Hindi Kahaniyan : हवेली – क्या पूरे हुए गीता के सपने

Hindi Kahaniyan :  ‘साड्डा चिडि़यां दा चंबा वे… बाबुल, असां उड़ जाना…’ यानी हे पिता, हम लड़कियों का अपने पिता के घर में रहना चिडि़यों के घोंसले में पल रहे नन्हे चूजों के समान होता है, जो जल्द ही बड़े हो कर उड़ जाते हैं. हे पिता, हमें तो बिछुड़ जाना है.

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लोग कहते हैं कि हमारे लोकगीतों में जिंदगी के दुखदर्द की सचाई बयान होती है, मगर गीता के लिए इस लोकगीत का मतलब गलत साबित हुआ था. आसपास की सभी लड़कियां ससुराल जा कर अपनेअपने परिवार में रम गई थीं, मगर गीता ने यों ही सारी जिंदगी निकाल दी. इस तनहा जिंदगी का बोझ ढोतेढोते गीता के सारे एहसास मर चुके थे. कोई अरमान नहीं था. अपनी अधेड़ उम्र तक उसे अपने सपनों के राजकुमार का इंतजार रहा, मगर अब तो उस के बालों में पूरी सफेदी उतर चुकी थी. आसपड़ोस के लोगों के सहारे ही अब उस के दिन कट रहे थे.

एक वक्त था, जब इसी हवेली में गीता का हंसताखेलता भरापूरा परिवार था. अब तो यहां केवल गीता है और उस की पकी हुई गम से भरी जवानी व लगातार खंडहर होती जा रही यह पुरानी हवेली. गीता की कहानी इसी खस्ताहाल हवेली से शुरू होती है और उस का खात्मा भी यहीं होना तय है.

‘साड्डी लंबी उडारी वे… बाबुल, असां उड़ जाना…’ यानी हमारी उड़ान बहुत लंबी है. ससुराल का घर बहुत दूर लगता है, चाहे वह कुछ कोस की दूरी पर ही क्यों न हो. हे पिता, हमें बिछुड़ जाना है.

गीता की शादी बहुत धूमधाम से हुई थी. बड़ेबड़े पंडाल लगाए गए थे. हजारों की तादाद में घराती और बराती इकट्ठा हुए थे. ऐसेऐसे पकवान बनाए गए थे, जो फाइवस्टार होटलों में भी कभी न बने हों. 10 किस्म के पुलाव थे, 5 किस्म के चिकन, बेहिसाब फलजूस, विलायती शराब की हजारों बोतलें पीपी कर लोग सारी रात झूमते रहे थे.

एक हफ्ते तक समारोह चलता रहा था. दनादन फोटो और वीडियो रीलें बनी थीं, जिन में गर्व से इतराते जवान दूल्हे और शरमाई दुलहन के साथ सभी रिश्तेदार खुशी से चिपक कर खड़े थे. गीता को तब पता नहीं था कि एक साल के अंदर ही उस की बदनामी होने वाली है.

‘कित्ती रोरो तैयारी वे… बाबुल, असां उड़ जाना…’ यानी शादी होने के बाद मैं ने बिलखबिलख कर ससुराल जाने की तैयारी कर ली है. हर किसी की आंखों में आंसू हैं. हे पिता, हमें बिछुड़ जाना है.

गीता का चेहरा शर्म से लाल सुर्ख हुआ जा रहा था और वह अंदर से इतनी ज्यादा खुश थी कि एक बहुत बड़े रईस परिवार से अब जुड़ गई थी. 2 महीने बाद उसे अपने पति के साथ लंदन जाना था. लड़के के परिवार वाले भी बेहद खुश दिख रहे थे. दूल्हा बड़ी शान से एक सजे हुए विशाल हाथी पर बैठ कर आया था. फूलों से लदी एक काली सुंदर चमचमाती लंबी लिमोजिन कार गीता की डोली ले जाने के लिए सजीसंवरी उस के पीछेपीछे आई थी.

लड़के का पिता अपने इलाके का बहुत बड़ा जमींदार था. उस ने भारी रोबदार लहजे में गीता के पिता से कहा था, ‘मेरे लिए कोई खास माने नहीं रखता कि तुम अपनी बेटी को दहेज में क्या देते हो. हमारे पास सबकुछ है. हमारी बरात का स्वागत कुछ ऐसे तरीके से कीजिएगा कि सदियों तक लोग याद रखें कि चौधरी धर्मदेव के बेटे की शादी में गए थे.’ लोग तो उस शानदार शादी को आसानी से भूल गए थे. आजकल तकरीबन सभी शादियां ऐसी ही सजधज से होती हैं. पर गीता को कुछ नहीं भूला था. उस के दूल्हे ने पहली रात को उसे हजारों सब्जबाग दिखाए थे.

शादी के बाद एक महीना कैसे बीता, पता ही नहीं चला. गीता के तो पैर जमीन पर नहीं पड़ते थे. वह पगलाई सी उस रस के लोभी भंवरे के साथ भारत के हर हिल स्टेशन पर घूमती रही, शादी को बिना रजिस्टर कराए. गीता के पति को एक दिन अचानक लंदन जाना पड़ा. कुछ महीनों बाद तक यह सारा माजरा गीता के परिवार वालों की समझ में नहीं आया. गीता तो कुछ ज्यादा ही हवा में थी कि विदेश जा कर यह कोर्स करेगी, वह काम करेगी.

कुछ दिनों तक गीता मायके में रही. ससुराल से कोई खोजखबर नहीं मिल पा रही थी. गीता का पति जो फोन नंबर उसे दे गया था, वह फर्जी था. लोगों को दो और दो जोड़ कर पांच बनाते देर नहीं लगती. अखबारों को भनक लगी, तो उन्होंने मिर्चमसाला लगा कर गीता के नाम पर बहुत कीचड़ उछाला. पत्रकारों को भी मौका मिल गया था अपनी भड़ास निकालने का. कहने लगे कि लालच के मारे ये

मिडिल क्लास लोग बिना कोई पूछताछ किए विदेशी दूल्हों के साथ अपनी लड़कियां बांध देते हैं. ये एनआरआई रईस 2-3 महीने जवान लड़की का जिस्मानी शोषण कर के फुर्र हो जाते हैं, फिर सारी उम्र ये लड़कियां विधवाओं से भी गईगुजरी जिंदगी बसर करती हैं. आने वाले समय में जिंदगी ने जो कड़वे अनुभव गीता को दिए थे, वे उस के लिए पलपल मौत की तरफ ले जाने वाले कदम थे. उस के मातापिता ने शादी में 25 लाख रुपए खर्च कर दिए थे और क्याकुछ नहीं दिया था. एक बड़ी कार भी उसे दहेज में दी थी.

खैर, 2-3 महीने बाद एक नया नाटक सामने आया. गीता के बैंक खाते में पति ने कुछ पैसे जमा किए. अब वह उसे हर महीने कुछ रुपए भेजने लगा था, ताकि पैसे के लिए ही सही गीता उस के खिलाफ कोई होहल्ला न करे. गीता के पिता ने कुछ रिश्तेदारों को साथ ले कर उस की ससुराल जा कर खोजबीन की.

पता चला कि लड़का तो लंदन में पहले से ही शादीशुदा है. यह बात उस ने अपने मांबाप से भी छिपाई थी. कुछ अरसा पहले उस ने अपनी मकान मालकिन से ही शादी कर ली थी, ताकि वहां का परमानैंट वीजा लग जाए. बाद में उस से पीछा छुड़वा कर वह गीता से शादी करने से 7 महीने पहले एक और रूसी गोरी मेम से कोर्ट में शादी रचा चुका था. गीता के साथ तो उस ने अपने मांबाप को खुश रखने के लिए शादी की थी, ताकि वह सारी उम्र उन की ही सेवा में लगी रहे.

इस मामले में गीता के घर वाले उस की ससुराल वालों को फंसा सकते थे, मगर यह इतना आसान नहीं था. गीता के मांबाप ने उस के ससुराल पक्ष पर सामाजिक दबाव बढ़ाना शुरू किया और अदालत का डर दिखाया, तो वे 5 लाख रुपए दे कर गीता से पीछा छुड़ाने का औफर ले कर आ गए. गीता की शादी भारत में रजिस्टर नहीं हुई थी और इंगलैंड में उस की कोई कानूनी मंजूरी नहीं थी, इसलिए गीता के घर वाले उस के पति का कुछ नहीं बिगाड़ सकते थे, जिस ने गीता के साथ यह घिनौना मजाक किया था.

गीता के ससुराल वाले चाहते थे कि एक महीने तक उन के बेटे को जो गीता ने सैक्स सर्विस दी थी, उस का बिल 5 लाख रुपए बनता है. वह ले कर गीता दूसरी शादी करने को आजाद थी. वे बाकायदा तलाक दिलाने का वादा कर रहे थे. अब गीता का पति उन के हाथ आने वाला नहीं था.

तब गीता की ससुराल वालों ने उस के परिवार को एक दूसरी योजना बताई. गीता का देवर अभी कुंआरा ही था. उन्होंने सुझाया कि गीता चाहे तो उस के साथ शादी कर सकती है. ऐसा खासतौर पर तब किया जाता है, जब पति की मौत हो जाए. गीता की मरजी के बिना ही उस की जिंदगी को ले कर अजीबअजीब किस्म के करार किए जा रहे थे और वह हर बार मना कर देती. कोई उस के दिल के भीतर टटोल कर नहीं देख रहा था कि उसे क्या चाहिए.

फिर कुछ महीनों बाद गीता की ससुराल वालों का यह प्रस्ताव आया कि गीता के परिवार वाले 10 लाख रुपए का इंतजाम करें और गीता को उस के पति के पास लंदन भेज दें. शायद गीता के पति का मन अपनी विदेशी मेम से भर चुका था और वह गीता को बीवी बना कर रखने को तैयार हो गया था. गीता के सामने हर बार इतने अटपटे प्रस्ताव रखे जाते थे कि उस का खून खौल उठता था. शुरू में तो गीता को लगता था कि उस के परिवार वाले उस के लिए कितने चिंतित हैं और वे उस की पटरी से उतरी हुई गाड़ी को ठीक चढ़ा ही देंगे, मगर फिर उन की पिछड़ी सोच पर गीता को खीज भरी झुंझलाहट होने लगी थी.

गीता अपने दुखों का पक्का इलाज चाहती थी. समझौते वाली जिंदगी उसे पसंद नहीं थी. वह हाड़मांस की बनी एक औरत थी और इस तरह का कोई समझौता उस की खराब शादी को ठीक नहीं कर सकता था. अब गीता के मांबाप के पास इतना पैसा नहीं था कि वे उसे लंदन भेज सकें, ताकि गीता उस आदमी को पा सके. मगर पिछले 3 साल से वह भारत नहीं आया था और ऐसा कोई कानून नहीं था कि गीता के परिवार वाले उसे कोई कानूनी नोटिस भिजवा सकें.

गीता के मांबाप ने कोर्ट में केस दायर कर दिया था. वे अपने 25 लाख रुपए वापस चाहते थे, जो उन्होंने गीता की शादी में खर्च किए थे. गीता के लिए तो यह सब एक खौफनाक सपने की तरह था. वह पैसा नहीं चाहती थी. वह अपने बेवफा पति को भी वापस नहीं चाहती थी.

गीता क्या चाहती थी, यह उस की कच्ची समझ में तब नहीं आ रहा था. हर कोई अपनी लड़ाई लड़ने में मसरूफ था. किसी ने यह नहीं सोचा था कि गीता की उम्र निकलती जा रही है, उस के मांबाप बूढ़े होते जा रहे हैं. कोई सगा भाई भी नहीं है, जो बुढ़ापे में गीता की देखभाल करेगा.

अदालत के केस में फंसे गीता के पिता की सारी जमापूंजी खत्म हो गई. गीता की ससुराल वालों के पास खूब पैसा था. केस लटकता जा रहा था और एक दिन गीता के पिता ने तंग आ कर खेत में पेड़ से लटक कर जान दे दी. मां ने 3-4 साल तक गीता के साथ कचहरी की तारीखें भुगतीं, मगर एक दिन वे भी नहीं रहीं.

अब अपनी लड़ाई लड़ने को अकेली रह गई थी अधेड़ गीता. खेतों से जो पैदावार आती थी, वह इतनी ज्यादा नहीं थी कि लालची वकीलों को मोटी फीस दी जा सके. थकहार कर गीता ने कचहरी जाना ही छोड़ दिया. वह अपनी ससुराल वालों की दी गई हर पेशकश या समझौते को मना करती रही. एकएक कर के गीता के साथ के सभी लोग मरखप गए.

हवेली का रंगरूप बिगड़ता गया. अब इस कसबे में नए बाशिंदे आ कर बसने लगे थे. सरकार ने जब इस क्षेत्र को स्पैशल इकोनौमिक जोन बनाया, तो आसपास के खेतों में कारखाने खुलने लगे. उन में काम करने वालों के लिए गीता की हवेली सब से सस्ती जगह थी. गीता किराए के सहारे ही हवेली का थोड़ाबहुत रखरखाव कर रही थी. अपने बारे में तो उस ने कब से सोचना छोड़ दिया था.

ऐसा लग रहा था कि गीता और हवेली में एक प्रतियोगिता चल रही थी कि कौन पहले मिट्टी में मिलेगी.

Famous Hindi Stories : खुशियों की दस्तक – क्या कौस्तुभ और प्रिया की खुशी वापस लौटी

Famous Hindi Stories : जिंदगी के लमहे किस पल क्या रंग लेंगे, इस की किसी को खबर  नहीं होती. चंद घंटों पहले तक कौस्तुभ की जिंदगी कितनी सुहानी थी. पर इस समय तो हर तरफ सिवा अंधेरे के कुछ भी नहीं था. प्रतिभाशाली, आकर्षक और शालीन नौजवान कौस्तुभ को जो देखता था, तारीफ किए बिना नहीं रह पाता था. एम. एससी. कैमिस्ट्री में गोल्ड मैडलिस्ट कौस्तुभ पी. एच.डी करने के  साथ ही आई.ए.एस. की तैयारी भी कर रहा था. भविष्य के ऊंचे सपने थे उस के, मगर एक हादसे ने सब कुछ बदल कर रख दिया. आज सुबह की ही तो बात थी कितना खुश था वह. 9 बजे से पहले ही लैब पहुंच गया था. गौतम सर सामने खड़े थे. उन्हीं के अंडर में वह पीएच.डी. कर रहा था. अभिवादन करते हुए उस ने कहा, ‘‘सर, आज मुझे जल्दी निकलना होगा. सोच रहा हूं, अपने प्रैक्टिकल्स पहले निबटा लूं.’’

‘‘जरूर कौस्तुभ, मैं क्लास लेने जा रहा हूं पर तुम अपना काम कर लो. मेरी सहायता की तो यों भी तुम्हें कोई जरूरत नहीं पड़ती. लेकिन मैं यह जानना जरूर चाहूंगा कि जा कहां रहे हो, कोई खास प्लान?’’ प्रोफैसर गौतम उम्र में ज्यादा बड़े नहीं थे. विद्यार्थियों के साथ दोस्तों सा व्यवहार करते थे और उन्हें पता था कि आज कौस्तुभ अपनी गर्लफ्रैंड नैना को ले कर घूमने जाने वाला है, जहां वह उसे शादी के लिए प्रपोज भी करेगा. कौस्तुभ की मुसकराहट में प्रोफैसर गौतम के सवाल का जवाब छिपा था. उन के जाते ही  कौस्तुभ ने नैना को फोन लगाया, ‘‘माई डियर नैना, तैयार हो न? आज एक खास बात करनी है तुम से…’’

‘‘आई नो कौस्तुभ. शायद वही बात, जिस का मुझे महीनों से इंतजार था और यह तुम भी जानते हो.’’ ‘‘हां, आज हमारी पहली मुलाकात की वर्षगांठ है. आज का यह दिन हमेशा के लिए यादगार बना दूंगा मैं.’’ लीड कानों में लगाए, बातें करतेकरते कौस्तुभ प्रैक्टिकल्स की तैयारी भी कर रहा था. उस ने परखनली में सल्फ्यूरिक ऐसिड डाला और दूसरी में वन फोर्थ पानी भर लिया. बातें करतेकरते ही कौस्तुभ ने सोडियम मैटल्स निकाल कर अलग कर लिए. इस वक्त कौस्तुभ की आंखों  के आगे सिर्फ नैना का मुसकराता चेहरा घूम रहा था और दिल में उमंगों का ज्वार हिलोरें भर रहा था.

नैना कह रही थी, ‘‘कौस्तुभ, तुम नहीं जानते, कितनी बेसब्री से मैं उस पल का इंतजार कर रही हूं, जो हमारी जिंदगी में आने वाला है. आई लव यू …’’ ‘‘आई लव यू टू…’’ कहतेकहते कौस्तुभ ने सोडियम मैटल्स परखनली में डाले, मगर भूलवश दूसरी के बजाय उस ने इन्हें पहली वाली परखनली में डाल दिया. अचानक एक धमाका हुआ और पूरा लैब कौस्तुभ की चीखों से गूंजने लगा. आननफानन लैब का स्टाफ और बगल के कमरे से 2-4 लड़के दौड़े आए. उन में से एक ने कौस्तुभ की हालत देखी, तो हड़बड़ाहट में पास रखी पानी की बोतल उस के चेहरे पर उड़ेल दी. कौस्तुभ के चेहरे से इस तरह धुआं निकलने लगा जैसे किसी ने जलते तवे पर ठंडा पानी डाल दिया हो. कौस्तुभ और भी जोर से चीखें मारने लगा.

तुरंत कौस्तुभ को अस्पताल पहुंचाया गया. उस के घर वालों को सूचना दे दी गई. इस बीच कौस्तुभ बेहोश हो चुका था. जब वह होश में आया तो सामने ही उस की गर्लफ्रैंड नैना  उस की मां के साथ खड़ी थी. पर वह नैना को देख नहीं पा रहा था. हादसे ने न सिर्फ उस का अधिकांश चेहरा, बल्कि एक आंख भी बेकार कर दी थी. दूसरी आंख भी अभी खुल नहीं सकती थी, पट्टियां जो बंधी थीं. वह नैना को छूना चाहता था, महसूस करना चाहता था, मगर आज नैना उस से बिलकुल दूर छिटक कर खड़ी थी. उस की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह कौस्तुभ के करीब आए. कौस्तुभ 6 महीनों तक अस्पताल, डाक्टर, दवाओं, पट्टियों और औपरेशन वगैरह में ही उलझा रहा. नैना एकदो दफा उस से मिलने आई पर दूर रह कर  ही वापस चली गई. कौस्तुभ की पढ़ाई, स्कौलरशिप और भविष्य के सपने सब अंधेरों में खो गए. लेकिन इतनी तकलीफों के बावजूद कौस्तुभ ने स्वयं को पूरी तरह टूटने नहीं दिया था. किसी न किसी तरह हिम्मत कर सब कुछ सहता रहा, इस सोच के साथ कि सब ठीक हो जाएगा. मगर ऐसा हुआ नहीं. न तो लौट कर नैना उस की जिंदगी में आई और न ही उस का चेहरा पहले की तरह हो सका. अब तक के अभिभावक उस पर लाखों रुपए खर्च कर चुके थे. पर अपना चेहरा देख कर वह स्वयं भी डर जाता था.

घर आ कर एक दिन जब कौस्तुभ ने नैना को फोन कर बुलाना चाहा, तो वह साफ मुकर गई और स्पष्ट शब्दों में बोली, ‘‘देखो कौस्तुभ, वास्तविकता समझने का प्रयास करो. मेरे मांबाप अब कतई मेरी शादी तुम से नहीं होने देंगे, क्योंकि तुम्हारे साथ मेरा कोई भविष्य नहीं. और मैं स्वयं भी तुम से शादी करना नहीं चाहती क्योंकि अब मैं तुम्हें प्यार नहीं कर पाऊंगी. सौरी कौस्तुभ, मुझे माफ कर दो.’’ कौस्तुभ कुछ कह नहीं सका, मगर उस दिन वह पूरी तरह टूट गया था. उसे लगा जैसे उस की दुनिया अब पूरी तरह लुट चुकी है और कुछ भी शेष नहीं. मगर कहते हैं न कि हर किसी के लिए कोई न कोई होता जरूर है. एक दिन सुबह मां ने उसे उठाते हुए कहा, ‘‘बेटे, आज डाक्टर अंकुर से तुम्हारा अपौइंटमैंट फिक्स कराया है. उन के यहां हर तरह की नई मैडिकल सुविधाएं उपलब्ध हैं. शायद तेरी जिंदगी फिर से लौटा दे वह.’’कौस्तुभ ने एक लंबी सांस ली और तैयार होने लगा. उसे तो अब कहीं भी उम्मीद नजर नहीं आती थी, पर मां का दिल भी नहीं तोड़ सकता था.

कौस्तुभ अपने पिता के साथ डाक्टर के यहां पहुंचा और रिसैप्शन में बैठ कर अपनी बारी का इंतजार करने लगा. तभी उस के बगल में एक लड़की, जिस का नाम प्रिया था, आ कर बैठ गई. साफ दिख रहा था कि उस का चेहरा भी तेजाब से जला हुआ है. फिर भी उस ने बहुत ही करीने से अपने बाल संवारे थे और आंखों पर काला चश्मा लगा रखा था. उस ने सूट पूरी बाजू का पहन रखा था और दुपट्टे से गले तक का हिस्सा कवर्ड था. लेकिन उस के चेहरे पर आत्मविश्वास झलक रहा था. न चाहते हुए भी कौस्तुभ ने उस से पूछ ही लिया, ‘‘क्या आप भी ऐसिड से जल गई थीं?’’उस ने कौस्तुभ की तरफ देखा फिर गौगल्स हटाती हुई बोली, ‘‘जली नहीं जला दी गई थी उस शख्स के द्वारा, जो मुझे बहुत प्यार करता था.’’ कहतेकहते उस लड़की की आंखें एक अनकहे दर्द से भर गईं, लेकिन वह आगे बोली, ‘‘वह मजे में जी रहा है और मैं हौस्पिटल्स के चक्कर लगाती पलपल मर रही हूं. मेरी शादी किसी और से हो रही है, यह खबर वह सह नहीं सका और मुझ पर तेजाब फेंक कर भाग गया. एक पल भी नहीं लगा उसे यह सब करने में और मैं सारी जिंदगी के लिए…

‘‘इस बात को हुए 1 साल हो गया. लाखों खर्च हुए पर अभी भी तकलीफ नहीं गई. मांबाप कितना करेंगे, उन की तो सारी जमापूंजी खत्म हो गई है. अपने इलाज के लिए अब मैं स्वयं कमा  रही हूं. टिफिन तैयार कर मैं उसे औफिसों में सप्लाई करती हूं.’’

‘‘मैं आप का दर्द समझता हूं. मैं भी इन्हीं परिस्थितियों से गुजर रहा हूं. कितनी खूबसूरत थी मेरी जिंदगी और आज क्या हो गई,’’ कौस्तुभ ने कहा. एकदूसरे का दर्द बांटतेबांटते कौस्तुभ और प्रिया ने एकदूसरे का नंबर भी शेयर कर लिया. फिर अकसर दोनों के बीच बातें होने लगीं. दोनों को एकदूसरे का साथ पसंद आने लगा. वैसे भी दोनों की जिंदगी एक सी ही थी. एक ही दर्द से गुजर रहे थे दोनों. एक दिन घर वालों के सुझाव पर दोनों ने शादी का फैसला कर लिया. कोर्ट में सादे समारोह में उन की शादी हो गई.कौस्तुभ को एक नाइट कालेज में नौकरी मिल गई. साथ ही वह शिक्षा से जुड़ी किताबें भी लिखने लगा और अनुवाद का काम भी करने लगा. 2 साल के अंदर उन के घर एक चांद सा बेटा हुआ. बच्चा पूर्ण स्वस्थ था और चेहरा बेहद खूबसूरत. दोनों की खुशी का ठिकाना न रहा. बेटे को अच्छी शिक्षा दिला कर ऊंचे पद पर पहुंचाना ही अब उन का लक्ष्य बन गया था. बच्चा पिता की तरह तेज दिमाग का और मां की तरह आकर्षक निकला. मगर थोड़ा सा बड़ा होते ही वह मांबाप से कटाकटा सा रहने लगा. वह अपना अधिकांश वक्त दादादादी या रामू काका के पास ही गुजारता, जिसे उस की देखभाल के लिए रखा गया था.

कौस्तुभ समझ रहा था कि वह बच्चा है, इसलिए उन के जले हुए चेहरों को देख कर डर जाता है. समय के साथ सब ठीक हो जाएगा. लेकिन 8वीं कक्षा के फाइनल ऐग्जाम के बाद एक दिन उस ने अपने दादा से जिद की, ‘‘बाबा, मुझे होस्टल में रह कर पढ़ना है.’’

‘‘पर ऐसा क्यों बेटे?’’ बाबा चौंक उठे थे.कौस्तुभ तो अपने बेटे को शहर के सब से अच्छे स्कूल में डालने वाला था. इस के लिए कितनी कठिनाई से दोनों ने पैसे इकट्ठा किए थे. मगर बच्चे की बात ने सभी को हैरत में डाल दिया. दादी ने लाड़ लड़ाते हुए पूछा था, ‘‘ऐसा क्यों कह रहे हो बेटा, भला यहां क्या प्रौब्लम है तुम्हें? हम इतना प्यार करते हैं तुम से, होस्टल क्यों जाना चाहते हो?’’ मोहित ने साफ शब्दों में कहा था, ‘‘मेरे दोस्त मुझे चिढ़ाते हैं. वे कहते हैं कि तुम्हारे मांबाप कितने बदसूरत हैं. इसीलिए वे मेरे घर भी नहीं आते. मैं इन के साथ नहीं रहना चाहता.’’ मोहित की बात पर दादी एकदम से भड़क उठी थीं, ‘‘ये क्या कह रहे हो? तुम तो जानते हो कि मम्मीपापा कितनी मेहनत करते हैं तुम्हारे लिए, तभी तुम्हें नएनए कपड़े और किताबें ला कर देते हैं. और तुम्हें कितना प्यार करते हैं, यह भी जानते हो तुम. फिर भी ऐसी बातें कर रहे हो.’’ तभी कौस्तुभ ने मां का हाथ दबा कर उन्हें चुप रहने का इशारा किया और दबे स्वर में बोला, ‘‘ये क्या कर रही हो मम्मी? बच्चा है, इस की गलती नहीं.’’

मगर कई दिनों तक मोहित इसी बात पर अड़ा रहा कि उसे होस्टल में रह कर पढ़ना है, यहां नहीं रहना. दादादादी इस के लिए बिलकुल तैयार नहीं थे. आखिर पूरे घर में चहलपहल उसी की वजह से तो रहती थी. तब एक दिन कौस्तुभ ने अपनी मां को समझाया, ‘‘मां, मैं चाहता हूं, हमारा बच्चा न सिर्फ शारीरिक रूप से, बल्कि मानसिक रूप से भी स्वस्थ रहे और इस के लिए जरूरी है कि हम उसे अपने से दूर रखें. वह हमारे साथ रहेगा तो जाहिर है कभी भी खुश और मानसिक रूप से मजबूत नहीं बन सकेगा. मेरी गुजारिश है कि वह जो चाहता है, उसे वैसा ही करने दो. मैं कल ही देहरादून के एक अच्छे स्कूल में इस के दाखिले का प्रयास करता हूं. भले ही वहां फीस ज्यादा है पर हमारे बच्चे की जिंदगी संवर जाएगी. उसे वह मिल जाएगा, जिस का वह हकदार है और जो मुझे नहीं मिल सका.’’

2 सप्ताह के अंदर ही कौस्तुभ ने प्रयास कर के मोहित का ऐडमिशन देहरादून के एक अच्छे स्कूल में करा दिया, जहां उसे 70 हजार डोनेशन के देने पड़े. पर बच्चे की ख्वाहिश पूरी करने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार था. मोहित को विदा करने के बाद प्रिया बहुत रोई थी. उसे लग रहा था जैसे मोहित हमेशा के लिए उस से बहुत दूर जा चुका है. और वास्तव में ऐसा ही हुआ. छुट्टियों में भी मोहित आता तो बहुत कम समय के लिए और उखड़ाउखड़ा सा ही रहता. उधर उस के पढ़ाई के खर्चे बढ़ते जा रहे थे जिन्हें पूरा करने के लिए कौस्तुभ और प्रिया को अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ रही थी. समय बीतते देर नहीं लगती. मोहित अब बड़ा हो चुका था. उस ने बीए के बाद एम.बी.ए. करने की जिद की. अबतक कौस्तुभ के मांबाप दिवंगत हो चुके थे. कौस्तुभ और प्रिया स्वयं ही एकदूसरे की देखभाल करते थे. उन्होंने एक कामवाली रखी थी, जो घर के साथ बाहर के काम भी कर देती थी. इस से उन्हें थोड़ा आराम मिल जाता था. मगर जब मोहित ने एम.बी.ए. की जिद की तो कौस्तुभ के लिए पैसे जुटाना एक कठिन सवाल बन कर खड़ा हो गया. कम से कम 3-4 लाख रुपए तो लगने ही थे. इतने रुपयों का वह एकसाथ इंतजाम कैसे करता?

तब प्रिया ने सुझाया, ‘‘क्यों न हम घर बेच दें? हमारा क्या है, एक छोटे से कमरे में भी गुजारा कर लेंगे. मगर जरूरी है कि मोहित ढंग से पढ़ाईलिखाई कर किसी मुकाम तक पहुंचे.’’ ‘‘शायद ठीक कह रही हो तुम. घर बेच देंगे तो काफी रकम मिल जाएगी,’’ कौस्तुभ ने कहा. अगले ही दिन से वह इस प्रयास में जुट गया. अंतत: घर बिक गया और उसे अच्छी रकम भी मिल गई. उन्होंने बेटे का ऐडमिशन करा दिया और स्वयं एक छोटा घर किराए पर ले लिया. बाकी बचे रुपए बैंक में जमा करा दिए ताकि उस के ब्याज से बुढ़ापा गुजर सके. 1 कमरे और किचन, बाथरूम के अलावा इस घर में एक छोटी सी बालकनी थी, जहां बैठ कर दोनों धूप सेंक सकते थे.

बेटे के ऐडमिशन के साथ खर्चे भी काफी बढ़ गए थे, अत: उन्होंने कामवाली भी हटा दी और दूसरे खर्चे भी कम कर दिए. अब उन्हें इंतजार था कि बेटे की पढ़ाई पूरी होते ही उस की अच्छी सी नौकरी लग जाए और वे उस के सपनों को पूरा होते अपनी आंखों से देखें.

फिर एक खूबसूरत सी लड़की से उस की शादी करा दें और पोतेपोतियों को खिलाएं. मगर एक दिन मोहित के आए फोन ने उन के इस सपने पर भी पल में पानी फेर दिया, जब उस ने बताया कि पापा मुझे सिंगापुर में एक अच्छी जौब मिल गई है और अगले महीने ही मैं हमेशा के लिए सिंगापुर शिफ्ट हो जाऊंगा. ‘‘क्या? सिंगापुर जा रहा है? पर क्यों बेटे?’’ कौस्तुभ की जबान लड़खड़ा गई, ‘‘अपने देश में भी तो अच्छीअच्छी नौकरियां हैं, फिर तू बाहर क्यों जा रहा है?’’ लपक कर प्रिया ने फोन ले लिया था, ‘‘नहींनहीं बेटा, इतनी दूर मत जाना. तुझे देखने को आंखें तरस जाएंगी. बेटा, तू हमारे साथ नहीं रहना चाहता तो न सही पर कम से कम इसी शहर में तो रह. हम तेरे पास नहीं आएंगे, पर इतना सुकून तो रहेगा कि हमारा बेटा हमारे पास ही है. कभीकभी तो तेरी सूरत देखने को मिल जाएगी. पर सिंगापुर चला गया तो हम…’’ कहतेकहते प्रिया रोने लगी थी.

‘‘ओह ममा कैसी बातें करती हो? भारत में कितनी गंदगी और भ्रष्टाचार है. मैं यहां नहीं रह सकता. विदेश से भी आनाजाना तो हो ही जाता है. कोशिश करूंगा कि साल दो साल में एक दफा आ जाऊं,’’ कह कर उस ने फोन काट दिया था. प्रिया के आंसू आंखों में सिमट गए. उस ने रिसीवर रखा और बोली, ‘‘वह फैसला कर चुका है. वह हम से पूरी तरह आजादी चाहता है, इसलिए जाने दो उसे. हम सोच लेंगे हमारी कोई संतान हुई ही नहीं. हम दोनों ही एकदूसरे के दुखदर्द में काम आएंगे, सहारा बनेंगे. बस यह खुशी तो है न कि हमारी संतान जहां भी है, खुश है.’’ उस दिन के बाद कौस्तुभ और प्रिया ने बेटे के बारे में सोचना छोड़ दिया. 1 माह बाद मोहित आया और अपना सामान पैक कर हमेशा के लिए सिंगापुर चला गया. शुरुआत में 2-3 माह पर एकबार फोन कर लेता था, मगर धीरेधीरे उन के बीच एक स्याह खामोशी पसरती गई. प्रिया और कौस्तुभ ने दिल पत्थर की तरह कठोर कर लिया. खुद को और भी ज्यादा कमरे में समेट लिया. धीरेधीरे 7 साल गुजर गए. इन 7 सालों में सिर्फ 2 दफा मोहित का फोन आया. एक बार अपनी शादी की खबर सुनाने को और दूसरी दफा यह बताने के लिए कि उस का 1 बेटा हो गया है, जो बहुत प्यारा है.

कौस्तुभ और प्रिया का शरीर अब जर्जर होता रहा था. कहते हैं न कि आप के शरीर का स्वास्थ्य बहुत हद तक मन के सुकून और खुशी पर निर्भर करता है और जब यही हासिल न हो तो स्थिति खराब होती चली जाती है. यही हालत थी इन दोनों की. मन से एकाकी, दुखी और शरीर से लाचार. बस एकदूसरे की खातिर दोनों जी रहे थे. पूरी ईमानदारी से एकदूसरे का साथ दे रहे थे. एक दिन दोनों बाहर बालकनी में बैठे थे, तो एक महिला अपने बच्चे के साथ उन के घर की तरफ आती दिखी. कौस्तुभ सहसा ही बोल पड़ा, ‘‘उस बच्चे को देख रही हो प्रिया, हमारा पोता भी अब इतना बड़ा हो गया होगा न? अच्छा है, उसे हमारा चेहरा देखने को नहीं मिला वरना मोहित की तरह वह भी डर जाता,’’ कहतेकहते कौस्तुभ की पलकें भीग गईं. प्रिया क्या कहती वह भी सोच में डूब गई कि काश मोहित पास में होता.

तभी दरवाजे पर हुई दस्तक से दोनों की तंद्रा टूटी. दरवाजा खोला तो सामने वही महिला खड़ी थी, बच्चे की उंगली थामे. ‘‘क्या हुआ बेटी, रास्ता भूल गईं क्या?’’ हैरत से देखते हुए प्रिया ने पूछा.

‘‘नहीं मांजी, रास्ता नहीं भूली, बल्कि सही रास्ता ढूंढ़ लिया है,’’ वह महिला बोली. वह चेहरे से विदेशी लग रही थी मगर भाषा, वेशभूषा और अंदाज बिलकुल देशी था. प्रिया ने प्यार से बच्चे का माथा चूम लिया और बोली, ‘‘बड़ा प्यारा बच्चा है. हमारा पोता भी इतना ही बड़ा है. इसे देख कर हम उसे ही याद कर रहे थे. लेकिन वह तो इतनी दूर रहता है कि हम आज तक उस से मिल ही नहीं पाए.’’

‘‘इसे भी अपना ही पोता समझिए मांजी,’’ कहती हुई वह महिला अंदर आ गई.

‘‘बेटी, हमारे लिए तो इतना ही काफी है कि तू ने हमारे लिए कुछ सोचा. कितने दिन गुजर जाते हैं, कोई हमारे घर नहीं आता. बेटी, आज तू हमारे घर आई तो लग रहा है, जैसे हम भी जिंदा हैं.’’

‘‘आप सिर्फ जिंदा ही नहीं, आप की जिंदगी बहुत कीमती भी है,’’ कहते हुए वह महिला सोफे पर बैठ गई और वह बच्चा भी प्यार से कौस्तुभ के बगल में बैठ गया. सकुचाते हुए कौस्तुभ ने कहा, ‘‘अरे, आप का बच्चा तो मुझे देख कर बिलकुल भी नहीं घबरा रहा.’’

‘‘घबराने की बात ही क्या है अंकल? बच्चे प्यार देखते हैं, चेहरा नहीं.’’ ‘‘यह तो तुम सही कह रही हो बेटी पर विश्वास नहीं होता. मेरा अपना बच्चा जब इस की उम्र का था तो बहुत घबराता था मुझे देख कर. इसीलिए मेरे पास आने से डरता था. दादादादी के पास ही उस का सारा बचपन गुजरा था.’’

‘‘मगर अंकल हर कोई ऐसा नहीं होता. और मैं तो बिलकुल नहीं चाहती कि हमारा सागर मोहित जैसा बने.’’ इस बात पर दोनों चौंक कर उस महिला को देखने लगे, तो वह मुसकरा कर बोली, ‘‘आप सही सोच रहे हैं. मैं दरअसल आप की बहू सारिका हूं और यह आप का पोता है, सागर. मैं आप को साथ ले जाने के लिए आई हूं.’’ उस के बोलने के लहजे में कुछ ऐसा अपनापन था कि प्रिया की आंखें भर आईं. बहू को गले लगाते हुए वह बोली, ‘‘मोहित ने तुझे अकेले क्यों भेज दिया? साथ क्यों नहीं आया?’’ ‘‘नहीं मांजी, मुझे मोहित ने नहीं भेजा मैं तो उन्हें बताए बगैर आई हूं. वे 2 महीने के लिए पैरिस गए हुए हैं. मैं ने सोचा क्यों न इसी बीच आप को घर ले जा कर उन को सरप्राइज दे दूं. ‘‘मोहित ने आज तक मुझे बताया ही नहीं था कि मेरे सासससुर अभी जिंदा हैं. पिछले महीने इंडिया से आए मोहित के दोस्त अनुज ने मुझे आप लोगों के बारे में सारी बातें बताईं. फिर जब मैं ने मोहित से इस संदर्भ में बात करनी चाही तो उस ने मेरी बात बिलकुल ही इग्नोर कर दी. तब मुझे यह समझ में आ गया कि वह आप से दूर रहना क्यों चाहता है और क्यों आप को घर लाना नहीं चाहता.’’

‘‘पर बेटा, हम तो खुद भी वहां जाना नहीं चाहते. हमें तो अब ऐसी ही जिंदगी जीने की आदत हो गई है,’’ कौस्तुभ बोला.

‘‘मगर डैडी, आज हम जो खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं, सब आप की ही देन है और अब हमारा फर्ज बनता है कि हम भी आप की खुशी का खयाल रखें. जिस वजह से मोहित आप से दूर हुए हैं, मैं वादा करती हूं, वह वजह ही खत्म कर दूंगी.’’ ‘‘मेरे अंकल एक बहुत ही अच्छे कौस्मैटिक सर्जन हैं और वे इस तरह के हजारों केस सफलतापूर्वक डील कर चुके हैं. कितना भी जला हुआ चेहरा हो, उन का हाथ लगते ही उस चेहरे को नई पहचान मिल जाती है. वे मेरे अपने चाचा हैं. जाहिर है कि वे आप से फीस भी नहीं लेंगे और पूरी एहतियात के साथ  इलाज भी करेंगे. आप बस मेरे साथ सिंगापुर चलिए. मैं चाहती हूं कि हमारा बच्चा दादादादी के प्यार से वंचित न रहे. उसे वे खुशियां हासिल हों जिन का वह हकदार है. मैं नहीं चाहती कि वह मोहित जैसा स्वार्थी बने और हमारे बुढ़ापे में वैसा ही सुलूक करे जैसा मोहित कर रहा है’’ प्रिया और कौस्तुभ स्तंभित से सारिका की तरफ देख रहे थे. जिंदगी ने एक बार फिर करवट ली थी और खुशियों की धूप उन के आंगन में सुगबुगाहट लेने लगी थी. बेटे ने नहीं मगर बहू ने उन के दर्द को समझा था और उन्हें उन के हिस्से की खुशियां और हक दिलाने आ गई थी.

Family Drama : अंतर्व्यथा – कैसी विंडबना में थी वह

Family Drama : बंद अंधेरे कमरे में आंखें मूंदे लेटी हुई मैं परिस्थितियों से भागने का असफल प्रयास कर रही थी. शाम के कार्यक्रम में तो जाने से बिलकुल ही मना कर दिया, ‘‘नहीं, अभी मैं तन से, मन से उतनी स्वस्थ नहीं हुई हूं कि वहां जा पाऊं. तुम लोग जाओ,’’ शरद के सिर पर हाथ फेरते हुए मैं ने कहा, ‘‘मेरा आशीर्वाद तो तुम्हारे साथ है ही और हमेशा रहेगा.’’ सचमुच मेरा आशीर्वाद तो था ही उस के साथ वरना सोच कर ही मेरा सर्वांग सिहर उठा. शाम हो गई थी. नर्स ने आ कर कहा, ‘‘माताजी, साहब को जो इनाम मिलेगा न, उसे टीवी पर दिखलाया जा रहा है. मैडम ने कहा है कि आप के कमरे का टीवी औन कर दूं,’’ और बिना उत्तर की प्रतीक्षा किए वह टीवी औन कर के चली गई. शहर के लोकल टीवी चैनल पर शरद के पुरस्कार समारोह का सीधा प्रसारण हो रहा था.

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मंच पर शरद शहर के गण्यमान्य लोगों के बीच हंसताखिलखिलाता बैठा था. सुंदर तो वह था ही, पूरी तरह यूनिफौर्म में लैस उस का व्यक्तित्व पद की गरिमा और कर्तव्यपरायणता के तेज से दिपदिप कर रहा था. मंच के पीछे एक बड़े से पोस्टर पर शरद के साथसाथ मेरी भी तसवीर थी. मंच के नीचे पहली पंक्ति में रंजनजी, बहू, बच्चे सब खुशी से चहक रहे थे. लेकिन चाह कर भी मैं वर्तमान के इस सुखद वातावरण का रसास्वादन नहीं कर पा रही थी. मेरी चेतना ने जबरन खींच कर मुझे 35 साल पीछे पीहर के आंगन में पटक दिया. चारों तरफ गहमागहमी, सजता हुआ मंडप, गीत गाती महिलाएं, पीली धोती में इधरउधर भागते बाबूजी, चिल्लातेचिल्लाते बैठे गले से भाभी को हिदायतें देतीं मां और कमरे में सहेलियों के गूंजते ठहाके के बीच मुसकराती अपनेआप पर इठलाती सजीसंवरी मैं. अंतिम बेटी की शादी थी घर की, फिर विनयजी तो मेरी सुंदरता पर रीझ, अपने भैयाभाभी के विरुद्ध जा कर, बिना दानदहेज के यह शादी कर रहे थे. इसी कारण बाबूजी लेनदेन में, स्वागतसत्कार में कोई कोरकसर नहीं छोड़ना चाहते थे.

शादी के बाद 2-4 दिन ससुराल में रह कर मैं विनयजी के साथ ही जबलपुर आ गई. शीघ्र ही घर में नए मेहमान के आने की खबर मायके पहुंच गई. भाभी छेड़तीं भी, ‘बबुनी, कुछ दिन तो मौजमस्ती करती, कितनी हड़बड़ी है मेहमानजी को.’ सचमुच विनयजी को हड़बड़ी ही थी. हमेशा की तरह उस दिन भी सुबह सैर करने निकले, बारिश का मौसम था. बिजली का एक तार खुला गिरा था सड़क पर, पैर पड़ा और क्षणभर में सबकुछ खत्म. मातापिता जिस बेटी को विदा कर के उऋण ही हुए थे उसी बेटी का भार एक अजन्मे शिशु के साथ फिर उन्हीं के सिर पर आ पड़ा. ससुराल में सासससुर थे नहीं. जेठजेठानी वैसे भी इस शादी के खिलाफ थे. क्रियाकर्म के बाद एक तरह से जबरन ही मैं वहां जाने को मजबूर थी. ‘सुंदरता नहीं काल है. यह एक को ग्रस गई, पता नहीं अब किस पर कहर बरसाएगी,’ हर रोज उन की बातों के तीक्ष्ण बाण मेरे क्षतविक्षत हृदय को और विदीर्ण करते. मन तो टूट ही चुका था, शरीर भी एक जीव का भार वहन करने से चुक गया.

7वें महीने ही सवा किलो के अजय का जन्म हुआ. जेठ साफ मुकर गए. 7वें महीने ही बेटा जना है. पता नहीं विनय का है भी या नहीं. एक भाई था वह गया, अब और किसी से मेरा कोई संबंध नहीं. सब यह समझ रहे थे कि हिस्सा न देने का यह एक बहाना है. कोर्टकचहरी करने का न तो किसी को साहस था न ही कोई मुझे अपने कुम्हलाए से सतमासे बच्चे के साथ वहां घृणा के माहौल में भेजना चाहता था. 1 साल तो अजय को स्वस्थ करने में लग गया. फिर मैं ने अपनी पढ़ाई की डिगरियों को खोजखाज कर निकाला. पहले प्राइमरी, बाद में मिडल स्कूल में पढ़ाने लगी. मायका आर्थिक रूप से इतना सुदृढ़ नहीं था कि हम 2 जान बेहिचक आश्रय पा सकें. महीने की पूरी कमाई पिताजी को सौंप देती. वे भी जानबूझ कर पैसा भाइयों के सामने लेते ताकि बेटे यह न समझें कि बेटी भार बन गई है. अपने जेबखर्च के लिए घर पर ही ट्यूशन पढ़ाती. मां की सेवा का असर था कि अजय अब डोलडोल कर चलने लगा था. इसी बीच, मेरे स्कूल के प्राध्यापक थे जिन के बड़े भाई प्यार में धोखा खा कर आजीवन कुंवारे रहने का निश्चय कर जीवन व्यतीत कर रहे थे. छत्तीसगढ़ में एक अच्छे पद पर कार्यरत थे. उन्हें सहयोगी ने मेरी कहानी सुनाई. वे इस कहानी से द्रवित हुए या मेरी सुंदरता पर मोहित हुए, पता नहीं लेकिन आजीवन कुंवारे रहने की उन की तपस्या टूट गई. वे शादी करने को तैयार थे लेकिन अजय को अपनाना नहीं चाहते थे. मैं शादी के लिए ही तैयार नहीं थी, अजय को छोड़ना तो बहुत बड़ी बात थी. मांबाबूजी थक रहे थे. वे असमंजस में थे. वे लोग मेरा भविष्य सुनिश्चित करना चाहते थे.

भाइयों के भरोसे बेटी को नहीं रखना चाहते थे. बहुत सोचसमझ कर उन्होंने मेरी शादी का निर्णय लिया. अजय को उन्होंने कानूनन अपना तीसरा बेटा बनाने का आश्वासन दिया. रंजनजी ने भी मिलनेमिलाने पर कोई पाबंदी नहीं लगाई. इस प्रकार मेरे काफी प्रतिरोध, रोनेचिल्लाने के बावजूद मेरा विवाह रंजनजी के साथ हो गया. मैं ने अपने सारे गहने, विनयजी की मृत्यु के बाद मिले रुपए अजय के नाम कर अपनी ममता का मोल लगाना चाहा. एक आशा थी कि बेटा मांपिताजी के पास है जब चाहूंगी मिलती रहूंगी लेकिन जो चाहो, वह होता कहां है. शुरूशुरू में तो आतीजाती रही 8-10 दिन में ही. चाहती अजय को 8 जन्मों का प्यार दे डालूं. उसे गोद में ले कर दुलारती, रोतीबिलखती, खिलौनों से, उपहारों से उस को लाद देती. वह मासूम भी इस प्यारदुलार से अभिभूत, संबंधों के दांवपेंच से अनजान खुश होता.

बड़े भैया के बच्चों के साथसाथ मुझे बूआ पुकारता. धीरेधीरे मायके आनाजाना कम होता गया. शरद के होने के बाद तो रंजनजी कुछ ज्यादा कठोर हो गए. सख्त हिदायत थी कि अजय के विषय में कभी भी उसे कुछ नहीं बतलाया जाए. मायके में भी मेरे साथ शरद को कभी नहीं छोड़ते. मेरा मायके जाना भी लगभग बंद हो गया था. शायद वह अपने पुत्र को मेरा खंडित वात्सल्य नहीं देना चाहते थे. फोन का जमाना नहीं था. महीने दो महीने में चिट्ठी आती. मां बीमार रहने लगी थीं.

मेरे बड़े भैया मुंबई चले गए. छोटे भाई अनुज की भी शादी हो गई और जैसी उम्मीद थी उस की पत्नी सविता को 2 बड़ेबूढ़े और 1 बच्चे का भार कष्ट देने लगा. अंत में अजय को 11 साल की उम्र में ही रांची के बोर्डिंग स्कूल में डाल दिया गया. फासले बढ़ते जा रहे थे और संबंध छीजते जा रहे थे. एकएक कर के पापामां दोनों का देहांत हो गया. मां के श्राद्ध में अजय आया था. लंबा, दुबलापतला विनयजी की प्रतिमूर्ति. जी चाहता खींच कर उसे सीने से लगा लूं, खूब प्यार करूं लेकिन अब उसे रिश्तों का तानाबाना समझ में आ चुका था.

वह गुमसुम, उदास और खिंचाखिंचा रहता. पापा के देहांत के बाद उस के प्यारदुलारस्नेह का एकमात्र स्रोत नानी ही थीं, वह सोता भी अब सूख चुका था. अब उसे मेरी जरूरत थी. मैं भी अजय के साथ कुछ दिन रहना चाहती थी. अपने स्नेह, अपनी ममता से उस के जख्म को सहलाना चाहती थी लेकिन रंजनजी के गुस्सैल स्वभाव व जिद के आगे मैं फिर हार गई. शरद को पड़ोस में छोड़ कर आई थी. उस की परीक्षा चल रही थी. जाना भी जरूरी था लेकिन वापस लौट कर एक दर्द की टीस संग लाई थी. इस दर्द का साझेदार भी किसी को बना नहीं पाती. जब शरद को दुलारती अजय का चेहरा दिखता. शरद को हंसता देखती तो अजय का उदास सूखा सा चेहरा आंखों पर आंसुओं की परत बिछा जाता. उस के बाद अजय का आना बहुत कम हो गया. छुट्टियों में भी वह घर नहीं आता.

महीने दो महीने में अनुज, मेरा छोटा भाई ही उस से भेंट कर आता. वह कहता, ‘दीदी, मुझे उस की बातों में एक अजीब सा आक्रोश महसूस होता है, कभी सरकार के विरुद्ध, कभी परिवार के विरुद्ध और कभी समाज के विरुद्ध. ‘इस महीने जब उस से मिलने गया था, वह कह रहा था, मामा, जिस समाज को आप सभ्य कहते हैं न वह एक निहायत ही सड़ी हुई व्यवस्था है. यहां हर इंसान दोगला है. बाहर से अच्छाई का आवरण ओढ़ कर भीतर ही भीतर किसी का हक, किसी की जायदाद, किसी की इज्जत हथियाने में लगा रहता है. मैं इन सब को बेनकाब कर दूंगा. ‘ये आदिवासी लोग भोलेभाले हैं. यही भारत के मूल निवासी हैं और यही सब से ज्यादा उपेक्षित हैं. मैं उन्हें जाग्रत कर रहा हूं अपने अधिकारों के प्रति. अगर मिलता नहीं है तो छीन लो. यह समाज कुछ देने वाला नहीं है. ‘प्रगति के उत्थान के नाम पर भी इन का दोहन ही हो रहा है. इन के साथसाथ जंगल, जो इन का आश्रयदाता है, जिस पर ये लोग आर्थिक रूप से भी निर्भर हैं, उस का व उस में पाई जाने वाली औषधियों, वनोपाज सब का दोहन हो रहा है.

अगर यही हाल रहा तो ये जनजाति ही विलुप्त हो जाएगी. मैं ऐसा होने नहीं दूंगा.’ अचानक एक दिन खबर आई कि अजय लापता है. अनुज ने उसे ढूंढ़ने में जीजान लगा दी. मैं भी एक सप्ताह तक रांची में उस के कमरे में डटी रही. उस के कपड़े, किताबें सहेजती, उस के अंतस की थाह तलाशती रही. दोस्तों ने बतलाया कि उस के लिए घर से जो भी पैसा आता उसे वह गांव वालों में बांट देता. उन्हें पढ़ाता, उन का इलाज करवाता, उन के बच्चों के लिए किताबें, कपड़े, दवा, खिलौने ले कर जाता. उन के साथ गिल्लीडंडा, हौकी खेलता. अपने परिवार से मिली उपेक्षा, मातापिता के प्यार की प्यास ने ही उसे उन आदिवासियों की तरफ आकृष्ट किया. उन भोलेभाले लोगों का निश्छल प्रेम उस के अंदर अपनों के प्रति धधक रहे आक्रोश को शांत करता और इसी कारण उन लोगों के प्रति एक कर्तव्यभावना जाग्रत हुई जो धीरेधीरे नक्सलवाद की तरफ बढ़ती चली गई. अजय का कुछ पता नहीं चला. वहां से लौटने पर पहली बार रंजनजी से जम कर लड़ी थी, ‘आप के कारण मेरा बेटा चला गया. आप को मैं कभी माफ नहीं करूंगी.

क्या मैं सौतेली मां थी कि आप को लगा, अपने दोनों बेटों में भेदभाव करती. रही बात उस के खर्च की तो उस के पास पैसों की कभी कमी नहीं थी. उसे केवल प्यार की दरकार थी, ममता की छांव चाहिए थी, वह भी मैं नहीं दे पाई. मेरा आंचल इतना छोटा नहीं था जिस में केवल एक ही पुत्र का सिर समा सकता था. एक मां का आंचल तो इतना विशाल होता है कि एक या दो क्या, धरती का हर पुत्र आश्रय पा सकता है. आप को आप के किए की सजा अवश्य मिलेगी.’ पता नहीं मेरे भीतर उस वक्त कौन सा शैतान घुस गया था कि मैं अपने पुत्र के लिए अपने ही पति को श्राप दिए जा रही थी. रंजनजी को भी अपनी गलती का पछतावा था. शायद इसी कारण वे मेरी बातें चुपचाप सह गए. दिन, महीने, साल बीत गए, अजय का कुछ पता नहीं चला. इधर, शरद अपनी बुद्धि और पिता के कुशल मार्गदर्शन में कामयाबी की सीढि़यां चढ़ता हुआ आईपीएस में चयनित हो गया. शादी हुई, 2 प्यारे बच्चे हुए. अभी उस की पोस्टिंग बस्तर के इलाके में हुई थी. मैं और रंजनजी दोनों ने विरोध किया, ‘लेदे कर कहीं दूसरी जगह तबादला करवा लो.’ लेकिन उस ने भी उस चैलेंज को स्वीकार किया.

‘मां, बड़े शहर के लोगों का दिल छोटा होता है, न शुद्ध हवा, न पानी, न खाना. यहां तो मुझे बहुत अच्छा लगता है. इसी वातावरण में तो बड़ा हुआ हूं. मुझे क्यों दिक्कत होगी.’ सचमुच 1 साल के भीतर उस की ख्याति फैल गई. आत्मसमर्पण किए नक्सलियों के लिए ‘अपनालय’ का शुभारंभ किया जिस में मैडिटेशन सैंटर, गोशाला, फलों का बगीचा सबकुछ था उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए. खुद मुख्यमंत्री ने इस का उद्घाटन किया था. प्रदेश में हजारों नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया, पकड़े भी गए. शरद का यही सुप्रयास उस की जान का दुश्मन बन गया. उस दिन सुबह 6 बजे ही घर के हर फोन की घंटियां घनघनाने लगीं. फोन उठाते ही रंजनजी चौंक उठे और उन्हें चौंका देख मैं घबरा गई. ‘क्या? कब? कैसे? जंगल में वह क्या करने गया था.’ हर प्रश्न हृदय पर हथौड़े सा प्रहार कर रहा था. ‘क्या हुआ था उस के साथ?’ मेरी आवाज लड़खड़ा गई. ‘तुम्हारी आह लग गई. शरद का अपहरण हो गया,’ वे फूटफूट कर रो रहे थे. बरसों पहले कही बात उन के मन में धंस गई थी. शायद अपनी करनी से वे भयाकांत भी थे. इसी कारण उन के मुंह से यह बात निकली. लेकिन मेरा? मेरा क्या? मेरा तो हर तरफ से छिन गया. लग रहा था छाती के अंदर, जो रस या खून से भराभरा रहता है, उस को किसी ने बाहर निकाल कर स्पंज की तरह निचोड़ दिया हो.

इसी कारण उन के मुंह से यह बात निकली. लेकिन मेरा? मेरा क्या? मेरा तो हर तरफ से छिन गया. लग रहा था छाती के अंदर, जो रस या खून से भराभरा रहता है, उस को किसी ने बाहर निकाल कर स्पंज की तरह निचोड़ दिया हो. टीवी के हर चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज में यह खबर प्रसारित हो रही थी. दूसरे दिन अपहरणकर्ता का संभावित स्कैच जारी किया गया. दाढ़ी भरे उस दुबलेपतले चेहरे में भी चमकती उन 2 आंखों को पहचानने में मेरी आंखें धोखा नहीं खा पाईं. मैं ने अनुज को फोन लगाया, उस ने मेरे शक को यकीन में बदला. रहीसही कसर उस के नाम से पूरी हुई- ‘अज्जू भैया’. मैं शरद के मुंह से कई बार यह नाम सुन चुकी थी. ‘बहुत खतरनाक खूंखार इंसान है, इस को किसी तरह पकड़ लिया तो समझो नक्सलियों का खेल खत्म.’ उस ने ही बारूदी सुरंग बिछा कर पैट्रोलिंग पर गए शरद को बंदी बनाया. 2 कौंस्टेबल, 1 ड्राइवर शहीद हुए थे. अनुज आ गया था. नक्सलियों से 2 बार बातचीत असफल रही थी. मुख्यमंत्री की अपील का भी कोई असर नहीं था. अनुज के साथ मिल कर बहुत हिम्मत कर के मैं ने यह निर्णय लिया. मैं ने कलैक्टर साहब से बात की, ‘मुझे वार्त्ता के लिए भेजा जाए,’ पहले तो उन्होंने साफ मना कर दिया, ‘आप? वह भी इस उम्र में, एक खूंखार नक्सली से मिलने जंगल जाएंगी? पता भी है कितनी जानें ले चुका है?

बातचीत में, व्यवहार में, जरा सी चूक से जान जा सकती है.’ मैं फफक पड़ी, ‘ममता की कोई उम्र नहीं होती, सर. भले ही वह खूंखार हो, है तो किसी का बेटा ही, एक मां के आगे जरूर झुकेगा.’ मैं ने रंजनजी को भी जाने से सख्ती से मना कर दिया. अनुज मेरे साथ था. घने सरई, सागवान, पलाश के पेड़ों, बरगद की विशाल लटों से उलझते हुए हमें एक खुली जगह ले जाया गया. आंखें बंधी थीं. अंदाज से समझ में आया कि गंतव्य आ गया है. फुसफुसाहट हो रही थी. रास्ते में 5-6 जगह हमारी जांच की गई थी. यहां फिर जांच हुई और पट्टी खोल दी गई. साफसुथरी जगह में एक झोंपड़ीनुमा घर था. उसी के सामने खटिया पर अजय बैठा था. मामा को देखते ही परिचय की कौंध सी चमकी जो मुझे देखते ही विलुप्त हो गई. कितनी घृणा, कितना आक्रोश था उन नजरों में. कुछ देर की खामोशी के बाद उस ने साथियों को आंखों से जाने का इशारा किया. अब सिर्फ हम 3 थे. वह हमारी तरफ मुखातिब हुआ, ‘ओह, तो वह पुलिस वाला आप का बेटा है, कहिए, क्यों आई हैं? रिश्ते का कौन सा जख्म बचा है जिसे और खरोंचने आई हैं? आप क्या सोचती हैं, मैं उसे छोड़ दूंगा, कभी नहीं. अब तो और नहीं. मुझे जन्म दे कर आप ने जो पाप किया है उस की सजा तो आप को भुगतनी ही होगी.’ अनुज कुछ कहने को आतुर हुआ, उस के पहले ही मैं उस के पैरों पर गिर पड़ी, ‘मुझे सजा दो, गोलियों से भून दो, आजीवन बेडि़यों से जकड़ कर अपने पास रखो लेकिन उसे छोड़ दो, उसे मेरी गलती की सजा मत दो. मैं पापिन हूं, तुम को अधिकार है, तुम अपने सारे कष्टों का, दुखों का बदला मुझ से ले लो. ‘मैं लाचार थी. तुम ने एक गाय देखी है रस्सी में बंधी, जिसे उस का मालिक दूसरे के हाथों में थमा देता है, वह चुपचाप चल देती है दूसरे खूंटे से बंधने.’ ‘नहीं, गाय से मत कीजिए तुलना,’ वह चिल्लाया, ‘गाय तो अपने बच्चे के लिए खूंटा उखाड़ कर भाग आती है. आप तो वह भी नहीं कर पाईं.

एक मासूम को तिलतिल कर जलते देखती रहीं. आप ने एक पाप किया मुझे जन्म दे कर, दूसरा पाप किया मुझे पालपोस कर जिंदा रखने का. यह जिंदगी ही मेरे लिए नरक बन गई. जिस जिंदगी को आप संवार नहीं सकती थीं उस में जान फूंकने का आप को कोई हक नहीं था,’ उस का एकएक शब्द घृणा और तिरस्कार में लिपटा था. मैं गिड़गिड़ाने लगी, ‘मैं कमजोर थी, सचमुच गाय से भी कमजोर. अजय, मेरे बेटे, मैं माफी के भी काबिल नहीं. मैं मरना चाहती हूं, वह भी तुम्हारे हाथों, तभी मुझे शांति मिलेगी. बेटा, मुझे बंधक बना लो लेकिन उसे छोड़ दो, वह तुम्हारा भाई है.’ ‘खबरदार, भाई मत कहना, अगर यह वास्ता दोगी तो अभी जा कर उसे गोलियों से भून दूंगा,’ वह चिल्लाया, पहली बार उस के मुंह से मेरे लिए अनादर सूचक संबोधन निकले थे, ‘वह तुम्हारा बेटा है बस, इतना ही जानता हूं. जानते हैं मामा,’ वह अनुज की तरफ मुड़ कर कह रहा था, ‘नानाजी ने पता नहीं क्या सोच कर 15वीं सालगिरह पर दिनकर की रश्मिरथि मुझे उपहार में दी थी. अकसर मैं जब बहुत उदास होता, उसे खोल कर बैठ जाता. न जाने कितनी रातों की उदासी को मैं ने अपने आंसुओं से धोया है उसे पढ़ते हुए, कुंती-कर्ण संवाद तो मुझे कंठस्थ थे- दुनिया तो उस से सदा सभी कुछ लेगी पर क्या माता भी उसे नहीं कुछ देगी. लेकिन मामा, मैं कर्ण नहीं हूं, मैं कर्ण नहीं बनूंगा.’

लोगों की नजरों में एक क्रूर, हत्यारा अज्जू भैया अभी निर्विरोध मेरे सीने से लग कर फूटफूट कर रो रहा था. रात बीतने को थी, अचानक वह उठा, झोपड़ी के अंदर गया और कोई चीज अनुज को थमाई, फिर थोड़ी देर उसे कुछ समझाता रहा. अनुज पीछे की तरफ पहाड़ी की ओर चला गया. मैं ने निर्णय ले लिया था कि अब अजय को छोड़ कर नहीं जाऊंगी. मुझे किसी की चिंता नहीं थी, किसी का डर नहीं था लेकिन अजय ने मेरी बात सुन कर फिर उसी घृणित भाव से कहा, ‘अब बहुत देर हो गई, यहां किस के साथ किस के भरोसे रहेंगी, शेर, चीता और भालू के भरोसे? क्या आप जानती हैं एसपी को छोड़ने के बाद मेरे साथी मुझे जिंदा छोड़ेंगे? कभी नहीं. उन के हाथों मरने से तो अच्छा है खुद ही…’ बात अचानक बीच में ही छोड़ कर उस ने मेरी आंखों पर पट्टी बांधी और एक जगह ला कर छोड़ दिया फिर बोला, ‘भागिए.’ मैं असमंजस में थी. आगे शरद और अनुज दौड़ रहे थे. मैं भी उन के पीछे हांफते हुए दौड़ने लगी. अनुज ने रुक कर मुझे अपने आगे कर लिया. तभी पीछे से 3-4 राउंड गोली चलने की आवाज आई.

अनुज चिल्लाया, ‘शरद, गोली चलाओ, वे लोग हमारा पीछा कर रहे हैं,’ शरद के पास बंदूक कहां होगी? मैं सोच ही रही थी कि सचमुच शरद पीछे मुड़ कर गोलियां दागने लगा. घबरा कर मैं बेहोश हो गई. सुबह जब मेरी आंखें खुलीं, मैं अस्पताल में थी. तालियों की गड़गड़ाहट सुन कर मैं वर्तमान में लौटी. मेयर साहब शरद को मैडल पहना रहे थे. शरद की इस बड़ी उपलब्धि का सारा खोखलापन नजर आ रहा था. भीतर ही भीतर यह खोखलापन मुझे ही खोखला करता जा रहा था. अजय का अनुज को कुछ दे कर समझाना. शरद के पास बंदूक का होना. अनुज का शरद को गोली चलाने के लिए उकसाना. अचानक मेरे सामने से सारे रहस्य पर से परदा उठ गया. मैं स्तब्ध थी. प्रायश्चित्त का गहरा बवंडर घुमड़ रहा था जो मुझे निगलता जा रहा था. मेरा दम घुटने लगा. सामने टीवी पर अजय की फोटो दिखाई दी. नीचे लिखा था, ‘आतंक का अंत’. फिर मेरी बड़ी सी सुंदर तसवीर दिखाई जाने लगी और शीर्षक था ‘ममता की विजय’. मेरे पुत्रप्रेम और हिम्मत के कसीदे पढ़े जा रहे थे लेकिन मुझे मेरा चेहरा धीरेधीरे विकृत, फिर भयानक होता नजर आया. घबरा कर मैं ने पास रखे पेपरवेट को उठा कर टीवी पर जोर से फेंका और दूसरी ओर लुढ़क गई

Hindi Story Collection : एक नन्ही परी

Hindi Story Collection :  विनीता कठघरे में खड़े राम नरेश को गौर से देख रही थीं पर उन्हें याद नहीं आ रहा था कि इसे कहां देखा है. साफ रंग, बाल खिचड़ी और भोले चेहरे पर उम्र की थकान थी. साथ ही, चेहरे पर उदासी की लकीरें थीं. वह उन के चैंबर में अपराधी की हैसियत से खड़ा था. वह आत्मविश्वासविहीन था. लग रहा था जैसे उसे दुनिया से कोई मतलब ही नहीं. वह जैसे अपना बचाव करना ही नहीं चाहता था. कंधे झुके थे. शरीर कमजोर था. वह एक गरीब और निरीह व्यक्ति था. लगता था जैसे बिना सुने और समझे हर गुनाह कुबूल कर रहा था. ऐसा अपराधी उन्होंने आज तक नहीं देखा था. उस की पथराई आखों में अजीब सा सूनापन था, जैसे वे निर्जीव हों.

लगता था वह जानबूझ कर मौत की ओर कदम बढ़ा रहा था. जज साहिबा को लग रहा था, यह इंसान इतना निरीह है कि यह किसी का कातिल नहीं हो सकता. क्या इसे किसी ने झूठे केस में फंसा दिया है या पैसों के लालच में झूठी गवाही दे रहा है? नीचे के कोर्ट से उसे फांसी की सजा सुनाई गई थी. आखिरी अपील के समय अभियुक्त के शहर का नाम देख कर उन्होंने उसे बुलवा लिया था और चैंबर में बात कर जानना चाहा था कि वह है कौन.

विनीता ने जज बनने के समय मन ही मन निर्णय किया था कि कभी किसी निर्दोष या लाचार को सजा नहीं होने देंगी. झूठी गवाही से उन्हें सख्त नफरत थी. अगर राम नरेश का व्यवहार ऐसा न होता तो शायद जज साहिबा ने उस पर ध्यान भी न दिया होता. दिनभर में न जाने कितने केस निबटाने होते हैं. ढेरों जजों, अपराधियों, गवाहों और वकीलों की भीड़ में उन का समय कटता था. पर ऐसा दयनीय कातिल नहीं देखा था. कातिलों की आंखों में दिखने वाला पश्चाताप या आक्रोश कुछ भी तो नजर नहीं आ रहा था. विनीता अतीत को टटोलने लगीं. आखिर कौन है यह? कुछ याद नहीं आ रहा था.

विनीता शहर की जानीमानी सम्माननीय हस्ती थीं. गोरा रंग, छोटी पर सुडौल नासिका, ऊंचा कद, बड़ीबड़ी आंखें और आत्मविश्वास से भरे व्यक्तित्व वाली विनीता अपने सही और निर्भीक फैसलों के लिए जानी जाती थीं. उम्र के साथ सफेद होते बालों ने उन्हें और प्रभावशाली बना दिया था. उन की चमकदार आंखें एक नजर में ही अपराधी को पहचान जाती थीं. उन के न्यायप्रिय फैसलों की चर्चा होती रहती थी.

पुरुषों के एकछत्र कोर्ट में अपना कैरियर बनाने में उन्हें बहुत तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा था. सब से पहला युद्ध तो उन्हें अपने परिवार से लड़ना पड़ा था. विनीता के जेहन में बरसों पुरानी बातें याद आने लगीं…

घर में सभी प्यार से उसे विनी बुलाते थे. उस की वकालत करने की बात सुन कर घर में तो भूचाल आ गया. मां और बाबूजी से नाराजगी की उम्मीद थी, पर उसे अपने बड़े भाई की नाराजगी अजीब लगी. उन्हें पूरी आशा थी कि महिलाओं के हितों की बड़ीबड़ी बातें करने वाले भैया तो उस का साथ जरूर देंगे. पर उन्होंने ही सब से ज्यादा हंगामा मचाया था.

तब विनी को हैरानी हुई जब उम्र से लड़ती बूढ़ी दादी ने उस का साथ दिया. दादी उसे बड़े प्यार से ‘नन्ही परी’ बुलाती थीं. विनी रात में दादी के पास ही सोती थी. अकसर दादी कहानियां सुनाती थीं. उस रात दादी ने कहानी तो नहीं सुनाई पर गुरुमंत्र जरूर दिया. दादी ने रात के अंधेरे में विनी के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘मेरी नन्ही परी, तू शिवाजी की तरह गरम भोजन बीच थाल से खाने की कोशिश कर रही है. जब भोजन बहुत गरम हो तो किनारे से फूंकफूंक कर खाना चाहिए. तू सभी को पहले अपनी एलएलबी की पढ़ाई के लिए राजी कर, न कि अपनी वकालत के लिए. मैं कामना करती हूं, तेरी इच्छा जरूर पूरी हो.’

विनी ने लाड़ से दादी के गले में बांहें डाल दीं. फिर उस ने दादी से पूछा, ‘दादी, तुम इतनी मौडर्न कैसे हो गईं?’

दादी रोज सोते समय अपने नकली दांतों को पानी के कटोरे में रख देती थीं. तब उन के गाल बिलकुल पिचक जाते थे और चेहरा झुर्रियों से भर जाता था. विनी ने देखा दादी की झुर्रियों भरे चेहरे पर विषाद की रेखाएं उभर आईं और वे बोल पड़ीं, ‘बिटिया, औरतों के साथ बड़ा अन्याय होता है. तू उन के साथ न्याय करेगी, यह मुझे पता है. जज बन कर तेरे हाथों में परियों वाली जादू की छड़ी भी तो आ जाएगी न.’

अपनी अनपढ़ दादी की ज्ञानभरी बातें सुन कर विनी हैरान थी. दादी के दिए गुरुमंत्र पर अमल करते हुए विनी ने वकालत की पढ़ाई पूरी कर ली. तब उसे लगा, अब तो मंजिल करीब है. पर तभी न जाने कहां से एक नई मुसीबत सामने आ गई. बाबूजी के पुराने मित्र शरण काका ने आ कर खबर दी. उन के किसी रिश्तेदार का पुत्र शहर में ऊंचे पद पर तबादला हो कर आया है. क्वार्टर मिलने तक उन के पास ही रह रहा है. होनहार लड़का है. परिवार भी अच्छा है. विनी के विवाह के लिए बड़ा उपयुक्त वर है. उस ने विनी को शरण काका के घर आतेजाते देखा है. बातों से लगता है कि विनी उसे पसंद है. उस के मातापिता भी कुछ दिनों के लिए आने वाले हैं.

शरण काका रोज सुबह एक हाथ में छड़ी और दूसरे हाथ में धोती थाम कर टहलने निकलते थे. अकसर टहलना पूरा कर उस के घर आ जाते थे. सुबह की चाय के समय उन का आना विनी को हमेशा बड़ा अच्छा लगता था. वे दुनियाभर की कहानियां सुनाते. बहुत सी समझदारी की बातें समझाते. पर आज विनी को उन का आना अखर गया. पढ़ाई पूरी हुई नहीं कि शादी की बात छेड़ दी. विनी की आंखें भर आईं. तभी शरण काका ने उसे पुकारा, ‘बिटिया, मेरे साथ मेरे घर तक चल. जरा यह तिलकुट का पैकेट घर तक पहुंचा दे. हाथों में बड़ा दर्द रहता है. तेरी मां का दिया यह पैकेट उठाना भी भारी लग रहा है.’

बरसों पहले भाईदूज के दिन मां को उदास देख कर उन्होंने बाबूजी से पूछा था. भाई न होने का गम मां को ही नहीं, बल्कि नानानानी को भी था. विनी अकसर सोचती थी कि क्या एक बेटा होना इतना जरूरी है? उस भाईदूज से ही शरण काका ने मां को मुंहबोली बहन बना लिया था. मां भी बहन के रिश्ते को निभातीं, हर तीजत्योहार में उन्हें कुछ न कुछ भेजती रहती थीं. आज का तिलकुट मकर संक्रांति का एडवांस उपहार था. अकसर काका कहते, ‘विनी की शादी में मामा का फर्ज तो मुझे ही निभाना है.’

शरण काका और काकी अपनी इकलौती काजल की शादी के बाद जब भी अकेलापन महसूस करते, तब उसे बुला लेते थे. अकसर वे अम्माबाबूजी से कहते, ‘काजल और विनी दोनों मेरी बेटियां हैं.’

शरण काका भी अजीब हैं. लोग बेटी के नाम से घबराते हैं और काका का दिल ऐसा है कि दूसरे की बेटी को भी अपना मानते हैं.

काजल दीदी की शादी के समय विनी अपनी परीक्षा में व्यस्त थी. काकी उस के परीक्षा विभाग को रोज कोसती रहतीं. हलदी की रस्म के एक दिन पहले तक उस की परीक्षा थी. काकी कहती रहती थीं, ‘विनी को फुरसत होती तो मेरा सारा काम संभाल लेती. ये कालेज वाले परीक्षा लेले कर लड़की की जान ले लेंगे,’ शांत और मृदुभाषी विनी उन की लाड़ली थी.’

आखिरी पेपर दे कर विनी जल्दीजल्दी काजल दीदी के पास जा पहुंची. उसे देखते काकी की तो जैसे जान में जान आ गई. काजल के सभी कामों की जिम्मेदारी उसे सौंप कर काकी को बड़ी राहत महसूस हो रही थी. उन्होंने विनी के घर फोन कर ऐलान कर दिया कि विनी अब काजल की विदाई के बाद ही घर वापस जाएगी.

शाम के वक्त काजल के साथ बैठ कर विनी उन का सूटकेस ठीक कर रही थी, तब उसे ध्यान आया कि दीदी ने शृंगार का सामान तो खरीदा ही नहीं है. मेहंदी की भी व्यवस्था नहीं है. वह काकी से बात कर भागीभागी बाजार से सारे सामान की खरीदारी कर लाई. विनी ने रात में देर तक बैठ कर काजल दीदी को मेहंदी लगाई. मेहंदी लगा कर जब हाथ धोने उठी तो उसे अपनी चप्पलें मिली ही नहीं. शायद किसी और ने पहन ली होंगी. शादी के घर में तो यह सब होता ही रहता है. घर मेहमानों से भरा था. बरामदे में उसे किसी की चप्पल नजर आई. वह उसे ही पहन कर बाथरूम की ओर बढ़ गई. रात में वह दीदी के बगल में रजाई में दुबक गई. न जाने कब बातें करतेकरते उसे नींद आ गई.

सुबह, जब वह गहरी नींद में थी, किसी ने उस की चोटी खींच कर झकझोर दिया. कोई तेज आवाज में बोल रहा था, ‘अच्छा, काजल दीदी, तुम ने मेरी चप्पलें गायब की थीं.’

हैरान विनी ने चेहरे पर से रजाई हटा कर अपरिचित चेहरे को देखा. उस की आखों में अभी भी नींद भरी थी. तभी काजल दीदी खिलखिलाती हुई पीछे से आ गईं, ‘अतुल, यह विनी है. श्रीकांत काका की बेटी और विनी, यह अतुल है. मेरे छोटे चाचा का बेटा. हर समय हवा के घोड़े पर सवार रहता है. छोटे चाचा की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए छोटे चाचा और चाची नहीं आ सके तो उन्होंने अतुल को भेज दिया.’

अतुल उसे निहारता रहा, फिर झेंपता हुआ बोला, ‘मुझे लगा, दीदी तुम सो रही हो. दरअसल, मैं रात से ही अपनी चप्पलें खोज रहा था.’

विनी को बड़ा गुस्सा आया. उस ने दीदी से कहा, ‘मेरी भी तो चप्पलें खो गई हैं. उस समय मुझे जो चप्पलें नजर आईं, मैं ने पहन लीं. मैं ने इन की चप्पलें पहनी हैं, किसी का खून तो नहीं किया. सुबहसुबह नींद खराब कर दी. इतने जोरों से झकझोरा है. सारी पीठ दुख रही है,’ गुस्से में वह मुंह तक रजाई खींच कर सो गई.

अतुल हैरानी से देखता रह गया. फिर धीरे से दीदी से कहा, ‘बाप रे, यह तो वकीलों की तरह जिरह करती है.’ तबतक काकी बड़ा पैकेट ले कर विनी के पास पहुंच गईं और रजाई हटा कर उस से पूछने लगीं, ‘बिटिया, देख मेरी साड़ी कैसी है?’

विनी हुलस कर बोल पड़ी, ‘बड़ी सुंदर साड़ी है. पर काकी, इस में फौल तो लगी ही नहीं है. हद करती हो काकी. सारी तैयारी कर ली और तुम्हारी ही साड़ी तैयार नहीं है. मुझे दो, मैं जल्दी से फौल लगा देती हूं.’

विनी पलंग पर बैठ कर फौल लगाने में मशगूल हो गई. काकी भी पलंग पर पैरों को ऊपर कर बैठ गईं और अपने हाथों से अपने पैरों को दबाने लगीं.

विनी ने पूछा, ‘काकी, तुम्हारे पैर दबा दूं क्या?’

वे बोलीं, ‘बिटिया, एकसाथ तू कितने काम करेगी. देख न पूरे घर का काम पड़ा है और अभी से मैं थक गई हूं.’

सांवलीसलोनी काकी के पैर उन की गोलमटोल काया को संभालते हुए थक जाएं, यह स्वाभाविक ही है. छोटे कद की काकी के ललाट पर बड़ी सी गोल लाल बिंदी विनी को बड़ी प्यारी लगती थी.

तभी काजल की चुनरी में गोटा और किरण लगा कर छोटी बूआ आ पहुंचीं, ‘देखो भाभी, बड़ी सुंदर बनी है चुनरी. फैला कर देखो न,’ छोटी बूआ कहने लगीं.

पूरे पलंग पर सामान बिखरा था. काकी ने विनी की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘इस के ऊपर ही डाल कर दिखाओ, छोटी मइयां.’

सिर झुकाए, फौल लगाती विनी के ऊपर लाल चुनरी बूआ ने फैला दी.

चुनरी सचमुच बड़ी सुंदर बनी थी. काकी बोल पड़ीं, ‘देख तो, विनी पर कितना खिल रहा है यह रंग.’

विनी की नजरें अपनेआप ही सामने रखी ड्रैसिंग टेबल के शीशे में दिख रहे अपने चेहरे पर पड़ीं. उस का चेहरा गुलाबी पड़ गया. उसे अपना ही चेहरा बड़ा सलोना लगा. तभी अचानक किसी ने उस की पीठ पर मुक्के जड़ दिए.

‘तुम अभी से दुलहन बन कर बैठ गई हो, दीदी,’ अतुल की आवाज आई. वह सामने आ कर खड़ा हो गया. अपलक कुछ पल उसे देखता रह गया. विनी की आंखों में आंसू आ गए थे. अचानक हुए मुक्केबाजी के हमले से सूई उंगली में चुभ गई थी. उंगली के पोर पर खून की बूंद छलक आई थी. अतुल बुरी तरह हड़बड़ा गया.

‘बड़ी अम्मा, मैं पहचान नहीं पाया था. मुझे क्या मालूम था कि दीदी के बदले किसी और को दुलहन बनने की जल्दी है. पर मुझ से गलती हो गई.’ वह काकी से बोल पड़ा. फिर विनी की ओर देख कर न जाने कितनी बार ‘सौरीसौरी’ बोलता चला गया. तब तक काजल भी आ गई थी. विनी की आंखों में आंसू देख कर सारा माजरा समझ कर, उसे बहलाते हुए बोली, ‘अतुल, तुम्हें इस बार सजा दी जाएगी. बता विनी, इसे क्या सजा दी जाए?’

विनी बोली, ‘इन की नजरें कमजोर हैं क्या? अब इन से कहो सभी के पैर दबाएं.’ यह कह कर विनी साड़ी समेट कर, पैर पटकती हुई काकी के कमरे में जा कर फौल लगाने लगी.

अतुल सचमुच काकी के पैर दबाने लगा, बोला, ‘वाह, क्या बढि़या फैसला है जज साहिबा का. बड़ी अम्मा, देखो, मैं हुक्म का पालन कर रहा हूं.’

‘तू हर समय उसे क्यों परेशान करता रहता है, अतुल?

काजल दीदी की आवाज विनी को सुनाई दी.

‘दीदी, इस बार मेरी गलती नहीं थी,’ अतुल सफाई दे रहा था.

फौल का काम पूरा कर विनी हलदी की रस्म की तैयारी में लगी थी. बड़े से थाल में हलदी मंडप में रख रही थी. तभी काजल दीदी ने उसे आवाज दी. विनी उन के कमरे में पहुंची. दीदी के हाथों में बड़े सुंदर झुमके थे. दीदी ने झुमके दिखाते हुए पूछा, ‘ये कैसे हैं, विनी? मैं तेरे लिए लाई हूं. आज पहन लेना.’

‘मैं ये सब नहीं पहनती, दीदी,’ विनी झल्ला उठी. सभी को मालूम था कि विनी को गहनों से बिलकुल लगाव नहीं है. पर दीदी और काकी तो पीछे ही पड़ गईं. दीदी ने जबरदस्ती उस के हाथों में झुमके पकड़ा दिए. गुस्से में विनी ने झुमके ड्रैसिंग टेबल पर पटक दिए. फिसलता हुआ झुमका फर्श पर गिरा. दरवाजे पर खड़ा अतुल ये सारी बातें सुन रहा था. तेजी से बाहर निकलने की कोशिश में वह सीधे अतुल से जा टकराई. उस के दोनों हाथों में लगी हलदी के छाप अतुल की सफेद टीशर्ट पर उभर आए.

वह हलदी के दाग को हथेलियों से साफ करने की कोशिश करने लगी. पर हलदी के दाग और भी फैलने लगे. अतुल ने उस की दोनों कलाइयां पकड़ लीं और बोल पड़ा, ‘यह हलदी का रंग जाने वाला नहीं है. ऐसे तो यह और फैल जाएगा. आप रहने दीजिए.’ विनी झेंपती हुई हाथ धोने चली गई.

बड़ी धूमधाम से काजल की शादी हो गई. काजल की विदाई होते ही विनी को अम्मा के साथ दिल्ली जाना पड़ा. कुछ दिनों से अम्मा की तबीयत ठीक नहीं चल रही थी. डाक्टरों ने जल्दी से जल्दी दिल्ली ले जा कर हार्ट चैकअप का सुझाव दिया था. काजल की शादी के ठीक बाद दिल्ली जाने का प्लान बना था. काजल की विदाई वाली शाम का टिकट मिल पाया था.

एक शाम अचानक शरण काका ने आ कर खबर दी. विनी को देखने लड़के वाले अभी कुछ देर में आना चाहते हैं. घर में जैसे उत्साह की लहर दौड़ गई. पर विनी बड़ी परेशान थी. न जाने किस के गले बांध दिया जाएगा? उस के भविष्य के सारे अरमान धरे के धरे रह जाएंगे. अम्मा उस से तैयार होने को कह कर रसोई में चली गईं. तभी मालूम हुआ कि लड़का और उस के परिवार वाले आ गए हैं. बाबूजी, काका और काकी उन सब के साथ ड्राइंगरूम में बातें कर रहे थे.

अम्मा ने उसे तैयार न होते देख कर, आईने के सामने बैठा कर उस के बाल सांवरे. अपनी अलमारी से झुमके निकाल कर दिए. विनी झुंझलाई बैठी रही. अम्मा ने जबरदस्ती उस के हाथों में झुमके पकड़ा दिए. गुस्से में विनी ने झुमके पटक दिए.

एक झुमका फिसलता हुआ ड्राइंगरूम के दरवाजे तक चला गया. ड्राइंगरूम उस के कमरे से लगा हुआ था.

परेशान अम्मा उसे वैसे ही अपने साथ ले कर बाहर आ गईं. विनी अम्मा के साथ नजरें नीची किए हुए ड्राइंगरूम में जा पहुंची. वह सोच में डूबी थी कि कैसे इस शादी को टाला जाए. काकी ने उसे एक सोफे पर बैठा दिया. तभी बगल से किसी ने धीरे से कहा, ‘मैं ने कहा था न, हलदी का रंग जाने वाला नहीं है.’ सामने अतुल बैठा था.

अतुल और उस के मातापिता के  जाने के बाद काका ने उसे बुलाया. बड़े बेमन से कुछ सोचती हुई वह काका के साथ चलने लगी. गेट से बाहर निकलते ही काका ने उस के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘विनी, मैं तेरी उदासी समझ रहा हूं. बिटिया, अतुल बहुत समझदार लड़का है. मैं ने अतुल को तेरे सपने के बारे में बता दिया है. तू किसी तरह की चिंता मत कर. मुझ पर भरोसा कर, बेटी.’

काका ने ठीक कहा था. वह आज जहां पहुंची है वह सिर्फ अतुल के सहयोग से ही संभव हो पाया था. अतुल आज भी अकसर मजाक में कहते हैं, ‘मैं तो पहली भेंट में ही जज साहिबा की योग्यता पहचान गया था.’ उस की शादी में शरण काका ने सचमुच मामा होने का दायित्व पूरी ईमानदारी से निभाया था. पर वह उन्हें मामा नहीं, काका ही बुलाती थी.

कोर्ट का कोलाहल विनीता को अतीत से बाहर खींच लाया. पर वे अभी भी सोच रही थीं, इसे कहां देखा है. दोनों पक्षों के वकीलों की बहस समाप्त हो चुकी थी. राम नरेश के गुनाह साबित हो चुके थे. वह एक भयानक कातिल था. उस ने इकरारे जुर्म भी कर लिया था. उस ने बड़ी बेरहमी से हत्या की थी. एक सोचीसमझी साजिश के तहत उस ने अपने दामाद की हत्या कर शव का चेहरा बुरी तरह कुचल दिया था और शरीर के टुकड़ेटुकड़े कर जंगल में फेंक दिए थे. वकील ने बताया कि राम नरेश का आपराधिक इतिहास है. वह एक कू्रर कातिल है. पहले भी वह कत्ल का दोषी पाया गया था पर सुबूतों के अभाव में छूट गया था. इसलिए इस बार उसे कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए. वकील ने पुराने केस की फाइल उन की ओर बढ़ाई. फाइल खोलते ही उन की नजरों के सामने सबकुछ साफ हो गया. सारी बातें चलचित्र की तरह आंखों के सामने घूमने लगीं.

लगभग 22 वर्ष पहले राम नरेश को कोर्ट लाया गया था. उस ने अपनी दूधमुंही बेटी की हत्या कर दी थी. तब विनीता वकील हुआ करती थीं. ‘कन्या भ्रूण हत्या’ और ‘बालिका हत्या’ जैसे मामले उन्हें आक्रोश से भर देते थे. मातापिता और समाज द्वारा बेटेबेटियों में किए जा रहे भेदभाव उन्हें असह्य लगते थे. तब विनीता ने राम नरेश के जुर्म को साबित करने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगा दिया था. उस गांव में अकसर बेटियों को जन्म लेते ही मार डाला जाता था. इसलिए किसी ने राम नरेश के खिलाफ गवाही नहीं दी. लंबे समय तक केस चलने के बाद भी जुर्म साबित नहीं हुआ. इसलिए कोर्ट ने राम नरेश को बरी कर दिया था. आज वही मुजरिम दूसरे खून के आरोप में लाया गया था. विनीता ने मन ही मन सोचा, ‘काश, तभी इसे सजा मिली होती. इतना सीधासरल दिखने वाला व्यक्ति 2-2 कत्ल कर सकता है? इस बार वे उसे कड़ी सजा देंगी.’

जज साहिबा ने राम नरेश से पूछा, ‘‘क्या तुम्हें अपनी सफाई में कुछ कहना है?’’ राम नरेश के चेहरे पर व्यंग्यभरी मुसकान खेलने लगी. कुछ पल चुप रहने के बाद उस ने कहा, ‘‘हां हुजूर, मुझे आप से बहुत कुछ कहना है. मैं आप लोगों जैसा पढ़ालिखा और समझदार तो नहीं हूं, पता नहीं आप लोग मेरी बात समझेंगे या नहीं. आप मुझे यह बताइए कि अगर कोई मेरी परी बिटिया को जला कर मार डाले और कानून से भी अपने को बचा ले. तब क्या उसे मार डालना अपराध है?

‘‘मेरी बेटी को उस के पति ने दहेज के लिए जला दिया था. मरने से पहले मेरी बेटी ने आखिरी बयान दिया था कि कैसे मेरी फूल जैसी सुंदर बेटी को उस के पति ने जला दिया. पर वह शातिर पुलिस और कानून से बच निकला. इसलिए उसे मैं ने अपने हाथों से सजा दी. मेरे जैसा कमजोर पिता और कर ही क्या सकता है? मुझे अपने किए गुनाह पर कोई अफसोस नहीं है.’’

उस का चेहरा मासूम लग रहा था. उस की बूढ़ी आंखों में आंसू चमक रहे थे. लेकिन चेहरे पर संतोष झलक रहा था. वह जज साहिबा की ओर मुखातिब हुआ,  ‘‘हुजूर, आज से 22 वर्ष पहले जब मैं ने अपनी बड़ी बेटी को जन्म लेते ही मार डाला था, तब आप मुझे सजा दिलवाना चाहती थीं. आप ने तब मुझे बहुत भलाबुरा कहा था. आप ने कहा था, ‘बेटियां अनमोल होती हैं. मार कर आप ने जघन्य अपराध किया है.’

‘‘आप की बातों ने मेरी रातों की नींद और दिन का चैन खत्म कर दिया था. इसलिए जब मेरी दूसरी बेटी का जन्म हुआ तब मुझे लगा कि प्रकृति ने मुझे भूल सुधारने का मौका दिया है. मैं ने प्रायश्चित करना चाहा. उस का नाम मैं ने ‘परी’ रखा. बड़े जतन और लाड़ से मैं ने उसे पाला. अपनी हैसियत के अनुसार उसे पढ़ाया और लिखाया. वह मेरी जान थी.

‘‘मैं ने निश्चय किया कि उसे दुनिया की हर खुशी दूंगा. मैं हर दिन मन ही मन आप को आशीष देता कि आप ने मुझे ‘पुत्रीसुख’ से वंचित होने से बचा लिया. मेरी परी बड़ी प्यारी, सुंदर, होनहार और समझदार थी. मैं ने उस की शादी बड़े अरमानों से की. अपनी सारी जमापूंजी लगा दी. मित्रों और रिश्तेदारों से उधार लिया. किसी तरह की कमी नहीं की. पर दुनिया ने उस के साथ वही किया जो मैं ने 22 साल पहले अपनी बड़ी बेटी के साथ किया था. उसे मार डाला. तब सिर्फ मैं दोषी क्यों हूं? मुझे खुशी है कि मेरी बड़ी बेटी को इस कू्रर दुनिया के दुखों और भेदभाव को सहना नहीं पड़ा. छोटी बेटी को समाज ने हर वह दुख दिया जो एक कमजोर पिता की पुत्री को झेलना पड़ता है. ऐसे में सजा किसे मिलनी चाहिए? मुझे या इस समाज को?

‘‘अब आप बताइए कि बेटियों को पालपोस कर बड़ा करने से क्या फायदा है? पलपल तिलतिल कर मरने से अच्छा नहीं है कि वे जन्म लेते ही इस दुनिया को छोड़ दें. कम से कम वे जिंदगी की तमाम तकलीफों को झेलने से तो बच जाएंगी. मेरे जैसे कमजोर पिता की बेटियों का भविष्य ऐसा ही होता है. उन्हें जिंदगी के हर कदम पर दुखदर्द झेलने पड़ते हैं. काश, मैं ने अपनी छोटी बेटी को भी जन्म लेते ही मार दिया होता.

‘‘आप मुझे बताइए, क्या कहीं ऐसी दुनिया है जहां जन्म लेने वाली ये नन्ही परियां बिना भेदभाव के सुखद जीवन जी सकें? आप मुझे दोषी मानती हैं पर मैं इस समाज को दोषी मानता हूं. क्या कोई अपने बच्चे को इसलिए पालता है कि उसे यह नतीजा देखने को मिले या समाज हमें कमजोर होने की सजा दे रहा है? क्या सही क्या गलत, आप मुझे बताइए?’’

विनीता अवाक् थीं. मूक नजरों से राम नरेश के लाचार, कमजोर चेहरे को देख रही थीं. उन के पास जवाब नहीं था. आज एक नया नजरिया उन के सामने था. उन्होंने उस की फांसी की सजा को माफ करने की दया याचिका प्रैसिडैंट को भिजवा दी.

अगले दिन अखबार में विनीता के इस्तीफे की खबर छपी थी. उन्होंने वक्तव्य दिया था, ‘इस असमान सामाजिक व्यवस्था को सुधारने की जरूरत है. यह समाज लड़कियों को समान अधिकार नहीं देता है. जिस से न्याय, अन्याय बन जाता है, क्योंकि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं. गलत सामाजिक व्यवस्था न्याय को गुमराह करती है और लोगों का न्यायपालिका से भरोसा खत्म करती है. मैं इस गलत सामाजिक व्यवस्था के विरोध में न्यायाधीश पद से इस्तीफा देती हूं,’ उन्होंने अपने वक्तव्य में यह भी जोड़ा कि वे अब एक समाजसेवी संस्था के माध्यम से आमजन को कानूनी सलाह देंगी और साथ ही, गलत कानून को बदलवाएंगी भी.

Hindi Love Stories : सफर की हमसफर

Hindi Love Stories :  दिल्ली के प्रेमी युगलों के लिए सब से मुफीद और लोकप्रिय जगह यानी लोधी गार्डन में स्वरूप और प्रिया हमेशा की तरह कुछ प्यार भरे पल गुजारने आए थे. रविवार की सुबह थी. पार्क में हैल्थ कोंशस लोग मॉर्निंग वाक के लिए आए हुए थे. कोई भाग रहा था तो कोई ब्रिस्क वाक कर रहा था. कुछ लोग तरहतरह के व्यायाम करने में व्यस्त थे तो कुछ दूसरों को देखने में. झील के सामने पड़ी लोहे की बेंच पर बैठे प्रिया और स्वरुप एकदूसरे में खोए हुए थे. प्रिया की बड़ीबड़ी शरारत भरी निगाहें स्वरूप पर टिकी थी. वह उसे अपलक निहारे जा रही थी. स्वरूप ने उस के हाथों को थामते हुए कहा, “प्रिया, आज तो तुम्हारे इरादे बड़े खतरनाक लग रहे हैं. ”

वह हंस पड़ी,” बिल्कुल जानेमन. इरादा यह है कि तुम्हे अब हमेशा के लिए मेरा हाथ थामना होगा. अब मैं तुम से दूर नहीं रह सकती. तुम ही मेरे होठों की हंसी हो. भला हम कब तक ऐसे छिपछिप कर मिलते रहेंगे? और फिर प्रिया गंभीर हो गई.

स्वरूप ने बेबस स्वर में कहा,” अब मैं क्या कहूं? तुम तो जानती ही हो मेरी मां को. उन्हें तो वैसे ही कोई लड़की पसंद नहीं आती उस पर हमारी जाति भी अलग है.”

“यदि उन के राजपूती खून वाले इकलौते बेटे को सुनार की गरीब बेटी से इश्क हो गया है तो अब तुम या मैं क्या कर सकते हैं? उन को मुझे अपनी बहू स्वीकार करना ही पड़ेगा. पिछले 3 साल से कह रही हूँ. एक बार बात कर के तो देखो.”

“एक बार कहा था तो उन्होंने सिरे से नकार दिया था. तुम तो जानती ही हो कि मां के सिवा मेरा कोई है भी नहीं. कितनी मुश्किलों से पाला है उन्होंने मुझे. बस एक बार वे तुम्हें पसंद कर लें फिर कोई बाधा नहीं. तुम उन से मिलने गई और उन्होंने नापसंद कर दिया तो फिर तुम तो मुझ से मिलना भी बंद कर दोगी. इसी डर से तुम्हे उन से मिलवाने नहीं ले जाता. बस यही सोचता रहता हूं कि उन्हें कैसे पटाऊं.”

“देखो अब मैं तुम से तो मिलना बंद नहीं कर सकती तो फिर तुम्हारी मां को पटाना ही अंतिम रास्ता है.”

“पर मेरी मां को पटाना ऐसी चुनौती है जैसे रेगिस्तान में पानी खोजना.”

“ओके तो मैं यह चुनौती स्वीकार करती हूं. वैसे भी मुझे चुनौतियों से खेलना बहुत पसंद है. “बड़ी अदा के साथ अपने घुंघराले बालों को पीछे की तरफ झटकते हुए प्रिया ने कहा और उठ खड़ी हुई.

“मगर तुम यह सब करोगी कैसे?” स्वरूप ने उठते हुए पूछा.

“एक बात बताओ. तुम्हारी मां इसी वीक मुंबई जाने वाली हैं न किसी ऑफिसिअल मीटिंग के लिए. तुम ने कहा था उस दिन.

“हां, वह अगले मंगल को निकल रही हैं. आजकल में रिजर्वेशन भी कराना है मुझे.”

“तो ऐसा करो, एक के बजाए दो टिकट करा लो. इस सफर में मैं उन की हमसफर बनूंगी. पर उन्हें बताना नहीं,” आंखे नचाते हुए प्रिया ने कहा तो स्वरूप की प्रश्नवाचक निगाहें उस पर टिक गईं.

प्रिया को भरोसा था अपने पर. वह जानती थी कि सफर के दौरान आप सामने वाले को बेहतर ढंग से समझ पाते हैं. जब हम इतने घंटे साथ बिताएंगे तो हर तरह की बातें होंगी. उन्हें एक दूसरे को इंप्रेस करने का मौका मिलेगा. उन में दोस्ती हो सकेगी. कहने की जरुरत भी नहीं पड़ेगी. यह तय हो जाएगा कि वह स्वरूप की बहू बन सकती है. उस ने मन ही मन फैसला कर लिया था कि यह उस की आखिरी परीक्षा है.

स्वरूप ने मुस्कुराते हुए सर हिला तो दिया था पर उसे भरोसा नहीं था. उसे प्रिया का आइडिया बहुत पसंद आया था पर वह मां के जिद्दी, धार्मिक व्यवहार को जानता था. फिर भी उस ने हाँ कर दिया.

उसी दिन शाम में उस ने मुंबई राजधानी एक्सप्रेस (गाड़ी संख्या 12952 ) के एसी 2 टियर श्रेणी में 2 टिकट (एक लोअर और दूसरा अपर बर्थ )रिज़र्व कर दिया. जानबूझ कर मां को अपर बर्थ दिलाई और प्रिया को लोअर.

जिस दिन प्रिया को मुंबई के लिए निकलना था, उस से 2 दिन पहले से वह अपनी तैयारी में लगी थी. यह उस की जिंदगी का बहुत अहम सफर था. उस की ख़ुशियों की चाबी यानी स्वरुप का मिलना या न मिलना इसी पर टिका था. प्रिया ने वह सारी चीज़ें रख लीं जिन के जरिये उसे स्वरुप की मां पर इम्प्रैशन जमाने का मौका मिल सकता था.

ट्रेन शाम 4.35 पर नई दिल्ली स्टेशन से छूटनी थी. अगले दिन सुबह 8.35 ट्रेन का मुंबई अराइवल था. कुल 1385 किलोमीटर की दूरी और 16 घंटों का सफर था. इन 16 घंटों में उसे स्वरुप की मां को जानना था और अपना पूरा परिचय देना था.

वह समय से पहले ही स्टेशन पहुँच गई और बहुत बेसब्री से स्वरुप और उस की मां के आने का इंतजार करने लगी. कुछ ही देर में उसे स्वरुप आता दिखा. साथ में मां भी थी. दोनों ने दूर से ही एकदूसरे को आल द बेस्ट कहा.

ट्रेन के आते ही प्रिया सामान ले कर अपने बर्थ की तरफ बढ़ गई.  सही समय पर ट्रेन चल पड़ी. आरंभिक बातचीत के साथ ही प्रिया ने अपनी लोअर बर्थ मां को ऑफर कर दी. उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया क्यों कि उन्हें घुटनों में दर्द रहने लगा था. वैसे भी बारबार ऊपर चढ़ना उन्हें पसंद नहीं था. उन की नजरों में प्रिया के प्रति स्नेह के भाव झलक उठे. प्रिया एक नजर में उन्हें काफी शालीन लगी थी. दोनों बैठ कर दुनिया जहान की बातें करने लगे. मौका देख कर प्रिया ने उन्हें अपने बारे में सारी बेसिक जानकारी दे दी कि कैसे वह दिल्ली में रह कर जॉब कर रही है और इस तरह अपने मांबाप का सपना पूरा कर रही है. दोनों ने साथ ही खाना खाया। प्रिया का खाना चखते हुए मां ने पूछा,” किस ने बनाया? तुम ने या कामवाली रखी है?”

“कामवाली तो है आंटी पर खाना मैं खुद ही बनाती हूं. मेरी मां ने मुझे सिखाया है कि जैसा खाओ अन्न वैसा होगा मन. अपने हाथों से बनाए खाने की बात ही अलग होती है. इस में सेहत और स्वाद के साथ प्यार जो मिला होता है”.

उस की बात सुन कर मां मुस्कुरा उठीं. तुम्हारी मां ने तो बहुत अच्छी बातें सिखाई है. जरा बताओ और क्या सिखाया है उन्होंने?”

“कभी किसी का दिल न दुखाओ, जितना हो सके दूसरों की मदद करो. आगे बढ़ने के लिए दूसरे की मदद पर नहीं बल्कि अपनी काबिलियत और परिश्रम पर विश्वास करो. प्यार से सब का दिल जीतो। ”

प्रिया कहे जा रही थी और मां गौर से उसे सुन रही थीं. उन्हें प्रिया की बातें बहुत पसंद आ रही थी. इसी बीच मां बाथरूम के लिए उठी कि अचानक झटका लगने से डगमगा गई और किनारे रखे ब्रीफ़केस के कोने से पैर में चोट लग गई. चोट ज्यादा नहीं थी मगर खून निकल आया. उस ने मां को बैठाया और अपने बैग में रखे फर्स्ट ऐड बॉक्स को खोलने लगी. मां ने आश्चर्य से पूछा ,”तुम हमेशा यह डब्बा ले कर निकलती हो ?”

“हां आंटी, चोट मुझे लगे या दूसरों को मुझे अच्छा नहीं लगता। तुरंत मरहम लगा दूं तो दिल को सुकून मिल जाता है. वैसे भी जिंदगी में हमेशा किसी भी तरह की परेशानी से लड़ने के लिए तैयार रहना चाहिए।”

कहते हुए प्रिया ने तुरंत चोट वाली जगह पर मरहम लगा दिया और इस बहाने उस ने मां के पैर भी छू लिए. मां ने प्यार से उस का गाल थपथपाया और पूछने लगी, “तुम्हारे पापा क्या करते हैं? तुम्हारी मां हाउसवाइफ हैं या जॉब करती हैं?”

प्रिया ने बिना किसी लागलपेट के साफ़ स्वर में जवाब दिया,” मेरे पापा सुनार हैं और वे ज्वेलरी शॉप में काम करते हैं. मेरी मां हाउसवाइफ हैं. हम 2 भाईबहन हैं. छोटा भाई इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहा है और मैं यहां एक एमएनसी कंपनी में काम करती हूं. मेरी सैलरी अभी 80 हजार प्रति महीने है और उम्मीद करती हूं कि कुछ सालों में अच्छा मुकाम हासिल कर लूंगी।”

“बहुत खूब!” मां के मुंह से निकला। उन की प्रशंसा भरी नजरें प्रिया पर टिकी हुई थीं, “बेटा और क्या शौक है तुम्हारे?”

“मेरी मम्मी बहुत अच्छी डांसर है. उन्होंने मुझे भी इस कला में निपुण कराया है. डांस के अलावा मुझे कविताएं लिखने और फोटोग्राफी करने का भी शौक है. तरहतरह के डिशेज तैयार करना और सब को खिला कर वाहवाही लूटना भी बहुत पसंद है.”

ट्रेन अपनी गति से आगे बढ़ रही थी और इधर प्रिया और मां की बातें भी बिना किसी रूकावट चली जा रही थी.

कोटा और रतलाम स्टेशनों के बीच जब कि ट्रेन 140 किलोमीटर प्रति घंटे की तेज रफ़्तार से चल रही थी अचानक एक झटके से रुक गई. दूरदूर तक जंगली सूना इलाका था. आसपास न तो कोई आवागमन के साधन थे और न खानेपीने की चीजें थीं. ट्रेन करीब 8-9 घंटे वहीं खड़ी रहनी थी. दरअसल पटरी में क्रैक की वजह से ट्रेन के आगे वाला डब्बा उलट गया था. यात्री घायल तो नहीं हुए मगर अफरातफरी जरूर मच गई थी. क्रैन आने और पलटे हुए डब्बे को हटाने में काफी समय लगना था. इधर प्रिया खुश हो रही थी कि इसी बहाने उसे मां के साथ बिताने को ज्यादा वक्त मिल जाएगा.

एक्सीडेंट 11 बजे रात में हुआ था और अब सुबह हो चुकी थी. यह इलाका ऐसा था कि दूरदूर तक चायपानी या कचौड़ीपकौड़ी बेचने वाला तक नजर नहीं आ रहा था. ट्रेन के पैंट्री कार में भी अब खाने की चीजें खत्म हो चुकी थी. 12 बज चुके थे. मां सोच रही थी कि चाय का इंतजाम हो जाता तो चैन आता. तब तक प्रिया पैंट्री कार से गर्म पानी ले आई. अपने पास रखी टीबैग,चीनी और मिल्क पाउडर से उस ने फटाफट गर्मगर्म चाय तैयार की और फिर टिफिन बॉक्स निकाल कर उस में से दाल की कचौड़ी और मठरी आदि कागज़ के प्लेट में रख कर नाश्ता सजा दिया। टिफिन बॉक्स निकालते समय मां ने गौर किया था कि प्रिया के बैग में डियो के अलावा भी कोई स्प्रे है.

“यह क्या है प्रिया ” मां ने उत्सुकता से पूछा तो प्रिया बोली,” आंटी यह पेपर स्प्रे है ताकि किसी बदमाश से सामना हो जाए तो उस के गलत इरादों को कभी सफल न होने दूँ. सिर्फ यही नहीं अपने बचाव के लिए मैं हमेशा एक चाकू भी रखती हूं। मैं खुद कराटे में ब्लैक बेल्ट होल्डर हूं. इसलिए खुद की सुरक्षा का पूरा ख्याल रखती हूं.”

“बहुत अच्छे ! मां की खुशी चेहरे पर झलक रही थी. अच्छा प्रिया यह बताओ कि तुम अपनी सैलरी का क्या करती हो? खुद तुम्हारे खर्चे भी काफी होंगे आखिर अकेली रहती हो मेट्रो सिटी में और फिर ऑफिस में प्रेजेंटेबल दिखना भी जरूरी होता है. आधी सैलरी तो उसी में चली जाती होगी।”

“अरे नहीं आंटी। ऐसा कुछ नहीं है. मैं अपनी सैलरी के चार हिस्से करती हूं। दो हिस्से यानी 40 हजार भाई की इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए पापा को देती हूं. एक हिस्सा खुद पर खर्च करती हूं और बाकी के एक हिस्से से फ्लैट का किराया देने के साथ कुछ पैसे सोशल वर्क में लगाती हूं.”

“सोशल वर्क? ” मां ने हैरानी से पुछा.

“हां आंटी, जो भी मेरे पास अपनी समस्या ले कर आता है उस का समाधान ढूंढने का प्रयास करती हूँ. कोई नहीं आया तो खुद ही ग़रीबों के लिए कपड़े, खाना वगैरह खरीद कर उन्हें बाँट देती हूँ. ”

तब तक ट्रेन वापस से चल पड़ी। दोनों की बातें भी चल रही थीं. मां ने प्रिया की तरफ देखते हुए कहा,”मेरा भी एक बेटा है स्वरूप. वह भी दिल्ली में जॉब करता है. ”

स्वरुप का नाम सुनते ही प्रिया की आँखों में स्वाभाविक सी चमक उभर आई. अचानक मां ने प्रिया की तरफ देखते हुए पुछा, “अच्छा यह बताओ बेटे कि आप का कोई ब्वॉयफ़्रेंड है या नहीं ? सचसच बताना.”

प्रिया ने 2 पल मां की आँखों में झाँका और फिर नजरें झुका कर बोली,”जी है.”

ओह ! मां थोड़ी गंभीर हो गईं,”बहुत प्यार करती हो उस से? शादी करने वाले हो तुम दोनों? ”

प्रिया को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या जवाब दे? इस तरह की बातों का हां में जवाब देने का अर्थ है खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना. फिर भी जवाब तो देना ही था. सो वह हंस कर बोली, “आंटी शादी करना तो चाहते हैं मगर क्या पता आगे क्या लिखा है। वैसे आप अपने बेटे के लिए कैसी लड़की ढूंढ रही हैं?”

” ईमानदार, बुद्धिमान और दिल से खूबसूरत.” मां ने जवाब दिया.

दोनों एकदूसरे की तरफ कुछ पल देखती रहीं फिर प्रिया ने पलकें झुका लीं। उसे समझ नहीं आ रहा था कि मां से क्या कहे और कैसे कहे। दोनों ने ही इस मसले पर फिर बात नहीं की. प्रिया के दिमाग में बड़ी उधेड़बुन चलने लगी थी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि मां ने उसे पसंद किया या नहीं. उस ने स्वरूप को वे सारी बातें मैसेज कर के बताईं . मां भी खामोश बैठी रहीं. प्रिया कुछ देर के लिए आंखें बंद कर लेट गई. उसे पता ही नहीं चला कि कब उसे नींद आ गई. मां के आवाज लगाने पर वह हड़बड़ा कर उठी तो देखा मुंबई आ चुका था और अब उसे मां से विदा लेनी थी.

स्टेशन पर उतर कर वह खुद ही बढ़ कर मां के गले लग गई. मन में एक अजीब से घबराहट थी. वह चाहती थी कि मां कुछ कहें. पर ऐसा नहीं हुआ. मां से विदा ले कर वह अपने रास्ते निकल आई. अगले दिन ही फ्लाइट पकड़ कर वापस दिल्ली लौट आई.

फिर वह स्वरुप से मिली और सारी बातें विस्तार से बताईं. ब्वॉयफ़्रेंड वाली बात भी. स्वरूप भी कुछ समझ नहीं सका कि मां को प्रिया कैसी लगी. मां 2 दिन बाद लौटने वाली थीं. दोनों ने 2 दिन बड़ी उलझन में गुजारा. उन की जिंदगी का फैसला जो होना था.

नियत समय पर मां वापस लौटी. स्वरूप बहुत बैचैन था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि मां से कैसे पूछे. वह चाहता था कि मां खुद ही उस से प्रिया की बात छेड़े. पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. एक दिन और बीत गया. अब तो स्वरुप की हालत खराब होने लगी. अंततः उस ने खुद ही मां से पूछ लिया,” मां आप का सफर कैसा रहा? सह यात्री कैसे थे?”

“सब अच्छा था.” मां ने छोटा सा जवाब दिया.

स्वरूप और भी ज्यादा बैचैन हो उठा. उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे पूछे मां से. उस से रहा नहीं गया तो उस ने सीधा पूछ लिया, “और वह जो लडकी थी

जाते समय साथ में. उस ने आप का ख़याल तो रखा? ‘

” क्यों पूछ रहे हो? जानते हो क्या उसे?” मां ने प्रश्नवाचक नजरें उस पर टिका दीं.

स्वरूप घबड़ा गया. जैसे उस की चोरी पकड़ी गई हो, “जी ऐसा कुछ नहीं. मैं तो बस ऐसे ही पूछ रहा था. ”

“ओके ! सब अच्छा रहा. अच्छी थी लड़की.” मां फिर छोटा सा जवाब दे कर बाहर निकलने लगीं. लेकिन फिर ठहर गईं और बोलीं,

“हां एक बात बता दूं कि मेरे साथ जो लड़की थी न उस की कई बातों ने मुझे अचरज में डाल दिया. जानते हो मेरे दाहिने पैर में चोट लगी तो उस ने क्या

किया?

“क्या किया मां ?” अनजान बनते हुए स्वरुप ने पूछा.

“मेरे दाहिने पैर में मलहम लगाने के बहाने उस ने मेरे दोनों पैरों को छू लिया. फिर जब मैं ने उस से यह पूछा कि क्या उस का कोई बॉयफ्रेंड है तो 2 पल के लिए उस के दिमाग में एक जंग सा छिड़ गया. लग रहा था जैसे वह सोच रही हो कि अब मुझे क्या जवाब दे. एक बात और जानते हो, तेरा नाम लेते ही उस की नजरों में अजीब सी चमक आई और पलके झुक गई. मैं समझ नहीं सकी कि ऐसा क्यों है?

मां की बातें सुन कर स्वरूप के चेहरे पर घबराहट की रेखाएं खिंच गईं. वह एकटक मां की तरफ देखे जा रहा था जैसे मां उस के एग्जाम का रिजल्ट सुनाने

वाली हैं.

मां ने फिर कहा,” एक बात और बताउं स्वरूप, जब वह सो रही थी तो उस के मोबाइल स्क्रीन पर मुझे तुम्हारे कई सारे व्हाट्सएप मैसेज आते दिखे क्यों कि उस ने तुम्हारे मैसेज पॉप अप मोड में रखा था. मैसेज कुछ इस तरह के थे, ‘डोंट वरी प्रिया. मां के साथ तुम्हारा यह सफर हम दोनों की जिंदगी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है’ , ‘मां बस एक बार तुम्हें पसंद कर लें फिर हम हमेशा के लिए एक हो जाएंगे.’

फिर तो मेरा शक यकीन में बदल गया कि तुम दोनों मिल कर मुझे बेवकूफ़ बना रहे हो,” कहतेकहते मां थोड़ी गंभीर हो गईं.

स्वरूप की आँखों में बेचैनी साफ झलकने लगी,” नहीं मॉम ऐसा नहीं है.” उस ने मां के कंधे पकड़ कर कहा तो वह झटके से अलग होती हुई बोली,” देखो स्वरूप एक बात अच्छी तरह समझ लो.. .”

“क्या मॉम ?” डरासहमा सा स्वरूप खड़ा रहा.

“यही कि तुम्हारी पसंद ….” कहतेकहते मां ठहर गईं. स्वरूप को लगा जैसे उस की धड़कनें रुक जाएंगी. तभी मां खिलखिला कर हंस पड़ी,” जरा अपनी सूरत

तो देखो. ऐसा लग रहा है जैसे एग्जाम में फेल होने के बाद चेहरा बन गया हो तुम्हारा. मैं तो कह रही थी कि तुम्हारी पसंद बहुत अच्छी है. मुझे बस ऐसी

ही लड़की चाहिए थी बहू के रूप में. सर्वगुण संपन्न. रियली आई लाइक योर चॉइस.”

मां के शब्द सुन कर स्वरूप अपनी खुशी रोक नहीं पाया और मां के गले से लग गया. “आई लव यू ममा.”

मां प्यार से बेटे का कंधा थपथपाने लगीं.

रेड कार्पेट पर Kiara Advani ने फ्लौन्ट किया बेबी बंप, Met Gala में अपनी मौजूदगी से सबका दिल जीत लिया

Met Gala 2025  : कियारा आडवाणी ने 2025 के Met Gala में अपने शानदार डेब्यू से सबको चौंका दिया. कियारा ने इस ग्लोबल फैशन मंच पर भारतीय सुंदरता और शिल्प का बेहतरीन प्रदर्शन किया. एक ऐतिहासिक पल में, वह Met Gala के रेड कार्पेट पर बेबी बंप के साथ चलने वाली पहली भारतीय अभिनेत्री बनीं, जिससे उनकी मौजूदगी और भी खास और भावनात्मक बन गई.

मातृत्व की चमक से भरी हुई आई नजर-

अपने पहले बच्चे का इंतजार कर रहीं कियारा ने रेड कार्पेट पर एक शांत और सुंदर उपस्थिति दर्ज कराई. वह आत्मविश्वास, सौम्यता और मातृत्व की चमक से भरी हुई नज़र आईं. उनकी ड्रेस का नाम Bravehearts था, जो सिर्फ एक फैशन लुक नहीं बल्कि स्त्रीत्व, विरासत और बदलाव का प्रतीक थी. इस ड्रेस में एक खास सोने की ब्रेस्टप्लेट थी, जिसे घुंघरुओं और क्रिस्टल से सजाया गया था. इसमें दो प्रतीकात्मक आकृतियां थीं. मां का दिल और बच्चे का दिल, जो एक चेन जैसे गर्भनाल से जुड़ी थीं और मांबच्चे के रिश्ते की सुंदर कहानी कहती थीं.

कियारा आडवाणी
कियारा आडवाणी

मशहूर फैशन आइकौन को दी श्रद्धांजलि

इस लुक के जरिए उन्होंने मशहूर फैशन आइकौन आंद्रे लिओन टैली को भी श्रद्धांजलि दी, जिनकी याद में उन्होंने एक डबल-पैनल केप पहना. जो उनके प्रसिद्ध स्टाइल का प्रतीक था. भारतीय कला और अंतरराष्ट्रीय सोच को मिलाकर कियारा ने इस मौके को एक निजी जीत और सांस्कृतिक पहचान में बदल दिया.

जीवन के नए पड़ाव को दिखाता लुक

कियारा का कहना हैं, “इस समय Met Gala में डेब्यू करना, जब मैं एक कलाकार भी हूं और एक मां बनने जा रही हूं मेरे लिए बहुत खास है. जब मेरी स्टाइलिस्ट अनाइता ने गौरव गुप्ता से मेरा लुक डिजाइन करने को कहा, उन्होंने ‘Bravehearts’ बनाया- एक ऐसा लुक जो मेरे जीवन के इस नए पड़ाव को दिखाता है और इस साल के थीम ‘Tailored for You’ से भी जुड़ता है. आंद्रे लिओन टैली की प्रेरणा से यह लुक इस बात का संदेश है कि जब हम सच्चाई, आत्मबल और अपनेपन के साथ किसी जगह पहुंचते हैं, तो वह आने वाली पीढ़ियों के लिए रास्ता बन जाता है.”

वैश्विक आइकन बनने की शुरुआत-

कियारा ये डेब्यू सिर्फ फैशन का हिस्सा नहीं था! यह उनके एक वैश्विक आइकन बनने की शुरुआत थी. भारतीय सिनेमा में पहले ही अपनी पहचान बना चुकीं कियारा ने अब इंटरनेशनल फैशन की दुनिया में भी अपनी जगह बना ली है.

मातृत्व, परंपरा और कला का जश्न है-

भारतीय डिजाइन को गर्व के साथ पेश करते हुए, कियारा ने ये साबित कर दिया कि Met Gala की सीढ़ियां सिर्फ एक सेलेब्रिटी की नहीं, बल्कि एक ऐसी महिला की भी कहानी हो सकती हैं जो अपनी पहचान, शक्ति और भविष्य को पूरे गर्व से अपना रही है। कियारा का यह Met Gala डेब्यू मातृत्व, परंपरा और कला का जश्न है उनकी चमकती हुई यात्रा का एक और यादगार अध्याय.

‘केसरी 2’ की अपार सफलता के बाद Ananya Pandey ‘आईपीएल 2025 सेलिब्रिटी एंडोर्समेंट चार्ट’ में टौप पर…

Ananya Pandey : अनन्या पांडे के सितारे आज कल बुलंदी पर है. हाल में केसरी 2 में जबरदस्त भूमिका निभा कर जहां एक ओर अनन्या पांडे ने वाहवाही बटोरी है वहीं अब अपने बढ़ते प्रभाव की एक प्रमुख मान्यता में, फिल्म अभिनेता अनन्या पांडे सेलिब्रिटी एंडोर्समेंट पर नवीनतम टैम स्पोर्ट्स रिपोर्ट के अनुसार आईपीएल 2025 के पहले 37 मैचों के दौरान टेलीविजन पर सबसे अधिक दिखाई देने वाला चेहरा बनकर उभरी हैं. सभी सेलिब्रिटी-एंडोर्स किए गए विज्ञापन वाल्यूम में 9% हिस्सेदारी के साथ, अनन्या इस सीजन में सबसे आगे हैं, जो भारत के सबसे व्यावसायिक रूप से प्रभावशाली खेल आयोजनों में से एक के दौरान विज्ञापनदाताओं के लिए एक जानामाना चेहरा बन गई हैं.

अनन्या की उपलब्धि ब्रांड एसोसिएशन के एक मजबूत पोर्टफोलियो की बदौलत मिली है. उन्होंने हाल ही में लग्जरी फैशन हाउस चैनल के लिए पहली भारतीय ब्रांड एंबेसडर के रूप में इतिहास रच दिया, जिससे वैश्विक स्टाइल मैप पर उनकी स्थिति मजबूत हुई. घर वापस आकर, वह लैक्मे, स्वारोवस्की, अमेरिकन टूरिस्टर, ट्रेसेमे और कई अन्य सहित कई ब्रांडों का चेहरा बनी हुई हैं.

प्रत्येक साझेदारी उनकी क्रौस-कैटेगरी अपील और जेन जेड और मिलेनियल दर्शकों के साथ उच्च सापेक्षता का प्रमाण है. इस आईपीएल सीजन में विज्ञापन दाताओं ने कम, उच्च-प्रभाव वाले सेलिब्रिटी चेहरों पर अपना ध्यान केंद्रित किया है, जबकि सेलिब्रिटी एंडोर्स किए गए विज्ञापनों की कुल हिस्सेदारी में 2% की वृद्धि हुई है.इस माहौल में, अनन्या की दृश्यता और प्रतिध्वनि ने उन्हें सेलिब्रिटी एंडोर्समेंट परिदृश्य में सबसे आगे रखा है.

अनन्या पांडे अगली बार लक्ष्य के साथ चांद मेरा दिल और कार्तिक आर्यन के साथ तू मेरी मैं तेरा मैं तेरा तू मेरी में नज़र आएंगी. ऐसे में कहना गलत ना होगा कि अनन्या पांडेय की इतने दिनों की मेहनत रंग ला रही है.

जी टीवी का नया फिक्शन शो ‘सरू’, ”एक गांव की लड़की के बड़े शहर के सपनों और संघर्ष की कहानी”

ज़ी टीवी का नया फिक्शन शो ‘सरू’ एक ऐसी प्रेरणादायक कहानी लेकर आ रहा है, जिसमें एक युवा लड़की अपने सपनों को सच करने के लिए हिम्मत दिखाती है. इस दिल छू लेने वाली कहानी में मोहक मटकर निभा रही हैं सरू का किरदार, उनके साथ हैं शगुन पांडे और अनुष्का मर्चंडे, जो इस जज़्बे और जिद की कहानी में नजर आएंगे.

क्या होता है जब एक गांव की लड़की समाज की बनाई हदों से आगे जाकर बड़े सपने देखने की हिम्मत करती है? जब उसकी जड़ें उसे रोकने की कोशिश करती हैं, लेकिन उसका जुनून उसे उड़ने पर मजबूर कर देता है. ज़ी टीवी, जो हमेशा दिल को छूने वाली कहानियां दिखाता आया है, अब एक नया फिक्शन शो ‘सरू’ लेकर आ रहा है, जो आपको अंदर तक प्रेरित कर देगा.यह कहानी सरू नाम की एक जिद्दी लड़की की है, जो राजस्थान के खारेस गांव से है. इस शो में दर्शक सरू के साथ उसकी उस जद्दोजहद का हिस्सा बनेंगे, जिसमें वो आगे की पढ़ाई करने का सपना लिए उस समाज से टकराती है, जहां ऐसे ख्वाबों को अक्सर दबा दिया जाता है.उसके गांव में मौके कम हैं, और उसकी मां उसे बाहर भेजने को लेकर हिचकिचा रही है. ऐसे में सरू का मुंबई जाकर कॉलेज में एडमिशन लेना उसकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा मोड़ बन जाता है — जहां वो जज़्बातों के उतार-चढ़ाव, नई चुनौतियों और अपने आत्मविकास के दौर से गुजरती है. शशि सुमीत प्रोडक्शंस प्राइवेट लिमिटेड द्वारा निर्मित नया शो ‘सरू’ 12 मई 2025 से रोज शाम 7:30 बजे ज़ी टीवी पर प्रसारित होगा और दर्शकों को ग्रामीण राजस्थान से मुंबई की रफ्तार भरी ज़िंदगी तक का सफर दिखाएगा.

मोहक मटकर इस शो में लीड रोल में डेब्यू कर रही हैं. वह सरू का किरदार निभा रही हैं, जो समझदार, आत्मविश्वासी और अपने सिद्धांतों पर चलने वाली एक आज़ाद सोच की लड़की है.वो सही बात पर हमेशा डटी रहती है, बेझिझक आगे बढ़ती है और हर मुश्किल से लड़ने का हौसला रखती है. लेकिन उसके दिल में एक नरमी भी है और कभी-कभी वो भी टूट जाती है. सरू कबड्डी की चैंपियन है और उसका सपना है एक दिन जिला कमिश्नर बनकर अपने और अपने परिवार का भविष्य संवारना.

सरू की राह में अड़चनें लाने वाली है अनिका, जिसका रोल अनुष्का मर्चंडे निभा रही हैं.अनिका को हमेशा सबका ध्यान चाहिए और अगर चीजें उसकी मनमानी के हिसाब से न हों, तो वो रूखा बर्ताव करने लगती है.उसे सरू से सख्त चिढ़ है और वो उसे हर हाल में नीचा दिखाना चाहती है.

सरू में मुख्य भूमिका निभाने वाले हीरो शगुन पांडे इस शो में वेद बिड़ला का रोल निभा रहे हैं. वेद एक ऐसा नौजवान है जो सीधा-सादा, विनम्र और अपने उसूलों पर चलता है. वो कॉलेज में लेक्चरर है और अपने ज्ञान और सादगी से सभी का सम्मान पाता है. वो अपने घर का जिम्मेदार बेटा है और अपनी भाभी का सबसे बड़ा सहारा भी.दोनों के बीच गहरी दोस्ती और भरोसे का रिश्ता है. वेद हमेशा सही के लिए खड़ा रहता है, चाहे हालात कितने भी मुश्किल क्यों न हों. जैसे-जैसे सरू अपने सपनों की ओर कदम बढ़ाती है, दर्शकों को मुंबई की उसकी यह नई कहानी वेद और अनिका के साथ देखने को मिलेगी, जिसमें होगा ड्रामा, जज़्बा और ढेर सारे जज़्बात.

ज़ी टीवी के चीफ चैनल ऑफिसर, मंगेश कुलकर्णी ने कहा, “ज़ी टीवी में हमारा हमेशा यही प्रयास रहता है कि हम ऐसी कहानियां पेश करें जो सिर्फ दर्शकों का ध्यान न खींचें, बल्कि उनके सपनों और जज़्बातों से भी गहराई से जुड़ें.‘सरू’ एक नई और प्रेरणादायक कहानी लेकर आया है. एक गांव की लड़की जो समाज की रुकावटों के बावजूद अपने सपनों के पीछे डटकर खड़ी रहती है.ये शो उस एहसास को छूता है, जब कोई अपनी जानी-पहचानी दुनिया से बाहर निकलकर कुछ बड़ा करने का फैसला करता है.इसमें रिश्तों की उलझनें भी हैं और इमोशनल उतार-चढ़ाव भी. शशि और सुमीत मित्तल जैसे दूरदर्शी क्रिएटर्स के साथ मिलकर हम एक ऐसी कहानी लाना चाहते हैं, जो हमारे कंटेंट की विविधता को दिखाए और हर पीढ़ी के दर्शकों से जुड़ सके.

यह एक ऐसी लड़की का सफर दिखाता है जो राजस्थान के एक छोटे-से गांव से निकलकर समाज की सीमाओं को पार करने का सपना देखती है.

सारू का किरदार निभाने वाली मोहक मटकर के अनुसार, ‘सरू’ मेरे दिल में एक खास जगह रखती है क्योंकि यह मेरी पहली लीड भूमिका है. जब मैंने शो की स्क्रिप्ट पढ़ी, तो मुझे पता था कि यह वो कहानी है, जिसका हिस्सा मैं बनना चाहती थी.’सरू’ सिर्फ एक शो या किरदार नहीं है वह सहनशीलता और अटूट हौसले का प्रतीक है. मैं ज़ी टीवी की तहे दिल से शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने मुझे इतनी दमदार भूमिका दी और मैं गर्व महसूस करती हूं कि मैं उसकी कहानी को जीवन्त कर रही हूं. अब मुझे उम्मीद है कि मैं ‘सरू’ और उसके मुश्किल सफर के जरिए दूसरों को भी अपनी आवाज़ खोजने के लिए प्रेरित कर सकूं.

शगुन पांडे ने कहा, “’सरू’ एक ऐसा शो है जो सपनों को पूरा करने की कहानी बताता है, भले ही इसके रास्ते में कितनी ही रुकावट क्यों ना हो. मुझे उम्मीद है कि दर्शक इसे उतना ही पसंद करेंगे जितना हम सभी करते हैं। यह शो वाकई मुझे एक इंसान के रूप में भी परिभाषित करता है, और मुझे इसका हिस्सा बनकर खुशी है। मेरा किरदार ‘वेद’ दर्शकों के लिए एक ताज़गी भरा सरप्राइज होगा, क्योंकि यह अब तक निभाए गए मेरे किसी भी किरदार से अलग है और यह मुझे अपनी एक्टिंग स्किल्स को नए तरीके से दिखाने का मौका देता है.मैं इसके दृढ़ निश्चय और सही काम करने की प्रतिबद्धता से बहुत प्रभावित हुआ था, और मैं उसकी कहानी को दर्शकों के साथ साझा करने के लिए उत्सुक हूँ.

‘सरू’ एक नई राह पर निकलने वाली है, जहां उसे कई चुनौतियों, अजीब परिस्थितियों और बड़े शहर में अपनी पहचान बनाने की कठिनाई का सामना करना पड़ेगा.क्या वो इन सभी अड़चनों को पार कर अपने सपनों को पूरा कर पाएगी?जानने के लिए देखना होगा ‘सरू’. जिसका 12 मई 2025 को ज़ी टीवी पर प्रीमियर होगा और रोज शाम 7:30 बजे प्रसारित किया जाएगा.

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सवाल

मैं 83 वर्षीय वृद्ध हूं. पत्नी की उम्र 75 वर्ष है. बच्चे भी पोते पोतियों वाले हो गए हैं. मैंने करीब 35-40 साल पहले अपना नसबंदी औपरेशन कराया था. न तो उस से और न ही इतनी उम्र हो जाने पर मेरी, बल्कि कहना चाहिए हम दोनों की कामुकता में कोई अंतर आया है. हम अब भी महीने में 2-3 बार सैक्स करते हैं. प्राय: इस उम्र तक आते आते लोगों की सैक्स के प्रति विरक्ति हो जाती है. हमारी क्यों नहीं हो रही?

जवाब
कामेच्छा की कोई तय सीमा नहीं होती, न ही कोई मानदंड होता है. यह व्यक्ति विशेष की सामर्थ्य और इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है. जहां तक नसबंदी औपरेशन की बात है, उस का भी इस पर दुष्प्रभाव नहीं होता. आप इस उम्र में भी अपनी सैक्स लाइफ का आनंद ले रहे हैं, तो यह अच्छी बात है.

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पचपन में भी न करें सेक्स से परहेज

कुछ समय पहले की बात है. एक विख्यात सेक्स विशेषज्ञ को एक महिला का पत्र मिला. लिखा था, मेरे पति 54 साल के हैं. उन्होंने फैसला किया है कि वह अब भविष्य में मुझ से कोई जिस्मानी संबंध न रखेंगे. उन का कहना है कि उन्होंने कहीं पढ़ा है कि 50 साल बाद वीर्य का निकलना मर्द पर अधिक शारीरिक दबाव डालता है और वह अगर नियमित संभोग में लिप्त रहेगा तो उस की आयु कम रह जाएगी यानी वह वक्त से पहले मर जाएगा. इसलिए उन्होंने सेक्स को पूरी तरह से त्याग दिया है. क्या इस बात में सचाई  है? अगर नहीं, तो आप कृपया उन्हें सही सलाह दें.

मैं आशा करती हूं कि इस में कोई सत्य न हो, क्योंकि यद्यपि मैं 50 की हूं मेरी इच्छाएं अभी बहुत जवान हैं. मैं इस विचार से ही बहुत उदास हो जाती हूं कि अब ताउम्र मुझे सेक्स सुख की प्राप्ति नहीं होगी. मैं ने अपने पति को समझाने की बहुत कोशिश की. मुझे यकीन है कि वह गलत हैं. लेकिन मेरे पास कोई मेडिकल सुबूत नहीं है, इसलिए वह मेरी बात पर ध्यान नहीं देते. मुझे विश्वास है कि जहां मैं नाकाम रही वहीं आप कामयाब हो जाएंगे.

यह केवल एक महिला का दुखड़ा नहीं है. अगर सर्वे किया जाए तो 50 से ऊपर की ज्यादातर महिलाएं इसी कहानी को दोहराएंगी और महिलाएं ही क्यों पुरुषों का भी यही हाल है. सेक्स से इस विमुखता के कारण स्पष्ट और जगजाहिर हैं, लेकिन एक बात जिसे मुश्किल से स्वीकार किया जाता है और जो आधुनिक शोध से साबित है, वह यह है कि सेक्स न करने से व्यक्ति जल्दी बूढ़ा हो जाता है और उसे बीमारियां भी घेर लेती हैं.

एक 55 साल की महिला से सेक्स के बाद जब उस के प्रेमी ने कहा कि वह जवान लग रही है, तो उस ने आईना देखा. उस ने अपने शरीर में अजीब किस्म की तरंगों को महसूस किया और उसे लगा कि वह अपने जीवन में 20 वर्ष पहले लौट आई है.

50 के बाद सेक्स में दिलचस्पी कम होने की कई वजहें हैं. हालांकि अब वैदिक काल जैसी कट्टरता नहीं है, लेकिन अब भी सोच यही है कि 50 पर गृहस्थ आश्रम खत्म हो जाता है और वानप्रस्थ आश्रम शुरू हो जाता है. इसलिए शायद ही कोई घर बचा हो जिस में यह वाक्य न दोहराया जाता हो : नातीपोते वाले हो गए, अब तुम्हारे खेलने के दिन कहां बाकी हैं. शर्म करो, अब बचपना छोड़ो. बहूबेटे क्या कहेंगे? क्या सोचेंगे कि बूढ़ों को अब भी चैन नहीं है.

दरअसल, भक्तिकाल में जब ब्रह्मचर्य और वीर्य को सुरक्षित रखने पर जो बल दिया गया उस से यह सोच विकसित हो गई कि सेक्स का उद्देश्य आनंदित स्वस्थ और तनावमुक्त रहना नहीं बल्कि केवल उत्पत्ति है. एक बार जब संतान की उत्पत्ति हो जाए तो सेक्स पर विराम लगा देना चाहिए.

इस तथाकथित धार्मिक धारणा पर अब तक साइंस का गिलाफ चढ़ाने का प्रयास किया जाता रहा है. मसलन, हाल ही में ‘योग’ से  संबंधित एक पत्रिका में लिखा था, ‘‘वीर्य में सेक्स हारमोन होते हैं. उन्हें सुरक्षित रखें और सेक्स में लिप्त हो कर उसे बरबाद न करें. यह कीमती हारमोन यदि बचा लिए जाते हैं तो वापस रक्त में चले जाते हैं और शरीर में ताजगी और स्फूर्ति आ जाती है. आधी छटांक वीर्य 40 छटांक रक्त के बराबर होता है, क्योंकि वह इतने ही खून से बनता है. जिस्म से जितनी बार वीर्य निकलता है उतनी ही बार कीमती रासायनिक तत्त्व बरबाद हो जाते हैं, वह तत्त्व जो नर्व व बे्रन टिश्यू के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण  हैं. यही वजह है कि अति उत्तेजक पुरुषों की पत्नियां और वेश्याओं की आयु बहुत कम होती है.

इस पूरे ‘प्रवचन’ के लिए एक ही शब्द है, बकवास. सब से पहली बात तो यह है कि वीर्य में शुक्राणु बड़ी मात्रा में साधारण शकर, सेट्रिक एसिड, एसकोरबिक एसिड, विटामिन सी, बाइकारबोनेट, फासफेट और अन्य पदार्थ होते हैं जो ज्यादातर एंजाइम होते हैं, इन सब का उत्पादन अंडकोशिकाएं, सेमिनल बेसिकल्स और एपिडर्मिस व वसा की डक्ट के जरिए होता है. वीर्य में सेक्स हारमोन होते ही नहीं. यह सारे तत्त्व या पदार्थ जिस्म में खाने की सप्लाई से बनते हैं जोकि एक न खत्म होने वाली प्रक्रिया है. निष्कासित होने से पहले वीर्य सेमिनल वेसिकल्स में स्टोर होता है, अगर इसे निष्कासित नहीं किया गया तो भीगे ख्वाबों से यह अपनेआप हो जाएगा. जाहिर है इस के शरीर में स्टोर होने का अर्थ है कि जिस्म में यह सरकुलेशन का हिस्सा रहा ही नहीं है और न ही ऐसी कोई प्रक्रिया है जिस से वीर्य फिर खून में शामिल हो कर ऊर्जा का हिस्सा बन जाए.

विख्यात वैज्ञानिक डॉक्टर इसाडोर रूबिन का कहना है, ‘‘अगर यह धारणा सही होती कि वीर्य के निकलने से या महिला के चरम आनंद प्राप्त करने से जिस्म में कमजोरी आ जाती है और उम्र में कटौती हो जाती है, तो कुंआरों की आयु विवाहितों से ज्यादा होती, क्योंकि अविवाहितों को सेक्स के अवसर कम मिलते हैं. वास्तविकता यह है कि विवाहित व्यक्ति लंबे समय तक जीते हैं.’’ हाल में किए गए शोधों से पता चला है कि अगर कोई व्यक्ति काफी दिन तक सेक्स से दूर रहता है तो कुछ प्रोस्टेटिक फ्लूड सख्त हो कर ग्रंथि में रह जाते हैं. इस से प्रोस्टेट ग्रंथि का आकार बढ़ जाता है और व्यक्ति को पेशाब करने में कठिनाई होने लगती है. इस समस्या पर अगर ध्यान न दिया जाए तो फिर प्रोस्टेट की सर्जरी आवश्यक हो जाती है.

50 के बाद सेक्स से विमुखता का एक अन्य कारण यह है कि जवानी में लोग कसरत पर और अपने जिस्म को सुडौल रखने के लिए खानपान पर अकसर खास ध्यान नहीं  देते. इस से उम्र के साथ उन के शरीर पर फैट जमा होने लगता है जिस से वह मोटे हो जाते हैं. यह जानने के लिए ज्ञानी होना आवश्यक नहीं है कि मोटापा अपनेआप में कई गंभीर बीमारियों की जड़ होता है. व्यक्ति जब बीमार रहेगा तो उस का ध्यान सेक्स की ओर कहां जाएगा, साथ ही पुरुष का जब पेट निकल जाता है और उस का सीना भी औरतों की तरह लटक जाता है तो वह उस मुस्तैदी से सेक्स में लिप्त नहीं हो पाता जैसे वह जवानी में होता था. महिलाओं के बेडौल और मोटे होने से उन में मर्द के लिए पहले जैसा आकर्षण नहीं रह पाता. इसलिए जरूरी है कि उम्र के हर हिस्से में कसरत की जाए और अपना वजन नियंत्रित रखा जाए.

वैसे सेक्स भी अपनेआप में बेहतरीन कसरत है. अन्य फायदों के अलावा इस से मांसपेशियों सुगठित रहती हैं, ब्लड प्रेशर सामान्य और अतिरिक्त फैट कम हो जाता है. गौरतलब है कि पुरुष के गुप्तांग में जोश स्पंजी टिश्यू के छिद्रों में खून के बहाव से आता है. अगर आप के जिस्म पर 1 किलो अतिरिक्त फैट है तो रक्त को 22 मील और ज्यादा सरकुलेट होना पड़ता है. अगर व्यक्ति बहुत मोटा है तो फैट उस के सामान्य सरकुलेशन को और कमजोर कर देता है और खास मौके पर इतना रक्त उपलब्ध नहीं होता कि पूरी तरह से जोश में आ जाए.

दरअसल, खानेपीने का तरीका सामान्य सेहत को ही नहीं सेक्स जीवन को भी प्रभावित करता है. इस में कोई दोराय नहीं कि पतिपत्नी क्योंकि एक ही छत के नीचे रहते हैं इसलिए खाना भी एक सा ही खाते हैं. अगर किसी दंपती के खाने में विटामिन ‘बी’ की कमी है तो इस का उन के जीवन पर जटिल प्रभाव पडे़गा. इस की वजह से पत्नी में अतिरिक्त एस्ट्रोजन (महिला सेक्स हारमोन) आ जाएंगे और उस की सेक्स इच्छाएं बढ़ जाएंगी जबकि पति में इस का उलटा असर होता है. एस्टो्रजन के बढ़ने से उस के एंड्रोजन (पुरुष सेक्स हारमोन) में कमी आ जाती है.

दूसरे शब्दों में, स्थिति यह हो जाएगी कि पत्नी तो ज्यादा प्यार करना चाहेगी, लेकिन पति की इच्छाएं कम हो जाएंगी. इसलिए आवश्यक है कि संतुलित हाई प्रोटीन खुराक ली जाए. साथ ही शराब और सिगरेट की अधिकता से बचा जाए, क्योंकि इन दोनों के सेवन से व्यक्ति वक्त से पहले चरम पर पहुंच जाता है और फिर अतृप्त सा महसूस करता है.

गौरतलब है कि इंटरनेशनल जर्नल आफ सेक्सोलोजी-7 के अनुसार विटामिन और हारमोंस का गहरा रिश्ता है. दर्द भरी माहवारी में राहत के लिए जब टेस्टेस्टेरोन हारमोन दिया जाता है तो उस की अधिक सफलता के लिए साथ ही विटामिन ‘डी’ भी दिया जाता है. इसी तरह से गर्भपात के संभावित खतरे से बचने के लिए प्रोजेस्टरोन हारमोन के साथ विटामिन ‘सी’  दिया जाता है.

50 के बाद सेक्स से विमुखता की एक वजह यह भी है कि दोनों पतिपत्नी बननासंवरना काफी हद तक कम कर देते हैं. अच्छे और आकर्षक कपडे़ पहनने से और बाल अच्छी तरह बनाने से यकीनन महिला का मनोबल और आत्मविश्वास बढ़ता है. इस के बावजूद आप को रजोनिवृत्ति से गुजर चुकी ऐसी अनेक महिलाएं मिल जाएंगी जो भद्दे कपडे़ पहनती हैं, ऐसे बाल संवारती हैं जो फैशन में नहीं है. गाल उन के लटक गए होते हैं, ऊपरी होंठ पर बाल होते हैं, स्तन लटके हुए और पेट व कूल्हे फैले हुए होते हैं. ऐसी पत्नियों में भला किस पति की दिलचस्पी बरकरार रहेगी जबकि जरा सी कोशिश से यह सबकुछ बदला जा सकता है. महिलाएं अच्छी डे्रस शाप पर जाएं, सप्ताह में एक बार ब्यूटी पार्लर जाएं, लटकी हुई खाल और मांसपेशियों को सही आकार देने के लिए हैल्थ व ब्यूटी जिम्नेजियम में कोर्स करें और दृढ़ता से तय कर लें कि मांसपेशियों को सख्त रखने के लिए वे रोजाना कुछ मिनट व्यायाम के लिए भी निकालेंगी. यह सौंदर्य उपचार और हलकी कसरत न सिर्फ उन के मनोबल को बेहतर रखेगी बल्कि सख्त जिस्म उन के सेक्सुअल सिस्टम को भी दुरुस्त रखेगा और उन के पति उन की ओर आकर्षित रहेंगे. ज्ञात रहे कि आत्मविश्वास से भरी सुंदर स्त्री जो अपने जिस्म के रखरखाव में भी माहिर हो, वह अपनी ओर एक 16 साल की लड़की से ज्यादा ध्यान आकर्षित करा लेती है.

यहां यह बताना भी आवश्यक होगा कि इसी किस्म का आकर्षण लाने के लिए पुरुषों को भी चाहिए कि वे कसरत करें, ब्यूटी पार्लर जाएं और अच्छे कपडे़ पहनें, साथ ही उन की पत्नी जब रजोनिवृत्ति से गुजर रही हो तो उस का विशेष ध्यान रखें. पत्नी जितना खुल कर अपने पति से बातें कर सकती है उतना वह अपने डाक्टर से भी नहीं कह पाती. इसलिए अगर रजोनिवृत्ति के दौरान पति ने उसे सही से संभाल लिया तो आगे का सेक्स जीवन बेहतर रहेगा.

अब तक जो बहस की गई है उस से स्पष्ट है कि अच्छे, स्वस्थ और लंबे जीवन के लिए 50 के बाद भी सेक्स उतना ही आवश्यक है जितना कि उस से पहले. लेकिन उसे बेहतर बनाए रखने के लिए अपने नजरिए में बदलाव लाना भी जरूरी है और अगर कोई समस्या है तो मनोवैज्ञानिक और डाक्टर से खुल कर बात करने में कोई शर्म नहीं करनी चाहिए.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Mother’s Day : बौलीवुड सैलिब्रिटीज ने मां को लेकर कीं दिल की बातें, जानें ऐक्टर्स से ‘मां का महत्व’

Mother’s Day 2025 : हर बच्चे के दिल से एक ही आवाज निकलती है कि मेरी मां के बराबर कोई नहीं क्योंकि मां ही एक ऐसी धरोहर है, जो अपने बच्चों को हमेशा खुश देखना चाहती है. फिर चाहे उस का वह बच्चा किसी भी उम्र का हो, अमीर हो गरीब हो या कोई सैलिब्रिटीज ही क्यों न हो.

एक मां की नजर में उस का बच्चा सिर्फ उस का जिगर का टुकड़ा ही होता है, जिसे वह हर हाल में खुश देखना चाहती है और हमेशा उस की सलामती की कामना करती है.

जहां एक ओर घरपरिवार का हर सदस्य उस से पूछता है कि उस ने कितना कमाया? उस वक्त सिर्फ मां ही होती है जो पूछती है कि बेटा, खाना खाया क्या?

तभी तो मां की गोद ऐसी जगह है जहां सिर रख कर सोने में दुनियाभर का सुकून मिलता है क्योंकि मां का प्यार निस्वार्थ होता है। वह अपने बेटे को हमेशा खुश और कामयाब देखना चाहती है. मां कभी बच्चे को अपने से दूर नहीं करना चाहती लेकिन हालात और पैसा कमाने के चक्कर में न चाहते हुए भी बच्चों को अपनी मां से दूर जाना पड़ता है जैसे कि पक्षी पर निकलते ही अपने घोंसले से उड़ जाते हैं, वैसे ही एक उम्र के बाद हर किसी को पैसा कमाने के लिए घर से दूर जाना ही पड़ता है.

बौलीवुड की कई नामचीन हस्तियां जिन की नजरों में उन की मां ही उन की दुनिया है, उनका मानना है कि मेरी मां के बराबर कोई नहीं और मेरी मां जितनी प्यारा और भोला कोई नहीं. वह सितारे जिन के लाखोंकरोड़ों फैंस हैं लेकिन वह अपनी मां के प्यार में पागल है, अपनी मां का सब से बड़ा प्रशंसक है.

बौलीवुड के किंग खान शाहरुख खान जिन्होंने अपनी मां की मौत के बाद दिल्ली शहर ही छोड़ दिया। हीरो नंबर-1 कहलाने वाले गोविंदा अपनी मां के पैर धो कर पीते थे. बौलीवुड के टाइगर कहलाने वाले सलमान खान जिन की शादी ही इसलिए नहीं हुई क्योंकि वे अपनी मां जैसी स्वभाव और खूबियों वाली पत्नी चाहते थे। फिल्म मेकर संजय लीला भंसाली और करण जौहर जिन्होंने अपना पूरा जीवन अपनी मां के साथ बिताना बेहतर समझा.

फिल्म मेकर संजय लीला भंसाली अपनी मां से इतना प्यार करते हैं कि उन्होंने अपने पिता के बजाय अपनी मां का नाम अपने नाम के साथ लगाना गर्व की बात समझी. ऐसे ही कई सैलिब्रिटीज हैं जिन की नजरों में उन की मां सर्वश्रेष्ठ है.

मदर्स डे के अवसर पर खासतौर पर इन सैलिब्रिटीज ने अपनी मां को ले कर दिल की बातें कीं. तो फिर आइए, जानते हैं मां और बेटे के प्यारभरे रिश्ते की कहानी सैलिब्रिटीज बेटों की जबानी :

सलमान खान

मेरी मां दिल से जितनी भोली और मासूम हैं ऊपर से उतनी ही सख्त हैं. आज भी मेरी गलती पर वे मुझे थप्पड़ मार देती हैं। मुझे ही नहीं सोहेल और अरबाज को भी गलती करने पर मेरी मां पीट देती हैं. लेकिन हमें उस से कोई फर्क नहीं पड़ता बल्कि मजा आता है क्योंकि उन की मार में भी प्यार छिपा है. मुझे अपनी मां में जो खूबियां दिखीं वह किसी में नहीं दिखी। अगर किसी लड़की में मेरी मां की तरह 50% खूबियां भी होती तो मैं शादी कर लेता।

सलमान का मानना है कि मेरी मां की सब से बड़ी खूबी यह है कि हमारे घर से कोई भी आज तक भूखा नहीं गया. चाहे कितने ही लोग आ जाएं घर में, खाना मौजूद होता है. इस के अलावा जितनी अच्छी बिरयानी मेरी मां बनाती हैं वैसी बिरयानी मैं ने किसी और के हाथ की नहीं खाई. मेरी मां बहुत अच्छी पेंटर भी हैं। मेरे अंदर अच्छी पेंटिंग करने का हुनर उन से ही आया है.

वे सब को साथ ले कर चलती हैं। हमारे घर का हर सदस्य मां से प्यार और सम्मान करता है. मुझे अगर तकलीफ में देखती हैं तो लगभग बेहोश जैसी ही हो जाती हैं. उन को हमेशा मुझे ले कर टैंशन ही रहता है क्योंकि वे मुझे बहुत प्यार करती हैं. मैं भी अपनी मां से उतना ही प्यार करता हूं.

मां की बढ़ती उम्र मुझे चिंतित करती है क्योंकि मैं उन के बिना जीने के बारे में सोच भी नहीं सकता. मैं हमेशा कामना करता हूं कि मेरी मां लंबी उम्र जिएं और हमेशा स्वस्थ रहें.

शाहरुख खान

आज मैं कामयाब हूं. मेरे पास सबकुछ है, लेकिन वही नहीं है जिस के लिए मैं ने यह सब किया. मैं ने कामयाबी हासिल की. नाम, शोहरत, पैसा सब कमाया, लेकिन मेरी वह प्यारी मां नहीं है जिस के लिए मैं यह सब कुछ करना चाहता था. आज अगर वह जिंदा होती, तो मेरी कामयाबी देख कर सब से ज्यादा वही खुश होती. आज वह मेरे साथ नहीं है तो कई बार मुझे लगता है कि यह सबकुछ बेकार है. मुझे अपनी मां को खोने का इतना अफसोस होता है कि कई बार मैं अकेले में रो पड़ता हूं.

शाहरुख बताते हैं कि दिल्ली में जब मैं ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत की थी और साधारण सी शक्ल के चलते जब मुझे कोई हीरो मानने को तैयार नहीं था, उसे वक्त मेरी मां ही थीं जो मुझे सुपरस्टार बुलाती थीं. वे हमेशा मुझ से कहती थीं कि देखना मेरा बेटा एक दिन जरूर बहुत बड़ा स्टार बनेगा और पूरी दुनिया पर राज करेगा. काश, आज मेरी मां जिंदा होतीं तो मेरी कामयाबी देख कर बहुत खुश होतीं.

बचपन में मैं उन को हीरो की तरह ऐक्टिंग कर के हंसाया करता था. उस वक्त मेरी मां मेरी हरकतें, मेरी नौटंकी देख कर बहुत खुश होती थीं. मैं कुछ भी अच्छा काम करता तो सब से पहले जा कर अपनी मां को ही बताता था क्योंकि उन को जितनी खुशी होती थी उतनी मुझे खुद को भी नहीं होती थी. लेकिन जब अचानक मां का देहांत हो गया तो बहुत ज्यादा दुखी हो गया. उस के बाद मुझे दिल्ली में अच्छा नहीं लगता था इसलिए मैं दिल्ली छोड़ कर मुंबई आ गया. यहां आ कर मैं ने फिल्मों में काम पाने के लिए संघर्ष शुरू किया. कुछ समय बाद सफलता तो मिल गई, लेकिन मन की कमी आज भी खलती है. आज भी उन के साथ बिताई यादें मुझे विचलित कर देती हैं. मां की यादें हमेशा मेरे दिल में रहेंगी क्योंकि उन के जैसा दूसरा कोई हो ही नहीं सकता.

गोविंदा

मेरा मानना है कि जब तक हमारे सिर पर मांबाप का साया होता है तभी तक बचपन जिंदा रहता है. मांबाप के जाते ही अचानक ही हम बड़े हो जाते हैं. आज मेरी मां मेरे साथ नहीं हैं लेकिन उन का प्यार और आशीर्वाद मुझे हर मुसीबत से बचाता है. जब भी मैं किसी बड़ी मुसीबत में होता हूं तो मुझे ऐसा लगता है जैसे मेरी मां की कामना ही मुझे बचाने के लिए आ जाती है. मैं अपनी मां से इतना प्यार करता हूं कि उन के पैर धो कर पिया करता था. ऐसा करने से मेरी मां मुझे रोकती थी, लेकिन मुझे उस में सुकून मिलता था.

गोविंदा बताते हैं कि मुझे आज भी याद है कि मेरी मां हम लोगों को पालने के लिए नौकरी करती थीं. उस वक्त हम मुंबई के विरार स्टेशन में रहते थे जहां से औफिस तक जाने के लिए एक काफी समय लगता था और वे पूरे 1-2 घंटे ट्रेन में खड़ी हो कर जाती थीं क्योंकि ट्रेन भीड़ से खचाखच भरी रहती थी और उन को बैठने की जगह नहीं मिलती थी. इसलिए मैं मां से पहले विरार स्टेशन पहुंच जाता था ताकि मां के बैठने के लिए जगह पकड़ सकूं और वह बैठ कर सफर कर सके.

गोविंदा कहते हैं कि हमें कुछ बड़ा बनाने के चक्कर में हमारी मां ने बहुत संघर्ष किया है. वे सिर्फ अच्छी मां ही नहीं बल्कि अच्छी इंसान भी थीं. कभी किसी का बुरा नहीं चाहती थीं. वे अच्छी गायिका थीं इसलिए मैं ने उन से गाना गाना भी सीख लिया.

मां की मौत से मुझे गहरा सदमा लगा. काफी समय तक मैं संभल नहीं पाया था. उन के साथ बिताया हर पल मुझे याद आता है. मैं उन को बहुत मिस करता हूं. आज भी जब मैं किसी अच्छे काम के लिए बाहर जाता हूं तो मां की तसवीर को प्रणाम कर के निकलता हूं. आज मैं जो भी कुछ हूं अपनी मां के प्यार, आशीर्वाद और कड़ी मेहनत की वजह से ही हूं.

कार्तिक आर्यन

मेरी मां वर्किंग वूमन हैं. पैसे से डाक्टर और स्त्रीरोग विशेषज्ञ हैं. मेरी बहन और मेरे पिता भी डाक्टर हैं. मैं ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की, मगर उस में मेरा मन नहीं लगा तो मैं ने अभिनय कैरियर चुना। मेरी इस यात्रा में मेरी मां ने पूरा साथ दिया। वे मुझे बहुत प्यार करती हैं और मेरी हर इच्छा उन की इच्छा होती है, इसलिए जब मैं ने ऐक्टर बनने का सोचा तो उन्होंने मुझे सपोर्ट किया, क्योंकि शायद उन को भी पता था कि मैं ऐक्टर बन सकता हूं.

कार्तिक कहते हैं कि मेरी मां इमोशनल के साथसाथ प्रैक्टिकल भी हैं. मां का मानना है कि हम चाहे जो प्रोफेशन चुनें लेकिन शिक्षित होना बहुत जरूरी है. बिना शिक्षा प्राप्त किए हम किसी भी क्षेत्र में पूरी तरह कामयाब नहीं हो सकते, क्योंकि शिक्षा हमें मानसिक तौर पर मजबूत बनाती है.

मैं ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई तो पूरी कर ली थी, मगर मेरी मां ने मुझे मेरा पैशन पूरा करने के लिए पूरा सपोर्ट किया. जब भी मैं किसी बुरे दौर से गुजर रहा होता हूं या डिस्टर्ब रहता हूं तो मैं अपनी मां के पास ही चला जाता हूं क्योंकि वही हैं जो मुझे सही रास्ता दिखाती हैं. मेरी मां मेरी नजरों में एक परफैक्ट मदर है जो मुझे सिर्फ प्यार ही नहीं करती बल्कि मुझे सही गाइड भी करती है ताकि मैं अच्छा ऐक्टर होने के साथसाथ अच्छा इंसान भी बनू.

चाहे कितनी ही मुश्किलें आ जाएं मैं घबरा कर कोई गलत निर्णय न ले पाऊं इस बात का भी मेरी मां हमेशा ध्यान रखती हैं क्योंकि वे सिर्फ मेरी मां ही नहीं, मेरी अच्छी दोस्त भी हैं जिन से मैं सब कुछ शेयर कर सकता हूं.

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