आप के लिए पेश हैं ये 7 उपाय, जो गरमियों में त्वचा दमकाएं

  1. अपनी त्वचा को नुकसान से बचाने और तरोताजा रखने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी पीना चाहिए. इस के अलावा नारियल पानी भी लें. यह त्वचा की चमक बनाए रखने में सहायक है.
  2. त्वचा के अनुरूप सनस्क्रीन ढूंढ़ पाना भले ही मुश्किल काम है, लेकिन इस के फायदे हैं. भारतीय त्वचा के लिए 30 से 50 एसपीएफ का सनस्क्रीन उपयुक्त रहता है. तैलीय त्वचा वालों के लिए जैलयुक्त सनस्क्रीन भी उपलब्ध है. धूप में निकलने से कम से कम 20 मिनट पहले त्वचा पर सनस्क्रीन लोशन या जैल जरूर लगाएं.
  3. ऐक्सरसाइज करने से शरीर में रक्तसंचार ठीक बना रहता है और शरीर को पर्याप्त औक्सीजन मिलता है, जिस से त्वचा भी स्वस्थ रहती है.
  4. धूप में आंखों को सुरक्षित रखने के लिए सनग्लास पहनें.
  5. गुलाबजल, बेसन और दही जैसी प्राकृतिक चीजों की मदद से त्वचा साफ करें. इस के बाद त्वचा को टोन जरूर करें. इस से रोमछिद्र बंद हो जाते हैं और त्वचा को ठंडक पहुंचती है. यदि मौश्चराइजर लगाने से आप की त्वचा तैलीय हो जाती है, तो गरमियों में आप नमीयुक्त मौइश्चराइजर का इस्तेमाल कर सकती हैं.
  6. त्वचा से टैन को हटाने के लिए आप चेहरे पर दही लगा सकती हैं. इस में शहद, ओटमील, ककड़ी, खीरा या नीबू भी मिला सकती हैं.
  7. इस सीजन में ऐक्सफोलिएशन अनिवार्य है, क्योंकि दिन भर में चेहरे पर जो अशुद्धता जम जाती है उसे निकालना जरूरी है. इसलिए हफ्ते में कम से कम 2 बार त्वचा को ऐक्सफोलिएट जरूर करें.

डा. करुणा मलहोत्रा

(कौस्मैटिक स्किन ऐंड होम्योक्लिनिक)

कोलोरैक्टल कैंसर से बचाव के उपाय

कोलोरैक्टल कैंसर (सीआरसी) बड़ी आंत का कैंसर होता है. यह गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट का एक अलग हिस्सा होता है. बड़ी आंत की लगभग सभी कैंसर कोशिकाओं के छोटे गुच्छे या समूह के तौर पर बनने शुरू होते हैं, जिन्हें एडेनोमेटस पौलिप्स कहा जाता है. हालांकि, इन पौलिप्स को कैंसर में बदलने में काफी साल लग जाते हैं.

सीआरसी दुनियाभर में महिलाओं में होने वाला तीसरा और पुरुषों में चौथा सब से आम कैंसर है. हालांकि, दुनियाभर में भौगोलिक क्षेत्रों के आधार पर इस में अंतर देखा जाता है. आधे से अधिक सीआरसी के मामले विकसित देशों में देखे गए हैं, लेकिन स्वास्थ्य संसाधनों के अभाव की वजह से सीआरसी से होने वाली सर्वाधिक मौतें ज्यादातर अल्पविकसित देशों में होती हैं. भारत में ऐसे कैंसर के मामले समृद्ध पश्चिमी देशों की तुलना में करीब 7 से 8 गुना कम होते हैं, लेकिन पिछले कुछ दशकों से भारत में भी सीआरसी के मामले बढ़ रहे हैं.

लक्षण व संकेत

इस कैंसर के अभी तक कोई विशिष्ट लक्षण व संकेत नहीं मिले हैं. कुछ ऐसे लक्षण हैं जो इस बीमारी के संदेह को बढ़ाते हैं, जैसे कि मल में रक्त या आंव का आना, मलत्याग की आदतों में बदलाव (मलत्याग में कठिनाई, दस्त या कब्ज), लगातार पेट से संबंधित परेशानियां, जैसे दर्द, ऐंठन और अप्रत्याशित वजन का घटना, एनीमिया, थकान, आंत का अवरुद्ध होना, खासतौर पर वृद्धावस्था में.

कारण

अधिकांश मामलों में यह स्पष्ट नहीं होता कि कोलोनिक कैंसर के क्या कारण हैं. क्रोलोन कैंसर वैसी स्थिति में होता है जब बड़ी आंत की लाइनिंग कोशिकाओं में आनुवंशिक ब्लूप्रिंट (डीएनए) में परिवर्तन होता है. आनुवंशिक परिवर्तन नए सिरे (अधिकांश मामलों में) से उत्पन्न हो सकते हैं. यह जन्मजात और परिवार से आनुवंशिक तौर पर भी हो सकता है. ये जन्मजात जीन म्यूटेशंस कैंसर का अपरिहार्य कारण नहीं बनते हैं लेकिन कैंसर के खतरे को काफी बढ़ा देते हैं.

जोखिम बढ़ाने वाले जन्मजात कैंसर सिंड्रोम के आम रूप हैं : एचएनपीसीसी (वंशानुगत गैर पौलीपोसिस कोलोरैक्टल कैंसर सिंड्रोम) एफएपी (फैमिलिया एडेमोनेटस पौलीपोसिस). आहार में कम फाइबर, ज्यादा रैड मीट व कैलोरी के सेवन, धूम्रपान, आरामतलब जीवनशैली और वजन का बढ़ना आमतौर पर कोलोनिक कैंसर के प्रमुख कारण होते हैं.

अन्य कारक जो कोलोनिक कैंसर की आशंका को बढ़ाते हैं, उन में 50 वर्ष से अधिक आयु, अफ्रीकी-अमेरिकन नस्ल, कोलोरैक्टल कैंसर या पौलिप्स का व्यक्तिगत इतिहास, आंत में सूजन, जैसे अल्सरेटिव कोलाइटिस और आंत से जुड़ी बीमारियां, मधुमेह, मोटापा, कैंसर के बाद कराई गई रैडिएशन थेरैपी आदि शामिल हैं.

जांच है जरूरी

अधिकांश सीआरसी पौलिप्स के कई वर्षों में धीरेधीरे कैंसर में तबदील होने की वजह से होते हैं. ऐसे में इस कैंसर को रोकने या जल्द पता लगाने के लिए जांच करना तार्किक है. स्क्रीनिंग या जांच कार्यक्रम में आसान जांच के साथ स्वस्थ व्यक्तियों की बड़ी आबादी शामिल होती है. इस से प्रारंभिक चरण में या कैंसर के पूर्व स्तर पर बीमारी का पता लगाने में मदद मिलती है, जिस से रोग की मृत्युदर कम हो सकती है.

सीआरसी की जांच में व्यापक आबादी के बीच नौन इन्वैसिव स्टूल टैस्ट और इन्वैसिव कोलोनोस्कोपिक टैस्ट्स के साथ संगठित स्क्रीनिंग कार्यक्रम शामिल हैं. स्टूल टैस्ट (मल जांच) की स्क्रीनिंग में रक्त की मात्रा की जांच की जाती है. सामान्य जांच हैं-गुआयाक फीकल औकल्ट ब्लड टैस्ट (जीएफओबीटी) और फीकल इम्यूनोकैमिकल टैस्ट (एफआईटी).

वर्तमान सुझावों के आधार पर सीआरसी जांच में फीकल औकल्ट ब्लड का पता लगाने के लिए एफआईटी को पहला विकल्प बताया गया है और इस के लिए खानेपीने की पाबंदी की जरूरत नहीं होती है तथा यह ज्यादा संवेदनशील परीक्षण है. अन्य नौनइन्वैसिव तकनीक भी उपलब्ध हैं, जैसे कि फीकल डीएनए एनालिसिस. ये परीक्षण एडेनोमा और कोलोरैक्टल कैंसर कोशिकाओं में मौलीक्यूलर परिवर्तन की पहचान करते हैं. हालांकि, ज्यादा लागत होने की वजह से इन परीक्षणों का उपयोग कम किया जाता है.

फीकल परीक्षण के बाद सिगमोएडोस्कोपी और कोलोनोस्कोपी जैसी इन्वैसिव जांच से पौलिप्स और कैंसर का पता लगाने के साथ ही साथ तुलनात्मक रूप से शुरुआती अवस्था में उसे हटा सकते हैं. इस के स्पष्ट प्रमाण हैं कि दीर्घावधि में फौलोअप जांच के दौरान कोलोनोस्कोपी कोलोनिक कैंसर से होने वाली मृत्युदर में कमी आई है. लेकिन इस के सुखद अनुभव नहीं होने की वजह से आम आबादी फीकल टैस्ट्स को तरजीह देती है और फीकल टैस्ट के पौजिटिव आने के बाद ही कोलोनोस्कोपी कराई जाती है.

हो सकता है नियंत्रण

कैंसर की रोकथाम का कोई निश्चित तरीका नहीं है लेकिन कुछ उपाय हैं जिन्हें अपना कर कैंसर के जोखिम को कम किया जा सकता है.

– वजन को कम रखें और खासतौर पर कमर के चारों ओर वजन बढ़ाने से बचें.

– तेज चलने और गहन व्यायाम द्वारा शारीरिक गतिविधियों को बनाए रखें.

– फलों और सब्जियों का ज्यादा मात्रा में सेवन करें, लेकिन ज्यादा कैलोरी, रैडमीट या प्रौसेस्ड मीट के सेवन से परहेज करें.

– अल्कोहल और सिगरेट का सेवन कतई न करें.

– हालांकि यह वैज्ञानिक तौर पर सिद्ध नहीं है लेकिन फिर भी कैल्शियम, मैग्नीशियम व विटामिन डी निवारक हो सकते हैं.

– अध्ययनों में पाया गया है कि जो लोग एस्प्रिन और अन्य इन्फ्लेमेटरी दवाइयों, जैसे आईब्रूफेन और नैप्रोक्सिन का सेवन करते हैं, उन्हें आंत का कैंसर या पौलिप्स होने का खतरा कम रहता है.

डा. प्रदीप जैन

(लेखक फोर्टिस अस्पताल, शालीमार बाग, दिल्ली  में डायरैक्टर जीआई एवं औंको सर्जन हैं.)

जब विवाह बोझ बन जाए

एक बीमार विवाह के साथ रहना क्या विवाह को समाप्त करने से अच्छा है? यह सवाल बहुत से पुरुषों और स्त्रियों के मन में कौंधता है. जो पतिपत्नी सदा एकदूसरे को कोसते रहते हैं, एकदूसरे की गलतियां निकालते रहते हैं उन्हें अकसर लगता है कि इस विवाह के चक्कर में पड़े ही क्यों, क्यों नहीं वे विवाह तोड़ कर आजादी को अपनाते?

यह सवाल जीवन के उन चंद उलझे सवालों में से है जिन के उत्तर नहीं होते. विवाह, पहली बात समझ लें कोई संस्कार नहीं, कोई ईश्वरप्रदत्त नहीं, कोई परमानैंट जीवन का हिस्सा नहीं. विवाह हमेशा तोड़ा जाता रहा है. हमारे पौराणिक इतिहास में तो पतिपत्नी हमेशा विवाद से ग्रस्त रहे हैं और शायद ही कोई ऐसा जोड़ा हो, जो आदर्श पतिपत्नी के रूप में रहा हो. जो खुद ईश्वर के अवतार रहे हैं या अवतारों की संतान कहे जाते हैं, आदर्श पतिपत्नी का उदाहरण पेश नहीं कर सके.

इसीलिए किसी को भी विवाह तोड़ने पर कोई विशेष अपराध भाव नहीं पालना चाहिए. विवाह में बच्चे हुए या नहीं हुए, अगर लगने लगे कि इस बीमार काया को ढोने से अच्छा इस से मुक्ति पाना है तो इसे अपना लेना चाहिए. अगर मुसलमानों का कोई हिस्सा तीन तलाक को मानता है तो यह गलत नहीं, क्योंकि यह एकतरफा होते हुए भी सहज और सुलभ तरीका है एकदूसरे से रंज और रोष भरे संबंध को तोड़ने का.

भारतीय जनता पार्टी तो नहीं कर सकती पर दूसरी पार्टियों को चाहिए था कि वे कहते कि तीन तलाक का यह अधिकार पुरुषों के साथसाथ औरतों को भी मिले ताकि कानूनन बराबरी हो जाए और भेदभाव की आड़ में हिंदू एजेंडे को लागू न करा जा सके. यह सुविधा हिंदुओं को भी मिलनी चाहिए, क्योंकि एक बोझिल विवाह जितनी जल्दी समाप्त हो जाए उतना ही अच्छा है.

पर यहां सवाल उठता है कि कौन सा विवाह बोझ है, कौन सा विवाह बीमार है. जैसे लाइलाज बीमारी से ग्रस्त बेटे या पिता को मारा नहीं जाता वैसे ही जब तक विवाह जिंदा है, उसे सहना भी चाहिए और स्वीकारना भी. जरूरत उस के इलाज की है, उसे तलाक का जहर देने की नहीं. असल में विवाह तोड़ना निकटतम संबंधी की मृत्यु के बराबर ही नहीं उस से बढ़ कर है. जब विवाह संक्रमण के कारण अपनेआप मर जाए तभी उसे फूंका जा सकता है. यह संक्रमण एक साथी का दूसरा साथी ढूंढ़ लेना हो सकता है, अलग जा कर रहना हो सकता है, विवाह संबंध पर पुलिस का तेजाब उड़ेल देना हो सकता है, भयंकर मारपीट हो सकती है.

केवल असहमति, ताने देना, जोर से बोलना, गुस्सा होना, रूठना, रोनाधोना, देर से घर आना, डांटफटकार करना आदि विवाह की छोटीबड़ी बीमारियों में गिना जा सकता है. उन्हें विवाह के मरने की संज्ञा नहीं दी जा सकती. बहुत से युवा केवल असहमति पर विवाह तोड़ देते हैं और यह तुनकबाजी लंबे समय तक कष्ट देती है. अरेंज्ड मैरिज हो या लव मैरिज, बाद में पतिपत्नी में सैक्स के माध्यम से यह संबंध प्रेमी जोड़े का सा ही हो जाता है. एक बार का प्रेम कुछ अरसे बाद इतना कटु हो जाए कि इसे बहुत आसानी से घर बदलने की तर्ज पर तोड़ दिया जाए, गलत है.

यह समझ लेना चाहिए कि जब तक दूसरा दरवाजा खुला न हो अपना बनाबनाया सुरक्षा देता दरवाजा छोड़ देना पति और पत्नी दोनों के लिए बेवकूफी है. विवाह व्यावहारिकता पर टिका होता है. यह धार्मिक या कानूनी बंधन नहीं. दोनों चाहते हैं कि विवाह में विवाद हो ताकि धर्म और कानून के बिचौलियों की बनी रहे. पतिपत्नी विवाद में बाहरी लोग, दोनों के मातापिता, रिश्तेदार, दोस्त, सहकर्मी, काउंसलर, पंडे, मुल्ला, पुलिस, अदालत जितना न आएं उतना अच्छा है. ये सब पतिपत्नी के झगड़े में अपना उल्लू सीधा करते हैं.

मुझे मगरमच्छों के बीच रहना आता है : मंजरी फडनिस

हिंदी फिल्म ‘रोक सको तो रोक लो’ से कैरियर की शुरुआत करने वाली मंजरी फडनिस ने बांगला, तमिल, तेलगू, मलयालम और मराठी फिल्मों में भी काम किया है. हालांकि उनकी पहली फिल्म कुछ खास नहीं चली, पर फिल्म ‘जाने तू या जाने ना’ में इमरान खान की प्रेमिका के रूप में उसके काम को काफी सराहना मिली और फिल्म भी हिट रही. विज्ञापनों के अलावा उसने शोर्ट फिल्मों में भी काम किया है.

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महाराष्ट्रीयन और आर्मी परिवार से सम्बन्ध रखने वाली मंजरी बहुत अनुशासित जीवन व्यतीत करती हैं और किसी भी फिल्म में अपना सौ प्रतिशत वचनबद्धता रखती हैं. स्वभाव से हंसमुख मंजरी अब अपनी फिल्म ‘बाबा ब्लैक शीप’ में मुख्य भूमिका निभा रही हैं. उनसे मिलकर बात करना रोचक था,पेश है अंश.

इस फिल्म में आपकी भूमिका क्या है और इसे करने की वजह क्या है?

इसमें मैं एन्जिलोना की भूमिका निभा रही हूं. वह बाबा की गर्ल फ्रेंड है और विपरीत परिस्थिति में वह इस रिश्ते को कैसे बैलेंस करती है, उसे ही दिखाया गया है. इसकी कहानी मुझे रुचिकर लगी और मैंने हां कर दी.

फिल्मों में आने की प्रेरणा कहां से मिली?

फिल्मों में आना इत्तफाक नहीं था, न ही बचपन से सोचा था. मैं एक आर्मी औफिसर की बेटी हूं और पहले 3 साल तक पिता की पोस्टिंग के साथ मुंबई रह चुकी थी. उस दौरान मुंबई को थोड़ा जान चुकी थी. बचपन से मुझे स्कूल के स्टेज में एक्टिंग करना पसंद था, पर अभिनय ही सब कुछ मेरे लिए होगा, ऐसा नहीं सोचा था, क्योंकि परिवार का कोई सदस्य इंडस्ट्री से नहीं था. मैं पढ़ाई में अच्छी थी और मनोवैज्ञानिक बनना चाहती थी. 11वीं पढ़ते समय लगा कि मुझे परफोर्मेंस में मजा आता है और मैं एक्ट्रेस बन सकती हूं और 12 वीं के बाद मुंबई आई और पोर्ट फोलियों दिया और पहली फिल्म के लिए काम मिल गया.

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काम से पहले और काम के बाद इंडस्ट्री के बारें में आपकी सोच में कितना बदलाव आया?

पहले जब मैंने अपने माता-पिता से कहा कि मैं अभिनय करुंगी, तो वे हंसे, उन्हें लगा कि मैं मजाक कर रही हूं. उन्होंने सहयोग भी इस बात से दिया कि थोड़े दिनों बाद मैं खुद ही इस सोच को बदल दूंगी, पर मुझे पता था कि मैं क्या कर रही हूं. मैं बहुत स्ट्रोंग माइंड की लड़की हूं. हां ये जरुर हुआ, जब मैं आ रही थी, तो सभी रिश्तेदारों ने बहुत सारी बातें की, लेकिन मेरे माता-पिता को विश्वास था और मुझे भी  यहां सब लोग अच्छे मिले, जिन्होंने मुझे आगे बढ़ने में मदद की. गलत लोग हर जगह होते हैं और मुझे उससे निकलना आता है.

क्या कभी कास्टिंग काउच का सामना करना पड़ा?

हां जरुर करना पड़ा, पर सीधे तौर पर नहीं. जैसे कि वे कहते थे कि आप मुझे पसंद हो और मैं आपको और अच्छी तरह समझना चाहता हूं, इस तरह भावनात्मक रूप से जुड़ने की कोशिश करते है. ये सही है कि इंडस्ट्री में कोई आपको किसी काम के लिए प्रेशर नही बना सकता. आपकी मर्जी से ही सब होता है, अगर मैंने किसी को कुछ मना भी कर दिया हो, तो वह काम नहीं मिलता. मैंने बहुत सारे काम छोड़े भी है, पर उससे मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ता. नई आने वाले सभी एक्ट्रेस के साथ ऐसा होता है. मुझे इन मगरमच्छों के बीच में रहना आता है और मुझे ये कठिन नहीं लगता.

आपके जीवन की टर्निंग प्वाइंट कौन सी फिल्म है?

मेरे जीवन की टर्निंग प्वाइंट फिल्म ‘जाने तू या जाने ना’ रिलीज हुई थी. आज से 10 साल पहले मैं शूट के लिए बैंकाक में थी और फिल्म रिलीज के एक सप्ताह बाद जब मैं मुंबई आई तो सब लोग मुझे देखकर इतने खुश हुए कि मैं बयां नहीं कर सकती और इसी से मुझे पुरस्कार भी मिला और वही मेरी उपलब्धि थी.

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परिवार का कितना सहयोग था?

मैं माता-पिता की अकेली संतान हूं, लेकिन बहुत सालों से अकेले ही मुंबई में रह रही हूं, वे पुणे में रहते हैं. मानसिक और वित्तीय रूप से बहुत सहयोग रहा है.

यहां तक पहुंचने में कितना संघर्ष था?

संघर्ष तो चलता ही रहता है. उसका रूप बदलता है. नए होने पर पहले काम का मिलना संघर्ष होता है. पहली पिक्चर मुझे मुंबई शिफ्ट होने से पहले ही मिल गयी थी. फिल्म नहीं चली तो संघर्ष बदला और दूसरी फिल्म के लिए चुनौती आई. ‘जाने तू या जाने ना’ मिली और फिर रास्ता आसान हुआ.

क्या कोई ड्रीम प्रोजेक्ट है?

मुझे बायोपिक नूर इनायत खान करने की इच्छा है. राजकुमार हिरानी की फिल्म करने की इच्छा है. मैं रोमांटिक कोमेडी पसंद करती हूं.

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किसे बार-बार देखना पसंद करती हैं?

मुझे श्री देवी, काजोल, रानी मुखर्जी और माधुरी की फिल्में बहुत पसंद है.

कितनी फैशनेबल और फूडी हैं?

मुझे फैशन अधिक पसंद नहीं, लेकिन बहुत फूडी हूं. मिठाई बहुत पसंद करती हूं. मेरी मम्मी रूचि फडनिस तरह-तरह के व्यंजन बनाना पसंद करती हैं. वह महाराष्ट्र का वरण भात, काली दाल, पालक पनीर आदि सभी अच्छा बनाती हैं.

क्या कोई सोशल वर्क करने की इच्छा है?

मैं एनिमल लवर हूं और दो बिल्लियां रखी है. इसलिए जानवरों के लिए काम करना चाहती हूं.

आपको सुपर पावर मिले तो क्या बदलना चाहती हैं?

राजनेताओं की सोच और सारें रेपिस्ट को मार देना चाहती हूं.

नए आने वाले आर्टिस्ट के लिए क्या संदेश देना चाहती हैं?

आप को काम के लिए धीरज रखना होगा, ऐसे में अपने आप पर भरोसा और आत्मविश्वास का होना भी बहुत जरुरी है.

चर्चा गुणदोषों पर होती तो अच्छा होता

जिंदगी और मौत पर किसी का बस नहीं है. यह पुरानी कहावत है. पर मौत को भुनाना तो अपने बस में है ही न? फिल्मी तारिका श्रीदेवी की सिर्फ 54 साल की उम्र में दुबई के एक होटल के कमरे में बाथटब में हुई मौत ने घंटों टीवी चैनलों को और कई दिनों तक समाचारपत्रों में सुर्खियों को चमकाने का मौका दे डाला. उन की मौत पर इस तरह की आलतूफालतू बातें हुईं मानो देश में कोई भूचाल आ गया हो.

श्रीदेवी की मौत चाहे हादसा थी, प्राकृतिक थी या फिर सुनियोजित, एक व्यक्तिगत मामले से ज्यादा नहीं थी. बोनी कपूर व श्रीदेवी कपूर में अगर अनबन थी भी और उस की मृत्यु में कोई रहस्य छिपा हुआ भी था तो भी इस बात को इतना तूल देने की जरूरत न थी. यह एक खाली बैठे समाज की पहचान है, जिसे दूसरों के गमों और गलतियों में मजा आता है ताकि वह अपने गम भुला सके. श्रीदेवी मौत के समय एक रिटायर्ड ऐक्ट्रैस थीं. 12 साल बाद घरगृहस्थी के चक्कर से निकल कर श्रीदेवी ने ‘इंग्लिशविंग्लिश’ व ‘मौम’ फिल्मों में बेहतरीन काम किया पर फिर भी वे अपनी पुरानी जगह न ले पाईं. वे न मृत्यु के समय मर्लिन मुनरो थीं और न मधुबाला.

श्रीदेवी ने बहुत सी अच्छी फिल्मों में काम किया पर उन की कम ही फिल्मों ने कोई सामाजिक असर छोड़ा. आखिरी 2 फिल्मों में मांओं और पत्नियों के रोल में वे प्रेमिकाओं और नर्तकियों से अच्छा प्रभाव दिखा सकीं. दोनों फिल्में सामाजिक मामलों पर थीं और मां को अपने विशिष्ठ स्थान दिखाने वाली थीं. उन का प्रभाव था पर ‘चांदनी’, ‘सदमा’, ‘मिस्टर एक्स’ में उन के रोल अच्छे होते हुए भी वे लंबा प्रभाव न छोड़ पाईं. ‘लमहे’ का विषय जरूर चौंकाने वाला था और आशा थी कि उसे दूसरी फिल्मों से ज्यादा सफलता मिलेगी पर उस फिल्म को भारतीय दर्शक पचा न पाए. अपनी मां के प्रेमी से प्रेम करना लोगों को इंसैस्ट की तरह लगा था. एक अभिनेत्री की मृत्यु उस के काम की समीक्षा करने का एक और मौका होता है और जो चर्चा कई दिनों तक होती रही वह फिल्मों, व्यक्तित्त्व, गुणदोषों पर होनी चाहिए थी पर होती इस बात पर रही कि मौत कैसे हुई?

कोई नकली बाथटब को दिखा रहा है, कोई शराब की बात कर रहा है तो कोई और ऊंची उड़ान उड़ रहा है. फिल्मी तारिका की इतनी चीरफाड़ की गई जितनी शायद पोस्टमार्टम में भी न की गई होगी. बेहद प्रसिद्ध तारिकाओं के गुजरने के बाद एक जनून सा छाता है और वह स्वाभाविक है पर उसे संयम से देखा जाना चाहिए, गपोड़ी किस्सों के लिए अवसर नहीं.

लव इन सिक्सटीज : क्या करें क्या नहीं, हम आप को बताते हैं

60 वर्षीय वर्माजी आजकल बड़े खुश नजर आने लगे हैं. इसी वर्ष सरकारी डाक्टर के पद से रिटायर होने के बाद उन्होंने अपना एक क्लीनिक खोल लिया है जिस में एक महिला डाक्टर के साथ बैठते हैं. मेरे पति के अच्छे मित्र हैं. एक दिन जब वे घर आए तो मेरे पति ने मजाकिया अंदाज में पूछा, ‘‘क्या बात है गुरु आजकल तो बड़े खिलेखिले नजर आते हो, कैसी कट रही है रिटायर्ड जिंदगी?’’

‘‘अरे बहुत बढि़या कट रही है. अपना क्लीनिक खोल लिया है जिस में मैं और लेडी डाक्टर मिसेज गुप्ता साथसाथ बैठते हैं. क्या सुलझी हुई महिला है यार. मैं ने आज तक अपने जीवन में ऐसी महिला नहीं देखी, एकदम फिट और कुशल. अधिकांश मरीज तो उस की मीठी वाणी सुन कर ही ठीक हो जाते हैं.’’ वर्माजी अपनी डाक्टर मित्र की तारीफ के कसीदे पढ़े जा रहे थे और मैं व मेरे पति मंदमंद मुसकरा रहे थे, क्योंकि हमें पता था कि उन की पत्नी यानी मिसेज वर्मा को उन का क्लीनिक पर बैठना जरा भी पसंद नहीं था. न तुम्हें फुरसत न हमें

इसी बात को ले कर दोनों में तनातनी होती रहती थी. बच्चे बाहर होने के कारण दोनों पतिपत्नी अकेले ही हैं. वर्माजी जहां स्वयं को क्लीनिक में व्यस्त कर के बाहर ही सुख और प्रेम तलाशते हैं वहीं उन की पत्नी की अपनी भजन मंडली हैं जिस में वे सदा व्यस्त रहती हैं. दोनों की व्यस्तता का आलम यह है कि कई दिनों तक आपस में संवाद तक नहीं होता. एक बार जब उन की बेटियां विदेश से आईं तो मातापिता का परस्पर व्यवहार देख कर दंग रह गईं. दोनों ही अपनेअपने में मस्त. बेटियों को कुछ ठीक नहीं लगा सो मां से कहा, ‘‘मां यह ठीक नहीं, हम लोग इतनी दूर विदेश में रहते हैं. ऐसे में आप दोनों को एकदूसरे का खयाल रखना होगा. यदि आप कहें तो मैं पिता से बात करूं. आप दोनों ने तो अपनी अलगअलग दुनिया बसा रखी है, यहां तक कि आप लोगों की तो कई दिनों तक आपस में बात ही नहीं होती.’’

मिसेज वर्मा को भी काफी हद तक बेटियों की बात सही लगी. ‘‘नहीं, मैं ही देखती हूं क्या कर सकती हूं.’’ कह कर बेटियों को तो बहला दिया पर उन्हें स्वयं ही अहसास होने लगा कि शायद भक्ति में वे अपने पति को ही भूलने लगी हैं और इसलिए पति घर से बाहर प्यार तलाशने लगे हैं. काफी सोचविचार के बाद वे एक दिन अपने पति से बोलीं, ‘‘आप का क्लीनिक खोलना ठीक ही रहा, कम से कम व्यस्त और फिट तो रहते हो. घर में रह कर तो आदमी अपनी उम्र से पहले ही बूढ़ा हो जाता है. आप की बगल वाली एक दुकान खाली है न, मैं भी एक बुटीक खोल लेती हूं. बोलो ठीक है न.’’

वर्माजी अपनी पत्नी को आश्चर्य से देखने लगे और फिर धीरे से बोले, ‘‘फिर भजन कौन करेगा.’’ ‘‘दरअसल बेटियों ने मुझे समझाया कि मम्मी कब से बुटीक खोलना आप का सपना था, तो अब खोल लीजिए. बस मुझे क्लिक कर गया. आप भी पास में रहेंगे तो मुझे कोई टैंशन नहीं रहेगी और मैं सब संभाल भी पाउंगी.’’ मिसेज वर्मा ने सफाई देते हुए कहा.

कुछ ही दिनों बाद वर्माजी ने अपनी बगल की शौप में श्रीमतीजी का बुटीक खुलवा दिया. इस बहाने दोनों एकदूसरे को वक्त देने लगे तो शीघ्र ही खोई नजदीकियां वापस आने लगीं. 55 वर्षीय गुप्ताजी जबतब अपने स्कूटर पर औफिस की महिलाकर्मियों को बैठा कर घूमते नजर आते हैं. अकसर अपनी एक महिला मित्र के साथ कौफी शौप में भी नजर आते हैं. समाज में ऐसी बातें बड़ी तेजी से फैलती हैं सो मिसेज गुप्ता के कानों में भी पड़ी.

तभी एक दिन उन की पड़ोसन, जिस के पति गुप्ताजी के औफिस में ही काम करते थे, मिसेज गुप्ता से व्यंग्यपूर्वक बोली, ‘‘क्या बात है आजकल भाईसाहब औफिस की महिलाओं के बहुत काम करवाते हैं.’’ मिसेज गुप्ता अंदर से तो बहुत आहत हुईं पर फिर कुछ संयत हो कर बोलीं, ‘‘अब औफिस हैड हैं तो आफिस वालों का ध्यान तो रखना ही पड़ता है. आप चिंता न करें. उन की चिंता करने के लिए मैं हूं न.’’

पड़ोसन के जाने के बाद वे गहरी सोच में पड़ गईं कि आखिर उन के पति ऐसा क्यों कर रहे हैं? वे सोचने लगीं चीखनेचिल्लाने या कलह करने से तो बात बनने वाली नहीं है. प्यार ही वह रास्ता है जिस से गुप्ताजी को वापस लाया जा सकता है ताकि वे घर के हो कर रहें. तलाश सच्चे साथी की

55 वर्षीया मिसेज सिन्हा लंबी कदकाठी और बला की खूबसूरती स्वयं में समेटे हैं. औफिस का प्रत्येक पुरुष उन से बात करने को लालायित रहता है. नए अधिकारी मिश्राजी की पत्नी की कुछ समय पूर्व मृत्यु हो चुकी थी. कुछ दिनों के बाद जब उन्होंने मिसेज सिन्हा को कौफी के लिए पूछा तो मिसेज सिन्हा का दिल भी बागबाग हो उठा. आखिर वे भी अपने शराबी पति की रोजरोज की चिकचिक से परेशान थीं सो दिल में सोया हुआ रोमांस मानो हिलोरें लेने लगा. मिश्राजी का औफर उन्होंने खुशीखुशी स्वीकार कर लिया. बस यहीं से दोनों के प्यार की जो रेलगाड़ी निकली वह मिसेज सिन्हा के अपने पति से तलाक और फिर मिश्राजी से शादी पर जा कर ही रुकी. आखिर वे भी कब तक पति की रोज गालीगलौज और मारपीट को सहतीं. प्यार और सुकून से जीने का हक तो संसार में सभी को है.

34 साल की तनूजा एक स्कूल में शिक्षिका हैं. एक बच्ची को पढ़ाने उस के घर जाती हैं. कुछ दिनों तक बच्ची को पढ़ाने के बाद उन्होंने नोटिस किया कि वे जितनी देर तक बच्ची को पढ़ाती हैं, बच्ची के 60 वर्षीय दादाजी किसी न किसी बहाने से कमरे में आतेजाते हैं. एक दिन जब पोती अंदर किसी काम से गई तो उन्होंने तनूजा से कहा, ‘‘मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं. प्लीज शाम को 4 बजे पास वाली कौफी शौप में आ जाना.’’

तनूजा पहले तो घबरा गई फिर कुछ संभल कर बोली, ‘‘क्यों अंकल?’’ ‘‘घबराओ नहीं मैं बस मिलना चाहता हूं.’’

शाम को कौफी शौप में वे दोनों आमनेसामने थे. तनूजा को देखते ही बोले, ‘‘न जाने क्यों तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. तुम बहुत काबिल हो और मेरी पोती को बेहद अच्छे ढंग से पढ़ाती हो. मेरी पत्नी तो मुझे दुत्कारती रहती है पर तुम्हें देखना और तुम से बात करना मुझे अच्छा लगता है.’’ अपनी तारीफ सुन कर तनूजा के गाल सुर्ख लाल हो उठे. उस के बाद से वे दोनों अकसर आपस में मिलने लगे. तनूजा को भी उन से मिल कर बड़ा ही सुकून मिलता और वह दोगुने उत्साह से अपना काम करने लगती परंतु कुछ ही समय में उसे एक पत्नी और एक मां होने का अहसास होने लगा.

जब अपने पति से उस ने दादाजी की समस्या शेयर की तो पहले तो पति चौंक गए पर फिर कुछ सोच कर बोले ‘‘हम दोनों मिल कर उन की समस्या का हल निकालेंगे.’’ इस के बाद तनूजा और उस के पति ने एक अनुभवी काउंसलर से दोनों की काउंसलिंग करवाई. आज दादाजी और दादीजी तो एकदूसरे का साथ पा कर खुश हैं ही, तनूजा और उन के परिवार के घनिष्ठ पारिवारिक संबंध भी हैं. प्यार उम्र नहीं देखता

वास्तव में प्यार एक ऐसी भावना है जो न उम्र देखती है, न जाति और न धर्म. वह तो कहीं भी, कभी भी, और किसी से भी हो सकता है. जिस प्रकार किशोरावस्था या युवावस्था में व्यक्ति प्यार से वशीभूत हो कर सब भूल जाता है उसी प्रकार इस उम्र में भी प्यार का अहसास व्यक्ति को मानसिक और भावनात्मक सुकून देता है. किशोरावस्था का प्यार महज एक आकर्षण होता है जब कि युवावस्था के प्यार में गहराई और स्थायित्व होता है. इस के विपरीत 60 साल के प्यार में प्यार के सभी भाव पाए जाते हैं क्योंकि इस उम्र का व्यक्ति रिश्तों के कई बंधनों में बंध चुका होता है और प्यार के कई रूप देख चुका होता है.

इस उम्र में बच्चे अपनीअपनी राह पकड़ चुके होते हैं. पतिपत्नी में यदि सामंजस्य का अभाव है तो वे बाहर किसी व्यक्ति से मिले प्यार और अपनेपन के कारण मानसिक सुकून और ऊर्जा से ओतप्रोत हो उठते हैं. सामाजिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो इस प्रकार का व्यवहार अशोभनीय और मर्यादाविहीन है पर इस से परे इंसान को जहां सुकून या शांति का आभास होगा उस ओर स्वत: उस के कदम उठ ही जाएंगे. आखिर खुश हो कर जीने का अधिकार तो सभी को है. वास्तव में घर की जिम्मेदारियों, बच्चों और काम की अधिकता के कारण कई बार पतिपत्नी का वो पहले सा प्यार कहीं गुम सा हो जाता है.

जब 60 की उम्र में पति या पत्नी किसी और की तरफ आकर्षित होने लगे तो क्या करें, आइए जानते हैं:

– यदि पतिपत्नी में से किसी को भी अपने साथी के प्यार की इस अद्भुत राह पर होने का अहसास होता है, तो एक बारगी मन बेकाबू होने लगता है पर इस का हल भी आप को स्वयं ही निकालना होगा ताकि घर की बात घर में ही रहे.

– प्रेमी पति या पत्नी को वापस अपने करीब लाने के लिए कभी परिवार, पड़ोस या बच्चों का सहारा न लें. क्योंकि इस प्रकार की समस्या को जितनी अच्छी तरह आप खुद हैंडल कर सकते हैं उतनी अच्छी तरह कोई और नहीं.

– अपनी दिनचर्या का आकलन करें कि क्या आप अपने जीवनसाथी को पर्याप्त समय और अपनापन दे पा रहे हैं. कहीं ऐसा तो नहीं कि प्यार और अपनेपन के अभाव में उन्होंने बाहर की राह पकड़ ली हो.

– साथी की किसी से अंतरंगता का पता चलने पर अपने व्यवहार को शांत, मधुर और प्रेम से ओतप्रोत रखें ताकि आप समस्या का समाधान निकाल सकें .

– इस उम्र तक आतेआते आमतौर पर महिला और पुरुष दोनों जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाते हैं. शरीर पर चर्बी की मोटी परत, भद्दा व्यक्तित्व किसी को भी अपनी ओर आकर्षित नहीं करता. ऐसे में बाहरी आकर्षण व्यक्ति को अपनी ओर खींच लेता है. आवश्यकता है खुद को फिट, स्वस्थ, जिंदादिल और आकर्षक बनाए रखने की ताकि परस्पर आकर्षण और प्यार की भावना बनी रहे.

यदि आप अपने साथी को अपने प्रयासों से वापस लाने में सफल नहीं हो पा रहे हैं तो बजाय नातेरिश्तेदारों, पड़ोसी अथवा मित्रों से मदद लेने के आप प्रोफैशनल काउंसलर का सहारा लें जो आप की समस्या को भलीभांति समझ कर हल निकालेंगे.

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शादियों का सीजन शुरू हो चुका है. मन में पिया मिलन के सपने संजोए हर दुलहन खूबसूरत दिखना चाहती है. फिर नईनवेली दुलहन जब स्टेज पर आती है तो सब का ध्यान उसी की ओर जाता है. दूल्हे राजा भी कनखियों से अपनी दुलहन को निहारने का कोई मौका नहीं छोड़ते. तो फिर क्यों न शादी से 1 महीना पहले से ही इस की तैयारी शुरू कर दी जाए ताकि आप दिखें निखरीनिखरी, संवरीसंवरी सब से खूबसूरत दुलहन.

शुरुआत अंदरूनी निखार से

अंदरूनी निखार का मतलब है आप की त्वचा प्राकृतिक रूप से खिली और निखरी नजर आए. इस के लिए उसे रोजाना देखभाल की जरूरत होगी. नियमित क्लीनिंग, टोनिंग और मौइश्चराइजिंग से त्वचा धीरेधीरे निखरने लगती है. क्लीनिंग के लिए किसी भी अच्छे क्लीनिंग लोशन से सोने से पहले चेहरे, गरदन और हाथपैरों को अच्छी तरह साफ करें. इस के बाद टोनर और मौइश्चराइजर से त्वचा की अच्छी तरह मसाज कर के सोएं.

अपनी त्वचा को सुकोमल और चमकदार बनाने के लिए दूध और दही का प्रोटीन इस्तेमाल करें. इस के अलावा ऐसेंशियल औयल भी मसाज के लिए अच्छा है. लूफा और स्क्रब से पूरे शरीर को स्क्रब करें ताकि मृत त्वचा हट जाए और त्वचा को भरपूर औक्सीजन मिल सके.

होम ब्लीचिंग

शादी की शौपिंग करतेकरते धूप में त्वचा की रंगत सांवली हो सकती है. इसे ठीक करने के लिए घर पर बनाया ब्लीच बैस्ट रहेगा. इस के लिए फुलक्रीम मिल्क पाउडर में हाइड्रोजन पैरोक्साइड की इतनी बूंदें मिलाएं कि पेस्ट बन जाए. फिर इस में ग्लिसरीन की कुछ बूंदें मिलाएं और त्वचा पर लगाएं. 15 मिनट बाद धो लें. कभीकभी ब्लीचिंग से त्वचा में रूखापन आ जाता है. अगर ऐसा हो तो कोई अच्छा सा मौइश्चराइजिंग लोशन लगाएं. अगर त्वचा में पिगमैंटेशन हैं तो विटामिन ई कैप्सूल को तोड़ कर कैस्टर औयल में मिला कर चेहरे पर लगाएं.

बालों की देखभाल

बालों की देखभाल का सब से बेहतर तरीका यह है कि उन्हें नियमित रूप से क्लीनिंग और कंडीशनिंग दें. अपने बालों की नियमित रूप से गरम तेल से मसाज करें. कैस्टर औयल, सनफ्लौवर औयल या कोकोनट औयल में कुछ बूंदें अरोमा लैंगलैंग औयल मिला कर मालिश करें. इस से बालों को पोषण तो मिलेगा ही, साथ ही वे सिल्की और खूबसूरत भी लगेंगे. बालों की कंडीशनिंग के लिए मेथीदाना और दही का पैक बना कर लगाएं. अगर बालों को कलर करवाना है तो पहले से टैस्ट कर लें. कहीं ऐसा न हो कि हेयर कलर सूट न करे और लेने के देने पड़ जाएं. बालों की स्ट्रेटनिंग सब से लास्ट में करवाएं. अगर रूसी है तो इस के लिए पहले से ट्रीटमैंट ले लें. दही बालों को प्रोटीन देने के साथसाथ रूसी को भी हटाता है. रोज सोने से पहले बालों की अच्छी तरह कौंबिंग करें. इस से बालों की भीतरी त्वचा में ब्लड सर्कुलेशन सही रहेगा, जिस से बालों की चमक बढ़ेगी.

त्वचा बने चमकदार

अपने हाथपैरों और गरदन की त्वचा का खास खयाल रखें. नैचुरल देखभाल के लिए किसी भी गूदेदार फल को मैश कर के उस में मिल्क पाउडर मिला कर त्वचा पर लगाएं और 20 मिनट बाद धो लें. कुछ बूंदें औलिव औयल ले कर पूरे शरीर की मसाज करें. हैंड व फुट क्रीम रोजाना लगाएं. बादाम का तेल भी मसाज के लिए अच्छा रहेगा. नियमित मसाज से त्वचा कांतिमय बनेगी.

त्वचा के निखार के लिए फल और सब्जियां ज्यादा खाएं. साथ में सलाद भी लें. फ्रूट जूस त्वचा में प्राकृतिक चमक लाने का बेहतर उपाय है. शादी की शौपिंग के लिए नियमित बाहर जाना पड़े तो घर वापस आने पर त्वचा को रिलैक्सेशन दें. कच्चे दूध और गुलाबजल से त्वचा को टोन्ड करें.

भरपूर नींद लें

अकसर शादी की दौड़भाग, आने वाली खुशियों के बारे में सोचसोच कर और गानेबजाने के चक्कर में दुलहन की नींद पूरी नहीं होती, जिस से आंखों के नीचे काले घेरे पड़ जाते हैं. चाहे कुछ भी हो सारे सोचविचार छोड़ कर भरपूर और गहरी नींद सोएं ताकि शादी के दिन आप खिलीखिली और निखरी नजर आएं. नियमित मैडीटेशन व्यर्थ के तनाव को दूर करने में मददगार साबित होगा. नियमित मैडीटेशन से दिमाग शांत और संतुलित रहेगा, जिस से नींद अच्छी आएगी और चेहरा आभायुक्त रहेगा.

पार्लर की बुकिंग

आप जिस पार्लर में हमेशा जाती हैं वही पार्लर बुक करवाएं, क्योंकि वहां की ब्यूटीशियन आप की त्वचा के स्वभाव को अच्छी तरह जानती है. मैनीक्योर, पैडीक्योर, मसाज, फेशियल वगैरह के साथ शादी वाले दिन मेकअप भी वहीं से करवाएं, क्योंकि नियमित रूप से जाने की वजह से वह आप से भावनात्मक रूप से जुड़ी होती है, इसलिए वह आप को अपना समझ कर तैयार करेगी.

सही लहंगे का चुनाव

शादी वाला दिन दुलहन के लिए सब से खास होता है. इस दिन सभी की नजरें उसी पर होती हैं. घराती और बरातियों का अटैंशन पाना है तो सही लहंगे का चुनाव जरूरी है ताकि जब आप दुलहन बन कर स्टेज पर जाएं तो सब की निगाहें बस आप पर जम जाएं खासकर दूल्हे राजा की. अपने कद, त्वचा के रंग और शारीरिक गठन को देखते हुए लहंगे का चुनाव करें. लंबी और दुबली लड़कियों के लिए ज्यादा घेर वाला लहंगा सही रहेगा. गोरे रंग के लिए सौफ्ट पेस्टल, पिंक, पीच या लाइट सौफ्ट ग्रीन कलर खूब जंचेगा पर लहंगे का आदर्श रंग लाल ही होता है. लाल रंग के लहंगे में सजी दुलहन का रूप कुछ अलग ही निखर कर आता है.

छोटे कद वाली दुलहन के लिए कम घेरदार लहंगा सही रहेगा. अगर आप का रंग गेहुआं है तो रूबी रैड या औरेंज लहंगे का चयन कर सकती हैं. सांवली रंगत के लिए लाल या मजैंटा कलर का लहंगा ठीक रहेगा. अगर लहंगा हैवी वर्क वाला हो तो चुनरी हलकी होनी चाहिए. यह ध्यान रहे कि आप का लहंगा इतना भी हैवी न हो कि संभाला ही न जाए.

ज्वैलरी का चयन

ब्राइडल लहंगे के बाद बारी आती है सही ज्वैलरी के चयन की. मार्केट में हलकी और हैवी हर तरह की डिजाइन की ज्वैलरी मिलती है. पोलकी ब्राइड ज्वैलरी आजकल ट्रैंड में है. पोलकी सैट में सोने के अंदर बिना कटे हुए डायमंड या कीमती स्टोन्स होते हैं. स्टोन ड्रौप और पर्ल के पोलकी गहने भी जंचते हैं. अगर आप का बजट अच्छा है तो डायमंड ब्राइडल सैट खरीद सकती हैं. गोल्ड से बना पूरा सैट, जिस में मैचिंग इयररिंग्स, कड़े और मांगटीका भी शामिल हो तो वह भी खूब जंचेगा. अगर आप कुछ हट कर और यूनीक दिखना चाहती हैं, तो ऐंटीक ज्वैलरी आप को क्लासिक लुक देगी.

आपने ट्राई किया इंडियन रैप

सामग्री

– 150 ग्राम मैदा

– 80 ग्राम आटा

– 1 बड़ा चम्मच तेल

– 1 बड़ा चम्मच दही

– 100 ग्राम बेसन

– 1/2 छोटा चम्मच हरीमिर्च का पेस्ट

– 1/2 छोटा चम्मच गरममसाला

– 1 चम्मच अदरक व लहसुन का पेस्ट

– थोड़ी सी धनियापत्ती कटी हुई

– पर्याप्त तेल

– 1 प्याज कटा हुआ

– 1 पत्तागोभी कटी हुई

– 1 बड़ा चम्मच टोमैटो सौस

– 1 बड़ा चम्मच हरी चटनी

– चुटकी भर सफेदमिर्च पाउडर

– चुटकी भर लालमिर्च पाउडर

– चुटकी भर नमक

विधि

आटा, मैदा, नमक और सफेदमिर्च को अच्छी तरह मिलाएं. फिर इस मिश्रण में तेल और दही डाल कर मिश्रण को मिलाने के बाद पानी डालें औैर गूंध लें. फिर 15 मिनट के लिए अलग रख दें. अब बेसन, हरीमिर्च पेस्ट, लालमिर्च पाउडर, गरममसाला, अदरक व लहसुन का पेस्ट औैर धनियापत्ती मिलाएं. मिश्रण में पानी डालें और घोल तैयार कर लें. अब रैप के लिए पतलीपतली रोटियां बनाएं और गरम तवे पर दोनों तरफ से सेंकें. अब एक तरफ बेसन का घोल लगा कर सेंकें. अब आंच से तवे को हटा कर रैप पर प्याज और पत्तागोभी डालें. फिर टोमैटो सौस और चटनी डालें. अब रैप को रोल कर सर्व करें.

व्यंजन सहयोग

रुचिता कपूर जुनेजा

ये हैं दुनिया के सबसे बेहतरीन और महंगे होटल

दुनिया में कई ऐसे शानदार नजारे हैं जिन्हें हर कोई नहीं देख पाता, लेकिन ऐसे नजारों के बारे में जानने या सुनने का शौक सभी को होता है. इसी तरह दुनिया में हर सुख-सुविधाओं से भरपूर ऐसे होटल हैं, जो सभी की पहुंच में तो नहीं हैं, लेकिन इन होटल के बारे में जानना सभी के लिए दिलचस्प है. आइए, आज हम आपको बताते हैं दुनिया के सबसे मंहगे होटल के बारे.

द मार्क होटल

अमेरिका के न्यूयौर्क शहर में बना द मार्क होटल काफी महंगा है. यहां पैंट हाऊस में एक रात का किराया करीब 55 लाख रुपए है. यहां आपको सभी सुख-सुविधाएं जैसे 24 घंटे सेलौन और सूट टेलरिंग की सर्विस आदि सब कुछ मिलेगा.

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होटल प्रेजिडेंट विल्सन

यहां लगभग एक रात ठहरने का किराया 38 लाख रुपए है. इस होटल में 12 बेडरूम, 12 बाथरूम, हैलिपैड, सेनवे ग्रैंड पियानो, बिलियर्ड टेबल, बुलेटप्रूफ विंडो जैसी सुविधाएं मिलेगी. वहीं इसके टेरेस से आपको स्विटजरलैंड की खूबसूरती देखने का मौका मिलेगा.

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फोर सीजन होटल

न्यूयौर्क में बने इस होटल में एक रात रहना चाहते हैं, तो आपको 36 लाख रुपए खर्च करनो होंगे. यहां आपको अनलिमिटेड शैंपेन और मसाज उपलब्ध करवाई जाएगी.

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लौकला आइलैंड रिसौर्ट

फिजी में स्थित इस आईलैंड को 2003 में खरीदा था, जिसको बाद में प्राइवेट रिट्रीट में बदल दिया गया. यहां एक रात रुकने का किराया 35 लाख रुपए होगा.

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द रौयल विला

ग्रीस के इस आलीशान होटल में रुकने के लिए आपको 30 लाख रुपए खर्च करने होंगे. यहां आपको प्राइवेट जेट में घुमाया जाएगा और होटल के कर्मचारी आपको सेलिब्रिटी जैसा ही ट्रीट करते हैं.

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राज पैलेस होटल

राजस्थान के जयपुर में आपको कई शाही होटल मिल जाएंगे लेकिन जयपुर में बना यह रौयल राज पैलेस होटल काफी महंगा है. यहां की दीवारों को सोने की पत्ती, शीशे से बनाया गया है. यहां एक रात ठहरने का किराया 29 लाख रुपए है.

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