़ में उन की बेटी सुचित्रा लाखन सिंह के साथ सैक्स संबंध बना कर मजे ले रही है. सुचित्रा ने जब अपने मांबाप को लाखन सिंह के दिए हुए रुपए थमाए, तो वे उन्हें किसी देवता से कम नहीं समझ रहे थे. यही हाल सुचित्रा की सहेली प्रमिला के मां बाप का भी था. लाखन सिंह ने न सिर्फ उसे जिस्मानी मजे दिए थे, बल्कि एक लाख रुपए देने के साथसाथ अपने गांव के स्कूल में नौकरी भी लगवा दी थी.

ऐसी ही एक और दास्तान शहर में रहने वाले सुनील और उस के मकान में किराए पर रहने वाले मोहन की 20 साला खूबसूरत बीवी हर्षा की थी. शादी के बाद जब हर्षा पहली बार अपने पति मोहन के साथ शहर में आई, तो उसे देख कर उस का मकान मालिक सुनील ऐसा लट्टू हुआ कि वह उसे पाने के लिए बेचैन हो गया. इधर, राधिका अपने पति सुनील से बोर हो चुकी थी. उस का दिल मोहन पर आ गया था. एक दिन वह मोहन के कमरे में जा कर बोली, ‘‘मैं आप की हर्षा को अपनी छोटी बहन बनाना चाहती हूं और आप को अपना जीजा.’’ यह सुन कर मोहन उस से बोला, ‘‘बना लो. इसी बहाने मुझे भी अपनी साली से हंसीठिठोली करने का मौका मिलेगा और हर्षा भी साली बन कर सुनीलजी से हंसीठिठोली कर लेगी.’’

मोहन ने अपनी नईनई बनने वाली 23 साला खूबसूरत साली राधिका को आंख मारी, तो वह खुशी से मुसकरा उठी.  राधिका अपने पति सुनील से बोली, ‘‘जब हर्षा को मैं ने अपनी छोटी बहन बना कर आप की साली बना दिया है, तो आप इसे अपने साथ ले जा कर इस की पसंद की खरीदारी कराओ और इसे कुछ खिलापिला कर शहर में घुमाफिरा कर लाओ. इस पर कुछ पैसे खर्च करो.’’ हर्षा से मजे पा कर सुनील ने उसे खूब खिलायापिलाया और उस की पसंद की खरीदारी कराई. जब वे दोनों घर पहुंचे, तब तक मोहन दफ्तर जा चुका था.

राधिका ने हर्षा से पूछा, ‘‘तुम्हें जीजाजी ने परेशान तो नहीं किया?’’

‘‘परेशान तो काफी किया था, पर मैं उस परेशानी को भूल गई हूं. रात को इन से फिर मिलूंगी.’’

इन झूठे रिश्तों की आड़ में सैक्स संबंध बनाने की दास्तानें बहुत हैं. आजकल सैक्स संबंध बनाने के लिए लोग किसी से भी अपने रिश्ते बना लेते हैं. दिक्कत तब होती है, जब कई मर्दों से संबंध रखने वाली औरत पेट से हो जाती है, तब सारे मर्द उस का साथ छोड़ कर भाग जाते हैं.

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या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

दिखना चाहती हैं कूल, तो Gen Z से लें स्टाइलिंग टिप्स

Gen Z Styling Tips : जेन- Z का फैशन सेंस कंफर्ट, क्लासी और ट्रैंडी का परफैक्ट मिश्रण है. यह पीढ़ी फैशन को नए नजरिए से देखती है और हर रोज के आउटफिट्स में एक स्टेटमैंट ऐड करती है. अगर आप भी Gen Z की तरह अपने लुक को ट्रैंडी बनाना चाहते हैं, तो उन के कुछ पसंदीदा फैशन ट्रैंड्स और स्टाइलिंग टिप्स को फौलो कर सकते हैं.

लौंग सौक्स के साथ कूल लुक

मिलेनियल जैनरेशन के लोग अब भी जिम के स्पोर्ट्स शूज हों या औफिस लौफर्स उन्हें ऐंकल लैंथ सौक्स के साथ पहनना पसंद करते हैं जबकि जेन जी इस ट्रैंड के बेहद खिलाफ है. लौंग सौक्स या कहें घुटनों तक लंबी सौक्स Gen Z की फैवरिट ऐक्सेसरीज में से एक है. ये स्टाइलिश और कंफर्टेबल दोनों हैं. भले ही जिम की लैगिंग्स हों या औफिस की फौरमल आउटफिट, नई जैनेरेशन लंबी सौक्स ही चुनती हैं. आप इन सौक्स को ओवरसाइज्ड हुडी या टीशर्ट ड्रैस के साथ या फिर कलरफुल और प्रिंटेड सौक्स को मिनी स्कर्ट्स और शौर्ट्स के साथ स्टाइल कर सकते हैं.

मौम जींस का रैट्रो वाइब

Gen Z के लिए मौम जींस का क्रेज काफी ज्यादा है. यह न केवल कंफर्टेबल है बल्कि रैट्रो वाइब भी देती हैं. आप इसे क्रौप टौप या ब्रालेट के साथ स्टाइल कर सकते हैं. इस हाई वेस्ट जिंस को टकइन शर्ट के साथ भी स्टाइलिश लुक दिया जा सकता है. इस में आप और एलिगेंस ऐड करने के लिए व्हाइट स्नीकर्स और मिनिमल ज्वैलरी के साथ पेयर कर सकते हैं.

बौयफ्रैंड जींस का रिलैक्स्ड अंदाज

बौयफ्रैंड जींस की बैगी फिट और कंफर्ट इसे Gen Z की पसंदीदा कैजुअल चौइस बनाती है. बौयफ्रैंड जींस के साथ फिटेड टीशर्ट या बौडीसूट का कंट्रास्ट लुक ट्राई किया जा सकता है जिस में आप लेयरिंग के लिए डैनिम जैकेट या फ्लैनल शर्ट का इस्तेमाल कर सकते हैं. इस के साथ ही हील्स या स्लाइडर्स के साथ इसे ग्लैम टच दें.

मोनोक्रोम लुक : क्लासी और सटल

मोनोक्रोम लुक यानी एक ही रंग के अलगअलग शेड्स का कौंबिनेशन बनाना, Gen Z के सब से क्लासी ट्रैंड्स में से एक है. इस में आप के पास रंगों की कोई सीमा नहीं है. आप पिंक, पर्पल, ग्रीन, ब्लू के अलगअलग शेड एकसाथ स्टाइल कर सकते हैं. बस ध्यान रखना है कि एक बार में एक ही रंग चुनें, इंयररिंग्स से लेकर टौप जैकेट, शूज, पर्स सब उसी कलर की शेड में होना चाहिए. काले, सफेद, बेज या ग्रे कलर के बेसिक रंगों में मोनोक्रोम लुक को अपनाने के लिए आप डिफरैंट टैक्सचर ऐड कर के अपने लुक को दिलचस्प बना सकते हैं.

न्यूट्रल कलर्स है जेन जी की पसंद

Gen Z के फैशन में न्यूट्रल कलर्स जैसे बेज, टैन, औलिव ग्रीन और ग्रे का खास महत्त्व है. न्यूट्रल कलर टौप्स को ब्राइट बौटम्स के साथ पेयर कर या न्यूट्रल स्कर्ट्स और शौर्ट्स को क्रौप टौप्स के साथ मैच कर के स्टाइलिश और कंफी लुक क्रिएट किया जा सकता है. इस पूरे लुक को मौडर्न बनाने के लिए न्यूट्रल ब्लेजर और मिनिमल ज्वैलरी का इस्तेमाल करें.

लौंग लेंथ आउटफिट्स : Gen Z का स्टाइल स्टेटमैंट

लौंग लेंथ ओवरसाइज्ड जैकेट्स, ट्रेंच कोट, शैकेट्स, ओवरसाइज हुडी और ड्रैसेज Gen Z की अलमारी का अहम हिस्सा हैं. Gen Z का स्टाइल मोटो है : ‘कंफर्ट विद स्टाइल.’ इसलिए लौंग लेंथ ओवरसाइज आउटफिट्स जेन जी को पंसद है.

आप ओवरसाइज्ड जैकेट को क्रौप टौप और हाईवेस्ट जींस के साथ ट्रेंच कोट को सिंपल ब्लैक ड्रैस के साथ या फिर वाइड लेग पैंट्स और टर्टलनेक के साथ पहन सकते हैं. लौंग ड्रैस को स्नीकर्स और बोल्ड बेल्ट के साथ ऐक्सेसराइज करें. ओवरसाइज्ड लौंग कार्डिगन को क्रौप टौप और मौम जींस के साथ पेयर करें.

Gen Z से प्रेरित फैशन के फायदे

जेन जी से इंस्पायर फैशन को अपनाने के अपने फायदे हैं. यह जैनरेशन स्टाइल के साथ बजट को मैनेज कर के चलती है. इन के लुक में आप को कंफर्ट और स्टाइल का बैलेंस मिलता है. ये जैनरेशन मिनिमलिज्म को भी प्रोमोट करते हैं और कम चीजों को कैसे पेयर कर के स्टाइलिश लुक अपनाया जाए इस पर फोकस करती हैं. जेन जी की बैस्ट बात यह भी है कि यह सिर्फ बड़े मंहगे ब्रैंड्स को अपने वार्डरोब में शामिल नहीं करती बल्कि सस्टेनेबल फैशन पर भी फोकस करती हैं. ये जैनेरेशन थ्रिफ्ट शौपिंग और रीसाइक्लिंग को बढ़ावा देती हैं. कैसे आप को बेहतर थ्रिफ्ट शौपिंग करनी है, ये टिप्स भी आप को जेन जी से लेनी चाहिए.

जेन जी की स्टाइलिंग में अच्छी बात यह भी है कि वे सिर्फ ट्रैंड्स को फोलो नहीं करतीं बल्कि उन्हें अपने बौडी शेप और पर्सनैलिटी के हिसाब से अल्टर यानी बदलती है.

Gen Z से प्रेरणा ले कर आप अपने फैशन को मौडर्न के साथ कंफर्टेबल और स्टाइलिश भी बना सकते हैं. उन के टिप्स को अपना कर आप अपने रोजमर्रा के आउटफिट्स में एक फ्रैश और ट्रैंडी टच ला सकते हैं. तो अब इंतजार क्यों, अपने अलमारी को Gen Z के स्टाइल के मुताबिक अपडेट करें और हर दिन एक नया लुक ट्राई करें.

IVF Child : अंश हमारा है

IVF Child : विपिन और सीमा बेसब्री से घर में आने वाले नए मेहमान के स्वागत की तैयारी में व्यस्त थे. शादी के 7 साल बाद भी जब उन के आंगन में बच्चे की किलकारियां नहीं सुनाई दीं तो उन्होंने आईवीएफ का सहारा लिया. स्पर्म और एग दे कर लैब में फर्टिलाइजेशन करवा लिया.

दोनों के परिवार वाले काफी संकीर्ण विचारों के थे. आईवीएफ का आइडिया किसी को भी बताया ही नहीं गया था पर विपिन और सीमा ने जब एक बार फैसला ले लिया तो फिर किसी की चिंता नहीं की. सीमा की मां निर्मला बच्चे के घर आने के हिसाब से उन के पास मुंबई आ गई थीं.

विपिन और सीमा को डाक्टर कीर्ति मेनन ने एक प्यारा सा बच्चा उन की गोद में दिया तो दोनों भावुक हो गए, सीमा ने खुशी से रोते हुए बच्चे को चूमचूम कर जैसे वहां उपस्थित सभी लोगों को भावुक कर दिया. निर्मला देवी ने बच्चे को अपनी बांहों में लेते हुए सब को थैंक यू कहा. साथ लाई मिठाई डाक्टर और स्टाफ को देने का इशारा करती नजरों से सीमा से कहा, ‘‘पहले सब का अपने हाथों से मुंह मीठा कराओ.’’

‘‘घर वापसी में विपिन के बराबर में बैठी सीमा बच्चे को ही निहारती रही. विपिन कार चलाते हुए बोला, ‘‘सीमा, हम ने सोचा था बेटा होगा तो नाम अंश रखेंगे, ठीक है न नाम मां?’’

‘‘पंडितजी से निकलवाएंगे, जैसा वे कहें,’’ जवाब सीमा ने दिया, ‘‘मां नहीं, हम खुद रखेंगे बच्चे का नाम, आप के पंडितजी ने कभी यह बताया था कि मैं मां कब बन पाऊंगी?’’

निर्मला चुप हो गईं. बोलीं, ‘‘खुशी का समय है, गुस्सा मत हो जैसा तुम्हें ठीक लगे, वैसा कर लो बेटा.’’

घर तक सिर्फ अंश की ही बातें होती रहीं. विपिन और सीमा का फ्लैट मीरा रोड पर था. घर में काम करने वाली मेड अंजू को अब पूरे दिन के लिए रख लिया गया था. अंश के साथ जैसे सब का जीवन पूरी तरह बदल गया. सब की बातों का केंद्र वही रहता.

सीमा विपिन से हंस कर कहने लगी, ‘‘विपिन, तुम ने देखा हम तो जैसे हर बात भूल गए अपनी, बस ये ही अब लाइमलाइट ले लेता है.’’

विपिन हंसा, ‘‘हां, बहुत दिन तुम्हारे आगेपीछे घूम लिया, अब अंश का नंबर है.’’

सीमा ने छेड़ा, ‘‘मतलब तुम्हें किसी न किसी के आगेपीछे घूमना ही है.’’

‘‘हां यार बड़ी मुश्किल से लाइफ में यह दिन आया है कि तुम्हारे सिवा भी किसी और के आगेपीछे घूमने का मन करता है.’’

यों ही हंसीखुशी 1 महीना बीत गया. प्रोग्राम बना कि अब दोस्तों को, परिवार वालों को बुला कर एक पार्टी भी दे ही दी जाए. विपिन ने अपने मातापिता सीता और गौतम और सीमा के पिता महेश को भी अंश को देखने आने के लिए कहा. तय हुआ कि अगले महीने एक छोटी सी पार्टी कर ली जाएगी. विपिन और सीमा अपनेअपने पेरैंट्स की एकमात्र संतान थे, भाईबहन कोई था नहीं. अंश रातभर रोता, दिनभर सोता.

कुछ दिनों बाद विपिन औफिस जाने लगा. अब तक उस ने अंश के साथ रहने के लिए छुट्टियां ली हुई थीं. सीमा अंश की देखरेख में मगन रहती.

एक दिन निर्मला अंश को ध्यान से देखते हुए कहने लगीं, ‘‘सीमा, इस की शकल तुम लोगों से मिलनी चाहिए न?’’

‘‘हां. पर क्या हुआ अचानक?’’

‘‘यह तुम लोगों से क्यों नहीं मिलता जबकि इस में तुम लोगों की झलक तो दिखनी चाहिए?’’

सीमा को मां का यह कहना अच्छा नहीं लगा. वह चुप रही तो निर्मला को अंदाजा हुआ शायद उन की बात बेटी को बुरी लग गई है. वे फिर टौपिक चेंज कर के कुछ और बातें करने लगीं. पर सीमा को मन में कुछ अटक गया था. वह पूरा दिन बेचैन सी रही.

रात को जब विपिन आया तो सीमा का चेहरा कुछ उतरा सा था. उस ने निर्मला से पूछा तो उन्होंने, ‘पता नहीं’ में सर हिला कर इशारा कर दिया जबकि वे यह जान रही थीं कि सुबह उन की बात के बाद से उन की बेटी उखड़ीउखड़ी सी है.

विपिन फ्रैश हो कर अंश को गोद में उठा कर उस के साथ खेलता रहा. सोते हुए उस ने पूछा, ‘‘सीमा क्या अंश ने आज ज्यादा परेशान किया?’’

सीमा उस के पूछते ही रुंधे गले से बोली, ‘‘विपिन, क्या अंश की शकल हम दोनों से नहीं मिलती?’’

‘‘मिले या न मिले, क्या करना है, यह हमारा बेटा है, बस, बात खत्म,’’ कह कर उस ने सीमा के गले में बांहें डाल उसे बहला दिया पर सीमा का मूड फिर भी ठीक नहीं हुआ. वह बहुत देर तक अंश की शक्ल देखती रही. हां, शायद इस की शक्ल हम लोगों से नहीं मिलती, इस के बाल कितने घुंघराले हैं, हमारे जैसे तो नहीं हैं. अंश के रोने पर उस की तंद्रा भंग हुई. वह उस का नैपी बदलने लगी. विपिन सो चुका था.

अगले दिन से सीमा अंश के लिए होने वाली पार्टी की तैयारियों में व्यस्त हो गई तो यह बात उस के दिमाग से निकल गई. वह फिर से उल्लास से भरी दिखी तो निर्मला को कुछ चैन आया, नहीं तो वे एक अपराधबोध से भर उठी थीं कि इतने दिनों बाद बेटी अंश के साथ खुश थी तो उन्होंने यह बात कर दी. अब उन्हें अच्छा लगा. महेश, सीता और गौतम साथसाथ ही मुंबई पहुंचे. घर में जैसे एक उत्सव का माहौल था. अंश सब के हाथ में जैसे एक खिलौने की तरह घूमता रहा. तीनों उस के लिए बहुत कुछ लाए थे. सीता अंश को ध्यान से देख रही थीं तो विपिन ने पूछ लिया, ‘‘क्या देख रही हो मां?’’

सीता ने कहा, ‘‘यह तुम दोनों का ही बच्चा है न?’’

‘‘क्यों मां?’’

‘‘घर में तो इस की शकल किसी से नहीं मिल रही है? हौस्पिटल में कुछ गड़बड़ तो नहीं हुई न?’’

‘‘मां, अभी यह कितना छोटा है, अभी कैसे इस की शकल समझ आ सकती है? आप ही तो कहती थीं कि बच्चा पता नहीं कितनी शक्लें बदलता है. क्या बेकार के शक वाली बातें हैं ये.’’

सीमा ने यह वार्त्तालाप सुना तो उस का दिल बैठ गया. कहीं हौस्पिटल में तो कुछ गलती नहीं हो गई. खैर, वह फिर इस विषय पर चुप ही रही. उस की नजरें अपनी मां से मिलीं तो जैसे उन्होंने भी यही कहा कि देखो, मैं ने सच ही कहा था न.

सोसाइटी के क्लब हाउस में ही अंश की पार्टी थी. दोनों के करीब सौ परिचित आए थे. पार्टी सब ने बहुत ऐंजौय की. गोलमटोल अंश सब की नजरों का केंद्र बना रहा. अच्छे खुशनुमा माहौल में सब खातेपीते रहे.

सीमा की बैस्ट फ्रैंड आरती ने उसे एक किनारे ले जा कर पूछा, ‘‘सीमा, तू बीचबीच में इतनी चुप सी क्यों दिख रही है मुझे कुछ उलझ सी है?’’

सीमा और आरती पुरानी सहेलियां थीं. सीमा दिल का शक उस से बांटने लगी, ‘‘यार,सब कह रहे है कि हौस्पिटल में कहीं गड़बड़ तो नहीं हुई. अंश हमारी तरह बिलकुल नहीं दिखता, क्या करूं, मन में शक सा बैठ गया है. चल, कल जा कर डाक्टर कीर्ति से बात करती हैं? चलेगी? किसी को बिना बताए चलते हैं कल.’’

‘‘ठीक है, फोन करना आ जाऊंगी.’’

सब से घर का कुछ सामान लेने जाने का बहाना कर आरती के साथ सीमा डाक्टर कीर्ति से मिलने गई. उन्होंने सारी बात सुन कर सीमा को बहुत समझाया कि हमारे यहां कोई गड़बड़ नहीं हुई. ऐसा अकसर हो जाता है. अभी तो अंश बहुत छोटा है. अभी से यह शक नहीं करना चाहिए कि अंश उन का बेटा नहीं.’’

डाक्टर जितनी अच्छी तरह समझ सकती थी, उन्होंने समझाया पर सीमा को तसल्ली नहीं हुई तो आरती ने कहा, ‘‘कुछ दिन और सोच ले परेशान मत हो.’’

कुछ दिन और बीते दोनों के पेरैंट्स कुछ दिन रह कर चले गए पर उन के मन में शक का एक बीज डाल ही गए थे. अंश को आईवीएफ से प्राप्त किया था. अंश सालभर का हो गया. वह बहुत सुंदर, बहुत गोरे रंग का स्वस्थ बच्चा था जबकि विपिन और सीमा उतने गोरे नहीं थे.

आसपास के लोग कभीकभी कह उठते, ‘‘अरे, यह किस पर है? ’’

और दोनों इस बात को दिल से लगा लेते. एक दिन आरती ने कहा, ‘‘मेरी भाभी एक बाबा को बहुत मानती हैं, तू चाहे तो उन से मिल ले. वे सब की शंकाओं का समाधान करते हैं. वाशी में उन का एक बड़ा आश्रम है और बहुत बड़ेबड़े लोग उन के यहां आते हैं.’’

सीमा ने विपिन से इस बारे में कोई बात नहीं की. वह अंश को ले कर इतनी उलझन और शक में थी कि कभी किसी बाबा के चक्कर में न पड़ने वाली सीमा एक दिन अंश को ले कर टैक्सी से वाशी जा पहुंची. बाबा ओंकार नाथ भक्तों से घिरे बैठे थे. वह एक कोने में जा कर खड़ी हो गई. एक युवा, सुंदर लड़की उस के पास आ कर बोली, ‘‘कहिए, क्या काम है?’’

‘‘बाबा से मिलना है.’’

‘‘पहली बार आई हो?’’

‘‘हां.’’

‘‘क्या परेशानी है?’’

‘‘उन्हें ही बताऊंगी.’’

‘‘एक फौर्म भर दो.’’

सीमा हैरान तो हुई पर फौर्म भर दिया, नाम, फोन नंबर ही लिखना था.

उस लड़की ने जा कर बाबा के कान में कुछ कहा और बाकी भीड़ को हटाया तो सीमा ने बाबा को ध्यान से देखा, याद आया उन के प्रवचन के पोस्टर उस ने कई जगह देखे हुए थे. न्यूज पेपर में भी उन के साथ किसी न किसी नेता का फोटो दिखाई दे जाता था, करीब 50-55 साल के ओंकार नाथ ने उस लड़की से कुछ कहा और फिर वे एक रूम में चले गए. लड़की उसे उस रूम में ले जाते हुए कहने लगी कि लग रहा है तुम किसी परेशानी में हो, बाबा आराम से तुम से बात करना चाहते हैं.’’

भव्य, सारी सुविधाओं से संपन्न कमरे में बाबा एक इजी चेयर पर बैठे हुए थे. लड़की ने सीमा को पास रखी चेयर पर बैठने का इशारा किया और रूम से चली गई. एक बार तो सीमा मन ही मन डर गई, यह क्या किया उस ने, किसी को बिना बताए यहां आ गई, कैसी बेवकूफी कर दी. अंश उस की गोद में गहरी नींद सोया था.

बाबा ने अपनी गहरी सी आवाज में कहा, ‘‘कहो, क्या परेशानी है?’’

बाबा की आवाज में कुछ सम्मोहन सा था. सीमा कुछ सहज हो गई. उस ने अपने मन की बात बता कर कहा, ‘‘बस मुझे ऐसे ही चैन नहीं आ रहा है. यही सोचती रहती हूं कि सचमुच कहीं अंश हमारा बेटा न हो, कैसे मेरे दिल को चैन आए कि यह हमारा ही बेटा है.’’

ओंकार नाथ कुछ देर सोचते रहे, फिर ध्यान से अंश को देखते हुए अपनी आंखें बंद कर लीं, फिर थोड़ी देर बाद कहा, ‘‘तुम 2 दिन बाद फिर आओ, तुम्हारी शंका का समाधान हो जाएगा.’’

‘‘कैसे?’’

‘‘बाहर वही लड़की खड़ी है जो तुम्हें आगे का काम समझा देगी.’’

सीमा अनमनी सी उस रूम से बाहर निकल आई. वह लड़की उसे एक कोने में रखी चेयर के पास ले गई. बोली, ‘‘आराम से बैठो. सुनो, आज की फीस 2 हजार है, पहले वह जमा करवा दो.’’

सीमा हैरान हुई, ‘‘फीस कैसी?’’

‘‘बाबाजी ने अपना टाइम नहीं दिया? तुम से बात नहीं की?’’

‘‘मैं नहीं दूंगी, अभी मेरे पास हैं भी नहीं.’’

‘‘शायद तुम बाबाजी को अच्छी तरह जानती नहीं.’’

‘‘मैं फिर आऊंगी तो ले आऊंगी,’’ सीमा ने इतना कहा ही था कि अंश उठ गया और उस की गोद से छूटने के लिए हाथपैर मारने लगा.

सीमा ने कहा, ‘‘अभी मुझे घर जाना है, फिर आऊंगी तो पैसे ले आऊंगी.’’

सीमा अंश को ले कर वहां से निकल आई. उस की जान में जान आई. उस ने सोचा नहीं वह यहां नहीं आएगी. घर आ कर भी सीमा ने विपिन से कुछ नहीं बताया, 2 दिन बीते कि सीमा के फोन पर किसी ने फोन किया. एक लड़की की आवाज थी, ‘‘आप बाबाजी से मिलने नहीं आईं?’’

सीमा को झटका सा लगा, उस ने रूखे स्वर में कहा, ‘‘हां, टाइम नहीं मिला.’’

फिर फोन किसी पुरुष ने ले लिया, कहा, ‘‘बाबाजी तुम से मिलना चाहते हैं.’’

‘‘मैं फिलहाल नहीं आ रही हूं.’’

‘‘ठीक है, अगले हफ्ते आ जाना,’’ कह कर फोन रख दिया गया तो सीमा हैरान सी बैठी रही कि यह क्या जबरदस्ती है.

10 दिन और बीते तो सीमा ने सोचा कि अब बाबा का किस्सा खतम हुआ पर ऐसा नहीं था. फोन आ गया.

इस बार किसी पुरुष ने कहा, ‘‘आप उस दिन बाबाजी से पूछ रही थीं कि आपका बेटा आप का ही है या नहीं, जानने के लिए आओगी नहीं?’’

‘‘नहीं, मुझे नहीं जानना है.’’

‘‘फिर सारी दुनिया क्या जान जाएगी, पता है?’’ कह कर वह पुरुष बड़ी बेशर्मी से हंसा, फिर बोला, ‘‘बाबाजी के कमरे में क्या करने गई थी?’’

सीमा को गुस्सा आ गया. डपटते हुए कहा, ‘‘क्या बकवास है?’’

‘‘सब तक यह खबर पहुंच जाएगी कि वह बच्चा तुम्हारा नहीं है, देख लेना और अगर चाहती हो कि अब यह बात न खुले तो 25 हजार ले कर चुपचाप आश्रम आओ नहीं तो तुम्हें अंदाजा भी नहीं है कि क्याक्या होगा. तुम्हें पता भी है कि तुम्हारे कितने पड़ोसी और रिश्तेदार स्वामीजी के भक्त हैं. उन सब तक यह बात पहुंचाना हमारे लिए कोई मुश्किल बात नहीं है. देखना कैसीकैसी बातें होगीं फिर. तब समझ आएगा कि हमारे कहे अनुसार न चल कर कितनी गलती की तुम ने समझा?’’

सीमा का दिमाग भन्ना गया, यह कहां फंस गई वह. बाबा है या कोई चोर, सिरदर्द से फटने लगा.

विपिन आया तो उस की शकल देख कर हैरान हो गया, उड़ी सी, डरी हुई. सीमा उसे देखते ही उस से लिपट कर रोने लगी, ‘‘मुझ से बड़ी गलती हो गई विपिन, सौरी.’’

वह रोई तो अंश भी उसे देख कर घबरा कर रोने लगा, विपिन ने एक हाथ से अंश को गोद में लिया, दूसरे हाथ से सीमा का हाथ पकड़ कर सोफे पर बैठाया, ‘‘क्या हुआ सीमा इतनी परेशान क्यों हो?’’

रोते हुए सीमा ने विपिन को पूरी बात बता दी. विपिन ने अपना सिर पकड़ लिया, ‘‘यह क्या किया, सीमा, तुम ऐसी कब से हो गई? क्यों बेकार के शक में पड़ी हो. यह देखो, तुम्हें रोते देख अंश भी रोने लगा, आज से ही बेकार के शक हम दोनों ही अपने दिमाग से निकाल देगें, डाक्टर ने कहा था न कि ऐसी कोई गलती नहीं हुई है, कितने ही बच्चे परिवार में बिलकुल अलग दिखते हैं, हम पढ़ेलिखे लोग भी बाबाओं के चक्कर में पड़ ही जाते हैं.

‘‘खैर अब छोड़ो, चिंता मत करो, यह बेकार का शक है, बस, अंश हमारा ही बेटा है, यह मेरा दिल कहता है, तुम तो इस की मां हो, तुम क्यों भटक रही हो? सोचो, अंश को वे लोग कोई नुकसान पहुंचा देते तो?’’

विपिन की बातों से सीमा के दिल को कुछ तसल्ली हुई. उस ने कहा, ‘‘ठीक कहते हो, मैं ही बेवकूफी कर आई. पता नहीं क्यों लोगों की इस बात पर इतना ध्यान दे दिया. पर अब किसी का फिर फोन आ गया तो?’’

‘‘थोड़े दिन लैंड लाइन से काम चलाओ, फोन औफ रखना, जरूरी काम हो तभी औन करना.’’

सीमा थोड़े तैश से बोली, ‘‘इन लोगों की पुलिस कंप्लेंट नहीं करनी चाहिए? परदाफाश नहीं होना चाहिए ऐसे बाबाओं का? एक बार क्या चली गई परेशान कर दिया.’’

‘‘नहीं, बाबाओं के हाथ बहुत लंबे होते हैं, उन से बच निकलना ही काफी है, ये लोग अपने विरोधियों को मरवा तक देते हैं. अभी हम इन चक्करों में नहीं पड़ सकते, हमें अंश को बड़ा करना है,’’ विपिन ने बहुत शांत स्वर में सीमा को समझाया.

‘‘ठीक कहते हो, ऐसा लग रहा है बालबाल बचे. 1-2 बार और चली जाती तो बहुत बुरी फंसती.’’

‘‘चलो, अब चिंता छोड़ो, अंश हमारा अंश है, बस,’’ कहतेकहते विपिन ने अंश के गाल चूम लिए, अंश उस से लिपट गया. सीमा ने प्यार से दोनों के गले में बांहें डाल दीं.

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