अंधेरे की छाया: बुढ़ापे में बेटे ने छोड़ा जब महेंद्र और प्रमिला का साथ

लेखक-  गुलजार राजस्थानी

महेंद्र सिंह ने अपनी पत्नी प्रमिला के कमरे में झांक कर देखा. अंदर पासपड़ोस की 5-6 महिलाएं बैठी थीं. वे न केवल प्रमिला का हालचाल पूछने आई थीं बल्कि उस से इसलिए भी बतिया रही थीं कि उस की दिलजोई होती रहे. जब से प्रमिला फालिज की शिकार हुई थी, महल्ले के जानपहचान वालों ने अपना यह रोज का क्रम बना लिया था कि 2-4 की टोलियों में सुबह से शाम तक उस का मन बहलाने के लिए उस के पास मौजूद रहते थे. पुरुष नीचे बैठक में महेंद्र सिंह के पास बैठ जाते थे औैर औरतें ऊपर प्रमिला के कमरे में फर्श पर बिछी दरी पर विराजमान रहती थीं.

वे लोग प्रमिला एवं महेंद्र की प्रत्येक छोटीबड़ी जरूरतों का ध्यान रखते थे. महेंद्र को पिछले 3-4 महीनों के दौरान उसे कुछ कहना या मांगना नहीं पड़ा था. आसपास मौजूद लोग मुंह से निकलने से पहले ही उस की जरूरत का एहसास कर लेते थे और तुरंत इस तरह उस की पूर्ति करते थे मानो वे उस घर के ही लोग हों. उस समय भी 2 औरतें प्रमिला की सेवाटहल में लगी थीं. एक स्टोव पर पानी गरम कर रही थी ताकि उसे रबर की थैली में भर कर प्रमिला के सुन्न अंगों का सेंक किया जा सके. दूसरी औरत प्रमिला के सुन्न हुए अंगों की मालिश कर रही थी ताकि पुट्ठों की अकड़न व पीड़ा कम हो. कमरे में झांकने से पहले महेंद्र सिंह ने सुना था कि प्रमिला वहां बैठी महिलाओं से कह रही थी, ‘‘तुम देखना, मेरा गौरव मेरी बीमारी का पत्र मिलते ही दौड़ादौड़ा चला आएगा. लाठी मारे से पानी जुदा थोड़े ही होता है. मां का दर्द उसे नहीं आएगा तो किस को आएगा? मेरी यह दशा देख कर वह मुझे पीठ पर उठाएउठाए फिरेगा. तुरंत मुझे दिल्ली ले जाएगा और बड़े से बड़े डाक्टर से मेरा इलाज कराएगा.’’ महेंद्र के कमरे में घुसते ही वहां मौन छा गया था. कोई महिला दबी जबान से बोली थी, ‘‘चलो, खिसको यहां से निठल्लियो, मुंशीजी चाची से कुछ जरूरी बातें करने आए हैं.’’ देखतेदेखते वहां बैठी स्त्रियां उठ कर कमरे के दूसरे दरवाजे से निकल गईं. महेंद्र्र ऐेनक ठीक करता हुआ प्रमिला के पलंग के समीप पहुंचा. उस ने बिस्तर पर लेटी हुई प्रमिला को ध्यान से देखा.

शरीर के पूरे बाएं भाग पर पक्षाघात का असर हुआ था. मुंह पर भी हलका सा टेढ़ापन आ गया था और बोलने में जीभ लड़खड़ाने लगी थी. महेंद्र प्रमिला से आंखें चार होते ही जबरदस्ती मुसकराया था और पूछा था, ‘‘नए इंजेक्शनों से कोई फर्क पड़ा?’’ ‘‘हां जी, दर्द बहुत कम हो गया है,’’ प्रमिला ने लड़खड़ाती आवाज में जवाब दिया था और बाएं हाथ को थोड़ा उठा कर बताया था, ‘‘यह देखो, अब तो मैं हाथ को थोड़ा हरकत दे सकती हूं. पहले तो दर्द के मारे जोर ही नहीं दे पाती थी.’’ ‘‘और टांग?’’ ‘‘यह तो बिलकुल पथरा गई है. जाने कब तक मैं यों ही अपंगों की तरह पलंग पर पड़ी रहूंगी.’’ ‘‘बीमारी आती हाथी की चाल से है औैर जाती चींटी की चाल से है. देखो, 3 महीने के इलाज से कितना मामूली अंतर आया है, लेकिन अब मैं तुम्हारा और इलाज नहीं करा सकता. सारा पैसा खत्म हो चुका है. तमाम जेवर भी ठिकाने लग गए हैं. बस, 50 रुपए और तुम्हारे 6 तोले के कंगन और चूडि़यां बची हैं.’’ ‘‘हां,’’ प्रमिला ने लंबी सांस ली, ‘‘तुम तो पहले ही बहुत सारा रुपया गौरव और उस के बच्चों के लिए यह घर बनाने में लगा चुके थे. पर वे नहीं आए. अब मेरी बीमारी की सुन कर तो आएंगे. फिर मेरा गौरव रुपयों का ढेर…’’ ‘‘नहीं, मैं और इंतजार नहीं कर सकता,’’ महेंद्र बाहर जाते हुए बोला, ‘‘तुम इंतजार कर लो अपने बेटे का. मैं डा. बिहारी के पास जा रहा हूं, कंपाउंडर की नौकरी के लिए…’’ ‘‘तुम करोगे वही जो तुम्हारे मन में होगा,’’ प्रमिला चिढ़ कर बोली, ‘‘आने दो गौरव को, एक मिनट में छुड़वा देगा वह तुम्हारी नौकरी.’’ ‘‘आने तो दें,’’ महेंद्र बाहर निकल कर जोर से बोला, ‘‘लो, सलमा बाजी और उन की बहुएं आ गई हैं तुम्हारी सेवा को.’’ ‘‘हांहां तुम जाओ, मेरी सेवा करने वाले बहुत हैं यहां. पूरा महल्ला क्या, पूरा कसबा मेरा परिवार है. अच्छी थी तो मैं इन सब के घरों पर जा कर सिलाईकढ़ाई सिखाती थी. कितना आनंद आता था दूसरों की सेवा में. ऐसा सुख तो अपनी संतान की सेवा में भी नहीं मिलता था.’’ ‘‘हां, प्रमिला भाभी,’’ सलमा ने अपनी दोनों बहुओं के साथ कमरे में आ कर आदाब किया और प्रमिला की बात के जवाब में बोली, ‘‘तुम से ज्यादा मुंशीजी को मजा आता था दूसरों की खिदमत में.

अपनी दवाओं की दुकान लुटा दी दीनदुखियों की सेवा में. डाक्टरों का धंधा चौपट कर रखा था इन्होंने. कहते थे गौरव हजारों रुपया महीना कमाता है, अब मुझे दुकान की क्या जरूरत है. बस, गरीबों की खिदमत के लिए ही खोल रखी है. वरना घर बैठ कर आराम करने के दिन हैं.’’ ‘‘ठीक कहती हो, बाजी,’’ प्रमिला का कलेजा फटने लगा, ‘‘क्या दिन थे वे भी. कैसा सुखी परिवार था हमारा.’’ कभी महेंद्र और प्रमिला का परिवार बहुत सुखी था. दुख तो जैसे उन लोगों ने देखा ही नहीं था. जहां आज शानदार गौरव निवास खड़ा है वहां कभी 2 कमरों का एक कच्चापक्का घर था. महेंद्र का परिवार छोटा सा था. पतिपत्नी और इकलौता बेटा गौरव. महेंद्र की स्टेशन रोड पर दवाओं की दुकान थी, जिस से अच्छी आय थी. उसी आय से उन्होंने गौरव को उच्च शिक्षादीक्षा दिला कर इस योग्य बनाया था कि आज वह दिल्ली में मुख्य इंजीनियर है. अशोक विहार में उस की लाखों की कोठी है. वह देश का हाकी का जानामाना खिलाड़ी भी तो था. बड़ेबडे़ लोगों तक उस की पहुंच थी और आएदिन देश की विख्यात पत्रपत्रिकाओं में उस के चर्चे होते रहते थे. गौरव ने दिल्ली में नौकरी मिलने के साथ ही अपनी एक प्रशंसक शीला से शादी कर ली थी. महेंद्र व प्रमिला ने सहर्ष खुद दिल्ली जा कर अपने हाथों से यह कार्य संपन्न किया था. शीला न केवल बहुत सुंदर थी बल्कि बहुत धनवान एवं कुलीन घराने से थी. बस, यहीं वे चूक गए. चूंकि शादी गौरव एवं शीला की सहमति से हुई थी, इसलिए वे महेंद्र और प्रमिला को अपनी हर बात से अलग रखने लगे. यहां तक कि शीला शादी के बाद सिर्फ एक बार अपनी ससुराल नसीराबाद आई थी.

फिर वह उन्हें गंवार और उन के घर को जानवरों के रहने का तबेला कह कर दिल्ली चली गई थी. पिछले 15 वर्षों में उस ने कभी पलट कर नहीं झांका था. महेंद्र और प्रमिला पहले तो खुद भी ख्ंिचेखिंचे रहे थे, लेकिन जब उन के पोता और पोती शिखा औैर सुदीप हो गए तो वे खुद को न रोक सके. किसी न किसी बहाने वे बहूबेटे के पास दिल्ली पहुंच जाते. गौरव और शीला उन का स्वागत करते, उन्हें पूरा मानसम्मान देते. लेकिन 2-4 दिन बाद वे अपने बड़प्पन के अधिकारों का प्रयोग शुरू कर देते, उन के निजी जीवन में हस्तक्षेप करना शुरू कर देते. वे उन्हें अपने फैसले मानने और उन की इच्छानुसार चलने पर विवश करते. यहीं बात बिगड़ जाती. संबंध बोझ लगने लगते और छोटीछोटी बातों को ले कर कहासुनी इतनी बढ़ जाती कि महेंद्र और प्रमिला को वहां से भागना पड़ जाता. प्रमिला और महेंद्र आखिरी बार शीला के पिता की मृत्यु पर दिल्ली गए थे. तब शिखा और सुदीप क्रमश: 10 और 8 वर्ष के हो चुके थे.

उन के मन में हर बात को जानने और समझने की जिज्ञासा थी. उन्होंने दादादादी से बारबार आग्रह किया था कि वे उन्हें अपने कसबे ले जाएं ताकि वे वहां का जीवन व रहनसहन देख सकें. गौरव के दिल में मांबाप के लिए बहुत प्यार व आदर था. उस ने घर ठीक कराने के लिए शीला से छिपा कर मां को 10 हजार रुपए दे दिए ताकि शीला को बच्चों को ले कर वहां जाने में कोई आपत्ति न हो. परंतु प्रमिला की असावधानी से बात खुल गई. सासबहू में महाभारत छिड़ गया और एकदूसरे की शक्ल न देखने की सौगंध खा ली गई. परंतु नसीराबाद पहुंचते ही प्रमिला का क्रोध शांत हो गया. वह पोतापोती और गौरव को नसीराबाद लाने के लिए मकान बनवाने लगी. गृहप्रवेश के दिन वे नहीं आए तो प्रमिला को ऐसा दुख पहुंचा कि वह पक्षाघात का शिकार हो गईर् औैर अब प्रमिला को चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा दीख रहा था.

महेंद्र डा. बिहारी के यहां से लौटा तो अंधेरा हो चुका था. पर घर का दृश्य देख कर वह हक्काबक्का रह गया. प्रमिला का कमरा अड़ोसपड़ोस के लोगों से भरा हुआ था. प्रमिला अपने पलंग पर रखी नोटों की गड्डियां उठाउठा कर एक अजनबी आदमी पर फेंकती हुई चीख रही थी, ‘‘ले जाओ इन को मेरे पास से और उस से कहना, न मुझे इन की जरूरत है, न उस की.’’ आदमी नोट उठा कर बौखलाया हुआ बाहर आ गया था. उसे भीतर खड़े लोगों ने जबरदस्ती बाहर धकेल दिया था. कमरे से कईकई तरह की आवाजें आ रही थीं. ‘‘जाओ, भाई साहब, जाओ. देखते नहीं यह कितनी बीमार हैं.’’ ‘‘रक्तचाप बढ़ गया तो फिर कोई नई मुसीबत खड़ी हो जाएगी. जल्दी निकालो इन्हें यहां से.’’ और 2 लड़के उस आदमी को बाजुओं से पकड़ कर जबरदस्ती बाहर ले गए. वह अजनबी महेंद्र से टकरताटकराता बचा था. महेंद्र ने भी गुस्से में पूछा था, ‘‘कौन हो तुम?’’ ‘‘मैं गौरव का निजी सहायक हूं, जगदीश. साहब ने ये 50 हजार रुपए भेजे हैं और यह पत्र.’’ महेंद्र ने नोटोें को तो नहीं छुआ, लेकिन जगदीश के हाथ से पत्र ले लिया. पत्र को पहले ही खोला जा चुका था और शायद पढ़ा भी जा चुका था. महेंद्र ने तत्काल फटे लिफाफे से पत्र निकाल कर खोला. पत्र गौरव ने लिखा था: पूज्य पिताजी एवं माताजी, सादर प्रणाम, आप का पत्र मिला. माताजी के बारे में पढ़ कर बहुत दुख हुआ. मन तो करता है कि उड़ कर आ जाऊं, मगर मजबूरी है. शीला और बच्चे इसलिए नहीं आ सकते, क्योंकि वे परीक्षा की तैयारी में लगे हैं. मैं एशियाड के कारण इतना व्यस्त हूं कि दम लेने की भी फुरसत नहीं है. बड़ी मुश्किल से समय निकाल कर ये चंद पंक्तियां लिख रहा हूं. मैं समय मिलते ही आऊंगा. फिलहाल अपने सहायक को 50 हजार रुपए दे कर भेज रहा हूं ताकि मां का उचित इलाज हो सके. आप ने लिखा है कि आप ने हर तरफ से पैसा समेट कर नए मकान के निर्माण में लगा दिया है, जो बचा मां की बीमारी खा गईर्.

यह आप ने ठीक नहीं किया. बेकार मकान बनवाया, हम लोगों के लिए वह किसी काम का नहीं है. हम कभी नसीराबाद आ कर नहीं बसेंगे. मां की बीमारी पर भी व्यर्थ खर्च किया. पक्षाघात के रोग का कोई इलाज नहीं है. मैं ने कईर् विशेषज्ञ डाक्टरों से पूछा है. उन सब का यही कहना है मां को अधिकाधिक आराम दें. यही इलाज है इस रोग का. मां को दिल्ली लाने की भूल तो कभी न करें. यात्रा उन के लिए बहुत कष्टदायक होगी. रक्तचाप बढ़ गया तो दूसरा आक्रमण जानलेवा सिद्ध होगा. एक्यूपंक्चर विधि से भी इस रोग में कोई लाभ नहीं होता. सब धोखा है… महेंद्र इस से आगे न पढ़ सका. उस का मन हुआ कि उस पत्र को लाने वाले के मुंह पर दे मारे. लेकिन उस में उस का क्या दोष था. उस ने बड़ी कठिनाई से अपने को संभाला और जगदीश को पत्र लौटाते हुए कहा, ‘‘आप उस से जा कर वही कहिए जो उसे जन्म देने वाली ने कहा है. मेरी तरफ से इतना और जोड़ दीजिए कि हम तो उस के लिए मरे हुए ही थे, आज से वह हमारे लिए मर गया.

काश, वह पैदा होते ही मर जाता.’’ जगदीश सिर झुका कर चला गया. महेंद्र प्रमिला के कमरे में घुसा. उस ने देखा कि वहां सब लोग मुसकरा रहे थे. प्रमिला की आंखें भीग रही थीं, लेकिन उस के होंठ बहुत दिनों के बाद हंसना चाह रहे थे. महेंद्र ने प्रमिला के पास जाते हुए कहा, ‘‘तुम ने बिलकुल ठीक किया, पम्मी.’’ तभी बिजली चली गई. कमरे में अंधेरा छा गया. प्रमिला ने देखा कि अंधेरे में खड़े लोगों की परछाइयां उस के समीप आती जा रही हैं. कोई चिल्लाया, ‘‘अरे, कोई मोमबत्ती जलाओ.’’ ‘‘नहीं, कमरे में अंधेरा रहने दो,’’ प्रमिला तत्काल चीख उठी, ‘‘यह अंधेरा मुझे अच्छा लग रहा है. कहते हैं कि अंधेरे में साया भी साथ छोड़ देता है. मगर मेरे चारों तरफ फैले अंधेरे में तो साए ही साए हैं. मैं हाथ बढ़ा कर इन सायों का सहारा ले सकती हूं,’’ प्रमिला ने पास खड़े लोगों को छूना शुरू किया, ‘‘अब मुझे अंधेरे से डर नहीं लगता, अंधेरे में भी कुछ साए हैं जो धोखा नहीं हैं, ये साए नहीं हैं बल्कि मेरे अपने हैं, मेरे असली संबंधी, मेरा सहारा…यह तुम हो न जी?’’ ‘‘हां, पम्मी, यह मैं हूं,’’ महेंद्र ने भर्राई आवाज में कहा, ‘‘तुम्हारे अंधेरों का भी साथी, तुम्हारा साया.’’ ‘‘तुम नौकरी करना डा. बिहारी की. रोगियों की सेवा करना. अपनी संतान से भी ज्यादा सुख मिलता है परोपकार में. मुझे संभालने वाले यहां मेरे अपने बहुत हैं. मैं निचली मंजिल पर सिलाई स्कूल खोल लूंगी, मेरे कंगन औैर चूडि़यां बेच कर सिलाई की कुछ मशीनें ले आना औैर पहियों वाली एक कुरसी ला देना.’’ ‘‘पम्मी.’’ ‘‘हां जी, मेरा एक हाथ तो चलता है. ऊपर की मंजिल किराए पर उठा देना. वह पैसा भी मैं अपने इन परिवार वालों की भलाई पर खर्च करना चाहती हूं. हमारे मरने के बाद हमारा जो कुछ है, इन्हें ही तो मिलेगा.’’ एकाएक बिजली आ गई. कमरे में उजाला फैल गया. सब के साथ महेंद्र ने देखा था कि प्रमिला अपने एक हाथ पर जोर लगा कर उठ बैठी थी. इस से पहले वह सहारा देने पर ही बैठ पाती थी. महेंद्र ने खुशी से छलकती आवाज में कहा, ‘‘पम्पी, तुम तो बिना सहारे के उठ बैठी हो.’’ ‘‘हां, इनसान को झूठे सहारे ही बेसहारा करते हैं.

मैं इस आशा में पड़ी रही कि कोई आएगा, मुझे अपनी पीठ पर उठा कर ले जाएगा औैर दुनिया के बड़े से बड़े डाक्टर से मेरा इलाज कराएगा. मेरा यह झूठा सहारा खत्म हो चुका है. मुझे सच्चा सहारा मिल चुका है…अपनी हिम्मत का सहारा. फिर मुझे किस बात की कमी है? मेरा इतना बड़ा परिवार जो खड़ा है यहां, जो जरा से पुकारने पर दौड़ कर मेरे चारों ओर इकट्ठा हो जाता है.’’ यह सुन कर महेंद्र की छलछलाई आंखें बरस पड़ीं. उसे रोता देख कर वहां खड़े लोगों की आंखें भी गीली होने लगीं. महेंद्र आंसुओं को पोंछते हुए सोच रहा था, ‘ये कैसे दुख हैं, जो बूंद बन कर मन की सीप में टपकते हैं और प्यार व त्याग की गरमी पा कर खुशी के मोती बन जाते हैं.

दोस्ती की आड़ में न उठाएं फायदा, ‘खुद को इस तरह रखें सेफ’

लेखक- श्रीप्रकाश शर्मा

अंतरा ने जब अपने पिता के ट्रांसफर के कारण नए शहर के एक नए स्कूल में दाखिला लिया तो उस की खुशी का ठिकाना न रहा, क्योंकि उस की खूबसूरती के कारण स्कूल के अधिकांश युवक उस से दोस्ती करना चाहते थे. जिस की वजह से कभी कोई उसे गिफ्ट देता तो कोई चौकलेट. किंतु शहरी लाइफस्टाइल और विपरीतलिंगी दोस्ती के गहरे अर्थों से अनजान अंतरा को यह रहस्य बिलकुल भी पता नहीं था कि इस के पीछे हकीकत क्या है.

शुरू-शुरू में तो अंतरा को यह सब अच्छा लगता था, क्योंकि उस से दोस्ती करने वालों और उसे चाहने वालों की लाइन जो लगी रहती थी, लेकिन अंतरा वह सब नहीं देख पा रही थी जो असल में इस दोस्ती के पीछे छिपा हुआ था. उस के लिए ऐसी दोस्ती का मतलब केवल बाहर होटल या रेस्तरां में लंच तथा डिनर करना, स्कूल कैंटीन और कौफी हाउस में कोल्डड्रिंक ऐंजौय करना और चौकलेट्स शेयर करना तथा दोस्तों की बर्थडे पार्टियों में केक खाना और मस्ती के साथ नाचगाना करने के रूप में सीमित था.

इन सब पार्टियों के कारण अंतरा अकसर स्कूल से अपने घर बड़ी देर से लौटती थी. उस के मम्मीपापा भी ज्यादा टोकाटाकी नहीं करते थे. इसलिए अंतरा खुल कर इन पलों को जी रही थी, लेकिन अंतरा के साथ एक दिन जो घटा उस की उस ने सपने में भी कल्पना नहीं की थी

संयोग से एक दिन गौरव का बर्थडे था, जिसे अंतरा अपना सब से अच्छा दोस्त समझती थी, उस दिन अंतरा स्कूल के बाद अन्य दोस्तों के साथ गौरव का बर्थडे सैलिब्रेट करने के लिए शहर से कुछ दूर स्थित गौरव के फार्म हाउस गई. वहां केक, मिठाइयों और चौकलेट्स के साथसाथ शराब और बियर की बोतलें भी खुलीं. अंतरा इस से बच न सकी. नशे में बेखबर अंतरा वह सबकुछ कर रही थी, जिस का उसे जरा भी अंदाजा नहीं था.

नशे की हालत में धीरेधीरे उस के दोस्तों ने अंतरा के साथ छेड़खानी शुरू कर दी. पार्र्टी में अंतरा 10-12 दोस्तों के बीच अकेली लड़की थी. अपने बदन पर अपने दोस्तों की छुअन की सिहरन को अंतरा खूब महसूस कर रही थी, लेकिन जब अंतरा को लगा कि उस के साथ जबरदस्ती की जा रही है तो उसे अपनी गलती का एहसास हुआ. ऐसे में अपने दोस्तों से उस ने छोड़ने की मिन्नतें कीं, लेकिन वे सभी अंतरा की खूबसूरती के नशे में अंधे हो चुके थे.

अंतरा को जब लगा कि वे ऐसे नहीं मानेंगे तो वह जोरजोर से चिल्लाने लगी और पास में रखी खाली बोतलें खिड़कियों के शीशे पर मारने लगी. कहीं लोग इकट्ठे न हो जाएं इस भय से अंतरा के दोस्तों ने उसे छोड़ दिया. इस जाल से निकलने के बाद अंतरा को नए अनुभव के साथ नई जिंदगी मिली थी, जो उस के लिए बड़ी सीख थी.

सच पूछिए तो अंतरा जैसी निर्दोष और मासूम युवती के जीवन की व्यथा की यह कहानी एक लेखक की कोरी कल्पना हो सकती है, लेकिन वास्तविक दुनिया में इस तरह की सच्ची और कड़वी कहानियों से प्रिंट मीडिया के पेज और टैलीविजन के चैनल्स भरे रहते हैं. यह भी सच है कि इस तरह की घटना का शिकार होने वाली अंतरा वास्तविक जीवन और मौडर्न दुनिया में अकेली नहीं है. अंतरा जैसी कुछ युवतियां परिवार और समाज के भय से या तो आत्महत्या कर लेती हैं या फिर अपने पर किए गए जुल्मों को चुपचाप सह लेती हैं.

अहम प्रश्न यह उठता है कि जिस दोस्ती को मानव जीवन का अनमोल उपहार माना जाता है, आखिर उसी पवित्र रिश्ते को कलंकित करने की पृष्ठभूमि तैयार करने के लिए कौन जिम्मेदार होता है? साइकोलौजी के जनक कहे जाने वाले सिगमंड फ्रायड का यह मानना था कि मानो जीवन की हरेक ऐक्टिविटी केवल 2 उद्देश्यों से प्रभावित होती है, प्रसिद्धि पाने की लालसा और सैक्स. इस तरह सैक्स को मानव जीवन में एक कुदरती आवश्यकता के रूप में शुमार किया जाता है.

सच पूछिए तो किसी युवक और युवती के बीच दोस्ती संबंधों की मर्यादा और उस की पवित्रता का वहन करना कोईर् आसान काम नहीं होता. दोस्ती का यह रिश्ता जिस नाजुक डोर से बंधा होता है वह तनमन की हलकी सी गरमी से भी दरक उठता है. लिहाजा, यदि आप भी तथाकथित दोस्ती के किसी ऐसे बंधन से बंधे हुए हैं तो आप को इस पवित्र रिश्ते को स्वच्छ रखने के लिए अपने मन पर बड़ी कठोरता से नियंत्रण रखने की आवश्यकता है, क्योंकि युवक और युवतियों की दोस्ती के बंधन की उम्र बहुत छोटी होती है. ऐसा नहीं है कि इस प्रकार की दोस्ती की आड़ में केवल युवक ही सैक्सुअल रिलेशन बनाने की ताक में रहते हैं बल्कि युवतियां भी इस में पीछे नहीं रहतीं.

संस्कार जब एक छोटे से गांव से अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी कर कालेज की पढ़ाई के लिए शहर आया तो उसे शुरू में सबकुछ अजीब सा लगता था. वह बहुत शर्मीले स्वभाव का था और वह युवतियां तो दूर युवकों से भी बड़ी मुश्किल से बात करता था. लेकिन वह बहुत होशियार था और पेरैंट्स उसे एक आईएएस औफिसर के रूप में देखना चाहते थे. वर्षा भी उसी की क्लास में पढ़ती थी और संस्कार के रिजर्व नेचर और होशियार होने के कारण उसे मन ही मन काफी चाहती भी थी, लेकिन वह संस्कार को इस बारे में बता पाने की हिम्मत नहीं जुटा पाती थी.

संयोग से एक दिन उस के कालेज का एक हिल स्टेशन पर जाने का प्रोग्राम बना और इस दौरान दोनों को बस में एकसाथ बैठने का मौका मिल गया. मौका पा कर वर्षा ने संस्कार के हाथों में हाथ डाल कर अपने मन की बात कह डाली. यह सुन संस्कार के होश उड़ गए और उस ने बिना सोचेसमझे ही उसे मना कर दिया, क्योंकि वह जिस बैकग्राउंड से आया था उस में उस के लिए इन सब चीजों को ऐक्सैप्ट करना संभव नहीं था.

ठीक है, तुम मुझे प्यार नहीं कर सकते तो हम दोनों दोस्त बन कर तो रह ही सकते हैं. क्या तुम मेरी फ्रैंडशिप भी ऐक्सैप्ट नहीं करोगे? वर्षा ने प्यार के अंतिम तीर के रूप में जब यह प्रश्न संस्कार के सामने रखा तो संस्कार भावनाओं के सागर में गोते लगाने लगा और इस के लिए उस ने हामी भर दी.

दोस्ती के नाम पर अब वे दोनों साथ घूमतेफिरते, मस्ती करते. वक्त के साथ उन दोनों के बीच दोस्ती और भी गहरी होती गई और धीरेधीरे साथसाथ जीनेमरने की कसमें भी खाई जाने लगीं. वैलेंटाइन डे के दिन जब पूरा कालेज डांस और म्यूजिक में बिजी था तो संस्कार और वर्षा फरवरी की उस कुनकुनी ठंड में शहर के एक खूबसूरत पार्क में साथसाथ जीवन जीने के सपने बुन रहे थे.

सूरज डूब चुका था और शाम के साए में रोशनी धीरेधीरे खत्म हो रही थी. वहां से लौटते हुए वर्षा और संस्कार की करीबी में जीवन की सारी मर्यादाओं की रेखा मिट चुकी थी. दोस्ती के बंधन में प्यार और वासना की भूख ने कब सेंध लगा दी, इस का एहसास भी प्रेमी युगल को नहीं हो पाया.

जब इस प्रकार दोस्ती निभाने का प्रश्न उठता है तो ऐसा करना किसी तलवार की धार पर चलने से कम खतरनाक नहीं होता. पहले तो आप इस प्रकार के रिश्ते को अपने परिवार वालों से छिपा कर न रखें. महंगे गिफ्ट्स के ऐक्सचेंज से दूर रहने की कोशिश करें, क्योंकि जब इस प्रकार के महंगे गिफ्ट्स के ऐक्सचेंज की शुरुआत होती है तो एकदूसरे से अपेक्षाओं का दायरा काफी बढ़ जाता है और इस के साथ सब से बड़ी बात यह होती है कि इस प्रकार की अपेक्षाओं की कोई लक्ष्मण रेखा नहीं होती.

दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि किसी भी पार्टी और फंक्शन में अपने फ्रैंड्स के साथ अकेले जाने से परहेज करें, क्योंकि मन के आवेग का कोई भरोसा नहीं होता. यदि ऐसी पार्टियों में जाना निहायत जरूरी हो तो अपने परिवार के किसी सदस्य या फिर कौमन फ्रैंड्स के साथ जाएं. ऐसा करने से आप सेफ रहेंगी.

मुझे शक है कि मेरे पति का औफिस में अफेयर चल रहा है, सच्चाई कैसे पता करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं शादीशुदा गृहिणी हूं. पति स्मार्ट व हैंडसम हैं और अपनी उम्र से काफी छोटे दिखते हैं. वे सरकारी महकमे में अधिकारी हैं. 2 बेटे हैं जो अपनेअपने परिवार के साथ खुशहाल जीवन जी रहे हैं. मेरी समस्या यह है कि पिछले 1 साल से पति ने मेरे साथ सैक्स नहीं किया, हालांकि हमारे में कोई विवाद नहीं है. 1-2 लोगों ने मुझे बताया है कि उन के अपनी सहकर्मी से संबंध हैं. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

जैसाकि आप ने बताया कि आप दोनों के बीच कोई विवाद नहीं है पर पति सैक्स में दिलचस्पी नहीं लेते तो आप को इस की वजह जानने की कोशिश करनी होगी. संभव है कि वे बतौर अधिकारी काम के बोझ तले दबे हों और तनाव में रहते हों या फिर उन्हें कोई अंदरूनी परेशानी हो. वक्त और मूड देख कर आप को पति से बात करनी चाहिए. रही बात उन का अपनी सहकर्मी से संबंध की, तो सुनीसुनाई बातों पर भरोसा करना दांपत्य जीवन में जहर ही घोलता है. दूसरों की कही बातों पर भरोसा न करें. वैसे भी विवाहेतर संबंध ज्यादा दिनों तक नहीं टिकते. देरसवेर इस रिश्ते पर विराम लग ही जाता है. बावजूद इस के अगर आप अपने रिश्ते में जान फूंकना चाहती हैं तो पति के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताएं, उन्हें भरपूर प्यार दें, कामकाज के बारे में पूछें, साथ घूमने जाएं. हां, अगर उन में किसी शारीरिक विकार के लक्षण दिखें तो डाक्टर से परामर्श लें.

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अगर आप भी वर्किंग वुमन है तो सावधान रहिए. कभी-कभी औफिस के अफेयर भारी पड़ सकते हैं.अक्सर औफिस में ऐसे अफेयर तो हो ही जाते हैं किसी न किसी से. किसी का प्यार परवान चढ़ जाता है तो कोई बस टाइम पास के लिए ऐसा करता है साथ ही उसको फिर किसी चीज की परवाह नहीं होती और वो अपनी पर्सनल लाइफ और औफिस की लाइफ को मिक्स करने लगता है.ये बात केवल लड़की पर नहीं बल्कि लड़के पर भी लागू होती है. कई मर्द तो शादीशुदा होते हुए भी ऐसे चक्कर चलाते हैं,लेकिन ये अफेयर कभी-कभी आप पर बहुत भारी पड़ता है. इसका असर आपकी पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ दोनों पर ही पड़ता है.

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“कैंसर कैपिटल” बनने की ओर है भारत, जानें इस बीमारी का सामाधान

National Cancer Awareness Day : कैंसर जिसे कभी एक दुर्लभ और घातक बीमारी माना जाता था आज वैश्विक और भारतीय स्तर पर एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या बन गया है. चिंता का विषय यह है कि भारत उन देशों में शामिल हो रहा है जहां कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं और इसे अक्सर “विश्व का कैंसर कैपिटल” कहा जा रहा है. जीवनशैली में बदलाव, पर्यावरणीय कारक और आहार संबंधी आदतें इस महामारी को बढ़ाने में अहम भूमिका निभा रही हैं जिससे न केवल बुजुर्ग बल्कि युवा भी प्रभावित हो रहे हैं.

भारत में कैंसर के मामले: “कैंसर कैपिटल” बनने की ओर

हाल के अध्ययनों से भारत में कैंसर के मामलों में अप्रत्याशित वृद्धि देखने को मिली है. भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के अनुसार, देश में हर साल 1.3 मिलियन से अधिक नए कैंसर के मामले सामने आते हैं और अगले दशक में यह संख्या तेजी से बढ़ने की संभावना है. 2040 तक भारत में कैंसर की घटनाओं के दोगुना होने का अनुमान है जो स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए एक बड़ी चुनौती है. भारत में कैंसर से होने वाली मृत्यु दर मुख्य रूप से देर से निदान और ग्रामीण क्षेत्रों में उन्नत इलाज की सीमित पहुंच के कारण वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक है. विश्व स्वास्थ्य संगठन और अंतरराष्ट्रीय कैंसर अनुसंधान एजेंसी (IARC) के आंकड़े बताते हैं कि भारत में कैंसर मौत के प्रमुख कारणों में से एक बन चुका है. भारत में मुख, फेफड़े, स्तन, गर्भाशय ग्रीवा और पेट के कैंसर की घटनाएं बहुत अधिक हैं जो मुख्य रूप से सांस्कृतिक और पर्यावरणीय कारणों से जुड़ी हुई हैं.

इस संदर्भ में डॉ. अरुण कुमार गोयल ( चेयरमैन, सर्जिकल ऑन्कोलॉजी,
एंड्रोमेडा कैंसर अस्पताल ) ने विस्तार से जानकारी दी;

दृष्टिकोण में बदलाव: “मौत की सजा” से एक दीर्घकालिक स्थिति तक पहले कैंसर का निदान अक्सर एक मौत की सजा के समान माना जाता था लेकिन चिकित्सा में प्रगति ने इसे एक अधिक प्रबंधनीय बीमारी में बदल दिया है. कुछ प्रकार के कैंसर, जैसे कि स्तन, प्रोस्टेट और कोलोरेक्टल कैंसर, में शुरुआती पहचान से जीवित रहने की दर में काफी सुधार हुआ है. तकनीकी प्रगति, जैसे रोबोटिक सर्जरी का बढ़ता उपयोग, उन्नत विकिरण चिकित्सा, इम्यूनोथेरेपी, टारगेटेड थेरेपी और उन्नत कीमोथेरेपी ने कैंसर के उपचार में महत्वपूर्ण सुधार किए हैं. अब कैंसर को एक दीर्घकालिक स्थिति के रूप में देखा जा रहा है जहां मरीज कई वर्षों तक अच्छा जीवन जी सकते हैं.

भारत में कैंसर के मामलों में वृद्धि के कारण

भारत में कैंसर की घटनाओं में वृद्धि के कई नए और तेजी से बदलते कारण हैं:

1. बदलते आहार और मिलावटी भोजन: भारत में खाद्य मिलावट एक बढ़ती समस्या है, जहां भोजन के रंग और अवधि को बढ़ाने के लिए फार्मेलिन, कीटनाशकों और कृत्रिम रंगों का उपयोग किया जा रहा है. इसके अलावा अस्वास्थ्यकर वसा, शर्करा और प्रोसेस्ड और पैकेज्ड खाद्य पदार्थों की ओर झुकाव पाचन और कोलोरेक्टल कैंसर के जोखिम को बढ़ा रहा है.

2. जीवनशैली में बदलाव: शहरीकरण और जीवनशैली में बदलाव ने कैंसर के जोखिम को प्रभावित किया है. गतिहीनता, व्यायाम की कमी, धूम्रपान और शराब का सेवन, विशेष रूप से शहरों में कैंसर से जुड़े हुए हैं. भारत में पारंपरिक आहार से फास्ट फूड और शर्करा युक्त आहार की ओर झुकाव के साथ मोटापा बढ़ रहा है जो कई प्रकार के कैंसर के लिए एक प्रमुख जोखिम कारक है.

3. पर्यावरण प्रदूषण: भारतीय शहरों में वायु प्रदूषण स्तर दुनिया में सबसे अधिक हैं और प्रदूषकों के संपर्क में आने से कैंसर का खतरा बढ़ जाता है खासकर फेफड़ों के कैंसर का. इसके अलावा कुछ क्षेत्रों में जल प्रदूषण और औद्योगिक कचरे के संपर्क में आने से उन क्षेत्रों में कैंसर की घटनाएं अधिक हो गई हैं.

4. युवाओं में बढ़ता कैंसर: पहले जो कैंसर बुजुर्गों में देखे जाते थे वे अब 20, 30 और 40 की उम्र के युवाओं में अधिक देखने को मिल रहे हैं. इस बदलाव का कारण आंशिक रूप से जीवनशैली से जुड़ा है जैसे कि धूम्रपान, शराब का सेवन, उच्च तनाव स्तर और अस्वास्थ्यकर आहार.

5. मोटापे का बढ़ता प्रचलन: मोटापा एक ज्ञात जोखिम कारक है जो हार्मोन-आधारित कैंसर जैसे कि स्तन, एंडोमेट्रियल और कोलोरेक्टल कैंसर से जुड़ा है. भारत में विशेष रूप से शहरी केंद्रों में मोटापे की घटनाएं
तेजी से बढ़ रही हैं, जहां गतिहीन जीवनशैली और प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ अधिक प्रचलित हैं.

6. आनुवंशिक कारक और पारिवारिक प्रवृत्ति: कुछ व्यक्तियों में स्तन, अंडाशय और कोलोरेक्टल कैंसर का उच्च आनुवंशिक जोखिम होता है.

भारत के कैंसर संकट का समाधान

1. जन जागरूकता और स्क्रीनिंग बढ़ाना: आम जनता को शुरुआती चेतावनी संकेतों के बारे में शिक्षित करना और स्तन, गर्भाशय ग्रीवा और मौखिक कैंसर के लिए स्क्रीनिंग को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है.

2. स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देना: संतुलित आहार, नियमित व्यायाम, और तंबाकू और शराब से बचने जैसी स्वस्थ जीवन शैली विकल्पों को प्रोत्साहित करना.

3. खाद्य गुणवत्ता का नियमन: खाद्य सुरक्षा पर कड़े नियम लागू करना ताकि मिलावट और प्रदूषण से बचाव हो सके.

4. पर्यावरण संरक्षण: प्रदूषण के स्रोतों को नियंत्रित करना कैंसर से जुड़े पर्यावरणीय जोखिमों को कम करने में सहायक हो सकता है.

मेरा बौयफ्रैंड मुझसे 10 साल बड़ा है, क्या संबंध बनाने में हमें समस्या होगी?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 25 साल की हूं और मेरा बौयफ्रैंड मुझ से 10 साल बड़ा है. हम दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं, कुछ सालों बाद हम शादी भी करेंगे. हालांकि अभी हम लिव इन रिलेशनशिप में है. कभीकभी लगता है कि इंटिमेट होने के दौरान उसे परेशानी होती है.

ऐसा लगता है कि वह मेरा साथ नहीं दे पाता, क्योंकि वह फोरप्ले तो कर लेता है, लेकिन जब मेन कोर्स की बात आती है, तो वह थक जाता है. बारबार कोशिशों के बावजूद भी वह सफल नहीं हो पाता… मुझे ऐसा लगता है कि उसकी उम्र ज्यादा है, तो इसलिए उसे परेशानी होती है… कृपया सलाह दें…

जवाब-

आप के पार्टनर की उम्र इतनी भी ज्यादा नहीं है कि सैक्स करने में उन्हें परेशानी आए. सच तो यह है कि अगर कोई फिजिकली फिट है, तो वह लंबी उम्र तक सैक्स का आनंद उठा सकता है.

आमतौर पर सैक्सुअल इंटरकोर्स जानकारी के अभाव में या हड़बड़ी के कारण अधूरा रह जाता है. सैक्स संबंध बनाते समय पार्टनर को कम्फर्ट फील कराना पड़ता है. ये जल्दबाजी में नहीं की जाती है, सैक्स आराम करने वाली प्रक्रिया है, न कि जल्दबाजी में निबटाने की… सैक्स करने से पहले दोनों पार्टनर को फोरप्ले का आनंद लेना चाहिए. जब पार्टनर पूरी तरह सैक्स के लिए तैयार हो जाए, तो इंटरकोर्स करना चाहिए. तभी आप अपनी सेक्सुअल लाइफ को एंजौय कर पाएंगे. अगर आप सेफ सैक्स करना चाहते हैं, तो कंडोम का इस्तेमाल जरूर करें. जिससे आप दोनों सैक्स को भरपूर मजा लें.

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खुद से भी करें प्यार

अधिकतर महिलाएं सारा दिन घर परिवार की चिंता व जरूरतों को पूरा करने में लगी रहती हैं जिस के चलते खुद पर ध्यान तक नहीं देती. यहां तक की कुछ पल के लिए भी वो खुद को खुद से मिलने भी नहीं देती.जिससे उसका शरारिक के साथ साथ मानसिक स्वास्थ्य भी कमजोर पड़ने लगता है. लेकिन इससे बचना बहुत ही आसान है जिसके लिए आपको करने होंगे ये काम.

सबसे ज्यादा जरूरी है अच्छी नींद लेना. पूरे दिन में कम से कम 7 घंटे की नींद आवश्यक लें.नींद को लोग हल्के में ले लेते हैं लेकिन यह हमारे स्वस्थ्य जीवन के लिए इतनी ही जरूरी है जितना की स्वस्थ्य भोजन. अच्छी नींद लेने से दिल स्वस्थ रहता है तनाव कम होता है रक्त शर्करा को स्थिर रखने में मदद मिलती है, वजन कम होता है और यादास्त अच्छी होती है.

एक पल ऐसा भी आता है जब हम हर चीज से ऊब जाते हैं. रोजाना के रूटीन से बच निकलना चाहते हैं लेकिन ऐसा कर पाना मुमकिन नहीं हो पाता.इसके लिए खुद को क्रिएटिव बनाएं. जिस भी कार्य में आपकी रूचि है या हौबी रही है उसको निखारे क्योंकि जो काम करने की इच्छा हमारे अंदर समय की व्यस्तता के साथ मन के किसी कोने में दबी रह जाती है वो दबीश कुछ समय बाद हमें दुख देने लगती है इसके लिए अपनी दबी इच्छाओं को पूरा करने की भरपूर कोशिश करें.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर 8588843415 पर  भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

ईश्वर और आतंकवाद : क्या है दोनों में समानता

रामभरोसे ईश्वर की तलाश में है. सरकार आतंकवादी की तलाश में है. दोनों परेशान हैं कि दोनों को दोनों ही नहीं मिल रहे.

दोनों ही छिपे रहते हैं. उन के तो बस कारनामों का ही पता चलता है जिस से उन की उपस्थिति का भ्रम बनता है. काम चाहे जिस ने किया हो पर नाम इन के मढ़ दिया जाता है.

रामभरोसे के 8 बच्चे हैं और वह इन सब के लिए कह देता है कि सब ईश्वर की देन हैं जबकि महल्ले भर को उस के एकएक बच्चे के बारे में पता है. शाखा के एक भाई साहब रात को चोरीचोरी उस के  घर के बाहर एक स्टिकर चिपका गए थे, ‘हिंदू घटा देश बंटा.’ तब से राम भरोसेजी ने अपने घर में हिंदुओं को घटने नहीं दिया. बच्चों के हिस्से की रोटी घट गई. दूध घट गया. पत्नी के तन का कपड़ा जहांजहां से फटता गया वहांवहां से घटता गया पर रामभरोसे ने हिंदू नहीं घटने दिया. हर साल जब ताली ठोंक कर बधाई देने वाले अपनी खरखरी आवाज में नाचगा कर बधाई दे रहे होते तो महल्ले के लोगों को पता चलता कि रामभरोसे ने एक हिंदू और बढ़ा दिया है. रामभरोसे मुश्किल से 5 रुपए निकाल पाते जबकि वे 500 मांग रहे होते. अंतत: वे 5 रुपए रामभरोसे के मुंह पर मार कर और थूक कर चले जाते. रामभरोसे देशभक्ति से अपनी शर्म उसी तरह ढक लेते जिस तरह बहुत सारे लोग अपने पाप ढक लेते हैं, अपनी सांप्र- दायिकता ढक लेते हैं.

आतंकवादी भी 10 घटनाएं करता है और 100 घटनाएं अपने नाम पर जुड़वा लेता है. शाम को दफ्तर का चपरासी जाते समय बाहर लगा बल्ब खींच ले जाता है और अगले दिन कह देता है कि आतंकवाद बढ़ गया है, देखो आतंकवादी रात में बल्ब खींच कर ले गए. अब छिपा आतंकवादी सफाई देने थोड़े ही आ सकता है.

हत्या, चोरी, डकैती, अपहरण सारे अपराध आतंकवादियों के नाम लिख कर पुलिस दिनदहाड़े टांगें पसार कर सो जाती है. जब जागती है तो जा कर 2-4 डकैती डाल लीं, राहजनी कर ली, दारू पी मुर्गा खाया, वीआईपी ड्यूटी की और सो गए. प्रेस वालों से कह दिया कि सारे अपराध आतंकवादी कर गए.

ज्यादातर आतंकवादी विदेशी या विदेश प्रेरित माने जाते हैं इसलिए मामला विदेश मंत्रालय से संबंधित माना जाता है. बेचारे विदेश मंत्री ओबामा और हिलेरी के नखरे देखें या तुम्हारी चोरीडकैती की चिंता करें. उन का भी काम यह कह कर चल जाता है कि विदेश प्रभावित आतंकवाद बहुत बढ़ गया है.

सरकार परमाणु बम फोड़ सकती है, सीमा पर फौज खड़ी कर सकती है, मिसाइल का परीक्षण कर सकती है पर आतंकवादी नहीं तलाश सकती. जैसे रामभरोसे को ईश्वर नहीं मिलता वैसे ही सरकार को आतंकवादी नहीं मिलता.

मिल भी जाए तो आतंकवादी को पकड़ने की परंपरा हमारे पास नहीं है, उसे मार दिया जाता है. अगर उसे पकड़ लिया गया तो वह बता सकता है कि मैं ने पुलिस के रास्ते में बम जरूर बिछाए थे पर दफ्तर का बल्ब नहीं चुराया, डकैती नहीं डाली, राहजनी नहीं की, इसलिए उसे मार दिया जाना जरूरी है.

ज्ञात तो ज्ञात अज्ञात आतंकवादी तक मार गिराए जाते हैं. देश ने शायद ऐसी गोलियां तैयार कर ली हैं जो आंख मूंद कर चलाए जाने पर भी किसी आतंकवादी को ही लगती हैं और उसे मार गिराती हैं. सैनिक की गोली से मारा जाने वाला हर व्यक्ति आतंकवादी होता है. उस की धर्मप्राण गोली किसी निर्दोष को लगती ही नहीं.

रामभरोसे ईश्वर की आराधना करते हैं, पूजा करते हैं, आरती करते हैं, व्रत- उपवास करते हैं, माथा रंगीन रखते हैं, चोटी रखते हैं, हाथ में कलावा बांधते हैं, जहां कहीं सिंदूर लगा पत्थर दिख जाए तो माथा झुकाते हैं, पर ईश्वर नहीं मिलता.

सरकार के सैनिक भी इधर से उधर गाडि़यां दौड़ाते हैं, मुखबिर पालते हैं, संदेशों की रिकार्डिंग करते हैं, डिकोडिंग करते हैं, रातरात भर जागते हैं, कंबिंग आपरेशन करते हैं, रिश्तेदारों को टार्चर करते हैं पर आतंकवादी नहीं मिलते.

दोनों की ही ग्रहदशा एक जैसी है. दोनों के ही आराध्य अंतर्धान हैं. रामभरोसे ने मंदिर में उस की संभावित मूर्ति बैठा रखी है. सुरक्षा सैनिकों ने उन के संभावित चित्र बनवा रखे हैं. दोनों ही सोचते हैं कि एक बार मिल जाए तब देखते हैं कि फिर कैसे छूटते हैं हमारी पकड़ से. शायद उसी खतरे को सूंघ कर ही न ईश्वर खुले में आता है और न ही आतंकवादी.

ईश्वर सर्वत्र है. आतंकवादी भी सर्वत्र हैं. सरकारी नेताओं की भाषा में कहें तो वर्ल्डवाइड फिनोमिना. वे पंजाब में रहे हैं, वे कश्मीर की जन्नत में रह रहे हैं, वे असम में हैं वे त्रिपुरा में हैं, नागालैंड में हैं, वे तमिलनाडु में हैं, वे बस्तर में हैं, बिहार, उड़ीसा, झारखंड में हैं. वे केरल में उभर आते हैं व पश्चिम बंगाल में वारदातें कर के भाग जाते हैं. वे कभी अयोध्या में दिखते हैं तो बनारस और मथुरा में भी दिख सकते हैं, वे मालेगांव में होते हैं तो बेलगांव में भी होते हैं. वे कहां नहीं हैं. वे लंका में हैं, वे अफगानिस्तान में हैं, नेपाल में हैं और यहां तक कि अमेरिका की चांद पर भी बाजे बजाते रहते हैं.

वे चित्र प्रदर्शनियों में चित्र फाड़ते हैं, फिल्में नहीं बनने देते, बन जाती हैं तो चलने नहीं देते, वे क्रिकेट के मैदान में पिचें खोद देते हैं, वे लाखों संगीत प्रेमियों को प्रभावित करने वाले गजल गायकों के कार्यक्रम नहीं होने देते, वे दिलीप कुमार के घर के बाहर प्रदर्शन करते हैं. वे मंदिर तोड़ते हैं, गिरजा तोड़ते हैं, मसजिद तोड़ते हैं. वेलेंटाइन डे पर प्रेमियों का दिल तोड़ते हैं.

अगर सरकार की आंख भेंगी न हो और वह विकलांग न हो तो बहुत सा आतंक साफसाफ देखा जा सकता है. और उसी तरह अगर रामभरोसे का मन साफ हो तो उसे भी ईश्वर दिख सकता है जैसे गांधीजी को दरिद्र में दिख गया था और उन्होंने उसे दरिद्र नारायण का नाम दिया था. पर अभी न तो सरकार को आतंकवादी दिख रहा है और न ही रामभरोसे को ईश्वर.

सामने वाला फ्लैट: जोया और शिवा की कहानी

ठाणे के भिवंडी एरिया में नई बनी सोसाइटी ‘फ्लौवर वैली’ की एक बिल्डिंग के तीसरे फ्लोर के एक फ्लैट में 28 वर्षीय शिव त्रिपाठी सुबह अपनी पूजा में लीन था. तभी डोरबैल बजी. किचन में काम करती उस की पत्नी आरती ने दरवाजा खोला.

सामने वाले फ्लैट की नैना ने चहकते हुए कहा, ”गुडमौर्निंग आरती, दही जमाने के लिए खट्टा देना, प्लीज. रात को मैं और ज़ोया सारी दही खा गए, खट्टा बचाना याद ही नहीं रहा,” फिर गहरी सांस अंदर की तरफ खींचती हुई बोली, ”क्या बना रही हो, बड़ी खुशबू आ रही है. अरे, डोसा बना रही हो क्या?”

आरती ने कहा, ”हां, आ जाओ, दही ले लो.”

”बस, जल्दी से दे दो, एक मीटिंग है, लैपटौप खोल कर आई हूं. और हां, दोतीन डोसे हमारे लिए भी बना लेना, घर के डोसे की बात ही अलग है.”

आरती ने मुसकरा कर कहा, ”हां, तुम दोनों के लिए भी बनाने वाली ही थी.”

फिर अंदर झांकते हुए नैना हंसी, ”तुम्हारे शिव ‘जी’ पूजा में बैठे हैं क्या?”

”हां,” आरती को उस के कहने के ढंग पर हंसी आ गई.

नैना चली गई. शिव वैसे तो पूजा कर रहा था पर उस ने दरवाजे पर हुई पूरी बात सुनी थी. पूजा कर के उठा तो नैना ने अपना और उस का नाश्ता लगा लिया. शिव ने पूछा, ”यह सामने वाले फ्लैट से अब कौन सी लड़की क्या मांगने आई थी? इसे खुद किसी चीज का होश नहीं रहता क्या?”

”अरे, तो क्या हुआ, अकेली लड़कियां हैं, कितनी प्यारी हैं दोनों, मुझे तो बहुत ही अच्छी लगती हैं दोनों.”

शिव ने अचानक पूछा, ”अरे, तुम बिना नहाए नाश्ता कर रही हो आज?”

”हां, आराम से नहा लूंगी, थोड़ी सफाई करनी है.”

”खूब मनमानी करती हो मुंबई आ कर. मेरे मांपिताजी देख लें कि बनारस के इतने बड़े ब्राह्मण परिवार की बहू बिना नहाए खाने बैठ जाती है तो बेचारे यह धक्का कैसे सहन करेंगे,” कह कर शिव व्यंग्य से मुसकराया.

आरती ने हंस कर कहा, ”मैं तो जी ही रही हूं यहां आ कर, वहां पहले अपना परिवार, फिर तुम्हारा कट्टर परिवार, ऐसे अपनी मरजी से जीना तो वहां बड़ा मुश्किल था. बहुत सही समय पर शादी होते ही तुम्हारा ट्रांसफर यहां हो गया, मजा आ गया.” यह कहते हुए उठ कर आरती ने शिव के गले में बांहें डाल दीं.

दोनों के विवाह को सालभर ही हुआ था और शादी होते ही शिव का ट्रांसफर बनारस से मुंबई हो गया था. शिव ने भी उसे अपने करीब कर लिया. नए विवाह का रोमांस जोरों पर था. इतने में डोरबैल बजी. इस बार सामने वाले फ्लैट से ज़ोया थी. शिव ने उठ कर दरवाजा खोला था.

ज़ोया ने गुडमौर्निंग कह जल्दी से पूछा, ”अरे आरती, तुम हमें डोसे देने वाली थी न. भाई, जल्दी दो. नैना ने बताया तो सुनते ही भूख लग आई है.”

आरती ने हंसते हुए कहा, ”हांहां, बस दो मिनट, बना रही हूं.”

”ठीक है, हमारा दरवाजा खुला ही है, जरा पकड़ा देना.’’ शिव अब तक दरवाजे पर ही खड़ा था, ज़ोया जाते हुए बोली, ”भई शिवजी, आप की पत्नी बड़ी सुघड़ है.”

वह चली गई तो शिव ने किचन में आरती के पास जा कर ज़ोया की नक़ल लगाई,”भई, शिवजी, आपकी पत्नी बड़ी सुघड़ है. हुंह, तुम दोनों क्यों नहीं सीख लेतीं कुछ फिर मेरी सुघड़ पत्नी से. बस, बातें बनवा लो इन से. नाक में दम कर के रखती हैं दोनों, पता नहीं कहां से आ गईं यहां रहने.”

आरती मुसकराती रही और नैना व ज़ोया के लिए डोसे बनाती रही. 6 डोसे और नारियल की चटनी ले कर उन के पास गई, प्यार से कहा, ”लो, दोनों गरमगरम खा लो.”

नैना और ज़ोया फौरन अपने लैपटौप को स्लीप मोड पर डाल नाश्ता करने बैठ गईं. आरती से कहा, ”तुम भी बैठो, अपने शिव जी के साथ नाश्ता तो कर ही लिया तुम ने, अब चाय हमारे साथ पी कर जाना या ऐसा करो, तब तक चाय चढ़ा ही दो, साथ पीते हैं,” कह कर दोनों नाश्ते पर टूट सी पड़ीं. आरती ने उन्हें स्नेह से देखा और उन के ही किचन में चाय चढ़ा दी और फिर चौंकते हुए वापस आई, ”यह क्या, चाय की पत्ती ख़त्म है क्या?”

दोनों ने एकदूसरे को घूर कर देखा. फिर दोनों हंस पड़ीं. ज़ोया ने कहा, ”आरती, कौफ़ी ही बना लो फिर. हम मंगाना भूल गए. एक तो यह नई सोसाइटी है, ठीक से अभी दुकानें भी नहीं हैं, दूर जाने का मन नहीं करता, कल औनलाइन और्डर दे रहे थे तो चाय की पत्ती भूल गए. तुम्हारे शिवजी कुछ सामान लेने निकलें तो हमारी भी चाय की पत्ती मंगा देना.”

तीनों ने हंसीठहाके के बीच कौफ़ी पी. नैना और ज़ोया ने आरती को बारबार थैंक्स कहा. फिर नैना के औफिस से कौल आ गई तो वह व्यस्त हो गई. आरती जानती थी कि ज़ोया भी अब औफिस के काम करेगी, वह जल्दी ही अपने फ्लैट में लौट आई.

‘फ्लौवर वैली’ अभी नई ही बनी थी, यहां अभी बहुत कम दुकानें थीं. अभी तो बिल्डिंग्स में सारे फ्लैट्स में लोग रहने भी नहीं आए थे. आरती के फ्लोर पर 4 फ्लैट थे, जिन में से 2 अभी बंद ही थे. इस सामने वाले फ्लैट में 27 साल की नैना और ज़ोया कुछ महीने पहले ही रहने आई थीं. दोनों अभी अविवाहित थीं. ज़ोया लखनऊ की थी. नैना दिल्ली से आई थी. दोनों ही खूब सुंदर, हंसमुख और बेहद मिलनसार स्वभाव की थीं. आते ही उन की दोस्ती आरती से हो गई थी. आरती उन दोनों से मिल कर बहुत खुश थी. बाकी लोग अभी इस बिल्डिंग में महाराष्ट्रियन थे. भाषा की समस्या और अलग तरह के स्वभाव, व्यवहार के कारण आरती और किसी से खुल नहीं पाई थी. वह यहां अकेलापन महसूस कर रही थी कि ये दोनों लड़कियां जैसे ही रहने आईं, आरती का मन खिल उठा था.

दोनों ही किरायदार थीं और एक ही औफिस में काम करती थीं. दोनों के धर्म अलग थे. लेकिन दोनों ऐसे रहतीं जैसी सगी बहनें हों. अब आरती के साथ भी उन की खूब पटने लगी थी. शिव बनारस के एक कट्टर परिवार का पुरातनपंथी सोच वाला लड़का था. उसे मुंबई में अकेले रहने वाली इन लड़कियों पर अकसर झुंझलाहट ही होती रहती. वह एक पढ़ालिखा, अच्छे पद पर काम जरूर करता था पर मन से बहुत पुरानी सोच का लड़का था. उस की भी कोई गलती नहीं थी क्योंकि वह जिस परिवार में पलाबढ़ा था, वहां हर चीज अलग कसौटी पर परखी जाती. उस के परिवार ने आरती को पसंद ही इसलिए किया था क्योंकि आरती का परिवार भी घर की औरतों को धर्म और आस्था के नाम पर पुरानी जंजीरों में बांध कर रखने वाला था. आज़ादी देने के पक्ष में बिलकुल नहीं था.

आरती तो जब से इन दोनों लड़कियों से मिली थी, उस के सोचने का, जीने का नजरिया ही बदल गया था. नैना और ज़ोया के जीवन के ढंग को देख कर आरती रोज हैरान होती. एक दिन तो वह सामने वाले फ्लैट में गई तो लिविंगरूम में ही एक कोने की टेबल पर ज़ोया की औफिस की वीडियोकौल चल रही थी. ज़ोया ने बहुत ही अच्छी वाइट शर्ट पहन रखी थी. नैना किचन में थी. नैना ने बताया, ‘आज इस की अपने बौस से मीटिंग चल रही है.’

पर आरती को बहुत हंसी आ रही थी. ज़ोया ने शर्ट के नीचे बहुत ही छोटी शौर्ट्स पहनी हुई थी, बोली, ‘यह बताओ, तुम लोग नीचे क्याक्या पहन कर बैठी रहती हो, किसी काम से उठना पड़ जाए सब के सामने तो?’

नैना खुल कर हंसी, ‘तो क्या? औफिस वाले भी देख लेंगे कि कितनी हौट लड़की है उन के औफिस में.’ इस के बाद तो आरती उन के स्वभाव, व्यवहार, खुल कर जीने की अदा पर निसार होती रहती.

शिव और आरती ने अपने घरों में एक अलग माहौल देखा था. शिव तो फिर भी औफिस में मुंबई की वर्किंग लड़कियों के संपर्क में था. आरती के लिए नैना और ज़ोया जैसे 2 परियां सी थीं, अलग ही दुनिया में रहतीं, बड़े मजे से दोनों स्वीकार करतीं, ‘देखो भाई, आरती, घर के कामवाम तो हमें इतने आते नहीं, जो बनता है, खा लेते हैं. बस, तुम्हारे जैसे पड़ोसी मिलते रहें, अच्छी गुजर जाएगी.’

शिव ने यह बात सुन ली थी, अंदर आ कर बड़बड़ाता रहा, ‘बस बातें करवा लो इन से, कुछ नहीं आता, यह भी बड़ी शान से बताती हैं. पता नहीं, क्या लड़कियां हैं ये, इन के मांबाप ने इन्हें सिखाया क्या है? बस, छोड़ दिया पढ़ालिखा कर पैसे कमाने के लिए.’

आरती शांतिप्रिय थी. शिव की हर बात को मुसकरा कर टाल देती. यह सोचती कि शिव की अपनी सोच है. उसे भी अपनी बात कहने का पूरा हक़ है. दरवाजे की घंटी बजी, तो शिव ने ही दरवाजा खोला, कोरोना के चक्कर में सब घर से ही काम कर रहे थे, नैना थी, ‘अरे, शिवजी, आप? आरती कहां है?’

”वाशरूम में.”

शिव को उन के शिवजी कहने पर बड़ी चिढ़ होती, पर कुछ कह भी नहीं सकता था. उस ने पूछा, ”कुछ काम था?” फिर मन में सोचा, काम ही होगा, सारा दिन काम से ही तो आती रहती हैं. नैना ने मुसकराते हुए कहा, ”हां शिव जी, काम ही है, हम तो काम से ही आते हैं. अभी आप यही सोच रहे थे न? फिर खुद ही हंस पड़ी, ”कुछ सामान लेने जाएंगे तो हमारी भी ये एकदो चीजें ले आना.” इतने में पीछे से ज़ोया की आवाज आई, “नैना, हैंडवाश भी लिख दे लिस्ट में, ख़त्म हो रहा है.”

इतने में आरती भी आ गई, ”अरे, अंदर आओ न, अब तो औफिस का पैकअप हो गया होगा न?”

”अरे, कहां, पैकअप! वर्क फ्रौम होम में तो काम ख़त्म ही नहीं होता. अभी एक मीटिंग है हम दोनों की, आरती. बस, इस लिस्ट में हमारा हैंडवाश लिख लेना, थैंक यू,शिव जी. आप को हम बड़ी तकलीफ देते हैं, क्या करें, इस समय दुकान वाला होम डिलीवरी कर नहीं रहा है, कल औनलाइन सामान मंगवाने में कुछ चीजें भूल गए हैं. चलो, बाय, मीटिंग है हमारी.” फिर जातेजाते पलटी, ”अरे आरती, एक बात बताओ, दूध बहुत रखा है हमारा, पनीर कैसे बनाएं उस का?”

शिव ने जवाब दिया, ”आजकल तो गूगल और यूट्यूब पर सब पता चल जाता है न, अकेले रहने वालों के लिए यह बड़ी हैल्प है.”

नैना हंसी, ”आरती ही गूगल है हमारी, हमें तो आरती से पूछना अच्छा लगता है. ऐसा लगता है जैसे किसी घर के मैंबर से बात करते हैं.”

उस के जाने के बाद शिव अंदर आ कर बोला, “क्या लड़कियां हैं, बस बातें करवा लो इन से.”

आरती ने उस के सीने से लगते हुए कहा, ”कुछ मत कहा करो उन्हें, अच्छी हैं दोनों.”

”हां, मुझे लिस्ट पकड़ा कर चली जाती हैं. आजकल अपना सामान लाने का टाइम नहीं है, इन का और ले कर दूं.”

और यह ज़ोया तो है भी दूसरे धर्म की, नैना तो फिर भी चलो, पंजाबी है, पर यह ज़ोया से मैं कम्फर्टेबल नहीं हो पाता.”

आरती का चेहरा उतर गया तो शिव चुपचाप सामान लेने चला गया. आरती की ज़ोया और नैना से दोस्ती दिन पर दिन पक्की होती जा रही थी पर शिव को उन दोनों की लाइफस्टाइल से बड़ी दिक्कत थी. उस का मन होता था कि आरती से कहे कि कोई जरूरत नहीं इतना मिक्स होने की, पर आरती को उन के साथ खुश, हंसतेबोलते देख वह चुप रह जाता.

अब कोरोना की दूसरी वेव शुरू हो गई थी. इस नई सोसाइटी में पहले से ही अभी लोग कम थे. जो थे वे अब घरों में बंद होते जा रहे थे. हर तरफ एक डर का माहौल था. नैना और ज़ोया भी अब कम दिखने लगी थीं. शिव लैपटौप में व्यस्त रहता. आरती का चेहरा कुछ बुझा सा रहता. अचानक शिव कोरोना की चपेट में आ गया. बुखार और गले के दर्द से जब वह सुबह जागा तो समझ गया कि कोरोना के लक्षण हैं. उस की तबीयत काफी खराब होने लगी.

आरती घबरा गई. उस ने इंटरकौम से नैना को सूचना दी और रोने लगी.

नैना ने कहा, ”जरा भी परेशान न होना, हम हैं न. बोलो, किस डाक्टर को दिखाना है?”

”अभी तक तो जरूरत ही नहीं पड़ी थी कभी किसी डाक्टर की. सुना है, सोसाइटी के आसपास अभी कोई डाक्टर है भी नहीं, क्या करूं?”

”तुम हम पर छोड़ दो सबकुछ, हम सब कर लेंगे.”

नैना ने ज़ोया से बात की. सब से पहले शिव का टैस्ट करवाना जरूरी था. नैना ने दिल्ली में अपने डाक्टर कजिन रवि से सलाह ली और फिर आरती की डोरबैल बजा दी. आरती की आंखें रोरो कर लाल थीं. ज़ोया भी नैना के साथ ही दरवाजे पर खड़ी थी, कहा, ”यह इतना रोने की क्या जरूरत है, तुम्हारे शिव जी अभी ठीक हो जाएंगे. चिंता मत करो. उन्हें तैयार करो. हम उन का टैस्ट करवाने ले जा रहे हैं. हम ने सब समझ लिया है कि क्या करना है.”

नैना और ज़ोया ने अपनेआप को पूरी तरह से कवर कर रखा था. आरती ने कहा, ”कैसे ले कर जाओगी?”

”मुझे तो ड्राइविंग नहीं आती, पर ज़ोया के पास कार चलने का लाइसैंस है. अपने शिवजी की कार की चाबी दो. ज़ोया कार चला लेगी. तुम घर में रुको. हम सब करवा लेंगे.” फिर अचानक नैना ने कहा, ”तुम तो ठीक हो न?”

आरती ने कहा, ”मेरा गला तो दिन से दुख रहा है और शरीर में दर्द है.”

”ओह्ह, तुम भी चलो, टैस्ट जरूरी हैं.”

आरती और शिव को पीछे बिठा कर नैना और ज़ोया आगे बैठ गईं. नैना के हाथ में ही सैनिटाइज़र था. शिव ने कमजोर आवाज में कहा, ”आप दोनों को हमारे साथ रहने का रिस्क नहीं लेना चाहिए.”

नैना ने कहा, ‘’अभी आप यह सब न सोचें, आप दोनों के लिए रिस्क लेने से हमें कोई डर नहीं लग रहा है.”

टैस्ट हो गए, दोनों पौजिटिव थे. हौस्पिटल्स में जगह नहीं थी. नैना ने किसी तरह एक डाक्टर से वीडियोकौल करवा कर आरती और शिव से बात करवाई. डाक्टर ने दवाई और बाकी चीजों के निर्देश दे दिए. नगरपालिका वाले आ कर शिव और आरती के फ्लैट के दरवाजे पर आ कर स्टीकर लगा कर चले गए. दोनों से फ्लैट के बाहर ही नैना ने कहा, ”आरती, खाने की चिंता मत करना. हम अभी पेपर प्लेट्स का इंतज़ाम कर लेंगे. हमें जो भी आता है, हम खाना बना कर देते रहेंगे. किसी भी टाइम किसी भी चीज की जरूरत हो, हम हैं. तुम लोग, बस, आराम करो. अपने खानेपीने की चिंता बिलकुल न करना. एक डस्टबिन बैग में पेपर प्लेट्स इकट्ठा करती रहना. फिर हमें दे देना. हम कचरे में डाल देंगे.”

नैना और ज़ोया सुबह से ले कर चाय, नाश्ता, लंच, डिनर सबकुछ शिव और आरती के लिए बना रही थीं. उन के फ्लैट के बाहर एक छोटा सा स्टूल रख दिया था. उस पर ही दूर से वे खाना रख देतीं. आरती या शिव कोई भी आ कर उठा लेता. इंटरकौम था ही, उस पर हालचाल जान कर, कोई जरूरत पूछ कर नैना और ज़ोया अपनी किसी भी चीज की चिंता किए बिना आरती और शिव की सेवा में लगी थीं. करीब 10 दिनों बाद दोनों को कुछ बेहतर लगा. कुछ रुक कर ज़ोया फिर दोनों को टैस्टिंग के लिए ले गई. दोनों की रिपोर्ट नैगेटिव आई. चारों बहुत खुश हुए. आरती को बहुत कमजोरी थी. शिव को खांसी अभी भी बहुत थी. दोनों काफी कमजोर हो गए थे. ज़ोया ने कहा, ”अभी कुछ दिन और आराम कर लो, आरती. हम चारों का खाना बनाते रहेंगे अभी. अब तो शायद हमारा हाथ कुकिंग में कुछ ठीक हो गया है न. तुम्हारे चक्कर में पहली बार यूट्यूब पर देखदेख कर अच्छी तरह बनाने की कोशिश कर रहे थे. ये कुकिंग तो हमें हमारे पेरैंट्स भी नहीं सिखा पाए जो तुम दोनों ने सिखा दी.”

शिव इस बात पर खुल कर हंसा तो नैना ने कहा, ”अरे, आप हंसते भी हैं!”

शिव झेंप गया. आरती की आंखें भीग गई थीं. वह बोली, ”तुम लोगों ने जो किया, हम उसे कभी भुला नहीं पाएंगे.”

ज़ोया ने प्यार से झिड़का, ”एनर्जी अभी नहीं है तो ये बेकार की बातें मत करो. अभी कुछ दिन और आराम कर लो. कमजोरी अभी काफी दिन रहेगी.”

लगभग एक महीना ज़ोया और नैना ने दोनों की बहुत सेवा की, खूब ध्यान रखा. दोनों अब ठीक हो रहे थे. एक दिन संडे को आरती की डोरबैल बजी. शिव ने दरवाजा खोला. ज़ोया थी. शिव ने स्नेह से कहा, ”आओ, ज़ोया.”

”नहीं, जरा जल्दी है, कुछ सब्जी लेने जा रही हूं, आरती, कुछ चाहिए?”

शिव ने कहा, ”अरे, मैं अब ठीक हूं, मैं ले आऊंगा. तुम्हें भी कुछ चाहिए तो बता दो.”

”पक्का? आप इतने ठीक हैं कि बाहर जा कर कुछ लाएंगे?”

”हां, काफी ठीक लग रहा है. आजकल दुकानें थोड़ी देर के लिए ही खुलती हैं, भीड़ हो सकती है, तुम लोग अभी मत जाओ, मैं ले आऊंगा. तुम लोगों को भी कोरोना से बचना है.”

”तो ठीक है, यह लिस्ट है और अपने पास रख लेना सामान. मैं थोड़ा और सो लेती हूं फिर. उठ कर ले लेंगे सामान. नैना भी सोई हुई है,’’ फिर अंदर झांकते हुए बोली, ”अरे आरती, तुम क्या बनाने लगी आज?”

”पोहा बना रही हूं, तुम लोगों के लिए भी.”

”वाह, बढ़िया, सुनो, गरमगरम ही दे देना फिर, खा कर ही सो जाऊंगी,’’ कह कर ज़ोया जोर से हंसी.

ज़ोया सामने वाले अपने फ्लैट में चली गई. शिव के होंठों पर आज आरती को देख कर जो मुसकान उभरी, उसे देख आरती का दिल आज अनोखी ख़ुशी से भर उठा था.

लिवइन रिलेशनशिप में रहने का फायदा लड़कों को ज्यादा होता है या लड़कियों को?

एक समय था जबकि लोग शादी कर के सात जनमों तक साथ रहने की कसमें खाते थे. लेकिन आज के दौर में एक जन्म भी साथ नहीं रह पाते, क्योंकि प्यार करना या शादी करना जितना आसान है, उस शादी को निभा पाना उतना ही मुश्किल है. ऐसा नहीं है कि लोगों का शादी पर से विश्वास उठ गया है या आज के समय में शादियां टिकती नहीं हैं. आज भी कई शादियां चाहे वह ग्लैमर वर्ल्ड से जुड़े लोगों की हों या आम लोगों की, कई शादियां सालों तक टिकती हैं, जिसे कई बार समझौते का नाम दिया जाता है, क्योंकि ऐसी टिकने वाली शादियों में पति या पत्नी में से किसी एक को घर में शांति बनाए रखने के लिए गलत बातों पर भी समझौता करना पड़ता है, ताकि पतिपत्नी के बीच झगड़ा न हो.

अगर पति बिजनैसमैन या सैलिब्रिटी है तो पत्नी की तरफ से ज्यादा समझौता करना पड़ता है, क्योंकि पति पैसे कमाता है, घर चलाता है और पत्नी हाउसवाइफ या पति पर निर्भर है तो उस पत्नी को अपने पति के दूसरी औरतों से संबंध, लेट नाइट पार्टी से शराब पी कर पत्नी से दुर्व्यवहार करना आदि कई बातों को सहन करना पड़ता है, क्योंकि वह अगर ऐसा नहीं करेगी तो लंबे समय तक चलती आई शादी टूट जाएगी. ऐसे में पति पत्नी को अपना गुलाम बना कर रखता है, जिस के चलते कई बार ऐसी पत्नियां पति से तंग आ कर कई सालों बाद भी तलाक ले लेती हैं.

ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या लोगों का शादी पर से पूरी तरह विश्वास उठ गया है? क्या शादी अब कैद का बंधन बन गया है? लिवइन रिलेशनशिप में रहने के क्या फायदेनुकसान हैं? लिवइन रिलेशनशिप में रहने का फायदा लड़कों को ज्यादा होता है या लड़कियों को? पेश है, इसी पर एक तीखी नजर :

कोई आम लड़की हो या बौलीवुड हीरोइन वह शादी करने से या शादी के बंधन में बंधने से कतराती है. शादी के बजाय वह लिवइन रिलेशनशिप में रहना ज्यादा पसंद करती है. इस के पीछे कई सारी वजहें है कि इंडिपैंडैंस होने के बाद वह जिम्मेदारी न के बराबर लेती है, क्योंकि अच्छा पैसा कमाने की वजह से उन्हें घर का काम करने की कोई जरूरत नहीं पड़ती. घर वाले उस लड़की का सारा काम कर देते हैं.

हाल ही में टीवी की एक प्रसिद्ध हीरोइन ने इसी बात के मद्देनजर कहा कि शादी के बाद वह बहुत दुखी हो गई है, क्योंकि उसे घर का काम या घर की कोई जिम्मेदारी उठाने की आदत नहीं है और शादी के बाद सारी जिम्मेदारी उसे उठानी पड़ रही है. ऐसे में शादी करने के बाद पति और बच्चों की जिम्मेदारी उस की आजादी को पूरी तरह खत्म कर देती है, जिस के चलते कई बौलीवुड हीरोइनों ने शादी तो की, लेकिन कुछ सालों बाद ही तलाक भी ले लिया. तलाक के पीछे की वजह पति का दूसरी लड़कियों के साथ गलत संबंध और पति की जीहजूरी करते रहने की दिनचर्या हीरोइनो से बरदाश्त नहीं होती, जिस के चलते बौलीवुड की कई पुरानी हीरोइनों ने भी अपनी शादी तोड़ कर ऐक्टिंग में फिर से प्रवेश किया है.

इसके विपरीत छोटे और बड़े परदे से जुड़ी कई नायिकाएं कई सालों से लिवइन रिलेशनशिप में रह रही हैं और अपने इस रिश्ते में वे खुश भी हैं. क्योंकि न तो कोई रोकटोक है और न ही इस रिलेशनशिप में कोई एटीट्यूड प्रौब्लम है. साथ में रहने वाले लड़के को पता है कि अगर उस ने नखरे दिखाए तो लड़की कभी भी उस से नाता तोड़ सकती है. और क्योंकि लड़की अच्छा पैसा कमाने वाली है, तो उसे उसे उस लड़के जैसे दस लड़के और मिल जाएंगे, जिस के चलते लिवइन रिलेशनशिप में रहने वाला पार्टनर लड़की के नखरे भी उठाता है और उस की बात भी मानता है.

बौलीवुड सितारे जो लंबे समय से लिवइन रिलेशनशिप में हैं

कैटरीना कैफ सलमान खान के बाद रणबीर कपूर के साथ लिवइन रिलेशनशिप में रह चुकी हैं. बाद में उन्होंने विकी कौशल से शादी कर ली. इसके अलावा रानी मुखर्जी आदित्य चोपड़ा के साथ 6 साल तक रिलेशनशिप रिलेशनशिप में रही थीं. करीना कपूर सैफ अली खान के साथ कई सालों तक रिलेशनशिप में रही थीं. दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह 6 साल रिलेशनशिप में रहे, मलाइका अरोड़ा खान अर्जुन कपूर के साथ लिवइन रिलेशनशिप में रही हैं. करिश्मा कपूर अभिषेक बच्चन के साथ 7 साल तक साथ थीं. करिश्मा कपूर और अभिषेक बच्चन की सगाई तक हो गई थी. समांथा प्रभु 4 साल तक नागा चैतन्य के साथ लिवइन रिलेशनशिप में थीं, पर 4 साल बाद शादी की और फिर तलाक भी हो गया. जौन अब्राहम और बिपाशा बसु काफी सालों तक साथ रहे, लेकिन बाद में उन का ब्रेकअप हो गया. अक्षय कुमार शिल्पा शेट्टी और रवीना टंडन के साथ रिलेशनशिप में रहे, लेकिन बाद में उन की शादी ट्विंकल खन्ना से हुई. सैफ अली खान की बहन सोहा अली खान भी लिवइन रिलेशनशिप में रह चुकी हैं. अंकिता लोखंडे सुशांत सिंह राजपूत के साथ कई सालों तक लिवइन रिलेशनशिप में रहीं, लेकिन बाद में उन का ब्रेकअप हो गया था. दिव्यंका त्रिपाठी शरद मल्होत्रा के साथ कई सालों तक लिवइन रिलेशनशिप में रही हैं.

बौलीवुड हीरोइन लारा दत्ता केली दोरजी के साथ सालों तक लिवइन रिलेशनशिप में रहीं. सिंगर अनुष्का दांडेकर करण कुंद्रा के साथ लिवइन रिलेशनशिप में रह चुकी हैं. रितिक रोशन सुजैन खान से शादी टूटने के बाद अपनी प्रेमिका के साथ 3 सालों से लिवइन रिलेशनशिप में रह रहे हैं. सुष्मिता सेन अपने प्रेमी के साथ, जो फिल्म इंडस्ट्री से नहीं था,, कई सालों तक लिवइन रिलेशनशिप में रहीं, लेकिन बाद में उन का रिश्ता दोस्ती तक ही सीमित रहा.

इस के अलावा कई बौलीवुड हीरोइन हैं, जिन्होंने शादी तो की लेकिन उन की शादी टिकी नहीं जैसे महिमा चौधरी, मनीषा कोइराला, चित्रांगदा सिंह आदि. बड़े परदे के अलावा छोटे परदे पर भी कई ऐसे हीरोइन हैं जो लिवइन रिलेशनशिप में रह रही हैं जैसे जैस्मिन भसीन अली गोनी के साथ, तेजस्विनी प्रकाश करण कुंद्रा के साथ, लिवइन रिलेशनशिप में रह रही हैं.

लिवइन रिलेशनशिप में रहने के नुकसान

लिवइन रिलेशनशिप में रहने का सब से बड़ा नुकसान यह है कि उन को वह मानसम्मान समाज में नहीं मिलता जो एक पति या पत्नी को मिलता है. चाहे इस रिश्ते में कितनी भी आजादी हो, प्यार हो, लेकिन समाज इस को गलत नजर से ही देखता है. और ऐसे रिश्ते को कहीं भी कोई मान्यता नहीं मिलती. इस रिश्ते की कोई मंजिल नहीं होती और न ही कोई गारंटी होती है. यह रिश्ता आपसी अंडरस्टैंडिंग के साथ चलता है और अगर दोनों में से कोई भी एक बेवफा निकल जाए, तो उसे रोकने का हक भी दूसरे पार्टनर को नहीं होता है. इस के अलावा इस रिश्ते में कई सालों तक साथ रहने के बावजूद दोनों में से अगर कोई मर जाता है तो उस की प्रोपर्टी साथ रहने वाले पार्टनर को नहीं मिलती, बल्कि मरने वाले के रिश्तेदारों को मिल जाती है. यह रिश्ता चाइना के माल की तरह होता है… चला तो चांद तक और न चला तो शाम तक.

बेबस आंखें: क्यों पश्चात्ताप कर रहे थे स्वरा के पिता

‘डियर डैड, गुड मौर्निंग. यह रही आप के लिए ग्रीन टी. आप रेडी हैं मौर्निंग वौक के लिए?’’

‘‘यस, माई डियर डौटर.’’ वह दीवार पर निगाह गड़ाए हुए बोली, ‘‘डैड, यह पेंटिंग कब लगवाई? पहले तो यहां शायद बच्चों वाली कोई पेंटिंग थी.’’

‘‘हां, यह कल ही लगाई है. मैं पिछली बार जब मुंबई गया था तो वहां की आर्ट गैलरी से इसे खरीदा था. क्यों, अच्छी नहीं है क्या?’’

‘बेबस आंखें’ टाइटल मन ही मन पढ़ती हुई वह बोली, ‘‘डैड, आप की कंपनी का ‘लोगो’ भी आंखें है और अब कमरे में इतनी बड़ी पेंटिंग भी खरीद कर लगा ली है. आंखों के साथ कोई खास घटना जुड़ी है क्या?’’ केशव के हाथ जूते के फीते बांधते हुए कांप उठे थे. उन्होंने अपने को संभालते हुए बात बदली, ‘‘स्वरा, तुम विदेश में अपनी पढ़ाई पूरी कर चुकी हो, अब आगे तुम्हारा क्या इरादा है?’’

‘‘डैड, क्या बात है? आप की तबीयत तो ठीक है न. आज आप के चेहरे पर रोज जैसी ताजगी नहीं दिख रही है. पहले मैं आप का ब्लडप्रैशर चैक करूंगी. उस के बाद घूमने चलेंगे.’’

स्वरा ने डैड का ब्लडप्रैशर चैक किया और बोली, ‘‘ब्लडप्रैशर तो आप का बिलकुल नौर्मल है, फिर क्या बात है?’’

‘‘कुछ नहीं, आज तुम्हारी दादी की पुण्यतिथि है, इसलिए उन की याद आ गई.’’

‘‘डैड, आप दादी को बहुत प्यार करते थे?’’

धीमी आवाज में ‘हां’ कहते हुए उन की अंतरात्मा कांप उठी. वे किस मुंह से अपनी बेटी को अपनी सचाई बताएं. उन्होंने फिर बात बदलते हुए कहा, ‘‘तुम ने बताया नहीं कि आगे तुम्हें क्या करना है?’’

‘‘डैड, मैं सोच रही हूं कि आप का औफिस जौइन कर लूं’’ केशव ने प्रसन्नता के अतिरेक में बेटी को गले से लगा लिया, ‘‘मैं बहुत खुश हूं जो मुझे तुम जैसी बेटी मिली.’’

‘‘डैड, आज कुछ खास है?’’

‘‘हां, सुबह 8 बजे हवन और शांतिपाठ. फिर अनाथाश्रम में बच्चों को भोजन व कपड़े बांटना. दोपहर 2 बजे वृद्धाश्रम के नए भवन का उद्घाटन और वहां पर तुम्हारी दादी की मूर्ति का अनावरण. आई हौस्पिटल में कंपनी की ओर से निशुल्क मोतियाबिंद का औपरेशन शिविर लगवाया गया है. शाम 6 बजे औफिस में दादी की स्मृति में जो बुकलैट बनाई गई है उस का वितरण और सभी कर्मचारियों के लिए बोनस की घोषणा. तुम साथ रहोगी न?’’

‘‘यस पापा, क्यों नहीं? मैं दिनभर आप के साथ रहूंगी.’’

‘‘थैंक्स, बेटा.’’

केशव जिस काम में हाथ लगाते हैं, सोना बरसने लगता है. देशभर में उन का व्यापार फैला हुआ है. 20-22 वर्ष के व्यवसायिक दौर में वे देश की जानीमानी हस्ती बन गए हैं. उन्होंने अपना बिजनैस अपनी मां भगवती देवी के नाम पर भगवती स्टील, भगवती फैब्रिक्स, भगवती रियल एस्टेट आदि क्षेत्रों में फैलाया हुआ है. शिक्षा के क्षेत्र में भी उन्होंने अपना हाथ आजमाया है. ‘भगवती मैनेजमैंट इंस्टिट्यूट’ देश में उच्च श्रेणी में गिना जाता है. दिनभर के व्यस्त कार्यक्रम के बाद केशव रात में जब बैड पर लेटे तो सोचने लगे कि स्वरा को कंपनी जौइन करने के अवसर को वे किस तरह से भव्य बनाएं. फ्रांस के साथ ब्यूटी प्रोडक्ट्स की एक डीड फाइनल स्टेज पर थी. उन्होंने मन ही मन स्वरा फैशन एवं ब्यूटी प्रोडक्ट्स लौंच करने का निश्चय किया. अब उन का मन हलका हो गया था. उन्होंने नींद की गोली खाई और सो गए.

अगली सुबह औफिस पहुंचते ही उन्होंने अपनी सैक्रेटरी जया को बुलाया, ‘‘मेरे आज के अपौइंटमैंट्स बताओ.’’ ‘‘सर, सुबह 10 बजे औफिस के नए प्रोजैक्ट का डिमौंस्ट्रेशन देखना और उस पर बातचीत करनी है. 2 बजे फ्रैंच डैलिगेशन के साथ नई कंपनी को ले कर अपनी मीटिंग है. डीड फाइनल स्टेज पर है. शाम 7 बजे सरकारी अफसरों के साथ मीटिंग है.’’ वे दिनभर काम में लगे रहे. शाम को 6 बजे वे थका हुआ महसूस करने लगे. उन्होंने डाक्टर को बुलाया. डाक्टर ने हाई ब्लडप्रैशर होने की वजह से उन्हें घर पर आराम करने की सलाह दी. वे मीटिंग कैंसिल कर के उदास व मायूस चेहरे के साथ घर पहुंचे. आज वे समय से पहले घर पहुंच गए थे. आलीशान महल जैसी कोठी में नौकरों की भीड़ तो थी परंतु उन का अपना कहने वाला कोई नहीं था. बेटा अंबर अब 22 वर्ष का हो चुका था. दाढ़ीमूंछें आ गई हैं, परंतु उसे छोटे बच्चों सी हरकत करते देख केशव मन ही मन रो पड़ते हैं. वह कौपीपैंसिल ले कर पापापापा लिखता रहता है. वह सहमासिकुड़ा, बड़े से आलीशान कमरे के एक कोने में बैठा हुआ या तो टीवी देखता रहता है या कौपी में पैन से कुछकुछ लिखता रहता है. जब कभी वे उस के खाने के समय पर आ जाते हैं तो डाइनिंग टेबल पर उन को देख कर मुसकरा कर वह खुशी जाहिर करता है.

जिस बेटे के पैदा होने पर उन्होंने घरघर लड्डू बांटे थे उसी बेटे को अपनी आंखों से देख कर वे पलपल मरते हैं और जिस तकलीफदेह पीड़ा से वे गुजरते हैं, यह उन का दिल ही जानता है. दुनिया की दृष्टि में वे सफलतम व्यक्ति हैं परंतु सबकुछ होते हुए भी वे अंदर से हर क्षण आंसू बहाते हैं. पत्नी कनकलता और बेटे अंबर के लिए उन्होंने क्या नहीं किया. परंतु उन के हाथ कुछ नहीं लगा. मांस के लोथड़े जैसे बेटे को गोद में ले कर कनकलता सदमे की शिकार हो गई. एक ओर पत्नी को पड़ने वाले लंबेलंबे दौरे, दूसरी ओर मैंटली रिटार्डेड बच्चा और साथ में बढ़ता हुआ बिजनैस. गरीबी की मार को झेले हुए केशव ने पैसे को प्राथमिकता देते हुए अपने बिजनैस पर ध्यान केंद्रित किया. लेकिन आज अथाह धन होते हुए भी संसार में वे अपने को अकेला महसूस कर रहे थे. बेटी स्वरा ही उन की जिंदगी थी. उस को देखते ही उन्हें पत्नी कनकलता का चेहरा याद आ जाता. वह हूबहू अपनी मां पर गई थी.

अचानक उन की निगाहें घड़ी पर गईं. रात के 9 बज रहे थे. अभी तक स्वरा नहीं आई थी. उन की बेचैनी बढ़ने लगी थी. वह कभी भी देररात तक घर से बाहर नहीं रहती. यदि देर से आना होता था तो वह मैसेज जरूर कर देती थी. वे परेशान हो कर अपने कमरे से बाहर आ कर बरामदे में चहलकदमी करने लगे. तभी उन के फोन की घंटी बज उठी. उस तरफ बेटी स्वरा की घबराई हुई आवाज थी, ‘‘पापा, मेरी गाड़ी का ऐक्सिडैंट…’’ उस के बाद किसी दूसरे आदमी ने फोन ले कर कहा, ‘‘हम लोग इसे अस्पताल ले कर जा रहे हैं. खून बहुत तेजी से बह रहा है, आप तुरंत पहुंचिए.’’ यह खबर सुनते ही केशव अपना होश खो बैठे. यह सब उन के अपने कर्मों का फल था. जब उन के पास पैसा नहीं था तो वे ज्यादा खुश थे. कितने अच्छे दिन थे, उन का छोटा सा परिवार था. वे अपने अतीत में खो गए.

वे थे और थी उन की अम्मा. पिताजी बचपन में ही उन का साथ छोड़ गए थे. अम्मा ने कपड़े सिलसिल कर उन को बड़ा किया. अम्मा ने अपने दम पर उन को पढ़ायालिखाया. उन की नौकरी लगते ही अम्मा को उन के विवाह की सूझी. छोटी उम्र में ही उन की शादी कर दी. पत्नी कनकलता सुंदर और साथ में समझदार भी थी. उन की माली हालत ज्यादा अच्छी नहीं थी. छोटी सी तनख्वाह में हर समय पैसे की किचकिच से वे परेशान रहते थे. फिर भी जब अम्मा शाम को गरमगरम रोटियां सेंक कर खिलाती थीं तो वे कितनी संतुष्टि महसूस करते थे. परंतु उन की पैसे की हवस ने उन के हाथ से उन की सारी खुशियां छीन लीं. बचपन से ही उन्हें पैसा कमाने की धुन थी. जब वे बहुत छोटे थे तो लौटरी का टिकट खरीदा करते थे. एक बार उन का 1 लाख रुपए का इनाम भी निकला था. दिनरात पैसा कमाने की नित नई तरकीबें उन के दिमाग में घूमती रहती थीं. एक दिन अखबार में उन्होंने एक चलती हुई फैक्टरी के बहुत कम कीमत में बिकने का विज्ञापन पढ़ा. उन्होंने मन ही मन उस फैक्टरी को हर सूरत में खरीदने का निश्चय कर लिया.

स्वरा का जन्म हो चुका था. खर्च चलाना बहुत मुश्किल हो गया था. उन्होंने फैक्टरी खरीदने के लिए अम्मा को घर बेचने पर मजबूर कर दिया. अम्मा बेटे की जिद और जबरदस्ती देख, सकते में थीं.

वे रोती हुई बोली थीं, ‘लल्ला, हम रहेंगे कहां?’ ‘अम्मा, कुछ दिनों की ही तो बात है, मैं आप को बहुत बड़ी कोठी खरीद कर दूंगा. यह मेरा वादा है आप से.’ अम्मा ने सिसकते हुए बहती आंखों से कागज पर दस्तखत कर दिए थे. लेकिन अपने नालायक बेटे की शक्ल से उस समय उन्हें नफरत हो रही थी. अपनी मजबूरी पर वे रातदिन आंसू बहाती थीं. घर खाली करते समय वे अपने घर को अपनी सूनी, पथराई आंखों से घंटों निहारती रही थीं. घर बिकने के सदमे से अम्मा उबर नहीं पा रही थीं. वे न तो ढंग से खाती थीं, न किसी से बात करती थीं. बस, हर समय चुपचाप आंसू बहाती रहती थीं.

एक दिन पड़ोस की मंगला मौसी,  जोकि अम्मा की बहन जैसी थीं,  उन से मिलने आईं, ‘क्या कर रही हो, बहन?’ आंसू पोंछते हुए अम्मा बोलीं, ‘कुछ नहीं मंगला, इस घर में मेरा बिलकुल भी मन नहीं लग रहा है. मुझे यहां अच्छा नहीं लगता. वहां सब लोग कैसे हैं?’ ‘सब अपनीअपनी दालरोटी में लगे हुए हैं. हां, हम चारधाम की यात्रा पर जा रहे हैं.’

अम्मा लहक कर बोलीं, ‘चारधाम, मेरे तो सब धाम यहीं हैं. अब तो मर कर ही घर से निकलेंगे.’ ‘अपने लोगों की तो सारी जिंदगी बेटाबेटी और चूल्हेचौके में बीत गई. कुछ कभी अपने बारे में भी सोचोगी?’

‘तीर्थयात्रा में जाने का तो बहुत मन है, लेकिन क्या करूं, स्वरा अभी छोटी है. नई जगह है. अकेली बहू को छोड़ कर कैसे जाऊं?’ ‘मैं तो चारधाम यात्रा वाली सरकारी बस से यात्रा पर जा रही हूं. किसी तरह रोतेधोते, हायहाय कर के यह जिंदगी बिताई है. कुछ ज्यादा नहीं कर सकती तो चारधाम की यात्रा ही कर आऊं.’

‘बहुत अच्छा सोचा है, बहन.’

‘मेरी तो आवर्ती जमा की एक स्कीम पूरी हुई थी. उस के 4 हजार रुपए मिले थे. एक हजार रुपए कम पड़ रहे थे तो रंजीत से कहा. उस ने मुंह बनाया लेकिन बहू अच्छी है, उस ने रंजीत से कहसुन कर दिलवा दिया. अब वह मेरे जाने की तैयारी में लगी हुई है.’ अम्मा उत्सुक हो कर बोलीं, ‘कब जाना है?’

‘अभी तो जाने में एक महीना बाकी है. लेकिन बुकिंग तो अभी से करवानी पड़ेगी. जब पूरी सीटें भर जाएंगी तभी तो बस जाएगी.’ तभी बहू कनकलता चाय ले कर अंदर आई तो अम्मा उसे सुनाते हुए बोलीं, मैं भला कैसे जा पाऊंगी, बिटिया छोटी है. केशव को रातदिन अपनी फैक्टरी के सिवा किसी बात से मतलब नहीं है. बहू को छोड़ कर मैं नहीं जाऊंगी.’

‘बहन, तुम भी खूब हो इस उम्र में तीर्थयात्रा पर नहीं जाओगी तो कब जाओगी, जब हाथपैर बेकार हो जाएंगे? बिस्तर पर लेटेलेटे सोचती रहना कि सब मन की मन में ही रह गई. हम ने सब का किया लेकिन अपने लिए कुछ न कर पाए. रुपए तो तुम ने भी जोड़ कर रखे ही होंगे. काहे को किसी के आगे हाथ पसारो. चेन की ओर इशारा करती हुई वह बोली, गले में सोने की जंजीर न पहनोगी तो कुछ बिगड़ थोड़े ही जाएगा. फिर तुम्हारा जैसा मन हो, वैसा करो. लेकिन जीवन में मौके बारबार नहीं मिलते.’ ‘अरे नहीं, तुम ने बहुत अच्छा किया जो मुझे बता दिया. तीर्थयात्रा पर तो जाने का मेरा भी मन कब से है. लेकिन कोई बात नहीं, भविष्य में कभी जाएंगे.’ ड्राइवर की आवाज से केशव की

विचारशृंखला भंग हुई. वे वर्तमान में लौटते ही स्वरा स्वरा पुकारने लगे. इमरजैंसी वार्ड के बाहर स्वरा को चहलकदमी करता देख उन के कलेजे में ठंडक पड़ी. उन्होंने दौड़ कर स्वरा को सीने से लगा लिया. उन की आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे.

‘‘बेटी, तुम्हें ठीक देख मेरी जान में जान आई. वह तो कह रहा था, खून बहुत बह रहा था.’’

‘‘पापा, राधे काका के सिर में चोट आई है. उन की हालत सीरियस है.’’ वे तेजी से दौड़ कर डाक्टर के पास गए और उस का अच्छा से अच्छा इलाज करने को कहा. राधे की पत्नी और बेटे को सांत्वना देते हुए बोले, ‘‘तुम लोगों को घबराने को जरूरत नहीं है. मैं ने डाक्टर से बात कर ली है. मैं इन का अच्छा से अच्छा इलाज करवाऊंगा. तुम लोगों का घरखर्च के लिए रुपए घर पर पहुंच जाएंगे. इस के सिवा तुम्हें आधी रात को भी कोई जरूरत हो तो निसंकोच मुझे फोन करना.’’

‘‘मालिक, आप की कृपा है,’’ रोती हुई राधे की पत्नी बोली थी. अब केशव स्वरा की ओर मुखातिब होते हुए बोले, ‘‘बेटी, तुम्हें फोन कर के अपनी कुशलता की खबर देनी चाहिए थी कि नहीं? ऐक्सिडैंट शब्द सुनते ही मेरे तो प्राण सूख गए थे.’’

‘‘पापा, मैं ने कई बार आप को फोन किया, परंतु आप ने फोन ही नहीं उठाया.’’ केशव ने अपना फोन निकाल कर देखा, उस में स्वरा के 6 मिस्डकौल थे. जाने कैसे फोन साइलैंट मोड पर चला गया था. राधे की हालत नाजुक थी, इसलिए केशव ने रात को वहीं रुकने का निश्चय किया. स्वरा अकेले घर जाने को तैयार नहीं थी, इसलिए अस्पताल के ही एक प्राइवेट रूम में दोनों जा कर बैठ गए. बेटी स्वरा के ऐक्सिडैंट की खबर से आज वे ऐसी मानसिक यंत्रणा से गुजरे थे कि उन का संपूर्ण अस्तित्व ही हिल उठा था. अपने जीवन में घटने वाली हर दुर्घटना के लिए उन्होंने हमेशा स्वयं के द्वारा किए गए अपराध की वजह से अपने को ही दोषी मानते आए थे. आज उन्होंने मन ही मन पूर्ण निश्चय कर लिया था कि वे आज अपनी बेटी के समक्ष अपने गुनाह को स्वीकार कर के अपने दिल का बोझ हलका कर लेंगे. अब उन के लिए यह बोझ असहनीय हो चुका है.

मन ही मन सोचना और मुंह से बोलना 2 अलग अलग बातें हैं. ऊहापोह की बेचैन मानसिक अवस्था में वे लगातार चहलकदमी कर रहे थे. ‘पापा, राधे काका ठीक हो जाएंगे. आप इतना परेशान क्यों हैं?’’

‘‘स्वरा, मैं बहुत नर्वस हूं. मैं तुम से कैसे कहूं अपने दिल का हाल. पता नहीं, तुम मुझे माफ करोगी या नहीं? जीवन में सबकुछ होते हुए भी तुम्हारे सिवा मेरा दुनिया में कोई नहीं है. लेकिन ठीक है, अब तुम मुझे चाहे सजा देना, चाहे माफी.’’

‘‘पापा, आप कहिए, जो कुछ कहना चाह रहे हैं.’’

केशव अपनी बेटी स्वरा से आंखें नहीं मिला पा रहे थे. इसलिए उन्होंने अपना मुंह दीवार की तरफ कर लिया. फिर बोले, ‘‘बेटी, ध्यान से सुनो, तुम लगभग 3 वर्ष की थीं. मेरी आर्थिक दशा अच्छी नहीं थी. पैसा कमाने का मन में जनून था. मैं ने अम्मा से जबरदस्ती कर के उन का घर बेच दिया और उन्हीं पैसों से पहली फैक्टरी खरीदी. लेकिन खरीदना और उसे चलाना अलग बात होती है. मैं परेशान रहता था. तभी एक दिन अम्मा के मुंह से सुना, वे मंगला मौसी से कह रही थीं, ‘अपनेअपने समय की बात है. अच्छा समय होता तो मेरा अपना घर ही काहे को छूटता.’ तुम्हारी मां से मालूम हुआ कि अम्मा तीर्थयात्रा पर जाना चाहती हैं.

‘‘अम्मा की जिद के आगे मैं झुक गया और तुम्हारी मां और मैं ने उन्हें तीर्थयात्रा पर भेजने का निश्चय कर लिया. अम्मा के चेहरे पर से उदासी के बादल छंट गए. कनकलता उन के जाने की तैयारी में लग गई. आखिर वह घड़ी आ गई जब अम्मा को बस पर तीर्थयात्रा के लिए जाना था. मैं और कनकलता दोनों उन्हें बस पर बिठा कर आए. तेरा माथा चूमते हुए अम्मा की आंखों से झरझर आंसू बह निकले थे. ‘‘तुम्हारी मां बहुत खुश थी कि चलो, अम्मा की कोई इच्छा तो वह पूरी कर पाई थी. कनकलता ने अपने पैसे से एक नया मोबाइल फोन ला कर अम्मा को दिया था. अम्मा रोज एक बार फोन कर के बताना कि कहां पहुंची? क्या देखा? और कैसी हो? अम्मा बहू का लाड़ देख उस को गले से लगा कर रो पड़ी थीं.‘‘मुझे फैक्टरी चलाने के लिए ब्याज पर रुपया लेना पड़ता था, इसलिए जो फायदा होता था वह ब्याज में चला जाता था. मुझे कोई उपाय नहीं सूझता था.

‘‘अम्मा को गए एक हफ्ता हो गया था. घर में सन्नाटा लगता था. कनकलता को घर के कामों से फुरसत नहीं मिलती थी. छोटी सी गुडि़या सी तुम दादी दादी पुकार कर उन्हें यहां वहां ढूंढ़ा करती थीं. ‘‘अम्मा अपनी यात्रा में बहुत खुश थीं. वे अपनी तीर्थयात्रा पूरी कर के लौट रही थीं. उस के बाद उन से संपर्क टूट गया. तेरी मां बहुत चिंतित थीं. मैं अपनी उलझनों में था कि मंगला मौसी के बेटे मोहन का फोन आया कि बस का ऐक्सिडैंट हो गया है. इसलिए किसी भी यात्री के बारे में कुछ पता नहीं लग रहा है. उस ने सूचना दे कर फोन काट दिया था.

‘‘टीवी पर हैल्पलाइन नंबर देख हम लोग किसी तरह से घटनास्थल पर पहुंचे. वहां का दर्दनाक दृश्य देख कनकलता तो बेहोश ही हो गई थी. बस के आधे से अधिक यात्री अपनी जीवनलीला समाप्त कर चुके थे. कुछ के हाथपैर कटे हुए थे, किसी का मुंह पिचका हुआ था. कोहराम मचा हुआ था. घर वालों की चीत्कार और प्रियजनों का रोनाबिलखना, बहुत ही वीभत्स दृश्य था. बदहवास रिश्तेदार अपने प्रियजनों को खोजने के लिए शवों को पलटपलट कर देख रहे थे. ‘‘बस चूंकि सरकारी थी, इसलिए सरकार ने मुआवजा घोषित किया था. यात्रियों का बीमा भी हुआ था, इसलिए बीमा कंपनी की ओर से भी रुपया मिलना था. घायलों को सरकार 20 हजार रुपए दे रही थी और मृतकों को 20 लाख रुपए देने की घोषणा मंत्री महोदय ने स्वयं की. वे घटनास्थल पर चैक बांटने के लिए आने वाले थे. ‘‘बेटी, मैं लालच में अंधा हो गया था. मैं मन ही मन प्रार्थना कर रहा था कि अम्मा का शव दिख जाए और मुझे 20 लाख रुपए का चैक मिल जाए. तभी एक एनजीओ कार्यकर्ता की आवाज कानों में पड़ी, ‘कुदरत ने कैसा अन्याय किया है हाथपैर दोनों कट गए हैं, आंते भी बाहर निकली पड़ रही हैं.’

‘‘वह अपने साथी से बोला, ‘देखो, जरा यह बूढ़ी अम्मा शायद अपने बेटे की आस में पलकें खोले रखे हैं. काहे अम्मा, अपने लड़के को ढूंढ़ रही हो?’

‘‘उन लोगों की बातें सुन महज जिज्ञासावश मेरी नजरें अम्मा की बेबस आंखों से टकराईं. पलभर को मैं सहम गया था. मुझे अपना 20 लाख रुपए का चैक हाथ से जाता हुआ दिख रहा था. ‘‘गंभीररूप से घायल बेजबान अम्मा की आवाज अवश्य जा चुकी थी परंतु उन की लाचार आंखों ने अपने स्वार्थी बेटे की इस हरकत पर कुदरत से अवश्य मौत मांगी होगी.

‘‘मैं पैसे का लालची और स्वार्थ में अंधा बेटा दूसरी लाश की शिनाख्त कर, उसे अपनी अम्मा बता कर 20 लाख रुपए का चैक ले कर धंधे में लग गया. परंतु तुम्हारी मां कनकलता को कतई कभी विश्वास नहीं हुआ कि अम्मा अब इस दुनिया में नहीं हैं. उसी समय कनकलता गर्भवती भी हो गई थी. परंतु वह सदमे में थी. मैं अपने धंधे में व्यस्त था. न तो मुझे दिन का होश, न रात का. मुझे कनक को देखने की फुरसत ही नहीं थी. और जब अंबर पैदा हुआ तो मैं ने खूब खुशी मनाई परंतु कनक अभी भी गुमसुम रहती थी. जब 3-4 महीने के बाद अंबर के मैंटली रिटार्डेड होने का पता लगा तो पहली बार कनकलता को हिस्टीरिया का तेज दौरा पड़ा. धीरेधीरे उस की मानसिक स्थिति बिगड़ती गई. दोबारा होने वाले इस सदमे से वह फिर उबर नहीं पाई. वह पूर्णरूप से मानसिक रोगी बन चुकी थी. मजबूरन मुझे उसे कमरे में बंद करना पड़ा.

‘‘स्वरा, मैं धन के ढेर पर बैठा हुआ उल्लू हूं. मैं ने अपनी अम्मा के साथ अन्याय किया. धन के लालच में मैं अंधा हो गया था. धन तो मुझे अथाह मिल गया परंतु जीवन से सबकुछ छिन गया. मां के प्रति किए गए अपराध के अवसाद से पत्नी पागल हो गई और बेटा अपाहिज रह गया. वह जीवित लाश की तरह है. मैं मात्र तुम्हारे सहारे, तेरी उम्मीद पर जीवित हूं. परंतु आज तुम्हारे ऐक्सिडैंट की खबर से मैं अंदर तक कांप उठा. अब भविष्य में मुझ में कुछ भी खोने की शक्ति नहीं है. अम्मा की बेबस आंखें आज भी मुझे डराती हैं. मैं आज तक एक दिन भी चैन की नींद नहीं सो सका हूं. मैं पैसे के लालच में ऐसा अंधा था कि अपनी जीवित मां को भी पहचानने से इनकार कर दिया. मैं अपराधी हूं. मेरा अपराध क्षमायोग्य भी नहीं है. अपने कलेजे पर अपराध के बोझ के भार को उठा कर घूम रहा हूं. ‘‘मेरी बेटी, अब इस के बाद मैं तुम्हें नहीं खोना चाहता. मेरी बच्ची, मैं ने तुम्हारे सामने अपना दिल खोल कर रख दिया है. तुम जो चाहे वह सजा मुझे दो. मेरा सिर तुम्हारे सामने झुका है.’’

केशव सिर झुका कर बच्चों की तरह फूटफूट कर रो पड़े थे. स्वरा किंकर्तव्यविमूढ़ कुछ समय निश्छल खड़ी रही. आज वह पापा की बेबस आंखों को पश्चात्ताप के आंसू बहाते देख रही थी. आखिरकार, वह पापा के गले से लिपट गई. अब 2 जोड़ी बेबस आंखों से आंसू बह रहे थे.

गोद लिए बच्चे से कभी भी न छिपाएं सच

‘‘मां तुम ने अब तक यह सचाई मुझ से खुल कर क्यों नहीं कही कि मैं एक अडौप्टेड चाइल्ड हूं?’’ सत्यन अंतिकाड़ की एक फिल्म में अच्चू का किरदार निभा रही कलाकार मीरा जास्मीन अपनी मां का किरदार निभाने वाली अभिनेत्री उर्वशी से यह पूछती है. फिल्म में वनजा अपनी अडौप्टेड बेटी से यह कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाती कि वह उस की गोद ली बेटी है. वनजा सिंगल पेरैंट है, वह सोचती है कि अब तक पिता के बारे में कुछ न जान पाने का ही दुख उस की बेटी को था, अब मां भी झूठी है, यह जानेगी तो इन सब बातों को कैसे बरदाश्त करेगी. इसी कारण उस ने बेटी से यह सचाई छिपा कर रखी थी. अनाथ बच्चों को गोद ले कर अपना बनाने की इच्छा लिए हमारे बीच न जाने कितने लोग होंगे, लेकिन बच्चे को गोद ले लेने के बाद उस को यह सचाई खुल कर बताने से सब हिचकिचाते हैं कि वह उन की गोद ली संतान है. दरअसल, इस के पीछे यह धारणा रहती है कि यदि बच्चे और समाज को यह पता चलेगा तो समाज का नजरिया उन के बच्चे के प्रति बदल जाएगा और बच्चा भी यह सब जानने के बाद अपने पेरैंट्स से नफरत करने लगेगा. इसी डर के कारण लोग बच्चों को सचाई बताने से डरते हैं.

लेकिन आज जमाना बदल रहा है. नई पीढ़ी इन समस्याओं से अवगत होने के बावजूद इस सचाई के साथ जिंदगी जीने के लिए मानसिक रूप से तैयार है.

नई पीढ़ी का दृष्टिकोण

गोद लिए बच्चों से सारे तथ्य खुल कर कहने की आवश्यकता पर अर्चकुलम, केरल के एक ओपन फोरम में चर्चा की गई. इस चर्चा में इस विषय पर नई पीढ़ी का बेहद सकारात्मक दृष्टिकोण देखने को मिला. अनेक तरह के इलाज करवाने व धन और समय को व्यय कर बायोलौजिकल बच्चे को पाने से बेहतर एक अनाथ बच्चे का सहारा बनने की ललक नई पीढ़ी में देखने को मिली. लाइफस्टाइल, दृष्टिकोण, विचारों में बदलाव, साक्षरता, स्त्री की आर्थिक रूप से आत्मनिर्भरता व पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव आदि से अडौप्शन द्वारा पेरैंट्स कहलाने को प्रोत्साहन मिला है. अविवाहित महिलाएं भी अपने जीवन में सिंगल पेरैंट बनना चाहती हैं. इस के लिए वे बच्चे को गोद लेना पसंद करती हैं.

सामाजिक प्रभाव

राजगरी कालेज औफ सोशल साइंस, कलमशेरी, केरल की अडौप्शन कोआरडिनेटिंग एजेंसी की प्रोग्राम कोआरडिनेटर मीना करुविला बताती हैं, ‘‘बच्चे को गोद लेने की बात पर नई पीढ़ी बहुत लिबरल है.’’ पास बैठे 30 वर्ष से कम उम्र के दंपतियों की ओर इशारा कर के मीना कहती हैं, ‘‘इन की शादी को कई साल हो गए लेकिन अब तक बच्चे नहीं हुए, इसलिए ये बच्चे को गोद लेने के लिए यहां आए हैं. युवा पीढ़ी आज बेहिचक बच्चे को गोद लेने के लिए सामने आ रही है. इस से पुराना सामाजिक प्रभाव कम हुआ है. ज्यादातर वे लोग ही बच्चे को गोद लेने के लिए सामने आते हैं, जो बचपन से बच्चों से प्रेम व लगाव महसूस करते हैं. साथ ही, गोद लिए बच्चों से बिना सचाई छिपाए उन को समाज के सामने लाने के लिए नई पीढ़ी तत्पर है.

‘‘गोद लिए बच्चे यदि अपने पेरैंट्स से यह सचाई जानें तो बेहतर रहता है. मातापिता स्वयं तैयार रहें कि बच्चे से ये सब बातें कब और कैसे कहनी हैं. अडौप्शन क्या है, इस के बारे में भी बच्चे को लगभग 4 साल की उम्र से ही कहानियों के जरिए समझाना शुरू कर दें. अन्य परिवारों, जिन्होंने बच्चे गोद लिए हैं, से मिल कर इन सब बातों को शेयर करें. ‘‘बच्चों को डांटतेडपटते समय ऐसी बातें न कहें, जिस से बच्चे के मन पर कोई नकारात्मक भाव पैदा हो. किशोरावस्था तक पहुंचने से पहले ही बच्चे को सारी बातें बता दें, लेकिन बचपन में ही बच्चे से इन बातों को कह देना ज्यादा बेहतर होगा.’’  गोद लिए बच्चे को रिश्तेदारों, स्कूली मित्रों व पासपड़ोस के बच्चों आदि द्वारा असलियत बताए जाने की ज्यादा संभावना होती है. बच्चा अन्य किसी से इन बातों को जाने, इस से बेहतर होगा कि पेरैंट्स स्वयं ही बच्चे को इस बारे में बताएं. ऐसा होगा तो बच्चे में आत्मविश्वास की कमी या मानसिक परेशानी होने की संभावना कम होगी.

एकाएक बदलाव

मीना बताती हैं, ‘‘कुछ मातापिता बच्चों को सोशल वर्कर्स के पास ले जाते हैं ताकि वे उन्हें सचाई बताएं, लेकिन हम उन्हें सलाह देते हैं कि ये सब बातें बच्चे मातापिता से ही जानें तो बेहतर होगा. सोशल वर्कर की मदद लेने आए एक दंपती जिन्होंने 15-16 साल तक बच्चे को सचाई नहीं बताई थी, का कहना था कि उन के बच्चे के बरताव में एकाएक बदलाव आ गया है, उसे हर समय गुस्सा आता है. ‘‘जब बच्चे से बात की तो पता चला कि उस ने अलमारी में रखे अडौप्शन पेपर्स पढ़ लिए थे, जिस से वह जान गया था कि वह गोद लिया बच्चा है. अचानक पता चली इसी बात से बच्चा बेहद विचलित हो गया था.’’

सचाई जल्दी से जल्दी बताएं

सिंगल पेरैंट को भी बच्चे से सारी बातें खुल कर कह देनी चाहिए. गोद लेने की बात बच्चे को जितनी जल्दी पता चल जाए, अच्छा है. सिंगल पेरैंट होने की आयु सीमा 45 वर्ष तक है, वहीं दंपती 55 वर्ष तक बच्चा गोद ले सकते हैं. 45 से कम उम्र के दंपती को अडौप्शन एजेंसी 1 वर्ष की आयु के बच्चे को गोद देती है. केरल में लोग लड़कियों को गोद लेने में ज्यादा रुचि दिखाते हैं, क्योंकि लड़कियां ज्यादा स्नेहमयी होती हैं. उन में पेरैंट्स को छोड़ कर जाने की आशंका कम होती है.

कानूनी अधिकार

एडवोकेट टी.एस. उन्नीकृष्णन बताते हैं कि बच्चा गोद लेने के लिए बहुत से लोग सामने आ रहे हैं, लेकिन कानूनी रूप से अडौप्शन के प्रति लोग ज्यादा रुचि नहीं दिखाते हैं. जुवानाइल जस्टिस ऐक्ट के मुताबिक, बच्चे को कानूनी तौर पर स्वतंत्र घोषित करें तो बच्चे के ऊपर से बायोलौजिकल पेरैंट्स का अधिकार खत्म होगा. अडौप्शन से पहले और बाद में पेरैंट्स के साथ काउंसलिंग की जाती है. इस के बाद बच्चे से परिचय व बातचीत करने का मौका भी दिया जाता है. बच्चे और पेरैंट्स के बीच इमोशनल बौंडिंग बहुत जरूरी है और यह एकदूसरे से पहली बार मिलते समय हो तो ज्यादा अच्छा होता है. इस से जाति, धर्म, रंग, भाषा आदि का भेद समाप्त हो जाता है.   

अप्पा की लुलुकुट्टी

5 वर्षीय लुलुकुट्टी का असली नाम लया है, जो गायक रमेश मुरली एवं ब्यूटीशियन सीमा की गोद ली बेटी है. रमेश मुरली मलयालम के प्रोफैशनल सिंगर हैं. लया सेंट आंटणीस के यू.के.जी. में पढ़ रही है. रमेश और सीमा लया को अर्नाकुलम निर्मला शिशु भवन अनाथालय से उस समय लाए थे, जब वह 2 महीने की थी. जब बच्चा पाने के लिए रमेश और सीमा ने इलाज करवा लिए, लेकिन उन के आंगन में बच्चे की किलकारी नहीं गूंजी तो उन्होंने यह फैसला लिया. सीमा व रमेश अब वे तनाव भरे दिन याद भी नहीं करना चाहते. रमेश के पिता मुरलीधरन एक रिटायर्ड बैंक कर्मचारी हैं. वह 27 वर्ष तक आकाशवाणी में वोकल आर्टिस्ट भी रह चुके हैं. रमेश की मां नृत्य की अध्यापिका हैं. दोनों का कहना है कि घर में लुलुकुट्टी के आ जाने के बाद हमें रिटायर्ड जिंदगी की ऊब महसूस नहीं होती. वह अपनी तोतली जबान में छोटीछोटी बातें करती है तो मन खुश हो जाता है. रमेश की मां बताती हैं, ‘‘लुलु पढ़ाईलिखाई में हमेशा आगे रहती है और 2 साल की आयु में ही वह नृत्य मुद्राएं बनाती एवं गाने की इच्छा जाहिर करती है.’’

सानी के प्यारे घर में

‘‘हम अपने दोनों बच्चों के बारे में बात करने को तैयार हैं, बशर्ते आप उन का नाम व पता न लिखें,’’ 2 बच्चों को गोद लेने वाली सानी कहती हैं. 10 व 5 वर्षीय उन के दोनों गोद लिए बच्चों, अरुण और किरण को आंखों से कम दिखाई देता है. सानी कहती हैं, ‘‘मेरे बच्चे अपने बारे में सब कुछ जानते हैं, लेकिन स्कूल में उन के साथ पढ़ने वाले दोस्तों को उन की सचाई नहीं मालूम है. मैं अपने बच्चों की पहचान बताने से इसलिए हिचकती हूं कि कहीं यह सब जानने के बाद उन के साथ पढ़ने वाले दोस्त उन्हें किसी तरह का कोई मानसिक कष्ट न पहुंचाएं. ‘‘हम ने बच्चा गोद लेने के लिए कई अनाथालयों में बात की लेकिन हर जगह से ‘न’ सुनने को मिला. इसी बीच वैत्तिरी में बात हुई तो उन्होंने बताया कि एक बच्चा है, जिसे कम दिखाई देता है. इसलिए उसे कोई गोद लेने को तैयार नहीं है. ‘‘मात्र आंखों से कम दिखाई देने के कारण हम उस बच्चे को छोड़ना नहीं चाहते थे, इसलिए सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद उसे घर ले आए. यह जान कर कि बच्चा अडौप्टेड है, करुनागपल्लि प्रियंका अस्पताल के डाक्टर राजीव कम खर्च में मेरे बेटे का इलाज करने के लिए तैयार हो गए. ‘‘मैं अपने मातापिता की इकलौती संतान थी, इसलिए अकेलेपन का तनाव मैं ने हमेशा झेला है. यह सोच कर कि कहीं मेरा बेटा भी इस तनाव को न झेले, मैं ने एक और बच्चे को गोद लेने का निर्णय किया. आश्चर्य की बात यह थी कि मावेलीक्कारा के अनाथालय में जब हम ने बात की तो वहां भी एक ऐसा बालक था, जिसे आंखों से कम दिखाई देता था. हम ने उसे भी गोद ले लिया और उस की आंखों का भी इलाज करवाया.’’

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