Short Story In Hindi : फौजी- क्या अपनी गर्भवती पत्नी से मिल पाए मेजर परम

Short Story In Hindi: परम उस समय ड्यूटी पर था जब उसे पता चला कि वह बाप बनने वाला है. पत्नी तनु से फोन पर बात करते हुए परम का गला खुशी से भर्रा गया. उसे अफसोस हो रहा था कि वह इस समय तनु के साथ नहीं है. उस ने फोन पर ही ढेर सारी नसीहतें दे डाली कि यह नहीं करना, वह नहीं करना, ऐसे मत चलना, बाथरूम में संभल कर जाना. कश्मीर के अतिसंवेदनशील इलाके में तैनात पैरा कमांडो मेजर परम जो हर समय कदमकदम पर बड़ी बहादुरी और जीवट से मौत का सामना करता है, आज अपने घर एक नई जिंदगी के आने की खुशी में भावुक हो उठा. न जाने कब आंखों में नमी उतर आई. आम लोगों की तरह वह इस समय अपनी पत्नी के पास तो नहीं हो सकता, लेकिन है तो आखिर एक इंसान ही. लेकिन क्या करे किसी बड़े उद्देश्य की खातिर, अपने देश की खातिर अपनी खुशियों की कुरबानियां तो देनी ही पड़ती हैं.

शाम को मेस में जा कर परम ने खुद सब के लिए सेंवइयों की खीर बनाई और सब को खिलाई. उस रात परम की आंखों से नींद कोसों दूर थी. सब कुछ सपने जैसा लग रहा था. परम बारबार तनु को फोन कर उस से पूछता, ‘‘तनु यह सच है न?’’

तनु को हंसी आ जाती, उस के और तनु के प्यार का अंश. उन का अपना बच्चा. तनु आज और भी ज्यादा अपनी, और भी ज्यादा प्यारी तथा दिल के और करीब लग रही थी. परम ने सुबह 6 बजे से ही तनु को फोन करना शुरू कर दिया, ‘‘क्या कर रहा है मेरा बच्चा? भूख तो नहीं लगी? जल्दी से ब्रेकफास्ट कर लो, दवा ली?’’

कैलेंडर पर 1-1 कर के तारीखें आगे बढ़ रही थीं और परम के छुट्टी पर जाने के दिन भी करीब आते जा रहे थे. वैसे तो तनु से शादी होने के बाद से परम को हर बार ही छुट्टी पर जाने की जल्दी रहती थी, लेकिन इस बार तो उसे बहुत ही ज्यादा बेचैनी हो रही थी. हर दिन महीने जितना लंबा लग रहा था. तनु को भी रात देर तक नींद नहीं आती थी. दिन तो फिर भी कट जाता था, लेकिन रात भर वह बेचैनी से करवटें बदलती रहती. परम ने अपनी रात की ड्यूटी लगवा ली. वह रोज रात को 11 बजे से ढाई बजे या 3 बजे तक ड्यूटी करता और पूरी ड्यूटी के दौरान तनु से बातें करता रहता. हर 10-15 मिनट पर वह सिटी बजा कर अगली पोस्ट पर अपने इधर सब ठीक होने की सूचना देता और फिर जब उधर से जवाब आ जाता तो फिर तनु से बातें करने लगता. दोनों काम हो जाते. पत्नी और देश दोनों के प्रति वह पूरी ईमानदारी से अपना फर्ज पूरा कर देता.

3 बजे वह रूम में आता. हाथमुंह धो कपड़े बदल मुश्किल से डेढ़दो घंटे सो पाता कि फिर सुबह उठ रैडी हो कर ड्यूटी जाने का समय हो जाता. फिर सारे दिन की भागादौड़ी. उस की यूनिट के लोग उस की दीवानगी देख कर उस पर हंसते, लेकिन उस की देश और परिवार दोनों के प्रति गहरी निष्ठा देख कर उस की सराहना भी करते. इधर 2-3 ऐनकाउंटरों में मिलिटैंट्स के मारे जाने के बाद से पूरे सैक्टर में खामोशी सी छाई थी. लेकिन परम को हमेशा लगता रहता कि यह किसी जोरदार धमाके के पहले की शांति हो सकती है. हो सकता है अचानक जबरदस्त हमले का सामना करना पड़े. वह अपनी तरफ से हर समय चौकन्ना रहता. लेकिन पूरा महीना शांति से बीत गया. परम की छुट्टी मंजूर हो गई. अब उस की बेचैनी और ज्यादा बढ़ गई. दिन काटे नहीं कटते.

घर जाने के लिए यूनिट से सवा घंटा बस से जम्मू. जम्मू से ट्रेन पकड़ कर अजमेर और फिर अजमेर से दूसरी ट्रेन पकड़ कर अहमदाबाद पूरे 2 दिन का सफर तय कर वह अहमदाबाद बस स्टैंड पहुंचा. टैक्सी ले कर 1 बजे अपने घर तनु के सामने खड़ा था.

तनु का चेहरा अपने हाथों में थाम कर परम ने उस का माथा चूम लिया. 2 मिनट तक वह उसे एकटक देखता रहा. उस का प्यारा चेहरा देख कर परम की पिछले कई महीनों की थकान दूर हो गई, सारा तनाव खत्म हो गया. तनु के साथ जिंदगी एक बार फिर से प्यार भरी थी, खुशनुमा थी. दूसरे दिन तनु का अल्ट्रासाउंड होना था. परम उसे क्लीनिक ले गया. उस ने डाक्टर से रिक्वैस्ट की कि वह तनु के साथ अंदर रहना चाहता है, जिसे डाक्टर ने स्वीकार लिया. मौनिटर पर परम बच्चे की छवि देखने लगा. खुशी से उस की आंखें भर आईं.

रात में जब दोनों खाना खाने बैठे तो परम को महसूस हो रहा था जैसे वह पता नहीं कितने बरसों के बाद निश्चिंत हो तनु के साथ बैठा है. एकदम फुरसत से. कितना अच्छा लग रहा है… दिमाग में तनाव नहीं… मन में कोई हलचल नहीं. सब कुछ शांत. सुव्यवस्थित ढंग से चलता हुआ. परम ने एक गहरी सांस ली कि काश, जीवन ऐसा ही होता शांत, सुव्यवस्थित, निश्चिंत. बस वह तनु, उन का बच्चा और घर. रात में नीचे किचन में जा कर परम अपने लिए कौफी और तनु के लिए दूध ले आया. ‘‘वहां भी ड्यूटी यहां भी ड्यूटी… आप को तो कहीं पर आराम नहीं है… वहां से इतना थक कर आए हैं और यहां भी चैन नहीं है,’’ तनु दूध का गिलास लेते हुए बोली.

‘‘इस ड्यूटी के लिए तो कब से तरस रहा था. भला तेरे लिए कुछ करने में मुझे थकान लग सकती है क्या?’’ परम प्यार से बोला. ‘‘कितना चाहते हो मुझे?’’ तनु विह्वल स्वर में बोली.

‘‘तू मेरी सांस है. तेरे प्यार के सहारे ही तो जी रहा हूं,’’ परम बोला. सुबह उठते ही परम ने तनु से पूछा, ‘‘क्या खाएगा मेरा बच्चा आज?’’ ‘‘कौर्नफ्लैक्स,’’ तनु बोली.’’

परम ने फटाफट दूध गरम कर उस में बादाम, पिस्ता डाल कर कौर्नफ्लैक्स तैयार कर के चाय की ट्रे के साथ बाहर बगीचे में ले आया. दोनों झूले पर बैठ गए. सुबह की ठंडी हवा चल रही थी. सामने सूरजमुखी के पीले फूलों वाला टी सैट था. साथ में तनु थी और वह पैरा कमांडो जो रातदिन देश की सुरक्षा की खातिर आतंकवादियों का पीछा करते मौत से जान की बाजी खेलता रहता, आज की खुशनुमा सुबह अपने घर पर था. दोपहर का खाना दोनों ने मिल कर बनाया. छुट्टियों में तनु के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताने के उद्देश्य से परम दोनों समय खाना बनाने में उस की मदद करता. बीच में बिरहा के बादल छंट जाते और प्यार की कुनकुनी धूप दोनों के बीच खिली रहती. दोपहर में वह उसे कोई कौमेडी फिल्म दिखाता, वही उस की पसंद के फल काट कर खिलाता. फिर खाना भी अपने हाथ से परोसता.

‘‘अरे मैं नीचे आ जाती न…. आप ऊपर क्यों ले आए खाना? कितने चक्कर लगाओगे?’’ तनु बोली. ‘‘तुम्हारे लिए अभी बारबार सीढि़यां चढ़नाउतरना ठीक नहीं है, इसलिए मैं खाना ऊपर ही ले आया,’’ परम थाली में खाना परोसते हुए बोला, ‘‘आप का पति आप की सेवा में हाजिर है.’’

‘‘कितनी सेवा करोगे जी?’’ ‘‘हम तो सेवा करने के लिए ही पैदा हुए हैं जी. ड्यूटी पर भारत माता की सेवा करते हैं और छुट्टी में पत्नी की,’’ परम तनु को एक कौर खिलाते हुए बोला.

बीचबीच में परम अपनी पोस्टिंग की जगह भी फोन कर वहां के हालचाल पता करता रहता. आखिर वह एक कमांडो था और कमांडो कभी छुट्टी पर नहीं होता. हर बार पोस्टिंग की जगह से फोन आने पर उस का दिल डूबने लगता कि कहीं वापस तो नहीं बुला रहे… कहीं किसी इमरजैंसी के चलते छुट्टी कैंसिल तो नहीं हो गई. कुल 22-23 दिन वह तनु के साथ रह पाता है, उस में भी हर पल मन धड़कता रहता कि कहीं छुट्टी कैंसिल न हो जाए, क्योंकि पैरा कमांडो होने के कारण उस की जिम्मेदारियां बहुत ज्यादा थीं.

परम की छुट्टियां खत्म होने को थीं. अब रोज रात को वह अफसोस से भर जाता कि तनु के साथ का एक और दिन ढल गया. ऐसे ही दिन सरकते गए. परम रात में गैलरी में खड़ा सोचता रहता कि इस बार तनु को छोड़ कर जाना जानलेवा हो जाएगा. वह इस दौर में पूरा समय तनु के साथ रहना चाहता था. अपने बच्चे के विकास को महसूस करना चाहता था. इस बार सच में उस का जरा भी मन नहीं हो रहा था जाने का. उस ने मन ही मन कामना की कि कम से कम अगली पोस्टिंग ऐसी जगह हो कि वह 2 साल तो अपनी पत्नी और बच्चे के साथ रह पाएं.

परम को एक और चिंता थी. अगर वह 3 महीने बाद फिर से छुट्टी पर आता है, तो अपने बच्चे केजन्म के समय तनु के पास नहीं रह पाएगा. इस का मतलब उसे बीच में छुट्टी लेने से बचना होगा तभी 2 महीनों की इकट्ठी छुट्टी ले पाएगा. यही सब सोच कर वह और परेशान हो जाता. ऐसे हालात में वह बीच के पूरे 5 महीनों तक तनु को देख नहीं पाएगा. वह जिस जगह पर है वहां तनु को किसी भी हालत में ले जाना असंभव है. फिर इस हालत में तो उस का सफर करना वैसे भी ठीक नहीं है, और वह भी इतनी दूर. एक पुरुष अपने प्यार और फर्ज के बीच कितना बेबस, कितना लाचार हो जाता है. छुट्टी के आखिरी दिन वह सुबह तनु को डाक्टर के यहां ले गया. उस का चैकअप करवाया. सब नौर्मल था. घर आ कर उस ने पैकिंग की. इस बार अपनी पैकिंग के साथ ही उसे तनु के सामान की भी पैकिग करनी पड़ी, क्योंकि अब वह तनु को अकेला नहीं रख सकता. उसे उस के मातापिता के घर पहुंचा कर जाएगा. सामान बैग में भरते हुए उस ने कमरे पर नजर डाली. अब पता नहीं कितने महीनों तक वह अपने घर, अपने कमरे में नहीं रह पाएगा. उस की आंखें भीग गईं. उस ने चुपचाप शर्ट की बांह से आंखें पोंछ लीं. ‘‘क्या हुआ जी?’’ तनु ने तड़प कर पूछा.

‘‘कुछ नहीं,’’ परम ने भरे गले से जवाब दिया. ‘‘इधर आओ मेरे पास,’’ तनु ने उसे अपने पास बुलाया और फिर उस का सिर अपने सीने पर रख कर उस के बाल सहलाने लगी. परम बच्चों की तरह बिलख कर रो पड़ा.

‘‘यह क्या… ऐसे दिल छोटा नहीं करते. ये दिन भी बीत जाएंगे जी,’’ तनु उसे दिलासा देती रही.

वापस जाते हुए परम ने एक भरपूर नजर अपने घर को देखा और फिर तनु के साथ कार में बैठ गया. तनु के पिता का ड्राइवर उसे बस स्टैंड पहुंचाने आया था. वही वापसी में तनु को अपने मातापिता के घर पहुंचा देगा. बसस्टैंड पहुंच कर परम ने अपना सामान निकाला और बस में चढ़ा दिया. वह चेहरे पर भरसक मुसकराहट ला कर तनु से बात कर रहा था औैर उसे तसल्ली दे रहा था. तनु अलबत्ता लगातार आंसू पोंछती जा रही थी. लेकिन परम तो पुरुष था न जिसे प्रकृति ने खुल कर रोने और अपना दर्द व्यक्त करने का भी अधिकार नहीं दिया है.

कोई नहीं समझ सकता कि कुछ क्षणों में एक पुरुष कितना असहाय हो जाता है. कितना टूट जाता है अंदर से जब दिल दर्द से तारतार हो रहा होता है और ऊपर से आप को मुसकराना पड़ता है, क्योंकि आप पुरुष हैं जो पौरुषेय और भावनात्मक मजबूती व स्थिरता का प्रतीक है. रोना आप को शोभा नहीं देता. परम भी तनु को समझाता, सहलाता खड़ा रहा. बस चलने को हुई. बस ड्राइवर ने ऊपर चढ़ने का इशारा किया. तब परम ने तनु को गले लगाया और तुरंत पलट कर बस में चढ़ गया. सीट पर बैठ कर वह तनु को तब तक बाय करता रहा जब तक कि वह आंखों से ओझल नहीं हो गईं.

परम ने अपना मोबाइल निकाला. मोबाइल के पारदर्शी कवर के अंदर एक छोटी सी रंगीन नग जड़ी बिंदी थी जो तनु के माथे से निकल कर न जाने कब रात में तकिए पर चिपक गई थी. परम ने उसे मन से सहेज कर अपने मोबाइल के कवर के अंदर चिपका लिया था. अब यही उस के साथ बिताई यादों का खजाना था जो अगल 3-4 या न जाने कितने महीनों तक उसे संबल देता रहेगा. रात के अंधेरे में अब कोई उस की कमजोरी देखने वाला नहीं था. एक पुरुष को रोते देख कर आश्चर्य करने या हंसने वाला कोई नहीं था. अब वह खुल कर अपनी भावनाएं व्यक्त कर सकता था. जी भर कर रो सकता था… परम मोबाइल कवर के अंदर से झांकती तनु की बिंदी पर माथा रख कर बेआवाज रोने लगा… आंखों से अविरल आंसू बह रहे थे.

अपनी पत्नी से विदा ले कर एक फौजी ने वापस उस दुनिया के लिए यात्रा शुरू कर दी जहां कदमकदम पर सिर पर मौत मंडराती है. जहां से उसे नहीं पता कि वह कभी वापस आ कर पत्नी और बच्चे को कभी देख भी पाएगा या नहीं. बस हर पल जेब में सिंदूर की डिबिया रखे वह कुदरत से कामना करता रहता है कि बस इस बिंदी और उस अजन्मे बच्चे की खातिर उसे वापस भेज देना.

फायरमैन की भावनाओं को दर्शाने वाली Film Agni, हकीकत से रूबरू करवाएगी ये फिल्म

Film Agni : हमारे देश की यह विडंबना है कि यहां पर कुछ कर दिखाने वाले वीर बहादुर जो देश के लिए अपनी पूरी जिंदगी लगा देते हैं अपने पहले देश के लोगों के बारे में सोचते हैं, ऐसे इंसानों को सम्मान उनके मरने के बाद ही उनको श्रद्धांजलि देकर दिया जाता है. लेकिन आग की लपटों में दिन रात झुलसकर मुसीबत में फंसे लोगों की जान बचाने वाले फायरमैन फायर ब्रिगेड में काम करने वाले और अपनी जान जोखिम में डालकर लोगों की जान बचाने वाले इन महान वीरों का ड्यूटी के दौरान काम करते हुए मरने के बाद भी कहीं कोई नामो निशान या सम्मान नहीं होता .

इसी बात को मद्दे नजर रखते हुए राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता डायरेक्टर और कहानीकार राहुल ढोलकिया ने अपनी फिल्म अग्नि के जरिए फायरमैन की भावनाओं को दर्शाने की कोशिश की है. प्राइम वीडियो ने एक्सेल इंटरटेनमेंट के साथ मिलकर फायरमैन को सम्मान दिलाने के मकसद से फिल्म अग्नि का निर्माण किया है जो 6 दिसंबर को प्राइम वीडियो पर रिलीज हो रही है. जिसका वर्ल्ड व्हाइट प्रीमियर 240 से अधिक देशों में एक साथ होने जा रहा है.फिल्म के मुख्य कलाकार प्रतीक गांधी जिन्होंने फायरमैन विठ्ठल का किरदार निभाया है अभिनेता दिव्येंदु जो एक सीनियर पुलिस औफिसर समीर की भूमिका में है. फायरमैन प्रतीक गांधी के साले हैं मुख्य भूमिका में है.

फिल्म की कहानी विट्ठल अर्थात फायरमैन विठ्ठल जो ईमानदारी से भरी जिंदगी की जी रहे हैं लेकिन जिनकी वीरता या ईमानदारी पर उनका खुद का बेटा भी गर्व नहीं करता. वही अपने मामा अर्थात समीर पुलिस इंस्पेक्टर का किरदार निभा रहे उनके ऊपर अर्थात अपने मामा पर उस फायरमैन का बेटा ज्यादा गर्व करता है क्योंकि जो मान सम्मान मामा समीर को मिलता है, उसका 10% भी फायरमैन पिता को नहीं मिलता.

फिल्म की कहानी इन दोनों के इर्दगिर्द घूमती है. जो की सच्चाई से भरपूर और दिल को छूने वाली है . फिल्म के संवाद भी बेहतरीन तरीके से लिखे गए हैं , क्योंकि जहां पर माहौल तनाव वाला होता है वहां कौमेडी संवादों के जरिए माहौल को हल्काफुल्का बना दिया गया है. इस फिल्म की कहानी का मकसद हर बहादुर को जैसे सम्मान और पुरस्कार मिलने की प्रक्रिया होती है वैसे ही फायरमैन के साथ भी लागू होनी चाहिए. क्योंकि फायरमैन न सिर्फ बहादुरी की मिसाल है, बल्कि अपनी जान जोखिम में डालकर लोगों की जान भी बचाते हैं. लिहाजा उन्हें भी ऐसा ही सम्मान मिलना चाहिए, जैसा कि देश के शहीदों को मिलता है फायर मैन भी ऐसा सम्मान डिजर्व करते हैं. इस कहानी में यही कहने की कोशिश की गई है. फिल्म के अन्य कलाकार सयामी खेर, सई ताम्हणकर, जितेंद्र जोशी, उदित अरोड़ा और कबीर शाह है. फिल्म सच्चाई से भरपूर है जो एक फायरमैन के इमोशन और कोई सम्मान ना मिलने के दुख को दर्शाती है.

महानायक : आखिर क्या था वह राज?

 कहानी- वीना शर्मा

शालिनीने घड़ी देखी. 12 बज रहे थे. अभी आधा रास्ता भी पार नहीं हुआ था.

‘‘हम लोग 1 बजे तक बच्चों के स्कूल पहुंच जाएंगे न?’’ शालिनी ने कुछ अधीर स्वर में अपने ड्राइवर भुवन से पूछा.

‘‘पहुंच जाएंगे मैडम. इसीलिए तो मैं इस रोड से लाया हूं. यहां ट्रैफिक कम होता है.’’

‘‘ट्रैफिक तो अब किसी भी रोड पर कम नहीं होता,’’ पास बैठी शालिनी की सहेली रीना बोली.

रीना का बेटा चिंटू भी उसी स्कूल में पढ़ता था, जिस में शालिनी के दोनों बच्चे अनूषा और माधव थे.

शालिनी और रीना बचपन की सहेलियां थीं. साथ पढ़ी थीं और समय के साथ दोस्ती बढ़ती ही गई थी. शालिनी के पति अमर कुमार मशहूर फिल्म अभिनेता थे और रीना के पति बिशन एक बड़े व्यापारी. दोनों का जीवन अति व्यस्त था.

अमर कुमार की व्यवस्तता तो बहुत ही अधिक थी. पिछले 7 सालों में उन की इतनी फिल्में जुबली हिट हुई थीं कि शालिनी को अब गिनती भी याद नहीं थी. इतनी अधिक सफलता की कल्पना तो न शालिनी ने की थी न अमर कुमार ने. शालिनी को गर्व था अपने पति पर. हर जगह अमर के नाम की धूम मची रहती थी. बच्चों को भी अपने पापा पर कम गर्व नहीं था. पापा की वजह से वे स्कूल में वीआईपी थे.

आज अनूषा और माधव ने चिंटू और अपनी क्लास के अन्य साथियों के साथ पापा की नई गाड़ी में घूमने का प्रोग्राम बनाया था. स्कूल में जल्दी छुट्टी होने वाली थी.

बच्चों में पापा की नई गाड़ी के लिए बहुत उत्साह था. सब से बढि़या गाड़ी जो अभी तक सिर्फ उन के पापा के पास थी. कितने उत्साह से दोनों आज के दिन का इंतजार कर रहे थे, जब उन के स्कूल में जल्दी छुट्टी होने वाली थी.

गाड़ी सिगनल पर रुकी. शालिनी परेशान होने लगी कि अब और देर होगी. उस ने फिर घड़ी देखी. तभी अचानक शालिनी का मोबाइल बजा.

‘‘हैलो,’’ शालिनी धीरे से बोली.

‘‘मैडम बहुत गड़बड़ हो गई है… आप कहां हैं?’’ उधर से आने वाला स्वर अमर के सैके्रेटरी वसु का था.

‘‘क्या हुआ वसु? हम स्कूल के रास्ते में हैं.’’

‘‘मैडम, विष्णुजी अभी तक नहीं आए हैं. यहां इतना बड़ा सैट लगा हुआ है. प्लीज आप…’’

‘‘हां बोलो वसु, क्या करना है?’’

‘‘आप वह नई गाड़ी जल्दी से विष्णुजी के यहां पहुंचा दीजिए. जब तक वह गाड़ी नहीं पहुंचेगी विष्णुजी नहीं आएंगे और आप तो जानती हैं, जब तक विष्णुजी नहीं आएंगे…’’

‘‘शूटिंग नहीं होगी,’’ शालिनी ने गुस्से में कहा.

‘‘जी मैडम, आप जल्दी से भुवन को उनझ्र के यहां भेज दीजिए. आप के लिए दूसरी गाड़ी पहुंच जाएगी.’’

शालिनी ने फोन बंद किया ही था कि वह फिर बजा. इस बार अमर ने फोन किया था.

‘‘हां बोलिए,’’ शालिनी ने अपने गुस्से को भरसक रोकते हुए कहा.

‘‘शालू प्लीज, वह नई गाड़ी फौरन…’’

‘‘विष्णुजी के यहां भेज दूं?’’

‘‘हां, प्लीज, जल्दी…’’

शालिनी ने तेजी से फोन बंद किया और फिर बोली, ‘‘भुवन गाड़ी रोको.’’

भुवन हैरान था. अभीअभी तो ग्रीन सिगनल हुआ था. फिर भी उस ने गाड़ी किनारे लगा दी. शालिनी तेजी से नीचे उतर गई. पीछेपीछे रीना भी उतर गई.

‘‘भुवन, जल्दी से विष्णुजी के घर उन्हें लेने जाओ.’’

‘‘लेकिन मैडम आप?’’

‘‘हम टैक्सी से चले जाएंगे.’’

शालिनी और रीना टैक्सी में जा रही थीं. शालिनी का परेशान चेहरा देख कर रीना भी परेशान हो रही थी.

‘‘इतना परेशान मत हो शालू… ये सब तो…’’

‘‘मैं विष्णुजी से तंग आ गई हूं,’’ शालिनी रोंआसे स्वर में बोली.

रीना क्या कहती? वह शालिनी से कितना कुछ तो सुनती रहती थी, इन विष्णुजी के बारे में.

अमर के गुरु हैं वे. उन के सैट पर आए बिना अमर शूटिंग नहीं करता. उन के नखरे उठातेउठाते निर्माता परेशान हो जाते हैं. महंगी से महंगी दारू, बढि़या से बढि़या होटल से खाना और क्या कुछ नहीं…

आउटडोर पर तो उन की फरमाइश और भी बढ़ जाती है. उन्हें वही फल और सब्जियां चाहिए होती हैं, जिन का मौसम नहीं होता.

कालेज के जमाने में अमर नाटकों में काम करता था, जिन के निर्देशक यही विष्णुजी हुआ करते थे. इन की योग्यता पर कोई संदेह नहीं था, बहुत सफल निर्देशक थे ये. अपने काम में बहुत मेहनत करते थे. हर कलाकार पर विशेष ध्यान देते थे. उन से प्रशंसा के 2 बोल सुनने के लिए अमर जमीनआसमान एक कर देता था.

अमर को फिल्मों का बेहद शौक था. इसीलिए तो जब उस ने एक फिल्मी पत्रिका में टेलैंट कौंटैस्ट के बारे में पढ़ा तो जल्दी से फार्म भर कर भेज दिया. फिर जब वहां से बुलावा आया तो अमर की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. लेकिन वहां ‘स्क्रीन टैस्ट’ होगा, बड़ेबड़े लोगों के सामने डायलौग बोलने पड़ेंगे, वह कालेज का नाटक नहीं है कि हंसतेखेलते ट्राफी जीती जा सके, विष्णुजी ने अमर को कई दिनों तक अभ्यास कराया, हिम्मत बंधाई…

‘‘अपने पर भरोसा रखो. तुम बहुत अच्छे कलाकार हो…’’

अमर चुन लिया गया. उसे फिल्म मिल गई. शूटिंग पर विष्णुजी साथ रहे.

अमर की फिल्म हिट हो गई. धड़ाधड़ नई फिल्में मिलने लगीं. विष्णुजी हर जगह साथ होते. उन के बिना अमर काम नहीं कर पाता था.

अमर स्टार बन गया. नाम और पैसा सभी कुछ बरसने लगा. विष्णुजी के घर की

हालत बदलने लगी. उन की तीनों बेटियां अच्छे स्कूल में जाने लगीं. बढि़या फ्लैट, नौकरचाकर सभी कुछ…

उन की पत्नी मालती खुश रहने लगी, क्योंकि उस ने अभी तक अच्छे दिन देखे ही नहीं थे. विष्णुजी कभी कोई नौकरी नहीं कर पाए थे और दारू पीना भी कम नहीं करते थे.

अमर की शादी हुई. शादी की पार्टी में पहली बार शालिनी ने विष्णुजी को देखा. नाटे, मोटे शराब का गिलास पर गिलास खाली करते हुए… उस व्यक्ति को शालिनी आश्चर्य से देख रही थी.

अमर ने शालिनी का परिचय करवाया, ‘‘ये मेरे गुरुजी हैं.’’

अमरके इशारे पर शालिनी ने  झुक कर उन के पांव छूए. पार्टी भर शालिनी देखती रही. बहुत से लोग विष्णुजी के आगेपीछे घूम रहे थे और वे सब से अकड़अकड़ कर बातें कर रहे थे.

जैसेजैसे अमर की सफलता बढ़ती गई, विष्णुजी की यह अकड़ भी बढ़ती रही.

शालिनी के मन में उन के लिए कभी कोई श्रद्धा पैदा नहीं हुई, लेकिन अमर की वजह से वह उन्हें हमेशा चुपचाप सहती रही.

सारे निर्मातानिर्देशक भी अमर की वजह से ही चुप

रहते. अमर उन के बिना शौट नहीं दे सकता. उन का सैट पर होना जरूरी है. वे हर निर्देशक को काम सिखाने लगते. निर्माता को छोटीछोटी बातों पर डांटनेफटकारने लगते. फिर भी अमर की वजह से कोई कुछ नहीं कहता.

मम्मी और आंटी को टैक्सी से उतरता देख, बच्चों के मुंह उतर गए.

रीना ने बात संभाली, ‘‘वह बात यह है कि रास्ते में गाड़ी खराब हो गई… अभी आती ही होगी… तब तक सब लोग आइसक्रीम खाते हैं.’’

दूसरी गाड़ी जल्दी आ गई. लेकिन यह तो पापा की नई गाड़ी नहीं है. अनूषा और माधव का मुंह उतर गया. उन के चेहरे देख कर शालिनी को धक्का जैसा लग रहा था.

बच्चों के घूमने का कार्यक्रम एक औपचारिकता की तरह निभाया गया. रीना ही उन्हें बहलाती रही.

शालिनी का उखड़ा मूड देख कर अमर परेशान हो गया. बोला, ‘‘वह क्या है न शालू… विष्णुजी की जिद थी उन्हें लेने वही गाड़ी आए. बेचारे कुमार का लाखों का नुकसान हो रहा था… मैं क्या करूं?’’

‘‘लेकिन विष्णुजी को हमेशा आप की नई गाड़ी ही क्यों चाहिए होती है?’’ शालिनी अपने गुस्से पर काबू नहीं रख सकी.

‘‘उन का ईगो संतुष्ट होता है… तुम तो जानती हो उन्हें.’’

‘‘हां, मैं उन्हें अच्छी तरह जानती हूं. ईगो के सिवा और है क्या उन के पास?’’

अमर कुछ नहीं कह सका. घर का वातावरण कई दिनों तक तनावपूर्ण रहा.

शालिनी को अब अमर की चिंता होने लगी थी, क्योंकि अमर विष्णुजी पर इतना निर्भर करता है? क्यों काम नहीं कर सकता उन के बिना? सफलता के इस शिखर पर पहुंच कर भी आत्मविश्वास क्यों नहीं आ पाया अमर में? इस तरह कितने दिन चलेगा? कहीं ऐसा न हो कि अमर को काम मिलना बंद हो जाए. फिर क्या होगा? अमर सम झता क्यों नहीं?

नीरज साहब एक बहुत बड़ी फिल्म बना रहे थे. अमर उन की अनेक हिट फिल्मों का हीरो ही नहीं, बल्कि बहुत अच्छा दोस्त भी था. जाहिर है मुख्य भूमिका इस बार भी उसे ही निभानी थी. नीरज साहब की यह फिल्म एकसाथ कई भाषाओं में बन रही थी और इस में कई विदेशी कलाकार भी काम कर रहे थे.

आज बहुत ही भव्य सैट लगा था. प्रैस वाले, मीडिया वाले सब आने वाले थे. अमर चाहता था कि शानिली भी सैट पर आए.

वैसे शालिनी अमर के सैट पर बहुत कम जाती थी और कुछ सालों से तो उस ने जाना बिलकुल छोड़ दिया था. वह लोगों के साथ विष्णुजी का व्यवहार सहन नहीं कर पाती थी. लेकिन इस बार अमर और नीरज साहब के बारबार आग्रह करने पर शालिनी को जाना पड़ा.

सारी तैयारी हो चुकी थी. विदेशी कलाकारों सहित सारे कलाकार तैयार थे. सैट तैयार था. लेकिन शूटिंग शुरू नहीं हो पा रही थी. विष्णुजी अभी तक नहीं पहुंचे थे. कई बार फोन किया गया, गाड़ी भेज दी गई थी. लेकिन वे नहीं आए. इस फिल्म के मुहूर्त वाले दिन से ही वे काफी नाराज थे, क्योंकि इस बार नीरज साहब ने मुहूर्त उन से नहीं बल्कि एक नामी विदेशी कलाकार से करवाया था.

जब बहुत देर हो गई तो अमर ने खुद फोन लगाया. मालती ने ही फोन उठाया, बोली, ‘‘क्या बताऊं अमर भैया, मैं तो सम झासम झा कर थक गई. ये सुबह से ही पी रहे हैं और नीरज साहब को गालियां दे रहे हैं.’’

शालिनी की मनो:स्थिति बहुत खराब हो रही थी. क्या सोच रहे होंगे सब लोग अमर के लिए… यह इतना बड़ा नायक… इतना असमर्थ… इतना असहाय है.

आखिर शूटिंग शुरू हुई. अमर ने विष्णुजी के बिना ही काम किया.

‘‘कमाल कर दिया तुम ने,’’ नीरज साहब ने अमर को गले लगा लिया. विदेशी कलाकार अमर के अभिनय से बेहद प्रभावित हुए.

मेकअप रूम में शालिनी

अमर की ओर प्रशंसा से देख रही थी. बोली, ‘‘आप उन के बिना काम कर सकते हैं… क्यों सहते हैं उन के इतने नखरे? आप उन के मुंहताज नहीं हैं… आप उन के बिना भी…’’

‘‘जानता हूं शालू मैं उन के बिना काम कर सकता हूं,’’

‘‘तो फिर हमेशा क्यों नहीं करते?’’

‘‘शालू… वह आदमी… जिंदगी में कुछ नहीं कर पाया… मेरी स्टारडम को जी रहा है वह… यह उस से छिन गई तो वह टूट जाएगा, फिर क्या होगा उस का? क्या होगा उस के परिवार का? बोलो?’’ शालिनी अवाक सी अमर को देख रही थी.

न जाने कब वहां आ कर खड़े हो गए थे नीरज साहब. फिर धीरे से बोले, ‘‘यह बात हम लोग सम झते हैं भाभीजी.’’

शालिनी को लग रहा था वह सचमुच एक महानायक की पत्नी है.

Vikrant Massey Love Story : ’12 वीं फेल’ ऐक्टर ने शादी के लिए दोस्त की गर्लफ्रैंड को किया प्रपोज

Vikrant Massey Love Story : साल 2023 में ब्लौकबस्टर फिल्मों में शामिल है ’12 वीं फेल’ में लीड ऐक्टर का किरदार निभाने वाले विक्रांत मेसी काफी फेमस हुए. इस फिल्म से इन्हें सुपरस्टार का दर्जा मिला. अब 37 साल के इस ऐक्टर ने अपनी एक पोस्ट से सबको हैरान कर दिया है.

विक्रांत मेसी ने आज यानी 2 दिसंबर को अपने इंस्टाग्राम पोस्ट में ऐक्टिंग करियर से रिटायरमेंट लेने की जानकारी दी है, जिससे फैंस चौंक गए हैं. यह पोस्ट इंटरनेट पर तेजी से वायरल हो रहा है.

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इस पोस्ट को शेयर करते हुए विक्रांत मेसी ने लिखा है, “पिछले कुछ साल और उसके बाद का समय अद्भुत रहा है. मैं आप सभी को आपके अमिट समर्थन के लिए धन्यवाद देता हूं. लेकिन जैसेजैसे मैं आगे बढ़ता हूं, मुझे एहसास होता है कि अब समय आ गया है कि मैं खुद को संभालूं और घर वापस लौट जाऊं. एक पति, पिता और बेटे के तौर पर. और एक अभिनेता के तौर पर भी.” रेड हार्ट और हाथ जोड़ने वाली इमोजी के साथ ये पोस्ट शेयर किया.

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इस पोस्ट पर फैंस और सेलिब्रिटी लगातार कमेंट्स कर रहे हैं. एक फैंस ने लिखा, क्या? इसका क्या मतलब है. एक यूजर ने लिखा, उम्मीद है कि यह सच नहीं होगा..

आपको बता दें कि विक्रांत कुछ समय पहले ही पिता बने हैं. इनकी पत्नी का नाम शीतल ठाकुर है. दोनों की शादी को 2 साल हुए है, मगर ये दोनों बहुत सालों से साथ हैं. इनकी लव स्टोरी काफी दिलचस्प है…आइए जानते हैं…

vikrant massey

‘मिर्जापुर’ ऐक्टर विक्रांत ने अपने इंटरव्यू में पर्सनल लाइफ के बारे में बात की थी. उन्होंने अपने लव स्टोरी के बारे में बात करते हुए बताया कि इनकी मुलाकात कैसे हुई? एक रिपोर्ट के अनुसार, विक्रांत मैसी और शीतल ठाकुर की पहली मुलाकात मुंबई में उनके दोस्त की वजह से हुई थी. दरअसल, ‘12वीं फेल’ स्टार विक्रांत ने एक दोस्त शीतल को मन ही मन चाहते थे और वो चाहते थे कि विक्रांत उन दोनों को मिलाने में हेल्प करें. विक्रांत ने कहा कि वो करवा देंगे, दोस्त और शीतल उनके घर गए. विक्रांत ने पहली बार यहां शीतल ठाकुर को देखा.

दोतीन मुलाकातों के बाद विक्रांत को शीतल पसंद आने लगी और उन्होंने अपने दोस्त की ही गर्लफ्रैंड को प्रपोज कर दिया. शितल भी उन्हें पसंद करने लगी थी. लेकिन विक्रांत को अपने दोस्त के लिए बुरा लग रहा था. लेकिन जब उसने ये देखा कि दोनों एकदूसरे को पसंद करते हैं तो वह दूर हो गया.इस तरह शुरु हुई विक्रांत और शीतल की प्रेम कहानी.

क्या आप जानते हैं, विक्रांत मेसी की पहली सैलरी कितनी थी ? उन्हें पहली सैलरी के तौर पर 800 रुपये मिले थे. लेकिन इस समय विक्रांत लाखों रुपए का चार्ज लेते हैं. रिपोर्ट के अनुसार विक्रांत की कुल संपत्ति 20-26 करोड़ है. सूत्रों के मुताबिक, ऐड शूट के लिए विक्रांत 40-50 लाख रुपए फीस लेते हैं. तो वहीं फिल्मों के लिए 2 करोड़ रुपए वसूलते हैं.

Short Story: मोटी मन को भा गई…

‘‘जनाब, शहनाई बजी, डोली घर आ गई. लेकिन जब बीएमडब्ल्यू के बिना डोली आई तो असमंजस में पड़ हम ने अपने दोस्त रमेश से अपनी परेशानी जाहिर की…’’

लड़की को देख कर आते ही हम ने मामाजी के कानों में डाल दिया, ‘‘मामाजी, हमें लड़की जंची नहीं. लड़की बहुत मोटी है. वह ढोल तो हम तीले. कहां तो आज लोग स्लिमट्रिम लड़की पसंद करते हैं और कहां आप हमारे पल्ले इस मोटी को बांध रहे हैं.’’

मामाजी के जरीए हमारी बात मम्मीपापा तक पहुंची तो उन्होंने कह दिया, ‘‘यह तो हर लड़की में मीनमेख निकालता है. थोड़ी मोटी है तो क्या हुआ?’’

सुन कर हम ने तो माथा ही पीट लिया. कहां तो हम ऐश्वर्या जैसी स्लिमट्रिम सुुंदरी के सपने मन में संजोए थे और कहां यह टुनटुन गले पड़ रही थी.

तभी हमारा लंगोटिया यार रमेश आ धमका. उसे पता था कि आज हम लड़की देखने जाने वाले थे. अत: आते ही मामाजी से पूछने लगा, ‘‘देख आए लड़की हमारे दोस्त के लिए? कैसी हैं हमारी होने वाली भाभी?’’

‘‘अरे भई खुशी मनाओ, क्योंकि तुम्हारे दोस्त को बीएमडब्ल्यू मिलने वाली है,’’ कह मामाजी ने चुपके से आंख दबा दी.

हम कान लगाए सब सुन रहे थे. मामाजी द्वारा आंख दबाने से अनभिज्ञ हम मन ही मन गुदगुदाए कि अच्छा, हमें बीएमडब्ल्यू मिलने वाली है. अभी तक हम लड़की के मोटी होने के कारण नाकभौं सिकोड़ रहे थे, लेकिन फिर यह सोच कर कि अभी तक मारुति पर चलने वाले हम अब बीएमडब्ल्यू वाले हो जाएंगे, थोड़ा गर्वान्वित हुए और फिर हम ने दिखावे की नानुकर के बाद हां कह दी. वैसे भी यहां हमारी सुनने वाला कौन था?

जनाब, शहनाई बजी, डोली घर आ गई. लेकिन जब बीएमडब्ल्यू के बिना डोली आई तो असमंजस में पड़ हम ने अपने दोस्त रमेश से अपनी परेशानी जाहिर की. रमेश हंसा, फिर मामाजी से नजरें मिला हमारी श्रीमतीजी की ओर इशारा कर बोला, ‘‘यही तो हैं तुम्हारी बीएमडब्ल्यू. नहीं समझे क्या? अरे पगले बीएमडब्ल्यू का मतलब बहुत मोटी वाइफ. अब समझे क्या?’’

अब्रीविऐशन कितना कन्फ्यूज करती है, हमें अब समझ आया. मजाक का पात्र बने सो अलग. हम इस मुगालते में थे कि बीएमडब्ल्यू कार मिलेगी. खैर हम ने बीएमडब्ल्यू, ओह सौरी, श्रीमतीजी के साथ गृहप्रवेश किया. हमें फोटो खिंचवाने का शौक था और फोटोजेनिक फेस भी था, मगर शादी में हमारे सारे फोटो दबे रहे. बस, दिखतीं तो सिर्फ हमारी श्रीमतीजी. गु्रप का कोई फोटो उठा कर देख लें, आसपास खड़े सूकड़ों के बीच घूंघट में लिपटी हमारी मोटी श्रीमतीजी अलग ही दिखतीं. उस पर वीडियो वाले ने भी कमाल दिखाया. उस ने डोली में हमारे पल्लू से बंधी पीछे चलती श्रीमतीजी के सीन के वक्त फिल्म ‘सौ दिन सास के’ का गाना, ‘दिल की दिल में रह गई क्याक्या जवानी सह गई… देखो मेरा हाल यारो मोटी पल्ले पै गई…’ चला दिया.

हनीमून पर मनाली पहुंचे तो होटल के स्वागतकर्ता ने हमारी खिल्ली उड़ाते हुए कहा, ‘‘आप चिंता न करें हमारे डबलबैड वाले रूम में व्यवस्था है कि एक सिंगल बैड अलग से जोड़ा जा सके.’’

हम तो खिसिया कर रह गए, लेकिन श्रीमतीजी ने रौद्र रूप दिखा दिया, बोलीं, ‘‘मजाक करते हो? खातेपीते घर की हूं…फिर डबलबैड पर इतनी जगह तो बच ही जाएगी कि बगल में ये सो सकें. इन्हें जगह ही कितनी चाहिए?’’

पता नहीं श्रीमतीजी ने हमारे पतलेपन का मजाक उड़ाया था या फिर अपनी इज्जत बढ़ाई थी, पर इस पर भी हम शरमा कर ही रह गए.

हमारी हनीमून से वापसी का दोस्तों को पता चला तो पहुंच गए हाल पूछने. न…न..हाल पूछने नहीं बल्कि छेड़ने और फिर छेड़ते हुए बोले, ‘‘भई, कैसी है तुम्हारी बीएमडब्ल्यू?’’

अब्रीविऐशन के धोखे और लालच में लिए गए फैसले ने हमें एक बार फिर कोसा. हम अपनी बेचारगी जताते खीजते हुए बोले, ‘‘दोस्तों, हनीमून पर घूमनेफिरने, किराएभाड़े से ज्यादा तो श्रीमतीजी के खाने का बिल है. अब तुम्हीं बताओ…’’ कहते हुए जेहन में फिर वही गाना गूंज उठा कि मोटी पल्ले पै गई…

अभी हमारी बात पूरी भी न हुई थी कि हमारे दोस्त रमेश ने हमें धैर्य बंधाते हुए कहा, ‘‘बी पौजिटिव यार. क्यों आफत समझते हो? वह सुना नहीं अभिताभ का गाना, ‘जिस की बीवी मोटी उस का भी बड़ा नाम है बिस्तर पर लिटा दो गद्दे का क्या काम है…’ और फिर मोटे होने के भी अपने फायदे हैं.’’

हम इस गद्दे के आनंद का एहसास हनीमून पर कर चुके थे. सो पौजिटिव सोच बनी. पर तुरंत रमेश से पूछ बैठे, ‘‘क्या फायदे हैं मोटी बीवी होने के जरा बताना? हम तो अभी तक यही समझ पाए हैं कि मोटी बीवी होने पर खाने का खर्च बढ़ जाता है, कपड़े बनवाने के लिए 5-6 मीटर की जगह पूरा थान खरीदना पड़ता है.’’उस दिन हम टीवी देख रहे थे कि तभी घंटी बजी. हम ने दरवाजा खोला, सामने रमेश खड़ा था, अपनी  शादी का कार्ड थामे, अंदर घुसते ही हैरानी से पूछने लगा, ‘‘क्या हुआ भई छत पर तंबू क्यों लगा रखा है? खैरियत तो है न?’’

हम यह देखने बाहर जाते, उस से पहले ही श्रीमतीजी बोलीं, ‘‘अरे, वह तो मैं अभीअभी अपना पेटीकोट सूखने डाल कर आई हूं.’’

सुनते ही रमेश की हंसी छूट गई. फिर हंसते हुए बोला, ‘‘हां भई, हम तो भूल ही गए थे कि अब तुम बीएमडब्ल्यू वाले हो गए हो…उस का कवर भी तो धोनासुखाना पड़ेगा, न?’’

बीएमडब्ल्यू के लालच में पड़ना हमें फिर सालने लगा. हमारी त्योरियां चढ़ गईं कि एक तो इतना बड़ा पेटीकोट, उस पर उसे तारों पर फैलाया भी ऐसे था कि सचमुच तंबू लग रहा था. फिर वही गाना मन में गूंज उठा, ‘मोटी पल्ले पै गई…’

खैर, रमेश शादी का न्योता देते हुए बोला, ‘‘समय पर पहुंच जाना दोनों शादी में.’’

जनाब, हम अपनी बीएमडब्ल्यू को मारुति में लादे पार्टी में पहुंच गए और एक ओर बैठ गए. तभी फोटोग्राफर कपल्स के फोटो लेते हुए वहां पहुंचा और हमें भी पोज देने को कहा.

आगेपीछे देख कोई पोज पसंद न आने पर वह बोला, ‘‘भाई साहब, आप भाभीजी के साथ सोफे पर दिखते नहीं…भाभीजी के वजन से सोफा दबता है और आप पीछे छिप जाते हैं. ऐसा करो आप सोफे के बाजू पर बैठ जाएं.’’

हम ने वैसा ही किया. पोज ओके हो गया, लेकिन तब तक पास पहुंच चुके दोस्त हंसते हुए बोले, ‘‘क्या यार सोफे के बाजू पर बैठे तुम ऐसे लग रहे थे जैसे भाभीजी की गोद में बैठे हो.’’

मोटे होने का एक और फायदा मिल गया था. इतने स्नैक्स निगलने के बाद भी हमारी श्रीमतीजी ने डट कर खाना खाया. सचमुच 500 के शगुन का 1000 तो वसूल ही लिया था. साथ ही एक और बात देखी. जहां अमूमन पत्नियां प्लेट भर लेती हैं और थोड़ाबहुत खा कर पति के हवाले कर देती हैं, फिनिश करने को, वहीं यहां उलटा था. श्रीमतीजी के कारण हम ने हर व्यंजन चखा.

उस दिन हम ससुराल से लौटे तो अपनी गाड़ी की जगह किसी और की गाड़ी खड़ी देख झल्लाए. तभी श्रीमतीजी बोलीं, ‘‘अरे, यह तो विभा की गाड़ी है,’’ और फिर तुरंत अपने मोबाइल से विभा का नंबर मिला दिया.

पड़ोस में तीसरी मंजिल पर रहने वाली विभा महल्ले की दबंग औरत थी. सभी उस से डरते थे. विभा तीसरी मंजिल से तमतमाती नीचे आई और दबंग अंदाज में बोली, ‘‘ऐ मोटी, इतनी रात को क्यों तंग किया? कहीं और लगा लेती अपनी गाड़ी? मैं नहीं हटाने वाली अपनी गाड़ी. कौन तीसरे माले पर जाए और चाबी ले कर आए?’’

‘‘क्या कहा, मोटी…’’ कहते हुए हमारी श्रीमतीजी ने विभा को हलका सा धक्का दिया तो वह 5 कदम पीछे जा गिरी  विभा की सारी दबंगई धरी की धरी रह गई. आज तक जहां महल्ले वाले उस से नजरें भी न मिला पाते थे वहीं हमारी श्रीमतीजी ने उसे रात में सूर्य दिखा दिया था.

‘‘अच्छा लाती हूं चाबी,’’ कहती हुई वह फौरन गई और चाबी ला कर अपनी गाड़ी हटा कर हमारी गाड़ी के लिए जगह खाली कर दी. इसी के साथ ही हमें श्रीमतीजी के मोटे होने का एक और फायदा दिख गया था. हम भी कितने मूर्ख थे कि अब तक यह भी न समझ पाए कि अगर श्रीमतीजी का वजन ज्यादा है तो इन की बात का वजन भी तो ज्यादा होगा. अब महल्ले में हमारी श्रीमतीजी की दबंगई के चर्चे होने लगे. साथ ही हम भी मशहूर हो गए. हमारे मन में श्रीमतीजी के मोटापे को ले कर जो नफरत थी अब धीरेधीरे प्यार में बदलने लगी थी. अब कोई मिलता और हमारी श्रीमतीजी के लिए मोटी संबोधन का प्रयोग करता तो हम भी उसे मोटापे के फायदे गिनाने से नहीं चूकते.

उस दिन हमारी  कुलीग ज्योति किसी काम से हमारे घर आई तो हम ने श्रीमतीजी से मिलवाया, ‘‘ये हमारी श्रीमतीजी…’’

अभी इंट्रोडक्शन पूरा भी न हुआ था कि ज्योति बीच में ही बोल पड़ी, ‘‘बहुत मोटी वाइफ हैं आप की,’’ और हंस दी. हमें लगा यह भी हमें बीएमडब्ल्यू के मुगालते वाला ताना मार रही है सो थोड़ा किलसे लेकिन श्रीमतीजी ने बड़े धांसू तरीके से ज्योति की हंसी पर लगाम कसी, ‘‘मेरे मोटापे को छोड़ अपनी काया की चिंता कर. मैं तो खातेपीते घर की हूं. तुझे देख तो लगता है घर में सूखा पड़ा है. कुछ खायापीया कर वरना ज्योति कभी भी बुझ जाएगी.’’

लीजिए, हमें मोटे होने का एक और फायदा मिल गया. अब कोई हमें यह ताना भी नहीं मार सकता था कि हम अपनी श्रीमतीजी को खिलातेपिलाते नहीं, बल्कि इन का मोटा होना ससुराल को खातापीता घर घोषित करता था.

आज लड़कियां स्लिमट्रिम रहने के लिए कितना खर्च करती हैं. हमारा वह खर्च भी बचता था. साथ ही उन के खातेपीते रहने से हमारी सेहत में भी सुधार होने लगा था. उस दिन टीवी देखते हुए एक चैनल पर हमारी नजर टिक गई जहां विदेश में हो रही सौंदर्य प्रतियोगिता दिखाई जा रही थी. खास बात यह थी कि यह सौंदर्य प्रतियोगिता मोटी औरतों की थी. कितनी सुंदर दिख रही थीं वे मांसल शरीर के बावजूद. हमारी श्रीमतीजी देखते ही इतराते हुए बोलीं, ‘‘देखो, बड़े ताने कसते हैं तुम्हारे यारदोस्त मुझ पर, मेरे मोटापे को ले कर छींटाकशी करते हैं, बताओ उन्हें कि मोटे भी किसी से कम नहीं.’’

हमें श्रीमतीजी की बात में फिर वजन दिखा. साथ ही उन के मोटापे में सौंदर्य भी. अब हमें मोटी श्रीमतीजी भाने लगी थीं, बीएमडब्ल्यू हमारी मारुति में समाने लगी थी.

अब हमारे विचारों में परिवर्तन हुआ. श्रीमतीजी पर प्यार आने लगा. हमारे मन में बसी ऐश्वर्या की जगह मोटी सुंदरी लेने लगी.

‘ऐश अगर सुंदरता के कारण फेमस है, तो हमारी श्रीमतीजी मोटापे के कारण. ऐश सब को लटकेझटके दिखा दीवाना बनाती है तो हमारी श्रीमतीजी अपनी दबंगई से सब को उंगलियों पर नचाती हैं. ऐश गुलाब का फूल हैं तो हमारी श्रीमतीजी गोभी का. फिर फूल तो फूल है. गुलाब का हो या फिर गोभी का. अब जेहन का गीत, ‘मोटी पल्ले पै गई…’ से बदल कर ‘मोटी मन को भा गई…’ बनने लगा.

इसी सोच के चलते उस दिन भागमभाग वाली दिनचर्या से निबट आराम से पलंग पर लेटे ही थे कि कब आंख लग गई, पता ही न चला. फिर आंख तब अचानक खुली जब श्रीमतीजी ने बत्ती बुझाने के बाद औंधे लेटते हुए अपनी टांग हमारी पतली टांगों पर रख दी. बड़ा सुकून मिला. आज के समय में कहां श्रीमतीजी थकेहारे पति के पांव दबाती हैं, लेकिन हमारी श्रीमतीजी ने अपनी टांग हमारी टांगों पर रखते ही यह काम भी कर दिया था. तभी हम ने सोचा कि आखिर यह भी तो एक फायदा ही है श्रीमतीजी के मोटे होने का बशर्ते पत्नी गद्दे की जगह रजाई न बने वरना तो कचूमर ही निकलेगा.

लुधियाना में गृहशोभा एम्पावर हर इवेंट की धूम

लुधियाना में 23 नवंबर 2024 को दिन में 11. 30 बजे होटल महाराजा रीजेंसी में दिल्ली प्रेस पब्लिकेशन की तरफ से ‘ गृहशोभा एम्पावर हर ‘ इवेंट का शानदार आगाज हुआ. यह गृहशोभा के साथ जुड़ कर महिलाओं के सीखने और सशक्तिकरण का एक खूबसूरत दिन था. तभी तो कार्यक्रम में हिस्सा लेने आई सभी महिलाएं बहुत उत्साह में नजर आ रही थी.

गृहशोभा के द्वारा कराए जा रहे ‘ गृहशोभा एम्पावर हर ‘ इवेंट्स का उद्देश्य महिलाओं को स्वास्थ्य, सौंदर्य और फाइनेंसियल प्लानिंग के क्षेत्र में आगे बढ़ने में मदद करना है. स्किनकेयर और हेल्थ टिप्स से लेकर स्मार्ट सेविंग आईडियाज से परिचित कराना है. यह कार्यक्रम महिलाओं को अपना सर्वश्रेष्ठ जीवन जीने के लिए सशक्त बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया . दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, लखनऊ और बैंगलोर जैसे शहरों के बाद लुधियाना में यह इवेंट आयोजित किया गया.

इस इवेंट के सहयोगी प्रायोजक डाबर खजूर प्राश, स्किन केयर पार्टनर ला शील्ड और होम्योपैथी पार्टनर SBL होम्योपैथी थे. इवेंट के दौरान कई तरह के सेशन और गेम्स आयोजित किए गए.

12 बजे तक पूरा हाल भर गया था. महिलाओं का स्वागत स्नैक्स और चाय के साथ हुआ. इसके बाद कार्यक्रम की शुरुआत वंदना ने अपने खूबसूरत अंदाज में किया और पूरे कार्यक्रम की रूपरेखा से दर्शकों को रूबरू कराया.

ब्यूटी और स्किन केयर सेशन

सब से पहले ब्यूटी और स्किन केयर सेशन की शुरुआत हुई. स्किनकेयर और ब्यूटी की दुनिया में एक प्रतिष्ठित नाम डॉ. मनीषा मित्तल है. ओरिसन सुपरस्पेशलिटी इनफर्टिलिटी एंड ट्रॉमा सेंटर की निदेशक डॉ. मनीषा ने त्वचा और बालों की देखभाल के लिए महत्वपूर्ण टिप्स दिए.

स्पोंसर्ड सेशन : डाबर( महिलाओं में आयरन की कमी पर सत्र)

डाबर खजूरप्राश द्वारा महिलाओं में आयरन की कमी और इस की अनदेखी की जाने वाली स्वास्थ्य समस्या पर बात की गई. यह समस्या ऊर्जा के स्तर, प्रतिरक्षा और समग्र स्वास्थ्य को प्रभावित करती है. इस सत्र के लिए मंच पर डॉ. निहारिका वात्स्यारिया पहुंचीं जो आयुष आयुर्वेद और पंचकर्म अस्पताल, स्त्री रोग में अभ्यास करने वाली एक आयुर्वेदिक चिकित्सक हैं और जिन के पास 8 वर्षों का अनुभव है. वह लुधियाना के गुरु नानक आयुर्वेद मेडिकल कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर भी हैं.

महिलाओं के लिए फाइनेंशियल प्लानिंग और इन्वेस्टमेंट सेशन

इस सेशन में विशेषज्ञ देवेंद्र गोस्वामी ने महिलाओं को महत्वपूर्ण जानकारियां दीं. उन्हें मनी मैनेजमेंट और फाइनेंसियल प्लानिंग में 21 से अधिक वर्षों का अनुभव है. उनके पास SCD गवर्नमेंट कॉलेज से स्नातक की डिग्री और PCTE से फाइनेंसियल प्लानिंग में मास्टर डिग्री है. उन्होंने शीर्ष बैंकों और बड़ी कंपनियों के साथ काम किया है. आज वे ब्लूरॉक वेल्थ प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक हैं.

उन्होंने बताया कि महिलाओं के लिए पैसे कमाना और उसे मैनेज करना करना सीखना क्यों जरूरी है. अपनी सैलरी का एक हिस्सा बचाना और उसे सही जगह निवेश करना आर्थिक स्वतंत्रता की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है. निवेश के लिए ‘म्यूचुअल फंड’ में सिस्टेमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान एसआईपी के माध्यम से हर महीने एक छोटी राशि का निवेश किया जा सकता है. इसके साथ ही साथ जीवन बीमा और चिकित्सा बीमा का महत्व समझाया. इस तरह महिलाएं आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त कर सकती हैं और अपने जीवन को बेहतर बना सकती हैं.

इस के बाद ला शील्ड द्वारा प्रायोजित गेम्स हुए. इन गेम्स में महिलाओं ने खुल कर हिस्से लिए और गिफ्ट्स जीते. इस में स्किन केयर से जुड़े सवाल पूछे गए.

स्पोंसर्ड सेशन : ला शील्ड स्किन केयर

इस सेशन के लिए डर्मेटोलॉजी और कॉस्मेटोलॉजी में 22 से अधिक वर्षों की अनुभव रखने वाली डॉ. अमन दुआ ने बहुत महत्वपूर्ण जानकारियां दीं. वह एके क्लीनिक प्राइवेट लिमिटेड में मैनेजिंग डायरेक्टर और चीफ डर्मेटोलॉजिस्ट हैं जो हेयर ट्रांसप्लांट, चेहरे की सुंदरता, डर्मेटो-सर्जरी और एडवांस्ड कॉस्मेटोलॉजी में विशेषज्ञता रखती हैं. वह एसोसिएशन ऑफ़ हेयर रिस्टोरेशन सर्जन्स इंडिया की अध्यक्ष और बोर्ड गवर्नर के रूप में कार्यरत हैं. वह इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ़ हेयर रिस्टोरेशन सर्जन्स की फेलो भी हैं और IADVL और ACS(1) जैसे प्रतिष्ठित एसोसिएशन की सक्रिय सदस्य हैं.

एसबीएल सेशन

बीएचएमएस में स्वर्ण पदक विजेता और होम्योपैथी में एमडी डॉ. रिधिमा को 5 वर्षों से अधिक का अनुभव का अनुभव रखने वाली डॉ. रिधिमा लुधियाना में भगवान महावीर होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में सहायक प्रोफेसर के रूप में भी काम करती हैं. उन्होंने महिलओं को मेनोपॉज से जुड़ी महत्वपूर्ण बातों से अवगत कराया. साथ ही उन्होंने बताया कि इस तरह की समस्याओं में होम्योपेथी किस तरह से कारगर है.

नूट्रिशनिस्ट सेशन

अंत में नूट्रिशनिस्ट सेशन के तहत सिमरत कथूरिया जो अवार्ड विनिंग डाइट एंड वेलनेस कोच हैं मंच पर आईं. सिमरत डाइट कंपनी की संस्थापक हैं, एक ऐसी कंपनी जिसने 10,000 से ज़्यादा लोगों की मदद की है चाहे वह वेट मैनेजमेंट हो, त्वचा और बालों का स्वास्थ्य हो या स्पोर्ट्स नुट्रिशन हो. उन्हें इस फील्ड में कई पुरस्कार मिले हैं. डायटीशियन सिमरत ने पोषण, फिटनेस और स्वास्थ्य पर महिलाओं को शानदार सुझाव दिए. उन्होंने महिलाओं को सही पोषण और स्वास्थ्य के महत्व को समझाते हुए उनके जीवन के विभिन्न चरणों में संतुलित आहार, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को मजबूत बनाने पर चर्चा की. महिलाओं को अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देने, नियमित स्वास्थ्य जांच कराने और स्वस्थ जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित किया.

इस के साथ इवेंट अपने अंतिम चरण में पहुँच गया. महिलाओं ने भोजन का आनंद लेने के बाद पंजीकरण डेस्क से अपने गुडी बैग लिए और शानदार दिन बिता कर अपने घरों को चली गई .

Short Story In Hindi : स्टेशन की वह रात

लेखक- सुनील कुमार

अंबाला रेलवे जंक्शन पर देर रात की ट्रेन लेट हो कर रात को और ज्यादा लंबी कर रही थी. तेजा को स्टेशन की भीड़ कभी पसंद नहीं रही, इसलिए उस ने पुल से चलते हुए आखिरी प्लेटफार्म की तरफ कदम बढ़ाए. सीढि़यों से उतर कर आखिरी प्लेटफार्म की भी वह बैंच पकड़ी, जिस के बाद नशेडि़यों, चोरउच्चकों का इलाका शुरू हो रहा था. थोड़ाबहुत जोखिम लेना तेजा के लिए आम बात थी.

कुछ दूरी पर ही मैलीकुचैली चादरों में भिखारी सो रहे थे. चाय की दुकान पर एकाध खरीदार पहुंच रहे थे. रेलवे जंक्शन के कोने में मौजूद दुकान पर चाय खरीद रहे लोगों की हालत भी टी स्टौल की तरह उजड़ी हुई थी.

तेजा जिस मंजिल के लिए निकला था, उसे पाना नामुमकिन था, लेकिन सपनों का पीछा करना उस की लत बन चुकी थी. इस वजह से दिमाग में कभी चैन नहीं रहा था.

अचानक ही पीछे से आई हलकी आवाज ने तेजा को चौंका दिया, ‘‘भैयाजी, 2 दिन से कुछ खाया नहीं है.’’

कहने को तो तेजा तेज आवाज से भी डरने वालों में से नहीं था, लेकिन इतनी रात में आखिरी प्लेटफार्म का कोना पकड़ते वक्त उसे नशेडि़यों की नौटंकी का अंदाजा था. सो, अचानक पीछे से आ कर बैंच पर बैठ जाने वाली 30-35 साल की एक औरत की धीमी आवाज ने भी उसे सकते में डाल दिया था.

पहनी हुई साड़ी और शक्लसूरत से वह औरत कहीं से भी रईस नहीं लग रही थी, लेकिन भिखारी भी दिखाई नहीं देती थी. हालांकि यह जरूर लगता था कि वह घर से निकल कर सीधी यहां नहीं आई है. उस का कई दिन भटकने जैसा हुलिया बना हुआ था.

हालात भांप कर तेजा ने चौकस आवाज में कहा कि वह पैसे नहीं देगा. हां, अपने पैसे से दुकान वाले को बोल कर चायबिसकुट जरूर दिला सकता है. लेकिन औरत का अंदाज चायबिसकुट पाने तक सिमट जाने वाला नहीं था.

औरत ने दुखियारी बन कर कहा, ‘‘मैं बहुत ही मुश्किल में हूं, कुछ पैसे

दे दो.’’

तेजा का दिमाग चकरा गया, क्योंकि यह औरत उस टाइप की भी नहीं लग रही थी, जो अंधेरी रातों में नौजवानों को इशारे कर बुलाती हैं. न ही कपड़े और सूरत उस के भिखारी होने पर मोहर लगा रहे थे.

तेजा ने चेहरा थोड़ा नरम करने की कोशिश करते हुए पूछा, ‘‘यहां स्टेशन के अंधेरे कोने में क्या कर रही हो?’’

उस औरत ने धीमी आवाज में और दर्द लाते हुए कहा, ‘‘बस, थोड़े पैसे दे दीजिए.’’

तेजा ने नजरें घुमा कर चारों तरफ देखा. उस की नजरें यह तसल्ली कर लेना चाहती थीं कि कम रोशनी वाले स्टेशन के कोने में एक औरत के साथ बैठने पर दूसरों की नजरें उसे किसी अलग नजरिए से तो नहीं देख रही हैं? लेकिन तेजा को यह जान कर तसल्ली हुई कि स्टेशन जैसे कुछ देर पहले था, ठीक अब भी वैसा ही है.

नए हालात देख कर कालेज के फाइनल ईयर का स्टूडैंट तेजा रोमांच से भर उठा. यह रोमांच इस उम्र के लड़कों में खास हालात बनने पर खुद ही पैदा हो जाता है. तेजा भी दूसरे ग्रह का प्राणी नहीं था. सो, उसे भी यह एहसास हुआ.

अब जब आसपास के हालात बैंच के माहौल में खलल डालने वाले नहीं थे, तो तेजा का खोजी दिमाग सवाल उछालने लगा. उस ने कहा, ‘‘मैं पैसे तो दे दूंगा, लेकिन पहले यह बताओ कि तुम इस हालत में यहां क्या कर रही हो?’’

पैसे मिलने की बात सुन कर उस औरत ने बताया कि वह बिहार के पटना की रहने वाली है. मेरा मर्द बहुत बुरा आदमी था. घर खर्च के लिए वह पैसे नहीं देता था. वह दारू पीता था. बच्चे खानेखिलौनों के लिए हमेशा मां को ही कहते थे, लेकिन पति के गलत बरताव और नशेड़ी होने की वजह से वह घुट रही थी. एक दिन जेठानी से उस का झगड़ा हो गया. जब पति घर आया तो उस ने बाल धोने के लिए शैंपू खरीदने के पैसे मांग लिए. पहले से ही जेठानी के सिखाए नशेड़ी पति ने उस की बेरहमी से पिटाई कर दी.

यह पिटाई नई नहीं थी, लेकिन लंबे अरसे से उस के मन में जो बगावती ज्वालामुखी दबा बैठा था, उस रात फट पड़ा. पति को जवाब देना तो उस के बूते से बाहर था, लेकिन घर में सबकुछ छोड़ फिल्मी हीरोइन की तरह सीधे स्टेशन पहुंच गई. आंसू पोंछने का दौर चलने के बाद दिल को पत्थर बना लिया और आखिर में अनजान ट्रेन में कदम रख ही दिया और आज यहां है.

मच्छरों का काटना, मुसाफिरों की शक्की नजर का डर, सबकुछ तेजा के दिमाग से भाग चुका था और उस औरत की बातें सुन कर उस का घनचक्कर दिमाग और ज्यादा घूम गया.

तेजा ने पूछा, ‘‘शैंपू की खातिर पति ने पीट क्या दिया, तुम अपने छोटेछोटे बच्चोें को छोड़ कर घर से भाग आई? कितने दिन पहले घर छोड़ा था? क्या तुम ट्रेन से सीधे अंबाला स्टेशन पर उतरी हो? तुम्हारा नाम क्या है?’’

तेजा के 4 सवालों की बौछार का सामना करने के बाद अपने लंबे बालों को हलके से खुजलाते हुए उस औरत ने खुद का नाम रश्मि बता कर कहा, ‘‘सही से याद नहीं. शायद 12-15 दिन हो गए हैं. पहली ट्रेन छोड़ने के बाद मैं भटकती रही और फिर देर शाम सड़क से गुजरते ट्रक वालों ने मुझे आगे छोड़ने की पेशकश की.

‘‘कोई रास्ता न देख वह ट्रक में चढ़ गई. फिर चलते ट्रक में मेरे साथ वह सब हुआ, बारबार हुआ, जिस का टीवी न्यूज वाले ढिंढोरा पीटते रहते हैं. जब एक बार ट्रक वालों का मन भर जाता तो मुझे सड़क किनारे फेंक देते. कुछ देर बाद दूसरे उठा लेते.

‘‘मुझे खुद भी याद नहीं कि अब तक कितनों ने मेरे साथ हैवानियत की है. अब मुझे सड़क से डर लगता है. रेलवे स्टेशन पर भीड़ रहती है, कोई मुझे उठा कर नहीं ले जा सकता है, इसलिए अब मैं स्टेशन पर हूं.

‘‘रास्ते में किसी औरत ने बताया था कि मैं कुरुक्षेत्र जाऊं, वहां धार्मिक मेले में बड़े दानी लोग आए हुए हैं. मेरा भला होगा. किसी से पूछ कर बिना टिकट मैं कुरुक्षेत्र से गुजरने वाली ट्रेन में चढ़ गई, स्टेशन चूक गया सो कुरुक्षेत्र के बजाय अंबाला पहुंच गई. हालत खराब होने की वजह से तब से मैं इसी बड़े स्टेशन पर पड़ी हूं.’’

रश्मि के चुप होने पर हैरानी से सबकुछ सुन रहे तेजा ने दिमाग को झकझोरा. सख्त दिखने वाले तेजा ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें पटना जाने वाली ट्रेन का टिकट खरीद कर दूंगा, साथ में खाना खाने लायक पैसे भी दूंगा. तुम अपने घर लौट जाओ.’’

लेकिन रश्मि तैयार नहीं हुई. उस ने कहा, ‘‘अब घर और समाज में कोई मुझे नहीं अपनाएगा.’’

तेजा अब रश्मि पर हक से बोलने लगा, ‘‘बेशक, लोग तुम पर ताने मारें, पर तुम अपने बच्चों के लिए घर लौट जाओ. उन मासूमों का इस दुनिया में कोई पराया ध्यान नहीं रखेगा और तुम्हारा पति तो पहले ही नशेड़ी है.’’

रश्मि ने कहा, ‘‘मैं ऐसी गलती कर चुकी हूं, जहां से कभी वापसी नहीं हो सकती है.’’

तेजा ने रश्मि से कहा, ‘‘तुम पहले कुछ खा लो, फिर डाक्टर से दवा ले लो, ताकि तुम्हारे शरीर में कुछ जान आ सके.’’

तेजा की बात सुन कर अब तक मन की बात बताने वाली रश्मि का चेहरा और अंदाज बदल गया. उस ने धीमी आवाज में अपना फैसला साफ कर देने वाली बात कही, ‘‘मैं रेलवे स्टेशन के बाहर नहीं जाऊंगी, चाहे तुम पैसे दो या मत दो.’’

यह बात कहने का अंदाज देख कर तेजा समझ गया कि इस औरत का भरोसा सब से उठ चुका है, जो दरिंदगी इस के साथ की गई है, उस ने दिल में डर बैठा दिया है, इसलिए वह अब उस पर भी भरोसा नहीं करेगी.

तेजा ने कहा, ‘‘अगर तुम कुछ दिन और स्टेशन पर पड़ी रही तो शायद मर जाओगी.’’

लेकिन रश्मि पर इस का भी खास असर नहीं हुआ. उस ने मुरदा से हो चुके चेहरे को और ढीला छोड़ते हुए कहा, ‘‘मैं बेशक मर जाऊं, लेकिन स्टेशन से बाहर नहीं जाऊंगी. न ही वापस अपने घर जाऊंगी.’’

तेजा ने मन में सोचा कि वह बुरी तरह फंस गया है, इस हालत में इसे छोड़ कर गया तो यह फिर गलत लोगों के हाथ पड़ जाएगी या फिर कुछ दिनों बाद मरने की हालत में पहुंच जाएगी. लेकिन साथ ही उसे यह एहसास भी हुआ कि वह खुद कौन सा चीफ मिनिस्टर है, जो अचानक से इस औरत की जिंदगी को वाकई जिंदा कर देगा? अंदर एक कोने में यह डर भी था कि कहीं उसे आधी रात को बेवकूफ तो नहीं बनाया जा रहा है?

बैठेबैठे एक दौर बीत चुका था. तेजा की ट्रेन का वक्त नजदीक आ रहा था. खड़ूस तेजा का दिमाग कन्फ्यूज हो कर तेजी से घूम रहा था. मन में यह भी आ रहा था कि अगर औरत सच बोल रही है तो बरबादी की जिम्मेदार वह खुद ही है. इस तरह घर छोड़ कर भागेगी तो ऐसा ही अंजाम होगा. लेकिन उसे वह वक्त भी याद आया जब झगड़ कर तेजा खुद घर छोड़ कर दिल्ली के एक आश्रम में चला गया था. घर से संन्यासी बनने की ठान कर निकला था, लेकिन 4-5 दिन बाद सुबह 3 बजे चुपचाप आश्रम छोड़ कर वापस घर का रास्ता पकड़ लिया.

घर लौटने पर मातापिता और पड़ोसियों ने उस की गरदन नहीं पकड़ी, बल्कि राहत की सांस ली थी.

तेजा के मन में आया कि क्या दुनिया है कि घर से भागा एक लड़का वापस आ जाए तो सब को चैन, लेकिन एक औरत के लिए वही सब करना पाप…

तेजा की नजर बारबार घड़ी पर जा रही थी. लग रहा था, वक्त ने रफ्तार बढ़ा ली है. उस की टे्रन के आने की घोषणा हो चुकी थी. लेकिन रश्मि का सच और उस की जिद जान कर तेजा उस के लिए कुछ भी कर पाने की हालत में नहीं था.

बिना सोचे तेजा के मुंह से अचानक शब्द निकले, ‘‘मुझे अब जाना होगा रश्मि. ट्रेन आ रही है.’’

तेजा ने जेब से पर्स निकाला. उसे ध्यान नहीं कितने नोट निकले, लेकिन रश्मि को थमा दिए और बैंच से खड़ा

हो गया.

‘‘अपना ध्यान रखना,’’ बोल कर तेजा आगे बढ़ने लगा.

तेजा को जाते देख रश्मि के चेहरे पर फिर से कुछ बड़ा खो देने के भाव थे. कई दिन से पत्थर बनी उस की आंखें नम हो गईं.

पुल पर पलट कर तेजा ने अंधेरे कोने में नजरें दौड़ाईं. ऐसा लग रहा था मानो बैंच के साथ रश्मि की मूर्ति हमेशा से वहीं चिपकी हुई है.

तेजा के पैर आगे बढ़ते जा रहे थे. रेलवे स्टेशन की तमाम चिल्लपौं से दूर उस का दिमाग खोया हुआ था, उसे भी नहीं मालूम कहां. एक सन्नाटा पसरा हुआ था.

पीछे से धक्का मारते हुए एक आदमी ने कहा, ‘‘नहीं चढ़ना है तो रास्ते से हट जाओ.’’

तेजा जागा और देखा कि उस की ट्रेन सामने है, वह अनजाने में चलते हुए ठीक अपनी बोगी के सामने पहुंच गया है, लेकिन ऊपर चढ़ने के बजाय गेट के बाहर पैर जम गए हैं, इसलिए पीछे से बाकी मुसाफिर उस पर गुस्से में चिल्ला रहे हैं.

तेजा हड़बड़ाहट में तेजी से अंदर चढ़ गया. चंद पलों में सीटी बजी और बिजली से चलने वाली ट्रेन के पहियों ने फर्राटा भर दिया.

इस से पहले कि ट्रेन पूरी रफ्तार पकड़ पाती, तेजा ने बैग के साथ गेट से छलांग लगा दी. कालेज जाते वक्त रोजाना सरकारी बस के सफर का तजरबा था, इसलिए इंजन की दिशा में दौड़ता रहा वरना स्टेशन पर खड़े लोग तेजा के गिरने के डर में आंखें तकरीबन बंद कर चुके थे.

कम से कम 30-40 मीटर दौड़ते रहने पर तेजा के लड़खड़ाते पैर संतुलन में आ पाए. तेज सांसें छोड़ता हुआ तेजा रुका और चमकती आंखों के साथ वापस मुड़ा.

तेजा को अंदाजा था कि पठानकोट में जाट रैजीमैंट के कैंप पहुंच कर मामा से मदद मिलने की गुंजाइश कम है. मामी और उन के घर वालों का असर फौजी मामा को लाचार बना चुका था, इसलिए वहां जाने में वक्त बरबाद कर नाउम्मीद होने से बेहतर है कि रश्मि और उस के बच्चों को मिलाया जाए. मांबच्चों का मिलन हो जाएगा तो बाकी सब भाड़ में जाएं.

तेजा ने फोन निकाल कर दिल्ली के न्यूज चैनल में काम करने वाले दोस्त गौरव को मिला दिया. मालूम था, रात के 2 बजे हैं, गौरव के फोन रिसीव करने के चांस कम हैं, लेकिन फोन

को स्पीकर पर लगा कर वह टिकट काउंटर की तरफ बढ़ चला.

कोई जवाब नहीं मिला, लेकिन तेजा को कोई परवाह नहीं. रीडायल बटन दबा दिया. घंटी बज रही थी. देर रात होने की वजह से काउंटर खाली था. अंदर टिकट बाबू और एक मैडमजी बातों में मस्त थे.

तेजा ने कहा, ‘‘पटना के लिए टे्रन कब मिलेगी?’’

बातचीत के मधुर सफर में खोए टिकट बाबू को यह सवाल घोर बेइज्जती लगा. पहले नजरों से नफरत के बाण चलाए, फिर जबान खोली, ‘‘एक घंटे बाद सुपरफास्ट ट्रेन है. जम्मू से आ रही है, सीधी हावड़ा जाएगी. बीच में दिल्लीपटना जैसे बड़े स्टेशनों पर रुकती है. सीट भी दिलवा दूंगा. अंदर मस्तमस्त बिस्तर मिलेगा, साथ में गरमागरम खाना. लेकिन टिकट खरीदने के लिए औकात चाहिए, अब बोल खरीदेगा टिकट?

‘‘वैसे, सुबह 8 बजे दिल्ली तक पैसेंजर ट्रेन है. वहां से पटना के लिए मिल जाएगी, चल भाग अभी. ये बिहार वाले शांति से चार बात भी नहीं करने देते हैं. हां, तो सपना… मैं क्या कह रहा था?’’

‘अरे भैया, रात को 2 बजे भी सोने नहीं देते हो, 5-7 दिन की छुट्टी मिलती हैं. समझा करो यार,’ नींद में ऊंघ रहे गौरव ने फोन पर जवाब दिया.

‘‘गौरव, तुम फोन पर बने रहो,’’ तेजा ने स्पीकर बंद कर मुसकराते हुए टिकट बाबू से कहा, ‘‘2 टिकट दे दीजिए,’’ और उस ने डैबिट कार्ड आगे बढ़ा दिया.

टिकट बाबू ने तेजा की सूरत को घूरते हुए कार्ड ले लिया. बुनियादी जानकारी पूछी और बटन दबा दिया.

2 टिकट निकाल कर तेजा को थमा दी. टिकट और डैबिट कार्ड ले कर तेजा तेज कदमों से रश्मि की तरफ चल पड़ा.

तेजा ने चलते हुए एक सांस में

रश्मि की पूरी कहानी फोन पर गौरव को बता दी.

गौरव पटना का ही रहने वाला था. दोनों जोधपुर के मिलिटरी स्कूल में एकसाथ पढ़ते थे, क्योंकि दोनों के पिता फौज में वहीं तैनात थे.

हालांकि गौरव तेजा से कई क्लास सीनियर था, लेकिन दोनों की खूब जमती थी. फोन पर गौरव ने कहा, ‘तेजा इतने दिनों बाद फोन किया वह भी रात के 2 बजे. और यह किस के लिए पागल हुआ जा रहा है. अरे भाई, ऐसे कितने ही लोग रोज बरबाद होते हैं. कितनों को घर पहुंचाएगा तू.’

तेजा ने मजबूत आवाज में कहा, ‘‘गौरव भाई, मैं उसे ले कर पटना आ रहा हूं. समझो, अब मसला पर्सनल है. कुछ देर में तुम्हें उस के घर का अतापता सब मैसेज कर रहा हूं. मुझे इस औरत को उस के बच्चों से मिलाना है. इतना ही नहीं, उस का घर भी बसना चाहिए. तुम अपने विधायक भाई को बोलो या थानेदार को. बस, यह होना चाहिए.’’

गौरव समझ गया कि तेजा के दिमाग में धुन चढ़ गई है. अब यह कुछ नहीं मानेगा या समझेगा. उस ने तेजा को कहा, ‘मैं कल ही दिल्ली से छुट्टी ले कर पटना आया था. तू मुझे उस औरत की जानकारी मैसेज कर. मैं लल्लन भैया से बात करता हूं. अब तू ने कहा है तो निबटाते हैं मसला यार.’

लल्लन भैया 2 दफा विधायक रह चुके थे. गौरव उन की रिश्तेदारी में था.

रश्मि अंधेरे की तरफ मुंह किए उसी बैंच पर पत्थर बनी बैठी थी.

तेजा ने पहुंच कर कहा, ‘‘तुम्हें स्टेशन से बाहर नहीं जाना है. ट्रेन में मेरे साथ सफर करना है. मैं तुम्हें ले कर पटना जाऊंगा. अगर तुम्हारे बच्चों से मिला कर तुम्हारा संसार नहीं बसा सका, तो जो तुम्हें करना है उस के बाद भी

कर सकती हो. चलो उठो, प्लेटफार्म बदलना है.’’

तेजा की इस अंदाज में वापसी देख कर रश्मि सकपका गई. उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है.

तेजा की बातें सुन कर वह कल्पना करने की कोशिश कर रही थी कि क्या उस की जिंदगी फिर से खिल सकती है?

‘‘मेरा पति और लोग मुझे जीने नहीं देंगे बाबू,’’ रश्मि ने तेजा से कहा.

‘‘वह सब मुझ पर छोड़ दो,’’ तेजा ने जवाब दिया.

जब ट्रेन आई और दोनों उस में चढ़े तो अजीब नजारा था. अंदर के मुसाफिर रश्मि को घूर कर देख रहे थे और रश्मि आलीशान ट्रेन के अंदर हर चीज को घूर रही थी.

तेजा उस का हाथ पकड़ कर सीट तक ले गया. प्लेटफार्म पर खरीदा गया खानेपीने का सामान उसे थमा दिया और कहा, ‘‘अब कुछ खा लो.’’

थोड़ी देर में ट्रेन ने सीटी बजा दी और दौड़ चली.

पूरे सफर में तेजा और गौरव की फोन पर बातचीत चलती रही. रश्मि इस दौरान लेटेलेटे कभी अचेत सी हो कर सो जाती, तो कभी शीशे की खिड़की के पार नजरें गड़ाए देखती रहती.

पटना स्टेशन पर जब गाड़ी रुकी तो रश्मि का भाई, मां उस के 2 छोटेछोटे बच्चों के साथ खड़े थे. उन के साथ गौरव और लल्लन भैया के 2 आदमी

भी थे.

ट्रेन से उतर कर रश्मि को समझ नहीं आ रहा था, वह बच्ची बन कर अपनी मां से लिपट कर रोए या रोते हुए ‘मम्मीमम्मी’ बोल कर उस की तरफ आ रहे बच्चों को छाती से चिपका ले.

तेजा के सामने वक्त ठहर गया था. उस के मन में सुकून और प्यार की बयार बह रही थी. गौरव तेजा को देखे जा रहा था. लल्लन भैया के दोनों लोग पूरे नजारे पर नजरें गड़ाए हुए थे.

बूढ़ी मां, रश्मि, दोनों बच्चे एकदूसरे में खो गए. दूर देहात से आए रश्मि के बड़े भाई को भी खुद पर शर्मिंदगी महसूस हो रही थी. जब रश्मि ने पति के बरताव और घर के हालात के बारे में भाई को बताया था तब उस ने जरूरी कदम नहीं उठाया. उसी का नतीजा छोटी बहन और 2 छोटेछोटे मासूम बच्चों को भुगतना पड़ा. लेकिन अब बड़े भाई ने

मन मजबूत कर लिया था.

गौरव ने तेजा को बताया कि लल्लन भैया ने रश्मि के आदमी को उठवा लिया है. अब वह नशा मुक्ति केंद्र में बंद है. नशे की हालत में उस का बरताव देख लल्लन भैया भी गरम हो गए थे.

2 थप्पड़ जड़ दिए उसे और बोले

कि ऐसे आदमी के पास कोई कैसे रह सकता है?

लल्लन भैया ने अपने चमचों से कह दिया था कि रश्मि के ससुराल और मायके वालों से पूरा सच पता करें. सच यही निकला कि रश्मि गलत औरत नहीं थी, लेकिन पति बिगड़ैल निकला. कामचोर, नशेड़ी और दूसरों की सीख मानने वाला. उस हालत में रश्मि को

2 ही रास्ते सूझे, एक तो गले में फंदा लगा ले या फिर घर से भाग जाए. लेकिन अब बच्चों के चेहरे देख कर उस के अंदर की ताकत जाग गई थी. उस ने मन ही मन फैसला किया, अब बच्चों के लिए जिएगी. आदमी सही रास्ते पर आया तो ठीक है, वरना बच्चों को खुद पालेगी.

बड़े भैया ने बीच में आ कर रश्मि से कहा कि फिलहाल वह मायके में चले. वह और मां उन का ध्यान रखेंगे.

गौरव ने कहा, ‘‘रश्मि की सेहत ठीक होने पर उसे लल्लन भैया के दोस्त के स्कूल में नौकरी लगवा देंगे. वह वहां अपने बच्चों को भी पढ़ा सकती है. उस के बिगड़ैल पति को सुधारने की जिम्मेदारी अब लल्लन भैया ने ले ली है. जब वह इनसान बन जाएगा, तब उसे  सब बता दिया जाएगा.’’

स्टेशन के बाहर रश्मि का सामान एक जीप में लदा था. यह जीप लल्लन भैया की थी. रश्मि के भाई ने हाथ जोड़ कर तेजा को शुक्रिया कहा. बच्चों के साथ रश्मि और उस के भाई और मां जीप में बैठ गए. दोनों लोग भी गाड़ी में लद लिए. चमचों को और्डर था कि रश्मि को उस के गांव तक सहीसलामत छोड़ कर आएं.

जीप तेज धुआं छोड़ते हुए आगे बढ़ चली. गौरव ने तेजा को झकझोरते हुए कहा, ‘‘चलो भैया, अब तो हम मिल कर पटना दर्शन करते हैं.’’

Bridal Jewellery जा रही हैं खरीदने, तो ये टिप्स बड़े काम के होंगे साबित

How to Select Bridal Jewellery : शादी होना और दुलहन बनना प्रत्येक युवती के जीवन में एक बार ही आने वाला अवसर होता है इसलिए हर दुलहन इस दिन सब से अलग, खास और सब से सुंदर दिखना चाहती है क्योंकि इस दिन वही केंद्रबिंदु होती है.

इस खास दिन पर कुछ दुलहनें लहंगा तो कुछ साड़ी पहनना पसंद करती हैं, पर दोनों ही आउटफिट में ज्वैलरी सब से अहम होती है जो आप के व्यक्तित्व में चार चांद लगाती है.

आज बाजार भांतिभांति की ज्वैलरीज से भरी है पर यदि आप बिना सोचेविचारे ज्वैलरी खरीदने बाजार पहुंच जाएंगी तो निश्चित ही आप के लिए अपने उस खास दिन के लिए ज्वैलरी खरीदना काफी मुश्किल हो जाएगा.

इसलिए शादी वाले दिन के अपने आउटफिट के लिए ज्वैलरी खरीदने जाने से पूर्व यदि आप कुछ बातों को ध्यान में रख कर जाएं तो आप के लिए ज्वैलरी खरीदना काफी आसान हो सकता है.

अपना स्टाइल खुद तय करें

लहंगे या साड़ी के साथ की ज्वैलरी लेने से पहले आप अपना स्टाइल समझें कि आप कैसी दिखना चाहती हैं, तभी आप सही ज्वैलरी का चुनाव कर पाएंगी क्योंकि यदि आप क्लासी ट्रैडिशनल लुक चाहती हैं तो गोल्ड की हैवी ज्वैलरी और यदि आप मौडर्न लुक चाहती हैं तो डायमंड, पोलकी आदि की हलकी ज्वैलरी को चूज कर सकती हैं.

ड्रैस से मैटल को मैच करें

गोल्ड ज्वेलरी जहां लाल, मैरून और हरे रंग के साथ आप को क्लासी और रौयल लुक देती है, वहीं डायमंड और व्हाइट ज्वैलरी व्हाइट, आइवरी और पेस्टल कलर्स पर खूब फबती है। ये आप के लुक को एक सौफस्टिकेटेड टच प्रदान करती है.

कुंदन और पोलकी अगर आप हैवी वर्क वाला लहंगा पहन रही हैं तो कुंदन और पोलकी की ज्वैलरी उस में चार चांद लगा देगी। हां, इस के लिए आप लहंगा या साड़ी का ब्लाउज अपने साथ ले कर जाएं ताकि मैच कर के ज्वैलरी ख़रीद सकें. इसी तरह यदि लहंगे पर व्हाइट कढ़ाई है तो सिल्वर या डायमंड टच वाली और यदि गोल्ड कढ़ाई है तो गोल्ड टच वाली ज्वैलरी खरीदें. साथ ही फाइनल करने से पहले पहन कर जरूर देखें जिस से आप अपना लुक देख सकें.

आजकल कंट्रास ज्वैलरी का फैशन भी जोरों पर है। इस के लिए जिस रंग का आप का आउटफिट है उस के विपरीत रंग की ज्वैलरी लेना ठीक रहता है.

ड्रैस की नेकलाइन

ब्लाउज की नेकलाइन यदि हाई है तो चोकर पहनें ताकि आप की ड्रैस ओवरलैप न हो। डीप नेकलाइन में चूंकि गले और नेकलाइन के बीच में काफी स्पेस होता है इसलिए आप लेयर्ड और लंबा सा नैकलेस पहनें ताकि आप का फ्रंट पोर्शन एकदम भरा सा प्रतीत हो। वहीं वी नेक पर हैवी पेंडेंट ही सुंदर लगेगा.

यदि आप औफ शोल्डर नेक वाली ड्रैस पहन रहीं हैं तो चोकर और कौलर नैकलेस आप के लुक को बेहद सुंदर बना देंगे.

इयररिंग्स

आप के कानों में क्या फबेगी यह आप के हेयरस्टाइल और नैकलेस पर निर्भर करता है. आप ने यदि भारी नैकलेस पहना है तो कानों में हलकेफुलके झुमके और हलकी ज्वैलरी पहनने पर भारी और बड़े झुमके पहनें.

इसी प्रकार यदि आप खुले बाल रख रही हैं तो छोटे और हाई जूड़े पर बड़ेबड़े आकार के इयरिंग्स अच्छे लगते हैं. ऐसे में गले में आप बहुत भारी कुछ भी न पहनें.

बैंगल्स

दुलहन के हाथों की शोभा उस के हाथों में पहनी गई चूड़ियों से होती है. आजकल बाजार में मैटल, कांच, पोलकी, मोटी और अमेरिकन डायमंड की चूड़ियों और कड़ों जैसे कई औप्शंस मौजूद हैं. आप अपनी ड्रैस पर की गई कढ़ाई के अनुसार बैंगल्स का चयन करें.

आजकल लाल और सफेद रंग के कौंबिनेशन का पंजाबी चूड़ा भी काफी चलन में है. आप चाहें तो उस का चयन भी कर सकती हैं.

रखें इन बातों का भी ध्यान

* ज्वैलरी के साथसाथ नथ और मांग टीका भी बहुत अहम होता है. आजकल के युवा नाक नहीं छिदवाते हैं, ऐसे में आप आर्टिफिशियल नथ का प्रयोग करें.

* इस दौरान आप को काफी लंबे समय तक ज्वैलरी और लहंगे को पहनना पड़ता है. इसलिए सभी का आरामदायक होना बेहद जरूरी होता है। सब से पहले अपने आराम को तवज्जो दें.

* ज्वैलरीज खरीदने का अपना बजट निर्धारित करें क्योंकि आजकल बाजार में महंगी से महंगी ज्वैलरी मौजूद है। इसलिए यदि आप बजट बना कर बाजार जाएंगी तो खरीदने में काफी आसानी रहेगी.

* लहंगा और ज्वैलरी दोनों को ही खरीदते समय ध्यान रखें कि उसे दोबारा पहना जा सके। इसलिए बहुत अधिक भारी ज्वैलरी लेने से बचें.

* ज्वैलरी खरीदते समय अपनी पर्सनैलिटी का ध्यान अवश्य रखें। दूसरों को देख कर खरीदने के स्थान पर वही खरीदें जो आप पर फबे और आप की पर्सनैलिटी में चार चांद लगाए.

* ट्रैंड और फैशन के पीछे भागने की अपेक्षा अपने बजट और व्यक्तित्व का ध्यान रख कर ही शौपिंग करें.

शादी के मौके पर मस्तीमजाक करें… लेकिन जरा संभल कर!

शादी पर हंसीमजाक, रूठनामनाना, चुगली के बाद लड़ाईझगड़ा आम बात है। अगर शादी में मजाकमस्ती करने वाले, दिलफेंक आशिक, चुलबुली लड़कियां आकर्षण का केंद्र होती हैं तो उसी शादी में नाराज फूफा, गुस्सैल बुआ और खिंचाई करने वाले दोस्त व रिश्तेदार भी होते हैं.

शादी के दौरान बारात में इस तरह के कई नमूने आप को बिना ढूंढ़े मिल जाएंगे. शादी में दूल्हा यानि लड़के वाले एक दिन के राजा होते हैं. इसलिए बारात में आए कुछ लोग लड़की वालों की खिंचाई, कई बार बेइज्जती करने का एक भी मौका नहीं छोड़ते.

मस्ती के नाम पर बदतमीजी

दरवाजे पर आई बारात का स्वागत जहां धूमधाम से होता है, वहीं लड़की वालों के मन में एक ही इच्छा और टैंशन होती है कि बस शादी अच्छे से निबट जाए और कोई झगड़ा या टैंशन न हो. लेकिन एक सचाई यह भी है कि जिस शादी में मस्तीमजाक, रूठनामनाना, छेड़छाड़ न हो तो वह शादी भी फीकीफीकी लगती है.

शादी में सालियों के साथ लड़के वालों की मस्ती, देवर का इतराना, देवर के दोस्तों का दुलहन की बहन और उन की सहेलियों को ताड़ना सबकुछ मजेदार होता है लेकिन यह मजा उस वक्त खराब हो जाता है जब मजाक और मस्ती के नाम पर बदतमीजी और गुंडागर्दी शुरू हो जाती है. कहते हैं न कि एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है. ठीक वैसे ही शादी के दौरान 1-2 बदतमीज और झगड़ालू किस्म के लोग पूरी बारात का मजा खराब कर देते हैं. ऐसे में अगर वह कहीं खास रिश्तेदार है तो मामला बिगड़ते देर नहीं लगती.

इसलिए बहुत जरूरी है कि शादी में इस बात का ध्यान रखें कि आप के द्वारा किया गया मजाक किसी के दुख का कारण न बन जाए। मजाक इस हद तक करें जो माहौल को खराब न करें बल्कि खुशनुमा और हंसी के ठहाकों में तबदील कर दें.

मजाक वही करें जिस से किसी का मन आहत न हो

ऐसे लोगों को हरकोई पसंद करता है जिस का सेंस औफ ह्यूमर अच्छा होता है और उस में लोगों को हंसाने की क्षमता होती है। वह हर पार्टी व शादी की जान होता है। लेकिन ऐसे लोगों से लोग दूर भागते हैं जो अच्छेखासे माहौल को बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ते.

आमतौर पर दिल्ली, यूपी, हरियाणा पंजाब, बिहार आदि जगहों में बरातों में कुछ ज्यादा ही हंगामा देखने को मिलता है। सच बात तो यह है कि शादी में अगर कोई हंगामा, धमाल मस्ती न हो तो शादी का मजा ही नहीं होता।

फिल्म ‘हम आप के हैं कौन’ में 

माधुरी दीक्षित सलमान खान को खूब छेङती है. इस फिल्म में गाना ‘जूते दे दो पैसे ले लो’, ‘दीदी, तेरा देवर दीवाना…’ काफी मशहूर हुआ था। शादी के कई गाने फिल्मों में दिखाए गए हैं जिस में लड़कालड़की दोनों तरफ के लोग मस्ती करते, छेड़छाड़ करते नजर आते हैं.

असल जिंदगी में भी यह सब होता है लेकिन यही मस्तीमजाक रहे तो माहौल खुशनुमा नजर आता है, लेकिन मजाकमस्ती के नाम पर बदतमीजी और गुंडागर्दी शुरू हो जाए, लड़कियों को गलत ढंग से टच करना, बौडी शेमिंग करना अगर छेड़छाड़ में शामिल हो जाए तो माहौल खराब होने लगता है. ऐसे में, अच्छीखासी शादी भी लड़ाईझगड़े में तबदील हो जाती है.

इसलिए बहुत जरूरी है कि शादी के वक्त इस बात का खासतौर पर ध्यान रखें कि आप का किया हुआ मजाक किसी के दुख का कारण न बन जाए. मजाक उन्हीं से करें जो मजाक को मजाक की तरह लें और आप पर पलटवार करने की भी ताकत रखें. जो लोग मजाक को गंभीरता से ले लेते हैं और बुरा मान कर दुखी हो जाते हैं ऐसे लोगों के साथ मजाक न करें.

खतरनाक अंजाम

एक की शादी थी और उस की मां मोटी थी। वजन और बुढ़ापे की वजह से वह ठीक से खड़ी भी नहीं हो पा रही थी फिर भी वह सबकुछ भूल कर लड़के वालों के स्वागत की तैयारियों में जुटी हुई थी, तभी बारातियों में से एक बाराती ने उस औरत की बेइज्जती करते हुए कह दिया कि ओ आंटी, यहां ड्रम की तरह क्या खड़ी हो, जाओ जा कर पानी ले कर आओ.

पास ही खड़े उस औरत के बेटे ने उस बाराती को अपनी मां की बेइज्जती करते हुए देखा तो वह आपे से बाहर हो गया और उस बाराती को बुरी तरह पीट डाला.

इसी तरह एक शादी में बारात में शामिल होने वाली 2 बच्चियों को बेहद काली होने की वजह से किसी रिश्तेदार ने बेइज्जती करते हुए बारात में शामिल होने से मना कर दिया, यह कह कर कि अगर यह दोनों कलुआ लड़कियां बारात में शामिल होंगी तो शादी का शो खत्म हो जाएगा. यह सुनते ही वे दोनों लड़कियां रोती हुईं शादी से बाहर चली गईं जिसे देख कर किसी को भी अच्छा नहीं लगा.

कहने का मतलब यह है कि खूबसूरती और बदसूरती कुदरती देन है, लिहाजा उस बारे में कड़वे शब्द बोल कर किसी का मन न दुखी करें बल्कि मस्तीमजाक कर के और शराफत के दायरे में रह कर शादी का मजा लें.

जान पर न बन जाए

शादी के मौके पर ज्यादातर लड़के वाले लड़की वालों की शराफत को उन की कमजोरी समझ लेते हैं और उसी का फायदा उठाते हुए कई बार लड़के वाले लड़की वालों की लड़कियों के साथ बदतमीजी कर बैठते हैं, क्योंकि उस दौरान लड़की वालों को शादी संभालती होती है। इसलिए काफी हद तक वह मजाक या बेइज्जती सहन भी कर लेते हैं। लेकिन कई बार लड़के वालों को इस तरह भद्दा मजाक बहुत भारी भी पड़ जाता है.

हाल ही में सोशल मीडिया पर एक खबर आई थी कि एक शादी के दौरान दूल्हे के दोस्त ने स्टेज पर आ कर दुलहन को ही छेड़ दिया था और दुलहन के साथ गलत तरीके से मस्ती करने लगे थे। यह मजाक दूल्हे को बिलकुल पसंद नहीं आया लेकिन माहौल खराब न हो इसलिए वह चुप था. लेकिन कुछ ही देर में दुलहन का भाई आया और उस लड़के को, जो बदतमीजी कर रहा था बहलाफुसला कर बाहर ले गया. बाद में पता चला की दुलहन के भाई ने उस छेड़छाड़ करने वाले लड़के को जान से मार कर उस के टुकड़ेटुकड़े कर के शादी के पंडाल के पीछे नाले में फेंक दिया था.

शादी के माहौल में लड़की वाले हों या लड़के वाले, कोई भी कमजोर नहीं होता। बस, वे खुशनुमा माहौल रखने के चक्कर में शांत रहते हैं, जिसे उन की कमजोरी बिलकुल न समझें वरना जान के लाले भी पड़ सकते हैं.

इसलिए बहुत जरूरी है कि अगर आप किसी शादी को ऐंजौय करना चाहते हैं तो मजाक करने की हद का हमेशा ध्यान रखें. शादी में किया गया मजाक हंसाने वाला हो न कि बेइज्जती करने वाला या दुख पहुंचाने वाला.

जब Cousin आपस में करें झगड़ा, तो समझदारी से लें काम

जब सारे कजिंस (Cousin) एकसाथ होते हैं तो महफिल जमाने में बड़ा मजा आता है। लेकिन कई बार बात करते हुए आपसी बहस इतनी बढ़ जाती है कि 2 छोटे कजिंस के बीच झगड़ा हो जाता है, ऐसे में बड़ा कजिन ही है जो छोटे कजिंस के बीच झगड़ा सुलझाने में एक पुल की तरह काम कर सकता है.

एक समझदार और परिपक्व व्यक्ति के तौर पर बड़ा कजिन यह सुनिश्चित कर सकता है कि झगड़ा जल्द सुलझ जाए और दोनों के बीच प्यार और समझ बनी रहे.

यहां कुछ आसान तरीके दिए गए हैं, जिन से बड़ा कजिन छोटे कजिंस के झगड़े को सुलझा सकता है :

सुनने और समझने की कोशिश करें

पहले दोनों छोटे कजिंस की अलगअलग सुनें कि झगड़ा क्यों हुआ और उन की क्याक्या परेशानियां हैं. यह जरूरी है कि आप बिना पक्षपाती हुए दोनों की बातों को अच्छे से सुनें. इस से दोनों को महसूस होगा कि उन के मुद्दे को गंभीरता से लिया जा रहा है और आप दोनों के बीच संतुलन बनाए रखेंगे.

आसान और शांत तरीके से बातचीत करें

झगड़े के दौरान अकसर गुस्से या इमोशनल प्रतिक्रिया के कारण बात बिगड़ जाती है.

इसलिए बड़ा कजिन खुद को शांत रखें और छोटे कजिंस से भी शांत हो कर बात करने की सलाह दें.

यह सुनिश्चित करें कि कोई भी गुस्से या उग्र शब्दों का इस्तेमाल न करें. उन्हें समझाएं कि गुस्से में कहा गया शब्द रिश्तों को और भी खराब कर सकता है.

साझा समझौता और हल निकालें

जब दोनों पक्ष अपनीअपनी बातें रख लें, तो अब आप उन्हें एक साझा समाधान पर लाने की कोशिश करें. समझाने की कोशिश करें कि झगड़े का कोई सटीक हल जरूरी है, ताकि दोनों एकदूसरे को समझ सकें और आगे से ऐसा न हो। कभीकभी यह भी जरूरी होता है कि दोनों पक्षों को थोड़ाथोड़ा समझौता करना पड़े, ताकि समस्या का समाधान हो सके.

माफी और सुलह की भावना को बढ़ावा दें

झगड़े के बाद माफी मांगना और एकदूसरे को माफ करना रिश्तों को मजबूत करता है. बड़ा कजिन दोनों को प्रेरित करें कि वे एकदूसरे से माफी मांगे और आगे बढ़ने की कोशिश करें. यह कदम उन के बीच की दूरियों को खत्म कर देगा और रिश्ते को फिर से सुधारने में मदद करेगा.

समय के साथ रिश्ते को ठीक करने की बात करें

बड़े कजिन को समझाना चाहिए कि झगड़े का हल तुरंत नहीं निकलता और रिश्तों को ठीक होने में समय लग सकता है. लेकिन अगर वे एकदूसरे से लगातार बातचीत करते रहें और समझदारी से काम लें, तो धीरेधीरे वे एकदूसरे से फिर से जुड़ पाएंगे.

खेल या अन्य गतिविधियों के जरीए दोस्ती को फिर से बनाएं

एक अच्छी और सकारात्मक गतिविधि, जैसेकि किसी खेल में हिस्सा लेना या साथ में मस्ती करना, दोनों कजिंस को एकदूसरे के करीब ला सकता है. यह तरीका न केवल उन के झगड़े को भुलाने में मदद करता है, बल्कि वे फिर से अच्छे दोस्त बन सकते हैं.

रिश्ते की अहमियत को समझाएं

बड़े कजिन को दोनों को यह समझाने की जरूरत है कि वे एक परिवार का हिस्सा हैं और उन का रिश्ता बहुत कीमती है. रिश्तों में छोटीमोटी अनबन होती रहती है, लेकिन उन पर काबू पा कर हमें हमेशा एकदूसरे का सम्मान करना चाहिए.

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