तीखे मीठे घरेलू स्वाद : ठंडाई और रिची रोल्स

ठंडाई

सामग्री

– 8-10 बादाम

– 2 हरी इलायची

– 1 बड़ा चम्मच खरबूज के बीज

– 1 बड़ा चम्मच तरबूज के बीज

– 1 बड़ा चम्मच मोटी सौंफ

– 2-3 लौंग

– 3-4 कालीमिर्च

– 7-8 काजू

– 21/2 बड़े चम्मच चीनी

– 3 कप दूध.

विधि

– बादाम, इलायची, खरबूज व तरबूज के बीज, सौंफ, लौंग, कालीमिर्च व काजू को 7-8 घंटे पानी में भिगो लें.

– फिर मिक्सी में चीनी के साथ महीन पीस लें.

– छलनी में छान कर दूध में मिलाएं. बर्फ डाल कर सर्व करें.

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रिची रोल्स

सामग्री

– 250 ग्राम मैदा

– 1/2 गिलास दूध

– 50 ग्राम पनीर या मोजरेला चीज

– 2 बड़े चम्मच शिमलामिर्च व गाजर

– थोड़े से चावल उबले

– 200 ग्राम स्प्राउट्स मिक्स

– तलने के लिए घी या तेल

– 6 बड़े चम्मच कौर्नफ्लौर

– जरूरतानुसार रैड, औरेंज फूड कलर

– चाटमसाला व नमक स्वादानुसार.

विधि

– मैदे को कुनकुने दूध से गूंध लें.

– रोटी के साइज के पतलेपतले रैपर बना कर हलके गरम तवे पर सेंक कर अलग रखें.

– 2 चम्मच मैदा, 6 चम्मच कौर्नफ्लोर का पेस्ट बना लें.

– उस में रैड, औरेंज फूड कलर व नमक मिला लें.

– अब सारी सामग्री व स्प्राउट्स को एकसाथ मिला लें.

– रैपर के बीच यह सामग्री रख कर रैपर को रोल कर के कौर्नफ्लोर के पेस्ट से चिपका कर बंद करें.

– गरम तेल में सुनहरा होने तक तल कर चटनी के साथ गरमगरम सर्व करें.

फिल्म रिव्यू : मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर

रेटिंग : दो स्टार

‘दिल्ली 6’, ‘भाग मिखा भाग’, ‘मिर्जिया’ जैसी फिल्मों के सर्जक राकेश ओमप्रकाश मेहरा एक बार फिर एक संदेश परक फिल्म ‘मेरे प्यारे प्राइम मिस्टिर’ लेकर आए हैं. मगर इस फिल्म में वह नया परोसने में विफल रहने के साथ ही कहानी के स्तर पर काफी भटके हुए नजर आते हैं. शौचालय की जरुरत को लेकर अक्षय कुमार की फिल्म ‘ट्वायलेटःएक प्रेम कथा’ और नीला माधव पंडा की फिल्म ‘हलका’आ चुकी हैं. नीला माधव पंडा की फिल्म ‘हलका’ में बाहरी दिल्ली की झुग्गी बस्ती में रहने वाला बालक अपने घर के अंदर  शौचालय बनाने की लड़ाई लड़ता है, जबकि राकेश ओमप्रकाश मेहरा की फिल्म ‘मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर’में मुंबई के धारावी इलाके की झुग्गी बस्ती का बालक बस्ती में  शौचालय के लिए लड़ाई लड़ता है.

फिल्म की कहानी मुंबई के धारावी इलाके की झुग्गी बस्ती की है, जहां गरीब तबके के लाखों लोग रह रहे हैं. यहां एक सजह व सुखद जीवन जीने की सुविधाओं का घोर अभाव है. यहीं पर आठ वर्षीय कन्हैया उर्फ कनु (ओम कनौजिया) अपनी मां सरगम ( अंजली पाटिल) के साथ रहता है. कनु के पिता नहीं है. पता चलता है कि सरगम ने सोलह साल की उम्र में किसी लड़के से प्यार किया था और शादी से पहले ही सरगम के गर्भवती हो जाने पर वह भाग गया, तब सरगम मुंबई के धारावी इलाके में आकर रहने लगी थी. उसकी पड़ोसन राबिया (रसिका अगाशे), राबिया का पति जस्सू (नचिकेत) और उसकी बेटी मंगला(सायना आनंद) है. कनू व मंगला के दोस्त हैं रिंग टोन(आदर्श भारती) और निराला (प्रसाद). इस बस्ती में एक गगनचुंबी इमारत में रहने वाली समाज सेविका ईवा (सोनिया अलबिजूरी) अपनी कार से आती रहती हैं, जो कि मंगला के स्कूल का खर्च उठाती है और इसके बदले में मंगला के हाथों लोगों के बीच कंडोम बंटवाती हैं, जिससे लोग कम से कम बच्चे पैदा करें. यही काम वह बाद में कनु को भी देती हैं. एक कंडोम बांटने पर एक रूपया देती है.

कनु एक समाचर पत्र बेचने वाले पप्पू (नितीश वाधवा) की दुकान पर काम करता है. पप्पू, सरगम से प्यार करता है और आए दिन किसी न किसी बहाने वह सरगम से मिलने आता रहता है. इस बात को राबिया समझ जाती है. वह सरगम से कहती है कि पप्पू अच्छा लड़का और वह सरगम से प्यार भी करता है. पर सरगम उसे महत्व नहीं देती. एक दिन जब रात में सरगम षौच के रेलवे पटरी की तरफ जाती है लिए बाहर जाती है, तो उसी मोहल्ले के साईनाथ (मकरंद देशपांडे), सरगम को छेड़ने का प्रयास करता है. पर ऐन वक्त पर पुलिस हवलदार आ जाता है, जो कि साईनाथ को मारकर भगा देता है. लेकिन हवलदार के साथ आया पुलिस का अफसर सरगम के साथ बलात्कार करता है. इससे सरगम बहुत दुखी होती है. अब कनु की समझ में आ जाता है कि जिस तरह ईवा के घर के अंदर ट्वायलेट है, वैसा उसके घर या बस्ती में न होने की बवजह से उसकी मां के साथ बलात्कार हुआ. तो वह अपने दो साथियां के साथ नगरपालिका के दफ्तर जाकर ट्वायलेट बनाने की मांग करता है. नगर पालिका का अफसर उन्हे यह कहकर भगा देता है कि दिल्ली में प्राइम मिनिस्टर के पास पत्र भेजने पर ही  शौचालय बनेगा. अब कनु अपने दोस्तों के साथ प्राइम मिनिस्टर के आफिस पहुंचता है, जहा वह एक अफसर (अतुल कुलकर्णी) को पत्र देकर आ जाते हैं. मुंबई पहुंचने के बाद वह और उसके दोस्त मंदिर बनवाने, मस्जिद बनवाने आदि के नाम पर लोगों से चंदा इकट्ठा करते हैं, जिससे वह अपनी बस्ती में ट्वायलेट बनवा सके. पर एक दिन पुलिस वाले कनु व उसके दोस्तों से यह पैसा ले लेते हैं. उधर पप्पू, सरगम को समझाकर गुप्त रोग आदि की जांच करवाने के लिए कहता है. फिर दोनों शादी करने के लिए सहमत हो जाते हैं. इसी बीच प्रधानमंत्री के आफिस से नगरपालिका में पत्र आता है और कनु की बस्ती में सार्वजनिक  शौचालय बन जाता है.

राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने अपनी फिल्म ‘मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर’ में नारी सुरक्षा का मुद्दा उठाया है, मगर वह कथा कथन में बुरी तरह से मात खा गए. फिल्मकार राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने फिल्म की षुरूआत में कंडोम बांटने से की और फिर एक महिला के साथ शौच जाने पर बलात्कार के बाद कहानी  शौचालय की तरफ मुड़ जाती है और कंडोम व कम बच्चे का मसला वह भूल गए. तो वहीं कम उम्र के चारो बच्चे जिस तरह से  शौचालय बनाने की जद्दोजेहाद करते हुए दिखाए गए, वह अविश्वसनिय लगता है.  शौचालय की मूल कहानी तक पहुंचने में भी कहानीकार व निर्देशक ऐसी लंबी उल जलूल यात्रा करते हैं कि दर्षक बोर हो जाता है. ’मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर’ देखकर इस बात का अहसास ही नहीं होता कि इस फिल्म के निर्देशक राकेश ओम प्रकाश मेहरा ही है, जिन्होने कभी ’दिल्ली 6’ और ’भाग मिल्खा भाग’ जैसी फिल्मों का निर्माण व निर्देशन किया था.

पूरी फिल्म देखने के बाद इस बात का अहसास होता है किलेखकीय टीम के सदस्य मनोज मैरटा, राकेश ओमप्रकाश मेहरा व हुसेन दलाल इतने बड़े हो गए हैं कि उनके लिए बाल मनोविज्ञान की समझ के साथ लेखन करना संभव ही नहीं रहा.

संगीतकार शंकर एहसान लौय का संगीत भी प्रभावहीन है.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो चारो बच्चों में से कनु का मूख्य किरदार निभाने वाले बाल कलाकार ओम कनौजिया प्रभावित नहीं करते. जबकि आदर्श भारती व प्रसाद में ज्यादा संभावनाएं नजर आती हैं. छोटे से किरदार में बाल कलाकार सयाना आनंद जरुर अपनी तरफ ध्यान आकर्षित करने में सफल रहती है. सरगम के किरदार में अंजली पाटिल ने भी उत्कृष्ट अभिनय किया है. इसके अलावा अन्य कलाकारों के हिस्से कुछ खास करने को रहा नहीं. यॅूं भी कहानी तो एक मां और बेटे के ही इर्द गिर्द घूमती है. मगर इन बाल कलाकारों के बेहतरीन अभिनय के बावजूद फिल्म दर्शकों को बांधकर नहीं रख पाती.

दो घंटे दस मिनट की अवधि वाली फिल्म ’मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर’ का निर्माण राकेश ओमप्रकाश मेहरा, पी एस भारती, नवमीत सिंह, राजीव टंडन व अर्पित व्यास ने किया है. फिल्म के निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा, लेखक मनोज मैरटा, राकेश ओमप्रकाश मेहरा व हुसेन दलाल, संगीतकार शंकर एहसान लौय, कैमरामैन पावेल डायलस और कलाकार हैं-अंजली पाटिल, ओम कनौजिया, अतुल कुलकर्णी, मकरंद देशपांडे, रसिका अगाषे, सोनिया अलबिजुरी, सायना आनंद, आदर्ष भारती, प्रसाद, नचिकेत पूरणपत्रे, नितीश वाधवा, जिज्ञासा यदुवंशी व अन्य.

न बनें ऐसी आंटी : महिलाएं यह तो जान लें कि बच्चे उन के बारे में क्या सोचते हैं

11 बज रहे थे. आरोही की सीए फाइनल की परीक्षा का समय दोपहर 2 बजे था. वह घर में घूमती हुई आखिरी वक्त की तैयारी पर नजर डाल रही थी. हाथ में बुक थी. उस की मां रीना किचन में व्यस्त थीं. डोरबैल बजी तो रीना ने ही दरवाजा खोला.

नीचे के फ्लोर पर रहने वाली अलका थी. अंदर आते हुए बोली, ‘‘इंटरकौम नहीं चल रहा है रीना. जरा देखना केबिल आ रहा है?’’

‘‘देख कर बताती हूं,’’ कह रीना ने टीवी औन किया. केबिल गायब था. बताया, ‘‘नहीं, अलका.’’

‘‘उफ, मेरे सीरियल का टाइम हो रहा है.’’

आरोही की नजरें अपनी बुक पर गड़ी थीं, पर उस ने अलका को गुडमौर्निंग आंटी कहा तो अलका ने पूछा, ‘‘परीक्षा चल रही है न? आज भी पेपर है?’’

‘‘जी, आंटी.’’

‘‘आरोही, सुना है सीए फाइनल पहली बार में पास करना बहुत मुश्किल है. 3-4 प्रयास करने ही पड़ते हैं. मेरा कजिन तो 6 बार में भी नहीं कर पाया. वह भी पढ़ाई में होशियार तो तुम्हारी ही तरह था.’’

‘‘देखते हैं, आंटी,’’ कहतेकहते आरोही का चेहरा बुझ सा गया.

अलका ने फिर कहा, ‘‘इस के बाद क्या करोगी?’’

‘एमबीए.’’

‘‘और शादी?’’

‘‘सोचा नहीं, आंटी’’ कहते हुए आरोही के चेहरे पर झुंझलाहट के भाव देख रीना ने बात संभाली, ‘‘अलका, किचन में ही आ जाओ. मैं इस के लिए खाना तैयार कर रही हूं.’’

अलका किचन में ही खड़ी हो कर आधा घंटा आरोही की शादी के बारे में पूछती रही. रीना के चायकौफी पूछने पर बोली, ‘‘नहीं फिर कभी. अभी जल्दी में हूं.’’ कह चली गई.

उस के जाने के बाद आरोही ने बस इतना ही कहा, ‘‘मम्मी, आप ऐसी आंटी कभी न बनना, जिन्हें यह भी न पता हो कि कब क्या बात करनी चाहिए.’’

आंटियों के बारे में युवा सोच

महिलाओं को तो अकसर यह बात करते हुए सुना जा सकता है कि आजकल की युवा पीढ़ी से परेशान हो गए हैं, आजकल के बच्चे ऐसे हैं, वैसे हैं. शिकायतें चलती ही रहती हैं पर क्या महिलाओं ने कभी इस बात पर ध्यान दिया है कि आजकल के युवा बच्चों को इन आंटियों की कौन सी बात पसंद नहीं है? युवा बच्चे भी कम परेशान नहीं हैं आंटियों के स्वभाव, व्यवहार और आदतों से. कई युवा बच्चों से यह प्रश्न पूछने पर कि उन्हें किस आंटी की कौन सी बात पसंद नहीं है, उन्होंने अपने दिल की बात खुल कर बताई. आइए, जानते हैं:

24 वर्षीय वान्या अपनी एक आंटी के बारे में बताती हैं, ‘‘मंजू आंटी, जब भी घर आती हैं तो मेरी कोशिश यही होती है कि मैं अपने रूम से निकलूं ही नहीं. डर लगा रहता है कि मम्मी कहीं किसी काम से आवाज न दे दें. उन के घर पर हमेशा ‘पीस औफ माइंड’ चैनल चलता रहता है. वे जब भी आती हैं हर बात में समझाना शुरू कर देती हैं कि गुस्सा नहीं करना चाहिए, हलका पौष्टिक खाना चाहिए, सिंपल रहना चाहिए.

‘‘मम्मी की तबीयत खराब हो तो समझाएंगी, जीवन का कुछ पता नहीं, किसी से मोह मत रखो. बच्चों की तरफ से अपना ध्यान हटा लो, आजकल के बच्चे स्वार्थी हैं. इन के मोह में मत पड़ो. कोई भी बीमार होगा, कहेंगी यह तो कर्मों का फल है. जबकि वे खुद इन में से कोई बात फौलो नहीं करतीं. हर वीकैंड मूवी, बाहर लंचडिनर, एकदम फैशनेबल, हर समय अपने बच्चों के पीछे. अरे, दूसरों को इतना उपदेश देने की जरूरत क्या है जब आप खुद कुछ नहीं कर रही हैं. दूसरों ने क्या बिगाड़ा है, जीने दो सब को.’’

शाउटिंग आंटी

इन बच्चों ने एक और शिकायत पर समान प्रतिक्रिया दी और वह यह कि दोस्तों के सामने किसी भी पेरैंट्स का चिल्लाना अच्छा नहीं लगता.

राहुल बताता है, ‘‘हमारा पूरा गु्रप मेरे घर पर ही बैठ कर प्रोजैक्ट तैयार कर रहा था. हम बहुत देर से काम कर रहे थे. मेरी मम्मी ने सब के लिए कुछ नाश्ता तैयार किया था. सब ने काम करते हुए खाया.

थोड़ी रात हो गई तो मेरी मम्मी ने कहा, ‘‘शिखा को घर तक छोड़ आना राहुल.’’ शिखा की मम्मी और मेरी मम्मी फ्रैंड्स हैं. मैं जब उसे छोड़ने उस के घर गया तो दरवाजा खोलते ही शिखा की मम्मी नीतू आंटी ने कहा, ‘‘बहुत देर कर दी. खाना लगाती हूं.’’

शिखा ने कहा, ‘‘मम्मी, अभी आंटी ने कुछ खिला दिया है बहुत देर से बैठेबैठे बहुत थकान हो गई है. बस सोऊंगी.’’

मैं दरवाजे पर ही था. आंटी चिल्लाने लगीं, ‘‘खा लिया? फोन कर के बताया क्यों नहीं? मैं इतनी देर तक किचन समेटती रहूंगी?’’

मैं चुपचाप ‘बाय’ बोल कर वापस आ गया पर दोस्तों के सामने अगर कोईर् ऐसे चिल्लाए तो सचमुच बुरा लगता है. आंटी अकेले में शिखा को डांट लेतीं, प्यार से समझातीं पर दूसरों के सामने ऐसे चिल्लाना दोस्त को असहज बना देता है.’’

अब बच्चों से बात करते हुए कोई भी टिप्पणी करते हुए अपने शब्दों को पहले मन में जांचपरख लें. फालतू नकारात्मक बातें किसी को भी अच्छी नहीं लगतीं. आज की युवा पीढ़ी बहुत समझदार है. उस की बातों को ध्यान से सुनेंसमझें, उस के साथ स्नेहिल, मित्रवत व्यवहार करें.

ऐक्सरे वाली आंटी

23 वर्षीय नेहा ने भी अपने दिल की भड़ास निकालते हुए कहा, ‘‘रेखा आंटी, मम्मी की किट्टी फ्रैंड हैं. वे कहीं भी मिलती हैं चाहे किसी मौल में या किसी फंक्शन में अथवा घर पर, तो आंखों से ऐक्सरे करती लगती हैं. ऊपर से नीचे तक देखती रहती हैं. बात करते हुए उन की नजरें मुझे सिर से पैर तक इतनी बार देखती हैं कि मन होता है पूछ लूं कि आंटी क्या ढूंढ़ रही हैं? मुझे आजतक नहीं समझ आया कि वे हर इंसान को ऐसे क्यों देखती हैं? बहुत अजीब लगता है उन का ऐसे देखना.’’

सैल्फी वाली आंटी

आरती तो अपनी एक आंटी के बारे में बताने से पहले ही कुछ याद कर के हंस पड़ती है. वह बताती है, ‘‘हमारा दोस्तों का जो गु्रप है, उस में एक लड़का है शेखर. उस के बर्थडे आदि पर या वैसे ही जब भी किसी काम से उस के घर जाना होता है, हम लड़कियां पहले से ही मानसिक रूप से तैयार रहती हैं कि अभी जाते ही क्या होगा.

‘‘उस की मम्मी, नीला आंटी को सैल्फी लेने का बहुत ज्यादा शौक है. हम सब के साथ और वह भी एक आम सैल्फी नहीं, हर सैल्फी में वे तरहतरह के इतने मुंह बनाती हैं कि शेखर झेंप जाता है, जहां हम सब मुसकराते हुए साथ में आम सा फोटो लेते हैं वहां बस आंटी ही उस समय मुंह बनाबना कर इतने फोटो खिंचवाती हैं कि सब एकदूसरे को ऐसी नजरों से देखते हैं जैसे पूछ रहे हों इन आंटी का क्या करें, बेचारा शेखर.’’

बेचारी आंटी

20 वर्षीय रोहन का अनुभव भी कुछ कम मजेदार नहीं है. वह कहता है, ‘‘मालती आंटी जब भी घर आती है, अंकल की बुराई के अलावा कोई और बात करती ही नहीं. अंकल की आदतों से परेशान दिखती हैं. पर हम लोग अंकल को भी इतने सालों से जानते हैं. अंकल उच्चपद पर कार्यरत हैं. अच्छा स्वभाव है, हंसमुख हैं. आंटी को बस अपने को बेचारी दिखाने का शौक है, इसलिए पति और बच्चों की बुराई करती रहती हैं. मैं ने तो उन का नाम ही ‘बेचारी आंटी’ रख दिया है.’’

आरोही कहती है, ‘‘एक तो यह बात समझ नहीं आती कि इन आंटियों को हमारी शादी की इतनी चिंता क्यों रहती है. हमारी लाइफ है, हमारे पेरैंट्स हैं, वे सोच सकते हैं कि कब क्या करना है, हर 10-15 दिन में सामना होने पर क्या इस प्रश्न को तर्कसंगत कहा जा सकता है कि शादी कब होगी? मेरी प्राथमिकताएं अभी कुछ और हैं. मेहनत कर के अपने पैरों पर खड़ा होना है, लेकिन अलका आंटी जैसे लोगों का हर बार टोकना जरा भी अच्छा नहीं लगता.’’

आजकल के बच्चे आसपास के लोगों व आंटियों को बहुत अच्छी तरह औब्जर्व करते हैं. लड़कों की तरह आज लड़कियां भी बहुत कुछ करना चाहती हैं. उन के साथ बात करते हुए हमेशा विवाह के टौपिक पर ही न अटके रहें नहीं तो आप के जाने के बाद भी आरोही की तरह कोई अपनी मम्मी से कह रहा होगा, ‘‘मम्मी, आप ऐसी आंटी न बनना कभी.’’

फिल्म रिव्यू : हामिद

रेटिंग : 4 स्टार

‘‘द व्हाइट एलीफेंट’’ और ‘‘बाके की क्रेजी बारात’’ जैसी फिल्मों के निर्देशक ऐजाज खान की तीसरी फिल्म‘‘हामिद’’एक सात वर्षीय बालक के नजरिए से कश्मीर घाटी में चल रहे खूनी संघर्ष, उथल पुथल, सीआरपीएफ जवानों पर पत्थर बाजी, लोगों के गुम होने आदि की कथा से ओतप्रोत आम बौलीवुड मसाला फिल्म नहीं है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराही जा चुकी फिल्म ‘‘हामिद’’ मूलतः अमीन भट्ट लिखित कश्मीरी नाटक‘‘फोन नंबर 786’’ पर आधारित है. जिसमें मासूम हामिद अपने भोलेपन के साथ ही अल्लाह व चमत्कार में यकीन करता है. मासूम हामिद जिस भोलेपन से अल्लाह व कश्मीर के मुद्दों को लेकर सवाल करता है, वह सवाल विचलित करते हैं. वह कश्मीर में चल रहे संघर्ष की पृष्ठभूमि में बचपन की मासूमियत और विश्वास की उपचार शक्ति का ‘‘हामिद’’ में बेहतरीन चित्रण है. मासूम हामिद उस पवित्रता का प्रतीक बनकर उभरता है, जो भय और मृत्यु के बीच एक आशा की किरण है.

HAMID

फिल्म की कहानी शुरू होती है एक कारखाने से, जहां रहमत (सुमित कौल) और रसूल चाचा (बशीर लोन) नाव बनाने में मग्न है. जब रात होने लगती है, तो रसूल चाचा, रहमत को घर जाने के लिए कहते हैं. रास्ते में रहमत को सीआरपीएफ के जवानों के सवालों के जवाब देने पड़ते हैं. इधर घर पर रहमत के लाडले सात साल के बेटे हामिद को अपने पिता के आने का इंतजार है. क्योंकि उसे मैच देखना है और टीवी चलाने के लिए बैटरी की जरुरत है. जब रहमत अपने घर पहुंचता है, तो रहमत का बेटा हामिद (ताल्हा अरशद) जिद करता है कि उसे मैच देखना है, इसलिए अभी बैटरी लेकर आएं. रहमत की पत्नी और हामिद की मां इशरत (रसिका दुग्गल) के मना करने के बावजूद रहमत अपने बेटे की मांग को पूरा करने के लिए रात में ही बैटरी लेने निकल जाता है, पर वह घर नहीं लौटता. उसके बाद पूरे एक वर्ष बाद कहानी शुरू होती है. जब इशरत अपने बेटे की अनदेखी करते हुए अपने पति की तलाश में भटक रही है. वह हर दिन पुलिस स्टेशन जाती रहती है. इधर हामिद की जिंदगी भी बदल चुकी है. एक दिन उसके दोस्त से ही उसे पता चलता है कि उसके अब्बू यानी कि पिता अल्लाह के पास गए हैं. तब वह अपने अब्बू के अल्लाह के पास से वापस लाने के लिए जुगत लगाने लगता है. एक दिन एक मौलवी से उसे पता चलता है कि अल्लाह का नंबर 786 है. तो वह 786 को अपनी बाल बुद्धि के बल पर दस नंबर में परिवर्तित कर अल्लाह को फोन लगाता है. यह नंबर लगता है कश्मीर घाटी में ही तैनात एक अति गुस्सैल सीआरपीएफ जवान अभय (विकास कुमार) को. अभय अपने परिवार से दूर कश्मीर में तैनात है और इस अपराध बोध से जूझ रहा है कि उसके हाथों अनजाने ही एक मासूम की हत्या हुई है. फोन पर एक मासूम बालक की आवाज सुनकर अभय उससे बात करने लगता है और हामिद का दिल रखने के लिए वह खुद को अल्लाह ही बताता है. अब हर दिन हामिद और अभय के बीच बातचीत होती है. हामिद के कई तरह के सवाल होते हैं, जिनका जवाब अभय देने का प्रयास करता है. उधर एक इंसान अपनी तरफ से हामिद को गलत राह पर ले जाने का प्रयास करता रहता है, पर अभय से बात करके हामिद सही राह पर ही चलता है. हामिद अपनी हर तकलीफ अल्लाह यानी कि अभय को बताता रहता है. अभय हर संभव उसकी मदद करता रहता है. वह हामिद के लिए अपनी तरफ से रहमत की खोजबनी शुरू करता है, जिसके लिए उसे अपने उच्च अधिकारी से डांट भी खानी पड़ती है. यह सिलसिला चलता रहता है.

HAMID

एक दिन गुस्से में अभय, हामिद से कह देता है कि वह तो क्या कोई भी इंसान उसके अब्बू रहमत को वापस नही ला सकता. वह मर चुके है. उसके बाद हामिद अपने पिता के गुम होने की फाइल व तस्वीर आदि को जमीन में दफन कर देता है. फिर अपनी मां को लेकर उसी कारखाने में जाता है, जहां उसने अपने पिता की ही तरह नाव बनायी है. वहां पहुंचने पर रसूल चाचा बताते हैं कि हामिद के नाम पार्सल आया है, हामिद उसे खोलता है तो उसमें से लाल रंग से भरे दो डिब्बे निकलते हैं. हामिद कहता है कि यह अल्लाह ने भिजवाया है, क्योंकि उसने अल्लाह से कहा था कि लाल रंग खरीदने के लिए उसके पास पैसे नहीं है, फिर नाव को लाल रंग से रंगकर वह अपनी मां को उसी नाव में बिठाकर डल झील में घूमाता है.

ऐजाज खान के निर्देशन में बनी पहली फिल्म ‘‘द व्हाइट एलीफेंट’’ अब तक रिलीज नहीं हो पायी है. जबकि उनकी दूसरी हास्य फिल्म ‘‘बांकेलाल की क्रेजी बारात’’ 2015 में प्रदर्शित हुई थी. अब अति गंभीर विषय वाली ‘‘हामिद’’ उनके निर्देशन में बनी तीसरी फिल्म है. इस फिल्म में ऐजाज खान ने एक सात वर्षीय बच्चे हामिद के माध्यम से कश्मीर घाटी के उन सभी मसलों को उठाया है, जो हमसे अछूते नहीं है. फिल्म में सेना और कश्मीरियों के बीच टकराव, अलगाववादियों द्वारा मासूम बच्चों व किशोरो को आजादी,  जन्नत व अल्लाह के नाम पर बरगलाना, घर के पुरुषों के गायब होने के बाद स्त्रियों के दर्द, सेना के जवान का एक मासूम बालक की वजह से कश्मीरी परिवार के लिए पैदा हुई सहानुभूति को गलत अर्थ में लेना, अपने परिवारो से कई सौ किलोमीटर दूर पत्थरबाजों के बीच रह रहे आरपीएफ जवानो की मनः स्थिति आदि का बेहतरीन चित्रण है. मगर लेखक व निर्देशक ने कहीं भी अति नाटकीयता या तीखी बयानबाजी को महत्व नही दिया है.

एक दिन गुस्से में अभय, हामिद से कह देता है कि वह तो क्या कोई भी इंसान उसके अब्बू रहमत को वापस नही ला सकता. वह मर चुके है. उसके बाद हामिद अपने पिता के गुम होने की फाइल व तस्वीर आदि को जमीन में दफन कर देता है. फिर अपनी मां को लेकर उसी कारखाने में जाता है, जहां उसने अपने पिता की ही तरह नाव बनायी है. वहां पहुंचने पर रसूल चाचा बताते हैं कि हामिद के नाम पार्सल आया है, हामिद उसे खोलता है तो उसमें से लाल रंग से भरे दो डिब्बे निकलते हैं. हामिद कहता है कि यह अल्लाह ने भिजवाया है, क्योंकि उसने अल्लाह से कहा था कि लाल रंग खरीदने के लिए उसके पास पैसे नहीं है, फिर नाव को लाल रंग से रंगकर वह अपनी मां को उसी नाव में बिठाकर डल झील में घूमाता है.

रवींद्र रंधावा और सुमित सक्सेना लिखित संवाद काफी अच्छे हैं और यह दिलों को झकझोरने के साथ ही सोचने पर मजबूर करते हैं. फिल्म की कमजोर कड़ी इसकी लंबाई है. इसे एडीटिंग टेबल पर कसने की जरुरत थी.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो हामिद की शीर्ष भूमिका में बाल कलाकार ताल्हा अरशद की मासूमियत व अभिनय दिल तक पहुंचता है. ताल्हा ने अपने किरदार को जिस संजीदगी के साथ जिया है, वह अभिभूत करता है. अपने पति की खोज में भटकती इशरत के किरदार में रसिका दुग्गल ने अपने सशक्त अभिनय से लोहा मनवाया है. वह अपने अभिनय से दर्शकों की आत्मा को भेदती है. अभय के किरदार को विकास कुमार ने भी सजीव किया है. रहमत के छोटे किरदार में सुमित कौल अपनी छाप छोड़ जाते हैं. अन्य कलाकारों ने भी सधा हुआ अभिनय किया है. फिल्म के कैमरामैन भी बधाई के पात्र हैं.

फिल्म‘‘हामिद’’का निर्माण ‘‘यूडली फिल्मस’’ने किया है. फिल्म के निर्देशक ऐजाज खान, लेखक रविंद्र रंधावा व सुमित सक्सेना तथा कलाकार हैं- ताल्हा अरशद, विकास कुमार, रसिका दुग्गल, सुमित कौल, बशीर लोन, गुरवीर सिंह, अशरफ नागू, मीर सरवर, काजी फैज, उमर आदिल, गुलाम हुसेन, साजिद, साफिया व अन्य.

लिविंग रूम की सजावट के अनोखे तरीके

आपका लिविंग रूम आपके घर का सबसे मुख्य भाग होता है. यह वह जगह होती है जहा आप अपने परिवार के साथ समय बिताते हैं, लेटकर अपनी प्रिय पुस्तक पढ़ते हैं और टी.वी देखते हैं. हम अपने लिविंग रूम को कार्यात्मक बनाने में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि इसकी साज सज्जा की ओर ध्यान देना भूल जाते हैं. इस रूम को आरामदायक बनाने के साथ-साथ इसकी साज सज्जा करना भी आवश्यक है.

कलर्स और गैलरी वॉल

आजकल गैलरी वॉल्स फैशन में हैं और घर को एक पर्सनल टच देने का यह एक उत्तम तरीका है. आप दीवारों पर प्रेरणादायक कोट्स लगा सकती हैं या अपने प्रिय सुपरहीरो का पोस्टर भी लगा सकती हैं. अच्छा होगा कि इसे आप न्यूनतम रखें और पृष्ठभूमि में हलके रंगों का उपयोग करें.

रंग और मिरर

यदि आपका लिविंग रूम छोटा है तो आप इसमें मिरर लगाकर इसे बड़ा दिखाने का भ्रम पैदा कर सकती हैं. परन्तु पुराने प्लेन मिरर की जगह अच्छी फ्रेम वाला और विभिन्न रंगों वाला मिरर लगायें. यदि आपके घर में पुराना मिरर है तो आप अपने पसंदीदा रंग से इसे रंग सकती हैं.

शोभा बढ़ाने के लिए स्टोन वॉल

यदि आप अपने लिविंग रूम को पूरी तरह बदलना चाहते हैं तो आपको स्टोन वॉल लगवाने के बारे में अवश्य सोचना चाहिए. इससे न केवल पूरे रूम को एक ग्रामीण और प्राचीन लुक मिलेगा बल्कि आपके बच्चे भी अधिक आराम महसूस करेंगे.

कुछ अलग करें

सभी को सरल और क्लासिक चीजें पसंद नहीं होती. कुछ लोगों को कुछ अलग हटकर करना और अपने घर को एकदम अलग दिखाना अच्छा लगता है. यदि आप भी उन लोगों में से एक हैं तो यह वही समय है जब आप अपने लिविंग रूम के द्वारा अपने व्यक्तित्व को प्रतिबिंबित कर सकते हैं. लिविंग रूम में पर्पल रंग (बैंगनी रंग) का उपयोग करना आपकी बहादुरी को दर्शाता है और इसके ऊपर लटकाई गयी साईकिल शो स्टॉपर की तरह दिखती है.

सकारात्मकता के लिए चमकीले रंग

चमकीले रंगों से भागने के बजाय उन्हें अपनाए, घर की साज सज्जा में इन्हें शामिल करें फिर आप स्वयं ही अपने घर में चारों ओर सकारात्मकता महसूस करेंगे. इस लिविंग रूम में संपूर्ण सजावट को संतुलित रखने के लिए चमकीले रंगों के साथ सफेद रंग के शेड्स का उपयोग करें.

टेक्सचर का करें उपयोग

जहा रंग आपके लिविंग रूम को मजेदार बनाते हैं वहीं टेक्सचर का उपयोग करना भी एक अच्छा विकल्प है. लिविंग रूम में कालीन बिछाने से भी लिविंग रूम में नयापन आ जाता है.

लाइटिंग का उपयोग

यदि टेक्सचर या चमकीले रंग आपको प्रभावी नहीं लगते तो आप अपने लिविंग रूम में नियान लाइट्स का उपयोग कर सकते हैं और निश्चित रूप से आप निराश नहीं होंगे.

उम्र के साथ ऐसे बदलता है सैक्स बिहेवियर

शादीशुदा जिंदगी में दूरियां बढ़ाने में सैक्स का भी अहम रोल होता है. अगर परिवार कोर्ट में आए विवादों की जड़ में जाएं तो पता चलता है कि ज्यादातर झगड़ों की शुरुआत इसी को ले कर होती है. बच्चों के बड़े होने पर पतिपत्नी को एकांत नहीं मिल पाता. ऐसे में धीरेधीरे पतिपत्नी में मनमुटाव रहने लगता है, जो कई बार बड़े झगड़े का रूप भी ले लेता है. इस से तलाक की नौबत भी आ जाती है. विवाहेतर संबंध भी कई बार इसी वजह से बनते हैं.

मनोचिकित्सक डाक्टर मधु पाठक कहती हैं, ‘‘उम्र के हिसाब से पति और पत्नी के सैक्स का गणित अलगअलग होता है. यही अंतर कई बार उन में दूरियां बढ़ाने का काम करता है. पतिपत्नी के सैक्स संबंधों में तालमेल को समझने के लिए इस गणित को समझना जरूरी होता है. इसी वजह से पतिपत्नी में सैक्स की इच्छा कम अथवा ज्यादा होती है. पत्नियां इसे न समझ कर यह मान लेती हैं कि उन के पति का कहीं चक्कर चल रहा है. यही सोच उन के वैवाहिक जीवन में जहर घोलने का काम करती है. अगर उम्र को 10-10 साल के गु्रपटाइम में बांध कर देखा जाए तो यह बात आसानी से समझ आ सकती है.’’

शादी के पहले

आजकल शादी की औसत उम्र लड़कियों के लिए 25 से 35 के बीच हो गई है. दूसरी ओर खानपान और बदलते परिवेश में लड़केलड़कियों को 15 साल की उम्र में ही सैक्स का ज्ञान होने लगता है. 15 से 30 साल की आयुवर्ग की लड़कियों में नियमित पीरियड्स होने लगते हैं, जिस से उन में हारमोनल बदलाव होने लगते हैं. ऐसे में उन के अंदर सैक्स की इच्छा बढ़ने लगती है. वे इस इच्छा को पूरी तरह से दबाने का प्रयास करती हैं. उन पर सामाजिक और घरेलू दबाव तो होता ही है, कैरियर और शादी के लिए सही लड़के की तलाश भी मन पर हावी रहती है. ऐसे में सैक्स कहीं दब सा जाता है.

इसी आयुवर्ग के लड़कों में सैक्स के लिए जोश भरा होता है. कुछ नया करने की इच्छा मन पर हावी रहती है. उन की सेहत अच्छी होती है. वे हर तरह से फिट होते हैं. ऐसे में शादी, रिलेशनशिप का खयाल उन में नई ऊर्जा भर देता है. वे सैक्स के लिए तैयार रहते हैं, जबकि लड़कियां इस उम्र में अपनी इच्छाओं को दबाने में लगी रहती हैं.

30 के पार बदल जाते हैं हालात

महिलाओं की स्थिति: 30 के बाद शादी हो जाने के बाद महिलाओं में शादीशुदा रिलेशनशिप बन जाने से सैक्स को ले कर कोई परेशानी नहीं होती है. वे और्गेज्म हासिल करने के लिए पूरी तरह तैयार होती हैं. महिलाएं कैरियर बनाने के दबाव में नहीं होती. घरपरिवार में भी ज्यादा जिम्मेदारी नहीं होती. ऐसे में सैक्स की उन की इच्छा पूरी तरह से बलवती रहती है. बच्चों के होने से शरीर में तमाम तरह के बदलाव आते हैं, जिन के चलते महिलाओं को अपने अंदर के सैक्सभाव को समझने में आसानी होती है. वे बेफिक्र अंदाज में संबंधों का स्वागत करने को तैयार रहती हैं.

पुरुषों की स्थिति: उम्र के इसी दौर में पति तमाम तरह की परेशानियों से जूझ रहा होता है. शादी के बाद बच्चों और परिवार पर होने वाला खर्च, कैरियर में ग्रोथ आदि मन पर हावी होने लगता है, जिस के चलते वह खुद को थका सा महसूस करने लगते हैं. यही वह दौर होता है जिस में ज्यादातर पति नशा करने लगते हैं. ऐसे में सैक्स की इच्छा कम हो जाती है.

महिला रोग विशेषज्ञा, डाक्टर सुनीता चंद्रा कहती हैं, ‘‘हमारे पास बांझपन को दूर करने के लिए जितनी भी महिलाएं आती हैं उन में से आधी महिलाओं में बांझपन का कारण उन के पतियों में शुक्राणुओं की सही क्वालिटी का न होना होता है. इस का बड़ा कारण पति का मानसिक तनाव और काम का बोझ होता है. इस के कारण वे पत्नी के साथ सही तरह से सैक्स संबंध स्थापित नहीं कर पाते.’’

नौटी 40 एट

40 के बाद की आयुसीमा एक बार फिर शारीरिक बदलाव की चौखट पर खड़ी होती है. महिलाओं में इस उम्र में हारमोन लैवल कम होना शुरू हो जाता है. उन में सैक्स की इच्छा दोबारा जाग्रत होने लगती है. कई महिलाएं अपने को बच्चों की जिम्मेदारियों से मुक्त पाती हैं, जिस की वजह से सैक्स की इच्छा बढ़ने लगती है. मगर यह बदलाव उन्हीं औरतों में दिखता है जो पूरी तरह से स्वस्थ रहती हैं. जो महिलाएं किसी बीमारी का शिकार या बेडौल होती हैं, वे सैक्स संबंधों से बचने का प्रयास करती हैं.

40 प्लस का यह समय पुरुषों के लिए भी नए बदलाव लाता है. उन का कैरियर सैटल हो चुका होता है. वे इस समय को अपने अनुरूप महसूस करने लगते हैं. जो पुरुष सेहतमंद होते हैं, बीमारियों से दूर होते हैं वे पहले से ज्यादा टाइम और ऐनर्जी फील करने लगते हैं. उन के लिए सैक्स में नयापन लाने के विचार तेजी से बढ़ने लगते हैं.

50 के बाद महिलाओं में पीरियड्स का बोझ खत्म हो जाता है. वे सैक्स के प्रति अच्छा फील करने लगती हैं. इस के बाद भी उन के मन में तमाम तरह के सवाल आ जाते हैं. बच्चों के बड़े होने का सवाल मन पर हावी रहता है. हारमोनल चेंज के कारण बौडी फिट नहीं रहती. घुटने की बीमारियां होने लगती हैं. इन परेशानियों के बीच सैक्स की इच्छा दब जाती है.

इस उम्र के पुरुषों में भी ब्लडप्रैशर, डायबिटीज, कोलैस्ट्रौल जैसी बीमारियां और इन को दूर करने में प्रयोग होने वाली दवाएं सैक्स की इच्छा को दबा देती हैं. बौडी का यह सैक्स गणित ही पतिपत्नी के बीच सैक्स संबंधों में दूरी का सब से बड़ा कारण होता है.

डाक्टर मधु पाठक कहती हैं, ‘‘ऐसे में जरूरत इस बात की होती है कि सैक्स के इस गणित को मन पर हावी न होने दें ताकि सैक्स जीवन को सही तरह से चलाया जा सके.’’

रिलेशनशिप में सैक्स का अपना अलग महत्त्व होता है. हमारे समाज में सैक्स पर बात करने को बुरा माना जाता है, जिस के चलते वैवाहिक जीवन में तमाम तरह की परेशानियां आने लगती हैं. इन का दवाओं में इलाज तलाश करने के बजाय अगर बातचीत कर के हल निकाला जाए तो समस्या आसानी से दूर हो सकती है. लड़कालड़की सही मानो में विवाह के बाद ही सैक्स लाइफ का आनंद ले पाते हैं. जरूरत इस बात की होती है कि दोनों एक मानसिक लैवल पर चीजों को देखें और एकदूसरे को सहयोग करें. इस से आपसी दूरियां कम करने और वैवाहिक जीवन को सुचारु रूप से चलाने में मदद मिलती है.

होली में रसायन वाले रंगों के बीच ऐसे रखें अपना ख्याल

होली का इंतजार सभी को रहता है, विशेषकर बच्चों में इस त्वहार का खासा उल्लास रहता है. पर जरूरी है कि इस दौरान हम कुछ खास बातों का ख्याल रखें नहीं तो हमें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. बाजार में मिलने वाले होली के ज्यादातर रंग हमारी त्वचा, बालों और आंखों के लिए काफी हानीकारक होते हैं. इससे जलन, रैशेज और एलर्जी की समस्याएं होती हैं.

होली के इस खास मौके पर आपको कोई भी परेशानी का सामना ना करना पड़े, होली की मौज मस्ती फीकी ना पड़ जाए इसलिए हम आपको कुछ खास टिप्स देने वाले हैं, जिनको ध्यान में रख कर आप अपनी होली को और ज्यादा इंजौय कर पाएंगी.

बरतें सावधानियां

होली से एक दिन पहले अपने पूरे शरीर पर सरसो का तेल लगा लें. खास कर के हाथ और पैरों में, क्योंकि ये अंग रंगों से सीधे संपर्क में आते हैं. तेल से आपकी त्वचा सुरक्षित रहेगी. रंग भी इससे आसानी से हट जाते हैं.

तेल के अलावा आप लोशन का भी इस्तेमाल कर सकती हैं. त्वचा को साफ रखने में ये बेहद कामगर होते हैं.  इसके इस्तेमाल से मुश्किल रंग भी छूट जाते हैं. इसके अलावा बालों में आप बहुत सारा नारियल का तेल लगाएं. ये एक संरक्षक एजेंट के रूप में काम करता है और रंगों को बालों की गहराइयों में जाने से रोकता है.

क्या करें जब रंग आंखों में या मुंह में चला जाए

अगर आपकी आंखों या मुंह में सूखा रंग चला जाए तो उसे पानी से अच्छे से धोएं. आंखों को साफ करने के बाद उसमें गुलाब जल डालें और थोड़ी देर तक आराम करें. ससे आपकी आंखों को ठंडक मिलेगी.

ये मसाले रखेंगे आपके दिल का ख्याल

मसालों का सेवन केवल स्वाद के लिए नहीं किया जाता है बल्कि स्वास्थ की बेहतरी में भी इनका योगदान बेहद अहम होता है. मसालों में कई तरह के पोषक तत्व होते हैं जो आपके दिल के लिए काफी फायदेमंद होते हैं.

इस खबर में हम आपको उन पांच मसालों के बारे में बताएंगे जिनके सेवन से आप अपने दिल को हेस्दी रख सकेंगी.

लहसुन

दिल का काफी नुकसान होता है बढ़े हुए कौलेस्ट्रोल से. लहसुन दिल की बीमारियों में काफी कारगर होता है. बढ़े हुए कौलेस्ट्रोल को कम करने में ये बेहद फायदेमंद होता है. आपको बता दें कि लहसुन में एलिसिन नाम का एक एंटीऔक्सिडेंट पाया जाता है, इसका काम होता है कौलेस्ट्रोल को नियंत्रण में रखना. इसके अलावा ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने में भी लहसुन काफी असरदार होता है.

काली मिर्च

काली मिर्च कौर्डियोप्रोटेक्ट‍िव एक्शन को सक्रिय करने का काम करती है. ये औक्सीडेटिव डैमेज से हमे सुरक्षा देता है इसके साथ ही कार्डियक फंक्शन को भी सही रखता है.

धनिया के बीज

धनिया के बीजों में एंटीऔक्सिडेंट की मात्रा अधिक होती है. इसमें मौजूद तत्व हमारे दिल को फ्री रेडिकल्स से सुरक्षित रखते हैं. कौलेस्ट्रोल को कंट्रोल करने के लिए और ब्लड फ्लो बढ़ाने के में धनिए का बीज बेहद कामगर होता है.

दाल चीनी

खाने में दालचीनी का इस्तेमाल शरीर में खून के बहाव को बोहतर बना कर रखता है. इससे शरीर में ब्लड क्लौटिंग का खतरा काफी कम हो जाता है. दिल की परेशानियों को दूर रखने के लिए जरूरी है कि आप रोज एक चुटकी दालचीनी का सेवन करें.

हल्दी

आपको बता दें कि हल्दी में एंटीऔक्सिडेंट और एंटी इंफ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं. ये तत्व हमारे शरीर में ब्लड कौलेस्ट्रोल को कम करने में बेहद असरदार होते हैं. डायबिटिज से बचाव करन के लिए ये काफी प्रभावशाली उपाय है.

ऐसी शादी से किस का भला होगा

शादियों पर आजकल जम कर खर्च होने लगा है. खर्च तो पहले भी हुआ करता था पर तब जेवरों, कपड़ों और संपत्ति पर होता था, अब सजावट पर और खाने की वैरायटी और परोसने के ढंग पर होने लगा है. लोगों का बजट अब लाखों रुपए से बढ़ कर क्व10-20 करोड़ हो गया है और बाकायदा मैरिज कंसलटैंटों की भीड़ उमड़ आई है, जो लाइटिंग, भोजों, फूल, पलपल के इंतजाम से ले कर दूल्हादुलहन के ही नहीं पूरे परिवार के कपड़ों के स्टाइल व रंगों का हिसाब भी रखने लगे हैं.

जिन के पास पैसा है उन्हें खर्च करने का हक है, पैसा काला है या सफेद, इस से फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि देश में ऐसे लोगों की गिनती अब काफी होनी लगी है जिन के पास क्व100-200 करोड़ पूरे सफेद हैं और जो शादियों में कम से कम 10-20 करोड़ आराम से खर्च कर सकते हैं.

शादियों की सजावट के बारे में एक ही आपत्ति है कि इस तड़कभड़क की शादी और दूल्हादुलहन के जीवन पर क्या असर पड़ता है? उन्हें अपने अच्छे कपड़े मिल जाएं, अच्छा घर मिल जाए, शादी के बाद घूमने की जगह मिल जाए यह मुख्य होना चाहिए न कि दूल्हे और दुलहन के घर वालों, रिश्तेदारों, मित्रों पर फालतू का खर्च, जो आएंगे और बनावटी हंसी के साथ लाइन में लग कर हाथ मिलाएंगे, फोटो ख्ंिचवाएंगे और चलते बनेंगे.

शादी तो युवकयुवती की होती है. उस में बेगानों का क्या काम? नाचनागाना तो सारे साल हो सकता है, सारी जिंदगी हो सकता है. विवाह पर लंबाचौड़ा खर्च शादी को पक्का नहीं कर सकता. यह मातापिताओं को रौब मारने का काम कर सकता है पर जितना बड़ा आयोजन होगा उतनी ज्यादा समस्याएं होंगी. उन का काम बेटेबेटी की शादी के लिए तैयार करने की जगह, लोगों को इनवाइट करने, डैकोरेशन व कैटरिंग का हिसाब करने, हौल बुक करने और हजार दूसरी बेकार की बातों में लग जाएगा.

शादी का मतलब है युवकयुवती के संबंध को सामाजिक मान्यता मिलना. वैसे तो धर्म ने टांग अड़ा कर फालतू में इस सामान्य सी प्रक्रिया को लंबाचौड़ा कर दिया है ताकि उस की पत्ती बन सके और वह जीवनभर पतिपत्नी से वसूलता रहे वरना शादी बच्चे पैदा करने, एकदूसरे के साथ रहने और एकदूसरे की सुरक्षा का नाम है जो नैसर्गिक होना चाहिए न कि मैरिज इवेंट कंसल्टैंट के हाथों पैसे व समय की बरबादी का बहाना.

बात ईर्ष्या की उतनी नहीं है. जिस के पास पैसा है वह खर्च करेगा. पर बात यह है कि क्या शादी पर खर्च हो? शादी का महत्त्व क्या पंडाल की डैकोरेशन से फीका हो जाने दिया जाए? ब्यूटीफुल दिखने के लिए क्या हफ्तों ब्यूटीपार्लरों के चक्कर काटे जाएं? सही पोशाकों के लिए क्या बाजारों और टेलरों के यहां बारबार जाया जाए?

शादी से पहले होने वाले पतिपत्नी एकदूसरे को भूल जाते हैं और उन का पूरा ध्यान शादी के प्रबंध में लग जाता है. एक भी चीज मन के हिसाब से न हो तो एक कड़वाहट मन के किसी कोने में

बैठ जाती है जिस का एकदूसरे के व्यवहार से कोई मतलब नहीं होता. शादी को प्रेम का महल बना रहने दीजिए, महल से पंडाल में शादी कर के दूल्हादुलहन को छोटा न करिए.

अब पसीने की बदबू को कुछ इस तरह कहें बाय बाय

झुलसाती गरमी में त्वचा और स्वास्थ्य संबंधी नई नई समस्याएं सिर उठाने लगती हैं. इन में बड़ी समस्या पसीना आने की होती है. सब से ज्यादा पसीना बांहों के नीचे यानी कांखों, तलवों और हथेलियों में आता है. हालांकि ज्यादातर लोगों को थोड़ा ही पसीना आता है, लेकिन कुछ को बहुत ज्यादा पसीना आता है.

कुछ लोगों को गरमी के साथसाथ पसीने की ग्रंथियों के ओवर ऐक्टिव होने के चलते भी अधिक पसीना आता है जिसे हम हाइपरहाइड्रोसिस सिंड्रोम कहते हैं. बहुत ज्यादा पसीना आने की वजह से न सिर्फ शरीर में असहजता महसूस होती है, बल्कि पसीने की दुर्गंध भी बढ़ जाती है. इस से व्यक्ति का आत्मविश्वास डगमगा जाता है.

अंतर्राष्ट्रीय हाइपरहाइड्रोसिस सोसाइटी के मुताबिक हमारे पूरे शरीर में 3 से 4 मिलियिन पसीने की ग्रंथियां होती हैं. इन में से अधिकतर एन्काइन ग्रंथियां होती हैं, जो सब से ज्यादा तलवों, हथेलियों, माथे, गालों और बांहों के निचले हिस्सों यानी कांखों में होती हैं.

एन्काइन ग्रंथियां साफ और दुर्गंधरहित तरल छोड़ती हैं जिस से शरीर को वाष्पीकरण प्रक्रिया से ठंडक प्रदान करने में मदद मिलती है. अन्य प्रकार की पसीने की ग्रंथियों को ऐपोन्काइन कहते हैं. ये ग्रंथियां कांखों और जननांगों के आसपास होती हैं. ये ग्रंथियां गाढ़ा तरल बनाती हैं. जब यह तरल त्वचा की सतह पर जमे बैक्टीरिया के साथ मिलता है तब दुर्गंध उत्पन्न होती है.

पसीने और उस की दुर्गंध पर ऐसे पाएं काबू

साफसफाई का विशेष ध्यान रखें

पसीना अपनेआप में दुर्गंध की वजह नहीं है. शरीर से दुर्गंध आने की समस्या तब होती है जब यह पसीना बैक्टीरिया के साथ मिलता है. यही वजह है कि नहाने के तुरंत बाद पसीना आने से हमारे शरीर में कभी दुर्गंध नहीं आती.

दुर्गंध आनी तब शुरू होती है जब बारबार पसीना आता है और सूखता रहता है. पसीने की वजह से त्वचा गीली रहती है और ऐसे में उस पर बैक्टीरिया को पनपने का अनुकूल माहौल मिलता है. अगर आप त्वचा को सूखा और साफ रखें तो पसीने के दुर्गंध की समस्या से काफी हद तक बच सकती हैं.

स्ट्रौंग डियोड्रैंट और ऐंटीपर्सपिरैंट का इस्तेमाल करें

हालांकि डियोड्रैंट पसीना आने से नहीं रोक सकता है, लेकिन यह शरीर से आने वाली दुर्गंध को रोकने में मददगार हो सकता है. स्ट्रौंग पर्सपिरैंट पसीने के छिद्रों को बंद कर सकते हैं, जिस से पसीनाकम आता है. जब आप के शरीर की इंद्रियों को यह महसूस हो जाता है कि पसीने के छिद्र बंद हैं तो वे अंदर से पसीना छोड़ना बंद कर देती हैं.

ये ऐंटीपर्सपिरैंट अधिकतम 24 घंटे तक कारगर रहते हैं. अगर इन का इस्तेमाल करते समय इन पर लिखे निर्देशों का पालन न किया जाए तो ये त्वचा के इरिटेशन की वजह भी बन सकते हैं. ऐसे में कोई भी ऐंटीपर्सपिरैंट इस्तेमाल करने से पहले डाक्टर की सलाह जरूर लें.

लोंटोफोरेसिस

यह तकनीक आमतौर पर उन लोगों पर इस्तेमाल की जाती है, जो हलके ऐंटीपर्सपिरैंट इस्तेमाल कर चुके होते हैं, लेकिन उन्हें इस से कोई फायदा नहीं होता है. इस तकनीक से आयनोटोफोरेसिस नामक मैडिकल डिवाइस का इस्तेमाल किया जाता है, जिस के माध्यम से पानी वाले किसी बरतन या ट्यूब में हलके इलैक्ट्रिक करंट डाले जाते हैं और फिर प्रभावित व्यक्ति को इस में हाथ डालने के लिए कहा जाता है.

यह करंट त्वचा की सतह के माध्यम से भी प्रवेश करता है. इस से पैरों और हाथों में पसीना आने की समस्या बेहद कम हो जाती है. लेकिन कांखों के नीचे अधिक पसीना आने की समस्या को ठीक करने के लिए यह तरीका उपयुक्त नहीं होता है.

मैसोबोटोक्स

बांहों के नीचे बेहद ज्यादा पसीना आना न सिर्फ दुर्गंध की वजह बनता है, बल्कि आप की ड्रैस भी खराब कर सकता है. इस के इलाज हेतु कांखों में प्यूरिफाइड बोटुलिनम टौक्सिन की मामूली डोज इंजैक्शन के माध्यम से दी जाती है, जिस से पसीने की नर्व्ज अस्थायी रूप से बंद हो जाती हैं. इस का असर 4 से 6 महीने तक रहता है. माथे और चेहरे पर जरूरत से ज्यादा पसीना आने की समस्या के उपचार हेतु मैसोबोटोक्स एक बेहतरीन समाधान साबित होता है, इस में पसीना आना कम करने के लिए डाइल्युटेड बोटोक्स को इंजेक्शन के जरीए त्वचा में लगाया जाता है.

खानपान पर भी रखें ध्यान

खानपान की कुछ चीजों से भी पसीना अधिक आ सकता है. उदाहरण के तौर पर गरममसाले जैसेकि कालीमिर्च ज्यादा पसीना ला सकती है. इसी तरह से अलकोहल और कैफीन का अधिक इस्तेमाल पसीने के छिद्रों को ज्यादा खोल सकता हैं. इस के साथ ही प्याज के अधिक इस्तेमाल से पसीने की दुर्गंध बढ़ सकती है. गरमी के दिनों में इन चीजों के अधिक इस्तेमाल से बचें.

डा. इंदू बालानी डर्मैटोलौजिस्ट, दिल्ली

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