बंगला फिल्म ‘‘हामी” : बच्चों की मासूमियत से खेलने का दोषी समाज या एक इंसान..’’

भारतीय फिल्म स्टूडियो ‘‘ईरोज इंटरनेशनल’’ ने एक बार फिर बंगला भाषा की फिल्म ‘‘हामी’’ के साथ हाथ मिलाया है. निर्देशक नंदिता रौय और शिबोप्रसाद मुखर्जी की इस फिल्म में खुद शिबोप्रसाद मुखर्जी के साथ गार्गी रौय चैधरी, सुजान मुखर्जी, चुरनी गांगुली, खरज मुखर्जी, कोनिनिका बेनर्जी, अपराजिता आध्या और तनुश्री शंकर ने अहम किरदार निभाए हैं.

18 मई को प्रदर्शित हो रही सामाजिक फिल्म ‘‘हामी’’ में दो बच्चों की खूबसूरत व मासूम शुद्ध प्रेम कहानी देखते हुए हर दर्शक को अपना बचपना याद आएगा. इसी के साथ फिल्म में कई साल उठाए गए हैं, जिनके उत्तर जरुरी हैं. मसलन, जब समाज छोटे छोटे बच्चों में अलगाव पैदा कर उन्हें अकेला कर देता है, तो किसे दोषी ठहराया जाना चाहिए? किसी एक इंसान को या पूरी सामाजिक प्रणाली को? आखिर पालको व शिक्षकों का विश्वास कहां गायब हो गया? हम अपने बच्चों की मासूमियत का सिंचन क्यों नहीं करते हैं?

2014 में सफलतम फिल्म ‘‘रामधेनु’’ में एक मध्यमवर्गीय दंपति द्वारा अपने बच्चे को एक प्रतिष्ठित स्कूल में प्रवेश दिलाने की कोशिश की कहनी पेश की थी. इस फिल्म के सफल होने के बाद नंदिता रौय व शिबो प्रसाद मुखर्जी ने स्कूल में प्रवेश पाने के बाद बच्चों की मनः स्थिति और समाज के दबाव को रेखांकित करने वाली फिल्म बनाने का विचार कर ‘‘हामी’’ बनायी.

फिल्म ‘‘हामी’’ की कहानी स्कूल के दो बच्चों भुटू और चीनी की दोस्ती की है, जो कि बहुत ही अलग अलग पृष्ठभूमि से आते हैं. भुटू के माता पिता समृद्ध और एक बड़ी फर्नीचर की दुकान के मालिक हैं. जबकि चिनी के माता पिता श्रीनिजो व रीना परिस्कृत व अभिजात वर्ग से हैं. शिक्षा जगत से जुड़े हुए हैं. पर भुटू व चीनी की दोस्ती काफी मजबूत है. लेकिन नियति का खेल कुछ ऐसा होता है कि दोनों के माता पिता इन बच्चों को एक दूसरे से अलगकर इनकी दोस्ती तुड़वा देते हैं. हालांकि स्कूल की उपप्रधानाचार्य व छात्रों की कौंसिलर अपनी तरफ से समझाने का भरसक प्रयास करती है. अंततः क्या होता हैं? क्या बच्चों की मासूमियत के सामने माता पिता झुकेंगे या नहीं? यही अहम सवाल है.

इस मकसदपूर्ण फिल्म के साथ जुड़ने की चर्चा करते हुए ‘ईरोज इंटरनेशनल के नंदू आहुजा कहते हैं-‘‘हमने नंदिता व शिबोप्रसाद मुखर्जी के साथ लगातार तीन सफल फिल्मों में हाथ मिलाया है. इनकी फिल्में मनोरंजन के साथ ही मानवीय मूल्यों को भी मजबूती के साथ पेश करती हैं. नई फिल्म ‘’हामी’’ में भी एक अति ज्वलंत व समसामायिक मुद्दे को उठाया गया है.’’

फिल्म के निर्देशक शिबो प्रसाद मुखर्जी कहते हैं- ‘‘बंगला क्षेत्रीय सिनेमा को ‘ईरोज इंटरनेशनल’ भरपूर सहयोग दे रहा है. उनसे मिल रहे लगातार सहयोग के ही चलते हम विशाल दर्शक वर्ग के लिए फिल्में बना रहे हैं. हमारी नई फिल्म “हामी’’ में हमने वही पेश किया है, जो कि हम आए दिन अपने आस पास देखते हैं. स्कूल व पालकों के बीच बढ़ता अविश्वास.’’

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कोकोनट आयल : त्वचा और बालों की सुरक्षा के लिए एक कम्प्लीट पैकेज

नारियल के तेल में विटामिन ई, प्रोटीन, कैल्शियम आदि तत्व सम्मिलित होता है, जो बालों के साथ-साथ आपकी त्वचा के लिए भी बहुत फायदेमंद है. इसके इस्तेमाल से त्वचा मुलायम और बाल घने होते हैं. नारियल का तेल मौइस्चराइजर का काम करता है. ये धूप और धूल से होने वाले डैमेज से भी त्वचा और बालों को बचाता है.

कई बार हमारे मन में सवाल होता है कि नारियल को तेल बालों के लिए तो अच्छा है पर क्या ये हमारी त्वचा के लिए सुरक्षित है? तो इसका जवाब है हां. ब्यूटी एक्सपर्ट का मानना है कि नारियल का तेल बालों और त्वचा के लिए बिल्कुल सुरक्षित है. यह अन्य महंगे कौस्मेटिक और क्रिम से ज्यादा कारगर है. इसका इस्तेमाल मेकअप निकालने के लिए भी किया जा सकता है. मेकअप हटाने के लिए भी यह नेचुरल तरीका है, जो बेहद सुरक्षित है.

बाजार में मिलने वाले कुछ मेकअप रिमूवर्स काफी कठोर होते हैं, खासकर एल्कोहल से बने प्रोडक्ट. इनकी जगह पर आप मेकअप हटाने के लिए नारियल तेल का इस्तेमाल कर सकती हैं. लेकिन ध्यान रखें कि नारियल तेल आर्गेनिक हो, न कि फ्लेवर वाला.

नारियल का तेल त्वचा के अंदर तक पहुंचने के लिए जाना जाता है, जो त्वचा की गहरी सतह तक पहुंचकर त्वचा को कोमल बनाता है. यह रुखी और बेजान त्वचा को नमी देने का काम भी करता है.

जिस भी दिन आपको बाल धोना है उस दिन एक घंटे पहले नारियल के तेल को बालों की जड़ो में लगाएं और हल्के हाथों से मसाज करें इससे आपके बालों को मजबूती मिलती है, साथ ही बाल लम्बे, घने और मजबूत बनते हैं.

रात को सोने से पहले होठों पर जरा सा नारियल को तेल लगा लें. इससे आपके होठ नहीं फटेंगे.

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कितना जानते हैं आप अपने ATM के बारे में?

आजकल हम कैश निकालने के लिए रोजाना ATM (ऑटोमेटेड टेलर मशीन) का प्रयोग करते हैं. यह आज हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का एक जरूरी हिस्सा बन चुकी है. लेकिन ऐसी बहुत सी बातें हैं जो शायद आप ATM के बारे में नहीं जानती होंगी. आइए, आज हम आपको ATM के बारे में कुछ मजेदार फैक्ट्स बताते हैं.

कब हुआ था ATM का आविष्कार?

ATM एक टेलिकम्युनिकेशन डिवाइस है जो बिना किसी कैशियर के बैंक और कस्टमर के बीच फाइनैंशल ट्रांजैक्शन करती है. इस कॉन्सेप्ट पर पहली मशीन शायद जापान में 1966 में लगाई गई थी. ऐसा माना जाता है कि पहली कैश मशीन जिससे कस्टमर अपने अकाउंट से नकदी निकाल सकते थे, 1967 में ब्रिटेन में बार्कलेज बैंक द्वारा स्थापित की गई थी. इसमें ग्राहक को कैश लेने के लिए बैंक का चेक डालकर अपना 6 डिजिट का पिन डालना होता था.

आखिर कैसे काम करता है ATM?

ATM एक डेटा टर्मिनल है जो एक ATM कंट्रोलर से जुड़ा रहता है. यह ठीक वैसा ही है जैसे कोई कंप्यूटर किसी इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर से जुड़ा रहता है. इसे EFTPOS (इलैक्ट्रॉनिक फंड्स ट्रांसफर ऐट पॉइंट ऑफ सेल) स्विच के नाम से जाना जाता है.

अलग-अलग बैंकों के बीच कैसे होता है ट्रांजैक्शन?

शुरू में ATM केवल एक ही बैंक से जुड़े रहते थे जिससे कस्टमर केवल अपने बैंक की मशीन से ही कैश निकाल सकता था. बाद में लागत कम करने के लिए बैंकों ने एक ATM कन्सॉर्शियम बनाया जो एक कंप्यूटर नेटवर्क है. यह नेटवर्क सभी बैंकों के ATM से जुड़ा रहता है. यह EFTPOS टर्मिनल से भी जुड़ा रहता है जिससे कहीं भी कार्ड के जरिए वस्तु और सेवाएं लेने पर बैंक तक ट्रांजैक्शन की सारी जानकारी पहुंच जाती है.

भारत का अपना नेटवर्क

नैशनल फाइनैंशल स्विच (NFS) भारत का सबसे बड़ा इंटरबैंक नेटवर्क है. इस नेटवर्क से लगभग 2 लाख ATM और 90 से भी ज्यादा बैंक जुड़े हुए हैं. NFS के अलावा देश में कैशनेट, इमीडिएट पेमेंट सर्विस, बैंक्स एटीएम नेटवर्क, कस्टमर सर्विसेज आदि इंटरबैंक नेटवर्क काम कर रहे हैं.

कार्ड असोसिएशन क्या है?

कार्ड असोसिएशन किसी भी बैंक के कार्ड प्रोग्राम को लाइसेंस देता है और अलग-अलग नेटवर्क पर ट्रांजैक्शन करने के लिए टेक्नॉलजी और ऐक्सेस देता है. यह असोसिएशन अपने मेंबर बैंक के लिए ऑपरेशनल फंक्शन का काम करते हैं. चाइना यूनीपे, वीजा, मास्टरकार्ड, अमेरिकन एक्सप्रेस, डिनर्स क्लब आदि दुनिया के कुछ बड़े कार्ड असोसिएशन हैं. भारत ने भी अपने घरेलू ट्रांजैक्शन के लिए ऐसी ही पेमेंट सर्विस शुरू की है जिसे रूपे (RuPay) नाम दिया गया है.

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फिल्म रिव्यू : होप और हम

‘लोगों से प्यार करो, चीजों से नहीं’ सहित कई छोटे छोटे संदेश देने वाली फिल्म ‘‘होप और हम’’ जिंदगी के छोटे छोटे पलों के साथ ही आशा व उम्मीदों की बात करती है. इंसानी भावनाओं की सीधी सादी कहानी के साथ फिल्म में लघु प्रेम कहानी भी है.

फिल्म की कहानी मुंबई के एक मध्यमवर्गीय परिवार की है. जिसके मुखिया नागेश श्रीवास्तव (नसिरूद्दीन शाह) हैं. उनके दो बेटे नीरज (अमीर बशीर) व नितिन (नवीन कस्तूरिया) हैं. नितिन दुबई में नौकरी कर रहा है. नीरज की पत्नी अदिति (सोनाली कुलकर्णी) और उनकी बेटी तनु (वृति वघानी) व बेटा अनुराग (मास्टर कबीर साजिद) है. अनुराग को क्रिकेट का शौक है. नागेश श्रीवास्तव के पास एक जर्मन कंपनी की एक फोटो कापी मशीन है, जिसे वह मिस्टर सोनेकेन बुलाते रहते हैं. जिसका लेंस खराब हो गया है, इसलिए अब फोटो कापी सही नहीं निकलती, परिणामतः हर ग्राहक उन्हे दस बातें सुनाकर चला जाता है.

अदिति चाहती हैं कि उनके ससुर जी अब उस मशीन को बेच दें,तो उस जगह पर तनु के लिए एक कमरा बन जाए. जबकि नागेश का फोटो कापी मशीन से दिल का लगाव है और वह अपने काम को एक कलात्मक काम मानते हैं. वह मशीन के लिए लेंस तलाश रहे हैं. इसके लिए उनकी पोती तनु कंपनियों को ईमेल भेज कर लेंस के बारे में पूछताछ करती रहती है, पर हर बार उसे एक ही जवाब मिलता है कि उस फोटोकापी मशीन का लेंस नही है. मगर नागेश को उम्मीद है कि फोटो कापी मशीन का लेंस जरुर मिलेगा.

इसी बीच अनुराग की नानी (बीना बनर्जी) के बुलावे पर नीरज व अनुराग राजपीपला में उनकी पुरानी कोठी पर जाते हैं, जहां अनुराग के मामा, नानी की इच्छा के बगैर कोठी को होटल बनाने के लिए किसी को बेच रहे हैं. नानी की कोठी में अनुराग अपने नाना के कमरेमें जाता है और उनकी किताबें पढ़ने के साथ ही संगीत सुनता रहता है. एक दिन वह क्रिकेट खेलने निकलता है और गेंद कोठी के एक कमरे में जाती है तो जब वह गेंद लेन जाता है,तो उसके साथ एक ऐसा हादसा होता है, जिससे वह अपराधबोध से ग्रसित हो जाता हे और फिर उसका व्यवहार ही बदल जाता है.

इधर अनुराग का चाचा दुबई से वापस आता है, वह हर किसी के लिए कुछ न कुछ उपहार लेकर आया है. वह अपने पिता नागेश के लिए नई फोटोकापी यानी मशीन लेकर आया है. एक दिन नाटकीय तरीके से पिता को नई मशीन पर काम करने के लिए राजी कर लेता है. जबकि इस बार नागेश ने जर्मन भाषा में तनु से एक कंपनी को लेंस के लिए ईमेल भिजवाया है. नागेश अपनी फोटोकापी मशीन को बेचकर उस जगह पर तनु के लिए कमरा बनवा देते हैं. नागेष अपना मोबाइल फोन टैक्सी में भूल गया है. पर उसे उम्मीद है कि उसका मोबाइल फोन मिल जाएगा.

एक दिन एक लड़की उसका फोन उठाती है और मोबाइल फोन लेने के लिए काफीशौप बुलाती है, पर कई घंटे इंतजार के बाद जब नितिन वापस लौटने लगता है तो वही लड़की (नेहा चौहान) नाटकीय तरीके से उसे औटोरिक्शा में उसका मोबाइल फोन वापस देकर गायब हो जाती है. बाद में अनुराग की नानी, नितिन की शादी के लिए उसी लड़की की फोटो दिखाती है. इतना ही नही नागेश को जर्मन कंपनी से लेंस मिलने की खबर मिलती है. पर अब नागेश क्या करे, उन्होंने तो फोटोकौपी मशीन बेच दी. इससे अदिति को भी तकलीफ होती है. दुबारा अपनी नानी के घर जाने पर अनुराग के मन का अपराध बोध गलत साबित होता है. और वह फिर से क्रिकेट खेलने वाला पहले जैसा अनुराग बन जाता है. यानी कि फिल्म में हर किरदार की उम्मीदें पूरी होती हैं.

फिल्मकार सुदीप बंदोपाध्याय ने नसीहते देने व उम्मीदों के पूरे होने की बात करने वाली फिल्म का कथा कथन शैली बहुत बचकानी रखी है. यदि सुदीप बंदोपाध्याय ने एक खुशनुमा फिल्म बनाने का प्रयास किया होता, तो इंसानी बदलाव व विकास की एक बेहतर फिल्म बन सकती थी. मगर फिल्म देखते हुए अहसास होता है जैसे कि वह लोगों को धूल से सने फोटो अलबम में झांकने के लिए कह रहे हों. फिल्म जीवन की मीठी मगर व्यर्थताओं को पकड़ने की कोशिश है. फिल्म में नवीनता नहीं है. इस तरह की कोशिशें अतीत में‘फाइंडिंग फैनी’ और ‘ए डेथ इन द गंज’ फिल्मों में भी की जा चुकी हैं. इतना ही नहीं उम्मीदों व आशा की बात करते करते पटकथा लेखक द्वय सुदीप बंदोपध्याय व नेहा पवार तकदीर की बात कर फिल्म पर से अपनी पकड़ खो देते हैं. फिल्म का गीत संगीत फिल्म की संवेदनशीलता को खत्म करने काम काम करता है.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो नागेश के किरदार को नसिरूद्दीन शाह ने बाखूबी निभाया है. नसिरूद्दीन शाह के सामने बाल कलाकार कबीर साजिद ने बेहतरीन परफार्मेंस देकर इशारा कर दिया है कि वह आने वाले कल का बेहतरीन कलाकार है. सोनाली कुलकर्णी, अमीर बशीर व नवीन कस्तूरिया भी ठीक ठाक रहे.

एक घंटा 35 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘होप और हम’’ का निर्माण समीरा बंदोपाध्याय ने किया है. सह निर्माता दिव्या गिरीशशेट्टी, लेखक सुदीप बंदोपाध्याय व नेहा पवार, निर्देशक सुदीप बंदोपाध्याय, संगीतकार रूपर्ट फेंमंडेस, कैमरामैन रवि के चंद्रन तथा कलाकार हैं- नसिरूद्दीन शाह, सोनाली कुलकर्णी, अमीर बशीर, नवीन कस्तूरिया, मास्टर कबीर साजिद, वृति वघानी व अन्य.

फिल्म रिव्यू : राजी

‘फिलहाल’, ‘जस्ट मैरिड’, ‘तलवार’ जैसी फिल्मों की निर्देशक मेघना गुलजार इस बार हर वतन परस्त इंसान के दिल की बात करने वाले तोहफे के तौर पर रोमांचक फिल्म ‘‘राजी’’ लेकर आयी हैं. हरिंदर सिक्का की किताब ‘कालिंग सहमत’ पर आधारित फिल्म‘‘राजी’’ एक भारतीय अंडरकवर की सच्ची कहानी है, जो कि हर इंसान के दिल में देशप्रेम जगाती है. इसी के साथ यह फिल्म इस तरफ भी इशारा करती है कि युद्ध अनावश्यक है, युद्ध सही या गलत नहीं पहचानता. युद्ध तो सिर्फ अंधेरे व क्रूरता का परिचायक है. फिल्मकार मेघना गुलजार ने फिल्म में सहमत के साहस का जश्न मनाने से परे कई सवाल भी उठाए हैं.

फिल्म ‘‘राजी’’ की कहानी 1971 के भारत पाक युद्ध की पृष्ठभूमि की है. कहानी शुरू होती है पाकिस्तान से, जो कि तत्कालीनबांग्लादेश की मुक्तिवाहिनी सेना का भारत द्वारा साथ दिए से नाराज होकर भारत को नेस्तानाबूद करने के मंसूबे के साथ युद्ध की तैयारी कर रहा है. पाकिस्तानी सेना के ब्रिगेडियर परवेज सय्यद (शिशिर शर्मा) के साथ कश्मीर निवासी भारतीय उद्योगपति हिदायत खान (रजित कपूर) की बहुत अच्छी दोस्ती है, पर ब्रिगेडियर परवेज सय्यद को इस बात की भनक नहीं है कि हिदायत खान वतन परस्त होने के साथ साथ हिंदुस्तान की ‘रा’ एजेंसी को जानकारी देने का काम भी करते हैं.

हिदायत खान के पिता भी स्वतंत्रता सेनानी और भारतीय सुरक्षा एजेंसी के लिए काम करते थे. हिदायत खान का पाकिस्तान आना जाना लगा रहता था. जब हिदायत खान को पाकिस्तानी ब्रिगेडियर परवेज सय्यद के मुंह से पाकिस्तानी सेना के मंसूबे का पता चलता है तो वह सच जानकर भारत को सुरक्षित रखने के लिए एक अहम फैसला लेते हैं. हिदायत खान अपनी बीमारी का वास्ता देकर दोस्ती को रिश्तेदारी में बदलने की बात कर दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्ययनरत अपनी बेटी सहमत (आलिया भट्ट) का विवाह ब्रिगेडिर परवेज सय्यद के बेटे व पाकिस्तानी सेना के मेजर इकबाल (विकी कौशल) के संग करने की गुजारिश करते हैं, जिसे परवेज सय्यद सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं.

सहमत बहुत ही ज्यादा नाजुक व अति भावुक साधारण कश्मीरी लड़की है. उसे इस बात का तब तक अहसास नहीं होता, जब तक उसके पिता उसे वापस कश्मीर नहीं बुलाते हैं कि उसके पिता ने उसके भविष्य को लेकर पाकिस्तान में कितना बड़ा फैसला कर आए हैं. जब सहमत पहलगाम, कश्मीर अपने घर पहुंचती है, तो हिदायत खान सहमत की मां तेजी (सोनी राजदान) के सामने ही बताते हैं किउन्होंने सहमत की शादी इकबाल संग कराने का फैसला किस मकसद से लिया है.

वतन के लिए परेशान अपने पिता हिदायत खान को देखकर सहमत बिना देर किए हामी भर देती है. उसके बाद वह पाकिस्तान जाकर अपने वतन भारत की कान व आंख बनने के लिए पूरी तैयारी करने में जुट जाती है. वह बेहतरीन भारतीय जासूस बनने के लिए ‘रा’एजेंट खालिद मीर (जयदीप अहलावत) से प्रशिक्षण लेना शुरू करती है. प्रशिक्षण के दौरान उसे काफी तकलीफ होती है, पर इससे वह मजबूत होती जाती है.

पूर्णरूपेण प्रशिक्षित होने पर इकबाल से सहमत की शादी होती है और वह एक बेटी से बहू बनकर भारत की दहलीज पार कर पाकिस्तान पहुंचती है. दुश्मन देश में अपनी ससुराल व अपने पति के दिल में जगह बनाते हुए सहमत अपने वतन भारत के खिलाफ पाकिस्तानी सेना द्वारा रचे जा रहे षडयंत्र की जानकारी इकट्ठा कर भारत में ‘रा’ के पास पहुंचाना शुरू करती है. एक सैनिक परिवार की बहू के रूप में सैनिक परिवार  के अंदर रहकर यह सब करना उसके लिए बहुत कठिन होता है, पर उस पर अपने वतन के लिए कुछ भी कर गुजरने का ऐसा भूत सवार है कि वह हर संकट का मुकाबला करते हुए अपने मकसद में कामयाब होती है. उसे दो लोगों की हत्या करने के साथ ही कई ऐसे फैसले लेने पड़ते हैं, जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी.

इस कहानी के बीच में सहमत व इकबाल की बड़ी खूबसूरत छोटी सी प्रेम कहानी भी पनपती है. बहरहाल, सहमत द्वारा भेजी गयी अहम जानकारी की वजह से भारत, पाकिस्तान के खिलाफ जंग जीतने में कामयाब होता है. पर अंतिम वक्त में इकबाल को पता चल जाता है कि सहमत ने पाकिस्तानी सेना द्वारा रचे जा रहे षडयंत्र की जानकारी भारत भेज दी है. वह अपने वतन के लिए सहमत के खिलाफ अपने देश की जांच एजेंसी को खबर करता है. जबकि खालिद मीर अपने साथियों के साथ सहमत को पाकिस्तान से सुरक्षित निकालने के  लिए पहुंच जाता है. पर कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. जिसमें इकबाल मारे जाते हैं. पर सहमत को लेकर खालिद मीर व उसके साथी भारत पहुंच जाते हैं. अब सहमत खुद को जासूसी के काम से अलग कर लेती है. वह इकबाल के बेटे को जन्म नहीं देना चाहती. मगर वह एक मां और एक औरत भी है.

मेघना गुलजार ने एक बार फिर साबित कर दिखाया कि उन्हें  कहानी व किरदारों पर अपने निर्देशकीय कौशल से पकड़ बनाए रखने में महारत हासिल है. अपनी पिछली फिल्मों के मुकाबले वह इस फिल्म से ज्यादा बेहतरीन निर्देशक के रूप में उभरती हैं. फिल्म बहुत तेज गति से भागती है और दर्शकों को अपनी सीट पर चिपके रहने के लिए मजबूर करती है. निर्देशक के तौर पर मेघना गुलजार ने फिल्म को फिल्माने के लिए लोकेशन भी बहुत सही चुनी है. मेघना गुलजार ने फिल्म मे जिस तरह से मानवीय भावनाओं व संवेदनाओं को उकेरा है, उसके लिए भी वह बधाई की पात्र हैं.

मेघना गुलजार ने अपनी फिल्म में देशप्रेम को जगाने के लिए कोई देशभक्ति वाला भाषण नहीं परोसा है. उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ जहर उगलने वाले उत्तेजक या विरोधात्मक भाषण से भी दूरी बनाए रखी है. लेकिन अति जटिल व्यक्तियों का समूह अपने ईद गिर्द की परिस्थितियों से निपटने का जिस तरह से प्रयास करता है, उसी से देशप्रेम अपने आप उभरकर आता है.

अमूमन किताब को सेल्यूलाइड के परदे पर लाते समय पटकथा लेखक पूरी कहानी व फिल्म का बंटाधार कर देता है. मगर ‘कालिंग सहमत’ को फिल्म ‘राजी’ के रूप में पेश करने के लिए पटकथा लेखकद्वय मेघना गुलजार व भवानी अय्यर की तारीफ की जानी चाहिए.

फिल्म ‘‘राजी’’ पूर्ण रूपेण आलिया भट्ट की फिल्म है. आलिया भट्ट के जानदार अभिनय की जितनी तारीफ की जाए, उतनी कम है. वह पूरी फिल्म को अपने कंधे पर लेकर चलती हैं. दर्शक उनकी खूबसूरती, उनकी मासूमियत व उनकी अभिनय प्रतिभा का कायल होकर रह जाता है. सहमत को परदे पर सही मायनों में आलिया भट्ट ने अपने अभिनय से जीवंत किया है. संगीत प्रेमी मेजर इकबाल के किरदार को विकी कौशल ने खूबसूरती से निभाया है. संतुलित व संजीदा सैनिक, अपनी पत्नी सहमत के वतन के खिलाफ उसके सामने होने वाली बातों से पत्नी के मन को लगने वाली ठेस का अहसास करने के दृश्य में विकी कौशल एक मंजे हुए कुशल अभिनेता के रूप में उभरते हैं. तो वहीं ‘रा’ एजेंट खालिद मीर के किरदार में जयदीप अहलावत भी अपने अभिनय से लोगो के दिलों में जगह बना ही लेते हैं. रजित कपूर, शिशिर शर्मा, आरिफ जकरिया, सोनी राजदान आदि ने भी अपनी तरफ से सौ प्रतिशत देने का प्रयास किया है.

जहां तक फिल्म के गीत संगीत का सवाल है, तो वह भी काफी बेहतर बन पड़े हैं. फिल्म के कथानक के साथ ‘दिलबरो’, ‘ऐ वतन’ व‘राजी’ गाने काफी बेहतर लगे हैं. गीतकार गुलजार और संगीतकार की तिकड़ी शंकर एहसान लौय ने कमाल दिखा ही दिया.

दो घंटे बीस मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘राजी’’ का निर्माण विनीत जैन, करण जोहर, हीरू यश जोहर व अपूर्वा मेहता ने किया है. हरिंदर सिक्का की किताब ‘‘कालिंग सहमत’’ पर आधारित इस फिल्म की पटकथा लेखक भवानी अय्यर व मेघना गुलजार, निर्देशक मेघना गुलजार, गीतकार गुलजार, संगीतकार शंकर एहसान लौय, कैमरामैन जय आई पटेल तथा फिल्म को अभिनय से संवारने वाले कलाकार हैं-आलिया भट्ट, विक्की कौशल, रजित कपूर, शिशिर शर्मा, अमृता खानविलकर, जयदीप अहलावत, अश्वथ भट्ट, सोनी राजदान व अन्य.

सिक्किम का ताज: गुरुडोंगमार झील

सिक्किम की खूबसूरतियों के बीच यहां का सबसे प्रमुख पर्यटक स्थल है गुरुडोंगमार झील जो हिमालय पर्वत पर स्थित सबसे ऊंचे झीलों में से एक है. चलिए आज इसी अद्भुत झील की सैर पर चलते हैं.

गुरुडोंगमार झील

सिक्किम के लाचेन में लगभग 5430 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है गुरुडोंगमार झील. यह झील कंचनजंगा पर्वतमला के उत्तर पूर्व में स्थित है. यह चीन की सीमा से केवल 5 किलोमीटर की दूरी पर है. ठंड के मौसम, नवंबर से मई के महीने में यह झील पूरी तरीके से जम जाता है. इस झील से एक प्रवाह त्शो लामो झील को इस झील से जोड़ती है और फिर यहां से तीस्ता नदी का उद्गम होता है.

धार्मिक रूप से यह झील बौद्ध और सिक्ख धर्म, दोनों का पवित्र स्थल है. कहा जाता है कि, जब गुरु पद्मसम्भवा तिब्बत की यात्रा पर थे तब उन्होंने इस झील को ही अपनी उपासना के लिए सबसे सही जगह के रूप में चुना था. गुरु नानक जी से भी संबंधित कथा यहां पर प्रचलित है. उनकी कथा भी गुरु पद्मसम्भवा की कथा से मिलती जुलती है.

दूर दूर तक फैला नीला जल और पार्श्व में बर्फ से लदी श्वेत चोटियां गाहे बगाहे आते जाते बादलों के झुंड से गुफ्तगू करती दिखाई पड़ती हैं. झील के दूसरी ओर सुनहरे पत्थरों के पीछे नीला आकाश एक और खूबसूरत परिदृश्य को दर्शाते हैं. यहां झील के किनारे एक सर्वधर्म प्रार्थना स्थल भी है. गुरुडोंगमार झील की यात्रा आप एक दिन में ही पूरी कर लेंगे. उसके बाद यहां के आसपास की खूबसूरती का भी मजा ले सकते हैं.

रहने की सुविधा:

गुरुडोंमार झील पहुंचने के लिए सबसे पहले आपको लाचेन पहुंचना होगा जहां आप थोड़ी देर रुककर आराम भी कर सकते हैं. लाचेन में होटल की सुविधा आपको आराम से मिल जाएगी.

गुरुडोंगमार कैसे पहुंचे?

सड़क द्वारा: गुरुडोंगमार झील पहुंचने के लिए आपको सबसे पहले लाचेन पहुंचना होगा, जहां आप गैंगटोक से 4 या 5 घंटे का सफर तय कर आराम से पहुंच सकते हैं. लाचेन से गुरुडोंमार झील तक आप सिर्फ 3 से 4 घंटों में पहुंच जाएंगे. बस की सुविधा या फिर निजी कैब और टैक्सी की सुविधा भी उपलब्ध हैं.

रेल यात्रा द्वारा: गुरुडोंगमार झील का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है न्यू जलपाईगुड़ी है, जो भारत के अन्य प्रमुख शहरों से आसानी से जुड़ा है.

हवाई यात्रा द्वारा: यहां का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा बागडोगरा है जो सिलिगुड़ी के नजदीक है. यहां से गंगटोक लगभग 124 किलोमीटर की दूरी पर है.

यहां जाने का उचित समय

यह झील ज्यादातर मौसमों में जम जाता है, अप्रैल से जुलाई के महीने यहां की यात्रा का सबसे सही समय है.

सिक्किम में अन्य आकर्षक स्थल

गुरुडोंगमार झील के साथ-साथ सिक्किम में कई सारे अन्य आकर्षक केंद्र हैं. चांगु झील, त्शो लामो झील, लाचेन, नामची, ज़ुलुक, यूंतांग घाटी, युक्सोम, नाथुला पास, रवंगला, आदि जैसे क्षेत्र सिक्किम को एक पर्फेक्ट पर्यटक स्थल बनाते हैं.

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पुराने टूथब्रश से करें घर के सामान की सफाई

आपके डेंटिस्ट ने आपसे कहा होगा जब टूथब्रश पुराना हो जाये तो उसे फेंक दें. लेकिन आज हम आपको कहेंगे कि नहीं उसे अपने पास रखें, क्योंकि वह आपके काम आएगा. पुराने टूथ ब्रश के ब्रिसल हार्ड हो जाते हैं जिससे कई सारी चीजें आसानी से साफ हो जाती हैं.

जैसे जूते, स्टोव, और आपका हेयरब्रश यह सब टूथ ब्रश से आसानी से साफ़ हो जाता है. ब्रश के ब्रिसल जितने हार्ड होंगे उतनी ही अच्छा सफाई करेंगे. आपके घर की सफाई टूथ ब्रश के साथ और आसान हो जायेगी अगर आप उसके साथ थोड़े डिटर्जन्ट का इस्तेमाल दाग साफ़ करने के लिए करेंगे और खूशबू के लिए नींबू से रस इस्तेमाल कर सकते हैं.

गंदे जूते

सुबह आपको ऑफिस जाना है मगर आपके जूते गंदे हैं. तो पुराने टूथब्रश से अपने जूतें साफ करें. टूथब्रश को थोड़े डिटर्जेंट के घोल में डुबायें और उससे जूते पर लगी मिट्टी को साफ करें.

स्टोव

किचन स्टोव से आस पास खाने पीने की गन्दगी को पुराने टूथब्रश से साफ किया जा सकता है टूथ ब्रश को साबुन के घोल में डुबोएं और रगड़ कर साफ करें सब आसानी से साफ हो जायेगा.

गंदे कपड़े

वॉशिंग मशीन में कपड़े धोने के बाद भी अगर उस पर दाग रह जाते हैं तो उसे पुराने टूथ ब्रश से साफ़ करें. ब्रश को दाग पर गोल गोल रगड़ें इससे जिद्दी दाग साफ हो जाएंजगे.

कंघी

कंघी में फसे आपके बाल और गन्दगी को टूथ ब्रश से साफ किया जा सकता है. तो क्यों ना आप अपने घर की सफाई कंघी और हेयर ब्रश से करें.

कॉफी मेकर

कॉफी मेकर का ढक्कन खोलें फिर उसमें एक चम्मच सिरका और एक चम्मच पानी डालें अब उसे अच्छे से ब्रश से रगड़ें जिससे जमा हुई गन्दगी साफ हो जाये.

बाथरूम टाइल्स

अपने बाथ रूम टाइल्स को भी आप टूथ ब्रश से साफ कर सकते हैं. इसके लिए आपको थोड़ा डिटर्जेंट पाउडर और नींबू की जरुरत पड़ेगी. अब टाइल्स के बीच में अच्छे से रगड़ें जिससे उसमें फसी गंदगी निकल जाए.

सिंक और बाथरूम आउटलेट

पुराने टूथ ब्रश से सिंक और बाथरूम आउटलेट को भी आसानी से साफ किया जा सकता है. ब्रश से रगड़ कर सिंक और फॉसट को साफ करें.

डस्टी लैंपशेड्स

पुराने टूथ ब्रश से आप गंदे लैंपशेड्स भी साफ कर सकते हैं. टूथ ब्रश को गीला करें और धीरे धीरे साफ करें लैंप शेड आसानी से साफ हो जायेगा.

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आपके लिए पेश हैं ये क्विक समर हेयरस्टाइल

  1.  बालों की अच्छी तरह से कौंबिंग करें. फिर टेलकौंब की सहायता से बीच की मांग आगे से पीछे तक निकाल कर बालों के 2 पार्ट बनाएं.
  2. अब एक साइड के बालों की कान के पीछे रबड़बैंड से पोनी बनाएं.
  3.  फिर दूसरी साइड के बालों के टेलकौंब की सहायता से 1 पार्ट बनाएं. अब बालों का पहला भाग टेलकौंब की सहायता से ऊपर से लें और उसे ट्विस्ट करते हुए पोनी में लपेट कर बौबपिन से सैट करें.
  4. ऐसे ही एकएक कर के 2 पार्ट और बनाएं और उन्हें पहले वाले पार्ट की तरह ट्विस्ट करते हुए पोनी में लपेटें और बौबपिन से सैट करें.
  5. पोनी के बालों की कौंबिंग करें.
  6. अब बालों में फिनिशिंग देने के लिए हेयरस्प्रे डालें और फ्रैश फ्लौवर से इसे डैकोरेट करें. हेयरस्टाइल बनने के बाद पीछे से ऐसा स्टाइल खूबसूरत दिखेगा.
  7. फ्रंट से इस का नीट लुक दिखाई देगा

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जानवरों में भगवान देखने का खमियाजा भुगतता शहर

धर्म की नगरी काशी ऐसी जगह है जहां जानवरों में भी भगवान बसते हैं. वैसे तो हर मनुष्य में भगवान बसते हैं, ऐसा धर्मगुरुओं का कहना है. पर जब एक आदमी दूसरे आदमी की हत्या करता है तब उसे भगवान क्यों  नजर नहीं आते. वहीं पशुओं में भगवान का रूप देख कर हर हिंदू उन्हें मारने से बचता है. भले ही वे जानवर इनसानों को मारने या क्षति पहुंचाने में कोताही न बरतते हों मगर हिंदू बरतते हैं. इसी का कुपरिणाम है कि ऐसे जानवरों का उपद्रव बढ़ता जा रहा है.

मंदिरों के शहर काशी में भले ही मेहनत से कुछ न मिले पर धर्म के नाम पर अच्छी कमाई हो जाती है. कुछ नहीं तो एक मरे हुए बंदर को सड़क पर रख दीजिए. फिर देखिए आननफानन में सैकड़ों रुपए उस बंदर की अंत्येष्टि के नाम पर जमा हो जाएंगे. फिर कीजिए न ऐश, कौन देखता है?

जानवरों में भगवान देखने का ही नतीजा है कि यहां ऐसे जानवरों की भरमार हो गई है, जो आएदिन इनसानों को मारते या काटते रहते हैं. जैसे बंदरों को ही लें. ये हर धर्मस्थलों पर बेखौफ घूमते हैं. अब भला किस में हिम्मत है, जो इन्हें मारने की जुरअत करे?

इनसानों से ज्यादा जानवरों को अहमियत

आज काशी में बंदरों की संख्या जिस तरीके से बढ़ गई है, उस से आम आदमी का जीना हराम हो गया है. समूह में रहने वाले ये बंदर मनुष्यों द्वारा काटे गए जंगलों से भाग कर शहरों में आ धमकते हैं और खानेपीने के सामानों के लिए इनसानों पर आएदिन हमला करते हैं. उस पर तुर्रा यह कि कोई इन्हें मार नहीं सकता. मारने का लाइसैंस लिया जा सकता है, तो भी रुद्रावतार हनुमान के वंशज को मार कर कोई पाप का भागीदार नहीं बनना चाहता.

एक अध्यापक महोदय ने कुछ बंदरों को गोली मार दी. यह समाचार जंगल में आग की तरह फैल गया. धर्मभीरु जनता के लिए यह महापाप था, इसलिए स्थानीय पार्षद की अगुआई में लोग थाने के बाहर धरनाप्रदर्शन करने लगे. फिर जब उस अध्यापक महोदय के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई, तब लोगों ने चैन की सांस ली. इनसानों से ज्यादा जानवरों और पत्थरों को अहमियत देने वाले समाज से इस से बेहतर और कोई अपेक्षा नहीं की जा सकती.

काशी विश्वनाथ मंदिर के आसपास के कई बंदरों को मधुमेह था, जिस के चलते वे चिड़चिड़े हो गए थे. मधुमेह होने का कारण, दर्शनार्थियों द्वारा इन्हें खिलाए जाने वाला प्रसाद यानी पेड़ा था. इन की वजह से आसपास के लोगों का जीना हराम हो गया था.

जनता की परेशानियों को देखते हुए नगर निगम ने मथुरा से इन्हें पकड़ने के लिए एक खास टीम बुलवाई. टीम द्वारा लगभग 200 से ज्यादा बंदरों को पकड़ कर करीब के जंगल में छोड़ दिया गया. तब जड़बुद्धि धर्मभीरु इस का विरोध करने लगे. विरोध का कारण यह था कि रुद्रावतार हनुमान के वंशजों को कैसे जिलाबदर किया जा रहा है? जब विरोध कुछ ज्यादा हो गया, तो धर्म के नाम पर प्रशासन ने आखिर में पकड़े गए 75 बंदरों को वाराणसी में ही छोड़ दिया.

कुत्तों की आबादी भी दिनप्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है. दिन में तो लोग किसी तरह चलफिर लेते हैं मगर जब शाम ढल कर अंधेरे का रूप लेती है, तब इन का आतंक देखते ही बनता है. हाल ही में एक 10 वर्षीय लड़के को कुत्तों की एक फौज ने घेर कर नोच डाला. काशी में इन्हें विशेष दर्जा प्राप्त है, क्योंकि ये काशी के धार्मिक कोतवाल कालभैरव की सवारी हैं. आज भी काशी में जब कोई नया कोतवाल आता है, तो सब से पहले इन्हीं का आशीर्वाद लेने जाता है. आशीर्वाद से क्या मिलता है यह तो वही बता सकते हैं, मगर कहीं न कहीं इस से यही जाहिर होता है कि हम में आत्मविश्वास की कमी है. अब जरा सोचिए जब कोतवाल की सवारी कुत्ता हो तो उसे कौन छेड़ सकता है? जड़बुद्धि धार्मिक लोग कुत्तों की फौज को बिस्कुट खिलाने में गर्व महसूस करते हैं. इस तरह से वे इन जानवरों को अपने वश में कर लेते हैं, जो उन के इशारे पर किसी पर भी टूट पड़ते हैं. इन के लिए कुत्ता आतंक का सुरक्षा कवच होता है, जिसे वे अपने दुश्मनों के खिलाफ इस्तेमाल करते हैं.

कालभैरव का ही एक रूप है बटुकभैरव. इन के मंदिर में कुत्तों की फौज ऐसे टहलती है मानों किसी के रिसैप्शन में आई हों. कहीं भी किसी भी जगह ये मंदिर में बैठ सकते हैं कोई मनाही नहीं है.

गली गली में घूमते हैं सांड

इस के अलावा सांड़ काशी की पहचान हैं ऐसा प्रबुद्ध लोगों का कहना है. स्मार्ट सिटी बनने की राह में क्या इन्हें भी सरकार स्मार्ट बनाएगी? लेकिन बनाएगी कैसे? काशी में सांड़ों के बढ़ने का कारण है अंधविश्वास. लोग मनौती पूरी होने पर सांड़ को काशी में छोड़ देते हैं.

एक और कारण यह है कि अब बैलगाड़ी का प्रयोग कम हो गया है, जिस की वजह से इन की संख्या काशी में बढ़ गई है. जगहजगह इन की फौज बड़े ही इतमीनान से घूमती नजर आती है. चाहे बड़े से बड़ा वीआईपी आ जाए, इन पर कोई फर्क पड़ने वाला नहीं. उलटे धर्म के नाम पर इन्हें हर कोई पूजता है. मस्ती का आलम यह है कि जब भी बाहर के व्यस्त इलाकों में 2 सांड़ों में युद्ध छिड़ जाए, तो उन्हें रोकने कोई नहीं आएगा. उलटे हर कोई उन की लड़ाई का आनंद ले कर अपने भद्र शौक पर गर्व करेगा. शोर ऐसे मचाएंगे मानों स्पेन में रह रहे हों. शोर सुन कर सांड़ और भी उद्दंड हो जाता है और उस की उद्दंडता लोगों के मनोरंजन का साधन बन जाती है. पुलिस भी मजा लेती है.

धर्मगुरुओं के अनुसार सांड़ शिव की सवारी है. विश्वनाथ मंदिर में सांड़ यानी नंदी की भी एक पाषाण प्रतिमा है जिस पर धर्मभीरु जनता अपना सिर नवाती है. सांड़ में शिव का अंश है इसलिए कोई सांड़ को नहीं मारता. वहीं आएदिन सांड़ कहीं न कहीं लोगों को पटकते रहते हैं.

वहीं चूहे गणेश की सवारी कहा जाता है. यहां चूहे को भी कोई नहीं मारता. अधिक से अधिक चूहेदानी में पकड़ कर दूर कहीं छोड़ देंगे. बनारस के कैंट स्टेशन पर इतने बड़ेबड़े चूहे हैं, जिन्हें देख कर बिल्ली भी भाग जाए.

अब सांप को ही लें. सांप के बारे में यह धारणा है कि पूर्व जन्म में सांप के ही मारने की वजह से कालसर्प योग होता है. इसलिए सांप भले ही काट ले मगर कालसर्प योग के डर से लोग सांप मारने से गुरेज करते हैं. उलटे नागपंचमी के दिन सांपों की पूजा करते हैं.

माता पिता से बढ़ कर नहीं

इसे विडंबना ही कहेंगे कि एक तरफ जहां बुजुर्ग, अपंग, अशक्त लोगों के प्रति हमारा नजरिया बेगानों जैसा होता है, वहीं गाय को मां मान कर उस के लिए मरनेमारने तक के लिए उतारू हो जाते हैं. क्या उस मां के बारे में भी सोचेंगे, जो 9 माह गर्भ में रख कर पालतीपोसती है. शिशु के लिए रातरात भर जागती है. होता तो यही है कि बुढ़ापे में उसी मां को हम दरदर की ठोकरें खाने के लिए विवश कर देते हैं.

इस तरह से तो मच्छरों को भी मारा नहीं जा सकता, क्योंकि उन में भी भगवान बसते हैं. सूअर स्वाइन फ्लू नामक बीमारी फैलाते हैं. हमारे धर्मग्रंथों में एक देवता वराहमिहिर का उल्लेख है, जिस की शक्ल सूअर जैसी थी. लोग क्यों नहीं सूअरों के साथ बंदरों जैसा व्यवहार करते? क्या वे पूजनीय नहीं? उलटे कुछ लोग सूअर का मांस खाते हैं.

गधा मां शीतला देवी की सवारी है. इस के साथ भी उचित व्यवहार किया जाना चाहिए. मेरे हिसाब से गधा सब से शांतिप्रिय जानवर है.

जीने का अधिकार सभी को है मगर एकदूसरे को क्षति पहुंचा कर नहीं. यदि कोई जानवर इनसानों के लिए खतरा बनता है, तो उसे जान से मारने का कानूनी अधिकार सभी को मिलना चाहिए. जानवरों को धर्म से नहीं जोड़ा जाना चाहिए.

हम गाय को मां के रूप में लेते हैं, तो उस की देखभाल भी करनी होगी. न कि जब तक दूध दिया सिरमाथे पर लगाया, नहीं तो सड़क पर धर्म का धंधा चमकाने वालों के लिए छोड़ दिया. हम पहले उन इनसानों के बारे में सोचें जो बूढ़े, अशक्त, लाचार और बीमार हैं. इस की शुरुआत अपने मांबाप से की जा सकती है.

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फिश रेचाडो

सामग्री

4 स्लाइस सीअर फिश, 50 ग्राम रेचाडो मसाला, 20 मि.ली. नीबू का रस, 10 ग्राम नमक, 50 मि.ली. तेल. 

विधि

फिश को तेल छोड़ कर बाकी सारी सामग्री से मैरीनेट करें. 1 घंटा ऐसे ही छोड़ दें. फिर हौट प्लेट पर ग्रिल करें.

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