दोनों घंटों कंप्यूटर पर बातचीत करते थे. फिर अचानक न जाने क्या हुआ कि दोनों के बीच तनाव उत्पन्न हो गया. सुप्रिया को लगा कि अभीष्ट उसे धोखा दे रहा है.’’
‘‘हाय, इतना कुछ हो गया और सुप्रिया ने मुझे हवा तक नहीं लगने दी.’’
‘‘तुझे तो क्या मुझे भी हवा नहीं लगने दी. यह नई पीढ़ी बहुत स्मार्ट है. मुझे तो अभीष्ट की मां ने पूरी कहानी सुनाई. उन्हीं ने बताया कि अभीष्ट ने प्रण लिया है कि विवाह करेगा तो सुप्रिया से नहीं तो जीवनभर कुंआरा रहेगा. मुझ से कहने लगीं कि इस समस्या का हल आप ही निकाल सकती हैं.’’
‘‘फिर?’’
‘‘फिर क्या, मैं ने बहुत सोचा. क्या करूं क्या न करूं. अभीष्ट को मैं बचपन से जानती हूं. हर क्षेत्र में सुप्रिया से बीस ही होगा. किसी तरह का कोई व्यसन नहीं. ऐसे युवक आजकल मिलते कहां हैं. सुप्रिया को भी मैं भली प्रकार जानती हूं. किसी से मिलनेजुलने या प्रेम की पींगें बढ़ाने का समय ही कहां है उस के पास. वैसे भी अभीष्ट जैसा वर तो दीया ले कर ढूंढ़ने से भी नहीं मिलेगा. यही सोच कर मैं ने उस के परिवार को तुम सब से मिलवाने का निर्णय लिया. मुझे पूरा विश्वास है कि वह मेरी बात नहीं टालेगी.’’
‘‘काश, ऐसा ही हो. मुझे तो यह सब सुन कर सुप्रिया की चिंता होने लगी है. यह तो बड़ी छिपी रुस्तम निकली. प्रताप और नीरजा ने मुझ से कभी कोई बात नहीं छिपाई.’’
‘‘होता है, ऐसा भी होता है. मेरी छवि ने तो ऐन शादी के दिन बताया था. तुझे तो सब पता है कि कैसे हम ने सारी बात संभाली थी. ऐसी बातों को दिल से नहीं लगाया करते,’’ शर्वरी ने समझाया.
‘‘ललिता, क्या कर रही हो तुम? वहां सारे मेहमान प्रतीक्षा कर रहे हैं,’’ तभी अपूर्व आ खड़े हुए.
‘‘अभी आती हूं. आप जा कर मेहमानों के पास बैठिए न,’’ ललिता ने अनुनय की.
‘‘ललिता, तू जा कर सुप्रिया को ले आ. मैं मेहमानों के पास जा कर बैठती हूं,’’ शर्वरी बोलीं तो ललिता सुप्रिया के कक्ष की ओर बढ़ गईं.
‘‘चल सुप्रिया, तेरे पापा और शर्वरी मौसी तेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं,’’ ललिताजी हड़बड़ाहट में बोलीं.
‘‘क्या मां, मेरा तमाशा बना कर रख दिया है. मैं क्या कोई अजूबा हूं जो सब के सामने मेरी नुमाइश करवा रही हो.’’
‘‘अरे वाह, मन मन भावे, मूड़ हिलावे,’’ ललिताजी हंसीं.
‘‘तात्पर्य क्या है आप का?’’ सुप्रिया ने त्योरियां चढ़ा लीं.
‘‘लो, अब तात्पर्य भी मुझे ही समझाना पड़ेगा. शर्वरी दीदी ने मुझे सब बतला दिया है. ड्राइंगरूम में चल, सब समझ में आ जाएगा.’’
‘‘दीदी, मां क्या कह रही हैं? मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा,’’ नीरजा साक्षात प्रश्नचिह्न बनी खड़ी थी.
‘‘धीरज से काम लो. सब समझ में आ जाएगा. चलो जल्दी, मेहमान प्रतीक्षा कर रहे हैं,’’ ललिता अपनी ही धुन में बोलीं.
अभीष्ट और उस के परिवार को देख कर सुप्रिया को अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ. ‘शर्वरी मौसी को तो जासूसी कंपनी खोल लेनी चाहिए. न जाने कैसे सब पता लगा लेती हैं,’ उस ने सोचा.
‘‘यह सब क्या है? यहां आने से पहले मुझे सूचित तो कर सकते थे,’’ तनिक सा एकांत मिलते ही सुप्रिया ने अभीष्ट से शिकायत की.
‘‘चकित करने का अधिकार क्या केवल तुम्हें है? याद नहीं कैसे बिना कहेसुने गायब हो गई थीं तुम. मैं ने भी कसम खाई थी कि तुम्हें ढूंढ़ कर ही दम लूंगा. भला हो शर्वरी आंटी का जिन्होंने मेरा काम आसान कर दिया.’’
‘‘तुम्हारी सुनयना का क्या हुआ?’’ सुप्रिया ने व्यंग्यपूर्ण स्वर में प्रश्न किया.
‘‘फिर वही सुनयनापुराण. मैं ने तुम्हें पहले भी समझाया था कि मैं किसी सुनयना को नहीं जानता. पर तुम हो कि सुनने को तैयार ही नहीं हो,’’ अभीष्ट नाराज स्वर में बोला.
‘‘लो और सुनो. उस ने स्वयं मुझे फोन कर के बताया था कि तुम उस से अथाह प्रेम करते हो और विवाह उसी से करोगे.’’
‘‘मुझे क्या पता किस ने तुम्हें यह शुभ समाचार दिया था. पर इस बात का दुख अवश्य है कि तुम्हें मुझ से अधिक किसी अनजान के फोन पर विश्वास है,’’ अभीष्ट के स्वर में क्षोभ स्पष्ट था.
‘‘तुम मुझ पर झूठ बोलने का आरोप लगा रहे हो? मैं ने उस फोन नंबर को संभाल कर रखा है जिस से मुझे पूरे 3 बार फोन आया था.’’
‘‘ठीक है, फोन नंबर दो मुझे. हम दोनों बात करेंगे,’’ अभीष्ट बोला था.
‘‘हैलो सुनयना,’’ फोन पर किसी युवती का स्वर सुनते ही अभीष्ट ने प्रश्न किया था.
‘‘हैलो, अभीष्ट, कहो, कहां तक पहुंची तुम्हारी प्रेम कहानी,’’ उधर से खिलखिलाहट के साथ प्रश्न किया गया.
‘‘कौन, ऋचा? तो यह तुम्हारी शरारत थी. तुम्हीं ने सुप्रिया को सुनयना के नाम से फोन कर के बरगलाया था.’’
‘‘क्या कह रहे हो? मैं ने तो बस तुम्हारे कथनानुसार तुम्हारे प्रेम की परीक्षा ली थी. लगता है तुम्हारी बात ही सच थी. तुम दोनों को सचमुच एकदूसरे पर अटूट विश्वास है. विश्वास ही तो सच्चे प्रेम की नींव का पत्थर होता है.’’
‘‘ठीक कह रही हो तुम, सुप्रिया तो यह मानने को तैयार ही नहीं थी कि मेरे जीवन में कोई और लड़की भी हो सकती है. फिर भी वह यह जानने को बहुत उत्सुक थी कि उसे कई बार फोन किस ने किया था.’’
‘‘मुझे क्या पता था कि तुम सुनयना बन कर फोन कर रही थीं, अब तुम ही उसे समझा दो,’’ अभीष्ट ने फोन सुप्रिया को थमा दिया.
‘‘हाय, सुप्रिया, कैसी हो? अभीष्ट ने तुम्हारे बारे में इतने विस्तार से बताया है कि ऐसा आभास हो रहा है मानो तुम मेरी आंखों के सामने बैठी हो. आशा है हम शीघ्र मिलेंगे. मैं ने ही तुम्हें सुनयना के नाम से फोन किए थे. मेरी अभीष्ट से शर्त लगी थी कि आजकल का कामचलाऊ प्रेम जरा सा झटका भी नहीं सह सकता. उस ने मुझे चुनौती दी थी कि मैं चाहूं तो परीक्षा ले सकती हूं तो मैं ने वही किया. पर मुझे प्रसन्नता है कि अभीष्ट की जीत हुई,’’ ऋचा ने सबकुछ स्पष्ट कर दिया.
‘‘पर तुम हो कौन?’’ सुप्रिया ने प्रश्न किया.
‘‘क्या अभीष्ट ने बताया नहीं अभी तक. मैं ऋचा अभीष्ट के मामाजी की बेटी. हम दोनों भाईबहन कम, मित्र अधिक हैं. नर्सरी से ले कर कालेज तक की पढ़ाई हम दोनों ने साथ की थी, पर विवाह करने में मैं अभीष्ट से आगे निकल गई,’’ ऋचा हंसी. उस की स्वच्छ, निर्मल हंसी सीधे सुप्रिया के दिल में उतर गई.
‘‘तुम से बात कर के बहुत अच्छा लगा, ऋचा. आशा है हम शीघ्र ही मिलेंगे,’’ किसी प्रकार सुप्रिया के मुंह से निकला. वार्त्तालाप समाप्त होते ही सुप्रिया ने सिर झुका लिया. उस की आंखों से टपटप आंसू झरने लगे.
‘‘अब क्या हुआ?’’ अभीष्ट ने प्रश्न किया.
‘‘मैं तो तुम्हारी परीक्षा में असफल हो गई अभीष्ट, मैं ने तुम पर अविश्वास किया.’’
‘‘ऐसा कुछ नहीं है, सुप्रिया. मैं भी तुम्हारी जगह होता तो शायद ऐसा ही सोचता. प्रेम को विश्वास में बदलने में तो सारा जीवन लग जाता है. अब शीघ्रता से अपने आंसू पोंछ लो, सब हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैं.’’
सुप्रिया आंसुओं के बीच भी मुसकरा दी थी. शर्वरी ने सुप्रिया को देखा तो आंखों ही आंखों में ललिता को बता दिया कि उन का परिश्रम व्यर्थ नहीं गया था. ललिता अपनी दीदी की योग्यता की कायल हो गई थी.