जी टीवी का नया फिक्शन शो ‘सरू’, ”एक गांव की लड़की के बड़े शहर के सपनों और संघर्ष की कहानी”

ज़ी टीवी का नया फिक्शन शो ‘सरू’ एक ऐसी प्रेरणादायक कहानी लेकर आ रहा है, जिसमें एक युवा लड़की अपने सपनों को सच करने के लिए हिम्मत दिखाती है. इस दिल छू लेने वाली कहानी में मोहक मटकर निभा रही हैं सरू का किरदार, उनके साथ हैं शगुन पांडे और अनुष्का मर्चंडे, जो इस जज़्बे और जिद की कहानी में नजर आएंगे.

क्या होता है जब एक गांव की लड़की समाज की बनाई हदों से आगे जाकर बड़े सपने देखने की हिम्मत करती है? जब उसकी जड़ें उसे रोकने की कोशिश करती हैं, लेकिन उसका जुनून उसे उड़ने पर मजबूर कर देता है. ज़ी टीवी, जो हमेशा दिल को छूने वाली कहानियां दिखाता आया है, अब एक नया फिक्शन शो ‘सरू’ लेकर आ रहा है, जो आपको अंदर तक प्रेरित कर देगा.यह कहानी सरू नाम की एक जिद्दी लड़की की है, जो राजस्थान के खारेस गांव से है. इस शो में दर्शक सरू के साथ उसकी उस जद्दोजहद का हिस्सा बनेंगे, जिसमें वो आगे की पढ़ाई करने का सपना लिए उस समाज से टकराती है, जहां ऐसे ख्वाबों को अक्सर दबा दिया जाता है.उसके गांव में मौके कम हैं, और उसकी मां उसे बाहर भेजने को लेकर हिचकिचा रही है. ऐसे में सरू का मुंबई जाकर कॉलेज में एडमिशन लेना उसकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा मोड़ बन जाता है — जहां वो जज़्बातों के उतार-चढ़ाव, नई चुनौतियों और अपने आत्मविकास के दौर से गुजरती है. शशि सुमीत प्रोडक्शंस प्राइवेट लिमिटेड द्वारा निर्मित नया शो ‘सरू’ 12 मई 2025 से रोज शाम 7:30 बजे ज़ी टीवी पर प्रसारित होगा और दर्शकों को ग्रामीण राजस्थान से मुंबई की रफ्तार भरी ज़िंदगी तक का सफर दिखाएगा.

मोहक मटकर इस शो में लीड रोल में डेब्यू कर रही हैं. वह सरू का किरदार निभा रही हैं, जो समझदार, आत्मविश्वासी और अपने सिद्धांतों पर चलने वाली एक आज़ाद सोच की लड़की है.वो सही बात पर हमेशा डटी रहती है, बेझिझक आगे बढ़ती है और हर मुश्किल से लड़ने का हौसला रखती है. लेकिन उसके दिल में एक नरमी भी है और कभी-कभी वो भी टूट जाती है. सरू कबड्डी की चैंपियन है और उसका सपना है एक दिन जिला कमिश्नर बनकर अपने और अपने परिवार का भविष्य संवारना.

सरू की राह में अड़चनें लाने वाली है अनिका, जिसका रोल अनुष्का मर्चंडे निभा रही हैं.अनिका को हमेशा सबका ध्यान चाहिए और अगर चीजें उसकी मनमानी के हिसाब से न हों, तो वो रूखा बर्ताव करने लगती है.उसे सरू से सख्त चिढ़ है और वो उसे हर हाल में नीचा दिखाना चाहती है.

सरू में मुख्य भूमिका निभाने वाले हीरो शगुन पांडे इस शो में वेद बिड़ला का रोल निभा रहे हैं. वेद एक ऐसा नौजवान है जो सीधा-सादा, विनम्र और अपने उसूलों पर चलता है. वो कॉलेज में लेक्चरर है और अपने ज्ञान और सादगी से सभी का सम्मान पाता है. वो अपने घर का जिम्मेदार बेटा है और अपनी भाभी का सबसे बड़ा सहारा भी.दोनों के बीच गहरी दोस्ती और भरोसे का रिश्ता है. वेद हमेशा सही के लिए खड़ा रहता है, चाहे हालात कितने भी मुश्किल क्यों न हों. जैसे-जैसे सरू अपने सपनों की ओर कदम बढ़ाती है, दर्शकों को मुंबई की उसकी यह नई कहानी वेद और अनिका के साथ देखने को मिलेगी, जिसमें होगा ड्रामा, जज़्बा और ढेर सारे जज़्बात.

ज़ी टीवी के चीफ चैनल ऑफिसर, मंगेश कुलकर्णी ने कहा, “ज़ी टीवी में हमारा हमेशा यही प्रयास रहता है कि हम ऐसी कहानियां पेश करें जो सिर्फ दर्शकों का ध्यान न खींचें, बल्कि उनके सपनों और जज़्बातों से भी गहराई से जुड़ें.‘सरू’ एक नई और प्रेरणादायक कहानी लेकर आया है. एक गांव की लड़की जो समाज की रुकावटों के बावजूद अपने सपनों के पीछे डटकर खड़ी रहती है.ये शो उस एहसास को छूता है, जब कोई अपनी जानी-पहचानी दुनिया से बाहर निकलकर कुछ बड़ा करने का फैसला करता है.इसमें रिश्तों की उलझनें भी हैं और इमोशनल उतार-चढ़ाव भी. शशि और सुमीत मित्तल जैसे दूरदर्शी क्रिएटर्स के साथ मिलकर हम एक ऐसी कहानी लाना चाहते हैं, जो हमारे कंटेंट की विविधता को दिखाए और हर पीढ़ी के दर्शकों से जुड़ सके.

यह एक ऐसी लड़की का सफर दिखाता है जो राजस्थान के एक छोटे-से गांव से निकलकर समाज की सीमाओं को पार करने का सपना देखती है.

सारू का किरदार निभाने वाली मोहक मटकर के अनुसार, ‘सरू’ मेरे दिल में एक खास जगह रखती है क्योंकि यह मेरी पहली लीड भूमिका है. जब मैंने शो की स्क्रिप्ट पढ़ी, तो मुझे पता था कि यह वो कहानी है, जिसका हिस्सा मैं बनना चाहती थी.’सरू’ सिर्फ एक शो या किरदार नहीं है वह सहनशीलता और अटूट हौसले का प्रतीक है. मैं ज़ी टीवी की तहे दिल से शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने मुझे इतनी दमदार भूमिका दी और मैं गर्व महसूस करती हूं कि मैं उसकी कहानी को जीवन्त कर रही हूं. अब मुझे उम्मीद है कि मैं ‘सरू’ और उसके मुश्किल सफर के जरिए दूसरों को भी अपनी आवाज़ खोजने के लिए प्रेरित कर सकूं.

शगुन पांडे ने कहा, “’सरू’ एक ऐसा शो है जो सपनों को पूरा करने की कहानी बताता है, भले ही इसके रास्ते में कितनी ही रुकावट क्यों ना हो. मुझे उम्मीद है कि दर्शक इसे उतना ही पसंद करेंगे जितना हम सभी करते हैं। यह शो वाकई मुझे एक इंसान के रूप में भी परिभाषित करता है, और मुझे इसका हिस्सा बनकर खुशी है। मेरा किरदार ‘वेद’ दर्शकों के लिए एक ताज़गी भरा सरप्राइज होगा, क्योंकि यह अब तक निभाए गए मेरे किसी भी किरदार से अलग है और यह मुझे अपनी एक्टिंग स्किल्स को नए तरीके से दिखाने का मौका देता है.मैं इसके दृढ़ निश्चय और सही काम करने की प्रतिबद्धता से बहुत प्रभावित हुआ था, और मैं उसकी कहानी को दर्शकों के साथ साझा करने के लिए उत्सुक हूँ.

‘सरू’ एक नई राह पर निकलने वाली है, जहां उसे कई चुनौतियों, अजीब परिस्थितियों और बड़े शहर में अपनी पहचान बनाने की कठिनाई का सामना करना पड़ेगा.क्या वो इन सभी अड़चनों को पार कर अपने सपनों को पूरा कर पाएगी?जानने के लिए देखना होगा ‘सरू’. जिसका 12 मई 2025 को ज़ी टीवी पर प्रीमियर होगा और रोज शाम 7:30 बजे प्रसारित किया जाएगा.

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सवाल

मैं 83 वर्षीय वृद्ध हूं. पत्नी की उम्र 75 वर्ष है. बच्चे भी पोते पोतियों वाले हो गए हैं. मैंने करीब 35-40 साल पहले अपना नसबंदी औपरेशन कराया था. न तो उस से और न ही इतनी उम्र हो जाने पर मेरी, बल्कि कहना चाहिए हम दोनों की कामुकता में कोई अंतर आया है. हम अब भी महीने में 2-3 बार सैक्स करते हैं. प्राय: इस उम्र तक आते आते लोगों की सैक्स के प्रति विरक्ति हो जाती है. हमारी क्यों नहीं हो रही?

जवाब
कामेच्छा की कोई तय सीमा नहीं होती, न ही कोई मानदंड होता है. यह व्यक्ति विशेष की सामर्थ्य और इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है. जहां तक नसबंदी औपरेशन की बात है, उस का भी इस पर दुष्प्रभाव नहीं होता. आप इस उम्र में भी अपनी सैक्स लाइफ का आनंद ले रहे हैं, तो यह अच्छी बात है.

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पचपन में भी न करें सेक्स से परहेज

कुछ समय पहले की बात है. एक विख्यात सेक्स विशेषज्ञ को एक महिला का पत्र मिला. लिखा था, मेरे पति 54 साल के हैं. उन्होंने फैसला किया है कि वह अब भविष्य में मुझ से कोई जिस्मानी संबंध न रखेंगे. उन का कहना है कि उन्होंने कहीं पढ़ा है कि 50 साल बाद वीर्य का निकलना मर्द पर अधिक शारीरिक दबाव डालता है और वह अगर नियमित संभोग में लिप्त रहेगा तो उस की आयु कम रह जाएगी यानी वह वक्त से पहले मर जाएगा. इसलिए उन्होंने सेक्स को पूरी तरह से त्याग दिया है. क्या इस बात में सचाई  है? अगर नहीं, तो आप कृपया उन्हें सही सलाह दें.

मैं आशा करती हूं कि इस में कोई सत्य न हो, क्योंकि यद्यपि मैं 50 की हूं मेरी इच्छाएं अभी बहुत जवान हैं. मैं इस विचार से ही बहुत उदास हो जाती हूं कि अब ताउम्र मुझे सेक्स सुख की प्राप्ति नहीं होगी. मैं ने अपने पति को समझाने की बहुत कोशिश की. मुझे यकीन है कि वह गलत हैं. लेकिन मेरे पास कोई मेडिकल सुबूत नहीं है, इसलिए वह मेरी बात पर ध्यान नहीं देते. मुझे विश्वास है कि जहां मैं नाकाम रही वहीं आप कामयाब हो जाएंगे.

यह केवल एक महिला का दुखड़ा नहीं है. अगर सर्वे किया जाए तो 50 से ऊपर की ज्यादातर महिलाएं इसी कहानी को दोहराएंगी और महिलाएं ही क्यों पुरुषों का भी यही हाल है. सेक्स से इस विमुखता के कारण स्पष्ट और जगजाहिर हैं, लेकिन एक बात जिसे मुश्किल से स्वीकार किया जाता है और जो आधुनिक शोध से साबित है, वह यह है कि सेक्स न करने से व्यक्ति जल्दी बूढ़ा हो जाता है और उसे बीमारियां भी घेर लेती हैं.

एक 55 साल की महिला से सेक्स के बाद जब उस के प्रेमी ने कहा कि वह जवान लग रही है, तो उस ने आईना देखा. उस ने अपने शरीर में अजीब किस्म की तरंगों को महसूस किया और उसे लगा कि वह अपने जीवन में 20 वर्ष पहले लौट आई है.

50 के बाद सेक्स में दिलचस्पी कम होने की कई वजहें हैं. हालांकि अब वैदिक काल जैसी कट्टरता नहीं है, लेकिन अब भी सोच यही है कि 50 पर गृहस्थ आश्रम खत्म हो जाता है और वानप्रस्थ आश्रम शुरू हो जाता है. इसलिए शायद ही कोई घर बचा हो जिस में यह वाक्य न दोहराया जाता हो : नातीपोते वाले हो गए, अब तुम्हारे खेलने के दिन कहां बाकी हैं. शर्म करो, अब बचपना छोड़ो. बहूबेटे क्या कहेंगे? क्या सोचेंगे कि बूढ़ों को अब भी चैन नहीं है.

दरअसल, भक्तिकाल में जब ब्रह्मचर्य और वीर्य को सुरक्षित रखने पर जो बल दिया गया उस से यह सोच विकसित हो गई कि सेक्स का उद्देश्य आनंदित स्वस्थ और तनावमुक्त रहना नहीं बल्कि केवल उत्पत्ति है. एक बार जब संतान की उत्पत्ति हो जाए तो सेक्स पर विराम लगा देना चाहिए.

इस तथाकथित धार्मिक धारणा पर अब तक साइंस का गिलाफ चढ़ाने का प्रयास किया जाता रहा है. मसलन, हाल ही में ‘योग’ से  संबंधित एक पत्रिका में लिखा था, ‘‘वीर्य में सेक्स हारमोन होते हैं. उन्हें सुरक्षित रखें और सेक्स में लिप्त हो कर उसे बरबाद न करें. यह कीमती हारमोन यदि बचा लिए जाते हैं तो वापस रक्त में चले जाते हैं और शरीर में ताजगी और स्फूर्ति आ जाती है. आधी छटांक वीर्य 40 छटांक रक्त के बराबर होता है, क्योंकि वह इतने ही खून से बनता है. जिस्म से जितनी बार वीर्य निकलता है उतनी ही बार कीमती रासायनिक तत्त्व बरबाद हो जाते हैं, वह तत्त्व जो नर्व व बे्रन टिश्यू के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण  हैं. यही वजह है कि अति उत्तेजक पुरुषों की पत्नियां और वेश्याओं की आयु बहुत कम होती है.

इस पूरे ‘प्रवचन’ के लिए एक ही शब्द है, बकवास. सब से पहली बात तो यह है कि वीर्य में शुक्राणु बड़ी मात्रा में साधारण शकर, सेट्रिक एसिड, एसकोरबिक एसिड, विटामिन सी, बाइकारबोनेट, फासफेट और अन्य पदार्थ होते हैं जो ज्यादातर एंजाइम होते हैं, इन सब का उत्पादन अंडकोशिकाएं, सेमिनल बेसिकल्स और एपिडर्मिस व वसा की डक्ट के जरिए होता है. वीर्य में सेक्स हारमोन होते ही नहीं. यह सारे तत्त्व या पदार्थ जिस्म में खाने की सप्लाई से बनते हैं जोकि एक न खत्म होने वाली प्रक्रिया है. निष्कासित होने से पहले वीर्य सेमिनल वेसिकल्स में स्टोर होता है, अगर इसे निष्कासित नहीं किया गया तो भीगे ख्वाबों से यह अपनेआप हो जाएगा. जाहिर है इस के शरीर में स्टोर होने का अर्थ है कि जिस्म में यह सरकुलेशन का हिस्सा रहा ही नहीं है और न ही ऐसी कोई प्रक्रिया है जिस से वीर्य फिर खून में शामिल हो कर ऊर्जा का हिस्सा बन जाए.

विख्यात वैज्ञानिक डॉक्टर इसाडोर रूबिन का कहना है, ‘‘अगर यह धारणा सही होती कि वीर्य के निकलने से या महिला के चरम आनंद प्राप्त करने से जिस्म में कमजोरी आ जाती है और उम्र में कटौती हो जाती है, तो कुंआरों की आयु विवाहितों से ज्यादा होती, क्योंकि अविवाहितों को सेक्स के अवसर कम मिलते हैं. वास्तविकता यह है कि विवाहित व्यक्ति लंबे समय तक जीते हैं.’’ हाल में किए गए शोधों से पता चला है कि अगर कोई व्यक्ति काफी दिन तक सेक्स से दूर रहता है तो कुछ प्रोस्टेटिक फ्लूड सख्त हो कर ग्रंथि में रह जाते हैं. इस से प्रोस्टेट ग्रंथि का आकार बढ़ जाता है और व्यक्ति को पेशाब करने में कठिनाई होने लगती है. इस समस्या पर अगर ध्यान न दिया जाए तो फिर प्रोस्टेट की सर्जरी आवश्यक हो जाती है.

50 के बाद सेक्स से विमुखता का एक अन्य कारण यह है कि जवानी में लोग कसरत पर और अपने जिस्म को सुडौल रखने के लिए खानपान पर अकसर खास ध्यान नहीं  देते. इस से उम्र के साथ उन के शरीर पर फैट जमा होने लगता है जिस से वह मोटे हो जाते हैं. यह जानने के लिए ज्ञानी होना आवश्यक नहीं है कि मोटापा अपनेआप में कई गंभीर बीमारियों की जड़ होता है. व्यक्ति जब बीमार रहेगा तो उस का ध्यान सेक्स की ओर कहां जाएगा, साथ ही पुरुष का जब पेट निकल जाता है और उस का सीना भी औरतों की तरह लटक जाता है तो वह उस मुस्तैदी से सेक्स में लिप्त नहीं हो पाता जैसे वह जवानी में होता था. महिलाओं के बेडौल और मोटे होने से उन में मर्द के लिए पहले जैसा आकर्षण नहीं रह पाता. इसलिए जरूरी है कि उम्र के हर हिस्से में कसरत की जाए और अपना वजन नियंत्रित रखा जाए.

वैसे सेक्स भी अपनेआप में बेहतरीन कसरत है. अन्य फायदों के अलावा इस से मांसपेशियों सुगठित रहती हैं, ब्लड प्रेशर सामान्य और अतिरिक्त फैट कम हो जाता है. गौरतलब है कि पुरुष के गुप्तांग में जोश स्पंजी टिश्यू के छिद्रों में खून के बहाव से आता है. अगर आप के जिस्म पर 1 किलो अतिरिक्त फैट है तो रक्त को 22 मील और ज्यादा सरकुलेट होना पड़ता है. अगर व्यक्ति बहुत मोटा है तो फैट उस के सामान्य सरकुलेशन को और कमजोर कर देता है और खास मौके पर इतना रक्त उपलब्ध नहीं होता कि पूरी तरह से जोश में आ जाए.

दरअसल, खानेपीने का तरीका सामान्य सेहत को ही नहीं सेक्स जीवन को भी प्रभावित करता है. इस में कोई दोराय नहीं कि पतिपत्नी क्योंकि एक ही छत के नीचे रहते हैं इसलिए खाना भी एक सा ही खाते हैं. अगर किसी दंपती के खाने में विटामिन ‘बी’ की कमी है तो इस का उन के जीवन पर जटिल प्रभाव पडे़गा. इस की वजह से पत्नी में अतिरिक्त एस्ट्रोजन (महिला सेक्स हारमोन) आ जाएंगे और उस की सेक्स इच्छाएं बढ़ जाएंगी जबकि पति में इस का उलटा असर होता है. एस्टो्रजन के बढ़ने से उस के एंड्रोजन (पुरुष सेक्स हारमोन) में कमी आ जाती है.

दूसरे शब्दों में, स्थिति यह हो जाएगी कि पत्नी तो ज्यादा प्यार करना चाहेगी, लेकिन पति की इच्छाएं कम हो जाएंगी. इसलिए आवश्यक है कि संतुलित हाई प्रोटीन खुराक ली जाए. साथ ही शराब और सिगरेट की अधिकता से बचा जाए, क्योंकि इन दोनों के सेवन से व्यक्ति वक्त से पहले चरम पर पहुंच जाता है और फिर अतृप्त सा महसूस करता है.

गौरतलब है कि इंटरनेशनल जर्नल आफ सेक्सोलोजी-7 के अनुसार विटामिन और हारमोंस का गहरा रिश्ता है. दर्द भरी माहवारी में राहत के लिए जब टेस्टेस्टेरोन हारमोन दिया जाता है तो उस की अधिक सफलता के लिए साथ ही विटामिन ‘डी’ भी दिया जाता है. इसी तरह से गर्भपात के संभावित खतरे से बचने के लिए प्रोजेस्टरोन हारमोन के साथ विटामिन ‘सी’  दिया जाता है.

50 के बाद सेक्स से विमुखता की एक वजह यह भी है कि दोनों पतिपत्नी बननासंवरना काफी हद तक कम कर देते हैं. अच्छे और आकर्षक कपडे़ पहनने से और बाल अच्छी तरह बनाने से यकीनन महिला का मनोबल और आत्मविश्वास बढ़ता है. इस के बावजूद आप को रजोनिवृत्ति से गुजर चुकी ऐसी अनेक महिलाएं मिल जाएंगी जो भद्दे कपडे़ पहनती हैं, ऐसे बाल संवारती हैं जो फैशन में नहीं है. गाल उन के लटक गए होते हैं, ऊपरी होंठ पर बाल होते हैं, स्तन लटके हुए और पेट व कूल्हे फैले हुए होते हैं. ऐसी पत्नियों में भला किस पति की दिलचस्पी बरकरार रहेगी जबकि जरा सी कोशिश से यह सबकुछ बदला जा सकता है. महिलाएं अच्छी डे्रस शाप पर जाएं, सप्ताह में एक बार ब्यूटी पार्लर जाएं, लटकी हुई खाल और मांसपेशियों को सही आकार देने के लिए हैल्थ व ब्यूटी जिम्नेजियम में कोर्स करें और दृढ़ता से तय कर लें कि मांसपेशियों को सख्त रखने के लिए वे रोजाना कुछ मिनट व्यायाम के लिए भी निकालेंगी. यह सौंदर्य उपचार और हलकी कसरत न सिर्फ उन के मनोबल को बेहतर रखेगी बल्कि सख्त जिस्म उन के सेक्सुअल सिस्टम को भी दुरुस्त रखेगा और उन के पति उन की ओर आकर्षित रहेंगे. ज्ञात रहे कि आत्मविश्वास से भरी सुंदर स्त्री जो अपने जिस्म के रखरखाव में भी माहिर हो, वह अपनी ओर एक 16 साल की लड़की से ज्यादा ध्यान आकर्षित करा लेती है.

यहां यह बताना भी आवश्यक होगा कि इसी किस्म का आकर्षण लाने के लिए पुरुषों को भी चाहिए कि वे कसरत करें, ब्यूटी पार्लर जाएं और अच्छे कपडे़ पहनें, साथ ही उन की पत्नी जब रजोनिवृत्ति से गुजर रही हो तो उस का विशेष ध्यान रखें. पत्नी जितना खुल कर अपने पति से बातें कर सकती है उतना वह अपने डाक्टर से भी नहीं कह पाती. इसलिए अगर रजोनिवृत्ति के दौरान पति ने उसे सही से संभाल लिया तो आगे का सेक्स जीवन बेहतर रहेगा.

अब तक जो बहस की गई है उस से स्पष्ट है कि अच्छे, स्वस्थ और लंबे जीवन के लिए 50 के बाद भी सेक्स उतना ही आवश्यक है जितना कि उस से पहले. लेकिन उसे बेहतर बनाए रखने के लिए अपने नजरिए में बदलाव लाना भी जरूरी है और अगर कोई समस्या है तो मनोवैज्ञानिक और डाक्टर से खुल कर बात करने में कोई शर्म नहीं करनी चाहिए.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Mother’s Day : बौलीवुड सैलिब्रिटीज ने मां को लेकर कीं दिल की बातें, जानें ऐक्टर्स से ‘मां का महत्व’

Mother’s Day 2025 : हर बच्चे के दिल से एक ही आवाज निकलती है कि मेरी मां के बराबर कोई नहीं क्योंकि मां ही एक ऐसी धरोहर है, जो अपने बच्चों को हमेशा खुश देखना चाहती है. फिर चाहे उस का वह बच्चा किसी भी उम्र का हो, अमीर हो गरीब हो या कोई सैलिब्रिटीज ही क्यों न हो.

एक मां की नजर में उस का बच्चा सिर्फ उस का जिगर का टुकड़ा ही होता है, जिसे वह हर हाल में खुश देखना चाहती है और हमेशा उस की सलामती की कामना करती है.

जहां एक ओर घरपरिवार का हर सदस्य उस से पूछता है कि उस ने कितना कमाया? उस वक्त सिर्फ मां ही होती है जो पूछती है कि बेटा, खाना खाया क्या?

तभी तो मां की गोद ऐसी जगह है जहां सिर रख कर सोने में दुनियाभर का सुकून मिलता है क्योंकि मां का प्यार निस्वार्थ होता है। वह अपने बेटे को हमेशा खुश और कामयाब देखना चाहती है. मां कभी बच्चे को अपने से दूर नहीं करना चाहती लेकिन हालात और पैसा कमाने के चक्कर में न चाहते हुए भी बच्चों को अपनी मां से दूर जाना पड़ता है जैसे कि पक्षी पर निकलते ही अपने घोंसले से उड़ जाते हैं, वैसे ही एक उम्र के बाद हर किसी को पैसा कमाने के लिए घर से दूर जाना ही पड़ता है.

बौलीवुड की कई नामचीन हस्तियां जिन की नजरों में उन की मां ही उन की दुनिया है, उनका मानना है कि मेरी मां के बराबर कोई नहीं और मेरी मां जितनी प्यारा और भोला कोई नहीं. वह सितारे जिन के लाखोंकरोड़ों फैंस हैं लेकिन वह अपनी मां के प्यार में पागल है, अपनी मां का सब से बड़ा प्रशंसक है.

बौलीवुड के किंग खान शाहरुख खान जिन्होंने अपनी मां की मौत के बाद दिल्ली शहर ही छोड़ दिया। हीरो नंबर-1 कहलाने वाले गोविंदा अपनी मां के पैर धो कर पीते थे. बौलीवुड के टाइगर कहलाने वाले सलमान खान जिन की शादी ही इसलिए नहीं हुई क्योंकि वे अपनी मां जैसी स्वभाव और खूबियों वाली पत्नी चाहते थे। फिल्म मेकर संजय लीला भंसाली और करण जौहर जिन्होंने अपना पूरा जीवन अपनी मां के साथ बिताना बेहतर समझा.

फिल्म मेकर संजय लीला भंसाली अपनी मां से इतना प्यार करते हैं कि उन्होंने अपने पिता के बजाय अपनी मां का नाम अपने नाम के साथ लगाना गर्व की बात समझी. ऐसे ही कई सैलिब्रिटीज हैं जिन की नजरों में उन की मां सर्वश्रेष्ठ है.

मदर्स डे के अवसर पर खासतौर पर इन सैलिब्रिटीज ने अपनी मां को ले कर दिल की बातें कीं. तो फिर आइए, जानते हैं मां और बेटे के प्यारभरे रिश्ते की कहानी सैलिब्रिटीज बेटों की जबानी :

सलमान खान

मेरी मां दिल से जितनी भोली और मासूम हैं ऊपर से उतनी ही सख्त हैं. आज भी मेरी गलती पर वे मुझे थप्पड़ मार देती हैं। मुझे ही नहीं सोहेल और अरबाज को भी गलती करने पर मेरी मां पीट देती हैं. लेकिन हमें उस से कोई फर्क नहीं पड़ता बल्कि मजा आता है क्योंकि उन की मार में भी प्यार छिपा है. मुझे अपनी मां में जो खूबियां दिखीं वह किसी में नहीं दिखी। अगर किसी लड़की में मेरी मां की तरह 50% खूबियां भी होती तो मैं शादी कर लेता।

सलमान का मानना है कि मेरी मां की सब से बड़ी खूबी यह है कि हमारे घर से कोई भी आज तक भूखा नहीं गया. चाहे कितने ही लोग आ जाएं घर में, खाना मौजूद होता है. इस के अलावा जितनी अच्छी बिरयानी मेरी मां बनाती हैं वैसी बिरयानी मैं ने किसी और के हाथ की नहीं खाई. मेरी मां बहुत अच्छी पेंटर भी हैं। मेरे अंदर अच्छी पेंटिंग करने का हुनर उन से ही आया है.

वे सब को साथ ले कर चलती हैं। हमारे घर का हर सदस्य मां से प्यार और सम्मान करता है. मुझे अगर तकलीफ में देखती हैं तो लगभग बेहोश जैसी ही हो जाती हैं. उन को हमेशा मुझे ले कर टैंशन ही रहता है क्योंकि वे मुझे बहुत प्यार करती हैं. मैं भी अपनी मां से उतना ही प्यार करता हूं.

मां की बढ़ती उम्र मुझे चिंतित करती है क्योंकि मैं उन के बिना जीने के बारे में सोच भी नहीं सकता. मैं हमेशा कामना करता हूं कि मेरी मां लंबी उम्र जिएं और हमेशा स्वस्थ रहें.

शाहरुख खान

आज मैं कामयाब हूं. मेरे पास सबकुछ है, लेकिन वही नहीं है जिस के लिए मैं ने यह सब किया. मैं ने कामयाबी हासिल की. नाम, शोहरत, पैसा सब कमाया, लेकिन मेरी वह प्यारी मां नहीं है जिस के लिए मैं यह सब कुछ करना चाहता था. आज अगर वह जिंदा होती, तो मेरी कामयाबी देख कर सब से ज्यादा वही खुश होती. आज वह मेरे साथ नहीं है तो कई बार मुझे लगता है कि यह सबकुछ बेकार है. मुझे अपनी मां को खोने का इतना अफसोस होता है कि कई बार मैं अकेले में रो पड़ता हूं.

शाहरुख बताते हैं कि दिल्ली में जब मैं ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत की थी और साधारण सी शक्ल के चलते जब मुझे कोई हीरो मानने को तैयार नहीं था, उसे वक्त मेरी मां ही थीं जो मुझे सुपरस्टार बुलाती थीं. वे हमेशा मुझ से कहती थीं कि देखना मेरा बेटा एक दिन जरूर बहुत बड़ा स्टार बनेगा और पूरी दुनिया पर राज करेगा. काश, आज मेरी मां जिंदा होतीं तो मेरी कामयाबी देख कर बहुत खुश होतीं.

बचपन में मैं उन को हीरो की तरह ऐक्टिंग कर के हंसाया करता था. उस वक्त मेरी मां मेरी हरकतें, मेरी नौटंकी देख कर बहुत खुश होती थीं. मैं कुछ भी अच्छा काम करता तो सब से पहले जा कर अपनी मां को ही बताता था क्योंकि उन को जितनी खुशी होती थी उतनी मुझे खुद को भी नहीं होती थी. लेकिन जब अचानक मां का देहांत हो गया तो बहुत ज्यादा दुखी हो गया. उस के बाद मुझे दिल्ली में अच्छा नहीं लगता था इसलिए मैं दिल्ली छोड़ कर मुंबई आ गया. यहां आ कर मैं ने फिल्मों में काम पाने के लिए संघर्ष शुरू किया. कुछ समय बाद सफलता तो मिल गई, लेकिन मन की कमी आज भी खलती है. आज भी उन के साथ बिताई यादें मुझे विचलित कर देती हैं. मां की यादें हमेशा मेरे दिल में रहेंगी क्योंकि उन के जैसा दूसरा कोई हो ही नहीं सकता.

गोविंदा

मेरा मानना है कि जब तक हमारे सिर पर मांबाप का साया होता है तभी तक बचपन जिंदा रहता है. मांबाप के जाते ही अचानक ही हम बड़े हो जाते हैं. आज मेरी मां मेरे साथ नहीं हैं लेकिन उन का प्यार और आशीर्वाद मुझे हर मुसीबत से बचाता है. जब भी मैं किसी बड़ी मुसीबत में होता हूं तो मुझे ऐसा लगता है जैसे मेरी मां की कामना ही मुझे बचाने के लिए आ जाती है. मैं अपनी मां से इतना प्यार करता हूं कि उन के पैर धो कर पिया करता था. ऐसा करने से मेरी मां मुझे रोकती थी, लेकिन मुझे उस में सुकून मिलता था.

गोविंदा बताते हैं कि मुझे आज भी याद है कि मेरी मां हम लोगों को पालने के लिए नौकरी करती थीं. उस वक्त हम मुंबई के विरार स्टेशन में रहते थे जहां से औफिस तक जाने के लिए एक काफी समय लगता था और वे पूरे 1-2 घंटे ट्रेन में खड़ी हो कर जाती थीं क्योंकि ट्रेन भीड़ से खचाखच भरी रहती थी और उन को बैठने की जगह नहीं मिलती थी. इसलिए मैं मां से पहले विरार स्टेशन पहुंच जाता था ताकि मां के बैठने के लिए जगह पकड़ सकूं और वह बैठ कर सफर कर सके.

गोविंदा कहते हैं कि हमें कुछ बड़ा बनाने के चक्कर में हमारी मां ने बहुत संघर्ष किया है. वे सिर्फ अच्छी मां ही नहीं बल्कि अच्छी इंसान भी थीं. कभी किसी का बुरा नहीं चाहती थीं. वे अच्छी गायिका थीं इसलिए मैं ने उन से गाना गाना भी सीख लिया.

मां की मौत से मुझे गहरा सदमा लगा. काफी समय तक मैं संभल नहीं पाया था. उन के साथ बिताया हर पल मुझे याद आता है. मैं उन को बहुत मिस करता हूं. आज भी जब मैं किसी अच्छे काम के लिए बाहर जाता हूं तो मां की तसवीर को प्रणाम कर के निकलता हूं. आज मैं जो भी कुछ हूं अपनी मां के प्यार, आशीर्वाद और कड़ी मेहनत की वजह से ही हूं.

कार्तिक आर्यन

मेरी मां वर्किंग वूमन हैं. पैसे से डाक्टर और स्त्रीरोग विशेषज्ञ हैं. मेरी बहन और मेरे पिता भी डाक्टर हैं. मैं ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की, मगर उस में मेरा मन नहीं लगा तो मैं ने अभिनय कैरियर चुना। मेरी इस यात्रा में मेरी मां ने पूरा साथ दिया। वे मुझे बहुत प्यार करती हैं और मेरी हर इच्छा उन की इच्छा होती है, इसलिए जब मैं ने ऐक्टर बनने का सोचा तो उन्होंने मुझे सपोर्ट किया, क्योंकि शायद उन को भी पता था कि मैं ऐक्टर बन सकता हूं.

कार्तिक कहते हैं कि मेरी मां इमोशनल के साथसाथ प्रैक्टिकल भी हैं. मां का मानना है कि हम चाहे जो प्रोफेशन चुनें लेकिन शिक्षित होना बहुत जरूरी है. बिना शिक्षा प्राप्त किए हम किसी भी क्षेत्र में पूरी तरह कामयाब नहीं हो सकते, क्योंकि शिक्षा हमें मानसिक तौर पर मजबूत बनाती है.

मैं ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई तो पूरी कर ली थी, मगर मेरी मां ने मुझे मेरा पैशन पूरा करने के लिए पूरा सपोर्ट किया. जब भी मैं किसी बुरे दौर से गुजर रहा होता हूं या डिस्टर्ब रहता हूं तो मैं अपनी मां के पास ही चला जाता हूं क्योंकि वही हैं जो मुझे सही रास्ता दिखाती हैं. मेरी मां मेरी नजरों में एक परफैक्ट मदर है जो मुझे सिर्फ प्यार ही नहीं करती बल्कि मुझे सही गाइड भी करती है ताकि मैं अच्छा ऐक्टर होने के साथसाथ अच्छा इंसान भी बनू.

चाहे कितनी ही मुश्किलें आ जाएं मैं घबरा कर कोई गलत निर्णय न ले पाऊं इस बात का भी मेरी मां हमेशा ध्यान रखती हैं क्योंकि वे सिर्फ मेरी मां ही नहीं, मेरी अच्छी दोस्त भी हैं जिन से मैं सब कुछ शेयर कर सकता हूं.

लेह लद्दाख में शौपिंग के लिए है बहुत कुछ

Leh Ladakh : बौलीवुड फिल्म ‘3 इडियट्स’ की शूटिंग के बाद लद्दाख को और अधिक लोकप्रियता मिली. लेह लद्दाख की शौपिंग के बारे में हम ने बहुत कुछ सुन रखा था इसलिए नाश्ता करने के बाद लेह से शुरुआत की.

हमारी कार लंबी ढलान वाली सड़कों पर आसानी से चल रही थी और हम देख सकते थे कि सेना की बैरकें आने वाले वाहनों पर निगरानी रख रही थीं. कुछ दूरी पर हम ने सैनिकों के एक समूह को हमारी कार के आगे मार्च करते देखा, जो हमें लद्दाख की जटिल वास्तविकता की याद दिला रहा था.

फिर हम मेन मार्केट की ओर चल पड़े. रास्ते में हम मैरून और भूरे पहाड़ों पर मठों के कई सफेदी वाले चोर्टेन देख सकते थे. लेह मार्केट शहर के बीचोबीच स्थित है. इस मर्केट में कई छोटे तिब्बती बाजार और स्मारिका की दुकाने हैं.

खरीदारी के लिए लोकप्रिय

लेह लद्दाख न केवल साहसिक पर्यटन के लिए बल्कि खरीदारी के लिए भी लोकप्रिय है. आप यहां लद्दाखी शौल, कश्मीरी शौल, पश्मीना जैसी कई सांस्कृतिक चीजों को देख सकते हैं. लद्दाख एक नवगठित केंद्र शासित प्रदेश है, जो भारत का सब से उत्तरी स्थान पर अवस्थित है. सुंदर परिदृश्य, जीवंत संस्कृति, लुभावने बर्फ से ढंके पहाड़ों, मठों और पारंपरिक हस्तशिल्प के लिए यह जगह प्रसिद्ध है.

लेह लद्दाख में कई लोकल मार्केट हैं जिन में से सब से बिजी मार्केट लेह का मेन मार्केट है. इस में कई दुकानें हैं जो कपड़े, पारंपरिक हस्तशिल्प और इलैक्ट्रोनिक्स बेचती हैं. कुछ अन्य फेमस मार्केट जिन्हें आप लद्दाख की छुट्टियों में देख सकते हैं वे हैं मोती बाजार, तिब्बती बाजार, हेमिस मठ बाजार और तिब्बती हस्तशिल्प ऐंपोरियम. यहां के दुकानदार कई पीढ़ियों से इस काम को कर रहे हैं.

15 मिनट की ड्राइव के बाद हम आखिरकार मार्केट में पहुंच गए. यहां का मार्केट बहुत बड़ा है. वहां के दुकानदारों ने हमें बताया कि वे कई पीढ़ियों से इसी काम में लगे हैं और टूरिस्ट सीजन में इन की बिक्री काफी ज्यादा होती है. यहां दुकानों पर युवतियां भी काम करती हैं और अच्छा बिजनैस कर लेती हैं.

लेह मुख्य बाजार पारंपरिक सदियों पुराने हस्तशिल्प और स्थानीय लोगों के असाधारण शिल्प कौशल और कलात्मक कौशल का मिश्रण हैं. लेह बाजार में कई रेस्तरां और कैफे खुले थे जो आगंतुकों को स्वादिष्ठ स्थानीय व्यंजन परोसते थे. लेह बाजार में किसी भी उत्साही यात्री के लिए स्मृति चिह्न के कई विकल्प उपलब्ध थे. यहां आप तिब्बती हस्तशिल्प, कश्मीरी हस्तशिल्प, चांदी और पत्थर के आभूषण, पश्मीना शौल, कश्मीरी कालीन, सूखी खुबानी, जैविक चाय, याक ऊन के उत्पाद आदि खरीद सकते हैं.

तिब्बती हस्तशिल्प, कलाकृतियां और कारीगरी के तोहफे

लद्दाख अपने तिब्बती हस्तशिल्प और कलाकृतियों के लिए मशहूर है. लद्दाख में ज्यादातर तिब्बती लोग रहते हैं. यहां के लोग हस्तशिल्प डिजाइन कर के और उन्हें स्थानीय बाजारों में बेच कर अपनी संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते हैं. आप अलगअलग आकार की जपेंट की गई थंका पेंटिंग खरीद सकते हैं जो अद्वितीय दीवार हैंगिंग बनाती हैं. ये पारंपरिक तिब्बती कलाकृतियां हैं जिन में विभिन्न मुद्राओं और आकारों में बौद्ध देवताओं की पेंटिंग, मंडल, बुद्ध प्रार्थना चक्र, झंडे, मोती और बौद्ध धर्म से संबंधित अन्य चीजें शामिल हैं. ये पेंटिंग विभिन्न आकारों में उपलब्ध हैं और इन की कीमत ₹500 से शुरू होती है.

यहां मोतियों के झंडे बहुतायत में पाए जाते हैं जिन का उपयोग वाहन को सजाने के लिए भी किया जा सकता है. आप नक्काशीदार लकड़ी की मेज भी देख सकते हैं, जिन्हें नैचुरल कलर्स में वार्निश और पेंट किया जाता है.

लद्दाखी क्रौकरी/रसोई के बर्तन

आप लद्दाखी छाप वाले कप, मग और अन्य रसोई के बर्तन भी खरीद सकते हैं जो आप को लद्दाख यात्रा की याद दिलाएंगे.

सूखी खुबानी

लद्दाख में खरीदने के लिए सब से अच्छी यादों में से एक स्थानीय रूप से उगाई जाने वाली खुबानी है जो बहुत स्वादिष्ठ होती है. लद्दाख के कठोर ड्राई और बंजर इलाके में केवल खुबानी ही ऐसा फल है जो बहुतायत में उगता है. आप सूखी खुबानी खरीद सकते हैं या लेह मुख्य बाजार में बिकने वाली ताजा खुबानी का आनंद ले सकते हैं.

लद्दाख की खुबानी हलकी मीठी और खट्टी होती है और इस का उपयोग जैली, जैम, शहद और तेल बनाने के लिए किया जाता है. कीमतें ₹100 से शुरू होती हैं. उत्पाद की मात्रा के अनुसार ₹100 से ₹1,000 तक.

और्गेनिक चाय

यह लद्दाख की एक हर्बल चाय है जो और्गेनिक है और इस के कई हैल्थ बेनिफिट्स हैं. चाय कई ऐंटीऔक्सीडेंट, विटामिन और खनिजों से बनी होती है. लद्दाख की और्गेनिक चाय के कुछ तत्त्व जंगली पुदीना, सीबकथौर्न के पत्ते, सियाचिन गुलाब, जंगली जीरा, गुलाब, कैमोमाइल और अन्य जड़ीबूटियां और मसाले हैं. आप यह चाय खरीद सकते हैं और लद्दाख के स्वाद को अपने साथ घर ले जा सकते हैं.

ज्वैलरी शौप्स

बाजार में सब से रोमांचक चीज थी ज्वैलरी शौप्स. हम ने देखा कि ज्यादातर वहां की लोकल महिलाओं ने चांदी और फिरोजा की ज्वैलरी पहन रखी थी. उन के यूनिक डिजाइन ने हमें चकित कर दिया और हम ने अपने दोस्तों को उपहार देने के लिए कुछ खरीदने का फैसला किया.

वहां कई शौप्स थीं जो कंगन, झुमके, अंगूठियां, नेकपीस और पायल बेचती थीं जो ज्वैलरी बौक्स की रौनक बढ़ा सकती हैं. ये ज्वैलरीज अच्छीखासी महंगी होती हैं.

एक मोंगा की माला या ग्रीन पत्थर की माला तक ₹5,000 से शुरू होती है. खरीदने से पहले कीमती पत्थरों और चांदी की ज्वैलरीज की प्योरिटी चेक कर लें.

लेह मार्केट में तिब्बती हस्तशिल्प

हम तिब्बती आबादी से भी मिले, जो प्राचीनकाल से लद्दाख में स्थायी रूप से बसे हुए हैं. वे बेहद गरमजोशी से भरे, दयालु और मिलनसार लोग थे. लद्दाख में उन की उपस्थिति ने स्थानीय संस्कृति की समृद्धि को बढ़ाया और उन्होंने अपनी छोटी दुकानों के अंदर हमारा स्वागत किया. वहां आकर्षक थंका पेंटिंग थीं जिन्हें इन लोगों ने जटिल रूप से चित्रित किया था.

बुद्ध, पद्मसंभव और अन्य पवित्र वस्तुओं की मूर्तियां उत्कृष्ट रूप से गढ़ी गई थीं. हम ने कुछ सुंदर नक्काशीदार लकड़ी की वस्तुएं भी देखीं, जिन्हें चमकीले रंगों में पूर्णतया रंगा गया था. इन प्यारे तिब्बती लोगों के साथ कुछ समय बिताने के बाद हम ने आखिरकार कुछ रंगबिरंगे झंडे और बहुत ही बारीकी से नक्काशीदार शानदार कटोरे खरीदे.

ऊनी और पश्मीना के आइटम्स

जैसे ही हम एक दुकान में दाखिल हुए, हम बेहतरीन पश्मीना शौल देख कर मंत्रमुग्ध हो गए. नाजुक, बेहद खूबसूरत और बेहद गरम, बढ़िया कश्मीरी ऊन से बने पश्मीना शौल यहां बहुतायत में पाए जाते हैं. शौल काफी गरम थे और प्योर पश्मीना ऊन से बने थे. हालांकि प्योर पश्मीना काफी मुश्किल से मिलता है, लेकिन यह दुकान अपने उच्च गुणवत्ता वाले ऊनी और पश्मीना उत्पादों के लिए बहुत मशहूर है. हालांकि प्योर पश्मीना की शौल ₹25 हजार से शुरू थी, यही वजह है कि एक समय था जब केवल अमीर लोग ही पश्मीना खरीद सकते थे, लेकिन अब बहुत सारी दुकानें हैं जो स्वैटर, दस्ताने, कंबल, टोपी और शौल के रूप में पश्मीना के आइटम्स बेचती हैं.

पश्मीना उत्पादों के बारे में सब से अच्छी बात यह है कि यह अविश्वसनीय रूप से हलका होता है लेकिन सर्दियों में पहनने पर गरमाहट देता है. अगर आप का बजट कम है तो प्योर पश्मीना के बजाय थोड़ा हलका पश्मीना भी मिलता है जो अपने बजट में आ जाता है. लेकिन फिर भी यह शौल या स्टोल ₹3,000 से कम में नहीं मिलेंगे क्योंकि उन की क्वालिटी है भी उसी तरह की.

आप रंगीन धागों से कढ़ाई की गई टोपी, मोजे, स्वैटर, कंबल और पारंपरिक वस्त्र गोंचा खरीद सकते हैं.

इस के अतिरिक्त लद्दाख में खरीदारी करते समय आप ऊन या कपास से बने पारंपरिक गरम वस्त्र गोंचा और स्थानीय लोगों द्वारा पहनी जाने वाली रंगबिरंगी कढ़ाई और अलंकृत हेडगियर पेराक को देख सकते हैं.

यदि आप के पास स्टाइल की समझ है या सबकुछ आसानी से कैरी करने की क्षमता है, तो आप इन स्थानीय परिधानों के साथ एक फैशन स्टेटमैंट बनाना सुनिश्चित कर सकते हैं.

कश्मीरी कार्पेट

लेह मार्केट घर को चमकीला बनाने के लिए वनस्टौप शौप है. कारपेट वहां की लोकल दुकानों में काफी थे. ये हाथ से बुने हुए कारपेट ऊन से बनाए गए थे और उन के चमकीले रंग कमरे को भी रोशन कर सकते थे. वहां के लोगों ने बताया कि इन कारपेट को नैचुरल कलर से रंगा गया है और उन की सुंदरता वास्तव में आप के घर में भव्यता का स्पर्श जोड़ देगी.

इसलिए लद्दाखी कार्पेट और गलीचे जैसी जरूरी चीजें खरीदना न भूलें, जो प्राकृतिक रूप से रंगे और ऊन से बुने हुए आकर्षक पैटर्न में, जिस में ड्रैगन और फूलों की आकृतियां शामिल हैं. मजबूत, मोटे गलीचे दीवार पर लटकाने और कालीन के लिए बढ़िया होते हैं. दूसरी ओर कश्मीरी कालीनों में ज्यादा जटिल डिजाइन होते हैं, जिन्हें ज्यादा बढ़िया ऊन और रेशम से बुना जाता है, जो अलगअलग साइज और कीमतों में उपलब्ध होते हैं.

किसी कमरे में राजशाही का एहसास शायद ही कोई चीज दे, जैसाकि कश्मीरी कालीन अपने जीवंत रंगों और जटिल पैटर्न के मिश्रण से देता है.

लद्दाख का मोती बाजार

अगर आप लद्दाख में बजट के अनुकूल खरीदारी की तलाश में हैं, तो लेह का मुख्य बाजार आप के लिए सब से अच्छी जगह है.

मोती बाजार में खरीदारी

लेह में मोती बाजार पहाड़ों की तलहटी में स्थित है और शहर के सब से पुराने बाजारों में से एक है. जैसाकि नाम से पता चलता है, यह बाजार रत्नों, प्राचीन पत्थरों और मोतियों (मोती) के लिए प्रसिद्ध है. न केवल रत्न, बल्कि आप को यहां ऊनी कपड़े, कालीन, पश्मीना शौल आदि बेचने वाली कई दुकानें भी मिलेंगी. मोती बाजार में लामो मोती की एक मशहूर पुरानी दुकान है जहां आप कीमती पत्थर और मोती खरीद सकते हैं.

हेमिस मठ बाजार

हेमिस मठ के पास स्थित यह बाजार लद्दाख के हेमिस त्यौहार के दौरान ज्यादातर जीवंत रहता है. यह जून और जुलाई में शुरू होता है और लद्दाख की स्थानीय संस्कृति का जीवंत अनुभव देता है. यहां आप हस्तनिर्मित आभूषण, तिब्बती हस्तशिल्प, थांगपा पेंटिंग और ऊनी वस्त्र खरीद सकते हैं.

तिब्बती हस्तशिल्प ऐंपोरियम में खरीदारी

लेह में घूमने के लिए एक और खूबसूरत दुकान तिब्बती हस्तशिल्प ऐंपोरियम है. यह स्टोर तिब्बत से आए शरणार्थियों द्वारा चलाया जाता है और यह उचित दरों पर हस्तशिल्प और प्राचीन वस्तुएं खरीदने के लिए सब से अच्छी दुकानों में से एक है. यहां आप को प्रामाणिक तिब्बती हस्तशिल्प, थांगपा पेंटिंग, लद्दाखी पत्थर और चांदी के गहने, रंगीन उपहार आइटम्स और बहुत कुछ मिलेगा.

लेह लद्दाख में शौपिंग करते समय ध्यान दें

यहां आप को शौपिंग करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है ताकि बाद में आप को अपनी खरीदारी के अंत में ठगे जाने का एहसास न हो. लद्दाख में खरीदारी करते समय याद रखने वाली बात है मोलभाव करना. भले ही कोई दुकान यह कहे कि फिक्सड प्राइस शौप है, लेकिन असल में यह काफी लचीली होती है, इसलिए मोलभाव करने में संकोच न करें. साथ ही, जब आप चांदी के आभूषण खरीदें, तो आभूषण पर हौलमार्क की जांच कर के तसल्ली कर लें कि आप को असली चांदी के दाम पर नकली आभूषण तो नहीं दिया जा रहा है.

Hindi Love Stories : तू आए न आए – शफीका को क्यों मिला औरत का बदनुमा दाग

Hindi Love Stories : मैं इंगलैंड से एमबीए करने के लिए श्रीनगर से फ्लाइट पकड़ने को घर से बाहर निकल रहा था तो मुझे विदा करने वालों के साथसाथ फूफीदादी की आंखों में आंसुओं का समंदर उतर आया. अम्मी की मौत के बाद फूफीदादी ने ही मुझे पालपोस कर बड़ा किया था. 2 चाचा और 1 फूफी की जिम्मेदारी के साथसाथ दादाजान की पूरी गृहस्थी का बोझ भी फूफीदादी के नाजुक कंधों पर था. ममता का समंदर छलकाती उन की बड़ीबड़ी कंटीली आंखों में हमारे उज्ज्वल भविष्य की अनगिनत चिंताएं भी तैरती साफ दिखाई देती थीं. उन से जुदाई का खयाल ही मुझे भीतर तक द्रवित कर रहा था.

कार का दरवाजा बंद होते ही फूफीदादी ने मेरा माथा चूम लिया और मुट्ठी में एक परचा थमा दिया, ‘‘तुम्हारे फूफादादा का पता है. वहां जा कर उन्हें ढूंढ़ने की कोशिश करना और अगर मिल जाएं तो बस, इतना कह देना, ‘‘जीतेजी एक बार अपनी अम्मी की कब्र पर फातेहा पढ़ने आ जाएं.’’

फूफीदादी की भीगी आवाज ने मुझे भीतर तक हिला कर रख दिया. पूरे 63 साल हो गए फूफीदादी और फूफादादा के बीच पैसिफिक अटलांटिक और हिंद महासागर को फैले हुए, लेकिन आज भी दादी को अपने शौहर के कश्मीर लौट आने का यकीन की हद तक इंतजार है.

इंगलैंड पहुंच कर ऐडमिशन की प्रक्रिया पूरी करतेकरते मैं फूफीदादी के हुक्म को पूरा करने का वक्त नहीं निकाल पाया, लेकिन उस दिन मैं बेहद खुश हो गया जब मेरे कश्मीरी क्लासफैलो ने इंगलैंड में बसे कश्मीरियों की पूरी लिस्ट इंटरनैट से निकाल कर मेरे सामने रख दी. मेरी आंखों के सामने घूम गया 80 वर्षीय फूफीदादी शफीका का चेहरा.

मेरे दादा की इकलौती बहन, शफीका की शादी हिंदुस्तान की आजादी से ठीक एक महीने पहले हुई थी. उन के पति की सगी बहन मेरी सगी दादी थीं. शादी के बाद 2 महीने साथ रह कर उन के शौहर डाक्टरी पढ़ने के लिए लाहौर चले गए. शफीका अपने 2 देवरों और सास के साथ श्रीनगर में रहने लगीं.

लाहौर पहुंचने के बाद दोनों के बीच खतों का सिलसिला लंबे वक्त तक चलता रहा. खत क्या थे, प्यार और वफा की स्याही में डूबे प्रेमकाव्य. 17 साल की शफीका की मुहब्बत शीर्ष पर थी. हर वक्त निगाहें दरवाजे पर लगी रहतीं. हर बार खुलते हुए दरवाजे पर उसे शौहर की परछाईं होने का एहसास होता.

मुहब्बत ने अभी अंगड़ाई लेनी शुरू ही की थी कि पूरे बदन पर जैसे फालिज का कहर टूट पड़ा. विभाजन के बाद हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच खतों के साथसाथ लोगों के आनेजाने का सिलसिला भी बंद हो गया.

शफीका तो जैसे पत्थर हो गईं. पूरे 6 साल की एकएक रात कत्ल की रात की तरह गुजारी और दिन जुदाई की सुलगती भट्टी की तरह. कानों में डाक्टर की आवाजें गूंजती रहतीं, सोतीजागती आंखों में उन का ही चेहरा दिखाई देता था. रात को बिस्तर की सिलवटें और बेदारी उन के साथ बीते वक्त के हर लमहे को फिर से ताजा कर देतीं.

अचानक एक दिन रेडियो में खबर आई कि हिंदुस्तान-पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच होगा. इस मैच को देखने जाने वालों के लिए वीजा देने की खबर इक उम्मीद का पैगाम ले कर आई.

शफीका के दोनों भाइयों ने रेलवे मिनिस्टर से खास सिफारिश कर के अपने साथसाथ बहन का भी पाकिस्तान का 10 दिनों का वीजा हासिल कर लिया. जवान बहन के सुलगते अरमानों को पूरा करने और दहकते जख्मों पर मरहम लगाने का इस से बेहतरीन मौका शायद ही फिर मिल पाता.

पाकिस्तान में डाक्टर ने तीनों मेहमानों से मिल कर अपने कश्मीर न आ सकने की माफी मांगते हुए हालात के प्रतिकूल होने की सारी तोहमत दोनों देशों की सरकारों के मत्थे मढ़ दी. उन के मुहब्बत से भरे व्यवहार ने तीनों के दिलों में पैदा कड़वाहट को काई की तरह छांट दिया. शफीका के लिए वो 9 रातें सुहागरात से कहीं ज्यादा खूबसूरत और अहम थीं. वे डाक्टर की मुहब्बत में गले तक डूबती चली जा रही थीं.

उधर, उन के दोनों भाइयों को मिनिस्टरी और दोस्तों के जरिए पक्की तौर पर यह पता चल गया था कि अगर डाक्टर चाहें तो पाकिस्तान सरकार उन की बीवी शफीका को पाकिस्तान में रहने की अनुमति दे सकती है. लेकिन जब डाक्टर से पूछा गया तो उन्होंने अपने वालिद, जो उस वक्त मलयेशिया में बड़े कारोबारी की हैसियत से अपने पैर जमा चुके थे, से मशविरा करने के लिए मलयेशिया जाने की बात कही.

साथ ही, यह दिलासा भी दिया कि मलयेशिया से लौटते हुए वे कश्मीर में अपनी वालिदा और भाईबहनों से मिल कर वापसी के वक्त शफीका को पाकिस्तान ले आएंगे. दोनों भाइयों को डाक्टर की बातों पर यकीन न हुआ तो उन्होंने शफीका से कहा, ‘बहन, जिंदगी बड़ी लंबी है, कहीं ऐसा न हो कि तुम्हें डाक्टर के इंतजार के फैसले पर पछताना पड़े.’

‘भाईजान, तलाक लेने की वजह दूसरी शादी ही होगी न. यकीन कीजिए, मैं दूसरी शादी तो दूर, इस खयाल को अपने आसपास फटकने भी नहीं दूंगी.’ 27 साल की शफीका का इतना बड़ा फैसला भाइयों के गले नहीं उतरा, फिर भी बहन को ले कर वे कश्मीर वापस लौट आए.

वापस आ कर शफीका फिर अपनी सास और देवरों के साथ रहने लगीं. डाक्टर की मां अपने बेटे से बेइंतहा मुहब्बत करती थीं. बहू से बेटे की हर बात खोदखोद कर पूछती हुई अनजाने ही बहू के भरते जख्मों की परतें उधेड़ती रहतीं.

शफीका अपने यकीन और मुहब्बत के रेशमी धागों को मजबूती से थामे रहीं. उड़तीउड़ती खबरें मिलीं कि डाक्टर मलयेशिया तो पहुंचे, लेकिन अपनी मां और बीवी से मिलने कश्मीर नहीं आए. मलयेशिया में ही उन्होंने इंगलैंड मूल की अपनी चचेरी बहन से निकाह कर लिया था. शफीका ने सुना तो जो दीवार से टिक कर धम्म से बैठीं तो कई रातें उन की निस्तेज आंखें, अपनी पलकें झपकाना ही भूल गईं. सुहागिन बेवा हो गईं, लेकिन नहीं, उन के कान और दिमाग मानने को तैयार ही नहीं थे.

‘लोग झूठ बोल रहे हैं. डाक्टर, मेरा शौहर, मेरा महबूब, मेरी जिंदगी, ऐसा नहीं कर सकता. वफा की स्याही से लिखे गए उन की मुहब्बत की शीरीं में डूबे हुए खत, उस जैसे वफादार शख्स की जबान से निकले शब्द झूठे हो ही नहीं सकते. मुहब्बत के आसमान से वफा के मोती लुटाने वाला शख्स क्या कभी बेवफाई कर सकता है? नहीं, झूठ है. कैसे यकीन कर लें, क्या मुहब्बत की दीवार इतनी कमजोर ईंटों पर रखी गई थी कि मुश्किल हालात की आंधी से वह जमीन में दफन हो जाए? वो आएंगे, जरूर आएंगे,’ पूरा भरोसा था उन्हें अपने शौहर पर.

शफीका के दिन कपड़े सिलते, स्वेटर बुनते हुए कट जाते लेकिन रातें नागफनी के कांटों की तरह सवाल बन कर चुभतीं. ‘जिन की बांहों में मेरी दुनिया सिमट गई थी, जिन के चौड़े सीने पर मेरे प्यार के गुंचे महकने लगे थे, उन की जिंदगी में दूसरी औरत के लिए जगह ही कहां थी भला?’ खयालों की उथली दुनिया के पैर सचाई की दलदल में कईकई फुट धंस गए. लेकिन सच? सच कुछ और ही था. कितना बदरंग और बदसूरत? सच, डाक्टर शादी के बाद दूसरी बीवी को ले कर इंगलैंड चला गया. मलयेशिया से उड़ान भरते हुए हवाईजहाज हिमालय की ऊंचीऊंची प्रहरी सी खड़ी पहाडि़यों पर से हो कर जरूर गुजरा होगा? शफीका की मुहब्बत की बुलंदियों ने तब दोनों बाहें फैला कर उस से कश्मीर में ठहर जाने की अपील भी की होगी. मगर गुदाज बीवी की आगोश में सुधबुध खोए डाक्टर के कान में इस छातीफटी, दर्दभरी पुकार को सुनने का होश कहां रहा होगा?

शफीका को इतने बड़े जहान में एकदम तनहा छोड़ कर, उन के यकीन के कुतुबमीनार को ढहा कर, अपनी बेवफाई के खंजर से शफीका के यकीन को जख्मी कर, उन के साथ किए वादों की लाश को चिनाब में बहा दिया था डाक्टर ने, जिस के लहू से सुर्ख हुआ पानी आज भी शफीका की बरबादी की दास्तान सुनाता है.

शफीका जारजार रोती हुई नियति से कहती थी, ‘अगर तू चाहती, तो कोई जबरदस्ती डाक्टर का दूसरा निकाह नहीं करवा सकता था. मगर तूने दर्द की काली स्यायी से मेरा भविष्य लिखा था, उसे वक़्त का ब्लौटिंगपेपर कभी सोख नहीं पाया.’

शफीका के चेहरे और जिस्म की बनावट में कश्मीरी खूबसूरती की हर शान मौजूद थी. इल्म के नाम पर वह कश्मीरी भाषा ही जानती थी. डाक्टर की दूसरी बीवी, जिंदगी की तमाम रंगीनियों से लबरेज, खुशियों से भरपूर, तनमन पर आधुनिकता का पैरहन पहने, डाक्टर के कद के बराबर थी.

इंगलैंड की चमकदमक, बेबाकपन और खुद की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए हाथ आई चाचा की बेशुमार दौलत ने एक बेगर्ज मासूम मुहब्बत का गला घोंट दिया. शफीका ने 19 साल, जिंदगी के सब से खूबसूरत दिन, सास के साथ रह कर गुजार दिए. दौलत के नशे में गले तक डूबे डाक्टर को न ही मां की ममता बांध सकी, न बावफा पत्नी की बेलौस मुहब्बत ही अपने पास बुला सकी.

डाक्टर की वादाखिलाफी और जवान बहन की जिंदगी में फैलती वीरानी और तनहाई के घनघोर अंधेरे के खौफ से गमगीन हो कर शफीका के बड़े भाई ने अपनी बीवी को तलाक देने का मन बना लिया जो डाक्टर की सगी बहन थी. लेकिन शफीका चीन की दीवार की तरह डट कर सामने खड़ी हो गई, ‘शादी के दायित्व तो इन के भाई ने नहीं निभाए हैं न, दगा और फरेब तो उन्होंने मेरे साथ किया है, कुसूर उन का है तो सजा भी उन्हें ही मिलनी चाहिए. उन की बहन ने आप की गृहस्थी सजाई है, आप के बच्चों की मां हैं वे, उस बेकुसूर को आप किस जुर्म की सजा दे रहे हैं, भाई जान? मेरे जीतेजी यह नहीं होगा,’ कह कर भाई को रोका था शफीका ने.

खौफजदा भाभी ने शफीका के बक्से का ताला तोड़ कर उस का निकाहनामा और डाक्टर के साथ खींची गई तसवीरों व मुहब्बतभरे खतों को तह कर के पुरानी किताबों की अलमारी में छिपा दिया था. जो 15 साल बाद रद्दी में बेची जाने वाली किताबों में मिले. भाभी डर गई थीं कि कहीं उन के भाई की वजह से उन की तलाक की नौबत आ गई तो कागजात के चलते उन के भाई पर मुकदमा दायर कर दिया जाएगा. लेकिन शफीका जानबूझ कर चुपचाप रहीं.

लंबी खामोशी के धागे से सिले होंठ, दिल में उमड़ते तूफान को कब तक रोक पाते. शफीका के गरमगरम आंसुओं का सैलाब बड़ीबड़ी खूबसूरत आंखों के रास्ते उन के गुलाबी गालों और लरजाते कंवल जैसे होंठों तक बह कर डल झील के पानी की सतह को और बढ़ा जाता. कलैंडर बदले, मौसम बदले, श्रीनगर की पहाडि़यों पर बर्फ जमती रही, पिघलती रही, बिलकुल शफीका के दर्दभरे इंतजार की तरह.

फूलों की घाटी हर वर्ष अपने यौवन की दमक के साथ अपनी महक लुटा कर वातावरण को दिलकश बनाती रही, लेकिन शफीका की जिंदगी में एक बार आ कर ठहरा सूखा मौसम फिर कभी मौसमेबहार की शक्ल न पा सका. शफीका की सहेलियां दादी और नानी बन गईं. आखिरकार शफीका भी धीरेधीरे उम्र के आखिरी पड़ाव की दहलीज पर खड़ी हो गईं.

बड़े भाईसाहब ने मरने से पहले अपनी बहन के भविष्य को सुरक्षित कर दिया. अपनी पैंशन शफीका के नाम कर दी. पूरे 20 साल बिना शौहर के, सास के साथ रहने वाली बहन को छोटे भाईभाभी ले आए हमेशा के लिए अपने घर. बेकस परिंदे का आशियाना एक डाल से टूटा तो दूसरी डाल पर तिनके जोड़तेजोड़ते

44 साल लग गए. चेहरे की चिकनाई और चमकीलेपन में धीरेधीरे झुर्रियों की लकीरें खिंचने लगीं.

प्यार, फिक्र और इज्जत, देने में भाइयों और उन के बच्चों ने कोई कमी नहीं छोड़ी. भतीजों की शादियां हुईं तो बहुओं ने सास की जगह फूफीसास को पूरा सम्मान दिया. शफीका के लिए कभी भी किसी चीज की कमी नहीं रही, मगर अपने गर्भ में समाए नुकीले कंकड़पत्थर को तो सिर्फ ठहरी हुई झील ही जानती है. जिंदगी में कुछ था तो सिर्फ दर्द ही दर्द.

अपनी कोख में पलते बच्चे की कुलबुलाहट के मीठे दर्द को महसूस करने से महरूम शफीका अपने भतीजों के बच्चों की मासूम किलकारियों, निश्छल हंसी व शरारतों में खुद को गुम कर के मां की पहचान खो कर कब फूफी से फूफीदादी कहलाने लगीं, पता ही नहीं चला.

शरीर से एकदम स्वस्थ 80 वर्षीया शफीका के चमकते मोती जैसे दांत आज भी बादाम और अखरोट फोड़ लेते हैं. यकीनन, हाथपैरों और चेहरे पर झुर्रियों ने जाल बिछाना शुरू कर दिया है लेकिन चमड़ी की चमक अभी तक दपदप करती हुई उन्हें बूढ़ी कहलाने से महफूज रखे हुए है.

पैरों में जराजरा दर्द रहता है तो लकड़ी का सहारा ले कर चलती हैं, लेकिन शादीब्याह या किसी खुशी के मौके पर आयोजित की गई महफिल में कालीन पर तकिया लगा कर जब भी बैठतीं, कम उम्र औरतों को शहद की तरह अपने आसपास ही बांधे रखतीं.

उन के गाए विरह गीत, उन की आवाज के सहारेसहारे चलते चोटखाए दिलों में सीधे उतर जाते. शफीका की गहरी भूरी बड़ीबड़ी आंखों में अपना दुलहन वाला लिबास लहरा जाता, जब कोई दुलहन विदा होती या ससुराल आती. उन की आंखों में अंधेरी रात के जुगनुओं की तरह ढेर सारे सपने झिलमिलाने लगते. सपने उम्र के मुहताज नहीं होते, उन का सुरीला संगीत तो उम्र के किसी भी पड़ाव पर बिना साज ही बजने लगता है.

एक घर, सजीधजी शफीका, डाक्टर का चंद दिनों का तिलिस्म सा लगने वाला मीठा मिलन, बच्चों की मोहक मुसकान, सुखदुख के पड़ाव पर ठहरताबढ़ता कारवां, मां, दादी के संबोधन से अंतस को सराबोर करने वाला सपना…हमेशा कमी बन कर चुभता रहता. वाकई, क्या 80 साल की जिंदगी जी या सिर्फ जिंदगी की बदशक्ल लाश ढोती रहीं? यह सवाल खुद से पूछने से डरती रहीं शफीका.

शफीका ने एक मर्द के नाम पूरी जिंदगी लिख दी. जवानी उस के नाम कर दी, अपनी हसरतों, अपनी ख्वाहिशों के ताश के महल बना कर खुद ही उसे टूटतेबिखरते देखती रहीं. जिस्म की कसक, तड़प को खुद ही दिलासा दे कर सहलाती रहीं सालों तक.

रिश्तेदार, शफीका से मिलते लेकिन कोई भी उन के दिल में उतर कर नहीं देख पाता कि हर खुशी के मौके पर गाए जाने वाले लोकगीतों के बोलों के साथ बजते हुए कश्मीरी साजों, डफली की हर थाप पर एक विरह गीत अकसर शफीका के कंपकंपाते होंठों पर आज भी क्यों थिरकता जाता है-

‘तू आए न आए

लगी हैं निगाहें

सितारों ने देखी हैं

झुकझुक के राहें

ये दिल बदगुमां है

नजर को यकीं है

तू जो नहीं है

तो कुछ भी नहीं है

ये माना कि महफिल

जवां है हसीं है.’

अब आज पूरे 3 महीनों बाद मुझे अचानक डायरी में फूफीदादी का दिया हुआ परचा दिखाई दिया तो इंटरनैट पर कश्मीरी मुसलमानों के नाम फिर से सर्च कर डाले. पता वही था, नाम डा. खालिद अनवर, उम्र 90 साल. फोन मिलाया तो एक गहरी लेकिन थकी आवाज ने जवाब दिया, ‘‘डाक्टर खालिद अनवर स्पीकिंग.’’

‘‘आय एम फ्रौम श्रीनगर, इंडिया, आई वांट टू मीट विद यू.’’

‘‘ओ, श्योर, संडे विल बी बैटर,’’ ब्रिटिश लहजे में जवाब मिला.

जी चाहा फूफीदादी को फोन लगाऊं, दादी मिल गया पता…वैसे मैं उन से मिल कर क्या कहूंगा, अपना परिचय कैसे दूंगा, कहीं हमारे खानदान का नाम सुन कर ही मुझे अपने घर के गेट से बाहर न कर दें, एक आशंका, एक डर पूरी रात मुझे दीमक की तरह चाटता रहा.

निश्चित दिन, निश्चित समय, उन के घर की डौरबैल बजाने से पहले, क्षणभर के लिए हाथ कांपा था, ‘तुम शफीका के भतीजे के बेटे हो. गेटआउट फ्रौम हियर. वह पृष्ठ मैं कब का फाड़ चुका हूं. तुम क्या टुकड़े बटोरने आए हो?’ कुछ इस तरह की ऊहापोह में मैं ने डौरबैल पर उंगली रख दी.

‘‘प्लीज कम इन, आई एम वेटिंग फौर यू.’’ एक अनौपचारिक स्वागत के बाद उन के द्वारा मेरा परिचय और मेरा मिलने का मकसद पूछते ही मैं कुछ देर तो चुप रहा, फिर अपने ननिहाल का पता बतलाने के बाद देर तक खुद से लड़ता रहा.

अनौपचारिक 2-3 मुलाकातों के बाद वे मुझ से थोड़ा सा बेबाक हो गए. उन की दूसरी पत्नी की मृत्यु 15 साल पहले हो चुकी थी. बेटों ने पाश्चात्य सभ्यता के मुताबिक अपनी गृहस्थियां अलग बसा ली थीं. वीकैंड पर कभी किसी का फोन आ जाता, कुशलता मिल जाती. महीनों में कभी बेटों को डैड के पास आने की फुरसत मिलती भी तो ज्यादा वक्त फोन पर बिजनैस डीलिंग में खत्म हो जाता. तब सन जैसी सफेद पलकें, भौंहें और सिर के बाल चीखचीख कर पूछने लगते, ‘क्या इसी अकेलेपन के लिए तुम श्रीनगर में पूरा कुनबा छोड़ कर यहां आए थे?’

हालांकि डाक्टर खालिद अनवर की उम्र चेहरे पर हादसों का हिसाब लिखने लगी थी मगर बचपन से जवानी तक खाया कश्मीर का सूखा मेवा और फेफड़े में भरी शुद्ध, शीतल हवा उन की कदकाठी को अभी भी बांस की तरह सीधा खड़ा रखे हुए है. डाक्टर ने बुढ़ापे को पास तक नहीं फटकने दिया. अकसर बेटे उन के कंधे पर हाथ रख कर कहते हैं, ‘‘डैड, यू आर स्टिल यंग दैन अस. सो, यू डौंट नीड अवर केयर.’’ यह कहते हुए वे शाम से पहले ही अपने घर की सड़क की तरफ मुड़ जाते हैं.

शरीर तो स्वस्थ है लेकिन दिल… छलनीछलनी, दूसरी पत्नी से छिपा कर रखी गई शफीका की चिट्ठियां और तसवीरों को छिपछिप कर पढ़ने और देखने के लिए मजबूर थे. प्यार में डूबे खतों के शब्द, साथ गुजारे गिनती के दिनों के दिलकश शाब्दिक बयान, 63 साल पीछे ले जाता, यादों के आईने में एक मासूम सा चेहरा दिखलाई देने लगता. डाक्टर हाथ बढ़ा कर उसे छू लेना चाहते हैं जिस की याद में वे पलपल मरमर कर जीते रहे. बीवी एक ही छत के नीचे रह कर भी उन की नहीं थी. दौलत का बेशुमार अंबार था. शानोशौकत, शोहरत, सबकुछ पास में था अगर नहीं था तो बस वह परी चेहरा, जिस की गरम हथेलियों का स्पर्श उन की जिंदगी में ऊर्जा भर देता.

मेरे अपनेपन में उन्हें अपने वतन की मिट्टी की खुशबू आने लगी थी. अब वे परतदरपरत खुलने लगे थे. एक दिन, ‘‘लैपटौप पर क्या सर्च कर रहे हैं?’’

‘‘बेटी के लिए प्रौपर मैच ढूंढ़ रहा हूं,’’ कहते हुए उन का गला रुंधने लगा. उन की यादों की तल्ख खोहों में उस वक्त वह कंपा देने वाली घड़ी शामिल थी, जब उन की बेटी का पति अचानक बिना बताए कहीं चला गया. बहुत ढूंढ़ा, इंटरनैशनल चैनलों व अखबारों में उस की गुमशुदगी की खबर छपवाई, लेकिन सब फुजूल, सब बेकार. तब बेटी के उदास चेहरे पर एक चेहरा चिपकने लगा. एक भूलाबिसरा चेहरा, खोयाखोया, उदास, गमगीन, छलछला कर याचना करती 2 बड़ीबड़ी कातर आंखें.

किस का है यह चेहरा? दूसरी बीवी का? नहीं, तो? मां का? बिलकुल नहीं. फिर किस का है, जेहन को खुरचने लगे, 63 साल बाद यह किस का चेहरा? चेहरा बारबार जेहन के दरवाजे पर दस्तक दे रहा है. किस की हैं ये सुलगती सवालिया आंखें? किस का है यह कंपकंपाता, याचना करता बदन, मगर डाक्टर पर उस का लैशमात्र भी असर नहीं हुआ था. लेकिन आज जब अपनी ही बेटी की सिसकियां कानों के परदे फाड़ने लगीं तब वह चेहरा याद आ गया.

दुनियाभर के धोखों से पाकसाफ, शबनम से ज्यादा साफ चेहरा, वे कश्मीर की वादियां, महकते फूलों की लटकती लडि़यों के नीचे बिछी खूबसूरत गुलाबी चादर, नर्म बिस्तर पर बैठी…खनकती चूडि़यां, लाल रेशमी जोड़े से सजा आरी के काम वाला लहंगाचोली, मेहंदी से सजे 2 गोरे हाथ, कलाई पर खनकती सोने की चूडि़यां, उंगलियों में फंसी अंगूठियां. हां, हां, कोई था जिस की मद्धम आवाज कानों में बम के धमाकों की तरह गूंज रही थी, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी खालिद, हमेशा.

लाहौर एयरपोर्ट पर अलविदा के लिए लहराता हाथ, दिल में फांस सी चुभी कसक इतनी ज्यादा कि मुंह से बेसाख्ता चीख निकल गई, ‘‘हां, गुनहगार हूं मैं तुम्हारा. तुम्हारे दिल से निकली आह… शायद इसीलिए मेरी बेटी की जिंदगी बरबाद हो गई. मेरे चाचा के बहुत जोर डालने पर, न चाहते हुए भी मुझे उन की अंगरेज बेटी से शादी करनी पड़ी. दौलत का जलवा ही इतना दिलफरेब होता है कि अच्छेअच्छे समझदार भी धोखा खा जाते हैं.

‘‘शफीका, तुम से वादा किया था मैं ने. तुम्हें लाहौर ला कर अपने साथ रखने का. वादा था नए सिरे से खुशहाल जिंदगी में सिमट जाने का, तुम्हारी रातों को हीरेमोती से सजाने का, और दिन को खुशियों की चांदनी से नहलाने का. पर मैं निभा कहां पाया? आंखें डौलर की चमक में चौंधिया गईं. कटे बालों वाली मोम की गुडि़या अपने शोख और चंचल अंदाज से जिंदगी को रंगीन और मदहोश कर देने वाली महक से सराबोर करती चली गई मुझे.’’

अचानक एक साल बाद उन का दामाद इंगलैंड लौट आया, ‘‘अब मैं कहीं नहीं जाऊंगा. आप की बेटी के साथ ही रहूंगा. वादा करता हूं.’’

दीवानगी की हद तक मुहब्बत करने वाली पत्नी को छोड़ कर दूसरी अंगरेज औरत के टैंपरेरी प्यार के आकर्षण में बंध कर जब वह पूरी तरह से कंगाल हो गया तो लौटने के लिए उसे चर्चों के सामने खड़े हो कर वायलिन बजा कर लोगों से पैसे मांगने पड़े थे.

पति की अपनी गलती की स्वीकृति की बात सुन कर बेटी बिलबिला कर चीखी थी, ‘‘वादा, वादा तोड़ कर उस फिनलैंड वाली लड़की के साथ मुझ पत्नी को छोड़ कर गए ही क्यों थे? क्या कमी थी मुझ में? जिस्म, दौलत, ऐशोआराम, खुशियां, सबकुछ तो लुटाया था तुम पर मैं ने. और तुम? सिर्फ एक नए बदन की हवस में शादी के पाकीजा बंधन को तोड़ कर चोरों की तरह चुपचाप भाग गए. मेरे यकीन को तोड़ कर मुझे किरचियों में बिखेर दिया.

‘‘तुम को पहचानने में मुझ से और मेरे बिजनैसमैन कैलकुलेटिव पापा से भूल हो गई. मैं इंगलैंड में पलीपढ़ी हूं, लेकिन आज तक दिल से यहां के खुलेपन को कभी भी स्वीकार नहीं कर सकी. मुझ से विश्वासघात कर के पछतावे का ढोंग करने वाले शख्स को अब मैं अपना नहीं सकती. आई कांट लिव विद यू, आई कांट.’’ यह कहती हुई तड़प कर रोई थी डाक्टर की बेटी.

आज उस की रुलाई ने डाक्टर को हिला कर रख दिया. आज से 50 साल पहले शफीका के खामोश गरम आंसू इसी पत्थरदिल डाक्टर को पिघला नहीं सके थे लेकिन आज बेटी के दर्द ने तोड़ कर रख दिया. उसी दम दोटूक फैसला, दामाद से तलाक लेने के लिए करोड़ों रुपयों का सौदा मंजूर था क्योंकि बेटी के आंसुओं को सहना बरदाश्त की हद से बाहर था.

डाक्टर, शफीका के कानूनी और मजहबी रूप से सहारा हो कर भी सहारा न बन सके, उस मजलूम और बेबस औरत के वजूद को नकार कर अपनी बेशुमार दौलत का एक प्रतिशत हिस्सा भी उस की झोली में न डाल सके. शफीका की रात और दिन की आह अर्श से टकराई और बरसों बाद कहर बन कर डाक्टर की बेटी पर टूटी. वह मासूम चेहरा डाक्टर को सिर्फ एक बार देख लेने, एक बार छू लेने की चाहत में जिंदगी की हर कड़वाहट को चुपचाप पीता रहा. उस पर रहम नहीं आया कभी डाक्टर को. लेकिन आज बेटी की बिखरतीटूटती जिंदगी ने डाक्टर को भीतर तक आहत कर दिया. अब समझ में आया, प्यार क्या है. जुदाई का दर्द कितना घातक होता है, पहाड़ तक दरक जाते हैं, समंदर सूख जाते हैं.

मैं यह खबर फूफीदादी तक जल्द से जल्द पहुंचाना चाहता था, शायद उन्हें तसल्ली मिलेगी. लेकिन नहीं, मैं उन के दिल से अच्छी तरह वाकिफ था. ‘मेरे दिल में डाक्टर के लिए नफरत नहीं है. मैं ने हर लमहा उन की भलाई और लंबी जिंदगी की कामना की है. उन की गलतियों के बावजूद मैं ने उन्हें माफ कर दिया है, बजी,’ अकसर वे मुझ से ऐसा कहती थीं.

मैं फूफीदादी को फोन करने की हिम्मत जुटा ही नहीं सका था कि आधीरात को फोन घनघना उठा था, ‘‘बजी, फूफीदादी नहीं रहीं.’’ क्या सोच रहा था, क्या हो गया. पूरी जिंदगी गीली लकड़ी की तरह सुलगती रहीं फूफीदादी.

सुबह का इंतजार मेरे लिए सात समंदर पार करने की तरह था. धुंध छंटते ही मैं डाक्टर के घर की तरफ कार से भागा. कम से कम उन्हें सचाई तो बतला दूं. कुछ राहत दे कर उन की स्नेहता हासिल कर लूं मगर सामने का नजारा देख कर आंखें फटी की फटी रह गईं. उन के दरवाजे पर एंबुलैंस खड़ी थी. और घबराई, परेशान बेटी ड्राइवर से जल्दी अस्पताल ले जाने का आग्रह कर रही थी. हार्टअटैक हुआ था उन्हें. हृदयविदारक दृश्य.

मैं स्तब्ध रह गया. स्टेयरिंग पर जमी मेरी हथेलियों के बीच फूफीदादी का लिखा खत बर्फबारी में भी पसीने से भीग गया, जिस पर लिखा था, ‘बजी, डाक्टर अगर कहीं मिल जाएं तो यह आखिरी अपील करना कि वे मुझ से मिलने कश्मीर कभी नहीं आए तो मुझे कोई शिकवा नहीं है लेकिन जिंदगी के रहते एक बार, बस एक बार, अपनी मां की कब्र पर फातेहा पढ़ जाएं और अपनी सरजमीं, कश्मीर की खूबसूरत वादियों में एक बार सांस तो ले लें. मेरी 63 साल की तपस्या और कुरबानियों को सिला मिल जाएगा. मुझे यकीन है तुम अपने वतन से आज भी उतनी ही मुहब्बत करते हो जितनी वतन छोड़ते वक्त करते थे.’

गुनाहों की सजा तो कानून देता है, लेकिन किसी का दिल तोड़ने की सजा देता है खुद का अपना दिल.

‘तू आए न आए,

लगी हैं निगाहें

सितारों ने देखी हैं

झुकझुक के राहें…’

इस गजल का एकएक शब्द खंजर बन कर मेरे सीने में उतरने लगा और मैं स्टेयरिंग पर सिर पटकपटक कर रो पड़ा.

Latest Hindi Stories : जिंदगी के रंग

Latest Hindi Stories : ‘‘बीबीजी…ओ बीबीजी, काम वाली की जरूरत हो तो मुझे आजमा कर देख लो न,’’ शहर की नई कालोनी में काम ढूंढ़ते हुए एक मकान के गेट पर खड़ी महिला से वह हाथ जोड़ते हुए काम पर रख लेने की मनुहार कर रही थी.

‘‘ऐसे कैसे काम पर रख लें तुझे, किसी की सिफारिश ले कर आई है क्या?’’

‘‘बीबीजी, हम छोटे लोगों की सिफारिश कौन करेगा?’’

‘‘तेरे जैसी काम वाली को अच्छी तरह देख रखा है, पहले तो गिड़गिड़ा कर काम मांगती हैं और फिर मौका पाते ही घर का सामान ले कर चंपत हो जाती हैं. कहां तेरे पीछे भागते फिरेंगे हम. अगर किसी की सिफारिश ले कर आए तो हम फिर सोचें.’’

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ऐसे ही जवाब उस को न जाने कितने घरों से मिल चुके थे. सुबह से शाम तक गिड़गिड़ाते उस की जबान भी सूख गई थी, पर कोई सिफारिश के बिना काम देने को तैयार नहीं था.

कितनों से उस ने यह भी कहा, ‘‘बीबीजी, 2-4 दिन रख के तो देख लो. काम पसंद नहीं आए तो बिना पैसे दिए काम से हटा देना पर बीबीजी, एक मौका तो दे कर देखो.’’

‘‘हमें ऐसी काम वाली की जरूरत नहीं है. 2-4 दिन का मौका देते ही तू तो हमारे घर को साफ करने का मौका ढूंढ़ लेगी. ना बाबा ना, तू कहीं और जा कर काम ढूंढ़.’’

‘आज के दिन और काम मांग कर देखती हूं, यदि नहीं मिला तो कल किसी ठेकेदार के पास जा कर मजदूरी करने का काम कर लूंगी. आखिर पेट तो पालना ही है.’ मन में ऐसा सोच कर वह एक कोठी के आगे जा कर बैठ गई और उसी तरह बीबीजी, बीबीजी की रट लगाने लगी.

अंदर से एक प्रौढ़ महिला बाहर आईं. काम ढूंढ़ने की मुहिम में वह पहली महिला थीं, जिन्होंने बिना झिड़के उसे अंदर बुला कर बैठाते हुए आराम से बात की थी.

‘‘तुम कहां से आई हो? कहां रहती हो? कौन से घर का काम छोड़ा है? क्याक्या काम आता है? कितने रुपए लोगी? घर में कौनकौन हैं? शादी हुई है या नहीं?’’ इतने सारे प्रश्नों की झड़ी लगा दी थी उन्होंने एकसाथ ही.

बातों में मिठास ला कर उस ने भी बड़े धैर्य के साथ उत्तर देते हुए कहा, ‘‘बीबीजी, मैं बाहर से आई हूं, मेरा यहां कोई घर नहीं है, मुझे घर का सारा काम आता है, मैं 24 घंटे आप के यहां रहने को तैयार हूं. मुझ से काम करवा कर देख लेना, पसंद आए तो ही पैसे देना. 24 घंटे यहीं रहूंगी तो बीबीजी, खाना तो आप को ही देना होगा.’’

उस कोठी वाली महिला पर पता नहीं उस की बातों का क्या असर हुआ कि उस ने घर वालों से बिना पूछे ही उस को काम पर रखने की हां कर दी.

‘‘तो बीबीजी, मैं आज से ही काम शुरू कर दूं?’’ बड़ी मासूमियत से वह बोली.

‘‘हां, हां, चल काम पर लग जा,’’ श्रीमती चतुर्वेदी ने कहा, ‘‘तेरा नाम क्या है?’’

‘‘कमला, बीबीजी,’’ इतना बोल कर वह एक पल को रुकी फिर बोली, ‘‘बीबीजी, मेरा थोड़ा सामान है, जो मैं ने एक जगह रखा हुआ है. यदि आप इजाजत दें तो मैं जा कर ले आऊं,’’ उस ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

‘‘कितनी देर में वापस आएगी?’’

‘‘बस, बीबीजी, मैं यों गई और यों आई.’’

काम मिलने की खुशी में उस के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. उस ने अपना सामान एक धर्मशाला में रख दिया था, जिसे ले कर वह जल्दी ही वापस आ गई.

उस के सामान को देखते ही श्रीमती चतुर्वेदी चौंक पड़ीं, ‘‘अरे, तेरे पास ये बड़ेबड़े थैले किस के हैं. क्या इन में पत्थर भर रखे हैं?’’

‘‘नहीं बीबीजी, इन में मेरी मां की निशानियां हैं, मैं इन्हें संभाल कर रखती हूं. आप तो बस कोई जगह बता दो, मैं इन्हें वहां रख दूंगी.’’

‘‘ऐसा है, अभी तो ये थैले तू तख्त के नीचे रख दे. जल्दी से बर्तन साफ कर और सब्जी छौंक दे. अभी थोड़ी देर में सब आते होंगे.’’

‘‘ठीक है, बीबीजी,’’ कह कर उस ने फटाफट सारे बर्तन मांज कर झाड़ूपोंछा किया और खाना बनाने की तैयारी में जुट गई. पर बीबीजी ने एक पल को भी उस का पीछा नहीं छोड़ा था, और छोड़तीं भी कैसे, नईनई बाई रखी है, कैसे विश्वास कर के पूरा घर उस पर छोड़ दें. भले ही काम कितना भी अच्छा क्यों न कर रही हो.

उस के काम से बड़ी खुश थीं वह. उन की दोनों बेटियां और पति ने आते ही पूछा, ‘‘क्या बात है, आज तो घर बड़ा चमक रहा है?’’

मिसेज चतुर्वेदी बोलीं, ‘‘चमकेगा ही, नई काम वाली कमला जो लगा ली है,’’ यह बोलते समय उन की आंखों में चमक साफ दिखाई दे रही थी.

‘‘अच्छी तरह देखभाल कर रखी है न, या यों ही कहीं से सड़क चलते पकड़ लाईं.’’

‘‘है तो सड़क चलती ही, पर काम तो देखो, कितना साफसुथरा किया है. अभी तो जब उस के हाथ का खाना खाओगे, तो उंगलियां चाटते रह जाओगे,’’ चहकते हुए मिसेज चतुर्वेदी बोलीं.

सब खाना खाते हुए खाने की तारीफ तो करते जा रहे थे पर साथ में बीबीजी को आगाह भी करा रहे थे कि पूरी नजर रखना इस पर. नौकर तो नौकर ही होता है. ऐसे ही ये घर वालों का विश्वास जीत लेते हैं और फिर सबकुछ ले कर चंपत हो जाते हैं.

यह सब सुन कर कमला मन ही मन कह रही थी कि आप लोग बेफिक्र रहें. मैं कहीं चंपत होने वाली नहीं. बड़ी मुश्किल से तो तुझे काम मिला है, इसे छोड़ कर क्या मैं यों ही चली जाऊंगी.

खाना वगैरह निबटाने के बाद उस ने बीबीजी को याद दिलाते हुए कहा, ‘‘बीबीजी, मेरे लिए कौन सी जगह सोची है आप ने?’’

‘‘हां, हां, अच्छी याद दिलाई तू ने, कमला. पीछे स्टोररूम है. उसे ठीक कर लेना. वहां एक चारपाई है और पंखा भी लगा है. काफी समय पहले एक नौकर रखा था, तभी से पंखा लगा हुआ है. चल, वह पंखा अब तेरे काम आ जाएगा.’’

उस ने जा कर देखा तो वह स्टोररूम तो क्या बस कबाड़घर ही था. पर उस समय वह भी उसे किसी महल से कम नहीं लग रहा था. उस ने बिखरे पड़े सामान को एक तरफ कर कमरा बिलकुल जमा लिया और चारपाई पर पड़ते ही चैन की सांस ली.

पूरा दिन काम में लगे रहने से खाट पर पड़ते ही उसे नींद आ गई थी, रात को अचानक ही नींद खुली तो उसे, उस एकांत कोठरी में बहुत डर लगा था. पर क्या कर सकती थी, शायद उस का भविष्य इसी कोठरी में लिखा था. आंख बंद की तो उस की यादों का सिलसिला शुरू हो गया.

आज की कमला कल की डा. लता है, एस.एससी., पीएच.डी.. उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के कितने बड़े घर में उस का जन्म हुआ था. मातापिता ने उसे कितने लाड़प्यार से पाला था. 12वीं तक मुरादाबाद में पढ़ाने के बाद उस की जिद पर पिता ने उसे दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए भेज दिया था. गुणसंपन्न (मेरिटोरिअस) छात्रा होने के कारण उसे जल्द ही हास्टल में रहने की भी सुविधा मिल गई थी.

लता ने बी.एससी. बहुत अच्छे अंकों से उत्तीर्ण की. फिर वहीं से एस.एससी. बौटनी कर लिया. पढ़ाई के अलावा वह दूसरी गतिविधियों में भाग लेती थी. भाषण और वादविवाद के लिए जब वह मंच पर जाती थी तो श्रोताओं के दिलोदिमाग पर अपनी छाप छोड़ जाती थी. उस के अभिनय का तो कोई जवाब ही नहीं था, यूनिवर्सिटी में होने वाली नाटकप्रतियोगिताओं में उस ने कई बार प्रथम स्थान प्राप्त किया था. बाद में दिल्ली विश्वविद्यालय से ही लता ने एम.फिल और पीएच.डी. भी कर ली थी.

पीएच.डी. पूरी करने के बाद उस ने मुंबई विश्वविद्यालय में लेक्चरर पद के लिए आवेदन किया था. वह इंतजार कर रही थी कि कब साक्षात्कार के लिए पत्र आए, तभी एक दिन अचानक घटी एक घटना ने उसे आसमान से जमीन पर पटक दिया.

एक रात घर में सभी लोग सोए हुए थे कि अचानक कुछ लोगों ने हमला बोल दिया. उस की आंखों के सामने उन्होंने उस के मातापिता को गोलियों से भून डाला. भाई ने विरोध किया तो उसे भी गोली मार दी गई. वह इतना डर गई कि अपनी जान बचाने के लिए पलंग के नीचे छिप गई.

अपने सामने अपनी दुनिया को बरबाद होते देखती रही, बेबस लाचार सी, पर कुछ भी नहीं बोल पाई थी वह. ये लोग पिता के किसी काम का बदला लेने आए थे. पिता की पुश्तैनी लड़ाई चल रही थी. कितने ही खून हो चुके थे इस बारे में.

6 लोगों के सामने वह कर भी क्या सकती थी. पलंग के नीचे छिपी वह अपने आप को सुरक्षित अनुभव कर रही थी. पिता ने कभीकभार सुनाई भी थीं ये बातें. अत: उसे कुछ आभास सा हो गया था कि ये लोग कौन हो सकते हैं. उस के जेहन में पिता की कही बातें याद आ रही थीं.

डर का उस ने अपने को और सिकोड़ने की कोशिश की तो उन में से एक की नजर उस पर पड़ गई और उस ने पैर पकड़ कर उसे पलंग के नीचे से खींच लिया और चाकू से उस पर वार करने जा रहा था कि उस के एक साथी ने उस का हाथ पकड़ कर मारने से रोक दिया.

‘लड़की, हम क्या कर सकते हैं यह तो तू ने देख ही लिया है. इस घर का सारा कीमती सामान हम ले कर जा रहे हैं. चाहें तो तुझे भी मार सकते हैं पर तेरे बाप से बदला लेने के लिए तुझे जिंदा छोड़ रहे हैं कि तू दरदर घूम कर भीख मांगे और अपने बाप के किए पर आंसू बहाए. हमारे पास समय कम है. हम जा रहे हैं पर कल इस मकान में तेरा चेहरा देखने को न मिले. अगर दिखा तो तुझे भी तेरे बाप के पास भेज देंगे,’ इतना कह कर वे सभी अंधेरे में गुम हो गए.

अब सबकुछ शांत था. कमरे में उस के सामने खून से लथपथ उस के परिवार के लोगों की मृत देह पड़ी थी. वह चाह कर भी रो नहीं सकती थी. घड़ी पर नजर पड़ी तो रात के सवा 3 बजे थे. लता का दिमाग तेजी से चल रहा था. उस के रुकने का मतलब है पुलिस के सवालों का सामना करना. अदालत में जा कर वह अपने परिवार के कातिलों को सजा दिला पाएगी. इस में उसे संदेह था क्योंकि भ्रष्ट पुलिस जब तक कातिलों को पकड़ेगी तब तक तो वे उसे मार ही डालेंगे.

उस ने अपने सारे सर्टिफिकेट और अपनी किताबें, थीसिस, 4 जोड़ी कपड़े थैली में भर कर घर से निकलने का मन बना लिया, पापा और मम्मी ने उसे जेब खर्च के लिए जो रुपए दिए वे उस ने किताबों के बीच में रखे थे. उन पैसों का ध्यान आया तो वह कुछ आस्वस्त हुई.

किसी की हंसतीखेलती दुनिया ऐसे भी उजड़ सकती है, ऐसी तो उस ने कल्पना भी नहीं की थी. फिर भी चलने से पहले पलट कर मांबाप और भाई के बेजान शरीर को देखा तो आंखों से आंसू टपक पड़े. फिर पिता के हत्यारे की कही बातें याद आईं तो वह तेजी से निकल गई. चौराहे तक इतने सारे सामान के साथ वह भागती गई थी. उस में पता नहीं कहां से इतनी ताकत आ गई थी. शायद हत्यारों का डर ही उसे हिम्मत दे रहा था, वहां से दूर भागने की.

लता ने सोचा कि किसी रिश्तेदार के यहां जाने से तो अच्छा है, जहां नौकरी के लिए आवेदन कर रखा है वहीं चली जाती हूं. आखिर छात्र जीवन में की गई एक्ंिटग कब काम आएगी. किसी के यहां नौकरानी बन कर काम चला लूंगी. जब तक नौकरी नहीं मिलेगा, किसी धर्मशाला में रह लूंगी. मुंबई जाते समय उसे याद आया कि उस की रूम मेट सविता की मामी मुंबई में ही रहती हैं.

एक बार सविता से मिलने उस की मामी होस्टल में आई थीं तो उन से लता की भी अच्छी जानपहचान हो गई थी. उस ने योजना बनाई कि धर्मशाला में सामान रख कर पहले वह सविता की मामी के यहां जा कर बात करेगी, क्योंकि उस ने मुंबई विश्वविद्यालय के फार्म पर मुरादाबाद का पता लिखा है और वहां के पते पर इंटरव्यू लेटर जाएगा तो इस की सूचना उसे किस तरह मिलेगी.

टे्रन से उतरने के बाद लता स्टेशन से बाहर आई और कुछ ही दूरी पर एक धर्मशाला में अपने लिए कमरा ले कर थैले में से उस डायरी को निकालने लगी जिस में सविता की मामी का पता उस ने लिख रखा था. फिर उस किताब में से रुपए ढूंढ़े और सविता की मामी के घर पहुंच गई.

मामी के सामने अपनी असलियत कैसे बताती इसलिए उस ने कहा कि उस की मुंबई में नौकरी लग गई है, लेकिन स्थायी पते का चक्कर है इसलिए मैं आप के घर का पता विश्वविद्यालय में लिखा देती हूं.

वहां से लौट कर काम की तलाश करते लता को श्रीमती चतुर्वेदी ने काम पर रख लिया था. वैसे लता मुंबई में किसी प्राइवेट कालिज में कोशिश कर के नौकरी पा सकती थी, पर एक तो प्राइवेट कालिजों में तनख्वाह कम, ऊपर से किराए का मकान ले कर रहना, खाने का जुगाड़, बिजली, पानी का बिल चुकाना, यह सब उस थोड़ी सी तनख्वाह में संभव नहीं था. दूसरे, वह अभी उस घटना से इतनी भयभीत थी कि उस ने 24 घंटे की नौकरानी बन कर रहना ही अच्छा समझा.

इस तरह लता से कमला बनी वह रोज सुबह उठ कर काम में लग जाती. दिन भर काम करती हुई उस ने बीबीजी और सभी घर वालों का मन मोह लिया था. कमला के लिए अच्छी बात यह थी कि वह लोग शाम का खाना 5 बजे ही खा लेते थे, इसलिए सारा काम कर के वह 7 बजे फ्री हो जाती थी.

काम से निबट कर वह अपने छोटे से कमरे में पहुंच जाती और फिर सारी रात बैठ कर इंटरव्यू की तैयारी करती. वैसे छात्र जीवन में वह बहुत मेहनती रही थी, इसलिए पहले से ही काफी अच्छी तैयारी थी. लेकिन फिर भी मुंबई विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के पद पर नियुक्ति पाना और वह भी बिना किसी सिफारिश के बहुत ही मुश्किल था. वह तो केवल अपनी योग्यता के बल पर ही इंटरव्यू में पास होने की तैयारी कर रही थी. आत्मविश्वास तो उस में पहले से ही काफी था. दिल्ली विश्वविद्यालय में भी उस ने कितने ही सेमिनार अटेंड किए थे. अब तो वह बस, सारे कोर्स रिवाइज कर रही थी.

श्रीमती चतुर्वेदी के घर 4 दिन उस के बहुत अच्छे गुजरे. 5वें दिन धड़कते दिल से उस ने पूछा, ‘‘आप ने क्या सोचा बीबीजी, मुझे काम पर रखना है या हटाना है?’’

‘‘मान गई लता मैं तुम्हें, क्या एक्ंिटग की थी तुम ने, कह रही थी कि मुझे लाइट बिना नींद ही नहीं आती. लेकिन लता, सच में मुझे बहुत खुशी हो रही है…हम सभी को, कितने संघर्ष के बाद तुम इतने ऊंचे पद पर पहुंचीं. सच, तुम्हारे मातापिता धन्य हैं, जिन्होंने तुम जैसी साहसी लड़की को जन्म दिया.’’

‘‘पर बीबीजी…ओह, नहीं आंटीजी, मैं तो आप का एहसान कभी नहीं भूलूंगी, यदि आप ने मुझे शरण नहीं दी होती तो मैं कैसे इंटरव्यू की तैयारी कर पाती? मैं जहां भी रहूंगी, इस परिवार को सदैव याद रखूंगी.’’

‘‘क्या कह रही है…तू कहीं नहीं रहेगी, यहीं रहेगी तू, सुना तू ने, जहां मेरी 2 बेटियां हैं, वहीं एक बेटी और सही. अब तक तू यहां कमला बनी रही, पर अब लता बन कर हमारे साथ हमारे ही बीच रहेगी. अब तो जब तेरी डोली इस घर से उठेगी तभी तू यहां से जाएगी. तू ने जिंदगी के इतने रंग देखे हैं, बेटी उन में एक रंग यह भी सही.’’

खुशी के आंसुओं के बीच लता ने अपनी सहमति दे दी थी.

Moral Stories in Hindi : राजीव और उसके परिवार को कौनसी मिली नई खुशियां

Moral Stories in Hindi : ‘‘देखो, शालिनी, मैं तुम से कितनी बार कह चुका हूं कि यदि साल में एक बार तुम से पैसे मांगूं तो तुम मुझ से लड़ाई मत किया करो.’’ ‘‘साल में एक बार? तुम तो एक बार में ही इतना ज्यादा हार जाते हो कि मैं सालभर तक चुकाती रहती हूं.’’

शालिनी की व्यंग्यभरी बात सुन कर राजीव थोड़ा झेंपते हुए बोला, ‘‘अब छोड़ो भी. तुम्हें तो पता है कि मेरी बस यही एक कमजोरी है और तुम्हारी यह कमजोरी है कि इतने सालों में भी मेरी इस कमजोरी को तुम दूर नहीं कर सकीं.’’ राजीव के तर्क को सुन कर शालिनी भौचक्की रह गई. राजीव जब चला गया तो शालिनी सोचने लगी कि उस के जीवन की शुरुआत ही कमजोरी से हुई थी. एमए का पहला साल भी वह पूरा नहीं कर पाई थी कि उस के पिता ने राजीव के साथ उस की शादी की बात तय कर दी. राजीव पढ़ालिखा था और देखने में स्मार्ट भी था.

सब से बड़ी बात यही थी कि उस की 40 हजार रुपए महीने की आमदनी थी. शालिनी ने तब सोचा था कि वह अपने मातापिता से कहे कि वे उसे एमए पूरा कर लेने दें, पर राजीव को देखने के बाद उसे स्वयं ऐसा लगा था कि बाद में शायद ऐसा वर न मिले. बस, वहीं से शायद राजीव के प्रति उस की कमजोरी ने जन्म लिया था. उसे आज लगा कि विवाह के बाद भी वह राजीव की मीठीमीठी बातों व मुसकानों से क्यों हारती रही.

शादी के बाद शालिनी की वह पहली दीवाली थी. सुबहसुबह ही जब राजीव ने उस से कहा कि 10 हजार रुपए निकाल कर लाना तो शालिनी चकित रह गई थी कि कभी भी 1-2 हजार रुपए से ज्यादा की मांग न करने वाले राजीव ने आज इतने रुपए क्यों मांगे. शालिनी ने पूछा, ‘‘क्यों?’’

‘‘लाओ यार,’’ राजीव हंस कर बोला था, ‘‘जरूरी काम है. शाम को काम भी बता दूंगा.’’ राजीव की रहस्यपूर्ण मुसकराहट देख कर शालिनी ने समझा था कि वह शायद उस के लिए नई साड़ी लाएगा. शालिनी दिनभर सुंदर कल्पनाएं करती रही. पर जब शाम के 7-8 बजने पर भी राजीव घर नहीं लौटा तो दुश्चिंताओं ने उसे आ घेरा. तरहतरह के बुरे विचार उस के मन में आने लगे, ‘कोई दुर्घटना तो नहीं हो गई. किसी ने राजीव की बाइक के आगे पटाखे छोड़ कर उसे घायल तो नहीं कर दिया.’

8 बजने के बाद इस विचार से कि घर की दहलीज सूनी न रहे, उस ने 4 दीए जला दिए. पर उस का मन भयानक कल्पनाओं में ही लगा रहा. पूरी रात आंखों में कट गई पर राजीव नहीं आया. हड़बड़ा कर जब वह सुबह उठी थी तो अच्छी धूप निकल आई थी और उस ने देखा कि दूसरे पलंग पर राजीव सोया पड़ा है. उस के पास पहुंची, पर तुरंत ही पीछे भी हट गई. राजीव की सांसों से शराब की बू आ रही थी. तभी शालिनी को रुपयों का खयाल आया. उस ने राजीव की सभी जेबें टटोल कर देखीं पर सभी खाली थीं.

‘तो क्या किसी ने राजीव को शराब पिला कर उस के रुपए छीन लिए?’ उस ने सोचा. पर न जाने कितनी देर फिर वह वहीं खड़ीखड़ी शंकाओं के समाधान को ढूंढ़ती रही थी और आखिर में यह सोच कर कि उठेंगे तब पूछ लूंगी, वह काम में लग गई थी. दोपहर बाद जब राजीव जागा तो चाय देते समय शालिनी ने पूछा, ‘‘कहां थे रातभर? डर के मारे मेरे प्राण ही सूख गए थे. तुम हो कि कुछ बताते भी नहीं. क्या तुम ने शराब पीनी भी शुरू कर दी? वे रुपए कहां गए जो तुम किसी खास काम के लिए ले गए थे?’’

शालिनी ने सोचा था कि राजीव झेंपेगा, शरमाएगा, पर उसे धोखा ही हुआ. शालिनी की बात सुन कर राजीव मुसकराते हुए बोला, ‘‘धीरेधीरे, एकएक सवाल पूछो, भई. मैं कोई साड़ी खरीदने थोड़े ही गया था.’’ ‘‘क्या?’’ शालिनी चौंक कर बोली थी.

‘‘चौंक क्यों रही हो? हर साल हम एक दीवाली के दिन ही तो बिगड़ते हैं.’’ ‘‘तो तुम जुआ खेल कर आ रहे हो? 10 हजार रुपए तुम जुए में हार गए?’’ वह दुखी होते हुए बोली थी.

तब राजीव ने उस के कंधे पर हाथ रख कर कहा था, ‘‘अरे यार, सालभर में एक ही बार तो रुपया खर्च करता हूं. तुम तो साल में 5-6 हजार रुपयों की 4-5 साड़ीयां खरीद लेती हो.’’ शालिनी ने सोचा कि थोड़ी  ढील दे कर भी वह राजीव को ठीक कर लेगी, पर यही उस की दूसरी कमजोरी साबित हुई.

पहले 10 हजार रुपए पर ही खत्म हो जाने वाली बात 20 हजार रुपए तक पहुंच गई, जिसे चुकाने के लिए अगली दीवाली आ गई थी. पिछली बार तो उस ने छिपा कर बच्चों के लिए 10 हजार रुपए रखे थे, पर राजीव उन्हीं को ले कर चल दिया. जब राजीव रुपए ले कर जाने लगा तो शालिनी ने उसे टोकते हुए कहा था, ‘कम से कम बच्चों के लिए ही इन रुपयों को छोड़ दो,’ पर राजीव ने उस की एक न मानी.

उसी दिन शालिनी ने सोच लिया था कि अगली दीवाली पर इस मामले को वह निबटा कर ही रहेगी.

शाम को 5 बजे राजीव लौटा. बच्चों ने उसे खाली हाथ देखा तो निराश हो गए, पर बोले कुछ नहीं. शालिनी ने उन्हें बता दिया था कि पटाखे उन्हें किसी भी हालत में दीए जलने से पहले मिल जाएंगे. राजीव ने पहले कुछ देर तक इधरउधर की बातें कीं, फिर शालिनी से पूछा, ‘‘क्यों, हमारी मां के घर से आए हुए पटाखे यों ही पड़े हैं न?’’

शालिनी ने कहा, ‘‘पड़े थे, हैं नहीं.’’ ‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मैं ने कामवाली के बच्चों को दे दिए.’’ ‘‘पर क्यों?’’

‘‘उस के आदमी ने उस से रुपए छीन लिए थे.’’ राजीव ने कुछ सोचा, फिर बोला, ‘‘ओहो, तो यह बात है. घुमाफिरा कर मेरी बात पर उंगली रखी जा रही है.’’

‘‘देखो, राजीव, मैं ने आज तक कभी ऊंची आवाज में तुम्हारा विरोध नहीं किया. तुम्हें खुद ही मालूम है कि तुम्हारी आदतें क्याक्या गजब ढा सकती हैं.’’ शालिनी की बात सुन कर राजीव झुंझला कर बोला, ‘‘ठीक है, ठीक है. मुझे सब पता है. अभी तुम्हारा बिगड़ा ही क्या है? तुम्हें किसी के आगे हाथ तो नहीं फैलाना पड़ा है न?’’

शालिनी ने कहा, ‘‘यही तो डर है. कल कहीं मुझे कामवाली की तरह किसी और के सामने हाथ न फैलाना पड़े.’’ ऐसा कह कर शालिनी ने शायद राजीव की कमजोर रग पर हाथ रख दिया था. वह बोला, ‘‘बकवास बंद करो. पता भी है क्या बोल रही हो? जरा से रुपयों के लिए इतनी कड़वी बातें कह रही हो.’’ ‘‘जरा से रुपए? तुम्हें पता है कि साल में एक बार शराब पी कर बेहोशी में तुम हजारों खो कर आते हो. तुम्हें तो बच्चों की खुशियां छीन कर दांव पर लगाने में जरा भी हिचक नहीं होती. हमेशा कहते हो कि साल में एक बार ही तुम्हारे लिए दीवाली आती है. कभी सोचा है कि मेरे और बच्चों के लिए भी दीवाली एक बार ही आती है? कभी मनाई है कोई दीवाली तुम ने हमारे साथ?’’ शालिनी के मुंह से कभी ऐसी बातें न सुनने वाला राजीव पहले तो हक्काबक्का खड़ा रहा. फिर बिगड़ कर बोला, ‘‘अगर तुम मुझे रुपए न देने के इरादे पर पक्की हो तो मैं भी अपने मन की करने जा रहा हूं.’’ और जब तक शालिनी राजीव से कुछ कहती, वह पहले ही मोटरसाइकिल निकालने चला गया.

शालिनी सोचने लगी कि इन 11 सालों में भी वह नहीं समझ पाई कि हमेशा मीठे स्वरों में बोलने वाला राजीव इस तरह एक दिन में बदल सकता है. ‘कहीं राजीव दीवाली के दिन दोस्तों के सामने बेइज्जती हो जाने के डर से तो नहीं खेलता. लगता है अब कोई दूसरा ही तरीका अपनाना पड़ेगा,’ शालिनी ने तय किया.

उधर मोटरसाइकिल निकालने जाता हुआ राजीव सोच रहा था, ‘वह क्या करे? पटाखे ला कर देगा तो उस की नाक कट जाएगी. शालिनी रुपए भी नहीं देगी, उसे इस का पता था. अचानक उसे अपने मित्र अक्षय की याद आई. क्यों न उस से रुपए लिए जाएं.’ वह मोटरसाइकिल बाहर निकाल लाया. तभी ‘‘कहीं जा रहे हैं क्या?’’ की आवाज सुन कर राजीव चौंका. उस ने देखा, सामने से अक्षय की पत्नी रमा और उस के दोनों बच्चे आ रहे हैं.

‘‘भाभी, तुम? आज के दिन कैसे बाहर निकल आईं?’’ उस ने मन ही मन खीझते हुए कहा. ‘‘पहले अंदर तो बुलाओ, सब बताती हूं,’’ अक्षय की पत्नी ने कहा.

‘‘हां, हां, अंदर आओ न. अरे इंदु, प्रमोद, देखो तो कौन आया है,’’ मोटरसाइकिल खड़ी करते हुए राजीव बोला. इंदु, प्रमोद भागेभागे बाहर आए. शालिनी भी आवाज सुन कर बाहर आ गई, ‘‘रमा भाभी, तुम, भैया कहां हैं?’’

‘‘बताती हूं. पहले यह बताओ कि क्या तुम लोग एक दिन के लिए मेरे बच्चों को अपने घर में रख सकते हो?’’ शालिनी ने तुरंत कहा, ‘‘क्यों नहीं. पर बात क्या है?’’

रमा ने उदास स्वर में कहा, ‘‘बात यह है शालिनी कि तुम्हारे भैया अस्पताल में हैं. परसों उन का ऐक्सिडैंट हो गया था. दोनों टांगों में इतनी चोटें आई हैं कि 2 महीने तक उठ कर खड़े नहीं हो सकेंगे. और सोचो, आज दीवाली है.’’

राजीव ने घबरा कर कहा, ‘‘इतनी बड़ी बात हो गई और आप ने हमें बताया तक नहीं?’’ रमा ने कहा, ‘‘तुम्हें तो पता ही है कि मेरे जेठजेठानी यहां आए हुए हैं. अब ये अस्पताल में पड़ेपड़े कह रहे हैं कि पहले ही मालूम होता तो उन्हें बुलाता ही नहीं. कहते हैं तुम लोग जा कर घर में रोशनी करो. मेरा तो क्या, किसी का भी मन इस बात को नहीं मान रहा.’’

राजीव और शालिनी दोनों ही जब चुपचाप खड़े रहे तो रमा ही फिर बोली, ‘‘अब मैं ने और उन के भैया ने कहा कि हमारा मन नहीं है तो वे कहने लगे, ‘‘मैं क्या मर गया हूं जो घर में रोशनी नहीं करोगी? आखिर थोड़ी सी चोटें ही तो हैं. बच्चों के लिए तो तुम्हें करना ही पड़ेगा.’’

‘‘मैं सोचती रही कि क्या करूं. तुम लोगों का खयाल आया तो बच्चों को यहां ले आई. तुम्हें कोई एतराज तो नहीं है?’’ इंदु, जो रमा की बातें ध्यान से सुन रही थी, राजीव से बोली, ‘‘पापा, आप राकेश, पिंकी के लिए भी पटाखे लाएंगे न?’’

राजीव चौंक कर बोला, ‘‘हां, हां. जरूर लाऊंगा.’’ राजीव ने कह तो दिया था, पर उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे. वह इसी उधेड़बुन में था कि शालिनी अंदर से रुपए ला कर उस के हाथों में रखती हुए बोली, ‘‘जल्दी लौटिएगा.’’ तभी इंदु बोली, ‘‘पापा, आप को अपने दोस्त के घर जाना है न.’’

‘दोस्त के घर,’ राजीव ने चौंक कर इंदु की ओर देखा, ‘‘हां पापा, मां कह रही थीं कि आप के एक दोस्त के हाथ और पैर टूट गए हैं, वहीं आप उन के लिए दीवाली मनाने जाते हैं.’’ राजीव को समझ में नहीं आया कि क्या कहे. उस ने शालिनी को देखा तो वह मुसकरा रही है.

मोटरसाइकिल चलाते हुए राजीव का मन यही कह रहा था कि वह चुपचाप अपनी मित्रमंडली में चला जाए, पर तभी उसे अक्षय की बातें याद आ जातीं. राजीव सोचने लगा कि एक अक्षय है जो अस्पताल में रह कर भी बच्चों की दीवाली की खुशियों को ले कर चिंतित है और एक मैं हूं जो बच्चों को दीवाली मनाने से रोक रहा हूं. शालिनी भी जाने क्या सोचती होगी मेरे बारे में? उस ने बच्चों से उन के पिता की गलती छिपाने के लिए कितनी अच्छी कहानी गढ़ कर सुना रखी है. मोटरसाइकिल का हौर्न सुन कर सब बच्चे भाग कर बाहर आए तो देखा आतिशबाजियां और मिठाई लिए राजीव खड़ा है.

प्रमोद कहने लगा, ‘‘इंदु, इतनी सारी आतिशबाजियां छोड़ेगा कौन?’’ ‘‘ये हम और तुम्हारी मां छोड़ेंगे,’’ राजीव ने कहा और दरवाजे पर आ खड़ी हुई शालिनी को देखा जो जवाब में मुसकरा रही थी.

शालिनी ने शरारत से पूछा, ‘‘रुपए दूं, अभी तो रात बाकी है?’’ राजीव ने जब कहा, ‘‘सचमुच दोगी?’’ तो शालिनी डर गई. तभी राजीव शालिनी को अपने निकट खींचते हुए बोला, ‘‘मैं कह रहा था कि रुपए दोगी तो बढि़या सा एक खाता तुम्हारे नाम से किसी बैंक में खुलवा दूंगा.’’

Best Hindi Stories : एक से बढ़कर एक – दामाद सुदेश ने कैसे बदली ससुरजी की सोच

Best Hindi Stories : दरवाजेकी बैल बजाने के बजाय दरवाजा खटखटाने की आवाज सुन कर और आने वाली की पुकार सुन कर मैं सम झ गया कि कौन आया है. मैं ने कहा, ‘‘अरे भई जरा ठहरो… मैं आ रहा हूं,’’ बैठेबैठे ही मैं ने आने वाले से कहा.

यह सुन कर मेरी पत्नी बोली, ‘‘लगता है भाई साहब आए हैं,’’ कहते हुए उस ने ही दरवाजा खोल दिया.

‘‘आइए भाई साहब, बहुत दिनों बाद आज हमारी याद आई है.’’

‘‘भाभीजी, मैं आज एक खास काम से आप के पास आया हूं. लेकिन पहले चाय पिलाइए.’’

नंदा से चाय की फरमाइश की है तो मैं सम झ गया कि आज जरूर उस का कोई काम है. मैं ने अपने सामने रखे सारे कागजात उठा कर रख दिए, क्योंकि उस के आने की मु झे भी बड़ी खुशी हुई थी.

‘‘हां. बोलो क्या काम है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘देखो राजाभाई, मैं चित्रा की शादी पक्की करने जा रहा हूं. लड़का अच्छा है और घरबार भी ठीकठाक है… मु झे रुपयों की कोई कमी नहीं है. मेरी सिर्फ 2 बेटियां हैं. मेरा सबकुछ उन्हीं का तो है. मैं उन्हें बहुत कुछ दूंगा. सच है कि नहीं? फिर भी लड़के की ज्यादा जानकारी तो मालूम करनी ही पड़ेगी और वही काम ले कर मैं तुम्हारे पास आया हूं.’’

दादाजी की बेटी चित्रा सचमुच बहुत सुंदर और भली लड़की थी. अमीरी में पल कर भी बहुत सीधीसादी थी. हम दोनों को हमेशा यही सवाल सताता कि चित्रा की मां बड़े घर की बेटी. मायके से खूब धनदौलत ले कर आई थी और हमेशा अपना बड़प्पन जताने वाली. उस की पढ़ाईलिखाई ज्यादा नहीं हुई थी और उसे न कोई शौक था, न किसी कला का ज्ञान. वह अपनी अमीरी के सपनों में खोने वाली और इसीलिए उस की मेरी पत्नी से जमी नहीं.

‘‘देख, राजाभाई, मेरे पास दौलत की कोई कमी नहीं है और मेरी बेटी भी अच्छी है. तो हमें अच्छा दामाद तो मिलना ही चाहिए.’’

‘‘हां भई हां. तुम बिलकुल ठीक कह रहे हो. तुम्हारा देखा हुआ लड़का जरूर अच्छा ही होगा.’’

मैं उस के शब्द सुन कर चौंक पड़ा. बार रे बाप. क्या मैं फिर से ऐसे ही फंसूंगा? मेरे मन में विचार आया.

‘‘राजाभाई, लड़का तुम्हारी जानकारी में है. तुम्हारी चचेरी साली का बेटा, जो सदाशिव पेठ में रहता है.’’

इस पर मैं ने और नंदा ने एकदूसरे की तरफ देखा. हाल ही में हम ने एक शादी तय करने में योगदान दिया था. अब इस दोस्त से क्या कहूं? मैं वैसे ही उठ खड़ा हुआ और सुदेश का खत अलमारी से निकाल कर उसे दे दिया.

‘‘दादाजी, तुम्हारी चित्रा की शादी तय हो रही है, यह सुन कर हम दोनों को बहुत खुशी हो रही है. चित्रा बड़ी गुणी लड़की है. अत: उसे अच्छी ससुराल मिलनी चाहिए यही हमारी भी तमन्ना है. लेकिन अब पहले जैसी परिस्थितियां नहीं रही है. आजकल हर घर में 1-2 बच्चे… अपनी बच्चियों को मांबाप खूब धनदौलत देते हैं. तुम्हारे जैसे धनवान सिर्फ देते ही नहीं, बल्कि उस का बोलबोला भी करते हैं.

‘‘बारबार कह कर दिखाते हैं कि हम ने बेटी को इतना दिया, उतना दिया. यह बात किसी को पसंद आती है तो किसी को नहीं और लगता है कि उस का अपमान किया जा रहा है. इस पर वे क्या करते हैं, वह अब तुम्हीं इस खत में पढ़ लो. मैं क्या कहना चाहता हूं वह तुम सम झ जाओगे-

‘‘माननीय काकाजी को नमस्कार. मैं यह पत्र जानबू झ कर लिख रहा हूं, क्योंकि आज या कल कुछ बातें आप को मालूम होंगी, तो उस के कारण आप को पहले ही ज्ञात कराना चाहूंगा. पिछले कुछ दिनों से मैं बहुत परेशान हूं. फिर आप कहेंगे कि पहले क्यों नहीं बताया. जो कुछ घटित हुआ है उस समस्या का हल मु झे ही निकालना था.

‘‘हो सकता है मेरा निकाला हुआ हल आप को पसंद न आए. आप को कोई दोष न दे, यही मेरी इच्छा है. आप ने हमारी शादी तय करने में बड़ा योगदान दिया है. वैसे शादियां तय कराना आप का सामाजिक कार्य है. लेकिन कभीकभी ऐसा भी हो सकता है यह बतलाने के लिए ही यह पत्र लिख रहा हूं.

‘‘शादी के बाद मैं अपनी पत्नी के साथ उस के मायके जाया करता था. लेकिन हर बार किसी न किसी कारण वहां से नाराज हो कर ही लौटता था.

‘‘सासूमां अकसर कहतीं कि आप ने जो पैंट पहनी है, वह हम ने दी थी. वही है न? हां, क्या कभी अपनी पत्नी को कोई साड़ी दिलाई या जो हम ने दी थी उसी से काम चलाते हो?

‘‘फिर अपनी बेटी से पूछतीं कि बेटी क्या कोई नया गहना बनवाया या नहीं या गहने भी हमारे दिए हुए ही हैं. गले में अभी तक मामूली मंगलसूत्र ही है. क्या मैं दूं अपने गले का निकाल कर? मैं देख रही थी कि तेरे ससुराल वाले कुछ करते भी हैं या नहीं.

‘‘मेरी सास हमारे घर में आती तब भी वही ढाक के तीन पात. यह थाली हमारी दी हुई है न. यह सैट इतनी जल्दी क्यों निकाला है.

‘‘वह दूरदूर के रिश्तेदारों को हमारा घर दिखाने लातीं और बतातीं कि बेटी की गृहस्थी के लिए हम ने सबकुछ दिया है.

‘‘सुबह होते ही सास का फोन आता कि क्या तुम अभी तक उठी नहीं हो. आज खाने में क्या बना रही हो? खाना बनाने के लिए नौकरानी क्यों नहीं रख लेती. तुम अपनी सास से कह दो कि मैं ने कभी खाना बनाया नहीं है और मेरी मां को भी इस की आदत नहीं है. अगर तुम नौकरानी नहीं रख सकती तो मु झे बताओ, मैं एक नौकरानी तुम्हारे लिए भेज दूंगी, जो तुम्हारे सारे काम कर लेगी?

‘‘हमारी नईनई शादी हुई थी. सो अकसर फिल्म देखने जाते, तो फिर बाहर होटल में ही खाना खा लेते. तो कभी शौपिंग के लिए निकल पड़ते. शुरूशुरू में यह बात मु झे चुभी नहीं. मेरे मातापिता, भैयाभाभी कौन हमें सम झाता? मां तो मेरी बिलकुल सीधीसादी. उस ने देखा कि उस का बेटा यानी मैं तो हूं पूरा गोबर गणेश, फिर अपनी बीवी को क्या सम झाऊंगा. घर में होने वाली कलह से बचने के लिए उस ने मेरी अलग गृहस्थी बसाई. हम दोनों को उस पर बहुत गुस्सा आया, लेकिन इस से मेरी आंखें पूरी तरह खुल गईं.

‘‘सिर्फ मीठीमीठी बातें और अच्छे शानदार कपड़े पहनने से पेट तो नहीं भरता. मेरी पत्नी को तो दालचावल भी बनाना नहीं आता था. पहले जब मैं ससुराल जाता तो मेरी सास बतातीं कि यह पूरनपूरी नीतू ने ही बनाई है. आज का सारा खाना उसी ने बनाया है. आप को गुलाबजामुन पसंद हैं न, वे भी उसी ने बनाए हैं.

‘‘मेरे घर में मां और भाभी होने के कारण मेरी पत्नी को क्याक्या बनाना आता है, इस का पता ही नहीं चला. उसे पूरनपूरी तो क्या सादी चपाती भी बनाना नहीं आता था. अगर अपनी मां से पूछ कर कुछ बनाना है तो पूछे कैसे? हमारे घर में फोन ही नहीं था. सबकुछ मुश्किल.

‘‘हमारे यहां फोन नहीं था तो उस के मांबाप हमेशा घर में आते कहते कि हमेशा बाहर की चीजें ला कर खाते रहते. मेरी नाराजगी दिनबदिन बढ़ती जा रही थी. जब तक हमारी गृहस्थी अलग नहीं थी, तब सारा खर्च पिताजी और भाईसाहब उठाते थे.

‘‘इसलिए यह बो झ मेरे सिर पर कभी नहीं आया. पैसा कैसे खर्च किया जाए, मितव्ययित कैसे की जाए, मु झे इस का बिलकुल ज्ञान नहीं था. होटल में खाना, घूमना, मौजमस्ती तथा शौपिंग में ही मेरी सारी कमाई खर्च हो जाती थी. पिताजी से पैसा मांगना भी मु झे अच्छा नहीं लगता था. मां मेरी इस मजबूरी को सम झती थीं, इसलिए वे अपने साथसाथ मेरे घर के लिए भी राशन का इंतजाम कर देती थीं.

‘‘अब मु झे जीवन की असलियत का पता चलने लगा था. नईनई शादी की मौजमस्ती अब खत्म हो चली थी. इस से उबरने के लिए अब हमें अपना रास्ता खोज निकालना था और यही सोच कर मैं ने नीतू को सब बातें ठीक से सम झाने का फैसला कर लिया.

‘‘उसी समय शहर से जरा दूर पिताजी का एक प्लाट था. वे उसे मु झे देने वाले हैं यह बात उन्होंने मेरे ससुर को बताई तो उन्होंने घर बनाने के लिए रुपया दिया. हम सब से जरा दूर रहने के लिए गए, इसलिए बहुत से सवाल अपनेआप हल हो जाएंगे. अत: बंगला बनने तक मैं खामोश रहा.

‘‘नए घर में रहने के लिए जाने के बाद मैं ने अपनी पत्नी को सम झाया कि अब मेरी कमाई में ही घर का सारा खर्च चलाना है. उस ने मितव्ययिता शुरू कर दी. हमारा बाहर घूमनाफिरना बंद हो गया. शुरुआत में उसे घर के काम करने में बड़ी दिक्कत आती. इसलिए मैं भी उसे सहायता करता था. धीरेधीरे उस ने खाना बनाना सीख लिया. शहर से जरा दूर होने से अब मेरे सासससुर का आनाजाना जरा कम हो गया था. लेकिन सास जब कभी हमारे घर आतीं, तो फिर शुरू हो जाती कि नीतू तुम कैसे अपनी गृहस्थी चलाती हो. तुम्हारे घर में यह चीज नहीं है, वह चीज नहीं है.

‘‘इस पर नीतू अपनी मां को जवाब देती कि मां तुम्हारी गृहस्थी को कितने साल हो गए? मैं तुम्हारी उम्र की हो जाऊंगी तो मेरे पास भी वे सारी चीजें हो जाएंगी.

‘‘मु झे न बता कर मेरी सास हमारे लिए कोई चीज ले कर आती और कहतीं कि सुदेश बेटा, देखो मैं तुम्हारे लिए क्या लाई हूं. तुम्हारे पास यह चीज नहीं थी, इसलिए ले आई हूं. यह इंपौर्टेड माल है. मु झे तो इंडियन चीजें जरा भी पसंद नहीं आतीं.

‘‘मैं भी नहले पर दहला मारता कि हां, लेकिन मु झे भी दूसरों की दी हुई चीजें पसंद नहीं आती.

‘‘मेरी पत्नी नीता न मु झ से कुछ कह पाती और न अपनी मां से. लेकिन मेरी नाराजगी की वजह अब वह सम झने लगी थी. वह अब घर के सारे काम खुद करने लगी और मेरे प्यार के कारण अब उस में आत्मविश्वास जागने लगा था. अत: अब उस में धीरेधीरे परिवर्तन होने लगा. अब वह अपनी मां से सीधे कह देती कि मां, अब तुम मेरे लिए कुछ न लाया करो. सुदेश को भी तुम्हारा बरताव पसंद नहीं आता और इस से हम दोनों के बीच मनमुटाव होता है और  झगड़ा होने लगता है.

‘‘दूसरों की भावनाओं को सम झना मेरी सास ने कभी सीखा ही नहीं था और शान दिखाने की आदत कैसे छूटती? अब मु झे अपनी आमदनी बढ़ा कर इन सब से छुटकारा पाना था.

‘‘संयोग से मेरी कामना पूरी होने लगी. मैं ने एक लघु उद्योग शुरू किया और वह फूलनेफलने लगा. अब कमाई बढ़ने लगी, लेकिन यह बात मैं ने नीतू से छिपाये रखी.‘‘इसी बीच मेरे ससुर ने अपनी उम्र के 59 साल पूरे किए. इस अवसर का मैं ने लाभ उठाने का फैसला किया और अपने मातापिता से कहा कि मैं अपने ससुर की 60वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा हूं.

‘‘मेरे यह प्रस्ताव सुन कर मातापिता खुश हो गए. मां बोली कि दामाद भी तो बेटा ही होता है रे अच्छा कर रहे हो बेटा.

‘‘लेकिन मां को मेरी तिरछी चाल जरा भी सम झ में नहीं आईं.

‘‘मेरे सासससुर को जब यह बात पता चली तो वे बहुत खुश हो गए. इस पर मेरी पत्नी जरा छटपटाई, क्योंकि उस के मातापिता के लिए मेरे प्यार से अच्छी तरह वाकिफ थी, अत: मेरे आयोजन के बारे में उस के मन में शंका थी, यह बात उस के चेहरे पर साफ  झलकती थी.

‘‘समारोह के दिन सुबह होमहवन और पूजा के बाद सारे पुरोहितों को ससुर के हाथों किसी को चांदी का बरतन, किसी को चांदी की कटोरी तो किसी को चांदी की थाली आदि मेरे घर की महंगी चीजें दान करवाईं. उपस्थित ब्राह्मण और मेरे रिश्तेदार यह देख कर चकित रह गए. छोटीमोटी वस्तुओं को मैं ने घर के कोने में सजा रखा था, अत: मैं उन्हें अांगन में ले आया हूं.

‘‘मैं ने मेरे नौकर से सुबह ही कह दिया था कि वह  झोंपड़पट्टी में रहने वाले गरीबों को वहां ले कर आए. उन्हें अंदर बुलाया गया और सास के हाथों से 1-1 चीज का बंटवारा होने लगा. 1-1 चीज देते समय सास का चेहरा उतर गया था. आखिर उन्होंने मु झ से पूछ ही लिया कि अरे सुदेश, यह तुम क्या कर रहे हो. मेरी दी हुए सारी चीजें गरीबों में क्यों बांट रहे हो?

‘‘लेकिन सारी चीजों का बंटवारा होने तक मैं खामोश रहा. फिर बोला कि हां, वे सारी चीजें आप ने हमें दी थीं, अब अपने ही हाथों से आप ने उन्हें गरीबों में बांट दिया है. वैसे आप का हमें कुछ देना मु झे जरा भी नहीं भाया. अब आप किसी के सामने मु झ से नहीं पूछ सकेंगी कि सुदेश यह चीज हमारी दी हुई है. इन चीजों का दान करने से अब इन गरीबों की दुआएं आप को मिलेंगी. मैं तो आप के उपकारों से अब मुक्त हो गया हूं.

‘‘सब लोगों के सामने मैं ने अपने ससुर के हाथ में बंगला बनाने की लागत का चैक रख दिया और उन्हें नमस्कार करते हुए बोला कि यह रकम आप ने मु झे बंगला बनाने के लिए दी थी. यह राशि मैं आप को लौटा रहा हूं. बहुत सी संस्थाए गरीबों के लिए काम करती हैं. आप ये रुपए उन्हें दान करेंगे तो उन के लिए यह बड़ी सहायता होगी. इस पर वे बोले कि लेकिन यह राशि मैं ने तुम से वापस कहां मांगी थी?

‘‘वापस नहीं मांगी थी, लेकिन कईर् लोगों के सामने आप ने बारबार कहा कि मैं ने बंगला बना कर दिया है. मेरे मातापिता के आशीर्वाद से मैं यह रकम आप को वापस करने के काबिल हो गया हूं. आप ने बंगला बनाने के लिए रुपए दिए, लेकिन जिस जमीन पर यह बंगला बनाया गया वह तो मेरे पिताजी का दी हुई थी, यह बात आप भूल गए? आप अपने बेटी से पूछिए कि क्या मेरे पिताजी ने कभी उस से कहा कि यह जमीन मेरा दी हुई है.

‘‘सासूमां, वैसे आप के मु झ पर बड़े उपकार है आप ने जो कुछ दिया, उस का बारबार बखान न करतीं, तो मैं जिद कर के इस हालत में कभी नहीं पहुंचता कि आप के उपकारों का बो झ उतार सकूं. मु झे तो आप के सिर्फ आशीर्वाद की जरूरत है. कहते हैं कि दान देते वक्त एक हाथ की खबर दूसरे हाथ को नहीं होनी चाहिए और आप तो अपनी ही बेटी को दी हुई चीजों का लोगों के सामने ढिंढोरा पीटते थे.

‘‘मेरा यह व्यवहार मेरे मातापिता को बिलकुल अच्छा नहीं लगा. मेरे पत्नी को तो इस बात का गहरा सदमा लगा. वह अपनी मां से बोली कि मैं ने हजार बार कहा था, लेकिन तुम ने सुना नहीं. तुम्हें ऐसा ही जवाब मिलना था.

‘‘मेरे ससुर गुस्से से आगबबूला हो गए तो मेरे पिताजी ने उन्हें सम झाया कि साहब, जाने भी दीजिए. मेरा बेटा नादान है और उस से गलती हुई है. उस की गलती के लिए मैं आप से क्षमायाचना करता हूं. उसे ऐसा बरताव नहीं करना चाहिए था.

‘‘मेरे पिताजी की बात सुन कर मेरे ससुर को पश्चात्ताप हुआ. वे बोले कि सुदेश मु झे तुम पर बहुत गुस्सा आया था, लेकिन मैं ने तुम्हारे बरताव पर सोचा था तो पाया कि तुम ही ठीक हो. कांटे से कांटा निकालने की कहावत को तुम ने चरितार्थ किया है. पैसे से आया घमंड अब खत्म हो गया है. अब तुम हमें माफ कर दो. हमारे कारण तुम्हें काफी सहना पड़ा.

‘‘काकाजी, अब मैं उन का असली दामाद बन गया हूं. इस पर आप प्रतिक्रिया जरूर लिखिएगा.

‘‘आप का सुदेश’’

दादाजी ने पत्र वापस करते हुए कहा, ‘‘वह बिलकुल ठीक कह रहा है. देने वाले को भी चाहिए कि वह सुख प्राप्त करने के लिए दें. छोटीछोटी चीजें इकट्ठा करतेकरते हम ने दुख सहे, अब अपने बच्चों को ये सब न सहना पड़े, इसलिए वे अपनी बेटी को देते हैं. लेकिन उस में घमंड की भावना नहीं होनी चाहिए वरना लेने वाले की भावनाओं को ठेस पहुंचना स्वाभाविक है, यह ध्यान में रखना आवश्यक है.

‘‘अब मेरे हाथ से भी यह ऐसी गलती होने जा रही थी. तुम ने यह पत्र पढ़ने का मौका दे कर मु झे जगा दिया है. हमारे कारण हमारी बेटी की गृहस्थी में तूफान नहीं उठना चाहिए. तुम मेरी तरफ से सुदेश को धन्यवाद कहना कि उस के कारण और एक ससुर जाग गया है.

‘‘कहते हैं कि दान देते वक्त एक हाथ की खबर दूसरे हाथ को नहीं होनी चाहिए  और आप तो अपनी ही बेटी को दी हुई चीजों का लोगों के सामने ढिंढोरा पीटते थे…’’

लेखिका- कल्पना घाणेकर

Mother’s Day 2025 : रिश्तों की कसौटी

Mother’s Day 2025 : ‘‘अंकल, मम्मी की तबीयत ज्यादा बिगड़ गई क्या?’’ मां के कमरे से डाक्टर को निकलते देख सुरभी ने पूछा. ‘‘पापा से जल्दी ही लौट आने को कहो. मालतीजी को इस समय तुम सभी का साथ चाहिए,’’ डा. आशुतोष ने सुरभी की बातों को अनसुना करते हुए कहा.

डा. आशुतोष के जाने के बाद सुरभी थकीहारी सी लौन में पड़ी कुरसी पर बैठ गई. 2 साल पहले ही पता चला था कि मां को कैंसर है. डाक्टर ने एक तरह से उन के जीने की अवधि तय कर दी थी. पापा ने भी उन की देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. मां को ले कर 3-4 बार अमेरिका भी हो आए थे और अब वहीं के डाक्टर के निर्देशानुसार मुंबई के जानेमाने कैंसर विशेषज्ञ डा. आशुतोष की देखरेख में उन का इलाज चल रहा था. अब तो मां ने कालेज जाना भी बंद कर दिया था.

‘‘दीदी, चाय,’’ कम्मो की आवाज से सुरभी अपने खयालों से वापस लौटी. ‘‘मम्मी के कमरे में चाय ले चलो. मैं वहीं आ रही हूं,’’ उस ने जवाब दिया और फिर आंखें मूंद लीं.

सुरभी इस समय एक अजीब सी परेशानी में फंस कर गहरे दुख में घिरी हुई थी. वह अपने पति शिवम को जरमनी के लिए विदा कर अपने सासससुर की आज्ञा ले कर मां के पास कुछ दिनों के लिए रहने आई थी. 2 दिन पहले स्टोर रूम की सफाई करवाते समय मां की एक पुरानी डायरी सुरभी के हाथ लगी थी, जिस के पन्नों ने उसे मां के दर्द से परिचित कराया.

‘‘ऊपर आ जाओ, दीदी,’’ कम्मो की आवाज ने उसे ज्यादा सोचने का मौका नहीं दिया. सुरभी ने मां के साथ चाय पी और हर बार की तरह उन के साथ ढेरों बातें कीं. इस बार सुरभी के अंदर की उथलपुथल को मालती नहीं जान पाई थीं.

सुरभी चाय पीतेपीते मां के चेहरे को ध्यान से देख रही थी. उस निश्छल हंसी के पीछे वह दुख, जिसे सुरभी ने हमेशा ही मां की बीमारी का हिस्सा समझा था, उस का राज तो उसे 2 दिन पहले ही पता चला था. थोड़ी देर बाद नर्स ने आ कर मां को इंजेक्शन लगाया और आराम करने को कहा तो सुरभी भी नीचे अपने कमरे में आ गई.

रहरह कर सुरभी का मन उसे कोस रहा था. कितना गर्व था उसे अपने व मातापिता के रिश्तों पर, जहां कुछ भी गोपनीय न था. सुरभी के बचपन से ले कर आज तक उस की सभी परेशानियों का हल उस की मां ने ही किया था. चाहे वह परीक्षाओं में पेपर की तैयारी करने की हो या किसी लड़के की दोस्ती की, सभी विषयों पर मालती ने एक अच्छे मित्र की तरह उस का मार्गदर्शन किया और जीवन को अपनी तरह से जीने की पूरी आजादी दी. उस की मित्रमंडली को उन मांबेटी के इस मैत्रिक रिश्ते से ईर्ष्या होती थी.

अपनी बीमारी का पता चलते ही मालती को सुरभी की शादी की जल्दी पड़ गई. परंतु उन्हें इस बात के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी. परेश के व्यापारिक मित्र व जानेमाने उद्योगपति ईश्वरनाथ के बेटे शिवम का रिश्ता जब सुरभी के लिए आया तो मालती ने चट मंगनी पट ब्याह कर दिया. सुरभी ने शादी के बाद अपना जर्नलिज्म का कोर्स पूरा किया. ‘‘दीदी, मांजी खाने पर आप का इंतजार कर रही हैं,’’ कम्मो ने कमरे के अंदर झांकते हुए कहा.

खाना खाते समय भी सुरभी का मन मां से बारबार खुल कर बातें करने को कर रहा था, मगर वह चुप ही रही. मां को दवा दे कर सुरभी अपने कमरे में चली आई. ‘कितनी गलत थी मैं. कितना नाज था मुझे अपनी और मां की दोस्ती पर मगर दोस्ती तो हमेशा मां ने ही निभाई, मैं ने आज तक उन के लिए क्या किया? लेकिन इस में शायद थोड़ाबहुत कुसूर हमारी संस्कृति का भी है, जिस ने नवीनता की चादर ओढ़ते हुए समाज को इतनी आजादी तो दे दी थी कि मां चाहे तो अपने बच्चों की राजदार बन सकती है. मगर संतान हमेशा संतान ही रहेगी. उन्हें मातापिता के अतीत में झांकने का कोई हक नहीं है,’ आज सुरभी अपनेआप से ही सबकुछ कहसुन रही थी.

हमारी संस्कृति क्या किसी विवाहिता को यह इजाजत देती है कि वह अपनी पुरानी गोपनीय बातें या प्रेमप्रसंग की चर्चा अपने पति या बच्चों से करे. यदि ऐसा हुआ तो तुरंत ही उसे चरित्रहीन करार दे दिया जाएगा. हां, यह बात अलग है कि वह अपने पति के अतीत को जान कर भी चुप रह सकती है और बच्चों के बिगड़ते चालचलन को भी सब से छिपा कर रख सकती है. सुरभी का हृदय आज तर्क पर तर्क दे रहा था और उस का दिमाग खामोशी से सुन रहा था. सुरभी सोचसोच कर जब बहुत परेशान हो गई तो उस ने कमरे की लाइट बंद कर दी.

मां की वह डायरी पढ़ कर सुरभी तड़प कर रह गई थी. यह सोच कर कि जिन्होंने अपनी सारी उम्र इस घर को, उस के जीवन को सजानेसंवारने में लगा दी, जो हमेशा एक अच्छी पत्नी, मां और उस से भी ऊपर एक मित्र बन कर उस के साथ रहीं, उस स्त्री के मन का एक कोना आज भी गहरे दुख और अपमान की आग में झुलस रहा था. उस डायरी से ही सुरभी को पता चला कि उस की मां यानी मालती की एम.एससी. करते ही सगाई हो गई थी. मालती के पिता ने एक उद्योगपति घराने में बेटी का रिश्ता पक्का किया था. लड़के का नाम अमित साहनी था. ऊंची कद- काठी, गोरा रंग, रोबदार व्यक्तित्व का मालिक था अमित. मालती पहली ही नजर में अमित को दिल दे बैठी थीं. शादी अगले साल होनी थी. इसलिए मालती ने पीएच.डी. करने की सोची तो अमित ने भी हामी भर दी.

अमित का परिवार दिल्ली में था. फिर भी वह हर सप्ताह मालती से मिलने आगरा चला आता. मगर ठहरता गेस्ट हाउस में ही था. उन की इन मुलाकातों में परिवार की रजामंदी भी शामिल थी, इसलिए उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. पर मालती ने इस प्यार को एक सीमा रेखा में बांधे रखा, जिसे अमित ने भी कभी तोड़ने की कोशिश नहीं की. मालती की परवरिश उन के पिता, बूआ व दादाजी ने की थी. उन की मां तो 2 साल की उम्र में ही उन्हें छोड़ कर मुंबई चली गई थीं. उस के बाद किसी ने मां की खोजखबर नहीं ली. मालती को भी मां के बारे में कुछ भी पूछने की इजाजत नहीं थी. बूआजी के प्यार ने उन्हें कभी मां की याद नहीं आने दी.

बड़ी होने पर मालती ने स्वयं से जीवनभर एक अच्छी और आदर्श पत्नी व मां बन कर रहने का वादा किया था, जिसे उन्होंने बखूबी पूरा किया था. उन की शादी से पहले की दीवाली आई. मालती के ससुराल वालों की ओर से ढेरों उपहार खुद अमित ले कर आया था. अमित ने अपनी तरफ से मालती को रत्नजडि़त सोने की अंगूठी दी थी. कितना इतरा रही थीं मालती अपनेआप पर. बदले में पिताजी ने भी अमित को अपने स्नेह और शगुन से सिर से पांव तक तौल दिया.

दोपहर के खाने के बाद बूआजी के साथ घर के सामने वाले बगीचे में अमित और मालती बैठे गपशप कर रहे थे. इतने में उन के चौकीदार ने एक बड़ा सा पैकेट और रसीद ला कर बूआजी को थमा दी.

रसीद पर नजर पड़ते ही बूआ खीजती हुई बोलीं, ‘2 महीने पहले कुछ पुराने अलबम दिए थे, अब जा कर स्टूडियो वालों को इन्हें चमका कर भेजने की याद आई है,’ और पैसे लेने वे घर के अंदर चली गईं. ‘लो अमित, तब तक हमारे घर की कुछ पुरानी यादों में तुम भी शामिल हो जाओ,’ कह कर मालती ने एक अलबम अमित की ओर बढ़ा दिया और एक खुद देखने लगीं.

संयोग से मालती के बचपन की फोटो वाला अलबम अमित के हाथ लगा था, जिस में हर एक तसवीर को देख कर वह मालती को चिढ़ाचिढ़ा कर मजे ले रहा था. अचानक एक तसवीर पर जा कर उस की नजर ठहर गई. ‘यह कौन है, मालती, जिस की गोद में तुम बैठी हो?’ अमित जैसे कुछ याद करने की कोशिश कर रहा था.

‘यह मेरी मां हैं. तुम्हें तो पता ही है कि ये हमारे साथ नहीं रहतीं. पर तुम ऐसे क्यों पूछ रहे हो? क्या तुम इन्हें जानते हो?’ मालती ने उत्सुकता से पूछा. ‘नहीं, बस ऐसे ही पूछ लिया,’ अमित ने कहा.

‘ये हम सब को छोड़ कर वर्षों पहले ही मुंबई चली गई थीं,’ यह स्वर बूआजी का था. बात वहीं खत्म हो गई थी. शाम को अमित सब से विदा ले कर दिल्ली चला गया.

इतना पढ़ने के बाद सुरभी ने देखा कि डायरी के कई पन्ने खाली थे. जैसे उदास हों. फिर अचानक एक दिन अमित साहनी के पिता का माफी भरा फोन आया कि यह शादी नहीं हो सकती. सभी को जैसे सांप सूंघ गया. किसी की समझ में कुछ नहीं आया. अमित 2 सप्ताह के लिए बिजनेस का बहाना कर जापान चला गया. इधरउधर की खूब बातें हुईं पर बात वहीं की वहीं रही. एक तरफ अमित के घर वाले जहां शर्मिंदा थे वहीं दूसरी तरफ मालती के घर वाले क्रोधित व अपमानित. लाख चाह कर भी मालती अमित से संपर्क न बना पाईं और न ही इस धोखे का कारण जान पाईं.

जगहंसाई ने पिता को तोड़ डाला. 5 महीने तक बिस्तर पर पड़े रहे, फिर चल बसे. मालती के लिए यह दूसरा बड़ा आघात था. उन की पढ़ाई बीच में छूट गई. बूआजी ने फिर से मालती को अपने आंचल में समेट लिया. समय बीतता रहा. इस सदमे से उबरने में उसे 2 साल लग गए तो उन्होंने अपनी पीएच.डी. पूरी की. बूआजी ने उन्हें अपना वास्ता दे कर अमित साहनी जैसे ही मुंबई के जानेमाने उद्योगपति के बेटे परेश से उस का विवाह कर दिया.

अब मालती अपना अतीत अपने दिल के एक कोने में दबा कर वर्तमान में जीने लगीं. उन्होंने कालेज में पढ़ाना भी शुरू कर दिया. परेश ने उन्हें सबकुछ दिया. प्यार, सम्मान, धन और सुरभी. सभी सुखों के साथ जीते हुए भी जबतब मालती अपनी उस पुरानी टीस को बूंदबूंद कर डायरी के पन्नों पर लिखती थीं. उन पन्नों में जहां अमित के लिए उस की नफरत साफ झलकती थी, वहीं परेश के लिए अपार स्नेह भी दिखता था. उन्हीं पन्नों में सुरभी ने अपना बचपन पढ़ा.

रात के 3 बजे अचानक सुरभी की आंखें खुल गईं. लेटेलेटे वे मां के बारे में सोच रही थीं. वे उन के उस दुख को बांटना चाहती थीं, पर हिचक रही थीं.

अचानक उस की नजर उस बड़ी सी पोस्टरनुमा तसवीर पर पड़ी जिस में वह अपने मम्मीपापा के साथ खड़ी थी. वह पलंग से उठ कर तसवीर के करीब आ गई. काफी देर तक मां का चेहरा यों ही निहारती रही. फिर थोड़ी देर बाद इत्मीनान से वह पलंग पर आ बैठी. उस ने एक फैसला कर लिया था. सुबह 6 बजे ही उस ने पापा को फोन लगाया. सुन कर सुरभी आश्वस्त हो गई कि पापा के लौटने में सप्ताह भर बाकी है. वह पापा की गैरमौजूदगी में ही अपनी योजना को अंजाम देना चाहती थी.

उस दिन वह दिल्ली में रह रहे दूसरे पत्रकार मित्रों से फोन पर बातें करती रही. दोपहर तक उसे यह सूचना मिल गई कि अमित साहनी इस समय दिल्ली में अपने पुश्तैनी मकान में हैं. शाम को मां को बताया कि दिल्ली में उस की एक पुरानी सहेली एक डाक्युमेंटरी फिल्म तैयार कर रही है और इस फिल्म निर्माण का अनुभव वह भी लेना चाहती है. मां ने हमेशा की तरह हामी भर दी. सुरभी नर्स और कम्मो को कुछ हिदायतें दे कर दिल्ली चली गई.

अब समस्या थी अमित साहनी जैसी बड़ी हस्ती से मुलाकात की. दोस्तों की मदद से उन तक पहुचंने का समय उस के पास नहीं था, इसलिए उस ने योजना के अनुसार अपने ससुर ईश्वरनाथ से अपनी ही एक दोस्त का नाम ले कर अमित साहनी से मुलाकात का समय फिक्स कराया. ईश्वरनाथ के लिए यह कोई बड़ी बात न थी. अगले दिन सुबह 10 बजे का वक्त सुरभी को दिया गया. आज ऐसे वक्त में पत्रकारिता का कोर्स उस के काम आ रहा था.

खैर, मां की नफरत से मिलने के लिए उस ने खुद को पूरी तरह से तैयार कर लिया. अगले दिन पूरी जांचपड़ताल के बाद सुरभी ठीक 10 बजे अमित साहनी के सामने थी. वे इस उम्र में भी बहुत तंदुरुस्त और आकर्षक थे. पोतापोती व पत्नी भी उन के साथ थे.

परिवार सहित उन की कुछ तसवीरें लेने के बाद सुरभी ने उन से कुछ औपचारिक प्रश्न पूछे पर असल मुद्दे पर न आ सकी, क्योंकि उन की पत्नी भी कुछ दूरी पर बैठी थीं. सुरभी इस के लिए भी तैयार हो कर आई थी. उस ने अपनी आटोग्राफ बुक अमित साहनी की ओर बढ़ा दी. अमित साहनी ने जैसे ही चश्मा लगा कर पेन पकड़ा, उन की नजर मालती की पुरानी तसवीर पर पड़ी. उस के नीचे लिखा था, ‘‘मैं मालतीजी की बेटी हूं और मेरा आप से मिलना बहुत जरूरी है.’’

पढ़ते ही अमित का हाथ रुक गया. उन्होंने प्यार भरी एक भरपूर नजर सुरभी पर डाली और बुक में कुछ लिख कर बुक सुरभी की ओर बढ़ा दी. फिर चश्मा उतार कर पत्नी से आंख बचा कर अपनी नम आंखों को पोंछा.

सुरभी ने पढ़ा, लिखा था : ‘जीती रहो, अपना नंबर दे जाओ.’ पढ़ते ही सुरभी ने पर्स में से अपना कार्ड उन्हें थमा दिया और चली गई.

फोन से उस का पता मालूम कर तड़के साढ़े 5 बजे ही अमित साहनी सिर पर मफलर डाले सुरभी के सामने थे. ‘‘सुबह की सैर का यही 1 घंटा है जब मैं नितांत अकेला रहता हूं,’’ उन्होंने अंदर आते हुए कहा.

सुरभी उन्हें इस तरह देख आश्चर्य में तो जरूर थी, पर जल्दी ही खुद को संभालते हुए बोली, ‘‘सर, समय बहुत कम है. इसलिए सीधी बात करना चाहती हूं.’’ ‘‘मुझे भी तुम से यही कहना है,’’ अमित भी उसी लहजे में बोले.

तब तक वेटर चाय रख गया. ‘‘मेरी मम्मी आप की ही जबान से कुछ जानना चाहती हैं,’’ गंभीरता से सुरभी ने कहा.

सुन कर अमित साहनी की नजरें झुक गईं. ‘‘आप मेरे साथ कब चल रहे हैं मां से मिलने?’’ बिना कुछ सोचे सुरभी ने अगला प्रश्न किया.

‘‘अगर मैं तुम्हारे साथ चलने से मना कर दूं तो?’’ अमित साहनी ने सख्ती से पूछा. ‘‘मैं इस से ज्यादा आप से उम्मीद भी नहीं करती, मगर इनसानियत के नाते ही सही, अगर आप उन का जरा सा भी सम्मान करते हैं तो उन से जरूर मिलिएगा. वे अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर हैं,’’ कहतेकहते नफरत और दुख से सुरभी की आंखें भर आईं.

‘‘क्या हुआ मालती को?’’ चाय का कप मेज पर रख कर चौंकते हुए अमित ने पूछा. ‘‘उन्हें कैंसर है और पता नहीं अब कितने दिन की हैं…’’ सुरभी भरे गले से बोल गई.

‘‘ओह, सौरी बेटा, तुम जाओ, मैं जल्दी ही मुंबई आऊंगा,’’ अमित साहनी धीरे से बोले और सुरभी से उस के घर का पता ले कर चले गए. दोपहर को सुरभी मां के पास पहुंच गई.

‘‘कैसी रही तेरी फिल्म?’’ मां ने पूछा. ‘‘अभी पूरी नहीं हुई मम्मी, पर वहां अच्छा लगा,’’ कह कर सुरभी मां के गले लग गई.

‘‘दीदी, कल रात मांजी खुद उठ कर अपने स्टोर रूम में गई थीं. लग रहा था जैसे कुछ ढूंढ़ रही हों. काफी परेशान लग रही थीं,’’ कम्मो ने सीढि़यां उतरते हुए कहा. थोड़ी देर बाद मां से आंख बचा कर उस ने उन की डायरी स्टोर रूम में ही रख दी.

उसी रात सुरभी को अमित साहनी का फोन आया कि वह कल साढ़े 11 बजे की फ्लाइट से मुंबई आ रहे हैं. सुरभी को मां की डायरी का हर वह पन्ना याद आ रहा था जिस में लिखा था कि काश, मृत्यु से पहले एक बार अमित उस के सवालों के जवाब दे जाता. कल का दिन मां की जिंदगी का अहम दिन बनने जा रहा था. यही सोचते हुए सुरभी की आंख लग गई. अगले दिन उस ने नर्स से दवा आदि के बारे में समझ कर उसे भी रात को आने को बोल दिया.

करीब 1 बजे अमित साहनी उन के घर पहुंचे. सुरभी ने हाथ जोड़ कर उन का अभिवादन किया तो उन्होंने ढेरोें आशीर्वाद दे डाले. ‘‘आप यहीं बैठिए, मैं मां को बता कर आती हूं. एक विनती है, हमारी मुलाकात का मां को पता न चले. शायद बेटी के आगे वे कमजोर पड़ जाएं,’’ सुरभी ने कहा और ऊपर चली गई.

‘‘मम्मी, आप से कोई मिलने आया है,’’ उस ने अनजान बनते हुए कहा. ‘‘कौन है?’’ मां ने सूप का बाउल कम्मो को पकड़ाते हुए पूछा.

‘‘कोई मिस्टर अमित साहनी नाम के सज्जन हैं. कह रहे हैं, दिल्ली से आए हैं,’’ सुरभी वैसे ही अनजान बनी रही. ‘‘क…क…कौन आया है?’’ मां के शब्दों में एक शक्ति सी आ गई थी.

‘‘ऐसा करती हूं आप यहीं रहिए. उन्हें ही ऊपर बुला लेते हैं,’’ मां के चेहरे पर आए भाव सुरभी से देखे नहीं जा रहे थे. वह जल्दी से कह कर बाहर आ गई.

मालती कुछ भी सोचने की हालत में नहीं थीं. यह वह मुलाकात थी जिस के बारे में उन्होंने हर दिन सोचा था. थोड़ी देर में सुरभी के पीछेपीछे अमित साहनी कमरे में दाखिल हुए, मालती के पसंदीदा पीले गुलाबों के बुके के साथ. मालती का पूरा अस्तित्व कांप रहा था. फिर भी उन्होंने अमित का अभिवादन किया.

सुरभी इस समय की मां की मानसिक अवस्था को अच्छी तरह समझ रही थी. वह आज मां को खुल कर बात करने का मौका देना चाहती थी, इसलिए डा. आशुतोष के पास उन की कुछ रिपोर्ट्स लेने के बहाने वह घर से बाहर चली गई. ‘‘कितने बेशर्म हो तुम जो इस तरह से मेरे सामने आ गए?’’ न चाहते हुए भी मालती क्रोध से चीख उठीं.

‘‘कैसी हो, मालती?’’ उस की बातों पर ध्यान न देते हुए अमित ने पूछा और पास के सोफे पर बैठ गए. ‘‘अभी तक जिंदा हूं,’’ मालती का क्रोध उफान पर था. उन का मन तो कर रहा था कि जा कर अमित का मुंह नोच लें.

इस के विपरीत अमित शांत बैठे थे. शायद वे भी चाहते थे कि मालती के अंदर का भरा क्रोध आज पूरी तरह से निकल जाए. ‘‘होटल ताज में ईश्वरनाथजी से मुलाकात हुई थी. उन्हीं से तुम्हारे बारे में पता चला. तभी से मन बारबार तुम से मिलने को कर रहा था,’’ अमित ने सुरभी के सिखाए शब्द दोहरा दिए. परंतु यह स्वयं उस के दिल की बात भी थी.

‘‘मेरे साथ इतना बड़ा धोखा क्यों किया, अमित?’’ अपलक अमित को देख रही मालती ने उन की बातों को अनसुना कर अपनी बात रखी. इतने में कम्मो चाय और नाश्ता रख गई.

‘‘तुम्हें याद है वह दोपहरी जब मैं ने एक तसवीर के विषय में तुम से पूछा था और तुम ने उन्हें अपनी मां बताया था?’’ अमित ने मालती को पुरानी बातें याद दिलाईं.

मालती यों ही खामोश बैठी रहीं तो अमित ने आगे कहना शुरू किया, ‘‘उस तसवीर को मैं तुम सब से छिपा कर एक शक दूर करने के लिए अपने साथ दिल्ली ले गया था. मेरा शक सही निकला था. यह वृंदा यानी तुम्हारी मां वही औरत थी जो दिल्ली में अपने पार्टनर के साथ एक मशहूर ब्यूटीपार्लर और मसाज सेंटर चलाती थी. इस से पहले वह यहीं मुंबई में मौडलिंग करती थी. उस का नया नाम वैंडी था.’’ इस के बाद अमित ने अपनी चाय बनाई और मालती की भी.

उस ने आगे बोलना शुरू किया, ‘‘उस मसाज सेंटर की आड़ में ड्रग्स की बिक्री, वेश्यावृत्ति जैसे धंधे होते थे और समाज के उच्च तबके के लोग वहां के ग्राहक थे.’’ ‘‘ओह, तो यह बात थी. पर इस में मेरी क्या गलती थी?’’ रोते हुए मालती ने पूछा.

‘‘जब मैं ने एम.बी.ए. में नयानया दाखिला लिया था तब मेरे दोस्तों में से कुछ लड़के भी वहां के ग्राहक थे. एक बार हम दोस्तों ने दक्षिण भारत घूमने का 7 दिन का कार्यक्रम बनाया और हम सभी इस बात से बहुत रोमांचित थे कि उस मसाज सेंटर से हम लोगों ने जो 2 टौप की काल गर्ल्स बुक कराई थीं उन में से एक वैंडी भी थी जिसे हाई प्रोफाइल ग्राहकों के बीच ‘पुरानी शराब’ कह कर बुलाया जाता था. उस की उम्र उस के व्यापार के आड़े नहीं आई थी,’’ अमित ने अपनी बात जारी रखी. उसे अब मालती के सवाल भी सुनाई नहीं दे रहे थे. चाय का कप मेज पर रखते हुए अमित ने फिर कहना शुरू किया, ‘‘मेरी परवरिश ने मेरे कदम जरूर बहका दिए थे मालती, पर मैं इतना भी नीचे नहीं गिरा था कि जिस स्त्री के साथ 7 दिन बिताए थे, उसी की मासूम और अनजान बेटी को पत्नी बना कर उस के साथ जिंदगी बिताता? मेरा विश्वास करो मालती, यह घटना तुम्हारे मिलने से पहले की है. मैं तुम से बहुत प्यार करता था. मुझे अपने परिवार की बदनामी का भी डर था, इसलिए तुम से बिना कुछ कहेसुने दूर हो गया,’’ कह कर अमित ने अपना सिर सोफे पर टिका दिया.

आज बरसों का बोझ उन के मन से हट गया था. मालती भी अब लेट गई थीं. वे अभी भी खामोश थीं. थोड़ी देर बाद अमित चले गए. उन के जाने के बाद मालती बहुत देर तक रोती रहीं.

रात के खाने पर जब सुरभी ने अमित के बारे में पूछा तो उन्होंने उसे पुराना पारिवारिक मित्र बताया. लगभग 3 महीने बाद मालती चल बसीं. परंतु इतने समय उन के अंदर की खुशी को सभी ने महसूस किया था. उन के मृत चेहरे पर भी सुरभी ने गहरी संतुष्टि भरी मुसकान देखी थी. मां की तेरहवीं वाले दिन अचानक सुरभी को उस डायरी की याद आई. उस में लिखा था : मुझे क्षमा कर देना अमित, तुम ने अपने साथसाथ मेरे परिवार की इज्जत भी रख ली थी. मैं पूर्ण रूप से तृप्त हूं. मेरी सारी प्यास बुझ गई.

पढ़ते ही सुरभी ने डायरी सीने से लगा ली. उस में उसे मां की गरमाहट महसूस हुई थी. आज उसे स्वयं पर गर्व था क्योंकि उस ने सही माने में मां के प्रति अपनी दोस्ती का फर्ज जो अदा किया था.

Mother’s Day 2025 : यह कैसी मां- क्या सच थीं मां के लिए की गई पापा की बातें

Mother’s Day 2025 : माया को देखते ही बाबा ने रोना शुरू कर दिया था और मां चिल्लाना शुरू हो गई थीं. मां बोलीं, ‘‘बाप ने बुला लिया और बेटी दौड़ी चली आई. अरे, हम मियांबीवी के बीच में पड़ने का हक किसी को भी नहीं है. आज हम झगड़ रहे हैं तो कल प्यार भी करेंगे. 55 साल हम ने साथ गुजारे हैं. मैं अपने बीच में किसी को भी नहीं आने दूंगी.’’

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‘‘मैं इस के साथ नहीं रहूंगा. तुम मुझे अपने साथ ले चलो,’’ कहते हुए बाबा बच्चों की तरह फूटफूट कर रो पड़े.

‘‘मैं तुम को छोड़ने वाली नहीं हूं. तुम जहां भी जाओगे मैं भी साथ चलूंगी,’’ मां बोलीं.

‘‘तुम दोनों आपस का झगड़ा बंद करो और मुझे बताओ क्या बात है?’’

‘‘यह मुझे नोचती है. नोचनोच कर पूछती है कि नीना के साथ मेरे क्या संबंध थे? जब मैं बताता हूं तो विश्वास नहीं करती और नोचना शुरू कर देती है.’’

‘‘अच्छाअच्छा, दिखाओ तो कहां नोचा है? झूठ बोलते हो. नोचती हूं तो कहीं तो निशान होंगे.’’

‘‘बाबा, दिखाओ तो कहां नोचा है?’’

बाबा फिर रोने लगे. बोले, ‘‘तेरी मां पागल हो गई है. इसे डाक्टर के पास ले जाओ,’’ इतना कहते हुए उन्होंने अपना पाजामा उतारना शुरू किया.

मां तुरंत बोलीं, ‘‘अरे, पाजामा क्यों उतार रहे हो. अब बेटी के सामने भी नंगे हो जाओगे. तुम्हें तो नंगे होने की आदत है.’’

बाबा ने पाजामा नीचे कर के दिखाया. उन की जांघों और नितंबों पर कई जगह नील पड़े हुए थे. कई दाग तो जख्म में बदलने लगे थे. वह बोले, ‘‘देख, तेरी मां मुझे यहां नोचती है ताकि मैं किसी को दिखा भी न पाऊं. पीछे मुड़ कर दवा भी न लगा सकूं.’’

‘‘हांहां, मैं नोचूंगी. जितना कष्ट तुम ने मुझे दिया है उतना ही कष्ट मैं भी दूंगी,’’ इतना कहते हुए मां उठीं और एक बार जोर से बाबा की जांघ पर फिर चूंटी काट दी. बाबा दर्द से तिलमिला उठे और माया के पैरों पर गिर कर बोले, ‘‘बेटी, मुझे इस नरक से निकाल ले. मेरा अंत भी नहीं आता है. मुझे कोई दवा दे दे ताकि मैं हमेशा के लिए सो जाऊं.’’

‘‘अरे, ऐसे कैसे मरोगे. तड़पतड़प कर मरोगे. तुम्हारे शरीर में कीड़े पड़ेंगे,’’ मां चीखीं.

24 घंटे पहले ही माया का फोन बजा था.

सुबह के 9 बज चुके थे, पर माया अभी तक सो रही थी. उस के सोने का समय सुबह 4 बजे से शुरू होता और फिर 9-10 बजे तक सोती रहती.

माया के पति मोहन मर्चेंट नेवी में थे इसलिए अधिकतर समय उसे अकेले ही बिताना पड़ता था. अकेले उसे बहुत डर लगता था इसलिए सो नहीं पाती थी. सारी रात उस का टेलीविजन चलता था. उसे लगता था कि बाहर वालों को ऐसा लगना चाहिए कि इस घर में तो रात को भी रौनक रहती है.

सुबह 4 बजे जब दूध की लारी बाहर सड़क पर आ जाती और लोगों की चहलपहल शुरू हो जाती तो वह टेलीविजन बंद कर के नींद के आगोश में चली जाती थी. काम वाली बाई भी 11 बजे के बाद ही आ कर घंटी बजाती थी.

उस ने फोन की घंटी सुनी तो भी वह उठने के मूड में नहीं थी, उसे लगा था कि यह आधी रात को कौन उसे जगा रहा है. पर एक बार कट कर फिर घंटी बजनी शुरू हुई तो बजती ही चली गई.

अब उस ने फोन उठाया तो उधर से बाबा की आवाज सुनाई दी, ‘‘हैलो, मन्नू, तेरी मां मुझे मारती है,’’ कह कर उन के रोने की आवाज आनी शुरू हो गई. माया एकदम परेशान हो उठी.

उस के पिता उसे प्यार से मन्नू ही बुलाते थे. 80 साल के पिता फोन पर उसे बता रहे थे कि 70 साल की मां उन्हें मारती है. यह कैसे संभव हो सकता है.

‘‘आप रो क्यों रहे हो? मां कहां हैं? उन्हें फोन दो.’’

‘‘मैं बाहर से बोल रहा हूं. घर में उस के सामने मैं उस की शिकायत नहीं कर सकता,’’ इतना कह कर वह फिर रोने लगे थे.

‘‘क्यों मारती हैं मां?’’

‘‘कहती हैं कि नीना राव से मेरा इश्क था.’’

‘‘कौन नीना राव, बाबा?’’

‘‘वही हीरोइन जिस को मैं ने प्रमोट किया था.’’

‘‘पर इस बात को तो 40 साल हो गए होंगे.’’

‘‘हां, 40 से भी ज्यादा.’’

‘‘आज मां को वह सब कैसे याद आ रहा है?’’

‘‘मैं नहीं जानता. मुझे लगता है कि वह पागल हो गई है. मैं घर नहीं जाऊंगा. वह मुझे नोचती है. नोचनोच कर खून निकाल देती है,’’ बाबा ने कहा और फिर रोने लगे.

‘‘आप अभी तो घर जाओ. मैं मां से बात करूंगी.’’

‘‘नहीं, उस से कुछ मत पूछना, वह मुझे और मारेगी.’’

‘‘अच्छा, नहीं पूछती. आप घर जाओ, नहीं तो वह परेशान हो जाएंगी.’’

‘‘अच्छा, जाता हूं पर तू आ कर मुझे ले जा. मैं इस के साथ नहीं रह सकता.’’

‘‘जल्दी ही आऊंगी, आप अभी तो घर जाओ.’’

बाबा ने फोन रख दिया था. माया ने भी फोन रखा और अपनी शून्य हुई चेतना को वापस ला कर सोचना शुरू किया. पहला विचार यही आया कि मां को पागल बनाने वाली यह नीना राव कौन थी और वह 40 साल पहले वाले जमाने में पहुंच गई.

तब वह 12 साल की रही होगी और 7वीं कक्षा में पढ़ती होगी. तब उस के बाबा एक प्रसिद्ध फिल्मी पत्रिका के संपादक थे.

बाबा और मां का उठनाबैठना लगातार फिल्मी हस्तियों के साथ ही होता था. दोनों लगातार सोशल लाइफ में ही व्यस्त रहते थे. अपने बच्चों के लिए भी उन के पास समय नहीं था. उन की दादी- मां ही उन्हें पाल रही थीं. रात भर पार्टियों में पीने के बाद दोनों जब घर लौटते तो आधी रात हो चुकी होती थी. सुबह जब माया और राजा स्कूल जाते तब वे दोनों गहरी नींद में होते थे. जब माया और राजा स्कूल से घर लौटते तो बाबा अपने काम से और मां किटी और ताश पार्टी के लिए निकल चुकी होतीं.

स्कूल में भी सब को पता था कि उस के पिता फिल्मी लोगों के साथ ही घूमते हैं इसलिए जब भी कोई अफवाह किसी हीरोहीरोइन के बारे में उड़ती तो उस की सहेलियां उसे घेर लेती थीं और पूछतीं, ‘क्या सच में राजेंद्र कुमार तलाक दे कर मीना कुमारी से शादी कर रहा है?’ दूसरी पूछती, ‘क्या देवआनंद अभी भी सुरैया के घर के चक्कर लगाता है?’ तीसरी पूछती, ‘सच बता, क्या तू ने नूतन को देखा है? सुना है देखने में वह उतनी सुंदर नहीं है जितनी परदे पर दिखती है?’

ऐसे अनेक प्रश्नों का उत्तर माया के पास नहीं होता था, क्योंकि उस की दादीमां बच्चों को फिल्मी दुनिया की खबरों से दूर ही रखती थीं. पर एक बार ऐसा जरूर हुआ जब मां उसे अपने साथ ले गई थीं. कार किनारे खड़ी कर के उन्होंने कहा था, ‘देखो, उस घर में जाओ. बाबा वहां हैं. तुम थोड़ी देर वहां बैठना और सुनना नीना और बाबा क्या बातें कर रहे हैं और कैसे बैठे हैं.’

वह पहला अवसर था जब वह किसी हीरोइन के घर जा रही थी. उस ने अपनी फ्राक को ठीक किया था, बालों को संवारा था और कमरे के अंदर चली गई थी. उस ने बस इतना सुना था कि कोई नई हीरोइन है और अगले ही महीने एक प्रसिद्ध हीरो के साथ एक फिल्म में आने वाली है.

नमस्ते कह कर वह बैठ गई थी. बाबा ने पूछा था, ‘कैसे आई हो? मां कहां हैं?’

उस ने उत्तर दिया था, ‘मां बाजार गई हैं. अभी थोड़ी देर में आ जाएंगी.’

बाबा ने बैठने का इशारा किया था और फिर नीना से बातें करने में व्यस्त हो गए थे. माया के कान खड़े थे. मां ने कहा था कि सब बातें ध्यान से सुनना और फिर उसे यह भी देखना था कि बाबा और नीना कैसे बैठे हुए हैं. उस ने ध्यान से देखा था कि नीना ने बहुत सुंदर स्कर्ट ब्लाउज पहना हुआ था और वह आराम से सोफे पर बैठी थी. उस के हाथ में एक सिगरेट थी जिसे वह थोड़ीथोड़ी देर में पी रही थी. बाबा पास ही एक कुरसी पर बैठे थे और दोनों लगातार फिल्म पब्लिसिटी की ही बात कर रहे थे.

आधा घंटे बाद मां ने ड्राइवर को भेज कर उसे बुलवा लिया था. बाबा वहीं रह गए थे. उन दिनों वह नीना को प्रमोट करने का काम भी कर रहे थे. किसी भी नए हीरो या हीरोइन को प्रमोट करने के काम के लिए बाबा को काफी रुपए मिलते थे और मां को ऐसे धन की आदत पड़ गई थी. उन का जीवन ऐशोआराम से भरा था. आएदिन नए शहरों में जाना, पांचसितारा होटलों में रुकना, रंगीन पार्टियों का मजा लेना उन की आदत में शुमार हो गया था. तब उन्होंने भी यह उड़ती सी खबर सुनी थी कि बाबा उस हीरोइन पर ज्यादा ही मेहरबान हैं, पर उस के द्वारा जो धन की वर्षा हो रही थी उस ने मां के दिमाग को बेकार बना दिया था.

मां को तो बस, भरे हुए पर्स से मतलब था. जब मां को तनाव होना चाहिए था तब तो कुछ नहीं हुआ, पर कुछ साल बीत जाने के बाद उन्होंने बाबा को कुरेदना शुरू किया था. वह कहतीं, ‘अच्छा, सचसच बताना नीना को तुम प्यार करने लगे थे क्या?’

बाबा बोलते, ‘तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है. तुम्हें पता है कि पब्लिसिटी के लिए क्याक्या कहानियां बनानी पड़ती हैं. तुम तो लगातार मेरे साथ थीं फिर अब क्यों पूछ रही हो?’

अब तक बाबा का काम कम हो गया था. बाजार में और भी कई फिल्मी पत्रिकाएं आ चुकी थीं. जवान और चालाक सेके्रटरी हीरोहीरोइनों को संभालने के लिए आ चुके थे. ऐसे भी कभीकभी ही थोड़ा सा काम मिलता था. पैसे की भी काफी तंगी हो गई थी. जवानी में बाबा ने पैसा बचाया नहीं और अब पुरानी आदतें छूट नहीं पा रही थीं इसलिए मां और बाबा में भी आपस में कहासुनी होनी शुरू हो गई थी.

अब तक माया विवाह योग्य हो चुकी थी और उस ने अपना जीवनसाथी स्वयं ही चुन लिया था. राजा भी काम की तलाश में अमेरिका पहुंच गया था. बुरी आदतें और अनियमित दिनचर्या के कारण बाबा की सेहत भी डगमगाने लगी थी. चारों तरफ से दबाव ही दबाव था. अब मां के गहने बिकने शुरू हो गए थे. ऐसे में जब भी मां का कोई गहना बिकता, अपना गुस्सा इसी प्रकार से बाबा से प्रश्न कर के निकालतीं.

कभी पूछतीं, ‘अच्छा उस साल दीवाली पर तुम ने रात नीना के घर गुजारी थी न? घर में और भी कोई था या तुम दोनों अकेले थे?’

बाबा जो भी उत्तर देते, उस पर उन्हें विश्वास नहीं होता. ढलती उम्र, बालों में फैलती सफेदी और कमजोर होते अंगप्रत्यंग उन्हें अत्यंत शंकालु बनाते जा रहे थे. तब तक केवल मां की जबान ही चलती थी. फिर माया का विवाह हो गया और वह विदेश चली गई. उस के पति की नौकरी अच्छी थी इसलिए वह हर महीने मां और बाबा के लिए भी पैसे भेजती थी. घर उन का अपना था इसलिए आधा घर किराए पर दे दिया था. वहां से भी हर महीने पैसा मिल जाता था. इस प्रकार दोनों का गुजारा भली प्रकार से चल रहा था.

बीचबीच में माया का चक्कर मुंबई का लगता रहता था पर तब उस ने कभी इस बात की ओर ध्यान नहीं दिया था कि दोनों का आपस में झगड़ा किस बात को ले कर होता है. मां कभीकभी उसे भी जलीकटी सुना देती थीं, बोलतीं, ‘अरे, बाबा ने जवानी में बहुत मस्ती मारी है. अभी वैसा नहीं है इसलिए झुंझलाए रहते हैं. अब इस बूढ़े को कौन मुंह लगाएगा.’

‘मां, चुप हो जाओ. बाबा के लिए ऐसे कैसे बोलती हो? तुम भी तो मस्ती मारती थीं.’

‘नहींनहीं, मैं तो सिर्फ ताश खेलती थी, इन की मस्तियां तो हाड़मांस की होती थीं.’

माया डांट कर मां को चुप करा देती थी. उस ने तो दोनों को जवानी में मौजमस्ती करते ही देखा था. अगर दादी नहीं होतीं तो उन दोनों भाईबहनों का बचपन पता नहीं कैसे बीतता.

कुछ सालों बाद माया भारत लौट आई थी. उस ने अपने बच्चों की शिक्षा के लिए चेन्नई को चुना था. माया के पति साल में 2 ही बार छुट्टी पर चेन्नई आते थे. अब साल में एक बार वह भी मांबाबा को बुला लेती थी. एक माह बिताने के बाद वे मुंबई लौट जाते थे. जितने दिन बेटी के पास रहते बहुत सुखसुविधा में रहते पर उन की जड़ें तो मुंबई में थीं इसलिए उन्हें वहां लौटने की भी जल्दी होती थी.

जितने दिन वे दोनों बेटी के पास होते उतने दिन उन में झगड़ा नहीं होता था. पर माया ने देखा था कि मां का व्यवहार थोड़ा अजीब होता जा रहा है. बाबा को दुखी देख कर उन्हें बहुत अच्छा लगता था. यदि बाबा को कोई चोट लग जाती तो वह तालियां बजाने लगती थीं. उन की इस बचकानी हरकत पर माया को बहुत गुस्सा आता था और वह मां को डांट भी देती थी.

लेकिन आज के फोन ने माया को हिला कर रख दिया था. इतने बूढ़े पिता को उन की जीवनसंगिनी ही मार रही है और वह किसी से शिकायत भी नहीं कर सकते हैं. उस ने कुछ सोचा और मुंबई अपने मामा को फोन मिलाया. वह फोन पर बोली, ‘‘मामा, मां और बाबा कैसे हैं? इधर आप का चक्कर उन के घर का लगा था?’’

‘‘नहीं, मैं एक महीने से उन के घर नहीं गया हूं. मेरे घुटनों में बहुत दर्द रहता है. मैं कहीं भी आताजाता नहीं हूं. क्यों, क्या बात है? उन का हालचाल जानने के लिए उन को फोन करो.’’

‘‘सुबह बाबा का फोन आया था. रो रहे थे. मुझे बुला रहे हैं. आप जरा देख कर आइए क्या बात है? इतनी दूर से आना आसान नहीं है.’’

‘‘तुम कहती हो तो आज ही दोपहर को चला जाता हूं. तुम मुझ से वहीं बात कर लेना.’’

‘‘ठीक है, मैं 2 बजे फोन करूंगी,’’ कह कर माया ने फोन रख दिया.

अब किसी भी काम में माया का दिल नहीं लग रहा था. समय बिताने के लिए उस ने पुराना अलबम उठा लिया. उस के बाबा और मां की फोटो हर हीरो-हीरोइन के साथ थी. नीना राव के साथ एक फोटो में उस ने मांबाबा को देखा. नीना राव कितनी खूबसूरत थी. माया ने तो उसे पास से भी देखा था. उस की गुलाबी रंगत देखते ही बनती थी. नीना राव की सुंदरता के आगे मां फीकी लग रही थीं. इस फोटो में बाबा ने दोनों औरतों के गले में बांहें डाली हुई थीं.

नीना की सुंदरता देख कर माया ने सोचा तब मां को जरूर हीन भावना होती होगी, पर बाबा का काम ही ऐसा था कि वह उन के काम में बाधा नहीं डाल सकती थीं. जब नीना को प्रमोट किया जा रहा था तब बाबा का अधिक से अधिक समय उस के साथ ही बीतता था. तब मां अपनी किटी पार्टियों में व्यस्त रहती थीं. हर जगह वह बाबा के साथ नहीं जा सकती थीं. तब का मन में दबाया हुआ आक्रोश अब मानसिक विकृति बन कर उजागर हो रहा था. वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी कि मानसिक अवसाद कितना घिनौना रूप ले सकता है.

2 बजते ही माया ने मुंबई फोन मिलाया. मामा ने फोन उठाया और बोले, ‘‘तुम जल्दी आ जाओ. यहां के हालात ठीक नहीं हैं. मैं तुम्हें फोन पर कुछ भी नहीं बता सकता हूं.’’

फोन रखते ही माया ने शाम की फ्लाइट पकड़ी और रात के 10 बजे तक  घर पहुंच गई थी.

उन दोनों की हालत देख कर माया भी रो पड़ी. अकेले वह दोनों को नहीं संभाल सकती थी. उस ने अपने बड़े बेटे को फोन कर के बंगलौर से बुला लिया. उस ने भी दोनों की हालत देखी और दुखी हो गया. दोनों मांबेटे ने बहुत दिमाग लगाया और इस फैसले पर पहुंचे कि मां और बाबा को अलगअलग रखा जाए, माया बाबा को अपने साथ ले गई और मां को एक नर्स और एक नौकरानी के सहारे छोड़ दिया.

मां को बहुत समझाया और साथ ही धमकी भी दे डाली, ‘‘सुधर जाओ, नहीं तो मैंटल हास्पिटल में डाल देंगे. तुम्हारा बुढ़ापा बिगड़ जाएगा.’’

एक छोटे बच्चे की तरह बाबा माया का हाथ पकड़ कर घर से बाहर निकले और तेजी से जा कर कार में बैठ गए. उस अप्रत्याशित मोड़ ने मां को स्तंभित कर दिया था. वह शांत हो कर अपने बिस्तर पर बैठी रहीं और नर्स ने उन्हें नींद की गोली दे कर लिटा दिया. कल से ही उन का इलाज शुरू होगा.

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