पुलिस फोर्स की तरह अकुशल मशीनरी बन रही है सीबीआई

6 लाख रुपए के नकली बिल से एनीमल हसबैंड्री डिपार्टमैंट से पैसे निकलवाने पर यदि जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो ने करनी हो तो 6,000 करोड़ रुपए की हेराफेरी कौन करेगा, यह सवाल आप न ही पूछें. हमारे यहां छोटेछोटे मामले इस तरह सीबीआई को सौंपे जा रहे हैं कि नीरव मोदी जैसे मामलों के लिए उस के पास समय ही नहीं या फिर सीबीआई आम पुलिस फोर्स की तरह भारीभरकम और अकुशल मशीनरी बन रही है.

यह 6 लाख रुपए का मामला कम रोचक नहीं है जो सुप्रीम कोर्ट तक 22 साल में पहुंचा. साल 1995 में मुजफ्फरपुर में एनीमल हसबैंड्री डिपार्टमैंट में 6 लाख रुपए के नकली बिलों के आधार पर पैसा निकाला गया. जांच के बाद तथ्य मिलने पर नरेश चौबे और दूसरे 2 लोगों को चार्जशीट दी गई और मामला सीबीआई को सौंप दिया गया. सीबीआई की जांच पर निचली अदालत ने उन तीनों को 3 साल की सजा सुनाई. मामला सुप्रीम कोर्ट में गया पर अपराधियों की सुनी नहीं गई.

जब मामला अपराधी सुप्रीम कोर्ट में ले गए तो उन में से नरेश चौबे 75 साल का हो चुका था. सुप्रीम कोर्ट ने सजा तो बरकरार रखी पर कैद में राहत दी कि 20 महीने ही जो उन्होंने कभी जेल में काटे थे काफी हैं.

जब एक छोटे अफसर का मामला पूरी तरह सुलझाने में 22 साल लग रहे हों तो नीरव मोदी जैसे 11,000 से 20,000 करोड़ रुपए के मामले को सुलझाने में कितने साल लगेंगे, इस का अंदाजा लगाया जा सकता है. मुजफ्फरपुर के मामले में तो अपराधी एक साधारण अफसर था और उस के साधन सीमित थे पर जब मामला नीरव मोदी का होगा तो शायद 8-10 सरकारें बदल जाएंगी पर फैसला नहीं आ पाएगा.

यह सोच लेना कि सीबीआई को मामला दे दिया गया है तो हल हो गया गलत है. न्याय व्यवस्था में देर इतनी है कि अंधेरा ही अंधेरा लगता है. लाखों कैदी जेलों में बिना अपराध साबित हुए बंद हैं क्योंकि वे जमानत के लिए वकील और पैसे का इंतजाम नहीं कर सकते और सैकड़ों को सजा तब मिलती है जब सजा देना बेमतलब का हो जाता है.

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फ्रूटी एंड टेस्टी बाइट्स : रागी परांठा

रागी परांठा

सामग्री आटा बनाने की

  • 1 कप रागी का आटा • थोड़ा सा घी • नमक स्वादानुसार.

सामग्री स्टफिंग की

  • पनीर, अनारदाना, धनियापत्ती कटी.

विधि

सब से पहले रागी में नमक, घी व पानी डाल कर डो तैयार करें. उस के बाद पनीर को मैश कर के उस में सारी सामग्री को अच्छी तरह मिलाएं. फिर इस स्टफ को डो में भर कर रोल बनाएं और तवे पर सेक कर दही के साथ गरमगरम सर्व करें.

– व्यंजन सहयोग : सेलिब्रिटी शैफ अजय चोपड़ा

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खड़े होकर पानी पीने से बन सकती हैं दिल की मरीज

बहुत से लोग ऐसे होते हैं जिनकी आदत होती है कि प्यास लगी तो बस फ्रिज से पानी की ठंडी बोतल निकाली और एक ही घूंट में खड़े-खड़े गटा गट पानी पीना शुरू. जब इस खराब आदत पर टोका जाए तो बस एक ही जवाब सामने आता है. …तो क्या फर्क पड़ता है पानी खड़े होकर पिएं या बैठकर? प्यास बुझनी चाहिए. यह तर्क भले ही आज की पीढ़ी दें, और चाहें उन्हें सही लगे पर, क्या आप जानती हैं कि ये आदत आपकी सेहत के लिए काफी खतरनाक साबित हो सकती है. जी हां, प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में इस आदत को गलत ठहराया गया है.

पाचन तंत्र

जब आप बैठकर पानी पीते हैं तो अपनी मांसपेशियों के साथ आपका नर्वस सिस्टम भी आराम से काम करता है. ऐसा करते समय आपका नर्वस सिस्टम आपके दिमाग की नसों को तरल पदार्थ को तुरंत पचाने का संकेत देता है. वहीं अगर आप खड़े होकर पानी पीते हैं तो आपका पाचन तंत्र हमेशा खराब रहेगा.

दिल की बीमारी

यही नहीं, जब भी कोई व्यक्ति खड़े होकर पानी पीता हैं, तब पानी तेजी से गुर्दें के माध्यम से बिना अधिक छने गुजर जाता है. इसके कारण मूत्राशय या रक्त में गंदगी इकट्ठा हो सकती है, जिससे मूत्राशय, गुर्दे और दिल की बीमारियां घेरने लगती हैं. कई बार ये बेहद ही खतरनाक साबित हो सकता है.

जोड़ों में दर्द

विशेषज्ञों की मानें, तो खड़े होकर पानी पीने से शरीर के अन्य तरल पदार्थों का संतुलन बिगड़ जाता है. जिसकी वजह से व्यक्ति के जोड़ों में दर्द और गठिया जैसी परेशानियां उत्पन्न होती हैं.

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क्या है ब्यूटी फूड, इस के बारे में जानती हैं आप

यों तो मार्केट में मिलने वाले विविध प्रकार के सौंदर्य प्रसाधनों से सौंदर्य निखारा जा सकता है, लेकिन यह सौंदर्य निखार क्षणिक होता है. लिजा ड्रायर, जो एक जानीमानी डाइटीशियन और हैल्थ रिपोर्टर हैं, का मानना है कुछ विशेष खाद्यपदार्थों को अपनी आहार सूची में शामिल कर के आप प्राकृतिक सौंदर्य, चमकीली त्वचा, आकर्षक रेशमी केश व स्वस्थ नाखून पा सकती हैं. ऐसे खाद्यपदार्थ ब्यूटी फूड कहे जाते हैं. इन का निरंतर सेवन किया जाए तो ये रक्तसंचार में सुधार करते हैं, त्वचा के टिशूज की मरम्मत कर के उन्हें लचक व सौंदर्य प्रदान करते हैं, जिस से वे आप को अधिक समय तक जवां व स्वस्थ रखते हैं.

स्ट्राबैरी व पालक: कौस्मैटिक सर्जन डा. मीनाक्षी अग्रवाल के अनुसार ऐंटीऔक्सीडैंट तत्त्वों से भरपूर स्ट्राबैरी व पालक त्वचा के पोषण में विशेष योगदान देते हैं. साथ ही ऐंटी ऐजिंग का काम भी करते हैं. झुर्रियों को दूर करते हैं, त्वचा को स्पंजी बनाते हैं. इसलिए इन दोनों को अपने आहार में किसी न किसी रूप में अवश्य शामिल करें. इतना ही नहीं, 2-3 स्ट्राबैरी की ब्लैंडर में प्यूरी बनाएं. इस में ठंडा दही मिला कर चंद बूंदें नीबू के रस की डालें. तैयार मिश्रण को अपने चेहरे पर 20 मिनट लगा कर रखें फिर धो दें. चेहरा चमक उठेगा.

लो फैट दही: कैल्सियम व फास्फोरस से भरपूर होने की वजह से दही दांतों के इनैमल को मजबूती देता है, कैविटी होने से रोकता है. नियमित दही का प्रयोग त्वचा को चमकीला व लचीला बनाता है और औस्टियोपोरोसिस की रोकथाम में सहायक रहता है. दही को मास्क की तरह भी प्रयोग किया जा सकता है. साफ चेहरे पर दही फेंट कर लगाएं. 10 मिनट लगा रहने दें. फिर धो दें.

1/2 कप फुल फैट दही में 3 बड़े चम्मच शहद व 1 अंडे का पीला भाग डाल कर मिश्रण बनाएं. इसे केशों पर 15 मिनट लगा रहने दें. फिर धो दें. यह प्रोटीन रिच हेयर मास्क का काम करता है.

ऐप्पल साइडर विनेगर: इस में बहुत से ऐसे गुण होते हैं, जो न केवल स्किन टिशूज की हीलिंग करते हैं, बल्कि त्वचा को कोमलता व चमक भी प्रदान करते हैं. इस में मौजूद ऐंजाइम्स मृत त्वचा की परत को हटा कर उसे नया रूप देते हैं, फैट को कम करते हैं तथा पाचनतंत्र को भी स्वस्थ रखते हैं.

गाजर व चुकंदर: ये महत्त्वपूर्ण विटामिंस व खनिज पदार्थों से भरपूर होने के कारण ऐंटी ऐजिंग को रोकते हैं और त्वचा की बाहरी सतह को ठीक रखने में सहायक रहते हैं. 2 सप्ताह गाजरचुकंदर का रस नियमित पीने से अद्भुत सौंदर्य निखरता है.

लहसुन: यह झुर्रियों की रोकथाम कर के त्वचा के टिशूज को नया जीवन देता है, टौक्सिन से बचाता है. 1-2 कली लहसुन सुबह खाली पेट खाना लाभदायक है. यदि त्वचा पर मुंहासे हों तो लहसुन की कली को उन पर रगड़ने से वे दूर हो जाते हैं.

शकरकंद: इसे एक ऐंटी ऐजिंग फूड माना जाता है, क्योंकि यह विटामिन ए से भरपूर है. इस के नियमित सेवन से त्वचा चिकनी व चमकदार बनी रहती है.

व्हीट जर्म (अंकुरित अनाज): 2-3 बड़े चम्मच व्हीट जर्म अपनी डाइट में शामिल करने से त्वचा संबंधी कुछ समस्याओं, जैसे पिंपल्स व ऐक्ने आदि से बचाव होता है और त्वचा सुंदर बनती है. दही, पनीर आदि में मिला कर इस का प्रयोग किया जा सकता है.

खट्टे फल: नीबू, संतरा, चकोतरा व आंवला त्वचा को स्वस्थ व सुंदर बनाने में विशेष सहायक हैं. इन का सेवन ऐंटीऔक्सीडैंट का काम करता है, इसलिए त्वचा को कोमल, साफ व चमकीला बनाता है. इन के जूस का प्रयोग कुछ दिन लगातार करने से फर्क महसूस होता है.

टमाटर: इस में विटामिन सी व ए दोनों होते हैं. साथ ही पर्याप्त मात्रा में पोटैशियम भी. इस का लाइकोपीन नामक तत्त्व ऐंटीऔक्सीडैंट का काम करता है. टमाटर का प्रयोग त्वचा को सनबर्न से भी बचाता है.

अखरोट व अलसी: ये दोनों ही ओमेगा-3 फैटी ऐसिड के मुख्य स्रोत हैं, इसलिए त्वचा, केशों व हड्डियों को पोषण देते हैं. साथ ही त्वचा की समस्याओं से भी बचाव करते हैं.

डार्क चौकलेट: यह पौष्टिकता व ऐंटीऔक्सीडैंट तत्त्वों से भरपूर होता है. चौकलेट का सेवन धूप से त्वचा को होने वाली हानि से भी बचाता है और रक्तसंचार को बढ़ाता है, जिस से त्वचा का सौंदर्य निखरता है.

ग्रीन टी: यह पौलीफैनौल ऐंटीऔक्सीडैंट नामक तत्त्वों से भरपूर होता है, जो त्वचा को ऐजिंग से बचाते हैं. ग्रीन टी का प्रयोग दिल की बीमारी व कैंसर जैसे रोगों से भी बचाव करता है. इस में मौजूद फ्लैवोनाइड तत्त्व भी त्वचा के लिए लाभकारी है. वह सिस्टम को क्लीन करता है, साथ ही वजन नियंत्रण में कारगर है.

इस के अतिरिक्त किशमिश, लाल व पीली शिमलामिर्च, ब्रोकली, पपीता व बादाम का प्रयोग भी सौंदर्य को निखारने में भरपूर सहयोग देता है.

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मेघ मंडल संस्थान ने सम्मानित किया आठ चित्रकारों को

राजस्थान में विमलेश ब्रिजलाल के नेतृत्व में कार्यरत एनजीओ ‘‘मेघ मंडल संस्थान’’ ने अपने वार्षिक कार्यक्रम चैत्रांजली के चतुर्थ संस्करण के अवसर पर मुंबई के इस्कान आडीटोरियम में आठ भारतीय चित्रकारों को ‘राजा रवि वर्मा पुरस्कार’ से सम्मानित किया. भारतीय कला के इतिहास में राजा रवि वर्मा की गिनती महान चित्रकार के रूप में होती है.

इस सम्मान समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर हरियाणा के राज्यपाल प्रोफेसर कप्तान सिंह सोलंकी खासतौर पर मौजूद थे. इस सम्मान समारोह में शशि बने, शम्पा दास, सुहास निंबालकर, संगीता गुप्ता, श्रीधर अय्यर, अनु नायक, जय जारोटिया व सिद्धार्थ को ‘राजा रवि वर्मा पुरस्कार’ से नवाजा गया.

इस अवसर पर विमलेश ब्रिजलाल ने कहा- ‘‘हम भारतीयों को समृद्ध इतिहास, संस्कृति व पंरपरा आशीर्वाद के तहत मिला है. इससे हम खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं. इसीलिए हम इस पीढ़ी के प्रतिभाशाली कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए तत्पर हैं. हम विभिन्न क्षेत्रों में विकास की अवधारणा को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हैं.’’

इस पुरस्कार समारोह में अभिनेता पंकज बेरी, उद्योगपति विजय कलंत्री, सांसद अरविंद सावंत भी मौजूद थे.

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बंगला फिल्म ‘‘हामी” : बच्चों की मासूमियत से खेलने का दोषी समाज या एक इंसान..’’

भारतीय फिल्म स्टूडियो ‘‘ईरोज इंटरनेशनल’’ ने एक बार फिर बंगला भाषा की फिल्म ‘‘हामी’’ के साथ हाथ मिलाया है. निर्देशक नंदिता रौय और शिबोप्रसाद मुखर्जी की इस फिल्म में खुद शिबोप्रसाद मुखर्जी के साथ गार्गी रौय चैधरी, सुजान मुखर्जी, चुरनी गांगुली, खरज मुखर्जी, कोनिनिका बेनर्जी, अपराजिता आध्या और तनुश्री शंकर ने अहम किरदार निभाए हैं.

18 मई को प्रदर्शित हो रही सामाजिक फिल्म ‘‘हामी’’ में दो बच्चों की खूबसूरत व मासूम शुद्ध प्रेम कहानी देखते हुए हर दर्शक को अपना बचपना याद आएगा. इसी के साथ फिल्म में कई साल उठाए गए हैं, जिनके उत्तर जरुरी हैं. मसलन, जब समाज छोटे छोटे बच्चों में अलगाव पैदा कर उन्हें अकेला कर देता है, तो किसे दोषी ठहराया जाना चाहिए? किसी एक इंसान को या पूरी सामाजिक प्रणाली को? आखिर पालको व शिक्षकों का विश्वास कहां गायब हो गया? हम अपने बच्चों की मासूमियत का सिंचन क्यों नहीं करते हैं?

2014 में सफलतम फिल्म ‘‘रामधेनु’’ में एक मध्यमवर्गीय दंपति द्वारा अपने बच्चे को एक प्रतिष्ठित स्कूल में प्रवेश दिलाने की कोशिश की कहनी पेश की थी. इस फिल्म के सफल होने के बाद नंदिता रौय व शिबो प्रसाद मुखर्जी ने स्कूल में प्रवेश पाने के बाद बच्चों की मनः स्थिति और समाज के दबाव को रेखांकित करने वाली फिल्म बनाने का विचार कर ‘‘हामी’’ बनायी.

फिल्म ‘‘हामी’’ की कहानी स्कूल के दो बच्चों भुटू और चीनी की दोस्ती की है, जो कि बहुत ही अलग अलग पृष्ठभूमि से आते हैं. भुटू के माता पिता समृद्ध और एक बड़ी फर्नीचर की दुकान के मालिक हैं. जबकि चिनी के माता पिता श्रीनिजो व रीना परिस्कृत व अभिजात वर्ग से हैं. शिक्षा जगत से जुड़े हुए हैं. पर भुटू व चीनी की दोस्ती काफी मजबूत है. लेकिन नियति का खेल कुछ ऐसा होता है कि दोनों के माता पिता इन बच्चों को एक दूसरे से अलगकर इनकी दोस्ती तुड़वा देते हैं. हालांकि स्कूल की उपप्रधानाचार्य व छात्रों की कौंसिलर अपनी तरफ से समझाने का भरसक प्रयास करती है. अंततः क्या होता हैं? क्या बच्चों की मासूमियत के सामने माता पिता झुकेंगे या नहीं? यही अहम सवाल है.

इस मकसदपूर्ण फिल्म के साथ जुड़ने की चर्चा करते हुए ‘ईरोज इंटरनेशनल के नंदू आहुजा कहते हैं-‘‘हमने नंदिता व शिबोप्रसाद मुखर्जी के साथ लगातार तीन सफल फिल्मों में हाथ मिलाया है. इनकी फिल्में मनोरंजन के साथ ही मानवीय मूल्यों को भी मजबूती के साथ पेश करती हैं. नई फिल्म ‘’हामी’’ में भी एक अति ज्वलंत व समसामायिक मुद्दे को उठाया गया है.’’

फिल्म के निर्देशक शिबो प्रसाद मुखर्जी कहते हैं- ‘‘बंगला क्षेत्रीय सिनेमा को ‘ईरोज इंटरनेशनल’ भरपूर सहयोग दे रहा है. उनसे मिल रहे लगातार सहयोग के ही चलते हम विशाल दर्शक वर्ग के लिए फिल्में बना रहे हैं. हमारी नई फिल्म “हामी’’ में हमने वही पेश किया है, जो कि हम आए दिन अपने आस पास देखते हैं. स्कूल व पालकों के बीच बढ़ता अविश्वास.’’

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कोकोनट आयल : त्वचा और बालों की सुरक्षा के लिए एक कम्प्लीट पैकेज

नारियल के तेल में विटामिन ई, प्रोटीन, कैल्शियम आदि तत्व सम्मिलित होता है, जो बालों के साथ-साथ आपकी त्वचा के लिए भी बहुत फायदेमंद है. इसके इस्तेमाल से त्वचा मुलायम और बाल घने होते हैं. नारियल का तेल मौइस्चराइजर का काम करता है. ये धूप और धूल से होने वाले डैमेज से भी त्वचा और बालों को बचाता है.

कई बार हमारे मन में सवाल होता है कि नारियल को तेल बालों के लिए तो अच्छा है पर क्या ये हमारी त्वचा के लिए सुरक्षित है? तो इसका जवाब है हां. ब्यूटी एक्सपर्ट का मानना है कि नारियल का तेल बालों और त्वचा के लिए बिल्कुल सुरक्षित है. यह अन्य महंगे कौस्मेटिक और क्रिम से ज्यादा कारगर है. इसका इस्तेमाल मेकअप निकालने के लिए भी किया जा सकता है. मेकअप हटाने के लिए भी यह नेचुरल तरीका है, जो बेहद सुरक्षित है.

बाजार में मिलने वाले कुछ मेकअप रिमूवर्स काफी कठोर होते हैं, खासकर एल्कोहल से बने प्रोडक्ट. इनकी जगह पर आप मेकअप हटाने के लिए नारियल तेल का इस्तेमाल कर सकती हैं. लेकिन ध्यान रखें कि नारियल तेल आर्गेनिक हो, न कि फ्लेवर वाला.

नारियल का तेल त्वचा के अंदर तक पहुंचने के लिए जाना जाता है, जो त्वचा की गहरी सतह तक पहुंचकर त्वचा को कोमल बनाता है. यह रुखी और बेजान त्वचा को नमी देने का काम भी करता है.

जिस भी दिन आपको बाल धोना है उस दिन एक घंटे पहले नारियल के तेल को बालों की जड़ो में लगाएं और हल्के हाथों से मसाज करें इससे आपके बालों को मजबूती मिलती है, साथ ही बाल लम्बे, घने और मजबूत बनते हैं.

रात को सोने से पहले होठों पर जरा सा नारियल को तेल लगा लें. इससे आपके होठ नहीं फटेंगे.

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कितना जानते हैं आप अपने ATM के बारे में?

आजकल हम कैश निकालने के लिए रोजाना ATM (ऑटोमेटेड टेलर मशीन) का प्रयोग करते हैं. यह आज हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का एक जरूरी हिस्सा बन चुकी है. लेकिन ऐसी बहुत सी बातें हैं जो शायद आप ATM के बारे में नहीं जानती होंगी. आइए, आज हम आपको ATM के बारे में कुछ मजेदार फैक्ट्स बताते हैं.

कब हुआ था ATM का आविष्कार?

ATM एक टेलिकम्युनिकेशन डिवाइस है जो बिना किसी कैशियर के बैंक और कस्टमर के बीच फाइनैंशल ट्रांजैक्शन करती है. इस कॉन्सेप्ट पर पहली मशीन शायद जापान में 1966 में लगाई गई थी. ऐसा माना जाता है कि पहली कैश मशीन जिससे कस्टमर अपने अकाउंट से नकदी निकाल सकते थे, 1967 में ब्रिटेन में बार्कलेज बैंक द्वारा स्थापित की गई थी. इसमें ग्राहक को कैश लेने के लिए बैंक का चेक डालकर अपना 6 डिजिट का पिन डालना होता था.

आखिर कैसे काम करता है ATM?

ATM एक डेटा टर्मिनल है जो एक ATM कंट्रोलर से जुड़ा रहता है. यह ठीक वैसा ही है जैसे कोई कंप्यूटर किसी इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर से जुड़ा रहता है. इसे EFTPOS (इलैक्ट्रॉनिक फंड्स ट्रांसफर ऐट पॉइंट ऑफ सेल) स्विच के नाम से जाना जाता है.

अलग-अलग बैंकों के बीच कैसे होता है ट्रांजैक्शन?

शुरू में ATM केवल एक ही बैंक से जुड़े रहते थे जिससे कस्टमर केवल अपने बैंक की मशीन से ही कैश निकाल सकता था. बाद में लागत कम करने के लिए बैंकों ने एक ATM कन्सॉर्शियम बनाया जो एक कंप्यूटर नेटवर्क है. यह नेटवर्क सभी बैंकों के ATM से जुड़ा रहता है. यह EFTPOS टर्मिनल से भी जुड़ा रहता है जिससे कहीं भी कार्ड के जरिए वस्तु और सेवाएं लेने पर बैंक तक ट्रांजैक्शन की सारी जानकारी पहुंच जाती है.

भारत का अपना नेटवर्क

नैशनल फाइनैंशल स्विच (NFS) भारत का सबसे बड़ा इंटरबैंक नेटवर्क है. इस नेटवर्क से लगभग 2 लाख ATM और 90 से भी ज्यादा बैंक जुड़े हुए हैं. NFS के अलावा देश में कैशनेट, इमीडिएट पेमेंट सर्विस, बैंक्स एटीएम नेटवर्क, कस्टमर सर्विसेज आदि इंटरबैंक नेटवर्क काम कर रहे हैं.

कार्ड असोसिएशन क्या है?

कार्ड असोसिएशन किसी भी बैंक के कार्ड प्रोग्राम को लाइसेंस देता है और अलग-अलग नेटवर्क पर ट्रांजैक्शन करने के लिए टेक्नॉलजी और ऐक्सेस देता है. यह असोसिएशन अपने मेंबर बैंक के लिए ऑपरेशनल फंक्शन का काम करते हैं. चाइना यूनीपे, वीजा, मास्टरकार्ड, अमेरिकन एक्सप्रेस, डिनर्स क्लब आदि दुनिया के कुछ बड़े कार्ड असोसिएशन हैं. भारत ने भी अपने घरेलू ट्रांजैक्शन के लिए ऐसी ही पेमेंट सर्विस शुरू की है जिसे रूपे (RuPay) नाम दिया गया है.

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फिल्म रिव्यू : होप और हम

‘लोगों से प्यार करो, चीजों से नहीं’ सहित कई छोटे छोटे संदेश देने वाली फिल्म ‘‘होप और हम’’ जिंदगी के छोटे छोटे पलों के साथ ही आशा व उम्मीदों की बात करती है. इंसानी भावनाओं की सीधी सादी कहानी के साथ फिल्म में लघु प्रेम कहानी भी है.

फिल्म की कहानी मुंबई के एक मध्यमवर्गीय परिवार की है. जिसके मुखिया नागेश श्रीवास्तव (नसिरूद्दीन शाह) हैं. उनके दो बेटे नीरज (अमीर बशीर) व नितिन (नवीन कस्तूरिया) हैं. नितिन दुबई में नौकरी कर रहा है. नीरज की पत्नी अदिति (सोनाली कुलकर्णी) और उनकी बेटी तनु (वृति वघानी) व बेटा अनुराग (मास्टर कबीर साजिद) है. अनुराग को क्रिकेट का शौक है. नागेश श्रीवास्तव के पास एक जर्मन कंपनी की एक फोटो कापी मशीन है, जिसे वह मिस्टर सोनेकेन बुलाते रहते हैं. जिसका लेंस खराब हो गया है, इसलिए अब फोटो कापी सही नहीं निकलती, परिणामतः हर ग्राहक उन्हे दस बातें सुनाकर चला जाता है.

अदिति चाहती हैं कि उनके ससुर जी अब उस मशीन को बेच दें,तो उस जगह पर तनु के लिए एक कमरा बन जाए. जबकि नागेश का फोटो कापी मशीन से दिल का लगाव है और वह अपने काम को एक कलात्मक काम मानते हैं. वह मशीन के लिए लेंस तलाश रहे हैं. इसके लिए उनकी पोती तनु कंपनियों को ईमेल भेज कर लेंस के बारे में पूछताछ करती रहती है, पर हर बार उसे एक ही जवाब मिलता है कि उस फोटोकापी मशीन का लेंस नही है. मगर नागेश को उम्मीद है कि फोटो कापी मशीन का लेंस जरुर मिलेगा.

इसी बीच अनुराग की नानी (बीना बनर्जी) के बुलावे पर नीरज व अनुराग राजपीपला में उनकी पुरानी कोठी पर जाते हैं, जहां अनुराग के मामा, नानी की इच्छा के बगैर कोठी को होटल बनाने के लिए किसी को बेच रहे हैं. नानी की कोठी में अनुराग अपने नाना के कमरेमें जाता है और उनकी किताबें पढ़ने के साथ ही संगीत सुनता रहता है. एक दिन वह क्रिकेट खेलने निकलता है और गेंद कोठी के एक कमरे में जाती है तो जब वह गेंद लेन जाता है,तो उसके साथ एक ऐसा हादसा होता है, जिससे वह अपराधबोध से ग्रसित हो जाता हे और फिर उसका व्यवहार ही बदल जाता है.

इधर अनुराग का चाचा दुबई से वापस आता है, वह हर किसी के लिए कुछ न कुछ उपहार लेकर आया है. वह अपने पिता नागेश के लिए नई फोटोकापी यानी मशीन लेकर आया है. एक दिन नाटकीय तरीके से पिता को नई मशीन पर काम करने के लिए राजी कर लेता है. जबकि इस बार नागेश ने जर्मन भाषा में तनु से एक कंपनी को लेंस के लिए ईमेल भिजवाया है. नागेश अपनी फोटोकापी मशीन को बेचकर उस जगह पर तनु के लिए कमरा बनवा देते हैं. नागेष अपना मोबाइल फोन टैक्सी में भूल गया है. पर उसे उम्मीद है कि उसका मोबाइल फोन मिल जाएगा.

एक दिन एक लड़की उसका फोन उठाती है और मोबाइल फोन लेने के लिए काफीशौप बुलाती है, पर कई घंटे इंतजार के बाद जब नितिन वापस लौटने लगता है तो वही लड़की (नेहा चौहान) नाटकीय तरीके से उसे औटोरिक्शा में उसका मोबाइल फोन वापस देकर गायब हो जाती है. बाद में अनुराग की नानी, नितिन की शादी के लिए उसी लड़की की फोटो दिखाती है. इतना ही नही नागेश को जर्मन कंपनी से लेंस मिलने की खबर मिलती है. पर अब नागेश क्या करे, उन्होंने तो फोटोकौपी मशीन बेच दी. इससे अदिति को भी तकलीफ होती है. दुबारा अपनी नानी के घर जाने पर अनुराग के मन का अपराध बोध गलत साबित होता है. और वह फिर से क्रिकेट खेलने वाला पहले जैसा अनुराग बन जाता है. यानी कि फिल्म में हर किरदार की उम्मीदें पूरी होती हैं.

फिल्मकार सुदीप बंदोपाध्याय ने नसीहते देने व उम्मीदों के पूरे होने की बात करने वाली फिल्म का कथा कथन शैली बहुत बचकानी रखी है. यदि सुदीप बंदोपाध्याय ने एक खुशनुमा फिल्म बनाने का प्रयास किया होता, तो इंसानी बदलाव व विकास की एक बेहतर फिल्म बन सकती थी. मगर फिल्म देखते हुए अहसास होता है जैसे कि वह लोगों को धूल से सने फोटो अलबम में झांकने के लिए कह रहे हों. फिल्म जीवन की मीठी मगर व्यर्थताओं को पकड़ने की कोशिश है. फिल्म में नवीनता नहीं है. इस तरह की कोशिशें अतीत में‘फाइंडिंग फैनी’ और ‘ए डेथ इन द गंज’ फिल्मों में भी की जा चुकी हैं. इतना ही नहीं उम्मीदों व आशा की बात करते करते पटकथा लेखक द्वय सुदीप बंदोपध्याय व नेहा पवार तकदीर की बात कर फिल्म पर से अपनी पकड़ खो देते हैं. फिल्म का गीत संगीत फिल्म की संवेदनशीलता को खत्म करने काम काम करता है.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो नागेश के किरदार को नसिरूद्दीन शाह ने बाखूबी निभाया है. नसिरूद्दीन शाह के सामने बाल कलाकार कबीर साजिद ने बेहतरीन परफार्मेंस देकर इशारा कर दिया है कि वह आने वाले कल का बेहतरीन कलाकार है. सोनाली कुलकर्णी, अमीर बशीर व नवीन कस्तूरिया भी ठीक ठाक रहे.

एक घंटा 35 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘होप और हम’’ का निर्माण समीरा बंदोपाध्याय ने किया है. सह निर्माता दिव्या गिरीशशेट्टी, लेखक सुदीप बंदोपाध्याय व नेहा पवार, निर्देशक सुदीप बंदोपाध्याय, संगीतकार रूपर्ट फेंमंडेस, कैमरामैन रवि के चंद्रन तथा कलाकार हैं- नसिरूद्दीन शाह, सोनाली कुलकर्णी, अमीर बशीर, नवीन कस्तूरिया, मास्टर कबीर साजिद, वृति वघानी व अन्य.

फिल्म रिव्यू : राजी

‘फिलहाल’, ‘जस्ट मैरिड’, ‘तलवार’ जैसी फिल्मों की निर्देशक मेघना गुलजार इस बार हर वतन परस्त इंसान के दिल की बात करने वाले तोहफे के तौर पर रोमांचक फिल्म ‘‘राजी’’ लेकर आयी हैं. हरिंदर सिक्का की किताब ‘कालिंग सहमत’ पर आधारित फिल्म‘‘राजी’’ एक भारतीय अंडरकवर की सच्ची कहानी है, जो कि हर इंसान के दिल में देशप्रेम जगाती है. इसी के साथ यह फिल्म इस तरफ भी इशारा करती है कि युद्ध अनावश्यक है, युद्ध सही या गलत नहीं पहचानता. युद्ध तो सिर्फ अंधेरे व क्रूरता का परिचायक है. फिल्मकार मेघना गुलजार ने फिल्म में सहमत के साहस का जश्न मनाने से परे कई सवाल भी उठाए हैं.

फिल्म ‘‘राजी’’ की कहानी 1971 के भारत पाक युद्ध की पृष्ठभूमि की है. कहानी शुरू होती है पाकिस्तान से, जो कि तत्कालीनबांग्लादेश की मुक्तिवाहिनी सेना का भारत द्वारा साथ दिए से नाराज होकर भारत को नेस्तानाबूद करने के मंसूबे के साथ युद्ध की तैयारी कर रहा है. पाकिस्तानी सेना के ब्रिगेडियर परवेज सय्यद (शिशिर शर्मा) के साथ कश्मीर निवासी भारतीय उद्योगपति हिदायत खान (रजित कपूर) की बहुत अच्छी दोस्ती है, पर ब्रिगेडियर परवेज सय्यद को इस बात की भनक नहीं है कि हिदायत खान वतन परस्त होने के साथ साथ हिंदुस्तान की ‘रा’ एजेंसी को जानकारी देने का काम भी करते हैं.

हिदायत खान के पिता भी स्वतंत्रता सेनानी और भारतीय सुरक्षा एजेंसी के लिए काम करते थे. हिदायत खान का पाकिस्तान आना जाना लगा रहता था. जब हिदायत खान को पाकिस्तानी ब्रिगेडियर परवेज सय्यद के मुंह से पाकिस्तानी सेना के मंसूबे का पता चलता है तो वह सच जानकर भारत को सुरक्षित रखने के लिए एक अहम फैसला लेते हैं. हिदायत खान अपनी बीमारी का वास्ता देकर दोस्ती को रिश्तेदारी में बदलने की बात कर दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्ययनरत अपनी बेटी सहमत (आलिया भट्ट) का विवाह ब्रिगेडिर परवेज सय्यद के बेटे व पाकिस्तानी सेना के मेजर इकबाल (विकी कौशल) के संग करने की गुजारिश करते हैं, जिसे परवेज सय्यद सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं.

सहमत बहुत ही ज्यादा नाजुक व अति भावुक साधारण कश्मीरी लड़की है. उसे इस बात का तब तक अहसास नहीं होता, जब तक उसके पिता उसे वापस कश्मीर नहीं बुलाते हैं कि उसके पिता ने उसके भविष्य को लेकर पाकिस्तान में कितना बड़ा फैसला कर आए हैं. जब सहमत पहलगाम, कश्मीर अपने घर पहुंचती है, तो हिदायत खान सहमत की मां तेजी (सोनी राजदान) के सामने ही बताते हैं किउन्होंने सहमत की शादी इकबाल संग कराने का फैसला किस मकसद से लिया है.

वतन के लिए परेशान अपने पिता हिदायत खान को देखकर सहमत बिना देर किए हामी भर देती है. उसके बाद वह पाकिस्तान जाकर अपने वतन भारत की कान व आंख बनने के लिए पूरी तैयारी करने में जुट जाती है. वह बेहतरीन भारतीय जासूस बनने के लिए ‘रा’एजेंट खालिद मीर (जयदीप अहलावत) से प्रशिक्षण लेना शुरू करती है. प्रशिक्षण के दौरान उसे काफी तकलीफ होती है, पर इससे वह मजबूत होती जाती है.

पूर्णरूपेण प्रशिक्षित होने पर इकबाल से सहमत की शादी होती है और वह एक बेटी से बहू बनकर भारत की दहलीज पार कर पाकिस्तान पहुंचती है. दुश्मन देश में अपनी ससुराल व अपने पति के दिल में जगह बनाते हुए सहमत अपने वतन भारत के खिलाफ पाकिस्तानी सेना द्वारा रचे जा रहे षडयंत्र की जानकारी इकट्ठा कर भारत में ‘रा’ के पास पहुंचाना शुरू करती है. एक सैनिक परिवार की बहू के रूप में सैनिक परिवार  के अंदर रहकर यह सब करना उसके लिए बहुत कठिन होता है, पर उस पर अपने वतन के लिए कुछ भी कर गुजरने का ऐसा भूत सवार है कि वह हर संकट का मुकाबला करते हुए अपने मकसद में कामयाब होती है. उसे दो लोगों की हत्या करने के साथ ही कई ऐसे फैसले लेने पड़ते हैं, जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी.

इस कहानी के बीच में सहमत व इकबाल की बड़ी खूबसूरत छोटी सी प्रेम कहानी भी पनपती है. बहरहाल, सहमत द्वारा भेजी गयी अहम जानकारी की वजह से भारत, पाकिस्तान के खिलाफ जंग जीतने में कामयाब होता है. पर अंतिम वक्त में इकबाल को पता चल जाता है कि सहमत ने पाकिस्तानी सेना द्वारा रचे जा रहे षडयंत्र की जानकारी भारत भेज दी है. वह अपने वतन के लिए सहमत के खिलाफ अपने देश की जांच एजेंसी को खबर करता है. जबकि खालिद मीर अपने साथियों के साथ सहमत को पाकिस्तान से सुरक्षित निकालने के  लिए पहुंच जाता है. पर कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. जिसमें इकबाल मारे जाते हैं. पर सहमत को लेकर खालिद मीर व उसके साथी भारत पहुंच जाते हैं. अब सहमत खुद को जासूसी के काम से अलग कर लेती है. वह इकबाल के बेटे को जन्म नहीं देना चाहती. मगर वह एक मां और एक औरत भी है.

मेघना गुलजार ने एक बार फिर साबित कर दिखाया कि उन्हें  कहानी व किरदारों पर अपने निर्देशकीय कौशल से पकड़ बनाए रखने में महारत हासिल है. अपनी पिछली फिल्मों के मुकाबले वह इस फिल्म से ज्यादा बेहतरीन निर्देशक के रूप में उभरती हैं. फिल्म बहुत तेज गति से भागती है और दर्शकों को अपनी सीट पर चिपके रहने के लिए मजबूर करती है. निर्देशक के तौर पर मेघना गुलजार ने फिल्म को फिल्माने के लिए लोकेशन भी बहुत सही चुनी है. मेघना गुलजार ने फिल्म मे जिस तरह से मानवीय भावनाओं व संवेदनाओं को उकेरा है, उसके लिए भी वह बधाई की पात्र हैं.

मेघना गुलजार ने अपनी फिल्म में देशप्रेम को जगाने के लिए कोई देशभक्ति वाला भाषण नहीं परोसा है. उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ जहर उगलने वाले उत्तेजक या विरोधात्मक भाषण से भी दूरी बनाए रखी है. लेकिन अति जटिल व्यक्तियों का समूह अपने ईद गिर्द की परिस्थितियों से निपटने का जिस तरह से प्रयास करता है, उसी से देशप्रेम अपने आप उभरकर आता है.

अमूमन किताब को सेल्यूलाइड के परदे पर लाते समय पटकथा लेखक पूरी कहानी व फिल्म का बंटाधार कर देता है. मगर ‘कालिंग सहमत’ को फिल्म ‘राजी’ के रूप में पेश करने के लिए पटकथा लेखकद्वय मेघना गुलजार व भवानी अय्यर की तारीफ की जानी चाहिए.

फिल्म ‘‘राजी’’ पूर्ण रूपेण आलिया भट्ट की फिल्म है. आलिया भट्ट के जानदार अभिनय की जितनी तारीफ की जाए, उतनी कम है. वह पूरी फिल्म को अपने कंधे पर लेकर चलती हैं. दर्शक उनकी खूबसूरती, उनकी मासूमियत व उनकी अभिनय प्रतिभा का कायल होकर रह जाता है. सहमत को परदे पर सही मायनों में आलिया भट्ट ने अपने अभिनय से जीवंत किया है. संगीत प्रेमी मेजर इकबाल के किरदार को विकी कौशल ने खूबसूरती से निभाया है. संतुलित व संजीदा सैनिक, अपनी पत्नी सहमत के वतन के खिलाफ उसके सामने होने वाली बातों से पत्नी के मन को लगने वाली ठेस का अहसास करने के दृश्य में विकी कौशल एक मंजे हुए कुशल अभिनेता के रूप में उभरते हैं. तो वहीं ‘रा’ एजेंट खालिद मीर के किरदार में जयदीप अहलावत भी अपने अभिनय से लोगो के दिलों में जगह बना ही लेते हैं. रजित कपूर, शिशिर शर्मा, आरिफ जकरिया, सोनी राजदान आदि ने भी अपनी तरफ से सौ प्रतिशत देने का प्रयास किया है.

जहां तक फिल्म के गीत संगीत का सवाल है, तो वह भी काफी बेहतर बन पड़े हैं. फिल्म के कथानक के साथ ‘दिलबरो’, ‘ऐ वतन’ व‘राजी’ गाने काफी बेहतर लगे हैं. गीतकार गुलजार और संगीतकार की तिकड़ी शंकर एहसान लौय ने कमाल दिखा ही दिया.

दो घंटे बीस मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘राजी’’ का निर्माण विनीत जैन, करण जोहर, हीरू यश जोहर व अपूर्वा मेहता ने किया है. हरिंदर सिक्का की किताब ‘‘कालिंग सहमत’’ पर आधारित इस फिल्म की पटकथा लेखक भवानी अय्यर व मेघना गुलजार, निर्देशक मेघना गुलजार, गीतकार गुलजार, संगीतकार शंकर एहसान लौय, कैमरामैन जय आई पटेल तथा फिल्म को अभिनय से संवारने वाले कलाकार हैं-आलिया भट्ट, विक्की कौशल, रजित कपूर, शिशिर शर्मा, अमृता खानविलकर, जयदीप अहलावत, अश्वथ भट्ट, सोनी राजदान व अन्य.

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