सफर के दौरान ऐसे रखें अपने सामान को सुरक्षित

चोरी के मामले अकसर सामने आते रहते हैं. कभी बसों व मैट्रो में तो कभी राह चलते. ये चोर इतने शातिर होते हैं कि कैमरों की आंखों में भी धूल झोंक देते हैं. मैट्रो में कैमरे की निगरानी के बावजूद चोर बड़ी सफाई से चोरी कर जाते हैं.

ऐसे ही चोरी का शिकार होते बची काजल शर्मा. दरअसल काजल रोजाना अपने औफिस के लिए मैट्रो का रूट फौलो करती है. काजल का कहना है कि रोजाना की तरह उस दिन भी वह औफिस मैट्रो से जा रही थी. काजल अपने साथ अपना लैपटौप बैग और साथ में एक छोटा हैंडबैग कैरी करती है.

आमतौर पर मौर्निंग में मैट्रो में भीड़ होती है. काजल भी उसी भीड़ का हिस्सा थी. काजल ने लैपटौप बैग कंधे पर लटकाया हुआ था और दूसरा बैग उस के हाथ में था. कानों में ईयरफोन लगाए हुए काजल म्यूजिक में इतनी खोई हुई थी कि मैट्रो के शोर का उस पर कोई असर नहीं था.

उस शोर के बीच कोई काजल के बैग पर नजर रखे था. एकदो बार बैग पर हाथ लगने पर काजल ने पीछे मुड़ कर देखा और भीड में लगने वाली धक्कामुक्की समझ कर नजरअंदाज कर दिया. लेकिन थोड़ी ही देर बाद काजल को महसूस हुआ कि किसी का हाथ था जो धीरेधीरे उस के बैग के अंदर जा रहा था. काजल ने तिरछी नजरों से उस व्यक्ति के हाथ को देख लिया और मौका पाते ही उस का हाथ झट से पकड़ कर चिल्लाने लगी. तभी मैट्रो में मौजूद लोगों ने उस चोर को पीटना शुरू कर दिया और उसे सीआईएसएफ वालों के हवाले कर दिया.

काजल ने तो अपना लैपटौप चोरी होने से बचा लिया लेकिन जरूरी नहीं कि इन शातिर चोरों से हम हमेशा ही बच जाएं. हम चोरों को तो रोक नहीं सकते लेकिन अपने समान को चोरी होने से जरूर बचा सकते हैं. सफर के दौरान अधिकतर चोरियां बैगों से होती हैं.

अब आप के मन में यह सवाल उठ रहा होगा कि बैग तो बैग होते हैं, चोरों से इन बैगों को बचाया कैसे जाए? तो चलिए जानते हैं कुछ सावधानियों के बारे में जो भीड़भाड़ में बैग के अंदर रखे सामान को चोरी होने से बचा सकते हैं.

डोरी वाला बैकपैक

आप के बैकपैक में 2 डोरियां लगी हों.  इस से आप का सामान चोरी होने से बच सकता है. जब आप बैग बंद करेंगे और ये डोरियां आप के बैग की जिप से जुड़ी होंगी तो बैग बंद करने के बाद आप इन डोरियों को अपनी कमर पर बांध सकते हैं. इस से जब भी कोई आप का बैग खोलने की कोशिश करेगा, खोल नहीं पाएगा और आप को पता चल जाएगा कि कोई आप का बैग खोलने की कोशिश कर रहा है.

अलार्म वाला बैकपैक

आप चाहें तो अपने बैग के ऊपर एक ऐसा डिवाइस सैट कर सकते हैं जिस को टच करते ही अलार्म बजना शुरू हो जाए.यदि आप मैट्रो या बस में सफर कर रहे हैं तो आप इस डिवाइस को औन कर सकते हैं ताकि कोई भी आप के बैग की जिप को हाथ लगाए, तो यह अलार्म बजना शुरू हो जाए.

लौक बैकपैक

बैग में लौक लगाने का आइडिया सब को पता होता है, लेकिन बात जब आसपास जाने की होती है तो हम इस आइडिया को नजरअंदाज कर देते हैं.

अगर आप औफिस जा रही हैं और आप के बैग में लैपटौप है या और कोई कीमती सामान, तो आप इस लौक का इस्तेमाल जरूर करें. इस से आप पूरे रास्ते निश्चिंत हो कर जाएंगी और आप का सामान भी सुरक्षित रहेगा.

जब कराने जाएं वैक्सिंग…

पर्सनैलिटी में निखार लाने के लिए वैक्सिंग आवश्यक है. पर कई बार महिलाएं/लड़कियां वैक्सिंग से होने वाले दर्द से डरकर हेयर रिमूवल क्रिम या रेजर का इस्तेमाल कर लेती हैं, जो गलत है. इससे आपकी त्वचा को नुकसान पहुंचने के साथ ही हेयर ग्रोथ भी बढ़ता है. इसलिए अगर आप वैक्‍सिंग करवाने से डरती हैं तो एक बार दुबारा जरुर सोंच लें.

त्‍वचा काली नहीं पड़ती

एक बार वैक्‍सिंग करवाइये और देखिये कि आपकी स्‍किन का कलर किस प्रकार बदल जाता है. वैक्‍सिंग करवाने से सन टैनिंग हटती है. कई ब्‍यूटीशियन का मानना है कि वैक्‍सिंग करवाने से मृत कोशिकाएं हट जाती हैं जिससे त्‍वचा साफ सुथरी और गोरी दिखाई पड़ने लगती है.

वैक्‍स का सही तरीका चुने

जिन महिलाओं को वैक्‍सिंग करवाने पर दर्द होता है, उन्‍हें चौकलेट वैक्‍सिंग करवाना चाहिये. हांलाकि चौकलेट वैक्‍सिंग थोड़ी महंगी होती है और इसे घर पर किया भी नहीं जा सकता.

दर्द को दूर करें

अगर वैक्‍सिंग से दर्द होता है तो 30-40 मिनट पहले एस्‍पिरिन की गोली खा लें या फिर वैक्‍सिंग के तुरंत बाद आइस क्‍यूब रगड़ लें.

दीक्षा यानी गुरुओं की दुकानदारी

रिटायरमैंट के करीब पहुंचे एक सज्जन से मैं ने पूछा, ‘‘दीक्षा का मतलब क्या है?’’ वे बताने लगे, ‘‘दीक्षा का मतलब, दक्ष,’’ वे आगे बोले, ‘‘कृष्ण ने अर्जुन को महाभारत के युद्ध में दीक्षा दी थी.’’

‘‘क्या दीक्षा दी थी?’’ मेरे दोबारा पूछने पर वे कुछ नहीं बोले. जाहिर है, वे अपने गुरु के अंधसमर्थक थे.

इस बारे में महाभारत से स्पष्ट है कि कृष्ण ने छलकपट से कुरुक्षेत्र का युद्ध जीता था. तो क्या उन्होंने अर्जुन को छलकपट की दीक्षा दी? आमतौर पर दीक्षा का मतलब होता है, गुरु द्वारा दिया गया ज्ञान का सार, जिस पर शिष्य (छात्र) अपने जीवन में अमल कर सफलता की सीढ़ी चढ़ता है. स्कूल की पढ़ाई को तथाकथित गुरु अपर्याप्त शिक्षा मानते हैं. अनपढ़, गंवार गुरु अपने तप से जीवन में ऐसा कौन सा मंत्र प्राप्त करते हैं जो अपने शिष्यों में बांट कर उन का जीवन सुधारने का कार्य करते हैं, जबकि वे खुद असफल, जीवन के संघर्षों से भागने वाले लोग होते हैं.

गुरु के मर जाने के बाद भी दीक्षा का कार्यक्रम चलता है. यह समझ से परे है, क्योंकि गुरु खुद अपना ज्ञान दे तो समझ में आता है पर यह कार्य मरने के बाद उन के कुछ शिष्यों द्वारा चलता रहे, तो यही कहा जा सकता है कि यह गुरु की दुकानदारी है.

दीक्षा देने का तरीका सभी गुरुओं का एक जैसा नहीं होता. कुछ गुरु खास रंगों के वस्त्रों के साथ नहाधो कर ब्रह्ममुहूर्त में दीक्षा देते हैं, तो कुछ कभी भी, किसी भी अवस्था में. दीक्षा के लिए किस गुरु को चुना जाए, यह बुद्धि से ज्यादा गुरु के प्रचार पर निर्भर करता है जिस गुरु का जितना प्रचार होता है उस से दीक्षित होने के लिए लोग उतने ही उतावले होते हैं. इस के अलावा संपर्क भी एक माध्यम है. क्यों? जड़बुद्धि जनता के लिए यह महत्त्वपूर्ण नहीं होता क्योंकि इतना सोचने के लिए उस के पास दिमाग ही नहीं होता. उसे तो बस यह पता हो कि उक्त गुरुजी बहुत पहुंचे हुए महात्मा हैं.

इन गुरुओं से संबंधित अनेक मनगढं़त कहानियां होती हैं जो नए ग्राहक (शिष्य) को फंसाने के लिए सुनाई जाती हैं. एक दीक्षा प्राप्त महिला ने अपने गुरु के बारे में बताया कि एक बार मेरा बेटा मोटरसाइकिल से आ रहा था. उसे अचानक चक्कर आया और वह गिर पड़ा. गिरते ही बेहोश होने की जगह उस ने गुरुमंत्र जपा. तभी गुरु समान सड़क पर पता नहीं कहां से एक रिकशा वाला आ गया, जो मेरे बेटे को उठा कर पास के अस्पताल में ले गया. आमतौर पर उस अस्पताल में औक्सीजन सिलिंडर नहीं होता पर उस रोज था और इस तरह बेटे की जान बच गई. रिकशे वाले की सदाशयता और अस्पताल की सारी मुस्तैदी का के्रडिट गुरुजी ले उड़े.

दूसरी कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है : एक शिष्य साइकिल से जा रहा था. अचानक ट्रक ने पीछे से साइकिल में टक्कर मारी तो साइकिल सवार सड़क पर और साइकिल छिटक कर दूर जा पड़ी. सड़क पर गिरते ही उस का एक हाथ ट्रक के अगले पहिए के नीचे आ गया. तभी उस ने गुरुमंत्र जपा. मंत्र जपने के साथ ही उस में पता नहीं कहां से इतनी शक्ति आ गई कि उस ने सिर झटके से हटा लिया. इस तरह उस का सिर पिछले पहिए से कुचलने से बच गया.

समझने वाली बात है कि उस का ध्यान मंत्रजाप पर था या सिर बचाने पर. साफ पता लग रहा है कि सारी घटना में जानबूझ कर मंत्र का तड़का लगाया गया है.

गुरुमंत्र कानों में इस तरह फुसफुसाए जाते हैं ताकि कोई सुन न ले. ठीक पाकिस्तान के आणविक कार्यक्रम की तरह कहीं आतंकवादियों के हाथ न पड़ जाए, वरना महाविनाश निश्चित है. गुरुमंत्र से दीक्षित हो कर वह आदमी उस फार्मूले (मंत्र) को अपने तक ही सीमित रखता है.

दीक्षा मुफ्त में नहीं मिलती. इस के लिए बाकायदा चढ़ावा निश्चित है. ‘माया महा ठगिति हम जानी’, तिस पर गुरु व उन के खासमखास चेले बिना रुपया हाथ में लिए दीक्षा नहीं देते. यहां तक कि मर चुके गुरु के फोटो तक के पैसे शिष्यों से वसूल लिए जाते हैं. एकाधिकार बना रहे तभी कानों में मंत्र फूंकने का काम वह अपने तक ही सीमित रखता है. हां, मरने के बाद गुरु की दुकानदारी चलती रहे, सो अपने किसी प्रिय शिष्य को वह यह कार्य सौंप कर जाता है.

दीक्षा में कुछ नहीं है. कानों में गुरु अपना उपनाम बताता है, जिसे दीक्षित आदमी से हर वक्त जपने को कहा जाता है. यह एक तरह से व्यक्ति पूजा है ताकि कथित भगवानों से ऊपर लोग उसे जानें. तथाकथित गुरु का यह आत्ममोह से ज्यादा कुछ नहीं.

गुरु कितने आध्यात्मिक व ताकतवर हैं, यह सब को मालूम है. सुधांशु महाराज, जयगुरुदेव, कृपालु महाराज, आसाराम बापू, प्रभातरंजन सरकार (आनंदमार्गी) इन सब के क्रियाकलापों से सारा देश परिचित है. इन्होंने समाज को कौन सी सीख दी? क्या मंत्र दिया? उन का गुरुशिष्य के खेल में कितना कल्याण हुआ? यह बताने की जरूरत नहीं. हां, इतना जरूरी है कि दीक्षा के नाम पर करोड़ों रुपए कमा चुके ये महात्मा खुद आलीशान जीवन जी रहे हैं और दीक्षा लेने वाला शिष्य भूखे पेट इन के नाम का जाप कर इन्हें धन्य कर रहा है.

अपनी गिरफ्तारी पर आसाराम बापू ढिठाई से कहते हैं, ‘‘नरेंद्र मोदी की सत्ता बच न सकेगी.’’ मानो वे कोई अंतर्यामी व सर्वशक्तिमान हैं. उन के गिरफ्तार होते ही प्रलय आ जाएगी. दुनिया तहसनहस हो जाएगी. अपनी दुकानदारी चलाने की नीयत से इन गुरुओं द्वारा, यदि दिवंगत हुए तो शिष्यों द्वारा साल में 1 या 2 बार विभिन्न धार्मिक शहरों में भंडारे का आयोजन होता है. जहां इन के शिष्य जुटते, खातेपीते, सत्संग (चुगलखोरी) करते हैं. कहने को सभी शिष्य आश्रम में गुरुभाई हैं पर जैसे ही भंडारा खत्म होता है फिर से वे जातिपांति, भाषा में बंटे अपने घरों को लौट जाते हैं. सिवा पिकनिक के इन भंडारों से कोई लाभ नहीं होता. भंडारे के लिए धन कहां से आता है? इस के लिए हर शिष्य चंदा देता है. कुछ पैसे वाले व्यापारी तो गुरु महाराज की इच्छा के नाम पर भंडारे का सारा खर्च अपने ऊपर ले लेते हैं. दरअसल, जमाखोरी कर के वे जो पाप की कमाई करते हैं उसे थोड़ा खर्च कर के अपने पाप को धोने की कोशिश करते हैं.

दीक्षित होने के बाद बताया जाता है कि गुरु की तसवीर के सामने बिना होंठ व जबान हिलाए मंत्र (गुरु नाम) का स्मरण करना चाहिए. यह प्रक्रिया दिनरात कभी भी की जा सकती है. सुबह अनिवार्य है. ऐसा कर के शिष्य के ऊपर कभी भी संकट नहीं आ सकता. तो क्या गुरुजी उस आदमी के लिए ‘बुलेटप्रूफ जैकेट’ का काम करते हैं? अगर गुरुजी पर संकट आए तब जैसा आसाराम बापू के साथ हुआ? तब मीडिया को कोसने का मंत्र गला फाड़फाड़ कर बोलने का नियम शायद लागू होता है.

कुल मिला कर दीक्षा वक्त व धन की बरबादी है. जो धर्मभीरु हैं, बेकार हैं व भाग्य के भरोसे रहने वाले हैं वे ही इन गुरुओं के चक्कर में पड़ते हैं. जो गुरु खुद दिग्भ्रमित हो वह क्या लोगों को रास्ता दिखाएगा. दोष कबीर का ही है, न वे कहते, ‘गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय. बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय.’ न आम लोगों में यह धारणा बनती कि गुरु ही भगवान के पास जाने का रास्ता जानते हैं.

ऐंटरटेनमैंट इंडस्ट्री में मेल और फीमेल को अलगअलग तरह से ट्रीट किया जाता है :  अनुष्का अरोड़ा

2016 में अनुष्का को यशराज की फिल्म ‘फैन’ में शाहरुख खान के अपोजिट जर्नलिस्ट की भूमिका में देखा गया. उन्हें एशियन मीडिया अवार्ड्स के लिए ‘बैस्ट रेडियो पे्रजैंटर औफ द ईयर’ के तौर पर चौथे साल के लिए चुना गया और तब ‘सनराइज रेडियो’ ने ‘बैस्ट रेडियो स्टेशन औफ द ईयर’ अवार्ड हासिल किया था. अनुष्का को लंदन के ‘हाउस औफ लौर्ड्स’ में एनआरआई इंस्टिट्यूट से एनआरआई मोस्ट प्रिस्टीजियस जर्नलिस्ट के तौर पर ‘प्राइड औफ इंडिया’ अवार्ड दिया गया. इस के अलावा उन्हें इलैक्ट्रौनिक और नए मीडिया में अपने शानदार कार्य के लिए ‘बैस्ट इन मीडिया अवार्ड-2008’ भी मिला.

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पेश हैं, अनुष्का अरोड़ा से हुए सवालजवाब:

इस मुकाम पर किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?

मेरे लिए हर दिन एक चुनौती है. मुझे अपने रेडियो शो के लिए काफी रिसर्च और तैयारी की जरूरत होती है. कभीकभी जब 4 घंटे के शो के लिए पर्याप्त कंटैंट उपलब्ध नहीं होता तो मुश्किल पैदा हो जाती है. लेकिन अपने श्रोताओं का मनोरंजन करने के लिए कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेती हूं.

ऐंटरटेनमैंट फील्ड में क्या महिलाओं को अभी भी ग्लास सीलिंग का सामना करना पड़ रहा है?

यकीनन ऐंटरटेनमैंट इंडस्ट्री में ग्लास सीलिंग अभी भी कायम है. मेल और फीमेल को अलगअलग तरह से ट्रीट किया जाता है. ‘मी टू कैंपेन’ उसी का नतीजा है. मैं निश्चित तौर पर उस प्रत्येक महिला के साथ खड़ी हूं जिस का गलत इस्तेमाल हुआ है. ‘मी टू कैंपेन’ ने महिलाओं में जागरूकता पैदा की है. तनुश्री दत्ता ने इस संदर्भ में आवाज उठाने वाली कई महिलाओं को हिम्मत दी और एक नया प्लेटफार्म मुहैया कराया. इसे काफी अच्छा रिस्पौंस भी मिला.

क्या जर्नलिस्ट आर्थिक फायदे और प्रतियोगिता में आगे रहने के चक्कर में अपने बेसिक प्रिंसिपल्स के साथ समझौता करने लगे हैं?

जी हां, ऐसा होने लगा है. लोग समझौते करते हैं, पर मैं ऐसा नहीं करती. ये सब आप की परवरिश, कल्चर और ट्रैडिशन पर निर्भर करता है.

आप को ऐक्ट्रैस, रेडियो जौकी, वीडियो जौकी, ऐंकर और जर्नलिस्ट में से क्या बन कर सब से ज्यादा संतुष्टि मिलती है और क्यों?

मुझे ऐंकर के रूप में सब से ज्यादा मजा आता है, क्योंकि हम लाइव औडियंस के सामने होते हैं. लाइव औडियंस को ऐंटरटेन करना खुद में एक बड़ा चैलेंज होता है जो मुझे बहुत पसंद है.

रेडियो जौकी बनने का खयाल कैसे आया?

ये सब यूनिवर्सिटी में शुरू हुआ. मुझे यह बताया गया था कि यदि मैं रेडियो में जाना चाहती हूं तो मुझे किसी स्थानीय हौस्पिटल में अनुभव हासिल करना होगा. अस्पताल के वार्ड में उन के इनहाउस रेडियो स्टेशन हैं और यह रेडियो कैरियर के लिए एक विशेष आधार माना गया. मैं ने ‘इलिंग हौस्पिटल’ में 2 घंटे का बौलीवुड शो करना शुरू किया. मुझे हौस्पिटल रेडियो अवार्ड्स में बैस्ट रेडियो प्रेजैंटर के लिए नामित किया गया जिस से मेरा भरोसा बढ़ा और फिर धीरेधीरे मैं ने यहां के लोकल रेडियो चैनल्स पर बौलीवुड शो करना शुरू किया.

भारत में महिलाओं की स्थिति पर क्या कहेंगी?

पिछले समय की तुलना में आधुनिक समय में महिलाओं ने काफी कुछ हासिल किया है. लेकिन वास्तविकता यह है कि उन्हें अभी भी लंबा रास्ता तय करना है. महिलाओं को उन के सामने अपनी प्रतिभा साबित करने की जरूरत है जो उन्हें बच्चे पैदा करने की मशीन समझते हैं. भारतीय महिलाओं को सभी सामाजिक पूर्वाग्रहों को ध्यान में रख कर अपने लिए रास्ता तैयार करने की जरूरत है, साथ ही पुरुषों को भी देश की प्रगति में महिलाओं की भागीदारी को अनुमति देने और स्वीकारने की जरूरत है.

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कचकोलार कोफ्ता करी

सामग्री

– 4 कच्चे केले

– 1 आलू

– 1 बड़ा चम्मच बेसन

– 1 हरी मिर्च

– 1 लाल मिर्च

– 1/2 छोटा चम्मच मेथी दाना

– 1 छोटा चम्मच जीरा

– 1 छोटा चम्मच साबूत धनिया

– एक टुकड़ा दालचीनी

– 2 बड़ी इलायची

– 1 छोटी इलायची

– 2 लौंग

– 2 तेजपत्ता

– 3 बड़े चम्मच प्याज कटा हुआ

–  1 चम्मच टमाटर कटी हुई

– 1 छोटा चम्मच अदरक और लहसुन  का पेस्ट

– 2 चम्मच सरसों का तेल

– 1/4 छोटा चम्मच चीनी

– 1/2 छोटा चम्मच हल्दी पाउडर

– तलने के लिए पर्याप्त तेल

– सजाने के लिए धनियापत्ती

– नमक स्वादानुसार.

बनाने की विधि

– एक पैन में लाल मिर्च, जीरा, धनिया, दालचीनी, बड़ी इलायची, छोटी इलायची और लौंग को भून कर पाउडर बना लें.

– कच्चे केले और आलू को उबाल कर मैश कर लें. इस में बेसन, थोड़ा सा सूखा मसाला और नमक मिला कर बौल्स बनाएं.

– एक पैन में तेल गरम कर बौल्स को सुनहरा होने तक फ्राई करें.

– प्याज, टमाटर, अदरक, लहसुन का पेस्ट बनाएं.

– एक पैन में सरसों का तेल गरम कर तेजपत्ता, प्याज, लहसुन का पेस्ट और नमक डाल कर भूनें.

– चीनी, हल्दी और बचा मसाला पाउडर भी डाल कर अच्छी तरह भूनें.

– अब जरूरतानुसार पानी और कोफ्ता बौल्स डाल कर एक उबाल आने के बाद आंच बंद कर दें और धनियापत्ती से गार्निश कर सर्व करें.

चिकन लबाबदार

सामग्री

–  250 ग्राम बोनलैस चिकन

– 10 ग्राम अदरक लहसुन का पेस्ट

– 50 ग्राम प्याज बारीक कटा

– 50 ग्राम टमाटर बारीक कटा

– 2 तेजपत्ता

– 1 छोटा चम्मच लाल मिर्च पाउडर

– 1 छोटा चम्मच गरममसाला

– 1 छोटा चम्मच जीरा

–  आवश्यकतानुसार तेल

– 1/2 छोटा चम्मच जीरा पाउडर

– थोड़ी सी कसूरी मेथी

– 30 ग्राम दही

– 15 ग्राम क्रीम

– 15 ग्राम टमाटर प्यूरी

– चुटकी भर इलायची पाउडर

– 10 ग्राम घी

– 2 हरी मिर्चें लंबाई में कटी

–  1 बड़ा टमाटर कटा

– 7-8 लहसुन कलियां कटी

– थोड़ी सी धनियापत्ती कटी

– चुटकीभर केसर

– नमक स्वादानुसार

बनाने की विधि

– चिकन को दही, केसर, लाल मिर्च पाउडर, गरममसाला, नमक के साथ 15-20 मिनट तक मैरीनेट करें.

– कड़ाही में तेल गरम कर तेजपत्ता और जीरा भूनें.

– अब इस में लहसुन, अदरक, प्याज डाल कर भूनें.

– फिर कटे टमाटर और प्यूरी डाल कर फ्राई करें.

– इस के बाद इस में चिकन, मेथी, नमक और इलायची पाउडर डाल कर धीमी आंच पर पकाएं.

– थोड़ा पक जाने पर जीरा पाउडर व घी भी मिला दें.

– कटे टमाटर, अदरक, धनियापत्ती और क्रीम से गार्निश कर गरमगरम सर्व करें.

समय पर होना है प्रेग्नेंट तो इस बात का ख्याल रखें

खराब खानपान का सेहत पर तुरंत असर नहीं होता, बल्कि एक लंबे समय के बाद इनका असर समझ आता है. हाल ही में हुए एक स्टडी में ये बात सामने आई कि जंकफूड का अधिक प्रयोग करने वाली महिलाओं को प्रेगनेंसी के दौरान बहुत परेशानी होती है. शोध में पाया गया कि हफ्ते में तीन चार बार से अधिक जंकफूड का सेवन करने वाली महिलाओं को प्रेग्नेंट होने में ज्यादा वक्त लगता है. वहीं जो महिलाएं जंकफूड का सेवन कम करती है वो ज्यादा सहूलियत और आसानी से प्रेग्नेंट होती हैं.

औस्ट्रेलिया में हुए इस शोध में ये बात सामने आई कि जो महिलाएं हेल्दी फूड खाती हैं वो ज्यादा फिट रहती हैं और सही वक्त पर गर्भवती भी होती हैं. फर्टिलिटी में भी हेल्दी फूड बेहद लाभकारी होते हैं. इसके अलावा ये बात भी सामने आई कि जिन खाद्य पदार्थों में जिंक और फोलिक एसिड की मात्रा प्रचुर होती है उनके सेवन से गर्भधारण की संभावना ज्यादा बढ़ जाती है. हरे पत्तेदार सब्जियों, मछली, बीन्स और नट्स में ये तत्व पाए जाते हैं.

पाचन की है समस्या तो इन 5 चीजों से बना लें दूरी

जैसा हमारा खानपान हो गया है धिकतर लोगों को पेट की समस्याएं होने लगी हैं. बहुत से लोगों को परेशानी रहती है कि उनका पेट साफ नहीं रहता. अगर आपका पेट साफ नहीं रहता है तो पूरा दिन खराब जाता है. इसके अलावा आपको कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं.

इस खबर में हम आपको पांच चीजों के बारे में बताएंगे जिनसे दूरी बना कर आप अपने पेट को हेल्दी रख सकती हैं.

चिप्स

जो लोग चिप्स का सेवन अधिक करते हैं उन्हें अपच की समस्या होती है. जिन लोगों को पहले से अपच की परेशानी है उन्हें इससे दूरी बनानी चाहिए. आलू में वसा की मात्रा अधिक होती है, जिसके कारण इसे पचने में काफी वक्त लगता है. पेट की अच्छी सेहत के लिए जरूरी है कि तली और भुनी हुई चीजों का अधिक सेवन करने से बचें.

दूध से बने उत्पाद

दूध से बना उत्पाद गरिष्ठ भोजन की श्रेणी में आते हैं. इसके पाचन में काफी समय लगता है. इन उत्पादों में  फाइबर की मात्रा बेहद कम होती है और वसा की मात्रा अधिक होता है. यही कारण है कि इसका अधिक सेवन करने से पेट की बहुत सी समस्याएं होती हैं.

केला

आमतौर पर पाचन में केला काफी मददगार होता है पर कच्चा केला इसके ठीक उलट प्रभाव डालता है. पेट की सेहत के लिए जरूरी है कि कच्चे केले से दूर रहें.

फ्रोजन खानों से रहें दूर

फ्रोजन खानों से दूर रहें. ज्यादा दिनों तक रखें खाद्य पदार्थ आपकी पेट की सेहत के लिए अच्छे नहीं होते. कोशिश करें कि हरी साग सब्जियों का सेवन करें.

बिस्कुट

बिस्कुट और कुकिड में मैदा की मात्रा अधिक होती है. पेट के लिए ये काफी हानिकरक होता है. पेट की सेहत के लिए जरूरू है कि इनके अधिक सेवन से बचें.

मैडम खर्चीली न बनें

रीमा के हाथ में शौपिंग बैग देख कर प्रमोद के माथे पर बल पड़ गए. पति को समय पर घर आया देख कर रीमा बड़ी अदा से मुसकराते हुए बोली, ‘‘अजी, आप आ गए, पता होता तो…’’

रीमा की बात बीच में ही काटते हुए प्रमोद लगभग दहाड़ते हुए बोला, ‘‘हां, हां, पता होता कि मैं अभी नहीं आने वाला हूं तो क्या सारा बाजार ही उठा लातीं, मेम साहब. अरे, मैं तो तंग आ गया हूं तुम्हारी इस खरीदारी की खर्चीली आदत से…बीवी हो या आफत. मौत भी नहीं आती कि इस आफत नाम की खर्चीली बीवी से जान छूटे.’’

रीमा भौचक्की सी कभी पति को तो कभी अपनी कुलीग प्रेमा को देखती, जिसे वह दफ्तर से अपने साथ ले आई थी. थोड़ी हिम्मत कर रीमा ने पति से पूछा, ‘‘अजी, आप की तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘क्यों? क्या हुआ मेरी तबीयत को,’’ प्रमोद घूर कर देखते हुए बोला.

‘‘नहीं, यों ही पूछा था…यह अचानक…’’

‘‘क्या अचानक तबीयत कभी बिगड़ नहीं सकती? पर तुम्हें क्या…मैं मरूं या जिंदा रहूं…तुम्हें अपनी साडि़यों की खरीदारी से फुरसत मिले तब न. करो, करो…खूब खर्च करो. बाप की दौलत है न, लुटाओ…पति जाए भाड़ में.’’

पति महोदय किस बात की भड़ास निकाल रहे थे. क्या यह पत्नी की ओर से महज की गई खरीदारी को ले कर थी या इस की जड़ में और भी कुछ था. आमतौर पर पतियों को यही शिकायत रहती है कि उन की बीवियां बहुत ही फुजूलखर्च होती हैं. जब देखो बनावशृंगार और घर के रखरखाव के नाम पर हर महीने अच्छा- खासा पैसा खर्च कर आती हैं. यही नहीं कुछ पतियों को यह शिकायत रहती है कि किफायत नाम का शब्द इन की डिक्शनरी में नहीं रहता. बाजार से बनाबनाया खाना, फास्ट फूड सेंटर से पिज्जा का वक्तबेवक्त आर्डर आदि वाहियात बातों पर तमाम पैसा जाया करती हैं. यही शिकायत घर की सजावट को ले कर भी रहती होगी.

आजकल भले ही पतिपत्नी दोनों कामकाजी हों, पत्नी कमाऊ हो तो भी पतियों की सोच में लगता है ज्यादा बदलाव नहीं आया है. गुड़गांव के एक मशहूर फैशन हाउस में काम कर रही सुधा गुगलानी ने बताया, ‘‘दरअसल, व्यक्तिगत खर्चे अकसर पतियों को नागवार गुजरते हैं क्योंकि उन की निगाह में यह नाजायज खर्च है. उन्हें लगता है कि औरतें अपने रखरखाव, चेहरे के आकर्षण, सुडौल शरीर और सुंदर दिखने के लिए पार्लर व ब्यूटी केयर के नाम पर जो कुछ खर्च करती हैं उन्हें फुजूलखर्च लगते हैं. यदि मैं फैशन हाउस में काम करती हूं और बनसंवर कर, जिम या हेल्थ क्लब में जा कर खुद को फिट रखना चाहती हूं तो पति को क्यों लगता है कि मैं फुजूलखर्च करती हूं. मोटी सी तोंद ले कर और बिखरे बालों के साथ किसी विदेशी ग्राहक से क्या मैं बात कर पाऊंगी? अपना आत्म- विश्वास बढ़ाने के लिए और उस आत्मविश्वास के स्तर को बनाए रखने के लिए मुझे तो ये खर्चे जरूरी लगते हैं. मेरे लिए ये खर्चे कोई शौकिया नहीं, काम की मांग हैं.’’

पति कब चूकने वाले थे, झट बोले, ‘‘यह भी क्या काम की मांग हुई, मैचिंग के नाम पर दर्जनों चप्पल, सैंडल, जूते और भी न जाने क्याक्या. इतना तो कमाती नहीं जितना खर्च कर डालती हो. मैं तो इसे मैडम खर्चीली कहता हूं.’’

इन के घर में खाने की टेबल पर कैसा हंगामा. नहीं, चुपकेचुपके सुनने की जरूरत नहीं, गली में हर आताजाता इन की बातें साफसाफ सुन सकता है.

‘‘सुधा आज फिर…’’ तभी घंटी बजती है, ‘‘अजी, जरा देखना तो दरवाजे पर कौन है,’’ पति दहाड़ते हुए बोले, ‘‘यह मिस्टर कोई और नहीं, तुम्हारा पिज्जा वाला होगा.’’

‘‘प्लीज, क्या कर रहे हो, जरा खोल दो न किवाड़, बेचारा कहीं लौट न जाए.’’

‘‘सुनो, तुम अपना अकाउंट नंबर उस पिज्जे वाले को क्यों नहीं दे देतीं. तुम्हारे व्यक्तिगत खर्चे का बिल भुगतान के लिए बैंक में जाता ही है, साथ में उस का भी चला जाएगा.’’

‘‘क्या है जी, बच्चों की कुछ भी फिक्र नहीं आप को तो.’’

‘‘बच्चों की बात मत करो, खुद को खाना न बनाना पड़े इसलिए झट से आर्डर दे दिया और हो गया मेरा कबाड़ा. मैडम खर्चीली, जागो, फ्री होम डिलीवरी के नाम पर अच्छाखासा पैसा लुटा डालती हो तुम. कभी यह भी सोचा कि बच्चों के स्वास्थ्य पर इस का क्या असर पड़ेगा. पर नहीं, तुम्हें क्या? तुम्हें तो अपनी झूठी शान, झूठी आधुनिकता का मुखौटा कुछ करने ही नहीं देता.’’

दरवाजा खोलने के नाम पर पति ने अपने मन के कपाट ही खोल डाले. बच्चों को फास्ट फूड अच्छा लगता है. उन के स्कूल में, बाहर सब जगह ही तो इस का चलन है, सभी खाते हैं, फिर हम क्या इतने गएगुजरे हैं कि बच्चों की इतनी छोटी सी मांग भी पूरी न कर पाएं. आफ्टर आल, दोनों किस के लिए कमाते हैं, बच्चों के लिए ही न. तो फिर इतना आसमान क्यों सिर पर उठा रखा है.

वैसे बड़ेबुजुर्गों का और मनो- चिकित्सकों का भी यही मानना है कि बच्चों को अधिक लाड़ करना, अधिक आइसक्रीम, जंक फूड कैंडीस की आदत डालना फिर उस आदत को पालना बिलकुल नाजायज है.

सवाल यह उठता है कि क्या बच्चों के लिए कई खर्चे जरूरी हैं? हां, स्कूल के खर्चे हैं, जेबखर्च है, बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए कुछ खर्चे हैं, ये सभी आवश्यक हैं और इन के लिए सीमाएं तो मांबाप दोनों को ही तय करनी हैं. हां, ध्यान रहे, रिश्तों में खटास न आए. मनमुटाव होना भी लाजिमी है, क्योंकि विचारधारा मेल नहीं खाती. हो सकता है बच्चे के लिए कोई खास गेम खरीदने के लिए बीवी की जिद सही हो, उस से बच्चे का बौद्धिक विकास हो रहा हो, लेकिन एक शब्द है ‘नीड’ यानी जरूरत और दूसरा शब्द है ‘डिजायर’ यानी इच्छा. इन दोनों में अंतर करना जब जान लेंगे तो न पतिदेव कंजूस रहेंगे न बीवी मैडम खर्चीली. इसलिए इच्छाओं के घोड़ों की लगाम अपने हाथों में रखें और जरूरतों के दास न बनें.

ताकि बैगपैक से न हो चोरी

राह चलते चोरों की नजर आप के बैग में रखे कीमती सामान पर होती है. ऐसे हालात में आप सावधानी बरतें ताकि आप और आप का सामान सेफ रहे.

जब आप पब्लिक ट्रांसपोर्ट से यात्रा कर रही हैं तो कुछ सावधानियां आप को चोरों की नजरों से बचा सकती हैं. आईए जानते हैं कि आप कैसे अपना बैगपैक करें ताकि आपका सामान सेफ रहे.

– भीड़भाड़ वाली जगह पर बैग को पीठ पर टांगने के बजाय पेट की तरफ टांगें.

–  सिक्योरिटी लौक वाले बैग्स खरीदें.

–  बैग के अंदर पर्स और जरूरत से ज्यादा कैश न रखें.

– पर्स हमेशा आगे वाली जेब में रखें.

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–  ओरिजिनल डौक्युमैंट्स साथ ले कर न चलें.

– डैबिट कार्ड, क्रैडिट कार्ड आदि बैग में न रखें.

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