नायिका : बंद कमरे में सीता को देख रेवा क्यों हैरान हो गई?

राइटर-  भावना केसवानी

‘‘सच ही तो है. हर इंसान अपने लिए खुद ही जिम्मेदार होता है. दुनिया कहां पहुंच गई और ये लोग अपनी पुरानी सोच के वजह से पिछड़े ही रह गए. अफसोस तो इस बात का है कि इन की ऐसी मानसिकता के कारण इन के बच्चों का जीवन भी बरबाद हो जाता है,’’ कमरे में घुसते ही रेवा बड़बड़ाने लगी.

औफिस के लिए तैयार हो रहे पराग ने मुड़ कर रेवा की ओर देखा, ‘‘क्या हुआ? मेरे अलावा अब और किस की शामत आई है?’’

‘‘पराग, तुम्हें तो हर वक्त मजाक ही सूझता है. मैं तो सीता के बारे में सोच रही थी. शोभा को कितना समझ रही हूं. मगर वह तो उस की शादी करने पर तुली हुई है. अरे, अभी सिर्फ 16 की ही तो है. इतनी कच्ची उम्र में शादी कर देंगे, फिर जल्दी 3-4 बच्चे हो जाएंगे और फिर झाड़ूपोंछा, चौकाबरतन करते ही उस की जिंदगी कब खत्म हो जाएगी, उसे खुद भी पता नहीं पड़ेगा. कितना कह रही हूं कि लड़की छोटी है, थोड़ा रुक जाओ पढ़ना चाहती है तो पढ़ने दो… जो मदद चाहिए होगी मैं कर दूंगी पर नहीं… लड़की ज्यादा बड़ी हो जाएगी तो शादी में मुश्किल होगी… हुंह, रेवा, मेरे पास एक आइडिया है. तुम मेड लिबरेशन ऐसोसिएशन बनाओ और उस की प्रैसिडैंट बन जाओ. तुम्हारे जैसी कुछ और औरतें मिल जाएंगी तो सीता ही क्यों, सारी मेड्स की समस्याओं का समाधान मिल जाएगा. रेवा प्लीज… यू मस्ट डू इट. तुम्हारी मैनेजरियल स्किल्स भी काम आएंगी और फिर इतनी कामवालियों का उद्धार कर के तुम्हें कितना पुण्य मिलेगा… सोचो जरा.’’

पराग की चुहल से रेवा और चिढ़ गई, ‘‘सब से पहले तो मुझे खुद को लिबरेट करना है तुम से. आज फिर तुम ने गीला तौलिया पलंग पर फेंक दिया है. मेरे घर का अनुशासन तोड़ा न तो अच्छा नहीं होगा.’’

पराग ने हाथ जोड़ लिए, ‘‘अभी उठाता हूं मेरी मां, माफ करो. वैसे तुम्हारा जोर सिर्फ मुझ पर चलता है. इतना प्यार करने वाला पति मिला है पर उस की कोई कद्र नहीं है.’’

‘‘अच्छा, अच्छा, अब ज्यादा नाटक मत करो. जल्दी औफिस जाओ वरना लेट हो जाओगे.’’

‘‘औफिस तो मैं चला जाऊंगा, बट औन ए सीरियस नोट, रेवा… प्लीज इतनी इमोशनल मत बनो. जिंदगी में प्रैक्टिकल होना ही पड़ता है. तुम सीता के बारे में सोच कर इतनी परेशान हो रही हो लेकिन तुम कुछ नहीं कर पाओगी. यह उन लोगों का निजी मामला है, हम इस में कुछ नहीं कर सकते. मुझे लगता है कि तुम घर पर बैठ कर स्ट्रैस्ड हो रही हो. पहले औफिस के कामों में इतनी व्यस्त रहती थीं कि किसी और बात में ध्यान ही नहीं होता था तुम्हारा और अब… अच्छा होगा कि तुम अपने लिए कोई नई नौकरी ढूंढ़ लो. घर पर रहोगी तो फालतू बातों में उलझ रहोगी.’’

थोड़ी देर में पराग तो चला गया लेकिन रेवा गहरी सोच में डूब गई. वह हमेशा से एक कैरियर वूमन रही थी और पराग इस बात को जानता था.

वह अपनी मेहनत से कामयाबी की सीढि़यां चढ़ भी रही थी पर रिसेशन के कारण उस की नौकरी चली गई. नौकरी छूट जाने का उसे बहुत मलाल हुआ था लेकिन उसे भरोसा था कि उसे दूसरी नौकरी जल्द ही मिल जाएगी… मगर आज पराग ने उस की हताशा को गलत अर्थ में लिया था. वह कुंठित जरूर थी लेकिन सिर्फ सीता की मदद न कर पाने के कारण. रेवा ने एक लंबी सांस ली और बाहर ड्राइंगरूम में आ गई.

सीता वहां नम्रा के साथ खेल रही थी. कितना हिल गई थी नम्रा सीता के साथ… अब जब कुछ दिनों में सीता चली जाएगी तो नम्रा बहुत मिस करेगी उसे. रेवा ने सीता की ओर देखा. दुबलीपतली, श्यामवर्णा सीता परिस्थितियों के कारण समझ से चाहे परिपक्व हो चुकी हो पर थी तो आखिर बच्ची ही. इतनी नाजुक उम्र में शादी का बोझ कैसे उठा पाएगी? रेवा की सोच फिर सीता पर ही आ कर अटक गई.

सीता रेवा की कामवाली शोभा की बेटी थी. नम्रा का जन्म सिजेरियन से हुआ था. सास तो रेवा की थी नहीं, मां भी कितने दिन रहती. तब शोभा सीता को ले आई थी, ‘‘दीदी, इसे रख लो. बच्ची को संभालने में भी मदद कर देगी और ऊपर का छोटामोटा काम भी करा लेना.’’

‘‘अरे, यह तो बहुत छोटी है… यह कैसे कर पाएगी और यह स्कूल नहीं जाती है क्या?’’

‘‘स्कूल तो सुबह जाती है… 11 बजे तक आ जाएगी. काम तो यह सब कर लेती है. दूसरे घर में करती थी पर अब उन लोगों की बदली दूसरे शहर में हो गई है. आप 2-4 रोज देख लो… दिनभर आप के पास रहेगी और शाम को मेरे साथ वापस लौट जाएगी.’’

सीता ने पहले दिन से ही रेवा को प्रभावित कर दिया. उस ने धीरेधीरे नम्रा का सारा काम संभाल लिया. वह बड़े प्यार से नम्रा की मालिश कर उसे नहला देती, बोतल से दूध पिला देती, नैपी बदल देती और अपनी गोद में ही थपका कर सुला भी देती. इस के साथ ही वह रेवा को सब्जी काट देती, आटा गूंध देती और नम्रा के कपड़े धोसुखा कर तह कर देती. वह स्वभाव की भी इतनी शांत थी कि उस ने जल्द ही रेवा का विश्वास जीत लिया.

सीता के होने से रेवा नम्रा और घर के प्रति निश्चिंत हो गई थी इसलिए जब उसे नई नौकरी का औफर मिला तो उस ने शोभा से कह कर सीता को सारे दिन के लिए अपने घर रख लिया. 3 बैडरूम का फ्लैट था, रेवा ने एक कमरा सीता को दे दिया. अच्छा खानेपहनने को मिलता था तो सीता भी खुश ही थी.

सीता ने एक बार रेवा से कहा था कि वह कुछ बनना चाहती है. तब रेवा ने उसे मन लगा कर पढ़ने की सलाह दी थी. रेवा के काम का समय दोपहर से शुरू हो कर रात तक चलता था. उसे तो वर्क फ्रौम होम की सुविधा भी थी. रेवा ने इस बात का पूरा खयाल रखा कि सीता की पढ़ाई न छूटे. सीता पहले की तरह ही स्कूल जाती रही.

धीरेधीरे रेवा को सीता के प्रति एक अपनापन महसूस होने लगा. रेवा ने उस की स्कूल की कापियां देखी थीं. उसे लगता था कि सीता यदि लगन से पढ़ाई करती रहे तो अपने लिए अपनी नियति से हट कर कोई मुकाम बनाने में सक्षम हो सकती है. रेवा ने तय कर लिया था कि वह सीता की शिक्षा में हर तरीके से सहयोग करेगी.

मगर जिंदगी हमेशा पक्की सड़क पर तो आराम से नहीं चलती न… कभी कच्चे रास्तों की असुविधाएं भी सहन करनी पड़ती हैं, कभी घुमावदार रास्तों के जाल में भी उलझना पड़ता है और कभी स्पीडब्रेकर्स के ?ाटके भी लग ही जाते हैं. शोभा ने आ कर रेवा को सीता की शादी तय होने की खबर सुना दी.

‘‘अरे, ऐसे कैसे? सीता तो बहुत छोटी है अभी.’’

‘‘कहां दीदी… 16 की हो गई है. हमारे ही गांव का लड़का है, अच्छा घरपरिवार है. यह भी सुखी हो जाएगी और हम भी निबट जाएंगे.’’

‘‘शोभा, तुम भी कैसी बातें कर रही हो? इतनी छोटी उम्र में तो शादी गैरकानूनी है न और सीता का भी तो सोचो. इस नाजुक उम्र में वह शादी की जिम्मेदारी कैसे निभा पाएगी?’’

‘‘अरे दीदी, हम लोगों में तो ऐसा ही होता है. मेरा ब्याह भी तो 15 साल की उम्र में हुआ था.’’

‘‘पर शोभा इस का दिमाग अच्छा है. पढ़ने दो अभी. इस की पढ़ाई के खर्चे में मैं मदद कर दूंगी. पढ़लिख जाएगी तो जिंदगी बन जाएगी.’’

‘‘देखो दीदी, आप को हम लोगों का नहीं पता. ज्यादा पढ़ गई और उम्र बढ़ गई तो कोई नहीं मिलेगा इस से शादी करने के लिए. आप चिंता न करो. 2 महीने बाद इस का ब्याह ठहरा है. उस के पहले मैं आप को दूसरी कामवाली लगा दूंगी,’’ कह कर शोभा ने बात खत्म कर दी.

शोभा की बातें सुनने के बाद रेवा क्या कहती? वह मन मसोस कर चुप रह गई.

‘‘दीदी, नम्रा सो गई है. कौन सी सब्जी काटनी है?’’

रेवा ने महसूस किया कि जब से सीता का विवाह तय हुआ था तब से उस के व्यवहार में परिवर्तन आना शुरू हुआ था. वह सारे काम जैसे यंत्रवत करती…ध्यान तो उस का किसी और ही दुनिया में होता. हमेशा खोईखोई रहती, अपने ही खयालों में. पढ़ाई में भी उस का मन नहीं लगता था पहले की तरह. रेवा ने सोचा आज उस के मन को टटोल ले.

‘‘क्यों सीता… तू तो कहती थी तुझे पढ़ना है, कुछ बनना है. तेरी मां तो तेरी शादी करा रही है. तू मना क्यों नहीं करती?’’

‘‘क्या बोलेंगे, दीदी? अब कामवाली के घर पैदा हुए हैं तो कामवाली ही बनेंगे. ऊंची पढ़ाई में खर्चा भी तो बहुत होता है. आप का भी कितना एहसान लेंगे और फिर शादी भी तो जरूरी है. सारी उम्र अकेले कैसे रहेंगे?’’

रेवा चुप रह गई. वह सोचती थी कि सीता अपनी नियति के चक्रव्यूह को तोड़ गिराएगी लेकिन अब जब उस ने स्वयं ही अपने लिए यह रास्ता चुन लिया था तो रेवा कर भी क्या सकती थी?

‘‘दीदी, आप मां से कुछ न कहा कीजिए. मेरी हिस्से में यही लिखा है और मैं बहुत खुश हूं. आप को पता है. घर में सब बहुत खुश हैं. मां ने तैयारी करनी भी शुरू कर दी है. इसी बहाने आज सब को मेरा खयाल है नहीं तो कब मैं सूखी रोटी के टुकड़ों और फटेपुराने कपड़ों में बड़ी हो गई, किसी को पता ही नहीं चला. अब 2-4 जोड़ी ही सही, मेरे लिए नए कपड़े बनेंगे. मां मेरे लिए सोने के  जेवर बनवाएगी. फिर चाहे मेरे ही कमाए पैसों को जोड़ कर. सब सीतासीता कर के पूछेंगे. दीदी, एक गरीब की लड़की को इस से ज्यादा और क्या खुशी मिल सकती है?’’

रेवा फिर चुप रह गई. एक स्त्री के मन की गहराइयों में क्या है, यह खुद उस के अलावा कोई नहीं जान सकता. परिस्थितियों से समझौता करना और चंद लमहों की खुशियों को अपने जेहन में कैद कर उन्हीं के सहारे जिंदगी को आगे बढ़ाना, यह सिर्फ एक स्त्री ही कर सकती है. सीता की सोच के सिरे को पकड़ कर उस के मन की तहों को खोल कर रेवा को लगा कि कम से कम इतनी खुशी पाने का अधिकार तो था ही उसे. अपनी ही जिंदगी की पटकथा में हमेशा छोटेमोटे किरदार ही निभाती आई थी सीता. अब चंद लमहों के लिए ही सही, नायिका बनने की उस की हसरत कहां गलत थी.

शाम को ही बाजार जा कर रेवा सीता के लिए शादी की साड़ी और सोने की अंगूठी ले आई. उपहार देख कर सीता के चेहरे पर जो खुशी आई, उस से रेवा को भी जैसे आत्मिक तृप्ति का एहसास हुआ. वह दिल से सीता की खुशी चाहती थी.

रेवा नम्रा को ले कर बहुत पशोपेश में थी. सीता के रहते उसे नम्रा की कोई फिक्र नहीं होती थी लेकिन सीता के जाने के बाद नम्रा को वैसी देखभाल कौन देता? वह सोच ही रही थी कि एक दिन अचानक शोभा मायूस सूरत ले कर दरवाजे पर खड़ी थी, ‘‘इस लड़की के हिस्से शादी नहीं है… लड़का शादी से पहले ही भाग गया. किसी और से चक्कर था उस का. अब पता नहीं इस से कौन शादी करेगा? दीदी, अब यह आप का काम छोड़ कर नहीं जाएगी.’’

जीवन फिर पुराने रूटीन पर चल पड़ा लेकिन सीता में अब थोड़ा बदलाव आ गया था. वह पहले से कम बोलती और अपनी पढ़ाई पर अत्यधिक केंद्रित हो चुकी थी. रेवा को लगा कि जो हुआ शायद अच्छा ही हुआ. अब वह सीता के भविष्य को संवारने में उस की मदद करेगी. यह सोच कर रेवा सीता को बहुत प्रोत्साहित करती.

एक रात रेवा देर तक अपने लैपटौप पर काम कर रही थी. प्यास लगने पर पानी लेने उठी तो देखा कि सीता के कमरे की लाइट जल रही है. इतनी रात को सीता जाग क्यों रही है… रेवा ने धीरे से दरवाजा खोल कर अंदर झांका तो हैरान रह गई.सीता शादी का जोड़ा और तमाम गहने पहने खुद को बड़ी हसरत से आईने में निहार रही थी.

रेवा ज्यादा देर वहां न खड़ी रह पाई. उस कमरे में कुछ दबी आकांक्षाएं थीं, कुछ अधूरे खवाब थे. समाज ने उस मासूम को यही यकीन दिलाया था कि चंद लमहों की नायिका बनना ही उस के जीवन की उपलब्धि थी.

अब रेवा की जिम्मेदारी बढ़ गई थी. उसे सीता को यह विश्वास दिलाना था कि वह सक्षम है अपने जीवन की पटकथा खुद लिखने के लिए और ताउम्र उस में नायिका का किरदार निभाने के लिए. रेवा ने अपने मन को इस संकल्प के लिए दृढ़ कर लिया.

ऐसा तो नहीं सोचा था

‘‘फोन की घंटी बज रही है, उठो,’’ सुबह का समय है, सर्दियों के दिन हैं. इस समय गरमगरम रजाई से निकल कर फोन उठाना एक आफत का काम है. मोबाइल में सिगनल नदारद रहता है तब पुराना लैंडलाइन फोन ही काम आता है. पति को सोता देख कर झल्ला कर ममता को ही उठ कर फोन उठाना पड़ा. हालांकि ममता को मालूम था, आज रविवार सुबह बच्चों का ही फोन होगा. अब किस का होगा, यह तो फोन उठाने पर ही मालूम होगा.

ममता ने फोन उठाया और बातों में मशगूल हो गई. आज उस की बेटी सुकन्या का फोन था. उस से ढेरों बातें होने लगीं. बृजमोहन भी उठ कर आ गए, फिर बेटी और दामाद से उन की भी बातें हुईं. आखिर घूमफिर कर वही बातें होती हैं, क्या हाल है? बच्चे कैसे हैं? छुट्टी में इंडिया आओगे? आज कौन सी दालसब्जी बनी है या बनेगी? मौसम का क्या हाल है?

पड़ोसियों की शिकायत, सब यही कुछ. सुकन्या को भी पड़ोसियों की बातें सुनने में

मजा आता था. ममता भी वही बातें दोहराती,

सारी पड़ोसिनें जलती हैं. पूरा 1 घंटा ममता और बृजमोहन का व्यतीत हो गया. सुबह 6 से 7 बज गए.

ममता और बृजमोहन के 3 बच्चे, सब से बड़ी लड़की सुकन्या फिर छोटे लड़का गौरव और फिर सौरभ. सभी अमेरिका में सैटल हैं. सभी शादीशुदा अपने बच्चों के साथ अमेरिका के विभिन्न शहरों में बसे हुए हैं.

सुकन्या खूबसूरत थी. एक पारिवारिक विवाह में दूर के रिश्ते में अमेरिका में बसे लड़के को पहली नजर में भा गई और फिर विवाह के बाद अमेरिका चली गई. कुछ समय बाद दोनों लड़के भी अमेरिका सैटल हो गए.

अब ममता और बृजमोहन दिल्ली में अकेले एक तिमंजिला मकान में रह रहे हैं. आर्थिक रूप से संपन्न बृजमोहन की कपड़े की दुकान थी जिसे वे आज भी चला रहे हैं. कभीकभी बच्चे मिलने आ जाते हैं और कभी वे बच्चों के पास मिलने चले जाते हैं.

अब बिना किसी बंधन के अकेले रहने का सुख भी बहुत है. ममता कुछ नखरैल अधिक हो गई. जब आर्थिक संपन्नता हो तब चिंता किस बात की.

बृजमोहन का हर सुबह कालोनी के मंदिर जाने की दिनचर्या है. अकेले समय भी काटना है, मंदिर में चंदा दे दिया और धार्मिक कार्यों में मुख्य अतिथि का तमगा मिल जाता.

‘‘पंडित रामराम,’’ मंदिर में घुसते ही बृजमोहन ने आवाज दी.

‘‘रामराम सेठजी,’’ पंडित भी आरती के बीच में बोल पड़ा. मंदिर में उपस्थित श्रद्धालुओं में कुछ मुसकरा दिए और कुछ की भृकुटियां तन गईं. यह क्या? सेठ होगा अपने घर में. मंदिर में भगवान के आगे सब बराबर हैं. चंदा ज्यादा देता है, इस का यह मतलब तो नहीं आरती में विघ्न डालेगा. आरती के बाद बात नहीं कर सकता है. पंडित को चंदा चाहिए, प्रभु की प्रतिमा से चंदा मिलेगा नहीं, देना सेठ ने है, अब उन की कुछ तो जीहुजूरी बनती है.

‘जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी,’ सेठ जी नवरात्रि आ रही हैं, पूरे मंदिर को लाइट्स से रोशन करना है.

‘‘सम?ा हो गया पंडित. लाइट्स मेरी तरफ से. अभी ताजेताजे डौलर आए हैं. डौलर भी महंगा है,’’ बृजमोहन सब को यह जताना चाहते हैं, लड़के ने कल ही डालरों की एक खेप भेजी है. उन के लड़के कितना खयाल रखते हैं.

‘‘‘मांग सिंदूर विराजत टीको मृदमद को,’ सेठजी भंडारा भी हर रोज होगा.’’

‘‘पंडित, मेरी जेब काट ले, सबकुछ मेरे से करवाएगा? भंडारे का नहीं दूंगा. लाइट्स लगवा रहा हूं वह क्या कम है?’’ बृजमोहन ने दो टूक मना कर दिया. पैसों के बड़े पक्का इंसान थे. पाईपाई का हिसाब रखते थे.

‘‘‘चंड मुंड संहारे शोणित बीज हरे,’ सेठजी हर शाम मंदिर में कीर्तन भी होगा.’’

‘‘पंडित कर कीर्तन, तेरा काम है. मैं तो कीर्तन करूंगा नहीं?’’ बृजमोहन ने आरती में सुर लगाया.

‘‘‘तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता,’ सेठजी माता रानी से डरो, तुम ही भरता हो, कीर्तन के बाद प्रसाद भी बांटना है,’’ पंडित उन की जेब ढीली करवाने पर तुला था.

‘‘‘कहत शिवानंद स्वामी, सुख संपत्ति पावे,’ सेठजी और डौलर आएंगे, प्रसाद का प्रबंध तो आप के जिम्मे है,’’ पंडित भी कौन से कम होते हैं, उन को भी हजार तरीके आते हैं.

‘‘पंडित अष्ठमी वाले कीर्तन का प्रसाद दे दूंगा. तू भी क्या याद करेगा पंडित, किसी रईस से पाला पड़ा है.’’

आरती समाप्ति के बाद पंडित ने मुंह ही मुंह में कहा, ‘‘इन की जेब से पैसे निकलवाने का मतलब ऐवरैस्ट की चोटी पर चढ़ने के बराबर है.

मंदिर में पंडित और अन्य श्रद्धालुओं के साथ कुछ बातचीत, कुछ गपशप लगाने के बाद बृजमोहन घर वापस आए और नाश्ता करने के बाद कालोनी के पार्क में चक्कर लगाने चले गए. शाम के समय 1-1 कर के बेटों का फोन आया. ममता ने नवरात्रि पर पूजाअर्चना की विशेष हिदायत दी.

‘‘चलो कोटपैंट पहन लो, रविवार छुट्टी के दिन घर पर डिनर नहीं करना है,’’ ममता ने और्डर दे दिया.

हर रविवार शाम को मौल घूम कर रैस्टोरैंट में डिनर करना उन की आदत थी. सिर्फ 2 जने. उम्र 70 के करीब, खुद कार चला कर मौल जाते हैं. लौटते समय कार ट्रैफिक सिगनल पर बंद हो गई. ग्रीन लाइट हुई, तब स्टार्ट करने में दिक्कत हुई. पीछे खड़े वाहनों ने बारबार हौर्न बजाने चालू कर दिए.

‘‘देखो इस खटारा को बदल दो. एक बार बंद हो जाए तब स्टार्ट ही नहीं होती है. हमारी लाइन में सब के पास चमचमाती नई कारें हैं,

बड़ी वाली और हम खटारा ले कर घूम रहे हैं. मैं पड़ोस में और हंसी नहीं उड़वा सकती हूं. देखो अगले हफ्ते से नवरात्रि आरंभ हो रहे हैं.

नई कार घर में आनी चाहिए और वह भी बड़ी वाली.’’ बृजमोहन दुनिया के आगे अपनी जेब सिल कर रखते थे, परंतु परमप्रिय ममता के आगे सदा खुली रहती थी. बिलकुल चूंचपड़ नहीं करते थे.

जब 4-5 सैल्फ मारने पर कार स्टार्ट हुई, बृजमोहन ने पक्का वाला प्रौमिस कर दिया, ‘‘बिलकुल ममता, इस बार बड़ी वाली कार खरीदते हैं.’’

पिछले 15 वर्ष से बच्चों से अलग रह रहे ममता और बृजमोहन को अकेले रहना रस आने लगा था.

न बच्चों की चिकचिक न कोई बंधन, जो दिल में हो, करो. संपूर्ण आजादी में रह रहे दंपती को किसी का दखल पसंद नहीं था.

बृजमोहन और ममता बेफिक्र आजादी के संग अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे. आराम से सुबह उठना, पार्क में सुबह की सैर करना उन की दिनचर्या थी. ममता अपनी किट्टी पार्टी में मस्त रहती. बृजमोहन आराम से 11 बजे दुकान जाने के लिए निकलते थे. उन के बच्चे उन को डौलर भेजते थे फिर भी अपनी दुकान बंद नहीं की. आरामपरस्त होने के कारण उन की दुकानदारी कम हो गई थी, किंतु उन को इस की कोई चिंता नहीं थी. एक पुराना विश्वासपात्र नौकर था. वही दुकान संभालता था. पड़ोस के दुकानदार उस से कहते कि असली मालिक तो तू ही है. देख लेना, मरने पर दुकान तेरे नाम लिख कर जाएंगे.

नौकर भी हंस देता. मजाक करने का कोई टैक्स नहीं लगता है. एक बात पक्की है, बृजमोहन दुकान को अपने साथ बांध कर ले जाएंगे. नौकर अपने मालिक की हर रग से वाकिफ था.

हर जगह सुपर मार्केट और स्टोर खुलने से महल्ले की छोटी परचून की दुकानों का कामधंधा गिरने लगा. आज की युवा पीढ़ी हर छोटे से बड़ा सामान औनलाइन खरीदती है. ऊपर से इन सुपर स्टोर्स ने छोटी दुकानों का धंधा लगभग चौपट ही कर दिया. इसी कारण बृजमोहन के मकान के करीब एक परचून की दुकान बंद हो गई.

एक शाम बृजमोहन अपनी दुकान से लौटे तो उस परचून के मालिक ने बृजमोहन को लपक कर पकड़ लिया, ‘‘सेठजी, रामराम.’’

‘‘रामराम तो ठीक है, तूने दुकान बंद क्यों कर रखी है? पहले तो रात के 10 बजे तक दुकान खोलता था?’’

‘‘अब क्या बताऊं सेठजी, इन औनलाइन और सुपर स्टोर्स की वजह से धंधा चौपट हो गया. दुकान बंद कर दी है. सारा स्टाक खरीद रेट पर बेच रहा हूं. खरीद लो, आप का फायदा ही सोच रहा हूं.’’

बृजमोहन ने सस्ते में 2 महीने का राशन खरीद लिया.

ममता राशन समेटने में लग गई, ‘‘किस ने कहा था, उस की दुकान खरीद लो. 2 महीने का राशन जमा हो गया है. हम 2 जने हैं, हमारे से अधिक तो चूहे खा जाएंगे. असली मौज तो उन की लगेगी,’’ ममता ने तुनक कर कहा.

‘‘भाग्यवान, आधे दाम पर सारा सामान खरीदा है, थोड़ा चूहे खा भी जाएंगे तब भी शुद्ध लाभ ही होगा. खाने दो चूहों को, अब क्या करें, ऐसा सौदा हर रोज नहीं मिलता.’’

‘‘हम दो जने हैं, कितना खाएंगे? चूहों की मौज रहेगी.’’

ममता बृजमोहन की कंजूसी पर परेशान रहती थी. जब बच्चे डालर भेजते हैं तब आराम

से बुढ़ापे में ऐश से रहें. इसी कारण ममता टोकाटाकी करती थी, जिस से बृजमोहन परेशान हो जाते थे.

सस्ता राशन खरीद कर बृजमोहन अपनी ताल खुद ठोंक रहे थे. ममता इस बात पर परेशान थी, कामवाली बाई 2 दिन से नहीं आ रही है. सारा राशन कौन संभालेगा. किसी नए नौकर को घर में कैसे घुसा लें? खैर, कामवाली बाई 2 दिन छुट्टी की बोल गई, 1 हफ्ते बाद आई. 1 सप्ताह ममता का भेजा एकदम फ्राई ही रहा.

बृजमोहन को इस का यह लाभ मिला कि ममता नई कार खरीदना भूल गई. ममता का भेजा बच्चों से फोन पर बात कर के खुश हो गया. वे कुशलमंगल हैं और अपनी कामवाली का नहीं आना भी भूल सी गई.

दोनों का जीवन सरलता से बीत रहा था. दिन बीतते गए लेकिन उम्र ंका तकाजा था जो कभी नहीं सोचा था, वही हो गया.

एक रात नींद में बृजमोहन को बेचैनी महसूस हुई और इससे पहले वे पास लेटी ममता को हाथ लगाता या फिर आवाज दे कर पुकारता, उस की जीवनलीला समाप्त हो गई. थोड़ी नींद खुली, थोड़ी तड़पन हुई और फिर जीवनसाथी को छोड़ दूसरे लोक की सैर को निकल पड़े.

ममता ने यह कभी नहीं सोचा था. अभी तो वह नींद में थी. उस का जीवनसाथी अब उस का नहीं रहा, इस का इल्म उस को नहीं था. 70 की उम्र में रात को 2-3 बार नींद खुलती है, करवट बदल कर देखा, बृजमोहन सो रहा है, बस इतना पूछा, ‘‘सो रहे हो?’’ बिना कोई उत्तर सुने फिर आंखें बंद कर लेती, यही हर रात की कहानी थी.

ममता सुबह उठी, नित्यक्रिया से निबट कर चाय बनाई और बृजमोहन को आवाज दी, ‘‘उठो.’’

बृजमोहन नहीं उठा. ममता ने हाथ लगाया, बृजमोहन का मुंह खुला था, कोई सांस नहीं, उस का कलेजा धक से थम गया.

‘‘बृज क्या हुआ? बृज,’’ लेकिन बृज का शरीर अकड़ गया था. बदहवास ममता घर से बाहर आई और पड़ोस का दरवाजा खटखटाया.

बदहवास ममता को देख पड़ोसी रमन घबरा गया ‘‘क्या हुआ भाभी जी?’’

‘‘भाई साहब इन को देखो, मालूम नहीं क्या हुआ है, बोल ही नहीं रहे हैं.’’

रमन तुरंत ममता के संग हो लिए. बृज को देखते ही उन्होंने तुरंत अस्पताल फोन कर के ऐंबुलैंस बुलाई. अस्पताल जाना मात्र औपचारिकता ही थीं. तुरंत ईसीजी कर के आईसीयू में डाल दिया.

अस्पताल के वेटिंगरूम में अकेली बैठी ममता आंसुओं में डूबी सोच रही थी. ऐसा नहीं सोचा था, बृज की यह हालत होगी और मैं अकेली कुछ करने में भी असमर्थ हूं. कोई साथ नहीं है. 3 बच्चे हैं, 2 बहुएं, 1 दामाद, 6 पोते, पोतियां, दोतेदोतियां, इस दुख की घड़ी में कोई साथ नहीं है. अकेली किस को पुकारे. बच्चे बाहर विदेश में सैटल हैं, खुश थी, बूढ़ाबूढ़ी पिछले 15 वर्षों से बिना रोकटोक के आनंद से जी रहे थे.

बृज को हार्ट अटैक हुआ था और चुपचाप चल बसा. अस्पताल ने पूरा एक दिन रोक लिया और रात को उस की मृत्यु घोषित की. पड़ोसी रमन ने अस्पताल में 2 चक्कर लगा कर चाय खाना ममता को दिया.

2 पड़ोसी और भी ममता से हालचाल पूछने आ गए. नहीं था तो कोई अपना. जिस आजादी को वह अपनी जीत सम?ाती थी, वह आज पराजय थी. ममता ने बच्चों को सूचना दी. बच्चे 7 समंदर पार से सिर्फ सांत्वना ही दे सकते थे. कोई इस संकट की घड़ी में उस की मदद के लिए 7 समंदर पार से उड़ कर आ नहीं सकता था. पड़ोसी अवश्य उन के संग खड़े थे. पड़ोसियों संग रोतीबिलखती ममता घर आ गई.

ममता ने बच्चों को फोन किया. बड़े लड़के गौरव ने आने का तुरंत कार्यक्रम बनाया. किसी भी हालात में वह 2 दिन से पहले नहीं आ सकता था. ममता और बृजमोहन, दोनों की बहनें शहर में रहती थीं, वे ममता के पास पहुंचीं और सांत्वना दी.

रात के अंधेरे में ममता अपने बिस्तर पर लेटे रोती जा रही थी. ऐसा तो नहीं सोचा था. ऐसा समय अचानक से आ जाएगा और कोई अपना साथ नहीं होगा. बहनें भी सिर्फ दिखावे के आंसू बहा रही थीं. ममता चिल्लाए जा रही थी, ‘‘इतना बड़ा परिवार है, बच्चे पास नहीं. भाई, बहन, कोई सगा नहीं. क्या जमाना आ गया है? मुसीबत की घड़ी में सिर्फ नाममात्र का दिखावा. हिम्मत देने वाला कोई बच्चा भी नहीं है. ऐसा तो नहीं सोचा था. आगे का जीवन कैसे कटेगा?’’

रात के सन्नाटे में ममता की आवाज बहनों के कानों में पड़ रही थी, लेकिन वे मन ही मन मुसकरा रही थीं, यहां अकेले रह कर खूब मजे लिए. हम पर रोब झड़ती थी कि बच्चे डौलर भेज रहे हैं. डौलर के साथ रहो. कितनी बार कहा था, बच्चों के साथ अमेरिका रहों लेकिन आजाद जीवन प्यारा था. हम क्या करें? हमारा नाता तो केवल श्मशान तक का है. उस के बाद इस नखरैल के साथ कौन रहेगा? बुढ़ापे में भी पूरी आजादी चाहिए. बच्चों संग नहीं रहना. हर किसी पर रोब झड़ना है.

तीसरे दिन उस का लड़का गौरव अमेरिका से आया. उस की बहू और परिवार का अन्य सदस्य नहीं आया. सीधे एअरपोर्ट से अस्पताल. मृत देह का श्मशान ले जा कर अंतिम संस्कार किया. घर

पहुंच कर ममता से कहा, ‘‘चलो मां, मेरे साथ चलो. मैं टिकट ले कर आया हूं. तुम्हारा वीजा अभी 1 महीने तक वैध है. वहां बढ़ जाएगा.’’

‘‘क्रिया यहां कर ले, फिर चलती हूं,’’ ममता की आंखों से गंगाजमुना बह रही थी कि वह बस यही बुदबुदा रही थी. ऐसा तो नहीं सोचा था. आजादी चली जाएगी. अकेली रह जाऊंगी. मालूम नहीं अमेरिका में बच्चे कैसा व्यवहार करेंगे.

Denim Fashion का जमाना कभी होगा न पुराना, जानें इसके अब तक का सफर

Fashion Tips : फैशन के बदलते चक्र में हमेशा कुछ न कुछ परिवर्तन होता रहता है। कई फैशन एक बार जाते हैं और सालों बाद फिर से वापस चले आते हैं, क्योंकि इन की लोकप्रियता अधिक होती है। ऐसे ही परिधान में शामिल है डैनिम जींस. यह फैब्रिक  पर्सनेलिटी को स्‍मार्ट लुक देता है, इसलिए पीढ़ी दर पीढ़ी इसे अलगअलग अंदाज में पहनने से परहेज नहीं करती.

हालांकि अब इस से कई प्रकार के आउटफिट्स बनाए जा रहे हैं, जिस से इस की पौपुलरिटी आज भी कायम है. आज युवा से ले कर वयस्क हरकोई इसे पहनना पसंद करते हैं. यही वजह है कि लैक्मे फैशन वीक 2024 में डैनिम ने खासा जलवा बिखेरा है.

फैशन डिजाइन काउंसिल औफ इंडिया (FDCI) ने लैक्मे फैशन वीक में ‘द डैनिम ऐडिट’ प्रस्तुत किया, जिस में 5 प्रमुख भारतीय डिजाइनरों ने डैनिम की परमानैंट अपील को दिखाया, जिस में बैगी जींस, कैजुअल डैनिम, जींस के साथ फंकी लुक आदि को बहुत ही सुंदरता से पेश किया गया.

डिजाइनर आशीष एन सोनी ने ओवरसाइज्ड जींस और जैकेट के साथ अलगअलग कपड़े पेश किए, जबकि सुशांत अब्रोल ने ‘ट्रेल डस्ट’ संग्रह पेश किया. ध्रुव कपूर ने आधुनिक डिजाइन के साथ रैट्रो आकर्षण को मिश्रित किया. कनिका गोयल के KGL लेबल ने परिष्कृत सिलाई और बोल्ड ग्राफिक्स के माध्यम से डैनिम को फिर से परिभाषित किया, जिसे सभी ने पसंद किया.

रिसर्च से नया लुक

अगर कोई चीज पौपुलर होती है, तो उस पर रिसर्च भी बहुत होता है, वैसे ही डैनिम में आजकल कई प्रकार के इको फ्रैंडली डैनिम भी आ चुका है, जिस में काफी कुछ नया देखने को मिल रहा है. यही वजह है कि डैनिम बनाने वाली अब बहुत सारी कंपनियां हैं, मगर इंडस्‍ट्री में जो ब्रैंड्स लीड करते हैं, उन में एक लीकूपर है. इस ने हाल ही में सिगरेट बट्स से डैनिम तैयार किया है, जो इस ब्रैंड का इको कलैक्‍शन है, जिसे यूथ काफी पसंद कर रहे हैं.

इस के अलावा जींस के कट्स और फिट्स में भी बहुत सारे बदलाव देखने को मिल रहे हैं. अब जींस पतलून की तरह नजर नहीं आती है और न ही उस का कपड़ा पहले जैसा बहुत ज्‍यादा सख्‍त होता है. इसलिए छोटे बच्चे से ले कर वयस्क इसे किसी न किसी रूप में पहन सकते हैं.

डैनिम की शुरुआत

19वीं सदी के मध्य में डैनिम फैब्रिक का सफर आरंभ हुआ. उस समय डैनिम ने अपनी मजबूत शुरुआत की और इसे पहले मजदूरों के लिए कपड़े बनाने में इस्‍तेमाल किया जाता था.

शुरुआती दौर में डैनिम को ‘सर्ज डी नीम्स’ (जोकि फ्रांस से आने वाले कपड़े के रूप में जाना जाता था) के रूप में पहचान मिली थी.

अमेरिका तक यह फैब्रिक 1870 के दशक में पहुंचा और यहां रिवेटेड डैनिम जींस का आविष्कार किया गया, जो बहुत ही मशहूर हो गया. तब से ले कर आज तक डैनिम और जींस दोनों में बहुत सारे नए ट्रैंड्स दिखाई पड़ने लगा.

डैनिम के लोकप्रिय होने की वजह

इस का टिकाऊपन होना है. 20वीं सदी की शुरुआत में डैनिम को पश्चिमी काउबौय, खनिकों और अमेरिका में किसानों के लिए पसंदीदा वर्कवियर फैब्रिक के रूप में अपनाया गया था. यह कपड़ा न केवल सस्ता था, बल्कि लोकप्रिय विकल्प भी बना. डैनिम पारंपरिक रूप से कपास, लिनन और ऊन से बनता है और दूसरे किसी भी फैब्रिक की तुलना में अधिक टिकाऊ और मजबूत होता था.

डैनिम के प्रकार

वैसे तो डैनिम कई प्रकार के होते हैं, जिस में समय के साथसाथ और कस्टमर की डिमांड के अनुसार परिवर्तन होते रहे हैं। कुछ डैनिम निम्न हैं, जिस का क्रेज आज भी यूथ में है :

डार्क डैनिम वाश जींस

डार्क वाश डैनिम या रौ डैनिम की पहचान इस के गहरे नीले रंग से होती है. डार्क वाश जींस को किसी प्रौसेस के बिना छोड़ दिया जाता है, जिस से कपड़े का मूल रंग बना रहता है. यह प्राकृतिक, अनप्रौसेस्‍ड लुक फैशन के दीवानों को काफी पसंद आता है. इस फैब्रिक में जींस के अलावा जैकेट और डैनिम ड्रैसेज भी मिलती है.

स्‍ट्रेट लेक जींस

90 के दशक की अल्ट्रा हाईराइज स्ट्रेट जींस 99% कौटन और 1% इलास्टेन से बनाई जाती थी. इस का फैशन फिर से लौट आया है. इसे कठोर डैनिम माना जाता है, जो 1% भी स्‍ट्रेच नहीं होता है. यह बहुत ही फिटेड जींस होती है. इस के साथ शर्ट, टीशर्ट या क्रौप टौप पहनना महिलाएं काफी पसंद करती हैं.

बिग ऐंड बैगी डैनिम

बैगीज (Baggies) शब्द का उपयोग आमतौर पर विशेषरूप से लंबे, फैट पैंट या वाइड लेग जींस के लिए किया जाता है. ये पैंट्स ज्यादातर हिपहौप शैली को अपनाने वाले लोग पहना करते थे. अब इसे डैनिम में भी लाया गया है और यह युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय पोशाक है। इस तरह की जींस में बहुत सारे विकल्‍प भी मिल जाते हैं.

रिप्ड जींस का ट्रैंड

डैनिम जींस की दुनिया में रिप्ड जींस का ट्रैंड अभी भी है और वर्ष 2024 में भी यह ट्रैंड जारी रहेगा. रिप्ड जींस यानी फटी जींस का चलन पिछले कुछ सालों से काफी ज्यादा है. सैलिब्रिटीज से ले कर कालेज जाने वाले युवाओं के बीच रिप्ड जींस का चलन है. रिप्ड जींस में घुटनों या जांघ के पास से रिपिंग होती है, जिस से इसे पहनना आरामदायक होता है, क्योंकि इस का फैब्रिक स्मूद होता है. इस के अलावा रिप्ड जींस पहनने से कूल लुक आता है. रिप्ड जींस को डैनिम लेजर या हाथों से रिप किया जाता है. सस्ते ब्रैंड की जींस को हाथों से रिप किया जाता है, जबकि बड़े ब्रैंड इसे लेजर से रिप करते हैं. स्लीक लुक के लिए घुटने तक साफ रिप्स वाली जींस चुनना बेहतर होता है.

डैनिम का रखरखाव

डैनिम जींस न केवल आप को स्टाइलिश लुक देती है, बल्कि काफी रफटफ भी होती है. हर किसी की वार्डरोब में जींस का कलैक्शन होता ही है. इस की रखरखाव के तरीके बहुत आसान होते हैं, इसलिए ये युवाओं में खासा मशहूर हैं. इन्हें रोजरोज धोने की जरूरत नहीं पड़ती, लेकिन डैनिम की देखभाल भी काफी मायने रखती है. फैडेड डैनिम जींस भले ही ट्रैंड में है, लेकिन गंदी और साफ जींस में अंतर पता चलता है.

डैनिम को नए जैसा रखने के लिए मशीन में न धोएं, वाशिंग मशीन में धोने पर कपड़े जल्दी खराब हो जाते हैं. इसलिए कोशिश करें कि डैनिम के कपड़े को हमेशा हाथ से ही वाश करें, निचोड़ें नहीं सुखा दें.

दरअसल, मशीन में धुलने पर इस का कपड़ा सिकुड़ जाता है. हाथ से धोने पर इस के धागे खराब नहीं होते.

Alcohol : अनलिमिटेड शराब का औफर खराब न कर दे शादी का मजा

Alcohol : शादी जिंदगी का एक ऐसा खास दिन होता है, जिसे हरकोई अपने जीवन के सब से यादगार लम्हों में से एक बनाना चाहता है. इस मौके पर दुल्हादुलहन हलदी, मेहंदी, संगीत जैसी पार्टियों व इवेंट से तमाम अपनी दिली तमन्ना पूरा करना चाहते हैं, ताकि हर रस्म को मैमोरेबल बनाया जा सके. लेकिन इस सब में कुछ है जो शादी में मौजमस्ती और माहौल को खराब कर सकती है, तो वह है शराब.

आजकल पार्टियों में अनलिमिटेड शराब का औफर आम बात हो गई है, फिर चाहे वह दिन का फंक्शन हो या रात का.

यों, शराब किसी भी कारण से पिलाना एक भेड़चाल है और इस बुराई को सरकारों और शातिरों ने घरघर पहुंचा दिया. इस से सरकार को टैक्स मिलता है, मारपीट होने पर पुलिस को मामला रफादफा करने के पैसे मिलते हैं, पंडोंपादरियों को परेशान और हिंसा से त्रस्त औरतभक्त मिलती हैं.

व्यापारियों को भी शराब से फायदा होता है और शराब के इर्दगिर्द चल रहे व्यापारों से भी. अगर शराबी न हों तो मनी लैंडिंग का धंधा 2 दिन में चौपट हो जाए. शराब को सामाजिक मान्यता मिली है, यह एक अफसोस की बात है पर फिर भी शादियों में अब जम कर पी और पिलाई जाती है.

इस का सावधानी से उपयोग न किया जाए, तो यह खुशी के पलों को परेशानी में बदल सकती है. ‘आज मेरे यार की शादी है…’ की सोच कर कुछ लोग शराब की अति कर जाते हैं. शराब की अति में लोग खुद पर से नियंत्रण खो बैठते हैं, कुछ बिन वजह झगड़े पर उतर आते हैं तो कुछ जगहजगह उलटियां करते दिखाई देते हैं, जिस से शादी का माहौल खराब हो जाता है.

शादी के मौके को अगर आप अच्छी यादों से संजोना चाहते हैं और नहीं चाहते कि आप का पिनट्रस्ट इंस्पायर वैन्यू लोगों की उलटियों से किसी गंदी ट्रेन, प्लेटफौर्म जैसा नजर आए, तो इन टिप्स को आप जरूर आजमा सकते हैं :

शराब पर लिमिट लगाएं

शादी के फंक्शन में शराब को सीमित करना सब से महत्त्वपूर्ण है. इनविटेशन पर स्पष्ट रूप से लिख सकते हैं कि फंक्शन में शराब नहीं परोसी जाएगी. इस से मेहमानों को पहले से अंदाजा हो जाएगा कि पार्टी में शराब का सेवन सीमित या फिर वर्जित है और वे इस हिसाब से अपनी तैयारी करेंगे.

कौकटेल पार्टी के बाद 1 दिन का गैप रखें

यदि शादी के कई दिनों के फंक्शन हैं और उन में कौकटेल पार्टी भी शामिल है, तो कोशिश करें कि अगले दिन कोई बड़ा फंक्शन न हो. इस से लोग कौकटेल पार्टी के बाद आराम से रेस्ट कर सकते हैं और दोबारा ताजगी के साथ शादी के मुख्य फंक्शन का आनंद ले सकते हैं. इस से हरकोई पूरी तरह से रिचार्ज हो जाएगा और शादी के दिन का आनंद पूरी तरह से ले सकेगा.

शराब के सेवन पर नजर रखें

कुछ लोग शराब के नशे में हद पार कर देते हैं. ऐसे में किसी को जिम्मेदारी दें, जैसेकि दोस्तों या परिवार के किसी सदस्य को, जो नजर रख सकें कि कोई जरूरत से ज्यादा तो शराब नहीं पी रहा है या फिर वह शराब का सेवन ही न करे। आवश्यकता हो तो शराब की सर्विंग को हलका कर दिया जाए ताकि किसी को अधिक नशा न हो.

सौफ्ट ड्रिंक और मौकटेल का विकल्प दें

शराब के साथसाथ सौफ्ट ड्रिंक और मौकटेल का अच्छा विकल्प रखना भी जरूरी है. इस तरह हर किसी के पास बिना शराब के भी मस्ती करने का एक विकल्प होगा. मौकटेल्स को अनलिमिटेड तौर पर परोसा जा सकता है.

शराब पीने के बाद खाने का ध्यान रखें

शराब का सेवन खाली पेट करना हमेशा ही खराब होता है, इसलिए ध्यान दें कि लोग शराब पीने से पहले कुछ खाएं. इस के लिए स्नैक्स का अच्छा इंतजाम रखें ताकि लोग धीरेधीरे शराब का सेवन करें और अधिक नशे में न आएं.

शराब की क्वालिटी पर ध्यान दें

शराब की क्वालिटी का भी ध्यान रखें. सस्ती और नकली शराब का सेवन अकसर ज्यादा नशे और स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनता है. इसलिए कोशिश करें कि अच्छी और मीडियम क्वालिटी की शराब ही परोसी जाए. इस से लोगों के सेहत पर भी बुरा असर नहीं पड़ेगा और मस्ती का माहौल भी बना रहेगा.

इमरजैंसी मैडिकल इंतजाम रखें

शराब का सेवन कभीकभी स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकता है, जैसे कि उलटियां, सिरदर्द या पेट खराब होना. इसलिए शादी के आयोजन स्थल पर कुछ इमरजैंसी मैडिकल व्यवस्था जरूर रखें. जैसेकि कुछ इमरजैंसी दवाइयां, उलटी रोकने की दवाई, पेनकिलर और हैंगओवर कम करने की दवाइयां उपलब्ध होनी चाहिए.

सख्त नियमों का पालन करें

अगर शादी में छोटे बच्चे या बुजुर्ग शामिल हैं, तो उन्हें शराब के सेवन से दूर रखें. इस के अलावा पार्टी के दौरान ड्रिंक और ड्राइव को सख्ती से मना करें और इस के लिए नियम बनाएं. अगर किसी ने ज्यादा शराब पी ली है, तो उस के लिए ट्रांसपोर्ट का बंदोबस्त करें ताकि वह सुरक्षित घर पहुंच सके.

लिमिटेड सर्विंग का विकल्प रखें

आप शराब की लिमिटेड सर्विंग के लिए एक सिस्टम बना सकते हैं. उदाहरण के लिए हर मेहमान को एक निश्चित संख्या में कूपन दिए जा सकते हैं जो केवल 1 या 2 ड्रिंक्स तक सीमित हों. इस से लोग भी अधिक शराब पीने से बचेंगे और पार्टी का आनंद लेते रहेंगे.

शादी में शराब की जगह मौजमस्ती पर ध्यान दें

शादी में शराब की जगह अन्य मनोरंजन का विकल्प दें, जैसे लाइव बैंड, डीजे, डांस परफौर्मेंस या गेम्स. इस से लोग शराब पर कम और मस्ती पर ज्यादा ध्यान देंगे.

इस तरह आप की शादी का माहौल सकारात्मक रहेगा और हरकोई अच्छे से ऐंजौय कर सकेगा.
शादी जैसे खास मौके पर अगर शराब का सेवन सीमित और समझदारी से किया जाए, तो इस का आनंद कई गुना बढ़ जाता है.

शादी का असली मजा दोस्तों और परिवार के साथ उन पलों का होता है जो हम हंसीखुशी के साथ बिताते हैं. शराब एक माध्यम हो सकता है, लेकिन उसे शादी के खूबसूरत पलों को खराब करने का कारण न बनने दें.

इन छोटेछोटे टिप्स को अपना कर आप अपनी शादी को वाकई में यादगार और खुशियों से भरपूर बना सकते हैं.

Eco Friendly Balcony : बालकनी को करना चाहती हैं डेकोरोट, तो कम बजट में इसे बनाएं इकोफ्रैंडली

Eco Friendly Balcony : बालकनी हमारे घर का वह कोना है जहां बैठ कर हम अपनी फिक्र छोड़ कर प्रकृति के साथ रूबरू होते हैं.कभी यहां बैठ कर हम सुबहशाम की चाय वाली चुसकियां लेते हैं, तो कभी रीडिंग क्लब के मजे.कभी यह जगह योग स्थान में तब्दील हो जाती है जोकि हमें आराम और खुशियों की अनुभूति कराता है और घर का यह कोना बहुत ही खूबसूरत व प्यारा लगने लगता है.

लेकिन कुछ लोग अपनी बालकनी वाली जगह को वैस्ट मैटेरियल रखने की जगह के रूप में इस्तेमाल करते हैं जो दिखने में बहुत ही भद्दा लगता है जिस कारण यह जगह आराम देने के बजाय हमें गंदी लगने लगती है. ऐसे में आप अपने घर की इस जगह को कैसा बनाना पसंद करेंगे? लाजिम है कि आप इसे खूबसूरत ही बनाना चाहेंगे जिस से यह आप की दिनभर की थकान मिटाने वाला खास प्लेस कहलाए.

तो चलिए, आज हम आप को कुछ ऐसी बड़े काम की टिप्स और ट्रिक्स बताने जा रहे हैं जिन से बिना कुछ ज्यादा खर्च किए यह जगह आप खूबसूरत भी बना सकते हैं साथ ही इसे सकरात्मक ऊर्जा से भर सकते हैं:

गो ग्रीन

बढ़ते प्रदूषण के कारण आज सब लोग अपने घरों में एयर प्यूरीफायर लगवाने पर मजबूर हैं.ऐसे में घर की बालकनी में पौधे लगा सकते हैं.इन पौधों के बीच में आप अपने पुराने स्टैचू को खूबसूरती से सजा सकते हैं व साथ ही बेल वाले पौधों के जरीए कैनपी तैयार कर सकते हैं जिस से लाइटिंग के साथ फोटोशूट का बैस्ट बैकड्राप बन जाएगा।

पुराने सामान का इस्तेमाल

अगर आप को आर्ट ऐंड क्राफ्ट का शौक है तो आप प्लास्टिक की खाली बोतलों से खूबसूरत गमले, कांच की बोतलों से कोई ऐंटीक शो पीस, पुराने टायर से हैंगिंग प्लांटर व सोफा का लुक दे सकती है.

इन्हें भी करें ट्राई

* आर्टिफिशियल घास, विंड चाइम्स, पारंपरिक तोड़न, स्टिकर का प्रयोग कर आप नया लुक दे सकते हैं.

* बालकनी बड़ी है तो झूला भी लगा सकते हैं.झूला न सिर्फ आप की बालकनी को बगीचे का लुक देता है बल्कि यह आराम करने के लिए भी बैस्ट है.

* कौफी टेबल या फोल्डिंग टेबल चेयर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

Kulcha Bhaji Recipe : नाश्ते में बनाएं पेरी पेरी भाजी कुल्चा, बहुत आसान है इसकी रेसिपी

Writer- Pratibha Agnihotri

Kulcha Bhaji Recipe : नाश्ता प्रत्येक गृहिणी के लिए बहुत बड़ी समस्या होती है. पोहा, वर्मीसेली, उपमा, पूरी कचौड़ी, समोसा आदि को रोज रोज खाकर अक्सर बोरियत होने लगती है. यदि आप भी नाश्ते में क्या बनाया जाए जैसी समस्या से ग्रस्त हैं तो आज हम आपको ऐसी रेसिपी बनाना बता रहे हैं जिसे आप आसानी से घर पर बना सकती हैं, साथ ही इसमें भरावन की विविधता करके बार बार भी बना सकतीं हैं तो आइए देखते हैं कि इसे कैसे बनाया जाता है-

कितने लोगों के लिए              4

बनने में लगने वाला समय         30 मिनट

मील टाइप                      वेज

सामग्री(कुल्चे के लिए)

बटर                           1 टेबलस्पून

मैदा                           2 कप

खट्टा दही                      1/4 कप

बेकिंग सोडा                     1/4  टीस्पून

बेकिंग पाउडर                    1 टीस्पून

दूध                             1 टेबलस्पून

नमक                           स्वादानुसार

कलौंजी                          1 टीस्पून

सामग्री(भाजी के लिए)

कटा पत्ता गोभी                   1/4 कप

उबले व मैश किये आलू            4

उबली मटर                      1 /4 कप

किसी गाजर                       2

कटा प्याज                       1

पेरी पेरी मसाला                  1 टेबलस्पून

हल्दी पाउडर                       1/4 टीस्पून

कसूरी मैथी                        1 टीस्पून

अदरक लहसुन बारीक कटा           1 टेबलस्पून

बारीक कटा हरा धनिया              1 टेबलस्पून

विधि-

कुल्चा बनाने के लिए मैदा में बेकिंग पाउडर, बेकिंग सोडा, नमक अच्छी तरह मिलाएं, मैदा के बीच में चम्मच से जगह बनाकर दही और दूध मिलाकर हाथ से आटा लगायें, ध्यान रखें कि आटा पूरी से नरम और परांठे से हल्का सा कड़ा होना चाहिए. तैयार आटे को आधे घंटे के लिए ढककर रख दें ताकि इसमें खमीर उठ जाये.

भाजी बनाने के लिए बटर को गर्म करके प्याज, अदरक लहसुन को सौते करें. जब प्याज हल्का ब्राउन हो जाये तो पत्तागोभी, मटर के दाने, किसी गाजर, कसूरी मैथी तथा सभी मसाले डालकर अच्छी तरह चलायें. 5 मिनट तक धीमी आंच पर लगातार चलाते हुए पकाकर गैस बंद कर दें. जब यह पूरी तरह ठंडा हो जाये तो मैश किये आलू व हरा धनिया मिला दें.

कुल्चा बनाने के लिए तैयार आटे को हथेली से मसलें और परांठे के बराबर लोई लेकर हथेली पर रखकर उंगलियों से थोडा सा फैलाएं और 1 टीस्पून तैयार भाजी को स्टफ करें. ऊपरी सतह पर 8-10 कलौंजी के दाने चिपकायें. एक नानस्टिक पैन में कुछ पानी के छींटे डालकर कुल्चा डाल दें. धीमी आंच पर ढककर लगभग 3-4 मिनट पकाकर पलटकर पकाएं. तैयार कुल्चे को घी या बटर लगाकर टोमेटो सौस या मनचाही चटनी के साथ सर्व करें.

करें कुछ नये प्रयोग भी

-आप मैदा के स्थान पर पूरा आटा, आधा आटा और आधा मैदा, अथवा मैदा के साथ ओट्स के आटे का भी प्रयोग कर सकतीं हैं.

-यदि आप अधिक तीखा स्वाद चाहतीं हैं तो कुल्चे के आटे में हरी मिर्च का पेस्ट मिलाएं.

-कुल्चे के आटे में आप कटी पालक, मैथी या किसा चुकन्दर मिलाकर और अधिक पौष्टिक बना सकतीं हैं.

-भरावन में आप अपनी पसंद से पनीर, टोफू या अन्य सब्जियों का प्रयोग कर सकतीं हैं परन्तु ध्यान रखें कि भरावन कोई भी हो पर उसमें गीलापन लेशमात्र भी न हो अन्यथा भरते समय कुल्चा फट सकता है.

-आप पेरी पेरी मसाले के स्थान पर सामान्य मसाले या मैगी मसाले का प्रयोग भी कर सकतीं हैं.

-कुल्चे पहले से बनाकर रखने के स्थान पर गर्म गर्म बनाकर ही सर्व करें. बनाकर रखने पर मैदा ठंडी हो जाती है और उसमें खिंचाव उत्पन्न हो जाता है.

जीजा मेरे साथ दुर्व्यवहार करते हैं, मैं क्या करूं ?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 20 वर्षीय युवती हूं. कालेज की पढ़ाई पूरी करने के लिए मैं पिछले कुछ महीनों से अपनी बड़ी बहन के पास रह रही हूं. मेरी बहन विवाहित है और उस के पति हंसीमजाक करने वाले हैं. पर इधर कुछ दिनों से मैं उन के व्यवहार को ले कर मन ही मन बहुत परेशान हूं. वे अकसर मेरे साथ शारीरिक छेड़छाड़ करते रहते हैं. कभी हंसीमजाक में मेरे स्तनों को छू लेते हैं और कभी मौका पा कर मसल भी देते हैं. जीजा होने की वजह से मेरा किसी से कुछ कहते भी नहीं बनता. एकाध बार दीदी से मैं ने कहने की हिम्मत जुटाई तो उन्होंने मेरी बात यह कह कर टाल दी कि मुझे गलतफहमी हुई होगी. इच्छा होती है कि घर लौट जाऊं. मन ही मन डरने लगी हूं कि इस शारीरिक छेड़छाड़ के कारण आगे चल कर कहीं मुझे ब्रैस्ट कैंसर जैसा कोई गंभीर रोग तो नहीं हो जाएगा? मैं अपने जीजा से बचने की हर संभव कोशिश करने लगी हूं, पर वे मौका पाते ही दुर्व्यवहार करने से बाज नहीं आते. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब-

इन परिस्थितियों में आप का बहन के घर में रहना ठीक नहीं. अच्छा होगा कि आप अपनी बहन से गंभीरता के साथ बात करें. अगर वह फिर भी आप की बात अनसुनी कर देती है तो भलाई इसी में होगी कि छुट्टी ले कर घर जाएं और अपने मातापिता से खुल कर बात करें. इन स्थितियों का सब से व्यावहारिक समाधान कालेज के होस्टल या उस के आसपास कहीं पेइंग गैस्ट सुविधा में शिफ्ट करना होगा. जब तक ऐसा कोई वैकल्पिक इंतजाम नहीं हो जाता और आप बहन के घर में रहती हैं, तब तक आप ऐसी परिस्थितियों से बचें जिन में आप की सुरक्षा को ठेस पहुंच सकती है. फिर भी कभी ऐसी स्थिति बने और आप की बहन के पति किसी प्रकार का दुर्व्यवहार करें, तो न सिर्फ आप उन का पुरजोर प्रतिरोध करें, बल्कि साफ चेता भी दें कि आप किसी भी प्रकार के अशोभनीय व्यवहार को सहन नहीं करने वाली.

और हां, आप की बहन के पति ने आप के साथ जो दुर्व्यवहार किया है उस से ब्रैस्ट कैंसर होने का कोई अंदेशा नहीं. अच्छा होगा कि आप इसे दु:स्वप्न मान भुला दें वरना मनोवैज्ञानिक तौर पर इस की काली परछाईं आप के भावी जीवन पर बुरा असर डाल सकती है. पतिपत्नी या 2 परस्पर चाहने वालों के बीच शारीरिक सुख वैवाहिक बंधन और प्रेम के सेतु को मजबूत बनाता है, लेकिन इस प्रकार की दुर्घटनाएं परेशानी का सबब बन सकती हैं.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर 8588843415 पर  भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

दहक: तलाकशुदा से क्यों शादी करना चाहता था रेहान

रेहान को मैं क्या जवाब दूं? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है. उस ने मुझे मुश्किल में डाल दिया है. मैं दूसरी शादी नहीं करना चाहती, पर वह है कि  मेरे पीछे ही पड़ गया है. मुझ से शादी करना चाहता है.

मैं दोबारा उन दर्दों को सहन नहीं करना चाहती, जो मैं पहले सहन कर चुकी हूं. अब सब ठीकठाक चल रहा है. मेरी जिंदगी सही दिशा में चल रही है. मैं खुश हूं और मेरी बेटी भी.

रेहान जानता है कि मैं तलाकशुदा हूं और मेरी एक बच्ची भी है, 5 साल की. फिर भी वह मुझ से शादी करना चाहता है और मेरी बेटी को भी अपनाना चाहता है. पर शादी कर के मैं दोबारा उस पीड़ा में नहीं पड़ना चाहती, जिस से मैं निकल कर आई हूं.

रेहान पूछता है कि आखिर बात क्या है? तुम शादी क्यों नहीं करना चाहती हो? वजह क्या है? मैं क्या बताऊं? मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है. वजह बताऊं भी या नहीं? बताऊं भी तो किस तरह? कहां से हिम्मत लाऊं?

क्या इन दागों के बारे में उसे बता दूं? दाग… हां, ये दाग जो मिटने का नाम ही नहीं ले रहे हैं. अब तक ये दाग दहक रहे हैं यहां, मेरे सीने पर.

मैं पहली शादी भी नहीं करना चाहती थी इन्हीं दागों के चलते, पर मेरी अम्मी नहीं मानीं. मेरे पीछे ही पड़ गईं. वे समझातीं, ‘बेटी, शादी के बिना एक औरत अधूरी है. शादी के बगैर उस की जिंदगी जहन्नुम बन जाती है. तू शादी कर ले, तेरे दोनों भाइयों का क्या भरोसा, तुझे कब तक सहारा देंगे… अभी तेरी भाभियों का मिजाज बढि़या है, आगे चल कर वे भी तुझे बोझ समझने लगीं, तो…?’

‘पर, ये दाग…?’ मैं अम्मी का ध्यान दागों की ओर दिलाते हुए कहती, ‘अम्मी, इन दागों का क्या करूं मैं? ये तो मिटने का नाम ही नहीं लेते. ऊपर से दहकने लगते हैं समयसमय पर, फिर भी आप कहती हैं कि मैं शादी कर लूं… क्या ये दाग छिपे रहेंगे? क्या ये दाग मेरे शौहर को दिखाई नहीं पड़ेंगे?’

अम्मी चुप्पी साध लेतीं, फिर रोने लगतीं, ‘बेटी, इन का जिक्र मत किया कर. ये दाग हैं तो तेरे सीने पर, मगर जलन मुझे भी देते हैं.’

‘तब आप ही बताइए कि इन के रहते मैं कैसे शादी कर लूं?’

‘नहीं बेटी, तू शादी जरूर कर… तुझे मेरी कसम… मेरी जिंदगी की यही तमन्ना है…’

आखिर मैं हार गई. मैं ने शादी के लिए हां कर दी. और मेरी शादी धूमधाम से हो गई, आरिफ के साथ.

पहली रात को मुझे देख कर आरिफ की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. आरिफ मुझ से कसमेवादे करने लगे. जहानभर की खुशियां ला कर मेरे कदमों में रख देने को बेताब हो उठे.

आरिफ को खुश देख कर मैं भी खुश हो गई, पर मेरी खुशी कुछ पलों की थी. शादी के दूसरे ही दिन जब मैं आरिफ की बांहों में थी और ये मुझे चांदतारों की सैर करा रहे थे… अचानक जमीन पर आ गिरे, धड़ाम से… और करवट बदल ली.

मुझे कसमसाहट हुई, ‘क्या बात हुई? क्यों हट गए?’

मैं ने आरिफ को अपनी बांहों में भरना चाहा, तो आरिफ ने झिड़क दिया और दूर जा बैठे.

‘क्या बात है? आप नाराज क्यों हो गए?’

‘ये दाग कैसे हैं?’

‘ओह…’ मुझे होश आया. मेरी नजर मेरे सीने पर गई. मैं दहल गई. मैं ने उसे दुपट्टे से ढक लिया.

‘कैसे हैं ये दाग? बहुत खराब लग रहे हैं. सारा मूड चौपट कर दिया. किस तरह के हैं ये दाग?’

मैं आरिफ को अपने आगोश में लेते हुए बोली, ‘ये दाग चाय के हैं.’

‘चाय के…’

‘जी, मैं जब छोटी थी. यही तकरीबन 5 साल की… मेरे सीने पर खौलती हुई चाय गिर गई थी. पूछो मत… मैं तड़प कर रह गई थी…’

‘इन का इलाज नहीं हुआ था?’

‘इलाज हुआ था और ये तकरीबन ठीक भी हो गए थे, पर…’

‘पर, क्या?’

‘एक दिन इन जख्मों पर मैं ने एक क्रीम लगा ली थी. तभी से ये दाग सफेदी में बदल गए. बहुत इलाज करवाया, मगर सफेदपन गया ही नहीं.’

‘कहीं, ये दाग वे दाग तो नहीं, जिस का ताल्लुक खून से होता है?’

‘न बाबा न… वे वाले दाग नहीं हैं, जो आप समझ रहे हैं. ये तो जले के निशान हैं…’

मैं आरिफ को अपने आगोश में भर कर चूमने लगी. आरिफ भी मुझे प्यार देने लगे. अभी कुछ देर ही हुई थी कि उन का हाथ मेरे सीने पर आ गया. देख कर उन का मूड फिर खराब हो गया. वे दूर हट गए. वे मुझ से दूर रहने लगे. मैं कोशिश करतेकरते हार गई. वे मेरे करीब नहीं आते. एक ही छत के नीचे हम दोनों अजनबियों की तरह रहने लगे. वे मुझ से नफरत तो नहीं करते थे, पर मुहब्बत भी नहीं. मुझे रुपएपैसे भी देते थे, पर प्यार नहीं. जब भी प्यार देने की कोशिश करती, दूर हट जाते. फिर सुबह मेरे हाथ से चाय भी नहीं लेते. चाय का नाम सुन कर उन्हें मेरे सीने के दाग याद आ जाते. मन उचाट हो जाता.

इसी बीच मुझे एहसास हुआ कि मेरे अंदर कोई नन्हा वजूद पनप रहा है. मुझे खुशी हुई, पर आरिफ को नहीं. उन्होंने एक फैसला ले लिया था, वह था मुझे तलाक देने का.

उन्होंने मेरी कोख में पनप रहे वजूद को तहसनहस करवाना चाहा. मुझे रजामंद करने में पूरी ताकत झोंक दी, पर मैं नहीं मानी और जीती रही उसी वजूद के सहारे. आखिरकार उस वजूद ने दुनिया में आंखें खोलीं. मेरा सूनापन कम हो गया. मैं उस वजूद से हंसनेबोलने लगी. अपने गम को भूलने की कोशिश करने लगी. धीरेधीरे मेरी बेटी मेरी सहेली बन गई.

अभी मेरी बेटी 2 साल की ही हुई थी कि यह हादसा हो गया. मैं अपने मायके में आई हुई थी. मेरे बड़े भाई के लड़के का अकीका यानी मुंडन था. आरिफ भी आए हुए थे. रात को खाना खाने के बाद आरिफ की आदत है पान खाने की. उस रात वे मेरे महल्ले की एक पान की दुकान पर पान खाने पहुंचे, तो मेरी जिंदगी में मानो कयामत सी आ गई.

वहीं पान की दुकान पर आरिफ ने मेरे बारे में सुना. सुना क्या, रंजिशन उन्हें सुनाया गया. मेरे बारे में बातें सुन कर वे चकरा गए.

गिरतेपड़ते वे घर वापस आए, तो मैं उन के चेहरे को देख कर भांप गई कि हो न हो, कोई अनहोनी हुई है. मैं उन के पास पहुंची. पूछने लगी कि क्या बात है? आरिफ कुछ नहीं बोले. मेरे घर चुपचाप ही रहे. गुमसुम.

पर दूसरे दिन घर आ कर कुहराम मचा दिया. ऐसा कुहराम कि पासपड़ोस के लोग इकट्ठा हो गए. मसजिदके पेशइमाम साहब, मदरसे के मौलाना और मुफ्ती जैसे बड़े लोग भी बुला लिए गए और मेरे घर से मेरे वालिद साहब व दोनों भाई भी.

बेचारी अम्मी भी रोतीपीटती हुई आईं. अम्मी को देखते ही मेरी आंखों से आंसू झरझर बहने लगे. अम्मी ने मुझे गले से लगा लिया. समझ गईं कि क्या हुआ होगा. बाहर घर के सामने चबूतरे पर पूरी पंचायत जमा थी. मौलाना साहब मेरे ससुर से बोले, ‘हाजी साहब, आप ने हम सब को क्यों याद किया? क्या बात है?’

मेरे ससुर ने अपना चेहरा झुका लिया. कुछ भी बोल नहीं पाए. मौलाना साहब ने दोबारा पूछा, ‘आखिर बात क्या है हाजी साहब?’

मेरे ससुर ने अपना चेहरा धीरे से ऊपर उठाया और आरिफ की ओर संकेत किया, ‘इस से पूछिए. पंचायत इस ने बुलाई है, मैं ने नहीं.’

अब मौलाना साहब ने आरिफ से पूछा, ‘आरिफ बेटा, बात क्या है? क्यों जहमत दी हम लोगों को?’

आरिफ बड़े अदब से खड़े हुए और बोले, ‘मौलाना साहब, मेरे साथ धोखा हुआ है. मुझ से झूठ बोला गया है.’ मसजिद के पेशइमाम साहब बोले, ‘बेटा, किस ने तुम्हें धोखा दिया है? किस ने तुम से झूठ बोला है?’

आरिफ तैश में बोले, ‘मेरी बीवी ने मुझ से झूठ बोला है और धोखा दिया है. मेरी ससुराल वालों ने भी…’

मुफ्ती साहब बोले, ‘आरिफ बेटा, तुम्हारी बीवी ने तुम से क्या झूठ बोला है? ससुराल वालों ने तुम्हें कैसे धोखा दिया है?’

‘हजरत, यह बात आप मुझ से नहीं, मेरी बीवी से पूछिए.’

पूरी महफिल में सन्नाटा पसर गया. मेरे अब्बूअम्मी और भाइयों के ही नहीं, मेरे ससुर का भी चेहरा शर्म से झुक गया. मेरी अम्मी तड़प उठीं. परदे के पीछे खड़ी मैं भी सिसक पड़ी.

मुफ्ती साहब बोले, ‘बताओ बेटी, क्या बात है?’

मैं जोरजोर से रोने लगी. मेरी आंखों से आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा. होंठ थरथराने लगे. जिस्म कांप उठा. मुझ से बोला नहीं गया. बोलती भी तो क्या?

आरिफ ही खड़े हुए और तैश में बोले, ‘हजरत, यह क्या बोलेगी… बोलने के लायक ही नहीं है यह… सिर्फ यही नहीं, इस के घर वाले भी…’

मेरी अम्मी का रोना और बढ़ गया. मेरे अब्बू भी फफक पड़े. भाइयों को गुस्सा आया. उन की मुट्ठियां भिंच गईं. पर अब्बू ने उन्हें चुप रहने का संकेत किया… और मैं? मैं सोच रही थी कि यह धरती फट जाए और मैं उस में समा जाऊं, पर ऐसा होना नामुमकिन था.

पेशइमाम साहब बोले, ‘बात क्या है?… मुझे बात भी तो पता चले.’ ‘मेरी बीवी के सीने पर दाग हैं. उजलेउजले… चरबी जैसी दिखाई पड़ती है. नजर पड़ते ही मुझे घिन आती है.’

पंचायत में दोबारा सन्नाटा छा गया. आरिफ बोलते रहे, ‘यह बात मुझ से छिपाई गई है… हम लोगों को नहीं बताई गई?’

इतना कह कर आरिफ थोड़ी देर शांत रहे, फिर बोले, ‘और, जब मुझे इस की जानकारी हुई, तो मुझे मेरी बीवी ने बताया कि ये दाग चाय के हैं, जबकि…’

‘जबकि, क्या…?’ एकसाथ कई मुंह खुले.

‘जबकि, ये दाग तेजाब के हैं.’

पंचायत में खलबली मच गई. आरिफ ने आगे बताया, ‘कल मैं खैराबाद अपनी ससुराल में था. वहीं एक पान की दुकान पर मैं ने 2 लड़कों को आपस में बातें करते सुना. मैं नहीं जानता कि वे लोग कौन थे?’

‘उन में से एक ने दूसरे से पूछा था कि यार, उस लड़की का क्या हुआ?

‘दूसरा बोला था कि कौन सी लड़की?

‘पहला लड़का बोला था कि वही हाजी अशरफ साहब की लड़की, जिस पर एसिड अटैक हुआ था.

‘दूसरा लड़का बोला था कि अरे, उस की तो शादी हो गई. दोढाई साल हो गए हैं. अच्छा शौहर पाया है उस ने.

‘इतना सुनना था कि मेरे होश उड़ गए. आगे उन लोगों ने क्या बातें कीं, मैं नहीं जानता, लेकिन हजरत, मैं यह जानता हूं कि मैं कहीं का नहीं रहा. पहले तो किसी तरह एकसाथ बसर हो रही थी, मगर अब हम साथ नहीं रह सकते. मुझे इस झूठी औरत से नजात दिलाइए…’

आरिफ अपनी बात पूरी कर के बैठ गए. पंचायत में कानाफूसी होने लगी. थोड़ी देर के बाद मुफ्ती साहब बोले, ‘हाजी साहब… आप कुछ बताएंगे… क्या मामला है? हमें कुछ समझ नहीं आया… एसिड अटैक… कब और क्यों…?’

मेरे अब्बू हिम्मत कर के खड़े तो हुए, पर थरथर कांपने लगे. उन से बोला नहीं गया. अम्मी ने भी बोलना चाहा. उन से भी नहीं बोला गया. बस खड़ीखड़ी रोती रहीं. आखिर में मैं खड़ी हुई.

‘मेरे घर वाले धोखेबाज हैं या नहीं, मैं नहीं कह सकती… हां, मैं यह जरूर कह सकती हूं कि मैं झूठी हूं… मैं ने झूठ बोला है… मुझे साफसाफ बता देना चाहिए था इन दागों के बारे में… मैं बताना चाहती भी थी, मगर मुझे कोई सूरत नजर नहीं आ रही थी…’

‘सुन रहे हैं आप…’ मैं बोली.

आरिफ ने खड़े हो कर बड़े गुस्से में कहा, ‘यह और इस के घर वाले इसी तरह लच्छेदार बातों में उलझा देते हैं… झूठ पर झूठ बोलते हैं… झूठे… धोखेबाज कहीं के…’

मुफ्ती साहब बोले, ‘आरिफ, खामोश रहिए. अदब से पेश आइए…’

आरिफ सटपटा कर बैठ गए. मुफ्ती साहब ने मुझ से पूछा, ‘बेटी, दाग का राज क्या है? बताएंगी आप…’ मैं फफक पड़ी. ऐसा लगा, जैसे दाग दहक उठे. जलन पूरे शरीर में दौड़ गई.

मैं बोली, ‘मैं उस वक्त 11वीं जमात में पढ़ती थी. एक हिसाब से दुनियाजहान से अनजान थी. मैं अबुल कलाम आजाद गर्ल्स इंटर कालेज में रोजाना अपनी चचेरी बहन के साथ पढ़ने जाया करती थी.

‘मेरी चचेरी बहन भी उसी स्कूल में पढ़ाया करती थीं…’ इतना कह कर मैं ने थोड़ी सी सांसें भरीं और दोबारा कहना शुरू किया, ‘मेरी चचेरी बहन की शादी जिस आदमी से हुई थी, वह ठीक नहीं था… जुआरी… शराबी था… उन को मारतापीटता भी था, इसलिए उन्होंने तलाक लेना चाहा था.

‘वह शख्स तलाक देने के लिए राजी नहीं हुआ. बहन बेचारी मायके में बैठी रहीं और कालेज में पढ़ाने लगीं.’ मैं ने फिर थोड़ा दम लिया और आगे बोली, ‘हर दिन की तरह उस दिन भी हम लोग खुशीखुशी कालेज जा रही थीं. हम लोग कालेज पहुंचने वाली ही थीं कि बहन ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपनी तरफ खींचा और चिल्लाते हुए बोलीं कि भागो… भागो…

‘मैं ने देखा सामने वही जालिम शख्स खड़ा था. वह पहले भी एकदो बार बहन के सामने आ चुका था. उन का रास्ता रोक चुका था. उन्हें जबरदस्ती अपने घर ले जाना चाहा था.

‘हम ने सोचा कि वह आज भी वही हरकत करेगा… सो, हम दौड़ पड़ीं. बहन आगेआगे दौड़ रही थीं और मैं उन के पीछेपीछे. ‘मुझे पीछे छोड़ता हुआ वह शख्स बहन के पास तक पहुंच गया. उस ने एक हाथ से बहन का नकाब खींच लिया. बहन को ठोकर लग गई. वे वहीं सड़क पर गिर पड़ीं.

‘उस जालिम ने झोले से तेजाब की बोतल निकाली और उस का ढक्कन खोल कर एक झटके से उन के चेहरे पर उड़ेल दी.

‘मैं भी तब तक उन के करीब पहुंच चुकी थी. तेजाब के छींटे मेरे चेहरे पर तो नहीं पड़े. हां, मेरे सीने पर जरूर आ पड़े. मेरा सीना झुलस उठा. मैं गश खा कर गिर पड़ी.

‘जब मुझे होश आया, तो मैं अस्पताल में थी. मैं ने बहन के बारे में पूछा, तो पता चला कि उन की मौत तो अस्पताल पहुंचते ही हो गई थी.’

मेरी दुखभरी कहानी सुन कर पूरी पंचायत में खामोशी छा गई. अजब तरह की खामोशी. 90 फीसदी लोगों की हमदर्दी मेरे साथ थी, पर फैसला मेरे हक में न रहा. फैसला रहा आरिफ के हक में. मेरे घर वालों के सचाई छिपाने और मेरे झूठ बोलने की वजह से मेरा तलाक हो गया.

मैं अपने घर वालों के साथ मायके चली आई. आरिफ ने बच्ची को लेने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. यह मेरे लिए अच्छी बात हुई. मैं अपनी बच्ची के बगैर एक पल जिंदा रह भी नहीं पाती.

मैं बीऐड तो पहले से ही थी और टीईटी भी. अभी जब एक साल पहले सहायक अध्यापकों की जगह निकली, तो मेरा उस में सलैक्शन हो गया. यहीं 10 किलोमीटर की दूरी पर मेरी एक प्राथमिक विद्यालय में पोस्टिंग भी हो गई. वहीं मेरी मुलाकात रेहान से हुई.

रेहान पास ही के एक माध्यमिक स्कूल में सहायक अध्यापक है. जब से मुझे देखा है, अपने अंदर मुहब्बत का जज्बा पाले बैठा है. मुझ से मुहब्बत का इजहार भी किया है और शादी करने की इच्छा भी जाहिर की है. मैं ने न तो उस के प्यार को स्वीकार किया है और न ही उस के शादी के प्रस्ताव को. मैं दोबारा उस दर्द को झेलना नहीं चाहती.

खुशामद का कलाकंद: क्या आप में है ये हुनर

जीवन जीना अपनेआप में एक कला है. जिसे यह कलाकारी नहीं आती वह बेचारा कुछ इस तरह से जीता है कि उसे देख कर कोई भी कह सकता है, ‘ये जीना भी कोई जीना है लल्लू.’ सफलतापूर्वक जीवन जीने वाले नंबर एक के कलाकार होते हैं. उन के सामने हर बड़े से बड़ा कलाकार पानी भरता नजर आता है. चमचागीरी या खुशामद करना शाश्वत कला है और जिस ने इस कला में स्वर्ण पदक प्राप्त कर लिया या फिर जिसे ‘पासिंग मार्क’ भी मिल गया, तो उस की जिंदगी आराम से गुजर जाती है. खुशामद इस वक्त राष्ट्र की मुख्य धारा में है. इस धारा में बहने वाले के हिस्से की सुखसुविधाएं खुदबखुद दौड़ी चली आती हैं. हमारे मित्र छदामीजी कहां से कहां पहुंच गए. साइकिल पर चलते थे, आज कार में चलते हैं. यह खुशामद का ही चमत्कार है. खुशामद की कला के विशेषज्ञ हर कहीं पाए जाते हैं. कश्मीर से ले कर कन्याकुमारी तक खुशामद करने वालों की भरमार है.

दरअसल, जीवन की हर सांस खुशामद की कर्जदार है. खुशामद और चमचागीरी में बड़ा बारीक सा अंतर है. चमचागीरी बदनामशुदा शब्द है, खुशामद अभी उतना बदनाम नहीं हुआ है, इसलिए लोग चमचागीरी तो करते हैं, लेकिन सफाई देते हैं कि भई थोड़ी सी खुशामद कर दी तो क्या बिगड़ गया. खुशामद कामधेनु गाय है, जिस की पूंछ पकड़ क र जाने कितने गधे घोड़े बन कर दौड़ रहे हैं. पद, पैसा या सुख आदि पाने की ललक में लोग खुशामद जैसे सात्विक हथियार का सहारा लेते हैं. खुशामद एक तरह का अहिंसक हथियार है. सोचता हूं कि खुशामद की कला का इस्तेमाल कर के अगर कोई कुछ प्राप्त कर ले तो क्या बुराई है? यह तो जीवन जीने की कला है. इस के बिना आप जहां हैं, वहीं पड़े रह जाएंगे. जो लोग सड़ना नहीं चाहते हैं, वे कुछ करने के लिए खुशामद का सहारा ले कर आगे बढ़ते हैं. इस के लिए पावरफुल लोगों का सम्मान करो, अकारण दाएंबाएं होते रहो, अभिनंदन करो और ऐश करो.  पिछले दिनों ऐसे ही एक सज्जन के बारे में पता चला. जब देखो वह आयोजनों में भिड़े रहते थे. मुझे लगा, बड़े महान प्राणी हैं. बड़े बिजी रहते हैं. देश और समाज की चिंता में निरंतर मोटे भी होते जा रहे हैं. यह देख कर मैं उन के नागरिक अभिनंदन के ‘मूड’ में आ गया. मैं उन से टाइम लेने जा रहा था कि रास्ते में एक महोदय मिल गए. पूछा, ‘‘कहां चल दिए?’’

मैं ने कहा, ‘‘फलानेजी का सम्मान करना चाहता हूं.’’ मेरी बात को सुन कर महोदय हंस पड़े तो मैं चौंका. मैं ने कहा, ‘‘हंसने की क्या बात है? फलानेजी समाजसेवी हैं. चौबीसों घंटे कुछ न कुछ करते रहते हैं. ऐसे लोगों का अभिनंदन तो होना ही चाहिए.’’ महोदय बोले, ‘‘चलिए, मैं सज्जन की पोल खोलता हूं, तब भी आप को लगे कि उन का अभिनंदन होना चाहिए तो ठीक है.’’ मेरे कान खड़े हो गए. महोदय बताने लगे कि इन्होंने पिछले साल मजदूरों का एक सम्मेलन करवाया था. खूब चंदा एकत्र किया. एक मंत्री को बुलवा कर भाषण भी करवा दिया. सम्मेलन के बाद उन्हें 2 फायदे हुए, मंत्रीजी ने उन्हें एक समिति का सदस्य बनवा दिया और उन के घर पर दूसरी मंजिल भी तन गई. यह सज्जन हर दूसरे दिन किसी मंत्री का, किसी विधायक का या किसी अफसर का अभिनंदन करते रहते हैं. ऐसा करने से लोगों में धाक जमती चली जाती है. पावरफुल आत्माओं से निकटता बढ़ती है तो सुविधाओं की गंगा अपनेआप बहने लगती है. देखते ही देखते कंगाल भी मालामाल हो जाता है. महोदय की बातें सुन कर मेरा माथा घूम गया और मैं ने अभिनंदन वाला आइडिया ड्राप कर दिया. अब यह और बात है कि सज्जन अपना अभिनंदन कराने के लिए मेरी खुशामद पर आमादा हैं तो भाई साहब, खुशामद के एक से एक रूप हैं, जुआ की तरह.

हम और आप कर रहे होते हैं और हमें पता नहीं चलता कि खुशामद कर रहे हैं, इसलिए कदम फूंकफूंक कर रखिए, वरना कब खुशामद की कीचड़ आप के मुंह पर लग जाए, कहना कठिन है. खुशामद की कला को अब तो सामाजिक स्वीकृति भी मिल गई है. इसे क्या कहें जो खुशामद के जरिए घरपरिवार को खुश रखता है. उस की आमद भी सब को खुश कर देती है, लेकिन जो खुशामद से दूर रहता है, उस की आमद घर वालों को नागवार गुजरने लगती है. हर कोई मुंह बनाते हुए बड़बड़ाता है, ‘आ गया आदर्शवादी, हुंह.’ तो साहबान, खुशामद ही जीवन का सार है. घरबाहर अगर इज्जत चाहिए तो खुशामदखोरों की बिरादारी में शामिल हो जाइए. खुशामद की कला में माहिर आदमी का बी.ए. पास होना भी जरूरी नहीं. आप खुशामद पास हैं तो कहीं भी टिक सकते हैं.  समाजवाद, पूंजीवाद, अध्यात्मवाद और बाजारवाद, न जाने कितने तो वाद हैं. सब का अपनाअपना महत्त्व है, लेकिन आजकल के जमाने में ‘खुशामदवाद’ तो वादों का वाद है. सारे वाद बारबार खुशामदवाद एक बार. एक बार जो खुशामद की सुरंग में घुसा, वह मालामाल हो कर ही लौटा. यह और बात है कि आत्मा पर थोड़ी कालिख पुत जाती है, लेकिन उस को क्या देखना? जिस ने की शरम, उस के फूटे करम. आत्मा के चक्कर में न जाने कितने महात्माओं ने आत्महत्याएं कर लीं, इसलिए आत्मा को घर के पिछवाड़े में कहीं दफन कर के खुशामदवाद का सहारा लो. इस दिशा में जिस ने भी कदम बढ़ाए हैं, वह जीवन भर सुखी रहा है, इसीलिए तो धीरेधीरे खुशामद लोकप्रिय कला बनती जा रही है और जब कला बन रही है या बन चुकी है तो इस का पाठ्यक्रम भी तैयार कर दिया जाना चाहिए. किसी की प्रशस्ति में गीत, कविता लिखना, चालीसा लिखना, क्या है? मतलब यह कि साहित्य में खुशामद कला ने घुसपैठ कर ली है. आजकल विश्वविद्यालयों में नएनए पाठ्यक्रमों की पढ़ाई शुरू हो रही है. फलाना मैनेजमेंट, ढिकाना मैनेजमेंट तो खुशामद मैनेजमेंट का नया कोर्स भी शुरू हो जाए. इस का बाकायदा ‘पाठ्यक्रम’ तैयार हो. सुव्यवस्थित तरीके से यह कोर्स लांच हो. इस के पढ़ाने वाले सैकड़ों इस शहर में मिल जाएंगे. ऐसे लोगों की तलाश की जाए जो ‘खुशामद वाचस्पति’ हों, ‘खुशामदश्री’ खुशामद कला में पीएच.डी. की उपाधि भी दी जा सकती है और यह मानद भी हो सकती है. आप के शहर में ऐसी प्रतिभाओं की कमी नहीं होगी. इधर तो खुशामद की प्रतिभा से लबालब लोगों की ऐसी नस्लें लहलहा रही हैं कि मत पूछिए. इसलिए समय के साथ दौड़ने वालों को इस सुझाव पर विचार करना चाहिए, क्योंकि यह सदी खुशामद को कला बनाने पर उतारू होने की सदी है, जो कोई खुशामद के विरोध में खड़ा हो, वह धकिया दिया जाएगा. वक्त के साथ चलो, खुशामद के साथ चलो.

छदामीजी हर दूसरे दिन अभिनंदन करते हैं. अभिनंदन प्रतिभाशाली लोगों का हो तो कोई बात नहीं, लेकिन अब ऐसे लोगों का अभिनंदन करता ही कौन है? अभिनंदन होता है मंत्री, नेता या अफसरों का या फिर ऐसे व्यक्ति का जिस के सहारे सुविधाओं के टुकड़े प्राप्त हो जाएं.  अभिनंदन करना भी खुशामद का ही एक तरीका है. कुछ लोग जीवन भर इसी को पवित्र काम मान कर दिनरात भिड़े रहते हैं. अभिनंदन करना और अभिनंदन कराना ऐसा शौक है कि मत पूछिए. जिसे इस का चस्का लगा, वह गया काम से. अभिनंदन के बगैर वह ठीक उसी तरह तड़पता है, जिस तरह मछली पानी के बगैर. खुशामद करना और खुशामदपसंद होना सब के बस की बात भी तो नहीं है. खुशामदपसंद आदमी की चमड़ी मोटी होनी चाहिए और जेब भी हर वक्त ‘भरी’ रहे. जब तक जेब भरी रहेगी, अभिनंदन या सम्मान की झड़ी रहेगी. खुशामद करने वाला कंगाल हो तो चलेगा, लेकिन खुशामदपसंद का मालामाल होना जरूरी है. ऐसी जब 2 आत्माएं मिलती हैं, तब यही गीत बजना चाहिए, ‘दो सितारों का जमीं पर है मिलन आज की रात.’ सोचिए, खुशामद कितनी बड़ी चीज है कि इस नाचीज को इस पर कागज काले करने पड़ रहे हैं, लेकिन हालत यह है कि मर्ज बढ़ता गया ज्योंज्यों दवा की. खुशामद को ले कर आप लाख नाराजगी जाहिर करें, यह खत्म होने से रही. यह तो द्रौपदी के चीर की तरह बढ़ती जा रही है, और क्यों न बढ़े साहब? जब हर दूसरातीसरा शख्स इस कला में हाथ आजमा रहा है, तब आप क्या कर लेंगे? आप को इस कला से प्रेम नहीं है तो न सही, और दूसरे लोग तो हैं, जिन की गाड़ी खुशामद के भरोसे ही चलती है. सत्ता के गलियारों में जा कर देखिए, खुशामद करने वाले कीड़ेमकोड़े की तरह बिलबिलाते हुए मिल जाएंगे. वक्त की मार केवल मूर्तियों या स्मारकों पर ही नहीं पड़ती, शब्दों पर भी पड़ती है. ‘खुशआमद’ ऐसा बदनाम हो गया है कि शब्द का प्रयोग करते हुए डर लगता है. किसी को ‘नेताजी’ कह दो, ‘गुरु’ कह दो तो लगता है, व्यंग्य किया जा रहा है. खुशामद शब्द का यही हाल है लेकिन हाल है तो है. अब तो इसे लोग कला बनाने पर तुले हुए हैं.

वक्तवक्त की बात है, इसलिए साहेबान, मेहरबान, कद्रदान, वक्त की धड़कन को सुनो और इस नई कला को गुनो. सफल होना है तो खुशामद ही अंतिम चारा है. बिना खुशामद के हर कोई बेचारा है. यह और बात है कि जो इस जीवन को संघर्षों के बीच ही जीने के आदी हैं, जिन को मुसीबत झेलने में ही मजा आता है, जो सूखी रोटी खा कर, ठंडा पानी पी कर भी खुश रहते हैं, उन के लिए खुशामद कला विषकन्या के समान त्याज्य है, लेकिन जिन को ऐसेवैसे कैसे भी चाहिए सुविधा सम्मान और पैसे, वे खुशामद के बिना एक कदम नहीं चल सकते. ऐसे लोग ही प्रचारित कर रहे हैं कि खुशामद एक कला है. इस की मार्केटिंग कर रहे हैं, नएनए आकर्षक रैपरों में. हर सीधासादा आदमी खुशामद के चक्कर में फंस जाता है, लेकिन खुशामद एक ऐसा भंवर है, जिस में कोई एक बार फंसा तो निकलना मुश्किल हो जाता है.  इस कला में बला का स्वाद है. जिस ने एक बार भी इस का स्वाद चख लिया, वह दीवाना हो गया. नैतिकता से बेगाना हो गया. पता नहीं, आप ने खुशामद की कला का आनंद लिया है या नहीं, न लिया हो तो कोई बात नहीं, अगर इच्छा हो तो अपने ही शहर के किसी नेतानुमा प्राणी से मिल लीजिएगा या फिर ऐसे शख्स से, जिसे लोग ‘मिठलबरा’ (ऐसा व्यक्ति जो बड़ी ही मधुरता के साथ झूठा व्यवहार करता है) के नाम से जानते हों. ये लोग आप को बताएंगे कि खुशामद रूपी कलाकंद खाने का आनंद कैसे मनाएं?

बहरहाल, खुशामद को अगर कला का दर्जा मिल जाए तो कोई बुराई नहीं. कुछ लोग तो जेब काटने तक को कला मानते हैं. कला हमेशा भला काम ही कराए जरूरी नहीं. क्या कहा, आप खुशामद को कला नहीं, बला मानते हैं? तो भई, आप जैसे लोगों के कारण ही गलतसलत परंपराएं अपना स्थान नहीं बना पातीं. आज कदमकदम पर खुशामदखोर मिल जाएंगे, चलतेपुर्जे, अपना काम निकालने में माहिर. आप अगर अब तक हम लोगों से कुछ नहीं सीख पाए हैं तो ठीक है, पड़े रहिए अपनी जगह. सारे लोग आप से आगे निकल जाएंगे तो फिर मत कहिएगा कि हम पीछे रह गए. आगे बढ़ना है तो शर्म छोडि़ए और खुशामदखोरी में भिड़ जाइए. शरमाइए मत, उलटे कहिए, ‘खुश-आमद-दीन’.

Festival Special: नए अंदाज में बनाएं ब्रेड उत्तपम

Festival  मे अकसर कुछ ऐसा खाने को जी चाहता है, जो टेस्टी होने के साथ हेल्दी भी हो. ऐसे में आप ये रेसिपी ट्राई कर सकती हैं.

सामग्री :

– 6 स्लाइस ब्रेड

– 4 टेबलस्पून सूजी

– 1 टेबल स्पून मैदा

– 2 टेबलस्पून दही

– 1 कटोरी बारीक कटी प्याज

– टमाटर और शिमला मिर्च (बारीक कटा)

बारीक कटा हरा धनिया और हरी मिर्च

– 2 टेबलस्पून कुकिंग औयल

– नमक (स्वादानुसार)

विधि :

– ब्रेड के किनारों को चाकू की सहायता से काटकर अलग कर लें.

– किसी गहरे बर्तन में ब्रेड, मैदा, सूजी, नमक, दही और ज़रूरत भर पानी मिलाकर पेस्ट तैयार करें.

– ध्यान रहे कि यह घोल न तो बहुत गाढ़ा या ही अधिक पतला हो.

– नौन स्टिक तवे पर चारों ओर रिफाइंड औयल लगाकर घोल को अच्छी तरह फैलाएं.

– अब दोनों तरफ से सेंक लें.

आप इसे अपने मनपसंद चटनी या सौस के साथ गर्मागर्म सर्व करें.

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