Anupama की रियल लाइफ में बढ़ी मुश्किलें, सौतेली बेटी को भेजा लीगल नोटिस और 50 करोड़ रुपए का मुआवजा

अनुपमा (Anupama) फेम ऐक्ट्रेस रुपाली गांगुली (Rupali Ganguly) अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर सुर्खियों में छाई हुईं हैं. दरअसल कुछ दिनों पहले ही रुपाली गांगुली की सौतेली बेटी बेटी ईशा वर्मा ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट कर के उन पर घर तोड़ने का आरोप लगाए थे. इसके अलावा उन्होंने कई आरोप लगाए थे. तो अनुपमा के रियल लाइफ हसबैंड अश्विन वर्मा  ने एक नोट शेयर कर कहा था  कि अपने मातापिता के रिश्ते के टूटने से वह दुखी हैं क्योंकि तलाक एक कठिन अनुभव है, जो उस शादी के बाद बच्चों को बहुत प्रभावित करता है और नुकसान पहुंचा सकता है.

वहीं अब रुपाली गांगुली ने अपनी सौतेली बेटी को कानूनी नोटिस भेजा है. ऐक्ट्रैस ने करारा जवाब देते हुए अपनी सौतेली बेटी को उनके चरित्र और निजी जीवन को ‘बदनाम’ करने के लिए ये नोटिस भेजी है.

अनुपमा ने अपनी सौतली बेटी को मानहानी का भेजा नोटिस

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक ये नोटिस रुपाली गांगुली की वकील और बिग बौस 16 फेम सना रईस खान ने भेजा है. रिपोर्ट में बताया गया है कि रुपाली गांगुली की वकील सना रईस खान ने बताया, “हमने उनकी सौतेली बेटी को उसके झूठे और नुकसान पहुंचाने वाले बयानों के जवाब में मानहानि का नोटिस जारी किया है क्योंकि रूपाली पब्लिसिटी के लिए मानहानिकारक रणनीति के इस्तेमाल के खिलाफ दृढ़ता से खड़ी है और उन्होंने अपनी सुरक्षा के लिए ये कानूनी कदम उठाया है.

अनुपमा की पर्सनल और प्रोफेशनल इमेज हुई खराब

इन बेसलेस आरोपों का उद्देश्य क्लियरी रुपाली गांगुली की रेप्युटेशन को नुकसान पहुंचाना और उनकी सार्वजनिक प्रतिष्ठा का फायदा उठाना था. इस तरह की हरकतों से न केवल उन्हें भावनात्मक परेशानी हुई है, बल्कि उनकी पर्सनल और प्रोफैशनल इमेज भी गलत तरीके से खराब हुई है.”

एचटी सिटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक रूपाली गांगुली की सौतेली बेटी ईशा को भेजे गए मानहानि के नोटिस में लिखा गया है,“हमारे क्लाइंट का कहना है कि वह ट्विटर (अब एक्स), इंस्टाग्राम और फेसबुक सहित कई सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर आपके द्वारा पब्लिश किए गए पोस्ट और कमेंट्स को देखकर हैरान थीं. हमारे मुवक्किल का कहना है कि नोटिस जारी करने के लिए सही फैक्ट्स रखना जरूरी है”

इस नोटिस में ये भी लिखा गया है कि “हमारे मुवक्किल का दावा है कि आपके द्वारा उनके खिलाफ पब्लिकली अपमानजनक शब्द और अपमानजनक भाषा इस्तेमाल की गई है. इससे उनकी उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा है, उनकी गरिमा का उल्लंघन किया है और उनके करियर पर गलत असर भी पड़ा है, जिसकी वजह से उन्हें काफी नुकसान का सामना करना पड़ा है.

इसके अलावा इस मानहानी की नोटिस में 50 करोड़ रुपये के मुआवजे की भी मांग की गई है. आपको ये भी बता दें कि ईशा से तुरंत बिना शर्त सार्वजनिक माफी मांगने को भी कहा है, ऐसा न करने पर गांगुली ने कानूनी कदम उठाने की धमकी दी है.

क्या है पूरा मामला?

यह मामला एक रेडिट पोस्ट वायरल होने की वजह से शुरू हुआ. एक यूजर ने  ईशा द्वारा की गई एक पुरानी फेसबुक टिप्पणी के स्निपेट शेयर किए. पोस्ट में ईशा ने रुपाली गांगुली पर अपने पिता अश्विन के साथ एक्सट्रा मैरिटल का आरोप लगाया.  यह पोस्ट तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल होने लगी. हालांकि अश्विन ने एक्स पर एक बयान जारी कर इस मामले को शांत कराने की कोशिश की थी.

चक्रव्यूह प्रेम का : क्या मनोज कुमार अपनी बेटी की लव मैरिज से खुश थे?

‘‘भैया सादर प्रणाम, तुम कैसे हो?’’ लखन ने दिल्ली से अपने बड़े भाई राम को फोन कर उस का हालचाल जानना चाहा.

‘‘प्रणाम भाई प्रणाम, यहां सभी कुशल हैं. अपना सुनाओ?’’ राम ने अपने पैतृक शहर छपरा से उत्तर दिया. वह जयपुर में नौकरी करता था. वहां से अपने घर मतापिता से मिलने आया हुआ था.

‘‘मैं भी ठीक हूं भैया. लेकिन दूर संचार के इस युग में कोई मोबाइल फोन रिसीव नहीं करे, यह कितनी अनहोनी बात है, तुम उन्हें क्यों नहीं समझते हो? मैं चाह कर भी उन से अपने मन की बात नहीं कह पाता, यह क्या गंवारपन और मजाक है,’’ मन ही मन खीझते हुए लखन ने राम से शिकायत की.

‘‘तुम किस की बात कर रहे हो लखन, मुझे तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है?’’ राम ने उत्सुकता जताते हुए पूछा.

‘‘तुम्हें पता नहीं है कि कौन मोबाइल सैट का उपयोग नहीं करता है? क्यों जानते हुए अनजान बनते हो भैया?’’ लखन ने नाराजगी जताते हुए कहा.

‘‘सचमुच मुझे याद नहीं आ रहा है. तू पहेलियां नहीं बुझ मेरे भाई, जो भी कहना है साफसाफ कहो,’’ इस बार राम ने थोड़ी ऊंची आवाज में कहा.

‘‘खाक साफसाफ कहूं…’’ उत्तेजित हो कर लखन ने जवाब दिया, ‘‘तुम्हीं ने मेरी कौल मातापिता को उठाने से मना कर दिया है इसलिए मैं परेशान हूं. घर में 2-2 स्मार्टफोन हैं. रिंग बजती रहती है लेकिन कोई रिसीव तक नहीं करता है, जबकि घर में 2-2 नौकरानियां भी हैं. मेरे साथ अनाथों जैसा बरताव क्या शोभा देता है?’’

‘‘बकबास बंद करो… फुजूल की बातें सुनने की मुझे आदत नहीं है… ऐसे बोल रहे हो जैसे वे मेरे मातापिता नहीं कोई नौकर हों… हां, नौकर को मना किया जा सकता है लेकिन देवतुल्य मातापिता को नहीं… वे तो अपनी मरजी के मालिक हैं… किस से बातें करनी हैं किस से नहीं वही जानें. अवश्य तुम उन के साथ कोई बचपना हरकत की होगी… इसलिए वे तुम से नाराज होंगे…’’ इतनी फटकार लगा कर राम ने फोन काट दिया.

फोन कट जाने से लखन काफी नाराज हुआ. वह सोचने लगा कि नौकरी से अच्छा तो घर पर बैठना ही था. नाहक घर छोड़ कर दिल्ली में ?ाक मार रहा हूं. इसी तरह 1 सप्ताह बीत गया. एक दिन लखन का मन नहीं माना, उस ने फिर राम को फोन किया, ‘‘मम्मीपापा कैसे हैं भैया? उन की चिंता लगी रहती है. उन की सेहत ठीक तो है न? उन से जरा बात करा दो न,’’ लखन ने सहजता के साथ अपने मन की बात रखी.

जवाब में तुनकमिजाज राम ने उत्तर दिया, ‘‘वे तो ठीक हैं पर तुम्हें किस बात की चिंता लगी रहती है, मु?ो बताओ तो सही? तूने रोजरोज यह क्या तमाशा लगा रखा है. कभी मम्मी से बात करा दो तो कभी पिताजी से. अब तू कोई दूध पीता बच्चा तो है नहीं. तेरे पास सब्र नाम की कोई चीज है कि नहीं? तू रोज फोन पर मुझे डिस्टर्ब न किया कर.’’

‘‘मम्मीपापा का हालचाल पूछना डिस्टर्ब करना है? क्या मैं डिस्टर्ब करता हूं? तो तुम ही बताओ उन से कैसे बात करूं. भैया तुम तो किसी विक्षिप्त की तरह बातें कर रहे हो, जैसे मैं छोटा भाई नहीं कसाई हूं.’’

‘‘हां, बिलकुल कसाई हो, तभी तो किसी निर्दयी की तरह व्यवहार करते हो. मुझे विक्षिप्त बोला. पागल कहा… बोलने की तमीज है कि नहीं? जो मन में आया बके जा रहे हो. मांबाप से उतना ही प्यार है तो सादगी से बात करो.’’

‘‘सौरी भैया, आई एम वैरी सारी.’’

‘‘ओके, लो पहले मां से बात करो,’’ कह कर राम ने अपने फोन का विजुअल वीडियो औन कर दिया, जिस के अंदर अपनी मां का मुसकराता हुआ चेहरा देख कर लखन आह्लादित हो गया और पूछा, ‘‘कैसी हो मां? तेरी बहुत याद आती है.’’

‘‘मैं तो ठीक हूं लखन बेटा लेकिन तू कितना दुबलापतला हो गया है. समय पर खाना नहीं खाता है क्या?’’

‘‘खाना खाता हूं मां, मगर तेरे हाथ का खाना कहां मिलता. आप दोनों के साथ रहने के लिए मम्मीपापा के नाम से दिल्ली में एक फ्लैट खरीद लिया है. अब आप लोगों को यहीं रहना होगा.’’

‘‘अरे बेटा फ्लैट क्यों खरीद लिया, यहीं मजे में दिन कट रहे हैं. लो थोड़ा अपने पिताजी से बात कर लो,’’ पार्वती ने मोबाइल अपने पति महादेव के हाथों में थमा दिया.

‘‘हैलो लखन बेटा, मांबेटे की बातें ध्यान से सुन रहा था. तुम हमें दिल्ली में रखना चाहते हो और राम हमें जयपुर में. दोनों के जज्बात और प्यार की कद्र करता हूं बेटा पर तुम्हारी मां और मैं यहीं ठीक हूं. तुम लोग खुश रहो, यही हमारी दिली तमन्ना है,’’ महादेव ने हर्षित मुद्रा में कहा.

‘‘मगर पिताजी आप के आशीर्वाद से आज मैं अपने पैरों पर खड़ा हूं. मातापिता के प्रति मेरा भी कुछ कर्तव्य और अधिकार है, जिसे निभाना चाहता हूं. आप मेरी इच्छाओं का दमन नहीं कीजिए,’’ लखन ने व्यग्र होते हुए विनती की.

‘‘लखन बेटा, जब ऐसी बात है तो कुछ दिनों के लिए हम अवश्य तुम्हारे पास रहेंगे. अच्छा ठीक है, फिर बातें होंगी.’’

राम ने मोबाइल वापस लेने के बाद डिस्कनैक्ट कर दिया.

राम और लखन दोनों भाई किसान महादेव और पार्वती के पुत्र थे. उन के दोनों लाड़ले बचपन से ही बड़े नटखट और शरारती थे. वे बातबात पर लड़ते और झगड़ते रहते थे. उन की शरारतों की वजह से मातापिता को पड़ोसियों के उलाहने सुनने पड़ते थे.

खेलखेल में राम और लखन ने अपने शहर के ही हाई स्कूल से मैट्रिक व इंटरमीडिएट की शिक्षा प्राप्त की. उस के बाद पटना विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर किया. दोनों भाइयों ने दिल्ली के एक भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान से एमबीए किया. प्रौद्योगिकी विज्ञान में एमबीए करने के बाद दोनों भाई नौकरी की तलाश में जुट गए.

इधर बड़े भाई राम ने सीईओ बनने के लिए अकाउंटिंग मैंनेजमैंट में डिगरी प्राप्त की. उस के बाद उसे जयपुर में अमेरिकी कंपनी में सीईओ की नौकरी मिल गई. उस का सालाना पैकेज 40 लाख रुपए था.

वहीं लखन की नौकरी दिल्ली के एक बैंक में पर्सनल औफिसर के रूप में लग गई. वह बैंक की ह्यूमन रिसोर्स एक्टिविटीज को संभालने लगा. दोनों भाइयों की नौकरी लग जाने के बाद से उन के घर में खुशियों का माहौल था. उन की माता पार्वती और पिता महादेव बेहद प्रसन्न थे. उन के मन की मुरादें पूरी हो गई थीं.

महादेव की अब एक ही इच्छा शेष थी कि दोनों बेटों का विवाह किसी अच्छे घराने की शिक्षित, सुंदर और सुशील लड़की से हो जाए ताकि बहुओं के आ जाने से उन के बेटों का दांपत्य जीवन सुखमय हो सके. अब उन के विवाह के लिए रिश्ते आने लगे थे.

एक दिन मांझ के विधायक मनोज कुमार अपनी बेटी का रिश्ता ले कर महादेव के घर पहुंचे. महादेव और पार्वती ने उन के स्वागतसत्कार में कोई कसर नहीं छोड़ी. इसी बीच विधायक ने राम के साथ अपनी बेटी के शादी का प्रस्ताव रखा.

महादेव कुछ जवाब दे पाते उस के पहले ही पार्वती ने विधायक से पूछा, ‘‘विधायकजी आप की सुपुत्री क्या करती है?’’

‘‘मेरे बेटी का नाम सत्या है. उस ने कंप्यूटर साइंस में एमबीए किया है. फिलहाल वह जयपुर में एक विदेशी कंपनी में काम करती है. वह देखने में सुंदर और होनहार लड़की है.’’

‘‘अति उत्तम, उस की मां को यहां क्यों नहीं लाए?’’ पार्वती ने मुसकराते हुए पूछा.

‘‘सत्या की मां इस दुनिया में नहीं है. वह सत्या को बचपन में ही छोड़ कर चल बसी थी. सत्या का लालनपालन मैं ने ही किया है,’’ विधायक ने दुखी मन से कहा.

‘‘उफ, कुदरत की जो मरजी. उस के आगे तो सब बौने हैं. बहरहाल आप लोग बात करें. जलपान के बाद अभी तक पान, सुपारी, सौंप वगैरह नहीं आया, देखती हूं क्या बात है,’’ कह पार्वती घर के अंदर चली गई.

‘‘हां, महादेव बाबू. अपनी बेटी की शादी राम से करने का प्रस्ताव लाया हूं. क्या हमारे यहां रिश्ता जोड़ेंगे?’’ विधायक मनोज कुमार ने आग्रह किया.

‘‘शादीविवाह तो विधाता की एक रचना है. बिना उस की मरजी के हम रिश्ता जोड़ने वाले होते कौन हैं? इस मामले में राम की पसंद ही सर्वोपरि होगी. हम ने पढ़ालिखा कर इतना योग्य बना दिया है कि वह अपनी जिंदगी के बारे में स्वयं निर्णय ले सके. अपनी जीवनसंगिनी खुद चुन सके. इस मामले में आप चाहें तो राम से वीडियो कौलिंग कर सकते हैं.’’

‘‘जी नहीं, हम जनता के बीच रहते हैं. हमें अपनी पुरानी परंपराओं और संस्कारों से ज्यादा लगाव है. गार्जियन की रजामंदी से जो लड़केलड़कियां शादीविवाह करते हैं, वे हमें खूब पसंद हैं. देखिए महादेव बाबू, अभी हम इतने एडवांस नहीं हुए हैं कि पाश्चात्य संस्कृति को अपना सकें. अच्छा, अब हम चलते हैं…’’ अपनी कुरसी से उठते हुए विधायक ने कहा.

‘‘विधायकजी, एक बार राम से बात कर के तो देखिए. शायद बात बन जाए,’’ महादेव ने आग्रह किया.

‘‘जी नहीं, जब वे आप की बात नहीं मानेंगे तो बात करने का क्या मतलब? धन्यवाद.’’

‘‘मैं ने कब कहा कि वह मेरी बात नहीं मानेगा. यह तो गलत आरोप है विधायकजी,’’ परेशान होते हुए महादेव ने कहा.

‘‘अभी से बेटों को बेलगाम छोड़ देना आप दोनों के लिए ठीक नहीं होगा. आने वाला वक्त आप लोगों पर भारी पड़ सकता है. शादीविवाह के बाद दोनों बेटे बिगड़ जाएंगे. बुढ़ापे में न बहुएं पूछेंगी न बेटे इसलिए सोचसम?ा कर निर्णय लें महादेव बाबू.’’

‘‘मैं ने तन, मन, धन लगा कर अपने नवजात पौधों को सींचा है. मुझे पूरा भरोसा है कि पौधे बड़े होकर अच्छे फूल और फल देंगे. हमें उन के बारे में न कुछ सोचना है न समझना है,’’ महादेव ने गर्व के साथ विधायकजी को जवाब दिया.

आखिर में महादेव के दोनों बेटों की शादी उन की मनपसंद लड़की से हो गई. जयपुर में बड़े भाई राम ने सत्या से लव मैरिज कर ली, जबकि दिल्ली में शोभा से लखन ने प्रेमविवाह किया. दोनों युवतियां उन के औफिस में काम करती थीं. इसी क्रम में उन के बीच प्रेम का बीज अंकुरित हुआ. 2 वर्षों में उन का प्रेम ऐसे परवान चढ़ा कि उन्होंने एकदूसरे से कोर्ट मैरिज कर ली. कोर्ट मैरिज के मौके पर उन्होंने अपने मातापिता को आशीर्वाद लेने के लिए बुलाया भी था, लेकिन अस्वस्थता के कारण पार्वती और महादेव नहीं जा सके.

राम और लखन शादी के बाद हनीमुन मनाने के लिए नैनीताल चले गए, जहां पहाड़ों की हरी भरी वादियों में जमकर मौज मस्ती लूटी. 1 माह हवा खोरी के पश्चात पूरे परिवार को 2 सप्ताह के लिए पैतृक शहर छपरा जाना था. इसी बीच लखन को कंपनी का इमरजैंसी कौल आ गई, जिस की वजह से उसे दिल्ली लौट जाना पड़ा, जबकि राम दोनों बहुओं को ले कर अपने मातापिता के पास छपरा पहुंच गया.

एकसाथ घर पर आए अपने बेटे राम और 2 पुत्र वधुओं को देख कर पार्वती और महादेव फूले नहीं समाए. वे समझ नहीं पाए कि उन का स्वागत कैसे करें. मारे खुशी के पार्वती उन की आरती उतारने लगी, जबकि महादेव अपने नौकर और नौकरानियों को बहुओं का कमरा सुसज्जित करने और उन की पसंद का खानपान तैयार करने की बात सम?ाने लगे.

पार्वती की बहुओं के घर आने की खबर महल्ले में चंदन की सुगंध की तरह फैल गई. पासपड़ोस की महिलाएं उन्हें देखने के लिए पहुंच गईं. वे बारीबारी से सत्या और शोभा की मुंहदिखाई की रस्मअदायगी में जुट गईं.

दोनों बहुओं के पास उपहारों का ढेर लग गया, जिसे देख कर सत्या और शोभा अपने प्रेम विवाह को भूल गई. उन्हें लगा कि वे अपनी ससुराल में अरेंज्ड मैरिज कर लाई गई हों. ससुराल में उन के दिनरात सुकून से कटने लगे.

एक दिन राम अपनी पत्नी सत्या और भाभी शोभा के साथ गौतम ऋषि और त्रिलोक सुंदरी अहिल्या का पौराणिक मंदिर देखने के लिए गोदना सेमरिया ले कर गया. वे मंदिर के पुजारी से अहिल्या के श्राप व उद्धार की कहानी सुन रहे थे, तभी उस की मां पार्वती ने राम को फोन किया, ‘‘किसी मामले में पुलिस तुम्हारे पिताजी को पकड़ कर थाने ले गई है. तुम लोग जल्दी भगवानपुर थाना पहुंचे.’’

‘‘पिताजी को पुलिस पकड़ कर ले गई… बिलकुल असंभव बात है मां,’’ राम ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए आशंका जताई.

‘‘राम देर न करो… जल्दी थाना पहुंचो…’’

‘‘आप चिंता न करें, तुरंत पहुंच रहा हूं,’’ राम ने जवाब दिया और सभी वहां से थाने के लिए चल दिए.

राम जैसे ही सत्या के साथ भगवानपुर थाना पहुंचा पुलिस ने दोनों को हिरासत में ले कर अंदर बैठा दिया, जहां पहले से महादेव बैठे हुए थे.

‘‘सर, हमें किस जुर्म में बैठाया गया है उस की जानकारी हमें होनी चाहिए?’’ राम ने थानेदार संजय सिंह से पूछा.

‘‘तुम पर सत्या नाम की लड़की का जबरन अपहरण करने, उस की इच्छा के विरुद्ध शादी रचाने और शारीरिक संबंध बनाने का आरोप है. तुम्हारे विरुद्ध जयपुर थाना में लड़की के पिता मनोज कुमार ने लिखित आवेदन दिया है. जयपुर कोर्ट के आदेश पर तुम दोनों की बरामदी के लिए जयपुर पुलिस छपरा पहुंची है. औपचारिक पुलिसिया काररवाई के बाद थोड़ी देर में तुम लोगों को अपने साथ ले जाएगी. मेरी बात कुछ समझ में आई?’’ थानेदार संजय सिंह ने रोबदार आवाज में राम पर धौंस जमाई.

‘‘यह तो कानून का खुला उल्लंघन है सर… किसी ने हम पर ?ाठा आरोप लगा दिया… और पुलिस काररवाई के नाम पर हमें परेशान करेगी,’’ महादेव थोड़ा उत्तेजित होते हुए बोले.

‘‘अपहृत लड़की आप के सामने बैठी है, फिर भी आरोप झूठा लगता है? इस मामले में पूरे परिवार को जेल जाना पड़ेगा, तब सारी हेकड़ी निकल जाएगी,’’ थानेदार ने महादेव को धमकाया.

तभी जयपुर पुलिस ने राम, सत्या, महादेव को एक वाहन में बैठाया और जयपुर ले कर चली गई. निराश और हताश शोभा और उस की सास पार्वती दोनों थाने से अपने घर वापस आ गईं. शोभा ने अपने पति लखन को फोन पर सारे घटनाक्रम के बारे में बताया और कहा, ‘‘पता नहीं, किस की बुरी नजर हमारे परिवार को लग गई है. लखन, ट्रेन से हम दोनों आज जयपुर निकल जाएंगे. तुम भी वहीं पहुंचो… उन की जमानत कराने की जिम्मेदारी हमारी होगी.’’

‘‘ओके शोभा, मां का खयाल रखना मैं भी कल पहुंच जाऊंगा,’’ लखन ने जवाब दिया.

जयपुर पुलिस ने अपहृत सत्या के आरोपी राम को अपने घर में छिपा कर रखने के दोषी महादेव को भी जेल भेज दिया. बापबेटा को जेल भेजने के बाद पुलिस ने सत्या को सदर अस्पताल में मैडिकल जांच कराई. उस के बाद सत्या का फर्द बयान अदालत में दर्ज कराने के लिए पेश किया गया.

वहां मजिस्ट्रेट बीबी केस की सुनवाई कर रहे थे. उन के समक्ष मुखातिब होते हुए सत्या बोली, ‘‘जज साहब, मैं 25 वर्ष की बालिग युवती हूं. अपने होशोहवास और अपनी इच्छा के अनुसार भगवानपुर छपरा, बिहार निवासी राम वल्द महादेव से जयपुर कोर्ट में कोर्ट मैरिज की है. यहीं एक मल्टी इंटर नैशनल कंपनी में कार्यरत हूं. मां?ा, जिला सारण, बिहार निवासी सह विधायक मनोज कुमार का मेरे पिता राम पर लगाया गया आरोप निराधार है. आप जानते हैं कि भादवि की धारा 98 ए के तहत कोई भी युवती अपने मनपसंद साथी के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह सकती है. उस पर जबरन कोई केस थोपा नहीं जा सकता है. बावजूद मेरे पिता ने मेरे पति राम पर अपहरण, शारीरिक शोषण आदि का मामला दर्ज किया है. जज साहब, मेरे और जेल में बंद मेरे पति के साथ इंसाफ किया जाए. यह तो कानून और नारी सशक्तीकरण का खुला उल्लंघन है.’’

कठघरे में खड़ी सत्या अपना फर्द बयान देने के बाद तनावमुक्तलग रही थी.उसे लगा कि उस के माथे का भार कम हो गया हो. उस ने अदालत में खड़ी अपनी सास पार्वती, देवर लखन और शोभा के मायूस चेहरों को देखा, जो काफी उदास और गमगीन लग रहे थे. उस ने आंखों के इशारे से सब्र रखने का भरोसा दिलाया.

उसी समय विधायक मनोज कुमार के अधिवक्ता बीएन राम ने कहा, ‘‘हुजुर, सत्या पर प्रेम का नशा सवार है इसलिए वह अपने प्रेमी का सहयोग कर रही है. उसे उस के पिता के साथ घर जाने की इजाजत दी जाए ताकि वह अपने बीमार पिता की सेवा कर सके. सत्या के अलावा उस के पिता के घर में सेवा करने वाली कोई दूसरी औरत नहीं है.’’

अधिवक्ता के बयान पर कोर्ट में उपस्थित लोग तरह तरह की चर्चा करने लगे.

‘‘और्डरऔर्डर,’’ मजिस्ट्रेट बीबी ने मेज पर हथौड़ा ठकठकाया और काया और सत्या से पूछा, ‘‘तुम्हारे पिता अकेला रहते हैं? क्या तुम उन के साथ रहना पसंद करोगी?’’

‘‘नहीं सर, पिताजी के साथ नहीं जा सकती. राम और उस के परिवार के सदस्य कोर्ट में मौजूद हैं, मैं उन के साथ ही रहूंगी. अब मेरा यही परिवार है.’’

‘‘अरे बेटी, इतना गुस्सा ठीक नहीं. तुम्हारे पिता ने जो भी केस किया है वह तेरी भलाई के लिए किया है. अब वे तेरी शादी शानोशौकत के साथ करना चाहते हैं, जिसे दुनिया वर्षों तक याद रखे. राम के परिवार के साथ नहीं जाओ, जब प्रेम का नशा उतरेगा तो बहुत पछताओगी.’’

‘‘मर गई उन की बेटी. उन की झूठी शान और राजनीति उन्हीं को मुबारक. एक विधायक की जवान व कुंआरी लड़की दूसरे प्रदेश में नौकरी करती है. उन से फोन पर बारबार जयपुर आने का आग्रह करती है, लेकिन विधायक को राजनीतिक बैठकों और चुनाव से फुरसत नहीं है. लेकिन वहीं लड़की जब कोर्ट मैरिज कर लेती है तो बाप की कुंभकर्णी नींद टूट जाती है. सीधे प्रेमी और प्रेमिका पर केस दर्ज करा देते हैं, माई लार्ड आप से जानना चाहती हूं कि क्या यही बेटी के प्रति एक बाप का अपनापन, स्नेह और प्यार है?’’

अदालत में उपस्थित लोगों में एक बार फिर सत्या के फर्द बयान पर तरहतरह की चर्चा होने लगी. कोई कहता, ‘‘लड़की अपनी जगह पर ठीक है,’’ दूसरा कहता, ‘‘जो एक बार राजनीति की चक्रव्यूह में फंस जाता, उस के लिए सारे रिश्तेनाते अक्षुण्ण हो जाते हैं…’’ तीसरा बोला, ‘‘बाप बेटी की जंग में प्रेमी क्यों पिसेगा, उसे जेल से रिहा करो….’’

‘‘और्डरऔर्डर,’’ मजिस्ट्रेट बीबी ने मेज पर पुन: हथौड़ा ठकठकाया और बोले, ‘‘सत्या और उस के प्रेमी राम के साथ काफी नाइंसाफी हुई है. सत्या ने अगर कोर्ट मैरिज कर भी ली तो समाज के प्रति जिम्मेदार उस के विधायक बाप को 1-2 बार मिल कर समझना चाहिए न कि केस करना चाहिए. अगर विधायक ने सू?ाबू?ा से काम लिया होता तो यह मामला कोर्ट नहीं पहुंचता. बहरहाल, यह अदालत सत्या व उस के प्रेमी राम को बाइज्जत बरी करती है. राम को जेल से बाहर आने तक सत्या अपनी इच्छा के अनुसार सुरक्षित जगह पर रह सकती है. अगर प्रतिवादी इन्हें परेशान करने की कोशिश करता है तो अदालत की अवहेलना के आरोप में उसे सजा भी हो सकती है,’’ इस आदेश के बाद मजिस्ट्रेट बीबी अपनी कुरसी से उठ कर अंदर चले गए.

सत्या कठघरे से निकल कर शोभा के पास पहुंची, जहां पार्वती ने उसे अपनी बाजुओं में भर लिया. तत्पश्चात् अपने पिता महादेव और भाई राम की जमानत कराने के लिए लखन सभी को ले कर अधिवक्ता पीएन के पास पहुंचा.

तब उस के अधिवक्ता ने कहा, ‘‘मजिस्ट्रेट बीबी का आदेश होते ही मैं ने दोनों को जेल से रिहा करने के लिए बेल पिटिशन भर कर कोर्ट में जमा कर दी. मंजूरी मिलते ही जज साहब के इजलास में बेलरों को हाजिर कराना होगा. आप लोग बेलर तैयार रखें.’’

‘‘वकील साहब, मेरे साथ नौकरी पेशाधारी, वाहन चालक, बिल्डर आदि लोग मौजूद हैं. उन से बेलर का काम हो जाएगा न?’’

‘‘बिलकुल हो जाएगा. देखिए, आप पहले 4 बेलरों को जज साहब के सामने कठघरे में खड़ा कराइए,’’ कह कर अधिवक्ता पीएन इजलास की ओर बढ़ गए.

लखन और शोभा के प्रयास से महादेव और राम जेल से बाहर आ गए. उन्हें देख कर सब के चेहरे खुशी से खिल उठे.

‘‘मेरी गैरहाजिरी और विपरीत परिस्थितियों में शोभा बेटी और लखन ने अपनी मां और घर को बखूबी संभाला. अब लगता है कि सारी जिम्मेदारियां सौंप कर पार्वती के साथ देशाटन पर निकल जाऊं. तुम लोगों की जिम्मेदारियां देखकर मेरी उम्र और कद दोनों काफी बढ़ गए हैं. क्यों, सत्या बेटी सही कहा न?’’

‘‘हां पिताजी, आप हमारे गार्जियन हैं. आप का आशीर्वाद और मां की ममता तो हमारे साथ है.’’

‘‘वह तो ठीक है, लेकिन एक गार्जियन छूट रहा है. विधायकजी के आशीर्वाद के बिना सबकुछ अधूरा लग रहा है. चलो, वे रहे विधायकजी,’’ महादेव इतना बोल कर आगे बढ़ गए.

विधायक मनोज कुमार अपने समर्थकों के साथ जाने के लिए अपनी गाड़ी की ओर जैसे ही बढ़े, वैसे ही उन के सामने से शोभा और लखन ने उन का पैर स्पर्श कर लिया. उन का हाथ आशीष देने के लिए उठा ही था कि सत्या और राम ने भी झुक कर चरण स्पर्श करना चाहे,

तभी विधायक ने अपने पैर पीछे खींच लिए और गुस्से में बोल पड़े, ‘‘तू मेरी बेटी नहीं है…’’ दूर हटो मेरी नजरों से… इज्जत को तारतार कर दिया, अब क्या लेने आई हो, आज से मैं नहीं रहा तेरा बाप.’’

विधायक की बात सुन कर सत्या की आंखें भर आईं. वह किसी अपराधी की तरह सिर ?ाका कर राम के साथ ठगी सी खड़ी रही.

तभी महादेव ने बात को संभालते हुए नम्रता के साथ कहा, ‘‘विधायकजी गुस्सा थक दीजिए और मेरी बातों पर ध्यान दीजिए. सत्या की शादी का प्रस्ताव ले कर आप खुद मेरे घर आए थे.’’

‘‘हां आया था तो क्या हुआ. आप ने कौन सा रिश्ता जोड़ लिया था?’’ विधायक ने व्यंग्य कसा.

‘‘उस दिन कहा था कि  राम अपनी शादी खुद तय करेगा, एक बार उस से बात कर लें, लेकिन आप ने ऐसा नहीं किया. आज कोर्ट मैरिज कर दोनों आप के सामने हैं, उन्हें आशीर्वाद दे कर विदा कीजिए विधायकजी.’’

महादेव की तार्किक बातें सुन कर विधायक मनोज कुमार के साथ खड़े उन के वकील बीएन राम ने आश्चर्य प्रकट किया और कहा, ‘‘विधायकजी, आप सत्या की शादी का प्रस्ताव ले कर राम के घर गए थे, फिर यह ड्रामाबाजी क्यों? आप यह न भूलिए कि आप एक जनप्रतिनिधि भी हैं. समाज की सेवा करना आप का फर्ज है. दूसरों की बेटियों का आप घर बसाते रहे हैं, वहीं आप की पुत्री आशीष के लिए खड़ी है, यह कैसी विडंबना है?’’

वकील बीएन राम की बातें सुन कर महादेव ने प्रसन्नता जाहिर की और कहा, ‘‘वकील बीएन रामजी, आप ने बात कही है. विधायकजी को तो सत्या व राम पर गर्व होना चाहिए जिन्होंने युवा पीढ़ी में एक नई चेतना, ऊर्जा और उत्साह का संचार किया है, समाज को नई दिशा दी है. बेटीदामाद को घर ले जाइए और उन के सम्मान में एक समारोह कीजिए, जहां आप के रिश्तेदारों का स्नेह, दुलार और प्यार पा कर सत्या का आंचल खुशियों से भर जाएगा.’’

यह बात विधायक मनोज कुमार के दिल को छू गई. उन का आक्रोश जाता रहा. फिर अपने स्वाभिमान के विरुद्ध सादगी से बोले, ‘‘वाह महादेवजी वाह, सचमुच आप महादेव हैं,’’ इतना कह कर विधायक मनोज कुमार ने महादेव को अपने सीने से लगा लिया और कहा, ‘‘मेरी आंखों पर पुरातन परांपराओं और दकियानूसी बातों का चश्मा चढ़ा हुआ था. जिस से आधुनिक बातें अच्छी नहीं लगती थीं. हमेशा उन का वहिष्कार किया करता था. आप ने मेरी आंखें खोल दीं. मैं ने केस कर दोनों कुल का सर्वनाश करना चाहा. आप सभी हमें माफ करें.’’

‘‘अरे नहींनहीं विधायकजी, सुबह का भूला शाम को घर लौट आए तो उसे भूला हुआ नहीं कहते हैं.’’

प्रसन्नता जाहिर करते हुए विधायक ने अपनी बेटी व दामाद को अपने से लगा लिया. यह देख कर बीएन राम, महादेव, लखन और शोभा की आंखें मारे खुशी के छलक उठीं.

ईगल के पंख : आखिर वह बच्ची अपनी मां से क्यों नफरत करती थी?

Writer- Naresh Kaushik

नवंबर का महीना. हलकी ठंड और ऊपर से झामाझम बारिश. नवंबर के महीने में उस ने अपनी याद में कभी ऐसी बारिश नहीं देखी थी. खिड़की से बाहर दूर अक्षरधाम मंदिर रोशनी में नहाया हुआ शांत खड़ा था. रात के 11 बजने वाले थे और यह शायद आखिरी मैट्रो अक्षरधाम स्टेशन से अभीअभी गुजरी थी.

‘‘अंकल… अंकल… प्लीज आज आप यहीं रुक जाओ मेरे पास,’’ रूही की आवाज सुन कर उस का ध्यान भंग हुआ.

बर्थडे पार्टी खत्म हो चुकी थी. पड़ोस के बच्चे सब खापी कर, मस्ती कर अपनेअपने घर चले गए थे. अब कमरे में केवल वे 3 ही लोग थे. समीरा, 6 साल की बेटी रूही और प्रशांत.

‘‘मम्मा? आप अंकल को रुकने के लिए बोलो,’’ रूही ने प्रशांत का लाया गिफ्ट पैकेट खोलते हुए कहा.

बार्बी डौल देख कर वह फिर खुशी से चिल्लाई,’’ अंकल यू आर सो लवली. थैंक्यू, थैंक्यू, थैंक्यू…’’ कहते हुए रूही प्रशांत के गले से लिपट गई, ‘‘अब तो मैं आप को बिलकुल नहीं जाने दूंगी,’’ रूही ने फिर से कहा और उछल कर सोफे पर बैठे प्रशांत की गोदी में बैठ गई.

रूही ही क्यों, आज तो समीरा का भी मन था कि प्रशांत यहीं रुक जाए. उस के पास उस के करीब. बेहद करीब, समीरा की सोचने भर से धड़कनें बढ़ने लगीं.

प्रशांत ने नजरें उठा कर समीरा की ओर देखा, ‘‘रूही बेटा, अंकल तो रुकने को तैयार हैं लेकिन मम्मा से तो परमिशन लेनी ही पड़ेगी न,’’ उस की नजरों में एक शरारत थी.

प्रशांत की नजरों से समीरा की नजरें टकराईं. वो समझ गई थी. एक बारिश बाहर हो रही थी और एक तूफान दोनों के भीतर घुमड़ रहा था. सारे बांधों को तोड़ने को बेताब. उसे एक डर सा लगा और उस ने न जाने क्या सोच कर रूही को मना कर दिया

प्रशांत रिश्ते में उस का देवर था और जब वह ब्याह कर गांव आई थी तो तभी समझ गई थी कि वह सुधांशु का कितना मुंह लगा है. सुधांशु ने तो सब के सामने कह दिया था, ‘‘प्रशांत मेरा ममेरा भाई ही नहीं मेरा जिगरी दोस्त भी है. समीरा, तुम्हें मेरे साथ इस के नखरे भी उठाने होंगे.’’

और जब कैंसर से शादी के 4 साल बाद  सुधांशु समीरा को बेसहारा छोड़ गया तो प्रशांत ने ही उसे संभाला था. पति की मौत के बाद सारे रिश्ते ऐसे धुंधले पड़ गए थे मानो किसी ने कागज पर लिखे हरफों पर पानी गिरा दिया हो.

डैथ सर्टिफिकेट लेने से ले कर सुधांशु के बैंक अकाउंट, एलआईसी पौलिसी क्लेम के लिए भागदौड़ करने से ले कर 2 कमरे का यह छोटा सा फ्लैट समीरा के नाम करवाने जैसे सारे जरूरी काम प्रशांत ने ही किए.

यह संयोग ही था कि सुधांशु की मौत से कोई सालभर पहले ही प्रशांत का तबादला लखनऊ से दिल्ली हो गया था. 2 साल गुजर चुके थे सुधांशु को गए.

6 महीने बाद ही उस ने स्कूल फिर से जौइन कर लिया. सरकारी स्कूल में टीचर थी तो उस के सामने यह सवाल नहीं था कि अब रोजीरोटी कैसे चलेगी.

पहले तो समीरा के दिमाग में कोई बात आई ही नहीं. प्रशांत जो भागभाग कर उस की मदद कर रहा था, उस में उसे अपने लिए कुछ नहीं लगा था. वह यही सोचती रही कि सुधांशु का जिगरी दोस्त और भाई होने के नाते शायद वह अपनी जिम्मेदारी निभा रहा है.

मगर एक दिन शाम होने वाली थी. सूरज का बड़ा सा गोला अक्षरधाम मंदिर के पीछे छिपने ही वाला था. सोचा चाय बना ले, उस के बाद शाम के खाने का कुछ इंतजाम करेगी. रूही खिड़की के पास ही कुरसी पर बैठी अपना होमवर्क कर रही थी.

तभी अचानक दरवाजे की घंटी बजी. इस वक्त कौन होगा? यह सोचते हुए वह उठी और दरवाजा खोला तो देखा सामने प्रशांत खड़ा था. हाथ में फूलों का गुलदस्ता लिए, ‘‘हैप्पी बर्थडे माई डियर समीरा भाभी,’’ उस ने चहकते हुए कहा.

समीरा बड़ी हैरान हुई. उसे तो खुद याद नहीं था कि आज उस का जन्मदिन है. प्रशांत लाल गुलाबों का बड़ा सा बुके ले कर आया था. उस के बाद तो जैसे प्रशांत  उस के लिए फूल लाने का बहाना ही ढूंढ़ने लगा था. कभी भी शाम को आ कर दरवाजे की घंटी बजा देता और कहता, ‘‘आज शाम बेहद खूबसूरत है. आप की जुल्फों की तरह. ये फूल आप की जुल्फों के नाम, ये फूल आप की मुसकराहट के नाम, ये फूल आज की सुरमई शाम के नाम.’’

पहले तो उसे लगा प्रशांत उस का मन बहलाने के लिए ऐसी हरकतें कर रहा है लेकिन एक दिन रसोई में जब वह खाना बना रही थी और रूही ट्यूशन गई थी तो प्रशांत मदद के बहाने उस से बेहद सट कर खड़ा हो गया. उसे अपनी गरदन पर उस की गरम सांसें दहकती सी लगीं. अचानक लगा  उस के भीतर भी कोई आग धधक उठी है जो अभी तक राख के नीचे दबी पड़ी थी.

अब समीरा के कान भी दरवाजे की घंटी की आवाज सुनने को बेचैन रहने लगे थे. यह बात तो वह भी सम?ा रही थी कि अब प्रशांत और उस के बीच की सारी दूरियां मिटने वाली हैं, बस कब वह क्षण आएगा, उसे इसी का इंतजार था.

भीतर से कहीं सवाल भी उठ रहे थे, यह तुम क्या करने जा रही हो. एक बच्ची की मां हो. क्या सीखेगी रूही तुम से?

मगर तुरंत ही वह अपने बचाव में उठ खड़ी होती कि मैं अपने तन की, मन की चाहतों को कहां दफन कर दूं? क्यों मैं अपनी ख्वाहिशों का कत्ल कर आत्महत्या करूं? और प्रशांत वह रूही को भी तो कितना प्यार करता है. एक बाप की तरह. मैं रूही की खुशियों के लिए ये सब कर रही हूं. रूही की खुशियां. यही तर्क दे कर वह सब सवालों पर परदा डाल देती. मगर ये सवाल हर वक्त उसे घेरे रहते.

प्रशांत का फोन आया था, ‘‘सिम्मी तैयार रहना, फिल्म देखने चलेंगे, नाइट शो. हां, रूही को पड़ोस की आंटी के पास छोड़ देना.’’

समीरा भाभी की जगह अब वह सिम्मी हो गई थी. प्रशांत की आवाज सुन कर ही समीरा का रोमरोम उन्मादित होने लगता था और आज तो फिल्म जाने का प्रोगाम बन चुका था. उस ने अपनी कमनीय देह पर नजर डाली कि अभी उम्र ही कितनी है मेरी. मात्र 28 साल. उसे अपने सौंदर्य पर गरूर हो आया जैसे कभी कालेज के जमाने में होता था.

वह सबकुछ भूल गई और भूल भी जाना चाहती थी. उस ने अलमारी से शिफौन की सुर्ख रंग की साड़ी निकाली और स्लीवलैस ब्लाउज. उस ने साड़ी पहनी भी अलग अंदाज में. शिफौन की नाभिदर्शना साड़ी और स्लीवलैस ब्लाउज में वह कयामत ढा रही थी.

दरवाजे की घंटी बजी तो उस ने भाग कर दरवाजा खोला. प्रशांत उसे देखता ही रह गया. दरवाजा बंद कर उस ने समीरा को कस कर बांहों में भर लिया. समीरा भी उस की मजबूत बांहों के गरम घेरे में पिघल जाना चाहती थी.

‘‘जल्दी चलो, पिक्चर का वक्त हो गया है,’’ उस ने खुद को प्रशांत की बांहों से छुड़ाते हुए कहा.

‘‘रूही… रूही बेटा…’’ उस ने आवाज लगाई.

‘‘बेटा, मम्मा और अंकल बाजार जा रहे हैं. आप सामने वाली आंटी के यहां रह जाना थोड़ी देर.’’

रूही ने कुछ नहीं कहा लेकिन वह समीरा को अजीब तरीके से देख रही थी आज. जैसेकि अपनी ही मां को पहचान नहीं पा रही हो. प्रशांत के लिए भी रूही की नजरों में कुछ ऐसे भाव थे कि समीरा भीतर तक हिल गई.

परदे पर फिल्म चलती रही और उस के भीतर घमासान. प्रशांत ने कई बार उसे बांहों में भरने, उसे छूने की कोशिश की लेकिन आज उस के भीतर कोई और ही तूफान चल रहा था. उस ने प्रशांत के हाथों को ?ाटक दिया.

रात घर लौटी तो रूही सो चुकी थी. उस ने प्रशांत से भीतर आने को भी नहीं कहा. वह भी समीरा का बरताव देख कर परेशान था.

समीरा ने बगल में लेटी रूही के बालों में हाथ फिराया. उस के दिमाग का तूफान थमने का नाम नहीं ले रहा था. सवाल पर सवाल.

‘इस में रूही की भी तो खुशी है?’ उस के मन ने फिर से बचाव के लिए हथियार उठा लिया.

‘अपनी वासना की पूर्ति को रूही की खुशी का नाम मत दो. तुम्हें क्या लगता है प्रशांत रूही को अपने बच्चे की तरह प्यार करता है? धिक्कार है तुम पर समीरा. तुम और प्रशांत अपनी शारीरिक भूख को मिटाने के लिए एक नन्ही बच्ची का इस्तेमाल कर रहे हो.’

आज तुम ने देखा नहीं रूही की आंखों में तुम्हारे और प्रशांत के लिए कैसा भाव था? एक

6 साल की बच्ची को जब रिश्ते की सचाई समझ आ रही है तो क्या वह बड़ी हो कर तुम्हें माफ कर पाएगी? क्या उस की नजरों में तुम्हारा मां का दर्जा कायम रहेगा? समीरा भोग का नाम जिंदगी नहीं है. इच्छाओं और वासनाओं में फर्क होता है. वासनाओं की पूर्ति में खुशी नहीं है. भोग कर तो धरती से न जाने कितने अरबों लोग चले गए लेकिन इतिहास ने उन्हीं को याद रखा है जिन्होंने त्याग किया, जिन्होंने खुद को तपाया. तुम्हें आज भोग और त्याग के बीच में से किसी एक को चुनना होगा.

समीरा, भोग रसातल है जिस की कोई थाह नहीं है और त्याग हिमालय की ऊंचाई है और क्या सिखाओगी रूही को? भोग के सहारे जिंदगी काटना आसान होता है लेकिन ऐसी जिंदगी परजीवी की जिंदगी से बदतर होती है. याद रखो, भोगने की शरीर की एक सीमा होती है लेकिन त्याग और समर्पण की मजबूती का दुनिया में कोई मुकाबला नहीं कर सकता. यह तुम्हें तय करना है, तुम अपनी बच्ची को कैसे संस्कार देना चाहती हो. भोग या त्याग. उफ यह कैसा तूफान उठ रहा था समीरा के दिमाग में.

इन्हीं सब सवालों से रातभर जू?ाती रही समीरा. एक पल को भी पलकें नहीं मूंद पाई. पलकें तो नहीं लेकिन उस ने जिंदगी के एक अध्याय को बंद करने का फैसला जरूर कर लिया था. अब भीतर के सारे सवाल मिट चुके थे. अगले दिन संडे था. समीरा रातभर न सोने के बावजूद खुद को तरोताजा महसूस कर रही थी.

दिनभर रूही के साथ ऐसे ही निकल गया. रूही नन्ही जान. रात की बात भूल चुकी थी. शाम होते ही फिर से दरवाजे की घंटी बज उठी.

उस ने दरवाजा खोला… और कौन होता. वह किचन में जा कर चाय का पानी चढ़ा कर ड्राइंगरूम में आ गई. प्रशांत उस के करीब जाने का मौका ढूंढ़ रहा था और वह ऐसा कोई मौका नहीं देना चाहती थी. प्रशांत बीती रात के उस के बरताव की वजह जानना चाहता था.

उस ने चाय और नाश्ता ट्रे में लगा कर टेबल पर रख दिया. खिड़की से खुला आसमान नजर आ रहा था.

दूर आसमान में पंछी उड़ रहे थे. हर रोज की तरह अक्षरधाम मंदिर के पीछे सूरज डूब रहा था.

‘‘मम्मा, वह आसमान में ईगल उड़ रही है न.’’

‘‘हां बेटा…’’ समीरा ने प्यार से जवाब दिया और चाय का प्याला प्रशांत की ओर बढ़ाया.

‘‘मम्मा, क्या ईगल सीढ़ी लगा कर इतने ऊंचे आसमान तक जाती है?’’ रूही के सवाल पर प्रशांत हंस दिया.

‘‘नहीं बेटा, ईगल के अपने पंख इतने मजबूत होते हैं कि उसे किसी के सहारे की जरूरत ही नहीं पड़ती. वह सारे आसमान में उड़ती है लेकिन सिर्फ और सिर्फ अपने पंखों के सहारे,’’ समीरा ने जवाब दिया.

‘‘बेटा, अपने पंख मजबूत हों तो तुम कहीं तक की भी उड़ान भर सकते हो, सीढ़ी के सहारे आसमान में नहीं उड़ा जा सकता,’’ समीरा ने खिड़की के पास खड़ी रूही के बालों में उंगलिया घुमाते हुए कहा और प्रशांत की ओर देखा.

प्रशांत उस की निगाहों की ताब न ला सका. आज समीरा की आंखों में एक भूख, एक लालसा, एक समर्पण की जगह गजब का आत्मविश्वास था. यह क्या हो गया था समीरा को? लेकिन कुछकुछ उसे भी समझ आ रहा था. चाय खत्म की और प्रशांत बिना कुछ कहे उठ कर चला गया.

समीरा ने रूही को गले से लगाया और उस का माथा चूम लिया, ‘‘मेरी रूही भी ईगल की तरह मजबूत पंखों वाली बनेगी और आसमान में उड़ेगी. हमें नहीं चाहिए सीढ़ी.’’

‘‘मम्मा, आप इस सूट में बहुत अच्छी लग रही हो. रात वाली साड़ी आप कभी मत पहनना. मम्मा कल रात मैं डर गई थी, मुझे लगा था आप मुझे छोड़ कर जा रही हो.’’

समीरा ने रूही को और कस कर गले से लगा लिया.

Relationship Tips : जब आप को कोई करे इस्तेमाल, तो रिश्ते तोड़ने में कैसा संकोच?

Relationship Tips : भले ही सदियों से यही कहा जाता रहा हो कि रिश्तों को निभाओ, रिश्तों को रोजाना प्यार के जल से सींचते रहें. पर क्या हमारी जिंदगी के सभी रिश्ते इतनी अटैंशन के लायक होते हैं? ऐसे रिश्तों को पहचानना बहुत जरूरी है जो आप को खुशियां नहीं बल्कि टैंशन देते हैं और जिस रिश्ते में आप का केवल इस्तेमाल किया जाता है, ऐसे रिश्ते को अलविदा कहना ही अच्छा होता है.

अपनी किताब ‘सिंगल वूमन लाइफ, लव ऐंड अ डैश औफ सैंस’ में रिलेशनशिप ऐक्सपर्ट मैंडी हेल इस सचाई की ओर इशारा करती लिखती हैं, ‘‘हम वाकई क्या चाहते हैं बनाम हम किस चीज के लिए सैटल होने के लिए तैयार हैं, इस बात को समझने का एक मौका है ब्रेकअप. जीवन और प्यार में चीजों को सैटल करने की सोच से ऊपर उठिए और अगली बार जब कोई आप से यह कहे कि आप का स्टैंडर्ड बहुत ऊंचा है तो माफी मत मांगिए क्योंकि यह स्टैंडर्ड ही तो तय करता है कि हमें कैसा जीवन मिलेगा.’’

कई महिलाओं की आदत होती है कि वे यह देखना ही नहीं चाहती कि इस रिश्ते से उन्हें मिल क्या रहा है?

मगर जीवन और रिश्तों के प्रति यह नजरिया उचित नहीं. आप के पास हक है कि आप खुद को इस्तेमाल होने देने से इनकार करें और वह पाएं जिस की आप हकदार हैं.

उस रिश्ते को तोड़ने में जरा भी संकोच न करें जहां आप को जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल किया जा रहा हो. किसी को इस्तेमाल कई तरह से किया जा सकता है:

रुतबे और ओहदे का इस्तेमाल

नीता आईएएस अफसर थी जबकि उस का भाई एक साधारण क्लर्क था. पिता की आकस्मिक मौत के बाद अपने छोटे भाईबहन को पढ़ाने के लिए नीता ने शादी नहीं की. नीता का भाई प्रेम शुरू से मेहनत करने में विश्वास नहीं रखता था. उसे सब पकापकाया खाने की आदत हो गई थी.

प्रेम अपनी बहन के रुतबे का जी भर कर इस्तेमाल करता था. बहन की गाड़ी में घूमता और बहन के ही आलिशान बंगले में रहता. किसी से कोई काम होता तो झट बहन के नाम की मदद ले लेता.

नीता कई साल चुप रही और भाई को हर तरह से फायदे देती रही. मगर फिर उसे भाई के स्वार्थी स्वभाव का एहसास हुआ और उस ने अपना घर बसाने की सोची. इस से पहले उस ने भाई से संबंध तोड़ते हुए उस को अपना घर अलग लेने और अपने बल पर जीने की सलाह दे डाली. भाई का चेहरा उतर गया क्योंकि उसे पता था कि बहन के रुतबे की उसे कैसी आदत हो गई है. वह बहुत गिड़गिड़ाया मगर नीता फैसला ले चुकी थी.

कई दफा लोग हम से रिश्ता बना कर इसलिए रखना चाहते हैं ताकि वे हमारे रुतबे और ओहदे का इस्तेमाल करते हुए अपना भला कर सकें. ऐसे में हम से रिश्ता बना कर रखने के पीछे उन की मंशा यह होती है कि वे हमारे नाम का इस्तेमाल कर अपने लिए सुविधाएं या फिर फेवर पा सकें.

अकसर आप ने भी गौर किया होगा कि ऐसे लोग परिचय होते ही सब से पहले आप का ओहदा जानना चाहते हैं. यदि आप किसी अच्छी पोस्ट पर हैं या ऊंचे खानदान से ताल्लुक रखते हैं तो उन का रवैया ही बदल जाता है. दुनिया ऐसी ही है पर ऐसे लोग आप का खराब समय आते ही अपना रास्ता बदलने से गुरेज नहीं करते. इसलिए इन से बच कर रहना बहुत जरूरी है.

धनसंपत्ति का इस्तेमाल

जैसे चीनी के साथ चीटियों का रिश्ता है वैसा ही कुछ पैसों के साथ स्वार्थी लोगों का होता है. ऐसे लोग कोई भी हो सकते हैं, भाईबहन, रिश्तेदार, दोस्त, पड़ोसी जिन्हें आप से नहीं बल्कि आप की दौलत से प्यार होता है. एक बार जब आप ऐसे लोगों की पहचान कर लें तो उन से दूरी बढ़ाने में गुरेज न करें.

34 साल की सीमा बताती है कि उस की एक सहेली निशा हमेशा उस से बहुत प्यार से बातें करती थी. उस ने हमेशा सीमा के पैसों का इस्तेमाल किया. सीमा करोड़पति पिता की बेटी थी, इसलिए उसे कोई समस्या नहीं थी. सीमा कहीं भी घूमने जाती या शौपिंग के लिए निकलती तो निशा साथ हो लेती और फिर सारे रुपए सीमा के क्रैडिट कार्ड से खर्च होते.

एक बार सीमा अपने पापा से रूठ कर अकेली निशा के घर रहने आ गई. पापा ने उस का क्रैडिट कार्ड भी ब्लौक कर दिया. ऐसे में वह निशा के घर पहुंची तो 2 दिन के अंदर निशा के व्यवहार की कलई खुल गई. सीमा ने उसी वक्त उस से संबंध समाप्त कर लिए.

दिखावे के लिए इस्तेमाल

अकसर पति अपनी खूबसूरत बीवी को अपनी शान का दिखावा करने के लिए इस्तेमाल करते हैं. वे औफिशियल पार्टीज में पत्नी को सजाधजा कर ले जाते हैं ताकि बौस या दोस्तों पर अच्छा इंप्रैशन पड़े. रिश्तेदारों को जलाने और अपना कद ऊंचा दिखाने के लिए भी वे बखूबी बीवी का इस्तेमाल करते हैं. वे चाहते हैं कि उन की बीवी इंग्लिश में बातें करें और हौट ड्रैसेज पहने ताकि वह आधुनिक दिखे और पति का स्टेटस ऊंचा नजर आए.

इमोशंस का इस्तेमाल

प्रमोद जब भी शराब पी कर घर लौटता तो पत्नी को बहुत गालियां देता, घर में तोड़फोड़ करता और जुए में रुपए हार कर आता वह अलग. उस के कारनामे देख कर उस का पिता बहुत नाराज होता और उसे एक कमरे में बंद कर ताला लगा देता और खाने को भी नहीं देता. तब प्रमोद अपनी पत्नी के इमोशंस का इस्तेमाल करता.

पत्नी के आगे भोला सा चेहरा बना कर शराब पीने के पीछे कोई न कोई बहाना बना देता और वादा करता कि अब कभी नहीं पीएगा. वह पत्नी से कहता कि पिता को मना ले. पत्नी भावनाओं में बह कर उस का काम कर देती. एक बार तो वह एक औरत को ले आया और कहने लगा कि यह मेरे साथ रहेगी. पिता ने पिटाई की तो पत्नी के आंसुओं का सहारा ले कर पिता से बच पाया. पत्नी धीरेधीरे समझने लगी थी कि पति केवल उस का इस्तेमाल करता है.

एक बार वह सच में किसी के साथ सात फेरे ले कर आ गया. पिता ने उसे जायदाद से बेदखल कर दिया तब उसे होश आया. वह फिर पत्नी के पास सहायता मांगने आया. मगर इस बार पत्नी इमोशनल नहीं हुई उलटे उस ने दो टूक कह दिया कि अब हमारा कोई रिश्ता नहीं. मैं इस घर की बहू हूं, मगर तुम्हारी कुछ नहीं. प्रमोद बिचारा घरपरिवार और जायदाद से तो बेदखल हुआ ही पत्नी ने भी दुत्कार दिया. नई पत्नी पहले ही उस की हालत देख कर जा चुकी थी.

कमियां छिपाने के लिए इस्तेमाल

कई पुरुष अपनी खूबसूरत बीवी का इस्तेमाल कर बौस के आगे अपनी गलतियां और कमियां छिपाने का प्रयास करते हैं. वे यह नहीं समझते कि बीवी के मन में क्या है. वे बस किसी भी तरह बौस को अपनी बीवी की खूबसूरती से बांधे रखना चाहते हैं ताकि बौस उस की गलतियां दिखाना भूल जाए. इसी तरह कुछ पुरुष घर में भी अपनी गलतियां छिपाने के लिए पत्नी को आगे कर देते हैं.

ऐसे पति अपने मांबाप के आगे बहुत भोले बन कर खड़े हो जाते हैं और सारा दोष अपनी पत्नी पर डाल देते हैं. बात सिर्फ पतिपत्नी की नहीं है बल्कि कई भाईबहन भी इस हथियार को अपनाते हैं. अकसर भाई बचपन से ही हर गलती की जिम्मेदारी बहन पर थोपने से नहीं हिचकते. बड़े होने या बहन के ससुराल जाने के बाद भी वे अपनी आदत से बाज नहीं आते. यदि आप के साथ भी कुछ ऐसा हो रहा है तो उस रिश्ते में बने रहने की मजबूरी छोडि़ए और देखिए आप के लिए जीवन कितना आसान हो जाता है.

शारीरिक जरूरतें पूरी करने के लिए इस्तेमाल

कुछ पति ऐसे होते हैं जो पत्नी का इस्तेमाल महज अपनी शारीरिक जरूरतों की पूर्ति के लिए करते हैं. उन्हें पत्नी की खुशी या उस की इच्छा से कोई मतलब नहीं होता. वे अपनी पत्नी से भावनात्मक रूप से बिलकुल भी जुड़े नहीं होते और उन्हें पत्नी की कोई परवाह नहीं होती.

प्रमोशन के लिए इस्तेमाल

हाल ही में कोच्चि में नौसेना के एक अधिकारी की पत्नी ने अपने पति पर आरोप लगाया कि उस के पति ने अपनी प्रमोशन कराने के लिए उस का इस्तेमाल किया और उसे अपने अधिकारियों के साथ हमबिस्तर होने को मजबूर किया. महिला ने आरोप लगाया कि इस का विरोध करने पर उस का पति और अधिकारियों ने उस के साथ मारपीट भी की. उस की शिकायत के आधार पर उस के पति सहित 10 लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 498 के तहत मामला दर्ज किया गया.

इसी तरह गुजरात में पति ने प्रमोशन पाने के लिए अपनी पत्नी को बौस के सामने परोस दिया. यह घटना अहमदाबाद के नारानपुरा इलाके की है. पति ने पत्नी को अपने बौस के साथ सोने के लिए मजबूर कर दिया. वह पत्नी और बौस को कमरे में बंद कर बाहर से कुंडी लगा कर बाहर निकल गया.

जानकारी के मुताबिक युवक ने पत्नी पर जबरन संबंध बनाने के लिए दबाव डाला और ऐसा नहीं करने पर उस के साथ मारपीट भी की. महिला ने पति और ससुराल वालों के खिलाफ थाने में केस दर्ज कराया. महिला का कहना था कि शादी के 4 साल तक सब ठीक चलता रहा. लेकिन फिर धीरेधीरे उस के पति ने उस के साथ गंदी हरकतें शुरू कर दीं और दूसरों के साथ जबरन संबंध बनाने के लिए दबाव डालने लगा. इनकार करने पर वह पत्नी को पीटता भी था.

एकतरफा हो जब रिश्ता

याद रखिए जब आप दोनों के बीच हर फैसले या बातचीत की वजह उन की सुविधा या फायदा है, आप की सोच हमेशा उन के बारे में रहती है, मगर वे कभी आप के बारे में बात नहीं करते तो जाहिर है कि वे आप के रिश्ते का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर रहे हैं. हालांकि उन के साथ एक ईमानदार बातचीत करने से कभीकभी मुद्दों को सुलझने में मदद मिल सकती है. मगर यदि आप को यह विश्वास हो जाता है कि आप के रिश्ते में सबकुछ एकतरफा है तो इसे नजरअंदाज करना लंबे समय में आप के लिए मुश्किल बढ़ा देगा.

आर्थिक मसलों पर चर्चा

एक खुशहाल रिश्ते के लिए आवश्यक है कि सामने वाला आप से खुल कर रुपएपैसों के बारे में चर्चा करे, कुछ छिपाए नहीं. रिश्ते को परखने के लिए आप ध्यान दें कि क्या आप के पति या रिश्तेदार आप के साथ पैसों का हिसाबकिताब करने में कंफर्टेबल हैं? क्या वे निश्चिंत हो कर आप से इनवैस्टमैंट्स और प्रौफिट आदि के बारे में बात करते हैं? यदि वे रिश्ते को वैल्यू देते हैं और आप से गहराई से जुड़े हैं तो सबकुछ डिसकस करेंगे और ऐसा नहीं है तो जाहिर है उन्होंने आप को महज इस्तेमाल करने के लिए रखा है, आप से कोई जुड़ाव नहीं है.

ननद के रिलेशनशिप के बारे में फैमिली को बताऊं या नहीं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मेरी ननद किसी लड़के से 8 सालों से रिलेशनशिप में है. हालांकि वह कहती है कि उन्होंने कभी मर्यादा की सीमारेखा नहीं लांघी है, फिर भी मुझ डर लगता है कि वह कभी कोई गलत फैसला न ले ले. उस ने यह बात घर में सभी से छिपा रखी है. मुझे भी इस बात की जानकारी अनजाने में ही हो गई है. अब मुझे लगता है कि यह बात मुझे अपने पति व सास को बता देनी चाहिए. पर कहीं ननद मुझ से हमेशा के लिए खफा न हो जाए. क्या यह ठीक रहेगा?

जवाब-

आप अपनी ननद की नाराजगी की चिंता किए बगैर इस बात से घर वालों को अवगत कराएं, क्योंकि यदि जानेअनजाने कल को उस के जीवन में कुछ गलत होता है तो आप को सारी उम्र इस बात का मलाल रहेगा.

मायके में परिवार की चहेती और अपने तरीके से जीवन जीने वाली लड़की विवाहोपरांत जब ससुराल आती है तो नए घरपरिवार की जिम्मेदारी तो उस के कंधों पर आती ही है, साथ ही उस के नएनवेले गृहस्थ जीवन में प्रवेश करते हैं सासससुर, ननददेवर जैसे अनेक नए रिश्ते. इन सभी रिश्तों को निभाना और इन की गरिमा बनाए रखना नवविवाहिता के लिए बहुत बड़ी चुनौती होती है.

ननद चाहे वह उम्र में बड़ी हो या छोटी सब की चहेती तो होती ही है, साथ ही परिवार में अपना अलग और महत्त्वपूर्ण स्थान भी रखती है. जिस भाई पर अभी तक केवल बहन का ही अधिकार था, भाभी के आ जाने से वह अधिकार उसे अपने हाथों से फिसलता नजर आने लगता है, क्योंकि अब भाई की जिंदगी में भाभी का स्थान अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है.

परिवार में एक नवीन सदस्य के रूप में प्रवेश करने वाली भाभी ननद की आंखों में खटकने लगती है. कई बार ननद भाभी को अपना प्रतिद्वंद्वी समझने लगती है और फिर अपने कटु व्यवहार से भाईभाभी की जिंदगी को नर्क  बना देती है.

अनावश्यक हस्तक्षेप

एक स्कूल में प्रिंसिपल रह चुकीं लीला गुप्ता कहती हैं, ‘‘मेरी इकलौती ननद परिवार की बड़ी लाडली थीं. विवाह हो जाने के बाद भी अपनी ससुराल से ही मायके को संचालित करती थीं. जब भी मायके आती थीं तो मेरे सासससुर उन्हीं की भाषा बोलने लगते थे. मैं भले कितने ही मन से कोई वस्तु या कपड़ा अपने या घर के लिए लाई हूं अगर वह ननद ने पसंद कर लिया तो वह उन्हीं का हो जाता था. यहां तक कि मेरे जन्मदिन पर मेरे लिए पति द्वारा लाया गया उपहार भी यदि उन्हें पसंद है तो उन का हो जाता था.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर 8588843415 पर  भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Winter Makeup Tips : सर्दियों में खुद को दें स्टाइलिश मेकअप लुक, फौलो करें ये टिप्स

बदलते समय के साथ मेकअप में भी मौडर्न बदलाव आए हैं. अब महिलाएं पुराने फैशन की तरह हैवी और ओवर मेकअप को पसंद न कर के सिंपल और सोबर मेकअप पसंद करती हैं. अब वे कम मेकअप में शादीविवाह, पार्टी आदि के दिन फ्रैश, गौर्जियस और हौट नजर आना चाहती हैं.

न्यूट्रल ट्रांसबेस मेकअप और हेयरस्टाइल के बारे में, मेकअप ऐक्सपर्ट पायल और हेयर डिजाइनर मनु के टिप्स जानिए:

 

न्यूट्रल ट्रांसबेस मेकअप:

न्यूट्रल ट्रांसबेस मेकअप इतना सौम्य और लाइट होता है कि यह आसानी से स्किन के साथ मर्ज हो कर उसे फ्रैश, नैचुरल और प्रौब्लम कवर लुक तो प्रदान करता ही है, साथ ही सौम्यता के साथ कंप्लीट लुक भी देता है.

आईज को छोड़ कर पूरे चेहरे पर प्राइमर लगाएं. फिर उस पर स्किनटोन से मैच करता न्यूट्रल बेस लगाएं. अब हलका सा लूज पाउडर लगा कर फाइनल टच दें.

आईज मेकअप का खास अंदाज:

आजकल आईज मेकअप में भी कई सारे ऐक्सपैरिमैंट हो रहे हैं. अब आईज को सिर्फ गोल्डन या पिंक आईशैडो से ही नहीं सजाया जाता वरन निओन कलर की भी बहुत डिमांड है. निओन का मतलब ब्राइट, नैचुरल कलर जिस में ग्रीन, यलो, पीच, ब्लू, परपल, रूबी रैड, एवं लैमन ग्रीन आदि कलर शामिल होते हैं. निओन आईशेड्स के साथ आईज को डिफाइन करने के लिए आप लाइनर व वौल्यूमाइजिंग मसकारा के साथ फैदर टच आर्टिफिशियल का जरूर इस्तेमाल करें. इस से आंखें खूबसूरत लगती हैं. फिर आईलाइनर का प्रयोग करें. जरूरत हो तो वाइटलाइन एरिया पर ब्रश से काजल लगाएं. आईब्रोज को हाईलाइट करें.

चीकबोंस को करें हाईलाइट:

चीक्स को उभारने के लिए फोरलसौफ्ट, पिंक, औरेंज जैसे सौफ्ट शेड्स का ही इस्तेमाल करें. हैवी ब्रौंजर का इस्तेमाल न करें वरना यह लुक को ग्रे दिखाने लगता है. फेस के हिसाब से ही चीकबोंस को हाईलाईट करें, क्योंकि हर किसी का फेसकट अलग होता है. हाईलाइट करने के लिए ब्रश को नीचे से ऊपर की ओर एक स्ट्रोक में चलाएं.

लिप्स हों ग्लैम ज्यूसी:

मेकअप के दौरान 1-1 चीज पर बारीकी से ध्यान दिया जाता है. लोगों की सब से ज्यादा नजर होंठों और आंखों पर ही पड़ती है. अत: स्पैनिश, प्लम, बरगंडी, रूबी रैड, फ्यूशिया पिंक, पीच आदि लिपस्टिक का इस्तेमाल करें. ये कलर आप के होंठों को ग्लैम ज्यूसी दिखाएंगे. ब्रश की सहायता से लिप्स की आउटलाइन बनाते हुए उन्हें अच्छी तरह फिल करें.

डिजाइनर नेलआर्ट:

नेल्स की शोभा बढ़ाने के लिए आजकल डिफरैंट तरह के नेलआर्ट हैं. आप अपनी पसंद का चुन सकती हैं.

मौइश्चराइज करें:

विंटर सीजन में मौइश्चराइजर जरूर लगाएं.

शादीविवाह अथवा किसी पार्टी में आप आकर्षक लगें इस के लिए हेयरस्टाइल भी खास होना चाहिए. ये हेयरस्टाइल आजमा कर आप भी खूबसूरत दिख सकती हैं:

आकर्षक दिखें हेयरस्टाइल में:

बालों को अच्छी तरह कंघी कर के बीच की मांग निकाल कर मांगटीका लगाएं और इसे बौबपिन से बालों में ही टाइट करें. अब टौप के बालों को उठा कर स्प्रे डालें और कंघी करें. अब रोलर को गरम कर के टौप के बालों की 1-1 लट ले कर रोल करती जाएं. ऐसे ही टौप की दोनों साइडों के बालों को रोल करती जाएं. रोल की गई लटों को पीछे की तरफ से जा कर पिन से सैट करें. अब पीछे के बालों की पोनी बनाएं और 1-1 लट को ट्विस्ट करते हुए पिन लगाएं. हेयर ऐक्सैसरीज लगा कर इसे और खूबसूरत बनाएं.

रोलर हेयरस्टाइल:

बालों को अच्छी तरह कंघी कर के स्प्रे डालें. अब पूरे बालों से 1-1 पतला सैक्शन ले कर रोल करती जाएं. ऐसे ही पूरे बालों के पतलेपतले सैक्शन ले कर रोल बनाती जाएं और पूरे रोल किए बालों को एक साइड कर के पिन से वन साइड ही सैट करें. दूसरी साइड में सिर्फ एक लट कान के पास छोड़ दें. अब इसे खूबसूरत फ्लौवर वाली हेयर ऐक्सैसरीज से सजाएं.

Gardening Tips : इस तरह बनाएं घर पर अपना वर्टिकल गार्डन, दीवारों पर भी लगा सकते हैं ढेरों पौधे

Gardening Tips: हरियाली किसे नहीं अच्छा लगता और बागवानी का शौक लगभग हर किसी को होता है, शहरों में रहने वाले लोग अपने घरों में अच्छी बागवानी करना चाहते हैं. लेकिन उनके पास जगह की समस्या होती है. बहुत से लोगों के घर में इतनी जगह नहीं होती है कि वे पेड़पौधे लगा सकें. क्योंकि महानगरों में रहने वाले लोगों को छत तो क्या बालकनी भी बड़ी मुश्किल से मिल पाता है कई बार बालकनी इतनी छोटी होती है कि इसमें बड़े गमले रखने के बारे में लोग सोच नहीं पाते हैं. अगर आपको बागवानी करना अच्छा लगता है और आपके पास जगह की कमी है तो आपके बागवानी के लिए दीवार भी पर्याप्त है. अपने घर की किसी भी दीवार पर आप ‘वर्टिकल गार्डनिंग’ कर सकते हैं. ‘वर्टिकल गार्डनिंग’ आप अपने घर में उपलब्ध जगह के हिसाब से अलग-अलग तरीकों से कर सकते हैं. जैसे कोई सीधा दीवार में गमलों का सेटअप कराता है तो कुछ लोग स्टैंड बनाकर, इस पर छोटे गमले रखते हैं. जो लोग अपने बजट को थोड़ा ज्यादा रख सकते हैं, वह हाइड्रोपोनिक सेटअप भी कर सकते हैं.

वैसे भी वर्टिकल गार्डन का चलन पिछले कुछ समय में सिर्फ घरों में ही नहीं बल्कि पब्लिक जगहों पर भी बढ़ा है. अलगअलग तरीकों से आप किसी भी सूनी दीवार को हरियाली से भर सकते हैं. स्वाति कहती हैं, “वर्टिकल गार्डन सेटअप करने में ज्यादा मेहनत नहीं लगती.

ग्रिल पर लगाएं गमले:

अगर आपकी बालकनी में पहले से ही ग्रिल हैं या फिर ऐसी कोई जगह है, जहां पर बड़ी ग्रिल है तो आपको ज्यादा खर्च करने की जरूरत नहीं पड़ेगी. इसके लिए आपको बस हुक वाले गमले लेने हैं. वर्टिकल गार्डन के लिए आपको बहुत से छोटे गमले मिल जायेंगे, जिनमें पहले से एक हुक या हैंडल लगा आता है. इसकी मदद से आप इन्हें ग्रिल पर लगा सकते हैं. अपने ग्रिल की लम्बाई-चौड़ाई के हिसाब से आप गमले खरीद लें, और उनमें पौधे लगाए.

लोहे या लकड़ी का फ्रेम बनवाए

अगर आपके पास इतनी जगह है कि आप लकड़ी का स्टैंड रख सकते हैं तो आप स्टैंड में भी इन्वेस्ट कर सकते हैं. अपनी जरूरत के हिसाब से लकड़ी का स्टैंड बनवाकर, आप इसमें गमले लगा सकते हैं. लकड़ी के स्टैंड के लिए आप मिट्टी या सेरेमिक के भी छोटे गमले ले सकते हैं. इसी तरह, अगर आप चाहें तो लोहे का भी फ्रेम बनवा सकते हैं. इस फ्रेम में चारों तरफ लोहे की मोटी पट्टियां होती हैं और इस पैनल के बीच में लोहे की पतली तारों से जाली बनाई होती है. आप इस फ्रेम को अपनी बालकनी या घर की किसी अन्य दीवार पर फिट करवा सकते हैं. फ्रेम बनवाने के बाद आप ऐसे गमले चुनें, जिन्हें पौधा लगाने के बाद इस फ्रेम पर आसानी से लगाया जा सके.

औनलाइन खरीद सकते हैं वर्टिकल गार्डन सेटअप:

अगर आप खुद से सेटअप नहीं बनवाना चाहती है तो आप अमेज़न या फ्लिपकार्ट जैसी जगहों से पहले से तैयार सेटअप भी खरीद सकते हैं. आपको ऑनलाइन जो सेटअप मिलता है, उसे लगाने के लिए पैकेज के साथ एक मैन्युअल आता है. जिसकी मदद से आप उसे सेटअप कर सकते हैं. इस सेटअप की खासियत यह है कि इसे आप अलग-अलग जगहों पर लगा सकते हैं. जैसे कुछ दिन आपने किसी ग्रिल पर इसे लगा दिया तो कुछ दिन अपने दरवाजे पर लटका दिया. हालांकि, इसके लिए आपको देखना होगा कि आपके घर में कहां-कहां लगाना सम्भव है.

इन बातों का रखें ध्यान:

वर्टिकल गार्डन का सेटअप ही नहीं बल्कि आप कैसा पॉटिंग मिक्स बनाते हैं, क्या पौधे लगाते हैं, इन बातों पर भी ध्यान देना जरुरी होता है.

– पॉटिंग मिक्स के लिए ज्यादा से ज्यादा कोकोपीट और खाद का इस्तेमाल करें.

– ऐसे पौधों को एक साथ लगाएं जिनमें एक बराबर धूप और तापमान की ज़रूरत पड़ती हो.

– नियमित रूप से पानी दें क्योंकि गमले छोटे होने के कारण ज्यादा समय तक नमी नहीं रहती है.

– इंडोर और आउटडोर का ख़ास ख्याल रखते हुए पौधों का चुनाव करें.

– जिस भी दीवार पर आप वर्टिकल गार्डन सेटअप कर रहें हैं, उस पर पहले कोई प्लास्टिक शीट लगा सकते हैं ताकि दीवार पर सीलन न हो.

Tandoori Aloo Recipe : घर पर रेस्टोरेंट की तरह बनाएं राइस स्टफ्ड तंदूरी आलू

Tandoori Aloo Recipe : आलू की कई सारी रेसिपी लोगों को पता हैं. लेकिन क्या आपने राइस स्टफ्ड तंदूरी आलू की रेसिपी ट्राई किया है. राइस स्टफ्ड तंदूरी आलू बहुत आसान है, जिसे घर पर बनाया जा सकता है.

सामग्री

4 बड़े आलू स्कूप कर के बीच से गूदा निकाले हुए

2 कप चावल पके हुए

1/2 कप क्रीम

1/2 छोटा चम्मच काला नमक

1/2 कप मोजरेला चीज कद्दूकस किया हुआ

1 छोटा चम्मच गरम मसाला

1/2 छोटा चम्मच भुना जीरा

1 छोटा चम्मच धनियापत्ती कटी हुई

1/2 छोटा चम्मच चाट मसाला

1/2 छोटा चम्मच सरसों का पेस्ट

नमक व मिर्च स्वादानुसार

तलने के लिए तेल

विधि

आलुओं को डीप फ्राई करें. एक बाउल में चावलों के साथ बाकी सारी सामग्री मिला कर मिश्रण को आलुओं में भरें. अब आलुओं पर तेल की ड्रैसिंग कर के 10 मिनट के लिए बेक करें व 2 पीस में काट कर सौस के साथ सर्व करें.

-व्यंजन सहयोग: शैफ एम. रहमान

हिंडोला : दीदी के लिए क्या भूल गई अनुभा अपना प्यार?

ढाई इंच मोटी परत चढ़ आई थी, पैंतीसवर्षीय अनुभा के बदन पर. अगर परत सिर्फ चर्बी की होती तो और बात होती, उस के पूरे व्यक्तित्व पर तो जैसे सन्नाटे की भी एक परत चढ़ चुकी थी. खामोशी के बुरके को ओढ़े वह एक यंत्रचालित मशीनीमानव की तरह सुबह उठती, उस के हाथ लगाने से पहले ही जैसे पानी का टैप खुल जाता, गैस पर चढ़ा चाय का पानी, चाय के बड़े मग में परस कर उस के सामने आ जाता. कार में चाबी लगाने से पहले ही कार स्टार्ट हो जाती और रास्ते के पेड़ व पत्थर उसे देख कर घड़ी मिलाते चलते, औफिस की टेबल उसे देखते ही काम में व्यस्त हो जाती, कंप्यूटर और कागज तबीयत बदलने लगते.

आज वह मल्टीनैशनल कंपनी में सीनियर पोस्ट पर काबिज थी. सधे हुए कदम, कंधे तक कटे सीधे बाल, सीधे कट के कपड़े उस के आत्मविश्वास और उस की सफलता के संकेत थे.

कादंबरी रैना, जो उस की सेके्रटरी थी, की ‘गुडमार्निंग’ पर अनुभा ने सिर उठाया. कादंबरी कह रही थी, ‘‘अनु, आज आप को अपने औफिस के नए अधिकारी से मिलना है.’’

‘‘हां, याद है मुझे. उन का नाम…’’ थोड़ा रुक कर याद कर के उस ने कहा, ‘‘जीजीशा, यह क्या नाम है?’’

कादंबरी ने हंसी का तड़का लगा कर अनुभा को पूरा नाम परोसा, ‘‘गिरिजा गौरी शंकर.’’

किंतु अनुभा को यह हंसने का मामला नहीं लगा.

‘‘ठीक है, वह आ जाए तो 2 कौफी भेज देना.’’

बाहर निकल कर कादंबरी ने रोमा से कहा, ‘‘लगता है, एक और रोबोट आने वाली है.’’

‘‘हां, नाम से तो ऐसा ही लगता है,’’ दोनों ने मस्ती में कहा.

जीजीशा तो निकली बिलकुल उलटी.  जैसा सीरियस नाम उस का, उस के उलट था उस का व्यक्तित्व. क्या फिगर थी, क्या चाल, फिल्मी हीरोइन अधिक और एक अत्यंत सीनियर पोस्ट की हैड कम लग रही थी. उस के आते ही सारे पुरुषकर्मी मुंहबाए लार टपकाने लगे, सारी स्त्रियां, चाहें वे बड़ी उम्र की थीं

या कम की, अपनेअपने कपड़े, चेहरे व बाल संवारने लगीं.

लगभग 35 मिनट के बाद जीजीशा जब अनुभा के कमरे से लौटी तो उस के कदम कुछ असंयमित से थे. वह कादंबरी के सामने की कुरसी पर धम से बैठ गई.

‘‘लीजिए, पानी पीजिए. उन से मिल कर अकसर लोगों के गले सूख जाते हैं,’’ मिस रैना ने अनुभा के औफिस की तरफ इशारा किया. अनुभा तो थी ही ऐसी, कड़क चाय सी कड़वी, किंतु गर्म नहीं. कड़वाहट उस के शब्दों में नहीं, उस के चारों ओर से छू कर आती थी.

जीजीशा अनुभा की हमउम्र थी, परंतु औफिस में उसे रिपोर्ट तो अनुभा को ही करना था. औफिस में सब एकदूसरे का नाम लेते थे, सिर्फ नवीन खन्ना को बौस कहते थे.

ऐसा नहीं था कि गला सिर्फ जीजीशा का सूखा हो, उस से मिल कर अनुभा की जीवनरूपी मशीन का एकएक पुर्जा चरचरा कर टूट गया था. जीजीशा ने उसे नहीं पहचाना, किंतु अनुभा उसे देखते ही पहचान गई थी. जीजीशा, उर्फ गिरिजा गौरी शंकर या मिट्ठू?

पलभर में कोई बात ठहर कर सदा के लिए स्थायी क्यों बन जाती है? अनुभा के स्मृतिपटल पर परतदरपरत यह सब क्या खुलता जा रहा था? कभी उसे अपना बचपन झाड़ी के पीछे छुप्पनछुपाई खेलता दिखता तो कभी घुटने के ऊपर छोटी होती फ्रौक को घुटने तक खींचने की चेष्टा में बढ़ा अपना हाथ.

एक दिन फ्रौक के नीचे सलवार पहन कर जब वह बाहर निकली थी उस की फैशनेबल दीदी यामिनी, जो कालेज में पढ़ती थीं, उसे देख कर हंसते हुए उस के गाल पर चिकोटी काट कर बोलीं, ‘अनु, यह क्या ऊटपटांग पहन रखा है? सलवारसूट पहनने का मन है तो मम्मी से कह कर सिलवा ले, पर तू तो अभी कुल 14 बरस की है, क्या करेगी अभी से बड़ी अम्मा बन कर?’

इठलाती हुई यामिनी दीदी किताबें हवा में उछाल कर चलती बनीं.

अनुभा कभी भी दीदी की तरह नए डिजाइन के कपड़े नहीं पहन पाई. उस में ऐसा क्या था जो तितलियों के झुंड में परकटी सी अलगथलग घूमा करती थी. घर में भी आज्ञाकारी पुत्री कह कर उस के चंचल भाईबहन उस पर व्यंग्य कसते थे.

‘मां की दुलारी’, ‘पापा की लाड़ली’, ‘टीचर्स पैट’ आदि शब्दों के बाण उस पर ऐसे छोड़े जाते थे मानो वे गुण न हो कर गाली हों. अनुभा के भीतर, खूब भीतर एक और अनुभा थी, जो सपने बुनती थी, जो चंचल थी, जो पंख लगा कर आकाश में ऊंची उड़ान भरा करती थी. उस के अपने छोटेछोटे बादल के टुकड़े थे, रेशम की डोर थी और तीज बिना तीज वह पींग बढ़ाती खूब झूला झूलती थी, जो खूब शृंगार करती थी, इतना कि स्वयं शृंगार की प्रतिमान रति भी लजा जाए. पर जिस गहरे अंधेरे कोने में वह अनुभा छिपी थी उसे कोई नहीं जान पाया कभी.

एक दिन जब उस के साथ कालेज आनेजाने वाली सहेली कालेज नहीं आई थी, वह अकेली ही माल रोड की चौड़ी छाती पर, जिस के दोनों ओर गुलमोहर के सुर्ख लाल पेड़ छतरी ताने खड़े थे, साइकिल चलाती घर की तरफ आ रही थी. रेशमी बादलों के बीच छनछन कर आ रही धूप की नरमनरम किरणों में ऐसी उलझी कि ध्यान ही नहीं रहा कि कब उस की साइकिल के सामने एक स्कूटर और स्कूटर पर विराजमान एक नौजवान उसे एकटक देख रहा था.

‘लगता है आप आसमान को सड़क समझ रही हैं. यदि मैं अपना पूरा बे्रक न लगा देता तो मैडम, आप उस गड्ढे में होतीं और दोष मिलता मुझे. माना कि छावनी की सड़कें सूनी होती हैं, पर कभीकभी हम जैसे लोग भी इन सड़कों पर आतेजाते हैं और आतेजाते में टकरा जाएं और वह भी किस्मत से किसी परी से…’

अनुभा इस कदर सहम गई, लजा गई और पता नहीं ऐसा क्या हुआ कि गुलमोहर का लाल रंग उस के चेहरे को रंग गया. अटपटे ढंग से ‘सौरी’ बोल कर तेजतेज साइकिल भगाती चल पड़ी वहां से.

स्कूटर वाला तो निकला उस के भाई सुमित का दोस्त, जो कुछ दिन पहले ही एअरफोर्स में औफिसर बन कर लौटा था. बड़ा ही स्मार्ट, वाक्चतुर. ड्राइंगरूम में उसे बैठा देख वह चौंक पड़ी, वह बच कर चुपके से अपने कमरे की ओर लपकी तभी उस के भाई ने उसे आवाज दी, अपने मित्र से परिचय कराया, ‘आलोक, मिलो मेरी छोटी बहन अनुभा से.’

‘हैलो,’ कह कर वह बरबस मुसकरा पड़ी.

‘सुमित, अपनी बहन से कहो कि सड़क ऊपर नहीं, नीचे है.’

और वह भाग गई, उस के कानों में उन दोनों की बातचीत थोड़ीथोड़ी सुनाई पड़ रही थी, समझ गई कि माल रोड की चर्चा चल रही थी. अपने को बातों का केंद्र बनता देख वह कुमुदिनी सी सिमट गई थी. रात होने को आई, पर उस रात वह कुमुदिनी बंद होने के बदले पंखड़ी दर पंखड़ी खिली जा रही थी.

उन के घर जब भी आलोक आता, उस के आसपास मीठी सी बयार छोड़ जाता. पगली सी अनुभा आलोक की झलक सभी चीजों में देखने लगी थी, सिनेमा के हीरो से ले कर घर में रखी कलाकृतियों तक में उसे आलोक ही आलोक नजर आता था. अनुभा अचानक भक्तिन बनने लगी, व्रतउपवास का सिलसिला शुरू कर दिया. मां ने समझाया, ‘पढ़ाई की मेहनत के साथ व्रतउपवास कैसे निभा पाएगी?’

‘मम्मी, मेरा मन करता है,’ उस ने उत्तर दिया था.

‘अरे, तो कोई बुरा काम कर रही है क्या? अच्छे संस्कार हैं,’ दादी ने मम्मी से कहा.

अनुभा के मन में सिर्फ अब आलोक को पाने की चाहत थी. कालेज जाने से पहले वह मन ही मन सोचती कि बस किसी तरह आलोक मिल जाए.

‘बिटिया, कहीं पिछले जन्म में संन्यासिनी तो नहीं थी? पता नहीं इस का मन संसार में लगेगा कि नहीं?’ मम्मी को चिंता सताती.

‘कुछ नहीं होगा. अपनी यामिनी तो दोनों की कसर पूरी कर देती है. चिंता तो उस की है. न पढ़ने में ध्यान, न घर के कामकाज में. जब देखो तब फैशन, डांस और हंगामा,’ उस के पिता ने मां से कहा था.

‘हां जी, ठीक कहते हो, अब यामिनी की शादी कर दो. फिर मेरी अनुभा के लिए एक अच्छा सा वर ढूंढ़ देना.’

और अनुभा के भीतर वाली अनुभा ‘धत्’ बोल कर हंस पड़ी.

उस के पैर द्रुतगति से तिगदा-तिग-तिग, तिगदा-तिग-तिग तिगदा-तिग-तिग-थेई की ताल पर थिरक रहे थे. परंतु सहसा उस के पैरों की थिरकन द्रुतगति से विलंबित ताल पर होती हुई समय आने से पहले ही रुक गई. पैरों से घुंघरू उतार कर वह चुपचाप जाने लगी तो उस के डांस टीचर ने कहा, ‘आज एक नया तोड़ा सिखाना था, यामिनी तो कभी ठीक से सीखती नहीं, अब तुम भी जा रही हो.’

‘5 साल से नृत्य सीख रही हूं मास्टरजी, अब मैं सितार सीखूंगी,’ अनुभा ने सहज भाव से कहा.

‘हांहां क्यों नहीं,’ मास्टरजी ने भी हामी भर दी थी.

कौन जान पाया कि अनुभा के पैरों की थिरकन क्यों रुक गई. उस में कोई बाहरी परिवर्तन होता तो कोई देखता. अनुभा अपनी पढ़ाई और सितार के तारों में खो गई. दीदी यामिनी की शादी में आलोक दूल्हा बन के आया. दीदी चली गई, उस सपने के हिंडोले में बैठ कर जो उस ने अपने लिए बुना था.

‘याद है माल रोड वाली सड़क की वह टक्कर.’

जीजा बना आलोक उस से ठिठोली करता. जीजा को साली से मजाक करने का पूरा अधिकार था.

जिस घोड़ी पर बैठ कर आलोक आया था उस के गले में पड़ा खूबसूरत हार सब के आकर्षण का केंद्रबिंदु था. उस हार में जड़ा था खूबसूरत पत्थर, जिसे सब देखते नहीं थकते थे.

‘यह कौन है?’ जिज्ञासा से भरे सवाल निकले.

‘आलोक की क्या लगती है?’

‘हाय कितनी सुंदर है, पूरी मौडल जैसी.’

पता चला कि आलोक के पिता के मित्र की लड़की थी और आलोक की बचपन की ‘स्वीटहार्ट’. तब आलोक ने उस से शादी क्यों नहीं की? वह अभी छोटी थी और बहुत महत्त्वाकांक्षी. उस ने अपने लिए जो लक्ष्य तय किए थे उस में विवाह का स्थान था ही नहीं. विवाह को वह बंधन मानती थी. वे दोनों स्वतंत्र थे और स्वच्छंद भी.

यामिनी दीदी ने अपना घर बसाया, खिड़कियों पर झालरदार सफेद लेस के पर्दे टांगे, परंतु जब वह ‘खूबसूरत पत्थर’ उन के घर की खिड़कियों के सारे शीशे तोड़ गया, तब 6 महीने की अपनी प्यारी सी गुडि़या आन्या को गोद में लिए, अपने हाथों बसाए घर का दरवाजा खोल कर, मायके लौट आई थीं. टूटे हुए दिल व उजड़ी हुई गृहस्थी के दुख से यामिनी दीदी थरथर कांप रही थीं. मम्मी, पापा और पूरे घर ने उसे आत्मीयता का गरम लिहाफ ओढ़ा कर संभाल लिया था. दीदी की सारी मस्ती स्वाह हो गई. वे कभी ठीक से पढ़ी नहीं, जैसेतैसे उन्हें पापा ने एकआध कोर्स करवा कर स्कूल में नौकरी दिलवा दी थी. पुनर्विवाह तो क्या, उस घर में विवाह शब्द एक अछूत रोग की तरह माना जाने लगा. यहां तक कि अनुभा के लिए विवाह प्रसंग कभी छिड़ा ही नहीं. वह तो अच्छा हुआ कि सुमित की शादी यामिनी की शादी के महीने भर बाद ही हो गई थी वरना…

आज वही खूबसूरत नुकीला पत्थर उस के सामने कुरसी पर बैठा था. अनुभा सोच में पड़ी थी. क्या वह पोल खोल दे?

न मालूम कितनी और गृहस्थियां उजाड़ देगी यह! किंतु ऐसा क्यों होता है कि हमेशा ‘पति, पत्नी और वो’ में सब से अधिक दोष ‘वो’ को देते हैं? क्या स्त्री प्यार, प्रशंसा व प्रलोभनों से परे है? क्यों पुरुष के हाथ उस के अपने वश में नहीं रहते? इसी उधेड़बुन में डूबतीउतराती, वह नवीन खन्ना से आज की मीटिंग के बारे में बताने दाखिल हुई.

केवल 40 वर्ष की उम्र में नवीन जिस मुकाम पर पहुंचा था, वह मुकाम पुराने जमाने में 60 साल तक भी हासिल नहीं होता था. कंपनी का सीईओ मोटी तनख्वाह, उस से भी मोटे बोनस, उस से भी अधिक धाक. देशविदेश की डिगरियां हासिल कर के उस ने अपने लिए कौर्पोरेट जगत में एक विशिष्ट स्थान बना लिया था. बड़ीबड़ी कंपनियां व बैंक उसे पके आम की तरह लपकने को तैयार रहते थे.

अनुभा स्वयं भी अत्यंत मेधावी थी. आईआईएम में सब से पहला व बड़ा पैकेज उसी को मिला था. 2 साल जापान रही, फिर लंदन. नवीन खन्ना से उस की मुलाकात लंदन में हुई थी. जिस कंपनी में अनुभा काम कर रही थी उस का विलय दूसरी कंपनी में होने वाला था, नवीन खन्ना ने उस की योग्यता को भांप लिया था और उसे सीधे 4 सोपान आगे की पोस्ट व तनख्वाह दे डाली थी.

अनुभा भी भारत वापस आना चाहती थी. सो आ गई. बस तब से वह मुंबई में काम कर रही थी. उस पर नवीन की योग्यताओं की प्रमाणपट्टी का कोई प्रभाव नहीं पड़ता था. जो व्यक्ति अनेक डिगरियां हासिल कर ले, जो करोड़ों रुपयों का ढेर लगाता हो, परंतु जिस का कोई नैतिक चरित्र न हो, जो धड़ल्ले से बातबात पर झूठ बोलता हो, जो अपनी पत्नी का फोन देख कर काट देता हो, जो मीटिंग व क्लायंट का भूत अपनी घरगृहस्थी पर लादे रहता हो, जो पति, पिता व पुरुष की मर्यादा न पहचानता हो, उसे अनुभा न तो आदर दे सकती थी न अपनी मित्रता. अनुभा के पिता अकसर अंगरेजी की एक कहावत कहा करते थे, जिस का सारांश था, ‘मैं कालेज तो गया, परंतु शिक्षित नहीं हुआ.’

बस यों समझ लीजिए कि नवीन खन्ना उस कहावत का साक्षात प्रमाण था.

एक बार एक बेहद खूबसूरत किंतु 55 वर्षीय महिला क्लायंट ने अनुभा से कहा था, ‘तेरा बौस तो मुझ जैसी बुढि़या पर भी लाइन मार रहा था.’

अनुभा कर भी क्या सकती थी. चारों तरफ यही सब तो बिखरा पड़ा था. आज के जमाने में दो ही तो पूजे जा रहे हैं, लाभ और पैसा.

कभी वह सोचती थी, क्या इन पुरुषों की पत्नियों को इन के चक्करों का पता नहीं चलता? क्या औफिस में काम कर रही विवाहित स्त्रियों के पतियों को पता नहीं चलता या फिर पता होते हुए भी वे खुली आंखों सोते रहते हैं या फिर पैसे की हायहाय ने प्यार व वफा का कोई मतलब नहीं रहने दिया है?

जो भी हो जीजीशा की नियुक्ति के बाद जीजीशा और नवीन को अकसर  औफिस के बाद इकट्ठे बाहर निकलते देखा जाता था. जीजीशा अभी तक स्वतंत्र थी और उसी तरह स्वच्छंद भी. पता नहीं आलोक को और आलोक की तरह कितनों को कब और कहां छोड़ आई थी?

अनुभा का रिश्ता शुद्ध कामकाज से था. रात को सोते समय कभीकभी पापा की सुनाई हुई लाइनें ‘किसकिस को याद कीजिए, किसकिस को रोइए, आराम बड़ी चीज है, मुंह ढक के सोइए’ मजे के लिए दोहराती थी.

परंतु वह आराम की नींद कब सो पाई थी. अभी जीजीशा को आए 4-5 महीने ही हुए थे कि वह अचानक एक हफ्ते तक औफिस नहीं आई और जब आई तो बेहद दुबली लग रही थी. मेकअप के भीतर भी उस के गालों का पीलापन छिप नहीं पा रहा था. एक भयावह डर उस की आंखों में तैर रहा था. पता चला कि जीजीशा बीमार है, बहुत बीमार.

‘क्या हुआ है उसे?’ सब की जबान पर यही प्रश्न था.

15 दिन औफिस आने के बाद वह फिर गैरहाजिर हो गई थी. वह अस्पताल में भरती थी. उस के रोग का निदान नहीं हो पा रहा था. अनुभा फूलों का गुलदस्ता ले कर उस से मिलने गई थी और ‘शीघ्र स्वस्थ हो जाओ’ भी कह आई थी.

फिर एक दिन औफिस में उस खबर का बर्फीला तूफान आया. जीजीशा के रोग की पहचान की खबर. जिस रोग के लक्षण उसे क्षीण कर रहे थे उस ने उस के अंतरंग मित्रों के होश उड़ा दिए थे. नवीन खन्ना का औफिस व घर मानो 8 फुट मोटी बर्फ से ढक गया था. सब के दिमाग में अफरातफरी मची थी. जिस बीमारी का नाम लेने की हिम्मत न होती हो, उस एचआईवी के लक्षण जीजीशा की रक्त धमनियों में बह रहे थे. कितने ही लोग अपनेअपने रक्त का निरीक्षण करा रहे थे. अनुभा भयभीत हो उठी. आज पहली बार अनुभा इतनी बेचैन हुई. वह उस कड़ी को देख कर कातर हो रही थी जो यामिनी दीदी, आन्या और आलोक को जोड़ रही थी. आलोक और जीजीशा के रिश्ते की कड़ी. घबरा कर उस ने पहली फ्लाइट पकड़ी और मुंबई से अपने घर इलाहाबाद आ गई.

‘अनुभा मैडम को क्या हुआ?’ उस के औफिस में एक प्रश्नवाचक मूक जिज्ञासा तैर गई. इलाहाबाद पहुंच कर बगैर किसी से कुछ कहेसुने, उस ने यामिनी दीदी और आन्या के तमाम टैस्ट करवाए और जब दोनों के निरीक्षण से डाक्टर संतुष्ट हो गए, तब जा कर वह इत्मीनान से पैर पसार कर लेट गई. मां ने उस का सिर अपनी गोद में ले लिया और स्नेहपूर्वक उस के माथे का पसीना पोंछने लगीं, ‘‘एसी चल रहा है और तू है कि पसीने में तरबतर, जैसे किसी रेस में दौड़ कर आई हो.’’

‘‘रेस में ही नहीं मम्मा, मैं तो महारेस में दौड़ कर आई हूं. ट्राईथालौन समझती हो, बस उसी में दौड़ कर लौटी हूं.’’

हक्कीबक्की मां उस का मुंह ताकती रह गईं. मन ही मन अनुभा मां से जाने क्याक्या कहे जा रही थी. एक ही जीवन में कई तरह की दौड़ हो गई. सब से पहले मालरोड पर साइकिल चलाई, फिर पढ़ाई कैरियर और यामिनी दीदी की बिखरी हुई जिंदगी के दलदल में फंसी और दौड़ का अंतिम चरण? वह तो मुंबई से इलाहाबाद, इलाहाबाद से अस्पताल, अस्पताल के गलियारों की दौड़. उफ, यह अंतिम दौर उस का कठिनतम दौर था. उसे लगा जैसे दीदी और आन्या किसी सुनामी से बच कर किनारे पर सुरक्षित पड़ी हों.

निश्ंिचतता और मां की गोद उसे धीरेधीरे नींद की दुनिया में ले जाने लगी, वह सपनों के हिंडोले में झूलने लगी. अचानक उसे लगा कि अगर आलोक उसे मिल गए होते तो…तो…हिंडोला टूट गया. यह क्या? फिर भी वह हंस रही है. खुशी की हंसी, राहत की हंसी. अच्छा हुआ, आलोक की वह नहीं हुई.

खुशी के आंसू : जब आनंद और छाया ने क्यों दी अपने प्यार की बलि?

लेखिका- डा. विभा रंजन  

आनंद आजकल छाया के बदले ब्यवहार से बहुत परेशान था. छाया आजकल उस से दूरी बना रही थी, जो आनंद के लिए असह्य हो रहा था. दोनों की प्रगाढ़ता के बारे में स्कूल के सभी लोगों को भी मालूम था. वे दोनों 5 वर्षों से साथ थे. छाया और आनंद एक ही स्कूल में शिक्षक के रूप में कार्यरत थे. वहीं जानपहचान हुई और दोनों ने एकदूसरे को अपना जीवनसाथी बनाने का फैसला कर लिया था.

दोनों की प्रेमकहानी को छाया के पिता का आशीर्वाद मिल चुका था. वे दोनों शादी के बंधन में बंधने वाले थे कि छाया के पिता को कैंसर जैसी भंयकर बीमारी से मृत्यु हो गई थी. विवाह एक वर्ष के लिए टल गया था. छाया की छोटी बहन ज्योति थी जो पिता की बीमारी के कारण बीए की परीक्षा नहीं दे पाई थी. छाया उसे आगे पढ़ाना चाहती थी. छाया के कहने पर आनंद उसे पढ़ाने उस के घर जाया करता था.

आजकल वह ज्योति के ब्यवहार में बदलाव देख रहा था. उसे महसूस होने लगा था कि ज्योति उस की तरफ आकर्षित हो रही है. उस ने जब से यह बात छाया को बताई तब से छाया उस से ही दूरी बनाने लगी. अब वह न पहले की तरह आनंद से मिलतीजुलती है और न बात करती है.

आनंद को समझ नहीं आ रहा था आखिर छाया  ने अचानक उस से बातचीत क्यों बंद कर दी. कहीं वह ज्योति की प्यार वाली बात में उस की गलती तो नहीं मान रही. नहींनहीं, वह अच्छी तरह जानती है मैं उस से कितना चाहता हूं. आखिर कुछ तो पता चले उस की बेरुखी का कारण क्या है?

आज 3 दिन हो गए एक स्कूल में रह कर भी हम न मिल पाए न उस ने मेरी एक भी कौल का जवाब दिया. आनंद छाया की गतिविधियों पर अपनी नज़र  जमाए हुए था. वह स्कूल आया जरूर, पर अंदर दाखिल नहीं हुआ. बस, छाया को स्कूल में दाखिल होते देखता रहा.

छुट्टी के समय छाया जैसे ही गेट से बाहर निकलने वाली थी, आनंद ने अपनी बाइक उस के सामने खड़ी कर दी और बोला, “पीछे बैठो, मैं कोई तमाशा नहीं चाहता.”

छाया ने उस की वाणी में कठोरता महसूस की, वह डर गई. वह चुपचाप बाइक पर बैठ गई. बाइक तेजी से सड़क पर दौड़ने लगी. थोड़ी देर बाल आनंद ने बाइक को एक छोटे से पार्क के पास रोक दिया. पार्क में और भी जोड़े बैठे थे. आनंद ने छाया का हाथ पकड़ा और छाया के साथ एक बैंच पर बैठ गया.

दो पल दोनों खामोश बैठे रहे, फिर आनंद ने कहा,  “छाया,  मैं ने तुम्हें कितनी कौल कीं, तुम ने न फोन उठाया, न मुझे कौल ही किया. आखिर क्या बात है, क्यों मुझ से दूर रह कर मुझे परेशान कर रही हो? मेरी क्या गलती है, मुझे बताओ? मैं ने ऐसा  क्या कर दिया?”

“आनंद, तुम्हारी कोई गलती नहीं है.”

“तब फिर, इस बेरुखी का मतलब?”

“मैं खुद बहुत परेशान हूं,” छाया ने भीगे स्वर में कहा.

“तुम्हारी ऐसी कौन सी परेशानी है जो मुझे पता नहीं? मैं तुम्हारा साथी हूं, सुखदुख का भागीदार हूं. मुझे बताओ, हम मिल कर हर समस्या का हल निकाल लेंगे.”

छाया एकटक आनंद को देखे जा रही थी.

“ऐसे क्यों देख रही हो, तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है? तुम जानती हो,मैं झूठ नहीं बोलता, बताओ क्या बात है?” आनंद ने कहा.

“ज्योति मेरी छोटी बहन है.”

“जानता हूं, आगे?”

“मैं उसे बहुत प्यार करती हूं.”

“ठीक है, फिर?”

“पापा ने मरते समय मुझ से वादा लिया था, मैं ज्योति का अच्छे से ध्यान रखूं,उस की हर इच्छा का खयाल रखूं. और उस की इच्छा तुम हो, आनंद.”

“पागल तो नहीं हो गई हो तुम, क्या बोल रही हो, जरा सोचो.”

“सही सोच रही हूं आनंद. तुम से अच्छा लड़का ज्योति के लिए कहां मिलेगा मुझे?”

“शटअप छाया, पागल मत बनो. ज्योति से मैं 8 साल बड़ा हूं.”

“मेरी मां, मेरे पापा से 9 साल छोटी थीं.”

“ओह माई गौड, क्या हो गया तुम्हें, आई लव यू ओनली.”

“बट, ज्योति लव्स यू.”

“उसे हमारे बारे में नहीं पता है, सब सच बता दो उसे. तुम्हारे पापा का आशीर्वाद भी मिल चुका है हमें. हम तो शादी करने वाले थे. जब वह यह सब सच जानेगी तब वह सब समझ जाएगी.”

“वह दिनभर, बस, तुम्हारी बातें किया करती है. तुम ने पढ़ाते समय उसे जो उदाहरण दिए हैं, उन्हें उस ने जीवन के सूत्र बना लिए हैं. वह बच्ची है आनंद, सच जान कर उस का दिल टूट जाएगा. वह बिखर जाएगी. वह तुम्हें बहुत चाहने लगी है आनंद.”

“इस का मतलब?”

“मतलब यह है, ज्योति तुम को चाहती है और मैं ज्योति को तुम्हें सौपना चाहती हूं.”

नहीं, छाया नहीं, मैं जीतेजी मर जाऊंगा. तुम इतनी कठोर कैसे हो सकती हो, क्या तुम्हारा प्यार झूठा था, नकली था? तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो?”  आनंद बिफर गया.

“तुम ने अभीअभी मेरी हर समस्या का हल निकालने की बात कही थी, और अब मुकरने लगे,” छाया ने बिलकुल शांत स्वर में कहा.

“मतलब, तुम मेरे बिना रह लोगी?” आनंद ने व्यंग्य करते हुए कहा.

“यह मेरे सवाल का जवाब नहीं है,” छाया ने फिर अपनी बात रखनी चाही.

“तुम मुझे प्यार नहीं करती न,” आनंद बात से हटना चाह रहा था.

“यही समझ लो, ज्योति तो करती है न.”

“मैं पागल हो जाऊंगा छाया, मुझ पर रहम करो.”

“तुम ज्योति को अपना लो. बस, मेरी इतनी बात मान लो आनंद. अगर कभी भी मुझे प्यार किया होगा, उसी का वास्ता देती हूं मैं तुम्हें.”

“मैं मां से क्या कहूंगा,” आनंद ने आखिरी दांव फेंका.

“कुछ भी कह देना, बदल गई छाया, बिगड़ गई छाया, जो चाहे सो कह देना.”

“तुम बहुत स्वर्थी हो गई हो छाया. तुम मुझ से प्यार नहीं करतीं. तुम्हें बस अपनी बहन से प्यार है. तुम ने मुझे जीतेजी मार दिया. आज का दिन मैं कभी भी भूल नहीं पाऊंगा.”

“चलो, मुझे छोड़ दो.”

“मैं क्या छोडूंगा तुम्हें, तुम ने मुझे छोड़ दिया.”

आनंद ने बाइक स्टार्ट की. छाया चुपचाप पीछे बैठ गई. आनंद उसे घर से कुछ दूरी पर छोड़ छाया को बिना देखे तेजी से निकल गया. छाया रातभर सो न सकी. वह सारी रात बेचैन रही. उस का स्कूल जाने का मन नहीं था, पर आज जाना जरूरी था, इसलिए उसे जाना पडा. वह सीधे क्लासरूम में चली गई. क्लास लेने के बाद वह लाइब्रेरी में जा कर बैठ गई.

आज उस में आनंद की सामना करने की हिम्मत नहीं हो रही थी. उस ने पर्स से एक किताब निकाली और पढ़ने की बेकार कोशिश करने लगी. पढ़ने में बिलकुल मन नहीं लग रहा था. पर समय काटना था क्योंकि अभी आनंद स्टाफरूम में होगा. घंटी लगने के बाद वह उठी और क्लास लेने चली गई. उस दिन छाया दिनभर आनंद के सामने आने से बचती रही.

अब छाया ने सोच लिया, बस, पापा के साल होने में मात्र 3 महीने हैं. उसे अब ज्योति की विवाह की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए. उसे आनंद पर विश्वास था, वह उसे धोखा नहीं देगा. अब उसे ज्योति को आनंद से विवाह की बात बता देनी चाहिए.

उस ने जब ज्योति को बताया, वह खुशी से झूम उठी. उस का चेहरा लज्जा से लाल हो गया. उस ने कहा कि शायद इसी कारण आनंद जी अब उसे पढ़ाने नहीं आ रहे हैं. छाया क्या कहती, वह चुप रही. अगले महीने से स्कूल में परीक्षा है. और  स्कूल के अंदर की परीक्षा का कार्यभार छाया के पास था. वह परीक्षा प्रभारी थी. इन दिनों छुट्टी लेना मुश्किल हो जाता है. उस ने सोचा, परीक्षा के बाद से वह विवाह की तैयारी में जुट जाएगी.

छाया की एक सहेली तबस्सुम, जो पहले इसी स्कूल में मनोविज्ञान की शिक्षिका थी, विवाह के बाद हैदराबाद चली गई थी. उस ने अचानक से खबर  किया कि वह दिल्ली आई है और उस से मिलने के लिए आना चाहती है. छाया ने उसे दिन के खाने पर बुला लिया.

उस दिन छाया को जल्दी घर आना था, पर देर हो रही थी. तबस्सुम अपनी 3 महीने की खुबसूरत बेटी नूर को ले कर  छाया के घर आ गई थी. ज्योति नूर को बहुत प्यार कर रही थी.

“दीदी, जी करता है, मैं आप की बेटी को  रख लूं,”   ज्योति ने नूर को पुचकारते हुए कहा.

“रख लो,”  तबस्सुम ने हंस कर कहा.

तबस्सुम ज्योति से पहली बार मिल रही थी. “अगर अंकलजी नहीं गुजरते तब, अभी तक तेरी छाया दीदी को भी मुन्ना या मुन्नी हो गई होती. आनंद और छाया, मम्मी और पापा बन गए होते. अंकलजी अपने सामने शादी नहीं देख पाए पर, उन का आशीर्वाद तो  इन दोनों को मिल ही चुका  है.”

“क्या कहा आप ने तबस्सुम दी?” ज्योति ने हैरत से पूछा.

“यही कि शादी हो गई होती, अब तक छाया और आनंद, मम्मीपापा बन गए होते,”

तबस्सुम ने सच्ची बात कह दी.

ज्योति ने यह सुना तो सन्न रह गई. जो उस ने सुना वह सच है या तबस्सुम दी ने ऐसे ही यह बात कह दी. पर वे आनंद का नाम क्यों ले रही हैं वे किसी और का भी तो नाम ले सकती हैं. इस का मतलब है, दीदी और आनंद जी… ज्योति को कुछ समझ नहीं आ रहा था. उस ने जैसेतैसे खुद को संभाला और अपने चेहरे के भाव को सामान्य कर कर लिया.

तबस्सुम दिनभर रही और रात होने से पहले वापस घर चली गई. पर ज्योति के मन में हलचल मचा गई. मतलब साफ है, पापा भी इन लोगों के बारे में जानते थे, वह कैसे नहीं जान पाई. पापा की बीमारी में अस्पताल में आनंदजी आते रहते थे. उस समय की परिस्थिति ऐसी थी जिस में इन सभी विषयों पर सोचने की फुरसत भी नहीं थी. जब पापा के कैंसर का पता चला तब हम सभी पापा में लग गए. एक बात तो स्पष्ट है कि आनंद और दीदी का प्यार बहुत गहरा है. एकदूसरे के प्रति अटूट विश्वास है. इसी कारण इन्हें किसी को दिखाने की जरूरत नहीं पडी. उसी प्यार में दीदी ने आनंदजी को मुझ से विवाह करने के लिए मना भी लिया. दीदी ने ऐसा क्यों किया? काश, एक बार मुझे सब सच बता दिया होता. यह तो अच्छा हुआ कि तबस्सुम दी ने मुझे सच से अवगत करा दिया वरना…

स्कूल की परीक्षा समाप्त होने के बाद छाया ने ज्योति से कहा, “ज्योति, पापा की बरसी के बाद  मैं तेरे विवाह की सोच रही हूं. बरसी को 2 महीने रह गए हैं. तब तक मैं धीरेधीरे शादी की तैयारियां भी करती रहूंगी.”

ये भी पढ़ें- Short Story: हिंडोला- दीदी के लिए क्या भूल गई अनुभा अपना प्यार?

“इतनी जल्दी क्या है दीदी,”  ज्योति ने कहा.

“नहीं ज्योति, शुभकार्य में विलंब ठीक नहीं,”  छाया को जैसे हड़बड़ी थी.

“हां, तो ठीक है. अगले सप्ताह 27 तारीख को तुम्हारा जन्मदिन है, उस दिन कुछ कार्यक्रम कर लो,”    ज्योति ने कहा.

“धत, मेरे जन्मदिन के समय ठीक नहीं है, किसी और दिन रखूंगी.” छाया ने मना कर दिया.

“दीदी, मुझे कुछ कहना है,” ज्योति ने आग्रह किया.

“हां, बोलो,” छाया ज्योति को देखते हुए बोली.

“दीदी, इस बार  मैं तुम्हारा जन्मदिन अपनी पसंद से सैलिब्रेट करना चाहती हूं,” ज्योति ने बहुत लाड़ से कहा.

“अरे, मेरा जन्मदिन क्या मनाना,” छाया ने टालना चाहा.

“मैं ने कहा न, इस बार मैं तुम्हारा जन्मदिन सैलिब्रेट करूंगी, फिर तो मैं ससुराल चली जाऊंगी, तुम तो मेरी हर इच्छा पूरी करती हो, इतनी सी बात नहीं मानोगी,” ज्योति  छाया से मनुहार करने लगी.

“अच्छा बाबा, तुम सैलिब्रेट करना, पर भीड़भाड़ नहीं, समझीं,” छाया ने अपनी बात रख दी.

“ठीक है, मैं समझ गई,” ज्योति खुश हो गई.

छाया स्कूल में आनंद से, बस, काम की बात किया करती थी. वह कोशिश करती कि आनंद से उस का सामना कम हो. उस ने आनंद को छोड़ने का फैसला तो कर लिया पर जैसेजैसे दिन बीत रहे थे, उस का मन बोझिल होता जा रहा था. अपने जन्मदिन के दिन उस का मन खिन्न हो उठा क्योंकि हर जन्मदिन पर सब से पहले आनंद का ही फोन आता था. इस रास्ते को तो वह स्वयं ही बंद कर आई है.

छाया का मन बेचैन था, इंतजार करता रहा, आनंद का फोन नहीं आया. छाया ने ज्योति से काम का बहाना बनाया और आनंद से मिलने के लिए स्कूल चली आई. स्कूल आ कर पता चला आनंद ने 2 दिनों की छुट्टी ले रखी है. थोड़ी देर स्कूल में रुकने के बाद वह घर आ गई.

ज्योति उस की बेचैनी समझ रही थी. पर वह चुप थी. ज्योति ने पूरे घर को छाया की पसंद के फूलों से सजाया था. उस ने सारा खाना अपने हाथों से बनाया, यहां तक कि केक भी उस ने बडे प्यार से बनाया. छाया ने कहा था इतनी मेहनत करने की क्या जरूरत है, केक मंगा लेते हैं. पर वह तैयार नहीं हुई.

ज्योति ने छाया को मां की साड़ी दे कर कहा, “दीदी, शाम को यही पहनना.”

“मां की साडी, क्यों?” छाया ने अचरज से पूछा.

“पहन लो न. बस, ऐसे ही. आज तो मेरी हर बात माननी है, याद है न,” ज्योति ने और्डर से कहा.

“अच्छा, हां.”  छाया ने कहा. छाया का मन हो रहा था वह ज्योति से पूछे कि आनंद को बुलाया है या नहीं. पर उस की हिम्मत नहीं हुई. “तुम क्या पहन रही हो?”  छाया ने प्यार से पूछा.

“आज तुम ने जो पीला सूट दिया था न, वह वाला पहनूंगी. ठीक है न?”  ज्योति खुशी से बोली.

शाम को दोनों बहनें तैयार हो रही थीं, तभी बाई ने बताया कि आनंद बाबू आए हैं. छाया का दिल जोर से धड़कने लगा. उसे लगा, वह गिर जाएगी. उस ने अपनेआप को संभाला.

“आ गए आप, मैं ने तो आप को और पहले से आने को कहा था. आप इतनी देर में क्यों आए?” ज्योति का आनंद से बेतकल्लुफ़ हो कर बोलना आनंद और छाया दोनों ने गौर किया.

“वह कुछ काम था, इसलिए देर हो गई, हैप्पी बर्थडे छाया,” आनंद ने रजनीगंधा का एक खुबसूरत बुके देते हुए छाया से सकुचाते हुए कहा.

छाया ने “थैक्स” कह बुके को झट से अपने कलेजे से लगा लिया और अंदर कमरे में जाने लगी.

“दीदी, कहां जा रही हो, केक नहीं काटोगी,” ज्योति ने छाया का हाथ पकड़ा और उसे खींचती हुई आनंद के पास ला कर सोफे पर बिठा दिया और फिर बोली, “मैं केक ले कर आ रही हूं.”

छाया को बड़ी बेचैनी हो रही थी. आनंद से मिलना भी चाह रही थी, जब आनंद सामने आया तब घबराहट सी होने लगी. तभी ज्योति केक ले आई, “हैप्पी बर्थडे टू यू डीयर दीदी, हैप्पी बर्थडे टू यू.”

ज्योति का उत्साह देखते बन रहा था. दोनों बहनों ने एकदूसरे को केक खिलाया फिर आनंद को केक दिया.”केक तो बहुत अच्छा है,” आनंद ने कहा.“ज्योति ने बनाया है,” छाया ने बड़े गर्व से कहा, “आज का सारा इंतजाम मेरी ज्योति ने किया है.”

“ओह, और गिफ्ट क्या दिया?”

“नहीं दी हूं, अभी दूंगी,” ज्योति ने तपाक से कहा, फिर ज्योति ने आनंद के दिए हुए रजनीगंधा के बुके से एक फूल की डंडी निकाल कर छाया को देते हुए कहा,

“त्वदीयं वस्तु दीदी तुभ्यमेव समर्पये.” यानी, “ तुम्हारी चीज तुम्हें ही सौपती हूं दीदी.”

“क्या बोल रही है,” छाया हड़बड़ा गई.

“सही बोल रही हूं दीदी, तुम्हारी चीज मैं तुम्हें वापस लौटा रही हूं,” ज्योति ने आनंद की ओर अपना हाथ दिखाते हुए कहा.

“मुझे पता चल चुका है दीदी आप दोनों के बारे में. आप दोनों की तो शादी होने वाली थी, पर पापा के असमय मौत से टल गई. सब जानते हुए आप ने कैसे मेरी शादी आनंदजी से तय कर दी. मैं नहीं जानती आप ने आनंदजी को किस तरह मुझ से शादी के लिए मजबूर किया होगा, लेकिन यह सब करते आप ने एक बार भी नहीं सोचा कि जिस दिन मुझे इस सच का पता चलेगा, उस दिन मुझ पर क्या बीतेगी. यह सच जान कर मैं तो आत्महत्या ही कर लेती दीदी.”

“ज्योति, ऐसा मत बोल,” छाया ने उस की बात काटते हुए तड़प कर उस के मुंह पर अपना हाथ रख दिया.

“मैं ने, बस, तेरी खुशी चाही, और कुछ नहीं.”

“ऐसी खुशी किस काम की दीदी, जिस में बाद में पछताना पडे. आप को क्या लगा, अगर आप सच बता देतीं, तब मैं आप से नफरत करने लगती, आप से दूर हो जाती? नहीं दीदी, मैं आप से कभी नफरत कर ही नहीं सकती दीदी, लेकिन आप ने मुझे अपनी ही नजरों में गिरा दिया,” यह सब  बोल कर ज्योती हांफने लगी.

“बस कर ज्योति, बस कर. मैं ने इतनी गहरी बात कभी सोची ही नहीं. मैं बहुत बडी गलती करने जा रही थी, मुझे माफ कर दे. कभीकभी बड़ों से भी नादानियां हो जाती हैं. बस, एक बार मुझे माफ कर दे मेरी बहन.”

“एक शर्त पर,” ज्योति ने कहा.”मैं तेरी हर शर्त मानने को तैयार हूं, तू बोल कर तो देख,” छाया ने कहा.”आप अभी यह केक मेरे होने वाले आनंद जीजाजी को खिलाइए,” ज्योती ने आनंद की ओर इशारा करते हुए  कहा.

“ओके.” छाया ने केक का टुकड़ा आनंद के मुंह में डाला. उस की आंखें, उस का तनमन, उस का रोमरोम  उस से क्षमायाचना कर रहा था. तीनों की आंखें भरी थीं, पर ये आंसू खुशी के थे.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें