अब हर कोई होगा कौलेज गर्ल्स की हेयरस्टाइल का दीवाना

हर दिन नई-नई हेयरस्‍टाइल बनाना और खुद को हर किसी से अलग दिखाना हर कौलेज गोइंग लड़की का ख्‍वाब होता है. अगर आप भी अपने बालों के साथ कुछ नया हेयरस्टाइल ट्राई करना चाहती हैं और हर किसी को अपना दिवाना बनाना चाहती हैं तो हमारा यह लेख पढें.

फ्रेंच ब्रेड

अगर आप नहीं चाहती की आप गर्मियों की वजह से आपके बाल तेलीय और पसीने से भर जाएं, तो यह हेयरस्‍टाइल अपके लिये बिल्‍कुल उचित है. यह काफी आरामदायक होती है और साथ ही आपको बार-बार कंघी करने की भी जरुरत नहीं पड़ेगी. इसके अलावा यह स्‍टाइल स्‍पोर्टी लड़कियों द्रारा भी अपनाया जा सकता है.

रफ लुक

बिखरे हुए बालों का अपना अलग स्‍टाइल होता है. अगर आप यह सोंच कर हर रोज परेशान हो जाती हैं कि आज कौलेज के लिये कैसी हेयरस्‍टाइल बनाएं, तो एक ब्रेक लें और ‘आउट औफ बेड’ टाइप का स्‍टाइल बनाएं. यह चिक और स्‍टाइलिश दोनों ही लगते हैं. लेकिन इस हेयरस्‍टाइल को बनाने के बाद आपको इसे कैरी भी करना आना चाहिये.

पोनीटेल

यह हेयरस्‍टाइल कौलेज जाने वाली हर लड़की पर सूट करती है. अगर आप जल्‍दी में हैं तो यह आसान और स्‍टाइलिश लुक वाली पोनीटेल बांध लें. पोनीटेल बांधने के कई तरीके हैं, जो आपके बालों की टाइप को देखकर बांधा जा सकता है. अगर आपके बाल सीधे हैं, तो बिल्‍कुल हाई पोनीटेल बांधे. वहीं पर अगर बाल कर्ली हैं, तो साइड में पोनीटेल आपको बिल्‍कुल चिक वाला लुक देगा.

ऐक्सेसरीज के साथ अपने बालों को खुला छोड़े

वे लड़कियां जिनके बाल मोटे और सीधे हैं,उन्‍हें अपने बाल खुले छोड़ने में कोई दिक्‍कत नहीं आनी चाहिये. बालों को आसानी से खुला छोड़ दें और चाहें तो कलरफुल बैंड या क्‍लिप लगा लें. कर्ली हेयर वाली लड़कियां भी मेटल हेयर बैंड और क्‍लिप लगा कर एक्‍सपेरिमेंट कर सकती हैं.

लखनऊ महोत्सव: नेता और अफसरों की चारागाह

लखनऊ की कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये शुरू हुआ लखनऊ महोत्सव का राजनीतिकरण हो चुका है. 25 नवम्बर से 5 दिसम्बर के बीच आयोजित यह महोत्सव इस बार भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेई को समर्पित है. अब यह सवाल उठ रहा है कि लखनऊ महोत्सव कला और संस्कृति के बहाने विदेशी पर्यटको को बुलाने लिये है या सरकारी नीतियों के प्रचार प्रसार के लिये. इससे लखनऊ महोत्सव एक मेला बनकर रह जा रहा है.

1975-76 में लखनऊ महोत्सव की शुरूआत लखनऊ में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये की गई थी. 43 साल के बाद भी लखनऊ महोत्सव अपनी कला और संस्कृति को लेकर अपनी कोई छाप छोड़ने में सफल नहीं रहा है. नेताओं की शह पर अफसर राजनीतिक जरूरतों के हिसाब से लखनऊ महोत्सव की पहचान को बदलते रहे है. हालात यह है कि लखनऊ महोत्सव के लिये कोई निर्धरित जगह तक सुनिश्चित नहीं हो पाई है. कई बार तो आयोजन के तयसुदा समय 25 नवम्बर से 5 दिसम्बर की जगह समय में भी राजनीतिक जरूरतों के हिसाब से बदलाव हुये है. नेताओं को खुश रखने के लिये अफसरों ने लखनऊ महोत्सव के कला और संस्कृति की पहचान को मिटाकर सरकारी नीतियों के प्रचार प्रसार का मेला बना डाला.

लखनऊ महोत्सव पहले बेगम हजरतमहल पार्क में लगता था. मायावती के शासनकाल में बेगम हजरतमहल पार्क से हटाकर इसको गोमती नदी किनारे लगाया गया इसके बाद जेल रोड, आशियाना और शिल्प बाजार इसके ठिकाने बनते गये. यही वह दौर था जब लखनऊ महोत्सव में फिल्मों के स्टार कलाकार बुलाये जाने लगे. इसके लिये कलाकारों को लाखो लाख का भुगतान किया जाने लगा. कला संस्कृति की जगह इस पर बाजार हावी होता गया. अफसरों ने अपने चहेतों को कमाई का रास्ता खोल दिया. लखनऊ महोत्सव का सांस्कृतिक आयोजन नेताओं, अफसरों के लिये मनोरंजन का साधन बनकर रह गया. वीवीआईपी पास के जरीये सांस्कृतिक आयोजन में लोग बुलाये जाने लगे. टिकट लेकर महोत्सव देखने वाले केवल साधरण दर्शक बनकर रह गये.

लखनऊ के स्थानीय कलाकारों की जगह पर सिफारिश और बडे कलाकारों को ही मंच मिलने लगा. प्रदेश में बदलती सरकारों ने अपने सरकारी नीतियों के प्रचार के लिये लखनऊ महोत्सव को अपना जरीया बना लिया. लखनऊ महोत्सव के असर को खत्म करने के लिये राजनीतिक स्वार्थ के लिये लक्ष्मण महोत्सव और सैफई महोत्सव को उसके बराबर खड़ा करने का प्रयास भी किया गया. उत्तर प्रदेश की वर्तमान योगी सरकार ने लखनऊ महोत्सव की थीम भाजपा नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के जीवन और व्यक्त्वि पर रख दी है.

वरिष्ठ सांस्कृतिक समीक्षक, कलाकार और पत्राकार राजवीर रतन सिंह कहते है ‘लखनऊ महोत्सव के आयोजन के पीछे की मंशा देशी यानि प्रदेश के बाहर के पर्यटकों को और विदेश में रहने वाले पर्यटको को लखनउ तक लाने की थी. लखनऊ में पर्यटन का सबसे मुफीद समय अक्टूबर से मार्च तक होता है. जब यहां का मौसम बहुत अच्छा होता है. यही कारण है कि इसके आयोजन में पर्यटन विभाग की भूमिका प्रमुख होती थी. समय के साथ धीरे-धीरे इसके आयोजन में लखनऊ जिला प्रशासन और और सूचना विभाग की भूमिका बढ़ती गई. वहीं से यह कला संस्कृति के बजाय सरकारी नीतियों का प्रचार करने वाला एक मेला बनकर रह गया.’

लखनऊ के आसपास ही खजुराहो महोत्सव और ताज महोत्सव का आयोजन भी होता है. वहां के आयोजनों में देशी-विदेशी पर्यटकों की संख्या सबसे अधिक होती है. लखनऊ महोत्सव देखने विदेशी पर्यटक नहीं आते. लखनऊ महोत्सव के आयोजक केवल यह दिखाते है कि हर साल उनके दर्शकों की संख्या बढी है. ऐसे में यह केवल एक सरकारी मेला बनकर रह गया है. वरिष्ठ पत्रकार रजनीश राज कहते है ‘महोत्सव के दौरान ही एक पत्रिका ‘उर्मिला’ का प्रकाशन होता है. यह पत्रिका भी केवल वीवीआईपी लोगों तक ही पंहुच पाती जनसामान्य तक इसकी पहुंच नहीं हो पा रही है. लखनऊ महोत्सव से जुड़े हुये कार्यक्रम नाटय महोत्सव, पतंग महोत्सव और विटेंज कार रैली अपने स्वरूप के अनुसार नहीं हो पा रहे है. यह लखनउ महोत्सव के नाम से जुडने के बाद भी केवल उनका हिस्सा भर बनकर रह गये है. जो गरिमामयी छवि बननी चाहिये वह नहीं बन पा रही है.’

अब नहीं होगी सर्दियों में स्किन ड्राई

सर्दी के मौसम का अपना ही मजा होता है. मौसम की ठंडक दिलोदिमाग को सुकून देती है और साथ ही ब्यूटी कौंशियस महिलाओं और युवतियों को इस बात की तसल्ली होती है कि अब त्वचा के चिपचिपेपन की समस्या से उन्हें दोचार नहीं होना पड़ेगा.

लेकिन सर्दियों की जो सब से बड़ी समस्या है वह है त्वचा का रूखापन. इसलिए सर्दियों में स्किन को मौइस्चराइज करना बेहद जरूरी है.

ठंड के कारण हम गरम पानी से नहाते हैं, लेकिन इस से स्किन ड्राई हो जाती है. इसलिए त्वचा की नमी बरकरार रहे इसकेलिए शरीर पर क्रीम व लोशन लगाना बहुत जरूरी है. हो सके तो नारियल या जैतून के तेल से शरीर की ठीक से मालिश करें, इस से त्वचा मुलायम बनती है.

नहाते वक्त माइल्ड सोप का इस्तेमाल करें. कैमिकलयुक्त सोप त्वचा की नमी को सोख कर उसे शुष्क बनाती है.

चेहरा दमकता रहे

शरीर के लिए धूप बहुत जरूरी है और सर्दियों में धूप सेंकना काफी अच्छा लगता है लेकिन ध्यान रहे कि धूप सेंकते वक्त चेहरे पर सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणें न पड़ें. इसलिए बेहतर रहेगा कि धूप में बैठने से पहले त्वचा पर सनस्क्रीन क्रीम लगा लें.

दिन में एक बार पपीते या केले का फेस पैक लगाएं, जिस से चेहरे की स्किन में नमी बनी रहेगी.

रात में सोने से पहले गुलाबजल से चेहरे को अच्छी तरह साफ कर ले और कोल्डक्रीम से हलकी सी मसाज करें. सुबह चेहरे की ताजगी बनी रहेगी.

चेहरे की त्वचा पर ताजगी बरकरार रखने के लिए नीबू व दही का उपयोग करें. दही में मौजूद लेक्टिक एसिड त्वचा पर फेशियल मास्क का काम करता है और त्वचा की अंदरूनी गंदगी को बाहर निकालता है.

नरम मुलायम होंठ

जी हां, यदि सर्दियों में आप नरम मुलायम होंठ रखना चाहती हैं तो लिप मौइस्चराइजर को होंठों पर जरूर लगाएं. होंठ न फटें इसलिए समयसमय पर विटामिन ई युक्त लिपबाम लगाते रहें. लिपस्टिक भी ऐसी हो जो औयल बेस्ड हो. रात को होंठों पर नारियल या जैतून का तेल या फिर मलाई लगा कर सोएं. सुबह आप के होंठ नरम मुलायम होंगे.

हाथों को बनाएं कोमल

हमारे हाथ सारा दिन काम करते हैं, इसलिए हर वक्त ढक कर या फिर दस्ताने पहन कर रहना नामुमकिन है. लगभग सारा दिन साबुनपानी के संपर्क में रहते हैं, इसलिए सर्दियों में हाथ की त्वचा रूखी हो जाती है और उंगलियां की स्किन भी फटने लगती है ऐसे में हैड मौइस्चराइचर जब भी मौका मिले हाथों पर लगा लें. डाइनैस बिलकुल न आने दें. माइल्ड हैंडवौश का प्रयोग करें.

एडि़यों को न करें नजरअंदाज

सर्दियों में पैरों को गरम रखने के लिए हम जुराब पहन लेते हैं जिन से वे छिप जाते हैं लेकिन ऐसा कर उन्हें नजरअंदाज करना खुरदरा बना देगा. इसलिए जुराब पहनने से पहले पैरों को अच्छी तरह से मौइस्चराइज करें.

एडि़यां फटे नहीं इस के लिए रात में फुटक्रीम एडि़यों पर अच्छी तरह मलें रोजाना ऐसा करने से एडि़यां पूरी सर्दी फटेंगी नहीं.

इस तरह इन छोटीछोटी बातों को ध्यान में रखते हुए अपनी खुद की देखभाल करें और सर्दियों को बनाएं अपने लिए खुशगवार.

प्रोसेस्ड फूड : नहीं कह सकते नेचुरल

हम और आप सभी हेल्दी यानी स्वस्थ रहना चाहते हैं, फिर भी अपनेअपने स्वास्थ्य की ज्यादा फिक्र नहीं करते. फिक्र करते हैं तो, बस, दूसरों से आगे निकलने का. नतीजा यह है कि देश में बीमारियों और बीमारों की संख्या बढती जा रही है.

स्वस्थ रहना खानपान और जीवनशैली से जुड़ा है. ये दोनों अगर ट्रैक पर हैं तो बीमारियां आप से दूर रहेंगी. खानपान का मतलब जो भी आप खाएंपिएं वह पौष्टिक यानी न्यूट्रीशियन से भरपूर हो. और जीवनशैली का मतलब संक्षेप में भरपूर नींद लेने के साथ रोजाना वर्कआउट यानी एक्सरसाइज करना है.

व्यस्त जीवनशैली के चलते आज ज्यादातर लोग प्रोसेस्ड फूड खाना बेहतर समझते हैं हालांकि वह पौष्टिक यानी न्यूट्रिशस नहीं होता. पैकेज्ड फूड बनाने वाले अपनी चीजों को प्योर व नेचुरल होने का दावा करते हैं जबकि ऐसा नहीं होता है. इस बाबत देश के भारतीय खाद्य एंड सुरक्षा प्राधिकरण यानी फूड एंड सेफ्टी अथौरिटी औफ इंडिया (एफएसएसएआई) ने रेगुलेशंस 2018 तैयार किया है जिस का मकसद देशवासियों को अपने खानपान के प्रति जागरूक करने के साथ फूड बनाने वालों को अपनी वस्तुओं पर गलत व भ्रामक जानकारी देने से रोकना है.

processed food can't be natural

दरअसल, जिन चीजों पर नेचुरल या फार्मफ्रेश लिखा हो, जरूर नहीं कि वे और्गैनिक हों. ये अपनेआप में प्रिजर्वेटिव-फ्री हो सकती हैं लेकिन हो सकता है कि उन में ऐसी सामग्री हो, जिस में पेस्टिसाइड डाला गया हो या वे जेनिटिकली मौडिफाइड हों.

प्रोसेस्‍ड फूड वह फूड होते हैं जिन्हें लम्बे समय तक खाने के लिए संरक्षित किया जाता है. इन में कई तरीके के फ्लेवर और लम्बे समय तक टिका कर रखने वाले केमिकल मिला कर रखा जाता है जिस से इन्हें मनमुताबिक इस्‍तेमाल किया जा सके. इस से आप के स्‍वास्‍थ्‍य पर उल्टा प्रभाव भी हो सकता है अगर आप ने इन का इस्‍तेमाल एक हद से ज्‍यादा किया तो.

सोचने की शक्ति को खत्म करते हैं ये खाद्य पदार्थ

प्रोसेस्‍ड फूड का टेस्‍ट बहुत यम्‍मी होता है, ऐसा अक्‍सर देखा गया है क्‍योंकि उन्हें उस तरीके से तैयार किया जाता है. लेकिन कई बार इस के इस्‍तेमाल से स्‍वास्‍थ्‍य को नुकसान पहुंचता है.
स्‍वास्‍थ्‍य बिगड़ना: खाने में तो ये फूड बहुत टेस्‍टी लगते हैं लेकिन इन का असर काफी उल्टा होता है. ये शरीर की पाचनप्रक्रिया को बिगाड़ देते हैं.

हड्डियों को कमजोर करना: शरीर को स्‍वस्‍थ रखने में हड्डियों का बहुत बड़ा योगदान होता है. लेकिन प्रोसेस्ड फूड हड्डियों को कमज़ोर कर देते हैं और दर्द की समस्‍या सामने आने लगती है.

किडनी में समस्‍या: इस प्रकार के फूड में फौस्‍फेट मिला होता है जो शरीर में जा कर उसे नुकसान पहुंचाते हैं. इस के सेवन से किडनी में समस्‍या आने लगती है. कई बार तो किडनी खराब होने का डर भी होता है.

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पाचन संबंधी समस्‍याएं: इस प्रकार के फूड को लगातार खाने से पाचन संबंधी कई समस्‍याएं सामने आने लगती हैं क्‍योंकि इन में प्रोटीन, विटामिन और फाइबर जैसे गुण नहीं होते हैं.

सोचनेसमझने की ताकत की कमी: इस प्रकार के फूड का भारी मात्रा में सेवन करने से सोचने और समझने की शक्ति में समस्‍या आती है, ध्‍यान का स्‍तर भी कम हो जाता है.

एनर्जी की कमी: प्रोसेस्‍ड फूड में विटामिन और फाइबर की कमी होती है जिस की वजह से शरीर में कमजोरी आ जाती है.
प्रजनन पर असर : प्रोसेस्‍ड फूड के सेवन से प्रजनन क्षमता पर नकारात्‍मक असर पड़ता है. यह शरीर के लिए काफी नुकसानदायक होता है.

कैंसर: आप को जानकर आश्‍चर्य होगा लेकिन यह पूरी तरह सच है कि इस प्रकार के फूड के सेवन से कैंसर होने का खतरा बना रहता है क्‍योंकि इन में कई अस्‍वास्‍थकारी तत्त्व मिल होते हैं.

डायबिटीज: प्रोसेस्‍ड फूड के सेवन से शरीर में इंसुलिन की मात्रा घट जाती है जिस से शुगर होने का खतरा बढ़ जाता है. अकसर लोगों में इस के सेवन के कारण टाइप 2 शुगर होते पाया गया है.

पेट में समस्‍या: प्रोसेस्‍ड फूड में फ्रक्‍टोज कौर्न सिरप होता है जिस से पेट में कई गंभीर बीमारियां हो सकती हैं.

एलर्जी प्रतिक्रिया: प्रोसेस्‍ड फूड के सेवन से एलर्जी हो सकती है क्‍योंकि इन में संरक्षित करने वाले पदार्थ या रंग पड़े होते हैं.
कुपोषण: प्रोसेस्‍ड फूड के सेवन से कुपोषण होने के चांसेस सब से ज्‍यादा रहते हैं. अगर आप स्‍वस्‍थ रहना चाहते हैं तो इन का सेवन कम से कम करें.

हाइपरसेंसटिविटी: प्रोसेस्‍ड फूड में कई तरीके के आर्टिफिशियल कलर मिले होते हैं जिससे कारण हाइपरसेंसटिविटी होना स्‍वाभाविक हो जाता है. बच्‍चों में यह अकसर हो जाता है.
अस्‍थमा और त्‍वचा में बदलाव: प्रोसेस्‍ड फूड में ऐसे पदार्थ मिले होते हैं जो अस्‍थमा का कारण बन सकते हैं और इन के सेवन से त्‍वचा में जलन या रंग में बदलाव भी आ सकता है क्‍योंकि त्‍वचा पर दाने आदि पड़ जाते हैं. ऐसे में आप फैसला करें कि आप को किस प्रकार के भोजन का सेवन करना चाहिए.

यही नहीं, सभी तरह के प्रोसेस्ड फूड सेक्स की इच्छा को कम करते हैं. दरअसल, प्रौसेसिंग में इस्तेमाल की जाने वाली स्ट्रिप्स पोषक तत्त्वों को खत्म कर देती हैं. उन पोषकतत्त्वों में वे न्यूट्रिएंट्स भी होते हैं जो सेक्स की इच्छा बढ़ाते हैं. उदाहरण के तौर पर जब गेहूं को प्रौसेस कर आटा बनाया जाता है तो इस में व्याप्त जिंक की तीनचौथाई मात्रा खत्म हो जाती है जो सेक्स ड्राइव के लिए अहम मिनरल है.

एफएसएसएआई के गाइडलाइन्स, जो अभी जारी की जानी हैं, के तहत पैकेज्ड फूड कम्पनियाँ पैकेट पर नेचुरल, फ्रेश, ओरिजिनल, ट्रेडिशनल, प्योर, औथेंटिक, जेन्युइन और रियल तभी लिख पाएंगी जब उन वस्तुओं को धोने, छीलने, ठंडा करने और छंटाई करने के अलावा किसी और तरह से प्रोसेस नहीं किया गया होगा. या उन की ऐसी प्रोसेसिंग नहीं की गयी होगी जिस से उन की नेचुरल क्वालिटीज बदलती हों.

हमें और आपको अपनी सेहत का ख्याल रखते हुए प्रोसेस्ड फूड का इस्तेमाल करना है या नहीं, या कितना करना है, तय करना होगा. प्रोसेस्ड फूड के टीवी, अखबार, मैगज़ीन में झूठे दावे किये जाते हैं कि वे न्यूट्रिशन से भरपूर हैं. इन से आपको होशियार रहना होगा. हालांकि, एफएसएसएआई की गाइडलाइन्स में यह भी है कि पैकेज्ड फूड वाले अपनी वस्तुओं के बारे मैं कम्पलीट मील रिप्लेसमेंट होने का दावा नहीं कर सकते.

कई तरह के रोगों में प्रभावशाली है ये पेय

अच्छी दिनचर्या ना होने पर कई तरह की परेशानियां हो सकती हैं. जिसके कारण लोगों को डाक्टरों का चक्कर लगाना पड़ता है. अगर आपको भी ऐसी परेशानी होती है तो ये खबर आपके लिए है. इस खबर में हम आपको नेचुरल ड्रिंक के बारे में बताएंगे जिसके नियमित प्रयोग से आप इन परेशानियों से मुक्त हो सकेंगी.

यह पेय है तुलसी और हल्‍दी का. ये सेहत के लिए काफी लाभकारी है. इसमें आधी मुठ्ठी तुलसी को एक कप पानी में उबाल कर उसमें आधा चम्‍मच हल्‍दी पावडर या ताजी हल्‍दी की गांठ को काट कर मिला दें. फिर इसे गरम करें और पेय को छान कर पी जाएं. इस पेय के कई फायदे हैं, आइये जानते हैं इस पेय को पीने से क्‍या क्‍या लाभ मिलते हैं.

कफ में है फायदेमंद

सर्दियों में जिन्हें कफ की परेशानी होती है उनके लिए ये पेय काफी लाभकारी है. ये पेय गले की सूजन को दूर करता है और कफ को भगाता है.

अस्थमा में है काफी फायदेमंद

अस्‍थमा के मरीजों के लिए ये काफी लाभकारी पेय है. इससे स्वास नली चौड़ी होती है जिससे सांस लेने में आसानी होती है.

किडनियों के लिए है काफी लाभकेरी

किडनी को साफ रखने के लिए ये एक प्रभावशाली नुस्खा है. किडनियों से गंदगी को साफ करने में मददगार है ये पेय, इसके साथ हीय ये आपके शरीर को शुद्ध और स्‍वस्‍थ रखता है.

तनाव दूर करने में है कारगर

तनाव में इसे पीना काफी लाभकारी होता है. इससे दिमाग की नसें शांत होती हैं और दिमाग तक ब्लड फ्लो बढ़ता है जिससे तनाव दूर होता है.

पाचन क्रिया को सुधारे

यह खाना पचाने वाले जूस को सक्रिय करता है, जिससे पाचन क्रिया दुरुस्‍त होती है और खाना बड़े आराम से पचता है.

 

लहसुन को तकिए के नीचे रखना है कई परेशानियों का समाधान

एक पुरानी थेरेपी की माने तो लहसुन को तकिए के नीचे रख कर सोने के कई फायदे हैं. लहसुन में जींक की मात्रा होती है जिसके कारण दिमाग में सुरक्षा की भावना पैदा होती है.

शुरुआत में लोग इसकी तेज महक के कारण आपको नींद ना आए पर इसकी आदत हो जाने पर आपको अनिद्रा की  परेशानी में भी ये काफी फायदेमद होगा. आप इसे छोटे बच्‍चों के तकिये के नीचे भी रख सकते, इससे वे रात में चौंकेगे नहीं.

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इसके अलावा इसका पेय भी आपको कई तरह से फायदेमंद होता है. लहसुन का पेय भी नींद लाने में असरदार होता है. इसको तैयार करने के लिए आपको चाहिए दूध, कूंची हुई लहसुन की कली, शहद.

इसको तैयार करने के लिए आप पहले दूध गर्म करें, इसके बाद कूंचे हुए लहसुन को आप दूध में मिला लें. इसके बाद इसे 3 मिनट तक उबालें और फिर आंच से उतार लें.  अब इसमें शहद मिलाएं और पी जाएं. ये अनिद्रा में काफी लाभकारी है.

जुनून ही जीवन है

17 साल की शिवांगी ने मई, 2018 में माउंट एवरेस्ट चोटी (8848 मीटर) फतह की. हिसार, हरियाणा की शिवांगी नेपाल साइड से माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचने वाली सब से कम उम्र की लड़की बन गई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने रेडियो प्रोग्राम ‘मन की बात’ में शिवांगी की खूब तारीफ की. और भी कई नेताओं ने उस के अचीवमैंट से जुड़े ट्वीट किए. इस के बाद शिवांगी ने जुलाई, 2018 में अफ्रीका के सब से ऊंचे माउंटेन माउंट किलिमंजारों (5895 मीटर) की चढ़ाई सिर्फ 3 दिन में पूरी की तो 4 सितंबर,

2018 को यूरोप की माउंट एलबु्रस की चोटी (5642 मीटर) पर पहुंची. दिल्ली से करीब 170 किलोमीटर दूर है हिसार. हम हिसार की ग्लोबल सिटी सोसायटी पहुंचे जहां शिवांगी अपने परिवार के साथ रहती है. पहले शिवांगी का परिवार हांसी में रहता था, जहां पूरी सुविधाएं नहीं थीं.

हिसार एक ऐजुकेशन हब है. यहां 3 यूनिवर्सिटीज हैं – हरियाणा ऐग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, गुरु जंबेश्वर यूनिवर्सिटी औफ साइंस ऐंड टैक्नोलौजी और लाला लाजपत राय वैटरिनरी यूनिवर्सिटी. हिसार में मैडिकल फैसिलिटी बहुत अच्छी है. यहां एशिया की सब से बड़ी औटो मार्केट हैं.

इन सब के अलावा जो हिसार की खासीयत है वह है लड़कियों की स्पोर्ट्स में रूचि. यहां की काफी लड़कियां स्पोर्ट्स में कैरियर बनाती हैं. शिवांगी ने जिस कोच से प्रशिक्षण लिया उन के 50 बच्चों में 35 लड़कियां हैं. इन में 4-5 नैशनल लैवल की प्लेयर हैं.

हरियाणा ऐग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में गिरी सैंटर है जहां ऐथलीट तैयार किए जाते हैं. यहां सिंथैटिक ग्राउंड है जो रनिंग के लिए काफी अच्छा होता है. शिवांगी अकसर वहां जा कर अभ्यास करती है. हिसार में बहुत बड़ी सैनिक छावनी हिसार कैंट है तो यहां की जिंदल स्टील फैक्टरी भी काफी मशहूर है.

हिसार में कहीं भी पहाडि़यां या बर्फ से ढकी पर्वत शृंखलाएं नहीं है. मगर जिसे सपने देखने का शौक होता है वह उन्हें पूरे करने के रास्ते और माहौल खुद बना लेता है. केवल 4 माह में शिवांगी ने 3 समिट पूरे किए. उस का सपना है कि 18 साल की उम्र से पहले ही वह सभी 7 समिट पूरे कर ले.

शिवांगी को जहां अपने पापा, चाचाचाची और दादी का भरपूर प्यार और सहयोग मिलता है वहीं मां भी हर पल उस का साथ देती हैं. मां आरती पाठक हर जगह उस के साथ होती हैं. ट्रेनिंग के समय भी और मोटिवेशन के समय भी. पिता राजेश पाठक, चाचा राजकुमार पाठक के साथ इलैक्ट्रौनिक्स की शौप चलाते हैं और बड़ा भाई मैडिकल की तैयारी कर रहा है.

माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने का विचार कैसे आया? सवाल के जवाब में शिवांगी मुसकराती हुई कहती हैं, ‘‘मुझे बचपन से ही कुछ खास करने का शौक था. मैं ने एक दिन गूगल में अपना नाम सर्च किया तो कुछ नहीं मिला. तब मेरे भैया ने कहा कि इस के लिए पहचान बनानी होगी. जो पहाड़ पर चढ़ते हैं, बड़े काम करते हैं उन का नाम आता है. उसी समय मेरे दिल में पहाड़ पर चढ़ने का विचार आया. फिर एक दिन मैं मां के साथ एक सेमिनार में गई जहां अरुणिमा सिन्हा की कहानी से जुड़ा वीडियो दिखाया जा रहा था. 22 मिनट के इस वीडियो को देख कर ही मैं ने पक्का फैसला कर लिया कि मुझे भी माउंट एवरेस्ट फतह करनी है. उस वक्त मैं 11वीं कक्षा में थी.

‘‘एक दिन पापा ने कहा कि चलो पहले यह देखते हैं कि आप फीयरलैस हो या नहीं. उस समय हम ऋषिकेश में थे. पापा ने मुझे 83 मीटर की ऊंचाई से बंजी जंपिंग करने की चुनौती दी. मैं ने कर के दिखा दिया तो उन्होंने ने मेरी ट्रेनिंग की व्यवस्था कर दी.

‘‘13 नवंबर, 2016 से मेरी फिटनैस ट्रेनिंग शुरू हुई. उस वक्त मेरी उम्र 14 साल थी वजन 61 किलोग्राम. जाहिर है मुझे अपनी फिटनैस पर ध्यान देना था. रिंकू पानू कोच की शिष्या बन कर मैं ने ढाई घंटे सुबह और 3 घंटे शाम प्रैक्टिस शुरू की. सुबह 1 घंटा दौड़ना, शाम में 5000 स्कीपिंग, वेटलिफ्टिंग, मैडिटेशन जैसे फिटनैस वर्कआउट करने शुरू किए.

‘‘अप्रैल, 2017 में जम्मू के पहलगाम में मैं ने 1 माह का बेसिक माउंटेनियरिंग कोर्स जौइन किया, जिस में पहाड़ पर चढ़ने की बेसिक जानकारी दी गई. सितंबर, 2017 में ऐडवांस कोर्स किया, जिस में प्रैक्टिकली सबकुछ सिखाया गया. इस के बाद दार्जिलिंग में डबल ऐडवांस कोर्स भी किया. फिर सेवन समिट्स टै्रक्स एजेंसी के थ्रू माउंट एवरेस्ट पर गई.

‘‘41 दिन की एवरेस्ट जर्नी काफी चैलेंजिंग थी. 13-14 दिन बेस कैंप पहुंचने में लगे. एक कैंप जिसे मौत का घर भी कहते हैं पहुंचने में काफी बैलेंस मैंटेन करना पड़ता है. आगे का सफर और भी खतरनाक होता है. बर्फ के पिघलने और क्रीवर्स में गिरने का खतरा बना रहता है. हमें काफी सामान भी ढोना होता है. साढ़े 6 किलोग्राम के शूज के अलावा रकसेट जिस में बड़ीबड़ी पानी की बोतलें होती हैं, हार्नैस सैट, क्लोदिंग, ऐक्स्ट्रा जैकेट और खाने का सामान (फास्ट फूड, चावल, चौकलेट बगैरा) और 2 सिलैंडर 400-400 ग्राम वाले. इतना भार ढो कर 40 डिग्री टैंपरेचर पर ऊपर चढ़ना आसान नहीं था.’’

जोखिम में जिंदगी

शिवांगी 4 लोगों के ग्रुप में थी. बेस कैंप के बाद 4 कैंप होते हैं. एक से दूसरे कैंप में पहुंचने में लगभग 12 से 24 घंटे लगते हैं. वहां जा कर खाना बनाना होता है. इतनी ठंड में खाना बना कर खाना आसान नहीं. बर्फीला तूफान आने का डर बना रहता है. घायल माउंटेनियर को स्लीपिंग बैड से नीचे लाते हैं.

शिवांगी कहती है, ‘‘कैंप 3 में जब एक दिन हम बर्फ खोद कर पानी भरने का इंतजाम कर रहे थे तो अचानक अंदर से काले रंग का एक हाथ निकला. उस की उंगलियां टेढ़ीमेढ़ी  थीं. मैं उसे देख कर बहुत डर गई. मुझे बहुत अजीब लगा.’’

कठिनाइयां

डिसीजन लेना अकसर कठिन हो जाता है, क्योंकि पता नहीं होता कि चढ़ते समय कब क्या हो जाए, क्या प्रौब्लम आ जाए.

गर्ल्स प्रौब्लम: इतने कम टैंपरेचर में गर्ल्स प्रौब्लम काफी परेशान करती हैं. किसी को तो पीरियड जल्दीजल्दी होता है तो किसी को होना ही बंद हो जाता है. शिवांगी कहती है कि 41 दिन के सफर में 4 बार उन्हें इस समस्या से रूबरू होना पड़ा. यह बहुत कठिन था.

शिवांगी प्योर वैजिटेरियन है, इसलिए उसे खासतौर पर खानेपीने की समस्या का सामना करना पड़ा. इतने कम तापमान पर चढ़ाई करते समय शरीर को काफी ऐनर्जी की जरूरत होती है जो प्रोटीन से मिलती है. ऐसे में मांस खाना सब से बेहतर होता है. मगर शिवांगी के पास यह औप्शन भी नहीं था. कच्चे साग में नमकमिर्च लगा कर चावल के साथ भोजन कर वैजिटेरियन अपनी प्रोटीन की जरूरत पूरा करने का प्रयास करते हैं. चढ़ाई करते समय बारबार बर्फ के तूफानों का सामना करना पड़ता है.

चढ़ाई करते समय किन बातों का खयाल रखना जरूरी होता है? सवाल के जवाब में शिवांगी कहती हैं, कुछ खास बातों पर ध्यान देना जरूरी हो जाता है. ग्रुप में जितने लोग होते हैं उन का ध्यान रखना जरूरी होता है. हम 4 लोग थे. एकदूसरे का ध्यान रखते हुए ही आगे बढ़ सकते थे. आप के पास पानी कभी खत्म नहीं होना चाहिए, क्योंकि आप बिना पानी ऊपर नहीं जा पाएंगे.

‘‘मुंह चलाते रहना जरूरी होता है. इस के लिए हम हर 1 घंटे पर कुछ न कुछ खाते रहते थे. इस के अलावा कभी गाना गा कर तो कभी बातें कर मुंह चलाते रहने का प्रयास करते थे ताकि ठंड में दांत जम न जाएं. चने और बादाम खाने से दांत निकलने का खतरा रहता है. खुश रहना भी बहुत जरूरी है. खुद से बातें करना, मुसकराना और स्वयं को मोटिवेट करते रहना जरूरी है.

‘‘शेरपा से बना कर रखना बहुत जरूरी होता है. उसे अधिक नौलेज होता है. वह आप की हर तरह से मदद कर सकता है. किस स्थिति से कैसे निबटना है यह वही बताता है. वह सामान उठाने में भी मदद करता है.’’

कमी जो महसूस होती है

शिवांगी बताती है कि हमारी मेहनत का पूरा रिवार्ड नहीं मिलता. यह बहुत ही ऐक्सपैंसिव गेम है पर सरकार केवल ऐथलैटिक्स को सपोर्ट करती है हमें नहीं. सरकार की तरफ से किसी भी किस्म की मदद नहीं मिलती. टौप औफ द वर्ल्ड पर तिरंगा फहरा कर नाम रोशन करने वाले पर्वतारोहियों को इस बात का मलाल रहता है कि माउंटेनियरिंग को स्पोर्ट्स में शामिल नहीं किया गया है.

लोकल विधायक ने शिवांगी को मात्र 11 हजार का चैक पकड़ाया जबकि एवरेस्ट क्लाइंबिंग में क्व30 से 35 लाख तक का खर्च आया था.

एक प्राइवेट कंपनी पहले शिवांगी को स्पौंसर करने वाली थी, पर ऐन वक्त पर उस ने इनकार कर दिया. तब घर को गिरवी रख कर लोन लिया. आज क्व60 हजार प्रति माह एचडीएफसी बैंक को लोन की किस्त दी जा रही है.

एवरेस्ट के बाद बाकी 2 समिट के लिए शिवांगी को स्पौंसर मिल गए. कस्तूरी मैमोरियल ट्रस्ट और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद दोनों ने शिवांगी को ऐडौप्ट कर लिया है.

जीत की तैयारी

शिवांगी की कोच रिंकू पानू कहती हैं, ‘‘मेरी देखरेख में शिवांगी की फिटनैस ट्रेनिंग जनवरी, 2017 में शुरू हुई थी. उस समय वह बालों का पफ बना कर हाईपोनी करती थी. मगर मेरे कहने पर उस ने तुरंत बाल कटा लिए. डाइट पर ध्यान दिया. मैं ने उसे स्प्राउट्स, बादाम, किसमिस, पनीर, मशरूम आदि खाने पर जोर दिया. फास्ट फूड बंद करा दिया. जब वह आई थी तब 1 राउंड दौड़ने में ही थक जाती थी.

‘‘मगर माउंटेनियर बनने के लिए ऐंडोरैंस लैवल काफी अधिक होना चाहिए. सो सब से पहले उसे ऐंडोरैंस ट्रेनिंग दी गई. 2 घंटे लगातार दौड़ने पर भी पल्स रेट 100 से ज्यादा नहीं होना चाहिए. इस के अलावा उसे वेट ट्रेनिंग की गई. इस सावधानी के साथ कि मसल्स न बने, क्योंकि मसल्स से इंजरी का खतरा बढ़ जाता है. इस के लिए हर संभव प्रयास किए गए कि उस के शरीर की ताकत बढ़े ताकि उस का शरीर कम से कम तापमान सह सके. उस की स्पीड भी अच्छी होनी चाहिए थी.

‘‘कई दफा पहाड़ों पर बहुत तेजी से बढ़ना पड़ता है. जातेजाते औक्सीजन खत्म होने लगती है. ऊपर औक्सीजन नहीं मिल पाती, इसलिए तेजी से आगे बढ़ना जरूरी हो जाता है. शरीर को फ्लैक्सिबिलिटी की ट्रेनिंग भी दी गई ताकि वह पहाड़ों पर पतली जगह से भी बच कर निकल सके. ऐनर्जी के लिए प्रोटीन और विटामिन सप्लिमैंट्स दिए गए.’’

पैरों से आती है बदबू तो करें यह उपाय

अक्सर देखा जाता है कि हाथों में ज्‍यादा पसीना आने वाले लोगों के पैरों में भी उतना ही पसीना आता है. ज्‍यादा पसीना आना भी एक प्रकार की बीमारी है, जिससे संक्रमण भी हो सकता है. पैरों में ज्यादा पसीना होने के कारण उनमें से बदबू आती है जिस वजह से कई बार आपको दूसरों के सामने शर्मिंदा भी होना पड़ सकता है. आइये जानते हैं पैर से पसीने और बदबू को दूर करने का उपाय.

– पांव में इंफेक्‍श्‍न न हो इसके लिये पैरों को साफ रखना बहुत जरुरी है. पसीने से बैक्‍टीरिया पनप सकता है जिससे स्‍किन और फुट इंफेक्‍शन होने की पूरी संभावना हो सकती है.

– पांव को साफ रखें, जब भी बाहर से घर पर आएं तो पैरों को एक अच्‍छे एंटी बैक्‍टीरियल सोप से धोना न भूलें. इससे पैर भी साफ होते हैं और पसीना भी दूर होता है.

– पैरों से पसीने को दूर करने के लिये, पैरों को हफ्ते में दो-तीन बार मेनीक्‍योर करें. चाहें तो गरम पानी में टी ट्री औयल मिला कर केवल उसमें अपने पैरों को डाल कर बैठ जाएं.

– कौटन बौल ले कर उसे सर्जिकल स्पिरिट में डुबा कर अपने पैरों को पोछिये. लेकिन पैरों पर लगाने से पहले इसे एक बार टेस्‍ट जरुर कर लें. अगर इसको प्रयोग करने से कोई जलन महसूस नहीं होती तो इसको बड़े आराम से प्रयोग किया जा सकता है. इसको पैर के हर कोने तक लगाएं और फुट इंफेक्‍शन से बचे.

– हमेशा सूती मोजे ही पहने और उन्‍हें हर दूसरे दिन धोएं. साथ ही हर दूसरे दिन अपने जूतों को भी बदलें. अपने पहने जा चुके जूतों को सूरज की धूप में कुछ घंटे जरुर रखें, जिससे उसमें पनप रहे बैक्‍टीरिया आदि का नाश हो सके.

– पांव से कठोर स्‍किन को साफ करें. हार्ड हो चुकी स्‍किन, डेड स्‍किन होती है जिसे रगड़ कर निकाल देना चाहिये. ज्‍यादा पसीना आने से डेड स्‍किन में बैक्‍टीरिया पैदा हो सकता है, इसलिये हर रोज नहाते वक्‍त अपने पैरों को रगड़ना न भूले. प्‍यूमिक स्‍टोन का प्रयोग कर के अपनी एडियों और पांव को साफ करें.

– प्‍लास्‍टिक, सिंथेटिक जूते और चप्‍पल न ही पहने तो अच्‍छा होगा. इससे पैरों में और भी ज्‍यादा पसीना आता है. चमड़े की चप्‍पल और खुले सैंडल, पसीने को पैदा होने से रोकते हैं.

हद है ऐसी मूर्खता की

सबरीमाला विवाद पर स्मृति ईरानी का यह कहना कि क्या मैं माहवारी से सना खून का सैनिटरी पैड किसी दोस्त के घर ले जा सकती हूं, उन की मूर्खता और दकियानूसीपन की निशानी है. सबरीमाला मंदिर में औरतों का प्रवेश किसी भी वजह से बंद हो पर यह माहवारी के खून से दूषित हो जाने के कारण तो नहीं है.

जहां तक सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बात है, तो वह बिलकुल सही है क्योंकि औरतों का कहीं भी प्रवेश बंद होना अपनेआप में गलत है. स्मृति ईरानी के यह कहने का कि दोस्त के घर खून का पैड ले कर नहीं जा सकते सुप्रीम कोर्ट के फैसले से कोई मतलब नहीं है. इस मूर्खतापूर्ण बयान का तो मतलब है कि खून के पैड के साथ कोई भी औरत कहीं भी नहीं जा सकती, मंत्री की कुरसी पर भी नहीं बैठ सकती.

अगर बात केवल खून से सने पैड की होती तो सबरीमाला में औरतों का प्रवेश तभी बंद होना चाहिए था जब वे माहवारी से हों. गर्भवती औरतों को तो शायद प्रवेश मिल जाना चाहिए था.

स्मृति ईरानी का बयान असल में उस मानसिकता की देन है जो ‘घरघर की कहानी’ में जम कर बेची गई थी जिस के हर दूसरे सीन में पूजापाठ थी, जगहजगह मंदिर थे, हर जगह संतोंमहंतों की जयजयकार थी. स्मृति ईरानी को वहीं से संघ ने पकड़ा और इसी कारण जम कर बोलने का मौका दिया. ‘घरघर की कहानी’ में औरतों को आजाद नहीं रस्मों का गुलाम ही दिखाया गया था और आज भी स्मृति ईरानी उस सोच की गुलाम हैं. वैसे तो उन की पूरी पार्टी ही ऐसी है. यहां तक कि कांग्रेस या समाजवादी भी पीछे नहीं हैं.

सबरीमाला में पुजारियों की जिद कि वे मंदिर बंद कर देंगे पर औरतों को घुसने न देंगे असल में सुखद समाचार है. मंदिर तो हर जगह बंद होने चाहिए क्योंकि पिछले 2000 सालों में औरतों ने मंदिरों, मसजिदों और चर्चों में ज्यादा यातनाएं सही हैं, बजाय आम पुरुषों के हाथों. पुरुष उन्हें भोगते हैं तो साथ ही खुश भी रखते हैं. धर्मस्थल उन से लेते हैं देते नहीं.

स्मृति ईरानी का तर्क कुछ ज्यादा ले जाएं तो पुरुष भक्त के शरीर में भी कोई मलमूत्र नहीं रहना चाहिए ताकि देवता दूषित न हो. आजकल पुरुष जो मंदिर में चले जाते हैं वे उस मलमूत्र का क्या करते हैं, यह क्या स्मृति ईरानी बताएंगी?

बेक्ड वैजिटेबल लजानिया

सामग्री

– 11/2 कप मिक्स वैजिटेबल्स कटी व उबली (गाजर, फ्रैंचबींस, पत्तागोभी, मटर)

– 2 प्याज कटे

– 1 बड़ा चम्मच अदरकलहसुन का पेस्ट

– थोड़ी सी शिमलामिर्च कटी

– 2 टमाटर कटे

– 1 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

– चुटकीभर गरममसाला

– थोड़ी सी धनियापत्ती कटी

– थोड़ा सा लो फैट पनीर

– 11/4 कप टोमैटो प्यूरी

– 1/2 बड़ा चम्मच औयल

– 6 लजानिया शीट्स

– नमक स्वादानुसार.

विधि

पैन में घी गरम कर प्याज व अदरकलहसुन का पेस्ट डाल कर अच्छी तरह भूनें. फिर इस में शिमलामिर्च और टमाटर डाल कर भूनें.

अब मिक्स वैजिटेबल्स, लालमिर्च पाउडर, गरममसाला, नमक और धनियापत्ती डाल कर थोड़ी देर पकाएं. इस के बाद बेकिंग ट्रे पर लजानिया शीट लगा कर 2 लेयर तैयार करें.

फिर ऊपर से पनीर के टुकड़े डालें और ओवन में 200 डिग्री सैल्सियस पर 10 मिनट बेक कर गरमगरम सर्व करें.

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