अर्जुन कपूर से ब्रेकअप के बाद Malaika Arora बनीं बिजनेस वुमन, बेटे अरहान के साथ मिलकर खोला रेस्टोरेंट

Malaika Arora New Business: कहते हैं दिल टूटने से तकलीफ तो बहुत हुई मगर जिंदगीभर का आराम हो गया. ऐसा ही कुछ हाल मौडल और कई शोज की जज मलाइका अरोड़ा (Malaika Arora) का है. जिनका हाल ही में  प्रेमी अर्जुन कपूर के साथ ब्रेकअप हो गया है. लेकिन वह दुख मनाने के बजाय बिजनेस वुमन बनने की राह पर निकल पड़ी है. क्योंकि वह अच्छी तरह जानती हैं कि एक बार प्यार के बिना रह सकते हैं लेकिन भूखे पेट भजन भी नहीं होता.

इसी बात को ध्यान में रखकर अर्जुन कपूर (Arjun Kapoor) से ब्रेकअप के बाद रोनेधोने और दुख मनाने के बजाय मलाइका ने पेट पूजा के बंदोबस्त पर ध्यान देना शुरू किया. उन्होंने सबको उस वक्त आश्चर्य में डाल दिया जब बिजनेस वुमन बनकर अपना नया सफर अर्थात रेस्टोरेंट खोलने की घोषणा की. रेस्टोरेंट खोलने के बिजनेस में उनके प्यारे बेटे अरहान खान ने मां का साथ दिया है.

अरहान और मलाइका के बीच बहुत अच्छी अंडरस्टैंडिंग और दोनों का एकदूसरे के प्रति पूरा सहयोग है. जिसके चलते खाना बनाने और खाना खाने की शौकीन मलाइका अरोड़ा ने अपने बेटे अरहान के साथ मिलकर मुंबई स्थित बांद्रा में एक रेस्टोरेंट की शुरुआत की है जिसका नाम Scarlett House है. मलाइका ने अपने नए रेस्टोरेंट खोलने की खुशखबरी जब से सोशल मीडिया पर दी है तब से हर तरफ से उनको बधाई के मैसेज आ रहे हैं.

मुंबई में Pushpa 2 का ट्रेलर लौन्च, बेइंतेहा भीड़ को कंट्रोल करना हुआ मुश्किल…

Pushpa 2 : कुछ समय पहले बिहार पटना के गांधी मैदान में पुष्पा 2 का प्रमोशन इवेंट हुआ इस इवेंट को देखने के लिए और अल्लू अर्जुन की एक झलक देखने के लिए पूरा मैदान भीड़ से खचाखच भरा था. अल्लू अर्जुन की एक झलक देखने के लिए हजारों में आई भीड़ को काबू करना मुश्किल हो गया था. पुष्पा वन में अल्लू अर्जुन का एक डायलौग पुष्पा झुकेगा नहीं साला, इतना प्रसिद्ध हुआ कि आज 3 साल बाद भी यह डायलौग लोगों की जुबान पर है, यही डायलौग बोलने वाले अल्लू अर्जुन जब मुंबई के जे डब्लू मैरियट होटल में ट्रेलर लांच और खास इवेंट के लिए पहुंचे तो लोगों का प्यार और भीड़ को देखकर अल्लू अर्जुन ने उसी अंदाज में एक बार फिर कहा पुष्पा अब रुकेगा नहीं साला.

 

पुष्पा 2 के लिए अल्लू अर्जुन के आगमन ने लगभग तहलका मचा दिया होटल के बाहर उनके प्रशंसकों की लगातार बढ़ती भीड़ पुष्पा 2 की सफलता की कहानी खुद ब खुद कह रही है. लगातार 3 सालों से इस फिल्म के लिए काम कर रहे अल्लू अर्जुन डायरेक्टर सुकुमार और भूषण कुमार सहित पूरी टीम ने फिल्म के 2:45 मिनट के टेलर द्वारा ही पुष्पा 2 की सफलता की कहानी कह दी है.

मेकर्स का दावा है पुष्पा 2 बौक्स औफिस पर 1500 करोड़ का आंकड़ा पार करेगी. फिल्म 5 दिसंबर को रिलीज हो रही है लेकिन अल्लू अर्जुन और पुष्पा 2 का क्रेज़ फिल्म रिलीज से पहले ही बहुत कुछ कह रहा है. पुष्पा 2 के ट्रेलर में अल्लू अर्जुन कई अवतार के साथ वन मैन शो करते नजर आए हैं और उनका हर अवतार काबिले तारीफ नजर आ रहा है.

पुष्पा 2 का निर्माण पुष्पा वन से कहीं ज्यादा बेहतरीन है. फिल्म की रिलीज से पहले अपार लोकप्रियता को देखकर अब लगता है पुष्पा रुकेगा नहीं साला … यह हम नहीं कह रहे बल्कि अल्लू अर्जुन ने वहां मौजूद अपने फैंस का प्यार देखकर पुष्पा स्टाइल में यह बात कही है. ऐसे में यह कहना गलत ना होगा की पुष्पा 2 का आगाज तो बहुत जबरदस्त है अंजाम 5 दिसंबर को फिल्म रिलीज होने पर पता चलेगा.

Samantha Ruth Prabhu ने कहीं ये इमोशनल बात, ऐक्स हसबैंड की शादी के बीच छूटा पिता का साथ

Samantha Ruth Prabhu’s Father Dies : साउथ सिनेमा की फेमस ऐक्ट्रैस सामंथा रूथ प्रभु(Samantha Ruth Prabhu)  के पिता जोसेफ प्रभु का निधन हो गया है. इसकी जानकारी सामंथा ने खुद सोशल मीडिया पर पोस्ट शेयर करके अपने फैंस को दी हैं. सामंथा का ये इमोशनल पोस्ट सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. इस पोस्ट में ऐक्ट्रैस ने लिखा है, अब जब तक हम दोबारा नहीं मिलते, पापा. उन्होंने इसके साथ हार्ट ब्रेक वाली इमोजी भी लगाई है. इस पोस्ट पर हर कोई उन्हें सांत्वना दे रहा है.

पिता के बेहद करीब थीं सामंथा

एक इंटरव्यू के दौरान समांथा ने अपने पिता को लेकर बातचीत की थी. इसमें उन्होंने कहा था कि, ‘मेरे पिता वैसे ही थे जैसे बाकी सबके होते हैं. उन्हें लगता है कि वह मुझे प्रोटेक्ट कर रहे हैं. क्योंकि उन्हें लगता है कि मैं ज्यादा स्मार्ट नहीं हूं.’ उन्होंने बताया कि उनके पापा ने कहा कि पढ़ाई करो, तुम भी पहली रैंक पा सकती हो. सामंथा ने आगे बताया कि जब आप किसी बच्चे से ऐसा कहते हैं, तो उसे लगता है कि वे वाकई पढ़ने में अच्छा नहीं है. इसलिए मुझे भी बहुत लंबे समय तक लगता था कि मैं होशियार और अच्छी नहीं हूं.

सामंथा के पिता तेलुगु एंग्लो-इंडियन थे

सामंथा रुथ प्रभु के पिता जोसेफ प्रभु और मां निनेट प्रभु हैं. उनके पिता ने तेलुगु एंग्लो-इंडियन थे. उन्होंने सामंथा की परवरिश में एक अभिन्न भूमिका निभाई. हालांकि, करियर में उन्हें पिता का सहारा नहीं मिला. लेकिन सामंथा अकसर पिता और अपने परिवार की बातें करती रहती हैं.

सामंथा के तलाक पर पिता जोसेफ ने किया था रिऐक्ट

पिता जोसेफ ने सामंथा के तलाक पर रिऐक्ट किया था. उन्होंने सामंथा और नागा चैतन्य की शादी की एक तस्वीर शेयर कर सोशल मीडिया पर लिखा ‘कई, कई साल पहले एक कहानी थी. और अब यह कहानी खत्म हो चुकी है. इसलिए एक नई कहानी और एक नया अध्याय शुरू करते हैं.’

नागा चौतन्य से सामंथा हो गईं अलग

2010 में सामंथा रूथ प्रभु ने नागा चैतन्य के साथ डेब्यू फिल्म किया था. इसके बाद दोनों एकदूसरे के डेट करने लगे और 2017 में शादी कर ली थी. शादी के चार साल बाद 2021 में कपल का तलाक हो गया. ऐक्स-हस्बैंड नागा चैतन्य अब 4 दिसंबर को शोभिता धुलिपाला से शादी कर रहे हैं, लेकिन सामंथा अभी सिंगल हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक सामंथा ने अपनी शादी के लिए कहा कि उन्हें अपने अलगाव को स्वीकार करने में काफी समय लगा और उन्होंने अपने जीवन में एक नया अध्याय शुरू करने की उम्मीद जताई.

Relationship : क्या है अल्फा मेल और बीटा मेल, कौन है आप के लिए सही

Relationship : अल्फा मेल जहां हमेशा जोश और गुस्से से भरा हुआ नजर आता है, वहीं बीटा मेल काफी कूल और जिंदगी को खुल कर जीने वाले माने जाते हैं. एक परफैक्ट मेल के इन दोनों ही रूपों में काफी बड़ा अंतर है. अगर आप भी नहीं जानते कि अल्फा और बीटा मेल की क्या अवधारणा है, तो अपना लाइफ पार्टनर चुनने से पहले इन बातों पर जरूर गौर करें :

आत्मविश्वास से भरा होता है अल्फा मेल

सब से पहले जानते हैं कि आखिर अल्फा मेल होते कैसे हैं. ऐसी प्रवृति के पुरुषों में स्वाभाविक रूप से नेतृत्व की क्षमता होती है. यह अकसर समूह में सब से आगे होते हैं. उस की राय और फैसले महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं. ऐसे पुरुषों का आत्मविश्वास बहुत मजबूत होता है. वह किसी भी चुनौती का सामना करने में नहीं डरते. उन के व्यक्तित्व में भी आप को ये सारी बातें नजर आती हैं. वे शारीरिक रूप से फिट और मानसिक रूप से मजबूत होते हैं. हालांकि ऐसे पुरुष अकसर डोमिनेटिंग नेचर के होते हैं और दूसरों पर हावी होने की कोशिश करते हैं. ये दूसरों से बहुत ज्यादा प्रतिस्पर्धा रखते हैं. अपने ज्यादातर फैसने खुद को केंद्र में रख कर करते हैं.

संतुष्टि से जीवन बिताते हैं बीटा मेल

बीटा मेल काफी हद तक अल्फा मेल से अलग होते हैं. ऐसे पुरुष शांत स्वभाव के होते हैं. वे हमेशा सब की मदद करने के लिए आगे रहते हैं. बीटा मेल काफी इमोशनल होते हैं और दूसरे की भावनाओं को गहराई से समझते हैं. ये लीडर बनने की जगह टीम को साथ ले कर चलने में विश्वास रखते हैं और मिलजुल कर काम करते हैं. इतना ही नहीं बीटा मेल अपने पार्टनर की जरूरत को बेहतर तरीके से समझ पाते हैं और उन्हें पूरा सम्मान भी देते हैं.

यह स्वभाव से लचीले होते हैं और हर परिस्थिति में खुद को ढालने की कोशिश करते हैं. वे अकसर दूसरों को भी बोलने का मौका देते हैं, हालांकि कई बार उन के इस स्वभाव को उन की कमजोरी समझ लिया जाता है.

आप के लिए कौन है बेहतर

अब सवाल यह है कि आप के लिए कैसा मेल बैस्ट है. दरअसल, यह पूरी तरीके से आप की निजी पसंद पर निर्भर करता है. हालांकि अल्फा मेल के मुकाबले बीटा मेल के साथ जिंदगी ​जीना काफी आसान है. लेकिन जिंदगी में आगे बढ़ने की संभावनाओं की बात करें तो इस मामले में अल्फा मेल आगे निकल सकते हैं क्योंकि ऐसे पुरुष हमेशा लीडर बन कर उभरते हैं.

Winter Fashion Look : सर्दियों में दिखना चाहती हैं फैशनेबल, तो शौल को करें कुछ इस तरह स्टाइल

Winter Fashion Look: सर्दियां शुरू होते ही लड़कियों को खुद को स्टाइल में रखने की टैंशन सताने लगती है क्योंकि जैसेजैसे सर्दियां बढ़ती हैं वैसेवैसे बौडी पर कपड़ों की परत दर परत चढ़ने लगती है और फैशन कुछ दिनों के लिए ठंडे बस्ते में चला जाता है.

लेकिन आज हम शौल के कुछ ऐसे स्टाइल आप से साझा करने जा रहे हैं जिन के जरीए आप की बौडी तो गरम रहेगी ही साथ में दिखेंगी भी हौट.

शौल को दें जैकेट लुक

इस लुक के लिए आप को अपने शौल के मिड पौइंट को पकड़ना होगा और फिर शौल के मिड पाइंट से एक किनारा सैफ्टी पिन से सिक्योर कर लें.इसी तरह शौल का दूसरा किनारा भी इसी पिन में जौइन कर लें.ऐसा करने पर शौल श्रग की तरह लगेगा जिस के बाद शौल के एक सिरे को आप एक हाथ में डालें और दूसरे सिरे को दूसरे हाथ में.

ऐसा करने पर यह जैकेट लुक में नजर आएगा, जिसे आप इंडियन व वैस्टर्न किसी भी लुक के लिए अपना सकती हैं.

बेल्ट के साथ करें कैरी

आप शौल को बेल्ट के साथ कैरी कर सकती हैं.इस के लिए आप को सब से पहले शौल के दोनों सिरों को गले से आगे की तरफ डालना है और फिर बेल्ट लगा लें.इस के बाद आप शौल को कमर की तरफ फैलाते हुए पीछे से सैफ्टी पिन से सिक्योर कर लें.यदि आप का शौल प्रिंट में है तो आप की सिंपल प्लेन ड्रैस को बेहतरीन लुक भी मिलेगा. साथ ही आप प्रिंटेड ड्रैस पर प्लेन या बौर्डर वाली शौल से भी नया लुक पा सकती हैं.

साड़ी के साथ दें पल्ले का लुक

साड़ी के पल्ले को पीछे से घुमा कर उलटे हाथ पर बंगाली साड़ी की तरह टक कर लें और साड़ी से मैचिंग या कंट्रास्ट रंग की कोई शौल लें.इसे बिलकुल साड़ी की ही तरह कमर में ठूंस कर मोड़ें और पल्ला ले लें.यह लुक आप को स्टाइलिश भी दिखाएगा.

Home Decor Ideas : घर को दें होटल जैसा लग्जरी फील, बजट में ऐसे सजाएं दीवारें

Home Decor Ideas : घर की दीवारों को सही तरीके से सजा कर आप अपने घर को लग्जरी लुक दे सकते हैं. एक समय था जब दीवारों पर पेंट करवाना ही काफी था, लेकिन आज वाल डैकोरेशन के ढेर सारे विकल्प आप के पास हैं.

अगर आप भी बजट में अपनी घर की दीवारों को लग्जरी लुक देना चाहते हैं तो ये आइडियाज आप के काम आ सकते हैं :

आर्टवर्क और पैंटिंग्स

घर की दीवारों को सजाने का यह सब से आसान तरीका है. आप अपनी पसंदीदा पैंटिंग्स, आर्टवर्क्स या फोटोग्राफ्स को फ्रेम में लगा कर दीवारों पर सजाएं.

आप स्थानीय कलाकारों की पैंटिंग्स, मौडर्न आर्ट, तंजौर पैंटिंग्स जैसे विकल्प पसंद कर सकते हैं. हालांकि पैंटिंग्स हमेशा अपने घर की थीम के अनुसार चुनें.

मिरर वर्क है बैस्ट

​इन दिनों मिरर वर्क काफी ट्रैंड में है. इस से आप के घर की शोभा में चार चांद लग सकते हैं. साथ ही यह स्पेस को बड़ा और ब्राइट भी बनाता है. बड़े आकार का मिरर या फिर कई छोटे मिरर्स को मिला कर शानदार वाल आर्ट क्रिएट कर सकते हैं.

लाइटिंग अपनाएं

घर को एस्थेटिक और अलग लुक देना चाहते हैं तो आप वाल लाइटिंग का विकल्प चुन सकते हैं. यह ​दीवारों को काफी स्टाइलिश लुक देती हैं. खास बात यह है कि ये ​बजट फ्रैंडली विकल्प है और इस से घर ब्राइट लगता है.

आपके पास एलईडी ​स्ट्रिप्स, वाल लैंप या पेंडेंट लाइट्स जैसे कई शानदार विकल्प हैं.

पौधों से सजाएं

घर की दीवारों को बजट में सजाना चाहते हैं तो पौधे आप के लिए बैस्ट औप्शन हो सकते हैं. ये घर को पौजिटिव वाइप्स से भर देंगे. साथ ही आप को अच्छा फील होगा. आप बड़े पौधों के साथ ही हैंगिंग पौधों का विकल्प भी चुन सकते हैं.

लगाएं वालपेपर

दीवारों को सजाने का सब से आसान तरीका है वालपेपर. इस में आप को कई डिजाइंस और टैक्सचर मिल जाएंगे. आप अपने घर की थीम के अनुसार इन्हें चुन सकते हैं. कमरे की एक दीवार पर भी अगर आप वालपेपर लगाएंगे तो पूरी स्पेस का लुक बदल जाएगा. इन दिनों एंटीक, क्लासिक, फ्लोरल और गोल्डन पैटर्न ज्यादा चलन में हैं.

बनवाएं वाल शैल्फ

दीवारों को रौयल लुक देने के लिए आप वाल शैल्फ बनवा सकते हैं. आप छोटे वाल शैल्फ बनवाएं, जिन में किताबें, पौधे या सजावटी आइटम्स रख सकते हैं. यह न केवल सजावट के लिए अच्छे हैं, बल्कि कम स्पेस को आप के लिए उपयोगी भी बना सकती हैं.

संयुक्त खाता: किसने की कमला आंटी की मदद

दोपहर का समय था. मैं औफिस में खाना खत्म कर के जल्दीजल्दी अपनी फाइलें इकट्ठी कर रही थी.

बस 15 मिनट में एक जरूरी मीटिंग अटैंड करनी थी. इतने में ही फोन की घंटी बजी.

‘‘उफ्फ… अब यह किस का फोन आ गया?‘‘ परेशान हो कर मैं ने फोन उठाया, तो उधर से कमला आंटी की आवाज सुनाई पड़ी.

कमला आंटी के साथ हमारे परिवार का बहुत पुराना रिश्ता है. उन के पति और मेरे पिता बचपन में स्कूल में साथ पढ़ते थे.

आंटी की आवाज से मेरा माथा ठनका. आंटी कुछ उदास सी लग रही थीं और मैं जल्दी में थी. पर फिर भी आवाज को भरसक मुलायम बना कर मैं ने कहा, ‘‘हां आंटी, बताइए कैसी हैं आप?‘‘

‘‘बेटा, मैं तो ठीक हूं, पर तुम्हारे अंकल की तबीयत काफी खराब है. हम लोग पिछले 10 दिन से अस्पताल में ही हैं,‘‘ बोलतेबोलते उन का गला भर्रा गया, तो मुझे भी चिंता हो गई.

‘‘क्या हुआ आंटी? कुछ सीरियस तो नहीं है?‘‘

‘‘सीरियस ही है बेटा. उन को एक हफ्ते पहले दिल का दौरा पड़ा था और अब… अब लकवा मार गया है. कुछ बोल भी नहीं पा रहे हैं. डाक्टर भी कुछ उम्मीद नहीं दिला रहे हैं,‘‘ कहते हुए उन का गला रुंध गया.

‘‘आंटी, आप फिक्र मत कीजिए. अंकल ठीक हो जाएंगे. आप हिम्मत रखिए. मैं शाम को आती हूं आप से मिलने,‘‘ एक तरफ मैं उन्हें दिलासा दिला रही थी, वहीं दूसरी तरफ अपनी घड़ी देख रही थी.

मीटिंग का समय होने वाला था और मेरे बौस देर से आने वालों की तो बखिया ही उधेड़ देते थे. किसी तरह भागतेभागते मीटिंग में पहुंची, पर मेरा दिमाग कमला आंटी और भाटिया अंकल की तरफ ही लगा रहा.

मीटिंग समाप्त होतेहोते शाम हो गई. मैं ने सोचा, घर जाते हुए अस्पताल की तरफ से निकल चलती हूं. वहां जा कर देखा, तो अंकल की हालत सचमुच काफी खराब थी. डाक्टरों ने लगभग जवाब दे दिया था. अस्पताल से निकलते हुए मैं ने कहा, ‘‘आंटी, किसी चीज की जरूरत हो तो बताइए.‘‘

कमला आंटी पहले तो कुछ हिचकिचाईं, पर फिर बोलीं, ‘‘बेटा, एक हफ्ते से अंकल अस्पताल में पड़े हैं. अब तुम से क्या छिपाना? मेरे पास जितना पैसा घर में था, सब इलाज में खर्च हो गया है. इन के अकाउंट में तो पैसा है, परंतु निकालें कैसे? यह तो चेक पर दस्तखत नहीं कर सकते और एटीएम कार्ड का पिन भी बस इन्हें ही पता है. इन का खाता तुम्हारे ही बैंक में है. यह रही इन की पासबुक और चेकबुक. क्या तुम बैंक से पैसे निकालने में कुछ मदद कर सकती हो?‘‘ कहते हुए आंटी ने पासबुक और चेकबुक दोनों मेरे हाथ में रख दी. आंटी को पता था कि मैं उसी बैंक में नौकरी करती हूं.

‘‘आंटी, आप का भी अंकल के साथ जौइंट अकाउंट तो होगा ना? आप चेक साइन कर दीजिए, मैं कल बैंक खुलते ही आप के पास पैसे भिजवा दूंगी.‘‘

‘‘नहीं बेटा, नहीं. वही तो नहीं है. तुम्हें तो पता ही है, मैं तो इन के कामों में कभी दखल नहीं देती. इन्होंने कभी कहा नहीं और न ही मुझे कभी जरूरत महसूस हुई. बैंक का सारा काम तो अंकल खुद ही करते थे. पर पैसे तो इन के इलाज के लिए ही चाहिए. तुम तो बैंक में ही नौकरी करती हो. किसी तरह पैसा बैंक से निकलवा दोगी ना?‘‘ आंटी ने इतनी मासूमियत भरी उम्मीद से मेरी ओर देखा, तो मुझे समझ न आया कि मैं क्या करूं. बस चेक ले कर सोचती हुई घर आ गई.

घर जा कर चेक फिर से देखा और बैंक की शाखा का नाम पढ़ा तो याद आया कि वहां का मैनेजर तो मुझे अच्छी तरह से जानता है. झटपट मैं ने उसे फोन किया और सारी स्थिति समझाई. उस ने तुरंत मौके की नजाकत समझी और मुझे आश्वासन दिया, ‘‘कोई बात नहीं. मैं भाटिया साहब को अच्छी तरह जानता हूं. उन के सारे खाते हमारी ब्रांच में ही हैं. सुबह बैंक खुलते ही मैं खुद भाटिया साहब के पास अस्पताल चला जाऊंगा और उन के दस्तखत करवा कर पैसे उन के पास भिजवा दूंगा. आप बिलकुल फिक्र मत कीजिए.‘‘

बैंक के निर्देशों के अनुसार यदि कोई खाताधारी किसी कारण से दस्तखत करने की हालत में नहीं होता है तो कोई अधिकारी अपने सामने उस का अंगूठा लगवा कर उस के खाते से पैसे निकालने के लिए अधिकृत कर सकता है. वह मैनेजर इन निर्देशों से भलीभांति अवगत था, और भाटिया अंकल की मदद करने के लिए भी तैयार था, यह जान कर मुझे बहुत तसल्ली हुई और मैं चैन की नींद सो गई.

सुबह दफ्तर जाने की जगह मैं ने कार अस्पताल की ओर मोड़ ली. मुझे बहुत खुशी हुई, जब 9 बजते ही बैंक का मैनेजर भी वहां पहुंच गया. उस के हाथ में विड्राल फार्म था, जामुनी स्याही वाला इंकपैड भी था. बेचारा पूरी तैयारी से आया था. आते ही उस ने भाटिया अंकल से खूब गर्मजोशी से नमस्ते की, तो अंकल के चेहरे पर भी कुछ पहचान वाले भाव आते दिखे. फिर मैनेजर ने कहा, ‘‘भाटिया साहब, आप के अकाउंट से 25,000 रुपए निकाल कर आप की मैडम को दे दूं?‘‘

जवाब में जब अंकल ने अपना सिर नकारात्मक तरीके से हिलाया, तो मैनेजर समेत हम सब सकते में आ गए.

उस ने फिर कहा, ‘‘भाटिया साहब, आप के इलाज के लिए आप की मैडम को पैसा चाहिए. आप के अकाउंट से पैसे निकाल कर दे दूं?‘‘ जवाब फिर नकारात्मक था.

बेचारे मैनेजर ने 3-4 बार प्रयास किया, पर हर बार भाटिया अंकल ने सिर हिला कर साफ मना कर दिया. उस ने हार न मानी और फिर कहा, ‘‘भाटिया साहब, आप को पता है कि यह पैसा आप के इलाज के लिए ही चाहिए?‘‘

भाटिया अंकल ने अब सकारात्मक सिर हिलाया, परंतु पैसे देने के नाम पर जवाब में फिर ना ही मिला.

हालांकि यह अकाउंट भाटिया अंकल के अपने अकेले के नाम में ही था, उन्होंने उस पर कोई नौमिनेशन भी नहीं कर रखा था. बैंक मैनेजर ने आखिरी कोशिश की, ‘‘भाटिया साहब, आप की मैडम को इस अकाउंट में नौमिनी बना दूं?‘‘ जवाब अब भी नकारात्मक था.

‘‘आप का अकाउंट कमलाजी के साथ जौइंट कर दूं?‘‘ जवाब में फिर नहीं. ताज्जुब की बात तो यह कि भाटिया अंकल, जो कल तक न कुछ बोल रहे थे और न ही समझ रहे थे, बैंक से पैसे निकालने के मामले में आज सिर हिला कर साफ जवाब दे रहे थे.

मैनेजर ने मेरी ओर लाचारी से देखा और हम दोनों कमरे के बाहर आ गए. खाते से पैसे निकालने में मैनेजर ने अपनी मजबूरी जाहिर कर दी, ‘‘मैडम, अच्छा हुआ, आप यहां आ गईं, नहीं तो शायद आप मेरा भी विश्वास नहीं करतीं. आप ने खुद अपनी आंखों से देखा है. भाटिया साहब तो साफ मना कर रहे हैं. ऐसे में कोई भी उन के अकाउंट से पैसे निकालने की अनुमति कैसे दे सकता है?‘‘

मैनेजर की बात तो सोलह आने खरी थी. बैंक मैनेजर तो वापस बैंक चला गया और मैं अंदर जा कर कमला आंटी को उस की लाचारी समझाने की व्यर्थ कोशिश करने लगी.

अस्पताल से लौटते समय मैं उन्हें अपने पास से 10,000 रुपए दे आई. साथ ही, आश्वासन भी कि जितने रुपए चाहिए, आप मुझे बता दीजिएगा, आखिर अंकल का इलाज तो करवाना ही है.

शाम को बैंक से लौटते हुए मैं कमला आंटी के पास फिर गई. वे अभी भी दुखी थीं. मैं ने भी उन से पूछ ही लिया, ‘‘आंटी, आप ने कभी अंकल को अकाउंट जौइंट करने के लिए नहीं कहा क्या?‘‘

‘‘कहा था बेटा. कई बार कहा था, पर वह मेरी कब मानते हैं? हमेशा यही कहते हैं कि मैं क्या इतनी जल्दी मरने जा रहा हूं? एक बार शायद यह भी कह रहे थे कि यह मेरा पेंशन अकाउंट है, जौइंट नहीं हो सकता है.‘‘

‘‘नहींनहीं आंटी, शायद उन्हें पता नहीं है. अभी तो पेंशन अकाउंट भी जौइंट हो सकता है. चलो, अंकल ठीक हो जाएंगे, तब उन का और आप का अकाउंट जौइंट करवा देंगे और नौमिनेशन भी करवा देंगे,‘‘ कह कर मैं घर आ गई.

रास्तेभर गाड़ी चलाते हुए मैं यही सोचती रही कि भाटिया अंकल वैसे तो आंटी का इतना खयाल रखते हैं, पर इतनी महत्वपूर्ण बात पर कैसे ध्यान नहीं दिया?

कुछ दिन और निकल गए. भाटिया अंकल की तबीयत और बिगड़ती गई. आखिरकार, लगभग 10 दिन बाद उन्होंने अंतिम सांस ले ली और कमला आंटी को रोताबिलखता छोड़ परलोक सिधार गए.

पति के जाने के अकथनीय दुख के साथसाथ आंटी के पास अस्पताल का बड़ा सा बिल भी आ गया. उन का अंतिम संस्कार होने तक आंटी के ऊपर कर्जा काफी बढ़ गया था.

घर की सदस्य जैसी होने के नाते मैं लगभग रोज ही उन के पास जा रही थी और मैं ने जो पहला काम किया, वह यह कि भाटिया अंकल के सभी खाते बंद करवा के उन्हें कमला आंटी के नाम करवाया. इन कामों में बहुत से फार्म पूरे करने पड़ते हैं, पर बैंक में नौकरी करने की वजह से मुझे उन सब की जानकारी थी. आंटी को सिर्फ इन्डेमिनिटी बांड, एफिडेविट, हेयरशिप सर्टिफिकेट आदि पर अनगिनत दस्तखत ही करने पड़े थे, जो मुझ में पूरा भरोसा होने के कारण वे करती चली गईं और रिकौर्ड टाइम में मैं ने भाटिया अंकल के सभी खाते आंटी के नाम में करवा दिए. आंटी ने चैन की सांस ली और सारे कर्जों का भुगतान कर दिया. अपने खातों में उन्होंने नौमिनी भी मनोनीत कर लिया. अंकल के शेयर्स, म्यूच्यूअल फंड्स आदि का भी यही हाल था.

सब को ठीक करने में कुछ समय अवश्य लगा, पर मुझे यह सब काम पूरा कर के बहुत ही संतोष मिला.

भाटिया अंकल सरकारी नौकरी से रिटायर हुए थे. अब आंटी की फैमिली पेंशन भी आनी शुरू हो गई थी. और तो और, उन्होंने एटीएम से पैसे निकालना, चेक जमा करना और पासबुक में एंट्री कराना भी सीख लिया था. सार यह कि उन का जीवन एक ढर्रे पर चल निकला था.

इस बात को कई महीने निकल गए, पर एक बात मेरे दिल को बारबार कचोटती रही. ऐसा क्या था कि अंकल ने अपने अकाउंट से पैसे नहीं निकालने दिए. फिर एक बार मौका निकाल कर मैं ने आंटी से पूछ ही लिया.

यह सुन कर आंटी सकपका कर चुपचाप जमीन की ओर देखने लगीं. मुझे लगा कि शायद मुझे यह सवाल नहीं पूछना चाहिए था, पर कुछ क्षण पश्चात आंटी जैसे हिम्मत बटोर कर बोलीं, ‘‘बेटा, क्या बताऊं? पैसा चीज ही ऐसी है. जब अपने ही सगे धोखा देते हैं, तब शायद आदमी के मन से सभी लोगों पर से विश्वास उठ जाता है. इन के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था.‘‘

मैं चुपचाप आंटी की ओर देखती रही. मेरी उत्सुकता और अधिक जानने के लिए बढ़ गई थी.

आंटी आगे बोलीं, ‘‘जब तुम्हारे अंकल मैडिकल की पढ़ाई कर रहे थे, उन के पिता यानी मेरे ससुरजी बहुत बीमार थे. पैसों की जरूरत पड़ती रहती थी. इसलिए उन्होंने अपनी चेकबुक ब्लैंक साइन कर के रख दी थी. मेरे जेठ के हाथ वो चेकबुक पड़ गई और उन्होंने अकाउंट से सारे पैसे निकाल लिए. ना ससुरजी के इलाज के लिए पैसे बचे और न इन की पढ़ाई के लिए. मेरी सास पैसेपैसे के लिए मोहताज हो गईं. फिर अपने अपने जेवर बेच कर उन्होंने इन की मैडिकल की पढ़ाई पूरी करवाई और साथ ही सीख भी दी कि पैसे के मामले में किसी पर भी विश्वास नहीं करना, अपनी बीवी पर भी नहीं.

“तुम्हारे अंकल ने शायद अपनी जिंदगी के उस कड़वे सत्य को आत्मसात कर लिया था और अपनी मां की सीख को भी. इसीलिए वह अपने पैसे पर अपना पूरा नियंत्रण रखते थे और उस लकवे की हालत में भी उन के अंतर्मन में वही एहसास रहा होगा.“

अब सबकुछ शीशे की तरह साफ था, पर आंटी तनाव में लग रही थीं. मैं ने बात बदली, ‘‘चलिए छोड़िए आंटी, मैं आप को चाय बना कर पिलाती हूं.‘‘

समय बीतता गया, कमला आंटी की मनोस्थिति अब लगभग ठीक हो गई थी और अपने काम संभालने से उन में एक नए आत्मविश्वास का संचार भी हो रहा था. वैसे तो कमला आंटी पढ़ीलिखी थीं, हिंदी साहित्य में उन्होंने स्नातकोत्तर स्तर तक पढ़ाई की थी, परंतु पिछले 40 सालों में केवल घरबार में ही विलीन रहने से उन का जो आत्मविश्वास खो सा गया था, धीरेधीरे वापस आने लगा था.

मैं जब भी उन से मिलने जाती, मुझे यही खयाल बारबार सताता था कि हरेक व्यक्ति भलीभांति जानता है कि उसे एक दिन इस दुनिया से जाना ही है. बुढ़ापे की तो छोडो, जिंदगी का तो कभी कोई भरोसा नहीं है. पर फिर भी अपनी मृत्यु के पश्चात अपने प्रियजनों की आर्थिक सुरक्षा के बारे में कितने लोग सोचते हैं? छोटीछोटी चीजें हैं जैसे कि अपना बैंक खाता जौइंट करवाना, अपने सभी खातों, शेयर्स, म्यूच्यूअल फंड आदि में नौमिनी का पंजीकरण करवाना आदि. साथ ही, अपनी वसीयत करना भी तो कितना महत्त्वपूर्ण काम है. पर इन सब के बारे में ज्यादातर लोग सोचते ही नहीं हैं? अब कमला आंटी को ही ले लीजिए. उन बिचारी को तो यह भी पता नहीं था कि वे फैमिली पेंशन की हकदार हैं, अंकल के पीपीओ वगैरह की जानकारी तो बहुत दूर की बातें हैं. लोग जिंदा रहते हुए अपने परिवार का कितना खयाल रखते हैं, परंतु कभी यह नहीं सोचते कि मेरे मरने के बाद उन का क्या होगा?

धीरेधीरे समय निकलता गया और कमला आंटी के जीवन में सबकुछ सामान्य सा हो गया. उन के घर मेरा आनाजाना भी कम हो गया, पर अचानक एक दिन आंटी का फोन आया, ‘‘बेटा, शाम को दफ्तर से लौटते हुए कुछ देर के लिए घर आ सकती हो क्या?‘‘

‘‘हां… हां, जरूर आंटी. कोई खास बात है क्या?‘‘

‘‘नहीं, कुछ खास नहीं, पर शाम को आना जरूर,‘‘ आवाज से आंटी खुश लग रही थीं.

शाम को जब मैं उन के घर पहुंची, तो उन्होंने मेरे आगे लड्डू रख दिए. चेहरे पर बड़ी सी मुसकान थी.

‘‘लड्डू किस खुशी में आंटी?‘‘ मैं ने कौतूहलवश पूछा, तो एक प्यारी सी मुसकान उन के चेहरे पर फैल गई.

‘‘पहले लड्डू खाओ बेटा,‘‘ बहुत दिन बाद कमला आंटी को इतना खुश देखा था. दिल को अच्छा लगा.

लड्डू बहुत स्वादिष्ठ थे. एक के बाद मैं ने दूसरा भी उठा लिया. तब तक आंटी अंदर के कमरे में गईं और लौट कर सरिता मैगजीन की एक प्रति मेरे हाथ में रख दी.

‘‘यह देखो, तुम्हारी आंटी अब लेखिका बन गई है. मेरी पहली कहानी इस में छपी है.‘‘

‘‘आप की कहानी…? वाह आंटी, वाह. बधाई हो.‘‘

‘‘हां, कहानी क्या, आपबीती ही समझ लो. मैं ने सोचा कि क्यों न सब लोगों को बताऊं कि पैसे के मामले में पत्नी के साथ साझेदारी न करने से क्या होता है? और संयुक्त खाता न खोलने से उस को कितनी परेशानी हो सकती है. वैसे ही कोरोना वायरस इतना फैला हुआ है, क्या पता किस का नंबर कब लग जाए. तुम्हारी मदद न मिलती, तो मैं पता नहीं क्या करती. जैसा मेरे साथ हुआ, ऐसा किसी के साथ न हो,‘‘ कहतेकहते कमला आंटी की आंखें नम हो चली थीं और साथ में मेरी भी.

मैं करियर के चलते अभी परिवार बढ़ाना नहीं चाहती, मैं क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मेरी उम्र 27 साल है. मैं पेशे से वकील हूं. अभी परिवार बढ़ाना नहीं चाहती, इसलिए गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन करती हूं. क्या इन से उच्च रक्तचाप की शिकायत हो सकती है?

जवाब-

गर्भनिरोधक गोलियों से रक्तदाब मामूली से ले कर खतरनाक स्तर तक बढ़ सकता है. इन के सेवन से रक्त का थक्का बनने का खतरा भी बढ़ जाता है. जो महिलाएं लंबे समय तक गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन करती हैं उन का रक्तदाब कभीकभी अत्यधिक बढ़ जाता है इसलिए आप को गर्भधारण से बचने के दूसरे उपाय अपनाने चाहिए. जिन महिलाओं को पहले से ही उच्च रक्तचाप की शिकायत हो, अगर वे गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन करती हैं तो ब्रेन स्ट्रोक और हार्ट अटैक आने का खतरा बढ़ जाता है. ऐसा माना जाता है कि इन गोलियों में ऐस्ट्रोजन होता है जो रक्तदाब को बढ़ा देता है.

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शादीशुदा महिलाओं के लिए गर्भनिरोधक गोलियां बेहद परेशान करती हैं. इनके सेवन से महिलाओं की शरीर का काफी नुकसान होता है. आज लड़कियां औरते पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर आगे बढ़ रही हैं. ऐसे में कई बार वो मां बनने के लिए मानसिक तौर पर तैयार नहीं रहती. इस सूरत में शादीशुदा महिलाओं को गर्भनिरोधक गोलियों का सहारा लेना पड़ता है जिससे उनके सेहत का काफी नुकसान होता है.

इस खबर में हम आपको बताएंगे कुछ प्रकाकृतिक उपायों के बारे में जिसे अपना कर आप प्रेग्नेंसी की संभावना को कम कर सकेंगी. ये गर्भनिरोधक गोलियों का प्राकृतिक स्वरूप है. पर इनके प्रयोग से पहले आप डाक्टर से सलाह जरूर लें.

मछली

प्रेग्नेंसी में उन मछलियों के प्रयोग को साफ तौर पर मना किया जाता है जिसमं मरकरी पाई जाती है. इसमें स्वार्डफिश प्रमुख है. जानकारों की माने तो इन मछलियों में पाए जाने वाला मरकरी गर्भनिरोधक गोली का काम करती है.

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या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

बेरी का झाड़: सुकुमार के साथ क्या हुआ था

सुकुमार सेन नाम था उस का. घर हो या बाहर, वह अपनी एक नई पहचान बना चुका था. दफ्तर में घुसते ही मानो वह एक मशीन का पुरजा बन जाता हो. उस के चेहरे पर शांति रहती, पर सख्ती भी. उस का चैंबर बड़ा था. वह एसी थोड़ी देर ही चलवाता फिर बंद करवा देता. उस का मानना था कि अगर यहां अधिक ठंडक हुई तो बाहर जा कर वह बीमार पड़ जाएगा.

बरामदे में गरम हवा चलती है. सुकुमार के पीए ने बताया, ‘‘साहब ज्यादा बात नहीं करते, फाइल जाते ही निकल आती है, बुला कर कुछ पूछते नहीं.’’

‘‘तो इस में क्या नुकसान है?’’ कार्यालय में सेवारत बाबू पीयूष ने पूछा.

‘‘बात तो ठीक है, पर अपनी पुरानी आदत है कि साहब कुछ पूछें तो मैं कुछ बताऊं.’’

‘‘क्या अब घर पर जाना नहीं होता?’’

‘‘नहीं, कोई काम होता है तो साहब लौटते समय खुद कर लेते हैं या मैडम को फोन कर देते हैं. कभी बाहर का काम होता है तो हमें यहीं पर ही बता देते हैं.’’

‘‘बात तो सही है,’’ पीयूष बोले, ‘‘पर यार, यह खड़ूस भी है. अंदर जाओ तो लगता है कि एक्सरे रूम में आ गए हैं, सवाल सीधा फेंकता है, बंदूक की गोली की तरह.’’

‘‘क्यों, कुछ हो गया क्या?’’ पीए हंसते हुए बोला.

‘‘हां यार, वह शाहबाद वाली फाइल थी, मुझ से कहा था, सोमवार को पुटअप करना. मैं तो भूल गया था. बारां वाली फाइल ले कर गया. उस ने भीतर कंप्यूटर खोल रखा था, देख कर बोला, ‘आप को आज शाहबाद वाली फाइल लानी थी, उस का क्या हुआ?’

‘‘यार, इतने कागज ले गया, उस का कोई प्रभाव नहीं, वह तो उसी फाइल को ले कर अटक गया. मैं ने देखा, उस ने मेरे नाम का फोल्डर खोल रखा था. वहां पर मेरा नाम लिखा था. लाल लाइन भी आ गई थी. यार, ये नए लोग क्याक्या सीख कर आए हैं?’’

‘‘हूं,’’ पीए बोला, ‘‘मुझे बुलाते नहीं हैं. चपरासी एक डिक्टाफोन ले आया था, उस में मैसेज होता है. मैं टाइप कर के सीधा यहीं से मेल कर देता हूं, वे वहां से करैक्ट कर के, मुझे रिंग कर देते हैं. मैं कौपी निकाल कर भिजवा देता हूं. बातचीत बहुत ही कम हो गई है.’’

सुकुमार, आईआईटी कर के  प्रशासन में आ गया था. जब यहां आया तो पाया कि उस का काम करना क्यों लोगों को पसंद आएगा? दफ्तर के आगे एक तख्ती लगी हुई थी, उस पर लिखा था, ‘मिलने का समय 3 से 4 बजे तक…’ वह देख कर हंसा था. उस ने पीए को बुलाया, ‘‘यहां दिनभर कितने लोग मिलने आते हैं?’’

पीए चौंका था, ‘‘यही कोई 30-40, कभी 50, कभी ज्यादा भी.’’

‘‘तब बताओ, कोई 1 घंटे में सब से कैसे मिल पाएगा?’’

‘‘सर, मीटिंग भी यहां बहुत होती हैं. आप को टाइम सब जगह देना होता है.’’

‘‘हूं, यह तख्ती हटा दो और जब भी कोई आए, उस की स्लिप तुम कंप्यूटर पर चढ़ा दो. जब भी मुझे समय होगा, मैं बुला लूंगा. हो सकता है, वह तुरंत मिल पाए, या कुछ समय इंतजार कर ले, पास वाला कमरा खाली करवा दो, लोग उस में बैठ जाएंगे.’’

सब से अधिक नाराज नानू हुआ था. वह दफ्तरी था. बाहर का चपरासी. वह मिलाई के ही पैसे लेता था. ‘साहब बहुत बिजी हैं. आज नहीं मिल पाएंगे. आप की स्लिप अंदर दे आता हूं,’ कह कर स्लिप अपनी जेब में रख लेता था. लोग घंटों इंतजार करते, बड़े साहब से कैसे मिला जाए? कभी किसी नेता को या बिचौलिए को लाते, दस्तूर यही था. पर सुकुमार ने रेत का महल गिरा दिया था.सुकुमार को अगर किसी को दोबारा बुलाना होता तो वह उस की स्लिप पर ही अगली तारीख लिख देता, जिसे पीए अपने कंप्यूटर पर चढ़ा देता. भीड़ कम हो गई थी. बरामदा खाली रहता.

उस दिन मनीष का फोन था. वे विधायक थे, नाराज हो रहे थे, ‘‘यह आप ने क्या कर दिया? आप ने तो हमारा काम भी करना शुरू कर दिया.’’

‘‘क्या?’’ वह चौंका, ‘‘सर, मैं आप की बात समझ नहीं पाया.’’

‘‘अरे भई, जब आप ही सारे कामकाज निबटा देंगे तो फिर हमारी क्या जरूरत रहेगी?’’

सुकुमार का चेहरा, जो मुसकराहट भूल गया था, खिल गया.

‘‘भई, पहले तो फाइलें हमारे कहने से ही खिकसती थीं, चलती थीं, दौड़ती थीं. हम जनता से कहते हैं कि उन का काम हम नहीं करवाएंगे तो फिर हम क्या करेंगे? ठीक है, आप ने प्रशासन को चुस्त कर दिया है. आप की बहुत तारीफ हो रही है, पर हमारे तो आप ने पर ही काट दिए हैं. शाहबाद वाली फाइल को तो अभी आप रोक लें. मैं आप से आ कर बात कर लूंगा. तब मैं मुख्यमंत्री से भी मिला था.’’

सुकुमार चौंक गया, ‘हूं, तभी पीयूष बाबू वह फाइल ले कर नहीं आया था.’

उस दिन पीए बता रहा था, ‘चूड़ावतजी के किसी रिश्तेदार का बड़ा घपला है. यह फाइल बरसों सीएम सैक्रेटेरियट में पड़ी रही है. अब लौटी है. सुना है, आदिवासियों की ग्रांट का मामला था. कभी उन की सहकारी समिति बना कर जमीनें एलौट की गई थीं, बाद में धीरेधीरे ये जमीनें चूड़ावतजी के रिश्तेदार हड़पते चले गए. हजारों बीघा जमीन, जिस पर चावल पैदा होता है, उन के ही रिश्तेदारों के पास है. उन का ही कब्जा है.

‘कभी बीच में किसी पढ़ेलिखे आदिवासी ने यह मामला उठाया था. आंदोलन भी हुए. तब सरकार ने जांच कमेटी बनाई थी और इस सोसाइटी को भंग कर दिया था. फिर धीरेधीरे मामला दबता गया. उस आदिवासी नेता का अब पता भी नहीं है कि वह कहां है. जो अधिकारी जांच कर रहे थे, उन के तबादले हो गए. जमीनें अभी भी चूड़ावतजी के रिश्तेदारों के पास ही हैं.’

‘हूं,’ अचानक उसे राजधानी ऐक्सप्रैस में बैठा वह युवक याद आ गया जो उस के साथ ही गोहाटी से दिल्ली आ रहा था. वह बेहद चुप था. बस, किताबें पढ़ रहा था, कभीकभी अपने लैपटौप पर मैसेज चैक कर लेता था.

हां, शायद बनारस ही था, जब उस ने पूछा था, ‘क्या वह भी दिल्ली जा रहा है?’

‘हां,’ सुकुमार ने कहा था.

‘आप?’

‘मैं भी…’

‘आप?’

‘मैं प्रशासनिक सेवा में हूं,’ सुकुमार ने कहा.

‘बहुत अच्छे,’ वह मुसकराया था. उस के हाथ में अंगरेजी का कोई उपन्यास था, ‘आप लोगों से ही उम्मीद है,’ वह बोला, ‘मैं किताब पढ़ रहा हूं. इस में झारखंड, बिहार, ओडिशा, मध्य प्रदेश के आदिवासियों के शोषण की कहानी है. हम पढ़ सकते हैं, यही बहुत है, पर अगर हालात नहीं सुधरे तो…’

सुकुमार चुप रहा. ट्रेनिंग के दौरान एक बार वह भी इन पिछड़े इलाकों में रहा था.  वह सोच में डूब गया, ‘यह हमारा भारत है, जो पहले भारत से बिलकुल अलग है.’

‘आप कर सकें तो करें, इन के लिए सोचें. इन लोगों ने जमीन, जंगल, खान, औरत, जो संपत्ति है, सब को बेच सा दिया है. जो मालिक हैं, उन के पास कुछ भी नहीं है. अभी वे मरेंगे, सच है, पर कल वे मारेंगे. आप लोग जो कर सकते हैं, वह सोचें. आप पर अभी हमारा विश्वास है.’सुकुमार ने ज्यादा उस से नहीं पूछा, उसे भी नींद आने लग गई थी, वह सो गया था.पर अचानक चूड़ावत के फोन से मानो वह नींद से जाग गया हो. उसे उस यात्री का चेहरा याद आ गया, वह तो उस से भी अधिक शांत व मौन यात्री था.

सुनंदा कह रही थी, ‘‘बहन के यहां शादी है, जाना है. तुम्हारे पास तो टाइम नहीं है, गाड़ी भेज दो.’’

‘‘गाड़ी अपनी ले जाओ.’’

‘‘पर मैं गाड़ी चला कर बाजार नहीं जाऊंगी.’’

‘‘मैं ड्राइवर भेज दूंगा. आज मैं टूर पर नहीं हूं.’’

‘‘तुम अफसर हो या…’’

‘‘खच्चर,’’ वह अपनेआप पर हंसा, ‘‘मैं नहीं चाहता कल कोई मुझ पर उंगली उठाए. सरकारी गाड़ी को बाजार में देख कर लोग चौंकते हैं.’’

‘‘ठीक है, तुम्हें मेरे साथ नहीं जाना है, मुझे पता है.’’

‘‘यह बात नहीं, यह काम तुम कर सकती हो, तुम्हारा ही है, तुम चली जाओ. एटीएम कार्ड तुम्हारे पास है, रास्ते में एटीएम मशीन से रुपए निकाल लेना.’’

सुनंदा फीकी हंसी हंस कर बोली, ‘‘मुझे क्या पता था कि तुम…?’’

‘‘क्या?’’ वह बोला.

‘‘बेरी के झाड़ हो.’’‘‘तभी तो जो दरवाजे पर लगा है, काटने नहीं देता. उस दिन पंडितजी आए थे. उन की टोपी बेरी की डाल में अटक गई. उन्हें पता ही नहीं चला कि टोपी कहां है. वे नंगे सिर जब यहां आए तो लोग उन्हें देख कर हंसने लगे.

‘‘उस दिन मिसेज गुप्ता आई थीं. उन की साड़ी डाल में उलझ गई. बोलीं, ‘इसे कटवा क्यों नहीं देते, यह भी कोई ऐंटिक है क्या?’’’

‘‘तुम्हारा यह झाड़ क्या बिगाड़ता है?’’ वह बोला. जवाब नदारद.

‘‘देखो, जब मैं बाहर जाता हूं तो देखता हूं, पास की झोपड़ी वालों की बकरियां इस के पास खड़ी हो कर इस की पत्तियां खाती हैं, वह उन का भोजन है. इस पर बेर भी मीठे आते हैं, यहां के गरीब अपने घर ले जाते हैं. यह गरीबों का फल है, उन का पेड़ है. यह सागवान या चंदन का होता तो लोग कभी का इसे काट कर ले गए होते.’’

सुनंदा चुप रह जाती. बेर का पेड़, गरीबों का पेड़ बन जाता, वह फालतू के तर्क में नहीं जाना चाहती. पर सुकुमार का दफ्तर भी तंदूर की तरह सिंकने लग गया था, पता नहीं क्या हो गया, पीए भी बुदबुदाता रहता, न दफ्तरी खुश था, न ड्राइवर, नीचे के अफसर भी दबेदबे चुप रहते, पीयूषजी से जब से शाहबाद की फाइल पर डांट लगी थी, वे आंदोलन की राह पर चलने की सोच रहे थे. वे कर्मचारी संघ की बैठक करा चुके थे, पर कोई बड़ा मुद्दा सामने नहीं था. सुकुमार बोलता भी धीरे से था, पर जो कहता वह होता. वह कह देता, फाइल पर नोट चला आता. नोट होता या चार्जशीट, दूसरा पढ़ कर घबरा जाता.

पर उस दिन सुनंदा ने दफ्तर में ही उसे फोन पर याद दिलाया था, ‘‘आज विमलजी के यहां पार्टी है, उन की मैरिज सैरेमनी है, शाम को डिनर वहीं है, याद है?’’

‘‘हांहां,’’ वह बोला, ‘‘मैं शाम को जल्दी पहुंच जाऊंगा.’’

‘‘विमलजी सिंचाई विभाग में एडिशनल चीफ इंजीनियर हैं. एडिशनल कमिश्नर बता रहे थे कि उन के पास बहुत पैसा है. धूमधाम से पार्टी कर रहे हैं. सिंचाई भवन सजा दिया गया है.’’

वह यह सब सुन कर चुप रहा. सुनंदा का फोन उसे भीतर तक हिला रहा था. उस की भी मैरिज सैरेमनी अगले महीने है. वह शायद आज से ही विचार कर रही है. हम उन के यहां गए हैं, तुम भी औरों को बुलाओ.

शाम होते ही वह आज जल्दी ही दफ्तर से बाहर आ गया. गाड़ी पोर्च में लग चुकी थी. हमेशा की तरह चपरासी ने फाइलें ला कर गाड़ी में रख दी थीं.

दफ्तर से बाहर निकलते ही पाया कि चौराहे पर भारी भीड़ है. बहुत से लोग दफ्तर के ही थे.

‘‘क्या हुआ?’’ वह गाड़ी को रोक कर नीचे उतरा.

ड्राइवर भी तुरंत बाहर आ कर भीड़ के पास जा चुका था. वह तेजी से वापस लौटा, ‘‘सर, गजब हो गया.’’

‘‘क्या हुआ?’’

‘‘पीयूषजी के स्कूटर को कोई कार टक्कर मार कर निकल गई.’’

सुकुमार तेजी से आगे बढ़ा, उसे देख कर लोग चौंके.

उस ने देखा, पीयूषजी का शरीर खून से नहाया हुआ था. उन के दोनों पांवों में चोट थी. सिर पर रखे हैलमेट ने उसे बचा तो लिया था पर वे बेहोश हो चुके थे.

‘‘उठाओ इन्हें,’’ उस ने ड्राइवर से कहा, और अपनी‘‘सर, गाड़ी…?’’ ड्राइवर बोला.

‘‘धुल जाएगी.’’

उस के पीछेपीछे दफ्तर के और लोग भी अस्पताल आगए थे. तुरंत पीयूषजी को भरती करा कर उन के घर फोन कर दिया गया था. पीए, दफ्तरी, और सारे बाबू अवाक् थे, ‘सर तो पार्टी में जा रहे थे, वे यहां?’

तभी सुकुमार का मोबाइल बजा. देखा, सुनंदा का फोन था.

‘‘तुम वहां चली जाओ, मुझे आने में देर हो जाएगी.’’

‘‘तुम?’’

‘‘एक जरूरी काम आ गया है, उसे पूरा कर के आ जाऊंगा.’’

‘बेरी का झाड़,’ सुनंदा बड़बड़ाई. बच्चे तो घंटाभर पहले ही तैयार हो गए थे. फोन बंद हो गया था.

‘‘क्या हुआ? मां, पापा नहीं आ रहे?’’

‘‘आएंगे, जरूरी काम आ गया है, वे सीधे वहीं आ जाएंगे. हम लोग चलते हैं,’’ सुनंदा बोली.

वह वहां पहुंचा ही था कि तभी चिकित्सक भी आ गए थे, आईसीयू में पीयूषजी को ले जाया गया था. उन्हें होश आ गया था. उन्होंने देखा, वे अस्पताल के बैड पर लेटे हैं, पर पास में सुकुमार खड़े हैं.

‘‘सर, आप?’’

‘‘अब आप ठीक हैं. आप की मिसेज आ गई हैं. मैं चलता हूं. यहां अब कोई तकलीफ नहीं होगी. सुबह मैं आप को देख जाऊंगा,’’ वह चलते हुए बोला.

उस का चेहरा शांत था, और वह चुप था. तभी उस ने देखा, अचानक बाबुओं की भीड़, जो बाहर जमा थी, वह उसे धन्यवाद देने को आतुर थी. मानो सागर तट पर तेज लहरें चली आई हों, ‘‘यह क्या, नहींनहीं, आप रहने दें. यह अच्छा नहीं है,’’ कहता हुआ सुकुमार उसी तरह अपनी उसी चाल से बाहर चला गया.

Winter Special: नाश्ते में बनाएं स्टफ्ड सोया चीज पाव भाजी, ट्राई करें ये रेसिपी

Writer- Pratibha Agnihotri

नाश्ता या ब्रेकफास्ट का भोजन में बहुत महत्त्व है आहार विशेषज्ञों के अनुसार रात्रि के भोजन और सुबह के समय तक बहुत लंबा गेप हो जाने से सुबह का नाश्ता बहुत हैल्दी होना चाहिए ताकि हमारे शरीर को पर्याप्त पोषण प्राप्त हो सके. रोज रोज न तो पूरी परांठे ही खाये जा सकते हैं और न ही अंकुरित मूंग और दलिया जैसे खाद्य पदार्थ इसलिए हमें रोज के भोजन को ही पौष्टिक बनाने के प्रयास करने चाहिए ताकि शरीर को हर दिन पर्याप्त पोषण प्राप्त होता रहे. आज हम आपको ऐसे ही एक नाश्ते को बनाना बता रहे हैं जिससे आपको पर्याप्त पोषण तो मिलेगा ही साथ ही घर के सभी सदस्य बड़े चाव से खाएंगे भी. तो आइए देखते हैं कि इसे कैसे बनाते हैं- कितने लोगों के लिए 8 बनने में लगने वाला समय 30 मिनट मील टाइप वेज
सामग्री
-कटे आलू 3
-कटी गाजर 2
-कटे टमाटर 4
-मटर 1/2 कप
-गोभी के फूल 1/2 कप
-चुकंदर कटा 1
-बारीक कटे प्याज 2
-बारीक कटी शिमला मिर्च 1
-अदरक हरी मिर्च पेस्ट 1 टीस्पून
-बारीक कटी लहसुन 4 कली
-सोया ग्रेन्यूल्स 1/2 कटोरी
-नमक स्वादानुसार
-तेल 1 टेबलस्पून
-बटर 50 ग्राम
-पाव भाजी मसाला 1 टेबलस्पून
-लाल मिर्च पाउडर 1/4 टीस्पून
-गरम मसाला पाउडर 1/4 टीस्पून
-हल्दी पाउडर 1/4 टीस्पून
-धनिया पाउडर 1/2 टीस्पून
-कश्मीरी पाउडर 1 टीस्पून
-नीबू का रस 1 टीस्पून
-बारीक कटा हरा धनिया 1 टेबलस्पून
-चीज स्लाइस 2
-पाव 8

विधि
सोया ग्रेन्यूल्स को गर्म पानी में 15 मिनट तक भिगोकर ठंडे पानी में डालकर अच्छी तरह निचोड़कर चॉपर में पीस लें. आलू, गाजर, गोभी, टमाटर, मटर, चुकंदर को 1/2 टीस्पून नमक, हल्दी पाउडर डालकर 1/2 ग्लास पानी के साथ प्रेशर कुकर में धीमी आंच पर 3 सीटी ले लें. एक पैन में 1 टेबलस्पून तेल और 1 टेबलस्पून बटर को गर्म करें और प्याज, शिमला मिर्च, अदरक हरी मिर्च पेस्ट, लहसुन को सुनहरा होने तक भून लें. अब सभी मसाले, 1/4 कप पानी और पिसे सोया ग्रेन्यूल्स डालकर धीमी आंच पर 5 मिनट तक अच्छी तरह चलाते हुए पकाएं. प्रेशर कुकर की सब्जियों को अच्छी तरह मैश करें और पैन में डालकर चलाएं. 1 कप पानी और मिलाएं और धीमी आंच पर 10 मिनट तक ढककर पकाएं. नीबू का रस और हरी धनिया डालकर गैस बंद कर दें. चीज को 8 टुकड़ों में काट लें. अब पाव को ऊपर से चाकू से काटकर अंदर से खोखला कर लें.अब खोखले पाव में 1 टेबलस्पून भाजी भरें ऊपर से चीज का 1 टुकड़ा रखकर कटे टुकड़े को रखकर बंद कर दें. इसी प्रकार सारे पाव को स्टफ कर लें. चिकनाई लगी ट्रे में रखकर माइक्रोवेब में 5 मिनट तक रखकर सर्व करें. आप चाहें तो तवे पर बटर लगाकर एकदम धीमी आंच पर ढककर सेंके और अतिरिक्त भाजी के साथ सर्व करें.

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