Hindi Fiction Story: जान न पहचान ये मेरे मेहमान

Hindi Fiction Story: मेरा शहर एक जानामाना पर्यटन स्थल है. इस वजह से मेरे सारे रिश्तेदार, जिन्हें मैं नहीं जानता वे भी जाने कहांकहां के रिश्ते निकाल कर मेरे घर तशरीफ का टोकरा निहायत ही बेशर्मी से उठा लाते हैं. फिर बड़े मजे से सैरसपाटा करते हैं. और हम अपनी सारी, यानी गरमी, दीवाली व क्रिसमस की छुट्टियां इन रिश्तेदारों की सेवा में होम कर देते हैं. एक दिन मेरे बाप के नाना के बेटे के साले का खत आया कि वे इस बार छुट्टियां मनाने हमारे शहर आ रहे हैं और अगर हमारे रहते वे होटल में ठहरें तो हमें अच्छा नहीं लगेगा. लिहाजा, वे हमारे ही घर में ठहरेंगे.

मैं अपने बाल नोचते हुए सोच रहा था कि ये महाशय कौन हैं और मुझ से कब मिले. इस चक्कर में मैं ने अपने कई खूबसूरत बालों का नुकसान कर डाला. पर याद नहीं आया कि मैं उन से कभी मिला था. मेरी परेशानी भांपते हुए पत्नी ने सुझाव दिया, ‘‘इन की चाकरी से बचने के लिए घर को ताला लगा कर अपन ही कहीं चलते हैं. कभी कोई पूछेगा तो कह देंगे कि पत्र ही नहीं मिला.’’ ‘‘वाहवाह, क्या आइडिया है,’’ खुशी के अतिरेक में मैं ने श्रीमती को बांहों में भर कर एक चुम्मा ले लिया. फिर तुरतफुरत ट्रैवल एजेंसी को फोन कर के एक बढि़या पहाड़ी स्टेशन के टिकट बुक करवा लिए.

हमारी दूसरे दिन सुबह 10 बजे की बस थी. हम ने जल्दीजल्दी तैयारी की. सब सामान पैक कर लिया कि सुबह नाश्ता कर के चल देंगे, यह सोच कर सारी रात चैन की नींद भी सोए. मैं सपने में पहाड़ों पर घूमने का मजा ले रहा था कि घंटी की कर्कश ध्वनि से नींद खुल गई. घड़ी देखी, सुबह के 6 बजे थे. ‘सुबहसुबह कौन आ मरा,’ सोचते हुए दरवाजा खोला तो बड़ीबड़ी मूंछों वाले श्रीमानजी, टुनटुन को मात करती श्रीमतीजी और चेहरे से बदमाश नजर आते 5 बच्चे मय सामान के सामने खड़े थे. मेरे दिमाग में खतरे की घंटी बजी कि जरूर चिट्ठी वाले बिन बुलाए मेहमान ही होंगे. फिर भी पूछा, ‘‘कौन हैं आप?’’

‘‘अरे, कमाल करते हैं,’’ मूंछ वाले ने अपनी मूंछों पर ताव देते हुए कहा, ‘‘हम ने चिट्ठी लिखी तो थी…बताया तो था कि हम कौन हैं.’’ ‘‘लेकिन मैं तो आप को जानता ही नहीं, आप से कभी मिला ही नहीं. कैसे विश्वास कर लूं कि आप उन के साले ही हैं, कोई धोखेबाज नहीं.’’

‘‘ओए,’’ उन्होंने कड़क कर कहा, ‘‘हम को धोखेबाज कहता है. वह तो आप के बाप के नाना के बेटे यानी मेरी बहन के ससुर ने जोर दे कर कहा था कि उन्हीं के यहां ठहरना, इसलिए हम यहां आए हैं वरना इस शहर में होटलों की कमी नहीं है. रही बात मिलने की, पहले नहीं मिले तो अब मिल लो,’’ उस ने जबरदस्ती मेरा हाथ उठाया और जोरजोर से हिला कर बोला, ‘‘हैलो, मैं हूं गजेंद्र प्रताप. कैसे हैं आप? लो, हो गई जानपहचान,’’ कह कर उस ने मेरा हाथ छोड़ दिया. मैं अपने दुखते हाथ को सहला ही रहा था कि उस गज जैसे गजेंद्र प्रताप ने बच्चों को आदेश दिया, ‘‘चलो बच्चो, अंदर चलो, यहां खड़ेखड़े तो पैर दुखने लगे हैं.’’

इतना सुनते ही बच्चों ने वानर सेना की तरह मुझे लगभग दरवाजे से धक्का दे कर हटाते हुए अंदर प्रवेश किया और जूतों समेत सोफे व दीवान पर चढ़ कर शोर मचाने लगे. मेरी पत्नी और बच्चे हैरानी से यह नजारा देख रहे थे. सोफों और दीवान की दुर्दशा देख कर श्रीमती का मुंह गुस्से से तमतमा रहा था, पर मैं ने इशारे से उन्हें शांत रहने को कहा और गजेंद्र प्रताप व उन के परिवार से उस का परिचय करवाया. परिचय के बाद वह टुनटुन की बहन इतनी जोर से सोफे पर बैठी कि मेरी ऊपर की सांस ऊपर और नीचे की सांस नीचे रह गई. सोचा, ‘आज जरूर इस सोफे का अंतिम संस्कार हो जाएगा.’

पर मेरी हालत की परवा किए बगैर वह बेफिक्री से मेरी पत्नी को और्डर दे रही थी, ‘‘भई, अब जरा कुछ बढि़या सी चायवाय हो जाए तो हम फ्रैश हो कर घूमने निकलें. और हां, जरा हमारा सामान भी हमारे कमरे में पहुंचा देना. हमारे लिए एक कमरा तो आप ने तैयार किया ही होगा?’’ हम ने बच्चों के साथ मिल कर उन का सामान बच्चों के कमरे में रखवाया.

उधर कुढ़ते हुए पत्नी ने रसोई में प्रवेश किया. पीछेपीछे हम भी पहुंचे. शयनकक्ष में अपने पैक पड़े सूटकेसों पर नजर पड़ते ही मुंह से आह निकल गई. मेहमानों को मन ही मन कोसते सूटकेसों को ऐसा का ऐसा वापस ऊपर चढ़ाया. ट्रैवल एजेंसी को फोन कर के टिकट रद्द करवाए. आधा नुकसान तो यही हो गया. श्रीमती चाय ले कर पहुंची तो चाय देखते ही बच्चे इस तरह प्यालों पर झपटे कि 2 प्याले तो वहीं शहीद हो गए. अपने टी सैट की बरबादी पर हमारी श्रीमती अपने आंसू नहीं रोक पाई तो व्यंग्य सुनाई पड़ा, ‘‘अरे, 2 प्याले टूटने पर इतना हंगामा…हमारे घर में तो कोई चीज साबुत ही नहीं मिलती. इस तरह तो यहां बातबात पर हमारा अपमान होता रहेगा,’’ उठने का उपक्रम किए बिना उस ने आगे कहा, ‘‘चलो जी, चलो, इस से तो अच्छा है कि हम किसी होटल में ही रह लेंगे.’’

मुझ में आशा की किरण जागी, लेकिन फिर बुझ गई क्योंकि वह अब बाथरूम का पता पूछ रही थीं. साबुन, पानी और बाथरूम का सत्यानाश कर के जब वे नाश्ते की मेज पर आए तो पत्नी के साथ मेरा भी दिल धकधक कर रहा था. नाश्ते की मेज पर डबलरोटी और मक्खन देख कर श्रीमतीजी ने नौकभौं चढ़ाई, ‘‘अरे, सिर्फ सूखी डबलरोटी और मक्खन? मेरे बच्चे यह सब तो खाते ही नहीं हैं. पप्पू को तो नाश्ते में उबला अंडा चाहिए, सोनू को आलू की सब्जी और पूरी, मोनू को समोसा, चिंटू को कचौरी और टोनी को परांठा. और हम दोनों तो इन के नाश्ते में से ही अपना हिस्सा निकाल लेते हैं.’’ फिर जैसे मेहरबानी करते हुए बोले, ‘‘आज तो आप रहने दें, हम लोग बाहर ही कुछ खा लेंगे और आप लोग भी घूमने के लिए जल्दी से तैयार हो जाइए, आप भी हमारे साथ ही घूम लीजिएगा. अनजान जगह पर हमें भी आराम रहेगा.’’

हम ने सोचा कि ये लोग घुमाने ले जा रहे हैं तो चलने में कोई हरज नहीं. झटपट हम सब तैयार हो गए.

बाहर निकलते ही उन्होंने बड़ी शान से टैक्सी रोकी, सब को उस में लादा और चल पड़े. पहले दर्शनीय स्थल तक पहुंचने पर ही टैक्सी का मीटर 108 रुपए तक पहुंच चुका था. उन्होंने शान से पर्स खोला, 500-500 रुपए के नोट निकाले और मेरी तरफ मुखातिब हुए. ‘‘भई, मेरे पास छुट्टे नहीं हैं, जरा आप ही इस का भाड़ा दे देना.’’ भुनभुनाते हुए हम ने किराया चुकाया. टैक्सी से उतरते ही उन्हें चाय की तलब लगी, कहने लगे, ‘‘अब पहले चाय, नाश्ता किया जाए, फिर आराम से घूमेंगे.’’

बढि़या सा रैस्तरां देख कर सब ने उस में प्रवेश किया. हर बच्चे ने पसंद के अनुसार और्डर दिया. उन का लिहाज करते हुए हम ने कहा कि हम कुछ नहीं खाएंगे. उन्होंने भी बेफिक्री से कहा, ‘‘मत खाइए.’’ वे लोग समोसा, कचौरी, बर्गर, औमलेट ठूंसठूंस कर खाते रहे और हम खिसियाए से इधरउधर देखते रहे. बिल देने की बारी आई तो बेशर्मी से हमारी तरफ बढ़ा दिया, ‘‘जरा आप दे देना, मेरे पास 500-500 रुपए के नोट हैं.’’

200 रुपए का बिल देख कर मेरा मुंह खुला का खुला रह गया और सोचा कि अभी नाश्ते में यह हाल है तो दोपहर के खाने, शाम की चाय और रात के खाने में क्या होगा? फिर वही हुआ, दोपहर के खाने का बिल 700 रुपए, शाम की चाय का 150 रुपए आया. रात का भोजन करने के बाद मेरी बांछें खिल गईं. ‘‘यह तो पूरे 500 रुपए का बिल है और आप के पास भी 500 रुपए का नोट है. सो, यह बिल तो आप ही चुका दीजिए.’’

उन का जवाब था, ‘‘अरे, आप के होते हुए यदि हम बिल चुकाएंगे तो आप को बुरा नहीं लगेगा? और आप को बुरा लगे, भला ऐसा काम हम कैसे कर सकते हैं.’’ दूसरे दिन वे लोग जबरदस्ती खरीदारी करने हमें भी साथ ले गए. हम ने सोचा कि अपने लिए खरीदेंगे तो पैसा भी अपना ही लगाएंगे और लगेहाथ उन के साथ हम भी बच्चों के लिए कपड़े खरीद लेंगे. पर वह मेहमान ही क्या जो मेजबान के रहते अपनी गांठ ढीली करे.

सर्वप्रथम हमारे शहर की कुछ सजावटी वस्तुएं खरीदी गईं, जिन का बिल 840 रुपए हुआ. वे बिल चुकाते समय कहने लगे, ‘‘मेरे पास सिर्फ 500-500 रुपए के 2 ही नोट हैं. अभी आप दे दीजिए, मैं आप को घर चल कर दे दूंगा.’’

फिर कपड़ाबाजार गए, वहां भी मुझ से ही पैसे दिलवाए गए. मैं ने कहा भी कि मुझे भी बच्चों के लिए कपड़े खरीदने हैं, तो कहने लगे, ‘‘आप का तो शहर ही है, फिर कभी खरीद सकते हैं. फिर ये बच्चे भी तो आप के ही हैं, इस बार इन्हें ही सही. फिर घर चल कर तो मैं पैसे दे ही दूंगा.’’ 3 हजार रुपए वहां निकल गए. अब वे खरीदारी करते थक चुके थे. दोबारा 700 रुपए का चूना लगाया. इस तरह सारी रकम वापस आने की उम्मीद लगाए हम घर पहुंचे.

घर पहुंचते ही उन्होंने घोषणा की कि वे कल जा रहे हैं. खुशी के मारे हमारा हार्टफेल होतेहोते बचा कि अब वे मेरे पैसे चुकाएंगे, लेकिन उन्होंने पैसे देने की कोई खास बात नहीं की. a

दूसरे दिन भी वे लोग सामान वगैरह बांध कर निश्चिंतता से बैठे थे और चिंता यह कर रहे थे कि उन का कुछ सामान तो नहीं रह गया. तब हम ने भी बेशर्म हो कर कह दिया, ‘‘भाईसाहब, कम से कम अपनी खरीदारी के रुपए तो लौटा दीजिए.’’ उन्होंने  निश्चिंतता से कहा, ‘‘लेकिन मेरे पास अभी पैसे नहीं हैं.’’

आश्चर्य से मेरा मुंह खुला रह गया, ‘‘पर आप तो कह रहे थे कि घर पहुंच कर दे दूंगा.’’ ‘‘हां, तो क्या गलत कहा था. अपने घर पहुंच भिजवा दूंगा,’’ आराम से चाय पीते हुए उन्होंने जवाब दिया.

‘‘उफ…और वे आप के 500-500 रुपए के नोट?’’ मैं ने उन्हें याद दिलाया. ‘‘अब वही तो बचे हैं मेरे पास और जाने के लिए सफर के दौरान भी कुछ चाहिए कि नहीं?’’

हमारा इस तरह रुपए मांगना उन्हें बड़ा नागवार गुजरा. वे रुखाई से कहते हुए रुखसत हुए, ‘‘अजीब भिखमंगे लोग हैं. 4 हजार रुपल्ली के लिए इतनी जिरह कर रहे हैं. अरे, जाते ही लौटा देंगे, कोई खा तो नहीं जाएंगे. हमें क्या बिलकुल ही गयागुजरा समझा है. हम तो पहले ही होटल में ठहरना चाहते थे, पर हमारी बहन के ससुर के कहने पर हम यहां आ गए, अगर पहले से मालूम होता तो यहां हमारी जूती भी न आती…’’ वह दिन और आज का दिन, न उन की कोई खैरखबर आई, न हमारे रुपए.

हम मन मसोस कर चुप बैठे श्रीमती के ताने सुनते रहते हैं, ‘‘अजीब रिश्तेदार हैं, चोर कहीं के. इतने पैसों में तो बच्चों के कपड़ों के साथ मेरी 2 बढि़या साडि़यां भी आ जातीं. ऊपर से एहसानफरामोश. घर की जो हालत बिगाड़ कर गए, सो अलग. किसी होटल के कमरे की ऐसी हालत करते तो इस के भी अलग से पैसे देने पड़ते. यहां लेना तो दूर, उलटे अपनी जेब खाली कर के बैठे हैं.’’

इन सब बातों से क्षुब्ध हो कर मैं ने भी संकल्प किया कि अब चाहे कोई भी आए, अपने घर पर किसी को नहीं रहने दूंगा. देखता हूं, मेरा यह संकल्प कब तक मेरा साथ देता है. Hindi Fiction Story

Myopia in Kids: बच्चों में मायोपिया- हर माँ को क्या जानना चाहिए

लेखिका – डॉ. अंचल गुप्ता, सीनियर नेत्र रोग विशेषज्ञ एंड फाउंडर ऑफ नेत्रम ऑय फाउंडेशन

Myopia in Kids: एक नेत्र रोग विशेषज्ञ और एक माँ के तौर पर मैं समझ सकती हूँ कि जब किसी बच्चे को मायोपिया (निकट दृष्टि दोष) का पता चलता है, तो माता-पिता की चिंता कितनी बढ़ जाती है. हाल के वर्षों में, खासकर शहरों में, बच्चों में मायोपिया के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. लेकिन अच्छी बात यह है कि मायोपिया सिर्फ इलाज योग्य ही नहीं है, बल्कि कुछ हद तक रोका भी जा सकता है.

मायोपिया क्या है

मायोपिया एक ऐसी स्थिति है जिसमें बच्चा पास की चीजें तो साफ़ देख सकता है, लेकिन दूर की चीजें धुंधली दिखाई देती हैं. यह तब होता है जब आँख का आकार सामान्य से ज़्यादा लंबा हो जाता है या कॉर्निया (नेत्र की बाहरी सतह) अधिक मुड़ी हुई होती है, जिससे प्रकाश की किरणें रेटिना के ठीक ऊपर फोकस होने के बजाय उससे पहले ही फोकस हो जाती हैं. बच्चे अक्सर ब्लैकबोर्ड साफ़ न दिखने की शिकायत करते हैं, आँखें मिचमिचाते हैं, सिरदर्द की शिकायत करते हैं या किताबें बहुत पास लेकर पढ़ते हैं.

myopia in kids
डॉ. अंचल गुप्ता, सीनियर नेत्र रोग विशेषज्ञ एंड फाउंडर ऑफ नेत्रम ऑय फाउंडेशन

मायोपिया के कारण क्या हैं?

मायोपिया के दो मुख्य कारण होते हैं:

अनुवांशिकता (Genetics) : अगर माता या पिता में से किसी एक को मायोपिया है, तो बच्चे को इसका ख़तरा ज़्यादा होता है.

जीवनशैली (Lifestyle Factors) : बहुत ज़्यादा पास का काम (जैसे पढ़ाई, मोबाइल या टैबलेट पर समय बिताना), बाहर खेलने का कम समय और लंबा स्क्रीन टाइम मायोपिया को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाते हैं.

आज की जीवनशैली, जिसमें पढ़ाई, डिजिटल लर्निंग और बाहर खेलने का समय बहुत कम रह गया है, बच्चों में मायोपिया के जल्दी शुरू होने और तेजी से बढ़ने के लिए जिम्मेदार है.

क्या इसे रोका जा सकता है?

हम अनुवांशिक कारणों को तो नहीं बदल सकते, लेकिन पर्यावरणीय कारणों में ज़रूर बदलाव ला सकते हैं. हर माता-पिता को मैं ये सलाह देना चाहूंगी:

बाहर खेलने का समय बढ़ाएँ: अपने बच्चे को रोज़ाना कम से कम 2 घंटे बाहर खेलने के लिए प्रोत्साहित करें. सूरज की रोशनी और दूर की चीजों को देखने से मायोपिया के बढ़ने की गति कम होती है.

20-20-20 नियम अपनाएँ: हर 20 मिनट पास का काम करने के बाद (जैसे पढ़ाई, होमवर्क या स्क्रीन देखना), बच्चे को कम से कम 20 फीट दूर किसी चीज़ को 20 सेकंड तक देखने के लिए कहें.

स्क्रीन टाइम सीमित करें: 6 साल से छोटे बच्चों को स्क्रीन पर बहुत कम समय देना चाहिए. बड़े बच्चों में भी स्क्रीन टाइम सीमित रखें और उपकरणों का इस्तेमाल करते समय सही पोस्चर और रोशनी का ध्यान रखें.

नियमित आँखों की जाँच कराएँ: भले ही बच्चे को कोई समस्या न लगे, हर साल एक बार आँखों की जाँच कराना ज़रूरी है.

मायोपिया का इलाज क्या है?

अगर आपके बच्चे को मायोपिया है, तो सबसे पहले चश्मा लगाया जाता है. लेकिन अब हमारे पास मायोपिया कंट्रोल के ऐसे विकल्प भी मौजूद हैं, जिनसे मायोपिया बढ़ने की रफ्तार को कम किया जा सकता है:

स्पेशल लेंस: जैसे DIMS (Defocus Incorporated Multiple Segments) या MiyoSmart लेंस, जो मायोपिया बढ़ने की गति को कम करने में मदद करते हैं.

ऑर्थोकेराटोलॉजी (Ortho-K): ये कठोर कॉन्टैक्ट लेंस होते हैं, जो रात में पहनकर सोते हैं और अस्थायी रूप से कॉर्निया को सही आकार में ढालते हैं.

एट्रोपिन आई ड्रॉप्स: कम मात्रा की एट्रोपिन ड्रॉप्स (0.01%) सुरक्षित और प्रभावी विकल्प हैं, खासकर उन बच्चों में जिनकी पावर तेजी से बढ़ रही हो.

निष्कर्ष

मायोपिया अब सिर्फ मामूली सी परेशानी नहीं रह गई है. अत्यधिक मायोपिया भविष्य में रेटिना डिटैचमेंट या ग्लॉकोमा जैसी गंभीर समस्याओं का कारण बन सकता है. जितनी जल्दी हम इसे पहचानें और इलाज शुरू करें, उतनी ही अच्छी तरह से हम अपने बच्चों की दृष्टि को सुरक्षित रख सकते हैं.

एक माँ के रूप में, आप अपने बच्चे की पहली सुरक्षा कवच होती हैं. लक्षणों पर ध्यान दें, बच्चों को बाहर खेलने के लिए प्रेरित करें और नेत्र जाँच कराने में कभी देर न करें.

आइए, मिलकर अपने बच्चों की आँखों की रोशनी को सुरक्षित रखें—आज भी और भविष्य में भी. Myopia in Kids

Ladli Behna Yojana: शगुन – स्वाभिमान, अभिमान और आत्मसम्मान का

Ladli Behna Yojana: 12 दिसंबर 2023 को जब डाक्टर मोहन यादव ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी तब प्रदेशवासियों में नये और युवा उर्जावान मुख्यमंत्री मिलने का उत्साह तो था ही लेकिन खासतौर से महिलाओं के मन में यह आशंका भी थी कि वे कहीं लाडली बहना योजना बंद न कर दें. वक्त रहते न केवल यह बल्कि दूसरी कई आशंकाएं भी निर्मूल साबित हुईं.

सवाल जहाँ तक लाडली बहना योजना का है तो प्रदेश की महिलाओं के चेहरे उस वक्त खिल उठे जब डाक्टर मोहन यादव ने यह घोषणा की कि इस बार बहनों को 250 रु राखी बंधाई के शगुन के रूप में दिए जायेंगे. यानी इस बार बहनों को 1500 रु मिलेंगे.

बीती 12 जुलाई को उज्जैन की ग्राम पंचायत नलवा में मोहन यादव ने लाडली बहना सम्मेलन में बहनों की झोली शगुन के साथ साथ सौगातो से भी भर दी. उन्होंने प्रदेश की 1 करोड़ 27 लाख बहनों के खाते में 1543.16 करोड़ की राशि वितरित की. यह सफल और दुनिया भर में चर्चित लाडली बहना योजना की 26वीं किश्त थी. इस मौके पर रक्षाबन्धन के एक महीना पहले से ही माहौल त्यौहारमय हो गया जिसे मोहन यादव के उद्बोधन ने और भी भावुक बना दिया. उन्होंने कहा, राखी भाई बहन के परस्पर स्नेह का बंधन है.

यह अनंतकाल से चला आ रहा अटूट बंधन है राखी आई है तो भाई का बहन को शगुन देना लाजिमी है. इसलिए राखी से पहले हमारी सरकार सभी लाडली बहनों को 250 रु की अतिरिक्त राशि बतौर शगुन देगी.

हम यहीं नहीं रुकेंगे, डाक्टर मोहन यादव ने कहा, बल्कि प्रदेश की हर लाडली बहन को पक्का मकान भी बना कर देंगे. प्रदेश की सभी बहने हमारा मान हैं अभिमान हैं. इनके मान सम्मान और कल्याण के लिए हम कोई कसर नहीं छोड़ेंगे. दीवाली के बाद आने वाले भाईदूज तक राज्य सरकार सभी लाडली बहनों को 1250 से बढ़ाकर हर महीने 1500 रु सहायता राशि देगी.

यह घोषणा सुनते ही पांडाल उपस्थित महिलाओं की तालियों से गूंज उठा. महिलाओं की ख़ुशी उस वक्त और बढ़ गई जब उन्होंने यह कहा कि यह राशि धीरे धीरे बढ़ाकर 3000 रु महीना कर दी जाएगी. बकौल डाक्टर मोहन यादव बहनें अपने पैसों को अच्छी तरह से सहेजना जानती हैं. उनके हाथ में पैसा रहे तो बच्चों को भी बेहतर जिन्दगी मिलती है. बहनों के जतन से ही घर में खुशियां आती हैं.

इस दिन नलवा में लगभग एक महीने पहले ही राखी का त्यौहार मन गया. कई महिलाओं ने डाक्टर मोहन यादव को राखी बाँधी. इन बहिनों ने अपने लाडले सीएम भैया को एक बड़ी राखी भी भेंट की. एवज में मुख्यमंत्री सौगातों की बौछार करते गये. उन्होंने कहा कि देश भर में प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में नारी सशक्तिकरण का अभियान जारी है. 4 करोड़ से भी ज्यादा पक्के मकानों की रजिस्ट्री बहनों के नाम पर हो रही है. बहने देश का सौभाग्य हैं वे मायके और ससुराल दोनों पक्षों को धन्य करती हैं.

इस आयोजन में मुख्यमंत्री ने लाडली लक्ष्मी योजना, प्रधानमन्त्री मातृवंदन योजना व प्रधानमन्त्री उज्ज्वला योजना के हितग्राहियों को भी राशि वितरित की.  उन्होंने 30 लाख से भी ज्यादा महिलाओं के खाते में प्रधानमन्त्री उज्ज्वला योजना के तहत सिलेंडर रिफलिंग के लिए 46.34 करोड़ रु सब्सिडी के डाले. इसके अलावा 56,74 लाख सामाजिक सुरक्षा पेंशन हितग्राहियों को उनके खाते में 340 करोड़ की राशि अंतरित की.

उन्होंने यह घोषणा भी की कि प्रदेश में अब तक 5 लाख किलोमीटर लंबी सड़के बनबाने के बाद सरकार प्रदेश के सभी मजरे टोलों तक भी सड़कें बनवाएगी. किसानों के लिए भी उन्होंने राहत देते 90 प्रतिशत अनुदान पर सोलर पम्प देने की घोषणा की. मध्यप्रदेश को मिल्क केपिटल बनाने के लिए शुरू की गई डाक्टर भीमराव आंबेडकर कामधेनू योजना का जिक्र करते हुए मुख्यमंत्री ने दूध की पैदावार को 9 से बढ़ाकर 20 फीसदी तक करने का लक्ष्य निर्धारित किया.

सावन की शुरुआत में ही घोषणाओं और योजनाओं की सुहानी बौछारों के बीच लाडली बहना सम्मेलन प्रदेश की लाडली बहनों के लिए एक यादगार आयोजन बन गया. एक आर्थिक निश्चिंतता और गारंटी महिलाओं में स्वाभिमान के साथ साथ आत्मविश्वास भी भर रही है इसमें कोई शक नहीं. Ladli Behna Yojana

Monsoon Eye Care: आंखों को रखें सुरक्षित, इन 4 बातों को कभी न भूलें

Monsoon Eye Care: अक्सर मौनसून में हम बारिश में भीग जाते हैं. जिससे बारिश के बानी के साथ हमारी आंखों में धूल मिट्टी भी चली जाती है. आंखों में धूल मिट्टी जाने से ये नुक्सान पहुंचाती है. फेस का सबसे जरूरी और खूबसूरत अंग है हमारी आंखे, जिसका ख्याल रखना बहुत जरूरी है. इसीलिए आज हम आई 7 चौधरी आई सेंटर के डाक्टर राहिल चौधरी से हुई बातचीत के आधार पर मौनसून में आंखों का ख्याल कैसे रखें इसके बारे में बताएंगे.

1. धूल और गंदे पानी से रहें दूर

गंदे पानी को अपनी आंखों में न जानें दें. अगर आप बारिश में भीग गए हैं तो घर आ कर तुरंत साफ पानी से नहा लें या साफ पानी और साबुन से अपना चेहरा धो लें ताकि आंखों को बैक्टीरिया के संक्रमण से बचाया जा सके. अगर धूल भरी आंधी चल रही हो तो सनग्लासेस का इस्तेमाल करें. यह आप की आंखों को धूल से भी बचाएगा और परा-बैंगनी किरणों से इन की सुरक्षा भी करेगा. अपने घर के आसपास गंदा पानी न इकट्ठा होने दें क्यों कि इस से संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाता है.

2. संक्रमित स्थानों और चीजों से रहें दूर

अगर आंखों का संक्रमण बहुत फैल रहा है तो स्विमिंग पुल न जाएं. कईं लोगों द्वारा इस्तेमाल किए जाने के कारण इन्हें बैक्टीरिया और दूसरे संक्रमणों का ब्रीडिंग ग्राउंड माना जाता है. अगर आप के आसपास किसी को आंखों का संक्रमण हुआ है या लक्षण दिखाई दे रहे हैं तो उस से दूर रहें. उस की टौवेल, नैपकिंस या दूसरी कोई निजी चीज इस्तेमाल न करें.

3. कांटेक्ट लेंसों को करें अच्छी तरह साफ

बैक्टीरिया के संक्रमण से बचने के लिए अपने लेंसों को अच्छी तरह साफ करें. इन्हें लगाने के लिए हाथों का इस्तेमाल करना पड़ता है, इसलिए संक्रमण का खतरा अधिक होता है. लेंसों को छूने से पहले हाथों को अच्छी तरह साफ पानी से धोएं. अपने लेंसों की एक्सपाइरी डेट याद रखें. इस के बाद इन का इस्तेमाल बिल्कुल न करें. अपने कौंटेक्ट लेंसों को किसी के साथ साझा न करें. उन्हें निकालने के बाद भी अच्छी तरह धो कर ही रखें.

हाथों को पोंछने के लिए टौवेल के बजाय टिशु पेपर का इस्तेमाल करें. ये सूखे, साफ और फ्रेश होते हैं. वाटर प्रूफ मेकअप का इस्तेमाल करें बारिश के मौसम में मेकअप आसानी से निकल जाता है इसलिए महिलाओं को इस मौसम में वाटर प्रूफ आई मेकअप करना चाहिए. अपने मेकअप प्रोडक्ट्स को किसी के साथ साझा न करें. अगर आंखों के संक्रमण की चपेट में आ जाएं तो किसी भी तरह के मेकअप और कॉस्मेटिक का इस्तेमाल न करें.

4. अपने साथ रखें हमेशा आई ड्रौप्स

इस मौसम में आप को आंखों में और उस के आसपास खुजली हो सकती है, ऐसे में ठंडे पानी से आंखें धो लें. अगर समस्या बनी रहे तो जनरल फिजिशियन को दिखाएं और डौक्टर द्वारा प्रिस्क्राइब्ड आई ड्रौप्स डालें. अगर आई ड्रौप्स डालने के बाद भी खुजली और आंखों का लालपन दूर न हो तो किसी अच्छे नेत्र रोग विशेषज्ञ को दिखाएं. अपने बच्चों को संक्रमण से बचाएं. बच्चों में संक्रमण का खतरा अधिक होता है.

बारिश के मौसम में बच्चों की आंखें स्वस्थ्य रहें इस का विशेष प्रयास करना चाहिए. उन्हें पर्सनल हाइजीन के गुर सिखाएं. उन्हें समझाएं कि जब भी जरूरी हो अपने हाथों को साफ पानी या सेनेटाइजर से साफ करें क्यों कि आंखों का संक्रमण गंदे हाथों से उन्हें छूने और रगड़ने से फैलता है.

बच्चों के नाखूनों को छोटा रखें क्यों कि बड़े नाखूनों में धूल जमा हो जाती है जो उन की आंखों में जा सकती है जब आंखें सीधे हाथों के संपर्क में आती हैं. उन्हें घर का बना साफ और पोषक भोजन खिलाएं ताकि उन का इम्यून तंत्र मजबूत हो और वे बारिश के मौसम में संक्रमण और दूसरी स्वास्थ्य समस्याओं की चपेट में आने से बच सकें. Monsoon Eye Care

Men Heartbreak: जब किसी पुरूष का टूटता है दिल

Men Heartbreak: जिंदादिल और दूसरों को हमेशा खुश रखने वाला समीर आजकल तनाव में रह रहा है. वह न तो किसी से ज्यादा बात करता है और न ही कहीं आताजाता है. औफिस से आते ही वह खुद को अपने कमरे में बंद कर लेता है. दरअसल, कुछ दिनों पहले उस का अपनी गर्लफ्रैंड से ब्रेकअप हो गया और जिस कारण वह तनाव में रहने लगा.

समीर का कहना है कि जब उस की गर्लफ्रैंड से उस का ब्रेकअप हुआ तो लगा मानो उस की पूरी दुनिया ही उजड़ गई. वह ब्रेकअप के दर्द से बाहर नहीं आ पा रहा है.

आज के संदर्भ में यह कहना गलत नहीं होगा कि व्यस्त जिंदगी के बीच रिश्ते भी बहुत तेजी से बदल रहे हैं. आज जितनी जल्दी लोगों को प्यार हो जाता है, उतनी ही जल्दी रिश्ते टूट भी जाते हैं.

लव अफेयर में जब ब्रेकअप होता है, तो इस का महिलाओं के जीवन में भी बहुत बुरा असर होता है. वे डिप्रैशन और असुरक्षा की भावना का शिकार हो जाती हैं. उन में उदासी घर कर जाती है. ब्रेकअप के कारण कई बार वे आत्महत्या तक कर लेती हैं, क्योंकि पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक भावुक और संवेदनशील होती हैं.

वहीं आमतौर पर यह माना जाता है कि पुरुषों पर ब्रेकअप का कुछ खास असर नहीं पड़ता. लेकिन ऐसा नहीं है. कई बार पुरुष भी ब्रेकअप से प्रभावित होते हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि ब्रेकअप होने पर महिलाएं अपना दर्द व्यक्त कर पाती हैं, जिस से उन के दिल का बोझ कुछ कम हो जाता है, जबकि पुरुष अंदर ही अंदर घुटते रहते हैं और ब्रेकअप के दर्द को अकेले ही झेलते हैं.

कई बार पुरुष ब्रेकअप से इस कदर टूट जाते हैं कि लोगों से मिलनाजुलना और यहां तक कि खानापीना तक छोड़ देते हैं. लेकिन लोग यह बात कम ही समझ पाते हैं.

ब्रेकअप का पुरुषों पर असर

जब किसी पुरूष का ब्रेकअप होता है, तो वे किस कदर इस से प्रभावित होते हैं, आइए जानते हैं :

खुद को दोषी मानने लगना :

ब्रेकअप होने के बाद ज्यादातर पुरुष खुद को ही दोषी मानने लगते हैं. भले ही लोगों के सामने वे कुछ भी कह लें, पर मन ही मन ब्रेकअप के लिए खुद को ही जिम्मेदार मानने लगते हैं. ब्रेकअप के बाद पुरूष गहरे तनाव में आ जाते हैं. अधिक तनाव में रहने के कारण सोचनेसमझने की क्षमता पर नकारात्मक असर पड़ने लगता है.  जो पुरुष अधिक संवेदनशील होते हैं, वे अपने पार्टनर की गलतियों को जानते हुए भी, उस की गलती न मान कर खुद को ही दोषी ठहरा देते हैं. ब्रेकअप के बाद ऐसे संवेदनशील लोग भीतर से टूट जाते हैं.

अकेलापन :

ब्रेकअप के बाद पुरूष अकेलापन महसूस करने लगते हैं और अपना दुख जाहिर नहीं कर पाते, जबकि महिलाएं अपने दिल का हाल दूसरों से शेयर कर लेती हैं. इस से उन का दर्द कम हो जाता है, पर पुरुषों के साथ ऐसा नहीं होता.

तनाव के शिकार हो जाते हैं :

ब्रेकअप के बाद तनाव और डिप्रैशन का शिकार सिर्फ महिलाएं ही नहीं होतीं, बल्कि पुरुष भी होते हैं. भले ही ब्रेकअप के तुरंत बाद कोई पुरूष खुद आजादी महसूस करता हो, पर धीरेधीरे वह अकेलापन और तनाव महसूस करना लगता है. वह शराबसिगरेट जैसी गलत लत का भी शिकार हो जाता है.

बारबार गलतियां दोहराते हैं :

पुरुष ब्रेकअप के बाद खुद को दोषी जरूर मानते हैं, लेकिन वे खुद में बिलकुल भी सुधार नहीं करते. जहां ब्रेकअप के बाद महिलाएं तुरंत किसी नए रिलेशनशिप में नहीं पड़ना चाहतीं, वहीं पुरुष ब्रेकअप के गम को भुलाने के लिए किसी दूसरे पार्टनर की तलाश में लग जाते हैं, जबकि कई बार यह तलाश सही साबित नहीं होती. अगर उन्हें कोई पार्टनर मिल भी जाता है तो ब्रेकअप के बाद  जल्दी उस पर भरोसा नहीं कर पाते और टाइमपास करने लगते हैं.

एक्स की याद में बेचैन हो जाना :

आमतौर यह देखा गया है कि ब्रेकअप के बाद भी ज्यादातर पुरुषों को यही उम्मीद रहती है कि उन की प्रेमिका फिर लौट कर उन के पास वापस आ जाएगी और इस के लिए वे प्रयास भी करते हैं. मौका मिलने पर वे अपनी ऐक्स से माफी भी मांग लेते हैं.

काम से लेते हैं ब्रैक :

कई पुरुष ब्रेकअप के बाद इतने दुख में डूब जाते हैं कि उन्हें कुछ करने का मन नहीं होता, यहां तक की औफिस में भी उन का मन नहीं लगता और वे काम से छुट्टी ले लेते हैं. लेकिन इस से भी उन्हें चैन नहीं मिलता, क्योंकि खाली बैठेबैठे फिर वही ब्रेकअप की बातें उन्हें परेशान करने लगती है और उन का दर्द घटने के बजाय और बढ़ने लगता है. वहीं महिलाएं मानसिक परेशानियों के बावजूद भी अपने काम बेहतर ढंग से करती रहती हैं.

ब्रेकअप के दर्द से कैसे उबरें पुरुष

किसी भी रिश्ते को भुलाना आसान नहीं होता, उस से हमारी भावनाएं जुड़ी होती हैं. खासकर जब रिश्ता प्यार का हो. जब हम किसी अपने से अलग होते हैं, तो उस दर्द को बरदाश्त कर पाना आसान नहीं होता. हम उस रिश्ते से निकलना चाहते हैं, पर हमारी भावनाएं हम पर हावी रहती हैं और यही डिप्रैशन का कारण बनती है, क्योंकि हम उसे भुलाने की कोशिश करते हैं, पर बारबार उसी की याद आती है.

ऐसे में अकसर हम वे गलतियां कर जाते हैं जो हमें नहीं करनी चाहिए. जैसे बारबार हम अपने ऐक्स को फोन लगाते हैं, उसे मैसेज करने लगते हैं. कभी खुद को कमरे में बंद कर लेते हैं, तो कभी नशे में डूब जाते हैं, क्योंकि ब्रेकअप का वक्त बहुत बुरा होता है.

हम किसी से भावनात्मक रूप से इतने जुङ जाते हैं कि हमें उस की आदत लग जाती है और जब वह किसी कारणवश अचानक से साथ छोड़ जाए, तो यह हम से बरदाश्त  नहीं होता. लेकिन भलाई इसी में है कि इस सचाई को स्वीकार कर  जीवन में आगे बढ़ा जाए.

अकेले न रहें :

ब्रेकअप के बाद अकसर लोग अकेले रहना पसंद करते हैं. यह सही नहीं है. दोस्तों से मिलें, परिवार को समय दें, उन के साथ थोड़ा वक्त बिताएं. घूमने जाएं. इस से आप के मन को सुकून मिलेगा और आप खुश भी रहेंगे.

कैरियर पर ध्यान दें :

ब्रेकअप का असर कभी भी अपने कैरियर पर न पड़ने दें. अकसर लोग ब्रेकअप के बाद अपने काम में मन नहीं लगाते और पर्सनल के साथ प्रोफैशनल लाइफ भी खराब कर लेते हैं. यह गलती कतई न करें, क्योंकि जिसे आप के जीवन से जाना था वह चला गया. फायदा इसी में है कि उसे भूल जाएं और अपने काम पर फोकस करें.

खुद को दोष देना बंद करें :

आप का ब्रेकअप हुआ है, इस का यह मतलब नहीं कि सारी गलती आप की ही थी. हर इंसान का अपनाअपना स्वभाव होता है. हो सकता है कि आप दोनों का स्वभाव एकदूसरे से मेल नहीं खाता हो, इसलिए आप दोनों का ब्रेकअप हो गया. ‘यह तो एक दिन होना ही था’, ऐसा सोचिए और खुश हो जाइए कि जो कल होना था, आज हो गया. अपनी गलतियों से सीख लें और सैल्फ गिल्ट में न जाएं.

सकारात्मक सोचें :

यह सोचें कि जो हुआ अच्छा हुआ और जो होगा वह भी अच्छा ही होगा. इसलिए हमेशा सकारात्मक सोच रखें.

समाजिक बनें :

खुद को अच्छा महसूस कराने के लिए वह करें जिस से आप को खुशी मिलती हो. आप अपनी पसंद की कोई हौबी चुनें और उस में व्यस्त रहें.

नशे को दोस्त न बनाएं :

अकसर लोग ब्रेकअप के बाद, उसे भुलाने के लिए नशे आदि का सहारा लेने लगते हैं, जोकि गलत है. ब्रेकअप हुआ है, कोई जिंदगी खत्म नहीं हो गई. रास्ते और भी हैं, बस चलने की ताकत रखिए. इसलिए नशे से खुद को दूर रखिए.

कमियों को सुधारें :

आप का ब्रेकअप क्यों हुआ? यह सोचें और सबक लें, ताकि आगे यह गलती न होने पाए.

मनोचिकित्सक की सलाह लें :

अपनी फिलिंग्स हर किसी से शेयर न करें, क्योंकि जितनी मुंह उतनी बातें होंगी. जानें कौन आप की बातें किस तरह से लें. इस के बजाय आप किसी अच्छे मनोचिकित्सक से परामर्श ले सकते हैं. वे आप को सही सलाह देंगे.

आप बीमार नहीं हैं :

यह एक ऐसी परिस्थिति है जो धीरेधीरे वक्त के साथ ठीक हो जाएगी. इस दौरान अगर नींद नहीं आती है तो किसी अच्छे लेखक की किताब पढ़िए, पत्रिकाएं पढ़िए, संगीत सुनिए.

ब्रेकअप को करें सैलिब्रेट :

जिस तरह हर छोटीबड़ी खुशियों को सैलिब्रेट करना जरूरी है, वैसे ही अपने ब्रेकअप को भी सैलिब्रेट करें. इस दौरान खुद को ट्रीट दें. आप को निश्चित ही अच्छा महसूस होगा. Men Heartbreak

Best Hindi Story: बनते-बिगड़ते शब्दार्थ

Best Hindi Story: कभी गौर कीजिए भाषा भी कैसेकैसे नाजुक दौर से गुजरती है. हमारा अनुभव तो यह है कि हमारी बदलतीबिगड़ती सोच भाषा को हमेशा नया रूप देती चलती है. इस विषय को विवाद का बिंदु न बना कर जरा सा चिंतनमंथन करें तो बड़े रोचक अनुभव मिलते हैं. बड़े आनंद का एहसास होता है कि जैसेजैसे हम विकसित हो कर सभ्य बनते जा रहे हैं, भाषा को भी हम उसी रूप में समृद्ध व गतिशील बनाते जा रहे हैं. उस की दिशा चाहे कैसी भी हो, यह महत्त्व की बात नहीं. दैनिक जीवन के अनुभवों पर गौर कीजिए, शायद आप हमारी बात से सहमत हो जाएं.

एक जमाना था जब ‘गुरु’ शब्द आदरसम्मानज्ञान की मिसाल माना जाता था. भाषाई विकास और सूडो इंटलैक्चुअलिज्म के थपेड़ों की मार सहसह कर यह शब्द अब क्या रूपअर्थ अख्तियार कर बैठा है. किसी शख्स की शातिरबाजी, या नकारात्मक पहुंच को जताना हो तो कितने धड़ल्ले से इस शब्द का प्रयोग किया जाता है. ‘बड़े गुरु हैं जनाब,’ ऐसा जुमला सुन कर कैसा महसूस होता है, आप अंदाज लगा सकते हैं. मैं पेशे से शिक्षक हूं. इसलिए ‘गुरु’ संबोधन के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों रूपों से रोजाना दोचार होता रहता हूं. परंतु हमारी बात है सोलह आने सच.

‘दादा’ शब्द हमारे पारिवारिक रिश्तों, स्नेह संबंधों में दादा या बड़े भाई के रूप में प्रयोग किया जाता है. आज का ‘दादा’ अपने मूल अर्थ से हट कर ‘बाहुबली’ का पर्याय बन गया है. इसी तरह ‘भाई’ शब्द का भी यही हाल है. युग में स्नेह संबंधों की जगह इस शब्द ने भी प्रोफैशनल क्रिमिनल या अंडरवर्ल्ड सरगना का रूप धारण कर लिया है. मायानगरी मुंबई में तो ‘भाई’ लोगों की जमात का रुतबारसूख अच्छेअच्छों की बोलती बंद कर देता है. जो लोग ‘भाई’ लोगों से पीडि़त हैं, जरा उन के दिल से पूछिए कि यह शब्द कैसा अनुभव देता है उन्हें.

‘चीज’, ‘माल’, ‘आइटम’ जैसे बहुप्रचलित शब्द भी अपने नए अवतरण में समाज में प्रसिद्ध हो चुके हैं. हम कायल हैं लोगों की ऐसी संवेदनशील साहित्यिक सोच से. आदर्शरूप में ‘यत्र नार्यरतु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता:’ का राग आलापने वाले समाज में स्त्री के लिए ऐसे आधुनिक सम्माननीय संबोधन अलौकिक अनुभव देते हैं. सुंदर बाला दिखी नहीं, कि युवा पीढ़ी बड़े गर्व के साथ अपनी मित्रमंडली में उसे ‘चीज’, ‘माल’, ‘आइटम’ जैसे संबोधनों से पुकारने लगती है. सिर पीट लेने का मन करता है जब किसी सुंदर कन्या के लिए ‘फ्लैट’ शब्द भी सुनते हैं. जरा सोचिए, भला क्या संबंध हो सकता है इन दोनों में.

नारी को खुलेआम उपभोग की वस्तु कहने की हिम्मत चाहे न जुटा पाएं लेकिन अपने आचारव्यवहार से अपने अवचेतन मन में दबी भावना का प्रकटीकरण जुमलों से कर कुछ तो सत्य स्वीकार कर लेते हैं- ‘क्या चीज है,’ ‘क्या माल है?’ ‘यूनीक आइटम है, भाई.’ अब तो फिल्मी जगत ने भी इस भाषा को अपना लिया है और भाषा की भावअभिव्यंजना में चारचांद लगा दिए हैं.

‘बम’ और ‘फुलझड़ी’ जैसे शब्द सुनने के लिए अब दीवाली का इंतजार नहीं करना पड़ता. आतिशबाजी की यह सुंदर, नायाब शब्दावली भी आजकल महिला जगत के लिए प्रयोग की जाती है. कम उम्र की हसीन बाला को ‘फुलझड़ी’ और ‘सम थिंग हौट’ का एहसास कराने वाली ‘शक्ति’ के लिए ‘बम’ शब्द को नए रूप में गढ़ लिया गया है. इसे कहते हैं सांस्कृतिक संक्रमण. पहले  के पुरातनपंथी, आदर्शवादी, पारंपरिक लबादे को एक झटके में लात मार कर पूरी तरह पाश्चात्यवादी, उपभोगवादी, सिविलाइज्ड कल्चर को अपना लेना हम सब के लिए शायद बड़े गौरव व सम्मान की बात है. इसी क्रम में ‘धमाका’ शब्द को भी रखा जा सकता है.

‘कलाकार’ शब्द भी शायद अब नए रूप में है. शब्दकोश में इस शब्द का अर्थ चाहे जो कुछ भी मिले लेकिन अब यह ऐसे शख्स को प्रतिध्वनित करता है जो बड़ा पहुंचा हुआ है. जुगाड़ करने और अपना उल्लू सीधा करने में जिसे महारत हासिल है, वो जनाब ससम्मान ‘कलाकार’ कहे जाने लगे हैं. ललित कलाओं की किसी विधा से चाहे उन का कोई प्रत्यक्षअप्रत्यक्ष संबंध न हो किंतु ‘कलाकार’ की पदवी लूटने में वो भी किसी से पीछे नहीं.

‘नेताजी’ शब्द भी इस बदलते दौर में पीछे नहीं है. मुखिया, सरदार, नेतृत्व करने वाले के सम्मान से इतर अब यह शब्द बहुआयामी रूप धारण कर चुका है और इस की महिमा का बखान करना हमारी लेखनी की शक्ति से बाहर है. इस के अनंत रूपों को बयान करना आसान नहीं. शायद यही कारण है कि आजकल ज्यादातर लोग इसे नापसंद भी करने लगे हैं. ‘छद्मवेशी’ रूप को आम आदमी आज भी पसंद नहीं करता है, इसलिए जनमानस में ये जनाब भी अपना मूलस्वरूप खो बैठे हैं.

‘चमचा’ अब घर की रसोई के बरतनभांडों से निकल कर पूरी सृष्टि में चहलकदमी करने लगा है. सत्तासुख भोगने और मजे

उड़ाने वाले इस शब्दविशेषज्ञ का रूपसौंदर्य बताना हम बेकार समझते हैं. कारण, ‘चमचों’ के बिना आज समाज लकवाग्रस्त है, इसलिए इस कला के माहिर मुरीदों को भी हम ने अज्ञेय की श्रेणी में रख छोड़ा है.

‘चायपानी’ व ‘मीठावीठा’ जैसे शब्द आजकल लोकाचार की शिष्टता के पर्याय हैं. रिश्वतखोरी, घूस जैसी असभ्य शब्दावली के स्थान पर ‘चायपानी’ सांस्कृतिक और साहित्यिक पहलू के प्रति ज्यादा सटीक है. अब चूंकि भ्रष्टाचार को हम ने ‘शिष्टाचार’ के रूप में अपना लिया है, इसलिए ऐसे आदरणीय शब्दों के चलन से ज्यादा गुरेज की संभावना ही नहीं है.

थोड़ी बात अर्थ जगत की हो जाए. ‘रकम’, ‘खोखा’, ‘पेटी’ जैसे शब्दों से अब किसी को आश्चर्य नहीं होता. ‘रकम’ अब नोटोंमुद्रा की संख्यामात्रा के अलावा मानवीय व्यक्तित्व के अबूझ पहलुओं को भी जाहिर करने लगा है. ‘बड़ी ऊंची रकम है वह तो,’ यह जुमला किसी लेनदेन की क्रिया को जाहिर नहीं करता बल्कि किसी पहुंचे हुए शख्स में अंतर्निहित गुणों को पेश करने लगा है. एक लाख की रकम अब ‘पेटी’, तो एक करोड़ रुपयों को ‘खोखा’ कहा जाने लगा है. अब इतना नासमझ शायद ही कोई हो जो इन के मूल अर्थ में भटक कर अपना काम बिगड़वा ले.

‘खतरनाक’ जैसे शब्द भी आजकल पौजिटिव रूप में नजर आते हैं. ‘क्या खतरनाक बैटिंग है विराट कोहली की?’ ‘बेहोश’ शब्द का नया प्रयोग देखिए – ‘एक बार उस का फिगर देख लिया तो बेहोश हो जाओगे.’ ‘खाना इतना लाजवाब बना है कि खाओगे तो बेहोश हो जाओगे.’

अब हम ने आप के लिए एक विषय दे दिया है. शब्दकोश से उलझते रहिए. इस सूची को और लंबा करते रहिए. मानसिक कवायद का यह बेहतरीन तरीका है. हम ने एसएमएस की भाषा को इस लेख का विषय नहीं बनाया है, अगर आप पैनी नजर दौड़ाएं तो बखूबी समझ लेंगे कि भाषा नए दौर से गुजर रही है. शब्दसंक्षेप की नई कला ने हिंदीइंग्लिश को हमेशा नए मोड़ पर ला खड़ा किया है.

लेकिन हमारी उम्मीद है कि यदि यही हाल रहा तो शब्दकोश को फिर संशोधित करने की जरूरत शीघ्र ही पड़ने वाली है, जिस में ऐसे शब्दों को उन के मूल और प्रचलित अर्थों में शुद्ध ढंग से पेश किया जा सके. Best Hindi Story

Thrilling Story in Hindi: घटिया मर्द

Thrilling Story in Hindi: सुशांत रोजाना की तरह कोरियर की डिलीवरी देने जा रहा था कि तभी उस का मोबाइल फोन बज उठा. उस ने झल्ला कर मोटरसाइकिल रोकी, लेकिन नंबर देखते ही उस की आंखों में चमक आ गई. उस की मंगेतर सोनी का फोन था. उस ने जल्दी से रिसीव किया, ‘‘कैसी हो मेरी जान?’’

‘तुम्हारे इंतजार में पागल हूं…’ दूसरी ओर से आवाज आई.

उन दोनों के बीच प्यारभरी बातें होने लगीं, पर सुशांत को जल्दी से जल्दी अगले कस्टमर के यहां पहुंचना था, इसलिए उस ने यह बात सोनी को बता कर फोन काट दिया.

दिए गए पते पर जा कर सुशांत ने डोरबैल बजाई. थोड़ी देर में एक औरत ने दरवाजा खोला.

‘‘मानसीजी का घर यही है मैडम?’’ सुशांत ने पूछा.

‘‘हां, मैं ही हूं. अंदर आ जाओ,’’ उस औरत ने कहा.

सुशांत ड्राइंगरूम में बैठ कर अपने कागजात तैयार करने लगा. मानसी भीतर चली गई.

अपने दोस्तों के बीच माइक्रोस्कोप नाम से मशहूर सुशांत ने इतनी ही देर में अंदाजा लगा लिया कि वह औरत उम्र में तकरीबन 40-41 साल की होगी. उस के बदन की बनावट तो खैर मस्त थी ही.

सुशांत ने कागजात तैयार कर लिए. तब तक मानसी भी आ गई. उस के हाथ में कोई डब्बा था.

सुशांत ने कागजपैन उस की ओर बढ़ाया और बोला, ‘‘मैडम, यहां दस्तखत कर दीजिए.’’

‘‘हां कर दूंगी, मगर पहले यह देखो…’’ मानसी ने वह डब्बा सुशांत को दे कर कहा, ‘‘यह मोबाइल फोन मैं ने इसी कंपनी से मंगाया था. अब इस

में बारबार हैंग होने की समस्या आ

रही है.’’

सुशांत चाहता तो मानसी को वह मोबाइल फोन रिटर्न करने की सलाह दे सकता था, उस की नौकरी के लिहाज से उसे करना भी यही चाहिए था, लेकिन अपना असर जमाने के मकसद से उस ने मोबाइल फोन ले कर छानबीन सी शुरू कर दी, ‘‘यह आप ने कब मंगाया था मैडम?’’

‘‘15 दिन हुए होंगे.’’

उन दोनों के बीच इसी तरह की बातें होने लगीं. सुशांत कनखियों से मानसी के बड़े गले के ब्लाउज के खुले हिस्सों को देख रहा था. उसे देर लगती देख कर मानसी चाय बनाने अंदर रसोईघर में चली गई.

सुशांत को यकीन हो गया था कि घर में मानसी के अलावा कोई और नहीं है. लड़कियों से छेड़छाड़ के कई मामलों में थाने में बैठ चुके 25 साला सुशांत की आदत अपना रिश्ता तय होने के बाद भी नहीं बदल सकी थी. उसे एक तरह से लत थी. ऐसी कोई हरकत करना, फिर उस पर बवाल होना, पुलिस थानों के चक्कर लगाना…

सुशांत ने बाहर आसपास देखा और मोबाइल फोन टेबल पर रख कर अंदर की ओर बढ़ गया. खुले नल और बरतनों की आवाज को पकड़ते हुए वह रसोईघर तक आसानी से चला गया.

मानसी उसे देख कर चौंक उठी, ‘‘तुम यहां क्या कर रहे हो?’’

कोई जवाब देने के बजाय सुशांत ने मानसी का हाथ पकड़ कर उसे खींचा और गले से लगा लिया.

मानसी ने उस की आंखों में देखा और धीरे से बोली, ‘‘देखो, मेरी तबीयत ठीक नहीं है.’’

मानसी की इस बात ने तो जैसे सुशांत को उस की मनमानी का टिकट दिला दिया. उस के होंठ मानसी की गरदन पर चिपक गए. नाम के लिए मानसी का नानुकर करना किसी रजामंदी से कम नहीं था.

कुछ पल वहां बिताने के बाद सुशांत मानसी को गोद में उठा कर पास के कमरे में ले आया और बिस्तर पर धकेल दिया.

मानसी अपने हटते परदों से बेपरवाह सी बस सुशांत को घूरघूर कर देखे जा रही थी. सुशांत को महसूस हो गया था कि शायद मानसी का कहना सही है कि उस की तबीयत ठीक नहीं है, क्योंकि उस का शरीर थोड़ा गरम था. लेकिन उस ने इस की फिक्र नहीं की.

थोड़ी देर में चादर के बननेबिगड़ने का दौर शुरू हो गया. रसोईघर में चढ़ी चाय उफनतेउफनते सूख गई. खुले नल ने टंकी का सारा पानी बहा दिया. घंटाभर कैसे गुजर गया, शायद दीवार पर लगी घड़ी भी नहीं जान सकी.

कमरे में उठा तूफान जब थमा तो पसीने से लथपथ 2 जिस्म एकदूसरे के बगल में निढाल पड़े हांफ रहे थे. तभी कमरे में रखा वायरलैस फोन बज उठा.

मानसी ने काल रिसीव की, ‘‘हां बेटा, आज भी बुखार हो गया है… डाक्टर शाम को आएंगे… जरा अपनी नानी को फोन देना…’’

मानसी ने कुछ देर तक बातें करने के बाद फोन काट दिया. सुशांत आराम से लेटा सीलिंग फैन को ताक रहा था.

‘‘कपड़े पहनो और निकलो यहां से अब… धंधे वाली का कोठा नहीं है जो काम खत्म कर के आराम से पसर गए,’’ मानसी ने अपनी पैंटी पहनते हुए थोड़ा गुस्से में कहा और पलंग से उतर कर अपने बाकी कपड़े उठाने लगी.

सुशांत ने उसे आंख मारी और बोला, ‘‘एक बार और पास आ जाता तो अच्छा होता.’’

‘‘कोई जरूरत नहीं. तुम्हारे लिए एक बार ही बहुत है,’’ मानसी ने अजीब से लहजे में कहा.

यह सुन कर सुशांत मुसकरा कर उठा और अपने कपड़े पहनने लगा.

‘‘अगले महीने मेरी भी शादी होने वाली है, लेकिन जिंदगी बस एक के ही साथ रोज जिस्म घिसने में बरबाद हो जाती है, इसलिए बस यह सब कभीकभार…’’ सुशांत ने कहा.

सुशांत की बात सुन कर मानसी का चेहरा नफरत से भर उठा. वह अपने पूरे कपड़े पहन चुकी थी. उस ने आंचल सीने पर डाला और बैठक में से कोरियर के कागजात दस्तखत कर के ले आई.

‘‘ये रहे तुम्हारे कागजात…’’ मानसी सुशांत से बोली, ‘‘जानते हो, कुछ मर्द तुम्हारी ही तरह घटिया होते हैं. मेरे पति भी बिलकुल ऐसे ही थे.’’

अब तक सबकुछ ठीकठाक देख रहे सुशांत का चेहरा अपने लिए घटिया शब्द सुन कर असहज हो गया.

मानसी ताना मारते हुए कह पड़ी, ‘‘क्या हुआ? बुरा लगा तुम्हें? जिस लड़की से शादी रचाने जा रहा है, उस की वफा को ऐसे बेशर्म बन कर मेरे साथ अपने नीचे से बहाने में बुरा नहीं लगा क्या? पर मुझ से घटिया शब्द सुन कर बुरा लग रहा है?’’

‘‘देखिए मैडम, आप ने भी तो…’’ सुशांत ने अपनी बात रखनी चाही.

इस पर मानसी गुर्रा उठी, ‘‘हांहां, मैं सो गई तेरे नीचे. तुझे अपने नीचे भी दबा लिया, लेकिन बस इसलिए क्योंकि मुझ को तुझे भी वही देना था जो मेरा पति मुझे दे गया था… मरने से पहले…’’

सुशांत अब हैरान सा उसे देखे जा रहा था.

मानसी जैसे किसी अजीब से जोश में कहती रही, ‘‘मेरा पति अपने औफिस की औरतों के साथ सोता था. वह मुझे धोखा देता था. उस ने मुझे एड्स दे दिया और आज वही मैं ने तुझे भी… जा, खूब सो नईनई औरतों के साथ… तू भी मरना सड़सड़ कर, जैसे मैं मरूंगी…

‘‘मैं अब किसी भी मर्द को अपनी टांगों के बीच आने से मना नहीं करती… धोखेबाज मर्दों से यह मेरा बदला है जो हमेशा जारी रहेगा,’’ कहतेकहते मानसी फूटफूट कर रोने लगी.

सुशांत के कानों में जैसे धमाके होते चले गए. वह सन्न खड़ा रह गया, लेकिन अब क्या हो सकता था… Thrilling Story in Hindi

Hindi Moral Story: शर्तिया लड़का ही होगा

Hindi Moral Story: औफिस में घुसते ही मोहन को लगा कि सबकुछ ठीक नहीं है. उसे देखते ही स्टाफ के 2-3 लोग खड़े हो गए व नमस्कार किया, पर उन के होंठों पर दबी हुई मुसकान छिपी न रह सकी. अपने केबिन की तरफ न बढ़ कर मोहन वहीं ठिठक गया. उस का असिस्टैंड अरविंद आगे बढ़ा. ‘‘क्या बात है?’’ मोहन ने पूछा.

‘‘राम साहब की पत्नी आई हैं. आप से मिलना चाहती हैं. मैं ने उन्हें आप के केबिन में बिठा दिया है.’’

‘‘अच्छा… पर वे यहां क्यों आई हैं?’’ मोहन ने फिर पूछा.

‘‘पता नहीं, सर.’’

‘‘राम साहब कहां हैं?’’

‘‘वे तो… वे तो भाग गए.’’

‘‘क्या…’’ मोहन ने पूछा, ‘‘कहां भाग गए?’’

बाकी स्टाफ की मुसकराहट अब खुल गई थी. 1-2 ने तो हंसी छिपाने के लिए मुंह घुमा लिया.

‘‘पता नहीं. राम सर नहा रहे थे जब उन की पत्नी आईं. राम सर जैसे ही बाथरूम से बाहर आए, उन्होंने अपनी पत्नी को देखा तो वे फौरन बाहर भाग गए. कपड़े भी नहीं पहने. अंडरवियर पहने हुए थे.’’

‘‘लेकिन, राम साहब यहां क्यों नहा रहे थे? वे अपने घर से नहा कर क्यों नहीं आए?’’

‘‘अब मैं क्या बताऊं… वे तो अकसर यहीं नहाते हैं. अपनी पत्नी से उन की कुछ बनती नहीं है.’’

माजरा कुछ समझ में न आता देख मोहन ने अपने केबिन की तरफ कदम बढ़ा दिए.

राम औफिस में सीनियर क्लर्क थे. सब उन्हें राम साहब कहते थे. आबनूस की तरह काला रंग व पतली छड़ी की तरह उन का शरीर था. उन का वजन मुश्किल से 40 किलो होगा. बोलते थे तो लगता था कि घिघिया रहे हैं. उन की 6 बेटियां थीं.

इस बारे में भी बड़ा मजेदार किस्सा था. उन के 3 बेटियां हो चुकी थीं, पर उन्हें बेटे की बड़ी लालसा थी. उन के एक दोस्त थे. उन की भी 3 बेटियां थीं. सभी ने कहा कि इस महंगाई के समय में 3 बेटियां काफी हैं इसलिए आपरेशन करा लो. लेकिन दोनों दोस्तों ने तय किया कि वे एकएक चांस और लेंगे. अगर फिर भी बेटा न हुआ तो आपरेशन करा लेंगे.

दोनों की पत्नियां फिर पेट से हुईं. दोस्त के यहां बेटी पैदा हुई. उस ने वादे के मुताबिक आपरेशन करा लिया. कुछ समय बाद राम के यहां जुड़वां बेटियां हुईं. पर

उन्होंने वादे के मुताबिक आपरेशन नहीं कराया क्योंकि अब उन का कहना था कि जहां नाश वहां सत्यानाश सही. जहां 5 हुईं वहां और भी हो जाएंगी तो क्या हो जाएगा. फिर छठी बेटी भी हो गई. सुनते हैं कि उस दोस्त से राम की बोलचाल बंद है. वह इन्हें गद्दार कहता है.

मोहन ने अपने केबिन का दरवाजा खोल कर अंदर कदम रखा. सामने की कुरसी पर जो औरत बैठी थीं उन का वजन कम से कम डेढ़ क्विंटल तो जरूर होगा. वे राम साहब की पत्नी थीं. उन का रंग राम साहब से ज्यादा ही आबनूसी था. उन के पीछे अलगअलग साइजों की 5 लड़कियां खड़ी थीं. छठवीं उन की गोद में थी.

मोहन को देखते ही वे एकदम से उठीं और लपक कर मोहन के पैर पकड़ लिए. यह देख वह हक्काबक्का रह गया.

‘‘अरे, क्या करती हैं आप. मेरे पैर छोडि़ए,’’ मोहन ने पीछे हटते हुए कहा.

वे बुक्का फाड़ कर रो पड़ीं. उन को रोते देख पांचों लड़कियां भी रोने लगीं.

मोहन ने डांट कर सभी को चुप कराया. वह अपनी कुरसी पर पहुंचा

व घंटी बजा कर चपरासी को बुलाया.

6 गिलास पानी मंगवाया. साथ ही, चाय लाने को भी कहा. पानी आते ही वे सभी पानी पर टूट पड़ीं.

थोड़ी देर बाद मोहन ने पूछा. ‘‘कहिए, क्या बात है?’’

‘‘साहब, हमारे परिवार को बचा लीजिए…’’ इतना कह कर राम साहब की पत्नी फिर रो पड़ीं, ‘‘अब हमें आप का ही सहारा है.’’

‘‘क्या हो गया? क्या कोई परेशानी

है तुम्हें?’’

‘‘जी, परेशानी ही परेशानी है. मैं लाचार हो गई हूं. अब आप ही कुछ भला कर सकते हैं.’’

‘‘देखिए, साफसाफ बताइए. यह घर नहीं, औफिस है…’’ मोहन ने समझाया, ‘‘कोई औफिस की बात हो तो बताइए.’’

‘‘सब औफिस का ही मामला है साहब. अब इन 6-6 लड़कियों को ले कर मैं कहां जाऊं. इन का गला घोंट दूं या हाथपैर बांध कर किसी कुएं में फेंक दूं.’’

‘‘आप ऐसा क्यों कह रही हैं. इन का खयाल रखने को राम साहब तो हैं ही.’’

‘‘वे ही अगर खयाल रखते तो रोना ही क्या था साहब.’’

अब मोहन को उलझन होने लगी, ‘‘देखिए, मेरे पास कई जरूरी काम हैं. आप को जोकुछ भी कहना है, जरा साफसाफ कहिए. आप हमारे स्टाफ की पत्नी हैं. हम से जो भी हो सकेगा, हम जरूर करेंगे.’’

‘‘अब कैसे कहें साहब, हमें तो शर्म आती है.’’

‘‘क्या शर्म की कोई बात है?’’

‘‘जी हां, बिलकुल है.’’

‘‘राम साहब के बारे में?’’

‘‘और नहीं तो क्या, वे ही तो सारी बातों की जड़ हैं.’’

मोहन को हैरानी हुई. इस औरत के सामने तो राम साहब चींटी जैसे हैं. वे इस पर क्या जुल्म करते होंगे. यह अगर उन का हाथ कस कर पकड़ ले तो वे तो छुड़ा भी न पाएंगे.

‘‘मैं फिर कहूंगा कि आप अपनी बात साफसाफ बताएं.’’

‘‘उन का किसी से चक्कर चल रहा है साहब…’’ वे फट पड़ीं, ‘‘न उम्र का लिहाज है और न इन 6 लड़कियों का. मैं तो समझा कर, डांट कर और यहां तक कि मारकुटाई कर के भी हार गई, पर वे सुधरने का नाम ही नहीं लेते हैं.’’

मोहन को हंसी रोकने के लिए मुंह नीचे करना पड़ा और फिर पूछा, ‘‘क्या आप को लगता है कि राम साहब कोई चक्कर चला सकते हैं? कहीं आप को कोई गलतफहमी तो नहीं हो रही है?’’

‘‘आप उन की शक्लसूरत या शरीर पर न जाइए साहब. वे पूरे घुटे हुए हैं. ये 6-6 लड़कियां ऐसे ही नहीं हो गई हैं.’’

मोहन को हंसी रोकने के लिए दोबारा मुंह नीचे करना पड़ा. तभी चपरासी चाय ले आया. सभी लड़कियों ने, राम साहब की पत्नी ने भी हाथ बढ़ा कर चाय ले ली व तुरंत पीना शुरू कर दिया.

‘‘राम साहब ने कपड़े मांगे हैं,’’ चपरासी ने उन से कहा.

मोहन ने देखा कि बड़ी बेटी के हाथ में एक पैंट व कमीज थी.

‘‘कपड़े तो हम उन्हें न देंगे. उन से कह दो कि ऐसे ही नंगे फिरें…’’ राम साहब की पत्नी गुस्से से बोलीं, ‘‘उन की अब यही सजा है. वे ऐसे ही सुधरेंगे.’’

‘‘राम साहब नंगे नहीं हैं. कच्छा पहने हुए हैं,’’ चपरासी ने कहा.

‘‘अगर तुम मेरे भाई हो तो जाओ वह भी उतार लाओ,’’ वे बोलीं.

‘‘राम साहब कहां हैं?’’ मोहन ने चपरासी से पूछा.

‘‘सामने चाय की दुकान पर चाय पी रहे हैं. बड़ी भीड़ लगी है वहां साहब.’’

‘‘जाओ, उन्हें यहां बुला लाओ.’’

‘‘वे नहीं आएंगे साहब. कहते हैं कि उन्हें शर्म आती है.’’

‘‘चाय की दुकान पर उन्हें शर्म नहीं आ रही है? जाओ और उन से कहो कि मैं बुला रहा हूं.’’

‘‘अभी बुला लाता हूं साहब,’’ चपरासी ने जोश में भर कर कहा.’’

‘‘अब तो आप ने देख लिया साहब…’’ वे आंखों में आंसू भर कर बोलीं, ‘‘हम लोग यहां तड़प रहे हैं और वे आराम से वहां कच्छा पहने चाय पी रहे हैं.’’

‘‘पर, आप ने भी तो हद कर दी…’’ मोहन को कहना पड़ा, ‘‘उन के कपड़े क्यों छीन लिए?’’

‘‘आदमी औफिस में काम करने आता है कि नहाने. घर में न नहा कर दफ्तर में नहाने की अब यही सजा है. सुबहसुबह तो उस कलमुंही रेखा से मिलने के लिए जल्दी से निकल गए थे. अब दफ्तर में तो नहाएंगे ही. ठीक है, आज दिनभर कच्छा पहने ही काम करें.’’

तभी लोगों ने ठेल कर राम साहब को केबिन के अंदर कर दिया. मोहन उन्हें सिर्फ कच्छा पहने पहली बार देख रहा था. उन का शरीर दुबलापतला था. पसली की एकएक हड्डी गिनी जा सकती थी. सूखेसूखे हाथपैर टहनियों जैसे थे. उन के काले शरीर पर एकदम नई पीले रंग की कट वाली अंडरवियर चमक रही थी.

‘‘इन्हें इन के कपड़े दे दो,’’ मोहन ने बड़ी लड़की से कहा.

‘‘हम न देंगे…’’ वह लड़की पहली बार बोली, ‘‘अम्मां मारेंगी.’’

‘‘प्लीज, इन के कपड़े इन्हें दिला दीजिए…’’ मोहन ने उन से कहा, ‘‘यह ठीक नहीं लग रहा है.’’

‘‘देदे री. देती क्यों नहीं. साहब कह रहे हैं, तब भी नहीं देती. दे जल्दी.’’

लड़की ने हाथ बढ़ा कर कपड़े राम साहब को दे दिए. उन्होंने जल्दीजल्दी कपड़े पहन लिए.

मोहन ने कहा, ‘‘बैठिए, आप की पत्नी जो बता रही हैं, अगर वह सही है तो वाकई बड़ी गलत बात है.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है साहब. यह बिना वजह शक करती है.’’

‘‘शर्म नहीं आती झूठ बोलते हुए,’’ उन की पत्नी तड़पीं, ‘‘कह दो रेखा का कोई चक्कर नहीं है.’’

‘‘नहीं है. वह तो तभी खत्म हो गया था, जब तुम ने अपनी कसम दिलाई थी.’’

‘‘और राधा का?’’

‘‘राधा यहां कहां है. वह तो अपनी ससुराल में है.’’

‘‘और वह रामकली, सुषमा?’’

‘‘क्यों बेकार की बातें करती हो… सब पुरानी बातें हैं. कब की खत्म हो चुकी हैं.’’

मोहन हक्काबक्का सुनता रहा. राम साहब के हुनर से उसे जलन होने लगी थी.

‘‘देखो, तुम साहब के सामने बोल रहे हो.’’

‘‘मैं साहब के सामने झूठ नहीं बोल सकता…’’ राम साहब ने जोश में कहा, ‘‘साहब जो भी कहें, मैं कर सकता हूं.’’

‘‘साहब जो कहेंगे मानोगे?’’

‘‘हां, बिलकुल.’’

‘‘साहब कहेंगे तो तुम रेखा से राखी बंधवाओगे?’’

‘‘साहब कहेंगे तो मैं तुम से भी राखी बंधवाऊंगा.’’

‘‘क्या…?’’ पत्नी का मुंह खुला का खुला रह गया. राम साहब हड़बड़ा कर नीचे देखने लगे.

‘‘आप औफिस में क्यों नहानाधोना करते हैं?’’ पूछते हुए मोहन का मन खुल कर हंसने को हो रहा था.

‘‘अब क्या बताएं साहब…’’ राम साहब रोंआसा हो गए, ‘‘पारिवारिक बात है. कहते हुए शर्म आती है. इस औरत ने घर का माहौल नरक बना दिया है. मेरे बारबार मना करने के बाद भी आपरेशन के लिए तैयार ही नहीं होती. इतना बड़ा परिवार हो गया है. सुबह से कोई न कोई घुसा ही रहता है. किसी को स्कूल जाना है तो किसी का पेटदर्द कर रहा होता है, इसीलिए कभीकभी मुझे जल्दी आ कर औफिस में नहाना पड़ता है.

‘‘पर, असली बात जिस के लिए ये यहां आई हैं, यह नहीं है,’’ वे अपनी पत्नी की तरफ घूमे, ‘‘अब पूछती क्यों नहीं है.’’

‘‘पूछूंगी क्यों नहीं, मैं तुम से डरती हूं क्या.’’

‘‘तो अभी तक क्यों नहीं पूछा?’’

‘‘अब पूछ लूंगी.’’

‘‘क्या पूछना है?’’ मोहन ने पूछा.

‘‘मैं बताता हूं साहब…’’ अब राम साहब मोहन की तरफ घूमे, ‘‘इसे लगता है कि मैं अपनी पूरी तनख्वाह इसे नहीं देता व कुछ बचा कर इधरउधर खर्च करता हूं. कल से मेरे पीछे पड़ी है. औफिस के ही किसी आदमी ने इसे भड़का दिया है, जबकि मैं अपनी तनख्वाह का पूरा पैसा इस के हाथ में ले जा कर रख देता हूं. यह यही पूछने आई है कि मेरी तनख्वाह कितनी है.’’

‘‘क्या यही बात है?’’ मोहन ने राम साहब की पत्नी से पूछा.

‘‘हां साहब, मुझे सचसच बता दीजिए कि इन को कितनी तनख्वाह मिलती है.’’

‘‘राम साहब अगर इन्हें बता दिया जाए तो आप को कोई एतराज तो नहीं है?’’ मोहन ने राम साहब से पूछा.

‘‘मुझे क्या एतराज होना है. मैं तो पूरी तनख्वाह इस के हाथ में ही रख

देता हूं.’’

‘‘ठीक है. इन्हें बाहर ले जा कर बड़े बाबू के पास सैलरी शीट दिखा दीजिए.’’

वे उठे, पर उन से पहले ही पांचों लड़कियां बाहर निकल गई थीं.

मोहन ने अरविंद को बुलाया.

‘‘क्या राम साहब वाकई सनकी हैं? वे अपने परिवार का तो क्या खयाल रखते होंगे?’’

‘‘ऐसी बात नहीं है साहब. परिवार पर तो वे जान छिड़कते हैं…’’ अचानक अरविंद फिर मुसकरा पड़ा, ‘‘आप को एक बार का किस्सा सुनाऊं. आप को इन के सोचने के लैवल का भी पता चलेगा.

‘‘जिस मकान में राम साहब रहते हैं, उस में 5-6 और किराएदार भी हैं. मकान मालिक नामी वकील हैं.

‘‘एक बार महल्ले में एक गुंडे ने किसी के साथ मारपीट की. वकील साहब ने उस के खिलाफ मुकदमा लड़ा. गुंडे को 3 महीने की सजा हो गई. वह जब जेल से बाहर आया तो उस ने वकील साहब को जान से मारने की धमकी दी.

‘‘वकील साहब ने एफआईआर दर्ज कर दी व उन के यहां पुलिस प्रोटैक्शन लग गई. एक दारोगा व 4 सिपाहियों की 24 घंटे की ड्यूटी लग गई.

‘‘जब उस गुंडे का वकील साहब पर कोई जोर न चला तो उस ने किराएदारों को धमकाया. उस ने तुरंत मकान खाली कर देने को कहा. उस गुंडे के डर से बाकी सब किराएदारों ने मकान खाली कर दिया, पर राम साहब ने मकान न छोड़ा.

‘‘हम सभी को राम साहब व उन के परिवार की चिंता हुई. गुंडे ने राम साहब को यहां औफिस में भी धमकी भिजवाई थी, पर राम साहब मकान छोड़ने को तैयार न थे.

‘‘एक दिन मैं ने राम साहब से कहा कि चलिए ठीक है, आप मकान मत छोडि़ए, पर कुछ दिनों के लिए आप मेरे यहां आ जाइए. जब मामला ठंडा हो जाएगा तो फिर वहां चले जाइएगा. तो जानते हैं राम साहब ने क्या जवाब दिया?

‘‘उन्होंने कहा, ‘नहीं अरविंद बाबू, अब मेरी जान को कोई खतरा नहीं है. मेरी छिद्दू से बात हो गई है. अभी कल ही जब मैं औफिस से घर पहुंचा तो वह एक जीप के पीछे खड़ा था. मुझे देखा तो इशारे से पास बुलाया.

‘‘‘पहले तो मैं डरा, पर फिर हिम्मत कर के उस के पास चला गया. उस ने मुझे खूब गालियां दीं. मैं चुपचाप सुनता रहा. फिर उस ने कहा कि अबे, तुझे अपनी जान का भी डर नहीं लगता. अगर 2 दिन के अंदर मकान नहीं छोड़ा तो पूरे परिवार का खात्मा कर दूंगा.’

‘‘अब मैं ने मुंह खोला, ‘छिद्दू भाई, तुम तो अक्लमंद आदमी हो, फिर भी गलती कर रहे हो. वकील साहब के यहां 15-20 साल के पुराने किराएदार थे. कोई 20 रुपए महीना देता था तो कोई 50. वकील साहब तो खुद ही उन से मकान खाली कराना चाहते थे, पर किराएदार पुराने थे. वे लाचार थे. तुम ने तो उन की मदद ही की.

‘‘‘मकान खाली हो गया और वह भी बिना किसी परेशानी के. अब मेरी बात ही लो. मैं 100 रुपया महीना देता हूं. अगर छोड़ दूं तो 300 रुपए पर तुरंत उठ जाएगा.’

‘‘मेरी बात उस की समझ में आ गई. थोड़ी देर तक तो वह सोचता रह गया, फिर हाथ मलते हुए बोला, ‘यह तो तुम ठीक कह रहे हो. मुझ से बड़ी गलती हो गई. ठीक है, तुम मकान बिलकुल मत छोड़ो. लेकिन मैं ने भी तो सभी किराएदारों को खुलेआम धमकी दी है. सब को पता है. अगर तुम ने मकान नहीं छोड़ा तो मेरी बड़ी बेइज्जती होगी. सब यही सोचेंगे कि मेरे कहने का कोई असर नहीं हुआ.

‘‘‘तो ऐसा करते हैं कि तुम मकान न छोड़ो. किसी दिन मैं तुम को बड़े चौक पर गिरा कर जूतों से मार लूंगा. मेरी बात भी रह जाएगी और काम भी हो जाएगा. तो अरविंद बाबू, अब मेरी जान को कोई खतरा नहीं है.’’’

अरविंद की आखिरी बात सुनतेसुनते मोहन अपनी हंसी न रोक सका. उस ने किसी तरह हंसी रोक कर कहा, ‘‘पर, उस भले मानुस को जूतों से मार खाने की क्या जरूरत थी भाई. चलिए छोडि़ए. राम साहब व उन की पत्नी से कहिएगा कि वे मुझ से मिल कर जाएंगे.’’

‘‘जी, बहुत अच्छा साहब,’’ कह कर अरविंद उठ गया.

तभी राम साहब व उन की पत्नी दरवाजा खोल कर अंदर आए. लड़कियां बाहर ही थीं.

‘‘देखा साहब, मैं पहले ही कहता था न…’’ राम साहब ने खुश हो कर कहा, ‘‘पूछ लीजिए, अब तो कोई शिकायत नहीं है न इन को?’’

मोहन ने राम साहब की पत्नी की तरफ देखा.

‘‘ठीक है साहब. तनख्वाह तो ठीक ही दे देते हैं हम को. पर ओवरटाइम का कोई बता नहीं रहा है.’’

‘‘अब जाने भी दीजिए. इतना जुल्म मत कीजिए इन पर. आइए बैठिए, मुझे आप से एक बात कहनी है. आप दोनों से ही. बैठिए.’’ वे दोनों सामने रखी कुरसियों पर बैठ गए.

मोहन ने राम साहब की पत्नी से कहा, ‘‘राम साहब ठीक ही कहते हैं. एक लड़के की चाह में परिवार को इतना बढ़ा लेना अक्लमंदी नहीं है कि परिवार का पेट पालना भी ठीक से न हो सके. फिर आज के समय में लड़का और लड़की में फर्क ही क्या है. उम्मीद है, मेरी बात पर आप दोनों ही ध्यान देंगे.’’

‘‘ऐसी बात नहीं है,’’ उन्होंने शर्म से अपने पेट पर हाथ फेरा, ‘‘इस बार शर्तिया लड़का ही होगा.’’

‘‘क्या…?’’ राम साहब हैरत व खुशी से उछल पड़े, ‘‘तुम ने मुझे बताया क्यों नहीं?’’

‘‘धत…’’ वे बुरी तरह से शरमा कर तिहरीचौहरी हो गईं, ‘‘मुझे शर्म आती है.’’

‘‘अरे पगली, मुझ से क्या शर्म,’’ राम साहब लगाव भरी नजरों से अपनी पत्नी को देखते हुए मुझ से बोले, ‘‘मैं अभी मिठाई ले कर आता हूं. तुम जल्दी से ओवरटाइम रिकौर्ड देख कर घर जाओ. ऐसे में ज्यादा चलनाफिरना ठीक नहीं होता. आज मैं भी जरा जल्दी जाऊंगा साहब. आप तो जानते ही हैं कि काफी इंतजाम करने पड़ेंगे.’’

इतना कह कर राम साहब अपनी पत्नी को मेरे सामने छोड़ कर तेजी से मिठाई लाने दौड़ गए.

मोहन को कुछ न सूझा तो अपना सिर दोनों हाथों से जोर से पकड़ लिया. Hindi Moral Story

Online Story in Hindi: शहीद की विधवा

Online Story in Hindi: बतौर उर्दू टीचर जमाल की पोस्टिंग एक छोटे से गांव काजीपुर में हुई थी. वह बस से उतर कर कच्चे रास्ते से गुजरता हुआ स्कूल पहुंचा था.

अभी जमाल बैठा प्रिंसिपल साहब से बातें कर ही रहा था कि एक 10-11 साल का बच्चा वहां आया और उसे कहने लगा, ‘‘जमींदार साहब ने आप को बुलाया है.’’

यह सुन कर जमाल ने हैरानी से प्रिंसिपल साहब की तरफ देखा.

‘‘इस गांव के जमींदार बड़े ही मिलनसार इनसान हैं… जब मैं भी यहां नयानया आया था तब मुझे भी उन्होंने बुलाया था. कभीकभार वे खुद भी यहां आते रहते हैं… चले जाइए,’’ प्रिंसिपल साहब ने कहा तो जमाल उठ कर खड़ा हो गया.

जब जमाल जमींदार साहब के यहां पहुंचा तो वे बड़ी गर्मजोशी से मिले. सुर्ख सफेद रंगत, रोबीली आवाज के मालिक, देखने में कोई खानदानी रईस लगते थे. उन्होंने इशारा किया तो जमाल भी बैठ गया.

‘‘मुझे यह जान कर खुशी हुई कि आप उर्दू के टीचर हैं, वरना आजकल तो कहीं उर्दू का टीचर नहीं होता, तो कहीं पढ़ने वाले छात्र नहीं होते…’’

जमींदार साहब काफी देर तक उर्दू से जुड़ी बातें करते रहे, फिर जैसे उन्हें कुछ याद आया, ‘‘अजी… अरे अजीजा… देखो तो कौन आया है…’’ उन्होंने अंदर की तरफ मुंह कर के आवाज दी.

एक अधेड़ उम्र की औरत बाहर आईं. वे शायद उन की बेगम थीं.

‘‘ये नए मास्टर साहब हैं जमाल. हमारे गांव के स्कूल में उर्दू पढ़ाएंगे,’’ यह सुन कर जमींदार साहब की बेगम ने खुशी का इजहार किया, फिर जमाल से पूछा, ‘‘घर में और कौनकौन हैं?’’

जमाल ने कम शब्दों में अपने बारे

में बताया.

‘‘अरे, कुछ चायनाश्ता लाओ…’’ जमींदार साहब ने कहा.

‘‘नहीं, इस की कोई जरूरत नहीं है,’’ जमाल बोला.

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है… आप के प्रिंसिपल साहब भी कभीकभार यहां आते रहते हैं और हमारी मेहमाननवाजी का हिस्सा बनते हैं.’’

‘‘जी, उन्होंने ऐसा बताया था,’’ जमाल ने कहा.

कुछ देर बाद वे चायनाश्ता ले कर आ गईं… जमाल ने चाय पी और उठ कर खड़ा हो गया, ‘‘अच्छा, अब मुझे इजाजत दीजिए.’’

‘‘हां, आते रहना.’’

जमाल दरवाजे के पास था. उन लोगों ने आपस में खुसुरफुसुर की और जमींदार साहब ने उसे आवाज दी, ‘‘अरे बेटा, सुनो… आज रात का खाना तुम हमारे साथ यहीं पर खाना.’’

‘‘नहीं… नहीं… आप परेशान न हों. चची को परेशानी होगी,’’ जमाल ने जमींदार साहब की बेगम को चची कह कर मना करना चाहा.

‘‘अरे, इस में परेशान होने की क्या बात है… तुम मेरे बेटे जैसे ही हो.’’

जमाल रात के खाने पर आने का वादा कर के चला गया.

जब जमाल रात को खाने पर दोबारा वहां पहुंचा तो जमींदार साहब और उन की बेगम उस के पास बैठे हुए थे. इधरउधर की बातें कर रहे थे. इतने में अंदर जाने वाले दरवाजे पर दस्तक हुई…

चची ने दरवाजे की तरफ देखा और उठ कर चली गईं… लौटीं तो उन के हाथ में खाने की टे्र थी.

जमाल का खाना खाने में दिल नहीं लग रहा था. रहरह कर उस की बेचैनी बढ़ती जा रही थी… आखिर दरवाजे की उस ओर कौन था? बहरहाल, किसी तरह खाना खाया और थोड़ी देर के बाद वह वहां से चला आया.

उस दिन रविवार था. जमाल बैठा बोर हो रहा था.

‘क्यों न जमींदार साहब की तरफ चला जाया जाए,’ उस ने सोचा.

जमाल तेज कदमों से लौन पार करता हुआ अंदर जा रहा था. उस की आहट पा कर एक लड़की हड़बड़ा कर खड़ी हो गई… वह क्यारियों में पानी दे रही थी. जमाल उसे गौर से देखता रहा. वह सफेद कपड़ों में थी. वह भी उसे देखती रही.

‘‘जमींदार साहब हैं क्या?’’ जमाल ने पूछा तो कोई जवाब दिए बगैर वह अंदर चली गई.

कुछ देर बाद जमींदार साहब अखबार लिए बाहर आए, ‘‘आओ बेटा, आओ…’’

जमाल उन के साथ अंदर दाखिल हो गया. उन के हाथ में संडे मैगजीन का पन्ना था. उन्होंने जमाल के सामने वह अखबार रखते हुए कहा, ‘‘देखो, इस में मेरी बहू की गजल छपी है…’’

जमाल ने गजल को सरसरी नजरों से देखा, फिर नीचे नजर दौड़ाई तो लिखा था, शबीना अदीब.

जमाल को उस लड़की के सफेद लिबास का खयाल आया. उस ने जमींदार साहब की आंखों में देखा. शायद वे उस की नजरों का मतलब समझ गए थे. उन्होंने नजरें झुका लीं और फिर उन्होंने जोकुछ बताया था, वह यह था:

शबीना जमींदार साहब की छोटी बहन हसीना की बेटी थी. शबीना की पैदाइश के वक्त हसीना की मौत हो गई थी और बाप ने दूसरा निकाह कर लिया था. सौतेली मां का शबीना के साथ कैसा बरताव होगा, यह सोच कर जमींदार साहब ने उसे अपने पास रख लिया था.

अदीब जमींदार साहब का बेटा था. शबीना और अदीब ने अपना बचपन एकसाथ गुजारा था, तितलियां पकड़ी थीं और जब दोनों ने जवानी की दहलीज पार की तो उन का रिश्ता पक्का कर दिया गया था.

उन की नईनई शादी हुई थी. अदीब ने आर्मी जौइन की थी. कोई जाने की इजाजत नहीं दे रहा था, लेकिन वह सब को मायूसी के अंधेरे में छोड़ कर चला गया. एक दिन वह वतन की हिफाजत करतेकरते शहीद हो गया.

शबीना पर गमों का पहाड़ टूट पड़ा. आंसू थे कि थमने का नाम नहीं ले रहे थे. फिर उस ने खुद को पत्थर बना लिया और कलम उठा ली, अपना दर्द कागज पर उतारने के लिए या अदीब का नाम जिंदा रखने के लिए.

अब जमाल अकसर जमींदार साहब के यहां जाता था. दिल में होता कि शबीना के दीदार हो जाएं… उस की एक झलक देख ले… लेकिन, वह उसे दोबारा नजर नहीं आई.

एक दिन जमाल उन के यहां बैठा हुआ था. जमींदार साहब किसी काम से शहर गए हुए थे. जमाल और उन की बेगम थे. वह बात का सिरा ढूंढ़ रहा था. आज जमाल उन से अपने दिल की बात कह देना चाहता था.

‘‘चची, आप मुझे अपना बेटा बना लीजिए,’’ जमाल ने हिम्मत जुटाई.

‘‘यह भी कोई कहने की बात है…

तू तो है ही मेरा बेटा…’’ उन्होंने हंस

कर कहा.

‘‘चची, मुझे अपने अदीब की जगह दे दीजिए. मेरा मतलब है कि शबीना का हाथ मेरे हाथ…’’ जमाल का इतना कहना था कि उन्होंने जमाल की आंखों में देखा.

‘‘अगर आप को कोई एतराज न

हो तो…’’

‘‘मुझे एतराज है,’’ इस से पहले कि वे कोई जवाब देतीं, इस आवाज के साथ शबीना खड़ी थी, किसी शेरनी की तरह बिफरी हुई… फटीफटी आंखों से देखती हुई…

‘‘आप ने ऐसा कैसे सोच लिया… अदीब की यादें मेरे साथ हैं. वे मेरे जीने का सहारा हैं… मैं यह साथ कैसे छोड़ सकती हूं… मैं शबीना अदीब थी, शबीना अदीब हूं… शबीना अदीब रहूंगी. यही मेरी पहचान है… मैं इसी पहचान के साथ ही जीना चाहती हूं…’’ अपना फैसला सुना कर वह अंदर कमरे में जा चुकी थी.

जमाल ने चची की आंखों में देखा तो उन्होंने नजरें झुका लीं. जमाल उठ कर बाहर चला आया.

कुछ दिनों के बाद जमाल शहर जाने वाली बस के इंतजार में बसस्टैंड पर खड़ा था. इतने में एक बस वहां आ कर रुकी. उस ने अलविदा कहती नजरों से गांव की तरफ देखा और बस में सवार हो गया. उस ने नौकरी छोड़ दी थी. Online Story in Hindi

लेखक- अशरफ खान 

Hindi Short Story: कोड़ा

Hindi Short Story: बहुत पुरानी बात है. मेरे परदादा जी के वक्त की. दादाजी की जुबानी सुनी थी यह कहानी. हमारे परदादा तब अंग्रेजी फौज में सूबेदार हुआ करते थे. बड़ा रौब-रुतबा था. बड़ी सी कोठी थी. घोड़ागाड़ी, बग्घी, कार, सेवादार सब मुहैय्या था. घर में तमाम नौकर चाकर थे. उन्हीं में एक बूढ़ी नौकरानी थी सुंदरी, जिसकी पूरी उम्र इस परिवार की सेवा में निकली थी.

उसकी उम्र कोई सत्तर साल के करीब रही होगी. कमर झुक गई थी, आंखों से कम नजर आता था, दुबला पतला शरीर अब ज्यादा काम नहीं कर पाता था. मगर घर की पुरानी नौकरानी थी, इसलिए उसे हल्का फुल्का काम दिया गया था. वह हर रात कोई आठ बजे परदादा का बिस्तर लगाया करती थी. सूबेदार साहब गर्मी के दिनों में अपने बेडरूम की जगह पीछे के बड़े लॉन में बड़े से तख्त पर बिछे मखमली बिस्तर और गाव-तकिये पर आराम फरमाया करते थे.

उस रात भी बूढ़ी सुंदरी ने सूबेदार साहब का बिस्तर लगाया. मोटे-मोटे गुदगुदे गद्दों पर उसने झक सफेद रेशमी चादर बिछाई. गाव-तकिये सजाए. सिरहाने की छोटी टेबल पर खुश्बूदार फूलों का गुलदस्ता फूलदान में लगाया और फिर एक तरफ खड़ी होकर बिस्तर की छटा को निहारने लगी. अभी तो आठ ही बजे थे. सूबेदार साहब खाना खाकर दस बजे के करीब सोने आते थे.

सुंदरी के मन में न जाने क्या आया कि वह धीरे से इस साफ-शफ्फाक बिस्तर पर लेट गई. शायद यह सोच कर कि चंद मिनट इस गुदगुदे बिस्तर का आनंद ले लूं, साहब के आने में तो अभी दो घंटे बाकी हैं.

इधर उसने आनंद में आंखें बंद कीं, उधर ठंडी हवा का झोंका आया और दिन भर की थकी सुंदरी दो मिनट में नींद की गोद में जा गिरी. अचानक एक तेज दहाड़ से उसकी नींद टूटी तो सामने सूबेदार साहब गुस्से में सुर्ख आंखें लिये उसे गालियां बकते खड़े थे. सुंदरी के काटो तो खून नहीं वाली हालत हो गई. बिस्तर से उछल कर सीधे सूबेदार साहब के पैरों पर गिरी.

सूबेदार साहब की दहाड़ें सुनकर पूरा घर लॉन में जमा हो चुका था. पहरेदार, रसोइया और अन्य नौकर चाकर भी सुंदरी की इस गुस्ताखी को देखकर कांप रहे थे. अचानक सूबेदार साहब ने पहरेदार से कहा, ‘इसे दस कोड़े लगाओ.’

पहरेदार कोड़ा लेने अंदर भागा. सुंदरी विलाप कर रही थी. लगातार माफियां मांग रही थी. मगर सूबेदार साहब गुस्से में तमतमा रहे थे. आखिर उसने उनके बिस्तर पर सोने की जुर्रत कैसे की? पहरेदार ने सुंदरी को कोड़े लगाने शुरू किए. सुंदरी पीठ पर कोड़े खाती रही और रोती रही. दस कोड़े खत्म होने पर वह जोर-जोर से हंसने लगी.

सूबेदार साहब हैरान हुए, चीख कर बोले, ‘हंसती क्या है?’

सुंदरी बोली, ‘साहब, दो घंटे इस बिछौने पर सोने पर आपने मुझे दस कोड़े मरवाए, आप तो सारी रात इस पर सोते हैं, सालों से सोते आ रहे हैं, न जाने भगवान के घर आपको कितने कोड़े पड़ेंगे, मैं तो गिनती सोच कर हंस पड़ी थी.’ कहते हुए सुंदरी कोेठी से बाहर निकल गई.

उस दिन सुंदरी की बात सुनकर सूबेदार साहब का मुंह खुला का खुला रह गया. सुंदरी की बात उनके दिल में कील की तरह गड़ गई. उस दिन से उन्होंने बिस्तर त्याग दिया. आराम त्याग दिया. अंग्र्रेजों की नौकरी छोड़ दी. अपनी खेतीबाड़ी पर ध्यान देना शुरू कर दिया. उस रोज के बाद से उन्होंने बिस्तर की तरफ देखा तक नहीं, एक पुराना कम्बल जमीन पर डाल कर सोने लगे.

मरते दम तक वह अपनी ही कोठी के एक छोटे से कमरे में जमीन पर पुराना कम्बल डाल कर सोते रहे. सुंदरी को बहुत ढुंढवाया कि मिल जाए तो माफी मांग लें, मगर उस दिन के बाद वह न मिली. Hindi Short Story

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