Hair Care Tips : केराटिन और आर्गन औयल बालों के लिए जबरदस्त जोड़ी

Hair Care Tips : बाल हमारी पहचान का हिस्सा होते हैं. उन्हें थोड़ा प्यार, थोड़ा ध्यान और सही प्रोडक्ट्स की जरूरत होती है. केराटिन और आर्गन औयल की जोड़ी एक ऐसा स्मार्ट इन्वैस्टमैंट है जो आप के बालों को लंबे समय तक खूबसूरत और हैल्दी बनाए रखेगा.

अगर आप के बाल भी बेजान, रूखे, उलझे हुए या टूटते जा रहे हैं तो जरूरत है आप को कुछ ऐसे प्रोडक्ट की जो अंदर से बालों को मजबूत करे और ऊपर से चमक भी दे. ऐसे में केराटिन और आर्गन औयल की जोड़ी को बालों का सुपर हीरो कौंबो कहना गलत नहीं होगा. ये दोनों जब साथ में आते हैं तो डैमेज हेयर का कायापलट हो जाती है और वह भी बिना किसी साइड इफैक्ट के.

केराटिन असल में एक तरह का प्रोटीन होता है, जो हमारे बालों, नाखूनों और स्किन में नैचुरली मौजूद होता है. लेकिन गरमी (हीट स्टाइलिंग), कलरिंग, पौल्यूशन और स्ट्रैस की वजह से हमारे बालों का केराटिन धीरेधीरे कम होने लगता है.

जब बालों में केराटिन की कमी हो जाती है तो वे रूखे और बेजान हो जाते हैं, उल?ाने लगते हैं, जल्दी टूटते हैं, फ्रिजी यानी उड़ते रहते हैं. ऐसे में बाहर से केराटिन की मदद देने से बालों में दोबारा जान आ जाती है. बाल स्मूथ, स्ट्रौंग और सीधे नजर आने लगते हैं.

अब बात करते हैं आर्गन औयल की आर्गन औयल को ‘लिक्विड गोल्ड’ यानी तरल सोना कहा जाता है. यह मोरक्को में पाए जाने वाले आर्गन ट्री के बीजों से निकाला जाता है. इस में मौजूद विटामिन ई, ऐंटीऔक्सीडैंट्स और फैटी ऐसिड्स बालों को गहराई से पोषण देते हैं. बालों को नर्म और चमकदार बनाता है. स्कैल्प को मौइस्चर देता है. ड्राइनैस और डैंड्रफ से राहत देता है. हीट और वी डैमेज से बचाता है. स्प्लिट ऐंड्स को कम करता है.

केराटिन बालों के अंदर की टूटफूट की रिपेयर करता है. आर्गन औयल बाहर से बालों को कोट कर के नर्म, सिल्की और हैल्दी बनाता है. इस डबल ऐक्शन से बाल सिर्फ अच्छे दिखते ही नहीं बल्कि अंदर से हैल्दी भी बनते हैं. बालों में बाउंस, शाइन और स्ट्रैंथ सबकुछ लौट आता है.

कैसे करें इस्तेमाल

आजकल बाजार में केराटिन+आर्गन औयल वाले शैंपू, कंडीशनर, सीरम और हेयर मास्क बहुत आसानी से मिल जाते हैं. हफ्ते में 2-3 बार इस कौंबिनेशन को यूज करें और रिजल्ट खुद देखिए. पहले वाश में ही बाल सौफ्ट लगेंगे, 1 हफ्ते में कम हेयर फौल, 1 महीने में बालों में नई जान.

ये जरूरी टिप्स भी ध्यान में रखें

सल्फेट फ्री और पैराबेन फ्री प्रोडक्ट्स ही यूज करें.

हेयर वाश के बाद हमेशा कंडीशनर लगाए.

महीने में 1-2 बार डीप कंडीशनिंग जरूर करें.

ज्यादा गरम पानी से बाल न धोएं. कुनकुने पानी का इस्तेमाल करें.

तो अगली बार जब आप को अपने बालों के लिए कोई सही इलाज चाहिए हो तो इस पावर डुओ को जरूर याद आए.

Language Skills : भाषाओं का ज्ञान है एक स्किल, इसे किस तरह बढ़ाएं, यहां जानें

Language Skills : साउथ सुपरस्टार कमल हासन कन्नड़ पर दिए गए बयान से विवादों में हैं. उन्होंने कहा था कि कन्नड़, तमिल से जन्मी है. विवाद बढ़ने पर कर्नाटक में उन की फिल्म ‘ठग लाइफ’ रिलीज नहीं होने दी गई. वहीं कर्नाटक हाई कोर्ट ने भी उन्हें बयान के लिए फटकार लगाई है.

अब कमल हासन का हिंदी पर एक बयान सामने आया है, जिस में उन्होंने कहा है कि हिंदी को अचानक थोपा नहीं जाना चाहिए, क्योंकि अचानक हुए भाषा के बदलाव से हम कई लोगों को अनपढ़ बना देंगे.

भाषा को सीखें बिना झिझक

एक इंटरव्यू में कमल हासन से भाषा विवाद पर सवाल किए जाने पर उन्होंने मजाकिया अंदाज में कहा, “मैं पंजाब के साथ खड़ा हूं.” हालांकि आगे उन्होंने संजीदगी से कहा, “मैं कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के साथ खड़ा हूं. सिर्फ यही वह जगह नहीं है, जहां भाषा थोपी जा रही है. मैं फिल्म ‘एकदूजे के लिए’ का ऐक्टर था. बिना थोपे मैं ने भाषा सीखी. थोपो मत, क्योंकि एक तरह से यह शिक्षा है. आप को शिक्षा के लिए सब से आसान रास्ता अपनाना चाहिए, न कि बाधाएं डालनी चाहिए.”

उन्होंने कहा है,”अगर आप को वाकई अंतर्राष्ट्रीय सफलता चाहिए, तो आप को एक भाषा सीखनी चाहिए और मुझे इंग्लिश काफी उचित लगती है. आप स्पैनिश या चीनी भी सीख सकते हैं, लेकिन सब से आसान रास्ता यह है कि हमारे पास 350 साल पुरानी इंग्लिश ऐजुकेशन है, जो धीरेधीरे लेकिन लगातार चली आ रही है. जब आप अचानक इसे बदलते हैं, तो आप बेवजह कई लोगों को अनपढ़ बना सकते हैं.”

भाषा है ऐक्सप्रेशन

यहां यह समझना होगा कि हर व्यक्ति की शारीरिक ऊंचाई, वजन, स्वभाव एकजैसा नहीं होता, जैसा कि सैन्य रेजिमैंट में होता है, जहां आप को पता चल जाता है कि फलां व्यक्ति किस रेजिमैंट में किस पद पर काम कर रहा है, क्योंकि वहां लगभग सभी का एकजैसा सीना, वजन, शारीरिक बनावट आदि की रिक्वायरमैंट होती है और वहां रेजिमैंट के आधार पर सब को चलना पड़ता है.

भाषा सीखना है गर्व की बात

असल में भाषा एक ऐक्सप्रेशन है, जिस के द्वारा आप अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं, फिर इसे ले कर आपसी तनातनी क्यों? क्या आप बता सकते हैं कि आप किस भाषा में हंसते या रोते हैं? इंसान की ये भावनाएं पूरे विश्व में एक जैसी ही होती हैं. भाषा न जानने पर भी आप सामने वाले व्यक्ति को हंसता या रोता हुआ देख कर उस की मनोदशा को समझ लेते हैं, यानि किसी की भावना को समझने के लिए भाषा की जरूरत नहीं पड़ती.

हर भाषा अपनेआप में बेजोङ

यों भावनाएं चेहरे पर अनायास ही आ जाती हैं. हर भाषा का अपना सौंदर्य है और उसे किसी के द्वारा सीख लेना गर्व की बात होती है. जो व्यक्ति जितनी अधिक भाषा का ज्ञान रखता है, वह उतना ही अधिक विद्वान माना जाता है.

कोल्हापुरी चप्पलें बेचने वाले एक व्यक्ति को 5 भाषाएं आती हैं, जबकि वह बहुत कम पढ़ालिखा है। उस ने मराठी में 5वीं तक पढ़ाई की, लेकिन उस के दुकान पर कोल्हापुरी चप्पलें खरीदने वालों की भीड़ लगी रहती है, क्योंकि वह किसी भी भाषा में संवाद छोटा ही सही पर कर लेता है. बड़ा ताज्जुब तब हुआ, जब उस ने बांग्ला, पंजाबी, गुजराती, अंगरेजी सभी भाषाओं में अपने चप्पलों की तारीफ ग्राहकों से कर लेता है. भाषा के इस ज्ञान का विकास उस ने अपने व्यवसाय में कामयाबी के लिए किया है, जो बहुत जरूरी है.

है एक स्किल

माथेरान में पर्यटकों को घूमाने वाला घोड़े वाला व्यक्ति भी मराठी, गुजराती, हिंदी के अलावा अंगरेजी और फ्रेंच जानता है, क्योंकि उसे वहां की वादियों के बारे में पर्यटकों को बताना पड़ता है, ताकि उस के घोड़े पर सवार हो कर व्यक्ति वहां के दृश्यों का आनंद उठा सकें. उस ने फ्रेंच और अंगरेजी पर्यटकों से सुनसुन कर सीख लिया है. यही वजह है कि कोई भी उस के घोड़े के साथ सवारी के लिए जाना पसंद करता है, जबकि उस के घोड़े की सवारी महंगी है, लेकिन भाषा ज्ञान उसे सब से अलग और कामयाबी की श्रेणी में रखता है.

गृहशोभा ने भी कई भाषाओं में पत्रिका को प्रकाशित कर यह सिद्ध कर दिया है कि भाषा कोई भी हो, आप गृहशोभा के लेखों से खुद को जोङ सकते हैं.

मूल रूप से गृहशोभा हिंदी में शुरू हुई थी, लेकिन बाद में बांग्ला, गुजराती, कन्नड़, मलयालम, मराठी, तमिल और तेलुगु भाषाओं में भी उपलब्ध होने लगी. इस से इस पत्रिका से अलगअलग भाषा को जानने वाले हर वर्ग के पाठकों को रुचिकर और उपयोगी सामग्री मिलने लगे.

गृहशोभा को पूरे देश में सभी तक पहुंचाना आसान नहीं था, क्योंकि पाठकों की रुचि को देखते हुए लेखों को अनुवाद किया जाने लगा. आज देश का हर नागरिक इस की लेखों को पढ़ सकता है.

यहां यह साबित होता है कि किसी भी भाषा को सीखना कोई बड़ी बात नहीं. राजनेता भाषा के माध्यम से अपने वोट बैंक की रोटियां सेंक रहे हैं और चाहते हैं कि हिंदी के जानकार को दक्षिण में हिंदी पढ़ाने की नौकरी मिल जाएं, जिसे ये अपनी कामयाबी कहेंगे. कोई भी व्यक्ति आसानी से किसी भाषा को सीख सकता है.

असल में यह एक अच्छी स्किल है, जिसे सभी को सीख लेनी चाहिए। जितनी भाषा व्यक्ति बोल सकता है, उतना ही उस के पहचान का दायरा बढ़ता जाता है.

एकदूसरे को सिखाएं

बड़ेबड़े शहरों में हाईराइज बिल्डिंग्स में जहां हर भाषा के लोग आज एकसाथ रहते हैं, वहां भी सोसायटी के किसी गेटटूगेदर में सब अपनीअपनी भाषा के साथ ग्रुप बना लेते हैं. ऐसे स्थानों पर दूसरी भाषा बोलने वाले लोग जाने से परहेज करते हैं, क्योंकि उन्हें उन के संवाद समझ में नहीं आती। ऐसे में अगर हर सोसायटी आपस में एकदूसरे की भाषा का फ्री में एक क्लास चला दें, तो कोई भी उसे सीख सकता है और ग्रुप में होने वाली दूरियां भी मिट सकती हैं.

धारावाहिक ‘सपनों की छलांग’ फेम अभिनेत्री मेघा रे कहती हैं,”भाषा पर विवाद कभी सही नहीं होता। भाषा खुद की भावनाओं को व्यक्त करने का एक जरिया मात्र है. जानवरों की भी अपनी भाषा होती है, जिसे हम समझ नहीं पाते, लेकिन उन की मनोदशा को समझ सकते हैं. आज हम किसी भी भाषा की फिल्में और वैब सीरीज सबटाइटल के साथ देखते और ऐंजौय करते हैं.”

वे कहती हैं,”मैं ओडिसा की हूं, लेकिन मराठी, हिंदी, अंगरेजी और गुजराती अच्छी तरह बोल लेती हूं। भाषा ज्ञान से ही हम उस स्थान की कला और संस्कृति से परिचित होते हैं, जो अच्छी बात है. मुझे भाषा सीखना पसंद है और इंडस्ट्री में अच्छा काम करने के लिए कई भाषाओं का ज्ञान होना जरूरी है, ताकि किसी संवाद को अच्छी तरह से परदे पर उतारा जाए.”

भाषा विवाद का समाधान टकराव में नहीं, बल्कि समावेशी दृष्टिकोण अपनाने में है। यूथ को मातृभाषा के अलावा अन्य भाषाओं का भी ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए, ताकि वे जहां भी पढ़ाई करने या जौब के लिए जाएं, तो उन्हें किसी भी प्रकार की समस्या न हो. वहां से भागे नहीं। वे जहां भी जाते हैं, वहां की भाषा पहले से सीख लेने की कोशिश करें, ताकि वे खुद को अकेले नहीं, बल्कि उसी परिवेश का हिस्सा मान सकते हैं.

Aromatherapy : तनाव और सिरदर्द में देती है फायदा

Aromatherapy : आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में तनाव और सिरदर्द आम समस्याएं बन चुकी हैं. सुबह से ले कर रात तक काम, जिम्मेदारियों, परिवार और खुद के लिए समय निकालना, इन सभी के बीच मानसिक और शारीरिक थकावट होना स्वाभाविक है. ऐसे में जब सिर भारी होने लगता है या तनाव के कारण नींद उड़ जाती है तो मन करता है कि कुछ ऐसा हो जो बिना किसी साइड इफैक्ट के राहत दे. यही वह जगह है जहां अरोमाथेरैपी आप की मदद कर सकती है.

अरोमाथेरैपी क्या है

अरोमाथेरैपी एक प्राचीन प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली है, जिस में पौधों से प्राप्त आवश्यक तेलों का उपयोग किया जाता है. इन तेलों की सुगंध हमारे मस्तिष्क के लिंबिक सिस्टम को प्रभावित करती है. यही वह हिस्सा है जो हमारी भावनाओं, यादों और तनाव को नियंत्रित करता है.

सिरदर्द से राहत के लिए अरोमाथेरैपी उपाय

सिरदर्द के कई प्रकार होते हैं- माइग्रेन, टैंशन हैडेक, साइनस हैडेक इत्यादि. हर तरह के सिरदर्द के लिए एक खास सुगंध और तेल काम करता है. चलिए जानते हैं कुछ असरदार विकल्पों के बारे में:

अरोमा मैजिक क्यूरेटिव औयल

यह एक विशेष मिश्रण है जो सिरदर्द से तत्काल राहत देने के लिए तैयार किया गया है. इस में तुलसी, लैवेंडर, रोजमैरी और पैपरमिंट जैसे आवश्यक तेलों का संयोजन होता है. इस की ताजगी भरी सुगंध दिमाग को ठंडक देती है और रक्त संचार को बेहतर बनाती है.

कैसे करें उपयोग

माथे और गरदन पर हलके हाथों से इस तेल की कुछ बूंदें लगाएं.

आराम की मुद्रा में बैठें और गहरी सांस लें.

दिन में 2-3 बार दोहराएं.

लैवेंडर ऐसैंशियल तेल

लैवेंडर तेल तनाव और सिरदर्द दोनों में राहत देने के लिए जाना जाता है. इस की सुगंध मस्तिष्क को शांत करती है और एक प्रकार की मानसिक ताजगी प्रदान करती है.

कैसे करें उपयोग

डिफ्यूजर में 4-5 बूंदें डालें और सांस लें.

वाहक तेल (जैसे नारियल तेल) में मिला कर माथे और कनपटियों पर मालिश करें.

तुलसी (बैसिल) आवश्यक तेल

यदि आप के सिरदर्द का कारण मानसिक थकावट है तो तुलसी का तेल बेहद कारगर हो सकता है.

कैसे करें उपयोग

एक कटोरी गरम पानी में कुछ बूंदें डालें और भाप लें.

वाहक तेल में मिला कर हलके हाथों से मालिश करें.

तनाव से राहत के लिए अरोमाथेरैपी उपाय

तनाव केवल मानसिक थकावट नहीं लाता, यह शारीरिक रूप से भी थका देता है. इस से नींद प्रभावित होती है, त्वचा बिगड़ती है और मिजाज चिड़चिड़ा हो जाता है. अरोमाथेरैपी में कुछ आवश्यक तेल ऐसे हैं जो सीधे तौर पर मस्तिष्क को आराम देने में मदद करते हैं.

नैरोली ऐसैंशियल तेल

नैरोली तेल संतरे के फूलों से बनता है और इस की मीठी और शांत सुगंध भावनात्मक संतुलन बनाने में मदद करती है. यह अवसाद, चिंता और तनाव से राहत देने में बेहद असरदार है.

कैसे करें उपयोग

3-4 बूंदें डिफ्यूजर में डालें और गहरी सांस लें.

वाहक तेल में मिला कर पूरे शरीर की मालिश करें.

चंदन (सैंडलवुड) आवश्यक तेल

चंदन की सुगंध भारतीय संस्कृति में हमेशा से शांति और ध्यान से जुड़ी रही है. इस का तेल न केवल मस्तिष्क को ठंडक पहुंचाता है बल्कि आत्मिक संतुलन भी प्रदान करता है.

कैसे करें उपयोग

चंदन तेल की कुछ बूंदें नहाने के पानी में मिलाएं.

ध्यान के समय इसे डिफ्यूजर में प्रयोग करें.

लैवेंडर ऐसैंशियल तेल

तनाव के लिए लैवेंडर सब से लोकप्रिय विकल्पों में से एक है. यह नींद को बेहतर

बनाता है, मस्तिष्क को शांत करता है और लगातार तनाव से होने वाले सिरदर्द को भी दूर करता है.

कैसे करें उपयोग

सोते समय तकिए पर कुछ बूंदें छिड़कें.

डिफ्यूजर में रोजाना उपयोग करें.

अरोमाथेरैपी के प्रभावी उपयोग के तरीके

डिफ्यूजर के माध्यम से: कमरे में सुगंध फैलाने का सब से सुरक्षित और आसान तरीका है डिफ्यूजर.

मालिश के माध्यम से: वाहक तेलों (जैसे बादाम या जोजोबा) में आवश्यक तेल मिला कर शरीर पर मालिश करें.

भाप लेना: सर्दीजुकाम या साइनस सिरदर्द में बेहद उपयोगी.

स्नान: 5-10 बूंदें गरम पानी में मिलाकर स्नान करें.

अरोमाथेरैपी के लाभ

बिना किसी दुष्प्रभाव के काम करती है.

मन को शांत करती है.

नींद की गुणवत्ता को बेहतर बनाती है.

एकाग्रता बढ़ाती है.

त्वचा और बालों के लिए भी लाभकारी होती है.

जरूरी सावधानियां

पैच टैस्ट करें: उपयोग से पहले त्वचा पर हलका परीक्षण अवश्य करें.

सीधे त्वचा पर न लगाएं: हमेशा वाहक तेल में मिला कर ही उपयोग करें.

गर्भवती महिलाएं या बच्चे: चिकित्सकीय सलाह अवश्य लें.

शुद्धता की जांच करें: केवल विश्वसनीय ब्रैंड से ही आवश्यक तेल खरीदें.

Blossom Kochar

Family Short Story : पति जो ठहरे

Family Short Story :  सलोनी की शादी के पीछे सब हाथ धो कर पड़े थे. कुछ तो अंधविश्वासी टाइप के लोग मुफ्त की सलाह भी देते,” देखो, शादी समय से होनी चाहिए नहीं तो बड़ी मुसीबत होगी और अच्छा पति भी नहीं मिलेगा. इसलिए 16 सोमवार का व्रत करो, वैभव लक्ष्मी का 11 शुक्रवार भी, शादी आराम से हो जाएगी…”

सलोनी ने सारे व्रतउपवास कर लिए. अब इंतजार था कि कोई राजकुमार आएगा और उसे घोड़े पर बैठा कर ले जाएगा और जिंदगी हो जाएगी सपने जैसी. प्रतीक्षा को विराम लगा और आ गए राजकुमार साहब, मगर घोड़ा नहीं कार पर चढ़ कर.

अब शादी के पहले का हाल भी बताना जरूरी है…

सगाई के बाद ही सलोनी को यह राजकुमार साहब लगे फोन करने. घंटों बतियाते, चिट्ठी भी लिखतेलिखाते. सलोनी के तो पौ बारह, पढ़ालिखा बांका जवान जो मिल गया था. खैर, शादी धूमधाम से हुई. सलोनी के पैर जमीन पर नहीं पङ रहे थे.

राजकुमार साहब भी शुरुआत में हीरो की माफिक रोमांटिक थे पर पति बनते ही दिमाग चढ़ गया सातवें आसमान पर,”मैं पति हूं…” सलोनी भी हक्कीबक्की कि इन महानुभाव को हुआ क्या? अभी तक तो बड़े सलीके से हंसतेमुसकराते थे, लेकिन पति बनते ही नाकभौं सिकोड़ कर बैठ गए. प्रेम के महल में हुक्म की इंतहा…. यह बात कुछ हजम नहीं हुई पर शादी की है तो हजम करना ही पड़ेगा. फिर तो सलोनी ने अपना पूरा हाजमा ठीक किया पर पति को यह कैसे बरदाश्त कि पत्नी का हाजमा सही हो रहा है, कुछ तो करना पड़ेगा वरना पति बनने का क्या फायदा?

“कपड़े क्यों नहीं फैलाए अभी तक?” पति महाशय ने हेकङी दिखाते हुए पूछा.

बेचारी सलोनी ने सहम कर कहा,”भूल गई थी.”

“कैसे भूल गईं? फेसबुक, व्हाट्सऐप, किताबें याद रहती हैं… यह कैसे भूल गईं?”

‘अब भूल गई तो भूल गई. भूल सुधार ली जाएगी,’ सलोनी मन ही मन बोली.

“कितनी बड़ी गलती है यह तो. अब जाओ, आइंदे से मेरा कोई काम मत करना, मैं खुद कर लूंगा,” पति महाशय ने ऐलान कर दिया.

‘ठीक है जनाब, कर लो… बहुत अच्छा. ऐसे भी मुझे कपड़े फैलाने पसंद नहीं,’ सलोनी ने मन में सोचा.

पति महाशय ने मुंह फुला लिया तो अब बात नहीं करेंगे. बात नहीं करेंगे तो वह भी कुछ घंटों नहीं बल्कि पूरे 3-4 दिनों तक. अब सलोनी का हाजमा कहां से ठीक हो, अब तो ऐसिडिटी होना ही है फिर सिरदर्द.

एक बार सलोनी पति महाशय के औफिस के टूअर पर साथ आई थी. पति महाशय ने रात को गैस्ट हाउस के कमरे में साबुन मांगा. सलोनी ने साबुनदानी पकड़ाई पर यह क्या, उस में तो पिद्दी सा साबुन का टुकड़ा था. पति महाशय का गुस्सा सातवें आसमान पर. फिर तो पूरे 1 हफ्ते बात नहीं की. औफिस के टूअर में घूमने आई सलोनी की घुमाई गैस्ट हाउस में ही रह गई, आखिर इतनी बड़ी भूल जो कर दी थी.

उस के बाद से सलोनी कभी साबुन ले जाना नहीं भूली. पति महाशय गर्व से सीना तान लिए कि सलोनी की इस गलती को उन्होंने सुधार दी. सलोनी ने भी सोचा कि पति के इस तरह मुंह फुलाने की गलती को सुधारा जाए पर पति कहां सुधरने वाले. उन का मुंह गुब्बारे जैसा फूला तो जल्दी पिचकेगा नहीं, आखिर पति जो ठहरे.

सलोनी एक बार घूमने गई थी बड़े शौक से. पति महाशय ने ऊंची एड़ी की सैंडिल खरीदी. सलोनी सैंडिल पहन कर ज्यों ही घूमने निकली कि ऊंची एड़ी की चप्पल गई टूट और पति महाशय गए रूठ. उस पर से ताना भी मार दिया,”कभी इतनी ऊंची एड़ी की चप्पलें पहनी नहीं तो खरीदी क्यों? अब चलो, बोरियाबिस्तर समेट वापस चलो. सलोनी हो गई हक्कीबक्की कि इतनी सी बात पर इतना बवाल? आखिर चप्पल ही है दूसरी ले लेंगे. पति महाशय का मुंह तिकोना हो गया तो सीधा होने में समय लगता है पर सलोनी को भी ऐसे आड़ेतिरछे सीधा करना खूब आता है. फिर तो “सौरी…” बोल कर मामला रफादफा किया.

कभीकभी पति महाशय का स्वर चाशनी में लिपटा होता है पर ऐसा बहुत कम ही होता है. एक बार बड़े प्यार से सलोनी को जन्मदिन पर घुमाने का वादा कर औफिस चले गए और लौटने पर सलोनी के तैयार होने में सिर्फ 5 मिनट की देरी पर बिफर पड़े. नाकभौं सिकोड़ कर ले गए मौल लेकिन मुंह से एक शब्द भी नहीं फूटा… सलोनी ने अपनी फूटी किस्मत को कोसा कि ऐसे नमूने पति मिले थे उसे.

सलोनी पति की प्रतीक्षा में थी कि पति टूअर से लौट कर आएंगे तो साथ में खाना खाएंगे. पति महाशय लौटे 11 बजे. जैसे ही सुना कि सलोनी ने खाना नहीं खाया तो बस जोर से डपट दिया और पूरी रात मुंह फुलाए लेटे रहे. सलोनी ने फिल्मों में कुछ और ही देखा था पर हकीकत तो कुछ और ही था.

वह दिन और आज का दिन सलोनी ने पति की प्रतीक्षा किए बगैर ही खाने का नियम बना लिया. अब भला कौन भूखे पेट को लात मारे और भूखे रह कर कौन से उसे लड्डू मिलने वाले थे.

कभीकभी भ्रम का घंटा मनुष्य को अपने लपेटे में ले ही लेता है. सलोनी को लगा कि पति महाशय का त्रिकोण अब सरलकोण में तब्दील होने लगा है पर भरम तो भरम ही होता है सच कहां होता है? सलोनी को प्रतीत हुआ कि उस का इकलौता पति भी सलोना हो गया है पर सूरत और सीरत में फर्क होता है न… सूरत से सलोना और सीरत… व्यंग्यबाण चला दिया,”आजकल बस पढ़तीलिखती ही रहती हो, घर का काम भी मन से कर लिया किया करो. नहीं तो कोई जरूरत नहीं करने की…”

सलोनी ने कुछ ऊंचे स्वर में कहा,”दिखता नहीं है कि मैं कितना काम करती हूं…” इतना कहना था कि पति जनाब ने फिर से मुंह फुला लिया. इस बार सलोनी ने भी ठान लिया कि वह पति को नहीं मनाएगी. पर हमेशा की तरह सलोनी ने ही मनाया.

सलोनी ने एक दिन अपनी माता से अपनी व्यथा कथा कह डाली,”मां, पापा तो ऐसे हैं नहीं?”

मां मुसकराईं,”बेटी, तुम्हारे पापा बहुत अच्छे हैं पर पति कैसे हैं उस का दुखड़ा अब तुम से क्या बताऊं…मेरी दुखती रग पर तुम ने हाथ रख दिया….दरअसल, यह पति नामक प्रजाति होती ही ऐसी है. इस प्रजाति में कोई भी जैविक विकास की अवधारणा लागू नहीं होती, इसलिए जो है जैसा है, इन्हीं से उलझे रहो. ये कभी सुलझने वाले नहीं. लड़के प्रेमी, भाई, मित्र, पिता सब रूप में अच्छे हैं पर पति बनते ही बौरा जाते हैं. सलोनी को वह गाना याद आने लगा, ‘भला है, बुरा है, जैसा भी है मेरा पति मेरा…’

“पर मां, स्त्री के अधिकारों का क्या और स्त्री विमर्श का प्रश्न?” सलोनी ने पूछा.

“सलोनी, तुम्हारा पति त्रिकोण ही सही पर तिकोना समोसा खिलाता है न…”

“हां, वह तो खिलाते हैं…”

“बस, फिर कोई बात नहीं, उस की बातें एक कान से सुनो और दूसरे से निकाल दो. अपना काम धीरेधीरे करते चलो…”

सलोनी ने एक ठंडी आह भरी और मुंह से निकला,”ओह, पति जो ठहरे.”

Hair Care Tips : बालों को झड़ने से रोकने का कोई घरेलू उपाय बताएं?

Hair Care Tips :

सवाल- 

मैं 23 वर्षीय युवती हूं. इन दिनों मेरे बाल बहुत झड़ रहे हैं. बालों को झड़ने से रोकने का कोई घरेलू उपाय बताएं?

जवाब-

बालों को रूखा न रहने दें, क्योंकि रूखे बाल अधिक टूटते हैं. अपने खानपान में प्रोटीनयुक्त आहार शामिल करें. बालों की हफ्ते में 1 बार अच्छी तरह औयलिंग करें. उन्हें मजबूत और घना बनाने के लिए दही में मेथीदाना पाउडर, काले तिल का पाउडर बराबर मात्रा में मिला कर हेयर पैक बना कर साफ धुले बालों में लगाएं. आधे घंटे बाद बालों को धो लें. ऐसा 15 दिन में 1 बार करें. जरूर लाभ होगा.

सुंदर और मजबूत बाल भला किसे अच्छे नहीं लगते. लेकिन बदलते मौसम और भाग दौड़ भरी जिंदगी के चलते बालों के झड़ने और डैंड्रफ की समस्या पैदा हो जाती है. ऐसे में प्राकृतिक उपचारों को आजमाना बहुत आवश्‍यक है क्‍योंकि इसका ना तो कोई साइड इफेक्‍ट होता है और ना ही यह बहुत खर्चीला होता है.

आइये जानते हैं कुछ ऐसे प्राकृतिक हेयर मास्‍क जिन्‍हें नियमित लगाने से बालों का झड़ना रूक जाता है.

अंडे का मास्‍क

एक कटोरे में 1 अंडा फोड़ कर उसमें थोड़ा सा दूध, 2 चम्‍मच नींबू का रस और जैतून का तेल मिक्‍स करें. फिर इस मिश्रण को सिर पर लगा कर थोड़ा मसाज करें. उसके बाद एक शावर कैप से अपने सिर को ढंक लें और 20 मिनट के बाद बालों को ठंडे पानी से धोएं.

केले का मास्‍क

2 पके हुए केले लें, उसके साथ 1 चम्‍मच जैतून का तेल, नारियल का तेल और शहद मिक्‍स करें. इन्‍हें अच्‍छी प्रकार से एक चम्‍मच की सहायता से मसल लें. फिर इसे अपने हाथों से सिर की त्‍वचा पर लगाएं. अब इसे 5 मिनट तक के लिये सिर पर स्‍थिर हो जाने दें. उसके बाद हल्‍के गुनगुने पानी से सिर धो लें.

ब्रेन हैमरेज को हरा कर हासिल किया मुकाम : नताशा तुली

Natasha Tuli : आज के समय में महिलाएं और ज्यादा इंडिपैंडैंट हो रही हैं. अब कोई लिमिट नहीं रही है. आप घर पर बैठ कर भी काम कर सकते हैं. अगर आप औनैस्ट हैं, दिल से और सही काम करें तो लोग आप के काम को सराहेंगे. ऐसी महिलाएं जो कुछ भी नहीं कर पा रहीं उस का कारण यह है कि उन का खुद पर ही बिलीव नहीं है. पैसे न होने की वजह से कोई काम नहीं रुकता…

सोलफ्लौवर कंपनी की सह संस्थापिका और सीईओ नताशा तुली एक जानामाना नाम है जिन्होंने ब्रेन हैमरेज जैसी समस्या से जूझने के बावजूद अपने काम पर फोकस किया और आज वे एक ऐसे मुकाम पर हैं जब उन की कंपनी के हेयर और स्किन केयर प्रोडक्ट्स लोगों में काफी पौपुलर हैं. उन्होंने 2001 में सोलफ्लौवर की स्थापना की थी. सोलफ्लौवर जहां 100 से ज्यादा इंप्लोई काम करते हैं और उन में 50त्न महिलाएं हैं.

स्किन और हेयर केयर से जुड़े 70 से ज्यादा प्रोडक्ट्स बनाने वाली कंपनी की सीईओ नताशा ने जिंदगी में कभी हिम्मत नहीं हारी और हमेशा पौजिटिव सोच और हार्ड वर्क के साथ फोकस हो कर आगे बढ़ती रहीं. अपने रास्ते में आने वाली चुनौतियों का उन्होंने डट कर सामना किया.

नताशा की फैमिली मूल रूप से सियालकोट, पाकिस्तान से है. विभाजन के बाद सब दिल्ली आ गए. बाद में मुंबई में आना हुआ. उन की फैमिली के लोग मुख्य रूप से फिल्मों से जुड़े हुए हैं. उन के पापा वीरेंद्र कुमार मूवी प्रोड्यूसर हैं और चाचा राजेंद्र कुमार फेमस ऐक्टर थे. कुमार गौरव उन के फर्स्ट कजिन हैं. एक और कजिन विक्रम तुली हैं जो अमेजन पर आने वाली ब्रीथ सीरीज के स्क्रिप्ट राइटर हैं.

ब्रेन हैमरेज से लड़ कैसे आगे बढ़ीं नताशा

नताशा बताती हैं, ‘‘मुझे 2015 में ब्रेन हैमरेज हुआ था. ऐक्चुअली मैं एक मैराथन रनर हूं और इसी क्रम में मुझे एक बार चोट लगी थी. इंटरनल ब्लीडिंग हुई मगर मुझे इस का एहसास नहीं हुआ. बस सिरदर्द होता था. 1 महीना कुछ पता ही नहीं चला. फिर एक दिन मेरी एक साइड पैरालाइज हो गई. तब मुझे जल्दी से लीलावती अस्पताल में एडमिट कराया गया. मेरे घर वाले शौक में थे. मुझे भी कुछ होश नहीं था.

‘‘करीब 6-7 घंटे का औपरेशन चला. सिर में होल कर के ब्लड ड्रेन किया गया. यह सितंबर का महीना था. मुझे 3-4 दिन आईसीयू में रखा गया. फिर 15 दिन हौस्पिटल में रह कर मैं घर वापस आई. मुझे लैफ्ट साइड में हैमरेज हुआ था. उस की वजह से थोड़ी याददाश्त चली जाती है. कुछ चीजें थीं जो याद नहीं रहती थीं. लेकिन अब मुझे अपनी जिंदगी में वापस आना था इस के लिए मैं प्रयासरत रही और 4 महीने के बाद मैं ने फिर से मैराथन की दौड़ में भाग लिया. यह 21 किलोमीटर की दौड़ थी और मैं ने उस में जीत हासिल की. मुझे कई अखबारों ने कवरेज दिया, साथ ही एक बुक ‘अनस्टौपेबल’ में भी मुझे 10 इंस्पिरेशनल इंडियन रनर में फीचर किया गया.

‘‘अब मैं बिलकुल स्वस्थ हूं. मुझे पूरी तरह सही होने में 2 साल लगे. एक तरह से अंदर की स्ट्रैंथ थी जो मैं धीरेधीरे आगे बढ़ पाई. मैं ने घर में रहने के बजाय औफिस जाना शुरू किया. पहले 1 घंटे में थक जाती थी. फिर धीरेधीरे समय बढ़ाया. मेरे सर्जन डाक्टर राजन शाह लीलावती हौस्पिटल से थे. वे काफी पौजिटिव थे और शायद इसी वजह से मैं इतनी जल्दी सही हो पाई.’’

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कैसे हुई सोलफ्लौवर की शुरुआत

नताशा बाई प्रोफैशन एक आर्किटैक्ट हैं और लैंडस्केप आर्किटैक्चर में स्पैशलाइजेशन किया था, जिस में आयुर्वेदिक हर्ब्स, प्लांट्स और नैचुरल चीजों का ज्ञान दिया जाता है. वहीं से सोलफ्लौवर का नाम आया है.

नताशा बताती हैं कि उस समय विदेशी प्रोडक्ट्स काफी पौपुलर थे, मगर नैचुरल चीजों का उपयोग कम होता था. तब मैं ने सोचा कि हमारे देश में जब इतनी नैचुरल चीजें हैं जो तरहतरह के फायदे दे सकती हैं तो क्यों न उस नौलेज का उपयोग करते हुए एक ऐसे नैचुरल हेयर ग्रोथ ब्रैंड की शुरुआत की जाए जो बिना कैमिकल का प्रयोग किए लोगों की समस्याओं का समाधान कर सके. हमारे पास खुद की लैब है, साइंटिस्ट, डर्मैटोलौजिस्ट, कैमिस्ट और टैक्नीशियन हैं जो हमारे साथ काम करते हैं. इस के अलावा मैं ने दादी से और फैमिली से भी बहुत कुछ सीखा.मेरी इस फील्ड में रुचि थी. मेरी पढ़ाई भी कुछ ऐसी ही थी इसलिए मुझे सहूलियत हुई.

कंपनी का पूरा सैटअप तैयार करने में 6 महीने तक का समय लग गया था. 2001 में इस कंपनी की नींव रखी गई. फ्लिपकार्ट, अमेजन, नायका, फार्मेसी आदि में हमारे प्रोडक्ट्स की बिक्री होती है. औनलाइन हमारी वैबसाइट सोलफ्लौवरडौटइन के द्वारा भी आप प्रोडक्ट्स खरीद सकते हैं. हमारा एक औफिस मुंबई में है और हमारा दूसरा फार्म राजस्थान में है. यहां हमारे प्रोडक्ट्स बनते हैं. यहां ट्राइबल औरतें हमारी इंप्लोई हैं.

मुंबई में मुख्य रूप से पैकेजिंग का काम होता है. कंपनी के कोफाउंडर अमित सारदा हैं. वे बिजनैस एंगल संभालते हैं. प्रोडक्ट और बाकी सबकुछ मैं संभालते हैं. अगर सिमिलर थौट है तो पार्टनरशिप बहुत अच्छी चीज है. सपोर्ट सिस्टम जरूरी होता है. देखा जाए तो मेरा सपोर्ट सिस्टम मेरा सोलफ्लौवर फैमिली है. हमारे इंप्लाई परिवार के सदस्य की तरह हैं.

रिव्यूज पढ़ने चाहिए

बकौल नताशा, ‘‘रोजमैरी ऐसैंशियल औयल हमारा सब से कामयाब प्रोडक्ट है. इस के अलावा हेयर ग्रोथ औयल्स, हैंडमेड सोप्स, ऐसैंशियल औयल्स वगैरह हमारे खास प्रोडक्ट्स हैं. हमारे प्रोडक्ट्स प्रैगनैंट महिलाएं, पोस्ट प्रैगनैंसी वाली महिलाएं और कैंसर पेशैंट आदि ज्यादा यूज करते हैं क्योंकि ये कैमिकल फ्री प्रोडक्ट्स हैं. इंडिया में वैसे भी 36 % लोगों को बाल झड़ने की समस्या का सामना करना पड़ता है जिस में हमारे प्रोडक्ट्स बेहतर रिजल्ट देते हैं.

‘‘हम फोकस करते हैं हेयर ग्रोथ पर. भारत में जो भी प्रोडक्ट उपलब्ध है वह प्योर नहीं है. उन प्रोडक्ट्स में मिनरल औयल और कैमिकल भरे हुए हैं. इस जैनरेशन में वैसे भी बहुत हेयर फौल हो रहा है. आजकल स्ट्रैस अधिक है, हार्ड वाटर है. गुरुग्राम, नोएडा, बैंगलुरु से सब से ज्यादा कस्टमर हैं. मुख्य रूप से हमारे पास 18 से 34 साल की उम्र के कस्टमर हैं. 50त्न कस्टमर लड़के हैं. उन की शादियां नहीं हो रही हैं. बाल झड़ जाते हैं. सरकमस्टैंसस और पौल्यूशन की वजह से ज्यादा बाल झड़ रहे हैं. इतने सालों में सोलफ्लौवर ने ट्रस्ट बिल्ड किया है. 2022 मैं विप्रो ने हमें फंड दिया. मतलब यह अब विप्रो फंडेड कंपनी बन गई.’’

महिलाओं को ब्यूटी प्रोडक्ट लेते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? इस सवाल के जवाब में नताशा कहती हैं, ‘‘ब्यूटी प्रोडक्ट लेने से पहले रिसर्च करनी चाहिए और लेबल जरूर पढ़ना चाहिए कि ब्रैंड कैसा है, कहां बिक रहा है. रिव्यूज पढ़ने चाहिए और जानकारी लेनी चाहिए कि उस प्रोडक्ट में कैमिकल्स हैं या नहीं और कोई साइड इफैक्ट तो नहीं.’’

बेजबानों की सेवा

नताशा तुली बताती हैं, ‘‘मेरे पास11 बिल्लियां हैं. औफिस में 30 बिल्लियां और 12 कुत्ते हैं. हम जानवरों की बहुत सेवा करते हैं. उन की दवाई बगैरा सबकुछ का खयाल रखते हैं. हम दिन में 300 कुत्तों को रोजाना खाना खिलाते हैं. हमारे एक प्रोडक्ट को खरीदने पर एक जानवर को खाना खिलाया जाता है. हम अधिक से अधिक महिलाओं को काम देने की कोशिश करते हैं.’’

महिलाओं के लिए सफलता के मूलमंत्र

नताशा कहती हैं कि आज के समय में महिलाएं और ज्यादा इंडिपैंडैंट हो रही हैं. अब कोई लिमिट नहीं रही है. आप घर पर बैठ कर भी काम कर सकते हैं. अगर आप औनैस्ट हैं, दिल से और सही काम करें तो लोग आप के काम को सराहेंगे. ऐसी महिलाएं जो कुछ भी नहीं कर पा रहीं उस का कारण यह है कि उन का खुद पर ही बिलीव नहीं है. पैसे न होने की वजह से कोई काम नहीं रुकता. जब मैं ने बिजनैस चालू किया तब मेरे पास पैसे नहीं थे. मेरी ऐजुकेशन में भी कोई ज्यादा पैसा खर्च नहीं हुआ.

जैसे मैं ने आर्किटैक्ट की पढ़ाई की उस में कुल क्व11 की फीस लगती थी क्योंकि यह गवर्नमैंट कालेज था. जब मैं इंडियन स्कूल औफ बिजनैस, हैदराबाद में एमबीए करने गई तो मुझे वहां स्कौलरशिप मिल गई. दरअसल, जो लोग सक्सैसफुल हैं ऐसा नहीं है कि वे लोग बड़ीबड़ी यूनिवर्सिटी से निकले हैं या बहुत अमीर हैं. सब से जरूरी है कि आप खुद पर विश्वास करें. नकारात्मकता की जो लिस्ट दिमाग में होती है कि मैं यह नहीं कर सकती, मेरे छोटे बच्चे हैं, मैं छोटे टाउन से हूं या मेरी फैमिली अनुमति नहीं देगी, ऐसी सारी बातें कागज पर लिख कर जला दें.

महिलाओं का नेचर ही होता है दूसरों का पहले सोचना और बाद में अपना सोचना. इस नेचर को बदलें खासकर काम के मामले में यह चेंज करना बहुत जरूरी है. जब आप खुद के पैसे कमाएंगे तो आप के अंदर एक अलग ही कौन्फिडैंस आएगा. फिर आप के वही फैमिली मैंबर आप की तारीफ करेंगे जो पहले आप को आगे बढ़ने से मना कर रहे थे. यह एक अमेजिंग फीलिंग होती है. आज महिलाओं की लाइफ इजी हो गई है. आप कुछ भी कर सकती हैं. इसलिए आगे बढ़ें और कुछ कर के दिखाएं.

सीखने की कोई उम्र नहीं होती

नताशा कहती हैं, ‘‘ऐजुकेशन किसी भी उम्र में लाभकारी है. यह मत सोचिए कि अब कुछ कर के क्या करना है. अब तो मेरी उम्र हो चुकी है. सीखने की उम्र कभी खत्म नहीं होती. नई चीजें सारी उम्र सीखते रहना चाहिए. मुझे देखिए, अभी मैं फुलटाइम एलएलबी कर रही हूं. सैकंड ईयर खत्म हो चुका. मैं जीजे आडवाणी ला कालेज, मुंबई से एलएलबी कर रही हूं. यह कालेज मेरे घर के पास है इसलिए मुझे आसानी होती है. यहां फर्स्ट सैमेस्टर में मैं चौथे नंबर पर थी. सैकंड और थर्ड सैमेस्टर में भी टौप टैन में आई हूं.

‘‘मेरी उम्र 41 साल है. मैं यह मैसेज देना चाहूंगी कि यह न सोचें कि मैं यह नहीं कर सकती बल्कि कभी भी अपना काम स्टार्ट कीजिए. अभी इतने प्लेटफौर्म हैं, इतने कैरियर औप्शन हैं बहुत कुछ काम कर सकते हैं. कई तरह के बिजनैस कर सकते हैं. यहां तक कि आप घर में अचार बना रही हैं तो उसे भी आप बिजनैस बना सकती हैं. कई बार हम अपने कंफर्ट जोन से बाहर नहीं निकलना चाहते. सोचते हैं अब तो बच्चे बड़े हो गए. इस मानसिकता को हटाना होगा.

‘‘बिजनैस वूमन बनने के लिए आप को सैक्रिफाइस करने होंगे. काम के मामले में अनप्रोफैशनल नहीं बल्कि प्रोफैशनल बनना है. अगर मीटिंग है तो आप घर के किसी भी जरूरी फंक्शन वगैरह को छोड़ कर काम पर फोकस कीजिए. आज की जो जैनरेशन है उस में काफी कौन्फिडैंस है. लेकिन इस यंग जैनरेशन से मैं यही कहना चाहूंगी कि कोई शौर्टकट नहीं होता. यंग जैनरेशने तुरंत हार मान जाती है. इस सोच को खत्म करना जरूरी है.’’

मेड फौर वर्ल्ड

भारत को छोड़ कर हम 10 और देश में अपने प्रोडक्ट्स बेचते हैं. जैसे यूएस, जापान, दुबई, यूएई, सिंगापुर, आस्ट्रेलिया, सऊदी आदि. सोलफ्लौवर मेड इन इंडिया है बट मेड फौर द वर्ल्ड है. हर देश के लोगों की हेयर प्रौब्लम्स या स्किन प्रौब्लम्स एक सी ही होती हैं. कलर भले अलग हो बट स्किन सभी समान होती हैं. उन के भी बाल ज्यादा झड़ते हैं. उन को भी डैंड्रफ होता है. हमारे हेयर केयर और स्किन केयर से जुड़े 70 से ज्यादा प्रोडक्ट्स हैं. हमारा फोकस हेयर ग्रोथ और हेयर फौल पर है.

Stories : पत्नी की देखभाल – संदीप को क्या हुआ था

Stories :  ‘‘अरे…अरे, संदीप क्या बात है? क्या हुआ?’’ उस ने हैरत से पति का सुस्त चेहरा देखा और उन का जवाब मिलने तक एक कप अदरक, कालीमिर्च व अजवायन की चाय बना कर उन के हाथ में दे दी.

‘‘आज दोपहर में हरारत सी हो गई. इसीलिए जल्दी लौट आया,’’ कह कर संदीप ने चाय का घूंट भरा, ‘‘वाह अमृत, बहुत आराम मिल रहा है.’’

तभी दोनों बेटियां भी उन्हीं के पास आ गईं, ‘‘अरेअरे, पापा आप को इस कुरसी पर और आराम से बैठना चाहिए,’’ कह कर 5 और 7 साल की बेटियां एकएक कुशन ले कर उन की पीठ से लगाने लगीं.

‘‘थैक्स बेटी, बहुत आराम मिला. खेलने जा रहे हो?’’

‘‘हांहां,’’ कह कर दोनों मां से पूछने लगीं, ‘‘पापा इतने हौलेहौले क्यों बोल रहे हैं?’’

‘‘वह आज पापा को फीवर आ गया है.’’

मां की बात सुनी तो, ‘‘अच्छा,’’ कह कर दोनों वहीं खड़ी हो गईं.

‘‘अरे, प्यारे बच्चों जाओ खेलने जाओ बच्चों,’’ मां ने जैसे ही कहा दोनों अपनाअपना बौल ले कर पार्क में चली गईं. वहां जा कर खूब खेलनेकूदने के बाद दोनों ने अपने सारे साथियों को सनसनीखेज खबर सुनाई, ‘‘पता है हमारे पापा को स्विमिंग, स्कैटिंग, बैडमिंटन, टैनिस, हौर्स राइडिंग सब आता है. पर…’’

‘‘अरे, मुग्धा व पावनी पर क्या? आगे भी तो बताओ,’’ बाकी दोस्तों ने उत्सुकता से चकित हो कर पूछा.

‘‘वह आज उन्हें फीवर आ गया है. तुम्हें देखने हैं? बोलो… बोलो?’’

‘‘अरे, हांहां देखने हैं, ‘‘और फिर पूरी धमाचौकड़ी पहुंच गई सीधा उस कमरे में जहां बुखार से कराहते संदीप आंखें बंद कर लेटे

हुए थे.

‘‘यह देखो पापा का माथा गरम है न… हाथ भी, गरदन भी. यहां सब जगह फीवर आ गया है.’’

वे सब नादान और प्यारे बच्चे बारीबारी से अपनी शीतल हथेलियों

से तपती त्वचा को स्पर्श करते जा रहे थे. वह तो संदीप को बच्चों के साथ रहने और खेलने की आदत बरसों से थी. उन के सभी मित्र अपने बच्चे उन्हीं के संरक्षण में छोड़ दिया

करते थे. इसलिए आज इतने ज्वर

में भी वे बच्चों की इतनी तीखी चिल्लपौं से न तो खीजे और न

ही  झल्लाएं.

‘‘मां हमारे दोस्त आए हैं,’’ जब

दोनों बच्चों ने बताया तो वे उस समय गरम

पानी की थैली बना रही थीं. वे अपने घर में

बच्चों की किलकारियों से गदगद हो उठीं और बच्चों को उन का पसंदीदा मिल्कशेक बना

कर दिया.

तभी बाई का फोन आया कि वह 2 दिन नहीं आ सकेगी.’’

‘‘अच्छा, ठीक है,’’ कह कर उन्होंने अपने घर जाते बच्चों को अलविदा कहा और फिर सिंक में भरे बरतन मांज कर रात के लिए भोजन की तैयारी करने लगीं. बच्चों के स्टडीरूम से कागज फटने और कैंची चलने की आवाज सुनाई दी तो चौंक कर स्टडीरूम में गईं. देखा कि प्लास्टिक की कैंची से कागज को सैट कर बेटियां अपनी कौपी में कवर चढ़ा रही हैं.

‘‘मां आप बिजी थीं न इसलिए हम ने

सोचा अपना काम खुद कर लेते हैं और मां आप हमें भी मूंग की खिचड़ी खिला दो,’’ दोनों एकसाथ बोलीं.

‘‘न, न, बच्चों, तुम्हारे लिए आलू के परांठे तुम्हें सेंकने जा रही हूं. सब तैयारी कर ली है,’’ मां ने कहा.

‘‘अच्छा मां हम दोनों एक ही प्लेट में खा लेंगी,’’ और फिर वे खुद ही रसोई मे पहुंच गईं और धुले हुए सूखे बरतन सैट करने लगीं.

मां संदीप को खिचड़ी खिला दवा दे दी. फिर अपनी उन सहेलियों के संदेश फोन पर देख कर जवाब लिखने लगीं, जिन्हें उन्होंने दोपहर बाद घबरा कर तनाव में संदीप को बुखार आ रहा है, ऐसा संदेश भेजा था.

रात उन्हें न जाने क्यों बहुत देर से नींद

आई और फिर पता ही नहीं चला कि कब

सुबह के 5 बज गए. वे उठ कर तत्परता से रसोई में जुट गईं. बच्चियां टिफिन ले कर हंसतीहंसती स्कूल चली गईं. मां ने संदीप को दूध का दलिया खिला कर आराम करने को कहा.

अभी सुबह के 10 ही बजे होंगे कि दरवाजे पर दस्तक हुई. उस की सारी सहेलियों का एकसाथ आगमन हुआ. उन की चिंताभरी परवाह ने उन्हें गदगद कर दिया.

‘‘संदीपजी अरे, कैसे आया बुखार?’’

‘‘ये सब आवाजें उन्हें रसोई में सुनाई दे रही थीं और वे अपनी सहेलियों के भरपूर स्नेह से भावविह्वल हो रही थीं.

कड़क चाय ले कर जब वे उन के पास गईं तो देखा कि सहेलियों की गपशप एकदूसरे से हो रही है और संदीपजी इस शोर के बीच भी गजब के खर्राटे भर रहे थे.

‘‘ओह, दवा का असर है,’’ उन्होंने अपनी सहेलियों से कहा और फिर रसोई में चली गईं.

वे सब उन के पास रसोई में आ कर ही चाय पीने लगीं. सहेलियों ने ही सिंक में भरे सुबह के सारे बरतन मिल कर साफ कर दिए और दोपहर के भोजन में यथासंभव मदद कर के सब

चली गईं.

पता ही नहीं चला कि कब बेटियां स्कूल से लौट आईं और सब से पहले पापा का बुखार अपने हाथों थर्मामीटर से जांच कर खुद ही

कहने लगीं, ‘‘मां, हम वही खाएंगे जो पापा खा रहे हैं.’’

उस के बाद छोटी बेटी पूछने लगी, ‘‘पापा, आप को यह बुखार कब तक रहेगा?’’

‘‘3 दिन तक रहेगा,’’ जवाब उस की बड़ी बहन ने दिया, ‘‘पापा से डाक्टर ने फोन पर यही कहा है. मैं ने स्पीकर में सुना था.’’

इसी बीच संदीप के मित्र भी आते रहे. मां शाम से रात तक काम में लगी रहतीं.

इस बीच उन्हें एहसास हुआ कि वे पिछली रात नाममात्र को ही सोई हैं इसलिए आंखें मुंद रही हैं.

रात के खाने और संदीप को दवा दे कर वे जैसे ही बिस्तर पर गईं एकदम से निढाल हो गईं.

सुबह जागीं तो घबरा ही गईं. 8 बज रहे थे.

‘‘ओह,’’ कह कर उन्होंने उठना चाहा पर पूरा बदन दर्द से टूट रहा था.

‘‘सो जाओ मुहतरमा,’’ कह कर पति ने कक्ष में प्रवेश किया. उन के हाथों में एक ट्रे थी जिस में चाय का कप रखा था.

‘‘अरेअरे, संदीप तुम्हें बुखार था. मैं इसीलिए यहां आ कर सो गई. मु झे जागने में बहुत देर हो गई. बच्चों का स्कूल…’’ कह वे उठने की नाकाम कोशिश करने लगीं.

संदीप ने उन से अनुरोध किया, ‘‘सुनो मेरी अर्ज मान लो… यह चाय पी कर

लेटे रहो.’’

‘‘ओह, पर बच्चे?’’ वे चाय के एक घूंट में ही तरोताजा हो गई थीं. फिर उठीं और संदीप का माथा छू कर देखा. बुखार बिलकुल नहीं था. उन्हें शांति मिली. परदा उठा कर दूसरे कमरे में देखा तो बच्चियां गहरी नींद में थीं.

उन का चिंताभरा चेहरा देख कर संदीप ने अनुरोध किया, ‘‘जी, गृहलक्ष्मीजी मैं बिलकुल फिट और हिट हूं, आप चुपचाप बैठे रहो और सुनो आज रविवार है.’’

‘‘ओह, अच्छा…’’ कह उन्होंने चैन से

चाय पी.

‘‘मैं अब नाश्ता तैयार कर रहा हूं और एक सलाह दे रहा हूं कि सेवा संतुलित हो कर ही किया करो. देखो, तुम ने 2 दिन मेरी इतनी ज्यादा तीमारदारी की कि अब तुम्हें खुद बुखार ने

जकड़ लिया.’’

‘‘आप ने कैसे पता लगाया?’’

‘‘अपनी हथेली के थर्मामीटर से,’’ कह

कर संदीप ने हंस कर एक और कप चाय उन्हें थमा दी.

Family Story In Hindi : सुख का पैमाना – मां-बेटी की कहानी

Family Story In Hindi : बाजार से लौटते ही सब्जी का थैला पटक कर सुधा बेटी प्रज्ञा के कमरे की ओर बढ़ गई थी. गुस्से से उस का रोमरोम सुलग रहा था. प्रज्ञा फोन पर अपनी किसी सहेली से बात कर रही थी. खुशी उस की आवाज से टपक रही थी. ‘‘मेरे विशेष योग्यता में 4 नंबर कम रह गए हैं, इस का मुझे अफसोस नहीं है. मुझे खुशी है राजश्री सभी विषयों में अच्छे अंकों से पास हो गई है. पता है, राजश्री के रिजल्ट की उस से ज्यादा बधाइयां तो मुझे मिल रही थीं…’’ मां को अपने कमरे के दरवाजे पर खड़ा देख प्रज्ञा ने सकपका कर फोन बंद कर दिया था.

‘‘हां, तो इस में गलत क्या है ममा? देखिए न, इस प्रयोग से सारी लड़कियां अच्छे अंकों से पास हो गई हैं.’’

‘‘तेरा रिजल्ट तो गिर गया न?’’

‘‘4 नंबर कमज्यादा होना रिजल्ट उठना या गिरना नहीं होता ममा. और वैसे भी इस का राजश्री की मदद से कोई लेनादेना नहीं है.’’

‘‘तो मतलब मेरी देखरेख में कमी रह गई?’’

‘‘क्या ममा, आप बात को कहां से कहां ले जा रही हैं? आप जैसी केयरिंग मौम तो कोई हो ही नहीं सकती.’’

‘‘बसबस, रहने दे. एक तो मना करने के बावजूद तू अपनी दरियादिली दिखाने से बाज नहीं आती, दूसरे मुझ से बातें भी छिपाने लगी है,’’ हमेशा की तरह सुधा का गुस्सा पिघल कर बेबसी में तबदील होने लगा था और प्रज्ञा हमेशा की तरह अब भी संयम बनाए हुए थी.

उस ने सोचा, ‘जिस बात को बताने से सामने वाले को दुख हो रहा हो, उसे न बताना ही अच्छा है.’

सुधा के लिए बेटी की ऐसी हरकतें और बातें कोई अजूबा नहीं थीं. प्रज्ञा बचपन से ही ऐसी थी. कभी अपने लिए कुल्फी मांग कर, भूखी नजरों से ताकती भिखारिन को पकड़ा देती तो कभी अपना टिफिन किसी को खिला कर खुद भूखी घर लौट आती. सुधा समझ ही नहीं पाती थी कि इन सब के लिए उसे बेटी की पीठ थपथपानी चाहिए या उसे जमाने के अनुसार चलने की सीख देनी चाहिए. अकसर वह अकेले में पति के सामने अपना दुखड़ा ले कर बैठ जाती, ‘मुझे तो लगता है हमारे यहां कोई सतीसाध्वी अवतरित हुई है, जिसे अपने अलावा सारे जमाने की चिंता है.’

‘हर इंसान का सुख का अपना पैमाना होता है सुधा. दुनिया के सारे लोग पैसा या नाम कमा कर ही सुखी हों, यह जरूरी तो नहीं. हमारी बेटी दूसरों को सुखी देख कर सुखी होती है. आज के मतलबपरस्त समाज में यह अव्यावहारिक जरूर

लगता है.’

‘मुझे उस की बहुत चिंता रहती है. उसे तो कोई भी आसानी से उल्लू बना कर अपना उल्लू सीधा कर सकता है.’

पति के असामयिक निधन के बाद तो सुधा बेटी को ले कर और भी फिक्रमंद हो गई थी. कालेज के अंतिम वर्ष में पहुंच चुकी प्रज्ञा की शादी की चिंता उसे बेचैन करने लगी थी. दूसरों पर सबकुछ लुटा देने वाली इस लड़की के लिए तो कोई दौलतमंद, अच्छे घर का लड़का ही ठीक रहेगा. ऐसे में बड़ी ननद प्रज्ञा के लिए एक अति संपन्न घराने का रिश्ता ले कर आई तो सुधा की मानो मन की मुराद पूरी हो गई.

‘‘अपनी प्रज्ञा के लिए दीया ले कर निकलोगी तो भी इस से अच्छा घरवर नहीं मिलेगा. खानदानी रईस हैं. लड़के के पिता तुम्हारे ननदोई को बहुत मानते हैं. यदि ये आगे बढ़ कर कहेंगे तो वे लोग कभी मना नहीं कर पाएंगे. वैसे हमारी प्रज्ञा सुंदर तो है ही और अब तो पढ़ाई भी पूरी हो गई है. भैया नहीं रहे तो क्या हुआ, प्रज्ञा हम सब की जिम्मेदारी है. तभी तो जानकारी मिलते ही मैं सब से पहले तुम्हें बताने चली आई.’’

सुधा ननद का उपकार मानते नहीं थक रही थी, ‘‘दीदी, मैं एक बार प्रज्ञा से बात कर आप को जल्द से जल्द सूचित करती हूं.’’

ननद को रवाना करने के बाद सुधा ने बेचैनी में बरामदे के बीसियों चक्कर लगा डाले थे पर प्रज्ञा का कहीं अतापता नहीं था. फोन भी नहीं लग रहा था. स्कूटी रुकने की आवाज आई तो सुधा की जान में जान आई.

‘‘कहां रह गईर् थी तू? घंटों से बाहर चहलकदमी कर रही हूं.’’

‘‘मैं ने आप को बताया तो था कालेज के बाद मेघना के साथ कुछ काम से जाऊंगी,’’ प्रज्ञा अंदर आ कर कपड़े बदलने लगी थी. लेकिन सुधा को चैन कहां था. वह पीछेपीछे आ पहुंची.

‘‘हां, पर इतनी देर लग जाएगी, यह कहां बताया था? खैर, वह सब छोड़. तेरी बूआ आई थीं तेरे लिए बहुत अच्छा रिश्ता ले कर.’’

प्रज्ञा के कपड़े बदलते हाथ थम से गए थे. सुधा खुशी से लड़के, परिवार और उस के बिजनैस के बारे में बताए जा रही थी.

‘‘ममा, खाना खाएं बहुत भूख लगी है,’’ प्रज्ञा ने टोका तो सुधा चुप हो गई. खाने के दौरान भी सुधा रिश्ते की ही बात करती रही. लेकिन प्रज्ञा ने कोई उत्साह नहीं दिखाया. खाना खा कर वह थकावट का बहाना बना कर जल्द ही सोने चली गई. सुधा हैरान उसे देखती रह गई थी. ‘यह लड़की है या मूर्ति? लड़कियां अपने रिश्ते की बात को ले कर कितनी उत्साहित हो जाती हैं. और इसे देखो, खुद के बारे में तो न सोचने की मानो इस ने कसम खा ली है.’’

सवेरे उठते ही सुधा की फिर वही रात वाली बातें शुरू हो गई थीं.

‘‘ममा, मैं अभी कुछ साल नौकरी कर के अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हूं. उस के बाद ही शादी के बारे में फैसला लूंगी,’’ प्रज्ञा ने अपनी बात रखते हुए इस एकतरफा बातचीत को विराम लगाना चाहा. पर कल से संयम बरत रही सुधा का धैर्य जवाब दे गया.

‘‘इतने अमीर परिवार की बहू बनने के बाद तुझे नौकरी कर के अपने पैरों पर खड़ी होने की जरूरत कहां रह जाएगी? यह तो हमारा समय है कि दीदी को तेरा खयाल आ गया…’’ सुधा को अपनी बात बीच में ही रोक देनी पड़ी क्योंकि प्रज्ञा के मोबाइल पर किसी का फोन आ गया था और वह किसी से बात करने में बिजी हो गईर् थी.

‘‘तू चिंता मत कर. क्लास के बाद मैं चलूंगी तेरे साथ रिपोर्ट्स लेने. जरूरत हुई तो दूसरे डाक्टर को दिखा देंगे. तब तक जो दवाएं चल रही हैं, आंटी को देती रहना. सब ठीक हो जाएगा.’’

मोबाइल पर बात को खत्म कर के प्रज्ञा ने सुधा से कहा, ‘‘ममा, मुझे जल्दी निकलना होगा, मेघना की मम्मी की तबीयत ठीक नहीं है. कल उन की खांसी और कफ ज्यादा बढ़ गया. कफ में खून भी आने लगा तो कुछ टैस्ट करवाने पड़े. उस के पापा लंबे टूर पर बाहर हैं. वह बेचारी घबरा रही थी, तो मैं साथ हो ली. वहां भीड़ होेने के कारण ही कल टाइम ज्यादा लग गया था. अभी भी बेचारी फोन पर रो रही थी कि पूरी रात मां खांसती रहीं. मांबेटी दोनों ही पूरी रात जागती रही हैं.’’ तैयार होतेहोते प्रज्ञा ने अपनी बात पूरी की और मां को बोलने का मौका दिए बिना ही स्कूटी ले कर निकल गई.

बेटी के लिए फिक्रमंद सुधा पति की तसवीर के आगे जा कर खड़ी हो गई. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे. चिंतित और दुखी होने पर अकसर सुधा ऐसा ही किया करती थी. इस से कुछ पलों के लिए ही सही, उसे यह संतोष मिल जाता था कि वह अकेली नहीं है. उस के सुखदुख में कोई और भी उस के साथ है. सुधा को लगा तसवीर न केवल उस के दर्द को समझ रही है बल्कि उसे दिलासा भी दे रही है, ‘अपनी बेटी को समझने का प्रयास करो सुधा. मैं ने बताया तो था कि सुख को मापने का उस का पैमाना अलग है.’

कुछकुछ सुकून पाती सुधा घर के कामों में लग गई. प्रज्ञा को उस दिन लौटने में फिर रात हो गई थी. अगला सूर्योदय सुधा की जिंदगी में नया सवेरा ले कर आता था. आश्चर्यजनक रूप से प्रज्ञा ने शादी के लिए सहमति दे दी थी. सुधा को जानने की जिज्ञासा तो थी पर ज्यादा टटोलने से कहीं बेटी का मन न पलट जाए, इस आशंका से उस ने कुछ न पूछना ही ठीक समझा.

ननद को फोन कर उस ने प्रज्ञा की सहमति की सूचना दे दी. फिर तो आननफानन सारी औपचारिकताएं पूरी की जाने लगीं. सगाई का दिन भी तय हो गया. मां का उल्लास देख प्रज्ञा ने खुशी के साथसाथ चिंता भी जाहिर की थी, ‘‘काम का इतना तनाव मत लो ममा, आप बीमार हो जाओगी. आप कहो तो मेरी शौपिंग का काम मैं मेघना के साथ जा कर निबटा लूं.’’

‘‘नेकी और पूछपूछ,’’ सुधा ने सहर्ष अनुमति दे दी थी. तय हुआ कि मेघना को घर बुला लिया जाएगा और सुधा के टैंट वाले के यहां से लौटते ही दोनों सहेलियां शौपिंग के लिए निकल जाएंगी. घर में ज्वैलरी आदि रखी होने के कारण सुधा इन दिनों घर सूना नहीं छोड़ना चाहती थी.

अगले दिन सुधा समय से घर लौट आई थी. चाबी डाल कर दरवाजा खोलते ही उसे एहसास हो गया था कि मेघना आ चुकी है. दोनों बातों में बिजी थीं. रसोई में चाय चढ़ाने जाते वह प्रज्ञा के कमरे के आगे से गुजरी तो अंदर धीमे आवाज में चल रही बातचीत ने उस के कान खड़े कर दिए.

‘‘प्रज्ञा, अन्यथा मत लेना. पर मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा है कि तू पैसे के लालच में किसी और से शादी कर रही है? मैं तो समझती थी कि तू और प्रतीक…’’

सुधा को लगा उस के पैरों के नीचे से जमीन खिसक जाएगी. वह कान लगा कर दरवाजे की ओट में खड़ी हो गई.

‘‘कल प्रतीक मिला था…’’ मेघना की आवाज फिर सुनाई दी.

‘‘अच्छा, कहां? क्या कर रहा था? सुना, उस की नौकरी लग गई?’’ प्रज्ञा के स्वर की तड़प ने सुधा के साथसाथ मेघना को भी चौंका दिया था.

‘‘उस के बारे में जानने की इतनी तड़प क्यों? अभी तो तू कह रही थी तुम दोनों के बीच ऐसा कुछ नहीं है. मुझ से सच मत छिपा प्रज्ञा. जो कुछ मैं तेरी आंखों में देख रही हूं, वही मुझे प्रतीक की आंखों में भी दिखा था. मैं ने उसे तेरी सगाई की बात बताई तो उसे यकीन नहीं हुआ. कहने लगा कि मैं मजाक कर रही हूं. फिर थोड़ी देर बाद मैं ने उसे ढूंढ़ा तो वह फंक्शन से जा चुका था. मेरा शक अब यकीन में बदलता जा रहा है. उस से

2 दिनों पहले तक तो तू बराबर मां के टैस्ट वगैरह करवाने में मेरे साथ थी. तूने कभी कोई जिक्र ही नहीं किया. या शायद मैं ही इतनी बौखलाई हुई थी कि तुम्हारी मन की स्थिति से अनजान बनी रही.’’

‘‘आंटी अब कैसी हैं?’’ इतनी देर बाद प्रज्ञा का स्वर सुनाई दिया था. सुधा को लगा वह शायद बात का रुख पलटने का प्रयास कर रही थी.

‘‘मां की तबीयत में काफी सुधार है. मुझे सुकून है कि मैं समय रहते उन का अच्छे से अच्छा इलाज करवा सकी. तुम्हारे साथ रहने से मुझे मानसिक संबल मिला. वरना उन की बिगड़ी हालत देख कर एकबारगी तो मैं उम्मीद ही छोड़ बैठी थी. उन दिनों मुझे न कपड़ों का होश था, न खाने का, न सोने का. बस, एक ही बात चौबीसों घंटे सिर पर सवार रहती थी, किसी तरह मां जी जाए,’’ भावुक मेघना का गला भर आया तो प्रज्ञा ने उस के हाथ थाम लिए थे.

‘‘तुम्हारी इसी मातृभक्ति ने तो मुझे इस सगाई के लिए प्रेरित किया है. तुम्हें मां के लिए रोते, कलपते, भागते, दौड़ते देख मुझे एहसास हुआ कि सहजसुलभ उपलब्ध वस्तु की हम अहमियत ही नहीं समझते. उसे खो देने का एहसास ही क्यों हमें उस की अहमियत का एहसास कराता है?

‘‘हम समय रहते उस की परवा क्यों नहीं करते? बस, मैं ने तय कर लिया कि मैं मां की खुशी के लिए सबकुछ करूंगी. हां मेघना, मैं यह शादी ममा की खुशी के लिए कर रही हूं. यह जानते हुए भी कि मैं समीर के साथ कभी खुश नहीं रह पाऊंगी. उस से 2 मुलाकातों में ही मुझे समझ आ गया है कि पैसे के पीछे भागने वाले इस इंसान की नजर में मैं जिंदगीभर एक उपभोग की वस्तु मात्र बन कर रह जाऊंगी. जबकि प्रतीक पर मुझे खुद से ज्यादा यकीन है. वह सैल्फमेड इंसान मेरी मजबूरी समझ कर मुझे माफ जरूर कर देगा.’’

‘‘मुझे अब जिंदगीभर यह संतोष रहेगा कि मैं मां की खुशी का सबब बनी. उस मां की जो आजतक मेरे ही लिए सोचती रहीं. और मैं कितनी नादान थी सारी दुनिया की परवा करती रही और अपनी परवा करने वाली की ओर लापरवाह बनी रही.’’

सुधा में इस से आगे सुनने का साहस नहीं रहा था. वह लड़खड़ाते कदमों से जा कर बिस्तर पर लेट गई.

‘‘अरे ममा, आप कब आईं, बताया ही नहीं?’’ प्रज्ञा ने मां को कमरे में लेटा देखा तो पूछा.

‘‘बस, अभी आई ही हूं. अब तुम लोग बाजार हो आओ,’’ सुधा ने किसी तरह खुद को संभालते हुए उठने का प्रयास किया.

‘‘क्या हुआ? आप की तबीयत ठीक नहीं लग रही है,’’ प्रज्ञा घबराई सी मां का माथा, नब्ज आदि टटोलने लगी, ‘‘मैं डाक्टर को बुलाती हूं.’’

‘‘अरे नहीं, जरा सी थकान है, अभी ठीक हो जाऊंगी, तुम लोग जाओ.’’

‘‘मैं इसीलिए आप से कहती थी काम का ज्यादा तनाव मत लो,’’ प्रज्ञा मां के पांव सहलाने लगी.

‘‘प्रज्ञा, तू अब जा, देख मेघना भी आ गई है.’’

‘‘कोई बात नहीं आंटी, मैं तो फिर आ जाऊंगी.’’ मेघना जाने लगी तो सुधा ने उसे छोड़ कर आने का इशारा किया. दोनों के निकल जाने के बाद सुधा गहरी सोच में डूब गई थी.

‘एक पल को भी इस से मेरा दर्द सहन नहीं हो रहा. और मैं इसे

जिंदगीभर का दर्द देने वाली थी. प्रज्ञा को जानतेसमझते हुए भी मैं ने कैसे सोच लिया कि पैसा इस लड़की को खुश रख पाएगा? यदि प्रज्ञा समीर के साथ नाखुश रहेगी तो मैं कैसे खुश रह पाऊंगी? प्रज्ञा की शादी अब वहीं होगी जहां वह सुखी रहे.’ एक दृढ़ निश्चय के साथ उठ कर सुधा पति की तसवीर के सामने खड़ी हो गई. उसे लगा तसवीर अचानक मुसकराने लगी है, मानो, कह रही है, ‘आखिर बेटी ने तुम्हारे सुख का पैमाना बदल ही दिया.’

Story : देह से परे – क्या कामयाब हुई मोनिका

Story : लिफ्ट बंद है फिर भी मोनिका उत्साह से पांचवीं मंजिल तक सीढि़यां चढ़ती चली गई. वह आज ही अभी अपने निर्धारित कार्यक्रम से 1 दिन पहले न्यूयार्क से लौटी है. बहुत ज्यादा उत्साह में है, इसीलिए तो उस ने आरव को बताया भी नहीं कि वह लौट रही है. उसे चौंका देगी. वह जानती है कि आरव उसे बांहों में उठा लेगा और गोलगोल चक्कर लगाता चिल्ला उठेगा, ‘इतनी जल्दी आ गईं तुम?’ उस की नीलीभूरी आंखें मारे प्रसन्नता के चमक उठेंगी. इन्हीं आंखों की चमक में अपनेआप को डुबो देना चाहती है मोनिका और इसीलिए उस ने आरव को बताया नहीं कि वह लौट रही है. उसे मालूम है कि आरव की नाइट शिफ्ट चल रही है, इसलिए वह अभी घर पर ही होगा और इसीलिए वह एयरपोर्ट से सीधे उस के घर ही चली आई है. डुप्लीकेट चाबी उस के पास है ही. एकदम से अंदर जा कर चौंका देगी आरव को. मोनिका के होंठों पर मुसकराहट आ गई. वह धीरे से लौक खोल कर अंदर घुसी तो घर में सन्नाटा पसरा हुआ था. जरूर आरव सो रहा होगा. वह उस के बैडरूम की ओर बढ़ी. सचमुच ही आरव चादर ताने सो रहा था. मोनिका ने झुक कर उस का माथा चूम लिया.

‘‘ओ डियर अलीशा, आई लव यू,’’ कहते हुए आंखें बंद किए ही आरव ने उसे अपने ऊपर खींच लिया. लेकिन अलीशा सुनते ही मोनिका को जैसे बिजली का करैंट सा लगा. वह छिटक पड़ी.

‘‘मैं हूं, मोनिका,’’ कहते हुए उस ने लाइट जला दी. लेकिन लाइट जलते हो वह स्तब्ध हो गई. आरव की सचाई बेहद घृणित रूप में उस के सामने थी. जिस रूप में आरव और अलीशा वहां थे, उस से यह समझना तनिक भी मुश्किल नहीं था कि उस कमरे में क्या हो रहा था. मोनिका भौचक्की रह गई. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उसे अपने जीवन में ऐसा दृश्य देखना पड़ेगा. आरव को दिलोजान से चाहा है उस ने. उस के साथ जीवन बिताने और एक सुंदर प्यारी सी गृहस्थी का सपना देखा है, जहां सिर्फ और सिर्फ खुशियां ही होंगी, प्यार ही होगा. लेकिन आरव ऐसा कुछ भी कर सकता है यह तो वह सपने में भी नहीं सोच पाई थी. पर सचाई उस के सामने थी. इस आदमी से उस ने प्यार किया. इस गंदे आदमी से. घृणा से उस की देह कंपकंपा उठी. अपने नीचे गिरे पर्स को उठा कर और आरव के फ्लैट की चाबी वहीं पटक कर वह बाहर निकल आई. खुली हवा में आ कर उसे लगा कि बहुत देर से उस की सांस रुकी हुई थी. उस का सिर घूम रहा था, उसे मितली सी आ रही थी, लेकिन उस ने अपनेआप को संभाला. लंबीलंबी सांसें लीं. तभी आरव के फ्लैट का दरवाजा खुला और आरव की धीमी सी आवाज आई, ‘‘मोनिका, प्लीज मेरी बात सुनो. आई एम सौरी यार.’’

लेकिन जब तक वह मोनिका के पास पहुंचता वह लिफ्ट में अंदर जा चुकी थी. इत्तफाक से नीचे वही टैक्सी वाला खड़ा था जिस से वह एयरपोर्ट से यहां आई थी. टैक्सी में बैठ कर उस ने संयत होते हुए अपने घर का पता बता दिया. टैक्सी ड्राइवर बातूनी टाइप का था. पूछ बैठा, ‘‘क्या हुआ मैडम, आप इतनी जल्दी वापस आ गईं? मैं तो अभी अपनी गाड़ी साफ ही कर रहा था.’’

‘‘जिस से मिलना था वह घर पर नहीं था,’’ मोनिका ने कहा, लेकिन आवाज कहीं उस के गले में ही फंसी रह गई. ड्राइवर ने रियर व्यू मिरर से उस को देखा फिर खामोश रह गया. अच्छा हुआ कि वह खामोश रह गया वरना पता नहीं मोनिका कैसे रिऐक्ट करती. उस की आंखों में आंसू थे, लेकिन दिमाग गुस्से से फटा जा रहा था. क्या करे, क्या करे वह? आरव ने कई बार उस से कहा था कि आजकल सच्चा प्यार कहां होता है? प्यार की तो परिभाषा ही बदल चुकी है आज. सब कुछ  ‘फिजिकल’ हो चुका है. लेकिन मोनिका ने कभी स्वीकार नहीं किया इस बात को. वह कहती थी कि जो ‘फिजिकल’ होता है वह प्यार नहीं होता. कम से कम सच्चा प्यार तो नहीं ही होता. प्यार तो हर दुनियावी चीज से परे होता है. आरव उस की बातों पर ठहाका लगा कर हंस देता था और कहता था कि कम औन यार, किस जमाने की बातें कर रही हो तुम? अब शरतचंद के उपन्यास के देवदास टाइप का प्यार कहां होता है? आरव के तर्कों को वह मजाक समझती थी, सोचती थी कि वह उसे चिढ़ा रहा है, छेड़ रहा है. लेकिन वह तो अपने दिल की बात बता रहा होता था. अपनी सोच को उस के सामने रख रहा होता था और वह समझी ही नहीं. उस की सोच, उस के सिद्धांत इस रूप में उस के सामने आएंगे इस की तो कभी कल्पना भी नहीं की थी उस ने. लेकिन वास्तविकता तो यही है कि सचाई उस के सामने थी और अब हर हाल में उसे इस सचाई का सामना करना था.

मोनिका का यों गुमसुम रहना और सारे वक्त घर में ही पड़े रहना उस के डैडी शशिकांत से छिपा तो नहीं था. आज उन्होंने ठान लिया था कि मोनिका से सचाई जान ही लेनी है कि आखिर उसे हुआ क्या है और कुछ भी कर के उसे जीवन की रफ्तार में लाना ही है. वे, ‘‘मोनिका, माई डार्लिंग चाइल्ड,’’ आवाज देते उस के कमरे में घुसे तो हमेशा की तरह गुडमौर्निंग डैडी कहते हुए मोनिका उन के गले से नहीं झूली. सिर्फ एक बुझी सी आवाज  में बोली, ‘‘गुडमौर्निंग डैडी.’’

‘‘गुडमौर्निंग डियर, कैसा है मेरा बच्चा?’’ शशिकांत बोले.

‘‘ओ.के डैडी,’’ मोनिका ने जवाब दिया. शशिकांत और उन की दुलारी बिटिया के बीच हमेशा ऐसी ही बातें नहीं होती थीं. जोश, उत्साह से बापबेटी खूब मस्ती करते थे, लेकिन आज वैसा कुछ भी नहीं है. शशिकांत जानबूझ कर हाथ में पकड़े सिगार से लंबा कश लगाते रहे, लेकिन मोनिका की ओर से कोई रिऐक्शन नहीं आया. हमेशा की तरह ‘डैडी, नो स्मोकिंग प्लीज,’ चिल्ला कर नहीं बोली वह. शशिकांत ने खुद ही सिगार बुझा कर साइड टेबल पर रख दिया. मोनिका अब भी चुप थी.

‘‘आर यू ओ.के. बेटा?’’ शशिकांत ने फिर पूछा.

‘‘यस डैडी,’’ कहती मोनिका उन के कंधे से लग गई. मन में कुछ तय करते शशिकांत बोले, ‘‘ठीक है, फिर तुझे एक असाइनमैंट के लिए परसों टोरैंटो जाना है. तैयारी कर ले.’’

‘‘लेकिन डैडी…,’’ मोनिका हकलाई.

‘‘लेकिनवेकिन कुछ नहीं, जाना है तो जाना है. मैं यहां बिजी हूं. तू नहीं जाएगी तो कैसे चलेगा?’’ फिर दुलार से बोले, ‘‘जाएगा न मेरा बच्चा? मुझे नहीं मालूम तुझे क्या हुआ है. मैं पूछूंगा भी नहीं. जब ठीक समझना मुझे बता देना. लेकिन बेटा, वक्त से अच्छा डाक्टर कोई नहीं होता. न उस से बेहतर कोई मरहम होता है. सब ठीक हो जाएगा. बस तू हिम्मत नहीं छोड़ना. खुद से मत हारना. फिर तू दुनिया जीत लेगी. करेगी न तू ऐसा, मेरी बहादुर बेटी?’’

कुछ निश्चय सा कर मोनिका ने हां में सिर हिलाया. शशिकांत का लंबाचौड़ा रेडीमेड गारमैंट्स का बिजनैस है जो देशविदेश में फैला हुआ है. उस के लिए आएदिन ही उन्हें या मोनिका को विदेश जाना पड़ता है. मोनिका की उम्र अभी काफी कम है फिर भी अपने डैडी के काम को बखूबी संभालती है वह. इसलिए मोनिका के हां कहते ही शशिकांत निश्चिंत हो गए. वे जानते हैं कि उन की बेटी कितना भी बिखरी हो, लेकिन उस में खुद को संभालने की क्षमता है. वह खुद को और अपने डैड के बिजनैस को बखूबी संभाल लेगी. निश्चित दिन मोनिका टोरैंटो रवाना हो गई. मन में दृढ़ निश्चय सा कर लिया उस ने कि आरव जैसे किसी के लिए भी वह अपना जीवन चौपट नहीं करेगी. अपने प्यारे डैड को निराश नहीं करेगी. सारा दिन खूब व्यस्त रही वह. आरव क्या, आरव की परछाईं भी याद नहीं आई. लेकिन शाम के गहरातेगहराते जब उस की व्यस्तता खत्म हो गई, तो आरव याद आने लगा. आदत सी पड़ी हुई है कि खाली होते ही आरव से बातें करती है वह. दिन भर का हालचाल बताना तो एक बहाना होता है. असली मकसद तो होता है आरव को अपने पास महसूस करना लेकिन आज? आज आरव की याद आते ही उस से अंतिम मुलाकात ही याद आई. थोड़ी देर बाद मोनिका जैसे अपने आपे में नहीं थी. वह कहां है, क्या कर रही है, उसे कुछ भी होश नहीं था. सिर्फ और सिर्फ आरव और अलीशा की तसवीर

उस की आंखों के सामने घूम रही थी. उसे अपनी हालत का तनिक भी भान नहीं था कि वह होटल के बार में बैठी क्या कर रही है और यह स्मार्ट सा कनाडाई लड़का उसी के बगल में बैठा उसे क्यों घूर रहा है? फिर अचानक ही उस ने मोनिका का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘मे आई हैल्प यू? ऐनी प्रौब्लम?’’ मोनिका जैसे होश में आई. अरे, उस की आंखों से तो आंसू झर रहे हैं. शायद इसीलिए उस लड़के ने मदद की पेशकश कर दी होगी. फिर उस ने अपना गिलास मोनिका की ओर बढ़ा दिया जिसे बिना कुछ सोचेसमझे मोनिका पी गई. बदला…बदला लेना है उसे आरव से. उस ने जो किया उस से सौ गुना बेवफाई कर के दिखा देगी वह. कनाडाई लड़का एक के बाद एक भरे गिलास उस की ओर बढ़ाता रहा और वह गटागट पीती रही और फिर उसे कोई होश नहीं रहा. थोड़ी देर बाद वह संभली तो अपने रूम में लौटी. फिर दिन गुजरते गए और  मोनिका जैसे विक्षिप्त सी होती गई. अपने डैडी के काम को वह जनून की तरह करती रही. आएदिन विदेश जाना फिर लौटना. इसी भागदौड़ भरी जिंदगी में 6-7 महीने पहले यहीं इंडिया में वह अदीप से मिली और न जाने क्यों धीरेधीरे अदीप बहुत अपना सा लगने लगा. आरव के बाद वह किसी और से नहीं जुड़ना चाहती थी, लेकिन अदीप उस के दिल से जुड़ता ही जा रहा था. किसी के साथ न जुड़ने की अपनी जिद के ही कारण वह हर बार विदेश से लौट कर सीधेसपाट शब्दों में अपनी वहां बिताई दिनचर्या के बारे में अदीप को बताती रहती थी. कभी न्यूयार्क कभी टोरैंटो, कभी पेरिस तो कभी न्यूजर्सी. नई जगह, नया पुरुष या वही जगह लेकिन नया पुरुष. ‘मैं किसी को रिपीट नहीं करती’ कहती मोनिका किस को बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रही थी, खुद को ही न? और ऐसे में अदीप के चेहरे पर आई दुख और पीड़ा की भावना को क्या सचमुच ही नहीं समझ पाती थी वह या समझना नहीं चाहती थी? लेकिन यह भी सच था कि दिन पर दिन अदीप के साथ उस का जुड़ाव बढ़ता ही जा रहा था.

उस की इस तरह की बातों पर अदीप कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करता था, लेकिन एक दिन उस ने मोनिका से पूछा, ‘‘आरव से बदला लेने की बात करतेकरते कहीं तुम खुद भी आरव तो नहीं बन गईं मोनिका?’’

‘‘नहीं…’’ कह कर, चीख उठी मोनिका, ‘‘आरव का नाम भी न लेना मेरे सामने.’’

‘‘नाम न भी लूं, लेकिन तुम खुद से पूछो क्या तुम वही नहीं बनती जा रहीं, बल्कि शायद बन चुकी हो?’’ अदीप फिर बोला.

‘‘नहीं, मैं आरव से बदला लेना चाहती हूं. उसे बताना चाहती हूं कि फिजिकल रिलेशन सिर्फ वही नहीं बना सकता मैं भी बना सकती हूं और उस से कहीं ज्यादा. मैं उसे दिखा दूंगी.’’ मुट्ठियां भींचती वह बोली. लेकिन न जाने क्यों उस की आंखें भीग गईं. अदीप की गोद में सिर रख कर वह यह कहते रो दी, ‘‘मैं सच्चा प्यार पाना चाहती थी. ऐसा प्यार जो देह से परे होता है और जिसे मन से महसूस किया जाता है. पर मुझे मिला क्या? मेरे साथ तो कुछ हुआ वह तुम काफी हद तक जानते हो. अगर ऐसा न होता तो मैं उस से कभी बेवफाई न करती.’’ मोनिका की हिचकियां बंध गई थीं. अदीप कुछ नहीं बोला सिर्फ उस के बालों में उंगलियां फिराता उसे सांत्वना देता रहा. कुछ देर रो लेने के बाद मोनिका सामान्य हो गई. सीधी बैठ कर वह अदीप से बोली, ‘‘मुझे कल न्यूयार्क जाना है. 3 दिन वहां रुकंगी. फिर वहां से पेरिस चली जाऊंगी और 4 हफ्ते बाद लौटूंगी.’’ अदीप कुछ नहीं बोला. दोनों के बीच एक सन्नाटा सा पसरा रहा. कुछ देर बाद मोनिका उठी और बोली, ‘‘मैं चलूं.? मुझे तैयारी भी करनी है.’’

‘‘मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा,’’ हर बार की तरह इस बार भी अदीप का छोटा सा जवाब था.

एकाएक तड़प उठी मोनिका, ‘‘क्यों मेरा इंतजार करते हो तुम अदीप? और सब कुछ जानने के बाद भी. हर बार विदेश से लौट कर मैं सब कुछ सचसच बता देती हूं. फिर भी तुम क्यों मेरा इंतजार करते हो?’’

अदीप सीधे उस की आंखों में झांकता हुआ बोला, ‘‘क्या तुम सचमुच नहीं जानतीं मोनिका कि मैं तुम्हारा इंतजार क्यों करता हूं? मेरे इस प्रेम को जब तक तुम नहीं पहचान लेतीं, जब तक स्वीकार नहीं कर लेतीं, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा.’’

मोनिका की हिचकियां सी बंध गईं. अदीप के कंधे से लगी वह सुबक रही थी और अदीप उस की पीठ थपक रहा था. देह परे, मोनिका और अदीप का निश्छल प्रेम दोनों के मन को भिगो रहा था.

Kahani In Hindi : हम साथ-साथ हैं – क्या परिवार को मना पाए राजेशजी

Kahani In Hindi :  ‘‘क्या बात है, पापा, आजकल आप अलग ही मूड में रहते हैं. कुछ न कुछ गुनगुनाते रहते हैं. पहले तो आप को इस रूप में कभी नहीं देखा. इस का कोई तो कारण होगा,’’ कुनिका के इस सवाल पर कुछ पल मौन रहे. फिर ‘‘हां, कुछ तो होगा ही’’ कह राजेशजी चाय का घूंट भरते हुए अखबार ले कर बैठ गए.

इकलौती लाड़ली कुनिका कब चुप रहने वाली थी, ‘‘कोई ऐसावैसा काम न कर बैठना, पापा. अपनी उम्र और हमारी इज्जत का ध्यान रखना.’’

क्या यह उन की वही नन्ही बिटिया है जिसे पत्नी के गुजर जाने के बाद मातापिता दोनों का लाड़ दिया. तब बेटी और नौकरी बस 2 ही तो लक्ष्य रह गए थे. पर जब 19 वर्षीया कुनिका, असगर के साथ भाग गई थी तब भी बिना किसी शिकायत और अपशब्द के बेटी की इच्छा को पूरी तरह मान देने की बात, अखबारों में अपील कर के प्रसारित करवा दी. 4 दिन बाद कुनिका, असगर को छोड़ वापस आ गई थी और अपने इस गलत चुनाव के लिए पछताई भी थी.

तब शर्मिंदगी से बचने व बेटी के भविष्य के लिए उन्होंने अपना तबादला भोपाल करा लिया. अब समय का प्रवाह, उन्हें 65 बसंत के पार ले आया था. जीवन यों ही चल रहा था कि पिछले 1 वर्ष से पार्क में सैर करते हुए रेनूजी से परिचय हुआ. उन की सादगी, शालीनता, बातचीत में मधुरता देख उन के प्रति एक अलग सा मोह उत्पन्न हो रहा था. रेनूजी, यहां छोटे बेटेबहू के साथ रह रही थीं. बड़ा बेटा परिवार सहित अमेरिका में रह रहा था.

‘‘अपने बारे में कुछ सोचती हैं कभी?’’ एक दिन बातों ही बातों में राजेशजी ने कहा.

‘‘अपने बारे में अब सोचने को रहा ही क्या है? हाथपांव चलते जीवन बीत जाए,’’ कहते हुए रेनूजी का चेहरा उदास हो उठा था.

कुछ दिनों बाद, राजेशजी ने जीवनभर का साथ निभाने का प्रस्ताव रेनूजी के समक्ष रख दिया, ‘‘क्या आप मेरे साथ बाकी का जीवन बिताना चाहेंगी? अकेलेपन से हमें मुक्ति मिल जाएगी.’’

‘‘इस उम्र में यह मेरा परिवार, आप का परिवार, समाज, हम…’’ शब्द गले में ही अटक गए थे.

‘‘एक विधवा या विधुर को जीवन बसाने की तमन्ना करना क्या गुनाह है? हम ने अपने कर्तव्य पूरे कर लिए हैं. अब कुछ अपने लिए तलाश लें तो भला गलत क्या है? तुम्हारी स्वीकृति हम दोनों को एक नया जीवन देगी.’’

‘‘हां, यह सच है कि अकेलापन, मन को पीडि़त करता है. पर जीवन तो बीत ही गया, अब कितना बचा है जो…’’ कंपित स्वर था रेनूजी का, ‘‘अब मैं चलती हूं,’’ तेजी से वे चली गईं.

इधर, 10-12 दिनों से वे घर से नहीं निकलीं. उस दिन माला, रोहन से कह रही थी, ‘‘आजकल मम्मी घूमने नहीं जातीं. गुमसुम बैठी रहती हैं. मातम जैसा बनाए रखती हैं चेहरे पर.’’

‘‘कोई बात नहीं. अपनेआप ठीक हो जाएगा मूड. तुम टाइम से तैयार हो जाना. लंच पर रमेश के घर जाना है.’’

बेटे के इस उत्तर पर, रेनूजी की आंखें भर आईं. न जाने क्या सोच कर राजेशजी को मोबाइल पर नंबर लगा दिया. उधर से राजेशजी का मरियल स्वर सुन वे घबरा गईं, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘कुछ नहीं, 8 दिनों से तबीयत थोड़ी खराब चल रही है. बेटीदामाद लंदन गए हुए हैं. 2-4 दिनों में ठीक हो जाऊंगा,’’ और हलकी सी हंसी हंस दिए वे.

उस दिन 2 घंटे बाद, रेनूजी दूध, फल आदि ले राजेशजी के घर पहुंच गईं. तब राजेशजी के चेहरे की खुशी व तृप्ति, रेनूजी को अपने अस्तित्व की महत्ता दर्शा गई. आज का दिन उन की ‘स्वीकृति’ बन गया.

2 हफ्तों बाद, एकदूसरे को माला पहना, जीवनसाथी बन, रेनूजी के चेहरे पर संतोष के साथसाथ दुश्चिंता केभाव भी स्पष्ट थे. दोनों परिवारों के बच्चों से सामना करने का संकोच गहराता जा रहा था.

‘‘मुझे तो घबराहट व बेचैनी हो रही है कि बच्चे क्या कहेंगे? आसपास के लोग क्या कहेंगे? पांवों में आगे बढ़ने की ताकत जैसे खत्म हो रही है.’’

‘‘सब ठीक होगा. मैं हूं न तुम्हारे साथ. हर स्वीकृति कुछ समय लेती है. अब हमारे कदम रुकेंगे नहीं पहले मेरे घर चलो.’’

छोटी बिंदी और मांग में सिंदूरभरी महिला को पापा के साथ दरवाजे पर खड़ा देख कुनिका के अचकचा कर देखने पर परिचय कराते हुए राजेशजी बोले, ‘‘बेटी, ये तुम्हारी मां हैं. हम ने आज ही विवाह किया है. और…’’

‘‘यह क्या तमाशा है, पापा? शादी क्या कोई खेल है जो एकदूसरे को माला पहनाई और बन गए…’’

‘‘पहले पूरी बात तो सुनो, अगले माह कोर्टमैरिज भी होगी,’’ बीच में ही राजेशजी ने जवाब दे डाला.

‘‘कुछ भी हो, यह औरत मेरी मां नहीं हो सकती. इस घर में यह नहीं रह सकती,’’ वह उंगली तानते हुए बोली.

‘‘पर यह घर तो मेरा है और अभी मैं जिंदा हूं. इसलिए तुम इन्हें रोक नहीं सकतीं.’’

तभी रेनूजी ने आगे बढ़ते हुए कहा, ‘‘सुनो तो, बेटी.’’

‘‘मैं आप की बेटी नहीं हूं. मत करिएयह नाटक,’’ कुनिका पैर पटकती अंदर चली गई.

‘‘आओ रेनू, तुम भीतर आओ,’’ रेनूजी का उतरा चेहरा देख, राजेशजी ने समझाते हुए कहा, ‘‘हमारे इस फैसले को ये लोग धीरेधीरे अपनाएंगे. थोड़ा सब्र करो, सब ठीक हो जाएगा.’’

चाय बनाने के लिए रेनूजी के रसोई में घुसते ही, कुनिका ‘हुंह’ के साथ लपक कर बाहर निकल आई. पीछेपीछे राजेशजी भी वहीं पहुंच गए.

‘‘मेरे बच्चे भी न जाने क्याकुछ कहेंगे, कैसा व्यवहार करेंगे,’’ उन के पास जाने की सोच कर ही दिल बैठा जा रहा है,’’ चाय कपों में उड़ेलते हुएरेनूजी कह रही थीं, ‘‘मैं ने रोहन को बता दिया है मैसेज कर के. बस, अब बच्चों को एहसास दिलाना है कि हम उन के हैं, वे हमारे हैं. हम अलग रहेंगे पर सुखदुख में साथ होंगे. कोशिश होगी कि हम उन पर बंधन या बोझ न बनें और उन की खुशी…’’

तभी कुनिका की दर्दभरी चीख सुन सीढि़यों की तरफ से आती आवाज पर दोनों उस ओर लपके. वह कहीं जाने के लिए निकली ही थी कि ऊंची एड़ी की सैंडिल का बैलेंस बिगड़ने से 4 सीढि़यों से नीचे आ गिरी. रेनूजी व राजेशजी ने सहारा दिया और उस के कक्ष में बैड पर लिटा दिया. पहले तो दर्दनिवारक दवा लगाई फिर रेनूजी जल्दी से हलदी वाला गरम दूध ले आईं. कुनिका का पांव देख रेनूजी समझ गईं कि मोच आई है. राजेशजी से मैडिकल बौक्स ले कर उस में से पेनकिलर गोली दी. साथ ही, पांव में क्रेपबैंडेज भी बांध दिया.

‘‘परेशान न हो, कुनिका. कुछ ही घंटों में यह ठीक हो जाएगा,’’ कहते हुए रेनूजी ने पतली चादर उस के पैरों पर डाल उस के माथे पर हाथ फेर दिया.

धीरेधीरे दर्द कम होता गया. अब कुनिका आंखें बंद किए सोच रही थी, ‘सच में ही इस औरत ने पलक झपकते ही यह स्थिति सहज ही संभाल ली. अकेले पापा तो कितने नर्वस हो जाते.’ कुछ बीती घटनाओं को याद करते हुए वह सोचने लगी, ‘पापा वर्षों से अकेलेपन में जीते आए हैं. अब उन्हें मनपसंद साथी मिला है तो मैं क्यों चिढ़ रही हूं?

‘‘बेटी, अब कैसा लग रहा है?’’ माथे पर रेनूजी का गुनगुना स्पर्श, मन को ठंडक दे गया.

‘‘मैं ठीक हूं, आप परेशान न हों,’’ एक हलकी मुसकान के साथ कुनिका का जवाब पा रेनूजी का मन हलका हो गया.

अगले दिन रेनूजी अपने द्वार की घंटी बजा, राजेशजी के साथ दरवाजा खुलने की प्रतीक्षा में खड़ी थीं. दरवाजा खुला, माला ने दोनों को एक पल देखा और बिना कुछ कहे भीतर की ओर बढ़ गई. सामने लौबी में रोहन चाय पी रहा था. वह न तो बोला, न उस ने उठने का प्रयास किया और न इन लोगों से बैठने को कहा. राजेशजी स्वयं ही आगे बढ़ कर बोले, ‘‘हैलो बेटे, मैं राजेश हूं. तुम्हारी मां का जीवनसाथी. हम जानते हैं कि हमारा यह नया रिश्ता तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा पर तुम्हें अब अपनी मां की चिंता करने की जरूरत नहीं होगी. हम दोनों…’’

‘‘बेकार की बातें न करें. हमारे बच्चे, समाज, आसपास के लोगों के बारे में कुछ तो सोचा होता. इतनी उम्र निकल गई और अब शादी रचाने की इच्छा जागृत हो गई आप लोगों की. क्या हसरत रह गई है अब इस उम्र में? मेरी मां तो ऐसा स्वप्न में भी नहीं सोच सकती थीं. यह सब आप का फैलाया जाल है. क्या इस वृद्धावस्था में यह शोभा देता है? आखिर, कैसे हम अपने रिश्तेदारों में गरदन उठा पाएंगे?’’ क्रोध और तनाववश रोहन का चेहरा विदू्रप हो उठा था.

तभी रेनूजी सामने आ गईं, ‘‘कौन से रिश्तेदारों की बात कर रहा है. जब मैं 2 छोटे बच्चों के साथ मुसीबतों से जूझ रही थी तब तो कोई अपना सगा सामने नहीं आया. तुम्हारे पापा की मृत्यु के साथ जैसे मेरा अस्तित्व भी समाप्त हो गया था. पर मैं जिंदा थी. सच पूछो तो मुझे स्वयं पर गर्व है कि मैं ने अपना कर्तव्य पूरी तरह निभाया, तुम बच्चों को ऊंचाई तक पहुंचाया.’’

तभी पास रखी कुरसी खींच, उस पर बैठते हुए राजेशजी बोले, ‘‘तुम्हारा कहना कि हमारी उम्र बढ़ गई है, तभी तो यह रिश्ता हसरतों का नहीं, साथ रहने व संतुष्टि पाने का है. बेटे, एक बार हमारी भावना, संवेदना पर गौर करना, सोचना और हमें अपना लेना. हम तो तुम्हारे हैं ही, तुम भी हमारे हो जाना. तुम्हारा छोटा सा साथ, हमें ऊर्जा व खुशी से लबालब रखेगा. अब हम चलते हैं.’’

उसी शाम कुनिका को भी फोन कर दिया, ‘‘आज गौरव भी भारत आ जाएगा. परसों रविवार की सुबह तुम लोग, साकेत वाले फ्लैट पर आ जाना. और हां, रेनूजी का परिवार भी निमंत्रित है. तुम सब की प्रतीक्षा होगी हमें.’’ फोन डिसकनैक्ट करने ही वाले थे कि उधर से आवाज आई, ‘‘पापा, हम जरूर आएंगे. बायबाय.’’ राजेशजी के चेहरे पर मुसकराहट छा गई.

वर्षों पूर्व छुटी एक ही रूम में सोने की आदत, अपनाने में असहजता व कुछ अजीब सा लग रहा था राजेशजी व रेनूजी को. फिर भी बातें करतेकरते एक सुकून के साथ कब वे दोनों नींद की आगोश में समा गए, पता ही न लगा. गहरी नींद में सोई हुई रेनूजी, अलार्म की घंटी पर, हलकी सी चीख के साथ जाग पड़ीं, ‘‘क्या हुआ? कौन है?’’

‘‘अरे, कोई नहीं. यह तो घड़ी का अलार्म बजा है.’’

‘‘अभी तो शायद 4 या साढ़े 4 ही बजे होंगे और यह अलार्म?’’

‘‘हां, मैं इतनी जल्दी उठता हूं, फिर फ्रैश हो कर सैर करने के लिए निकल जाता हूं. तुम चलोगी?’’ राजेशजी के पूछने पर, ‘‘अरे नहीं, मैं आधी रात के बाद तो सो पाई हूं कि…’’ परेशानी युक्त स्वर में जवाब आया.

‘‘क्यों? क्या तुम्हें नींद न आने की समस्या है?’’

‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं है. असल में नई जगह पर नींद थोड़ी कठिनाई से आ पाती है.’’

जीवन में कई ऐसी बातें होती हैं जिन पर गौर नहीं किया जाता, खास महत्त्व नहीं दिया जाता. और फिर अचानक ही वे महत्त्वपूर्ण हो जाती हैं, जैसे कि राजेशजी को चटपटी सब्जी, एकदम खौलती हुई चाय, मीठे के नाम पर बूंदी के लड्डू बहुत पसंद हैं. इस के विपरीत रेनूजी को सादा, हलके मसाले की सब्जी और बूंदी के लड्डू की तो गंध भी पसंद नहीं आती. पर अब वे दोनों ही एकदूसरे की पसंद पर ध्यान देने लगे हैं, एकदूसरे की खुशी का ध्यान पहले करते हैं.

रविवार की दोपहर, राजेशजी व रेनूजी के घर में दोनों परिवारों के बच्चे एकदूसरे से परिचित हो रहे थे. रोहन और माला चुपचुप थे पर कुनिका और गौरव बातों में पहल कर रहे थे. तभी राजेशजी की आवाज पर सब चुप हो गए.

‘‘बच्चों, हम कुछ कहना चाहते हैं. हमारी इस शादी से किसी के परिवार पर भी आर्थिक स्तर पर कोई दबाव नहीं होगा. प्रौपर्टी बंट जाएगी या ऐसी ही कुछ और समस्या का सामना होगा, ऐसा कुछ भी नहीं होगा. हम दोनों ने कोर्ट में ऐफिडेविट बनवा कर निश्चय किया है कि हम पतिपत्नी बन कर एकदूसरे की चलअचल संपत्ति पर हक नहीं रखेंगे. अपनी इच्छा से अपनी संपत्ति गिफ्ट करने की स्वतंत्रता होगी. अपनीअपनी पैंशन अपनी इच्छा से खर्च करने की मरजी होगी. खास बात यह कि तुम्हारी मां अपनी पैंशन को हमारे घर के खर्च पर नहीं लगाएंगी. यह खर्च मैं वहन करूंगा. आर्थिक सहायता नहीं, पर भावनात्मक या कभी साथ की जरूरत हुई तो हम बच्चों की राह देखेंगे. हम तो तुम्हारे हैं ही, बस, तुम्हें अपना बनता हुआ देखना चाहेंगे. और भी कुछ जिज्ञासा हो तो आप पूछ सकते हैं,’’ इतना कह राजेशजी, प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में चुप हो गए.

‘‘हम आप के साथ हैं, आप की खुशी में हम भी खुश हैं,’’ दोनों परिवारों के सदस्यों ने समवेत स्वर में कहा. तभी राजेशजी ने रेनूजी का हाथ धीरे से थामते हुए कहा, ‘‘शेष जीवन, कटेगा नहीं, व्यतीत होगा.’’

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