Valentine’s Special : बशर्ते तुम से इश्क हो

Valentine’s Special : गाड़ी की ड्राइविंग सीट पर सिर टिकाए और होंठों पर मधुर मुसकान लिए अक्षत अपनी प्रेमिका के साथ बात करने में इस कदर मशरूफ था कि उसे बाहरी दुनिया की किसी भी खबर की भनक तक नहीं थी.

एक कौल जो बारबार उस के प्रेमालाप में बाधा उत्पन्न कर रही थी जिसे वह हर बार अनदेखा कर रहा था फिर भी वह कौल हर बार उसे बाधित करने के लिए दस्तक दे ही डालती.

अक्षत ने परेशान हो कर एक भद्दी सी गाली देते हुए, ‘‘एक बार होल्ड करना स्वीटहार्ट. कोई बेवकूफ मुझे बारबार फोन कर के डिस्टर्ब कर रहा है. पहले उस की कौल ले लूं, फिर आराम से बात करता हूं.’’

‘‘हैलो, कौन बात कर रहा है?’’ उस ने कड़क कर पूछा.

‘‘हैलो मैं पुलिस इंस्पैक्टर बोल रहा हूं.’’

‘‘जी, कहिए,’’ उस ने नर्म पड़ते हुए कहा.

‘‘मैं आप के फ्लैट से बोल रहा हूं, आप तुरंत यहां आइए.’’

‘‘जी, लेकिन बात क्या है सर?’’ उस की जबान लड़खड़ाने लगी.

‘‘आप आ जाइए. आप की पत्नी ने आत्महत्या कर ली है.’’

‘‘क्या? कब?’’ अक्षत के माथे पर पसीने की बूंदें उभरने लगीं और दिल की धड़कनें छाती फाड़ने के लिए प्रहार करती प्रतीत होने लगीं. भय से उस का गला सूखने लगा और मारे घबराहट के पूरे शरीर में कंपकंपी छूटने लगी. उस ने तुरंत गाड़ी स्टार्ट की और वहां से निकल लिया.

दनदनाती हुई कार फ्लैट के सामने आ कर रुकी तो अपनी आंखों के सामने ऐसा माहौल देख कर वह घबरा गया. पुलिस की गाड़ी और ऐंबुलैंस पर लगे सायरन ने चीखचीख कर सब को इकट्ठा कर लिया था. अक्षत गाड़ी से उतरा और फ्लैट की तरफ लपक पड़ा. बैडरूम के फर्श पर सफेद चादर में लिपटी लाश को देख कर वह दहाड़े मार कर उस से लिपट गया, ‘‘यह तुम ने क्या किया अलका, मु?ो छोड़ कर क्यों चली गई?’’ और उस की आंखों से अनवरत आंसू बहने लगे.

‘‘अब इस नाटक का कोई फायदा नहीं,’’ एक कर्कश आवाज ने उस का ध्यान भंग कर दिया, उस ने सिर उठा कर ऊपर देखा. तनी हुई भृकुटि से इंस्पैक्टर अक्षत को आपराधिक दृष्टि से घूर रहा था.

‘‘आप की पत्नी ने सुसाइड नोट छोड़ा है जिस में आप को इस आत्महत्या का जिम्मेदार ठहराया है. आप को अपनी पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने के जुर्म में हिरासत में लिया जाता है.’’

अक्षत टकटकी लगा कर अलका के चेहरे को देख रहा था उसे ऐसा लग रहा था कि वह उस से कुछ कहने का प्रयास कर रही हो.

सायरन की तेज आवाज में दौड़ती हुई पुलिस की गाड़ी अपने गंतव्य की ओर बढ़ रही थी और अक्षत अब भी सिर ?ाकाए सुबक रहा था. उस के सामने बैठे पुलिसकर्मी ने अलका का लिखा सुसाइड नोट खोला और उसे ऊंची आवाज में पढ़ना शुरू कर दिया. उस की आवाज सुन कर अक्षत ने अपना सिर ऊपर उठाया और खिड़की के बाहर झांकने लगा. ज्योंज्यों गाड़ी तीव्र गति से आगे बढ़ रही थी त्योंत्यों हर चीज पीछे छूटती जा रही थी और वह आगे बढ़ता ही जा रहा था लेकिन, केवल अतीत के पन्नों में…

ऐसा लग रहा था जैसे उस के अतीत के चलचित्र उस की आंखों के सामने चल रहे हैं और वह समय के बीते हुए लमहों में गोते खाता चला जा रहा है. वह जा रहा था वहां जहां से किया था शुरू उस ने सफर अपनी जिंदगी का.

स्नातकोत्तर की पढ़ाई के दौरान अलका की मुलाकात अक्षत से हुई और जल्द ही दोनों की दोस्ती ने प्रेम का रूप ले लिया. अंतर्जातीय विवाह  होने के कारण अलका और अक्षत को घर छोड़ना पड़ा और दूर शहर में अपना आशियाना बना लिया.

कुछ ही समय के संघर्ष के बाद कालेज में अक्षत की सहायक प्रोफैसर के रूप में नौकरी लग गई.

अलका ने घरगृहस्थी संभालने का फ़ैसला किया और दोनों खुशहाल जीवन बिताने लगे.

कालेज के दिनों में जब अलका को पहुंचने में देर हो जाती थी तो वह पलपल फोन कर के पूछता और उस की छोटीछोटी बातों को ले कर विचलित हो जाता था.

उस की चंचल आंखें कालेज गेट पर आने वाली हर बस पर टिकी होती थीं. वह हर क्षण अलका का बेसब्री से इंतजार करता था. वह जैसे ही उस के सामने आती वह लपक कर उस का हाथ थाम लेता और क्लास तक का सफर तय करता.

दोनों अकसर घंटों पेड़ के नीचे बैठते और अपनी आने वाली जिंदगी की ढेर सारी प्लानिंग करते रहते. अक्षत अलका की गोद में सिर रख लेता. वह भी उस के घुंघराले बालों में गोरी पतली नेलपैंट वाली उंगलियां घूमाती हुई कहा करती, ‘‘अगर हम एक नहीं हो पाए तो? तुम मुझे छोड़ कर जाओगे तो नही न?’’ वह ऐसे सैकड़ों सवाल एक पल में कर दिया करती.

अक्षत उसे अपनी बांहों में भरते हुए हर बार बस यही कहता, ‘‘पागल, मैं ने तुम्हें मन से अपना मान लिया है फिर जातिपाती की बात ही कहां रहती है? हमारी संस्कृति रही है कि प्राण जाए पर वचन न जाई.’’

एम. फिल के बाद घर वालों की नाराजगी के चलते दोनों ने कोर्ट मैरिज कर अपनी दुनिया बसा ली. प्रेमसिक्त पलों में 3 साल कब गुजरे पता ही नहीं चला.

मगर पिछले 1-2 सालों में अक्षत के स्वभाव में अचानक परिवर्तन होने लगा जिसे अलका सम?ा नहीं पाई वह तो समझती थी कि शायद यह बदलाव काम की व्यस्तता को ले कर है लेकिन माजरा तो कुछ और ही था.

उस रात तूफान ने प्रचंड रूप दिखाना शुरू कर दिया था. हवा के तेज झांके दरवाजे, खिड़कियों पर दस्तक दे रहे थे और गरजते बादल किसी अमंगल घटना के लिए ललकार रहे थे. कौंधती हुई बिजली बारबार आंखें दिखा कर यों गायब हो रही थी जैसे फुंफकारती नागिन के मुंह में जीभ.

बिजली गुल हो चुकी थी लेकिन खिड़की से आ रही मद्धम रोशनी से घर में अब भी थोड़ा उजाला शेष था.

अलका खिड़की के पास काले डरावने साए की तरह शांत खड़ी थी और अक्षत उस के सामने पीठ किए चुपचाप खड़ा था. घर में गहन सन्नाटा पसरा था जिस से तूफान और भी भयानक लगने लगा था. कौन जानता था कि तूफान जिंदगी में आने वाला है और बिजली रिश्तों पर गिरने वाली है.

‘‘क्यों. क्यों किया तुम ने ऐसा और कब से चल रहा है ये सब?’’ उस के शांत स्वर ने सन्नाटे को चीर कर रख दिया.

‘‘पिछले 1 साल से,’’ उस ने धीमें से

जवाब दिया.

‘‘एक बार भी खयाल नहीं आया मेरा?

क्या कमी रह गई थी मुझ में अक्षत जो बाहर मुंह मारने की नौबत आ गई?’’ अलका का लहजा कठोर और स्वर तेज होता गया, ‘‘मैं ने तुम्हारे लिए अपना सबकुछ छोड़ दिया, अपना घर, परिवार और अपने सपने भी. क्या इसलिए कि तुम मुझे छोड़ कर किसी और के साथ रंगरलियां मनाते फिरो?’’ वह चीखती हुई आगे बढ़ी और अक्षत को कंधे से पकड़ कर अपनी ओर पलट लिया. वह उस से नजरें नहीं मिला पा रहा था पर उस के चेहरे पर पश्चात्ताप का नहीं बल्कि गुस्से का भाव था.

अक्षत ने अलका के सामने यह साबित कर दिया था कि उस की जिंदगी में कोईऔर है जिस के बिना वह नहीं रह सकता. उस रात दोनों के बीच झगड़ा बढ़ता गया और इतना कि अक्षत ने अलका पर हाथ तक छोड़ दिया. उसी दिन इस खुशहाल घर में एक दरार पनपती गई और दूरियों की खाई बढ़ती गई.

अलका की भले उस से से बोलचाल बंद थी परंतु उसे उस की फिक्र आज भी उतनी ही थी जितनी पहले वह था कि उसे इग्नोर ही करता रहा.

एक घर, एक कमरे में, एक बिस्तर, एक कंबल में होने के बावजूद उन में दूरियों की खाई बढ़ती गई जिसे पाटना शायद अब मुमकिन न था.

आज की सुबह अलका के लिए निहायत बो?िल और उदासी भरी थी. वह जब बिस्तर से उठी तो देखा कि अक्षत अपने बिस्तर पर नहीं है. उस ने खिड़की के परदा हटाया तो हलकी धूप ने भीतर प्रवेश किया और पूरे कमरे में बिखर गई.

अक्षत बालकनी में खड़ा फोन पर बात कर रहा था. आज उस के होंठों पर मुसकान नहीं थी और वह बहुत गंभीर नजर आ रहा था.

अलका प्रतिदिन की भांति किचन में चली गई और कुछ देर बाद जब वह चाय ले कर लौटी तो अक्षत बिलकुल शांत भाव से बैडरूम में पलंग पर बैठा कुछ सोच रहा था.

‘‘क्या हुआ?  इतना परेशान क्यों हो? सब ठीक है न?’’ अलका ने चाय का कप अक्षत की तरफ बढ़ाते हुए एकसाथ कई सवाल कर डाले.

अक्षत कुछ नहीं बोला और उस ने कप को थाम लिया. अलका भी उस के सामने बैठ गई और उस की ओर देखने लगी. उसे फिक्र हो रही थी कि कुछ तो हुआ है जिस की वजह से वह इतना परेशान और गंभीर है.

अक्षत की चुप्पी अलका को परेशान कर रही थी. उस के मन को आज किसी अनहोनी होने की भनक लग गई थी शायद.

‘‘मैं तुम से अलग होना चाहता हूं अलका,’’ अचानक उस के मुंह से निकले इन शब्दों ने जैसे उसे हजारों टन मलबे के नीचे दबा दिया हो. उस की आंखें विस्मय से फट गईं और कलेजा छाती फाड़ कर बाहर निकलने को प्रहार करने लगा.

‘‘क्या…? तुम होश में तो हो अक्षत?’’

अक्षत कुछ नहीं बोला बस खिड़की से बाहर नजरें गढ़ाए सिर्फ शांत भाव से बैठा रहा.

‘‘मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकता अलका. अगर तुम मेरे साथ रहना चाहती हो तो तुम्हें दिव्यांशी के साथ रहना होगा इसी घर में,’’ उस ने अलका के सामने एक विकल्प पेश किया.

‘‘पागल हो गए हो तुम? मेरे ही घर में मेरे जीते जी किसी और औरत के साथ रहना होगा मु?ो? मैं पत्नी हूं तुम्हारी,’’ वह क्रोध से कांप रही थी.

‘‘जीते जी या मरने के बाद कैसे भी हो, दिव्यांशी इस घर में रहेगी मेरे साथ. यह मैं तुम्हें बता रहा हूं, तुम्हारी परमिशन नहीं ले रहा हूं. अगर तुम मेरे साथ रहना चाहती हो तो,’’ उस ने अपनी बात बहुत कठोरता से पूरी की.

अलका भी हार मानने वाली नहीं थी उस ने अपना विरोध जारी रखा. ‘‘मेरी मुहब्बत वैकलपिक नहीं है सम?ो तुम और न ही मैं ने तुम से प्यार करते समय कोई शर्त तय की थी. मैं तुम्हारी तरह स्वार्थी और बेशर्म नहीं जो मन भर जाने के बाद दूसरी जगह मुंह मारना शुरू कर दूं,’’ अलका ने अक्षत को गले से पकड़ते हुए क्रोधित स्वर में कहा.

अक्षत गुस्से से तमतमा उठा और फिर उसे पलंग पर धकेलते हुए बाहर निकल गया. वह निढाल सी बिस्तर पर औंधी पी सुबकती रही. अक्षत ने गाड़ी स्टार्ट की और घर से निकल गया.

अलका की सिसकारियां अब मंद पड़ चुकी थीं. घंटों तक आंसुओं की धारा बहती रही थी, उस की सुबकियां थमने का नाम नहीं ले रही थीं. आज उसे बीता हुआ हर वह पल याद आ रहा था जब उस ने निडर हो कर समाज और परिवार का सामना किया था, सिर्फ अक्षत को पाने के लिए और आज एक वक्त है कि वही अक्षत किसी और को पाना चाहता है. ज्योंज्यों एक के बाद एक दृश्य उस की आंखों के सामने आ रहे थे त्योंत्यों उस के चेहरे के भाव भी कठोर होते जा रहे थे.

उस ने अपने चेहरे पर बिखरे आंसुओं को अपनी उंगलियों से समेटा और चेहरे पर कठोर भाव लिए बिस्तर से उठी और डैस्क पर जा बैठी. उस ने कागजकलम उठाई और कुछ लिखने लगी. उस का चेहरा गुस्से से कठोर जरूर था पर उस की आंखों से अब भी अनवरत आंसुओं का बहना जारी था. उस ने कागज पर लिखे अपने अल्फाजों को मन ही मन पढ़ा और फिर उठ कर अलमारी की तरफ बढ़ गई.

उस ने अलमारी को खोला और उस में कुछ टटोलने लगी. ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी अतिमत्त्वपूर्ण चीज की तलाश में जुट गई हो.

अचानक उस की वह तलाश पूरी हो गई और वह जहर की एक छोटी सी शीशी को निहारती हुई मुसकराई.

अलका के होंठों पर एक हलकी सी मुसकान थी, ‘‘मैं ने तुम्हारे बिना एक पल भी रहने की कभी कल्पना तक नहीं की अक्षत. तुम मुझे छोड़ सकते हो पर मैं नहीं. मैं तुम्हें किसी और के साथ कभी नहीं देख सकती न जीते जी और न मरने के बाद. अलका अपना सबकुछ खो सकती है और उस ने खोया भी है केवल तुम्हारे लिए. तुम्हें पाने के लिए सबकुछ करेगी, सबकुछ बशर्ते कि मुहब्बत हो तुम से. अब तुम दिव्यांशी के साथ रहोगे तो जरूर लेकिन… जेल में. अपना खयाल रखना… अक्षत.’’

अलका की मुसकान और भी गहरी हो गई. वह मुसकान जो उस की जीत की थी. उस जीत की जो उस ने हासिल की थी, परिवार, समाज और रूढि़यों के विरुद्ध. उस जीत की जो उस ने हासिल की थी छद्म नारीवादी पुरुष के विरुद्ध. उस जीत की जो बीच थी धोखे और समर्पण के. उस ने अलमारी का जोर से बंद कर दिया.

पुलिसकर्मी ने सुसाइड नोट को पढ़ कर समेटना शुरू कर दिया. उस ने अक्षत की ओर गुस्से और नफरत भरी निगाहों से दृष्टिपात किया, पर वह अब भी शून्य में  झांक रहा था. वह अतीत के पन्नों से बाहर नहीं आना चाहता था, जहां सिर्फ प्यार ही प्यार था, अब तो सिर्फ और सिर्फ नफरत थी सब की नजरों में. उस के लिए.

शून्य में ठहरी उस की आंखें आंसू बहा रही थीं, दिल लानत बरसा रहा था और दुनिया जैसे नफरत से धिक्कार रही थी.

गाड़ी हौर्न बजाती हुई थाने में प्रवेश कर गई और अक्षत अपनी आखिरी मंजिल पर पहुंच गया.

डा. राजकुमारी

GBS : क्या है गुलियन बैरे सिंड्रोम, कैसे करें बचाव

GBS : कोरोना से मची हाहाकार के बाद एक और बीमारी लोगों में खौफ की वजह बन गयी है. जिसका नाम है ‘गुलियन बेरी सिंड्रोम’ जिसे GBS भी कहा जाता है. पूणे में लगातार इसके मरीज बढ़ते जा रहे हैं और उनमें से कुछ मौत के मुंह में भी समा चुके हैं जबकि बहुत से लोगों की हालत गंभीर है. वहां प्रशासन लगातार इस बीमारी से बचने की सलाह दे रहा है. जैसे कोरोना का वायरस आपके शरीर में अंदर पहुंचने पर नुकसान पहुंचाता है लेकिन मात्र हाइजीन यानी साफसफाई का ध्यान रखने से बहुत से लोग इससे बचने में सफल हुए, ठीक वैसे ही GBS में बैक्टीरिया आपके शरीर पर हमला करता है, लेकिन इससे भी बचा जा सकता है. आपको इसके लिए बस अपनी आदतों में बदलाव करना, साफसुथरा खाना और स्वच्छ वातावरण में रहने की जरुरत है. खुद को इस बैक्टीरिया से बचाने के लिए आपको क्या मानक अपनाने हैं उससे पहले बात करते हैं कि ये क्या है और कैसे आपके शरीर को कैसे प्रभावित करता है.

क्या है गुलियन बैरे सिंड्रोम?

गुलियन बैरे सिंड्रोम (GBS) एक दुर्लभ लेकिन गंभीर औटोइम्यून न्यूरोलौजिकल डिसऔर्डर है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) गलती से नर्वस सिस्टम (तंत्रिका तंत्र) पर हमला करने लगती है. यह मुख्य रूप से परिधीय तंत्रिका तंत्र (Peripheral Nervous System) को प्रभावित करता है, जिससे कमजोरी, झुनझुनी (Tingling), और यहां तक कि लकवा (Paralysis) भी हो सकता है. पेरिफेरल नर्वस में मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के बाहर की तंत्रिकाएं शामिल होती हैं, जैसे कि चेहरे, बाजुओं और पैरों की तंत्रिकाएं. यहां औटोइम्यून से मतलब है कि हमारा इम्यून सिस्टम जो कि हमें बीमारियों से बचाता है, वह अचानक शरीर को ही अटैक करना शुरू कर देता है.

आसान भाषा में कहें, तो इस सिंड्रोम से जूझ रहे व्यक्ति को बोलने, चलने, निगलने या रोज की आम चीजों को करने में दिक्कत आती है. यह स्थिति समय के साथ और खराब होती जाती है. जिससे व्यक्ति का शरीर पैरालाइज हो सकता है.

हालांकि गुलियन बैरे सिंड्रोम क्यों हो रहा है, इसके कारण बहुत स्पष्ट नहीं हैं,लेकिन यह आमतौर पर कुछ संक्रमणों या अन्य ट्रिगर्स के बाद विकसित हो सकता है, जैसे:

• वायरल या बैक्टीरियल इंफेक्शन (जैसे कि फ्लू, कोविड-19, जिका वायरस, या Campylobacter बैक्टीरिया)

• GBS का मुख्य कारण नोरोवायरस भी माना जा रहा है, जो दूषित भोजन और पानी से फैलता है. यह संक्रमित व्यक्ति के उल्टी करने पर निकलने वाले हवा में मौजूद कणों के जरिए भी फैल सकता है.

गुलियन बैरे सिंड्रोम के लक्षण

गुलियन बैरे सिंड्रोम के शुरुआती लक्षणों में पैरों में झनझनाहट महसूस होना जोकि धीरे-धीरे शरीर के ऊपरी भाग जैसे हाथों और चेहरे की मूवमेंट तक पहुंच जाती है.इसके अलावा पैरों में कमजोरी महसूस होना, चलने में दिक्कत आना, दर्द होना और गंभीर मामलों में पैरालिसिस हो जाना है. इसके साथ ही खाने या निगलने में दिक्कत, ब्लैडर और बाउल मूवमेंट पर कंट्रोल कम रहना, असामान्य दिल की धड़कन, हाई या लॉ ब्लड प्रेशर, सांस लेने में परशानी, धुंधला दिखना भी इसके लक्षण हैं.

जीबीएस के लक्षण आम तौर पर कुछ हफ्तों तक रहते हैं, ज्यादातर व्यक्ति लंबे समय में गंभीर न्यूरोलौजिकल रिस्क के बिना ठीक हो जाते हैं. माना जाता है कि इनमें से ज्यादातर मामले दूषित पानी और अनहेल्दी खाने से जुड़े हैं.

GBS संक्रमण से बचने के लिए ये तरीके अपनाएं

इस संक्रमण के खतरे को कम करने के लिए आप भोजन के उचित रखरखाव का ध्यान रखें. भोजन के सेवन करने से पहले साफ-सफाई का ध्यान रखना बेहद जरुरी है. खाना पूरी तरह पकाकर खाएं कच्चे या अधपके खाने या मांस का सेवन करने से परहेज करें.

अपाश्चुरीकृत दूध और डेयरी उत्पादों का सेवन करने से परहेज करें, क्योंकि इस संक्रमण का लिंक कैम्पिलोबैक्टर बैक्टीरिया से हैं. जो अपाश्चुरीकृत दूध और उससे संबंधित उत्पाद जैसे पनीर, खोया इत्यादि में भी पाया गया है. इसलिए पाश्चुरीकृत प्रोडक्ट्स का ही सेवन करें.

भोजन को कम से कम 165 डिग्री फौरेनहाइट या 75 डिग्री सेल्सियस पर पकाएं, इस तापमान पर फूड गर्म होने पर हानिकारक बैक्टीरिया मर जाते हैं.

साफसफाई का खास ध्यान रखें. हाथों को बारबार वाश करें. पोल्ट्री और डेयरी उत्पादों को छूने से पहले और बाद में हाथों को साबुन और पानी से ठीक से वाश करें.

खाने के प्रिपेरेशन में कच्चे मांस और अन्य खाद्य पदार्थों के लिए अलगअलग कटिंग बोर्ड और चाकू का इस्तेमाल करें. मांस और अन्य सब्जियों को पकाने के लिए अलग बर्तनों का उपयोग करें. इस तरह बैक्टीरिया को फैलने से रोका जा सकता है.

फ्रिज में खाना स्टोर करते समय पके और कच्चे खाने खासकर मांस को अलग से स्टोर करें. उन्हें एकसाथ न रखें.

अंडे व अन्य मांस को अच्छे से धोकर ही स्टोर करें और अच्छे से पकाकर ही खाएं. कच्चा खाने से बैक्टीरिया आपके शरीर के अंदर जा सकते हैं.

प्रोसेस्ड और ज़्यादा चीनी वाले खाद्य पदार्थों से बचें.

बाहर के रेहड़ी या स्टोल से खाने से बचें. खुले में गंदे तरीके से पकाए खाने से आप बिमारी की चपेट में आ सकते हैं.

साफ पानी पीएं. पानी को उबालकर पीएं, या अपने वाटर प्यूरीफायर की जांच करा लें, समयसमय पर उसके फिल्टर भी बदलवाएं जिससे पानी की गुणवत्ता से समझौता न हो.

औनलाइन सुरक्षा और जिम्मेदार डिजिटल व्यवहार को बढ़ावा देना चाहता हूं : Ayushmann Khurrana

Ayushmann Khurrana : सुरक्षित इंटरनेट दिवस के अवसर पर, यूनिसेफ इंडिया के राष्ट्रीय ब्रांड एंबेसडर और बौलीवुड स्टार आयुष्मान खुराना ने बच्चों और युवाओं को डिजिटल दुनिया में सुरक्षित रहने के लिए जागरूक करने का बीड़ा उठाया. इंटरनेट के बढ़ते उपयोग को देखते हुए, यह पहल औनलाइन सुरक्षा के महत्व को समझाने और बच्चों को साइबर खतरों से बचाने के लिए की गई.

बच्चों के अधिकारों और डिजिटल वेलबीइंग के मजबूत समर्थक आयुष्मान ने यूनिसेफ इंडिया और बाल अधिकार संगठन PRATYeK (प्रत्येक) के केंद्र का दौरा किया. यहां उन्होंने बच्चों के साथ डिजिटल सुरक्षा पर मजेदार और शिक्षाप्रद खेल खेले, जिससे बच्चों को इंटरनेट सुरक्षा के बारे में जागरूक किया गया. इंटरनेट की सुरक्षित दुनिया पर बात करते हुए आयुष्मान ने कहा, “आज के समय में 5-6 साल के बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक, हर कोई इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहा है. ऐसे में इंटरनेट का पहली बार इस्तेमाल करने वाले बच्चों को इसके खतरों और इससे बचने के तरीकों के बारे में शिक्षित करना बेहद जरूरी है. इस साल सुरक्षित इंटरनेट दिवस के मौके पर मैंने यूनिसेफ के साथ PRATYeK (प्रत्येक) का दौरा किया, जहां मैंने बच्चों के साथ इंटरनेट सुरक्षा के कुछ अहम नियम सीखे.

आगे उन्होंने इंटरनेट सुरक्षा के प्रति अपने दृष्टिकोण को साझा करते हुए कहा, “इस सुरक्षित इंटरनेट दिवस पर, यूनिसेफ के साथ मिलकर मैं औनलाइन सुरक्षा और जिम्मेदार डिजिटल व्यवहार को बढ़ावा देना चाहता हूं. यह बहुत जरूरी है कि बच्चों को ऐसे उपकरण दिए जाएं जिससे वे औनलाइन किसी भी तरह की परेशानी या खतरे का सामना करने पर रिपोर्ट कर सकें. इससे वे न केवल खुद की, बल्कि दूसरों की भी सुरक्षा कर सकते हैं. मातापिता को भी अपने बच्चों के साथ इंटरनेट पर आने वाली समस्याओं को लेकर खुलकर बातचीत करनी चाहिए, ताकि वे किसी भी मुश्किल का समाधान कर सकें.

अगर हम सभी मिलकर इंटरनेट का जिम्मेदारी से उपयोग करें, तो इसे एक ऐसा प्लेटफौर्म बना सकते हैं जो सभी को सशक्त बनाए और सुरक्षित रहे. आयुष्मान खुराना की सुरक्षित इंटरनेट दिवस पर की गई यह पहल बच्चों के अधिकारों और डिजिटल सुरक्षा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाती है.उनकी यह कोशिश एक सुरक्षित और समावेशी डिजिटल दुनिया बनाने के लिए प्रेरणादायक बन रही है, जो भविष्य में सकारात्मक बदलाव ला सकती है.

मलयालम एक्ट्रेस ने राष्ट्रीय पुरस्कार लेने आए Akshay Kumar को कैसे किया शर्मिंदा….

Akshay Kumar : अक्षय कुमार ने 1991 में फिल्म सौगंध के जरिए अभिनय करियर में अपनी शुरुआत की थी और उसके बाद 1992 में फिल्म खिलाड़ी के जरिए पहली बार सफलता की सीढ़ी चढ़ना शुरू किया.  इस दौरान अक्षय कुमार ने कई सारी फ्लौप फिल्में भी दी, लेकिन धीरेधीरे सफलता असफलता के बीच संघर्ष करने वाले अक्षय कुमार ने कई सारी हिट फिल्में भी दी. लेकिन एक कलाकार को जब तक अभिनय के लिए पुरस्कार नहीं मिलता.

तब तक उसको अपने अभिनय पर विश्वास भी नहीं होता. लिहाजा कई सारी फिल्मों और कई सारे अवॉर्डों के बीच जब अक्षय कुमार को 2016 में फिल्म रुस्तम के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला तो अक्षय कुमार को अपने ऊपर गर्व महसूस हुआ. ऐसे में जब राष्ट्रीय पुरस्कार अवार्ड फंक्शन में अक्षय कुमार अपना पुरस्कार लेने पहुंचे तो वह बहुत ही प्राउड फील कर रहे थे. लेकिन तभी एक मलयालम एक्ट्रेस ने आकर उनको पूरी तरह से शर्मिंदा कर दिया.

अक्षय कुमार के अनुसार जब मैं राष्ट्रीय पुरस्कार लेने फंक्शन में पहुंचा तो वहां पर और भी लोग राष्ट्रीय पुरस्कार लेने आए हुए थे. इस दौरान एक मलयालम एक्ट्रेस ने आकर मुझे मेरी बहुत तारीफ करते हुए कहा कि वह मेरी फैन है और उसने मेरी सब फिल्में देखी हुई है. वह खुद भी राष्ट्रीय पुरस्कार लेने आई हुई थी. जब मैंने उसको पूछा कि आपने अब तक कितनी फिल्में की है और कितने साल बाद आपको राष्ट्रीय पुरस्कार मिल रहा है? तो उसने मुस्कुराते हुए कहा कि यह मेरी पहली ही फिल्म है जिसके लिए मुझे मलयालम फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ हीरोइन का राष्ट्रीय पुरस्कार मिल रहा है.

यह सुनकर मैं शर्मिंदा हुए बगैर नहीं रह पाया क्योंकि मुझे करीबन डेढ़ सौ फिल्मों में काम करने के बाद राष्ट्रीय पुरस्कार मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था और उस मलयालम लड़की को पहली फिल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इस बात कि मुझे खुशी भी हुई. लेकिन साथ ही मुझे शर्मिंदगी भी महसूस हुई . हालांकि इस फिल्म के बाद फिल्म पैड मैन के लिए भी मुझे राष्ट्रीय पुरस्कार मिला इस फिल्म का मै एक्टर और निर्माता दोनों था.

Hair Colour Tips At Home : घर पर ही करना चाहती हैं बालों में कलर, तो फौलो करें ये टिप्स

Hair Colour Tips At Home :  अगर आपको भी अपने बालों में कलर करना है और आप ब्यूटी पार्लर जाने के बजाय खुद ही घर पर बालों को रंगना चाहती हैं, तो यहां हम आपको बताएंगे कलर करने के कुछ आसान तरीके.

आपको इस बात का ध्यान रखकर कलर करना चाहिए कि वह आपकी उम्र, व्यवसाय और जीवनशैली से मेल खाए. और हां, आपके बालों में कलर तभी फबेगा जब आप उसे अपनी स्किन को ध्यान में रख कर लगाएंगी.

कैसा कलर करें

यदि आप बालों में चमक चाहती हैं, तो दो शेड्स को मिलाकर लगाएं यानी बेस कलर के साथ हाई लाइट या लो लाइट का मिक्सचर. बालों की सबसे ऊपर वाली परत के नीचे गहरा लो लाइट कलर करके आप बालों को सुन्दर व घना बना सकती हैं. फेस फ्रेमिंग हाई लाइटर वास्तव में चेहरे पर रंगत ला देते हैं और बालों को ट्रेंडी भी दिखाते हैं.

आप अपने बालों को हाइलाइट कर लकती हैं. इन्हें स्ट्रिक्स भी कहा जाता है. मध्यम भूरे से गहरे भूरे बालों के लिए बेस कलर से ही एक या दो टोन हल्का शेड का आप प्रयोग कर सकती हैं. जैसे लाइट ब्राउन लुक के लिए चेहरे के इर्द-गिर्द बालों की पहली परत के आधे इंच को 5 से 8 भागों में बांटकर इन्हें फाइल में लपेट कर पिन लगा लें. फिर एक कट के हर भाग पर हल्का रंग कर दें और बाकी बालों पर बेस कलर लगा लें.

अगर आपके बालों का रंग हल्का है, तो सारे बालों पर बेस कलर लगाएं. अब बालों की ऊपरी परत पर पिन लगा लें. निचली परत को 1 इंच के 5 से 8 भागों में बांट दें और इन पर गहरा रंग लगा लें. यह आपके बालों का लुक ही चेंज कर देगा, जिससे आप को मिलेगा एक प्रोफैशनल लुक.

कलर से बालों में शाइन लाएं

बाल रंगने से 2 दिन पहले प्री कलर हेयर थेरेपी करवाएं या हेयर स्पा ट्रीटमेंट लें. इससे बाल नरम हो जाएंगे और कलर करते समय वह क्षतिग्रस्त नहीं होंगे. और कलर करने के बाद वह शाइनी और चमकदार दिखेंगे.

इस तरह लगाएं कलर

सिरों की तुलना में बालों की जड़ें प्राकृतिक रूप में ज्यादा गहरे रंग की होती हैं. इसलिए जड़ों की ओर से रंग लगाना शुरू करें और बीच की लंबाई तक जाएं. रंग लगाने के कुछ देर बाद कंघी करें ताकि बाकी के बालों पर प्राकृतिक शेड आए. रंग लगाने के 24 घंटे बाद शैंपू कर लें.

कलर्स वाले बालों की देखभाल

आप रंगीन बालों के लिए तैयार किये विशेष तरह का शैंपू को चुनें क्योंकि ये शैम्पू ज्यादा नमी देने वाले होते हैं.

बालों में कंडीशनर का प्रयोग अवश्य करें. कलर बालों के लिए बना विशेष प्रकार का कंडीशनर लें. इसमें सिलिकोन कंपाउंड ज्यादा होते हैं, जो बालों को सुरक्षित रखते हैं .

सप्ताह में एक बार डीप कंडीशनिंग ट्रीटमेंट भी लें और विटामिन बी-5 वाला हेयर मास्क लगाएं.

Married Life : मेरी वाइफ बहुत झगड़ालू है… मैं क्या करूं?

Married Life : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं सरकारी स्कूल में शिक्षक हूं. घर में किसी चीज की दिक्कत नहीं है पर मेरी परेशानी मेरी पत्नी है, जो निहायत ही झगड़ालू और क्रोधी है. घर में मेरी मां के साथ वह हमेशा लड़ती रहती है और मुझ पर दबाव डालती है कि कहीं और फ्लैट ले लो, मुझे तुम्हारी मां के साथ नहीं रहना. मैं किसी भी हाल में अपनी मां को खुद से अलग नहीं कर सकता. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

पहले तो आप यह जानने की कोशिश करें कि आप की पत्नी ऐसा क्यों चाहती है? तह तक जाए बगैर फिलहाल कोई निर्णय लेना सही नहीं होगा. पत्नी को समझा-बुझा सकते हैं. संभव हो तो पत्नी के मातापिता को भी मध्यस्थ बनाएं. पत्नी के साथ अधिक से अधिक समय बिताएं और साथ घूमनेफिरने जाएं. इन सब से पत्नी सही रास्ते पर आ सकती है.

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वैवाहिक बंधन प्यार का बंधन बना रहे तो इस रिश्ते से बढि़या कोई और रिश्ता नहीं. परंतु किन्हीं कारणों से दिल में दरार आ जाए तो अकसर वह खाई में परिवर्तित होते भी देखी जाती है. कल तक जो लव बर्ड बने फिरते थे, वे ही बाद में एकदूसरे से नफरत करने लगते हैं और बात हिंसा तक पहुंच जाती है.

अतएव पतिपत्नी को परिवार बनाने से पहले ही आपसी मतभेद सुलझा लेने चाहिए और बाद में भी वैचारिक मतभेदों को बच्चों की गैरमौजूदगी में ही दूर करना उचित है ताकि उन का समुचित विकास हो सके.

छोटीछोटी बातों से झगड़े शुरू होते हैं. फिर खिंचतेखिंचते महाभारत का रूप ले लेते हैं. ज्यादातर झगड़े खानदान को ले कर, कमतर अमीरी के तानों, रिश्तेदारों, अपनों के खिलाफ अपशब्द या गालियों, कमतर शिक्षा व स्तर, कमतर सौंदर्य, बच्चे की पढ़ाई व परवरिश, जासूसी, व्यक्तिगत सामान को छूनेछेड़ने, अपनों की आवभगत आदि को ले कर होते हैं. यानी दंपती में से किसी के भी आत्मसम्मान को चोट पहुंचती है तो झगड़ा शुरू हो जाता है, फिर कारण चाहे जो भी हो.

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Best Stories : आलू वड़ा

Best Stories : ‘‘बाबू, तुम इस बार दरभंगा आओगे तो हम तुम्हें आलू वड़ा खिलाएंगे,’’ छोटी मामी की यह बात दीपक के दिल को छू गई.

पटना से बीएससी की पढ़ाई पूरी होते ही दीपक की पोस्टिंग भारतीय स्टेट बैंक की सकरी ब्रांच में कर दी गई. मातापिता का लाड़ला और 2 बहनों का एकलौता भाई दीपक पढ़ने में तेज था. जब मां ने मामा के घर दरभंगा में रहने की बात की तो वह मान गया.

इधर मामा के घर त्योहार का सा माहौल था. बड़े मामा की 3 बेटियां थीं, मझले मामा की 2 बेटियां जबकि छोटे मामा के कोई औलाद नहीं थी.

18-19 साल की उम्र में दीपक बैंक में क्लर्क बन गया तो मामा की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. वहीं दूसरी ओर दीपक की छोटी मामी, जिन की शादी को महज 4-5 साल हुए थे, की गोद सूनी थी.

छोटे मामा प्राइवेट नौकरी करते थे. वे सुबह नहाधो कर 8 बजे निकलते और शाम के 6-7 बजे तक लौटते. वे बड़ी मुश्किल से घर का खर्च चला पाते थे. ऐसी सूरत में जब दीपक की सकरी ब्रांच में नौकरी लगी तो सब खुशी से भर उठे.

‘‘बाबू को तुम्हारे पास भेज रहे हैं. कमरा दिलवा देना,’’ दीपक की मां ने अपने छोटे भाई से गुजारिश की थी.

‘‘कमरे की क्या जरूरत है दीदी, मेरे घर में 2 कमरे हैं. वह यहीं रह लेगा,’’ भाई के इस जवाब में बहन बोलीं, ‘‘ठीक है, इसी बहाने दोनों वक्त घर का बना खाना खा लेगा और तुम्हारी निगरानी में भी रहेगा.’’

दोनों भाईबहनों की बातें सुन कर दीपक खुश हो गया. मां का दिया सामान और जरूरत की चीजें ले कर दोपहर 3 बजे का चला दीपक शाम 8 बजे तक मामा के यहां पहुंच गया.

‘‘यहां से बस, टैक्सी, ट्रेन सारी सुविधाएं हैं. मुश्किल से एक घंटा लगता है. कल सुबह चल कर तुम्हारी जौइनिंग करवा देंगे,’’ छोटे मामा खुशी से चहकते हुए बोले.

‘‘आप का काम…’’ दीपक ने अटकते हुए पूछा.

‘‘अरे, एक दिन छुट्टी कर लेते हैं. सकरी बाजार देख लेंगे,’’ छोटे मामा दीपक की समस्या का समाधान करते हुए बोल उठे.

2-3 दिन में सबकुछ सामान्य हो गया. सुबह साढ़े 8 बजे घर छोड़ता तो दीपक की मामी हलका नाश्ता करा कर उसे टिफिन दे देतीं. वह शाम के 7 बजे तक लौट आता था.

उस दिन रविवार था. दीपक की छुट्टी थी. पर मामा रोज की तरह काम पर गए हुए थे. सुबह का निकला दीपक दोपहर 11 बजे घर लौटा था. मामी खाना बना चुकी थीं और दीपक के आने का इंतजार कर रही थीं.

‘‘आओ लाला, जल्दी खाना खा लो. फेरे बाद में लेना,’’ मामी के कहने में भी मजाक था.

‘‘बस, अभी आया,’’ कहता हुआ दीपक कपड़े बदल कर और हाथपैर धो कर तौलिया तलाशने लगा.

‘‘तुम्हारे सारे गंदे कपड़े धो कर सूखने के लिए डाल दिए हैं,’’ मामी खाना परोसते हुए बोलीं.

दीपक बैठा ही था कि उस की मामी पर निगाह गई. वह चौंक गया. साड़ी और ब्लाउज में मामी का पूरा जिस्म झांक रहा था, खासकर दोनों उभार.

मामी ने बजाय शरमाने के चोट कर दी, ‘‘क्यों रे, क्या देख रहा है? देखना है तो ठीक से देख न.’’

अब दीपक को अजीब सा महसूस होने लगा. उस ने किसी तरह खाना खाया और बाहर निकल गया. उसे मामी का बरताव समझ में नहीं आ रहा था.

उस दिन दीपक देर रात घर आया और खाना खा कर सो गया.

अगली सुबह उठा तो मामा उसे बीमार बता रहे थे, ‘‘शायद बुखार है, सुस्त दिख रहा है.’’

‘‘रात बाहर गया था न, थक गया होगा,’’ यह मामी की आवाज थी.

‘आखिर माजरा क्या है? मामी क्यों इस तरह का बरताव कर रही हैं,’ दीपक जितना सोचता उतना उलझ रहा था.

रात खाना खाने के बाद दीपक बिस्तर पर लेटा तो मामी ने आवाज दी. वह उठ कर गया तो चौंक गया. मामी पेटीकोट पहने नहा रही थीं.

‘‘उस दिन चोरीछिपे देख रहा था. अब आ, देख ले,’’ कहते हुए दोनों हाथों से पकड़ उसे अपने सामने कर दिया.

‘‘अरे मामी, क्या कर रही हो आप,’’ कहते हुए दीपक ने बाहर भागना चाहा मगर मामी ने उसे नीचे गिरा दिया.

थोड़ी ही देर में मामीभांजे का रिश्ता तारतार हो गया. दीपक उस दिन पहली बार किसी औरत के पास आया था. वह शर्मिंदा था मगर मामी ने एक झटके में इस संकट को दूर कर दिया, ‘‘देख बाबू, मुझे बच्चा चाहिए और तेरे मामा नहीं दे सकते. तू मुझे दे सकता है.’’

‘‘मगर ऐसा करना गलत होगा,’’ दीपक बोला.

‘‘मुझे खानदान चलाने के लिए औलाद चाहिए, तेरे मामा तो बस रोटीकपड़ा, मकान देते हैं. इस के अलावा भी कुछ चाहिए, वह तुम दोगे,’’ इतना कह कर मामी ने दीपक को बाहर भेज दिया.

उस के बाद से तो जब भी मौका मिलता मामी दीपक से काम चला लेतीं. या यों कहें कि उस का इस्तेमाल करतीं. मामा चुप थे या जानबूझ कर अनजान थे, कहा नहीं जा सकता, मगर हालात ने उन्हें एक बेटी का पिता बना दिया.

इस दौरान दीपक ने अपना तबादला पटना के पास करा लिया. पटना में रहने पर घर से आनाजाना होता था. छोटे मामा के यहां जाने में उसे नफरत सी हो रही थी. दूसरी ओर मामी एकदम सामान्य थीं पहले की तरह हंसमुख और बिंदास.

एक दिन दीपक की मां को मामी ने फोन किया. मामी ने जब दीपक के बारे में पूछा तो मां ने झट से उसे फोन पकड़ा दिया.

‘‘हां मामी प्रणाम. कैसी हो?’’ दीपक ने पूछा तो वे बोलीं, ‘‘मुझे भूल गए क्या लाला?’’

‘‘छोटी ठीक है?’’ दीपक ने पूछा तो मामी बोलीं, ‘‘बिलकुल ठीक है वह. अब की बार आओगे तो उसे भी देख लेना. अब की बार तुम्हें आलू वड़ा खिलाएंगे. तुम्हें खूब पसंद है न.’’

दीपक ने ‘हां’ कहते हुए फोन काट दिया. इधर दीपक की मां जब छोटी मामी का बखान कर रही थीं तो वह मामी को याद कर रहा था जिन्होंने उस का आलू वड़ा की तरह इस्तेमाल किया, और फिर कचरे की तरह कूड़ेदान में फेंक दिया.

औरत का यह रूप उसे अंदर ही अंदर कचोट रहा था.

‘मामी को बच्चा चाहिए था तो गोद ले सकती थीं या सरोगेट… मगर इस तरह…’ इस से आगे वह सोच न सका.

मां चाय ले कर आईं तो वह चाय पीने लगा. मगर उस का ध्यान मामी के घिनौने काम पर था. उसे चाय का स्वाद कसैला लग रहा था.

Kahaniyan : साहब की चतुराई

Kahaniyan : तबादले पर जाने वाला नौजवान अफसर विजय आने वाले नौजवान अफसर नितिन को अपने बंगले पर ला कर उसे चपरासी रामलाल के बारे में बता रहा था. नितिन ने जब चपरासी रामलाल की फिल्म हीरोइन जैसी खूबसूरत बीवी को देखा, तो वह उसे देखता ही रह गया. नितिन बोला, ‘‘यार, तुम्हारी यह चपरासी की बीवी तो कमाल की है. तुम ने तो इस के साथ खूब मजे किए होंगे?’’ ‘‘नहीं यार, ये छोटे लोग बहुत ही धर्मकर्म पर चलते हैं और इस के लिए अपना सबकुछ कुरबान कर देते हैं. ये लोग पद और पैसे के लिए अपनी इज्जत को नहीं बेचते हैं. मैं ने भी इसे लालच दे कर पटाने की खूब कोशिश की थी, मगर इस ने साफ मना कर दिया था.’’

यह सुन कर नितिन विजय की ओर हैरानी से देखने लगा.

नितिन को इस तरह देख विजय अपनी सफाई में बोला, ‘‘ये छोटे लोग हम लोगों की तरह नहीं होते हैं, जो अपने किसी काम को बड़े अफसर से कराने के लिए अपनी बहनबेटियों और बीवियों को भी उन के साथ सुला देते हैं. हमारी बहनबेटियों और बीवियों को भी सोने में कोई दिक्कत नहीं होती है, क्योंकि वे तो अपने स्कूल और कालेज की पढ़ाई करते समय अपने कितने ही बौयफ्रैंड्स के साथ सो चुकी होती हैं.’’ इतना सुन कर नितिन मन ही मन  उस चपरासी की बीवी को पटाने की तरकीब सोचने लगा.

विजय से चार्ज लेने के बाद नितिन अपने सरकारी बंगले में रहने लग गया था. शाम को जब वह अपने बंगले पर आया, तो चपरासी रामलाल उस से बोला, ‘‘साहब, आप को शराब पीने का शौक हो तो लाऊं? पुराने साहब तो रोजाना पीने के लिए बोतल मंगवाते थे.’’

‘‘और क्याक्या मंगवाते थे तुम्हारे पुराने साहब?’’

चपरासी रामलाल बोला, ‘‘कालेज में पढ़ने वाली लड़की भी मंगवाते थे. वे पूरी रात के उसे 2 हजार रुपए देते थे.’’ ‘‘ले आना,’’ सुन कर नितिन ने उस से कहा, तो वह उन के लिए शराब की बोतल और उस लड़की को ले आया था.

उस लड़की और उस अफसर ने शराब पी कर रातभर खूब मजे किए. जाते समय नितिन ने उसे 3 हजार रुपए दिए और उस से कहा कि वह चपरासी रामलाल से कहे कि तुम्हारे ये कैसे साहब हैं, जिन्होंने रातभर मेरे साथ कुछ किया ही नहीं था, बल्कि मुझे छुआ भी नहीं था, फिर भी मुझे 3 हजार रुपए मुफ्त में दे दिए हैं.’’ उस लड़की ने चपरासी रामलाल से यह सब कहने की हामी भर ली. जब वह लड़की वहां से जाने लगी, तो चपरासी रामलाल से बोली, ‘‘तुम्हारे ये साहब तो बेकार ही रातभर लड़की को अपने बंगले पर रखते हैं, उस के साथ कुछ करते भी नहीं हैं, मगर फिर भी उस को पैसे देते हैं. तुम्हारे साहब का तो दिमाग ही खराब है.’’

यह सुन कर चपरासी रामलाल हैरान हो कर उस की ओर देखने लगा, तो वह उस से बोली, ‘‘तुम्हारे साहब ने तो रातभर मुझे छुआ भी नहीं, फिर भी मुझे 3 हजार रुपए दे दिए हैं,’’ कह कर वह वहां से चली गई. उस लड़की की बातें सुन कर चपरासी रामलाल सोचने लगा था कि उस के अफसर का दिमाग खराब है या वे औरत के काबिल नहीं हैं, फिर भी उन्हें औरतों को अपने साथ सुला कर उन पर अपने पैसे लुटाने का शौक है. चपरासी रामलाल अपने कमरे पर आ कर बीवी सरला से बोला, ‘‘हमारे ये नए साहब तो बेकार ही अपने पैसे लड़की पर लुटाते हैं.’’ ‘‘वह कैसे?’’ सुन कर सरला ने रामलाल से पूछा, तो वह बोला, ‘‘कल रात को मैं साहब के लिए एक लड़की लाया था, लेकिन उन्होंने उस के साथ कुछ भी नहीं किया. यहां तक कि उन्होंने उसे छुआ भी नहीं, मगर फिर भी उन्होंने उसे 3 हजार रुपए दे दिए.’’

यह सुन कर उस की बीवी सरला हैरानी से उस की ओर देखने लगी, तो वह उस से बोला, ‘‘क्यों न अपने इस साहब से हम पैसे कमाएं?’’ ‘‘वह कैसे?’’ सरला ने उस से पूछा, तो वह बोला, ‘‘तुम इस साहब के साथ सो जाया करो. यह साहब तुम्हारे साथ कुछ करेगा भी नहीं और उस से मुफ्त में ही हम को पैसे मिल जाएंगे. उन पैसों से हम अपने लिए नएनए गहने भी बनवा लेंगे और जरूरत का सामान भी खरीद लेंगे.

‘‘मेरा कितने दिनों से नई मोटरसाइकिल खरीदने का मन कर रहा है, मगर पैसे न होने से खरीद ही नहीं पाता हूं. जब तुम्हें नएनए गहनों में नए कपड़े पहना कर मोटरसाइकिल पर बिठा कर अपने गांव और ससुराल ले जाऊंगा, तो वे लोग हम से कितने खुश होंगे. हमारी तो वहां पर धाक ही जम जाएगी.’’ ‘‘कहीं यह तुम्हारा साहब मुझ से मजे लेने लग गया तो…’’ खूबसूरत बीवी सरला ने अपना शक जाहिर किया, तो वह उसे तसल्ली देते हुए बोला, ‘‘तुम इस बात की चिंता मत करो. वह तुम से मजे नहीं लेगा.’’

पति रामलाल की इस बात को सुन कर बीवी सरला अपने साहब के साथ सोने के लिए तैयार हो गई. शाम को अपने साहब के लिए शराब लाने के बाद रात को चपरासी रामलाल ने अपनी बीवी सरला को उन के कमरे में भेज दिया. साहब जब उस पर हावी होने लगे, तो उसे बड़ी हैरानी हो रही थी, क्योंकि उस के पति ने तो उस से कहा था कि साहब उसे छुएगा भी नहीं, मगर उस का साहब तो उस पर ऐसा हावी हुआ था कि… रातभर में साहब ने उसे इतना ज्यादा थका दिया था कि वह सो न सकी. सरला को अपने पति पर बहुत गुस्सा आ रहा था, लेकिन गुस्से को दबा कर मुसकराते हुए दूसरे दिन अपने पति से वह बोली, ‘‘तुम्हारे साहब ने तो मुझे छुआ भी नहीं. हम ने मुफ्त में ही उन से पैसे कमा लिए.’’ यह सुन कर उस का पति रामलाल अपनी अक्लमंदी पर खुशी से मुसकराने लगा, तो वह उस से बोली, ‘‘मुझे रातभर तुम्हारी याद सताती रही थी. क्यों न हम तुम्हारी बहन नीता को गांव से बुला कर तुम्हारे साहब के साथ सुला दिया करें. ‘‘तुम्हारा साहब उस के साथ कुछ करेगा भी नहीं और उस से मिले पैसों से हम उस की शादी भी धूमधाम से कर देंगे.’’

यह सुन कर रामलाल बीवी सरला की इस बात पर सहमत हो गया. वह उस से बोला, ‘‘तुम इस बारे में नीता को समझा देना. मैं आज ही उसे फोन कर के बुलवा लूंगा.’’ शाम को जब चपरासी रामलाल की बहन नीता वहां पर आई, तो सरला उस से बोली, ‘‘ननदजी, तुम गांव के लड़कों को मुफ्त में ही मजे देती फिरती हो. किसी दिन किसी ने देख लिया, तो गांव में बदनामी हो जाएगी. इसलिए तुम यहीं रह कर हमारे साहब के साथ रातभर सो कर मजे भी लो और पैसे भी कमाओ.’’ यह सुन कर उस की ननद नीता खुशी से झूम उठी थी. रातभर वह साहब के साथ मौजमस्ती कर के सुबह जब उन के कमरे से निकली, तो बहुत खुश थी. साहब ने उसे 5 हजार रुपए दिए थे. कुछ ही दिनों में चपरासी रामलाल अपने लिए नई मोटरसाइकिल ले आया था और अपनी बीवी सरला और बहन नीता के लिए नएनए जेवर और कपड़े भी खरीद चुका था, क्योंकि उस के साहब अपने से बड़े अफसरों को खुश रखने के लिए उन दोनों को उन के पास भेजने लगे थे. एक दिन सरला और नीता आपस में बातें करते हुए कह रही थीं कि उन के साहब तो रातभर उन्हें इतने मजे देते हैं कि उन्हें मजा आ जाता है.

उन की इन बातों को जब चपरासी रामलाल ने सुना, तो वह अपने साहब की इस चतुराई पर हैरान हो उठा था. लेकिन अब हो भी क्या सकता था. रामलाल ने सोचा कि जो हो रहा है, होने दो. उन से पैसे तो मिल ही रहे हैं. उन पैसों के चलते ही उस की अपने गांव और ससुराल में धाक जम चुकी थी, क्योंकि आजकल लोग पैसा देखते हैं, चरित्र नहीं.

लेखिका- यामेश्वरी

Family Drama 2025 : अम्मी कहां – कहां खो गईं थी अम्मी

Family Drama 2025 :  ‘‘अम्मीजान, आप यहीं खड़ी रहना, मैं टिकट ले कर अभी आता हूं,’’ कह कर मोहिन खान अपनी मां को रेलवे प्लेटफार्म की तरफ जाने वाली सीढ़ी के पास छोड़ कर टिकट लेने चला गया.

टिकट खिड़की पर लाइन लंबी थी, जो बस स्टौप तक पहुंच गई. उसे इतनी भीड़ होने का अंदाजा न था. उस ने सोचा, ‘टिकट ही तो लेनी है. उस में कौन सी बड़ी बात है.’

पर जब वह टिकट लेने पहुंचा, तो सब ने उसे ‘लाइन से आओ’ कह कर पीछे भेज दिया. वह सब से पीछे जा कर खड़ा हो गया और लाइन आगे बढ़ने का इंतजार करता रहा. पर कहां? लाइन वहीं की वहीं, धीरेधीरे चींटी की तरह आगे बढ़ रही थी.

मोहिन खान को अपनी मां को ले कर भिंडी बाजार जाना था. कल उस के भतीजे का पहला जन्मदिन था.

चूंकि उस की मां की उम्र हो चुकी थी. उस ने सोचा कि आज मां को वहां छोड़ कर कल शाम अपनी बीवी और बच्चे को साथ ले जाएगा, इसलिए मां को भाई के घर छोड़ कर उसे किसी भी हाल में वापस लौटना था, क्योंकि नौकरों के भरोसे वह दुकान छोड़ नहीं सकता था, इसलिए उसे जल्दी थी.

वहां उस की अम्मी इंतजार कर के थक गईं. मन ही मन कुढ़ते हुए वे सोचने लगीं कि पता नहीं कहां चला गया. कह कर गया था कि टिकट लाने जा रहा हूं, पर इतनी देर हो गई और अब तक नहीं लौटा.

उन्होंने गुस्से में आव देखा न ताव धीरेधीरे सीढ़ी चढ़ कर 2 नंबर के प्लेटफार्म पर आ गईं. यह सोच कर कि उन का बेटा पीछेपीछे आ जाएगा.

जो ट्रेन आई, वे उस में चढ़ गईं.

उन्हें अपनी सहेली की बेटी सुलताना मिली. उसे भी भिंडी बाजार जाना था. वे कई सालों बाद उस से मिलीं, तो बतियाने लगीं.

इधर मोहिन खान टिकट ले कर सीढि़यों के पास पहुंचा. वहां अपनी अम्मी को न देख कर वह घबरा गया. उस ने टिकटघर के आसपास का सारा इलाका छान मारा, पर उसे उस की अम्मी कहीं नहीं नजर आईं.

शाम ढल चुकी थी. अंधेरा भी हो गया. सड़कें, दुकान, मकान, होटल यहां तक कि टिकटघर के साथ प्लेटफार्म भी बिजली की रोशनी से जगमगाने लगे थे.

उस ने सभी प्लेटफार्म देख लिए, पर अम्मी का कहीं पता नहीं चला. पूछताछ करे भी तो किस से? उसे कुछ भी सूझ नहीं रहा था कि वह क्या करे.

मोहिन खान ने बारीबारी से सब को फोन कर के पूछ लिया, पर कहीं से भी उस की अम्मी के पहुंचने की खबर नहीं मिली. अब तो वह और भी डर गया. उस के परिवार वाले भी परेशान थे. भिंडी बाजार में फोन करने पर उस के भाईजान और भाभीजान दोनों परेशान हो गए. कुर्ला से भायखाला का आधे घंटे का सफर है, फिर वे कहां रह गईं.

भिवंडी में मझले भाई असलम को पता चला, तो वह भी परेशान हो गया. गोवंडी में मोहिन खान की आपा को जब यह बात पता चली, तो वे बहुत गुस्से में बिफर कर फोन पर ही चिल्लाईं, ‘कितने लापरवाह हो तुम लोग? अभी कल ही तो छोड़ आई थी मैं उन्हें, कहीं कोई झगड़ा तो नहीं कर लिया किसी ने?’ कह कर गुस्से से फोन रख दिया.

मझला भाई भी अपने परिवार के साथ अम्मी को ढूंढ़ता हुआ पहुंच गया. फिर सब ने मिल कर अंदाजा लगाया कि कहीं वे वापस मोहिन खान के घर तो नहीं चली गईं?

यह सोच कर मझले भाई ने उसे फोन लगा कर कहा, ‘‘देखो मोहिन, तुम घबराना मत. तुम एक काम करो, एक बार घर जा कर देख लो. कहीं वे वापस न चली गई हों. अगर वे घर पर न हों, तो भी फिक्र मत करो. तुम दुकान बंद कर के बीवीबच्चों के साथ यहां चले आओ. हम सब मिल कर ढूंढ़ते हैं.’’

‘‘अच्छा भाईजान,’’ कह कर मोहिन खान सीधा घर गया. वहां अम्मी को न पा कर दोनों मियांबीवी कुछ देर बाद भिंडी बाजार पहुंच जाते हैं.

सब कितने खुश थे कि कल असलम के बच्चे का पहला जन्मदिन मनाया जाने वाला था. सब सोच रहे थे कि बड़े धूमधाम से जन्मदिन मनाएंगे कि अचानक यह खबर मिली. जहां कल के जश्न की तैयारियां होनी थीं, आज वहां एक अजीब सी खामोशी छाई थी.

जैसेजैसे रात होती गई, सब की फिक्र भी बढ़ती जा रही थी. सब के चेहरे मायूस थे. फिर सब ने तय किया कि अगर कल शाम तक कोई खबर नहीं मिली या अम्मी नहीं लौटीं, तो पुलिस में शिकायत दर्ज करेंगे. रात के साढ़े 11 बजे थे. सब थक चुके थे, पर किसी को भी न भूख थी, न आंखों में नींद.

अचानक दरवाजे की घंटी बजी. दरवाजा खुलते ही सामने अम्मी को एक अजनबी के साथ देख कर सब को हैरानी हुई. सब के चेहरे खुशी से चमक उठे.

अम्मी ने उस अजनबी को भीतर बुलाया और सोफे पर बैठाया. बहू से कहा, ‘‘शबनम, जरा पानी तो लाना.’’

‘‘जी अम्मीजान,’’ कह कर वह रसोईघर में गई और एक ट्रे में एक जग पानी भर कर और कुछ खाली गिलास भी ले आई.

तब तक अम्मी भी बैठ चुकी थीं. उन को पानी पिला कर वह जाने लगी, तो अम्मी ने कहा, ‘‘बहू, ये हमारे मेहमान हैं, आज रात यहीं रुकेंगे. इन के खानेपीने का इंतजाम करो.’’

‘‘जी अम्मीजान,’’ कह कर वह वापस रसोईघर में चली गई.

अब अम्मी बेटों और दामाद की ओर मुड़ कर बोलीं, ‘‘यह मेरी सहेली का बेटा है, जो मुझे छोड़ने आया है. हुआ यों कि मैं मोहिन खान के इंतजार में खड़ीखड़ी थक कर यह सोच कर धीरेधीरे चल पड़ी कि मेरे पीछे चला आएगा, पर वह नजर ही नहीं आया…

‘‘मैं यह सोच कर गाड़ी में भी चढ़ गई कि वह पीछे ही होगा, पर इस का तो पता ही नहीं था.

‘‘फिर मुझे मेरी सहेली की बेटी सुलताना मिली. उस से पता चला कि उस की मां की तबीयत आजकल खराब चल रही है, इसलिए मैं उसे देखने चली गई थी. वह भिंडी बाजार में ही रहती है.’’

यह सुन कर सब खामोश हो गए. कुछ ही देर में शबनम ने आ कर अम्मी के कान में कहा, ‘‘अम्मीजान, खाना लग चुका है.’’

‘‘चलो, खाना लग चुका है,’’ अम्मी ने कहा.

बाद में अम्मी अपनी सहेली के बेटे अजीज को मेहमानों के कमरे में पहुंचा कर खुद भी आराम करने अपने कमरे में चली गईं. बाकी सब भी सोने के लिए जाने की तैयारी में थे कि ऐसे में असलम के मोबाइल फोन की घंटी बजी. सामने से पूछा गया… ‘अम्मी कहां…’

इस से पहले कि उस की बात पूरी होती, असलम ने कहा, ‘‘अम्मी यहां…’’ और इस से आगे वह खुशी के मारे कुछ भी नहीं कह पाया.

लेखिका- रश्मि नायर

Stories In Hindi : खुद ही – नरेन और रेखा के बीच क्या संबंंध था

Stories In Hindi : रात के साढ़े 10 बजे थे. नरेन के आने का कोई अतापता नहीं था. हालांकि उस ने विभा को फोन कर दिया था कि उसे आने में देर हो जाएगी, सो वह खाना खा कर, दरवाजा बंद कर सो जाए, उस का इंतजार न करे. चाबी उस के पास है ही. वह आ कर दरवाजा खोल कर जोकुछ खाने को रखा है, खा कर सो जाएगा. यह जानते हुए भी विभा नरेन के आने के इंतजार में करवटें बदल रही थी. वह देखना चाहती थी कि आखिर उस के आने में कितनी देर होती है, जबकि बेटी अंशिता सो चुकी थी.

समय काटने के लिए विभा ने रेडियो पर पुराने गाने लगा दिए थे, जिन्हें सुनतेसुनते उसे कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला. एकाएक विभा की नींद टूटी. उस ने चालू रेडियो को बंद करना चाहा कि उस गाने को सुन कर उस के हाथ रेडियो बंद करतेकरते रुक गए. गाने के बोल थे, ‘अपने जीवन की उलझन को कैसे मैं सुलझाऊं. बीच भंवर में नाव है मेरी कैसे पार लगाऊं…’ गाने ने जैसे मन की बात कह दी. गाने जैसी खींचातानी उस की जिंदगी में भी हो रही थी.

‘कोई कामधाम नहीं है, यह सब बहानेबाजी है,’ विभा ने मन ही मन कहा. दरअसल, नरेन उस रेखा के चक्कर में है जिस से वह उस से एक बार मिलवा भी चुका था. विभा से वह घड़ी आज भी भुलाए नहीं भूलती. कितना जोश में आ कर उस ने परिचय कराया था. ‘इन से मिलो विभा, ये मेरे औफिस में ही हैं, हमारे साथ काम करने वाली रेखा. बहुत अच्छा स्वभाव है इन का… और रेखा, ये हैं मेरी पत्नी विभा…’

विभा को शक हो गया था. एक पराई औरत के प्रति ऐसा खिंचाव. और तो और बाद में वह उसे छोड़ने भी गया था. चाहता तो किसी बस में बिठा कर विदा भी कर सकता था, पर नहीं. गाना खत्म हुआ तो विभा ने रेडियो बंद कर दिया और सोने की कोशिश करने लगी. आखिरकार नींद लग ही गई.

पता नहीं, कितना समय हुआ कि उस ने अपने शरीर पर किसी का हाथ महसूस किया. उसे लग गया था कि यह नरेन ही है. उस ने उस के हाथ को अपने पर से हटाया और उनींदी में कहने लगी, ‘‘सोने दो. नींद आ रही है. कहां थे इतनी देर से. समय से आना चाहिए न.’’ ‘‘क्या करूं डार्लिंग, कोशिश तो जल्दी आने की ही करता हूं,’’ नरेन ने विभा को अपनी ओर खींचते हुए कहा.

‘‘आप रेखा से मिल कर आ रहे हैं न…’’ विभा ने अपनेआप को छुड़ाते हुए ताना सा कसा, ‘‘इतनी अच्छी है तो मुझ से शादी क्यों की? कर लेते उसी से…’’ ‘‘विभा, छोड़ो भी न. यह भी कोई समय है ऐसी बातों का. आज अच्छा मूड है, आओ न.’’

‘‘तुम्हारा तो अच्छा मूड है, पर मेरा तो मूड नहीं है न. चलो, सो जाओ प्लीज,’’ विभा दूसरी ओर मुंह कर के सोने की कोशिश करने लगी. ‘‘तुम पत्नियां भी न… कब समझोगी अपने पति को,’’ नरेन ने निराश हो कर कहा.

‘‘पहले तुम मेरे हो जाओ.’’ ‘‘तुम्हारा ही तो हूं बाबा. पिछले

15 सालों से तुम्हारा ही हूं विभा. मेरा यकीन मानो.’’ ‘‘तो सच बताओ, इतनी देर तक उस रेखा के साथ ही थे न?’’

‘‘देखो, जब तक मैं उस कंपनी में था, उस के पास था. जब मैं वहां से जौब छोड़ कर अपनी खुद की कौस्मैटिक की मार्केटिंग का काम कर रहा हूं तो अब वह यहां भी कहां से आ गई?’’ ‘‘मुझे तो यकीन नहीं होता. अच्छा बताओ कि तुम ने नहीं कहा था कि अब जब मैं अपना काम कर रहा हूं तब तो मैं समय से आ जाया करूंगा. तुम तो अब भी ऐसे ही आ रहे हो जैसे उसी कंपनी में काम करते हो.’’

‘‘अपना काम है न. सैट करने में समय तो लगता ही है. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. मेरी बात मानो. अब सब तुम्हारे हिसाब से चलने लगेगा. ठीक है, अच्छा अब तो मान जाओ.’’ ‘‘नहीं, बिलकुल नहीं. मुझे तो बिलकुल यकीन नहीं होता. तुम एक नंबर के झूठे हो. मैं कई बार तुम्हारा झूठ पकड़ चुकी हूं.’’

‘‘तो तुम नहीं मानोगी?’’ ‘‘जब तक मुझे पक्का यकीन नहीं हो जाता,’’ निशा ने कहा.

‘‘तो तुम्हें यकीन कैसे होगा?’’ ‘‘बस, सच बोलना शुरू कर दो और समय से घर आना शुरू कर दो.’’

‘‘अच्छी बात है. कोशिश करता हूं,’’ रंग में भंग पड़ता देख नरेन ने अपने कदम पीछे खींच लेने में ही भलाई समझी. वह नहीं चाहता था कि बात आगे बढ़े. वह भी करवट बदल कर सोने की कोशिश करने लगा. विभा का शक नरेन के प्रति यों ही नहीं था. दरअसल, कुछ महीने पहले की बात है. वह और विभा बच्ची अंशिता के साथ शहर के एक बड़े गार्डन में घूमने गए थे जहां वह रेखा के साथ भी घूमने जाता रहा था. वहां से वे अपने एक परिचित भेल वाले के यहां नाश्ते के लिए चले गए.

भेल वाले ने सहज ही पूछ लिया था कि आज आप के साथ वे बौबकट बालों वाली मैडमजी नहीं हैं? बस, यह सुनते ही विभा के तनबदन में आग लग गई थी और घर लौट कर उस ने नरेन की अच्छे से खबर ली थी.

नरेन ने लाख सफाई दी, पर विभा नहीं मानी थी. जैसेतैसे आगे न मिलने की कसम खा कर नरेन ने अपना पिंड छुड़ाया था. विभा की बातों में सचाई थी इसलिए नरेन कमजोर पड़ता था. नरेन रेखा के चक्कर में इस कदर पड़ा था कि वह चाह कर भी खुद को रेखा से अलग नहीं कर पा रहा था.

रेखा का खूबसूरत बदन और कटार जैसे तीखे नैन. नरेन फिदा था उस पर. अब एक ही रास्ता था कि रेखा शादी कर ले और अपना घर बसा ले, पर एक तरह से रेखा यह जानते हुए कि नरेन शादीशुदा है, वह खुद को उसे सौंप चुकी थी. नरेन में उसे पता नहीं क्या नजर आता था. यहां तक कि जब विभा गांव में कुछ दिनों के लिए अपनी मां के यहां जाती तो रेखा नरेन के यहां आ जाती और फिर दोनों मजे करते.

पर विभा को किसी तरह इस बात की भनक लग गई थी, इसलिए उस ने अब मां के यहां जाना कम कर दिया था. विभा संबंधों की असलियत को समझ नहीं पा रही थी क्योंकि जहां एक ओर वह मां बनने के बाद नरेन से प्यार में कम दिलचस्पी लेती थी या लेती ही नहीं थी, वहीं दूसरी ओर नरेन अब भी विभा से पहले वाले प्यार की उम्मीद रखता था. उस की तो इच्छा होती थी कि हर रात सुहागरात हो. पर जब विभा से उस की मांग पूरी नहीं होती तो वह रेखा की तरफ मुड़ जाता था. इस तरह नरेन का रेखा से जुड़ाव एक मजबूरी था जिसे विभा समझ नहीं पा रही थी.

विभा ने रेखा वाली सारी बातें अपने तक ही सीमित रखी थीं. अगर वह नरेन के रेखा से प्रेम संबंध वाली बात अपने मां या बाबूजी को बताती तो उन्हें बहुत दुख पहुंचता, जो वह नहीं चाहती थी. विभा के सामने यह जो रेखा वाली उलझन है वह इसे खुद ही सुलझा लेना चाहती थी.

2 बच्चों में से एक बच्चा यानी अंशिता से बड़ा लड़का अर्पित तो अपने ननिहाल में पढ़ रहा है, क्योंकि यहां पैसे की समस्या है. अभी मकान हो जाएगा, तो हो जाएगा, फिर बच्चों का कैरियर, उन की शादी का काम आ पड़ेगा. ऐसे में खुद का मकान तो होने से रहा. नरेन के प्यार के इस तेज बहाव को ले कर विभा एक बार डाक्टर से मिलने की कोशिश भी कर चुकी थी कि प्यार में अति का भूत उस पर से किसी तरह उतरे. ऐसा होने पर वह रेखा से भी दूर हो सकेगा. उस ने यह भी जानने की कोशिश की थी कि कहीं वह कुछ करता तो नहीं है, पर ऐसी कोई बात नहीं थी. अब वह अंशिता को ज्यादातर अपने आसपास ही रखती थी ताकि नरेन को भूल कर भी एकांत न मिले.

अगले दिन नरेन ने काम पर जाते हुए विभा के हाथ में 200 रुपए रखे और मुसकराते हुए उस की कलाई सहलाई. विभा ने आंखें तरेरीं. नरेन सहमते हुए बोला, ‘‘जानू, आज साप्ताहिक हाट है. सब्जी के लिए पैसे दे रहा हूं. भूलना मत वरना फिर रोज आलू खाने पड़ेंगे,’’ कहते हुए टीवी देख रही अंशिता को प्यार से अपने पास बुलाते हुए उस से शाम को आइसक्रीम खिलाने का वादा करते हुए अपने बैग को थामते हुए बाहर निकल गया. विभा दरवाजा बंद कर अपने काम में जुट गई. उसे तो याद ही नहीं था कि सचमुच आज तो हाट का दिन है और उसे हफ्तेभर की सब्जी भी लानी है. वह अंशिता की मदद ले कर फटाफट काम पूरा करने में जुट गई.

कामकाज खत्म कर अंशिता को पढ़ाई की हिदायत दे कर बड़ा सा झोला उठाए विभा दरवाजा लौक कर बाजार की ओर निकल गई. उसे अंशिता के चलते घर जल्दी लौटने की फिक्र थी. अभी विभा कुछ सब्जियां ही ले पाई थी और एक सब्जी का मोलभाव कर रही थी कि किसी ने पीछे से कंधे पर हाथ रखा. विभा पलटी तो एक अजनबी औरत को देख कर अचरज करने लगी.

‘‘तुम विभा ही हो न,’’ उस अजनबी औरत ने विभा को हैरानी में देखा तो पूछा, ‘‘जी. पर, आप कौन हैं? ‘‘अरे, तारा दीदी आप… दरअसल, आप को जूड़े में देखा तो…’’ झटपट विभा ने तारा टीचर के पैर छू लिए.

‘‘सही पहचाना तुम ने. कितनी कमजोर थी तुम पढ़ने में, जब तुम मेरे घर ट्यूशन लेने आती थी. इसी से तुम मुझे याद हो वरना एक टीचर के पास से कितने स्टूडैंट पढ़ कर निकलते हैं. कितनों को याद रख पाते हैं हम लोग,’’ आशीर्वाद देते हुए तारा दीदी ने कहा. ‘‘मेरा घर यहां नजदीक ही है. आइए न. घर चलिए,’’ विभा ने कहा.

‘‘नहींनहीं, फिर कभी. अब मैं रिटायर हो चुकी हूं और पास की कालोनी में रहती हूं. लो, यह है मेरा विजिटिंग कार्ड. घर आना. खूब बातें करेंगे. अभी इस वक्त थोड़ा जल्दी है वरना रुकती. अच्छा चलती हूं विभा.’’ विभा ने कार्ड पर लिखा पता पढ़ा और अपने पर्स में रख कर सब्जी के लिए आगे बढ़ गई.

विभा ने तय किया कि वह अगले दिन तारा दीदी से मिलने उन के घर जरूर जाएगी. उसे लगा कि तारा दीदी उस की उलझन को सुलझाने में मदद कर सकती हैं. अगले दिन सारा काम निबटा कर वह अंशिता को पड़ोस में रहने वाली उस की हमउम्र सहेली के पास छोड़ कर तारा दीदी के घर की ओर चल पड़ी. उसे घर ढूंढ़ने में जरा भी परेशानी नहीं हुई. उस ने डोर बेल बजाई तो दरवाजा खोलने वाली तारा दीदी ही थीं.

‘‘आओ विभा,’’ कह कर अपने साथ अंदर ड्राइंगरूम में ले जा कर बिठाया. सबकुछ करीने से सजा हुआ था. शरबत वगैरह पीने के बाद तारा दीदी ने विभा का हाथ अपने हाथ में लेते हुए पूछा, ‘‘कहो, क्या बात है विभा. सबकुछ ठीकठाक है. जिंदगी किस तरह चल रही है? तुम्हारे मिस्टर, तुम्हारे बच्चे…’’ विभा फिर जो शुरू हुई तो बोलती चली गई. तारा दीदी बड़े गौर से सारी बातें सुन रही थीं. उन्हें लगा कि विभा की मुश्किल हल करने में अभी भी एक टीचर की जरूरत है. स्कूल में विभा सवाल ले कर जाती थी, आज वह अपनी उलझन ले कर आई है.

अपनी उलझन बता देने से विभा काफी हलका महसूस हो रही थी जैसे कोई सिर पर से बोझ उतर गया हो. तारा दीदी ने गहरी सांस ली. उन्होंने कहा, ‘‘मुझे गर्व है कि तुम मेरी स्टूडैंट हो. अपना यह सब्र बनाए रखना. ऐसा कोई गलत कदम मत उठाना जिस से घर बरबाद हो जाए. आखिर ये 2 बच्चों के भविष्य का भी सवाल है.’’

‘‘तो बताओ न दीदी, मुझे क्या करना चाहिए?’’ विभा ने पूछा. ‘‘देखो विभा, समस्या होती तो छोटी है, केवल हमारी सोच उसे बड़ा बना देती है. एक तो तुम अपनी तरफ से किसी तरह से नरेन की अनदेखी मत करो. उसे सहयोग करो. आखिर तुम बीवी हो उस की. अगर वह तुम से प्यार चाहता है तो उसे दो. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. रहा सवाल रेखा का तो इतना समझ लो इस मामले में जो भी मुझ से हो सकेगा मैं करूंगी.’’

‘‘मैं अब आप के भरोसे हूं दीदी. अच्छा चलती हूं क्योंकि घर पर अंशिता अकेली है.’’ ‘‘बिलकुल जाओ, अपना फर्ज, अपनी जिम्मेदारी ठीक से निभाओ.’’

विभा अब ठीक थी. उसे लगा नरेन पर से अब रेखा का साया उठ जाएगा और उस की जिंदगी में खुशहाली छा जाएगी. शाम को जब नरेन घर लौटा तो उन के साथ एक साहब भी थे. नरेन ने विभा से उन का परिचय कराया और बताया, ‘‘आज जब मैं एक बड़े मौल में मार्केटिंग के काम से गया था तो एक शौप पर इन से मुलाकात हुई.

‘‘दरअसल, इन का वडोदरा में कौस्मैटिक का कारोबार है और इन्हें वहां एक मैनेजर की सख्त जरूरत है. जब इन्होंने उस दुकानदार से मेरा बातचीत का लहजा और स्टाइल देखी तो ये बहुत प्रभावित हुए. मुझ से मेरा सारा जौब ऐक्सपीरियंस सुना. मेरी लाइफ के बारे में जाना और कहने लगे कि तुम में मुझे मैनेजर की सारी खूबियां दिखती हैं. मैं तुम्हें अपने यहां मैनेजर की पोस्ट औफर करता हूं. अच्छी तनख्वाह, फ्लेट, गाड़ी, सब सहूलियतें मिलेंगी. ‘‘मैं ने इन से कहा कि अपनी पत्नी से बात किए बिना मैं कोई फैसला नहीं ले सकता, इसलिए इन्हें यहां ले आया हूं. क्या कहती हो. क्या मैं इन का प्रस्ताव स्वीकार कर लूं?’’

‘‘पहले तुम कुछ दिनों के लिए वहां जा कर सारा कामकाज देख लो, समझ लो. अच्छा लगे तो स्वीकार कर लो,’’ विभा ने खुश होते हुए कहा. विभा को यह अच्छा लगा कि नरेन कितनी तवज्जुह देते हैं उसे. आज पहली बार उसे लगा कि वह अब तक नरेन से बुरा बरताव करती रही है, वह भी सिर्फ एक रेखा के पीछे. और यह उलझन भी अब उसे सुलझती नजर आ रही थी.

नरेन वडोदरा की ओर निकल पड़ा था. रोज रात को विभा से बात करने का नियम था उस का. विभा भी बातचीत में पूरी दिलचस्पी लेती. प्रतिदिन के कामकाज के बारे में, मालिक के बरताव के बारे में वह सबकुछ बताता. नए मिलने वाले फ्लैट जो वह देख भी आया था, के बारे में बताया और कहा कि अब वडोदरा शिफ्ट होने में फायदा ही है. विभा ने झटपट तारा दीदी के घर की ओर रुख किया. उन्हें नरेन के वडोदरा की जौब और वहीं शिफ्ट होने के बारे में बताया.

तारा दीदी के मुंह से निकला, ‘‘तब तो तुम्हारी सारी उलझनें अपनेआप ही सुलझ रही हैं विभा. जब तुम लोग शहर ही बदल रहे हो तो रेखा इतनी दूर तो वहां आने से रही.’’ सबकुछ इतना जल्दी तय हुआ कि विभा का इस पहलू की ओर ध्यान ही नहीं गया. तारा दीदी की इस बात में दम था. एक तीर से दो शिकार हो रहे थे. अब इस के पहले कि रेखा के पीछे नरेन का मन पलट जाए, उस ने वडोदरा जाना ही सही समझा.

रात को नरेन का फोन आया तो उस ने झटपट यह काम कर लेने को कहा. अभी छुट्टियां भी चल रही हैं. नए सैक्शन में बच्चों के एडमिशन में भी दिक्कत नहीं होगी. लगे हाथ अर्पित को भी मां के यहां से बुलवा लिया जाएगा. अब वह उस के पास ही रह कर आगे की पढ़ाईलिखाई करेगा. आननफानन यह काम कर लिया जाने लगा. पूरी गृहस्थी के साथ नरेन ने शिफ्ट कर लिया. विभा नए शहर में नया घर देख कर अवाक थी. ऐसे ही घर का तो उस ने कभी सपना देखा था. दोनों बच्चे तो यह सब देख कर चहक उठे.

नरेन में शुरूशुरू में उदासी जरूर नजर आई. विभा समझ गई थी कि ऐसा क्यों है. पर उस ने अब अपना प्यार नरेन पर उड़लेना शुरू कर दिया था. एक शाम जब नरेन काम से घर लौटा तो बुझाबुझा सा था. यह कामकाज की वजह से नहीं हो सकता था. उसे कुछ खटका हुआ जिसे उस ने जाहिर नहीं होने दिया. बालों में उंगलियां घुमाते हुए विभा ने बस इतना ही कहा, ‘‘क्यों न एकएक कप कौफी हो जाए.’’

नरेन ने हामी भरी. विभा कुछ सोचते हुए किचन में दाखिल हो गई. अगले ही दिन दोपहर में कामकाज से फुरसते पाते ही उस ने तारा दीदी को फोन घुमा दिया.

तब तारा दीदी ने उसे यह सूचना सुनाई कि रेखा की शादी हो गई है. सुन कर विभा उछल पड़ी, ‘‘थैंक्यू,’’ बस इतना ही कह पाई विभा और फोन बंद कर बिस्तर पर बिछ गई.

अब उसे नरेन के बुझे चेहरे की वजह भी समझ में आ गई थी. लेकिन अब सबकुछ ठीक भी हो गया था. गृहस्थी की गाड़ी बिना रुकावट एक बार फिर पटरी पर सरपट दौड़ने के लिए तैयार थी.

लेखक- दिलीप रामचंद्र नीमा

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