साधारण औरतों की कौन सुनेगा

‘मीटू’ कैंपेन का एक दुखद पक्ष यह है कि इस में चर्चा केवल जानेमाने नामों की हो रही है. सैकड़ों नहीं हजारों या फिर लाखों ऐसी लड़कियां होंगी जो जवानी में पुरुषों की ज्यादतियों की शिकार हुई होंगी पर अब सालों गुजर जाने के बाद, अपने घर में सुरक्षा होने के बावजूद वे रिस्क नहीं ले सकतीं कि अपने साथ हुए जुर्म की पोलपट्टी खोल सकें.

‘मीटू’ का लाभ उन्हीं को मिल रहा है जो दुनिया में अपना आजाद स्थान बना सकी हैं और अगर अपने पति और बच्चे हैं तो उन की टेढ़ी निगाहों का सामना कर सकती हैं. आम घरों की या साधारण पदों पर काम करने वाली औरतों के बस का यह जोखिम लेना नहीं है, क्योंकि न तो सोशल मीडिया उन का साथ देगा और न ही पुलिस कोई सुरक्षा देगी.

एक युवा होती लड़की किसकिस तरह का आतंक सहने को मजबूर हो सकती है, यह तो खुद भुक्तभोगी ही जानती है. उसे न तब कहने का अधिकार होता है जब वह अबोध, कमजोर या आश्रित हो और न तब जब वह पूरे घर की मालकिन, पति व बच्चों के साथ हो. समाज ने सक्षम व चर्चित लोगों को तो रिस्क लेने का अवसर भी दे दिया है और उन की बातों को सहजता से लेना भी स्वीकारना शुरू कर दिया है पर साधारण औरतों को यह छूट कहां है?

‘मीटू’ आंदोलन तब तक अधूरा और बिना धारदार चाकू ही रहेगा जब तक यह शक्ति हरेक के पास न हो ताकि हर पुरुष तब भी लिबर्टी न ले जब युवती साधारण और कमजोर है.

अब ‘मीटू’ केवल कुछ के लिए ही न्याय की आस पाने का साधन बना है पर यह औरतों की पूरी जमात को कोई सुरक्षा दे पाएगा, इस में संदेह है. अमेरिका में भी अब तक ‘मीटू’ के आरोपी मजे में हैं.

दशकों पहले हुए अपराधों को अदालतों में साबित करना कठिन रहेगा और संबंध सैक्स के या सैक्स से थोड़े कम के सहमति से नहीं बने थे यह कभी साबित न हो पाएगा.

जैसे पुरुषों को यह डर नहीं होता कि उन्हें सिर्फ कमजोर मान कर कोई लूटेगा नहीं और अगर लूटने का प्रयास किया तो वे तभी कानून की सहायता ले सकते हैं. यही हक समाज को औरतों को देना होगा. कौमार्य, संस्कृति, सम्मान, शालीनता के झूठे नारों से औरतों को बचाना होगा. ये समाज को सुव्यवस्थित नहीं रखते, औरतों की जबान बंद रखते हैं.

 

अब तो डरना जरूरी है

देश के शहरों में बढ़ता प्रदूषण घरों के लिए बड़ी आफत बन रहा है. बाहर व घर के कामों के बोझ से पहले से ही दबी औरतों को प्रदूषण के कारण पैदा होने वाली बीमारियों व गंद दोनों से जूझना पड़ रहा है.

दिल्ली जैसे शहर में अब कपड़े सुखाना तक मुश्किल हो गया है, क्योंकि चमकती धूप दुर्लभ हो गई है और साल के कुछ दिनों तक ही रह गई है.

इस का मतलब है कि गीले कपड़े सीले रह जाते हैं और बीमारियां व बदबू पैदा करते हैं. घरों के फर्श मैले हो रहे हैं, परदों के रंग फीके पड़ रहे हैं, घरों के बाग मुरझा रहे हैं और फूल हो ही नहीं रहे.

प्रदूषण के कारण अस्पतालों और डाक्टरों के चक्कर लग रहे हैं. जीवन में से हंसी लुप्त हो रही है क्योंकि हर समय उदासी भरी उमस छाई रहती है, जो मानसिक बीमारियों को भी जन्म दे रही है.

छोटे घरों में अब और कठिनाइयां होने लगी हैं क्योंकि बाहर निकल कर साफ हवा में सांस लेना असंभव हो गया है और घर के अंदर धूप न होने की वजह से हर समय एक बदबू सी छाई रहती है.

सरकारें हमेशा की तरह आखिरी समय पर जागती हैं, जब दुश्मन दरवाजे पर आ खड़ा हो. दुनिया के बहुत शहरों ने प्रदूषण का मुकाबला किया है और इस के उदाहरण भी मौजूद हैं.

यह दुनिया में पहली बार नहीं हो रहा है पर हमारी सरकारें तो केवल आज की और अब की चिंता करती हैं. बाबूओं और नेताओं को तो अपना पैसा बनाने और जनता को चूसने की लगी रहती है. उन्हें प्रदूषण जैसी फालतू चीज से कोई मतलब नहीं है.

दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों को प्रदूषण से आजादी दिलाना कोई असंभव काम नहीं है. जरूरत सिर्फ थोड़ी समझदारी की है.

जनता पहले लगे नियंत्रणों पर चाहे चूंचूं करे पर उसे जल्दी ही लाभ समझ आ जाता है.

मुंबई के मुकाबले दिल्ली में हौर्न कम बजते हैं तो इसलिए कि यहां के लोगों को समझ आ गई है कि ट्रैफिक है तो हौर्न से तो कम नहीं होगा. छोटे शहरों में हर वाहन पींपीं करता रहता है क्योंकि इस में ईंधन न के बराबर लगता है.

प्रदूषण से बचाने के लिए जो तरीके अपनाए जाएंगे उन का तुरंत फायदा तो उसी को मिलेगा जो अपना रहा है. लोगों ने चूल्हों की जगह गैस इस्तेमाल की और धुंआ कम हो गया. क्या कानून बनाना पड़ा? नहीं, सुविधा जो थी.

अब सरकार का तो इतना काम है कि प्रदूषण से बचने के लिए शहरी इलाकों में से अपने दफ्तर हटा कर वहां बाग बना दे. उस के दफ्तर तो 50-60 मील दूर जा सकते हैं. पर वह तो पेड़ों से भरे इलाकों में सरकारी कर्मचारियों के लिए दड़बेनुमा मकान बनाना चाहती है जहां न कोई पेड़ बचा रहे न नया लग पाए.

सरकार कारखानों को बंद करा रही है पर न छूट दे रही है न सहायता. यदि पैसे नहीं दे सकते तो 5-7 साल के लिए टैक्स ही हटा दे, लोग खुद फैक्ट्री खाली कर देंगे और वहां घर बना देंगे. सरकार सोचती है कि जनता को प्रदूषण की चिंता ही नहीं है.

सड़कों पर वाहन कम करने के लिए सरकार ऊंची बिल्डिंगें बनने दे. उन पर आनाकानी न करे. पर छूट एक हाथ से दे कर दूसरे से न ले. अगर ऊपर घर व नीचे दफ्तर, दुकानें होंगी तो लोग बिना वाहन के रह सकेंगे.

लोग खुद अपने घरों और बच्चों की सेहत के लिए ऐसी जगह रहना चाहेंगे जहां कम प्रदूषण हो. पर जब तक सरकारी सांप, अजगर, सांड खुले फिरते रहेंगे तो भूल जाइए कि कुछ होगा.

मैं हार मानकर आत्महत्या करने वाली लड़की नहीं : तनुश्री दत्ता

वर्ष 2004 में मिस इंडिया यूनिवर्स का खिताब जीतकर मौडलिंग और फिल्मों में काम करने वाली अभिनेत्री तनुश्री दत्ता झारखंड के जमशेदपुर की हैं. हिंदी फिल्म ‘आशिक बनाया आपने’ उनकी पहली फिल्म थी. इसके बाद उन्होंने कई फिल्मों जैसे चौकलेट, भागम-भाग, ढोल, रिस्क, गुड बौय बैड बौय आदि फिल्मों में काम किया. उनकी आखिरी फिल्म ‘अपार्टमेंट’ थी. हिंदी फिल्मों के अलावा उन्होंने तमिल और तेलगू फिल्मों में भी काम किया है.

तनुश्री एक बेहद साहसी लड़की हैं और हर बात को सामने खुलकर कहती हैं. साल 2008 में फिल्म ‘हौर्न ओके प्लीज’ के दौरान उन्होंने नाना पाटेकर के खिलाफ आवाज उठाई थी, क्योंकि नाना पाटेकर का गलत तरीके से छूना और फिल्म में इंटिमेट सीन्स की मांग करना, उन्हें खराब लगा था और वह फिल्म को बीच में छोड़कर अमेरिका चली गयी थी, क्योंकि उनकी बात को न सुना जाना उनके लिए डिप्रेशन का कारण बना था.

‘मीटू मूवमेंट’ में उन्होंने अपनी बात एक बार फिर से सबके सामने रखी. जिसे लेकर बहुत हंगामा हुआ. कई और हेरेसमेंट की घटनाएं भी सामने आई. नाना पाटेकर भी मीडिया के सामने आये, पर बिना कुछ कहे ही वापस चले गए. अभी कार्यवाही कोर्ट के अधीन है और तनुश्री उस फैसले को सुनने के लिए तैयार हैं.

पिछले दिनों जब उनसे मिलना हुआ, तो वह शांत,सौम्य और धैर्यवान दिखीं. उनकी हर बात में विश्वास झलक रहा था और वह ऐसे किसी भी अपराध करने वाले को माफ न करने की इच्छा जाहिर कर रही थी. पेश हैं कुछ अंश.

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प्र. फिल्म इंडस्ट्री में अच्छी तरह सामंजस्य स्थापित करने के बाद आप विदेश क्यों चली गयी और वहां क्या कर रही है?

‘हौर्न ओके प्लीज’ फिल्म की इस घटना ने मुझे हिलाकर रख दिया था. अभिनेता नाना पाटेकर, निर्माता समीर सिद्दीकी, निर्देशक राकेश सारंग और कोरियोग्राफर गणेश आचार्य इन चारों ने मिलकर मुझे परेशान किया था. इसके बाद मेरी इच्छा बौलीवुड में काम करने की नहीं थी. मैंने कुछ फिल्में जो साइन की थी, उसे पूरा किया और कुछ नई फिल्में भी साइन की थी और एक साल का ब्रेक लिया भी था, पर उन्हें करने की इच्छा बाद में नहीं हुई. हालांकि मैं उस समय अभिनय अच्छा कर रही थी.

अच्छी फिल्में भी मेरे पास आ रही थी. मैंने फिल्मों का चयन भी सीख लिया था, लेकिन इस घटना से मैं डर गयी थी. मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि मेरे साथ ऐसा कुछ हो सकता है. हेरेसमेंट के अलावा महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के गुंडे बुलाकर मेरी गाड़ी भी तुड़वा दी. उससे मुझे बहुत धक्का लगा, क्योंकि मेरे साथ मेरे माता-पिता भी थे. वे मुझे उस माहौल से निकालने के लिए आये थे. इसके बाद मुझे इस माहौल में रहना नहीं था और मैं निकल गयी.

फिल्मों और टीवी के औफर्स अभी भी विदेश में आते हैं, यहां आने पर भी एक बड़े टीवी फिक्शन का औफर आया. मैंने मना किया. विदेश में भी मैं काम कर रही हूं, इवेंट्स करना, किसी ब्रांड के साथ जुड़ना आदि कई काम चल रहे हैं.

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प्र. आज से 10 साल पहले जब ये सारी बातें कही गयी थी, तो उसे न सुनने की वजह क्या थी?

उस समय मैंने पूरे साहस के साथ सारी बातें कही थी. टीवी पर कई दिनों तक मेरी इंटरव्यू चलती रही. उस समय मेरी उम्र कम थी, जोश बहुत था, लेकिन मीडिया और लोग बहुत अलग थे. सोशल मीडिया इतनी ताकतवर नहीं थी. लोगों में जागरुकता कम थी. हेरेसमेंट को लोग सीरियसली लेते नहीं थे. उनका कहना था कि हां तो ठीक है, थोडा परेशान कर दिया, रेप तो नहीं किया? भूल जाओ.

असल में जब से औरतों ने काम करना शुरू किया है, तब से लेकर आज तक महिलाएं घर हो या बाहर किसी न किसी रूप में प्रताड़ित की जाती रही हैं. लड़कियों को ही समझाया जाता रहा है कि इस बारे में वे बात न करें और अगर औफिस में किसी ने कुछ शिकायत इस बारे में की, तो उस लड़की की नौकरी ही चली जाती थी. ये हर क्षेत्र में हुआ है. तब लड़कियां शर्म के मारे बात नहीं कर पाती थी. मैंने उस समय भी यही बात कही थी कि शर्म उसे आनी चाहिए, जो प्रताड़ित कर रहा है. जिसके साथ गलत हुआ है, उसे शर्मसार होने की जरुरत नहीं.

समाज में औरतों को ये शिक्षा आदि काल से दी जाती रही है, उन्हें ही शर्म का चोला पहना दिया जाता है. मर्दों को ऐसी शिक्षा क्यों नहीं दी जाती? देखा जाये तो शर्म और हया व्यक्ति की आंखों और दिमाग में होती है, कोई कपड़ों या आचरण में नहीं होती. बहुत से लोगों ने तो इसे धर्म से भी जोड़ दिया. धर्म और कपड़ों को एक साथ जोड़ने के लिए किसने कहा है? ये किसी को पता नहीं. किसी व्यक्ति की विचारधारा ही उसे शैतान बनाती है, उसके कपड़े नहीं.

हमारे देश में इतने सारे धर्म हैं, जो इस बात का ध्यान नहीं रखते है कि कोई व्यक्ति अपने शरीर को साफ सुथरा और स्वस्थ कैसे रखें. उनका ध्यान सिर्फ महिलाओं के कपड़ों पर होता है. आज लोग बौडी सेंट्रिक हो चुके हैं. साधू–संत वे कहे जाते हैं, जिन्होंने अपने शरीर को ढककर रखा है, पर क्या वे वाकई संत हैं? इस पर विचार करने की जरुरत है.

इसके अलावा अगर किसी हीरोइन ने छोटे कपड़े पहनकर फोटो खिंचवाई या एक्टिंग की है, तो लोग उसे भला-बुरा कहने से परहेज नहीं करते और ऐसे कलाकार के साथ अगर कुछ बुरा हुआ और वह कितना भी कहना चाहे, लोग उसकी सुनते नहीं, उन्हें लगता है कि ये तो ऐसी ही है, अगर किसी ने कुछ किया भी हो, तो कोई गलत नहीं किया. उस कलाकार की इज्जत की धज्जियां उड़ा देते हैं. आज के जमाने में ये सोच कैसी है? इसे कैसे कम किया जा सकेगा?

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प्र. ‘मीटू कैम्पेन’ का शुरुआती दौर बहुत मजबूत था, लेकिन अब ये कुछ धीमा पड़ने लगा है, क्या आपको नहीं लगता कि इसे अंजाम तक पहुंचने की जरुरत है?

इसका अंजाम हो चुका है, क्योंकि लोगों में जागरुकता बढ़ी है, जो मैं चाहती थी. पहले ये सारी बातें यूं ही बातों- बातों में कही गयी थी. अब ये एक अभियान बन चुका है. मुझे जो कहना था वह मैंने कह दिया है. ये कोई फिल्म नहीं जिसका प्रमोशन हो रहा है और बाद में लोग हौल में जाकर इसे देखेंगे. पहले भी मैंने अपनी बातें कहने की कोशिश की थी, लेकिन अब अधिक सुनी गयी और इसकी वजह लोगों में जागरुकता बढ़ने से है.

पश्चिम में भी इस अभियान में औरतों ने भाग लेना शुरू कर दिया है और ये जरुरी है, क्योंकि आने वाले समय में और भी औरतें बाहर निकलकर काम करेंगी. ऐसे में उनके चरित्र को हमेशा संदेह की नजर से ही देखा जायेगा, क्योंकि लोगों की मानसिकता है कि औरतों को घर में रहकर, घूंघट डालकर नीची आवाज में सबकी सेवा करनी चाहिए. कई ऐसे परिवार हैं, जो भले ही ऊपर से आधुनिक दिखते हों, पर अंदर से उनकी मानसिकता वैसी ही पारंपरिक है. उसे बदलने की जरुरत है. महंगाई के इस दौर में महिलाओं को आगे आकर घर और बाहर दोनों को संभालना जरुरी हो गया है. इसकी वजह आज की तकनीक भी है. यही वजह है कि आज हर क्षेत्र में महिलाएं हैं और इन्हें परेशान करने वाला इंसान विकृत मानसिकता वाले पुरुष ही हैं.

प्र. क्या इस मुहिम से पुरुषों की मानसिकता में कुछ बदलाव आयेगा?

आना तो चाहिए, क्योंकि महिलाओं को सम्मान देने की काफी बातें धर्म ग्रंथों में कही गयी हैं. जिसे कोई नहीं सुनता. जब सीधी ऊंगली से घी नहीं निकलता है, तो ऊंगली टेढ़ी करनी ही पड़ती है. अगर मुझे पता होता कि इतनी परेशानी और लांछन इतने सालों बाद भी झेलने पड़ेगें, तो शायद मैं इस चक्कर में नहीं पड़ती, लेकिन मैं खुश हूं कि मेरे कहने के बाद कई महिलाओं ने अपनी बात कहने की हिम्मत जुटाई. मैं इस मुहिम का जरिया भले ही बनी हूं, पर अब माहौल अवश्य बदलेगा, क्योंकि जो लोग ऐसी गलतियां कर अपने आप को छुपा रहे हैं और प्रताड़ित महिला कुछ कहने से डर रही है, वह अब कम अवश्य होगा. गलती करने वाले को गलती का एहसास न होकर बढ़ावा मिलना भी बंद हो जायेगा.

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प्र. क्या ‘मी टू’ अभियान का गलत फायदा कोई महिला नहीं उठा सकती? आपकी सोच इस बारे में क्या है?

अभी तक तो किसी ने गलत फायदा उठाया नहीं है. इतनी सोच और समझ सभी में है कि कौन सच्चा और कौन झूठा है, इसका पता सबको चल जाता है. ऐसा अगर हम सोचने लगेंगे, तो कभी भी किसी की सच्चाई को समझना बंद कर देंगे. अब ये समय आ चुका है कि हम किसी की सच्चाई को संदेह की नजरों से देखना बंद करें. आज जैसी समस्या सच कहने पर आई है, कोई भी ऐसी परेशानी से गुजरना नहीं चाहता.

प्र. अभी तक आपकी लड़ाई कहां तक पहुंची है?

नाना पाटेकर की तरफ से लीगल नोटिस भेजा गया था, जिसका जवाब मेरे वकील दे रहे हैं. ये डराने और चुप कराने का एक तरीका होता है, लेकिन मुझे भी तो आप लोगों ने ही बनाया है. देखा जाए तो सारे अपराधी और पारदर्शी लोगों को समाज ने ही बनाया है. दोनों में अंतर ये होता है कि एक अंधकार को चुनता है, तो दूसरा रौशनी को.

प्र. बौलीवुड में काम करने के दौरान आपकी यात्रा कैसी थी?

मुझे याद आता है जब मैंने बौलीवुड में एंट्री की थी, मुझे इस क्षेत्र के बारे में पता नहीं था, मैं मासूम थी. मेरे माता-पिता ने एक आरामदायक और सहज जिंदगी दी थी. मैंने यहां पर कई ग्लैमरस भूमिका भी की थी, जिससे कई बातें मेरे ड्रेस मेरे अभिनय को लेकर सुनने को मिली, पर मैंने ध्यान नहीं दिया और काम करती गयी, क्योंकि मुझे अभिनय और डांस करने में मजा आता था. मुझे स्टारडम भी मिला था. मुझे अफसोस है कि स्टार बनने के बावजूद किसी ने तब मेरी बात को सीरियसली नहीं लिया. आज मैं जो हूं ये समाज की देन है. मैं हार मानने या दुखी होकर आत्महत्या करने वाली लड़कियों में से नहीं हूं. मुझे कई बार इन सब चीजों से डिप्रेशन हुआ, पर मैं टूटी नहीं.

प्र. क्या आउटसाइडर होने से आपको इंडस्ट्री में एडजस्ट करने में परेशानी आई?

ऐसा नहीं है, कई आउटसाइडर भी अच्छा काम कर रहे हैं. इंडस्ट्री ऐसी है कि यहां कभी भी कुछ भी हो सकता है, जैसे आप में प्रतिभा होने के बावजूद फिल्म किसी और को मिल जाती है. इसकी वजह पता करना मुश्किल होता है. हो सकता है कि मेरा स्वभाव इसके लिए जिम्मेदार हो. मैं जैसी पर्दे पर दिखती हूं, वैसी बिल्कुल भी नहीं हूं. मैं अन्तर्मुखी हूं. कई बार ऐसा लगता था कि मेरा व्यक्तित्व इंडस्ट्री के साथ मैच नहीं करता. जबकि मैं डांस, अभिनय और गाना सब अच्छा जानती हूं. इसके अलावा मैं बहुत महत्वाकांक्षी भी नहीं हूं.

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प्र. इस दौरान परिवार ने कैसे सहयोग दिया?

मेरे माता-पिता बहुत परेशान थे, क्योंकि पहले भी जब मैंने कहने की कोशिश की थी तो किसी ने सुना नहीं था. मेरे माता-पिता खुश थे कि मैं अमेरिका चली गयी हूं, उन्होंने मुझे तनाव में देखा है और नहीं चाहते थे कि मैं फिर से इसमें जुड़ जाऊं. मैं यहां छुट्टियां बिताने आई थी. यहां पर अपने उतार-चढ़ाव के बारे में मैंने थोड़े इंटरव्यू दिए थे, जिसके द्वारा मैं मानसिक तनाव को ठीक करना चाहती थी और हो भी रहा था. ऐसे में ऐसी घटना हुई. पहले तो वे परेशान हुए, पर इस मुहीम को देखकर वे खुश है.

प्र. आपकी बहन भी इस क्षेत्र से जुड़ गयी है, उन्हें क्या सलाह देती है?

अपनी बात मैं उस पर नहीं थोपती. मैं उससे कहती हूं कि अधिक अपेक्षा इंडस्ट्री से मत रखना, जो सही लगे, वही काम करने की कोशिश करो. प्रतिभा है, तो आगे बढ़ोगे, ऐसा इस इंडस्ट्री में नहीं है. यहां अधिकतर लोग भ्रष्ट हैं. अच्छे लोग कम हैं. वह टीवी भी करती है और अच्छा कर रही है. शादी भी उसने अपने पसंद से कर ली है. मुझे दुःख है कि मेरी कोई बड़ी बहन नहीं है, जिसका लाभ मुझे मिल सकता था.

प्र. गृहशोभा की महिलाओं को क्या संदेश देना चाहती है?

अगर आपके जीवन में कुछ बुरा हुआ है, तो उससे बाहर निकलकर कहने की जरुरत है. इसके अलावा महिलाएं काम के साथ-साथ अपने लिए समय निकालें और अपने आप की देखभाल अवश्य करें.

बढ़ाएं मैनीक्योर की उम्र

अगर मैनीक्योर कराने के कुछ समय बाद ही आपके हाथ व नाखून की चमक चली जाती है तो अब परेशान होने की जरूरत नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि आज इस लेख में हम कुछ ऐसे टिप्स दे रहे हैं जिनकी मदद से आप अपने मैनीक्योर की उम्र को थोड़ा बढ़ा सकती हैं.

विनेगर का करें इस्तेमाल

ये सलाह दी जाती है कि बेस कोट लगाने से पहले आप विनेगर से एक बार नाखूनों को वाइप कर लें. आप ईयरबड्स की मदद से नाखूनों पर इसे लगा सकती हैं. विनेगर नेचुरल आयल को हटाने में मदद करता है जिससे नेल पेंट लंबे वक्त तक रह पाता है. नाखूनों पर लगा विनेगर जैसे ही सूख जाए आप बेस कोट लगा सकती हैं.

पानी के सम्पर्क में आने से बचें

अपने नाखूनों पर नेल पेंट लगाने से पहले कोशिश करें जितना हो सके आप पानी के सम्पर्क में कम ही आएं. नाखूनों में पानी लग जाने के बाद उन पर नेल पेंट्स का टिक पाना थोड़ा मुश्किल हो जाता है. जब नाखून डीहाईड्रेटेड हो जाते हैं तो वो सिकुड़ने लगते हैं और इसकी वजह से नेल पेंट नाखूनों पर सही से नहीं लग पाता है.

नेल पालिश की शीशी को अच्छे से रोल करें

अगर आपकी नेल पेंट काफी समय से ऐसे ही रखी हुई थी तो आप उसे इस्तेमाल से पहले अच्छे से रोल करें ताकि उसका फार्मूला सही ढंग से आपस में मिक्स हो जाए. ज्यादातर महिलाएं नेल पेंट की शीशी को ऊपर से नीचे की तरफ हिलाती हैं जिसकी वजह से उसमें हवा के कारण छोटे बबल बन जाते हैं. एक अच्छे मैनीक्योर के लिए बुलबुले वाला नेल पेंट ठीक नहीं होता है.

ठंडी हवा में सुखाएं नेल पेंट

गर्म हवा में नेलपेंट नहीं सूख पाता है बल्कि ये इसके टेक्सचर को खराब कर देता है. अपने नेल पेंट को सूखाने के लिए नेचुरल तरीके से ठंडी हवा में रहने दें. इसके अलावा आप ब्लो ड्रायर का इस्तेमाल कर सकती हैं, बस इसकी सेटिंग कोल्ड एयर पर कर दें. नेल पेंट सूखाने के लिए आप एक और तरीका अपना सकती हैं, आप अपनी उंगलियों को बर्फ वाले पानी में दो से तीन मिनट के लिए रख दें.

जरीन खान ने मैनेजर के खिलाफ दर्ज कराई FIR, गंदे मैसेज भेजने के लगाए आरोप

बौलीवुड के सुपरस्‍टार सलमान खान के साथ अपने करियर की शुरुआत करने वाली अभिनेत्री जरीन खान ने अपनी पूर्व मैनेजर अंजली अथ के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है. रिपोर्ट के मुताबिक अंजली अथ ने रुपयों के विवाद को लेकर जरीन के साथ बदसलूकी की, फोन पर गंदे मैसेज भेजे और धमकियां भी दी. जिसके चलते अभिनेत्री ने अपने वकील के साथ गुरुवार शाम खार पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज करवाया है.

खबरों के मुताबिक, आरोपी मैनेजर 3-4 महीने जरीन के साथ काम कर चुकी हैं. विवाद के दौरान दोनों के बीच मैसेजेस से बातचीत हुई. अभिनेत्री का कहना है कि उनकी एक्स मैनेजर ने न सिर्फ उन्हें गंदे मैसेज किए बल्कि जान से मारने की धमकी भी दी. हालांकि पुलिस के सूत्रों के मुताबिक, एक्‍ट्रेस जरीन खान के दिए हुए सारे सबूतों के बारे में अभी तक पता नही लग पाया है. मामला आईपीसी की धारा 509 के तहत दर्ज किया गया है. पुलिस मामले की छानबीन कर रही है.

जरीन खान की आखिरी फिल्म ‘अक्सर 2’ रिलीज हुई थी. जरीन अपनी फिल्म की प्रमोश्नल एक्टिविटीज के दौरान चर्चा में आ गई थीं. अनंत महादेवन के निर्देशन में बनी फिल्म ‘अक्सर 2’ बौक्स औफिस में कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाई.

फिल्म के ओपनिंग वीकेंड के बाद से ही खबरें आने लगी थीं कि अक्सर 2 के प्रमोशन के दौरान एक्ट्रेस जरीन खान को काफी मोलेस्ट किया गया. वहीं फिल्म मेकर्स ने भी जरीन खान को लेकर कहा कि वह अनप्रोफेश्नल हैं और अपनी कमिटमेंट्स पूरी नहीं करतीं.

रिपोर्ट्स के अनुसार, खुद पर लगे इन आरोपों को लेकर जरीन खान ने कहा, ‘सबसे पहले तो मैं यह क्लियर करना चाहूंगी कि मैं उन लोगों में से नहीं हूं जो पब्लिक के आगे तमाशा बनाएं. मैं एक बहुत ही प्राइवेट किस्म की लड़की हूं. मैं अपनी जिंदगी में नान ड्रमैटिक रहना पसंद करती हूं. अक्सर 2 के मेकर्स के साथ काम करते वक्त मैं फिल्म की रिलीज की तारीख का बेसब्री से इंतजार कर रही थी. मैं और कुछ नहीं कर सकती थी. इसके चलते मैं जो बेस्ट कर सकती थी मैंने किया.’

स्पाइसी कार्न बाल्स

सामग्री

– 1 कप उबले हुए कौर्न (मक्के के दाने)

– 1/2 कप राजधानी बेसन

– 1 इंच अदरक का टुकड़ा

– 2 हरीमिर्च

– 2 लहसुन

– 2 चम्मच नारियल कद्दूकस किया

– 1/2 कप  ब्रैड क्रंब्स

– नमक, मिर्च और चाटमसाला स्वादानुसार

– 1 चम्मच हरी धनियापत्ती बारीक कटी.

विधि

– अदरक, हरीमिर्च, लहसुन और उबले मक्के के दानों को मिक्सी में मोटामोटा पीस लें.

– इस में उबला व मैश किया आलू, नारियल, कौर्नफ्लोर व ब्रैड क्रंब्स को छोड़ कर सभी सूखे मसाले और धनिया मिला लें.

– छोटेछोटे बाल्स बनाएं और उन्हें ब्रैड क्रंब्स में लपेट कर मीडियम आंच पर सुनहरा होने तक डीप फ्राई कर लें.

– स्पाइसी कौर्न बाल्स तैयार हैं. चटनी या सौस के साथ सर्व करें.

ब्रैड पनीर पकौड़ा

सामग्री

– 2 बड़े चम्मच राजधानी बेसन

– मसाले स्वादानुसार

– थोड़ा सा चाट मसाला

– कालीमिर्च पाउडर व लालमिर्च पाउडर

– जरूरतानुसार पनीर व ब्रैड स्लाइस

– 2-3 आलू उबले

– तलने के लिए तेल

– नमक स्वादानुसार.

विधि

– एक बाउल में राजधानी बेसन, मसाले, नमक व पानी मिला कर थिक मिक्सचर तैयार करें.

– पनीर को तिकोना काट कर चाट मसाला, लालमिर्च पाउडर व कालीमिर्च पाउडर से सीजन करें.

– उबले आलुओं में थोड़े मसाले व नमक मिला कर स्टफिंग तैयार करें.

– ब्रैड स्लाइस में आलू मिक्सचर की लेयर लगाएं व पनीर स्लाइस रख कर दूसरी आलू मिश्रण लगी ब्रैड स्लाइस से कवर करें.

– स्लाइस को बेसन मिश्रण से कोट कर सुनहरा तलें और गरमगरम सर्व करें.

बेस्ट डेस्टीनेशन है सिंगापुर गार्डन्स

सिंगापुर भारतीयों का पसंदीदा टूरिस्ट डेस्टिनेशन है. सिंगापुर को सिटी औफ गार्डन्स भी कहते हैं. कुछ लोग हनीमून के लिए भी इस जगह को चुनते हैं. लेकिन यहां आने वालों के लिए ट्रिप यादगार जरूर रहती है. इसकी भी कई वजहें हैं. साफ गलियां,  अलग-अलग कल्चर के रंग और यहां के खूबसूरत गार्डन्स.

खासतौर पर आप अगर हनीमून पर हैं तो आपको  गार्डन्स बाई द वे जरूर घूमना चाहिए यहां लोग प्री-वेडिंग शूट के लिए भी आते हैं. दिन के अलग-अलग वक्त पर आपको यहां अलग रंग दिखाई देंगे.

सेंटोसा आइलैंड – सिंगापुर का सेंटोसा आइलैंड बेहद पौपुलर रिसौर्ट है. यहां बीच, सी सपौर्ट्स, गोल्फ और म्यूजियम के अलावा कई ऐसी ऐक्टिविटीज हैं जो आपको बोर नहीं होने देंगी. अगर यहां के बीच पर फोटोशूट करवाना चाहते हैं तो सुबह जल्दी या सनसेट का वक्त चुनें.

बोटैनिक गार्डन – सिंगापुर का बोटैनिक गार्डन यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट है और यह बेहद खूबसूरत है. यह 52 हेक्टेयर में बना है. इसके अंदर आपको स्वान लेक, अ कर्टन औफ रूट्स,  इको गार्डन, इवौल्युशन गार्डन और नैशनल और्किड गार्डन जैसी कई खूबसूरत लोकेशन मिल जाएंगी.

ऐसे चमकाएं बाथटब को

गंदे बाथटब में ना केवल गंदगी फैलती है बल्कि उसमें आप नहाना भी पसंद नहीं करती हैं. ऐसे में बाथटब हो या फिर टायलेट,  आपको हमेशा इनकी सफाई करनी चाहिये जिससे इनमें गंदगी ना जमे और आप बीमार न हों. बाथटब की सफाई करने के बहुत से तरीके हैं लेकिन आज हम आपको कुछ आसान से तरीके बताएंगे जिससे आसानी से आप साफ कर सकती है.

–  बाथटब को  साफ करने के लिए किसी भी सिट्रस फ्रूट की मदद से साफ कर सकती हैं. इसे साफ करने के लिए संतरा या नींबू को काटिये और उसे नमक में लगा दीजिये, फिर उससे दाग लगे निशानों पर सफाई करें.

– अगर आपने नया बाथटब खरीदा है तो आपको उसे बिना नुकसान पहुंचाए साफ करना होगा. नायलान का कपड़ा एक अच्छा औपशन होगा जिससे आप बाथटब के निचले हिस्से की सफाई उसे बिना खराब किये हुए कर सकती हैं.

क्या है एओर्टिक स्टेनोसिस

डायबिटीज रोगी 77 साल के बिपिन चंद्रा की जिंदगी अब थोड़ी सुकूनभरी है लेकिन साल 2014 में उन की स्थिति काफी तकलीफदेह हो गई थी. किडनी की बीमारी से जूझ रहे बिपिन चंद्रा की बाईपास सर्जरी हो चुकी थी. उम्र के इस पड़ाव में उन का चलनाफिरना या काम करना मुश्किल हो गया था. थोड़ा चलने पर ही वे हांफने लगते. उन की बढ़ती समस्या को देखते हुए डाक्टर से परामर्श लिया गया.

डाक्टर ने उन के कुछ टैस्ट किए जिन में एमएससीटी (इस तकनीक में हृदय और वैसल्स की 3डी इमेज बनाने के लिए एक्सरे बीम तथा लिक्विड डाई का इस्तेमाल किया जाता है) भी शामिल है. टैस्ट के बाद खुलासा हुआ कि वे गंभीररूप से एओर्टिक स्टेनोसिस से पीडि़त थे. बिपिन चंद्रा की सर्जरी हुए 2 साल हो गए हैं और अब वे बेहतरीन जिंदगी जी रहे हैं.

एओर्टिक स्टेनोसिस क्या है?

जब हृदय पंप करता है तो दिल के वौल्व खुल जाते हैं जिस से रक्त आगे जाता है और हृदय की धड़कनों के बीच तुरंत ही वे बंद हो जाते हैं ताकि रक्त पीछे की तरफ वापस न आ सके. एओर्टिक वौल्व रक्त को बाएं लोअर चैंबर (बायां वैंट्रिकल) से एओर्टिक में जाने के निर्देश देते हैं.

एओर्टिक मुख्य रक्तवाहिका है जो बाएं लोअर चैंबर से निकल कर शरीर के बाकी हिस्सों में जाती है. अगर सामान्य प्रवाह में व्यवधान पड़ जाए तो हृदय प्रभावी तरीके से पंप नहीं कर पाता. गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस यानी एएस में एओर्टिक वौल्व ठीक से खुल नहीं पाते.

मेदांता अस्पताल के कार्डियोलौजिस्ट डा. प्रवीण चंद्रा कहते हैं कि गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस की स्थिति में आप के हृदय को शरीर में रक्त पहुंचाने में अधिक मेहनत करनी पड़ती है. समय के साथ इस वजह से दिल कमजोर हो जाता है. यह पूरे शरीर को प्रभावित करता है और इस वजह से सामान्य गतिविधियां करने में दिक्कत होती है. जटिल एएस बहुत गंभीर समस्या है. अगर इस का इलाज न किया जाए तो इस से जिंदगी को खतरा हो सकता है. यह हार्ट फेल्योर व अचानक कार्डिएक मृत्यु का कारण बन सकता है.

लक्षण पहचानें

एओर्टिक स्टेनोसिस के कई मामलों में लक्षण तब तक नजर नहीं आते जब तक रक्त का प्रवाह तेजी से गिरने नहीं लगता. इसलिए यह बीमारी काफी खतरनाक है. हालांकि यह बेहतर रहता है कि बुजुर्गों में सामने आने वाले विशिष्ट लक्षणों पर खासतौर से नजर रखनी चाहिए. ये लक्षण छाती में दर्द, दबाव या जकड़न, सांस लेने में तकलीफ, बेहोशी, कार्य करने में स्तर गिरना, घबराहट या भारीपन महसूस होना और तेज या धीमी दिल की धड़कन होना हैं.

बुजुर्ग लोगों को एओर्टिक स्टेनोसिस का बहुत रिस्क रहता है क्योंकि इस का काफी समय तक शुरुआती लक्षण नहीं दिखता. जब तक लक्षण, जैसे कि छाती में दर्द या तकलीफ, बेहोशी या सांस लेने में तकलीफ, विकसित होने लगते हैं तब तक मरीज की जीने की उम्र सीमित हो जाती है. ऐसी स्थिति में इस का इलाज सिर्फ वौल्व का रिप्लेसमैंट करना ही बचता है. हाल ही में विकसित ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वौल्व रिप्लेसमैंट (टीएवीआर) तकनीक की मदद से गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस रोगियों का इलाज प्रभावी तरीके से किया जा सकता है जिन की सर्जरी करने में बहुत ज्यादा जोखिम होता है.

एओर्टिक वौल्व रिप्लेसमैंट

टीएवीआर से उन एओर्टिक स्टेनोसिस रोगियों को बहुत लाभ मिलेगा जिन्हें ओपन हार्ट सर्जरी करने के लिए अनफिट माना गया है. इस उपचार की सलाह उन मरीजों को दी जाती है जिन का औपरेशन रिस्कभरा होता है. इस से उन के जीने और कार्यक्षमता में बहुत सुधार होता है.

गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस में जान जाने का खतरा रहता है और अधिकतर मामलों में सर्जरी की ही जरूरत पड़ती है. कुछ सालों तक इस बीमारी का इलाज ओपन हार्ट सर्जरी ही थी. लेकिन टीएवीआर के आने से अब काफी बदलाव हो रहे हैं. टीएवीआर मिनिमल इंवेसिव सर्जिकल रिप्लेसमैंट प्रक्रिया है जो गंभीर रूप से पीडि़त एओर्टिक स्टेनोसिस रोगियों और ओपन हार्ट सर्जरी के लिए रिस्की माने जाने वाले रोगियों के लिए उपलब्ध है. इस के अलावा जो रोगी कई तरह की बीमारियों से घिरे हुए हैं, उन के लिए भी यह काफी प्रभावी और सुरक्षित प्रक्रिया है.

टीएवीआर ने दी नई जिंदगी

देहरादून के 53 साल के संजीव कुमार का वजन 140 किलो था और वे हाइपरटैंशन व डायबिटीज से पीडि़त थे. इस के साथ उन्हें अनस्टेबल एंजाइना की समस्या थी जिस में रोगी को अचानक छाती में दर्द होता है और अकसर यह दर्द आराम करते समय महसूस होता है.

संजीव को कई और बीमारियां जैसे कि नौन क्रीटिकल क्रोनोरी आर्टरी बीमारी (सीएडी), औबस्ट्रैक्टिव स्लीप अपनिया (सोते समय सांस लेने में तकलीफ), उच्च रक्तचाप, क्रोनिक वीनस इनसफिशिएंसी (बाएं पैर), ग्रेड 2 फैटी लीवर (कमजोर लीवर), हर्निया और गंभीर एलवी डायफंक्शन के साथ खराब इंजैक्शन फ्रैक्शन 25 फीसदी (हृदय के पंपिग करने की कार्यक्षमता) थीं.

संजीव की स्थिति दिनबदिन गंभीर होती जा रही थी और उन का पल्स रेट 98 प्रति मिनट (सामान्य से काफी ज्यादा) था. सीटी स्कैन और अन्य परीक्षणों के बाद खुलासा हुआ कि वे गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस से भी पीडि़त थे.

इतनी बीमारियों के कारण डाक्टर ने मोेटापे से ग्रस्त संजीव का इलाज ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वौल्व रिप्लेसमैंट (टीएवीआर) से किया. हालांकि जब फरवरी 2016 में उन पर यह प्रक्रिया अपनाई गई, तब तक वे 25-30 किलो वजन कम कर चुके थे और जिंदगी को ले कर उन का नजरिया काफी सकारात्मक हो गया था.

समय पर चैकअप जरूरी

गौरतलब है कि एएस की बीमारी आमतौर पर जब तक गंभीर रूप नहीं ले लेती तब तक इस बीमारी के लक्षणों का पता नहीं चलता. इसलिए नियमित चैकअप कराने की सलाह दी जाती है. उम्र बढ़ने के साथ एएस के मामले भी बढ़ते जाते हैं. इसलिए बुजुर्ग रोगियों को वौल्व फंक्शन टैस्ट के बारे में डाक्टर से पूछना चाहिए और गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस के इलाज की आधुनिक तकनीकों की जानकारी भी लेते रहना चाहिए.

क्या आप जानते हैं

भारत में लगभग 15 लाख लोग गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस से पीडि़त हैं. उन में से 4.5 लाख रोगी सर्जरी के लिए अनफिट हैं.

अगर समय पर एओर्टिक वौल्व रिप्लेस न किए जाएं तो पाया गया है कि 50 फीसदी एओर्टिक स्टेनोसिस रोगी दिल का दौरा पड़ने पर 2 साल और छाती में दर्द के साथ 5 साल तक ही जीवित रह पाते हैं.

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