धार्मिक आस्थाओं पर मौज करते धर्म के ठेकेदार

हमारे देश में धार्मिक आस्थाएं बहुत प्रबल हैं. उन पर रत्ती भर भी किसी किस्म की रोकटोक लगभग नामुमकिन है. धर्म के नाम पर कुछ भी कर लेना जायज माना जाता है. जनता की धार्मिक आस्थाओं में व्याप्त मौजमस्ती की भारी संभावनाओं को देखते हुए देश के कोनेकोने में तथाकथित ऐसे साधुसंतों की बाढ़ सी आ गई है, जो अपने को भगवान से भी बड़ा मानते हुए धर्म के ठेकेदार बन कर मौज कर रहे हैं. भोलीभाली जनता ही नहीं, अच्छाखासा उच्च शिक्षित तबका भी इन की तथाकथित ज्ञान, धर्म की बातों में आ कर आए दिन अपना सर्वस्व लुटा रहा है.

हमारा देश ऐसे मामलों व संतों से अटा पड़ा है, जो जनता द्वारा दान में दी गई अकूत दौलत के दम पर इस मृत्युलोक में मयस्सर जिंदगी के हरसंभव ऐशोआराम का मुफ्त में उपभोग कर रहे हैं. राधे मां, स्वामी नित्यानंद, संत रामपालजी महाराज व संत आसाराम आदि तमाम बड़े और मशहूर नाम हैं, जिन्होंने भारतीय जनमानस की धार्मिक आस्थाओं से खिलवाड़ करते हुए जिंदगी के हरसंभव ऐशोआराम का मुफ्त में उपभोग किया है. इन के यहां छोटेमोटे आम आदमी ही नहीं, बल्कि बहुत बड़ीबड़ी हस्तियां दूरदूर से आ कर शीश नवाती हैं और बाबा व महाराज कह कर अकूत दौलत की वर्षा करती हैं.

धर्म का बेजा इस्तेमाल

चालू साल की पहली तिमाही के दौरान हरियाणा में संत रामपालजी महाराज के नाम से मशहूर हरियाणा सरकार के बरखास्त कर्मचारी रामपाल दास ने ऊधम मचा दिया. आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती पर 2006 में अति अपमानजनक टिप्पणी कर समाज में तनाव व हिंसा फैलाने और उसी दौरान एक रसूखदार महिला की मौत के चलते कानून के चक्रव्यूह में फंसे रामपाल को तब कुछ वक्त जेल में भी बिताना पड़ा था. इस के बाद उस ने अदालतों के तमाम सम्मन व आदेशों की अवहेलना की और अपने राजनीतिक रसूख एवं सामाजिक ताकत का बेजा इस्तेमाल किया. आखिरकार मजबूर हो कर पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय को उस की गिरफ्तारी के आदेश देने पड़े. चर्चा है कि हरियाणा राज्य के इस स्वयंभू भगवान की गिरफ्तारी पर सरकार को करीब 10 करोड़ का खर्चा झेलना पड़ा. रामपाल के 12 एकड़ी विशाल व भव्य आश्रम की घेराबंदी में 30 हजार से भी ज्यादा जवानों को लगाया गया. काफी मशक्कत के बाद गिरफ्त में आए इस कांइयां संत पर देशद्रोह व राज्यद्रोह, सरकारी काम में बाधा डालने, अवैध हथियारों से हमला करने आदि तमाम संगीन आरोप लगाते हुए संगीन धाराओं के तहत केस दर्ज किए गए हैं. हरियाणा सरकार के सिंचाई विभाग में जूनियर इलैक्ट्रिकल इंजीनियर के पद से 2000 में बरखास्त किया गया रामपाल आज आम व खास जनता की नजरेइनायत के चलते 500 करोड़ रुपए से भी ज्यादा की संपत्ति का मालिक है.

जनजीवन पर प्रभाव

संपूर्ण हरियाणा में भगवान की तरह पूजे जाने वाले इस तथाकथित संत रामपाल के जलवे का आलम यह था कि वहां हुए विधानसभा चुनावों से पहले सभी दलों के प्रभावशाली नेताओं ने अपनीअपनी जीत के लिए उस से आशीर्वाद लिया और तमाम ने विशेष राजसी अनुष्ठान भी करवाए. बहरहाल, यह तो हिंदुस्तान के एक बेहद छोटे राज्य का एक मामूली सा नमूना है. रामपाल जैसे चमत्कारी व महान आलौकिक संत हमारे देश के कोनेकोने में विद्यमान हैं और बड़ीबड़ी हस्तियां उन के दरबार में शीश नवाती हैं. उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में एक साधु ने तो अपने एक तथाकथित खरबों के खजाने के संबंधी सपने के नाम पर सरकार के करोड़ों रुपए खर्च करा कर तमाम जगह खुदाई करा दी थी. दरअसल, धर्मप्रधान इस देश के अलगअलग क्षेत्रों में निरंतर भिन्नभिन्न प्रकार की धार्मिक गतिविधियां होती रहती हैं, जो लंबा समय व धन पी जाती हैं. धार्मिक गतिविधियों के साथ ही अनगिनत तरह के चमत्कारी बाबा, सिद्ध महापुरुष, संत व स्वयंभू भगवान भी अस्तित्व में आ गए हैं और आते जा रहे हैं, जो बाद में जनता व सरकार के लिए परेशानी का सबब बन जाते हैं. इन सब से धन व समय का भारी अपव्यय होने के साथसाथ आम जनता को जबरदस्त परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है. देश के कोनेकोने में समयसमय पर होने वाले धार्मिक क्रियाकलापों के चलते अधिकांश शहरों व महानगरों में आम जनजीवन पूर्णतया अस्तव्यस्त हो जाता है, क्योंकि सभी प्रकार के धार्मिक क्रियाकलाप हमारे यहां सभी प्रकार के नियमकानूनों के बंधन से मुक्त हैं.

हादसे पर हादसा

धर्म के नाम पर महानगरों की जबरदस्त भीड़भाड़ वाली बेहद व्यस्त व तंग सड़कों से वक्तबेवक्त आए दिन निकलने वाली शोभा यात्राओं ने तो आम जनता का जीना ही मुहाल कर रखा है. कुछ समय पहले बिहार के पटना जिले के गांधी मैदान में एक धार्मिक गतिविधि में हिस्सा लेने एकत्र कई हजार की भीड़ के साथ हुआ हादसा इस बात का ठोस सुबूत है कि धर्म के नाम पर अब चारों ओर अराजकता, कानफोड़ू तेज शोर, मनमानी व गुंडागर्दी देश में इस समय चरम पर है और जनता बारबार हो रहे हादसों से कोई सबक नहीं ले रही है. वैश्विक स्तर पर मशहूर शिरडी के साईं बाबा धाम में तो लगभग हर साल श्रद्धालुओं के साथ कोई न कोई हादसा होता है. सरकार की अपीलें व सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की भी परवाह देश की धर्मांध जनता को नहीं है. बीते 2 दशकों की बात करें तो देश भर से 2 हजार से भी ज्यादा ढोंगी साधुमहात्माओं की पोलपट्टी खुली है और उन के कारनामे जगजाहिर हुए हैं. इन में से 180 साधुसंत तो ऐसे थे जो बाकायदा विभिन्न चैनलों पर अपनेआप को चमकाने में मसरूफ थे.

तरहतरह के हथकंडे

शिरडी के साईं बाबा से ले कर माता वैष्णोदेवी तक में हर साल देश में छोटेबड़े हादसे होते रहते हैं. इस के बावजूद धार्मिक गतिविधियों व क्रियाकलापों में जरा भी कमी नहीं आई है, बल्कि पिछले 1 दशक में तो इन में भारी बढ़ोतरी दर्ज की गई है. सत्संग हो या प्रवचन, प्रतिमा विसर्जन हो या शोभा यात्राएं इन के आयोजक व तथाकथित संतमहात्मा और श्रद्धालु न तो आम जनता का खयाल रखने को तैयार हैं और न ही ट्रैफिक के नियमों का पालन करते हैं. हालत अब यह हो गई है कि धर्म के ये तथाकथित ठेकेदार जहां मन में आया रास्ता घेर लेते हैं, जबरन चंदा वसूलते हैं, ऊंची आवाज में तथाकथित भक्ति गीत बजाने के अलावा रास्ते तक जाम कर देते हैं. आम जनता को सत्संगों व प्रवचनों में शामिल कराने के लिए न केवल तरहतरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं, बल्कि चैनल आदि प्रचारप्रसार माध्यमों का भी सहारा लिया जाता है. अपने सत्संगों व प्रवचनों में ये तथाकथित भगवान बड़ेबड़े नेताओं, मंत्रियों, अभिनेताओं आदि को बुला कर अपना उल्लू सीधा करते हैं. ऐसा देश के कोनेकोने में अब धर्म व विभिन्न त्योहारों के नाम पर ज्यादा से ज्यादा किया जाने लगा है. पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा का त्योहार हो या महाराष्ट्र का गणपति बप्पा मौर्या या फिर देश के 4 पश्चिमी राज्यों का त्योहार सावन की शिवरात्रि हो, सब में यही हाल है.

बेलगाम होते भक्तों की फौज

सावन की शिवरात्रि का ही उदाहरण लें. हरियाणा, दिल्ली व उत्तराखंड समेत  पश्चिम उत्तर प्रदेश में सावन के दिनों में शिवरात्रि का त्योहार बड़े उल्लास से मनाया जाता है. लाखों नहीं, बल्कि अब तो करोड़ों की संख्या में आस्थावान कांवर ले कर हरिद्वार जाते हैं और वहां से गंगाजल ले कर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक महानगर मेरठ स्थित औघड़नाथ मंदिर तथा पूर्वा अहिरान स्थित एक प्रसिद्ध शिवमंदिर में चढ़ाते हैं. भारी अव्यवस्था, बदइंतजामी व बेलगाम प्रवृत्ति के चलते लगभग 1 पखवाड़े तक पूरे क्षेत्र में धर्म के नाम पर शिव भक्तों का जम कर तांडव रहता है. इस दौरान तमाम दुर्घटनाएं, खूनखराबा व मौतें होती हैं, जिन का ठीकरा संबंधित सरकारों पर फोड़ कर अच्छाखासा मुआवजा वसूला जाता है. तमाम दावों के बावजूद पूरे क्षेत्र में अफरातफरी व कर्फ्यू जैसी स्थिति बन जाती है और पुलिस प्रशासन तमाशा देखता रहता है. शैक्षिक, आर्थिक, व्यापारिक, सामाजिक आदि सभी प्रकार की गतिविधियां तो इस दौरान बिलकुल ठप्प रहती ही हैं, आम जनता के समक्ष रोजमर्रा की दूध, सब्जी, आटा जैसी आवश्यक चीजों की किल्लत भी पैदा हो जाती है, क्योंकि बाहरी क्षेत्रों से आवश्यक सामग्री ले कर आने वाले ट्रक शहर में प्रतिबंधित कर दिए जाते हैं.

लुटतीपिटती जनता

देश भर में मुफ्तखोरी के चलते सदियों से चली आ रही इस तरह की परंपरा के आलमदारों में निरंतर इजाफा हो रहा है. आनाजाना, रहना, खानापीना, बिजलीपानी बहुत कुछ मुफ्त होने से हकीकत में लोग धार्मिक आस्था से कम घूमनेफिरने और मौज करने की नीयत से इस तरह की यात्राओं पर ज्यादा जाते हैं. बेतरतीब व्यवस्था के बीच सरकारी अमला केवल बातों के ढोल पीटने की कवायद में लिप्त रहता है और जनता के कर के पैसे को बरबाद करता है. इस खर्च पर कोई आपत्ति भी नहीं करता तो भरपूर बेईमानी होती है. बेवजह जगहजगह आम रास्ते बंद कर दिए जाते हैं और आम जनता सड़क तक पार करने को मुहताज हो जाती है. करीब 10-20 दिन पहले से ही सभी स्कूलकालेज बंद कर दिए जाते हैं, प्रमुख राष्ट्रीय राजमार्गों को भी जगहजगह प्रतिबंधित कर के समस्त जनजीवन व गतिविधियां ठप्प कर दी जाती हैं. सरकारी व गैरसरकारी दफ्तरों में घोषित तौर पर तो छुट्टियां नहीं होतीं पर उपस्थिति लगभग न के बराबर ही हो जाती है और कोई पूछता ही नहीं.

एक स्वतंत्र एजेंसी का आंकलन है कि प्रभावित राज्यों की केवल आधा फीसदी आबादी ही इस तरह के आयोजनों में भाग लेती है, पर निरंतर बढ़ती जा रही मुफ्त की सुविधाएं व मौजमस्ती के चलते इस में निरंतर वृद्धि हो रही है. सारा प्रशासनिक अमला रूटीन वाले सभी काम छोड़ कर पूर्णरूप से व्यवस्था संभालने में लग जाता है और इस का खमियाजा आम जनता को भुगतना पड़ता है.

धन व समय की बरबादी

दरअसल हमारे देश में आस्था की जड़ें इतनी ज्यादा गहरी हैं कि सरकार भी इन के आगे नतमस्तक हो जाती है. एक ओर जहां आम जनता व उद्योगधंधे बिजली की अनियमित भारी कटौती का दंश झेलते हुए मोटेमोटे बिल भर रहे हैं, वहीं धर्मावलंबियों की सुविधा की बाबत सरकार जगहजगह निर्बाध बिजली की अस्थायी परंतु मुफ्त व्यवस्था करती है. करीब 1 दशक पूर्व जब इतनी सारी सुविधाएं नहीं थीं, इस तरह की गतिविधियां बेहद कम थीं, क्योंकि तब केवल उच्च तबका तथा वास्तविक श्रद्धावान ही इन में शिरकत करते थे पर अब जबकि कदमकदम पर मुफ्त राजसी सुविधाएं सरकारी व निजी तौर पर मुहैया हैं, संख्या हजारोंलाखों का आंकड़ा पार कर करोड़ों में पहुंच गई है. अब इन में ज्यादा तादाद निम्न मध्यवर्ग की होती है. विभिन्न उद्योग मंडलों के एक मोटे अनुमान के मुताबिक सरकार को इस से करीबकरीब 17 हजार करोड़ रुपए का चूना लगता है. इस में वे छूटें व रियायतें शामिल नहीं हैं, जो सरकार से कर आदि के रूप में प्राप्त होती हैं. हर साल लंबेचौड़े कागजी प्लान बनाए जाते हैं और भारी मात्रा में कार्यबल लगाया जाता है पर हकीकत में धन व समय की बरबादी और भारीभरकम अव्यवस्था के अतिरिक्त कुछ भी हासिल नहीं होता.

नहीं चलता कानून का राज

इस मुद्दे पर गठित एक समिति ने अपनी रिपोर्ट में तमाम सुझाव दिए थे और कहा था कि इस के लिए राज्यवार अलग से नियमकानून निर्धारित कर देने चाहिए. समिति के मुताबिक सभी प्रकार की धार्मिक समितियों व संगठनों का नियमन होना चाहिए. ऐसा करने में कुछ भी लागत न आती और न ही कोई कानूनी अथवा धार्मिक अड़चन, पर सब कुछ हवाहवाई ही रहा. समिति की रिपोर्ट आज तक धूल चाट रही है. हर बार महाराष्ट्र, बिहार आदि राज्यों के मुख्यमंत्री व अन्य उच्च अधिकारी महीना भर पहले से बैठकें कर नईनई व्यवस्थाओं व योजनाओं की घोषणा करते हैं पर केवल हवा में. हकीकत में कहीं कोई व्यवस्था नहीं होती. सरकार मुफ्त बिजली, पानी, मुआवजे व चिकित्सा सुविधा के अतिरिक्त कुछ भी नहीं करती.

आखिर कब जागेंगे हम

त्योहार मनाना गलत नहीं है. संसार के कोनेकोने में भिन्नभिन्न प्रकार के त्योहार मनाए जाते हैं पर सब कुछ बड़ी शालीनता से किया जाता है, आम जनता इस से परेशान नहीं होती. पर हमारे यहां सब कुछ बेलगाम है. देश भर में सड़कों पर पंडाल लगा कर धार्मिक जुलूस, प्रवचन कार्यक्रम आए दिन चलते रहते हैं, जिन में भारी अव्यवस्था का बोलबाला होता है. लाखोंकरोड़ों की राशि दान के रूप में एकत्र होती है, जिस का कोई हिसाबकिताब नहीं होता. इस के अलावा देश के बड़ेबड़े शहरों में अकसर विभिन्न धर्मों की झांकियां व शोभा यात्राएं निकाली जाती हैं, जिस से पूरा का पूरा शहरी जनजीवन अस्तव्यस्त हो जाता है. जिस वक्त शोभा यात्रा निकलती है उस वक्त सड़क पार करना भी लगभग नामुमकिन हो जाता है. बहरहाल, सरकार को अब इन सब को भी नियंत्रित करने की दिशा में कदम उठाने चाहिए. ये धार्मिक क्रियाकलाप सदियों से समाज पर बोझ हैं, जो आनंद के त्योहार हैं इन पर बंदिशें लग चुकी हैं, क्योंकि इन में पंडेपुजारियों को कमीशन नहीं मिलता जैसे होली पर रंगों से खेलना या दीवाली पर पटाखे चलाना.

एक के बाद एक हिट फिल्मों को लाने की तैयारी में लगे हैं वरुण धवन

बौलीवुड एक्टर वरुण धवन जल्द ही फिल्म ‘अक्टूबर’ में नजर आने वाले हैं. इस फिल्म में वरुण काफी अलग भूमिका में दिखाई देंगे. हालांकि, आपको बता दें, कि आने वाले 2 सालों में वरुण एक बाद एक 6 फिल्मों में नजर आने वाले हैं. वह अपनी फिल्मों को लेकर काफी बिजी हैं और इस वजह से अगले दो सालों तक उनकी सभी डेट्स फिक्स हैं. वरुण भी आने वाले 2 सालों में फिल्म इंडस्ट्री के सबसे बिजी एक्टर्स की लिस्ट में शामिल हैं. एक सोर्स के मुताबिक वरुण के पास 2020 तक के लिए 6 फिल्मे हैं.

एक खबर के मुताबिक, ‘अक्टूबर’ वरुण की पहली फिल्म है जो अगले महीने रिलीज होने वाली है. इसके अलावा वह फिलहाल अपनी फिल्म ‘सुई धागा’ की शूटिंग के लिए चंदेरी में हैं. इस फिल्म में वरुण के साथ अनुष्का शर्मा लीड रोल में हैं. वरुण यहां अपनी फिल्म के लिए लगभग मार्च एंड तक शूटिंग करेंगे और इसके बाद वह ‘अक्टूबर’ के प्रमोशन के लिए वापस लौटेंगे. अपनी फिल्म की रिलीज के बाद वरुण एक बार फिर ‘सुई धागा’ की शूटिंग में बिजी हो जाएंगे और जुलाई तक इस फिल्म की शूटिंग को खत्म करेंगे.

जुलाई में वरुण अपनी अगली फिल्म ‘शिद्दत’ की शूटिंग शुरू करेंगे. वरुण की इस फिल्म का निर्देशन अभिषेक वर्मा कर रहे हैं और वरुण इस फिल्म के पहले शेड्यूल को खत्म करने के बाद एक बार फिर शरद कटारिया की फिल्म ‘सुई धागा’ के प्रमोशन के लिए लौटेंगे. बता दें, यह फिल्म 28 सिंतबर को रिलीज की जाएगी. अपनी इस फिल्म की रिलीज के बाद वरुण एक बार फिर फिल्म ‘शिद्दत’ की शूटिंग में बिजी हो जाएंगे, जिसे वह अलगे साल जनवरी तक खत्म करेंगे. हालांकि, अब तक अभिषेक की इस फिल्म की सारी डेट्स तय नहीं हुई हैं.

इसके बाद वरुण, रेमो डीसूजा के साथ एक डांस परफौर्मेंस के लिए साथ आएंगे. इसके लिए वरुण को कुछ हफ्तों का वक्त ट्रेनिंग के लिए लगेगा. जिसके बाद वह मार्च में इसकी शूटिंग करेंगे. वहीं वरुण करण जौहर की फिल्म ‘रणभूमि’ में भी लीड रोल में नजर आएंगे और इस फिल्म का निर्देशन शशांक खेतान करेंगे. फिल्म की कहानी बदेल पर आधारित है और इसकी शूटिंग को वीएफएक्स की मदद से किया जाएगा. इस वजह से अब तक इस फिल्म की डेट्स तय नहीं की गई हैं. वरुण ने इस फिल्म के लिए अपनी डेट्स को फ्री रखा हुआ है.

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हालांकि, अगर इस फिल्म की शूटिंग को शुरू करने में ज्यादा वक्त लगता है तो वरुण अपने पिता डेविड धवन के साथ एक फिल्म की शूटिंग शुरू करेंगे. सोर्स के मुताबिक डेविड, वरुण के साथ एक फिल्म बनाना चाहते हैं लेकिन अब तक इस फिल्म की स्क्रिप्ट तैयार नहीं हुई है. वहीं अगर ‘रणभूमि’ की डेट्स तय हो जाती हैं तो वरुण रणभूमि की शूटिंग खत्म करने के बाद इस फिल्म की शूटिंग शुरू करेंगे. वरुण अपने इन प्रोजेक्ट्स की वजह से अगले दो साल तक काफी बिजी रहने वाले हैं.

ग्लास टौप ट्रेन से करें मुंबई से गोवा का सफर

किसी जगह की ट्रिप का मजा और भी दुगुना हो जाता है, जब सफर सुकूनभरा होता है. पिछले एक दशक से यात्रियों के सफर को सुकूनभरा बनाने के लिए सरकार काफी कदम उठा रही है. देश भर के शहरों को छोटे कस्बे और गांवों से जोड़ने का काम तेजी से हो रहा है. होली और दिवाली जैसे कई त्योहारों पर स्पेशल ट्रेन और बस चलाई जाती है. इसी तरह अब मुंबई से गोवा का सफर और भी दिलचस्प हो जाएगा. 18 सितंबर से दादर और मडगांव के बीच चलने वाली जन शताब्दी एक्सप्रेस में एक विस्टाडोम (ग्लास-टौप) कोच शुरू किया जाएगा.

जानें क्या है खास बातें

एसी विस्टाडोम ट्रेन में यात्रा करने वाले यात्री इस विशेष कोच में रोटेटेबल कुर्सियों पर बैठेंगे. साथ ही इसमें मनोरंजन के लिए हैंगिंग एलसीडी टीवी भी है. 40 सीटों वाले इस कोच की लागत 3.38 करोड़ रुपये है. इस ट्रेन में 360 डिग्री पर घूमने वाली चौड़ी सीटें हैं, जिससे सफर में बाहर के नजारों का बेहतरीन अनुभव मिलेगा.

कितने दिन चलेगी ट्रेन?

इस खास कोच को सितंबर के पहले हफ्ते में केंद्रीय रेलवे ने अपने मुख्यालय छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनल पर रिसीव किया था. जानकारी के अनुसार मानसून में यह ट्रेन सप्ताह में तीन दिन चलेगी और मानसून खत्म होने के बाद सप्ताह में पांच दिन चलेगी. जन शताब्दी एक्सप्रेस के दादर से चलने का समय सुबह 5.25 बजे है और यह उसी दिन शाम 4 बजे तक मडगांव पहुंच जाती है.

एक्जीक्यूटिव क्लास जितना किराया

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विस्टाडोम कोचों को चेन्नई की द इंटीग्रल कोच फैक्ट्री  में बनाया गया है. इन कोचों का किराया शताब्दी एक्सप्रेस के एक्जीयक्यूटिव क्लास जितना होगा. मूल किराए के अतिरिक्त रिजर्वेशन चार्ज, जीएसटी और कोई अन्य‍ चार्ज जोड़ा जा सकता है. उन्होंने कहा, ‘इसमें कोई कंसेशन (छूट) नहीं मिलेगा और सभी यात्रियों को पूरा किराया देना होगा. इसकी न्यूनतम यात्रा दूरी 50 किलोमीटर होगी.’

पर्यटन को बढ़ाने के लिए उठाया गया कदम

विस्टाडोम कोच देश में पहली बार पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए लौन्च किए जा रहे हैं. जिससे मुंबई या गोवा घूमने के अलावा लोग इस ट्रेन का सफर भी यात्रियों को दिलचस्प लग सके.

बचपन के कैंसर संकेत को पहचानें

देश दुनिया में कैंसर की चपेट में अब सिर्फ वयस्क महिलापुरुष ही नहीं, बल्कि बच्चे भी आ रहे हैं. जागरूकता की कमी व कैंसर के लक्षणों को पहचानने में देरी व अनदेखी के चलते इस का निदान मुश्किल हो जाता है. जानिए कैसे पहचानें बचपन के कैंसर के लक्षण.

सभी गैरसंचारी रोगों (एनसीडी) में कैंसर शायद सब से ज्यादा गंभीर रोग है. आंकड़े बताते हैं कि आज हर 8 लोगों में से 1 को उस के जीवनकाल (0-74 वर्ष) में कैंसर होने की संभावना रहती है. इसी तरह, हर 9 महिलाओं में से 1 को उस के जीवनकाल (0-74 वर्ष) में कैंसर होने की संभावना रहती है. हालांकि, कई कारक हैं जो कैंसर के खतरे को बढ़ाते हैं. उन में जीवनशैली से जुड़ी बातें प्रमुख वजह हैं.

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हम यह मान सकते हैं कि कैंसर केवल वयस्कों को प्रभावित करता है, लेकिन भारत में और दुनियाभर में बड़ी संख्या में बच्चों में भी यह रोग दिखाई दे रहा है. जागरूकता की कमी और इस रोग की जांच में देरी से स्थिति और बिगड़ती जाती है. जोड़ों में दर्द, बुखार और सिरदर्द जैसे सामान्य लक्षणों की अनदेखी से कैंसर का निदान यानी इस की पहचान होने व फिर इलाज में देरी हो सकती है.

आंकड़ों के अनुसार, विभिन्न प्रकार के कैंसरों से पीडि़त लगभग 5 प्रतिशत रोगी 18 वर्ष से कम उम्र के हैं. हर साल देश में कैंसर के करीब 45 हजार ऐसे नए रोगी सामने आते हैं जिन की उम्र 18 वर्ष से कम है.

बचपन के कैंसर और इन के प्रकार

बच्चों का कैंसर वयस्कों से अलग होता है. सब से सामान्य अंतर तो यह है कि बच्चों में यह पूरी तरह से ठीक हो सकता है बशर्ते समय पर इस की पहचान कर ली जाए. बचपन के कैंसर के कुछ सामान्य प्रकार निम्न हैं-

मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के ट्यूमर : बचपन के कैंसर में इन की भागीदारी लगभग 26 प्रतिशत है और इन के विभिन्न प्रकार होते हैं. बच्चों में अधिकांश ब्रेन ट्यूमर मस्तिष्क के निचले हिस्से में शुरू होते हैं, जैसे सेरिबैलम या ब्रेन स्टेम. इन के लक्षणों में प्रमुख हैं- सिरदर्द, उलटी आना, नजर का धुंधलापन, चक्कर आना, दौरे, खड़े होने या चीजों को थामने में परेशानी आदि.

न्यूरोब्लास्टोमा : यह जल्दी शुरू होता है और बड़े हो रहे भू्रण की नर्व सैल्स में पनपता है. न्यूरोब्लास्टोमा बचपन के सभी कैंसरों का लगभग 6 प्रतिशत होता है और यह शिशुओं व छोटे बच्चों में विकसित होता है. यह ट्यूमर आमतौर पर पेट में सूजन के रूप में शुरू होता है और हड्डी का दर्द तथा बुखार पैदा कर सकता है.

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ल्यूकेमिया :  यह बोन मैरो और रक्त का कैंसर है, जिस की बच्चों के कैंसर में हिस्सेदारी लगभग 30 प्रतिशत है. ल्यूकेमिया के कुछ लक्षणों में हड्डी और जोड़ों में दर्द, थकान, कमजोरी, त्वचा में पीलापन, रक्तस्राव या चोट, बुखार और वजन घटना आदि शामिल हैं. तीव्र ल्यूकेमिया का जल्द से जल्द निदान और उपचार करना महत्त्वपूर्ण है वरना यह तेजी से बढ़ सकता है.

विल्म्स ट्यूमर :  यह नैफ्रोब्लास्टोमा भी कहलाता है. इस प्रकार का कैंसर एक या दोनों गुरदे में शुरू होता है. यह 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में आम है और पेट में सूजन या गांठ के रूप में प्रकट हो सकता है. अन्य लक्षणों में बुखार, दर्द, मतली या भूख न लगना आदि शामिल हैं.

लिंफोमा :  इस प्रकार का कैंसर लिंफोसाइट्स नामक प्रतिरक्षा प्रणाली कोशिकाओं में शुरू होता है. यह अस्थि मज्जा या बोन मैरो तथा अन्य अंगों को भी प्रभावित करता है. कैंसर के स्थान पर निर्भर करते हुए इस के लक्षणों में प्रमुख हैं- वजन कम हो जाना, बुखार, पसीना, थकान और गरदन, बगल या गले में त्वचा के नीचे गांठ (सूजी हुई लिंफ नोड्स) आदि.

रैब्डोमायोसारकोमा :  यह कैंसर सिर, गरदन, पेट, पैल्विस, हाथ या पैर सहित कहीं भी हो सकता है. लक्षणों में दर्द, सूजन, (एक गांठ) या दोनों हो सकते हैं. बच्चों में 3 प्रतिशत कैंसर इसी श्रेणी के होते हैं. रैब्डोमायोसारकोमा सब से सामान्य प्रकार का नरम ऊतक सारकोमा है.

रेटिनोब्लास्टोमा :  यह बचपन के कैंसरों में लगभग 2 प्रतिशत हिस्सेदारी रखता है और आंखों में होता है. यह 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में आम है. जब बच्चे की आंखों में प्रकाश पड़ता है, तो पुतली लाल दिखाई देती है. इस प्रकार के कैंसर वाले बच्चों में आंख की पुतली सफेद या गुलाबी रंग की हो जाती है और आंख का एक फ्लैश फोटो लेने पर आंख में एक सफेद चमक देखी जा सकती है.

हड्डी का कैंसर (ओस्टियोसारकोमा एवं यूइंग सारकोमा सहित) :  यह कैंसर हड्डियों से शुरू होता है और बचपन के कैंसर मामलों में लगभग 3 प्रतिशत तक पाया जाता है.

जोखिम के कारण

बचपन के कैंसर के कारण अज्ञात होते हैं. उन में से बहुत से जैनेटिक म्यूटेशन के कारण हो सकते हैं. ये अनियंत्रित कोशिका वृद्घि और आखिरकार कैंसर का कारण बनते हैं. किसी एक विशेष कारक पर बात करना मुश्किल है क्योंकि बच्चों में कैंसर एक दुलर्भ स्थिति है. यह इसलिए भी है क्योंकि विकास के चरण के दौरान कोई बच्चा किस स्थिति से गुजरा होगा, यह सुनिश्चित करना कठिन है. बच्चों में लगभग 5 प्रतिशत कैंसर इनहेरिटेड म्यूटेशन के कारण होते हैं. ली-फ्राउमेनी सिंड्रोम, बेकविथ-वीडमान सिंड्रोम, फैनकोनी एनीमिया सिंड्रोम, नूनैन सिंड्रोम और वोन हिप्पल-लिंडाउ सिंड्रोम जैसे कुछ पारिवारिक सिंड्रोम से जुडे़ परिवर्तन बचपन के कैंसर का खतरा बढ़ाते हैं.

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बचपन के कैंसर का इलाज किया जा सकता है यदि इस का शीघ्र निदान किया जाता है और इलाज शुरू किया जाता है. यह एक बच्चे से दूसरे तक नहीं फैलता है. बच्चों में कैंसर का उपचार लंबा हो सकता है, इसलिए, घर में अतिरिक्त देखभाल और यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि उपचार का पूर्ण अनुशासन के साथ पालन किया जाए. इस के अतिरिक्त स्वच्छता और संतुलित पोषण भी महत्त्वपूर्ण है. एक बार उपचार पूरा हो जाने पर बच्चा किसी अन्य सामान्य बच्चे की तरह हो सकता है और फिर से स्कूल जाना व खेलना शुरू कर सकता है.

ल्यूकेमिया : इस कैंसर की जद में बच्चों के आने की संभावना ज्यादा रहती है.

कब हों सचेत

निम्न चेतावनी संकेतों को देखना महत्त्वपूर्ण है. यदि इन में से कोई भी लक्षण बारबार दिखाई देता है या लगातार बना रहता है, तो तुरंत डाक्टर से परामर्श करना चाहिए.

–      निरंतर दिख रहे लक्षणों के बारे में चिकित्सा सहायता प्राप्त करें.

–      आंखों में सफेद धब्बा, भेंगापन, दृष्टिहीनता या नेत्रगोलक में उभार पर गौर करें.

–      पेट और श्रोणि यानी पैल्विस, सिर, गरदन, टैस्टिस, ग्रंथियों आदि में गांठ पर गौर करें.

–      बुखार, वजन और भूख में कमी, थकान, एकाएक चोट या खून बहना भी एक लक्षण हो सकता है.

–      हड्डियों, जोड़ों, पीठ में दर्द और आसानी से फ्रैक्चर होने पर सचेत हो जाएं.

–      व्यवहार, संतुलन, चाल में परिवर्तन तथा सिरदर्द आदि भी जोखिम कारक हैं.

डा. विनोद ढाका (लेखक लाइब्रेट प्लेटफार्म में औंकोलौजिस्ट हैं)

इस अदाकारा पर लगा ब्लैकमेलिंग का आरोप

टेलीविजन कलाकार और मौडल करिश्मा तन्ना एक बार फिर से सुर्खियों में आ गई हैं. करिश्मा तन्ना टेलीविजन शो ‘नागिन’ से घर-घर में काफी मशहूर हुई थीं. लेकिन इस बार वो गलत कारणों को लेकर चर्चा में हैं. करिश्मा पर मानस कात्याल नाम के एक इवेंट मैनेजर ने धोखाधड़ी का आरोप लगाया है. इवेंट मैनेजर ने करिश्मा को नेटिस भेजा है और बताया है कि करिश्मा ने उनके साथ धोखाधड़ी ही नहीं की बल्कि उन्हें ब्लैकमेल किया है और धमकी भी दी है.

एक लीडिंग वेबसाइट के अनुसार बताया जा रहा है कि करिश्मा को हल्दवानी के एक वेडिंग रिसेप्शन में परफौर्म करना था लेकिन करिश्मा वहां नहीं पहुंची जिससे कंपनी को करीब 10 लाख रुपए का नुकसान हुआ है. मैनेजर का कहना है कि उन्होंने इस इवेंट के लिए करिश्मा को एडवांस पेमेंट किया था लेकिन करिश्मा अपनी टीम के साथ इस इवेंट में नहीं पहुंची.

रिपोर्ट्स के अनुसार बताया जा रहा है कि करिश्मा अपनी टीम के साथ दिल्ली आई थीं. यहां से वो पूरी टीम के साथ हल्दवानी के लिए रवाना भी हुई थीं. हल्दवानी के लिए रवाना हुए करिश्मा ने वहां पहुंचने से पहले ही आधे रास्ते में ड्राइवर से गाड़ी वापस लेने के लिए कहा. इसी के साथ उन्होंने ड्राइवर को धमकी देते हुए कहा कि अगर वो गाड़ी को वापस दिल्ली नहीं ले जाएंगे तो वह उनपर छेड़खानी का झूठा आरोप लगा देंगी और केस दर्ज करा देंगी. जिसके बाद उनका बचने मुश्किल हो जाएगा. इसी के साथ ही करिश्मा ने मानस पर मानसिक प्रताड़ना का आरोप भी लगाया है.

लेकिन करिश्मा ने पूरे ही केस को एक अलग ही तरीके से पेश किया है. करिश्मा का कहना है कि उन्हें बताया गया इवेंट मुरादाबाद में है जबकि वहां पहुंचने के बाद उन्हें बताया गया है कि इवेंट हल्दवानी में है जो कि मुरादाबाद से काफी दूर है. करिश्मा ने बताया कि उन्होंने मानस को पहले ही बता दिया था कि उनकी पीठ में काफी दर्द है जिसके कारण वो ज्यादा ट्रेवल नहीं कर सकती हैं.

वहीं दूसरी तरफ एडवांस पेमेंट को लेकर करिश्मा तन्ना ने कहा कि वो एडवांस पेमेंट वापस नही करेंगी और करें भी तो भला क्यों? मानस ने उन्हें मानसिक तौर पर काफी प्रताड़ित किया है जिसकी भरपाई उन्हें करनी ही होगी.

बता दें कि सोशल मीडिया पर अक्सर अपनी तस्वीरों से लाइमलाइट का रुख करने वाली करिश्मा ‘बिस बौस’ 8 की कंटेस्टेंट रह चुकी हैं. ‘बिस बौस’ के दौरान वह एक्स ब्वायफ्रेंड उपेन पटेल से रिलेशनशिप में आईं और फिर ब्रेकअप को लेकर भी काफी सुर्खियां बटोर चुकी हैं.

बनाएं अपनी आंखों को खूबसूरत और आकर्षक

सुंदर और स्वस्थ आंखें चेहरे की शोभा होती है. अगर आपकी आंखों की बनावट सुंदर और आकर्षक है तो आप बहुत खुशकिस्मत हैं. लेकिन अगर ऐसा नहीं है, तो भी परेशान होने की जरुरत नहीं है, क्योंकि उचित देखभाल और सही मेकअप के जरिये उन्हें भी आकर्षक और खूबसूरत बनाया जा सकता है.

ऐसे रखें आंखों का ख्याल

-हफ्ते में एक दिन आंखों पर ठंडे पानी में टी बैग को डुबोकर आंखों पर 10-15 मिनट तक रखें.

-खीरे के पतले गोल टुकड़े करके फ्रिज में आधे घंटे के लिए रख दें. फिर लेट कर अपनी आंखों पर एक टुकड़ा रखकर बीस मिनट तक आंखें बंद करके आराम करें. फिर गुलाबजल में रुई भिगोकर आंखों पर लगाएं. एक मिनट बाद ठंडे पानी से छीटें मारकर आंखें साफ करें. ऐसा करने से आंखों में चमक आएगी और आपको बहुत आराम मिलेगा.

-आंखों के नीचे काले घेरे हैं तो एक कच्चे आलू को कद्दूकस कर लें, इसे अपने आंखों के काले घेरों पर लगाएं. आधे घंटे बाद ठंडे पानी से धो लें और मायस्चराइजर लगा लें.

पानी में एक चुटकी बोरिक एसिड मिलाकर उबालें. ठंडा करके इस पानी से आंखें धोएं. ऐसा करने से आंखों को आराम व ठंडक मिलेगी.

-आंखों की सूजन दूर करने के लिए एक कप गर्म पानी में एक टी स्पून नमक मिलाकर दो छोटे कौटन पैड डुबोएं और हल्का नीबू निचोड़कर आंखों पर तब तक रखें जब तक कि पैड ठंडा न हो जाए. फिर ठंडे पानी से आंखें धो लें.

-आंखों पर एंटी रिंकल क्रीम लगाएं. इसके लिए कैस्टर औयल, औलिव औयल और पेट्रोलियम जेली को बराबर मात्रा में अच्छी तरह मिलाकर एक जार में रख लें. इसे रोजाना आंखों पर और उसके आसपास लगाकर हल्की मालिश करें.

-रात में सोने से पहले आंखों के नीचे अंडर आई क्रीम या जेल लगाना ना भूलें.

-धूप में बाहर जाना हो तो सनब्लाक और सनग्लासेज लगाना न भूलें.

एक्सरसाइज भी है जरुरी

फिटनेस एक्सपर्ट के मुताबिक आंखों को आराम देने और सुंदर बनाने के लिए नियमित एक्सरसाइज भी जरुरी है. इसके लिए एक शांत कमरे में लाइट बंद करके अपने दोनों हाथों को आंखों पर रखें. पांच मिनट तक आंखें बंद करें. फिर आंखें खोलकर फैलाएं और अंधेरे में देखने की कोशिश करें. आंखों को आराम मिलेगा.

आराम की मुद्रा में बैठ जाएं. अपनी आंखों को गोलाई में घुमाएं. पहले एक दिशा में फिर दूसरी दिशा में.

अपनी चार उंगलियों को आंखों के सामने लाएं फिर धीरे-धीरे दूर ले जाएं. यह प्रक्रिया कम से कम पांच बार दोहराएं.

आप जब भी बाहर जाएं तो पेड़-पौधों को ध्यान से देखती रहें. हरियाली या हरा रंग आंखों को बहुत सुकून देता है.

अगर आपकी आंखें कमजोर हैं और आप चश्मा लगाती हैं तो काम के हर एक घंटे बाद चश्मा उतार कर आंखें बंद करके पांच मिनट के लिए उन्हें आराम दें.

आई पैक

सौंदर्य विशेषज्ञ कहती हैं कि आंखों के नीचे काले घेरे, सूजन और झुर्रियां दूर करने के लिए सबसे जरुरी है पर्याप्त नींद, पर्याप्त पानी, संतुलित आहार, अल्ट्रा वायलट किरणों से बचाव और तनावमुक्त रहना. इसके अलावा आप इस आई पैक का भी इस्तेमाल कर सकती हैं-

एक टी स्पून दूध और एक टी स्पून खीरे का रस मिलाकर फ्रिज में रखकर ठंडा करें. इसमें रुई भिगोकर आंखों पर दस मिनट के लिए रखें. फिर ठंडे पानी से धोकर आंखें साफ कर लें.

कैसा हो मेकअप

आंखों के मेकअप के लिए एक महत्वपूर्ण बात यह है कि भौहें (आईब्रोज) सही आकार में बनी होनी चाहिए. भौहें बनाने का सबसे सही समय नहाने के बाद होता है. भौहें सही आकार में और साफ-सुथरी न हों तो आई मेकअप बहुत खराब लगता है. भौहें नेचुरल रखें. ‘सी’ आकार वाली और बेहद पतली भौहें चलन से बाहर हैं. जो बाल आकार से बाहर हों, बस उन्हीं फालतू बालों को हटवाएं.

चेहरे पर बेस लगाने के बाद सबसे पहले आंखों का मेकअप किया जाना चाहिए. आइशैडो से शुरुआत करें. आजकल लाइट शिमरी कलर्स चलन में हैं. पलकों पर पहले अपने कपड़े और त्वचा के रंग से मेल खाता हुआ आइशैडो ब्रश की सहायता से लगाएं. फिर थोड़ा हाइलाइटर आइशैडो में मिलाएं. इसके बाद आइलैशेज को कर्ल करें. वाल्यूमाइजिंग या ट्रांस्पेरेंट मस्कारा के दो कोट लगाएं.

सबसे अंत में आइलाइनर से आंखों को खूबसूरत आकार दें. आंखों का मेकअप करने के बाद अपनी आइब्रोज को कोंब करें. अंत में आइब्रो पेंसिल से उन्हें हल्का गहरा करें.

मेकअप उतारना न भूलें

रात में आंखों का मेकअप उतारना न भूलें. अगर आप कृत्रिम बरौनियां (आइलैशेज) लगाती हों तो सबसे पहले उन्हें हटाएं. फिर क्लींजिंग जेल और गीली रुई की सहायता से आईलाइनर और आइशैडो हटाएं.

क्या आपके पास स्मार्टफोन इंश्योरेंस कवर है?

आजकल नए-नए फीचर्स से लैस ऐसे स्‍मार्टफोन ओर मोबाइल फोन आ रहे हैं जिनसे आप लैपटॉप का काम भी कर सकते हैं. महंगे स्‍मार्टफोन और मोबाइल फोन आजकल इजी ईएमआई ऑप्‍शन में उपलब्‍ध हैं. लेकिन अगर आपका महंगा समार्टफोन चोरी हो जाए या उस पर पानी आदि गिरने से डैमेज हो जाए तो आपको एक झटके में तगड़ा नुकसान हो सकता है.

नुकसान से बचने के लिए स्‍मार्टफोन का कराएं इन्‍श्‍योरेंस

लेकिन आप इन्‍श्‍योरेंस कवर से अपने स्‍मार्टफोन को चोरी होने, गुम हो जाने और चोरी हो जाने की कंडीशन के लिए एक कवर दे सकते हैं. कुछ बीमा कंपनियां सिर्फ महंगे स्‍मार्टफोन और मोबाइल फोन के लिए इन्‍श्‍योरेंस कवर दे रहीं है जबकि कुछ कंपनियां होम इन्‍श्‍योरेंस कवर के साथ स्‍मार्टफोन या मोबाइल फोन के लिए कवर दे रहीं हैं.

विदेश जाने पर भी मिलेगा आपके स्‍मार्टफोन को कवर

निजी क्षेत्र की साधारण बीमा बजाज आलियांज जनरल इन्‍श्‍योरेंस कंपनी अपनी माई होम पॉलिसी के तहत स्‍मार्टफोन और मोबाइल फोन के लिए कवर दे रही है. स्‍मार्टफोन के लिए इन्‍श्‍योरेंस प्रीमियम कीमत का 0.75% है.

होम इन्‍श्‍योरेंस के साथ कवर लेने पर पड़ेगा सस्‍ता

सरकारी साधारण बीमा कंपनी ओरिएंटल इन्‍श्‍योरेंस कि कई कंपनियां होम इन्‍श्‍योरेंस के साथ मोबाइल और लैपटॉप को भी कवर देती हैं. वहीं कुछ कंपनियों के पास इसके लिए अलग से प्रोडक्‍ट है. होम इन्‍श्‍योरेंस के साथ अगर आप मोबाइल या दूसरी चीजों को इन्‍श्‍योर करातें हैं तो यह काफी सस्‍ता पड़ता है.

क्‍लेम में इन बातों का रखें ध्‍यान

मोबाइल फोन इन्‍श्‍योरेंस में क्‍लेम के लिए कुछ अहम बातों का ध्‍यान रखना जरूरी है. उदाहरण के लिए अगर आप ट्रेन में चार्जिंग में मोबाइल फोन लगाकर भूल आएं तों हो सकता है आपको क्‍लेम न मिले. इसी तरह से आपने अगर किसी दुकानदार को फोन ठीक कराने के लिए दिया है और इस दौरान फोन डैमेज हो गया तो भी आपको क्‍लेम नहीं मिलेगा. आम तौर पर इन्‍श्‍योरेंस कंपनियां फोन चोरी हो जाने, गुम हो जाने या पानी आदि पड़ने से डैमेज हो जाने क्‍लेम देती हैं.

अरेबियन मेकअप : चेहरे पर बिखेरें ब्रश का जादू

पार्टी रात की है और आप उस में छा जाना चाहती हैं, तो आप की ओवरऔल पर्सनैलिटी के अलावा कपड़े, फुटवियर, ऐक्सैसरीज और मेकअप का दमकना भी जरूरी है. ब्यूटी फील्ड में मेकअप की बात की जाए तो बीत गया वह दौर जब मेकअप सिर्फ बिंदी, लिपस्टिक तक ही सीमित होता था. आज चेहरे पर ब्रश का जादू बिखेरने के लिए कई तरह का मेकअप ब्यूटीपार्लर्स में उपलब्ध है. मसलन, डे मेकअप, नाइट मेकअप, ऐयर ब्रश मेकअप, ऐक्वा मेकअप, मिनरल मेकअप, इजिंप्टियन मेकअप, मैट मेकअप आदि. आप मौके की नजाकत देखें और उसी के अनुरूप चेहरे पर ब्रश का जादू बिखराएं.

मेकअप तकनीक में एकदम नया है अरेबियन मेकअप. अगर आप को बोल्ड लुक पसंद है, तो अरेबियन मेकअप जरूर लुभाएगा. इस में रंगों की भरमार है जैसे गोल्ड, सिल्वर, मेहंदी ग्रीन, क्रिमसन रैड, औरेंज, फ्यूशिया आदि. अरेबियन मेकअप आप स्वयं भी कर सकती हैं, बशर्ते आप का मेकअप में हाथ माहिर हो.

पेश है, अरेबियन मेकअप की जानकारी:

फेस मेकअप

किसी भी मेकअप की तरह इस की शुरुआत भी फाउंडेशन से ही होती है. लेकिन इस में फाउंडेशन के लिए सूफले या मूज का प्रयोग किया जाता है. सूफले या मूज का प्रयोग चेहरे को जहां तरोताजा दिखाता है, वहीं बेदाग भी. इस के अलावा यह चेहरे से अवांछित तेल को भी सोख लेता है नतीजतन चेहरे पर इस की महीन परत दिखती है. पीच रंग के ब्लशऔन से गालों को उभारा जाता है. यह रंग जहां गालों को हाईलाइट करता है, वहीं इस से चेहरा भी ग्लोइंग दिखता है. आप ब्लशऔन की जगह ब्रोंजर से ब्रोजिंग भी कर सकती हैं.

आई मेकअप

अरेबियन लुक में सब से अहम है आई मेकअप. इस में आंखों का मेकअप काफी वाइब्रैंट और कलरफुल किया जाता है. आंखों को आकर्षक बनाने के लिए उन के इनर कौर्नर्स पर सिल्वर, सैंटर में गोल्डन व आउटर कौर्नर्स पर डार्क मेहंदी कलर का आईशैडो लगाया जाता है. इस के बाद कट क्रीज लुक देते हुए ब्लैक कलर से आंखों के आसपास कंटूरिंग की जाती है. इस से आंखें स्मोकी, बड़ी और आकर्षक नजर आती हैं. आईब्रोज के नीचे पर्ल गोल्ड शेड से हाईलाइटिंग की जाती है. आंखों में चमक जगाने के लिए आईलिड पर ग्लिटर्स लगाए जाते हैं. आंखों की इनर्स पर सिल्वर, सैंटर पर गोल्ड और बाहर की तरफ ग्रीन शेड के ग्लिटर का प्रयोग किया जाता है. ऐसा करने से आई मेकअप आंखों को खूबसूरत दिखाएगा.

अंत में आंखों की शेप को डिफाइन करने के लिए अरेबियन स्टाइल को अपना सकती हैं. इस में लाइनर से ऊपर व नीचे दोनों तरफ बाहर विंग निकाल दें और इनर कौर्नर्स पर लाइनर को थोड़ा नुकीला कर दें. अब बाहर निकली दोनों विंग की स्पेस को सिल्वर ग्लिटर से फिल कर दें. आंखों को कंप्लीट सैंसुअल लुक देने के लिए पलकों पर आर्टिफिशियल लैशेज जरूर लगाएं. लैशेज को आईलैश कर्लर से कर्ल कर के मसकारे का कोट लगाएं ताकि वे नैचुरल लैशेज की तरह लगें. वाटर लाइन पर बोल्ड काजल लगा कर आई मेकअप को कंप्लीट करें.

लिप मेकअप

यों तो लिप मेकअप हमेशा आई मेकअप को ध्यान में रख कर ही किया जाता है, लेकिन अरेबियन मेकअप में ओवरऔल लुक बोल्ड रहता है. ऐसे में आंखों व होंठों पर बोल्ड शेड का प्रयोग अनिवार्य है. बोल्ड शेड में क्रिमसन रैड, औरेंज या फिर फ्यूशिया कलर की प्रमुखता रहती है.

युवती लगा सकती है बलात्कार का आरोप

ऋतु की अभिषेक से अच्छी बनती थी. यहां तक कि औफिस में दोनों साथ लंच करते, घूमतेफिरते, लेकिन एक दिन जब ऋतु को उस के फ्रैंड ने अभिषेक के साथ वाशरूम में देखा तो ऋतु डर गई और हड़बड़ाहट में उस ने खुद को सब की नजरों में सही दिखाने के लिए चिल्लाचिल्ला कर अभिषेक पर बलात्कार का आरोप लगाने लगी. यह देख अभिषेक के साथसाथ उस के फ्रैंड्स भी दंग रह गए, क्योंकि जो नजारा उन्होंने देखा था उस से ऋतु की मरजी साफ जाहिर हो रही थी.

सभी जानते थे कि वह अभिषेक को फंसा रही है, लेकिन कोई कहने की हिम्मत सिर्फ इसलिए नहीं जुटा पा रहा था कि कहीं ऋतु उसे भी फंसा न दे.

अधिकांश मामलों में यही देखने को मिलता है कि जब युवतियों की मांगें पूरी नहीं होतीं या फिर वे खुद फंसती दिखती हैं तो युवकों पर बलात्कार का आरोप लगा कर उन्हें फंसाने की कोशिश करने लगती हैं. इसलिए अगर आप भी रिलेशनशिप में हैं तो पहले से सावधानी बरत कर चलें. कहीं कोई आप को भी फंसा न दे.

कब-कब लगा सकती है आरोप

झगड़ा होने पर

‘आजकल तुम रिया के साथ ही ज्यादा बातें करते हो, मुझे हमेशा इग्नोर करने की तुम्हारी इतनी हिम्मत’, ‘तुम तो हमेशा अपने लिए ही जीते हो’, ‘तुम तो कभी रोमांटिक बातें ही नहीं करते’, ‘मुझ से ज्यादा तुम्हें औरों में इंट्रस्ट है’ आदि बातों को ले कर अकसर लड़ाई होने पर युवती आप को फंसाने या फिर सबक सिखाने के लिए बलात्कार का आरोप लगा सकती है.

बात नहीं मानने पर

बातबात पर जिद करना कि मुझे तो नेहा जैसा मोबाइल ही चाहिए, मैं तो तुम्हारे साथ महंगे रैस्टोरैंट में ही डिनर करूंगी, तुम मुझे यह स्कूटी दिलवाओ और जब आप की पौकेट इन चीजों के  लिए इजाजत नहीं देती या आप मना करने लगते हैं तो युवती को लगने लगता है कि मेरा बौयफ्रैंड तो कंजूस है. फिर वह आप से गलत तरीके से पैसे ऐंठने के लिए आप को फंसा सकती है.

पैसों की डिमांड पूरी न होने पर

कभी पर्स चोरी होने की बात कह कर, कभी रिचार्ज करवाने के लिए तो कभी किसी बहाने से आप से पैसों की मांग करे. 1-2 बार तो आप भी रिश्ते की खातिर उसे पैसे दे देंगे, लेकिन आदत बनती देख आप को भी यह सब खटकने लगेगा और जैसे ही आप पैसे देने बंद करेंगे वैसे ही आप फंसे, क्योंकि ऐसी युवतियां रिश्ता दिल से नहीं रखतीं.

शादी नहीं करने पर

आप दोनों काफी समय से रिलेशनशिप में थे, लेकिन घर की जिम्मेदारियों व मां के न मानने के कारण आप ने अपने पार्टनर से शादी करने से मना कर दिया जो आप के पार्टनर को बिलकुल बरदाश्त नहीं और उस ने आप को झूठे आरोप में फंसा दिया, जबकि आप ने उस के सामने यह बात पहले ही रख दी थी कि हम हमेशा सिर्फ दोस्त रहेंगे चाहे शादी हो या न हो.

ब्रेकअप होने पर

आप जान गए थे कि आप की पार्टनर आप को चीट कर रही है. एक तरफ आप से प्यार की बातें वहीं दूसरी तरफ किसी और से. ऐसे में आप ने उस से ब्रेकअप कर लिया जिसे अपना अपमान मान कर वह आप को कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ेगी.

फ्रैंड्स के साथ ज्यादा समय बिताने पर

अधिकांश युवतियों की यह हैबिट होती है कि वे खुद की इग्नोरैंस बिलकुल बरदाश्त नहीं करतीं, खासकर तब जब उन्हें लगे कि उन का बौयफ्रैंड उन से ज्यादा दोस्तों से बात कर रहा है. ऐसे में वे औरों की नजरों में गिराने के लिए आप को बदनाम कर सकती हैं.

कैसे बचें

शारीरिक संबंध न बनाएं

रिलेशनशिप में होने पर हमारी पहली चाहत अपने पार्टनर को पाने की होती है, जिस के कारण हम जल्दबाजी में बिना सोचसमझे उस के साथ शारीरिक संबंध बना बैठते हैं, जिस के बाद में खतरनाक परिणाम भुगतने पड़ते हैं. ऐसे में जरूरी है कि जब तक रिश्ते को नाम न मिल जाए तब तक संबंध बनाने की गलती न करें.

फोटो न खींचने दें

अगर आप खुद की फीलिंग्स पर कंट्रोल न रख पाने के कारण रिलेशन बना रहे हैं तो कोशिश करें कि न खुद इस मूवमैंट के फोटो शूट करें और न ही पार्टनर को करने दें वरना यह आप के ब्लैकमेल का रास्ता बन सकता है.

अपना बैंक बैलेंस न बताएं

कई बार हम ओवर ऐक्साइटमैंट में अपने पार्टनर को अपनी सारी पर्सनल इन्फौर्मेशन जैसे बैंक बैलेंस वगैरा के बारे में बता देते हैं. एक बार आप की आर्थिक स्थिति का पता लगने के बाद वह न सिर्फ आप से पैसे ऐंठ सकती है बल्कि मोटी रकम वसूलने के लिए आप पर रेप का आरोप लगाने में भी देर नहीं लगाएगी.

ड्रिंक वगैरा न लें

आप जब भी पार्टनर के साथ हों तो ड्रिंक वगैरा न करें ताकि आप को उस की गतिविधियों का पता चलता रहे.

लिव इन में न रहें

भले ही आप लिव इन रिलेशनशिप में एकदूसरे की मरजी से रह रहे हैं, लेकिन जब भी मन भरने लगे या मजबूरीवश आप अपने पार्टनर से दूर हुए तो वह आप को सुबूतों सहित रेप के जुर्म में बंद करवा सकती है. ऐसे में आप के पास अपनी सफाई में कहने को कुछ नहीं होगा इसलिए इस ओर सावधानीपूर्वक बढ़ें.

फोन, व्हाट्सऐप पर सैक्सी चैट से दूर रहें

व्हाट्सऐप पर कभी भी अपने पार्टनर से सैक्सी बातें न करें. आमनेसामने ऐसी बातें करें वरना वह फोन पर रिकौर्डिंग कर के यह टूल आप को ब्लैकमेल करने के लिए इस्तेमाल कर सकती है, इसे आप झुठला भी नहीं पाएंगे.

पिछले सीक्रैट्स न बताएं

आप पहले किसी के साथ रिलेशनशिप में थे, किस कारण आप का उस के साथ पंगा हुआ वगैरावगैरा बातें पार्टनर से शेयर न करें वरना वह इन्हीं सीक्रैट्स से भविष्य में आप के लिए मुसीबत पैदा कर सकती है.

जब आरोप लगाए तब क्या करें

धमकी का जवाब धमकी से न दें

यदि आप की पार्टनर ने आप को गुस्से में आ कर फंसाने की धमकी दी है तो आप यह बात सुन कर गुस्से में न आएं, क्योंकि अगर दोनों ओर गरमी का माहौल होगा तो स्थिति को संभालना मुश्किल हो जाएगा.

छिपें नहीं, फेस करें

इस दौरान छिपने से काम नहीं चलेगा, क्योंकि ऐसा करने से लोगों को लगेगा कि आप ने सचमुच कोई अपराध किया है बल्कि जिस तरह आप पहले अपनी जिंदगी जीते थे वैसे ही जीएं. अगर वह सामने भी आ जाए तो नौर्मल रहें.

फोन अटैंड करें

डर के मारे कि कहीं फोन पर रिकौर्डिंग न कर ले इस चक्कर में अपना नंबर ही चेंज कर लें या फिर उस के फोन ही अटैंड न करें. ऐसा करने की गलती न करें बल्कि फोन पर उसे समझाएं कि हमारे बीच सिर्फ दोस्ती का रिश्ता था और अगर तुम्हें मुझ से कोई प्रौब्लम थी भी तो उसे प्यार से समझाती, न कि इस तरह आरोप लगा कर.

पेरैंट्स को लें कौन्फिडैंस में

अपनी समस्या पेरैंट्स को अवश्य बताएं कि मैं ने जिस युवती से फ्रैंडशिप की थी उस ने अब मेरी गलती न होते हुए भी मुझे फंसा दिया है. ऐसे में पेरैंट्स आप को सपोर्ट करेंगे और इस से युवती को भी लगेगा कि अब आप अकेली नहीं हैं.

इंसान के एहसासों पर कब्जा करते रोबोट

रोबोट अब हमारे लिए नई चीज नहीं हैं. दुनिया के कई मुल्कों में वे तरहतरह के काम निबटा रहे हैं. हमारे देश की कई फैक्ट्रियों में भी रोबोभुजाएं एक ही तरह से किए जाने वाले कई कार्य कुशलता से संपन्न कर रही हैं. हाल में, मुंबई में एक निजी बैंक की शाखा में ‘इरा’ नामक रोबोट को ग्राहकों के स्वागत और उन्हें कई जानकारियां देने के लिए तैनात किया गया है जो एक यांत्रिक महिला कर्मचारी की तरह दिखता है.

‘इरा’ का मतलब है इंटैलीजैंट रोबोटिक असिस्टैंट और इसे भारत में ही विकसित किया गया है. एक समझदार महिला कर्मचारी की तरह ग्राहकों की समस्याएं हल करने के अलावा बैंक कर्मचारियों की मदद करने का जिम्मा भी इरा को दिया गया है.

हमारे देश में इस तरह के संवेदनशील रोबोट बनाने की यह एक शुरुआत है और ऐसी ही एक शुरुआत जापान और यूरोपीय संघ ने संयुक्त रूप से 20 लाख पाउंड के खर्च से ऐसा रोबोट बनाने की दिशा में की है, जो सांस्कृतिक और संवेदनशील हों और बुजुर्गों की देखभाल कर सकें. अगले 3 साल में बनाए जाने वाले ये पेपर रोबोट इंसानों की तरह ही दिखेंगे और उन्हें बुजुर्गों की देखभाल जैसे समय पर दवापानी देने और उन के रोजमर्रा के कई काम संपन्न करने में लगाया जाएगा.

सब से उल्लेखनीय बात है रोबोट को आम इंसानों की तरह बुद्धिमान व संवेदनशील बनाया जाना. पेपर रोबोट बनाने वाली कंपनी ‘सौफ्टबैक रोबोटिक्स’ का कहना है कि वह ऐसी दुनिया बनाना चाहती है, जहां इंसान और रोबोट साथसाथ रह सकें और साथ रहते हुए सुरक्षित, सेहतमंद व खुशहाल जीवन बिताएं. हालांकि अभी भी जापान में सैकड़ों घरों में इसी तरह के पेपर रोबोट आजमाए जा रहे हैं, पर इस परियोजना के तहत बेहद समझदार और संवेदनशील रोबोट सब से पहले ब्रिटेन के एडवीनिया हैल्थ केयर के केयर होम्स में जांचापरखा जाएगा.

समझदार रोबोट बनाने की दिशा में एक प्रयोग फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग ने भी किया है. उन्होंने अपने घर पर आर्टिफिशियल इंटैलीजैंसी यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता की मदद से हौलीवुड की फिल्म ‘आयरनमैन’ में देखने वाले रोबोट जारविस की तरह का एक रोबोटिक सिस्टम तैनात किया है जो घर और औफिस के कामों में उन की मदद करता है.

जारविस सिस्टम उन की आवाज के  इशारे पर काम करता है और उस में लगी एआई तकनीक संगीत, लाइट से ले कर घर का तापमान तक नियंत्रित करती है. यही नहीं, जारविस उन के घर आने वाले दोस्तों की पहचान करता है, घंटी बजने पर उन के लिए घर का दरवाजा खोलता है और जुकरबर्ग की गैरमौजूदगी में उन की बेटी मैक्स की देखभाल भी करता है. घर पर मौजूद नहीं रहने पर औफिस में काम करते वक्त जुकरबर्ग को अपने कंप्यूटर जारविस की मदद से घर के भीतर की सारी जानकारी मिलती रहती है.

कौमनसैंस वाले रोबोट

ये कुछ ऐसे उदाहरण हैं जो यह साबित करते हैं कि धीरेधीरे रोबोट हम इंसानों  के आदेशों के अलावा हमारी भावनाओं को समझते हुए कार्य करना सीख रहे हैं. असल में, अभी तक यही माना जाता रहा है कि जब बात सामान्य बुद्धि यानी कौमनसैंस की आती है, तो रोबोट इस मामले में इंसानों से पिछड़ जाते हैं, जबकि इंसान बहुत सारे काम कौमनसैंस (व्यावहारिक बुद्धि) के सहारे करते हैं. ऐसे में यह जरूरी है कि अगर रोबोट को इंसानों के बराबर ला खड़ा  करना है, तो उन में कौमनसैंस विकसित की जाए, लेकिन रोबोट या कहें कि मशीनों में ऐसी क्षमता विकसित करना काफी कठिन काम माना जाता रहा है.

जापान और यूरोपीय संघ मिल कर पेपर रोबोट के संबंध में जो कर रहे हैं और जिस तरह  का एक काम अमेरिका की कोर्नेल यूनिवर्सिटी में हो रहा है, उस से लगता है कि जल्दी ही यह तसवीर बदल जाएगी. असल में, कोर्नेल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता रोबोट में ऐसी क्षमता विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि किसी धारदार चीज को हाथ में लेते समय उन में इस से पैदा होने वाले खतरे का एहसास हो सके. रोबोट यह जान सकने योग्य बनाए जा रहे हैं कि कांच जैसी आसानी से टूटने वाली चीजों को किस तरह संभालना है.

हालात के मुताबिक खुद सोच सकने वाले ऐसे रोबोट को ‘बैक्सटर’ नाम दिया गया है. ‘बैक्सटर’ अगर किसी मामले में कोई गलती करता है, तो उस के साथ मौजूद रहने वाला ह्यूमन हैंडलर उस केहाथ की दिशा ठीक कर देता है. यह काम तब तक दोहराया जाता है, जब तक कि रोबोट में कुछ खास किस्म के काम कर सकने की समझ विकसित नहीं हो जाती. लेकिन रोबोट में चीजों में अंतर करने की समझ विकसित करना आसान नहीं है.

यों रोबोट्स को इंसान जैसा बनाने की जो कोशिशें चल रही हैं, उन्हें देखते हुए लगता है कि जल्द ही कोई ऐसा रोबोट सामने आएगा जिस से यह फर्क करना मुश्किल हो जाएगा कि वह मशीन है या जीवित प्राणी. पर क्या इस का पता किया जा सकेगा कि कोईर् रोबोट इंसान जैसा हो गया है क्योंकि अभी हम यह मानने को तैयार नहीं कि हमारे हावभाव की नकल करने वाली मशीन इंसान जैसी आखिर कैसे हो सकती है. एक ऐसी मशीन, जो हमारी तरह सोचसमझ नहीं सकती, हमारी जैसी चेतना नहीं रखती, जो इमोशंस की सिर्फ नकल कर रही होगी, यह असली नहीं हो सकती. वह तो रोबोट ही रहेगी, पर वैज्ञानिक दावा कर रहे हैं कि असली और नकली का यह अंतर जल्दी ही मिटने वाला है. ऐसा दावा करने वाले वैज्ञानिक एक अनुमान लगाने को कहते हैं. वे कहते हैं कि यदि रोबोट को ऐसा बना दिया जाए कि वह हाड़मांस का लगे, तो हम उसे तब तक इंसान ही समझेंगे, जब तक कि वह खुद हमें न बताए कि  वह तो रोबोट है.

जिंदा हो रही मशीन

कोई चीज जड़ या चेतन या फिर कोई मशीन है या इंसान जैसा जीव इस का फर्क तो हम सामने से देख कर आसानी से कर लेते हैं, पर यदि आप के सामने एक परदा हो और उस पार कोई अजनबी, जिसे आप देख नहीं सकते, तो उसे पहचानना मुश्किल होगा. खासतौर से तब जब दूसरी तरफ से आप को सही जवाब मिल रहे हों.

कहा जा रहा है कि जिस दिन इंसानों की तरह बात और व्यवहार करने वाले रोबोट बना लिए जाएंगे, तब मशीनों को जिंदा ही मान लिया जाएगा. तब रोबोट एक ऐसी मशीन के  रूप में हमारे सामने होगा जो हम से बातचीत कर रहा होगा, हमारी भावनाओं को समझ रहा होगा और हमारे आदेशनिर्देश समझ कर कोई सही फैसला कर रहा होगा. हजारों तरह के कीड़े और जीव प्रजातियां तो हम से बात भी नहीं करतीं, पर हम उन्हें जिंदा मानते हैं. फिर यदि रोबोट सोचनेमहसूस करने की जरा भी योग्यता दर्शाने लगें, तो उन्हें जीवित मान लेने में क्या हर्ज है?

असल में चेतन और जड़ (लाइफ और नौनलाइफ) के बीच जो दूरी या परदा था, अब वह खत्म होता लग रहा है, क्योंकि मशीनें हमारे जीवन में काफी भीतर तक घुसपैठ कर चुकी हैं. कह सकते हैं कि मशीनें जिंदा होने जा रही हैं जिन से सारे समीकरण बदल सकते हैं. वैसे इस बदलाव के काफी संकेत तो अत्यधिक स्मार्ट हो चुके मोबाइल फोन, कंप्यूटर और इशारे से चलने और बंद होने वाली हमारे रोजमर्रा के इस्तेमाल में आने वाली मशीनें दे ही रही हैं, पर बड़ी तबदीली शायद रोबोट्स की वजह से आने वाली है.

यह तबदीली कैसी होगी, इस का संकेत यूरोप में चलाए जा रहे फेलिक्स ग्रोविंग प्रोजैक्ट से मिलता है. फेलिक्स का मतलब है फीलिंग (एहसास), इंटरैक्ट (क्रियाप्रतिक्रिया) और ऐक्सप्रैस (अभिव्यक्ति). इस के तहत रोबोटिक्स, साइकोलौजी और न्यूरो साइंस के कई विशेषज्ञों की साझा मेहनत से तैयार होने जा रहे रोबोट में पहली बार भावनाएं पैदा की जाएंगी. ऐसे रोबोट अपनी मशीनी आंखों, कानों और सैंसर्स से आसपास के माहौल को पहचानेंगे, अपने मालिक के इशारों, संकेतों और भावों को समझेंगे और जवाब में वैसी ही प्रतिक्रिया देंगे, जैसी जीवित प्राणी देते हैं.

रोबोट को लोग अपने नौकर या पालतू जानवर की तरह इस्तेमाल कर सकेंगे. वह सोनी के मशीनी कुत्ते ऐबो और होंडा के रोबोट आसिमो से कईर् पीढ़ी आगे का होगा. ऐबो चेहरे पहचानता है और अपने मालिक की कमांड सीखता है. आसिमो इस से थोड़ा आगे है. वह नाच भी सकता है. फुटबौल खेल सकता है पर ये दोनों हैं तो रोबोट ही.

खत्म हो रहा है फासला

अभी भले ही लोग यह फर्क कर पाएं कि इंसान जैसे दिखने के बावजूद कोई मशीन असल में रोबोट है और इंसान उन से अलग है, पर एक मशहूर वैज्ञानिक रे कुर्जवेल जल्दी ही इस अंतर के  खत्म होने की उम्मीद कर रहे हैं. कुर्जवेल का दावा है कि आने वाले कुछ ही वर्षों में रोबोट भी प्रयोगशाला रूपी कक्षाओं में नई चीजें सीखते और इस बारे में जानकारी को एकदूसरे से साझा करते दिखाई दे रहे होंगे कि वे हर मामले में इंसानों को कैसे पीछे छोड़ सकते हैं.

असल में इस उद्देश्य से रोबोट्स के लिए खासतौर से ऐसा वर्ल्ड वाइड वैब तैयार किया जा रहा है जहां वे इंसानी खूबियों को सीखेंगे. इस वर्ल्ड वाइड वैब का नाम है, ‘रोबोअर्थ’ और ‘रोबो ब्रेन’. रोबोअर्थ की जानकारियों का स्रोत प्रोग्रामिंग है, जबकि रोबो ब्रेन इंटरनैट से मिली सूचनाओं के प्रति खुद अपनी समझ बनाता है. रोबो बे्रन केवल वस्तुओं को पहचानता ही नहीं है बल्कि उस में मनुष्यों की भाषा और व्यवहार जैसी जटिल चीजों  को समझने की भी क्षमता है. यदि कोई रोबोट ऐसी स्थिति में फंसता है, जिस से उस का पहले कभी सामना नहीं हुआ था, तो वह रोबो ब्रेन से सलाहमशविरा कर सकता है.

असल में रोबो ब्रेन को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि वह सार्वजनिक रूप से उपलब्ध सूचना स्रोतों से कई प्रकार के हुनर और ज्ञान को हासिल कर ले. इस ब्रेन से संपर्क रखने वाले दुनिया के किसी भी हिस्से में मौजूद अन्य रोबोट अपने रोजमर्रा के कार्यों के लिए रोबो ब्रेन में जमा सूचनाओं का इस्तेमाल कर सकते हैं.

रोबोअर्थ नामक वैब का विकास करने वाले वैज्ञानिक इंडोवेन यूनिवर्सिटी में बनाए गए एक प्रायोगिक अस्पताल में ऐसी प्रणाली बना रहे हैं, जिस का मकसद रोबोटों को इस लायक बनाना है ताकि वे अपनी जानकारियों को डाटाबेस में डाल सकें. डाटाबेस में पहुंचाई गई ये सूचनाएं सभी मशीनों के साथ एक खास कृत्रिम मस्तिष्क के जरिए दूसरे रोबोटों से साझा की जाएंगीं.

रोबोअर्थ परियोजना के मुखिया रेने वान दे मोलेनग्राफ्ट के मुताबिक, रोबोअर्थ असल में रोबोटों के लिए तैयार किया गया एक ऐसा वर्ल्ड वाइड वैब है, जिस का विशाल नैटवर्क है. लंबेचौड़े आंकड़ों का गोदाम इस की खासीयत है. इस वैब पर रोबोट अपनी जानकारियां एकदूसरे से बांटेंगे और एकदूसरे से सीखेंगे भी. इस प्रणाली को जांचने के लिए 4 ऐसे रोबोट चुने गए हैं, जो अस्पताल में आने वाले मरीजों की मदद के लिए मिलजुल कर काम करेंगे. ये रोबोट काम कैसे करेंगे, इस का भी एक खाका तैयार है. जैसे इन में से एक रोबोट अस्पताल में भरती मरीज के बैड या कमरे का नक्शा वैबसाइट पर अपलोड करेगा, ताकि मरीज से मिलने वालों को यहां पहुंचने में कोई परेशानी न हो. इसी तरह दूसरा रोबोट ऐसे संदेश प्रसारित करेगा, जिस से मरीजों को पेय पदार्थ जल्दी और आसानी से मिल जाएं. इस तरह लग रहा है कि जल्दी ही कई तरह के सार्वजनिक कार्यों में रोबोट की मदद ली जाने लगेगी.

अभी जो सब से बड़ी समस्या है, वह यह है कि हम इंसान जिन कामों को आसानी से करते हैं, रोबोट के लिए वे सभी काम मुश्किल होते हैं, जबकि जो काम इंसानों के लिए कठिन माने जाते हैं, उन्हें रोबोट आसानी से कर लेते हैं. जैसे, लावा उगलते ज्वालामुखी में उतरना या समुद्र की गहराइयों में किसी चीज को खोज निकालना ऐसे सक्षम रोबोट अब अस्तित्व में हैं पर चाय का गरम प्याला उलटने से हाथ जल सकता है, यह समझ रोबोट में प्राय: नहीं होती.

खतरा क्या है

सवाल यह है कि जब रोबोट इंसानों जैसी समझ आदि से जुड़ी बहुत सारी बातें सीख रहे हैं, तो उन से खतरा क्या है? उन्हें तो यही सिखाया जा रहा है कि कैसे किसी आदेश का पालन किया जाए या कैसे किसी परिस्थिति का सामना किया जाए?

यह तो हम इंसानों के लिए अच्छी बात है कि हमारे काम में मददगार रोबोट हमारे आसपास होंगे पर असल में खतरा यही है. वैज्ञानिकों के मुताबिक एक जिंदा और बुद्धि से लैस रोबोट अगर हमारी सारी भावनाओं को समझने लगेंगे, तो उसी वक्त हम इंसानों की हस्ती खतरे में पड़ जाएगी. यह मामला मशीनों के जिंदा हो जाने का है.

एक खतरा तो यह हो सकता है कि हमारी किसी बात पर रोबोट रूठ जाए, तुनक जाए या क्रोधित हो जाए. ऐसी स्थिति में वह हमारे लिए समस्या पैदा कर सकता है. क्या पता हमला ही कर बैठे. यही नहीं, वह या तो आदेश का पालन करने से इनकार कर दे. संभव है कि वह अपने लिए आदरणीय संबोधन का इंतजार करे और कहे कि मिस्टर, जरा तमीज से पेश आइए.

आखिर जब रोबोट जैसी मशीनें हमारी भावनाओं को समझने लगेंगी, तो वे अपने सम्मान की फिक्र भी तो करने लगेंगी. यह भी सकता है कि भविष्य की मशीनें हम से भी ज्यादा समझदार हों. वे चुपचाप विकसित होती रहें और हमें इस की भनक न लगने दें यानी तब सब से बड़ा खतरा हम इंसानों के लिए होगा. शायद यही वजह है कि दुनिया में कुछ लोग अभी से रोबोटों को मानवाधिकार देने की बात करने लगे हैं.

ब्रिटिश सरकार के एक अध्ययन के अनुसार अगले 20 से 50 वर्ष में रोबोट्स को उन के हक देने होंगे. यही नहीं, दक्षिण कोरिया में कुछ वैज्ञानिक तो रोबोटों के लिए नैतिक नियम तय कर रहे हैं, ताकि वे इंसानों को नुकसान न पहुंचाना सीख लें. पर क्या एक दिन रोबोट इंसानों पर हमला कर देंगे? यह आशंका भी अकसर जताई जाती है, क्योंकि जिस तरह से उन्हें बुद्धिमान बनाने के प्रयास हो रहे हैं, मुमकिन है कि एक दिन वे इंसानों से हर मामले में आगे निकलना चाहें और दुनिया पर कब्जा करना चाहें.

‘बैक्सटर’ जैसे रोबोट को ले कर अभी से ऐसी बातें की जा रही हैं, पर वैज्ञानिक कहते हैं कि अगले 500 साल में तो ऐसा नहीं होगा. अगर किसी रोबोे के हाथों कोई खून होगा तो वह गलत कमांड या रोबोट से भूलवश ही होगा. ऐसे कुछ हादसे विदेश में और भारत में गुड़गांव तक में हो चुके हैं, पर अंतत: वे हमारी बनाई मशीनें हैं जिन्हें हमारे ही निर्देशों की जरूरत है. बिना मानवीय दखल के रोबोट विद्रोह तो हरगिज नहीं कर सकेंगे.

– ए के सिंह

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