Love Story 2025 : सबसे हसीन वह

Love Story 2025 : इन दिनों अनुजा की स्थिति ‘कहां फंस गई मैं’ वाली थी. कहीं ऐसा भी होता है भला? वह अपनेआप में कसमसा रही थी.

ऊपर से बर्फ का ढेला बनी बैठी थी और भीतर उस के ज्वालामुखी दहक रहा था. ‘क्या मेरे मातापिता तब अंधेबहरे थे? क्या वे इतने निष्ठुर हैं? अगर नहीं, तो बिना परखे ऐसे लड़के से क्यों बांध दिया मु झे जो किसी अन्य की खातिर मु झे छोड़ भागा है, जाने कहां? अभी तो अपनी सुहागरात तक भी नहीं हुई है. जाने कहां भटक रहा होगा. फिर, पता नहीं वह लौटेगा भी या नहीं.’

उस की विचारशृंखला में इसी तरह के सैकड़ों सवाल उमड़तेघुमड़ते रहे थे. और वह इन सवालों को  झेल भी रही थी.  झेल क्या रही थी, तड़प रही थी वह तो.

लेकिन जब उसे उस के घर से भाग जाने के कारण की जानकारी हुई, झटका लगा था उसे. उस की बाट जोहने में 15 दिन कब निकल गए. क्या बीती होगी उस पर, कोई तो पूछे उस से आ कर.

सोचतेविचारते अकसर उस की आंखें सजल हो उठतीं. नित्य 2 बूंद अश्रु उस के दामन में ढुलक भी आते और वह उन अश्रुबूंदों को देखती हुई फिर से विचारों की दुनिया में चली जाती और अपने अकेलेपन पर रोती.

अवसाद, चिड़चिड़ाहट, बेचैनी से उस का हृदय तारतार हुआ जा रहा था. लगने लगा था जैसे वह अबतब में ही पागल हो जाएगी. उस के अंदर तो जैसे सांप रेंगने लगा था. लगा जैसे वह खुद को नोच ही डालेगी या फिर वह कहीं अपनी जान ही गंवा बैठेगी. वह सोचती, ‘जानती होती कि यह ऐसा कर जाएगा तो ब्याह ही न करती इस से. तब दुनिया की कोई भी ताकत मु झे मेरे निर्णय से डिगा नहीं सकती थी. पर, अब मु झे क्या करना चाहिए? क्या इस के लौट आने का इंतजार करना चाहिए? या फिर पीहर लौट जाना ही ठीक रहेगा? क्या ऐसी परिस्थिति में यह घर छोड़ना ठीक रहेगा?’

वक्त पर कोई न कोई उसे खाने की थाली पहुंचा जाता. बीचबीच में आ कर कोई न कोई हालचाल भी पूछ जाता. पूरा घर तनावग्रस्त था. मरघट सा सन्नाटा था उस चौबारे में. सन्नाटा भी ऐसा, जो भीतर तक चीर जाए. परिवार का हर सदस्य एकदूसरे से नजरें चुराता दिखता. ऐसे में वह खुद को कैसे संभाले हुए थी, वह ही जानती थी.

दुलहन के ससुराल आने के बाद अभी तो कई रस्में थीं जिन्हें उसे निभाना था. वे सारी रस्में अपने पूर्ण होने के इंतजार में मुंहबाए खड़ी भी दिखीं उसे. नईनवेली दुलहन से मिलनजुलने वालों का आएदिन तांता लग जाता है, वह भी वह जानती थी. ऐसा वह कई घरों में देख चुकी थी. पर यहां तो एकबारगी में सबकुछ ध्वस्त हो चला था. उस के सारे संजोए सपने एकाएक ही धराशायी हो चले थे. कभीकभार उस के भीतर आक्रोश की ज्वाला धधक उठती. तब वह बुदबुदाती, ‘भाड़ में जाएं सारी रस्मेंरिवाज. नहीं रहना मु झे अब यहां. आज ही अपना फैसला सुना देती हूं इन को, और अपने पीहर को चली जाती हूं. सिर्फ यही नहीं, वहां पहुंच कर अपने मांबाबूजी को भी तो खरीखोटी सुनानी है.’ ऐसे विचार उस के मन में उठते रहे थे, और वह इस बाबत खिन्न हो उठती थी.

इन दिनों उस के पास तो समय ही समय था. नित्य मंथन में व्यस्त रहती थी और फिर क्यों न हो मंथन, उस के साथ ऐसी अनूठी घटना जो घटी थी, अनसुल झी पहेली सरीखी. वह सोचती, ‘किसे सुनाऊं मैं अपनी व्यथा? कौन है जो मेरी समस्या का निराकरण कर सकता है? शायद कोईर् भी नहीं. और शायद मैं खुद भी नहीं.’

फिर मन में खयाल आता, ‘अगर परीक्षित लौट भी आया तो क्या मैं उसे अपनाऊंगी? क्या परीक्षित अपने भूल की क्षमा मांगेगा मुझ से? फिर कहीं मेरी हैसियत ही धूमिल तो नहीं हो जाएगी?’ इस तरह के अनेक सवालों से जू झ रही थी और खुद से लड़ भी रही थी अनुजा. बुदबुदाती, ‘यह कैसी शामत आन पड़ी है मु झ पर? ऐसा कैसे हो गया?’

तभी घर के अहाते से आ रही खुसुरफुसुर की आवाजों से वह सजग हो उठी और खिड़की के मुहाने तक पहुंची. देखा, परीक्षित सिर  झुकाए लड़खड़ाते कदमों से, थकामांदा सा आंगन में प्रवेश कर रहा था.

उसे लौट आया देखा सब के मुर झाए चेहरों की रंगत एकाएक बदलने लगी थी. अब उन चेहरों को देख कोई कह ही नहीं सकता था कि यहां कुछ घटित भी हुआ था. वहीं, अनुजा के मन को भी सुकून पहुंचा था. उस ने देखा, सभी अपनीअपनी जगहों पर जड़वत हो चले थे और यह भी कि ज्योंज्यों उस के कदम कमरे की ओर बढ़ने लगे. सब के सब उस के पीछे हो लिए थे. पूरी जमात थी उस के पीछे.

इस बीच परीक्षित ने अपने घर व घर के लोगों पर सरसरी निगाह डाली. कुछ ही पलों में सारा घर जाग उठा था और सभी बाहर आ कर उसे देखने लगे थे जो शर्म से छिपे पड़े थे अब तक. पूरा महल्ला भी जाग उठा था.

जेठानी की बेटी निशा पहले तो अपने चाचा तक पहुंचने के लिए कदम बढ़ाती दिखी, फिर अचानक से अपनी नई चाची को इत्तला देने के खयाल से उन के कमरे तक दौड़तीभागतीहांफती पहुंची. चाची को पहले से ही खिड़की के करीब खड़ी देख वह उन से चिपट कर खड़ी हो गई. बोली कुछ भी नहीं. वहीं, छोटा संजू दौड़ कर अपने चाचा की उंगली पकड़ उन के साथसाथ चलने लगा था.

परीक्षित थके कदमों से चलता हुआ, सीढि़यां लांघता हुआ दूसरी मंजिल के अपने कमरे में पहुंचा. एक नजर समीप खड़ी अनुजा पर डाली, पलभर को ठिठका, फिर पास पड़े सोफे पर निढाल हो बैठ गया और आंखें मूंदें पड़ा रहा.

मिनटों में ही परिवार के सारे सदस्यों का उस चौखट पर जमघट लग गया. फिर तो सब ने ही बारीबारी से इशारोंइशारों में ही पूछा था अनुजा से, ‘कुछ बका क्या?’

उस ने एक नजर परीक्षित पर डाली. वह तो सो रहा था. वह अपना सिर हिला उन सभी को बताती रही, अभी तक तो नहीं.’

एक समय ऐसा भी आया जब उस प्रागंण में मेले सा समां बंध गया था. फिर तो एकएक कर महल्ले के लोग भी आते रहे, जाते रहे थे और वह सो रहा था जम कर. शायद बेहोशी वाली नींद थी उस की.

अनुजा थक चुकी थी उन आनेजाने वालों के कारण. चौखट पर बैठी उस की सास सहारा ले कर उठती हुई बोली, ‘‘उठे तो कुछ खिलापिला देना, बहू.’’ और वे अपनी पोती की उंगली पकड़ निकल ली थीं. माहौल की गर्माहट अब आहिस्ताआहिस्ता शांत हो चुकी थी. रात भी हो चुकी थी. सब के लौट जाने पर अनुजा निरंतर उसे देखती रही थी. वह असमंजस में थी. असमंजस किस कारण से था, उसे कहां पता था.

परिवार के, महल्ले के लोगों ने भी सहानुभूति जताते कहा था, ‘बेचारे ने क्या हालत बना रखी है अपनी. जाने कहांकहां, मारामारा फिरता रहा होगा? उफ.’

आधी रात में वह जगा था. उसी समय ही वह नहाधो, फिर से जो सोया पड़ा, दूसरी सुबह जगा था. तब अनुजा सो ही कहां पाई थी. वह तो तब अपनी उल झनोंपरेशानियों को सहेजनेसमेटने में लगी हुई थी.

वह उस रात निरंतर उसे निहारती रही थी. एक तरफ जहां उस के प्रति सहानुभूति थी, वहीं दूसरी तरफ गहरा रोष भी था मन के किसी कोने में.

सहानुभूति इस कारण कि उस की प्रेमिका ने आत्महत्या जो कर ली थी और रोष इस बात पर कि वह उसे छोड़ भागा था और वह सजीसंवरी अपनी सुहागसेज पर बैठी उस के इंतजार में जागती रही थी. वह उसी रात से ही गायब था. फिर सुहागरात का सुख क्या होता है, कहां जान पाई थी वह.

उस रात उस के इंतजार में जब वह थी, उस का खिलाखिला चेहरा पूनम की चांद सरीखा दमक रहा था. पर ज्यों ही उसे उस के भाग खड़े होने की खबर मिली, मुखड़ा ग्रहण लगे चांद सा हो गया था. उस की सुर्ख मांग तब एकदम से बु झीबु झी सी दिखने लगी थी. सबकुछ ही बिखर चला था.

तब उस के भीतर एक चीत्कार पनपी थी, जिसे वह जबरन भीतर ही रोके रखे हुए थी. फिर विचारों में तब यह भी था, ‘अगर उस से मोहब्बत थी, तो मैं यहां कैसे? जब प्यार निभाने का दम ही नहीं, तो प्यार किया ही क्यों था उस से? फिर इस ने तो 2-2 जिंदगियों से खिलवाड़ किया है. क्या इस का अपराध क्षमायोग्य है? इस के कारण ही तो मु झे मानसिक यातनाएं  झेलनी पड़ी हैं. मेरा तो अस्तित्व ही अधर में लटक गया है इस विध्वंसकारी के कारण. जब इतनी ही मोहब्बत थी तो उसे ही अपना लेता. मेरी जिंदगी से खिलवाड़ करने का हक इसे किस ने दिया?’ तब उस की सोच में

यह भी होता, ‘मैं अनब्याही तो नहीं कहीं? फिर, कहीं यह कोई बुरा सपना

तो नहीं?’

दूसरे दिन भी घर में चुप्पी छाई रही थी. वह जागा था फिर से. घर वालों को तो जैसे उस के जागने का ही इंतजार था.  झटपट उस के लिए थाली परोसी गई. उस ने जैसेतैसे खाया और एक बार फिर से सो पड़ा और बस सोता ही रहा था. यह दूसरी रात थी जो अनुजा जागते  बिता रही थी. और परीक्षित रातभर जाने क्याक्या न बड़बड़ाता रहा था. बीचबीच में उस की सिसकियां भी उसे सुनाई पड़ रही थीं. उस रात भी वह अनछुई ही रही थी.

फिर जब वह जागा था, अनुजा के समीप आ कर बोला, तब उस की आवाज में पछतावे सा भाव था, ‘‘माफ करना मु झे, बहुत पीड़ा पहुंचाई मैं ने आप को.’’

‘आप को,’ शब्द जैसे उसे चुभ गया. बोली कुछ भी नहीं. पर इस एक शब्द ने तो जैसे एक बार में ही दूरियां बढ़ा दी थीं. उस के तो तनबदन में आग ही लग गई थी.

रिमझिम, जो उस का प्यार थी, इस की बरात के दिन ही उस ने आत्महत्या कर ली थी. लौटा, तो पता चला. फिर वह भाग खड़ा हुआ था.

लौटने के बाद भी अब परीक्षित या तो घर पर ही गुमसुम पड़ा रहता या फिर कहीं बाहर दिनभर भटकता रहता. फिर जब थकामांदा लौटता तो बगैर कुछ कहेसुने सो पड़ता.

ऐसे में ही उस ने उसे रिमझिम झोड़ कर उठाया और पहली बार अपनी जबान खोली थी. तब उस का स्वर अवसादभरा था, ‘‘मैं पराए घर से आई हूं. ब्याहता हूं आप की. आप ने मु झ से शादी की है, यह तो नहीं भूले होंगे आप?’’

वह निरीह नजरों से उसे देखता रहा था. बोला कुछ भी नहीं. अनुजा को उस की यह चुप्पी चुभ गई. वह फिर से बोली थी, तब उस की आवाज विकृत हो आई थी.

‘‘मैं यहां क्यों हूं? क्या मु झे लौट जाना चाहिए अपने मम्मीपापा के पास? आप ने बड़ा ही घिनौना मजाक किया है मेरे साथ. क्या आप का यह दायित्व नहीं बनता कि सबकुछ सामान्य हो जाए और आप अपना कामकाज संभाल लो. अपने दायित्व को सम झो और इस मनहूसियत को मिटा डालो?’’

चंद लमहों के लिए वह रुकी. खामोशी छाई रही. उस खामोशी को खुद ही भंग करते हुए बोली, ‘‘आप के कारण ही पूरे परिवार का मन मलिन रहा है अब तक. वह भी उस के लिए जो आप की थी भी नहीं. अब मैं हूं और मु झे आप का फैसला जानना है. अभी और अभी. मैं घुटघुट कर जी नहीं सकती. सम झे आप?’’

अनुजा के भीतर का दर्द उस के चेहरे पर था, जो साफ  झलक रहा था. परीक्षित के चेहरे की मायूसी भी वह भलीभांति देख रही थी. दोनों के ही भीतर अलगअलग तरह के  झं झावात थे,  झुं झलाहट थी.

परीक्षित उसे सुनता रहा था. वह उस के चेहरे पर अपनी नजरें जमाए रहा था. वह अपने प्रति उपेक्षा, रिमिझम के प्रति आक्रोश को देख रहा था. जब उस ने चुप्पी साधी, परीक्षित फफक पड़ा था और देररात फफकफफक कर रोता ही रहा था. अश्रु थे जो उस के रोके नहीं रुक रहे थे. तब उस की स्थिति बेहद ही दयनीय दिखी थी उसे.

वह सकपका गई थी. उसे अफसोस हुआ था. अफसोस इतना कि आंखें उस की भी छलक आई थीं, यह सोच कर कि ‘मु झे इस की मनोस्थिति को सम झना चाहिए था. मैं ने जल्दबाजी कर दी. अभी तो इस के क्षतविक्षत मन को राहत मिली भी नहीं और मैं ने इस के घाव फिर से हरे कर दिए.’

उस ने उसे चुप कराना उचित नहीं सम झा. सोचा, ‘मन की भड़ास, आंसुओं के माध्यम से बाहर आ जाए, तो ही अच्छा है. शायद इस से यह संभल ही जाए.’ फिर भी अंतर्मन में शोरगुल था. उस में से एक आवाज अस्फुट सी थी, ‘क्या मैं इतनी निष्ठुर हूं जो इस की वेदना को सम झने का अब तक एक बार भी सोचा नहीं? क्या स्त्री जाति का स्वभाव ही ऐसा होता है जो सिर्फ और सिर्फ अपना खयाल रखती है? दूसरों की परवा करना, दूसरों की पीड़ा क्या उस के आगे कोई महत्त्व नहीं रखती? क्या ऐसी सोच होती है हमारी? अगर ऐसा ही है तो बड़ी ही शर्मनाक बात है यह तो.’

उस की तंद्रा तब भंग हुई थी जब वह बोला, ‘‘शादी हो जाती अगर हमारी तो वह आप के स्थान पर होती आज. प्यार किया था उस से. निभाना भी चाहता था. पर इन बड़ेबुजुर्गों के कारण ही वह चल बसी. मैं कहां जानता था कि वह ऐसा कर डालेगी.’’

‘‘पर मेरा क्या? इस पचड़े में मैं दोषी कैसे? मु झे सजा क्यों मिल रही है? आप कहो तो अभी, इसी क्षण अपना सामान समेट कर निकल जाऊं?’’

‘‘देखिए, मु झे संभलने में जरा वक्त लगेगा. फिर मैं ने कब कहा कि आप यह घर छोड़ कर चली जाओ?’’

तभी अनुजा फिर से बिफर पड़ी, ‘‘वह हमारे वैवाहिक जीवन में जहर घोल गई है. अगर वह भली होती तो ऐसा कहर तो न ढाती? लाज, शर्म, परिवार का मानसम्मान, मर्यादा भी तो कोई चीज होती है जो उस में नहीं थी.’’

‘‘इतनी कड़वी जबान तो न बोलो उस के विषय में जो रही नहीं. ऊलजलूल बकना क्या ठीक है? फिर उस ने ऐसा क्या कर दिया?’’ वह एकाएक आवेशित हो उठा था.

वह एक बार फिर से सकपका गई थी. उसे, उस से ऐसे व्यवहार की अपेक्षा तो नहीं थी. फिर वह अब तक यह बात सम झ ही नहीं पाई थी कि गलत कौन है. क्या वह खुद? क्या उस का पति? या फिर वह नासपीटी?

देखतेदेखते चंद दिन और बीत गए. स्थिति ज्यों की त्यों ही बनी रही थी. अब उस ने उसे रोकनाटोकना छोड़ दिया था और समय के भरोसे जी रही थी.

परीक्षित अब भी सोते में, जागते में रोतासिसकता दिखता. कभी उस की नींद उचट जाने पर रात के अंधेरे में ही घर से निकल जाता. घंटों बाद थकाहारा लौटता भी तो सोया पड़ा होता. भूख लगे तो खाता अन्यथा थाली की तरफ निहारता भी नहीं. बड़ी गंभीर स्थिति से गुजर रहा था वह. और अनुजा  झुं झलाती रहती थी.

ऐसे में अनुजा को उस की चिंता सताने भी लगी थी. इतने दिनों में परीक्षित ने उसे छुआ भी नहीं था. न खुद से उस से बात ही की थी उस ने.

उस दिन पलंग के समीप की टेबल पर रखी रिमझिम की तसवीर फ्रेम में जड़ी रखी दिखी तो वह चकित हो उठा. उस ने उस फ्रेम को उठाया, रिमझिम की उस मुसकराती फोटो को देर तक देखता रहा. फिर यथास्थान रख दिया और अनुजा की तरफ देखा. तब अनुजा ने देखा, उस की आंखें नम थीं और उस के चेहरे के भाव देख अनुजा को लगा जैसे उस के मन में उस के लिए कृतज्ञता के भाव थे.

अनुजा सहजभाव से बोली, ‘‘मैं ने अपनी हटा दी. रिमझिम दीदी अब हमारे साथ होंगी, हर पल, हर क्षण. आप को बुरा तो नहीं लगा?’’

उस ने उस वक्त कुछ न कहा. काफी समय बाद उस ने उस से पूछा, ‘‘तुम ने खाना खाया?’’ फिर तत्काल बोला, ‘‘हम दोनों इकट्ठे खाते हैं. तुम बैठी रहो, मैं ही मांजी से कह आता हूं कि वे हमारी थाली परोस दें.’’

खाना खाने के दौरान वह देर तक रिमझिम के विषय में बताता रहा. आज पहली बार ही उस ने अनुजा को, ‘आप’ और ‘आप ने’ कह कर संबोधित नहीं किया था. और आज पहली बार ही वह उस से खुल कर बातें कर रहा था. आज उस की स्थिति और दिनों की अपेक्षा सामान्य लगी थी उसे. और जब वह सोया पड़ा था, उस रात, एक बार भी न सिसका, न रोया और न ही बड़बड़ाया. यह देख अनुजा ने पहली बार राहत की सांस ली.

मानसिक यातना से नजात पा कर अनुजा आज गहरी नींद में थी. परीक्षित उठ चुका था और उस के उठने के इंतजार में पास पड़े सोफे पर बैठा दिखा. पलंग से नीचे उतरते जब अनुजा की नजर  टेबल पर रखी तसवीर पर पड़ी तो चकित हो उठी. मुसकरा दी. परीक्षित भी मुसकराया था उसे देख तब.

अब उस फोटोफ्रेम में रिमझिम की जगह अनुजा की तसवीर लगी थी.

‘तुम मेरी रिमझिम हो, तुम ही मेरी पत्नी अनुजा भी. तुम्हारा हृदय बड़ा विशाल है और तुम ने मेरे कारण ही महीनेभर से बहुत दुख  झेला है, पर अब नहीं. मैं आज ही से दुकान जा रहा हूं.’

और तभी, अनुजा को महसूस हुआ कि उस की मांग का सिंदूर सुर्ख हो चला है और दमक भी उठा है. कुछ अधिक ही सुर्ख, कुछ अधिक ही दमक रहा है.

लेखक : केशव राम वाड़दे

Romantic Tales : उपहार

Romantic Tales : लेकिन मोहिनी थी कि उसे एक भी तोहफा न पसंद आता. आखिर में जब सत्या की मेहनत की कमाई से खरीदे छाते को भी नापसंद कर के मोहिनी ने फेंका तो…

‘‘सिर्फ एक बार, प्लीज…’’

‘‘ऊं…हूं…’’

‘‘मोहिनी, जानती हो मेरे दिल की धड़कनें क्या कहती हैं? लव…लव… लेकिन तुम, लगता है मुझे जीतेजी ही मार डालोगी. मेरे साथ समुद्र किनारे चलते हुए या फिर म्यूजियम देखते समय एकांत के किसी कोने में तुम्हारा स्पर्श करते ही तुम सिहर कर धीमे से मेरा हाथ हटा देती हो. एक बार थिएटर में…’’

‘‘सत्या प्लीज…’’

‘‘मैं ने ऐसी कौन सी अनहोनी बात कह दी. मैं तो केवल इतना चाहता हूं कि तुम एक बार, सिर्फ एक बार ‘आई लव यू’ कह दो. अच्छा यह बताओ कि तुम मुझे प्यार करती हो या नहीं?’’

‘‘नहीं जानती.’’

‘‘यह भी क्या जवाब हुआ भला? हम दोनों एक ही बिरादरी के हैं. हैसियत भी एक जैसी ही है. तुम्हारी और मेरी मां इस रिश्ते के लिए मना भी नहीं करेंगी. हां, तुम मना कर दोगी, दिल तोड़ दोगी, तो मैं…तो मर जाऊंगा, मोहिनी.’’

‘‘मुझे एक छाता चाहिए सत्या. धूप में, बारिश में, बाहर जाते समय काफी तकलीफ होती है. ला दोगे न?’’

‘‘बातों का रुख मत बदलो. छाता दिला दूं तो ‘आई लव यू’ कह दोगी न?’’

मोहिनी के जिद्दी स्वभाव के बारे में सोच कर सत्या तिलमिला उठा पर वह दिल के हाथों मजबूर था. मोहिनी के बिना वह अपनी जिंदगी सोच ही नहीं सकता था. लगा, मोहिनी न मिली तो दिल के टुकड़ेटुकड़े हो जाएंगे.

सत्या ने पहली बार जब मोहिनी को देखा तो उसे दिल में तितलियों के पंखों की फड़फड़ाहट महसूस हुई थी. उस की बड़ीबड़ी आंखें, सीधी नाक, ठुड्डी पर छोटा सा तिल, नमी लिए सुर्ख गुलाबी होंठ, लगा मोहिनी की खूबसूरती का बयान करने के लिए उस के पास शब्दों की कमी है.

मोहिनी से पहली मुलाकात सत्या की किसी इंटरव्यू देने के दौरान हुई थी. मिक्सी कंपनी में सेल्समैन व सेल्स गर्ल की आवश्यकता थी. वहां दोनों को नौकरी नहीं मिली थी.

कुछ दिनों बाद ही एक दूसरी कंपनी के साक्षात्कार के समय उस ने दोबारा मोहिनी को देखा था. गुलाबी सलवार कमीज में वह गजब की लग रही थी. कहीं यह वो तो नहीं? ओफ…वही तो है. उस के दिल की धड़कनें बढ़ गई थीं.

मोहिनी ने भी उसे देखा.

‘बेस्ट आफ लक,’ सत्या ने कहा.

उस की आंखें चमक उठीं. गाल सुर्ख गुलाबी हो उठे.

‘थैंक यू,’ मोहिनी के होंठों से ये दो शब्द फूल बन कर गिरे थे.

यद्यपि वहां की नौैकरी को वह खुद न पा सका पर मोहिनी पा गई. माइक्रोओवन बेचने वाली कंपनी… प्रदर्शनी में जा कर लोगों को ओवन की खूबियों से परिचित करवा कर उन्हें ओवन खरीदने के लिए प्रेरित करने का काम था.

सत्या ने नौकरी मिलने की खुशी में मोहिनी को आइसक्रीम पार्टी दे डाली. मुलाकातों का सिलसिला बढ़ता गया. छुट्टी के दिन व काम पूरा करने के बाद मोहिनी की शाम सत्या के साथ गुजरती. सत्या का हंसमुख चेहरा, मजाकिया बातें, दिल खोल कर हंसने का अंदाज मोहिनी को भा गया था. वह उस से सट कर चलती, उस की बातों में रस लेती. एक बार सिनेमाहाल में परदे पर रोमांस दृश्य देख विचलित हो कर अंधेरे में सत्या ने झट मोहिनी का चेहरा अपने हाथों में ले कर उस के होंठों पर अपने जलतेतड़पते होंठ रख दिए थे.

यह प्यार नहीं तो और क्या है? हां, यही प्यार है. सत्या के दिल ने कहा तो फिर ‘आई लव यू’ कहने में क्या हर्ज है?

पिछली बार मोहिनी के जन्म-दिन पर सत्या चाहता था कि वह अपने प्यार का इजहार करे. जन्मदिन पर मोहिनी ने उस से सूट मांगा. 500 रुपए का एक सूट उस ने दस दुकानों पर देखने के बाद पसंद किया था पर खरीदने के लिए उस के पास रुपए नहीं थे क्योंकि प्रथम श्रेणी में स्नातक होने के बाद भी वह बेरोजगार था.

घर के बड़े ट्रंक में एक पान डब्बी पड़ी थी. पिताजी की चांदी की… पुरानी…भीतर रह कर काली पड़ गई थी. मां को भनक तक लगे बिना सत्या ने चालाकी से उसे बेच दिया और मोहिनी के लिए सूट खरीदा.

आसमानी रंग के शिफान कपड़े पर कढ़ाई की गई थी. सुंदर बेलबूटे के साथ आगे की तरफ पंख फैलाया मोर. सत्या को भरोसा था कि इस उपहार को देख कर मोर की तरह मोहिनी का मन मयूर भी नाच उठेगा. उस से लिपट कर वह थैंक्यू कहेगी और ‘आई लव यू’ कह देगी. इन शब्दों को सुनने के लिए उस के कान कितने बेकरार थे पर उस के उपहार को देख कर मोहिनी के चेहरे पर कड़वाहट व झुंझलाहट के भाव उभरे थे.

‘यह क्या सत्या? इतना घटिया कपड़ा. और देखो तो…कितना पतला है, नाखून लगते ही फट जाएगा. यह देखो,’ कहते हुए उस ने अपने नाखून उस में गड़ाए और जोर दे कर खींचा तो कपड़ा फट गया. सत्या को लगा था यह कपड़ा नहीं, उस के पिताजी की पान डब्बी व मां के सेंटिमेंट दोनों तारतार हो गए हैं.

‘कितने का है?’ मोहिनी ने पूछा.

‘तुम्हें इस से क्या?’

‘रुपए कहां से मिले?’

‘बैंक से निकाले,’ सत्या ने सफाई से झूठ बोल दिया.

और इस बार छाता…उस ने मोलभाव किया. अपनेआप खुलने व बंद होने वाला छाता 2 सौ रुपए का था. दोस्तों से रुपए मिले नहीं. घर में जो कुछ ढंग की चीज नजर आई मां की आंखें बचा कर उसे बेच कर सिनेमा, ड्रामा, होटल के खर्चे में वह पहले से पैसे फूंक चुका था.

काश, एक नौकरी मिल गई होती. इस समय वह कितना खुश होता. मोहिनी के मांगने के पहले उस की आवश्यकताओं की वस्तुओं का अंबार लगा देता. चमचमाते जूते पर धूल न जमे, कपड़ों की क्रीज न बिगड़े, एक अदद सी नौकरी, बस, उसे और क्या चाहिए. पर वह तो मिल नहीं रही थी.

नौकरी तो दूर की बात, अब उस की प्रेमिका, उस की जिंदगी मोहिनी एक छाता मांग रही है. क्या करे? अचानक उसे रवींद्र का ध्यान आया जो बचपन में उस का सहपाठी था. बड़ा होने पर वह अपने पिता के साथ उन के प्रेस में काम करने लगा. बाद में पिता के सहयोग से उस ने प्रिंटिंग इंक बनाने की फैक्टरी लगा ली थी. बस, दिनरात उसी फैक्टरी में कोल्हू के बैल की तरह लगा रहता था.

एक दोस्त से पैसा मांगना सत्या को बुरा तो लग रहा था पर क्या करे दिल के हाथों मजबूर जो था.

‘‘उधार पैसे मांग रहे हो पर कैसे चुकाओगे? एक काम करो. ग्राइंडिंग मशीन के लिए आजकल मेरे पास कारीगर नहीं है. 10 दिन काम कर लो, 200 रुपए मिलेंगे. साथ ही कुछ सीख भी लोगे.’’

इंक बनाने के कारखाने में ग्राइंडिंग मशीन पर काम करने की बात सोच कर ही सत्या को घिन आने लगी थी. पर क्या करे? 200 रुपए तो चाहिए. किसी भी हाल में…और कोई चारा भी तो नहीं.

10 दिन के लिए वह जीजान से जुट गया. मशीनों की गड़गड़ाहट… पसीने से तरबतर…मैलेकुचैले कपड़े… थका देने वाली मेहनत, उस ने सबकुछ बरदाश्त किया. 10वें दिन उस ने छाता खरीदा. मोलभाव कर के उस ने 150 रुपए में ही उसे खरीद लिया. 50 रुपए बचे हैं, मोहिनी को ट्रीट भी दूंगा, उस की मनपसंद आइसक्रीम…उस ने सोचा.

तालाब के किनारे बना रेस्तरां. खुले में बैठे थे मोहिनी और सत्या. वह अपलक अपने प्यार को देख रहा था. हवा के झोंके मोहिनी की लटों को उलझा देते और वह उंगलियों से उन्हें संवार लेती. मोहिनी के चेहरे की खुशी, उस की सुंदरता का जादू, वातावरण की मादकता को बढ़ाए जा रही थी. सत्या का मन उसे भींच कर अपनी अतृप्त इच्छाओं को तृप्त कर लेने का था, किंतु बरबस उस ने अपनी कामनाओं को काबू में कर रखा था.

कटलेट…फिर मोहिनी की मनपसंद आइसक्रीम…सत्या ने बैग से छाता निकाला. वह मोहिनी की आंखों में चमक व चेहरे पर खुशी देखने के लिए लालायित था.

‘‘सत्या, यह क्या है?’’ मोहिनी ने पूछा.

‘‘तुम ने एक छाता मांगा था न…यह कंचन काया धूप में सांवली न पड़ जाए, बारिश में न भीगे, इसीलिए लाया हूं.’’ मोहिनी ने बटन दबाया. छाता खुला तो उस का चेहरा ढक गया. छाते के बारीक कपड़े से रोशनी छन कर भीतर आई.

‘‘छी…तुम्हें तो कुछ खरीदने की तमीज ही नहीं सत्या. देखो तो कितनी घटिया क्वालिटी का छाता है. इसे ले कर मैं कहीं जाऊं तो चार लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे? छाते को झल्लाहट के साथ बंद कर के पूरे वेग से उस ने तालाब की ओर उसे फेंका. छाता नाव से टकरा कर पानी में डूब गया.’’

सत्या उसे भौंचक हो कर देखता रहा. क्षण भर…वह खड़ा हुआ, कुरसी ढकेल कर दौड़ पड़ा. सीढि़यां उतर कर नाव के समीप गया. नाव को हटा कर उस ने पानी में हाथ डाल कर टटोला. छाता पूरी तरह डूब गया था. हाथपैर से टटोल कर थोड़ी देर की मशक्कत के बाद वह उसे ले आया. उस के चेहरे पर क्रोध व निराशा पसरी हुई थी.

‘‘मोहिनी, इस छाते को खरीदने के लिए 10 दिन…पूरे 10 दिन मैं ने खूनपसीना एक किया है, हाथपैर गंदे किए हैं, इंक फैक्टरी में काम सीखा है. सोच रहा था कुछ दिनों में रुपए का जुगाड़ कर के क्यों न एक छोटी सी इंक फैक्टरी मैं भी खोल लूं. कितने अरमानों से इसे खरीद कर लाया था. तुम ने मेरी मेहनत को, मेरे अरमानों को बेकार समझ कर फेंक दिया. आई एम सौरी…वेरीवेरी सौरी मोहिनी…जिसे पैसों का महत्त्व नहीं मालूम ऐसी मूर्ख लड़की को मैं ने चाहा. लानत है मुझ पर…गुड बाय…’’

‘‘एक मिनट सत्या,’’ मोहिनी ने कहा.

‘‘क्या है?’’ सत्या ने मुड़ कर पूछा तो उस की आवाज में कड़वाहट थी.

‘‘तुम ने सूट खरीद कर दिया था, उसे भी मैं ने फाड़ दिया था, तब तो तुम ने कुछ कहा नहीं. क्यों?’’

‘‘बात यह है कि…’’

‘‘…कि वह तुम्हारी मेहनत के पैसों से खरीदा हुआ नहीं था. मैं तुम्हारी मां से मिली थी. तुम मेहनत से डरते हो, यह मैं ने उन की बातों से जाना. 500 रुपए के सूट को मैं ने फाड़ा तब तो तुम ने कुछ नहीं कहा और अब इस छाते के लिए कीचड़ में भी उतर गए, जानते हो क्यों? क्योंकि यह तुम्हारी मेहनत की कमाई का है.’’

‘‘मैं इसी सत्या को देखना चाहती थी कि जो मेहनत से जी न चुराए, किसी भी काम को घटिया न समझे, मेहनत कर के कमाए और मेहनत की खाए?’’

मोहिनी उस के समीप गई. उस के हाथों से उस छाते को लिया और बोली, ‘‘सत्या, यह मेरे जीवन का एक कीमती तोहफा है. इस के सामने बाकी सब फीके हैं. अब तुम मुझ से नाराज तो नहीं हो?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘उस के समीप जा कर मोहिनी ने उसे गले लगाया.’’

‘‘उफ्, मेरे हाथपैर कीचड़ से सने हैं, मोहिनी.’’

‘‘कोई बात नहीं. एक चुंबन दोगे?’’

‘‘क्या?’’

‘‘आई लव यू सत्या.’’

सत्या के दिल में तितलियों के पंखों की फड़फड़ाहट का एहसास उसी तरह से हो रहा था जैसे उस ने पहली बार मोहिनी को देखने पर अपने दिल में महसूस किया था.

Hindi Story Telling : कुजात

Hindi Story Telling  : लोचन को गांव वालों ने अपनी बिरादरी से निकाल दिया था, क्योंकि उस ने नीची जाति की एक लड़की से शादी कर अपनी बिरादरी की बेइज्जती की थी.

गांव के मुखिया की अगुआई में सभी लोगों ने तय किया था कि लोचन के घर कोई नहीं जाएगा और न ही उस के यहां कोई खाना खाएगा.

लोचन अपनी बस्ती में हजारों लोगों के बीच रह कर भी अकेला था. उस का कोई हमदर्द नहीं था. एक दिन अचानक उस के पेट में तेज दर्द होने लगा, तो उस की बीवी घबरा कर रोने लगी. जो पैर शादी के बाद चौखट से बाहर नहीं निकले थे, वे आज गलियों में घूम कर गांव के लोगों से लोचन को अस्पताल पहुंचाने के लिए गिड़गिड़ा रहे थे. लेकिन हर दरवाजे पर उसे एक ही जवाब मिलता था, ‘गांव के लोगों से तुम्हारा कैसा रिश्ता?’

जब वह लोचन के पास लौट कर आई, तब तक लोचन का दर्द काफी कम हो चुका था. उसे देखते ही वह बोला, ‘‘गांव वालों से मदद की उम्मीद मत करो, लेकिन जरूरत पड़े तो तुम उन की मदद जरूर कर देना.’’ इस के बाद लोचन ने खुद जा कर डाक्टर से दवा ली और थोड़ी देर बाद उसे आराम हो गया.

दूसरे दिन दोपहर के 12 बजे हरखू के कुएं पर गांव की सभी औरतें जमा हो कर चिल्ला रही थीं, पर महल्ले में कोई आदमी नहीं था, जो उन की आवाज सुनता. सभी लोग खेतों में काम करने जा चुके थे.

लोचन सिर पर घास की गठरी लिए उधर से गुजरा, तो औरतों की भीड़ देख कर वह ठिठक गया. औरतों ने उसे बताया कि बैजू चाचा का एकलौता बेटा कुएं में गिर गया है.

लोचन घास की गठरी वहीं छोड़ कुएं के नजदीक गया और देखते ही देखते कुएं में कूद गया. किसी पत्थर से टकरा कर उस का सिर लहूलुहान हो गया, फिर भी उस ने एक हाथ से बैजू चाचा के बेटे को कंधे पर उठा लिया और कुएं की दीवार में बनी एक छोटी सी दरार में दूसरे हाथ की उंगलियां फंसा कर लटक गया.

लोचन तकरीबन आधा घंटे तक उसी तरह लटका रहा, क्योंकि बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं था. तब तक लोगों की भीड़ बढ़ने लगी थी. गांव वालों ने लोहे की मोटी चेन कुएं में लटकाई, तो मुखियाजी बोले, ‘‘लोचन, अपने हाथों से चेन पकड़ लो, हम सब तुझे ऊपर खींच लेंगे.’’

लेकिन तब तक घायल लोचन तो बेहोश हो चुका था. मुखियाजी बोले, ‘‘तुम सब एकदूसरे को देख क्या रहे हो? इन दोनों को बचाने का कोई तो उपाय सोचो.’’

सब बुरी तरह घबरा रहे थे कि कुएं से उन दोनों को कैसे निकाला जाए? तभी एक नौजवान आगे बढ़ा और उस ने कुएं में छलांग लगा दी. उस ने लोचन और बैजू चाचा के बेटे को अपनी कमर में रस्सी से बांध दिया और चेन पकड़ कर वह बाहर आ गया.

लोचन और वह लड़का बेहोश थे. गांव वालों ने उन दोनों को तुरंत अस्पताल पहुंचाया और 2 दिन बाद वे सहीसलामत वापस आ गए.

आज सुबह से ही मुखियाजी के दरवाजे पर लोगों का आनाजाना लगा हुआ था. लेकिन लोचन को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी. सचाई जानने के लिए लोचन यह सोच कर मुखियाजी के दरवाजे की तरफ बढ़ा कि शायद मुखियाजी का बरताव अब बदल चुका होगा.

लेकिन अपने दरवाजे पर लोचन को देख मुखियाजी बोले, ‘‘तू ने अपनी जान की बाजी लगा कर बैजू के बेटे को बचा लिया, तो इस का मतलब यह नहीं है कि हमारी बिरादरी ने तेरी गलतियां माफ कर दीं. आज मेरी बेटी की शादी है और तुझे यहां देख कर बिरादरी वालों के कान खड़े हो जाएंगे, इसलिए यहां से जल्दी भाग जा.’’

यह सुनते ही लोचन की आंखों से आंसू निकल पड़े. वह सिसकते हुए बोला, ‘‘मुखियाजी, मैं आप के बेटे के बराबर हूं. अगर मेरी वजह से आप की इज्जत बिगड़ती है, तो मैं खुदकुशी कर लूंगा. इस गांव में जिंदा रहने से क्या फायदा, जब मेरी सूरत देखने से ही लोग नफरत करते हैं.’’

‘‘तुम कुछ भी करो, उस के लिए आजाद हो,’’ मुखियाजी बड़बड़ाते हुए आगे बढ़ गए. लोचन आज फिर काफी दुखी हुआ. वह भारी मन से अपने घर आ गया.

शाम होते ही मुखियाजी के दरवाजे की रौनक बढ़ गई. चारों तरफ रंगबिरंगी लाइटें जगमगा रही थीं और बैंडबाजा बज रहा था.

देर रात तक शादी की रस्म चलती रही. सुबह 4 बजे बेटी की विदाई के लिए गांव की औरतें जमा हो गईं. बिरादरी वाले भी दरवाजे पर खड़े थे. अचानक घर के अंदर हल्ला मचा, तो सभी लोग दरवाजे की ओर दौड़े. पता चला कि बेटी के सारे गहने चोरी हो गए हैं और लड़की खुद बेहोश है.

मुखियाजी चिल्ला पड़े, ‘‘तुम सब यहां क्या देख रहे हो? जल्दी पता करो कि किस ने हमारे घर में चोरी की है. मैं उस को जिंदा नहीं छोड़ूंगा.’’

सभी लोगों ने घर से बाहर निकल बस्ती को घेर लिया, लेकिन चोर का कहीं पता नहीं चला.

एक घंटे बाद लड़की को होश आया, तो मुखियाजी ने उस से पूछा, ‘‘यह सब किस ने किया बेटी?’’

‘‘मुझे कुछ पता नहीं है पिताजी. किसी ने मुझे बेहोश कर दिया था,’’ इतना कह कर वह सिसकने लगी.

यह बात जब दूल्हे के पिता को पता चली, तो वे आंगन में घुसते ही मुखियाजी से बोले, ‘‘जो बीत चुका, उसे भूल जाइए समधी साहब. अब बहू को विदा कीजिए. जिस गांव में एकता नहीं होती, वहां यही सब होता है.’’

मुखियाजी आंसू पोंछते हुए बोले, ‘‘आप महान हैं समधी साहब. आज अगर कोई दूसरा होता, तो बरात लौट जाती. बस, मुझे अफसोस इस बात का है कि मेरी बेटी सोने की जगह धागे का मंगलसूत्र पहन कर जाएगी.’’

बरात विदा हो गई. बेटी के साथ सभी रोने लगे थे. सब का चेहरा मुरझाया हुआ था. गाड़ी आगे बढ़ी, तो बढ़ती ही चली गई.

लेकिन यह क्या? गांव के बाहर गाड़ी अचानक रुक गई. सामने सड़क पर कोई घायल हो कर पड़ा था. दूर से देखने पर यह पता नहीं चल रहा था कि वह कौन है.

दूल्हे के पिता ने मुखियाजी और तमाम गांव वालों को अपने हाथ के इशारे से बुलाया, तो सभी लोग दौड़े चले आए.

‘‘अरे, यह तो लोचन है,’’ पास पहुंचते ही मुखियाजी बोले, ‘‘तुम्हारी ऐसी हालत किस ने की है लोचन? तुम्हारा तो सिर फट चुका है और पैर पर भी काफी चोट लगी है.’’

‘‘मुझे माफ करना मुखियाजी. मैं उन चोरों को पकड़ नहीं सका. लेकिन अपनी बहन का मंगलसूत्र उन लोगों से जरूर छीन लिया. उन लोगों ने मारमार कर मुझे बेहोश कर दिया था.

‘‘जब मुझे होश आया, तो मैं ने सोचा कि विदाई से पहले आप के पास जा कर अपनी बहन का मंगलसूत्र दे दूं. लेकिन मैं इसलिए नहीं गया कि कहीं आप की बिरादरी वालों के कान न खड़े हो जाएं,’’ सिसकते हुए लोचन ने कहा.

‘‘लोचन, अब मुझे और शर्मिंदा मत करो बेटा. आज तुम ने साबित कर दिया कि समाज की सीमाओं को तोड़ कर भी इनसानियत को बरकरार रखा जा सकता है. आज से तुम इस गांव का एक हिस्सा ही नहीं, बल्कि एक आदर्श भी हो. तुम ने इस गांव के साथसाथ मेरी इज्जत को और भी बढ़ा दिया है,’’ कहते हुए मुखियाजी की आंखें भर आईं.

इस के बाद मुखियाजी घायल लोचन को ले कर गांव वालों के साथ अस्पताल की ओर जाने लगे. लोचन अपनी बहन की उस गाड़ी को देखता रहा, जो धीरेधीरे उस की आंखों से ओझल हो रही थी.

लेखक- संजय सिंह

Pregnancy के दौरान कब और क्यों कराना चाहिए अल्ट्रासाउंड

Pregnancy : प्रैगनेंसी के वक्त जब मां के गर्भ में बच्चा पलबढ़ रहा होता है, तो यह समय एक मां के लिए जितना सुखदायी होता है उतना ही कठिन भी, क्योंकि 9 महीने की प्रैगनेंसी में हर महीने महिला अलगअलग प्रैगनेंसी लक्षणों को झेल रही होती है. कभी अत्यधिक उलटियां, कमरदर्द, पैरों में सूजन, थकावट, कब्ज, वजन बढ़ना, जोड़ों में दर्द, ऐसिडिटी, तो कभी हार्टबर्न.

ये तो बस कुछ ही परेशानियां हैं, जानें कितनी ही दिक्कते हैं जिन का एक औरत मातृत्व की इस यात्रा में सामना करती है.

इस दौरान हिम्मत देने और जन्म से पहले शिशु से इमोशनली जुड़ने में अल्ट्रासाउंड काफी मददगार साबित होते हैं. जो न सिर्फ आप के बच्चे की सही ग्रोथ और सेहत को दिखाते हैं, जब आप अल्ट्रासाउंड के दौरान बच्चे के हाथपैर देखती हैं, उस की धड़कनों को पहली बार सुनती हैं तो उस से आप का आप के बच्चे से लगाव बढ़ जाता है.

अल्ट्रासाउंड से आप को प्रैगनेंसी के रिस्क या बच्चे को गर्भ में कुछ परेशानी तो नहीं, यह सब भी पता चल जाता है. गर्भावस्था में कौन से अल्ट्रासाउंड कराने चाहिए, इस के बारे में हम यहां जानेंगे :

अर्ली प्रैगनेंसी या डेटिंग स्कैन : यह गर्भधारण के शुरुआती दिनों जैसे 7 से 11 हफ्तों के अंदर किया जाता है. यह बताता है कि आप का बच्चा गर्भ में सही है. यहां आप को पहली बार अपने बच्चे की धड़कन सुनने का मौका मिलता है. हालांकि आप का बच्चा यहां मूंग की दाल के दाने के बराबर साइज का होता है, लेकिन आप उसे जीताजागता देख सकते हैं.

अल्ट्रासाउंड के टर्म्स की बात करें, तो यहां आप को रिपोर्ट में ईडीडी (EDD) यानी कब आप का बच्चा डिलिवर होगा, (फ्यूटस) Featus से अर्थ है आप का बच्चा, (एफएचआर) FHR से मतलब होता है बच्चे की धड़कन, जैसे टर्म्स देखने को मिलेंगी.

NT/NC स्कैन : यह आप के गर्भधारण के 11 से 13वें हफ्ते में किया जाता है. यह स्कैन बहुत जरूरी है। इसलिए आप को किसी भी हालत में इस को मिस नहीं करना चाहिए. इस में आप के बच्चे का साइज एक स्ट्राबैरी के बराबर हो जाता है और मेजर और्गन्स बनना, हाथपैर, रीड की हड्डी बनना शुरू हो जाती है. बच्चे की नाक की हड्डी की लंबाई को भी इस में मापा जाता है.

यह स्कैन इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इस दौरान आप के बच्चे में ऐडवर्ड सिंड्रोम, डाउन सिंड्रोम जैसी मानसिक बीमारियां तो नहीं हैं, पता लगाया जाता है. इस स्कैन के साथ ही डबल मार्कर, ब्लड टैस्ट कराने की सलाह भी डाक्टर आप को देते हैं जिस से बच्चे में मानसिक स्थिति का सही पता लगाया जा सके.

ऐनामौली स्कैन : यह 14-18 हफ्तों की बीच कराया जाता है. इस में आप का बच्चा ऐवाकाडो के साइज का हो चुका होता है. यही स्कैन 19-22वें हफ्ते के बीच भी दोहराया जाता है ताकि बच्चे के अंग सही से ग्रो कर रहे हैं या नहीं, उस का पता लगाया जा सके. आप के शरीर में ऐमनियोटिक फ्लूड, यानी गर्भ में जिस पानी से बच्चा घिरा रहता है वह ज्यादा या कम तो नहीं, इस की भी जांच की जाती है.

गर्भ में पानी ज्यादा या कम होने से बच्चे की सेहत पर प्रभाव पड़ता है. अत्यधिक पानी होने पर कई बार डाक्टरों को इंजैक्शन से ऐमनियोटिक फ्लूड को निकालना पड़ता है. बच्चे में स्पाइना बिफिडा जैसी बीमारी, जिस में सही से बच्चे की रीड की हड्डी नहीं बन रही हो, उस की भी जांच की जाती है.

यह स्कैन आप के लिए जरूरी है क्योंकि इस में आप को बच्चे के हाथपैर, उंगलियां आदि आप को देखने को मिलेंगी.

गर्भावस्था के आखिरी 3 महीनों (तीसरा ट्राइमेस्टर) में ग्रोथ स्कैन और डौपलर स्कैन किए जाते हैं. ग्रोथ स्कैन यह देखने के लिए होता है कि बच्चा ठीक से बढ़ रहा है या नहीं, उस का वजन और स्थिति सही है या नहीं. डौपलर स्कैन गर्भनाल और प्लेसेंटा में खून के प्रवाह की जांच करता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बच्चे को पूरी तरह से पोषण मिल रहा है.

प्रैगनेंसी के दौरान होने वाले सभी अल्ट्रासाउंड न सिर्फ बच्चे के लिए बल्कि आप के लिए भी जरूरी हैं क्योंकि जब आप बच्चे की धड़कन सुनते हैं, तो मातापिता सभी को बच्चे से भावनात्मक रूप से जुड़ने का मौका मिलता है.

जन्म से पहले बच्चे से लगाव प्रैगनेंसी के दौरान खड़ी होने वाली परेशानियों को तो कम नहीं करता, लेकिन बच्चे को देख कर आप को सभी दिक्कतें झेलने की ताकत मिलती हैं, क्योंकि अल्ट्रासाउंड से परिणाम आप को अपनी आंखों के सामने नजर आता है जोकि काफी सुखद अनुभव होता है.

मुसलमान होने की वजह से मुंबई शहर में उनके साथ किया जाता है भेदभाव : Saif Ali Khan

Saif Ali Khan : हिंदू मुसलमान में भेदभाव काफी सालों से चला आ रहा है, लेकिन हालिया पिछले 10 सालों से मुस्लिम जाति खतरों के साथ गुजर रही हैं. गौरतलब है पिछले कुछ सालों में मुस्लिम सेलिब्रिटी पर अटैक ज्यादा हुआ है जिसमें से कुछ तो मर गए , कुछ को लगातार जान से मारने की धमकी मिल रही है और कुछ सेलिब्रेटी पर कातिलाना हमला हो चुका है. वजह कोई भी हो लेकिन हमला मुस्लिम लोगों पर ही ज्यादा हो रहा है. जिसकी वजह से कुछ सेलिब्रिटी तो चुपचाप हिंदुस्तान छोड़कर विदेश शिफ्ट हो रहे हैं. सलमान खान, शाहरुख खान, सैफ अली खान सभी खान हीरोज डर के साए में जी रहे हैं. इसी बात को मद्दे नजर रखते हुए हाल ही में हमले के शिकार हुए सैफ अली खान ने मुसलमान होने का खामियाजा खासतौर पर हिंदुस्तान में भुगतने को लेकर एक इंटरव्यू में इस बारे में बताया है.

सैफ अली खान के अनुसार मुसलमान होने की वजह से मुंबई शहर में भी उनको भेदभाव के तहत गुजरना पड़ता है .जब की विदेश में किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता की हम हिंदू है या मुस्लिम है. वहां पर कोई किसी को उनकी जात या भाषा से जज नहीं करता. लेकिन मुंबई में अगर घर भी खरीदना हो तो बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. कई सारी बिल्डिंगों में मुस्लिम को घर नहीं देते. जैसे कि मुंबई के जुहू इलाके में मेने फ्लैट खरीदने की कोशिश की थी तो सिर्फ मुस्लिम होने की वजह से मुझे वहां पर कई बिल्डिंग में यह कहकर ना सुनना पड़ा कि हमारे यहां मुस्लिम को घर नहीं देते. इस बारे में अमित जी से भी बात की तो अमित जी ने भी बताया कि मुस्लिम को जुहू में फ्लैट मिलना मुश्किल होता है.

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि इंडिया में रिलिजियस टेंशन तो है. इंडिया की यही खासियत है कि वह इस टेंशन को सुलझाने में लगे रहते हैं, बर्दाश्त भी करते हैं, क्योंकि यहां पर ह्यूमन नेचर सिंपल नहीं है, और ना ही कभी होगा, भाई भाई से झगड़ता है, आदमी बीवी से झगड़ता है, दो मजहब वाले एक दूसरे से झगड़ते हैं. यहां पर यह सब कौमन है , यह सब यहां पर मुश्किल नहीं है , मुश्किल है तो अंडरस्टैंडिंग रखना शांति बनाए रखना. अगर यह नौर्मल बात नहीं है तो अच्छी बात भी नहीं है. क्योंकि आखिर में हिंदू हो या मुसलमान हम बचपन से यहां पले बड़े हैं. अपना पूरा जीवन इसी देश हिंदुस्तान में गुजारा है . ऐसे में अपने ही देश में तकलीफ सहन करना ,परायो जैसा व्यवहार देखना. भी तो सही नहीं है.

Urvashi Rautela की ‘डाकू महाराज’ ने बौक्स औफिस पर मचाया धमाल, ‘गेम चेंजर’ को भी पछाड़ा

Urvashi Rautela : भारत की सबसे कम उम्र की सुपरस्टार और आइकन उर्वशी रौतेला को सबसे अधिक भुगतान पाने वाली अभिनेत्री और वैश्विक कलाकार के रूप में जाना जाता है.सभी प्लेटफार्मों पर 100 मिलियन से अधिक के चौंका देने वाले सोशल मीडिया फौलोअर्स के साथ, वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबसे अधिक फौलो की जाने वाली भारतीय हस्तियों में से एक हैं. उनकी अपार लोकप्रियता ने उन्हें इंस्टाग्राम फोर्ब्स रिच लिस्ट में जगह दिलाई है, जहां वह सबसे कम उम्र की भारतीय हैं.

बौलीवुड और वैश्विक मंच दोनों पर उर्वशी का उल्लेखनीय प्रभाव दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रेरित कर रहा है. अभिनेत्री वर्तमान में पहले कभी नहीं की गई अलग तरह की भूमिका में हैं और पर्दे पर अपने काम से लोगों को सटीक रूप से मंत्रमुग्ध कर रही हैं.वर्ष 2024 उनके लिए प्रोफेशनल रूप से असाधारण और अविश्वसनीय था और अब, वह 2025 में अपने काम के साथ बड़े पैमाने पर प्रभुत्व बनाए हुए हैं. नंदमुरी बालकृष्ण और बौबी देओल के साथ उनकी नवीनतम फिल्म ‘डाकू महाराज’ ने 3 दिनों में 100 करोड़ का आंकड़ा पार कर लिया है और उर्वशी रौतेला के स्टारडम का इससे बहुत कुछ लेनादेना है. फिल्म ने राम चरण और कियारा आडवाणी अभिनीत अपने समकालीन ‘गेम चेंजर’ को बौक्स औफिस पर वास्तव में पछाड़ दिया है और फिल्म को उचित अंतर से पीछे छोड़ दिया है. इसके साथ, उर्वशी रौतेला, उर्फ देश में सबसे अधिक भुगतान पाने वाली महिला स्व-निर्मित सुपरस्टार भी आधिकारिक तौर पर उद्योग में एकमात्र बाहरी अभिनेत्री बन गईं, जिन्होंने केवल 11 महीने की अवधि के भीतर 3 दक्षिण मेगास्टार, नंदमुरी बालकृष्ण, पवन कल्याण और चिरंजीवी के साथ काम किया.

ऐसा लगता है कि उर्वशी रौतेला की स्टारडम और बौक्स औफिस पुल ने कियारा आडवाणी की फिल्म को बड़े पैमाने पर पछाड़ दिया है. अपने हालिया मीडिया साक्षात्कारों में से एक के दौरान, उर्वशी रौतेला से एक मीडिया पत्रकार ने इस बारे में पूछा और उन्होंने वास्तव में सबसे सुंदर और अद्भुत प्रतिक्रिया के साथ जवाब दिया है. बालकृष्ण और बौबी देओल के साथ ‘डाकू महाराज’ की सफलता के बाद उर्वशी रौतेला वर्तमान में कमल हासन और शंकर के साथ ‘इंडियन 2’, आफताब शिवदासानी और जस्सी गिल के साथ ‘कसूर’ और कई अन्य परियोजनाओं पर काम कर रही हैं.

वैश्विक भारतीय सुपरस्टार उर्वशी रौतेला के पास अक्षय कुमार के साथ वेलकम 3, जस्सी गिल के साथ आने वाली फिल्म, सनी देओल और संजय दत्त के साथ ‘बाप’ (हौलीवुड ब्लौकबस्टर एक्सपेंडेबल्स की रीमेक), रणदीप हुड्डा के साथ इंस्पेक्टर अविनाश 2, ब्लैक रोज जैसी अन्य बड़ी परियोजनाएं भी हैं. इन सबके अलावा उर्वशी रौतेला एक अंतर्राष्ट्रीय संगीत वीडियो में भी दिखाई देंगी और अभिनेत्री आगामी बायोपिक में परवीन बाबी की भूमिका भी निभाएंगी.इसके साथ ही, उनका जेसन डेरुलो के साथ एक बहुत ही खास संगीत वीडियो भी है. जो उनके सुनहरे भविष्य की झलक दिखा रहा है .

Hidden Truth : पत्नी और वो

Hidden Truth : एक नाव में सवार व्यक्ति पतवार खेता हुआ झंझटों और संकटों से जू?ाता यदि कोई भयानक दुर्घटना न हो तो अंतत: किनारे पर पहुंच ही जाता है. मगर उस का क्या जो 2 नावों में सवार हो? कहीं न कहीं, कभी न कभी उस के जीवन का संतुलन बिगड़ना तय है. वह कभी एक नाव को संभालता है, कभी दूसरी को. इसी कशमकश में कभी न कभी धोखा लगता है और संतुलन बिगड़ जाता है. नावें तो बह जाती हैं लेकिन ऐसे आदमी को किनारा नहीं मिलता, उस की नियति पानी में डूब जाना है.

रामप्रसाद कोई बहुत बड़ा नहीं तो छोटा आदमी भी नहीं था. उस का काम बहुत बढि़या नहीं तो खराब भी नहीं कहा जा सकता था. कभीकभार दोस्तों की महफिल जमती तो 2 पैग भी लगा लेता. मन हुआ तो सिगरेट के कश भी लगा लेता, लेकिन मीटमच्छी से दूर ही रहता. मनमौजी. अपने काम की परवाह करने वाला. अपने परिवार की चिंता करने वाला. 2 बेटियों का अच्छा पिता. एक छोटे से गिफ्ट सैंटर, ‘सलोनी गिफ्ट सैंटर’ का अच्छा मालिक और संचालक. अपनी पत्नी देवयानी का खूब खयाल रखने वाला पति. इस से अच्छा एक आम आदमी और क्या हो सकता है?

एक भारतीय नारी की तरह देवयानी घर को संभालती. घर का सारा काम खुद करती. रामप्रसाद ने कई बार कहा, ‘‘देवयानी, तुम घर का सारा काम करतेकरते थक जाती होगी, कोई झाड़ूपोंछा करने वाली लगा ही लो.’’

‘‘नहीं, जब तक इन हाथपैरों में जान है मैं कामवाली को पैसे न देने वाली. तुम्हारे पास पैसे ज्यादा आ रहे हों तो मुझे ही कामवाली समझ कर दे दिया करो.’’

‘‘देवयानी, कैसीकैसी बातें करती हो? तुम घर की मालकिन हो, तुम्हें कामवाली क्यों समझूंगा भला? ऐसी बातें कभी मुंह से गलती से भी मत निकालना.’’

‘‘अच्छा, गलती हो गई. क्षमा करो देवताजी. मैं ने तो बस 4 पैसे बचाने की सोच कर यह बात कह दी थी.’’

इस तरह से रामप्रसाद का परिवार खुशहाल था. दोनों बेटियां बड़ी मलोनी 12वीं कक्षा में और छोटी सलोनी 10वीं कक्षा में पढ़ रही थी. दोनों अपने मम्मीपापा की आज्ञाकारी बेटियां थीं.

फिर एक दिन, ‘‘क्या 15 साल के बेटे के जन्मदिन के लिए कोई अच्छा सा गिफ्ट होगा?’’ एक आकर्षक महिला ने बड़ी मधुर आवाज में रामप्रसाद से पूछा.

रामप्रसाद एक पल उसे निहारता रह गया. फिर बोला, ‘‘हां, है न. बैठिए, अभी दिखाता हूं,’’ कहते हुए रामप्रसाद ने 3-4 गिफ्ट उस महिला को दिखा दिए.

‘‘और दिखा सकते हैं, प्लीज?’’ उस महिला ने बड़े प्यार से निवेदन किया.

रामप्रसाद छोटी सीढ़ी लगा कर छत से लगी सैल्फ से कुछ और गिफ्ट के पैकेट उतार कर उस महिला को दिखाने लगा. वह महिला गिफ्ट देख रही थी और रामप्रसाद उस महिला के आकर्षक चेहरे को. वह महिला रामप्रसाद की इस कमजोरी को ताड़ गई. उस ने एक गिफ्ट पसंद कर लिया.

‘‘क्या कीमत है इस की? ’’ उस महिला ने बेवजह मुसकराते हुए पूछा.

रामप्रसाद तो जैसे उस की मुसकान पर मोहित हो गया हो. उस ने भी उसी अंदाज में मुसकराते हुए कहा, ‘‘वैसे तो इस की कीमत 1,500 रुपए है लेकिन आप के लिए 1,400 रुपए का.’’

अपने नयनों से वार करते हुए उस महिला ने मादक अंदाज में कहा, ‘‘ऐसी मेहरबानी क्यों जनाब और मैं तो इस के 1,200 रुपए से ज्यादा देने वाली नहीं?’’

‘‘अरे मैडम, आप फ्री में ले जाएं, सब आप का ही तो है, ‘‘रामप्रसाद ने उस महिला के सामने लगभग समर्पण करते हुए कहा.

कुदरत ने महिलाओं का दिल और दिमाग ऐसा बनाया है कि वे मर्दों की महिलाओं के प्रति इश्क की कमजोरी को सरलता से ताड़ लेती हैं. वह महिला जान गई कि रामप्रसाद फिसल रहा है. उस ने अपने गुलाबी पर्स में से 1,200 रुपए निकाले और काउंटर पर रख दिए.

रामप्रसाद का मन तो उस महिला से एक पैसा लेने को भी नहीं हो रहा था लेकिन पैसे तो उठाने ही थे. उस ने पैसे उठाते हुए और उस महिला को गिफ्ट पकड़ाते हुए नशीले अंदाज में धीमे से कहा, ‘‘फिर आना.’’

‘‘अब तो आनाजाना लगा ही रहेगा. आप हो ही इतने दिलकश जनाब,’’ उस महिला ने ऐसे अंदाज में कहा कि रामप्रसाद के दिल पर इश्क की तेज छुरी चल गई. वह उस महिला को एकटक तब तक जाते देखता रहा जब तक वह आंखों से ओ?ाल नहीं हो गई.

उस दिन रामप्रसाद अलग ही दुनिया में चला गया. उस रोमानी दुनिया में जो वास्तविकता से बिलकुल अलग होती है. उस के पैर आज जमीं पर नहीं थे. उस का दिल आज उस के काबू में नहीं था. उस का दिल कबूतर की तरह गुटरगूं कर रहा था. रामप्रसाद बेवजह मुसकरा रहा था. यह कमबख्त इश्क होता ही ऐसा है जो इंसान को बदल कर रख देता है.

अगली ही मुलाकात में रामप्रसाद ने उस महिला के परिचय का बहीखाता तैयार कर लिया. उस का नाम अरुणा था. वह पारस लोक कालोनी में रहती थी. वह शादीशुदा थी. उस का पति बैंक में क्लर्क था. उस की बेटी बीए द्वितीय वर्ष की छात्रा थी जबकि बेटा 9वीं क्लास में पढ़ता था.

अरुणा को यह विश्वास नहीं था कि रामप्रसाद इश्क के दरिया में इतनी जल्दी फिसल जाएगा. वह इस क्षेत्र की माहिर खिलाड़ी थी. उस ने परिवार वाले मर्दों को कम ही और मुश्किल से ही इश्क के दरिया में फिसलते देखा था. आवास, अनाड़ी और लफंगे नवयुवक तो एक ही इशारे में इश्क के दरिया में छलांग लगाने को तैयार हो जाते थे. लेकिन इन अनाडि़यों से संबंध बनाने में हमेशा खतरा रहता है. एक तो ये अपनी मित्रमंडली में सारी बात खोल देते हैं जिस से बदनामी का डर हमेशा रहता है, दूसरे इन में उतावलापन ज्यादा रहता है. इन से बदले में कुछ ज्यादा मिलता भी नहीं.

परिवार वाला शादीशुदा आदमी अपने इश्क का ढिंढोरा पीटता नहीं घूमता. उसे खुद भी अपनी बदनामी का डर होता है और पोल खुलने पर परिवार के टूटने का भी. वह संयम से काम लेता है, उतावलेपन से नहीं. उस से गिफ्ट लेने और शौपिंग के बहाने कमाई भी अच्छी हो जाती है.

यही सब सोच कर अरुणा ने जल्द ही रामप्रसाद से जिस्मानी संबंध बना लिए.

उस ने गिफ्ट आदि के नाम पर रामप्रसाद से उगाही भी शुरू कर दी. वह अच्छी तरह जानती थी मर्दों से उगाही कैसे की जाती है. कभी रामप्रसाद ने उस के चंगुल से निकलने की कोशिश की तो अरुणा ने उसे भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल कर के संबंधों को और प्रगाढ़ बना लिया.

एक बानगी-

‘‘रामप्रसाद, मैं ने तुम्हारे इश्क में अंधी हो कर अपना सबकुछ लुटा दिया. अपनी इज्जतआबरू सब तुम्हें सौंप दी. अब तुम मुझे मंझधार में छोड़ना चाह रहे हो. मैंने तो तुम्हें ऐसा न समझ था. तुम तो उस बेवफा भौंरे की तरह निकले जो कली का रस पी कर उड़ जाता है.’’

अरुणा की आंखों में आंसू देखते ही रामप्रसाद पिघल जाता और अपने सच्चे इश्क के वादे करने लगता. उस का पहले से ज्यादा खयाल रखने लगता.

अरुणा उस से और ज्यादा उगाही करने लगती. दूसरी नाव की सवारी ऐसी हो गई कि रामप्रसाद उसे छोड़ नहीं पा रहा था. पहली नाव में तो वह सवार था ही, उसे तो वह छोड़ ही नहीं सकता था.

रामप्रसाद अरुणा के फेंके दांव में ऐसा फंसा कि उसे समझ में ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. अरुणा नागिन की तरह उस के दिलोदिमाग को जकड़ती जा रही थी. वह रामप्रसाद को बारबार यही जताती कि वह उस के लिए उस की बीवी से कम नहीं है. इसलिए रामप्रसाद की आमदनी में उस का बराबर का हिस्सा बनता है. यदि वह इसे नहीं देता तो उस के साथ नाइंसाफी होगी. ऐसा होने पर वह हंगामा करेगी और रामप्रसाद के बीवीबच्चों को सब बात बता देगी.

अरुणा रामप्रसाद के लिए गले में फंसी ऐसी हड्डी बन गई जो न निगलते बनती थी और न उगलते.

उधर देवयानी को यह बात समझ में नहीं आ रही थी कि रामप्रसाद को क्या होता जा रहा है. वह हर समय परेशान क्यों रहता है? परिवार से भी कटाकटा क्यों रहता है?

एक दिन देवयानी ने उस से पूछा, ‘‘क्योंजी, क्या बात है आप मुझे परेशान से दिखाई

पड़ते हो? कोई बात हो गई है क्या?’’

‘‘नहींनहीं देवयानी, कोई बात नहीं हुई.

बस कभीकभी मूड ऐसा ही हो जाता है. सब ठीक हो जाएगा.’’

‘‘नहींजी, कोई बात तो है. आप का मूड तो रोज ही खराब सा रहता है. चलो, किसी डाक्टर को दिखाएं.’’

‘‘नहीं, देवयानी. इस में डाक्टर क्या करेगा? जाओ तुम, मुझे ज्यादा परेशान मत करो,’’ कह कर रामप्रसाद ने चादर ओढ़ ली.

देवयानी को लगा कोई तो बात है जो रामप्रसाद उस से छिपा रहा है. दाल में तो कुछ काला है. गिफ्ट सैंटर की आमदनी भी कम होती जा रही है? कहीं उधारी में पैसा तो नहीं डूब गया या फिर कहीं किसी औरतवौरत का चक्कर तो नहीं? नहींनहीं, मेरा रामप्रसाद ऐसा नहीं. ऐसे ही कई सवाल देवयानी के मन में उमड़घुमड़ रहे थे. वह इन सब के जवाब चाहती थी. इसलिए समय निकाल कर गिफ्ट सैंटर पर बैठने लगी.

देवयानी के गिफ्ट सैंटर पर बैठने से रामप्रसाद और अरुणा दोनों को परेशानी थी. फिर भी दोनों ने इस बात को मैनेज किया. अब रामप्रसाद देवयानी से कोई न कोई बहाना बना कर अरुणा से मिलने चला जाता. पहले अरुणा उस से मिलने आया करती थी. लेकिन इस का एक फायदा यह हुआ कि गिफ्ट सैंटर पर बैठने से देवयानी को दुकानदारी आ गई.

हर संभव कोशिश करने पर भी देवयानी को रामप्रसाद की परेशानी का कारण सम?ा में नहीं आया. फिर एक दिन अलग ही कहानी हो गई.

अरुणा की बेटी ऊषा एक दिन कालेज से अचानक घर आ गई. उस ने घर से बाहर रामप्रसाद की मोटरसाइकिल खड़ी देखी. रामप्रसाद पहले भी उन के घर आया था और इसलिए वह उस को पहचानती भी थी. वह कोई छोटी बच्ची नहीं थी जो कुछ न समझती हो. उसे पहले से ही रामप्रसाद और अपनी मां के संबंधों पर शक था. उन्हें आज रंगे हाथ पकड़ने का ऊषा को मौका मिल गया.

उस ने उन्हें रंगे हाथ पकड़ने की एक युक्ति सोची. उस ने अपने घर की डोरबैल नहीं बजाई बल्कि पड़ोसी के घर से अपने घर में दाखिल हुई. उस समय तक वे दोनों अपना काम निबटा कर फारिग हो चुके थे.

ऊषा को सामने देख कर दोनों चौंक गए. चोर की दाढ़ी में तिनका. ऊषा को देखते ही रामप्रसाद वहां से भागा. ऊषा ने उसे पकड़ने की बहुत कोशिश की लेकिन वह ऊषा को धक्का दे कर गेट की तरफ भागा.

ऊषा फर्श पर गिर पड़ी. उसे उठ कर संभलने में 2 पल लगे. ये 2 पल रामप्रसाद के लिए काफी थे. वह गेट से बाहर आया और अपनी मोटरसाइकिल स्टार्ट कर वहां से भाग खड़ा हुआ.

ऊषा शिकार को हाथ से निकलते देख गुस्से से हांफ रही थी. उस ने अपने गुस्से को पहले तो अपनी मां को खरीखोटी सुना कर उस पर उतारा लेकिन अभी भी उस के अंदर गुस्से का ज्वालामुखी फूट रहा था. वह पैदल ही झपटते हुए रामप्रसाद की दुकान की तरफ बढ़ चली. दुकान मात्र 500 मीटर दूर थी.

रामप्रसाद हड़बड़ाता हुआ अपने गिफ्ट सैंटर पहुंचा था. उस की ऐसी हालत देख कर देवयानी ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, इतने हांफ क्यों रहे हो? ’’

रामप्रसाद को एकदम से कुछ समझ में नहीं आया कि क्या कहे? फिर वह कुछ सोच कर बोला, ‘‘ऐक्सीडैंट, देवयानी, ऐक्सीडैंट. मैं बालबाल बचा. पानी… पानी पिलाओ.’’

देवयानी ने फुरती से पानी की बोतल उठा कर रामप्रसाद को दी. रामप्रसाद अभी बोतल से पानी पी ही रहा था तभी उस की नजर गुस्से से लालपीली और तेजी से झपटती आ रही ऊषा पर पड़ी.

ऊषा को देख कर वह लगभग चीख पड़ा, ‘‘देवयानी… ऐक्सीडैंट.’’

देवयानी भौचक्की सी इधरउधर देखने लगी. उसे लगा कि रामप्रसाद अभीअभी ऐक्सीडैंट से बच कर आ रहा है. इसलिए उस के दिमाग में ऐक्सीडैंट का फुतुर अभी भी घुसा हुआ है. रामप्रसाद की हालत तो ऐसी हो गई थी जैसे काटो तो खून नहीं, बिलकुल बेजान.

ऊषा ने आते ही रामप्रसाद की खोपड़ी पर तड़ातड़ चप्पलों की बरसात शुरू कर दी. वह चप्पल बरसा रही थी और जबानी आग उगल रही थी, ‘‘हरामजादे, मैं उतारूंगी तेरे बुढ़ापे का इश्क. बहुत आग उठ रही तुझे बुढ़ापे में, हरामखोर.’’

ऊषा उस पर तब तक चप्पलें बरसाती रही जब तक देवयानी और पासपड़ोस के दुकानदारों ने उसे काबू नहीं कर लिया. रामप्रसाद चुपचाप चप्पलें खा कर निढाल हो कर काउंटर के पीछे गश खा कर गिर गया.

ऊषा समुद्र के ज्वार की तरह आई थी और तबाही मचा कर भाटे की तरह यह कहती हुई चली गई, ‘‘हरामजादे, घर की तरफ फटक मत जाना, नहीं तो खून पी जाऊंगी, खून तेरा…’’

ऊषा को कुछ लोग पहचानते थे. कुछ को रामप्रसाद और अरुणा के संबंधों की भनक भी थी. अब उस के आखिरी शब्दों ने सबकुछ खोल कर रख दिया था, छिपाने को कुछ बचा नहीं था. आपस में खुसरफुसर शुरू हुई तो सब सबकुछ जान गए.

रामप्रसाद की ऐसी घनघोर बेइज्जती कभी नहीं हुई थी. यह जलालत उस की बरदाश्त से बाहर थी. वह बाहर वालों को तो छोडि़ए अपनी पत्नी और बच्चों को भी मुंह दिखाने लायक नहीं बचा था.

सुबह उस की लाश को पुलिस वाले पंखे से लटके फंदे से नीचे उतार रहे थे. जब उस की लाश बिजनौर के जिला अस्पताल को पोस्टमार्टम के लिए भेजी जा रही थी तो उस के बच्चे ‘पापा, पापा’ कर के दहाड़ें मार कर रो रहे थे लेकिन देवयानी की आंखें शुष्क हो चुकी थी.

कुछ दिनों के बाद दुनिया वैसी की वैसी हो गई. फर्क बस इतना था ‘सलोनी गिफ्ट सैंटर’ के काउंटर पर रामप्रसाद की जगह देवयानी बैठी थी. सच है, किसी के आनेजाने से इस दुनिया पर कोई फर्क नहीं पड़ता.

Dilchasp Kahani 2025 : सान्निध्य

Dilchasp Kahani 2025 : अभी शाम के 4 ही बजे थे, लेकिन आसमान में घिर आए गहरे काले बादलों ने कुछ अंधेरा सा कर दिया था. तेज बारिश के साथ जोरों की आंधी भी चल रही थी. सामने के पार्क में पेड़ झूमतेलहराते अपनी प्रसन्नता का इजहार कर रहे थे. रमाकांत का मन हुआ कि कमरे के सामने की बालकनी में कुरसी लगा कर मौसम का आनंद उठाएं, लेकिन फिर उन्हें लगा कि रोहिणी का कमजोर शरीर तेज हवा सहन नहीं कर पाएगा.

उन्होंने रोहिणी की ओर देखा. वह पलंग पर आंखें मूंदे लेटी हुई थी. रमाकांत ने पूछा, ‘‘अदरक वाली चाय बनाऊं, पिओगी?’’

अदरक वाली चाय रोहिणी को बहुत पसंद थी. उस ने धीरे से आंखें खोलीं और मुसकराई, ‘‘मोहन से…कहिए… वह…बना देगा,’’ उखड़ती सांसों से वह बड़ी मुश्किल से इतना कह पाई.

‘‘अरे, मोहन से क्यों कहूं? वह क्या मुझ से ज्यादा अच्छी चाय बनाएगा? तुम्हारे लिए तो चाय मैं ही बनाऊंगा,’’ कह कर रमाकांत किचन में चले गए.

जब वह वापस आए तो टे्र में 2 कप चाय के साथ कुछ बिस्कुट भी रख लाए. उन्होंने सहारा दे कर रोहिणी को उठाया और हाथ में चाय का कप पकड़ा कर बिस्कुट आगे कर दिए.

‘‘नहीं जी…कुछ नहीं खाना,’’ कह कर रोहिणी ने बिस्कुट की प्लेट सरका दी.

‘‘बिस्कुट चाय में डुबो कर…’’ उन की बात पूरी होने से पहले ही रोहिणी ने सिर हिला कर मना कर दिया.

रोहिणी की हालत देख कर रमाकांत का दिल भर आया. उस का खानापीना लगभग न के बराबर ही हो गया था. आंखों के नीचे गहरे गड्ढे पड़ गए थे. वजन एकदम घट गया था. वह इतनी कमजोर हो गई थी कि देखा नहीं जाता था. स्वयं को अत्यंत विवश महसूस कर रहे थे रमाकांत. कैसी विडंबना थी कि डाक्टर हो कर उन्होंने कितने ही मरीजों को स्वस्थ किया था, किंतु खुद अपनी पत्नी के लिए कुछ नहीं कर सके. बस, धीरेधीरे रोहिणी को मौत की ओर अग्रसर होते देख रहे थे.

उन के जेहन में वह दिन उतर आया जब वह रोहिणी को ब्याह कर घर ले आए थे. अम्मा अपनी सारी जिम्मेदारियां उसे सौंप कर निश्ंिचत हो गई थीं. कोमल सी दिखने वाली रोहिणी ने भी खुले दिल से अपनी हर जिम्मेदारी को स्वीकारा और किसी को शिकायत का मौका नहीं दिया. उस के सौम्य और सरल स्वभाव ने परिवार के हर सदस्य को उस का कायल बना दिया था.

रमाकांत उन दिनों मेडिकल कालेज में लेक्चरर के पद पर थे. साथ ही घर के अहाते में एक छोटा सा क्लिनिक भी खोल रखा था. स्वयं को एक स्थापित और नामी डाक्टर के रूप में देखने की उन की बड़ी तमन्ना थी. घर का मोरचा रोहिणी पर डाल वह सुबह से रात तक अपने काम में व्यस्त रहते. नईनवेली पत्नी के साथ प्यार के मीठे क्षण गुजारने की फुरसत उन्हें न थी…या फिर शायद जरूरत ही न समझी.

उन्हें लगता कि रोहिणी को तमाम सुखसुविधा मुहैया करा कर वह पति होने का अपना फर्ज बखूबी निभा रहे हैं, लेकिन उस की भावनात्मक आवश्यकताओं की पूर्ति से उन्हें कोई मतलब न था. रोहिणी का मन तो करता कि रमाकांत उस के साथ कुछ देर बैठें, बातें करें, लेकिन वह कभी उन से यह कह नहीं पाई. जब कहा भी, तब वे समझ नहीं पाए और जब समझे तब बहुत देर हो चुकी थी.

वक्त के साथसाथ रमाकांत की महत्त्वाकांक्षा भी बढ़ी. अपनी पुश्तैनी जायदाद बेच कर और सारी जमापूंजी लगा कर उन्होंने एक सर्वसुविधायुक्त नर्सिंगहोम खोल लिया. रोहिणी ने तब अपने सारे गहने उन के आगे रख दिए थे. हर कदम पर वह उन का मौन संबल बनी रही. उन के जीवन में एक घने वृक्ष सी शीतल छाया देती रही.

रमाकांत की मेहनत रंग लाई और सफलता उन के कदम चूमने लगी. कुछ ही समय में उन के नर्सिंगहोम का बड़ा नाम हो गया. वहां उन की मसरूफियत इतनी बढ़ गई कि उन्होंने नौकरी छोड़ दी और सिर्फ नर्सिंगहोम पर ही ध्यान देने लगे.

इस बीच रोहिणी ने भी रवि और सुनयना को जन्म दिया और वह उन की परवरिश में ही अपनी खुशी तलाशने लगी. जीवन एक बंधेबंधाए ढर्रे पर चल रहा था. रमाकांत के लिए उन का काम था और रोहिणी के लिए बच्चे और सामाजिकता का निर्वाह.

अम्मांबाबूजी के देहांत और ननद के विवाह के बाद रोहिणी और भी अकेलापन महसूस करने लगी. बच्चे भी बड़े हो रहे थे और अपनी पढ़ाई में व्यस्त थे. रमाकांत के लिए पत्नी का अस्तित्व बस, इतना भर था कि वह समयसमय पर उसे गहनेकपड़े भेंट कर देते थे. उस का मन किस बात के लिए लालायित था, यह जानने की उन्होंने कभी कोशिश नहीं की.

जिंदगी ने रमाकांत को एक मौका दिया था. कभी कोई मांग न करने वाली उन की पत्नी रोहिणी ने एक बार उन्हें अपने दिल की गहराइयों से परिचित कराया था, लेकिन वे ही उस की बातों का दर्द और आंखों के सूनेपन को अनदेखा कर गए थे. उस दिन रोहिणी का जन्मदिन था. उन्होंने उसे कुछ प्यार दिखाते हुए पूछा था, ‘बताओ तो, मैं तुम्हारे लिए क्या तोहफा लाया हूं?’

तब रोहिणी के चेहरे पर फीकी सी मुसकान आ गई थी. उस ने धीमी आवाज में बस इतना ही कहा था, ‘तोहफे तो आप मुझे बहुत दे चुके हैं. अब तो बस आप का सान्निध्य मिल जाए…’

‘वह भी मिल जाएगा. बस, कुछ साल मेहनत से काम कर लें, अपनी और बच्चों की जिंदगी सेटल कर लें, फिर तो तुम्हारे साथ ही समय गुजारना है,’ कहते हुए उसे एक कीमती साड़ी का पैकेट थमा रमाकांत काम पर निकल गए थे. रोहिणी ने फिर कभी उन से कुछ नहीं कहा था.

रवि भी पिता के नक्शेकदम पर चल कर डाक्टर ही बना. उस ने अपनी सहपाठिन गीता से विवाह की इच्छा जाहिर की, जिस की उसे सहर्ष अनुमति भी मिल गई. अब रमाकांत को बेटेबहू का भी अच्छा साथ मिलने लगा. फिर सुनयना का विवाह भी हो गया. रमाकांत व रोहिणी अपनी जिम्मेदारियों से निवृत्त हो गए, लेकिन स्थिति अब भी पहले की तरह ही थी. रोहिणी अब भी उन के सान्निध्य को तरस रही थी और रमाकांत कुछ और वर्ष काम करना चाहते थे, अभी और सेटल होना चाहते थे.

शायद सबकुछ इसी तरह चलता रहता अगर रोहिणी बीमार न पड़ती. एक दिन जब सब लोग नर्सिंगहोम गए थे, तब वह चक्कर खा कर गिर पड़ी. घर के नौकर मोहन ने जब फोन पर बताया, तो सब भागे हुए आए. फिर शुरू हुआ टेस्ट कराने का सिलसिला. जब रिपोर्ट आई तो पता चला कि रोहिणी को ओवेरियन कैंसर है.

रमाकांत सुन कर घबरा से गए. उन्होंने अपने मित्र कैंसर स्पेशलिस्ट डा. भागवत को रिपोर्ट दिखाई. उन्होंने देखते ही साफ कह दिया, ‘रमाकांत, तुम्हारी पत्नी को ओवेरियन कैंसर ही हुआ है. इस में कुछ तो बीमारी के लक्षणों का पता ही देर से चलता है और कुछ इन्होंने अपनी तकलीफ घर में छिपाई होगी. अब तो कैंसर चौथी स्टेज पर है. यह शरीर के दूसरे अंगों तक भी फैल चुका है. चाहो तो सर्जरी और कीमोथैरेपी कर सकते हैं, लेकिन कुछ खास फायदा नहीं होने वाला. अब तो जो शेष समय है उस में इन्हें खुश रखो.’

सुन कर रमाकांत को लगा कि जैसे उन के हाथपैरों से दम निकल गया है. उन्हें यकीन ही नहीं हुआ कि रोहिणी इस तरह उन्हें छोड़ कर चली जाएगी. वह तो हर वक्त एक खामोश साए की तरह उन के साथ रहती थी. उन की हर जरूरत को उन के कहने से पहले ही पूरा कर देती थी. फिर यों अचानक उस के बिना…

अब जा कर रमाकांत को लगा कि उन्होंने कितनी बड़ी गलती कर दी थी. रोहिणी के अस्तित्व की कभी कोई कद्र नहीं की उन्होंने. उन के लिए तो वह बस उन की मूक सहचरी थी, जो उन की हर जरूरत के लिए हर वक्त उपलब्ध थी. इस से ज्यादा कोई अहमियत नहीं दी उन्होंने उसे. आज प्रकृति ने न्याय किया था. उन्हें इस गलती की कड़ी सजा दी थी. जिस महत्त्वाकांक्षा के पीछे भागते उन की जिंदगी बीती, जिस का उन्हें बड़ा दंभ था, आज वह सारा ज्ञान उन के किसी काम न आया.

अब जब उन्हें पता चला कि रोहिणी के जीवन का बस थोड़ा ही समय शेष रह गया था, तब उन्हें एहसास हुआ कि वह उन के जीवन का कितना बड़ा हिस्सा थी. उस के बिना जीने की कल्पना मात्र से वे सिहर उठे. महत्त्वाकांक्षाओं के पीछे भागने में वे हमेशा रोहिणी को उपेक्षित करते रहे, लेकिन अपनी सारी उपलब्धियां अब उन्हें बेमानी लगने लगी थीं.

‘पापा, आप चिंता मत कीजिए. मैं अब नर्सिंगहोम नहीं आऊंगी. घर पर ही रह कर मम्मी का ध्यान रखूंगी,’ उन की बहू गीता कह रही थी.

रमाकांत ने एक गहरी सांस ली और उस के सिर पर हाथ रखते हुए कहा, ‘नहीं, बेटा, नर्सिंगहोम अब तुम्हीं लोग संभालो. तुम्हारी मम्मी को इस वक्त सब से ज्यादा मेरी ही जरूरत है. उस ने मेरे लिए बहुत कुछ किया है. उस का ऋण तो मैं किसी भी हाल में नहीं चुका पाऊंगा, लेकिन कम से कम अब तो उस का साथ निभाऊं.’

उस के बाद से रमाकांत ने नर्सिंगहोम जाना छोड़ दिया. वे घर पर ही रह कर रोहिणी की देखभाल करते, उस से दुनियाजहान की बातें करते. कभी कोई किताब पढ़ कर सुनाते, तो कभी साथ टीवी देखते. वे किसी तरह रोहिणी के जाने से पहले बीते वक्त की भरपाई करना चाहते थे.

मगर वक्त उन के साथ नहीं था. धीरेधीरे रोहिणी की तबीयत और बिगड़ने लगी थी. रमाकांत उस के सामने तो संयत रहते, मगर अकेले में उन की पीड़ा आंसुओं की धारा बन कर बह निकलती. रोहिणी की कमजोर काया और सूनी आंखें उन के हृदय में शूल की तरह चुभती रहतीं. वे स्वयं को रोहिणी की इस हालत का दोषी मानने लगे थे. इस के साथसाथ उन के मन में हर वक्त रोहिणी को खो देने का डर होता. वे जानते थे कि यह दुर्भाग्य तो उन की नियति में लिखा जा चुका था, लेकिन उस क्षण की कल्पना करते हुए हमेशा भयभीत रहते.

‘‘अंधेरा…हो गया जी,’’ रोहिणी की आवाज से रमाकांत की तंद्रा टूटी. उन्होंने उठ कर लाइट जला दी. देखा, रोहिणी का चाय का कप आधा भरा हुआ रखा था और वह फिर से आंखें मूंदे टेक लगा कर बैठी थी. चाय ठंडी हो चुकी थी. रमाकांत ने चुपचाप कप उठाया और किचन में जा कर सिंक में चाय फैला दी. उन्होंने खिड़की से बाहर देखा, बाहर अभी भी तेज बारिश हो रही थी. हवा का ठंडा झोंका आ कर उन्हें छू गया, लेकिन अब उन्हें कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था. उन्होंने अपनी आंखों के कोरों को पोंछा और मोहन को आवाज लगा कर खिचड़ी बनाने के लिए कहा.

खिचड़ी बिलकुल पतली थी, फिर भी रोहिणी बमुश्किल 2 चम्मच ही खा पाई. आखिर रमाकांत उस की प्लेट उठा कर किचन में रख आए. तब तक रवि और गीता भी नर्सिंगहोम से वापस आ गए थे.

‘‘कैसी हो, मम्मा?’’ रवि लाड़ से रोहिणी की गोद में लेटते हुए बोला.

‘‘ठीक हूं, मेरे बच्चे,’’ रोहिणी मुसकराते हुए उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए धीमी आवाज में बोली.

रमाकांत ने देखा कि रोहिणी के चेहरे पर असीम संतोष था. अपने पूरे परिवार के साथ होने की खुशी थी उसे. वह अपनी बीमारी से अनभिज्ञ नहीं थी, परंतु फिर भी प्रसन्न ही रहती थी. जिस सान्निध्य की आस ले कर वह वर्षों से जी रही थी, वह अब उसे बिना मांगे ही मिल रहा था. अब वह तृप्त थी, इसलिए आने वाली मौत के लिए कोई डर या अफसोस उस के चेहरे पर दिखाई नहीं देता था.

बच्चे काफी देर तक मां का हालचाल पूछते रहे, उसे अपने दिन भर के काम के बारे में बताते रहे. फिर रोहिणी का रुख देख कर रमाकांत ने उन से कहा, ‘‘अब खाना खा कर आराम करो. दिनभर काम कर के थक गए होगे.’’

‘‘पापा, आप भी खाना खा लीजिए,’’ गीता ने कहा.

‘‘मुझे अभी भूख नहीं, बेटा. आप लोग खा लो. मैं बाद में खा लूंगा.’’

बच्चों के जाने के बाद रोहिणी फिर आंखें मूंद कर लेट गई. रमाकांत ने धीमी आवाज में टीवी चला दिया, लेकिन थोड़ी देर में ही उन का मन ऊब गया. अब उन्हें थोड़ी भूख लग आई थी, लेकिन खाना खाने का मन नहीं किया. उन्होंने सोचा रोहिणी और अपने लिए दूध ले आएं. किचन में जा कर उन्होंने 2 गिलास दूध गरम किया. तब तक रवि और गीता खाना खा कर अपने कमरे में सो चुके थे.

‘‘रोहिणी, दूध लाया हूं,’’ कमरे में आ कर रमाकांत ने धीरे से आवाज लगाई, लेकिन रोहिणी ने कोई जवाब नहीं दिया. उन्हें लगा कि वह सो रही है. उन्होंने उस के गिलास को ढंक कर रख दिया और खुद पलंग के दूसरी ओर बैठ कर दूध पीने लगे.

उन्होंने रोहिणी की तरफ देखा. सोते हुए उस के चेहरे पर कितनी शांति थी. उन का हाथ बरबस ही उस का माथा सहलाने के लिए आगे बढ़ा. फिर वह चौंक पड़े. दोबारा माथे और गालों पर हाथ लगाया. तब उन्हें एहसास हुआ कि रोहिणी का शरीर ठंडा था. वह सो नहीं रही थी बल्कि सदा के लिए चिरनिद्रा में विलीन हो चुकी थी.

उन्हें जो डर इतने महीनों से जकड़े था, आज वे उस के वास्तविक रूप का सामना कर रहे थे. कुछ समय के लिए एकदम सुन्न से हो गए. उन्हें समझ ही न आया कि क्या करें. फिर धीरेधीरे चेतना जागी. पहले सोचा कि जा कर बच्चों को खबर कर दें, लेकिन फिर कुछ सोच कर रुक गए.

सारी उम्र रोहिणी को उन के सान्निध्य की जरूरत थी, लेकिन आज उन्हें उस का साथ चाहिए था. वे उस की उपस्थिति को अपने पास महसूस करना चाहते थे, इस एहसास को अपने अंदर समेट लेना चाहते थे क्योंकि बाकी की एकाकी जिंदगी उन्हें अपने इसी एहसास के साथ गुजारनी थी. उन के पास केवल एक रात थी. अपने और अपनी पत्नी के सान्निध्य के इन आखिरी पलों में वे किसी और की उपस्थिति नहीं चाहते थे. उन्होंने लाइट बुझा दी और रोहिणी को धीरे से अपने हृदय से लगा लिया. पानी बरसना अब बंद हो गया था.

Short Story 2025 : वकील का नोटिस

Short Story 2025 :  हरीश पिछले कुछ दिनों से काफी परेशान था. वैसे तो उस की दुकान ठीक ही चल रही थी परंतु उस दुकान को खरीदने के लिए 3 साल पहले उस ने जो 40 हजार डालर का कर्ज लिया था, उस के भुगतान का समय आ गया था. उस ने एक कर्ज देने वाली कंपनी से 25 प्रतिशत सालाना ब्याज की दर से रुपया उधार लिया था. वे लोग उस को कर्जे की रकम अदा करने के लिए मुहलत देने को तैयार नहीं थे. उसे मालूम था कि अगर वह समय पर रकम अदा नहीं कर पाया तो वे उस की दुकान को हड़प कर लेंगे.

ऐसा तो नहीं था कि उस की दुकान अच्छी न चलती हो, परंतु 10 हजार डालर तो हर साल कर्जे के ब्याज के ही हो जाते थे. ऊपर से उस की परेशानियों को बढ़ाने के लिए 2 साल पहले एक बेटी भी पैदा हो गई थी जिस के कारण रमा ने भी दुकान पर काम करना बंद कर दिया था. उस के काम को करने के लिए अब उसे 2 लड़कियों को रखना पड़ रहा था. वे लड़कियां मौका मिलते ही दुकान से चोरी करने में तनिक भी नहीं चूकती थीं.

हरीश ने कई बैंकों और उधार देने वाली कंपनियों से बातचीत भी की पर कोई भी उसे उधार देने को तैयार नहीं हुआ. हार कर उसे अपने दोस्त सुधीर की शरण में ही जाना पड़ा.

सुधीर से उस ने 3 साल पहले भी उधार देने को कहा था परंतु उस ने साफ मना कर दिया था. सुधीर का दोटूक जवाब सुन कर ही वह उस उधार देने वाली कंपनी के पास गया था.

हरीश की कहानी सुन कर सुधीर यह तो जान गया कि वह ही हरीश का एकमात्र सहारा बन सकता है. उस ने हरीश से अपनी दुकान के हिसाबकिताब के कागजात अगले दिन लाने को कहा. हरीश अगले दिन ठीक समय पर सुधीर के घर हिसाबकिताब की फाइलें ले कर पहुंच गया. सुधीर लगभग 1 घंटे तक उन का अध्ययन करता रहा और हरीश से प्रश्न पूछता रहा.

‘‘भाई, तुम्हारी दुकान अच्छी हालत में नहीं है. कोई भी कर्ज देने वाला इस हिसाबकिताब के आधार पर कभी भी तुम को उधार नहीं देगा. मेरी राय में तुम्हारे पास एक ही रास्ता है, अपना मकान और जेवर गिरवी रख दो,’’ सुधीर ने सुझाव दिया.

‘‘मकान तो पहले से ही उधार पर खरीदा हुआ है. अभी उस पर 1 लाख डालर का कर्ज बाकी है,’’ हरीश धीरे से बोला.

‘‘तुम्हारे मकान की कीमत इस समय 1 लाख 30 हजार डालर होगी. अगर उस को एक बार फिर गिरवी रख दो तो तुम्हें 15 हजार और मिल सकते हैं. फिर भी 5 हजार कम पड़ेंगे. दुकान पर तो कोई मुश्किल से 20 हजार ही देगा. इन 5 हजार के लिए तुम्हारे पास जेवर गिरवी रखने के अलावा कोई चारा नहीं है,’’ सुधीर ने अपनी भेदती आंखों से हरीश को देखा. हरीश मन ही मन कांप रहा था. हरीश को सुधीर से ऐसी उम्मीद न थी.

‘‘मैं सोच रहा था कि घर को अपने पास गिरवी रख कर तुम 20 हजार दे दो. 20 हजार से मेरा काम चल जाएगा. रमा के जेवर गिरवी रखने की क्या जरूरत है? तुम्हारे पास भी तो बैंक के लौकर में रहेंगे. कम से कम रमा के सामने मेरी इज्जत तो बनी रहेगी,’’ हरीश गिड़गिड़ाया.

‘‘देखो भाई, मैं ने तुम से पहले भी कहा था, दोस्तों से मैं कारोबार इसीलिए नहीं करता. बीच में दोस्ती ले आते हैं. फिर न तो दोस्ती ही रहती है और न ही कारोबार हो पाता है. एक बात और मैं उधार की रकम का 20 प्रतिशत प्रशासन फीस के तौर पर पहले ही ले लेता हूं. तुम्हीं को कागज तैयार करने की फीस भी नोटरी को देनी होगी, जो लगभग 500 डालर तो होगी ही.’’

‘‘इस का मतलब 40 हजार की रकम पाने के लिए 41,300 उधार लेने होंगे, क्यों सुधीर?’’

‘‘हां, हरीश.’’

‘‘ठीक है, मैं तैयार हूं.’’

सुधीर ने अपनी डायरी से एक पता लिखा और हरीश को दिया, ‘‘यह मेरे नोटरी का पता है. सस्ते में ही काम कर देगा. मैं इस को फोन कर दूंगा. तुम अपने मकान और दुकान के सारे कागज उस के यहां छोड़ आना. साथ ही जो जेवर गिरवी रखने हों, उन की फोटो और कीमत का विवरण भी उस को दे आना. जेवरों की कीमत कम से कम 10 हजार डालर तो होनी ही चाहिए, उन पर 5 हजार उधार लेने के लिए,’’ सुधीर ने हरीश को साफ- साफ इस तरह कह दिया जैसे कि वह उस का मित्र नहीं कोई अजनबी हो.

‘‘ठीक है, मैं कल ही दे आऊंगा,’’ यह कह कर हरीश चला गया.

सारे रास्ते हरीश सोचता रहा कि सुधीर को उस की दोस्ती का तनिक भी लिहाज नहीं है. पिछले 12 साल से वे एकदूसरे को जानते हैं. लगभग एकसाथ ही टोरंटो आए थे. सुधीर ने खूब पैसा कमाया और बचाया. एक बड़ा घर बनवा कर ठाट से अपने परिवार के साथ रह रहा है. पैसा कमाने के मामले में हरीश बहुत सफल नहीं रहा. बड़ी मुश्किल से किसी तरह पैसे बचा कर और कर्जे में डूब कर यह दुकान खरीदी और वह भी ठीक से नहीं चल रही.

जेवरों को गिरवी रखने की बात उस ने रमा को नहीं बताई. यह तो अच्छा ही हुआ कि उस ने अपना बैंक का लौकर रमा के नाम नहीं करवाया. आराम से जेवर निकाल कर गिरवी रख देगा. रमा को पता भी नहीं चलेगा.

सुधीर के नोटरी ने हरीश से सब जरूरी कागजात पाने के बाद 2 दिन में ही कर्जे के कागज तैयार कर दिए. उन कागजों पर हस्ताक्षर करने के लिए शाम को 8 बजे नोटरी के दफ्तर में जाना था. हरीश तो साढ़े 7 बजे ही पहुंच गया. सुधीर ठीक समय पर ही पहुंचा, साहूकार जो ठहरा.

सुधीर हरीश से इस तरह मिला जैसे कि बरसों का बिछड़ा दोस्त हो, ‘कितना बहुरुपिया है यह. 4 दिन पहले अपने घर में किस तरह से पेश आ रहा था और अब ऐसे मिल रहा है जैसे कर्ज नहीं सौगात देने जा रहा हो,’ हरीश ने सोचा.

नोटरी ने उन दोनों को अपने दफ्तर में भीतर बुला लिया.

नोटरी के सामने सुधीर और हरीश बैठ गए. नोटरी कर्जे की सारी शर्तें पढ़ कर सुना रहा था. कर्जे की रकम पूरी 42 हजार डालर होगी. उस पर 27 प्रतिशत की दर से ब्याज लगेगा जो हर महीने की पहली तारीख को देना होगा.

हरीश ने नोटरी को बीच में ही रोक दिया, ‘‘27 प्रतिशत, आजकल बाजार की दर तो 24 प्रतिशत है.’’

‘‘तब बाजार से क्यों नहीं ले लिया. भई, इतनी बड़ी रकम का जोखिम भी तो मैं ही उठा रहा हूं,’’ सुधीर बोला.

‘‘मिस्टर हरीश, सुधीर ठीक ही कहते हैं. मैं ने आप के कारोबार के सारे कागजात देखे हैं. मैं खुद भी आप को अगर उधार देता तो 30 प्रतिशत से कम ब्याज नहीं लेता. सुधीर आप से दोस्ती के लिहाज में कम ब्याज ले रहे हैं,’’ नोटरी ने सुधीर की तरफदारी की. वह हरीश की ओर देखने लगा.

‘‘अच्छा, ठीक है,’’ हरीश बोला.

‘‘ब्याज की रकम ठीक 1 तारीख को न मिलने पर हरीश को कानूनी नोटिस दिया जा सकता है और उस की दुकान और मकान जब्त किए जा सकते हैं.’’

इस से पहले कि हरीश कुछ आना- कानी करे, नोटरी ने ही समझाया कि ये सब सामान्य शर्तें हैं.

हरीश को याद आया कि पहले कर्ज देने वाली कंपनी ने भी उस से कुछ इस तरह की शर्तों पर ही हस्ताक्षर करवाए थे. हरीश सिगरेट पर सिगरेट फूंके जा रहा था. उस की सिगरेट के धुएं से नोटरी के दफ्तर में धुआं ही धुआं भर गया.

‘‘अगर मिस्टर हरीश तुम कुछ देर और ठहरे तो सिगरेट के धुएं के कारण अंधेरा ही हो जाएगा. आप जैसे ग्राहक मुझ को कैंसर करवा कर ही छोड़ेंगे,’’ नोटरी ने पहले सुधीर से हस्ताक्षर करवाए. फिर हरीश से. इस के बाद खुद किए, ‘‘कल यह कागज रजिस्ट्रार के यहां ले जा कर इन की रजिस्ट्री करा दूंगा.’’

नोटरी ने एक चैक हरीश को दे दिया. हरीश ने नोटरी को उस की फीस के 500 डालर नकद दे दिए. चैक से फीस देने पर तो नोटरी 800 डालर मांग रहा था. चैक पा कर हरीश ने नोटरी से हाथ मिलाया. फिर सुधीर ने हरीश से हाथ मिलाया.

सुधीर ने महसूस किया कि हरीश पसीनेपसीने हो रहा था. उस का हाथ हरीश के पसीने से गीला हो गया. हरीश चैक ले कर तुरंत चला गया. सुधीर को नोटरी से कुछ जरूरी बातें करनी थीं इसलिए वह रुक गया. उस ने जेब से रूमाल निकाल कर अपनी गीली हथेली को पोंछा.

‘‘देखना कहीं पसीने की जगह हरीश का खून ही न हो,’’ नोटरी ने मजाक किया.

‘‘इस से पहले कि मैं भूल जाऊं, मेरी दलाली के 100 डालर निकालो, हरीश से ली गई फीस में से.’’

नोटरी ने 100 डालर का नोट सुधीर को देते हुए कहा, ‘‘मैं उम्मीद कर रहा था कि तुम शायद भूल जाओगे पर तुम हो पक्के साहूकार.’’

सुधीर ने नोटरी का दिया 100 डालर का नोट जेब में रख लिया, ‘‘इस तरह भूल जाऊं तो आज इतना फैला हुआ कारोबार कैसे चला पाऊंगा.’’

कुछ देर बात कर के सुधीर चला गया.

हरीश और सुधीर के बीच की दोस्ती लगभग समाप्त ही हो गई थी. हर महीने की पहली तारीख को हरीश ब्याज की किस्त सुधीर के यहां पहुंचा देता था. रमा भी अब दुकान पर आने लगी थी. बच्ची के कारण पहले की तरह तो नहीं आ पाती थी, इसी वजह से एक लड़की को अभी भी दुकान पर रखा हुआ था.

हरीश का जीवन काफी तनावपूर्ण था. रमा के लाख लड़नेझगड़ने पर भी वह अपनी सिगरेट पीना कम नहीं कर रहा था. शराब तो वह पहले से ही काफी पीता था. हर रात जब तक 2-3 पैग स्कौच के नहीं पी लेता था तब तक उसे नींद ही नहीं आती थी.

आखिर हरीश का शरीर कब तक अपने ऊपर की हुई ज्यादतियां बरदाश्त करता. उस के दिल ने बगावत कर दी थी. यह तो अच्छा हुआ कि उस को दिल का दौरा दुकान में रमा और नौकरानी के सामने ही पड़ा, इस कारण से उस को डाक्टरी सहायता जल्दी ही मिल गई. रमा के तो हाथपांव फूल गए थे. परंतु उस लड़की ने धैर्य से काम ले कर ऐंबुलेंस को बुलवा लिया था. अस्पताल में उस को इमरजैंसी वार्ड में तुरंत भरती करवा दिया गया. डाक्टरों के अनुसार अगर हरीश को अस्पताल आने में 15 मिनट की और देरी हो जाती तो वे कुछ भी नहीं कर पाते.

रमा के ऊपर हरीश की बीमारी से बहुत बोझ आ पड़ा. दुकान की जिम्मेदारी, बच्चे की देखरेख और अस्पताल के सुबहशाम के चक्कर. हरीश को बातचीत करने की सख्त मनाही थी. ऐसी हालत में जरा सी दिमागी परेशानी होने से जान को खतरा हो सकता था. दिल के दौरे ने हरीश की सिगरेट छुड़वा दी. अगर पहले ही सिगरेट छोड़ देता तो शायद दिल का दौरा पड़ता ही नहीं.

दिल का दौरा पड़ने से ठीक 1 महीने के बाद हरीश को अस्पताल से घर जाने की इजाजत मिल गई. रमा उस को अस्पताल से घर छोड़ गई. आज तक तो दुकान उस ने उस काम करने वाली लड़की की देखरेख में ही छोड़ रखी थी.

अचानक सुधीर का ध्यान आया, ‘‘अरे, आज 20 तारीख हो गई. रमा तुम ने सुधीर को उस की ब्याज की किस्त का चैक भिजवाया था पहली तारीख को?

रमा उस समय रसोई में थी. हरीश की आवाज सुन कर ऊपर शयनकक्ष में दौड़ी आई.

‘‘अरे, भूल गई मैं तो. उन को क्या मालूम नहीं कि आप को दिल का दौरा पड़ा है. कम से कम एक बार तो आ कर अस्पताल में देख जाते. बस, एक बार बीवी से फोन करवा दिया. हम कोई भागे थोड़े ही जाते हैं. मैं कल ही चैक खुद दे आऊंगी उन के घर,’’ इतना कह कर रमा चली गई.

हरीश से फिर भी रहा नहीं गया. उस ने सुधीर के घर का टैलीफोन नंबर घुमाया. फोन सुधीर के लड़के ने उठाया, ‘‘अरे चाचाजी, आप? कैसी तबीयत है? पिताजी आप के लिए बहुत चिंता करते हैं. इस समय तो पिताजी घर पर नहीं हैं. उन के आने पर उन से कह कर फोन करवा दूंगा.’’

‘इस का बेटा भी बिलकुल बाप पर गया है,’ हरीश ने मन ही मन सोचा.

सवेरे जब रमा दुकान पर जाने लगी तो हरीश ने अपनी गैरहाजिरी में आई हुई डाक लाने को कहा. रमा सारे पत्र ऊपर ले आई.

रमा जाने लगी तो हरीश ने उस को एक बार फिर से याद दिलाया कि सुधीर को चैक अवश्य भिजवाना है.

रमा चली गई. हरीश ने एक नजर उन पत्रों के ढेर पर डाली. फिर धीरेधीरे उन पत्रों को खोलने लगा.

रमा का कहना सच ही था. पहले 5 पत्र तो बिजली, गैस, टैलीफोन, अखबार और टैलीविजन के किराए के ही बिल थे. उन पत्रों के ढेर में एक बड़ा सा सफेद लंबा लिफाफा था. हरीश ने उसे खोला. उस को पढ़ते ही हरीश की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. पत्र सुधीर के वकील की तरफ से था. सुधीर ने समय पर ब्याज की किस्त न अदा करने के कारण दुकान और मकान पर कब्जा करने की कानूनी कार्यवाही का नोटिस दिया था.

हरीश के पसीना छूटने लगा. उस को समझने में देर न लगी कि उसे क्या हो रहा है. उस ने बिस्तर से उठने की नाकामयाब कोशिश की. कुछ क्षणों पश्चात उस की आंखें मुंदने लगीं. उस की आंखें पथरा गईं और वकील का नोटिस उस की बेजान उंगलियों के बीच उलझ कर रह गया ताकि शाम को रमा उस को पढ़ ले.

Best Kahani 2025 : अवगुण चित न धरो

Best Kahani 2025 :  समुद्र के किनारे बैठ कर वह घंटों आकाश और सागर को निहारता रहता. मन के गलियारे में घुटन की आंधी सरसराती रहती. ऐसा बारबार क्यों होता है. वह चाहता तो नहीं है अपना नियंत्रण खोना पर जाने कौन से पल उस की यादों से बाहर निकल कर चुपके- चुपके मस्तिष्क की संकरी गली में मचलने लगते हैं. कदाचित इसीलिए उस से वह सब हो जाता है जो होना नहीं चाहिए. सुबह से 5 बार उसे फोन कर चुका है पर फौरन काट देती है. 2 बार गेट तक गया पर गेटकीपर ने कहा कि छोटी मेम साहिबा ने मना किया है गेट खोलने को.

वह हताश हो समुद्र के किनारे चल पड़ा था. अपनी मंगेतर का ऐसा व्यवहार उसे तोड़ रहा था. घर पहुंच कर बड़बड़ाने लगा, ‘क्या समझती है अपनेआप को. जरा सी सुंदर है और बैंक में आफिसर बन गई है तो हवा में उड़ी जा रही है.’ मयंक के कारण ही अब उन का ऊंचे घराने से नाता जुड़ा था. जब विवाह तय हुआ था तब तो साक्षी ऐसी न थी. सीधीसादी सी हंसमुख साक्षी एकाएक इतनी बदल क्यों गई है?

मां ने मयंक की बड़बड़ाहट पर कुछ देर तो चुप्पी साधे रखी फिर उस के सामने चाय का प्याला रख कर कहा, ‘‘तुम हर बात को गलत ढंग से समझते हो.’’ ‘‘आप क्या कहना चाह रही हैं,’’ वह झुंझला उठा था.

मम्मी उस के माथे पर प्यार से हाथ फेरती हुई बोलीं, ‘‘पिछले हफ्ते चिरंजीव के विवाह में तुम्हारे बुलाने पर साक्षी भी आई थी. जब तक वह तुम से चिपकी रही तुम बहुत खुश थे पर जैसे ही उस ने अपने कुछ दूसरे मित्रों से बात करना शुरू किया तुम उस पर फालतू में बिगड़ उठे. वह छोटी बच्ची नहीं है. तुम्हारा यह शक्की स्वभाव उसे दुखी कर गया होगा तभी वह बात नहीं कर रही है.’’ मयंक सोच में पड़ गया. क्या मम्मी ठीक कह रही हैं? क्या सचमुच मैं शक्की स्वभाव का हूं?

दफ्तर से निकल कर साक्षी धीरेधीरे गाड़ी चला रही थी. फरवरी की शाम ठंडी हो चली थी. वह इधरउधर देखने लगी. उस का मन बहुत बेचैन था. शायद मयंक को याद कर रहा था. पापा ने कितने शौक से यह विवाह तय किया था. मयंक पढ़ालिखा नौजवान था. एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में अच्छे पद पर था. कंपनी ने उसे रहने के लिए बड़ा फ्लैट, गाड़ी आदि की सुविधा दे रखी थी. बहुत खुश थी साक्षी. पर घड़ीघड़ी उस का चिड़चिड़ापन, शक्की स्वभाव उस के मन को बहुत उद्वेलित कर रहा था. मयंक के अलगअलग स्वभाव के रंगों में कैसे घुलेमिले वह. लाल बत्ती पर कार रोकी तो इधरउधर देखती आंखें एक जगह जा कर ठहर गईं. ठंडी हवा से सिकुड़ते हुए एक वृद्ध को मयंक अपना कोट उतार कर पहना रहा था.

कुछ देर अपलक साक्षी उधर ही देखती रही. फिर अचानक ही मुसकरा उठी. अब इसे देख कर कौन कहेगा कि यह कितना चिड़चिड़ा और शक्की इनसान है. इस का क्रोध जाने किधर गायब हो गया. वह कार सड़क के किनारे पार्क कर के धीरेधीरे वहां जा पहुंची. मयंक जाने को मुड़ा तो उस ने अपने सामने साक्षी को खड़ा मुसकराता पाया. इस समय साक्षी को उस पर क्रोध नहीं बल्कि मीठा सा प्यार आ रहा था. मयंक का हाथ पकड़ कर साक्षी बोली, ‘‘मैं ने सोचा फोन पर क्यों मनाना- रूठना, आमनेसामने ही दोनों काम कर डालते हैं.’’

पहले मनाने का कार्य मयंक कर रहा था पर अब साक्षी को देखते ही उस ने रूठने की ओढ़नी ओढ़ ली और बोला, ‘‘अभी से बातबेबात नाराज होने का इतना शौक है तो आगे क्या करोगी?’’ साक्षी मन को शांत रखते हुए बोली, ‘‘चलो, कहां ले जाना चाहते थे. 2 घंटे आप के साथ ही बिताने वाली हूं.’’

मयंक अकड़ कर चलते हुए अपनी कार तक पहुंचा और अंदर बैठ कर दरवाजा खोल साक्षी के आने की प्रतीक्षा करने लगा. साक्षी बगल में बैठते हुए बोली, ‘‘वापसी में आप को मुझे यहीं छोड़ना होगा क्योंकि अपनी गाड़ी मैं ने यहीं पार्क की है. ’’ कार चलाते हुए मयंक ने पूछा, ‘‘साक्षी, क्या तुम्हें लगता है कि मैं अच्छा इनसान नहीं हूं?’’

‘‘ऐसा तो मैं ने कभी नहीं कहा.’’ ‘‘पर तुम्हारी बेरुखी से मुझे ऐसा ही लगता है.’’

‘‘देखो मयंक,’’ साक्षी बोली, ‘‘हमें गलतफहमियों से दूर रहना चाहिए.’’ मयंक एक अस्पताल के सामने रुका तो साक्षी अचरज से उस के साथ चल दी. कुछ दूर जा कर पूछ बैठी, ‘‘क्या कोई अस्वस्थ है?’’

मयंक ने धीरे से कहा, ‘‘नहीं,’’ और वह सीधा अस्पताल के इंचार्ज डाक्टर के कमरे में पहुंच गया. उन्होंने देखते ही प्यार से उसे बैठने को कहा. लगा जैसे वह मयंक को भलीभांति पहचानते हैं. मयंक ने एक चेक जेब से निकाल कर डाक्टर के सामने रख दिया. ‘‘आप लोगों की यह सहृदयता हमारे मरीजों के बहुत से दुख दूर करती है,’’ डाक्टर ने मयंक से कहा, ‘‘आप को देख कर कुछ और लोग भी हमारी सहायता को आगे आए हैं. बहुत जल्द हम कैंसर पीडि़तों के लिए एक नया और सुविधाजनक वार्ड आरंभ करने जा रहे हैं.’’

मयंक ने चलने की आज्ञा ली और साक्षी को चलने का संकेत किया. कार में बैठ कर बोला, ‘‘तुम परेशान हो कि मैं यहां क्यों आता हूं.’’ ‘‘नहीं. एक नेक कार्य के लिए आते हो यह तुरंत समझ में आ गया,’’ साक्षी मुसकरा दी.

मयंक चुपचाप गाड़ी चलातेचलाते अचानक बोल पड़ा, ‘‘साक्षी, क्या तुम्हें मैं शक्की स्वभाव का लगता हूं?’’ साक्षी चौंक कर सोच में पड़ गई कि यह व्यक्ति एक ही समय में विचारों के कितने गलियारे पार कर लेता है. पर प्रत्यक्ष में बोली, ‘‘क्या मैं ने कभी कहा?’’

‘‘यही तो बुरी बात है. कहती नहीं हो…बस, नाराज हो कर बैठ जाती हो.’’ ‘‘ठीक है. अब नाराज होने से पहले तुम्हें बता दिया करूंगी.’’

‘‘मजाक कर रही हो.’’ ‘‘नहीं.’’

‘‘मुझे तुम्हारे रूठने से बहुत कष्ट होता है.’’ साक्षी को उस की गाड़ी तक छोड़ कर मयंक बोला, ‘‘क्लब जा रहा हूं, चलोगी?’’

‘‘आज नहीं, फिर कभी,’’ साक्षी बाय कर के चल दी. विवाह की तारीख तय हो चुकी थी. दोनों तरफ विवाह की तैयारियां जोरशोर से चल रही थीं. एक दिन साक्षी की सास का फोन आया कि नलिनी यानी साक्षी की होने वाली ननद ने अपने घर पर पार्टी रखी है और उसे भी वहां आना है. यह भी कहा कि मयंक उसे लेने आ जाएगा. उस दिन नलिनी के पति विराट की वर्षगांठ थी.

साक्षी खूब जतन से तैयार हुई. ननद की ससुराल जाना था अत: सजधज कर तो जाना ही था. मयंक ने देखा तो खुश हो कर बोला, ‘‘आज तो बिजली गिरा रही हो जानम.’’ पार्टी आरंभ हुई तो साक्षी को नलिनी ने सब से मिलवाया. बहुत से लोग उस की शालीनता और सौंदर्य से प्रभावित थे. विराट के एक मित्र ने उस से कहा, ‘‘बहुत अच्छी बहू ला रहे हो अपने साले की.’’

‘‘मेरा साला भी तो कुछ कम नहीं है,’’ विराट ने हंस कर कहा. मयंक ने दूर से सुना और मुसकरा दिया. मां ने कहा था कि पार्टी में कोई तमाशा न करना और उन की यह नसीहत उसे याद थी. इसलिए भी मयंक की कोशिश थी कि अधिक से अधिक वह साक्षी के निकट रहे. डांस फ्लोर पर जैसे ही लोग थिरकने लगे तो मयंक ने झट से साक्षी को थाम लिया. साक्षी भी प्रसन्न थी. काफी समय से मयंक उसे खुश रखने के लिए कुछ न कुछ नया करता रहा था. कभी उपहार ला कर, कभी सिनेमा या क्लब ले जा कर. एक दिन साक्षी ने अपनी होने वाली सासू मां से कहा, ‘‘मम्मीजी, मयंक बचपन से ही ऐसे हैं क्या? एकदम मूडी?’’

मम्मी ने सुनते ही एक गहरी सांस भरी थी. कुछ पल अतीत में डूबतेउतराते व्यतीत कर दिए फिर बोलीं, ‘‘यह हमेशा से ऐसा नहीं था.’’ ‘‘फिर?’’

‘‘क्या बताऊं साक्षी…सब को अपना मानने व प्यार करने के स्वभाव ने इसे ऐसा बना दिया.’’ साक्षी ने उत्सुकता से सासू मां को देखा…वह धीरेधीरे अतीत में पूरी तरह डूब गईं.

पहले वे लोग इतने बड़े घर व इतनी हाई सोसायटी वाली कालोनी में नहीं रहते थे. मयंक को शानदार घर मिला तो वे यहां आए.

उस कालोनी में हर प्रकार के लोग थे और आपस में सभी का बहुत गहरा प्यार था. मयंक बंगाली बाबू मकरंद राय के यहां बहुत खेलता था. उन का बेटा पवन और बेटी वैदेही पढ़ते भी इस के साथ ही थे. वैदेही कत्थक सीखा करती थी. कभीकभी मयंक भी उस का नृत्य देखता और खुश होता रहता. उस दिन राय साहब ने वैदेही की वर्षगांठ की एक छोटी सी पार्टी रखी थी. आम घरेलू पार्टी जैसी थी. महल्ले की औरतों ने मिलजुल कर कुछ न कुछ बनाया था और बच्चों ने गुब्बारे टांग दिए थे. इतने में ही वहां खुशी की मधुर बयार फैल गई थी.

राय साहब बंगाली गीत गाने लगे तो माहौल बहुत मोहक हो गया. तभी किसी ने कहा, ‘वैदेही का डांस तो होना ही चाहिए. आज उस की वर्षगांठ है.’ सभी ने हां कही तो वैदेही भी तैयार हो गई. वह तुरंत चूड़ीदार पायजामा और फ्राक पहन कर आ गई. उसे देखते ही उस के चाचा के बच्चे मुंह पर हाथ रख कर हंसने लगे. मयंक बोला, ‘क्यों हंस रहे हो?’

‘कैसी दिख रही है बड़ी दीदी.’ ‘इतनी प्यारी तो लग रही है,’ मयंक ने खुश हो कर कहा.

नृत्य आरंभ हुआ तो उस के बालों में गुंथे गजरे से फूल टूट कर बिखरने लगे. वे दोनों बच्चे फिर ताली बजाने लगे. ‘अभी वैदेही दीदी भी गिरेंगी.’

मयंक को उन का मजाक उड़ाना अच्छा नहीं लगा. इसीलिए वह दोनों बच्चों को बराबर चुप रहने को कह रहा था. अचानक वैदेही सचमुच फिसल कर गिर गई और उस के माथे पर चोट लग गई जिस में से खून बहने लगा था. मयंक को पता नहीं क्या सूझा कि उठ कर उन दोनों बच्चों को पीट दिया.

‘तुम्हारे हंसने से वह गिर गई और उसे चोट लग गई.’ मयंक का यह कोहराम शायद कुछ लोगों को पसंद नहीं आया… खासकर वैदेही को. वह संभल कर उठी और मयंक को चांटा मार दिया. साथ में यह भी बोली, ‘क्यों मारा हमारे भाई को.’

सबकुछ इतनी तीव्रता से हुआ था कि सभी अचंभित से थे. वातावरण को शीघ्र संभालना आवश्यक था. अत: मैं ने ही मयंक से कहा, ‘माफी मांगो.’ मेरे कई बार कहने पर उस ने बुझे मन से माफी मांग ली पर शीघ्र ही वह चुपके से घर चला गया. हम बड़ों ने स्थिति संभाली तो पार्टी पूरी हो गई. उस छोटी सी घटना ने मयंक को बहुत बदल दिया था पर वैदेही ने मित्रता को रिश्तेदारी के सामने नकार दिया था. शायद तब से ही मयंक का दृष्टिकोण भरोसे को ले कर टूट गया और वह शक्की…

‘‘मैं समझ गई, मम्मीजी,’’ साक्षी के बीच में बोलते ही मम्मी अतीत से निकल कर वर्तमान में आ गईं. विराट हमेशा बहुत बड़े पैमाने पर पार्टी देता था. उस दिन भी उस की काकटेल पार्टी जोरशोर से चल रही थी. साक्षी उस दिन पूरी तरह से सतर्क थी कि मयंक का मन किसी भी कारण से न दुखे.

जैसे ही शराब का दौर चला वह पार्टी से हट कर एक कोने में चली गई ताकि कोई उसे मजबूर न करे एक पैग लेने को. मयंक वहीं पहुंच गया और बोला, ‘‘क्या हुआ? यहां क्यों आ गईं?’’ ‘‘कुछ नहीं, मयंक, शराब से मुझे घबराहट हो रही है.’’

‘‘ठीक है. कुछ देर आराम कर लो,’’ कह कर वह प्रसन्नचित्त पार्टी में सम्मिलित हो गया. विराट के आफिस की एक महिला कर्मचारी के साथ वह फ्लोर पर नृत्य करने लगा. उस कर्मचारी का पति शराब का गिलास थाम कर साक्षी की बगल में आ बैठा और बोला, ‘‘आप डांस नहीं करतीं?’’

‘‘मुझे इस का खास शौक नहीं है,’’ साक्षी ने जवाब में कहा. ‘‘मेरी पत्नी तो ऐसी पार्टीज की बहुत शौकीन है. देखिए, कैसे वह मयंकजी के साथ डांस कर रही है.’’

प्रतिउत्तर में साक्षी केवल मुसकरा दी. ‘‘आप ने कुछ लिया नहीं. यह गिलास मैं आप के लिए ही लाया हूं.’’

‘‘अगर यह सब मुझे पसंद होता तो मयंक सब से पहले मेरा गिलास ले आते,’’ साक्षी को कुछ गुस्सा सा आने लगा. ‘‘लेकिन भाभीजी, यह तो काकटेल पार्टी का चलन है. यहां आ कर आप इन चीजों से बच नहीं सकतीं,’’ वह जबरन साक्षी को शराब पिलाने की कोशिश करने लगा.

साक्षी निरंतर बच रही थी. मयंक ने दूर से देख लिया और पलक झपकते ही उस व्यक्ति के गाल पर एक झन्नाटेदार तमाचा जड़ दिया. ‘‘अरे, वाह, ऐसा क्या किया मैं ने. अकेली बैठी थीं आप की मंगेतर तो उन्हें कंपनी दे रहा था.’’

‘‘अगर उसे साथ चाहिए होगा तो वह स्वयं मेरे पास आ जाएगी,’’ मयंक क्रोध से बोला. ‘‘वाह साहब, खुद दूसरों की पत्नी के साथ डांस कर रहे हैं. मैं जरा पास में बैठ गया तो आप को इतना बुरा लग गया. कैसे दोगले इनसान हैं आप.’’

‘‘चुप रहिए श्रीमान,’’ अचानक साक्षी उठ कर चिल्ला पड़ी, ‘‘मेरे मयंक को मुसीबतों से मुझे बचाना अच्छी तरह आता है और अपनी पत्नी से मेरी तुलना करने की कोशिश भी मत करिएगा.’’ वह तुरंत हौल से बाहर निकल गई. पार्टी में सन्नाटा छा गया था.

मयंक भी स्तब्ध हो उठा था. धीरेधीरे उसे खोजते हुए बाहर गया तो साक्षी गाड़ी में बैठी उस की प्रतीक्षा कर रही थी. वह चुपचाप उस की बगल में बैठ गया तो साक्षी ने उस के कंधे पर सिर टिका दिया. उस की हिचकी ने अचानक मयंक को बहुत द्रवित कर दिया था. उस का सिर थपकते हुए बोला, ‘‘चलें.’’ साक्षी ने आंसू पोंछ अपनी गरदन हिला दी. कार स्टार्ट करते मयंक ने सोचा, ‘शुक्र है, साक्षी मुझे समझ गई है.’

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