8 मार्च को नहीं मनाया जाता था ये दिन, पढ़ें ये दिलचस्प किस्सा

आज यानि 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस दुनिया भर में धूमधाम से मनाया जा रहा है. दुनिया भर में महिलाएं एक लंबे वक्त तक शोषित रहीं. एक अरसे तक अपने अधिकारों के लिए उन्हें समाज से लड़ाई लड़नी पड़ी. जिस महिला से समाज का निर्माण हुआ, उसे ही इस समाज में अपनी पहचान, इज्जत पाने के लिए संघर्ष करना पड़ा. सैकड़ों साल तक चली इस लड़ाई को जब आज हम पीछे मुड़ कर देखते हैं तो बिता वक्त बहुत छोटा दिखता है. पर उस वक्त में लाखों करोड़ों ऐसी अनकही कहानियां उबल रही हैं जिनकी  उष्मा ने आज के समाज को गढ़ा है.

महिलाओं के त्याग, बलिदान और संघर्ष के प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है इंटरनेशनल वुमन डे. लंबे समय तक उनकी लड़ाई, त्याग और संघर्ष को याद करते हुए उन्हें समाज में इज्जत, बराबरी और अधिकार दिलाना ही इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य है. पर क्या आपको पता है कि ये दिन मनाया क्यों जाता है?

इस लेख के माध्यम से हम आपको बताएंगे कि इस दिन की शुरुआत कैसे हुई. क्यों इसे मनाया जाता है.

ऐसे हुई शुरुआत

1908 में अमेरिका में वोटिंग के अधिकार, बेहतर तनख्वाह, काम की नियमित अवधि और पेशेवर तौर पर पुरुषों के बराबर बहुत सी बातों की मांग करते हुए करीब 15,000 महिलाओं ने एक मार्च निकाला था.  इसे न्यू यौर्क में निकाला गया था. इस मार्च को महिलाओं के हक के लिए हुए संघर्ष में एक मील के पत्थर के तौर पर देखा जाता है. अमेरिका के समाज में इस मार्च का काफी गहरा असर हुआ और लोगों में एक चेतना जागी.

इस मार्च के असर को देखते हुए ठीक अगले साल से, यानि 28 फरवरी, 1909 को पहली बार महिला दिवस मनाया गया था. इस दिन को मनाने का आह्वान सोशलिस्ट पार्टी ने किया था. शुरुआत इसकी केवल अमेरिका तक ही थी. पर अगले ही साल यानि 1910 में जर्मनी में वुमन डे का मुद्दा कालरा जेटकिन ने उठाया. कालरा का कहना था कि दुनिया के सभी देशों में महिलाओं के अधिकारों की बात होनी चाहिए और इसके लिए एक दिन तय करना होगा. इस दिन को वो महिलाओं के संघर्ष, उनके बलिदान, उनके शौर्ष के रूप में दुनिया भर में मनाना चाहती थी.

1909 में अमेरिका के न्यू यौर्क में लगी ये चिंगारी अब दुनिया भर में फैलने को तैयार थी. इसका असर ये हुआ कि 19 मार्च 1911 को औस्ट्रेलिया, जर्मनी, स्विटजरलैंड और डेनमार्क में इस दिन को महिलाओं के सम्माने के तौर पर मनाया गया.

पहले 8 मार्च को नहीं मनाया जाता था अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस

जी हां, आपको ये जान कर हैरानी होगी पर ये एक मजेदार तथ्य है. जब इसकी शुरुआत हुई तब, आज की तरह इसे 8 मार्च को नहीं मनाया जाता था. जब सोशलिस्ट पार्टी ने इस दिन का आह्वान किया, तब इसे फरवरी महीने के आखिरी रविवार को मनाया गया था. पर 1913 में इसे 8 मार्च को तय कर दिया गया. आगे चल कर 1975 में संयुक्त राष्ट्र में भी इस दिन को आधिकारिक मान्यता दे दी. इसके बाद इस दिन को दुनिया भर में एक थीम के तौर पर मनाया जाता है.

ऐसे दूर करें स्‍ट्रेच मार्क्स

स्किन के ओवर स्ट्रेच हो जाने पर स्‍ट्रेच मार्क्स की समस्या होती है. ये अक्सर प्रेग्नेंसी, बौडी बिल्डिंग, अधिक वजन बढ़ने और कभी – कभार उम्र बढ़ने के साथ भी आ जाते हैं. अगर आपकी बौडी पर स्‍ट्रेच मार्क्स है तो अब चिंता करने की जरूरत नहीं है क्‍योंकि आज हम आपको कुछ घरेलू उपचार बताएंगे जिसकी मदद से आप अपनी बौडी पर पड़े भद्दे स्‍ट्रेच मार्क को हल्‍का कर सकती हैं.

कोको बटर

यह एक आजमाया हुआ नुस्‍खा है. कोको बटर को शिया बटर और एक विटामिन ई कैप्‍सूल के साथ मिक्‍स करें. इससे अपने स्‍ट्रेच मार्क वाली जगह की मालिश करें.

जैतून तेल

अपनी त्‍वचा को हर वक्‍त गरम जैतून तेल से आधे घंटे के लिये मालिश करें. ऐसा नहाने से पहले करें.

एलो वेरा जैल

एलो वेरा जैल के रस में विटामिन ई का तेल मिक्‍स करें और रोजाना प्रभावित हिस्‍से पर लगाएं.

बेकिंग सोडा और नींबू का रस

एक चम्‍मच बेकिंग सोडा और थोड़ा सा नींबू का रस मिक्‍स कर के पेस्‍ट बनाएं. इसे प्रभावित जगह पर आधे घंटे के लिये लगाए रखें. फिर इसे साधारण पानी से धो लें. कुछ ही दिनों में आपको असर दिखाई देने लगेगा.

आलू का रस

आलू में स्‍टार्च, विटामिन सी, एंटीऑक्‍सीडेंट आदि अच्‍छी मात्रा में होते हैं. कच्‍चे आलू को घिस कर उसके रस को स्‍ट्रेच मार्क पर लगाएं. आधे घंटे के बाद ठंडे पानी से धो ले.

अंडे

अंडे के सफेद भाग में काफी प्रोटीन होता है जिससे आपकी त्‍वचा लाभ उठा सकती है. इसे त्‍वचा पर लगाने से धीरे धीरे कर के स्‍ट्रेच मार्क गायब हो जाएंगे.

बादाम स्‍क्रब

बादाम के तेल में थोड़ी सी चीनी और नींबू का रस मिक्‍स कर के स्‍क्रब तैयार करें. इस स्‍क्रब से अपनी स्‍ट्रेच मार्क वाली जगह को स्‍क्रब करें. इस स्‍क्रब को हफ्ते में एक बार प्रयोग करें.

ऐसे रखें त्वचा का ख्याल

क्‍या आप जानती हैं कि गर्मियों में आपको अपनी त्‍वचा का कैसे ख्‍याल रखना चाहिये? हम आपको कुछ ऐसे ब्‍यूटी टिप्‍स बताएंगे जो गर्मियों में आपकी त्‍वचा में जान डाल देगें. अगर आपकी स्‍किन औइली है तो आपको ये ब्‍यूटी टिप्‍स जरुर आजमाने चाहिये क्‍योंकि यह पूरी तरह से नेचुरल हैं.

क्‍लीजिंग

गर्मियों में त्‍वचा के पोर्स बंद हो जाते हैं और उसमें पसीने के साथ बहुत सी गंदगी भर जाती है. आप इसे धोने के लिये हलका सा फेस वाश प्रयोग करें. और फेस क्‍लींजर के लिये रोज वाटर, दूध और बेसन का प्रयोग करें.

टोनर

अगर आप टोनर के तौर पर रोजवाटर का प्रयोग करती हैं तो यह त्‍वचा के पीएच को बैलेंस करता है. यह बडे़ पोर्स को बंद करता है और फ्रश लुक देता है. इसे दिन में दो बार प्रयोग करें.

मौइस्‍चराइजर

गर्मियों में बहुत से लोग मौइस्‍चराइजर लगाना पसंद नहीं करते. पर इससे त्‍वचा खराब हो जाती है. आप चाहें तो दूध की मलाई या एलो वेरा जैल भी लगा सकती हैं.

रोज लगाएं सनस्‍क्रीन

रोज औफिस या कौलेज जाने से पहले सनस्‍क्रीन लगाना ना भूलें. इससे त्‍वचा बची रहेगी और चेहरे पर उम्र से पहले झुर्रियां नहीं पड़ेगी.

स्‍क्रब

यह बहुत जरुरी है कि त्‍वचा की समय समय पर स्‍क्रब से सफाई की जाए. जिससे त्‍वचा से तेल, गंदगी और मृत्‍य कोशिकाएं निकल जाएं. आप चाहें तो ओटमील स्‍क्रब प्रयोग करें.

सनग्‍लास पहने

आपको हमेशा यूवी प्रोटेक्‍शन वाले सनग्‍लास पहनने चाहिये. आप थोड़े बड़े आकार के चश्‍मे खरीद सकती हैं जिससे आंखों के नीचे तक का हिस्‍सा ढंका रहे.

खूब सारी सब्‍जियां और फल खाइये

गर्मियों में फेशियल करवाने से अच्‍छा है कि आप खूब सारे फल और सब्‍जियां खाएं. इससे आपको ढेर सारा मिनरल, विटामिन और एंटीऔक्‍सीडेंट मिलेगा जिससे त्‍वचा हमेशा अच्‍छी बनी रहेगी.

खूब सारा तरल पदार्थ पियें

इससे आपकी त्‍वचा हमेशा हाइड्रेट बनी रहेगी और गंदगी भी दूर होगी. आपको दिन में 8 गिलास पानी पीना चाहिये. साथ ही गर्मियों में निकलने वाले मुंहासे भी नहीं होंगे.

हम तो सच ही बोलेंगे…

किरण मजूमदार शा बायोकौन कंपनी की मैनेजिंग डायरेक्टर और जानी मानी हस्ती हैं जिन की कही बात दूर तक जाती है और शायद इसीलिए उन्होंने ट्विटर पर अपना अकाउंट बना लिया, जिसे 14 लाख लोग फौलो करते हैं. अपनी सही बात बहुतों तक पहुंचे, इसीलिए उन्होंने नरेंद्र मोदी की ट्रेन-18 जो दिल्ली से उन की संसदीय सीट वाराणसी के बीच चलनी शुरू हुई है और यह दावा किया जा रहा है कि 180 किलोमीटर की स्पीड पर चल रही है, पर एक सादा सा कमैंट कर दिया.

असल में पुलवामा की घटना के दिन ही नरेंद्र मोदी ने इस ट्रेन का उद्घाटन किया था पर यह अगले ही दिन लौटते हुए रास्ते में खराब हो गई. इस पर किरण मजूमदार शा ने पूरी साफगोई के साथ कह डाला कि यह सरकारी इंटैग्रल कोच फैक्टरी की कार्यकुशलता का नमूना है.

बस इतना कहना था कि उन पर सैकड़ों मोदी भक्त बरस पड़े. किसी ने कहा कि किरण शा कांग्रेस से राज्यसभा सीट चाहती हैं, किसी ने उन्हें विजय माल्या सा घोषित कर दिया, तो किसी ने उन्हें शेमलैस कहा, कुछ ने उन की कंपनी बायोकौन को घसीटना शुरू कर दिया, किसी ने उन्हें मानसिक बीमार घोषित कर दिया.

बेचारी किरण शा अपनी सफाई देतेदेते थकने लगीं और अंत में उन्होंने एक नए ट्वीट में माफी भी मांगी पर भगवाई ट्रोलों ने उन्हें फिर भी नहीं छोड़ा और उन के खेद पर और ज्यादा जोर से हमला जारी रखा. उन्हें अरबन नक्सल कहा गया और सलाह दी गई कि अपने काम से काम रखें.

असल में यह आलोचना हुई इसलिए कि यह ट्रेन नरेंद्र मोदी के नाम के साथ जुड़ी है और दूसरों को मांबहन की भद्दी गालियां देने वाले अपने आराध्य से जुड़ी किसी भी बात पर भड़क उठते हैं. वे जानते हैं कि सच को छिपाने का सब से अच्छा तरीका है कि सच बोलने वाले को डांटो, गालियां दो, उस का इतिहास खोलो.

दिल्ली प्रैस की पत्रिकाएं यह अकसर झेलती हैं जब वे लोगों के भ्रम तोड़ कर उन्हें सच की तसवीर दिखाने की कोशिश करती हैं पर चूंकि पत्रिकाओं का प्लेटफौर्म ट्विटर की तरह का नहीं है, गालियां पत्रों, फोन वालों तक सीमित रहती हैं और एक गाली देने वाले के साथ दूसरे गाली देने वाले जुड़ नहीं पाते.

किरण मजूमदार शा को समझना चाहिए कि ट्विटर जैसा प्लेटफौर्म लोकतांत्रिक नहीं है. यहां बहस नहीं होती. यहां गालियां दी जाती हैं और एक पूरा वर्ग गालियां देने में ऐक्सपर्ट हो गया है. यहां झूठ का जम कर प्रचार होता है और अगर अपना उल्लू सीधा करने वालों को जरूरत हो तो सैकड़ोंहजारों रीट्वीट एक झूठ के होते हैं और सच बालने वालों की बात दब कर रह जाती है.

लोकतंत्र में हरेक को कहने की छूट है पर यह छूट लोकतंत्र को बल तब ही देती है जब सत्य कहने पर भीड़ न टूटे. हमारा लोकतंत्र और हमारी विचारों की स्वतंत्रता आज उन के हाथों में गिरवी रखी जा चुकी है, जो किसी भी तरह सच को छिपा कर पाखंड और झूठ के सहारे उस समाज को थोपना चाहते हैं, जिस में अंधविश्वास, पूजापाठ, तंत्रमंत्र, अज्ञान, कुतर्क, गंद, गरीबी, वर्णव्यवस्था का भेद, औरतों को पैर की जूती, विधवाओं का सिर मुंडाना, गोत्रों के हिसाब से विवाह आदि कानूनन थोपे जा सकें. किरण मजूमदार शा जैसे साफ शब्दों में सही बात कहने वालों को अंधभक्तों का आक्रमण तो सहना ही होगा.

किरण मजूमदार शा को सलाह तो यही है कि ऐसा प्लेटफौर्म जो बकवास को फिल्टर न कर सके, उन की उपस्थिति के लायक ही नहीं है. उन्हें ट्विटर, फेसबुक, व्हाट्सऐप आदि छोड़ देने चाहिए और कुछ कहना हो तो समाचारपत्रों और पत्रिकाओं का सहारा लेना चाहिए जहां जिम्मेदार संपादक बैठे होते हैं.

लोग टोकते थे कि मैं आईटी छोड़ कर ब्यूटी इंडस्ट्री में क्यों आई :  अर्पिता दास

अर्पिता दास ब्यूटी प्रोफैशनल हैं. उन्होंने भारत में अपनी ब्यूटी ऐंड वैलनैस कंसल्टिंग कंपनी की शुरुआत की जिस का नाम ‘बिजनैस बाई अर्पिता’ रखा. ब्यूटी ऐंड वैलनैस को बाहर और अंदर से अच्छी तरह जानने के बाद अर्पिता ने महसूस किया कि ब्यूटी प्रोफैशनल्स को बहुत कुछ सीखने और जानने की जरूरत है और इस के लिए एक सही मार्गदर्शक की जरूरत है. इसी मकसद से उन्होंने 3000 से अधिक औपरेटरों को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रशिक्षित किया है. उन्होंने लैक्मे, काया स्किनकेयर और वीएलसीसी जैसे ब्रैंड्स के लिए कौरपोरेट ट्रेनिंग भी दी है.

उन्होंने इंडियन सैलून ऐंड वैलनैस कांग्रेस द्वारा व्यक्तिगत श्रेणी में ‘ऐक्सीलैंस इन ऐस्थैटिक्स कस्टमर सर्विस’ पुरस्कार भी जीता है. हाल ही में ‘बिजनैस बाई अर्पिता’ को ब्यूटी, वैलनैस ऐंड पर्सनल केयर में ‘ऐसोचैम स्टार्टअप औफ द ईयर 2018’ के अवार्ड से भी सम्मानित किया गया.

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पेश हैं, अर्पिता से हुए कुछ सवालजवाब:

इस मुकाम तक पहुंचने के क्रम में किस तरह के संघर्षों का सामना करना पड़ा?

किसी भी मुकाम तक पहुंचने के लिए संघर्ष का सामना तो क रना ही पड़ता है. मुझे भी करना पड़ा. मेरे लिए जरूरी था कि मैं ब्यूटी इंडस्ट्री की सारी जानकारी लूं. मैं कई पार्लर्स में गई. वहां काम करने के आधुनिक तरीके देखे. देखा कि क्याक्या प्रोडक्ट्स यूज होते हैं. जब मैं इस इंडस्ट्री में आई तो मुझे पता चला कि ब्यूटी इंडस्ट्री हरकोई नहीं चुनता, क्योंकि सब को लगता है कि यह काम बहुत छोटा है. वैसे भी मेरी बैकग्राउंड आईटी की रही है. लोग टोकते थे कि मैं आईटी छोड़ कर ब्यूटी इंडस्ट्री में क्यों आ गई. लोगों को यह समझा पाना बहुत कठिन था कि मैं इस इंडस्ट्री को बहुत पसंद करती हूं.

भारत में महिलाओं की स्थिति पर क्या कहेंगी?

इस मुद्दे पर काफी कुछ कहा जा सकता है. मैं सिर्फ इतना कहना चाहूंगी कि पहले और आज की महिलाओं में बहुत अंतर है. पिछले 10-15 साल में काफी बदलाव आए हैं. कई संस्थाएं हैं, जिन्होंने महिलाओं की स्थिति को बदलने के लिए हाथ आगे बढ़ाए हैं. आज हर फील्ड में महिलाएं पुरुषों से कंधे से कंधा मिला कर काम कर रही हैं. मैं ने महिलाओं को मैट्रो, ट्रक, के्रन चलाते और अपने घर व बच्चों का ध्यान रखते हुए भी देखा है. स्थिति पहले से काफी बेहतर है.

एक महिला के तौर पर आगे बढ़ने के क्रम में क्या कभी असुरक्षा का एहसास हुआ?

हां, महिला होने के नाते कई मौकों पर असुरक्षित महसूस होता है. हमें कहीं जाने के लिए समय देखना पड़ता है. मैं जिस इंडस्ट्री में हूं वहां भी पुरुष मौजूद हैं पर हमें असुरक्षित महसूस नहीं होता. लोगों को लगता है कि महिलाओं में इतनी क्षमता नहीं है कि वे ज्यादा काम कर पाएं और चीजों को बखूबी निभा पाएं.

घर और काम एकसाथ कैसे संभालती हैं?

दोनों चीजों का संतुलन बनाए रखना बहुत जरूरी है खासकर एक महिला के तौर पर आप को थोड़ा ज्यादा जिम्मेदार होना पड़ता है. आप को घर के साथसाथ अपने काम को भी संभालना होता है. कई जगह सिर्फ महिलाओं को ही काम करना पड़ता है. यदि आप मां हैं तो आप को अपने बच्चे की ओर ज्यादा ध्यान देना होता है और यदि आप की फैमिली, आप के दोस्त सपोर्टिव हैं तो कोई भी काम आप के लिए मुश्किल भरा नहीं रह जाता. मेरे मांबाप बहुत सपोर्टिव हैं. उन्होंने मुझे किसी भी चीज के लिए नहीं रोका.

क्या आज भी महिलाओं के साथ अत्याचार और भेदभाव होते हैं?

हां, अभी भी महिलाएं खुल कर नहीं जी पाती हैं. कई घटनाएं आए दिन हम सब के सामने आती रहती हैं. इतने कानूनों के बाद भी क्राइम रुक नहीं रहे हैं. मेरे सैंटर में भी जब कोई महिला अपनी कहानी बताती है तो जितना हो सकता है मैं उस की हैल्प करती हूं.

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ये हैं रोमांचित और सस्ते डेस्टिनेशन

आज हम आपको ऐसे टूरिस्ट प्लेस के बारे में बताने जा रहे हैं, जो खूबसूरत होने के साथ-साथ बेहद सस्ते भी हैं. जहां आप कम बजट में यात्रा कर सकती हैं. आइए बताते हैं.

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कसौली

शिमला के पास का कसौली बेहद आकर्षक टूरिस्ट प्लेस है. यह शिमला के नजदीक है और कई मामलों में शिमला से सस्ता भी है. यहां की खूबसूरती किसी मायने में शिमला से कम नहीं है. आप चाहें तो शिमला का टूर करने, वहां टाय ट्रेन की यात्रा करने के बाद कसौली आ सकती हैं.

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उत्तराखंड

उत्तराखंड एक ऐसा राज्य है, जहां बेहद सुंदर टूरिस्ट प्लेस तो हैं ही, साथ ही पाकेट फ्रेंडली टूरिस्ट प्लेस भी हैं. यहां आप कम बजट में ज्यादा से ज्यादा जगहों पर घूम सकती हैं. आइए, उत्तराखंड के उन शहरों के बारे में जानते हैं, जहां कम पैसों में सैर की जा सकती है.

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चमोली

उत्तराखंड का चमोली फूलों की घाटी के रूप में भी प्रसिद्ध है. इस घाटी में 500 से ज्यादा फूलों की विभिन्न प्रजातियां आपको देखने को मिल जाएंगी. यहां का मौसम आमतौर पर सुहावना ही रहता है और आप सर्दियों या गर्मियों में कभी भी यहां घूमने आ सकती हैं. इस सुंदर घाटी को देखने देसी ही नहीं विदेशी सैलानी भी बड़ी संख्या में आते हैं. खास बात यह है कि यहां की खूबसूरती आपको बहुत लुभाएगी.

इन बीमारियों के कारण होते हैं चेहरे के ये बदलाव

हमारे शरीर में क्या कमी है, किस चीज की अधिकता है, सेहत संबंधित सारी चीजें हमारे चेहरे पर उभर आती हैं. किसी भी व्यक्ति के चेहरे को देख कर बताया जा सकता है कि उसे किस तरह की बीमारी है. आपका चेहरा कई तरह की बीमारियों का संकेत देता है.

इस खबर में हम आपको बताएंगे कि चेहरे पर आने वाले कौन से बदलाव किस बीमारी के लक्षण होते हैं. किसी भी तरह के बदलाव के क्या मायने होते हैं.

चेहरे पर बाल आना

हार्मोन्स का संतुलन बिगड़ने से इस तरह की परेशानियां महिलाओं में देखी जाती है. इससे बहुत परेशान ना हों. डाक्टर को दिखाएं, परामर्श लें. जल्दी आपको राहत मिलेगी.

शरीर पर लाल धब्बों का आना

जब आपके पेट में किसी तरह की परेशानी हो रही है तो शरीर पर लाल बड़े धब्बे उभर आते हैं.

बालों का झड़ना

बालों का झड़ना एक आम सी परेशानी है. पर अगर आपके सिर के बालों के साथ पलकें और आईब्रो भी झड़ रहें हैं तो सावधान हो जाइए. इसे नजरअंदाज ना करें. जानकारों की माने तो ये औटोइम्‍यून बीमारी के कारण होता है.

होंठ का सूखना

अगर आपके शरीर में पानी की कमी रह रही है तो आपके होंठ सूखेंगे. सारे मौसमों में अगर आपके होंठ खुश्क रहते हैं तो आपको डायबिटीज और हाइपोथाइरौडिज्म की भी जांच करा लेनी चाहिए.

चेहरे का पीला पड़ना

जब आपके शरीर में खून की कमी होती है तो आपके चेहरे का रंग बदलता है. चेहरे का पीला होना खून की कमी का सूचक है. अपने खानपान पर ध्यान दें.

खजूर नवाबी कोफ्ते

सामग्री:

– 10 खजूर

– 20 ग्राम खोया

– 50 ग्राम पनीर मसला

– चुटकी भर इलाइची पाउडर

–  चुटकी भर लाल मिर्च पाउडर

– चुटकी भर गरममसाला

– 100 ब्रैडक्रंब्स

– पर्याप्त तेल फ्राई करने के लिए

– नमक स्वादानुसार.

ग्रेवी की सामग्री

–  2-3 कलियां लहसुन

– 1 छोटा टुकड़ा अदरक

–  2 प्याज

– 30 ग्राम टोमैटो प्यूरी

– 5 काजू

– चुटकी भर इलाइची पाउडर

– 1 बड़ा चम्मच धनिया पाउडर

– चुटकी भर सौंफ पाउडर

– 1/2 छोटा चम्मच जीरा पाउडर

– 2 बड़े चम्मच तेल

– 5 ग्राम क्रीम

– 2 तेजपत्ते

– नमक स्वादानुसार

बनाने की विधि

– खजूर के बीज निकाल लें.

– फिर खोया, नमक, लालमिर्च पाउडर, इलाइची पाउडर और गरममसाले का मिश्रण तैयार करें और     प्रत्येक खजूर में यह मिश्रण भरें.

– अब पनीर को मैश कर उस में नमक, लाल मिर्च पाउडर और थोड़े से ब्रैडक्रंब्स मिला कर गूंथ लें.

– अब एक लोई के बीचोंबीच एक खजूर रख दें.

– खजूर को अच्छी तरह लोई से कवर करें और ब्रैडक्रंब्स में रोल करने के बाद उसे डीप फ्राई करें.

– इस तरह 10 कोफ्ते तल लें.

– अब लहसुन, अदरक, प्याज और काजू का पेस्ट बना लें.

– इस मिश्रण को हलका सुनहरा होने तक तेल में फ्राई करें.

– फिर इस में टोमैटो प्यूरी, धनिया पाउडर, इलाइची पाउडर, सौंफ पाउडर, जीरा पाउडर, लाल मिर्च पाउडर, नमक और गरममसाला डालें और फ्राई करें.

– अब इस मिश्रण में थोड़ा पानी डालें और ग्रेवी को उबालें.

– इस में थोड़ी क्रीम डाल कर ग्रेवी में कोफ्ते डालें और परोसें.

व्यंजन सहयोग: रुचिता कपूर जुनेजा 

कई बैंकों में खाते होने के हैं ये नुकसान

कई कारणों से लोगों के कई बैंकों में खाते खुल जाते हैं. कई लोग बिजनस पर्पज या सैलरी अकाउंट की प्राइवेसी बनाए रखने के लिए कई खाते खोल लेते हैं. एक ओर कई बैंकों में खाते के कुछ फायदे हैं वहीं इसके बहुत से नुकसान भी होते हैं. इस खबर में हम आपको बताएंगे कि कई बैंकों में खाते खोलने के कौन से मुकसान होते हैं.

यूजर नेम और पासवर्ड याद रखना होगा

आपके जितने बैंक खाते होंगे उतने ही क्रेडेंशियल्स होंगे. ऐसे में सबके पिन, युजरनेम, पासवर्ड को याद रखना एक मुश्किल काम है. अगर आप एक भी पासवर्ड भूलते हैं तो आपको काफी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. कई बार गलत पासपृवर्ड डालने से आपका खाता भी बंद हो सकता है.

आयकर की रडार पर  आसकती हैं आप

अगर आप इनकम टैक्स भरती हैं तो आपको सारे खातों की जानकारी आयकर विभाग को देनी होगी. किसी भी खाते की जानकारी ना देने की सूरत में आयकर विभाग से आपको नोटिस भी मिल सकता है.

सबमें रखना होगा मिनिमम बैलेंस

आपके जितने भी बैंक खाते होंगे सबमें मिनिमम बैलेंस रखना आपकी मजबूरी होगी. आपके पैसे बिखरे रहेंगे. आपको बता दें कि हालिया सरकारी निर्देश के बाद सभी बैंक खातों में एक निश्चित न्यूनतम राशि रखना जरूरी है. ऐसा ना करने की सूरत में आपको जूर्माना भरना पड़ सकता है.

डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड का शुल्क

ज्यादा बैंक खाता यानि उतने ही डेबिट और क्रेडिट कार्ड्स. इन सारे कार्ड्स से बैंक चार्जेस वसूलते हैं. बिना किसी कारण आपको ज्यादा चार्जेस देने पड़ेंगे.

ट्रांजेक्शन अलर्ट के चार्जेज

आपको बता दें कि बैंक के ग्राहकों को कई तरह के चार्जेज देने पड़ते हैं. इन चार्जेज में वार्षिक मेनटेंस, मंथली स्टेटमेंट चार्ज, एसएमएस अलर्ट चार्ज आदि शामिल हैं. आपके पास जितने भी खाते हैं उन सभी खातों पर बैंक आपसे ये चार्जेज वसूलते हैं.

लोगों ने मेरे अभिनय का एक नया पक्ष देखा लिया : अली फजल

‘‘थ्री इडियट्स’’ में कैमियो करने के बाद ‘फुकरे, ‘फुकरे रिर्टन, ‘हैप्पी भाग जाएगी’, ‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’’ सहित कई फिल्मों और वेब सीरीज ‘‘मिर्जापुर’’ में अभिनय कर शोहरत बटोर चुके अभिनेता अली फजल इन दिनों तिग्मांशु धूलिया निर्देशित फिल्म ‘‘मिलन टौकिज’’ को लेकर चर्चा में हैं, जो कि 15 मार्च को सिनेमाघरों में पहुंचेगी.

फिल्म ‘‘मिलन टौकीज’’ के अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगे?

मैंने इस फिल्म में इलहाबाद में रह रहे एक उभरते हुए फिल्म निर्देशक का किरदार निभाया है. जिसकी तमन्ना मुंबई जाकर बौलीवुड में बहुत बड़ा फिल्म निर्देशक बनने की है.

तिग्मांशु धूलिया के निर्देशन में ‘‘मिलन टौकीज’’ करने के अनुभव क्या रहे?

काफी कुछ सीखने को मिला. वह जीनियस हैं. उनके पास कहानियों का जखीरा है. उनका दिमाग बहुत तेज गति से चलता है. वह किसी सिस्टम मे बंधकर काम करने में यकीन नहीं करते. वह तो सेट पर भी स्क्रिप्ट पढ़कर उसके संवाद बदल देते थे. वह स्पाटेनिटी के साथ काम करने में यकीन करते हैं और वह चाहते हैं कि उनका कलाकार भी सेट पर स्पाटेनियस हो. वह ऐसे फिल्मकार हैं, जिन्हें पहले से प्रिडिक्ट करना मुश्किल है. मुझे उनकी इस खूबी ने काफी कुछ सिखा दिया.

आप फिल्मों के साथ साथ डिजिटल प्लेटफार्म पर भी कार्यरत हैं?

जी हां! मैं हर प्लेटफार्म पर काम करन चाहता हूं. मेरे लिए कंटेंट और पटकथा मायने रखती है. पटकथा पढ़ते समय यदि कहानी मुझे उत्साहित करती है, तो मैं उसे करने के लिए हामी भर देता हूं. सिनेमा के बदलते हुए दौर में फिल्मकार दुविधा में नेजर आ रहे हैं. मेरी हर फिल्म को दर्शक और फिल्म आलोचकों द्वारा सराहा जाता है, मगर इससे फिल्मकारों की सोच नही बदल रही है. मेरी फिल्मों को मिल रही सफलता के बावजूद मेरे पास उतने बेहतरीन किरदार व फिल्म के आफर नही आ रहे हैं, जितने आने चाहिए. पर मैं खुश किस्मत हूं कि मुझे ‘मिर्जापुर’ जैसी वेब सीरीज में चुनौतीपूर्ण किरदार निभाने के अवसर मिल रहे हैं. वेब सीरीज विश्व स्तर पर उन दर्शकों तक पहुंच रही है, जिन तक फिल्में भी नहीं पहुंच पा रही हैं. वेब सीरीज में मुझे जिस तरह की लोकप्रियता मिल रही है, उससे फिल्मकार मेरे संबंध में सोचने पर मजबूर हो रहे हैं.

आपकी बढ़ी हुई इस लोकप्रियता की वजह आपकी अंतरराष्ट्रीय फिल्म ‘‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’’ है या वेब सीरीज ‘‘मिर्जापुर’’ है?

मुझे लगता है कि काफी कुछ वेब सीरीज ‘मिर्जापुर’ का योगदान है. क्योंकि इस वेब सीरीज में गुड्डू के किरदार से मेरी ईमेज बदली है. शायद मैं निर्माता होता, तो गुड्डू के किरदार के लिए अली फजल को न लेता. अब तक अली फजल यानी कि मेरी ईमेज बहुत अलग रही है. अली फजल एक डिसेंट, गउ किस्म का साधारण कलाकार है. जिन लोगों ने फिल्म ‘‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’’ देखी है, उन्होंने भी अब्दुल के किरदार में अली फजल को एकदम अलग रूप में देखा है. ‘‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’’ विश्व स्तर पर, यूरोप व इंग्लैड में बहुत बड़ी सफल व चर्चित फिल्म है, पर भारत में इस फिल्म को सही ढंग से लोगों तक नहीं पहुंचाया गया. तो भारतीय दर्शक ‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’ से उतना परिचित नही हैं, जिन लोगो ने देखी, उन्हें यह फिल्म और मेरा काम पसंद आया. मगर ‘मिर्जापुर’ में लोगों को मेरा एक नया रूप नजर आया. हम कलाकारों का काम ही है, हर तरह के किरदार को निभाना.

जब आपको वेब सीरीज ‘‘मिर्जापुर’’ का आफर मिला था, तो आपके दिमाग में सबसे पहले क्या आया था?

हकीकत यह है कि जब रितेश सिद्धवानी ने मुझे इस सीरीज के लिए बुलाया था, तो मैंने फिल्मों में व्यस्तता का बहाना करके इसे करने से मना कर दिया था. उस वक्त मुझे विलेन मुन्ना का किरदार आफर किया गया था. मेरी समझ में तो गुड्डू का ही किरदार आया था, पर कुछ समय बाद मुझसे गुड्डू के किरदार के लिए संपर्क किया गया, तो मेरे लिए यह एक नई चुनौती थी, मैंने स्वीकार किया. आज खुश हूं कि इससे मुझे एक नई पहचान मिली. रितेश सिद्धवानी ने मुझ पर यकीन किया.

क्या आपने ‘‘मिर्जापुर’’ में गुड्डू का किरदार निभाते हुए ईमेज बदलने का जो रिस्क लिया था, उस पर विचार किया था?

मैंने लाभ हानि के बारे में नहीं सोचा था, पर मुझे पता था कि मैं एक रिस्क उठा रहा हूं. कलाकार के तौर पर मैं सदैव रिस्क उठाना चाहता हूं. मेरे लिए रिस्क यह था कि यह वेब सीरीज है और पूरे चार पांच महिने इसके लिए गए. यानी कि लगातार दो फिल्मों की शूटिंग करना. फिर रोज एक ही तरह के किरदार को लंबे समय तक निभाना, इससे मुझे बोरियत भी होने लगती है. एक मुकाम पर थकावट भी होती है. क्योंकि हमें तो फिल्मों की आदत है. पर पूरी वेब सीरीज की शूटिंग खत्म होने के बाद जिस तरह से रिस्पांस मिला, उससे खुशी हुई. लेकिन बीच में लगा था कि मेरे करियर की गति धीमी हो गयी है.

यदि ‘‘मिर्जापुर’’ वेब सीरीज की बजाय फीचर फिल्म होती, तो?

यह इस बात पर निर्भर करता कि फिल्म कितने बड़े दर्शक वर्ग तक पहुंची. यह वेब सरीज 16 नवंबर 2018 को एक साथ सत्तर देशों में रिलीज हुई. मैं अभी दो तीन देशों में गया, तो वहां के लोग मुझे ‘मिर्जापुर’ के गुड्डू के नाम से पहचान रहे थे.

विदेशों में लोगों ने मिर्जापुर इसलिए भी देखा होगा, क्योंकि वह इससे पहले विक्टोरिया एंड अब्दुलदेखकर आपकी प्रतिभा का अहसास कर चुके थे?

आपने एकदम सही कहा..ऐसा भी हो सकता है. विदेशों में ‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’ मेरी सबसे बड़ी पहचान है. इंग्लैंड, अमरीका व यूरोप में यह फिल्म ही मेरी असली पहचान है. लेकिन ‘मिर्जापुर’ देखकर सभी को लगा कि उन्होंने अली फजल के अभिनय का एक नया पक्ष देखा लिया.

भारत में ‘‘मिर्जापुर’’ को किस तरह का रिस्पांस मिला?

‘‘मिर्जापुर’’ देखकर पूरा उत्तर भारत पगला गया है. दक्षिण से भी अच्छा रिस्पांस मिला. पर पहले मैं दिल्ली व लखनउ में आराम से बाहर घूमता था. पर अब नहीं घूम पाया. यदि आपकी एक फिल्म बहुत बड़ी हिट हो जाए, तो जो हालात होते हैं, वैसे हालात ‘मिर्जापुर’ के बाद हो गए हैं. लोगों ने ‘मिर्जापुर’ को अपने एंड्रायड मोबाइल फोन या लैपटौप आदि पर भी देखा है. हर जगह अब भीड़ मुझे घेर लेती है. दो बड़ी सफल फिल्में करने के बाद मुझे जो मुकाम मिलता, उस तक इस एक वेब सीरीज ने पहुंचा दिया. यह एक रोचक अनुभव रहा.

पर क्या वेब सीरीज ‘‘मिर्जापुर’’ के हर दृश्य को मोबाइल पर देखकर इंज्वाय किया जा सकता है?

संभव ही नही है. इसे कम से कम टीवी पर या बड़ी स्क्रीन पर देखें, तो ही ज्यादा मजा आएगा. इस दृष्टिकोण से मैं आपसे सहमत हूं कि यदि ‘‘मिर्जापुर’’ फिल्म के रूप में बनती और थिएटर में बड़े स्तर पर रिलीज होती, तो ज्यादा जबरदस्त रिस्पांस मिलता. मगर फिल्म बनाने पर सेंसर बोर्ड के कुछ निर्देषों का पालन करना पड़ता, तो फिर जिस बेल्ट की कहानी है, उस बेल्ट के माहौल को तथ्यपरक ढंग से हम फिल्म में न पेश कर पाते. मिर्जापुर इलाके में लोग आम जीवन जीते हुए गाली देते हैं. वह किसी को गाली गाली देने के लिए नहीं, बल्कि दोस्ती व प्यार में देते हैं. यह सब फिल्म में न दिखा पाते.

वेब सीरीज के चलते कुछ फिल्में अमेजन व नेटफ्लिक्स पर भी जा रही हैं?

जी हां!! मौलिक कंटेंट के रूप में कुछ फिल्में अब डिजिटल प्लेटफार्म पर जा रही हैं. जो फिल्मकार बजट की कमी के चलते मार्केटिंग व फिल्म के रिलीज पर लगने वाला पैसा खर्च नहीं कर पाते हैं, उनके लिए अब नेटफ्लिक्स, अमेजन या ‘जी फाइव’जैसे डिजिटल प्लेटफार्म एक नई आशा की किरण बनकर आए हैं. मैं खुद भी एक दो ओरिजनल कंटेंट वाली फिल्में डिजिटल प्लेटफार्म के लिए करने वाला हूं.

इससे फिल्म के निर्माता का नुकसान नहीं हो पाता. मगर कलाकार के तौर पर ..?

थोड़ा सा अफसोस लगता है कि हमने तो यह सोचकर इस फिल्म के लिए मेहनत की थी कि थिएटर पर रिलीज होगी, पर यह तो डिजिटल प्लेटफार्म पर चली गयी. मगर ‘जी 5’, ‘अमेजन’और ‘नेटफिल्क्स’ की पहुंच काफी अलग है. तो हम दर्शक नहीं खोते हैं, पर थिएटर में फिल्म रिलीज का जो अनुभव होता है, वह नही मिलता. हां! शुरू शुरू में डिजिटल पर फिल्म के रिलीज से कलाकार को फायदा नहीं मिलता.

आपकी फिल्म ‘‘तड़का’’ का क्या हो रहा है?

प्रकाश राज निर्देशित फिल्म ‘‘तड़का’’ 2018 में रिलीज होने वाली थी, मगर शायद अभी यह फिल्म कानूनी पचड़े में फंसी हुई है.

‘‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’’ से आपको जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शोहरत मिली, उसके बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई दूसरी फिल्म कर रहे हैं?

काफी फायदा हुआ. मैं दो इंटरनेशनल फिल्में करने वाला हूं, जिनकी शूटिंग बहुत जल्द शुरू होगी. इसमें से एक बायोपिक फिल्म है, जिसमें मैं किसी अन्य देश के नागरिक का किरदार निभा रहा हूं. यह कहानी 2003 के इराक युद्ध पर होगी. अभी इन फिल्मों को लेकर ज्यादा जानकारी नहीं दे सकता. इसके अलावा मैं औस्कर की ज्यूरी का सदस्य भी बन चुका हूं.

कल औस्कर अवार्ड खत्म हुए. मैं इस अवार्ड को देख रहा था, क्योंकि ज्यूरी मेंबर होने की वजह से पहली बार मैंने वोट दिया है. मुझे बहुत खुशी हुई कि इस वर्ष पहली बार भारतीय फिल्म को भी पुरस्कार मिला. यह पुरस्कार गुनीत मोंगा ने ‘‘पीरियड्सः आफ एंड सेंटेंस’’ के लिए जीता है. वह भी इसी वर्ष मेंबर बनी. पहली बार किसी भारतीय फिल्म निर्माता को औस्कर अवार्ड मिलना बहुत बड़ी उपलब्धि है. मैं बहुत खुश हूं. क्योंकि ग्लोबल स्तर पर हम जो कुछ कर रहे हैं, उसके अच्छे परिणाम सामने आ रहे हैं. मैं अपनी तरफ से भारतीय सिनेमा को विश्व स्तर पर उंचा उठाने के लिए जो कुछ कर सकता हूं, वह कर रहा हूं. मेरे साथ ही कई दूसरे भारतीय कलाकार भी ऐसा ही प्रयास कर रहे हैं.

आज की तारीख में भारतीय सिनेमा का कंटेंट ग्लोबल हो गया है और लोग इसे देख भी रहे हैं. डिजिटल प्लेटफार्म पर पूरे विश्व के हर देश में ‘मिर्जापुर’ के साथ ही हौलीवुड शो भी देखे जा रहे हैं.

औस्कर की ज्यूरी में 2018 में भारतीय सिनेमा की कई हस्तियों को शामिल किया गया. इस बदलाव की वजह?

भारतीय सिनेमा में आ रहे बदलाव के साथ ही औस्कर में भी अब डायवर्सीफिकेशन हो रहा है. अब भारतीय सिनेमा छोटा नही रहा. अब भारतीय कलाकार इंटरनेशनल सिनेमा में अपना वर्चस्व बढ़ा रहे हैं, तो इसका भी असर पड़ रहा है. अकादमी में आने के बाद समझ में आया कि सिनेमा की अर्काइविंग बहुत जरुरी है. हमारे सिनेमा का कोई अर्काइव ही नही है. सिर्फ ‘पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट’ में ही यह सुविधा है.

मैं और मेरे दोस्त डेविड इस दिशा में एक बहुत बड़ा कदम उठा रहे हैं. वह अमरीका के एले से हैं. हम दोनों ने अपनी कंपनी बनायी है और हम आयकौनिक फिल्मों के प्रिंट इकट्ठा कर उन्हें सुरक्षित करने का काम कर रहे हैं. यह काफी खर्चीला है. क्योंकि फिल्म के प्रिंट को एक खास तापमान में रखने पर ही उन्हें सुरक्षित किया जा सकता है. तो हम ऐसा काम कर रहे हैं. फिलहाल हम इन फिल्मों के नाम नहीं बता सकते.

आप व आपके मित्र डेविड फिल्मों के प्रिंट सुरक्षित रखने की इस शुरुआत को किस तरह आगे ले जाने की योजना बनायी है?

आप जानते होंगे कि जब सत्यजीत रे को औनररी औस्कर अवार्ड मिला था? तो औस्कर वालों के पास सत्यजीत रे की एक भी फिल्म दिखाने के लिए नहीं थी. तब डेविड पार्कर ने रित्विक घटक व सत्यजीत रे की फिल्मों को सुरक्षित रखने का प्रयास किया था. फिलहाल हमने जो कदम उठाया है, उसके लिए हम धन जुटाने का प्रयास कर रहे हैं.

औस्कर यानी कि अकादमी अवार्ड में अब तक अमरीकन ही हावी रहते थे. पुरस्कार भी अमरीकी  फिल्मों को ही ज्यादा मिलता था?

बदलाव आया है. हमारी फिल्म ‘‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’’ तो इंग्लैंड की थी, जिसे पिछले वर्ष कास्ट्यूम एंड मेकअप कैटेगरी में नोमीनेट किया गया था. मुझे इस फिल्म के लिए बेस्ट एक्टर का रशियन अवार्ड मिला था. हौलीवुड सिनेमा तो अमरीका का ही है. अब हालीवुड सिनेमा भारत आकर बौलीवुड में अवार्ड तो नही ले सकता था. ऐसा ही कुछ औस्कर में हो रहा था. पर इस बार औस्कर में ‘नेटफ्लिक्स’ की फौरेन फिल्म ‘‘रोमा’’ ने सिर्फ फौरेन फिल्म कैटेगरी में नहीं, बल्कि जनरल कैटेगरी में हर क्षेत्र में नोमीनेट हुई और कड़ी टक्कर दी. यह नई बात हुई. इसका मतलब हुआ कि अब औस्कर पूरे विश्व के सिनेमा को पहचानने लगा है.

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