Family Drama In Hindi- अब पता चलेगा: राधा क्या तोड़ पाई बेटी संदली की शादी

28दुबई से संदली उत्साह से भरे स्वर में अपने पापा विकास और मम्मी राधा को बता रही थी,”पापा, मैं आप को जल्दी ही आर्यन से मिलवाउंगी. बहुत अच्छा लड़का है. मेरे साथ उस का एमबीए भी पूरा हो रहा है. हम दोनों ही इंडिया आ कर आगे का प्रोग्राम बनाएंगे.”

विकास सुन कर खुश हुए, कहा,”अच्छा है,जल्दी आओ, हम भी मिलते हैं आर्यन से. वैसे कहां का है वह?”

”पापा, पानीपत का.”

”अरे वाह, इंडियन लड़का ही ढूंढ़ा तुम ने अपने लिए. तुम्हारी मम्मी को तो लगता था कि तुम कोई अंगरेज पसंद करोगी.‘’

संदली जोर से हंसी और कहा,”मम्मी को जो लगता है, वह कभी सच होता है क्या? फोन स्पीकर पर है पर मम्मी कुछ क्यों नहीं बोल रही हैं?”

”शायद उसे शौक लगा है आर्यन के बारे में जान कर.”

राधा का मूड बहुत खराब हो चुका था. वह सचमुच जानबूझ कर कुछ नहीं बोलीं.

जब विकास ने फोन रख दिया तो फट पड़ीं,”मुझे तो पता ही था कि यह लड़की पढ़ने के बहाने से ऐयाशियां करेगी. अब पता चलेगा पढ़ने भेजा था या लड़का ढूंढ़ने.”

”क्या बात कर रही हो, जौब भी मिल ही जाएगा. अब अपनी पसंद से लड़का ढूंढ़ लिया तो क्या गलत किया? संदली समझदार है, जो फैसला करेगी, अच्छा ही होगा.”

“अब पता चलेगा कि इस लड़की की किसी से निभ नहीं सकती, न किसी काम की अकल है, न कोई तमीज.और जो यह लोन ले रखा है, शादी कर के बैठ जाएगी तो कौन उतारेगा लोन? मुझे पता ही था कि यह लड़की कभी किसी को चैन से नहीं रहने दे सकती,” राधा जीभर कर संदली को कोसती रहीं.

विकास को उन पर गुस्सा आ गया, बोले,”तुम्हें तो सब पता रहता है. बहुत अंतरयामी समझती हो खुद को.पता नहीं कैसे इतना ज्ञानी समझती हो खुद को.

“आसपड़ोस की अपनी जैसी हर समय कुड़कुड़ करने वाली लेडीज की बातों के अलावा कुछ भी पता है कि क्या हो रहा है दुनिया में?”

हर बार की तरह दोनों का गुस्स्सा रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था.

विकास ने जूते पहनते हुए कहा, “मैं ही जा रहा हूं थोड़ी देर बाहर, अकेली बोलती रहो.”

यह कोई पहली बार तो हुआ नहीं था. बातबेबात किचकिच करने वाली राधा का तकियाकलाम था,’अब पता चलेगा.’

बड़ी बेटी प्रिया कनाडा में अपनी फैमिली के साथ रहती थी, संदली फिलहाल दुबई में थी. कोई भी कैसी भी बात करता, राधा हमेशा यही कहतीं कि उन्हें सब पता था. उन का कहना था कि उन्होंने इतनी दुनिया देखी है, उन्हें हर बात का इतना ज्ञान है कि कोई भी बात उन से छिपी नहीं रहती, फिर चाहे कुकिंग की बात हो या फैशन की.

यहां तक कि राजनीति की हलचल पर भी कोई बात होती तो उन का कहना होता कि उन्हें तो पता ही था कि फलां पार्टी यह करेगी. 1-2 दिन पहले वे किसी से कह रहीं थीं कि उन्हें तो पता ही था कि अब किसान आंदोलन होगा.

उन की बात सुनते हुए विकास ने बाद में टोका था,”ऐसी हरकतें क्यों करती हो, राधा? किसान आंदोलन होगा, यह भी तुम्हें पता था, कुछ तो सोच कर बोला करो.”

”अरे,मुझे पता था कि कुछ ऐसा होगा.”

विकास चुप हो गए, पता नहीं कौन सी ग्रंथि है राधा के मन में जो वह हर बात में घर में किसी न किसी बात में हावी होने की कोशिश करती थी. कई बार विकास अपने रिश्तेदारों के सामने राधा की बातों से शर्मिंदा भी हो जाते थे. बेटियां भी इस बात से हमेशा बचती रहीं कि राधा के सामने उन की फ्रैंड्स आएं.

विकास अंधेरी में एक प्राइवेट कंपनी में कार्यरत थे. आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी थी पर राधा कंजूस भी थी और बहुत तेज भी, साथ ही उन्हें अपने उस ज्ञान पर भी बहुत घमंड था जो ज्ञान दूसरों की नजर में मूर्खता में बदल चुका था. अजीब सी आत्ममुग्ध इंसान थीं.

घर में उन के व्यवहार से सब हमेशा दुखी रहते. राधा ने संदली को अगले दिन फोन किया और सीधे पूछा,”अभी शादी कर लोगी तो तुम्हारा लोन कौन चुकाएगा?”

”मैं इंडिया आ कर जौब करूंगी, लोन उतार दूंगी. अभी हम दोनों सीधे मुंबई ही आ रहे हैं, आर्यन को आप लोगों से मिलवा दूं?”

राधा ने कोई उत्साह नहीं दिखाया. संदली ने उदास हो कर फोन रख दिया. संदली और आर्यन को एअरपोर्ट से लेने विकास खुद जा रहे थे.

प्रोग्राम यह तय हुआ कि विकास औफिस से सीधे एअरपोर्ट चले जाएंगे. देर रात सब घर पहुंचे तो राधा ने सब के लिए डिनर तैयार कर रखा था. आर्यन उन्हें पहली नजर में ही बहुत अच्छा लगा पर बेटी से मन ही मन नाराज थीं कि पढ़ने भेजा था, लड़का पसंद कर के घर ले आई है.

उन्हें विकास पर भी बहुत गुस्सा आ रहा था कि अभी से कैसे आर्यन को दामाद समझ रहे हैं. संदली फोन पर पहले ही बता चुकी थी कि पानीपत में आर्यन के पिता का बहुत लंबाचौड़ा बिजनैस है. बहुत धनी, आधुनिक परिवार है. 2 ही भाई हैं, आर्यन बड़ा है, छोटा भाई अभय अभी पढ़ रहा है.

आर्यन से मिलने, उस से बातें करने के बाद कोई कारण ही नहीं था कि राधा कुछ कमी निकालती पर यह बात हजम ही नहीं हो रही थी कि बेटी ने अपने लिए लड़का खुद पसंद कर लिया है.

विकास को भी आर्यन बहुत पसंद आया था. वह ऐसे घुलमिल गया था कि जैसे कब से इस परिवार का ही सदस्य है.

डिनर करते हुए संदली ने कहा,”मम्मी, हम दोनों अब कल ही दिल्ली जा रहे हैं. वहां आर्यन के पेरैंट्स हमें एअरपोर्ट पर लेने आ जाएंगे. मुझे भी उन से मिलना है. मैं जल्दी ही वापस आ जाउंगी.”

राधा ने कहा,”मुझे तो पता ही था कि तुम हम से पूछोगी भी नहीं, खुद ही होने वाले ससुराल पहुंच जाओगी.अब पता चलेगा.’’

विकास ने आर्यन की उपस्थिति को देखते हुए मुसकरा कर बात संभाली,”यह तो अच्छा ही है न कि तुम अपनी बेटी को जानती हो, तुम्हें पता था, अच्छा है.”

संदली ने मां की बात पर ध्यान ही नहीं दिया. युवा मन अपने सपनों में खोया था, प्यार से बीचबीच में एकदूसरे को देखते संदली और आर्यन विकास को बड़े अच्छे लगे.

रात को अकेले में राधा भुनभुनाती ही रहीं. विकास ने टोका,”कभी तो किसी बात पर खुश रहना सीखो, राधा. इतना अच्छा लड़का पसंद किया है संदली ने. बेटी बहुत समझदार है हमारी, सब देखसुन कर ही मिलवाने लाई होगी.”

”यह शादी कर के बहुत पछ्ताएगी.देखना, इस की किसी से नहीं निभ सकती, कुछ नहीं आता है, बस सैरसपाटा, आराम करना आता है.अब पता चलेगा, यह शादी के बाद बैठ कर रोएगी.”

विकास को गुस्सा आ गया,”कैसी मां हो, बेटी के लिए बुरा सोचती हो, शेम औन यू,राधा.”

संदली को मां का मन अच्छी तरह पता था. वह अंदर से दुखी भी थी पर आर्यन से बहुत प्यार करने लगी थी, अब विवाह करना चाहती थी पर मां इस विषय पर उस के लिए अच्छा नहीं सोचेंगी, पता था उसे.

अगले दिन आर्यन और संदली चले गए. फिर एक दिन प्रिया का फोन आया, वह संदली के लिए खुश थी.

कहने लगी,”आर्यन बहुत अच्छे परिवार से है, संदली ने नेट पर देख लिया है, उन के बिजनैस के बारे में वह सब जानती है, सब देख कर ही उस ने आर्यन से शादी का मन बनाया है. ऐसा लड़का तो हम भी उस के लिए नहीं ढूंढ़ सकते थे.”

राधा बिफरी,”मुझे पता था तुम उस की ही साइड लोगी.”

”ओह मां, यह जो आप को हर बात पता होती है न, बड़े परेशान हैं हम इस से, कभी तो कोई बात आराम से सुन लिया करो.”

थोड़ी देर बाद फोन रख दिया गया. संदली ने वहां से आर्यन के पेरैंट्स अनिल और मधु से भी विकास और राधा की बात करवा दी. विकास को दोनों का स्वभाव बहुत अच्छा लगा, दोनों संदली से मिल कर खुश थे. अब जल्दी से जल्दी उसे अपनी बहू बनाना चाहते थे.

विकास ने भी इस विवाह के लिए सहमति दे दी तो उन्होंने कहा,”आप भी आ कर हमारा घर देख लीजिए, तसल्ली कर लीजिए कि संदली हमेशा खुश रहेगी. यह बात विकास को बहुत अच्छी लगी.

उन्होंने कहा,”हम भी जल्दी ही आते हैं.”

दोनों परिवार अब आगे का प्रोग्राम बनाने लगे. संदली 2 दिन में वापस आ गई.

बैग खोलते हुए ढेरों गिफ्ट्स दिखाते हुए बोली,”पापा, मम्मी, देखो उन लोगों ने तो गिफ्ट्स की बौछार कर दी. इतने प्यार से मिले कि क्या बताऊं. पापा, मैं बहुत खुश हुई वहां जा कर.”

राधा ने सब सामान देखा, कहा कुछ नहीं, उठ कर अपने काम में लग गईं. 10 दिन बाद संदली चली गई. कोर्स पूरा हो चुका था. संदली को वहीं नई नौकरी जौइन करनी थी.

आर्यन अब पानीपत में फैमिली का बिजनैस ही संभालने वाला था. अनिल और मधु मुंबई आए. होटल में ठहरे और विकास और राधा से मिलने घर आए. गजब के खुशमिजाज, सुंदर दंपत्ति को देख कर राधा हैरान थीं. वे दोनों विकास और राधा के लिए बहुत सारे गिफ्ट्स भी लाए.

राधा के हाथ का बना खाना खा कर उन की कुकिंग की खूब तारीफ की तो राधा ने कहा,”पर संदली को कुछ भी बनाना नहीं आता. पहले इसलिए बता रही हूं कि आप लोग हमें बाद में यह न कहें कि आप लोगों को बताया नहीं.”

मधु ने खुल कर हंसते हुए कहा,”बेटी बहुत प्यारी है आप की. उस ने मुझे खुद ही बता दिया कि उसे कोई काम नहीं आता और उसे हमारे यहां कुकिंग की जरूरत पड़ेगी भी नहीं. हमारे यहां 2 कुक हैं, किचन में तो मैं ही जल्दी नहीं घुसती, आजकल की लड़कियां कैरियर बनाने में मेहनत करती हैं, जब जरूरत होती है सब कर लेती हैं और वहां अकेली रह ही रही है न, बहुत कुछ अपनेआप करती भी होगी.”

राधा चुप रहीं. अनिल और मधु ने अच्छा समय साथ बिताया. जाते हुए उन्हें भी गिफ्ट्स दे कर विदा किया गया.

अब अगले हफ्ते विकास और राधा को दिल्ली जाना था. तय हुआ कि अब सगाई भी कर देते हैं और संदली को भी बुला लेते हैं.

यह सुनते ही राधा को गुस्सा आ गया, विकास से कहा,”अब फिर उस के आने का खर्चा उठाना है?अभी तो गई है.”

संदली ने यह बात सुन कर कहा,”मम्मी, आप टिकट की चिंता न करो, सरप्राइज में आर्यन ने मुझे टिकट भेज दिए हैं.”

राधा ने कहा,”मुझे पता है कोई गड़बड़ जरूर है जो वे शादी के लिए इतनी जल्दी मचा रहे हैं. इतना अच्छा परिवार संदली को बहू बनाने के लिए क्यों मरा जा रहा है? कोई बात तो है.अब पता चलेगा.’’

विकास ने कहा,”गड़बड़ तुम्हारे दिमाग में है, बस.”

संदली सीधे दिल्ली पहुंची. विकास और राधा भी पहुंच गए.

प्रिया ने कहा था कि वह सीधे शादी में ही आएगी. पानीपत में आर्यन का विशाल घर, नौकरचाकर देख कर राधा दंग रह गईं. उस पर सब का स्वभाव इतना सहज, कोई घमंड नहीं. पर आदत से मजबूर, कमी ढूंढ़ती ही रहीं, जो मिली नहीं.

राधा यह देख कर हैरान हुईं कि मधु और संदली ने फोन पर ही एकदूसरे के टच में रह कर सगाई के कपड़ों की जबरदस्त तैयारी कर रखी है. अभय संदली से खूब हंसीमजाक कर रहा था, विकास और मधु के लिए बेहद आरामदायक गेस्टरूम था, अनिल और मधु के करीब 100 लोगों के परिचितों के मौजूदगी में सगाई का फंक्शन हुआ.

विकास ने खर्चे बांटने की बात कही तो अनिल ने हाथ जोड़ दिए,”हमें कुछ नहीं चाहिए. संदली इस घर में आ रही है तो हमें खुशी से यह सब करने दें. हमें कुछ भी नहीं चाहिए.”

राधा ने अकेले में विकास से कहा,”इतना अच्छा बन कर दिखा रहे हैं, मुझे पता है ऐसे लोग बाद में रंग दिखाते हैं. अब पता चलेगा.‘’

संदली भी उन के पास ही बैठी थी.गुस्सा आ गया उसे, कहा,”मम्मी, हद होती है, इतने अच्छे लोग हैं फिर भी आप ऐसे कह रही हैं, सब कुछ उन्होंने आज मेरी पसंद का किया है, मेरी ड्रैस, ज्वैलरी सब आर्यन की मम्मी ने ली, मुझे कुछ भी लेने से मना कर दिया था, अब शादी की भी पूरी शौपिंग मुझे करवाने के लिए तैयार हैं, पर आप की बातें…उफ…”

”मुझे पता है तुम्हारी जैसी लड़कियां बाद में खूब रोती हैं.”

संदली को रोना आ गया. उस के आंसू बह निकले तो विकास ने उसे गले से लगा लिया,”संदली बेटा, मत दुखी हो, तुम्हारी मम्मी को कुछ ज्यादा ही पता रहता है.‘’

विकास और संदली दोनों राधा से नाराज थे पर राधा पर न कभी पहले कोई असर हुआ था, न अब हो रहा था.

फंक्शन से फ्री हो कर जब सब साथ बैठे, मधु ने कहा,”मुझे आप लोगों से कुछ जरूरी बात करनी है.”

सुनते ही राधा ने विकास को इशारा किया, “देखो, मैं ने कहा था न…”

राधा ने कहा,”जी कहिए.”

”देखिए, पैसे की हमारे यहां कोई कमी है नहीं, बस मेरा मन तो अपने बच्चों की खुशी में खुश होता है, मेरी इच्छा है कि शादी अब जल्दी ही कर दें, घर में रौनक हो, हमारी बेटी कोई है नहीं और मुझे संदली के साथ रहने की बहुत इच्छा है, मुझ से अब इंतजार नहीं होगा, शादी अब बहुत जल्दी हो जाए, बस यही मान लीजिए.

“तैयारी भी मैं सब कर लूंगी और हां, संदली ने जो लोन लिया है, वह भी हम चुका देंगे, अब संदली यहां फैमिली बिजनैस संभाल लेगी. उसे वहां अकेली रह कर जौब करने की जरूरत है ही नहीं. अब बच्चे मिल कर बिजनैस संभालें, हमारे पास रहें और क्या…”

विकास ने हाथ जोड़ दिए,”आप जैसा चाहते हैं वैसा ही होगा, हम तैयार हैं. लोन चुकाने की बात आप न सोचें प्लीज, हमारा एक फ्लैट किराए पर चढ़ा है, उसे संदली को देने के लिए ही इन्वेस्ट किया था. अब उसे बेच देंगे तो लोन चुक जाएगा, कोई प्रौब्लम नहीं है. शादी जब आप कहें, हो जाएगी.”

मधु ने खुश हो कर उठ कर संदली को गले लगा लिया. खूब प्यार करते हुए बोलीं,”बस मेरी बहू अब जल्दी घर आ जाए. संदली, अब एक बार जाना और वहां से अपना सब सामान ले आओ, बस अब तो आर्यन के साथ ही घूमने जाना.”

आगे का प्रोग्राम तय होने लगा था. राधा हैरान थी कि इतनी जल्दी यह सब… ये कैसे लोग हैं? कोई इतना अच्छा कैसे हो सकता है?

मुंबई लौटते हुए संदली ने पूछा,”मम्मी, सब ठीक लगा न आप को?”

”देखते हैं, कुछ ज्यादा ही अच्छा परिवार लग रहा है. देखते हैं कि तुम कितना खुश रहती हो इन के साथ.अब पता चलेगा…’’

संदली चुप ही रही. राधा ने फिर विकास से कहा,”आप ने सब बात खुद ही कर ली उन से, मुझ से कुछ पूछा ही नहीं.”

”पूछना क्या था, सब अच्छा ही लग रहा था, अच्छे लोग हैं.”

दोनों तरफ शादी की तैयारियां शुरू हो गईं. 2 महीने बाद ही शादी थी. प्रिया भी सपरिवार आने वाली थी. संदली ने रिजाइन कर दिया और वहां से सब क्लियर कर लौट आई. मधु फोन पर ही उस से पूछपूछ कर उस की पसंद की तैयारी करने लगीं. मधु एक से बढ़ कर एक चीजें उस की पसंद से बनवा रही थीं.

राधा ने कहा,”मुझे पता ही है कि इन अमीरों के 4 दिन के चोंचले हैं, थोड़े ही दिनों में असलियत सामने आएगी, पहले तो सब अच्छा ही दिखता है.”

संदली मन ही मन बहुत उदास थी. शादी का समय था उस पर भी मां की अजीबोगरीब बातें रुकने का नाम ही नहीं ले रही थीं. जो भी तैयारी राधा कर रही थीं, बोझ समझ कर कर रही थीं, उस में बेटी को अच्छा परिवार मिलने की कोई खुशी नहीं थी. हर समय किसी न किसी बात पर आर्यन के परिवार को ले कर कुछ ऐसा कह देतीं कि संदली का चेहरा मुरझा जाता.

विकास सब समझ रहे थे पर क्या करते, राधा को कुछ कह कर घर का माहौल खराब नहीं करना चाहते थे. प्रिया भी आ चुकी थी, उस के पति विशाल और दोनों बच्चे सोनू,पिंकी मौसी की शादी को ले कर बहुत उत्साहित थे.

सब खुश थे पर राधा का स्वभाव अकसर रंग में भंग डाल देता. विकास ने अपने बजट के अनुसार सारा पैसा अनिल के अकाउंट में ट्रांसफर कर दिया था. सब इंतजाम आर्यन का परिवार ही देख रहा था.

शादी से 4 दिन पहले संदली अपने परिवार के साथ दिल्ली पहुंची तो आर्यन की तरफ से कई गाड़ियां उन्हें लेने आई हुई थीं.

अनिल और मधु ने खुद एअरपोर्ट पर सब का स्वागत किया और उन्हें पानीपत के ही एक होटल में ले गए, जहां सारा इंतजाम बहुत शानदार था.

रस्में बहुत खुशी से पूरी की गईं. विवाह का आयोजन शानदार रहा. सबकुछ अच्छी तरह से संपन्न हुआ. राधा परिवार सहित मुंबई लौट आईं. कुछ दिन बाद प्रिया भी वापस चली गई.

विकास औफिस के काम में व्यस्त हो गए. राधा का पुराना रवैया चलता रहा. हर बात में अब भी अपने को ही सही ठहरातीं. संदली जब फोन करती, राधा खोदखोद कर पूछतीं कि ससुराल का क्या हाल है?

संदली तारीफ करती तो कहतीं,”मुझे पता है, यह सब प्यारव्यार थोड़े दिनों की बात है. आगे पता चलेगा.”

संदली ने घर का बिजनैस संभालना शुरू कर दिया था. एक नया शोरूम खोला जा रहा था जिस की देखरेख संदली और आर्यन पर छोड़ दी गई थी, उस के लिए एक कार और ड्राइवर हमेशा रहता. वह बहुत खुश रहती. उसे सारी सुविधाएं और ढेर सारा प्यार मिल रहा था.

कुछ ही दिनों में अभय की शादी भी उस की गर्लफ्रैंड तारा के साथ तय हो गई.

राधा ने सुनते ही कहा,”संदली, अब पता चलेगा तुम्हें जब देवरानी घर आएगी और प्यार बंटेगा.”

संदली चुप रही. अभय के विवाह में राधा और विकास भी गए. अब की बार भी उन्हें बहुत सम्मान दिया गया. सब कुछ पहले की तरह अच्छी तरह से हुआ. संदली की अपनी देवरानी तारा से खूब जम रही थी. दोनों खूब मस्ती कर रही थीं.

राधा ने मुंबई आने के बाद संदली से देवरानी के हाल पूछे तो वह खूब उत्साह से तारा और अपनी खूब अच्छी दोस्ती के बारे में बताने लगी. संदली और तारा का आपस में बहनों जैसा प्यार हो गया था.

राधा ने कहा,”बेटा, मैं ने देखे हैं ऐसे रिश्ते, अब पता चलेगा थोड़े दिनों में जब यही प्यार तकरार में बदलेगा, देखना.”

आज संदली का धैर्य जवाब दे गया. विकास भी वहीं बैठे थे, फोन स्पीकर पर था, संदली फट पड़ी थी आज,”हां, मुझे पता चल चुका है कि आप के लिए हर रिश्ता बेकार है. आप को कहां किसी रिश्ते में प्यार दिखता है? मम्मी, पता नहीं क्यों आप के लिए सब बुरा ही होने वाला होता है. मुझे तो इस घर में आने के बाद यह पता चला है कि शांति से रहना कितना आसान है, प्यार दो, प्यार लो, काश कि आप को भी यह पता रहता.

“बस, यहां जो मुझे पता चला है, वह सब आप के साथ रह कर कभी पता ही नहीं चला. आप मुझे अब कभी मत बताना कि मुझे क्या पता चलेगा? मुझे जो पता चलना था, चल चुका. इतना प्यार है यहां पर, मैं कितनी खुश हूं,आगे भी खुश ही रहूंगी, मुझे तो यह पता है.”

राधा का चेहरा देखने लायक था. संदली ने कभी इस तरह बात नहीं की थी. आज अपनी बात कह कर फोन ऐसे रखा था कि राधा शर्मिंदा सी बैठी रह गई थीं. विकास तो अपनी हंसी रोकने की कोशिश में आज चुपचाप वहां से उठ कर दूसरे रूम में जा चुके थे.

Indian Culture : पैर छूने की बनावटी परंपरा

लार्जस्कैल जुए को लैजिटिमैसी देने के लिए खेले जाने वाले क्रिकेट के इंडियन प्रीमियर लीग में देश की बहुत रूचि रहती है. कुछ तो इसे टैलीविजन पर तमाशा मान कर चलते हैं और 10 टीमों में से किसी एक को अपनी टीम का उन की जीत पर लड्डू बांटते हैं और हार पर मुंह लटका कर हाथ का पिज्जा स्लाइस और हार्डङ्क्षड्रक का गिलास फैंक देते हैं. पर उन से ज्यादा वे है जो हर बौल, हर विकेट और हर रन पर बैट लगाते हैं और इस जुएं में सैंकड़ोंहजारों करोड़ दुनियाभर में लगते हैं. इन का आयोजन करने वाली कोई और द बोर्ड औफ कंट्रोल फौर क्रिकेट इन इंडिया जिस के मुखिया गृहमंत्री अमित शाह के टेलैंटेड बेटे जय शाह की सालाना आय करोड़ों रुपए है, जिस पर टैक्स भी नहीं देना पड़ता.

इस बार एक तमाशा और हुआ जिस में शायद किसी ने जुआ में पैसा नहीं लागया था. वह था आईपीएल में फाइनल जीतने पर रङ्क्षवद्र जडेजा का मैदान में साड़ी पहन कर भाग कर उस की पत्नी रिवाबा जडेजा का आना और उस समय पैर छूना जब सैकड़ों कैमरे पलपल कैच कर रहे थे.

उस के बाद जहां भक्त टाइप के लोगों ने जम कर हिंदू संस्कृति का ढोल बजाया, उदारवादी लोगों ने इसे रिग्रैसिव कदम बताया जिस में पति को परमेश्वर मानने की झूठ औरतों के मन में ठूंस रखी है. यदि प्लांल्ड था, ऐसा नहीं लगता पर यह पक्का औरतों को एक कदम पीछे तो ले जाने वाला है. यह उस गुलामी की सोच की जीतीजागती तस्वीर है जिस में पति ही नहीं कितनों के पैर छूने की बनावटी परंपरा को आदर्श और संस्कार ही नहीं अनुशासन माना जाता है.

पैर छूना एक बेहद अपमानजनक काम है. यह छूने वाला का आत्मविश्वास छीनने का काम करता है. बड़ेबूढ़े, सब से पहले हर छोटे को. बहू को, पैर छूने का आदेश देते हैं ताकि उन की एरोगैंस और उन की पावर का छूने वाले को हरदम एहसास रहे.

पैर छूना, हाथ मिलाने या नमस्ते करने से कहीं अधिक अपनेआप को गिराने वाला काम है. यह दंडवत या साष्टांग प्रणाम की नौटंकी जैसी है. हर युग में सैंकड़ों ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे जिस में पैर छूने वाले ने उसी को अपमानित किया जिस के पैर छुए गए थे. पुराणों में ऐसे बहुत से मामले मिल जाएंगे. भीएम व द्रोणाचार्य की बागों से हत्या ऐसा ही काम है.

औरतों को करवाचौथ पर ही नहीं, सैंकड़ों मौकों पर उन पतियों के पैर छूने को मजबूर किया जाता है जो ङ्क्षहसक हैं, दंभी हैं, गुस्सैंल हैं या नकारा हैं. पत्नी के पैसे पर चलते पति के भी पैर छूने जरूरी हो जाता है. उस ससुर के पैर छूने पड़ते हैं जो गालियों की बौछार करते हैं. उस जेठ के पैर छूने होते हैं जिस की सैक्सी निगाहों से बचना कठिन होता है.

भारतीय जनता पार्टी की विधायक रिवाबा जडेजा अपनी पार्टी की लाइन के हिसाब से काम कर कर रही हो पर मलेच्छों के खेलों में जीत पर पति के पैर छू कर वह क्या साबित करना चाहती है- पति तो परमेश्वर है.

Relationship – डोमिनेशन : पत्नी का हो या पति का, रिश्तों में पैदा करता है दरार

आप दोनो कामकाजी हैं. आपका बच्चा बीमार है. आपके पति बच्चे की देखरेख के लिए छुट्टी न ले पाने की अपनी मजबूरी बताते हैं और उम्मीद करते हैं कि आपको उसकी देखभाल के लिए छुट्टी लेनी होगी. ऐसे में आपकी क्या प्रतिक्रिया होती है? दूसरी और आपके पति आपको आॅफिस से घर लौटकर आकर बताते हैं कि कल रात उन्होंने अपने दोस्तों को डिनर के लिए आमंत्रित किया है. ऐसे में आपकी प्रतिक्रिया क्या होती है? इस तरह की स्थितियां अकसर विवाहित पति पत्नी के जीवन में आती ही हैं और उस दौरान इनके जवाब किस तरह दिये जाते हैं. इसी से पता चलता है कि पति और पत्नी दोनो में से कौन डोमिनेटिंग हैं. सवाल पैदा होता है ये डोमिनेशन क्या है? डोमिनेशन का मतलब है अपने पार्टनर की इच्छाओं का सम्मान न करना, जबरन उसपर अपनी मर्जी थोपना. यह पति और पत्नी दोनो पर ही लागू होता है. कंसलटेंट साइकेट्रिक्ट डाॅ. समीर पारिख, डोमिनेशन को शारीरिक, वित्तीय, वरबल और साइकोलाॅजिकल इन तमाम श्रेणियों में विभाजित करते हैं. मसलन पति का यह कहना कि तुम आज किट्टी पार्टी के लिए नहीं जा सकती; क्योंकि तुम्हें मेरी मां को डाॅक्टर के पास लेकर जाना है. इस कथन के द्वारा पति अपनी इच्छा या अपेक्षा को जबरदस्ती पत्नी पर थोपता है. कई घरों में ऐसा भी देखा गया है कि पत्नी पति के इजाजत के बगैर अपने माता-पिता से मिल नहीं सकती.

समाज में क्या होता है?

हमारे समाज का ढांचा कुछ इस तरह बना है कि महिलाओं को इस बात का एहसास ही नहीं होता कि वह पति द्वारा शासित होती हैं. उनके रोजमर्रा की जिंदगी में अनेक ऐसी चीजें होती हैं, जिनमें उनकी इच्छाओं के कोई मायने ही नहीं समझे जाते. अब रमा और राहुल का ही मामला लें. दोनो साॅफ्टवेयर इंजीनियर है. रमा राहुल की तुलना में ज्यादा प्रतिभाशाली है. राहुल द्वारा उसे लगातार प्रताड़ित किया जाता है. वह ज्यादा समय अपने बच्चों को देती है, पति के अहं के आगे उसने अपने कॅरिअर को एक किनारे करके खुद को घर परिवार के बीच ही रमा लिया है.

बलि का बकरा बनती हैं पत्नियां

सवाल पैदा होता है कि अपने कॅरिअर, इच्छाओं और अपेक्षाओं का गला घोंटने के लिए महिलाएं ही क्यों मजबूर होती हैं? यदि पत्नी पति की तुलना में ज्यादा प्रतिभाशाली हो तो वही अपने कॅरिअर की बलि चढ़ाती है. अगर महिलाओं से पूछा जाये कि उसके सपनों का राजकुमार कैसा हो, तो उसका जवाब होता है कि उससे बढ़कर हो. यही वजह है कि पढ़ने लिखने के बावजूद महिलाएं इन बातों पर समझौता करने के लिए आसानी से तैयार हो जाती हैं. बच्चों और परिवार की जिम्मेदारियों के नाम पर वही अपने कॅरिअर के साथ समझौता कर लेती है. यही वजह है कि वह पढ़ाने जैसी ऐसी जाॅब करना पसंद करती हैं या फ्रीलांसर के तौरपर काम करने लगती हैं, जिससे वह अपने घर और बच्चों को ज्यादा समय दे सकें ताकि पति पत्नी दोनो के बीच तनाव की स्थिति पैदा न हो.

आमतौर पर माना जाता है कि पति पत्नी के रिश्ते में पति ही डोमिनेट करता है. घर में उसकी इच्छा ही सर्वोपरि होती है. लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि पुरुषों को समझौते नहीं करने पड़ते. या कहें तो वे भी शोषण का शिकार होते हैं. क्लिनिकल साइकोलाॅजिस्ट राखी आनंद का कहना है कि मर्द और औरत दोनो ही कई तरह की हीनभावना का शिकार हो सकते हैं. डिप्रेशन, निराशा, आत्मविश्वास की कमी या अपने पार्टनर पर अत्याधिक निर्भरता यह स्थितियां पति और पत्नी दोनो के साथ हो सकती है. हमारे इर्दगिर्द तमाम ऐसे परिवार होते हैं, जहां पर तानाशाह पत्नियों के सामने उनके पतियों की आवाज दबकर रह जाती है.

तस्वीर का दूसरा रूख

रोहित और सुनैना की शादी को चार साल हो चुके हैं. सुनैना के बारे में यह कहा जाता है कि वह बेहद डोमिनेटिंग है. इस बारे में सुनैना का कहना है कि यह आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप अपने पति को कैसे अपनी इच्छा के अनुसार चला सकती हैं. पति रोहित चाहकर भी सुनैना का विरोध नहीं कर पाते. घर में सब कुछ सुनैना की मर्जी से होता है इसका नतीजा है कि दोनो के बीच लड़ाई झगड़ा नहीं होता. दोनो को एक दूसरे कोई शिकायत नहीं हैं और दोनो एक दूसरे के साथ बेहद खुश हैं. अब सवाल पैदा होता है कि दरअसल रोहित क्या सोचता है? क्या कभी उसकी विरोध करने की इच्छा नहीं होती? क्या कभी उसके मन में यह सवाल पैदा नहीं होता कि वही क्यों समझौता करता है? सुनैना का घर में एकछत्र राज्य उसे भी अब बुरा नहीं लगता. क्योंकि वह चाहता है कि अगर ऐसा करने में उसकी पत्नी को खुशी मिलती है तो वह भी इसी में खुश है. पतियों को जब कहा जाता है कि वह जोरू के गुलाम है तो उन्हें कैसा लगता है. क्या वे खुश रहते हैं या क्या उन्हें ऐसा लगता है कि इससे उनकी अपनी पहचान खो गई है? और उनका एकमात्र लक्ष्य सिर्फ घर के भीतर शांति बनाये रखना है?

उदय एक गैर शादीशुदा युवक है. जिसकी सगाई हो चुकी है. उसका कहना है कि यदि मैं अपने पत्नी के कहे अनुसार सब कुछ करता हूं तो इसका मतलब यह नहीं है कि मैं उसका गुलाम हूं. वास्तव में डोमिनेशन का होना या न होना पूरी तरह से स्थिति पर निर्भर होता है. यह काफी हद तक किसी समस्या पर भी टिका होता है. घर में कई बार ऐसा होता है कि पत्नी की बात मानी जाती है. वहीं दूसरी तरफ अकसर पतियों के कहे आदेश ही अंतिम होते हैं. शादी के बाद मैं पहले अपनी पत्नी की बात सुनूंगा, अगर मुझे उसकी बात सही लगती है तो उसे मानने में हर्ज ही क्या है?

राजन और शीतल की शादी को तीन साल हो चुके हैं. शीतल शुरु से ही सेल्फ डिपेटेंट है. आत्मविश्वास से भरी शीतल को अपनी मनमर्जी के अनुसार जीवन जीने की आदत है. लेकिन राजन के साथ ऐसा नहीं है, चूंकि उसकी मां काफी डोमिनेटिंग रही हैं. नतीजतन शीतल की मर्जी के अनुसार घर चलता है, राजन यहां पर समझौता न कर पाने के कारण गहरे अवसाद में जा चुका है. इस बारे में क्लिनिकल साइकोलाॅजिस्ट राखी आनंद का कहना है, ‘जिन घरों में पुरुष घर की मामलों में निरपेक्ष होते है. उनके व्यक्तित्व में कई किस्म की खामियां पैदा हो जाती हैं. पत्नी के सामने तो वह झुककर रहते हैं लेकिन पत्नी के घर में न होने पर वह वैसा ही जीवन जीना पसंद करते हैं. दरअसल जैसा उन्हें अच्छा लगता है.’ यही वजह है कि पत्नी के न होने पर उन्हें वही करना अच्छा लगता है, जिसकी छूट उन्हें पत्नी के होने पर करने की नहीं होती. ऐसे लोग ही विवाहेत्तर संबंधों के जाल में फसंते जाते हैं.

क्या होना चाहिए

पति पत्नी के रिश्तों में दोनो इस तरह का समीकरण बनाते हैं कि उनके जीवन में सुख शांति बनी रहे. हर रिश्ते के भीतर कई कहानियां होती हैं. कई घरों में तो पति पत्नी के बीच में डोमिनेट कौन करता है इस बात का पता ही नहीं चलता. क्योंकि दोनो के बीच के रिश्ते बेहद अच्छे होते हैं. लेकिन तमाम चीजों के बावजूद पति और पत्नी दोनो को एक दूसरे की इच्छाओं का सम्मान करना चाहिए और घर की जिम्मेदारियों में बराबरी की साझेदारी करनी चाहिए. क्योंकि पति और पत्नी का रिश्ता आपसी विश्वास, समानता और एक दूसरे की इच्छाओं के सम्मान पर ही टिका होता है. एक ऐसा रिश्ता जिसमें एक पार्टनर दूसरे पार्टनर को कुछ स्पेस दे ताकि दोनो के बीच अच्छे रिश्ते कायम हो सकें और जिसमें न तो दोनो एक दूसरे पर हावी हों और न ही घर में किसी एक का एकछत्र राज्य चले.

Hindi Kahani : कानूनी बीड़ी का बंडल: दादा ने कैसे निबटाया केस

मुकदमा साधारण था मगर कचहरी के चक्कर लगातेलगाते सोमेश को महीनों हो चले थे. उस के पिताजी भी कई पेशियों मेें साथ गए थे. मगर नतीजा वही ढाक के तीन पात. विरोधी पक्ष वाले चंटचालाक थे. हर बार जोड़तोड़ कर या तो तारीख डलवा लेते या फिर कोई नया पेंच फंसा देते थे. लिहाजा, साधारण सा दिखने वाला मुकदमा खासा लंबा समय ले गया था.

शहर में सोमेश के दादा लाहौरी राम के कई मकान और दुकानें थीं. वे पटवारी के पद पर तैनात हो कर कानूनगो के पद से रिटायर हुए थे. ऊपरी कमाई से खासी बरकत थी. सस्ते जमाने में जमीनजायदाद खासी सस्ती थी. आजकल के जमाने के मुकाबले तब आम लोगों की कमाई काफी कम थी. मकान, दुकान खरीदने, बनाने का रुझान लोगों में कम ही था.

अनेक मकानों, दुकानों से किराया आ रहा था.

कभीकभार मकान या दुकान खाली करवाने या किराया वसूलने के लिए मुकदमा डालना पड़ता था.

मगर अब धीरेधीरे उन की सक्रियता कम हो चली थी. उन्होंने सब लेनदेन अपने बेटे संतराम और जवान होते पोते सोमेश को संभलवा दिया था.

संतराम भी सरकारी मुलाजिम था मगर उस में अपने रिटायर्ड कानूनगो बाप जितनी जोड़तोड़ की प्रतिभा और चालाकी न थी.

लाहौरी राम ने गरीबी और अभाव के दिनों में मेहनतमशक्कत की थी जिस से उन में स्वाभाविक तौर पर दृढ़ इच्छाशक्ति, हर स्थितिपरिस्थिति से निबटने की क्षमता विकसित हो गई थी.

वहीं संतराम जैसे मुंह में चांदी का चम्मच ले कर पैदा हुआ था. इसलिए उस मेें अपने पिता समान दृढ़ता और मजबूती न थी.

तीसरी पीढ़ी के सोमेश में हालांकि आज के जमाने का चुस्त दिमाग था. वह एम.ए. तक पढ़ा था. एक कंपनी में कनिष्ठ प्रबंधक था मगर उस में भी अपने दादा की तरह बुद्धि का कौशल दिखाने की प्रतिभा न थी.

विरोधी पक्ष यानी किराएदार पहले के किराएदारों की तुलना में चंटचालाक था.

उस की तुलना में सोमेश और उस के पिता एक तरह से अनाड़ी थे.

‘‘क्यों सोमेश, क्या हुआ मकान वाले मुकदमे में?’’ एक सुबह दादाजी ने नाश्ता करते हुए पूछा.

‘‘जी, हर पेशी पर वह तारीख बढ़वा लेता है.’’

‘‘वह किस तरह? अपना वकील क्या करता है?’’

‘‘दादाजी, पुराने वकील तो रहे नहीं. उन का लड़का इतना ध्यान नहीं देता.’’

लाहौरी राम सोचने लगे. समय सचमुच बदल गया है. उन के हमउम्र ज्यादातर तो गुजर चुके थे या फिर उन के समान रिटायर हो एकाकी जीवन बिता रहे थे.

‘‘अगली पेशी कब की है?’’

‘‘इसी महीने 19 तारीख की है.’’

‘‘ठीक है, इस पेशी पर मैं चलूंगा तेरे साथ.’’

पेशी वाले दिन दादाजी ने अपना स्थायी पहरावा सफेद धोतीकुरता पहना और सिर पर साफा बांध लिया. कलाई पर पुराने समय की आयातित घड़ी बांध ली और अपना पढ़ने का चश्मा जेब में डाल लिया.

सोमेश की मां को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘संते की बहू, जरा छोटेबड़े कुछ नोट देना, कचहरी में चायपानी देना पड़ता है.’’

‘‘दादाजी, मेरे पर्स में हैं.’’

‘‘तू अपना पर्स अपने पास रख.’’

सोमेश की मां ने 5-10 के नोटोें का एक छोटा सा पुलिंदा अपने ससुर को थमा दिया. दादाजी सारी उम्र कोर्टकचहरी आतेजाते रहे थे. वे सभी सरकारी मुलाजिमों की मानसिकता से परिचित थे. बिना चायपानी दिए कहीं कोई काम नहीं होता था. इसलिए छुट्टा रुपया जेब में रखना पड़ता था. बड़े नोट का ‘खुल्ला’ कचहरी में कभी नहीं मिलता था.

सोमेश पार्किंग में अपनी कार खड़ी कर आया. दादाजी अपने पुराने वकील शंभू दयाल का तख्त ढूंढ़ने लगे.

वरिष्ठ वकील शंभू दयाल अब रिटायर हो कर घर पर आराम करते थे. उन का लड़का अवतार शरण ही अब वकालत करता था.

‘‘नमस्ते, लाहौरी रामजी, सुनाइए क्या हालचाल हैं?’’ अवतार शरण ने व्यवसायसुलभ स्वर में कहा.

‘‘सब ठीक है. बड़े बाबूजी कहां हैं?’’

‘‘वे इन दिनों घर पर आराम करते हैं जी.’’

‘‘हमारे मुकदमे की क्या पोजीशन है?’’

‘‘ठीक है, जी.’’

‘‘पेशियां बहुत पड़ चुकी हैं.’’

‘‘ऐसा है जी, पहले के मुकाबले अब मुकदमे काफी ज्यादा हैं, जज साहब हर मुकदमा लंबी पेशी पर ही डालते हैं.’’

लाला लाहौरी राम खामोश हो सब सुन रहे थे. पुराने वकील शंभू दयाल कभी इस तरह की टालने की बात नहीं करते थे. कचहरी का समय हो चला था. दादाजी अपने पोते के साथ नियत कोर्ट रूम के बाहर बरामदे में बनी बैंच पर जा बैठे.

दादाजी ने अपने कुरते की जेब से एक बीड़ी का बंडल निकाला. उन को बीड़ी का बंडल निकालते देख सोमेश बोलने को हुआ कि दादाजी, अब सार्वजनिक स्थान पर बीड़ी पीना जुर्म है, मगर जब और कई लोगों को बीड़ी पीते देखा तो चुप रह गया.

दादाजी ने एक नजर चारों तरफ घुमाई. उन की अनुभवी निगाहों ने आसपास बैठे लोगों को ताड़ा. उन में से कई ऐसे थे जिन का कोर्टकचहरी में कोई मुकदमा न था, मगर उन का रोजाना आना पक्का था.

ऐसे लोगोें में अभीलाल नाम का एक आदमी भी था जो एक पेशेवर गवाह था. ऐसे पेशेवर गवाह तो हर जगह खासकर थाना, तहसील, सरकारी दफ्तर, खजाना या कचहरी में आम मिलते थे. इन का काम अपनी फीस या चायपानी ले गवाही देना होता था.

इन की जेब में बीड़ी का बंडल तो नहीं मगर माचिस जरूर मिलती थी. किसी आसामी के मांगने पर तपाक से माचिस पेश कर देते थे. माचिस के एहसान के बदले में बीड़ी का आफर मिलना स्वाभाविक था जिसे सहर्ष कबूल कर लेते थे. कभीकभी तो बढि़या सिगरेट भी मिल जाती थी. मगर ज्यादातर व्यवहार बीड़ी के बंडल का था.

‘‘क्यों जी, माचिस है क्या?’’

अभीलाल जैसे उसी पुकार की इंतजार में था. उस ने झट से माचिस जेब से निकाली और डबिया खिसका तीली निकाली और जलाने को हुआ.

दादाजी ने बंडल से 2 बीडि़यां निकालीं. एक अपनी उंगलियों में दबाई और दूसरी अभीलाल को थमा दी. अभीलाल ने तीली जलाई और पहले दादाजी की बीड़ी सुलगाई और फिर तीली बुझा कर फर्श पर डाल दी.

मामूली बातों से आरंभ कर दादाजी ने बात का रुख वर्तमान की स्थिति पर मोड़ दिया.

‘‘आजकल लोकअदालत का बड़ा शोर है, यह क्या है?’’

‘‘लालाजी, नए जमाने का चलन है, जहां दोनों पार्टियों को राजी कर मुकदमा जल्दी खत्म किया जाता है.’’

‘‘इस मामले से सारे मुकदमे खत्म हो जाएंगे तब तेरे जैसे गवाहों की रोजीरोटी का क्या होगा?’’

इस पर अभीलाल हंसने लगा. आसपास बैठे सभी लोग भी हंसने लगे. हंसने का कारण समझ आने पर दादाजी हंसने लगे. कितना भी परिवर्तन किया जाए, कितने ही सुधार किए जाएं, क्या कभी मुकदमे, लड़ाईझगड़े समाप्त हो सकते हैं?

‘‘अपना नंबर कब आएगा?’’ दादाजी ने सोमेश से पूछा.

‘‘पिछली बार तो दोपहर बाद आवाज पड़ी थी.’’

‘‘ठीक है, तब तक मैं जरा टहल आऊं.’’

‘‘आओ भई, एकएक कप चाय हो जाए,’’ दादाजी के साथ अभीलाल भी उठ खड़ा हुआ.

चायसमोसे के दौरान दादाजी ने अभीलाल से अपनी वांछित जानकारी ले ली. मसलन, जज कैसा है? लेता है तो कितनी रिश्वत लेता है? उस का संपर्क सूत्र कौन है? आदि.

उस दिन भी तारीख पड़ गई थी मगर उस से अविचलित दादाजी अपनी हासिल जानकारी पर अमल करने में जुट गए थे. संपर्क सूत्र के जरिए जज साहब से मामला तय हो गया था. किसी को फल, किसी को ड्राईफ्रूट का टोकरा, किसी को शराब की पेटी पहुंच गई थी.

अगली 3 पेशियों के बाद मुकदमे का फैसला दादाजी के हक में हो गया था. एम.ए. तक पढ़े बापबेटा पुराने मिडल पास कानूनगो की बुद्धि की चतुराई को नहीं छू पाए थे.

Best Salad Recipe : घर में झट से बनाएं मैकरोनी सलाद और आलू टिक्की

हमारी चटोरी जीभ रोजना कुछ न कुछ चटपटा खाने के लिए मांगती रहती है. बाहर का डेली जंक फूड खाना सेहत के लिए काफी नुकसानदायक होता है. ऐसे में आप घर में कुछ टेस्टी एंड चटपटा डिश बनाए. घर में झट से बनाए मैकरोनी सलाद और आलू टिक्की

1.  मैकरोनी सलाद

सामग्री सलाद ड्रैसिंग की

  1. 2 बड़े चम्मच सिरका
  2. 1/2 छोटा चम्मच मिक्स्ड हर्ब
  3. 1 बड़ा चम्मच औलिव औयल
  4. 2 बड़े चम्मच पाइनऐप्पल सिरप
  5. 1/2 छोटा चम्मच लहसुन द्य  नमक स्वादानुसार.

सामग्री सलाद की

  1. मैकरोनी
  2. 1 कटा खीरा
  3. 1 प्याज कटा
  4. पाइनऐप्पल कटा
  5. 1 गाजर कटी
  6. 1-1 लाल, पीली व हरी शिमलामिर्च कटी.

विधि

एक पैन में मैकरोनी को उबाल कर छान लें. फिर इस में सभी सब्जियां डालें. फिर इसे सलाद में डाल कर फ्रिज में ठंडा कर सर्व करें.

2. पैशल आलू टिक्की

सामग्री

  1. 200 ग्राम आलू उबले व मैश किए
  2. 2 बड़े चम्मच अरारोट पाउडर
  3. 1 बड़ा चम्मच चावल का आटा
  4. 1/2 कप ब्रैडक्रंब्स
  5. तलने के लिए रिफाइंड औयल
  6. नमक स्वादानुसार.

सामग्री भरावन की

  1. 1/4 कप धुली मूंग दाल
  2. 1 बड़ा चम्मच हरे मटर उबले
  3. 1 बड़ा चम्मच काजू छोटे टुकड़ों में कटे
  4. 1 बड़ा चम्मच किशमिश
  5. 1 बड़ा चम्मच बादाम पाउडर
  6. 1/2 छोटा चम्मच जीरा पाउडर
  7. 1 छोटा चम्मच धनिया व मिर्च पाउडर
  8. 1 छोटा चम्मच अदरक
  9. हरीमिर्च बारीकी कटी
  10. 1 छोटा चम्मच चाट मसाला
  11. 2 छोटे चम्मच रिफाइंड औयल
  12. 1 बड़ा चम्मच बेसन
  13. 1 बड़ा चम्मच धनियापत्ती बारीक कटी
  14. नमक स्वादानुसार.

विधि

भरावन के लिए दाल में ज्यादा पानी डाल कर खुले में उबालें. दाल सिर्फ गलनी चाहिए. पानी से निथार कर अलग रखें. एक नौनस्टिक पैन में तेल गरम कर के बेसन डालें. फिर दाल डाल कर धीमी आंच पर अच्छी तरह भूनें. उस में सभी मसाले, मटर, ड्राईफू्रट आदि मिला दें. मैश किए आलू में अरारोट पाउडर, चावल का आटा व नमक अच्छी तरह मिलाएं. एक बड़े नीबू के आकार का मिश्रण लें. बीच में अच्छी तरह भर कर बंद करें और टिक्की का आकार दें. प्रत्येक टिक्की को ब्रैडक्रंब्स में लपेट कर नौनस्टिक पैन में तेल गरम कर के सुनहरा होने तक तल लें.

इसे चटनी, सोंठ, दही, नमकीन, सेव डाल कर सर्व करें.

Online Hindi Story : विनविन सिचुएशन

‘‘विनविनसिचुएशन वह होती है जिस में सभी पक्ष फायदे में रहें. जैसे हम ने किसी सामान को बनाने में 50रुपए लगाए और उसे 80 रुपए में बेच दिया, तो यह हमारे लिए फायदे का सौदा हुआ. लेकिन अगर वही सामान कोई व्यक्ति पहले

क्व90 में खरीदता था और अब हमारी कंपनी उसे क्व80 में दे रही है, तो यह उस का भी फायदा हुआ यानी दोनों पक्षों का फायदा हुआ. इसे कहते हैं विनविन सिचुएशन,’’ सोमेश कंपनी के नए स्टाफ को समझा रहा था.

12 साल हो गए सोमेश को इस कंपनी में काम करते हुए. अब नए लोगों को ट्रेनिंग देने का काम वही संभालता था. 12 सालों में पद, कमाई के साथसाथ परिवार भी बढ़ गया था उस का. हाल ही में वह दूसरी बार बाप बनने के गौरव से गर्वित हुआ था, लेकिन खुशी से ज्यादा एक नई जिम्मेदारी बढ़ने का एहसास हुआ था उसे. सालोंसाल वही जिंदगी जीतेजीते उकता गया था वह. उस की पत्नी रूमी बच्चों में ही उलझी रहती थी.

लंच टाइम में सोमेश जब खाना खाने बैठा, तो टिफिन खोलते ही उस ने बुरा सा मुंह बनाया, ‘‘लगता है आज फिर भाभीजी ने टिंडों की सब्जी बनाई है,’’ नमनजी के मजाक में कहे ये शब्द उसे तीर की तरह चुभ गए, क्योंकि सचमुच रूमी ने टिंडों की ही सब्जी दी थी टिफिन में.

कुछ खीजता हुआ सोमेश यों ही कैंटीन के काउंटर की ओर बढ़ गया.

‘‘सर, आप अपना टिफिन खुला ही भूल आए मेज पर,’’ एक खनकती हुई आवाज पर

उस ने मुड़ कर देखा. कंपनी में नई आई हुई लड़की रम्या उस का टिफिन उठा कर उस

के पास ले आई थी. यों कंपनी में और भी लड़कियां थीं, लेकिन सोमेश उन सब पर

थोड़ा रोब बना कर ही रखता था. इतने बेबाक तरीके से कोई लड़की उस से कभी बात नहीं करती थी.

‘‘सर, यह लीजिए मैं इसी टेबल पर आप का टिफिन रख देती हूं.’’

‘‘सर, आप अगर बुरा न मानें तो मैं भी इधर ही खाना खा लूं? उस बड़ी वाली मेज पर तो जगह ही नहीं है.’’

सोमेश ने बड़ी टेबल की ओर नजर दौड़ाई. सचमुच नए लोगों के आ जाने से बड़ी टेबल पर खाली जगह नहीं बची थी. उस ने सहमति में सिर हिलाया.

टिफिन रखते हुए रम्या के मुंह से निकल गया, ‘‘वाह, मेरी पसंदीदा टिंडों की सब्जी,’’

और फिर सोमेश की ओर देख कर कुछ ठिठक गई और चुपचाप अपना टिफिन खोल कर खाना खाने लगी.

बरबस ही सोमेश की नजर भी रम्या के टिफिन में रखे आलू के परांठों पर पड़ गई. रम्या बेमन से आलू के परांठे खा रही थी और सोमेश भी किसी तरह सूखी रोटियां अचार के साथ निगल रहा था.

‘‘सर, आप सब्जी नहीं खा रहे?’’ आखिरकार रम्या बोल ही पड़ी.

‘‘मुझे टिंडे पसंद नहीं, सोमेश ने बेरुखी से कहा तो रम्या ने उस की ओर आश्चर्य से देखा.’’

रम्या की निगाहों से साफ जाहिर था कि उस की पसंदीदा सब्जी की बुराई सुन कर उसे अच्छा नहीं लगा.

‘‘खाना फेंकना नहीं चाहिए सर,’’ रम्या ने किसी दार्शनिक की तरह कहा तो सोमेश को हंसी आ गई, ‘‘अच्छा, तो तुम ही खा लो यह टिंडों की सब्जी.’’

‘‘सच में ले लूं सर?’’ रम्या को जैसे मनचाही मुराद मिल गई.

‘‘हांहां, ले लो और तुम क्या मुझे आलू का परांठा दोगी?’’ रम्या की बेफिक्री से सोमेश भी थोड़ा बेतकल्लुफ हो गया था.

‘‘अरे बिलकुल सर, मैं तो बोर हो गई हूं आलू के परांठे खाखा कर. सुबह जल्दी में ये आसानी से बन जाते हैं. सब्जी बनाने के चक्कर में देर होने लगती है.’’

‘‘तुम खुद ही खाना बनाती हो क्या?’’

‘‘जी सर, अकेली रहती हूं तो खुद ही बनाना पड़ेगा न.’’

‘‘तुम अकेली रहती हो?’’

‘‘जी सर, मां को इलाज के लिए मामाजी के पास छोड़ा हुआ है.’’

सोमेश रम्या से अनेक सवाल पूछना चाहता था, लेकिन तभी कैंटीन में लगी बड़ी सी घड़ी की ओर उस का ध्यान गया. लंच टाइम खत्म होने वाला था. लंच के बाद उस की मैनेजर के साथ मीटिंग थी. उस ने अपना टिफिन रम्या की ओर खिसका दिया. बदले में रम्या ने भी 4 परांठों का डब्बा उस की ओर बढ़ा दिया.

लंच के बाद मीटिंग में मैनेजर ने उस से नए स्टाफ की जानकारी ली और पूछा कि इन में से किस नए मैंबर को तुम अपनी टीम में शामिल करना चाहते हो. चूंकि सभी नए लोगों की योग्यता एक सी ही थी और किसी को भी काम करने का पुराना अनुभव नहीं था, इसलिए उसे किसी के भी अपनी टीम में जुड़ने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था.

‘‘जैसा आप ठीक समझें सर,’’ सोमेश ने औपचारिक अंदाज में कहा.

‘‘तो फिर मैं रम्या को तुम्हारी टीम में दे रहा हूं, क्योंकि नमनजी ने दीपक को लिया है, जो उन का कोई दूर का रिश्तेदार लगता है. और देवेंद्र का स्वभाव तो तुम जानते ही हो कि उस के साथ कोई लड़की काम करना ही नहीं चाहती,’’ मैनेजर साहब ने जैसे पहले से ही सोच रखा था.

‘‘ठीक है सर,’’ सोमेश ने स्वीकृति में सिर हिलाया.

अगले दिन से रम्या सोमेश की टीम से जुड़ गई. थोड़ा और बेतकल्लुफ होते हुए अब रम्या उस के टिफिन से मांग कर खाना खाने लग गई.

‘‘आज शाम को जल्दी आ जाना, छोटे बेटे को टीका लगवाने जाना है,’’ औफिस के लिए निकलते हुए सोमेश को पीछे से रूमी की आवाज सुनाई दी. आज्ञाकारी पति की तरह सिर हिलाते हुए सोमेश ने गाड़ी स्टार्ट की.

शाम को औफिस से निकलते समय बारिश हो रही थी. सोमेश जल्दी से पार्किंग में खड़ी गाड़ी की ओर बढ़ा, लेकिन कुछ बूंदें उस पर पड़ ही गईं. गाड़ी में बैठ कर वह थोड़ा ही आगे बढ़ा था कि उस की नजर सामने एक दुकान के पास बारिश से बचने की कोशिश में किनारे खड़ी रम्या पर पड़ी.

इंसानियत के नाते उस ने गाड़ी उधर रोक दी और अंदर बैठे हुए ही रम्या को आवाज लगाई, ‘‘गाड़ी में आ जाओ वरना भीग जाओगी. अकेली रहती हो, बीमार हो गई तो देखभाल कौन करेगा?’’

बारिश से बचतीबचाती रम्या आ कर उस की गाड़ी में उस की बगल में बैठ गई. उस के सिर से पानी टपक रहा था.

‘‘ओह तुम तो काफी भीग गई हो,’’ सोमेश ने संवेदना दिखाते हुए कहा, ‘‘तुम्हारा घर कहां है?’’

‘‘पास ही है सर, पैदल ही आ जाती हूं. आज बारिश हो रही थी वरना आप को कष्ट नहीं देती.’’

बातों ही बातों में दोनों ने एकदूसरे को अपने परिवार के बारे में बता डाला. सोमेश को यह जान कर बड़ा आश्चर्य हुआ कि पिता के होते हुए भी अपनी बीमार मां की देखभाल का जिम्मा रम्या के ऊपर है.

‘‘क्या तुम्हारे पिताजी साथ में नहीं रहते?’’ सोमेश को रम्या के प्रति गहरी संवेदना हो आई.

‘‘नहीं सर, पिताजी मां के पूर्व सहपाठी उमेश अंकल को उन का प्रेमी मान कर उन पर शक करते हैं.’’

‘‘अच्छा, अगर रिश्तों में इतनी कड़वाहट है, तो वे तलाक क्यों नहीं ले लेतीं? कम से कम उन्हें अपने खर्च के लिए कुछ पैसे तो मिलेंगे.’’

‘‘वही तो सर, मां की इसी दकियानूसी बात पर तो मुझे गुस्सा आता है. पति साथ न दे तब भी वे उन्हें परमेश्वर ही मानेंगी.’’

बातोंबातों में वे रम्या के घर से आगे निकल गए. इसी बीच रूमी का फोन आ गया, ‘‘सुनो, बाहर बारिश हो रही है, ऐसे में बच्चे को बाहर ले कर जाना ठीक नहीं. हम कल चलेंगे उसे टीका लगवाने’’ जल्दीजल्दी बात पूरी कर रूमी ने फोन काट दिया.

‘‘सर, आप को वापस मोड़ना पड़ेगा, मेरा घर पीछे रह गया.’’

‘‘कोई बात नहीं, कह कर सोमेश ने गाड़ी मोड़ ली. वैसे भी अब घर जल्दी जा कर करना ही क्या था.’’

तभी रम्या को जोर की छींक आई.

‘‘बारिश में बहुत भीग गई हो, लगता है तुम्हें जुकाम हो गया है,’’ सोमेश को रम्या की चिंता होेने लगी.

रम्या का घर आ गया था. उस ने शिष्टाचारवश कहा, ‘‘सर, 1 कप चाय पी कर जाइए.’’

ऐसी बारिश में सोमेश को भी चाय की तलब हो आई थी. अत: रम्या के पीछे उस के छोटे से कमरे वाले घर में चला गया.

‘‘मैं अभी आई,’’ कह कर रम्या सामने लगे दरवाजों में एक के अंदर चली गई. कुछ देर तक वापस नहीं आई तो सोमेश खुद ही उधर जाने लगा. कुछ आगे जाने पर उसे दरवाजे की दरार में से रम्या नजर आई. अचानक ही रम्या की निगाहें भी उस से टकरा गईं. उस ने जल्दी से दरवाजा बंद किया, लेकिन कपड़े बदलती रम्या की एक झलक सोमेश को मिल चुकी थी.

‘‘माफ कीजिएगा सर, दरवाजे की चिटकनी खराब है… अकेली रहती हूं, इसलिए सही करवाने का समय ही नहीं मिलता.’’

फिर नजरें झुकाए हुए ही वह चाय बना कर ले आई. चाय का कप लेते हुए एक बार फिर सोमेश की निगाहें रम्या से चार हो गईं. इस बार रम्या ने नजरें नहीं झुकाईं, बल्कि खुद को आवेश के पलों में बहक जाने दिया.

अरसे का तरसा सोमेश रम्या का खुला निमंत्रण पा कर पागल ही हो बैठा.

कुछ पलों को वह यह भी भूल गया कि वह शादीशुदा है और उस के 2 बच्चे भी हैं.

जब तक वह कुछ सोचसमझ पाता, तीर कमान से निकल चुका था. वह खुद से नजरें नहीं मिला पा रहा था. रम्या ने उसे संयत किया. ‘‘इतना परेशान होने की जरूरत नहीं है सर, यह तो शरीर की स्वाभाविक जरूरत है. मेरा पहले भी एक बौयफ्रैंड था… आज का अनुभव मेरे लिए कोई नया नहीं है. आप कहें तो मैं इस बारे में किसी से कुछ नहीं कहूंगी.’’

रम्या की बात सुन कर सोमेश ने किसी तरह खुद को संभाला और बिना कुछ कहे अपने घर का रास्ता लिया.

अब सोमेश हर पल बेचैन रहने लगा.

रम्या की उपस्थिति में उस की यह बेचैनी और भी बढ़ जाती जबकि रम्या बिलकुल सामान्य रहती. वह रम्या के सान्निध्य के बहाने ढूंढ़ता रहता.

घर छोड़ने के बहाने वह कई बार रम्या के घर गया. रम्या बड़ी सहजता से उस की ख्वाहिश पूरी करती रही. बदले में सोमेश भी उसे कंपनी में तरक्की पर तरक्की देता रहा और देता भी क्यों नहीं? रम्या पूरी तरह से  विनविन सिचुएशन का मतलब जो समझ चुकी थी.

सलाह दें कि मैं अपने प्रति भाई की नफरत को कैसे कम करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 22 वर्षीय युवती हूं और अपने भाई भाभी के साथ रहती हूं. मेरी समस्या यह है कि मेरा भाई मुझ से नफरत करता है. मैं नहीं जानती मेरे प्रति उस के इस व्यवहार का क्या कारण है? सलाह दें कि मैं अपने प्रति भाई की नफरत को कैसे कम करूं क्योंकि भाई की नफरत के साथ उस घर में रहना मेरे लिए मुश्किल हो रहा है.

जवाब

सब से पहले आप अपने भाई से उस के मन में आप के प्रति नफरत का कारण जानने की कोशिश करें. भाई की नफरत का कारण बचपन की कोई घटना हो सकती हैं. जिस की वजह से भाई के दिल पर आप के प्रति नाराजगी पैदा हो गई हो. भाइयों को कई बार लगता है कि बहन संपत्ति में हिस्सा मांगेगी और बिना मांगे ही उसे शत्रु मान लेते हैं.

वैसे भी हमारे देश में पुरुष अपने को बहन का रखवाला मानते हैं और लड़के पिता की तरह पेश आते हैं. आप भाई के अच्छे मूड को देख कर उस से बात करें. भाभी को अपनी समस्या बताएं और आप उस कड़वाहट को आमनेसामने बैठ कर सुलझाने का प्रयास करें. बात करने से ही नफरत का कारण पता चलेगा और समस्या का समाधान भी तभी निकल पाएगा.

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जलन नहीं हो आपस में लगन

यों तो पैदा होते ही एक शिशु में कई सारी भावनाओं का समावेश हो जाता है, जो कुदरती तौर पर होना भी चाहिए, क्योंकि अगर ये भावनाएं उस में नजर न आएं तो बच्चा शक के दायरे में आने लगता है कि क्या वह नौर्मल है? ये भावनाएं होती हैं प्यार, नफरत, डर, जलन, घमंड, गुस्सा आदि.

अगर ये सब एक बच्चे या बड़े में उचित मात्रा में हों तो उसे नौर्मल समझा जाता है और ये नुकसानदेह भी नहीं होतीं. लेकिन इन में से एक भी भाव जरूरत से ज्यादा मात्रा में हो तो न सिर्फ परिवार के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए समस्या का कारण बन जाता है, क्योंकि किसी भी भावना की अति इंसान को अपराध की तरफ ले जाती है. जैसे कुछ साल पहले भाजपा के प्रसिद्ध नेता प्रमोद महाजन के भाई ने अपनी नफरत के चलते उन्हें गोली मार दी.

कहने का तात्पर्य यह है कि जलन और द्वेष की भावना इंसान को कहीं का नहीं छोड़ती. अगर द्वेष और जलन की यही भावना 2 बहनों के बीच होती है, तो उन से जुड़े और भी कई लोगों को इस की आग में जलना पड़ता है. ज्यादातर देखा गया है कि 2 बहनों के बीच अकसर जलन की भावना का समावेश होता है. अगर यह जलन की भावना प्यार की भावना से कम है, तो मामला रफादफा हो जाता है, लेकिन इस जलन की भावना में द्वेष और दुश्मनी का समावेश ज्यादा है, तो यह काफी नुकसानदेह भी साबित हो जाती है.

द्वेष व जलन नहीं

अगर 2 बहनों के बीच जलन का कारण ढूंढ़ने जाएं तो कई कारण मिलते हैं. जैसे 2 बहनों में एक का ज्यादा खूबसूरत होना, दोनों बहनों में एक को परिवार वालों का ज्यादा अटैंशन मिलना या दोनों में से किसी एक बहन को मां या पिता का जरूरत से ज्यादा प्यार और दूसरी को तिरस्कार मिलना, एक बहन का ज्यादा बुद्धिमान और दूसरी का बुद्धू होना या एक बहन के पास ज्यादा पैसा होना और दूसरी का गरीब होना. ऐसे कारण 2 बहनों के बीच जलन और द्वेष के बीज पैदा करते हैं.

इसी बात को मद्देनजर रखते हुए 20 वर्षीय खुशबू बताती हैं कि उन के घर में उस की छोटी बहन मिताली को जो उस से सिर्फ 3 साल छोटी है, कुछ ज्यादा ही महत्ता दी जाती है. जैसे अगर दोनों बहनें किसी फैमिली फंक्शन में डांस करें, जिस में खुशबू चाहे कितना ही अच्छा डांस क्या करें, लेकिन उस की मां तारीफ उस की छोटी बहन की ही करती हैं.

खुशबू बताती है कि वह अपने घर में अपने सभी भाईबहनों में कहीं ज्यादा होशियार और बुद्धिमान है, बावजूद इस के उस को कभी प्रशंसा नहीं मिलती. वहीं दूसरी ओर उस की बहन में बहुत सारी कमियां हैं बावजूद इस के वह हमेशा सभी के आकर्षण का केंद्र बनी रहती है. इस की वजह हैं खासतौर पर खुशबू की मां, जो सिर्फ और सिर्फ खुशबू की छोटी बहन की ही प्रशंसा करती हैं. इस बात से निराश हो कर कई बार खुशबू ने आत्महत्या तक करने की कोशिश की, लेकिन उस के पिता ने उसे बचा लिया.

वजह दौलत भी

खुशबू की तरह चेतना भी अपनी बहन की जलन का शिकार है, लेकिन यहां वजह दूसरी है. चेतना छोटी बहन है और उस की बड़ी बहन है आशा. जलन की वजह है चेतना की खूबसूरती. बचपन से ही चेतना की खूबसूरती के चर्चे होते रहते थे वहीं दूसरी ओर आशा को बदसूरत होने की वजह से नीचा देखना पड़ता था, जिस वजह से आशा चेतना को अपनी दुश्मन समझने लगी. चेतना की गलती न होते हुए भी उस को अपनी बहन के प्यार से न सिर्फ वंचित रहना पड़ा, बल्कि अपनी बड़ी बहन की नफरत का भी शिकार होना पड़ा.

कई बार 2 बहनों के बीच जलन, दुश्मनी, द्वेष का कारण जायदाद, पैसा व अमीरी भी बन जाती है. इस संबंध में नीलिमा बताती हैं, ‘‘हम 2 बहनों ने एक जैसी शिक्षा ली, लेकिन मैं ने मेहनत कर के ज्यादा पैसा कमा लिया. अपनी मां के कहे अनुसार बचत करकर के मैं ने अपनी कमाई से कार और फ्लैट भी खरीद लिया जबकि मेरी बहन ज्यादा पैसा नहीं कमा पाई और गरीबी में जीवन निर्वाह कर रही थी. इसी वजह से उस की मेरे प्रति जलन की भावना इतनी बढ़ गई कि वह दुश्मनी में बदल गई. आज हमारे बीच जलन का यह आलम है कि हम बहनें एकदूसरे का मुंह तक देखना पसंद नहीं करतीं. बहन होने के बावजूद वह हमेशा मेरे लिए गड्ढा खोदती रहती है. हमेशा इसी कोशिश में रहती है कि मेरे घरपरिवार वाले मेरे अगेंस्ट और उस की फेवर में हो जाएं.’’

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Best Hindi Story : क्या आप का बिल चुका सकती हूं

Best Hindi Story : नीलगिरी की गोद में बसे ऊटी में राशा के साथ मैं झील के एक छोर पर एकांत में बैठी थी. ‘‘तुम्हारा चेहरा आज ज्यादा लाल हो रहा है,’’ राशा ने मेरी नाक को पकड़ कर हिलाया और बोली, ‘‘कुछ लाली मुझे दे दो और घूरने वालों को कुछ मुझ पर भी नजरें इनायत करने दो.’’

इतना कह कर राशा मेरी जांघ पर सिर रख कर लेट गई और मैं ने उस के गाल पर चिकोटी काट ली तो वह जोर से चिल्लाई थी.

‘‘मेरी आंखों में अपना चौखटा देख. एक चिकोटी में तेरे गाल लाल हो गए, दोचार में लालमलाल हो जाएंगे और तब बंदरिया का तमाशा देखने के लिए भीड़ लग जाएगी,’’ मैं ने मजाक करते हुए कहा.

उस ने मेरी जांघ पर जरा सा काट लिया तो मैं उस से भी ज्यादा जोर से चीखी. सहसा बगल के पौधों की ओट से एक चेहरा गरदन आगे कर के हमें देखने को बढ़ा. मेरी नजर उस पर पड़ी तो राशा ने भी उस ओर देखा.

‘‘मैं सोच रही थी कि ऊटी में पता नहीं ऊंट होते भी हैं कि नहीं,’’ राशा के मुंह से निकला.

‘‘चुप,’’ मैं ने उसे रोका.

मेरी नजरों का सामना होते ही वह चेहरा संकोच में पड़ता दिखाई दिया. उस ने आंखों पर चश्मा चढ़ाते हुए कहा, ‘‘आई एम सौरी…मुझे मालूम नहीं था कि आप लोग यहां हैं…दरअसल, मैं सो रहा था.’’

फिर मैं ने उसे खड़ा हो कर अपने कपड़ों को सलीके से झाड़ते हुए देखा. एक युवा, साधारण पैंटशर्ट. गेहुंए चेहरे पर मासूमियत, शिष्टता और कुछ असमंजस. हाथ में कोई मोटी किताब. शायद यहां के कालेज का कोई पढ़ाकू लड़का होगा.

‘‘सौरी…हम ने आप के एकांत और नींद में खलल डाला…और आप को…’’

‘‘और मैं ने आप को ऊंट कहा,’’ राशा ने दो कदम उस की ओर बढ़ कर कहा, ‘‘रियली, आई एम वैरी सौरी.’’

वह सहज ढंग से हंसा और बोला, ‘‘मैं ने तो सुना नहीं…वैसे लंबा तो हूं ही…फिर ऊटी में ऊंट होने में क्या बुराई है? थैंक्स…आप दोनों बहुत अच्छी हैं…मैं ने बुरा नहीं माना…इस तरह की बातें हमारे जीवन का सामान्य हिस्सा होती हैं. अच्छा…गुड बाय…’’

मैं हक्कीबक्की जब तक कुछ कहती वह जा चुका था.

‘‘अब तुम बिना चिकोटी के लाल हो रही हो,’’ मैं ने राशा के गाल थपथपाए.

‘‘अच्छा नहीं हुआ, यार…’’ वह बोली.

‘‘प्यारा लड़का है, कोई शाप नहीं देगा,’’ मैं ने मजाक में कहा.

अगले दिन जब राशा अपने मांबाप के साथ बस में बैठी थी और बस चलने लगी तो स्टैंड की ढलान वाले मोड़ पर बस के मुड़ते ही हम ने राशा की एक लंबी चीख सुनी, ‘‘जोया…इधर आओ…’’

ड्राइवर ने डर कर सहसा बे्रक लगाए. मैं भाग कर राशा वाली खिड़की पर पहुंची. वह मुझे देखते ही बेसाख्ता बोली, ‘‘जोया, वह देखो…’’

मैं ने सामने की ढलान की ऊपरी पगडंडी पर नजर दौड़ाई. वही लड़का पेड़ों के पीछे ओझल होतेहोते मुझे दिख गया.

‘‘तुम उस से मिलना और मेरा पता देना,’’ राशा बोली.

उस के मांबाप दूसरी सवारियों के साथसाथ हैरान थे.

‘‘अब चलो भी…’’ बस में कोई चिल्लाया तो बस चली.

मैं ने इस घटना के बारे में जब अपनी टोली के लड़कों को बताया तो वे मुझ से उस लड़के के बारे में पूछने लगे. तभी रोहित बोला, ‘‘बस, इतनी सी बात? राशा इतनी भावुक तो है नहीं…मुझे लगता है, कोई खास ही बात नजर आई है उसे उस लड़के में…’’

मेरे मुंह से निकला, ‘‘खास नहीं, मुझे तो वह अलग तरह का लड़का लगा…सिर्फ उस का व्यवहार ही नहीं, चेहरे की मासूम सजगता भी… कुछ अलग ही थी.’’

‘‘तुम्हें भी?’’ नीलेश हंसी, ‘‘खुदा खैर करे, हम सब उस की तलाश में तुम्हारी मदद करेंगे.’’

मैं ने सब की हंसी में हंसना ही ठीक समझा.

‘‘ऐ प्यार, तेरी पहली नजर को सलाम,’’ सब एक नाजुक भावना का तमाशा बनाते हुए गाने लगे. राशा का जाना मेरे लिए अकेलेपन में भटकने का सबब बन गया.

एक रोज ऊपर से झील को देखतेदेखते नीचे उस के किनारे पहुंची. खुले आंगन वाले उस रेस्तरां में कोने के पेड़ के नीचे जा बैठी. आसपास की मेजें भरने लगी थीं. मैं ने वेटर से खाने का बिल लाने को कहा. वह सामने दूसरी मेज पर बिल देने जा रहा था.

सहसा वहां से एक सहमती आवाज आई, ‘‘क्या आप का बिल चुका सकता हूं?’’

मैं चौंकी. फिर पहचाना… ‘‘ओ…यू…’’ मैं चहक उठी और उस की ओर लपकी. वह उठा तो मैं ने उस की ओर हाथ बढ़ाया, ‘‘आई एम जोया…द डिस्टर्बिंग गर्ल…’’

‘‘मी…शेषांत…द ऊंट.’’

सहसा हम दोनों ने उस नौजवान वेटर को मुसकरा कर देखा जो हमारी उमंग को दबी मुसकान में अदब से देख रहा था. मन हुआ उसे भी साथ बिठा लूं.

शेषांत ने अच्छी टिप के साथ बिल चुकाया. मैं उसे देखती रही. उस ने उठते हुए सौंफ की तश्तरी मेरी ओर बढ़ाई और पूछा, ‘‘वाई आर यू सो ऐलोन?’’

‘‘दिस इज माई च्वाइस. अकेलेपन की उदासी अकसर बहुत करीबी दोस्त होती है हमारी. हां, राशा तो वहां से अगले दिन घर लौट गई थी. हमारी एक सैलानी टोली है, पर मैं उन के शोर में ज्यादा देर नहीं टिक पाती.’’

हम दोनों कोने में लगी बेंच पर जा बैठे. झील में परछाइयां फैल रही थीं.

मैं ने उस दिन राशा की विदाई वाला किस्सा उसे सुनाया तो वह संजीदा हो उठा, ‘‘आप लोग बड़ी हैं तो भी इतना सम्मान देती हैं…वरना मैं तो बहुत मामूली व्यक्ति हूं.’’

‘‘क्या मैं पूछ सकती हूं कि आप करते क्या हैं?’’ ‘‘इस तरह की जगहों के बारे में लिखता हूं और उस से कुछ कमा कर अपने घूमने का शौक पूरा करता हूं. कभीकभी आप जैसे अद्भुत लोग मिल जाते हैं तो सैलानी सी कहानी भी कागज पर रवानी पा लेती है.’’

‘‘वंडरफुल.’’

मैंने उसे राशा का पता नोट करने को कहा तो वह बोला, ‘‘उस से क्या होगा? लेट द थिंग्स गो फ्री…’’ मैं चुप रह गई.

‘‘पता छिपाने में मेरी रुचि नहीं है…’’ वह बोला, ‘‘फिर मैं तो एक लेखक हूं जिस का पता चल ही जाता है.’’

‘‘फिर…पता देने में क्या हर्ज है?’’

‘‘बंधन और रिश्ते के फैलाव से डरता हूं… निकट आ कर सब दूर हो जाते हैं…अकसर तड़पा देने वाली दूरी को जन्म दे कर…’’

‘‘उस रोज भी शायद तुम डरे थे और जल्दी से भाग निकले थे.’’

‘‘हां, आप के कारण.’’

मैं बुरी तरह चौंकी.

‘‘उस रोज आप को देखा तो किसी की याद आ गई.’’

‘‘किस की?’’

‘‘थी कोई…मेरे दिल व दिमाग के बहुत करीब…दूरदूर से ही उसे देखता रहा और उस के प्रभामंडल को…’’ कहतेकहते वह कहीं खो गया.

मैं हथेलियों पर अपना चेहरा ले कर कुहनियों के बल मेज पर झुकी रही.

‘‘कुछ लोग बाहर से भी और भीतर से भी इतने सुंदर क्यों होते हैं…और साथ में इतने अद्भुत कि हर पल उन का ही ध्यान रहता है? और इतने अपवाद क्यों?…कि या तो किताबों में मिलें या ख्वाबों में…या मिल ही जाएं तो बिछड़ जाने को ही मिलें?’’ वह बोला.

मैं उस की आंखों में उभरती तरलता को देखती रही. वह कहता रहा…

‘‘हम जब किसी से मिलते हैं तो उस मिलन की उमंग को धीरेधीरे फीका क्यों कर देते हैं? जिंदा रहते भी उसे मार क्यों देते हैं?’’

‘‘अधिक निकटता और अधिक दूरी हमें एकदूसरे को समझने नहीं देती…’’ मैं उस से एक गहरा संवाद करने के मूड में आ गई, ‘‘हमें एक ऐसा रास्ता बने रहने देना होता है, जो खत्म नहीं होता, वरना उस के खत्म होते ही हम भी खत्म हो जाते हैं और हमारा वहम टूट जाता है.’’

उस ने मेरी आंखों में देखा और कहना शुरू किया, ‘‘जिन्हें जीना आता है वे किसी रास्ते के खत्म होने से नहीं डरते, बल्कि उस के सीमांत के पार के लिए रोमांचित रहते हैं. भ्रम तब तक बना रहता है जब तक हम आगे के दृश्यों से बचना चाहते हैं…सच तो यह है कि रास्ते कभी खत्म नहीं होते…न ही भ्रम…अनदेखे सच तक जाने के लिए भ्रम ही तो बनते हैं. किश्तियों के डूबने से पता नहीं हम डरते क्यों हैं?’’

मैं उसे ध्यान से सुनने लगी.

‘‘सुखी, संतुष्ट बने रहने के लिए हम औसत व्यक्ति बन जाते हैं, जबकि चाहतें अनंत हैं…दूरदूर तक.’’

‘‘कभीकभी हम सहमत हो कर भी अलग तलों पर नजर आते हैं…मैं तुम्हारी इस बात को शह दूं तो कहूंगी कि मैं वहां खत्म नहीं होना चाहती जहां मैं ‘मुझ’ से ही मिल कर रह जाऊं…मुझे अपनी हर हद से आगे जाना है. अपने कदमों को नया जोखिम देने के लिए अपनी हर पिछली पगडंडी तोड़नी है…’’

वह हंसा. कहने लगा, ‘‘पर इस लड़खड़ाती खानाबदोशी में हम जल्दबाज हो कर अपने को ही चूक जाते हैं. इसी में हमारी बेचैनियां आगे दौड़ने की लत पाल लेती हैं. क्या ऐसा नहीं?’’

मैं सोचने लगी कि अब हम एकदूसरे के साथ भी हैं और नहीं भी.

मुझे चुप देख कर उस ने पूछा, ‘‘विवाह को आप कैसे देखती हैं?’’

‘‘अनचाही चीज का पल्ले पड़ जाने वाली एक वाहियात रस्म.’’

वह फिर हंस कर बोला, ‘‘विवाहित या अविवाहित होना मुझे बाहर की नहीं, भीतर की घटना लगती है. जीना नहीं आता हो तो सारी इच्छाएं पूरी हो जाने पर भी बेमतलब के साथ से हम नहीं बच पाते. ज्यादातर लोग विवाहित हो कर ही इस से बच सकते हैं…या दूसरे को बचा सकते हैं, ऐसे ही किसी संबंध में आ कर. हालांकि मैं नहीं मानता कि मनुष्य नामक स्थिति की अभी रचना हो भी सकी है…मनुष्य जिसे कहा जाता है वह शायद भविष्य के गर्भ में है, वरना विवाह की या किसी भी स्थापित संबंध की जरूरत कहां है? हम अकसर अपने से ही संबंधित हो कर आकाश खोजते रह जाते हैं…’’

फिर हम झील में बदलते नजारों में डूबने का अभिनय सा करते रहे.

चुप्पी लंबी हो गई तो मैं ने कहा, ‘‘उस रोज तुम ने मेरी पुकार नहीं सुनी और चले गए…मुझ से बचना चाहा तुम ने…मगर आज क्यों तुम ने मुझे पुकारा?’’

वह मेरे चेहरे को देखता रहा, फिर बोला, ‘‘आप अकेली बैठी थीं. कितनी ही देर से आप के चेहरे पर अकेलेपन की मायूसी देखता रहा, कैसे न पुकारता? पुकारने से बचना और किसी मायूस से बच कर भागना एक ही बात है. कैसी विडंबना है…अब सोच रहा हूं, आप से यह भी नहीं पूछा कि आप करती क्या हैं?’’

मैं यह सोच कर हंसी कि फंस गए बच्चू, इस दुनिया में बहुत कुछ तय नहीं किया जा सकता. अगर किया भी जा सके तो अगले ही पल वह होता है जिस की कल्पना भी नहीं की जा सकती.

वह चुप रहा. काफी देर के बाद उस ने पूछा, ‘‘घर से निकलते वक्त आप के मन में क्या होता है?’’

‘‘अज्ञात ऐडवैंचर. मैं लगातार घूमती हूं. अपना खुद का तकिया और चादर भी साथ रखती हूं, ताकि देह जहां तक हो, बनी रहे लेकिन जानती हूं कि मेरे हाथ में कल नहीं है.’’

वह मुसकराया, ‘‘इस क्षण मेरे लिए क्या सोचती हैं आप?’’

मैं हंसी, ‘‘इतना तो तय हो ही सकता है कि मैं अपने खाएपिए के अपने हिस्से का हिसाब चुकता करूं…तुम्हें ‘आप’ कह कर तुम से मिला हुआ परिचय तुम्हें लौटाऊं और हम अपनाअपना रास्ता लें.’’

‘‘ऐसा रास्ता है क्या, जिस पर सामने ठिठक जाने वाले लोग मिलते ही नहीं? ऐसा परिचय होता है क्या जिसे समूचा पोंछा जा सके? और अनाम रिश्तों में ‘तुम’ से ‘आप’ हो जाने से क्या होता है?’’

‘‘बातें तो बहुत बड़ीबड़ी कर रहे हो…तुम्हारी उम्र क्या है?’’

‘‘दुनिया से दफा हो जाने तक की तो नहीं जानता, पर अगली 1 जून को 30 का हो रहा हूं.’’

मैं चौंकी, ‘‘तुम तो मुझ से बड़े निकले… लगते तो छोटे हो.’’

‘‘हां, अकसर इसी धोखे में बच्चा ही बना रह जाता हूं बड़ों में…’’

‘‘जैसा दिखते हो वैसा स्वभाव भी है तुम्हारा…इसे चलनेफलने दो.’’

‘‘ऐसा मैं भी सोचता रहा, पर…’’

‘‘पर क्या?’’ मैं बीच में बोल पड़ी, ‘‘यही न कि अगर मेरे जैसी कोई तुम्हें पसंद आए तो तुम ज्यादा बचाव न कर उस पर हक जमा सको.’’

‘‘नहीं…ऐसा तो नहीं, क्योंकि मैं स्वयं नहीं चाहता अपने पर किसी का ऐसा अधिकार…फिर जो भीतरबाहर से सुंदर और बहुत हट कर होते हैं, उन का मेरे जैसे घुमक्कड़ व्यक्ति के लिए सुलभ रहना संभव नहीं है.’’

‘‘अगर तुम्हें पता चले कि राशा कुछ महीने की मेहमान है तो?’’

‘‘मुझे ऐसा मजाक पसंद नहीं.’’

‘‘लेकिन मौत ऐसे मजाक पसंद करती है.’’

‘‘क्या राशा को कुछ हुआ है?’’

‘‘किस को कब क्या नहीं हो सकता? मैं इतना जानती हूं कि अगर अभी राशा को यह पता चल जाए कि तुम मेरे साथ हो तो वह हमें अपने पास बुला लेगी या खुद यहां चली आएगी.’’

‘‘मिलन को बुनती ज्यादातर बातें सच तो होती हैं पर झूठ हो जाने के लिए ही. सच तभी बनता है जब किसी आकस्मिक घटना पर सहसा हम कुछ करने को बेचैन हो उठते हैं. जैसे कि हमारा उस रोज का मिलना और अचानक आज मिलना…आप जिंदगी को वाक्यसूत्रों में नहीं पिरो सकतीं.’’

‘‘ओह…मैं भूल ही गई थी…मुझे जल्दी होटल पहुंचना है…’’ कह कर मैं काउंटर पर बिल देने के लिए जाने लगी तो वह मुझे रोक कर बोला, ‘‘आज का दिन मेरा है. प्लीज, यह बिल भी मुझे चुकाने दीजिए न.’’

‘‘किसी पर अधिकार जताने के मौके हमारे हाथ कितनी खूबसूरती से लग जाते हैं,’’ मेरे मुंह से निकला और हम दोनों हंस पड़े.

वह काउंटर पर जा कर लौटा तो मैं ने उस की तरफ हाथ बढ़ा कर कहा, ‘‘चलती हूं…कभी सहसा संयोग बना तो फिर मिलेंगे…बहुत अच्छे हो तुम…अच्छे यानी जैसे भी हो…’’

उस ने मेरे बढ़े हुए हाथ को देखा… मुसकरा कर हाथ जोड़े और बोला, ‘‘हाथ नहीं मिलाऊंगा.’’

उस ने मेरे लौटते हुए हाथ को अपने हाथ में सहेज लिया और मेरे साथ चल पड़ा. हम आगे तक निकल गए.

‘‘क्या करती हैं आप?’’ बहुत देर बाद मेरा हाथ छोड़ कर उस ने पूछा.

‘‘गलती से साइकिएट्रिस्ट हूं. मनोविद या मनोचिकित्सक कहलाना बहुत आसान है. इस दुनिया में जीने के लिए फलसफे और मन के विज्ञान नहीं, अनाम प्रेम चाहिए…या मजबूरी में कोई मौलिक जुगाड़.’’

वह मेरे होटल तक आया और चुपचाप खड़ा हो गया. मैं सहसा हंस पड़ी. वह भी हंसा.

‘‘अब क्या करें?’’ मेरे मुंह से निकला.

‘‘अलविदा और क्या?’’ उस ने हाथ बढ़ाया.

‘‘मैं मन में उस लड़की की तसवीर बनाने की कोशिश करूंगी, जिसे उस रोज मुझे देख कर तुम ने याद किया था…’’ मैं ने उस का हाथ बहुत आहिस्ता से छोड़ते हुए कहा.

‘‘कोई जरूरत नहीं…तिल भर का भी फर्क नहीं है. आप के पास आईना नहीं है क्या?’’ कह कर वह चला गया.

मैं देर तक ठगी सी खड़ी रह गई.

5 साल बीते होंगे अस्पताल की तीसरी मंजिल पर अपने दफ्तर में बैठी थी. दूसरे एक विभाग की इंचार्ज डा. सविता मेरे साथ थी. तभी उस की एक सहयोगी आ कर बोली, ‘‘डाक्टर…आप की वह 14 नंबर की मरीज…उसे आज डिस्चार्ज करना है, मगर उस के बिल अभी तक जमा नहीं हुए…आपरेशन के बाद से अब तक 25 हजार की पेमेंट बकाया है.’’

‘‘ओह, इतनी नहीं होनी चाहिए. 30 हजार रुपए तो जमा कर चुके हैं बेचारे. बड़ा नाम सुन कर आए थे इस अस्पताल का…और ये लोग मजबूर मरीजों को लूट रहे हैं. उस का पति क्या कहता है?’’

‘‘कह रहा है कि उस ने अपनी जानपहचान वालों को फोन किए हैं…शायद कुछ उपाय हो जाएगा.’’

‘‘अभी कहां है?’’

‘‘बीवी के लिए फल लेने बाजार गया है…कुछ देर पहले उस से गजल सुन रहा था…’’

‘‘गजल?’’ मैं ने हैरत से पूछा.

‘‘हां…’’ डा. सविता बोली, ‘‘वह लड़की बंद आंखों में लेटेलेटे बहुत प्यारी गजलें गुनगुनाती रहती है. शायद अपने पति की लाचारी को व्यक्त करती है… और क्या तो गजब की किताबें पढ़ती है. चलो, देखते हैं…उस की फाइनल रिपोर्ट भी डा. प्रिया से साइन करानी है…’’

उन दोनों के साथ मैं भी नीचे आ गई. फिर हम सामने की बड़ी इमारत की ओर बढ़ीं और वहां एक अधबने कमरे में पहुंचीं.

देखा, एक युवती बेहद कमजोर हालत में बेड पर पड़ी छत की ओर देख रही है. कमजोरी में भी वह सुंदर लग रही थी. हमें देख कर वह किसी तरह उठ कर बैठने की कोशिश करने लगी.

‘‘लेटी रहो,’’ मैं ने उस के सिरहाने बैठते हुए कहा और पास रखी ‘बुक औफ द हिडन लाइफ’ को हाथ में ले कर पलटने लगी. जीवन और मौत के रिश्ते को अटूट बताने वाली अनोखी किताब.

मैं उस से बतियाने लगी. थकी हुई सांसों के बीच उस ने बताया कि साल भर पहले एक हादसे में उस के घर के सब लोग मारे गए थे और उस के बचपन के एक साथी ने उस से शादी कर ली… ‘‘तभी पता चला कि मेरे अंदर तो भयंकर रोग पल रहा है…अगर मुझे पता होता तो मैं कभी उस से शादी न करती…बेचारा तब से जाने कहांकहां दौड़भाग कर के मेरा इलाज करा रहा है…साल होने को आया…’’

‘‘अब तुम रोग मुक्त हो,’’ मैं ने उस के सिर पर हाथ रखा, ‘‘सब ठीक हो जाएगा.’’

उस ने कातरता से मुझे देखा और आंखें बंद कर लीं. इसी में उस की आंखों में से कुछ बूंदें बाहर निकल आईं और कुछ शब्द भी… ‘‘हां, होता तो सब ठीक ही होगा…पर मुझे अपना जिंदा रहना ठीक नहीं लगता…हालांकि दिमागी तौर पर बिलकुल तंदुरुस्त हूं…जीना भी चाहती हूं…’’

डा. सविता उस की जांच कर के जा चुकी थीं. उसे स्पर्श की एक और तसल्ली दे कर मैं भी उठी. अभी कुछ ही कदम आगे निकली थी कि मेरे कानों में एक गुनगुनाहट पहुंची. देखा, वह आंखें बंद कर के गा रही है :

‘धुआं बना के फिजा में उड़ा दिया मुझ को,

मैं जल रहा था, किसी ने बुझा दिया मुझ को…

खड़ा हूं आज भी रोटी के चार हर्फ लिए,

सवाल ये है किताबों ने क्या दिया मुझ को…’

मैं खड़ी रही. उस की गुनगुनाहट धीमी होती चली गई और फिर उसे नींद आ गई. मुझे वे दिन याद आए जब मां के न रहने पर मैं बहुत अकेली पड़ गई थी और नींद में उतरने के लिए इसी तरह अपने दर्द को लोरी बना लेती थी.

रिसेप्शन पर पहुंची. वहां से अस्पताल के प्रबंध निदेशक को फोन कर के बिल के पेमेंट का जिम्मा लिया और लौट आई.

देखा, उस के सिरहाने बैठा एक युवक सेब काट कर प्लेट में रख रहा है. पुरानी पैंटशर्ट के भीतर एक दुबली काया. सिर पर उलझे हुए बाल. युवती शायद सो रही थी.मैं धीमे कदमों से उस के निकट पहुंची.

वह युवक कह रहा था, ‘‘अब दोबारा मत कहना कि तुम से शादी कर के मैं बरबाद हो गया. नाउ यू आर ओ.के. …मेरे लिए तुम्हारा ठीक होना ही महत्त्वपूर्ण है…पैसों का इंतजाम नहीं हुआ…बट आई एम ट्राइंग माई बेस्ट…’’ उस की आवाज में पस्ती भी थी और उम्मीद भी.

मैं ने देखा, आंखें बंद किए पड़ी वह युवती उस की बात पर धीरेधीरे सिर हिला रही थी. अचानक मेरा हाथ उस युवक की ओर बढ़ा और उस के कंधे पर चला गया. इसी के साथ मेरे मुंह से निकला :

‘‘कैन आइ पे फौर यू?…आप का बिल चुका सकती हूं मैं?’’

वह चौंक कर पलटा और खड़ा हो गया, ‘‘आप?’’

अब मैं ने उस का चेहरा देखा… ‘‘ओह…शेषांत…तुम?’’

एक तूफान उमड़ा और उस ने हमें अपने में ले लिया.

मेरे कंधे से लगा वह सिसकता रहा और मेरे हाथ उस के सिर और पीठ पर कांपते रहे. मेरी आंखें सामने उस लड़की की आंखों से झरते आनंद को देखती रहीं. पता नहीं, कब से चट्टान हो चुकी मेरी आंखों में से कुछ बाहर आने को मचलने लगा.

‘‘राशा…ये हैं…जोया…’’ शेषांत ने मेरे कंधे से हट कर चश्मा उतारते हुए उस से कहा तो मैं चौंकी, ‘‘राशा?’’

वह लड़की अपनी खुशी को समेटती हुई बोली, ‘‘मेरा नाम राशि है…इन्होंने आप लोगों के बारे में बताया था तो मैं ने जिद की थी कि मुझे राशा ही कहा करें.’’

मैं चुप रही…सोचती रही…‘राशा तो अब नहीं है…पर तुम दोनों ने उसे सहेज लिया…बहुत अच्छे हो तुम दोनों.’

हम तीनों अपनीअपनी आंखें पोंछ रहे थे कि सामने से एक नर्स आई. उस ने हंस कर मेरे हाथ में बिलों के भुगतान की रसीद और राशि के डिस्चार्ज की मंजूरी थमाई और चली गई.

मेरी राशा तो खो गई थी पर उस बिल की रसीद के साथ एक और राशा मिल गई. लगा कि जिंदगी अब इतनी वीरान, अकेली न रहेगी. राशा, शेषांत और मैं…एक पूरा परिवार…

पौर्न केस में राज कुंद्रा के साथ फंसी Gehana Vasisth, ईडी ने भेजा समन

इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके छोटे से शहर से आई गहना वशिष्ठ (Gehana Vasisth) ने अभिनय करियर में एक लंबा सफर तय किया जिसमें उन्होने टीवी ऐक्ट्रैस से लेकर फिल्म और उसके बाद पोर्न ऐक्टर और पोर्न फिल्मों की प्रोड्यूसर डायरेक्टर के तौर पर गहना पोर्नोग्राफी इंडस्ट्री से जुड़ी है. लेकिन जेल से आने के बाद भी उन्होंने पोर्नोग्राफी के लिए काम करना नहीं छोड़ा. क्योंकि इसमें उनको पर्सनली कुछ गलत नहीं लगता. लेकिन फिलहाल एक्ट्रेस गहना वशिष्ठ एक बार फिर मुश्किलों में आ गई हैं क्योंकि राज कुंशिल्पा शेट्टी के पति राज कुंद्रा के साथ पोर्नोग्राफी फिल्म बनाने और बेचने के चक्कर में गहना वशिष्ठ 2021 में डेढ़ 2 महीने के लिए जेल भी गई. द्रा के साथ अपनी पोर्नोग्राफी केस में जुड़े होने के वजह से पूछताछ के लिए ई डी ने गहना वशिष्ठ को समन भेजा है.

जिसके तहत एक बार फिर गहना वशिष्ठ शक के दायरे में आ गई हैं. और उनसे लंबी पूछताछ की जाएगी. ई डी द्वारा शिल्पा शेट्टी के पति राज कुंद्रा को भी ई डी आफिस आने के लिये समन भेजा गया है. लेकिन राज कुंद्रा ने ई डी औफिस जाने के बजाय कुछ दिनो का समय मांगा है.

2021 में गहना वशिष्ठ के खिलाफ मुंबई पुलिस ने एफ आई आर दर्ज की थी जिसके बाद क्राइम ब्रांच ने गहना के साथ पूछताछ के बाद उनको जेल भेज दिया था. गाना वशिष्ठ पर आरोप है कि कथित पोर्नोग्राफी से मिले पैसों की मनी लौन्ड्रिंग हुई है थी इसी मामले में ई डी ने गाना वशिष्ठ को भी समन भेजा है. क्योंकि वह राज कुंद्रा के पोर्नोग्राफी के लिए काम करती हैं. जिसमें राज कुंद्रा मोबाइल ऐप के जरिए अश्लील वीडियो बनाने और उसके डिस्ट्रीब्यूशन का अवैध काम करते हैं. वही इस केस से जुड़े मनी लौन्ड्रिंग मामले की जांच भी ई डी द्वारा की जा रही है जिसमें गाना वशिष्ठ के साथ भी पूछताछ हो रही है.

Bhabi Ji Ghar Par Hai फेम शुभांगी अत्रे ने एक्टिंग करियर के लिए पति को छोड़ा

प्रसिद्ध टीवी सीरियल भाबी जी घर पर है (Bhabi Ji Ghar Par Hai) की भाबी जी अर्थात शुभांगी अत्रे जिन्होंने अपना सशक्त अभिनय दिखाकर सभी का दिल जीत लिया है. नई अंगूरी भाबी शुभांगी अतरे के सीरियल में आने के बाद लोग पुरानी अंगूरी भाबी को भूल ही गए. नई अंगूरी भाभी ने मजेदार अभिनय के साथ सबका दिल जीत लिया. ‘भाबी जी घर पर है’ में सबको हंसने हंसाने वाली अंगूरी भाभी यानी कि शुभांगी असल में अपने शादीशुदा जीवन में खुश नहीं है. क्योंकि शुभांगी अपने पति से अलग हो चुकी है.

शुभांगी के अनुसार कोविड़ के दौरान पति के साथ उनके मतभेद शुरू हुए. कोविड़ में साथ में रहने के बाद पता चला कि हम और हमारे विचार बहुत अलग है और हमारे रिश्ते में काफी मतभेद हो रहे हैं. मैंने अपना रिश्ता बचाने की बहुत कोशिश की. लेकिन हालात बिगड़ते ही गए. मेरे ससुराल वाले मेरे अभिनय करियर के खिलाफ थे उन्होंने मुझे एक्टिंग छोड़ने के लिए कहा उस दौरान मेरे पति ने भी मेरा साथ नहीं दिया . क्योंकि मैं एक्टिंग से बहुत प्यार करती हूं और ससुराल और पति से मुझे कोई प्यार नहीं मिल रहा था, इसलिए मैंने एक्टिंग और पति में से एक्टिंग को चुना.

मेरी 18 साल की बेटी भी है जो की यू एस ए में पढ़ रही है. फिलहाल मैं अपनी जिंदगी में बहुत खुश हूं. मै ना तो किसी रिलेशनशिप में हूं और ना ही मेरा दूसरी शादी करने का इरादा है. क्योंकि ससुराल और पति छोड़ने के बाद जितना सुकून और शांति मुझे मिल रही है वह पहले कभी नहीं मिली. आज के समय में मैं अपनी वह सारी इच्छाएं पूरी कर रही हूं जो पहले कभी पूरी नहीं कर पाई. अभिनय मेरा पैशन है , मैं उसके साथ पूरी जिंदगी जी सकती हूं.

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