अभिषेक ऐश्वर्या : सच्चाझूठा प्यार और अलगाव का मनोविज्ञान

देशभर में मेगास्टार अमिताभ बच्चन के पुत्र और पुत्रवधू अभिषेक ऐश्वर्या के अलगाव की कहानी चर्चा का विषय बनी हुई है. जब कोई बड़ा सैलिब्रिटी परिवार टूटने लगता है और सवाल खड़े होने लगते हैं तो लोग उस पर गुफ्तगू करने लगते हैं जोकि स्वाभाविक भी है. इन चर्चाओं के बीच सच और झूठ को समझ पाना आसान नहीं होता.

हम आज प्रयास करेंगे कि सामाजिक स्थितियों में चाहे अभिषेक ऐश्वर्या हों या आम आदमी, प्रेम, प्यार और अलगाव के घटनाक्रम को ले कर कुछ ऐसे मनोवैज्ञानिक सामाजिक तत्त्व आप के सामने प्रस्तुत करें कि आप इसे आसानी से समझ सकें और अपने जीवन को सुखमय बना सकें.

समझने वाली बात यह है कि ‘वह’ एक समय तो अत्यधिक ध्यान देते हैं और आगे दूरी बनाने लगते हैं. ‘वे’ आप को गहराई से जानने में रुचि नहीं रखते हैं.

‘वे’ आप की भावनाओं को खारिज या कम कर देते हैं और ‘वे’ आप की धारणा या याददाश्त को बदलने की कोशिश करते हैं. बातचीत में वे खुद के बारे में ही बात करते हैं, आप के बारे में नहीं. वे सीधे जवाब देने से बचते हैं या जानकारी छिपाते हैं. उन के शब्द उन के कार्यों से मेल नहीं खाते हैं. वे खुल कर दूसरों के साथ फ्लर्ट करते हैं. वे आप के प्रति अपमानजनक, आलोचनात्मक या खारिज करने वाले हैं. वे अकसर योजनाओं को रद्द करते हैं या अपने वादों को पूरा नहीं करते हैं. वे आप को प्रतिबद्धता में दबाव डालते हैं.
वह आप की जरूरतों या निजी स्थान की उपेक्षा करते हैं. वह आप को दोषी ठहराते हैं या मजबूर करते हैं. वह आप की गतिविधियों पर जासूसी करते हैं या निगरानी करते हैं. वह आप को दूसरों के साथ सामान्य रिश्ते निभाने से रोकते हैं.

ऐसी ही कुछ स्थितियां और हैं जिन पर अगर आप नजर डालें तो आप समझ सकते हैं कि परिस्थितियां क्या मोड़ ले रही हैं :

प्रयास की कमी : वे गतिविधियों की शुरुआत नहीं करते हैं या योजना नहीं बनाते.

अविश्वसनीय वादे : वे अकसर अपने वादों को तोड़ते हैं और एक नकली छवि प्रस्तुत करते हैं.

बेईमानी : वे झूठ बोलते हैं या सचाई को छिपाते हैं. स्वार्थ में वे अपने हितों को आप के ऊपर प्राथमिकता देते हैं.

विश्वास की समस्याएं : आप उन के इरादों पर लगातार सवाल उठाते हैं.

थकान महसूस करना : उन के साथ बातचीत करने से आप को भावनात्मक रूप से सहज महसूस नहीं होता है.

याद रखें, हरकोई कभीकभी इन में से कुछ लक्षण दिखाता है, लेकिन लगातार पैटर्न नकली रिश्ते का संकेत हो सकते हैं.

नकली रिश्ते हमारे जीवन में बहुत बड़ा प्रभाव डाल सकते हैं. ये रिश्ते हमें भावनात्मक रूप से थका सकते हैं, हमारे आत्मविश्वास को कम कर सकते हैं और हमें अपने जीवन के उद्देश्य से दूर कर सकते हैं.

लेकिन नकली रिश्तों को पहचानना मुश्किल हो सकता है, खासकर जब हम उन में गहराई से शामिल होते हैं. इसलिए, यह महत्त्वपूर्ण है कि हम नकली रिश्तों के चेतावनी संकेतों को पहचानें और खुद को बचाएं.

नकली रिश्तों में अकसर भावनात्मक असंगति होती है. यदि आप का साथी एक दिन अत्यधिक ध्यान देता है और अगले दिन दूरी बना लेता है, तो यह एक गंभीर संकेत हो सकता है.

स्वार्थ के नाते रिश्ते

यदि आप का साथी आप को गहराई से जानने में रुचि नहीं रखता है, तो यह एक संकेत हो सकता है. यदि वह आप की भावनाओं को खारिज या कम कर देते हैं, तो यह एक और संकेत हो सकता है.

नकली रिश्तों में अकसर संचार में समस्याएं होती हैं. यदि आप का साथी सीधे जवाब देने से बचता है या जानकारी छिपाता है, तो यह एक संकेत हो सकता है.

इस के अलावा, यदि आप का साथी अपने शब्दों और कार्यों में असंगति दिखाता है, तो यह भी एक संकेत हो सकता है. यदि वे आप के साथ खुल कर फ्लर्ट करते हैं या दूसरों के साथ फ्लर्ट करते हैं, तो यह एक और संकेत हो सकता है.

नकली रिश्तों में अकसर सीमाओं की उपेक्षा होती है. यदि आप का साथी आप को प्रतिबद्धता में दबाव डालता है या आप की जरूरतों या निजी स्थान की उपेक्षा करता है, तो यह एक संकेत हो सकता है.

इस के अलावा, यदि आप का साथी आप को गाहेबगाहे गलत ठहराता है या फिर मजबूर करता है, तो यह भी एक संकेत हो सकता है. यदि वे आप की गतिविधियों पर जासूसी करते हैं या निगरानी करते हैं, तो यह एक और संकेत हो सकता है.

नकली रिश्तों में अकसर काररवाई में समस्याएं होती हैं. यदि आप का साथी गतिविधियों की शुरुआत नहीं करता है या योजना नहीं बनाता है, तो यह एक संकेत हो सकता है.

इस के अलावा, यदि आप का साथी अपने वादों को तोड़ता है या आप के साथ विश्वासघात करता है, तो यह भी एक संकेत हो सकता है.

यदि वे आप के साथ सार्वजनिक और निजी व्यवहार में अंतर दिखाते हैं, तो यह एक और संकेत हो सकता है.

नकली रिश्तों में अकसर अंतर्ज्ञान में समस्याएं होती हैं. यदि आप को लगता है कि कुछ सही नहीं है, तो यह एक संकेत हो सकता है.

इस के अलावा, यदि आप को लगता है कि आप का साथी आप के प्रति विश्वासघात कर रहा है, तो यह भी एक संकेत हो सकता है.

यदि आप को लगता है कि आप का साथी आप को भावनात्मक रूप से थका रहा है, तो यह एक और संकेत हो सकता है.

असहज रिश्तों से बचने के लिए यह महत्त्वपूर्ण है कि आप अपने विवेक पर भरोसा करें और अपने साथी के व्यवहार पर ध्यान दें. यदि आप को लगता है कि आप का साथी दुरावछिपाव कर रहा है, तो यह महत्त्वपूर्ण है कि आप अपने रिश्ते को समाप्त करें और स्वयं को बचाएं.

इस के अलावा, यह महत्त्वपूर्ण है कि आप अपनेआप को मजबूत बनाएं और अपने आत्मविश्वास को बढ़ाएं. नकली रिश्तों से बचने के लिए यह महत्त्वपूर्ण है कि आप अपनेआप को प्राथमिकता दें और अपने जीवन के उद्देश्य पर ध्यान दें।

नकली रिश्तों से बचने के लिए कुछ और सुझाव यह हैं :

अपनेआप को जानेंसमझे: नकली रिश्तों से बचने के लिए यह महत्त्वपूर्ण है कि आप अपनेआप को जानें और अपने मूल्यों और सीमाओं को समझें.

सावधानी अनिवार्य: नकली रिश्तों से बचने के लिए यह महत्त्वपूर्ण है कि आप सावधानी से अपने साथी का चयन करें.

संवाद आवश्यक है: नकली रिश्तों से बचने के लिए यह महत्त्वपूर्ण है कि आप अपने साथी के साथ खुल कर और ईमानदारी से संवाद करें.

अपनेआप को प्राथमिकता देनी चाहिए: नकली रिश्तों से बचने के लिए यह महत्त्वपूर्ण है कि आप अपनेआप को प्राथमिकता दें और अपने जीवन के उद्देश्य पर ध्यान दें.

आप को मदद लेनी चाहिए: यदि आप नकली रिश्ते में फंस गए हैं, तो यह महत्त्वपूर्ण है कि आप मदद लें. आप अपने दोस्तों, परिवार के सदस्यों या एक पेशेवर परामर्शदाता से मदद ले सकते हैं.

नकली रिश्तों से बचने के लिए यह महत्त्वपूर्ण है कि आप अपनेआप को मजबूत बनाएं और अपने आत्मविश्वास को बढ़ाएं. आप अपने जीवन के उद्देश्य पर ध्यान दें और अपनेआप को प्राथमिकता दें.

यदि आप नकली रिश्ते में फंस गए हैं, तो यह महत्त्वपूर्ण है कि आप मदद लें और अपनेआप को बचाएं. नकली रिश्तों की समस्या एक हकीकत है, जो हमें अपने अस्तित्व और संबंधों के बारे में सोचने पर मजबूर करता है.

जीवन में नकली रिश्ते एक प्रकार का मायाजाल है, जो अपने सच्चे स्व को भूलने और दूसरों की अपेक्षाओं के अनुसार जीने के लिए मजबूर करता है. यह एक प्रकार की भावनात्मक दासता है, जो हमें अपने जीवन के उद्देश्य से दूर कर देती है. लेकिन नकली रिश्तों से बचने के लिए अपनेआप को जानने और अपने मूल्यों और सीमाओं को समझने की आवश्यकता है. अपने जीवन के उद्देश्य पर ध्यान देना होगा और अपनेआप को प्राथमिकता देनी चाहिए.

Pre-Wedding Shoot सिर्फ दिखावा…. जानें इससे कैसे बचें?

Pre-Wedding Shoot: आजकल शादियों में एक नया ट्रैंड बहुत तेजी से बढ़ रहा है और वह है प्री वैडिंग शूट. शादी से पहले जोड़े प्री वैडिंग शूट करवा लेते हैं और फिर उस वीडियो को शादी के दिन दिखाया जाता है. हालांकि यह ट्रैंड काफी पौपुलर हो चुका है, लेकिन यह जरूरी नहीं है और सिर्फ आप के समय, ऐनर्जी और पैसे की बरबादी है.

असल में शादी के पलों को सादगी से जीना ज्यादा अहम है. इसलिए सिर्फ दिखावे और ट्रैंड्स के चक्कर में न फंसें और थोड़ा स्मार्ट डिसीजन लें.

इसलिए, अगर आप भी इस ट्रैंड का हिस्सा बनना चाहते हैं, तो यह याद रखें कि आप की शादी की असली सुंदरता उन खास पलों में है, जो कैमरे और वीडियो के बिना होते हैं.

पैसे की बरबादी

प्री वैडिंग शूट का खर्चा आप का बजट हिला सकता है. यदि आप शादी की तैयारियों मे पहले ही लाखों रुपए खर्च कर रहे हैं, तो ट्रैंड या अपने दोस्तों की बातों में आ कर प्री वैडिंग शूट करवाने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि प्री वैडिंग शूट में फोटोशूट, मेकअप, आउटफिट्स, और प्रौप्स पर खर्च किया जाता है, जो कई बार बेवजह महंगा हो सकता है।

इस पैसे को कहीं और जैसे, हनीमून या घर की जरूरी चीजों पर खर्च करना कहीं अधिक सही साबित हो सकता है.

बेहतर समय शादी के दिन पर बिताएं

शादी के दिन कपल्स के पास पहले से ही बहुत काम होता है. मसलन, मेहमानों का स्वागत, रस्में और समारोह के दौरान एकदूसरे के साथ क्वालिटी टाइम बिताना. ऐसे में प्री वैडिंग शूट के लिए अतिरिक्त समय निकालना सिरदर्द बन सकता है। इस की बजाय आप शादी के दिन अपने परिवार और दोस्तों के साथ ज्यादा समय बिताएं, जोकि वास्तव में ज्यादा माने रखता है.

सब होता है आर्टिफिशियल

प्री वैडिंग शूट में अकसर जोड़े को तैयार किया जाता है आर्टिफिशियल पोज, मेकअप और सेटिंग्स के साथ, जो असल शादी के अनुभव से अलग होता है,

लोग अकसर उन पलों की तलाश में रहते हैं जब वे स्वाभाविक रूप से खुश होते हैं और बिना किसी तैयारी के अपने रिश्ते की सुंदरता दिखाते हैं. शादी के बाद की तसवीरें और वीडियोज ज्यादा असल और दिल को छूने वाली हो सकती हैं क्योंकि वे रियल होती हैं.

इमोशंस का खोना

कई बार प्री वैडिंग शूट के दौरान कपल्स को कैमरे के सामने आ कर पोज देने के लिए मजबूर किया जाता है, जिस से कुछ असुविधा और तनाव महसूस होता है. असली शादी के पल जब दोनों एकदूसरे के साथ नैचुरल रूप से महसूस करते हैं, वह कहीं ज्यादा खास होते हैं। प्री वैडिंग वेडिंग शूट्स में यह वास्तविकता अकसर खो जाती है क्योंकि यहां पर प्रोफैशनल फोटोग्राफर्स और सैटिंग्स की मदद से सीन तैयार किया जाता है.

असली पलों का नुकसान

शादी एक बहुत ही खास दिन होता है और उस दिन जो जोड़े के बीच असली भावनाएं होती हैं, वह किसी वीडियो में कैद नहीं हो सकतीं. जब शादी के दिन इस वीडियो को चलाया जाता है, तो उस समय असली पलों का मजा लेना मुश्किल हो सकता है.

कई बार यह वीडियो जोड़े की पूरी शादी के अनुभव को गैर स्वाभाविक बना देती है, क्योंकि लोग वीडियो के बारे में सोचने में ही समय गंवा देते हैं और असली शादी के अनुभव का आनंद नहीं ले पाते.

सादगी में सुंदरता

आजकल के ट्रैंड्स के बावजूद सादगी ही असली खूबसूरती है. बिना किसी भारी मेकअप या परफैक्ट पोज के बस स्वाभाविक और साधारण तसवीरें अकसर सब से ज्यादा सुंदर और यादगार होती हैं. प्री वैडिंग शूट की बजाय अपने रिश्ते के छोटेछोटे खूबसूरत पल शादी के दिन कैद करना अधिक अच्छा हो सकता है. इन असल पलों में बिना किसी बनावट के जो आंतरिक सुंदरता होती है, वह सब से अधिक मूल्यवान होती है.

बिन मतलब के पोज

प्री वैडिंग शूट के दौरान कपल्स पर अच्छे पोज देने का प्रैशर होता है और कई बार ऊटपटांग पोज भी देने पड़ते हैं जिस की वजह से वे इतने करीब आ जाते हैं कि अपनी भावनाओं पर कंट्रोल नहीं कर पाते हैं और जो फर्स्ट नाइट का ऐक्साइटमैंट होता है वह सारा बिगड़ जाता है और लड़का व लड़की दोनों ही ऐसा होने के बाद तनाव में आ जाते हैं.

इस के अलावा शूट के दौरान सही लुक और पोज की चिंता कपल्स को मानसिक थकावट का सामना करा सकती है जबकि शादी के दिन कपल्स और उन के परिवार के सदस्य स्वाभाविक रूप से उत्साहित और खुश होते हैं, जिस से हर पल अपनेआप खास बन जाता है.

स्मार्ट तरीके से यादें बनाना

अगर आप प्री वैडिंग शूट से बचना चाहते हैं, तो आप कुछ सरल और रचनात्मक तरीके से अपनी शादी की यादें बना सकते हैं. इस के लिए आप अपने दोस्त या परिवार के सदस्य से किसी खास मौके पर फोटोग्राफी करवा सकते हैं या फिर कुछ खूबसूरत जगहों पर छोटेमोटे फोटो सेशंस ले सकते हैं. इस तरह से आप अपनी यादों को खूबसूरती से संजो सकते हैं, बिना किसी भारी बजट के.

प्राइवैसी का सवाल

कुछ लोग अपनी निजी जिंदगी को सोशल मीडिया पर साझा करने से बचना चाहते हैं. जो सही भी है लेकिन प्री वैडिंग शूट के फोटो और वीडियो अकसर सोशल मीडिया पर साझा किए जाते हैं, जिस से कुछ कपल्स असहज महसूस करते हैं.

अनमोल पल: शादीशुदा विदित और सुहानी के रिश्ते का क्या था अंजाम

‘‘मैं तुम्हें संपूर्ण रूप से पाना चाहता हूं. इस तरह कि मुझे लगे कि मैं ने तुम्हें पा लिया है. अब चाहे तुम इसे कुछ भी समझो. पुरुषों का प्रेम ऐसा ही होता है, जिसे वे प्यार करते हैं उस के मन के साथसाथ तन को भी पाना चाहते हैं. तुम इसे वासना समझती हो तो यह तुम्हारी सोच है. पाना तो स्त्री भी चाहती है, लेकिन कह नहीं पाती. पुरुष कह देता है. तुम इसे पुरुषों की बेशर्मी समझो तो यह तुम्हारी अपनी समझ है, लेकिन जिस्मानी प्रेम प्राकृतिक है. इसे नकारा नहीं जा सकता. यदि तुम मुझ से प्रेम करती हो और तुम ने अपना मन मुझे दिया है तो तन के समर्पण में हिचक कैसी?

‘‘मैं यह बात इसलिए कह रहा हूं क्योंकि मैं नहीं चाहता कि हम एकांत में मिलें, जैसे कि मिलते आए हैं और एकदूसरे को चूमतेसहलाते हद से गुजर जाएं फिर बाद में एहसास हो कि हम ने यह ठीक नहीं किया. हमें मर्यादा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए. अच्छा है कि इस बार हम मानसिक रूप से तैयार हो कर मिलें. वैसे भी कितनी बार हम एकांत के क्षणों में हद से गुजर जाने को बेचैन से रहे हैं, लेकिन मिलने के वे स्थान सार्वजनिक थे, व्यक्तिगत नहीं.

‘‘भले ही उन सार्वजनिक स्थानों पर दुरम्य पहाडि़यों पर उस समय कोई न रहा हो. क्या तुम मुझ से प्यार नहीं करतीं? क्या मुझे पाने की तुम्हारी इच्छा नहीं होती, जैसे मेरी होती है. शायद होती हो, लेकिन तुम कह नहीं पा रही हो, तो चलो, मैं ने कह दिया.

‘‘इस बार हम मिलने से पहले मानसिक रूप से तैयार हो कर मिलें. दो जवां जिस्म बने ही एकदूसरे में समा जाने के लिए होते हैं. मैं ने अपने मन की बात तुम से कह दी. तुम्हारे जवाब की प्रतीक्षा है.’’

टुकड़ोंटुकड़ों में विदित ने अपनी बात एसएमएस के जरिए सुहानी तक पहुंचा दी. अब उसे सुहानी के उत्तर की प्रतीक्षा थी. विदित ने सुहानी को एसएमएस करने से पहले कई बार सोचा कि ऐसा कहना ठीक होगा या नहीं. कहीं सुहानी इस का गलत अर्थ तो नहीं निकालेगी. लेकिन वह क्या करता? कब तक इच्छाओं को मन में दबा कर रखता. कितनी बार दोनों एकांत में मिले. कितनी बार दोनों तरफ से प्रगाढ़ आलिंगन हुए. कितनी बार दोनों बहुत दूर तक निकले और वापस आ गए. वापस आने की पहल भी विदित ने की. सुहानी तो तैयार थी उस रोमांचक यात्रा के लिए. खैर, जो भी हो, अब लिख दिया तो लिख दिया. वही लिखा जो उस के मन में था, दिमाग में था. दोनों की मुलाकात फेसबुक के माध्यम से हुई. विदित ने उस की पोस्ट को हर बार लाइक किया. कमैंट्स बौक्स में जा कर जम कर तारीफ की.

सुहानी भी चौंकी. इतनी रुचि मुझ में कौन ले रहा है, जबकि मैं दिखने में भी साधारण हूं. फेसबुक पर मेरा ओरिजनल फोटो है. मेरा पूरा विवरण भी दर्ज है. कमैंट्स और लाइक तो उसे और भी मिले थे, लेकिन ये कौन जनाब हैं, जो इतना इंट्रस्ट ले रहे हैं. जवाब में उस ने मैसेज भेजा, ‘‘मेरे बारे में सबकुछ जान लीजिए. यदि आप कुछ उम्मीद कर रहे हैं तो.’’ दूसरी तरफ से भी उत्तर आया, ‘‘मैं सबकुछ जान चुका हूं. यदि आप का स्टेटस सही है तो. हां, आप मेरे बारे में जरूर जान लें. मैं ने कुछ छिपाया नहीं. पारिवारिक विवरण, फोटो सभी के बारे में जानकारी है.’’

‘‘मैं ने भी कुछ नहीं छिपाया,’’ मैं ने भी जवाब दिया.

दोनों ने एकदूसरे के बारे में जाना और यह भी जाना कि विदित शादीशुदा था. उस की उम्र 40 साल थी. वह स्वास्थ्य विभाग में अकाउंटैंट था. उस के 2 बच्चे थे, जो प्राइमरी स्कूल में पढ़ रहे थे. विदित की पत्नी कुशल गृहिणी थी. फिर भी विदित जीवन में कुछ खालीपन महसूस कर रहा था. सुहानी 35 वर्ष की अविवाहित महिला थी, जो एक बड़ी कंपनी में अकाउंटैंट थी. उस के घर पर बुजुर्ग मातापिता थे. 2 बहनों की शादी उस ने अपनी नौकरी के बल पर की थी. पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभातेनिभाते न उस ने किसी की तरफ ध्यान दिया, न उस की तरफ किसी ने. उसे लगा मुझ साधारण दिखने वाली युवती पर कौन ध्यान देगा. फिर अब तो विवाह की उम्र भी निकल चुकी है. मातापिता भी नहीं चाहते थे कि कमाऊ लड़की उन्हें छोड़ कर जाए. यह किसी ने नहीं सोचा कि उस की भी कुछ इच्छाएं हो सकती हैं.

‘‘क्या हम कहीं मिल सकते हैं?’’ विदित ने फेसबुक मैसेंजर पर मैसेज भेजा.

‘‘क्यों मिलना चाहते हैं आप मुझ से?’’ सुहानी ने रिप्लाई किया.

‘‘आप मुझे अच्छी लगती हैं.’’

‘‘आप परिवार वाले हैं.’’

‘‘परिवार वाले का दिल नहीं होता क्या?’’

‘‘वह दिल तो आप की पत्नी का है.’’

विदित ने मैसेज नहीं किया. सुहानी को लगा, ‘शायद यह नहीं लिखना चाहिए था, हो सकता है मात्र मिलने की चाह हो. शादी का मतलब यह तो नहीं कि वह किसी से बात ही न करे. मिल न सके. किसी ने तो उसे पसंद किया. उस के सोशल साइड के स्टेटस को, जिस में निराशा भरे चित्रों की भरमार थी. उदास गजलें और गीत थे. किसी ने भी आज तक उसे व्यक्तिगत जीवन और न ही सोशल साइट्स पर इतना पसंद किया था. फिर मिलने में, बात करने में क्या हर्ज है? वह भी तो पहली बार किसी ऐसे व्यक्ति से मिल रही है जो उस से मिलना चाह रहा था.’ सुहानी ने मैसेज किया, ‘‘व्यक्तिगत बात के लिए व्हाट्सऐप ठीक है,’’ अपने व्हाट्सऐप से सुहानी ने विदित के व्हाट्सऐप पर मैसेज किया. अब बातचीत व्हाट्सऐप पर होने लगी.

‘‘मैं आप को क्यों अच्छी लगी?’’ सुहानी ने पूछा.

‘‘पता नहीं, लेकिन आप को देख कर लगा कि मैं आप को तलाश रहा था,’’ विदित ने जवाब दिया.

‘‘माफ कीजिए और आप का परिवार?’’

‘‘परिवार अपनी जगह है. उस का स्थान कोई नहीं ले सकता. वैसे ही जैसे आप की जगह कोई नहीं ले सकता.’’

‘‘मैं कल दोपहर औफिस लंच के समय आप को रीगल चौराहे के पास वाले कौफी हाउस में मिल सकती हूं,’’ सुहानी ने बताया.

‘‘मैं वहां पहुंच जाऊंगा.’’

सुहानी सोचती रही, ‘मिलना चाहिए या नहीं. एक शादीशुदा, बालबच्चेदार व्यक्ति से मिल कर भविष्य के कौन से सपने साकार हो सकते हैं? वैसे भी क्या हो रहा है अभी? फिर मिलना ही तो है. कितनी अकेली रह गई हूं मैं. साथ की सहेलियां शादी कर के अपने ससुराल व परिवार में मस्त हैं. मैं ही रह गई हूं अकेली. घर पर कब किस ने मेरे बारे में, मेरी इच्छाओं के बारे में सोचा है. क्या मैं अपनी मरजी से किसी से मिल भी नहीं सकती? चलो, आगे कुछ न सही लेकिन किसी को कुछ तो पसंद आया मुझ में.’

दोनों तरफ एक उमंग थी. वह नियत समय पर कौफी हाउस में मिले. दोनों को एकदूसरे की यह बात पसंद आई कि जैसा सोशल मीडिया पर अपना स्टेटस व फोटो डाला है, वैसे ही थे दोनों, अन्यथा लोग होते कुछ और हैं और दिखाते कुछ और हैं. कौफी की चुसकियां लेते दोनों एकदूसरे को देखते रहे. आंखों से तोलते रहे. सुहानी सोच रही थी कि क्या बात करूं? कैसे बात करूं? तभी विदित ने कहा, ‘‘आप ने अभी तक शादी क्यों नहीं की?’’

‘‘इस उम्र में शादी,’’ सुहानी ने निराशा भरे स्वर में उत्तर दिया.

‘‘अभी कौन सी आप की उम्र निकल गई. ऐसे भी बहुत से लोग हैं जो 40 के आसपास विवाह करते हैं.’’

‘‘मैं ने सब की तरफ ध्यान दिया लेकिन मेरी तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया.’’

‘‘तो अब ध्यान दिए देता हूं,’’ विदित ने हंसते हुए कहा, ‘‘आप दिखने में अच्छी हैं. अपने पैरों पर खड़ी हैं. कौन आप से शादी करने से इनकार कर सकता है. अच्छा बताइए, आप को कैसा लड़का पसंद है?’’

सुहानी ने हंसते हुए कहा, ‘‘इस उम्र में शादी के लिए लड़का नहीं पुरुष ढूंढ़ना पड़ेगा, वह भी अधेड़.’’

‘‘मेरी तरह,’’ विदित बोला.

‘‘हां, खैर ये सब छोडि़ए. आप अपनी सुनाइए. मिल कर कैसा लगा? क्या चाहते हैं आप मुझ से,’’ एक ही सांस में सुहानी कह गई.

‘‘देखिए, मैं ने अपने बारे में कुछ नहीं छिपाया आप से. सुनते हुए अजीब तो लगेगा आप को लेकिन क्या करूं, दिल के हाथों मजबूर हूं. आप मुझे अच्छी लगीं.’’

‘‘आमनेसामने भी,’’ सुहानी ने कहा.

‘‘जी, आमनेसामने भी?’’ विदित बोला.

‘‘मुझे भी आप की ईमानदारी अच्छी लगी. आप ने भी कुछ नहीं छिपाया.’’

‘‘मेरे मन में कोई चोर नहीं है, तो छिपाऊं क्यों? हां, मैं शादीशुदा हूं, 2 बच्चे हैं मेरे, लेकिन यह कोई गुनाह तो नहीं. फिर यह किस किताब में लिखा है कि शादीशुदा व्यक्ति को कोई अच्छा लगे तो वह उसे अच्छा भी न कह सके. कोई उसे पसंद आए तो वह उस पर जाहिर भी न कर सके,’’ विदित ने अपनी बात रखते हुए कहा.

‘‘हां, हम अच्छे दोस्त भी तो हो सकते हैं,’’ सुहानी ने कहा तो विदित चुप रहा. इस बीच दोनों ने एकदूसरे के मोबाइल नंबर ले लिए, जो पहले से ही सोशल साइट्स से उन को मालूम थे.

‘‘हमें मोबाइल पर ही बात करनी चाहिए. चाहे तो एसएमएस के जरिए भी बात कर सकते हैं, लेकिन व्यक्तिगत बातें सोशल साइट्स पर बिलकुल नहीं,’’ सुहानी ने बात आगे बढ़ाई.

‘‘आप ठीक कह रही हैं. इस का मतलब यह हुआ कि आप मुझ से आगे बात करेंगी.’’

‘‘हां, बात करने में क्या बुराई है?’’

‘‘और मिलने में?’’

‘‘मिल भी सकते हैं, लेकिन मैं देर रात तक घर से बाहर नहीं रह सकती. कमाती हूं तो क्या? हूं तो महिला ही न. घर पर जवाब देना पड़ता है. शादी नहीं हुई तो क्या? पूछने को मातापिता, नजर रखने को अड़ोसपड़ोस तो है ही,’’ सुहानी बोली.

‘‘हां, मैं भी आप से ऐसे समय मिलने को नहीं कहूंगा जिस में आप को समस्या हो,’’ विदित ने कहा.

सुहानी का लंच टाइम खत्म हो चुका था. वह दफ्तर जाने के लिए खड़ी हो गई.

‘‘अच्छा लगा आप से मिल कर,’’ सुहानी ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘मुझे भी,’’ विदित खुशी जाहिर करते हुए बोला, ‘‘आज मेरी एक इच्छा पूरी हो गई. आगे न जाने कब दोबारा मिलना होगा.’’

‘‘कल ही,’’ सुहानी मुसकराते हुए बोली.

‘‘क्या, सच में?’’ विदित ने खुशी से कहा.

‘‘हां, यहीं मिलते हैं,’’ सुहानी ने वादा किया.

‘‘थैंक्स,’’ विदित ने धन्यवाद भरे भाव से कहा.

‘‘और बात करनी हो तो मोबाइल पर?’’ सुहानी ने पूछा.

‘‘कभी भी.’’

‘‘मैं रात 10 बजे के बाद अपने कमरे में आ जाती हूं. आप के साथ तो पत्नी व बच्चे होते होंगे,’’ सुहानी ने पूछा.

‘‘नहीं, बच्चे तो अपनी मां के साथ अलग कमरे में सोते हैं. मांबेटों के बीच मुझे कौन पूछता है?’’ निराशा भरे स्वर में विदित बोला.

‘‘मैं अकेला सोता हूं कमरे में. आप बात कर सकती हैं,’’ और वे विदा हो गए. दूसरे दिन वे फिर मिले. दोनों मिलने के लिए इतने बेकरार थे कि बड़ी मुश्किल से दिन व रात कटी. ऐसा लगा जैसे दूसरा दिन आने में वर्षों लग गए हों. बात कैसे शुरू करें? क्या कहें एकदूसरे से. सो राजनीति, साहित्य, सिनेमा, संगीत की बातें होती रहीं.

‘‘तुम्हारे फेसबुक अकाउंट पर मुकेश के दर्द भरे गीतों का बड़ा संकलन है,’’ विदित ने सुहानी से कहा.

‘‘हां, मुझे दर्द भरे गीत बहुत पसंद हैं,  खासकर मुकेश के और तुम्हें?’’

‘‘मेरी तो समझ में आता है मेरा एकांत, मेरा अकेलापन, इसलिए ये गीत मुझे खुद से जुड़े हुए प्रतीत होते हैं. लेकिन आप को क्यों पसंद हैं?’’ सुहानी ने पूछा.

‘‘शायद दर्द मेरा पसंदीदा विषय है,’’ विदित ने कहा.

‘‘लेकिन तुम से मिलने के बाद मुझे प्रेम भरे गीत भी अच्छे लगने लगे हैं,’’ सुहानी ने कहा, ‘‘एक बात पूछूं. आप घर पर दर्द भरे गीत सुनते हैं?’’

‘‘नहीं, अब नहीं सुनता. पत्नी को लगता है कि मुझे अपना कोई पुराना प्रेमप्रसंग याद आता है. तभी मैं ऐसे गाने सुनता हूं और फिर घरपरिवार की जिम्मेदारियों में कुछ सुननेपढ़ने का समय ही कहां मिलता है?’’ विदित ने उदासी भरे स्वर में कहा.

‘‘आप की पत्नी से बनती नहीं है क्या?’’ सुहानी ने पूछा.

‘‘नहीं, ऐसा नहीं है. पहले सब ठीक था, लेकिन अब वह मां पहले है, पत्नी बाद में. मैं ने पिछली बार जिक्र किया था अकेले सोने के विषय में. बच्चे मां के बिना नहीं सोते. दोनों बच्चे मां के अगलबगल लिपट कर सोते हैं. पत्नी दिन भर घर के कामकाज और दोनों बच्चों की जिम्मेदारियां संभालते हुए इतनी थक जाती है कि सोते ही गहरी निद्रा में चली जाती है.

‘‘एकदो बार मैं ने उस से प्रणय निवेदन भी किया, तो पत्नी का जवाब था कि अब मैं 2 बच्चों की मां हूं, बच्चों को छोड़ कर आप के पास आना ठीक नहीं लगता. बच्चे जाग गए तो क्या असर पड़ेगा उन पर? आप दूसरे कमरे में सोइए. आप कहेंगे तो मैं बच्चों को सुला कर थोड़ी देर के लिए आ जाऊंगी. वह आई भी थकीहारी तो बस मुरदे की तरह पड़ी रही. उस ने कहा जो करना है, जल्दीजल्दी करो. शारीरिक संबंध पूर्ण होते ही वह तुरंत बच्चों के पास चली गई. कभीकभी ऐसा भी हुआ कि हम संभोग की मुद्रा में थे, तभी बच्चे जाग गए और वह मुझे धकियाती हुई कपड़े संभालती बच्चों के पास तेजी से चली गई. बस, फिर धीरेधीरे इच्छाएं मरती रहीं. तुम्हें देखा तो इच्छाएं फिर जाग उठीं. एक बात कहूं, बुरा तो नहीं मानोगी?’’

‘‘नहीं, कहो,’’ सुहानी बोली.

‘‘फेसबुक पर जब तुम से बात होने लगी तो मेरे दिलोदिमाग में तुम समा चुकी थीं. एक बार पत्नी को कुछ जबरन सा कमरे में ले कर आया. संबंध बनाए, लेकिन दिलदिमाग में तुम्हारी ही तसवीर थी. अचानक मुंह से तुम्हारा नाम निकल गया.

‘‘पत्नी ने दूसरे दिन समझाते हुए कहा, ‘यह सुहानी कौन है? रात को उसी को याद कर के मेरे साथ संभोग कर रहे थे आप. जमाना अब पहले जैसा नहीं रहा. किसी ऐसीवैसी लड़की के चक्कर में मत फंस जाना, जो संबंध बना कर ब्लेकमैल करे. न मानो तो जेल भिजवा दे. फिर इस परिवार का, इस घर का, बच्चों का क्या होगा? समाज में बदनामी होगी सो अलग. सोचसमझ कर कदम उठाना. मैं पत्नी हूं आप की, मेरा अधिकार तो कोई नहीं छीन सकता, लेकिन अपनी हवस के कारण किसी जंजाल में मत उलझ जाना.’’

‘‘मैं ऐसी नहीं हूं,’’ सुहानी ने कहा. उसे लगा कि विदित उसे सुना कर ये सब कह रहा है.

‘‘अरे… मैं तो तुम्हें सिर्फ पत्नी की बात बता रहा हूं. मुझे तुम पर भरोसा है. हम ने ईमानदारी से अपना सच एकदूसरे को बताया है. मुझे तुम पर पूरा भरोसा है. क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा है.’’

‘‘आजमा कर देख लो,’’ सुहानी ने दृढ़ स्वर में कहा. लंच टाइम खत्म हो चुका था. उन्हें मजबूरन अपनी बात समाप्त कर के उठना पड़ा. इस वादे के साथ कि वे फिर मिलेंगे. वे फिर मिले. उन की मुलाकातों का सिलसिला बढ़ता गया. मुलाकातों के स्थान भी बदलने लगे. कभी वे पार्क में टहलते तो कभी किसी रेस्तरां में साथ बैठ कर भोजन करते. कभी साथ मूवी देखते.

‘‘मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं. अकेले में जहां हम दोनों के अलावा कोई तीसरा न हो,’’ विदित ने कहा.

‘‘मेरी एक सहेली कंपनी के काम से बाहर गई है. उस के फ्लैट की चाबी मेरे पास है. हम थोड़े समय के लिए वहां जा सकते हैं,’’ सुहानी ने कहा.

‘‘किसी ने हमें देख लिया तो,’’ विदित ने शंका व्यक्त की.

‘‘मैं किसी की परवा नहीं करती,’’ सुहानी ने दृढ़ स्वर में कहा.

‘‘कब चलना है?’’ विदित ने पूछा.

‘‘आज, अभी. 1 घंटे का लंच है. बात करेंगे, चाय पीएंगे और जो कहना है कह लेना.’’ कौफी हाउस से टैक्सी ले कर वे सीधे फ्लैट पर पहुंचे.  सुहानी ने चाय बनाई और विदित को दी. विदित ने सुहानी का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘मैं तुम से प्यार करता हूं.’’

‘‘मैं भी.’’ विदित ने सुहानी को अपने शरीर से सटा लिया. दोनों एकदूसरे से लिपटे हुए थे. सांसों में तेजी आ गई थी, विदित ने सुहानी के माथे पर अपने होंठ रख दिए. सुहानी ने स्वयं को विदित को सौंप दिया. दोनों एकदूसरे में समाने का प्रयास करने लगे.

अचानक पता नहीं क्यों, विदित ने खुद को रोक लिया. सुहानी ने बड़ी मुश्किल से स्वयं को नियंत्रित किया. वह जाना चाहती थी सारे तटबंधों को तोड़ कर, लेकिन विदित ने हांफते हुए कहा, ‘‘नहीं, इस तरह नहीं. तुम्हें यह न लगे कि मैं ने तुम्हारा गलत फायदा उठाया.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है विदित,’’ सुहानी निश्चिंत हो कर बोली.

‘‘सुहानी,’’ विदित ने सुहानी के हाथों को चूमते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हें प्यार दे सकता हूं, अधिकार नहीं.’’

सुहानी ने विदित से लिपटते हुए कहा, ‘‘मुझे प्यार के अलावा कुछ और चाहिए भी नहीं.’’ विदित ने सुहानी के होंठों पर अपने होंठ रखे. सुहानी ने फिर खुद को समर्पित किया, लेकिन विदित ने फिर स्वयं को रोक लिया.

‘‘एक बात पूछूं विदित? ’’सुहानी ने पूछा.

‘‘पूछो.’’

‘‘अपनी पत्नी से अंतरंग क्षणों में तुम मेरी कल्पना करते हो?’’

‘‘हां.’’

‘‘तुम मेरा शरीर चाहते हो?’’

‘‘हां, लेकिन मन के साथ. केवल तन नहीं.’’

‘‘मैं तुम्हारे साथ गहराई तक उतरने को तैयार हूं. फिर तुम पीछे क्यों हट रहे हो?’’

‘‘यही सोच कर कि मैं तुम्हें क्या दे पाऊंगा. न कोई सुनहरा भविष्य, न कोई अधिकार. अपनों के सामने तुम्हारा क्या परिचय दूंगा. इन तथाकथित अपनों के सामने शायद तुम्हें पहचानने से भी इनकार कर दूं. कहीं यह तुम्हारा शोषण तो नहीं होगा,’’ सकुचाते हुए विदित बोला. ‘‘मेरे पास भविष्य के लिए नौकरी है. रही अधिकार की बात, तो मैं जानती हूं कि तुम विवाहित हो. मैं तुम से ऐसी कोई मांग नहीं करूंगी, जिस से तुम स्वयं को धर्मसंकट में फंसा महसूस करो. मैं तो तुम्हारे साथ खुशी के कुछ पल बिताना चाहती हूं. ऐसे पल जिन पर हर स्त्री का अधिकार होता है, लेकिन मेरी नौकरी के कारण मेरे परिवार के लोग ही मुझे अपने स्त्रीत्व से वंचित रखना चाहते हैं और मैं ये पल अब चुराना चाहती हूं, छीनना चाहती हूं.’’

विदित खामोश रहा. विदित को सोच में डूबा देख कर सुहानी ने पूछा, ‘‘क्या बात है?’’ ‘‘कुछ नहीं,’’ विदित ने कहा, ‘‘मैं यह सोच रहा था और इसलिए सोच कर तुम से कह रहा हूं कि अपने सुख की तलाश में कहीं हम वासना के दलदल में तो नहीं भटकना चाह रहे. तुम्हारी खुशियां मेरे साथ हमेशा नहीं रहेंगी. मैं तुम्हें पाना तो चाहता हूं, लेकिन मैं तुम से प्यार भी करता हूं. स्त्रीपुरुष जब तनमन के साथ एक होते हैं तो बंध जाते हैं एकदूसरे से. मैं तो फिर भी पुरुष हूं. शादीशुदा हूं. तुम मुझ से बंध कर कहीं अकेली न रह जाओ,’’ विदित कहते हुए चुप हो गया. सुहानी चुपचाप सुनती रही, कुछ नहीं बोली.

‘‘मैं चाहता हूं कि तुम्हारे योग्य कहीं एक अच्छा लड़का, चाहे वह अधेड़ हो या फिर विदुर, तलाशा जाए, जिस के साथ तुम जीवन भर खुश रह सको. तुम्हारा अधूरापन हमेशा के लिए दूर हो जाए.’’ ‘‘तुम्हें क्या लगता है, विदित? मैं ने ये सब सोचा नहीं होगा. इस काम में मेरी एक प्रिय सहेली ने मेरी मदद भी की. मैरिज ब्यूरो से संपर्क भी किया, कुछ रिश्ते आए भी, लेकिन वे सब रिश्ते ऐसे आए जो मु झे पसंद नहीं थे. वही कुंडली मिलान, दहेज, घरपरिवार, जातिधर्म, गोत्र. मेरा मन नहीं मिला किसी से. एकदो मेरे मातापिता से मिले भी तो मातापिता ने उन्हें टाल दिया और मु झे सम झाया कि इस उम्र में क्यों शादीब्याह के चक्कर में पड़ रही हो. अपने मातापिता का ध्यान रखो. 70-75 की उम्र में मातापिता से घर नहीं छोड़ा जा रहा और बेटी को तपस्या करने की सलाह दे रहे हैं…’’ कहते हुए सुहानी की आंखों में आंसू आ गए.

विदित ने आंसू पोंछते हुए सुहानी से कहा, ‘‘मेरा इरादा तुम्हारा दिल दुखाना नहीं था. मैं तो तुम्हारे भले के लिए यह कह रहा था.’’

‘‘तुम डर रहे हो मु झ से,’’ सुहानी बोली.

‘‘नहीं, तुम्हें सम झा रहा हूं,’’ विदित  आश्वस्त करते हुए बोला.

‘‘इतना आगे आने के बाद,’’ सुहानी ने कहा.

‘‘अभी इतने भी आगे नहीं आए कि वापस न लौट सकें.’’

‘‘तुम लौटना चाहते हो तो लौट जाओ.’’

‘‘मैं नहीं लौटना चाहता.’’

‘‘मैं भी नहीं लौटना चाहती,’’ फिर दोनों गले मिले और मुसकराते हुए अपनेअपने गंतव्य की तरफ चले गए. रात को विदित को सुहानी का खयाल आया. उसे वे पल याद आए जब एकांत पहाड़ी पर उस ने सुहानी को सिर से ले कर पैर तक चूमा था. उस के शरीर के ऊपरी वस्त्र हटा कर उस के गोपनीय अंगों से छेड़छाड़ करने लगा था और सुहानी मादक सिसकारियां लेते हुए उस का साथ दे रही थी. ‘उफ्फ, मैं क्यों पीछे हट गया. मिलन पूर्ण हो जाता तो यह तड़प, यह बेकरारी तो न सताती. शरीर इस तरह भारी तो न महसूस होता.’ स्वयं को इस भारीपन से मुक्त करने के लिए विदित अपनी पत्नी के पास पहुंचा. पत्नी ने  झिड़कते हुए कहा, ‘‘सो जाइए. आज मेरा मूड नहीं है.’’ विदित अपमानित सा अपने कमरे में आ गया. उस ने मोबाइल उठा कर सुहानी को कई टुकड़ों में एसएमएस किया. अब उसे सुहानी के उत्तर की प्रतीक्षा थी. सुहानी का उत्तर आ गया. विदित ने मोबाइल के एसएमएस बौक्स पर उंगली रखी.

‘‘जब मैं तुम्हारे साथ बहने को तैयार थी तो तुम पीछे हट गए और मु झे दुनियादारी समझाते रहे. क्या तुम मुझ से इसलिए शारीरिक सुख चाहते हो, क्योंकि यह सुख तुम्हें अपनी पत्नी से नहीं मिल रहा है. मैं कोई बाजारू औरत नहीं हूं. यह सुख तो चंद रुपए दे कर कोई वेश्या भी तुम्हें दे सकती है. तुम्हारा बारबार पीछे हटना यह साबित करता है कि तुम डरते हो मु झ से, अपनी पत्नी से, अपने परिवार से, जबकि मैं ने पहले ही तुम से कह दिया था कि मु झे सिर्फ प्यार चाहिए, अधिकार नहीं.

‘‘तुम ने उन अनमोल पलों को न जाने किस डर से गंवा दिया. वह भी ऐसे समय में जब मैं तुम्हारे साथ आगे बढ़ रही थी. उन क्षणों में मैं ने खुद को कितना अपमानित महसूस किया था और अब तुम मुझ से शरीर के ताप से पीडि़त हो कर मिलन की मांग कर रहे हो. क्या इसे तुम प्यार कहते हो या सिर्फ जरूरत? मैं तुम्हारी ही भाषा में बात कर रही हूं. औरत जब किसी के प्रेम में डूबती है तो फिर आगेपीछे नहीं सोचती. जिसे प्रेम करती है उस पर भरोसा करते हुए आगे बढ़ती है. तुम इतना सोचते हो मेरे साथ होते हुए भी, सब के बारे में, मेरे बारे में भी सब सोचने को रहता है बस, मैं ही नहीं रहती.’’

विदित ने एसएमएस को 4-5 टुकड़ों में पढ़ा. उसे उस पर गुस्सा आ गया. उस ने सीधा नंबर लगाया और कहा, ‘‘तुम्हारी हां है या ना.’’ उधर से सुहानी ने उत्तर दिया, ‘‘इतनी मानसिक तैयारी से शादी की जाती है, सुहागरात मनाई जाती है, प्यार नहीं किया जाता.’’ विदित को गुस्सा आ गया. उस के मुंह से निकल गया, ‘‘शराफत के कारण पीछे रह गया. नहीं तो बहुत पहले ही सबकुछ कर चुका होता. अब पूछ रहा हूं तो भाव खा रही हो.’’

दूसरी तरफ से मोबाइल बंद हो गया. विदित को खुद पर गुस्सा आया. ‘उफ्फ, यह क्या कह दिया मैं ने. किस बदतमीजी से बात की मैं ने. मेरे बारे में क्या सोच रही होगी सुहानी,’ विदित ने सोचा और फिर नंबर घुमाने लगा, लेकिन सुहानी ने फोन काट दिया. फिर विदित ने एसएमएस किया.

‘‘क्यों तड़पा रही हो? गुस्से में निकल गया मुंह से. इस के लिए मैं माफी मांगता हूं,’’ सुहानी ने एसएमएस पढ़ कर रिप्लाई किया.

‘‘क्या चाहते हो?’’ सुहानी  झुं झला कर बोली.

‘‘तुम्हें चाहता हूं,’’ विदित बोला.

‘‘क्यों चाहते हो?’’

‘‘प्यार करता हूं तुम से.’’

‘‘मु झ से या मेरे शरीर से?’’

‘‘तुम्हारा शरीर भी तो तुम ही हो.’’

‘‘तो ऐसा कहो, शरीर चाहिए मेरा.’’

‘‘तुम गलत सम झ रही हो.’’

‘‘मैं ठीक सम झ रही हूं.’’

‘‘तुम्हारी हां है या ना?’’

‘‘जिद क्यों कर रहे हो?’’

‘‘मैं तुम्हें पाना चाहता हूं.’’

‘‘तुम्हारे साथ बिताए पलों के लिए मैं कोई भी कीमत देने को तैयार हूं.’’

‘‘चलो, कीमत ही सम झ कर दे दो.’’

‘‘ठीक है, बताओ कब, कहां आना है?’’ सुहानी ने कहा.

विदित को सम झ नहीं आ रहा था कि जो औरत कल तक उस के लिए बिछने के लिए तैयार थी, जिस के हितअहित के बारे में इतना सोचा कि सुख की चरम अवस्था से लौट कर वापस आ गया. आज वही औरत इस तरह की बात कर रही है. इन औरतों को सम झना बहुत मुश्किल है. एक बार संबंध बनने के बाद अपनेआप काबू में आ जाएगी . स्त्रीपुरुष के बीच जिस्मानी संबंध बनने जरूरी हैं. तभी स्त्री पूर्णरूप से समर्पित हो कर रहेगी. एक बार संबंध बन गए तो फिर वह उसी की राह ताकती रहेगी. खाली प्रेम तो दिल की बातें हैं. आज है कल नहीं है. विदित यों निकला जैसे शिकार पर निकल रहा हो. विदित ने विभागीय औडिट टीम के लिए 3 कमरे होटल रीगल में बुक करवाए. रात 12 बजे की ट्रेन से औडिट टीम जाने वाली थी. उस ने होटल के मैनेजर को फोन कर के कहा, ‘‘एक कमरा कल सुबह तक बुक रहेगा. 2 कमरे खाली कर रहा हूं.’’

‘‘यस सर.’’

विदित के बताए पते पर रात 10 बजे सुहानी पहुंची. घर से वह यह कह कर निकली कि साहब जरूरी काम से बाहर गए हैं. घर पर उन की पत्नी अकेली हैं इसलिए मु झे साथ रहने के लिए उन की पत्नी ने बुलाया है. साहब का निवेदन था, इनकार नहीं कर सकती. विदित होटल के बाहर सुहानी की प्रतीक्षा कर रहा था. सुहानी को देख कर उस के चेहरे पर चमक आ गई.  कमरे के अंदर पहुंचते ही विदित ने दरवाजा बंद किया और सुहानी को जोर से भींच कर कहा, ‘‘आई लव यू.’’ इस के बाद बिना सुहानी से पूछे वह सुहानी के जिस्म को चूमने लगा. सुहानी कहती रही कि इतनी रात को न आने के लिए मैं ने तुम्हें पहले ही मना किया था और तुम ने भी वादा किया था. मु झे  झूठ बोल कर आना पड़ा, लेकिन विदित का ध्यान सुहानी की बातों पर बिलकुल नहीं था. वह तो सुहानी के शरीर के लिए बेकरार था. वह सुहानी के नाजुक अंगों को चूमता रहा, सहलाता रहा. उस के बदन को  झिंझोड़ता रहा. सुहानी कहती रही, ‘‘तुम ने फोन पर मु झ से इस तरह बात की जैसे मैं कोई वेश्या हूं. तुम्हें मेरा शरीर चाहिए था तो लो यह रहा शरीर. बु झा लो अपनी वासना की आग. मेरे मन में तुम्हारे प्रति जो था वह खत्म हो चुका है. मैं सिर्फ उन पलों की कीमत चुकाने आई हूं, जो मेरे लिए तुम्हारे साथ अनमोल थे. मेरे जीवन के वे सब से अद्भुत क्षण. मेरे स्त्रीत्व होने के वजूद भरे पल.’’ विदित सुहानी की कोई बात नहीं सुन रहा था, न सम झ रहा था. वह सुहानी के जिस्म से खेल रहा था. सुहानी शव के समान पड़ी रही. उस के अंदर कोई भाव नहीं था, शरीर में कोई हरकत नहीं थी, लेकिन इस ओर विदित का ध्यान नहीं गया. वह तो शिकारी बना हुआ था. सुहानी के शरीर को चीरफाड़ रहा था, सुहानी के अंदर न रस था न आनंद. वह निर्जीव सी पड़ी हुई थी और विदित उस के अंदर प्रवेश कर खुद को जीता हुआ महसूस कर रहा था. उस का खुमार उतर चुका था. अब आग जल कर राख हो चुकी थी.

विदित की नींद खुली तो सुबह हो चुकी थी. उसे सुहानी कहीं नहीं दिखाई दी. न कमरे में न वाशरूम में. उस ने सुहानी को फोन लगाया. सुहानी का मोबाइल बंद था. उस ने मैनेजर से फोन पर पूछा, ‘‘मैडम कहां गईं?’’

‘‘सर, वे तो रात को ही चली गई थीं.’’ मैनेजर बोला.

‘‘कितने बजे?’’ विदित भौचक रह गया.

‘‘तकरीबन 12 बजे,’’ मैनेजर ने कहा.

‘‘कोई मैसेज दिया, कुछ कह कर गई वह?’’ विदित ने पूछा.

‘‘सर, आप के लिए एक पत्र छोड़ कर गई हैं,’’ मैनेजर ने विदित को बताया.

‘‘मेरे कमरे में पहुंचा देना,’’ विदित ने आदेश दिया.

‘‘जी सर,’’ मैनेजर बोला.

थोड़ी देर बाद दरवाजे की घंटी बजी, ‘‘अंदर आ जाओ,’’ विदित ने कहा, तो वेटर ने अंदर आ कर एक लिफाफा दिया. लिफाफा ले कर विदित ने कहा, ‘‘ठीक है, जाओ.’’

विदित ने लिफाफा खोल कर पत्र पढ़ा, ‘तुम्हारे दिए अनमोल पलों की कीमत चुका दी है मैं ने और तुम ने भी अच्छी तरह वसूल ली है. तुम कुछ भी हो सकते हो, लेकिन प्रेमी नहीं हो सकते. मैं ने तुम्हें तन दे दिया है जिस की तुम्हें जरूरत थी. मन अपने साथ ले कर जा रही हूं. औरत के शरीर को पा कर तुम यह सम झो कि तुम ने औरत पर नियंत्रण पा लिया है तो तुम्हारी और बलात्कारी की सोच में कोई फर्क नहीं रहा. प्रेम में देह कोई माने नहीं रखती, लेकिन जिसे देह से ही प्रेम हो वह तो महज व्यभिचारी हुआ. मैं ने प्रेम किया था तुम से. देह तो स्वयं ही समर्पित हो जाती, क्योंकि प्रेम प्रकट करने का माध्यम है देह, लेकिन तुम ने स्त्री के मन और तन को अपनी इच्छा और सुविधानुसार अलगअलग कर के देखा. तुम्हारी खोज एक शरीर की खोज थी. इस के लिए इतना परेशान होने की जरूरत नहीं थी. चले जाते किसी वेश्या के पास. मेरी खोज प्रेम की खोज थी. जो मु झे तुम से नहीं मिला. दोबारा मिलने व संपर्क करने की कोशिश मत करना.

‘पुन: प्रेम की खोज में,

सुहानी.’

विदित पत्र पढ़ कर सिर पकड़ कर बैठ गया और सोचने लगा, ‘उफ्फ, यह मैं ने क्या कर दिया? तन पा लिया और मन खो दिया. कुछ पल पाए और पूरा जीवन खो दिया. जीत कर भी हार गया मैं. ‘प्रेम में जीतहार जैसी बातें सोच कर प्रेम को अपमानित कर दिया मैं ने. सामने अमृतकुंड था और प्यास बु झाने के लिए खारा पानी पी लिया मैं ने. सुहानी का सबकुछ मेरा था, मन भी और तन भी, लेकिन क्षण भर की वासना में प्रेम की कीमत लगा ली मैं ने. जो सहज और स्वाभाविक रूप से मेरा था उसी को नीलाम कर दिया मैं ने. अपने ही प्रेम की बोली लगा कर हमेशा के लिए खो दिया सुहानी को. अपने प्रेम को अपमानित और प्रताडि़त कर दिया मैं ने. कितना बेवकूफ था मैं, जो सोचने लगा कि औरत को जीता जा सकता है. संपत्ति सम झ लिया था मैं ने औरत को. ‘सुहानी के लिए शरीर प्रेम करने का माध्यम था और मैं शरीर की तृप्ति के लिए कितनी ओछी हरकत कर बैठा सुहानी के साथ. सुहानी ने प्रेम में बिताए अनमोल पलों के लिए शरीर सौंप दिया मु झे. जैसे शव को सौंपते हैं अग्नि में.’ बहुत देर तक उदास और गमगीन बैठा रहा विदित. दोबारा सुहानी से मिलने की हिम्मत नहीं थी उस में और सुहानी प्रेम के अनमोल क्षणों की तलाश में निकल पड़ी. उसे किसी बात का दुख नहीं था. वह ऐसे पुरुष के साथ आगे नहीं बढ़ना चाहती थी जो प्रेम में आगे बढ़ते हुए पीछे हट जाए. जो स्त्रीपुरुष के अंतरंग क्षणों में भलाबुरा सोचते हुए पीछे हट जाए और यह भूल जाए कि इन अनमोल पलों में आगे बढ़ते हुए पीछे हटने से स्त्री अपमानित होती है. सुहानी को प्रेम के वे पल इतने भा गए थे कि उन पलों को वह फिर से जीने के लिए प्रेम की तलाश में निकल पड़ी. उम्र के इस दौर में प्यार मिलता है या नहीं यह अलग बात है, लेकिन सुहानी की तलाश जारी थी. उसे विश्वास था कि वह प्रेम के अनमोल पलों को खोज लेगी.

Family Story : तुरुप का पता

‘‘क्या हुआ? इस तरह उठ कर क्यों चला आया?’’ कनक को अचानक ही उठ कर बाहर की ओर जाते देख कर विमलाजी हैरानपरेशान सी उस के पीछे चली आई थीं.

‘‘मैं आप के हावभाव देख कर डर गया था. मुझे लगा कि आप कहीं रिश्ते के लिए हां न कर दें इसलिए उठ कर चला आया. मैं ने वहां से हटने में ही अपनी भलाई समझी,’’ कनक ने समझाया.

‘‘हां कहने में बुराई ही क्या है? विवाह योग्य आयु है तुम्हारी. कितना समृद्ध परिवार है. हमारी तो उन से कोई बराबरी ही नहीं है. उन की बेटी स्वाति, रूप की रानी न सही पर बुरी भी नहीं है. लंबी, स्वस्थ और आकर्षक है. और क्या चाहिए तुझे?’’ विमला देवी ने अपना मत प्रकट किया था.

‘‘मां, आप की और मेरी सोच में जमीनआसमान का अंतर है. लड़की सिर्फ स्नातक है. चाह कर भी उसे कहीं नौकरी नहीं मिलेगी.’’

‘‘लो, उसे भला नौकरी करने की क्या जरूरत है? रमोलाजी तो कह रही थीं कि स्वाति के मातापिता बेटी को इतना देंगे कि सात पीढि़यों तक किसी को कुछ करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी. ऐसे परिवार की लड़की नौकरी क्यों करेगी?’’

‘‘नौकरी करने के लिए योग्यता चाहिए, मां. मुझे तो इस में कोई बुराई भी नहीं लगती. आजकल सभी लड़कियां नौकरी करती हैं. मुझे अमीर बाप की अमीर बेटी नहीं, अपने जैसी शिक्षित, परिश्रमी और ढंग की नौकरी करने वाली पत्नी चाहिए.’’

‘‘अपना भलाबुरा समझो कनक बेटे. तुम क्या चाहते हो? तुम और तुम्हारी पत्नी नौकरी करेगी और मैं जैसे अभी सुबह 5 बजे उठ कर सारा काम करती हूं. तुम सब भाईबहनों के टिफिन पैक करती हूं, तुम्हारे विवाह के बाद भी मुझे यही सब करना पड़ा तो मेरा तो बेटा पैदा करने का सुख ही जाता रहेगा,’’ विमला ने नाराजगी जताई थी.

‘‘वही तो मैं समझा रहा हूं, मां. मेरे विवाह की ऐसी जल्दी क्या है? मुझे तो लड़की वालों का व्यवहार बड़ा ही संदेहास्पद लग रहा है. जरा सोचो, मां, इतना संपन्न परिवार अपनी बेटी का विवाह मुझ जैसे साधारण बैंक अधिकारी से करने को क्यों तैयार है?’’

‘‘तुम स्वयं को साधारण समझते हो पर बैंक मैनेजर की हस्ती क्या होती है इसे वे भलीभांति जानते हैं.’’

‘‘हमारे परिवार के बारे में भी वे अच्छी तरह से जानते होंगे न मां, मेरे 2 छोटे भाई अभी पढ़ रहे हैं. दोनों छोटी बहनें विवाह योग्य हैं.’’

‘‘कहना क्या चाहते हो तुम? इन सब का भार क्या तुम्हारे कंधों पर है? तुम्हारे पापा इस शहर के जानेमाने चिकित्सक थे. तुम्हारे दादाजी भी यहां के मशहूर दंत चिकित्सक थे. इतनी बड़ी कोठी बना कर गए हैं तुम्हारे पूर्वज. बाजार के बीच में बनी दुकानों से इतना किराया आता है कि तुम कुछ न भी करो तो भी हमारा काम चल जाए.’’

‘‘मां, पापा और दादाजी थे, अब नहीं हैं. हमारी असलियत यही है कि 6 लोगों के इस परिवार का मैं अकेला कमाऊ सदस्य हूं.’’

‘‘बड़ा घमंड है अपने कमाऊ होने पर? इसलिए स्वाति के परिवार के सामने तुम ने मेरा अपमान किया. मुझ से बिना कुछ कहे ही तुम्हारे वहां से चले आने से मुझ पर क्या बीती होगी यह कभी नहीं सोचा तुम ने,’’ विमलाजी फफक उठी थीं.

‘‘मां, मैं आप को दुख नहीं पहुंचाना चाहता था पर जरा सोचो, विवाह के बाद कोई मुझे आप से छीन कर अलग कर दे तो क्या आप को अच्छा लगेगा?’’ कनक ने विमलाजी के आंसू पोंछे थे.

‘‘कनक, यह क्या कह रहा है तू?’’ वे चौंक उठी थीं.

‘‘वही, जो मैं वहां से सुन कर आ रहा हूं. आप सब हम दोनों को अकेला छोड़ कर चले गए थे. हम ने अपने भविष्य पर विस्तार से चर्चा की. मेरी और स्वाति की सोच में इतना अंतर है कि आप सोच भी नहीं सकतीं. वह यदि सातवें आसमान पर है तो मैं रसातल में.’’

‘‘ऐसा क्या कहा उस ने?’’

‘‘पूछ रही थी कि सगाई की अंगूठी कहां से खरीदोगे. हाल ही में किसी फिल्मी हीरोइन का विवाह हुआ है. कह रही थी उस की अंगूठी 3 करोड़ की थी. मैं कितने की बनवाऊंगा.’’

‘‘फिर तुम ने क्या कहा?’’

‘‘मैं ने हंस कर बात टाल दी कि बैंक का अफसर हूं. बैंक का मालिक नहीं और बैंक में डकैती डालने का मेरा कोई इरादा नहीं है.’’

कनक के छोटे भाई तनय व विनय और बहनें विभा और आभा खिलखिला कर हंस पड़े थे.

‘‘तुम लोगों को हंसी आ रही है और मेरा चिंता के कारण बुरा हाल है,’’ विमला ने सिर थाम लिया था.

‘‘छोटीछोटी बातों पर चिंता करना छोड़ दो, मां, सदा खुश रहना सीखो, दुख भरे दिन बीते रे भैया…’’ तनय ने अपने हलकेफुलके अंदाज में कहा.

‘‘चिंता तो मेरे जीवन के साथ जुड़ी है बेटे. आज तेरे पापा होते तो ऐसा महत्त्वपूर्ण निर्णय वे ही लेते पर अब तो मुझे ही सोचसमझ कर सब कार्य करना है.’’

‘‘और क्या कहा स्वाति ने, भैया?’’ विभा ने हंसते हुए बात आगे बढ़ाई थी.

‘‘मैं बताती हूं दीदी, विवाह परिधान किस डिजाइनर से बनवाया जाएगा. गहने कहां से और कितने मूल्य के खरीदे जाएंगे. हनीमून के लिए हम कहां जाएंगे. स्विट्जरलैंड या स्वीडन,’’ आभा ने हासपरिहास को आगे बढ़ाया.

‘‘कनक भैया, सावधान हो जाओ. दीवाला निकलने वाला है तुम्हारा. यहां तो उलटी गंगा बह रही है. पहले लड़की वाले दहेज को ले कर परेशान रहते थे. यहां तो शानशौकत वाले विवाह का सारा भार तुम्हारे कंधों पर आ पड़ा है,’’ विनय भी कब पीछे रहने वाला था.

‘‘चुप रहो तुम सब. यह उपहास का विषय नहीं है. हम यहां गंभीर विषय पर विचारविमर्श कर रहे हैं. विभा और आभा तुम्हारी कल से परीक्षाएं हैं, जाओ उस की तैयारी करो. यहां समय व्यर्थ मत गंवाओ. तनय, विनय, तुम लोग भी जाओ, अपना काम करो और हमें कुछ देर के लिए अकेला छोड़ दो,’’ विमला ने चारों को डपटा.

चारों चुपचाप उठ कर चले गए थे.

‘‘हां, अब बताओ और क्या बातें हुईं तुम दोनों के बीच. पता तो चले कि वह लड़की हमारे साथ हिलमिल पाएगी या नहीं,’’ एकांत पाते ही विमला ने पूछा था.

‘‘मां, विनय, तनय, विभा और आभा की कल्पना की हर बात पूछी थी उस ने. पर एक और बात भी पूछी थी जो उन चारों तो क्या आप की कल्पना से भी परे है और वह बात बता कर मैं आप को दुखी नहीं करना चाहता.’’

‘‘ऐसा क्या कहा था उस ने? अब बता ही डाल. नहीं तो मुझे चैन नहीं पड़ेगा.’’

‘‘जाने दो न मां, क्या करोगी सुन कर? इस बात को यहीं समाप्त करो. इसे आगे बढ़ाने  का कोई लाभ नहीं है. कहते हैं न कि जिस गांव में जाना नहीं उस का पता क्या पूछना.’’

‘‘प्रश्न बात आगे बढ़ाने का नहीं है. पर सबकुछ पता हो तो निर्णय लेना सरल हो जाता है.’’

‘‘तो सुनो मां. स्वाति पूछ रही थी कि विवाह के बाद हम कहां रहेंगे?’’

‘‘कहां रहेंगे का क्या मतलब है? हमारी इतनी बड़ी कोठी है. कहीं और रहने का प्रश्न ही कहां उठता है,’’ विमलाजी का स्वर अचरज से भरा था.

‘‘वह कह रही थी कि सास, ननद और देवरों के चक्कर में पड़ कर मैं अपना जीवन बरबाद नहीं करना चाहती. उसे तो स्वतंत्रता चाहिए, पूर्ण स्वतंत्रता,’’ कनक ने अंतत: बता ही दिया था.

‘‘हैं, जो लड़की विवाह से पहले ही ऐसी बातें कर रही है वह विवाह के बाद तो जीना दूभर कर देगी. अच्छा किया जो तुम उठ कर चले आए. ऐसे संस्कारों वाली लड़की से तो दूर रहना ही अच्छा है.’’

‘‘मां, इस बात को यहीं समाप्त कर दो. मेरे विवाह की ऐसी जल्दी क्या है आप को. विभा व आभा के भी कुछ प्रस्ताव हैं, उन के बारे में सोचिए न,’’ कनक ने उठने का उपक्रम किया था.

विमलाजी शून्य में ताकती अकेली बैठी रह गई थीं. उन्होंने सुना अवश्य था कि आधुनिक लड़कियां न झिझकती हैं न शरमाती हैं. जो उन्हें मन भाए उसे छीन लेती हैं. नहीं तो पहली ही भेंट में स्वाति की कनक से इस तरह की बातों का क्या अर्थ है? शायद उस के मातापिता उस की इच्छा के खिलाफ उस का विवाह करना चाह रहे हैं और उस ने ऐसे अनचाहे संबंध से पीछा छुड़ाने का यह नायाब तरीका ढूंढ़ निकाला हो.

‘‘क्या हुआ, मां? किस सोच में डूबी हो,’’ विमलाजी को सोच में डूबे देख विभा ने पूछा था.

‘‘कुछ नहीं रे. ऐसे ही थोड़ी थक गई हूं.’’

‘‘आराम कर लो कुछ देर. खाना मैं बना देती हूं,’’ विभा उन का माथा सहलाते हुए बोली थी.

‘‘नहीं बेटी, तुम्हारी कल परीक्षा न होती तो मैं स्वयं तुम से कह देती. मैं कुछ हलकाफुलका बना लेती हूं, तुम जा कर पढ़ाई करो,’’ विमलाजी स्निग्ध स्वर में बोली थीं.

वे धीरे से उठ कर रसोईघर में जा घुसी थीं. उन्होंने अपने थकने की बात विभा से कही थी पर सच तो यह था कि आज की घटना ने उन का दिल दहला दिया था. अपने पति डा. उमेश को असमय ही खो देने के बाद उन्होंने स्वयं को शीघ्र ही संभाल लिया था. अपने बच्चों के भविष्य के लिए वे चट्टान की भांति खड़ी हो गई थीं. वे स्वयं पढ़ीलिखी थीं, चाहतीं तो नौकरी कर लेतीं पर अपने हितैषियों की सलाह मान कर उन्होंने घर पर ही रहने का निर्णय लिया था.

उमेश की बहन डा. नीलिमा ने उन्हें बड़ा सहारा दिया था पर पिछले 5 वर्ष से वे अपने परिवार के साथ लंदन में बस गई थीं. पहले उन्होंने सोचा था कि उन से बात कर के ही मन हलका कर लें. पर शीघ्र ही उस विचार को झटक कर अपने कार्य में व्यस्त हो गईं. यह सोच कर कि इतनी दूर बैठी नीलिमा दीदी भला उन्हें क्या सलाह दे सकेंगी. वैसे भी जब कनक खुद इस विवाह के लिए तैयार नहीं है तो इस बात को आगे बढ़ाने का अर्थ ही क्या है?

दूसरे दिन रमोलाजी का फोन आ गया.

‘‘विमलाजी, कल आप अचानक ही उठ कर चली आईं, पीछे मुड़ कर भी नहीं देखा, राव दंपती तो हक्केबक्के रह गए.’’

‘‘बात यह है रमोलाजी कि यह संबंध हमें जंचा नहीं. इसीलिए हम चले आए.’’

‘‘क्यों नहीं जंचा, विमलाजी, आप आज्ञा दें तो मैं स्वयं आ जाऊं. राव दंपती तो स्वयं आना चाह रहे थे पर मैं ने ही उन्हें मना कर दिया और समझाया कि पहले मैं जा कर वस्तुस्थिति का पता लगाती हूं. आप लोग बाद में आइएगा. आप कहें तो अभी आ जाऊं.’’

‘‘अभी तो मैं जरा व्यस्त हूं. बच्चों के कालेज जाने का समय है. आप 2 घंटे के बाद आ जाइए. तब तक मैं अपना काम समाप्त कर लूंगी,’’ विमलाजी बोली थीं.

‘‘किस का फोन था, मां?’’ फोन पर मां का वार्त्तालाप सुन कर कनक के कान खड़े हो गए थे.

‘‘रमोलाजी थीं. घर आ कर मिलना चाहती हैं.’’

‘‘टाल देना था मां. आप तो रमोलाजी को अच्छी तरह से जानती हैं. जोडि़यां मिलाना उन का धंधा है. वे आप को ऐसी पट्टी पढ़ाएंगी कि आप मना नहीं कर सकेंगी.’’

‘‘वे तो इसे समाज की सेवा कहती हैं. तुम ने सुना नहीं था कि कल कैसे अपनी प्रशंसा के पुल बांध रही थीं. उन के ही शब्दों में उन्होंने जितनी जोडि़यां मिलाई हैं सब बहुत सुखी हैं.’’

‘‘वही तो मैं कह रहा हूं, मां, आप बातों में उन से जीत नहीं सकतीं. आप अभी फोन कर के कोई बहाना बना दीजिए,’’ कनक ने सुझाव दिया था.

‘‘मैं रमोलाजी को व्यर्थ नाराज नहीं करना चाहती. उन की अच्छेअच्छे परिवारों में पैठ है. चुटकी बजाते ही रिश्ते पक्के करवाने में उन का कोई सानी नहीं है. फिर विभा और आभा का विवाह भी करवाना है. तुम कहां टक्कर मारते घूमोेगे?’’

‘‘ठीक है. खूब स्वागतसत्कार कीजिए रमोलाजी का पर सावधान रहिए और दृढ़ता से काम लीजिए. विभा की बात भी उन के कान में डाल दीजिए. अच्छा तो मैं चलता हूं.’’

रमोलाजी आई तो विमलाजी पूरी तरह से चाकचौबंद थीं. रमोलाजी की लच्छेदार बातों से वे भलीभांति परिचित थीं अत: मानसिक रूप से भी तैयार थीं.

‘‘क्या हुआ विमला भाभी? कल आप दोनों बिना कुछ कहेसुने राव साहब के यहां से उठ कर चले आए. जरा सोचिए, उन्हें कितना बुरा लगा होगा. मुझ से तो कुछ कहते ही नहीं बना,’’ रमोलाजी ने आते ही शिकायत की थी.

‘‘कनक से स्वाति की बातचीत हुई थी. उसे लगा कि उन दोनों के विचारों में बहुत अंतर है. इसलिए वह उठ कर चला आया तो उस के साथ मैं भी चली आई. विवाह तो उसी को करना है.’’

‘‘कैसी बात करती हो, भाभी. इतने अच्छे रिश्ते को क्या आप यों ही ठुकरा दोगी. मैं तो आप के भले के लिए ही कह रही थी. यों समझो कि लक्ष्मी स्वयं चल कर आप के घर आ रही है और आप उसे ठुकरा रही हैं?’’

‘‘पैसा ही सबकुछ नहीं होता, दीदी. और भी बहुत कुछ देखना पड़ता है.’’

‘‘तो बताओ न, बात क्या है? क्यों कनक वहां से उठ कर चला आया?’’

‘‘क्या कहूं, जो कुछ कनक ने बताया वह सुन कर मैं तो अब तक सकते में हूं,’’ विमलजी रोंआसी हो उठी थीं.

‘‘ऐसा क्या कह दिया स्वाति ने? मैं तो उस को बहुत अच्छी तरह से जानती हूं. मेरी बेटी की वह बहुत अच्छी सहेली है. जिजीविषा तो उस में कूटकूट कर भरी है. यह मैं इसलिए नहीं कह रही कि मैं उस का रिश्ता कनक के लिए लाई हूं. तुम उसे अपनी बहू न बनाओ तब भी मैं उस के बारे में यही कहूंगी.’’

‘‘आप तो स्वाति की प्रशंसा के पुल बांध रही हैं पर कनक तो उस से मिल कर बहुत निराश हुआ है.’’

‘‘क्यों? उस की निराशा का कारण क्या है?’’

‘‘बहुत सी बातें हैं. स्वाति उस से पूछ रही थी कि वह सगाई की अंगूठी कहां से और कितने की बनवाएगा, विवाह की पोशाक किस डिजाइनर से बनवाई जाएगी. ऐसी ही और भी बातें.’’

‘‘बस, इतनी सी बात? उस ने अंगूठी और पोशाक के बारे में पूछ लिया और कनक आहत हो गया? हर युवती का अपने विवाह के संबंध में कुछ सपना होता है. उस ने प्रश्न कर लिया तो क्या हो गया? भाभी, आजकल हमारा और तुम्हारा जमाना नहीं रहा, आजकल की युवतियां बहुत मुखर हो गई हैं. वे अपनी इच्छा जाहिर ही नहीं करतीं उसे पूरा भी करना चाहती हैं.’’

‘‘पर उन इच्छाओं को पूरा करने के क्रम में परिवार को कष्ट होता है तो होता रहे? स्वाति ने तो कनक से साफ कह दिया कि वह विवाह के बाद संयुक्त परिवार में नहीं रहेगी.’’

‘‘तोे कनक ने क्या कहा?’’

‘‘वह तो हतप्रभ रह गया, कुछ सूझा ही नहीं उसे.’’

‘‘क्या कह रही हो, भाभी? उसे साफ शब्दोें में कहना चाहिए था कि वह परिवार का बड़ा बेटा है. परिवार से अलग होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता. स्वाति ने तो अपने मन की बात कह दी, कोई दूसरी लड़की विवाह के बाद यह मांग करेगी तो क्या करेगा कनक और क्या करेंगी आप?’’

‘‘क्या कहूं, मुझे तो कुछ सूझ ही नहीं रहा है,’’ विमलाजी की आंखें छलछला आईं, स्वर भर्रा गया.

‘‘इतना असहाय अनुभव करने की आवश्यकता नहीं है. घरपरिवार आप का है. इसे सजाने व संवारने में अपना जीवन होम कर दिया आप ने. दृढ़ता से कहो कि इस तरह के निर्णय बच्चे नहीं लेते बल्कि आप स्वयं लेती हैं.’’

‘‘मेरे कहने से क्या होगा, दीदी. लड़की यदि झगड़ालू हुई तो हम सब का जीना दूभर कर देगी. कनक तो इसी कारण नौकरी वाली लड़की चाहता है. उसे तो झगड़ा करने का समय ही नहीं मिलेगा.’’

‘‘पर स्वाति तो नौकरी वाली युवतियों से भी अधिक व्यस्त रहती है. राव साहब के रेडीमेड कपड़ों के डिपार्टमैंट में महिला और बाल विभाग स्वाति संभालती है, उस के डिजाइनों को लाखों के आर्डर मिलते हैं.’’

‘‘पर कनक तो कह रहा था कि स्वाति केवल स्नातक है. उसे कहीं नौकरी तक नहीं मिलेगी.’’

‘‘हां, पर फैशन डिजाइनिंग में स्नातक है. इतना बड़ा व्यापार संभालती है तो नौकरी करने का प्रश्न ही कहां उठता है. मुझे लगता है कनक ने उस से कुछ पूछा ही नहीं, बस उस की सुनता रहा.’’

‘‘थोड़ा शर्मीला है कनक, पहली ही मुलाकात में किसी से घुलमिल नहीं पाता,’’ विमलाजी संकुचित स्वर में बोली थीं.

‘‘होता है, भाभी. पहली मुलाकात में ऐसा ही होता है. सहज होने में समय लगता है. मैं तो कहती हूं दोनों को मिलनेजुलने दो. एकदूसरे को समझने दो. आप भी ठोकबजा कर देख लो, सबकुछ समझ में आए तभी अपनी स्वीकृति देना.’’

‘‘आप की बात सच है. मैं कनक से कहूंगी कि स्वाति और वह फिर मिल लें. पर दीदी, सबकुछ कनक के हां कहने पर ही तो निर्भर करता है. तुम तो जानती ही हो, आज के समय में बच्चों पर अपनी राय थोपना असंभव है.’’

‘‘बिलकुल सही बात है पर तुम एक बार राव दंपती से मिल तो लो. उस दिन तुम और कनक अचानक उठ कर चले आए तब वे बहुत आहत हो गए थे.’’

‘‘उस के लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूं पर कनक अचानक ही उठ कर चल पड़ा तो मुझे उस का साथ देना ही पड़ा.’’

‘‘चलो, कोई बात नहीं है. जो हो गया सो हो गया. जब आप को सुविधा हो बता देना. मैं उसी के अनुसार राव दंपती से आप की भेंट का समय निश्चित कर लूंगी,’’ रमोलाजी ने सुझाव दिया था.

‘‘एक बार कनक से बात कर लूं फिर आप को फोन कर दूंगी.’’

‘‘एक बात कहूं, भाभी? बुरा तो नहीं मानोगी.’’

‘‘कैसी बातें करती हो, दीदी? आप की बात का बुरा मानूंगी? आप ने तो कदमकदम पर मेरा साथ दिया है. वैसे भी बच्चों के विवाह भी तो आप को ही करवाने हैं.’’

‘‘तो सुनो, समय बहुत खराब आ गया है. इसलिए सावधानी से सोचसमझ कर अपने निर्णय स्वयं लेना सीखो. आजकल के युवा अपने पैरों पर खड़े होते ही स्वयं को तीसमारखां समझने लगते हैं. मेरा तो अपने काम के सिलसिले में हर तरह के परिवारों में आनाजाना लगा रहता है. राजतिलकजी का नाम तो आप ने सुना ही होगा?’’

‘‘उन्हें कौन नहीं जानता,’’ विमला के नेत्र विस्फारित हो गए थे.

‘‘उन का इकलौता बेटा सुबोध, हर लड़की में कोई न कोई कमी निकाल देता था. फिर अपनी मरजी से स्वयं से 10 साल बड़ी अपनी अफसर से विवाह कर लिया. लड़की भी पहले की विवाहित थी. 2 बच्चे भी थे. दोनों परिवार बरबाद हो गए. राजतिलकजी का तो दिल ही टूट गया.’’

‘‘सच कह रही हो, दीदी, आजकल की औरतों ने तो हयाशरम बेच ही खाई है,’’ विमलाजी ने हां में हां मिलाई थी.

‘‘सो मत कहो भाभी. सैनी साहब का नाम तो सुना ही होगा आप ने?’’

‘‘नहीं तो, क्यों?’’

‘‘उन के बेटे निखिल ने तो अपने पुरुष मित्र से ही विवाह कर लिया. बेचारे सैनी साहब तो शरम के मारे अपना घर बेच कर चले गए,’’ रमोलाजी ने बात आगे बढ़ाई थी.

‘‘लगता है अब घोर कलियुग आ गया है,’’ विमलाजी ने इतना बोल कर दोनों हाथों से अपना सिर थाम लिया.

‘‘इसीलिए तो कहती हूं, भाभी. सावधान हो जाओ और होशियारी से काम लो. बच्चे आखिर बच्चे हैं…दुनियादारी की बारीकियां वे भला क्या समझें,’’ रमोलाजी विदा लेते हुए बोली थीं.

रमोलाजी चली गई थीं पर विमला को सकते में छोड़ गईं, ‘‘ठीक कहती हैं रमोला. निर्णय तो स्वयं लेंगी. कनक क्या जाने जीवन की पेचीदगियों को.’’

रमोलाजी तुरुप का पत्ता चल गई थीं और जानती थीं कि उन का दांव कभी खाली नहीं जाता.

Bridal Skin Care : शादी के दिन दिखना चाहती हैं बेहद खूबसूरत, तो अपनी रूटीन में करें ये बदलाव

Writer- Monika Aggarwal

Bridal Skin Care : शादी का दिन हर लड़की के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण और खास होता है और वह इस दिन सबसे सुंदर व अपनी त्वचा को सबसे चमकती हुई पाना चाहती है. लेकिन शादी की थकाऊ  कई रस्में भी कतार में होती हैं. इसलिए  अपनी शादी से पहले होने वाली रस्मों व शादी वाले दिन सुंदर दिखने के लिए आप को पहले ही कुछ तैयारियां करनी होंगी. हालांकि यह सुंदर बनने की प्रक्रिया महीने पहले ही शुरू हो जानी चाहिए, यदि आप की भी शादी होने जा रही है तो निम्न दी गई गाइडलाइन्स का जरूर पालन करें.

आज के जमाने में जहां शादी से महीनों पहले डर्मेटोलॉजिस्ट के पास जाना व प्री ब्राइडल पैकेज के लिए ब्यूटी सैलून में जाना अनिवार्य होता है. तो आप को सदियों से चले आ रहे घरेलू उपायों को नजरंदाज नहीं करना चाहिए. कुछ लोग सोचते हैं कि आज की सदी में यह सब काम नहीं करते. परंतु यह उपाय आज के समय भी बहुत असरदार माने जाते हैं. पुराने समय में जब मॉडर्न स्किन केयर रूटीन व स्किन के विशेषज्ञ उपलब्ध नहीं होते थे तो उस समय दुल्हनों को अपनी शादी में सुंदर दिखने के लिए प्राकृतिक तरीकों का ही सहारा लेना पड़ता था.

हालांकि प्राकृतिक चीजें अपना असर थोड़ा धीरे दिखाती हैं. इसलिए मेकअप के जैसे हमें स्किन केयर के लिए भी अपनी स्किन का टाइप पता करना होगा ताकि उस हिसाब से हम कोई इंग्रेडिएंट चुन सकें. कुछ फल व सब्जियां आप की स्किन पर गलत असर भी दिखा सकती हैं.

इसलिए आप को शुरू में थोड़ी मात्रा के साथ ट्रॉयल भी करना होगा. अतः दुल्हन बनने जा रही लड़कियों को अपना नेचुरल स्किन केयर व प्री ब्राइडल रेमेडी शादी से 3-4 महीने पहले शुरू करनी होगी ताकि आप की बॉडी उन इंग्रेडिएंट्स को एब्सोरब कर ले और आप को कोई साइड इफेक्ट न हो.

प्री ब्राइडल स्किन केयर

सबसे पहले आप को पर्याप्त मात्रा में नींद लेनी बहुत आवश्यक होती है. आप को दिन के लगभग 8 घंटे सोना चाहिए. यह आप के चेहरे से डलनेस आप की आखों से काले घेरे व आप के चेहरे पर पफीनेस आने से बचाएगा.

खान पान का भी आप को विशेष ध्यान रखना होगा. अपनी शादी से लगभग 5-6 महीने पहले से ही आप को एक पोषक व बैलेंस डाइट लेनी शुरू कर देनी चाहिए. आप की डाइट में फल, सब्जियां, जूस व हेल्दी चीजें शामिल होनी चाहिए. ताकि आप के फेस को ग्लो मिले.

जंक फूड, शुगर, शराब, देर रात तक पार्टी करना या देर रात तक जगना आदि को बंद कर देना चाहिए. सिट्रिक फलों से भी दूर रहें. यूक्लिप्टिस या रोजमेरी तेल का अपनी स्किन पर प्रयोग करें.

हर रोज कम से कम 2-3 लीटर पानी पीना चाहिए. ताकि आप के शरीर से टॉक्सीन बाहर निकल सकें और आप की स्किन हाइड्रेटेड रह सके. फिट व शेप में रहने के लिए कुछ महीनों पहले आप को अच्छा खासा वर्कआउट भी शुरू कर देना चाहिए.

वर्कआउट करने के कुछ फायदे यह भी हैं की आप का पेट नहीं फूलता, आप की स्किन को पर्याप्त पोषण मिल जाता है जिसके कारण वह पहले से अधिक निखर जाती है. ग्लोइंग स्किन पाने के लिए अपनी स्किन के हिसाब से अलग अलग प्रकार के मास्क व स्किन केयर रूटीन को भी फॉलो करे.

नॉर्मल स्किन के लिए

नींबू का रस व एक मुट्ठी मुल्तानी पाउडर व दो चम्मच पानी मिला कर एक पेस्ट बना लें. व उसे अपने चेहरे पर अप्लाई करें. यह आप की स्किन टोन को एक जैसा बनाएगा. यदि आप इस पेस्ट में हल्दी की चुटकी व केसर भी मिला देते हैं तो आप का निखर दोगुना हो जाएगा. नींबू के रस की बजाए आप मुल्तानी मिट्टी का प्रयोग कॉफी या पुदीने के साथ भी कर सकते हैं. पुदीने के मिश्रण से आप को एक्ने से छुटकारा मिलेगा और कॉफी के मिश्रण से आप की स्किन एक्सफोलिएट होगी.

ड्राई स्किन के लिए

शहद को दही व थोड़े से गुलाब जल के साथ मिला कर अपने फेस व गरदन पर लगा लें. यह मास्क अपने फेस पर लगाने से पहले आप को अच्छे से मुंह धो लेना चाहिए और टोनर का भी प्रयोग कर लेना चाहिए. यह मास्क आप की स्किन को और अधिक निखारेगा और उसे मॉइश्चराइज करेगा. यह आप की स्किन को हाइड्रेटेड रखने में भी सहायता करता है.

कॉम्बिनेशन स्किन के लिए

जिन्हे अपनी स्किन टाइप का अच्छे से पता नहीं है उन्हें अपनी जरूरत के हिसाब से अलग अलग तेल का फेस मास्क का प्रयोग करना चाहिए.

नारियल का तेल :

यह आप की स्किन को नरिश करता है. यह आप की स्किन के पोर्स को रिपेयर करता है, आप की स्किन को हाइड्रेट करता है. यह आप की स्किन को सूरज की हानिकारक किरणों से भी बचाता है. इन्फ्लेमेशन व एक्नें को भी ठीक करता है.

टी ट्री एसेंशियल ऑयल :

यह आप की ऑयली स्किन के लिए एक बेहतरीन ऑयल है जो आप की स्किन को टाईट करने के साथ साथ आप के पोर्स को भी रिपेयर करता है. यह आप के पिंपल्स को भी ठीक करने में मददगार है.

हल्दी :

आदि चम्मच हल्दी लें और उसे बेसन के साथ मिला कर एक पेस्ट बना लें. इसका एक स्मूथ पेस्ट बनाने के लिए दूध का प्रयोग करें. इसमें कुछ बूंदे गुलाब जल की डालें और इसे अब अपने फेस व गरदन पर लगा लें. इसे सूखने का इंतजार करें और फिर गुनगुने पानी से धो लें.

शहद :

शहद आप की स्किन के लिए एक मॉइश्चराइजर का काम करता है. आप अपनी स्किन पर शहद को डायरेक्ट लगा सकते हैं और उसकी थोड़ी देर मसाज कर के उसे हल्के गर्म पानी से धो सकते हैं.

बेसन व हल्दी :

बेसन व हल्दी के पेस्ट का भी आप अपनी पूरी बॉडी पर प्रयोग कर सकते हैं. हल्दी आप को निखार देगी और बेसन के पार्टिकल्स स्क्रब करने में मदद करेंगे. इस पेस्ट को अप्लाई करें व सूखने के बाद हल्के गर्म पानी से धो लें. आप का निखार बढ़ जाएगा.

फेस के साथ साथ आखों का ख्याल रखना भी एक दुल्हन के लिए बहुत आवश्यक होता है. तो आइए जानते हैं आप अपनी आखों की केयर कैसे कर सकते हैं.

  • हर रोज 15-20 मिनट के लिए खीरे को अपनी आंखों पर रखें. इससे डार्क सर्कल कम होंगे.
  • आप टी बैग को भी अपनी आंखों के नीचे डायरेक्ट रूप से रख सकते हैं. इसमें एंटी आक्सिडेंट होते हैं जो आप की आखों को मुलायम बनाएंगे.
  • आलू विटामिन सी से भरपूर होते हैं. आलू की स्लाइस को आप या तो डायरेक्ट अपनी आंखों पर रख सकते हैं या फिर इसका जूस निकल कर अपनी आंखों पर कुछ देर के लिए लगा सकते हैं. इससे डार्क सर्कल कम होंगे.
  • केवल उपर लिखित रूटीन ही आप की स्किन के लिए जरूरी नहीं है बल्कि आप को मेकअप हमेशा सोने से पहले उतारना चाहिए. दिन में अपने मुंह को दो बार धोना चाहिए. टोनर व मॉइश्चराइजर का प्रयोग भी करना चाहिए. दिन में दो बार फेस मास्कस का प्रयोग करना चाहिए. स्किन को एक्सफोलिएट करना चाहिए व सीरम का भी प्रयोग करना चाहिए.

एक्सफोलिएट आप के स्किन केयर का एक जरूरी पार्ट होता है. यह आप की डैड स्किन को निकाल कर आप की स्किन को टाईट करता है. एक्सफोलिएट करने की निम्न रेमेडी पर आप को जरूर गौर करना चाहिए.

  • एलो वेरा जेल को शहद में मिला कर व इसमें टी ट्री ऑयल का प्रयोग करके स्किन पर लगाने से एक्ने कम होते हैं.
  • ओट्स को ब्राउन शुगर व नारियल के तेल के साथ मिला कर एक अच्छा स्क्रब बनाया जा सकता है.
  • बादामों को पीस कर उसे दूध में मिला ने से एक बेहतरीन स्क्रब तैयार हो सकता है.
  • कॉफी पाउडर को चीनी में मिला कर उसमे पानी व नींबू एड करने से भी स्क्रब बनाया जा सकता है.
  • हमारे फेस व आखों के साथ साथ होठ भी उतने ही आवश्यक होते हैं. अतः होठों की भी केयर करना जरूरी है.
  • शुगर को नारियल तेल या शहद में मिलाकर होठों पर स्क्रब करने से होठ बहुत मुलायम हो जाते हैं.
  • कॉफी को ऑयल या शहद के साथ मिला कर भी लिप स्क्रब तैयार किया जा सकता है.

प्रेग्नेंसी में तनाव होने से मेरे बच्चे को कोई खतरा तो नहीं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

हैलो डाक्टर! मैं 26 वर्षीय युवती हूं. मैं तीन महीने से प्रेगनेंट हूं. पिछले कुछ समय से मैं बहुत तनाव में रहने लगी हूं. मैं जानना चाहती हूं क्या इसका असर मेरे होने वाले बच्चें के स्वस्थ पर भी पड़ सकता हैं? मुझे इसे रोकने के लिए क्या करना चाहिए?

जवाब-

उत्तर- जी हां, तनाव का असर मां और बच्चें दोनों पर ही पड़ता है. जब आप तनाव से गुजरती हैं तो, शरीर से स्ट्रेस हार्मोन रिलीज होता है जो एक तरह से जहरीला होता है और शरीर के लिए हानिकारक भी. जिस वजह से चिढ़चिढ़ापन, बात बात पर गुस्सा आता है. तनाव ज्यादा बढ़ने पर डिप्रेशन भी हो सकता है. प्रेग्नेंसी के दौरान पहले से ही शरीर में हार्मोनल बदलाव होने शुरू हो जाता है. जो शारीरिक और मानसिक बदलाव को भी दर्शाता है. तनाव के बुरे प्रभाव से बचने के लिए पहले आपको यह सोचना है की आपके लिए सबसे महत्वपूर्ण क्या है, आपकी गर्भाव्स्था या तनाव. तनाव को आप नजरअंदाज कर सकती हैं, लेकिन गर्भावस्था को नहीं. इसलिए अपनी प्रेग्नेंसी पर ज्यादा ध्यान दें. तनाव से बचने के लिए आप कुछ हेल्दी एक्टिविटी कर सकती हैं जैसे मेडिटेशन, अच्छी किताबे पढ़ सकती हैं, रोजाना वॉक पर जा सकती हैं, कुछ ऐसे गाने सुन सकती हैं जिससे आपको सकारात्मकता महसूस हो. हमेशा वही सब करें जिससे आपको खुशी मिलती हो..

ये भी पढ़ें

मां बनना एक बेहद खूबसूरत एहसास है, जिसे शब्दों में पिरोना मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव सा भी प्रतीत होता है. कोई महिला मां उस दिन नहीं बनती जब वह बच्चे को जन्म देती है, बल्कि उस का रिश्ता नन्ही सी जान से तभी बन जाता है जब उसे पता चलता है कि वह प्रैगनैंट है.

प्रैग्नेंसी के दौरान हालांकि सभी महिलाओं के अलगअलग अनुभव रहते हैं, लेकिन आज हम उन आम समस्याओं की बात करेंगे, जिन्हें जानना बेहद जरूरी है.

यों तो प्रैग्नेंसी के पूरे 9 महीने अपना खास खयाल रखना होता है, लेकिन शुरुआती  3 महीने खुद पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है. पहले ट्राइमैस्टर में चूंकि बच्चे के शरीर के अंग बनने शुरू होते हैं तो ऐसे में आप अपने शरीर में होने वाले बदलावों पर नजर रखें और अगर कुछ ठीक न लगे तो डाक्टर का परामर्श जरूर लें.

प्रैग्नेंसी के दौरान महिलाओं को काफी हारमोनल और शारीरिक बदलावों से गुजरना पड़ता है. मितली आना, चक्कर आना, स्पौटिंग, चिड़चिड़ापन, कब्ज, बदहजमी, पेट में दर्द, सिरदर्द, पैरों में सूजन आदि परेशानियोंसे हर गर्भवती महिला को गुजरना पड़ता है. आप कैसे इन समस्याओं से नजात पा सकती हैं, बता रही हैं गाइनोकोलौजिस्ट डा. विनिता पाठक:

शरीर में सूजन

शरीर में सूजन आ जाना भी प्रैग्नेंसी का एक सामान्य लक्षण है. विशेषज्ञों के अनुसार प्रैग्नेंसी में महिला का शरीर लगभग 50 फीसदी ज्यादा खून का निर्माण करता है. गर्भ में पल रहे बच्चे को भी मां के ही शरीर से पोषण मिलता है, जिस की वजह से मां का शरीर ज्यादा मात्रा में खून और फ्लूइड का निर्माण करता है.

Online Hindi Story : दिखावे की काट

दीवार से सिर टिका कर अंकिता शून्य में ताक रही थी. रोतेरोते उस की पलकें सूज गई थीं. अब भी कभीकभी एकाध आंसू पलकों पर आता और उस के गालों पर बह जाता. पास के कमरे में उस की भाभी दहाड़ें मारमार कर रो रही थीं. भाभी की बहन और भाभी उन्हें समझा रही थीं. भाभी के दोनों बच्चे ऋषी और रिनी सहमे हुए से मां के पास बैठे थे.

भाभी का रुदन कभी उसे सुनाई पड़ जाता. बूआ अंकिता के पास बैठी थीं और भी बहुत से रिश्तेदार घर में जगहजगह बैठे हुए थे. अंकिता का भाई और घर के बाकी दूसरे पुरुष अरथी के साथ श्मशान घाट अंतिम संस्कार करने जा चुके थे.

अंकिता की आंखों से फिर आंसू बह निकले. मां तो बहुत पहले ही उन्हें छोड़ कर चली गई थीं. पिता ने ही उन्हें मां और बाप दोनों का प्यार दे कर पाला. उन की उंगलियां पकड़ कर दोनों भाईबहन ने चलना सीखा, इस लायक बने कि जिंदगी की दौड़ में शामिल हो कर अपनी जगह बना सके और आज वही पिता अपने जीवन की दौड़ पूरी कर इस दुनिया से चले गए.

वह पिता की याद में फफक पड़ी. पास बैठी बूआ उसे दिलासा देते हुए खुद भी भाई की याद में बिलखने लगीं.

घड़ी ने साढ़े 5 बजाए तो रिश्ते की एकदो महिलाएं घर की औरतों के नहाने की व्यवस्था करने में जुट गईं. दाहसंस्कार से पुरुषों के लौटने से पहले घर की महिलाओं का स्नान हो जाना चाहिए. भाभी और बूआ के स्नान करने के बाद बेमन से उठ कर अंकिता ने भी स्नान किया.

‘कैसी अजीब रस्में हैं,’ अंकिता सोच रही थी, ‘व्यक्ति के मरते ही इस तरह से घर के लोग स्नान करते हैं जैसे कि कोई छूत की बीमारी थी, जिस के दूर हटते ही स्नान कर के लोग शुद्ध हो जाते हैं. धर्म और उस की रूढि़यां संस्कार हैं कि कुरीतियां. इनसान की भावनाओं का ध्यान नहीं है, बस, लोग आडंबर में फंस जाते हैं.

औरतों का नहाना हुआ ही था कि श्मशान घाट से घर के पुरुष वापस आ गए और घर के बाहर बैठ गए. घर की महिलाएं अब पुरुषों के नहाने की व्यवस्था करने लगीं. उसी शहर में रहने वाले कई रिश्तेदार और आसपड़ोस के लोग बाहर से ही अपनेअपने घरों को लौट गए. उन्हें विदा कर भैया भी नहाने चले गए. नहा कर अंकिता का भाई आनंद आ कर बहन के पास बैठ गया तो अंकिता भाई के कंधे पर सिर रख कर रो पड़ी. भाई की आंखें भी भीग गईं. वह छोटी बहन के सिर पर हाथ फेरने लगा.

‘‘रो मत, अंकिता. मैं तुम्हें कभी पिताजी की कमी महसूस नहीं होने दूंगा. तेरा यह घर हमेशा तेरे लिए वैसा ही रहेगा जैसा पिताजी के रहते था,’’ बड़े भाई ने कहा तो अंकिता के दुखी मन को काफी सहारा मिला.

‘‘जीजाजी, बाबूजी का बिस्तर और तकिया किसे देने हैं?’’ आनंद के छोटे साले ने आ कर पूछा.

‘‘अभी तो उन्हें यहीं रहने दे राज, यह सब बाद में करते रहना. इतनी जल्दी क्या है?’’ आनंद के बोलने से पहले ही बूआ बोल पड़ीं.

‘‘नहीं, बूआ, ये लोग हैं तो यह सब हो जाएगा, फिर मेहमानों के सोने के लिए जगह भी तो चाहिए न. राज, तुम पिताजी का बिस्तर और कपड़े वृद्धाश्रम में दे आओ, वहां किसी के काम आ जाएंगे,’’ आनंद ने तुरंत उठते हुए कहा.

‘‘लेकिन भैया, पिताजी की निशानियों को अपने से दूर करने की इतनी जल्दबाजी क्यों?’’ अंकिता ने एक कमजोर सा प्रतिवादन करना चाहा लेकिन तब तक आनंद राज के साथ पिताजी के कमरे की तरफ जा चुके थे.

लगभग 15 मिनट बाद भैया की आवाज आई, ‘‘अंकिता, जरा यहां आना.’’

अपने को संभालते हुए अंकिता पिताजी के कमरे में गई.

‘‘देख अंकिता, तुझे पिताजी की याद के तहत उन की कोई वस्तु चाहिए तो ले ले,’’ आनंद ने कहा.

भाभी को शायद कुछ भनक लग गई और वे तुरंत आ कर दरवाजे पर खड़ी हो गईं. अंकिता समझ गई कि भाभी यह देखना चाहती हैं कि वह क्या ले जा रही है. पिताजी की पढ़ने वाली मेज पर उन का और मां का शादी के बाद का फोटो रखा हुआ था. अंकिता ने जा कर वह फोटो उठा लिया. इस फोटो को संभाल कर रखेगी वह.

पिताजी की सोने की चेन और 2 अंगूठियां फोटो के पास ही एक छोटी ट्रे में रखी थीं जिन्हें मां ने घर खर्चे के लिए मिले पैसों में बचाबचा कर अलगअलग अवसरों पर पिताजी के लिए बनाया था. चूंकि ये चेन और अंगूठियां मां की निशानियां थीं. इसलिए पिताजी इन्हें कभी अपने से अलग नहीं करते थे.

अंकिता ने फोटो को कस कर सीने से लगाया और तेजी से पिताजी के कमरे से बाहर चली गई. जातेजाते उस ने देख लिया कि भाभी की नजरें ट्रे में रखी चीजों पर जमी हैं और चेहरे पर एक राहत का भाव है कि अंकिता ने उन्हें नहीं उठाया. उस के मन में एक वितृष्णा का भाव पैदा हुआ कि थोड़ी देर पहले भैया के दिलासा भरे शब्दों में कितना खोखलापन था, यह समझ में आ गया.

भैया के दोनों सालों ने मिल कर पिताजी के कपड़ों और बाकी सामान की गठरियां बनाईं और वृद्धाश्रम में पहुंचा आए. पिताजी का लोहे वाला पुराना फोल्ंडिंग पलंग और स्टूल, कुरसी, मेज और बैंचें वहां से उठा कर सारा सामान छत पर डाल दिया कि बाद में बेच देंगे.

भाभी की बड़ी भाभी ने कमरे में फिनाइल का पोंछा लगा दिया. पिताजी उस कमरे में 50 वर्षों तक रहे लेकिन भैया ने 1 घंटे में ही उन 50 वर्षों की सारी निशानियों को धोपोंछ कर मिटा दिया. बस, उन की चेन और अंगूठियां भाभी ने झट से अपने सेफ में पहुंचा दीं.

रात को भाभी की भाभियों ने खाना बनाया. अंकिता का मन खाने को नहीं था लेकिन बूआ के समझाने पर उस ने नामचारे को खा लिया. सोते समय अंकिता और बूआ ने अपना बिस्तर पिताजी के कमरे में ही डलवाया. पलंग तो था नहीं, जमीन पर ही गद्दा डलवा कर दोनों लेट गईं. बूआ ने पूरे कमरे में नजर डाल कर एक गहरी आह भरी.

बूआ के लिए भी उन का मायका उन के भाई के कारण ही था. अब उन के लिए भी मायके के नाम पर कुछ नहीं रहा. रमेश बाबू ने अपने जीते जी न बहन को मायके की कमी खलने दी न बेटी को. कहते हैं मायका मां से होता है लेकिन यहां तो पिताजी ने ही हमेशा उन दोनों के लिए ही मां की भूमिका निभाई.

‘‘बेटा, अब तू भी असीम के पास सिंगापुर चली जाना. वैसे भी अब तेरे लिए यहां रखा ही क्या है. आनंद का रवैया तो तुझे पता ही है. जो अपने जन्मदाता की यादों को 1 घंटे भी संभाल कर नहीं रख पाया वह तुझे क्या पूछेगा,’’ बूआ ने उस की हथेली को थपथपा कर कहा. अनुभवी बूआ की नजरें उस के भाईभाभी के भाव पहले ही दिन ताड़ गईं.

‘‘हां बूआ, सच कहती हो. बस, पिताजी की तेरहवीं हो जाए तो चली जाऊंगी. उन्हीं के लिए तो इस देश में रुकी थी. अब जब वही नहीं रहे तो…’’ अंकिता के आगे के शब्द उस की रुलाई में दब गए.

बूआ देर तक उस का सिर सहलाती रहीं. पिताजी ने अंकिता के विवाह की एकएक रस्म इतनी अच्छी तरह पूरी की थी कि लोगों को तथा खुद उस को भी कभी मां की कमी महसूस नहीं हुई.

पिताजी ने 2 साल पहले उस की शादी असीम से की थी. साल भर पहले असीम को सिंगापुर में अच्छा जौब मिल गया. वह अंकिता को भी अपने साथ ले जाना चाहता था लेकिन पिताजी की नरमगरम तबीयत देख कर वह असीम के साथ सिंगापुर नहीं गई. असीम का घर इसी शहर में था और उस के मातापिता नहीं थे, अत: असीम के सिंगापुर जाने के बाद अंकिता अपनी नौकरानी को साथ ले कर रहती थी. असीम छुट्टियों में आ जाता था.

अंकिता ने बहुत चाहा कि पिताजी उस के पास रहें पर इस घर में बसी मां की यादों को छोड़ कर वे जाना नहीं चाहते थे इसलिए वही हर रोज दोपहर को पिताजी के पास चली आती थी. बूआ वडोदरा में रहती थीं. उन का भी बारबार आना संभव नहीं था और अब तो उन का भी इस शहर में क्या रह जाएगा.

पिताजी की तीसरे दिन की रस्म हो गई. शाम को अंकिता बूआ के साथ आंगन में बैठी थी. असीम के रोज फोन आते और उस से बात कर अंकिता के दिल को काफी तसल्ली मिलती थी. असीम और बूआ ही तो अब उस के अपने थे. बूआ के सिर में हलकाहलका दर्द हो रहा था.

‘‘मैं आप के लिए चाय बना कर लाती हूं, बूआ, आप को थोड़ा आराम मिलेगा,’’ कह कर अंकिता चाय बनाने के लिए रसोईघर की ओर चल दी.

रसोईघर का रास्ता भैया के कमरे के बगल से हो कर जाता था. अंदर भैयाभाभी, उन के बच्चे, भाभी के दोनों भाई बैठे बातें कर रहे थे. उन की बातचीत का कुछ अंश उस के कानों में पड़ा तो न चाहते हुए भी उस के कदम दरवाजे की ओट में रुक गए. वे लोग पिताजी के कमरे को बच्चों के कमरे में तबदील करने पर सलाहमशविरा कर रहे थे.

बच्चों के लिए फर्नीचर कैसा हो, कितना हो, दीवारों के परदे का रंग कैसा हो और एक अटैच बाथरूम भी बनवाने पर विचार हो रहा था. सब लोग उत्साह से अपनीअपनी राय दे रहे थे, बच्चे भी पुलक रहे थे.

अंकिता का मन खट्टा हो गया. इन बच्चों को पिताजी अपनी बांहों और पीठ पर लादलाद कर घूमे हैं. इन के बीमार हो जाने पर भैयाभाभी भले ही सो जाएं लेकिन पिताजी इन के सिरहाने बैठे रातरात भर जागते, अपनी तबीयत खराब होने पर भी बच्चों की इच्छा से चलते, उन्हें बाहर घुमाने ले जाते. और आज वे ही बच्चे 3 दिन में ही अपने दादाजी की मौत का गम भूल कर अपने कमरे के निर्माण को ले कर कितने उत्साहित हो रहे हैं.

खैर, ये तो फिर भी बच्चे हैं जब बड़ों को ही किसी बात का लेशमात्र ही रंज नहीं है तो इन्हें क्या कहना. सब के सब उस कमरे की सजावट को ले कर ऐसे बातें कर रहे हैं मानो पिताजी के जाने की राह देख रहे थे कि कब वे जाएं और कब ये लोग उन के कमरे को हथिया कर उसे अपने मन मुताबिक बच्चों के लिए बनवा लें. यह तो पिताजी की तगड़ी पैंशन का लालच था, नहीं तो ये लोग तो कब का उन्हें वृद्धाश्रम में भिजवा चुके होते.

अंकिता से और अधिक वहां पर खड़ा नहीं रहा गया. उस ने रसोईघर में जा कर चाय बनाई और बूआ के पास आ कर बैठ गई.

पिताजी की मौत के बाद दुख के 8 दिन 8 युगों के समान बीते. भैयाभाभी के कमरे से आती खिलखिलाहटों की दबीदबी आवाजों से घावों पर नमक छिड़कने का सा एहसास होता था पर बूआ के सहारे वे दिन भी निकल ही गए. 9वें दिन से आडंबर भरी रस्मों की शुरुआत हुई तो अंकिता और बूआ दोनों ही बिलख उठीं.

9वें दिन से रूढि़वादी रस्मों की शुरुआत के साथ श्राद्ध पूजा में पंडितों ने श्लोकों का उच्चारण शुरू किया तो बूआ और अंकिता दोनों की आंखों से आंसुओं की धाराएं बहने लगीं. हर श्लोक में पंडित अंकिता के पिता के नाम ‘रमेश’ के आगे प्रेत शब्द जोड़ कर विधि करवा रहे थे. हर श्लोक में ‘रमेश प्रेतस्य शांतिप्रीत्यर्थे श… प्रेतस्य…’ आदि.

व्यक्ति के नाम के आगे बारबार ‘प्रेत’ शब्द का उच्चारण इस प्रकार हो रहा था मानो वह कभी भी जीवित ही नहीं था, बल्कि प्रेत योनि में भटकता कोई भूत था. अपने प्रियजन के नाम के आगे ‘प्रेत’ शब्द सुनना उस की यादों के साथ कितना घृणित कार्य लग रहा था. अंकिता से वहां और बैठा नहीं गया. वह भाग कर पिताजी के कमरे में आ गई और उन की शर्ट को सीने से लगा कर फूटफूट कर रो दी.

कैसे हैं धार्मिक शास्त्र और कैसे थे उन के रचयिता? क्या उन्हें इनसानों की भावनाओं से कोई लेनादेना नहीं था? जीतेजागते इनसानों के मन पर कुल्हाड़ी चलाने वाली भावहीन रूढि़यों से भरे शास्त्र और उन की रस्में, जिन में मानवीय भावनाओं की कोई कद्र नहीं. आडंबर से युक्त रस्मों के खोखले कर्मकांड से भरे शास्त्र.

धार्मिक कर्मकांड समाप्त होने के बाद जब पंडित चले गए तब अंकिता अपने आप को संभाल कर बाहर आई. भैया और उन के बेटे का सिर मुंडा हुआ था. रस्मों के मुताबिक 9वें दिन पुत्र और पौत्र के बाल निकलवा देते हैं. उन के घुटे सिर को देख कर अंकिता का दुख और गहरा हो गया. कैसी होती हैं ये रस्में, जो पलपल इनसान को हादसे की याद दिलाती रहती हैं और उस का दुख बढ़ाती हैं.

असीम को आखिर छुट्टी मिल ही गई और पिताजी की तेरहवीं पर वह आ गया. उस के कंधे पर सिर रख कर पिताजी की याद में और भैयाभाभी के स्वार्थी पक्ष पर वह देर तक आंसू बहाती रही. अंकिता का बिलकुल मन नहीं था उस घर में रुकने का लेकिन पिताजी की यादों की खातिर वह रुक गई.

तेरहवीं की रस्म पर भैया ने दिल खोल कर खर्च किया. लोग भैया की तारीफें करते नहीं थके कि बेटा हो तो ऐसा. देखो, पिताजी की याद में उन की आत्मा की शांति के लिए कितना कुछ कर रहा है, दानपुण्य, अन्नदान. 2 दिन तक सैकड़ों लोगों का भोजन चलता रहा. लोगों ने छक कर खाया और भैयाभाभी को ढेरों आशीर्वाद दिए. अंकिता, असीम और बूआ तटस्थ रह कर यह तमाशा देखते रहे. वे जानते थे कि यह सब दिखावा है, इस में तनिक भी भावना या श्रद्धा नहीं है.

यह कैसा धर्म है जो व्यक्ति को इनसानियत का पाठ पढ़ाने के बजाय आडंबर और दिखावे का पाठ पढ़ाता है, ढोंग करना सिखाता है.

जीतेजी पिता को दवाइयों और खानेपीने के लिए तरसा दिया और मरने पर कोरे दिखावे के लिए झूठी रस्मों के नाम पर ब्राह्मणों और समाज के लोगों को भोजन करा रहे हैं. सैकड़ों लोगों के भोजन पर हजारों रुपए फूंक कर झूठी वाहवाही लूट रहे हैं जबकि पिताजी कई बार 2 बजे तक एक कप चाय के भरोसे पर भूखे रहते थे. अंकिता जब दोपहर में आती तो उन के लिए फल, दवाइयां और खाना ले कर आती और उन्हें खिलाती.

रात को कई बार भैया व भाभी को अगर शादी या पार्टी में जाना होता था तो भाभी सुबह की 2 रोटियां, एक कटोरी ठंडी दाल के साथ थाली में रख कर चली जातीं. तब पिताजी या तो वही खा लेते या उसे फोन कर देते. तब वह घर से गरम खाना ला कर उन्हें खिलाती.

अंकिता सोच रही थी कि श्राद्ध शब्द का वास्तविक अर्थ होता है, श्रद्धा से किया गया कर्म. लेकिन भैया जैसे कुपुत्रों और लालची पंडितों ने उस के अर्थ का अनर्थ कर डाला है.

जीतेजी पिताजी को भैया ने कभी कपड़े, शौल, स्वेटर के लिए नहीं पूछा. इस के उलट अपने खर्चों और महंगाई का रोना रो कर हर महीने उन की पैंशन हड़प लेते थे, लेकिन उन की तेरहवीं पर भैया ने खुले हाथों से पंडितों को कपड़े, बरतन आदि दान किए. अंकिता को याद है उस की शादी से पहले पिताजी के पलंग की फटी चादर और बदरंग तकिए का कवर. विवाह के बाद जब उस के हाथ में पैसा आया तो सब से पहले उस ने पिताजी के लिए चादरें और तकिए के कवर खरीदे थे.

जीवित पिता पर खर्च करने के लिए भैया के पास पैसा नहीं था, लेकिन मृत पिता के नाम पर आज समाज के सामने दिखावे के लिए अचानक ढेर सारा पैसा कहां से आ गया.

असीम ने 2 दिन बाद के अपने और अंकिता के लिए हवाई जहाज के 2 टिकट बुक करा दिए.

दूसरे दिन भैया ने कुछ कागज अंकिता के आगे रख दिए. दरअसल, पिताजी ने वह घर भैया और उस के नाम पर कर दिया था.

‘‘अब तुम तो असीम के साथ सिंगापुर जा रही हो और वैसे भी असीम का अपना खुद का भी मकान है तो…’’ भैया ने बात आधी छोड़ दी. पर अंकिता उन की मंशा समझ गई. भैया चाहते थे कि वह अपना हिस्सा अपनी इच्छा से उन के नाम कर दे ताकि भविष्य में कोई झंझट न रहे.

‘‘हां भैया, इस घर में आप के साथसाथ आधा हिस्सा मेरा भी है. इन कागजों की एक कापी मैं भी अपने पास रखूंगी ताकि मेरे पिता की यादें मेरे जीवित रहने तक बरकरार रहें,’’ कठोर स्वर में बोल कर अंकिता ने कागज भैया के हाथ से ले कर असीम को दे दिए ताकि उन की कापी करवा सकें, ‘‘और हां भाभी, मां के कंगन पिताजी ने तुम्हें दिए थे अब पिताजी की अंगूठी और चेन आप मुझे दे देना निकाल कर.’’

भैयाभाभी के मुंह लटक गए. दोपहर को असीम और अंकिता ने पिताजी का पलंग, कुरसी, टेबल और कपड़े वापस उन के कमरे में रख लिए. नया गद्दा पलंग पर डलवा दिया. पिताजी के कमरे और उस के साथ लगे अध्ययन कक्ष पर नजर डाल कर अंकिता बूआ से बोली, ‘‘मेरा और आप का मायका हमेशा यही रहेगा बूआ, क्योंकि पिताजी की यादें इसी जगह पर हैं. इस की एक चाबी आप अपने पास रखना. मैं जब भी यहां आऊंगी आप भी आ जाया करना. हम यहीं रहा करेंगे.’’

बूआ ने अंकिता और असीम को सीने से लगा लिया और तीनों पिताजी को याद कर के रो दिए.

Satire : पुलिस वैरीफिकेशन का चक्कर

किसी भी अच्छे काम को अंजाम देने में तमाम कठिनाइयां तो आती ही हैं. मानवाधिकारों के लिए बेचारे अमेरिका ने किसकिस से बैर नहीं ले डाला? हमारा मुल्क इसीलिए भेडि़याधसान कहलाता है क्योंकि हम दूसरों के कहे में जल्दी आ जाते हैं, अपना दिमाग खर्च ही नहीं करना चाहते. हमारे यहां गांव से ले कर कसबों तक, शहरों से ले कर संसद तक तमाम बड़ेबड़े कांड हो रहे हैं पर हर विफलता के लिए कोई न कोई बढि़या सा बहाना गढ़ कर मामला रफादफा कर दिया जाता है.

नक्सलवाद की समस्या पर एक माननीय महोदय का कहना था कि उस से प्रभावित क्षेत्रों में लोग तीरकमान चलाने में बहुत अच्छे हैं लिहाजा, वे इस समस्या से निबटने के लिए खुद ही काफी हैं. एक अन्य ने वहां विकास योजनाओं पर जोर देने की बात कही है.

देश के तमाम हिस्सों में होने वाले अन्य अपराधों में सफलता भले ही न मिले पर एक नया नुक्ता उछाल दिया जाता है कि अमुक संस्था ने अपने कर्मचारियों का पुलिस वैरीफिकेशन नहीं कराया था. मकानमालिकों को किराएदारों के लिए उन के स्थायी पते पर जा कर पुलिस वैरीफिकेशन कराए जाने के निर्देश हैं. अगर आप कोई घरेलू नौकर रखना चाहते हैं तो पहले उस का पुलिस वैरीफिकेशन कराइए.

अमेरिका इतना अच्छा देश है कि हर संदर्भ वहां एक आदर्श उदाहरण पेश करता हुआ मिलता है. अब इस वैरीफिकेशन को ही ले लीजिए. हमारा कोई भी नागरिक, भले ही वह कोई बड़े नाम वाला मंत्री या अभिनेता ही क्यों न हो, जैसे ही उन के देश की सीमा में प्रवेश करता है, पुलिस वैरीफिकेशन शुरू हो जाता है और वह इतनी ईमानदारी से होता है कि कभीकभी हमारा मीडिया काफी दिन तक तिलमिलाया रहता है. अगर उसे शक हो जाए तो वे हमारा ऐक्सरे करवाने में भी नहीं हिचकेंगे.

हम न तो अपनों से ईमानदारी बरतते हैं और न ही बाहर वालों से. हम किसी भी विदेशी हस्ती के आने की खबर से ही इतना अभिभूत हो जाते हैं कि उस का वैरीफिकेशन करने के बजाय यह सोचने लगते हैं कि भेंट में उस से क्या मिल सकता है. किस मद में कितना लोन या दान मिल सकता है. ऐसे में ईमानदारी से उस की जांच का प्रश्न ही कहां रह पाता है.

उन की ईमानदारी का दायरा देखिए कि उन का राष्ट्रपति हमारे यहां महात्मा गांधी की समाधि पर अगर फूल भी चढ़ाना चाहे तो उन के कुत्ते पहले कई बार चक्कर लगा कर मुतमईन हो लेते हैं कि कहीं उस समाधि में उन के साथ ही उन की लाठी न दबी रह गई हो. वे कतई नहीं चाहते कि उन के अलावा कोई भी मानव विनाशकारी हथियार रखे. आखिर यह हक तो केवल मानव अधिकार के पोषक के पास ही रहना चाहिए न.

अपने यहां किसी होटल में कोई हत्या या चोरी हो जाए तो मुख्य मुद्दा यह हो जाता है कि यहां ठहरने वालों के पते का वैरीफिकेशन करवाया गया था या नहीं. अब सोचिए कि कोई दिल्ली से लुधियाना जाए और अगली यात्रा के लिए उसे वहां 8-10 घंटे रुकना ही पड़ जाए तो पहले अपने पते का सुबूत पेश करे. अगर आप किसी स्कूटर स्टैंड पर अपना स्कूटर खड़ा करें तो अपने पते का सुबूत दिखाएं क्योंकि वह मामला भी एक तरह से किराएदारी का ही हो जाता है.

मेरे शहर में मात्र 9 दिन में बड़ीबड़ी दुकानों में चोरी की 7 वारदातें हो गईं तो एक बात खुल कर सामने आई कि उन के मालिकों ने अपने नौकरों का पुलिस वैरीफिकेशन नहीं करवाया था जबकि सभी चोरियों में उन के नौकरों का हाथ ही पाया गया था. अब बेचारे दुकानमालिकों का ध्यान बजाय अपने नुकसान के इस कानूनी दांवपेंच में उलझ कर रह गया.

इसी तरह होटलों में होने वाले कांडों पर अंकुश के लिए उन को ताकीद की गई कि वे बिना वैरीफिकेशन के किसी को भी अपने होटल में न ठहरने दें. इन सब के चलते जब एक बहुत बूढ़े जोड़े ने बजाय होटल के रेलवे स्टेशन पर ही रात बिताने की सोची तो वहां जी.आर.पी. वाले उन से वैरीफिकेशन के नाम पर अच्छीखासी रकम की उगाही कर ले गए. जब अपनी पत्नी को बाहर खड़ा कर उस के पति पास के सुलभ शौचालय में शौच के लिए जाने लगे तो वहां तैनात कर्मचारी ने उन को बाहर ले जा कर उन का वैरीफिकेशन करना चाहा. वे बेचारे कहते रहे कि बहुत जोर से लगी है, पर वह कर्मचारी फिर भी नहीं पिघला और सख्त लहजे में बोला, ‘‘बिना पुलिस वैरीफिकेशन आप शौच के लिए नहीं जा सकेंगे.’’

संयोग ही था कि इतने में एक सज्जन जो शौच से निवृत्त हो कर निकले थे, इस तकरार को देख कर ठिठक से गए. उन्होंने उन वृद्ध महोदय को अपने द्वारा खाली किए गए लैट्रिन बौक्स में जबरदस्ती प्रवेश करवा दिया. पर अब वह आफत उस सज्जन के सिर आ गई. वह कर्मचारी उन से भिड़ गया तो वे बोले, ‘‘मैं यहीं बैठा हूं, यह मेरा पता है. जाओ, करा लाओ पुलिस वैरीफिकेशन.’’

इस पर वह कर्मचारी बोला, ‘‘पुलिस वैरीफिकेशन कराने में तो 500 रुपए लगते हैं, वह कौन देगा?’’

‘‘जिस को गरज होगी या जिस को शक होगा,?’’ उन सज्जन ने पलट कर जवाब दिया.

इतनी देर में वृद्ध महोदय बाहर आ चुके थे, उन्होंने अपनी पत्नी से कहा कि इस को 50 रुपए दे दो. उन की पत्नी ने 50 रुपए का नोट उस कर्मचारी के हवाले किया.

50 के नोट पर गांधीजी को हंसता देख कर कर्मचारी की वैरीफिकेशन की जरूरत पूरी हो चुकी थी. वह बस, मुसकरा दिया. इसे कहते हैं वैरीफाइड मुसकान.

Crime Story : तीन भाईयों ने प्रौपर्टी के लिए मिलकर किया बहन का मर्डर ?

Crime Story : घर वालों के लाख मना करने के बाद भी दीपा ने गांव के ही दूसरी जाति के युवक समरजीत से शादी कर ली. इस के बाद दीपा ने ऐसा क्या किया कि प्रेमी से पति बने समरजीत ने उस की हत्या कर लाश जमीन में दफना कर उस पर आम का पेड़ लगा दिया. समरजीत करीब एक साल बाद दिल्ली से अपने भाइयों अरविंद और धर्मेंद्र के साथ गांव धनजई लौटा तो मोहल्ले वालों ने उस में कई बदलाव देखे. उस के पहनावे और बातचीत में काफी अंतर चुका था. उस का बातचीत का तरीका गांव वालों से एकदम अलग था. इस से गांव वाले समझ गए कि दिल्ली में उस का काम ठीकठाक चल रहा है. धनजई गांव उत्तर प्रदेश के जिला सुलतानपुर के थाना कूंड़ेभार में पड़ता है.

देखने से ही लग रहा था कि समरजीत की हालत अब पहले से अच्छी हो गई है, लेकिन गांव वाले एक बात नहीं समझ पा रहे थे कि जब वह गांव से गया था तो गांव के ही रहने वाले रामसनेही की बेटी दीपा को भगा कर ले गया था. लेकिन उस के साथ दीपा दिखाई नहीं दे रही थी. दरअसल, दीपा और समरजीत के बीच काफी दिनों से प्रेमसंबंध चल रहा था. जिस के चलते वह और दीपा करीब एक साल पहले गांव से भाग गए थे. बाद में रामसनेही को पता लगा कि समरजीत दीपा के साथ दक्षिणपूर्वी दिल्ली के पुल प्रहलादपुर गांव में रह रहा है. गांव के ही लड़के के साथ बेटी के भाग जाने की बदनामी रामसनेही झेल रहा था. उसे जब पता लगा कि समरजीत के साथ दीपा नहीं आई है तो यह बात उसे कुछ अजीब सी लगी. बेटी को भगा कर ले जाने वाला समरजीत उस के लिए एक दुश्मन था.

इस के बावजूद भी बेटी की ममता उस के दिल में जाग उठी. उस ने समरजीत से बेटी के बारे में पूछ ही लिया. तब समरजीत ने बताया, ‘‘वह तो करीब एक महीने पहले नाराज हो कर दिल्ली से गांव चली आई थी. अब तुम्हें ही पता होगा कि वह कहां है?’’ यह सुन कर रामसनेही चौंका. उस ने कहा, ‘‘यह तुम क्या कह रहे हो? वो यहां आई ही नहीं है.’’

‘‘अब मुझे क्या पता वह कहां गई? आप अपनी रिश्तेदारियों वगैरह में देख लीजिए. क्या पता वहीं चली गई हो.’’

समरजीत की बात रामसनेही के गले नहीं उतरी. वह समझ नहीं पा रहा था कि समरजीत जो दीपा को कहीं देखने की बात कह रहा है, वह कहीं दूसरी जगह क्यों जाएगी? फिर भी उस का मन नहीं माना. उस ने अपने रिश्तेदारों के यहां फोन कर के दीपा के बारे में पता किया, लेकिन पता चला कि वह कहीं नहीं है. बात एक महीना पुरानी थी. ऐसे में वह बेटी को कहां ढूंढ़े. बेटी के बारे में सोचसोच कर उस की चिंता बढ़ती जा रही थी. यह बात दिसंबर, 2013 के आखिरी हफ्ते की थी. समरजीत के साथ उस के भाई अरविंद और धर्मेंद्र भी गांव आए थे. रामसनेही ने दोनों भाइयों से भी बेटी के बारे में पूछा. लेकिन उन से भी उसे कोई ठोस जवाब नहीं मिला. 10-11 दिन गांव में रहने के बाद समरजीत दिल्ली लौट गया.

बेटी की कोई खैरखबर मिलने से रामसनेही और उस की पत्नी बहुत परेशान थे. वह जानते थे कि समरजीत दिल्ली के पुल प्रहलादपुर में रहता है. वहीं पर उन के गांव का एक आदमी और रहता था. उस आदमी के साथ जनवरी, 2014 के पहले हफ्ते में रामसनेही भी पुल प्रहलादपुर गयाथोड़ी कोशिश के बाद उसे समरजीत का कमरा मिल गया. उस ने वहां आसपास रहने वालों से बेटी दीपा का फोटो दिखाते हुए पूछा. लोगों ने बताया कि जिस दीपा नाम की लड़की की बात कर रहा है, वह 22 दिसंबर, 2013 तक तो समरजीत के साथ देखी गई थी, इस के बाद वह दिखाई नहीं दी है. समरजीत ने रामसनेही को बताया था दीपा एक महीने पहले यानी नवंबर, 2013 में नाराज हो कर दिल्ली से चली गई थी, जबकि पुल प्रहलादपुर गांव के लोगों से पता चला था कि वह 22 दिसंबर, 2013 तक समरजीत के साथ थी. इस से रामसनेही को शक हुआ कि समरजीत ने उस से जरूर झूठ बोला है. वह दीपा के बारे में जानता है कि वह इस समय कहां है?

रामसनेही के मन में बेटी को ले कर कई तरह के खयाल पैदा होने लगे. उसे इस बात का अंदेशा होने लगा कि कहीं इन लोगों ने बेटी के साथ कोई अनहोनी तो नहीं कर दी. यही सब सोचते हुए वह 6 जनवरी, 2014 को दोपहर के समय थाना पुल प्रहलादपुर पहुंचा और वहां मौजूद थानाप्रभारी धर्मदेव को बेटी के गायब होने की बात बताई. रामसनेही ने थानाप्रभारी को बेटी का हुलिया बताते हुए आरोप लगाया कि समरजीत और उस के भाइयों, अरविंद धर्मेंद्र ने अपने मामा नरेंद्र, राजेंद्र और वीरेंद्र के साथ बेटी को अगवा कर उस के साथ कोई अप्रिय घटना को अंजाम दे दिया है. थानाप्रभारी धर्मदेव ने उसी समय रामसनेही की तहरीर पर भादंवि की धारा 365, 34 के तहत रिपोर्ट दर्ज कराकर सूचना एसीपी जसवीर सिंह मलिक को दे दी.

मामला जवान लड़की के अपहरण का था, इसलिए एसीपी जसवीर सिंह मलिक ने थानाप्रभारी धर्मदेव के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में इंसपेक्टर आर.एस. नरुका, सबइंसपेक्टर किशोर कुमार, युद्धवीर सिंह, हेडकांस्टेबल श्रवण कुमार, नईम अहमद, राकेश, कांस्टेबल अनुज कुमार तोमर, धर्म सिंह आदि को शामिल किया गया. उधर दिल्ली में रह रहे समरजीत और उस के भाइयों को जब पता चला कि दीपा का बाप रामसनेही पुल प्रहलादपुर आया हुआ है तो तीनों भाई दिल्ली से फरार हो गए. पुलिस टीम जब उन के कमरे पर गई तो वहां उन तीनों में से कोई नहीं मिला. चूंकि तीनों आरोपी रामसनेही के गांव के ही रहने वाले थे, इसलिए पुलिस टीम रामसनेही को ले कर यूपी स्थित उस के गांव धनजई पहुंची. लेकिन घर पर समरजीत और उस के घर वालों में से कोई नहीं मिला.

अब पुलिस को अंदेशा हो गया कि जरूर कोई कोई गड़बड़ है, जिस की वजह से ये लोग फरार हैं. गांव के लोगों से बात कर के पुलिस ने यह पता लगाया कि इन के रिश्तेदार वगैरह कहांकहां रहते हैं, ताकि वहां जा कर आरोपियों को तलाशा जा सके. इस से पुलिस को पता चला कि सुलतानपुर और फैजाबाद के कई गांवों में समरजीत के रिश्तेदार रहते हैं. उन रिश्तेदारों के यहां जा कर दिल्ली पुलिस ने दबिशें दीं, लेकिन वे सब वहां भी नहीं मिले. दिल्ली पुलिस ने समरजीत के सभी रिश्तेदारों पर दबाव बनाया कि आरोपियों को जल्द से जल्द पुलिस के हवाले करें. उधर बेटी की चिंता में रामसनेही का बुरा हाल था. वह पुलिस से बारबार बेटी को जल्द तलाशने की मांग कर रहा था.

समरजीत या उस के भाइयों से पूछताछ करने के बाद ही दीपा के बारे में कोई जानकारी मिल सकती थी. इसलिए दिल्ली पुलिस की टीम अपने स्तर से ही आरोपियों को तलाशती रही9 जनवरी, 2014 को पुलिस को सूचना मिली कि समरजीत सुलतानपुर के ही गांव नगईपुर, सामरी बाजार में रहने वाले अपने मामा के यहां आया हुआ है. खबर मिलते ही पुलिस नगईपुर गांव पहुंच गई. सूचना एकदम सही निकली. वहां पर समरजीत, उस के भाई अरविंद और धर्मेंद्र के अलावा उस का मामा नरेंद्र भी मिल गयाचूंकि दीपा समरजीत के साथ ही रह रही थी, इसलिए पुलिस ने सब से पहले उसी से दीपा के बारे में पूछा. इस पर समरजीत ने बताया, ‘‘सर, नवंबर, 2013 में दीपा उस से लड़झगड़ कर दिल्ली से अपने गांव जाने को कह कर चली आई थी. इस के बाद वह कहां गई, इस की उसे जानकारी नहीं है.’’

‘‘लेकिन पुल प्रहलादपुर में जहां तुम लोग रहते थे, वहां जा कर हम ने जांच की तो जानकारी मिली कि दीपा 23 दिसंबर, 2013 को दिल्ली में ही तुम्हारे साथ थी.’’ थानाप्रभारी धर्मदेव ने कहा तो समरजीत के चेहरे का रंग उड़ गयाथानाप्रभारी उस का हावभाव देख कर समझ गए कि यह झूठ बोल रहा है. उन्होंने रौबदार आवाज में उस से कहा, ‘‘देखो, तुम हम से झूठ बोलने की कोशिश मत करो. दीपा के साथ तुम लोगों ने जो कुछ भी किया है, हमें सब पता चल चुका है. वैसे एक बात बताऊं, सच्चाई उगलवाने के हमारे पास कई तरीके हैं, जिन के बारे में तुम जानते भी होगे. अब गनीमत इसी में है कि तुम सारी बात हमें खुद बता दो, वरना…’’

इतना सुनते ही वह डर गया. वह समझ गया कि अगर सच नहीं बताया कि पुलिस बेरहमी से उस की पिटाई करेगी. इसलिए वह सहम कर बोला, ‘‘सर, हम ने दीपा को मार दिया है.’’

‘‘उस की लाश कहां है?’’ थाना प्रभारी ने पूछा.

‘‘सर, उस की लाश बाग में दफन कर दी है.’’ समरजीत ने कहा तो पुलिस चारों आरोपियों के साथ उस बाग में पहुंची, जहां उन्होंने दीपा की लाश दफन करने की बात कही थी. समरजीत के मामा नरेंद्र ने पुलिस को आम के बाग में वह जगह बता दी. लेकिन उस जगह तो आम का पेड़ लगा हुआ था. नरेंद्र ने कहा कि लाश इसी पेड़ के नीचे है. उन लोगों की निशानदेही पर पुलिस ने वहां खुदाई कराई तो वास्तव में एक शाल में गठरी के रूप में बंधी एक महिला की लाश निकली. उस समय रामसनेही भी पुलिस के साथ था. लाश देखते ही वह रोते हुए बोला, ‘‘साहब यही मेरी दीपा है. देखो इन्होंने मेरी बेटी का क्या हाल कर दिया. मुझे पहले ही इन लोगों पर शक हो रहा था. इन के खिलाफ आप सख्त से सख्त काररवाई कीजिए, ताकि ये बच सकें.’’

वहां खड़े गांव वालों ने तसल्ली दे कर किसी तरह रामसनेही को चुप कराया. गांव वाले इस बात से हैरान थे कि समरजीत दीपा को बहुत प्यार करता था, जिस के कारण दोनों गांव से भाग गए थे. फिर समरजीत ने उस के साथ ऐसा क्यों किया?

पुलिस ने लाश का मुआयना किया तो उस के गले पर कुछ निशान पाए गए. इस से अनुमान लगाया कि दीपा की हत्या गला घोंट कर की गई थी. मौके की जरूरी काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए सुलतानपुर के पोस्टमार्टम हाऊस भेज दिया और चारों अभियुक्तों को गिरफ्तार कर के दिल्ली ले आई. थाना पुल प्रहलादपुर में समरजीत, अरविंद, धर्मेंद्र और इन के मामा नरेंद्र से जब पूछताछ की गई तो दीपा और समरजीत के प्रेमप्रसंग से ले कर मौत का तानाबाना बुनने तक की जो कहानी सामने आई, वह बड़ी ही दिलचस्प निकली. उत्तर प्रदेश के जिला सुलतानपुर के थाना कूंड़ेभार में आता है एक गांव धनजई, इसी गांव में सूर्यभान सिंह परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटे धर्मेंद्र, अरविंद और समरजीत थे. अरविंद और धर्मेंद्र शादीशुदा थे. दोनों भाई दिल्ली में ड्राइवर की नौकरी करते थे. समरजीत गांव में ही खेतीकिसानी करता था. वह खेतीकिसानी करता जरूर था, लेकिन उसे अच्छे कपड़े पहनने का शौक था.

वह जवान तो था ही. इसलिए उस का मन ऐसा साथी पाने के लिए बेचैन था, जिस से अपने मन की बात कह सके. इसी दौरान उस की नजरें दीपा से दोचार हुईं. दीपा रामसनेही की 20 वर्षीया बेटी थी. दीपा तीखे नयननक्श और गोल चेहरे वाली युवती थी. दीपा उस की बिरादरी की नहीं थी, फिर भी उस का झुकाव उस की तरफ हो गया. फिर दोनों के बीच बातों का सिलसिला ऐसा शुरू हुआ कि वे दोनों एकदूसरे के करीब आते गएदोनों ही चढ़ती जवानी पर थे, इसलिए जल्दी ही उन के बीच शारीरिक संबंध बन गए. एकदूसरे को शरीर सौंपने के बाद उन की सोच में इस कदर बदलाव आया कि उन्हें अपने प्यार के अलावा सब कुछ फीका लगने लगा. उन्हें ऐसा लग रहा था, जैसे उन की मंजिल यहीं तक हो. मौका मिलने पर दोनों खेतों में एकदूसरे से मिलते रहे. उन के प्यार को देख कर ऐसा लगता था, जैसे भले ही उन के शरीर अलगअलग हों, लेकिन जान एक हो.

उन्होंने शादी कर के अपनी अलग दुनिया बसाने तक की प्लानिंग कर ली. घर वाले उन की शादी करने के लिए तैयार हो सकेंगे, इस का विश्वास दोनों को नहीं था. इस की वजह साफ थी कि दोनों की जाति अलगअलग थी और दूसरे दोनों एक ही गांव के थे. घर वाले तैयार हों या हों, उन्हें इस बात की फिक्र थी. वे जानते थे कि प्यार के रास्ते में तमाम तरह की बाधाएं आती हैं. सच्चे प्रेमी उन बाधाओं की कभी फिक्र नहीं करते. वे परिवार और समाज के व्यंग्यबाणों और उन के द्वारा खींची गई लक्ष्मण रेखा को लांघ कर अपने मुकाम तक पहुंचने की कोशिश करते हैं. समरजीत और दीपा भले ही सोच रहे थे कि उन का प्यार जमाने से छिपा हुआ है, लेकिन यह केवल उन का भ्रम था. हकीकत यह थी कि इस तरह के काम कोई चाहे कितना भी चोरीछिपे क्यों करे, लोगों को पता चल ही जाता है. समरजीत और दीपा के मामले में भी ऐसा ही हुआ. मोहल्ले के कुछ लोगों को उन के प्यार की खबर लग गई.

फिर क्या था. मोहल्ले के लोगों से बात उड़तेउड़ते इन दोनों के घरवालों के कानों में भी पहुंच गई. समरजीत के पिता सूर्यभान सिंह ने बेटे को डांटा तो वहीं दूसरी तरफ दीपा के पिता रामसनेही ने भी दीपा पर पाबंदियां लगा दीं. उसे इस बात का डर था कि कहीं कोई ऐसीवैसी बात हो गई तो उस की शादी करने में परेशानी होगी. कहते हैं कि प्यार पर जितनी बंदिशें लगाई जाती हैं, वह और ज्यादा बढ़ता है यानी बंदिशों से प्यार की डोर टूटने के बजाय और ज्यादा मजबूत हो जाती है. बेटी पर बंदिशें लगाने के पीछे रामसनेही की मंशा यही थी कि वह समरजीत को भूल जाएगी. लेकिन उस ने इस बात की तरफ गौर नहीं किया कि घर वालों के सो जाने के बाद दीपा अभी भी समरजीत से फोन पर बात करती है. यानी भले ही उस की अपने प्रेमी से मुलाकात नहीं हो पा रही थी, वह फोन पर दिल की बात उस से कर लेती थी.

एक बार रामसनेही ने उसे रात को फोन पर बात करते देखा तो उस ने उस से पूछा कि किस से बात कर रही है. तब दीपा ने साफ बता दिया कि वह समरजीत से बात कर रही है. इतना सुनते ही रामसनेही को गुस्सा गया और उस ने उस की पिटाई कर दी. रामसनेही ने सोचा कि पिटाई से दीपा के मन में खौफ बैठ जाएगा. लेकिन इस का असर उलटा हुआ. सन 2012 में दीपा समरजीत के साथ भाग गई. समरजीत प्रेमिका को ले कर हरिद्वार में अपने एक परिचित के यहां चला गया. तब रामसनेही ने थाना कूंडे़भार में बेटी के गायब हेने की सूचना दर्ज करा दीचूंकि गांव से समरजीत भी गायब था. इसलिए लोगों को यह बात समझते देर नहीं लगी कि दीपा समरजीत के संग ही भागी है. तब रामसनेही ने गांव में पंचायत बुला कर पंचों की मार्फत समरजीत के पिता सूर्यभान सिंह पर अपनी बेटी को ढूंढ़ने का दबाव बनाया.

आज भी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के कुछ गांवों में पंचों की बातों का पालन किया जाता है. सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए कई मामलों में पंचायतों के फैसले सही भी होते हैं. अपनी मानमर्यादा और सामाजिक दबाव को देखते हुए लोग पंचों की बात का पालन भी करते हैं. पंचायती फैसले के बाद सूर्यभान सिंह ने अपने स्तर से समरजीत और दीपा को तलाशना शुरू किया. बाद में उसे पता लगा कि समरजीत और दीपा हरिद्वार में हैं तो वह उन दोनों को हरिद्वार से गांव ले आया. दोनों के घर वालों ने उन्हें फिर से समझाया. समरजीत और दीपा कुछ दिनों तक तो ठीक रहे, इस के बाद उन्होंने फिर से मिलनाजुलना शुरू कर दिया. फिर वे दोनों अंबाला भाग गए. वहां पर समरजीत की बड़ी बहन रहती थी. समरजीत दीपा को ले कर बहन के यहां ही गया था. उस ने भी उन दोनों को समझाया. उस ने पिता को इस की सूचना दे दी. सूर्यभान सिंह इस बार भी उन दोनों को गांव ले आए.

बेटी के बारबार भागने पर रामसनेही और उस के परिवार की खासी बदनामी हो रही थी. अब उस के पास एक ही रास्ता था कि उस की शादी कर दी जाए. लिहाजा उस ने उस की फटाफट शादी करने का प्लान बनाया. वह उस के लिए लड़का देखने लगादीपा को जब पता चला कि घर वाले उस की जल्द से जल्द शादी करने की फिराक में हैं तो उस ने आखिर अपनी मां से कह ही दिया कि वह समरजीत के अलावा किसी और से शादी नहीं करेगी. उस की इस जिद पर मां ने उस की पिटाई कर दी. इस के बाद 27 फरवरी, 2013 को दीपा और समरजीत तीसरी बार घर से भाग गए. इस बार समरजीत उसे दिल्ली ले गया. दक्षिणपूर्वी दिल्ली के पुल प्रहलादपुर गांव में समरजीत के भाई धर्मेंद्र और अरविंद रहते थे. वह उन्हीं के पास चला गया. बाद में समरजीत और दीपा ने मंदिर में शादी कर ली. फिर उसी इलाके में कमरा ले कर पतिपत्नी की तरह रहने लगे.

पुल प्रहलादपुर में रामसनेही के कुछ परिचित भी रहते थे. उन्हीं के द्वारा उसे पता चला कि दीपा समरजीत के साथ दिल्ली में रह रही है. खबर मिलने के बावजूद भी रामसनेही ने उसे वहां से लाना जरूरी नहीं समझा. वह जानता था कि दीपा घर से 2 बार भागी और दोनों बार उसे घर लाया गया था. जब वह घर रुकना ही नहीं चाहती तो उसे फिर से घर लाने से क्या फायदा. समरजीत के भाई अरविंद और धर्मेंद्र ड्राइवर थे. जबकि समरजीत को फिलहाल कोई काम नहीं मिल रहा था. उस की गृहस्थी का खर्चा दोनों भाई उठा रहे थेसमरजीत भाइयों पर ज्यादा दिनों तक बोझ नहीं बनना चाहता था, इसलिए कुछ दिनों बाद ही एक जानकार की मार्फत ओखला फेज-1 स्थित एक सिक्योरिटी कंपनी में नौकरी कर ली. उस की चिंता थोड़ी कम हो गई.

दोनों की गृहस्थी हंसीखुशी से चल रही थी. चूंकि समरजीत सिक्योरिटी गार्ड के रूप में काम कर रहा था, इसलिए कभी उस की ड्यूटी नाइट की लगती थी तो कभी दिन की. वह मन लगा कर नौकरी कर रहा था. जिस वजह से वह पत्नी की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दे पा रहा था. इस का नतीजा यह निकला कि पास में ही रहने वाले एक युवक से दीपा के नाजायज संबंध बन गए. समरजीत दीपा को जीजान से चाहता था, इसलिए उसे पत्नी पर विश्वास था. लेकिन उसे इस बात की भनक तक नहीं लगी कि उस के विश्वास को धता बता कर वह क्या गुल खिला रही है. कहते हैं कि कोई भी गलत काम ज्यादा दिनों तक छिपाया नहीं जा सकता. एक एक दिन किसी तरीके से वह लोगों के सामने ही जाता है.

दीपा की आशिकमिजाजी भी एक दिन समरजीत के सामने गई. हुआ यह था कि एक बार समरजीत की रात की ड्यूटी लगी थी. वह शाम 7 बजे ही घर से चला गया था. दीपा को पता था कि पति की ड्यूटी रात 8 बजे से सुबह 8 बजे तक की है. जब भी पति की रात की ड्यूटी होती थी, दीपा प्रेमी को रात 10 बजे के करीब अपने कमरे पर बुला लेती थी. मौजमस्ती करने के बाद वह रात में ही चला जाता था. उस दिन भी उस ने अपने प्रेमी को घर बुला लिया.  रात 11 बजे के करीब समरजीत की तबीयत अचानक खराब हो गई. ड्यूटी पर रहते वह आराम नहीं कर सकता था. वह चाहता था कि घर जा कर आराम करे. लेकिन उस समय घर जाने के लिए उसे कोई सवारी नहीं मिल रही थी. इसलिए उस ने अपने एक दोस्त से घर छोड़ने को कहा. तब दोस्त अपनी मोटरसाइकिल से उसे उस के कमरे के बाहर छोड़ आया.

समरजीत ने जब अपने कमरे का दरवाजा खटखटाया तो प्रेमी के साथ गुलछर्रे उड़ा रही दीपा दरवाजे की दस्तक सुन कर घबरा गई. उस के मन में विचार आया कि पता नहीं इतनी रात को कौन गया. प्रेमी को बेड के नीचे छिपने को कह कर उस ने अपने कपड़े संभाले और बेमन से दरवाजे की तरफ बढ़ी. जैसे ही उस ने दरवाजा खोला, सामने पति को देख कर वह चौंक कर बोली, ‘‘तुम, आज इतनी जल्दी कैसे गए?’’

‘‘आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है इसलिए ड्यूटी बीच में ही छोड़ कर गया.’’ समरजीत कमरे में घुसते हुए बोला. कमरे में बेड के नीचे दीपा का प्रेमी छिपा हुआ था. दीपा इस बात से डर रही थी कि कहीं आज उस की पोल खुल जाए. समरजीत की तो तबीयत खराब थी. वह जैसे ही बेड पर लेटा, उसी समय बेड के नीचे से दीपा का प्रेमी निकल कर भाग खड़ा हुआ. अपने कमरे से किसी आदमी को निकलते देख समरजीत चौंका. वह उस की सूरत नहीं देख पाया था. समरजीत उस भागने वाले आदमी को भले ही नहीं जानता था, लेकिन उसे यह समझते देर नहीं लगी कि उस की गैरमौजूदगी में यह आदमी कमरे में क्या कर रहा होगावह गुस्से में भर गया. उस ने पत्नी से पूछा, ‘‘यह कौन था और यहां क्यों आया था?’’

‘‘पता नहीं कौन था. कहीं ऐसा तो नहीं कि वह चोर हो. कोई सामान चुरा कर तो नहीं ले गया.’’ दीपा ने बात घुमाने की कोशिश करते हुए कहा और संदूक का ताला खोल कर अपना कीमती सामान तलाशने लगीतभी समरजीत ने कहा, ‘‘तुम मुझे बेवकूफ समझती हो क्या? मुझे पता है कि वह यहां क्यों आया था. उसे जो चीज चुरानी थी, वह तुम ने उसे खुद ही सौंप दी. अब बेहतर यह है कि जो हुआ उसे भूल जाओ. आइंदा यह व्यक्ति यहां नहीं आना चाहिए. और ही ऐसी बात मुझे सुनने को मिलनी चाहिए.’’

पति की नसीहत से दीपा ने राहत की सांस ली. समरजीत तबीयत खराब होने पर घर आराम करने आया था, लेकिन आराम करना भूल कर वह रात भर इसी बात को सोचता रहा कि जिस दीपा के लिए उस ने अपना गांव छोड़ा, उसे पत्नी बनाया, उसी ने उस के साथ इतना बड़ा विश्वासघात क्यों किया. वह इस बात को अच्छी तरह जानता था कि जब कोई भी महिला एक बार देहरी लांघ जाती है तो उस पर विश्वास करना मूर्खता होती है. अगले दिन जब वह ड्यूटी पर गया तो वहां भी उस का मन नहीं लगा. उस के मन में यही बात घूम रही थी कि दीपा अपने यार के साथ गुलछर्रे उड़ा रही होगी. घर लौटने के बाद उस ने अपने भाइयों अरविंद और धर्मेंद्र से दीपा के बारे में बात की. यह बात उस ने अपने मामा नरेंद्र को भी बताई

उन सभी ने फैसला किया कि ऐसी कुलच्छनी महिला की चौकीदारी कोई हर समय तो कर नहीं सकता. इसलिए उसे खत्म करना ही आखिरी रास्ता है. दीपा को खत्म करने का फैसला तो ले लिया, लेकिन अपना यह काम उसे कहां और कब करना है, इस की उन्होंने योजना बनाई. काफी सोचनेसमझने के बाद उन्होंने तय किया कि दीपा को दिल्ली में मारना ठीक नहीं रहेगा, क्योंकि लाख कोशिशों के बाद भी वह दिल्ली पुलिस से बच नहीं पाएंगे. अपने जिला क्षेत्र में ले जा कर ठिकाने लगाना उन्हें उचित लगा. समरजीत को पता था कि दीपा सुलतानपुर जाने के लिए आसानी से तैयार नहीं होगी. उसे झांसे में लेने के लिए उस ने एक दिन कहा, ‘‘दीपा, सुलतानपुर के ही नगईपुर में मेरे मामा रहते हैं. उन के कोई बच्चा नहीं है और उन के पास जमीनजायदाद भी काफी है. उन्होंने हम दोनों को अपने यहां रहने के लिए बुलाया है. तुम्हें तो पता ही है कि दिल्ली में हम लोगों का गुजारा बड़ी मुश्किल से हो रहा है. इसलिए मैं चाहता हूं कि हम लोग कुछ दिन मामा के घर पर रहें.’’

पति की बात सुन कर दीपा ने भी सोचा कि जब उन की कोई औलाद नहीं है तो उन के बाद सारी जायदाद पति की ही हो जाएगी. इसलिए उस ने मामा के यहां रहने की हामी भर दी. 23 दिसंबर, 2013 को समरजीत दीपा को ट्रेन से सुलतानपुर ले गया. उस के साथ दोनों भाई अरविंद और धर्मेंद्र भी थे. जब वे सुलतानपुर स्टेशन पहुंचे, अंधेरा घिर चुका था. नगईपुर सुलतानपुर स्टेशन से दूर था. नगईपुर गांव से पहले ही समरजीत के मामा नरेंद्र का आम का बाग था. प्लान के मुताबिक नरेंद्र उन का उसी बाग में पहले से ही इंतजार कर रहा था. बाग के किनारे पहुंच कर तीनों भाइयों ने दीपा की गला घोंट कर हत्या कर दी और बाग में ही गड्ढा खोद कर लाश को दफना दिया.

जिस गड्ढे में उन्होंने लाश दफन की थी, जल्दबाजी में वह ज्यादा गहरा नहीं खोदा गया था. नरेंद्र को इस बात का अंदेशा हो रहा था कि जंगली जानवर मिट्टी खोद कर लाश खाने लगें. ऐसा होने पर भेद खुलना लाजिमी था इसलिए इस के 2 दिनों बाद नरेंद्र रात में ही अकेला उस बाग में गया और वहां से 20-25 कदम दूर दूसरा गहरा गड्ढा खोदा. फिर पहले गड्ढे से दीपा की लाश निकालने के बाद उस ने उसे उसी की शाल में गठरी की तरह बांध दियाउस गठरी को उस ने दूसरे गहरे गड्ढे में दफना कर उस के ऊपर आम का एक पेड़ लगा दिया ताकि किसी को कोई शक हो. दीपा को ठिकाने लगाने के बाद वे इस बात से निश्चिंत थे कि उन के अपराध की किसी को भनक लगेगी. यह जघन्य अपराध करने के बाद अरविंद और धर्मेंद्र पहले की ही तरह बनठन कर घूम रहे थे. उन को देख कर कोई अनुमान भी नहीं लगा सकता था कि उन्होंने हाल ही में कोई बड़ा अपराध किया है.

गांव के ज्यादातर लोगों को पता था कि दीपा दिल्ली में समरजीत के साथ पत्नी की तरह रह रही है. जब उन्होंने समरजीत को गांव में अकेला देखा तो उन्होंने उस से दीपा के बारे में पूछाजब दीपा के पिता रामसनेही को भी जानकारी मिली कि समरजीत के साथ दीपा गांव नहीं आई है तो उस ने उस से बेटी के बारे में पूछा. तब समरजीत ने उसे झूठी बात बताई कि दीपा एक महीने पहले उस से झगड़ा कर के दिल्ली से गांव जाने की बात कह कर गई थी. समरजीत की यह बात सुन कर रामसनेही घबरा गया था. फिर वह बेटी की छानबीन करने दिल्ली पहुंचा और बाद में दिल्ली के पुल प्रहलादपुर थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी.

इस के बाद ही पुलिस अभियुक्तों तक पहुंची. पुलिस ने समरजीत, अरविंद, धर्मेंद्र और मामा नरेंद्र को अपहरण कर हत्या और लाश छिपाने के जुर्म में गिरफ्तार कर 9 जनवरी, 2013 को दिल्ली के साकेत न्यायालय में महानगर दंडाधिकारी पवन कुमार की कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

   —कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

Husband Wife Story- तृष्णा : दीपक और दीप्ति के रिश्ते की क्या थी सच्चाई ?

Husband Wife Story: पार्टी पूरे जोरशोर से चल रही थी. दीप्ति और दीपक की शादी की आज 16वीं सालगिरह थी. दोनों के चेहरे खुशी से दमक रहे थे. दोनों ही नोएडा में रहते हैं. वहां दीप्ति एक कंपनी में सीनियर मैनेजर की पोस्ट पर नियुक्त है तो दीपक बहुराष्ट्रीय कंपनी में वाइस चेयरमैन.

दीप्ति की आसमानी रंग की झिलमिल साड़ी सब पर कहर बरपा रही थी. दोनों ने अपने करीबी दोस्तों को बुला रखा था. जहां दीपक के दोस्त दीप्ति की खूबसूरती को देख कर ठंडी आहें भर रहे थे, वहीं दीपक का दीप्ति के प्रति दीवानापन देख कर उस की सहेलिया भले हंस रही हों पर मन ही मन जलभुन रही थीं.

केक काटने के बाद कुछ कपल गेम्स का आयोजन किया गया. उन में भी दीप्ति और दीपक ही छाए रहे. पार्टी खत्म हो गई. सब दोस्तों को बिदा करने के बाद दीप्ति और दीपक भी अपनेअपने कमरे रूपी उन ग्रहों में छिप गए

जहां पर बस वे ही थे. वे आज के उन युगलों के लिए उदाहरण हैं जो साथ हो कर भी साथ नहीं हैं. दोनों ही, जिंदगी की दौड़ में इतना तेज भाग रहे हैं कि उन के हाथ कब छूट गए, पता ही

नहीं चला.

आज रात को बैंगलुरु से दीपक की दीदी आ रही थीं. दीप्ति ने पूरे दिन की छुट्टी

ले ली. नौकरों की मदद से घर की सज्जा में थोड़ा परिवर्तन कर दिया. दीपक भी सीधे दफ्तर से

दीदी को लेने एअरपोर्ट चला गया. शाम 7 बजे दरवाजे की घंटी बजी, तो दीप्ति ने दौड़ कर दरवाजा खोला. अपनी ससुराल में वह सब से करीब शिखा दीदी के ही थी. शिखा एक बिंदास 46 वर्षीय स्मार्ट महिला थी, जो दूध को दूध और पानी को पानी ही बोलती है. शिखा के साथ ही वह दीपक, अपने सासससुर की भी बिना हिचक के बुराई कर सकती है. शिखा के साथ उस का ननद का नहीं, बल्कि बड़ी दीदी का रिश्ता था.

शिखा मैरून सूट में बेहद दिलकश लग

रही थी. दीप्ति भी सफेद गाउन में बहुत सुंदर लग रही थी.

दीप्ति को बांहों में भरते हुए शिखा बोली, ‘‘दीप्ति तुम कब अधेड़ लगोगी, अभी भी बस

16 साल की लग रही हो.’’

‘‘जिस दिन तेरा मोटापा थोड़ा कम होगा मोटी,’’ पीछे से दीपक की हंसी सुनाई दी.

रात के खाने में सबकुछ शिखा की पसंद का था. चिल्ली पनीर, फ्राइड राइस, मंचूरियन, रूमाली रोटी और गाजर का हलवा.

‘‘ऐसा लगता ही नहीं कि भाभी के घर आई हूं. ऐसा लगता है कि मम्मीपापा के घर में हूं,’’ शिखा भर्राई आवाज में बोली.

सुबह शिखा जब 9 बजे सो कर उठी तो दीप्ति नाश्ते की तैयारी में लगी हुई थी.

‘‘घर मेरी भतीजियों के बिना कितना सुनसान लग रहा है,’’ शिखा ने कहा तो दीप्ति और दीपक एकदूसरे की तरफ सूनी आंखों से देख रहे हैं,यह दीदी की अनुभवी आंखों से छिपा नहीं रहा.

जैसे एक आम शादी में होता है, ऐसी ही कुछ कहानी उन की शादी की भी थी. कुछ सालों तक वे भी एकदूसरे में प्यार के गोते लगाते रहे और समय बीततेबीतते उन का प्यार भी खत्म हो गया. फिर शुरू हुई एकदूसरे को अपने जैसा बनाने की खींचातानी. उस खींचातानी में रिश्ता कहां चला गया, किसी को नहीं पता चला. दोनों में फिर भी इतनी समझदारी थी कि अपने रिश्ते की कड़वाहट उन्होंने कभी अपने परिवार और बच्चों के आगे जाहिर नहीं करी. उन्होंने अपनी दोनों बेटियों को बोर्डिंग में डाल दिया था ताकि वे उन के रिश्ते के बीच बढ़ती खाई को महसूस न कर पाएं.

‘‘दीदी, दीपक का कुछ ठीक नहीं है. वे अकसर रात का डिनर बाहर कर के आते हैं,’’ दीप्ति सपाट स्वर में बोली और फिर मोबाइल में व्यस्त हो गई.

शिखा पूरे 4 वर्ष बाद भाईभाभी के पास आई थी पर उसे ऐसा लग रहा था जैसे 4 दशक बाद आई हो.

शिखा मन ही मन मनन कर रही थी कि कहीं न कहीं ऐसा भी होता है जब

जीवन में बहुत कुछ और बहुत जल्दी मिल जाता है तो पता ही नहीं चलता कब एक बोरियत भी रिश्ते में आ गई है. यह संघर्ष ही तो है जो हमें जिंदगी को जिंदादिली से जीने की राह दिखाता है.

दीपक अपने ही औफिस में एक तलाकशुदा महिला निधि के साथ अपना ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताना पसंद करने लगा था, क्योंकि उस के साथ उसे ताजगी महसूस होती थी.

‘‘सुनो, आज रात बाहर डिनर करेंगे,’’ दीपक के बालों में हाथ फेरते हुए निधि ने कहा.

‘‘यार दीदी आई हुई हैं… बताया तो था मैं ने,’’ दीपक ने कहा.

निधि ने थोड़े तेज स्वर में कहा, ‘‘भूल गए, मंगलवार और शुक्रवार की शाम मेरी है,’’ और फिर झुक कर दीपक को चूम लिया.

दीपक का रोमरोम रोमांचित हो उठा. यही तो वह रोमांच है जिसे वह अपने विवाह में मिस करता है. उस रात आतेआते 12 बज गए. शिखा सोई नहीं थी, वह बाहर ड्राइंगरूम में ही बैठ कर काम कर रही थी. दीपक शिखा को देख कर ठिठक गया.

‘‘भाई, यह क्या समय है घर आने का? अभी तो मैं हूं पर वैसे दीप्ति क्या करती होगी,’’ शिखा ने चिंतित स्वर में कहा. दीपक सीधे अंदर बैडरूम में चला गया और दीप्ति को बांहों में उठा कर ले आया.

‘‘मोटी प्यार तो मैं अब भी उतना ही करता हूं दीप्ति से, बस जिम्मेदारियां सिर उठाने ही नहीं देती,’’ दीपक बोला.

दीप्ति हंसते हुए दीपक के लिए कौफी बनाने चली गई, पर शिखा को इस प्यार में स्वांग अधिक और गरमाहट कम लग रही थी. पर उस ने अधिक तहकीकात करने की जरूरत इसलिए नहीं समझी, क्योंकि उसे खुद पता था कि वैवाहिक जीवन में ऐसे उतारचढ़ाव आते रहते हैं… उसे दोनों की समझदारी पर पूरा भरोसा था.

जब शिखा अपना सामान पैक कर रही थी तो अचानक दीप्ति उस के गले लग कर रोने लगी. उस रोने में एक खालीपन है, यह बात शिखा से छिपी न रह सकी.

‘‘क्या बात है दीप्ति, कुछ समस्या है तो बताओ… मैं उसे सुलझाने की कोशिश करूंगी.’’

‘‘नहीं, आप जा रही हैं तो मन भर आया,’’ दीप्ति ने खुद को काबू करते हुए कहा.

ऐसी ही एक ठंडी रात दीप्ति फेसबुक पर कुछ देख रही थी कि अचानक उस ने एक मैसेज देखा जो किसी संदीप ने भेजा था, ‘‘क्या आप शादीशुदा हैं?’’

भला ऐसी कौन सी महिला होगी जो इस बात से खुश न होगी? लिखा, ‘‘मैं पिछले 15 सालों से शादीशुदा हूं और 2 बेटियों की मां हूं.’’

संदीप ‘‘झूठ मत बोलो,’’ और कुछ दिल

के इमोजी…

दीप्ति, ‘‘दिल हथेली पर रख कर चलते

हो क्या?’’

संदीप, ‘‘सौरी पर आप खूबसूरत ही

इतनी हैं.’’

ऐसे ही इधरउधर की बात करतेकरते 1 घंटा बीत गया और दीप्ति को पता भी नहीं चला. बहुत दिनों बाद उसे हलका महसूस हो रहा था.

अब दीप्ति भी संदीप के साथ चैटिंग में एक अनोखा आनंद का अनुभव करने लगी. अब उतना खालीपन नहीं लगता था.

संदीप दीप्ति से 8 वर्ष छोटा था और देखने में बेहद आकर्षक था. संदीप जैसा

आकर्षक युवक दीप्ति के प्यार में पड़ गया है, यह बात दीप्ति को एक अनोखे नशे से भर देती थी.

दीप्ति अपने रखरखाव को ले कर काफी सहज हो गई थी… कभीकभी तो युवा और आकर्षक दिखने के चक्कर में वह हास्यास्पद भी लगने लगती.

आज दीप्ति को संदीप से मिलने जाना था. वह जैसे ही औफिस में पहुंची, लोग उसे आश्चर्य से देखने लगे. काली स्कर्ट और सफेद शर्ट में वह थोड़ी अजीब लग रही थी. उस के शरीर का थुलथुलापन साफ नजर आ रहा था. जब वह संदीप के पास पहुंची तो संदीप भी कुछ देर तक तो चुप रहा, फिर बोला, ‘‘आप बहुत सैक्सी लग रही हो, एकदम कालेजगर्ल.’’

दोनों काफी देर तक बातें करते रहे. कार में बैठ कर संदीप अपना संयम खोने लगा तो दीप्ति ने भी उसे रोकने की कोशिश नहीं करी. कब दीप्ति संदीप के साथ उस के फ्लैट पहुंच गई, उसे भी पता न चला. भावनाओं के ज्वारभाटा में सब बह गया. पर दीप्ति को कोई पछतावा न था, क्योंकि इस खुशी और शांति के लिए वह तरस गई थी.

कपड़े पहनती हुई दीप्ति से संदीप बोला, ‘‘अब सेवा का मौका कब मिलेगा.’’

दीप्ति मुसकराते हुए बोली, ‘‘तुम बहुत खराब हो.’’

शुरूशुरू में दीपक और दीप्ति दोनों ही आसमान में उड़ रहे थे पर उन

के नए रिश्ते की नीव ही भ्रम पर थी. कुछ पल की खुशी फिर लंबी तनहाई और खामोशी.

आज संदीप का जन्मदिन था. दिप्ति उसे सरप्राइज देना चाहती थी. सुबह ही वह संदीप के फ्लैट की तरफ चल पड़ी. उपहार उस ने रात में ही ले लिया था.

5 मिनट तक घंटी बजती रही, फिर किसी अनजान युवक ने दरवाजा खोला, ‘‘जी कहिए, किस से मिलना है आंटी?’’

दीप्ति बहुत बार आई थी पर संदीप ने

कभी नहीं बताया था कि वह फ्लैट और लोगों के साथ शेयर कर रहा है. बोली, ‘‘जी, संदीप से मिलना है,’’

तभी संदीप भी आंखें मलते हुए आ गया और कुछ रूखे स्वर में बोला, ‘‘जी मैडम बोलिए. क्या काम है… पहले भी बोला था बिना फोन किए मत आया कीजिए.’’

दीप्ति कुछ न बोल पाई. जन्मदिन की शुभकामना तक न दे पाई, गिफ्ट भी वहीं छोड़ कर बाहर निकल गई.

जातेजाते उस के कानों में यह स्वर टकरा गया, ‘‘यार ये आंटी क्या पागल हैं, जो तुझ से मिलने सुबहसुबह आ गईं.’’

संदीप ने पता नहीं क्या कहा पर एक सम्मिलित ठहाका उसे अवश्य सुनाई दे रहा था जो दूर तक उस का पीछा करता रहा. वह दफ्तर जाने के बजाय घर आ गई और बहुत देर तक अपने को आईने में देखती रही. हां, वह आंटी ही तो है पर सब से अधिक दुख उसे इस बात का था कि संदीप ने उसे अपने दोस्तों के आगे पूरी तरह नकार दिया था.

1 हफ्ते तक दीप्ति और संदीप के बीच मौन पसरा रहा पर फिर अचानक एक दिन एक मैसेज आया, ‘‘जान, आज मौसम बहुत बेईमान है. आ जाओ फ्लैट पर.’’

दीप्ति ने मैसेज अनदेखा कर दिया. चंद मुलाकातों के बाद ही अब संदीप उसे बस ऐसे

ही याद करता था. औफिस पहुंची ही थी कि

फिर से मैसेज आया, ‘‘जानू आई एम सौरी,

प्लीज एक बार आ जाओ. मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं.’’

दीप्ति जानती थी वह झूठ बोल रहा है पर फिर भी दफ्तर के बाद संदीप के फ्लैट पर चली गई. शायद सबकुछ हमेशा के लिए खत्म करने के लिए पर फिर से वही कहानी दोहराई गई.

दीप्ति, ‘‘संदीप, तुम्हें मेरी याद बस

इसीलिए आती है. उस रोज तो तुम मुझे मैडम बुला रहे थे.’’

‘‘तुम क्या बुलाओगी दीपक के सामने मुझे और ये जो हम करते हैं उस में तुम्हें भी उतना ही मजा आता है दीप्ति. हम दोनों जरूरतों के लिए बंधे हुए हैं,’’ संदीप ने उसे आईना दिखाया.

दीप्ति को बुरा लगा पर यह वो कड़वी सचाई थी, जिसे वह सुनना नहीं चाहती थी.

संदीप ने उसे बांहों में भर लिया, ‘‘ज्यादा सोचो मत. जो है उसे ऐसे ही रहने दो. भावनाओं को बीच में मत लाओ.’’

दीप्ति थके  कदमों से अपने घररूपी सराय में चली गई. क्यों वह सबकुछ जान कर भी बारबार संदीप की तरफ खिंची जाती है, यह रहस्य उसे समझ नहीं आता.

काश, वह लौट पाए पुराने समय में, पर यह एक खालीपन था जिसे वह चाह कर भी नहीं भर पा रही थी. अपने को औरत महसूस करने के लिए उसे चाहेअनचाहे संदीप की जरूरत महसूस होती थी.

घर जा कर बैठी ही थी कि दीपक गुनगुनाता हुआ घर में घुसा. दीप्ति से बोला, ‘‘3 दिन की मीटिंग के लिए कोलकाता जा रहा हूं… पैकिंग कर देना.’’

‘‘तुम्हारी खुशी देख कर तो नहीं लग रहा तुम मीटिंग के लिए जा रहे हो.’’

‘‘यार तो रोते हुए जाऊं क्या?’’

दीप्ति को खुद समझ नहीं आ रहा था कि उसे ईर्ष्या क्यों हो रही है. वह खुद भी तो यही सब कर रही है.

दीपक के जाने के बाद एक बार मन करा कि संदीप को बुला ले पर फिर उस ने अपने को रोक लिया. संदीप को भावनाओं से ज्यादा शरीर की दरकार थी. आज उसे अपना मन बांटना था पर समझ नहीं आ रहा था क्या करे. मन किया दीपक को फोन कर ले और बोले लौट आओ उन्हीं राहों पर जहां सफर की शुरुआत करी थी पर अहम होता है न वह बड़ेबड़े रिश्तों को घुन की तरह खा जाता है.

न जाने क्या सोचते हुए उस ने शिखा को फोन लगा लिया और बिना रुके अपने मन की बात कह दी, पर संदीप की बात वह जानबूझ कर छिपा गई. शिखा ने शांति से सब सुना और बस कहा कि जो तुम्हें खुशी दे वह करो. मैं तुम्हारे साथ हूं.

उधर होटल में चैक इन करते हुए दीपक बहुत तरोताजा महसूस कर रहा था. निधि भी आई थी. दोनों ने अगलबगल के कमरे लिए थे. दीपक को काम और सुविधा का यह समागम बहुत अच्छा लगता था.

‘‘निधि, जल्दी से तैयार हो जाओ, थोड़ा कोलकाता को महसूस कर लें आज,’’ दीपक ने फोन पर कहा.

‘‘जी जनाब,’’ उधर से खनकती हंसी सुनाई दी निधि की.

केले के पत्ते के रंग की साड़ी, नारंगी प्रिंटेड ब्लाउज साथ में लाल बिंदी और चांदी के झुमके, दीपक उसे एकटक देखता रह गया. फिर बोला, ‘‘निधि यों ही नहीं तुम पर मरता हूं मैं… कुछ तो बात है जो तुम्हें औरों से जुदा कर देती है.’’

शौपिंग करते हुए दीपक ने दीप्ति के लिए 3 महंगी साडि़यां खरीदीं, यह

बात निधि की आंखों से छिपी न रही. वह उदास हो गई.

‘‘निधि क्या बात है, तुम्हें भी तो मैं ने दिलाई हैं तुम्हारी पसंद की साडि़यां.’’

‘‘हां, दोयम दर्जे का स्थान है मेरा तुम्हारे जीवन में.’’

‘‘दिमाग खराब मत करो तुम पत्नियों की तरह,’’ दीपक चिढ़े स्वर में बोला.

‘‘हां, वह हक भी तो दीप्ति के पास ही है,’’ निधि ने संयत स्वर में हा.

वह रात ऐसे ही बीत गई. जाने यह कैसा नशा है जो न चढ़ता है न ही उतरता है बस चंद लमहों की खुशी के बदले तिलतिल तड़पना है.

सुबह की मीटिंग निबटाने के बाद जब दीपक निधि के रूम में गया तो उसे तैयार

होते पाया.

‘‘क्या बात है, आज मेरे कहे बिना ही तैयार हो गई हो?’’ पीले कुरते और केसरी पाजामी में वह एकदम सुरमई शाम लग रही थी.

‘‘मैं आज की शाम संजय के साथ जा रही हूं. तुम्हें भी चलना है तो चलो. वह मेरा सहपाठी था, फिर पता नहीं कब मिले,’’ निधि बोली.

दीपक बोला, ‘‘जब बिना पूछे तय ही कर लिया तो अब यह नाटक क्यों कर रही हो?’’

निधि ने अपनी काजल भरी आंखों को और बड़ा करते हुए कहा, ‘‘क्यों पति की तरह बोर कर रहे हो,’’ और फिर मुसकराते हुए वह तीर की तरह निकल गई.

दीपक सारी शाम उदास बैठा रहा. मन करा दीप्ति को फोन लगाए और बोले कि दीप्ति मुझे वैसा ही ध्यान और प्यार चाहिए जैसा तुम पहले देती थी.

‘‘दीप्ति बहुत याद आ रही है तुम्हारी,’’ उस ने मैसेज किया.

‘‘क्यों क्या काम है, बिना किसी चापलूसी के भी कर दूंगी,’’ उधर से रूखा जवाब आया.

दीपक ने फोन ही बंद कर दिया.

जहां दीप्ति को संदीप के साथ जिस रिश्ते में पहले ताजगी महसूस होती थी वह भी अब बासी होने लगा था. उधर जब से निधि अपने सहपाठी संजय से मिली थी उस का मन उड़ा रहता था. संजय ने अब तक विवाह नहीं किया था और निधि को उस के साथ अपना भविष्य दिख रहा था जबकि दीपक के लिए वह बस एक समय काटने का जरीया थी. वह उस की प्राथमिकता कभी नहीं बन सकती थी.

आज दीप्ति घर जल्दी आ गई थी. घर हमेशा की तरह सांयसांय कर रहा था. उस ने अपने लिए 1 कप चाय बनाई और बालकनी में बैठ गई. 2 घंटे बीत गए, विचारों के जंगल में घूमते हुए. तभी उस ने देखा कि दीपक की कार आ रही है. उसे आश्चर्य हुआ कि दीपक आज इतनी जल्दी कैसे आ गया.

उस ने दीपक से पूछा, ‘‘आज इतनी

जल्दी कैसे?’’

दीपक बोला, ‘‘कहो तो वापस चला जाऊं?’’

दीप्ति हंस कर बोली, ‘‘नहीं, ऐसे ही पूछ रही थी.’’

उस की बात का कोई जवाब दिए बिना दीपक सीधा अपने कमरे में चला गया और अपनी शादी की सीडी लगा कर बैठ गया. दीप्ति भी आ कर बैठ गई.

दोनों अकेले भावनाओं के बियाबान के जंगल में घूमने लगे. मन भीग रहे थे पर लौट कर आने का साहस कौन पहले करेगा.

बिस्तर पर करवट बदलते हुए दीप्ति पुराने दिनों की यादों में चली गई. जब

वह और दीपक हंसों के जोड़े के रूप में मशहूर थे. दोनों हर टाइम एकदूसरे के साथ रहने का बहाना ढूंढ़ते थे. फिर एक के बाद एक जिम्मेदारियां बढ़ीं और न जाने कब और कैसे एक अजीब सी चिड़चिड़ाहट दोनों के स्वभाव में आ गई. फलस्वरूप दोनों की नजदीकियां शादी से बाहर बढ़ने लगीं. यही सोचते हुए कब सुबह हो गई दीप्ति को पता ही नहीं चला.

औफिस में जा कर दीप्ति अपने काम में डूब गई. उस ने अपनेआप को काम में पूरी तरह डुबो दिया. अब वह इस मृगतृष्णा से बाहर जाना चाहती थी और उस के लिए हौबी क्लासेज जौइन कर लीं ताकि उस का अकेलापन उसे संदीप की तरफ न ले जाए.

दीपक दफ्तर में मन ही मन कुढ़ रहा था. उस ने निधि को मैसेज भी किया था, पर निधि का मैसेज आया था कि वह बिजी है. दीपक भी अब निधि के नखरों और बेरुखी से परेशान आ चुका था.

उस ने मन ही मन निश्चय कर लिया कि अब वह शिखा के कहे अनुसार अपनी बेटियों को वापस ले आएगा. पिछले 1 महीने से वह दफ्तर से घर समय पर आ रहा था. उधर दीप्ति भी धीरेधीरे आगे बढ़ने की कोशिश कर रही थी.

वह सुबह भी आम सी ही थी जब दीपक ने जिम के जानेपहचाने चेहरों के बीच एक ताजा चेहरा देखा. प्रिया नाम था उस का. बेहद चंचल और खूबसूरत.

न जाने क्यों दीपक बारबार उस की ओर ही देखे जा रहा था. प्रिया भी कनखियों से उसे देख लेती थी. उधर दीप्ति के मोबाइल पर फिर से संदीप का मैसेज था जिसे दीप्ति पढ़ते हुए मुसकरा रही थी. फिर से दोनों के दिमाग और दिल पर एक बेलगाम नशा हावी हो रहा था. एक जाल, एक रहस्य ही तो हैं ये रिश्ते. ये तृष्णा अब उन्हें किस मोड़ पर ले कर जाएगी, यह शायद वे नहीं जानते थे.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें