Travel Destinations For Honeymoon : इस वैडिंग करें हनीमून की प्लानिंग इंडिया से बाहर, जो है पौकेट फ्रैंडली

Travel Destinations For Honeymoon : शादी के बाद सभी कपल्स की इच्छा होती है कि वे एक अच्छी जगह पर जा कर हनीमून को सेलिब्रैट करें, ऐसे में दोनों खूबसूरत जगह पर जाना चाहते हैं, जहां उन्हें एडवेंचर के अलावा घूमनेफिरने और शौपिंग की भी अच्छी जगह मिले. इतना ही नहीं आज के यूथ कमाऊ हैं, इसलिए दोनों की रुचि परिवार से अलग हट कर होती है, जिसे परिवार वाले भी खुशीखुशी समर्थन देते हैं. यही वजह है कि आज के यूथ को इंडिया से बाहर हनीमून पर जाना पसंद है. साथ ही वे कुछ ऐसी जगहों पर जाना चाहते हैं, जो पौकेट फ्रैंडली के साथसाथ सुंदर और मजेदार भी हो.

तो आइए, जानते हैं, कुछ ऐसी ही खास जगहों के नाम, जहां आप सस्ते में हनीमून का आनंद उठा सकते हैं और अपने पार्टनर के साथ एक यादगार मैमोरी क्रिएट कर सकते हैं :

नेपाल

नेपाल के लिए सब से अच्छी बात यह है कि यहां आप ट्रेन या फ्लाइट दोनों से सफर कर सकते हैं, यहां जाने के लिए अधिक देर तक ट्रैवल भी नहीं करना पड़ता. ट्रेन से उतरने के बाद नेपाल बौर्डर तक जाना पड़ता है. फिर वहां से बस और कैब आसानी से मिल जाती है.

यहां जाने के लिए भारतीय लोगों को वीजा की जरूरत नहीं पड़ती. नेपाल हनीमून के लिए बजट फ्रैंडली डैस्टिनेशन है.

यहां ट्रैकिंग के साथ कई एडवेंचर स्पोर्ट्स का भी आनंद लिया जा सकता है. यहां जाने के लिए वीजा की आवश्यकता भले ही न हो, लेकिन भारतीय पासपोर्ट दिखाने की जरूरत पड़ सकती है.

भूटान

शिवालिक की खूबसूरत पहाड़ियों और प्राकृतिक दृश्यों से भरपूर भूटान एक बजट फ्रैंडली हनीमून स्पौट है.

यहां की खूबसूरत मौसम अनायास ही सब का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेता है. यह भारत के करीब है, इसलिए लंबी उड़ान की आवश्यकता नहीं पड़ती और कम बजट में कपल्स यहां हनीमून का आनंद उठा सकते हैं.

भूटान घूमने का सब से अच्छा समय वसंत और शरद ऋतु है. यहां अपने पार्टनर के साथ देखने के लिए बहुत कुछ है. यहां आने के लिए भी वीजा की जरूरत नहीं पड़ती. इंडियन पासपोर्ट के साथ पहचानपत्र को रखना पड़ता है, जिस में आधार कार्ड को नहीं, बल्कि वोटिंग आई कार्ड को मान्यता दी जाती है. यहां घूमने के लिए दोचूला दर्रा, चेले ला, टाइगर्स नेस्ट, बुमथांग की छिपी घाटी, जिग्मे दोरजी राष्ट्रीय उद्यान आदि कई हैं। इस के अलावा भूटान में हाइकिंग का भी आनंद लिया जा सकता है.

श्रीलंका

सीलोन के नाम से जाना जाने वाला श्रीलंका सभी स्वाद और रुचियों वाले पर्यटकों के लिए बेहतरीन अनुभव प्रदान करता है. इस जेम शैप वाले देश का उत्तरी क्षेत्र हरीभरी पहाड़ियों और चाय के बागानों से भरा हुआ है और जैसेजैसे आप दक्षिण की ओर बढ़ते हैं, तो आप का स्वागत गरम और शांत समुद्र तटों के साथसाथ पुराने किलों और वन्यजीव अभयारण्यों से होता है.

2 व्यक्तियों के लिए 7 दिन की यात्रा यहां ऐंजौय करने के लिए काफी होता है. इलेक्ट्रौनिक ट्रैवल औथोराइजेशन (ईटीए) 30 दिनों के लिए वैध होती है. एडम्स पीक, विजया और मिरिसा बीच आदि कई जगह यहां देखने योग्य हैं.

फिलिपींस

फिलीपींस में प्रकृति का सब से बेहतरीन नजारा देखने को मिलता है, जहां 7000 से ज्यादा द्वीप फैले हुए हैं. यहां सफेद रेत वाले समुद्र तट, टर्कोइज सी, सुंदर माउंटेन, राइस फार्म और क्लासिकल वास्तुकला वाली इमारतों के साथ वनस्पतियों और जीवों की भरमार है. यहां आने के लिए सिंगल ऐंट्री वीजा 30 दिनों के लिए वैध होती है. फिलिपींस में भोजन की औसत लागत एक जोड़े के लिए प्रतिदिन ₹1500-2000 है, जबकि आवास का खर्च ₹2500 से 2800 के बीच हो सकता है. यात्रा करने का सब से सही समय नवंबर से अप्रैल है. इस दौरान अधिकतर कपल्स यहां घूमते हुए दिखाई पड़ते हैं.

थाईलैंड

थाईलैंड, जिसे कभीकभी ‘कंट्री औफ स्माइल’ के रूप में जाना जाता है, एक ऐसा परिदृश्य है, जो हर विपरीत परिस्थिति में जीता और सांस लेता है। जहां एक ओर आप को प्राचीन समुद्रतट और विदेशी जंगल मिलेंगे, वहीं दूसरी ओर हरीभरी पहाड़ियां और सुंदर पर्वत मिलते हैं.

यहां आने के लिए 15 दिनों से कम समय के लिए वीजा मिलता है. शहरों में भी जीवंत आधुनिक जीवनशैली और पारंपरिक थाई संस्कृति की झलक देखते ही बनती है.

हनीमून मनाने वालों के लिए स्वर्ग है क्रबी। यहां 130 से अधिक एकांत द्वीप हैं, जिन में सुंदर दृश्य और विचित्र गुफाएं हैं. यदि आप दोनों पार्टी करने के शौकीन हैं, तो कोह समुई जाएं और पूर्णिमा की रात में पार्टियों का आनंद लें, जो भोर तक चलती हैं.

इस के अलावा सुखोथाई जो एक पुराना शहर है, यहां अपने जीवनसाथी के साथ हाथ में हाथ डाल कर शहर के प्राचीन खंडहरों में घूमें और इस के इतिहास और गौरवशाली अतीत का पता लगाएं.

मलयेशिया

मलयेशिया रियल में सुंदर हनीमून डैस्टिनेशन है. यह स्थान भूमध्यरेखीय रैन फौरेस्ट के साथसाथ रिच समुद्री जीवों का भी भंडार है. यहां के इमारतों की कलाकृति देखते ही बनती है, जिसे वहां के मानव कल्चर को प्रदर्शित करती है.

इस के अलावा, यह स्थान एशियाई संस्कृतियों का भी मिश्रण है, जो इस की स्वदेशी ट्राइबल कल्चर के साथ अच्छी तरह से घुलमिल गया है. यहां टूरिस्ट वीजा होता है, जो सिंगल ऐंट्री की इजाजत देती है. यह निशुल्क होता है. यहां घूमने के लिए 7 दिन काफी होता है. यहां के पर्यटन स्थल मलक्का, जो एक प्राचीन शहर है, मलयेशिया के इतिहास की खोज करते हुए एक रोमांटिक नाव की सवारी का आनंद लिया जा सकता है, जो प्राचीन संरचनाओं, कोलोनीयल इमारतों और विरासत भवनों से भरा पड़ा है. किनाबालु नेशनल पार्क में पहाड़ियों पर ट्रैकिंग कर सकते हैं और लगभग 4500 विभिन्न प्रजातियों के जीवों को देख सकते हैं. इस के अलावा कैमरून हाइलैंड्स के हरेभरे चाय बागानों में अपने जीवनसाथी के साथ सच्ची शांति का अनुभव पा सकते हैं.

इंडोनेशिया

इंडोनेशिया में 17,800 द्वीप हैं, जो दक्षिणपूर्व एशिया से ले कर ओशिनिया तक फैले हुए हैं. पर्यटकों की पसंदीदा स्थान बाली द्वीप भी यहीं है, जो एक शांत और प्रतिष्ठित हनीमून स्पौट है. यहां आगमन पर 30 दिनों के लिए वैध वीजा मिलता है. यहां घूमने का सब से अच्छा समय अप्रैल से अक्टूबर है, जहां हनीमून कपल्स की भीड़ लगी रहती है.

यहां के आकर्षक स्थान निकटवर्ती जावा में माउंट ब्रोमो है, जहां धुंध भरे पहाड़ों के बीच समय बिताना एक अच्छा विकल्प है. इस के अलावा बाली में कोई भी समुद्रतट चुन लीजिए और आप अपनी पूरी यात्रा के दौरान उस स्थान का भरपूर आनंद उठा सकते हैं. इस के साथसाथ यहां लाबुआन बाजो, कोमोडो नैशनल पार्क आदि कई दर्शनीय स्थल हैं.

ग्रीस

ग्रीस वह देश है, जहां से पश्चिमी सभ्यता का उद्भव हुआ है. इस का इतिहास अभी भी इस की प्राचीन इमारतों की सीमाओं के भीतर सांस लेता है, जो मुख्य रूप से एथेंस शहर में देखी जाती है. भूमध्य सागर के नीले पानी के सामने सफेद रंग की इमारतों से भरा ऊबड़खाबड़ पहाड़ी परिदृश्य देखने लायक है. यह वह स्थान है, जहां संस्कृति और इतिहास नए युग की दुनिया के साथ मेल खाते हुए हैं. इस की वास्तुकला बहुत ही सुंदर और आकर्षक है.

यहां घूमने के लिए 7 दिन काफी होते हैं. ग्रीस में कुछ सब से रोमांटिक स्थान हैं, जो हनीमून मनाने वालों के लिए एकदम उपयुक्त हैं. एथेंस में एक्रोपोलिस, पार्थेनन आदि जैसे यूनानी सभ्यता के गौरवशाली खंडहरों मे घूमना, इतिहास प्रेमी के लिए आकर्षक होता है. इस के अलावा रोड्स, मायकोनोस आदि कई स्थान हैं,
जहां कपल्स समुद्र तटीय रिजौर्ट्स, सुरम्य समुद्र तटों और उल्लासमय नाइट लाइफ का लुत्फ उठा सकते हैं.

तुर्की

एशिया और यूरोप के 2 कौंटीनेंट में फैला यह वह देश, पूर्वी सभ्यता और पश्चिमी सभ्यता का मिलाजुला रूप है. इस देश की संस्कृति और कलाकृति अद्भुत है। यहां प्राकृतिक सौंदर्य की कोई कमी नहीं है, जिस में देवदार के वृक्षों से ढके पहाड़, सूर्य की किरणों से नहाते प्राचीन समुद्रतट, जीवंत और समृद्ध संस्कृति आदि शामिल हैं.

इस के उत्तर में ब्लैक सी और दक्षिण में भूमध्य सागर भी हैं, जो इस स्थान की सुंदरता को अधिक बढ़ाते हैं. यहां सिंगल ऐंट्री टूरिस्ट वीजा आने पर मिलता है, जो 90 दिनों के लिए वैध होती है. यहां के आकर्षण पामुक्काले है, जहां थरमल गरम झरनों के पास एक बेहद रोमांटिक विश्राम का आनंद लिया जा सकता है. लव वैली यहां का सब से प्रिय स्थल है, जहां प्रकृति की कला हर कोने से चट्टानों और खूबसूरत फूलों के माध्यम से जीवंत हो उठती है, जिसे कपल्स बहुत पसंद करते हैं. इस के अलावा डेरिन्कुयु शहर, कप्पाडोसिया आदि कई स्थान देखने योग्य हैं.

मौरीशस

हिंद महासागर के शांत टर्कोइज कलर के पानी में बसा एक विचित्र द्वीप है, जो मेडागास्कर के पूर्व में स्थित है. यह पूर्वी अफ्रीका के सब से बेहतरीन समुद्रतट स्थलों में से एक है. शांत और आरामदायक वातावरण की तलाश करने वाले हनीमून कपल के लिए एक आदर्श स्थान है. यहां आने पर 60 दिनों के लिए वीजा मिलता है और यह फ्री भी होता है. यहां आकर्षण के कई स्थल हैं, जिसे सभी बहुत पसंद करते हैं. यहां का ब्लैक रिवर गौर्जेस राष्ट्रीय उद्यान, ले मोर्ने ब्रैबेंट, ब्लू बे, रोचेस्टर फौल्स आदि कई रमणीय स्थल हैं.

इस प्रकार अगर आप इंडिया से बाहर हनीमून का प्लान कर रहे हैं और एक स्मूथ जर्नी चाहते हैं, तो कुछ सुझाव का पालन अवश्य करें :

  • पासपोर्ट, वीजा, यात्रा बीमा, हवाई टिकट और होटल की बुकिंग पहले से कर लें.
  • स्थानीय मुद्रा साथ रखें और सुनिश्चित करें कि आप के क्रेडिट या डेबिट कार्ड यात्रा के लिए तैयार हों.
  • एक बेसिक मैडिकल किट, पर्चे की प्रतियों के साथ दवाएं, सनस्क्रीन, इंसेक्ट रिपलेंट आदि अपने साथ रख लें.
  • अपने गंतव्य स्थान की जलवायु और सांस्कृति की जांच औनलाइन कर लें, ताकि आप अपने साथ सही आउटफिट लें सकें.
  • कैमरा, चार्जर, अंतर्राष्ट्रीय पावर एडौप्टर, पोर्टेबल पावर बैंक और अन्य आवश्यक सामान साथ ले जाना न भूलें.
  • देश से बाहर किसी स्थान तक पहुंचने के लिए मानचित्र या विश्वसनीय जीपीएस ऐप के साथसाथ एक बुनियादी भाषा गाइड या अनुवाद ऐप भी डाउनलोड कर लें, ताकि आप को नई जगह पर किसी प्रकार की समस्या न हो और आप की यात्रा यादगार बनें.

Online Hindi Story- अधूरे प्यार की टीस: क्यों बिखर गई सीमा की गृहस्थी

आज सुबह राकेशजी की मुसकराहट में डा. खन्ना को नए जोश, ताजगी और खुशी के भाव नजर आए तो उन्होंने हंसते हुए पूछा, ‘‘लगता है, अमेरिका से आप का बेटा और वाइफ आ गए हैं, मिस्टर राकेश?’’

‘‘वाइफ तो नहीं आ पाई पर बेटा रवि जरूर पहुंच गया है. अभी थोड़ी देर में यहां आता ही होगा,’’ राकेशजी की आवाज में प्रसन्नता के भाव झलक रहे थे.

‘‘आप की वाइफ को भी आना चाहिए था. बीमारी में जैसी देखभाल लाइफपार्टनर करता है वैसी कोई दूसरा नहीं कर सकता.’’

‘‘यू आर राइट, डाक्टर, पर सीमा ने हमारे पोते की देखभाल करने के लिए अमेरिका में रुकना ज्यादा जरूरी समझा होगा.’’

‘‘कितना बड़ा हो गया है आप का पोता?’’

‘‘अभी 10 महीने का है.’’

‘‘आप की वाइफ कब से अमेरिका में हैं?’’

‘‘बहू की डिलीवरी के 2 महीने पहले वह चली गई थी.’’

‘‘यानी कि वे साल भर से आप के साथ नहीं हैं. हार्ट पेशेंट अगर अपने जीवनसाथी से यों दूर और अकेला रहेगा तो उस की तबीयत कैसे सुधरेगी? मैं आप के बेटे से इस बारे में बात करूंगा. आप की पत्नी को इस वक्त आप के पास होना चाहिए,’’ अपनी राय संजीदा लहजे में जाहिर करने के बाद डा. खन्ना ने राकेशजी का चैकअप करना शुरू कर दिया.

डाक्टर के जाने से पहले ही नीरज राकेशजी के लिए खाना ले कर आ गया.

‘‘तुम हमेशा सही समय से यहां पहुंच जाते हो, यंग मैन. आज क्या बना कर भेजा है अंजुजी ने?’’ डा. खन्ना ने प्यार से रवि की कमर थपथपा कर पूछा.

‘‘घीया की सब्जी, चपाती और सलाद भेजा है मम्मी ने,’’ नीरज ने आदरपूर्ण लहजे में जवाब दिया.

‘‘गुड, इन्हें तलाभुना खाना नहीं देना है.’’

‘‘जी, डाक्टर साहब.’’

‘‘आज तुम्हारे अंकल काफी खुश दिख रहे हैं पर इन्हें ज्यादा बोलने मत देना.’’

‘‘ठीक है, डाक्टर साहब.’’

‘‘मैं चलता हूं, मिस्टर राकेश. आप की तबीयत में अच्छा सुधार हो रहा है.’’

‘‘थैंक यू, डा. खन्ना. गुड डे.’’

डाक्टर के जाने के बाद हाथ में पकड़ा टिफिनबौक्स साइड टेबल पर रखने के बाद नीरज ने राकेशजी के पैर छू कर उन का आशीर्वाद पाया. फिर वह उन की तबीयत के बारे में सवाल पूछने लगा. नीरज के हावभाव से साफ जाहिर हो रहा था कि वह राकेशजी को बहुत मानसम्मान देता था.

करीब 10 मिनट बाद राकेशजी का बेटा रवि भी वहां आ पहुंचा. नीरज को अपने पापा के पास बैठा देख कर उस की आंखों में खिं चाव के भाव पैदा हो गए.

‘‘हाय, डैड,’’ नीरज की उपेक्षा करते हुए रवि ने अपने पिता के पैर छुए और फिर उन के पास बैठ गया.

‘‘कैसे हालचाल हैं, रवि?’’ राकेशजी ने बेटे के सिर पर प्यार से हाथ रख कर उसे आशीर्वाद दिया.

‘‘फाइन, डैड. आप की तबीयत के बारे में डाक्टर क्या कहते हैं?’’

‘‘बाईपास सर्जरी की सलाह दे रहे हैं.’’

‘‘उन की सलाह तो आप को माननी होगी, डैड. अपोलो अस्पताल में बाईपास करवा लेते हैं.’’

‘‘पर, मुझे आपरेशन के नाम से डर लगता है.’’

‘‘इस में डरने वाली क्या बात है, पापा? जो काम होना जरूरी है, उस का सामना करने में डर कैसा?’’

‘‘तुम कितने दिन रुकने का कार्यक्रम बना कर आए हो?’’ राकेशजी ने विषय परिवर्तन करते हुए पूछा.

‘‘वन वीक, डैड. इतनी छुट्टियां भी बड़ी मुश्किल से मिली हैं.’’

‘‘अगर मैं ने आपरेशन कराया तब तुम तो उस वक्त यहां नहीं रह पाओगे.’’

‘‘डैड, अंजु आंटी और नीरज के होते हुए आप को अपनी देखभाल के बारे में चिंता करने की क्या जरूरत है? मम्मी और मेरी कमी को ये दोनों पूरा कर देंगे, डैड,’’ रवि के स्वर में मौजूद कटाक्ष के भाव राकेशजी ने साफ पकड़ लिए थे.

‘‘पिछले 5 दिन से इन दोनों ने ही मेरी सेवा में रातदिन एक किया हुआ है, रवि. इन का यह एहसान मैं कभी नहीं उतार सकूंगा,’’ बेटे की आवाज के तीखेपन को नजरअंदाज कर राकेशजी एकदम से भावुक हो उठे.

‘‘आप के एहसान भी तो ये दोनों कभी नहीं उतार पाएंगे, डैड. आप ने कब इन की सहायता के लिए पैसा खर्च करने से हाथ खींचा है. क्या मैं गलत कह रहा हूं, नीरज?’’

‘‘नहीं, रवि भैया. आज मैं इंजीनियर बना हूं तो इन के आशीर्वाद और इन से मिली आर्थिक सहायता से. मां के पास कहां पैसे थे मुझे पढ़ाने के लिए? सचमुच अंकल के एहसानों का कर्ज हम मांबेटे कभी नहीं उतार पाएंगे,’’ नीरज ने यह जवाब राकेशजी की आंखों में श्रद्धा से झांकते हुए दिया और यह तथ्य रवि की नजरों से छिपा नहीं रहा था.

‘‘पापा, अब तो आप शांत मन से आपरेशन के लिए ‘हां’ कह दीजिए. मैं डाक्टर से मिल कर आता हूं,’’ व्यंग्य भरी मुसकान अपने होंठों पर सजाए रवि कमरे से बाहर चला गया था.

‘‘अब तुम भी जाओ, नीरज, नहीं तो तुम्हें आफिस पहुंचने में देर हो जाएगी.’’

राकेशजी की इजाजत पा कर नीरज भी जाने को उठ खड़ा हुआ था.

‘‘आप मन में किसी तरह की टेंशन न लाना, अंकल. मैं ने रवि भैया की बातों का कभी बुरा नहीं माना है,’’ राकेशजी का हाथ भावुक अंदाज में दबा कर नीरज भी बाहर चला गया.

नीरज के चले जाने के बाद राकेशजी ने थके से अंदाज में आंखें मूंद लीं. कुछ ही देर बाद अतीत की यादें उन के स्मृति पटल पर उभरने लगी थीं, लेकिन आज इतना फर्क जरूर था कि ये यादें उन को परेशान, उदास या दुखी नहीं कर रही थीं.

अपनी पत्नी सीमा के साथ राकेशजी की कभी ढंग से नहीं निभी थी. पहले महीने से ही उन दोनों के बीच झगड़े होने लगे थे. झगड़ने का नया कारण तलाशने में सीमा को कोई परेशानी नहीं होती थी.

शादी के 2 महीने बाद ही वह ससुराल से अलग होना चाहती थी. पहले साल उन के बीच झगड़े का मुख्य कारण यही रहा. रातदिन के क्लेश से तंग आ कर राकेश ने किराए का मकान ले लिया था.

अलग होने के बाद भी सीमा ने लड़ाईझगड़े बंद नहीं किए थे. फिर उस ने मकान व दुकान के हिस्से कराने की रट लगा ली थी. राकेश अपने दोनों छोटे भाइयों के सामने सीमा की यह मांग रखने का साहस कभी अपने अंदर पैदा नहीं कर सके. इस कारण पतिपत्नी के बीच आएदिन खूब क्लेश होता था.

3 बार तो सीमा ने पुलिस भी बुला ली थी. जब उस का दिल करता वह लड़झगड़ कर मायके चली जाती थी. गुस्से से पागल हो कर वह मारपीट भी करने लगती थी. उन के बीच होने वाले लड़ाईझगड़े का मजा पूरी कालोनी लेती थी. राकेश को शर्म के मारे सिर झुका कर कालोनी में चलना पड़ता था.

फिर एक ऐसी घटना घटी जिस ने सीमा को रातदिन कलह करने का मजबूत बहाना उपलब्ध करा दिया.

उन की शादी के करीब 5 साल बाद राकेश का सब से पक्का दोस्त संजय सड़क दुर्घटना का शिकार बन इस दुनिया से असमय चला गया था. अपनी पत्नी अंजु, 3 साल के बेटे नीरज की देखभाल की जिम्मेदारी दम तोड़ने से पहले संजय ने राकेश के कंधों पर डाल दी थी.

राकेशजी ने अपने दोस्त के साथ किए वादे को उम्र भर निभाने का संकल्प मन ही मन कर लिया था. लेकिन सीमा को यह बिलकुल अच्छा नहीं लगता था कि वे अपने दोस्त की विधवा व उस के बेटे की देखभाल के लिए समय या पैसा खर्च करें. जब राकेश ने इस मामले में उस की नहीं सुनी तो सीमा ने अंजु व अपने पति के रिश्ते को बदनाम करना शुरू कर दिया था.

इस कारण राकेश के दिल में अपनी पत्नी के लिए बहुत ज्यादा नफरत बैठ गई थी. उन्होंने इस गलती के लिए सीमा को कभी माफ नहीं किया.

सीमा अपने बेटे व बेटी की नजरों में भी उन के पिता की छवि खराब करवाने में सफल रही थी. राकेश ने इन के लिए सबकुछ किया पर अपने परिवारजनों की नजरों में उन्हें कभी अपने लिए मानसम्मान व प्यार नहीं दिखा था.

अपनी जिंदगी के अहम फैसले उन के दोनों बच्चों ने कभी उन के साथ सलाह कर के नहीं लिए थे. जवान होने के बाद वे अपने पिता को अपनी मां की खुशियां छीनने वाला खलनायक मानने लगे थे. उन की ऐसी सोच बनाने में सीमा का उन्हें राकेश के खिलाफ लगातार भड़काना महत्त्वपूर्ण कारण रहा था.

उन की बेटी रिया ने अपना जीवनसाथी भी खुद ढूंढ़ा था. हीरो की तरह हमेशा सजासंवरा रहने वाला उस की पसंद का लड़का कपिल, राकेश को कभी नहीं जंचा.

कपिल के बारे में उन का अंदाजा सही निकला था. वह एक क्रूर स्वभाव वाला अहंकारी इनसान था. रिया अपनी विवाहित जिंदगी में खुश और सुखी नहीं थी. सीमा अपनी बेटी के ससुराल वालों को लगातार बहुतकुछ देने के बावजूद अपनी बेटी की खुशियां सुनिश्चित नहीं कर सकी थी.

शादी करने के लिए रवि ने भी अपनी पसंद की लड़की चुनी थी. उस ने विदेश में बस जाने का फैसला अपनी ससुराल वालों के कहने में आ कर किया था.

राकेश को इस बात से बहुत पीड़ा होती थी कि उन के बेटाबेटी ने कभी उन की भावनाओं को समझने की कोशिश नहीं की. वे अपनी मां के बहकावे में आ कर धीरेधीरे उन से दूर होते चले गए थे.

इन परिस्थितियों में अंजु और उस के बेटे के प्रति उन का झुकाव लगातार बढ़ता गया. उन के घर उन्हें मानसम्मान मिलता था. वहां उन्हें हमेशा यह महसूस होता कि उन दोनों को उन के सुखदुख की चिंता रहती है.

इस में कोई शक नहीं कि उन्होंने नीरज की इंजीनियरिंग की पढ़ाई का लगभग पूरा खर्च उठाया था. सीमा ने इस बात के पीछे कई बार कलहक्लेश किया पर उन्होंने उस के दबाव में आ कर इस जिम्मेदारी से हाथ नहीं खींचा था. वह अंजु से उन के मिलने पर रोक नहीं लगा सकी थी क्योंकि उसे कभी कोई गलत तरह का ठोस सुबूत इन के खिलाफ नहीं मिला था.

राकेशजी को पहला दिल का दौरा 3 साल पहले और दूसरा 5 दिन पहले पड़ा था. डाक्टरों ने पहले दौरे के बाद ही बाईपास सर्जरी करा लेने की सलाह दी थी. अब दूसरे दौरे के बाद आपरेशन न कराना उन की जान के लिए खतरनाक साबित होगा, ऐसी चेतावनी उन्होंने साफ शब्दों में राकेशजी को दे दी थी.

पिछले 5 दिनों में उन के अंदर जीने का उत्साह मर सा गया था. वे खुद को बहुत अकेला महसूस कर रहे थे. उन्हें बारबार लगता कि उन का सारा जीवन बेकार चला गया है.

मोबाइल फोन की घंटी बजी तो राकेशजी यादों की दुनिया से बाहर निकल आए थे. उन की पत्नी सीमा ने अमेरिका से फोन किया था.

‘‘क्या रवि ठीकठाक पहुंच गया है?’’ सीमा ने उन का हालचाल पूछने के बजाय अपने बेटे का हालचाल पूछा तो राकेशजी के होंठों पर उदास सी मुसकान उभर आई.

‘‘हां, वह बिलकुल ठीक है,’’ उन्होंने अपनी आवाज को सहज रखते हुए जवाब दिया.

‘‘डाक्टर तुम्हें कब छुट्टी देने की बात कह रहे हैं?’’

‘‘अभी पता नहीं कि छुट्टी कब तक मिलेगी. डाक्टर बाईपास सर्जरी कराने के लिए जोर डाल रहे हैं.’’

‘‘मैं तो अभी इंडिया नहीं आ सकती हूं. नन्हे रितेश की तबीयत ठीक नहीं चल रही है. तुम अपनी देखभाल के लिए एक नर्स का इंतजाम जरूर कर लेना.’’

‘‘ठीक है.’’

‘‘अपने अकाउंट में भी उस का नाम जुड़वा दो.’’

‘‘ठीक है.’’

‘‘मैं तो कहती हूं कि आपरेशन कराने के बाद तुम भी यहीं रहने आ जाओ. वहां अकेले कब तक अपनी बेकद्री कराते रहोगे?’’

‘‘तुम मेरी फिक्र न करो और अपना ध्यान रखो.’’

‘‘मेरी तुम ने आज तक किसी मामले में सुनी है, जो अब सुनोगे. वकील को जल्दी बुला लेना. रवि के यहां वापस लौटने से पहले दोनों काम हो जाने…’’

राकेशजी को अचानक अपनी पत्नी की आवाज को सुनना बहुत बड़ा बोझ लगने लगा तो उन्होंने झटके से संबंध काट कर फोन का स्विच औफ कर दिया. कल रात को अपनेआप से किया यह वादा उन्हें याद नहीं रहा कि वे अब अतीत को याद कर के अपने मन को परेशान व दुखी करना बंद कर देंगे.

‘इस औरत के कारण मेरी जिंदगी तबाह हो गई.’ यह एक वाक्य लगातार उन के दिमाग में गूंज कर उन की मानसिक शांति भंग किए जा रहा था.

कुछ देर बाद जब रवि ने उन के कमरे में कदम रखा तब राकेशजी के चेहरे पर तनाव के भाव साफ नजर आ रहे थे.

‘‘इतनी टेंशन में किसलिए नजर आ रहे हो, पापा?’’ रवि ने माथे में बल डाल कर सवाल पूछा.

‘‘तुम्हारी मम्मी का फोन आया था,’’ राकेशजी का स्वर नाराजगी से भरा था.

‘‘ऐसा क्या कह दिया उन्होंने जो आप इतने नाखुश दिख रहे हो?’’

‘‘मकान तुम्हारे नाम करने और मेरे अकाउंट में तुम्हारा नाम लिखवाने की बात कह रही थी.’’

‘‘क्या आप को उन के ये दोनों सुझाव पसंद नहीं आए हैं?’’

‘‘तुम्हारी मां का बात करने का ढंग कभी ठीक नहीं रहा, रवि.’’

‘‘पापा, मां ने मेरे साथ इन दोनों बातों की चर्चा चलने से पहले की थी. इस मामले में मैं आप को अपनी राय बताऊं?’’

‘‘बताओ.’’

‘‘पापा, अगर आप अपना मकान अंजु आंटी और नीरज को देना चाहते हैं तो मेरी तरफ से ऐसा कर सकते हैं. मैं अच्छाखासा कमा रहा हूं और मौम की भी यहां वापस लौटने में बिलकुल दिलचस्पी नहीं है.’’

‘‘क्या तुम को लगता है कि अंजु की इस मकान को लेने में कोई दिलचस्पी होगी?’’ कुछ देर खामोश रहने के बाद राकेशजी ने गंभीर लहजे में बेटे से सवाल किया.

‘‘क्यों नहीं होगी, डैड? इस वक्त हमारे मकान की कीमत 70-80 लाख तो होगी. इतनी बड़ी रकम मुफ्त में किसी को मिल रही हो तो कोई क्यों छोड़ेगा?’’

‘‘मुझे यह और समझा दो कि मैं इतनी बड़ी रकम मुफ्त में अंजु को क्यों दूं?’’

‘‘पापा, आप मुझे अब बच्चा मत समझो. अपनी मिस्टे्रस को कोई इनसान क्यों गिफ्ट और कैश आदि देता है.’’

‘‘क्यों देता है?’’

‘‘रिलेशनशिप को बनाए रखने के लिए, डैड. अगर वह ऐसा न करे तो क्या उस की मिस्टे्रस उसे छोड़ क र किसी दूसरे की नहीं हो जाएगी.’’

‘‘अंजु मेरी मिस्टे्रस कभी नहीं रही है, रवि,’’ राकेशजी ने गहरी सांस छोड़ कर जवाब दिया, ‘‘पर इस तथ्य को तुम मांबेटा कभी सच नहीं मानोगे. मकान उस के नाम करने की बात उठा कर मैं उसे अपमानित करने की नासमझी कभी नहीं दिखाऊंगा. नीरज की पढ़ाई पर मैं ने जो खर्च किया, अब नौकरी लगने के बाद वह उस कर्जे को चुकाने की बात दसियों बार मुझ से कह…’’

‘‘पापा, मक्कार लोगों के ऐसे झूठे आश्वासनों को मुझे मत सुनाओ, प्लीज,’’ रवि ने उन्हें चिढ़े लहजे में टोक दिया, ‘‘अंजु आंटी बहुत चालाक और चरित्रहीन औरत हैं. उन्होंने आप को अपने रूपजाल में फंसा कर मम्मी, रिया और मुझ से दूर कर…’’

‘‘तुम आज मेरे मन में सालों से दबी कुछ बातें ध्यान से सुन लो, रवि,’’ इस बार राकेशजी ने उसे सख्त लहजे में टोक दिया, ‘‘मैं ने अपने परिवार के प्रति अपनी सारी जिम्मेदारियां बड़ी ईमानदारी से पूरी की हैं पर ऐसा करने के बदले में तुम्हारी मां से मुझे हमेशा अपमान की पीड़ा और अवहेलना के जख्म ही मिले.

‘‘रिया और तुम भी अपनी मां के बहकावे में आ कर हमेशा मेरे खिलाफ रहे. तुम दोनों को भी उस ने अपनी तरह स्वार्थी और रूखा बना दिया. तुम कल्पना भी नहीं कर सकते कि तुम सब के गलत और अन्यायपूर्ण व्यवहार के चलते मैं ने रातरात भर जाग कर कितने आंसू बहाए हैं.’’

‘‘पापा, अंजु आंटी के साथ अपने अवैध प्रेम संबंध को सही ठहराने के लिए हमें गलत साबित करने की आप की कोशिश बिलकुल बेमानी है,’’ रवि का चेहरा गुस्से से लाल हो उठा था.

‘‘मेरा हर एक शब्द सच है, रवि,’’ राकेशजी जज्बाती हो कर ऊंची आवाज में बोलने लगे, ‘‘तुम तीनों मतलबी इनसानों ने मुझे कभी अपना नहीं समझा. दूसरी तरफ अंजु और नीरज ने मेरे एहसानों का बदला मुझे हमेशा भरपूर मानसम्मान दे कर चुकाया है. इन दोनों ने मेरे दिल को बुरी तरह टूटने से…मुझे अवसाद का मरीज बनने से बचाए रखा.

‘‘जब तुम दोनों छोटे थे तब हजारों बार मैं ने तुम्हारी मां को तलाक देने की बात सोची होगी पर तुम दोनों बच्चों के हित को ध्यान में रख कर मैं अपनेआप को रातदिन की मानसिक यंत्रणा से सदा के लिए मुक्ति दिलाने वाला यह निर्णय कभी नहीं ले पाया.

‘‘आज मैं अपने अतीत पर नजर डालता हूं तो तुम्हारी क्रूर मां से तलाक न लेने का फैसला करने की पीड़ा बड़े जोर से मेरे मन को दुखाती है. तुम दोनों बच्चों के मोह में मुझे नहीं फंसना था…भविष्य में झांक कर मुझे तुम सब के स्वार्थीपन की झलक देख लेनी चाहिए थी…मुझे तलाक ले कर रातदिन के कलह, लड़ाईझगड़ों और तनाव से मुक्त हो जाना चाहिए था.

‘‘उस स्थिति में अंजु और नीरज की देखभाल करना मेरी सिर्फ जिम्मेदारी न रह कर मेरे जीवन में भरपूर खुशियां भरने का अहम कारण बन जाता. आज नीरज की आंखों में मुझे अपने लिए मानसम्मान के साथसाथ प्यार भी नजर आता. अंजु को वैधव्य की नीरसता और अकेलेपन से छुटकारा मिलता और वह मेरे जीवन में प्रेम की न जाने कितनी मिठास भर…’’

राकेशजी आगे नहीं बोल सके क्योंकि अचानक छाती में तेज दर्द उठने के कारण उन की सांसें उखड़ गई थीं.

रवि को यह अंदाजा लगाने में देर नहीं लगी कि उस के पिता को फिर से दिल का दौरा पड़ा था. वह डाक्टर को बुलाने के लिए कमरे से बाहर की तरफ भागता हुआ चला गया.

राकेशजी ने अपने दिल में दबी जो भी बातें अपने बेटे रवि से कही थीं, उन्हें बाहर गलियारे में दरवाजे के पास खड़ी अंजु ने भी सुना था. रवि को घबराए अंदाज में डाक्टर के कक्ष की तरफ जाते देख वह डरी सी राकेशजी के कमरे में प्रवेश कर गई.

राकेशजी के चेहरे पर गहन पीड़ा के भाव देख कर वह रो पड़ी. उन्हें सांस लेने में कम कष्ट हो, इसलिए आगे बढ़ कर उन की छाती मसलने लगी थी.

‘‘सब ठीक हो जाएगा…आप हिम्मत रखो…अभी डाक्टर आ कर सब संभाल लेंगे…’’ अंजु रोंआसी आवाज में बारबार उन का हौसला बढ़ाने लगी.

राकेशजी ने अंजु का हाथ पकड़ कर अपने हाथों में ले लिया और अटकती आवाज में कठिनाई से बोले, ‘‘तुम्हारी और अपनी जिंदगी को खुशहाल बनाने से मैं जो चूक गया, उस का मुझे बहुत अफसोस है…नीरज का और अपना ध्यान रखना…अलविदा, माई ल…ल…’’

जिम्मेदारियों व उत्तरदायित्वों के समक्ष अपने दिल की खुशियों व मन की इच्छाओं की सदा बलि चढ़ाने वाले राकेशजी, अंजु के लिए अपने दिल का प्रेम दर्शाने वाला ‘लव’ शब्द इस पल भी अधूरा छोड़ कर इस दुनिया से सदा के लिए विदा हो गए थे.

Open Hairstyle के साथ वैडिंग को बनाएं खास, फौलो करें ये स्टाइल

अभिनेत्री आलिया भट्ट ने अपने शादी के दौरान ओपन हेयरस्टाइल से सब को मोहित कर दिया था। उन्होंने खुले बालों के साथ माथे पर एक बड़ी मांग टीका पहनी थी, जिसे सभी ने पसंद किया, क्योंकि आलिया अपनी शादी में हेयर को एक अलग लुक देना चाहती थीं. इतना ही नहीं, आलिया अधिकतर फंक्शन में खुले बालों के साथ शामिल होती हैं, क्योंकि उस के बाल अधिक घने और बहुत अधिक लंबे नहीं हैं.

कभी ऐसा समय था, जब लड़कियों के केश घने और लंबे हुआ करते थे, जिस से उन की शादियों में तरहतरह के जुड़े बनाने का फैशन रहा. समय के साथसाथ लाइफस्टाइल में बदलाव की वजह से लड़कियों के लिए केशों का ध्यान रख पाना मुश्किल होने लगा, जिस से उन के हेयर कम होते गए और जुड़ा बनाने के लिए आर्टिफिशियल बन का प्रयोग होने लगा, जो कुछ सालों तक प्रचलित रहा.

आज की लड़कियों ने इस से हट कर अपना स्टाइल क्रीऐट किया है, जिस में उन्होंने ओपन हेयरस्टाइल को अधिक प्रमुखता दी है, जो उन के लिए ‘हैसल फ्री है. उन्हें जुड़ा चोटी या बंस हैवी लगने लगे हैं. आजकल बाजारों में भी कई तरह के प्रोडक्टस और ऐक्सेसरीज मिलते हैं, जिस का प्रयोग कर खुले बालों को अलगअलग स्टाइल दे सकती हैं, जो काफी आकर्षक लग सकती हैं और शादी की पार्टी का आनंद उठा सकती हैं. कुछ स्टाइल निम्न हैं :

लहरें और पोनीटेल

जिन के केश लेयर्ड हैं, उन्हें लहरों को थोड़ा और बढ़ाने की जरूरत है और जिन के बाल लंबे व सीधे हैं, वे इन फैले हुए लहरदार कर्ल को पाने के लिए कर्लिंग आयरन का उपयोग कर के ऐसा कर सकती हैं.

माथे के क्षेत्र से बालों को पीछे खींचें और अधिक साफसुथरे लुक के लिए इसे एक साधारण गांठ में बांध लें.

खुले बालों की स्टाइल

डिजाइनर सब्यसाची ने खुले बालों के स्टाइल को मशहूर बनाया और अब दुलहनें अपनी शादी की साड़ियों के लहंगे से मेल खाने के लिए इस स्लीक हेयरस्टाइल को अपनाना पसंद करती हैं. इस लुक को पाने के लिए आप को बालों के हर स्ट्रैंड को व्यवस्थित करने के लिए स्लीक बैंड हेयर स्टिक में निवेश करना चाहिए, जिस में बेबी हेयर भी शामिल है.

पूरे समारोह के दौरान बालों को व्यवस्थित रखने के लिए बीच में पार्टिंग और सैटिंग स्प्रे जरूरी है.

कर्ल हेयरस्टाइल

एक आसान ओपन हेयर कर्ल हेयरस्टाइल है, जिसे आप खुद भी कर सकती हैं। अपने सिर के ऊपरी और साइड वाले हिस्से से बाल इकट्ठा करें और उन्हें एक साधारण गांठ, डाउन ब्रैड में बांध लें.  बालों के बचे हुए निचले हिस्से के लिए सौफ्ट कर्ल करें. शादी के लिए तैयार हेयरस्टाइल के लिए यू पिन के साथ मोती लगा कर लुक को पूरा किया जा सकता है.

फ्रेंच ब्रेड के साथ खुले व सीधे बाल प्राकृतिक रूप से सीधे और लहराते बालों में स्टाइल जोड़ना चाहते हैं तो यह हेयरस्टाइल तुरंत किया जा सकता है. इस में बालों के बीच के हिस्से को लें और उसे फ्रेंच स्टाइल में तब तक बांधें जब तक कि क्राउन एरिया पीछे न आ जाए और फिर टिप तक नियमित चोटी बनाना जारी रखें. कंघी करें और अपने सभी बचे हुए बालों को पीछे की तरफ इकट्ठा कर लें.

ताजा फूलों के साथ खुले बाल हलदी की सेरेमनी पर ताजे फूलों से खुले केशों को सजाया जा सकता है. इस में फूल वाले से मोगरा, बेबीज ब्रीथ और और्किड के सब से ताजा फूलों को लें, जिन्हें आप अपने बालों की लंबाई पर फूलों की माला की तरह चिपका सकते हैं. इतना ही नहीं, खुले बालों पर गजरा, पिन से लगाने पर दिखने में सुंदर लगते हैं.

मरमेड ब्रेड विद पर्ल चेंस

लहंगे के साथ इस तरह के हेयरस्टाइल काफी सुंदर दिखते हैं. सीधे केश या नरम कर्ल के साथ मरमेड स्टाइल की चोटी के साथ सभी साइड बालों को पीछे की तरफ बांधना पड़ता है, जो केशों को व्यवस्थित रखेगा। इससे संगीत के लिए बौलीवुड गानों पर दिल खोल कर आप नाच सकती हैं. दुलहन की तरह दिखने के लिए बालों की लंबाई तक मोतियों की लंबी लटें जोड़ें.

अरबी दुलहन के गेटअप में केशविन्यास

शादी के लहंगे से मेल खाते हुए हेयरस्टाइल के रूप में सब से सौफ्ट वैवी हेयरस्टाइल को अरेबियन नाइट्स मेकओवर कहते है. इस में केशों को ढेर सारे मूस में भिगो दें, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि लहरें पूरी रात बरकरार रहें. इस कोमल लुक को पूरा करने के लिए माथे के बीच में एक नाजुक हीरे का मांग टीका लगाएं.

अधिक छोटे बालों के लिए खुले बालों का हेयरस्टाइल

शादी के लहंगे के साथ अच्छा लगने वाला ओपन हेयर हेयरस्टाइल बनाने के लिए ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं है. स्लीक हेयर लुक कभी भी फैशन से बाहर नहीं होता है और अगर आप अपने पाउडर और पेस्टल लहंगे के लिए एक सूक्ष्म मेकअप और हेयर लुक बनाए रखना चाहते हैं, तो अपने बालों को ट्रिम करवाएं, सीधा करें और बीच से अलग कर लें. लुक को पूरा करने के लिए स्मोकी आई मेकअप और पेस्टल चोकर सैट चुनें.

क्रिस्टल से सजा हेयरबैंड के साथ ओपन हेयरस्टाइल

ओपन हेयरस्टाइल को तैयार होने में ज्यादा समय नहीं लगता। जो दुलहनें अपने बालों को स्टाइल करने के लिए लंबे समय तक नहीं बैठ सकती हैं, वे अपने बालों को पार्टी के लिए तैयार करने के लिए एक ज्वैलरी हेयरबैंड खरीद सकती हैं. अपने बालों के सामने वाले हिस्से को बीच से अलग कर के स्टाइल कर सकती हैं. बाकी बालों को पीछे की तरफ कंघी कर के रखें और इस ओपन हेयर हेयरस्टाइल लुक को पूरा करने के लिए अपने हेडबैंड को क्राउन एरिया के ठीक ऊपर रखें.

साइड स्वेप्ट ओपन हेयरस्टाइल

छोटे बालों के लिए साइड स्वेप्ट ओपन हेयरस्टाइल दुल्हन की साड़ी के साथ बहुत अच्छी लगती है, खासकर जब आप अपनी सगाई समारोह के लिए तैयार हो रही हों. इस से चेहरा कोमल दिखता है और आप की साड़ी अधिक सुंदर दिखती है.

अच्छी चमक के लिए, आप साइड स्वेप्ट बालों में क्रिस्टल जड़ित हेयर ऐक्सेसरीज लगा सकती हैं. अपने मेकअप और गहनों को कम से कम रखें और इस लुक की सौफ्ट वेविंग को बेहतर ढंग से संतुलित करने के लिए अपनी साड़ी को सजाएं.

Best Family Drama- उपेक्षा : कैसे टूटा अनुभा का भ्रम?

हमेशा सहेलियों की तरह रहने वाली मां और अनीषा चाची का व्यवहार अनुभा को आज पहली बार असहज लगा. अनीषा चाची कुछ परेशान लग रही थीं. मां के बहुत पूछने पर उन्होंने हिचकते हुए बताया, ‘‘मेरा चचेरा भाई सलिल यहां ट्रेनिंग पर आ रहा है शीतल भाभी. रहेगा तो कंपनी के गैस्टहाउस में, लेकिन छुट्टी के रोज तो आया ही करेगा.’’

‘‘नहीं आएगा तो गाड़ी भेज कर बुला लिया करेंगे,’’ शीतल उत्साह से बोली, ‘‘इस में परेशान होने की क्या बात है?’’

‘‘परेशान होने वाली बात तो है शीतल भाभी. मम्मी कहती हैं कि तेरे घर में जवान लड़की है, फिर उस की सहेलियां भी आतीजाती होंगी. ऐसे में सलिल का तेरे घर आनाजाना सही नहीं होगा.’’

‘‘उसे आने से रोकना सही होगा?’’

‘‘तभी तो परेशान हूं भाभी, सलिल को समझाऊंगी कि वह निक्की और गोलू का ही नहीं अनुभा और अजय का भी मामा है.’’

‘‘वह तो है ही, लेकिन आजकल के बच्चे ये सब नहीं मानते,’’ शीतल का स्वर चिंतित था.

‘‘इसीलिए जब आया करेगा तो अपने कमरे में ही बैठाया करूंगी.’’

‘‘जैसा तू ठीक समझे. बस न तो सलिल को बुरा लगे और न कोई ऊंचनीच हो,’’ शीतल के स्वर में अभी भी चिंता थी.

अनुभा ने मां और चाची को इतना परेशान देख कर सोचा कि वह स्वयं ही सलिल को घास नहीं डालेगी. उस के आने पर अपने कमरे में चली जाया करेगी ताकि चाची और मां उस के साथ सहज रह सकें.

सलिल को पहली बार अमित चाचा घर ले कर आए. सब से उस का परिचय करवाया, ‘‘है तो यह तेरा भी मामा अनु, लेकिन हमउम्र्र है, इसलिए तुम दोनों में दोस्ती ठीक रहेगी.’’

‘‘जी चाचा,’’ अनुभा ने हतप्रभ लग रहीं चाची और मां की ओर देख कर उस समय तो सलिल से हैलो के अलावा और बात नहीं की, लेकिन सलिल की आकर्षक छवि और मजेदार बातों को वह चाह कर भी दिल से नहीं निकाल सकी.

सलिल की मोटरसाइकिल की आवाज सुनते ही वह अपने कमरे में तो चली जाती थी, लेकिन कान बराबर चाची के कमरे से आने वाली ठहाकों की आवाजों पर लगे रहते थे और जब मां या चाची सलिल के सुनाए चुटकुले पापा और अमित चाचा को सुनाती थीं तो वह बड़े ध्यान से सुनती थी और फिर कालेज में अपनी सहेलियों को सुनाती थी.

कुछ दिन बाद अपनी सहेली माधवी की बहन की सगाई में उस के बड़े भाई मोहन के साथ खड़े सलिल को देख कर अनुभा चौंक पड़ी.

‘‘यह मेरा दोस्त सलिल है, अनु,’’ मोहन ने परिचय करवाया, ‘‘और यह माधवी की

खास सहेली…’’

‘‘जानता हूं यार, मामा हूं मैं इस का,’’ सलिल हंसा.

‘‘रियली? तब तो तू संभाल अपने मामा को अनु. यह पहली बार हमारे घर आया है. इस का परिचय करवा सब से. मैं दूसरे काम कर लेता हूं,’’ कह कर मोहन चला गया.

सलिल शरारत से मुसकराया, ‘‘मेरे एक सवाल का जवाब दोगी प्लीज? क्या मेरी शक्ल इतनी खराब है कि मेरे आने की आहट सुनते ही तुम अपने कमरे में छिप जाती हो? जानती हो इस से कितनी तकलीफ होती है मुझे?’’

‘‘तकलीफ तो मुझे भी बहुत होती है,’’ अनुभा के मुंह से बेसाख्ता निकला, ‘‘छिपने से नहीं बल्कि तुम्हें न देख पाने की वजह से.’’

‘‘तो फिर देखती क्यों नहीं?’’

अनुभा ने सही वजह बता दी.

‘‘ओह, तो यह बात है. मेरे यहां आने से पहले मेरे घर में भी यही टैंशन थी, लेकिन तुम्हारे चाचा ने तो मुझ से दोस्ती करने को कहा था, सामने न आने के लिए किस ने कहा?’’

‘‘किसी ने भी नहीं. चाचा की बात सुन कर मां और चाची इतनी परेशान लगीं कि मैं ने उन्हें और परेशान करने के बजाय खुद ही बेचैन होना बेहतर समझा.’’

सलिल कुछ सोचने लगा. फिर बोला, ‘‘तुम्हारे घर से और कोई नहीं आया?’’

‘‘मां और चाची आएंगी कुछ देर बाद.’’

‘‘उस से पहले अपनी सहेलियों से कहो कि वे सब भी मुझे मामा बुलाएं. मैं दीदी को विश्वास दिला दूंगा कि मैं रिश्तों की मान्यता में विश्वास रखता हूं ताकि मेरीतुम्हारी दोस्ती पर किसी को शक न हो.’’

लड़कियों को भला उसे मामा बुलाने में क्या ऐतराज होता? जब तक अनीषा और शीतल आईं, सलिल भागभाग कर काम कर के सब का चहेता और प्राय: छोटेबड़े सब का ही मामा बन चुका था.

‘‘ये सब क्या है भाई?’’ अनीषा ने पूछा.

‘‘दीदी के शहर में आने का प्रसाद,’’ सलिल ने मुंह लटका कर कहा, ‘‘यह सोच कर आया था कि कोई गर्लफ्रैंड बन जाएगी. मगर अनुभा की सारी सहेलियां भी तो मेरी भानजियां ही लगीं. भानजी को गर्लफ्रैंड बनाने के संस्कार तो आप ने दिए नहीं सो बस काम कर के और मामा बन कर आशीष बटोर रहा हूं.’’

शीतल तो भावविभोर होने के साथसाथ अभिभूत भी हो गई. सगाई की रस्म के बाद जब उन्होंने अनुभा से घर चलने को कहा तो माधवी ने कहा, ‘‘अनुभा अभी कैसे जाएगी? काम के चक्कर में हम ने कुछ खाया भी नहीं है. आप जाओ, अनुभा बाद में आएगी.’’

‘‘अकेली?’’

‘‘अकेली क्यों?’’ माधवी की मां ने पूछा, ‘‘इस का मामा है न, उस के साथ आ जाएगी.’’

‘‘क्यों सलिल, ले आओगे?’’ अनुभा की आशा के विपरीत शीतल ने पूछा.

‘‘जी बड़ी दीदी, मगर इन सब का खाने का ही नहीं नाचगाने का भी प्रोग्राम है जो देर तक चलेगा.’’

‘‘तुम जब तक चाहो रुकना, फिर भानजी को कान पकड़ कर ले आना. मामा हो तुम उस के,’’ शीतल ने हंसते हुए कहा.

शीतल की हरी झंडी दिखाने के बावजूद अनुभा सलिल के घर आने पर न अपने कमरे से बाहर निकलती थी और न ही उस के बारे में बात करती थी, मगर सलिल की छुट्टी के रोज माधवी के घर पढ़ने के बहाने चली जाती थी और वहां से सलिल के साथ घूमने. माधवी तक को शक नहीं होता था. इम्तिहान खत्म होते ही घर में उस की शादी की चर्चा होने लगी. उस ने सलिल को बताया.

‘‘मुझे भी दीदी ने अपने दोस्तों में तुम्हारे लिए उपयुक्त वर ढूंढ़ने को कहा है.’’

‘‘अपना नाम सुझाओ न.’’

‘‘पागल हूं क्या? मेरे यहां आने पर जो इतना बवाल मचा था. वह इसीलिए तो था कि अगर मैं ने तुम से शादी करनी चाही तो अनर्थ हो जाएगा. जिस घर में लड़की दी है उस घर से लड़की नहीं लेते.’’

‘‘तुम ये सब मानते हो?’’

‘‘बिलकुल नहीं, लेकिन अपने परिवार की मान्यताओं और भावनाओं की कद्र करता हूं.’’

‘‘मगर मेरे प्यार की नहीं.’’

‘‘उस की भी कद्र करता हूं और तुम्हारे सिवा किसी और के साथ जिंदगी गुजारने की सोच भी नहीं सकता.’’

‘‘हो सकता है तुम्हारे घर वाले तुम्हारी शादी न करने की जिद मान लें, मगर मुझे तो शादी करनी ही पड़ेगी.’’

‘‘वह तो मैं भी करूंगा अनु.’’

अनुभा झुंझला गई. अजीब मसखरा आदमी है. मेरे सिवा किसी और के साथ जिंदगी गुजारने की सोच भी नहीं सकता, मगर शादी करेगा. सलिल तो जैसे उस का चेहरा खुली किताब की तरह पढ़ लेता था.

‘‘शादी किसी से भी हो, तसव्वुर में तो मेरे हमेशा तुम रहोगी और तुम्हारे तसव्वुर में मैं, बस अपने जीवनसाथी से यह सोच कर प्यार किया करेंगे कि हम एकदूसरे से कर रहे हैं.’’

‘‘अगर गलती से कभी मुंह से असली नाम निकल गया तो चोरी पकड़ी नहीं जाएगी?’’

अनुभा ने भी यह सोच कर सब्र कर लिया कि जैसे अभी वह सलिल के खयालों में जीती है, हमेशा जीती रहेगी और शादी के बाद मिलना भी आसान हो जाएगा, क्योंकि विवाहित मामाभानजी के मिलने पर किसी को ऐतराज नहीं होगा.

सलिल यह सुन कर खुशी से बोला, ‘‘अरे वाह, फिर तो चोरीछिपे नहीं सब के सामने तुम्हें गले लगाया करूंगा, कहीं घुमाने के बहाने बढि़या होटल में ले जाया करूंगा.’’

जल्द ही दुबई में बसे डाक्टर गिरीश से अनुभा का रिश्ता पक्का हो गया. देखने में गिरीश सलिल से 21 ही था और बहुत खुशमिजाज भी, लेकिन अनुभा ने उस में सलिल की छवि ही देखी. शादी में अनीषा का पूरा परिवार आया. मौका मिलते ही अनुभा ने सलिल से कहा कि वह अपने प्यार की निशानी के तौर पर कुछ भेंट तो दे.

‘‘देना तो चाहता था, लेकिन दीदी ने कहा कि अम्मां दे तो रही हैं, तुझे अलग से कुछ देने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘फिर भी कुछ तो दे दो, जिस के पास रहने से मुझे यह एहसास रहे कि तुम मेरे पास हो.’’

सलिल ने जेब से रूमाल निकाला और उसे चूम कर अनुभा को पकड़ा दिया. अनुभा ने उसे आंखों से लगाया.

‘‘यह मेरे जीवन की सब से अनमोल वस्तु होगी.’’

उस ने शुरू से ही गिरीश को सलिल समझा, इसलिए उसे कोई परेशानी नहीं हुई, बल्कि मजा ही आया और सोचा कि वह सलिल को मिलने पर बताएगी कि फौर्मूला कामयाब रहा. लेकिन मिलने का मौका ही नहीं मिला. नैनीताल में हनीमून मना कर लौटने पर सलिल की मोटरसाइकिल अजय को चलाते देख कर उस ने पूछा, ‘‘सलिल मामा की मोटरसाइकिल तुम्हारे पास कैसे?’’

‘‘सलिल मामा से पापा ने खरीद ली है यह मेरे लिए.’’

‘‘मगर सलिल मामा ने बेची क्यों?’’

‘‘क्योंकि वे कनाडा चले गए.’’

अनुभा बुरी तरह चौंक गई, ‘‘अचानक कनाडा कैसे चले गए?’’

‘‘यह तो मालूम नहीं.’’

अनुभा ने बड़ी मुश्किल से अपनेआप को संयत किया. शाम को वह माधवी से मिलने के बहाने मोहन से सलिल के अचानक जाने की वजह पूछने गई.

‘‘सलिल मामा अचानक कनाडा कैसे चले गए?’’

‘‘पहली बार कोई भी अचानक विदेश नहीं जाता अनु, सलिल यहां हैड औफिस में कनाडा जाने से पहले खास प्रशिक्षण लेने आया था. प्रशिक्षण खत्म होते ही चला गया,’’ मोहन ने जैसे उस के कानों में गरम सीसा डाल दिया.

‘‘वह कनाडा से आप को फोन तो करते होंगे… मुझे उन का नंबर दे दीजिए प्लीज,’’ अनुभा ने मनुहार करी.

‘‘चंद महीनों के दोस्तों को न कोई इतनी दूर से फोन करता है और न ही याद रखता है. बेहतर रहेगा कि तुम भी सलिल को भूल कर अपनी नई जिंदगी में खुश रहो.’’

अनुभा को लगा कि मोहन जैसे उस पर तरस खा रहा है. वह नई जिंदगी का मजा तो ले रही थी, लेकिन सलिल को याद करते हुए, उस के दिए रूमाल को जबतब चूम कर.

अचानक एक रोज गिरीश ने उस के हाथ में वह रूमाल देख कर कहा, ‘‘इतना गंदा रूमाल एक डाक्टर की बीवी के हाथ में क्या कर रहा है? फेंको इसे.’’

अनुभा सिहर उठी. फेंकना तो दूर, सलिल के चूमे उस रूमाल को तो वह धो भी नहीं सकती थी. उस ने रूमाल को गिरीश से छिपा कर टिशू पेपर में सहेज दिया अकेले में चूमने के लिए.

गिरीश का परिवार कई वर्षों से दुबई में सैटल था. जुमेरा बीच के पास उन का बहुत बड़ा विला था और शहर में कई मैडिकल स्टोर और उन से जुड़े क्लीनिक्स की शृंखला थी. गिरीश भी एक क्लीनिक संभालता था. परिवार की सभी महिलाएं व्यवसाय के विभिन्न विभागों की देखरेख करती थीं.

अनुभा भी जेठानी वर्षा के साथ आधे दिन को औफिस जाती थी. अनुभा दुबई आ कर बहुत खुश थी. लेकिन न जाने क्यों सलिल की याद अब कुछ ज्यादा ही बेचैन करने लगी थी. जबतब उस का रूमाल चूम कर तसल्ली करनी पड़ती थी.

एक रोज वर्षा की कजिन लता ने फोन पर बताया कि उस के पति का भी दुबई में तबादला हो गया है, अभी तो होटल में रह रही है, घर और गाड़ी मिलने पर वर्षा से मिलने आएगी. लेकिन वर्षा उस से तुरंत मिलना चाहती थी. अनुभा ने सुझाया कि औफिस से लौटते हुए वे दोनों लता को उस के होटल से ले आएंगी. शाम को ड्राइवर उस के पति को औफिस से पिक कर लेगा और रात के खाने के बाद होटल छोड़ देगा. वर्षा का सुझाव अच्छा लगा पर घर के पुरुष तो देर से आते थे, तब तक लता का पति औरतों में बोर हो जाता. गिरीश हर बृहस्पति की शाम को क्लीनिक से जल्दी लौटता था. अत: अनुभा के कहने पर वर्षा ने लता को बृहस्पति को बुलाया. दोपहर को जेठानी देवरानी लता को लेने उस के होटल में गईं.

‘‘तू तो शादी के बाद अमेरिका या कनाडा गई थी, फिर यहां कैसे आ गई?’’ वर्षा ने पूछा.

‘‘मुझे बर्फ रास नहीं आई, इसलिए इन्होंने यहां तबादला करवा लिया,’’ लता दर्प से बोली.

‘‘अरे वाह, बड़ा दिलदार आदमी है भई, बीवी के लिए डौलर छोड़ कर दिरहम कमाना मान गया,’’ वर्षा ने चुहल करी.

‘‘मेरे लिए तो जांनिसार भी हैं दीदी,’’

लता इठलाई. वर्षा और अनुभा हंस पड़ी.

‘‘इस जांनिसर दिलदार से रिश्ता करवाया किस ने, चुन्नो चाची ने?’’ वर्षा ने पूछा.

लता हंसने लगी, ‘‘नहीं दीदी, चाची तो इस रिश्ते के बेहद खिलाफ थीं. उन का कहना था कि लड़का दिलफेंक और छोकरीबाज है. लेकिन चाचाजी ने कहा कि सभी लड़कों के शादी से पहले टाइम पास होते हैं, शादी के बाद सब ठीक हो जाते हैं.’’

‘‘आप के जांनिसार आप को किसी पुरानी टाइम पास के नाम से यानी किसी खास नाम से तो नहीं बुलाते?’’ अनुभा ने पूछा.

‘‘नहीं, लता ही पुकारते हैं.’’

‘‘फिर कोई फिक्र की बात नहीं है,’’ अनुभा बोली, ‘‘आप के जांनिसार सिर्फ आप के हैं.’’

शाम को गिरीश के आने के बाद वर्षा ने कहा, ‘‘गिरीश, मैं लता को जुमेरा बीच घुमाने ले जा रही हूं. लता के पति के आने पर तुम और अनुभा उन का स्वागत कर लेना.’’

कुछ देर के बाद गिरीश ने उत्साहित स्वर में अनुभा को पुकारा, ‘‘अनु, देखो तो लता के पति कौन हैं, तुम्हारे सलिल मामा.’’

उल्लासउत्साह से उफनती गिरतीपड़ती अनुभा ड्राइंगरूम में आई. हां, सलिल ही तो था, शरीर थोड़ा भर जाने से और भी आकर्षक लग रहा था.

‘‘लीजिए, आप की भानजी आ गई,’’ गिरीश बोला.

‘‘लेकिन मेरी बीवी कहां है?’’ सलिल ने अनुभा की उल्लसित किलकारी की ओर ध्यान दिए बगैर उतावली से पूछा.

‘‘भाभी के साथ समुद्र तट घूमने गई हैं, मैं बुला कर लाता हूं. तब तक आप अपनी भानजी के साथ बतियाइए.’’

‘‘बतियाने से पहले गले लगा कर आशीर्वाद तो दो मामा,’’ अनुभा मचली.

‘‘मामाजी की गोद में ही बैठ जाओ न,’’ गिरीश हंसा.

‘‘अभी तो गोद में लता को बैठा कर देखने को बेचैन हूं कि उस की आंखें ज्यादा गहरी हैं या समुद्र. आप वर्षा जीजी को घर ले आना प्लीज ताकि हम दोनों कुछ देर अकेले बैठ सकें, समुद्र के किनारे,’’ सलिल ने बेसब्री से कहा, ‘‘चलिए, गिरीशजी.’’

इतनी बेशर्मी, इतनी उपेक्षा. अनुभा सहन नहीं कर सकी, अपमान से तिलमिलाती हुई तेजी से अपने कमरे में गई, अकेले में रोने नहीं, बल्कि सलिल के दिए अनमोल रूमाल को फाड़ कर फेंकने के लिए.

मै अपने बौयफ्रेंड से शादी करना चाहती हूं पर घरवाले नहीं मान रहे.. क्या करूं ?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 19 साल की हूं और अपने से 2 साल बड़े लड़के से प्यार करती हूं. हम ने कई बार सैक्स का आनंद भी उठाया है. वह मुझे बहुत प्यार करता है और मुझसे शादी करना चाहता है. उस के घर वालों को भी कोई ऐतराज नहीं है पर मेरे घर वाले तैयार नहीं हो रहे, क्योंकि वह अलग जाति का है और मैं अलग जाति की. हमारे रिश्ते के बारे में घर वालों को पता चला तो मेरी पढ़ाई छुड़वा दी और मोबाइल भी ले लिया. फिर भी मैं लड़के से चोरीछिपे बात कर लेती हूं. बौयफ्रैंड मुझसे बिना बात किए नहीं रह सकता. इस की वजह से उस की पढ़ाई भी डिस्टर्ब हो रही है. वह कह रहा है कि अगर घर वाले नहीं मान रहे तो अभी रुको, 4 साल बाद जब मेरी पढ़ाई पूरी हो जाएगी तो हम शादी कर लेंगे. मगर इस दिल को कैसे तसल्ली दूं, जो दिनरात उसी के लिए धड़क रहा है? बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

अभी आप की उम्र काफी छोटी है. यह उम्र पढ़लिख कर कुछ बनने की होती है. मगर आप कच्ची उम्र में ही गलती कर बैठीं. यहां तक कि जिस्मानी संबंध भी बना लिए.

आप के पेरैंट्स का सोचना सही है. वे भी यही चाहते होंगे कि पहले आप अपने पैरों पर अच्छी तरह खड़ी हो जाएं, कैरियर बना लें तभी शादी की सोचेंगे.

खैर, जो होना था सो हो गया. अब सम झदारी इसी में है कि आप पहले अपने घर वालों को विश्वास में ले कर अपनी पढ़ाई जारी रखें. बौयफ्रैंड को भी अपना कैरियर बनाने दें.

अगर वह 4 साल इंतजार करने को कह रहा है तो उस का सोचना भी सही है. अगर वह आप से सच्ची मुहब्बत करता है तो 4 साल बाद ही सही, आप से जरूर विवाह करेगा.

रही बात एकदूसरे की जाति अलगअलग होने की, तो आज के समय में ये सब दकियानूसी बातें हैं. समाज में ऐसी शादियां खूब हो रही हैं.

देरसवेर आप के पेरैंट्स भी मान जाएंगे. अगर न मानें तो आप दोनों कोर्ट मैरिज कर सकते हैं. फिलहाल यही जरूरी है कि आप दोनों ही अपनेअपने कैरियर पर ध्यान दें.

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Hindi Story- मैं भी कमाऊंगी: क्या मेरा शौक पूरा हुआ

शादी से पहले हमारी मैडम एक दफ्तर में औफिस अस्सिटैंट थीं पर शहर बदले जाने के कारण उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ी. फिर पहली बेबी 1 साल में ही हो गया. अब वह 4 साल की है, थोड़ा काम खुद कर लेती हैं, इसलिए मैडम के पास काम कम और समय ज्यादा है. अत: एक दिन बोलीं, ‘‘सुनो शैलेष.’’

‘‘क्या है माधवी?’’

‘‘मैं आजकल घर में बहुत उकता जाती हूं. यहां मेरे पास काम ही कितना है. बिना काम के खाली बैठे रहना तो बेवकूफी है. मैं चाहती हूं कि मैं कुछ पैसे कमाऊं. हमारे घर की आर्थिक स्थिति भी तो अच्छी नहीं है,’’ माधवी बोली.

‘‘क्यों, क्या हुआ हमारी आर्थिक स्थिति को? सब ठीक तो है. मैं जितने पैसे कमा रहा

हूं उन्हीं में हम लोग सुखचैन से रह रहे हैं और क्या चाहिए.’’

‘‘नहीं, मैं चाहती हूं कि मेरा भी योगदान हो. जब मैं भी कमा सकती हूं तो क्यों न कमाया जाए. डबल इनकम का मतलब है डबल बचत.’’

‘‘वह तो ठीक है, लेकिन घर को चलाने में तुम्हारा बड़ा योगदान है. मेरे अकेले के

बस की बात नहीं कि नौकरी भी करूं, बच्चों को भी देखूं और घर भी संभालूं. सुचारु रूप से घर चलाती रहो, यही बहुत है.’’

‘‘नहीं, मैं नौकरी करना चाहती हूं.’’

‘‘घर कौन देखेगा और फिर इस शहर में तुम्हें नौकरी कौन देगा?’’

‘‘इसी के पीछे तो इतने दिनों से मैं तुम से बोलने में  झिझक रही थी. तुम्हीं कोई उपाय बताओ न?’’

‘‘मैं क्या बताऊं, यह फैसला तो तुम्हें लेना पड़ेगा.’’

‘‘क्यों न एक आया रख लें, फिर मैं किसी मौल में सेल्सगर्ल का काम तो कर सकूंगी.’’

‘‘कोई आया मां की तरह तो बच्चों को नहीं  देख सकती और फिर जितना तुम कमाओगी वह आया ले जाएगी और जो परेशानी होगी वह अलग से. सेल्सगर्ल्स को तो 12-12 घंटे खड़े रहना पड़ता है. अब तुम 35 साल की होने वाली हो, 20-21 साल की लड़कियों के सामने क्या टिक पाओगी?’’ शैलेष ने कहा.

‘‘तो मैं घर में रह कर भी कमा सकती हूं.’’

‘‘तुम घर भी चलाओ और कमाई भी करो, इस में मुझे क्या आपत्ति हो सकती है. मुझे तो खुशी होगी, लेकिन करोगी क्या?’’

‘‘सोच कर बताऊंगी,’’ कह माधवी चुप हो गई.

‘‘मैं ने सोच लिया है कि मैं कंटैंट राइटर बनूंगी,’’ 8-10 दिन बाद माधवी शैलेष से बोली.

‘‘वाह, क्या बात है. राइटर बन कर पैसे तो कमाओगी ही ख्याति अलग से होगी. क्या लिखोगी?’’

‘‘औनलाइन बहुत सी कंपनियां कटैंट राइटर मांगती हैं. मैं उन्हें अपना बायोडाटा भेज देती हूं.’’

2 दिन बाद माधवी फिर बोली, ‘‘शैलेष, मुझे क्रैडिट कार्ड देना, 2,000 रुपये का डिपौजिट एक कंटैंट कंपनी को भेजना है. वे कहते हैं कि उन के मूल कंटैंट का मिसयूज न हो इसलिए वे क्रैडिट कार्ड से पेमैंट मांगते हैं.’’

‘‘बहुत बड़े पैमाने पर आरंभ कर रही हो?’’ शैलेष बोला.

घर में 2-3 दिन शांति रही. माधवी दिन में 4-5 बार कंप्यूटर खोल कर देखती कि कोई मेल तो नहीं आया. फिर एक दिन बोली, ‘‘वे मुझे औनलाइन इंटरव्यू के लिए बुला रहे हैं पर मुझे उन का ऐप डाउनलोड करना होगा, जिस की फीस 2,000 रुपये है.’’

शैलेष के 2,000 रुपये और गए.

5 दिन बाद उसे पीडीएफ फाइल मिली जिस में शायद 500 पेज थे. उसे उस का संक्षेप में इंग्लिश से हिंदी अनुवाद करना था.

‘‘सुनो, यह बहुत कठिन काम है. कंप्यूटर पर पढ़ने में बहुत कठिनाई हो रही है. फौंट

बहुत छोटा है. इस के प्रिंट करा लाओ,’’

माधवी बोली.

शैलेष प्रिंट करा लाया पर कंप्यूटर पर माधवी हिंदी टाइपिंग न सीख पाई. उस ने हाथ

से लिखा तो शैलेष भी उसे नहीं पढ़ पाया. उसे स्कैन कर के भेजने का फायदा क्या था. इसलिए एक साइबर कैफे को हिंदी में लिखे को प्रति पृष्ठ पैसे दे कर टाइप कराने के लिए दिया. उसे प्रति पृष्ठ क्व400 मिलते थे इसलिए उसे यह खर्च ज्यादा नहीं लगा.

मगर 5 दिन बाद मेल आया कि काम पूरा हो जाने की मियाद 7 दिन थी इसलिए क्व2,000 जब्त किए जाते हैं और आगे से काम नहीं मिलेगा. 4,000 रुपये इस कंपनी को गए, 1,500 रुपये प्रिंट कराने में लगे और 10 दिन बाद हिंदी टाइप करने वाला अपने पैसे जबरन ले गया और मेल से हिंदी फाइल भेज दी.

शैलेष ने उत्सुकतावश उसे खोल कर देखा तो पता चला कि एक तो अनुवाद गलत था और दूसरे टाइप करने वाले ने हजार गलतियां छोड़ रखी थीं. काम के चक्कर में 1 महीने का चैन भी गया और पैसे भी बरबाद हुए.

माधवी बोली, ‘‘एक दिन अवश्य कुछ न कुछ कर दिखाऊंगी.’’

‘‘अवश्य, अवश्य.’’

‘‘अभी फिलहाल मैं ने पैसे कमाने का दूसरा जरीया ढूंढ़ निकाला है.’’

‘‘1,000 रुपये तो गंवा चुकी हो. अब क्या

इरादा है?’’

‘‘तुम्हारी इसी कंजूसी को देखते हुए तो

मैं ने पैसा कमाने की ठानी है. मैं ने तय कर

लिया है कि मैं बच्चों के कपड़ों का व्यापार करूंगी.’’

‘‘तुम कहां से कपड़े लाओगी,’’ शैलेष

ने पूछा.

माधवी बोली, ‘‘मै ने होलसेल मार्केट पता कर ली है. वहां 80% डिस्काउंट मिलता है उन्हें बेचूंगी तो पैसा ही पैसा होगा.’’

घर के बाहर एक बोर्ड लगा दिया, ‘नए फैशन के बच्चों के कपड़े.’

शैलेष बोला, ‘‘तुम्हारी युक्ति ठीक है. चलो, ले आते हैं क्व50 हजार के कपड़े.’’

‘‘हां, कुछ नए डिजाइनों के फ्रौक वगैरह… मैं ने एक स्टोर में शादी से पहले सेल्सगर्ल का काम किया था. मुझे इस लाइन का ऐक्सपीरियंस है,’’ यह बात बारबार दोहराती.

अगले दिन जब शाम को शैलेष घर लौटा तो ड्राइंगरूम में कपड़े बिखरे पड़े थे और घर के सारे गिलासप्याले इधरउधर लुढ़क रहे थे.

माधवी बोली, ‘‘पुरानी डिजाइनों के कपड़े ले आए. 10-20 औरतें आईं, चाय भी पी और सारे कपड़े खोलखाल कर चली गईं. एक पैसे की कमाई नहीं हुई. 4-5 अपने बच्चों को पहना कर देखने के लिए ले गई हैं.’’

शैलेष बोला, ‘‘पहले ही दिन 10 हजार रुपये का चूना लगा. अच्छा, अपनी लड़की को यह फ्रौक फिट लगेगा तो मानूंगा कि तुम्हारा टेस्ट अच्छा है.’’

माधवी ने पहना कर देखा टाइट था और खींचने पर फ्रौक फट गया.

तभी कोई खरीदार आया जो 5-6 कपड़े ले गया था उन्हें वापस कर गया कि साइज भी ठीक नहीं, कपड़ा भी खराब है और डिजाइन भी बेहूदा है.

बंटी ने भी एक भी कपड़ा पहनने से इनकार कर दिया.

मेड को देने की कोशिश की तो बोली, ‘‘मैडम, यह जो चीज 500 रुपये में आप बेच रही हैं, हमारे यहां मंगलवार बाजार में 50 रुपये में बिकती है,’’ और उस ने मुफ्त में भी ले जाने से इनकार कर दिया कि वह इन का क्या करेगी.

कुछ दिन बाद माधवी ने फिर शैलेष से कहां, ‘‘सुनो.’’

‘‘तुम ऐसे सुनो मत बोलो, मेरा दिल बैठ जाता है. मुझे लगता है तुम पैसा कमाने का कोई नया साहसिक धंधा शुरू करने वाली हो,’’ शैलेष घबरा कर बोला.

‘‘तुम सुनो तो सही.’’

‘‘सुनाओ.’’

‘‘यह कपड़े बेचने वाला व्यापार मुझ से नहीं होने का.’’

‘‘देर आयद दुरुस्त आयद.’’

‘‘तुम बताओ मेरी पेंटिंग्स कैसी हैं?’’

‘‘अपनी बेटी की ड्राइंग की कौपी में तुम्हें ड्राइंग करते देख कर कह सकता हूं कि तुम पेंटिंग में निपुण हो.’’

‘‘पेंटिंग का काम करूं तो कैसा रहेगा. आजकल तो पेंटिंग्स करोड़ों में बिकती हैं.’’

‘‘ठीक ही रहेगा. लोग अपने घर में आर्टिस्टों की पेंटिंग्स लगाना चाहते हैं. आरंभ कर दो बनाना,’’ शैलेष ने जान बचाने की खातिर कहा.

‘‘पहले सामान ला दो. फिर शुरू करूंगी.’’

‘‘सामान?’’

‘‘हां, पेंटिंग्स का सामान. लिख लो.’’

‘‘यह तो बहुत महंगा होगा.’’

लिस्ट क्या थी पूरा किचन रोल था. कोई 200 आइटम्स थीं.

‘‘तो क्या हुआ एक पेंटिंग बिकते ही लाभ ही लाभ है.’’

‘‘कितने लगेंगे?’’

‘‘सिर्फ क्व40 हजार के आसपास. मैं पूछ कर आई हूं.’’

‘‘बाप रे, न बाबा यह तो मेरी सारी बची जमापूंजी है. तुम कम से ही शुरू करो.’’

‘‘छोटे से शुरू कर कोई कुछ नहीं बन सकता है?’’

‘‘नहीं, मैं अपनी जमापूंजी खर्च नहीं कर सकता. 10-20 हजार रुपयों की बात अलग है.’’

‘‘अगले साल तक तुम्हारी पूंजी दोगुनी हो जाएगी.’’

‘‘नहीं.’’

‘‘देखो, सुनो तो सही.’’

‘‘एकदम नहीं.’’

‘‘यह तुम्हें क्या हो गया है. इस तरह घर में अशांति करने से क्या लाभ.’’

‘‘1 महीने से तुम तमाशा कर रही हो. मैं कोई करोड़पति नहीं जो तुम्हारे शौक के लिए लाखों रुपए खर्च कर दूं.’’

‘‘मैं सामान अपने शौक के लिए नहीं मांग रही हूं… मैं थोड़े पैसे कमा लूंगी, इसीलिए

तुम्हें जलन हो रही है.’’

‘‘मुझे जलन क्यों होने लगी. तुम्हीं सोचो, अगर तुम्हारी पेंटिंग्स नहीं बिकीं तो सारे पैसे पानी में चले जाएंगे. कभी पैसों की आवश्यकता पड़ी तो क्या करेंगे?’’

‘‘ठीक है अपने पैसों पर सांप बन कर कुंडली मारे बैठे रहो. मैं अपने गले की चेन बेच कर सामान ले आती हूं.’’

‘‘यानी तुम्हें इतना विश्वास है कि पेंटिंग्स बिक ही जाएंगी? इसीलिए गले की चेन तक बेचने तक को तैयार हो?’’

‘‘तुम्हारे जैसे आदमी से पाला पड़ा हो तो और किया ही क्या जा सकता है.’’

‘‘गले की चेन मत बेचो. कल बैंक से लोन ले लूंगा.’’

अब हमारे घर की सारी दीवारों पर पेंटिंगें हुई हैं, परदों पर रंग लगे हैं, ट्यूवें, शीशियां इधरउधर बिखरी रहती हैं. ड्राइंगरूम एक कोना माधवी ने हथिया लिया जहां उस का सामान पड़ा रहता और 30-40 कैनवास आधीअधूरी पड़ी हैं क्योंकि माधवी गेंदें के फूल और पहाड़ पर ?ोंपड़ी के आगे नहीं बढ़ पाई. हां, आजकल उस ने अपनी ड्रैस आर्टिस्टों वाली कर ली है.

अब वह मेकअप नहीं करती. बाल बिखरे रहते हैं. कौटन की साड़ी पहने रहती है.

नाखूनों पर पेंट लगा रहता है.

कोईर् भी आता है तो शैलेष झूठ कहता है कि माधवी को एक होटल से 50 कमरों के लिए पेंटिंगों का और्डर मिला है. जैसे ही होटल मालिक पेंटिंग्स खरीद लेगा वह चैक भेज देगा. माधवी ड्राइंगरूम में सोती है और शैलेष डबल बैड पर आराम से खर्राटे भरता है.

‘‘बिका कुछ?’’

‘‘मेरी पूरी फैक्टरी में केवल एक ही ऐसा आदमी था जिसे तुम्हारी बनी एक पेंटिंग पसंद आई. बाकी नहीं बिकीं. सारे पैसे पानी में चले गए.’’

‘‘थोड़ा मन लगा कर बेचते तो अवश्य बिक जातीं. इतनी खराब तो नहीं थीं?’’

‘‘हां, सारा दोष मेरा ही है. तुम इसी में संतुष्ट हो तो यही सही.’’

‘‘बहुत रुपयों की हानि हो गई है न. मुझे बहुत बुरा लग रहा है.’’

‘‘चलो, जो हुआ सो हुआ. अब पहले वाली अर्थव्यवस्था पर चलते हैं यानी मैं कमाता हूं और तुम खर्च करती रहो. अगर इसी तरह तुम भी कमाती रही तो भीख मांगने की नौबत आ जाएगी.’’

‘‘चलो, मजाक मत करो. एक बात सुनो.’’

‘‘कदापि नहीं. अब मैं कुछ नहीं सुनूंगा और इस अवस्था में हूं भी नहीं कि कुछ सुन सकूं.’’

‘‘क्या लिख रहे हो?’’

‘‘तुम्हारी लेखन सामग्री का सदुपयोग कर रहा हूं. कहानी लिख रहा हूं.’’

‘‘अच्छा. कैसी कहानी है?’’

‘‘घरेलू कहानी है.’’

‘‘मुझे भी सुनाओ.’’

‘‘पूरी हो जाने दो, पढ़ लेना.’’

‘‘छप जाएगी?’’

‘‘इस कहानी को पढ़ कर तो कठोर से कठोर संपादक भी पिघल उठेगा. छपने की पूरी उम्मीद है.’’

Love At First Sight- लाल फ्रेम: जब पहली नजर में दिया से हुआ प्रियांक को प्यार

कार पार्क कर के प्रियांक तेज कदमों से इधरउधर कुछ ढूंढ़ता हुआ औफिस की लिफ्ट की तरफ बढ़ गया.  कहीं वह लाल फ्रेम के चश्मे वाली स्मार्ट सुंदरी पहले चली तो नहीं गई. लिफ्ट का दरवाजा खुला मिल गया, वह सोच ही रहा था कि अंदर घुसूं या नहीं, तभी चिरपरिचित सुगंध के झोंके के साथ वह युवती लिफ्ट में प्रवेश कर गई तो वह भी यंत्रवत अंदर चला आया. अब तो रोज ही का कुछ ऐसा किस्सा था. नजरें मिलतीं, फिर दोनों दूसरी ओर देखने लगते. धीरेधीरे वे एकदूसरे को पहचानने लगे तो देख कर अब स्माइल भी करने लगे. युवती 10वीं मंजिल पर जाती तो 11वीं मंजिल पर उतर कर उस के साथ के खुशनुमा एहसासों को समेटे ऊर्जावान हुआ प्रियांक दोगुने उत्साह से सीढि़यां उतरता तीसरी मंजिल पर स्थित अपने औफिस में गुनगुनाते हुए पहुंच जाता.

‘ला ल ला हूम् हूम् ल ला…चलो, अच्छा हुआ उसे आज भी नहीं पता चला कि मैं सिर्फ उस का साथ पाने के लिए ही 11वीं मंजिल तक जाता हूं. उस के लाल फ्रेम ने तो मेरे दिल को ही फ्रेम कर लिया है…’ अपनी धुन में सोचता प्रियांक फिसलतेफिसलते बचा.

‘‘अरे भाई, संभल के, प्रियांक, क्या बात है, बड़ा खुश नजर आ रहा है. कहीं किसी से प्यार तो नहीं हो गया…. और यह बता ऊपर से कहां से आ रहा है? कई बार पहले भी तुम्हें ऊपर सीढि़यों से आते देखा, लेकिन पूछना भूल जाता हूं.’’

‘‘कुछ ऐसा ही समझ लो प्यारे,’’ प्रियांक ने मस्ती में जवाब दिया.

‘‘वाह भई वाह, मुबारक हो, मुबारक हो…अब कौन है, क्या नाम है ये भी तो बता दो प्यारे.’’

‘‘अरे ठहर भई, सब यहीं पूछ लेगा, कैंटीन में बात करते हैं. वैसे, इस से ज्यादा मुझे भी कुछ नहीं पता, बस,’’ कह कर प्रियांक मुसकराया.

जिस दिन वह युवती नहीं मिलती तो पूरे दिन उस का मन फ्यूज बल्ब जैसा बुझाबुझा सा रहता. न तो उस दिन उस के मन को तरोताजा करने वाली वह खुशबू रचबस पाती, न ही किसी काम में उस का मन लगता. 2 महीने तक यही सिलसिला चलता रहा.

फिर वह औफिस के बाद भी उस का साथ पाने के लिए इंतजार करता… उस के साथ ही बाहर निकलता और कार पार्किंग तक साथसाथ जाता. पता चला कि घर का रास्ता भी कुछ दूर तक एक ही है. उन की कार कभी आगे, कभी पीछे होती, नजरें मिलतीं, वे मुसकराते. इतने में उस के घर का रास्ता आ जाता. आखिर में लड़की की कार उसे बाय कहते हुए आगे निकल जाती. प्रियांक मन मसोस कर रह जाता.

कुछ दिन यों ही बीत गए. प्रियांक उस युवती का इंतजार तो करता लेकिन दूर से ही उस का लाल फ्रेम देख कर झट से लिफ्ट के अंदर हो लेता, जैसा कि उस ने उसे देखा ही नहीं. ऐसा इसलिए करता कि वह यह न समझ बैठे कि मैं उस से मुहब्बत करता हूं. पर क्या मैं सही में तो उस से प्यार नहीं करने लगा हूं.

उधर भीड़ में भी वह युवती दिया उसे महसूस कर लेती. उस का दिल जोरों से धड़क उठता. ऐसा क्यों हो रहा है, कहीं उस अनजाने से प्यार तो नहीं हो गया. यह सोचते ही उस के लाल फ्रेम के नीचे दोनों कान और गुलाबी गाल गरम लाल हो कर और भी मैच करने लगते. वह कोशिश करती कि आंख बचा कर निकल जाए, पर आंखें तो जैसे उसी का पीछा करने को आतुर रहतीं और जैसे ही वह देखती, उस का जी धक से हो उठता.

बहुत पुराना मम्मी का पसंदीदा गाना उस के जेहन में चलने लगता…’ मेरे सामने जब तू आता है जी धक से मेरा हो जाता है… महसूस ये होता है मुझ को जैसे मैं तेरा दम भरती हूं, इस बात से ये न समझ लेना कि मैं तुझ से मुहब्बत करती हूं…’ सच ही तो है, कितनी हकीकत है इस गाने में. उस ने माथे पर उभर आया पसीना पोंछ लिया था. जबतब मेरा पीछा ही करता रहता है, मेरा ही इंतजार कर रहा था शायद, पर आता देख जल्दी से अंदर हो लिया वरना लिफ्ट और भी तो जाती हैं. यह महज संयोग तो नहीं हो सकता. कभीकभी लिफ्ट के डोर पर ही उधर मुुंह घुमा कर खड़ा हो जाता है जब तक मैं चढ़ नहीं जाती. फिर भी, वह दिखने में कोई लुच्चालफंगा तो नहीं लगता. हां, अकड़ू जरूर लगता है.

एक दिन उसे आता देख वह लिफ्ट रोक कर खड़ा हो गया कि तभी लाल फ्रेम वाली लड़की से पहले तेज चलती हुई एक मोटी अफ्रीकन महिला टकराई और वह धड़ाम से नीचे गिर गई. महिला बड़ेबड़े हाथों से जल्दी का इशारा करते हुए सौरीसौरी बोलते हुए फिर उसी तेजी से निकल गई. प्रियांक लिफ्ट से बाहर आ कर उस की ओर लपका.

‘‘मे आई हैल्प यू,’’ उस ने संकोच से हाथ बढ़ा दिया था.

‘‘नोनो थैंक्स…इट्स ओके.’’

‘‘रियली?’’

वह धीरेधीरे उठ खड़ी हुई. तो प्रियांक ने उस का बैग झाड़ कर उसे थमा दिया.

‘‘अजीब हैं लोग, अपनी तेजी में अपने सिवा कुछ और देख ही नहीं पाते…’’

‘‘हूं,’’ एक पल को उस ने नजरें उठा कर देखा, कुछ अलग सा आकर्षण लगा था युवक में उसे.

बस, फिर खामोशी…

चलते हुए दोनों लिफ्ट के अंदर हो लिए.

‘वह इग्नोर कर रही है तो मैं कौन सा मरा जा रहा हूं.’ उधर दिया भी सोच रही थी, मैं ने एक बार मना किया तो क्या दोबारा भी तो पूछ सकता था, कितना दर्द हुआ उठने में, अब खड़े होने में तकलीफ हो रही है. अवसर का लाभ न उठा पाने का उसे भी मलाल था.

इस बार हफ्तेदस दिन हो गए, प्रियांक को लड़की दिखी ही नहीं. प्रियांक की बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी. अपने औफिस से शायद उस ने छुट्टी ली होगी, घर पर कोई शादीवादी हो. कहीं बीमार तो नहीं, कोई दुर्घटना… अरे यार, मैं भी क्याक्या फालतू सोचे जा रहा हूं… बुद्धू हूं जो उस का नाम भी नहीं पता किया. उस के औफिस जा कर पूछूं भी तो क्या कैसे? वह लाल फ्रेम वाली मैडम? हां, चपरासी से पूछना ठीक रहेगा, बाहर जो बैठता है उसी से पूछता हूं.

उस दिन शाम को औफिस से निकलते वक्त मौका देख कर उस ने चपरासी से पूछ ही लिया था.

‘‘कौन? लाल चश्मेवाली? वे दिया मैम हैं साब, कोई काम था क्या…’’

‘‘कई दिनों से औफिस नहीं आ रहीं? क्या बात हो गई?’’

‘‘अब मुझे क्या पता, कोई काम था क्या?’’ उस ने दोबारा पूछा था.

‘‘नहीं, यों ही. कई दिनों से देखा नहीं,’’ अपने आप झुंझलाए खड़े प्रियांक के मन में तो आ रहा था कि कह दे कि अपने काम से काम रख, औफिस की इतनी सी खबर नहीं रख सकता तो क्या कर सकता है. उसे अपनी ओर देखतेदेखते वह खिसियाया सा लिफ्ट की तरफ मुड़ गया. चलो, यह तो अच्छा हुआ, नाम तो पता चला उस का. दिलोदिमाग उजाले से भर गया हो जैसे…‘‘दिया,’’ वह बोल उठा था.

3 दिनों बाद प्रियांक के साथ ही दिया कि कार पार्किंग में रुकी. दिया को देखते ही वह झटके से गाड़ी से उतरा, फिर सधे कदमों से उस के पास पहुंचने से अपनेआप को रोक नहीं पाया. वह नीचे उतरी थी. उस की लौंग स्कर्ट के नीचे बाएं पैर की एंकल में बंधी क्रेप बैंडेज साफ नजर आ रही थी. उसे देख कर वह मुसकराई और धीरेधीरे आगे बढ़ने लगी.

‘‘मैं कुछ मदद करूं?’’ वह  सहारा देने बढ़ा था.

‘‘नो थैंक्स, इट्स ओके… आप चलें,’’ अपना चश्मा ठीक करते हुए वह मुसकराई. अपने दिल की तेज होती धड़कन उसे साफ सुनाई देने लगी थी. वह भी साथसाथ चलने लगा.

‘‘मैं, प्रियांक, 11वीं मंजिल पर स्थित निप्पो ओरिएंटल में काम करता हूं. आप को कई बार आतेजाते देखा है. पर कभी परिचय नहीं हुआ था. कैसे चोट लगा ली आप को?’’ वह मन की अकुलाहट छिपाते हुए बातों का सिलसिला आगे बढ़ाने लगा था.

‘‘माइसैल्फ दिया, दिया दीक्षित.’’

‘‘दिया, आई नो.’’

‘‘जी?’’ दिया ने उसे हैरानी से देखा था.

‘‘जी, वो आप भी नाम बताएंगी, मैं जानता था,’’ थोड़ी घबराहट के साथ वह बात घुमाने में कामयाब हो गया था.

‘‘एक मैरिज पार्टी में गई थी. डांस करते समय पैर ऊंचेनीचे पड़ा और बस मुड़ गया. जबरदस्त मोच आ गई थी. बिलकुल नहीं चला जा रहा था. अब तो काफी ठीक हूं,’’ कह कर वह फिर मुसकराई.

‘‘अच्छा, डांस का तो मैं भी दीवाना हूं. बस, मौका मिलना चाहिए कि शुरू हो जाता हूं. हाहा,’’ अपने जोक पर खुद ही हंसा था. दिया को मौन देख कर हंसी को ब्रेक लग गया था. वह सीरियस होते हुए बोला, ‘‘आप का मेरा रास्ता काफी दूर तक एक ही है. आप चाहें तो आप को मैं घर से ही पिकड्रौप कर सकता हूं. आप को गाड़ी चलाने में बेकार की असुविधा नहीं झेलनी पड़ेगी. मैं लाजपत नगर मुड़ जाता हूं, आप शायद मूलचंद…साउथऐक्स… वह बातोंबातों में उस का पताठिकाना जान लेना चाहता था.

‘‘ओ नो. चोट बाएं पैर में है, फिर कार को चलाने के लिए एक ही पैर की जरूरत पड़ती है. औटोमैटिक है न,’’ कह कर वह मुसकराई.

ओ क्विड, नाइस. कार है तो छोटी सी पर पिकअप फीचर बढि़या हैं. मेरे एक दोस्त के पास भी यही है. मैं ने चलाई है पर वह औटोमेटिक मौडल नहीं थी,’’ वह खिसियाई हंसी हंसा. थोड़ी देर बाद वे दोनों लिफ्ट के अंदर थे.

‘‘शाम को मैं आप का वेट कर लूंगा, निकलेंगे साथ ही घर को… क्या पता कोई मदद ही हो जाए,’’ प्रियांक ने माथे पर आई झूलती घुंघराले बालों की लट को स्टाइल से ऊपर किया तो माथे की नसों के साथ उस का चेहरा चमकने लगा.

‘‘ओके, नो प्रौब्लम,’’ कुछ तो आकर्षण था प्रियांक के चितवन में, जब भी देखती तो उस की नजरें जैसे बंध जातीं. पर जाहिर नहीं होने देती.

शाम को दिया लिफ्ट से बाहर निकली तो प्रियांक खड़ा मिला.

‘‘चलें?’’ दिया लिफ्ट से उतरी तो प्रियांक की प्रश्नवाचक नजरें पूछ रही थीं.

‘‘हूं, उस ने हामी भरी तो प्रियांक ने बड़े हक से उस के हाथों से बड़ा बैग अपने हाथों में ले लिया.’’

‘‘कोई नहीं, इस में क्या हुआ, इंसान इंसान के काम नहीं आएगा तो कौन आएगा,’’ दोनों मुसकरा दिए.

‘‘न्यू कौफी होम की कौफी पी है आप ने, गजब की है.’’

‘‘अच्छा?’’ कुछ पलों के साथ के लिए थोड़ी दिलचस्पी दिखाना दिया को अच्छा लग रहा था.

‘‘मैं जा रहा हूं, ट्राई करनी है आप को? थोड़ा टाइम हो तो?’’ वह अपना भाव बनाए हुए बोला.

‘‘डोंट माइंड, आज देखती हूं पी कर, काफी थक भी गई हूं. काम था औफिस में. किसी ने बताया ही नहीं कभी. मैं भी तो बस, औफिस आती हूं, काम किया और फिर सीधे घर, चलिए,’’ आज न जाने कैसे दिया ने आसानी से हामी भर दी. जैसे उस के साथ के लिए तड़प रही हो और इतने दिनों तक उसे न देखने की सारी कसर अभी पूरी कर लेना चाहती हो. वह खुद हैरान थी, लेकिन उस ने कुछ भी जाहिर नहीं होने दिया. उस के दिल की धड़कन कुछ हद तक सामान्य हो गई थी.

‘‘घर पर इंतजार करने वाले हों तो औफिस के बाद घर जाना ही अच्छा लगता है,’’ शायद वह बता दे कि कौनकौन रहता है उस के घर में साथ. पर नहीं, दिया ने तो बात का रुख ही मोड़ दिया.

‘‘अंदर नहीं, यहीं बाहर ओपन एयर में बैठते हैं. वेटर…’’ उस ने पुकारा था.

‘‘अरे, मैं और्डर दे कर आता हूं. कूपन सिस्टम है यहां, भीड़ देख रही हैं? आप बैठिए, मैं ले आता हूं.’’

‘‘वाउ, वेरी नाइस कौफी, पी कर दिनभर की थकान दूर हो गई,’’ कौफी पी कर दिया ने कहा. इधरउधर की बातें करते हुए वह चोर नजरों से उसे बारबार देख लेती. उस का साथ दिया को अच्छा लग रहा था. कुछ और साथ बैठना भी चाहती थी पर कहीं ये ज्यादा ही भाव में न आ जाए…

‘‘अब चलना चाहिए मिस्टर प्रियांक.’’

‘‘हां, चलिए.’’ मन तो उस का भी नहीं कर रहा था कभी जाने का. वह शाम के धुंधलके में चल रही मंदमंद बयार की दीवाना बनाने वाली चिरपरिचित भीनीभीनी सुगंध में सबकुछ भूल जाना चाहता था. पर मन ही मन सोचता कि इसे पता नहीं चलने देना है अभी, कहीं मुझे चिपकू न समझने लगे. घमंडी है थोड़ी, न घर बताया, न घर में कौनकौन है बताया. बस, बात घुमा दी. कहीं मुझे ऐसावैसा तो नहीं समझ रही मिस लाल फ्रेम. मैं भी थोड़ा कड़क, थोड़ा रिजर्व बन जाता हूं. पर इस के बारे में जानने का जो दिल करता है, उस का क्या करूं?

एक दिन प्रियांक ने ठान लिया कि जैसे ही दिया की कार आगे निकलेगी, वह बैक कर के गाड़ी वापस कर लेगा और फिर दिया का गंतव्य जान कर ही रहेगा. उस ने ऐसा ही किया. दिया जान भी नहीं पाई कि वह एक निश्चित दूरी बनाते हुए उस के पीछे चलने लगा पर दिया ने तो यू टर्न ले लिया और आश्रम के पैट्रोल पंप के साथ लगे मकानों में से किसी एक में घुस गई. 3 दिन लगातार पीछा करने के बाद प्रियांक इस नतीजे पर पहुंचा.

‘तो शायद मुझे चकमा देने के लिए ऐसा किया जा रहा था ताकि यहां रहती होगी, मैं सोच भी न सकूं… हाउस नंबर ये, नेम प्लेट पर नाम रिटायर्ड कर्नल एस के दीक्षित. फिर तो सही है… ठिकाने का पता तो लगा ही लिया मिस लाल फ्रेम. मगर खाली पते का करूंगा क्या?’ अपना सवाल सोच वह बौखलाया सा सड़क पर ही दो पल रुका रहा. ‘सड़कछाप आशिक तो नहीं कि मुंह उठाए घर चला जाऊं… पुरानी फिल्मों के हीरो जैसे कि मैं आप की लड़की का हाथ मांगने आया हूं. लड़की अपने लाल फ्रेम में से घूरे कि जैसे’ मेरा तो इस से कोई सरोकार ही नहीं. और कर्नल बाप मुझे गोली से ही उड़ा दे. अच्छा लगने या एकतरफा प्यार से क्या हो सकता है भला? वह तो अपने ही में रहती है, कछुए की तरह सबकुछ सिकोड़ कर बैठ जाती है, कुछ बताना ही नहीं चाहती. शायद ट्राई तो किया था या मेरी तरह वह भी कह नहीं पाती हो. अगर ऐसा है तो कायनात पर ही छोड़ देते हैं… पर शिद्दत से, बस, चाहो और बाकी कायनात पर छोड़ दो. नो एफर्ट… यह दुनिया का एक ही उदाहरण होगा शायद… चलता हूं…’ सोच कर वह मुसकराया. कार की दीवार पर हलके से मुक्के मारता वह वापस हो लिया.

‘आज ऊपर जा कर इन की मंजिल देख ही आती हूं, जनाब वहां काम करते भी हैं या नहीं… क्यों इस के बारे में जानने को दिल करता है. कहीं वाकई इस से मुझे इश्क तो नहीं होने लगा.’ दिया अपनी मंजिल पर न उतर कर आज प्रियांक के साथ उस के 11वें फ्लोर पर पहुंच गई.

‘‘चलिए, आज थोड़ा टाइम है मैं ने सोचा आप का औफिस ही देख लेती हूं. वैसे भी मैं ने इस बिल्डिंग में किसी और फ्लोर को अभी देखा नहीं…’’

अचकचा गया था प्रियांक उस के इस अचानक निर्णय पर. अब…‘ क्या कहे, मैं ने उस का साथ पाने के लिए उस से 11वीं फ्लोर पर अपना औफिस होने का झूठ बोला था, पर सच तो अब बोलना ही पड़ेगा. खिसियाया सा वह बोला, ‘‘वो दरअसल, मेरा औफिस तो तीसरे फ्लोर पर ही है. मैं ने आप का साथ पाने के लिए आप से झूठ बोला था दिया पर आप भी…मूलचंद नहीं… बल्कि आश्रम में…’’ उस के मुंह से अधूरा वाक्य रोकतेरोकते भी फिसल ही गया था.

अब खिसियाने की बारी दिया की थी, ‘अच्छा, तो इसे मेरे झूठ का पता चल गया कि मैं इस के मोड़ से आगे मूलचंद साउथऐक्स वगैरह में कहीं नहीं बल्कि इस के भी पहले रहती हूं. लगता है मेरा पीछा करते हुए उस ने मेरा घर देख लिया, तभी तो आश्रम…’’ सोचते ही उस के दांतों में जीभ अपनेआप आ गई.

‘‘जी, वो मैं…’’ उस के लाल फ्रेम में से उस की आंखों से झांकती झेंप स्पष्ट दिखाई दे रही थी.

‘इस का मतलब तुम भी…’ वह हर्ष मिश्रित विस्मय से अधीर होता हुआ आप से तुम पर आ कर और पास आ गया था.

दिया ने आंखोंआंखों में ही हामी भरी.

‘‘ओहो, प्रियांक ने खुशी से अपनी छाती पर घूंसा मारा. फिर दोनों हाथों को वी बनाते हुए ऊपर उठाया मानो उस ने जग जीत लिया हो.’’

‘‘चलो यार, यह भी खूब रही, अब मुझे 11वीं मंजिल और तुम्हें मूलचंद की तरफ जाने की जरूरत नहीं…’’ पास के लोगों से अनजान दोनों जोरों से हंस कर आलिंगनबद्ध हो गए. प्रियांक ने दिया का वह लाल फ्रेम वाला चेहरा मारे खुशी के दोनों हथेलियों में हौले से ऐसे भर लिया मानो तितली संग गुलाब थाम रखा हो.

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Family Story- बंटवारा: क्या सुधर पाए शिखा के मामा

सिख होने के कारण ही मामाजी विवेक के साथ शिखा की शादी करने में आनाकानी कर रहे थे. लेकिन धर्म के आधार पर दिलों को नहीं बांटा जा सकता है, इस बात का आभास मामाजी को सरदार हुकम सिंह के घर नीरू को देख कर हुआ जो वर्षों पहले उठे धार्मिक उन्माद के तूफान में कहीं खो गई थी.

बचपन में वह मामाजी की गोद में चाकलेट, टाफी के लिए मचलती थी. वही उस की उंगली पकड़ कर पार्क में घुमाने ले जाते थे.सरकस, सिनेमा, खेलतमाशा, मेला दिखाने का जिम्मा भी उन्हीं का था. स्कूल की बस छूट जाती तो मां डांटने लगती थीं, पर यह मामाजी ही थे जो कार स्टार्ट कर पोर्च में ला कर हार्न बजाते और शिखा जान बचा कर भागतीहांफती कार में बैठ जाती थी.

‘बहुतबहुत धन्यवाद, मामाजी,’ कहते हुए वह मन की सारी कृतज्ञता, सारी खुशी उड़ेल देती थी. मामाजी का अपना घरपरिवार कहां था? न पत्नी, न बच्चे. शादी ही नहीं की थी उन्होंने. मस्ती से जीना और घुमक्कड़ी, यही उन का जीवन था.

खानदानी जमींदार, शाही खर्च, खर्चीली आदतें. मन आता तो शिखा के यहां चले आते या मुंबई, दिल्ली, कोलकाता घूमने निकल जाते…धनी, कुंआरा, बांका युवक…लड़कियों वाले मक्खियों की तरह भिनभिनाने लगते, पर जाने क्या जिद थी कि उन्होंने शादी के लिए कभी ‘हां’ न भरी.

मां समझातेसमझाते हार गईं. रोधो भी लीं, पर जाने कौन सी रंभा या उर्वशी  खुभी थी आंखों में कि कोई लड़की उन्हें पसंद ही न आती. फिर मांबाप भी नहीं रहे सिर पर. बस, छोटी बहन यानी शिखा की मां थी. उसी का परिवार अब उन का अपना परिवार था.

उम्र निकल गई तो रिश्ते आने भी बंद हो गए, पर बहन फिर भी जोड़तोड़ बिठाती रहती थी. सोचती थी कि किसी तलाकशुदा स्त्री से ही उन का विवाह हो जाए. पर मामाजी जाने कौन सी मिट्टी के घड़े थे. अब तो खैर बालों में चांदी भर गई थी. बच्चों की शादी का समय आ गया था.

शिखा के पिता व्यापार के सिलसिले में घर से बाहर ही रहते थे. बच्चों की हारीबीमारी, रोनामचलना, जिदें सब मामाजी ही झेलते थे. टिंकू गणित में फेल हो गया तो मामाजी ही स्वयं बैठ कर उसे गणित के सवाल समझाते थे. बीनू के विज्ञान में कम अंक आए तो उन्होंने ही उसे वाणिज्य की महत्ता का पाठ पढ़ा कर ठेलठाल कर चार्टर्ड एकाउंटेंसी में दाखिल करवाया था. शिखा के स्कूल का कार्यक्रम रात 10 बजे समाप्त होता तो मामाजी की ही ड्यूटी रहती थी उसे वापस लाने की.

धीरेधीरे स्नेह के इस मायाजाल में वह ऐसे फंसे कि अब होटल प्रवास लगभग समाप्त हो गया था. कारोबार तो खैर कारिंदे ही देखते थे. आज वही मामाजी शिखा के कारण मां पर बरस रहे थे, ‘‘लड़की को कुछ अक्ल का पाठ पढ़ाओ. दिमाग को पाला मार गया है. लड़का पसंद किया तो साधारण मास्टर का. इस तिमंजिली कोठी में रहने के बाद यह क्या उस खोली में रह पाएगी? फिल्में देखदेख कर दिमाग चल गया है शायद.’’

शिखा धीमेधीमे सुबक रही थी. मां के सामने तो अभिमान से कह दिया था कि विवेक के साथ वह झोंपड़ी में रह लेगी, पर बातबात पर दुलारने वाले गलतसही सब जिदें मानने वाले मामाजी की अवज्ञा वह कैसे करती? क्रोध का प्रतिकार किया जा सकता है, पर प्यार के आगे विद्रोह कभी टिकता है भला?

मामाजी ने ही शिखा व विवेक के प्रेम संबंधों की चर्चा सब से पहले सुनी थी. सीधे शिखा से कुछ न पूछा और विवेक के घरपरिवार के बारे में सब पता लगा लिया. बिजली का सामान बनाने वाली एक कंपनी का साधारण सा सेल्समैन, ऊपर से सिख परिवार का मोना (कटे बालों वाला) बेटा. करेला और नीम चढ़ा. बाप सरदार हुकमसिंह सरकारी स्कूल में साधारण मास्टर थे. भला क्या देखा शिखा ने उस लड़के में? उसी बात को ले कर घर में इतना बावेला मच रहा था. शिखा के पिता, भाईबहन (मां और मामाजी) पर बकनाझकना छोड़ कर तटस्थ दर्शक से सब सुन रहे थे.

‘‘आखिर बुराई क्या है उस लड़के में,’’ पिताजी पूछ ही बैठे.

‘‘अच्छाई भी क्या है? साधारण नौकरी, मामूली घरबार. फिर पिता सिख बेटा हिंदू, कभी सुनी है ऐसी बात?’’ मामाजी उफन ही तो पड़े.

‘‘शायद उन लोगों ने उसे गोद लिया हो या मन्नत मांगी हो. कई हिंदू भी तो लड़कों के केश रखते हैं,’’ मां ने सुझाया.

‘‘तो क्या यहांवहां पड़ा यतीम ही रह गया है शिखा के लिए?’’ मामाजी गरजे.

‘‘उन लोगों से मिल कर बातचीत करने में क्या हर्ज है?’’ पिताजी ने सुझाया.

‘‘आप भी हद करते हैं. पंजाब में आग लगी है. बसों से घसीट कर हिंदुओं को मारा जाता है. अब ऐसे घर में बात चलाएंगे? अपनी बेटी देंगे?’’

‘‘कुछ उग्रवादियों के लिए सारी जाति को दोष देना उचित नहीं है. सभी तो एक समान नहीं हैं,’’ मां ने कहा.

‘‘जो इच्छा आए करो,’’ मामाजी ने हथियार डाल दिए.

‘‘लड़के को खाने पर बुला लेते हैं. शिखा का भी मन रह जाएगा,’’ पिताजी ने कहा.

अगले दिन शिखा के निमंत्रण पर विवेक घर में आया. सब को अच्छा लगा, टिंकू व बीनू को भी. शायद उस के आकर्षक व्यक्तित्व का ही जादू था कि मामाजी की आंखों का भी अनमनापन कम हो गया. विवेक ने अगले सप्ताह सब को अपने घर आने को कहा.

परंतु अगले ही दिन शहर में कर्फ्यू लग गया. शहर के चौक में गोली चल गई थी. कुछ सिख आतंकवादी 2 हत्याएं कर के कहीं छिप गए थे. पुलिस के हाथ कुछ नहीं लगा तो शहर में कर्फ्यू लग गया. सड़कों पर केंद्रीय रिजर्व पुलिस की गश्तें लगने लगीं. जनजीवन अस्तव्यस्त हो कर भय व आतंक के घेरों में सिमट गया.

शहर की पुरानी बस्तियों वाले इलाकों में, जहां दैनिक सफाई, जमादारों पर निर्भर थी, गंदगी व सड़ांध का साम्राज्य हो गया. साधारण आय वाले घर, जहां महीने भर का राशन जमा नहीं रहता, अभावों में घिर गए. रोज मजदूरी कर के कमाने वालों के लिए तो भूखे मरने की नौबत आ गई.

8-10 दिन बाद कर्फ्यू में थोड़ी ढील दी गई. फिर धीरेधीरे कर्फ्यू उठा लिया गया.

मामाजी बड़बड़ाते रहे, ‘जिन लोगों के कारण इतना कुछ हो रहा है उन्हीं के घर में रिश्ता करने जा रहे हो?’

शिखा कहना चाहती थी, ‘नहीं, मामाजी, हथियार उठाने वाले लोग और ही हैं, राजनीतिक स्वार्थों से बंधे हुए. प्यार करने वाले तो इन बातों से कहीं ऊपर हैं,’ पर शरम के मारे कुछ कह नहीं पाती थी. आखिर कर्फ्यू हटा व जनजीवन सामान्य हो गया.

इस के बाद मामाजी विवेक के घर गए थे, तो अचानक ही उन का गुस्सा काफूर हो गया था और अनजाने उन के चिरकुमार रहने का रहस्य भी उजागर हो गया था.

विवेक के घर पहुंच कर मामाजी अचकचा से गए थे. सामने अधेड़ आयु की शालीन, सुसंस्कृत, मलमल की चादर से माथा ढके निरुपमाजी (विवेक की मां) खड़ी थीं. इस आयु में भी चेहरे पर तेज था.

‘‘नीरू, तुम…’’ मामाजी के मुख से निकला था, ‘‘आज इतने बरसों बाद मुलाकात होगी, यह तो सपने में भी नहीं सोचा था. और फिर इन परिस्थितियों में…’’

निरुपमाजी भी ठगी सी खड़ी थीं.

‘‘आप शायद वही निरुपमा हैं न जो लाहौर में हमारे कालिज में पढ़ती थीं. मुझ से अगली कक्षा में थीं.’’

मां उन्हें पहचानने का यत्न कर रही थीं.

सब के लिए यह सुखद आश्चर्य था. घर के बड़े पहले से ही एकदूसरे से परिचित थे.

‘‘यहां कैसे आईं? दंगों से कैसे बच कर निकलीं?’’ मां ने पूछा.

‘‘आप लोग तो शायद धर्मशाला चले गए थे न?’’ निरुपमाजी ने पूछा.

‘‘हां, हमें पिताजी ने पहले ही भेज दिया था. पर भैया वहीं रह गए थे,’’ मां ने बताया.

‘‘मुझे मालूम है.’’

मां, मामाजी तथा निरुपमाजी सभी जैसे अतीत में लौट गए थे.

‘‘नीरू, मैं ने तुम लोगों से कितना कहा था कि हमारी कोठी में आ जाओ. वह इलाका फिर भी थोड़ा सुरक्षित था,’’ मामाजी की आवाज जैसे कुएं से आ रही थी.

‘‘जिस दिन तुम ने यह बात कही थी और हमारे न मानने पर नाराज हो कर चले गए थे, उसी रात हमारी गली में हमला हुआ. आग, मारकाट, खून. मैं छत पर सो रही थी. उठ कर पिछली सीढि़यां फलांग कर भागी. गुंडों के हाथ से इन्हीं सरदारजी ने मुझे उस रात बचाया था. फिर कैंपों, काफिलों की भटकन. इसी बीच सारे परिवार की मौत की खबर मिली. उस समय इन्हीं ने मुझे सहारा दिया था.’’

अतीत के कांटों भरे पथ को निरुपमाजी आंसुओं से धो रही थीं. ‘‘मैं ने तुम्हें कितना ढूंढ़ा. कर्फ्यू हटा तो तुम्हारी गली में भी गया. पर वहां राख व धुएं के सिवा कुछ भी न मिला,’’ मामाजी धीरेधीरे कह रहे थे. उन का स्वर भारी हो चला था. सभी चुपचाप बैठे थे. मां मामाजी को गहरी नजरों से देख रही थीं.

सरदार हुकमसिंह ने सन्नाटा तोड़ा, ‘‘मैं ने विवेक को सिख बनाने की कभी जिद नहीं की. धर्म की आड़ में स्वार्थ का नंगा नाच हम लोग एक बार देख चुके हैं. इसलिए धर्म पर मेरा विश्वास नहीं रहा. हमारा धर्म तो केवल इनसानियत है. विवेक को भी हम केवल एक अच्छा इनसान बनाना चाहते हैं.’’

‘‘मैं आप का आभारी हूं कि आप ने सिख धर्म का अनुयायी होते हुए वर्षों पहले एक हिंदू लड़की की रक्षा की. काश, आज सभी इनसान आप जैसे होते तो घृणा की आग स्वयं ही बुझ जाती,’’ मामाजी ने भावविह्वल हो कर सरदारजी के हाथ माथे से लगा लिए.

‘‘तो भाई, क्या कहते हो, शगुन अभी दे दें?’’ शिखा के पिताजी ने पूछा.

‘‘हां…हां, क्यों नहीं. एक बार देश के टुकड़े हुए थे. उस के नासूर अभी तक रिस रहे हैं. अब फिर अगर धर्म के आधार पर दिलों का बंटवारा करेंगे तो घाव ताजे न हो जाएंगे?’’ कहते हुए मामाजी ने उंगली में पड़ी हीरे की अंगूठी उतार कर विवेक को पहना दी.

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Murder Story- कविता: क्यों विभाष ने की अपनी पत्नी की हत्या

विभाष ने पक्का निश्चय कर लिया कि भले ही उसे नौकरी छोड़नी पड़े, लेकिन अब वह दिल्ली में बिलकुल नहीं रहेगा. संयोग अच्छा था कि उसे नौकरी नहीं छोड़नी पड़ी. मैनेजमेंट ने खुद ही उस का लखनऊ स्थित ब्रांच में ट्रांसफर कर दिया.

विभाष के लिए यह दोहरी खुशी इसलिए थी, क्योंकि उस की पत्नी लखनऊ में ही रहती थी. ट्रांसफर का और्डर मिलते ही विभाष जाने की तैयारी में जुट गया, उस ने पैकिंग शुरू कर दी. वह एकएक कर के सामान बैग में रख रहा था. उस के पास एक दरजन से भी ज्यादा शर्ट थीं. उन्हें रखते हुए उसे अंदाजा हो गया कि उस के पास लगभग हर रंग की शर्ट है. लेकिन उन में नीले रंग की शर्टें कुछ अधिक ही थीं. क्योंकि अवी यानी अवनी को नीला रंग ज्यादा अच्छा लगता था.

शुरूशुरू में जब वह अवनी से मिलने जाता था, हमेशा नई शर्ट पहन कर जाता था. अवनी उस के सिर के बालों में अंगुलियां फेरते हुए कहती थी, ‘‘विभाष, नीली शर्ट में तुम बहुत स्मार्ट लगते हो.’’

अवनी के बारबार कहने की वजह से ही नीला रंग उस की पसंद बन गया था. शर्टों को देखतेदेखते उस ने अपना हाथ सिर पर फेरा तो उसे अजीब सा लगा. वह अपना घर खाली कर रहा था, वह रसोई का सारा सामान समेट चुका था. फ्रीज में रखा जूस और ब्रेड भी खत्म हो गई थी. डाइनिंग टेबल पर रखी फलों की टोकरी भी खाली थी.

सब चीजों को खाली देख कर उस से अपने भरे हुए बैग की ओर देखा. उस के मन में आया कि घर खाली करने में वह जितना समय लगाएगा, उसे उतनी ही देर होगी. अभी उस के बहुत काम बाकी था, जिस के लिए उसे काफी दौड़भाग करनी थी.

अभी उस ने बैंक का अपना खाता भी बंद नहीं कराया था. लेकिन इस के लिए वह परेशान भी नहीं था. क्योंकि उस में कोई ज्यादा रकम नहीं थी. थोड़े पैसे पडे़ थे. लेकिन एक बार बैंक मैनेजर से मिलने का उस का मन हो रहा था. बैंक मैनेजर से ही नहीं, अवनी से भी. दिल्ली आ कर उस ने नोएडा में अपनी नौकरी जौइन की थी. तब फाइनेंस मैनेजर गुप्ताजी ने उसे बैंक के खासखास कामों की जिम्मेदारी सौंप दी थी, जो उस ने बखूबी निभाई थी.

विभाष की कार्यकुशलता देख कर ही उसे बैंक के बड़े काम सौंपे गए थे. बैंक मैनेजर मि. शर्मा से उस की अच्छी पटती थी. शर्माजी ने ही उस का परिचय अवनी से कराया था. इस के बाद बैंक के कामों को ले कर उस की अवनी से अकसर मुलाकात होने लगी, जो धीरेधीरे बढ़ती गई.

विभाष और बैंक अधिकारी अवनी की ये मुलाकातें जल्दी ही दोस्ती में बदल गईं. कभीकभी दोनों बैंक के बाहर भी मिलने लगे. उन की इन मुलाकातों में अवनी की अधिक उम्र, 3 साल के बेटे की मां होना और विधवा होने के साथसाथ लोगों की कानाफूसी भी आड़े नहीं आई. उन की दोस्ती और प्यार गंगा में तैरते दीए की तरह टिमटिमाता रहा.

मजे की बात यह थी कि दोनों का एक शौक मेल खाता था, कौफी पीने का. उन्हें जब भी मौका मिलता, अट्टा मार्केट स्थित कौफीहाउस में कौफी पीने पहुंच जाते. कौफी पीते हुए दोनों न जाने कितनी बातें कर डालते. उन में मनीष की यादें भी होती थीं. मनीष यानी अवनी का पति.

ध्रुव की मस्ती का खजाना भी कौफी की सुगंध में समाया होता था. मनीष के साथ शादी और उस की छोटीछोटी आदतों का विश्लेषण भी कौफी की मेज पर होता था. कभीकभी दोनों चुपचाप एकदूसरे को ताकते हुए कौफी की चुस्की लेते रहते.

उस समय दोनों के बीच भले ही मौन छाया रहता, लेकिन दिल कोई मधुर गीत गाता रहता. अवनी के गालों पर आने वाली लटों को विभाष एकटक ताकता रहता. उन लटों से वह कब खेलने लगा उसे पता ही नहीं चला.

मनीष की बातें करते हुए अवनी के चेहरे पर जो भाव आते, वे विभाष को बहुत अच्छे लगते थे. ऐसे में एक दिन उस ने कहा भी था, ‘‘अवनी, तुम्हारी बातों और आंखों में बसे मनीष को मैं अच्छी तरह पहचान गया हूं. लेकिन अब तुम्हारे जीवन में विभाष धड़कने लगा है.’’

यह सुन कर अवनी की आंखों में अनोखी चमक आ गई थी. उस ने कहा था, ‘‘विभाष, मेरी और मनीष की शादी घर वालों की मरजी से हुई थी. पर हमारे प्यार के लय में लैला मजनूं जैसी धड़कनें थीं.’’ यह कहतेकहते उस की आवाज गंभीर हो गई थी. उस ने आगे कहा था, ‘‘मेरा ध्रुव मेरे लिए मनीष के प्यार की भेंट है. अब वही मेरे जीवन का आधार है.’’

विभाष की शादी कुछ दिनों पहले ही हुई थी. उस की पत्नी लखनऊ यूनिवर्सिटी से बीएड कर रही थी. इसलिए वह विभाष के साथ दिल्ली नहीं आ सकी थी. वैसे भी यहां विभाष की नईनई नौकरी थी. वह यहां अच्छी तरह जम कर, अपना फ्लैट ले कर पत्नी को लाना चाहता था.

अब उसे पत्नी के बिना एक पल भी रहना मुश्किल लगने लगा था. एक दिन अवनी ने उस से पूछा भी था, ‘‘तुम यहां से पत्नी के लिए क्या ले जाओगे?’’

जवाब देने के बजाए विभाष अवनी को एकटक ताकता रहा. उसे इस तरह ताकते देख अवनी खिलखिला कर हंसते हुए बोली, ‘‘अरे मेरे बुद्धू राम, तुम यहां से जा रहे हो तो पत्नी के लिए कुछ तो ले जाओगे. उसे क्या पसंद है?’’

‘‘उसे रसगुल्ला बहुत पसंद है.’’ विभाष ने कहा.

अवनी और जोर से हंसी, किसी तरह हंसी को रोक कर उस ने कहा, ‘‘अरे रसगुल्ला तो पेट में जा कर हजम हो जाएगा. तुम्हें नहीं लगता कि कोई ऐसी चीज ले जानी चाहिए, जो महिलाओं को अच्छी लगती हो.’’

विभाष को असमंजस में फंसा देख कर अवनी मुसकरा कर रह गई. कुछ दिनों बाद अवनी ने एक बढि़या सी हरे रंग की साड़ी ला कर विभाष को देते हुए कहा, ‘‘इसे अपनी पत्नी के लिए ले जाइए, उन्हें बहुत अच्छी लगेगी.’’

विभाष कुछ देर तक उस साड़ी को हैरानी से देखता रहा. उस के बाद अवनी पर नजरें जमा कर पूछा, ‘‘तुम्हें कैसे पता चला कि यह रंग मेरी पत्नी को बहुत पसंद है?’’

‘‘तुम्हारी बातों से.’’ अवनी ने सहज भाव से कहा.

थोड़ी देर तक विभाष कभी साड़ी को तो कभी अवनी को देखता रहा. वह अवनी की दी गई भेंट को लेने से मना नहीं कर सकता था, इसलिए साड़ी ले कर अपने औफिस बैग में रख ली. धीरेधीरे दोनों में नजदीकियां बढ़ती गईं. यह नजदीकी कोई और रूप लेती, उस के पहले ही विभाष ने वह समाचार ‘प्रेमिका के लिए पत्नी की हत्या’ पढ़ा. ऐसे में उस का घर ही नहीं जिंदगी भी बिखर सकती थी.

वह भूल गया था कि यहां रह कर वह अवनी से दूर नहीं रह सकता. इसीलिए उस ने वापस जाने का निर्णय लिया था. उस के बौस उस के काम से खुश थे. इसलिए उसे अपने लखनऊ स्थित औफिस में शिफ्ट कर दिया था. इस तरह उस की नौकरी भी बची रहती और वह अपनी पत्नी के पास भी पहुंच जाता.

उस ने अलमारी से अवनी द्वारा दी गई साड़ी निकाली. कुछ देर तक साड़ी को देखने के बाद उस ने जैसे ही बैग में रखी, डोरबेल बजी. कौन हो सकता है. उस ने सब के पैसे तो दे दिए थे. अपने जाने की बात भी बता दी थी.

उस ने दरवाजा खोला तो सामने अवनी को खड़ा देख हैरान रह गया. वह इस वक्त आ सकती है, उसे जरा भी उम्मीद नहीं थी, इसीलिए वह उसे अंदर आने के लिए भी नहीं कह सका. अवनी उस का हाथ पकड़ कर अंदर ले आई. विभाष उसे देखने के अलावा कुछ कह नहीं सका.

अवनी के अंदर आते ही जैसे एक तरह की सुगंध ने उसे घेर लिया. उस सुगंध ने उस के मन को ही नहीं, बल्कि देह को. खास कर आंखें को घेर लिया था. उस का मन अभी भी मानने को तैयार नहीं था कि अवनी उस के कमरे में उस के साथ मौजूद है. जबकि अवनी उस का हाथ थामे उस के समने खड़ी थी.

सुगंध उस की आंखों में भरी थी, जो मन को लुभा रही थी. क्योंकि अवनी एक मस्ती भरे झोंके की तरह थी. वह कब खुश हो जाए और कब नाराज, अंदाजा लगाना मुश्किल था. तभी उसे कुछ दिनों पहले की बात याद आ गई.

अचानक एक दिन अवनी ने कौफी पीने जाने से मना कर दिया था. ऐसा क्यों हुआ, विभाष अंदाजा भी नहीं लगा सका. उस ने भी अवनी से कौफी पीने चलने का आग्रह नहीं किया. कुछ कहे बगैर वह वहां से चला गया. जहां वह हमेशा कौफी पीता था, वहीं गया.

अवनी ने कौफी पीने से मना कर दिया था, इसलिए कौफी पीने का उस का भी मन नहीं हुआ. आखिर में बगैर कौैफी पिए ही वह घर लौट आया. विभाष इतना ही सोच पाया था कि अवनी रसोई के पास आ कर बोली, ‘‘कौफी है या वो भी खत्म कर दी?’’

अब तक विभाष को घेरने वाली मनपसंद सुगंध हट गई थी. उस ने आंखें झपकाते हुए कहा, ‘‘नहीं…नहीं, कौफी की शीशी अपनी जगह पर रखी है.’’

कहता हुआ विभाष अवनी के पीछेपीछे किचन में आ गया. उस ने किचन की छोटी सी अलमारी से सारा सामान समेट लिया था.

लेकिन कौफी की शीशी और चीनी रखी थी. उस में से कौफी की शीशी निकाल कर अवनी के हाथ में रख दी. अवनी कौफी बनाने लगी तो वह बाहर आ गया. अवनी कौफी के कप ले कर कमरे में आई तो विभाष वहां नहीं था. उसे कौफी की सुगंध बहुत पसंद थी. वह वहां से चला गया, यह सोचते हुए अवनी कौफी से निकलती भाप को देखती रही.

पलभर बाद विभाष हांफता आया तो उस के हाथों में मोनेको और मेरी गोल्ड बिस्किट के पैकेट थे. अवनी ने कहा, ‘‘आज तो बिना बिस्किट के भी चल जाता.’’

‘‘जो आदत है, वह है. उस के बिना कैसे चलेगा?’’ विभाष ने कहा.

‘‘तुम्हारे बिना तो अब चलाना ही पड़ेगा.’’ अवनी ने कहा.

इसी के साथ दोनों की नजरें मिलीं, जैसे बिना गिरे कोई चीज व्यवस्थित हो जाए. उसी तरह उन की नजरें व्यवस्थित हो गई थीं. अवनी ने पूछा, ‘‘अभी तुम्हारी कितनी पैकिंग बाकी है?’’

‘‘लगभग हो ही गई है.’’

‘‘तो आज आखिरी बार साथ बैठ कर कौफी पी लेते हैं.’’ कहते हुए अवनी कौफी के दोनों कप ले कर बालकनी में आ गई. वहां पड़ी प्लास्टिक की कुरसी पर बैठते हुए अवनी ने कहा, ‘‘तुम्हें यहां आए कितने दिन हुए?’’

विभाष ने कौफी की चुस्की लेते हुए कहा, ‘‘करीब 1 साल.’’

‘‘मुझे अच्छी तरह याद है. तुम्हें यहां आए 11 महीने 10 दिन हुए हैं.’’ अवनी ने कहा.

विभाष ने कोई जवाब नहीं दिया. क्योंकि वह जानता था कि बैंक अधिकारी अवनी का जोड़नाघटाना गलत नहीं हो सकता. अवनी ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘तुम जब भी आए, अपनी जानपहचान को गिनो तो एक लंबा अरसा हो गया, लेकिन देखा जाए तो यह कोई बहुत लंबा अरसा भी नहीं है.

‘‘तुम्हारे आने से जिंदगी जीने के लिए मुझे एक साथी मिल गया था. मैं मनीष की यादों के साथ जी रही थी और आज भी जी रही हूं. पर तुम से दोस्ती होने के बाद हमारी यानी मेरी और मनीष की यादों का बुढापा जाता रहा. हम कितनी बार कौफी हाउस में साथसाथ बैठे, ध्रुव को ले कर पार्क में बैठे. वहां बैठ कर डूबते सूरज को साथसाथ देखते रहे. कितने मनपसंद काम साथसाथ किए.’’

‘‘अवनी, तुम यह बातें इस तरह बता रही हो, जैसे कविता पढ़ रही हो.’’ विभाष ने कहा. उसे अवनी के मुंह से यह सब कहना अच्छा लग रहा था.

‘‘अपनी दोस्ती भी तो एक कविता की ही तरह है.’’ अवनी ने आंख बंद कर के कहा.

‘‘मुझे लगता है कि अपनी इस दोस्ती को कविता की ही तरह रखना है तो हमारा अलग हो जाना ही ठीक है.’’

इतना कह कर अवनी खड़ी हो गई. विभाष ने उस का हाथ थाम कर कहा, ‘‘मैं तुम्हारी बात को ठीक से समझ नहीं सका. जरा अपनी बात को इस तरह कहो कि समझ में आ जाए.’’

‘‘विभाष, तुम ने मुझे जितने भी दिन दिए, वे मेरे लिए यादगार रहेंगे. मैं ने तुम्हें अपने मन मंजूषा में संभाल कर रख लिया है. यह थोड़ा मनपसंद समय और लंबा खिंचता तो उसे समय की नजर लग सकती थी. उस में न जाने कितनी झूठी सच्ची बातों और घटनाओं का टकराव होता. तुम्हारी शादी अनीशा से हुई है. तुम सुख से उस के साथ अपना जीवन व्यतीत करो. मैं अपनी जिंदगी मनीष की यादों और ध्रुव को पालने- पोसने में बिता लूंगी.

‘‘वादा करो कि तुम मुझे कभी ईमेल नहीं करोगे. जब कभी मेरी याद आए, अनीशा का हाथ पकड़ कर अस्त होते सूर्य को देखना और प्यार की छोटीछोटी कविताएं पढ़ कर सुनाना. अपना जीवन सुखमय बनाना.’’ इतना कह कर अवनी ने विभाष के गाल पर हल्के से चुंबन करते हुए कहा, ‘‘विभाष, मुझे तो प्यार की मीठी कविता होना है, महाकाव्य नहीं.’’

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दिन के 10 बजे थे. उत्तराखंड आपदा राहत केंद्र की संचालिका अम्माजी अपने कार्यालय में बैठी आपदा राहत केंद्र के कार्यों एवं गतिविधियों का लेखाजोखा देख रही थीं. कार्यालय क्या था, टीन की छत वाला एक छोटा सा कमरा था जिस में एक तरफ की दीवार पर कुछ गुमशुदा लोगों की तसवीरें लगी थीं. दूसरी तरफ की दीवार पर कुछ नामपते लिखे हुए थे उन व्यक्तियों के जिन के या तो फोटो उपलब्ध नहीं थे या जो इस केंद्र में इस आशा के साथ रह रहे थे कि शायद कभी कोई अपना आ कर उन्हें ले जाएगा.

दरवाजे के ठीक सामने कमरे के बीचोंबीच एक टेबल रखी थी जिस के उस तरफ अम्माजी बैठ कर अपना काम करती थीं. उन का चेहरा दरवाजे की तरफ रहता था ताकि आगंतुक को ठीक से देख सकें. कमरे के बाहर रखी कुरसी पर जमुनिया बैठती थी, आने वाले लोगों का नामपता लिख कर अम्माजी को बताने के लिए. फिर उन के हां कहने पर वही आगंतुक को अंदर ले भी जाती थी उन से मिलवाने. जमुनिया की बगल में जमीन पर बैठा एक आंख वाला और एक टांग से लंगड़ा मरियल सा कुत्ता भूरा  झपकी लेता रहता था.

उत्तराखंड में मईजून का महीना टूरिस्ट सीजन होता है. तपती गरमी से जान बचा कर लाखों की संख्या में पर्यटक पहाड़ों की ठंडक का मजा लेने आए हुए थे. ऐसे में जून 2013 में अचानक आई प्राकृतिक विपदा ने उत्तराखंड के जनजीवन को  झक झोर कर रख दिया था. भारी संख्या में पर्यटकों के साथसाथ स्थानीय लोग भी हताहत हुए थे.

यह राहत केंद्र जून 2013 में आए प्राकृतिक विपदा से प्रभावित स्थानीय लोगों की सहायता के लिए काम करता था. सब से महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि इस के सभी सदस्य किसी न किसी रूप में इस आपदा से पीडि़त और ग्रसित थे. किसी ने धन खोया था तो किसी ने जन. अगर किसी का कोई अपना आ जाता, तो सारे सदस्य खुशीखुशी उस सदस्य को गले लगा कर उस के परिवार को सौंप देते.

झपकी लेता हुआ भूरा अचानक भूंकने लगा. उस के भूंकने की आवाज सुन कर अम्माजी समझ गईं कि जरूर कोई दुखियारा आया होगा. कई वर्ष बीत जाने के बाद भी प्रतिदिन कोई न कोई आ जाता है सहायता मांगने. कभी कोई रोजीरोटी की तलाश में तो कोई अपनों की. जमुनिया ने उस व्यक्ति का नामपता लिख कर कागज अंदर ला कर टेबल पर रख दिया.

अम्माजी रजिस्टर में कुछ लिख रही थीं, बिना देखे ही जमुनिया को आगंतुक को अंदर भेजने का इशारा कर दिया. पता नहीं क्यों, आज आगंतुक के साथ भूरा भी अंदर चला आया अपनी दुम हिलाते हुए, वरना अम्माजी के आवाज दिए बिना कभी भी वह अंदर नहीं आता था.

अपने काम में मगन अम्माजी ने टेबल पर रखा कागज उठाया और पढ़ने लगीं. नाम-हरीश रावत, उम्र-65 साल, गांव-बिसुनपुरा, जिला-चमोली, उद्देश्य-गुमशुदा धर्मपत्नी की तलाश, पत्नी का नाम-लाजवंती रावत, उम्र-61 साल, पहचान-रंग गोरा, भारी बदन और चेहरे पर सिंदूर की बड़ी सी बिंदी. उन्होंने नाम व पता एक बार और पढ़ा और सन्न रह गईं. सिर का पल्लू आगे सरका, आंख उठा कर सामने देखा, फटेपुराने कपड़ों में भूख और लाचारी में डूबा एक व्यक्ति, जो अपनी उम्र से कम से कम 10 वर्ष ज्यादा का लग रहा था, आंखें नीची किए और अपने हाथों को जोड़े खड़ा था, याचनाभरा भाव लिए हुए.

15 जून, 2013 की आधी रात का एकएक लमहा क्या वे भूल सकती हैं? बाहर के कमरे में लाजवंती और उन के पति सो रहे थे. कमरे में प्रकाश के लिए एक ढिबरी रातभर जलती रहती थी. पति की उम्र 62-63 वर्ष की थी. दुबलेपतले और फुरतीले होने के कारण वे अपनी उम्र से 5 वर्ष कम ही प्रतीत होते थे, जबकि वह भारी बदन की थीं, घुटनों में दर्द रहने के कारण चलनेफिरने में उन्हें दिक्कत होती थी.

रात में दर्द की दवा लेने पर ही नींद आती थी उन्हें. सर्दी में दर्द ज्यादा बढ़ जाता तब छोटीछोटी जरूरतों के लिए पति और बहुओं पर निर्भर रहना पड़ता था. अंदर के 2 कमरों में उन के 2 बेटे, बहुएं, पोतेपोतियां सो रहे थे. भरापूरा परिवार था उन का. थोड़ीबहुत खेतीबाड़ी और दरवाजे पर खड़ी गाएं उन के परिवार की दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त थीं.

तभी वह भयानक जलजला आया. पहले तो किसी को कुछ पता ही नहीं चला. पता चलते ही चारों तरफ ‘भागो, भागो पहाड़ हिल रहा है’ की चीखपुकार मच गई. बगल में पति गहरी नींद में सो रहे थे, उन्हें जोर से हिलाया तो वे उठे, अंदर जा कर बच्चों को आवाज लगाई. बेटेबहुएं अपनेअपने बच्चों को ले कर किसी तरह बाहर भाग रहे थे किसी सुरक्षित स्थान की तलाश में.

चारों तरफ अफरातफरी मची हुई थी. जान के खतरे का आभास होते ही आननफानन भाग खड़े हुए फुरतीले हरीश रावत भी. एक बार पलट कर देखा भी नहीं घुटनों से लाचार अपनी बेबस पत्नी को, जिस ने पिछले 35 सालों से उन के हर सुखदुख में साथ दिया था.

बहुत आहत हुई थीं लाजवंती पति के इस रवैए से. कहां सात फेरे ले कर सात जन्मों तक साथ निभाने की कसमें खाई थीं दोनों ने, पर सैकंडभर में ही सबकुछ साफ हो गया. एक न एक दिन मरना तो सब को है, पर जीतेजी अपनों का साथ छूटने का दुख मरने से भी भयंकर होता है, ऐसा महसूस हुआ था उस पल.

उस रात अम्माजी बिलकुल असहाय और संवेदनशून्य पड़ी थीं अपने बिस्तर पर. तभी भूरा एक आवारा कुत्ता, जो घर के बाहर वाले बरामदे में पड़ा रहता था, न जाने किधर से अंदर आया और उन्हें देख कर भूंकने लगा मानो कह रहा हो जल्दी चलो, वरना अनर्थ हो जाएगा. वे चाहतीं तो धीरेधीरे निकलने की कोशिश कर सकती थीं. पर जीने की इच्छा तो खत्म हो चुकी थी, अब जीना भी किस के लिए?

उन्होंने भूरा से कहा, ‘तू भी क्यों नहीं भाग जाता नालायक, मुझे छोड़ कर?’ पर भूरा जाता तो कैसे, कुत्ता जो था. एक बार जिस के हाथ की रोटी खा ली, जिंदगीभर उस का गुलाम बन गया. तभी ऐसा लगा कि भूचाल आ गया हो, सबकुछ उलटपुलट…उस के बाद जब आंखें खुलीं तो देखा ऊपर से रोशनी आ रही है, दिन निकल चुका था, ध्यान से देखने पर अनुमान लगाया, शायद चट्टान के टुकड़े छत पर गिरने से छत टूट गई थी और कमरे में चारों तरफ रोड़े पड़े थे. वे नीचे पड़ी थीं और उन की खाट उन के ऊपर.

फिर जब दोबारा होश आया तो खुद को अस्पताल में पाया. लोगों ने बताया कि एक घायल कुत्ते ने किस तरह लोगों को भूंकभूंक कर बताया कि कोई इस मलबे में दबा पड़ा है. तब से वह कुत्ता भूरा और लाजवंती साथसाथ ही रहते हैं. उपचार के बाद धीरेधीरे वे थोड़ी ठीक हुईं तो लोगों के दुखदर्द देख कर अपना गम भूल गईं तथा दिनरात जरूरतमंद लोगों की सेवा में लीन हो गईं. शारीरिक और मानसिक परिश्रम करने से इस दौरान शरीर गल चुका था, अब वे सफेद वस्त्र पहनतीं और मस्तक पर बिंदी नहीं लगाती थीं. उन के सेवाभाव के कारण उन्हें आपदा राहत केंद्र की संचालिका बना दिया गया. किसी को उन का असली नाम नहीं मालूम था. सब उन्हें सम्मान से अम्माजी कहते थे.

तभी जमुनिया अंदर आई यह सोच कर कि अम्माजी क्या आदेश देती हैं. अम्माजी ने इशारे से दीवार पर लगे फोटो और नामपता दिखाने को कहा. आगंतुक ने बड़े ध्यान से उन्हें देखा और निराश हो कर वहीं धम्म से बैठ गया जमीन पर. सारे के सारे अनजान थे उस के लिए. कुछ देर तक सन्नाटा छाया रहा. फिर जमुनिया उस व्यक्ति को ले कर बाहर चली गई और क्षमा मांगते हुए कहा कि यह केंद्र उन की सहायता करने में असमर्थ है. फिर हमेशा की तरह सांत्वना दी और कहा, ‘‘अंकल, हौसला रखिए, आप को आप की पत्नी अवश्य मिल जाएंगी.’’

जमुनिया के साथ ही भूरा भी चल पड़ा उस आगंतुक के पीछेपीछे, जैसे पुराना दोस्त हो. पता नहीं कुत्ते में क्या बात थी कि आगंतुक को अपने बरामदे में पड़े उस आवारा कुत्ते की याद आ गई, जिसे मना करने के बावजूद भी लाजवंती सुबहशाम कुछ न कुछ खाने को दे देती थीं और अकस्मात ही उस के मुंह से निकल पड़ा, ‘भूरा’. नाम सुनते ही कुत्ता अपनी दुम हिलाने लगा.

रात के करीब 10 बजे भूरा के भूंकने से अम्माजी की नींद खुली, लगा किसी ने हौले से दरवाजा खटखटाया हो, ठीक उसी तरह जिस तरह शादी के बाद उन के नएनवेले पति सब के सोने के बाद खटखटा कर कमरे में घुसते थे. उन्हें लगा, मन का वहम है, पर थोड़ी देर बाद जब दोबारा दरवाजा खटखटाया गया तो उन्होंने दरवाजा खोल दिया. देखा, हरीश खड़े थे, आंखें नीची किए और अपने हाथों को जोड़े, कहा, ‘‘लाजो, मुझे माफ कर दो, मुझसे बड़ी गलती हो गई.’’

धक से कलेजा हो गया एकदम उन का. ‘यह भूरा भी न,’ अम्माजी ने सोचा.

दिल कड़ा कर के कहा, ‘‘कौन सी लाजो? कैसी लाजो?’’

हरीश बोले, ‘‘मेरी धर्मपत्नी, मेरी हमसफर.’’

‘‘वह तो मर चुकी, 15 जून, 2013 की आधी रात को ही जब किसी अपने ने उस का साथ छोड़ दिया था बीच सफर में,’’ कह कर उन्होंने दरवाजा कस कर बंद कर लिया.

 

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