गोद लिए बच्चे से कभी भी न छिपाएं सच

‘‘मां तुम ने अब तक यह सचाई मुझ से खुल कर क्यों नहीं कही कि मैं एक अडौप्टेड चाइल्ड हूं?’’ सत्यन अंतिकाड़ की एक फिल्म में अच्चू का किरदार निभा रही कलाकार मीरा जास्मीन अपनी मां का किरदार निभाने वाली अभिनेत्री उर्वशी से यह पूछती है. फिल्म में वनजा अपनी अडौप्टेड बेटी से यह कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाती कि वह उस की गोद ली बेटी है. वनजा सिंगल पेरैंट है, वह सोचती है कि अब तक पिता के बारे में कुछ न जान पाने का ही दुख उस की बेटी को था, अब मां भी झूठी है, यह जानेगी तो इन सब बातों को कैसे बरदाश्त करेगी. इसी कारण उस ने बेटी से यह सचाई छिपा कर रखी थी. अनाथ बच्चों को गोद ले कर अपना बनाने की इच्छा लिए हमारे बीच न जाने कितने लोग होंगे, लेकिन बच्चे को गोद ले लेने के बाद उस को यह सचाई खुल कर बताने से सब हिचकिचाते हैं कि वह उन की गोद ली संतान है. दरअसल, इस के पीछे यह धारणा रहती है कि यदि बच्चे और समाज को यह पता चलेगा तो समाज का नजरिया उन के बच्चे के प्रति बदल जाएगा और बच्चा भी यह सब जानने के बाद अपने पेरैंट्स से नफरत करने लगेगा. इसी डर के कारण लोग बच्चों को सचाई बताने से डरते हैं.

लेकिन आज जमाना बदल रहा है. नई पीढ़ी इन समस्याओं से अवगत होने के बावजूद इस सचाई के साथ जिंदगी जीने के लिए मानसिक रूप से तैयार है.

नई पीढ़ी का दृष्टिकोण

गोद लिए बच्चों से सारे तथ्य खुल कर कहने की आवश्यकता पर अर्चकुलम, केरल के एक ओपन फोरम में चर्चा की गई. इस चर्चा में इस विषय पर नई पीढ़ी का बेहद सकारात्मक दृष्टिकोण देखने को मिला. अनेक तरह के इलाज करवाने व धन और समय को व्यय कर बायोलौजिकल बच्चे को पाने से बेहतर एक अनाथ बच्चे का सहारा बनने की ललक नई पीढ़ी में देखने को मिली. लाइफस्टाइल, दृष्टिकोण, विचारों में बदलाव, साक्षरता, स्त्री की आर्थिक रूप से आत्मनिर्भरता व पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव आदि से अडौप्शन द्वारा पेरैंट्स कहलाने को प्रोत्साहन मिला है. अविवाहित महिलाएं भी अपने जीवन में सिंगल पेरैंट बनना चाहती हैं. इस के लिए वे बच्चे को गोद लेना पसंद करती हैं.

सामाजिक प्रभाव

राजगरी कालेज औफ सोशल साइंस, कलमशेरी, केरल की अडौप्शन कोआरडिनेटिंग एजेंसी की प्रोग्राम कोआरडिनेटर मीना करुविला बताती हैं, ‘‘बच्चे को गोद लेने की बात पर नई पीढ़ी बहुत लिबरल है.’’ पास बैठे 30 वर्ष से कम उम्र के दंपतियों की ओर इशारा कर के मीना कहती हैं, ‘‘इन की शादी को कई साल हो गए लेकिन अब तक बच्चे नहीं हुए, इसलिए ये बच्चे को गोद लेने के लिए यहां आए हैं. युवा पीढ़ी आज बेहिचक बच्चे को गोद लेने के लिए सामने आ रही है. इस से पुराना सामाजिक प्रभाव कम हुआ है. ज्यादातर वे लोग ही बच्चे को गोद लेने के लिए सामने आते हैं, जो बचपन से बच्चों से प्रेम व लगाव महसूस करते हैं. साथ ही, गोद लिए बच्चों से बिना सचाई छिपाए उन को समाज के सामने लाने के लिए नई पीढ़ी तत्पर है.

‘‘गोद लिए बच्चे यदि अपने पेरैंट्स से यह सचाई जानें तो बेहतर रहता है. मातापिता स्वयं तैयार रहें कि बच्चे से ये सब बातें कब और कैसे कहनी हैं. अडौप्शन क्या है, इस के बारे में भी बच्चे को लगभग 4 साल की उम्र से ही कहानियों के जरिए समझाना शुरू कर दें. अन्य परिवारों, जिन्होंने बच्चे गोद लिए हैं, से मिल कर इन सब बातों को शेयर करें. ‘‘बच्चों को डांटतेडपटते समय ऐसी बातें न कहें, जिस से बच्चे के मन पर कोई नकारात्मक भाव पैदा हो. किशोरावस्था तक पहुंचने से पहले ही बच्चे को सारी बातें बता दें, लेकिन बचपन में ही बच्चे से इन बातों को कह देना ज्यादा बेहतर होगा.’’  गोद लिए बच्चे को रिश्तेदारों, स्कूली मित्रों व पासपड़ोस के बच्चों आदि द्वारा असलियत बताए जाने की ज्यादा संभावना होती है. बच्चा अन्य किसी से इन बातों को जाने, इस से बेहतर होगा कि पेरैंट्स स्वयं ही बच्चे को इस बारे में बताएं. ऐसा होगा तो बच्चे में आत्मविश्वास की कमी या मानसिक परेशानी होने की संभावना कम होगी.

एकाएक बदलाव

मीना बताती हैं, ‘‘कुछ मातापिता बच्चों को सोशल वर्कर्स के पास ले जाते हैं ताकि वे उन्हें सचाई बताएं, लेकिन हम उन्हें सलाह देते हैं कि ये सब बातें बच्चे मातापिता से ही जानें तो बेहतर होगा. सोशल वर्कर की मदद लेने आए एक दंपती जिन्होंने 15-16 साल तक बच्चे को सचाई नहीं बताई थी, का कहना था कि उन के बच्चे के बरताव में एकाएक बदलाव आ गया है, उसे हर समय गुस्सा आता है. ‘‘जब बच्चे से बात की तो पता चला कि उस ने अलमारी में रखे अडौप्शन पेपर्स पढ़ लिए थे, जिस से वह जान गया था कि वह गोद लिया बच्चा है. अचानक पता चली इसी बात से बच्चा बेहद विचलित हो गया था.’’

सचाई जल्दी से जल्दी बताएं

सिंगल पेरैंट को भी बच्चे से सारी बातें खुल कर कह देनी चाहिए. गोद लेने की बात बच्चे को जितनी जल्दी पता चल जाए, अच्छा है. सिंगल पेरैंट होने की आयु सीमा 45 वर्ष तक है, वहीं दंपती 55 वर्ष तक बच्चा गोद ले सकते हैं. 45 से कम उम्र के दंपती को अडौप्शन एजेंसी 1 वर्ष की आयु के बच्चे को गोद देती है. केरल में लोग लड़कियों को गोद लेने में ज्यादा रुचि दिखाते हैं, क्योंकि लड़कियां ज्यादा स्नेहमयी होती हैं. उन में पेरैंट्स को छोड़ कर जाने की आशंका कम होती है.

कानूनी अधिकार

एडवोकेट टी.एस. उन्नीकृष्णन बताते हैं कि बच्चा गोद लेने के लिए बहुत से लोग सामने आ रहे हैं, लेकिन कानूनी रूप से अडौप्शन के प्रति लोग ज्यादा रुचि नहीं दिखाते हैं. जुवानाइल जस्टिस ऐक्ट के मुताबिक, बच्चे को कानूनी तौर पर स्वतंत्र घोषित करें तो बच्चे के ऊपर से बायोलौजिकल पेरैंट्स का अधिकार खत्म होगा. अडौप्शन से पहले और बाद में पेरैंट्स के साथ काउंसलिंग की जाती है. इस के बाद बच्चे से परिचय व बातचीत करने का मौका भी दिया जाता है. बच्चे और पेरैंट्स के बीच इमोशनल बौंडिंग बहुत जरूरी है और यह एकदूसरे से पहली बार मिलते समय हो तो ज्यादा अच्छा होता है. इस से जाति, धर्म, रंग, भाषा आदि का भेद समाप्त हो जाता है.   

अप्पा की लुलुकुट्टी

5 वर्षीय लुलुकुट्टी का असली नाम लया है, जो गायक रमेश मुरली एवं ब्यूटीशियन सीमा की गोद ली बेटी है. रमेश मुरली मलयालम के प्रोफैशनल सिंगर हैं. लया सेंट आंटणीस के यू.के.जी. में पढ़ रही है. रमेश और सीमा लया को अर्नाकुलम निर्मला शिशु भवन अनाथालय से उस समय लाए थे, जब वह 2 महीने की थी. जब बच्चा पाने के लिए रमेश और सीमा ने इलाज करवा लिए, लेकिन उन के आंगन में बच्चे की किलकारी नहीं गूंजी तो उन्होंने यह फैसला लिया. सीमा व रमेश अब वे तनाव भरे दिन याद भी नहीं करना चाहते. रमेश के पिता मुरलीधरन एक रिटायर्ड बैंक कर्मचारी हैं. वह 27 वर्ष तक आकाशवाणी में वोकल आर्टिस्ट भी रह चुके हैं. रमेश की मां नृत्य की अध्यापिका हैं. दोनों का कहना है कि घर में लुलुकुट्टी के आ जाने के बाद हमें रिटायर्ड जिंदगी की ऊब महसूस नहीं होती. वह अपनी तोतली जबान में छोटीछोटी बातें करती है तो मन खुश हो जाता है. रमेश की मां बताती हैं, ‘‘लुलु पढ़ाईलिखाई में हमेशा आगे रहती है और 2 साल की आयु में ही वह नृत्य मुद्राएं बनाती एवं गाने की इच्छा जाहिर करती है.’’

सानी के प्यारे घर में

‘‘हम अपने दोनों बच्चों के बारे में बात करने को तैयार हैं, बशर्ते आप उन का नाम व पता न लिखें,’’ 2 बच्चों को गोद लेने वाली सानी कहती हैं. 10 व 5 वर्षीय उन के दोनों गोद लिए बच्चों, अरुण और किरण को आंखों से कम दिखाई देता है. सानी कहती हैं, ‘‘मेरे बच्चे अपने बारे में सब कुछ जानते हैं, लेकिन स्कूल में उन के साथ पढ़ने वाले दोस्तों को उन की सचाई नहीं मालूम है. मैं अपने बच्चों की पहचान बताने से इसलिए हिचकती हूं कि कहीं यह सब जानने के बाद उन के साथ पढ़ने वाले दोस्त उन्हें किसी तरह का कोई मानसिक कष्ट न पहुंचाएं. ‘‘हम ने बच्चा गोद लेने के लिए कई अनाथालयों में बात की लेकिन हर जगह से ‘न’ सुनने को मिला. इसी बीच वैत्तिरी में बात हुई तो उन्होंने बताया कि एक बच्चा है, जिसे कम दिखाई देता है. इसलिए उसे कोई गोद लेने को तैयार नहीं है. ‘‘मात्र आंखों से कम दिखाई देने के कारण हम उस बच्चे को छोड़ना नहीं चाहते थे, इसलिए सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद उसे घर ले आए. यह जान कर कि बच्चा अडौप्टेड है, करुनागपल्लि प्रियंका अस्पताल के डाक्टर राजीव कम खर्च में मेरे बेटे का इलाज करने के लिए तैयार हो गए. ‘‘मैं अपने मातापिता की इकलौती संतान थी, इसलिए अकेलेपन का तनाव मैं ने हमेशा झेला है. यह सोच कर कि कहीं मेरा बेटा भी इस तनाव को न झेले, मैं ने एक और बच्चे को गोद लेने का निर्णय किया. आश्चर्य की बात यह थी कि मावेलीक्कारा के अनाथालय में जब हम ने बात की तो वहां भी एक ऐसा बालक था, जिसे आंखों से कम दिखाई देता था. हम ने उसे भी गोद ले लिया और उस की आंखों का भी इलाज करवाया.’’

मैं अपने शादीशुदा लाइफ में तालमेल नहीं बैठा पा रही, क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं अपने 4 सालों के वैवाहिक जीवन में तालमेल नहीं बैठा पाई. अपने अड़ियल स्वभाव के कारण बात इतनी बढ़ गई कि मेरा तलाक हो गया. पति से अलग हो जाने के बाद मुझे एहसास हुआ कि मैं ने जिंदगी में क्या खो दिया है. मुझे अपनी गलतियों और व्यवहार के लिए बहुत पछतावा है. मैं ने अपने पति से कई बार माफी मांगी है. उन से कहा कि मैं कुसूरवार हूं और बहुत शर्मिंदा हूं. वे मुझे माफ कर दें. पर वे कहते हैं कि उन्हें मुझ से कोई मतलब नहीं है. वे मुझ से बात भी नहीं करना चाहते. बताएं क्या करूं?

जवाब-

वैवाहिक जीवन में तालमेल बैठाने का प्रयास करने के बजाय आप ने संबंधविच्छेद करने का फैसला ले लिया. तलाक किसी समस्या का हल नहीं है. तलाक लेने के बाद आप पछता रही हैं लेकिन अब पछताने से कुछ हासिल नहीं होने वाला. इतना बड़ा फैसला लेने से पहले आप ने ठंडे दिमाग से सोचा होता तो आज आप को अपराधबोध न होता. अब चूंकि आप निर्णय ले चुकी हैं और तलाक भी हो चुका है तो अब पति के सम्मुख जा कर माफी मांगने या गिड़गिड़ाने से कुछ नहीं होगा.

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जब लेना ही पड़े तलाक तो जिंदगी में कुछ इस तरह आगे बढ़ें

गणेशस्पीक्स डौटकौम नाम के वैब पोर्टल द्वारा किए गए एक सर्वे में पाया गया है कि  65% महिलाएं तलाक या जीवनसाथी द्वारा धोखा दिए जाने के मसलों को ले कर काफी परेशान रहती हैं जबकि 35% पुरुषों में ही यह तनाव पाया गया.

यह आकलन पोर्टल द्वारा फोन पर उपलब्ध कराई जाने वाली परामर्श काल सेवा से मिले डाटा के आधार पर तैयार किया गया है. 2016 में महिलाओं द्वारा रिलेशनशिप से संबंधित मुद्दों के लिए की गईं काल्स में पिछले वर्ष की तुलना में 45% का इजाफा हुआ. जाहिर है आज की महिलाएं अपने विवाह को जन्मजन्मांतर का बंधन मान कर हर ज्यादती चुपचाप सहने को तैयार नहीं हैं. उन्हें अपने जीवनसाथी का पूरा भरोसा एवं बीवी होने का पूरा हक चाहिए. पति या ससुराल वालों के अत्याचार सहने के बजाय वे तलाक ले कर अलग हो जाने को बेहतर मानती हैं.

दरअसल, अब लड़कियां पढ़लिख कर आत्मनिर्भर बन रही हैं. शादी के बाद वे अपने कैरियर को पूरा महत्त्व देती हैं और पति से भी बराबरी का हक चाहती हैं. ऐसे में जब दोनों के अहं टकराते हैं, तो आत्मसम्मान खोने के बजाय वे अलग दुनिया बसाना पसंद करती हैं. यही नहीं आज लोगों के मन में कम समय में अधिक से अधिक हासिल करने की प्रवृत्ति भी जोर पकड़ती जा रही है. पतिपत्नी

दोनों ही परिवार को कम वक्त दे पाते हैं, जिस से घर में तनाव रहता है. पतिपत्नी के बीच तालमेल का अभाव और शक की दीवारें भी दूरियां बढ़ाती हैं.

तलाक का फैसला लेना आसान है पर आज भी तलाक के बाद जिंदगी खासतौर पर एक महिला की उतनी आसान नहीं रह जाती. इस संदर्भ में अपनी किताब ‘द गुड इनफ’ में डाक्टर ब्रैड साक्स का कथन सही है कि पतिपत्नी सोचते हैं तलाक के बाद उन की जिंदगी में सुकून आ जाएगा. रोजरोज के झगड़ों का अंत हो जाएगा. पर यह उसी तरह संभव नहीं जैसे एक ऐसी शादीशुदा जिंदगी की कल्पना जिस में केवल खुशियां ही खुशियां हों. इसलिए प्रयास यही होना चाहिए कि जितना हो सके तलाक को टाला जाए.

कब जरूरी है तलाक

जब पतिपत्नी के बीच ‘तीसरा’ मौजूद हो: पति हो या पत्नी, किसी के लिए भी बेवफाई का गम सहना आसान नहीं होता. पतिपत्नी के बीच इस मसले पर झगड़े बढ़ते हैं और बात मरनेमारने तक पहुंच जाती है. समझदारी इसी में है कि ऐसे हालात में दोनों आपसी सहमति से अलग हो जाएं.

बेमेल जोड़े: कई दफा परिस्थितिवश बेमेल जोड़े बन जाते हैं. पतिपत्नी की आदतें, विचार, जीवन के प्रति नजरिया, स्टेटस, शिक्षा वगैरह सब अलगअलग होते हैं. उन के मन भी नहीं मिलते. ऐसे में उम्र भर खुद को या परिस्थितियों को कोसते रहने से बेहतर है तलाक ले कर मनपसंद साथी के साथ नया जीवन शुरू करना.

तनाव और घुटन: कभीकभी रिश्तों में इतनी कड़वाहट भर जाती है कि पतिपत्नी के लिए एक ही छत के नीचे रहना कठिन हो जाता है. रोजरोज के लड़ाईझगड़ों से उन का दम घुटने लगता है. इस का बुरा असर काम और बच्चों पर भी पड़ता है. ऐसे में जीवन को बिखरने से बचाने के लिए बुरी यादों को अलविदा कहना जरूरी है.

जाहिर है कि जब वैवाहिक जिंदगी बोझ बन जाए तो उस बोझ को उतार देना ही बेहतर है. तलाक के बाद परेशानियां आएंगी पर मन में विश्वास रखिए कि लंबी काली सुरंग का दूसरा सिरा रोशनी में खुलता है. यदि आप धैर्य और समझदारी से काम लेंगे तो कोई वजह नहीं कि परेशानियां खुद हार मान लें. तलाक यदि दलदल है तो गंद तो लगेगा ही पर प्रयास किया जाए तो इस दलदल से उबरना नामुमकिन नहीं.

लंदन की किंग्सटन यूनिवर्सिटी द्वारा 16 से 60 साल की उम्र के 10 हजार लोगों पर किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि तलाक के करीब5 साल बाद नकारात्मक वित्तीय अवस्था के बावजूद महिलाएं ज्यादा खुश और संतुष्ट पाई गईं और इस की वजह काफी हद तक उन की आजादी थी.

तलाक के बाद आने वाली परेशानियों को समझदारी से दूर किया जा सकता है. आइए, जानते हैं कि कैसे:

आर्थिक परेशानियां

तलाक के बाद रहनसहन का स्तर प्रभावित होता है. आमदनी के स्रोत तो घट जाते हैं पर जिम्मेदारियां और खर्च दोगुने हो जाते हैं. घर अलग होता है, तो स्वाभाविक है कि उसे चलाने का खर्च भी बढ़ेगा.

सामान्य कंफर्ट की चीजों के अलावा खानेपीने, घूमनेफिरने, रहने का सारा खर्च

अकेले वहन करना पड़ता है. मनोरंजन हो या नई ड्रैसेज पर किया जाने वाला खर्च, आप को कम से कम रुपयों में बेहतर पाने का प्रयास करना सीखना पड़ेगा.

भविष्य में संभावित आर्थिक परेशानियों से बचने के लिए तलाक की प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही फाइनैंशियल मसलों पर सतर्क रहना बहुत जरूरी है. तलाक के बाद संपत्ति में से मिलने वाला हिस्सा और ऐलीमनी आप के भविष्य को आसान या कठिन बना सकती है.

यदि आप जौब नहीं कर रहीं तब तो फाइनैंशियल सिक्योरिटी और भी अहम हो जाती है. अकसर शादी के दौरान महिलाएं फाइनैंशियल मामलों को पूरी तरह पति पर छोड़ देती हैं. यह उचित नहीं. अपने पति की इनकम, टैक्स पेमैंट्स, लोन इंस्टालमैंट्स, एफडीज, क्रैडिट बैलेंस और डिसपोजिशन, बैंक अकाउंट्स, मंथली बिल्स आदि के बारे में पूरी जानकारी रखें. इस के अलावा मैरिटल प्रौपर्टीज, ज्वैलरीज, व्हीकल्स और इंश्योरैंस पौलिसीज जैसी चीजों को नजरअंदाज करने की गंभीर गलती न करें.

ये सब ऐलीमनी तय करने के काम आते हैं. यही नहीं, शेयर्स और म्यूचुअल फंड्स में भी अपने पति के निवेश का ट्रैक रखें. तलाक से पहले ये फाइनैंशियल डिसीजन लेने में देर न करें:

  • क्रैडिट कार्ड्स ब्लौक कर दें.
  • जौइंट अकाउंट्स क्लोज करें.
  • अपने पीएफ अकाउंट, डिमैट अकाउंट, सेविंग अकाउंट्स वगैरह में नौमिनी बदल दें.
  • इंश्योरैंस नौमिनी भी बदल दें.
  • वसीयत में बदलाव लाएं.
  • ईसीएस टर्मिनेट करें. किसी भी जौइंट लोन के लिए अपने बैंक को सूचित कर दें.

यह भी ध्यान रखें कि स्त्रीधन आप का अपना है, उसे पति के साथ तलाक के समय बांटने की जरूरत नहीं है. कोई भी फैसला लेते समय अपने बच्चों के भविष्य को फाइनैंशियल रूप से मजबूत करने के बारे में जरूर सोचें.

बच्चों पर असर

कहीं न कहीं तलाक का गहरा असर बच्चों के मन पर पड़ता है. तलाक यानी बच्चों की दुनिया का बंट जाना. 2 शख्स जिन्हें वह दुनिया में सब से ज्यादा प्यार करता था, उन का आपस में एकदूसरे से प्यार नहीं करने का एहसास बच्चों को भयभीत, चिड़चिड़ा और विद्रोही बना देता है. स्कूलकालेज में उन की परफौर्मैंस खराब रहने लगती है. कई दफा वे खुद को तलाक का दोषी मानने लगते हैं.

इन बातों का मतलब यह नहीं कि बच्चों की खातिर आप टूटे हुए रिश्ते को ढोने का प्रयास करती रहें, क्योंकि घर के तनाव एवं लड़ाईझगड़ों का असर वैसे भी बच्चों के दिमाग को कुंद कर देता है.

बेहतर होगा कि आप प्यार से बच्चों को समझाएं कि इस सब के पीछे उन का कोई दोष नहीं. ईमानदारी के साथ उन के हर सवाल का जवाब दें. अपने जीवन की हकीकत बताएं और हौसला बढ़ाएं कि सब ठीक हो जाएगा. अलग होने के बावजूद मांबाप दोनों बच्चों को क्वालिटी टाइम दें, तो धीरेधीरे वे सामान्य जीवन जीने लगेंगे.

सामाजिक बहिष्कार

तलाक के बाद अकसर महिलाएं सामाजिक रूप से अलगथलग पड़ जाती हैं. कई दफा वे लोग भी उन्हें नजरअंदाज करने लगते हैं जिन्हें वे खुद के करीब मानती थीं.

संभव है कि तलाक के बाद कौमन फ्रैंड्स आप के ऐक्स को तो इनवाइट करें पर आप की काल्स को भी नजरअंदाज कर दें. आप की मां आप के ऐक्स की साइड ले कर बात कर आप के दोष गिनाएं.

इन बुरे दिनों में आप को हर जगह कपल्स नजर आएंगे. आप वीकैंड भी ऐंजौय नहीं कर सकेंगी, क्योंकि यह फैमिली टाइम होता है, जबकि फैमिली आप के पास है ही नहीं. बच्चों से मिलने के लिए भी अपनी बारी का इंतजार करना बहुत कष्टकारी होगा.

सिनेमा हाल, मौल, मार्केट, रैस्टोरैंट वगैरह कहीं भी जाने से आप बचना चाहेंगी. आप को महसूस होगा जैसे लोग आप को ही घूर रहे हैं या दया की नजरों से देख रहे हैं. आप के दोस्त/रिश्तेदार अपने पति, बच्चों या दोस्तों के साथ व्यस्त मिलेंगे.

ऐसे हालात में टूटने या सिमट जाने से बेहतर है कि रिश्तों की असलियत स्वीकारते हुए नए दोस्त बनाएं, अपने जैसी स्थिति वालों से मिलें. आप को जीने का नया नजरिया, नया अंदाज मिलेगा. मुमकिन है कि आप को नया जीवनसाथी भी मिल जाए, जो आप की कद्र करे, आप को समझे.

लोलुप नजरों का सामना

प्राय: तलाक के बाद औफिस और आसपास के कुछ पुरुष स्त्रियों को लोलुप नजरों से देखने लगते हैं. यदि आप सिंगल हैं और सिंगल होने को तैयार नहीं तो भी पुरुष आप के आगेपीछे घूमने से बाज नहीं आते. ऐसे लोग चांस मारने का कोई मौका नहीं छोड़ते. जाहिर है, आप बहुत असहज महसूस करेंगी.

ध्यान रखें, आप नहीं वरन आप की स्थितियों की वजह से लोग इस नजर से देख रहे हैं. परेशान होने के बजाय इन बातों को हैंडल करना सीखें. बिंदास बनें. जमाने की परवाह करने से जमाना और भी पीछे पड़ जाता है. अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीएं.

असर आप पर

तलाक के दौरान आप के आत्मविश्वास की धज्जियां उड़ती हैं. लोगों के ताने सुनने पड़ते हैं कि आप अपने रिश्ते को बना कर नहीं रख पाईं. आपसी सहमति से तलाक नहीं मिला तो कोर्ट में लंबे समय तक मामला खिंचता है. इस दौरान आप के चरित्र पर प्रश्नचिह्न लगाने और कीचड़ उछालने वालों की कमी नहीं रहती.

तलाक के बाद प्राय: आप का खुद से और रिश्तों से भी विश्वास उठ जाता है. आप यह बात फिर स्वीकार नहीं कर पातीं कि कोई आप से सच्चा प्यार भी कर सकता है. कहीं दोबारा शादी करने पर फिर ऐसा ही हुआ तो? यह सवाल आप के जेहन में उठता रहता है.

यही नहीं, एक तरफ आप अपने पूर्व साथी से अभी भी प्यार करती होंगी, क्योंकि बीते वक्त में आप एक मन और 2 शरीर थे. वहीं दूसरी तरफ आप को उस पर गुस्सा भी आता होगा. आप खुद को उलझन में, अपमानित और बेसहारा महसूस करती होंगी. साथ बिताए हसीन पल आप को रहरह कर याद आएंगे.

इन सब से आप को खुद उबरना होगा. सामाजिक बनें, नई नौकरी जौइन करें, साथ ही पुरानी बातें भूल कर जिंदगी को नए सिरे से देखें, नया कल आप को बांहों में थाम लेगा.

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या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

अपनी फैमिली को परोसें Healthy और टेस्टी ‘स्टफ्ड मूंग दाल चीला’, फौलो करें ये स्टेप्स

दाल एक ऐसी चीज है, जिसे हर एक भारतीय परिवार अपने नियमित आहार में शामिल करता है. इसकी आसान उपलब्धता के कारन दालें, वयस्कों और बच्चों के लिए सबसे अच्छे प्रोटीन स्रोतों में से एक हैं. खासकर जब बच्चों की बात आती है, तो दाल एक सुपर फ़ूड है, जो बढ़ते हुए बच्चों को स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक सभी पोषक तत्व प्रदान करता है.

हमारे देश में दालों को अलगअलग स्थानों पर अलगअलग तरीको से प्रयोग में लाया जाता है. हालांकि, कभीकभी हम दालों का प्रयोग एक ही तरह से करके अपने रोजाना के भोजन को उबाऊ स्टेपल में बदल देते हैं. जिसकी वजह से बच्चे से लेकर बड़े तक रोज़-रोज़ इसे खाने से कतराते है और यही कारण है कि अधिकांश भारतीयों में प्रोटीन की कमी पायी जाती है.

इसलिए आज हम एक ऐसी रेसिपी बताने जा रहे हैं जो स्वाद के साथ-साथ आपके स्वास्थ्य का भी ध्यान रखेगी.

जी हां आज हम बनायेंगे ‘स्टफ्ड मूंग दाल चीला’.

पनीर और सब्जियों की स्टफिंग और मूंग दाल से बना ये चीला विटामिन और प्रोटीन का पॉवर-हाउस है.कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स और फाइबर की अधिकता के कारन ये मधुमेह रोगियों के लिए भी भोजन या नाश्ते का एक आदर्श विकल्प है और साथ ही साथ यह पचाने में आसान और खाने में स्वादिष्ट होता है.

और इसकी सबसे ख़ास बात ये है की इसको बनाने में तेल की मात्रा बहुत ही कम प्रयोग होती है, तो अगर जिनको ज्यादा तले खाने से परहेज है वे भी इसे बड़े स्वाद से खायेंगे..
तो चलिए बनाते है स्वादिष्ट और पौष्टिक ‘स्टफ्ड मूंग दाल चीला’.

हमें चाहिए-

मूंग दाल- 200 ग्राम भीगी हुई( 4 से 5 घंटे )
पनीर- 100 ग्राम(घिसी हुई )
प्याज-1 कप (बारीक कटी हुई)
शिमला मिर्च- ½ कप (बारीक कटी हुई)
गाजर- ½ कप (बारीक कटा हुआ)
फ्रेंच बीन्स-1/4 कप
अदरक लहसुन का पेस्ट- ¾ छोटी चम्मच
हरा धनिया- 3 से 4 टेबल स्पून (बारीक कटा हुआ)
नमक- स्वादानुसार
हरी मिर्च- 1 (बारीक कटी हुई)
तेल- 2 टेबल स्पून

बनाने का तरीका-

स्टफिंग के लिए-

1-सबसे पहले गैस पर एक पैन चढ़ा दीजिये, अब इसमें 1 चम्मच तेल डाल दीजिये. अब इसमें बारीक कटी हरी मिर्च डालकर हल्का सा भून लीजिए. इसके बाद, इसमें प्याज डाल कर बस थोडा सा भूनिए ,ज्यादा लाल नहीं करना है.

2- 1 मिनिट बाद, इसमें शिमला मिर्च,गाज़र,फ्रेंच बीन्स और नमक डालकर करीब 2 से 3 मिनट मध्यम आंच पर भून लीजिए. सब्जियों को क्रन्ची ही रखना है. अब गैस को बंद कर दीजिए.

3-अब भुनी हुई सब्जियों को एक प्लेट में निकाल लीजिए ताकि ये जल्दी से ठंडा हो जाएं. फिर, सब्जियों में पनीर कद्दूकस करके डाल लीजिए और पनीर को सब्जियों में अच्छी तरह से मिला लीजिए. स्टफिंग बनकर तैयार है.

चीला बनाने के लिए-

1- सबसे पहले मिक्सर जार में भीगी हुई मूंग की दाल डाल दीजिए. साथ ही 1 से 2 टेबल स्पून पानी, 1 हरी मिर्च मोटी-मोटी काटकर, ¾ छोटी चम्मच अदरक का पेस्ट और ¾ छोटी चम्मच नमक भी डाल दीजिए और इन्हें हल्का दरदरा पीसकर तैयार कर लीजिए.

2-अब इसे एक बाउल में निकाल लीजिये और इसमें थोडा सा पानी डालकर बिल्कुल डोसे जैसा बैटर तैयार कर लीजिये.

(NOTE:बैटर ज्यादा गाढ़ा या ज्यादा पतला नही होना चाहिए)

3-चीला सेकने के लिए, गैस पर गरम होने रख दीजिए. तवे पर थोड़ा सा तेल डाल लीजिए और चारों ओर एक जैसा फैला दीजिए और तवे को और गरम होने दीजिए. दाल में थोड़ा सा हरा धनिया डाल दीजिए.

4-तवे के गरम होने के बाद, गैस बिल्कुल धीमी कर दीजिए और तवे को थोड़ा सा ठंडा कर लीजिए. चीला फैलाने के लिए एक चमचा भरकर बैटर तवे पर डाल दीजिए और चमचे को गोल-गोल घुमाते हुए पतला चीला फैला लीजिए. चीला फैलाने के बाद, गैस तेज कर लीजिए और चम्मच से चीले के चारों ओर थोड़ा-थोड़ा तेल डाल दीजिए. जरा सा तेल चीले के ऊपर भी डाल दीजिए और चीले को नीचे की ओर से अच्छा गोल्डन ब्राउन होने तक सेक लीजिए.

5-चीले के ऊपर से थोड़ा सा गहरे रंग का होते ही, इसे पलट दीजिए और दूसरी ओर से हल्की ब्राउन चित्ती आने तक सेक लीजिए. अब फिर चीले को पलट कर गैस को एकदम धीमा कर दीजिए.

6-अब 2 से 3 छोटी चम्मच स्टफिंग रख दीजिए और चीले को दोनों किनारों से स्टफिंग को ढकते हुए मोड़ दीजिए. चीले को एक प्लेट में निकालकर रख लीजिए और इसी तरीके से सारे चीले बनाकर तैयार कर लीजिए.

7-तैयार है मूंग दाल का स्टफ्ड चीला .आप इसे दही और पुदीने की चटनी के साथ खा सकते हैं.

मेरे घुटने में दर्द रहता है, इससे कैसे छुटकारा पाया जा सकता है?

सवाल

मेरी उम्र 30 साल है. मैं जब भी बैठने वाले काम करती हूं तो उठते वक्त मेरे घुटनों में दर्द होने लगता है. दर्द के कारण मुझे हर काम में समस्या होती है. ऐसा क्यों हो रहा है और इस से कैसे छुटकारा पाया जा सकता है?

जवाब

नियमित जीवन में छोटीछोटी चीजें घुटने का दर्द दे सकती हैं. सामूहिक भोजन करना हो, घर का कामकाज करना हो या आपस में बातें करनी हों इन सभी कामों में घुटने मोड़ कर ही बैठना पड़ता है. यहां तक कि भारतीय शैली के शौचालय में भी घुटने के बल बैठना पड़ता है. बैठने के इस तरीके में घुटने पर दबाव पड़ता है, जिस से कम उम्र में ही घुटने खराब होने की आशंका बढ़ती है.

आप को अपने बैठने का तरीका बदलना चाहिए. समस्या को हलके में न लें क्योंकि धीरेधीरे आप का चलनाफिरना तक दूभर हो सकता है. इस समस्या से बचने का सब से अच्छा तरीका व्यायाम है. व्यायाम से जोड़ों की मांसपेशियां मजबूत रहती हैं, उन का लचीलापन बना रहता है और जोड़ों को उन से सपोर्ट भी मिलती है. वजन कम होने से जोड़ों पर दबाव भी कम पड़ता है. इस के अलावा शरीर को विटामिन डी पर्याप्त मात्रा में मिलना चाहिए. पैर मोड़ कर बैठने से बचें, आलथीपालथी मार कर न बैठें. लंबे समय तक खड़े होने से बचें.

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मैं 26 वर्षीय इंजीनियर हूं. मुझे दौड़नाभागना और खेलनाकूदना काफी पसंद है बावजूद इस के मेरे घुटनों में अभी से दर्द की समस्या होने लगी है. भागते वक्त ऐसा लगता है जैसे मेरे घुटनों के कप टूट जाएंगे. ऐसा क्यों है और इस का समाधान क्या है?

आप को रनर्स नी यानी पैटेलोफेमोर पेन सिंड्रोम की समस्या हो गई है, जो घुटनों के अत्यधिक इस्तेमाल के कारण होती है. जो लोग बहुत ज्यादा कसरत करते हैं उन के घुटने की मांसपेशियां कमजोर होने लगती हैं जिस के कारण घुटनों में दर्द उठता है. लेकिन आप को चिंता करने की जरूरत नहीं है क्योंकि कुछ अभ्यास से न सिर्फ इस समस्या की रोकथाम की जा सकती है बल्कि इस का इलाज भी संभव है. ऐसे में आप को ज्यादा से ज्यादा आराम करने की आवश्यकता है.

बर्फ को कपड़े में लपेट कर 2-3 दिन घुटनों की अच्छे से सिकाई करें. इस के अलावा आप क्रीप बैंडेज यानी गरम पट्टी भी बांध कर रख सकते हैं. यदि बावजूद इस के समस्या में राहत नहीं मिल रही है तो आप किसी अच्छे डाक्टर या फिजियोथेरैपिस्ट से परामर्श ले सकते हैं.

-डा. अखिलेश यादववरिष्ठ प्रत्यारोपण सर्जन, जौइंट रिप्लेसमैंट, सैंटर फौर नी ऐंड हिप केयर, गाजियाबाद. 

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055.

स्रूस्, व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

Winter Special : सर्दियों में रखें अपने बालों का खास खयाल, अपनाएं ये आसान तरीके

आप की त्वचा की तरह आप के बाल भी मौसम की मार झेलते हैं. चिलचिलाती गरमी बालों को बेहद रूखा बना देती है तो मौनसून की नमी उन की सतह पर फंगल इन्फैक्शन के खतरे को बढ़ा देती है. इस के बाद ठंड आने पर बाल काफी कमजोर और डल से हो जाते हैं.

ऐसे में आप अगर सर्दी के मौसम में अपने बालों की केयर के लिए निम्न खास तरीके अपनाएंगी तो आप अपने बालों को स्वस्थ और खूबसूरत रख सकती हैं.

हेल्दी डाइट

अगर आप अंदर से स्ट्रौंग हैं, तो इस का असर आप के बालों पर साफ नजर आता है. अगर आप अपनी डाइट में हेल्दी न्यूट्रिशन लेती हैं, तो इस से आप का शरीर स्वस्थ रहेगा और त्वचा पर भी चमक नजर आएगी. इस का असर बालों पर भी दिखेगा. इस के लिए आप ज्यादा से ज्यादा प्रोटीन युक्त डाइट लें, जिस में अंडे, चिकन, ओमेगा-3 फैटी ऐसिड, आयरन, काजू व बादाम आदि शामिल हों. इसके अलावा आयरन व फोलिक ऐसिड के सप्लिमैंट भी ले सकती हैं. ये आप के बालों को हेल्दी रखते हैं.

अगर आप की डाइट में न्यूट्रिशन की भरपूर मात्रा न हो तो सप्लिमैंट की जरूरत होती है. अत: अपने बालों को सर्दी की मार से बचाने के लिए आप विटामिन बी कौंप्लैक्स, प्रोटीन और कैल्सियम के सप्लिमैंट ले सकती हैं. अगर आप बहुत ज्यादा हेयरफौल से परेशान हैं तो डर्मेटोलौजिस्ट की सलाह लें.

ब्लोड्रायर का इस्तेमाल

पतझड़ के मौसम में नमी काफी कम होती है. ऐसे में ड्रायर और हौट आयरन का इस्तेमाल बालों पर कम करें. ऐसा करने पर आप के बाल सर्दी के मौसम में ब्लोड्रायर्स के इस्तेमाल के लिए तैयार रहेंगे. बालों पर ड्रायर का ज्यादा इस्तेमाल करने से सिर की परत के रोमछिद्र खुल जाते हैं. जिस से गंदगी रोमछिद्रों से अंदर प्रवेश कर जाती है. इस से बालों की जड़ें बेहद कमजोर हो जाती हैं. अत: बालों को ड्रायर करने से पहले अगर सिर की सतह पर बालों को सौफ्ट करने वाली क्रीम लगा ली जाए तो ड्रायर से होने वाला नुकसान काफी कम हो जाएगा.

रोजाना सिर की मसाज

बालों व सिर की सतह की मसाज के लिए हलका जैतून या नारियल का तेल इस्तेमाल करें. इस से बालों में नमी बनी रहती है. लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि आप बहुत ज्यादा औयलिंग शुरू कर दें. बहुत ज्यादा औयल को साफ करने के लिए आप को ज्यादा शैंपू का इस्तेमाल करना होगा जोकि बालों को नुकसान पहुंचा सकता है. आमतौर पर बालों में हफ्ते में 2 बार औयलिंग और मसाज करने से बाल स्वस्थ रहते हैं. लेकिन ठंड से पहले व ठंड के मौसम में रोजाना औयलिंग व मसाज करनी चाहिए.

मौइश्चराइजिंग शैंपू व कंडीशनर

सर्दी के मौसम में बालों का रूखा हो जाना आम बात है. ऐसे में अभी से मौइश्चराइजिंग शैंपू व कंडीशनर का इस्तेमाल शुरू कर दें. दही, अंडे व हिना के इस्तेमाल से बालों की नमी को बनाए रखा जा सकता है. अगर बालों में डैंड्रफ है तो नीबू का इस्तेमाल करें.

सिर की सतह रखें स्वस्थ

सिर की सतह को स्वस्थ रखने के लिए कुछ किस्म के ट्रीटमैंट भी ले सकती हैं. ये ट्रीटमैंट मैडिकल थेरैपी के रूप में उपलब्ध हैं जैसे, लेजर लाइट थेरैपी, ओजोन थेरैपी, स्टेम सैल थेरैपी और एलईडी थेरैपी. इन सभी थेरैपियों के जरीए बालों की सतह को स्वस्थ रखा जा सकता है. इन से डैंड्रफ के साथसाथ बालों की अन्य समस्याओं से भी छुटकारा मिल जाता है.

लेजर लाइट थेरैपी

हेयरफौल और स्कैल्प इन्फैक्शन के लिए: जब आप के सिर की सतह पर रक्त का प्रवाह सही न हो रहा हो या फिर हारमोन डैफिसिएंसी हो जिस में कि डीहाइड्रोटेस्टोस्टेरोन प्रमुख है, इन दोनों ही परेशानियों में सिर की सतह को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचता है. ऐसे में लेजर फोटोथेरैपी के जरीए सिर की सतह को इन परेशानियों से दूर किया जा सकता है.

इस थेरैपी में बालों की सतह को जैंटल व नरिशिंग लाइट से नहलाया जाता है. इस तरीके से बालों की सतह पर फिर से ऊर्जा का संचार होने लगता है और बालों की फिर से ग्रोथ होने लगती है. इस के अलावा लेजर थेरैपी से बालों की सतह के रुक चुके रक्तप्रवाह को भी सही किया जा सकता है.

ओजोन थेरैपी

यह बालों की ग्रोथ और रिपेयर के लिए है. शरीर के किसी भी हिस्से में औक्सीजन के प्रवाह को ओजोन थेरैपी के नाम से जाना जाता है. औक्सीजन के ये फ्रीरैडिकल्स शरीर में मौजूद हानिकारक तत्त्वों को शरीर से बाहर करने में सहायक होते हैं. ऐसे ही तत्त्व हमारे सिर की सतह पर भी होते हैं जोकि ओजोन थेरैपी के जरीए सतह से बाहर निकल जाते हैं. इस थेरैपी के असर से बालों का गिरना पूरी तरह बंद हो जाता है और नए बाल भी उगने शुरू हो जाते हैं.

स्टेम सैल थेरैपी

इस ट्रीटमैंट में हम विटामिन, अमीनोऐसिड्स व पैप्टाइड्स के मिक्सचर को दूसरे ऐक्टिव इनग्रीडिएंट्स के साथ मिला कर सिर की सतह के स्टेम सैल्स को ऐक्टिव करते हैं. इस से बालों की ग्रोथ तेज हो जाती है. यह ट्रीटमैंट कई सैशन में पूरा होता है. तेज रिकवरी के लिए हेयर लेजर एलईडी थेरैपी का इस्तेमाल भी किया जा सकता है.

एलईडी थेरैपी

एलईडी यानी लाइट इमिटिंग डायोड थेरैपी के जरीए अलगअलग कम ऐनर्जी की लेजर लाइट को मिला कर ट्रीटमैंट किया जाता है. कई किस्म की लेजर्स को मिला कर ट्रीटमैंट करने से यह हेयरलौस और हेयरग्रोथ ट्रीटमैंट में काफी प्रभावी होती है.

प्लेटलेट रिच प्लाज्मा

इस ट्रीटमैंट में मरीज के खून में मौजूद सीरम को अलग किया जाता है. इस से ऐक्टिव प्लेटलेट्स अलग किए जाते हैं. इस के बाद इसे सिर की सतह पर इस्तेमाल किया जाता है ताकि बालों की ग्रोथ और भी तेजी से हो सके.

स्पर्श दंश: कौनसी घटना घटी थी सुरेश के साथ

लेखक- सुरेंद्र कुमार

एक छोटी सी घटना भी इनसान के जीवन को कैसे बदल सकती है, इस को वह अब महसूस कर रहा था. सुरेश अपनी ही सोच का कैदी हो अपने ही घर में, अपनों के बीच बेगाना और अजनबी बन गया था.

सुनंदा उस में आए बदलाव को पिछले कुछ दिनों से खामोश देख रही थी. आदमी के व्यवहार में अगर तनिक भी बदलाव आए तो सब से पहले उस की पत्नी को ही इस बात का एहसास होता है.

सुनंदा शायद अभी कुछ दिन और चुप रह कर उस में आए बदलाव का कारण खोजती लेकिन आहत मासूम मानसी की पीड़ा ने उस के सब्र के पैमाने को एकाएक ही छलका दिया.

अपनी बेटी के साथ सुरेश का बेरुखा व्यवहार सुनंदा कब तक चुपचाप देख सकती थी. वह भी उस बेटी के साथ जिस में हमेशा एक पिता के रूप में सुरेश की सारी खुशियां सिमटी रहती थीं.

रविवार की सुबह सुरेश ने मानसी के साथ जरूरत से ज्यादा रूखा और कठोर व्यवहार कर डाला था. वह भी तब जब मानसी ने लाड़ से भर कर अपने पापा से लिपटने की कोशिश की थी.

बेटी का शारीरिक स्पर्श सुरेश को एक दंश जैसा लगा था. उस ने बड़ी बेरुखी से बेटी को यह कहते हुए कि मानसी, तुम अब बड़ी हो गई हो, तुम्हारा यह बचपना अब अच्छा नहीं लगता, अपने से अलग कर दिया था. सुरेश ने बेटी को झिड़कते हुए जिस अंदाज से यह कहा था उस से मानसी सहम गई थी. उस की आंखों में आंसू आ गए थे. साफ लगता था कि सुरेश के व्यवहार से उस को गहरी चोट लगी थी. वह तुरंत ही वहां से चली गई थी.

बेटी के साथ अपने इस व्यवहार पर सुरेश को बहुत पछतावा हुआ था. वह ऐसा नहीं चाहता था मगर उस से ऐसा हो गया था. तब उस को लगा भी था कि सचमुच व्यवहार पर उस का नियंत्रण नहीं रहा.

सुरेश जानता था कि कई दिनों से खामोश सबकुछ देख रही सुनंदा अब शायद खामोश नहीं रहे. मानसी ने जरूर उस के सामने अपनी पीड़ा जाहिर की होगी.

सुरेश का सोचना गलत नहीं था. रसोई के काम से फारिग हो सुनंदा कमरे में आ गई और आते ही उस ने सुरेश के हाथ में पकड़ा अखबार छीन कर फेंक दिया. वह तैश में थी.

‘‘इस बार जब से तुम टूर से वापस आए हो तुम को आखिर हो क्या गया है? अगर बिजनेस की कोई परेशानी है तो कहते क्यों नहीं, इस तरह सब से बेरुखी से पेश आने का क्या मतलब?’’

‘‘मैं किस से बेरुखी से पेश आता हूं, पहले यह भी तो पता चले?’’ अनजान बनते हुए सुरेश ने पूछा.

‘‘इतने भी अनजान न बनो,’’ सुनंदा ने कहा, ‘‘जैसे कुछ जानते ही नहीं हो. जानते हो तुम्हारे व्यवहार से दुखी मानसी आज मेरे सामने कितनी रोई है. वह तो यहां तक कह रही थी कि पापा अब पहले वाले पापा नहीं रहे और अब वह तुम से बात नहीं करेगी.’’

‘‘अगर मानसी ऐसा कह रही है तो जरूर ही मुझ से गलती हुई है. मैं अपनी बेटी को सौरी कह दूंगा. मैं जानता हूं, मेरी बेटी ज्यादा देर तक मुझ से रूठी नहीं रह सकती.’’

‘‘क्या हम दोनों उस के बगैर रह सकते हैं? एक ही तो बेटी है हमारी,’’ सुनंदा ने कहा.

इस पर सुरेश ने पत्नी का हाथ थाम उसे अपने पास बिठा लिया और बोला, ‘‘अच्छा, एक बात बताओ सुनंदा, क्या तुम को ऐसा नहीं लगता कि हमारी नन्ही बेटी अब बड़ी हो गई है?’’

सुरेश की बात को सुन कर सुनंदा हंस पड़ी और कहने लगी, ‘‘जनाब, इस बार आप केवल 10 दिन ही घर से बाहर रहे हैं और इतने दिनों में कोई लड़की जवान नहीं हो जाती. बेटी बड़ी जरूर हो जाती है, पर इतनी बड़ी भी नहीं कि हम उस की शादी की चिंता करने लगें. अगले महीने मानसी केवल 15 साल की होगी. अभी कम से कम 5-6 वर्ष हैं हमारे पास इस बारे में सोचने को.’’

‘‘मैं ने तो यह बात सरसरी तौर पर की थी, तुम तो बहुत दूर तक सोच गईं.’’

‘‘मुझ को जो महसूस हुआ मैं ने कह दिया. वैसे इस तरह की बातें तुम ने पहले कभी की भी नहीं थीं. इस बार जब से टूर से आए हो बदलेबदले से हो. बुरा मत मानना, मैं कोई गिलाशिकवा नहीं कर रही हूं. लेकिन न जाने क्यों मुझ को ऐसा लगने लगा है कि तुम अपनी परेशानियां अब मुझ से छिपाने लगे हो. तुम्हारे मन में जरूर कुछ है, अपनी खीज दूसरों पर उतारने के बजाय बेहतर यही होगा कि मन की बात कह कर अपना बोझ हलका कर लो,’’ सुरेश के कंधे पर हाथ रखते हुए सुनंदा ने कहा.

‘‘तुम को वहम हो गया है, मेरे मन में न कोई परेशानी है और न ही कोई बोझ.’’

‘‘मेरी सौगंध खा कर और आंखों में आंखें डाल कर तो कहो कि तुम को कोई परेशानी नहीं,’’ सुनंदा ने कहा.

उस के ऐसा करने से सुरेश की परेशानी जैसे और भी बढ़ गई. सुनंदा से आंखें न मिला कर उस ने कहा, ‘‘तुम भी कभीकभी बचपना दिखलाती हो. कारोबार में कोई न कोई परेशानी तो हमेशा लगी ही रहती है.’’

‘‘मैं कब कहती हूं कि ऐसा नहीं होता मगर पहले कभी तुम्हारी कोई कारोबारी परेशानी तुम्हारे घरेलू व्यवहार पर हावी नहीं हुई. इस बार तुम्हारी परेशानी का एक सुबूत यह भी है कि तुम अपनी बेटी की फरमाइश पर उस की बार्बी लाना भी भूल गए, वह भी तब जब उस ने मोबाइल से 2 बार तुम को इस के लिए कहा था. एक तो तुम मुंबई से उस की बार्बी नहीं लाए, उस पर उस से इतना रूखा व्यवहार, वह आहत हो रोएगी नहीं तो क्या करेगी?’’

‘बार्बी’ के जिक्र से ही सुरेश के शरीर को जैसे कोई झटका सा लगा. जिस गुनाह के एहसास ने उस को अपनी बेटी से बेगाना बना दिया था उस गुनाह के नागपाश ने एकाएक ही उस के सर्वस्व को जकड़ लिया. सुरेश की मजबूरी यह थी कि वह आपबीती किसी से कह नहीं सकता था. सुनंदा से तो एकदम नहीं, जो शादी के बाद से ही इस भ्रम को पाले हुए है कि उस के जीवन में किसी दूसरी औरत की कोई भूमिका नहीं रही.

सुनंदा ही नहीं दुनिया की बहुत सी औरतें जीवन भर इस विश्वास का दामन थामे रहती हैं कि उन के पति को उस के अलावा किसी दूसरी औरत से शारीरिक सुख का कोई अनुभव नहीं. मर्द इस मामले में चालाक होता है. पत्नी से बेईमानी कर के भी उस की नजरों में पाकसाफ ही बना रहता है.

लेकिन कभीकभी मर्द की बेईमानी और उस का गोपनीय गुनाह कैसे उस के जीवन से उस के अपनों को दूर कर सकता है, सुरेश की कहानी तो यही बतलाती थी.

सुनंदा ने गलत नहीं कहा था. मानसी ने 2 बार मोबाइल से अपने पापा सुरेश से ‘बार्बी’ लाने की बात याद दिलाई थी. लेकिन न तो मानसी इस बात को जानती थी और न ही सुनंदा कि जब दूसरी बार मानसी ने सुरेश से बार्बी लाने की बात की थी तब वह मुंबई में नहीं गोआ में था.

सुरेश बिना किसी पूर्व कार्यक्रम के पहली बार गोआ गया था और गोआ ने उस के लिए रिश्तों के माने इतने बदल डाले कि वह अपनी बेटी से मनोवैज्ञानिक रूप से बहुत दूर हो गया था.

मानसी का बचपन बीत गया था पर उस का गुडि़यों के संग्रह का शौक अभी गया नहीं था. मानसी के होश संभालने के बाद से सुरेश जब कभी भी टूर पर जाता था वह अपने पापा से बार्बी की नईनई गुडि़या लाने को कहती थी. ऐसा कभी नहीं हुआ था कि सुरेश अपनी बेटी की मांगी कोई चीज लाना भूला हो. इस बार भी सुरेश नहीं भूला था. यह अलग बात है कि इस बार उस ने बार्बी मुंबई से नहीं गोआ से खरीदी थी. मगर उसी बार्बी ने सुरेश को बेटी से दूर कर दिया था.

सुनंदा भले ही सुरेश के बारे में कितने भी भ्रम पाले रही हो मगर सच था कि शादी के बाद भी वह जिस्म का कारोबार करने वाली औरतों से यौनसंपर्क बनाता रहा था. ऐसा वह तभी करता था जब वह अपने कारोबार के सिलसिले में घर से बाहर दूसरे शहर में होता था. अगर कभी सुरेश का अपना मन बेईमान न हो तो कारोबारी दोस्तों की बेईमानी में साथी बनना पड़ता था. अब की बार इसी तरह के एक चक्कर में सुरेश के साथ जो घटना घटी थी उस ने उस की अंदर की आत्मा को झकझोर डाला था.

गोआ जाने का सुरेश का कोई कार्यक्रम नहीं था. यह तो सुरेश का मुंबई वाला कारोबारी दोस्त युगल था जिस ने अचानक ही गोआ का कार्यक्रम बना डाला था. युगल बाजारू औरतों का रसिया था और अपनी पत्नी के साथ विवाद के चलते वह चैंबूर इलाके में फ्लैट ले कर अकेले ही रह रहा था.

औरतों की तो मुंबई में भी कोई कमी नहीं थी मगर गोआ में उस के जाने का आकर्षण बालवेश्याएं थीं. 12-13 से ले कर 15-16 साल की उम्र तक की वे लड़कियां जो तन और मन दोनों से ही अभी सेक्स के लायक नहीं थीं. मगर अय्याश तबीयत मर्दों की विकृत सोच इन्हीं में पाशविक आनंद तलाशती है.

गोआ में बालवेश्यावृत्ति के बारे में सुरेश ने भी पढ़ा था. इस को ले कर जब युगल ने सुरेश से बात की तो उस का मन भी ललचा गया था.

सारी रात बस का सफर कर के सुरेश और युगल सुबह गोआ की राजधानी पणजी पहुंचे थे. गोआ सुरेश के लिए नई जगह थी, युगल के लिए नहीं. पणजी में कहां और किस होटल में ठहरना था और क्या करना था यह युगल को मालूम था.

होटल में लगभग 4 घंटे आराम करने के बाद सुरेश और युगल बाहर घूमने निकले. दोनों गोआ के खूबसूरत बीचों पर घूम कर अपना समय गुजारते रहे क्योंकि उन्हें तो रात होने का इंतजार था.

शाम होटल लौटते समय सुरेश बाजार से मानसी के लिए बार्बी गुडि़या खरीदना नहीं भूला. मुंबई के मुकाबले गोआ में बार्बी थोड़ी महंगी जरूर मिली थी, मगर उस को खरीदने के बाद सुरेश काफी निश्ंिचत हो गया था कि अब घर वापस जाने पर उसे अपनी बेटी की नाराजगी नहीं झेलनी पड़ेगी.

होटल के अपने कमरे में आ कर सुरेश ने मानसी के लिए खरीदी बार्बी को यह सोच कर मेज पर रख दिया था कि यहां से जाते समय वह अपने बैग में जगह बना कर इसे रख लेगा.

पणजी में आ कर युगल ने होटल में एक नहीं 2 कमरे बुक करवाए थे. एक सुरेश के नाम से और दूसरा अपने नाम से. बेशक दोनों पणजी पहुंचने के बाद एक ही कमरे में साथसाथ थे, लेकिन रात को उन दोनों को अलग- अलग कमरे में रहना था.

शाम को होटल में वापस आ कर युगल लगभग 1 घंटा गायब रहा था. उस को रात का इंतजाम जो करना था.

1 घंटे बाद युगल वापस आया और अपने होंठों पर जबान फेरते हुए एक खास अंदाज में बोला, ‘‘सुरेश, सारा इंतजाम हो गया है. रात 11 बजे के बाद लड़की तुम्हारे कमरे में होगी. सुबह होने से पहले तुम्हें उस को फारिग करना है. लड़की के साथ पैसों का कोई लेनदेन नहीं होगा. जो उस को छोड़ने आएगा, पैसे वही लेगा.’’

इस के बाद युगल ने गोआ की मशहूर शराब की बोतल खोली. खाना उन दोनों ने होटल के कमरे में ही मंगवा लिया था. खाना खाने के बाद दोनों ने थोड़ी देर गपशप की. रात के लगभग साढे़ 10 बजे अपनी कलाई पर बंधी घड़ी को देख युगल ने अपनी एक आंख दबाते हुए सुरेश से ‘गुडनाइट’ कहा और अपने नाम से बुक दूसरे कमरे में चला गया.

सवा 11 बजे के आसपास सुरेश के कमरे के दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी.

सुरेश के ‘यस, कम इन’ कहने पर एक आदमी अपने साथ एक लड़की लिए कमरे में दाखिल हो गया. लड़की की उम्र 14 साल से ज्यादा नहीं थी. लड़की का कद भी छोटा था और उस के अंग विकास के शुरुआती दौर में थे.

लड़की को कमरे में छोड़ कर वह आदमी सुरेश से 700 रुपए ले कर चला गया. यह उस लड़की की एक रात की कीमत थी.

उस आदमी के जाने के बाद सुरेश ने कमरे की चिटखनी लगा दी थी.

लड़की सिर झुकाए अपनी उंगली के नाखून कुतर रही थी. उस के चेहरे पर किसी तरह की कोई घबराहट नहीं थी. मगर कोई दूसरा भाव भी नहीं था.

इतना तय था कि उसे यह जरूर पता था कि उस के साथ रात भर क्या होने वाला था. मगर उस के साथ जो होना था उस के बारे में शायद उस को पूरा ज्ञान नहीं था. उस की उम्र अभी शायद इन चीजों के बारे में जानने की थी ही नहीं.

सुरेश ने उस का नाम भी पूछा था. नाम से लगता था कि वह क्रिश्चियन थी. मारिया नाम बतलाया था उस ने अपना.

अपने शरीर के निशानों को सहलाने के बाद भी उस की आंखों में मासूमियत बरकरार थी. उस मासूमियत में दम तोड़ते कई सवाल भी थे.

इनसान की जिंदगी में ऐसे कई मौके आते हैं जब वह खुद अपनी ही नजरों में अपने किए पर शर्मिंदा नजर आता है. यही हालत उस वक्त सुरेश की थी.

कपडे़ पहनने के बाद मारिया कमरे में इधरउधर देखने लगी. फिर उस की भटकती नजरें किसी चीज पर टिक गई थीं.

उसी पल सुरेश ने उस के चेहरे पर बच्चों की निर्दोष और स्वाभाविक ललक देखी.

सुरेश ने देखा, मारिया की नजरें उस बार्बी पर टिकी थीं जोकि उस ने मानसी के लिए खरीदी थी.

वह ज्यादा देर बार्बी को दूर से निहारते नहीं रह सकी थी. उम्र और सोच से वह थी तो एक बच्ची ही. उस ने मामूली सी झिझक के बाद मेज पर रखी बार्बी उठाई और उस को अपने सीने से लगा कर सुरेश को देखते हुए बोली, ‘‘साहब, आप ने जो कहा, रात भर मैं ने वही किया. अगर आप मेरी सेवा से खुश हैं तो बख्शीश में यह गुडि़या मुझे दे दो. मैं कभी किसी गुडि़या से नहीं खेली साहब, क्योंकि कोई भी मुझ को गुडि़या ले कर नहीं देता.’’

मारिया के मुख से निकले ये शब्द किसी कटार की तरह सुरेश के सीने के आरपार हो गए थे. एक पल के लिए उस को ऐसा लगा था कि ‘बार्बी’ को अपने सीने से चिपकाए उस के सामने उस की अपनी बेटी मानसी खड़ी थी…वही मासूम आंखें…मासूम आंखों में वैसी ही ललक, वही अरमान…

उसी रात सुरेश की अपनी नजरों में अपनी ही मौत हो गई थी. वह मौत जिस को किसी दूसरे ने नहीं देखा था. इस गुपचुप मौत के बाद उस में कुछ भी सामान्य नहीं रहा था. अपनी बेटी के शरीर का स्पर्श ही सुरेश के लिए एक ऐसे दंश जैसा बन गया था जिस का दर्द उस से सहन नहीं होता था.

गोआ के एक होटल के कमरे में सुरेश को मारिया नाम की उस लड़की में मानसी नजर आई थी, अब मानसी में उस को मारिया नाम की लड़की की सूरत दिखने लगी थी. वह उन दोनों को अलग करने में स्वयं को असमर्थ महसूस कर रहा था.

Sharda Sinha का जन्मदिन ऐसे मनाते थे उनके पति, फेसबुक पोस्ट हो रहा है वायरल

शारदा सिन्हा (Sharda Sinha) को कई उपनाम मिले. बिहार की लता मंगेशकर, मिथिला की बेगम जैसे कई नाम शारदा सिन्हा को दिए गए. भोजपुरी कोकिला की मौत से उनके फैंस काफी दुखी हैं, कल रात से ही लोग शारदा सिन्हा को श्रद्धांजलि दे रहे हैं. बिहार की शान थीं शारदा सिन्हा, ये दिए गए उपनाम बताते हैं कि उनकी लोक गायकी को कितना पसंद किया जाता है.

पति की मौत से टूट गईं थीं शारदा सिन्हा

शारदा सिन्हा की संगीत की यात्रा के साथ लोग उनके प्राइवेट लाइफ के बारे में भी जानने के लिए उत्सुक रहते हैं. बिहार कोकिला की निधन के बाद एक फेसबुक पोस्ट वायरल हो रहा है. यह पोस्ट उन्होंने अपने पति के निधन के बाद लिखा था. शारदा सिन्हा ने अपने पति की मौत के गम में ये पोस्ट शेयर किया था. इस वायरल पोस्ट में उन्होंने अपने पति को याद करके लिखा, कि मैं जल्द आऊंगी. हालांकि पति के निधन के डेढ़ महीने बाद ही शारदा सिन्हा ने मौत को गले लगा लिया.

शादी के बाद 54 साल रहें साथ

शारदा सिन्हा अपने पति से बेहद प्रेम करती थीं. सोशल मीडिया पर उनके कई पोस्ट पढ़ने के बाद अंदाजा लगाया जा सकता है कि शारदा और उनके पति के बीच अटूट प्रेम था. दोनों ने शादी के बाद 54 साल साथ बिताएं, इसी साल सितंबर शारदा सिन्हा के पति का निधन हुआ.

स्वर कोकिला का ऐसे जन्मदिन मनाते थे उनके पति

शारदा सिन्हा ने फेसबुक पर ये भी शेयर किया था कि कैसे उनके पति उनका जन्मदिन मनाते थे. एक पोस्ट में उन्होंने अपने पति से जुड़ी यादें शेयर की थीं. उन्होंने लिखा था कि सुबह-सुबह उनके पति तकिया के नीचे गुलाब के फूल रखते थे. फिर प्यार भरी संदेश देते थे और नाश्ता भी तैयार करते थे. बिहार कोकिला ने ये भी लिखा था कि बिना सिन्हा साहब ये दिन शूल सा गड़ता है मुझे, कौनसा तोहफा दे गए सिन्हा साहब…?

डबडबाती आंखों से की थी आखिरी मुलाकात

इसके बाद पोस्ट में आगे लिखा था कि सिन्हा साहब से अंतिम मुलाकात 17 सितंबर की शाम हुई. मैंने उनसे कहा था, 3 दिनों में लौटकर आऊंगी. उन्होंने मुझसे कहा, मैं बिल्कुल ठीक हूं. आप बस स्वस्थ रहिए और जल्दी लौट आइएगा. ये कौन जानता था, उस दिन हाथ जोड़कर डबडबाती आंखें आखिरी बार देख रही थीं. आज का दिन बहुत भारी है…

60 साल के व्यक्ति से रहा अफेयर, Kamla Harris पर लगा घर तोड़ने का आरोप

अमेरिका इन दिनों चुनाव को लेकर चर्चा में है. कई राज्यों की वोटों की गिनती शुरू हो चुकी है. कई लोगों का कहना है कि अमेरिका के राष्ट्रपति का ताज इस बार डोनाल्‍ड ट्रंप को जाएगा, तो वहीं कुछ लोग चाहते हैं कि अगली राष्ट्रपति कमला हैरिस (Kamla Harris) बनें. खैर ये तो चुनाव के नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा कि कौन बनेगा अमेरिका का राष्‍ट्रपति. . .

अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस हैं, जो एक मजबूत महिला के रूप में दुनियाभर में जानी जाती हैं. देश की पहली भारतीय अमेरिकी सीनेटर कमला हैरिस थीं और वह कैलिफोर्निया की पहली महिला और दक्षिण एशियाई अटार्नी जनरल भी थीं. कमला हैरिस की जिंदगी काफी उतारचढ़ाव से भरी है. उनकी पर्सनल लाइफ भी सामान्य नहीं थी. आइए जानते हैं उनकी निजी जिंदगी से जुड़ी कुछ खास बातें.

शादी के 9 साल बाद कमला हैरिस की मां अपने पति से हो गईं अलग

1964 में कैलिफोर्निया के आकलैंड में कमला हैरिस का जन्म हुआ था. 19 साल की उम्र में उनकी मां श्यामला गोपालन अमेरिका चली गई थीं. उस समय वहां अश्वेतों का आंदोलन तेज था. वहां उनकी मुलाकात डोनाल्ड हैरिस से हुई थी. दोनों की विचारधारा काफी मिलतीजुलती थी जिससे वो दोनों एकदूजे के करीब आए. पांच साल तक दोनों ने एकदूसरे को डेट किया और 1963 में शादी कर ली.

हैरिस की मां ने अकेले की परवरिश

श्यामला ने दो बेटियों को जन्म दिया. बड़ी बेटी कमला हैरिस थीं और दूसरी छोटी बेटी माया. हालांकि शादी के कुछ दिनों बाद ही कमला हैरिस के मातापिता में अनबन होने लगी. शादी के 9 सालों बाद  हैरिस के मातापिता अलग हो गए. उस समय कमला हैरिस महज 7 साल की थी. श्यामला गोपालन कनाडा जाकर एक यूनिवर्सिटी में पढ़ाने लगी. उन्होंने अपने दोनों बेटियों की अकेले ही परवरिश कीं. हैरिस की स्कूली पढ़ाई कनाडा में हुई और फिर अमेरिका चली गईं.

60 साल के व्यक्ति के साथ रिलेशनशिप में थीं हैरिस

कमला हैरिस ने राजनीति शास्त्र में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट किया. इसके बाद उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की. इसी बीच उनकी मुलाकात 60 साल के विली ब्राउन से हुई. उस समय वह कैलिफोर्निया में विधानसभा अध्यक्ष थे. उस समय कमला हैरिस की उम्र 30 साल थी. उम्र में इतना अंतर होने के बावजूद भी ये दोनों एकदूसरे को दिल दे बैठे और इनके अफेयर के चर्चे होने लगे. इनके रिश्ते पर जगजीत सिंह का ये गाना फिट बैठता है- ‘ना उम्र की सीमा हो, ना जन्म का हो बंधन, जब प्यार करे कोई तो देखे केवल मन…’

घर तोड़ने का लगा आरोप

इस अफेयर के कारण कमला हैरिस पर विली के घर तोड़ने का भी आरोप लगा. कहा जाता है कि विली से हेरिस ने रिश्ते बनाकर राजनीति की सीढ़ि‍यां चढ़ी. उन पर आरोप है कि इस रिश्‍ते का फायदा उठा कर कमला हैरिस ने दो सरकारी पद हासिल किए थे.

दूसरा अफेयर तलाकशुदा विलियम्स से रहा

कमला हैरिस का दूसरा अफेयर एंकर मोंटेल विलियम्स के साथ रहा. तलाकशुदा विलियम्स और हैरिस ने एकदूसरे को डेट किया. विलियम्स कई फेमस अमेरिकी टीवी शोज को होस्ट करते थे. हालांकि दोनों का रिश्ता लंबे समय तक नहीं चला. इसके बाद कमला हैरिस अपने करियर को मजबूत करने में जुट गईं. साल 2010 में वह कैलिफोर्निया राज्य की अटार्नी जनरल चुनी गई. इस पद को हासिल करने वह पहली अश्वेत महिला थीं.

तीसरा अफेयर शादी में बदला

कैलिफोर्निया की अटार्नी बनने के 3 साल बाद ही हैरिस की मुलाकात डगलस एमहाफ से हुई. दोनों की मुलाकात को कमला की दोस्त क्रिसेट हडलिन ने करवाया था. दोनों की ब्लाइंड डेट थी. डगलस तलाकशुदा व्यक्ति थे, वह पेशे से एक वकील भी हैं. एक इंटरव्यू के अनुसार, कमला हैरिस ने बताया था कि उन्हें डगलस का सेंस औफ ह्यूमर पसंद आया था. यह अफेयर शादी में बदली. दोनों ने एक साल तक रिलेशनशिप में रहने के बाद साल 2014 में शादी कर ली.

2 सौतेले बच्चों की मां हैं हैरिस

हैरिस के खुद के बच्चे नहीं है. हालांकि, कमला अपने 2 सौतेले बच्चों की परवरिश में हाथ बंटाती हैं. विपक्षी पार्टी अकसर उन पर तंज कसती रहती है. एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, रिपब्लिकन पार्टी के उप-राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जेडी वेंस ने 2021 में कमला का नाम लिए बिना कहा था, “देश बिना बच्चों वाली कैट लेडी (बिल्ली पालने वाली) चला रही हैं’ जिनके अपने बच्चे तक नहीं हैं, जिनकी अपनी पर्सनल जिंदगी ठीक नहीं है, वे देश को खराब कर रही हैं’.

आशियाना: क्यों अपने ही आशियाने की दुश्मन बन बैठी अवनी

‘‘मालकिन, आप के पैरों में अधिक दर्द हो तो तेल लगा कर मालिश कर दूं?’’

‘‘हूं,’’ बस, इतना ही निकला नंदिता के मुंह से.

‘‘तेल गरम कर के लाती हूं,’’ कह कर राधा चली गई. राधा को जाते देख कर नंदिता सोचने लगी कि आज के इस मशीनी युग में प्यार खत्म हो गया है. भावनाओं, संवेदनाओं का मोल नहीं रहा. ऐसे में प्रेम की वर्षा से नहलाने वाला एक भी प्राणी मिल जाए तो अच्छा लगता है. नंदिता के अधर मौन थे पर मन में शब्दों की आंधी सी चल रही थी. मन अतीत की यादों में मुखर हो उठा था. कभी इस घर में बहुत रौनक रहती थी. बहुत ध्यान रखने वाले पति मोहन शास्त्री और दोनों बेटों, आशीष और अनुराग के साथ नंदिता को समय का पता ही नहीं चलता था.

मोहन शास्त्री संस्कृत के अध्यापक थे. वे खुद भी इतिहास की अध्यापिका रही थीं. दोनों स्कूल से अलगअलग समय पर घर आते, पर जो भी पहले आता, घर और बच्चों की जिम्मेदारियां संभाल लेता था.

अचानक एक दिन दिल का दौरा पड़ा और मोहन शास्त्री का निधन हो गया. यह एक ऐसा गहरा वज्रपात था जिस ने उन्हें भीतर तक तोड़ दिया था. एक पल को ऐसा लगा था जैसे शरीर बेजान हो गया और वे बस, एक लाश बन कर रह गई थीं. सालों से रातदिन का प्यारा साथ सहसा सामने से गायब हो अनंत में विलीन हो जाए, तो हृदयविदारक अनुभूति ही होती है.

समय की गति कितनी तीव्र होती है इस का एहसास इनसान को तब होता है जब वह किसी के न रहने से उत्पन्न हुए शून्य को अनुभूत कर ठगा सा खड़ा रह जाता है. बच्चों का मुंह देख कर किसी तरह हिम्मत रखी और फिर अकेले जीना शुरू किया.

दोनों बेटे बड़े हुए, पढ़लिख कर विदेश चले गए और पीछे छोड़ गए एक बेजान बुत. जब दोनों छोटे थे तब उन्हें मां की आवश्यकता थी तब वे उन पर निस्वार्थ स्नेह और ममता लुटाती रहीं और जब उम्र के छठे दशक में उन्हें बेटों की आवश्यकता थी तो वे इतने स्वार्थी हो गए कि उन के बुढ़ापे को बोझ समझ कर अकेले ही उसे ढोने के लिए छोड़ गए. अपनी मां को अकेले, बेसहारा छोड़ देने में उन्हें जरा भी हिचकिचाहट नहीं हुई, सोचतेसोचते उन की आंखें नम हो जातीं.

संतान का मोह भी कैसा मोह है जिस के सामने संसार के सभी मोह बेबस हो कर हथियार डाल देते हैं पर यही संतान कैसे इतनी निर्मोही हो जाती है कि अपने मातापिता का मोह भी उसे बंधन जान पड़ता है और वह इस स्नेह और ममता के बंधन से मुक्त हो जाना चाहती है. भर्राई आवाज में जब उन्होंने पूछा था, ‘मैं अकेली कैसे रहूंगी?’ तो दोनों बेटे एक सुर में बोले थे, ‘अरे, राधा है न आप के पास. और कौन सा हम हमेशा के लिए जा रहे हैं. समय मिलते ही चक्कर लगा लेंगे, मां.’

नंदिता फिर कुछ नहीं बोली थीं. भागदौड़ भरे उन के जीवन में भावनाओें की शायद कोई जगह नहीं थी.

दोनों चले गए थे. वे एक तरफ बेजान बुत बन कर पड़ी रहतीं. उन्हें कुछ नहीं चाहिए था सिवा दो प्यार भरे शब्द और बच्चों के साथ कुछ पलों के. रात को सोने जातीं तो उन की आंखें झरझर बहने लगतीं. सोचतीं, कभी मोहनजी का साथ, बेटों की शरारतों से उन का आंगन महका करता था और अब यह सन्नाटा, कहां विलुप्त हो गए वे क्षण.

अकेलेपन की पीड़ा का जहर पीते हुए, बेटों की उपेक्षा का दंश झेलते हुए समय तेज गति से चलता हुआ उन्हें यथार्थ की पथरीली भूमि पर फेंक गया.

दोनों बेटे पैसे भेजते रहते थे. उन्हें अपनी पैंशन भी मिलती रहती थी. उन का गुजारा अच्छी तरह से हो जाता था. उम्र के इस पड़ाव पर उन्हें रुपएपैसे से कोई मोह नहीं था. वे तो बस, अकेलेपन से व्यथित रहतीं. कभीकभी आसपड़ोस की महिलाओं से तो कभी अपनी साथी अध्यापिकाओं से मिल लेती थीं, लेकिन उस के बाद फिर खालीपन. पूरे घर में वे और उन की विधवा बाई राधा थी. न कोई बच्चा न कोई सहारा देने वाला रिश्तेदार. राधा को भी उन की एक सहेली ने कुछ साल पहले भेजा था. उन्हें भी घर के कामधंधे के लिए कोई चाहिए था, सो अब राधा घर के सदस्य की तरह नंदिता को प्रिय थी.

जीवन किसी सरल रेखा सा नहीं चल सकता, वह अपनी इच्छा के अनुसार मोड़ ले लेता है.

‘‘मालकिन, मैं तेल के साथ चाय भी ले आई हूं. मैं तेल लगाती हूं, आप चाय पीती रहना,’’ राधा की आवाज से उन की तंद्रा टूटी. इतने में ही पड़ोस की मधु आ गई. वह अकसर चक्कर काट लेती थी. अपने बच्चों को स्कूल भेजने के बाद कभीकभी उन के पास खड़ी हो दोचार बातें करती फिर चली जाती. नंदिताजी को उस पर बड़ा स्नेह हो चला था. उन्होंने यह भी महसूस किया कि मधु कुछ गंभीर है, बोलीं, ‘‘आओ मधु, क्या हुआ, चेहरा क्यों उतरा हुआ है.’’

‘‘आंटी, मेरी मम्मी की तबीयत खराब है और मुझे आज ही गांव जाना है. अनिल और बच्चे भी मेरे साथ जा रहे हैं लेकिन मेरी ननद पिंकी की परीक्षाएं हैं, उसे अकेले घर में नहीं छोड़ सकती. अगर आप को परेशानी न हो तो कुछ दिन पिंकी को आप के पास छोड़ जाऊं.’’

‘‘अरे, यह भी कोई पूछने वाली बात है. आराम से जाओ, पिंकी की बिलकुल भी चिंता मत करो.’’

मधु चली गई और पिंकी अपना सामान ले कर नंदिता के पास आ गई. पिंकी के आते ही घर का सन्नाटा दूर हो गया और नंदिता का मन चहक उठा. पिंकी की परीक्षाएं थीं, उस के खानेपीने का ध्यान रखते हुए नंदिता को अपने बेटों की पढ़ाई का जमाना याद आ जाता फिर वे सिर झटक कर अपनेआप को पिंकी के खानेपीने के प्रबंध में व्यस्त कर लेतीं. एक पिंकी के आने से उन की और राधा की दिनचर्या में बहुत बदलाव आ गया था. पिंकी फुर्सत मिलते ही नंदिता के पास बैठ कर अपने कालेज की, अपनी सहेलियों की बातें करती.

एक हफ्ते बाद मधु लौट आई तो पिंकी अपने घर चली गई. घर में अब फिर पहले सा सन्नाटा हो गया. इस सन्नाटे को राधा की आवाजें ही तोड़ती थीं. अन्यथा वे चुपचाप रोज के जरूरी काम निबटा कर अपने कमरे में पड़ी रहती थीं. टीवी देखने का उन्हें ज्यादा शौक नहीं था. वैसे भी जब मन दुखी हो तो टीवी भी कहां अच्छा लगता है.

मधु ने पिंकी का ध्यान रखने के लिए नंदिता आंटी को कई बार धन्यवाद दिया तो उन्होंने कहा, ‘‘मधु, धन्यवाद तो मुझे भी कहना चाहिए. एक हफ्ता पिंकी के कारण मन लगा रहा.’’

नंदिता से बात करने के बाद मधु थोड़ी देर सोचती रही, फिर बोली, ‘‘आंटी, आजकल कितनी ही लड़कियां पढ़ने और नौकरी करने को बाहर निकलती हैं. आप क्यों नहीं ऐसी लड़कियों को पेइंगगेस्ट रख लेतीं. आप का समय भी कट जाएगा और आर्थिक रूप से भी ठीक रहेगा.’’

‘‘नहीं मधु, मुझे पैसे की जरूरत नहीं है, मेरा काम अच्छी तरह से चल जाता है.’’

‘‘ठीक है आंटी, लेकिन आप का मन अच्छा रहेगा तो आप शारीरिक रूप से भी स्वयं को स्वस्थ महसूस करेंगी.’’

‘‘ठीक है, देखती हूं.’’

‘‘बस, आंटी, बाकी काम अब मुझ पर छोड़ दीजिए,’’ कह कर मधु चली गई.

4 दिन बाद ही मधु एक बोर्ड बनवा कर लाई जिस पर लिखा था, ‘आशियाना.’ और नंदिता को दिखा कर बोली, ‘‘देखिए आंटी, आप का खालीपन मैं कैसे दूर करती हूं. अब आप के आसपास इतनी चहलपहल रहेगी कि आप ही शांति का एक कोना ढूंढें़गी.’’

नंदिता मुसकरा दीं, अंदर गईं, वापस आ कर मधु को कुछ रुपए दिए तो उस ने नाराजगी से कहा, ‘‘आंटी, आप के लिए मेरी भावनाओं का यही महत्त्व है?’’

‘‘अरे, बेटा, बोर्ड वाले को तो देने हैं न? उसी के लिए हैं. तुम्हारी भावनाओं, प्रेम और आदर को मैं किसी मूल्य से नहीं आंक सकती. इस वृद्धा के जीवन के सूनेपन को भरने के लिए तुम्हारे इस सराहनीय कदम का कोई मोल नहीं है.’’

‘‘आंटी, आप ऊपर के कमरे साफ करवा लीजिए. अब मैं चलती हूं, बोर्ड वाले को एक बोर्ड पिंकी के कालेज के पास लगाने को कहा है और यह वाला बोर्ड बाहर लगवा दूंगी,’’ मधु यह कह कर चली गई.

नंदिता ने पता नहीं कब से ऊपर जाना छोड़ा हुआ था. ऊपर बेटों के कमरों को बंद कर दिया था. आज वे ऊपर गईं, कमरे खोले तो पुरानी यादें ताजा हो आईं. राधा के साथ कमरों की सैटिंग ठीक की, साफसफाई करवाई और फिर नीचे आ गईं.

एक हफ्ते बाद पिंकी आई तो उस के साथ 2 लड़कियां और 1 महिला भी आई. पिंकी बोली, ‘‘आंटी, ये मेरे कालेज में नई आई हैं और इन के मम्मीपापा इन्हें होस्टल में रहने की इजाजत नहीं दे रहे हैं.’’

उस के बाद साथ आई महिला बोली, ‘‘आप के यहां मेरी बच्चियां रहेंगी तो हमें चिंता नहीं होगी. मधुजी ने बताया है कि आप के यहां दोनों सुरक्षित रहेंगी और अब तो देख कर बिलकुल चिंता नहीं रही. बस, आप कहें तो ये कल से ही आ जाएं?’’

नंदिता ने कहा, ‘‘हां, हां, क्यों नहीं?’’

‘‘तो ठीक है. ये अपना सामान ले कर कल आ जाएंगी,’’ यह कह कर वह चली गई.

अगले दिन ही नीता और ऋतु सामान ले कर आ गईं और राधा खुशीखुशी उन का सामान ऊपर के कमरों में सैट करवाने लगी.

नंदिताजी दोनों लड़कियों के खाने की पसंदनापसंद पूछ कर सोचने लगीं कि चलो, अब इन लड़कियों के बहाने खाना तो ढंग से बन जाया करेगा. शाम को अमेरिका से बड़े बेटे का फोन आया तो उन्होंने इस बारे में उसे बताया. वह कहने लगा, ‘‘मां, क्या जरूरत थी आप को इन चक्करों में पड़ने की, आप को आराम करना चाहिए.’’

‘‘यह आराम ही तो मुझे परेशान कर रहा था, इस में बुरा क्या है?’’ आशीष ने फोन रख दिया था. छोटे बेटे अनुराग को भी उन की यह योजना पसंद नहीं आई थी लेकिन नंदिता ने दोनोें की पसंद की चिंता नहीं की.

नीता और ऋतु शाम को आतीं तो नीचे ही नंदिता के साथ खाना खातीं, कुछ बातें करतीं फिर ऊपर चली जातीं. दोनों नंदिता से खूब घुलमिल गई थीं, उन के मातापिता के फोन आते रहते और नंदिताजी से भी उन की बात होती रहती. अब नंदिता को घर में, अपने जीवन में अच्छा परिवर्तन महसूस होता. वे अब खुश रहने लगी थीं.

15 दिन बाद ही एक और लड़की अवनि भी अपना बैग उठाए चली आई और सब बातें समझ कर नंदिता के हाथ में एडवांस रख दिया. नंदिता ने सब से पहले राधा की मदद के लिए एक और महिला चंपा को रख लिया. तीनों लड़कियां सुबह नाश्ता कर के जातीं फिर शाम को ही आतीं. सब के मातापिता को यह तसल्ली थी कि लड़कियों को साफसुथरा घर का खाना मिल रहा है.

नंदिता की कोई बेटी तो थी नहीं, अब हर रोज लड़कियों और उन के क्रियाकलापों को देखते रहने का लोभ वे संवरण न कर पातीं. लड़कियों के शोर में उन्हें जीवन का संगीत सुनाई देता, नई उमंग और इस संगीत ने उन के जीवन में नई उमंग, नया जोश भर दिया था.

दुबलीपतली, बड़ीबड़ी आंखों वाली, सुतवां नाक और गौरवर्णा अवनि उन के मन में बस गई. नीता और ऋतु हंसती, खिलखिलाती रहतीं लेकिन अवनि बस, हलका सा मुसकरा कर रह जाती और हमेशा सोच में घिरी दिखती. अवनि की मां की मृत्यु हो चुकी थी. उस के पिता फोन पर नंदिता से संपर्क बनाए रखते. गांव में ही वे अवनि के छोटे भाईबहन के साथ रहते थे. बिना मां की बच्ची से नंदिता को विशेष स्नेह था.

इधर कुछ दिनों से नंदिता देख रही थीं कि अवनि कालेज भी देर से जा रही थी और असमय लौट कर चुपचाप ऊपर अपने कमरे में पड़ी रहती थी. उन लड़कियों के व्यक्तिगत जीवन में नंदिता हस्तक्षेप नहीं करना चाहती थीं लेकिन जब रहा नहीं गया तो नीता और ऋतु के जाने के बाद ऊपर गईं, देखा, अवनि आंखों पर हाथ रखे चुपचाप लेटी है. आहट पा कर उठ कर बैठ गई.

नंदिता ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, अवनि? तबीयत तो ठीक है?’’

‘‘कुछ नहीं, आंटी, कालेज जाने का मन नहीं था.’’

‘‘चलो, अगर तबीयत ठीक नहीं है तो डाक्टर को दिखा देती हूं.’’

‘‘नहीं, आंटी, आप परेशान न हों, मैं ठीक हूं.’’

नंदिता उस के बैड पर बैठ गईं. उस के सिर पर हाथ रख कर बोलीं, ‘‘मैं अकेली जिंदगी काट रही थी, तुम लोग आए तो मैं फिर से जी उठी. सिर्फ पैसे दे कर पेइंगगेस्ट बनने की बात नहीं है, तुम लोगों से मैं जुड़ सी गई हूं. मेरी तो कोई बेटी है नहीं, तुम्हें देखा तो बेटी की कमी पूरी हो गई. मुझे भी अपनी मां की तरह समझ लो, किसी बात पर अकेले परेशान होने की जरूरत नहीं है, मुझ से अपनी परेशानी शेयर कर सकती हो.’’

अवनि सुबक उठी, घुटनों पर सिर रख कर रो पड़ी. एक बार तो नंदिता चौंक पड़ी, कहीं यह लड़की कोई गलती तो नहीं कर बैठी, यह विचार आते ही नंदिता मन ही मन परेशान हो गईं, फिर बोलीं, ‘‘अवनि, मुझे बताओ तो सही.’’

‘‘आंटी, मुझ से गलती हो गई है, मैं प्रैग्नैंट हूं. मैं पापा को क्या मुंह दिखाऊंगी.’’

‘‘कौन है, कहां रहता है?’’ नंदिताजी ने पूछा.

‘‘इसी शहर में रहता है. कह रहा है कि उस की मम्मी कभी अपनी जाति से बाहर इस विवाह के लिए तैयार नहीं होंगी.’’

‘‘तुम मुझे उस का पता और फोन नंबर तो दो.’’

‘‘नहीं, आंटी. संजय ने कहा है कि वह अपनी मम्मी से बात नहीं कर सकता, अब कुछ नहीं हो सकता.’’

‘‘सारी सामाजिक संहिताओं को फलांग कर तुम ने अच्छा तो नहीं किया लेकिन अब तुम मुझे उस का पता दो और फ्रेश हो कर कालेज जाओ, देखती हूं क्या हो सकता है.’’

नंदिता ने अवनि को कालेज भेजा और अवनि को बिना बताए उस के पिता केशवदास को फौरन आने के लिए कहा.

मधु को भी बुला कर उस से विचारविमर्श किया. शाम तक केशवदास आ गए. नंदिता ने उन्हें सारी स्थिति से अवगत कराया. केशवदास यह सब सुन कर सकते में आ गए और शर्मिंदा हो गए. उन की झुकी हुई गरदन देख कर नंदिता ने उन की मानसिक दशा का अंदाजा लगा कर कहा, ‘‘क्यों न एक बार संजय के मातापिता से मिल लिया जाए, आप कहें तो मैं और मधु भी चल सकते हैं.’’

केशवदास को यह बात ठीक लगी और तय हुआ कि एक बार कोशिश की जा सकती है. उसी दिन नंदिता ने संजय की मम्मी से फोन कर के मिलने का समय मांगा. इतने में अवनि लौट आई और अपने पापा को देख कर चौंक गई. केशवदास का झुका हुआ चेहरा देख कर अवनि की आंखों से आंसू बह निकले.

रात को नंदिता और मधु केशवदास के साथ संजय के घर गए. नंदिता को देख कर संजय की मम्मी चौंक पड़ीं. नंदिता उस का चौंकना समझ नहीं सकीं. नीता, संजय की मम्मी, हाथ जोड़ कर बोलीं, ‘‘मैडम, आप ने मुझे नहीं पहचाना?’’

नंदिता ने कहा, ‘‘सौरी, वास्तव में मैं ने आप को नहीं पहचाना.’’

‘‘मैडम, मैं नीता भारद्वाज, मुझे आप ने ही पढ़ाया था, 12वीं में पूरा साल मेरी फीस आप ने ही भरी थी.’’

‘‘हां, याद आया. नीता इतने साल हो गए, तुम इसी शहर में हो, कभी मिलने नहीं आईं.’’

‘‘नहीं मैडम, अभी 1 साल पहले ही हम यहां आए हैं. कई बार सोचा लेकिन मिल नहीं पाई.’’

नीता के पिता की मृत्यु के बाद उस के घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई थी जिस का पता चलने पर नंदिता ही नीता की फीस भर दिया करती थीं. नीता और उस की मां उन की बहुत एहसानमंद थीं. लेकिन अब घर के रखरखाव से आर्थिक संपन्नता झलक रही थी. नीता ने कहा, ‘‘संजय मेरा इकलौता बेटा है और उस के पिता रवि इंजीनियर हैं जो अभी आफिस के काम से बाहर गए हुए हैं.’’

‘‘हां, मैं संजय के बारे में ही बात करने आई थी, क्या करता है आजकल?’’

‘‘अभी कुछ ही दिन पहले उसे नौकरी मिली है.’’

अब तक नीता का नौकर चाय ले कर आ चुका था. नंदिता ने सारी बात नीता को बता दी थी और कहा, ‘‘नीता, मैं आशा करती हूं जातिधर्म के विचारों को एक ओर रख कर तुम अवनि को अपना लोगी.’’

‘‘मैडम, अब आप चिंता न करें, आप का कहना क्या मैं कभी टाल सकती हूं?’’

सब के दिलों से बोझ हट गया. नीता ने कहा, ‘‘मैं रवि से बात कर लूंगी. मैं जानती हूं उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी. हां, मैं अवनि से कल आ कर जरूर मिलूंगी और जल्दी ही विवाह की तिथि निश्चित कर लूंगी. मैडम, अब आप बिलकुल चिंता न करना, आप जैसा चाहेंगी वैसा ही होगा.’’

सब चलने के लिए उठ खड़े हुए. केशवदास ने कहा, ‘‘आप लोगों का एहसान कभी नहीं भूलूंगा, आप विवाह की तिथि तय कर के बता दीजिए, विवाह की भी तैयारी करनी होगी.’’

नंदिताजी मुसकराईं और बोलीं, ‘‘आप को ही नहीं मुझे भी तैयारी करनी है, मैं ने उसे बेटी जो कहा है.’’

केशवदास लौट गए, नंदिता और मधु भी घर आ गए. नंदिता ने अवनि को यह समाचार दिया तो वह चहक उठी और उन के गले लग गई, ‘‘थैंक्यू, आंटी.’’

वे अब बहुत खुश थीं. उन्होंने जीवन की कठोर सचाई को अपनाकर पुरानी यादों को मन के एक कोने में दबा कर रख दिया था और नईनई प्यारी खिलखिलाती यादों के साथ जीना शुरू कर दिया था. वे अब यह जान चुकी थीं कि जिन्हें प्रेम का, ममता का मान रखना नहीं आता, उन पर स्नेह लुटा कर अपनी ममता का अपमान करवाना निरी बेवकूफी है. अब उन्हें अवनि के विवाह की भी तैयारियां करनी थीं. इस उत्साह में उन के जोड़ों के दर्द ने भी हार मान ली थी. आराम तो उन्हें अब मिला था उकताहट से, दर्द से, घर में पसरे सन्नाटे से.

अब उन का ‘आशियाना’ खिल- खिलाता रहेगा, हंसता रहेगा, बोलता रहेगा लड़कियों के साथ और उन के साथ. अब उन्हें किसी से कोई अपेक्षा नहीं, किसी के प्रति क्रोध नहीं. जीवन की छोटीछोटी खुशियों में ही बड़ी खुशी खोज लेना, यही तो जीवन है.

टेढ़ी चाल: कौनसी घटना घटी थी सुमन के साथ

शौचालय से आ कर हाथ धोते हुए संगीता ने पूछा, ‘‘कौन आया था अभी? घंटी किस ने बजाई थी?’’ सुमन ने समाचारपत्र में आंखें गड़ाते हुए कहा, ‘‘कोई नहीं, रामप्रसाद आया था.’’ ‘‘रामप्रसाद?’’ संगीता के स्वर में कटुता थी, ‘‘तो इस में छिपाने की क्या बात है? जरूर रुपए मांगने आया होगा. उस के जैसा भिखमंगा कोई नहीं देखा. कितने रुपए दिए?’’

‘‘अरे, कहा न, न मांगे, न मैं ने दिए,’’ सुमन के स्वर में एक लापरवाही सी थी.

‘‘मैं मान ही नहीं सकती. अरे, मेरा क्या, तुम सब रुपए लुटा दो,’’ संगीता ने क्रोध से कहा, ‘‘पर अपनी गृहस्थी का भी तो खयाल करो. बताओ न, कितने रुपए दिए?’’

तिलमिला कर सुमन ने कहा, ‘‘तुम हमेशा उल्टा क्यों सोचती हो? वह सिर्फ यह कहने आया था  कि उस के यहां आज सत्यनारायण की कथा है. निमंत्रण दिया था. मुझे तो इन ऊटपटांग बातों से चिढ़ है, इसलिए मैं ने टाल दिया.’’

‘‘मैं कहती थी न, रामप्रसाद यों ही नहीं आने का. तुम इन बातों को मानो या न मानो, पर उस ने तो कथा के नाम से पैसे जरूर मांगे होंगे,’’ संगीता बोली.

झींकते हुए सुमन ने कहा, ‘‘अगर मांगता भी तो क्या इन फालतू कामों के लिए दे देता?’’

‘‘तो देख लेना,’’ संगीता ने चेतावनी दी, ‘‘अगर अभी नहीं ले गया तो अब किसी न किसी बहाने आता ही होगा. आखिर प्रसाद भी तो बनाना होगा, पैसे कम पड़ गए होंगे,’’ संगीता ने नकल की.

सुमन ने क्रोध से कहा, ‘‘भलीमानस, अब आए तो तुम ही दरवाजा खोलना और तुम   ही उस से निबट लेना. मेरा दिमाग मत खराब करो. अगर हो सके तो एक प्याली चाय बना दो. कब से बैठा इंतजार कर रहा हूं.’’

‘‘छि, एक प्याली चाय भी नहीं बना सकते? बड़े तीसमारखां बनते हैं कि दफ्तर में यह करता हूं, दफ्तर में वह करता हूं.’’

सुमन ने चिढ़ कर कहा, ‘‘दफ्तर में तुम्हारे जैसे 50 चपरासी हैं यह सब काम करने के लिए.’’

रसोई में से आवाज आई, ‘‘क्या कहा? सुनाई नहीं दिया.’’

सुमन ने दोहराना ठीक नहीं समझा. इतवार का दिन था. सारा दिन बरबाद करने से क्या लाभ? फिर कहा, ‘‘जल्दी ले आओ चाय, तलब लग रही है.’’

सुमन की आदत कुछ ऐसी है कि वह समयअसमय असुविधा होते हुए भी किसी के सहायता मांगने पर कभी न नहीं करता. रुपए के मामले में तो सदा नुकसान ही उठाना पड़ता है.

थोड़े से रुपए दे कर तो वह भूल ही जाता है. संगीता उस के इस स्वभाव से तंग है. सदा खीजती ही रहती है.

उस का एक ही प्रश्न होता है, ‘‘क्या फायदा आलतूफालतू लोगों का काम करने से? बदले में क्या कभी कुछ   मिलता है?’’

‘‘तो क्या हमेशा बदले में कुछ पाने की आशा से ही कुछ करना चाहिए?

निस्वार्थ सेवा में जो आनंद है वह स्वार्थ में कहां?’’

‘‘धरे रहो अपनी निस्वार्थ सेवा,’’ संगीता तुनक कर कहती, ‘‘मरे, काम निकलने के बाद कभी झांकते तक नहीं.’’

‘‘यह अपने मन की बात है,’’ सुमन बोला.

वैसे वह संगीता से इतने असहयोग की आशा नहीं करता था. आरंभ में वह काफी प्रसन्न दिखाई देती थी, पर अब तो वह जलन और कुढ़न का भी शिकार हो गई है. बातबात पर चिढ़ती रहती है.

कुछ ही महीने पहले की बात है कि किसी के यहां दावत पर दफ्तर के सहयोगी प्रेमचंद और उस की पत्नी करुणा से भेंट हुई थी. करुणा एक स्कूल में पढ़ाती थी. बातों ही बातों में पता लगा कि सुमन को कागज के कई प्रकार के फूल बनाने आते हैं. करुणा ने सोचा कि अगर वह यह कला सीख लेगी तो बच्चों को भी सिखा सकेगी. उस ने सुमन से पूछा कि क्या वह उस के घर यह कला सीखने आ सकती है. सुमन को क्या आपत्ति हो सकती थी?

संगीता को अच्छा नहीं लगा कि करुणा इस तरह खुलेआम बेखौफ हो कर उस के पति से बात करे. इस पर तुर्रा यह कि बिना उस से पूछे सुमन ने उसे घर आने का खुला निमंत्रण भी दे दिया. इस बात पर घर में आ कर उस ने खूब लड़ाई की.

जब करुणा आई तो वह बेमन से बैठी रही. प्रेमचंद ने हंस कर उस का मन बहलाने का प्रयत्न किया, पर उस के चेहरे की सख्ती छिपी न रही.

सुमन ने करुणा को थोड़ाबहुत फूल बनाना बताया और देर हो जाने के कारण फिर आने का निमंत्रण दे दिया. उसे कोई काम अधूरा करना अच्छा नहीं लगता था.

उन के जाने के बाद संगीता फूट पड़ी, ‘‘मैं पहले से कहे देती हूं कि अब ये लोग यहां नहीं आएंगे. सारे काम छोड़ कर मरी को बस कागज के फूल बनाने ही सूझे.’’

‘‘ओहो, तो हमारा कौन सा नुकसान हो गया? अरे, जो आता था सो बता दिया. उस का भला हो गया. बच्चों को स्कूल में सिखाएगी. इस से कला का और विस्तार होगा,’’ सुमन ने कहा.

‘‘किसी व्यावसायिक स्कूल में जा कर सीखती तो गांठ से पैसे जो खर्च करने पड़ते. यहां तो मुफ्त में ही काम निकल गया. चायनाश्ता भी मिल गया.’’

‘‘तुम तो बेकार में झगड़ती हो. इस में चायपानी भी जोड़ दिया.’’

‘‘अपनेआप बनानी पड़े तो जानो. वैसे मैं ने कह दिया है कि अब वह इस घर में नहीं आएगी.’’

‘‘अब कल तो आएगी ही. उस के बाद मना कर दूंगा.’’

‘‘कल भी नहीं. मैं दरवाजा ही नहीं खोलूंगी.’’

‘‘दरवाजा मैं खोल दूंगा. तुम कष्ट मत करना,’’ सुमन ने हंसते हुए कहा.

‘‘क्यों, क्या वह तुम्हारी कुछ लगती है?’’ सुमन की हंसी से आहत हो कर संगीता ने व्यंग्य किया.

‘‘तुम तो पागल हो,’’ सुमन क्रोध से बोला और मेज पर से पत्रिका उठा कर पन्ने पलटने लगा.

अंत में घर में शांति बनाए रखने के प्रयास में दूसरे दिन सुमन को प्रेमचंद से कहना पड़ा कि संगीता की तबीयत ठीक नहीं. वह स्वयं किसी दिन आ कर करुणा को बाकी के फूल बनाना सिखा देगा.

दरवाजे पर घंटी बजी तो सुमन की तंद्रा टूटी. उठ कर देखा तो प्रेमदयाल खड़ा था. पड़ोसी था. हाथ में एक थैला था. देख कर मुसकराया.

‘‘आओ, आओ, प्रेमदयाल, कैसे आए?’’

अंदर आ कर बैठते हुए प्रेमदयाल ने कहा, ‘‘अपने बगीचे में इस बार अच्छे पपीते हुए हैं. एक पपीता ले कर आया हूं.’’

‘‘यह तो बहुत अच्छा किया. बहुत दिनों से मन भी कर रहा था पपीता खाने को,’’ सुमन ने हंस कर कहा.

पपीता हाथ में ले कर देखा, ‘‘सच ही बहुत अच्छा लग रहा है. काफी मेहनत करते हो.’’

‘‘अच्छा तो चलता हूं.’’

‘‘अरे, ऐसे कैसे? बैठो, एक प्याला चाय पी कर जाना. मैं भी सोच रहा था कि कोई आए तो चाय पीने का बहाना मिले.’’

अंदर आ कर मुसकरा कर पपीता संगीता को दिखा कर रखते हुए कहा, ‘‘जल्दी से चाय तो बना दो. प्रेमदयाल आया है.’’

‘‘वह तो देख रही हूं. महीने भर से सूरत नहीं दिखाई. आज पपीता लाया है तो जरूर कोई मतलब होगा.’’

‘‘क्यों, क्या बिना मतलब पपीता नहीं ला सकता?’’

‘‘सब हमारी तरह मूर्ख नहीं होते. देख लेना, अभी कोई काम बताएगा.’’

‘‘छोड़ो भी, कहां का खटराग ले बैठीं. झटपट चाय बना दो.’’

संगीता ने मुंह बनाते हुए चाय बनाने के लिए गैस पर पानी का पतीला रख दिया. चाय पीने के बाद प्रेमदयाल ने बाहर जाते हुए दरवाजे पर ठिठक कर कहा, ‘‘हां, एक बात कहना तो मैं भूल ही गया था. मुन्ना आएगा आप के पास. आप का कुछ समय लेगा.’’

‘‘अरे, तो इस में कहनेपूछने की क्या बात है? कभी भी आ जाए. उस का घर है. मैं नहीं होऊंगा तो संगीता होगी यहां.’’

‘‘नहीं, मेरा मतलब है उसे आप से कुछ पढ़ना है. परीक्षा सिर पर है. कल ढेर सारी समस्याएं सामने रख दीं उस ने. अब हम तो इतना पढ़ेलिखे हैं नहीं. जो कुछ पढ़ा था वह भी भूल गए. कुछ मदद कर देना उस की.’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं. भेज देना,’’ सुमन ने कहा.

सुमन मन ही मन सोच रहा था कि संगीता को बताए या नहीं. पर पत्नी के कान तो बाहर ही लगे हुए थे.

‘‘कहा नहीं था मैं ने कि बिना मतलब के प्रेमदयाल कभी सूरत नहीं दिखाएगा, पिछले साल के 4 अमरूद क्या भूल गए?’’

‘‘ओहो, अब बच्चे को अगर कुछ समझा दूंगा तो मेरा क्या घिस जाएगा? इस तरह कभीकभी पढ़ता रहा तो कभी अपने बच्चों के काम आएगा,’’ सुमन ने हंस कर कहा.

संगीता ने क्रोध से कहा, ‘‘चलो हटो, मुझे यह ठिठोली अच्छी नहीं लगती. यहां आ कर घंटों सिर खपाता रहेगा. कहां मिलेगा मुफ्त का मास्टर? एक पपीता दे कर 500 रुपए बचा लिए.’’

‘‘लो, फिर हिसाबकिताब में उलझ गईं, अच्छा बताओ, क्या सब्जी लानी है?’’

सुमन ने बाहर पैर रखा ही था कि निरंजन ने आ कर हाथ पकड़ लिया, ‘‘तो मिल ही गए. मैं तो डर रहा था कि कहीं चले न गए हो.’’

‘‘क्या बात है? घबरा क्यों रहे हो?’’

‘‘पप्पू को कुत्ते ने काट लिया है. वैसे तो कुत्ता पालतू है, पर उस के इंजेक्शन तो लगवाने ही पड़ेंगे. जरा स्कूटर निकालो तो उसे अस्पताल ले चलें.’’

‘‘ठीक है, तुम चलो, मैं अभी आता हूं.’’

‘‘बड़ी मेहरबानी होगी.’’

‘‘बस, मुझे तुम्हारी यही बात अच्छी नहीं लगती. ऐसा कह कर शर्मिंदा मत करो.’’

सुमन स्कूटर की चाबी लेने घर में आया.

‘‘क्यों, क्या हो गया? थैला तो हाथ में है और रुपए भी मैं ने दे दिए थे?’’ संगीता ने संदेह से पूछा.

‘‘अरे, यह निरंजन है न, बाहर मिल गया. उस के बच्चे को कुत्ते ने काट लिया है. उसे अस्पताल पहुंचाना है.’’

संगीता ने भड़क कर कहा, ‘‘तो क्या शहर में स्कूटर और टैक्सी वालों ने हड़ताल कर दी है? लेकिन जब मुफ्त में सवारी मिलती हो तो कौन भाड़ा देना पसंद करता है?’’

‘‘इनसान को जो सहारा मिल जाए उस का ही तो आसरा लेगा. अभी आता हूं. ज्यादा देर नहीं लगेगी.’’

‘‘सब्जी नहीं होगी तो खाना नहीं बनेगा. उसी निरंजन से कह देना, होटल से कुछ ले कर बंधवा देगा. स्कूटर के 5 रुपए भी खर्च नहीं कर सकता.’’

‘‘तुम तब तक दालचावल चढ़ाओ, मैं लौट कर आता हूं.’’

‘‘मैं क्या जानती नहीं उस कंजूस को? वहां 2 घंटे खड़ा रखेगा और फिर वापस भी तुम्हारे साथ आएगा. 4 महीने हुए तब मैं ने कहा था कि दौरे पर हर महीने हैदराबाद जाते हो, मेरे लिए मोतियों की माला ले आना. उस दिन से आज तक सूरत नहीं दिखाई.’’

‘‘अब क्या कहूं, संगीता, तुम्हारी तो उल्टा सोचने की आदत है. अब उसे क्या परेशानी है, हमें क्या मालूम? एक बार रुपए दे कर देखतीं कि लाता है या नहीं.’’

‘‘भली चलाई. माला के तो दर्शन दूर रुपए भी हाथ से जाते. मैं कहे देती हूं कि उसे अस्पताल छोड़ कर चले आना, नहीं तो मैं ताला लगा कर चली जाऊंगी.’’

‘‘अच्छा, बाबा, अभी आता हूं,’’ सुमन झट से चाबी ले कर चला गया.

सब्जी ला कर आराम से बैठ कर सुमन ने पत्नी के कंधे पर हलके से थपथपाते हुए कहा, ‘‘अब एक प्याला चाय हो जाए तो कहूं कि धरती पर अगर सर्वोत्तम स्थान है तो बस यहीं है, यहीं है, यहीं है.’’

संगीता ने कर्कश स्वर में कहा, ‘‘मुझे नहीं अच्छी लगती यह खुशामद. अपनेआप बना लो.’’

‘‘किसी ने ठीक ही कहा है कि क्रोध में औरत की खूबसूरती दोगुनी हो जाती है. अब तुम मुझे दोगुनी सुंदर ही अच्छी लगती हो. अगर कहीं चौगुनी या आठगुनी सुंदर हो गईं तो भला मैं कहां बरदाश्त कर पाऊंगा? अब बना दोगी चाय तो तुम्हारे गुण गाऊंगा, नहीं तो… ’’

‘‘नहीं तो क्या?’’ संगीता ने पूछा.

‘‘नहीं तो क्या, नीचे हिदायतुल्ला के ढाबे में जा कर पी लूंगा.’’

‘‘क्यों, ढाबे में क्यों जाओगे?’’ संगीता ने बिगड़ कर कहा, ‘‘निरंजन के जाओ, प्रेमदयाल के जाओ, उस के… उस के… करुणा के यहां जाओ. बढि़या खुशबूदार चाय मिलेगी.’’

गहरी आह भरते हुए सुमन ने कहा, ‘‘बस, मजा ही किरकिरा कर दिया. क्या तीर मारा है.’’

दूसरे ही दिन संगीता को पत्र मिला कि उस के छोटे भाईबहन कालिज की छुट्टियों में उस के पास कुछ दिनों के लिए आने वाले हैं. संगीता बहुत प्रसन्न थी. उस ने बाजार से सामान लाने के लिए एक बड़ी सूची बना ली. सुमन के दफ्तर से आने की प्रतीक्षा कर रही थी.

सुमन ने जल्दी आने का वादा किया था. उस का मन खराब न हो, इसलिए गैस पर पानी चढ़ा दिया था ताकि सुमन के आते ही उसे एक प्याला चाय प्रस्तुत की जा सके.

‘‘लगता है तुम्हारी शादी हुए एक महीना भी नहीं हुआ. क्या जंच रही हो. लगता है, आज बाजार जाना नहीं होगा,’’ सुमन ने शरारत से कहा.

‘‘क्या मतलब?’’ संगीता ने शरमाते हुए कहा.

‘‘अरे, मैं ठहरा मामूली इनसान. एक ही काम कर सकता हूं. या तो तुम्हारे साथ सामान खरीदने चलूं या तुम्हें लोगों की नजरों से बचाता फिरूं.’’

‘‘यह लो चाबी और उठो. ज्यादा बातें मत बनाओ,’’ संगीता पर्स उठा कर बाहर आ गई.

पता नहीं कैसे भूल हो गई कि जैसे ही सुमन ने किक मार कर स्कूटर चलाया तो गीयर न्यूट्रल में न होने से झटके से आगे भाग पड़ा. हैंडल हाथ से छूट गया और सुमन व स्कूटर दोनों गिर पड़े. नीचे नुकीले पत्थर पड़े थे. सुमन का सिर टकरा गया और वह अचेत हो गया. उस के शरीर से रक्त बहने लगा.

संगीता अवाक् रह गई. यह क्या हो गया? जब उसे होश आया तो चिल्लाने और रोने लगी. भीड़ इकट्ठी हो गई. सब अपनीअपनी राय दे रहे थे, पर कोई कुछ कर नहीं रहा था. तभी भीड़ को चीरता हुआ रामप्रसाद आया, ‘‘क्या हुआ, भाभी? अरे, सुमन बाबू को चोट आ गई? आप चिंता मत कीजिए. आप घर जाइए, मैं संभालता हूं.’’

रामप्रसाद ने लोगों की मदद से एक टैक्सी रोक कर सुमन को उस में लिटाया और जानपहचान के एक लड़के से स्कूटर घर में रखने को कह कर सुमन को अस्पताल ले गया. संगीता के आंसू नहीं रुक रहे थे. पासपड़ोस की कुछ स्त्रियां आ कर उसे सांत्वना दे रही थीं.

लगभग 1 घंटे के बाद प्रेमदयाल ने आ कर कहा, ‘‘चिंता की कोई बात नहीं है. अधिक चोट नहीं आई है. हैलमेट होने से बच गए, नहीं तो पता नहीं क्या हो जाता.’’

‘‘कब आएंगे?’’ संगीता ने आतुरता से पूछा.

‘‘अब कुछ दिन तो अस्पताल में रहना पड़ेगा. मरहमपट्टी हो गई है. इंजेक्शन भी लगा दिए गए हैं. अभी तो सो रहे हैं. यह देखने के लिए कि अंदरूनी चोट तो नहीं है एक्सरे करने पड़ेंगे. वैसे डाक्टर ने कहा है कि जैसी हालत है उस से लगता है कि घबराने की कोई बात नहीं है.’’

‘‘मैं चलूंगी उन के पास.’’

‘‘क्यों नहीं. अरे, आप को ही तो लेने आया हूं. एक बार आंख खुली थी तो आप को पूछ रहे थे. मुझ से कहा कि आप को साथ ले जा कर सामान ले आऊं.’’

संगीता बोली, ‘‘कोई बात नहीं. सामान फिर आ जाएगा. आप मुझे ले चलिए.’’

टैक्सी में बिठा कर प्रेमदयाल संगीता को अस्पताल ले आया. जैसे ही पैसे देने को संगीता ने पर्स खोला, प्रेमदयाल ने रोक दिया, ‘‘कभी तो हमें भी सेवा करने का मौका दीजिए.’’

संगीता चुप हो गई और आतुरता से प्रेमदयाल के साथ सुमन के कमरे में पहुंची. सुमन सो रहा था. नींद के इंजेक्शन लगे थे. एक ही स्टूल था. प्रेमदयाल ने संगीता के लिए आगे कर दिया.

पास ही निरंजन और रामप्रसाद भी खड़े थे. कुछ और लोग भी थे जिन्हें संगीता नहीं जानती थी.

निरंजन ने कहा, ‘‘चिंता की कोई बात नहीं. हम सब लोग हैं. आप बिलकुल आराम से बैठिए. डाक्टर थोड़ी देर में आएंगे.’’

संगीता ने अवरुद्ध कंठ से कहा, ‘‘खाने का क्या होगा? कुछ बताया डाक्टर ने? मैं घर से बना कर ले आऊंगी.’’

‘‘अब आप कहां जा सकती हैं?’’ प्रेमदयाल ने मुसकरा कर कहा, ‘‘आप तो बस, इन की देखभाल कीजिए. खाने  के लिए मैं ने घर खबर पहुंचा दी है. आप का खाना भी आ जाएगा.’’

‘‘पर इतना कष्ट करने की क्या आवश्यकता थी?’’ संगीता ने औपचारिक रूप से पूछा.

‘‘भाभीजी, कष्ट में जो आनंद है वह आनंद में कहां? कभी किसी के काम आएं इसी में प्रसन्नता है. पर वैसे ऐसा अवसर कभी न आए, बस, यही इच्छा है.’’

संगीता चुप हो गई. रात को वह वहीं सो गई.

प्रेमदयाल, निरंजन और रामप्रसाद काफी देर तक रहे. फिर सुबह आने को कह कर चले गए.

सुबह 8 बजे करुणा और प्रेमचंद भी आए. दोनों के हाथों में फलों के थैले थे. ‘‘हमें तो रात में देरी से पता चला. बहुत देर हो गई थी, इसलिए नहीं आ सके. अब कैसी तबीयत है?’’ करुणा ने कहा.

‘‘अब उठने पर पता चलेगा. वैसे डाक्टर ने कहा है कि घबराने की

कोई बात नहीं है. एक्सरे वगैरह ले लिए हैं.’’

तभी सुमन ने आंखें खोलीं. चारों ओर देखा और फिर संगीता को देख कर मुसकराया, ‘‘आज शाम तक मैं चलने लायक हो जाऊंगा. आज सामान लाने चलेंगे, पर कपड़े जरा हलके पहनना.’’

‘‘छि,’’ संगीता ने शरमा कर कहा.

‘‘क्या हुआ?’’ करुणा ने पूछा, ‘‘जरा हम भी तो सुनें?’’

‘‘कुछ नहीं, यों ही बड़बड़ा रहे हैं.’’

उन के जाने के बाद सुमन ने पूछा, ‘‘यहां कौन लाया था?’’

‘‘रामप्रसाद.’’

‘‘उसे टैक्सी के पैसे देने होंगे. लोगों का खाने का भी उधार हो गया. समझ में नहीं आता कि यह सब एहसान कैसे चुकाऊंगा,’’ सुमन ने कहा.

सुमन के होंठों पर हाथ रखते हुए संगीता ने कहा, ‘‘बसबस, अब कुछ कहने की जरूरत नहीं है. मुझे सबक मिल गया है.’’

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