Best Family Drama- बीजी: क्या जिम्मेदारियों की जंजीरों से निकल पाई वह

बीजी सुबह 8 बजे उठ जातीं. नहाधो कर थोड़ी बागबानी करतीं. दही बिलो कर मक्खन निकालना, आटा गूंधना, सब्जी काटना ये सब काम मेरे उठने से पहले ही कर लेती थीं. आज जब मैं सुबह उठी तो कोई खटखट सुनाई नहीं दी. कहां गईं बीजी, गुरुद्वारे तो कभी नहीं जातीं. कहती हैं घरगृहस्थी है तो फिर कैसा भगवान. सारे काम करने के बाद ही वे कालोनी के छोटे बाग में जाती थीं जहां मुश्किल से

10 मिनट तक टहलतीं. निक्की, मीशा के कमरे में भी नहीं मिलीं. बाहर आंगन में भी नहीं. अभी तो गेट का ताला भी नहीं खुला. फिर गईं तो कहां गईं.

सब के जाने का समय हो रहा था. बच्चों को तैयार करना, स्वयं तैयार हो कर स्कूल जाना. शिवम का औफिस के लिए लंच बनाना. कितने काम पड़े थे और इधर बीजी को ढूंढ़ने में ही समय निकलता जा रहा था. एकाएक ध्यान आया, वे अपने कमरे में भी तो हो सकती हैं. जल्दी से मैं वहां गई. दरवाजा आधा खुला हुआ था. झांक कर देखा तो सच में बीजी अपने पलंग पर ही सो रही थीं. मुझे चिंता हो गई.

वे इतनी देर तक कभी सोती ही नहीं. क्या बात हो सकती है. मैं ने उन्हें जगाया पर वे जागी नहीं. मैं ने जोर से झकझोरा, वे तब भी जगी नहीं. नाक के आगे उंगली रखी. सांस का स्पर्श नहीं हुआ. नब्ज देखी वह भी रुकी हुई थी. ऐसा लग रहा था वे निश्ंिचत हो कर सो रही हैं. मेरे मुंह से चीख निकल गई. आवाज सुन कर शिवम कमरे में आ गए. बच्चे भी जग गए. पूरे घर में कुहराम मच गया. पड़ोसी भी आ गए. धीरेधीरेरिश्तेदार और शहर के अन्य जानपहचान के लोग भी एकत्र हो गए.

बीजी के पार्थिव शरीर को जमीन पर उतार दिया गया. सफेद चादर से उन का शरीर ढक दिया गया. सबकुछ सपना सा लग रहा था. शिवम का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था. निक्की और मीशा भी दादी के पास बैठ कर रोने लगीं. बीजी से उन का विशेष लगाव था. आने वाले लोग शिवम और मुझे सांत्वना देते पर साथ ही स्वयं भी रोने लगते. बीजी थीं ही ऐसी. वे बड़ों के साथ बड़ी और छोटों के साथ छोटी बन जाती थीं. जहां भी जातीं स्वयं ही रिश्ता बना लेतीं और उन रिश्तों को वे निभाना भी जानती थीं. उन की हर मुश्किल में काम आतीं.

ऐसी बीजी के अकस्मात चले जाने का सब को बेहद दुख था. बिना किसी को कष्ट दिए साफसुथरा शरीर लिए वे चली गईं और पीछे छोड़ गईं यादों का पुलिंदा. उन के बिना जीवन कैसा होगा, मैं सोच कर ही बेहाल होती जा रही थी. आगे की तो क्या कहूं, अभी क्या करना है, यही मुझे समझ नहीं आ रहा था. पड़ोसी सब संभाल रहे थे.

लौबी में बीजी शांत लेटी हुई थीं. गजल गायक जगजीत सिंह की हलकी आवाज में कैसेट बारीबारी से चल रही थीं. वे सुबहसुबह ये कैसेट जरूर चलाती थीं. कानों में आवाज जाने से ध्यान उधर खिंचने लग जाता था लेकिन वातावरण एक बार फिर बोझिल हो गया जब शिवम की बड़ी बहन सिम्मी बहनजी आईं. दूसरे शहर में रहती हैं, इसलिए आने में देर हो गई थी. रोरो कर उन का बुरा हाल हो रहा था. बीजी मां थीं उन की. वह मां जिसे

25 वर्ष की छोटी सी आयु में वक्त ने विधवापन का लबादा ओढ़ा दिया था. उन्होंने शिवम और सिम्मी बहनजी का लालनपालन किया, उंगली पकड़ कर जीवन में चलने के लिए सक्षम बनाया.

सिम्मी बहनजी तो शादी के बाद ससुराल चली गई थीं. घर में शिवम और बीजी अकेले रह गए थे. जब मेरी शिवम से शादी हुई तो मुझे सास के रूप में मां और सहेली एकसाथ मिल गई थीं. ऐसी मां, ऐसी सास भी होती है क्या. उन्होंने मुझे सिम्मी जैसा ही प्यार दिया. मैं ने उन की जगह ले कर उस कमी को पूरा किया था. मैं ने बीजी को पूरा मानसम्मान दिया और उन्होंने मुझे पूरी तरह से स्वीकारा. मेरी कमियों को उन्होंने सदैव ढांपे रखा जबकि मैं उन की नहीं, शिवम की पसंद थी.

‘‘बहू, जल्दी करो, वक्त बहुत हो गया. बीजी को नहला दो. रात में पता नहीं कब की गुजरी हैं. मर्द लोग जनाजा उठाने को कह रहे हैं,’’ किसी बुजुर्ग औरत ने कहा तो मैं चौंक गई. उठी तो 2 औरतें मेरे साथ लग गईं. दही मल कर बीजी को नहलाया. अनसिले सूट का कपड़ा उन के शरीर पर लपेट सफेद चादर से ढक दिया. गरमी के कारण शरीर थोड़ा फूल गया था पर शेष कोई विकृति नहीं आई.

75 वर्ष की हो गई थीं पर चेहरे पर वही चमक थी. 50 वर्ष का वैधव्य पूरा कर वे इस घर से सदा के लिए विदा हो रही थीं. जैसे ही अर्थी उठी, एक बार फिर कुहराम मच गया. शिवम फूटफूट कर रोने लगे. वे मां जिस का आंचल जीवनभर उस के सिर पर छाया करता रहा, उसे हर मुश्किल से बचाता, वह छूट रहा था. शिवम ने बीजी की चिता को मुखाग्नि दे कर पुत्र होने का अपना कर्तव्य निभाया.

श्मशान से लौटते हुए दोपहर हो गई थी. मेरे मायके वालों ने खाने का प्रबंध कर दिया था. न चाहते हुए भी 2-4 कौर मैं निगल गई. जीने के लिए खाना जरूरी है. कोई किसी के साथ नहीं जाता. आंसुओं का सागर उमड़ रहा हो, फिर भी कुछ खाना तो है ही न.

सारा दिन रोनेधोने में निकल गया था. मन के साथ शरीर भी थकावट से टूट रहा था, फिर भी आंखों में नींद का लेशमात्र भी नाम नहीं था. गृहस्थी की नैया डगमगाती सी लग रही थी. बीजी के बिना जीने की कल्पना से मैं सिहर उठी, कैसे होगा सबकुछ, शिवम और मुझे तो कुछ भी पता नहीं.

बीजी का जाना हमारे लिए अपूरणीय क्षति थी. जब से इस घर में आई हूं, बीजी ही सारे काम करती आ रही थीं. शुरू के दिनों में हमारे जगने से पहले ही वे मेरा और शिवम का लंचबौक्स तैयार कर टेबल पर रख देती थीं. हम जाने के लिए जल्दी करते पर वे नाश्ता कराए बिना घर से निकलने नहीं देती थीं. मैं उन दिनों एमए कर रही थी.

निक्की के पैदा होने के 2 महीने बाद ही मेरी परीक्षा थी. मैं तो विचार छोड़ चुकी थी. भला निक्की को संभालूंगी या परीक्षा की तैयारी करूंगी. पर बीजी ने मेरा साहस बढ़ाया था, मुझे प्रोत्साहित किया. उन्होंने कहा था, ‘स्नेहा, तुम निक्की की चिंता छोड़ दो. मैं सब देख लूंगी, तुम बस अपनी परीक्षा की तैयारी करो.’ सच में उन्होंने सबकुछ संभाल लिया था. मैं ने निश्ंिचतता से परीक्षा दी थी और उन के सहयोग व शुभकामनाओं से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुई थी.

2 वर्षों बाद मीशा के आ जाने पर तो काम और भी बढ़ गए. पर बीजी थीं कि सब संभाल लेतीं. घर के अनेक काम, बच्चों की देखभाल, बाहर के काम, राशन, फल, सब्जी लाना, बैंक, पोस्टऔफिस, बिजली, पानी के बिल जमा कराना जैसे न जाने कितने ही तो काम होते हैं, हमें तो पता ही नहीं चलता था और वे सब कर लेतीं. घर की जिम्मेदारियों के साथसाथ रिश्तेदार, मित्र, पड़ोसी सब के साथ निभातीं. खुशीगमी के अवसर पर हर जगह पहुंचतीं. हम तो कभीकभार ही विवाहोत्सव में चले जाते थे.

सारी रात बीजी की बातों, उन की यादों में ही बीत गई. अगला दिन और भी भारी था. सिम्मी बहनजी और रिश्तेदारों ने संभाल लिया. शिवम चाहते थे बीजी की सभी रस्मों को निभाया जाए लेकिन रिश्तेदार भी कब तक बैठ सकते हैं.

भारी मन से न चाहते हुए भी शिवम को सब की बात माननी पड़ी. चौथे दिन शोकसभा कर सब औपचारिकताएं निभाईं. इस बीच सिम्मी बहनजी और मामीजी हमारे साथ ही रहीं. रिश्तेदार, जानपहचान वाले लोग आतेजाते रहे. 20 दिनों के बाद सब समाप्त हो गया. सब अपनेअपने घर लौट गए और रह गए शिवम, मैं, निक्की और मीशा. बीचबीच में मैं और शिवम अपने काम पर चले जाते थे तो सिम्मी बहनजी और मामीजी घर देख लेती थीं. उन के जाने के बाद आज पहला दिन था. रोज सुबह 5 बजे उठती थी पर आज 4 बजे उठी. अकेले ही सारे काम निबटाने थे.

काम करते करते 7 बज गए. जल्दीजल्दी निक्की, मीशा को तैयार कर के स्वयं तैयार हो गई. शिवम औफिस के लिए चले गए थे. पहले बीजी निक्की और मीशा को बसस्टौप पर छोड़ आती थीं. आज उन के बैग उठा कर उंगली पकड़ कर बस स्टौप पर गई. उन्हें बिठा कर अपने स्कूल के लिए रिकशा ले लिया. बीजी के होते हुए शिवम मुझे अपने साथ ही ले जाते थे. मुझे स्कूल छोड़ कर अपने औफिस के लिए निकल जाते थे. मैं 10 मिनट पहले ही स्कूल पहुंच जाती थी, लेकिन आज 10 मिनट देर से पहुंची.

निक्की मीशा के स्कूल की छुट्टी मुझ से पहले हो जाती थी. एकाएक ध्यान आया तो हाथपांव फूल गए. यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था. शौर्ट लीव ले कर स्टौप पर पहुंची तो बस निकल गई थी. अभिभावक के बिना कंडक्टर ने उन्हें उतारा ही नहीं. उसी रिकशा से उन के स्कूल गई. बस अभी वापस नहीं आई थी. 10 मिनट प्रतीक्षा की. उन्हें ले कर घर पहुंची. ताले खोले, कपड़े बदले, जल्दीजल्दी खाना बना कर दोनों को खिलाया. उन्हें सुला कर शाम का नाश्ता, रात का खाना बनाया.

बाई हम सब के चले जाने के बाद आती थी. बीजी उस से सारे काम करवा लेती थीं. मैं जब तक आती, घर साफसुथरा मिलता. खाना खा कर मैं भी निक्की, मीशा के साथ सो जाती थी. शरीर में ताजगी आ जाती थी. शाम और रात के कामों में बीजी की सहायता भी करती थी.

बाई पीछे से आ कर चली गई थी. सारा घर गंदा पड़ा हुआ था. बरतन, सफाई, कपड़े सभी ज्यों के त्यों पड़े थे. कहां से शुरू करूं. बच्चों को पढ़ाना, रात का खाना, सुबह के लिए तैयारी. सब काम करतेकरते रात के साढ़े 9 बज गए. शरीर थकान के मारे टूट रहा था. शिवम सोने के लिए आए तो मैं उन की गोद में सिर रख कर फफकफफक कर रो पड़ी. पता नहीं यह बीजी की उदासी का रोना था या फिर उन के कामों को याद कर रही थी. कितना विवश हो गईर् थी मैं. रोतेरोते ही सो गई.

सुबह उठी तो सिर भारी था. पहले दिन की तरह सारे काम निबटाए. इन्हीं दिनों बिजली का बिल भी आया हुआ था. मैं ने शिवम के हाथ में पकड़ा दिया. उन्होंने कहा वे औफिस के लंचटाइम में आ कर जमा करवा देंगे. शाम को थकेमांदे शिवम लौटे तो मैं ने पूछा, ‘‘बिजली के बिल का क्या हुआ, आज अंतिम दिन था?’’

‘‘जमा हो गया,’’ उन्होंने जूते उतारते हुए कहा.

‘‘लंच टाइम में गए थे क्या?’’

‘‘नहीं, मैं जाने की सोच ही रहा था मिस्टर शशांक ने बताया कि वे बिल जमा करवाने जा रहे हैं, मैं ने उन्हीं को दे दिया. हां, वे बता रहे थे कि बिलों का भुगतान करने के लिए उन के पास एक लड़का आता है. हर बिल के 20 रुपए लेता है. मैं ने उस से बात कर ली है. आगे से वह बिल घर से ही ले जाएगा. कई बिलों का भुगतान हम औनलाइन भी कर सकते हैं.’’

‘‘यह तो अच्छी बात है. चिंता ही समाप्त हुई. बेवजह ही बीजी धूप, गरमी, सर्दी में चक्कर काटती रहती थीं,’’ मैं ने कहा. ‘‘हां,’’ संक्षिप्त सा उत्तर दे कर शिवम कपड़े बदलने वौशरूम में चले गए. शायद यह अपराधबोध था. बीजी जिन कामों को कष्ट झेल कर करती थीं, समय के साथसाथ उन सब का धीरेधीरे निवारण होने लगा था. दूध लेने डेरी पर नहीं जा सकते थे, दूध घर पर ही मंगवाने लगे. मक्खन निकालना छोड़ दिया, बाजार से ले लेते. घर पर दही जमा लेती. राशन इकट्ठा ले आते. फल, सब्जी, ग्रौसरी सप्ताह में एक बार जा कर ले आने लगे. कोई चीज कम रह जाए तो आतेजाते रास्ते से ले आते.

मुख्य समस्या निक्की, मीशा और घर के अन्य कामों की थी. उस के लिए बस छुड़वा कर वैन लगवा ली. स्कूल के साथ ही एक क्रैच है. उस की वैन छुट्टी के समय आ कर बच्चों को ले जाती है. हम ने दोनों को क्रैच में भेजना शुरू कर दिया. वहां अटैंडैंट बच्चों को कपड़े बदलवा कर, खाना खिला कर थोड़ी देर के लिए सुला देते.

कभीकभी मुझे वहां जाने में देर हो जाए तो भी मैं निश्चिन्तत रहती. वे दोनों होमवर्क भी कर लेतीं. वापस आते हुए मैं उन्हें साथ ले आती. कामवाली बाई अब सुबह जल्दी आ जाती है. किचन में भी मेरी मदद कर देती है. जो काम बच जाता है, शाम को आ कर कर लेती हूं.

शिवम पहले घर का कोई भी काम नहीं करते थे, यहां तक कि अपना सामान जहांतहां रख देते. कपड़े फैले रहते. चाय पी कर घूमने निकल जाते थे. अब ऐसा नहीं करते. अपना सामान संभाल कर रखना शुरू कर दिया है. औफिस से आ कर स्वयं चाय बना कर पी लेते हैं. निक्की, मीशा को पढ़ाने भी लगे हैं. सप्ताहांत जब खरीदारी के लिए जाते हैं तो निक्की, मीशा को भी साथ ले जाते. वे खुश रहती हैं. घर के वातावरण से निकल कर बाहर जाना उन्हें भी अच्छा लगता है. पहले हम जब बाहर जाते थे तो दोनों को बीजी के पास ही रुकना पड़ता था.

सालभर में सारे घर का ढांचा ही बदल गया. शिवम कई बार अपराधबोध में डूब जाते. ऐसा लगता था कि वे कोईर् काम नहीं कर सकते. बीजी बेचारी इन्हीं कामों की चक्की में पिसती रहती थीं. जीवनभर उन्होंने क्या सुख देखा, क्या सुख पाया. न शिवम ने सोचा, न ही मैं ने. बस, उन पर निर्भर रह कर अपनी अज्ञानता दर्शाते रहे. जो कुछ अब किया है पहले भी तो कर सकते थे.

क्यों इंसान इतना स्वार्थी हो जाता है कि अपनी सुखसुविधा से आगे कुछ सोच ही नहीं पाता. बीजी यह कर लेंगी, बीजी वो कर लेगी. किसी काम के लिए वे मना भी न करती थीं. बीजी ने भी हमारी आदत बिगाड़ रखी थी. वे अकेली क्यों जूझती रहीं. हम नादान थे पर वे तो काम की जिम्मेदारी हमें सौंप सकती थीं. वे नहीं, तो भी घर चला रहे हैं. शायद पहले से अधिक सुचारु रूप से. किसी के चले जाने से संसार का कोई काम नहीं रुकता. काम के लिए वे याद नहीं आतीं, बल्कि कामों से निकल कर दीवार पर टंग गई हैं, पर दिल से वे कभी नहीं जा सकतीं.

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Bigg Boss 18 : दो बार टूटी शादी पर करण वीर मेहरा बनना चाहते हैं ‘बहुत सारे बच्चों के पिता’

Bigg Boss 18 : बिग बौस 18 दर्शकों को काफी पसंद आ रहा है. इसमें करण वीर मेहरा (Karan Veer Mehra)  और चुम दरांग (Chum Darang) की केमेस्ट्री को लोग बेहद पसंद कर रहे हैं. बिग बौस में साफसाफ देख सकते हैं कि करण चूम के लिए स्पेशल फील करते हैं, लेकिन चूम इन चीजों से दूर ही रहना पसंद करती है.

दो बार टूटी शादी पर चाहिए बहुत सारे बच्चे

बिग बौस के बिते एपिसोड में दोनों के बीच ऐसी बातचीत हुई है. जिसने सबका ध्यान अपनी तरफ खींच लिया है. दरअसल, एक क्लिप में ये दिखाया गया कि चुम करण से पूछती हैं कि क्या उन्हें बच्चा चाहिए? दोनों के बीच की ये बातचीत छाई है. दरअसल, बिग बौस के बिते एपिसोड में दिखाया गया कि करण जिम एरिया में वर्कआउट कर रहे होते हैं, तभी चूम उनसे पूछती हैं क्या तुम्हें बच्चे चाहिए? इस पर करण कहते हैं कि चाहिए यार… तभी शिल्पा शिरोडकर बोलती हैं कि बहुत सारे चाहिए न करण? इस पर करण भी दिलचस्प जवाब देते हैं और कहते हैं कि चाहिए तो बहुत सारे…

पापा कम दादा ज्यादा लगूंगा

करण ने फिर आगे मजाक करते हुए कहते हैं कि मेरे पास अभी दो हैं, दो और हो जाएंगे तो अच्छा लगेगा.. लेकिन उन्हें स्कूल छोड़ने जाऊंगा तो सब कहेंगे कि पापा कम दादा ज्यादा लग रहा है. शिल्पा करण को बोलती हैं कि ऐसा नहीं होगा. वहीं बैठी चुम भी स्माइल करती है.

ईमानदारी और ह्यूमरस नेचर के करण वीर हो रहे हैं पौपुलर

करण ने शो में शराब और डिप्रेशन को लेकर अपने स्ट्रगल के बारे में बातचीत की है. उनके पर्सनल लाइफ की बात करे तो करण ने दो बार शादी की है. उनकी दोनों शादी टूट चुकी है. पहली शादी उन्होंने साल 2009 में देविका मेहरा से की थी. तो वहीं दूसरी शादी 2021 में निधि सेठ से की थी और शादी के डेढ़-दो साल बाद ही अलग हो गए. 41 साल के करण वीर अपनी ईमानदारी और ह्यूमरस नेचर के कारण शो में छाए हुए हैं. करण वीर के गेम को फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. शो में चुम और करण की बौन्डिंग चर्चे में है.

Winter Fashion Trends 2024 : सर्दियों की पार्टी में दिखना चाहती हैं हौट, तो पहनें शौर्ट ड्रैस

Winter Fashion Trends 2024: आजकल पार्टियों में सिर्फ एथनिक ही नहीं बल्कि वैस्टर्न ड्रैसेज भी खूब पहनी जा रही हैं. अब आप सोचेंगी कि भला विंटर सीजन में शौर्ट ड्रैसेज या वनपीस कैसे पहनें, तो हम आप को बता दें कि अब सर्दियों में शौर्ट ड्रैस पहनने से परहेज करने की कोई जरूरत नहीं है.

सही लेयरिंग, फुटवियर और ऐक्सेसरीज के साथ आप शौर्ट ड्रैस को एक फैशनेबल और कंफर्टेबल लुक में बदल सकती हैं. सर्दियों की पार्टी में भी आप शौर्ट ड्रैस पहन कर हर किसी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर सकती हैं.

लेयर्ड लुक अपनाएं

सर्दियों में शौर्ट ड्रैस पहनने का सब से अच्छा तरीका है इसे लेयर कर के स्टाइल करना. आप अपनी पसंदीदा शौर्ट ड्रैस के ऊपर लंबी जैकेट या कोट पहन सकती हैं. इस के साथ ही वूलन टाइट्स या लैगिंग्स पहनने से आप को गरमी मिलेगी और स्टाइल भी बरकरार रहेगा. यह लुक सर्दियों के लिए बिलकुल सही है और आप को एक ट्रैंडी लुक देगा.

विंटर बूट्स के साथ पेयर करें

शौर्ट ड्रैस के साथ बूट्स पहनने से न सिर्फ आप को गरमी मिलेगी, बल्कि आप का लुक भी काफी कूल और स्टाइलिश नजर आएगा. लेदर बूट्स, एंकेल बूट्स या ओवर द नी बूट्स शौर्ट ड्रैस के साथ परफैक्ट रहते हैं. इन बूट्स के साथ आप पार्टी में आराम से डांस भी कर सकती हैं और ठंड से बच भी सकती हैं.

वूलन ऐक्सेसरीज का इस्तेमाल करें

सर्दियों में शौर्ट ड्रैस पहनने के दौरान आप वूलन ऐक्सेसरीज का भी इस्तेमाल कर सकती हैं. एक सुंदर स्कार्फ या शौल, जो आप की ड्रैस से मैच करता हो, पहनें. इस के अलावा विंटर हैंडबैंड, दस्ताने और इयरमफ्स भी आप के लुक को पूरा कर सकते हैं, साथ ही ठंड से भी बचाव होगा.

थिक लैगिंग्स और पैंट्स

अगर आप को लगता है कि शौर्ट ड्रैस से ठंड लगेगी, तो इसे थिक लैगिंग्स या फैशनेबल पैंट्स के साथ पहनें. यह न सिर्फ आप को गरमी देगा बल्कि आप के स्टाइल को भी ऊंचा करेगा. आप ब्लैक या न्यूड शेड की लैगिंग्स के साथ अपने शौर्ट ड्रैस को आसानी से स्टाइल कर सकती हैं.

फैशनेबल मेकअप और हेयरस्टाइल

सर्दियों की पार्टी में शौर्ट ड्रैस पहनने का मतलब यह नहीं कि आप का मेकअप और हेयरस्टाइल भी साधारण हो. आप डार्क लिपस्टिक, स्मोकी आई मेकअप और बाउंसी हेयरस्टाइल के साथ अपनी शौर्ट ड्रैस को और भी ग्लैमरस बना सकती हैं. इस से आपका लुक और भी आकर्षक लगेगा.

सही मैटीरियल का चुनाव करें

सर्दियों में शौर्ट ड्रैस पहनते वक्त यह ध्यान रखना जरूरी है कि ड्रैस का मैटीरियल सर्दी से बचाव करने वाला हो. ऊन, वूल, फर या फ्लीस से बनी शौर्ट ड्रैस इस मौसम के लिए आदर्श होती हैं. ये न सिर्फ गरमी देती हैं बल्कि आप के लुक को भी स्टाइलिश बनाए रखती हैं.

बच्चे के जन्मदिन पार्टी को Return Gift के साथ मनाएं खास

किसी भी शादीशुदा कपल के लिए वे पल सब से हसीन और अनमोल होते हैं जब उन के जीवन में बच्चे का आगमन होता है. इसी अनमोल तोहफे को वे हरएक खुशी देने की चाह रखते हैं. ऐसे में, बच्चे का जन्मदिन भी वे कुछ खास और यादगार बनाने की कोशिश करते हैं।वे इस दिन को सैलिब्रेट करने में कोई कसर नहीं छोड़ते.

अकसर सोशल मीडिया पर फिल्मी सितारे अपने बच्चों की बर्थडे पार्टी की खास तसवीरें साझा करते नजर आ जाते हैं तब हमें भी एक कसक सी होती है कि काश हम भी कुछ ऐसा अपने बच्चे के लिए कर पाते.

आप भी अपने बच्चे के इस खास दिन को रिटर्न गिफ्ट के साथ सभी के लिए यादगार बना सकते हैं, वह भी बजट में रह कर.

पेश हैं, रिटर्न गिफ्ट आइडियाज :

फैंसी लंच बौक्स

बर्थडे पार्टी है तो लाजिम है कि बच्चे तो पार्टी में होंगे ही ऐसे में फैंसी लंच बौक्स एक अच्छा औप्शन है। गिफ्ट करने के लिए लंच बौक्स अपने बजट के अनुसार खरीद सकते हैं.

स्टैशनरी मैटेरियल

अगर आप का बजट कम है तो आप सिर्फ एक पैंसिल बौक्स या पेन, पैंसिल दें सकते हैं और थोड़ा महंगा देना चाहते हैं तो आप साथ में एक बैग का पाउच बना कर उस में कलर व कलर की किताब रख कर दें सकते हैं.

मिनिएचर बोर्ड गेम्स

मिनिएचर बोर्ड गेम्स एक बैस्ट औप्शन है, क्योंकि वे न केवल बच्चों के लिए मजेदार हैं, बल्कि इन्हें बच्चे के साथ में मातापिता ऐंजौय करते हैं.

स्टफ्ड टौयज

इस तरह के गिफ्ट आप छोटे बेबी से ले कर 6 साल तक के बच्चे को आसानी से दे सकते हैं. आप अलगअलग टौयज भी चुन सकते हैं, जो आप के बच्चे के गिफ्ट को प्रत्येक मेहमान के लिए उसे अलग बनाते हैं.

क्ले किट

बच्चों को आर्ट ऐंड क्राफ्ट की चीजें बिना सोचे दे सकती हैं। इस स्थिति में डिफरैंट कलर्स के क्ले किट या प्ले डो बच्चों को बहुत लुभाते हैं.

पौपअप स्टोरी बुक्स

3D स्टोरी बुक्स ऐजुकेशनल गिफ्ट भी है और बच्चों को बेहद पसंद आते हैं। इन्हें छोटे बच्चे भी बड़े मजे से देखते हैं क्योंकि ये कलरफुल स्टोरीज पिक्चर उन्हें अनोखी नजर आती हैं.

पिगी बैंक

बच्चों को पैसों की इंपोर्टेंट और पैसों को सेव कैसे करते हैं, यह सिखाने के लिए पिगी बैंक रिटर्न गिफ्ट के रूप में देना एक बेहतर औप्शन है.

दो बच्चों की मां ऐक्ट्रैस Neha Dhupia ने डेढ़ साल में 23 किलो कम किया वजन, जानें कैसे?

ग्लैमर वर्ल्ड में खूबसूरती का मतलब होता है स्लिम ट्रिम फिगर, एक बार भले शक्ल अच्छी ना हो लेकिन फिगर अच्छा होना बहुत जरूरी है, क्योंकि शक्ल को मेकअप से सुधारा जा सकता है लेकिन अगर फिगर खराब हो तो ग्लैमर इंडस्ट्री में काम मिलना मुश्किल हो जाता है. ऐसा ही कुछ बौलीवुड हीरोइन और जानी मानी टीवी एंकर नेहा धूपिया (Neha Dhupia) को भी झेलना पड़ा जब उनका वजन काफी बढ़ गया था नेहा के अनुसार उनके दो बच्चों की डिलीवरी के बाद वह बहुत मोटी हो गई थी.

मोटापे के साथ ग्लैमर वर्ल्ड में काम मिलना मुश्किल होता है इसलिए उन्होंने अपना वजन कम करने की प्रौपर प्लानिंग की. सबसे पहले उन्होंने वजन कम करने के लिए अपने रनिंग कोच और योगा इंस्ट्रक्टर से हेल्प ली. नेहा के अनुसार सुबह से पूरे दिन का रूटीन फौलो करना बहुत मुश्किल होता है. रूटिंग फौलो करने के लिए उनको बहुत सारी परेशानियां झेलनी पड़ी. परिवार बच्चे और खुद के साथ समय निकालना आसान नहीं था.

सबसे ज्यादा मुश्किल डाइट फौलो करना होता है. डाइट फौलो करने के लिए उन्होंने ग्लूटेन और चीनी खाना छोड़ दिया. उसके अलावा डाइटिशियन द्वारा बताई गई पूरी डाइट फौलो की. जिसके तहत उन्होंने 14 घंटे तक कुछ ना खाने पीने की डाइट फौलो की उसके बाद सुबह से रात तक का डाइट प्लान फौलो किया , जिसका उनको बेहद फायदा मिला. नेहा के अनुसार उन्होंने डेढ़ साल के अंदर 23 किलो वजन कम कर लिया. नेहा ने लोगों से अपील की है कि वह अपने आप को प्यार करें तभी वह अपने शरीर को खूबसूरत और स्वस्थ बनाने के लिए मेहनत करेंगे और सुंदर जीवन पाएंगे.

YRKKH : रोहित और अरमान का खुलेगा राज, पोद्दार परिवार के सामने आएगी सच्चाई

Yeh Rishta Kya Kehlata Hai : ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में लगातार बड़े ट्विस्ट एंड टर्न दिखाए जा रहे हैं, जिससे दर्शकों को एंटरटेनमेंट का डबल डोज मिल रहा है. शो में आज के एपिसोड में बड़ा धामाका देखने को मिलेगा. ये रिश्ता है में आप देखेंगे कि अभीरा बेहोश हो जाएगी. अरमान उसे ले जाएगा और वह स्वर्णा से रिक्वेस्ट करेगा कि उसे अभीरा के पास रहने दे, लेकिन वह उसक बात नहीं सुनेगी.

अरमान को कावेरी मारेगी थप्पड़

तो दूसरी तरफ कावेरी गुस्से में अरमान को एक थप्पड़ भी मारते हुए कहेगी कि उसने अभीरा की जिंदगी बर्बाद कर दी. शो में आगे दिखाया जाएगा कि रोहित अरमान से कहेगा कि वह अपनी पूरी सच्चाई परिवार को बता दे.

अरमाान का सीक्रेट सुनेगा मनोज

रोहित कहता है कि बातों को छिपाकर रखने से चीजें और खराब हो जाएगी. वह ये भी कहता है कि उसे बता देना चाहिए कि उसने ही अभीरा को दक्ष दिया था. लेकिन अ अरमान कहता है कि वह नहीं चाहता कि जब दक्ष बड़ा हो जाए, ये बात उसे पता चले और वह अपने पिता से नफरत करने लगे.दोनों के बीच की बातें मनोज सुन लेता है.

सीरियल में ये भी दिखाया जाएगा कि रूही दक्ष को नहीं संभाल पाती. तभी रोहित उससे कहता है कि बच्चे को अभीरा के पास ले जाना चाहिए. इस बात पर वह आग बबूला हो जाती है. तो वहीं अरमान के परिवार को लगता है कि दक्ष के साथ रूही घूलमिल नहीं पाई है.

अभीरा का नाम सुनकर आगबबूला होगी रूही

दूसरी तरफ मनोज सच्चाई बताने के लिए सोचता है. अभीरा का नाम सुनकर रूही चिढ़ जाती है. वह नहीं चाहती है कि दक्ष अभीरा के पास जाए और वह विद्दा से वादा लेती है कि अभीरा उसके बच्चे के पास कभी नहीं आएगी.

शो में ये भी दिखाया जाएगा कि कावेरी विद्दा के फैसले की आलोचना करती है. दादी सा विद्दा से कहती है कि वह अभीरा को इस तरह की सजा न दें. तो दूसरी तरफ रूही कहती है कि हर बार सबको अभीरा का दर्द क्यों दिखता है, उसके दुख को कोई नहीं समझता….

Short Story- एक लड़की: जब पहली बार प्यार में मुसकराई शबनम

मैंने पकौड़ा खा कर चाय का पहला घूंट भरा ही था कि बाहर से शबनम की किसी पर बिगड़ने की तेज आवाज सुनाई दी. वह लगातार किसी को डांटे जा रही थी. उत्सुकतावश मैं बाहर निकली तो देखा कि वह गार्ड से उलझ रही है.

एक घायल लड़के को अपने कंधे पर एक तरह से लादे हुए वह अंदर दाखिल होने की कोशिश में थी और गार्ड लड़के को अंदर ले जाने से मना कर रहा था.

‘‘भैया, होस्टल के नियम तो तुम मुझे सिखाओ मत. कोई सड़क पर मर रहा है, तो क्या उसे मर जाने दूं? क्या होस्टल प्रशासन आएगा उसे बचाने? नहीं न. अरे, इंसानियत की तो बात ही छोड़ दो, यह बताओ किस कानून में लिखा है कि एक घायल को होस्टल में ला कर दवा लगाना मना है? मैं इसे कमरे में तो ले जा नहीं रही. बाहर ग्राउंड में जो बैंच है, उसी पर लिटाऊंगी. फिर तुम्हें क्या प्रौब्लम हो रही है? लड़कियां अपने बौयफ्रैंड को ले कर अंदर घुसती हैं तब तो तुम से कुछ बोला नहीं जाता,’’ शबनम झल्लाती हुई कह रही थी.

गार्ड ने झेंपते हुए दरवाजा खोल दिया और शबनम बड़बड़ाती हुई अंदर दाखिल हुई. उस ने किसी तरह लड़के को बैंच पर लिटाया और जोर से चीखी, ‘‘अरे, कोई है? ओ बाजी, देख क्या रही हो? जाओ, जरा पानी ले कर आओ.’’ फिर मुझ पर नजर पड़ते ही उस ने कहा, ‘‘नेहा, प्लीज डिटोल ला देना. इस के घाव पोंछ दूं और हां, कौटन भी लेती आना.’’

मैं ने अपनी अलमारी से डिटोल निकाला और बाहर आई. देखा, शबनम अब उस लड़के पर बरस रही है, ‘‘कर ली खुदकुशी? मिल गया मजा? तेरे जैसे लाखों लड़के देखे हैं. लड़की ने बात नहीं की तो या फेल हुए तो जान देने चल दिए. पैसा नहीं है, तो जी कर क्या करना है? अरे मरो, पर यहां आ कर क्यों मरते हो?’’

शबनम उसे लगातार डांट रही थी और वह खामोशी से शबनम को देखे जा रहा था. उस का दायां हाथ काफी जख्मी हो गया था. एक तरफ चेहरे और पैरों पर भी चोट लगी थी. माथे से भी खून बह रहा था.

बाजी बालटी में पानी भर लाईं और शबनम उस में रुई डुबाडुबा कर उस के घाव पोंछने लगी. फिर घाव पर डिटोल लगा कर पट्टी बांध दी और मुझ से बोली, ‘‘तू जरा इसे ठंडा पानी पिला दे, तब तक मैं इस के घर वालों को खबर कर देती हूं.’’

‘‘तू इसे पहले से जानती थी शबनम?’’ मैं ने पूछा तो वह मुसकराई.

‘‘अरे नहीं, मैं औफिस से आ रही थी, तो देखा यह लड़का जानबूझ कर गाड़ी के नीचे आ गया. इस के सिर पर चोट लगी थी, इसलिए यहां उठा लाई. अब घर वाले आ कर इसे अस्पताल ले जाएं या घर, उन की मरजी,’’ कह कर उस ने लड़के से उस के पिता का नंबर पूछा और उन्हें बुला लिया.

इधर मैं अपने कमरे में आ कर शबनम के बारे में सोचने लगी. आज कितना अलग रूप देखा था मैं ने उस का. उस लड़के के घाव पोंछते वक्त वह कितनी सहज थी. लड़कियां चाहे कुछ भी कहें, आज मैं ने महसूस किया था कि वह दिल की कितनी अच्छी है.

पूरे होस्टल में अक्खड़, मुंहफट और घमंडी कही जाने वाली शबनम की बुराई करने से कोई नहीं चूकता. लड़कियां हों या गार्ड या फिर कामवाली, हर किसी की यही शिकायत थी कि शबनम कभी सीधे मुंह बात नहीं करती है. अकड़ दिखाती है. टीवी देखने आती है तो जबरदस्ती वही चैनल लगाती है, जो उसे देखना हो. दूसरों की नहीं सुनती. वैसे ही उस की जिद रहती है कि काम वाली सुबह सब से पहले उस का कमरा साफ करे.

पहनावे में भी दूसरों से बिलकुल अलग दिखती थी वह. गरमी हो या सर्दी, हमेशा पूरी बाजू के कपड़े पहनती, जिस की नैक भी ऊपर तब बंद होती. उस की इस अटपटी ड्रैस की वजह से लड़कियां अकसर उस का मजाक उड़ाती थीं पर वह इस पर ध्यान नहीं देती थी.

देखने में वह खूबसूरत थी पर नाम के विपरीत चेहरे पर कोमलता नहीं सख्ती के भाव होते थे. डीलडौल भी काफी अच्छा था और आवाज काफी सख्त थी, जो उस की पर्सनैलिटी को दबंग बनाती थी और सामने वाला उस से पंगे लेने से बचता था.

वह मेरे कमरे के साथ वाले कमरे में रहती थी, इसलिए मुझ से उस की थोड़ीबहुत बातचीत होती रहती थी. हम 1-2 दफा साथ घूमने भी गए थे, पर हमेशा ही मुझ वह ऐसी बंद किताब लगी जिसे चाह कर भी पढ़ना मुमकिन नहीं था.

8-10 दिन बाद की बात है, मैं ने देखा, शबनम ग्राउंड में बैंच पर बैठी किसी लड़के से बात कर रही है. उस वक्त शबनम की आवाज इतनी तेज थी कि लग रहा था, वह उस लड़के को डांट रही है. 2-3 लड़कियां उधर से शबनम का मजाक उड़ाती हुई आ रही थीं.

एक कह रही थी, ‘‘लो आ गई उस लड़के की शामत. उसे नहीं पता कि किस लड़की से पाला पड़ा है उस का.’’

दूसरी ने कमैंट किया, ‘‘लड़का कह रहा होगा, मुझ पर करो न यों सितम…’’

मैं ने गौर से देखा, यह तो वही लड़का था, जिस की उस दिन शबनम ने मरहमपट्टी की थी. लड़का अब काफी हद तक ठीक हो चुका था पर माथे और हाथ पर अभी भी पट्टी बंधी थी.

बाद में जब मैं ने शबनम से उस के बारे में पूछा तो वह बोली, ‘‘धन्यवाद कहने आया था और हिम्मत तो देखो, मुझ से दोस्ती करना चाहता था. कह रहा था, फिर मिलने आऊंगा.’’

‘‘तो तुम ने क्या कहा?’’

‘‘अरे, मुझे क्या कहना था, अच्छी तरह समझा दिया कि मैं दोस्तीवोस्ती के चक्कर में नहीं पड़ने वाली. रोजरोज मेरा दिमाग खाने के लिए आने की जरूरत नहीं. लड़कों की फितरत अच्छी तरह समझती हूं मैं.’’

आगे उस लड़के का हश्र क्या होगा, यह मैं अच्छी तरह समझ सकती थी, इसलिए शबनम को और न छेड़ते हुए मैं मुसकराती हुई अपने कमरे में चली आई.

उस दिन के बाद 2-3 बार और भी मैं ने उस लड़के को शबनम से बातें करते देखा और हमेशा शबनम उसे झिड़कती हुई ही दिखी. एक दिन उस ने बताया कि वह लड़का हाथ धो कर पीछे पड़ गया है. फोन भी करने लगा है कि मैं तुम्हें पसंद करता हूं. अरे यार, बदतमीजी की भी हद होती है. घाव पर मरहम क्या लगाया, वह तो हाथ पकड़ने पर आमादा हो गया है.

‘‘तो इस में बुराई क्या है यार. वह तुझे इतना चाहता है, देखने में भी हैंडसम है. अच्छा कमाता है, घरपरिवार भी अच्छा है, तू ने ही बताया है. तो तू मना क्यों कर रही है? क्या कोई और है तेरी जिंदगी में?’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं, कोई और नहीं है. जरूरत भी नहीं है मुझे. और वह जैसा भी है उस से मुझे क्या लेनादेना? आज पीछे पड़ा है, तो हो सकता है कल देखना भी न चाहे, अजनबी बन जाए. हजारों कमियां निकाले मुझ में. इतना ही अच्छा है तो ढूंढ़ ले न कोई अच्छी लड़की. मैं ने क्या मना किया है? मैं क्यों अपनी खुशियां किसी और के आसरे छोड़ूं? जैसी भी हूं, ठीक हूं…’’ कहतेकहते उस की आंखें नम हो उठीं.

‘‘शबनम, प्यार बहुत खूबसूरत होता है. वह वीरान जिंदगी में खुशियों की बहार ले कर आता है. किसी से हो जाए तो सूरत, उम्र, जाति कुछ नहीं दिखता. इंसान इस प्यार को पाने के लिए हर कुरबानी देने को तैयार रहता है.’’ मैं ने समझना चाहा.

पर वह अकड़ती हुई बोली, ‘‘बहुत देखे हैं प्यार करने वाले. मैं इन झमेलों से दूर सही…’’ और अपने कमरे में चली गई.

अगले दिन वह लड़का मुझ होस्टल के गेट पर मिल गया. मुझ से विनती करता हुआ बोला, ‘‘प्लीज नेहाजी, आप ही समझओ न शबनमजी को. वे मुझ से मिलना नहीं चाहतीं.’’

‘‘तुम प्यार करते हो उस से?’’ में ने सीधा प्रश्न किया तो चकित नजरों से उस ने मेरी तरफ देखा फिर सिर हिलाता हुआ बोला, ‘‘बहुत ज्यादा. जिंदगी में पहली दफा ऐसी लड़की देखी. खुद पर निर्भर, दूसरों के लिए लड़ने वाली, आत्मविश्वास से भरपूर. उस ने मुझे जीना सिखाया है. मुश्किलों से हार मानने के बजाय लड़ने का जज्बा पैदा किया है. मैं ने तो औरतों को सिर्फ पति के इशारों पर चलते, रोतेसुबकते और घरेलू काम करते देखा था. पर वह बहुत अलग है. जितना ही उसे देखता हूं, उसे पाने की तमन्ना बढ़ती जाती है. प्लीज, आप मेरी मदद करें. मेरे मन की बातें उस तक पहुंचा दें.’’

‘‘मैं कोशिश करती हूं,’’ मैं ने कहा तो उस के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई. मुझे नमस्ते कर के वह चला गया.

रात को मैं फिर से शबनम के कमरे में दाखिल हुई. वह अकेली थी. ‘‘आज वह गेट पर मिला था,’’ मैं ने कहा.

‘‘जानती हूं. मुझे बाहर बुला रहा था लेकिन मैं नहीं गई.’’

मैं ने उसे कुरेदा, ‘‘तू प्यार से भाग क्यों रही है? जानती है, प्यार हर दर्द मिटा देता है?’’

वह हंसी, ‘‘प्यार दर्द मिटाता नहीं, नए जख्म पैदा करता है. बहुत स्वार्थी होता है प्यार.’’

‘‘मैं आज वजह जान कर रहूंगी कि आखिर क्यों भागती है तू प्यार से? या तो मुझे हकीकत बता दे या फिर उस लड़के को अपना ले जो सिर्फ तेरी राह देख रहा है.’’

‘‘मैं ने भी देखी थी किसी की राह पर उस ने…,’’ कहते हुए अचानक उस की आंखें भीग गईं.

मैं ने प्यार से उस का माथा सहलाते हुए कहा, ‘‘शबनम, अपने दिल का दर्द बाहर निकाल. तभी तू खुश रह सकेगी. मुझे सबकुछ बता दे. मैं जानती हूं, तू दिल की बहुत अच्छी है. पर कुछ तो ऐसा है जो तेरे दिल को तड़पाता है. यह पीड़ा तुझे सामान्य नहीं रहने देती. तेरे चेहरे, तेरे व्यवहार में झलकने लगती है. यकीन रख, तू जो भी बताएगी, वह सिर्फ मुझ तक रहेगा. पर मुझ से कुछ मत छिपा. किस ने चोट पहुंचाई है तुझे?’’

वह थोड़ी नौर्मल हुई तो बिस्तर पर पीठ टिका कर बैठ गई और कहने लगी, ‘‘नेहा,

4 साल पहले तक मैं भी एक ऐसी लड़की थी जिस का दिल किसी के लिए धड़कता था. मैं भी प्यार को बहुत खूबसूरत मानती थी. मेरी भी तमन्नाएं थीं, कुछ सपने थे. दूसरों से प्रेम से बातें करना, मिल कर रहना अच्छा लगता था मुझे. जिसे प्यार किया, उसी के साथ पूरी उम्र गुजारना चाहती थी और उस की यानी विक्रम की भी यही मरजी थी. उस ने मुझे हमेशा ऐतबार दिलाया था कि वह मुझे प्यार करता है, मेरे साथ घर बसाना चाहता है. हमारी जोड़ी कालेज में भी मशहूर थी. पर वक्त की चोट ने उस की असलियत मेरे सामने ला कर रख दी.’’

‘‘एक दिन मैं ने देखा कि मेरी बांह और पीठ पर सफेद निशान हो गए हैं. मैं घबरा गई. डाक्टरों के चक्कर लगाने लगी पर दाग बढ़ते ही गए. जब मैं ने यह राज विक्रम के आगे खोला तो उस के चेहरे के भाव ही बदल गए और 2-4 दिनों के अंदर ही उस का व्यवहार भी बदलने लगा. अब वह मुझसे दूर रहने की कोशिश करता. हालांकि 1-2 दफा मेरे कहने पर वह मेरे साथ डाक्टर के यहां भी गया पर कुछ अनमना सा रहता था. धीरेधीरे वह मिलने से भी कतराने लगा.

‘‘उधर हमारी पढ़ाई पूरी हो गई और पापा को मेरी शादी की फिक्र होने लगी. मैं ने विक्रम से इस बारे में चर्चा की तो वह शादी से बिलकुल मुकर गया. मैं तड़प उठी. उस के आगे रोई, गिड़गिड़ाई पर सिर्फ इस सफेद दाग की वजह से वह मुझ से जुड़ने को तैयार नहीं हुआ.’’ कहते हुए उस ने अपने कुरते की बाजू ऊपर उठाई. उस की बांह पर कई जगह सफेद दाग थे.

शून्य की तरफ देखते हुए वह बोली, ‘‘मैं आज भी उसे भुला नहीं सकी पर

कहां जानती थी कि उस का प्यार सिर्फ मेरे शरीर से जुड़ा था. शरीर में दोष उत्पन्न हुआ तो उस ने राहें बदल लीं. किसी और से शादी कर ली. तभी मैं ने समझा कितना स्वार्थी, कितना संकीर्ण होता है यह प्यार.

‘‘मैं ने तो विक्रम की शक्ल नहीं देखी थी. देखने में बिलकुल ऐवरेज था. सांवला, मोटा. मैं उस से बहुत खूबसूरत थी. मैं चाहती तो उस की कमियां गिना कर उसे ठुकरा सकती थी. पर मैं ने तो प्यार किया था और उस ने ऐसी चोट दी कि सारे जज्बात ही खत्म कर डाले. तभी से मुझ में एक तरह की जिद आ गई. मैं समझ गई कि जिंदगी में मांगने पर कुछ नहीं मिलता. मुझे जो चाहिए होता वह जबरदस्ती दूसरों से छीनने लगी. खुद को कमजोर महसूस नहीं कर सकती मैं. किसी की सहानुभूति भरी नजरें भी नहीं चाहिए. न ही किसी का इनकार सह पाती हूं. यही जिद मेरे व्यवहार में नजर आने लगा है. और शायद यही वजह है कि मैं 35 की हो गई पर शादी के नाम से दूर भागती हूं.’’

‘‘यह सब बहुत ही स्वाभाविक है शबनम. पर सच तो यह है कि विक्रम का प्यार मैच्योर नहीं था. वह दिल से तुझ से जुड़ ही नहीं सका था, इसीलिए तुम्हारे रिश्ते का धागा बहुत कमजोर था. वह हलकी सी चोट भी सह नहीं सका. पर अर्पण की आंखों में देखा है मैं ने, वाकई उस के दिल में सिर्फ तुम हो, क्योंकि उस ने सूरत देख कर नहीं, तुम्हारे गुण देख कर तुम्हें चाहा है. इसलिए वह तुम्हारा साथ कभी नहीं छोड़ेगा. किसी स्वार्थी इंसान की वजह से खुद को खुशियों से बेजार रखना कहां की अक्लमंदी है?

‘‘शबनम, यदि ठंडी हवा के झोंके सा अर्पण का प्यार तुम्हारे जख्मों पर मरहम लगा सकता है, तो दिल की खिड़कियां बंद कर लेना सही नहीं.’’

‘‘मैं कैसे मान लूं कि अर्पण का प्यार सच्चा है, स्वार्थी नहीं.’’

‘‘ऐसा कर, उसे हर बात बता दे. फिर देख, वह क्या कहता है. मैं जानती हूं, उस का जवाब निश्चित रूप से हां होगा.’’

शबनम ने उसी वक्त फोन उठाया और बोली, ‘‘ठीक है, यह भी कर के देख लेती हूं. अभी तेरे सामने बताती हूं उसे सब कुछ.’’

फिर उस ने फोन मिलाया और स्पीकर औन कर बोली, ‘‘अर्पण, मैं तुम से बात

करना चाहती हूं अभी, इसी वक्त. समय है तुम्हारे पास?’’

‘‘बिलकुल, आप कहिए तो,’’ अर्पण ने जवाब दिया.

‘‘अर्पण, तुम्हारे दिल की बात नेहा ने मुझ तक पहुंचा दी है. अब मैं अपनी जिंदगी की असलियत तुम तक पहुंचाना चाहती हूं. बस एक हकीकत, जिसे सुन कर तुम्हारा सारा प्यार काफूर हो जाएगा…’’

‘‘ऐसा क्या है शबनमजी?’’

‘‘बात यह है कि मेरे पूरे शरीर पर सफेद दाग हैं, जो ठीक नहीं हो सकते. गले पर, पीठ पर, बांहों पर और आगे… हर जगह. अब बताओ, क्या है तुम्हारा फैसला?’’

‘‘फैसला क्यों बदलेगा शबनमजी? और दूसरी बात यह कि किस ने कहा दाग ठीक नहीं हो सकते? मेरे अंकल डाक्टर हैं, उन्हें दिखाएंगे हम. वक्त लगता है, पर ऐेसे दाग ठीक हो जाते हैं. मान लीजिए, ठीक न हुए तो भी मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि मैं आप को चाहता हूं. कमियां तो मुझ में भी हैं, पर उस से क्या? एकदूसरे को अपनाने का मतलब एकदूसरे की खूबियों और कमियों को स्वीकारना ही तो होता है. कल को मेरे शरीर पर कुछ हो जाए या मुझे कोई बीमारी हो जाए तो क्या आप मुझे छोड़ देंगी? नहीं न शबनमजी, बताइए? मेरी मम्मी पास ही बैठी हैं, उन्होंने सब कुछ सुन लिया है और उन की तरफ से भी हां है. आप बस मेरा साथ दीजिए. आप नहीं जानतीं, मैं ने बहुत कुछ सीखा है आप से. आप मेरे साथ रहेंगी तो मैं खुद को बेहतर ढंग से पहचान सकूंगा. जी सकूंगा अपनी जिंदगी. आई लव यू…’’

शबनम ने मेरी तरफ देखा. मैं ने उस से हां कहने का इशारा किया तो

वह धीरे से बोल उठी, ‘‘आई लव यू टू…’’

फिर शबनम ने तुरंत फोन काट दिया और मेरे गले लग कर रोने लगी. मैं जानती थी. आज उस की आंखें भले ही रो रही हों पर दिल पहली दफा पूरी तरह प्यार में डूबा मुसकरा रहा था.

Popular Hindi Story- कुछकुछ होता रहेगा: खतरनाक निकली रोहन की सचाई

‘‘हाय,   यह कितना हैंडसम है, यार. इस की किलर स्माइल. कोई लड़का इतना अच्छा कैसे हो सकता है. कहीं किसी दिन इसे देख कर ही मेरा हार्ट फेल न हो जाए. अगर कहीं मैं कालेज में ही इसे घूरते हुए अपनी जान दे दूं, तो मेरे घर वालों को बता देना कि आप की लड़की एक बेमुरव्व्त के इश्क में शहीद हो गई.’’

मैं ने शायद आज थोड़ा ज्यादा ही नौटंकी कर दी थी. मेरी बैस्टी पूजा ने मुझे पीठ में जोर से एक धौल जमाते हुए कहा, ‘‘कितनी बकवास करती है तू. अच्छाभला शरीफ सा लड़का है रोहन. कितना सोबर है, देख, तू सुधर जा.’’

मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा. मैं ने उसी रौ में कहा, ‘‘कुछकुछ होता है पूजा, तुम नहीं समझोगी.’’

‘‘मूवीज कम देखा कर, सारे डायलौग हमें सुनने पड़ते हैं.’’

‘‘क्या करूं यार,’’ कहते हुए मैं ने गुनगुनाया, ‘‘उसे न देखूं तो चैन मुझे आता नहीं है, एक उस के सिवा दिल को कोई भाता नहीं है, कहीं मुझे प्यार हुआ तो नहीं है…’’

अब तक हमारे साथ चुप बैठी अनीता ने अपने कानों पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘यार, इस का नशा कैसे उतारें. रोहन को तो पता ही नहीं होगा कि उस के प्यार में हम कैसेकैसे नाटक देख रहे. सुन सोनिका, तू जा रोहन के पास, उसे अपने दिल का हाल बता दे, फिर तू जाने या वह जाने,’’ कह, ‘‘हम बोर हो चुके सनम…’’ उस ने भी गुनगुनाया. हम तीनों अकसर गानों में जवाब देते हैं एकदूसरे को.

रोहन इस समय अपने दोस्त शिविन के साथ कैंटीन में बैठा चाय पी रहा था और मैं अपनी सहेलियों पूजा और अनीता के साथ एक कोने में बैठी समोसे खा रही थी. हम इस कालेज में बीए के फ्रैशर्स थे और रोहन हम से 1 साल सीनियर. वैसे तो हम लोगों की बीचबीच में थोड़ी रैगिंग होती रहती थी, सीनियर्स कभी भी अचानक आ जाते. ज्यादा नहीं, इंट्रोडक्शन लेने के लिए आए हैं, कहते तो यही पर हम से बहुत कुछ करवाया जाता. 2-3 दिन में ही जब सीनियर्स हम से मिलने आए, तो रोहन भी उन में था. बस, मैं ने उसे क्या देखा, मर मिटी उस पर. तब से सहेलियों की गालियां खा रही हूं, पर कोई फर्क नहीं पड़ता.

नयानया जोश है, गर्ल्स कालेज से सीधे कोऐजुकेशन में आए हैं. लड़के

दिखते हैं कालेज में, जरा अच्छा लगता है. अभी तो 12वीं तक स्कूल यूनिफौर्म में घूम रहे थे, अब जरा लाइफ लाइफ जैसी लगती है. वरना तो कभी स्कूल के लिए तैयार होते समय में ऐक्ससाइटमैंट नहीं हुआ. पता होता कि जो यूनिफौर्म रात में प्रैस की है, वही पहननी है. अब तो रोज कभी कुछ पहना जाता है, कभी कुछ. मजा तो अब आ रहा है. रोहन को क्या देखा, सारे हीरो दिनभर याद आते.

कभी उस का साइड फेस ऋ तिक की तरह लगता, कभी नाक वरुण धवन जैसी लगती, कभी बाल जौन अब्राहम जैसे लगते.

पूजा और अनीता को कभीकभी मुझ पर तरस भी आता, कहतीं, ‘‘हाय, अच्छीभली थी बेचारी गर्ल्स कालेज में, जब से यहां आई है सटक गई है.’’

कभी कहतीं, ‘‘सोनिका, कहीं तू रोहन की मुहब्बत में बदनाम न हो जाना, तेरी आंखें चुगली करने लगी हैं.’’

वे मुझ से कम फिल्में थोड़े ही देखती थीं. भरपूर फिल्मी स्टाइल में ज्ञान देतीं. फिल्मों के मारे तो हम तीनों ही थे. हम बचपन की एक गली में रहने वाली सहेलियां थीं. मैं सीने पर हाथ रख कर ठंडी सांस लेती कहती, ‘‘बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा.’’

दोनों सिर पकड़ लेतीं, फिर कहतीं, ‘‘तुम वैसे हो ही गर्ल्स कालेज में पढ़ने लायक. यहां आते ही लड़केबाजी शुरू कर दी. बेचारा शरीफ लड़का है, तुम्हें नजर उठा कर भी नहीं देखता और तुम जैसे उसे आंखों में ही गटक जाओगी किसी दिन, ऐसे देखती हो.’’

‘‘हाय, वह शराफत छोड़ दे थोड़ी तो मजा आ जाए.’’

इतने में हम ने देखा कि रोहन और शिविन कैंटीन से जाने के लिए उठ गए. फिर मेरा मन कैंटीन से उचट गया. मैं ने कहा, ‘‘उठो, हो गए समोसे.’’

दोनों मुझे घूरती हुई खड़ी हो गईं. हम जैसे ही अपनी क्लास में गए, पता चला प्रोफैसर नहीं आए हैं. यह हमारा हिंदी का पीरियड था. देखा तो सीनियर्स चले आ रहे थे. पूजा की हालत उन्हें देख कर खराब होती थी.

मुझे रोहन भी पीछे आता दिखा तो मैं ने पूजा से धीरे से कहा,’’ अरे देखो, पलाश भी है, बस उस पर ध्यान दो डर नहीं लगेगा.’’

पूजा ने चिढ़ कर मुझे इतनी जोर से चिकोटी काटी कि मेरी सीईई की आवाज जोर से निकली. सीनियर्स का ध्यान इस सी पर जाना ही था. उन में एक लड़की भी थी. बोली, ‘‘क्यों भई, किसे देख कर सीसी कर रही हो?’’

मन हुआ कह दूं, यह जो तुम्हारे पीछे खड़ा है, बस इसे देख कर सीसी करती हूं आजकल. पर मैं इतना ही बोली, ‘‘चोट लग गई थी मुझे.’’

रोहन ने पूछ लिया, ‘‘कैसे? कहां? आप ठीक तो हैं?’’

हाय, रोहन ने पूछा मुझ से सब के सामने. मैं ने अचानक विजयीभाव से पूजा और अनीता को देखा. उन्हें तो जैसे करंट लगा था. मुझ लगा, बस सब गायब हो जाएं और मैं और रोहन किसी फिल्मी सीन की तरह एकदूसरे की आंखों में आंखें डालते हुए गाते रहें, ‘‘आंखों की गुस्ताखियां माफ हो…’’

वह सीनियर लड़की फिर बोली, ‘‘अरे, क्या हुआ तुझे?’’

मैं ने कहा, ‘‘अब ठीक हूं,’’ कहतेकहते मैं ने रोहन को देखा, वह शिविन के कान में कुछ कह रहा था, मुझे लगा काश, वह उसे यह बता रहा हो कि यह सोनिका मुझे बहुत अच्छी लगती है. काश, काश, यही कह रहा हो.

सीनियर्स हम से गाना सुनते रहे. एक लड़की अंजू को डांस करने के लिए कह दिया. सीनियर्स को क्या पता था कि अंजू तो सड़क पर बरात में भी शुरू से आखिर तक नाचती चलती है. वह तो शादियों में जाती ही डांस करने के लिए है. वह तो खुद गाने भी लगी, ‘‘मैं तेरी दुश्मन, दुश्मन तू मेरा…’ और नागिन बन कर एक कोने में ऐसी लहराई कि सीनियर्स घबरा गए, ‘‘बोले, रुक जा बहन,’’ और क्लास से चले गए. हम सब हंसहंस कर पागल ही हो गए.

‘‘अंजू, आज तेरे नागिन डांस ने बाकियों को बचा लिया. अंजू, तू ऐसे ही नागिन बन कर लहराती रह.’’

इस पूरे ऐपिसोड में जैसे मेरी एक आंख रोहन पर रही, दूसरी अपनी नागिन पर. रोहन को अंजू का नागिन डांस देख कर घबराहट हुई थी. उस ने फिर शिविन के कान में कुछ कहा था. मुझे लगा, काश यही कहा हो यह सोनिका कितनी सोबर है, मुझे तो ऐसे डांस करने वाली लड़कियां अच्छी नहीं लगतीं. काश, यही कहा हो रोहन ने. मेरी एक बार इस बीच नजर भी मिली थी रोहन से. मैं ने मुसकराने में एक पल की देरी भी नहीं की और जब वह भी मुसकरा दिया तो मुझे एक आशा दिखी कि हां, फ्यूचर में हमारा बहुत कुछ हो सकता है.

सीनियर्स के जाने के बाद मैं ने कहा, ‘‘अनीता, तुम्हें पता है रोहन मुझे देख कर अभी मुसकराया था और तुम ने सुना न कि उस ने यह भी पूछ लिया कि मुझे चोट लगी है क्या. मुझे लग रहा है कि मुझे देख कर उसे भी कुछकुछ होने लगा है.’’

अनीता गुर्राई, ‘‘सपने देखना बंद कर दे, लड़की. ऐसी कोई बड़ी बात नहीं पूछ ली उस ने.’’

‘‘जलकुकड़ी है तू,’’ कह कर मैं ने गुनगुनाया, ‘‘कुछ कुछ होता है…’’

पूजा और अनीता ने अपने कानों पर हाथ रख लिए.  धीरेधीरे पढ़ाई शुरू हो चुकी थी. सीनियर्स अब किसी न किसी प्रोग्राम में नजर आते रहते. मुझे पता चला कि रोहन कालेज की कल्चरल कमेटी का हिस्सा है. मैं ने भी झट अपना नाम लिखवा दिया.

मैं ने उस के ग्रुप में शामिल होने के लिए अपनी जीजान लगा दी. अब तो कालेज के किसी भी प्रोग्राम की तैयारी में मैं उस के आगेपीछे ही डोलती दिखती तो पूजा और अनीता मुझे बारबार डांटते, ‘‘पढ़ाई भी कर लिया कर कुछ, रोहन की रैंक हमेशा फर्स्ट आती है कालेज में हर चीज में. फेल मत हो जाना.’’

मेरा दिमाग तेज था. मैं जितनी भी देर पढ़ने बैठती, झट निबटा लेती अपना काम ताकि पढ़ाई से जल्दी फ्री हो कर रोहन के बारे में सोच सकूं.

मैं ने एक दिन पूजा से कहा, ‘‘देख पूजा, शरीफ लड़के भी तो शरमाते हैं प्रेम का इजहार करने से. मैं ही रोहन को एक दिन आई लव यू  बोल दूं?’’

इस बार शायद अनीता और पूजा को मेरी शकल देख कर तरस आ गया, बोलीं, ‘‘ठीक है, वैलेंटाइनडे आ रहा है, बोल देना.’’

चालाक हैं दोनों. वैलेंटाइनडे आने में 2 महीने थे, मुझे हंसी आ गई, ‘‘कुछ ज्यादा टाइम नहीं सोचा तुम ने. जितना लेट हो सके, उतना लेट करवा रही हैं न.’’

हम तीनों खूब हंसे. मैं ने कहा, ‘‘यार, मेरा मन करता है, मैं इस का दोस्त शिविन होती, काश मैं लड़का होती. जिस तरह यह अपने दोस्तों के कंधे पर हाथ रख कर बात करता है, उनके गले में हाथ डालता है, मेरा मन करता है, मैं भी एक लड़का हो जाऊं और इस के आसपास ही रहूं.’’

दोनों ने अपनाअपना सिर पीट लिया. इस बार की ठंड मुझे कुछ अलग ही लग रही थी, मीठीमीठी, प्यारीप्यारी सी. कुहरे के दिन थे, हम तीनों कालेज पैदल आतेजाते. कुहरे में रोहन का चेहरा जैसे मेरे साथसाथ चलता. एक मीठामीठा सा खयाल दिनभर घेरे रहता. वैलेंटाइनडे से पहले की शाम तो जैसे मुझे एक बेचैनी से भर गई.

मेरी तैयारियां देख कर मम्मीपापा और भैया ने मुझे घूर कर देखा, मम्मी ने जब कहा कि कल अगर पढ़ाई न होने वाली हो तो छुट्टी कर लो तो मैं मन ही मन जल गई जैसे कहा कि न मम्मी, पढ़ाई क्यों नहीं होगी. बाकी चीजें एक तरफ, ये सब एक तरफ चलता रहता है. ऐग्जाम्स आने वाले हैं, मैं एक भी पीरियड मिस नहीं कर सकती और मैं उसी समय अपने इअर रिंग्स जिन्हें कल पहनने वाली थी. छिपाते हुए पढ़ने बैठ गई.

मैं अलग ही तरह से तैयार हो कर जब पूजा और अनीता के साथ कालेज के लिए निकली तो वे दोनों बस मुझे देखदेख कर हंसती ही रहीं. चौराहे पर रोहन के ग्रुप की सीनियर लड़की रेखा भी हमारे साथ हो ली. वह खूब बातूनी थी. मुझे लगा इस से रोहन के बारे में यों ही चलतेचलते जानकारी निकलवाई जा सकती है. दरअसल, मेरा मन करता रहता कि बस कोई मुझ से रोहन की बात करता रहे. मैं ने ही बात छेड़ी, ‘‘रेखा, मुझ आप का ग्रुप बहुत अच्छा लगता है, आप लोग पढ़ाई के साथ बाकी चीजों में भी कितने ऐक्टिव रहते हैं.’’

‘‘अरे, सब रोहन और शिविन की मेहनत होती है.’’

मेरा दिल इस नाम पर धड़कधड़क गया. कहा, ‘‘हां, अच्छे दोस्त हैं दोनों.’’

रेखा ने कहा, ‘‘हां भई, दोस्त क्या, बहुत कुछ हैं दोनों. खूब प्यारे हैं. 7वीं क्लास से दोनों साथ हैं.’’

अनीता ने पूछा, ‘‘अच्छा. इतने पुराने दोस्त हैं?’’

‘‘हां, तुम लोगों को पता नहीं क्या कि दोनों पार्टनर्स हैं, गे हैं, अब तो इन के घर वालों ने, कालेज के साथियों ने यह बात स्वीकार कर ही ली है कि दोनों का साथ छूट नहीं सकता. शुरूशुरू में काफी बवाल हुआ, अब सब थक गए, हम तो दोनों को खूब प्यार करते हैं. तुम तीनों को कैसे किसी की खबर होगी, तुम लोग तो अपने में ही मस्त रहते हो.’’

मेरा दिल जैसे रुकने को हुआ. यह शिविन तो मेरी ही सौत निकला. हाय, सच में काश मैं लड़का ही होती. यह क्या हो गया. पूजा और अनीता ने मुझे देखा. मैं ने नजरें चुरा लीं पर मैं ने कनखियों से देख लिया. दोनों अपनी हंसी रोकने की कोशिश कर रही थीं. उस दिन कालेज का रास्ता बहुत लंबा लगा.

कालेज पहुंच कर रेखा अपने दोस्तों के पास चली गई, मैं सीधी कैंटीन जा कर एक कोने में बैठ गई. ये दोनों भी मेरे पीछेपीछे भागती सी चल रही थीं.

मैं ने इन दोनों के चेहरों पर एक खा जाने वाली नजर डालते हुए कहा, ‘‘तुम्हें बड़ी हंसी आ रही थी. मेरा दिल टूट गया और तुम हंस रही थीं.’’

दोनों बेशर्म सचमुच जोर से हंसी, ‘‘यार, तुम्हारी शकल देखने वाली थी.’’

अनीता ने कहा, ‘‘यार सोनू, तू दुखी मत हो.’’

मैं ने एक ठंडी सांस लेते हुए कहा, ‘‘दुखी होने की बात नहीं है क्या? इतनी छोटी लव स्टोरी किस की होती है?’’

इतने में रोहन अपने दोस्तों के साथ आया और कुछ दूर बैठ गया. उन सब ने हमें देख कर हाथ भी हिलाए. हम ने भी हाथ हिला दिए.

अनीता ने मुझे छेड़ा, ‘‘सोनू, क्या रोहन को देख कर अब भी कुछकुछ हो रहा है?’’

‘‘यह मुहब्बत है जानी. कुछकुछ होता रहेगा, ‘‘वो प्यार है किसी और का, उसे चाहता कोई और है…,’’ मैं ने गुनगुनाया तो दोनों ने फिर अपने कानों पर हाथ रख लिए.

Online Hindi Story- टीसता जख्म : क्या उमा के चरित्र को दागदार कर पाया अनवर

अचानक उमा की आंखें खुलती हैं. ऊपर छत की तरफ देखती हुई वह गहरी सांस लेती है. वह आहिस्ता से उठती है. सिरहाने रखी पानी की बोतल से कुछ घूंट अपने सूखे गले में डालती है. आंखें बंद कर वह पानी को गले से ऐसे नीचे उतारती है जैसे उन सब बातों को अपने अंदर समा लेना चाहती है. पर, यह हो नहीं पा रहा. हर बार वह दिन उबकाई की तरह उस के पेट से निकल कर उस के मुंह में भर आता है जिस की दुर्गंध से उस की सारी ज्ञानेंद्रियां कांप उठती हैं.

पानी अपने हलक से नीचे उतार कर वह अपना मोबाइल देखती है. रात के डेढ़ बजे हैं. वह तकिए को बिस्तर के ऊंचे उठे सिराहने से टिका कर उस पर सिर रख लेट जाती है.

एक चंदन का सूखा वृक्ष खड़ा है. उस के आसपास मद्धिम रोशनी है. मोटे तने से होते हुए 2 सूखी शाखाएं ऊपर की ओर जा रही हैं, जैसे कि कोई दोनों हाथ ऊपर उठाए खड़ा हो. बीच में एक शाखा चेहरे सी उठी हुई है और तना तन लग रहा है. धीरेधीरे वह सूखा चंदन का पेड़ साफ दिखने लगता है. रोशनी उस पर तेज हो गई है. बहुत करीब है अब… वह एक स्त्री की आकृति है. यह बहुत ही सुंदर किसी अप्सरा सी, नर्तकी सी भावभंगिमाएं नाक, आंख, होंठ, गरदन, कमर की लचक, लहराते सुंदर बाजू सब साफ दिख रहे हैं.

चंदन की खुशबू से वहां खुशनुमा माहौल बन रहा है कि तभी उस सूखे पेड़ पर उस उकेरी हुई अप्सरा पर एक विशाल सांप लिपटा हुआ दिखने लगता है. बेहद विशाल, गहरा चमकीला नीला, हरा, काला रंग उस के ऊपर चमक रहा है. सारे रंग किसी लहर की तरह लहरा रहे हैं. आंखों के चारों ओर सफेद चमकीला रंग है. और सफेद चमकीले उस रंग से घिरी गोल आंख उस अप्सरा की पूरी काया को अपने में समा लेने की हवस लिए हुए है. रक्त सा लाल, किसी कौंधती बिजली से कटे उस के अंग उस काया पर लपलपा रहे हैं.

वह विशाल सांप अपनी जकड़ को घूमघूम कर इतना ज्यादा कस रहा है कि वह उस पेड़ को मसल कर धूल ही बना देना चाह रहा है. तभी वह काया जीवित हो जाती है. सांप उस से दूर गिर पड़ता है. वह एक सुंदर सी अप्सरा बन खड़ी हो जाती है और सांप की तरफ अपनी दृष्टि में ठहराव, शांति, आत्मविश्वास और आत्मशक्ति से ज्यों ही नजर डालती है वह सांप गायब हो जाता है और उमा जाग जाती है. सपने को दोबारा सोच कर उमा फिर बोतल से पानी की घूंट अपने हलक से उतारती है. अब उसे नींद नहीं आ रही.

भारतीय वन सेवा के बड़े ओहदे पर है उमा. उमा को मिला यह बड़ा सा घर और रहने के लिए वह अकेली. 3 तो सोने के ही कमरे हैं जो लगभग बंद ही रहते हैं. एक में वह सोती है. उमा उठ कर बाहर के कमरे में आ जाती है. बड़ी सी पूरे शीशे की खिड़की पर से परदा सरका देती है. दूरदूर तक अंधेरा. आईजीएनएफए, देहरादून के अहाते में रोशनी करते बल्ब से बाहर दृश्य धुंधला सा दिख रहा था. अभीअभी बारिश रुकी थी. चिनार के ढलाव से नुकीले पत्तों पर लटकती बूंदों पर नजर गड़ाए वह उस बीते एक दिन में चली जाती है…

उन दिनों वह अपनी पीएचडी के अध्ययन के सिलसिले में अपने शहर रांची के बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (कांके) आई हुई थी. पूरा बचपन तो यहीं बीता उस का. झारखंड के जंगलों में अवैध खनन व अवैध जंगल के पेड़ काटने पर रोक व अध्ययन के लिए जिला स्तर की कमेटी थी. आज उमा ने उस कमेटी के लोगों को बातचीत के लिए बुलाया था. उसे जरा भी पता नहीं था, उस के जीवन में कौन सा सवाल उठ खड़ा होने वाला है.

मीटिंग खत्म हुई. सारे लोग चाय के लिए उठ गए. उमा अपने लैपटौप पर जरूरी टिप्पणियां लिखने लग गई. तभी उसे लगा कोई उस के पास खड़ा है. उस ने नजर ऊपर की. एक नजर उस के चेहरे पर गड़ी हुई थी. आप ने मुझे पहचाना नहीं?

उमा ने कहा, ‘सौरी, नहीं पहचान पाई.’ ‘हम स्कूल में साथ थे,’ उस शख्स ने कहा.

‘क्षमा करें मेरी याददाश्त कमजोर हो गई है. स्कूल की बातें याद नहीं हैं,’ उमा ने जवाब दिया.

‘मैं अनवर हूं. याद आ रहा है?’

अनवर नाम तो सुनासुना सा लग रहा है. एक लड़का था दुबलापतला, शैतान. शैतान नहीं था मैं, बेहद चंचल था,’ वह बोला था.

उमा गौर से देखती है. कुछ याद करने की कोशिश करती है…और अनवर स्कूल के अन्य दोस्तों के नाम व कई घटनाएं बनाता जाता है. उमा को लगा जैसे उस का बचपन कहीं खोया झांकने लगा है. पता नहीं कब वह अनवर के साथ सहज हो गई, हंसने लगी, स्कूल की यादों में डूबने लगी.

अनवर की हिम्मत बढ़ी, उस ने कह डाला, ‘मैं तुम्हें नहीं भूल पाया. मैं साइलेंट लवर हूं तुम्हारा. मैं तुम से अब भी बेहद प्यार करता हूं.’

‘यह क्या बकवास है? पागल हो गए हो क्या? स्कूल में ही रुक गए हो क्या?’ उमा अक्रोशित हो गई.

‘हां, कहो पागल मुझे. मैं उस समय तुम्हें अपने प्यार के बारे में न बता सका, पर आज मैं इस मिले मौके को नहीं गंवाना चाहता. आइ लव यू उमा. तुम पहले भी सुंदर थीं, अब बला की खूबसूरत हो गई हो.’

उमा झट वहां से उठ जाती है और अपनी गाड़ी से अपने आवास की ओर निकल लेती है. आई लव यू उस के कानों में, मस्तिष्क में रहरह गूंज रहा था. कभी यह एहसास अच्छा लगता तो कभी वह इसे परे झटक देती.

फोन की घंटी से उस की नींद खुलती है. अनवर का फोन है. वह उस पर ध्यान नहीं देती. फिर घड़ी की तरफ देखती है, सुबह के 6 बज गए हैं. इतनी सुबह अनवर ने रिंग किया? उमा उठ कर बैठ जाती है. चेहरा धो कर चाय बनाती है. अपने फोन पर जरूरी मैसेज, कौल, ईमेल देखने में लग जाती है. तभी फिर फोन की घंटी बज उठती है. फिर अनवर का फोन है.

‘हैलो, हां, हैलो उठ गई क्या? गुडमौर्निंग,’ अनवर की आवाज थी.

‘इतने सवेरे रिंग कर दिया,’ उमा बोली.

‘हां, क्या करूं, रात को मुझे नींद ही नहीं आई. तुम्हारे बारे में ही सोचता रहा,’ अनवर बोला.

‘मुझे अभी बहुत काम है, बाद में बात करती हूं,’ उमा ने फोन काट दिया.

आधे घंटे बाद फिर अनवर का फोन आया.

‘अरे, मैं तुम से मिलना चाहता हूं.’

‘नहींनहीं, मुझे नहीं मिलना है. मुझे बहुत काम है,’ और उस ने फोन जल्दी से रख दिया.

आधे घंटे बाद फिर अनवर का फोन आया और वह बोला, ‘सुनो, फोन काटना मत. बस, एक बार मिलना चाहता हूं, फिर मैं कभी नहीं मिलूंगा.’

‘ठीक है, लंच के बाद आ जाओ,’ उमा ने अनवर से कहा.

लंच के समय कमरे की घंटी बजती है. उमा दरवाजा खोलती है. सामने अनवर खड़ा है. अनवर बेखौफ दरवाजे के अंदर घुस जाता है.

‘ओह, आज बला की खूबसूरत लग रही हो, उमा. मेरे इंतजार में थी न? तुम ने अपनेआप को मेरे लिए तैयार किया है न?’

उमा बोली, ‘ऐसी कोई बात नहीं है? मैं अपने साधारण लिबास में हूं. मैं ने कुछ भी खास नहीं पहना.’

अनवर डाइनिंग रूम में लगी कुरसी पर ढीठ की तरह बैठ गया. उमा के अंदर बेहद हलचल मची हुई है पर वह अपनेआप को सहज रखने की भरपूर कोशिश में है. वह भी दूसरे कोने में पड़ी कुरसी पर बैठ गई. अनवर 2 बार राष्ट्रीय स्तर की मुख्य राजनीतिक पार्टी से चुनाव लड़ चुका था, लेकिन दोनों बार चुनाव हार गया था. अब वह अपने नेता होने व दिल्ली तक पहुंच होने को छोटेमोटे कार्यों के  लिए भुनाता है. उस के पास कई ठेके के काम हैं. बातचीत व हुलिया देख कर लग रहा था कि वह अमीरी की जिंदगी जी रहा है. अनवर की पूरी शख्सियत से उमा डरी हुई थी.

‘उमा, मैं तुम से बहुत सी बातें करना चाहता हूं. मैं तुम से अपने दिल की सारी बातें बताना चाहता हूं. आओ न, थोड़ा करीब तो बैठो प्लीज,’ अनवर अपनी कुरसी उस के करीब सरका कर कहता है, ‘तुम भरपूर औरत हो.’

अचानक उमा का बदन जैसे सिहर उठा. अनवर ने उस का हाथ दबा लिया था. अनवर की आंखें गिद्ध की तरह उमा के चेहरे को टटोलने की कोशिश कर रही थीं. उमा ने झटके से अपना हाथ खींच लिया.

‘मैं चाय बना कर लाती हूं,’ कह कर उमा उठने को हुई तो अनवर बोल उठा.

‘नहींनहीं, तुम यहीं बैठो न.’

उमा पास रखी इलैक्ट्रिक केतली में चाय तैयार करने लगी. तभी उमा को अपने गले पर गरम सांसों का एहसास हुआ. वह थोड़ी दूर जा कर खड़ी हो गई.

‘क्या हुआ? तुम ने शादी नहीं की पर तुम्हें चाहत तो होती होगी न,’ अनवर ने जानना चाहा.

‘कैसी बकवास कर रहे हो तुम,’ उमा खीझ कर बोली.

‘हम कोई बच्चे थोड़े हैं अब. बकवास तो तुम कर रही हो,’ अनवर भी चुप नहीं हुआ और उस के होंठ उमा के अंगों को छूने लगे. उमा फिर दूर चली गई.

‘अनवर, बहुत हुआ, बस करो. मुझे यह सब पसंद नहीं है,’ उमा ने संजीगदी से कहा.

‘एक मौका दो मुझे उमा, क्या हो गया तुम्हें, अच्छा नहीं लगा क्या?  मैं तुम से प्यार करता हूं. सुनो तो, तुम खुल कर मेरे साथ आओ,’ उस ने उमा को गोद में उठा लिया. अनवर की गोद में कुछ पल के लिए उस की आंखें बंद हो गईं. अनवर ने उसे बिस्तर पर लिटा दिया और उस पर हावी होने लगा. तभी बिजली के झटके की तरह उमा उसे छिटक कर दूर खड़ी हो गई.

‘अभी निकलो यहां से,’ उमा बोल उठी. अनवर हारे हुए शिकारी सा उसे देखता रह गया. उमा बोली, ‘मैं कह रही हूं, तुम अभी जाओ यहां से.’

अनवर न कुछ बोला और न वहां से गया तो उमा ने कहा, ‘मैं यहां किसी तरह का हंगामा नहीं करना चाहती. तुम बस, यहां से चले जाओ.’

अनवर ने अपना रुमाल निकाला और चेहरे पर आए पसीने को पोंछता हुआ कुछ कहे बिना वहां से निकल गया. उमा दरवाजा बंद कर डर से कांप उठी. सारे आंसू गले में अटक कर रह गए. अपने अंदर छिपी इस कमजोरी को उस ने पहली बार इस तरह सामने आते देखा. उसे बहुत मुश्किल से उस रात नींद आई.

फोन की घंटी से उस की नींद खुली. फोन अनवर का था.

‘मैं बहुत बेचैन हूं. मुझे माफ कर दो.’

उमा ने फोन काट कर उस का नंबर ब्लौक कर दिया. फिर दोबारा एक अनजान नंबर से फोन आया. यह भी अनवर की ही आवाज थी.

‘मुझे माफ कर दो उमा. मैं तुम्हारी दोस्ती नहीं खोना चाहता.’

उमा ने फिर फोन काट दिया. वह बहुत डर गई थी. उमा ने सोचा कि उस के वापस जाने में 2 दिन बाकी हैं. वह बेचैन हो गई. किसी तरह वह खुद को संयत कर पाई.

कई महीने बीत गए. वह अपने कामों में इतनी व्यस्त रही कि एक बार भी उसे कुछ याद नहीं आया. हलकी याद भी आई तो यही कि वह जंग जीत गई है.

‘जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग
चंदन विष व्याप्त नहीं, लपटे रहत भुजंग.’

एक दिन अचानक एक फोन आया. उस तरफ अनवर था, ‘सुनो, मेरा फोन मत काटना और न ही ब्लौक करना. मैं तुम्हारे बिना जी नहीं पा रहा है. बताओ न तुम कहां हो? मैं तुम से मिलना चाहता हूं. मैं मर रहा हूं, मुझे बचा लो.’

‘यह किस तरह का पागलपन है. मैं तुम से न तो बात करना चाहती हूं और न ही मिलना चाहती हूं,’ उमा ने साफ कहा.

‘अरे, जाने दो, भाव दिखा रही है. अकेली औरत. शादी क्यों नहीं की, मुझे नहीं पता क्या? नौ सौ चूहे खा कर बिल्ली चली हज को. मजे लेले कर अब मेरे सामने सतीसावित्री बनती हो. तुम्हें क्या चाहिए मैं सब देने को तैयार हूं,’ अनवर अपनी औकात पर उतर आया था.

ऐसा लगा जैसे किसी ने खौलता लावा उमा के कानों में उडे़ल दिया हो. उस ने फोन काट दिया और इस नंबर को भी ब्लौक कर दिया. यह परिणाम बस उस एक पल का था जब वह पहली बार में ही कड़ा कदम न उठा सकी थी.

इस बात को बीते 4 साल हो गए हैं. अनवर का फोन फिर कभी नहीं आया. उमा ने अपना नंबर बदल लिया था. पर आज भी यह सपना कहीं न कहीं घाव रिसता है. दर्द होता है. कहते हैं समय हर घाव भर देता है पर उमा देख रही है कि उस के जख्म रहरह कर टीस उठते हैं.

Winter Special Recipe : स्नैक्स में परोसें गोलगप्पा पकौड़े, बनाने के लिए फौलो करें ये टिप्स

Winter Special Recipe : मार्केट में आपने गोलगप्पे तो काफी खाए होंगे. लेकिन क्या आपने घर पर गोलगप्पे की नई रेसिपी ट्राय की है. गोलगप्पा पकौड़े एक आसान रेसिपी है, जिसे आप अपनी फैमिली के लिए ट्राय कर सकते हैं.

सामग्री

–  10-15 गोलगप्पे

–  3-4 आलू उबले

–  1/4 कप चने उबले

–  1/4 कप गाढ़ा दही

–  2 बड़े चम्मच कसा चीज

–  1 हरीमिर्च

–  1 छोटा चम्मच जीरा

–  1/4 कप सेव बारीक

–  1/4 कप चावल का आटा

–  1 बड़ा चम्मच मैदा

–  1 चुटकी हलदी

–  थोड़ी सी हरी चटनी

–  तेल तलने के लिए

–  नमक स्वादानुसार.

विधि

आलुओं को मसल लें. चने, दही, चीज, जीरा पाउडर, नमक, हरीमिर्च और हरी चटनी को मिला कर अच्छी तरह मिक्स कर लें. चावल का आटा व मैदा मिला कर पकौड़ों के घोल जैसा घोल बना लें. इस में नमक व हलदी मिला कर अच्छी तरह फेंट लें. गोलगप्पों को ऊपर से थोड़ा सा तोड़ कर उन में आलू चने का मिश्रण भरें. फिर इन्हें चावल के आटे के घोल में डुबो कर ऊपर से बारीक सेव लपेट कर तल लें.

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