मेरी गर्लफ्रैंड को टाइम पर पीरियड नहीं आया, कहीं वह प्रेग्नेंट तो नहीं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 24 साल का हूं और मेरी गर्लफ्रैंड 25 साल की. मैं ने पिछले दिनों 2-3 बार गर्लफ्रैंड के साथ बिना कंडोम लगाए सैक्स किया. गर्लफ्रैंड ने हालांकि 72 घंटे की मैडिकल लिमिट के अंदर ही इमरजैंसी कौंट्रासैप्टिव पिल ली पर अब हम दोनों की ही टैंशन बढ़ गई है. गर्लफ्रैंड को 20 से 27वें दिन के बीच पीरियड्स आता है, जो इस बार नहीं आया. क्या वह प्रैगनैंट है?

जवाब-

कंडोम की तरह ही इमरजैंसी पिल्स गर्भधारण रोकने का एक माध्यम हैं. मगर इन्हें आमतौर पर तब लिया जाता है जब सैक्स संबंध अनायास बन जाए और उस दौरान गर्भनिरोध के किसी भी तरीके को अपनाया न जाए. इमरजैंसी कौंट्रासैप्टिव पिल को सैक्स के बाद 72 घंटे के अंदर लेना होता है. 72 घंटे से पहले इसे लेने से गर्भ ठहरने की संभावना को काफी हद तक टाला जा सकता है.

संभव है कि आप की गर्लफ्रैंड को इमरजैंसी पिल लेने की वजह से उस के रक्त में मौजूद हारमोंस का संतुलन बिगड़ गया हो. संभव यह भी है कि उस का मासिकधर्म लेट हो. बेहतर होगा कि आप अपनी गर्लफ्रैंड से कहें कि वह यूरीन प्रैगनैंसी टैस्ट कर ले. यह घर पर भी आसानी से किया जा सकता है.

सैक्स में उतावलापन या जल्दबाजी सही नहीं होती और बिना कंडोम यौन संबंध बनाना नई मुसीबत को जन्म देता है. इसलिए आगे से जब भी सैक्स संबंध बनाएं कंडोम का इस्तेमाल जरूर करें ताकि आप दोनों ही बिना किसी भय के सैक्स का आनंद उठा सकें और बाद में भी कोई टैंशन न हो.

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प्रैग्नेंट होना किसी भी महिला के जीवन में सबसे सुखद क्षणों में से एक होता है, क्योंकि वह अब अपने अंदर एक और धड़कन को महसूस करती है. आने वाले मेहमान को लेकर सपने संजोती है. अगर आप अपने परिवार की प्लानिंग करने जा रही है तो ये सुनि‍श्चिैत कर लेना बहुत जरूरी है कि मां बनने के लिए आप शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार है या नही.

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संकर्षण : आशीष की गैरमौजूदगी में गगन ने उस की पत्नी सीमा को बनाया गर्भवती

अपने बचपन के मित्र गगन के यहां से लौटते हुए मेरे  पति बारबार एक ही प्रश्न किए जा रहे थे, ‘‘अरे देखो न संकर्षण की शक्लसूरत, व्यवहार सब कुछ गगन से कितना मिलताजुलता है. लगता है जैसे उस का डुप्लिकेट हो. बस नाक तुम्हारी तरह है. मेरा तो जैसे उसे कुछ मिला ही नहीं.’’

‘‘मिला क्यों नहीं है? बुद्धि तुम्हारी तरह ही है. तुम्हारी ही तरह जहीन है.’’  ‘‘हां, वह तो है, पर फिर भी शक्लसूरत और आदतें कुछ तो मिलनी चाहिए थीं.’’  ‘‘शक्लसूरत और आदतें तो इनसान के अपनेअपने परिवेश के अनुसार बनती हैं और हो सकता है उस के गर्भ में आने के बाद से ही मैं ने उसे गगन भाई साहब को देने का मन बना लिया था. इसी कारण उन जैसी शक्लसूरत हो गई हो.’’  ‘‘हां, तुम ठीक कहती हो, पर यार तुम बहुत महान हो. खुशीखुशी अपना बच्चा गगन की झोली में डाल दिया.’’ ‘‘क्या करूं? मुझ से उन लोगों की तकलीफ देखी नहीं जा रही थी. गगन भाई साहब और श्रुति भाभी को हम लोगों ने कोई गैर नहीं समझा. आप के लंदन रहने के दौरान हमारे पिताजी और हमारे बच्चों का कितना ध्यान रखा.’’

‘‘हां, यह बात तो है. गगन और भाभीजी के साथ कभी पराएपन का बोध नहीं हुआ. फिर भी एक मां के लिए अपनी संतान किसी और को दे देना बड़े जीवट का काम है. मेरा तो आज भी मन कर रहा था कि उसे अपने साथ लेते चलूं.’’

‘‘कैसी बात करते हैं आप? देखा नहीं कैसे गगन भाई साहब और श्रुति भाभीजी की पूरी दुनिया उसी के इर्दगिर्द सिमट कर रह गई है.’’  ‘‘सच कह रही हो और संकर्षण भी उन्हीं को अपने मातापिता समझता है. अपने असली मातापिता के बारे में जानता भी नहीं.’’ शुक्र है मेरे पति को किसी प्रकार का शक नहीं हुआ वरना मैं तो डर ही गई थी

कि कहीं यह राज उन पर उजागर न हो जाए कि संकर्षण के पिता वास्तव में गगन ही हैं. आज 17 वर्षों के वैवाहिक जीवन में यही एक ऐसा राज है जिसे मैं ने अपने पति से छिपा कर रखा है और शायद अंतिम भी. इस रहस्य को हम परिस्थितिवश हुई गलती की संज्ञा तो दे सकते हैं, पर अपराध की कतई नहीं. फिर भी जानती हूं इस रहस्य से परदा उठने पर 2 परिवार तबाह हो जाएंगे, इसलिए इस रहस्य को सीने में दबाए रखे हूं.

गगन इन के बचपन के मित्र हैं. गगन जहां दुबलेपतले, शांत और कुछकुछ पढ़ने में कमजोर थे वहीं मेरे पति गुस्सैल, कदकाठी के अच्छे और जहीन थे. घर का परिवेश भी दोनों का नितांत भिन्न था. गगन एक गरीब परिवार से संबंध रखते थे और मेरे पति उच्च मध्यवर्गीय परिवार से. इतनी भिन्नताएं होते हुए भी दोनों की दोस्ती मिसाल देने लायक थी. गगन को कोई भूल से भी कुछ कह देता तो उस की खैर नहीं होती. वहीं मेरे पति आशीष की कही हुई हर बात गगन के लिए ब्रह्मवाक्य से कम नहीं होती.

धीरेधीरे समय बीता और मेरे पति का आईएएस में चयन हो गया और गगन ने अपना छोटामोटा बिजनैस शुरू किया, जिस में हमारे ससुर ने भी आर्थिक सहयोग दिया. मेरी सास की मृत्यु मेरे पति के पढ़ते समय ही हो गई थी. उस समय गगन की मां ने ही मेरे पति को मां का प्यार दिया और ससुर भी कभी गगन को अपने परिवार से अलग नहीं समझते थे और कहते थे कि कुदरत ने उन्हें 2 बेटे दिए हैं. एक आशीष और दूसरा गगन.

संयोग देखो कि दोनों के विवाह के बाद जब मैं और श्रुति आईं तो भी उन दोनों के परिवार में किसी प्रकार का भी अलगाव न आया. मेरी और श्रुति की अच्छी बनती थी. हालांकि जब भी लोग हम चारों की मित्रता को देखते तो कहते कि यह मैत्री भी शायद कुदरत का चमत्कार है, जहां 2 भिन्न परिवेश और भिन्न सोच वाले व्यक्ति अभिन्न हो गए थे. मुझे पति के तबादलों के कारण कई शहरों में रहना पड़ा. ऐसे में ससुर अकेले पड़ गए थे. उन्हें अपना शहर छोड़ कर यों शहरशहर भटकना गंवारा न था. ऐसे में गगन और उन की पत्नी ही उन का पूरा खयाल रखते, बेटेबहू की कमी महसूस न होने देते.

समय बीतता रहा. जहां मैं 2 बच्चों की मां बन गई, वहीं गगन की पत्नी को कई बार गर्भ तो ठहरा पर गर्भपात हो गया. डाक्टर का कहना था कि उन की पत्नी की कोख में कुछ ऐसी गड़बड़ी है कि वह गर्भ पनपने ही नहीं देती. हर बार गर्भपात के बाद दोनों पतिपत्नी बहुत मायूस हो जाते. गगन की पत्नी श्रुति का तो और भी बुरा हाल हो जाता. एक तो गर्भपात की कमजोरी और दूसरा मानसिक अवसाद. दिन पर दिन उन का स्वास्थ्य गिरने लगा. डाक्टर ने सलाह दी कि अब खुद के बच्चे के बारे में भूल जाएं. या तो कोई बच्चा गोद ले लें या किराए की कोख का प्रबंध कर लें वरना पत्नी के जीवन पर संकट आ सकता है.

पर उन पतिपत्नी को डाक्टर की बात रास नहीं आई. गगन मुझ से कहते, ‘‘भाभी अब मैडिकल साइंस ने बहुत तरक्की कर ली है. अगर कुछ कमी है तो क्या वह दवा से दूर हो सकती है. इस शहर के सब डाक्टर पागल हैं. मैं देश के सब से बड़े गाइनोकोलौजिस्ट को दिखाऊंगा, देखिएगा हमारे घर भी अपने बच्चे की किलकारियां गूजेंगी.’’

और सच में उन्होंने देश के सब से मशहूर गाइनोकोलौजिस्ट को दिखाया. उन्होंने आशा बंधाई कि टाइम लगेगा, पर सब कुछ ठीक हो जाएगा. इधर मेरे पति को डैपुटेशन पर 3 सालों के लिए लंदन जाना पड़ा. मैं नहीं जा सकी. बच्चे पढ़ने लायक हो गए थे और ससुर भी अस्वस्थ रहने लगे थे. अब उन्हें केवल गगन के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता था. आखिर हम पतिपत्नी का भी तो कोई उत्तरदायित्व था.

आशीष के लंदन प्रवास के दौरान ही ससुर की मृत्यु हो गई. किसी प्रकार कुछ दिनों की छुट्टी ले कर आशीष आए फिर चले गए. इधर गगन की पत्नी को पुन: गर्भ ठहरा. अब की बार हर प्रकार की सावधानी बरती गई. गगन अपनी पत्नी को जमीन पर पांव ही नहीं धरने देते. वैसे डाक्टर ने भी कंप्लीट बैड रैस्ट के लिए कह रखा था.  डाक्टर ने अल्ट्रासाउंड वगैरह करवाने को भी मन कर दिया था ताकि उस की रेज से भी गर्भ को नुकसान न पहुंचे. धीरेधीरे गर्भ पूरे समय का हो गया. गगन, उन की पत्नी और उन की मां का चेहरा बच्चे के आने की खुशी में पुलकित रहने लगा. प्रसन्नता मुझे भी कम न थी.

नियत समय में श्रुति को प्रसववेदना शुरू हो गई. लगता था सब कुछ सामान्य हो जाएगा. मैं भी अपने बच्चों को मां के पास छोड़ कर गगन के परिवार के साथ थी. आखिरकार इस मुश्किल घड़ी में मैं उन का साथ न देती तो कौन देता. पर 1 हफ्ते तक प्रसववेदना का कोई परिणाम न निकला. डाक्टर भी सामान्य डिलिवरी की प्रतीक्षा करतेकरते थक गई थीं.

अंत में उन्होंने औपरेशन का फैसला लिया और औपरेशन से जिस बच्चे ने जन्म लिया, वह भयानक शक्ल वाला 2 सिर और 3 हाथ का बालक था. जन्म लेते ही उस ने इतने जोर का रुदन किया कि सारी नर्सें उसे वहीं छोड़ कर डर कर भाग गईं.

डाक्टर ने यह खबर गगन को दी. गगन भी बच्चे को देख कर हैरान रह गए. यह तो अच्छा हुआ कि बच्चा आधे घंटे में ही इस दुनिया से चल दिया. गगन की पत्नी बेहोश थीं.  गगन जब बच्चे को दफना कर लौटे तो इतने थकेहारे, बेबस लग रहे थे कि पूछो मत.  गगन की मां ने मुझ से कहा, ‘‘सीमा तुम गगन को ले कर घर जाओ. बहुत परेशान है वह. थोड़ा आराम करेगा तो इस परेशानी से निकलेगा. मैं हौस्पिटल में रुकती हूं.’’

मैं ने विरोध भी किया, ‘‘आंटी, आप और गगन भाई साहब चले जाएं. मैं यहां रुकती हूं.’’  मगर गगन एकदम से उठ कर खड़े हो गए. बोले, ‘‘चलिए भाभी चलते हैं.’’ मैं और गगन कमरे में आ गए. कमरे में आ कर मैं ने गगन के ऊपर सांत्वना भरा हाथ रखा  भर था कि उन का इतनी देर का रोका सब्र का बांध टूट गया.

वे मेरी गोद में सिर रख कर फफकफफक कर रोने लगे, ‘‘मैं क्या करूं भाभी? मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है. श्रुति जब होश में आएगी तो मैं उसे क्या जवाब दूंगा? इस से अच्छा होता वह गर्भ में आया ही न होता… श्रुति क्या यह सदमा बरदाश्त कर पाएगी? मुझे उस की बड़ी फिक्र हो रही है. उस का सामना करने की हिम्मत मुझ में नहीं है. मैं कहीं चला जाऊंगा. भाभी आप ही उसे संभालिएगा.’’

मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि किन शब्दों में उन्हें सांत्वना दूं. केवल उन के बाल सहलाती रही. हम दोनों को ही उस मुद्रा में झपकी सी आ गई और उस दौरान कब प्रकृति और पुरुष का मिलन हो गया हम दोनों ही समझ न पाए. गगन अपराधबोध से भर उठे थे. अपराधबोध मुझे भी कम न था, क्योंकि जो कुछ भी हम दोनों के बीच हुआ था उसे न तो बलात्कार की संज्ञा दी जा सकती थी और न ही बेवफाई की. हम दोनों ही समानरूप से अपराधी थे… परिस्थितियों के षड्यंत्र का शिकार.

गगन अपनी पत्नी को ले कर दूर किसी पर्वतीय स्थल पर चले गए थे. आशीष को कुछ दिन बाद ही लंदन से लौटना था और हम लोगों को ले कर वापस जाना था, क्योंकि आशीष को वहां पर काफी अच्छी जौब मिल गई थी. उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया था. मुझे देश और इतनी अच्छी नौकरी छोड़ कर विदेश जाना स्वीकार न था, पर आशीष पर तो पैसे और विदेश का भूत सवार था. आशीष आए तभी मुझे पता चला कि मैं फिर से मां बनने वाली हूं. मुझे अच्छी तरह से पता था कि यह बच्चा गगन का है. आशीष को पता चला तो वे आश्चर्य में पड़ गए. बोले, ‘‘इतनी  सावधानियों के बाद ऐसा कैसे हो सकता है?’’

मैं ने कहा, ‘‘अब हो गया है तो क्या करें?’’

आशीष बोले, ‘‘अबौर्शन करवा लो. अभी नए देश में खुद को और बच्चों को ऐडजस्ट करने में समय लगेगा. यह सब झमेला कैसे चल पाएगा?’’

मैं ने कहा, ‘‘मैं एक बात सोचती हूं. श्रुति भाभी बहुत दुखी हैं, डिप्रैशन में आ गई हैं, शायद अब उन का दूसरा बच्चा हो भी न? तो क्यों न हम इस बच्चे को उन लोगों को दे दें.’’

‘‘तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं है? अपना बच्चा कोई कैसे दूसरे को दे सकता है?’’

आशीष बोले.

‘‘क्यों? वे लोग कोई गैर तो नहीं हैं… फिर तुम अबौर्शन कराने की बात कर रहे थे… कम से कम जीवित तो रहेगा और उन लोगों के जीवन में खुशियां भर देगा.’’

‘‘वह तो ठीक है,’’ आशीष ने हथियार डालते हुए कहा, ‘‘पर क्या गगन और भाभी इस के लिए मान जाएंगे?’’

‘‘चलिए, बात कर के देखते हैं.’’  जब हम लोगों ने गगन भाई साहब और श्रुति भाभी से इस संबंध में बात की तो वे विश्वास न कर सके.

गगन बोले, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है भाभी? आप अपना बच्चा हमें दे देंगे.’’

मैं ने कहा, ‘‘हमारा और आप का बच्चा अलग थोड़े ही है.’’

मेरी इस बात पर गगन ने चौंक कर मेरी आंखों में देखा. मैं ने भी उन की आंखों में देखते हुए अपनी बात जारी रखी, ‘‘कृष्ण के भाई बलराम की कहानी जानते हैं न? उन्हें संकर्षण विधि द्वारा देवकी के गर्भ से रोहिणी के गर्भ में प्रतिस्थापित कर दिया गया था तो यही समझिए कि यह आप लोगों का ही बच्चा है, केवल गर्भ में मेरे है. अगर बेटा होगा तो आप लोग नाम संकर्षण ही रखिएगा.’’

मगर न श्रुति को और न ही आशीष को इतनी पौराणिक कथाओं का ज्ञान था, केवल मैं और गगन ही इस अंतनिहित भाव को समझ सके. फिर मैं ने कहा, ‘‘मुझे पूरा विश्वास है कि आप लोग उसे पूरा प्यार देंगे.’’  बच्चे की कल्पना मात्र से गगन की पत्नी की आंखों में चमक आ गई. बोलीं, ‘‘सच भाभी क्या आप ऐसा कर पाएंगी?’’

‘‘क्यों नहीं? आप कोई गैर थोड़ी न हैं.’’

आपसी सहमति बनी कि मैं अभी आशीष के साथ नहीं जाऊंगी. बच्चे को जन्म देने पर उसे श्रुति को सौंप लंदन जाऊंगी. मैं ने ऐसा किया भी. बच्चे को हौस्पिटल से निकलते ही श्रुति की गोद में डाल दिया और आशीष के पास बच्चों के साथ लंदन चली गई.  तब से कई बार भारत आना हुआ पर मायके से ही हो कर लौट गई. डरती थी कहीं  मेरा मातृत्व न जाग जाए. कभीकभी इस बात पर क्षोभ भी होता कि मैं ने बेकार ही अपने बच्चे को पराई गोद में डाल दिया. फिर लगता शायद मैं ने ठीक ही किया, नहीं तो उसे देख कर एक अपराधभाव मन में हमेशा बना रहता.

आशीष सारे तथ्यों से अनजान थे. तभी तो उन का पितृत्व जबतब अपने बच्चे से मिलने को बेचैन हो उठता. उन्हीं की जिद थी कि अब की बार गगनजी के यहां जाने का कार्यक्रम बना. संकर्षण से मिल कर आशीष की प्रतिक्रिया से मुझे तो डर ही लग गया था कि कहीं इस रहस्य से परदा न उठ जाए और 2 परिवारों की सुखशांति भंग हो जाए.  मगर आशीष के मुझ पर और गगन पर अटूट विश्वास ने उन की सोच की दिशा इस ओर नहीं मोड़ी वरना मैं फंस जाती, क्योंकि आज तक न तो मैं ने कभी उन से झूठ बोला है और न ही कोई बात छिपाई है, विश्वासघात तो दूर की बात है और इतना तो मैं आज भी मन से कह सकती हूं कि मैं ने और गगन ने न तो कोई विश्वासघात किया है और न ही कोई बेवफाई. गलती जरूर हुई है. पर हां यह बात छिपाने को विवश जरूर हूं, क्योंकि इस गलती का पता लगने पर  2 परिवार व्यर्थ में विघटन की कगार पर पहुंच जाएंगे. इसीलिए मैं इस विषय पर एकदम चुप हूं.

Romantic Story In Hindi : प्यार को प्यार ही रहने दो…

सैंट्रल पार्क में फिर मेला चल रहा था. बड़ेबड़े झूले, खानेपीने की बेहिसाब वैरायटी लिए स्टालें, अनगिनत हस्तकला का सामान बेचती अस्थाई रूप से बनाई हुई छोटीछोटी टेंट की दुकानें, और इन दुकानों में बैठे हुए अलगअलग राज्यों व क्षेत्रों से आए हुए व्यापारी.

हर कोई अपनी दीवाली अच्छी बनाने की आशा में ग्राहकों की बाट जोह रहा था. हर साल दीवाली के आसपास यहां यही मेला लगा करता है. और हर साल की तरह इस साल भी निरंजना मेले में जाने के लिए उत्सुक थी.

शाम को जब रजत औफिस से वापस आया, तो निरंजना को तैयार खड़ा देख समझ गया कि आज मेले में जाने का कार्यक्रम बना बैठी है.

रजत मुसकरा कर कहने लगा, ‘‘तुम दिल्ली के आलीशान मौल भी घूमना चाहती हो और गलीमहल्ले के मेले भी. ठीक है, चलेंगे. पर मैं पहले थोड़ा सुस्ता लूं. एक कप चाय पिला दो, फिर चलते हैं मेले में.‘‘

शादी के पांच वर्षों के साथ में निरंजना उसे इतना समझ चुकी थी कि वह कब किस चीज की इच्छा रख सकता है, सो पहले ही चाय तैयार कर चुकी थी. शायद इसे ही मन से मन के तार जुड़ना कहते हैं.

आधा घंटे बाद दोनों मेले के ग्राउंड में खड़े थे. हर ओर शोर, हर ओर उल्लास, और उत्साहित भीड़.

मेले में पहुंच कर निरंजना एक अल्हड़ किशोरी सा बरताव करने लगती. कभी किसी झूले में बैठने की जिद करती, तो कभी कालाखट्टा बर्फ का गोला खाने की, तो कभी कुम्हार द्वारा बनाया हुआ सुंदर फूलदान खरीदने की. किंतु मौत के कुएं का खेल देखना वह कभी नहीं भूलती. कुछ और हो ना हो, परंतु मौत का कुआं में सब से आगे खड़े हो कर कुएं में दौड़ रही मोटरसाइकिल व कार को देख कर पुलकित होना अनिवार्य था.

रजत को चाहे यह कितना भी बचकाना लगे, किंतु वह निरंजना के हर्षोल्लास पर कभी ठंडे पानी की फुहार नहीं फेरता था. वह सच्चे मन से यह मानता था कि यदि गृहस्थी को सुखी रखना है, तो उसे चलाने वाली गृहिणी का पूरा ध्यान रखना होगा. यदि घर की स्त्री खुश रहेगी, तभी घर और परिवार के सभी सदस्य खुश रह सकेंगे.

आज भी कुछ झूलों में झूलने के बाद और जीभ को रंगबिरंगे स्वादों से रंगने के बाद दोनों मौत का कुआं की टिकट ले कर सब से आगे वाली रिंग में खड़े हो गए.

खेल शुरू हुआ. घुप अंधेरे भरे गहरे गड्ढे में जगमगाती रोशनी लिए मोटरसाइकिल व कार एकदूसरे से उलट दिशाओं में दौड़ने लगीं.

दर्शकों की भीड़ में कई बच्चे व किशोर खेल देख कर उत्तेजित हो रहे थे. उतनी ही उत्साहित निरंजना भी थी.

मौत के कुएं के इस खेल में लोगों को क्या आकर्षित करता है – खतरों से खेलने का जज्बा, या यह भावना कि हम स्वयं खतरे को देख तो रहे हैं, किंतु उस की पकड़ से बहुत दूर हैं, या फिर जीत का एहसास.

जो भी था, निरंजना हर साल दीवाली के इस मेले में मौत के कुएं का खेल अवश्य देखती थी. उसे देखने के बाद वह काफी देर तक प्रसन्नचित्त रहती. आज भी खेल खत्म होने पर रजत ने कुछ खाने के लिए उस से आग्रह किया.

‘‘हां, चलो, गोलगप्पे के स्टाल पर चलते हैं.‘‘

‘‘अरे, मैं तो कुलफी खाने के मूड में हूं.‘‘

‘‘पहले गोलगप्पे खाएंगे, फिर जीभ पर फूटते पटाखों को शांत करने के लिए कुलफी. कैसा रहेगा?‘‘ खुशी से दोनों ने मेले का आनंद उठाया और देर रात अपने घर लौट आए.

‘‘काफी थक गया हूं आज,‘‘ सोते समय रजत ने कहा.

‘‘गुड नाइट,‘‘ संक्षिप्त उत्तर दे कर निरंजना ने कमरे की बत्ती बुझा दी. किंतु आज नींद उस की अपनी आंखों से कुछ दूर टहल रही थी. शायद अब भी दीवाली के उस मेले से लौटी नहीं थी. थकान और विचारों को एकसाथ मथती निरंजना समय से पीछे अपनी किशोरावस्था की गलियों में दौड़ने लगी.

निरंजना हर लिहाज से आकर्षक थी – खूबसूरत नैननक्श, चंदनी चितवन और प्रखर बुद्धि. उस को देख कर कोई भी अपना दिल हार सकता था, किंतु वह ठहरी बेहद अंतर्मुखी व्यक्तित्व की स्वामिनी. हर कक्षा में फर्स्ट आती, खेलकूद में भी मेडल जीतती. किंतु दोस्त बनाने में पीछे रह जाती.

सहमी, सकुचाई सी रहने वाली निरंजना की अपने जीवन से कई आशाएं थीं, जिन में से एक थी प्रगति पथ पर आगे बढ़ने की.

जब निरंजना कालेज पहुंची, तो वहां कुछ ऐसा हुआ जो उस के साथ अब तक कभी नहीं हुआ था.

क्लास में एक लड़का था, जिस की तरफ निरंजना अनचाहे ही आकर्षित होने लगी, खिंचने लगी. उस ने कई बार उस की आंखों को भी इसी ओर देखते पकड़ा था. किंतु कुछ कहने की हिम्मत न इस तरफ थी, न उस तरफ.

क्लास काफी बड़ी थी, इसलिए निरंजना उस का नाम तक नहीं जानती थी. किंतु यह उम्र ही ऐसी होती है, जिस में विपरीत सैक्स के प्रति आकर्षण होना स्वाभाविक है. उस को देख कर निरंजना के अंदर एक अजीब सी भावना हिलोरे लेती. कभी शरीर में सुरसुरी दौड़ जाती, तो कभी स्वयं ही नजरें झुक कर अपने दिल का हाल छुपाने लगतीं.

अर्जुन के लक्ष्य की तरह निरंजना के मन को भी एक ध्येय मिल गया था. आमनासामना तो नजरों का होता, लेकिन सिहरन पूरे बदन में होती. सारी रात बिस्तर पर वह करवटें बदलती रहती थी. यह सिलसिला कई महीनों तक चला. क्या करती, हिम्मत ही नहीं थी जो बात आगे बढ़ा पाती.

वह ठहरी अंतर्मुखी और वो जनाब बहिर्मुखी प्रतिभा के धनी. उन के ढेरों दोस्त, हर किसी से बातचीत. जिस महफिल में जाएं, रंग जमा दे.

हालांकि देखने में वह कुछ खास नहीं था, किंतु उस का व्यक्तित्व एक चुंबक की तरह था, और निरंजना संभवतः उस के आगे एक लोहे की गोली, जो उस की तरफ खिंची चली जाती थी.

होस्टल के पास वाले मैदान में जब दशहरे पर मेला लगा था, तब उन की पूरी क्लास ने वहां चलने का कार्यक्रम बनाया.

वहां जाते हुए निरंजना एक योजना के तहत उस जनाब के आसपास भटकती रही. तभी उस के मुंह से सुना था कि उस का पसंदीदा खेल है मौत का कुआं. बस, फिर क्या था, उस मौत के कुएं में भागती हुई गाड़ियों के साथसाथ निरंजना का दिल भी गोते लगाने लगा.

कालेज का आखरी साल आ गया.  ‘‘अगर अभी नहीं बोली तो कब बोलेगी?‘‘ निरंजना की अंतरात्मा उसे धिक्कारती. उस के प्रति उत्तर में सब से पहले निरंजना ने अपनी सीट बदली, और उस के ठीक पीछे वाली सीट पर बैठने लगी.

उस दिन शुक्रवार था. दोपहर की क्लास के बाद वह अपने सहपाठी से बोला, ‘‘नमाज पढ़ कर आता हूं.‘‘

इतना कह कर वह चला गया. निरंजना ने जो सुना, उस के बाद डर के मारे उस की घिग्घी बंध गई. दिमाग में हजारों विचारों के घोड़े दौड़ने लगे. कभी मां कहतीं, ‘जल्दी से जल्दी इस की शादी कर दो,‘ तो कभी पिता धर्म का वास्ता दे कर कहते, ‘कोई और नहीं मिला था तुझे?‘

लेकिन, इस बीच अपने अंतर्मुखी चोले को उतार निरंजना खुद कहती, ‘मैं नहीं मानती धर्म और जाति को. यह तो इनसानों की बनाई हुई बेड़ियां हैं. मैं केवल अपने दिल की बात सुनूंगी. मैं पीछे नहीं हटूंगी.‘

सपनों में इतना कहना है तो जब असल जिंदगी में बात बाहर आएगी, तब क्या होगा.

खैर, निरंजना केवल सपनों से डरना नहीं चाहती थी. धर्म की इस मोटी मजबूत दीवार के बावजूद उस ने नसीम से मित्रता कर ली.

नसीम के अनेक दोस्तों में अब निरंजना का भी नाम जुड़ चुका था. अब निरंजना का उद्देश्य था कि नसीम के मन में अपने लिए प्यार की लौ जलाना.

जो भावना वह नसीम के लिए रखती थी, उसी का सिला यदि दूसरी तरफ से नहीं मिला तो मिलन पूरा कैसे होगा?

आजकल निरंजना इसी उधेड़बुन में रहने लगी थी. नसीम के मन में प्यार जब हिलोरे लेगा तब लेगा, लेकिन निरंजना का मन उसे देख कर ही बागबाग हो उठता. उस के दिल ने भविष्य को ले कर न जाने कितने सुनहरे सपने सजा लिए, जिन में वह थी और उस का नसीम था.

पहले प्यार को दिल कभी नहीं भूलता. संभवतः उसे याद करते रहने में भी कोई बुराई नहीं है. सच्चा प्यार ना कभी कम होता है और ना मरता है. वह तो बस समय की गर्त में नीचे, कहीं नीचे, दिल की सतहों में दफन हो कर रह जाता है. लेकिन वह बंधन, जो पहले प्यार का दिल से होता है, उस गिरह को खोल पाना शायद मुमकिन नहीं.

पहले प्यार की याद आती है, लेकिन एक प्रसन्नता भरी लहर की तरह, न कि मायूसी भरी तरंग बन कर. पहले प्यार की याद में यदि मिलन की आशा नहीं, तो छूट जाने की निराशा भी नहीं. वह अपनेआप में पर्याप्त है दिल में खुशियां भर देने के लिए. तभी तो आज निरंजना के दिल में मीठी यादें एक बार फिर अंगड़ाई ले रही थीं. उन्हीं यादों को सीने से लगाए निरंजना नींद की आगोश में समा गई.

‘‘आज मीटिंग है दफ्तर में, इसलिए थोड़ा जल्दी निकलूंगा,‘‘ कहते हुए रजत अखबार की सुर्खियों में खो गया.

‘‘ठीक है, जल्दी नाश्ता तैयार कर देती हूं,‘‘ निरंजना किचन की ओर बढ़ गई. दोनों की गृहस्थी में वह सब था, जो एक आदर्श युगल जोड़े में होना चाहिए – एकदूसरे के प्रति प्यार, सम्मान व विश्वास.

रजत और निरंजना की शादी को पांच साल बीत चुके हैं और इन पांच सालों में दोनों ने एकदूसरे को अच्छी तरह समझ लिया है और एकदूसरे की खूबियों व कमियों के साथ स्वीकार लिया है. तभी तो दोनों इतने खुश रहते हैं. दोनों की ही माताएं अब अपनी गोद में एक नन्हे को खिलाने की चाह प्रकट करती रहती हैं, लेकिन यह इन दोनों की समझदारी है कि यह अपनी जिंदगी के निर्णय अपने हिसाब से करते हैं.

शादी के समय ही इन्होंने यह सोच लिया था कि परिवार आगे तभी बढ़ाएंगे जब हम चाहेंगे, ना कि जब सामाजिक दबाव पड़ने लगेगा.

आज निरंजना ने नाश्ते में ब्रेड पकोड़े बनाए. नसीम को ब्रेड पकोड़े बहुत पसंद थे. जब कभी उस का दिल नसीम को याद करता है, वह उस की पसंद का खाना बना कर रजत को खिलाती है. और उस की आंखें रजत के रूप में नसीम को बैठा पाती हैं.

निरंजना का मन इस भावना को किसी बेवफाई के रूप में नहीं देखता. वह तो पूरी तरह रजत की है. बस, दिल का एक टुकड़ा है, जो अभी भी नसीम के नाम पर धड़कता है. उस ने कई बार स्वयं से यह प्रश्न भी किया कि ऐसा क्यों?

पहला प्यार शायद इसलिए भी नहीं भूलता, क्योंकि यही वह इनसान है जिस ने आप के दिल के कोरे कागज पर पहला हर्फ लिखा. उस के बाद तो इस दिल के कागज पर जो भी कुछ लिखा गया, उस ने कहानी को आगे ही बढ़ाया, शुरुआत नहीं की. दिल का जो टुकड़ा पहले प्यार में पड़ा वह मासूम था, अनजाना था, अनभिज्ञ था. भविष्य में यह दिल जिस के भी पास जाए, उस पर एक छाप लग चुकी होती है.

पहला प्यार, पहला स्पर्श, पहला चुंबन… वह तारों को गिनना, वो सपनों में मुसकराना, वह प्रीतम की याद आने पर आंखों का स्वतः आर्द्र हो उठना… दिल पर पहली दस्तक की बात ही कुछ और है. उस के बाद तो जो हुआ, वह एक अनुभवी दिल पर गुजरने वाले तजरबे की तरह है.

रजत के औफिस चले जाने के बाद निरंजना ने घर का कामकाज निबटाया, फिर नहाधो कर हाथों में क्रीम लगाते हुए जब वह ड्रेसिंग टेबल के आईने में खुद को निहार रही थी, तो अचानक उस की उंगलियां शादी की अंगूठियों में घूमने लगीं.

कुछ याद करते हुए वह फौरन अपनी अलमारी की ओर लपकी. अपने लौकर में से उस ने एक चांदी का छल्ला निकाला, जिस पर हरा पत्थर बखूबी खिल रहा था. अनायास ही वह यह धुन गुनगुनाने लगी, ‘‘मैं ता कोल तेरे रहना… ‘‘

यही वह अंगूठी थी, जो नसीम ने निरंजना को अपने प्यार का इजहार करते हुए दी थी. उस दिन निरंजना के पैर जमीन पर नहीं पड़े थे. शायद उड़ ही रही थी वह.

इस बार जब वह होस्टल की छुट्टियों में घर जाएगी, तो अपने मम्मीपापा से नसीम के बारे में बात करेगी. यही वादा नसीम ने भी उसे दिया था. दोनों साथसाथ समय गुजारते और भविष्य के सपने संजोते. कभी यह सोचते कि किस शहर में अपना घर बनाएंगे, तो कभी यह सोचते कि बच्चों के नाम क्या होंगे.

दोनों ने अपनेअपने धर्मों को निभाते हुए किसी के भी धर्म में दखलअंदाजी न करने की कसम भी उठा ली थी. सोच लिया था कि रजिस्टर्ड विवाह ही करेंगे. जब मातापिता से बात करेंगे तो धर्म की बात ना आए, इस बात का खयाल रखते हुए दोनों ने काफी प्लानिंग कर ली थी. लेकिन होता वही है, जो समय को मंजूर होता है.

जब निरंजना ने अपने मातापिता से नसीम के बारे में बात की, तो आसमान में छेद हो गया. मां ने रोरो कर घर में गंगाजल का छिड़काव शुरू कर दिया और स्वयं को कोसने लगी कि क्यों लड़की को पढ़ने आगे भेजा, वह भी दूसरे शहर, अपनी नजरों से दूर.

मां का विलाप बढ़ता ही जा रहा था. जोरजोर से वे कहने लगीं, ” ‘पिता रक्षति कौमारे, भर्ता रक्षति यौवने, पुत्रो रक्षति वार्धक्ये न स्त्री स्वातंत्र्य मरहति.‘ मतलब जानते हो ना इस का?

‘‘हमारे ग्रंथी मूर्ख नहीं थे, जो मनु कह गए कि स्त्री को स्वतंत्र नहीं छोड़ा जाना चाहिए. बाल्यावस्था में पिता, युवावस्था में पति और उस के बाद पुत्र के अधीन रखना चाहिए. हम से बहुत बड़ी गलती हो गई, जो इस की बातों में आ कर दूसरे शहर इसे पढ़ने जाने की अनुमति दे दी.

‘‘देखो, अब क्या गुल खिला कर आई है. अपना मुंह तो काला कर ही आई है, हमारी भी नाक कटवा दी. कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा.‘‘

पिता तो जैसे सदमे में आ कर कुरसी से हिलना ही भूल गए थे. शाम तक वह उन्हें मनाती रही. तरहतरह की दलीलें देती रही. लेकिन जब एकबारगी खड़े हो कर पिता ने यह कह दिया कि शायद इसे हम दोनों की झूलती लाशें देख कर ही सुकून मिलेगा, तो उस के आगे निरंजना विवश हो गई. अब कहनेसुनने को कुछ शेष नहीं बचा था.

जिस समाज ने सती की छवि रखने वाली अपनी देवी सीता को नहीं बख्शा, वह निरंजना जैसी साधारण स्त्री को कैसे माफ कर देगा? जब उस के मातापिता ही उस के निर्णय को नहीं अपनाएंगे तो और किसी से वह क्या उम्मीद रखे? आखिर अपने मातापिता की अर्थियों के ऊपर वह अपना आशियाना तो बना नहीं सकती थी.

आश्चर्य तो इस बात का हुआ कि नसीम की ओर से भी कोई संदेश नहीं आया. संभवतः उसे भी ऐसे ही किसी दृश्य का सामना करना पड़ा होगा.

आज निरंजना उसे माफ कर चुकी है. शादी कर के आगे बढ़ चुकी है. पूरी ईमानदारी से रजत के साथ अपने रिश्ते को निभा रही है. किंतु आज भी जब कभी हवा में नमी होती है, और आकाश में पीली रोशनी छाती है तो ना जाने क्यों उस का दिल पुरानी करवट बैठने को मचलने लगता है.

टूटे हुए दिल ने कई बार खुद से प्रश्न किया कि यदि यह सच है तब वह क्या था? फिर इसी दिल ने उसे समझाया कि वह भी सच था, यह भी सच है. मातापिता की बात मानने और स्वीकारने के बदले सांत्वना पुरस्कार के रूप में उसे रजत का प्यार मिला है.

एकबारगी रजत से शादी के लिए हामी भर कर वह नसीम के प्यार को अपनी खोटी किस्मत मान कर आगे बढ़ चुकी थी. लेकिन फिर उलटपलट कर आती यादों ने उसे चैन कब लेने दिया. वह तो भला हो मार्क जुकरबर्ग का, जो बिछुड़े हुए दिलों को मिलाने का नेक काम करता है.

आज निरंजना फिर अपने लैपटौप के सामने बैठ गई. आज फिर फेसबुक पर जा कर नसीम को ढूंढेगी. शायद उस से मिल कर एक बार अपनी सफाई दे कर निरंजना के दिल को चैन मिलेगा.

उधर औफिस में मीटिंग के बाद रजत को अपने सचिव के पद के लिए आए बायोडाटा में से छंटनी करनी थी. एचआर डिपार्टमैंट ने उसे काफी सारे रिज्यूम भेज दिए थे, साथ ही, एक नोट भी छोड़ा था, ‘सर, आप जिन प्रत्याशियों को चयनित करेंगे, उन्हें हम आप से साक्षात्कार के लिए बुलवा लेंगे. फिर आप जिस का चुनाव करेंगे, वही आप के सचिव के पद के लिए रख दिया जाएगा.‘

बायोडाटा पढ़ते समय रजत की नजर एक रिज्यूम पर अटक गई – नाम की जगह पर श्वेता सिंह लिखा था और स्थान की जगह आगरा पढ़ने पर रजत का दिल एक ही राग अलापने लगा, ‘कहीं यह वही तो नहीं…?’

‘श्वेता सिंह और वह भी आगरा से…’ उत्सुकतावश उस ने आगे का बायोडाटा पढ़ना शुरू किया. कालेज का नाम पढ़ने के बाद उसे विश्वास हो गया कि यह वही श्वेता है, जिसे वह अपना दिल हार चुका था.

औफिस की सीट पर बैठेबैठे रजत का मन अपने मातापिता के घर आगरा की गलियों में विचरने लगा.

रजत जब अपने मातापिता के साथ गांव से आगरा आया था, तब वह सातवीं कक्षा में पढ़ता था. नया स्कूल, नया परिवेश, नए सहपाठी. ऐसे में क्लास में पढ़ रही एक लड़की की ओर अनायास ही आकर्षित होने लगा. किशोरावस्था ही ऐसी होती है, जिस में हार्मोंस के कारण मन उद्विग्न रहता है, भावनाएं मचलती रहती हैं, और जी चाहता है कि सबकुछ हमारी इच्छानुसार होता रहे.

रजत उस लड़की के प्यार में खुद को सातवें आसमान पर अनुभव करने लगा. भले ही यह एकतरफा प्यार था, किंतु रजत को विश्वास हो गया था कि यही वह लड़की है, जिस के साथ वह अपना पूरा जीवन व्यतीत करना चाहता है.

स्कूल में श्वेता को देखने पर रजत की आंखों की पुतलियां फैल जाती थीं. एक बार उस के एक दोस्त ने पूछ ही लिया, ‘‘क्या यही है तेरे सपनों की रानी, रजत?‘‘

रजत ने उस का जवाब देते हुए कहा था, ‘‘यह मेरी ड्रीम गर्ल नहीं हो सकती, क्योंकि मैं इतने अच्छे ख्वाब भी नहीं देख सकता. यह तो परफैक्ट है. और कहां मैं. ना मेरा जीवन में कोई उद्देश्य है और ना ही मैं इस की तरह परिश्रमी हूं,‘‘ बात को खत्म कर रजत वहां से चला गया था. वह नहीं चाहता था कि स्कूल में श्वेता के लिए कोई भी कुछ गलत बात करे. जिस से वह प्यार करता था, उसे बदनाम करने की कैसे सोच सकता था.

लेकिन सच तो यह था कि रजत को श्वेता के सिवा और कोई नजर ही नहीं आता था.

उसे आज भी याद है वह पहला दिन, जब उस ने श्वेता को देखा था, दो चोटियां, उन में रिबन, साफसुथरी टनाटन स्कूली यूनिफार्म, सलीकेदार और आकर्षक व्यक्तित्व.

रजत भले ही श्वेता पर दिलोजान से मरने लगा था, किंतु यह कहने की हिम्मत कभी नहीं कर पाया.

खैर, अल्हड़ बचपन से अल्हड़ जवानी तक रजत श्वेता को ही निहारता रहा. अब वह गजब के सौंदर्य की मालकिन हो गई थी. जब दोनों ने एक ही कालेज में दाखिला ले लिया, तब रजत की हिम्मत थोड़ी बढ़ी.

दोनों की दोस्ती तो स्कूल के दिनों से ही हो चुकी थी. किंतु अपने दिल की बात जबान तक लाने की हिम्मत रजत में नहीं थी. कहीं ऐसा ना हो, इस चक्कर में श्वेता उस से दोस्ती भी तोड़ बैठे.

लेकिन श्वेता उसे अपना एक अच्छा दोस्त समझती थी. कालेज में आने के बाद श्वेता ने ही उस से अपने दिल की बात कही, ‘‘रजत, मैं तुम से कुछ कहना चाहती हूं. और चाहती हूं कि यह बात सिर्फ हम दोनों के बीच रहे.‘‘

रजत का दिल बल्लियों उछलने लगा. शायद यही वह मौका था, जिस का उसे हमेशा से इंतजार था.

‘‘अरे, यह क्या हो रहा है तुम्हें? पसीना पोंछ लो, आराम से बैठो, फिर बताती हूं.‘‘

रजत के दिल का हाल उस के चेहरे पर झलकने लगा. अपने दिल को बमुश्किल थामे वह श्वेता के मन की बात सुनने बैठ गया. पर फिर जो श्वेता ने बताया, उसे सुन कर रजत का दिल छन्न से बिखर कर रह गया था.

‘‘मेरा एक बौयफ्रैंड है, जो जयपुर में रहता है. हम दोनों औरकुट के जरीए मिले और हमें प्यार हो गया. मुझे नहीं पता कैसे. हम आज तक एकदूसरे से मिले भी नहीं हैं. पर मेरा दिल जानता है कि मैं उस के बिना नहीं जी सकती…‘‘ आगे न जाने क्याक्या कहती गई श्वेता, लेकिन रजत के कानों ने सुनना बंद कर दिया था.

रजत का चेहरा मलिन हो उठा, मानो चेहरे पर दोपहरी की साएंसाएं में लिपटा सूनापन और वीराना छा गया हो. वह भीतर ही भीतर सुलगने लगा. मगर शायद प्यार आप को बेहतरीन अभिनय करना भी सिखा देता है.

श्वेता की बात पर पूरा ध्यान देते हुए, चेहरे पर मुसकान लिए कोई नहीं बता सकता था कि अंदर ही अंदर रजत कितना टूट रहा था. लेकिन प्यार में पड़े किसी मूर्ख की तरह ऊपर से यही बोलता रहा, ‘‘तुम्हें मुझ से जो मदद चाहिए, मैं करूंगा. आखिर तुम्हारी खुशी में ही मेरी खुशी है. हम दोस्त जो हैं.‘‘

लेकिन रजत का दिल घायल हो चुका था. कालेज पूरा होतेहोते रजत ने श्वेता से काफी दूरी बना ली. करता भी क्या, उस का दिल हर बार उसे देख मचल उठता. हर बार मचलते दिल को संभालना कोई हंसीखेल नहीं. कालेज के बाद दोनों भिन्न शहरों में आगे की शिक्षा प्राप्त करने चले गए.

अलगअलग शहरों में दोनों की डिजिटल दोस्ती कायम रही. श्वेता के जयपुर वाले अफेयर को बचपन की भटकन की संज्ञा दे, रजत ने एक बार फिर प्रयास करने का निर्णय किया. परंतु इस बार वह खुद को ‘फ्रैंडजोन‘ होने से बचाना चाहता था, सो इस बार उस ने सोशल मीडिया के अपने अकाउंट पर श्वेता के साथ फ्लर्टिंग से शुरुआत की.

ऐसा देख उस के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा, जब दूसरी ओर बैठी श्वेता ने उस की बातों का बुरा नहीं माना, बल्कि कभीकभी उसे यों लगता जैसे श्वेता भी ऐसा ही चाहती है. वह भी हंसीमजाक से उस की फ्लर्टिंग का जवाब देती.

रजत अब अपने और श्वेता के रिश्ते को अगले कदम तक पहुंचाना चाहता था, किंतु श्वेता अकसर उसे ‘दोस्त‘ या ‘बडी‘ कह कर पुकारा करती. फिर भी श्वेता के दिल में क्या है, इस को ले कर रजत अकसर उलझन में रहता, क्योंकि उस ने क्या खाया, कब खाया, कितना सोया, पढ़ाई कर ली या नहीं आदि प्रश्नों से श्वेता उसे बमबार्ड करती रहती. इस का निष्कर्ष उस का मन यही लगाता कि श्वेता भी उस की ओर आकर्षित है. शायद यह प्यार एकतरफा नहीं.

रजत इस रिश्ते को आगे बढ़ाने के ख्वाब सजा ही रहा था कि एक दिन श्वेता ने उसे बताया कि उस की शादी होने वाली है. उस ने बताया कि उस के परिवार वालों ने उस के लिए एक लड़का देखा है और अगले साए में उस की शादी कर दी जाएगी.

एक बार फिर रजत का दिल टूटा था, वह भी उसी लड़की के हाथों. इस बार रजत खुद को संभालने में स्वयं को विफल पाने लगा. उस ने ठान लिया था कि अब वह श्वेता से कोई सरोकार नहीं रखेगा.

अगर श्वेता उस की हो गई होती, तो उस की राह में वह असंभव को भी संभव बना देता. उस को दुनिया की हर खुशी देता, चाहे इस के लिए उसे पूरे संसार से लोहा लेना पड़े. प्यार ने उसे एक लड़के से एक पुरुष में तबदील कर दिया था.

एक पुरुष के लिए उस का पहला प्यार अविस्मरणीय, अतुलनीय होता है. एक प्रेमी अपनी महबूबा को वह स्थान देता है, जो उस ने आज तक किसी को नहीं दिया, शायद अपने परिवार और अपने दोस्तों से भी ऊपर. उस के लिए प्यार स्वार्थरहित व शर्तरहित होता है.

उसे आज भी याद है, स्कूल में उस के दोस्तों ने उसे समझाया था, ‘‘अरे यार, किसी पर इतना भी फिदा ना हो जा कि उस के परे दुनिया ही ना रहे. संसार में कुछ भी स्थायी नहीं. चेंज इज द ओनली कौंस्टेंट. जब तक वह तुम्हारे पास है उसे प्यार करो, लेकिन जब वह बिछुड़ जाए तो उसे जाने दो.‘‘

हमारे समाज की एक विडंबना यह भी है कि मर्द को दर्द नहीं होता. बेचारा अंदर से कितना भी टूट रहा हो, ऊपर से उसे अपनी मैचोमैन इमेज बना कर रखनी ही पड़ती है. स्वयं को मजबूत और भावनाहीन दिखाना मर्द होने की निशानी बन जाता है.

इसी चक्रव्यूह में फंस कर रजत भी ऊपर से शांत बना रहा. यह तो उस का दिल ही जानता है कि आज भी उस के एटीएम का पिन नंबर श्वेता के जन्म की तारीख है, क्योंकि आज भी वह श्वेता से ही प्यार करता है. जहां भी जाता है लगता है श्वेता उस के साथ है. जबकि एक बार ठान लेने के बाद उस ने कभी श्वेता को ढूंढ़ने की कोशिश नहीं की. वह तो बस अपनी यादों में उस के साए के साथ ही खुश रहा.

शादी भी उस ने परिवार की रजामंदी से कर ली और निरंजना को भी पूरी ईमानदारी से चाहने लगा. श्वेता के प्यार का साया, जो उस के दिल में आज भी लहराता है, वो कभी भी निरंजना के प्रति किसी दुराव का कारण नहीं बना. इस के पीछे का कारण शायद यह है कि कुछ घटनाएं हमारे जीवन को प्रमुख हिस्सों में बांट देती हैं. फिर उन से बाहर निकलना बेहद मुश्किल हो जाता है.

उस की शादी को पांच साल बीत चुके हैं और श्वेता से दूर हुए लगभग सात साल. लेकिन फिर भी उसे ऐसा लगता है, जैसे कल ही की बात हो. श्वेता की झलक, उस की हंसी, उस का आंखें सिकोड़ना, उस के अपने मन में श्वेता के प्रति पुलकित होती भावनाएं… सबकुछ कल की ही बात लगती है.

तभी तो आज श्वेता का नाम अपनी नजरों के सामने आने पर उस के मन की आर्द्र पुकार कहने लगी कि यही है, जिस का बायोडाटा उस को चयनित करना है.

अगले कुछ दिनों तक रजत एचआर डिपार्टमैंट के पीछे लगा रहा कि क्यों नहीं वो चयनित प्रत्याशियों का साक्षात्कार करवा रहे. उस की जिद थी कि सारे काम छोड़ कर पहले उस के सचिव पद की नियुक्ति की जाए.

आजकल घर में भी रजत पहले से अधिक प्रसन्न रहने लगा. थोड़ीबहुत चुहल निरंजना से भी करता रहता. यही तो एक अच्छा साइड इफैक्ट है फ्लर्टिंग का. पति महोदय बाहर फ्लर्टिंग करते हैं और घर में पत्नी को भी खुश रखते हैं. उन का अपना दिल जो उत्साहित रहता है.

प्रसन्नचित्त तो आजकल निरंजना भी बहुत रहने लगी है. सोशल मीडिया साइट पर आखिर उस ने नसीम को खोज जो निकाला. नसीम आजकल दूसरे शहर में रहता है, किंतु काम के चलते उस का दिल्ली आना होता रहता है. दोनों ने मिल कर यह तय किया कि अगली बार जब वह दिल्ली आएगा, तब दोनों मुलाकात अवश्य करेंगे.

और बहुत जल्दी वह दिन भी आ गया, जब नसीम का दिल्ली आना हुआ. सुबह से फटाफट सारा काम निबटा कर, स्वयं पर मेकअप की पूरी मेहरबानी करने के बाद निरंजना उस से मिलने तय रैस्टोरैंट के लिए घर से चल पड़ी.

रास्ते से ही उस ने रजत को एसएमएस भेज दिया कि वह अपने ओल्ड टाइम फ्रैंड से मिलने जा रही है. हो सकता है कि शाम को थोड़ी देर हो जाए.

उधर, रजत ने साक्षात्कार के लिए श्वेता को कंपनी द्वारा बुलावा भिजवा दिया था. उस से मिलने के लिए औफिस नहीं, बल्कि रैस्टोरैंट में मुलाकात तय की गई. इस का कारण श्वेता को यह बताया गया कि जिन सर को इंटरव्यू लेना है, वह उस दिन किसी मीटिंग के लिए औफिस में उपस्थित नहीं होंगे. सो, जहां वे उपस्थित होंगे, आप वहीं पहुंच जाइए.

श्वेता को भी इस में कुछ अटपटा नहीं लगा, क्योंकि आजकल कई साक्षात्कार औफिस के बाहर भी होते हैं.

तय समय से पहले रजत उस रैस्टोरैंट में पहुंच कर श्वेता की प्रतीक्षा करने लगा.

नसीम को रैस्टोरैंट में पहले से अपने लिए प्रतीक्षारत पा कर निरंजना का दिल एकबारगी जरा जोर से उछला. तो क्या आज भी नसीम उसी से प्यार करता है?

अपने पहले प्यार को सामने पा कर निरंजना कभी उत्तेजना से भरने लगी, तो कभी विवाहिता होने के कारण संकोच से अपने रेशमी बालों को बारबार अपने गुलाबी गालों पर गिरने से रोकने के लिए अपनी कोमल उंगलियों से कानों के पीछे धकेलने लगी.

‘‘रहने दो ना इन जुल्फों को अपने सुंदर चेहरे पर. तुम भूल गई क्या कि मुझे तुम्हारी यह जुल्फें कितनी पसंद हैं,‘‘ नसीम के कहने पर निरंजना केवल मुसकरा कर नजरें नीचे किए रह गई.

फिर बातों का दौर चला. कुछ नसीम ने अपनी कही, तो कुछ निरंजना ने अपनी सुनाई. आज उस से अपने दिल की बात कह कर निरंजना काफी हलका महसूस कर रही थी. इसी पल के लिए वह ना जाने कितने समय से तरस रही थी.

‘‘मुझे यह जान कर अत्यंत अफसोस हो रहा है, नसीम, कि तुम ने अभी तक शादी नहीं की. काश, मैं तुम्हें उस समय मिल पाती. बस एक बार तुम्हें अपनी मजबूरी बता देना चाहती थी… आज वह बोझ भी दिल से उतर गया. पर समय निकल गया इस बात का. अफसोस शायद हमेशा खलेगा,‘‘ निरंजना ने अपनी बात पूरी की.

नसीम खामोशी से निरंजना के चेहरे को निहारता रहा, फिर हौले से कहने लगा, ‘‘समय तो अपने हाथ में होता है. अगर सोचो कि बीत गया तो अलग बात है. वरना आज भी समय हमारे साथ ही है. देखो, हम आज भी एकसाथ हैं. यदि तुम चाहो तो…‘‘

‘‘लेकिन, अब मेरी शादी हो चुकी है,‘‘ निरंजना उस की बात बीच में ही काटते हुए बोली, ‘‘यदि मेरी शादी ना हुई होती तब बात अलग थी, पर अब मैं रजत की पत्नी हूं. ऐसे में हमारा रिश्ता पाप कहलाएगा.‘‘

‘‘ऐसा क्यों कहती हो भला. पहले हम दोनों ने प्यार किया, रजत तो तुम्हारी जिंदगी में बाद में आया. सो, इस रिश्ते में तीसरा वो है. अगर तुम्हारे और मेरे घर वाले धर्म के चक्कर में ना पड़ कर हमारे प्यार के लिए राजी हो गए होते और आननफानन तुम्हारी शादी दूसरी जगह ना करवा दी होती, तो आज हम एकसाथ होते.‘‘

जब श्वेता आरक्षित टेबल पर पहुंची, तो वहां रजत को बैठा देख उस का चौंकना स्वाभाविक था, ‘‘रजत तुम यहां?‘‘

‘‘हां श्वेता, मैं ही हूं, जिस के साथ आज तुम्हारा साक्षात्कार है. हो गई ना सरप्राइज… मैं तो तुम्हारा बायोडाटा पढ़ते ही तुम्हें पहचान गया था. और तुम से मिलने के इस मौके को मैं किसी भी कीमत पर गंवा नहीं सकता था.‘‘

सारी स्थिति समझने के बाद श्वेता और रजत हंसहंस कर एकदूसरे के साथ आज तक बीती जिंदगी के अनुभव बांटने लगे.

‘‘कितना अच्छा लग रहा है तुम से मिल कर. न जाने क्यों इतने समय से हम मिले नहीं. तुम तो मेरे बीएफएफ (बैस्ट फ्रैंड फार ऐवर) रहे हो.‘‘

श्वेता उसे अपनी शादी, गृहस्थी, बच्चों के किस्से सुनाने लगी. वह काफी खुश लग रही थी. जाहिर था कि अपनी जिंदगी में श्वेता अच्छी तरह रम चुकी है और उसे कोई शिकायत भी नहीं.

प्यार हमारा दिल नहीं तोड़ सकता. वह तो अधूरी ख्वाहिशों और निराश सपनों के कारण टूटता है. रजत को समझ आ रहा था कि उस का प्यार वाकई एकतरफा था. तभी उस की नजर रैस्टोरैंट के दूसरे कोने में बैठी निरंजना पर पड़ी.

निरंजना को देखते ही वह असहज हो उठा. यदि उस ने रजत को यहां किसी अन्य महिला के साथ बैठे देख लिया तो…? ना जाने उस के बारे में क्या सोचने लगे. उसे याद आया कि आज निरंजना भी अपने एक पुराने दोस्त से मिलने गई है. इत्तेफाक देखिए, दोनों एक ही रैस्टोरैंट में पहुंच गए. लेकिन मौजूदा स्थिति में रजत उस चोर की तरह था, जो अपनी दाढ़ी के तिनकों को छिपाने के प्रयास में जुटा हो.

वह आगे कुछ कहता, इस से पहले ही श्वेता बोल पड़ी, ‘‘रजत, मैं ने नौकरी के लिए आवेदन अवश्य दिया था, किंतु कल ही मेरे पति का तबादला दूसरे शहर में हो गया है. इस कारण यह नौकरी मैं कर नहीं पाऊंगी.

‘‘मैं यहां यही बताने आई थी, लेकिन कितना अच्छा हुआ, जो तुम से मुलाकात हो गई. आगे भी हम टच में रहेंगे.‘‘

घर लौटते समय कैब में बैठी निरंजना आज नसीम के साथ बिताई दुपहरी को रिवाइंड करने लगी. नसीम आज भी उसे चाहता है. आज भी उस की राह देख रहा है, शायद… अगर वह चाहे तो नसीम के पास जा सकती है. पर क्या वह ऐसा चाहती है? क्या रजत के साथ बिताए शादीशुदा जिंदगी के पांच साल इतने हलके हैं कि उन से हाथ छुड़ाना उस के लिए संभव है?

इस सारे प्रकरण में रजत कहां खड़ा होता है? उस की क्या गलती है? निरंजना दोनों पलड़ों के बीच झूलने लगी. जेहन के कांपते हुए पानी पर असमंजस की नाव बह निकली. तभी एफएम पर गाना बजने लगा, ‘प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम ना दो ‘

नहीं, वह रजत को नहीं छोड़ सकती. जिस के साथ उस ने अपनी गृहस्थी बसाई, जिस ने उस का हमेशा ध्यान रखा, उसे पूरा प्यार दिया, अपने परिवार में सम्मान दिया, उसे वह कैसे बिसरा दे.

यदि उस ने एक गलत कदम उठाया तो रजत का प्यार पर से विश्वास उठ जाएगा. अपनी जिंदगी में रंग भरने के लिए वह अपने पति की जिंदगी को स्याहा नहीं कर सकती.

कई बार हमारे जीवन के कुछ ऐसे अंश होते हैं, जिन्हें हम न भूल सकते हैं और न मिटा सकते हैं. जो हमें सुकून भी देते हैं और कष्ट भी. परंतु उन्हें हम अपने दिल के कोनों में हिफाजत से संजो कर रखना चाहते हैं. पहला प्यार इस सूची में संभवतः सब से ऊपर आता है.

रजत की कार में भी एफएम पर गाना बज रहा था, ‘सिर्फ एहसास है यह रूह से महसूस करो, प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम ना दो…‘

Pakoda Recipe : झटपट बनाएं ये क्रिस्पी चटपटे पांच तरह के पकौड़े, बहुत सिंपल है रेसिपी

Pakoda Recipe : पकौड़े खाना भला किसे पसंद नहीं होगा. शाम के नाश्ते में चाय के साथ गरमागरम पकौड़े मिल जाए, तो शाम यादगार बन जाती है. चाहे आप दोस्तों के साथ बैठकर गौसिप कर रहे हों या फैमिली के साथ समय बिता रहे हों… इन क्रिस्पी पकौड़ों के साथ आप मोमेंट को और भी एंजौय कर पाएंगे. आज इस आर्टिकल में हम आपको पांच तरह के पकौड़ों के बारे में बताएंगे, जिन्हें आप आसानी से घर पर बना सकते हैं. आइए जानें…

1. पालक के पकौड़े

सामग्री

250 ग्राम बेसन
2 कप पानी
1 चम्मच पिसी लाल मिर्च
2 चुटकी नमक
100 ग्राम बारीक कटा पालक
1 1/2 चम्मच पिसी हल्दी
1 कप सूरजमुखी तेल
2 हरी मिर्च

बनाने की विधि

पालक के पत्तों को पानी में धोकर साफ करें और उन्हें एक तरफ रख दें. जब पानी पूरी तरह से निकल जाए, तो पत्तों को काट लें. एक कांच का कटोरा लें और उसमें बेसन और पालक को मिलाएं. इसमें नमक, लाल मिर्च पाउडर, हल्दी पाउडर और हरी मिर्च डालें. धीरेधीरे पानी डालें और अच्छी तरह मिलाएं.

तेज आंच पर एक फ्राइंग पैन में तेल गरम करें. इसमें मिश्रण के छोटेछोटे हिस्से डालें और हल्का सुनहरा भूरा होने तक तलें. इन पकौड़ों को चटनी या एक कप गर्म चाय के साथ परोसें.

2. पनीर के पकौड़े

सामग्री

1 कप बेसन, आधा चम्मच हल्दी, 1 टी स्पून चम्मच लहसुन का पेस्ट, 200 ग्राम पनीर, 1 चम्मच लाल मिर्च पाउडर, स्वादानुसार नमक, आधा चम्मच अदरक का पेस्ट, 1 हरी मिर्च, 1 कप सरसों तेल

बनाने की विधि

पनीर को अपनी पसंद के आकार में काटें. बेसन को नमक और लाल मिर्च पाउडर और थोड़ा पानी डालकर गाढ़ा घोल तैयार कर लें. अब हरी मिर्च डालें, अजवायन, अदरक और लहसुन का पेस्ट डालें. इसे अच्छी तरह मिलाएं. बैटर को अच्छी तरह फेंट लें.

पैन में तेल गरम करें और पनीर के टुकड़ों को बैटर में डुबोएं और तलें. एक बार में ज्यादा पकौड़े न तलें. कम से कम दो पकौड़े एक साथ तल सकते हैं.

3. प्याज के पकौड़े

सामग्री

4 प्याज छिले हुए

2 हरी मिर्च

आधा चम्मच अजवाइन

स्वादानुसार नमक

एक टी स्पून हल्दी

एक टी स्पून धनिया पाउडर

एक टी स्पून लाल मिर्च पाउडर

एक टी स्पून जीरा पाउडर

चार चम्मच तेल

बनाने की विधि

प्याज को बारीक काट लें, इसमें कटे हुए हरी मिर्च और बाकी मसाले डालें. अब इस मिश्रण में नमक मिक्स करें. फिर नींबू का रस मिलाएं. एक पैन में तेल डालकर गर्म करें. अब इसमें प्याज के अपने मनपसंद आकार के पकौड़े तल लें. गरमागरम पकौड़ों का आनंद चाय के साथ लें.

5. अंडे के पकौड़े

सामग्री

4 अंडे, 1 बड़ा चम्मच पिसी काली मिर्च, 1 कप रिफाइंड तेल, 1 बड़ा चम्मच मीट मसाला, नमक आवश्यकतानुसार, 1 बड़ा चम्मच लहसुन का पेस्ट, 1 बड़ा चम्मच अदरक का पेस्ट, 1 कप बेसन, स्वादानुसार नमक

बनाने की विधि

सबसे पहले अंडे उबाल लें. अब पकौड़े के लिए घोल तैयार करें. एक बड़ा कटोरा लें और इसमें पानी के साथ बेसन डालें. इसके बाद नमक, मिर्च और अदरक -लहसुन का पेस्ट डालें.

सामग्री को अच्छी तरह से मिलाएं और मीट मसाला के साथ घोल में काली मिर्च पाउडर डालें. घोल को अच्छी तरह से मिलाएं ताकि बिना किसी गांठ का गाढ़ा हो जाए. ध्यान रखें कि घोल ज्यादा पतला न हो.

उबले हुए अंडे के छिलके निकालें और उन्हें बेसन के घोल में डालें, उन्हें अच्छी तरह से कोट करें.

एक कढ़ाई में तेल गरम करें और उसमें एकएक करके कोटेड अंडे सावधानी से डालें. अंडों को तब तक फ्राई करें जब तक कि वे सुनहरे भूरे रंग के न हो जाएं.

जब ​​सभी अंडे फ्राई हो जाएं, तो उन्हें निकाल कर किचन टावल पर रख दें ताकि ऐक्स्ट्रा तेल पूरी तरह से सोख लें.

इन पकौड़ों को सर्विंग प्लेट में डालें और ऊपर से अमचूर पाउडर या चाट मसाला छिड़कें.

तैयार है अंडे के पकौड़े…

Crime Story : प्यार की खातिर बेटी ने अपने ही पिता की कर दी हत्या

राइटर- हरमिंदर खोजी 

कुलदीप की पत्नी गीता पुलिस को दिए अपने बयान में खुद ही बुरी तरह फंस गई थीउस ने पुलिस को बताया कि जब वह सुबह उठी तो सीढि़यों के दरवाजे की कुंडी उस ने ही खोली थी. नीचे आई तो घर के मेन गेट के लौक में अंदर से चाबी लगी थी और वह खुला हुआ था. पुलिस को संदेह हुआ तो. अपनी नौकरी के चलते गीता को घर का काम निपटा कर जल्दी सोना होता था और सुबह जल्दी ही उठना पड़ता था. लेकिन उस दिन उठने में थोड़ी देर हो गई थी. अब उस के पास एक ही रास्ता था कि जल्दी से रसोई का काम निपटाए. काम भी कम नहीं था. सुबह के नाश्ते से ले कर दोपहर का खाना तक बनाना होता था. इस की वजह यह थी कि उस की बेटी सुदीक्षा कालेज जाती थी, जो दोपहर को घर लौटती थी.

इसलिए उस का खाना बनाना जरूरी था. साथ ही यह भी कि उसे खुद को और पति कुलदीप को अपना लंच बौक्स साथ ले कर जाना होता थादरअसल 37 वर्षीय गीता पंजाबी भाषा की प्रोफेसर थी और पिछले 15 सालों से सिविल लाइंस लुधियाना स्थित एक शिक्षण संस्थान में पढ़ाती थी. उस का पति कुलदीप रेलवे में बतौर इलेक्ट्रिशियन तैनात था.  कुलदीप सुबह साढ़े 8 बजे अपनी ड्यूटी पर चला जाता था और शाम को साढ़े 5 बजे घर लौटता था. कुलदीप के चले जाने के बाद साढ़े 9 बजे गीता भी अपने कालेज चली जाती थी. जबकि सुदीक्षा कालेज के लिए 10 बजे घर से निकलती थी. सब के जाने के बाद घर में कुलदीप का छोटा भाई हरदीप अकेला रह जाता था.

हरदीप नगर निगम लुधियाना की पार्किंग के एक ठेकेदार के पास काम करता था. उस की रात की ड्यूटी होती थी. वह अपने भाईभाभी के पास ही रहता था. हरदीप रात 8 बजे घर से ड्यूटी पर जाता था और सुबह 9 बजे लौटता था. काम से लौट कर वह दिन में घर पर ही सोता थाकुलदीप, उस की पत्नी गीता, बेटी सुदीक्षा और हरदीप सहित 4 सदस्यों का यह परिवार लुधियाना के अजीत नगर, बकौली रोड, हैबोवाल के मकान नंबर 1751/21 की गली नंबर-3 में रहता था. कुलदीप के पिता राममूर्ति की कुछ वर्ष पहले मौत हो चुकी थीपिता की मौत के बाद कुलदीप ही घर का एक मात्र बड़ा सदस्य था. कुलदीप को मिला कर परिवार में 3 कमाने वाले थे, सो घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. सब कुछ ठीकठाक चल रहा था.

पिता की दुश्मन बेटी

 उस दिन कुलदीप, गीता और सुदीक्षा घर से जाने की तैयारी कर रहे थे. अपनेअपने हिसाब से सभी को जल्दी थी. गीता ने नाश्ता तैयार कर लिया था. उस ने पति को आवाज दी, ‘‘नाश्ता लग गया है, जल्दी जाइए. मुझे कालेज के लिए देर हो रही है.’’

कुलदीप नाश्ते की टेबल पर कर बैठ गया तो गीता ने उसे परांठे परोस दिए. कुलदीप नाश्ता करने लगा तो उसे बेटी का ध्यान आया. उस ने गीता से पूछा, ‘‘सुदीक्षा कहां है?’’

‘‘अपने कमरे में होगी, तुम नाश्ता करो.’’

कुलदीप ने वहीं बैठेबैठे सुदीक्षा को आवाज दे कर पुकारा, पर वह नहीं आई. कुलदीप ने 2-3 बार आवाज दी पर सुदीक्षा के कमरे से कोई जवाब नहीं आया. गीता ने एक बार फिर टोका, ‘‘तुम नाश्ता करो, वह जाएगी.’’ पर कुलदीप को चैन नहीं आया, क्योंकि उसे सुबह का नाश्ता और रात का खाना पत्नी और बेटी के साथ खाना पसंद थापत्नी के मना करने के बावजूद कुलदीप नाश्ता छोड़ कर बेटी के कमरे में गए. सुदीक्षा के कमरे में जा कर उन्होंने देखा कि सुदीक्षा कानों में हैडफोन लगाए किसी से हंसहंस कर बातें कर रही थी. यह देख कर कुलदीप को गुस्सा गया. उस ने आगे बढ़ कर देखा तो स्क्रीन पर तरुण का नाम था

तरुण उर्फ तेजपाल सिंह भाटी, सुदीक्षा का बौयफ्रैंड था, यह बात कुलदीप अच्छी तरह जानता था. तरुण हंसबड़ारोड पर पंज पीर के पास मेहर सिंह नगर में रहता था, उस की मैडिकल शौप थी. पिछले 3 सालों से सुदीक्षा और तरुण के प्रेमसंबंध थे. कुलदीप शुरू से ही इन संबंधों का विरोध करता था. इसे ले कर उस ने सुदीक्षा को कई बार फटकारा भी था. इतना ही नहीं तरुण को ले कर बापबेटी में कई बार कहासुनी भी हुई थी. फिर भी सुदीक्षा ने तरुण का साथ नहीं छोड़ाकुलदीप उसे बराबर समझाता था कि फालतू के प्यारव्यार के चक्कर में पड़ कर अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे. लेकिन सुदीक्षा ने पिता की बात कभी नहीं मानी. वह खुद को आजाद मानती थी और आजाद ही रहना चाहती थी. अपनी जिंदगी में उसे किसी की दखलंदाजी बरदश्त नहीं थी. तरुण के मामले में तो वह किसी की भी नहीं सुनती थी

फोन की स्क्रीन पर तरुण का नंबर देख कर कुलदीप के तनबदन में आग लग गई. उस ने डांटते हुए सुदीक्षा से कहा, ‘‘हजार बार मना किया है कि इस लफंगे से संबंध नहीं रखना, पर तुम हो कि मानती ही नहीं. क्या मेरी बातें तुम्हारी समझ में नहीं आतीं, या सब कुछ जानसमझ कर अनजान बनने का नाटक करती हो.’’

सुदीक्षा के कमरे से पति के जोरजोर से बोलने की आवाज सुन कर गीता भी वहां गई. उस ने भी बेटी को डांट कर चुप रहने के लिए कहा. लेकिन बापबेटी के बीच फोन पर  तरुण से बातचीत को ले कर कहासुनी चालू रही. इस बहस में दोनों में से कोई हारने को तैयार नहीं थाकुलदीप पिता होने का अधिकार समझ कर बेटी को गलत राह पर जाने से रोक रहा था, जो अपनी जगह पर ठीक भी था. जब बच्चे अपना लक्ष्य भूल कर रास्ता भटकने लगते हैं, तो पिता का कर्तव्य बन जाता है कि वह अपनी संतान को गलत राह पर जाने से रोके और अपनी समझ के अनुसार उस का सही मार्गदर्शन करे. यही कुलदीप कर रहा था

दूसरी ओर कोई तरुण को भलाबुरा कहे यह सुदीक्षा को बरदाश्त नहीं था. यही कारण था कि कुलदीप जब भी बेटी को समझाने की कोशिश करता तो वह हत्थे से उखड़ जाती थी. इस के साथ ही बापबेटी के बीच तरुण को ले कर महाभारत शुरू हो जाता थातरुण के मामले में सुदीक्षा अपने पिता को अपना कट्टर दुश्मन मानती थी. उस दिन कहासुनी से शुरू हुई बात अचानक इतनी ज्यादा बढ़ गई कि गुस्से में कुलदीप ने सुदीक्षा के हाथों से मोबाइल छीन कर फर्श पर पटक दिया. इस के बाद वह गुस्से में नाश्ता किए बिना ही घर से निकल गया. खाने का टिफिन भी घर पर ही छोड़ दिया था.

परिवार में किसी तीसरे का दखल भी बढ़ाता है कलह कुलदीप के बिना कुछ खाएपीए घर से निकल जाने के बाद गीता और सुदीक्षा भी बिना नाश्ता किए अपनेअपने कालेज चली गईं. रात को कुलदीप ने एक बार फिर बेटी को प्यार से समझाने के लिए खाने की टेबल छत पर लगवाई. कुलदीप का भाई हरदीप खाना खा कर काम पर जाने की तैयारी कर रहा थागीता, सुदीक्षा और कुलदीप ने जब तक खाना शुरू किया तब तक हरदीप जा चुका था. मांबाप और बेटी के बीच जो थोड़ा बहुत मनमुटाव था, वह एक साथ खाना खाने से खत्म हो गया. खाना खाने के बाद कुलदीप नीचे अपने कमरे में सोने के लिए चला गया. गीता और सुदीक्षा छत पर ही सो गईं. यह बीती 19 जुलाई की बात है.

अगली सुबह यानी 20 जुलाई, 2018 की सुबह साढ़े 5 बजे उठ कर गीता छत से नीचे आई. यह उस का रोज का नियम था. नित्यकर्म से फारिग हो कर जब वह पति कुलदीप को जगाने उस के कमरे में की ओर जा रही थी, तभी अचानक उस की नजर खुले हुए मुख्य दरवाजे पर पड़ी, मुख्यद्वार खुला हुआ थावह तेजी से कुलदीप के कमरे की ओर लपकी. कमरे के भीतर का दृश्य देख कर उस की आत्मा तक कांप उठी. सामने बेड पर खून से लथपथ कुलदीप की लाश पड़ी थी. गीता ने डर कर जोरजोर से चिल्लाना शुरू कर दिया. उस के रोने चिल्लाने की आवाज सुन कर अड़ोसीपड़ोसी जमा हो गए. किसी ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन पर सूचना दी कि अजीत नगर की गली नंबर-3 के मकान नंबर-1715/21 में एक आदमी की हत्या हो गई है, जल्दी पहुंचें

पुलिस कंट्रोल रूम ने यह सूचना संबंधित थाने हैबोवाल को दे दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी परमदीप सिंह अपने सहायक पुलिसकर्मियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. सुबह का समय था, दिन अभी पूरी तरह से नहीं निकला था. इस के बावजूद वहां अपेक्षा से अधिक भीड़ जमा थी. जहां हत्या हुई थी, वह 40 वर्षीय कुलदीप सिंह संघड़ उर्फ मोनू का था. हत्या भी उसी की हुई थी. थानाप्रभारी परमदीप सिंह ने घटनास्थल का मुआयना किया. कुलदीप की लाश कमरे में बैड पर पड़ी थी. उस की हत्या किसी तेजधार हथियार से गला रेत कर की गई थी. कटने पर गले से बहा खून बैड पर फैला हुआ था

खून देख कर ऐसा लगता था, जैसे कुलदीप की हत्या कुछ घंटे पहले ही की गई हो, क्योंकि खून का रंग अभी तक लाल था, काला नहीं हुआ था. घनी आबादी वाली उस मध्यमवर्गीय परिवारों की कालोनी के एक मकान में इस तरह हत्या हो जाना आश्चर्य वाली बात थी. मामले की गंभीरता को देखते हुए परमदीप सिंह ने घटना की सूचना अपने उच्चाधिकारियों और क्राइम टीम को दे दी थी. सूचना मिलते ही लुधियाना पुलिस कमिश्नर डा. सुखचैन सिंह गिल, एडीसीपी गुरप्रीत कौर पोरवाल, एसीपी (वेस्ट) गुरप्रीत सिंह, स्पैशल स्टाफ की टीम और क्राइम ब्रांच टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए

डौग स्क्वायड भी मौके पर बुला लिया गया था. सब ने आते ही अपनाअपना काम शुरू कर दिया. घटनास्थल से कुछ फिंगरप्रिंट भी उठाए गए. खोजी कुत्ते ज्यादा मदद नहीं कर पाए. वह मृतक के कमरे से निकल कर आंगन में चक्कर लगाने के बाद बाहर सड़क पर कर रुक गए. साथसाथ खाना खा कर अलग सोए थे. थानाप्रभारी परमदीप सिंह को मृतक कुलदीप की 37 वर्षीय पत्नी गीता ने बताया कि कुलदीप ने रात को करीब साढे़ 9 बजे मेरे और 17 वर्षीय बेटी सुदीक्षा के साथ छत पर खाना खाया था. खाना खाने के बाद लगभग 10 बजे वह नीचे अपने कमरे में सोने चले गए थे. बाद में मैं ने नीचे कर घर का मुख्य द्वार बंद कर के ताला लगाया था, फिर मैं छत पर बेटी के साथ सोने चली गई थी

रोज की तरह सुबह साढ़े 5 बजे जब मैं छत से उतर कर नीचे आई, तो मैं ने कुलदीप के कमरे में उन की लाश देखी. उस समय घर का मुख्य द्वार खुला हुआ था. यह देख मैं ने घबरा कर शोर मचा दिया. जिस से अड़ोसीपड़ोसी जमा हो गए. उन्हीं में से किसी ने पुलिस को फोन किया होगा. मृतक कुलदीप के भाई हरदीप ने बताया कि वह रात के करीब साढे़ 9 बजे जब काम पर जा रहा था, तब भाईभाभी और सुदीक्षा छत पर बैठ कर खाना खा रहे थे. सुबह साढ़े 5 बजे मेरे दोस्त और पड़ोसी लाला ने फोन पर मुझे यह खबर दी. हरदीप ने यह भी बताया कि रात को रोजाना कुलदीप ही बाहर वाले मुख्य दरवाजे पर ताला लगाया करता था

उस ने यह भी बताया कि कुलदीप को शराब पीने की आदत थी. अपनी ड्यूटी से आने के बाद वह सोने से पहले तक 1-2 घंटे घर पर ही बैठ कर शराब पीया करता था. हरदीप के अनुसार घर से उस के भाई की काले रंग की स्पलेंडर मोटर साइकिल और 2 फोन भी गायब थे, जिन में एक फोन ओप्पो कंपनी का था और दूसरा चाइनीज सेट थामृतक की बेटी सुदीक्षा ने अपने बयान में सिर्फ इतना ही बताया कि मां के रोने की आवाज सुन कर वह छत से नीचे आई थी. बहरहाल सब थानाप्रभारी ने मृतक कुलदीप के भाई हरदीप के बयानों के आधार पर कुलदीप की हत्या का मुकदमा भादंवि की धारा 302, 120 बी, 34 के अंतर्गत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ दर्ज कर लिया. प्राथमिक काररवाई कर के उन्होंने लाश पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भिजवा दी. इस हत्याकांड से पूरे इलाके में दहशत का माहौल बन गया था.

पुलिस को नहीं मिला क्लू खुद को हाईटेक सिस्टम से लैस बताने वाली लुधियाना पुलिस ने घटनास्थल की हाईटेक तरीके से ही जांच की थी. पुलिस की पूरी टीम ने डेढ़ से 2 घंटे में पूरे घटनास्थल की जांच की. अब तक की जांच पड़ताल में यह बात सामने आई कि कुलदीप के हत्यारे जो भी रहे हों, वह थे जानने वालेक्योंकि घटनास्थल से ऐसा कोई चिह्न नहीं मिला था, जिस से पता चलता कि हत्यारों ने घर में प्रवेश करने के लिए कोई जोर जबरदस्ती की हो. संभवत: कुलदीप की हत्या में किसी नजदीकी का हाथ थाबहरहाल, परमजीत सिंह ने आगामी तफ्तीश शुरू करते हुए घटनास्थल के आसपास लगे सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज चैक की. मृतक की पत्नी गीता, बेटी सुदीक्षा और नजदीकी रिश्तेदारों के अलावा कुलदीप के दोस्तों और सहकर्मियों से भी पूछताछ की गई. लेकिन परमदीप सिंह के हाथ ऐसा कोई सूत्र नहीं लगा जिसे कुलदीप की हत्या से जोड़ कर देखा जा सके

पूछताछ के दौरान पड़ोसियों ने बताया था कि कुलदीप और उस की पत्नी गीता के बीच अकसर झगड़ा होता था. इस बारे में जब गीता से पूछा गया तो उस ने बताया कि कुलदीप अनुशासनप्रिय था. लेकिन शाम को थोड़ी पीने के बाद वह और भी ज्यादा अनुशासित हो जाता था. वह जब तब सुदीक्षा को ठीक से पढ़ने और कोई अधिकारी बनने के बारे में कहा करता था, जिसे ले कर दोनों के बीच कहासुनी हो जाती थी. बाहर से कौन और कैसे आया?

थानाप्रभारी परमदीप सिंह के लिए यह केस चुनौतीपूर्ण बन चुका था. उन्होंने एक बार फिर सारे घटनाक्रम का शुरू से अध्ययन किया. कत्ल के वक्त केवल मांबेटी ही घर पर थीं. पुलिस को यह बात खटक रही थी कि आखिर कातिल घर में दाखिल कैसे हुए. क्योंकि बिना फ्रैंडली एंट्री के घर में दाखिल होना संभव नहीं था. वारदात के वक्त मृतक कुलदीप का छोटा भाई हरदीप भी अपनी ड्यूटी पर गया हुआ था. छानबीन में वह केवल निर्दोष पाया गया, बल्कि उस के बयान ने पुलिस के शक की सुई मृतक की पत्नी गीता की ओर घुमा दी थी. गीता ने बताया था कि खाना खाने के बाद उस ने खुद मुख्यद्वार बंद किया था. जबकि हरदीप का कहना था कि मुख्यद्वार उस का भाई कुलदीप ही बंद करता था.

सोने से पहले कुलदीप को 5-7 मिनट टहलने की आदत थी. टहलने के बाद वह मुख्यद्वार बंद कर चाबी कमरे में खूंटी के पास लटका देता था ताकि सुबह गीता को चाबी ढूंढने में परेशानी हो. सोचने वाली बात यह भी थी कि जब घर में 2 लोग मौजूद थे तो किसी तीसरे ने बाहर से कर कुलदीप की हत्या कैसे कर दी. इस का मतलब घर का एक आदमी बाहर वाले से मिला हुआ था. या दोनों ही मिले हुए थे. अथवा दोनों ने ही मिल कर कुलदीप की हत्या की थी और मामले को लूटपाट का जामा पहना दिया गया था. जो भी खिचड़ी पकी थी, वह घर के अंदर ही पकी थी. यह बात जेहन में आते ही परमदीप सिह ने गीता और सुदीक्षा की पिछले एक हफ्ते की काल डिटेल्स निकलवाई.

काल डिटेल्स में एक ऐसा नंबर सामने आया जिस पर सुदीक्षा की बहुत बात होती थी. कई काल्स तो घंटे भर से भी ज्यादा की थीं और कई काल देर रात भी की गई थीं. यहां तक कि घटना वाली रात 19 जुलाई को थोड़ेथोड़े अंतराल से दोनों की उस समय तक बात होती रहती थी, जिस समय कुलदीप की हत्या की जा रही थी. सोचने वाली बात यह थी कि क्या ऐसा संभव था कि नीचे वाले कमरे में लूटपाट के साथ किसी की हत्या की जा रही हो और ऊपर छत पर फोन पर बातें करने वाले को भनक तक ना लगेकोई खटका, कोई आहट सुनाई ना दे, ऐसा कैसे संभव था? यह बात परमदीप सिंह को हजम नहीं हो रही थी

उन्होंने तत्काल उस नंबर के मोबाइल की काल डिटेल्स चैक कीं तो पुलिस के कान खड़े हो गए. थोड़ी सख्ती करने पर सारी सच्चाई सामने गई. पुलिस ने सुदीक्षा के 21 वर्षीय प्रेमी तरुण उर्फ तेजपाल सिंह भाटी को हिरासत में ले लिया, जो हंबड़ा स्थित पंजपीर रोड के मेहर सिंह नगर का रहने वाला था. उस की मैडिकल शौप थी. वह बीए सैकेंड ईयर में पढ़ रहा था. तरुण ने खोला भेद पूछताछ के दौरान तरुण ने बहुत चौंका देने वाला खुलासा कर के पुलिस को हैरत में डाल दिया. तरुण ने सब इंसपेक्टर परमदीप सिंह को बताया कि कुलदीप की हत्या खुद सुदीक्षा ने ढाई लाख रुपए दे कर करवाई थीपुलिस कमिश्नर लुधियाना अन्य पुलिस उच्चाधिकारियों के समक्ष दिए गए तरुण के इस बयान के बाद कुलदीप की हत्या के अपराध में गीता और सुदीक्षा को गिरफ्तार कर लिया गया

उसी दिन सुदीक्षा, उस के प्रेमी तरुण और मां गीता को कुलदीप की हत्या के इलजाम में अदालत में पेश कर के आगामी पूछताछ के लिए पुलिस रिमांड पर ले लिया गयातरुण और सुदीक्षा की निशानदेही पर पुलिस ने उस का मोबाइल फोन भी बरामद कर लिया, जो उस ने छत पर छिपा रखा था. साथ ही उस की वह चुन्नी और खून से सना तौलिया भी मिल गया, जो वारदात में इस्तेमाल हुआ था. तरुण और सुदीक्षा ने इस हत्याकांड में लिप्त 4 और लोगों के नाम भी बताए. हैबोवाल थानाप्रभारी परमदीप सिंह ने इन आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए एक विशेष टीम बनाई. जिस में हंबड़ां चौकी प्रभारी एएसआई मनजीत सिंह सिंघम, कांस्टेबल प्रगट सिंह, जतिंदर सिंह जीतू कुमार को शामिल किया गया

इस टीम ने 25 जुलाई को बड़े नाटकीय ढंग से सागर गैंग के सरगना एवं कौंट्रैक्ट किलर सागर उर्फ न्यूट्रन को, उस के 3 साथियों के साथ गिरफ्तार कर लिया, जबकि इस मामले का 8वां आरोपी जसकरन अभी भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर था. पकडे़ गए आरोपियों की पहचान फील्डगंज के प्रेमनगर निवासी सागर ब्राह्मणिया. खुडु मोहल्ले के दीपक धालीवाल उर्फ दीपा सीएमसी के निकट रहने वाले विशाल जैकप के रूप में हुई. पकड़े गए आरोपी 18 से 21 साल के बीच के थे जो कि 10वीं तक ही पढ़े थे. ये सभी आपस में दोस्त थे, सागर, विशाल और दीपक को राजपुरा रोड से काबू किया गया, जबकि न्यूट्रन को ढोलेवाल चौक से पकड़ा गया. पूछताछ में इन सभी ने अपना जुर्म कबूल कर लिया

पिता नहीं प्रेमी चाहिए था.आरोपियों के कब्जे से वारदात में इस्तेमाल मोटरसाइकिल लाल रंग की स्कूटी के अतिरिक्त मृतक की स्पलैंडर मोटरसाइकिल, उस का पर्स, परिचय कार्ड अन्य सामान बरामद हुआ, जबकि वारदात में इस्तेमाल किया गया हथियार बरामद करने के लिए इन का पुलिस रिमांड लेना पड़ा. रिमांड के दौरान की गई पूछताछ में कुलदीप की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह खून के रिश्तों को तारतार कर मर्यादाओं का गला घोंटने वाली एक ऐसी असभ्य और जिद्दी औरत की कहानी थी, जिस ने अपने प्रेमी से रिश्ता रखने के लिए अपने ही पिता का खून बहा दिया था. कुलदीप अकसर शराब पी कर नशे में गीता सुदीक्षा से मारपीट करता था. इस की वजह यह थी कि कुलदीप को बेटी और तरुण उर्फ तेजपाल के प्रेम संबंधों पर सख्त आपत्ति थी. वैसे तो उसे उन तमाम रिश्तों पर ऐतराज था, जो बेटी की पढ़ाई और उस के भविष्य के आडे़ आते थे

वह नहीं चाहता था कि उस की बेटी तेजपाल से मेलमिलाप रखे. उस ने कई बार सुदीक्षा को मोबाइल पर बात करते हुए पकड़ लिया था और तैश में कर बेटी का मोबाइल भी तोड़ दिया था, जबकि गीता इस मामले में बेटी को ऊंचनीच समझाने की जगह उलटे उसी का साथ दिया करती थी. इस का नतीजा यह निकला कि सुदीक्षा अपनी मां की शय पा कर दिनप्रतिदिन बिगड़ती चली गई और पिता पर हावी होने की कोशिश करने लगी, जो कुलदीप को कतई मंजूर नहीं था. इसलिए वह शराब पीने के बाद इस बात को ले कर पत्नी और बेटी से झगड़ा किया करता था

उधर सुदीक्षा अपने प्रेमी तरुण को किसी भी कीमत पर छोड़ने को तैयार नहीं थी. वह हर समय अपने पिता को नीचा दिखाने के लिए योजनाएं बनाती रहती थी. इस बीच सुदीक्षा ने अपने पिता के बारे में गीता से कहना शुरू कर दिया कि उस का शराबी पिता उस पर बुरी नजर रखता है. वह कभी भी उस की इज्जत की धज्जियां उड़ा सकता है. पति की यह बात गीता को नागवार गुजरी और उस ने बिना विवेक से काम लिए बेटी की बातों पर विश्वास कर लिया और पति के कत्ल की साजिश रच डाली. अपने बयानों में सुदीक्षा ने बताया कि उस के तेजपाल के साथ पिछले 3 सालों से प्रेम संबंध थे. तरुण की तरह सुदीक्षा भी प्राइवेट तौर पर बीए कर रही थी. पिता को रास्ते से हटाने के लिए गीता ने तेजपाल से बात की. तीनों ने मिल कर 3 महीने पहले अप्रैलमई में योजना तैयार की

हिस्ट्रीशीटर से हुआ हत्या का सौदा कुलदीप की हत्या के लिए पहले तेजपाल ने बीड़ा उठाया था. बीते जून महीने की 18 तारीख को वह पूरी तैयारी के साथ कुलदीप की हत्या करने के लिए उस के घर आया था, लेकिन एन मौके पर उस की हिम्मत जवाब दे गई. फलस्वरूप योजना धरी की धरी रह गई. एक बार योजना नाकाम रहने पर गीता सुदीक्षा ने तेजपाल के माध्यम से उस के दोस्त कुख्यात हिस्ट्रीशीटर सागर सूद उर्फ न्यूट्रन से मिल कर कुलदीप को कत्ल करने की बात की. फलस्वरूप कुलदीप की हत्या का सौदा ढाई लाख रुपए में तय हो गया. सागर सूद एलआईजी फ्लैट फेज-3 का रहने वाला था. उस पर लुधियाना के सराभा नगर थाना डिवीजन नंबर-6 में हत्या के प्रयास, मारपीट, चोरी और अन्य संगीन धाराओं में कई मामले दर्ज थे

आखिरी बार उसे हत्या के प्रयास के मामले में थाना सलेम टाबरी पुलिस ने गिरफ्तार किया था. इस मामले में विशाल भी सह अभियुक्त था. सागर बीते मई महीने में जेल से बाहर आया था. जून में उस ने लुधियाना की एक युवती से प्रेम विवाह कर लिया था और उस के साथ चंडीगढ़ में रहने लगा था. तरुण से उस की पहले से ही दोस्ती थी. नयानया विवाह हुआ था, न्यूट्रन को पैसों की सख्त जरूरत थी. यही सोच कर जब तरुण ने कुलदीप का कत्ल करने के लिए ढाई लाख रुपए देने की बात कही तो वह तुरंत तैयार हो गया. तरुण ने उसे 6 हजार रुपए एडवांस दे दिए. बाकी रकम काम करने के बाद देना तय हुआ. साथ ही यह भी तय हुआ कि कुलदीप को इस तरह मौत के घाट उतारा जाए ताकि उस की मौत प्राकृतिक लगे

ऐसा इसलिए ताकि कुलदीप की मौत के बाद रेलवे की तरफ से मिलने वाला पैसा उस की पत्नी गीता को मिल जाए. उसी पैसे में से सुपारी के शेष पैसे देना तय हुआ. यह भी तय हुआ कि कत्ल के बाद घर में जो भी पैसा और कीमती सामान होगा, उसे कातिल अपने साथ ले जाएंगे. सागर कुलदीप की हत्या की वारदात को अंजाम देने के लिए तैयार हो गया और उस ने हत्या करने के लिए फूलप्रूफ योजना तैयार कर ली. न्यूट्रन ने इस वारदात को अंजाम देने के लिए अपने दोस्तों सागर ब्राह्मणिया, दीपक धालीवाल उर्फ दीपा विशाल जैकप को अपनी योजना में शामिल कर लियाएडवांस 6 हजार रुपए में से 8 सौ रुपए उस ने चंडीगढ़ से लुधियाना आने के लिए टैक्सी के किराए पर खर्च कर दिए, जबकि 12 सौ रुपए में लुधियाना बस अड्डे के पास अपनी नई पत्नी को होटल का कमरा किराए पर ले कर दिया था. इस के बाद एक वह और उस के दोस्त मोटरसाइकिल स्कूटी पर सवार हो कर कुलदीप के घर पहुंचे.

कुलदीप की जिंदगी की आखिरी रात आसपास घर होने के कारण न्यूट्रन पकडे़ जाने का रिस्क नहीं लेना चाहता था, क्योंकि उस की नईनई शादी हुई थी. इसीलिए उस ने अपने दोस्तों को साथ मिलाया था. कुलदीप के घर का मुख्यद्वार गीता और सुदीक्षा ने पहले से ही खोल कर रखा था. जब ये लोग घर में दाखिल हुए तो कुलदीप बैडरूम में गहरी नींद सो रहा था. न्यूट्रन और उस के साथियों ने कुलदीप को सोते वक्त दबोच लिया और उस का मुंह तौलिए से दबा कर गले के चुन्नी से घोंट दिया, जबकि 2 लोगों ने उस की टांगें और बाजू पकड़ रखे थे. इस बीच जब कुलदीप बेसुध हो गया तो जसकरण ने उस के दिल की धड़कन चैक की, जो चल रही थी. इस पर न्यूट्रन और विशाल ने साथ लाए तेजधार हथियारों से वार कर के उस की गरदन काट कर उसे मौत के घाट उतार दिया

इस के बाद ये लोग कुलदीप का पर्स, जिस में करीब 2000 रुपए थे, उस का पहचान पत्र, कमरे में रखे 2 मोबाइल फोन और मोटरसाइकिल ले कर भाग गए. कुलदीप का कत्ल करने के बाद सागर ने मोबाइल से इस की सूचना तरुण को दे दीतरुण ने मोबाइल पर यह बात सुदीक्षा को बता दी. योजना के अनुसार कुलदीप की हत्या होने की खबर मिलते ही दोनों मांबेटी ने सबूत मिटाने की कोशिश की. वे छत से नीचे आईं और खून से सने तौलिए चुन्नी काले रंग की पोलीथिन में डाल कर पीछे के खाली प्लाट में फेंक दी, जिसे बाद में पुलिस ने बरामद कर लिया था. कुलदीप की पत्नी गीता पुलिस को दिए अपने बयान में बुरी तरह फंस गई थी. उस ने पुलिस को बताया था कि जब वह सुबह उठी तो सीढि़यों पर लगे दरवाजे की कुंडी उस ने ही खोली थी. जब वह नीचे आई तो घर के मेनगेट के लौक में अंदर से चाबी लगी हुई थी और वह खुला हुआ था

इसी पर पुलिस को संदेह हुआ कि जब ऊपर से कोई नहीं आया तो मेन गेट का लौक किस ने खोला, जबकि कुलदीप का रूटीन था कि वह सोने से पहले मेन गेट लौक कर के चाबी को कुंडी पर टांग देता था.

   — कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित..

ऐक्ट्रैस Neena Gupta बनीं ‘गंजी चुड़ैल’, फैंस को लगा 440 वाल्ट का झटका

बेहतरीन ऐक्ट्रैस नीना गुप्ता (Neena Gupta) अक्सर चर्चा में रहती हैं. कभी अपने लुक और स्टाइल की वजह से तो कभी अपनी ऐक्टिंग की वजह से Neena Gupta फैंस को सरप्राइज देती रहती हैं. हाल ही में सोशल मीडिया पर उनका एक लेटेस्ट वीडियो काफी वायरल हो रहा है. जिसमें वह गंजी चुड़ैल के लुक में नजर आ रही हैं. ऐक्ट्रैस का ये वीडियो अभी तक हजारों कमेंट और लाखों व्यूज बटोर चुका है.

 

डरावना लुक

65 साल की उम्र में नीना ने ऐसा डरावना रूप अपनाया, जिसे देख आप भी हैरान रह जाएंगे. बेहद खूबसूरत दिखने वाली नीना गुप्ता का ऐसा डरावना रूप देख आप यकीन ही नहीं कर पाएंगे ये नीना हैं.
उनका लेटेस्ट लुक क्या है आइए जानते है. रेड आंखे, ग्रीन स्किन कलर और गंजी चुड़ैल के रूप में नीना का लुक वाकई डरावना है.

अपकमिंग प्रोजेक्ट का लेटेस्ट लुक

आपको बता दें कि नीना गुप्ता इस बार कुछ ऐसा प्रोजेक्ट लेकर आई हैं, जिससे उनके फैंस को 440 वाल्ट का झटका लगना तो तय है. सोशल मीडिया पर नीना गुप्ता के अपकमिंग प्रोजेक्ट से लेटेस्ट लुक सामने आया है. जिसमें वह ‘गंजी ग्रीन’ कलर की चुड़ैल के रूप में नजर आ रही है. उनके इस लुक को देख कर सभी आश्चर्य में है.

वायरल इंस्टाग्राम वीडियो

नीना गुप्ता का यूट्यूब इंडिया इंस्टाग्राम पेज पर एक वीडियो सामने आया है. जिसमें नीना गुप्ता के साथ ब्यूटी और लाइफस्टाइल शिवशक्ति सचदेव, इशिता मंगल और शक्ति सिधवानी भी दिख रही हैं. तीनों का इंटरेस्टिंग वीडियो है. वीडियो की शुरुआत एक वाइस ओवर के साथ होती है. वीडियो में तीन यूट्यूबर्स गंजी चुड़ैल के हाथों किडनैप हो जाती है और ये तीनों ही एक रस्सी से बंधी नजर आ रही हैं. फिर नीना गुप्ता की गंजी चुड़ैल के रूप में एंट्री होती है. ग्रीन कलर की गंजी चुड़ैल के रूप में नीना बहुत डरावनी दिख रही हैं. इस लुक में वह पहचान में ही नहीं आ रही हैं. वह कहती हैं, ‘थक गई हूं मीम बनाके. अब तुम तीनों मुझे बेब बनाओगी.’ इसके बाद तीनों यूट्यूबर्स नीना गुप्ता का मेकअप करते हैं. लास्ट में नीना अपना ही लुक देख शर्म से लाल हो जाती हैं. नीना का ये वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है.

वीडियो पर सेलेब्स और फैंस के कमेंट्स

इस वीडियो को शेयर करते हुए यूट्यूब ने लिखा है, ‘भूत आइकौनिक से यूथ आइकौनिक तक. ये है Gen Z की चुड़ैल.’ सोशल मीडिया पर इस वीडियो को देखने के बाद कई सेलेब्स और फैंस के कमेंट्स आ रहे हैं. एक यूजर ने लिखा, ‘अरे प्रधान जी की बीवी को क्या हो गया.’ एक दूसरा लिखता है, ‘क्या ये सच में प्रधान जी की पत्नी है.’

एक यूजर ने कमेंट करते हुए लिखा, “वाऊ वो फाउंडेशन जो चुड़ैल की स्किन से मैच करके लगाया है, कितना सही है. तुम बहुत ही प्यारी लग रही हो जेन-जेड (Gen-Z) चुड़ैल”. दूसरे यूजर ने लिखा, “मंजू देवी से गंजी चुड़ैल बनने तक, 2024 में नीना गुप्ता की वर्सेटैलिटी का जवाब नहीं है”. एक और अन्य यूजर ने लिखा, “ओह माय गौड मैंने ये क्या देखा है? नीना जी गंजी चुड़ैल बनी हैं. आइकोनिक कैरेक्टर के लिए एकदम झकास कास्टिंग है. गंजी चुड़ैल ने दिल जीत लिया यार”.

नीना गुप्ता का करियर

नीना गुप्ता को इंडस्ट्री में कई साल हो चुके हैं और हर बार वह अपने डिफरैंट रोल से सबका दिल जीत लेती है. हाल में ही वह मलयालम वेब सीरीज 1000 बेबीज में नजर आईंं थीं. उससे पहले ऊंचाई, वध, पंचायत जैसे बड़े प्रोजैक्ट्स में कमाल का काम किया. नीना गुप्ता को 3 नेशनल अवार्ड 1 फिल्मफेयर तो 2 फिल्मफेयर ओटीटी अवार्ड भी मिले हैं.

Family Story : प्याज के आंसू- पत्नी ने बर्बाद कर दिया पति का जीवन

कहानी- छबी पराते

आज घर का माहौल बहुत गमगीन था. भैया का सामान ट्रक से उतारा जा रहा था और हमारे पुराने घर में इस सामान के लिए  जैसेतैसे जगह बनाई जा रही थी. मेरे भतीजे और ममेरे, फुफेरे भाई सभी सजल नेत्रों के साथ सामान उतार रहे थे. वे किस तरह सहेज और संभाल कर सामान उतार रहे थे उसे देख कर मन भीग सा गया. काश, भाभी भी जीवन को इसी तरह सहेज कर चलतीं तो दरके मन के साथ भैया को आज यह दिन तो नहीं देखना पड़ता.

मन बरबस ही आज से 12 साल पहले  के माहौल में चला गया जब भैया मात्र 20 वर्ष की आयु में सरकारी नौकरी प्राप्त करने में सफल रहे थे. घर में मम्मीपापा ही क्या हम सब भाईबहन भी बेहद खुश थे. भैया दिल्ली में सेना मुख्यालय में निजी सहायक के पद पर चयनित हुए थे. 2 साल की कड़ी मेहनत के बाद उन के जीवन में खुशी का यह क्षण आया था.

मम्मी और पापा यह सोच कर अत्यंत  भावुक हो गए थे कि दिल्ली जैसे बड़े शहर में बेटा कहां रहेगा, उस के खानेपीने का ध्यान कौन रखेगा, लेकिन भैया बहुत उत्साहित थे. एक युवा मन में नौकरी पाने के बाद जो उमंग और उत्साह होता है वह सब भैया में मौजूद था.

भैया अपना सूटकेस ले कर एक अनजान शहर में जा चुके थे. दिल्ली जैसे महानगर में रहने की समस्या, खानेपीने की समस्या और आफिस आनेजाने की समस्या से भी भैया का सामना हुआ और उन्होंने इस का न केवल डट कर मुकाबला किया बल्कि इस पर विजय भी पाई.

बड़े शहर में जितने जन उतने सपने. हर इनसान एक जीताजागता सपना होता है और अपने सपने से संघर्ष करता हुआ नजर आता है. भैया भी इस भीड़ में शामिल हो गए थे और अपने सपनों को साकार करने में जुट गए.

भैया ने पढ़ाई से नाता जोड़े रखा और तमाम तरह की तकलीफों से अकेले जूझते हुए उन्होंने अपना ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा किया और अपनेआप को सिविल सेवा के लिए तैयार करने में जुट गए लेकिन वह इस में सफल नहीं हो सके.

भैया को जब भी अवकाश मिलता था वह घर आ जाते थे और हम सब मिल कर बहुत खुश होते थे. धीरेधीरे 5 वर्ष निकल गए. इन 5 सालों में बहुत कुछ बदल गया था. पापा अपनी नौकरी से रिटायर हो चुके थे. मैं खुद इंजीनियरिंग करने के बाद एक अदद नौकरी की तलाश में भटक रहा था. उधर भैया भी अपना जीवन स्तर उठाने के लिए संघर्ष कर रहे थे. हम सब बहुत ही खुश थे और जिंदगी ठीकठाक चल रही थी.

भैया के सरकारी नौकरी में होने की वजह से उन के लिए जगहजगह से शादी के रिश्ते आने लगे थे. भैया बेहद स्मार्ट एवं सुडौल शरीर के मालिक थे. उन्हें ऐसी लड़की चाहिए थी जो पढ़ीलिखी, सुंदर व तेज दिमाग वाली हो ताकि दिल्ली जैसे शहर की सचाइयों के साथ जी सके और साथ ही भैया को अपनी परिपक्वता से कुछ सुकून के पल दे सके क्योंकि वह अब तक संघर्ष कर के बुरी तरह थक चुके थे और प्यार की, अपनत्व भरे सहयोग की शीतल छांव में थोड़ा विश्राम करना चाहते थे.

भैया की यह तलाश इंदौर जा कर समाप्त हुई. शादी बहुत ही धूमधाम से हुई. शादी में दोनों परिवारों ने दिल खोल कर खर्च किया था. शादी संपन्न होने के बाद सभी अपनीअपनी घरगृहस्थी में रम गए. भैयाभाभी बहुत खुश थे. दोनों ने मिल कर कहीं बाहर घूमने का कार्यक्रम बनाया और वे लोग हनीमून मनाने के लिए शिमला गए.

मम्मीपापा  भी अपने को थोड़ा हलका महसूस कर रहे थे क्योंकि पापा ने अपनी एक जिम्मेदारी सफलतापूर्वक निभा दी थी. भैया अपनी नौकरी और पत्नी में लीन हो  गए. कभीकभी मम्मी शिकायत भरे लहजे में कह भी देती थीं कि शादी के बाद तू बदल गया है, लेकिन ऐसा शायद नहीं था.

भैया ने भाभी को भी आगे पढ़ने व अपना एक मुकाम हासिल करने के लिए प्रेरित किया लेकिन अपने अंतर्मुखी स्वभाव के चलते वह वैसा न कर सकीं जैसा भैया चाहते थे. वह अपने को पति तक ही सीमित रखती थीं और  घर में किसी से ज्यादा बात नहीं करती थीं. यहां तक कि मम्मी और पापा से भी वह बात करना पसंद नहीं करती थीं.

भैया सदैव भाभी को खुश रखने का प्रयास करते थे. उन्हें न केवल सारी सुख- सुविधा देने का प्रयास करते बल्कि भाभी की हर इच्छा को पूरी करना अपना कर्तव्य समझते थे. अपने प्रति भैया का यह लगाव भाभी ने उन की कमजोरी समझ लिया और फिर पूरे षड्यंत्र के तहत वह सब किया जो आज की आम बात हो गई है.

भैया के घर आने पर वह किसी को कुछ नहीं समझती थीं लेकिन हम लोग भैया के डर से चुप रहते थे और सोचते थे कि थोड़े दिनों के लिए ये आए हैं जैसे रहते हैं रहने दिया जाए क्योंकि दोनों अपनी जिंदगी से खुश थे और उन की खुशी में ही हम सब की खुशी थी.

भाभी हमेशा अपने मायके वालों को ही सबकुछ समझती रहीं और उन के अंदर कभी इस परिवार के प्रति समर्पण व त्याग की भावना नहीं जागी जिस में वह शादी कर के आई थीं. शायद उन की शिक्षा ही ऐसी थी कि उन का दिमाग सदैव इसी बात में लगा रहता था कि किस प्रकार भैया को घर की तरफ से विमुख रखा जाए.

भैया का वैचारिक स्तर काफी ऊंचा व सुलझा हुआ था. भैया और मम्मी की वैचारिक बहस में कभीकभी मतभेद हो जाया करता था और इस वैचारिक मतभेद का भाभी व उन के मायके वालों ने बड़ा गलत फायदा उठाया. भाभी  को कभी भी हमारे परिवार के सदस्यों का सम्मान करने की शिक्षा नहीं दी गई. भैया भी भाभी पर ही विश्वास करते थे लेकिन भाभी लगातार इसी विश्वास का फायदा उठाने में लगी थीं और अपने घर वालों के साथ मिल कर भैया को उन के परिवार से दूर रखने का घिनौना प्रयास ही करती रहीं.

भाभी के मम्मीपापा व अन्य रिश्तेदार उन का लगातार दिमाग खराब कर रहे थे. वे इन बातों को समझ नहीं पा रही थीं कि ऐसा कर के अपनी ही घरगृहस्थी में सेंध लगा रही हैं. भैया को उन के परिवार से दूर रखने की जो कुत्सित मुहिम चलाई जा रही थी उस का पता उन को अपने ही ससुराल के एक अन्य सदस्य से लग गया और भैया ने अपने ससुराल वालों के यहां आनाजाना व उन्हें महत्त्व देना बंद कर दिया, लेकिन तब तक भाभी का दिमाग इतना खराब कर दिया गया था कि वह इस से उबर नहीं पा रही थीं और उन्हें वही सही लगता था जो उन के मायके वाले कहते थे. और आखिर तक इस मकड़जाल से वह कभी नहीं निकल पाईं. भाभी का दिमाग इतना खराब कर दिया गया कि वह भैया पर शक करने लगीं. भैया की हर गतिविधि को शक के घेरे में रख कर देखने लगीं और उन का दिमाग एक कूड़ेदान की तरह हो गया था जिस में कितनी भी अच्छी बातों को डाला जाए वह सड़  ही जाती है.

भैया ने भाभी को प्यार से कई बार समझाने का प्रयत्न किया और कहा कि अपना दिमाग ठीक रखो. भाभी के शंकालु स्वभाव के कारण भैया की परेशानी बढ़ गई और वह चिड़चिड़े हो गए. जब भाभी प्यार से नहीं मानती थीं तो धीरेधीरे उन के बीच झगड़ा होने लगा और उन का घरेलू जीवन एकदम नीरस हो गया. दोनों अकेले रहते थे लेकिन खुश नहीं थे.  भैया, भाभी को अपने  हिसाब से  रहने को कहते थे परंतु भाभी का अहंम बहुत ही चरम पर था. उन्होंने भैया की कोई बात न मानने की जैसे कसम ही खा ली थी.

भैया को अपने सपने टूटते से लगे और धीरेधीरे यह बात घर के बड़ेबुजुर्गों तक भी पहुंच गई. भैया को यह जान कर भी बहुत दुख हुआ था कि भाभी के मायके वाले भी उन्हें समझाने को तैयार नहीं थे और लगातार षड्यंत्र रच रहे थे.

भैया और भाभी के बीच का तनाव इतना ज्यादा बढ़ गया कि उसे देख कर दोनों परिवार के सदस्य परेशान हो गए. भाभी चोरीछिपे अपने मायके फोन कर के उलटासीधा बताने लगीं जिस ने जलती आग में घी का काम किया. समस्या के प्रति भाभी के मायके वाले कभी गंभीर नहीं रहे और उन्होंने कभी आमनेसामने खुल कर बात नहीं की और फिर वही हुआ जिस का सब को डर था.

एक रात भाभी दिल्ली जैसे शहर से अकेली भैया को बिना बताए ही अपने मायके पहुंच गईं. उन के घर के लोग पहले से ही भरे बैठे थे, उन्होंने भैया को सबक सिखाने की ठान ली.

उधर भाभी के इस तरह से अचानक चले जाने से भैया बहुत परेशान हुए और जगहजगह उन्हें ढूंढ़ते रहे. भाभी के मायके फोन कर के पूछने पर भी उन लोगों ने भैया को नहीं बताया कि भाभी उन के पास पहुंच गई हैं. अंतत: भाभी की गुमशुदगी की रिपोर्ट उन्होंने थाने में दर्ज करवा दी. इसी के बाद भैया के ससुराल के लोग उन्हें बरबाद करने की सोचने लगे.

भैया पर क्या बीत रही है जब इस का पता घर के लोगों को चला तो कुनबे के बड़ेबूढ़ों को ले कर पापा, भाभी को लेने उन के घर गए लेकिन उन्होंने शायद फैसला कर लिया था कि लड़की को नहीं भेजना है. वहां सभी बड़ों का अपमान होता रहा और भाभी परदे के पीछे से यह सब देखती रहीं. क्या मेरे घर के बुजुर्ग उन के कुछ नहीं लगते थे, शायद नहीं, तभी तो वह हमारे परिवार की बुजुर्गियत को शर्मसार होते चुपचाप देखती रही थीं.

इधर भैया यह सोच कर बहुत ही परेशान थे कि जिस औरत के साथ वह पिछले 5 सालों से रह रहे थे और जिस पर वह अपनों से ज्यादा भरोसा करते थे वही औरत उन के साथ इतना बड़ा  विश्वास- घात कैसे कर सकती है, लेकिन उन्हें क्या पता था कि उस औरत की संवेदनशीलता मर चुकी थी.

भैया ने कई बार भाभी से फोन पर बात करने की कोशिश की लेकिन उन के घर वालों ने भैया को अपनी ही पत्नी से बात नहीं करने दी. इस से बड़ा दुख तो इस बात का है कि भाभी ने कभी एक बार भी अपनी तरफ से भैया से बात नहीं की. भैया एक बार खुद भाभी को लेने पहुंचे तो ससुराल वालों ने सभी परंपराओं व मान्यताओं को ताक पर रख कर उन को बेइज्जत कर के घर से निकाल दिया और यह सब होते हुए भाभी चुपचाप देखती रहीं. इतना सब हो गया कि आपस का प्यार व विश्वास तारतार हो गया. रहीसही कसर भाभी की उस हरकत ने पूरी कर दी जिसे आज औरत अपना सब से बड़ा हथियार मानती है और वह है भारतीय कानून की धारा 498.

भाभी ने भैया पर कई बेबुनियाद आरोप लगाए, उन्हें चरित्रहीन साबित करने की कोशिश की, उन पर मारपीट करने, दहेज के लिए प्रताडि़त करने का आरोप लगाया और ऐसे आरोप भैया के लिए मौत के समान थे. वह अपने पर लगाए गए आरोपों से टूट गए. भाभी ने मम्मी व मुझ पर भी आरोप लगाए, मेरी बड़ी बहन पर भी आरोप लगाए जबकि हम सब उन से करीब 1,500 किलोमीटर दूर रहते हैं. लेकिन यह एक परंपरा चल निकली है कि दहेज के  घेरे में सभी को रखा जाए और परेशान किया जाए, भले ही सचाई से इस का कोई लेनादेना नहीं. पुलिस भी कानून के आगे बेबस है.

भैया के लिए इन आरोपों का आघात किसी वज्रपात से कम न था. उन का सारा जीवन तबाह हो गया. इस घटना के बाद हंसतेमुसकराते भैया गम के गहरे सागर में चले गए थे जहां से उबरना उन के लिए शायद अब कभी संभव नहीं होगा. और हम लोग उन्हें धीरेधीरे खत्म होते देखने के लिए विवश थे.

भैया के लिए यह असहनीय बात थी कि वह एक ऐसी औरत के साथ पूरे मन से रह रहे थे जो पूरे मन के साथ उन के साथ नहीं रह रही थी. वह दोहरे चरित्र की साक्षी थीं. उन के दिलोदिमाग में भैया के लिए कितना जहर भरा था यह उन के द्वारा लिखे गए शिकायती पत्रों से पता चलता है जोकि उन्होंने थाने में व भैया के आफिस में लिखे और जिस के कारण भैया की सरकारी नौकरी चली गई.

उस दिन तो भैया पूरी तरह से ही टूट गए जिस दिन इंदौर की पुलिस ने मां व दीदी को थाने में आने के लिए कहा. भाभी को इस बात का एहसास ही नहीं था कि वह क्या कर रही हैं. किसी की मांबहन को पुलिस से बेइज्जत कराने का क्या मतलब होता है? यह शायद उन्हें मालूम नहीं था, और फिर क्या मेरी मां तथा दीदी उन की कुछ नहीं लगती थीं, शायद नहीं.

आज भैया बीमार हैं और बहुत ही थकेथके से लगते हैं. वे अकेले में बहुत रोते हैं और शायद उन का पुरुष मन उन्हें सब के सामने रोने नहीं देता इसलिए वे रसोई में प्याज काटने चले जाते हैं ताकि उन की आंखों के पानी को प्याज की तिक्तता समझा जाए लेकिन मैं इतना नादान नहीं था.

मैं जब भी भैया को देखता यही सोचता कि इस देश का कानून क्यों एक औरत को इतनी निरंकुश होने की इजाजत देता है कि वह अपने अहं को शांत करने के लिए सबकुछ बरबाद कर दे, किसी के भी आत्मसम्मान के साथ मनमाना खेल, खेल सके.

पूरे घटनाक्रम में भाभी पूरी तरह से स्वयं षड्यंत्र का शिकार नजर आ रही थीं.

भारत में औरत को त्याग, बलिदान व  तपस्या की मूर्ति कहा जाता है लेकिन भाभी तो छोड़ गई थीं भैया को तिलतिल कर मरने के लिए. मुझे तो इस बात का भी आश्चर्य है कि वह इतना सब होते हुए प्रत्यक्ष देखने के बाद इस संसार में कैसे चैन से रह सकेंगी, कैसे वह अपनेआप से नजरें मिला सकेंगी और इस दंश से अपनेआप को कैसे मुक्त कर सकेंगी कि वह एक घर से भागी हुई तथा एक जिंदादिल इनसान और उस की रोजीरोटी की हत्यारिन हैं.

ट्रक वाला मुझ से बाकी पैसे देने को कह रहा था और मेरी तंद्रा टूट गई. मैं वर्तमान में आ गया था. भैया का सामान उतारा जा चुका था और भैया के स्वर्णिम कैरियर का दुखद अंत हो चुका था.

Vidya Balan अपने फिल्म का नहीं पढ़ती हैं रिव्यू , फिल्म रिलीज से पहले क्रिटिक से लगता है डर

हाल ही में काफी समय बाद विद्या बालन (Vidya Balan) की फिल्म भूल भुलैया 3 हिट हो गई. लेकिन इससे पहले 2024 में ही अप्रैल में रिलीज हुई फिल्म दो और दो प्यार फ्लौप हो गई. 2 और 2 प्यार से विद्या बालन को बहुत उम्मीदें थी. क्योंकि उनकी नजर में दो और दो प्यार अच्छी फिल्म थी. लेकिन बौक्स औफिस पर धराशाई हो गई . उससे पहले भी उनकी कई सारी फिल्में बौक्स औफिस पर सफलता हासिल नहीं कर पाई.

जिसके चलते भूल भुलैया 3 से पहले विद्या बालन अपनी फ्लौप फिल्मों की वजह से इमोशनली बहुत दुखी थी. विद्या बालन के अनुसार उनकी जब भी कोई फिल्म फ्लौप होती थी तो अपने पति के सामने रोरो कर अपना दुख जताती थी. फिल्मों की लगातार असफलता ने उनको अंदर से तोड़ के रख दिया था. इसलिए उनको क्रिटिक रिव्यू पढ़ने में टेंशन होता था. जिसके चलते विद्या के अनुसार वह अपनी किसी भी फिल्म का फिल्म रिलीज से पहले या बाद में क्रिटिक रिव्यू नहीं पढ़ती है.

हालांकि उनके पिता सारे क्रिटिक रिव्यू की न्यूजपेपर या मैगजीन में छपी विद्या की फिल्मों की कटिंग जमा करके रखते हैं और अच्छे रिव्यू विद्या से पढ़ने के लिए भी बोलते हैं. लेकिन विद्या बालन अपनी फिल्म का कोई भी रिव्यू नहीं पढती क्योंकि विद्या के अनुसार उससे निगेटिव वाइब्स आते हैं जिसका फिल्म पर बुरा असर पड़ता है और खुद विद्या भी टेंशन में आ जाती है. इसलिए वह अपनी फिल्म का कोई भी रिव्यू नहीं पढ़ती. यहां तक की भूल भुलैया 3 की सफलता के बावजूद विद्या बालन ने कोई भी क्रिटिक रिव्यू नहीं पढ़ा.

बिलखता मौन: क्यों पास होकर भी मां से दूर थी किरण

‘पता नहीं क्या हो गया है इस लड़की को? 2 दिनों से कमरे में बंद बैठी है. माना स्कूल की छुट्टियां हैं और उसे देर तक बिस्तर में रहना अच्छा लगता है, किंतु पूरे 48 घंटे बिस्तर में भला कौन रह सकता है? बाहर तो आए, फिर देखते हैं. 2 दिनों से सबकुछ भुला रखा है. कई बार बुला भेजा उसे, कोई उत्तर नहीं. कभी कह देती है, आज मेरी तबीयत ठीक नहीं. कभी आज भूख नहीं है. कभी थोड़ी देर में आती हूं. माना कि थोड़ी तुनकमिजाज है, किंतु अब तक तो मिजाज दुरुस्त हो जाना चाहिए था. हैरानी तो इस बात की है कि 2 दिनों से उसे भूख भी नहीं लगी. एक निवाला तक नहीं गया उस के अंदर. पिछले 10 वर्षों में आज तक इस लड़की ने ‘रैजिडैंशियल केअर होम’ के नियमों का उल्लंघन कभी नहीं किया. आज ऐसा क्या हो गया है?’’ केअर होम की वार्डन हैलन बड़बड़ाए जा रही थी. फिर सोचा, स्वयं ही उस के कमरे में जा कर देखती हूं कहीं किरण की तबीयत तो खराब नहीं. डाक्टर को बुलाना भी पड़ सकता है. हैलन पंजाब से आई ईसाई औरत थी और 10 सालों से वार्डन थी उस केअर होम की.

वार्डन ने कई बार किरण का दरवाजा खटखटाया. कोई उत्तर न पा वह झुंझलाती हुई अधिकार से बोली, ‘‘किरण, दरवाजा खोलो वरना दरवाजा तोड़ दिया जाएगा.’’ किरण की ओर से कोई उत्तर न पा कर वार्डन फिर क्रोध से बोली, ‘‘दरवाजा क्यों नहीं खोलती? किस का शोक मना रही हो? बोलती क्यों नहीं.’’

‘‘शोक मना रही हूं, अपनी मां का,’’ किरण ने रोतेरोते कहा. फिर फूटफूट कर रोने लगी.

इतना सुनते ही वार्डन चौंक पड़ी. सोच में पड़ गई, मां, कौन सी मां? जब से यहां आई है, मां का तो कभी जिक्र तक नहीं किया. वार्डन ने गहरी सांस ले अपने को संभालते हुए बड़े शांत भाव से कहा, ‘‘किरण बेटा, प्लीज दरवाजा तो खोलो.’’

कुछ क्षण बाद दरवाजा खोलते ही किरण वार्डन से लिपट कर दहाड़दहाड़ कर रोने लगी. धीरेधीरे उस का रोना सिसकियों में बदल गया.

‘‘किरण, ये लो, थोड़ा पानी पी लो,’’ वार्डन ने स्नेहपूर्वक कहा.

नाजुक स्थिति को समझते हुए वार्डन ने किरण का हाथ अपने हाथ में ले उस से प्यार से पूछा, ‘‘किरण, अपनी मां से तो तुम कभी मिली नहीं? आज ऐसी क्या बात हो गई है?’’

सिसकियां भरतेभरते किरण बोली, ‘‘मैं मां से कहां मिलना चाहती थी. अभी भी कहां मिली हूं. न जाने यह कब और कैसे हो गया. अब तो मैं चाह कर भी मां से नहीं मिल सकती.’’ इतना कह कर किरण ने गहरी सांस ली.

वार्डन ने उसे आश्वासन देते हुए कहा, ‘‘जो कहना है कहो, मेरे पास तुम्हारे लिए समय ही समय है.’’

वार्डन का कहना भर था कि किरण के मुंह से अपने जीवन का इतिहास अपनेआप निकलने लगा, ‘‘पैदा होने से अब तक रहरह कर मेरे कानों में मां के तीखे शब्द गूंजते रहते हैं, ‘तू कोख में क्या आई, मेरे तो करम ही फूट गए.’ ऊपर से नानी, जिन्होंने मां को एक पल भी चैन से नहीं जीने दिया, मां से संबंधविच्छेद के बाद भी कभीकभार हमारे घर आ धमकतीं. फिर चालू हो जाती उन के तानोंउलाहनों की सीडी, ‘न सुखी, तू जम्मी ओ वी कुड़ी’. हुनतां तू अपने देसी बंदे नाल व्याण जोगी वी नई रई. कुड़ी अपने बरगी होंदी ते बाकी बच्यां नाल रलमिल जांदी. लबया वी कौन? दस्दयां वी शर्म आंदी ऐ.’’ आंसू भर आए थे एक बार फिर किरण की आंखों में.

‘‘मिसेज हैलन, मुझे नानी का हरदम कोसना, मां की बेरुखी से कहीं अधिक खलता था. ऐसा लगता जैसे वे मुझे नहीं, मेरे मांबाप को गालियां दे रही हों. मेरे मोटेमोटे होंठ, तंगतंग घुंघराले बाल, सभी को बहुत खटकते थे. मैं अकसर क्षुब्ध हो कर मां से पूछती, ‘इस में मेरा क्या कुसूर है?’ मैं दावे से कह सकती हूं कि अगर नानी का बस चलता तो मेरे बाल खींचखींच कर सीधे कर देतीं. मेरे होंठों की प्लास्टिक सर्जरी करवा देतीं. मुझे नानी जरा भी नहीं भाती थीं. दरवाजे से अंदर घुसते ही उन का शब्दों का प्रहार शुरू हो जाता, ‘नी सुखीये ऐस कुड़ी नूं सहेड़ के, तू अपनी जिंदगी क्यों बरबाद कर रई ए. दे दे किसी नूं, लाह गलयों. जद गल ठंडी पै जावेगी, तेरा इंडिया जा के ब्याह कर दयांगे. ताकत देखी है लाल (ब्रिटिश) पासपोर्ट दी. जेड़े मुंडे ते हथ रखेंगी, ओईयों तैयार हो जावेगा.’

‘‘दिनरात ऐसी बातें सुनसुन कर मेरे प्रति मां के व्यवहार में रूखापन आने लगा. एक दिन जब मैं स्कूल से लौटी ही थी कि घंटी बजी. मेरे दरवाजा खोलते ही सामने एक औरत खड़ी थी, बोली, ‘हाय किरण, मैं, ज्योति आंटी, तुम्हारी मम्मी की सहेली.’

‘‘मां, आप की सहेली, ज्योति आंटी आई हैं,’’ मैं ने मम्मी को आवाज दी.

‘‘‘हाय ज्योति, तुम आज रास्ता कैसे भूल गई हो?’

‘‘‘बहुत दिनों से मन था तुम्हारे साथ बैठ कर पुरानी यादों को कुरेदने का.’

‘‘‘आओ, अंदर आओ, बैठो. बताओ, आजकल क्या शगल चल रहा है. 1 से 2 हुई या नहीं?’ मां ने पूछा.

‘‘‘न बाबा न, मैं इतनी जल्दी इन झंझटों में पड़ने वाली नहीं. जीभर के मजे लूट रही हूं जवानी के. तू ने तो सब मजे स्कूल में ही ले लिए थे,’ ज्योति ने व्यंग्य से कहा.

‘‘‘मजे? क्या मजे? वे मजे तो नुकसानदेह बन गए हैं मेरे लिए. सामने देख,’ मां ने मेरी ओर इशारा करते हुए कहा.

‘‘इतना सुनते ही मैं दूसरे कमरे में चली गई. मुझे उन की सब बातें सुनाई दे रही थीं. बहुत तो नहीं, थोड़ाथोड़ा समझ में आ रहा था…

‘‘‘सुखी, तुझे तो मैडल मिलना चाहिए. तू ने तो वह कर दिखाया जो अकसर लड़के किया करते हैं. क्या गोरा, क्या काला. कोई लड़का छोड़ा भी था?’ ज्योति आंटी ने मां को छेड़ते हुए कहा.

‘‘‘ज्योति, तू नहीं समझेगी. सुन, जब मैं भारत से आई थी, उस समय मैं 14 वर्ष की थी. स्कूल पहुंचते ही हक्कीबक्की सी हो गई. यहां का माहौल देख कर मेरी आंखें खुली की खुली रह गईं. तकरीबन सभी लड़केलड़कियां गोरेचिट्टे, संगमरमरी सफेद चमड़ी वाले, उन के तीखेतीखे नैननक्श. नीलीनीली हरीहरी आंखें, भूरेभूरे सोने जैसे बाल, उन्हें देख कर ऐसा लगता था मानो लड़के नहीं, संगमरमर के बुत खड़े हों. लड़कियां जैसे आसमान से उतरी परियां. मेरी आंखें तो उन पे गड़ी की गड़ी रह जातीं. शुरूशुरू में उन का खुलापन बहुत अजीब सा लगता था. बिना संकोच के लड़केलड़कियां एकदूसरे से चिपटे रहते. उन का निडर, आजाद, हाथों में हाथ डाले घूमते रहना, ऐसा लगता था जैसे वे शर्म शब्द से अनजान हैं. धीरेधीरे वही खुलापन मुझे अच्छा लगने लगा. ज्योति, सच बताऊं, कई बार तो उन्हें देख कर मेरे मन में भी गुदगुदी होती. मन मचलने लगता. उन से ईर्ष्या तक होने लगती थी. तब मैं घंटों अपने भारतीय होने पर मातम मनाती. बहुत कोशिशें करने के बावजूद मेरे मन में भी जवानी की इच्छाएं इठलाने लगतीं. आहिस्ताआहिस्ता यह आग ज्वालामुखी की भांति भभकने लगी. एक दिन आखिर के 2 पीरियड खाली थे. मार्क ने कहा, ‘सुखी, कौफी पीने चलोगी?’ मैं ने उचक कर झट से हां कर दी. क्यों न करती? उस समय मेरी आंखों के सामने वही दृश्य रीप्ले होने लगा. तुम इसे चुनौती कहो या जिज्ञासा. मुझे भी अच्छा लगने लगा. धीरेधीरे दोस्ती बढ़ने लगी. मार्क को देख कर जौर्ज और जौन की भी हिम्मत बंधी. कई लड़कों को एकसाथ अपने चारों ओर घूमते देख कर अपनी जीत का एहसास होता. इसे तुम होल्ड, कंट्रोल या फिर पावर गेम भी कह सकती हो. अपने इस राज की केवल मैं ही राजदार थी.’

‘‘‘सुखी, तुम कौन से जौर्ज की बात कर रही हो, वही अफ्रीकन?’

‘‘‘हां, वह तो एक जिज्ञासा थी. उसे टाइमपास भी कह सकती हो. न जाने कब और कैसे मैं आगे बढ़ती गई. आसमान पर बादलों के संगसंग उड़ने लगी. पढ़ाई से मन उचाट हो गया. एक दिन पता चला कि मैं मां बनने वाली हूं. घर में जो हंगामा हुआ, सो हुआ. मुझे स्कूल छोड़ना पड़ा. सभी लड़कों ने जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लिया. मैं भी किस पर हाथ रखती. मैं तो खुद ही नहीं जानती थी. किरण का जन्म होते ही उसे अपनाना तो दूर, मां ने किसी को उसे हाथ तक नहीं लगाने दिया. जैसे मेरी किरण गंदगी में लिपटी छूत की बीमारी हो. इस के बाद मेरी मां के घर से क्रिसमस का उपहार तो क्या, कार्ड तक नहीं आया.’’’

‘‘किरण, तुम्हें यह सब किस ने बताया?’’ वार्डन ने स्नेहपूर्वक पूछा.

‘‘उस दिन मैं ने मां और ज्योति आंटी की सब बातें सुन ली थीं. जल्दी ही समय की कठोर मार ने मुझे उम्र से अधिक समझदार बना दिया. मां जो कभीकभी सबकुछ भुला कर मुझे प्यार कर लेती थीं, अब उन के व्यवहार में भी सौतेलापन झलकने लगा. जो पैसे उन्हें सोशल सिक्योरिटी से मिलते थे, उन से वे सारासारा दिन शराब पी कर सोई रहतीं. घर के काम के कारण कईकई दिन स्कूल नहीं भेजतीं. सोशलवर्कर घर पर आने शुरू हो गए. सोशल सर्विसेज की मुझे केयर में ले जाने की चेतावनियों का मां पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. शायद मां भी यही चाहती थीं. मां हर समय झुंझलाई सी रहतीं. मुझे तो याद ही नहीं कि कभी मां ने मुझे प्यार से बुलाया हो या फिर कभी अपने संग बिस्तर में लिटाया हो. मैं मां की ओर ललचाई आंखों से देखती रहती. ‘एक दिन मां ने मुझे बहुत मारा. शाम को वे मुझे अकेला छोड़ कर दोस्तों के संग पब (बीयर बार) में चली गईं. उस वक्त मैं केवल 8 वर्ष की थी. घर में दूध के सिवा कुछ खाने को नहीं था. बाहर बर्फ पड़ रही थी. रातभर मां घर नहीं आईं. न ही मुझे डर के मारे नींद. दूसरे दिन सुबह मैं ने पड़ोसी मिसेज हैंपटन का दरवाजा खटखटाया. मुझे डरीडरी, सहमीसहमी देख कर उन्होंने पूछा, ‘किरण, क्या बात है? इतनी डरीडरी क्यों हो?’

‘‘मम्मी अभी तक घर नहीं आईं,’ मैं ने सुबकतेसुबकते कहा.

‘‘‘डरो नहीं, अंदर आओ.’

‘‘मैं सर्दी से ठिठुर रही थी. मिसेज हैंपटन ने मुझे कंबल ओढ़ा कर हीटर के सामने बिठा दिया. वे मेरे लिए दूध लेने चली गईं. 20 मिनट के बाद एक सोशलवर्कर, एक पुलिस महिला के संग वहां आ पहुंची. जैसेतैसे पुलिस ने मां का पता लगाया.

‘‘मिस हैलन, तुम्हें तो पता है. कभीकभी बच्चे कितने निर्दयी हो जाते हैं. प्लेग्राउंड में मैं सदा ही रंगभेद का निशाना बनती रही. कानों में अकसर सुनाई देता, देखोदेखो, निग्गर (अफ्रीकन), पाकी (पाकिस्तानी), हाफकास्ट, बास्टर्ड वगैरावगैरा नामों से संबोधित किया जाता था. कभी कोई कहता, ‘उस के बाल और होंठ देखे हैं? स्पैनिश लगती है.’ ‘नहींनहीं, वह तो झबरी कुतिया लगती है.’ ‘स्पैनिश भाषा का तो इसे एक अक्षर भी नहीं आता.’ ‘फिर इंडियन होगी, रंग तो मिलताजुलता है.’ पीछे से आवाज आई, ‘जो भी है, है तो हाफकास्ट.’ ‘स्टूपिड कहीं का, आगे से कभी हाफकास्ट मत कहना, आजकल इस शब्द को गाली माना जाता है. मिक्स्ड रेस कहो.’ ‘तुम्हारा मतलब खिचड़ी निग्गर, पाकी, स्पैनिश और इंडियन या फिर स्ट्यू’ और सब जोर से खिलखिला कर हंस पड़े.

‘‘मुझे देखते ही उन के चेहरों पर अनेक सवाल उभरने लगते जैसे पूछ रहे हों- नाम इंडियन, किरण. बाल मधुमक्खी का छत्ता. रंग स्पैनिश जैसा. नाक पिंगपोंग के गेंद जैसी. होंठ जैसे मुंह पर रखे 2 केले. उन से फूटती है अंगरेजी. तुम्हीं बताओ, तुम्हें हाफकास्ट कहें या फोरकास्ट. सब के लिए मैं एक मजाक बन चुकी थी.

‘‘सभी मुझ जैसी उलझन को सुलझाने में लगे रहते. उन की बातें सुन कर अकसर मैं बर्फ सी जम जाती. रात की कालिमा मेरे अंदर अट्टहास करने लगती. उन के प्रश्नों के उत्तर मेरे पास नहीं थे. मैं स्वयं अपने अस्तित्व से अंजान थी. मैं कौन हूं? क्या पहचान है मेरी? मैं बिना चप्पू के 2 कश्तियों में पैर रख कर संतुलन बनाने का प्रयास कर रही थी, जिन का डूबना निश्चित था. ‘‘शुरूशुरू में हर रोज स्कूल जाने से पहले मैं आधा घंटा अपने तंग घुंघराले बालों को स्ट्रेटनर से खींचखींच कर सीधा करने की कोशिश करती. पर कभीकभी प्रकृति भी कितनी क्रूर हो जाती है. बारिश भी ऐनवक्त पर आ कर मेरे बालों का भंडा फोड़ देती. वे फिर घुंघराले हो जाते.’’

‘‘किरण, अब बस करो, पुरानी बातों को कुरेदने से मन भारी होता है,’’ वार्डन ने किरण को समझाते हुए कहा.

‘‘हैलन प्लीज, आज मुझे कह लेने दो. मेरे देखतेदेखते चिल्ड्रंस होम से कई बच्चों को होम मिल गए (फोस्टर होम जहां सामान्य परिवार के लोग इन बच्चों की देखरेख के लिए ले जाते हैं). कुछ बच्चे गोद ले लिए गए. मैं भी आशा की डोर थामे बैठी थी. इसी उम्मीद के साथ कि एक दिन मैं भी किसी सामान्य परिवार का सुख भोग सकूंगी. मेरा चेहरा तथा बाल देखते ही लोग भूलभुलैया में फंस जाते. तब मेरा नंबर एक सीढ़ी और नीचे आ जाता. मेरा होना ही मेरे लिए जहर बन चुका था. मेरी आंखों की मूक याचना कोई नहीं सुन सका. बिक्की को बहुत अच्छे फोस्टर पेरैंट्स मिल गए थे. हम दोनों ने वादा किया कि हर शनिवार को हम एकदूसरे से जरूर मिलेंगे. मुझे उस का जाना बेहद खला. मन ही मन मैं उस के लिए खुश थी कि अब उसे 24 घंटे अनुशासित जीवन नहीं जीना पड़ेगा. घड़ी के चारों ओर परिक्रमा नहीं करनी पड़ेगी.

‘‘बिक्की तथा मेरा हर शनिवार को मिलना जारी रहा. आज शनिवार था. मैं ने मिलते ही उसे, खुशखबरी दे दी कि फीस्टरिंग बाजार में मेरा नंबर भी आ गया है. आज फोस्टर पेरैंट ने वार्डन से कौंटैक्ट किया था, अब वे मुझे गोद ले लेंगे. ‘‘हैलन, मेरे नए परिवार में जाने के इंतजार में दिन रेंग रहे थे. मानो वक्त की सुई वहीं थम गई हो. कुछ दिनों बाद वह दिन आ ही गया. फैसला मेरे हित में हुआ.

‘‘मेरे वनवास की अवधि पूरी होने वाली थी. वीकेंड में अपना सामान बांधे सहमेसहमे कदमों से मैं अपने नए सफर की ओर चल दी. पिछले 7 वर्षों से जो अपना घर था, उसे छोड़ते वक्त इस जीवन ने मुझे सुखदुख के अर्थ बहुत गहराई से समझा दिए थे. बिक्की का घर एडवर्ड के घर के पास ही था.

‘‘बिक्की और मेरा घर पास होने के कारण अब तो हम होमवर्क भी एकसाथ बैठ कर करते थे. मिसेज एडवर्ड पहले तो बहुत अच्छी थीं लेकिन धीरेधीरे उन्होंने घर के सभी कामों का उत्तरदायित्व मेरे कंधों पर डाल दिया. घर के कामकाज मेरी पढ़ाई में दखलंदाजी करने लगे. जिस का प्रभाव मेरी परीक्षा के परिणामों पर पड़ा. मुझे महसूस होने लगा कि मैं उन की बेटी कम, नौकरानी अधिक थी. हमारा स्कूल बहुत बड़ा था. जिस में नर्सरी, प्राइमरी, जूनियर तथा सैकंडरी सभी स्कूल शामिल थे. उन के प्लेग्राउंड अलगअलग थे. क्रिसमस की छुट्टियों से पहले स्कूल में क्रिसमस का समारोह था. सभी बच्चों को जिम्मेदारियां बांटी गई थीं. मेरी ड्यूटी अतिथियों को बैठाने की थी. अचानक मैं ने देखा, मैं जोर से चिल्लाई, ‘बिक्की, बिक्की, इधर आओ, इधर आओ, वो, वो देखो मां, मेरी मां, असली मां.’ मेरी आवाज भर्राई. टांगें कांपने लगीं. बिक्की ने मुझे कुरसी पर बिठाया. ‘मां’ मेरे मुंह से निकलते ही मेरा मन मां के प्रति प्रेम से ओतप्रोत हो गया. आंखों का सैलाब रुक न पाया.

‘‘‘शांत हो जाओ किरण, तुम्हें शायद गलतफहमी हो.’

‘‘‘वो देखो, नीले सूट में,’ मेरा मन छटपटाने लगा.

‘‘‘क्या तुम्हें पूरा यकीन है. उन्हें देखे तो तुम्हें 7-8 वर्ष हो गए हैं.’

‘‘‘क्या कभी कोई अपनी ‘मां’ को भूल सकता है?’

‘‘‘उन के साथ यह बच्चा कौन है?’

‘‘‘मैं नहीं जानती. इस का पता तुम्हें लगाना होगा, बिक्की.’

‘‘समारोह के बाद बिक्की से पता चला कि वह मेरा छोटा भाई सूरज है.’’

‘‘किरण, ध्यान से सुनो, जिंदगी एक नाम और एक रिश्ते से तो नहीं रुक जाती,’’ वार्डन हैलन ने समझाते हुए कहा.

‘‘मिस हैलन, आप नहीं जानतीं, मां की एक झलक ने मुझे कई वर्ष पीछे धकेल दिया. अपनी कल्पना में मैं आज भी उन पलों में लौट जाती हूं जब मैं बहुत छोटी थी और मेरे पास मां थी. तब सबकुछ था. कैसे वह मेरी उंगली पकड़ स्कूल ले जाती. वापसी में आइसक्रीम, चौकलेट ले कर देती. कैसे रास्ते में मैं उन के साथ लुकाछिपी खेलती. कभी कार के पीछे छिप जाती, कभी पेड़ के पीछे. अपनी जिद पूरी करवाने के लिए वहीं सड़क पर पैर पटकतीपटकती बैठ जाती. आज भी उन दिनों को याद कर शिथिल, निढाल हो जाती हूं मैं. जब दुखी होती हूं तो दृश्य आंखों के सामने रीप्ले होने लगता है. 15 दिसंबर, 1995 को जब ‘सोशल सर्विसेज’ वाले मुझे यहां लाए थे, उस दिन मेरी मां के दुपट्टे का छोर मेरे हाथों से खिसकतेखिसकते सदा के लिए छूट गया था. ‘‘क्रिसमस की छुट्टियों के समाप्त होने का इंतजार मुझे बड़ी ब्रेसब्री से रहता. मन में मां की झलक पाने की लालसा, भाई को देखने की उमंग उमड़ने लगी. इसी धुन में अकसर मैं स्कूल के किसी छिपे हुए कोने से मां और भाई को निहारती रहती. छोटा भाई सूरज पैर पटकने में मुझ पर गया था, मेरा भाई जो ठहरा. सूरज के प्ले टाइम में मैं अपनी कक्षा में न जा कर उस से बातें करती, उसे छूने की कोशिश करती. यही सोच कर कि मां ने इसे छुआ होगा. उस में मां की खुशबू ढूंढ़ती. जब बिक्की कहती कि सूरज की आंखें बिलकुल तुम जैसी हैं, मुझे बहुत अच्छा लगता था. मां यह नहीं जानती थीं कि मैं भी इसी स्कूल में हूं. यह सिलसिला चलता रहा. धीरेधीरे मां से मेरी नाराजगी प्यार में बदल गई. मां से भी भला कोई कब तक नाराज रह सकता है. उन्हें बिना देखे मन उदास हो जाता. इतने बड़े संसार में एक वही तो थीं, मेरी बिलकुल अपनी. एक दिन अचानक मां और मेरी नजरें टकराईं. मां बड़ी बेरुखी से मुझे अनदेखा कर आगे बढ़ गईं.

‘‘उस रात मन में अनेक गूंगे प्रश्न उठे, जो मेरे रोंआसे मुख से सूखे तिनके की भांति मन के तालाब में डूबने लगे. सभी दिशाओं से नकारात्मक बहिष्कृति की भावनाएं मेरी पढ़ाई पर हावी होती गईं. स्कूल से मन उचाट रहने लगा. घर के कामकाजों की थकावट के कारण स्कूल का काम करना नामुमकिन सा हो गया. होम स्कूल लाएजन अध्यापिका (घर स्कूल संपर्क अधिकारी) तथा सोशलवर्कर को बुलाया गया. मिसेज एडवर्ड ने सारा दोष मुझ पर उडे़ल दिया. उन के आरोप सुनतेसुनते मैं भी गुस्से में बोली, ‘घर के कामों से फुरसत मिले तो न? मेरी तो नींद तक भी पूरी नहीं होती. मैं यहां नहीं रहना चाहती.’ इतना सुनते ही सोशलवर्कर के शक की पुष्टि हो गई. कुछ ही दिनों में मैं फिर रैजिडैंशियल होम में थी.

‘‘एक दिन बिक्की से मिलते ही उस का प्रवचन शुरू हो गया, ‘किरण, तुम्हें जीवन में आगे बढ़ना है. पीछे देखती रहोगी तो पीछे ही रह जाओगी. संभालो खुद को. केवल पढ़ाई ही काम आएगी.’

‘‘‘तुम ठीक कहती हो, बिक्की.’ उस दिन हम ने अगलीपिछली मन की सब बातें दोहराईं. बिक्की के जाने के बाद मेरे प्रश्नों के उत्तर मेरे भीतर उभरने लगे. नकारात्मक प्रश्नों को मैं ने चिंदीचिंदी कर कूड़े के ढोल में फेंक डाला. पढ़ाई में मन लगाना आरंभ कर दिया.

‘‘छोटे भाई सूरज से मिलने का क्रम चलता रहा. कभी मैं सूरज से मिलती और कभी बिक्की. एक शनिवार को मैं और बिक्की दोनों पिज्जा हट में पिज्जा खा रहे थे. ‘किरण, एक बुरी खबर है,’ बिक्की ने कहा.

‘‘‘क्या है, जल्दी से बता?’

‘‘‘सूरज से पता चला है, इस वर्ष के आखिर में वह किसी और स्कूल में भरती होने वाला है.’

‘‘‘कहां? फिर मैं सूरज और मां को कैसे देखूंगी?’

‘‘‘उदास मत हो, किरण. इस का हल भी मैं ने ढूंढ़ लिया है. मैं ने सूरज से उन के घर का पता ले लिया है. साथ ही, सूरज ने बताया कि शनिवार को शौपिंग के बाद वह और मां माथा टेकने के लिए सोहोरोड गुरुद्वारे जाते हैं. वहां लंगर भी चखते हैं.’

‘‘‘यह तो बहुत अच्छा किया.’

‘‘पिज्जा खाने के बाद हम दोनों अपनेअपने घर चले गए. परीक्षा नजदीक आ रही थी. बिक्की की डांट तो खा चुकी थी. मेरा मां को देखने का लुकाछिपी का क्रम चलता रहा. चौकलेट ने हमारी सूरज से अच्छी दोस्ती करवा दी थी.

‘‘‘चाइल्ड प्रोटैक्शन ऐक्ट’ के अंतर्गत वे मुझे अपने साथ ले गए. मां के चेहरे पर पछतावे के कोई चिह्न न थे. न ही उन्होंने मुझे रोकने का ही प्रयास किया. पिता का पता नहीं था. मां भी छूट गई. मानो, मुझे एक मिट्टी की गुडि़या समझ कर कहीं रख कर भूल गई हों. चिल्ड्रंस होम में एक और अनाथ की भरती हो गई.

‘‘वहां में सब ने मेरा खुली बांहों से स्वागत किया. एक तसल्ली थी, वहां मेरे जैसे और भी कई बच्चे थे. मेरे देखतेदेखते कितने बच्चे आए और चले गए. बिक्की और मेरा कमरा सांझा था. बिक्की और मेरा स्कूल भी एक ही था. वीकेंड में सभी बच्चों के फोन आते तो मेरे कानों का एंटीना (एरियल) भी खड़ा हो जाता. लेकिन मां का फोन कभी नहीं आया. लगता था मां मुझे हमेशा के लिए भूल गई थीं. अब बिक्की ही मेरी लाइफलाइन थी. हम दोनों की बहुत पटती थी. पढ़ाई में भी होड़ लगा करती थी. बिक्की के प्यार तथा चिल्ड्रंस होम के सदस्यों के सहयोग से धीरेधीरे मैं ने स्वयं को समेटना आरंभ कर दिया.

‘‘परीक्षा में तल्लीन होने के कारण कई दिन सूरज से नहीं मिल पाए. स्कूल जा कर मालूम हुआ, सूरज बहुत दिनों से स्कूल नहीं आया. मुझे चिंता होने लगी. बिक्की ने दिलासा देते हुए कहा, ‘चिंता मत करो. शनिवार को गुरुद्वारे जा कर मिल लेंगे.’ शनिवार को गुरुद्वारे जाते वक्त मुझे खुशी के साथसाथ बहुत घबराहट हो रही थी. ‘बिक्की, अगर मुझे गुरुद्वारे में अंदर न जाने दिया गया तो?’

‘‘‘किरण, विश्वास करो, ऐसा बिलकुल नहीं होगा. वहां सब का स्वागत है. बस, सिर जरूर ढक लेना.’

‘‘कुछ सप्ताह मां और सूरज गुरुद्वारे में भी दिखाई नहीं दिए. चिंता सी होने लगी थी. हार कर एक दिन मैं और बिक्की मां के घर की ओर चल दीं. वहां तो और ही दृश्य था. बहुत से लोग सफेद कपड़े पहने जमा थे. मेरा दिल धड़का.

‘‘‘किरण, लगता है यहां वह हुआ है जो नहीं होना चाहिए था. शायद किसी की मृत्यु हुई है.’ हम दोनों हैरान सी खड़ी रहीं. इतने में हमें दूर से हमारी ओर एक महिला आती दिखाई दीं. बिक्की ने हिम्मत बटोर कर पूछ ही लिया, ‘आंटीजी, यहां क्या हुआ है?’

‘‘‘सिंह साहब की पत्नी की मृत्यु हो गई है. कई महीनों से बीमार थीं.’

‘‘‘आंटीजी, फ्यूनरल कब है?’

‘‘‘बेटा, शुक्रवार को ढाई बजे. पैरीबार के मुर्दाघाट में.’ ‘‘इतना सुनते ही मैं तो सन्न रह गई. भारी मन लिए बड़ी मुश्किल से हम दोनों घर पहुंचीं. देखतेदेखते झुंड के झुंड बादल घिर आए. बादलों की गुड़गुड़ ध्वनि के साथ मेरे मन में भी सांझ उतर आई थी. ‘‘4 दिनों बाद अंतिम संस्कार था. कितना कुछ कहना चाहती थी मां से. सभी गिलेशिकवे, मन की बातें अब मन ही में रह जाएंगी. यह कभी नहीं सोचा था, उस वक्त मैं खुद को बेबस, असहाय महसूस कर रही थी.’’

‘‘‘किरण, क्यों नहीं तुम अपनी मां को पत्र लिख कर मन की बातें कह देती.’

‘‘‘मैं ने बिक्की को बांहों में भर कर कहा, थैंक्यू, थैंक्यू बिक्की.’

‘‘मेरी प्यारी मां…

‘‘क्यों फिर आज तुम ने वही किया जो 10 वर्ष पहले किया था. तुम्हें याद होगा, 10 वर्ष पहले सब के सामने मेरे हाथ से तुम्हारे दुपट्टे का छोर फिसलताफिसलता छूट गया, तुम बेबसी से देखती रहीं. किंतु आज तो तुम चोरीचोरी अपना छोर छुड़ा कर चली गई हो. अपनी किरण को एक बार गौर से देखा तक नहीं. तुम्हें नहीं पता, तुम्हारी किरण तो अपनी मां और भैया सूरज को हर रोज चोरीचोरी देख लेती थी टौयलट जाने के बहाने  ‘‘मां शायद तुम्हें याद होगा, एक दिन जब आप की और मेरी नजरें स्कूल में टकराई थीं, आप अनजाने से मुझे देखना भूल गई थीं. तब से मैं हर रोज चोरीचोरी सब की नजरों से छिप कर तुम्हारी एक झलक देखने की प्रतीक्षा करती रही. लेकिन मुझे कभी भी आप के पूरे चेहरे की झलक नहीं मिली. बस, यही एहसास ले कर जीती रही कि मेरी भी मां है.

‘‘मां , मेरी प्यारी मां, मुझे आप से कोई शिकायत नहीं है. मैं तो आप की हिम्मत और साहस की दाद देती हूं. आप ने भ्रूण हत्या के बजाय मुझे इस दुनिया में लाने की हिम्मत दिखाई. हर रोज नानी के कड़वेकड़वे कटाक्ष सुने. मेरा मन जानता है, प्यार तो तुम अपनी किरण को बहुत करती थीं. न जाने तुम्हारी क्याक्या मजबूरियां रही होंगी. मैं पुरानी धुंधली यादों के सहारे आज तक कभी हंस लेती हूं, कभी रो लेती हूं. मैं जानती थी कि कोई भी मां इतनी कठोर नहीं हो सकती और न ही जानबूझ कर ऐसा कर सकती है.

‘‘मां, आज तुम्हें मैं एक राज की बात बताती हूं. तुम्हारी छवि, तुम्हारा स्पर्श, तुम्हारी खुशबू को लेने के लिए मैं रोज सूरज से मिलने जाती रही. उस को छूने तथा सूंघने से मेरे मन में तुम्हारे प्यार की लहर सी उठती. जो मेरे मन में उठे गुबार को शांत कर देती. उसे गोद में बिठा कर मैं मन में छवि बना लेती कि जब वह तुम्हारी गोद में बैठेगा, तब सूरज नहीं, मैं किरण होऊंगी. ‘‘मेरी सुंदर मां, देखो न, हम दोनों एकदूसरे को कितना समझते रहे हैं. आप भी जानती थीं कि मैं आप को देखती रहती हूं और मैं भी जानती थी कि आप को पता है. फिर भी हम ने कभी भी एकदूसरे को शर्मिंदा नहीं होने दिया.

‘‘मां, कई बार सोचा, हिम्मत बटोर कर आप से बात करूं. किंतु मैं नहीं चाहती थी कि मेरे कारण आप का अतीत आप के वर्तमान में उथलपुथल मचा जाए. अतीत को साथसाथ लिए तुम आगे नहीं बढ़ सकती थीं. मन ही तो है, मचल जाता है. ‘‘मैं जानती थी आप के लिए ऐसा करना संभव न था. आप की भी सीमाएं हैं. इसीलिए आज तक मैं ने कोई प्रश्न नहीं किया. शायद नानी सही थीं. अगर नानी आप के बारे में न सोचतीं तो और कौन सोचता?

‘‘मां, मेरी प्यारी मां, मेरी आखिरी शिकायत यह है, आज आप ने सदा के लिए मुझ से अपने होने (मां) का एहसास छीन लिया जिस एहसास से मेरी सब आशाएं जीवित थीं, मेरे जीवन की डोर बंधी थी. तुम थीं तो पिता का एहसास भी जीवित था. अब न तुम, न पिता.

‘‘प्यारी सी तुम्हारी बेटी, किरण.

‘‘मिस हैलन, इंसान में समझौते की प्रवृत्ति कितनी शक्तिशाली होती है? कैसी भी स्थिति क्यों न हो, आदमी उस में जीना सीख ही लेता है.’’

‘‘ठीक कहती हो किरण, जीवन का सतत प्रवाह भी कभी रुक पाया है क्या?’’

‘‘मिस हैलन, अब प्रश्न उठा कि यह पत्र पहुंचाया कैसे जाए.

‘‘मुझे और बिक्की दोनों को पता था कब फ्यूनरल है. कितने बजे पार्थिव शरीर को आखिरी दर्शन के लिए घर लाया जाएगा. हम दोनों सफेद कपड़े पहने भीड़ को चीरते उन के घर पहुंचे. मां के दर्शन करते वक्त मैं ने चोरी से वह पत्र मां को दे दिया. (कफिन बौक्स में रख दिया). अब हमें किसी का डर नहीं था. नानी का भी नहीं. वैसे, नानी मुझे पहचान गई थीं, पर चुप रहीं. हम दोनों चुपके से वहां से निकल आए. आज यही मातम तो मना रही थी, मिस.’’ वह फूटफूट कर रोने लगी.

हैलन ने किरण के कंधों पर हाथ रख कर दिलासा देते उसे गले से लगा कर कहा, ‘‘जाओ, थोड़ा आराम कर लो.’’

इतने में ही ‘चिल्ड्रंस होम’ की प्रधान अध्यापिका किरण के हाथ में एक पैकेट देती बोलीं, ‘‘किरण, आज सुबह ही यह रजिस्टर्ड पत्र तुम्हारे लिए आया है.’’

‘‘मेरे लिए?’’ उस ने पत्र घुमाफिरा कर देखा. कोई अतापता नहीं था. उस के हाथ कंपकंपा रहे थे. शायद वह लिखाई थोड़ी जानीपहचानी लग रही थी.

‘‘किरण, दो इसे मैं पढ़ देती हूं,’’ हैलन ने कहा. उस ने पत्र हैलन की ओर बढ़ाया.

‘‘मेरी प्यारी जिगर की टुकड़ी किन्नी (किरण),

‘‘बेटा, यह संदेश मैं वैसे ही लिख रही हूं जैसे डूबते समय जहाज के साथ समुद्र में समाए जाने से पहले नाविक अंतिम संदेश लिख कर बोतल में रख कर लहरों में छोड़ देता है. इस आशा में मैं ने यह पत्र छोड़ दिया है. तुम्हें मिले या न मिले, यह समय पर निर्भर करता है. अगर यह पत्र तुम्हें मिल गया तो जरूर पढ़ लेना. मुझे शांति मिलेगी.

‘‘मैं जानती हूं, मैं बहुत बड़ी गुनहगार हूं. बहुत बड़ी भूल की है मैं ने. तुम से क्षमा मांगती हूं. ऐसी बात नहीं कि मैं तुम्हें भूल गई थी. भला, कोई मां अपने बच्चों को भूल सकती है क्या? मुझे पूरा विश्वास है, जब तुम बड़ी होगी, शायद मेरी बेबसी को समझ पाओगी. समय जानता है, एक भी दिन ऐसा नहीं गुजरा होगा जब तुम्हारी मां की आंखें नम न हुई हों. मानती हूं, गलतियां बहुत की हैं मैं ने जो क्षमा के योग्य भी नहीं हैं. क्या करूं, कमजोर थी. ‘‘उस दिन मैं ने खुद को बहुत कोसा. रातभर नींद भी नहीं आई जब मैं ने तुम्हें देख कर भी अनदेखा कर दिया और आगे बढ़ गई थी. तुम्हें देखते ही यों लगा, मानो प्रकृति ने मेरी मुराद पूरी कर दी हो. जी तो किया कि तुम्हें गले लगा लूं लेकिन अपराधबोध की दीवार सामने खड़ी थी जिसे मैं मरते दम तक न लांघ सकी. उस दिन के बाद घर से निकलते ही मेरी नजर तुम्हें ढूंढ़ने लगतीं.

‘‘तुम्हारे जाने के बाद तुम्हारी नानी ने मेरे लाल पासपोर्ट का फायदा उठाया. अपने नए पति को तुम्हारे बारे में न बता सकी. एक दिन भी ऐसा नहीं बीता जब मैं ने अपनी प्यारी पहली बच्ची किरण के बारे में सोचा नहीं. जबजब सूरज को प्यार से गले लगाती तबतब तुम्हारा नाम ले कर सूरज को बारबार पुचकारती रहती. मैं जानती थी कि तुम अकसर सूरज से मिलती हो. जब कभी सूरज बताता कि किरण दीदी ने चौकलेट दी है, उस की बलैया लेते नहीं थकती. बेटा, तुम्हारे लिए मेरी अंतडि़यां रोती थीं. विडंबना यह थी कि किसी से तुम्हारा जिक्र भी नहीं कर सकती थी. तुम्हें तो यह तक न बता सकी कि मेरे पास समय बहुत कम है, कभी भी मेरी मृत्यु हो सकती है. बस, सोच कर तसल्ली कर लेती. तुम्हें अलग करने की यह सजा तो नाममात्र के बराबर है. अब मैं आजाद होने वाली हूं. आज कोई डर नहीं है मुझे, मां का भी नहीं.

‘‘बेटा मरने से पहले यह पत्र तथा एक छोटा सा पैकेट पड़ोसियों को दिया है तुम्हें पोस्ट करने के लिए, जिस में तुम्हारा पहला जोड़ा, हम दोनों की पहली तसवीर, तुम्हारा टैडीबियर, तुम्हारे पापा का नाम और फोटो है. ‘‘जीवन भर तुम्हें कलेजे से लगाने को तरसती रही, लेकिन हिम्मत न जुटा पाई. दोषी हूं तुम्हारी. हाथ जोड़ कर माफी मांगती हूं. मजबूर मां के इस बिलखते मौन को समझ कर उसे क्षमा कर देना.

‘‘तुम्हारी मां.’’

ऐक्‍ट्रैस Nargis Fakhri की बहन ने ऐक्स बौयफ्रेंड को जिंदा जला कर मारा, हत्या के आरोप में हुई अरेस्ट

Ranbir Kapoor की रौकस्‍टार मूवी की कोस्‍टार  Nargis Fakhri की बहन आलिया फाकरी को अरेस्‍ट कर लिया गया है. आलिया पर आरोप है कि उन्‍होंने अपने बौयफ्रेंड और उसकी दोस्‍त को मार डाला है. 

कौन है Nargis Fakhri 

यह ऐक्ट्रैस भारत में दो वजहों से फेमस रही है – पहली वजह यह थी कि वह ’Rockstar’ मूवी में ऐक्टर रणबीर कपूर की बिंदास गर्लफ्रैंड बनती है और दूसरी वजह यह रही कि कुछ सालों तक यह  यश चोपड़ा के छोटे बेटे उदय चोपड़ा की गर्लफ्रैंड के तौर पर पहचानी जाती थी. अमेरिका के न्‍यूयौर्क शहर में साल 1979 में जन्‍म लेने वाली साल Nargis Fakhri ने ’Rockstar’ मूवी को करने के पहले अमेरिका में मौ‍डलिंग किया था. इनकी फोटो को  डायरेक्‍टर इम्तियाज अली ने एक कैलेंडर में देखने के बाद ’Rockstar’  में लेने की सोची. नरगिस के पास अमेरिका के साथसाथ पाकिस्‍तान की भी सिटीजनशिप है. रौकस्‍टार के अलावा नरगिस फाखरी ने कई मूवीज में काम किया जिसमें मद्रास कैफे, मैं तेरा हीरो, किक, अजहर, फटा पोस्‍टर निकला हीरो, हाउसफुल 3 और ढिशुम  शामिल है. ऐक्‍ट्रैस के बारे में कहा जा रहा है कि वह हाउसफुल 5 की शूटिंग में बिजी हैं.

आलिया ने कैसे किया कत्ल 

नरगिस फाखरी अचानक खबरों में आ गई हैं. रौकस्‍टार मूवी से मशहूर हुई इस ऐक्‍ट्रैस की बहन आलिया फाखरी ने अपने ऐक्‍स बौयफ्रैंड एडवर्ड जैकब्‍स और उसकी गर्लफ्रैंड एटिएन की हत्‍या कर दी है. इस मामले में आलिया को अमेरिका की पुलिस ने अरेस्‍ट कर लिया है. ऐक्‍ट्रैस की बहन पर आरोप है कि उन्‍होंने अपने एक्‍स के घर के गैरेज में आग लगा दी जिसकी वजह से दोनों की दम घुटने से मौत हो गई. यह घटना अमेरिका के न्‍यूयौर्क शहर के क्‍वींस की है, जहां  गैराज में आग लगाने की घटना को अंजाम दिया गया. इससे जैकब्स और एटीआर को सांस लेने में दिक्‍कत हुई और दाेनों की मौत हो गई. रिपोर्ट में भी यह बात सामने आई कि दोनों की मौत थर्मल चोटों की वजह से हुई थी. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार  आलिया को अभी तक जमानात  नहीं मिली है. खबरों के अनुसार आलिया पर फर्स्ट डिग्री मर्डर के आरोप लगे हैं. ऐसा कहा जा रहा है कि आलिया पर फर्स्‍ट डिग्री मर्डर का आरोप लगा है.दोनों को मारने से पहले आलिया ने यह धमकी दी कि तुम सब आज मरने वाले हो.  दोनों मृतक ने जान बचाने की कोशिश की लेकिन आग की लपटों के बीच ही वे फंस कर रह गए और मौत हो गई. जैकब्‍स की उम्र 35 साल और उनकी गर्लफ्रैंड एटिएन की उम 33 साल बताई जा रही है.

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