Short Story: नेपाली लड़की- कौन थी वह

Short Story: प्रमोद ने अपने घर में झाड़ूपोंछा करने वाली लड़की संजू से कहा था कि अगर वह अंगरेजी कंप्यूटर टाइपिंग करने वाली किसी स्टूडैंट को जानती है और जिसे पार्टटाइम नौकरी की जरूरत है, तो उसे ले आए.

संजू 3 दिन बाद जिस लड़की को लाई, वह कद में कुछ कम ऊंची, पर गठा हुआ बदन, गोल चेहरा, रंग साफ, बाल बौबकट थे, जो उस के गोल चेहरे को खूबसूरत बना रहे थे. पहनावे से वह आम लड़की दिखती थी. उस की उम्र का अंदाजा लगाना भी मुश्किल था.

जो भी हो, प्रमोद को अंगरेजी कंप्यूटर टाइपिंग जानने वाले की जरूरत थी, इसलिए उस ने ज्यादा पूछताछ किए बिना ही उस लड़की को अपने दफ्तर में टाइपिस्ट का काम दे दिया.

उस लड़की ने अपना नाम जानकी बहादुर बताया था. शक्ल से वह किसी उत्तरपूर्वी प्रदेश की लगती थी.

बाद में प्रमोद ने नाम से अंदाजा लगाया कि जानकी बहादुर नेपाल से आए किसी परिवार की लड़की है. उसे उस लड़की की राष्ट्रीयता से कुछ लेनादेना नहीं था, इसलिए इस ओर ध्यान भी नहीं दिया.

शुरूशुरू में प्रमोद जानकी को डिक्टेशन देता था, ज्यादातर ईमेल, बिजनैस लैटर लिखवाता था. चूंकि वह कौमर्स की छात्रा थी, तो लैटर का कंटैंट समझने में उसे मुश्किल नहीं हुई, लेकिन टाइपिंग में स्पैलिंग की गलतियां होती थीं. हो सकता है कि वह प्रमोद का अंगरेजी उच्चारण समझ न पाती हो या फिर हिंदी मीडियम से कौमर्स करने के चलते कौमर्स के तकनीकी अंगरेजी शब्द उस के लिए अजनबी थे, इसलिए प्रमोद उस को डिक्टेशन न दे कर खुद चिट्ठियां लिख कर देने लगा.

1-2 महीने में ही प्रमोद को यह देख कर बेहद हैरानी हुई कि अब उस लड़की द्वारा टाइप की गई चिट्ठियों में से गलतियां नदारद थीं.

एक दिन जानकी ने प्रमोद से कहा, ‘‘सर, क्या आप मुझे फुलटाइम के लिए दफ्तर में रख सकते हैं?’’

‘‘तुम दफ्तर का और क्या काम कर सकती हो?’’

‘‘आप जो भी करने को कहेंगे?’’

‘‘और कालेज?’’

‘‘मैं प्राइवेट पढ़ाई कर रही हूं.’’

‘‘ठीक है…’’ फिर प्रमोद ने उस से पूछा, ‘‘हिंदी की टाइपिंग कर सकोगी?’’

‘‘10-15 दिन में सीख लूंगी,’’ जानकी ने बड़े यकीन के साथ कहा.

प्रमोद के पास इस बात पर यकीन न करने की कोई वजह नहीं थी, क्योंकि 2-3 महीनों में वह काम के प्रति उस की लगन देख कर हैरान था.

जानकी न तो दफ्तर बंद होते ही घर भागती थी और न ही उस ने कभी बहाना किया कि सर, मेरे पास काम बहुत है, या फिर 5 बज गए हैं.

बौस को और क्या चाहिए? बस, ज्यादा से ज्यादा काम और अच्छे ढंग से किया गया काम.

देखते ही देखते प्रमोद जानकी पर पूरी तरह निर्भर हो गया. वह न केवल दफ्तर के कामों में माहिर हो गई, बल्कि प्रमोद ने दफ्तर के बाहर का काम भी उसे सौंप दिया. स्टेशनरी खरीदना, और्डर भेजना, रिसीव करना, हिसाबकिताब रखना वगैरह. वह एकएक पैसे का हिसाब रखती थी और सच पूछो तो उस से हिसाब मांगने की प्रमोद को कभी जरूरत नहीं पड़ी.

एक बार प्रमोद गंभीर रूप से बीमार पड़ गया था. जानकी जानती थी कि उस का शहर में अपना कोई नहीं है, तो वह एक हफ्ते तक अस्पताल में रातदिन एक नर्स की तरह उस की देखभाल करती रही.

प्रमोद ने इस दौरान दफ्तर में अपना काम जानकी को करने को कहा, तो उस ने बड़ी खुशी से उसे स्वीकारा और निभाया.

अस्पताल में प्रमोद ने जानकी से पूछा था, ‘‘मेरे लिए जो तुम इतना कर रही हो, क्या

इस के लिए तुम ने अपने मम्मीपापा से पूछा था?’’

‘‘हां सर, रात में अस्पताल में रहने के लिए जरूर पूछा था.’’

अस्पताल से छुट्टी देते हुए डाक्टर ने प्रमोद से कहा था, ‘‘उम्र ज्यादा होने के चलते आप का शरीर पूरी तरह ठीक नहीं हुआ है, इसलिए अभी कुछ समय और आराम की जरूरत है. कुछ दिन आप दफ्तर के कामों में मत पडि़ए.’’

डाक्टर की सलाह मान कर प्रमोद ने दफ्तर से 3-4 महीने की छुट्टी लेने का निश्चय किया. वह अपने बेटे के पास बेंगलुरु जाना चाहता था. पर इतने लंबे समय तक दफ्तर कौन संभालेगा?

प्रमोद ने कुछ सोच कर स्टाफ की मीटिंग बुलाई और बात की.

प्रमोद जानकी को जिम्मेदारी सौंपना चाहता था, पर उस ने जैसे ही उस का नाम लिया, स्टाफ की दूसरी लड़कियां भड़क गईं.

‘‘सर, वह जूनियर है,’’ एक लड़की बोली,

‘‘आप को यह जिम्मेदारी मिसेज दीक्षित को देनी चाहिए, जो पिछले

10 साल से इस दफ्तर में काम कर रही हैं,’’ दूसरी लड़की बोली.

‘‘सर, जानकी को दफ्तर में आए डेढ़ साल ही हुआ है और आप उस को इतनी बड़ी जिम्मेदारी सौंपना चाहते हैं?’’ तीसरी लड़की ने कहा.

‘‘वह नेपाली है…’’ एक और लड़की बोली.

अब प्रमोद से सहन नहीं हुआ. डाक्टर ने कहा था कि तनाव से बचना, ब्लडप्रैशर बढ़ सकता है. पर यह आखिरी वाक्य उसे गाली जैसा लगा, तो उसे कहना पड़ा, ‘‘तो क्या हुआ? हमारी संस्था के प्रति उस की निष्ठा आप सब से कहीं ज्यादा है. वह संस्था को अपना समझ कर काम करती है, केवल तनख्वाह के लिए नहीं…’’

प्रमोद लैक्चर दे रहा था और स्टाफ सिर झुकाए सुन रहा था.

5 बजे दफ्तर बंद हुआ, तो मिसेज दीक्षित प्रमोद के पास आईं.

‘‘सर, मुझे आप से एक बात कहनी है,’’ मिसेज दीक्षित बोलीं.

‘‘उम्मीद है, तुम्हारी परेशानी सुन कर मेरा ब्लडप्रैशर नहीं बढ़ेगा,’’ प्रमोद ने कहा.

‘‘सर, आप मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं,’’ मिसेज दीक्षित ने कहा.

‘‘नहीं, बोलो,’’ प्रमोद बोला.

वे थोड़ी देर तक चुप रहीं. शायद सोचती रहीं कि बोलें कि न बोलें. फिर उन्होंने लंबी सांस ली और कहा, ‘‘सर, यह किसी के खिलाफ शिकायत नहीं है, पर आप को बताना जरूरी है. सर, जानकी जिस रेलवे कालोनी में रहती है, मैं भी वहीं रहती हूं. उस का और मेरा क्वार्टर दूर नहीं है.

‘‘सर, आप बुरा मत मानना. जानकी के पिता शराबी हैं. उन के घर में आएदिन लड़ाई होती रहती है. उधार की शराब पीपी कर उन पर इतना कर्ज हो गया है कि कर्ज देने वाले हर दिन उन के दरवाजे पर खड़े रहते हैं, गालीगलौज करते हैं. कालोनी वाले इस बात की शिकायत रेलवे मंडल अधिकारी से भी कर चुके हैं…’’

प्रमोद ने मिसेज दीक्षित की बात काट कर कहा, ‘‘तो इन बातों का हमारे दफ्तर से क्या संबंध है? या फिर जानकी का क्या संबंध है? ये बातें तो मैं भी जानता हूं.’’

‘‘जी…?’’ मिसेज दीक्षित की आंखें हैरानी से फैल गईं.

प्रमोद ने उन से कहा, ‘‘वह कुरसी खींच लीजिए और बैठ जाइए.’’

प्रमोद का दफ्तर एक अमेरिकी मिशनरी के पुराने बंगले में था. उस मिशनरी के लौट जाने के बाद प्रमोद की संस्था ने उस को खरीद लिया था. आधे में दफ्तर और आधे में उस का घर.

पत्नी की मौत के बाद प्रमोद अकेला ही कोठी में रहता था और संस्था चलाता था. संस्था प्रकाशन का काम करती थी और प्रमोद उस का संपादक था. सारे प्रकाशन की जिम्मेदारी उस पर ही थी.

प्रमोद ने मिसेज दीक्षित से कहा, ‘‘जानकी ने खुद मुझे अपने परिवार के बारे में बताया है. आज से 40 साल पहले जानकी के पिता उस की मां को भगा कर भारत में लाए थे.

‘‘वे नेपाल से सीधे जबलपुर कैसे पहुंच गए, यह वह भी अपनेआप में एक दिलचस्प कहानी है. पहले वे रेलवे के किसी अफसर के यहां खाना बनाते थे और उसी के गैस्ट हाउस में रहते थे.

‘‘परिवार में लड़ाईझगड़े तो तब शुरू हुए, जब जानकी की मां ने हर साल लड़कियों को जन्म देना शुरू किया. यह सिलसिला तभी रुका, जब एक दिन जानकी के पिता अचानक नेपाल भाग गए. उन की पत्नी अपनी 3 छोटीछोटी बेटियों के साथ जबलपुर में रह गईं.

‘‘वैसे, जबलपुर में नेपालियों की आबादी कम नहीं है. इन की वफादारी और ईमानदारी के चलते जहां भी चौकीदार की जरूरत पड़ती है, वहां ये लोग ही आप को मिलेंगे.

‘‘हां, अब होटलों में चाइनीज फूड बनाने वाले भी नेपाली मिलने लगे हैं. ऐसे ही दूर के एक रिश्तेदार ने 3 बच्चियों की मां को सहारा दिया. उस का अपना छोटा सा ढाबा था. बच्चियों को सिखाया गया कि उसे ‘मामा’ कहो.

‘‘बच्चियों के वे मामा समझदार थे. उन्होंने बिना देर किए तीनों लड़कियों को सरकारी स्कूल में भरती कर दिया.

‘‘मामा के साथ यह परिवार खुशीखुशी दिन बिता रहा था कि कुछ सालों बाद जानकी के पिता एक और नेपाली लड़की को ले कर जबलपुर आ टपके.

‘‘उन्होंने एक रेलवे अफसर को खुश कर उन के रिटायरमैंट के पहले रेलवे अस्पताल में मरीजों को खाना खिलाने  की नौकरी पा ली. इतना ही नहीं, नौकरी के साथ रेलवे क्वार्टर भी मिल गया. उधर जानकी अपनी मां और बहनों के साथ अपने दूर के रिश्तेदार के साथ रह कर बड़ी हो रही थी.

‘‘जानकी की मां को खबर मिली कि जिस लड़की को उस के पति नेपाल से लाए थे, वह उन्हें छोड़ कर वापस नेपाल चली गई है. ढलती उम्र और अकेलेपन ने जानकी के पिता को अपने परिवार में लौटने के लिए मजबूर कर दिया.

‘‘लेकिन अब जबलपुर के हवापानी ने जानकी की मां को काफी समझदार बना दिया था. उन में सम्मान की भावना जाग चुकी थी और वे जान चुकी थीं कि उन का और उन की लड़कियों का फायदा किस के साथ रहने में है. लिहाजा, उन्होंने घर जाने से इनकार कर दिया.

‘‘इस से उन के पति की मर्दानगी को गहरी ठेस लगी और वे अपने अकेलेपन को मिटाने के लिए शराबी बन गए और रेलवे अस्पताल के एक सूदखोर काले खां से उधार पैसा ले कर वे शराब पीने लगे.

‘‘यह सब जानकी की मां से देखा न गया. पति की घर वापसी हुई, पर वे उन की लत न छुड़ा सकीं.

‘‘नशे की हालत में जानकी के पिता अपनी पत्नी को कोसते हैं, तो वे भी ईंट का जवाब पत्थर से देती हैं. बेटियां अपने मांबाप में बीचबचाव करती हैं. कालोनी वाले तमाशे का मुफ्त मजा लेते हैं.

‘‘ऐसे माहौल में जानकी की मां का जिंदगी बिताना क्या आप के दिल में हमदर्दी पैदा नहीं करता मिसेज दीक्षित? अगर कोई कीचड़ से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है, तो क्या हमें अपना हाथ बढ़ा कर उसे बाहर नहीं निकालना चाहिए?’’

मिसेज दीक्षित भरे गले से बोलीं, ‘‘सौरी सर.’’

Short Story

Hindi Stories: एहसास- कौनसी बात ने झकझोर दिया सविता का अस्तित्व

कहानी- अवनीश शर्मा

Hindi Stories: शिखा और मैं 1 सप्ताह नैनीताल में बिता कर लौटे हैं. वह अपनी बड़ी बहन सविता को बडे़ जोशीले अंदाज में अपने खट्टेमीठे अनुभव सुना रही है.

सविता की पूरी दिलचस्पी शिखा की बातों में है. मैं दिवान पर लेटालेटा कभी शिखा की कोई बात सुन कर मुसकरा पड़ता हूं तो कभी छोटी सी झपकी का मजा ले लेता हूं.

मेरी सास आरती देवी रसोई में खाना गरम करने गई हैं. मुझे पता है कि सारा खाना सविता पहले ही बना चुकी हैं.

सारा भोजन मेरी पसंद का निकलेगा, पुराने अनुभवों के आधार पर मेरे लिए यह अंदाजा लगाना कठिन नहीं. ससुराल में मेरी खूब खातिर होती है और इस का पूरा श्रेय मेरी बड़ी साली सविता को ही जाता है.

शिखा अपनी बड़ी बहन सविता के बहुत करीब है, क्योंकि वह उस की सब से अच्छी सहेली और मार्गदर्शक दोनों हैं. शायद ही कोई बात वह अपनी बड़ी बहन से छिपाती हो. उन की सलाह के खिलाफ शिखा से कुछ करवा लेना असंभव सा ही है.

‘‘हमें पहला बच्चा शादी के 2 साल बाद करना चाहिए,’’ हमारी शादी के सप्ताह भर बाद ही शिखा ने शरमाते हुए यों अपनी इच्छा बताई तो मैं हंस पड़ा था.

‘‘मैं तो इतना लंबा इंतजार नहीं कर सकता हूं,’’ उसे छेड़ने के लिए मैं ने उस की इच्छा का विरोध किया.

‘‘मेरे ऐसा कहने के पीछे एक कारण है.’’

‘‘क्या?’’

‘‘इन पहले 2 सालों में हम अपने वैवाहिक जीवन का भरपूर मजा लेंगे, सौरभ. अगर मैं जल्दी मां बनने के झंझट में फंस गई तो हो सकता तुम इधरउधर ताकझांक करने लगो और वह हरकत मुझे कभी बरदाश्त नहीं होगी.’’

‘‘यह कैसी बेकार की बातें मुंह से निकाल रही हो?’’ उसे सचमुच परेशान देख कर मैं खीज उठा.

‘‘मेरी दीदी हमेशा मुझे सही सलाह देती हैं और हम बच्चा…’’

‘‘तो यह बात तुम्हारी दीदी ने तुम्हारे दिमाग में डाली है.’’

‘‘जी हां, और वह गलत नहीं हैं.’’

‘‘चलो, मान लिया कि वह गलत नहीं हैं पर एक बात बताओ. क्या तुम हर तरह की बातें अपनी दीदी से कर लेती हो?’’

‘‘बिलकुल कर लेती हूं.’’

‘‘वह बातें भी जो बंद कमरे में हमारे बीच होती हैं?’’ मैं ने चुटकी ली.

‘‘जी, नहीं.’’

वैसे मुझे उस के इनकार पर उस दिन भरोसा नहीं हुआ क्योंकि मेरा सवाल सुन कर उस के हावभाव वैसे हो गए थे जैसे चोरी करने वाले बच्चे को रंगे हाथों पकडे़ जाने पर होते हैं.

इस बात की पुष्टि अनेक मौकों पर हो चुकी है कि शिखा अपनी बड़ी बहन को हर बात बताती है. इस कारण अगर मैं या मेरे परिवार वाले परेशान नहीं हैं तो इसलिए कि सविता बेहद समझदार और गुणवान हैं. मैं उन्हें अपने परिवार का मजबूत सहारा मानता हूं, टांग अड़ा कर परेशानी खड़ी करने वाला रिश्तेदार नहीं.

सविता के पास न रंगरूप की कमी है न गुणों की. कमाती भी अच्छा हैं पर दुर्भाग्य की बात यह है कि बिना शादी किए ही वह खुद को विधवा मानती हैं.

रवि नाम के जिस युवक को वह किशोरावस्था से प्रेम करती थीं, करीब 2 साल पहले उस का एक सड़क दुर्घटना में देहांत हो गया. इस सदमे के कारण सविता ने कभी शादी न करने का फैसला कर लिया है. किसी के भी समझाने का सविता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता.

मेरे मातापिता ने भी उन्हें शादी करने के लिए राजी करने की कोशिश दिल से की थी. तब उन का कहना था, ‘‘मेरी तकदीर में अपनी घरगृहस्थी के सुख लिखे होते तो मैं जिसे अपना जीवनसाथी बनाना चाहती थी वह मुझे यों छोड़ कर नहीं जाता. रवि की जगह मैं किसी और को नहीं दे सकती.’’

करीब महीने भर पहले मेरा जन्मदिन था. सविता ने कमीजपैंट और मैचिंग टाई का उपहार मुझे दिया था.

‘‘थैंक यू, बड़ी साली साहिबा,’’ मैं ने मुसकराते हुए उपहार स्वीकार किया और फिर भावुक लहजे में बोला,  ‘‘मुझे आप से एक तोहफा और चाहिए. आशा है कि आप मना नहीं करोगी.’’

‘‘बिलकुल नहीं करूंगी,’’ उन्होंने आत्मविश्वास से भरे स्वर में फौरन जवाब दिया.

‘‘आप शादी कर लो, प्लीज,’’ मैं ने विनती सी की.

पहले तो वह चौंकीं, फिर उन की आंखों में गंभीरता के भाव उपजे और अगले ही पल वह खिलखिला कर हंस भी पड़ीं.

‘‘सौरी, सौरभ, उपहार तुम्हें अपने लिए मांगना था. मेरा शादी करना तुम्हारे लिए गिफ्ट कैसे बन सकता है?’’

‘‘आप का अकेलापन दूर हो जाए, इस से बड़ा गिफ्ट मेरे लिए और कुछ नहीं हो सकता.’’

‘‘तुम सब के होते हुए मुझे अकेलेपन का एहसास कैसे हो सकता है?’’ शिखा और मेरी बहन प्रिया के गले में बांहें डाल कर सविता हंस पड़ीं. और मेरा प्रयास एक बार फिर बेकार चला गया.

हमारे नैनीताल घूम कर आने के बाद सविता दीदी ने मुझे और शिखा को पास बिठा कर एक महत्त्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा शुरू की थी.

‘‘सौरभ, तुम को भविष्य को ध्यान में रख कर अब चलना शुरू कर देना चाहिए. खर्चे संभल कर करना शुरू करो. बचत करोगे तो ही बच्चों को अच्छी शिक्षा दे पाओगे… अपने मकान में रह सकोगे,’’ वह हमें इस तरह समझाते हुए काफी गंभीर नजर आ रही थीं.

‘‘हम दोनों नौकरी करते हैं, पर आज के समय में मकान खरीदना बड़ा महंगा हो गया है. अपने मकान में रहने का सपना जल्दी से पूरा होने का फिलहाल कोई मौका नहीं है,’’ मैं ने दबी आवाज में कहा.

‘‘तुम दोनों क्या मुझे पराया समझते हो?’’ उन्होंने फौरन आहत भाव से पूछा.

‘‘ऐसा बिलकुल भी नहीं है.’’

‘‘तब अपने मकान का सपना पूरा करना तुम दोनों की नहीं, बल्कि हम तीनों की जिम्मेदारी है. सौरभ, आखिर मैं, मां और तुम दोनों के अलावा और किस के लिए कमा रही हूं?’’

वह नाराज हो गई थीं. उन्हें मनाने के लिए मुझे कहना पड़ा कि जल्दी ही हम 3 बेडरूम वाला फ्लैट बुक कराएंगे और उन की आर्थिक सहायता सहर्ष स्वीकार करेंगे. मेरे द्वारा ऐसा वादा करा लेने के बाद ही उन का मूड सुधरा था.

शिखा और मेरे मन में उन के प्रति कृतज्ञता का बड़ा गहरा भाव है. हम दोनों उन के साथ बड़ी गहराई से जुड़े हुए हैं. तभी उन की व्यक्तिगत जिंदगी का खालीपन हमें बहुत चुभता है. बाहर के लोगों के सामने वह सदा गंभीर बनी रहती हैं, पर हम दोनों से खूब खुली हुई हैं.

उस दिन दोपहर का खाना सचमुच मेरी पसंद को ध्यान में रख कर सविता ने तैयार किया था. मैं ने दिल खोल कर उन की प्रशंसा की और वह प्रसन्न भाव से मंदमंद मुसकराती रहीं.

खाना खाने के बाद मैं ने 2 घंटे आराम किया. जब नींद खुली तो पाया कि शरीर यों टूट रहा था मानो बुखार हो. कुछ देर बाद ठंड लगने लगी और घंटे भर के भीतर पूरा शरीर भट्ठी की तरह जलने लगा.

सविता दीदी जिद कर के मुझे शाम को डाक्टर के पास ले गईं. हमें रात को घर लौट जाना था पर उन्होंने जाने नहीं दिया.

‘‘ज्यादा परेशान मत होइए आप,’’ मैं ने उन्हें समझाते हुए कहा, ‘‘इस मौसम में यह बुखार मुझे हर साल पकड़ लेता है. 2-4 दिन में ठीक हो जाऊंगा.’’

उन की चिंता दूर करने के लिए मैं ने अपनी आवाज में लापरवाही के भाव पैदा किए तो वह गुस्सा हो गईं.

‘‘सौरभ, हर साल तुम बीमार नहीं पड़ोगे तो कौन पड़ेगा?’’ उन्होंने मुझे डांटना शुरू किया, ‘‘तुम्हारा न खाने का कोई समय है, न ही सोने का. दूध से तुम्हें एलर्जी है. फल खाने के बजाय तुम टिक्की और समोसे पर खर्च करना बेहतर मानते हो. अब अगर तुम नहीं सुधरे तो मैं तुम से बोलना बंद कर दूंगी.’’

‘‘दीदी, आप इतना गुस्सा मत करो,’’ मैं ने फौरन नाटकीय अंदाज में हाथ जोडे़,  ‘‘मैं ने दूध पीना शुरू कर दिया है. आप के आदेश पर अब लंच भी ले जाने लगा हूं. वैसे एक बात आप मेरी भी सुन लो, अगर कभी सचमुच आप ने मुझ से बोलना छोड़ा तो मैं आमरण अनशन कर दूंगा. फिर मेरी मौत की जिम्मेदार…’’

सविता ने आगे बढ़ कर मेरे मुंह पर हाथ रख दिया और मेरे देखते ही देखते उन की आंखों में आंसू छलक आए.

‘‘इतने खराब शब्द फिर कभी अपनी जबान पर मत लाना सौरभ. किसी अपने को खोने की कल्पना भी मेरे लिए असहनीय पीड़ा बन जाती है,’’ उन का गला भर आया.

‘‘आई एम सौरी,’’ भावुक हो कर मैं ने उन का हाथ चूमा और माफी मांगी.

उन्होंने अचानक झटका दे कर अपना हाथ छुड़ाया और तेज चाल से चलती कमरे से बाहर निकल गईं.

मैं ने मन ही मन पक्का संकल्प किया कि आगे से ऐसी कोई बात मुंह से नहीं निकालूंगा जिस के कारण सविता के दिल में रवि की याद ताजा हो और दिल पर लगा जख्म फिर से टीसने लगे.

अगले दिन सुबह भी मुझे तेज बुखार बना रहा. शिखा को आफिस जाना जरूरी था. मेरी देखभाल के लिए सविता ने फौरन छुट्टी ले ली.

उस दिन सविता के दिल की गहराइयों में मुझे झांकने का मौका मिला. उन्होंने रवि के बारे में मुझे बहुत कुछ बताया. कई बार वह रोईं भी. फिर किसी अच्छी घटना की चर्चा करते हुए बेहद खुश हो जातीं और अपने दिवंगत प्रेमी के प्रति गहरे प्यार के भाव उन के हावभाव में झलक उठते.

मुझे नहीं लगता कि सविता ने मेरे अलावा कभी किसी दूसरे से इन सब यादों को बांटा होगा. उन्होंने मुझे अपने बहुत करीब समझा है, इस  एहसास ने मेरे  अहम को बड़ा सुख दिया.

शाम को मेरी तबीयत ठीक रही पर रात को फिर बुखार चढ़ गया. शिखा भी अपनेआप को ढीला महसूस कर रही थी, सो वह मेरे पास सोने के बजाय अपनी मां के पास जा कर सो गई.

सविता को अब 2 मरीजों की देखभाल करनी थी. हम दोनों को उन्होंने जबरदस्ती थोड़ा सा खाना खिलाया. वह नहीं चाहती थीं कि भूखे रह कर हम अपनी कमजोरी बढ़ाएं.

रात 11 बजे के आसपास मेरा बुखार बहुत तेज हो गया. सब सो चुके थे, इसलिए मैं चुपचाप लेटा बेचैनी से करवटें बदलता रहा. नींद आ रही थी पर तेज बदन दर्द के कारण मैं सो नहीं सका.

शायद कुछ देर को आंख लग गई होगी, क्योंकि मुझे न तो सविता के कमरे  में आने का पता लगा और न ही यह  कि उन्होंने कब से मेरे माथे पर गीली पट्टियां रखनी शुरू कीं.

तपते बुखार में गीली पट्टियों से बड़ी राहत महसूस हो रही थी. मैं आंखें खोलने को हुआ कि सविता ने मेरे बालों में उंगलियां फिराते हुए सिर की हलकी मालिश शुरू कर दी. इस कारण आंखें खोलने का इरादा मैं ने कुछ देर के लिए टाल दिया.

जिस बात ने मुझे बहुत जोर से कुछ देर बाद चौंकाया, वह सविता के होंठों का मेरे माथे पर हलका सा चुंबन अंकित करना था.

इस चुंबन के कारण एक अजीब सी लहर मेरे पूरे बदन में दौड़ गई. मैं सविता के बदन से उठ रही महक के प्रति एकदम से सचेत हुआ. उन की नजदीकी मेरे लिए बड़ा सुखद एहसास बनी हुई थी. मैं ने झटके से आंखें खोल दीं.

सविता की आंखें बंद थीं. वह न जाने किस दुनिया में खोई हुई थीं. उन के चेहरे पर मुझे बड़ा सुकून और खुशी का भाव नजर आया.

‘‘सविता,’’ अपने माथे पर रखे उन के हाथ को पकड़ कर मैं ने कोमल स्वर में उन का नाम पुकारा.

सविता फौरन अपने सपनों की दुनिया से बाहर आईं. मुझ से आंखें मिलते ही उन्होंने लाज से अपनी नजरें झुका लीं. अपना हाथ छुड़ाने की उन्होंने कोशिश की, पर मेरी पकड़ मजबूत थी.

‘‘सविता, तुम दिल की बहुत अच्छी हो…बहुत प्यारी हो…बड़ी सुंदर हो,’’ इन भावुक शब्दों को मुंह से निकालने के लिए मुझे कोई कोशिश नहीं करनी पड़ी.

जवाब में खामोश रह कर वह अपना हाथ छुड़ाने का प्रयास करती रही.

एक बार फिर मैं ने उस का हाथ चूमा तो उन्होंने अपना हाथ मेरे हाथ में ढीला छोड़ दिया.

मैं उठ कर बैठ गया. सविता की आंखों में मैं ने प्यार से झांका. वह मुझ से नजरें न मिला सकीं और उन्होंने आंखें मूंद लीं.

सविता का रूप मुझे दीवाना बना रहा था. मैं उन के चेहरे की तरफ झुका. उन के गुलाबी होंठों का निमंत्रण अस्वीकार करना मेरे लिए असंभव था.

मेरे होंठ उन के होंठों से जुडे़ तो उसे तेज झटका लगा. उन की खुली आंखों में बेचैनी के भाव उभरे. कुछ कहने को उन के होंठ फड़फड़ाए, पर शब्द कोई नहीं निकला.

सविता ने  झटके से अपना हाथ छुड़ाया और कुरसी से उठ कर कमरे से बाहर चल पड़ीं. मैं ने उन्हें पुकारा पर वह रुकी नहीं.

मैं सारी रात सो नहीं सका. मन में अजीब से अपराधबोध व बेचैनी के भावों के साथसाथ गुदगुदी सी भी थी.

अगले दिन सुबह सविता, अपनी मां और शिखा के साथ कमरे में आईं. मैं काफी बेहतर महसूस कर रहा था.

‘‘सौरभ बेटे, एक खुशखबरी सुनो. सविता ने शादी के लिए  ‘हां’ कर दी है,’’ यह खबर सुनाते हुए मेरी सास की आंखों में खुशी के आंसू उभर आए.

‘‘अरे, यह कैसे हुआ?’’ मैं ने चौंक कर सविता की तरफ अर्थपूर्ण दृष्टि से देखा.

‘‘मुझे अचानक एहसास हुआ कि मेरे अंदर की औरत, जिसे मैं मरा समझती थी, जिंदा है और उसे जीने का भरपूर मौका देने के लिए मुझे अपनी अलग दुनिया बसानी ही पडे़गी, सौरभ,’’ सविता ने मुझ से बेधड़क आंखें मिलाते हुए जवाब दिया.

‘‘आप का फैसला बिलकुल सही है. बधाई हो,’’ अपनी बेचैनी को छिपा कर मैं मुसकरा पड़ा.

‘‘थैंक यू, सौरभ. तुम ने रात को मेरी आंखें खोलने में जो मदद की है, उस के लिए मैं आजीवन तुम्हारी आभारी रहूंगी,’’ सविता सहज भाव से मुसकरा उठीं.

‘‘सौरभ, ऐसा क्या समझाया तुम ने, जो दीदी ने अपना कट्टर फैसला बदल लिया?’’ शिखा ने उत्सुक लहजे में सवाल पूछा.

मैं ने कुछ देर सोचने के बाद गंभीर लहजे में जवाब दिया, ‘‘मेरे कारण सविता को शायद यह समझ में आ गया है कि टेलीविजन धारावाहिक या फिल्में देख कर…या फिर किसी दूसरे की घरगृहस्थी का हिस्सा बन कर जीने का असली आनंद नहीं लिया जा सकता है. जिंदगी के कुछ अनुभव शेयर नहीं हो सकते…शेयर नहीं करने चाहिए. मैं ठीक कह रहा हूं न, सविता जी?’’

सविता से हाथ मिलाते हुए मैं ने उन्हें एक बार फिर शुभकामनाएं दीं. वह प्रसन्नता से भरी आफिस जाने की तैयारी में जुट गईं.

मैं भी अपनेआप को अचानक बड़ा हलका, तरोताजा और खुश महसूस कर रहा था. शिखा का हाथ अपने हाथों में ले कर मैं ने सविता को दिल से धन्यवाद दिया क्योंकि उन्होंने मुझे बड़ी भूल व गलती की दलदल में फंसने से बचा लिया था.

सविता के प्रति मेरे मन में आदरसम्मान के भाव पहले से भी ज्यादा गहरे हो गए थे.

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Sad Story: सफेद गुलाब- क्यों राहुल की हसरतें तार-तार हो गई?

Sad Story: ‘‘उफ यह बारिश तो रुकने का नाम ही नहीं ले रही है,’’ निशा बुदबुदाई.

उस दिन सुबहसुबह ही बड़ी जोर से बारिश शुरू हो गई थी और जैसेजैसे बारिश तेज हो रही थी, वैसेवैसे ‘अब मैं कैसे मिलने जाऊंगी राहुल से इस बारिश में?’ सोचसोच कर निशा की परेशानी और धड़कनें बढ़ती जा रही थीं. जाना भी जरूरी था राहुल से मिलने, क्योंकि राहुल मुंबई से दिल्ली सिर्फ उस से मिलने के लिए आया था.

उस ने सोचा था कि अपने दोस्त के साथ एक अच्छा वक्त बिताऊंगी. घर के रोजमर्रा के काम करतेकरते वह ऊब गई थी. जिंदगी में थोड़ा बदलाव चाहती थी, इसलिए जब राहुल ने मिलने की पेशकश रखी तो वह मना न कर सकी.

तभी अचानक उस का फोन बज उठा.

फोन राहुल का था. उस ने पूछा, ‘‘तुम कितने

बजे आओगी?’’

निशा ने घबरा कर कहा, ‘‘ऐसा करते हैं कल मिलते हैं.’’

‘‘मैं तो अपने होटल से निकल चुका हूं और कल वापस चला जाऊंगा,’’ बोल कर राहुल ने फोन काट दिया.

फिर निशा के मन में अजीब सी उथलपुथल शुरू हो गई. अब वादा किया है तो निभाना ही पड़ेगा, यही सोच कर तेज बारिश में छाता ले कर वह निकल पड़ी.

उसे राहुल ने सुभाष नगर मैट्रो स्टेशन पर बुलाया था.

चलतेचलते उस का दिल अतीत की गोद में चला गया.

2 महीने पहले नैट पर चैटिंग करते वक्त उसकी राहुल से मुलाकात हुई थी. उस के बाद

राहुल का अपने काम से वक्त निकाल कर उस से फोन पर बात करना, उसे अच्छा लगता था. जबकि उस के पति को उस से बात करने की फुरसत ही नहीं थी. वे अपने काम में इतना उल?ो रहते थे कि पत्नी का अस्तित्व महज 2-4 कामों के लिए था.

उस के एक बार बुलाने पर राहुल का ?ाट से औनलाइन आ जाना, उस की हर बात को ध्यान से सुनना और उस की परवाह करना कुछ ऐसा था, जो उसे राहुल की ओर आकर्षित कर रहा था. तभी एक दिन जब उस ने मैसेज भेजा कि अगर मैं दिल्ली आऊं तो क्या तुम मु?ा से मिलोगी? तो उस ने इस बात को मान लिया था.

राहुल के साथ हुई तमाम चैटिंग को सोचतेसोचते निशा कब मैट्रो स्टेशन पहुंच गई

उसे पता ही नहीं चला. राहुल की बस एक ?ालक ही तो देखी थी उस ने नैट पर, कैसे पहचानेगी उसे वह इसी सोच में गुम थी कि अचानक एक 5 फुट 7 इंच का सांवला सा आदमी टोकन जमा कर के बाहर निकला. इस बात से बेखबर कि 2 अनजान निगाहें उसे घूर रही हैं और पहचानने की कोशिश कर रही हैं. उस ने एक बार उड़ती सी नजर निशा पर डाल कर नजरें फेर लीं. अचानक उसे लगा कि वही

2 निगाहें उसे घूर रही हैं. उस ने पलट कर देखा निशा अभी भी उसे घूर रही थी और हलकेहलके मुसकरा रही थी.

राहुल उसे एकटक देखता ही रह गया. निशा ने सफेद रंग का सूट पहना हुआ था, जो उस के गोरे रंग पर बहुत खिल रहा था और उस की लुभावनी मुसकान ने तो उस का दिल ही हर लिया. उस का मन हुआ कि एक बार उसे बांहों में ले कर एक किस ले ले. पर अपने को संभालते हुए निशा के नजदीक जा कर हलके से मुसकराते हुए बोला, ‘‘हाय, कैसी हो?’’

‘‘मैं ठीक हूं, तुम अपनी सुनाओ. आखिर तुम यहां तक आ ही गए मु?ा से मिलने,’’ निशा ने खुश होते हुए कहा.

‘‘क्या एक दोस्त अपने दोस्त को मिलने नहीं आ सकता?’’

‘‘हां, बगैर काम के,’’ निशा ने जैसे ही बोला दोनों खिलखिला कर हंस पड़े.

फिर राजीव चौक के 2 टोकन ले कर दोनों प्लेटफार्म की सीढि़यां चढ़ने लगे. एक अजीब सा डर खामोशी के रूप में दोनों के दिलोदिमाग पर छाया हुआ था. राहुल के मन में डर था कि कहीं निशा मु?ो किसी जुर्म में फंसा न दे, तो निशा को डर था कि आज कहीं कुछ ऐसा न हो जाए कि उसे अपने इस मिलने के फैसले पर पछताना पड़े.

मैट्रो आई तो दोनों उस पर चढ़ गए. राहुल को निशा की परेशानी का कुछकुछ आभास होने लगा था. उस ने माहौल की बो?िलता को कम करने के लिए पूछा, ‘‘छुट्टियां कैसी बीतीं? कहांकहां घूमीं? बच्चे कैसे हैं?’’

निशा ने चहकते हुए जवाब दिया, ‘‘छुट्टियों में बहुत मस्ती की. बच्चों ने भी नानी के घर खूब धमाचौकड़ी की.’’

अब दोनों थोड़ाथोड़ा सहज होने लगे थे और 20 मिनट में राजीव चौक पहुंच गए. वहां से बाहर निकले तो पास की ही एक बिल्डिंग के नजदीक पहुंचे. उस में राहुल को कुछ काम था.

‘‘मैं यहीं रुकती हूं, तुम अपना काम निबटा आओ,’’ निशा ने घबराते हुए कहा.

‘‘मैं इतना बुरा इंसान नहीं हूं,’’ फिर कुछ सोच कर वह बोला, ‘‘तुम साथ चलो, मैं तुम्हें यहां अकेला नहीं छोड़ सकता,’’ इतना कह कर उस ने उस का हाथ पकड़ा और लिफ्ट की तरफ बढ़ गया.

अगर लिफ्ट को कुछ हो गया तो क्या होगा? अगर यह बीच में रुक गई

तो? अगर मैं समय पर घर नहीं पहुंची तो घर वालों को क्या जवाब दूंगी? सोचसोच कर निशा डर रही थी और सोच रही थी कि न ही मिलने आती तो अच्छा था.

उस के चेहरे पर आतेजाते भाव पर राहुल की नजर थी. वह अपनी तरफ से उस का पूरा खयाल रख रहा था. खैर लिफ्ट कहीं रुकी नहीं और राहुल 10वें फ्लोर के एक औफिस में

अपना काम निबटाने चला गया. निशा बाहर लाउंज में बैठी रही. वहां से आने के बाद राहुल उसे एक फ्लैट पर ले गया, जो उस के दोस्त

का था. कमरे में एक बैड था और एक तरफ कुरसियां व 1 मेज रखी थी. एक तरफ छोटी गैस और 8-10 जरूरत भर की चीजें रखी हुई थीं रसोई के नाम पर.

निशा कुरसी पर बैठी तो राहुल उस के पास आ कर बैठ गया. फिर बाहर बारिश क्या तेज हुई, निशा के दिल की धड़कन भी तेज हो गई. एक अनजाना डर उस के दिल में घर कर गया. तभी अचानक राहुल ने निशा के हाथ पर अपना हाथ रख दिया, तो वह घबरा कर उठ गई.

‘‘रिलैक्स निशा, तुम यह बिलकुल मत सम?ाना कि मैं तुम्हें यहां कोई जोरजबरदस्ती करने के लिए लाया हूं. लोगों की भीड़ में तुम से बात नहीं कर पाता, इसलिए तुम्हें यहां ले आया. अगर तुम्हें कुछ गलत लगता है तो हम अभी बाहर चलते हैं.’’

वह कुछ जवाब नहीं दे पाई. उसे अपनेआप पर और अपने दोस्त पर विश्वास था जिस के चलते वह यहां तक उस के साथ आ गई थी.

‘‘चलो मैं तुम्हारे लिए अच्छी सी चाय बनाता हूं.’’

‘‘तुम्हें चाय बनानी आती है?’’ निशा ने हैरानी से पूछा.

‘‘हां भई, शादीशुदा हूं. बीवी ने थोड़ाबहुत तो सिखाया ही है,’’ वह कुछ इस अंदाज में बोला कि दोनों हंसे बिना न रह सके. अब वह कुछ सहज हो गई थी. बारिश अब रुक गई थी और धूप निकल आई थी. चाय पीतेपीते राहुल ने देखा कि सूरज की किरणें निशा के चेहरे पर पड़ रही थीं. उस ने फिर अपनी बीवी और बच्चे के बारे में बताया. बीवी के बारे में कहा कि वह एक अच्छी पत्नी और मां है. उस ने पूरे घर को अच्छे से संभाला हुआ है.

निशा ने भी अपने संयुक्त परिवार के बारे में बताया जहां की वह एक चहेती सदस्या है. सब उस से बहुत प्यार और उस पर विश्वास करते हैं.

बातों का सिलसिला थमा तो निशा ने राहुल को अपनी ओर देखते पाया.

वह घबरा कर उठ गई और बोली, ‘‘अब मु?ो चलना चाहिए.’’

राहुल ने उस का हाथ पकड़ कर आंखों में ?ांकते हुए कहा, ‘‘कुछ देर और नहीं रुक सकतीं?’’

‘‘3 बज गए हैं. बच्चे घर वापस आ गए होंगे और मेरा इंतजार कर रहे होंगे.’’

राहुल ने उसे फिर रुकने के लिए नहीं कहा. दोनों बातें करतेकरते कमरे से बाहर आ कर मैट्रो स्टेशन पहुंच गए और 2 टोकन सुभाष नगर के ले कर मैट्रो में चढ़ गए. अचानक मैट्रो एक ?ाटके से रुकी तो निशा संभलतेसंभलते भी राहुल की बांहों में आ गई. उस ने उसे संभालते हुए पूछा, ‘‘तुम ठीक हो?’’

‘‘हां,’’ उस ने ?ोंपते हुए कहा.

फिर उस ने निशा की आंखों में ?ांकते हुए कहा, ‘‘निशा, मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं. जब से मेरी तुम से दोस्ती हुई है कहीं मेरे मन में तुम्हें पाने की इच्छा पनपने लगी थी. पर तुम से मिल कर मु?ो आत्मग्लानि महसूस हो रही है कि मैं ने ऐसा सोचा भी कैसे? सूरज की किरणों ने मेरे दिल में छिपी सारी भावनाओं को भेद दिया. तुम एक सफेद गुलाब की तरह हो जो हर किसी को सचाई और पवित्रता का संदेश देता है. तुम्हें पा कर मैं उस का अस्तित्व नहीं मिटाना चाहता.’’

निशा ने उस से कहा, ‘‘कुदरत ने हम स्त्रियों को छठी इंद्रिय दी है, जो आदमी के मनसूबों से रूबरू करवाती है. मु?ो इस बात का आभास था. पर फिर भी मु?ो अपनेआप पर और तुम पर विश्वास था. तुम 100 फीसदी सही थे जब तुम ने कहा था कि मैं इतना बुरा इंसान नहीं हूं. तुम्हारा इस तरह अपनी बात कुबूल करना इस बात का प्रमाण है. हम अगर आज कुछ गलत करते तो वह हमारे पार्टनर के साथ धोखा होता.’’

‘‘शायद तुम्हें पाने की इच्छा मैं फिर न दबा पाऊं, इसलिए हम आज के बाद कभी नहीं मिलेंगे,’’ कह कर राहुल मैट्रो की सीढि़यां उतर कर हमेशा के लिए चला गया. न कोई आस न कोई करार. हां अपनी बात की एक अमिट छाप निशा के दिलोदिमाग पर छोड़ गया. जिस मैट्रो स्टेशन से यह कहानी शुरू हुई थी वहीं आ कर खत्म हो गई.

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Best Hindi Story: सिंदूर का हक- आखिर शन्नो का क्या था राज

Best Hindi Story: स्नेहा का मोबाइल दोबारा बजने लगा. स्नेहा बाथरूम से अभी नहीं निकली थी. अत: सलिल को मोबाइल उठाना पड़ा. सलिल के हैलो कहते ही दूसरी ओर से एक लड़की ने सिसकते हुए पूछा, ‘‘स्नेहा
दीदी हैं?’’

‘‘हां, अभी बाथरूम में है.’’ ‘‘आप उन्हें बता देना कि शरणा दीदी नहीं रहीं.’’ यह सुनते ही सलिल सकते में आ गया. शरणा यानी शरणवती उर्फ शन्नो. स्नेहा की बचपन की अभिन्न सहेली. शन्नो के वर्षों बाद अचानक स्नेहा से मिलने पर सलिल की जिंदगी बेहद सहज हो गई थी. उस की सब से बड़ी समस्या थी स्नेहा और बच्चों को बोरियत से बचाने के लिए सप्ताह में 1 बार बाहर ले जाने की वजह से छुट्टी के दिन भी आराम न कर पाना. शन्नो के मिलते ही इस समस्या का समाधान हो गया था. शन्नो एक टीवी चैनल में न्यूज ऐडिटर थी.

वह फुरसत मिलते ही स्नेहा और बच्चों को घुमाने ले जाती थी. स्नेहा के कहने पर गाड़ी भी भेज देती थी, जिस से स्नेहा वे सभी काम कर लेती थी जिन्हें करने के लिए सलिल को आधे दिन की छुट्टी लेनी पड़ती थी. सब से अच्छी बात यह थी कि दोनों सहेलियों ने अपनी दोस्ती कभी सलिल पर नहीं थोपी थी. न तो स्नेहा उसे शन्नो के घर चलने को कहती थी और न ही जबतब शन्नो को अपने घर बुलाती थी. यदाकदा शन्नो से मिलना सलिल को भी अच्छा लगता था. दोनों में सालीजीजा वाली नोक झोंक हो जाती थी.

कुछ महीने पहले स्नेहा ने उसे बताया था कि शन्नो दिल की मरीज है और पेसमेकर के सहारे जी रही है, लेकिन उस का इतनी जल्दी और इस तरह चले जाना अप्रत्याशित था. न जाने स्नेहा इस आघात को कैसे झेलेगी?

चूंकि वह कल रात ही टूअर से लौटा था, इसलिए आज औफिस जाना जरूरी था. लेकिन उस से भी ज्यादा स्नेहा के साथ रहना, जरूरी है सलिल ने सोचा. फिर उस ने दबी जबान स्नेहा को यह बताया.

‘‘यह तो होना ही था,’’ स्नेहा ने उसांस ले कर कहा, ‘‘1 सप्ताह से असपताल में थी. डाक्टरों के यह कहते ही कि पेस मेकर कभी भी साथ छोड़ सकता है, मैं ने आप से बगैर सलाह किए बच्चों को छुट्टियां मनाने राधिका भाभी और उन के बच्चों के साथ पंचमढ़ी भेजना बेहतर सम झा.’’

‘‘ठीक किया स्नेहा, बच्चों को शन्नो मौसी से कितना स्नेह हो गया था. उसे अस्पताल में देख कर व्यथित हो जाते,’’ सलिल बोला, ‘‘दुखी तो खैर अभी भी बहुत होंगे.’’

‘‘वह तो स्वाभाविक है,’’ कह कर स्नेहा ने मोबाइल उठा लिया, ‘‘माधवी, कब हुआ यह सब… बौडी को और्गन डोनेशन के लिए भिजवा दिया… तो तुम भी घर चली जाओ… मैं कुछ देर में वहीं आ रही हूं… जिसे भी खबर करनी है उस की लिस्ट बना लो. मैं आने के बाद फोन कर दूंगी,’’ और फिर स्नेहा मोबाइल बंद कर किचन की ओर बढ़ गई.

‘‘बस 1 कप चाय दे दो स्नेहा, नाश्ते के चक्कर में मत पड़ो,’’ सलिल ने धीरे से कहा.

‘‘नाश्ता बनाने में कुछ देर नहीं लगती. लंच नहीं बना सकूंगी, औफिस की कैंटीन से ही कुछ मंगवा लेना.’’

‘‘मैं आज औफिस नहीं जा रहा. तुम्हारे साथ चल रहा हूं स्नेहा… कितनी भी सादगी से करो अंतिम संस्कार फिर भी बहुत काम होते हैं.’’

‘‘उन्हें संभालने के लिए रमण भैया हैं.’’

‘‘रमण भैया शन्नो को जानते हैं?’’ सलिल ने हैरानी से पूछा.

राजस्व विभाग का उच्चाधिकारी राधारमण स्नेहा का फुफेरा भाई था. इसलिए अकसर मुलाकात होती रहती थी. लेकिन शन्नो के बारे में दोनों भाईबहन को कभी बात करते नहीं देखा था.

‘‘आप को बताया तो था कि रमण भैया एम.कौम. और फिर प्रशासनिक प्रतियोगी परीक्षा की पढ़ाई के लिए 3 साल तक हमारे ही घर में रहे थे. फिर सामने की कोठी में रहने वाली मेरी अभिन्न सहेली शन्नो को कैसे नहीं जानेंगे?’’

‘‘फिर तुम ने कभी रमण भैया के परिवार के साथ चाय या खाने पर शन्नो को क्यों नहीं बुलाया? कभी उन लोगों से शन्नो के बारे में बात भी नहीं की. मु झे भी यह तो नहीं बताया कि उन दोनों में भी इतनी अभिन्नता है कि अपने सब कामधाम छोड़ कर अतिव्यस्त रमण भैया उस के अंतिम संस्कार का ताम झाम
संभालने को मौजूद हैं?’’ सलिल ने शिकायती स्वर में पूछा.

स्नेहा हैरान हो कर कुछ देर चुप रही, फिर गहरी सांस ले कर बोली, ‘‘किसी के जीवन के बंद परिच्छेद खोलने का मु झे हक तो नहीं है. मगर अब जब तुम्हारी जिज्ञासा जगा ही दी है तो चलो, आज पूरी कहानी सुना देती हूं…

‘‘रमण भैया और शन्नो को पहली नजर में ही प्यार हो गया था और मेरे सहयोग से वह प्यार परवान चढ़ने लगा. जातपांत का लफड़ा नहीं था. फिर मेधावी भैया प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर ही रहे थे.
‘‘शन्नो पूरी तरह आश्वस्त थी कि उस के घमंडी आला अफसर पिता को प्रशासनिक अधिकारी रमण भैया से उस की शादी करने में कोई एतराज नहीं होगा. अत: वह बेखटके भैया के साथ प्यार की पींगें बढ़ा रही थी. 3 साल तक बगैर किसी को पता चले सब कुछ मजे में चलता रहा.

‘‘हमारी एम.ए. की और भैया की प्रतियोगी परीक्षाएं शुरू होने वाली थी. उस के बाद भैया का हमारे घर रुकने और दोनों की शादी 2 वर्षों तक होने का सवाल ही नहीं था. यह सोच कर भैया खासकर शन्नो बहुत परेशान रहती थी.

‘‘इसी बीच एक दिन बूआजी ने फोन कर बताया कि उन्होंने रमण भैया की छोटी बहन का रिश्ता उस की पसंद के लड़के से तय कर दिया है. भैया को लगा कि जब बहन का रिश्ता उस की पसंद से हो सकता है तो उन का क्यों नहीं और फिर छोटी बहन की शादी के बाद तो उन की शादी में कोई अड़चन भी नहीं रहनी चाहिए. इस सब से आश्वस्त हो कर भैया ने होली पर गुलाल के बजाय शन्नो की मांग में सिंदूर भर दिया. हालांकि शन्नो ने उस सिंदूर को सिर पर ढेर सा गुलाल डलवा कर छिपा दिया, लेकिन वह उस की मां की पैनी नजरों से नहीं छिप सका और यह भी कि यह भरा किस ने.

‘‘शन्नो की जितनी लानतमलानत होनी थी हुई और उस के हमारे घर आने और फोन करने पर रोक लग गई. शन्नो के यह कहने पर कि भैया उस के लिए सर्वथा उपयुक्त हैं और प्रतियोगी परीक्षा दे रहे हैं उस के पिता ने व्यंग्य से कहा कि दूसरों के घर रहने और लड़कियों से आंख लड़ाने वाले लड़के का इस परीक्षा में पास होने का सवाल ही नहीं उठता. न ही बिजनौर में वकालत करने वाले रमण के बाप की हैसियत उन का समधी बनने लायक है. अत: शन्नो पर रमण की परछाईं भी नहीं पड़नी चाहिए.

‘‘परीक्षा दिलवाने के लिए भी शन्नो की मां उसे छोड़ने और लेने आती थीं. लेकिन परीक्षा हौल से बाहर निकलने के पहले मैं और शन्नो बात कर लिया करती थीं. उसे भैया का पत्र दे देती थी और उस से भैया का ले लेती थी. शन्नो ने बताया था कि पापा ने वहां से बदली करवा ली है. उस की परीक्षा खत्म होते ही वहां से चले जाएंगे. कहां जाएंगे, यह किसी को नहीं बता रहे. भैया ने उसे आश्वस्त कर दिया कि किसी भी सरकारी अफसर का पताठिकाना खोजना मुश्किल नहीं होता. कहीं भी चले जाएं, प्रशासनिक सेवा में चयन होते ही वह उस के पिता से मिलने आएंगे. शन्नो बस तब तक अपनी शादी टाल दे.

‘‘शन्नो ने भी आश्वासन दिया था कि व्यावसायिक कोर्स करने के बहाने 2 वर्ष आसानी से शादी टाली जा सकती है. ‘‘शन्नो की परीक्षा खत्म होने की अगली सुबह ही उन की कोठी पर ताला लगा हुआ दिखा. कुछ रोज के बाद भैया भी अपने घर चले गए और मैं दीदी के पास छुट्टियों में पुणे. वहां जीजू के कहने पर मैं ने कंप्यूटर सीखा तो समय गुजारने को था, लेकिन उस में मु झे इतना मजा आया कि मैं ने उसी में स्पैशलाइजेशन करने का फैसला किया और उस के लिए दीदी के पास ही रहने लगी. फिर वहीं तुम से मुलाकात हो गई. कुछ समय बाद पता चला कि रमण भैया का चयन राजस्व सेवा में हो गया है और उन की शादी हो रही है. सुन कर धक्का तो लगा था, लेकिन तब तक मेरी दुनिया तुम्हारे नाम से शुरू और खत्म होने लगी थी. अत: न तो मैं ने रमण भैया से संपर्क किया, न ही उन की शादी में गई और न ही वे मेरी शादी में आए. शन्नो ने भी मु झ से संपर्क नहीं किया. मेरे पास तो उस का अतापता भी न था.

‘‘कई वर्षों बाद रमण भैया की पोस्टिंग यहां होने पर मुलाकात हुई. वह राधिका भाभी और बच्चों के साथ खुश थे. अत: मैं ने भी पुरानी बातों का जिक्र करना मुनासिब नहीं सम झा. लेकिन एक दिन भाभी और बच्चों की गैरहाजिरी में भैया ने मु झे बताया कि पढ़ाई पूरी कर के उन के घर लौटने से पहले ही उन के मातापिता ने उन का सौदा राधिका भाभी के साथ कर के उन के दहेज में मिलने वाली राशि के बल पर छोटी बहन का उस की पसंद के लड़के से धूमधाम से रोका भी कर दिया था. छोटी बहन की खुशी की खातिर भैया के पास चुपचाप बिकने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था.’’

गनीमत यह थी कि राधिका भाभी उन के सर्वथा अनुकूल थीं. फिर भी वे आज तक अपने पहले प्यार शन्नो को नहीं भूल सके थे. उन्होंने ही मु झे बताया कि शन्नो यहीं एक चैनल में न्यूज ऐडिटर है. शादी तो नहीं की थी, लेकिन अपनी उपलब्धियों और परिवेश में पूर्णतया संतुष्ट लगती थी. इसलिए वे उस से मिल कर अपने और उस के स्थिर जीवन में उथलपुथल नहीं मचाना चाहते. लेकिन चाहते थे कि मैं उस से मिलूं, शन्नो से मिलने को तो मैं स्वयं भी तड़प रही थी. शुरू में तो शन्नो भी मु झे खुश ही लगी और मैं ने भी रमण भैया या उस के व्यक्तिगत जीवन के बारे में बात नहीं की, लेकिन एक दिन अचानक तबीयत खराब होने पर उस ने मु झे बताया कि उसे अब तक 2 बार हार्टअटैक हो चुका है और वह पेसमेकर के सहारे जी रही है.’’
‘‘लेकिन अब मु झ से मिलने के बाद वह चैन से मरेगी. उसे विश्वास है कि मैं उसे उस के सिंदूर का हक जरूर दिलवा दूंगी यानी रमण के हाथों अग्निदाह. मु झे स्तब्ध देख कर उस ने कहा कि उस ने हमेशा रमण की खोजखबर रखी है. उसे रमण से कोई शिकायत नहीं है. उस के द्वारा मांग में भरे गए सिंदूर और यादों के सहारे जिंदगी तो गुजार ली है, लेकिन मरने के बाद अपने सिंदूर का हक जरूर चाहेगी, यानी एक सुहागिन जैसी मौत और मौत बारबार तो होगी नहीं.’’

‘‘मेरे यह कहने पर कि भैया उसे भूले नहीं हैं और वह जब चाहे मेरे घर पर रमण भैया से बेखटके मिल सकती है तो शन्नो ने यह कह कर मिलने से मना कर दिया कि कितने भी सतर्क रहो, ऐसी बातों को छिपाना आसान नहीं होता है और इस से रमण की सुखी गृहस्थी बरबाद हो सकती है.

‘‘अंतिम संस्कार के लिए भी मु झे रमण को बुलाने के लिए शन्नो को अपनी दूर की रिश्तेदार बनाना पड़ेगा, शन्नो को तो मैं ने आश्वस्त कर दिया, लेकिन रमण भैया को सब बातें बता दीं और दुखी विह्वाल तो खैर होना ही था और बहुत हुए भी. उन्होंने भी मु झ से वादा लिया कि जब भी शन्नो की तबीयत खराब हो मैं उन्हें खबर कर दूं. वे उस के अंतिम दिनों में बगैर किसी की परवाह किए उस के साथ रहेंगे और राधिका को उस समय जो ठीक सम झेंगे वह बता देंगे.

‘‘पिछले सप्ताह शन्नो की तबीयत के बारे में पता चलते ही मैं ने रमण भैया को खबर कर दी फिर सब बच्चों को उकसाया कि उन्हें छुट्टियों में बाहर घूमने जाना चाहिए. फिर किसी तरह राधिका भाभी को उन के साथ पचमढ़ी भिजवा दिया ताकि रमण भैया इतमीनान से शन्नो के पास रह सकें.’’

‘‘मु झे तसल्ली है कि मैं ने अपनी सहेली को उस के अंतिम दिनों में रमण भैया का भरपूर सान्निध्य और उस के सिंदूर का हक दिलवा दिया. मैं नहीं चाहती कि तुम मेरे साथ चल कर रमण भैया को अपने कर्तव्य निर्वहन से रोको,’’ स्नेहा ने अनुरोध किया.

‘‘बेफिक्र रहो स्नेहा, जितना हक शन्नो का अपने सिंदूर पर था उतना ही कर्तव्य रमण भैया का भी उस सिंदूर की लाज रखने का है,’’ सलिल ने गहरी सांस लेते हुए कहा, ‘‘मैं रमण भैया से वह कर्तव्य निभाने का सुख और उन की गोपनीयता नहीं छीनूंगा.’’

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Drama Story in Hindi: अस्तित्व- घर की चिकचिक से क्यों परेशान थी राधा

Drama Story in Hindi: घड़ी का अलार्म एक अजीब सी कर्कशता के साथ कानों में गूंजने लगा तो झल्लाहट के साथ मैं ने उसे बंद कर दिया. सोचा कि क्या करना है सुबह 5 बजे उठ कर. 9 बजे का दफ्तर है लेकिन 10 बजे से पहले कोई नहीं पहुंचता. करवट बदल कर मैं ने चादर को मुंह तक खींच लिया.

‘‘क्या करती हो ममा उठ जाओ. 7 बजे मुझे स्कूल जाना है. बस आ जाएगी,’’ साथ लेटे सोनू ने मुझे हिला कर कहा.

मैं झल्ला कर उठी, ‘‘जाना मुझे है कि तुझे चल तू भी उठ. रोज कहती हूं कि 5 बजे के बजाय 6 बजे का अलार्म लगाया कर, लेकिन तू मुझे 5 बजे ही उठाता है और खुद 6 बजे से पहले नहीं उठता.’’

‘‘सोनू…सोनू…स्कूल नहीं जाना क्या?’’ मैं ने उसे झिझोड़ दिया.

‘‘आप पागल हो मम्मा,’’ कह कर उस ने चादर चेहरे पर खींच लिया. फिर बोला, ‘‘मुझे 10 मिनट भी नहीं लगेंगे तैयार होने में. लेकिन आप ने सारा घर सिर पर उठा लिया.’’

‘‘तू ऐनी को देख. तुझ से छोटा है पर तुझ से पहले उठ चुका है. जबकि उस का स्कूल 8 बजे का है,’’ मैं ने कहा.

‘‘आप बस नाश्ता तैयार कर लो. चाहे

7 बजे मुझे जाना हो और 8 बजे ऐनी को,’’ वह ?ाल्ला कर बोला.

मैं मन मार कर उठी और चाय बनाने लगी. फिर बालकनी में बैठ कर चाय की चुसकियां लेते हुए अखबार की सुर्खियों पर नजरें दौड़ा ही रही थी कि अंदर से आवाज आई, ‘‘मम्मी, पापा अखबार मांग रहे हैं.’’

मैं ने बुझे मन से अखबार के कुछ पन्ने पति को पकड़ाए और पेज थ्री पर छपी फिल्मी खबरें पढ़ने लगी. अभी खबरें पूरी पढ़ नहीं पाई थी कि पति ने आ कर ?ाटके से वे पेज भी मेरे सामने से उठा लिए. खबर पूरी न पढ़ पाने की वजह से मजा किरकिरा हो गया.

मैं ने चाय का अंतिम घूंट लिया और रसोई में आ गई. बच्चे स्कूल जाने की तैयारी कर रहे थे. जल्दीजल्दी 2 परांठे सेंके  और गिलास में दूध डाल बच्चों को नाश्ता दे उन का टिफिन तैयार करने लगी.

‘‘मम्मी, मेरी कमीज नहीं मिल रही,’’ ऐनी ने आवाज लगाई.

‘‘तुझे कभी कुछ मिलता भी है?’’ फिर कमरे में आ कर अलमारी से कमीज निकाल कर उसे दी.

‘‘मम्मी दूध ज्यादा गरम है. प्लीज ठंडा कर दो,’’ सोनू ने टाई की नौट बांधते हुए हुक्म फरमा दिया.

दूध ठंडा कर वापस जाने लगी तो सोनू मेरा रास्ता रोक कर खड़ा हो गया, ‘‘मम्मी

प्लीज 1 मिनट,’’ कह कर वह जल्दीजल्दी स्कूल बैग से कुछ निकालने लगा. फिर मिन्नतें करने लगा कि मम्मी, मेरा रिपोर्टकार्ड साइन कर दो…प्लीज मम्मी.’’

‘‘जरूर मार्क्स कम आए होंगे. इस बार तो मैं बिलकुल नहीं करूंगी. बेवकूफ समझ रखा है क्या तू ने मुझे जा, अपने पापा से करवा साइन. और तू ने मुझे कल क्यों नहीं दिखाया अपना रिपोर्टकार्ड?’’

‘‘मम्मा, प्लीज धीरे बोलो, पापा सुन लेंगे,’’ उस के चेहरे पर याचना के भाव उभर आए. हाथ पकड़ कर प्यार से मुझे पलंग पर बैठाते हुए

उस ने पेन और रिपोर्टकार्ड मुझे पकड़ा दिया.

‘‘जब भी मार्क्स कम आते हैं तो मुझे कहते हैं और जब ज्यादा आते हैं तो सीधे पापा के पास जाते हैं,’’ मैं बड़बड़ाती हुई रिपोर्टकार्ड खोल कर देखने लगी. साइंस में 100 में से 89, हिंदी में

85, मैथ्स में 92. मेरी आंखें चमकने लगीं. चेहरे पर मुसकान दौड़ गई. उसे शाबासी देने के लिए मैं ने नजरें उठाई तो देखा कि आईने में बाल संवारता हुआ वह शरारत भरी निगाहों से मुझे ही देख रहा था. मेरे कुछ कहने से पहले ही वह बोल उठा, ‘‘जल्दी से साइन कर दो न मम्मा, इतनी देर से मार्क्स ही देखे जा रही हो.’’

बेकाबू होती खुशी को नियंत्रित करते हुए मैं ने पेन का ढक्कन खोला. रिपोर्टकार्ड के दायीं ओर देखा तो ये पहले ही साइन कर चुके थे.

दोनों फिर मुझे देख कर हंसने लगे तो मैं खिसिया गई.

‘‘घर की चाबी रख ली है न? कहीं ऐसा न हो कि आज मुझे बाहर गमले के पीछे छिपा कर जाना पड़े,’’ मैं ने अपनी झेंप मिटाते हुए कहा.

बच्चों के काम से फारिग हुई ही थी कि पति ने दोबारा चाय की फरमाइश कर दी. ‘‘पत्ती जरा तेज डालना. सुबह जैसी चाय न बनाना. तुम्हें 16 सालों में चाय बनानी नहीं आई.’’

‘‘तुम अपनी चाय खुद क्यों नहीं बना लेते? कभी पत्ती कम तो कभी दूध ज्यादा. हमेशा मीनमेख निकालते रहते हो,’’ मैं ने भी अपना गुबार निकाल दिया.

आज दफ्तर को देर हो कर रहेगी. अभी सब्जी भी बनानी है और दूध भी उबालना है. क्याक्या करूं. मैं अपनेआप से झंझलाने लगी.

‘‘क्यों, तू समय पर  नहीं आ सकती? ये कौन सा वक्त है आने का? तेरी वजह से क्या मैं दफ्तर जाना छोड़ दूं?’’ मैं ने काम वाली पर सारा गुस्सा उतार दिया.

सारा काम निबटा कर नहाने गई तो देखा बाथरूम बंद.

‘‘तुम रोज जल्दी क्यों नहीं नहाते? जबकि तुम्हें पता है कि इस वक्त ही मेरा काम खत्म हो पाता है. अब जल्दी बाहर निकलो,’’ मैं बाथरूम का दरवाजा खटखटाते हुए लगभग चिल्ला दी.

‘‘जब तक मैं नहा कर निकलूं प्लीज मेरा रूमाल और मोजे पलंग पर रख दो,’’ शौवर के शोर को चीरती उन की मद्धिम पड़ गई आवाज सुनाई दी.

‘‘तुम मुझे 2 मिनट भी चैन से जीने मत देना,’’ मैं ने अपना तौलिया और गाउन वहीं पटका और रूमाल और मोजे ढूंढ़ने कमरे में चली गई.

यह इन का रोज का काम था. बापबेटे मुझ पर हुक्म चलाते.

‘चाय कड़क बनाना’

‘अखबार कहां है?’

‘मम्मी, दूध में मालटोवा नहीं डाला?’

‘आमलेट कच्चा है.’

‘मम्मी, ब्रैड में मक्खन नहीं लगाया?’

‘कभी बहुत गरम दूध दे देती हो तो कभी बिलकुल ठंडा. मम्मी, आप को हुआ क्या है?’

‘‘अब किस सोच में खड़ी हो? जाओ नहा लो,’’ पति बाथरूम से बाहर निकल कर बोले.

मैं पैर पटकती बाथरूम में घुस गई.

घर पर ही 10 बज गए. जल्दीजल्दी तैयार हो कर दफ्तर पहुंची. सोचा कि आज बौस से फिर डांट खानी पड़ेगी. लेकिन अपने सैक्शन में पहुंचने पर पता चला कि आज बौस छुट्टी पर हैं. दिमाग कुछ शांत हुआ.

‘रोज का काम यदि रोज न निबटाओ तो काम का ढेर लग जाता है,’ मैं मन ही मन बुदबुदाई.

कोर्ट केस की फाइल पूरी कर बौस की मेज पर पटकी और अपनी दिनचर्या का

विश्लेषण करने लगी. कभी अपने बारे में सोचने की फुरसत ही नहीं मिलती. घरदफ्तर, पतिबच्चों के बीच एक कठपुतली की तरह दिन भर नाचती रहती हूं. कभी सोचा भी नहीं था कि जिंदगी इतनी व्यस्त हो जाएगी. कल से सुबह ठीक 5 बजे उठा करूंगी. ऐनी को आमलेट पसंद नहीं है तो उसे नाश्ते में दूध ब्रैड या परांठा दूंगी. सोनू को आमलेट और फिर अखबार के साथ इन्हें दोबारा कड़क सी चाय.

‘‘किस सोच में बैठी हो मैडम? आज चाय पिलाने का इरादा नहीं है क्या?’’ साथ बैठी सहयोगी ने ताना मारा.

‘‘अरे नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. चलो कैंटीन चलते हैं,’’ मैं थोड़ा सामान्य हुई.

‘‘आज बड़ी उखड़ीउखड़ी लग रही हो.

क्या बात है? सुबह से कोई बात भी नहीं की,’’ उस ने कैंटीन में इधरउधर नजरें दौड़ाते हुए कोने में एक खाली मेज की तरफ चलने का इशारा करते हुए कहा.

‘‘यार, बात तो कोई नहीं. लेकिन आजकल काम का बहुत बो?ा है. जिंदगी जैसे रेल सी बन गई है. बस भागते रहो, भागते रहो,’’ कह कर मैं ने चाय की चुसकी ली.

‘‘तुम ठीक कहती हो. कल मेरे बेटे के पैर में चोट लग गई तो डाक्टर के पास 2 घंटे लग गए. मेरे साहब के पास तो फुरसत ही नहीं है. सब काम मैं ही करूं,’’ झंझलाहट अब उस के चेहरे पर भी आ गई.

‘‘लगता है आज का दिन ही बोझिल है. चलो छोड़ो, कोई दूसरी बात करते हैं. ये भी क्या जिंदगी हुई कि बस सारा दिन बिसूरते रहो,’’ मैं हंस दी.

‘‘मैं ने एक नया सूट लिया है, लेटैस्ट डिजाइन का,’’ वह मुसकराते हुए बोली.

‘‘अच्छा, तुम ने पहले तो नहीं बताया?’’

‘‘दफ्तर के काम की वजह से भूल गई.’’

‘‘कितने का लिया?’’

‘‘700 का. उन्हें बड़ी मुश्किल से मनाया. मेरे नए कपड़े खरीदने से बड़ी परेशानी होती है उन्हें. बच्चे भी उन्हीं के साथ मिल जाते हैं.’’

मेरी हंसी निकल गई, ‘‘मेरे साथ भी तो यही होता है.’’

‘‘कब पहन कर आ रही हो?’’ मैं ने बातों में रस लेते हुए पूछा.

‘‘अभी तो दर्जी के पास है. शायद 3-4 दिन में सिल कर दे दे,’’ उस ने कहा.

‘‘अरे, अगले महीने 21 तारीख को तुम्हारा जन्मदिन भी तो है, तभी पहनना,’’ मैं ने जैसे अपनी याददाश्त पर गर्व करते हुए कहा.

‘‘तुम्हें कैसे याद रहा?’’

‘‘हर साल तुम्हें बताती हूं कि मेरे छोटे बेटे का बर्थडे भी उसी दिन पड़ता है, भुलक्कड़ कहीं की.’’

‘‘हां यार, मैं हमेशा भूल जाती हूं,’’ वह खिसिया गई.

कुछ देर इधरउधर की बातें होती रहीं. फिर, ‘‘चलो अब अंदर चलते हैं. बहुत गप्पें मार लीं. थोड़ाबहुत काम निबटा लें. आज शर्माजी की सेवानिवृत्ति पार्टी भी है,’’ मैं एक ही सांस में कह गई.

दिन भर फाइलों में सिर खपाती रही तो समय का पता ही नहीं चला.

ओह 5 बज गए… मैं ने घड़ी पर नजर डाली और दफ्तर के गेट के बाहर आ गई.

पति पहले ही मेरे इंतजार में स्कूटर ले कर खडे़ थे. उन्हें देख मैं मुसकरा दी.

रास्ते में इधरउधर की बातें होती रहीं.

‘‘आज बढि़या सा खाना बना लेना.’’

‘‘क्यों, आज कोई खास बात है?’’

‘‘नहीं, कई दिनों से तुम रोज ही दालचावल बना देती हो.’’

‘‘तो तुम सब्जी ला कर दिया करो न.

सब्जी मंडी जाने के नाम पर तुम्हें बुखार चढ़ जाता है.’’

‘‘रोज रेहड़ी वाले गली में घूमते हैं. उन से सब्जी क्यों नहीं लेतीं?’’

‘‘खरीद कर तो तुम्हीं लाओ. चाहे रेहड़ी वाले से, चाहे मंडी से. मुझे तो बस घर में सब्जी चाहिए वरना आज भी दालचावल…’’

‘‘अच्छा मैं तुम्हें घर के पास छोड़ कर सब्जी ले आता हूं. अब तो खुश?’’

‘‘हां, बड़ा एहसान कर रहे हो,’’ कहती हुई मैं घर की सीढि़यां चढ़ने लगी.

‘‘मेरे गुगलूबुगलू क्या कर रहे हैं?’’ मैं ने लाड़ जताते हुए बच्चों से पूछा.

‘‘मम्मी कैंटीन से खाने के लिए क्या लाई हो?’’ ऐनी ने मेरे गले में बांहें डाल दीं.

‘‘यहां सब्जी बड़ी मुश्किल से आती है, तुझे अपनी पड़ी है,’’ मैं ने पर्स खोलते हुए कहा.

‘‘सब के मम्मीपापा रोज कुछ न कुछ लाते हैं. जस्सी का फ्रिज तो तरहतरह की चीजों से भरा रहता है,’’ सोनू ने उलाहना दिया.

‘‘तो अपने पापा को बोला कर न बाजार से ले आया करें. मैं कहांकहां जाऊं. ये लो,’’ मैं ने एक पैकेट उन की तरफ उछाल दिया.

‘‘ये क्या है?’’

‘‘मिठाई है. औफिस में पार्टी हुई थी. मैं तुम्हारे लिए ले आई.’’

मैं ने पर्स अलमारी में रखा, जल्दीजल्दी कपड़े बदले और टीवी चालू कर दिया. थोड़ी देर में मेरा मनपसंद धारावाहिक आने वाला था.

‘‘आज चाय कौन बनाएगा?’’ मैं ने आवाज में रस घोलते हुए थोड़ी ऊंची आवाज में कहा.

कोई उत्तर नहीं मिला तो मैं उठ कर उन के कमरे में गई. देखा दोनों बच्चे कंप्यूटर पर गेम खेलने में मस्त थे.

‘‘रोज खुद चाय बनाओ. इन लड़कों का कोई सुख नहीं. लड़की होती तो कम से कम मां को 1 कप चाय तो बना कर देती,’’ मैं बड़बड़ाती हुई रसोई में आ गई.

‘‘मम्मी, कुछ कह रही हो क्या?’’

‘‘नहीं,’’ मैं चिल्ला दी.

रोटी का डब्बा खोल कर देखा तो लंच के लिए बनाए परांठों में से 2 परांठे अभी भी उस में पड़े थे.

‘‘दोपहर का खाना किस ने नहीं खाया?’’ मैं ने कमरे में दोबारा आ कर पूछा.

‘‘मैं ने तो खा लिया था,’’ सोनू बोला.

मैं ने ऐनी की तरफ देखा.

‘‘मम्मी आप के बिना खाना अच्छा नहीं लगता…अपने हाथ से खिला दो न,’’ उस ने स्क्रीन पर नजरें गड़ाए हुए ही लाड़ से कहा मेरा मन द्रवित हो उठा. खाना गरम कर अपने हाथों से उसे खिलाया और वापस रसोई में आ कर चाय बनाने लगी.

ट्रिंगट्रिंग…

शायद ये आ गए. बच्चों ने जल्दी से कंप्यूटर बंद कर किताबें खोल लीं. मेरी हंसी निकल गई.

‘‘कुंडी खोलने में बड़ी देर लगा दी. कितनी देर से वजन उठाए खड़ा हूं,’’ सब्जी और दूध के लिफाफे रसोई की तरफ लाते हुए ये भुनभुनाए.

‘‘अरे चाय बना रही थी इसीलिए.’’

‘‘जरा ढंग से बना लेना. मेरी चाय में अलग से चाय की पत्ती डाल कर कड़क कर देना. सुबह की चाय फीकीफीकी थी.’’

‘‘अरे सुबह तो मैं ने दोबारा कड़क चाय बनाई थी. किसी दिन पत्ती का सारा डब्बा उड़ेल दूंगी,’’ मैं ने नाराजगी दिखाते हुए कहा. फिर जल्दीजल्दी सुबह का बचा दूध गरम कर बच्चों को दे आई और ताजा दूध को गैस सिम कर उबलने के लिए रख दिया. चाय ले कर कमरे में आई तो मेरा पसंदीदा धारावाहिक शुरू हो चुका था.

Drama Story in Hindi

Hindi Love Story: बेवफा- सरिता ने दीपक से शादी के लिए इंकार क्यों किया

Hindi Love Story: दीपक और सरिता की शादी होना लगभग तय ही था कि सरिता ने अचानक किसी और से शादी कर ली. 20 साल बाद जब दीपक की बहन रागिनी को इस के पीछे की सचाई का पता चला तो उस के पैरों तले जमीन खिसक गई. क्या पता चला था उसे…

‘‘मेरीतबीयत ठीक नहीं है रितु, मैं

घर जा रही हूं. जाते समय चाबी पहुंचा देना…’’

यह आवाज तो जैसे जानीपहचानी है. एक बार तो मेरे मन में आया कि आंखों से गीली रुई हटा कर उसे देखूं. मगर तब तक दूर जाती सैंडलों की आहट से मैं समझ गईर् कि बोलने वाली जा चुकी है. उस की आवाज अभी भी मेरे कानों में गूंज रही थी, इसलिए मैं अपनी उत्सुकता दबा नहीं पाई.

‘‘यही तो हैं इस ब्यूटीपार्लर की मालकिन सरिता राजवंश… ऊपर ही अपने पति के साथ रहती हैं. रुपएपैसों की कोई कमी नहीं है. बस खालीपन से बचने के लिए यह पार्लर चलाती हैं,’’ जितना पूछा उस से कहीं ज्यादा बता दिया रितु ने.

नाम सुनते ही मेरा रोमरोम जैसे झनझना उठा. चेहरे पर फेस पैक लगा था वरना अब तक न जाने कितने रंग आते और जाते. पिछले ही हफ्ते मेरे पति का तबादला यहां हुआ था. मैं घर में सामान अरेंज करतेकरते काफी थक गई थी. चेहरे की थकान मिटाने के लिए यहां फेशियल कराने आई थी. आश्चर्य कि यह पार्लर मेरी सब से प्यारी सहेली सरिता का था. विश्वास नहीं होता… मैडिकल की तैयारी करने वाली सरिता एक मामूली सा पार्लर चला रही है. लेकिन उस ने मुझे पहचाना क्यों नहीं या पहचान गई इसलिए यहां से चली गई? और भी न जाने कितने सवाल जिन के जवाब मैं पिछले 20 सालों से खोज रही हूं.

1-1 कर के वे सब जेहन में गूंजने लगे और साथ ही गूंजने लगा एक मधुर संगीत जो हरदम सरिता के होंठों पर रहता था, ‘क्या करूं हाय… कुछकुछ होता है…’

वे स्कूलकालेज के दिन… मैं, दीपक भैया और सरिता सब एकसाथ एक ही स्कूल में पढ़ते थे. हम पड़ोसी थे. दीपक भैया मुझ से 2 साल बड़े थे, लेकिन पता नहीं क्यों मां ने हम दोनों का नामांकन एक ही क्लास में करवाया था. दोनों परिवारों की एकजैसी हैसियत के कारण ही शायद हमारी दोस्ती बहुत निभती थी. सरिता के पिताजी एक दफ्तर में क्लर्क थे और मेरी मां एक स्कूल में अध्यापिका. मैं छोटी थी तभी पापा चल बसे थे. दीपक भैया और सरिता की बचपन की दोस्ती धीरेधीरे प्यार का रूप लेने लगी थी. दोनों के जवां दिलों में प्यार का अंकुर फूटने लगा था. मुझे आज भी याद है, रविवार की वह शाम जब दोनों परिवारों के सभी सदस्य मिल कर ‘कुछकुछ होता है’ फिल्म देखने गए थे. दीपक भैया ने गुजारिश की और मैं ने अपनी सीट उन से बदल ली ताकि वे सरिता की हथेलियों को अपने हाथों में ले कर इस संगीतमय और रोमांटिक वातावरण में अपने प्यार का इजहार कर सकें.

फिल्म खत्म होने के बाद सरिता की आंखों की चमक देख कर ही मैं समझ गई थी कि मेरी प्यारी सखी अब हमेशा के लिए मेरे घर में आने वाली है.

पापा की मौत के बाद मैं ने अपने जिस भाईर् को एक पिता की तरह गंभीरतापूर्वक जिम्मेदारियों को निभाते हुए देखा था आज उस के मन में अपनी जिंदगी के प्रति उत्साह एवं आत्मविश्वास देख कर मेरा मन सरिता के प्रति अंदर से झुक जाता था. शायद सरिता के निश्छल प्यार की ही ताकत थी कि पहली बार में ही भैया ने एमबीबीएस की परीक्षा पास कर ली. उस दिन सरिता इतनी खुश थी कि उसे अपने फेल होने का भी कोई गम नहीं था.

सबकुछ इतना अच्छा चल रहा था फिर अचानक एक दिन जब हम दोनों भाईबहन मौसी के घर गए हुए थे और

1 हफ्ते बाद लौटे तो पता चला कि सरिता ने दिल्ली के किसी अमीर आदमी से शादी कर ली है. उस के मम्मीपापा ने भी साफसाफ कुछ बताने से इनकार कर दिया.

फिर तो जैसे दीपक भैया के सारे सपने रेत के घरौंदे की तरह सागर में एकसार हो गए. जिन लहरों से कभी उन्होंने बेपनाह मुहब्बत की थी उन्हीं लहरों ने आज उन्हें गम के सागर में डुबो दिया. उस समय कितनी मुश्किल से मैं ने खुद और भैया को संभाला था यह मैं ही जानती हूं.

‘‘सैवन हंड्रेड हुए मैम,’’ रितु की आवाज सुन कर मैं अतीत से वर्तमान में आ गई. 1 घंटे का फेशियल कब पूरा हो गया पता ही नहीं चला. मैं ने पर्स से रुपए निकाल कर उसे दिए और फिर बाहर आ गई. मैं ने देखा कि बगल में ही ऊपर जाने वाली सीढि़यां थीं.

‘तो सरिता यहीं रहती है,’ सोच मेरे कदम स्वत: ही ऊपर की ओर बढ़ने लगे.

सीढि़यों के खत्म होते ही दाहिनी ओर एक दरवाजा था. मैं ने कौलबैल बजाई. मेरे लिए 1-1 पल असहनीय हो रहा था. मैं अपने सारे सवालों के जवाब जानने के लिए उतावली हो रही थी. 20 वर्ष तो बीत गए, मगर ये

20 सैकंड नहीं कट रहे थे. अब तक मैं 4 बार बैल बजा चुकी थी. पुन: बैल बजाने के लिए हाथ उठाया ही था कि दरवाजा खुल गया. मेरे सामने एक अपाहिज, किंतु शानदार व्यक्तित्व का स्वामी व्हील चेयर पर बैठा था.

उस के चेहरे पर आत्मविश्वास की चमक साफ झलक रही थी. मुझे देख कर एक क्षण के लिए वह अवाक रह गया. मगर अगले ही पल उस ने मुसकराते हुए मुझे अंदर आने को कहा. ऐसा लगा जैसे किसी पुराने मित्र ने मुझे पहचान लिया हो. मगर मेरी आंखें तो कुछ और ही खोज रही थीं.

‘‘सरिता तो अभी घर पर नहीं है. आप रागिनीजी हैं न?’’

उस व्यक्ति के मुंह से अपना नाम सुन कर मैं जैसे आसमान से गिरी… आवाज गले में ही अटक कर रह गई.

‘‘मेरा नाम सुमित है. मांजी और दीपक कैसे हैं? आप का इस शहर में कैसे आना हुआ? आप की शादी तो मुंबई में होने वाली थी न?’’

सवाल तो मैं पूछने आई थी, मगर मुझे

नहीं मालूम था कि मुझे ऐसे सवाल सुनने पड़ेंगे… तो क्या सरिता ने अपने पति को सबकुछ बता दिया है?

‘‘आप इतना सबकुछ मेरे बारे में…’’ मेरे हलक से आवाज ही नहीं निकल पा रही थी और फिर मैं बिना कुछ और कहे वहीं सोफे पर धम्म से बैठ गई.

तभी सामने दिखी वह तसवीर, जो हम ने अपने फेयरवैल वाले दिन खिंचवाई थी. मैं दीपक

भैया और सरिता… एक क्षण में मैं समझ गई कि मैं इस घर के लिए अपरिचित नहीं हूं. मगर यह नहीं समझ में आया कि ‘प्यार दोस्ती है,’ कहने वाली सरिता ने अपने प्यार और दोस्ती दोनों के साथ विश्वासघात क्यों किया? वादे को क्यों तोड़ा उस ने?

‘‘अभी 1 घंटा पहले ही सरिता ने आ कर मुझे बताया कि तुम उस के पार्लर में आई हो… वह समझ गईर् थी कि तुम यहां आओगी जरूर. तभी वह यहां से चली गई है.’’

‘‘आप ठीक कह रहे हैं. आखिर वह कौन सा मुंह ले कर मेरा सामना कर पाएगी,’’ मेरे मन की कड़वाहट शब्दों में स्पष्ट घुल गई थी.

‘‘सरिता ने जैसा बताया था आप बिलकुल वैसी ही हैं. इतने वर्षों में न तो आप बदलीं और न ही आप की सहेली,’’ सुमित ने कहा तो मैं ने अपनी नजरें उस पर टिका दीं. आखिर कौन सी खूबी है इस में जिस के लिए सरिता ने दीपक भैया के प्यार को ठुकरा दिया?

‘‘सरिता तो आज भी 20 साल पुरानी उन्हीं गलियों में भटक रही है, जहां दीपक की यादें बसती हैं. हर दिन, हर पल वह उन्हीं यादों के सहारे जीती है. दुनिया के लिए तो वह मेरी सरिता है, मगर सही माने में वह आज भी दीपक की ही सरिता है.

‘‘मैं एक दुर्घटना में अपाहिज हो गया था. तब एक केयर टेकर के लिए दिया गया मेरा इश्तिहार पढ़ कर सरिता मेरे पास आई और मुझ से शादी करने की विनती करने लगी. अंधा क्या चाहे दो आंखें… बस मैं ने हां कर दी… सच कहूं तो सरिता जैसी केयरटेकर पा कर मैं धन्य हो गया… मेरे जीवन की खुशियां उस की ही देन हैं.’’

‘‘हमारे घर की खुशियों में आग लगा कर उस ने आप के जीवन में रोशन की है… चमक तो होगी ही,’’ पता नहीं क्यों मैं सीधेसीधे सरिता को बेवफा नहीं कह पा रही थी.

‘‘आप थोड़ा रुकिए मैं अभी आप की गलतफहमी दूर किए देता हूं,’’ कह कर सुमित अंदर से एक डायरी ले आए.

‘‘यह डायरी तो सरिता की है. भैया ने ही उसे उस के जन्मदिन पर उपहारस्वरूप दी थी,’’ कह मैं ने जैसे ही डायरी खोली मेरी नजर एक पत्र पर पड़ी. उस की लिखावट बिलकुल मेरी मां की लिखावट से मिलती थी. अरे, यह तो सचमुच मेरी मां का ही लिखा पत्र है जो उन्होंने सरिता के लिए लिखा था आज से 20 साल पहले-

‘‘सरिता बेटी,

‘‘मैं जानती हूं कि तुम दीपक से बेहद प्यार करती हो और रागिनी तुम्हारी प्यारी सहेली है. मेरी बहन ने दीपक की शादी के लिए एक लड़की देखी है. उस के मातापिता दीपक को बहुत अधिक दहेज दे रहे हैं. तुम तो जानती हो कि दीपक की डाक्टरी की पढ़ाई में मेरे सारे जेवर बिक गए हैं. ऐसे में रागिनी की शादी और दीपक के अच्छे भविष्य के लिए मुझे उस लड़की को ही घर की बहू बनाना पड़ेगा. दीपक तो मेरी बात मानेगा नहीं. ऐसे में उस का भविष्य और रागिनी की जिंदगी अब तुम्हारे हाथों में है. मैं जिंदगी भर तुम्हारा एहसान मानूंगी.

‘‘तुम्हारी मजबूर आंटी.’’

पत्र पढ़ते ही मैं सुबक उठी… ‘‘यह तुम ने क्या कर दिया सरिता? हमारी खुशियों के लिए अपनी जिंदगी में आग लगा ली? आखिर क्यों सरिता? क्या कोई दूसरा रास्ता नहीं था? आज तुम से पूछे बिना मैं यहां से नहीं जाऊंगी. इतने वर्षों तक मैं और दीपक भैया तुम्हें बेवफा समझ कर तुम से नफरत करते रहे और तुम…’’

‘‘दीपक की नफरत ही तो उस के जीने का साधन है. एक ही क्षेत्र में रह कर शायद कहीं किसी मोड़ पर दीपक से मुलाकात न हो जाए, इसीलिए उस ने वह रास्ता ही छोड़ दिया. सरिता कभी नहीं चाहती थी कि तुम लोग उस की हकीकत जानो. इसलिए अगर तुम सच में सरिता को खुश देखना चाहती हो तो उस से बिना मिले ही चली जाओ वरना वह चैन से जी नहीं पाएगी…’’ सुमित ने कहा.

मुझे सुमित की बात सही लगी. मैं एक बार फिर दीपक भैया के प्रति सरिता के प्यार को देख कर नतमस्तक हो गई. सरिता ने तो प्यार और दोस्ती दोनों शब्दों को सार्थक कर दिया था. बस हम ही उसे नहीं समझ पाए.

Hindi Love Story

फेक ब्रैस्ट इंप्लांट हटवाने के बाद Sherlyn Chopra का इमोशनल वीडियो

Sherlyn Chopra: बौलीवुड की कई टौप ऐक्ट्रैस अपनी बौडी को खूबसूरत दिखाने के लिए काफी जतन करती हैं, जिस से वे अक्ट्रैक्टिव दिख सकें. इस के लिए वे प्लास्टिक सर्जरी की भी हैल्प लेती हैं. यहां तक कि कई ऐक्ट्रैस ने ब्रैस्ट इंप्लांट भी कराया है और इस लिस्ट में शिल्पा शेट्टी, कंगना रनौत, सुष्मिता सेन, बिपाशा बसु, मल्लिका शेरावत के अलावा शर्लिन चोपड़ा का नाम भी शामिल हैं.

हाल ही में बोल्ड ऐक्ट्रैस शर्लिन चोपड़ा ने फेक ब्रैस्ट को निकलवाने के लिए सर्जरी करवाई है और खुद ब्रैस्ट इंप्लांट के दर्द को एक वीडियो के जरीए शेयर किया है.

इंस्टाग्राम पर किया खुलासा

मौडल और बोल्ड ऐक्ट्रैस शर्लिन चोपड़ा अपने बेबाक अंदाज के लिए जानी जाती हैं, लेकिन इस बार उन्होंने एक ऐसा खुलासा किया है, जिस ने सभी को आश्चर्य में डाल दिया है. उन्होंने यह खुलासा एक वीडियो के माध्यम से किया है. इस वीडियो में शर्लिन ने बताया कि उन्होंने अपने ब्रैस्ट इंप्लांट हटवा दिए हैं और उन का यह डिसीजन उन की जिंदगी का सब से मुश्किल लेकिन जरूरी कदम था.

असहनीय दर्द से रहीं पीड़ित

शर्लिन चोपड़ा का कहना है कि उन को बहुत दर्द सहना पड़ा. इस की वजह से कई और असहनीय दर्द को झेलना पड़ा जैसे- क्रोनिक बैक पेन, नैक पेन, चेस्ट पेन, शोल्डर पेन आदि. दर्द से परेशान हो कर उन्होंने मैडिकल जांच करवाई और पता चला की हैवी ब्रैस्ट इंप्लांट्स की वजह से ये सारी दिक्कतें हुई हैं. ऐसे में डाक्टरों की ऐडवाइस पर उन्होंने यह डिसीजन लिया है.

वे कहती हैं, “मैं चाहती हूं कि खुद को अपने नैचुरल रूप में अपनाऊं और हैल्दी लाइफस्टाइल जिऊं.”

क्या है ब्रैस्ट इंप्लांट

ब्रैस्ट इंप्लांट एक तरह की कौस्मेटिक सर्जरी होती है, जिस में सिलिकन या सलाइन जैल से बने फेक इंप्लांट को ब्रैस्ट के अंदर फिट किया जाता है ताकि उन का शेप बड़ा या परफैक्ट दिखे. लेकिन कई बार यह सर्जरी बौडी पर अपोजिट इफैक्ट डाल सकती है.

सर्जरी के बाद अगर सही तरीके से केयर न की जाए, तो बैक्टीरियल इन्फैक्शन का खतरा बढ़ जाता है. इस से स्वेलिंग, पेन और फीवर भी हो सकता है.

ब्रैस्ट इंप्लांट कितनी बार बदलना चाहिए

ब्रैस्ट इंप्लांट हमेशा के लिए नहीं टिकते. अगर आप के ब्रैस्ट इंप्लांट हैं, तो आप को लाइफ में कभी न कभी उन्हें निकलवाना या बदलवाना पड़ेगा. ब्रैस्ट इंप्लांट औसतन 10 साल तक चलते हैं. लेकिन 10 साल बाद इन के फटने की दर बढ़ जाती है. कुछ ज्यादा समय तक चल सकते हैं, कुछ कम समय तक.

ब्रैस्ट इंप्लांट रिप्लेसमैंट के कारण

इस के 2 कारण होते हैं- एक कैप्सुलर संकुचन दूसरा कैप्सुलर संकुचन. यह तब होता है जब ब्रैस्ट के चारों ओर हार्ड स्कैर टिश्यू बन जाते हैं. इस की गंभीरता थोड़ी हार्ड और पेनफुल तक हो सकती है. हम सोचते हैं कि यह सामान्य से ज्यादा  स्वेलिंग के कारण होता है, जिस के परिणामस्वरूप शरीर में ज्यादा स्कैर टिश्यू बन जाते हैं. सर्जरी के बाद हेमटोमा होना ज्यादा आम है यानि इंप्लांट के आसपास रक्तस्राव जमा हो जाता है. यह बैक्टीरिया के इन्फैक्शन से भी जुड़ा हो सकता है, भले ही यह सबक्लीनिकल इन्फैक्शन हो यानि बिना किसी लक्षण वाला.

ब्रैस्ट इंप्लांट रिमूवल सर्जरी के बाद की प्रौब्लम्स

मैडिकल ऐक्सपर्ट्स का कहना है कि ब्रैस्ट इंप्लांट रिमूवल सर्जरी के बाद कुछ महिलाओं को स्किन लूज पड़ने, शेप बदलने और सैंसेशन लौस जैसी प्रौब्लम्स का सामना करना पड़ सकता है.

ब्यूटी से अधिक जरूरी हैल्थ

शर्लिन चोपड़ा का यह कदम महिलाओं में बौडी पौजिटिविटी और हैल्थ अवेयरनैस को बढ़ावा देने वाला माना जा रहा है. उन्होंने अपने अनुभव के जरीए यह संदेश दिया है कि ब्यूटी से अधिक जरूरी है हैल्थ और सैल्फ कौन्फिडेंस.

आमतौर पर ब्रैस्ट इंप्लांट का वेट उन के शेप पर निर्भर करता है. उदाहरण के लिए, 100 सीसी इंप्लांट का वेट लगभग 100 ग्राम होता है. शेप 100 सीसी से शुरू हो कर 800 सीसी या उस से भी ज्यादा हो सकते हैं.

सिलिकन का मैडिकल नाम

ब्रैस्ट इंप्लांट में इस्तेमाल होने वाले सिलिकन का कोई एक मैडिकल नाम नहीं है, लेकिन इस के मुख्य घटक का रासायनिक नाम डाईमिथाइलसिलोक्सेन है. यह एक मैडिकल ग्रेड सिलिकन इलास्टोमर है, जिसे विभिन्न रूपों में इस्तेमाल किया जाता है, जैसे सिलिकन जैल, सिलिकन तेल और विभिन्न प्रकार के अनाकार सिलिका पाउडर जैसे सिलिका एरोजेल, सिलिका स्मोक.

स्कैर टिशू क्या हैं

स्कैर टिशू  डैमेज्ड स्किन या अन्य टिश्यू पर बनने वाला रेशेदार टिश्यू  है, जो घाव भरने की नैचुरल हीलिंग प्रोसेस का हिस्सा है. यह नौर्मल टिश्यू की जगह लेता है, लेकिन यह कम लचीला और मोटा होता है और मुख्य रूप से कोलेजन से बना होता है. चोट, सर्जरी या बीमारी के बाद बौडी इस नए टिश्यू  का निर्माण कर के इंजर्ड एरिया को ठीक करता है.

स्कैर टिशू विशेषताएं

यह कोलेजन प्रोटीन से बना होता है, जो रेशेदार और मजबूत होता है. इस का टैक्स्चर नौर्मल स्किन की तरह लचीला या चिकना नहीं होता है, बल्कि यह अकसर मोटा और कठोर होता है. यह चोट को बंद करने और आसपास के टिश्यूज को ठीक करने में मदद करता है.

भविष्य में आने वाली प्रौब्लम्स

अगर स्कैर टिशू बहुत मोटा हो जाता है, तो यह दर्द, अकड़न और प्रभावित अंग की गतिशीलता को सीमित कर सकता है. कभीकभी, यह आसंजन बना सकता है, जो टिश्यू की एक पट्टी की तरह होता है और एक क्षेत्र को दूसरे से चिपका सकता है. इस की शुरुआत चोट लगने के 24 घंटे के भीतर स्कार टिशू बनना शुरू हो सकता है.

ब्रैस्ट इंप्लांट रिप्लेसमैंट के 2 मुख्य कारण हैं :

कैप्सूलर कौन्ट्रैक्चर : यह तब होता है जब इंप्लांट के चारों ओर का स्कैर टिश्यू हार्ड हो जाता है, जिस से ब्रैस्ट  सख्त और असहज महसूस हो सकते हैं.

इंप्लांट का फटना या लीक होना : इस में इंप्लांट का बाहरी आवरण फट सकता है, जिस से सीलेंट लीक हो सकता है या सलाइन इंप्लांट के मामले में यह हवा बाहर निकल सकती है. इंप्लांट का फटना/लीक होना और बौडी में बदलाव जैसे-

प्रैगनैंसी, वेटलौस या वेट गेन के कारण ब्रैस्ट के रूप में बदलाव.

अन्य जटिलताएं

इस में कई जटिलताएं भी हैं जैसे इन्फैक्शन, तरल पदार्थ का जमा होना या इंप्लांट का अपनी जगह से हिल जाना. इस से भी रिप्लेसमैंट की आवश्यकता हो सकती है.

Sherlyn Chopra

Best Family Story: कोई फर्क नहीं है- श्वेता के पति का क्या था फैसला

लेखिका- संध्या शर्मा

Best Family Story: मेरे सहयोगी नरेश ने अपनी प्रमोशन की खुशी में औफिस के सब लोगों को लंच पार्टी में बुलाया था. वहां से लौटते हुए मुझे एकाएक एहसास हुआ कि श्वेता का मूड खराब है.

‘‘तुम ने क्यों मुंह सुजाया हुआ है? क्या पार्टी में किसी से कुछ कहासुनी हो गई है?’’ मैं ने चिंतित लहजे में पूछा.

‘‘नहीं,’’ उस का इनकार करने का खिंचावभरा तरीका इस बात की पुष्टि कर गया कि जरूर पार्टी के दौरान कुछ ऐसा गलत घटा है जो उसे परेशान कर रहा है.

श्वेता की आदत है कि वह हमेशा अपने मन की बात देरसबेर मुझे बता देती है. इसलिए मैं उसी वक्त सबकुछ जानने के लिए उस के पीछे नहीं पड़ा है.

हुआ भी कुछ ऐसा ही. जब घर पहुंच कर मैं ने ड्राइंगरूम में उसे बांहों में भरने की कोशिश करी तो उस ने मेरे हाथ झटक दिए.

‘‘क्या आज मुझ से जोरजबरदस्ती कराने के मूड में हो?’’ मैं ने हंसते हुए पूछा पर वह रत्तीभर नहीं मुसकराई.

कुछ पलों तक उस ने मुझे नाराजगी से घूरा और फिर गुस्से से पूछा, ‘‘औफिस वाली बालकटी नीरजा के साथ आजकल तुम्हारा क्या चक्कर चल रहा है?’’

‘‘ओह, तो पार्र्टी में किसी ने नीरजा को ले कर तुम्हारे कान भरे हैं. भई, मेरा उस के साथ कोई चक्कर नहीं…’’

‘‘मुझ से झठ बोलने की कोशिश मत करिए,’’ वह शेरनी की तरह गुर्रा उठी.

‘‘तो फिर मैं तुम्हें कैसे विश्वास दिलाऊं कि हम दोनों सहयोगी होने के साथसाथ अच्छे दोस्त भी हैं और हमारे बीच कोई इश्क नहीं चल रहा है?’’ मेरे लिए अपनी हंसी रोकना मुश्किल हो रहा है, यह बात उसे बिलकुल समझ नहीं आ रही थी.

‘‘मैं आज तुम्हारी किसी झठी बात पर विश्वास नहीं करूंगी. हंसना बंद कर के आप मेरे सवालों के सीधेसीधे जवाब दो.’’

‘‘पूछो, मेरी झंसी की रानी,’’ मैं बड़े स्टाइल से उस के सामने हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया पर उस ने तो जैसे न मुसकराने का पक्का फैसला कर रखा था.

‘‘वह जिस फ्लैट में अकेली रहती है,

आप उस से मिलने वहां जाते रहते हो न?’’

‘‘कभीकभी.’’

‘‘उस के साथ होटल में खाना खाने

जाते हो?’’

‘‘बहुत बार गया हूं.’’

‘‘वह शराब पीती है न?’’

‘‘हां अकसर वाइन पीती है.’’

‘‘अब मुझे यह बताओ कि मैं कैसे विश्वास कर लूं कि इस शराब पीने वाली व होटलों में तुम्हारे साथ घूमने वाली चालू औरत के साथ तुम्हारा कोई चक्कर नहीं चल रहा है?’’ उस ने चुभते लहजे में पूछा.

‘‘तुम्हें विश्वास करना ही चाहिए क्योंकि तुम्हारे पतिपरमेश्वर ऐसा कह रहे हैं.’’

‘‘भाड़ में गए पतिपरमेश्वर. देखो या तो तुम इसी वक्त मेरे सिर पर हाथ रख कर

सच बताओ कि आज के बाद औफिस के अलावा उस चुड़ैल से कहीं नहीं मिलोगे या फिर मुझे इसी वक्त मायके छोड़ आओ.’’

‘‘अपनी जबान से किसी के लिए अपशब्द मत  निकालो.’’

‘‘तुम्हारी प्रेमिका को मैं ने चुड़ैल कहा तो तुम्हें बुरा लगा है?’’

‘‘हां.’’

‘‘आप उस से मिलना छोड़ दोगे तो मुझे उस के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल करने की कोई जरूरत ही नहीं रहेगी.’’

‘‘तुम ने इस बात पर ध्यान दिया कि ऐसी गलत फरमाइश कर के तुम एक तरह से यह जाहिर कर रही हो कि तुम्हें मेरे ऊपर विश्वास नहीं है,’’ मैं ने अपना चेहरा यों लटका लिया मानो मेरे दिल को गहरा धक्का लगा हो.

‘‘आप बेकार की बात कर के मुझे

उलझओ मत.’’

‘‘तो मैं बेकार की बातें करना खत्म करता हूं और तुम मेरा सीधासीधा जवाब सुन लो. मैं तुम्हारे दबाव में आ कर उस से मिलना नहीं छोड़ूंगा. अगर मैं ने ऐसा किया तो उस की व अपनी नजरों में गिर जाऊंगा,’’ मैं ने ये सख्त शब्द भी अपने मुंह से मुसकराते हुए निकाले थे.

मेरा जवाब सुन कर उस की आंखों में आंसू ?िलमिला उठे तो मैं जल्दी से आगे बोला, ‘‘पर मैं तुम्हारे मन का शक दूर करने को एक और काम कर सकता हूं?’’

‘‘कौन सा काम?’’ उस ने रुंधे गले से पूछा.

जवाब में मैं ने जेब से अपना मोबाइल निकाला और नीरजा से उसी वक्त बात करी.

‘‘हैलो नीरजा… इस वक्त तुम कहां हो… नहीं, अपने घर मत जाओ… तुम से मेरी वाइफ श्वेता अभी मिलने को बहुत उतावली हो रही है… पार्टी में मुलाकात नहीं हुई, इसीलिए ही तो मिलना चाह रही है… मिलने की ऐसी इमरजैंसी क्यों है, यह वे ही तुम्हें बताएगी… हां, तुम मेरा पता नोट करो…’’ उसे अपने घर का पता नोट कराने के बाद मैं ने फोन काट दिया.

मुझे शरारती अंदाज में मुसकराते देख श्वेता चिड़े लहजे में बोली, ‘‘उसे इस वक्त घर क्यों बुलाया? हमारे बीच सुलहसफाई कराने कोई दूसरा आए, यह मैं बिलकुल बरदाश्त नहीं करूंगी.’’

‘‘तुम अपनेआप को बहुत होशियार समझती हो, तो अब उस के हावभाव देख कर पहचानना कि वह मुझ से फंसी हुई है कि नहीं,’’ लापरवाही से मैं ने यह जवाब दिया और उसे परेशान हालत में छोड़ कर कपड़े बदलने बैडरूम की तरफ चल पड़ा.

श्वेता मुझ से नीरजा को यों घर बुलाने के लिए बहुत झगड़ी. जब मैं जवाब में सिर्फ मुसकराता रहा तो उस ने झगड़ना छोड़ा और टैंशन से भरी नीरजा के घर पहुंचने का इंतजार करने लगी.

करीब आधे घंटे बाद नीरजा हमारे घर आ पहुंची. श्वेता का आज पहली बार उस से आमनासामना हुआ. उन दोनों का परिचय कराने के बाद मैं तो आगे का तमाशा देखने के लिए आराम से सोफे पर बैठ गया.

उस के सामने श्वेता ने अपना आत्मविश्वास खो सा दिया था. सच ही उस के जैसे अजीबोगरीब व्यक्तित्व वाली युवती से पहले उस का सामना हुआ भी नहीं था.

नीरजा लंबे कद और आकर्षक फिगर वाली युवती थी. उस ने बदन से चिपकी नीली जींस और लाल रंग की छोटी कुरती पहनी हुई थी. देखने में बहुत मौडर्न नजर आने वाली नीरजा के चेहरे पर नाममात्र का मेकअप था. उस ने कोई ज्वैलरी भी नहीं पहन रखी थी. कलाई में पहनने के लिए उस ने घड़ी भी वैसी बड़े डायल वाली चुनी थी जैसी आमतौर पर आदमी पहनते हैं.

नीरजा ने खुद ही वार्त्तालाप शुरू करते हुए श्वेता से पूछा, ‘‘तुम मुझ से कोई खास बात करना चाह रही हो श्वेता?’’

‘‘नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं है,’’ श्वेता की आवाज में बेचैनी साफ झलक रही थी.

‘‘फिर कैसी बात है?’’

‘‘आज पार्टी में मुझे कई लोगों से सुनने को मिला कि तुम्हारे और समीर के बीच चक्कर चल रहा है.’’

‘‘रियली?’’ नीरजा ठहाका मार कर हंसी तो श्वेता जबरदस्त उलझन का शिकार बन गईर्.

‘‘यह नादान समझती है कि हमारे बीच इश्क चल रहा है. व्हाट ए जोक,’’ मेरी बात सुन कर नीरजा पर हंसने का ऐसा दौरा पड़ा कि वह सोफे पर लुढ़क गई.

‘‘इस में इतना हंसने की क्या बात है?’’ श्वेता खीज उठी.

‘‘तुम्हारी नाराजगी मैं बाद में दूरकर दूंगी. पहले तुम मेरे साथ किचन में आओ. मैं ने पार्टी में ढंग से खाया नहीं है. मुझे पहले कुछ खिलाओ,’’ नीरजा ने श्वेता का हाथ बड़े अपनेपन से पकड़ा और उसे ले कर किचन की तरफ चल दी.

मैं भी उन के पीछेपीछे वहीं पहुंच गया. नीरजा ने फ्रिज में अंडे रखे देखे तो आमलेट खाने

की इच्छा प्रकट कर दी. मजे की बात यह थी कि उस ने आमलेट श्वेता को नहीं बनाने दिया और सारी तैयारी खुद शुरू कर दी.

आमलेट बनाते हुए उस ने बहुत सुरीली आवाज में एक लोकप्रिय गीत गुनगुनाना शुरू कर दिया तो रसोई का माहौल बहुत संगीतमय हो गया.

‘‘तुम तो बहुत अच्छा गाती हो,’’ जब उस का गाना रुका तो श्वेता उस की आवाज की तारीफ करने से खुद को रोक नहीं पाई थी.

‘‘मैं तो गुणों की खान हूं,’’ नीरजा ने हंसते हुए खुद ही अपनी प्रशंसा करनी शुरू कर दी, ‘‘मैं नाचती भी बहुत अच्छा हूं. कुकिंग के भी कई कोर्स कर रखे हैं. मेरे फ्लैट में मेरी बनाई पेंटिंग्स देखोगी तो दांतों तले उंगली दवा लोगी.’’

‘‘इस की पेंटिंग्स देख कर चूंकि तुम्हें कुछ समझ में नहीं आएगा, इसलिए हैरान तो तुम हो ही जाओगी. यह मौडर्न पेंटिंग्स बनाती है, जिन्हें इस के अलावा शायद ही कोई दूसरा समझता हो,’’ मैं ने नीरजा को यों छेड़ा तो उस ने पास में रखा रसोई का कपड़ा मेरे ऊपर फेंक  मारा.

‘‘तुम इस की बकवास पर ध्यान मत दो और मेरे घर मेरी पेंटिंग्स देखने जरूर आना, श्वेता,’’ नीरजा ने मुसकराते हुए श्वेता को अपने घर आने का निमंत्रण दे दिया.

‘‘मैं आऊंगी,’’ हमारी नोकझोंक देख कर श्वेता अपनी नाराजगी फिलहाल भूल गई.

‘‘अकेली मत जाना इस के घर,’’ मैं ने श्वेता को यह सलाह दी तो नीरजा ने मुझे नकली नारजगी से घूरा.

‘‘आप जा सकते हो तो क्या मैं नहीं जा सकती हूं?’’ श्वेता का यह जवाब सुन कर जब नीरजा और मैं फिर जोर से हंस पड़े तो वह बेचारी फिर से उलझ कर रह गई.

जब नीरजा फेंटे हुए अंडों को तवे पर डाल रही थी तब श्वेता ने अचानक उस से

पूछा, ‘‘तुम ने अभी तक शादी क्यों नहीं करी है?’’

‘‘कोई जीवनसाथी बनाने लायक उचित वंदा नहीं मिला,’’ नीरजा ने नाटकीय अंदाज में गहरी सांस छोड़ कर जवाब दिया.

‘‘ऐसे क्या गुण तुम उस में ढूंढ़ रही हो जो अब तक किसी में भी नहीं मिले?’’

‘‘वह इतना समझदार होना चाहिए कि मुझे अपने ढंग से जीने की आजादी दे, जिसे दुनिया के कुछ भी कहने की परवाह न हो, जो खुद को मेरे ऊपर थोपने की कोशिश न करे, जिस के सामने मुझे कभी बनावटी मुखौटा न ओढ़ना पड़े.’’

‘‘ऐसा पति मिलना तो सचमुच मुश्किल है.’’

‘‘मेरे मामले में तो नामुमकिन ही है. बहुत कम मर्द हैं, जिन्हें मैं अच्छा इंसान होने के नाते दिल से इज्जत देती हूं और तुम्हारे पति उन में से एक हैं. हमारे बीच जो बहुत अच्छी दोस्ती है, उसे मैं इस के साथ इश्क का चक्कर चलाने की मूर्खता कर के कभी नहीं खोना चाहूंगी, श्वेता.’’

‘‘समझदार लोग कहते हैं कि आग और घी को पासपास रखना मूर्खतापूर्ण और खतरनाक होता है,’’ श्वेता ने संजीदा हो कर अपने पक्ष में दलील दी.

‘‘श्वेता, यों शक कर के अपने पति का और मेरा दिमाग खराब मत करो. समीर के साथ मैं अपनी दोस्ती को बहुत खास मानती हूं. तुम ने इसे तोड़ने की जिद जारी रखी तो यह बहुत गलत होगा. अब मैं चलूंगी और इसे कार में खाने के लिए ले जा रही हूं,’’ कह नीरजा ने मुझे गले से लगाया और फुरती से आमलेट को 2 ब्रैडस्लाइस के बीच रख कर दरवाजे की तरफ  चल पड़ी.

उसे जाने की जल्दी क्यों थी, यह हमें बाहर आने के बाद समझ आया. हम ने बाहर आ कर देखा कि नीरजा की कार में एक बहुत सुंदर लड़की बैठी उस का इंतजार कर रही थी.

‘‘सौरी, स्वीटहार्ट,’’ नीरजा ने कार में घुंसते ही उस लड़की के गाल पर माफी मांगने वाले अंदाज में चुंबन अंकित किया और एक बार हम दोनों की तरफ हाथ हिलाने के बाद कार स्टार्ट कर के चली गई.

‘‘सुनोजी, नीरजा के साथ यह लड़की कौन थी?’’ श्वेता बहुत हैरानपरेशान सी नजर आ रही थी.

‘‘वह नीरजा की प्रेमिका है,’’ मैं ने शरारती अंदाज में मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘‘क्या नीरजा उस टाइप की लड़की है जिन्हें लड़के नहीं बल्कि लड़कियां…’’ श्वेता अपना वाक्य शर्म के मारे पूरा नहीं कर सकी.

‘‘हां, और अब तुम समझ सकती हो कि हमारे बीच इश्क का चक्कर चलने की बात सुन कर नीरजा और मैं क्यों पागलों की तरह हंस रहे थे.’’

श्वेता ने खिसियानी सी हंसी हंस कर पूछा, ‘‘क्या आप को झेंप नहीं आती है उस से मिलनेजुलने में?’’

‘‘अरे, झेंप क्यों? वह दिल की अच्छी होने के साथसाथ अपने काम में बहुत निपुण और कला के क्षेत्र में भी बहुत टेलैंटेड है. हमारे काम की तारीफ सारे सीनियर औफिसर करते हैं. वह मेरी बहुत अच्छी दोस्त है पर जो उसे समझ नहीं सकते, उन लोगों के साथ बहुत रिजर्व रहती है. इस कारण किसी की हिम्मत नहीं होती उस के साथ फालतू की बात करने की.

‘‘इस मामले में मैं अपनी सोच तुम्हें बताता हूं. मुझे इस बात से क्या लेनादेना कि वह किसी लड़के के साथ अपना जीवन गुजारना पसंद करेगी या किसी लड़की के साथ. उसे इस बारे में फैसला करने का अधिकार तो अब कानून भी देता है,’’ मैं ने संजीदा लहजे में उसे अपने नजरिए से अवगत करा दिया.

‘‘आज का भटका हुआ एक युवावर्ग जो गुल खिला दे, सो कम है,’’ श्वेता की आवाज में उस खास तरह के युवावर्ग की आलोचना के भाव मौजूद थे.

मैं पिछले दिनों उस के घर ज्यादा जा रहा था क्योंकि दोनों कोविड-19 के दिनों कई दिन

अस्पताल रही थीं और लौटनेके बाद मैं उन्हें लौकडाउन खुलने के बाद खाना पहुंचाता रहा था. दोनों से पहले थोड़ी दोस्ती थी पर फिर कुछ ज्यादा हो गई. तुम्हें इसलिए बताया नहीं बताया क्योंकि मुझे मालूम था कि तुम समझेगी. मैं तो ऐसा ही मौका ढूंढ़ रहा था जब मामला गर्म हो तो उस पर पानी के छींटे मारे जा सकें. कोविड-19 के बाद औफिस की पहली ही पार्टी में तुम ने मुझे वह मौका दे दिया.

‘‘अब बदले वक्त के साथ चलते हुए तुम इस अंदाज से सोचना बंद कर दो, जानेमन. उस खास युवावर्ग और हम में कोई फर्क नहीं है. बात अपनीअपनी रुचि की है और हमें न्यायाधीश बन कर उन की तरफ उंगली उठाने का कोई अधिकार नहीं है. उन्हें भी खुश और सुखी रहने का उतना ही अधिकार है, जितना तुम्हें और मुझे.’’

‘‘यस सर,’’ श्वेता ने फौरन मुझे जोरदार सलाम किया, ‘‘आप नीरजा के साथ अपनी दोस्ती को खूब निभाइए… मुझ मूर्ख को माफ कर दो. मुझे आप के प्रेम पर शक करने के बीज को पनपने के लिए अपने मन में जगह देनी ही नहीं चाहिए थी.’’

‘‘जानेमन, इस जुर्म की माफी इतनी आसानी से नहीं मिलेगी.’’

‘‘तब मुझे माफी पाने के लिए क्या करना होगा?’’ उस ने आंखें मटकाते हुए पूछा.

‘‘तुम मुझे इतना प्यार करो कि… कि…’’

‘‘मैं समझ गई, मेरे सरताज,’’ कह उस ने आगे बढ़ कर मुझे अपनी बांहों में भरा और अपने रसीले होंठों को मेरे होंठों के साथ जोड़ दिया.

Best Family Story

Best Hindi Story: बदला व्यवहार- क्या हुआ था जूही के साथ

लेखक- विनय कुमार पाठक

Best Hindi Story: ‘‘मुझेयही एसयूवी लेने का मन है. आखिर गाड़ी लो तो एसयूवी. इस में रोड का बेहतर व्यू होता है. आदमी आराम से बैठ सकता है. सेडान में तो काफी नीचे बैठना पड़ता है. थोड़ा माइलेज भले ही कम रहता है पर ड्राइव करने का मजा इस में ही होता है,’’ संदीप ने शोरूम में लगी गाड़ी की ओर देखते हुए कहा.

‘‘बिलकुल सही कहा सर,’’ सेल्स ऐग्जीक्यूटिव ने दांत निपोरते हुए कहा. उस की आंखों में संदीप के प्रति परमभक्ति नजर आ रही थी. आती भी क्यों नहीं आखिर गाड़ी बिकेगी तो उसे कमीशन का लाभ होना ही है.

जूही को यह बात बिलकुल पसंद नहीं आई. वह अपने पति संदीप को सेडान लेने के लिए कह रही थी जबकि संदीप एसयूवी लेने की जिद पर अड़ा था. वहां उस ने कुछ भी कहना मुनासिब नहीं समझा. वह कहना तो बहुत कुछ चाह रही थी पर सब के सामने तमाशा नहीं खड़ा करना चाह रही थी. अत: इतना ही कहा, ‘‘ठीक है, थोड़ा और विचार कर लेते हैं.’’

संदीप पूरा मन बना चुका था एसयूवी बुक करने का. टैस्ट ड्राइव करने के बाद तो उस का मन बिलकुल पक्का हो आया था. जूही के जवाब से उस का मन क्षुब्ध हो उठा. वह शोरूम से बाहर तो आ गया पर मन ही मन गुस्सा था जूही पर. उधर जूही भी गुस्से में थी कि उस की पसंद का खयाल रखे बिना संदीप अपनी ही रट लगाए हुए है. पर उसे यह अंदाज नहीं था कि अभी संदीप भी क्षुब्ध है.

‘‘क्यों बारबार एसयूवी की रट लगाए हुए हो. तुम्हें पता है कि मैं भी गाड़ी ड्राइव करना चाहती हूं. एसयूवी मुझे बड़ी गाड़ी लगती है और साड़ी पहन कर तो बहुत ही कठिन काम लगेगा मुझे एसयूवी ड्राइव करना,’’ बाहर आते ही वह बिफर पड़ी.

‘‘तुम्हें तो मेरी पसंद की हर चीज नापसंद होती है और कौन कहता है तुम्हें साड़ी पहन कर ड्राइव करने के लिए. और भी कपड़े होते हैं पहनने के लिए?’’

सामान्य तौर पर संदीप जूही पर नाराज नहीं होता था पर अभी उस का मूड बिलकुल औफ था. कहां वह मन बनाए हुए था कि एसयूवी से

ही बाहर निकलेगा कहां जूही उसे खरीखोटी सुना रही थी.

बात बढ़तेबढ़ते काफी बढ़ गई. कुछ इतनी कि आपस में बोलचाल बंद हो गई.

जूही को महसूस हुआ कि शायद मामला बिगड़ गया है. कैसे इसे सुधारा जाए वह सोच रही थी.

उस दिन रात को संदीप लैपटौप बंद कर बैडरूम में आया. कमरे में लाइट औन थी. जूही बिस्तर पर चुपचाप लेटी हुई थी.

‘‘हो गया काम?’’ उस ने सहमते हुए पूछा.

‘‘हां. वैसा भी कोई काम नहीं था. बस समय बिताने के लिए कुछकुछ कर रहा था,’’ संदीप ने अनमना हो जवाब दिया.

आदतन उस ने अपनी बनियान उतारी और तकिए के नीचे रख दी.

‘‘बत्ती बंद कर दूं या जलने दूं?’’ उस ने रूखे स्वर में पूछा.

‘‘बंद कर दो,’’ जूही ने उदास स्वर में कहा.

बत्ती बंद कर संदीप जूही की बगल में लेट गया. उस का बैडरूम सोसाइटी के पार्क के सामने पड़ता था. पार्क में रातभर बत्तियां जलती रहती थीं. अत: झीनीझीनी रोशनी आती रहती थी. उस रोशनी में उस ने बगल में लेटी जूही को देखा. हलकी रोशनी में उस का शरीर काफी आकर्षक लग रहा था. उस का शरीर आकर्षक तो था ही पर अभी कुछ ज्यादा ही आकर्षक लग रहा था और इस का कारण यह था कि विगत 1 सप्ताह से संदीप ने जूही के साथ सैक्स का आनंद नहीं लिया था और अभी वह इस की आवश्यकता महसूस कर रहा था. पर आज गाड़ी को ले कर जो विवाद हुआ था उस के कारण वह पहल करने के मूड में कतई नहीं था. पर जूही मतभेद को दूर करना चाहती थी. उसे लगा कि वह तो कभीकभार ही गाड़ी चलाती है. ज्यादातर संदीप ही गाड़ी चलाता है और जिस दिन गाड़ी चलाने की इच्छा होगी उस दिन साड़ी न पहन कोई और ड्रैस पहन लेगी और क्या. पहले 1-2 दिन अटपटा लगेगा धीरेधीरे अभ्यास हो जाने पर एसयूवी उसी सहजता से चला पाएगी जैसे अभी सेडान या अन्य छोटी गाड़ी चलाती है.

तिरछी निगाहों से संदीप ने जूही के पूरे शरीर का मुआयना किया. कल्पना में वह उस के साथ की सैक्स क्रियाओं को याद करने लगा. काफी सहयोग करती थी जूही इस मामले में. 12 वर्षों के दांपत्य जीवन में शायद ही कोई मौका हो जब उस ने उसे मना किया हो. पर एक बात उसे खटकती थी कि पहल हमेशा उसे ही करनी पड़ती है. ऐसा कभी नहीं हुआ कि जूही ने पहल कर के उसे कभी किस भी किया हो. हां, उस की पहल के बाद वह पूरा सहयोग करती थी.

संदीप की शारीरिक आवश्यकता ऐसी थी कि उसे प्राय: हर दूसरे दिन सैक्स की इच्छा होती थी. अगर 2-4 दिनों का अंतर हो भी जाए तो चल सकता था. पर आज 1 सप्ताह हो गए था. न जाने क्यों उस की इच्छा होती थी कि जूही पहल करे. वह उस के शरीर पर चुंबन अंकित करे, उस के शरीर से लिपटे. पर जूही ऐसा नहीं करती थी और आज तो वह बिलकुल भी पहल करने के मूड में नहीं था.

सैक्स के बारे में सोच कर संदीप के शरीर में रोमांच हो आया. उस ने अपने शरीर में तनाव महसूस किया. तनाव तो वह 2-3 दिनों से महसूस कर रहा था. पर वह चाह रहा था कि जूही पहल करे. बीचबीच में जूही गृहस्थी की बातें कर रही थी. उसे लगा इस तरह की बातों से शायद संदीप की नाराजगी दूर हो जाएगी. पर अभी संदीप को इन बातों से खीज ही हो रही थी. अत: वह लेटा हुआ चुपचाप हांहूं कर रहा था.

मगर आज संदीप को ज्यादा देर इंतजार नहीं करना पड़ा. जूही ने उस के करीब आ कर पूछा, ‘‘नाराज हो?’’

संदीप कुछ नहीं बोला. जूही ने करवट बदल उस के चेहरे पर चुंबन अंकित कर दिया और बोली, ‘‘अरे बाबा एसयूवी ही ले लेना, नाराज क्यों हो रहे हो?’’

संदीप पिघल गया और खुद को रोक नहीं पाया. जब खुद को रोक नहीं पाया तो उस ने अपना हाथ जूही के शरीर पर रख दिया. जूही उस के करीब आ गई. उस ने जूही के गाल पर चुंबन अंकित कर दिया और बोला, ‘‘जो तुम कहोगी वही गाड़ी आएगी.’’

जूही भी उस के शरीर पर हाथ फेरने लगी. इस तरह संदीप 1 सप्ताह के बाद सैक्स का

आनंद मिला. आज जूही संदीप की नाराजगी को दूर करना चाहती थी. अत: सैक्सी बातें भी कर रही थी.

क्रिया समाप्त होते ही वह निढाल हो कर

सो गया. आज उस के मन से यह मलाल जाता रहा कि जूही कभी पहल क्यों नहीं करती. इस से वह समझ नहीं पाता था कि जूही की क्या आवश्यकता है. क्या उस का हर दूसरे दिन सैक्स करना उसे अच्छा नहीं लगता? क्या वह उस

का साथ सिर्फ इसलिए देती है कि वह उस का पति है.

दूसरे दिन जब वह औफिस पहुंचा तो उस के सहकर्मी, बल्कि सहकर्मी से ज्यादा

दोस्त अनूप ने टोका, ‘‘आज तो बड़े फ्रैश लग रहे हो. क्या बात है?’’

‘‘वही बात है और क्या. फुल सैटिसफैक्शन?’’ उस ने मुसकराते हुए अनूप

से कहा.

दोनों स्कूल और कालेज में साथ पढ़े थे, वर्षों की दोस्ती थी. अत: हर तरह की बातें

होती थीं.

‘‘आज पहली बार उधर से पहल हुई तो मजा आ गया,’’ संदीप की आवाज में बड़ा

उत्साह था.

‘‘क्या बात करते हो मेरे मामले में तो उधर से ही पहल होती है. मैं तो जल्दी सोने का अभ्यस्त हूं जबकि दीपा टीवी देख कर देर से सोती है. जब भी बिस्तर पर आती है मुझे जगाती है. अगर मैं जग गया तो गेम शुरू होता है. अगर नहीं जगा तो गेम कैंसल हो जाता है,’’ अनूप ने हंसते हुए कहा.

‘‘इस बारे में तो कल पहली बार खुल कर हम पतिपत्नी ने कल अपनी इच्छा और आवश्यकता के बारे में बातें कीं. इस के पहले ऐसा नहीं हुआ था. पहले तो मैं ही बोलता था,’’ संदीप ने कहा.

‘‘पर यह कमाल हुआ कैसे? तुम तो बताते थे कि भाभीजी इस मामले में बहुत शरमाती हैं?’’ अनूप ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा.

‘‘हां, इस बारे में कोई विशेष बात तो होती नहीं थी. कल गाड़ी लेने की बात को ले कर हम में अनबन हो गई थी. मैं बिलकुल एक ओर चुपचाप था. जूही ने शायद मुझे मनाने के लिए पहल की,’’ संदीप ने अनूप से एसयूवी और सेडान का चक्कर बताया.

‘‘यार, एसयूवी तो बड़ी यूजफुल निकाली तुम्हारे लिए,’’ अनूप ने ठहाका लगाते हुए कहा.

‘‘हां यार. पर अब घर आएगी सेडान ही,’’ संदीप ने कहा और अपने डैस्कटौप पर व्यस्त हो गया.

काम के बीचबीच में संदीप के मन में एक विचार कभीकभी कौंध जाता था कि घटनाएं भी अजीब मोड़ ले लेती हैं. एक घटना ने जूही के व्यवहार को बदल दिया जो उसे बड़ा अच्छा लगा.

Best Hindi Story

Fictional Story: एक इंच मुस्कान- कांति ने क्यों कहा दीपिका को शुक्रिया

Fictional Story: “अरे! कहाँ भागी जा रही हो?” दीपिका को तेज-तेज कदमों से जाते हुये देख पड़ोस में रहने वाली उसकी सहेली सलोनी उसे आवाज लगाते हुये बोली.

“मरने जा रही हूँ.” दीपिका ने बड़बड़ाते हुए जवाब दिया.

“अरे, वाह! मरने और इतना सज-धज कर. चल अच्छा है, आज यमदूतों का भी दिन अच्छा गुजरेगा.”सलोनी चुटकी लेते हुये बोली.

“मैं परेशान हूँ और तुझे मजाक सूझ रहा है.” दीपिका सलोनी को घूरते हुये बोली, ” अभी मैं ऑफिस के लिए लेट हो रही हूँ,तुझसे शाम को निपटूंगी.”

“अरे हुस्नआरा! इस बेचारी को भी आज करोलबाग की ओर जाना है, यदि महारानी को कोई ऐतराज न हो तो यह नाचीज उनके साथ चलना चाहती हैं.” सलोनी ने दीन-हीन होने का अभिनय करते हुए मासूमियत से जवाब दिया.

“चल! बड़ी आई औपचारिकता निभाने वाली.” सलोनी की पीठ पर हल्का सा धौल जमाते हुए दीपिका बोली,” एक तू ही तो है जो मेरा दुख दर्द समझती है.”

बातों-बातों मे दोनो पड़ोसन-कम-सहेलियाँ बस-स्टैण्ड पहुँच गयीं.कुछ ही देर मे करोल बाग वाली बस आ गयी.

एक तो ऑफिस टाईम, ऊपर से सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती हुई दिल्ली की आबादी. जिधर देखो भीड़ ही भीड़. खैर, धक्का-मुक्की के बीच दोनो सहेलियां बस मे सवार हो गयी.संयोग अच्छा था कि दो सीटों वाली एक लेडीज बर्थ खाली थी.

“थैंक गॉड! कुछ तो अच्छा हुआ!” कहते हुये दीपिका सलोनी का हाथ पकड़कर झट से उस खाली बर्थ पर लपककर विराजमान हो गयी.

सलोनी, ”कुछ तो अच्छा हुआ!अरे! ऐसा क्यों बोल रही हो?चल अब साफ-साफ बता क्या हुआ? और यह चाँद सा चेहरा आज सूजा हुआ क्यों है?”

दीपिका, “अरे! क्या बताऊँ? घर मे किसी को मेरी तनिक भी परवाह नही है. मै सिर्फ पैसा कमाने की मशीन और सबकी सेवा करने वाली नौकरानी हूँ.”

“अरे! इतना गुस्सा! क्या हो गया?” सलोनी उसे प्यार से अपने से चिपकाते हुए बोली.

“आज सुबह मै थोड़ी ज्यादा देर तक क्या सो गयी, घर का पूरा माहौल ही बिगड़ गया. देर हो जाने के कारण भागम-भाग में ऑफिस जाने के लिये नहाने जाने के पहले मैं इनके लिए कपड़ा निकालना भूल गयी तो महाशय तौलिया लपेटे तब तक बैठे रहे,जब तक मैं बाथरूम से निकल नहीं आई और इस भाग-दौड़ के बीच इतनी मुश्किल से जो नाश्ता बनाया उसे भी बिना किये यह कहते हुए ऑफिस चले गये कि आज शर्ट-पैन्ट निकला न होने के कारण तैयार होने में देरी हो गयी.इधर साहबजादे तरुण को आलू-गोभी की सब्जी नाश्ते मे दिया तो मुँह फुलाकर बैठ गये कि रोज-रोज एक ही तरह की सब्जी खाते-खाते बोर हो गया हूँ, मशरुम क्यों नही बनाया? उधर बिटिया रानी की रोज यही शिकायत रहती है कि आप रोज एक ही तरह की बहन जी स्टाईल की चोटी करती हो. मेरी फ्रेन्ड्स की मम्मियाँ रोज नये-नये स्टाईल में उनकी हेयर डिजाईन करती हैं. बस सबको अपनी-अपनी पड़ी रहती है. कोई यह नहीं पूछता कि मैने नाश्ता किया या नहीं?टिफिन में क्या ले जा रही हूँ? मेरी ड्रेस कैसी है?  कहीं मुझे लेट तो नहीं हो रहा है? सबको बस अपनी अपनी चिंता है.”यह कहते-कहते उसकी आँखों मे आँसू भर गये.

“अरे परेशान मत हो, मेरी ब्यूटी क्वीन!अव्वल तू खुद इतनी सुन्दर है कि कुछ भी पहन ले तो भी हीरोइन ही लगेगी और घर के जो सारे लोग तुझसे फरमाइशें करते हैं, उसकी वजह उनका तुझसे लगाव है, वे तुझपर भरोसा करते हैं.” सलोनी उसे प्यार से समझाते हुए बोली.

“बस-बस रहने दो. मै सब समझती हूँ. यह सब कहने की बात है. यहाँ मेरी जान भी जा रही होगी न तो किसी न किसी को जरूर मुझसे कोई काम पड़ा होगा.” दीपिका का उबाल कम होने का नाम नहीं ले रहा था.

इसी बीच अगले स्टॉप पर बस के रूकते ही उसके ऑफिस मे डेली वेज पर काम करने वाली प्यून कांति किसी तरह जगह बनाते हुए भी उसमे दाखिल हो गयी. लेडीज सीट की ओर पहुँचकर बस के हैंगिंग हुक को पकड़कर वह खड़ी हो गयी. अभी वह आँचल से अपना पसीना पोंछ रही थी कि दीपिका ने पूछा, “अरे! कांति कैसी हो?”

दीपिका की आवाज सुनकर कांति चौंक कर उसकी ओर मुड़ते हुये बोली, “अरे मैडम! आप भी इसी बस मे! नमस्ते.” दीपिका को देखकर उसके चेहरे पर सदैव छाई रहने वाली मुस्कान कुछ और खिल आई थी.

दीपिका,” नमस्ते!तुम तो रोज नौ बजे दफ्तर पहुँच जाती हो, आज लेट कैसे?”

कांति,” मैडम! दरअसल आज से बेटे की दसवीं की बोर्ड परीक्षा शुरु हुयी है. वह जिद कर रहा था कि सबके मम्मी-पापा उन्हें छोड़ने एक्जाम सेन्टर पर आयेगें.आप भी मेरे साथ चलिए. वह इतने लाड़ से बोल रहा था कि मैं उसे मना नहीं कर पाई. उसे पहुंचाने चली गयी इसलिये थोड़ी देर हो गयी,सॉरी.”

दीपिका,” अरे! कोई बात नहीं. मैं तो बस ऐसे ही पूछ रही थी लेकिन एक बात बताओ,तुम्हारे पति भी तो बेटे के साथ जा सकते थे, न?” अभी कांति कोई जवाब दे पाती कि वह सलोनी की ओर मुड़ते हुए बोली, “देखो, हर घर की यही कहानी है, औरत घर का भी काम करे और बाहर भी मरे और पति एक भी काम एक्स्ट्रा नही कर सकते, क्योंकि वो मर्द है.”

“नहीं, मैडम!ऐसी बात नही है.” अभी कांति आगे कुछ और बोल पाती कि दीपिका ने कहा, ” अब पति की  तरफदारी करना छोड़ो. पति को हमेशा परमेश्वर, पूजनीय और उनकी ज्यादतियों पर पर्दा डालने का ही यह नतीजा है कि उनकी मनमानी बढ़ती जा रही है.” वह बिफरने सी लगी थी.

“नही. मैडम, मै उन्हें बचा नही रही हूँ. दरअसल पिछले साल ऑटो चलाते समय उनका बुरी तरह एक्सीडेन्ट हो गया था, जिसमे उनका दाहिना हिस्सा बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया. इसलिये बाहर के काम मे उन्हें दिक्कत होती है. किन्तु, वे घरेलू कार्य मे मेरा पूरा सहयोग करते हैं और मुझे अपने परिवार के लिये कुछ भी करना बहुत अच्छा लगता है.”

कांति की बात से विस्मित दीपिका एकदम सन्नाटे मे आ गयी. दिव्यांग और बेरोजगार पति, छोटी सी तनख्वाह मे पूरे परिवार का गुजारा करने वाली कांति क्या उससे कम चुनौतियों का सामना कर रही है लेकिन एक इंच की मुस्कान लिये घर और बाहर दोनो जगह का काम कितनी हँसी-खुशी संभाल रही है.

इधर कांति बोले जा रही थी, “मैडम! बच्चे और पति जब अपनी इच्छा और परेशानी मेरे सामने रखते हैं, तो मुझे लगता है कि मै इस घर की धुरी हूँ.उनका मुझसे कुछ अपेक्षा रखना मुझे मेरे होने का अहसास कराता रहता है.”

कांति की सहज बातों ने अनजाने में ही दीपिका के अंदर धधक रही क्षोभ और गुस्से की अग्नि-ज्वालाओं को मीठी फुहार से बुझा दिया. सच में कांति ने कितनी आसानी से उसे समझा दिया था कि पति और बच्चों की फरमाईशें और उनका उस पर निर्भर होना उसे परेशान करना नही, बल्कि उनसे जुड़े रहने की निशानी है. एक क्षण के लिए उसने कल्पना कर यह देखा कि पति और बच्चे अपना-अपना काम करने में व्यस्त हैं. कोई अपनी डिमांड पूरी करने के लिए न तो उसकी चिरौरी कर रहा है और न ही कोई तुनक कर मुंह फुलाये बैठा है. अभी कुछ क्षण पहले तक इन्हीं फरमाइशों से बुरी तरह खीझी हुयी दीपिका का ने दिल इस कल्पना से ही घबरा उठा. वह स्वयं से दृढ़ता पूर्वक बोली,”लेट्स हैव ए न्यू बिगिनिंग.”

पश्चाताप की बूंदे गुस्से और खीझ से उपजे उसकी आँखों के सूखेपन को तर कर रही थी. तभी उसके मोबाईल फोन की रिंगटोन बजी. देखा, तो पति अश्विन की कॉल थी. उसके हलो कहते ही वे बोले, “दीपू! आज सुबह सोते समय तुम बिल्कुल इन्द्रलोक की परी लग रही थी. तुम्हे नींद से जगाकर मैं यह मौका खोना नही चाहता था.”

अश्विन की बातें सुनकर इस भीड़ भरी बस मे भी उसके गाल शर्म से गुलाबी हो उठे. वह धीरे से बोली, “बस-बस ठीक है. शाम को समय से घर आ जाना. आज मैं आपके पसन्द के केले के कोफ्ते और लच्छा पराठा बनाऊंगी और तरुण के लिये मशरुम. बाय.”

अश्विन,” बाय स्वीटहार्ट.” फोन रखते ही उसने सोनल के साथ मिलकर दो सीट वाली बर्थ पर थोड़ी सी जगह बनायी और कांति का हाथ पकड़ उसे सीट पर बैठाते हुए बोली, “आओ! कांति बैठो, तुम भी खड़े-खड़े थक गयी होगी. हम साथ-साथ चलेंगे.” कांति पहले थोड़ा हिचकी,लेकिन दीपिका के आत्मीय निमंत्रण से उसका संकोच भीगकर बह निकला.

कांति,”थैंक्स दी. आपका परिवार बहुत लकी है.”

दीपिका,”धन्यवाद,पर भला,वो क्यों?”

कांति,”जब आप बाहरी लोगों का इतना ध्यान रखती हैं तो आपके घरवालों को तो किसी बात की चिंता करने की कोई जरूरत ही नहीं पड़ती होगी.”

कांति की हथेली को धीमे से दबाकर उसे मौन धन्यवाद देते हुए वह खुद से बोली,” थैंक्स,कांति. मेरे संसार में मुझे अपने वजूद का अहसास कराने के लिए.” दीपिका के चेहरे पर भी अब कांति की तरह एक इंच की सच्ची वाली मुस्कान खिल आई थी. उसे मुस्कराते देख सलोनी बोली,” अब लग रही हो न सच्ची ब्यूटी क्वीन.” दुनिया से बेखबर बस की इस लेडीज बर्थ पर एक साथ तीन मुस्कान खिल आई. इधर अच्छी और चिकनी सड़क पाकर बस की रफ्तार भी तेज हो गयी थी.

Fictional Story

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