Moral Stories in Hindi : घड़ी पर नजर पड़ते ही नाइशा बैग उठा कर तुरंत घर से बाहर निकल गई. तभी पीछे से विवान ने आवाज दी, ‘‘लौटते समय घर का कुछ सामान लाना है.’’
‘‘विवान कितनी बार कहा है जाते समय यह सब मत बताया करो.’’
‘‘तुम्हें फुरसत ही कहां रहती है बात करने की,’’ विवान बोला.
नाइशा इस समय इन बातों में उलझना नहीं चाहती थी. अत: बोली, ‘‘ठीक है मुझे मैसेज कर लिस्ट भेज देना आते हुए ले आऊंगी,’’ और गाड़ी स्टार्ट कर घर से निकल गई.
नाइशा को विवान पर झुंझलाहट हो रही थी जो अकसर घर से निकलते हुए उसे इसी तरह से सामान के बहाने रोक दिया करता था. उसे यह जरा भी अच्छा न लगता. रास्तेभर वह विवान पर झुंझलाती रही. गनीमत थी वह सही समय पर औफिस पहुंच गई. पार्किंग में गाड़ी खड़ी कर वह सीधे अपने कैबिन में पहुंची. उस की सांसें अभी तक फूल रही थी. उस ने बैग मेज पर रखा और सीट पर आराम से पसर गई.
सामने की सीट पर बैठी रूही उसे ध्यान से देख रही थी. रूही उस की सीनियर थी. थोड़ी देर बाद रिलैक्स हो कर उस ने बैग खोल कर चश्मा निकाला और अपने काम पर लग गई.
तभी विवान ने उसे मैसेज कर दिया. घर के कुछ जरूरी सामान के अलावा उस में उस का अपना भी कुछ सामान लिखा हुआ था. उसे पढ़ कर उस की खीज और बढ़ गई. वह बड़बडाई, ‘‘हद होती है.विवान अपने लिए रेजर तक भी खुद नहीं ला सकता. वह भी उसे ही ले कर जाना होता है.’’
रूही कई दिनों से नोटिस कर रही थी कि नाइशा हमेशा इसी तरह भागती दौड़ती औफिस आती और यहां आते ही थोड़ी देर के लिए कुरसी पर पसर जाती फिर उस के बाद काम शुरू करती.
तभी मोहन चाय ले कर आ गया. रूही ने उसे अपना कप भी नाइशा की मेज पर रखने का इशारा किया और उठ कर उस के पास आ गई.
‘‘सबकुछ ठीक तो है नाइशा? देख रही हूं औफिस में घुसते हुए तुम्हारे चेहरे पर बड़ा तनाव रहता है. ऐसी हालत में तुम गाड़ी चला कर आती हो. तुम्हें अपना खयाल रखना चाहिए.’’
रूही बोली तो नाइशा अपने को रोक नहीं सकी, ‘‘पता नहीं क्यों हमेशा औफिस आते हुए विवान मु?ो किसी ने किसी काम के बहाने रोक देते हैं. इस से मु?ो देर हो जाती है और मेरी खीज भी बढ़ जाती है.’’
‘‘उन की बात का बुरा नहीं मानना चाहिए. छोटीछोटी बातों पर इसी तरह ब्लड प्रैशर बढ़ाओगी तो काम कैसे चलेगा?’’
‘‘विवान दिनभर घर पर रहते हैं. वर्क फ्रौम होम करते हैं. मुझे औफिस आना होता है. उस के बावजूद घर के सब काम मुझे ही देखने होते हैं. वे काम में मेरा जरा भी हाथ नहीं बंटाते. यहां तक कि दोपहर का लंच भी मुझे ही बना कर आना होता है.’’
‘‘आज के समय में गृहस्थी पतिपत्नी दोनों मिल कर चलाते हैं. तुम दोनों एकदूसरे को कब से जानते हो?’’
‘‘हम एकसाथ कालेज में पढ़ते थे. हमारी दोस्ती बहुत पुरानी है. इंजीनियरिंग करते ही हम ने घर वालों की मरजी के खिलाफ शादी कर ली. वे अपने घर का इकलौता बेटे हैं. मैं 3 भाईबहनों में सब से छोटी हूं. मुझे घर पर मम्मी के साथ काम करने की आदत थी लेकिन विवान को नहीं. शुरूशुरू में मैं ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया और सब काम खुद ही निबटा लेती थी. मुझे उन के लिए काम करना अच्छा लगता था. नौकरी की शुरुआत के साथ ही कोरोना आ गया और हम दोनों वर्क फ्रौम होम करने लगे. घर पर रह कर मैं औफिस के काम के साथ घर को भी अच्छे से देख लेती थी. अब जब महामारी खत्म हो गई तो मुझे औफिस आना पड़ता है. वे अभी भी घर से काम करते हैं. इस से मेरी भागदौड़ काफी बढ़ गई है. यह बात वे नहीं समझते.’’
‘‘थोड़ा सब्र रखो नाइशा. कुछ समय बाद वे भी औफिस जाने लगेंगे तो तुम्हारी जिंदगी फिर से पटरी पर आ जाएगी और तुम्हारी परेशानी दूर हो जाएगी,’’ रूही बोली.
उस की बातों से नाइशा को थोड़ी तसल्ली मिली. वे दोनों हमउम्र तो नहीं थीं लेकिन रूही उस का काफी खयाल रखती थी. नाइशा औफिस से घर जाते हुए बाजार की खरीदारी करती हुई जाती. सागसब्जी से ले कर घर का दूसरा सारा सामान उसे ही लाना पड़ता था. इस के अलावा विवान को जो कुछ चाहिए होता उसे लेने भी वह घर से बाहर न निकलता. उस ने कई बार यह बात उठाई भी लेकिन उस ने इस पर ध्यान नहीं दिया.
‘‘नाइशा तुम जानती हो घर से काम करते हुए मैं जरा देर के लिए भी कंप्यूटर के आगे से हट नहीं सकता. कम से कम तुम औफिस के बहाने घर से बाहर तो निकल जाती हो और 4 लोगों से मिल कर अपना मन भी हलका कर लेती हो. मुझे दिनभर स्क्रीन के सामने बैठे रहना होता है. तुम मार्केट से हो कर आती हो. यह काम भी कर लोगी तो क्या फर्क पड़ जाता है.’’
‘‘समझा करो विवान सुबह नाश्ते से ले कर रात डिनर तक सबकुछ मुझे ही देखना पड़ता है.’’
‘‘मैं ने तो कहा था किसी बाई को खाना बनाने के लिए रख लेते हैं लेकिन तुम इस के लिए राजी नहीं हुईं. तुम्हें काम भी अपने सामने ही चाहिए और वह भी तुम्हारे हिसाब से. भला ऐसे में कैसे काम चलेगा? दूसरे से काम लेना है तो भरोसा तो करना होगा. तुम्हें किसी पर भरोसा भी नहीं रहता. न मुझ पर न काम वालों पर.’’
विवान बोला तो नाइशा चुप हो गई. यह बात सच थी कि वह पीठ पीछे किसी और औरत को घर पर नहीं आने देना चाहती थी. कौन जाने दूसरे की नियत कैसी हो? यही सोच कर उसने किसी कामवाली को खाना बनाने के लिए नहीं रखा था. विवान स्वभाव से थोड़ा चंचल भी था. हर किसी से घुलमिल कर बात करता. यह बात उसे पसंद नहीं थी. घर पर बरतन धोने और साफसफाई के लिए मुन्नी सुबह 7 बजे आ जाती थी और उस के जाने से पहले काम खत्म कर लेती थी. वह उसे भी केवल एक समय सुबह अपने सामने बुलाती.
घर और नौकरी के चक्कर में नाइशा पर काफी बोझ पड़ रहा था. विवान को बचपन से काम की आदत नहीं थी. वह अभी भी इस परिपाटी को निभा रहा था. वे दोनों बराबर कमाते थे. घर के काम उस की हर खुशी के बीच रुकावट बने हुए थे. जब उस का मन शाम को घर पर काम करने का न होता तो वे दोनों किसी रैस्टोरैंट में खाना खाने चले जाते. उन दोनों के पेमैंट के काम बंटे हुए थे .घर का किराया और उस से संबंधित बिल विवान देखते थे और खानेपीने का सारा खर्चा नाइशा उठाती थी. रोजरोज बाहर खाना उस के बजट से बाहर था. उसे समझ नहीं आ रहा था वह अपनी समस्या कैसे सुलझाए?
इस बात को ले कर उन के बीच का आपसी प्यार भी कम होता जा रहा था. नाइशा को औफिस से लौट कर घर के कामों से फुरसत न मिलती और विवान उस की समस्या को कोई तवज्जो नहीं दे रहा था. नाइशा चाहती थी उस के औफिस में भी काम शुरू हो जाए तो कम से कम वह भी घर से बाहर निकल कर उस के कुछ कामों में हाथ बंटा दे लेकिन अभी वह स्थिति नहीं आई थी. पता नहीं कितने समय तक यह सब और चलने वाला था. कभीकभी वह रूही से अपने मन की बात कह कर थोड़ा हलका हो जाती थी. इस के अलावा उसने अपनी परेशानी किसी और के साथ शेयर नहीं की थी.
एक दिन औफिस के काम से रूही और नाइशा को दूसरे औफिस जाना था. उन्हें लंच तक लौटने की उम्मीद थी लेकिन वक्त थोड़ा ज्यादा लग गया.
लौटते हुए रास्ते में रूही बोली, ‘‘मेरा घर पास में ही है. वहां से होते हुए चलते हैं. कुछ खा लेंगे वरना पूरा दिन औफिस में भूखा रहना पड़ेगा.’’
नाइशा ने उस की बात का विरोध नहीं किया. फ्लैट में पहुंचते ही घंटी की एक आवाज पर दरवाजा खुल गया. सामने एक दुबलापतला स्मार्ट आदमी खड़ा था. औपचारिकतावश उस ने हाथ जोड़ दिए. वह उन के लिए पानी ले आया.
‘‘हमें जल्दी वापस जाना है.’’
‘‘मैं ने डाइनिंगटेबल पर खाना लगा दिया है. आप दोनों आराम से लंच कर सकते हैं.’’
दोनों जल्दी से हाथ धो कर लंच करने लगीं. खाना बहुत स्वादिष्ठ था. रूही ने घड़ी पर नजर डाली और बोली, ‘‘चलते हैं वरना औफिस पहुंचने में देर हो जाएगी.’’
कुछ ही देर में वे औफिस में पहुंच गए. जरूरी डौक्यूमैंट सबमिट कर वे अपने कैबिन में आ गए.
नाइशा असमंजस मे थी कि दोपहर में रूही के घर पर कौन था? बात आगे बढ़ाने के लिए बोली, ‘‘लंच बहुत लजीज बना था.’’
‘‘पार्थ बहुत अच्छा खाना बनाते हैं.’’
‘‘आप ने घर में कुक रखा है,’’
यह सुन कर रूही हंसने लगी, ‘‘शायद तुम ने पहचाना नहीं पार्थ मेरे पति हैं.’’
यह सुन कर नाइशा सकपका गई. उसे सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि भरे बदन की रूही के पति दुबले, पतले और स्मार्ट होंगे.
‘‘तुम ने परिचय ही नहीं कराया इसलिए धोखा हो गया.’’
‘‘जल्दबाजी में भूल गई. मैं ने उन्हें सुबह ही बता दिया था कि अगर मीटिंग में टाइम लगा तो हम दोनों खाना खाने दोपहर में घर आएंगे. बस उन्होंने हमारे लिए अच्छा लंच तैयार कर दिया.’’
इस से ज्यादा कुछ पूछने की नाइशा की हिम्मत नहीं हो रही थी.
रूही बोली, ‘‘यह तो तुम भी जानती हो पार्थ एक मल्टी नैशनल कंपनी में काम करते हैं. आजकल वे भी वर्क फ्रौम होम कर रहे हैं. वे मेरा बहुत खयाल रखते हैं. घर का सारा काम वही देखते हैं. मु?ो घर की कोई परवाह नहीं रहती.’’
‘‘एक इंजीनियर हो कर उन्होंने यह सब कहां सीखा?’’
‘‘मेरी सासूमां ने पार्थ को यह सब सीखने के लिए प्रेरित किया. वे एक सम?ादार महिला हैं. वे जानती हैं जब पतिपत्नी दोनों नौकरी करते हैं तो घर के काम भी दोनों को मिल कर करने चाहिए. जब हम दोनों वर्क फ्रौम होम कर रहे थे तब वे हमारे साथ थीं. उन्होंने ही पार्थ को यह सब करना सिखाया. उसी की बदौलत आज हमारी गृहस्थी बहुत अच्छी चल रही है.’’
‘‘आप ने यह सब पहले नहीं बताया?’’
‘‘इस की जरूरत ही नहीं पड़ी. मैं अपनी नौकरी और परिवार दोनों से संतुष्ट हूं.’’
‘‘मेरे ओर से उन से माफी मांग लीजिएगा. मैं उन्हें पहचान नहीं पाई.’’
‘‘अकसर लोगों को धोखा हो जाता है इसलिए मैं ने भी इस की जरूरत नहीं समझ.’’
थोड़ी देर बातें करने के बाद वे अपने काम में मशगूल हो गए. नाइशा सोच भी नहीं सकती थी कि जिस के सामने वह अपने हालात का दुखड़ा रोती थी उन के घर में ठीक उस के विपरीत परिस्थितियां हैं. वहां काम को ले कर कोई तनाव ही नहीं.
नाइशा अब अपनी तुलना रूही से करने लगी. दोनों के हालात में जमीनआसमान का अंतर था. उसे अफसोस हो रहा था कि वह बेकार में ही अपनी रोज की परेशानी रूही को बताती. उसे इन सब से कुछ भी लेनादेना नहीं था. वह उस के दर्द का एहसास कर ही नहीं सकती थी. फिर भी उस ने अपनी ओर से कभी यह बात उसे महसूस नहीं होने दी.
उस दिन से नाइशा ने अपने घर की बातें रूही के साथ बांटना कम कर दिया. यह बात रूही को अच्छी नहीं लग रही थी लेकिन वह उसे कुरेद कर कुछ पूछने के पक्ष में नहीं थी. वह चाहती थी नाइशा और विवान की गृहस्थी ठीक से पटरी पर आ जाए लेकिन परिस्थितियां उस का साथ नहीं दे रही थीं.
एक दिन घर से निकलते हुए जब विवान ने नाइशा को टोका तो वह अपने को काबू में न रख सकी और फट पड़ी, ‘‘बहुत हो गया विवान. अब मेरी सहनशक्ति जवाब देने लगी है.’’
‘‘ऐसा क्या कर दिया मैं ने?’’
‘‘अपनेआप से पूछो. तुम और मैं दोनों बराबर कमाते हैं. इस के बावजूद इस घर में मेरी स्थिति क्या है और तुम्हारी क्या?’’
‘‘मुझे तो कोई अंतर नजर नहीं आता. जो कुछ तुम पहले करती थीं वही आज भी कर रही हो. कोई नई बात तो नहीं है. मैं ने अपने परिवार वालों का बोझ भी तुम पर नहीं डाला हुआ है,’’ विवान बोला.
नाइशा बोलना तो बहुत कुछ चाहती थी लेकिन उसे औफिस के लिए देर हो रही थी.
‘‘शाम को बात करती हूं,’’ कह कर वह एक झटके में कमरे से बाहर निकल गई.
आज उस का मूड बहुत ज्यादा खराब था. औफिस जा कर भी वह उस के चेहरे पर साफ दिखाई दे रहा था. उस का जी रोने का कर रहा था लेकिन कोई ऐसा कंधा नहीं था जिस पर सिर रख कर वह अपने अंदर का गुबार निकाल सके.
उस की हालत देख कर रूही से न रहा गया. वह उस के पास आ कर बोली, ‘‘बड़ी अपसैट लग रही हो नाइशा?’’
‘‘अब मेरे हालात बरदाश्त की सीमा से बाहर हो रहे हैं. सबकुछ सहना मुश्किल होता जा रहा है. सम?ा नहीं आ रहा क्या करूं?’’
‘‘मेरी एक सलाह है. कुछ दिनों के लिए तुम दोनों कहीं घूमने चले जाओ. एकसाथ समय बिताओगे और पुराने समय को याद करोगे तो तुम्हें अच्छा महसूस होगा. तुम्हारे रिश्ते में फिर से ताजगी आ जाएगी.’’
‘‘पता नहीं विवान इस के लिए राजी होंगे या नहीं.’’
‘‘छुट्टी की प्रौब्लम है तो शनिवार और रविवार 2 दिन ऐंजौय कर सकती हो. दूर नहीं नजदीक चली जाओ. माहौल बदलेगा तो तुम्हारे अंदर की कुंठा भी दूर हो जाएगी.’’
‘‘तुम ठीक कहती हो रूही. मैं बात कर के देखती हूं.’’
‘‘अगर पास में जाना है तो यहां से 100 किलोमीटर दूर मेरा कजिन डेली लाइट होटल में मैनेजर है. मैं उस से कह कर बड़ा डिस्काउंट भी दिलवा दूंगी. तुम दोनों आराम से कुछ समय साथ बिताना. देखना तुम्हारा मन पहले की तरह खिल उठेगा.’’
नाइशा को रूही की सलाह अच्छी लगी.
‘‘मैं कोशिश करती हूं कि विवान 2 दिन के लिए ही सही इस माहौल से दूर घूमने के लिए राजी हो जाएं.’’
‘‘तुम प्यार से कहोगी तो वे मान जाएंगे. मैं आरव को फोन कर के बता दूंगी. तुम बिलकुल चिंता मत करना. अच्छी जगह पर रह कर क्वालिटी टाइम बिताना. सबकुछ ठीक हो जाएगा.’’
रूही की बातों से उसे बड़ा सहारा मिला. काम के दौरान वह सुबह वाली बात भूल गई. शाम को घर आ कर रोज की तरह काम निबटाते हुए बोली, ‘‘बहुत दिनों से हम कहीं बाहर नहीं गए. इस वीकैंड पर दूसरे शहर चलते हैं.’’
‘‘मैं भी सोच रहा था हमें एकदूसरे के साथ वक्त बिताना चाहिए. घर पर रह कर माहौल दूसरा ही हो जाता है. यहां काम के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता. कल शुक्रवार को निकल पड़ते हैं.’’
नाइशा की उम्मीद के विपरीत विवान तुरंत जाने के लिए तैयार हो गया. उस ने भी भले काम में देर नहीं की और रूही के बताए हुए होटल में 2 दिन बिताने का मन बना लिया. उस ने होटल में फोन कर कमरा बुक कर दिया. आरव ने उस की खबर रूही को दे दी. यह सुन कर वह खुश हो गई.
‘‘पार्थ चलो हम आरव से मिल कर आते हैं.’’
‘‘अचानक तुम्हें यह क्या सूझ?’’
‘‘वह कई दिनों से कह रहा था. सोच रही हूं इस वीकैंड पर मिलने चलते हैं.’’
पार्थ रूही की इच्छा का हमेशा आदर करता. वह बोला, ‘‘तुम चाहती हो तो मैं अभी से तैयारी कर देता हूं.’’
दोनों ने वहां जाने की तैयारी कर ली. रूही ने यह बात नाइशा को नहीं बताई. शनिवार सुबह रूही और पार्थ को होटल के लान में बैठा देख कर नाइशा चौंक गई, ‘‘रूही तुम यहां?’’
‘‘आरव बहुत समय से बुला रहा था. कल उस का बर्थडे था. मैं ने सोचा उसे सरप्राइज दे दूंगी. तुम ने भी तुरंत प्रोग्राम बना लिया.’’
‘‘हां विवान तैयार हो गए थे. मैं ने भी देर करना ठीक नहीं सम?ा.’’
वे दोनों बात करने लगे. तभी रूही बोली, ‘‘पार्थ ये नाइशा के हस्बैंड हैं विवान और ये मेरे.’’
दोनों का परिचय करा कर वह एक तरफ हो गईं.
थोड़ी देर में उन के लिए आरव ने चाय और स्नैक्स लान में ही भिजवा दिए. वे चाय के साथ स्नैक्स का मजा लेने लगे.
तभी पार्थ बोले, ‘‘मुझे स्नैक्स में कौर्न फ्लोर ज्यादा लग रहा है.’’
यह सुन कर विवान चौंक गया.
‘‘लगता है तुम्हारी खाने पर बड़ी अच्छी पकड़ है.’’
‘‘होगी क्यों नहीं. आखिर घर में कई डिशेज मैं ही बनाता हूं. तुम ने कभी कुछ किचन में ट्राई किया है?’’
‘‘मैं इस ?ामेले से दूर ही रहता हूं.’’
‘‘झमेला कैसा? मुझे खाना बनाने में बड़ा मजा आता है. मैं दिनभर घर पर रह कर औफिस का काम करता हूं. थोड़ी देर दिमाग शांत करने के लिए अपने लिए नईनई डिशेज बनाता हूं और जो अच्छी बन जाती है उसे वह रूही को भी खिलाता हूं. मैं पूछना भूल गया आप कहां काम करते हैं?’’
‘‘मैं भी एक मल्टीनैशनल कंपनी में इंजीनियर हूं. आजकल वर्क फ्रौम होम कर रहा हूं.’’
‘‘तब तो हम दोनों की बहुत अच्छी जमेगी. हमारी पत्नियां औफिस में जा कर काम करती हैं और हम दोनों घर से.’’
उन दोनों को घुलमिल कर बात करते देख कर रूही नाइशा के साथ एक तरफ आ गई. रूही बोली, ‘‘तुम्हारा जब मन करे यहां आ सकती हो. आरव बहुत नेक इंसान है. वह तुम्हारा भी वैसा ही खयाल रखेगा जैसे हमारा रखता है.’’
थोड़ी देर बातें करने के बाद वे अपने रूम में आ गए थे. विवान को पार्थ से मिल कर अच्छा लगा. दोपहर में लंच के समय वे सब फिर इकट्ठा हो गए और साथ मिल कर लंच का मजा ले रहे थे.विवान को एहसास हो रहा था कि पार्थ उसी की तरह घर से काम करते हुए भी रूही का बहुत खयाल रखते हैं. उसे लगा जैसे वह नाइशा के साथ नाइंसाफी कर रहा है. वह बोला, ‘‘पार्थ तुम ने यह सब कहां से सीखा?’’
‘‘मम्मी ने सिखाया है.’’
‘‘आंटी को बुरा नहीं लगता जब तुम किचन में काम करते हो?’’
‘‘बिलकुल नहीं. वे कहती हैं घरगृहस्थी तभी ठीक चलती है जब उस के दोनों पहियों पर बराबर बो?ा हो. एक पर ज्यादा भार पड़ेगा तो गृहस्थी की गाड़ी लड़खड़ाने लगेगी. इसीलिए उन्होंने मु?ो यह सब करने के लिए प्रेरित किया. मेरी गृहस्थी बहुत अच्छी चल रही है. रूही भी खुश है और हमारे घर वालों को हम से कोई अपेक्षा नहीं है. वे हमें खुश देख कर बहुत संतुष्ट रहते हैं.’’
‘‘आंटी की सोच वक्त से बहुत आगे
की है.’’
‘‘एक राज की बात बताऊं. वे ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं है लेकिन दुनियादारी अच्छी तरह समझती हैं. उन्होंने मुझे साधारण खाना बनाना सिखाया था. उस के बाद मैं ने औनलाइन कुकिंग क्लास जौइन की और आज देखो इंजीनियरिंग के साथसाथ कुकिंग में भी ऐक्सपर्ट बन गया.’’
‘‘मेरा ध्यान कभी इस तरफ गया ही नहीं.’’
‘‘तो अब ले जाओ. जानते हो यह पार्टनर को खुश रखने का मूल मंत्र है. खुशी का रास्ता पेट से हो कर जाता है.’’
‘‘मैं तुम्हारी बात का ध्यान रखूंगा.’’
‘‘तुम नाइशा के साथ ज्यादा समय बिताओ वरना उसे लगेगा नया दोस्त मिलते ही तुम उसे इग्नोर कर रहे हो.’’
‘‘वह ऐसी नहीं है. सब की भावनाओं की कद्र करती है.’’
‘‘तुम्हें भी उस की भावनाओं की इज्जत करनी चाहिए,’’ पार्थ बोला.
लंच कर के वे अपने रूम में आ गए. रूही ने भी नाइशा को यही सलाह दी कि विवान के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताए जिस से उन के बीच की गलतफहमियां दूर हो सकें.
2 दिन कब बीत गए पता ही नहीं चला. इतवार की शाम वे वापस अपने घर आ गए. रूही और पार्थ अगली सुबह आने वाले थे. नाइशा को खुश देख कर विवान को अच्छा लग रहा था. रूही भी घर से बाहर 2 दिन बिता कर खुश थी. पार्थ ने अपने तरीके से विवान को गृहस्थी को पटरी पर लाने का मूल मंत्र दे दिया था. रूही ने इस बारे में पार्थ को कुछ नहीं बताया था.
घर आ कर नाइशा किचन में डिनर की तैयारी करने लगी तो विवान बोला, ‘‘मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूं नाइशा?’’
यह सुन कर वह चौंक गई. इस समय पुरानी बात छेड़ कर उस की भावनाओं को ठेस पहुंचाना उस ने ठीक नहीं समझ.
‘‘ज्यादा कुछ नहीं फ्रिज से निकाल कर सलाद काट दो. तब तक मैं कुछ बना लेती हूं.’’
‘‘हलकाफुलका बनाना. अभी
ज्यादा खाने की कुछ इच्छा भी नहीं है,’’ विवान बोला.
वह बड़ी देर तक पार्थ और रूही की बातें करता रहा. उसे पार्थ का व्यक्तित्व बहुत अच्छा लगा और वह उस से प्रभावित भी था. नाइशा भी इस समय अपनेआप को सहज महसूस कर रही थी. रोज घर और औफिस के रूटीन से 2 दिन के लिए बाहर निकल कर उसे अच्छा लगा था. आरव ने इतने अच्छे होटल के उन से बहुत कम चार्ज लिए. यह भी उन के लिए एक अच्छी बात थी.
‘‘मुझे लगता है रूही तुम्हारी बहुत अच्छी फ्रैंड है. तुम्हें अच्छी तरह समझती है.’’
‘‘वह मेरी सीनियर है. इसे संयोग ही कहेंगे कि वह भी तुम्हें वहां मिल गई.’’
‘‘मैं ने उसे अपने प्रोग्राम के बारे में कुछ नहीं बताया था. अचानक वह भी आरव से मिलने वहां आ गई. इसी बहाने तुम्हारी पार्थ से भी मुलाकात हो गई.’’
‘‘वह बहुत जिंदा दिल इंसान है. जिंदगी को बहुत बारीकी से समझता है. उसे सब को खुश रखने की कला आती है,’’ विवान बोला.
डिनर खत्म कर वे आराम करने लगे. अगली सुबह नाइशा को औफिस जाना था. सुबह अलार्म के साथ उठी. वह यह देख कर चौंक गई जब विवान उस के लिए बैड टी मेज पर रख गए थे. अभी तक वही रोज सुबह उस के लिए नहाधो कर बैड टी बनाती थी. विवान को देर से उठने की आदत थी.
‘‘तुम कब उठे?’’
‘‘थोड़ी देर पहले उठा हूं. सोचा तुम्हारे लिए चाय बना दूं तुम्हें अच्छा लगेगा. मुझे ज्यादा कुछ करना नहीं आता है लेकिन विश्वास रखो धीरेधीरे सब सीख जाऊंगा.’’
विवान में आए परिवर्तन को देख कर नाइशा अचकचा गई थी. चाय खत्म कर वह किचन में आ कर नाश्ते की तैयारी करने लगी.
विवान बोले, ‘‘दोपहर में लंच मैं खुद बना लूंगा. उस की चिंता मत करना.’’
‘‘लेकिन.’’
‘‘इंजीनियर हूं. बहुत कुछ बना लेता हूं. खाना बनाना कौन सा मुश्किल काम है कोई परेशानी आएगी तो पार्थ से पूछ लूंगा. वह इस काम में माहिर है.’’
विवान के कहने पर नाइशा ने इत्मीनान से नाश्ता किया और औफिस के लिए तैयार होने लगी. आज विवान ने उसे जाते समय टोका नहीं. वह समय से औफिस पहुंच गई. उस का खिला हुआ चेहरा देख कर रूही को बड़ा अच्छा लगा.
आते ही वह बोली, ‘‘रूही गजब हो गया. आउटिंग से आ कर विवान एकदम बदल गए हैं,’’ इतना कह कर उस ने सुबह और कल शाम की घटनाएं उसे बता दीं.
‘‘तुम निश्चिंत रहो. धीरेधीरे वे तुम्हारी हरसंभव मदद करने लगेंगे. वे अच्छे इंसान हैं लेकिन उन्हें जिंदगी का अनुभव थोड़ा कम है इसीलिए वे तुम्हारी भावनाओं को नहीं समझ सके.’’
‘‘मैं तुम्हारा धन्यवाद कैसे करूं. इतनी अच्छी सलाह दे कर तुम ने मेरी जिंदगी बदल दी.’’
‘‘धन्यवाद मुझे नहीं पार्थ को दो जिस ने उन का ब्रेन वाश किया है.’’
‘‘तो क्या तुम ने उसे सबकुछ बता दिया था?’’
‘‘नहीं नाइशा मैं ने उसे कुछ नहीं बताया लेकिन वह गृहस्थी और जिंदगी दोनों को बहुत अच्छे से हैंडल करना जानता है. उस ने अपनी खुशी का मूल मंत्र उसे भी समझाया और विवान समझ गए.’’
‘‘सच में बड़ी बहन की तरह तुम ने मेरी बहुत बड़ी समस्या हल कर दी रूही.’’
‘‘ऐसा नहीं सोचते,’’ कह कर रूही अपने काम पर लग गई.
शाम को उस के घर पहुंचने से पहले घड़ी देख कर विवान ने चाय तैयार कर दी
थी और साथ में ब्रैड सेंक कर रख दिए.
‘‘तुम ने परेशानी क्यों उठाई विवान?’’
‘‘इस में परेशानी कैसी? मुझे माफ कर दो नाइशा मैं पहले तुम्हारी परेशानी नहीं समझ सका. किसी ने मुझे इतने अच्छे ढंग से बताया ही नहीं जैसे पार्थ ने समझाया. उन की खुशहाल गृहस्थी देख कर मुझे लगा कि वह धरती का सब से खुशहाल जोड़ा है. मैं भी अपनी जिंदगी को खुशहाल बनाना चाहता हूं. अनजाने में मैं ने तुम्हारे ऊपर घर का सारा बोझ डाल रखा था. कोशिश करूंगा वह जल्दी कम हो जाए.’’
यह सुन कर नाइशा भावुक हो कर विवान केसीने से लग गई. उस की आंखों से आंसू बहने लगे थे. विवान उन्हें प्यार से पोंछने लगा.
नाइशा बोली, ‘‘शायद मुझे तुम्हें समझना नहीं आया वरना यह समस्या बहुत पहले खत्म हो जाती.’’
‘‘कोई बात नहीं. हम दोनों ने अपनी नासमझ की वजह से जो वक्त खराब किया है उस की कसर जल्दी पूरी कर देंगे,’’ विवान बोला.
नाइशा के सारे शिकवेशिकायत दूर हो गए थे. वह मन ही मन रूही और पार्थ का धन्यवाद कर रही थी जिन्होंने इतनी सहजता से उस की जिंदगी की सब से बड़ी मुश्किल हल कर दी थी.
राइटर- डा. के. रानी