Best Hindi Stories : पासा पलट गया

Best Hindi Stories :  आभा गोरे रंग की एक खूबसूरत लड़की थी. उस का कद लंबा, बदन सुडौल और आंखें बड़ीबड़ी व कजरारी थीं. उस की आंखों में कुछ ऐसा जादू था कि उसे जो देखता उस की ओर खिंचा चला जाता. विक्रम भी पहली ही नजर में उस की ओर खिंच गया था.

उन दिनों विक्रम अपने मामा के घर आया हुआ था. उस के मामा का घर पटना से तकरीबन 20 किलोमीटर दूर एक गांव में था.

विक्रम तेजतर्रार लड़का था. वह बातें भी बहुत अच्छी करता था. खूबसूरत लड़कियों को पहले तो वह अपने प्रेमजाल में फंसाता था, फिर उन्हें नौकरी दिलाने का लालच दे कर हुस्न और जवानी के रसिया लोगों के सामने पेश कर पैसे कमाता था. इसी प्लान के तहत उस ने आभा से मेलजोल बढ़ाया था.

उस दिन जब आभा विक्रम से मिली तो बेहद उदास थी. विक्रम कई पलों तक उस के उदास चेहरे को देखता रहा, फिर बोला, ‘‘क्या बात है आभा, आज बड़ी उदास लग रही हो?’’

‘‘हां,’’ आभा बोली, ‘‘विक्रम, मैं अब आगे पढ़ नहीं पाऊंगी और अगर पढ़ नहीं पाई तो अपना सपना पूरा नहीं कर पाऊंगी.’’

‘‘कैसा सपना?’’

‘‘पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ा होने का सपना ताकि अपने मांबाप को गरीबी से छुटकारा दिला सकूं.’’

‘‘बस, इतनी सी बात है.’’

‘‘तुम बस इसे इतनी सी ही बात समझते हो?’’

‘‘और नहीं तो क्या…’’ विक्रम बोला, ‘‘तुम पढ़लिख कर नौकरी ही तो करना चाहती हो?’’

‘‘हां.’’

‘‘वह तो तुम अब भी कर सकती हो.’’

‘‘लेकिन, भला कम पढ़ीलिखी लड़की को नौकरी कौन देगा? मैं सिर्फ इंटर पास हूं,’’ आभा बोली.

‘‘मैं कई सालों से पटना की एक कंपनी में काम करता हूं, इस नाते मैनेजर से मेरी अच्छी जानपहचान है. अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारे बारे में उस से बात कर सकता हूं.’’

‘‘तो फिर करो न…?’’ आभा बोली, ‘‘अगर तुम्हारे चलते मुझे नौकरी मिल गई तो मैं हमेशा तुम्हारी अहसानमंद रहूंगी.’’

आभा विक्रम के साथ पटना आ गई थी. एक होटल के कमरे में विक्रम ने एक आदमी से मिलवाया. वह तकरीबन 45 साल का था.

जब विक्रम ने उस से आभा का परिचय कराया तो वह कई पलों तक उसे घूरता रहा, फिर अपने पलंग के सामने पड़ी कुरसी पर बैठने का इशारा किया.

आभा ने एक नजर कुरसी के पास खड़े विक्रम को देखा, फिर कुरसी पर बैठ गई.

उस के बैठते ही विक्रम उस आदमी से बोला, ‘‘सर, आप आभा से जो कुछ पूछना चाहते हैं, पूछिए. मैं थोड़ी देर में आता हूं,’’ कहने के बाद विक्रम आभा को बोलने का कोई मौका दिए बिना जल्दी से कमरे से निकल गया.

उसे इस तरह कमरे से जाते देख आभा पलभर को बौखलाई, फिर अपनेआप को संभालते हुए तथाकथित मैनेजर को देखा.

उसे अपनी ओर निहारता देख वह बोला, ‘‘तुम मुझे अपने सर्टिफिकेट दिखाओ.’’

आभा ने उसे अपने सर्टिफिकेट दिखाए. वह कुछ देर तक उन्हें देखने का दिखावा करता रहा, फिर बोला, ‘‘तुम्हारी पढ़ाईलिखाई तो बहुत कम है. इतनी कम क्वालिफिकेशन पर आजकल नौकरी मिलना मुश्किल है.’’

‘‘पर, विक्रम ने तो कहा था कि इस क्वालिफिकेशन पर मुझे यहां नौकरी मिल जाएगी.’’

‘‘ठीक है, मैं विक्रम के कहने पर तुम्हें अपनी फर्म में नौकरी दे तो दूंगा, पर बदले में तुम मुझे क्या दोगी?’’ कहते हुए उस ने अपनी नजरें आभा के खूबसूरत चेहरे पर टिका दीं.

‘‘मैं भला आप को क्या दे सकती हूं?’’ आभा उस की आंखों के भावों से घबराते हुए बोली.

‘‘दे सकती हो, अगर चाहो तो…’’

‘‘क्या…?’’

‘‘अपनी यह खूबसूरत जवानी.’’

‘‘क्या बकवास कर रहे हैं आप?’’ आभा झटके से अपनी कुरसी से उठते हुए बोली, ‘‘मैं यहां नौकरी करने आई हूं, अपनी जवानी का सौदा करने नहीं.’’

‘‘नौकरी तो तुम्हें मिलेगी, पर बदले में मुझे तुम्हारा यह खूबसूरत जिस्म चाहिए,’’ कहता हुआ वह आदमी पलंग से उतर कर आभा के करीब आ गया. वह पलभर तक भूखी नजरों से उसे घूरता रहा, फिर उस के कंधे पर हाथ रख दिया.

उस आदमी की इस हरकत से आभा पलभर को बौखलाई, फिर उस के जिस्म में गुस्से और बेइज्जती की लहर दौड़ गई. वह बोली, ‘‘मुझे नौकरी चाहिए, पर अपने जिस्म की कीमत पर नहीं,’’ कहते हुए आभा दरवाजे की ओर लपकी.

पर दरवाजे पर पहुंच कर उसे झटका लगा. दरवाजा बाहर से बंद था. आभा दरवाजा खोलने की कोशिश करती रही, फिर पलट कर देखा.

‘‘अब यह दरवाजा तभी खुलेगा जब मैं चाहूंगा,’’ वह आदमी अपने होंठों पर एक कुटिल मुसकान बिखेरता हुआ बोला, ‘‘और मैं तब तक ऐसा नहीं चाहूंगा जब तक तुम मुझे खुश नहीं कर दोगी.’’

उस आदमी का यह इरादा देख कर आभा मन ही मन कांप उठी. वह डरी हुई आवाज में बोली, ‘‘देखो, तुम जैसा समझते हो, मैं वैसी लड़की नहीं हूं. मैं गरीब जरूर हूं, पर अपनी इज्जत का सौदा नहीं कर सकती. प्लीज, दरवाजा खोलो और मुझे जाने दो.’’

‘‘हाथ आए शिकार को मैं यों ही कैसे जाने दूं…’’ बुरी नजरों से आभा के उभारों को घूरता हुआ वह बोला, ‘‘तुम्हारी जवानी ने मेरे बदन में आग लगा दी है और मैं जब तक तुम्हारे तन से लिपट कर यह आग नहीं बुझा लेता, तुम्हें जाने नहीं दे सकता,’’ कहते हुए वह झपट कर आगे बढ़ा, फिर आभा को अपनी बांहों में दबोच लिया.

अगले ही पल वह आभा को बुरी तरह चूमसहला रहा था. साथ ही, वह उस के कपड़े भी नोच रहा था. ऐसे में जब आभा का अधनंगा बदन उस के सामने आया तो वह बावला हो उठा. उस ने आभा को गोद में उठा कर पलंग पर डाला, फिर उस पर सवार हो गया.

आभा रोतीछटपटाती रही, पर उस ने उसे तभी छोड़ा जब अपनी मनमानी कर ली. ऐसा होते ही वह हांफता हुआ आभा पर से उतर गया.

आभा कई पलों तक उसे नफरत से घूरती रही, ‘‘तू ने मुझे बरबाद कर डाला. पर याद रख, मैं इस की सजा दिला कर रहूंगी. तेरी काली करतूतों का भंडाफोड़ पुलिस के सामने करूंगी.’’

‘‘तू मुझे सजा दिलाएगी, पर मैं तुझे इस लायक छोड़ूंगा ही नहीं,’’ कहते हुए उस ने झपट कर आभा की गरदन पकड़ ली और उसे दबाने लगा.

आभा उस के चंगुल से छूटने की भरपूर कोशिश कर रही थी, पर थोड़ी ही देर में उसे यह अहसास हो गया कि वह उस से पार नहीं पा सकती और वह उसे गला घोंट कर मार डालेगा.

ऐसा अहसास करते ही उस ने अपने हाथपैर पटकने बंद कर दिए, अपनी सांसें रोक लीं और शरीर को शांत कर लिया.

जब तथाकथित मैनेजर को इस बात का अहसास हुआ तो उस ने आभा की गरदन छोड़ दी और फटीफटी आंखों से आभा के शरीर को देखने लगा. उसे लगा कि आभा मर चुकी है. ऐसा लगते ही उस के चेहरे से बदहवासी और खौफ टपकने लगा.

तभी दरवाजा खुला और विक्रम कमरे में आया. ऐसे में जैसे ही उस की नजर आभा पर पड़ी, उस के मुंह से घुटीघुटी सी चीख निकल गई. वह कांपती हुई आवाज में बोला, ‘‘यह क्या किया आप ने? इसे तो जान से मार डाला आप ने?’’

‘‘नहीं,’’ वह आदमी डरी हुई आवाज में बोला, ‘‘मैं इसे मारना नहीं चाहता था, पर यह पुलिस में जाने की धमकी देने लगी तो मैं ने इस का गला दबा दिया.’’

‘‘और यह मर गई…’’ विक्रम उसे घूरता हुआ बोला.

‘‘जरा सोचिए, मगर इस बात का पता होटल वालों को लगा तो वह पुलिस बुला लेंगे. पुलिस आप को पकड़ कर ले जाएगी और आप को फांसी की सजा होगी.’’

‘‘नहीं…’’ वह आदमी डरी हुई आवाज में बोला, ‘‘ऐसा कभी नहीं होना चाहिए.’’

‘‘वह तो तभी होगा जब चुपचाप इस लाश को ठिकाने लगा दिया जाए.’’

‘‘तो लगाओ,’’ वह आदमी बोला.

‘‘यह इतना आसान नहीं है,’’ कहते हुए विक्रम की आंखों में लालच की चमक उभरी, ‘‘इस में पुलिस में फंसने का खतरा है और कोई यह खतरा यों ही नहीं लेता.’’

‘‘फिर…?’’

‘‘कीमत लगेगी इस की.’’

‘‘कितनी?’’

‘‘5 लाख?’’

‘‘5 लाख…? यह तो बहुत ज्यादा रकम है.’’

‘‘आप की जान से ज्यादा तो नहीं,’’ विक्रम बोला, ‘‘और अगर आप को कीमत ज्यादा लग रही है तो आप खुद इसे ठिकाने लगा दीजिए, मैं तो चला,’’ कहते हुए विक्रम दरवाजे की ओर बढ़ा.

‘‘अरे नहीं…’’ वह हड़बड़ाते हुए बोला, ‘‘ठीक है, मैं तुम्हें 5 लाख रुपए दूंगा, पर इस मामले में तुम्हारी कोई मदद नहीं करूंगा. तुम्हें सबकुछ अकेले ही करना होगा.’’ड्टविक्रम ने पलभर सोचा, फिर हां में सिर हिलाता हुआ बोला, ‘‘कर लूंगा, पर पैसे…?’’

‘‘काम होते ही पैसे मिल जाएंगे.’’

‘‘पर याद रखिए, अगर धोखा देने की कोशिश की तो मैं सीधे पुलिस के पास चला जाऊंगा.’’

‘‘मैं ऐसा नहीं करूंगा,’’ कहते हुए वह कमरे से निकल गया.

इधर वह कमरे से निकला और उधर उस ने बेसुध पड़ी आभा को देखा. वह उसे ठिकाने लगाने के बारे में सोच ही रहा था कि आभा उठ बैठी.

अपने सामने आभा को खड़ी देख विक्रम की आंखें हैरानी से फटती चली गईं. उस के मुंह से हैरत भरी आवाज फूटी, ‘‘आभा, तुम जिंदा हो?’’

‘‘हां,’’ आभा बोली, ‘‘पर, अब तुम जिंदा नहीं रहोगे. तुम भोलीभाली लड़कियों को नौकरी का झांसा दे कर जिस्म के सौदागरों को सौंपते हो. मैं तुम्हारी यह करतूत लोगों को बतलाऊंगी, तुम्हारी शिकायत पुलिस में करूंगी.’’

आभा का यह रूप देख कर पहले तो विक्रम बौखलाया, फिर उस के सामने गिड़गिड़ाता हुआ बोला, ‘‘ऐसा मत करना.’’

‘‘क्यों न करूं मैं ऐसा, तुम ने मेरी जिंदगी बरबाद कर दी और कहते हो कि मैं ऐसा न करूं.’’

‘‘क्योंकि, तुम्हारे ऐसा न करने से मेरे हाथ एक मोटी रकम लगेगी जिस में से आधी रकम मैं तुम्हें दे दूंगा.’’

‘‘मतलब…?’’

विक्रम ने उसे पूरी बात बताई.

‘‘सच कह रहे हो तुम?’’

‘‘बिलकुल.’’

‘‘अपनी बात से तुम पलट तो नहीं जाओगे?’’

‘‘ऐसे में तुम बेशक पुलिस में मेरी शिकायत कर देना.’’

‘‘अगर तुम ने मुझे धोखा नहीं दिया तो मुझे क्या पागल कुत्ते ने काटा है जो मैं ऐसा करूंगी.’’

तीसरे दिन आभा के हाथ में ढाई लाख की मोटी रकम विक्रम ने ला कर रख दी. उस ने एक चमकती नजर इन नोटों पर डाली, फिर विक्रम की आंखों में झांकते हुए बोली, ‘‘अगर दोबारा कोई ऐसा ही मोटा मुरगा फंसे तो मुझ से कहना. मैं फिर से यह सब करने को तैयार हो जाऊंगी,’’ कहते हुए आभा मुसकराई.

‘‘जरूर,’’ कहते हुए विक्रम के होंठों पर भी एक दिलफरेब मुसकान खिल उठी.

Famous Hindi Stories : मझधार – हमेशा क्यों चुपचाप रहती थी नेहा ?

Famous Hindi Stories :  पूरे 15 वर्ष हो गए मुझे स्कूल में नौकरी करते हुए. इन वर्षों में कितने ही बच्चे होस्टल आए और गए, किंतु नेहा उन सब में कुछ अलग ही थी. बड़ी ही शांत, अपनेआप में रहने वाली. न किसी से बोलती न ही कक्षा में शैतानी करती. जब सारे बच्चे टीचर की गैरमौजूदगी में इधरउधर कूदतेफांदते होते, वह अकेले बैठे कोई किताब पढ़ती होती या सादे कागज पर कोई चित्रकारी करती होती. विद्यालय में होने वाले सारे कार्यक्रमों में अव्वल रहती. बहुमखी प्रतिभा की धनी थी वह. फिर भी एक अलग सी खामोशी नजर आती थी मुझे उस के चेहरे पर. किंतु कभीकभी वह खामोशी उदासी का रूप ले लेती. मैं उस पर कई दिनों से ध्यान दे रही थी. जब स्पोर्ट्स का पीरियड होता, वह किसी कोने में बैठ गुमनाम सी कुछ सोचती रहती.

कभीकभी वह कक्षा में पढ़ते हुए बोर्ड को ताकती रहती और उस की सुंदर सीप सी आंखें आंसुओं से चमक उठतीं. मेरे से रहा न गया, सो मैं ने एक दिन उस से पूछ ही लिया, ‘‘नेहा, तुम बहुत अच्छी लड़की हो. विद्यालय के कार्यक्रमों में हर क्षेत्र में अव्वल आती हो. फिर तुम उदास, गुमसुम क्यों रहती हो? अपने दोस्तों के साथ खेलती भी नहीं. क्या तुम्हें होस्टल या स्कूल में कोई परेशानी है?’’

वह बोली, ‘‘जी नहीं मैडम, ऐसी कोई बात नहीं. बस, मुझे अच्छा नहीं लगता. ’’

उस के इस जवाब ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया जहां बच्चे खेलते नहीं थकते, उन्हें बारबार अनुशासित करना पड़ता है, उन्हें उन की जिम्मेदारियां समझानी पड़ती हैं वहां इस लड़की के बचपन में यह सब क्यों नहीं? मुझे लगा, कुछ तो ऐसा है जो इसे अंदर ही अंदर काट रहा है. सो, मैं ने उस का पहले से ज्यादा ध्यान रखना शुरू कर दिया. मैं देखती थी कि जब सारे बच्चों के मातापिता महीने में एक बार अपने बच्चों से मिलने आते तो उस से मिलने कोई नहीं आता था. तब वह दूर से सब के मातापिता को अपने बच्चों को पुचकारते देखती और उस की आंखों में पानी आ जाता. वह दौड़ कर अपने होस्टल के कमरे में जाती और एक तसवीर निकाल कर देखती, फिर वापस रख देती.

जब बच्चों के जन्मदिन होते तो उन के मातापिता उन के लिए व उन के दोस्तों के लिए चौकलेट व उपहार ले कर आते लेकिन उस के जन्मदिन पर किसी का कोई फोन भी न आता. हद तो तब हो गई जब गरमी की छुट्टियां हुईं. सब के मातापिता अपने बच्चों को लेने आए लेकिन उसे कोई लेने नहीं आया. मुझे लगा, कोई मांबाप इतने गैर जिम्मेदार कैसे हो सकते हैं? तब मैं ने औफिस से उस का फोन नंबर ले कर उस के घर फोन किया और पूछा कि आप इसे लेने आएंगे या मैं ले जाऊं?

जवाब बहुत ही हैरान करने वाला था. उस की दादी ने कहा, ‘‘आप अपने साथ ले जा सकती हैं.’’ मैं समझ गई थी कोई बड़ी गड़बड़ जरूर है वरना इतनी प्यारी बच्ची के साथ ऐसा व्यवहार? खैर, उन छुट्टियों में मैं उसे अपने साथ ले गई. कुछ दिन तो वह चुपचाप रही, फिर धीरेधीरे मेरे साथ घुलनेमिलने लगी थी. मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मैं किसी बड़ी जंग को जीतने वाली हूं. छुट्टियों के बाद जब स्कूल खुले वह 8वीं कक्षा में आ गई थी. उस की शारीरिक बनावट में भी परिवर्तन होने लगा था. मैं भलीभांति समझती थी कि उसे बहुत प्यार की जरूरत है. सो, अब तो मैं ने बीड़ा उठा लिया था उस की उदासी को दूर करने का. कभीकभी मैं देखती थी कि स्कूल के कुछ शैतान बच्चे उसे ‘रोतली’ कह कर चिढ़ाते थे. खैर, उन्हें तो मैं ने बड़ी सख्ती से कह दिया था कि यदि अगली बार वे नेहा को चिढ़ाते पाए गए तो उन्हें सजा मिलेगी.

हां, उस की कुछ बच्चों से अच्छी पटती थी. वे उसे अपने घरों से लौटने के बाद अपने मातापिता के संग बिताए पलों के बारे में बता रहे थे तो उस ने भी अपनी इस बार की छुट्टियां मेरे साथ कैसे बिताईं, सब को बड़ी खुशीखुशी बताया. मुझे ऐसा लगा जैसे मैं अपनी मंजिल का आधा रास्ता तय कर चुकी हूं. इस बार दीवाली की छुट्टियां थीं और मैं चाहती थी कि वह मेरे साथ दीवाली मनाए. सो, मैं ने पहले ही उस के घर फोन कर कहा कि क्या मैं नेहा को अपने साथ ले जाऊं छुट्टियों में? मैं जानती थी कि जवाब ‘हां’ ही मिलेगा और वही हुआ. दीवाली पर मैं ने उसे नई ड्रैस दिलवाई और पटाखों की दुकान पर ले गई. उस ने पटाखे खरीदने से इनकार कर दिया. वह कहने लगी, उसे शोर पसंद नहीं. मैं ने भी जिद करना उचित न समझा और कुछ फुलझडि़यों के पैकेट उस के लिए खरीद लिए. दीवाली की रात जब दिए जले, वह बहुत खुश थी और जैसे ही मैं ने एक फुलझड़ी सुलगा कर उसे थमाने की कोशिश की, वह नहींनहीं कह रोने लगी और साथ ही, उस के मुंह से ‘मम्मी’ शब्द निकल गया. मैं यही चाहती थी और मैं ने मौका देख उसे गले लगा लिया और कहा, ‘मैं हूं तुम्हारी मम्मी. मुझे बताओ तुम्हें क्या परेशानी है?’ आज वह मेरी छाती से चिपक कर रो रही थी और सबकुछ अपनेआप ही बताने लगी थी.

वह कहने लगी, ‘‘मेरे मां व पिताजी की अरेंज्ड मैरिज थी. मेरे पिताजी अपने मातापिता की इकलौती संतान हैं, इसीलिए शायद थोड़े बदमिजाज भी. मेरी मां की शादी के 1 वर्ष बाद ही मेरा जन्म हुआ. मां व पिताजी के छोटेछोटे झगड़े चलते रहते थे. तब मैं कुछ समझती नहीं थी. झगड़े बढ़ते गए और मैं 5 वर्ष की हो गई. दिनप्रतिदिन पिताजी का मां के साथ बरताव बुरा होता जा रहा था. लेकिन मां भी क्या करतीं? उन्हें तो सब सहन करना था मेरे कारण, वरना मां शायद पिताजी को छोड़ भी देतीं.

‘‘पिताजी अच्छी तरह जानते थे कि मां उन को छोड़ कर कहीं नहीं जाएगी. पिताजी को सिगरेट पीने की बुरी आदत थी. कई बार वे गुस्से में मां को जलती सिगरेट से जला भी देते थे. और वे बेचारी अपनी कमर पर लगे सिगरेट के निशान साड़ी से छिपाने की कोशिश करती रहतीं. पिताजी की मां के प्रति बेरुखी बढ़ती जा रही थी और अब वे दूसरी लड़कियों को भी घर में लाने लगे थे. वे लड़कियां पिताजी के साथ उन के कमरे में होतीं और मैं व मां दूसरे कमरे में. ‘‘ये सब देख कर भी दादी पिताजी को कुछ न कहतीं. एक दिन मां ने पिताजी के अत्याचारों से तंग आ कर घर छोड़ने का फैसला कर लिया और मुझे ले कर अपने मायके आ गईं. वहां उन्होंने एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी भी कर ली. मेरे नानानानी पर तो मानो मुसीबत के पहाड़ टूट पड़े. मेरे मामा भी हैं किंतु वे मां से छोटे हैं. सो, चाह कर भी कोई मदद नहीं कर पाए. जो नानानानी कहते वे वही करते. कई महीने बीत गए. अब नानानानी को लगने लगा कि बेटी मायके आ कर बैठ गई है, इसे समझाबुझा कर भेज देना चाहिए. वे मां को समझाते कि पिताजी के पास वापस चली जाएं.

‘‘एक तरह से उन का कहना भी  सही था कि जब तक वे हैं ठीक है. उन के न रहने पर मुझे और मां को कौन संभालेगा? किंतु मां कहतीं, ‘मैं मर जाऊंगी लेकिन उस के पास वापस नहीं जाऊंगी.’

‘‘दादादादी के समझाने पर एक बार पिताजी मुझे व मां को लेने आए और तब मेरे नानानानी ने मुझे व मां को इस शर्त पर भेज दिया कि पिताजी अब मां को और नहीं सताएंगे. हम फिर से पिताजी के पास उन के घर आ गए. कुछ दिन पिताजी ठीक रहे. किंतु पिताजी ने फिर अपने पहले वाले रंगढंग दिखाने शुरू कर दिए. अब मैं धीरेधीरे सबकुछ समझने लगी थी. लेकिन पिताजी के व्यवहार में कोई फर्क नहीं आया. वे उसी तरह मां से झगड़ा करते और उन्हें परेशान करते. इस बार जब मां ने नानानानी को सारी बातें बताईं तो उन्होंने थोड़ा दिमाग से काम लिया और मां से कहा कि मुझे पिताजी के पास छोड़ कर मायके आ जाएं. ‘‘मां ने नानानानी की बात मानी और मुझे पिताजी के घर में छोड़ नानानानी के पास चली गईं. उन्हें लगा शायद मुझे बिन मां के देख पिताजी व दादादादी का मन कुछ बदल जाएगा. किंतु ऐसा न हुआ. उन्होंने कभी मां को याद भी न किया और मुझे होस्टल में डाल दिया. नानानानी को फिर लगने लगा कि उन के बाद मां को कौन संभालेगा और उन्होंने पिताजी व मां का तलाक करवा दिया और मां की दूसरी शादी कर दी गई. मां के नए पति के पहले से 2 बच्चे थे और एक बूढ़ी मां. सो, मां उन में व्यस्त हो गईं.

‘‘इधर, मुझे होस्टल में डाल दादादादी व पिताजी आजाद हो गए. छुट्टियों में भी न मुझे कोई बुलाता, न ही मिलने आते. मां व पिताजी दोनों के मातापिता ने सिर्फ अपने बच्चों के बारे में सोचा, मेरे बारे में किसी ने नहीं. दोनों परिवारों और मेरे अपने मातापिता ने मुझे मझधार में छोड़ दिया.’’ इतना कह कर नेहा फूटफूट कर रोने लगी और कहने लगी, ‘‘आज फुलझड़ी से जल न जाऊं. मुझे मां की सिगरेट से जली कमर याद आ गई. मैडम, मैं रोज अपनी मां को याद करती हूं, चाहती हूं कि वे मेरे सपने में आएं और मुझे प्यार करें.

‘‘क्या मेरी मां भी मुझे कभी याद करती होंगी? क्यों वे मुझे मेरी दादी, दादा, पापा के पास छोड़ गईं? वे तो जानती थीं कि उन के सिवा कोई नहीं था मेरा इस दुनिया में. दादादादी, क्या उन से मेरा कोई रिश्ता नहीं? वे लोग मुझे क्यों नहीं प्यार करते? अगर मेरे पापा, मम्मी का झगड़ा होता था तो उस में मेरा क्या कुसूर? और नाना, नानी उन्होंने भी मुझे अपने पास नहीं रखा. बल्कि मेरी मां की दूसरी शादी करवा दी. और मुझ से मेरी मां छीन ली. मैं उन सब से नफरत करती हूं मैडम. मुझे कोई अच्छा नहीं लगता. कोई मुझ से प्यार नहीं करता.’’ वह कहे जा रही थी और मैं सुने जा रही थी. मैं नेहा की पूरी बात सुन कर सोचती रह गई, ‘क्या बच्चे से रिश्ता तब तक होता है जब तक उस के मातापिता उसे पालने में सक्षम हों? जो दादादादी, नानानानी अपने बच्चों से ज्यादा अपने नातीपोतों पर प्यार उड़ेला करते थे, क्या आज वे सिर्फ एक ढकोसला हैं? उन का उस बच्चे से रिश्ता सिर्फ अपने बच्चों से जुड़ा है? यदि किसी कारणवश वह बीच की कड़ी टूट जाए तो क्या उन दादादादी, नानानानी की बच्चे के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं? और क्या मातापिता अपने गैरजिम्मेदार बच्चों का विवाह कर एक पवित्र बंधन को बोझ में बदल देते हैं? क्या नेहा की दादी अपने बेटे पर नियंत्रण नहीं रख सकती थी और यदि नहीं तो उस ने नेहा की मां की जिंदगी क्यों बरबाद की, और क्यों नेहा की मां अपने मातापिता की बातों में आ गई और नेहा के भविष्य के बारे में न सोचते हुए दूसरे विवाह को राजी हो गई?

‘कैसे गैरजिम्मेदार होते हैं वे मातापिता जो अपने बच्चों को इस तरह अकेला घुटघुट कर जीने के लिए छोड़ देते हैं. यदि उन की आपस में नहीं बनती तो उस का खमियाजा बच्चे क्यों भुगतें. क्या हक होता है उन्हें बच्चे पैदा करने का जो उन की परवरिश नहीं कर सकते.’ मैं चाहती थी आज नेहा वह सब कह डाले जो उस के मन में नासूर बन उसे अंदर ही अंदर खाए जा रहा है. जब वह सब कह चुप हुई तो मैं ने उसे मुसकरा कर देखा और पूछा, ‘‘मैं तुम्हें कैसी लगती हूं? क्या तुम समझती हो मैं तुम्हें प्यार करती हूं?’’ उस ने अपनी गरदन हिलाते हुए कहा, ‘‘हां.’’ और मैं ने पूछ लिया, ‘‘क्या तुम मुझे अपनी मां बनाओगी?’’ वह समझ न सकी मैं क्या कह रही हूं. मैं ने पूछा, ‘‘क्या तुम हमेशा के लिए मेरे साथ रहोगी?’’

जवाब में वह मुसकरा रही थी. और मैं ने झट से उस के दादादादी को बुलवा भेजा. जब वे आए, मैं ने कहा, ‘‘देखिए, आप की तो उम्र हो चुकी है और मैं इसे सदा के लिए अपने पास रखना चाहती हूं. क्यों नहीं आप इसे मुझे गोद दे देते?’’

दादादादी ने कहा, ‘‘जैसा आप उचित समझें.’’ फिर क्या था, मैं ने झट से कागजी कार्यवाही पूरी की और नेहा को सदा के लिए अपने पास रख लिया. मैं नहीं चाहती थी कि मझधार में हिचकोले खाती वह मासूम जिंदगी किसी तेज रेले के साथ बह जाए.

Hindi Stories Online : नेवी ब्लू सूट – दोस्ती की अनमोल कहानी

Hindi Stories Online :  मैं हैदराबाद बैंक ट्रेनिंग सैंटर आई थी. आज ट्रेनिंग का आखिरी दिन है. कल मुझे लौट कर पटना जाना है, लेकिन मेरा बचपन का प्यारा मित्र आदर्श भी यहीं पर है. उस से मिले बिना मेरा जाना संभव नहीं है, बल्कि वह तो मित्र से भी बढ़ कर था. यह अलग बात है कि हम दोनों में से किसी ने भी मित्रता से आगे बढ़ने की पहल नहीं की. मुझे अपने बचपन के दिन याद आने लगे थे.

उन दिनों मैं दक्षिणी पटना की कंकरबाग कालोनी में रहती थी. यह एक विशाल कालोनी है. पिताजी ने काफी पहले ही एक एमआईजी फ्लैट बुक कर रखा था. मेरे पिताजी राज्य सरकार में अधिकारी थे. यह कालोनी अभी विकसित हो रही थी. यहां से थोड़ी ही दूरी पर चिरैयाटांड महल्ला था. उस समय उत्तरी और दक्षिणी पटना को जोड़ने वाला एकमात्र पुल चिरैयाटांड में था. वहीं एक तंग गली में एक छोटे से घर में आदर्श रहता था. वहीं पास के ही सैंट्रल स्कूल में हम दोनों पढ़ते थे.

आदर्श बहुत सुशील था. वह देखने में भी स्मार्ट व पढ़ाई में अव्वल तो नहीं, पर पहले 5 विद्यार्थियों में था. फुटबौल टीम का कप्तान आदर्श क्रिकेट भी अच्छा खेलता था. इसलिए वह स्कूल के टीचर्स और स्टूडैंट्स दोनों में लोकप्रिय था. वह स्कूल के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी भाग लेता था. मैं भी उन कार्यक्रमों में भाग लेती थी. इस के अलावा मैं अच्छा गा भी लेती थी. हम दोनों एक ही बस से स्कूल जाते थे.

आदर्श मुझे बहुत अच्छा लगता था. 10वीं कक्षा तक पहुंचतेपहुंचते हम दोनों अच्छे दोस्त बन चुके थे. स्कूल बस में कभीकभी कोई मनचला सीनियर मेरी चोटी को खींच कर चुपचाप निकल जाता था. इस बारे में एक बार मैं ने आदर्श से शिकायत भी की थी कि न जाने इन लड़कों को मेरे बालों से खिलवाड़ करने में क्या मजा आता है.

इस पर आदर्श ने कहा, ‘‘तुम इन्हें बौबकट करा लो… सच कहता हूं आरती, तुम फिर और भी सुंदर और क्यूट लगोगी.’’ मैं बस झेंप कर रह गई थी. कुछ दिन बाद मैं ने मां से कहा कि अब इतने लंबे बाल मुझ से संभाले नहीं जाते. इन पर मेरा समय बरबाद होता है, मैं इन्हें छोटा करा लेती हूं. मां ने इस पर कोई एतराज नहीं जताया था. कुछ ही दिन के अंदर मैं ने अपने बाल छोटे करा लिए थे. आदर्श ने इशारोंइशारों में मेरी प्रशंसा भी की थी. एक बार मैं ने भी उसे कहा था कि स्कूल का नेवीब्लू ब्लैजर उस पर बहुत फबता है. कुछ ही दिन बाद वह मेरे जन्मदिन पर वही नेवीब्लू सूट पहन कर मेरे घर आया था तो मैं ने भी इशारोंइशारों में उस की तारीफ की थी. बाद में आदर्श ने बताया कि यह सूट उसे उस के बड़े चाचा के लड़के की शादी में मिला था वरना उस की हैसियत इतनी नहीं है. शायद यहीं से हम दोनों की दोस्ती मूक प्यार में बदलने लगी थी.

लेकिन तभी आदर्श के साथ एक घटना घटी. आदर्श की 2 बड़ी बहनें भी थीं. उस के पिता एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे. अचानक हार्ट फेल होने से उन का देहांत हो गया. उस के पिता के औफिस से जो रकम मिली, वही अब उस परिवार का सहारा थी. उन्होंने अपने हिस्से की गांव की जमीन बेच कर पटना में छोटा सा प्लाट खरीदा था. अभी बस रहने भर के लिए 2 कमरे ही बनवाए थे. उन का कहना था बाकी मकान बेटियों की शादी के बाद बनेगा या फिर आदर्श बड़ा हो कर इसे आगे बनाएगा. हम दोनों के परिवार के बीच तो आनाजाना नहीं था, पर मैं स्कूल के अन्य लड़कों के साथ यह दुखद समाचार सुन कर गई थी. हम लोग 10वीं बोर्ड की परीक्षा दे चुके थे. आदर्श ने कहा था कि वह मैडिकल पढ़ना चाहता है पर ऐसा संभव नहीं दिखता, क्योंकि इस में खर्च ज्यादा होगा, जो उस के पिता के लिए लगभग असंभव है. एक बार जब हम 12वीं की बोर्ड की परीक्षा दे चुके थे तो मैं ने अपनी बर्थडे पार्टी पर आदर्श को अपने घर बुलाया था. वह अब और स्मार्ट लग रहा था. मैं ने आगे बढ़ कर उस को रिसीव किया और कहा, ‘‘तुम ब्लूसूट पहन कर क्यों नहीं आए? तुम पर वह सूट बहुत फबता है.’’आदर्श बोला, ‘‘वह सूट अब छोटा पड़ गया है. जब सैटल हो जाऊंगा तो सब से पहले 2 जोड़ी ब्लूसूट बनवा लूंगा. ठीक रहेगा न?’’

हम दोनों एकसाथ हंस पड़े. फिर मैं आदर्श का हाथ पकड़ कर उसे टेबल के पास ले कर आई, जहां केक काटना था. मैं ने ही उसे अपने साथ मिल कर केक काटने को कहा. वह बहुत संकोच कर रहा था. फिर मैं ने केक का एक बड़ा टुकड़ा उस के मुंह में ठूंस दिया.केक की क्रीम और चौकलेट उस के मुंह के आसपास फैल गई, जिन्हें मैं ने खुद ही पेपर नैपकिन से साफ किया. बाद में मैं ने महसूस किया कि मेरी इस हरकत पर लोगों की प्रतिक्रिया कुछ अच्छी नहीं थी, खासकर खुद मेरी मां की. उन्होंने मुझे अलग  बुला कर थोड़ा डांटने के लहजे में कहा, ‘‘आरती, यह आदर्श कौन सा वीआईपी है जो तुम इसे इतना महत्त्व दे रही हो?’’मैं ने मां से कहा, ‘‘मा, वह मेरा सब से करीबी दोस्त है. बहुत अच्छा लड़का है, सब उसे पसंद करते हैं.’’

मा ने झट से पूछा, ‘‘और तू?’’

मैं ने भी कहा, ‘‘हां, मैं भी उसे पसंद करती हूं.’’

फिर चलतेचलते मां ने कहा, ‘‘दोस्ती और रिश्तेदारी बराबरी में ही अच्छी लगती है. तुम दोनों में फासला ज्यादा है. इस बात का खयाल रखना.’’

मैं ने भी मां से साफ लफ्जों में कह दिया था कि कृपया आदर्श के बारे में मुझ से ऐसी बात न करें.मैं ने महसूस किया कि आदर्श हमारी तरफ ही देखे जा रहा था, पर ठीक से कह नहीं सकती कि मां की बात उस ने भी सुनी हो, पर उस की बौडी लैंग्वेज से लगा कि वह कुछ ज्यादा ही सीरियस था.  बहरहाल, आदर्श मैथ्स में एमए करने लगा था. मैं ने बीए कर बैंक की नौकरी के लिए कोचिंग ली थी. दूसरे प्रयास में मुझे सफलता मिली और मुझे बैंक में जौब मिल गई. बैंक की तरफ से ही मुझे हैदराबाद टे्रनिंग के लिए भेजा गया. मैं आदर्श से ईमेल और फोन से संपर्क में थी. कभीकभी वह भी मुझे फोन कर लेता था. एक बार मैं ने उसे मेल भी किया था यह जानने के लिए कि क्या हम मात्र दोस्त ही रहेंगे या इस के आगे भी कुछ सोच सकते हैं. आदर्श ने लिखा था कि जब तक मेरी बड़ी बहनों की शादी नहीं हो जाती तब तक मैं चाह कर भी आगे की कुछ सोच नहीं सकता. मुझे उस का कहना ठीक लगा. आखिर अपनी दोनों बड़ी बहनों की शादी की जिम्मेदारी उसी पर थी, पर इधर मुझ पर भी मातापिता का दबाव था कि मेरी शादी हो जाए ताकि बाकी दोनों बहनों की शादी की बात आगे बढ़े. हम दोनों ही मजबूर थे और एकदूसरे की मजबूरी समझ रहे थे. आदर्श हैदराबाद की एक प्राइवेट कंपनी में अकाउंटैंट की पोस्ट पर कार्यरत था. उस की बड़ी बहन की शादी हो चुकी थी. अपनी मां और दूसरी बहन के साथ वह भी हैदराबाद में ही था.

मैं ने उसे फोन किया और ईमेल भी किया था कि आज शाम की फ्लाइट से मैं पटना लौट रही हूं. उस ने जवाब में बस ओके भर लिखा था. वह सिकंदराबाद में कहीं रहता था. उस के घर का पता मुझे मालूम तो था, पर नए शहर में वहां तक जाना कठिन लग रहा था और थोड़ा संकोच भी हो रहा था. मेरी फ्लाइट हैदराबाद के बेगमपेट एयरपोर्ट से थी, मैं एयरपोर्ट पर बेसब्री से आदर्श का इंतजार कर रही थी. बेगमपेट एयरपोर्ट से सिकंदराबाद ज्यादा दूर नहीं था, महज 5 किलोमीटर की दूरी होगी. मैं सोच रही थी कि वह जल्दी ही आ जाएगा, पर जैसेजैसे समय बीत रहा था, मेरी बेसब्री बढ़ रही थी. चैक इन बंद होने तक वह नहीं दिखा तो मैं ने अपना टिकट कैंसिल करा लिया. मैं आदर्श के घर जाने के लिए टैक्सी से निकल पड़ी थी. जब मैं वहां पहुंची तो उस की बहन ने आश्चर्य से कहा, ‘‘आरती, तुम यहां. भाई तो तुम से मिलने एयरपोर्ट गया है. अभी तक तो लौटा नहीं है. शुरू में आदर्श संकोच कर रहा था कि जाऊं कि नहीं पर मां ने उसे कहा कि उसे तुम से मिलना चाहिए, तभी वह जाने को तैयार हुआ. इसी असमंजस में घर से निकलने में उस ने देर कर दी.’’

मैं आदर्श के घर सभी के लिए गिफ्ट ले कर गई थी. मां और बहन को तो गिफ्ट मैं ने अपने हाथों से दिया. थोड़ी देर बाद मैं एक गिफ्ट पैकेट आदर्श के लिए छोड़ कर लौट गई. इसी बीच, आदर्श की बहन का फोन आया और उस ने कहा, ‘‘भाई को ट्रैफिक जैम और उस का स्कूटर पंक्चर होने के कारण एयरपोर्ट पहुंचने में देर हो गई और भाई ने सोचा कि तुम्हारी तो फ्लाइट जा चुकी होगी. मैं उसे तुम्हारी फ्लाइट के बारे में बता चुकी हूं.’’ आदर्श की बहन ने फोन कर उसे कहा, ‘‘भाई, तुम्हारे लिए आरती ने अपनी फ्लाइट कैंसिल कर दी. वह तुम से मिलने घर आई थी, पर थोड़ी देर पहले चली भी गई है. अभी वह रास्ते में होगी, बात कर लो.’’ लेकिन आदर्श ने फोन नहीं किया और न मैं ने किया. आदर्श ने जब घर पहुंच कर पैकेट खोला तो देखा कि उस में एक नेवीब्लू सूट और मेरी शादी का निमंत्रण कार्ड था. साथ में मेरा एक छोटा सा पत्र जिस में लिखा था, ‘बहुत इंतजार किया. मुझे अब शादी करनी ही होगी, क्योंकि मेरी शादी के बाद ही बाकी दोनों बहनों की शादी का रास्ता साफ होगा. एक नेवीब्लू सूट छोड़ कर जा रही हूं. मेरी शादी में इसे पहन कर जरूर आना, यह मेरी इच्छा है.’

एयरपोर्ट से मैं ने उसे फोन किया, ‘‘तुम से मिलने का बहुत जी कर रहा था आदर्श, खैर, इस बार तो नहीं मिल सकी. उम्मीद है शादी में जरूर आओगे. मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.’’ थोड़ी देर खामोश रहने के बाद आदर्श इतना ही कह पाया था, ‘‘हां… हां, आऊंगा.’’

Interesting Hindi Stories : नहीं बचे आंसू

Interesting Hindi Stories : सुधा का पति राम सजीवन दूरसंचार महकमे में लाइनमैन था. एक दिन काम के दौरान वह खंभे से गिर गया. उसे गहरी चोट लगी. अस्पताल ले जाते समय रास्ते में उस ने दम तोड़ दिया.

सुधा की जिंदगी में अंधेरा छा गया. वह कम पढ़ीलिखी देहाती औरत थी. उस के 2 मासूम बच्चे थे. बड़ा बेटा पहली क्लास में पढ़ता था और छोटा 2 साल का था.

पति का क्रियाकर्म हो गया, तो सुधा ससुराल से मायके चली आई. वहां उस के बड़े भाई सुखनंदन ने कहा, ‘‘बहन, जो होना था, वह तो हो ही गया. गम भुलाओ और आगे की सोचो. बताओ कि नौकरी करोगी? बहनोई की जगह तुम्हें नौकरी मिल जाएगी. एक नेता मेरे जानने वाले हैं. उन से कहूंगा तो वे जल्दी ही तुम्हें नौकरी पर रखवा देंगे.’’

‘‘कुछ तो करना ही होगा भैया, वरना इन बच्चों का क्या होगा? लेकिन, मैं 8वीं जमात तक ही तो पढ़ी हूं. क्या मुझे नौकरी मिल जाएगी?’’ सुधा ने पूछा.

‘‘चपरासी की नौकरी तो मिल ही जाएगी. मैं आज ही नेता से मिलता हूं,’’ सुखनंदन बोला.

सुखनंदन की दौड़धूप काम आई और सुधा को जल्दी ही नौकरी मिल गई.

‘‘बहन, तुम बच्चों को ले कर शहर में रहो. मैं वहां आताजाता रहूंगा. कोई चिंता की बात नहीं है. तुम्हारी तरह बहुत सी औरतें हैं दुनिया में, जो हिम्मत से काम ले कर अपनी और बच्चों की जिंदगी संवार रही हैं,’’ सुखनंदन ने बहन का हौसला बढ़ाया.

सुधा शहर आ गई और किराए के मकान में रह कर चपरासी की नौकरी करने लगी. उस ने पास के स्कूल में बड़े बेटे का दाखिला करा दिया.

सुखनंदन सुधा का पूरा खयाल रखता था. वह बीचबीच में गांव से राशन वगैरह ले कर आया करता था. फोन पर तो रोज ही बात कर लिया करता था.

सुधा खूबसूरत और जवान थी. महकमे के कई अफसर और बाबू उसे देख कर लार टपकाते रहते थे. उस से नजदीकी बनाने के लिए भी कोई उस के प्रति हमदर्दी जताता, तो कोई रुपएपैसे का लालच देता.

सुधा का मकान मालिक भी रसिया किस्म का था. वह नशेड़ी भी था. सुधा पर उस की नीयत खराब थी. कभीकभी शराब के नशे में वह आधी रात में उस का दरवाजा खटखटाया करता था. आतेजाते कई मनचले भी सुधा को छेड़ा करते थे.

किसी तरह दिन कटते रहे और सुधा खुद को बचाती रही. उस के साथ राजू नाम का एक चपरासी काम करता था. वह उस का दीवाना था, लेकिन दिल की बात जबान पर नहीं ला पा रहा था.

राजू बदमाश किस्म का आदमी था और शराब का नशा भी करता था. वह अकसर लोगों के साथ मारपीट किया करता था, लेकिन सुधा से बेहद अच्छी बातें किया करता था.

राजू उसे भरोसा दिलाता था, ‘‘मेरे रहते चिंता बिलकुल मत करना. कोई आंख उठा कर देखे तो बताना… मैं उस की आंख निकाल लूंगा.’’

सुधा को राजू अकसर घर भी छोड़ दिया करता था. कुछ दिनों बाद राजू सुधा को घुमानेफिराने भी लगा. सुधा को भी उस का साथ भाने लगा. वह राजू से खुल कर हंसनेबोलने लगी.

जल्दी ही दोनों के बीच प्यार हो गया. अब तो राजू उस के घर आ कर उठनेबैठने लगा. सुधा के बच्चे उसे ‘अंकल’ कहने लगे. वह बच्चों के लिए खानेपीने की चीजें भी लाया करता था. सुधा के पड़ोस में एक और किराएदार रहता था. राजू ने उस से दोस्ती कर ली.

एक दिन वह किराएदार अपने गांव जाने लगा, तो राजू ने उस से मकान की चाबी मांग ली. दिन में उस ने सुधा से कहा, ‘‘आज रात मैं तुम्हारे साथ गुजारूंगा.’’

‘‘लेकिन, कैसे? बच्चे भी तो हैं,’’ सुधा ने समस्या रखी.

‘‘उस की चिंता तुम बिलकुल न करो…’’ यह कह कर उस ने जेब से चाबी निकाली और कहा, ‘‘यह देखो, मैं ने सुबह ही इंतजाम कर लिया है. आज तुम्हारा पड़ोसी गांव चला गया है. रात को मैं आऊंगा और उसी के कमरे में…’’

सुधा मुसकराई और फिर शरमा कर उस ने सिर झुका लिया. उस की भी इच्छा हो रही थी और वह राजू की बांहों में समा जाना चाहती थी.

राजू देर रात शराब के नशे में आया. उस ने सुधा के पड़ोसी के मकान का दरवाजा खोला. आहट मिली तो सुधा जाग गई. उस के दोनों बेटे सो रहे थे. उस ने आहिस्ता से अपना दरवाजा बंद किया और पड़ोसी के कमरे में चली गई.

राजू ने फौरन दरवाजा बंद कर लिया. उस के बाद जो होना था, वह देर रात तक होता रहा. लंबे अरसे बाद उस रात सुधा को जिस्मानी सुख मिला था. वह राजू की बांहों में खो गई थी. तड़के राजू चला गया और सुधा अपने कमरे में आ गई.

सुधा और पड़ोसी के मकान के बीच जो दीवार थी, उस में दरवाजा लगा था. पहले जो किराएदार रहता था, उस ने दोनों कमरे ले रखे थे. वह जब मकान छोड़ कर गया, तो मालिक ने दोनों कमरों के बीच का दरवाजा बंद कर दिया और ज्यादा किराए के लालच में 2 किराएदार रख लिए. अब उसे एक हजार की जगह 2 हजार रुपए मिलने लगे.

उस रात के बाद राजू अकसर सुधा के घर देर रात आने लगा. कई बार सुधा का भाई सुबहसुबह ही आ जाता और राजू अंदर. ऐसी हालत में बीच का दरवाजा काम आता था. राजू उस दरवाजे से पड़ोसी के मकान में दाखिल हो जाता था.

सुधा के भाई को कभी शक ही नहीं हुआ कि बहन क्या गुल खिला रही है. वह तो उसे सीधीसादी, गांव की भोलीभाली औरत मानता था.

राजू का अपना भी परिवार था. बीवी थी, 4 बच्चे थे. परिवार के साथ वह किसी झुग्गी बस्ती में रहता था. बीवी उस से बेहद परेशान थी, क्योंकि वह पगार का काफी हिस्सा शराबखोरी में उड़ा दिया करता था.

बीवी मना करती, तो राजू उस के साथ मारपीट भी करता था. पैसों के बिना न तो ठीक से घर चल रहा था और न ही बच्चे पढ़लिख पा रहे थे.

पहले तो राजू कुछ रुपए घर में दे दिया करता था, लेकिन जब से उस की सुधा से नजदीकी बढ़ी, तब से पूरी तनख्वाह ला कर उसे ही थमा दिया करता था.

सुधा उस के पैसों से अपना शहर का खर्च चलाती और अपनी तनख्वाह बैंक में जमा कर देती. वह काफी चालाक हो गई थी. राजू डालडाल तो सुधा पातपात थी.

उधर राजू की बीवी घर चलाने के लिए कई बड़े लोगों के घरों में नौकरानी का काम करने लगी थी. वह खून के आंसू रो रही थी. लेकिन उस ने कोई गलत रास्ता नहीं चुना, मेहनत कर के किसी तरह बच्चों को पालती रही.

कुछ साल बाद रकम जुड़ गई, तो सुधा ने ससुराल में अपना मकान बनवा लिया. ससुराल वालों ने हालांकि उस का विरोध किया कि वह गांव में न रहे, वे उस का हिस्सा हड़प कर जाना चाहते थे, लेकिन पैसा मुट्ठी में होने से सुधा में ताकत आ गई थी. उस ने जेठ को धमकाया, तो वह डर गया. सुधा का बढि़या मकान बन गया.

‘‘भैया, तुम मेरा पास के टैलीफोन के दफ्तर में ट्रांसफर करा दो नेता से कह कर. इस से मैं घर और खेतीबारी भी देख सकूंगी,’’ एक दिन सुधा ने भाई से कहा.

‘‘मैं कोशिश करता हूं,’’  सुखनंदन ने उसे भरोसा दिलाया.

कुछ महीने बाद सुधा का तबादला उस के गांव के पास के कसबे में हो गया. यह जानकारी जब राजू को हुई, तो वह बेहद गुस्सा हुआ और बोला, ‘‘मेरे साथ इतनी बड़ी गद्दारी? तुम्हारे चलते मैं ने अपने बालबच्चे छोड़ दिए और तुम मुझे छोड़ कर चली जाओगी? ऐसा कतईर् नहीं होगा. या तो मैं तुम्हें मार डालूंगा या खुद ही जान दे दूंगा. तुम्हारी जुदाई मैं बरदाश्त नहीं कर पाऊंगा.’’

‘‘राजू, तुम मरो या जीओ, इस से मेरा कोई मतलब नहीं. यह मेरी मजबूरी थी कि मैं ने तुम से संबंध बनाया. तमाम लोगों से बचने के लिए मैं ने तुम्हारा हाथ पकड़ा. अब मेरा सारा काम बन चुका है. मुझे हाथ उठाने के बारे में सोचना भी नहीं, वरना जेल की हवा खाओगे. आज के बाद मुझ से मिलना भी नहीं,’’ सुधा ने धमकाया.

राजू डर गया. वह सुधा के सामने रोनेगिड़गिड़ाने लगा, लेकिन सुधा का दिल नहीं पसीजा. अगले ही दिन वह मकान खाली कर गांव चली गई.

प्यार में पागल राजू सुधा का गम बरदाश्त नहीं कर सका. कुछ दिन बाद उस ने फांसी लगा कर खुदकुशी कर ली.

जब राजू की पत्नी को उस के मरने की खबर मिली, तो वह बोली, ‘‘मेरे लिए तो वह बहुत पहले ही मर गया था. उस ने मुझे इतना रुलाया कि आज उस की मिट्टी के सामने रोने के लिए मेरी आंखों में आंसू नहीं बचे हैं,’’ यह कह कर वह बेहोश हो कर गिर पड़ी.

राजू के घर के सामने लोगों की भीड़ लग गई. लोग पानी के छींटे मार कर उस की पत्नी को होश में लाने की कोशिश कर रहे थे.

लेखक- राजकुमार धर द्विवेदी

Famous Hindi Stories : आशा नर्सिंग होम – क्यों आशीष से दूर हो गई रजनी

Famous Hindi Stories :  रजनी उदास है. पति को दिल का दौरा पड़ा हुआ है. वे आशा नर्सिंग होम के औपरेशन थिएटर में है. उन्हें सुबह बेहोशी की हालत में अस्पताल लाया गया था, इलाज किया जा रहा है. औपरेशन थिएटर का दरवाजा बंद है.

अभीअभी उन्हें अंदर ले जाया गया है. बाहर रजनी, उस की बड़ी बहन अनुपमा, युवा भांजा रोहित और जीजा प्रभाकर खड़े हैं. सभी चिंतित हैं, रजनी के पतिदेव के स्वास्थ्य की कामना कर रहे हैं.

रजनी के पति रमेश की उम्र 54 वर्ष है. उन्हें पहली बार दिल का दौरा पड़ा है. मृत्यु नाम ही कितना भयानक है कि मनुष्य, जीव-जंतु हो या प्राणी… मृत्यु से दूर भागने की कोशिश में ही रहते हैं जब तक कि उन का जीवन है, जब तक कि उन की सांसें चल रही हैं.

रजनी, स्वाभाविक है कि, सब से ज्यादा चिंतित है. उस के 2 बच्चे है. 19 वर्षीय सौम्य कालेज की पढ़ाई कर रहा है और 12 वर्षीया नेहा 8वीं कक्षा में है. दोनों पढ़ाई में व्यस्त होने की वजह से घर पर वडोदरा में ही हैं. रजनी वडोदरा में रहती है. भांजे रोहित की एंगेजमैंट के उपलक्ष्य में यहां रमेश के साथ बहन के घर कानपुर आई हुई है.

अब सोफ़े पर बैठी रजनी आंखें मूंदें है. वह सोच रही है कि इस अस्पताल का नाम ‘आशा नर्सिग होम’ है और शादी से पहले उस का नाम भी आशा था. रमेश के साथ शादी होने के बाद उस का नया नाम रजनी हो गया और आज वह अपने असल नाम को याद करती हुई यहां आशा नर्सिंग होम में है. अजीब संयोग है.

अरे, मैँ तो यहां बड़ी बहन अनुपमा के घर, कानपुर आई हुई हूं. यह मेरा मायका है. मां-बाऊजी तो अब नहीं रहे. बाऊजी का घरबार, कपड़े की दुकान… सबकुछ बेच कर बड़े अमर भैया परिवार के साथ अमेरिका में रह रहे हैं. इंजीनियर अमर भैया पहले वहां नौकरी के बहाने गए और बाद में शादी भी अपने औफिस में कार्यरत अमेरिकन लड़की से कर ली. पहले मां और बाद में बाऊजी की मृत्यु हुई और अमर भैया का मानो भारत से नाता ही टूट गया. अब रह गईं हम 2 बहनें, जो सुखदुख में एक दूजी का साथ निभा रही हैं. अनुपमा दीदी के बेटे की कल शाम एंगेजमैंट है.

“हैलो,” कहते हुए रजनी ने फोन कान से सटाया. बेटे का वडोदरा से फोन था.

“कैसे हो मम्मी? पापा का फोन स्विचऔफ आ रहा है.”

“हम कहीं बाहर हैं बेटे, बाद में बात करती हूं,” कहते हुए रजनी ने फोन बंद कर दिया. वह बच्चों को कुछ बताना नहीं चाहती थी क्योंकि वे परेशान हो सकते थे. अब वह फिर से सोचने लगी…

रमेश, दूर की रिश्ते की बूआ के बेटे, को मैं ने ही पसंद किया था. तब मैँ एमए इंग्लिश की पढ़ाई कर रही थी. रमेश इंजीनियर था और बड़ा ही हैंडसम था. सरकारी नौकरी, कार, बड़ा सा मकान… सबकुछ था उस के पास. घर में भी सभी को पसंद था.

“ननकी, तेरी तबीयत ठीक तो है? चिंता न कर. सब ठीक ही होगा. आशा नर्सिग होम यहां का बहुत जानामाना अस्पताल है, ननकी. डा. भट्ट की ख्याति दूरदूर तक है. यहां से कभी कोई पेशेंट निराश नहीं लौटता, ऐसा लौकिक है. ये ले, पानी पी ले. रमेश जी जल्दी स्वस्थ हो जाएंगे. अभी खबर आ जाएगी कि खतरा टल गया है,” कहते हुए अनुपमा ने पानी का गिलास रजनी के हाथ में दिया.

रोहित वहां पड़ी हुई किसी मैगजीन के पन्ने पलट रहा था. सामने सोफ़े पर एक स्त्री गोद में आठदस महीने का बच्चा ले कर बैठी हुई थी जो सो रहा था. रजनी ने देखा कि वह बारबार पल्लू से आंखें पोंछ रही थी. उस का भी कोई अपना अस्पताल में शायद एडमिट था.

रजनी ने फिर पीछे गरदन टिकाई और आंखें मूंद लीं. ननकी नाम कितना प्यारा है. यह नाम मेरा ही है. बचपन में मां, बाबूजी, भैया… सभी तो ननकी ही बुलाते थे मुझे. आशा नाम तो स्कूल और सहेलियों के बुलाने के लिए था और आशीष, मेरा आशीष, भी तो मुझे आशा कह कर ही बुलाता था, लेकिन वह मेरा नहीं हुआ.

डाक्टर का क्या नाम बताया था दीदी ने…हां, डा. भट्ट. मेरी बचपन की सहेली विजया का किराएदार जो छत पर एक कमरा किराए पर ले कर रहता था, आशीष भट्ट नाम था उस का. वह भी मैडिकल स्टूडैंट ही तो था. तब वह एमबीबीएस के सैकंड ईयर में था. लेकिन वह तो राजकोट, गुजरात का रहने वाला था. यहां कानपुर में उस का नर्सिग होम? और इतना बड़ा विदेश से डिग्रियां ले कर आया हुआ कार्डियोलौजिस्ट?

इतने में औपरेशन थिएटर से एक नर्स बाहर आई और अनुपमा के पति से बातें करने लगी. तो रजनी ने आंखें खोलीं और उठ कर तेजी से उस के पास जा कर बोली, “सिस्टर, कैसे हैं रमेश जी? कैसी है अब उन की तबीयत?”

“सौरी बहन जी, अभी उन को होश आया नहीं है. डाक्टर साहब और हम स्टाफ कोशिश कर रहे हैं. यह इंजैक्शन उन के लिए डाक्टर साहब ने मंगवाया है,” कहती हुई नर्स वापस औपरेशन थिएटर में चली गई और फिर दरवाजा बंद हो गया. नर्स प्रभाकर जी के हाथ में एक परचा पकड़ा कर गई थी और वे तुरंत इंजैक्शन लेने वहां से बाहर की ओर चले गए.

अनुपमा अब रजनी के पास आई और उसे वापस सोफ़े पर बैठाते हुए बोली, “ननकी, हिम्मत से काम ले. डाक्टर अपनी कोशिश पूरी कर रहे हैं. देखती जा, तेरे जीजा अभी इंजैक्शन ले कर

आएंगे. मेरा मन कहता है, इंजैक्शन लग जाने के बाद रमेश जी होश में आ ही जाएंगे.”

“ऐसा ही हो दीदी,” कहते हुए रजनी ने पास बैठी अनुपमा के कंधे पर सिर रख दिया. अनुपमा का बेटा रोहित, जो वहीं पर बैठा हुआ था, के मोबाइल की रिंग बज उठी और वह ‘हैलो’ बोलता हुआ वहां से उठ कर थोड़ी दूर जा कर बात करने लगा. अब रजनी ने अनुपमा के कंधे से सिर उठाया और थोड़ी स्वस्थ हो कर पहले की तरह आंखें मूंद कर बैठी. चलचित्र की भांति उस की आंखों के सामने से एकएक दृश्य गुजर रहा था…

‘आशा, क्या तुम मुझ से आज शाम नानाराव पार्क में मिलने आ सकती हो?’ आशीष ने इतने प्यार से पूछा कि मैं मना न कर सकी और चली गई. आशीष ने अपने प्यार का इजहार किया. मैं ने शर्म से आंखें झुकाईं और अपने हाथ में पकड़े पर्स को कस कर दबाया. आशीष ने मेरे हाथ पर हाथ रखा और ‘आशु’ कहते हुए और नजदीक आया. मुझे बहुत अच्छा लग रहा था. एक पुरुष का स्पर्श तनमन में एक जादुई जोश पैदा कर रहा था. उस पहले स्पर्श का अनुभव मैं इस समय भी कर रही हूं. लेकिन क्यों?’ और रजनी ने एकदम से आंखें खोलीं.

दीदी पास नहीं थी. कहां गई होगी? शायद वाशरूम गई होगी. इतने में दीदी आती दिखाई दी और दूसरी तरफ से जीजाजी भी आते दिखाई दिए. रोहित अब भी दूर खड़ा मोबाइल पर बातें कर रहा था. शायद उस की फियांसी का फोन था. जीजाजी ने औपरेशन थिएटर के बाहर खड़े अटेंडैंट को इंजैक्शन का लिफ़ाफ़ा पकड़ाया और उस ने उसे तुरंत अंदर भिजवा दिया.

जीजाजी अब रजनी के साथ बैठे हुए थे. दूसरी तरफ दीदी बैठ गई. इस समय सभी की आंखें औपरेशन थिएटर के दरवाजे पर लगी हुई थीं. लगभग 25 मिनट के बाद दरवाजा खुला और अंदर से डाक्टर भट्ट और उन के पीछे एक डाक्टर व नर्स बाहर आए.

‘ओह, यह तो मेरा वही आशीष भट्ट है,’ देख कर रजनी सन्न रह गई और अपनी जगह पर बैठी रही. लेकिन बहन अनुपमा, प्रभाकर जी और रोहित उठ कर डाक्टर की तरफ चल दिए. उसे सब सुनाई दे रहा था जो डाक्टर भट्ट कह रहे थे.

“अब रमेश जी होश में आ गए हैं और उन की तबीयत ठीक है. अब उन्हें वार्ड में शिफ्ट किया जाएगा. वहां आप उन से मिल सकते हैं. उन की हार्टबीट नौर्मल है. परीक्षण के लिए आज रात उन्हें यहीं रहना पड़ेगा. कल सुबह 10 बजे डिस्चार्ज किया जाएगा. और हां, उन की शराब और सिगरेट की आदत छुड़वा सकते हैं, तो अच्छा रहेगा. यही वजह है उन के दिल के दौरे की,” कहते हुए डा. आशीष भट्ट के चेहरे पर स्मित हास्य था.

वही मोटापा, छोटा कद, आंखों पर मोटा चश्मा… पर ये सब आशीष के व्यक्तित्व में और ज्यादा निखार भर रहा था. अच्छा हुआ कि उन की नजर आशा उर्फ रजनी की तरफ नहीं पड़ी. वह चाहती नहीं थी कि वे उसे देखें. उस ने दूसरी तरफ मुंह घुमाया. डा. भट्ट अब लिफ्ट की ओर जा रहे थे.

“ननकी, अब तो खुश हो ले बहन. तू भी कर लेती बात डाक्टर साहब से. चलो, अब सब ठीक है…” और अनुपमा आगे भी बोलती गई.

लेकिन रजनी अपने खयालों खोई वहीं बैठी रही… आशीष से उस का मिलनाजुलना बढ़ता जा रहा था. वह सोच रही थी कि परसों अपने जन्मदिन पर घर की छोटी सी पार्टी में आशीष को आमंत्रित करूं और सब से उस का परिचय कराऊं. सब को सरप्राइज दूंगी. फिर शादी की बात चलने में देर नहीं लगेगी. मेरे मन में लड्डू फूट रहे थे.

नानाराव पार्क की उसी खास बैंच पर बैठते हुए आशीष ने मिलते ही उदास स्वर में कहा, ‘आशा, मैँ आज रात की ट्रेन से राजकोट जा रहा हूं. पिताजी बीमार हैं, अस्पताल में एडमिट हैं. अभी थोड़ी देर पहले ही बूआ का फोन आया था.’

‘लेकिन आशीष, परसों मेरा बर्थडे है. उस के बाद भी तो जा सकते हो. क्या पिताजी के पास कोई और नहीं है?’ मैं ने थोड़ा जोर दे कर पूछा.

‘नहीं, वैसे मेरी माताजी, बूआ और चाचाचाची हैं, दोनों छोटे भाई भी हैं लेकिन अब मैँ कैसे रुक सकता हूं? मेरे पिताजी…’ कहते हुए आशीष का गला रुंध गया और उस ने रूमाल आंखों से लगाया.

उस के बाद हमारी कोई बातचीत नहीं हुई. घर पहुंच कर मैं ने सोचा कि आशीष को घरवालों की ज्यादा ही फिक्र है. इस के लिए मैँ कोई खास नहीं हूं. और पता नहीं, कल का भी क्या भरोसा?

आशीष ठीक 10 दिनों बाद वापस आया. बीच में एक बार उस का फोन आया लेकिन फोन पर अपने पिताजी के बारे में ही बात करता रहा. वापस आने पर उस को परीक्षा की तैयारी करनी थी. उस के पास मिलने के लिए समय नहीं था.

अब मुझे आशीष में बहुत सी कमियां नजर आने लगी थीं. उस का मोटापा, उस का छोटा कद, उस का मोटे शीशे वाला चश्मा मुझे अखर रहा था. ठीक 15 दिनों बाद वह मिला. बड़े ही प्यार से मिला. अपने ही भविष्य के बारे में ज्यादा बातें की उस ने. कार्डियोलौजी में आगे की डिग्री लेने की बात भी बताई. बीचबीच में मेरा हाथ पकड़ना, आंखों में झांकना, गाल सहलाना आदि क्रियाएं भी प्रेम से अभिभूत हो कर रहा था.

फिर जब उस ने अपनी बहन की बात की, तो मैं ने उसे रोका, कहा, ‘आशीष, अब हम यहीं रुक जाते हैं. तुम अपने घरवालों के ही बन कर रहो. उन की ही चिंता करो. तुम्हारे मन में मेरे लिए प्यार नहीं है, यह मैँ समझ गई हूं. मैँ कभी तुमारे लिए ‘खास’ थी, न बन सकूंगी.’

‘ऐसा नहीं है, आशा. मैं ने तुम से सच्चे दिल से प्यार किया है. ठंडे दिमाग से फिर से मेरे बारे में सोचो. अरे, मैं ने तो भविष्य में बनने वाले अपने नर्सिंग होम का नाम भी ‘आशा नर्सिंग होम’ रखने की सोचा है. जीवन तुम्हारे साथ बिताना चाहता हूं, आशा.’

लेकिन मैँ वहां रुकी नहीं. मैं ने पीछे मुड़ कर उसे देखा भी नहीं. और घर चली आई.

बाद में मेरे न मिलने को शायद वह अपनी हार समझ बैठा और उस ने मुझ से किनारा कर लिया. विजया ने बताया था कि वह पुणे चला गया. फिर मेरी शादी मेरी पसंद के लंबे, गोरे और चश्मा न पहनने वाले इंजीनियर रमेश से हुई, जिस ने इतने वर्षों में अपनी ज्यादातर कमाई जुआ और शेयर मार्केट में उड़ा दी और शराबसिगरेट का तो वह शुरू से ही आदी था. यह बात मैँ उस से शादी करने से पहले जान गई थी लेकिन उस के बाह्य रंगरूप पर मैँ फिदा थी.

रमेश के लिए भी मैँ ‘खास’ कभी नहीं रही. नशे में कई बार मुझ पर उस का हाथ भी उठ जाता था और साथ में गालीगलौज की बौछार करता था. हर रोज शराब पीना ही उस के लिए दिल के दौरे का कारण बना. बाहरी रूपरंग देख कर मैं ने उसे पसंद किया, जो गलत था.

आज रमेश भी भद्दी शक्लवाला और मोटा है. मोटे शीशे का चश्मा भी पहनता है. क्या मिला मुझे? हां, अपने मातापिता और परिवारजनों की चिंता करना, उन के सुखदुख के समय उन के साथ खड़े होना, जितनी बन पड़ें उतनी उन की सहायता करना…यह गुण रमेश में भी है. आशीष को तो मैं ने इसी गुण की वजह से छोड़ दिया था. कितनी नासमझ और नादान थी मैँ, इतने अच्छे गुण को मैं ने दोष समझा.

लेकिन अब रमेश जो भी है, मेरा वर्तमान है. मैँ, कुछ भी हो, उस की शराब की आदत तो छुड़वा कर ही रहूंगी. डा. आशीष भट्ट ने भी यही कहा है. मेरे लिए आज आशीष की सलाह सिरआंखों पर है. मन ही मन अपनेआप को ये सब सूचनाएं देती हुई रजनी उठी और थोड़ी दूर खड़ी अनुपमा के पास जा कर बोली-

“दीदी, मुझे जल्दी रमेश जी के पास ले चलिए, डाक्टर साहब ने मिलने की परमिशन तो दी है न, दीदी?”

रजनी ने पास खड़ी अनुपमा का हाथ पकड़ा और दोनों बहनें अब उस वार्ड की तरफ चल दीं जहां रमेश को शिफ्ट किया गया था. रजनी अब सोच रही थी कि आशीष ने उस से दिल से प्यार किया था. तभी तो उस ने गुजरात छोड़ कर यहां कानपुर में अस्पताल खोला और नाम तो उस ने पहले ही बता दिया था- ‘आशा नर्सिग होम’.

अब आशा उर्फ रजनी को डा. आशीष भट्ट से मिलने की या उस के बारे में ज्यादा जानने की जरूरत नहीं थी. आशीष ने शादी की या नहीं, उस की पत्नी क्या करती है, उस का नाम क्या… इन सब से अब वह अलिप्त रहना चाहती थी. आशीष अब उस का बीता हुआ कल था.

लेखिका- अरुणा कपूर

Hindi Kahaniyan : दिल का बोझ – क्या मां की इच्छा पूरी हो पाई

Hindi Kahaniyan :  मंजू के मातापिता एक छोटे से शहर में रहते थे. उस के घर के आगे दुकानें बनी हुई थीं. उन में से कई दुकानें किराए पर चढ़ी हुई थीं. मंजू अपनी मां के साथ फर्स्ट फ्लोर पर रहती थी. वह अपने फ्लैट के नीचे वाली दुकान से दूध लाने गई थी. वह जैसे ही दूध ले कर आई, अपने साथ एक नन्हा सा गोलमटोल बच्चा भी गोद में ले आई थी.

‘‘अरे, यह किस का बच्चा उठा लाई?’’ मां ने हैरानी से देख कर पूछा.

‘‘विनोद अंकल की दुकान पर खेल रहा था. उन्हीं के घर का कोई होगा… मैं ज्यादा नहीं जानती,’’ मंजू ने हंसते हुए अपनी मां को सफाई दी.

विनोद ने मंजू के घर के नीचे मोटर पार्ट्स की दुकान खोल रखी है. दुकान में भीड़ कम ही रहती है.

बच्चा बहुत खूबसूरत था. मां की भी ममता जाग गई. उन्होंने उसे गोद में

ले लिया.

बच्चा घंटाभर वहां खेलता रहा. बच्चे की किलकारी से मंजू की मां के चेहरे पर खुशी की लकीरें उभर आई थीं. वे उस का खास खयाल रख रही थीं. बच्चा एक कटोरी दूध भी पी गया था.

एक घंटे बाद मां मंजू से बोलीं, ‘‘जा कर बच्चे को दुकान पर पहुंचा दे.’’

मंजू बच्चे को विनोद अंकल की दुकान पर छोड़ आई. इस तरह से वह बच्चा कई दिन तक मंजू के घर आता रहा. उस की मां बच्चे का ध्यान रखतीं. बच्चा वहां खेलता, घंटे 2 घंटे बाद मंजू दुकान में छोड़ आती. कई दिनों से यह सिलसिला चल रहा था.

उस दिन रात के 10 बज रहे थे. मंजू अपनी मां के बगल में सोई हुई थी. मंजू को नींद नहीं आ रही थी. वह सोच रही थी कि कैसे बात को शुरू करे.

‘‘बच्चा कितना खूबसूरत है न मां?’’ मंजू बोली.

‘‘अरे, तू किस की बात कर रही है?’’

‘‘उसी बच्चे की मां जो विनोद अंकल की दुकान से लाई थी.’’

‘‘सो जा. क्या तु झे नींद नहीं आ रही है? अभी भी तेरा ध्यान उस बच्चे पर अटका है?’’ मां ने मंजू को हिदायत दी.

‘‘दीदी का बच्चा भी ऐसा ही होता न मां?’’ मंजू अचानक बोली.

यह सुन कर मां गुस्से में बिफर पड़ीं, इसलिए वे बिस्तर से उठ कर बैठ गईं.

‘‘तेरे बड़े चाचा ने मना किया था न कि दीदी का नाम कभी मत लेना? वह हम लोगों के लिए मर गई है…’’ मां गुस्से में बोलीं.

अब तक मंजू भी चादर फेंक कर उठ कर बैठ गई थी और बोली, ‘‘मानती हूं कि दीदी हम लोगों के लिए मर गई हैं, लेकिन सचमुच में तो नहीं मरी हैं न?’’ उस ने मां से सवाल किया.

मां के पास कोई जवाब नहीं था. वे मंजू का मुंह ताकती रह गईं.

मंजू का दिल तेजी से धड़क रहा था. वह सोच नहीं पा रही थी कि जो कहने वाली है, उस का क्या नतीजा होने वाला है? अपना दिल मजबूत कर के वह मां से बोली, ‘‘मां, वह जो बच्चा रोज आ रहा है न, वह अपनी दीदी का ही बच्चा है. तुम उस की नानी हो और वह तुम्हारा नाती है. तुम्हारी अपनी बेटी का बेटा है,’’ मंजू हिम्मत कर के सबकुछ एक ही सांस में बोल गई.

मां को यह सुन कर ऐसा लगा, जैसे वे आसमान से जमीन पर गिर गई हैं. वे कुछ भी नहीं बोल पा रही थीं, सिर्फ मंजू को देखे जा रही थीं. मंजू अपनी मां के चेहरे के भावों को पढ़ने की कोशिश कर रही थी.

मां पुरानी यादों में खोने लगी थीं.

3 साल पहले की घटी हुई वह घटना. उन की बड़ी बेटी सोनी कालेज में पढ़ती थी. कालेज आतेजाते वह अमर डिसूजा नाम के एक ईसाई लड़के के इश्क में पड़ गई थी.

अमर बहुत खूबसूरत था. वह सोनी से बहुत प्यार करता था. दोनों घंटों एकदूसरे से मोबाइल पर बात किया करते थे. सोनी उस के प्यार में पागल हो गई थी. उसे इस बात का कहां ध्यान रहा कि वह एक हिंदू ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखती है, जबकि अमर एक ईसाई परिवार से था.

जैसे ही सोनी के बड़े चाचा और उस के पिता को मालूम हुआ, सोनी को काफी भलाबुरा सुनना पड़ा था. घर के लोगों के साथसाथ बाहर के लोगों ने भी उसे खूब जलील किया था. लोग यही कह रहे थे कि सोनी को कोई हिंदू लड़का नहीं मिला था? उस ने अपना धर्म भ्रष्ट कर दिया था, इसीलिए उस के बड़े चाचा ने उसे घर से बाहर निकलने से मना कर दिया था. अमर से भी दूर रहने की हिदायत दे दी थी.

उस के चाचा ने चेतावनी दी थी, ‘अब से तुम्हारी पढ़ाईलिखाई बंद रहेगी. बहुत हो गया पढ़नालिखना.’

सोनी की शादी की तैयारी जोरशोर से चल रही थी. कई जगह लड़के देखे जा रहे थे, लेकिन वह पढ़ना चाहती थी. उस ने अपनी मां और अपने पिता से काफी गुजारिश की थी. कुछ दिन बाद उस के पिता ने सिर्फ कालेज में एडमिशन लेने और फार्म भरने की इजाजत दी थी. धीरेधीरे सोनी कालेज आनेजाने लगी थी.

एक दिन अचानक थाने से खबर आई कि सोनी अमर के साथ थाने में पहुंच गई है. दोनों ने एकदूसरे से प्यार करने की बात स्वीकार ली थी.

सोनी 18 साल की हो चुकी थी और अमर भी 21 साल का था. दोनों की पहले से ही गुपचुप तरीके से शादी करने की तैयारियां चल रही थीं, वे सिर्फ बालिग होने का इंतजार कर रहे थे.

सोनी के बड़े चाचा और उस के पिता ने शादी रुकवाने की कई तरह से कोशिश की, लेकिन वे ऐसा नहीं कर पाए. जब लड़कालड़की ही राजी थे, तो भला उन्हें कौन रोक सकता था. थानेदार की मदद से दोनों की शादी करवा दी गई थी. प्रशासन ने उन्हें प्रोटैक्शन दे कर अमर के घर तक पहुंचाया था.

बड़े चाचा ने गुस्से में आ कर सोनी का पुतला बना कर दाह संस्कार करवा दिया. पिता ने खास हिदायत दी थी, ‘वह हमारे लिए मर गई है. घर में कोई अब उस का नाम तक नहीं लेगा.’

तब से ले कर आज तक किसी ने भी सोनी का नाम इस घर में नहीं लिया था. आज जब मंजू उस के बच्चे की बात कर रही थी, तो मां सुन कर सन्न रह गई थीं.

मां मन ही मन सोनी से रिश्ता खत्म हो जाने के चलते दुखी रहती थीं. वे इस दुख को किसी के साथ जाहिर भी नहीं कर पाती थीं. आज वे अपने नाती को अनजाने में ही दुलार चुकी थीं.

जब मंजू ने मां को जोर से  झक झोरा, तो वे अपनी यादों से बाहर आ गईं, ‘‘ऐसा तू ने क्यों किया मंजू?’’ मां गुस्से में बोलीं.

‘‘तुम दीदी के जाने के बाद क्या कभी उन्हें भुला पाई हो मां? अपने दिल पर हाथ रख कर सच बताना?’’

मां के चेहरे पर बेचैनी देखी जा सकती थी. उन के पास कोई जवाब नहीं था. जैसे वे सच का सामना कर ही नहीं सकती थीं. वे मंजू से नजरें नहीं मिला पा रही थीं. ऐसा लग रहा था जैसे उन की चोरी पकड़ी गई है. चोरी पकड़ने वाला कोई और नहीं, बल्कि उन की अपनी बेटी की थी.

यह तो सच था कि जब से सोनी चली गई थी, मां दुखी थीं. वे कैसे जिंदा बेटी को मरा मान सकती थीं? उसे जितना भी भुलाने की कोशिश की थी, वे अपनी बेटी की यादों में खो जाती थीं. उन्होंने अपनी दोनों बेटियों को खूब प्यार दिया था.

बड़ी बेटी के गम में पिता उदास रहने लगे थे. कुछ दिन बाद उन्हें दिल का दौरा पड़ा और वे चल बसे. तब से मां अकेली हो गई थीं. वे चाहती थीं कि किसी तरह मंजू की भी शादी हो जाए.

‘‘मंजू, तुम कब से यह सब जानती हो?’’ मां ने सवाल किया.

‘‘एक दिन अचानक दीदी बाजार में मिल गई थीं. दीदी ने मु झ से नजरें फेर ली थीं, लेकिन मैं ने ही उन का पीछा किया था. बात करने पर उन्हें मजबूर कर दिया था. वे कहने लगी थीं कि मैं तो तुम्हारे लिए मर गई हूं. मैं ने उन्हें बहुत सम झाया, तब जा कर वे बात करने के लिए तैयार हुई थीं.

‘‘दीदी भी यह जान कर बहुत दुखी थीं कि हम सब ने उन्हें मरा सम झ लिया है. दीदी के गम में पिताजी नहीं रहे, उन्हें यह जान कर काफी दुख हुआ. लेकिन मैं ने उन्हें बताया कि यह सब बड़े चाचा का कियाधरा है. पिताजी तो उन की हां में हां मिलाते रहे. मां तो कुछ सम झ ही नहीं पाई थीं. वे आज भी आप के लिए दुखी रहती हैं.

‘‘यह सुन कर दीदी रोने लगी थीं. वे आप को बहुत याद करती हैं. मैं उन से लगातार फोन पर बातचीत करती रहती हूं. तभी मैं जान पाई थी कि दीदी को एक बच्चा हुआ है और यह मेरी ही योजना थी कि किसी तरह से आप को और दीदी को मिला दूं. दीदी का बच्चा उन का देवर ले कर आता है. वह विनोद अंकल की दुकान पर सेल्समैन है.’’

मां मंजू के सिर पर हाथ फेरने लगीं. उन की आंखों से आंसू बहने लगे. ऐसा लग रहा था, दिल का बो झ आंखों से बाहर निकल रहा था.

मंजू अपनी मां से आज ये सब बातें कर के हलका महसूस कर रही थी. वह बहुत खुश थी. रात के 11 बज गए थे, इसलिए वह अपनी दीदी को परेशान नहीं करना चाहती थी, वरना यह खुशखबरी दीदी तक अभी पहुंचा देती, पर वह खुश थी कि अब उस की दीदी मां से बात कर सकेंगी. अब उस के घर में एक नन्हा बच्चा खेलेगा. वह सालों से 2 परिवारों में आई दरार को पाटने में कामयाब हो गई थी.

Moral Stories in Hindi : लेडी डौक्टर कहां है

Moral Stories in Hindi :  सुबह से ही मीरा बहुत घबराहट महसूस कर रही थी. शरीर में भी भारीपन था और मन तो खैर… न जाने कब से उस के ऊपर अपराधबोध के बोझ लदे हुए हैं. काम छोड़ कर आराम करने का तो सवाल ही नहीं उठता था. बवाल मच जाएगा घर में. सब की दिनचर्या में अस्तव्यस्तता फैल जाएगी. वैसे भी कोरोना के चलते घर में माहौल हर समय गंभीर रहता है. सासससुर घर में हर समय पड़े रहने से खीझ चुके हैं तो वहीं देवर औनलाइन क्लासेस से परेशान है. घर में तंगी न हो, इसलिए पति समर को औफिस जाना पड़ता है जिस से उन का मूड हमेशा ही खराब रहता है. कुछ नहीं बदला है तो वह है मीरा और उस के काम. अगर वह समय से काम नहीं करेगी तो सासुमां को अपने लड्डू गोपाल की सेवा को बीच में छोड़ना पड़ेगा, पति समर औफिस जाने के लिए लेट हो जाएंगे, देवर रोहन बिना कुछ खाए पढ़ने बैठ जाएगा और ससुरजी शोर मचाएंगे कि हर आधे घंटे में उन्हें चाय कौन देगा. इसलिए उसे बीमार पड़ने या आराम करने का हक नहीं है इस हालत में भी. शुक्र है कि जेठ दूसरे शहर में रहते हैं अपने परिवार के साथ, वरना उन के बच्चों के भी नखरे उठाने पड़ते.

पेट में तेज दर्द उठा. इतनी भयानक पीड़ा, पर अभी तो मात्र 7 महीने ही हुए हैं. यह लेबरपेन तो नहीं हो सकता, शायद थकान से हो रहा हो. उलटी का एक गोला अंदर बनने लगा तो वह बाथरूम की ओर भागी. सुबह चाय के साथ सिर्फ एक बिस्कुट खाया था, सो, वही निकल गया. डाक्टर ने सख्त हिदायत दी थी कि तुम्हारा शरीर इतना कमजोर है कि उसे ताकत के लिए पौष्टिक भोजन की जरूरत है. हर एक घंटे बाद उस के लिए कुछ खाते रहना आवश्यक है, खासकर सुबह बिस्तर से उठते ही एक सेब तो वह खा ही ले. इस से उलटियां नहीं होंगी. डाक्टर के निर्देश और हिदायतें केवल उस के परचे तक ही सीमित हैं. घर में न तो उस की बातों को कोई मानता है और न ही उसे अपने ऊपर ध्यान देने का समय मिल पाता है. डाक्टर ने तो यह भी कहा था कि कोरोना का संक्रमण उस के और उस के होने वाले बच्चे के लिए घातक हो सकता है, जितनी ज्यादा हो सके उतनी कोशिश करे कि उसे अस्पताल न आना पड़े. लेकिन, यहां तो बाहर से जो कुछ आता उसे सैनिटाइज करने का काम भी मीरा के हिस्से था.

इतनी पढ़ीलिखी तो वह भी है कि प्रैग्नेंसी में कैसे केयर रखनी चाहिए, इस की जानकारी रखती है. पर वह कुछ करना भी चाहे तो सासुमां फट से ताना मारती हैं, “पता नहीं इतनी नाजुक क्यों है, मैं ने भी बच्चे पैदा किए हैं, वे भी बेटे, और तू है कि लड़कियों को कोख में रखने पर भी इतनी मरियल सी रहती है.”

वह अकसर सोचती है सासुमां का इतनी पूजा और भक्ति का क्या फायदा जब उन के अंदर सहनशीलता का एक कण तक नहीं. हर समय गुस्से से उबलती रहती हैं. उन की बात न मानो तो चिल्लाने लगती हैं. वह मानती है कि दूसरों के दर्द समझो और जितना हो सके, दूसरों के काम आ सको, वही सच्ची पूजा. इस बात से भी उन्हें बहुत आपत्ति है.

“न जाने कैसी कुमति बहू मिली है. अरी, कभी भगवान के सामने खड़े हो कर हाथ भी जोड़ लिया कर. हे राम, न जाने क्या अनिष्ट हो इस की वजह से,” वे आरती करती जातीं और यह भी बोलती जातीं. उसे उन पर हंसी आती और दया भी. बहू को बेटी कैसे समझ सकते हैं ऐसे लोग, जिन के अंदर ममता का सोता बहता ही नहीं है. विडंबना तो देखो, एक औरत हो कर भी दूसरी औरत की पीड़ा नहीं समझतीं.

“सत्यानाश, दूध उबल कर गिर रहा है. सुबहसुबह कैसा अपशकुन करने पर तुली है, मीरा,” सासुमां की कठोर और तीव्र आवाज पूरे घर में गूंज गई.

“वह मां… उलटी आ गई थी,” सहमे स्वर में मीरा ने कहा. वह जल्दीजल्दी गैस साफ करने लगी. “पेट में भी दर्द हो रहा है, और काफी थकान महसूस कर रही हूं,” थोड़ी हिम्मत कर उस ने कह ही दिया.

“पेट में दर्द हो रहा है तो थोड़ी अजवायन निगल जा पानी के साथ. हो सकता है गैस बन गई हो पेट में. अभी तो 2 महीने बाकी हैं, और हां, खयाल रख अपनी कोख में पल रहे बच्चे का. जांच से पता लग ही गया है कि इस बार लड़का है. पता चले जांच के लिए अस्पताल ले कर गए और वहां से कोरोना ले आई. अपने साथसाथ पूरे घर को ले कर डूबेगी. अच्छा, ऐसा कर नाश्ता कर ले. रसोई का सारा काम तो निबट ही चुका है,” सासुमां ऐसे बोलीं मानो कोई एहसान कर रही हों.

साढ़े 11 बज चुके थे, और भूख तो उसे भी सता रही थी. शायद न खाने से गैस बन गई हो, मीरा ने सोचा.

नाश्ता कर, कमरे में आ कर लेट गई मीरा. दर्द अभी भी हो रहा था. पेट से होतेहोते नीचे तक पहुंच रहा था. अजीब सी ऐंठन और बेचैनी थी. सोने की कोशिश करने लगी, पर सोच के ऊपर तो अनगिनत परछाइयां मंडरा रही थीं. क्या होगा जब घर में सब को पता लगेगा कि इस बार भी उस की कोख में लड़की ही है. डाक्टर से अनुरोध कर उस ने ही उन से यह झूठ बोलने को कहा था. हालांकि लड़का है या लड़की, इस की जांच कराना अवैधानिक है, पर फिर भी सबकुछ होता है. छोटे क्लीनिकों में पैसे खिला कर और अपनी जानपहचान निकाल कर समर ने इस का बंदोबस्त कर लिया था. 2 लड़कियों को गर्भ में आते ही मारने का अपराधबोध एक बोझ की तरह उस के सीने से लिपटा रहता है. कितना मना किया था उस ने, रोई थी, गिड़गिड़ाई थी, पर न समर माना था और न ही सासुमां ने उस की बात सुनी थी.

“लड़कियां हमें चाहिए ही नहीं. बस, बेटे होने चाहिए. लड़की को पढ़ाओ, खर्च करो, उस की शादी करो और उस का फायदा उठाए उस की ससुराल वाले. ससुराल वालों के नखरे सहो, सो अलग. बेकार में सारी जिंदगी खपाने का कोई शौक नहीं हमें. मैं नहीं चाहती कि मेरा समर पूरी जिंदगी लड़कियों की वजह से खटता रहे,” सासुमां के तर्क उसे भयभीत कर गए थे.

“मां, आप भी तो लड़की हैं. आप ऐसा कैसे कह सकती हैं? आप भी तो ब्याह कर इस घर में आई हैं और अपने बेटे के लिए भी तो आप भी लड़की को ही ब्याह कर लाई हैं. अगर आप के मांबाप ने आप को भी कोख में ही मार दिया होता या मुझे भी जन्म नहीं लेने दिया होता तो न ससुरजी की शादी होती और न ही समर की. लड़कियां नहीं होंगी तो लड़के कुंआरे ही रह जाएंगे. सोचिए मां, अगर आप को जन्म नहीं दिया गया होता तो… यह खयाल ही कितना पीड़ादायक है,” मीरा के ऐसा कहते ही घर में भूचाल आ गया था.

“वार्निंग दे रहा हूं तुम्हें, मां से कभी बहस करने की कोशिश मत करना,” समर की आंखों में उठती ज्वालाओं ने उस के थोड़ेबहुत साहस को राख कर दिया था. 2 बेटियां अजन्मी ही मार दी गईं और वह अपनी बेबसी पर केवल कराह ही पाई. अपनी ही कोख पर अधिकार नहीं था उसे, अपने रक्तमांस को सांस लेनेदेने का अधिकार नहीं था उसे. कोई इतना क्रूर कैसे हो सकता है वह भी जब हर तरफ बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का शोर है. बेटियां बेटों से कहीं ज्यादा टेलेंटेड साबित हो रही हैं और हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं. यही नहीं, बेटों से कही ज्यादा पेरेंट्स का ख्याल रखती हैं, फिर भी इन लोगों की ऐसी सोच है.

मां तो चलो पुराने खयालात रखती हैं, पर समर, वे तो ऐजुकेटेड इंसान हैं, मल्टीनेशनल कंपनी में काम करते हैं जहां लड़कियों की संख्या लड़कों से कम नहीं है, वे किस तरह लड़कीलड़के में भेद कर सकते हैं यहां तक कि लिंग परीक्षण करा गर्भपात करवा सकते हैं. समर कंजर्वेटिव हैं, यह तो मीरा शादी के शुरुआती दिनों में ही जान गई थी. उस का उन्हीं के पुरुषमित्रों से बात करना या आसपड़ोस के किसी पुरुष से बात करना उन्हें अखरता था, यहां तक कि रिश्तेदारों में भी पुरुषों से उस का हंसीमजाक करना उन्हें चुभता था.

कैसे दोहरे मापदंड हैं, मीरा अकसर सोचती. एक तरफ लड़की को जन्म न दो और दूसरी ओर पुरुषों से दूरी बना कर रखो.

पर कहीं जन्म लेने के बाद उस की बेटी को मार डाला गया तो क्या होगा… मीरा कांप गई. अजन्मी बेटियां तो चली गईं, पर उस की गोद में आई बेटी अगर उस से छीन ली गई तो अपराधबोध के बोझों को क्या कभी वह अपने से अलग कर पाएगी? साहस तो जुटाना ही होगा मीरा को इस बार. उस ने जैसे खुद ही अपना मनोबल बढ़ाने की कोशिश की.

“दोपहर के खाने का वक्त हो गया है, आज हमें भूखा ही रखने का इरादा है क्या?” सासुमां दरवाजे पर खड़ी थीं. अपनी गीली आंखों को पोंछा नहीं मीरा ने. नहीं उठा जा रहा है उस से.

“मां, अस्पताल ले चलिए मुझे, लगता है समय से पहले ही बेबी हो जाएगा,” मीरा के पीले पड़ते चेहरे और उखड़ती सांस के कंपन को सुन सहम गईं कमला. कहीं इसे कुछ हो गया तो अपने वंश से भी हाथ धोने पड़ेंगे. मीरा उन्हें इस समय कुछ ज्यादा ही कमजोर लगी. शरीर से जैसे किसी ने सारा रक्त ही चूस लिया हो.

“मैं समर को फोन करती हूं,” वे बाहर भागीं.

“मैं कैब बुला लेता हूं, समर को औफिस से ही घर के सब से पास जो सरकारी अस्पताल है उस में आने को कहो,” ससुरजी की आवाज मीरा के कानों में पड़ी. वह जानती थी कि मांबेटे के सामने चाहे कुछ न बोलें, पर उस के प्रति उन के मन में कोमल संवेदनाएं थीं. कुछ जरूरी सामान रखने में सासुमां ने उस की मदद की.

कैब में बैठे वे पूरे रास्ते बड़बड़ाते रहे कि आखिर अस्पताल में मीरा को भरती किया जाएगा भी या नहीं. कोरोना के चलते अस्पताल में किसी को भी भरती नहीं किया जा रहा था. जिसे किया आ रहा था उस से बड़ी कीमत वसूली जा रही थी. दिल्ली के हालात तो वैसे भी त्रस्त थे. ऐसे में मन में कई सवाल भी उठ रहे थे और डर भी था.

घर के सब से पास वाले अस्पताल में मीरा को भरती करने से मना कर दिया गया. मीरा दर्द से कराह रही थी, तब भी उस की हालत को नजरंदाज करते हुए कहा गया कि यहां केवल कोरोना मरीजों को भरती किया जा रहा है और एक भी बैड खाली नहीं है.

वहीं समर भी आ चुका था. समर मीरा और मातापिता को ले कर दूसरे अस्पताल गया. वहां भी उन्हें यह कह कर लौटा दिया गया कि बैड खाली नहीं है.

“अरे, भगवान की दया से ही बहू को भरती कर लो, हालत तो देखो इस की,” मीरा की सास रिसेप्शन पर कहने लगीं.

““मां जी, यहां भगवान की नहीं, डाक्टर की दया चलती है. वेंटिलेटर और अन्य सवास्थ सुविधाओं से जान बचती है, भगवान का नाम जपने से नहीं. देर मत कीजिए और किसी दूसरे अस्पताल जाइए, यहां कोरोना के कई गंभीर केसेस पहले ही आए हुए हैं,” रिसेप्शनिस्ट ने कहा.

मारेमारे वे लोग तीसरे अस्पताल पहुंचे जहां किसी तरह मीरा को अस्पताल में भरती कर लिया गया. मशीन लगा कर डाक्टर ने टेस्ट किया. बच्चे की सांस चल रही थी, पर वह रिस्पौंड नहीं कर रहा था.

“तुरंत सिजेरियन करना होगा, वी कांट टेक चांस, इट्स ए प्रीमेच्योर डिलीवरी, इसलिए हो सकता है थोड़ी कौंप्लीकेटेड हो, वैसे भी, इन की मेडिकल हिस्ट्री बता रही है कि पहले 2 अबौर्शन कराए हैं आप ने,” डा. मजूमदार, जो उस समय ड्यूटी पर थे, सारी रिपोर्ट्स ध्यान से पढ़ रहे थे. हैरानी थी उन के चेहरे पर.

समर ने दबी आवाज में वहां खड़ी सिस्टर से पूछा, “कोई लेडी डाक्टर नहीं है क्या इस समय? गाइनी तो लेडी डाक्टर को ही होना चाहिए. डिलीवरी वही तो करवा सकती है. अब तक तो चेकअप लेडी डाक्टर ही करती आई है. क्या कोई लेडी डाक्टर नहीं आ सकती क्या?”

““आप का दिमाग ठिकाने तो है? कैसी बातें कर रहे हैं आप. क्या आप ने आसपास का हाल देखा है, लोग भरती होने के लिए यहांवहां भटक रहे हैं, कोरोना से पीड़ित तड़प रहे हैं. और एक तरफ आप हैं जो लेडी डाक्टर की मांग कर रहे हैं, जरा सोचसमझ कर तो बात कीजिए,”” पास खड़ी नर्स ने कहा.

यह सुन समर के चेहरे पर शर्मिंदगी के भाव झलकने लगे. वह असमंजस में पड़ गया. पास खड़े उस के पिता ने कहा, ““बेटा, इतनी मुश्किल से बहू को अस्पताल में बैड मिला है, बनीबनाई बात मत बिगाड़ो.”

मीरा की हालत बिगड़ रही थी, जिसे देख डाक्टर जल्दीजल्दी उस की रिपोर्ट देखने लगे.

“कोई प्रौब्लम थी जो वन मंथ की प्रेगनेंसी में ही दोनों बार अबौर्शन कराया गया?” डा. मजूमदार ने समर से पूछा.

“असल में बोथ वेयर गर्ल्स,” हिचकिचाहट का गोला जैसे समर के गले में फंस गया था. सच बताना और उस का सामना करना दोनों ही मुश्किल होते हैं. समर तो डा. मजूमदार को उस का चेकअप करते देख वैसे ही झल्ला रहा था. एक पुरुष जो थे वह. पर इस समय वह मजबूर था, इसलिए इस बारे में कोई शोर नहीं मचाया.

“व्हाट रबिश,” आवाज की तेजी से सकपका गए समर. 40 वर्ष के होंगे डा. मजूमदार, सांवली रंगत, आंखों पर चौकोर आकार का चश्मा, मुंह पर प्रौपर मास्क व शील्ड, और ब्लूट्राउजर व व्हाइट शर्ट के ऊपर डाक्टर वाला कोट पहना हुआ था उन्होंने. बंगाली होते हुए भी हिंदी का उच्चारण एकदम स्पष्ट व सधा हुआ था. बालों में एकदो सफेद बाल चांदी की तरह चमक रहे थे. अकसर लोगों को कहते सुना है मीरा ने कि अगर डाक्टर स्मार्ट और वेलड्रेस्ड हो तो आधी बीमारी उसे देखते ही गायब हो जाती है. यह सोच ऐसे माहौल और ऐसी हालत में भी उस के होंठों पर मुसकान थिरकी, पर मुंह पर मास्क लगे होने से किसी को दिखाई नहीं पड़ा.

“सिस्टर, औपरेशन की तैयारी करो. इन्हें अभी लेबररूम में ले जाओ और ड्रिप लगा दो. शी इज वैरी वीक एंड एनीमिक औल्सो.”

सिस्टर को हिदायत देने के बाद वे समर से बोले, “हालांकि, अभी इन बातों का टाइम नहीं है, बट आई एम शौक्ड कि आप जैसे पढ़ेलिखे लोग अभी भी लड़कालड़की में अंतर करते हैं. शादी करने के लिए आप को लड़की चाहिए, घर संभालने के लिए लड़की चाहिए और बच्चे पैदा करने के लिए. वहीं, वंश चलाने के लिए, बेटा पैदा करने के लिए भी लड़की चाहिए तो उन्हें मारते क्यों हो? जो कोख जन्म देती है, उसी की कोख में मर्डर भी कर देते हो. बहुत दुखद बात है. आई एम सरप्राइज्ड एंड शौक्ड बोथ, मिस्टर समर. इस से भी बढ़ कर वर्तमान में लोगों की हालत देखते हुए आप को अपनी पत्नी के कोरोना संक्रमित होने या बच्चे के संक्रमित होने का डर नहीं है, बल्कि इस बात की फिक्र है कि लेडी डाक्टर है या नहीं, पेट में लड़का है या नहीं.”

समर जैसे कुछ समझ नहीं रहा था या समझना नहीं चाहता था. उसे विचारशून्य सा खड़ा देख सासुमां बोलीं, “डाक्टर साहब, इस का औपरेशन तो लेडी डाक्टर से ही कराएंगे, आप उन्हें ही बुला दो. कोई तो होगी इस समय ड्यूटी पर.”

“इस समय लेडी डाक्टर कोई नहीं है, और इंतजार करने का हमारे पास समय नहीं है. आप को तो शुक्र मनाना चाहिए कि आप की बहू को ट्रीट करने के लिए कोई है. दूसरा अस्पताल ढूंढने की कोशिश या लेडी डाक्टर का वेट करने के चलते आप मांबच्चे दोनों की जान को अगर खतरे में डालना चाहते हैं तो चौयस इज योअर, पर मैं इस की इजाजत नहीं दे सकता. और मांजी, अगर आप इसी तरह लड़कियों को मारती रहेंगी तो लेडी डाक्टर कैसे होंगी? डाक्टर ही क्या, किसी भी पेशे में कोई महिला होगी ही नहीं. इट्स शेमफुल. आई डोंट अंडरस्टेंड कि एक तरफ तो आप ने बेटी को पैदा होने से पहले ही मार दिया और दूसरी ओर लेडी डाक्टर से ही डिलीवरी करवाना चाहती हैं,” डा. मजूमदार का चेहरा सख्त हो गया था.

“पर डाक्टर साहब, सुनिए तो, थोड़ी देर रुक सकें तो रुक जाएं. हो सकता है किसी लेडी डाक्टर की ड्यूटी हो. हमें तो लेडी डाक्टर से ही बहू का औपरेशन करवाना है. क्या गजब हो रहा है समर, यह…तू कुछ कह क्यों नहीं रहा और आप क्यों चुप खड़े हैं?” सासुमां कभी अपने बेटे को तो कभी अपने पति की ओर देखते हुए बड़बड़ाए जा रही थीं.

वहां मौजूद डाक्टर और नर्स समर और उस की मां के इस नाटक को देख हतप्रभ थे. देश में लोगों को यह नहीं पता कि कोरोना के कारण वे कल सुबह का सूरज देखेंगे भी या नहीं, और एक यह मांबेटे हैं जिन्हें लेडी डाक्टर का राग अलापने से फुरसत नहीं.

मीरा यह सब सुन रही थी और अंदर ही अंदर टूट रही थी, पर उसे टूटना नहीं था बल्कि मजबूत बनना था. अभी तो उसे एक और लड़ाई लड़नी थी, अपनी आने वाली बेटी की रक्षा करनी थी. जन्म होने से पहले तो मरने से उसे बचा लिया था, पर जन्म के बाद मिलने वाली पीड़ा, अवहेलना और तिरस्कार से उसे बचाना था. स्नेह, प्यार और सम्मानसब देते हुए उसे ही परवरिश करनी होगी. किसी और से उम्मीद रखना व्यर्थ है.

फिर भी, लेबररूम की ओर जाते हुए मीरा ने सांत्वना और प्यारभरे स्पर्श की उम्मीद में बड़ी आशा से समर की ओर देखा. पर वह तो चारों ओर नजरें घुमाता हुआ एक ही बात कह रहा था, “लेडी डाक्टर कहां है? उसे बुलाओ, जल्दी, हमें लेडी डाक्टर ही चाहिए.”

Best Hindi Stories : इधर उधर – क्यो पिता और भाभी के कहने पर शादी के लिए राजी हुई तनु

Best Hindi Stories : “देखो तनु, शादीब्याह की एक उम्र होती है.  कब तक यों टालमटोल करती रहोगी. यह घूमनाफिरना, मस्तीमटरगश्ती एक हद तक ही ठीक रहती है. उस के आगे ज़िंदगी की सचाइयां रास्ता देख रही होती हैं. सभी को उस रास्ते पर जाना होता है,”  जयनाथ अपनी बेटी को रोज की तरह समझाने का प्रयास कर रहे थे.

“ठीक है पापा.  बस, यह आख़िरी बार, कालेज का ग्रुप है, अगले महीने से तो कक्षाएं ख़त्म  हो जाएंगी, फिर इम्तिहान और बाद में आगे की पढाई…”

जयनाथ ने बेटी तनु की बात को सुन कर अनसुना कर दिया. वे हर रोज़ अपना काफी वक़्त तनु के लिए रिश्ता ढूंढने में बिताते. जिस गति से जयनाथ रिश्ते ढूंढढूंढ कर लाते, उस से दुगनी रफ़्तार से तनु रिश्ते ठुकरा देती.

“ये 2 लिफ़ाफ़े हैं, इन में 2 लड़कों के फोटो और बायोडाटा हैं, देख लेना.  और हां, दोनों ही तुम से मिलने इस इतवार को आ रहे हैं. मैं ने तुम से बिना पूछे ही दोनों को घर बुला लिया है. पहला लड़का अम्बर दिन में 11 बजे और दूसरा आकाश शाम को 4 बजे.” जयनाथ ने लिफ़ाफ़े टेबल पर रखते हुए कहा, ”इन दोनों में से तुम्हें एक को चुनना है.”

तनु ने अनमने ढंग से लिफ़ाफ़े खोले और एक नज़र डाल कर लिफ़ाफ़े वहीं पटक दिए. सामने देखा, भाभी खड़ी थीं. तनु बोली,  “लगता है भाभी,  इन दोनों में से एक के चक्कर में पड़ना ही पड़ेगा. आप लोगों ने बड़ा जाल बिछाया है. अब और टालना मुश्किल सा लग रहा है.”

“बिलकुल सही सोच रही हो तनु. हमें बहुत जल्दी है तुम्हें यहां से भगाने की. ये दोनों रिश्ते बहुत ही अच्छे हैं.  अब तुम्हें फैसला करना है, अम्बर या आकाश. पापामम्मी ने पूरी तहकीकात कर के ही तुम तक ये रिश्ते पहुंचाए हैं. आख़िरी फैसला तुम्हारा ही होगा.”

“अगर दोनों ही पसंद आगए तो?” तनु ने हंसते हुए कहा तो भाभी मुसकराए बगैर नहीं रह पाईं, बोलीं,  “तो कर लेना दोनों से.”

तनु सैरसपाटे और मौजमस्ती करने में विश्वास रखती थी. मगर साथ ही, वह पढ़ाईलिखाई और अन्य गतिविधियों में  भी अव्वल थी. कई संजीदा मसलों पर उस ने डिबेट के जरिए अपनी आवाज़ सरकार तक पहुंचाई थी. घर में भी देशविदेश के कई चर्चित विषयों पर अपने भैया और जयनाथ से बहस करती व अपनी बात मनवा के ही दम लेती . यह भी एक कारण था कि उस ने कई रिश्ते नामंजूर कर दिए थे.

उसे लगता था कि उस के सपनों का राजकुमार किसी फिल्म के नायक से कम नहीं होना चाहिए. हैंडसम, डैशिंग, व्यक्तित्व ऐसा कि चलती हवा भी उस के दीदार के लिए रुक जाए. ऐसी ही छवि लिए वह हर रात को सोती.  उसे यकीन था कि उस के सपनों का राजकुमार एक दिन ज़रूर उस के सामने होगा.

रविवार को भाभी ने जबरदस्ती उठा कर उसे 11 बजे तक तैयार कर दिया. लाख कहने के बावजूद, उस ने न कोई मेकअप किया न कोई ख़ास कपडे पहने. तय समय पर ड्राइंगरूम में बैठ कर सभी मेहमानों का इंतज़ार करने लगे. करीब आधे घंटे के इंतज़ार के एक गाडी आ कर रुकी और उस में से एक बुज़ुर्ग दंपती उतरे.

तनु ने फ़ौरन सवाल दाग दिया, “आप लोग अकेले ही आए हैं, अम्बर कहां है?” तनु के इस सवाल ने जयनाथ व अन्य को सकते में डाल दिया. इस के पहले कि कोई कुछ जवाब देता, एक आवाज़ उभरी, “मैं यहां हूं, मोटरसाइकिल यहीं लगा दूं?”

तनु ने देखा, तो उसे अपलक  देखते रह गई.  इतना  खूबसूरत बांका नौजवान बिलकुल उस के सपने से मिलताजुलता. उसे लगा, कहीं वह ख्वाब तो नहीं देख रही. इतना बड़ा सुखद आश्चर्य और वह भी इतना ज़ल्दी… तनु की तंद्रा तब भंग हुई जब युवक मोटरसाइकिल पार्क करने की इज़ाज़त मांग रहा था.”

“हां बेटा, जहां इच्छा हो, लगा दो,” जयनाथ ने कहा.

अम्बर ने मोटरसाइकिल लगाई और सभी घर के अंदर दाखिल हो गए. इधरउधर की औपचारिक वार्त्तालाप के बाद तनु बोल पडी, “अगर आप लोग इज़ाज़त दें तो मैं और अम्बर थोड़ा बाहर घूम आएं?”

“गाडी में चलना चाहेंगी या…” अम्बर ने पूछना चाहा, तनु फ़ौरन बोल पड़ी, “मोटरसाइकिल पर, मेरी फेवरेट सवारी है.”

थोड़ी ही देर में अम्बर की मोटरसाइकिल हवा से बातें कर रही थी. समंदर के किनारे फर्राटे से दौड़ती मोटरसाइकिल में बैठ कर तनु खुद को किसी अन्य दुनिया में महसूस कर रही थी. “नारियल पानी पीना है,”  तनु ने जोर से कहा. “पूछ रही हैं या कह रही हैं?”

“कह रही हूं, तुम्हें पीना हो तो पी सकते हो.”

अम्बर ने फ़ौरन मोटरसाइकिल घुमा दी. विपरीत दिशा से आती गाड़ियों के बीच मोटरसाइकिल को कुशलता से निकालते हुए दोनों नारियल पानी वाले के पास पहुंच गए. अम्बर ने एक सांस में ही नारियल पानी ख़त्म कर दिया और नारियल वाले को उछल कर जेब से पर्स निकाल कर पैसे दे दिए, “मैं ने अपने नारियल के पैसे दे दिए, आप अपने दे दीजिए.

तनु अवाक हो कर अम्बर को ताकने लगी.

“बुरा मत मानिएगा तनु जी, आप का मेरा अभी कोई रिश्ता नहीं है, मैं क्यों आप पर खर्च करूं?”

तनु हार मानने वालों में से नहीं थी, “और जो आप के मातापिता हमारे घर पर काजू, किशमिश और चायकौफी उड़ा रहें हैं, उस का क्या?”

“बात तो सही है. हम दिल्ली वाले हैं, मुफ्त के माल पर हाथ साफ़ करना हमें खूब आता है,” अम्बर ने हंसते हुए कहा, “चिंता न करें, मैं दोनों के पैसे दे चुका हूं, नारियल वाला छुट्टा करवाने गया है.“ अम्बर की इस बात पर तनु हंसे बगैर नहीं रह पाई.

अम्बर के जूते मिटटी में सन गए थे. उस ने पौलिश वाले बच्चे से जूते पौलिश करवाए. तब तक नारियल वाला आ चुका था.

“आप ने देशविदेश में कहां की सैर की है?” तनु ने पूछा तो मानो अम्बर के पास जवाब हाज़िर थे, “यह पूछिए कहां नहीं गया.  नौकरी ही ऐसी है, पूरा एशिया और यूरोप का कुछ हिस्सा मेरे पास है. आनाजाना लगा रहता है.”

“क्या फर्क लगता है आप को अपने देश में और परदेस में?

“इस का क्या जवाब दूं, सभी जानते हैं, हम हिंदुस्तानी कानून तोड़ने में विश्वास करते हैं. नियम न मानना हमारे लिए गर्व की बात है. वहां के तो जानवर भी कायदेकानून की हद से बाहर नहीं जाते.”

“फिर क्या होगा अपने देश का?”

“जहां तक देश का सवाल है, सबकुछ चल ही रहा है और चलता रहेगा. युवा विदेशों की तरफ भाग रहे हैं और सरकार उन्हें रोकने का कोई ठोस कार्यक्रम नहीं बना रही. अब मुंबई को ही देख लीजिए, नेता सरकार बनाने के लिए अपनी सोच और अपना दल बदलते रहते हैं और लोग अपना दिल.” एक पल के लिए रुक कर अम्बर ने एक नज़र घुमाई और फिर बोला, “ फिलहाल तो यह सोचिए कि हमारा क्या होगा, आसमान पर बादल छा रहे हैं और मेरे 10 तक की गिनती गिनने तक बरसात हमें अपनी आगोश में ले लेगी.”

‘घर तो जाना ज़रूरी है. मेरी दूसरी शिफ्ट भी है,’  तनु मन ही मन बुदबुदाई और फिर ऊंची आवाज़ में बोली, “चलते हैं. और अगर भीग भी गए तो मुझे फर्क नहीं पड़ता, मुझे बरसात में भीगना पसंद है.”

“मुझे भी,” अम्बर ने मोटरसाइकिल स्टार्ट करते हुए कहा, “ मगर, यों भीगने से पहले थोड़ा इंतजार करना अच्छा नहीं रहेगा? चलिए, पास में ही ताज के रेस्तरां में एक कप कौफ़ी हो जाए, यह मेरा रोज़ का सिलसिला है.”

तनु ने मुसकरा कर हामी भर दी. अगले चंद ही मिनटों में वे दोनों ताज के रेस्तरां में थे. अम्बर ने ऊंची आवाज़ में वेटर को आवाज़ दी और जल्दी से 2 कप कौफ़ी लाने का और्डर दिया. कौफ़ी ख़त्म कर के अम्बर ने एक बड़ा नोट बतौर टिप वेटर को दिया और दोनों बाहर आ गए. बारिश रुकने के बजाय और भी उग्र हो चुकी थी.

पूरे रास्ते तेज बरसात में भीगते हुए तनु को बहुत आनंद आ रहा था. घर पहुंचतेपहुंचते दोनों तरबतर हो चुके थे. अम्बर के मातापिता मानो उन का इंतजार ही कर रहे थे. उन के आते ही औपचारिक बातचीत कर के सभी वहां से चल पड़े.

“कैसा लगा लड़का?”  भाभी ने उतावलेपन से पूछा तो तनु ने स्पष्ट कर दिया, “भाभी, दूसरे लड़के को मना ही कर दो, कह दो मेरी तबीयत ठीक नहीं है. मुझे अम्बर पसंद है.”

“तनु, अब अगर वे आ ही रहे हैं, तो आने दो.  कुछ समय गुजार कर उन्हें रुखसत कर देना. कम से कम हमारी बात रह जाएगी.”

“लेकिन भाभी, जब मुझे अम्बर पसंद है तो इस स्वयंबर की क्या ज़रूरत है?

ठीक 4 बजे एक लंबीचौड़ी गाडी आ कर रुकी. गाडी में से एक संभ्रांत उम्रदराज़ जोड़ा और एक नवयुवक उतरा. पूरे परिवार ने बड़े ही सम्मान से उन का स्वागत किया.

तनु ने एक नज़र लड़के पर डाली और उस के मुंह से अनायास ही निकल गया, “आप सूटबूट में तो ऐसे आए हैं, मानो किसी इंटरव्यू में आए हों?” जयनाथ ने इशारे से तनु को हद में रहने को कहा.

जवाब में सब ने एक ठहाका लगाया और युवक ने बिना झिझके कहा, “आप सही कह रही हैं, एक तरह से मैं एक इंटरव्यू से दूसरे इंटरव्यू में आया हूं. दरअसल, हम यहां का कामा होटल खरीदने का इरादा बना रहे हैं. अभी उन के निदेशकों से मीटिंग थी. वह किसी इंटरव्यू से कम नहीं थी. और यह भी किसी इंटरव्यू से कम नहीं.”

तनु को कोई उत्तर नहीं सूझा. मगर, इधरउधर की औपचारिक बातें करने के वह मुख्य मुद्दे पर आ गई और उस ने कह दिया, “अगर आप लोग इज़ाज़त दें तो मैं और आकाश थोड़ा समय घर से बाहर…”

“हां ज़रूर,” लगभग सब ने एकसाथ कहा.

आकाश ने ड्राइवर से चाबी ली और तनु के लिए गाडी का दरवाज़ा खोल कर बैठने का आग्रह किया. तनु की फरमाइश पर गाड़ी ने गेटवे औफ़ इंडिया का रुख किया.  “यहां से एक शौर्टकट है, आप चाहें, तो ले सकते हैं, 15-20 मिनट बच जाएंगे.” “तनु जी, आप भूल रही हैं कि इधर नो एंट्री है,”  आकाश ने कहा. फिर, मानो उसे कुछ याद आया, बोला, “अगर आप बुरा न मानें, तो मैं रास्ते में सिर्फ 10 मिनटों के लिए होटल कामा में रुक जाऊं. वहां के निर्दशकों का मैसेज आया है, वे मुझ से मिलना चाहते हैं.”

तनु ने अनमने मन से हां कर दी. आकाश ने तनु को कौफी शौप में बिठाया. वेटर को आवाज़ दे कर कौफी और चिप्स का और्डर दिया और खुद माफी मांग कर बोर्डरूम की तरफ चला गया. ठीक 10 मिनट के बाद जब आकाश आया तो उस के चेहरे पर खुशी और विजय के भाव थे. “मेरा पहला इंटरव्यू कामयाब हुआ. यहां की डील फाइनल हो गई है. तनु जी,  आप हमारे लिए बहुत लकी साबित हुईं,” यह कह कर अम्बर ने वेटर से बिल लाने को कहा. मैनेजर ने बिल बनाने से इनकार कर दिया, बोला, “यह हमारी तरफ से.”

“नहीं मैनेजर साहब, अभी हम इस होटल के मालिक बने नहीं हैं. और बन भी जाएं, तो भी मैं नहीं चाहूंगा कि हमें या किसी और को कुछ भी मुफ्त में दिया जाए. मेरा मानना है की मुफ्त में सिर्फ खैरात बांटी जाती है और खैरात इंसान की अगली नस्ल तक को बरबाद करने के लिए काफी होती है.”

होटल के बाहर निकल कर आकाश ने तनु की ओर नज़र डाली और कहा, “बहुत दिनों से लोकल  में सफ़र करने की इच्छा थी, आज छुट्टी का दिन है, भीड़भाड़ भी कम होगी. क्यों न हम यहां से लोकल ट्रेन में चलें, फिर वहां से टैक्सी…” तनु ने अविश्वास से आकाश की ओर देखा और दोनों स्टेशन की तरफ चल पड़े.

“आप तो अकसर विदेश जाते रहते होंगे,  क्या फर्क लगता है हमारे देश में और विदेशों में?

“सच कहूं तो लंदन स्कूल औफ़ इकोनौमिक्स से डिग्री लेने के बाद मैं विदेश बहुत कम बार गया हूं. आजकल के जमाने में इंटरनैट पर सबकुछ मिल जाता है और जहां तक घूमने की बात है, यूरोप की छोटीमोटी भुतहा इमारतें, जिन्हें वे कैशल के नमूने कहते हैं और प्रवेश के लिए बीसों यूरो ले लेते हैं, उन के मुकाबले बीकानेर या जैसलमेर के महल और किले मुझे ज्यादा भव्य लगते हैं. स्विट्ज़रलैंड से कहीं अच्छा हमारा कश्मीर है, सिक्किम है, अरुणाचल है.  बस, ज़रूरत है सफाई की, सुविधाओं की और ईमानदारी की.”

“जो हमारे यहां नहीं है, है न?” तनु ने प्रश्न किया.

“आप इनकार नहीं कर सकतीं कि बदलाव आया है और अच्छी रफ़्तार से आया है. जागरूकता बढ़ी है, देश की प्रतिष्ठा बढी है, हमारे पासपोर्ट की इज्ज़त होनी शुरू हो गई है. आज का भारत कल के भारत से कहीं अच्छा है और कल का भारत आज के भारत से लाख गुना अच्छा होगा.”

“आप तो नेताओं जैसी बात करने लगे आकाश जी,” तनु को उस की बातों में कोई दिलचस्पी नहीं थी.

गेटवे के किनारे तनु ने नारियल पानी पीने की इच्छा जाहिर कर दी. दोनों ने नारियल पानी पिया.  इसी दौरान आकाश ने पास में फुटबौल खेल रहे बच्चों के साथ कुछ समय गुजारा. “बड़े दिनों बाद आज फुटबौल  पर हाथ साफ़ किया है, या यों कहूं कि पैर साफ़ किया है. हमारे क्लब में तो गोल्फ, स्क्वाश, टेनिस आदि खेल कर ही लोग खुश होते रहते हैं. शायद, यही खेल उन का परिचय है. इन्हीं खेलों की ट्रौफी उन की पहचान है,” यह कहने के साथ आकाश के चेहरे पर मुसकान थी. आकाश के जूते मिटटी से सन गए थे.  पौलिश करने वाले दोतीन बच्चों ने उसे घेर लिया और पौलिश करवाने का आग्रह करने लगे. आकाश उन सब को ले कर कोने में गया मानो उन से कोई ज़रूरी मंत्रणा करनी हो.

सही कहा गया है कि इंसान के हालात का और मुंबई की बरसात का कोई भरोसा नहीं. एक बार फिर बादलों ने पूरे माहौल को अपनी आगोश में कर लिया और चारों ओर रात जैसा अंधेरा छा गया. अगले ही पल मोटीमोटी बूंदों ने दोनों को भिगोना शुरू कर दिया. दोनों ने भाग कर पास की एक छप्परनुमा दुकान में घुस कर गरमगरम भुट्टों पर अपना हाथ साफ़ कर दिया. आकाश ने जेब से पैसे निकाले और भुट्टे वाली बुज़ुर्ग महिला के हाथ में थमा दिए. उस की नज़र उमड़ते बादलों पर ही थी. प्रश्नवाचक दृष्टि से उस ने तनु की ओर देखा और दोनों बाहर निकल गए.  टैक्सी लेने की तमाम कोशिशें नाकामयाब होने के बाद दोनों स्टेशन की ओर पैदल ही निकल पड़े. रास्ते में आकाश ने ड्राइवर को फ़ोन कर के कामा होटल से गाड़ी ले कर स्टेशन पर आने को कह दिया .

घर पहुंचतेपहुंचते रात हो चुकी थी. आकाश और उस के परिवार वालों ने इज़ाज़त मांगी. उन के जाते ही जयनाथ कुछ कहने के लिए मानो तैयार ही थे, “कितने पैसे वाले लोग हैं, मगर कोई मिजाज़ नहीं, कोई घमंड नहीं.  हम जैसे मिडिल क्लास वालों की लड़की लेना चाहते हैं. दहेज़ की मांग नहीं, यहां तक कि…”

“तो मुझे क्या करना चाहिए, अम्बर के बजाय आकाश को पसंद कर लेना चाहिए क्योंकि आकाश करोड़पति है. उस के मातापिता घमंडी नहीं हैं. वे धरातल से जुड़े हैं. और सब से बड़ी बात कि उन्हें हम, हमारा परिवार,  हमारी सादगी पसंद हैं. मेरी पसंद मैं भाभी को सुबह ही बता चुकी हूं. आकाश से मिलने के बाद मेरी पसंद में  कोई तबदीली नहीं आई है.”

“ठीक है, इस बारे में हम बाकी बातें कल करेंगे,” जयनाथ ने लगभग पीछा छुडाते हुए कहा.

रात के करीब 2 बजे तनु ने भाभी को फ़ोन मिलाया, “भाभी, मुझे आप से मिलना है. भैया तो बाहर गए हैं. ज़ाहिर है आप भी जग रही होंगी. मुझे अम्बर के बारे में कुछ बात करनी है. मै आ जाऊं?”

“तनु, मैं गहरी नींद में हूं. हम सुबह मिलें?”

“मैं तो आप के दरवाज़े पर ही हूं. गेट खोलेंगी या खिड़की से आना पड़ेगा?”

अगले ही पल तनु अंदर थी. बातों का सिलसिला शुरू करते हुए भाभी ने तनु से पूछा, “तुम मुझे अपना फैसला सुना चुकी हो. अब इतनी रात मेरी नींद क्यों खराब कर रही हो?”

“भाभी, अम्बर को फ़ोन कर के कहना है कि मैं उस से शादी नहीं कर सकती.”

“क्या?”  भाभी को लगा कि वह अभी भी नींद में ही है. पलक झपकते ही तनु ने अम्बर को फ़ोन लगा दिया, “हेलो अम्बर, मैं तनु बोल रही हूं. मैं इधरउधर की बात करने के बजाय सीधा मुद्दे पर आना चाहती हूं.”

“ठीक है, जल्दी बता दो. मैं इधर हूं या उधर.”

“इधरउधर की छोड़ो और सुनो, सौरी यार, मैं तुम से शादी नहीं कर सकती.”

“ठीक है, मगर इतनी रात को क्यों बता रही हो, सुबह बतातीं?”

“सुबह तक मेरा दिमाग बदल गया तो…? तुम हो ही ऐसे कि तुम्हें मना करना बहुत मुश्किल है.”

“अच्छा, औल द बेस्ट. अब सो जाओ और मुझे भी सोने दो. किसी उधर वाले से शादी तय हो जाए तो जगह, तारीख वगैरह बता देना, मैं आ जाऊंगा, मुफ्त का खाना खा कर चला आऊंगा.”

“मुफ्ती साहब, गिफ्ट लाना पड़ेगा.  शादी में खाली लिफ़ाफ़े देने का रिवाज़ दिल्ली में होगा, मुंबई में नहीं.”

“ठीक है, दोचार फूल ले आऊंगा. अब मुझे सोने दो. सुबह मेरी फ्लाइट है.”

भाभी, सकते में थीं.”  यह सब क्या है तनु? तुम तो अम्बर पर फ़िदा हो गई थीं. क्या आकाश का पैसा तुम्हें आकर्षित कर गया, क्या उस की बड़ी गाड़ी अम्बर की मोटरसाइकिल से आगे निकल गई?”

“भाभी, अम्बर पर फ़िदा होना स्वाभाविक है. ऐसे लड़के के साथ घूमनाफिरना मजे करना अच्छा लगेगा.  मगर शादी ऐसा बंधन है जिस में एक गंभीर, संजीदा इंसान चाहिए न कि कालेज से निकला हुआ एक हीरोनुमा लड़का. हम घर से बाहर निकले, आकाश ने पूरी शिद्दत के साथ ट्रैफिक के सारे नियमों का पालन किया. मेरे लाख कहने के बावजूद उस ने गाड़ी नो एंट्री में नहीं घुमाई.  अपने देश के बारे में उस के विचार सकारात्मक थे. उसे देश से कोई शिकायत न थी. रेस्तरां में वेटर से इज्ज़त से बात की, न कि उसे वेटर कह कर आवाज़ दी. मुफ्त का खाने के बजाय उस ने पैसे देने में अपनी खुद्दारी समझी.  बड़ी गाड़ी छोड़ कर लोकल ट्रेन में जाने में उसे कोई परहेज नहीं.  नारियल पानी पी कर उस ने नारियल एक ओर उछाला नहीं, बल्कि डस्टबिन की तलाश की. पौलिश करने वाले बच्चों को कोने में ले गया और उन्हें स्कूल जाने के लिए प्रेरित किया. सब को कौपीपेंसिल खरीदने के लिए पैसे दिए. भुट्टे वाली माई को उस ने जब मुट्ठीभर के पैसे दिए तो उस का सारा ध्यान इस पर था कि मैं कहीं देख न लूं. इतने पैसे उस भुट्टे वाली ने एकसाथ कभी नहीं देखे होंगे… इतने  संवेदनशील व्यक्तित्व के मालिक के सामने मै एक प्यारे से हीरो को चुन कर जीवनसाथी बनाऊं, इतनी बेवकूफ मैं लगती ज़रूर हूं मगर हूं नहीं..”

भाभी, सिर पर हाथ रख कर बैठ गईं.

“क्या सिरदर्द हो रहा है?”

“ नहीं, बस, चक्कर से आ रहे हैं.”

“रुको, अभी सिरदर्द भी हो जाएगा,” तनु ने कहा तो भाभी बोल पड़ीं, “अब क्या बाकी है?”

तनु ने फ़ोन उठाया और एक नंबर मिलाया, “हेलो आकाश,  मैं ने फैसला कर लिया है, मुझे आप पसंद हैं. मैं आप से शादी करने को तैयार हूं. मुझे पूरा यकीन है कि मैं भी आप को पसंद हूं.”

“तुम ने फैसला ले कर मुझे बताने का समय जो चुना वह वाकई काबिलेतारीफ़ है,” दूसरी ओर से आवाज़ आई.

“है न, मगर भाभी इस बात को मानती ही नहीं. देखो, मुझे धक्के मार कर अपने कमरे से बाहर निकालने को उतारू हैं…”

Hindi Moral Tales : कार पूल – कौनसी नादानी कर बैठी थी श्रेया

Hindi Moral Tales :  अर्पित अहमदाबाद एक संभ्रांत परिवार का लड़का था. लड़का क्या, नवयुवक था. सरकारी नौकरी करते हुए 6 माह हो चुके थे. उस के पास स्वयं की कार थी, लेकिन वह पूल वाली कैब से औफिस जाना पसंद करता था. शहर में कैब की सर्विस बहुत अच्छी थी.

अर्पित खुशमिजाज इनसान था. कैब में सहयात्रियों और कैब चालक से बात करना उस को अच्छा लगता था.

उस दिन भी वह औफिस से घर वापसी आते हुए रोज की तरह शेयरिंग वाली कैब से आ रहा था. रास्ते में श्रेया नाम की एक और सवारी उस कैब में सवार होनी थी.

अर्पित की आदत थी कि शेयरिंग कैब में वह पीछे की सीट पर जिस तरफ बैठा होता था, उस तरफ का गेट लौक कर देता था. उस दिन भी ऐसा ही था. श्रेया को लेने जब कैब पहुंची, तो उस ने अर्पित वाली तरफ के गेट को खोल कर बैठने की कोशिश की, पर गेट लौक होने के कारण उस का गेट खोलने में असफल रही श्रेया झल्ला कर कार की दूसरी तरफ से गेट खोल कर बैठ गई. युद्ध की स्थिति तुरंत ही बन गई और सारे रास्ते अर्पित और श्रेया लड़ते हुए गए.

घर आने पर अर्पित उतर गया. श्रेया के लिए ये वाकिआ बरदाश्त के बाहर था. असल में श्रेया को अपने लड़की होने का बहुत गुरूर था. आज तक उस ने लड़को को अपने आसपास चक्कर काटते ही देखा था. कोई लड़का इतनी बुरी तरह से उस से पहली बार उलझा था. श्रेया के तनबदन में आग लगी हुई थी.

अर्पित का घर श्रेया ने उस दिन देख ही लिया था. नामपते की जानकारी से श्रेया ने अर्पित के बारे में सबकुछ पता कर लिया और तीसरे ही दिन अर्पित के घर से 50 मीटर दूर आ कर लगभग उसी समय के अंदाजे के साथ कैब बुकिंग का प्रयास किया. जब अर्पित सुबह औफिस के लिए निकलता था.

श्रेया का भाग्य कहिए या अर्पित का दुर्भाग्य, श्रेया को अर्पित वाली कैब में ही बुकिंग मिल गई, एक कुटिल मुसकान कैब वाले एप पर ‘‘अर्पित के साथ पूल्ड‘‘ देख कर श्रेया के चेहरे पर तैर गई.

जिस तरफ श्रेया खड़ी थी, उसी तरफ कैब आती होने के कारण श्रेया को पिक करती हुई कैब अर्पित के घर के सामने रुकी. अर्पित बेखयाली में ड्राइवर के बगल वाली सीट पर सवार हो गया, तभी उसे पीछे से खनकती हुई आवाज आई, ‘‘कैसे हो अर्पितजी ?”

अर्पित ने चैंकते हुए पीछे मुड़ कर देखा, तो श्रेया सकपका गई, क्योंकि 3 दिन पुराना वाकिआ उसे याद आ गया लेकिन आज श्रेया के बात की शुरुआत करने का अंदाज ही अलग था, सो धीरेधीरे श्रेया और अर्पित की बातचीत दोस्ती में बदल गई.

दोनों का गंतव्य अभी बहुत दूर था. अर्पित कैब को रुकवा कर पीछे वाली सीट पर श्रेया के बगल में जा कर बैठ गया. एकदूसरे के फोन नंबर लिएदिए गए. अर्पित अपना औफिस आने पर उतर गया और श्रेया ने गरमजोशी से हाथ मिला कर उस को विदा किया.

अर्पित के मानो पंख लग गए. औफिस में अर्पित सारे दिन चहकाचहका रहा. दोपहर में श्रेया का फोन आया, तो अर्पित का तनबदन झूम उठा. श्रेया ने उस को लंच साथ करने का प्रस्ताव रखा, जो उस ने सहर्ष स्वीकार कर लिया.

दोपहर तकरीबन 1 बजे दोनों अर्पित के औफिस से थोड़ी दूर एक रेस्तरां में मिले और साथ लंच लिया.

अब तो यह लगभग रोज का ही किस्सा बन गया. औफिस के बाद शाम को भी दोनों मिलने लगे और साथसाथ घूमतेफिरते दोनों के बीच में जैसे प्यार के अंकुर फूट के खिलने लगे.

एक दिन श्रेया ने अंकुर को दोपहर में फोन कर के बताया कि शाम तक वह घर में अकेली है और अगर अर्पित उस के घर आ जाए, तो दोनों ‘अच्छा समय‘ साथ बिता सकते हैं. अर्पित के सिर पर प्यार का भूत पूरी तरह से चढ़ा हुआ था. अपने बौस को तबीयत खराब का बहाना बना कर अर्पित श्रेया के घर के लिए निकल पड़ा.

आने वाले किसी भी तूफान से बेखबर, मस्ती और वासना में चूर अर्पित श्रेया के घर पहुंचा और डोरबैल बजाई. एक मादक अंगड़ाई लेते हुए श्रेया ने अपने घर का दरवाजा खोला.

श्रेया के गीले और खुले बाल और नाइट गाउन में ढंका बदन देख कर अर्पित की खुमारी और परवान चढ़ गई. श्रेया ने अर्पित को अंदर ले कर गेट बंद कर दिया.

कुछ ही देर में दोनों एकदूसरे के आगोश में आ गए और एक प्यार भरे रास्ते पर निकल पड़े.

अर्पित ने श्रेया के बदन से कपड़े जुदा करने में कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई. उस ने श्रेया के पूरे बदन पर मादकता से फोरप्ले करते हुए समूचे जिस्म को प्यार से सहलाया.

धीरेधीरे अब अर्पित श्रेया के बदन से कपड़े जुदा करने लगा. एकाएक ही श्रेया जोरजोर से चिल्लाने लगी. अर्पित को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह चिल्ला क्यों रही है. कुछ ही पलों में अड़ोसपड़ोस के बहुत से लोग जमा हो गए और श्रेया के घर के अंदर आ गए.

श्रेया ने चुपचाप मेन गेट पहले ही खोल दिया था. श्रेया ने सब को बताया कि अर्पित जबरदस्ती घर में घुस कर उस का बलात्कार करने की कोशिश कर रहा था. उन मे से एक आदमी ने पुलिस को फोन कर दिया. ये सब इतनी जल्दी हुआ कि अर्पित को सोचनेसमझने का मौका नहीं मिला. थोड़ी ही देर बाद अर्पित सलाखों के पीछे था.

श्रेया ने उस दिन की छोटी सी लड़ाई का विकराल बदला ले डाला था.

जेल में 48 घंटे बीतने के साथ ही अर्पित को नौकरी से सस्पैंड किया जा चुका था. अर्पित को अपना पूरा भविष्य अंधकरमय नजर आने लगा और कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था.

कोर्ट में कई बार पेश किए जाने के उपरांत आज जज ने उस के लिए सजा मुकर्रर करने की तारीख रखी थी. अंतिम सुनवाई के उपरांत जज साहिबा जैसे ही अपना फैसला सुनाने को हुईं, अचानक ही इंस्पैक्टर प्रकाश ने कोर्ट मे प्रवेश करते हुए जज साहिबा से एक सुबूत पेश करने की इजाजत मांगी. मामला संगीन था और जज साहिबा बड़ी सजा सुनाने के मूड में थीं, इसलिए उन्होंने इंस्पैक्टर प्रकाश को अनुमति दे दी.

इंस्पैक्टर प्रकाश के साथ अर्पित का सहकर्मी विकास था और विकास के मोबाइल में अर्पित और श्रेया के बीच हुए प्रेमालाप की और श्रेया के मादक आहें भरने और अर्पित की वासना को और भड़काने के लिए प्रेरित करने की समूची औडियो रिकौर्डिंग मौजूद थी. दरअसल, जिस समय दोनों का प्रेमालाप शुरू होने वाला था, उसी समय विकास ने अर्पित की तबीयत पूछने के लिए उस को फोन मिलाया था और अर्पित ने गलती से फोन काटने के बजाय रिसीव कर के बेड के एक तरफ रख दिया था. विकास ने सारी काल रिकौर्ड कर ली थी.

श्रेया और अर्पित के बीच हुआ सारा वार्तालाप और श्रेया की वासना भरी आहें व अर्पित को बारबार उकसाने का प्रमाण उस सारी रिकौर्डिंग से सर्वविदित हो गया.

अदालत के निर्णय लिए जाने वाले दिन पूर्व में श्रेया द्वारा रूपजाल में फंसाए हुए अनिल ने भी अदालत में श्रेया के खिलाफ बयान दिया, जिस से श्रेया का ऐयाश होना और पुख्ता हो गया.

अदालत ने तमाम सुबूतों को मद्देनजर रखते हुए यह संज्ञान लिया कि श्रेया एक ऐयाश लड़की थी और भोलेभाले नौजवानों को अपने रूपजाल में फंसा कर उन के पैसों पर मौजमस्ती और ऐश करती थी. एक बेगुनाह नौजवान की जिंदगी बरबाद होने से बच गई. श्रेया को चरित्रहीनता और झूठे आरोप लगा कर युवक को बरबाद करने का प्रयास करने का आरोपी करार देते हुए जज ने जम कर फटकार लगाई. जज ने श्रेया को भविष्य में कुछ भी गलत करने पर सख्त सजा की चेतावनी देते हुए अर्पित को बाइज्जत बरी करने के आदेश दिए.

अर्पित ने मन ही मन ऊपर वाले का शुक्रिया अदा करते हुए भविष्य में एक सादगी भरी जिंदगी जीने का निर्णय लिया.

लेखक- पवन सिंघल

Moral Stories in Hindi : नासमझी

Moral Stories in Hindi :  घड़ी पर नजर पड़ते ही नाइशा बैग उठा कर तुरंत घर से बाहर निकल गई. तभी पीछे से विवान ने आवाज दी, ‘‘लौटते समय घर का कुछ सामान लाना है.’’

‘‘विवान कितनी बार कहा है जाते समय  यह सब मत बताया करो.’’

‘‘तुम्हें फुरसत ही कहां रहती है बात करने की,’’ विवान बोला.

नाइशा इस समय इन बातों में उलझना नहीं चाहती थी. अत: बोली, ‘‘ठीक है मुझे मैसेज कर लिस्ट भेज देना आते हुए ले आऊंगी,’’ और गाड़ी स्टार्ट कर घर से निकल गई.

नाइशा को विवान पर झुंझलाहट हो रही थी जो अकसर घर से निकलते हुए उसे इसी तरह से सामान के बहाने रोक दिया करता था. उसे यह जरा भी अच्छा न लगता. रास्तेभर वह विवान पर झुंझलाती रही. गनीमत थी वह सही समय पर औफिस पहुंच गई. पार्किंग में गाड़ी खड़ी कर वह सीधे अपने कैबिन में पहुंची. उस की सांसें अभी तक फूल रही थी. उस ने बैग मेज पर रखा और सीट पर आराम से पसर गई.

सामने की सीट पर बैठी रूही उसे ध्यान से देख रही थी. रूही उस की सीनियर थी. थोड़ी देर बाद रिलैक्स हो कर उस ने बैग खोल कर चश्मा निकाला और अपने काम पर लग गई.

तभी विवान ने उसे मैसेज कर दिया. घर के कुछ जरूरी सामान के अलावा उस में उस का अपना भी कुछ सामान लिखा हुआ था. उसे पढ़ कर उस की खीज और बढ़ गई. वह बड़बडाई, ‘‘हद होती है.विवान अपने लिए रेजर तक भी खुद नहीं ला सकता. वह भी उसे ही ले कर जाना होता है.’’

रूही कई दिनों से नोटिस कर रही थी कि नाइशा हमेशा इसी तरह भागती दौड़ती औफिस आती और यहां आते ही थोड़ी देर के लिए कुरसी पर पसर जाती फिर उस के बाद काम शुरू करती.

तभी मोहन चाय ले कर आ गया. रूही ने उसे अपना कप भी नाइशा की मेज पर रखने का इशारा किया और उठ कर उस के पास आ गई.

‘‘सबकुछ ठीक तो है नाइशा? देख रही हूं औफिस में घुसते हुए तुम्हारे चेहरे पर बड़ा तनाव रहता है. ऐसी हालत में तुम गाड़ी चला कर आती हो. तुम्हें अपना खयाल रखना चाहिए.’’

रूही बोली तो नाइशा अपने को रोक नहीं सकी, ‘‘पता नहीं क्यों हमेशा औफिस आते हुए विवान मु?ो किसी ने किसी काम के बहाने रोक देते हैं. इस से मु?ो देर हो जाती है और मेरी खीज भी बढ़ जाती है.’’

‘‘उन की बात का बुरा नहीं मानना चाहिए. छोटीछोटी बातों पर इसी तरह ब्लड प्रैशर बढ़ाओगी तो काम कैसे चलेगा?’’

‘‘विवान दिनभर घर पर रहते हैं. वर्क फ्रौम होम करते हैं. मुझे औफिस आना होता है. उस के बावजूद घर के सब काम मुझे ही देखने होते हैं. वे काम में मेरा जरा भी हाथ नहीं बंटाते. यहां तक कि दोपहर का लंच भी मुझे ही बना कर आना होता है.’’

‘‘आज के समय में गृहस्थी पतिपत्नी दोनों मिल कर चलाते हैं. तुम दोनों एकदूसरे को कब से जानते हो?’’

‘‘हम एकसाथ कालेज में पढ़ते थे. हमारी दोस्ती बहुत पुरानी है. इंजीनियरिंग करते ही हम ने घर वालों की मरजी के खिलाफ शादी कर ली. वे अपने घर का इकलौता बेटे हैं. मैं 3 भाईबहनों में सब से छोटी हूं. मुझे घर पर मम्मी के साथ काम करने की आदत थी लेकिन विवान को नहीं. शुरूशुरू में मैं ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया और सब काम खुद ही निबटा लेती थी. मुझे उन के लिए काम करना अच्छा लगता था. नौकरी की शुरुआत के साथ ही कोरोना आ गया और हम दोनों वर्क फ्रौम होम करने लगे. घर पर रह कर मैं औफिस के काम के साथ घर को भी अच्छे से देख लेती थी. अब जब महामारी खत्म हो गई तो मुझे औफिस आना पड़ता है. वे अभी भी घर से काम करते हैं. इस से मेरी भागदौड़ काफी बढ़ गई है. यह बात वे नहीं समझते.’’

‘‘थोड़ा सब्र रखो नाइशा. कुछ समय बाद वे भी औफिस जाने लगेंगे तो तुम्हारी जिंदगी फिर से पटरी पर आ जाएगी और तुम्हारी परेशानी दूर हो जाएगी,’’ रूही बोली.

उस की बातों से नाइशा को थोड़ी तसल्ली मिली. वे दोनों हमउम्र तो नहीं थीं लेकिन रूही उस का काफी खयाल रखती थी. नाइशा औफिस से घर जाते हुए बाजार की खरीदारी करती हुई जाती. सागसब्जी से ले कर घर का दूसरा सारा सामान उसे ही लाना पड़ता था. इस के अलावा विवान को जो कुछ चाहिए होता उसे लेने भी वह घर से बाहर न निकलता. उस ने कई बार यह बात उठाई भी लेकिन उस ने इस पर ध्यान नहीं दिया.

‘‘नाइशा तुम जानती हो घर से काम करते हुए मैं जरा देर के लिए भी कंप्यूटर के आगे से हट नहीं सकता. कम से कम तुम औफिस के बहाने घर से बाहर तो निकल जाती हो और 4 लोगों से मिल कर अपना मन भी हलका कर लेती हो. मुझे दिनभर स्क्रीन के सामने बैठे रहना होता है. तुम मार्केट से हो कर आती हो. यह काम भी कर लोगी तो क्या फर्क पड़ जाता है.’’

‘‘समझा करो विवान सुबह नाश्ते से ले कर रात डिनर तक सबकुछ मुझे ही देखना पड़ता है.’’

‘‘मैं ने तो कहा था किसी बाई को खाना बनाने के लिए रख लेते हैं लेकिन तुम इस के लिए राजी नहीं हुईं. तुम्हें काम भी अपने सामने ही चाहिए और वह भी तुम्हारे हिसाब से. भला ऐसे में कैसे काम चलेगा? दूसरे से काम लेना है तो भरोसा तो करना होगा. तुम्हें किसी पर भरोसा भी नहीं रहता. न मुझ पर न काम वालों पर.’’

विवान बोला तो नाइशा चुप हो गई. यह बात सच थी कि वह पीठ पीछे किसी और औरत को घर पर नहीं आने देना चाहती थी. कौन जाने दूसरे की नियत कैसी हो? यही सोच कर उसने किसी कामवाली को खाना बनाने के लिए नहीं रखा था. विवान स्वभाव से थोड़ा चंचल भी था. हर किसी से घुलमिल कर बात करता. यह बात उसे पसंद नहीं थी. घर पर बरतन धोने और साफसफाई के लिए मुन्नी सुबह 7 बजे आ जाती थी और उस के जाने से पहले काम खत्म कर लेती थी. वह उसे भी केवल एक समय सुबह अपने सामने बुलाती.

घर और नौकरी के चक्कर में नाइशा पर काफी बोझ पड़ रहा था. विवान को बचपन से काम की आदत नहीं थी. वह अभी भी इस परिपाटी को निभा रहा था. वे दोनों बराबर कमाते थे. घर के काम उस की हर खुशी के बीच रुकावट बने हुए थे. जब उस का मन शाम को घर पर काम करने का न होता तो वे दोनों किसी रैस्टोरैंट में खाना खाने चले जाते. उन दोनों के पेमैंट के काम बंटे हुए थे .घर का किराया और उस से संबंधित बिल विवान देखते थे और खानेपीने का सारा खर्चा नाइशा उठाती थी. रोजरोज बाहर खाना उस के बजट से बाहर था. उसे समझ नहीं आ रहा था वह अपनी समस्या कैसे सुलझाए?

इस बात को ले कर उन के बीच का आपसी प्यार भी कम होता जा रहा था. नाइशा को औफिस से लौट कर घर के कामों से फुरसत न मिलती और विवान उस की समस्या को कोई तवज्जो नहीं दे रहा था. नाइशा चाहती थी उस के औफिस में भी काम शुरू हो जाए तो कम से कम वह भी घर से बाहर निकल कर उस के कुछ कामों में हाथ बंटा दे लेकिन अभी वह स्थिति नहीं आई थी. पता नहीं कितने समय तक यह सब और चलने वाला था. कभीकभी वह रूही से अपने मन की बात कह कर थोड़ा हलका हो जाती थी. इस के अलावा उसने अपनी परेशानी किसी और के साथ शेयर नहीं की थी.

एक दिन औफिस के काम से रूही और नाइशा को दूसरे औफिस जाना था. उन्हें लंच तक लौटने की उम्मीद थी लेकिन वक्त थोड़ा ज्यादा लग गया.

लौटते हुए रास्ते में रूही बोली, ‘‘मेरा घर पास में ही है. वहां से होते हुए चलते हैं. कुछ खा लेंगे वरना पूरा दिन औफिस में भूखा रहना पड़ेगा.’’

नाइशा ने उस की बात का विरोध नहीं किया. फ्लैट में पहुंचते ही घंटी की एक आवाज पर दरवाजा खुल गया. सामने एक दुबलापतला स्मार्ट आदमी खड़ा था. औपचारिकतावश उस ने हाथ जोड़ दिए. वह उन के लिए पानी ले आया.

‘‘हमें जल्दी वापस जाना है.’’

‘‘मैं ने डाइनिंगटेबल पर खाना लगा दिया है. आप दोनों आराम से लंच कर सकते हैं.’’

दोनों जल्दी से हाथ धो कर लंच करने लगीं. खाना बहुत स्वादिष्ठ था. रूही ने घड़ी पर नजर डाली और बोली, ‘‘चलते हैं वरना औफिस पहुंचने में देर हो जाएगी.’’

कुछ ही देर में वे औफिस में पहुंच गए. जरूरी डौक्यूमैंट सबमिट कर वे अपने कैबिन में आ गए.

नाइशा असमंजस मे थी कि दोपहर में रूही के घर पर कौन था? बात आगे बढ़ाने के लिए बोली, ‘‘लंच बहुत लजीज बना था.’’

‘‘पार्थ बहुत अच्छा खाना बनाते हैं.’’

‘‘आप ने घर में कुक रखा है,’’

यह सुन कर रूही हंसने लगी, ‘‘शायद तुम ने पहचाना नहीं पार्थ मेरे पति हैं.’’

यह सुन कर नाइशा सकपका गई. उसे सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि भरे बदन की रूही के पति दुबले, पतले और स्मार्ट होंगे.

‘‘तुम ने परिचय ही नहीं कराया इसलिए धोखा हो गया.’’

‘‘जल्दबाजी में भूल गई. मैं ने उन्हें सुबह ही बता दिया था कि अगर मीटिंग में टाइम लगा तो हम दोनों खाना खाने दोपहर में घर आएंगे. बस उन्होंने हमारे लिए अच्छा लंच तैयार कर दिया.’’

इस से ज्यादा कुछ पूछने की नाइशा की हिम्मत नहीं हो रही थी.

रूही बोली, ‘‘यह तो तुम भी जानती हो पार्थ एक मल्टी नैशनल कंपनी में काम करते हैं. आजकल वे भी वर्क फ्रौम होम कर रहे हैं. वे मेरा बहुत खयाल रखते हैं. घर का सारा काम वही देखते हैं. मु?ो घर की कोई परवाह नहीं रहती.’’

‘‘एक इंजीनियर हो कर उन्होंने यह सब कहां सीखा?’’

‘‘मेरी सासूमां ने पार्थ को यह सब सीखने के लिए प्रेरित किया. वे एक सम?ादार महिला हैं. वे जानती हैं जब पतिपत्नी दोनों नौकरी करते हैं तो घर के काम भी दोनों को मिल कर करने चाहिए. जब हम दोनों वर्क फ्रौम होम कर रहे थे तब वे हमारे साथ थीं. उन्होंने ही पार्थ को यह सब करना सिखाया. उसी की बदौलत आज हमारी गृहस्थी बहुत अच्छी चल रही है.’’

‘‘आप ने यह सब पहले नहीं बताया?’’

‘‘इस की जरूरत ही नहीं पड़ी. मैं अपनी नौकरी और परिवार दोनों से संतुष्ट हूं.’’

‘‘मेरे ओर से उन से माफी मांग लीजिएगा. मैं उन्हें पहचान नहीं पाई.’’

‘‘अकसर लोगों को धोखा हो जाता है इसलिए मैं ने भी इस की जरूरत नहीं समझ.’’

थोड़ी देर बातें करने के बाद वे अपने काम में मशगूल हो गए. नाइशा सोच भी नहीं सकती थी कि जिस के सामने वह अपने हालात का दुखड़ा रोती थी उन के घर में ठीक उस के विपरीत परिस्थितियां हैं. वहां काम को ले कर कोई तनाव ही नहीं.

नाइशा अब अपनी तुलना रूही से करने लगी. दोनों के हालात में जमीनआसमान का अंतर था. उसे अफसोस हो रहा था कि वह बेकार में ही अपनी रोज की परेशानी रूही को बताती. उसे इन सब से कुछ भी लेनादेना नहीं था. वह उस के दर्द का एहसास कर ही नहीं सकती थी. फिर भी उस ने अपनी ओर से कभी यह बात उसे महसूस नहीं होने दी.

उस दिन से नाइशा ने अपने घर की बातें रूही के साथ बांटना कम कर दिया. यह बात रूही को अच्छी नहीं लग रही थी लेकिन वह उसे कुरेद कर कुछ पूछने के पक्ष में नहीं थी. वह चाहती थी नाइशा और विवान की गृहस्थी ठीक से पटरी पर आ जाए लेकिन परिस्थितियां उस का साथ नहीं दे रही थीं.

एक दिन घर से निकलते हुए जब विवान ने नाइशा को टोका तो वह अपने को काबू में न रख सकी और फट पड़ी, ‘‘बहुत हो गया विवान. अब मेरी सहनशक्ति जवाब देने लगी है.’’

‘‘ऐसा क्या कर दिया मैं ने?’’

‘‘अपनेआप से पूछो. तुम और मैं दोनों बराबर कमाते हैं. इस के बावजूद इस घर में मेरी स्थिति क्या है और तुम्हारी क्या?’’

‘‘मुझे तो कोई अंतर नजर नहीं आता. जो कुछ तुम पहले करती थीं वही आज भी कर रही हो. कोई नई बात तो नहीं है. मैं ने अपने परिवार वालों का बोझ भी तुम पर नहीं डाला हुआ है,’’ विवान बोला.

नाइशा बोलना तो बहुत कुछ चाहती थी लेकिन उसे औफिस के लिए देर हो रही थी.

‘‘शाम को बात करती हूं,’’ कह कर वह एक झटके में कमरे से बाहर निकल गई.

आज उस का मूड बहुत ज्यादा खराब था. औफिस जा कर भी वह उस के चेहरे पर साफ दिखाई दे रहा था. उस का जी रोने का कर रहा था लेकिन कोई ऐसा कंधा नहीं था जिस पर सिर रख कर वह अपने अंदर का गुबार निकाल सके.

उस की हालत देख कर रूही से न रहा गया. वह उस के पास आ कर बोली, ‘‘बड़ी अपसैट लग रही हो नाइशा?’’

‘‘अब मेरे हालात बरदाश्त की सीमा से बाहर हो रहे हैं. सबकुछ सहना मुश्किल होता जा रहा है. सम?ा नहीं आ रहा क्या करूं?’’

‘‘मेरी एक सलाह है. कुछ दिनों के लिए तुम दोनों कहीं घूमने चले जाओ. एकसाथ समय बिताओगे और पुराने समय को याद करोगे तो तुम्हें अच्छा महसूस होगा. तुम्हारे रिश्ते में फिर से ताजगी आ जाएगी.’’

‘‘पता नहीं विवान इस के लिए राजी होंगे या नहीं.’’

‘‘छुट्टी की प्रौब्लम है तो शनिवार और रविवार 2 दिन ऐंजौय कर सकती हो. दूर नहीं नजदीक चली जाओ. माहौल बदलेगा तो तुम्हारे अंदर की कुंठा भी दूर हो जाएगी.’’

‘‘तुम ठीक कहती हो रूही. मैं बात कर के देखती हूं.’’

‘‘अगर पास में जाना है तो यहां से 100 किलोमीटर दूर मेरा कजिन डेली लाइट होटल में मैनेजर है. मैं उस से कह कर बड़ा डिस्काउंट भी दिलवा दूंगी. तुम दोनों आराम से कुछ समय साथ बिताना. देखना तुम्हारा मन पहले की तरह खिल उठेगा.’’

नाइशा को रूही की सलाह अच्छी लगी.

‘‘मैं कोशिश करती हूं कि विवान 2 दिन के लिए ही सही इस माहौल से दूर घूमने के लिए राजी हो जाएं.’’

‘‘तुम प्यार से कहोगी तो वे मान जाएंगे. मैं आरव को फोन कर के बता दूंगी. तुम बिलकुल चिंता मत करना. अच्छी जगह पर रह कर क्वालिटी टाइम बिताना. सबकुछ ठीक हो जाएगा.’’

रूही की बातों से उसे बड़ा सहारा मिला. काम के दौरान वह सुबह वाली बात भूल गई. शाम को घर आ कर रोज की तरह काम निबटाते हुए बोली, ‘‘बहुत दिनों से हम कहीं बाहर नहीं गए. इस वीकैंड पर दूसरे शहर चलते हैं.’’

‘‘मैं भी सोच रहा था हमें एकदूसरे के साथ वक्त बिताना चाहिए. घर पर रह कर माहौल दूसरा ही हो जाता है. यहां काम के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता. कल शुक्रवार को निकल पड़ते हैं.’’

नाइशा की उम्मीद के विपरीत विवान तुरंत जाने के लिए तैयार हो गया. उस ने भी भले काम में देर नहीं की और रूही के बताए हुए होटल में 2 दिन बिताने का मन बना लिया. उस ने होटल में फोन कर कमरा बुक कर दिया. आरव ने उस की खबर रूही को दे दी. यह सुन कर वह खुश हो गई.

‘‘पार्थ चलो हम आरव से मिल कर आते हैं.’’

‘‘अचानक तुम्हें यह क्या सूझ?’’

‘‘वह कई दिनों से कह रहा था. सोच रही हूं इस वीकैंड पर मिलने चलते हैं.’’

पार्थ रूही की इच्छा का हमेशा आदर करता. वह बोला, ‘‘तुम चाहती हो तो मैं अभी से तैयारी कर देता हूं.’’

दोनों ने वहां जाने की तैयारी कर ली. रूही ने यह बात नाइशा को नहीं बताई. शनिवार सुबह रूही और पार्थ को होटल के लान में बैठा देख कर नाइशा चौंक गई, ‘‘रूही तुम यहां?’’

‘‘आरव बहुत समय से बुला रहा था. कल उस का बर्थडे था. मैं ने सोचा उसे सरप्राइज दे दूंगी. तुम ने भी तुरंत प्रोग्राम बना लिया.’’

‘‘हां विवान तैयार हो गए थे. मैं ने भी देर करना ठीक नहीं सम?ा.’’

वे दोनों बात करने लगे. तभी रूही बोली, ‘‘पार्थ ये नाइशा के हस्बैंड हैं विवान और ये मेरे.’’

दोनों का परिचय करा कर वह एक तरफ हो गईं.

थोड़ी देर में उन के लिए आरव ने चाय और स्नैक्स लान में ही भिजवा दिए. वे चाय के साथ स्नैक्स का मजा लेने लगे.

तभी पार्थ बोले, ‘‘मुझे स्नैक्स में कौर्न फ्लोर ज्यादा लग रहा है.’’

यह सुन कर विवान चौंक गया.

‘‘लगता है तुम्हारी खाने पर बड़ी अच्छी पकड़ है.’’

‘‘होगी क्यों नहीं. आखिर घर में कई डिशेज मैं ही बनाता हूं. तुम ने कभी कुछ किचन में ट्राई किया है?’’

‘‘मैं इस ?ामेले से दूर ही रहता हूं.’’

‘‘झमेला कैसा? मुझे खाना बनाने में बड़ा मजा आता है. मैं दिनभर घर पर रह कर औफिस का काम करता हूं. थोड़ी देर दिमाग शांत करने के लिए अपने लिए नईनई डिशेज बनाता हूं और जो अच्छी बन जाती है उसे वह रूही को भी खिलाता हूं. मैं पूछना भूल गया आप कहां काम करते हैं?’’

‘‘मैं भी एक मल्टीनैशनल कंपनी में इंजीनियर हूं. आजकल वर्क फ्रौम होम कर रहा हूं.’’

‘‘तब तो हम दोनों की बहुत अच्छी जमेगी. हमारी पत्नियां औफिस में जा कर काम करती हैं और हम दोनों घर से.’’

उन दोनों को घुलमिल कर बात करते देख कर रूही नाइशा के साथ एक तरफ आ गई. रूही बोली, ‘‘तुम्हारा जब मन करे यहां आ सकती हो. आरव बहुत नेक इंसान है. वह तुम्हारा भी वैसा ही खयाल रखेगा जैसे हमारा रखता है.’’

थोड़ी देर बातें करने के बाद वे अपने रूम में आ गए थे. विवान को पार्थ से मिल कर अच्छा लगा. दोपहर में लंच के समय वे सब फिर इकट्ठा हो गए और साथ मिल कर लंच का मजा ले रहे थे.विवान को एहसास हो रहा था कि पार्थ उसी की तरह घर से काम करते हुए भी रूही का बहुत खयाल रखते हैं. उसे लगा जैसे वह नाइशा के साथ नाइंसाफी कर रहा है. वह बोला, ‘‘पार्थ तुम ने यह सब कहां से सीखा?’’

‘‘मम्मी ने सिखाया है.’’

‘‘आंटी को बुरा नहीं लगता जब तुम किचन में काम करते हो?’’

‘‘बिलकुल नहीं. वे कहती हैं घरगृहस्थी तभी ठीक चलती है जब उस के दोनों पहियों पर बराबर बो?ा हो. एक पर ज्यादा भार पड़ेगा तो गृहस्थी की गाड़ी लड़खड़ाने लगेगी. इसीलिए उन्होंने मु?ो यह सब करने के लिए प्रेरित किया. मेरी गृहस्थी बहुत अच्छी चल रही है. रूही भी खुश है और हमारे घर वालों को हम से कोई अपेक्षा नहीं है. वे हमें खुश देख कर बहुत संतुष्ट रहते हैं.’’

‘‘आंटी की सोच वक्त से बहुत आगे

की है.’’

‘‘एक राज की बात बताऊं. वे ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं है लेकिन दुनियादारी अच्छी तरह समझती हैं. उन्होंने मुझे साधारण खाना बनाना सिखाया था. उस के बाद मैं ने औनलाइन कुकिंग क्लास जौइन की और आज देखो इंजीनियरिंग के साथसाथ कुकिंग में भी ऐक्सपर्ट बन गया.’’

‘‘मेरा ध्यान कभी इस तरफ गया ही नहीं.’’

‘‘तो अब ले जाओ. जानते हो यह पार्टनर को खुश रखने का मूल मंत्र है. खुशी का रास्ता पेट से हो कर जाता है.’’

‘‘मैं तुम्हारी बात का ध्यान रखूंगा.’’

‘‘तुम नाइशा के साथ ज्यादा समय बिताओ वरना उसे लगेगा  नया दोस्त मिलते ही तुम उसे इग्नोर कर रहे हो.’’

‘‘वह ऐसी नहीं है. सब की भावनाओं की कद्र करती है.’’

‘‘तुम्हें भी उस की भावनाओं की इज्जत करनी चाहिए,’’ पार्थ बोला.

लंच कर के वे अपने रूम में आ गए. रूही ने भी नाइशा को यही सलाह दी कि विवान के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताए जिस से उन के बीच की गलतफहमियां दूर हो सकें.

2 दिन कब बीत गए पता ही नहीं चला. इतवार की शाम वे वापस अपने घर आ गए. रूही और पार्थ अगली सुबह आने वाले थे. नाइशा को खुश देख कर विवान को अच्छा लग रहा था. रूही भी घर से बाहर 2 दिन बिता कर खुश थी. पार्थ ने अपने तरीके से विवान को गृहस्थी को पटरी पर लाने का मूल मंत्र दे दिया था. रूही ने इस बारे में पार्थ को कुछ नहीं बताया था.

घर आ कर नाइशा किचन में डिनर की तैयारी करने लगी तो विवान बोला, ‘‘मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूं नाइशा?’’

यह सुन कर वह चौंक गई. इस समय पुरानी बात छेड़ कर उस की भावनाओं को ठेस पहुंचाना उस ने ठीक नहीं समझ.

‘‘ज्यादा कुछ नहीं फ्रिज से निकाल कर सलाद काट दो. तब तक मैं कुछ बना लेती हूं.’’

‘‘हलकाफुलका बनाना. अभी

ज्यादा खाने की कुछ इच्छा भी नहीं है,’’ विवान बोला.

वह बड़ी देर तक पार्थ और रूही की बातें करता रहा. उसे पार्थ का व्यक्तित्व बहुत अच्छा लगा और वह उस से प्रभावित भी था. नाइशा भी इस समय अपनेआप को सहज महसूस कर रही थी. रोज घर और औफिस के रूटीन से 2 दिन के लिए बाहर निकल कर उसे अच्छा लगा था. आरव ने इतने अच्छे होटल के उन से बहुत कम चार्ज लिए. यह भी उन के लिए एक अच्छी बात थी.

‘‘मुझे लगता है रूही तुम्हारी बहुत अच्छी फ्रैंड है. तुम्हें अच्छी तरह समझती है.’’

‘‘वह मेरी सीनियर है. इसे संयोग ही कहेंगे कि वह भी तुम्हें वहां मिल गई.’’

‘‘मैं ने उसे अपने प्रोग्राम के बारे में कुछ नहीं बताया था. अचानक वह भी आरव से मिलने वहां आ गई. इसी बहाने तुम्हारी पार्थ से भी मुलाकात हो गई.’’

‘‘वह बहुत जिंदा दिल इंसान है. जिंदगी को बहुत बारीकी से समझता है. उसे सब को खुश रखने की कला आती है,’’ विवान बोला.

डिनर खत्म कर वे आराम करने लगे. अगली सुबह नाइशा को औफिस जाना था. सुबह अलार्म के साथ उठी. वह यह देख कर चौंक गई जब विवान उस के लिए बैड टी मेज पर रख गए थे. अभी तक वही रोज सुबह उस के लिए  नहाधो कर बैड टी बनाती थी. विवान को देर से उठने की आदत थी.

‘‘तुम कब उठे?’’

‘‘थोड़ी देर पहले उठा हूं. सोचा तुम्हारे लिए चाय बना दूं तुम्हें अच्छा लगेगा. मुझे ज्यादा कुछ करना नहीं आता है लेकिन विश्वास रखो धीरेधीरे सब सीख जाऊंगा.’’

विवान में आए परिवर्तन को देख कर नाइशा अचकचा गई थी. चाय खत्म कर वह किचन में आ कर नाश्ते की तैयारी करने लगी.

विवान बोले, ‘‘दोपहर में लंच मैं खुद बना लूंगा. उस की चिंता मत करना.’’

‘‘लेकिन.’’

‘‘इंजीनियर हूं. बहुत कुछ बना लेता हूं. खाना बनाना कौन सा मुश्किल काम है कोई परेशानी आएगी तो पार्थ से पूछ लूंगा. वह इस काम में माहिर है.’’

विवान के कहने पर नाइशा ने इत्मीनान से नाश्ता किया और औफिस के लिए तैयार होने लगी. आज विवान ने उसे जाते समय टोका नहीं. वह समय से औफिस पहुंच गई. उस का खिला हुआ चेहरा देख कर रूही को बड़ा अच्छा लगा.

आते ही वह बोली, ‘‘रूही गजब हो गया. आउटिंग से आ कर विवान एकदम बदल गए हैं,’’ इतना कह कर उस ने सुबह और कल शाम की घटनाएं उसे बता दीं.

‘‘तुम निश्चिंत रहो. धीरेधीरे वे तुम्हारी हरसंभव मदद करने लगेंगे. वे अच्छे इंसान हैं लेकिन उन्हें जिंदगी का अनुभव थोड़ा कम है इसीलिए वे तुम्हारी भावनाओं को नहीं समझ सके.’’

‘‘मैं तुम्हारा धन्यवाद कैसे करूं. इतनी अच्छी सलाह दे कर तुम ने मेरी जिंदगी बदल दी.’’

‘‘धन्यवाद मुझे नहीं पार्थ को दो जिस ने उन का ब्रेन वाश किया है.’’

‘‘तो क्या तुम ने उसे सबकुछ बता दिया था?’’

‘‘नहीं नाइशा मैं ने उसे कुछ नहीं बताया लेकिन वह गृहस्थी और जिंदगी दोनों को बहुत अच्छे से हैंडल करना जानता है. उस ने अपनी खुशी का मूल मंत्र उसे भी समझाया और विवान समझ गए.’’

‘‘सच में बड़ी बहन की तरह तुम ने मेरी बहुत बड़ी समस्या हल कर दी रूही.’’

‘‘ऐसा नहीं सोचते,’’ कह कर रूही अपने काम पर लग गई.

शाम को उस के घर पहुंचने से पहले घड़ी देख कर विवान ने चाय तैयार कर दी

थी और साथ में ब्रैड सेंक कर रख दिए.

‘‘तुम ने परेशानी क्यों उठाई विवान?’’

‘‘इस में परेशानी कैसी? मुझे माफ कर दो नाइशा मैं पहले तुम्हारी परेशानी नहीं समझ सका. किसी ने मुझे इतने अच्छे ढंग से बताया ही नहीं जैसे पार्थ ने समझाया. उन की खुशहाल गृहस्थी देख कर मुझे लगा कि वह धरती का सब से खुशहाल जोड़ा है. मैं भी अपनी जिंदगी को खुशहाल बनाना चाहता हूं. अनजाने में मैं ने तुम्हारे ऊपर घर का सारा बोझ डाल रखा था. कोशिश करूंगा वह जल्दी कम हो जाए.’’

यह सुन कर नाइशा भावुक हो कर विवान केसीने से लग गई. उस की आंखों से आंसू बहने लगे थे. विवान उन्हें प्यार से पोंछने लगा.

नाइशा बोली, ‘‘शायद मुझे तुम्हें समझना नहीं आया वरना यह समस्या बहुत पहले खत्म हो जाती.’’

‘‘कोई बात नहीं. हम दोनों ने अपनी नासमझ की वजह से जो वक्त खराब किया है उस की कसर जल्दी पूरी कर देंगे,’’ विवान बोला.

नाइशा के सारे शिकवेशिकायत दूर हो गए थे. वह मन ही मन रूही और पार्थ का धन्यवाद कर रही थी जिन्होंने इतनी सहजता से उस की जिंदगी की सब से बड़ी मुश्किल हल कर दी थी.

 राइटर-   डा. के. रानी

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