उलझे रिश्ते: क्या प्रेमी से बिछड़कर खुश रह पाई रश्मि

दिनभर की भागदौड़. फिर घर लौटने पर पति और बच्चों को डिनर करवा कर रश्मि जब बैडरूम में पहुंची तब तक 10 बज चुके थे. उस ने फटाफट नाइट ड्रैस पहनी और फ्रैश हो कर बिस्तर पर आ गई. वह थक कर चूर हो चुकी थी. उसे लगा कि नींद जल्दी ही आ घेरेगी. लेकिन नींद न आई तो उस ने अनमने मन से लेटेलेटे ही टीवी का रिमोट दबाया. कोई न्यूज चैनल चल रहा था. उस पर अचानक एक न्यूज ने उसे चौंका दिया. वह स्तब्ध रह गई. यह क्या हुआ? सुधीर ने मैट्रो के आगे कूद कर सुसाइड कर लिया. उस की आंखों से अश्रुधारा बह निकली. उस का मन किया कि वह जोरजोर से रोए. लेकिन उसे लगा कि कहीं उस का रोना सुन कर पास के कमरे में सो रहे बच्चे जाग न जाएं. पति संभव भी तो दूसरे कमरे में अपने कारोबार का काम निबटाने में लगे थे. रश्मि ने रुलाई रोकने के लिए अपने मुंह पर हाथ रख लिया, लेकिन काफी देर तक रोती रही. शादी से पूर्व का पूरा जीवन उस की आंखों के सामने घूम गया.

बचपन से ही रश्मि काफी बिंदास, चंचल और खुले मिजाज की लड़की थी. आधुनिकता और फैशन पर वह सब से ज्यादा खर्च करती थी. पिता बड़े उद्योगपति थे. इसलिए घर में रुपयोंपैसों की कमी नहीं थी. तीखे नैननक्श वाली रश्मि ने जब कालेज में प्रवेश लिया तो पहले ही दिन सुधीर से उस की आंखें चार हो गईं.

‘‘हैलो आई एम रश्मि,’’ रश्मि ने खुद आगे बढ़ कर सुधीर की तरफ हाथ बढ़ाया. किसी लड़की को यों अचानक हाथ आगे बढ़ाता देख सुधीर अचकचा गया. शर्माते हुए उस ने कहा, ‘‘हैलो, मैं सुधीर हूं.’’

‘‘कहां रहते हो, कौन सी क्लास में हो?’’ रश्मि ने पूछा.

‘‘अभी इस शहर में नया आया हूं. पापा आर्मी में हैं. बी.कौम प्रथम वर्ष का छात्र हूं.’’ सुधीर ने एक सांस में जवाब दिया.

‘‘ओह तो तुम भी मेरे साथ ही हो. मेरा मतलब हम एक ही क्लास में हैं,’’ रश्मि ने चहकते हुए कहा. उस दिन दोनों क्लास में फ्रंट लाइन में एकदूसरे के आसपास ही बैठे. प्रोफैसर ने पूरी क्लास के विद्यार्थियों का परिचय लिया तो पता चला कि रश्मि पढ़ाई में अव्वल है. कालेज टाइम के बाद सुधीर और रश्मि साथसाथ बाहर निकले तो पता चला कि सुधीर को पापा का ड्राइवर कालेज छोड़ गया था. रश्मि ने अपनी मोपेड बाहर निकाली और कहा, ‘‘चलो मैं तुम्हें घर छोड़ती हूं.’’

‘‘नहींनहीं ड्राइवर आने ही वाला है.’’

‘‘अरे, चलो भई रश्मि खा नहीं जाएगी,’’ रश्मि के कहने का अंदाज कुछ ऐसा था कि सुधीर उस की मोपेड पर बैठ गया. पूरे रास्ते रश्मि की चपरचपर चलती रही. उसे इस बात का खयाल ही नहीं रहा कि वह सुधीर से पूछे कि कहां जाना है. बातोंबातों में रश्मि अपने घर की गली में पहुंची, तो सुधीर ने कहा, ‘‘बस यही छोड़ दो.’’

‘‘ओह सौरी, मैं तो पूछना ही भूल गई कि आप को कहां छोड़ना है. मैं तो बातोंबातों में अपने घर की गली में आ गई.’’

‘‘बस यहीं तो छोड़ना है. वह सामने वाला मकान हमारा है. अभी कुछ दिन पहले ही किराए पर लिया है पापा ने.’’

‘‘अच्छा तो आप लोग आए हो हमारे पड़ोस में,’’ रश्मि ने कहा

‘‘जी हां.’’

‘‘चलो, फिर तो हम दोनों साथसाथ कालेज जायाआया करेंगे.’’ रश्मि और सुधीर के बाद के दिन यों ही गुजरते गए. पहली मुलाकात दोस्ती में और दोस्ती प्यार में जाने कब बदल गई पता ही न चला. रश्मि का सुधीर के घर यों आनाजाना होता जैसे वह घर की ही सदस्य हो. सुधीर की मम्मी रश्मि से खूब प्यार करती थीं. कहती थीं कि तुझे तो अपनी बहू बनाऊंगी. इस प्यार को पा कर रश्मि के मन में भी नई उमंगें पैदा हो गईं. वह सुधीर को अपने जीवनसाथी के रूप में देख कर कल्पनाएं करती. एक दिन सुधीर घर में अकेला था, तो उस ने रश्मि को फोन कर कहा, ‘‘घर आ जाओ कुछ काम है.’’

जब रश्मि पहुंची तो दरवाजे पर मिल गया सुधीर. बोला, ‘‘मैं एक टौपिक पढ़ रहा था, लेकिन कुछ समझ नहीं आ रहा था. सोचा तुम से पूछ लेता हूं.’’

‘‘तो दरवाजा क्यों बंद कर रहे हो? आंटी कहां है?’’

‘‘यहीं हैं, क्यों चिंता कर रही हो? ऐसे डर रही हो जैसे अकेला हूं तो खा जाऊंगा,’’ यह कहते हुए सुधीर ने रश्मि का हाथ थाम उसे अपनी ओर खींच लिया. सुधीर के अचानक इस बरताव से रश्मि सहम गई. वह छुइमुई सी सुधीर की बांहों में समाती चली गई.

‘‘क्या कर रहे हो सुधीर, छोड़ो मुझे,’’ वह बोली लेकिन सुधीर ने एक न सुनी. वह बोला,  ‘‘आई लव यू रश्मि.’’

‘‘जानती हूं पर यह कौन सा तरीका है?’’ रश्मि ने प्यार से समझाने की कोशिश की,  ‘‘कुछ दिन इंतजार करो मिस्टर. रश्मि तुम्हारी है. एक दिन पूरी तरह तुम्हारी हो जाएगी.’’ परंतु सुधीर पर कोई असर नहीं हुआ. हद से आगे बढ़ता देख रश्मि ने सुधीर को धक्का दिया और हिरणी सी कुलांचे भरती हुई घर से बाहर निकल गई. उस रात रश्मि सो नहीं पाई. उसे सुधीर का यों बांहों में लेना अच्छा लगा. कुछ देर और रुक जाती तो…सोच कर सिहरन सी दौड़ गई. और एक दिन ऐसा आया जब पढ़ाई की आड़ में चल रहा प्यार का खेल पकड़ा गया. दोनों अब तक बी.कौम अंतिम वर्ष में प्रवेश कर चुके थे और एकदूजे में इस कदर खो चुके थे कि उन्हें आभास भी नहीं था कि इस रिश्ते को रश्मि के पिता और भाई कतई स्वीकार नहीं करेंगे. उस दिन रश्मि के घर कोई नहीं था. वह अकेली थी कि सुधीर पहुंच गया. उसे देख रश्मि की धड़कनें बढ़ गईं. वह बोली,  ‘‘सुधीर जाओ तुम, पापा आने वाले हैं.’’

‘‘तो क्या हो गया. दामाद अपने ससुराल ही तो आया है,’’ सुधीर ने मजाकिया लहजे में कहा.

‘‘नहीं, तुम जाओ प्लीज.’’

‘‘रुको डार्लिंग यों धक्के मार कर क्यों घर से निकाल रही हो?’’ कहते हुए सुधीर ने रश्मि को अपनी बांहों में भर लिया. तभी जो न होना चाहिए था वह हो गया. रश्मि के पापा ने अचानक घर में प्रवेश किया और दोनों को एकदूसरे की बांहों में समाया देख आगबबूला हो गए. फिर पता नहीं कितने लातघूंसे सुधीर को पड़े. सुधीर कुछ बोल नहीं पाया. बस पिटता रहा. जब होश आया तो अपने घर में लेटा हुआ था. सुधीर और रश्मि के परिवारजनों की बैठक हुई. सुधीर की मम्मी ने प्रस्ताव रखा कि वे रश्मि को बहू बनाने को तैयार हैं. फिर काफी सोचविचार हुआ. रश्मि के पापा ने कहा,  ‘‘बेटी को कुएं में धकेल दूंगा पर इस लड़के से शादी नहीं करूंगा. जब कोई काम नहीं करता तो क्या खाएगाखिलाएगा?’’ आखिर तय हुआ कि रश्मि की शादी जल्द से जल्द किसी अच्छे परिवार के लड़के से कर दी जाए. रश्मि और सुधीर के मिलने पर पाबंदी लग गई पर वे दोनों कहीं न कहीं मिलने का रास्ता निकाल ही लेते. और एक दिन रश्मि के पापा ने घर में बताया कि दिल्ली से लड़के वाले आ रहे हैं रश्मि को देखने. यह सुन कर रश्मि को अपने सपने टूटते नजर आए. उस ने कुछ नहीं खायापीया.

भाभी ने समझाया, ‘‘यह बचपना छोड़ो रश्मि, हम इज्जतदार खानदानी परिवार से हैं. सब की इज्जत चली जाएगी.’’

‘‘तो मैं क्या करूं? इस घर में बच्चों की खुशी का खयाल नहीं रखा जाता. दोनों दीदी कौन सी सुखी हैं अपने पतियों के साथ.’’

‘‘तेरी बात ठीक है रश्मि, लेकिन समाज, परिवार में ये बातें माने नहीं रखतीं. तेरे गम में पापा को कुछ हो गया तो…उन्होंने कुछ कर लिया तो सब खत्म हो जाएगा न.’’

रश्मि कुछ नहीं बोल पाई. उसी दिन दिल्ली से लड़का संभव अपने छोटे भाई राजीव और एक रिश्तेदार के साथ रश्मि को देखने आया. रश्मि को देखते ही सब ने पसंद कर लिया. रिश्ता फाइनल हो गया. जब यह बात सुधीर को रश्मि की एक सहेली से पता चली तो उस ने पूरी गली में कुहराम मचा दिया,  ‘‘देखता हूं कैसे शादी करते हैं. रश्मि की शादी होगी तो सिर्फ मेरे साथ. रश्मि मेरी है.’’ पागल सा हो गया सुधीर. इधरउधर बेतहाशा दौड़ा गली में. पत्थर मारमार कर रश्मि के घर की खिड़कियों के शीशे तोड़ डाले. रश्मि के पिता के मन में डर बैठ गया कि कहीं ऐसा न हो कि लड़के वालों को इस बात का पता चल जाए. तब तो इज्जत चली जाएगी. सब हालात देख कर तय हुआ कि रश्मि की शादी किसी दूसरे शहर में जा कर करेंगे. किसी को कानोंकान खबर भी नहीं होगी. अब एक तरफ प्यार, दूसरी तरफ मांबाप के प्रति जिम्मेदारी. बहुत तड़पी, बहुत रोई रश्मि और एक दिन उस ने अपनी भाभी से कहा, ‘‘मैं अपने प्यार का बलिदान देने को तैयार हूं. परंतु मेरी एक शर्त है. मुझे एक बार सुधीर से मिलने की इजाजत दी जाए. मैं उसे समझाऊंगी. मुझे पूरी उम्मीद है वह मान जाएगा.’’

भाभी ने घर वालों से छिपा कर रश्मि को सुधीर से आखिरी बार मिलने की इजाजत दे दी. रश्मि को अपने करीब पा कर फूटफूट कर रोया सुधीर. उस के पांवों में गिर पड़ा. लिपट गया किसी नादान छोटे बच्चे की तरह,  ‘‘मुझे छोड़ कर मत जाओ रश्मि. मैं नहीं जी  पाऊंगा, तुम्हारे बिना. मर जाऊंगा.’’ यंत्रवत खड़ी रह गई रश्मि. सुधीर की यह हालत देख कर वह खुद को नहीं रोक पाई. लिपट गई सुधीर से और फफक पड़ी, ‘‘नहीं सुधीर, तुम ऐसा मत कहो, तुम बच्चे नहीं हो,’’ रोतेरोते रश्मि ने कहा.

‘‘नहीं रश्मि मैं नहीं रह पाऊंगा, तुम बिन,’’ सुबकते हुए सुधीर ने कहा.

‘‘अगर तुम ने मुझ से सच्चा प्यार किया है तो तुम्हें मुझ से दूर जाना होगा. मुझे भुलाना होगा,’’ यह सब कह कर काफी देर समझाती रही रश्मि और आखिर अपने दिल पर पत्थर रख कर सुधीर को समझाने में सफल रही. सुधीर ने उस से वादा किया कि वह कोई बखेड़ा नहीं करेगा. ‘‘जब भी मायके आऊंगी तुम से मिलूंगी जरूर, यह मेरा भी वादा है,’’ रश्मि यह वादा कर घर लौट आई. पापा किसी तरह का खतरा मोल नहीं लेना चाहते थे, इसलिए एक दिन रात को घर के सब लोग चले गए एक अनजान शहर में. रश्मि की शादी दिल्ली के एक जानेमाने खानदान में हो गई. ससुराल आ कर रश्मि को पता चला कि उस के पति संभव ने शादी तो उस से कर ली पर असली शादी तो उस ने अपने कारोबार से कर रखी है. देर रात तक कारोबार का काम निबटाना संभव की प्राथमिकता थी. रश्मि देर रात तक सीढि़यों में बैठ कर संभव का इंतजार करती. कभीकभी वहीं बैठेबैठे सो जाती. एक तरफ प्यार की टीस, दूसरी तरफ पति की उपेक्षा से रश्मि टूट कर रह गई. ससुराल में पासपड़ोस की हमउम्र लड़कियां आतीं तो रश्मि से मजाक करतीं  ‘‘आज तो भाभी के गालों पर निशान पड़ गए. भइया ने लगता है सारी रात सोने नहीं दिया.’’ रश्मि मुसकरा कर रह जाती. करती भी क्या, अपना दर्द किस से बयां करती? पड़ोस में ही महेशजी का परिवार था. उन के एक कमरे की खिड़की रश्मि के कमरे की तरफ खुलती थी. यदाकदा रात को वह खिड़की खुली रहती तो महेशजी के नवविवाहित पुत्र की प्रणयलीला रश्मि को देखने को मिल जाती. तब सिसक कर रह जाने के सिवा और कोई चारा नहीं रह जाता था रश्मि के पास.

संभव जब कभी रात में अपने कामकाज से जल्दी फ्री हो जाता तो रश्मि के पास चला आता. लेकिन तब तक संभव इतना थक चुका होता कि बिस्तर पर आते ही खर्राटे भरने लगता. एक दिन संभव कारोबार के सिलसिले में बाहर गया था और रश्मि तपती दोपहर में  फर्स्ट फ्लोर पर बने अपने कमरे में सो रही थी. अचानक उसे एहसास हुआ कोई उस के बगल में आ कर लेट गया है. रश्मि को अपनी पीठ पर किसी मर्दाना हाथ का स्पर्श महसूस हुआ. वह आंखें मूंदे पड़ी रही. वह स्पर्श उसे अच्छा लगा. उस की धड़कनें तेज हो गईं. सांसें धौंकनी की तरह चलने लगीं. उसे लगा शायद संभव है, लेकिन यह उस का देवर राजीव था. उसे कोई एतराज न करता देख राजीव का हौसला बढ़ गया तो रश्मि को कुछ अजीब लगा. उस ने पलट कर देखा तो एक झटके से बिस्तर पर उठ बैठी और कड़े स्वर में राजीव से कहा कि जाओ अपने रूम में, नहीं तो तुम्हारे भैया को सारी बात बता दूंगी, तो वह तुरंत उठा और चला गया. उधर सुधीर ने एक दिन कहीं से रश्मि की ससुराल का फोन नंबर ले कर रश्मि को फोन किया तो उस ने उस से कहा कि सुधीर, तुम्हें मैं ने मना किया था न कि अब कभी मुझ से संपर्क नहीं करना. मैं ने तुम से प्यार किया था. मैं उन यादों को खत्म नहीं करना चाहती. प्लीज, अब फिर कभी मुझ से संपर्क न करना. तब उम्मीद के विपरीत रश्मि के इस तरह के बरताव के बाद सुधीर ने फिर कभी रश्मि से संपर्क नहीं किया.

रश्मि अपने पति के रूखे और ठंडे व्यवहार से तो परेशान थी ही उस की सास भी कम नहीं थीं. रश्मि ने फिल्मों में ललिता पंवार को सास के रूप में देखा था. उसे लगा वही फिल्मी चरित्र उस की लाइफ में आ गया है. हसीन ख्वाबों को लिए उड़ने वाली रश्मि धरातल पर आ गई. संभव के साथ जैसेतैसे ऐडजस्ट किया उस ने परंतु सास से उस की पटरी नहीं बैठ पाई. संभव को भी लगा अब सासबहू का एकसाथ रहना मुश्किल है. तब सब ने मिल कर तय किया कि संभव रश्मि को ले कर अलग घर में रहेगा. कुछ ही दूरी पर किराए का मकान तलाशा गया और रश्मि नए घर में आ गई. अब तक उस के 2 प्यारेप्यारे बच्चे भी हो चुके थे. शादी के 12 साल कब बीत गए पता ही नहीं चला. नए घर में आ कर रश्मि के सपने फिर से जाग उठे. उमंगें जवां हो गईं. उस ने कार चलाना सीख लिया. पेंटिंग का उसे शौक था. उस ने एक से बढ़ कर एक पोट्रेट तैयार किए. जो देखता वह देखता ही रह जाता. अपने बेटे साहिल को पढ़ाने के लिए रश्मि ने हिमेश को ट्यूटर रख लिया. वह साहिल को पढ़ाने के लिए अकसर दोपहर बाद आता था जब संभव घर होता था. 28-30 वर्षीय हिमेश बहुत आकर्षक और तहजीब वाला अध्यापक था. रश्मि को उस का व्यक्तित्व बेहद आकर्षक लगता था. खुले विचारों की रश्मि हिमेश से हंसबोल लेती. हिमेश अविवाहित था. उस ने रश्मि के हंसीमजाक को अलग रूप में देखा. उसे लगा कि रश्मि उसे पसंद करती है. लेकिन रश्मि के मन में ऐसा दूरदूर तक न था. वह उसे एक शिक्षक के रूप में देखती और इज्जत देती. एक दिन रश्मि घर पर अकेली थी. साहिल अपने दोस्त के घर गया था. हिमेश आया तो रश्मि ने कहा कि कोई बात नहीं, आप बैठिए. हम बातें करते हैं. कुछ देर में साहिल आ जाएगा.

रश्मि चाय बना लाई और दोनों सोफे पर बैठ गए. रश्मि ने बताया कि वह राधाकृष्ण की एक बहुत बड़ी पोट्रेट तैयार करने जा रही है. उस में राधाकृष्ण के प्यार को दिखाया गया है. यह बताते हुए रश्मि अपने अतीत में डूब गई. उस की आंखों के सामने सुधीर का चेहरा घूम गया. हिमेश कुछ और समझ बैठा. उस ने एक हिमाकत कर डाली. अचानक रश्मि का हाथ थामा और ‘आई लव यू’ कह डाला. रश्मि को लगा जैसे कोई बम फट गया है. गुस्से से उस का चेहरा लाल हो गया. वह अचानक उठी और क्रोध में बोली, ‘‘आप उठिए और तुरंत यहां से चले जाइए. और दोबारा इस घर में पांव मत रखिएगा वरना बहुत बुरा होगा.’’ हिमेश को तो जैसे सांप सूंघ गया. रश्मि का क्रोध देख उस के हाथ कांपने लगे.

‘‘आ…आ… आप मुझे गलत समझ रही हैं मैडम,’’ उस ने कांपते स्वर में कहा.

‘‘गलत मैं नहीं समझ रही आप ने मुझे समझा है. एक शिक्षक के नाते मैं आप की इज्जत करती रही और आप ने मुझे क्या समझ लिया?’’ फिर एक पल भी नहीं रुका हिमेश. उस के बाद उस ने कभी रश्मि के घर की तरफ देखा भी नहीं. जब कभी साहिल ने पूछा रश्मि से तो उस से उस ने कहा कि सर बाहर रहने लगे हैं. रश्मि की जिंदगी फिर से दौड़ने लगी. एक दिन एक पांच सितारा होटल में लगी डायमंड ज्वैलरी की प्रदर्शनी में एक संभ्रात परिवार की 30-35 वर्षीय महिला ऊर्जा से रश्मि की मुलाकात हुई. बातों ही बातों में दोनों इतनी घुलमिल गईं कि दोस्त बन गईं. वह सच में ऊर्जा ही थी. गजब की फुरती थी उस में. ऊर्जा ने बताया कि वह अपने घर पर योगा करती है. योगा सिखाने और अभ्यास कराने योगा सर आते हैं. रश्मि को लगा वह भी ऊर्जा की तरह गठीले और आकर्षक फिगर वाली हो जाए तो मजा आ जाए. तब हर कोई उसे देखता ही रह जाएगा.

ऊर्जा ने स्वाति से कहा कि मैं योगा सर को तुम्हारा मोबाइल नंबर दे दूंगी. वे तुम से संपर्क कर लेंगे. रश्मि ने अपने पति संभव को मना लिया कि वह घर पर योगा सर से योगा सीखेगी. एक दिन रश्मि के मोबाइल घंटी बजी. उस ने देखा तो कोई नया नंबर था. रश्मि ने फोन उठाया तो उधर से आवाज आई,  ‘‘हैलो मैडम, मैं योगा सर बोल रहा हूं. ऊर्जा मैडम ने आप का नंबर दिया था. आप योगा सीखना चाहती हैं?’’‘‘जी हां मैं ने कहा था, ऊर्जा से,’’ रश्मि ने कहा.

‘‘तो कहिए कब से आना है?’’

‘‘किस टाइम आ सकते हैं आप?’’

‘‘कल सुबह 6 बजे आ जाता हूं. आप अपना ऐडै्रस नोट करा दें.’’

रश्मि ने अपना ऐड्रैस नोट कराया. सुबह 5.30 बजे का अलार्म बजा तो रश्मि जाग गई. योगा सर 6 बजे आ जाएंगे यही सोच कर वह आधे घंटे में फ्रैश हो कर तैयार रहना चाहती थी. बच्चे और पति संभव सो रहे थे. उन्हें 8 बजे उठने की आदत थी. रश्मि उठते ही बाथरूम में घुस गई. फ्रैश हो कर योगा की ड्रैस पहनी तब तक 6 बजने जा रहे थे कि अचानक डोरबैल बजी. योगा सर ही हैं यह सोच कर उस ने दौड़ कर दरवाजा खोला. दरवाजा खोला तो सामने खड़े शख्स को देख कर वह स्तब्ध रह गई. उस के सामने सुधीर खड़ा था. वही सुधीर जो उस की यादों में बसा रहता था.

‘‘तुम योगा सर?’’ रश्मि ने पूछा.

‘‘हां.’’

फिर सुधीर ने, ‘‘अंदर आने को नहीं कहोगी?’’ कहा तो रश्मि हड़बड़ा गई.

‘‘हांहां आओ, आओ न प्लीज,’’ उस ने कहा. सुधीर अंदर आया तो रश्मि ने सोफे की तरफ इशारा करते हुए उसे बैठने को कहा. दोनों एकदूसरे के सामने बैठे थे. रश्मि को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या बोले, क्या नहीं. सुधीर कहे या योगा सर. रश्मि सहज नहीं हो पा रही थी. उस के मन में सुधीर को ले कर अनेक सवाल चल रहे थे. कुछ देर में वह सामान्य हो गई, तो सुधीर से पूछ लिया, ‘‘इतने साल कहां रहे?’’

सुधीर चुप रहा तो रश्मि फिर बोली, ‘‘प्लीज सुधीर, मुझे ऐसी सजा मत दो. आखिर हम ने प्यार किया था. मुझे इतना तो हक है जानने का. मुझे बताओ, यहां तक कैसे पहुंचे और अंकलआंटी कहां हैं? तुम कैसे हो?’’ रश्मि के आग्रह पर सुधीर को झुकना पड़ा. उस ने बताया कि तुम से अलग हो कर कुछ टाइम मेरा मानसिक संतुलन बिगड़ा रहा. फिर थोड़ा सुधरा तो शादी की, लेकिन पत्नी ज्यादा दिन साथ नहीं दे पाई. घरबार छोड़ कर चली गई और किसी और केसाथ घर बसा लिया. फिर काफी दिनों के इलाज के बाद ठीक हुआ तो योगा सीखतेसीखते योगा सर बन गया. तब किसी योगाचार्य के माध्यम से दिल्ली आ गया. मम्मीपापा आज भी वहीं हैं उसी शहर में. सुधीर की बातें सुन अंदर तक हिल गई रश्मि. यह जिंदगी का कैसा खेल है. जो उस से बेइंतहां प्यार करता था, वह आज किस हाल में है सोचती रह गई रश्मि. अजब धर्मसंकट था उस के सामने. एक तरफ प्यार दूसरी तरफ घरसंसार. क्या करे? सुधीर को घर आने की अनुमति दे या नहीं? अगर बारबार सुधीर घर आया तो क्या असर पड़ेगा गृहस्थी पर? माना कि किसी को पता नहीं चलेगा कि योगा सर के रूप में सुधीर है, लेकिन कहीं वह खुद कमजोर पड़ गई तो? उस के 2 छोटेछोटे बच्चे भी हैं. गृहस्थी जैसी भी है बिखर जाएगी. उस ने तय कर लिया कि वह सुधीर को योगा सर के रूप में स्वीकार नहीं करेगी. कहीं दूर चले जाने को कह देगी इसी वक्त.

‘‘देखो सुधीर मैं तुम से योगा नहीं सीखना चाहती,’’ रश्मि ने अचानक सामान्य बातचीत का क्रम तोड़ते हुए कहा.

‘‘पर क्यों रश्मि?’’

‘‘हमारे लिए यही ठीक रहेगा सुधीर, प्लीज समझो.’’

‘‘अब तुम शादीशुदा हो. अब वह बचपन वाली बात नहीं है रश्मि. क्या हम अच्छे दोस्त बन कर भी नहीं रह सकते?’’ सुधीर ने लगभग गिड़गिड़ाने के अंदाज में कहा.

‘‘नहीं सुधीर, मैं ऐसा कोई काम नहीं करूंगी, जिस से मेरी गृहस्थी, मेरे बच्चों पर असर पड़े,’’ रश्मि ने कहा. सुधीर ने लाख समझाया पर रश्मि अपने फैसले पर अडिग रही. सुधीर बेचैन हो गया. सालों बाद उस का प्यार उस के सामने था, लेकिन वह उस की बात स्वीकार नहीं कर रहा था. आखिर रश्मि ने सुधीर को विदा कर दिया. साथ ही कहा कि दोबारा संपर्क की कोशिश न करे. सुधीर रश्मि से अलग होते वक्त बहुत तनावग्रस्त था. पर उस दिन के बाद सुधीर ने रश्मि से संपर्क नहीं किया. रश्मि ने तनावमुक्त होने के लिए कई नई फ्रैंड्स बनाईं और उन के साथ बहुत सी गतिविधियों में व्यस्त हो गई. इस से उस का सामाजिक दायरा बहुत बढ़ गया. उस दिन वह बहुत से बाहर के फिर घर के काम निबटा कर बैडरूम में पहुंची तो न्यूज चैनल पर उस ने वह खबर देखी कि सुधीर ने दिल्ली मैट्रो के आगे कूद कर सुसाइड कर लिया था. वह देर तक रोती रही. न्यूज उद्घोषक बता रही थी कि उस की जेब में एक सुसाइड नोट मिला है, जिस में अपनी मौत के लिए उस ने किसी को जिम्मेदार नहीं माना परंतु अपनी एक गुमनाम प्रेमिका के नाम पत्र लिखा है. रश्मि का सिर घूम रहा था. उस की रुलाई फूट पड़ी. तभी संभव ने अचानक कमरे में प्रवेश किया और बोला, ‘‘क्या हुआ रश्मि, क्यों रो रही हो? कोई डरावना सपना देखा क्या?’’ प्यार भरे बोल सुन रश्मि की रुलाई और फूट पड़ी. वह काफी देर तक संभव के कंधे से लग कर रोती रही. उस का प्यार खत्म हो गया था. सिर्फ यादें ही शेष रह गई थीं.

सच्चा रिश्ता: साहिल को कौनसा नया रिश्ता मिला

साहिल आज काफी मसरूफ था. सुबह से उठ कर वह जयपुर जाने की तैयारी में लगा था. उस की अम्मी उस के काम में हाथ बंटा रही थीं और समझा रही थीं, ‘‘बेटे, दूर का मामला है, अपना खयाल रखना और खाना ठीक समय पर खा लिया करना.’’ साहिल अपनी अम्मी की बातें सुन कर मुसकराता और कहता, ‘‘हां अम्मी, मैं अपना पूरा खयाल रखूंगा और खाना भी ठीक समय पर खा लिया करूंगा. वैसे भी अम्मी अब मैं बड़ा हो गया हूं और मुझे अपना खयाल रखना आता है.’’

साहिल को इंटरव्यू देने जयपुर जाना था. उस के दिल में जयपुर घूमने की चाहत थी, इसलिए वह 10-15 दिन जयपुर में रहना चाहता था. सारा सामान पैक कर के साहिल अपनी अम्मी से विदा ले कर चल पड़ा.

अम्मी ने साहिल को ले कर बहुत सारे ख्वाब देखे थे. जब साहिल 8 साल का था, तब उस के अब्बा बब्बन मियां का इंतकाल हो गया था. साहिल की अम्मी पर तो जैसे बिजली गिर गई थी. उन के दिल में जीने की कोई तमन्ना ही नहीं थी, लेकिन साहिल को देख कर वे ऐसा न कर सकीं. अम्मी ने साहिल की अच्छी परवरिश को ही अपना मकसद बना लिया था. इसी वजह से साहिल को कभी अपने अब्बा की कमी महसूस नहीं हुई थी. तभी तो साहिल ने अपनी अम्मी की इच्छाओं को पूरा करने के लिए एमए कर लिया था और अब वह नौकरी के सिलसिले में इंटरव्यू देने जयपुर जा रहा था.

साहिल को विदा कर के उस की अम्मी घर का दरवाजा बंद कर घर के कामों में मसरूफ हो गईं. उधर साहिल भी अपने शहर के बस स्टैंड पर पहुंच गया. जयपुर जाने वाली बस आई, तो साहिल ने बस में चढ़ कर टिकट लिया और एक सीट पर बैठ गया.

साहिल की आंखों से उस का शहर ओझल हो रहा था, पर उस की आंखों में अम्मी का चेहरा रहरह कर सामने

आ रहा था. अम्मी ने साहिल को काफी मेहनत से पढ़ायालिखाया था, इसलिए साहिल ने भी इंटरव्यू के लिए बहुत अच्छी तैयारी की थी. बस के चलतेचलते रात हो गई थी. ज्यादातर सवारियां सो रही थीं. जो मुसाफिर बचे थे, वे ऊंघ रहे थे.

रात के अंधेरे को रोशनी से चीरती हुई बस आगे बढ़ी जा रही थी. एक जगह जंगल में रास्ता बंद था. सड़क पर पत्थर रखे थे. ड्राइवर ने बस रोक दी. तभी 2-3 बार फायरिंग हुई और बस में कुछ लुटेरे घुस आए. इस अचानक हुए हमले से सभी मुसाफिर घबरा गए और जान बचाते हुए अपना सारा पैसा उन्हें देने लगे.

एक लड़की रोरो कर उन से दया की भीख मांगने लगी. वह बारबार कह रही थी, ‘‘मेरे पास थोड़े से रुपयों के अलावा कुछ नहीं है.’’ मगर उन जालिमों पर उस की मासूम आवाज का कुछ असर नहीं हुआ. उन में से एक लुटेरा, जो दूसरे सभी लुटेरों का सरदार लग रहा था, एक लुटेरे से बोला, ‘‘अरे ओ कृष्ण, बहुत बतिया रही है यह लड़की. अरे, इस के पास देने को कुछ नहीं है, तो उठा ले ससुरी को और ले चलो अड्डे पर.’’

इतना सुनते ही एक लुटेरे ने उस लड़की को उठा लिया और जबरदस्ती उसे अपने साथ ले जाने लगा. वह डरी हुई लड़की ‘बचाओबचाओ’ चिल्ला रही थी, पर किसी मुसाफिर में उसे बचाने की हिम्मत न हुई.

साहिल भी चुप बैठा था, पर उस के दिल के अंदर से आवाज आई, ‘साहिल, तुम्हें इस लड़की को उन लुटेरों से छुड़ाना है.’ यही सोच कर साहिल अपनी सीट से उठा और लुटेरों को ललकारते हुए बोला, ‘‘अरे बदमाशो, लड़की को छोड़ दो, वरना अच्छा नहीं होगा.’’

इतना सुनते ही उन में से 2-3 लुटेरे साहिल पर टूट पड़े. वह भी उन से भिड़ गया और लड़की को जैसे ही छुड़ाने लगा, तो दूसरे लुटेरे ने गोली चला दी. गोली साहिल की बाईं टांग में लगी. साहिल की हिम्मत देख कर दूसरे कई मुसाफिर भी लुटेरों को मारने दौड़े. कई लोगों को एकसाथ आता देख लुटेरे भाग खड़े हुए, पर तब तक साहिल की टांग से काफी खून बह चुका था. लिहाजा, वह बेहोश हो गया.

ड्राइवर ने बस तेजी से चला कर जल्दी से साहिल को एक अस्पताल में पहुंचा दिया. सभी मुसाफिर तो साहिल को भरती करा कर चले गए, पर वह लड़की वहीं रुक गई. डाक्टर ने जल्दी ही साहिल की मरहमपट्टी कर दी.

कुछ देर बाद जब साहिल को होश आया, तो सामने वही लड़की खड़ी थी. साहिल को होश में आता देख कर वह लड़की बहुत खुश हुई.

साहिल ने उसे देख राहत की सांस ली कि लड़की बच गई. पर अचानक इंटरव्यू का ध्यान आते ही उस के मुंह से निकला, ‘‘अब मैं जयपुर नहीं पहुंच सकता. मेरे इंटरव्यू का क्या होगा?’’ लड़की उस की बात सुन कर बोली, ‘‘क्या आप जयपुर में इंटरव्यू देने जा रहे थे? मेरी वजह से आप की ये हालत हो गई. मैं आप से माफी चाहती हूं. मुझे माफ कर दीजिए.’’

‘‘अरे नहीं, यह आप क्या कह रही हैं? आप ने मेरी बात का गलत मतलब निकाल लिया. अगर मैं आप को बचाने न आता, तो पता नहीं मैं अपनेआप को माफ कर भी पाता या नहीं. खैर, छोडि़ए यह सब. अच्छा, यह बताइए कि आप यहां क्यों रुक गईं? मुझे लगता है कि सभी मुसाफिर चले गए हैं.’’ लड़की ने कहा, ‘‘जी हां, सभी मुसाफिर रात को ही चले गए थे. आप के पास भी तो किसी को होना चाहिए था. अपनी जान की परवाह किए बिना आप ने मेरी जान बचाई. ऐसे में मेरा फर्ज बनता था कि मैं आप के पास रुकूं. मैं आप की हमेशा एहसानमंद रहूंगी.’’

‘‘यह तो मेरा फर्ज था, जो मैं ने पूरा किया. अच्छा, यह बताइए कि आप कल जयपुर जा रही थीं या कहीं और…?’’

इतना सुनते ही लड़की की आंखों में आंसू आ गए. वह बोली, ‘‘आप ने मेरी जान बचाई है, इसलिए मैं आप से कुछ नहीं छिपाऊंगी. मेरा नाम आरती?है. मेरे पैदा होने के कुछ साल बाद ही पिताजी चल बसे थे. मां ने ही मुझे पाला है. ‘‘मेरे ताऊजी मां को तंग करते थे. हमारे हिस्से की जमीन पर उन्होंने कब्जा कर लिया. उन्होंने मेरी मां से धोखे में कोरे कागज पर अंगूठा लगवा लिया और हमारी जमीन उन के नाम हो गई.

‘‘एक महीने पहले मां भी मुझे छोड़ कर चल बसीं. मेरे ताऊजी मुझे बहुत तंग करते थे. उन के इस रवैए से तंग आ कर मैं भाग निकली और उसी बस में आ कर बैठ गई, जो बस जयपुर जा रही थी. ‘‘मैं ने 12वीं तक की पढ़ाई की है. सोचा था कि कहीं जा कर नौकरी कर लूंगी,’’ यह कह कर आरती चुप हो गई.

साहिल को आरती की कहानी सुन कर अफसोस हुआ. कुछ देर बाद आरती बोली, ‘‘अब आप को होश आ गया है, 2-4 दिन में आप बिलकुल ठीक हो जाएंगे. अच्छा तो अब मैं चलती हूं.’’

साहिल ने कहा, ‘‘पर कहां जाएंगी आप? अभी तो आप ने बताया कि अब आप का न कोई घर है, न ठिकाना. ऐसे में आप अकेली लड़की. बड़े शहर में नौकरी मिलना इतना आसान नहीं होता. ‘‘वैसे, मेरा नाम साहिल है. मजहब से मैं मुसलमान हूं, पर अगर आप हमारे घर मेरी छोटी बहन बन कर रहें, तो मुझे बहुत खुशी होगी.’’

‘‘लेकिन, आप तो मुसलमान हैं?’’ आरती ने कहा. साहिल ने कहा, ‘‘मुसलमान होने के नाते ही मेरा यह फर्ज बनता है कि मैं किसी बेसहारा लड़की की मदद करूं. मुझे हिंदू बहन बनाने में कोई परहेज नहीं, अगर आप तैयार हों, तो…’’

आरती ने साहिल के पैर पकड़ लिए, ‘‘भैया, आप सचमुच महान हैं.’’ ‘‘अरे आरती, यह सब छोड़ो, अब हम अपने घर चलेंगे. अम्मी तो तुम्हें देख कर बहुत खुश होंगी.’’

एक हफ्ते बाद साहिल ठीक हो गया. डाक्टर ने उसे छुट्टी दे दी. साहिल आरती को ले कर अपने घर पहुंचा. दरवाजा खटखटाते हुए उस ने आवाज लगाई, तो उस की अम्मी ने दरवाजा खोला.

साहिल को देख कर वे चौंकीं, ‘‘अरे साहिल, सब खैरियत तो है न? तू इतनी जल्दी कैसे आ गया? तू तो 15 दिन के लिए जयपुर गया था. क्या बात है?’’ ‘‘अरे अम्मी, अंदर तो आने दो.’’

‘‘हांहां, अंदर आ.’’ साहिल जैसे ही लंगड़ाते हुए अंदर आया, तो उस की अम्मी को और धक्का लगा, ‘‘अरे साहिल, तू लंगड़ा क्यों रहा है? जल्दी बता.’’

साहिल ने कहा, ‘‘सब बताता हूं, अम्मी. पहले मैं तुम्हें एक मेहमान से मिलवाता हूं,’’ कह कर साहिल ने आरती को आवाज दी. आरती दबीसहमी सी अंदर आई.

खूबसूरत लड़की को देख कर साहिल की अम्मी का दिल खुश हो गया, पर अगले ही पल अपने को संभालते हुए वे बोलीं, ‘‘साहिल, ये कौन है? कहीं तू ने… ‘‘अरे नहीं, अम्मी. आप गलत समझ रही हैं.’’

अपनी अम्मी से साहिल ने जयपुर सफर की सारी बातें बता दीं. सबकुछ सुन कर साहिल की अम्मी बोलीं, ‘‘बेटा, तू ने यह अच्छा किया. अरे, नौकरी तो फिर कहीं न कहीं मिल ही जाएगी, पर इतनी खूबसूरत बहन तुझे फिर न मिलती. बेटी आरती, आज से यह घर तुम्हारा ही है.’’

इतना सुनते ही आरती साहिल की अम्मी के पैरों में गिर पड़ी. ‘‘अरे बेटी, यह क्या कर रही हो. तुम्हारी जगह मेरे दिल में बन गई. अब तुम मेरी बेटी हो,’’ इतना कह कर अम्मी ने आरती को गले से लगा लिया.

साहिल एक ओर खड़ा मुसकरा रहा था. अब साहिल के घर में बहन की कमी पूरी हो गई थी. आरती को भी अपना घर मिल गया था. उस की आंखों में खुशी के आंसू छलक आए थे.

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डिजाइनिंग के क्षेत्र में क्रिएटिविटी और विश्वसनीयता जरूरी है : रिंकू दत्ता, डिजाइनर

क्रिएटिविटी हर व्यक्ति में कमोवेश होता है, ऐसे में सही समय और पूंजी अगर मिले तो उसे एक कामयाब पड़ाव की ओर पहुंचाना मुश्किल नहीं होता। ऐसे ही कई उतारचढ़ाव के बीच कोलकाता की डिजाइनर रिंकू दत्ता ने अपनी ब्रैंड ‘रिंकू दत्ता’ को आज से कई साल पहले स्थापित किया, जिस में साथ दिया उन के पति कौस्तुभ दत्ता, सास गायत्री दत्ता और मां सुमिता भौमिक ने, जिन की वजह से आज उन के पोशाक देश में ही नहीं विदेशों में भी काफी लोकप्रिय हैं.

डिजाइनर के लिए विश्व का शायद ही कोई ऐसा देश होगा, जहां उन्होंने अपने क्रिएटिव डिजाइन से सब को मोहित न किया हो. उन के पोशाक भारत के अलावा अमेरिका, यूरोप, कोरिया, सिंगापुर, चीन, आस्ट्रेलिया, दुबई आदि सभी जगहों पर पसंद किए जाते हैं.

डिजाइनर रिंकू ऐथनिक और इंडोवैस्टर्न ड्रैसेज के साथसाथ हैंड वूवेन मैटिरियल, हैंड ब्लौक और हैंड ऐंब्रौयडरी के लिए जानी जाती हैं. उन्होंने हमेशा कस्टमाइज्ड डिजाइन को प्रीफर किया है, जिस में ग्राहक के पसंद को स्टाइलिंग के साथ सब से परिचय करवाती हैं. इस में उन की पोशाक को ले कर कमिटमैंट 100 फीसदी रहता है.

मिली प्रेरणा

डिजाइनिंग के क्षेत्र में आने के बारे में पूछने पर वे बताती हैं कि बचपन से ही मुझे अपनी ड्रैसेज को अलगअलग तरीके से पहनना पसंद था। मैं ने खुद के कपड़े हमेशा से ही डिजाइन किए हैं. यह मेरे अंदर बचपन से ही था कि किसी भी अवसर पर घर के सभी परिवारजन की ड्रैसेज की डिजाइन मैं ही कर दिया करती थी, जो सब को अलग और सुंदर लगता था। ऐसे में शादी होने के बाद मेरे पति और सास ने मेरे इस पैशन को आगे बढ़ाने का सुझाव और सहयोग दिया. देश हो या विदेश, मैं जहां किसी भी प्रदर्शनी में इंडोवैस्टर्न और इंडियन आउटफिट को ले कर जाती थी तो लोग उन्हें पसंद करते थे और अपनी चौइस बताते थे. खासकर अमेरिका में मैं ने देखा कि उन्हें औथेंटिक और प्योर फैब्रिक अधिक पसंद है, जिस के लिए उन्हें कीमत देने में कोई समस्या नहीं होती है, ऐसे में मैं ने भारत के प्योर फैब्रिक पर ध्यान देना शुरू किया, जिस में तशर, प्योर सिल्क, खादी सिल्क आदि के बने पोशाक और साड़ियों को लोग अधिक पसंद करने लगे. यहीं से मेरी प्रेरणा जागी.

हुई ब्रैंड की शुरुआत

ब्रैंड की स्थापना डिजाइनर ने आज से 15 साल पहले केवल ₹60 हजार की बैंक लोन से शुरू किया, जिस में उन्होंने एकतिहाई को अपने पास रिजर्व रखा, ताकि किसी प्रकार की नुकसान से उबरा जा सके.

वे कहती हैं कि शादी के बाद एक दिन मेरे व्यवसायी पिता सुकुमल भौमिक मेरे पास कोलकाता आए और सही तरह से व्यवसाय शुरू करने की बात कही, जिस में उन्होंने मुझे घर से बाहर निकल कर व्यवसाय करने की सलाह दी. उस समय अमेरिका में रह रही मेरी ननद दीपाश्री दत्ता ने भी ‘बंगो सम्मेलन’ की प्रदर्शनी में मुझे अपने आउटफिट को शोकेस करने की सलाह दी. मैं वहां गई और ग्राहकों का रैस्पौंस वहां बहुत अच्छा मिला. मेरे सारे प्रोडक्ट वहां सेल हो गए, लेकिन हरकोई प्योर फैब्रिक की सिफारिश करने लगे.

शुरू में मुझे लगता था कि कम दाम होने से लोग अधिक पोशाक खरीद सकेंगे, इसलिए मैं ने सूरत और बंगाल की तांत की साड़ियों को अपने हिसाब से डिजाइन कर सेल के लिए ले गई, लेकिन जब मैं ने कई प्रदर्शनियों में, देश में हो या विदेश, हर स्थान पर ग्राहकों की मांग को देखा तो मुझे आगे बढ़ने में मदद मिली. उन की चौइस को मैं ने सर्वोपरि रखा, जिस से मेरे ग्राहकों की संख्या धीरेधीरे बढ़ती गई.

इस के बाद मैं ने ब्रैंड स्थापना की बात सोच कर बैंक से लोन लेने की योजना बनाई और बैंक के एसिसटैंट जनरल मैनेजर बसु मजुमदार से मिल कर पूरी योजना बताई, तो वे राजी हुए और मुझे ₹60 हजार का लोन मिल गया.

उन्होंने पैसे को खर्च करने के प्लानिंग को भी बताया, ताकि मैं सफलतापूर्वक आगे बढ़ सकूं. मैं चाहती, तो पिता से भी पैसे ले सकती थी, पर मैं ने अपने बल पर अपनी ब्रैंड कोलकाता के एक पौश एरिया में खोली और अपना काम शुरू कर दिया. तब लोगों ने मेरे ब्रैंड को जाना, ग्राहक आने लगे और मेरे काम की सराहना होने लगी, जिस से मेरा व्यवसाय फैलता गया. मेरे आउटफिट शौप्स के अलावा औनलाइन भी मिलते हैं। आज मेरे ग्राहक पूरे विश्व में हैं.

मिला परिवार का सहयोग

डिजाइनर रिंकू आगे कहती हैं कि आज मेरे पिता नहीं रहे, पर उन के मार्गदर्शन ने मुझे बिजनैस वूमन बना दिया. इतना ही नहीं, शादी के बाद जब मेरा बेटा रांकयो दत्ता हुआ तो तब वह बहुत छोटा था. मुझे बाहर प्रदर्शनी के लिए जाना पड़ता था। ऐसे समय मेरी सास और मां बारीबारी से बेटे का खयाल रखती रहीं, जिस से मुझे काम करना आसान हुआ. इस के अलावा मेरी छोटी बहन मधुछंदा दत्ता ने भी हर समय साथ दिया है जिस से मैं कई फैशन शो कर पाई. किसी भी महिला की कामयाबी में उस के परिवार का साथ होना बहुत जरूरी होता है.

पौकेट फ्रैंडली फैशन

डिजाइनर रिंकू दत्ता अपनी डिजाइन में औथैंटिसिटी, क्वालिटी मैनटैन और पौकेट फ्रैंडली आदि बातों का खास ध्यान रखती हैं, ताकि आम इंसान भी उन्हें पहन सकें. इस में उन का प्रौफिट मार्जिन कम होता है. उन के काम की विश्वसनीयता इतनी अधिक है कि विदेशों में रहने वाले ग्राहक आउटफिट के पैसे पहले दे कर आउटफिट को बुक करते हैं.

कोविड से पङा असर

कोविड की वजह से उन को काफी समस्या का सामना करना पड़ा, क्योंकि तब एक आतंक का माहौल पूरे विश्व में फैल चुका था और सभी डिजाइनर्स को काफी नुकसान उठाना पड़ा. उस दौरान भी उन्होंने अपने सारे कर्मचारियों का ध्यान रखा और उन्हें पूरा भुगतान भी किया.

कस्टमाइज्ड होते हैं डिजाइन

डिजाइनर रिंकू कहती हैं कि मैं ने हर ग्राहक को यह आजादी दी है कि वह अपनी पोशाक और उस के रंग खुद चुनें. उन के चुनने के बाद मैं उस पोशाक का सही स्टाइल बता देती हूं, इस से ग्राहकों के मनमुताबिक कपड़े तैयार होते हैं और उन्हें खुशी भी मिलती है. इस के अलावा मैं कस्ट्यूम ज्वैलरी बैग्स भी रखती हूं,
जिसे पोशाक के साथ पहनने पर कोई भी महिला आकर्षक लगती है.

मार्केटिंग था मुश्किल

शुरूशुरू में पोशाकों की मार्केटिंग करना आसान नहीं था. इस के लिए डिजाइनर ने सोशल मीडिया, जिस में व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम और फेसबुक का सहारा लिया, इस के अलावा प्रदर्शनी और माउथ टू माउथ से लोगों में अपनी पोशाकों को प्रचलित किया. मेरे लिए अमेरिका का ‘बंगों सम्मेलन’ काफी मददगार साबित हुआ, क्योंकि वहां पर बंगाली ग्राहक और विदेशी आते रहे और उन्हें मेरा काम पसंद आने लगा था, जिस से मुझे अलगअलग देशों से आमंत्रण मिलने लगे और मेरा व्यवसाय फैलता गया. इतना ही नहीं इंडिया में मेरी ननद उर्जस्वती चैटर्जी ने भी बहुत सहयोग दिया है.

सही टीम है जरूरी

डिजाइनर दत्ता के पास 15 लोगों की एक टीम है, जिस में कारीगर से ले कर फोटोग्राफर सभी हैं, जो हमेशा उन के हर काम में सहयोग देते हैं. वे कहती हैं कि इस में अधिकतर कारीगर शांतिनिकेतन, रघुनाथपुर, मुर्शिदाबाद, वाराणसी, भागलपुर आदि स्थानों से हैं, जो मेरे साथ सालों से काम कर रहे हैं. ये लोग अधिकतर मैटिरियल देते हैं, जिस के बाद मैं उस की डिजाइनिंग करती हूं.

मैं ने 3 महीने में राजस्थान की हैंड वूवन अजरख फैब्रिक पर, अलगअलग हैंड ऐंब्रौयडरी वाली साड़ी बनाई थी, जिसे सिंगर बाबुल सुप्रियो की बहन ने खरीदा था. यह मेरी सब से अधिक समय लेने वाली खूबसूरत साड़ी थी.

खुद को रखती हैं अपडेट

डिजाइनर रिंकू दत्ता खुद को अपडेट करने के लिए बहुत ट्रैवल करती हैं और वहां की म्यूजियम में जा कर वहां की संस्कृति और कला की बारीकी से जांच करती हैं। इस से उन्हे मार्केट ट्रैंड और कई आइडियाज आ जाते हैं, जिस का प्रयोग वह अपने पोशाकों में करती हैं.

स्टार्टअप शुरू करने से पहले जाने कुछ जरूरी बातें :

हमेशा नया और यूनिक विचार होना चाहिए, जो बाजार में मौजूद ट्रैंड से अलग हो.

बाजार अनुसंधान

अपने उत्पाद या सेवा के लिए बाजार में मौजूद संभावनाओं और प्रतिस्पर्धा का अध्ययन करना आवश्यक होता है, ताकि आप अपने प्रोडक्ट को ट्रैंड के अनुसार शैप दे सकें.

सही बिजनेस प्लानिंग

कंपनी की स्ट्रक्चर, लक्ष्य, मिशन, मूल्यों और उद्देश्यों को रेखांकित करने वाली व्यवसाय योजना बनाएं. जरूरत हो तो उसे जुड़ी स्किल ले लें.

फंडिंग पर दें ध्यान

पैसा बचत, दोस्तों, परिवार, निवेशकों या ऋण से जुटाएं और पूरे पैसे एक बार में खर्च न करें, जरूरत के अनुसार सही तरीके से पैसों की प्लानिंग करें और कुछ सेविंग में अवश्य रखें.

कानूनी मामलों का ध्यान रखना

अपने व्यवसाय को पंजीकृत करें और सभी जरूरी लाइसेंस या परमिट हासिल कर लें, ताकि बाद में किसी तरह की समस्या न हो.

कर्मचारियों का चयन

अपनी कमजोरियों को पहचानें और उन्हें भरने के लिए सही लोगों को नियुक्त करें. टीम के सदस्यों से आप का बरताव मधुर और प्रभावशाली होना आवश्यक है.

खुद पर भरोसा और धैर्य रखना

अपने बिजनैस आइडिया पर पूरा भरोसा होना चाहिए और इसे आगे बढ़ाने के लिए लक्ष्य के साथ मेहनती होना जरूरी है.

इस प्रकार किसी भी व्यवसाय को शुरू करने से पहले मार्केट, रौ मैटीरियल, फाइनैंस, लेबर आदि की सही जानकारी पहले से जुटा लेना चाहिए, ताकि आप का पैशन मिशन पर खरा उतरे.

55वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (IFFI) में Radhika Apte की फिल्म ‘साली मोहब्बत’ का होगा प्रीमियर

फिल्म ‘साली मोहब्बत’ मनीष मल्होत्रा की बतौर निर्माता और टिस्का चोपड़ा की बतौर निर्देशक पहली फिल्म है. जियो स्टूडियोज और मनीष मल्होत्रा के स्टेज 5 प्रोडक्शन की फिल्म ‘साली मोहब्बत’ एक रोमांचक सस्पेंस ड्रामा है, जिस का वर्ल्ड प्रीमियर 22 नवंबर, 2024 को गोवा में 55वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (IFFI) में होगा.

यह रोमांचक थ्रिलर न केवल अभिनेत्री टिस्का चोपड़ा के निर्देशन की पहली फिल्म है, बल्कि प्रसिद्ध फैशन डिजाइनर और स्टाइलिस्ट मनीष मल्होत्रा की भी निर्माता के तौर पर पहली फिल्म है. इस फिल्म में राधिका आपटे, (Radhika Apte) दिव्येंदु, अंशुमन पुष्कर, सौरसेनी मैत्रा, शरत सक्सेना और अनुराग कश्यप जैसे सितारे हैं, जो एक गहन, मनोरंजक कहानी में शानदार अदाकारी के साथ दर्शकों को देखने को मिलेगी।

बङी खासियतों में से एक

IFFI में फिल्म ‘साली मोहब्बत’ का प्रीमियर इस फैस्टिवल की सब से बड़ी खासियतों में से एक होगा. निर्माता ज्योति देशपांडे और मनीष मल्होत्रा, निर्देशक टिस्का चोपड़ा, मुख्य अभिनेता दिव्येंदु और अभिनेता अंशुमन पुष्कर रैड कारपेट पर अपनी प्रस्तुति देंगे, दर्शकों से मिलेंगे और इस अनोखी सस्पेंस ड्रामा के बारे में अपने विचार साझा करेंगे।

फिल्म से उम्मीद

निर्माता मनीष मल्होत्रा ने फिल्म ‘साली मोहब्बत’ को अपने पहले प्रोजैक्ट के रूप में चुनने के बारे में बाताया, “स्टेज5 प्रोडक्शन के साथ मेरा उद्देश्य ऐसे सिनेमाई अनुभव बनाना है जो मनोरंजक और विचारोत्तेजक हों. जिस क्षण मैं ने ‘साली मोहब्बत’ की स्क्रिप्ट पढ़ी, मैं इस की गहन और रोमांचकारी कहानी की ओर आकर्षित हो गया. स्टेज5 प्रोडक्शन में हम दिल से जनून और कला के प्रति गहरे प्यार के साथ सहयोग करते हैं, निर्देशकों के साथ मिल कर काम करते हैं ताकि उन की नजरों को कलात्मकता और देखभाल के साथ स्क्रीन पर उतारा जा सके.

“इस कहानी को इतनी जटिलता के साथ गढ़ने के लिए टिस्का चोपड़ा की प्रतिबद्धता ने इसे और भी आकर्षक बना दिया. मैं जियो स्टूडियोज और ज्योति देशपांडे का उन के अटूट समर्थन और इस विजन में विश्वास के लिए बहुत आभारी हूं. IFFI में ‘साली मोहब्बत’ को प्रस्तुत करना सम्मान की बात है और मैं दर्शकों को इस रोमांचक यात्रा का अनुभव दिलाने के लिए उत्सुक हूं।”

रोमांचक और थ्रिलर

रिलायंस इंडस्ट्रीज की मीडिया और कंटैंट बिजनैस की अध्यक्ष ज्योति देशपांडे ने इस खबर पर अपनी खुशी साझा करते हुए कहा, “हम मनीष मल्होत्रा के साथ सहयोग कर के रोमांचित हैं, जो फैशन की दुनिया से अपनी रचनात्मक प्रतिभा को फिल्म में ला रहे हैं. एक दूरदर्शी के लिए यह एक स्वाभाविक प्रगति है जिस ने हमेशा प्रभावशाली बयान दिए हैं. ‘साली मोहब्बत’ के साथ, मनीष अपनी रचनात्मकता की विरासत को आगे बढ़ाते हैं, अब ऐसी कहानियां गढ़ते हैं जो उन के डिजाइन की तरह ही आकर्षक होती हैं.

“जियो स्टूडियोज में हम सम्मोहक कहानियों को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं और ‘साली मोहब्बत’ एक रोमांचक और शानदार कहानी है, जो भारत से अनूठी कहानियों को पेश करने के हमारे मिशन के साथ जुड़ती है. हमें IFFI में इस फिल्म को पेश करने और सार्थक कहानी कहने के प्रति अपने समर्पण को मजबूत करने पर गर्व है.”

बेवफाई, धोखा और हत्या की कहानी

निर्देशक टिस्का चोपड़ा IFFI में अपने निर्देशन की पहली फिल्म के प्रीमियर को ले कर उतनी ही रोमांचित हैं, उन्होंने अपने सहयोगियों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए बताया कि फिल्म ‘साली मोहब्बत’ मेरे दिल के करीब की कहानी है और मैं मनीष मल्होत्रा और जियो स्टूडियोज की बेहद आभारी हूं कि उन्होंने मेरे विजन पर भरोसा किया और एक निर्देशक के रूप में मेरी यात्रा का समर्थन किया.

“मुझे उम्मीद है कि दर्शक इस की कच्ची भावना और रहस्य से जुड़ेंगे और मैं इसे IFFI में प्रस्तुत करने के लिए इस से अधिक उत्साहित नहीं हो सकती, एक ऐसा उत्सव जो सिनेमा में विविध और साहसी आवाजों का जश्न मनाता है. ‘साली मोहब्बत’ एक साधारण गृहिणी की कहानी है, जिस के धागे बेवफाई, धोखा और हत्या की कहानी बुनती है.

“जियो स्टूडियोज और स्टेज5 प्रोडक्शन प्रस्तुत फिल्म ‘साली मोहब्बत’ का निर्माण ज्योति देशपांडे, दिनेश मल्होत्रा और मनीष मल्होत्रा ने किया है और इस का निर्देशन टिस्का चोपड़ा ने किया है.

Sohail Khan की ऐक्स वाइफ सीमा सजदेह ने बेटे को बताई अपनी अफेयर की सच्चाई

सीमा और सोहेल खान (Sohail Khan) की शादी 1998 में हुई थी. कई साल साथ रहने के बाद 24 साल बाद सोहेल और सीमा ने सोहेल से आपसी झगड़ों के चलते तलाक ले लिया है. तलाक के बावजूद सीमा अपने दोनों बच्चों योहान और निर्वान के प्रति पूरी तरह सचेत है. हाल ही में सीमा सजदेह शो फेबुलस लाइव्स वर्सेज बौलीवुड वाइब्स शो में नजर आई जो बौलीवुड की हीरोज की पत्नी पर केंद्रित है.

इस शो में सीमा ने अपने ऐक्स मंगेतर विक्रम के संग रिलेशन में होने की बात कही और साथ ही यह भी कहा की कि वह अपने 13 साल के बेटे से सब कुछ शेयर करती हैं. विक्रम से अफेयर की बात भी उन्होंने अपने बच्चो से नहीं छिपाई है. सीमा के अनुसार वह अपने बेटों से कोई बात नहीं छुपाती. क्योंकि उनके दोनों बेटे, बेटे कम दोस्त ज्यादा है वह अपने बेटों से सब शेयर करती हैं ताकि बाद में ऐसा ना हो कि बेटों को लगे, मां झूठ बोल रही है. सीमा सजदेह के अनुसार वह कोई ऐसा काम नहीं करना चाहती जिसके लिए उनको अपने बेटों के सामने शर्मिंदा होना पड़े.

‘साबरमती रिपोर्ट’ की रिलीज से पहले Vikrant Massey को मिली जान से मारने की धमकी, जानें क्या है पूरा मामला

आज के समय में सच बोलना या सच दिखाना सबसे मुश्किल काम है. क्योंकि कोई सच सुनना नहीं चाहता, और अगर सच दिखाने की कोशिश की जाए तो उसकी जान के लाले पड़ जाते हैं. ऐसा ही कुछ हाल 12 वीं फेल से प्रसिद्ध एक्टर विक्रांत मैसी (Vikrant Massey) का है. बोल्ड और ब्यूटीफुल निर्मात्री एकता कपूर जो किसी के बाप से नहीं डरती की जल्द ही 15 नवंबर को रिलीज होने वाली फिल्म ‘साबरमती रिपोर्ट’ जो एक सच्ची घटना पर आधारित है रिलीज होने जा रही है. यह फिल्म उन दिनों की है जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे.

फिल्म साबरमती ट्रेन के ऊपर आधारित है जिसको लेकर कहा जाता है कि किन्हीं कारणों से उस ट्रेन को जलाया गया था. उस समय की मीडिया ने इस घटना को दर्शकों को दूसरे तरीके से दिखाया जिसमें ट्रेन को जलाया नहीं बदली बल्कि जल गई है ऐसा दर्शाया गया. लेकिन 22 साल बाद एकता कपूर ने इस विषय को फिर से उठाया अपनी फिल्म के जरिए सच्चाई दिखाने की कोशिश की. क्योंकि फिल्म मौजूदा राजनीतिक पार्टी के खिलाफ है और इस फिल्म में मीडिया को गलत ठहराया गया है. इसलिए विक्रांत मैसी जो फिल्म के हीरो हैं उनको लगातार जान से मारने की धमकी मिल रही है.

विक्रांत मैसी के अनुसार 27 फरवरी 2002 को साबरमती ट्रेन में उस दौरान जो हुआ हमने वही फिल्म में दिखाया है. मैं ऐक्टर हूं, मैंने अपना काम किया, सच है या झूठ यह जब आप फिल्म देखेंगे तो आपको पता चलेगा. हम कलाकार हैं हम कहानी बोलते हैं , लोग क्या सोचते हैं क्या बोलते हैं, इससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता. यह फिल्म सच्ची घटना पर आधारित है इस फिल्म में हमने वही दिखाया है जो उस दौरान हुआ था.

लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहलाने वाली मीडिया ने उस दौरान अपना काम ईमानदारी से नहीं किया. हमने फिल्म में लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहलाने वाली मीडिया का उस दौरान क्या योगदान था, क्या पक्ष था, उनकी क्या प्रतिक्रिया थी, उसको हमने फिल्म में दर्शाया है. अगर आप औनलाइन सर्च करेंगे तो इस विषय पर बहुत सारी डौक्यूमैंट्री बनी है.

लेकिन पिछले 22 सालों में किसी ने यह कोशिश नहीं की ,कि इस विषय पर फिल्म बनाना जरूरी है. हमने जो फिल्म बनाई तो मुझे और मेरी टीम को लगातार धमकी भरे फोन आ रहे हैं. जो फिल्म की टीम और हमारी टीम हैंडल कर रही है. विरोधियों ने मेरे 9 महीने के बच्चे को भी नहीं छोड़ा उसे लेकर भी मुझे धमकी भरे फोन आ रहे हैं.

जसलीन रायल का न्यू सांग “साहिबा” का टीजर हुआ रिलीज, विजय देवरकोंडा और Radhika Madan की दिखी शानदार केमिस्ट्री

संगीतकार और गायक जसलीन रायल के बहुप्रतीक्षित म्यूजिक वीडियो “साहिबा” का टीजर रिलीज हो गया है, और यह एक ऐसी विजुअल और औडिटरी ट्रीट है जो पहले कभी नहीं देखी गई. इस म्यूजिक वीडियो में साउथ के सुपरस्टार विजय देवरकोंडा और बेहतरीन ऐक्ट्रैस राधिका मदान (Radhika Madan) की जोड़ी दिखाई दे रही है. यह पहला मौका है जब दोनों स्टार्स एक साथ स्क्रीन शेयर करेंगे, जो आपको 1870 के जादुई युग में ले जाएगी.

अनोखा तालमेल

इस गीत को सुधांशु सारिया ने लिखा और निर्देशित किया है और जसलीन रायल ने इसे प्रोड्यूस किया है.”साहिबा” एक भव्य निर्माण है जो नौस्टेल्जिया और रोमांस की भावना से भरा हुआ है. 1870 के जीवंत समय पर आधारित यह म्यूजिक वीडियो कहानी, संगीत और सिनेमैटोग्राफी का एक अनोखा तालमेल है.

शानदार केमिस्ट्री की झलक

टीजर में विजय देवरकोंडा और राधिका मदान की शानदार केमिस्ट्री की झलक देखने को मिलेगी, जो अपने जबरदस्त परफौर्मेंस से उस दौर को जीवंत बना रहे हैं.उनकी औनस्क्रीन मौजूदगी और रोमांस दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देगा.टीजर में दुलकर सलमान और जसलीन रायल भी नजर आते हैं, जिन्होंने पहले ग्लोबल नंबर 1 हिट सौन्ग “हीरिए” पर साथ काम किया था.

संगीत का शानदार अनुभव

इस म्यूजिक वीडियो में स्टेबिन बेन ने विजय देवरकोंडा के लिए अपनी मधुर आवाज दी है, जिससे इस संगीत का अनुभव और भी शानदार हो गया है. साहिबा” एक टाइमलेस प्रेम गीत होने का वादा करता है और इसे साल का सबसे हिट गाना बनने की उम्मीद है.जो दुनिया भर के फैंस के दिलों में गूंजेगी.

महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट

“साहिबा” जसलीन रौयल का अब तक का सबसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है, जो उन्हें एक कंपोजर, सिंगर और अब प्रोड्यूसर के रूप में उनकी बहुमुखी प्रतिभा को दर्शाता है.इस गाने की मधुरता और भावपूर्ण बोल हर पीढ़ी के संगीत प्रेमियों के दिलों में बस जाएंगे.जसलीन रौयल के इस म्यूजिकल प्रोजेक्ट में बेहतरीन कास्ट और अभूतपूर्व आर्टिस्ट्री और प्रोडक्शन को दर्शाया गया है, जो म्यूजिक वीडियो की दुनिया में एक नया मुकाम तय करने जा रहा है.

हाल ही में इसका पोस्टर भी रिलीज हुआ था.पोस्टर रिलीज के बाद अब साहिबा का टीजर रिलीज, जिसे आप लाइव भी देख सकते है.इस का प्रीमियर 15 नवंबर को होने वाला है.

Anupama की रियल लाइफ में बढ़ी मुश्किलें, सौतेली बेटी को भेजा लीगल नोटिस और 50 करोड़ रुपए का मुआवजा

अनुपमा (Anupama) फेम ऐक्ट्रेस रुपाली गांगुली (Rupali Ganguly) अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर सुर्खियों में छाई हुईं हैं. दरअसल कुछ दिनों पहले ही रुपाली गांगुली की सौतेली बेटी बेटी ईशा वर्मा ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट कर के उन पर घर तोड़ने का आरोप लगाए थे. इसके अलावा उन्होंने कई आरोप लगाए थे. तो अनुपमा के रियल लाइफ हसबैंड अश्विन वर्मा  ने एक नोट शेयर कर कहा था  कि अपने मातापिता के रिश्ते के टूटने से वह दुखी हैं क्योंकि तलाक एक कठिन अनुभव है, जो उस शादी के बाद बच्चों को बहुत प्रभावित करता है और नुकसान पहुंचा सकता है.

वहीं अब रुपाली गांगुली ने अपनी सौतेली बेटी को कानूनी नोटिस भेजा है. ऐक्ट्रैस ने करारा जवाब देते हुए अपनी सौतेली बेटी को उनके चरित्र और निजी जीवन को ‘बदनाम’ करने के लिए ये नोटिस भेजी है.

अनुपमा ने अपनी सौतली बेटी को मानहानी का भेजा नोटिस

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक ये नोटिस रुपाली गांगुली की वकील और बिग बौस 16 फेम सना रईस खान ने भेजा है. रिपोर्ट में बताया गया है कि रुपाली गांगुली की वकील सना रईस खान ने बताया, “हमने उनकी सौतेली बेटी को उसके झूठे और नुकसान पहुंचाने वाले बयानों के जवाब में मानहानि का नोटिस जारी किया है क्योंकि रूपाली पब्लिसिटी के लिए मानहानिकारक रणनीति के इस्तेमाल के खिलाफ दृढ़ता से खड़ी है और उन्होंने अपनी सुरक्षा के लिए ये कानूनी कदम उठाया है.

अनुपमा की पर्सनल और प्रोफेशनल इमेज हुई खराब

इन बेसलेस आरोपों का उद्देश्य क्लियरी रुपाली गांगुली की रेप्युटेशन को नुकसान पहुंचाना और उनकी सार्वजनिक प्रतिष्ठा का फायदा उठाना था. इस तरह की हरकतों से न केवल उन्हें भावनात्मक परेशानी हुई है, बल्कि उनकी पर्सनल और प्रोफैशनल इमेज भी गलत तरीके से खराब हुई है.”

एचटी सिटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक रूपाली गांगुली की सौतेली बेटी ईशा को भेजे गए मानहानि के नोटिस में लिखा गया है,“हमारे क्लाइंट का कहना है कि वह ट्विटर (अब एक्स), इंस्टाग्राम और फेसबुक सहित कई सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर आपके द्वारा पब्लिश किए गए पोस्ट और कमेंट्स को देखकर हैरान थीं. हमारे मुवक्किल का कहना है कि नोटिस जारी करने के लिए सही फैक्ट्स रखना जरूरी है”

इस नोटिस में ये भी लिखा गया है कि “हमारे मुवक्किल का दावा है कि आपके द्वारा उनके खिलाफ पब्लिकली अपमानजनक शब्द और अपमानजनक भाषा इस्तेमाल की गई है. इससे उनकी उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा है, उनकी गरिमा का उल्लंघन किया है और उनके करियर पर गलत असर भी पड़ा है, जिसकी वजह से उन्हें काफी नुकसान का सामना करना पड़ा है.

इसके अलावा इस मानहानी की नोटिस में 50 करोड़ रुपये के मुआवजे की भी मांग की गई है. आपको ये भी बता दें कि ईशा से तुरंत बिना शर्त सार्वजनिक माफी मांगने को भी कहा है, ऐसा न करने पर गांगुली ने कानूनी कदम उठाने की धमकी दी है.

क्या है पूरा मामला?

यह मामला एक रेडिट पोस्ट वायरल होने की वजह से शुरू हुआ. एक यूजर ने  ईशा द्वारा की गई एक पुरानी फेसबुक टिप्पणी के स्निपेट शेयर किए. पोस्ट में ईशा ने रुपाली गांगुली पर अपने पिता अश्विन के साथ एक्सट्रा मैरिटल का आरोप लगाया.  यह पोस्ट तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल होने लगी. हालांकि अश्विन ने एक्स पर एक बयान जारी कर इस मामले को शांत कराने की कोशिश की थी.

चक्रव्यूह प्रेम का : क्या मनोज कुमार अपनी बेटी की लव मैरिज से खुश थे?

‘‘भैया सादर प्रणाम, तुम कैसे हो?’’ लखन ने दिल्ली से अपने बड़े भाई राम को फोन कर उस का हालचाल जानना चाहा.

‘‘प्रणाम भाई प्रणाम, यहां सभी कुशल हैं. अपना सुनाओ?’’ राम ने अपने पैतृक शहर छपरा से उत्तर दिया. वह जयपुर में नौकरी करता था. वहां से अपने घर मतापिता से मिलने आया हुआ था.

‘‘मैं भी ठीक हूं भैया. लेकिन दूर संचार के इस युग में कोई मोबाइल फोन रिसीव नहीं करे, यह कितनी अनहोनी बात है, तुम उन्हें क्यों नहीं समझते हो? मैं चाह कर भी उन से अपने मन की बात नहीं कह पाता, यह क्या गंवारपन और मजाक है,’’ मन ही मन खीझते हुए लखन ने राम से शिकायत की.

‘‘तुम किस की बात कर रहे हो लखन, मुझे तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है?’’ राम ने उत्सुकता जताते हुए पूछा.

‘‘तुम्हें पता नहीं है कि कौन मोबाइल सैट का उपयोग नहीं करता है? क्यों जानते हुए अनजान बनते हो भैया?’’ लखन ने नाराजगी जताते हुए कहा.

‘‘सचमुच मुझे याद नहीं आ रहा है. तू पहेलियां नहीं बुझ मेरे भाई, जो भी कहना है साफसाफ कहो,’’ इस बार राम ने थोड़ी ऊंची आवाज में कहा.

‘‘खाक साफसाफ कहूं…’’ उत्तेजित हो कर लखन ने जवाब दिया, ‘‘तुम्हीं ने मेरी कौल मातापिता को उठाने से मना कर दिया है इसलिए मैं परेशान हूं. घर में 2-2 स्मार्टफोन हैं. रिंग बजती रहती है लेकिन कोई रिसीव तक नहीं करता है, जबकि घर में 2-2 नौकरानियां भी हैं. मेरे साथ अनाथों जैसा बरताव क्या शोभा देता है?’’

‘‘बकबास बंद करो… फुजूल की बातें सुनने की मुझे आदत नहीं है… ऐसे बोल रहे हो जैसे वे मेरे मातापिता नहीं कोई नौकर हों… हां, नौकर को मना किया जा सकता है लेकिन देवतुल्य मातापिता को नहीं… वे तो अपनी मरजी के मालिक हैं… किस से बातें करनी हैं किस से नहीं वही जानें. अवश्य तुम उन के साथ कोई बचपना हरकत की होगी… इसलिए वे तुम से नाराज होंगे…’’ इतनी फटकार लगा कर राम ने फोन काट दिया.

फोन कट जाने से लखन काफी नाराज हुआ. वह सोचने लगा कि नौकरी से अच्छा तो घर पर बैठना ही था. नाहक घर छोड़ कर दिल्ली में ?ाक मार रहा हूं. इसी तरह 1 सप्ताह बीत गया. एक दिन लखन का मन नहीं माना, उस ने फिर राम को फोन किया, ‘‘मम्मीपापा कैसे हैं भैया? उन की चिंता लगी रहती है. उन की सेहत ठीक तो है न? उन से जरा बात करा दो न,’’ लखन ने सहजता के साथ अपने मन की बात रखी.

जवाब में तुनकमिजाज राम ने उत्तर दिया, ‘‘वे तो ठीक हैं पर तुम्हें किस बात की चिंता लगी रहती है, मु?ो बताओ तो सही? तूने रोजरोज यह क्या तमाशा लगा रखा है. कभी मम्मी से बात करा दो तो कभी पिताजी से. अब तू कोई दूध पीता बच्चा तो है नहीं. तेरे पास सब्र नाम की कोई चीज है कि नहीं? तू रोज फोन पर मुझे डिस्टर्ब न किया कर.’’

‘‘मम्मीपापा का हालचाल पूछना डिस्टर्ब करना है? क्या मैं डिस्टर्ब करता हूं? तो तुम ही बताओ उन से कैसे बात करूं. भैया तुम तो किसी विक्षिप्त की तरह बातें कर रहे हो, जैसे मैं छोटा भाई नहीं कसाई हूं.’’

‘‘हां, बिलकुल कसाई हो, तभी तो किसी निर्दयी की तरह व्यवहार करते हो. मुझे विक्षिप्त बोला. पागल कहा… बोलने की तमीज है कि नहीं? जो मन में आया बके जा रहे हो. मांबाप से उतना ही प्यार है तो सादगी से बात करो.’’

‘‘सौरी भैया, आई एम वैरी सारी.’’

‘‘ओके, लो पहले मां से बात करो,’’ कह कर राम ने अपने फोन का विजुअल वीडियो औन कर दिया, जिस के अंदर अपनी मां का मुसकराता हुआ चेहरा देख कर लखन आह्लादित हो गया और पूछा, ‘‘कैसी हो मां? तेरी बहुत याद आती है.’’

‘‘मैं तो ठीक हूं लखन बेटा लेकिन तू कितना दुबलापतला हो गया है. समय पर खाना नहीं खाता है क्या?’’

‘‘खाना खाता हूं मां, मगर तेरे हाथ का खाना कहां मिलता. आप दोनों के साथ रहने के लिए मम्मीपापा के नाम से दिल्ली में एक फ्लैट खरीद लिया है. अब आप लोगों को यहीं रहना होगा.’’

‘‘अरे बेटा फ्लैट क्यों खरीद लिया, यहीं मजे में दिन कट रहे हैं. लो थोड़ा अपने पिताजी से बात कर लो,’’ पार्वती ने मोबाइल अपने पति महादेव के हाथों में थमा दिया.

‘‘हैलो लखन बेटा, मांबेटे की बातें ध्यान से सुन रहा था. तुम हमें दिल्ली में रखना चाहते हो और राम हमें जयपुर में. दोनों के जज्बात और प्यार की कद्र करता हूं बेटा पर तुम्हारी मां और मैं यहीं ठीक हूं. तुम लोग खुश रहो, यही हमारी दिली तमन्ना है,’’ महादेव ने हर्षित मुद्रा में कहा.

‘‘मगर पिताजी आप के आशीर्वाद से आज मैं अपने पैरों पर खड़ा हूं. मातापिता के प्रति मेरा भी कुछ कर्तव्य और अधिकार है, जिसे निभाना चाहता हूं. आप मेरी इच्छाओं का दमन नहीं कीजिए,’’ लखन ने व्यग्र होते हुए विनती की.

‘‘लखन बेटा, जब ऐसी बात है तो कुछ दिनों के लिए हम अवश्य तुम्हारे पास रहेंगे. अच्छा ठीक है, फिर बातें होंगी.’’

राम ने मोबाइल वापस लेने के बाद डिस्कनैक्ट कर दिया.

राम और लखन दोनों भाई किसान महादेव और पार्वती के पुत्र थे. उन के दोनों लाड़ले बचपन से ही बड़े नटखट और शरारती थे. वे बातबात पर लड़ते और झगड़ते रहते थे. उन की शरारतों की वजह से मातापिता को पड़ोसियों के उलाहने सुनने पड़ते थे.

खेलखेल में राम और लखन ने अपने शहर के ही हाई स्कूल से मैट्रिक व इंटरमीडिएट की शिक्षा प्राप्त की. उस के बाद पटना विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर किया. दोनों भाइयों ने दिल्ली के एक भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान से एमबीए किया. प्रौद्योगिकी विज्ञान में एमबीए करने के बाद दोनों भाई नौकरी की तलाश में जुट गए.

इधर बड़े भाई राम ने सीईओ बनने के लिए अकाउंटिंग मैंनेजमैंट में डिगरी प्राप्त की. उस के बाद उसे जयपुर में अमेरिकी कंपनी में सीईओ की नौकरी मिल गई. उस का सालाना पैकेज 40 लाख रुपए था.

वहीं लखन की नौकरी दिल्ली के एक बैंक में पर्सनल औफिसर के रूप में लग गई. वह बैंक की ह्यूमन रिसोर्स एक्टिविटीज को संभालने लगा. दोनों भाइयों की नौकरी लग जाने के बाद से उन के घर में खुशियों का माहौल था. उन की माता पार्वती और पिता महादेव बेहद प्रसन्न थे. उन के मन की मुरादें पूरी हो गई थीं.

महादेव की अब एक ही इच्छा शेष थी कि दोनों बेटों का विवाह किसी अच्छे घराने की शिक्षित, सुंदर और सुशील लड़की से हो जाए ताकि बहुओं के आ जाने से उन के बेटों का दांपत्य जीवन सुखमय हो सके. अब उन के विवाह के लिए रिश्ते आने लगे थे.

एक दिन मांझ के विधायक मनोज कुमार अपनी बेटी का रिश्ता ले कर महादेव के घर पहुंचे. महादेव और पार्वती ने उन के स्वागतसत्कार में कोई कसर नहीं छोड़ी. इसी बीच विधायक ने राम के साथ अपनी बेटी के शादी का प्रस्ताव रखा.

महादेव कुछ जवाब दे पाते उस के पहले ही पार्वती ने विधायक से पूछा, ‘‘विधायकजी आप की सुपुत्री क्या करती है?’’

‘‘मेरे बेटी का नाम सत्या है. उस ने कंप्यूटर साइंस में एमबीए किया है. फिलहाल वह जयपुर में एक विदेशी कंपनी में काम करती है. वह देखने में सुंदर और होनहार लड़की है.’’

‘‘अति उत्तम, उस की मां को यहां क्यों नहीं लाए?’’ पार्वती ने मुसकराते हुए पूछा.

‘‘सत्या की मां इस दुनिया में नहीं है. वह सत्या को बचपन में ही छोड़ कर चल बसी थी. सत्या का लालनपालन मैं ने ही किया है,’’ विधायक ने दुखी मन से कहा.

‘‘उफ, कुदरत की जो मरजी. उस के आगे तो सब बौने हैं. बहरहाल आप लोग बात करें. जलपान के बाद अभी तक पान, सुपारी, सौंप वगैरह नहीं आया, देखती हूं क्या बात है,’’ कह पार्वती घर के अंदर चली गई.

‘‘हां, महादेव बाबू. अपनी बेटी की शादी राम से करने का प्रस्ताव लाया हूं. क्या हमारे यहां रिश्ता जोड़ेंगे?’’ विधायक मनोज कुमार ने आग्रह किया.

‘‘शादीविवाह तो विधाता की एक रचना है. बिना उस की मरजी के हम रिश्ता जोड़ने वाले होते कौन हैं? इस मामले में राम की पसंद ही सर्वोपरि होगी. हम ने पढ़ालिखा कर इतना योग्य बना दिया है कि वह अपनी जिंदगी के बारे में स्वयं निर्णय ले सके. अपनी जीवनसंगिनी खुद चुन सके. इस मामले में आप चाहें तो राम से वीडियो कौलिंग कर सकते हैं.’’

‘‘जी नहीं, हम जनता के बीच रहते हैं. हमें अपनी पुरानी परंपराओं और संस्कारों से ज्यादा लगाव है. गार्जियन की रजामंदी से जो लड़केलड़कियां शादीविवाह करते हैं, वे हमें खूब पसंद हैं. देखिए महादेव बाबू, अभी हम इतने एडवांस नहीं हुए हैं कि पाश्चात्य संस्कृति को अपना सकें. अच्छा, अब हम चलते हैं…’’ अपनी कुरसी से उठते हुए विधायक ने कहा.

‘‘विधायकजी, एक बार राम से बात कर के तो देखिए. शायद बात बन जाए,’’ महादेव ने आग्रह किया.

‘‘जी नहीं, जब वे आप की बात नहीं मानेंगे तो बात करने का क्या मतलब? धन्यवाद.’’

‘‘मैं ने कब कहा कि वह मेरी बात नहीं मानेगा. यह तो गलत आरोप है विधायकजी,’’ परेशान होते हुए महादेव ने कहा.

‘‘अभी से बेटों को बेलगाम छोड़ देना आप दोनों के लिए ठीक नहीं होगा. आने वाला वक्त आप लोगों पर भारी पड़ सकता है. शादीविवाह के बाद दोनों बेटे बिगड़ जाएंगे. बुढ़ापे में न बहुएं पूछेंगी न बेटे इसलिए सोचसम?ा कर निर्णय लें महादेव बाबू.’’

‘‘मैं ने तन, मन, धन लगा कर अपने नवजात पौधों को सींचा है. मुझे पूरा भरोसा है कि पौधे बड़े होकर अच्छे फूल और फल देंगे. हमें उन के बारे में न कुछ सोचना है न समझना है,’’ महादेव ने गर्व के साथ विधायकजी को जवाब दिया.

आखिर में महादेव के दोनों बेटों की शादी उन की मनपसंद लड़की से हो गई. जयपुर में बड़े भाई राम ने सत्या से लव मैरिज कर ली, जबकि दिल्ली में शोभा से लखन ने प्रेमविवाह किया. दोनों युवतियां उन के औफिस में काम करती थीं. इसी क्रम में उन के बीच प्रेम का बीज अंकुरित हुआ. 2 वर्षों में उन का प्रेम ऐसे परवान चढ़ा कि उन्होंने एकदूसरे से कोर्ट मैरिज कर ली. कोर्ट मैरिज के मौके पर उन्होंने अपने मातापिता को आशीर्वाद लेने के लिए बुलाया भी था, लेकिन अस्वस्थता के कारण पार्वती और महादेव नहीं जा सके.

राम और लखन शादी के बाद हनीमुन मनाने के लिए नैनीताल चले गए, जहां पहाड़ों की हरी भरी वादियों में जमकर मौज मस्ती लूटी. 1 माह हवा खोरी के पश्चात पूरे परिवार को 2 सप्ताह के लिए पैतृक शहर छपरा जाना था. इसी बीच लखन को कंपनी का इमरजैंसी कौल आ गई, जिस की वजह से उसे दिल्ली लौट जाना पड़ा, जबकि राम दोनों बहुओं को ले कर अपने मातापिता के पास छपरा पहुंच गया.

एकसाथ घर पर आए अपने बेटे राम और 2 पुत्र वधुओं को देख कर पार्वती और महादेव फूले नहीं समाए. वे समझ नहीं पाए कि उन का स्वागत कैसे करें. मारे खुशी के पार्वती उन की आरती उतारने लगी, जबकि महादेव अपने नौकर और नौकरानियों को बहुओं का कमरा सुसज्जित करने और उन की पसंद का खानपान तैयार करने की बात सम?ाने लगे.

पार्वती की बहुओं के घर आने की खबर महल्ले में चंदन की सुगंध की तरह फैल गई. पासपड़ोस की महिलाएं उन्हें देखने के लिए पहुंच गईं. वे बारीबारी से सत्या और शोभा की मुंहदिखाई की रस्मअदायगी में जुट गईं.

दोनों बहुओं के पास उपहारों का ढेर लग गया, जिसे देख कर सत्या और शोभा अपने प्रेम विवाह को भूल गई. उन्हें लगा कि वे अपनी ससुराल में अरेंज्ड मैरिज कर लाई गई हों. ससुराल में उन के दिनरात सुकून से कटने लगे.

एक दिन राम अपनी पत्नी सत्या और भाभी शोभा के साथ गौतम ऋषि और त्रिलोक सुंदरी अहिल्या का पौराणिक मंदिर देखने के लिए गोदना सेमरिया ले कर गया. वे मंदिर के पुजारी से अहिल्या के श्राप व उद्धार की कहानी सुन रहे थे, तभी उस की मां पार्वती ने राम को फोन किया, ‘‘किसी मामले में पुलिस तुम्हारे पिताजी को पकड़ कर थाने ले गई है. तुम लोग जल्दी भगवानपुर थाना पहुंचे.’’

‘‘पिताजी को पुलिस पकड़ कर ले गई… बिलकुल असंभव बात है मां,’’ राम ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए आशंका जताई.

‘‘राम देर न करो… जल्दी थाना पहुंचो…’’

‘‘आप चिंता न करें, तुरंत पहुंच रहा हूं,’’ राम ने जवाब दिया और सभी वहां से थाने के लिए चल दिए.

राम जैसे ही सत्या के साथ भगवानपुर थाना पहुंचा पुलिस ने दोनों को हिरासत में ले कर अंदर बैठा दिया, जहां पहले से महादेव बैठे हुए थे.

‘‘सर, हमें किस जुर्म में बैठाया गया है उस की जानकारी हमें होनी चाहिए?’’ राम ने थानेदार संजय सिंह से पूछा.

‘‘तुम पर सत्या नाम की लड़की का जबरन अपहरण करने, उस की इच्छा के विरुद्ध शादी रचाने और शारीरिक संबंध बनाने का आरोप है. तुम्हारे विरुद्ध जयपुर थाना में लड़की के पिता मनोज कुमार ने लिखित आवेदन दिया है. जयपुर कोर्ट के आदेश पर तुम दोनों की बरामदी के लिए जयपुर पुलिस छपरा पहुंची है. औपचारिक पुलिसिया काररवाई के बाद थोड़ी देर में तुम लोगों को अपने साथ ले जाएगी. मेरी बात कुछ समझ में आई?’’ थानेदार संजय सिंह ने रोबदार आवाज में राम पर धौंस जमाई.

‘‘यह तो कानून का खुला उल्लंघन है सर… किसी ने हम पर ?ाठा आरोप लगा दिया… और पुलिस काररवाई के नाम पर हमें परेशान करेगी,’’ महादेव थोड़ा उत्तेजित होते हुए बोले.

‘‘अपहृत लड़की आप के सामने बैठी है, फिर भी आरोप झूठा लगता है? इस मामले में पूरे परिवार को जेल जाना पड़ेगा, तब सारी हेकड़ी निकल जाएगी,’’ थानेदार ने महादेव को धमकाया.

तभी जयपुर पुलिस ने राम, सत्या, महादेव को एक वाहन में बैठाया और जयपुर ले कर चली गई. निराश और हताश शोभा और उस की सास पार्वती दोनों थाने से अपने घर वापस आ गईं. शोभा ने अपने पति लखन को फोन पर सारे घटनाक्रम के बारे में बताया और कहा, ‘‘पता नहीं, किस की बुरी नजर हमारे परिवार को लग गई है. लखन, ट्रेन से हम दोनों आज जयपुर निकल जाएंगे. तुम भी वहीं पहुंचो… उन की जमानत कराने की जिम्मेदारी हमारी होगी.’’

‘‘ओके शोभा, मां का खयाल रखना मैं भी कल पहुंच जाऊंगा,’’ लखन ने जवाब दिया.

जयपुर पुलिस ने अपहृत सत्या के आरोपी राम को अपने घर में छिपा कर रखने के दोषी महादेव को भी जेल भेज दिया. बापबेटा को जेल भेजने के बाद पुलिस ने सत्या को सदर अस्पताल में मैडिकल जांच कराई. उस के बाद सत्या का फर्द बयान अदालत में दर्ज कराने के लिए पेश किया गया.

वहां मजिस्ट्रेट बीबी केस की सुनवाई कर रहे थे. उन के समक्ष मुखातिब होते हुए सत्या बोली, ‘‘जज साहब, मैं 25 वर्ष की बालिग युवती हूं. अपने होशोहवास और अपनी इच्छा के अनुसार भगवानपुर छपरा, बिहार निवासी राम वल्द महादेव से जयपुर कोर्ट में कोर्ट मैरिज की है. यहीं एक मल्टी इंटर नैशनल कंपनी में कार्यरत हूं. मां?ा, जिला सारण, बिहार निवासी सह विधायक मनोज कुमार का मेरे पिता राम पर लगाया गया आरोप निराधार है. आप जानते हैं कि भादवि की धारा 98 ए के तहत कोई भी युवती अपने मनपसंद साथी के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह सकती है. उस पर जबरन कोई केस थोपा नहीं जा सकता है. बावजूद मेरे पिता ने मेरे पति राम पर अपहरण, शारीरिक शोषण आदि का मामला दर्ज किया है. जज साहब, मेरे और जेल में बंद मेरे पति के साथ इंसाफ किया जाए. यह तो कानून और नारी सशक्तीकरण का खुला उल्लंघन है.’’

कठघरे में खड़ी सत्या अपना फर्द बयान देने के बाद तनावमुक्तलग रही थी.उसे लगा कि उस के माथे का भार कम हो गया हो. उस ने अदालत में खड़ी अपनी सास पार्वती, देवर लखन और शोभा के मायूस चेहरों को देखा, जो काफी उदास और गमगीन लग रहे थे. उस ने आंखों के इशारे से सब्र रखने का भरोसा दिलाया.

उसी समय विधायक मनोज कुमार के अधिवक्ता बीएन राम ने कहा, ‘‘हुजुर, सत्या पर प्रेम का नशा सवार है इसलिए वह अपने प्रेमी का सहयोग कर रही है. उसे उस के पिता के साथ घर जाने की इजाजत दी जाए ताकि वह अपने बीमार पिता की सेवा कर सके. सत्या के अलावा उस के पिता के घर में सेवा करने वाली कोई दूसरी औरत नहीं है.’’

अधिवक्ता के बयान पर कोर्ट में उपस्थित लोग तरह तरह की चर्चा करने लगे.

‘‘और्डरऔर्डर,’’ मजिस्ट्रेट बीबी ने मेज पर हथौड़ा ठकठकाया और काया और सत्या से पूछा, ‘‘तुम्हारे पिता अकेला रहते हैं? क्या तुम उन के साथ रहना पसंद करोगी?’’

‘‘नहीं सर, पिताजी के साथ नहीं जा सकती. राम और उस के परिवार के सदस्य कोर्ट में मौजूद हैं, मैं उन के साथ ही रहूंगी. अब मेरा यही परिवार है.’’

‘‘अरे बेटी, इतना गुस्सा ठीक नहीं. तुम्हारे पिता ने जो भी केस किया है वह तेरी भलाई के लिए किया है. अब वे तेरी शादी शानोशौकत के साथ करना चाहते हैं, जिसे दुनिया वर्षों तक याद रखे. राम के परिवार के साथ नहीं जाओ, जब प्रेम का नशा उतरेगा तो बहुत पछताओगी.’’

‘‘मर गई उन की बेटी. उन की झूठी शान और राजनीति उन्हीं को मुबारक. एक विधायक की जवान व कुंआरी लड़की दूसरे प्रदेश में नौकरी करती है. उन से फोन पर बारबार जयपुर आने का आग्रह करती है, लेकिन विधायक को राजनीतिक बैठकों और चुनाव से फुरसत नहीं है. लेकिन वहीं लड़की जब कोर्ट मैरिज कर लेती है तो बाप की कुंभकर्णी नींद टूट जाती है. सीधे प्रेमी और प्रेमिका पर केस दर्ज करा देते हैं, माई लार्ड आप से जानना चाहती हूं कि क्या यही बेटी के प्रति एक बाप का अपनापन, स्नेह और प्यार है?’’

अदालत में उपस्थित लोगों में एक बार फिर सत्या के फर्द बयान पर तरहतरह की चर्चा होने लगी. कोई कहता, ‘‘लड़की अपनी जगह पर ठीक है,’’ दूसरा कहता, ‘‘जो एक बार राजनीति की चक्रव्यूह में फंस जाता, उस के लिए सारे रिश्तेनाते अक्षुण्ण हो जाते हैं…’’ तीसरा बोला, ‘‘बाप बेटी की जंग में प्रेमी क्यों पिसेगा, उसे जेल से रिहा करो….’’

‘‘और्डरऔर्डर,’’ मजिस्ट्रेट बीबी ने मेज पर पुन: हथौड़ा ठकठकाया और बोले, ‘‘सत्या और उस के प्रेमी राम के साथ काफी नाइंसाफी हुई है. सत्या ने अगर कोर्ट मैरिज कर भी ली तो समाज के प्रति जिम्मेदार उस के विधायक बाप को 1-2 बार मिल कर समझना चाहिए न कि केस करना चाहिए. अगर विधायक ने सू?ाबू?ा से काम लिया होता तो यह मामला कोर्ट नहीं पहुंचता. बहरहाल, यह अदालत सत्या व उस के प्रेमी राम को बाइज्जत बरी करती है. राम को जेल से बाहर आने तक सत्या अपनी इच्छा के अनुसार सुरक्षित जगह पर रह सकती है. अगर प्रतिवादी इन्हें परेशान करने की कोशिश करता है तो अदालत की अवहेलना के आरोप में उसे सजा भी हो सकती है,’’ इस आदेश के बाद मजिस्ट्रेट बीबी अपनी कुरसी से उठ कर अंदर चले गए.

सत्या कठघरे से निकल कर शोभा के पास पहुंची, जहां पार्वती ने उसे अपनी बाजुओं में भर लिया. तत्पश्चात् अपने पिता महादेव और भाई राम की जमानत कराने के लिए लखन सभी को ले कर अधिवक्ता पीएन के पास पहुंचा.

तब उस के अधिवक्ता ने कहा, ‘‘मजिस्ट्रेट बीबी का आदेश होते ही मैं ने दोनों को जेल से रिहा करने के लिए बेल पिटिशन भर कर कोर्ट में जमा कर दी. मंजूरी मिलते ही जज साहब के इजलास में बेलरों को हाजिर कराना होगा. आप लोग बेलर तैयार रखें.’’

‘‘वकील साहब, मेरे साथ नौकरी पेशाधारी, वाहन चालक, बिल्डर आदि लोग मौजूद हैं. उन से बेलर का काम हो जाएगा न?’’

‘‘बिलकुल हो जाएगा. देखिए, आप पहले 4 बेलरों को जज साहब के सामने कठघरे में खड़ा कराइए,’’ कह कर अधिवक्ता पीएन इजलास की ओर बढ़ गए.

लखन और शोभा के प्रयास से महादेव और राम जेल से बाहर आ गए. उन्हें देख कर सब के चेहरे खुशी से खिल उठे.

‘‘मेरी गैरहाजिरी और विपरीत परिस्थितियों में शोभा बेटी और लखन ने अपनी मां और घर को बखूबी संभाला. अब लगता है कि सारी जिम्मेदारियां सौंप कर पार्वती के साथ देशाटन पर निकल जाऊं. तुम लोगों की जिम्मेदारियां देखकर मेरी उम्र और कद दोनों काफी बढ़ गए हैं. क्यों, सत्या बेटी सही कहा न?’’

‘‘हां पिताजी, आप हमारे गार्जियन हैं. आप का आशीर्वाद और मां की ममता तो हमारे साथ है.’’

‘‘वह तो ठीक है, लेकिन एक गार्जियन छूट रहा है. विधायकजी के आशीर्वाद के बिना सबकुछ अधूरा लग रहा है. चलो, वे रहे विधायकजी,’’ महादेव इतना बोल कर आगे बढ़ गए.

विधायक मनोज कुमार अपने समर्थकों के साथ जाने के लिए अपनी गाड़ी की ओर जैसे ही बढ़े, वैसे ही उन के सामने से शोभा और लखन ने उन का पैर स्पर्श कर लिया. उन का हाथ आशीष देने के लिए उठा ही था कि सत्या और राम ने भी झुक कर चरण स्पर्श करना चाहे,

तभी विधायक ने अपने पैर पीछे खींच लिए और गुस्से में बोल पड़े, ‘‘तू मेरी बेटी नहीं है…’’ दूर हटो मेरी नजरों से… इज्जत को तारतार कर दिया, अब क्या लेने आई हो, आज से मैं नहीं रहा तेरा बाप.’’

विधायक की बात सुन कर सत्या की आंखें भर आईं. वह किसी अपराधी की तरह सिर ?ाका कर राम के साथ ठगी सी खड़ी रही.

तभी महादेव ने बात को संभालते हुए नम्रता के साथ कहा, ‘‘विधायकजी गुस्सा थक दीजिए और मेरी बातों पर ध्यान दीजिए. सत्या की शादी का प्रस्ताव ले कर आप खुद मेरे घर आए थे.’’

‘‘हां आया था तो क्या हुआ. आप ने कौन सा रिश्ता जोड़ लिया था?’’ विधायक ने व्यंग्य कसा.

‘‘उस दिन कहा था कि  राम अपनी शादी खुद तय करेगा, एक बार उस से बात कर लें, लेकिन आप ने ऐसा नहीं किया. आज कोर्ट मैरिज कर दोनों आप के सामने हैं, उन्हें आशीर्वाद दे कर विदा कीजिए विधायकजी.’’

महादेव की तार्किक बातें सुन कर विधायक मनोज कुमार के साथ खड़े उन के वकील बीएन राम ने आश्चर्य प्रकट किया और कहा, ‘‘विधायकजी, आप सत्या की शादी का प्रस्ताव ले कर राम के घर गए थे, फिर यह ड्रामाबाजी क्यों? आप यह न भूलिए कि आप एक जनप्रतिनिधि भी हैं. समाज की सेवा करना आप का फर्ज है. दूसरों की बेटियों का आप घर बसाते रहे हैं, वहीं आप की पुत्री आशीष के लिए खड़ी है, यह कैसी विडंबना है?’’

वकील बीएन राम की बातें सुन कर महादेव ने प्रसन्नता जाहिर की और कहा, ‘‘वकील बीएन रामजी, आप ने बात कही है. विधायकजी को तो सत्या व राम पर गर्व होना चाहिए जिन्होंने युवा पीढ़ी में एक नई चेतना, ऊर्जा और उत्साह का संचार किया है, समाज को नई दिशा दी है. बेटीदामाद को घर ले जाइए और उन के सम्मान में एक समारोह कीजिए, जहां आप के रिश्तेदारों का स्नेह, दुलार और प्यार पा कर सत्या का आंचल खुशियों से भर जाएगा.’’

यह बात विधायक मनोज कुमार के दिल को छू गई. उन का आक्रोश जाता रहा. फिर अपने स्वाभिमान के विरुद्ध सादगी से बोले, ‘‘वाह महादेवजी वाह, सचमुच आप महादेव हैं,’’ इतना कह कर विधायक मनोज कुमार ने महादेव को अपने सीने से लगा लिया और कहा, ‘‘मेरी आंखों पर पुरातन परांपराओं और दकियानूसी बातों का चश्मा चढ़ा हुआ था. जिस से आधुनिक बातें अच्छी नहीं लगती थीं. हमेशा उन का वहिष्कार किया करता था. आप ने मेरी आंखें खोल दीं. मैं ने केस कर दोनों कुल का सर्वनाश करना चाहा. आप सभी हमें माफ करें.’’

‘‘अरे नहींनहीं विधायकजी, सुबह का भूला शाम को घर लौट आए तो उसे भूला हुआ नहीं कहते हैं.’’

प्रसन्नता जाहिर करते हुए विधायक ने अपनी बेटी व दामाद को अपने से लगा लिया. यह देख कर बीएन राम, महादेव, लखन और शोभा की आंखें मारे खुशी के छलक उठीं.

ईगल के पंख : आखिर वह बच्ची अपनी मां से क्यों नफरत करती थी?

Writer- Naresh Kaushik

नवंबर का महीना. हलकी ठंड और ऊपर से झामाझम बारिश. नवंबर के महीने में उस ने अपनी याद में कभी ऐसी बारिश नहीं देखी थी. खिड़की से बाहर दूर अक्षरधाम मंदिर रोशनी में नहाया हुआ शांत खड़ा था. रात के 11 बजने वाले थे और यह शायद आखिरी मैट्रो अक्षरधाम स्टेशन से अभीअभी गुजरी थी.

‘‘अंकल… अंकल… प्लीज आज आप यहीं रुक जाओ मेरे पास,’’ रूही की आवाज सुन कर उस का ध्यान भंग हुआ.

बर्थडे पार्टी खत्म हो चुकी थी. पड़ोस के बच्चे सब खापी कर, मस्ती कर अपनेअपने घर चले गए थे. अब कमरे में केवल वे 3 ही लोग थे. समीरा, 6 साल की बेटी रूही और प्रशांत.

‘‘मम्मा? आप अंकल को रुकने के लिए बोलो,’’ रूही ने प्रशांत का लाया गिफ्ट पैकेट खोलते हुए कहा.

बार्बी डौल देख कर वह फिर खुशी से चिल्लाई,’’ अंकल यू आर सो लवली. थैंक्यू, थैंक्यू, थैंक्यू…’’ कहते हुए रूही प्रशांत के गले से लिपट गई, ‘‘अब तो मैं आप को बिलकुल नहीं जाने दूंगी,’’ रूही ने फिर से कहा और उछल कर सोफे पर बैठे प्रशांत की गोदी में बैठ गई.

रूही ही क्यों, आज तो समीरा का भी मन था कि प्रशांत यहीं रुक जाए. उस के पास उस के करीब. बेहद करीब, समीरा की सोचने भर से धड़कनें बढ़ने लगीं.

प्रशांत ने नजरें उठा कर समीरा की ओर देखा, ‘‘रूही बेटा, अंकल तो रुकने को तैयार हैं लेकिन मम्मा से तो परमिशन लेनी ही पड़ेगी न,’’ उस की नजरों में एक शरारत थी.

प्रशांत की नजरों से समीरा की नजरें टकराईं. वो समझ गई थी. एक बारिश बाहर हो रही थी और एक तूफान दोनों के भीतर घुमड़ रहा था. सारे बांधों को तोड़ने को बेताब. उसे एक डर सा लगा और उस ने न जाने क्या सोच कर रूही को मना कर दिया

प्रशांत रिश्ते में उस का देवर था और जब वह ब्याह कर गांव आई थी तो तभी समझ गई थी कि वह सुधांशु का कितना मुंह लगा है. सुधांशु ने तो सब के सामने कह दिया था, ‘‘प्रशांत मेरा ममेरा भाई ही नहीं मेरा जिगरी दोस्त भी है. समीरा, तुम्हें मेरे साथ इस के नखरे भी उठाने होंगे.’’

और जब कैंसर से शादी के 4 साल बाद  सुधांशु समीरा को बेसहारा छोड़ गया तो प्रशांत ने ही उसे संभाला था. पति की मौत के बाद सारे रिश्ते ऐसे धुंधले पड़ गए थे मानो किसी ने कागज पर लिखे हरफों पर पानी गिरा दिया हो.

डैथ सर्टिफिकेट लेने से ले कर सुधांशु के बैंक अकाउंट, एलआईसी पौलिसी क्लेम के लिए भागदौड़ करने से ले कर 2 कमरे का यह छोटा सा फ्लैट समीरा के नाम करवाने जैसे सारे जरूरी काम प्रशांत ने ही किए.

यह संयोग ही था कि सुधांशु की मौत से कोई सालभर पहले ही प्रशांत का तबादला लखनऊ से दिल्ली हो गया था. 2 साल गुजर चुके थे सुधांशु को गए.

6 महीने बाद ही उस ने स्कूल फिर से जौइन कर लिया. सरकारी स्कूल में टीचर थी तो उस के सामने यह सवाल नहीं था कि अब रोजीरोटी कैसे चलेगी.

पहले तो समीरा के दिमाग में कोई बात आई ही नहीं. प्रशांत जो भागभाग कर उस की मदद कर रहा था, उस में उसे अपने लिए कुछ नहीं लगा था. वह यही सोचती रही कि सुधांशु का जिगरी दोस्त और भाई होने के नाते शायद वह अपनी जिम्मेदारी निभा रहा है.

मगर एक दिन शाम होने वाली थी. सूरज का बड़ा सा गोला अक्षरधाम मंदिर के पीछे छिपने ही वाला था. सोचा चाय बना ले, उस के बाद शाम के खाने का कुछ इंतजाम करेगी. रूही खिड़की के पास ही कुरसी पर बैठी अपना होमवर्क कर रही थी.

तभी अचानक दरवाजे की घंटी बजी. इस वक्त कौन होगा? यह सोचते हुए वह उठी और दरवाजा खोला तो देखा सामने प्रशांत खड़ा था. हाथ में फूलों का गुलदस्ता लिए, ‘‘हैप्पी बर्थडे माई डियर समीरा भाभी,’’ उस ने चहकते हुए कहा.

समीरा बड़ी हैरान हुई. उसे तो खुद याद नहीं था कि आज उस का जन्मदिन है. प्रशांत लाल गुलाबों का बड़ा सा बुके ले कर आया था. उस के बाद तो जैसे प्रशांत  उस के लिए फूल लाने का बहाना ही ढूंढ़ने लगा था. कभी भी शाम को आ कर दरवाजे की घंटी बजा देता और कहता, ‘‘आज शाम बेहद खूबसूरत है. आप की जुल्फों की तरह. ये फूल आप की जुल्फों के नाम, ये फूल आप की मुसकराहट के नाम, ये फूल आज की सुरमई शाम के नाम.’’

पहले तो उसे लगा प्रशांत उस का मन बहलाने के लिए ऐसी हरकतें कर रहा है लेकिन एक दिन रसोई में जब वह खाना बना रही थी और रूही ट्यूशन गई थी तो प्रशांत मदद के बहाने उस से बेहद सट कर खड़ा हो गया. उसे अपनी गरदन पर उस की गरम सांसें दहकती सी लगीं. अचानक लगा  उस के भीतर भी कोई आग धधक उठी है जो अभी तक राख के नीचे दबी पड़ी थी.

अब समीरा के कान भी दरवाजे की घंटी की आवाज सुनने को बेचैन रहने लगे थे. यह बात तो वह भी सम?ा रही थी कि अब प्रशांत और उस के बीच की सारी दूरियां मिटने वाली हैं, बस कब वह क्षण आएगा, उसे इसी का इंतजार था.

भीतर से कहीं सवाल भी उठ रहे थे, यह तुम क्या करने जा रही हो. एक बच्ची की मां हो. क्या सीखेगी रूही तुम से?

मगर तुरंत ही वह अपने बचाव में उठ खड़ी होती कि मैं अपने तन की, मन की चाहतों को कहां दफन कर दूं? क्यों मैं अपनी ख्वाहिशों का कत्ल कर आत्महत्या करूं? और प्रशांत वह रूही को भी तो कितना प्यार करता है. एक बाप की तरह. मैं रूही की खुशियों के लिए ये सब कर रही हूं. रूही की खुशियां. यही तर्क दे कर वह सब सवालों पर परदा डाल देती. मगर ये सवाल हर वक्त उसे घेरे रहते.

प्रशांत का फोन आया था, ‘‘सिम्मी तैयार रहना, फिल्म देखने चलेंगे, नाइट शो. हां, रूही को पड़ोस की आंटी के पास छोड़ देना.’’

समीरा भाभी की जगह अब वह सिम्मी हो गई थी. प्रशांत की आवाज सुन कर ही समीरा का रोमरोम उन्मादित होने लगता था और आज तो फिल्म जाने का प्रोगाम बन चुका था. उस ने अपनी कमनीय देह पर नजर डाली कि अभी उम्र ही कितनी है मेरी. मात्र 28 साल. उसे अपने सौंदर्य पर गरूर हो आया जैसे कभी कालेज के जमाने में होता था.

वह सबकुछ भूल गई और भूल भी जाना चाहती थी. उस ने अलमारी से शिफौन की सुर्ख रंग की साड़ी निकाली और स्लीवलैस ब्लाउज. उस ने साड़ी पहनी भी अलग अंदाज में. शिफौन की नाभिदर्शना साड़ी और स्लीवलैस ब्लाउज में वह कयामत ढा रही थी.

दरवाजे की घंटी बजी तो उस ने भाग कर दरवाजा खोला. प्रशांत उसे देखता ही रह गया. दरवाजा बंद कर उस ने समीरा को कस कर बांहों में भर लिया. समीरा भी उस की मजबूत बांहों के गरम घेरे में पिघल जाना चाहती थी.

‘‘जल्दी चलो, पिक्चर का वक्त हो गया है,’’ उस ने खुद को प्रशांत की बांहों से छुड़ाते हुए कहा.

‘‘रूही… रूही बेटा…’’ उस ने आवाज लगाई.

‘‘बेटा, मम्मा और अंकल बाजार जा रहे हैं. आप सामने वाली आंटी के यहां रह जाना थोड़ी देर.’’

रूही ने कुछ नहीं कहा लेकिन वह समीरा को अजीब तरीके से देख रही थी आज. जैसेकि अपनी ही मां को पहचान नहीं पा रही हो. प्रशांत के लिए भी रूही की नजरों में कुछ ऐसे भाव थे कि समीरा भीतर तक हिल गई.

परदे पर फिल्म चलती रही और उस के भीतर घमासान. प्रशांत ने कई बार उसे बांहों में भरने, उसे छूने की कोशिश की लेकिन आज उस के भीतर कोई और ही तूफान चल रहा था. उस ने प्रशांत के हाथों को ?ाटक दिया.

रात घर लौटी तो रूही सो चुकी थी. उस ने प्रशांत से भीतर आने को भी नहीं कहा. वह भी समीरा का बरताव देख कर परेशान था.

समीरा ने बगल में लेटी रूही के बालों में हाथ फिराया. उस के दिमाग का तूफान थमने का नाम नहीं ले रहा था. सवाल पर सवाल.

‘इस में रूही की भी तो खुशी है?’ उस के मन ने फिर से बचाव के लिए हथियार उठा लिया.

‘अपनी वासना की पूर्ति को रूही की खुशी का नाम मत दो. तुम्हें क्या लगता है प्रशांत रूही को अपने बच्चे की तरह प्यार करता है? धिक्कार है तुम पर समीरा. तुम और प्रशांत अपनी शारीरिक भूख को मिटाने के लिए एक नन्ही बच्ची का इस्तेमाल कर रहे हो.’

आज तुम ने देखा नहीं रूही की आंखों में तुम्हारे और प्रशांत के लिए कैसा भाव था? एक

6 साल की बच्ची को जब रिश्ते की सचाई समझ आ रही है तो क्या वह बड़ी हो कर तुम्हें माफ कर पाएगी? क्या उस की नजरों में तुम्हारा मां का दर्जा कायम रहेगा? समीरा भोग का नाम जिंदगी नहीं है. इच्छाओं और वासनाओं में फर्क होता है. वासनाओं की पूर्ति में खुशी नहीं है. भोग कर तो धरती से न जाने कितने अरबों लोग चले गए लेकिन इतिहास ने उन्हीं को याद रखा है जिन्होंने त्याग किया, जिन्होंने खुद को तपाया. तुम्हें आज भोग और त्याग के बीच में से किसी एक को चुनना होगा.

समीरा, भोग रसातल है जिस की कोई थाह नहीं है और त्याग हिमालय की ऊंचाई है और क्या सिखाओगी रूही को? भोग के सहारे जिंदगी काटना आसान होता है लेकिन ऐसी जिंदगी परजीवी की जिंदगी से बदतर होती है. याद रखो, भोगने की शरीर की एक सीमा होती है लेकिन त्याग और समर्पण की मजबूती का दुनिया में कोई मुकाबला नहीं कर सकता. यह तुम्हें तय करना है, तुम अपनी बच्ची को कैसे संस्कार देना चाहती हो. भोग या त्याग. उफ यह कैसा तूफान उठ रहा था समीरा के दिमाग में.

इन्हीं सब सवालों से रातभर जू?ाती रही समीरा. एक पल को भी पलकें नहीं मूंद पाई. पलकें तो नहीं लेकिन उस ने जिंदगी के एक अध्याय को बंद करने का फैसला जरूर कर लिया था. अब भीतर के सारे सवाल मिट चुके थे. अगले दिन संडे था. समीरा रातभर न सोने के बावजूद खुद को तरोताजा महसूस कर रही थी.

दिनभर रूही के साथ ऐसे ही निकल गया. रूही नन्ही जान. रात की बात भूल चुकी थी. शाम होते ही फिर से दरवाजे की घंटी बज उठी.

उस ने दरवाजा खोला… और कौन होता. वह किचन में जा कर चाय का पानी चढ़ा कर ड्राइंगरूम में आ गई. प्रशांत उस के करीब जाने का मौका ढूंढ़ रहा था और वह ऐसा कोई मौका नहीं देना चाहती थी. प्रशांत बीती रात के उस के बरताव की वजह जानना चाहता था.

उस ने चाय और नाश्ता ट्रे में लगा कर टेबल पर रख दिया. खिड़की से खुला आसमान नजर आ रहा था.

दूर आसमान में पंछी उड़ रहे थे. हर रोज की तरह अक्षरधाम मंदिर के पीछे सूरज डूब रहा था.

‘‘मम्मा, वह आसमान में ईगल उड़ रही है न.’’

‘‘हां बेटा…’’ समीरा ने प्यार से जवाब दिया और चाय का प्याला प्रशांत की ओर बढ़ाया.

‘‘मम्मा, क्या ईगल सीढ़ी लगा कर इतने ऊंचे आसमान तक जाती है?’’ रूही के सवाल पर प्रशांत हंस दिया.

‘‘नहीं बेटा, ईगल के अपने पंख इतने मजबूत होते हैं कि उसे किसी के सहारे की जरूरत ही नहीं पड़ती. वह सारे आसमान में उड़ती है लेकिन सिर्फ और सिर्फ अपने पंखों के सहारे,’’ समीरा ने जवाब दिया.

‘‘बेटा, अपने पंख मजबूत हों तो तुम कहीं तक की भी उड़ान भर सकते हो, सीढ़ी के सहारे आसमान में नहीं उड़ा जा सकता,’’ समीरा ने खिड़की के पास खड़ी रूही के बालों में उंगलिया घुमाते हुए कहा और प्रशांत की ओर देखा.

प्रशांत उस की निगाहों की ताब न ला सका. आज समीरा की आंखों में एक भूख, एक लालसा, एक समर्पण की जगह गजब का आत्मविश्वास था. यह क्या हो गया था समीरा को? लेकिन कुछकुछ उसे भी समझ आ रहा था. चाय खत्म की और प्रशांत बिना कुछ कहे उठ कर चला गया.

समीरा ने रूही को गले से लगाया और उस का माथा चूम लिया, ‘‘मेरी रूही भी ईगल की तरह मजबूत पंखों वाली बनेगी और आसमान में उड़ेगी. हमें नहीं चाहिए सीढ़ी.’’

‘‘मम्मा, आप इस सूट में बहुत अच्छी लग रही हो. रात वाली साड़ी आप कभी मत पहनना. मम्मा कल रात मैं डर गई थी, मुझे लगा था आप मुझे छोड़ कर जा रही हो.’’

समीरा ने रूही को और कस कर गले से लगा लिया.

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