मैं अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहती हूं : मेघना गुलजार

साल 2002 में फिल्म ‘फिलहाल’ से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली लेखिका निर्देशिका मेघना गुलजार हिंदी सिनेमा के मशहूर गीतकार संगीतकार गुलजार और अभिनेत्री राखी गुलजार की बेटी हैं. बचपन से ही उसने कला का माहौल देखा है. उसनें डांस और पियानो की क्लासेज भी ली हैं, लेकिन जब वह कौलेज में थी, तब उसे लगा कि वह क्रिएटिव क्षेत्र के अलावा कुछ सोच नहीं सकती हैं. यही वजह है कि मुंबई से समाजशास्त्र में स्नातक की पढ़ाई पूरी कर वह न्यूयार्क यूनिवर्सिटी में फिल्म की बारीकियां सीखने गयी और डिग्री हासिल की.

वहां से आने के बाद उसने पहले अपने पिता को फिल्म ‘माचिस’ और ‘हु तू तू’ में असिस्ट किया और साथ ही कई फिल्मों के लिए पटकथा लेखन, शौर्ट फिल्म का निर्माण और डौक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्देशन भी किया. उन्होंने फिल्में तो कम की, पर जो भी किया उसे सराहना मिली, दर्शकों ने उसे पसंद किया. किसी भी स्क्रिप्ट को चुनते समय मेघना बहुत सोच विचार और शोध करती है ताकि फिल्म ओरिजिनल बने. ‘फिलहाल’, जस्ट मैरिड, दस कहानिया आदि कुछ ऐसी ही उनकी फिल्में है.  काम के दौरान मेघना ने अपने प्रेमी गोविन्द संधू से शादी की, जिससे उनका 8 साल का बेटा समय है. बहुत ही शांत और हंसमुख मेघना की फिल्म ‘राजी’ रिलीज हो गई है उनसे बात करना रोचक था,पेश है अंश.

इस फिल्म से आप कितनी उम्मीद रखती है?

मैंने फिल्म के जरिये जो कहने की कोशिश की है वह दर्शकों को कितनी प्रेरित करेगी ये कहना मुश्किल है. ये एक तरह का गेम है. जिसका फैसला आप पहले से नहीं कर सकते.

किसी फिल्म के सफल होने में पब्लिसिटी कितना माइने रखती है?

ये बहुत जरुरी है, क्योंकि जो फिल्म हमने बनायी उसे लोगों तक पहुंचाने का काम मीडिया ही करती है.

इस कहानी को कहने की वजह क्या मानती है?

ये एक अलग तरह की कहानी है, जिससे लोग परिचित नहीं. मेरे लिए उसे करना जरुरी था. इसमें आलिया एक स्पाई से अधिक एक लड़की, बेटी, बहू, और पत्नी है. जिसमें उसकी इमोशनल जर्नी को अधिक दिखाने की कोशिश की गयी है.

आपके पिता ने आपको इस फिल्म के लिए कितना सहयोग दिया?

वे हमेशा से ही मुझे सहयोग देते रहे हैं और इस फिल्म के लिए भी दिया. कहानी में जो भी ठीक करना था, उन्होंने किया और इसके गीतकार भी गुलजार ही हैं.

क्या पिता की कामयाबी का प्रेशर आप पर कभी रहा है?

शुरू से ही हम दोनों के काम करने के तरीके काफी अलग हैं और मुझे याद आता है कि पहले तो हम दोनों में किसी कहानी को लेकर काफी कहासुनी तक हो जाया करती थी, लेकिन मैं अंत में सब ठीक कर उन्हें दिखाती थी और वह उन्हें पसंद आती थी. स्क्रिप्ट लिखने के लिए वे मुझे हमेशा प्रोत्साहित करते हैं. मैं उनके जैसी नहीं, बल्कि अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहती हूं. इसके अलावा जब उन्होंने फिल्म बनायीं और जब मैं आज बना रही हूं, समय काफी बदल चुका है. वे कहानी लिखते थे और मैं कहानी को विजुअल करती हूं, इसलिए पिता से मेरी कोई तुलना नहीं होनी चाहिए और मेरे ऊपर कोई प्रेशर भी नहीं है.

आप खुद माता-पिता से कितनी प्रभावित हैं?

मैं दोनों की खुबसूरत ब्लेंड हूं. मैं पिता की तरह सेंसेटिव और मां की तरह स्ट्रोंग हूं. मैं कुछ भी सह नहीं सकती. अपनी बात सामने अवश्य रखती हूं.

आप बंगाल से कितनी प्रभावित हैं, जबकि आपकी मां बंगाली हैं?

मैं बंगाल से बहुत प्रभावित हूं, मैं बांग्ला बोल सकती हूं. मेरे नाना-नानी हिंदी नहीं बोल सकते थे, इसलिए मुझे इसे सीखना पड़ा इसके अलावा जब मैं और मेरी मां कोई सीक्रेट बात करते हैं, तो बांग्ला में बात करते है. मैं मछली नहीं खाती.

मां और कैरियर दोनों में सामंजस्य कैसे बिठाती हैं?

इसमें मेरे पति का बहुत सहयोग होता है. मैं जब भी घर से बाहर जाती हूं वे मेरे बेटे को सम्हालते हैं और मैं निश्चिंत होकर घर से बाहर महीनों रह सकती हूं.

आपकी आलोचक कौन है?

मेरी मां मेरी आलोचक हैं, वह सही बात सबके सामने कह देती हैं.

यहां तक पहुंचना कितना मुश्किल था?

रास्ते आसान नहीं थे, मैं सईद मिर्जा को एसिस्ट कर रही थी. पहली फिल्म थी ‘फिलहाल’. इसे बनने में दो से ढाई साल लगे थे. कुछ वजह निर्माता की वजह से थी, लेकिन ये एक अच्छी फिल्म थी, तब्बू और सुस्मिता ने फिल्म पूरे होने तक बहुत सहयोग दिया और फिल्म चली. फिर धीरे-धीरे आगे बढ़ी.

आगे की योजनायें क्या है?

मैं फील्ड मार्शल सैम मानिक शा के ऊपर लिखने वाली हूं और अगली योजना ऊन पर फिल्म बनाने की है.

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मरने का हक भी अब बुनियादी हकों में शामिल

सुप्रीम कोर्ट ने एक नए फैसले में मरने का हक भी बुनियादी हकों में शामिल कर लिया है. इस का मतलब है कि अब न तो आत्महत्या एक जुर्म रहेगा और न ही बीमार पड़े हिलनेडुलने लायक न रहे आदमियों को मरने देने पर डाक्टरों को कातिल माना जाएगा. इस नए हक के बारे में बहुतकुछ अभी धुंधला है पर धीरेधीरे कानून और नियम बनने लगेंगे तो साफ हो जाएगा कि कब कौन सा मरना सम्मानजनक माना जाएगा और कब डाक्टर मरीज को जहालत व जिल्लत की जिंदगी से आसानी से छुटकारा दिला सकेंगे.

पहले कानून साफ था कि अस्पताल, डाक्टर, मातापिता या बच्चे किसी बीमार को अपनेआप मरने नहीं दे सकते थे और जहां तक कोशिश हो सके उसे बचाने के लिए लगना पड़ेगा. अब यदि किसी ने अपनी वसीयत कर रखी है कि उसे शांति से मरने दिया जाए तो डाक्टर वैसा फैसला ले सकते हैं.

ऐसा नहीं कि डाक्टर पहले ऐसा नहीं करते थे. जब मरीज को ठीक न किया जा सके तो हर अस्पताल में डाक्टर अपनेआप मरीज का इलाज बंद कर देते हैं. कई बार पूरा पैसा न मिलने पर ऐसा कर दिया जाता है.

यह मुसीबत आमतौर पर कैंसर, एचआईवी, दिल, किडनी, फालिज, याददाश्त खोने जैसी बीमारियों के मरीजों के साथ होती है जिन के ठीक होने की उम्मीद बहुत कम होती है. जब मरीज अपनेआप मर भी न रहा हो या बहुत धीरेधीरे तड़पतड़प कर मर रहा हो. डाक्टरों और घर वालों के लिए सांपछछूंदर की सी हालत हो जाती है न छोड़ते बनता है, न मरने देने के लिए हां करते बनता है. यदि थोड़ीबहुत जमीनजायदाद हो तो वह डाक्टरों या देखभाल करने में स्वाहा हो जाती है. बेहद बीमार जने की देखभाल एक आफत हो जाती है और घर वाले बेहद थक जाते हैं.

इस तरह के बीमारों से छुटकारा क्या मिल सकेगा, यह इस फैसले को ढंग से पढ़ने पर और सरकार के इसे लागू करने के तौरतरीकों पर तय होगा. इतना जरूर है कि सुप्रीम कोर्ट ने संविधान में दिए गए अनुच्छेद 21 में जीने के हक को और फैला दिया है.

दुनिया के कम ही देशों में इस हक का इस्तेमाल हो रहा है. आज जहां भी अपने हकों की जागरूकता है वहां इतना पैसा है कि बरसों तक डाक्टर बेहोश पड़े जने को जिंदा रख सकते हैं. जिन देशों में गरीब ही गरीब हैं, जैसे भारत, वहां जिंदगी की कीमत ही क्या है?

इस हक का सब से बड़ा फायदा धर्म से जुड़े लोग उठाएंगे. जैन धर्म में तो यह प्रथा बाकायदा मौजूद है जिस में लोग खानापीना छोड़ कर मौत का इंतजार करने लगते हैं. बनारस में मुक्ति घाट में रह कर लोग अपनी इच्छा से मरने का इंतजार करते हैं. क्या इस तरह के पागलपनों को अब कानूनी हक मिलेगा? क्या बाबा स्वामी लोग अमीर भक्तों को बहलाफुसला कर राजी कर लेंगे कि उन का आखिरी समय आ गया है और बजाय तिलतिल कर के मृत्युदान कर के पैसा उन्हें दे कर विदा हो जाएं?

हमारे यहां कानूनों का गलत इस्तेमाल बहुत होता है. छेड़छाड़ के बारे में कानून को जम कर पैसा लूटने के लिए आजमाया जा रहा है. दहेज कानून का डर दिखा कर औरतें पतियों और उन के घर वालों को जम कर धमकाती हैं.

नए कानून में भी लोभ हो सकते हैं फिर भी यह अच्छा है. जैसे पेट गिराने का कानून करोड़ों औरतों के लिए वरदान साबित हुआ कि उन्हें अनचाहे बच्चों का बोझ नहीं सहना पड़ रहा वैसे ही लाखों घर वाले आखिरी सालों में अपने सगों से छुटकारा आसानी से पा सकेंगे और उन्हें तड़पना नहीं पड़ेगा.

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अब नहीं होंगे गर्मियों में रैशेज, बस करें ये काम

गर्मियों के मौसम में हमें त्वचा संबंधित कई समस्याएं होती हैं. इनमें से सबसे ज्यादा हम जिस समस्या से परेशान होते हैं वह है रैशेज. गर्मियों के दिनों में धूप और गर्मी अधिक होने के कारण खुद त्वचा को ही नुकसान होने लगता है ऐसे में कुछ लोग गर्मी से बाहर निकलने से ही परहेज करते है जो जाहिर तौर पर एक अच्छा विकल्प है पर फिर भी हमें रैशेज जैसी समस्या हो जाती है.

रैशेज होने के कारण

पसीने से हमारी त्वचा चिपचिपी हो जाती है जिसकी वजह से हमारे रोम छिद्र जो हमारी त्वचा के माध्यम से हमारे शरीर से विषैले पदार्थो को बाहर करते है बंद हो जाते हैं. जिसके कारण त्वचा में एक्ने ,खुजली और फोड़े फुंसी जैसी समस्याए आती है .

रोकथाम

हमारे पसीने में नमक की काफी मात्रा होती है जिसकी वजह से हमारी त्वचा पर खुजली की समस्या होती है और खुजलाने के निशान पड़ जाते है जिसकी वजह से सब तरह की त्वचा की समस्याए सामने आती हैं.

उपाय

सबसे पहले आपको ये ध्यान रखने की जरुरत है की आपको पसीने की समस्या से छुटकारा पाना है इसके लिए आप अच्छी क्वालिटी का पाउडर इस्तेमाल कर सकते है और जरुरत होने पर या बाहर से घर आने पर अपने हाथ और मुहं को सादे पानी से धो लें क्योंकि आपके चेहरे पर धूप का सबसे अधिक बुरा असर पड़ता है . दिन में आप कम से कम 2 बार क्लींजर से त्वचा की सफाई कर सकती हैं .

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पुलिस फोर्स की तरह अकुशल मशीनरी बन रही है सीबीआई

6 लाख रुपए के नकली बिल से एनीमल हसबैंड्री डिपार्टमैंट से पैसे निकलवाने पर यदि जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो ने करनी हो तो 6,000 करोड़ रुपए की हेराफेरी कौन करेगा, यह सवाल आप न ही पूछें. हमारे यहां छोटेछोटे मामले इस तरह सीबीआई को सौंपे जा रहे हैं कि नीरव मोदी जैसे मामलों के लिए उस के पास समय ही नहीं या फिर सीबीआई आम पुलिस फोर्स की तरह भारीभरकम और अकुशल मशीनरी बन रही है.

यह 6 लाख रुपए का मामला कम रोचक नहीं है जो सुप्रीम कोर्ट तक 22 साल में पहुंचा. साल 1995 में मुजफ्फरपुर में एनीमल हसबैंड्री डिपार्टमैंट में 6 लाख रुपए के नकली बिलों के आधार पर पैसा निकाला गया. जांच के बाद तथ्य मिलने पर नरेश चौबे और दूसरे 2 लोगों को चार्जशीट दी गई और मामला सीबीआई को सौंप दिया गया. सीबीआई की जांच पर निचली अदालत ने उन तीनों को 3 साल की सजा सुनाई. मामला सुप्रीम कोर्ट में गया पर अपराधियों की सुनी नहीं गई.

जब मामला अपराधी सुप्रीम कोर्ट में ले गए तो उन में से नरेश चौबे 75 साल का हो चुका था. सुप्रीम कोर्ट ने सजा तो बरकरार रखी पर कैद में राहत दी कि 20 महीने ही जो उन्होंने कभी जेल में काटे थे काफी हैं.

जब एक छोटे अफसर का मामला पूरी तरह सुलझाने में 22 साल लग रहे हों तो नीरव मोदी जैसे 11,000 से 20,000 करोड़ रुपए के मामले को सुलझाने में कितने साल लगेंगे, इस का अंदाजा लगाया जा सकता है. मुजफ्फरपुर के मामले में तो अपराधी एक साधारण अफसर था और उस के साधन सीमित थे पर जब मामला नीरव मोदी का होगा तो शायद 8-10 सरकारें बदल जाएंगी पर फैसला नहीं आ पाएगा.

यह सोच लेना कि सीबीआई को मामला दे दिया गया है तो हल हो गया गलत है. न्याय व्यवस्था में देर इतनी है कि अंधेरा ही अंधेरा लगता है. लाखों कैदी जेलों में बिना अपराध साबित हुए बंद हैं क्योंकि वे जमानत के लिए वकील और पैसे का इंतजाम नहीं कर सकते और सैकड़ों को सजा तब मिलती है जब सजा देना बेमतलब का हो जाता है.

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फ्रूटी एंड टेस्टी बाइट्स : रागी परांठा

रागी परांठा

सामग्री आटा बनाने की

  • 1 कप रागी का आटा • थोड़ा सा घी • नमक स्वादानुसार.

सामग्री स्टफिंग की

  • पनीर, अनारदाना, धनियापत्ती कटी.

विधि

सब से पहले रागी में नमक, घी व पानी डाल कर डो तैयार करें. उस के बाद पनीर को मैश कर के उस में सारी सामग्री को अच्छी तरह मिलाएं. फिर इस स्टफ को डो में भर कर रोल बनाएं और तवे पर सेक कर दही के साथ गरमगरम सर्व करें.

– व्यंजन सहयोग : सेलिब्रिटी शैफ अजय चोपड़ा

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खड़े होकर पानी पीने से बन सकती हैं दिल की मरीज

बहुत से लोग ऐसे होते हैं जिनकी आदत होती है कि प्यास लगी तो बस फ्रिज से पानी की ठंडी बोतल निकाली और एक ही घूंट में खड़े-खड़े गटा गट पानी पीना शुरू. जब इस खराब आदत पर टोका जाए तो बस एक ही जवाब सामने आता है. …तो क्या फर्क पड़ता है पानी खड़े होकर पिएं या बैठकर? प्यास बुझनी चाहिए. यह तर्क भले ही आज की पीढ़ी दें, और चाहें उन्हें सही लगे पर, क्या आप जानती हैं कि ये आदत आपकी सेहत के लिए काफी खतरनाक साबित हो सकती है. जी हां, प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में इस आदत को गलत ठहराया गया है.

पाचन तंत्र

जब आप बैठकर पानी पीते हैं तो अपनी मांसपेशियों के साथ आपका नर्वस सिस्टम भी आराम से काम करता है. ऐसा करते समय आपका नर्वस सिस्टम आपके दिमाग की नसों को तरल पदार्थ को तुरंत पचाने का संकेत देता है. वहीं अगर आप खड़े होकर पानी पीते हैं तो आपका पाचन तंत्र हमेशा खराब रहेगा.

दिल की बीमारी

यही नहीं, जब भी कोई व्यक्ति खड़े होकर पानी पीता हैं, तब पानी तेजी से गुर्दें के माध्यम से बिना अधिक छने गुजर जाता है. इसके कारण मूत्राशय या रक्त में गंदगी इकट्ठा हो सकती है, जिससे मूत्राशय, गुर्दे और दिल की बीमारियां घेरने लगती हैं. कई बार ये बेहद ही खतरनाक साबित हो सकता है.

जोड़ों में दर्द

विशेषज्ञों की मानें, तो खड़े होकर पानी पीने से शरीर के अन्य तरल पदार्थों का संतुलन बिगड़ जाता है. जिसकी वजह से व्यक्ति के जोड़ों में दर्द और गठिया जैसी परेशानियां उत्पन्न होती हैं.

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क्या है ब्यूटी फूड, इस के बारे में जानती हैं आप

यों तो मार्केट में मिलने वाले विविध प्रकार के सौंदर्य प्रसाधनों से सौंदर्य निखारा जा सकता है, लेकिन यह सौंदर्य निखार क्षणिक होता है. लिजा ड्रायर, जो एक जानीमानी डाइटीशियन और हैल्थ रिपोर्टर हैं, का मानना है कुछ विशेष खाद्यपदार्थों को अपनी आहार सूची में शामिल कर के आप प्राकृतिक सौंदर्य, चमकीली त्वचा, आकर्षक रेशमी केश व स्वस्थ नाखून पा सकती हैं. ऐसे खाद्यपदार्थ ब्यूटी फूड कहे जाते हैं. इन का निरंतर सेवन किया जाए तो ये रक्तसंचार में सुधार करते हैं, त्वचा के टिशूज की मरम्मत कर के उन्हें लचक व सौंदर्य प्रदान करते हैं, जिस से वे आप को अधिक समय तक जवां व स्वस्थ रखते हैं.

स्ट्राबैरी व पालक: कौस्मैटिक सर्जन डा. मीनाक्षी अग्रवाल के अनुसार ऐंटीऔक्सीडैंट तत्त्वों से भरपूर स्ट्राबैरी व पालक त्वचा के पोषण में विशेष योगदान देते हैं. साथ ही ऐंटी ऐजिंग का काम भी करते हैं. झुर्रियों को दूर करते हैं, त्वचा को स्पंजी बनाते हैं. इसलिए इन दोनों को अपने आहार में किसी न किसी रूप में अवश्य शामिल करें. इतना ही नहीं, 2-3 स्ट्राबैरी की ब्लैंडर में प्यूरी बनाएं. इस में ठंडा दही मिला कर चंद बूंदें नीबू के रस की डालें. तैयार मिश्रण को अपने चेहरे पर 20 मिनट लगा कर रखें फिर धो दें. चेहरा चमक उठेगा.

लो फैट दही: कैल्सियम व फास्फोरस से भरपूर होने की वजह से दही दांतों के इनैमल को मजबूती देता है, कैविटी होने से रोकता है. नियमित दही का प्रयोग त्वचा को चमकीला व लचीला बनाता है और औस्टियोपोरोसिस की रोकथाम में सहायक रहता है. दही को मास्क की तरह भी प्रयोग किया जा सकता है. साफ चेहरे पर दही फेंट कर लगाएं. 10 मिनट लगा रहने दें. फिर धो दें.

1/2 कप फुल फैट दही में 3 बड़े चम्मच शहद व 1 अंडे का पीला भाग डाल कर मिश्रण बनाएं. इसे केशों पर 15 मिनट लगा रहने दें. फिर धो दें. यह प्रोटीन रिच हेयर मास्क का काम करता है.

ऐप्पल साइडर विनेगर: इस में बहुत से ऐसे गुण होते हैं, जो न केवल स्किन टिशूज की हीलिंग करते हैं, बल्कि त्वचा को कोमलता व चमक भी प्रदान करते हैं. इस में मौजूद ऐंजाइम्स मृत त्वचा की परत को हटा कर उसे नया रूप देते हैं, फैट को कम करते हैं तथा पाचनतंत्र को भी स्वस्थ रखते हैं.

गाजर व चुकंदर: ये महत्त्वपूर्ण विटामिंस व खनिज पदार्थों से भरपूर होने के कारण ऐंटी ऐजिंग को रोकते हैं और त्वचा की बाहरी सतह को ठीक रखने में सहायक रहते हैं. 2 सप्ताह गाजरचुकंदर का रस नियमित पीने से अद्भुत सौंदर्य निखरता है.

लहसुन: यह झुर्रियों की रोकथाम कर के त्वचा के टिशूज को नया जीवन देता है, टौक्सिन से बचाता है. 1-2 कली लहसुन सुबह खाली पेट खाना लाभदायक है. यदि त्वचा पर मुंहासे हों तो लहसुन की कली को उन पर रगड़ने से वे दूर हो जाते हैं.

शकरकंद: इसे एक ऐंटी ऐजिंग फूड माना जाता है, क्योंकि यह विटामिन ए से भरपूर है. इस के नियमित सेवन से त्वचा चिकनी व चमकदार बनी रहती है.

व्हीट जर्म (अंकुरित अनाज): 2-3 बड़े चम्मच व्हीट जर्म अपनी डाइट में शामिल करने से त्वचा संबंधी कुछ समस्याओं, जैसे पिंपल्स व ऐक्ने आदि से बचाव होता है और त्वचा सुंदर बनती है. दही, पनीर आदि में मिला कर इस का प्रयोग किया जा सकता है.

खट्टे फल: नीबू, संतरा, चकोतरा व आंवला त्वचा को स्वस्थ व सुंदर बनाने में विशेष सहायक हैं. इन का सेवन ऐंटीऔक्सीडैंट का काम करता है, इसलिए त्वचा को कोमल, साफ व चमकीला बनाता है. इन के जूस का प्रयोग कुछ दिन लगातार करने से फर्क महसूस होता है.

टमाटर: इस में विटामिन सी व ए दोनों होते हैं. साथ ही पर्याप्त मात्रा में पोटैशियम भी. इस का लाइकोपीन नामक तत्त्व ऐंटीऔक्सीडैंट का काम करता है. टमाटर का प्रयोग त्वचा को सनबर्न से भी बचाता है.

अखरोट व अलसी: ये दोनों ही ओमेगा-3 फैटी ऐसिड के मुख्य स्रोत हैं, इसलिए त्वचा, केशों व हड्डियों को पोषण देते हैं. साथ ही त्वचा की समस्याओं से भी बचाव करते हैं.

डार्क चौकलेट: यह पौष्टिकता व ऐंटीऔक्सीडैंट तत्त्वों से भरपूर होता है. चौकलेट का सेवन धूप से त्वचा को होने वाली हानि से भी बचाता है और रक्तसंचार को बढ़ाता है, जिस से त्वचा का सौंदर्य निखरता है.

ग्रीन टी: यह पौलीफैनौल ऐंटीऔक्सीडैंट नामक तत्त्वों से भरपूर होता है, जो त्वचा को ऐजिंग से बचाते हैं. ग्रीन टी का प्रयोग दिल की बीमारी व कैंसर जैसे रोगों से भी बचाव करता है. इस में मौजूद फ्लैवोनाइड तत्त्व भी त्वचा के लिए लाभकारी है. वह सिस्टम को क्लीन करता है, साथ ही वजन नियंत्रण में कारगर है.

इस के अतिरिक्त किशमिश, लाल व पीली शिमलामिर्च, ब्रोकली, पपीता व बादाम का प्रयोग भी सौंदर्य को निखारने में भरपूर सहयोग देता है.

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मेघ मंडल संस्थान ने सम्मानित किया आठ चित्रकारों को

राजस्थान में विमलेश ब्रिजलाल के नेतृत्व में कार्यरत एनजीओ ‘‘मेघ मंडल संस्थान’’ ने अपने वार्षिक कार्यक्रम चैत्रांजली के चतुर्थ संस्करण के अवसर पर मुंबई के इस्कान आडीटोरियम में आठ भारतीय चित्रकारों को ‘राजा रवि वर्मा पुरस्कार’ से सम्मानित किया. भारतीय कला के इतिहास में राजा रवि वर्मा की गिनती महान चित्रकार के रूप में होती है.

इस सम्मान समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर हरियाणा के राज्यपाल प्रोफेसर कप्तान सिंह सोलंकी खासतौर पर मौजूद थे. इस सम्मान समारोह में शशि बने, शम्पा दास, सुहास निंबालकर, संगीता गुप्ता, श्रीधर अय्यर, अनु नायक, जय जारोटिया व सिद्धार्थ को ‘राजा रवि वर्मा पुरस्कार’ से नवाजा गया.

इस अवसर पर विमलेश ब्रिजलाल ने कहा- ‘‘हम भारतीयों को समृद्ध इतिहास, संस्कृति व पंरपरा आशीर्वाद के तहत मिला है. इससे हम खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं. इसीलिए हम इस पीढ़ी के प्रतिभाशाली कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए तत्पर हैं. हम विभिन्न क्षेत्रों में विकास की अवधारणा को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हैं.’’

इस पुरस्कार समारोह में अभिनेता पंकज बेरी, उद्योगपति विजय कलंत्री, सांसद अरविंद सावंत भी मौजूद थे.

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बंगला फिल्म ‘‘हामी” : बच्चों की मासूमियत से खेलने का दोषी समाज या एक इंसान..’’

भारतीय फिल्म स्टूडियो ‘‘ईरोज इंटरनेशनल’’ ने एक बार फिर बंगला भाषा की फिल्म ‘‘हामी’’ के साथ हाथ मिलाया है. निर्देशक नंदिता रौय और शिबोप्रसाद मुखर्जी की इस फिल्म में खुद शिबोप्रसाद मुखर्जी के साथ गार्गी रौय चैधरी, सुजान मुखर्जी, चुरनी गांगुली, खरज मुखर्जी, कोनिनिका बेनर्जी, अपराजिता आध्या और तनुश्री शंकर ने अहम किरदार निभाए हैं.

18 मई को प्रदर्शित हो रही सामाजिक फिल्म ‘‘हामी’’ में दो बच्चों की खूबसूरत व मासूम शुद्ध प्रेम कहानी देखते हुए हर दर्शक को अपना बचपना याद आएगा. इसी के साथ फिल्म में कई साल उठाए गए हैं, जिनके उत्तर जरुरी हैं. मसलन, जब समाज छोटे छोटे बच्चों में अलगाव पैदा कर उन्हें अकेला कर देता है, तो किसे दोषी ठहराया जाना चाहिए? किसी एक इंसान को या पूरी सामाजिक प्रणाली को? आखिर पालको व शिक्षकों का विश्वास कहां गायब हो गया? हम अपने बच्चों की मासूमियत का सिंचन क्यों नहीं करते हैं?

2014 में सफलतम फिल्म ‘‘रामधेनु’’ में एक मध्यमवर्गीय दंपति द्वारा अपने बच्चे को एक प्रतिष्ठित स्कूल में प्रवेश दिलाने की कोशिश की कहनी पेश की थी. इस फिल्म के सफल होने के बाद नंदिता रौय व शिबो प्रसाद मुखर्जी ने स्कूल में प्रवेश पाने के बाद बच्चों की मनः स्थिति और समाज के दबाव को रेखांकित करने वाली फिल्म बनाने का विचार कर ‘‘हामी’’ बनायी.

फिल्म ‘‘हामी’’ की कहानी स्कूल के दो बच्चों भुटू और चीनी की दोस्ती की है, जो कि बहुत ही अलग अलग पृष्ठभूमि से आते हैं. भुटू के माता पिता समृद्ध और एक बड़ी फर्नीचर की दुकान के मालिक हैं. जबकि चिनी के माता पिता श्रीनिजो व रीना परिस्कृत व अभिजात वर्ग से हैं. शिक्षा जगत से जुड़े हुए हैं. पर भुटू व चीनी की दोस्ती काफी मजबूत है. लेकिन नियति का खेल कुछ ऐसा होता है कि दोनों के माता पिता इन बच्चों को एक दूसरे से अलगकर इनकी दोस्ती तुड़वा देते हैं. हालांकि स्कूल की उपप्रधानाचार्य व छात्रों की कौंसिलर अपनी तरफ से समझाने का भरसक प्रयास करती है. अंततः क्या होता हैं? क्या बच्चों की मासूमियत के सामने माता पिता झुकेंगे या नहीं? यही अहम सवाल है.

इस मकसदपूर्ण फिल्म के साथ जुड़ने की चर्चा करते हुए ‘ईरोज इंटरनेशनल के नंदू आहुजा कहते हैं-‘‘हमने नंदिता व शिबोप्रसाद मुखर्जी के साथ लगातार तीन सफल फिल्मों में हाथ मिलाया है. इनकी फिल्में मनोरंजन के साथ ही मानवीय मूल्यों को भी मजबूती के साथ पेश करती हैं. नई फिल्म ‘’हामी’’ में भी एक अति ज्वलंत व समसामायिक मुद्दे को उठाया गया है.’’

फिल्म के निर्देशक शिबो प्रसाद मुखर्जी कहते हैं- ‘‘बंगला क्षेत्रीय सिनेमा को ‘ईरोज इंटरनेशनल’ भरपूर सहयोग दे रहा है. उनसे मिल रहे लगातार सहयोग के ही चलते हम विशाल दर्शक वर्ग के लिए फिल्में बना रहे हैं. हमारी नई फिल्म “हामी’’ में हमने वही पेश किया है, जो कि हम आए दिन अपने आस पास देखते हैं. स्कूल व पालकों के बीच बढ़ता अविश्वास.’’

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कोकोनट आयल : त्वचा और बालों की सुरक्षा के लिए एक कम्प्लीट पैकेज

नारियल के तेल में विटामिन ई, प्रोटीन, कैल्शियम आदि तत्व सम्मिलित होता है, जो बालों के साथ-साथ आपकी त्वचा के लिए भी बहुत फायदेमंद है. इसके इस्तेमाल से त्वचा मुलायम और बाल घने होते हैं. नारियल का तेल मौइस्चराइजर का काम करता है. ये धूप और धूल से होने वाले डैमेज से भी त्वचा और बालों को बचाता है.

कई बार हमारे मन में सवाल होता है कि नारियल को तेल बालों के लिए तो अच्छा है पर क्या ये हमारी त्वचा के लिए सुरक्षित है? तो इसका जवाब है हां. ब्यूटी एक्सपर्ट का मानना है कि नारियल का तेल बालों और त्वचा के लिए बिल्कुल सुरक्षित है. यह अन्य महंगे कौस्मेटिक और क्रिम से ज्यादा कारगर है. इसका इस्तेमाल मेकअप निकालने के लिए भी किया जा सकता है. मेकअप हटाने के लिए भी यह नेचुरल तरीका है, जो बेहद सुरक्षित है.

बाजार में मिलने वाले कुछ मेकअप रिमूवर्स काफी कठोर होते हैं, खासकर एल्कोहल से बने प्रोडक्ट. इनकी जगह पर आप मेकअप हटाने के लिए नारियल तेल का इस्तेमाल कर सकती हैं. लेकिन ध्यान रखें कि नारियल तेल आर्गेनिक हो, न कि फ्लेवर वाला.

नारियल का तेल त्वचा के अंदर तक पहुंचने के लिए जाना जाता है, जो त्वचा की गहरी सतह तक पहुंचकर त्वचा को कोमल बनाता है. यह रुखी और बेजान त्वचा को नमी देने का काम भी करता है.

जिस भी दिन आपको बाल धोना है उस दिन एक घंटे पहले नारियल के तेल को बालों की जड़ो में लगाएं और हल्के हाथों से मसाज करें इससे आपके बालों को मजबूती मिलती है, साथ ही बाल लम्बे, घने और मजबूत बनते हैं.

रात को सोने से पहले होठों पर जरा सा नारियल को तेल लगा लें. इससे आपके होठ नहीं फटेंगे.

VIDEO : दीपिका पादुकोण तमाशा लुक

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